अपहरण का कारण बना लिव इन रिलेशन – भाग 2

28 नवंबर को दोपहर 12 बजे के करीब अपहर्त्ताओं का फोन फिर आया. उन्होंने कहा, ‘‘पैसे ले कर हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पहुंचो. वहां से 5 बजे बल्लभगढ़ जाने वाली ट्रेन पकड़ो. 5 बजे के बाद हम फिर फोन करेंगे.’’

नरेंद्र ने यह जानकारी पुलिस को दी तो सादा कपड़ों में पुलिस भी उस के साथ हो गई. पुलिस ने एक बैग में नोटों के बराबर कागज की गड्डियां रख कर नरेंद्र को दे दीं. बैग ले कर वे लोग हजरत निजामुद्दीन स्टेशन से बल्लभगढ़ जाने वाली ट्रेन में बैठ गए. जिस मोबाइल पर अपहर्त्ताओं का फोन आया था, वह फोन नरेंद्र ने अपने पास रख लिया था. ट्रेन ओखला स्टेशन से निकली ही थी कि अपहर्त्ताओं का फिर फोन आ गया. अपहर्त्ताओं द्वारा उन्हें फरीदाबाद रेलवे स्टेशन पर उतरने के लिए कहा गया.

फरीदाबाद स्टेशन पर उतरने के 10 मिनट बाद उन्होंने फोन कर के नरेंद्र को बताया कि वह दोबारा ट्रेन पकड़ कर हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पहुंच जाएं. नरेंद्र ने ऐसा ही किया. हजरत निजामुद्दीन पहुंचने के बाद फिर अपहर्त्ताओं का फोन आया कि वह ट्रेन पकड़ कर वापस फरीदाबाद आ जाएं. नरेंद्र और पुलिस टीम के जवान फिर से फरीदाबाद के लिए ट्रेन में बैठ गए. वे लोग इधर से उधर भागभाग कर परेशान हो गए थे. लेकिन बच्चे की खातिर वे अपहर्त्ताओं के इशारों पर नाचने को मजबूर थे. ट्रेन में बैठने के 5 मिनट बाद ही नरेंद्र के पास फिर से फोन आया.

इस बार अपहर्त्ताओं ने कहा, ‘‘तुगलकाबाद में पैसों का बैग चलती ट्रेन से नीचे फेंक देना.’’

‘‘आप लोग कोई एक जगह बताओ, हम आप को वहीं पैसे दे देंगे. इस तरह से परेशान मत करो. हम वैसे भी बहुत परेशान हैं.’’ नरेंद्र ने गुजारिश की.

‘‘अगर बच्चा जिंदा चाहिए तो जैसा हम कहते हैं करते रहो, वरना बच्चे से हाथ धो बैठोगे.’’

‘‘नहीं, आप बच्चे को कुछ मत करना. और हां, आप लोग हमें बच्चे की आवाज सुना दो, जिस से हमें विश्वास हो जाए कि बच्चा तुम्हारे पास ही है.’’

‘‘आवाज क्या सुनाएं, पैसे मिलने पर हम बच्चा ही वापस कर देंगे. लेकिन फिलहाल वही करो, जो हम कह रहे हैं.’’

अपहर्त्ताओं के कहने पर नरेंद्र चौधरी और पुलिस वाले फिर फरीदाबाद रेलवे स्टेशन पर उतर गए. उस समय रात के 10 बज चुके थे. नरेंद्र ने स्टेशन पर इधरउधर देखा. लेकिन उन्हें कोई नजर नहीं आया. जिन नंबरों से अपहर्त्ताओं के फोन आ रहे थे, नरेंद्र ने उन्हें मिलाए. लेकिन सभी स्विच औफ मिले. इस का मतलब फोन पर बात करते ही वे उस का स्विच औफ कर देते थे.

काफी देर इंतजार करने के बाद अपहर्त्ता का फोन आया. उस ने कहा कि अब वापस हजरत निजामुद्दीन चले जाओ और तुगलकाबाद के आगे रास्ते में रुपयों का बैग फेंक देना. तुगलकाबाद से आगे किस खास जगह बैग फेंकना था, यह बात उन्होंने फोन पर नहीं बताई थी, इसलिए नरेंद्र चौधरी ने रास्ते में बैग नहीं फेंका. वह वापस हजरत निजामुद्दीन पहुंच गए.

उधर क्राइम ब्रांच की एक टीम इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस के जरिए अपहर्त्ताओं द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे फोन नंबरों की जांच में लगी थी. उन की लोकेशन तुगलकाबाद इलाके की ही आ रही थी.

हजरत निजामुद्दीन लौटने के बाद नरेंद्र चौधरी क्राइम ब्रांच औफिस पहुंचे तो इंसपेक्टर सुनील कुमार ने बताया, ‘‘हमें अपहर्त्ताओं का सुराग मिल चुका है. लेकिन अभी भी हालात गंभीर हैं, क्योंकि बच्चा उन की कैद में है. हमें उम्मीद है कि कल सुबह तक आप का भांजा आप के पास होगा.’’

इस दौरान पुलिस ने जांच में यह पाया कि अपहर्त्ता अलगअलग नंबरों से नरेंद्र चौधरी को फोन करने के बाद एक दूसरे मोबाइल नंबर पर तुरंत काल करते थे. जिस नंबर पर वे काल करते थे, उस नंबर को पुलिस ने सर्विलांस पर लगा कर ट्रेस करना शुरू कर दिया था.

उस नंबर की लोकेशन बदरपुर बार्डर स्थित बाबा मोहननगर की आ रही थी और वह नंबर सराय कालेखां निवासी रविंद्र के नाम पर लिया गया था. एक पुलिस टीम उस पते पर पहुंची तो वहां रविंद्र नहीं मिला.

पुलिस ने अपने कुछ खास मुखबिरों को भी बाबा मोहननगर इलाके में लगा दिया. इसी दौरान एक मुखबिर ने पुलिस को सूचना दी कि बाबा मोहननगर की गली नंबर 6 स्थित मकान नंबर 21 की पहली मंजिल पर कुछ लोग ठहरे हुए हैं. उन के साथ 2 औरतें और एक बच्चा भी है.

मुखबिर द्वारा दी गई जानकारी पुलिस के लिए बहुत खास थी, इसलिए इंसपेक्टर सुनील कुमार ने तुरंत एसआई रविंद्र तेवतिया, रविंद्र वर्मा, एन.एस. राणा, कांस्टेबल मोहित और मनोज को बदरपुर के बाबा मोहननगर इलाके में भेज दिया. उस समय रात के 12 बजने वाले थे. पुलिस टीम मुखबिर द्वारा बताए पते पर पहुंच गई.

पुलिस को वहां पर बबीता और अंजलि नाम की 2 युवतियां मिलीं. वहीं पर एक कोने में डरासहमा एक बच्चा भी बैठा था. पुलिस ने तुरंत उस बच्चे को अपनी सुरक्षा में ले कर उस का नाम पूछा तो उस ने अपना नाम प्रिंस बताया. प्रिंस को सहीसलामत बरामद कर के पुलिस बहुत खुश हुई.

पुलिस ने दोनों युवतियों से उन के साथियों के बारे में पूछा तो उन्होंने पुलिस को सब कुछ बता दिया. उन की निशानदेही पर पुलिस ने पहले तो बाबा मोहननगर की ही एक जगह से रविंद्र को गिरफ्तार किया. फिर उस के साथी संदीप और अनिल को सिब्बल सिनेमा के पास से धर दबोचा.

पांचों आरोपियों को पुलिस टीम क्राइम ब्रांच ले आई. इंसपेक्टर सुनील कुमार ने नरेंद्र चौधरी को फोन कर के बुला लिया. नरेंद्र और चंद्रा रात के 1 बजे ही क्राइम ब्रांच पहुंच गए. वहां प्रिंस को देख कर दोनों बहुत खुश हुए. चंद्रा उसे अपने सीने से लगा कर रोने लगी.

पुलिस ने दोनों को जब अपहर्त्ताओं से मिलाया तो नरेंद्र चौधरी देखते ही बोला, ‘‘रविंदर, तू..? तूने प्रिंस को अगवा किया था? भाई, तू इतना गिर गया कि…’’

‘‘आप इसे जानते हैं?’’ एसआई एन.एस. राणा ने बात काट कर बीच में ही पूछा.

‘‘जानता हूं सर, यह रिश्ते में मेरा भाई लगता है. इस से सारा परिवार परेशान है.’’

रविंद्र सिर झुकाए चुपचाप खड़ा सब कुछ सुनता रहा. पुलिस ने पांचों आरोपियों से पूछताछ की तो पता चला कि सारी घटना का मास्टरमाइंड खुद प्रिंस का मामा रविंद्र ही था.

रविंद्र उर्फ रवि गुर्जर सराय कालेखां में रहने वाले महिपाल का बेटा है. मातापिता के अलावा परिवार में रविंद्र के 3 भाई और भी हैं. वह सब से छोटा है. बेरोजगार रविंद्र आवारागर्दी और अपने साथियों के साथ छोटीमोटी चोरी जैसी घटनाओं को अंजाम दिया करता था. उस की इन्हीं हरकतों से परिवार के दूसरे लोग परेशान रहते थे. वह कोई अपराध कर के फरार हो जाता तो पुलिस उस के घर वालों को तंग करती थी. इसी वजह से उस के घर वालों ने उस से संबंध खत्म कर लिए थे. अनिल और संदीप उस के गहरे दोस्त थे.

22 वर्षीय अनिल दिल्ली के गौतमपुरी इलाके में रहता था. 12वीं पास करने के बाद वह रविंद्र की संगत में पड़ गया था. जबकि रविंद्र का तीसरा दोस्त संदीप दिल्ली के ही कोटला मुबारकपुर इलाके में रहता था. तीनों ही अविवाहित और आवारा थे.

रविंद्र और संदीप अकसर गौतमपुरी में अनिल के पास आते रहते थे. इसी दौरान रविंद्र की मुलाकात बबीता से हुई. बबीता अपनी बड़ी बहन अंजलि के साथ बाबा मोहननगर, बदरपुर, दिल्ली में किराए पर रहती थी. दोनों सगी बहनें मूलरूप से उत्तराखंड के कस्बा धारचुला की रहने वाली थीं.

बबीता अविवाहित थी और अंजलि शादीशुदा. किसी वजह से बबीता का अपने पति प्रमोद से संबंध टूट गया था तो वह मायके चली आई थी. करीब 8 महीने पहले अंजलि और बबीता काम की तलाश में दिल्ली आई थीं और बदरपुर क्षेत्र में दोनों एक दरजी के यहां कपड़ों की सिलाई करने लगी थीं. वहां से होने वाली आमदनी से उन का खर्च चल रहा था.

बचपन का मजा, जवानी में बना सजा – भाग 2

रुखसाना की हरकतों से सारा गांव वाकिफ था. गांव वालों से इस बात की जानकारी उस के मातापिता को हुई तो उन्होंने उसे मारापीटा और समझाया भी. आखिर मांबाप की बात रुखसाना की समझ में आ गई. इसलिए वह जाबिर से निकाह के लिए राजी हो गई. जाबिर तो उस के लिए पागल था ही, इसलिए रुखसाना के हामी भरते ही उस ने अपने अब्बू नौशे मियां से कहा, ‘‘अब्बू, मैं रुखसाना से निकाह करना चाहता हूं.’’

जाबिर की बात सुन कर नौशे मियां हैरान रह गए. क्योंकि रुखसाना अब तक गांव में इस कदर बदनाम हो चुकी थी कि निकाह की छोड़ो, कोई भला आदमी उस से बातचीत करना भी पसंद नहीं करता था. ऐसी लड़की से जाबिर निकाह की बात कर रहा था. नौशे मियां की गांव में अच्छी इज्जत थी. उन्होंने इस निकाह के लिए साफ मना कर दिया. लेकिन जाबिर ने तो इरादा पक्का कर लिया था, इसलिए उस ने कहा, ‘‘अगर मेरा निकाह रुखसाना से नहीं  किया गया तो मैं आत्महत्या कर लूंगा.’’

मजबूरन नौशे मियां को राजी होना पड़ा. रुखसाना के घर वालों की ओर से इनकार का सवाल ही नहीं था. क्योंकि उन की बदनाम बेटी से और कौन शादी करता. इस तरह जाबिर और रुखसाना का निकाह हो गया.

निकाह के बाद रुखसाना पूरी तरह बदल गई थी. वह पति की ही नहीं, सासससुर और देवर की सेवा पूरे लगन से करने लगी थी. घर के सारे कामों की जिम्मेदारी ले ली थी. नौशे मियां के पास काफी जमीन थी. उसी पर खेती कर के वह अपने परिवार का भरणपोषण कर रहे थे. जाबिर गांव में रह कर पिता की मदद करता था.

समय के साथ जाबिर 4 बच्चों का बाप बन गया. परिवार बढ़ा तो जिम्मेदारी और खर्च बढ़ा. जाबिर को लगा कि अब गांव में गुजारा नहीं होगा तो गांव छोड़ कर वह दिल्ली चला गया.

दिल्ली के दिलशाद गार्डेन में उस ने कबाड़ी का काम शुरू किया. कबाड़ी का काम नाम से भले ही छोटा है, लेकिन अगर मेहनत से किया जाए तो इस काम में मोटी कमाई है. जाबिर ने मन लगा कर मेहनत की. जिस का उसे फायदा भी मिला. उस की ठीकठाक कमाई होने लगी. वह जरूरत भर का पैसा रख कर बाकी गांव भेज देता था. जाबिर की कमाई बढ़ी तो उस ने रहने के लिए एक जनता फ्लैट खरीद लिया. अपना मकान हो गया तो गांव से वह अपना परिवार ले आया. बच्चों का उस ने यहीं एडमिशन करा दिया. अब समय आराम से गुजरने लगा.

जाबिर ने देखा कि कबाड़ी के काम में पैसा तो खूब है, लेकिन इज्जत नहीं है. अगर वह इसी तरह कबाड़ी का काम करता रहा तो उस के बच्चों की शादी ठीकठाक घरों में नहीं हो सकेगी. उस ने कबाड़ी का काम बंद कर दिया और स्टील वर्क्स का काम शुरू कर दिया. इस काम में भी उस ने मन लगा कर मेहनत की. उस की मेहनत रंग लाई और उस के पास सब कुछ हो गया. वह दिन में मेहनत करता और रात को चैन की नींद सोता. जाबिर अपने अब्बू को दिल्ली लाना चाहता था. लेकिन नौशे मियां ने दिल्ली आने से साफ मना कर दिया. तब जाबिर ने उन की मदद के लिए एक नौकर रख दिया. इस नौकर का नाम भी जाबिर था.

वह नौशे मियां के साथ उन के खेतों पर काम करता था. समय निकाल कर जाबिर कभीकभार पिता से मिलने रमजानपुर आ जाता और एकाध दिन रह कर चला जाता था.

काम बढ़ा तो जाबिर की व्यस्तता भी बढ़ गई. जिस की वजह से वह पत्नी और बच्चों को समय कम दे पाता था. अब तक रुखसाना 30 साल की हो गई थी तो जाबिर 45 साल का. दिन भर काम कर के जाबिर बुरी तरह थक जाता तो देर रात घर आने पर उसे बिस्तर ही दिखाई देता था. वह जल्दी से खाना खा कर सो जाता. जबकि भरपूर जवान रुखसाना को उस की नजदीकी की जरूरत होती थी. पति के सो जाने से उस के अरमान दिल में ही रह जाते थे.

रुखसाना चाहती थी कि पति घर आए तो उस से बातें करे, प्यार करे. उस के बच्चों को समय दे. लेकिन ऐसा नहीं हो रहा था, जिस की वजह से वह खीझने लगी थी. उसे लगता था कि जाबिर को जैसे पत्नी और बच्चों को जरूरत ही नहीं है. बस उसे पैसे चाहिए. उस के अरमानों और भावनाओं की उसे कोई परवाह नहीं है. ऐसे में अगर औरत जवान हो तो वह क्या करे? इस स्थिति में उसे उम्र के लंबे अंतराल का खयाल आया और उसे अपनी गलती का अहसास हुआ.

वह देखती थी कि लोग अभी भी उसे चाहतभरी नजरों से ताकते हैं, जबकि पति उस की ओर ध्यान ही नहीं देता. पति की इस बेरुखी से उस का मन बहकने लगा तो उस की नजरें किसी मर्द को तलाशने लगीं.

रुखसाना के बच्चों को एक सरदार ट्यूशन पढ़ाने आता था. वह हट्टाकट्टा गठीले बदन का कुंवारा नौजवान था. रुखसाना का दिल उसी पर आ गया. क्योंकि वही उस के सब से करीब था. रुखसाना ने उसे लटकेझटके दिखाए तो सरदार को समझते देर नहीं लगी कि उस के मन में क्या है. फिर एक दिन रुखसाना ने उसे मौका दिया तो उस सरदार ने खुशीखुशी उस की इच्छा पूरी कर दी. सरदार ने उसे इस तरह खुश किया कि वह उस की दीवानी हो गई.

धीरेधीरे रुखसाना उस की इस कदर दीवानी हुई कि उसे लगने लगा कि वह सरदार के बिना जी नहीं पाएगी. कुछ ऐसा ही सरदार को भी लगने लगा तो एक दिन वह रुखसाना को भगा ले गया. यह सन 2008 की बात है. रुखसाना को न पति की चिंता थी, न बच्चों की. इसलिए सरदार के साथ जाने के बाद उस ने उन की कोई खबर नहीं ली.

पत्नी की बेवफाई से जाबिर को गहरा आघात लगा. लेकिन इस आघात को बच्चों की परवरिश में लग कर उस ने भुला दिया. फिर भी वह रुखसाना की तलाश करता रहा. 5 महीने बाद उसे किसी से पता चला कि रुखसाना अपने प्रेमी के साथ पंजाब में रह रही है. पत्नी को वापस लाने के लिए वह पंजाब गया. सचमुच वहां रुखसाना उस सरदार के साथ रवीना कौर नाम से रह रही थी. रुखसाना आने को तैयार नहीं थी. लेकिन उस की असलियत जब सरदार के घर वालों को पता चली तो उन्होंने जबरदस्ती उसे जाबिर के साथ भेज दिया.

जाबिर को अब रुखसाना पर यकीन नहीं रह गया था. इसलिए उस ने उसे पिता के पास गांव पहुंचा दिया. 4 बच्चों की मां बनने के बाद भी रुखसाना के रुखसार में कोई कमी नहीं आई थी. साथ ही उस के अरमान भी पहले जैसे ही चिंगारी की तरह थे, जिसे सिर्फ हवा देने की जरूरत थी. आखिर गांव में जाबिर ने पिता की मदद के लिए जाबिर नाम के जिस नौकर को रखा था, उस ने हवा देने का काम किया. उसे देखते ही रुखसाना की आग भड़क उठी. उन के पास मौका ही मौका था. जाबिर घर का नौकर था, इसलिए उस का अंदर तक आनाजाना था.  रुखसाना ने इसी का फायदा उठाया और नौकर जाबिर को बिस्तर का साथी बना लिया.

रुखसाना का जब मन होता, नौकर जाबिर के साथ हमबिस्तर हो जाती. पहले तो यह काम बहुत चोरीछिपे होता रहा, लेकिन धीरेधीरे वे लापरवाह होते गए. गांव वालों को संदेह हुआ तो लोग उन पर नजर रखने लगे. जब उन्हें यकीन हो गया कि सचमुच कुछ गड़बड़ है तो उन्होंने इस बारे में नौशे मियां से बात की. उन्होंने फोन कर के सारी बात बेटे को बता दी. अगले ही दिन जाबिर गांव पहुंचा और पहले तो उस ने रुखसाना की जम कर पिटाई की, उस के बाद तुरंत नौकर को भगा दिया. 4-5 दिन गांव में रह कर जाबिर दिल्ली चला गया.

अधिवक्ता पत्नी की जिंदगी की वैल्यू पौने 6 करोड़ – भाग 2

पुलिस को नहीं मिला हत्यारे का सुराग

रेनू के सिर और कान से थोड़ा खून जरूर बह रहा था. जिस्म के दूसरे हिस्सों में भी चोट के कई निशान दिखाई पड़ रहे थे. इस से साफ था कि रेनू सिंह ने हत्या से पहले कातिल के साथ संघर्ष किया था.

हैरानी की बात यह थी कि घर का सारा सामान अपनी जगह था, यानी वहां कोई लूटपाट या डकैती जैसी वारदात के कोई संकेत दिखाई नहीं पड़ रहे थे. लेकिन ताज्जुब की बात यह थी कि रेनू का पति नितिन फरार था. रेनू के भाई अजय सिन्हा बारबार कह रहे थे कि उन की बहन की हत्या पति नितिन नाथ ने ही की है. पुलिस को तलाश में रेनू सिन्हा का मोबाइल नहीं मिला था, लेकिन यह तभी पता चल सकता था कि रेनू की हत्या पति ने की है या किसी अन्य ने.

बहरहाल, पुलिस ने फोरैंसिक टीम को बुला कर मौके से साक्ष्य एकत्र करने की काररवाई पूरी की और रेनू सिन्हा के शव को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भिजवा दिया. दिलचस्प बात यह रही कि उस समय पुलिस को पूरी कोठी की तलाशी लेने का खयाल तक नहीं आया, लेकिन नितिन का कुछ पता नहीं चला.

सेक्टर 20 थाने आ कर उच्चाधिकारियों के निर्देश पर एसएचओ धर्मप्रकाश शुक्ला ने भादंसं की धारा 302 में अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. जांच की जिम्मेदारी भी उन्होंने अपने पास ही रखी. इस के बाद नितिन नाथ का पता लगाने और रेनू सिंह के मोबाइल की जानकारी लेने के लिए पहले दोनों के फोन की काल डिटेल्स व उन के फोन की लोकेशन निकलवाई.

लोकेशन निकलवाई गई तो पुलिस का माथा ठनका, क्योंकि रेनू सिन्हा और नितिन नाथ दोनों के मोबाइल फोन की लोकेशन उसी डी-40 कोठी के आसपास की नजर आ रही थी, जहां वे रहते थे. इस का मतलब साफ था कि रेनू और उन के पति के फोन कोठी के भीतर ही हैं.

आखिरकार रात 12 बजे पुलिस दोबारा और सही मायने में हरकत में आई. तब पुलिस ने रेनू सिन्हा की कोठी और उस के आसपास के मकानों की सीसीटीवी फुटेज चैक करने का काम शुरू किया. इसी दौरान पुलिस ने ये गौर किया कि रेनू का पति नितिन पिछले 24 घंटों से ज्यादा वक्त में कभी बाहर ही नहीं निकला है. हां, दिन में करीब 2 बजे एकदो लोग घर में जरूर आए थे, लेकिन उन्हें किसी ने कोठी के मेन गेट पर लगा छोटा दरवाजा खोल कर अंदर बुला लिया था.

करीब आधे घंटे बाद आगंतुक चले गए और दरवाजा फिर किसी ने अंदर से बंद कर लिया था. उस के बाद घर के भीतर किसी के आने या किसी के बाहर निकलने की कोई फुटेज नहीं थी. पुलिस ने एक बार फिर से रेनू के घर वालों को मौके पर बुलाया. सीसीटीवी कैमरे में नितिन के घर से बाहर न जाने की पुष्टि होने की बात साफ होने के बाद पुलिस ने फिर से कोठी के निचले और दूसरी मंजिल की तलाशी लेने का काम शुरू किया.

कहानी में असली ट्विस्ट तब आया, जब रेनू का पति नितिन पुलिस को उसी कोठी में छिपा हुआ मिला. असल में नितिन अपने ही मकान के पहले माले में बने स्टोररूम में छिपा हुआ था.

पुलिस ने जब रेनू की लाश बरामद की थी, तब उस ने ऊपर की मंजिल पर केवल कमरों में ही सरसरी तौर पर तलाशी ली थी. जबकि स्टोर रूम छोड़ दिया था. लेकिन रात को दूसरे चरण में पूरे घर का चप्पाचप्पा छानने की कवायद में पुलिस को घर में स्टोररूम में नितिन नाथ छिपा हुआ मिल गया.

स्टोररूम में बंद मिला हत्यारा पति

इस के लिए भी पुलिस ने एक तरकीब निकाली थी. पुलिस टीम ने 4 अलगअलग मोबाइल फोन से लगातार रेनू और नितिन के मोबाइल पर काल करने का काम शुरू किया और जबकि कुछ टीम घर के अलगअलग हिस्सों में सर्च का काम कर रही थी.

पुलिस को तो सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि नितिन घर में छिपा मिलेगा. पुलिस तो रेनू व नितिन के मोबाइल को तलाशने के लिए घर में सर्च कर रही थी, क्योंकि दोनों फोन की लोकेशन लगातार घर में ही आ रही थी. पुलिस जब तलाश करते हुए पहली मंजिल के स्टोररूम तक पहुंची तो इंसपेक्टर डी.पी. शुक्ला की टीम को कुछ घनघनाने की आवाज आई. लगा मानो किसी का मोबाइल वाइब्रेट कर रहा है. जहां से आवाजें आ रही थीं, वह एक स्टोररूम था.

स्टोररूम में 2 दरवाजे थे, एक दरवाजा अंदर से बंद था, जबकि उस के दूसरे गेट पर बाहर से ताला लगा था. पुलिस ने स्टोररूम के दरवाजे का ताला तोड़ा तो अंदर नितिन नाथ छिपा बैठा था. पुलिस ने जब स्टोररूम का दरवाजा खोला तो अंदर नितिन मोबाइल फोन, चार्जर, कौफी मग सब कुछ ले कर इत्मीनान से बैठा हुआ था. तब तक रात के 3 बज चुके थे. यानी जो शख्स पिछले कई घंटों से लाश मिलने वाली जगह से महज 2 मीटर के फासले पर छिपा था, पुलिस को उस तक पहुंचने में कत्ल का खुलासा होने के बाद भी 8 घंटे का वक्त लग गया.

पुलिस को अब लगा कि अगर उन्होंने सीसीटीवी फुटेज की जांच, कोठी की सही तरीके से तलाशी की होती तो ये कामयाबी दोपहर में ही मिल जाती. बहरहाल, नितिन नाथ को जब पकड़ा गया तो उस के पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं था. उस ने कुबूल कर लिया कि अपनी पत्नी रेनू की हत्या उस ने ही गला दबा कर की है. उस ने एकएक सच से परदा उठा दिया.

रेनू सिन्हा को जीवन में सब कुछ मिला. वह सुप्रीम कोर्ट की अच्छी वकील थीं, बेटा गिरीश अमेरिका में जौब करता है, शादी भी एक समृद्ध परिवार में हुई. लेकिन, एक चीज थी जो बीते 33 साल से सही नहीं थी. वो था रेनू का वैवाहिक जीवन.

रेनू और नितिन 33 साल पहले एकदूसरे के हुए थे, लेकिन उन का रिश्ता खुशहाल नहीं था. नितिन नाथ सिन्हा पैसे का लालची और ऐशभरी जिंदगी जीने का ख्वाहिशमंद जिद्दी इंसान था, लेकिन रेनू सीधीसादी और रिश्ते की कद्र करने वाली महिला थीं. उन का एकमात्र बेटा 15 साल पहले अमेरिका चला गया और वहीं बस गया. रेनू के भाई भी हर महीने उस से मिलने आते थे.

मूलरूप से बिहार के पटना के रहने वाले नितिन नाथ सिन्हा का जन्म वैसे तो ब्रिटेन में हुआ था. उन के पिता ब्रिटेन में एक प्रमुख नेत्र सर्जन थे, जिन्होंने 15 साल तक लंदन में प्रैक्टिस की थी, लेकिन उस के बाद वह भारत आ गए. यहां आ कर नितिन ने उच्चशिक्षा हासिल की और बाद में 1986 बैच का भारतीय सूचना सेवा विभाग का अधिकारी चुना गया.

उस ने 25 साल पहले यानी 1998 में ही स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) ले ली थी. इस के बाद उस ने अमेरिका की एक कंपनी में नौकरी की. यही नहीं, वह इंडियन मैडिकल एसोसिएशन में भी पदाधिकारी रह चुका है. पत्नी रेनू सिन्हा को कैंसर था, जिन का इलाज अमेरिका में चल रहा था. कुछ दिन पहले ही वह कैंसर से जीत कर घर लौटी थीं.

इधर कुछ समय से नितिन नाथ अब किसी भी तरह की नौकरी नहीं होने के कारण आर्थिक रूप से परेशान रहने लगा था. वह अपने फिजूल खर्चों के लिए रेनू या उस के भाई पर आश्रित रहता था.

दूसरा पहलू : अपनों ने बिछाया जाल – भाग 2

बारात जनवासे पहुंच गई. मिंटू साए की तरह मनु के आगेपीछे घूम रही थी. सुकृति रिश्तेदारों में व्यस्त थी, इसलिए मनु को समय नहीं दे पा रही थी. उस ने देखा कि उस की चचेरी बहन उस की जिम्मेदारी निभा रही है. मनु बोर नहीं हो रहा, यही उस के लिए पर्याप्त था. मिंटू ने लहंगाओढ़नी पहना था.

दुलहन सी सजी मिंटू ने मनु से पूछा, ‘‘मैं कैसी लग रही हूं जीजू?’’

‘‘माइंड ब्लोइंग रियली.’’ मनु ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘जीजू, झूठी प्रशंसा कर के आप मुझे झाड़ पर चढ़ा रहे हैं.’’

ऐसी बात कह कर शायद मिंटू मनु को और कुरेदना चाह रही थी. अब तक मनु भी काफी खुल चुका था, इसलिए उस ने कहा, ‘‘मिंटू, अपनी लाइफ में मैं ने इतनी सुंदर लड़की पहले नहीं देखी. जी चाहता है कि…’’

मनु का वाक्य पूरा होता, उस के पहले ही मिंटू तपाक से बोली, ‘‘क्या चाहता है जीजू आप का दिल? जरा हमें भी तो पता चले.’’

मिंटू की इस बात से मनु का साहस बढ़ा. उस ने बिना कुछ सोचेसमझे कहा, ‘‘अगर सामने कोई खूबसूरत अप्सरा खड़ी हो तो पुरुष का दिल क्या चाहेगा?’’

‘‘क्या चाहेगा, आप ही बता दीजिए?’’ मिंटू ने मुसकराते हुए पूछा.

मनु ने कोई जवाब नहीं दिया तो पल भर बाद मिंटू ही बोली, ‘‘आप तो लड़कियों की तरह शरमा रहे हैं. आय एम योर फ्रैंड जीजू, प्लीज बताइए ना.’’

मनु अपने ऊपर नियंत्रण नहीं रख पाया और दिल की ख्वाहिश जाहिर करते हुए बोला, ‘‘वांट ए किस, आई मीन लव…’’

‘‘इस में इतना शरमाने की क्या बात थी जीजू? मैं ने तो सोचा था आप…’’ इस बार मिंटू ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी. लेकिन मनु की बात उस के दिल को भेद गई थी. थोड़ा रुक कर मिंटू बोली, ‘‘मैं आप को एक गिफ्ट देना चाहती हूं जीजू.’’

‘‘क्या?’’ मनु ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘एक ऐसा गिफ्ट, जो आप को बहुत पसंद आएगा.’’ मिंटू ने हंसते हुए कहा.

‘‘दीजिए, देखें तो क्या दे रही हैं अपने जीजू को?’’ मनु ने पूछा.

‘‘अभी नहीं. समय आने दो, फिर देखना.’’

मनु कुछ और कहता, जानवासे से बारात चल पड़ी. बारातियों में तमाम लोग डांस कर रहे थे. लेकिन जब मिंटू ने डांस शुरू किया तो उस ने तुरंत भीड़ से मनु को अपने साथ डांस करने के लिए खींच लिया. सुकृति भी अब उस के साथ डांस करने लगी.

बारात लड़की वालों के घर पहुंच गई. अचानक सुकृति को याद आया कि वह अपना सूटकेस लौक करना भूल गई थी. उस ने यह बात मनु से कही तो वह अपनी कार से जनवासे जाने लगा. वह पंडाल से बाहर आया था कि पीछे से दौड़ती हुई मिंटू आई और उस के साथसाथ चलने लगी. चलते हुए ही उस ने पूछा, ‘‘जनवासे जा रहे हैं क्या जीजू?’’

‘‘हां, तुम्हें भी कोई काम है क्या?’’

‘‘मुझे भी वहां से अपनी एक ड्रेस लानी है.’’ मिंटू ने कहा.

मनु के साथ मिंटू भी कार में बैठ गई. कार में सिर्फ वही दोनों थे. कार थोड़ी दूर ही चली होगी कि मिंटू ने मनु का हाथ दबा कर कार रुकवा ली. मनु कुछ समझ पाता, बिजली की सी फुर्ती से मिंटू ने मनु के गाल पर चुंबनों की बौछार कर दी. मनु भौचक्का रह गया. मिंटू ने कहा, ‘‘जीजू मेरी गिफ्ट कैसी लगी? बदले में अब आप मुझे गिफ्ट में क्या दे रहे हैं?’’

मनु की भी भावनाएं भड़क उठी थीं. उस ने भी आगे बढ़ कर मिंटू के होठों पर अपने होंठ रख दिए. मनु ने स्वयं को जैसेतैसे संयत किया. रिश्तों की नाजुकता ने आवेश पर ब्रेक लगाया तो कार आगे बढ़ी. जनवासा आ चुका था. मनु कार में ही बैठा रहा. मिंटू जा कर सुकृति का सूटकेस और अपनी ड्रेस ले आई.

भावावेश में यह सब जो हुआ था, मनु को पश्चाताप हो रहा था. उसे परेशान देख कर मिंटू ने कहा, ‘‘इतने टैंस क्यों हो रहे हैं जीजू? मैं आप की साली ही तो हूं. साली यानी आधी घर वाली. इतना हक तो बनता ही है आप का?’’

मनु थोड़ा संयत हुआ. मिंटू की दिलकश अदाएं उस पर भारी पड़ने लगी थीं. दोनों बारात में शामिल हो गए. लड़की वालों का घर आ गया. शादी की वह रात इसी तरह हंसीमजाक में बीत गई. सुबह दुलहन की विदाई के बाद सुकृति मनु की कार में बैठ गई थी. शादी निपट चुकी थी. मनु को अपना बिजनैस देखना था, इसलिए उसे लौटना था. वह चला आया, लेकिन सुकृति 2-4 दिनों के लिए रुक गई. रश्मि और उस की बेटी मिंटू के व्यवहार ने उस की जिंदगी में नए रंग भर दिए थे. मिंटू उस से रुकने के लिए जिद कर रही थी, लेकिन बिजनैस की वजह से उस का रुकना संभव नहीं था.

मनु रास्ते में ही था कि उस के मोबाइल फोन पर मिंटू के एसएमएस धड़ाधड़ आने लगे. मनु के पास इतना समय नही था कि वह जवाब देता. 2-4 के जवाब दिए, बाकी फोन पर बात कर ली. 2-4 दिनों बाद मिंटू मां के साथ अहमदाबाद चली गई.

सुकृति ने शायद उन के बीच बढ़ती प्रगाढ़ता को भांप लिया था, इसलिए मनु को सचेत किया, ‘‘आप इन लोगों से ज्यादा नजदीकी मत बढ़ाइए. आप उन लोगों को नहीं जानते, धोखा उन की रगरग में बसा है.’’

मनु पशोपेश में पड़ गया. अपनों के बारे में सुकृति के विचार जान कर उसे बड़ा अजीब लगा. इस के बाद उस ने सुकृति को उन लोगों के बारे में बताना बंद कर दिया. मिंटू बारबार मनु से अहमदाबाद आने की जिद कर रही थी. उस की डिमांड पर मनु ने कुरियर से उस के लिए एक कीमती मोबाइल सेट और कुछ शानदार ड्रेसेज भेज दी थीं. यह सब पा कर मिंटू बहुत खुश हुई थी.

मनु अकसर मिंटू के लिए कुछ न कुछ भेजने लगा था. उस के मोबाइल में पैसे डलवाना तो आम बात थी. वह थी ही इतनी बातूनी. वही क्या, उस की मम्मी यानी रश्मि भी मनु से घंटों बातें करती थी. मनु को मोबाइल के बिल की उतनी चिंता नही थी, लेकिन उस के पास समय नहीं होता था.

शोरूम में ग्राहकों के सामने ज्यादा देर मोबाइल पर बात नहीं कर सकता था. इधर वह मोबाइल में इतना उलझा रहने लगा था कि शोरूम का सिस्टम गड़बड़ाने लगा था. उस में आए इस बदलाव से शोरूम के कर्मचारी हैरान थे.

मिसकाल का प्यार – भाग 1

शाम का खाना खाने के बाद रूबी सोने के लिए अपने कमरे में जा रही थी कि उस के मोबाइल की घंटी  बज उठी. मोबाइल उस की जींस की जेब में रखा था. फोन रिसीव करने के लिए उस ने जैसे ही जेब से मोबाइल निकाला, तब तक घंटी बजनी बंद हो गई. उस ने फोन में देखा कि यह मिस काल किस की है.

जिस फोन नंबर से मिस काल आई थी, वह नंबर उस के फोन में सेव नहीं था यानी उस के लिए वह नंबर अनजाना था. वह यह सोचने लगी कि पता नहीं यह नंबर किस का है और उस ने मिस काल क्यों की है?

कभीकभी ऐसा भी होता है कि किसी को किसी से जरूरी बात करनी होती है, लेकिन इत्तफाक से उस के फोन मेें बैलेंस नहीं होता है तो मजबूरी में उसे मिस काल करनी पड़ जाती है. रूबी के दिमाग में भी यही आया कि कहीं यह मिस काल ऐसे ही व्यक्ति की तो नहीं है. उस ने तुरंत कालबैक की. कुछ सेकेंड बाद किसी आदमी ने काल रिसीव करते हुए जैसे ही ‘हैलो’ कहा, रूबी बोली, ‘‘हैलो, कौन बोल रहे हैं?’’

‘‘जी, मैं सुजाय डे बोल रहा हूं. क्या मैं जान सकता हूं कि जिन से मैं बात कर रहा हूं वह कौन हैं?’’ दूसरी तरफ से आवाज आई.

‘‘मैं रूबी बोल रही हूं. अभी मेरे फोन पर आप की मिस काल आई थी.’’

‘‘रूबीजी, सौरी. गलती से आप का नंबर लग गया होगा. मेरी वजह से आप को जो तकलीफ हुई, मुझे अफसोस है. मुझे लगता है कि आप आराम कर रही होंगी, मैं ने आप को डिस्टर्ब कर दिया.’’ सुजाय डे अपनी गलती का आभास कराते हुए बोला.

‘‘नहीं सुजायजी, ऐसी कोई बात नहीं है. कभीकभी गलती से किसी और का नंबर लग जाता है.’’

‘‘रूबीजी, आप से बात कर के लग रहा है कि आप बहुत नेकदिल हैं. आप की जगह कोई और लड़की होती तो शायद इतनी सी बात पर मुझे तमाम बातें सुना देती.’’

‘‘देखो, मेरा मानना है कि गलती हर इंसान से होती है. आप ने ऐसा जानबूझ कर थोड़े ही किया है. मुझे आप की बातों से लग रहा है कि आप भी कोई सड़कछाप नहीं, बल्कि एक समझदार इंसान हैं.’’ अब तक रूबी अपने कमरे में पहुंच चुकी थी. उसे भी उस से बात करने में इंटरेस्ट आ रहा था.

‘‘रूबीजी, जब आप इतना कह रही हैं तो मैं बताना चाहता हूं कि मैं एक बिजनैसमैन हूं. मेरे पिता की हौजरी गारमेंट्स की फैक्ट्री है. मैं उन के साथ उन के इस बिजनैस को संभाल रहा हूं. अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं ने बिजनैस संभाल लिया था. वैसे अगर आप को बुरा न लगे तो क्या मैं जान सकता हूं कि आप क्या कर रही हैं? मेरा मतलब पढ़ाई या कोई जौब?’’

‘‘अभी तो मैं बीए सेकेंड ईयर में पढ़ रही हूं. इस के अलावा टेलरिंग का काम भी सीख रही हूं.’’ इस से आगे रूबी और कुछ कहती कि उस ने अपने कमरे की तरफ मम्मी को आते देखा तो उस ने कहा, ‘‘सुजायजी, अभी कमरे में मम्मी आ रही हैं, मैं बाद में बात करूंगी.’’

‘‘ठीक है रूबीजी, ओके बाय.’’ सुजाय ने इतना ही कहा था कि दूसरी ओर से फोन कट गया.

रूबी से इतनी देर तक बात करना सुजाय को अच्छा लगा. इस बातचीत में 27 साल का सुजाय भले ही उस से उस की उम्र नहीं पूछ सका था, लेकिन उस ने अनुमान जरूर लगा लिया था कि जब वह बीए सेकेंड ईयर में पढ़ रही है तो उस की उम्र 20-22 साल तो होगी ही. और तो और वह यह तक नहीं पूछ सका था कि वह कहां की रहने वाली है और न ही वह भी उसे अपने शहर के बारे में बता पाया.

‘मम्मी आ रही हैं, अब बाद में बात करेंगे’. इन शब्दों ने फिर से बातचीत करने का रास्ता खुला छोड़ दिया था. सुजाय को भी लगा कि रूबी को उस से बात करने में कोई ऐतराज नहीं है. वरना वह काल डिसकनेक्ट करते समय इस तरह की बात क्यों कहती.

रूबी से की गई बातें रात भर सुजाय के दिमाग में घूमती रहीं. की गई बातचीत और आवाज के आधार पर उस ने रूबी की सूरत भी अपने मन में बसा ली थी.

जैसेतैसे रात कट गई. अगले दिन उस का मन बारबार कर रहा था कि वह रूबी से बात करे, लेकिन उस ने यह जान कर फोन नहीं किया कि इस समय वह शायद कालेज जाने की तैयारी कर रही होगी. इसलिए उस ने कालेज टाइम के बाद अपराह्न 3 बजे के करीब रूबी को फोन किया.

चूंकि रूबी ने रात को ही अपने मोबाइल में उस के नंबर को नाम के साथ सेव कर लिया था. फोन की घंटी बजने पर जब उस ने इनकमिंग काल के साथ अपने मोबाइल की स्क्रीन पर सुजाय का नाम आया देखा तो स्वाभाविक तौर पर उस के चेहरे पर मुसकान आ गई. वह बोली, ‘‘हाय, सुजाय कैसे हो?’’

‘‘आई एम फाइन. आप कैसी हैं? रूबीजी, कहीं इस समय आप क्लास में तो नहीं हैं? अगर बिजी होंगी तो मैं बाद में बात कर लूंगा.’’ सुजाय ने कहा.

‘‘नहीं, अब मैं कालेज से घर जा रही हूं. सौरी सुजाय, कल रात कमरे में मम्मी आ गई थीं, इसलिए बात बीच में ही छोड़नी पड़ी थी.’’ चूंकि अब रूबी के परिवार का कोई भी सदस्य उस के आसपास नहीं था, इसलिए उस ने बिना किसी झिझक के सुजाय डे से काफी देर तक बात की.

इस बातचीत में उन्होंने अपने और अपने परिवार के बारे में भी जाना. सुजाय को पता चल गया था कि मुसलिम धर्म की रूबी अविवाहिता है और कर्नाटक के जिला बगालकोट स्थित इलकल कस्बे में अपने मांबाप और भाईबहनों के साथ रहती है. उस के पिता सब्जियों के एक बड़े आढ़ती हैं.

वहीं रूबी को जानकारी हो गई कि सुजाय डे भी अविवाहित है और वह पश्चिम बंगाल के जिला 24 परगना स्थित गोबरडंग गांव का रहने वाला है. इस तरह कई महीने तक उन के बीच फोन पर बातें होती रहीं.

करीब 6-7 साल पहले केवल एक मिस काल से शुरू हुआ बातों का सिलसिला ऐसा चला कि इस का दायरा बढ़ता गया. इस के बाद तो उन के बीच अकसर बात होती रहती थी, इस की एक वजह यह भी थी कि सुजाय को पता लग चुका था कि रूबी भले ही मुसलिम परिवार की है, मगर वह एक बड़े बिजनैसमैन की बेटी है.

दूसरी ओर रूबी भी बातचीत से सुजाय की उम्र, पेशा, परिवार आदि के बारे में जान चुकी थी. फोन पर हुई बातचीत से उसे सुजाय एक अच्छा लड़का लगा था. इस के अलावा उसे यह भी जानकारी मिल चुकी थी कि वह बिजनैसमैन है.

फोन के जरिए वे एकदूसरे से अपने मन की बातें भी कहने लगे थे. बातों ही बातों में उन के बीच प्यार हो गया था.

पति ने किया अर्चना की जिंदगी का सूर्यास्त – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला पीलीभीत के थाना गजरौला कलां का संतरी बरामदे में खड़ा इधरउधर ताक रहा था. उसी समय एक युवक तेजी से  आया और थानाप्रभारी भुवनेश गौतम के औफिस में घुसने लगा तो उस ने टोका, ‘‘बिना पूछे कहां घुसे जा रहे हो भाई?’’

युवक रुक गया. वह काफी घबराया हुआ लग रहा था. उस ने कहा, ‘‘साहब से मिलना है, मेरी पत्नी को बदमाश उठा ले गए हैं.’’

‘‘तुम यहीं रुको, मैं साहब से पूछता हूं, उस के बाद अंदर जाना.’’ कह कर संतरी थानाप्रभारी के औफिस में घुसा और पल भर में ही वापस आ कर बोला, ‘‘ठीक है, जाओ.’’

संतरी के अंदर जाने के लिए कहते ही युवक तेजी से थानाप्रभारी के औफिस में घुस गया. अंदर पहुंच कर बिना कोई औपचारिकता निभाए उस ने कहा, ‘‘साहब, मैं लालपुर गांव का रहने वाला हूं. मेरा नाम प्रमोद है. मैं अपनी पत्नी को विदा करा कर घर जा रहा था. गांव से लगभग 2 किलोमीटर पहले कुछ लोग बोलेरो जीप से आए और मेरी पत्नी को उसी में बैठा कर ले कर चले गए.’’

थानाप्रभारी भुवनेश गौतम ने प्रमोद को ध्यान से देखा. उस के बाद मुंशी को बुला कर उस की रिपोर्ट दर्ज करने को कहा. मुंशी ने प्रमोद के बयान के आधार पर उस की रिपोर्ट दर्ज कर ली. रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद प्रमोद ने थानाप्रभारी के औफिस में आ कर कहा, ‘‘साहब, अब मैं जाऊं?’’

थानाप्रभारी भुवनेश गौतम ने उसे एक बार फिर ध्यान से देखा. प्रमोद ने उन से एक बार भी नहीं कहा था कि वह उस की पत्नी को तुरंत बरामद कराएं. उस के चेहरे के हावभाव से भी नहीं लग रहा था कि उसे पत्नी के अपहरण का जरा भी दुख है.

उन्होंने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘तुम हमें वह जगह नहीं दिखाओगे, जहां से तुम्हारी पत्नी का अपहरण हुआ है? अपहर्त्ता जिस बोलेरो जीप से तुम्हारी पत्नी को ले गए हैं, उस का नंबर तो तुम ने देखा ही होगा. वह नंबर नहीं बताओगे?’’

थानाप्रभारी की बातें सुन कर प्रमोद के चेहरे के भाव बदल गए. वह एकदम से घबरा सा गया. उस ने हकलाते हुए कहा, ‘‘साहब, मैं गाड़ी का नंबर नहीं देख पाया था. यह सब इतनी जल्दी और अचानक हुआ था कि गाड़ी का नंबर देखने की कौन कहे, मैं तो यह भी नहीं देख पाया कि अपहर्त्ता कितने थे.’’

‘‘ठीक है, हम अभी तुम्हारे साथ चल कर वह जगह देखते हैं, जहां से तुम्हारी पत्नी का अपहरण हुआ है. तुम घबराओ मत, हम नंबर और अपहर्त्ताओं के बारे में भी पता कर लेंगे.’’ कह कर थानाप्रभारी ने गाड़ी निकलवाई और सिपाहियों के साथ प्रमोद को भी गाड़ी में बैठा कर घटनास्थल की ओर चल पड़े. सिपाहियों के साथ बैठा प्रमोद काफी परेशान सा लग रहा था.

जिस की पत्नी का अपहरण हो जाएगा, वह परेशान तो होगा ही, लेकिन उस की परेशानी उस से हट कर लग रही थी. थानाप्रभारी जब गांव के मोड़ पर पहुंचे तो प्रमोद ने कहा, ‘‘साहब, मुझे तो अब याद ही नहीं कि अपहरण कहां से हुआ था? मैं तो पत्नी के साथ पैदल ही जा रहा था. अंधेरा होने की वजह से मैं वह जगह ठीक से पहचान नहीं सका.’’

‘‘तुम ने शोर मचाया था?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब, शोर मचाने का मौका ही कहां मिला. वह आंधी की तरह आए और मेरी पत्नी को जीप में जबरदस्ती बैठा कर ले गए.’’ प्रमोद ने कहा.

थानाप्रभारी को प्रमोद की इस बात से लगा कि मामला अपहरण का नहीं, कुछ और ही है. पूछने पर प्रमोद यह भी नहीं बता रहा था कि उस की ससुराल कहां है. संदेह हुआ तो उन्होंने गुस्से में कहा, ‘‘सचसच बता, क्या बात है?’’

प्रमोद कांपने लगा. थानाप्रभारी को समझते देर नहीं लगी कि यह झूठ बोल रहा है. उन्होंने उसे जीप में बैठाया और थाने आ गए. थाने ला कर उन्होंने उस से पूछताछ शुरू की. शुरूशुरू में तो प्रमोद ने पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की, लेकिन जब उस ने देखा कि पुलिस अब सख्त होने वाली है तो उस ने रोते हुए कहा, ‘‘साहब, अपने दोस्त मुकेश के साथ मिल कर मैं ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी है और लाश एक गन्ने के खेत में छिपा दी है.’’

रात में तो कुछ हो नहीं सकता था, इसलिए पुलिस सुबह होने का इंतजार करने लगी. सुबहसुबह पुलिस लालपुर पहुंची तो गांव वाले हैरान रह गए. उन्हें लगा कि जरूर कुछ गड़बड़ है. जब प्रमोद ने गन्ने के खेत से लाश बरामद कराई तो लोगों को पता चला कि प्रमोद ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी है. थोड़ी ही देर में वहां भीड़ लग गई.

पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया. मृतका की उम्र 20 साल के करीब थी. वह साड़ीब्लाउज पहने थी. गले पर दबाने का निशान स्पष्ट दिखाई दे रहा था. गांव वालों से जब प्रमोद के घर वालों को पता चला कि प्रमोद ने अर्चना की हत्या कर दी है तो वे भी हैरान रह गए. उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि प्रमोद ऐसा भी कर सकता है. लेकिन जब वे घटनास्थल पर पहुंचे तो अर्चना की लाश देख कर सन्न रह गए. पुलिस ने मृतका अर्चना के पिता डालचंद को भी फोन द्वारा सूचना दे दी थी कि उन की बेटी अर्चना की हत्या हो चुकी है.

इस सूचना से डालचंद और उन की पत्नी शारदा हैरान रह गए थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब कैसे हो गया. कल शाम को ही तो उन्होंने बेटी को विदा किया था. उस समय तो सब ठीकठाक लगा था. रास्ते में ऐसा क्या हो गया कि अच्छीभली बेटी की हत्या हो गई.

डालचंद ने सिर पीट लिया. उन के मुंह से एकदम से निकला, ‘‘किस ने मेरी बेटी को मार दिया? उस ने आखिर किसी का क्या बिगाड़ा था?’’

‘‘हमारी बेटी को किसी और ने नहीं, प्रमोद ने ही मारा है.’’ रोते हुए शारदा ने कहा.

पत्नी की इस बात से डालचंद हैरान रह गया, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है?’’

‘‘तुम्हें पता नहीं है. दामाद का गांव की ही किसी लड़की से चक्कर चल रहा था. उसी की वजह से उस ने मेरी बेटी को मार डाला है.’’ शारदा ने कहा.

पत्नी भले ही कह रही थी कि अर्चना की हत्या प्रमोद ने की है, लेकिन डालचंद को विश्वास नहीं हो रहा था. सूचना पाने के बाद डालचंद परिवार के कुछ लोगों के साथ थाना गजरौला कलां जा पहुंचा. अर्चना की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया था. थानाप्रभारी ने जब उसे बताया कि अर्चना की हत्या उस के दामाद प्रमोद ने ही की है, तब कहीं जा कर उसे विश्वास हुआ.

पूछताछ में शारदा ने बताया कि अर्चना ने उन से बताया था कि प्रमोद का गांव की ही किसी लड़की से प्रेमसंबंध है. लेकिन उस ने बेटी की इस बात को गंभीरता से नहीं लिया था. उसे लगा कि हो सकता है शादी के पहले रहे होंगे. शादी के बाद संबंध खत्म हो जाएंगे. उसे क्या पता कि उसी संबंध की वजह से प्रमोद उस की बेटी को मार डालेगा.

अपहरण का कारण बना लिव इन रिलेशन – भाग 1

चंद्रा का मायके जाने का प्रोग्राम था, इसलिए उस ने घर का अगले दिन का काफी काम शाम को  ही निपटा दिया था. बचाखुचा काम अगले दिन पूरा कर के वह दोनों बच्चों सोनिया और प्रिंस को ले कर 20 नवंबर, 2013 को नोएडा से बस पकड़ कर दिल्ली आ गई. दिल्ली के सराय कालेखां में उस का मायका था. नानी के घर आ कर दोनों बच्चे बहुत खुश थे.

चंद्रा के मायके के सामने ही दिल्ली नगर निगम का पार्क था. मोहल्ले के अन्य बच्चों के साथ सोनिया और प्रिंस भी सुबह ही पार्क में खेलने के लिए निकल जाते थे. दोनों बच्चों के साथ खेलने में इतने मस्त हो जाते थे कि उन्हें खाना खाने के लिए चंद्रा को बुलाने जाना पड़ता था. चंद्रा सोचती थी कि 2-4 दिनों में वह फिर ससुराल लौट जाएगी और वहां जा कर बच्चे स्कूल के काम में लग जाएंगे, इसलिए वह बच्चों के साथ ज्यादा टोकाटाकी नहीं करती थी.

24 नवंबर की सुबह भी प्रिंस रोजाना की तरह अपनी बहन सोनिया के साथ पार्क में खेलने गया. जब वह खेलतेखेलते थक गया तो पार्क के किनारे बैठ गया और अन्य बच्चों का खेल देखने लगा. उसे वहां बैठे अभी थोड़ी देर ही हुई थी कि 2 आदमी उस के पास आ कर खड़े हो गए. उन का चेहरा रूमाल से ढका हुआ था.

उन में से एक ने प्रिंस को गोद में उठा कर उस का मुंह दबा कर उसे शौल से ढक लिया और पास खड़ी मोटरसाइकिल के पास पहुंच गए. मोटरसाइकिल को पहले से ही एक आदमी स्टार्ट किए उस पर बैठा था. वे दोनों भी मोटरसाइकिल पर उस के पीछे बैठ कर फरार हो गए.

सोनिया ने यह सब खुद अपनी आंखों से देखा, लेकिन डर की वजह से वह कुछ नहीं बोल सकी. वह भागती हुई घर पहुंची और अपनी मां चंद्रा को बताया कि कुछ लोग मोटरसाइकिल पर आए थे और भैया को पकड़ कर ले गए. उन का मुंह ढका हुआ था.

सोनिया की बात सुन कर चंद्रा जल्दी से अपने भाई नरेंद्र के पास पहुंचीं, जो अपने परिवार के साथ ऊपर वाले फ्लोर पर रहते थे. चंद्रा रोते हुए सोनिया द्वारा बताई गई बात अपने भाई नरेंद्र चौधरी को बता दी.

हकीकत जान कर नरेंद्र के भी होश उड़ गए. वह फटाफट घर से बाहर निकला और प्रिंस को सभी संभावित जगहों पर ढूंढ़ने की कोशिश की. मोहल्ले के जिन लोगों को पता चला, वे भी उसे इधरउधर खोजने निकल गए. जब काफी देर की खोजबीन के बाद भी प्रिंस का कहीं पता नहीं चला तो चंद्रा नरेंद्र के साथ सनलाइट कालोनी थाने पहुंची.

थाने में नरेंद्र चौधरी ने पुलिस को सारी बातें बता कर 7 वर्षीय प्रिंस का हुलिया बता दिया. पुलिस ने अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ भादंवि की धारा 363 के तहत अपहरण का मुकदमा दर्ज कर के प्रिंस की तलाश शुरू कर दी.

काफी कोशिशों के बावजूद पुलिस को प्रिंस का कहीं पता नहीं चल पा रहा था. चूंकि चंद्रा के पास प्रिंस की कोई तसवीर नहीं थी, इसलिए तलाश करने में और भी ज्यादा असुविधा हो रही थी. प्रिंस को गायब हुए 24 घंटे से भी ज्यादा गुजर चुके थे. बेटे का कोई सुराग न मिलने पर चंद्रा की रोरो कर आंखें सूज गई थीं.

26 नवंबर की रात करीब पौने 8 बजे पड़ोस में रहने वाले एक आदमी ने आ कर नरेंद्र चौधरी को बताया, ‘‘अभीअभी किसी ने मेरे मोबाइल पर फोन कर के पूछा है कि आप के पड़ोस में कोई बच्चा गायब हुआ है क्या?’’

नरेंद्र ने सोचा कि हो सकता है जिस आदमी ने फोन किया हो उसे प्रिंस मिल गया हो, इसलिए जिस नंबर से फोन आया था, उन्होंने वह नंबर मिलाया. लेकिन उस नंबर का मोबाइल स्विच्ड औफ था. थोड़ी देर बाद उसी पड़ोसी के नंबर पर फिर काल आई. इस बार नरेंद्र ने फोन रिसीव किया.

‘‘क्या तुम्हारा कोई बच्चा अगवा हो गया है?’’ दूसरी तरफ से फोन करने वाले ने पूछा.

‘‘हां जी, मेरा भांजा अगवा हुआ है. आप जानते हैं उस के बारे में?’’ नरेंद्र ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘अगर तुम्हें बच्चा सहीसलामत और जिंदा चाहिए तो जैसा हम कहते हैं, वैसा करो.’’ दूसरी तरफ से फोन करने वाले ने कड़कती आवाज में कहा.

‘‘हां जी, बताइए आप क्या चाहते हैं?’’ नरेंद्र ने पूछा.

‘‘फौरन 14 लाख रुपए का इंतजाम करो और बच्चा ले जाओ. और हां, एक बात ध्यान से सुनो. तुम ने ज्यादा होशियारी की या पुलिस को कुछ भी बताया तो समझो बच्चा हाथ से गया.’’

‘‘जी, मैं समझ गया. मैं पुलिस के पास नहीं जाऊंगा. आप लोग बच्चे को कुछ मत करना, मैं पैसों का बंदोबस्त कर दूंगा. लेकिन 14 लाख रुपए बहुत ज्यादा हैं. आप कुछ कम नहीं कर सकते?’’ नरेंद्र ने गुजारिश करते हुए कहा.

‘‘ठीक है, हम सोच कर बताते हैं.’’ कह कर दूसरी ओर से फोन काट दिया गया.

पैसे लेने के बाद भी अपहर्त्ता बच्चे को सहीसलामत दे देंगे, इस बात पर नरेंद्र को विश्वास नहीं था. इसलिए उस ने चुपके से फोन वाली बात पुलिस को बता दी. बच्चे के अपहरण की इस वारदात को पुलिस ने गंभीरता से ले कर क्राइम ब्रांच को सौंप दिया.

एडिशनल डीसीपी भीष्म सिंह ने इस मामले को सुलझाने के लिए एसीपी राजाराम के निर्देशन में एक पुलिस टीम बनाई, जिस में एसआई रविंदर तेवतिया, रविंद्र वर्मा, एन.एस. राना, एएसआई धर्मेंद्र, हेडकांस्टेबल विक्रम दत्त, अजय शर्मा, दिनेश, कांस्टेबल मोहित, मनोज, प्रेमपाल, सुरेंदर, राकेश, देवेंद्र, कुसुमपाल, उदयराम और सुरेंद्र आदि को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने सब से पहले उस मोबाइल फोन की जांच की, जिस से अपहर्त्ताओं ने फोन किए थे. इस से पता चला कि उस की लोकेशन सराय कालेखां की आ रही थी. बच्चा सराय कालेखां से ही उठाया गया था और उसी इलाके में अपहर्त्ताओं के फोन की लोकेशन आ रही थी. पुलिस को लगा कि बच्चे को शायद वहीं कहीं छिपा कर रखा गया है. इसलिए पुलिस ने वहां के हर घर की तलाशी लेनी शुरू कर दी. लेकिन वहां बच्चा नहीं मिला.

पुलिस के पूछने पर प्रिंस के घर वालों ने अपने एक परिचित पर शक जताया, जिस के बाद पुलिस ने उस परिचित को हिरासत में ले कर पूछताछ की. लेकिन उस से कोई सुराग हाथ नहीं लग पाया तो पुलिस ने उसे छोड़ दिया.

अगले दिन यानी 27 नवंबर को दोपहर करीब 12 बजे अपहर्त्ता ने फिर से उसी पड़ोसी के मोबाइल पर फोन किया, लेकिन इस बार उन्होंने किसी दूसरे नंबर का इस्तेमाल किया था. काल नरेंद्र चौधरी ने रिसीव की. फोन करने वाले ने नरेंद्र चौधरी से सीधे पूछा, ‘‘पैसों का इंतजाम हो गया या नहीं?’’

‘‘जी, हम ने पैसों का इंतजाम कर लिया है. आप यह बताइए कि पैसे ले कर हम कहां आएं?’’

बिना कुछ कहे ही दूसरी तरफ से फोन कट गया. बाद में नरेंद्र ने वह नंबर कई बार मिलाया, लेकिन हर बार स्विच्ड औफ मिला. अब उन लोगों के अगले फोन का इंतजार करने के अलावा नरेंद्र के पास कोई दूसरा उपाय नहीं था.

उसी दिन शाम को करीब 4 बजे फिर काल आई. इस बार भी अपहर्त्ता ने पैसों के इंतजाम के बारे में पूछा. नरेंद्र ने पैसे तैयार होने की बात कर पूछा कि पैसे कहां पहुंचाने हैं? अपहर्त्ता ने सिर्फ इतना ही कहा कि जगह बाद में बताएंगे. इस बार भी नए नंबर से काल आई थी.

नरेंद्र ने यह बात भी जांच टीम को बता दी. चूंकि अपहर्त्ताओं की तरफ से जो भी फोन आए, वह पड़ोसी के ही मोबाइल पर आए थे, इसलिए पुलिस को शक हो रहा था कि बच्चे को अगवा करने में किसी जानपहचान वाले का हाथ हो सकता है.

बचपन का मजा, जवानी में बना सजा – भाग 1

खटखट की आवाज से असलम की आंख खुली तो आंखों की कड़वाहट से ही वह समझ गया कि अभी सवेरा नहीं हुआ है. लाइट जला कर उस ने समय देखा तो रात के 2 बज रहे थे. उतनी रात को कौन आ गया? असलम सोच ही रहा था कि दोबारा खटखट की आवाज आई. वह झट से उठा. रात का मामला था, इसलिए बिना पूछे दरवाजा खोलना ठीक नहीं था. उस ने पूछा, ‘‘कौन?’’

बाहर से सहमी सी आवाज आई, ‘‘भाईजान, मैं रुखसाना.’’

रुखसाना का नाम सुन कर उस ने झट से दरवाजा खोल दिया. क्योंकि वह उस की पड़ोसन थी. सामने खड़ी रुखसाना से उस ने पूछा, ‘‘भाभीजी आप, सब खैरियत तो है?’’

‘‘माफ कीजिएगा भाईजान, आप को इतनी रात को तकलीफ दी.’’ रुखसाना ने कहा तो असलम बोला, ‘‘जाबिरभाई और बच्चे तो ठीक हैं न?’’

‘‘असलम भाई, मुझे लगता है, मेरे घर कोई अनहोनी हो गई है. काफी देर पहले जाबिर टौयलेट के लिए ऊपर गए थे. लेकिन अभी तक वह नीचे नहीं आए हैं. मेरा जी घबरा रहा है.’’

‘‘नीचे नहीं आए, क्या मतलब? मैं समझा नहीं?’’ असलम ने हैरानी से कहा.

‘‘आज उन की तबीयत ठीक नहीं थी. शाम को भी देर से आए थे. खाना खाने के बाद दवा ली और सो गए. थोड़ी देर बाद वह टौयलेट जाने के लिए उठे. नीचे वाला टौयलेट खराब था, इसलिए मैं ने उन्हें ऊपर जाने को कहा. वह ऊपर वाले फ्लोर पर चले गए. जबकि मैं लेटी ही रही. काफी देर हो गई और वह ऊपर से नीचे नहीं आए तो मेरा जी घबराने लगा. इसलिए मैं आप के पास आ गई.’’

‘‘आप ने ऊपर जा कर नहीं देखा?’’ असलम ने पूछा.

‘‘जा रही थी, लेकिन सीढि़यों के दरवाजे की दूसरी ओर से कुंडी बंद थी, इसलिए जा नहीं सकी. मैं ने कई आवाजें दीं. दूसरी ओर से कोई जवाब नहीं मिला. मुझे लगता है, कोई गड़बड़ हो गई है?’’ रुखसाना ने भर्राई आवाज में कहा.

‘‘आप परेशान मत होइए भाभीजान. चलिए मैं देखता हूं.’’ कह कर असलम अपनी पत्नी के साथ रुखसाना के घर की ओर चल पड़ा.

रुखसाना, उस का बेटा साजिद, असलम और उस की पत्नी ऊपर जाने के लिए सीढि़यों पर चढ़ने लगे. ऊपर जाने वाले दरवाजे की कुंडी दूसरी ओर से बंद थी, इसलिए सभी को वहीं रुकना पड़ा. असलम ने वहीं से कई आवाजें लगाईं, लेकिन दूसरी ओर से कोई जवाब नहीं मिला. सभी नीचे उतरने लगे तो एकाएक असलम की नजर बालकनी पर चली गई. उसे लगा, वहां चादर में लिपटा कुछ पड़ा है. उस ने उस ओर इशारा कर के कहा, ‘‘भाभीजान, उधर देखिए, वह क्या पड़ा है?’’

रुखसाना ने उधर देखा. उस का बेटा साजिद वहां भाग कर पहुंचा. उस में से खून बह रहा था. उस ने झुक कर चादर हटाई. इस के बाद एकदम से चीखा, ‘‘अम्मी. यह तो अब्बू हैं.’’

रुखसाना चीखी, ‘‘या खुदा यह क्या हो गया? जाबिर तुम्हारा यह हाल किस ने किया?’’

साजिद भी जोरजोर से रोने लगा था.

असलम ने अपने मोबाइल फोन से पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दी. फिर तो थोड़ी ही देर में पीसीआर की गाड़ी वहां पहुंच गई. पीसीआर पुलिस ने चादर हटाई तो उस में खून से सनी जाबिर की लाश लिपटी थी. पीसीआर पुलिस ने संबंधित थाना जीटीबी एन्क्लेव को घटना के बारे में सूचित किया. कुछ देर बाद थाना जीटीबी एन्क्लेव के थानाप्रभारी नरेंद्र सिंह चौहान और इंसपेक्टर एटीओ राकेश कुमार दोहाना पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे.

घटनास्थल का मुआयना करने के दौरान ही पुलिस को खून सना एक चाकू मिला. पुलिस ने उसे कब्जे में ले लिया, क्योंकि हत्या उसी से की गई थी. पुलिस ने पूछताछ की तो रुखसाना ने वही बातें बताईं, जो वह असलम को पहले ही बता चुकी थी. स्थिति को देखते हुए पुलिस उस से ज्यादा पूछताछ नहीं कर सकी. लेकिन घटनास्थल के हालात से साफ था कि यह हत्या लूटपाट की वजह से नहीं हुई थी. क्योंकि घर का सारा सामान जस का तस था.

चूंकि मकान में आनेजाने का एक ही दरवाजा था, इसलिए पुलिस ने अंदाजा लगाया कि हत्या किसी जानकार ने की है या फिर इस में घर के किसी सदस्य का हाथ है. पुलिस परिवार वालों और रिश्तेदारों के नामपते तथा फोन नंबर ले रही थी, तभी क्राइम टीम और फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट ने आ कर अपनी काररवाई निपटा ली. इस के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया.

थाना जीटीबी एन्क्लेव में उसी दिन यानी 16 जून, 2013 को जाबिर की हत्या का यह मुकदमा अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कर लिया गया. इस के बाद मामले के खुलासे के लिए डीसीपी वी.वी. चौधरी एवं स्पेशल सेल के डीसीपी संजीव कुमार यादव ने स्पेशल सेल के इंसपेक्टर अत्तर सिंह यादव के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गठित की, जिस में सबइंसपेक्टर प्रवीण कुमार, संदीप कुमार, हेडकांस्टेबल संजीव, दिलावर, सुरेश और राजवीर को शामिल किया गया.

पुलिस को पता था कि जाबिर के मकान में आनेजाने के लिए एक ही दरवाजा था, इसलिए हत्यारा उसी दरवाजे से आया होगा और जाबिर की हत्या कर के उस की लाश को चादर में लपेट कर उसी दरवाजे से बाहर गया होगा. जाबिर का हत्यारा या तो जानपहचान का था या फिर घर का ही कोई सदस्य था.

पुलिस ने सभी नंबरों को सर्विलांस पर लगा दिया था. इसी के साथ मुखबिरों को भी सतर्क कर दिया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला था कि जाबिर के शरीर पर चाकू के 32 वार किए गए थे. पुलिस जांच में क्या हुआ, यह जानने से पहले आइए थोड़ा जाबिर और रुखसाना के बारे में जान लें.

जाबिर और रुखसाना उत्तर प्रदेश के जिला बदायूं के गांव रमजानपुर के रहने वाले थे. जाबिर 30-32 साल का रहा होगा, तभी उसे 15 साल की रुखसाना से प्यार हो गया था. इस की वजह यह थी कि जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही वह फूल की तरह महक उठी थी, जिस पर भंवरे मंडराने लगे थे.

रुखसाना के घर से निकलते ही चाहने वाले उस के पीछे लग जाते थे. कोई उसे परी कहता तो कोई जन्नत की हूर तो कोई अप्सरा तो कोई दिल की रानी. वह फूल कर कुप्पा हो जाती. फिर तो जल्दी ही वह न जाने कितनों के दिलों की रानी बन गई. उस के ये प्रेमी उसे घुमानेफिराने और मौज कराने लगे. ये लड़के उसे ऐसे ही नहीं मौज करा रहे थे, वे उस के शरीर से अपनी एकएक पाई वसूल रहे थे.

रुखसाना को भी इस में मजा आ रहा था. धीरेधीरे वह इस की आदी हो गई. हालत यह हो गई कि जब तक वह किसी लड़के से शारीरिक संबंध न बना लेती, उस का मन बेचैन रहता. उस के ऐसे ही यारों में एक जाबिर भी था. जाबिर उस से उम्र में बड़ा जरूर था, लेकिन शारीरिक संबंधों की आदी बन चुकी रुखसाना के लिए अब उम्र के कोई मायने नहीं रह गए थे.

जाबिर भी उसी मोहल्ले में रहता था, जिस मोहल्ले में रुखसाना रहती थी. वह नौशे मियां का बेटा था. जाबिर अन्य लड़कों से थोड़ा अलग था. दरअसल वह उस के दिल का राजा बनना चाहता था. रुखसाना को वह अपनी बीवी बनाना चाहता था. लेकिन लाख कोशिशों के बाद रुखसाना इस के लिए तैयार नहीं थी. इस की वजह यह थी कि वह उम्र में उस से काफी बड़ा था. रुखसाना का कहना था कि मौजमस्ती की बात दूसरी है और बीवी बन कर रहने की बात दूसरी.

पत्नी के लिए पिता के खून से रंगे हाथ – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला एटा की कोतवाली देहात के गांव नगला समल में रहता था रुकुमपाल. शहर के नजदीक और सड़क के किनारे बसा होने की वजह से गांव के लोग खुश और संपन्न थे. रुकुमपाल के पास खेती की जमीन ठीकठाक थी और वह मेहनती भी था, इसलिए गांव के हिसाब से उस के परिवार की गिनती खुशहाल परिवारों में होती थी. हंसीखुशी के साथ जिंदगी गुजार रही थी कि एक दिन अचानक रुकुमपाल की पत्नी श्यामश्री की मौत हो गई.

श्यामश्री की मौत हुई थी तो बेटी आशा 6 साल की थी और बेटा शीलेश 4 साल का. छोटेछोटे बच्चों को संभालना मुश्किल था, इसलिए घर वाले ही नहीं, रिश्तेदार भी उस की दूसरी शादी कराना चाहते थे. लेकिन रुकुमपाल ने शादी से तो मना किया ही, खुद को संभाला और बच्चों को भी संभाल लिया.

पत्नी की मौत के बाद बच्चों को मां रामरखी के भरोसे छोड़ कर रुकुमपाल परिवार और जिंदगी को पटरी पर लाने की कोशिश करने लगा था. शादी से उस ने मना ही कर दिया था, इसलिए दोनों बच्चों को बाप के साथसाथ वह मां का भी प्यार दे रहा था. इस में उसे परेशानी तो हो रही थी लेकिन बच्चों के लिए वह इस परेशानी को झेल रहा था. क्योंकि वह बच्चों के लिए सौतेली मां नहीं लाना चाहता था.

समय जितना जालिम होता है, उतना ही दयालु भी होता है. समय के साथ बड़ेबड़े जख्म भर जाते हैं. रुकुमपाल की जिंदगी भी सामान्य हो चली थी. बच्चे भी मां को भूल कर अपनीअपनी जिंदगी संवारने में लग गए थे.

आशा पढ़लिख कर शादी लायक हो गई तो रुकुमपाल ने एटा के ही गांव नगला बेल के रहने वाले विनोद कुमार के साथ उस का विवाह कर दिया था. विनोद वन विभाग में नौकरी करता था. नौकरी की वजह से वह एटा में रहता था, इसलिए आशा भी उस के साथ एटा में ही रहने लगी थी.

रुकुमपाल बेटे को पढ़ाना चाहता था, लेकिन शीलेश इंटर से ज्यादा नहीं पढ़ सका. पढ़ाई छोड़ कर वह दिल्ली चला गया और किसी फैक्ट्री में नौकरी करने लगा. हालांकि रुकुमपाल चाहता था कि शीलेश गांव में ही रहे, क्योंकि उस के पास जमीन ठीकठाक थी. लेकिन शीलेश को जो आजादी दिल्ली में मिल रही थी, शायद वह गांव में नहीं मिल सकती थी, इसलिए उस ने रुकुमपाल से साफ कह दिया था कि वह जहां भी है, वहीं ठीक है.

पत्नी की मौत के बाद रुकुमपाल ने अपना पूरा जीवन यह सोच कर बच्चों के लिए होम कर दिया था कि यही बच्चे बुढ़ापे का सहारा बनेंगे. बेटी तो ससुराल चली गई थी. बचा शीलेश, वह उस की कल्पना से अलग ही स्वभाव का लग रहा था. उस का सोचना था कि पिता ने अपना फर्ज पूरा किया है, उस के लिए कोई कुर्बानी नहीं दी है.

अपनी इसी सोच की वजह से कभीकभी शीलेष रुकुमपाल को ऐसी बात कह देता था कि उस के मन को गहरी ठेस पहुंचती थी. लेकिन उस के लिए शीलेश अभी भी बच्चा ही था. इसलिए वह उस की इन बातों को दिल से नहीं लेता था.

रुकुमपाल को अपने फर्ज पूरे करने थे, इसलिए वह शीलेश की शादी के लिए जीजान से जुट गया. आखिर उस की तलाश रंग लाई और एटा के ही गांव निछौली कलां के रहने वाले सोबरन की बेटी ममता उसे पसंद आ गई. फिर उस ने धूमधाम से उस की शादी कर दी.

सोबरन की 4 बेटियों में ममता सब से छोटी थी. उस का एक ही भाई था किशोरी. अंतिम बेटी होने की वजह से सोबरन ने ममता की शादी खूब धूमधाम से की थी.

ममता के आने से सब से ज्यादा खुशी दादी रामरखी को हुई थी. क्योंकि घर में दुलहन के आ जाने से उसे एक सहारा मिल गया था. कुछ दिन गांव में रह कर ममता शीलेश के साथ दिल्ली चली गई थी.

ममता गर्भवती हुई तो शीलेश उसे गांव छोड़ गया. कुछ दिनों बाद ममता ने एक बेटी को जन्म दिया. बेटी पैदा होने के बाद भी ममता दिल्ली नहीं गई. अब महीने, 2 महीने में शीलेश ही पत्नी और बिटिया से मिलने गांव आ जाता था.

बेटी 2 साल की हुई तो ममता एक बार फिर गर्भवती हुई. इस बार उस ने बेटे को जन्म दिया. ममता दिल्ली जाना तो नहीं चाहती थी, लेकिन रुकुमपाल और रामरखी ने उसे जबरदस्ती दिल्ली भेज दिया. दिल्ली आने के बाद कुछ दिनों में ममता को लगा कि पति की कमाई से घर ठीक से नहीं चल सकता तो वह गांव लौट आई और रुकुमपाल से साफ कह दिया कि अब वह दिल्ली नहीं जाएगी.

ममता मजबूरी में गांव में रह रही थी, क्योंकि एक तो पति की कमाई में गुजर नहीं होता था, दूसरे उस के छोटे से कमरे में बच्चों के साथ उसे घुटन सी होती थी. गांव में दिन तो कामधाम में कट जाता था, लेकिन पति के बिना रात काटना मुश्किल हो जाता था. जिस्म की भूख और अकेलापन काटने को दौड़ता था.

ममता ने शीलेश से कई बार कहा कि वह आ कर गांव में रहे, लेकिन शीलेश को शहर का जो चस्का लग चुका था, वह उसे गांव वापस नहीं आने दे रहा था. पति की इस उपेक्षा से नाराज हो कर ममता मायके चली गई थी. लेकिन अब मायके में तो जिंदगी कट नहीं सकती थी, इसलिए मजबूर हो कर उसे ससुराल आना पड़ा. फिर मांबाप ने भी कह दिया था कि वह जैसी भी ससुराल में है, उसे उसी में खुश रहना चाहिए.

ममता को ससुराल में कोई भी परेशानी नहीं थी. परेशानी थी तो सिर्फ यह कि पति का साथ नहीं मिल पा रहा था. इस परेशानी का भी वह हल ढूंढने लगी. तभी एक दिन वह मायके जा रही थी तो एटा में उस की मुलाकात हरीश से हो गई.

हरीश और ममता एकदूसरे को शादी के पहले से ही जानते थे. हरीश उस के गांव के पास का ही रहने वाला था. दोनों एकदूसरे को तब से पसंद करते थे, जब साथसाथ पढ़ रहे थे. बसअड्डे पर हरीश मिला तो ममता ने पूछा, ‘‘हरीश गांव चल रहे हो क्या?’’

‘‘अब शाम हो गई है तो गांव ही जाऊंगा न. लगता है, तुम्हें देख कर लग रहा है कि तुम भी मायके जा रही हो?’’ हरीश ने पूछा.

‘‘हां, मायके ही जा रही हूं. अब तुम मिल गए हो तो कोई परेशानी नहीं होगी. बाकी बच्चों को ले कर आनेजाने में बड़ी परेशानी होती है.’’

‘‘किसी को साथ ले लिया करो.’’ हरीश ने कहा तो ममता तुनक कर बोली, ‘‘किसे साथ ले लूं. वह तो दिल्ली में रहते हैं. घर में बूढ़े ससुर हैं, उन्हें खेती के कामों से ही फुरसत नहीं है.’’

‘‘तुम्हारे पति तुम से इतनी दूर दिल्ली में रहते हैं और तुम यहां गांव में रहती हो?’’

‘‘क्या करूं, उन के साथ वहां छोटी सी कोठरी में मेरा दम घुटता है, इसलिए मैं यहां गांव में रहती हूं.’’

‘‘तो उन से कहो, वो भी यहां गांव में आ कर रहें. पति के बिना तुम अकेली कैसे रह लेती हो?’’ हरीश ने कहा तो ममता निराश हो कर बोली, ‘‘उन्हें गांव में अच्छा ही नहीं लगता.’’

‘‘लगता है, वहां उन्हें कोई और मिल गई है. तुम यहां उन के नाम की माला जप रही हो और वह वहां मौज कर रहे हैं.’’

‘‘भई वह मर्द हैं, कुछ भी कर सकते हैं.’’

‘‘तो औरतों को किस ने मना किया है. वह वहां मौज कर रहे हैं, तुम यहां मौज करो. तुम्हारे लिए मर्दों की कमी है क्या.’’

वैसे तो हरीश ने यह बात मजाक में कही थी, लेकिन ममता ने इसे गंभीरता से ले लिया. उस ने कहा, ‘‘मैं 2 बच्चों की मां हूं, मुझे कौन पूछेगा?’’

‘‘तुम हाथ बढ़ाओ,सब से पहले मैं ही पकड़ूंगा.’’ हरीश ने हंसते हुए कहा, ‘‘ममता, मैं तुम्हें तब से प्यार करता हूं, जब हम साथ में पढ़ते थे. लेकिन मैं अपने मन की बात कह पाता, उस के पहले ही तुम किसी और की हो गई.’’

जब ममता ने भी उस से मन की बात कह दी तो दोनों चोरीछिपे मिलने ही नहीं लगे बल्कि संबंध भी बना लिए. ममता मौका निकाल कर हरीश से मिलने लगी. हरीश से संबंध बनने के बाद ममता को शीलेश की कोई परवाह नहीं रह गई.

अधिवक्ता पत्नी की जिंदगी की वैल्यू पौने 6 करोड़ – भाग 1

कोठी का ताला तोडऩे के बाद जब पुलिस अंदर घुसी तो ड्राइंगरूम के दरवाजे को खोलने के बाद पुलिस ने घर के एकएक कमरे को चैक करना शुरू किया. रेनू सिन्हा की कोठी दोमंजिला थी. इसी बीच पुलिस दल में शामिल लोगों ने जब बाथरूम का दरवाजा खोला तो एक तरह से उन की चीख निकलतेनिकलते बची. क्योंकि वहां रेनू की लाश पड़ी थी.

रेनू के सिर और कान से थोड़ा खून जरूर बह रहा था. जिस्म के दूसरे हिस्सों में भी चोट के कई निशान दिखाई पड़ रहे थे. इस से साफ था कि रेनू सिन्हा ने हत्या से पहले कातिल के साथ संघर्ष किया था. हैरानी की बात यह थी कि घर का सारा सामान अपनी जगह था, यानी वहां कोई लूटपाट या डकैती जैसी वारदात के कोई संकेत दिखाई नहीं पड़ रहे थे. लेकिन ताज्जुब की बात यह थी कि रेनू का पति नितिन फरार था.

यह वारदात 10 सितंबर, 2023 को देश की राजधानी दिल्ली से सटे गौतमबुद्ध नगर जिला नोएडा के सेक्टर 30 में स्थित कोठी नंबर डी 40 में हुई थी, उस के कारण पूरे पुलिस विभाग की नींद उड़ गई थी. वारदात ही ऐसी थी कि उस इलाके में रहने वाले लोगों के दिलोदिमाग में भी दहशत भर गई थी.

यह ऐसा सुरक्षित व पौश इलाका है, जहां कड़ी सुरक्षा के कारण अपराधी वहां आने से पहले सौ बार सोचे. यहां स्थित जिस आलीशान कोठी में ये वारदात हुई थी, उस में दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में वकालत करने वाली 61 साल की सीनियर महिला एडवोकेट रेनू सिन्हा अपने पति नितिन नाथ सिन्हा के साथ रह रही थीं. पति ने कुछ साल पहले ही इंडियन इनफार्मेशन सर्विसेस यानी आईआईएस से वीआरएस लिया था.

दरअसल, रेनू सिन्हा पिछले शनिवार शाम से ही किसी का फोन नहीं उठा रही थीं. कोठी में 2 लोग रहते थे, रेनू सिन्हा और उन के पति नितिन नाथ सिन्हा. रेनू दिल्ली हाईकोर्ट में अभी रेगुलर प्रैक्टिस कर रही थीं, जबकि उन के पति नितिन नाथ सर्विस से वीआरएस लेने के बाद ज्यादातर वक्त घर पर ही बिताते थे. कभी वह गोल्फ कोर्स क्लब या दोस्तों से मुलाकात के लिए चले जाते थे.

हैरत की बात यह थी कि जो लोग रेनू सिन्हा से बात करना चाहते थे, जब उन का फोन नंबर नहीं मिला तो उन्होंने नितिन नाथ सिन्हा के फोन पर संपर्क करना चाहा, तब उन का फोन भी पिक नहीं हुआ. रेनू सिन्हा का फोन नहीं मिलने के कारण सब से ज्यादा चितिंत रेनू के भाई अजय सिन्हा थे.

पेशे से पत्रकार अजय सिन्हा वैसे तो मूलरूप से बिहार के पटना के रहने वाले हैं, लेकिन काफी लंबे समय से अपनी पेशेवर जिंदगी के कारण वह भी नोएडा में ही रह रहे थे. कुछ भी हो जाए, रेनू सिन्हा हर रोज अपने भाई व परिवार के लोगों से बात जरूर करती थीं, लेकिन शनिवार के बाद जब रविवार को भी उन्होंने न तो खुद किसी को फोन किया और न ही उन्होंने किसी का फोन पिक किया तो अजय सिन्हा की भी चिंता बढ़ गई.

चिंता उस समय और भी ज्यादा बढ़ गई जब रेनू की एक हमउम्र दोस्त प्रमिला सिंह रविवार सुबह करीब एक बजे उन के घर पहुंचीं तो कोठी का मेन गेट बंद था. उन्होंने रेनू व उन के पति को कई बार फोन किया, उन के फोन की घंटी तो बजती रही, लेकिन फोन पिक नहीं किया गया.

प्रमिला ने यह बात फोन कर के रेनू के भाई को बताई. तब अजय को आशंका हुई कि उन की बहन के साथ कुछ अनहोनी जरूर हो गई है. क्योंकि वह जानते थे कि अपने पति नितिन नाथ के साथ रेनू के सबंध अच्छे नहीं हैं. यह बात उन का पूरा परिवार जानता था.

किसी अनहोनी की आशंका में अजय सिन्हा ने कोतवाली सेक्टर 20 नोएडा के एसएचओ धर्मप्रकाश शुक्ला को फोन कर के बताया कि उन की बहन रेनू सिन्हा जो अपने पति के साथ सेक्टर 30 के डी 40 में रहती हैं, वह किसी का फोन नहीं उठा रही हैं. वह पुलिस को भेज कर पता कराने की कोशिश करें कि उन के साथ कोई अनहोनी तो नहीं हो गई है. दरअसल, रेनू सिन्हा का घर सेक्टर 20 थाना क्षेत्र में ही था.

बाथरूम में मिली रेनू सिन्हा की लाश

एक बात तो तय थी कि रेनू और नितिन नाथ के फोन औन थे, उन दोनों के फोन की घंटी भी बज रही थी, लेकिन फोन अन आंसर्ड जा रहा था. यानी काल नहीं उठ रही थी. यही वजह थी कि रेनू के भाई अजय सिन्हा ने सेक्टर 20 थाने के एसएचओ को फोन कर के बहन की गुमशुदगी की खबर दी.

एसएचओ धर्मप्रकाश शुक्ला ने स्थानीय चौकी के इंचार्ज को पुलिस टीम के साथ सेक्टर 30 में डी ब्लौक की कोठी नंबर 40 पर पहुंचने के लिए कहा तो वह पुलिस टीम के साथ तत्काल ही वहां पहुंच गए. उन्होंने देखा कोठी के गेट पर तो ताला लटका था.

जब यह बात एसएचओ को पता चली तो उन्होंने अजय सिन्हा को बता दिया कि कोठी पर ताला लटका है और आगे की काररवाई के लिए उन्हें थाने आना होगा. करीब ढाई बजे अजय सिन्हा अपने 1-2 परिचितों को ले कर सेक्टर 20 थाने पहुंच गए.

उन्होंने इंसपेक्टर शुक्ला को सारी बात बताई. साथ ही बताया, “अगर मेरी बहन लापता हैं तो इस का साफ मतलब है कि जीजा नितिन नाथ ने ही उन्हें या तो कोई नुकसान पहुंचा दिया है या उन्हें गायब कर दिया है.”

“ऐसा भी तो हो सकता है कि वे दोनों अपनी मरजी से कहीं चले गए हों और किसी कारणवश उन के फोन उन के पास नहीं हो.” इंसपेक्टर शुक्ला ने कहा.

“नहीं इंसपेक्टर साहब, ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि मेरी बहन कैंसर पेशेंट हैं और करीब एक महीना पहले ही अस्पताल से डिस्चार्ज हो कर घर आई हैं,” अमेरिका के अजय सिन्हा ने कहा.

“लेकिन आप ने अभी अपने जीजा पर शक जताया, इस की कोई खास वजह?” इंसपेक्टर शुक्ला ने अजय से पूछा.

इस के बाद अजय ने जो कुछ बताया, इंसपेक्टर शुक्ला के लिए यह समझने को काफी था कि नितिन नाथ पर किया गया शक बेवजह नहीं है.

अगले 2 घंटे बाद इंसपेक्टर धर्मप्रकाश शुक्ला अजय सिन्हा और पुलिस की टीम को ले कर एडवोकेट रेनू सिन्हा की कोठी पर पहुंच गए. पुलिस ने सब से पहले ताला तोडऩे वाले को बुलवा कर कोठी के मुख्य गेट पर लगे ताले को तुड़वाया तो देखा छोटे गेट की कुंडी अंदर से बंद थी.

अजय सिन्हा के किसी पत्रकार दोस्त ने पुलिस कमिश्नर (नोएडा) लक्ष्मी सिंह को भी फोन कर दिया था, जिस के कुछ देर बाद सेंट्रल नोएडा के डीसीपी हरीश चंद्र, एडिशनल डीसीपी शक्तिमोहन अवस्थी, इलाके के एसीपी सुमित शुक्ला भी मौके पर ही पहुंच गए. उच्चाधिकारियों के मौके पर पहुंचते ही सेक्टर 20 थाने की पुलिस और ज्यादा अलर्ट हो गई. इस पूरी कवायद में शाम के 7 बज चुके थे.

कोठी का ताला तोडऩे के बाद जब पुलिस अंदर घुसी तो ड्राइंगरूम के दरवाजे को खोलने के बाद पुलिस ने घर के एकएक कमरे को चैक करना शुरू किया. रेनू सिंह की कोठी दोमंजिला थी. भूतल पर ही रेनू और नितिन नाथ सिन्हा का बैडरूम था. शायद उन के कमरे से उन के लापता होने का कोई सुराग मिल जाए, यह सोच कर तमाम आला अफसर जब उन के कमरे में गए तो उन्हें वहां ऐसा कुछ संदेहजनक नहीं लगा.

इसी बीच पुलिस दल में शामिल लोगों ने जब बाथरूम का दरवाजा खोला तो एक तरह से उन की चीख निकलतेनिकलते बची. क्योंकि वहां रेनू की लाश पड़ी थी. अधिकारियों के कहने पर एक पुलिसकर्मी ने रेनू की नब्ज टटोली, लेकिन उन का शरीर पूरी तरह निर्जीव था. लाश पूरी तरह ठंडी पड़ चुकी थी, जिस का मतलब साफ था कि उन की मौत को कई घंटे बीत चुके हैं.

अजय सिन्हा और उन के घर वाले रेनू सिंह की लाश मिलने के बाद फूटफूट कर रोने लगे. आसपास के कमरों में भी छानबीन की गई. आशंका थी कि कहीं किसी ने रेनू के पति नितिन नाथ की भी तो हत्या नहीं कर दी हो, लेकिन भूतल पर कहीं कुछ नहीं मिला.