Punjab News: यह कैसी इंसानी फिसरत

 Punjab News: घरपरिवार से दूर अकेला रह रहा राजेश पड़ोस में रहने वाली औरतों को बुरी नजर से ही नहीं देखता था, बल्कि मौका मिलने पर शरीरिक छेड़छाड़ भी कर लेता था. परेशान हो कर महिलाओं ने जब विरोध किया तो ऐसा क्या हुआ कि 3 घर बरबाद हो गए. मैं उन दिनों जिला संगरूर के शहर मलेरकोटला में बतौर थानाप्रभारी तैनात था. मलेरकोटला एक ऐतिहासिक नगर माना जाता है. सिख इतिहास में इस नगर का और नगर के नवाब का विशेष महत्त्व एवं योगदान रहा है. मानवता के रक्षक एवं सिखमुसलिम एकता के प्रतीक माने जाने वाले इस नगर में आज भी अमन और शांति है.

स्वयं को धन्य मानते हुए इस नगर में मैं शांति से नौकरी कर रहा था कि एक दोपहर 12 बजे के आसपास मुझे जो सूचना मिली, मैं उस से बेचैन हो उठा. सूचना के अनुसार बड़ाघर, ईदगाह रोड पर स्थित मामदीन मोहल्ला के वार्ड नंबर 4 में मोहम्मद सादिक, शौकत अली के मकान में हत्याएं हुई थीं. हत्या शब्द से ही डर लगता है, बात हत्याओं की आ जाए तो आम आदमी की छोड़ो, एक इंसपेक्टर होते हुए भी मैं घबरा गया था.

बहरहाल, सूचना मिलते ही मैं एक सबइंसपेक्टर, एक हेडकांस्टेबल और 2 सिपाहियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गया था. जिस मकान में वारदात हुई थी, उस के सामने मोहल्ले वालों की अच्छीखासी भीड़ जमा थी. मकान किसी परकोटे जैसा था. ऊंचीऊंची दीवारों वाले हवेलीनुमा उस मकान का किले जैसा विशाल फाटक अंदर से बंद था.

फाटक के नीचे से बहा खून बाहर गली तक आ गया था.  मौजूद लोगों से पूछने पर पता चला कि कुछ देर पहले अंदर से मारपीट और चीखनेचिल्लाने की आवाजें आई थीं. उन आवाजों को सुन कर वे लोग वहां पहुंचे. उन्होंने फाटक खुलवाने के लिए बाहर लगी सांकल बजाई. दरवाजा तो नहीं खुला, फाटक के नीचे से खून जरूर बह कर बाहर आ गया. चूंकि उस मकान में कई लोग रहते थे, अगर कोई जीवित होता तो जरूर फाटक खोलता. इसी से उन लोगों ने अंदाजा लगाया कि लगता है अंदर रहने वाले सभी लोगों को मार दिया गया है. यही सोच कर उन्होंने हत्याओं की सूचना दे दी थी.

मैं ने सिपाहियों से कहा कि मोहल्ले से किसी की सीढ़ी ला कर मकान की दीवार पर लगा कर भीतर जाएं और अंदर से फाटक खोल दें, ताकि अंदर जा कर देखा जा सके कि यहां क्या हुआ था? सिपाहियों ने तुरंत एक सीढ़ी की व्यवस्था कर के फाटक खोल दिया. फाटक खुलते ही मैं ने देखा, फाटक के पास ही अंदर एक औरत की खून से लथपथ लाश पड़ी थी. फाटक के नीचे से बह कर बाहर आने वाला खून उसी औरत का था. जांच आगे बढ़ाने से पहले मकान की संरचना को समझना जरूरी था. मकान मुगल शासनकाल के किसी मुसलिम अफसर या नगरसेठ की हवेली रहा होगा.

मुख्यद्वार यानी फाटक के बाद एक बेहद खूबसूरत बरामदा था, जिस के खत्म होने से पहले बाईं ओर एक बहुत बड़ा कमरा था. उस के ठीक सामने दाईं ओर भी वैसा ही एक कमरा था. बरामदा खत्म होने के बाद बाईं ओर कमरे के बजाय खुले आंगन में दीवारों के साथ खूबसूरत फूलों की क्यारियां बनी हुई थीं, जबकि दाईं ओर लाइन से 3 कमरे बने हुए थे. उस के बाद छत पर जाने के लिए सीढि़यां बनी थीं. उस के आगे सामने की दीवार से सटा लैट्रीन और बाथरूम बना था. मकान देख कर यही लगता था कि मकान में आनेजाने के लिए फाटक के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था. मैं ने इस घटना की जानकारी अधिकारियों को देने के साथ फोरेंसिक टीम को भी बुला लिया था. इस के बाद मैं घटनास्थल का निरीक्षण करने लगा.

फाटक के पास बरामदे में पड़ी मृतका की उम्र 30-32 साल रही होगी. वह निहायत ही खूबसूरत और सलीके वाली औरत लग रही थी. मृतका के शरीर पर तेज धार वाले हथियार के कई घाव थे, जो काफी गहरे थे. लाश के पास ही चूडि़यों के कुछ टुकड़े पड़े थे. कुछ टुकड़े मृतका की कलाई में भी धंसे हुए थे, जहां से खून रिस रहा था. मृतका के सिर के बाल बिखरे हुए थे, पास ही बालों में लगाई जाने वाली क्लिप पड़ी थी. कुछ बरतन बरामदे में फैले हुए थे. वहां की स्थिति से साफ लग रहा था कि मृतका ने मरने से पहले खुद को बचाने के लिए काफी संघर्ष किया था. लाश के निरीक्षण के दौरान मृतका की मुट्ठी में भी ढेर सारे बाल दबे दिखाई दिए. जिस कमरे के बाहर बरामदे में लाश पड़ी थी, उस कमरे में भी संघर्ष के निशान नजर आ रहे थे. कमरे के अंदर भी खून फैला हुआ था.

कमरे और बरामदे से खून सने पैरों के निशान दाईं ओर वाले कमरों की ओर गए हुए थे. निशानों का पीछा करते हुए जब मैं दूसरे कमरे में पहुंचा तो वहां भी एक 30-32 साल की महिला की खून से लथपथ लाश पड़ी थी. उस महिला के शरीर पर भी तेजधार वाले हथियार के कई घाव थे. फर्श पर खून ही खून फैला था. उस कमरे में भी संघर्ष के निशान स्पष्ट दिखाई दे रहे थे. खून सने पैरों के निशानों के आधार पर मैं तीसरे कमरे में पहुंचा तो वहां खून से लथपथ एक युवक औंधे मुंह फर्श पर पड़ा था. उस के आसपास फर्श पर खून फैला हुआ था. नजदीक से देखने पर उस की गरदन में एक हंसिया फंसा दिखाई दिया. खून गरदन से ही बह रहा था. मुझे उस में कुछ हरकत दिखाई दी तो मैं ने झट से उस की नब्ज पकड़ी. वह चल रही थी. इस का मतलब वह युवक जीवित था. मैं ने तुरंत उसे अस्पताल भिजवाया.

मेरी सूचना पर एसपी भूपिंदर सिंह विर्क, डीएसपी (डी) हरमिंदर सिंह, डीएसपी मलेरकोटला गुरप्रीत सिंह, फोरेंसिक टीम के साथ आ गए थे. अधिकारियों की उपस्थिति में फोरेंसिक टीम ने अपना काम कर लिया तो अधिकारियों ने भी घटनास्थल एवं लाशों का बारीकी से निरीक्षण किया. लाश के पास पड़ी चूडि़यों के टुकड़े, वहां बिखरे बरतनों में से एक लोटे पर खून लगा था, उसे कब्जे में ले लिया था. मृतका की मुट्ठी में दबे बाल भी सुबूत के लिए रख लिए गए थे. खून सने पैरों के जो निशान थे, फोरेसिंक टीम ने उन्हें बड़ी सफाई से उठा लिए थे. इस के अलावा अंगुलियों के निशान भी उठा लिए गए. खून सनी 3 जोड़ी चप्पलें मिली थीं, उन्हें भी जब्त कर लिया गया था. बाकी के सारे सुबूत जुटाने के बाद अन्य जरूरी काररवाई निपटाई और लाशों को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

पूछताछ द्वारा मिली जानकारी के अनुसार, वह मकान मोहम्मद सादिक का था, जिसे उस ने किराए पर उठा रखा था. जबकि वह खुद लोहभन में गुलजार अस्पताल के पास रहता था. मकान के बरामदे के बाईं ओर फाटक के पास जो लाश पड़ी थी, वह रिंकू की थी. वह बाईं ओर वाले कमरे में पति विजय और 2 बच्चों के साथ रहती थी. बरामदे के दाईं ओर वाले कमरे में 2 भाई रामा मंडल और सागर मंडल रहते थे. उस के आगे वाले कमरे में लालू साहू पत्नी बीना देवी और 4 बच्चों के साथ रहता था. उस कमरे में मिली लाश बीना देवी की थी. उस के आगे वाले तीसरे और अंतिम कमरे में राजेश गुप्ता अकेला ही रहता था. वही अपने कमरे में घायलावस्था में मिला था.

मकान में रहने वाले सारे किराएदार अलगअलग राज्यों के रहने वाले थे, जो कामधंधे की वजह से यहां आ कर रह रहे थे. लालू साहू मध्य प्रदेश का रहने वाला था तो रामा और सागर मंडल पश्चिम बंगाल के रहने वाले थे. जबकि विजय बिहार के जिला बेगूसराय का रहने वाला था. अपने कमरे में घायल मिला राजेश गुप्ता उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर का रहने वाला था. इस मकान में रहने वाले किराएदार अपनेअपने काम से मतलब रखने वाले लोग थे. इन में राजेश ही एक ऐसा आदमी था, जो दूसरों के मामलों में दिलचस्पी रखता था. खास कर औरतों के मामले में वह कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी लेता था.

लालू साहू कबाड़ी का काम करता था. वह सुबह अपने गोदाम पर चला जाता था तो देर रात को ही घर लौटता था. विजय किसी फैक्ट्री में काम करता था. उस की 12 घंटे की ड्यूटी थी. वह सुबह साढ़े 7 बजे घर से निकलता तो रात साढ़े 8 बजे तक लौटता था. रामा और सागर मंडल मकानों में टाइल्स लगाने का काम करते थे, जिस से वे सुबह 7 बजे ही घर से निकल जाते थे तो उन के लौटने का कोई निश्चित समय नहीं था.  बाकी बचा राजेश, जो किसी कंपनी में सिक्योरिटी गार्ड था. वह रात की ड्यूटी करता था, इसलिए जब अन्य पुरुष घर आते थे तो वह ड्यूटी पर चला जाता था और जब सभी अपनेअपने काम पर जाते थे तो वह वापस कमरे पर आ जाता था.

इस तरह दिन में वही अकेला मर्द उस मकान में रहता था. उस हवेलीनुमा मकान में दिन में केवल 3 लोग रहते थे, एक राजेश, दूसरी बीना और तीसरी रिंकू. क्योंकि इन के पति काम पर चले जाते थे तो बच्चे स्कूल चले जाते थे. पूछताछ में पता चला था कि राजेश दिलफेंक किस्म का युवक था, इसलिए ड्यूटी से आने के बाद अपने काम निपटा कर वह बीना और रिंकू के कमरों में ताकझांक किया करता था. वह जब तक जागता रहता, औरतों से छेड़छाड़ किया करता था. अश्लील फब्तियां कस कर दोनों की नाक में दम कर देता था.

राजेश की इन घटिया हरकतों की वजह से बीना और रिंकू ज्यादातर कमरों में बंद रहती थीं. लेकिन जरूरी कामों के लिए उन्हें कमरों से बाहर आना ही पड़ता था. घात लगा कर बैठा राजेश इसी मौके की तलाश में रहता था. पूछताछ में लालू और विजय ने बताया था कि कभीकभी तो वह अपने सारे कपड़े उतार कर अपने कमरे में डांस भी करने लगता था. ऐसा करने के लिए उसे मना किया जाता तो वह बेशरमी से हंसते हुए कहता, ‘‘यह मेरा कमरा है. मैं इस का किराया देता हूं, इसलिए अपने कमरे में मैं चाहे नंगा रहूं या कपड़े पहन कर घूमूं, इस में आप लोगों को क्या परेशानी है? अगर इस स्थिति में मैं आप लोगों को अच्छा लगता हूं तो आप लोग आराम से मेरे कमरे में आ सकती हैं. मैं जरा भी बुरा नहीं मानूंगा. पड़ोसी होने के नाते आप लोगों की सेवा करना मेरा धर्म बनता है.’’

इस तरह की बातें सुन कर रिंकू और बीना का दिमाग भन्ना उठता. उन का मन करता कि ईंट उठा कर उस के सिर पर दे मारें, जिस से उस का गंदा भेजा बाहर आ जाए. लेकिन चाह कर भी वे ऐसा नहीं कर पा रही थीं. वे राजेश की शिकायत अपनेअपने पतियों से भी नहीं कर पा रही थीं. इस की वजह यह थी कि एक तो उन के पतियों का राजेश से झगड़ा हो जाता, जिस में किसी को भी चोट लग सकती थी. अगर चोट उन के पतियों को लग जाती तो उन के लिए मुसीबत खड़ी हो जाती. अगर कहीं चोट राजेश को लग जाती तो वह थाने चला जाता. उस के बाद उन के पतियों को पुलिस पकड़ ले जाती. यह भी उन के लिए मुसीबत बन जाती. इस के अलावा यह भी हो सकता था कि उनके पति उन्हीं पर संदेह करने लगते. दोनों ही औरतें असमंजस की स्थिति में थीं. इसलिए संभलसंभल कर कदम रख रही थीं.

लेकिन उस दिन तो हद ही हो गई. दोपहर का समय था. बीना घर के काम निपटा कर आराम करने के लिए लेट गई. रिंकू अपने कमरे में दरवाजा बंद किए लेटी थी. गरमियों के दिन थे और बिजली नहीं थी, इसलिए बीना ने कमरे का एक किवाड़ खुला छोड़ दिया था. थकी होने की वजह से लेटते ही उस की आंख लग गई. अचानक बीना को लगा कि कोई उस के शरीर से छेड़छाड़ कर रहा है. उस की आंखें खुलीं तो देखा राजेश उस की बगल में लेटा उस से छेड़छाड़ कर रहा था. वह उछल कर उठी और जोरजोर से राजेश को गालियां देने लगी. शोर सुन कर रिंकू भी बाहर आ गई. इस के बाद दोनों औरतें राजेश को भलाबुरा कहने लगीं. तब बेशरमी से हंसते हुए उस ने रिंकू से कहा, ‘‘चिल्लाती क्यों हो, तुम्हारी सहेली ने ही तो मुझे अपने कमरे में बुलाया था. अब इस में मेरा क्या दोष है?’’

राजेश की बात से दोनों के पैरों तले से जमीन खिसक गई. राजेश की धूर्तता से डर कर दोनों ने उस की शिकायत अपनेअपने पतियों से नहीं की. ऐसे आदमी का क्या भरोसा, कब क्या बक दे? डर के मारे दोनों चुप रह गईं. इस से राजेश की हिम्मत बढ़ गई. लेकिन जब राजेश की हरकतें बढ़ती ही गईं तो काफी सोचविचार कर दोनों ने अपनेअपने पतियों से कहा कि दिन में अकेली रहने पर राजेश उन्हें परेशान करता है. उन के साथ बदतमीजी भी करता है. विजय और लाल ने राजेश को समझाना चाहा तो उलटा वह उन्हीं के गले पड़ गया. वह जोरजोर से कहने लगा, ‘‘मैं तुम्हारी बीवियों को परेशान करता हूं या तुम्हारी बीवियां मुझे परेशान करती हैं. उन्हें संभाल कर रखो वरना अच्छा नहीं होगा.’’

दोनों सन्न रह गए. अपनी इज्जत बचाने की खातिर वे आगे कुछ नहीं बोले. इसलिए यह सब यूं ही चलता रहा. बीना और रिंकू काफी परेशान थीं और बेबस भी. आखिर उस दिन छेड़छाड़ की अति हो गई. रोज की तरह राजेश अपने कमरे में था. घर का काम निपटाने के बाद रिंकू नहाने के लिए बाथरूम की ओर जा रही थी. बीना अपने कमरे में कुछ कर रही थी. बाथरूम जाने के लिए राजेश के कमरे के सामने से ही जाना पड़ता था. रिंकू को बाथरूम की ओर जाते देख कर राजेश के शैतानी दिमाग में खुराफात सूझ गई. वह अपने कमरे से निकला और दबेपांव बाथरूम की ओर चल पड़ा.

रिंकू कपड़े उतार कर नहाने के लिए बैठने जा रही थी कि राजेश ने अचानक दरवाजे को इतनी जोर से धक्का दिया कि अंदर की सिटकनी टूट गई और दरवाजा खुल गया. रिंकू को उस हालत में पा कर वह उस से छेड़छाड़ करने लगा. डर और शरम से रिंकू का बुरा हाल था. पहले तो वह सकपकाई, लेकिन बाद में जोरजोर से चिल्लाने के साथ बाथरूम में रखी कपड़ा धोने वाली मुंगरी उठा कर उसे पीटने लगी. रिंकू की चीखें सुन कर बीना भी कमरे से बाहर आ गई थी. वस्तुस्थिति समझ कर वह भी बाथरूम पहुंची. राजेश का कौलर पकड़ कर बाथरूम से बाहर निकाला और चप्पल से पीटने लगी. तब तक रिंकू भी कपड़े पहन कर बाथरूम से बाहर आ गई थी. दोनों ने मिल कर राजेश की जम कर धुनाई कर दी.

इस तरह रिंकू और बीना इज्जत को बचाना मुश्किल हो गया तो रात में पतियों के वापस आने पर उन्होंने राजेश की अगलीपिछली सारी हरकतें उन से बता दीं. इस के बाद विजय और लालू ने राजेश की जम कर पिटाई की और उस की हरकतों की शिकायत थाने में कर दी. पुलिस राजेश को पकड़ कर थाने ले गई. थाने में भी उस की धुनाई की गई. इस के बाद राजेश ने गलती की लिखित माफी मांगी तो उसे छोड़ दिया गया. इस घटना के बाद कुछ दिनों तक तो राजेश शांत रहा, लेकिन उस के बाद फिर छोटीमोटी हरकतें करने लगा. उस दिन यानी जिस दिन हत्याएं हुई थीं, रोज की तरह सभी अपनेअपने कामों पर चले गए थे. रात की ड्यूटी कर के सुबह साढ़े 8 बजे के करीब राजेश कमरे पर लौटा. 9 बजे तक सभी बच्चे भी स्कूल चले गए. इस के बाद उस हवेलीनुमा मकान में रिंकू, बीना और राजेश ही रह गए. 12 बजे तक घर के काम निपटा कर रिंकू और बीना अपनेअपने कमरों में लेट गईं.

अगस्त का महीना था. हवा बंद थी, इसलिए उमस बहुत ज्यादा थी. ऊपर से बिजली भी नहीं थी. हवा आने के लिए बीना ने अपने कमरे का दरवाजा थोड़ा खुला छोड़ दिया था. अपने कमरे में बैठे राजेश के मन में न जाने क्या सूझी कि वह कमरे से निकला और बीना के कमरे के सामने जा कर खड़ा हो गया. खुले दरवाजे से उस ने भीतर झांक कर देखा तो बीना गहरी नींद सो रही थी. बेखबरी में उस का पेटीकोट घुटनों के ऊपर तक खिसक गया था. पलक झपकाए बिना राजेश कुछ देर तक बीना की नंगी टांगे देखता रहा. उस के बाद वह इस कदर उत्तेजित हो उठा कि दरवाजा धकेल कर कमरे में जा पहुंचा और भूखे भेडि़ए की तरह बैड पर सो रही बीना पर टूट पड़ा.

अचानक हुए इस हमले से बीना घबरा कर चिल्लाने लगी. राजेश ने जल्दी से अपना एक हाथ उस के मुंह पर रख कर धमकाया, ‘‘चुपचाप मुझे अपने मन की कर लेने दो. अगर चीखीचिल्लाई तो गला दबा कर दम निकाल दूंगा.’’

बीना को धमका कर राजेश उस के शरीर से छेड़छाड़ करने लगा. अचानक बीना ने पूरी ताकत लगा कर राजेश को धक्का दिया तो वह फर्श पर गिर पड़ा. लेकिन फुरती से उठ कर उस ने एक जोरदार थप्पड़ बीना के मुंह पर मारा. राजेश उत्तेजना में इस कदर अंधा हो चुका था कि उसे कुछ सूझ ही नहीं रहा था. वह तेजी से बीना के कमरे से निकला और अपने कमरे से सब्जी काटने के लिए रखा हंसिया उठा लाया. बीना को डराने के लिए उस के सामने हंसिया लहराते हुए बोला, ‘‘खामोश, अगर मुंह से आवाज निकाली तो गला काट कर रख दूंगा.’’

लेकिन बीना पर राजेश की धमकी का कोई असर नहीं हुआ. वह खामोशी से अपनी इज्जत नहीं लुटवाना चाहती थी. इसलिए वह इज्जत बचाने के लिए संघर्ष करती रही. वह राजेश के चंगुल से खुद को छुड़ा कर बाहर की ओर भागना चाहती थी. जबकि राजेश की स्थिति यह थी कि जैसे किसी भूखे शेर के मुंह से मांस छीन लिया गया हो. उस ने बाहर की ओर भाग रही बीना पर हंसिये से प्रहार कर दिया. जहां हंसिया लगा था, वहां से खून का फव्वारा फूट पड़ा और वह फर्श पर गिर पड़ी. वह जोरजोर से चिल्लाने लगी. उस के गिरते ही राजेश तो उस पर लगातार कई वार कर दिए. अब तक उस की चीखपुकार सुन कर रिंकू भी आ गई थी. वहां की हालत देख कर उस की घिग्घी बंध गई.

बीना को राजेश से बचाने के लिए रिंकू कोई हथियार लेने के लिए अपने कमरे की ओर भागी. लेकिन राजेश पर उस समय खून सवार था, इसलिए वह भी उस के पीछे दौड़ा. रिंकू कोई चीज उठा पाती, इस का मौका दिए बिना ही राजेश ने हाथ में लिए हंसिये से उस पर वार कर दिया. रिंकू जान बचाने के लिए चीखते हुए कमरे से निकल कर फाटक की ओर भागी. लेकिन काल बने राजेश ने उसे बरामदे में घेर लिया और हंसिये से ताबड़तोड़ वार करने लगा. किसी कटे पेड़ की तरह लहरा कर रिंकू फर्श पर गिर पड़ी और तड़पतड़प कर थोड़ी देर में शांत हो गई. कुछ देर राजेश वहीं खड़ा रहा. इतनी देर में उस का जुनून शांत हो गया था. जब होश आया तो 2-2 लाशें और चारों ओर खून ही खून फैला देख कर उस की आत्मा तक कांप उठी.

वह कोई पेशेवर हत्यारा तो था नहीं, इसलिए यह सब देख कर उस के दिमाग ने काम करना बंद कर दिया. उसे आंखों के सामने फांसी का फंदा लहराता दिखाई दिया. पलभर में ही एक ऐसा जुनून आया, जो तूफान बन कर अपने पीछे तबाही छोड़ कर चला गया था. भविष्य की कल्पना मात्र से ही राजेश का शरीर कांप उठा. वह मकान के भीतर पागलों की तरह भागभाग कर अपने छिपने के लिए जगह ढूंढने लगा. जब उसे कोई जगह सुरक्षित नहीं दिखाई दी तो पुलिस से बचने के लिए वह हाथ में लिए हंसिये से अपनी गरदन पर वार करने लगा. पहला वार गहरा पड़ा, लेकिन उस के बाद वाले वार हलके होते गए. चौथा वार पहले वार पर पड़ा, जिस से घाव तो गहरा हो ही गया, पीड़ा की वजह से हाथ में ताकत न रहने की वजह से वह हंसिया निकाल नहीं सका, जिस से वह उसी में फंसा रह गया. राजेश बेहोश हो कर फर्श पर औंधे मुंह गिर पड़ा.

अब तक की पूछताछ से पता चला था कि राजेश द्वारा की गई दोनों महिलाओं की हत्याएं और आत्महत्या की कोशिश की वजह दुष्कर्म का प्रयास था. बहरहाल मैं दोनों महिलाओं के पतियों और मोहल्ले वालों के बयान दर्ज करने के बाद अस्पताल के लिए चल पड़ा. अस्पताल में पता चला कि राजेश की हालत काफी गंभीर थी, जिस की वजह से डाक्टरों ने उसे पटियाला के  राजेंद्रा अस्पताल के लिए रेफर कर दिया था. राजेंद्रा अस्पताल के डाक्टरों ने अथक प्रयास कर के राजेश को बचा लिया था. इस पूरे मामले में राजेश ही अकेला दोषी था. अगर उस की मौत हो जाती तो मामले की फाइल उसी दिन बंद हो जाती. लेकिन अब स्थिति बदल गई थी. राजेश बच गया था, इसलिए अब इस मामले को अदालत तक ले जाना था. मामले को मजबूत बनाने के लिए मैं साक्ष्य जुटाने लगा, जिस से मृत महिलाओं के परिजनों को न्याय मिल सके.

सिविल अस्पताल मलेरकोटला से राजेश की जो एमएलसी बनाई गई थी, उस के अनुसार राजेश की गरदन पर बाईं ओर तेजधार हथियार के 5 घाव थे. वह एमएलसी मुझे अधूरी लगी, इसलिए मैं ने पटियाला के राजेंद्रा अस्पताल से एक अन्य एमएलसी बनवाई, जिस में राजेश की बाईं आंख से ले कर गरदन तक तेजधार हथियार की 5 गंभीर चोटें थीं. बाएं हाथ पर कटे के 3 निशान और दाहिने हाथ पर भी चोट का एक निशान था, जो शायद छीनाझपटी में लग गया था. डाक्टरों की कोशिश से राजेश की हालत में तेजी से सुधार हो रहा था. अब वह बिना किसी की मदद के चलनेफिरने लगा था. लेकिन एक समस्या यह खड़ी हो गई थी कि गरदन पर हंसिये की चोट की वजह से उस की आवाज चली गई थी. अब वह बोल नहीं सकता था. आगे चल कर यह मेरे लिए एक बहुत बड़ी समस्या बन सकती थी. अदालत में वह अपनी बात किस तरह कहेगा, यह सोचसोच कर मैं परेशान था.

बहरहाल, मैं ने रिंकू और बीना की हत्या तथा आत्महत्या की कोशिश का मुकदमा राजेश के विरुद्ध दर्ज कर के सुबूत जुटाने शुरू कर दिए. एक दिन सवेरे पता चला कि राजेश निगरानी पर तैनात सिपाही को चकमा दे कर फरार हो गया है. मेरे लिए यह बहुत बड़ी परेशानी खड़ी हो गई थी. भले ही राजेश गंभीर रूप से घायल था, लेकिन उस ने जो जघन्य अपराध किया था, उस के लिए उसे सजा मिलनी ही चाहिए थी. मेरी नौकरी खतरे में पड़ गई थी. सब से बड़ी बात यह थी कि मेरी पूरी उम्र की बेदाग नौकरी के अंत में एक ऐसा कलंक लगने वाला था, जो लाख प्रयास के बाद भी नहीं छुड़ाया जा सकता था. मेरे रिटायरमेंट के मात्र 2 साल बाकी थे. बहरहाल अस्पताल में राजेश की निगरानी पर लगे सिपाही को लाइनहाजिर करा कर राजेश की तलाश में जगहजगह दबिश डालनी शुरू कर दी.

राजेश के भाई रामसंजीव गुप्ता को पूछताछ के लिए थाने बुलाया. वह भी मलेरकोटला में ही रहता था. उस ने बताया कि कई सालों से वह राजेश से नहीं मिला था. राजेश की हरकतों की वजह से वह न तो उसे अपने घर में घुसने देता था और न ही उस से कोई संबंध रखता था. मैं ने राजसंजीव से उस के रिश्तेदारों के पते पूछ कर उन के यहां छापे मारे, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. शहर की मैं ने पहले ही नाकेबंदी करवा दी थी. उस की शिनाख्त के लिए इतना ही काफी था कि उस के सिर से ले कर गरदन तक पट्टियां लिपटी थीं. वह आसानी से पहचाना जा सकता था और शायद इसीलिए 2 दिनों बाद वह मोहम्मद अयूब नामक एक इज्जतदार आदमी के साथ थाने आ कर मेरे सामने खड़ा हो गया. शायद उसे अपनी गलती का अहसास हो गया था या उसे अपने असहाय होेने का अंदाजा लग गया था.

थाने में मैं ने राजेश से पूछताछ शुरू की. इशारों से उस ने वे सारी बातें बता दीं, जो लोगों ने मुझे जांच के दौरान बताई थीं. बहरहाल मैं ने उस का बयान ले कर 2 गवाहों के सामने उस के दस्तखत करवा लिए. अगले दिन मैं ने उसे मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट श्री पुष्मिंदर सिंह की अदालत में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. हतयाओं का हथियार अभियुक्त की गरदन से बरामद हो गया था. धारा 313 सीआरपीसी के तहत बयान अभियुक्त ने इशारों में दर्ज करवा दिए थे. खून आलूदा एवं फिंगरप्रिंट की रिपोर्ट आने के बाद मैं ने अदालत में आरोपपत्र पेश कर दिया.

लगभग 2 सालों तक तारीखें पड़ने के बाद इस केस की गवाहियां अतिरिक्त सत्र एवं न्यायाधीश श्री बी.के. मेहता की अदालत में शुरू हुईं.  इस मुकदमे में कुल 23 गवाह थे. इस मुकदमे में ठोस सुबूत फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट ने पेश किए. अभियुक्त के पैरों के निशान इस मुकदमे में सजा दिलाने के लिए अहम सुबूत थे. इस के अलावा अहम सुबूत थे मृतका रिंकू की मुट्ठी में मिले राजेश के सिर के बाल. अभियुक्त राजेश की ओर से मुकदमे की पैरवी मशहूर वकील नरपाल सिंह धारीवाल कर रहे थे, जबकि अभियोजन पक्ष की ओर से अमरजीत शर्मा और हरिंदर सूद थे.

अभियुक्त राजेश गुप्ता ने सफाई में कुछ नहीं कहा था. जज साहब के आदेश पर राजेश को एक प्लेन पेपर दिया गया तो उस ने उस पर अपना अपराध स्वीकार करते हुए पूरी घटना का विवरण लिख कर जज साहब को थमा दिया था कि वह किस प्रकार वासना में अंधे हो कर रिंकू और बीना को अपनी हवस का शिकार बनाना चाहता था. जब वह इस प्रयास में सफल नहीं हुआ तो उन की किस तरह हत्या कर दी. अपने इस अपराध के लिए उस ने अदालत से माफी भी मांगी थी. जज साहब ने इस मुकदमे में अभियुक्त राजेश गुप्ता को रिंकू और बीना की हत्या का दोषी मानते हुए उम्रकैद और 10 हजार रुपए जुरमाने की सजा सुनाई थी. जुरमाना अदा न करने पर उसे 6 महीने की सजा और भोगनी थी.

जज साहब ने अपने फैसले में कहा था कि राजेश ने अपनी हवस पूर्ति के लिए 2 महिलाओं की हत्या कर के 2 परिवारों को बरबाद किया है. उसे मृत्युदंड मिलना चाहिए. लेकिन यह अपराध करने के बाद पश्चाताप में अभियुक्त ने आत्महत्या की कोशिश की और स्वयं अपना अपराध स्वीकार करते हुए अदालत से माफी मांगी, इसलिए उस के लिए उम्रकैद की सजा उपयुक्त है. Punjab News

 

Agra News: प्यार ने कलंकित किया रिश्ता

Agra News: पंकज और रितु सगे मामाभांजी थे, इसलिए उन्होंने प्यार और शादी कर के जो सामाजिक अपराध किया, उस की सजा उन्हें मौत को गले लगा कर चुकानी पड़ी. उत्तर प्रदेश के जिला शाहजहांपुर का एक छोटा सा कस्बा है खुतार. इसी कस्बे के रहने वाले प्रकाश नारायण श्रीवास्तव अध्यापक थे. उन की संतानों में एक बेटी मीना और 3 बेटे संतोष, राजीव तथा पंकज थे. बच्चों में मीना सब से बड़ी थी. उस के सयानी होते ही प्रकाश नारायण ने उस के विवाह के लिए भागदौड़ शुरू कर दी. काफी भागदौड़ के बाद प्रकाश नारायण को मीना के लिए लखीमपुर खीरी के गांव सैकिया का रहने वाला शांतिस्वरूप पसंद आ गया. वह किसान परिवार से था. इस तरह मीना की शादी शांतिस्वरूप के साथ हो गई.

मीना ससुराल में सुखी थी, इसलिए मांबाप निश्चिंत थे. कालांतर में मीना 1 बेटे बीरू और 3 बेटियों की मां बनी. लगभग 10 साल पहले मीना की बीमारी की वजह से मौत हो गई तो शांतिस्वरूप पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. बच्चे छोटेछोटे थे, इसलिए पत्नी के बिना वह घर संभाले या बाहर के काम देखें. बड़ी बेटी स्नेहा (बदला हुआ नाम) कुछ समझदार थी, इसलिए उस ने घर संभाल लिया था. सभी बच्चे अभी पढ़ ही रहे थे. सब से छोटी सुधा (बदला हुआ नाम) 6 साल की थी, जबकि मंझली रितु करीब 10 साल की. समय का पहिया अपनी गति से चलता रहा और जख्म धीरेधीरे भरते गए.

शांतिस्वरूप की ससुराल खुतार और उन के गांव सैकिया के बीच 10-12 किलोमीटर की दूरी थी, इसलिए दोनों ओर से लोगों का आनाजाना लगा रहता था. प्रकाश नारायण का बड़ा बेटा यानी शांतिस्वरूप का बड़ा साला संतोष परचून की दुकान करता था, उस से छोटा राजीव पढ़लिख कर एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ा रहा था. सब से छोटा पंकज डेकोरेशन का काम करता था. कुल मिला कर प्रकाश नारायण का परिवार व्यवस्थित हो चुका था, लेकिन बेटी की मौत का सदमा उन्हें कुछ ऐसा लगा कि उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया था.

कौन जानता था कि समय के साथ ऐसा जलजला आएगा कि दोनों परिवारों की इज्जत का जनाजा निकल जाएगा. पंकज घर का सब से छोटा बेटा था, इसलिए सभी का लाडला था. मीना अपने इस छोटे भाई से बहुत प्यार करती थी, इसलिए बहन की मौत से पंकज को गहरा आघात लगा था. बहन के जीवित रहने पर वह उस के यहां अकसर जाया करता था, इसलिए बहन के बच्चों को भी अपने छोटे मामा पंकज से काफी लगाव था. रितु को ननिहाल में कुछ ज्यादा ही अच्छा लगता था, क्योंकि उसे लगता था कि तीनों मामा उसे हाथोंहाथ लिए रहते हैं. छोटे मामा तो उस की हर इच्छा पूरी करने को तैयार रहते हैं.

रितु का मामा के यहां आनाजाना लगा रहा. रितु 15 साल की हो गई. इस उम्र में आतेआते वह काफी खूबसूरत लगने लगी थी. ननिहाल में ज्यादातर समय उस का टीवी देखने में गुजरता था. टीवी के छोटे परदे पर नजर आने वाले लड़के उसे बहुत अच्छे लगते थे. कभीकभी उन में कोई लड़का उसे पंकज मामा जैसा लगता था. एक दिन टीवी देखते समय अचानक पंकज आ गया तो उस ने कहा, ‘‘मामा, आप बहुत स्मार्ट हैं, एकदम टीवी सीरियलों में आने वाले हीरो जैसे लगते हैं.’’

रितु, जो पंकज के सामने अभी बच्ची थी, अचानक उसे वह हीरो जैसा लगने लगा था. पंकज ने ध्यान से देखा, तब उसे लगा कि रितु अब बच्ची नहीं रही, वह जवान हो गई है. वह ऐसा क्षण था, जब वह भूल गया कि रितु उस की सगी बहन की बेटी यानी सगी भांजी है. उसी एक क्षण में उस का दिमाग कुछ तरह बदला कि उस की सोच ही बदल गई. पंकज के दिलोदिमाग पर रितु कुछ इस कदर छाई कि वह यह भूल गया कि रितु उस की सगी भांजी है. रितु उम्र में भी उस से बहुत छोटी थी. वह क्षण ऐसा था, जिस ने रिश्तों में ही नहीं, जिदंगी में ही आग लगा दी. आखिर इस की परिणति वही हुई, जैसा ऐसे रिश्तों में होता है. इस रिश्ते ने खुतार के सीने पर एक ऐसी कलंक कथा लिख डाली, जिस ने रिश्तों को ही नहीं, समाज को भी शर्मसार कर दिया.

बड़ेबुजुर्गों ने कहा है कि कदम बढ़ाने से पहले खूब सोचविचार लेना चाहिए. कहीं वह कदम गलत राह पर तो नहीं ले जा रहा. रितु के पास से अपने कमरे में आने के बाद पंकज विचारों में ऐसा खोया कि उसे समय का पता ही नहीं चला. शाम को रितु ने आ कर उस का कंधा पकड़ कर हिलाते हुए कहा, ‘‘उठो मामा, आज खाना नहीं खाना क्या?’’

रितु के मुलायम स्पर्श ने आग में घी का काम किया. पंकज झटके से उठा और रितु को बांहों में भर कर सीने से लगा लिया. रितु हैरान रह गई. वह इतनी बड़ी और समझदार हो चुकी थी कि स्पर्श के मायने पहचानने लगी थी. यह स्पर्श मामा का नहीं, बल्कि एक मर्द का था. उस का तन ही नहीं, मन भी झनझना उठा था. वह एकदम से घबरा गई. उस ने खुद को मामा की बांहों से आजाद किया और हांफती हुई बाहर आ गई. बाहर आते ही सामने नानी पड़ गईं. उस की हालत देख कर उन्होंने पूछा, ‘‘क्या हुआ रितु, हांफ क्यों रही है?’’

‘‘कुछ नहीं नानी, ऐसे ही.’’ कह कर वह नानी के कमरे में चली गई.

रात जैसेतैसे बीती. सुबह होते ही रितु ने कहा, ‘‘नानी, मुझे अपने घर जाना है. आप भिजवा दीजिए.’’

‘‘तू तो कह रही थी कि अभी हफ्ते भर रहूंगी. अचानक जाने का मन कैसे हो गया?’’ नानी ने पूछा.

‘‘मेरा पढ़ाई का नुकसान हो रहा है नानी, इसलिए मैं जाना चाहती हूं.’’ रितु ने कहा.

‘‘ठीक है, पंकज से कह देती हूं, वह तुझे पहुंचा देगा.’’ नानी ने कहा.

‘‘नहीं नानी, मैं पंकज मामा के साथ नहीं, राजीव मामा के साथ जाऊंगी.’’ रितु ने कहा.

पंकज कमरे में बैठा रितु की बातें सुन रहा था. झट से बाहर आ कर बोला, ‘‘अम्मा, मुझे थोड़ा काम है, इसलिए मैं इसे छोड़ने नहीं जा सकता.’’

रितु ने राहत की सांस ली. रितु शरम और डर की वजह से मामा की हरकत के बारे में किसी को कुछ नहीं बता सकी थी. अगर उस दिन रितु जरा भी हिम्मत कर गई होती तो शायद आज यह कलंक कथा न लिखी जाती. रितु चली गई. उस के जाने के बाद पंकज को लगा कि रितु के लिए उस के दिल के किसी कोने में ऐसी जगह बन गई है, जिसे अब कोई दूसरा नहीं भर सकता. हालांकि दिल और दिमाग में भारी कशमकश चल रही थी, पर दिल था कि मान ही नहीं रहा था. रितु 15 साल की थी, जबकि वह 28 साल का था.

आखिर दिल के हाथों मजबूर पंकज एक दिन रितु के घर जा पहुंचा. संयोग से जब वह वहां पहुंचा था, रितु घर में अकेली थी. यह मौका रिश्तों को दलदल में घसीटने के लिए काफी था. मामा को देख कर रितु कांप उठी, लेकिन पंकज ने उसे पास बिठा कर प्यार से समझाया, ‘‘रितु, डरने की कोई बात नहीं है. मैं जो कहने जा रहा हूं, वह तुम्हें सुनना ही पड़ेगा. मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. मैं ने इस बात पर बहुत सोचाविचारा, लेकिन आखिर में यही लगा कि अगर तुम मुझे नहीं मिली तो मैं जिंदा नहीं रह पाऊंगा.’’

रितु घबरा गई, ‘‘नहीं मामा, ऐसा मत करना.’’

‘‘अगर तुम कहती हो तो ठीक है. लेकिन सच बताओ, क्या मैं तुम्हें अच्छा नहीं लगता, क्या तुम्हें मुझ से प्यार नहीं है?’’

‘‘मामा, आप मुझे बहुत अच्छे लगते हैं, लेकिन…’’

‘‘लेकिनवेकिन कुछ नहीं, हां या ना में जवाब दो. अभी कोई जल्दी नहीं है, खूब सोचविचार कर फैसला कर लेना. लेकिन फैसला लेने से पहले इस बात का ध्यान रखना कि तुम मेरी यादों के सहारे जीना चाहोगी या साक्षात देखते हुए. जो भी फैसला लेना, फोन कर के बता देना.’’ कह कर पंकज ने उसे बांहों में समेटा, प्यार किया और चला गया.

रितु स्तब्ध बैठी रही. इस बार मामा का स्पर्श उसे भी कुछ अच्छा लगा था. वह जिस उम्र में थी, उस में फिसलने की संभावनाएं बहुत होती हैं. बिना मां की बेटी थी, न कोई रोकनेटोकने वाला था, न कोई राह दिखाने वाला. ऐसे में मामा ही अंगुली पकड़ कर दलदल में खींच रहा था. रितु ने ज्यादा सोचनेविचारने की जहमत नहीं उठाई और जीवन की नाव को तूफान के हवाले कर दिया.

2-3 दिनों बाद पंकज ने फोन किया, ‘‘रितु, मैं तुम से मिलने आना चाहता हूं.’’

‘‘…तो आ जाओ न.’’ रितु ने चहक कर कहा.

पंकज को लगा, जैसे किसी ने कानों में शहद घोल दिया हो. वह तुरंत सैकिया आ गया. इस के बाद वह रितु को उस दलदल में घसीट ले गया, जिस में घुसना तो आसान है, पर निकलना बहुत मुश्किल. मामाभांजी के बीच ऐसा रिश्ता बन गया, जिस की भनक घर वालों को ही नहीं, किसी को भी लग जाती तो हायतौबा मच जाती. इस के बाद रितु और पंकज का एकदूसरे के घर आनाजाना कुछ ज्यादा ही हो गया. उन का रिश्ता ऐसा था कि कोई संदेह भी नहीं कर सकता था. रितु की हर चाहत पंकज पूरी कर रहा था. सब यही समझते थे कि मामा को भांजी से कुछ ज्यादा ही प्यार है.

लेकिन सच कितने दिनों तक छिपा रहता. एक न एक दिन तो उसे उजागर होना ही था. जब पंकज का शांतिस्वरूप के घर आनाजाना कुछ ज्यादा ही हो गया तो उसे लगा, यह ठीक नहीं है. घर में बिना मां की 3 बेटियां थीं, इसलिए उन्होंने टोका, ‘‘पंकज, तुम्हें कुछ कामधाम है या नहीं, जब देखो यहीं डेरा डाले रहते हो. तुम्हारी वजह से रितु भी बेलगाम होती जा रही है. जब देखो, तब नानी के यहां जाने के लिए तैयार रहती है. पढ़ाई पर भी ध्यान नहीं देती.’’

‘‘जीजाजी, दीदी की याद आ जाती है, इसलिए चला आता हूं. अगर आप को मेरा आना अच्छा नहीं लगता तो अब नहीं आऊंगा.’’

‘‘भई, ऐसी कोई बत नहीं है. मेरे कहने का मतलब यह है कि अपने कामधंधे पर भी ध्यान दो. फालतू घूमने से कोई फायदा नहीं है.’’

पंकज समझ गया कि अब लोगों को उस पर शक होने लगा है, इसलिए उसे सतर्क हो जाना चाहिए. घर आ कर वह अपने कमरे में बैठा देर तक सोचता रहा. उस का प्यार जुनूनी होता जा रहा था. लेकिन घरपरिवार और समाज का भी डर सता रहा था. रिश्ता इतना नाजुक था कि वह रितु को अपना भी नहीं सकता था. जबकि दिल उसे छोड़ने को तैयार नहीं था. प्रेम की एकएक सीढ़ी चढ़ते हुए रितु और पंकज जिस शिखर की ओर जा रहे थे, वहां से फिसल कर आने का ही अंदेशा था. उन्हें मंजिल मिलना लगभग असंभव था, पर वे मंजिल पाने के लिए बेताब थे. जबकि मंजिल पाने की कोई राह नहीं थी. पंकज की उम्र 30 साल से अधिक हो चुकी थी. उस का कामकाज भी ठीक चल रहा था. उस की शादी के लिए भी लोग आ रहे थे. लेकिन शादी में वह रुचि नहीं दिखा रहा था. बड़े भाई ने दबाव डाला तो उस ने एक दिन साफसाफ कह दिया, ‘‘भैया, मैं शादी नहीं करूंगा.’’

‘‘तो क्या अकेले ही जिंदगी बिताओगे?’’

‘‘नहीं, अकेला तो नहीं रहूंगा, पर आप लोग मेरे लिए परेशान न हों.’’

पंकज के इस जवाब से घर के सब लोग सोचने को मजबूर हो गए कि पंकज शादी के लिए मना क्यों कर रहा है? उसी बीच शांतिस्वरूप ने संतोष को फोन कर के पंकज की शादी के लिए एक रिश्ता बताया तो उस ने कहा कि पंकज शादी नहीं करना चाहता. संतोष की बात से पंकज को ले कर कुछ आशंका हुई तो उस ने कहा, ‘‘भई पंकज का इरादा मुझे कुछ ठीक नहीं लगता. जब देखो, तब वह मेरे यहां पड़ा रहता है. रितु भी उस के कुछ ज्यादा ही मुंहलगी हो गई है. इधर वह पढ़ाई में भी ध्यान नहीं दे रही है.’’

बहनोई की बात पर संतोष के मन में भी संदेह पैदा हो गया. कहीं उस के इस इरादे के पीछे रितु तो नहीं है. आखिर शादी से मना क्यों कर रहा है? रितु और पंकज की प्रेमकहानी अब तक 5 साल पुरानी हो चुकी थी. इस बेईमान प्यार का अंजाम क्या होगा, कोई नहीं जानता था. रितु भी अपने भविष्य को ले कर परेशान थी, इसलिए एक दिन उस ने पंकज से पूछा, ‘‘अब आगे क्या होगा मामा?’’

‘‘आगे से मतलब..?’’ पंकज बोला.

‘‘मतलब यह कि आखिर इस तरह कब तक चलता रहेगा. तुम्हारा मेरे घर आना पापा को अच्छा नहीं लगता. उन्होंने साफसाफ तो कुछ नहीं कहा, लेकिन उन के मन में हम लोगों को ले कर कुछ संदेह जरूर है.’’

‘‘लगता तो मुझे भी कुछ ऐसा ही है. मैं जल्दी ही कुछ करने की सोचता हूं.’’

‘‘क्या सोचोगे, हमारे सामने एक ओर कुआं है तो दूसरी ओर खाई. हमारे दोनों ओर खतरा है. अभी तो हमारे संबंधों के बारे में कोई कुछ नहीं जानता, लेकिन जिस दिन इस का खुलासा होगा, पहाड़ टूट पड़ेगा.’’

पंकज और रितु की दीवानगी बढ़ती जा रही थी. दोनों ही एकदूसरे को अपने अस्तित्व का हिस्सा मानने लगे थे, इसलिए जिंदगी एक साथ बिताना चाहते थे. पर यह उन के लिए आसान नहीं था. रितु तो उतनी समझदार नहीं थी, पर पंकज समझदार था. वह हमेशा इसी चिंता में डूबा रहता कि घर वालों से कैसे बताए कि वह अपनी सगी भांजी से प्यार करता है और उसी से शादी करना चाहता है. वह जानता था कि घर वालों की छोड़ो, समाज भी उसे इस रिश्ते की अनुमति नहीं देगा. जो भी सुनेगा, वही धिक्कारेगा. कभीकभी उसे लगता कि उसी ने रितु को गुमराह किया है. उस ने उस के साथ शारीरिक संबंध बना कर पवित्र रिश्ते को कलंकित किया है. लेकिन उस दिल का वह क्या करे, जिस ने मजबूर करा कर यह सब कराया है.

पंकज भांजी के साथ प्यार की राह में इतनी दूर आ चुका था कि किसी भी कीमत में वापस नहीं लौट सकता था. प्यार का जुनून सिर चढ़ कर बोल रहा था. आखिर एक दिन संतोष ने रितु को पंकज की बांहों में  देख लिया तो पूछा, ‘‘यह सब क्या हो रहा है?’’

‘‘भैया, मेरी जिंदगी का यही सच है. मैं रितु से प्यार करता हूं और इसी के साथ शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘यह हरगिज नहीं हो सकता. हम समाज, अपने बहनोई और स्वर्गवासी बहन को क्या जवाब देंगे. तुम इतना नीचे गिर जाओगे, मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था. अभी तो सिर्फ मुझे पता चला है, अगर घर के बाकी के लोगों को इस बारे में पता चलेगा तो वे क्या सोचेंगे. अच्छा होगा, तुम इस मामले को यहीं खत्म कर के हम सभी जिस तरह सिर उठा कर जी रहे हैं, उसी तरह जीने दो.’’ संतोष ने कहा. पंकज ने भाई को समझाने की बहुत कोशिश की कि वह रितु से बहुत प्यार करता है और उस के बिना जीवित नहीं रह सकता. पर वह बिलकुल नहीं माने. उन्होंने पंकज को खूब लताड़ा और उसी वक्त राजीव के साथ रितु को उस के घर भिजवा दिया. संतोष ने रितु को भले ही उस के घर भिजवा दिया, पर पंकज ने साफ कह दिया, ‘‘भले ही पूरी दुनिया उस की दुश्मन हो जाए, पर रितु से उसे कोई अलग नहीं कर सकता.’’

संतोष पंकज की इस धमकी से परेशान था. अगर किसी को भी उस की हरकत के बारे में पता चल गया तो उस का परिवार इस कदर बदनाम हो जाएगा कि कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगा. लोग थूकेंगे उस के परिवार पर. उस की यह परेशानी उस के चेहरे पर साफ झलक रही थी. आखिर एक दिन पत्नी ने पूछ ही लिया. तब बेचैन संतोष ने मन हलका करने के लिए सारी बात पत्नी को बता दी. वह भी सन्न रह गई. धीरेधीरे घर में इस बात की जानकारी सब को हो गई. लेकिन पंकज का घर में दबदबा था, इसलिए कोई भी उसे इस रिश्ते को खत्म करने के लिए विवश नहीं कर सका. हां, घर वालों का व्यवहार उस के प्रति जरूर बदल गया. इस से पंकज ने इतना जरूर महसूस किया कि अब धीरेधीरे उस की परेशानी बढ़ती ही जाएगी.

उस की जिंदगी पतंग जैसी हो गई थी. पता नहीं कब कट जाए. इसलिए उस ने पक्का इरादा बना लिया कि चाहे कुछ भी हो, वह रितु से शादी करेगा और दूर कहीं जा कर अपनी गृहस्थी बसा लेगा. इस के बाद उस ने फोन कर के रितु को बता भी दिया कि 18 फरवरी को भैया के बेटे के मुंडन के बाद वह उस के साथ घर छोड़ देगा. राजीव के बेटे के मुंडन पर रितु खुतार आई. मुंडन के बाद उस ने नानी से घर भिजवाने को कहा. वहीं खड़े पंकज ने कहा, ‘‘चलो, मैं तुम्हें छोड़ आता हूं.’’

घर के सभी लोग थके थे, इसलिए पंकज को अनुमति मिल गई. किसी को क्या पता था कि उन के मन में क्या है. दोनों घर से बाहर निकले और सीधे बसअड्डे पहुंचे. वहां से बस पकड़ी और शाहजहांपुर आ गए, जहां से ट्रेन द्वारा आगरा पहुंच गए.

पंकज और रितु ने शादी करने के इरादे से घर छोड़ दिया था. ट्रेन से वे सुबह 7 बजे ईदगाह स्टेशन पर उतरे और स्टेशन के पास ही होटल डी-लौरेट में कमरा बुक करा लिया. उन्हें तीसरी मंजिल पर कमरा नंबर 310 मिला था. होटल में पंकज ने रितु को अपनी पत्नी बताया था और आईडी के रूप में अपना ड्राइविंग लाइसेंस की कौपी जमा कराई थी. जब दोनों होटल पहुंचे थे, रिसैप्शन पर मैनेजर संजय कश्यप मौजूद थे. नहाधो कर दोनों ने कपड़े बदले और नाश्ता कर के मोहब्बत की निशानी ताजमहल देखने चले गए. रितु पंकज के साथ ताजमहल के पास पहुंची तो बोली, ‘‘लगता है, शाहजहां मुमताज को बहुत प्यार करता था.’’

‘‘हां, एकदम मेरी तरह रितु. अगर शाहजहां की तरह मैं भी अमीर होता तो अपने प्यार को अमर करने के लिए इसी तरह का रितुमहल बनवाता.’’

यह सुन कर रितु को हंसी आ गई. इस के बाद दोनों ताजमहल के अंदर पहुंचे. शाहजहां और मुमताज की कब्रों को देख कर रितु ने कहा, ‘‘ये तो मर कर भी एक साथ हैं.’’

माहौल गमगीन हो गया. पंकज ने कहा, ‘‘चलो, बाहर चल कर साथसाथ फोटो खिंचवाते हैं, जो जिंदगी भर हमें याद दिलाएंगे.’’

इस के बाद दोनों ने ताज के साए में कुछ फोटो खिंचवाए. वहां से वे बाजार गए, जहां कपडे़ वगैरह खरीदे. रात 9 बजे तक उन के कमरे का दरवाजा खुला रहा. इस के बाद दरवाजा बंद हुआ तो जब सुबह 10 बजे तक उन के कमरे का दरवाजा नहीं खुला तो सर्विस बौय गब्बर ने कई बार दरवाजा खटखटाया. जब अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो वह मैनेजर संजय कश्यप के पास पहुंचा. गब्बर ने जब मैनेजर संजय कश्यप को बताया कि कमरा नंबर 301 का दरवाजा काफी खटखटाने पर भी अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल रही है तो संजय घबरा गए. भाग कर वह ऊपर पहुंचे. उन्होंने दरवाजे के की-होल से झांक कर देखा तो लड़की के पैर लटके दिखाई दिए.

माजरा समझ में आते ही वह सन्न रह गए. उन्होंने तुरंत होटल की मालकिन शारदा रानी को सारी बात बताई. शारदा रानी ने थाना रकाबगंज पुलिस को फोन कर के घटना की सूचना दी. सूचना मिलने के बाद सीओ असीम चौधरी और थाना रकाबगंज के थानाप्रभारी इंसपेक्टर सतीशचंद्र यादव पुलिस बल के साथ होटल पहुंच गए. दूसरी चाबी से दरवाजा खोला गया तो अंदर की स्थिति देख कर सभी स्तब्ध रह गए. हरे रंग की नई रस्सी के दोनों छोरों पर फंदे बना कर पंखे के सहारे एक ओर एक लड़की लटकी हुई थी तो दूसरी ओर एक लड़का.

पुलिस ने कमरे की तलाशी ली. पलंग पर कुछ फोटोग्राफ्स मिले, जो ताजमहल पर खिंचवाए गए थे. बैग से कुछ गहनों के साथ मंगलसूत्र, कुछ रुपए और एक सुसाइड नोट भी मिला. पुलिस ने मामले की वीडियोग्राफी करा कर दोनों लाशों को नीचे उतरवाया. लड़की की मांग में सिंदूर भरा था. वह पैरों में बिछिया भी पहने थी. पुलिस ने सुसाइड नोट देखा तो उस में लिखा था, ‘ये फोटो हमारे प्यार की निशानी हैं, जो हम ने ताजमहल पर साथसाथ खिंचवाए थे. आप ने हमें जिंदगी जीने का जो मौका दिया था, शायद हमारी किस्मत नहीं था.

‘हम लोगों के बारे में कोई नहीं जानता कि हम कहां हैं. फिर भी रितु का यही कहना है कि हम लोग किसी को मुंह नहीं दिखा सकते. जब उस का यही फैसला है तो हम भी उस के साथ हैं.

‘हमें 2 दिन की जो जिंदगी मिली, शायद वही हमारी किस्मत थी. जो भी चुरा के घर से ले गए थे, सब आप को लौटा रहे हैं. हम ने जिंदगी में जो गलत किया, उस की कीमत हम अपनी जान दे कर चुका रहे हैं. जब हम ही नहीं होंगे तो हमें कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि कौन जीता है या मरता है. हमें माफ करना या न करना, आप की मरजी.’

उन्होंने अपने इस सुसाइड नोट में साथसाथ दफनाने के लिए भी लिखा था. उन का कहना था कि वे इस जन्म में नहीं मिल सके तो कम से कम साथसाथ मर कर अगले जन्म में तो एक हो सकेंगे. सुसाइड नोट में उन्होंने दस्तखत करने के साथ फोन नंबर भी लिखे थे. पुलिस ने सुसाइड नोट में दिए नंबरों पर फोन कर के पंकज और रितु के आत्महत्या करने की सूचना दी तो कोई कुछ कहने को ही तैयार नहीं हुआ. वे आगरा आने को भी राजी नहीं थे. लेकिन न जाने क्या सोच कर सभी आने को राजी हो गए.

पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया था. शाम तक घर वाले आगरा पहुंचे तो पता चला कि सुसाइड करने वाले दोनों सगे मामाभांजी थे. उन के रिश्ते के बारे में जान कर सभी दंग रह गए. पोस्टमार्टम के बाद पंकज और रितु के शव घर वालों को सौंप दिए गए. घर वालों ने लाशें ले जाने के बजाय आगरा के ही विद्युत शवदाह गृह में दोनों का अंतिम संस्कार करा दिया. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में संतोष ने बताया कि उस ने पंकज को फोन किया था. तब उस ने यह नहीं बताया कि वह आगरा है. उस ने अगले दिन घर आने को कहा था.

दरअसल, उस दिन रितु अपने घर नहीं पहुंची तो शांतिस्वरूप ने ससुराल फोन कर के पूछा. जब उन्हें बताया गया कि रितु तो पंकज के साथ कब का निकल चुकी है, तब उन्हें समझते देर नहीं लगी कि रितु पंकज के साथ भाग चुकी है. दोनों ने जो किया था, उस से दोनों के घर वाले काफी नाराज थे. लेकिन उन्हें यह नहीं मालूम था कि वे इस तरह मौत को गले लगा लेंगे. लेकिन आशंका तो थी ही. फिर वही हुआ भी. बदनामी से बचने के लिए सभी चुप थे, लेकिन पंकज और रितु ने आत्महत्या कर के रिश्ते को कलंकित करने का ढिंढोरा पूरी दुनिया में पीट दिया. दरअसल, पंकज और रितु ने शादी करने का निर्णय ले लिया था. वे शादी कर के घर वालों से इतनी दूर चले जाना चाहते थे, जहां उन्हें जानने वाला कोई न हो और वे खुशीखुशी रह सकें.

पंकज ने रितु की मांग में सिंदूर भर कर शादी भी कर ली. लेकिन शादी करने के बाद दोनों को लगा होगा कि वे चाहे जहां भी रहें, हमेशा अपराधबोध से ग्रसित रहेंगे. यही नहीं, उन के बच्चों को जब उन के असली रिश्ते के बारे में पता चलेगा तो वे भी उन्हें माफ नहीं करेंगे. घर से भागने के बाद उन के घर लौटने का रास्ता पूरी तरह से बंद हो चुका था. आगे भी उन्हें कोई रास्ता नहीं दिखाई दिया. घरपरिवार और समाज से कट कर जीना भी आसान नहीं था. उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ तो वे डरे कि अब क्या होगा? कोई रास्ता न देख उन का जिंदगी से मोह भंग हो गया होगा.

मन में एक ही बात आई होगी कि इस जन्म में साथ नहीं जी सके तो मर कर अगले जन्म में तो मिल सकेंगे. अगले जन्म में मिलने की उम्मीद में उन्होंने फांसी लगा ली. पंकज और रितु ने रिश्तों को कलंकित करने की लक्ष्मणरेखा लांघी तो उस की सजा उन्हें जान दे कर चुकानी पड़ी. उन्होंने तो जान दे कर मुक्ति पा ली, लेकिन घर वालों को तो इस की सजा कम से कम 2 पीढि़यों तक भोगनी पड़ेगी. Agra News

 

Actress Murder Case: टुकड़ों में मिली अभिनेत्री की लाश

Actress Murder Case: राइमा इसलाम शिमू बांग्लादेश की एक जानीमानी अभिनेत्री थीं. उन्होंने न सिर्फ 50 से ज्यादा फिल्मों में काम किया, बल्कि 2 दरजन से अधिक नाटकों में भी काम कर दर्शकों के दिलों में जगह बनाई. यह महज इत्तफाक की बात है कि जिन दिनों देश भर में अपने दौर की खूबसूरत और लोकप्रिय अभिनेत्री परवीन बाबी की जिंदगी पर बनी वेब सीरीज ‘रंजिश ही सही’ की चर्चा हो रही थी, उन्हीं दिनों बांग्लादेश की परवीन जितनी ही सैक्सी, लोकप्रिय और सुंदर एक्ट्रेस राइमा इसलाम शिमू की दुखद हत्या की चर्चा भी उतनी ही शिद्दत से हो रही थी.

फर्क सिर्फ इतना था कि परवीन बाबी की लाश उन के घर में मिली थी, जबकि राइमा की एक सड़क पर मिली थी. यह सड़क बांग्लादेश की राजधानी ढाका के केरानीगंज अलियापुर इलाके में हजरतपुर ब्रिज के नजदीक है, जो कालाबागान थाने के अंतर्गत आता है. 17 जनवरी, 2022 को राइमा की लाश मिली तो बांग्लादेश में सनाका खिंच गया क्योंकि वह कोई मामूली हस्ती नहीं थीं बल्कि घरघर में उन की पहुंच थी. अपनी अभिनय प्रतिभा के दम पर उन्होंने अपना एक बड़ा दर्शक और प्रशंसक वर्ग तैयार कर लिया था.

जिस हाल में राइमा की लाश मिली थी, उस से साफ जाहिर हो रहा था कि उन की बेरहमी से हत्या की गई है. इस हादसे ने एक बार फिर साफ कर दिया कि रील और रियल लाइफ में जमीनआसमान का फर्क होता है और आमतौर पर फिल्म स्टार्स, फिर वे किसी भी देश के हों, की जिंदगी उतनी हसीन और खुशनुमा होती नहीं जितनी कि उन के जिए किरदारों में दिखती है. यही राइमा के साथ हुआ कि हत्यारा कोई और नहीं बल्कि उन का बेहद करीबी शख्स था और हत्या की वजह कोई अफेयर, पैसों का लेनदेन, कोई विवाद या नशे की लत या फिर कोई दिमागी बीमारी भी नहीं थी.

45 वर्षीय राइमा साल 1977 में ढाका के एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी थीं, जिन्हें बचपन से ही अभिनय का शौक था. ढाका से स्कूल और कालेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने एक्टिंग का कोर्स भी किया था. 19 साल की उम्र में ही उन्हें ‘बर्तमान’ फिल्म में काम करने का मौका मिल गया था. निर्माता काजी हयात की इस कामयाब फिल्म से वह फिल्म इंडस्ट्री में पहचानी जाने लगीं. फिल्म समीक्षकों ने तो उन की एक्टिंग को अव्वल नंबर दिए ही थे, दर्शकों ने भी उन्हें सराहा था. इस की वजह उन का ताजगी से भरा चेहरा और बेहतर एक्टिंग के अलावा उन की कमसिन अल्हड़पन और खूबसूरती भी थी.

पहली फिल्म कामयाब होने के बाद राइमा ने फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. देखते ही देखते उन्होंने बांग्लादेश के तमाम दिग्गज निर्देशकों के साथ काम किया. इन में इनायत करीम, शरीफुद्दीन खान, दीपू, देलवर जहां झंतु और चाशी नजरूल इसलाम प्रमुख हैं. सभी छोटेबड़े निर्देशकों के साथ राइमा ने 50 से भी ज्यादा फिल्मों में काम किया और टीवी पर भी अपना जलवा बिखेरा.

लोगों के दिलों में बसी थीं राइमा

छोटे परदे पर आना उन की व्यावसायिक मजबूरी भी हो गई थी, क्योंकि बांग्लादेश के लोग भी टीवी धारावाहिकों को ज्यादा तरजीह देने लगे हैं. राइमा ने कोई 25 धारावाहिकों में एक्टिंग की, जिस से घरघर उन की पहुंच और स्वीकार्यता बढ़ती गई. बांग्लादेश फिल्म इंडस्ट्री के लगभग सभी बड़े नायकों के साथ उन्होंने काम किया. खासतौर से अमित हसन, बप्पाराज रियाज, शाकिब खान, जाहिद हसन और मुशर्रफ करीम के साथ उन की जोड़ी खूब जमती थी.

राइमा आला कारोबारी दिमाग की मालकिन थीं, इसलिए उन्होंने खुद का प्रोडक्शन हाउस भी खोल लिया था. जिस के तहत कई टीवी सीरियल बने थे. अलावा इस के वह फिल्म पत्रकारिता भी ‘अर्थ कोथा द नैशनल बिजनैस मैगजीन’ के लिए करती थीं. बहुमुखी प्रतिभा की धनी इस एक्ट्रेस को टीवी न्यूज चैनल एटीएन बांग्ला में सेल्स एंड मार्केटिंग में वाईस प्रेसिडेंट भी नियुक्त किया गया था. जल्द ही एक नामी इवेंट मैनेजमेंट कंपनी टीएन इवेंट्स लिमिटेड के सीईओ की जिम्मेदारी भी उन्हें दी गई थी.

इतना ही नहीं, उन्होंने बांग्लादेश में ही अपना ब्यूटी सैलून भी शुरू कर दिया था, जिस का नाम रोज ब्यूटी सैलून है. ढाका का ग्रीन रोड इलाका राइमा के घर की वजह से भी पहचाना जाने लगा, जो दर्शकों और प्रशंसकों की नजर में किसी मन्नत या जन्नत से कम नहीं था. लेकिन कोई सोच भी नहीं सकता था कि लाखों लोगों का मनोरंजन करने वाली और दर्शकों के दिलों पर राज करने वाली इस एक्ट्रेस की निजी जिंदगी किसी नर्क से कम बदतर नहीं थी और इस की वजह था उन का पति शखावत अली नोबेल, जो कभी उन पर जान छिड़का करता था. इन दोनों ने 16 साल पहले लव मैरिज की थी.

शौहर ही निकला कातिल

आम दर्शक इस से ज्यादा कुछ नहीं सोच पाता कि उस की चहेती एक्ट्रेस अपने महल जैसे घर के अंदर सदस्यों के साथ हंसखेल रही होगी, रोमांस कर रही होगी या फिर डायनिंग टेबल पर बैठी लंच या डिनर कर रही होगी. और कुछ नहीं तो पति और बच्चों के साथ आंचल हवा में लहराते लौन के झूले पर झूलती गाना गा रही होगी. उस के इर्दगिर्द रंगबिरंगे फूल और चहचहाते पक्षी होंगे. सर के ऊपर नीला खुला आसमान होगा. लेकिन ऐसा कुछ भी कम से कम राइमा की जिंदगी में तो नहीं था.

पिछले कुछ दिनों से वह बेहद घुटन भरी जिंदगी जी रही थीं. आलीशान घर के अंदर कलह स्थायी रूप से पसर चुकी थी जिस से उन के दोनों बच्चे सहमेसहमे से रहते थे. राइमा और शखावत कहने और देखने को ही साथ रहते थे और मियांबीवी कहलाना भी उन की सामाजिक मजबूरी हो चली थी. लेकिन रोजरोज की मारकुटाई और कलह आम बात हो चुकी थी. यह सब कितने खतरनाक मुकाम तक पहुंच चुका था, इस का खुलासा 17 जनवरी, 2022 को राइमा की लाश मिलने के बाद हुआ. अंदर से टूटी और थकी हुई यह एक्ट्रेस 16 जनवरी को मावा एक शूटिंग के लिए गई थी. लेकिन देर रात तक वापस घर नहीं लौटी तो घर वालों को चिंता हुई क्योंकि राइमा का फोन भी बंद जा रहा था.

कालाबागान थाने में उन की गुमशुदगी की सूचना दर्ज हुई. एक रिपोर्ट राइमा की बहन फातिमा निशा ने भी लिखाई थी. पुलिस ने राइमा की ढुंढाई शुरू की, लेकिन देर रात तक कोई कामयाबी नहीं मिली तो मामला सुबह तक के लिए टल गया. इस दौरान उन का भाई शाहिदुल इसलाम खोकान लगातार पुलिस वालों से बहन को ढूंढने की गुजारिश करते खुद भी राइमा की तलाश में इस उम्मीद के साथ लगा रहा कि कहीं से कोई सुराग मिल जाए. लेकिन उस के हाथ भी मायूसी ही लगी. 17 जनवरी की सुबह कुछ राहगीरों ने हजरतपुर ब्रिज के पास एक लावारिस संदिग्ध बोरे को देख इस की खबर पुलिस को दी. पुलिस ने आ कर जैसे ही बोरे को खोला तो उस में से बरामद हुई राइमा की लाश, जो 2 टुकड़े कर बोरे में ठूंसी गई थी.

गले पर चोट के निशान भी साफसाफ दिख रहे थे, जिस से स्पष्ट हो गया कि राइमा की हत्या हुई है और लाश को यहां फेंक दिया गया है. लेकिन हत्यारा कौन हो सकता है, यह सवाल पुलिस को मथे जा रहा था. राइमा की हत्या की खबर जंगल की आग की तरह फैली और फैंस जहांतहां इकट्ठा होने लगे. शव को पोस्टमार्टम के लिए सर सलीमुल्लाह मैडिकल कालेज भेज दिया गया.

पुलिस को शखावत पर शक तो था ही, लेकिन जैसे ही राइमा के भाई शाहिदुल इसलाम खोकान ने यह कहा कि शखावत एक ड्रग एडिक्ट है. वह अकसर मेरी बहन से कलह करता था. मैं ने उस की कार में खून देखा है. वह सुबह 8 से ले कर 10 बजे तक घर पर नहीं था. मुझे लगता है कि उसी दौरान उस ने राइमा की लाश फेंक दी.

फिल्मों जैसा कत्ल

शाहिदुल की शिकायत पर पुलिस ने शखावत को घेरा तो बिना किसी ज्यादा मशक्कत के उस ने सच उगल दिया. अब तक राइमा के फैंस जगहजगह मोमबत्तियां ले कर उन की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करने लगे थे. सोशल मीडिया पर भी राइमा छाई हुई थीं. लोग श्रद्धांजलि देते राइमा के हत्यारे को गिरफ्तार करने की मांग और प्रदर्शन कर रहे थे. हिरासत में लिए गए शखावत ने बगैर किसी खास चूंचपड़ के अपना गुनाह कुबूल लिया. उस के बयान की बिनाह पर 6 लोग और गिरफ्तार किए गए, जिन में उन का ड्राइवर और एक नजदीकी दोस्त अब्दुल्ला फरहाद भी था. फरहाद को शखावत ने फोन कर बुलाया था.

पूछताछ में पता चला कि शखावत और फरहाद ने राइमा की हत्या 16 जनवरी को ही कर दी थी. वक्त था सुबह 7 बजे का. इन दोनों ने राइमा की लाश बोरे में भर दी और उसे प्लास्टिक की डोरी से सिल दिया. यह काम इत्मीनान से बिना किसी अड़ंगे के हो सके, इस के लिए उन्होंने घर पर तैनात सिक्योरिटी गार्ड को नाश्ता लेने भेज दिया था. घटनास्थल से बरामद डोरी शखावत के गले का फंदा बनेगी, यह भी तय दिख रहा है क्योंकि जब पुलिस टीम घर पहुंची थी तो इस डोरी का पूरा बंडल वहां से बरामद हुआ था. जिस से शक की कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी.

ये दोनों लाश को ठिकाने लगाने के पहले उसे मीरपुर ले गए थे, लेकिन वहां कोई उपयुक्त सुनसान जगह नहीं मिली तो वापस घर आ गए थे. राइमा की लाश उन लोगों के लिए बोझ बनती जा रही थी. मीरपुर से वापसी के बाद दोनों रात साढ़े 9 बजे के करीब हजरतपुर ब्रिज पहुंचे और लाश वाले बोरे को वहीं फेंक दिया, लेकिन हड़बड़ाहट और जल्दबाजी में गलती से डोरी वहीं छोड़ दी, जो उन के खिलाफ एक पुख्ता सबूत बन गई. लाश फेंकने के बाद घर आ कर दोनों ने सबूत मिटाने की गरज से कार को धोया और बदबू दूर करने के लिए उस में ब्लीचिंग पाउडर भी छिड़का. लेकिन इस के बाद भी खून के धब्बे पूरी तरह नहीं मिट पाए थे.

यानी राइमा शूटिंग पर गई है, यह झूठ जानबूझ कर फैलाया गया था, जिस से कत्ल को किसी हादसे में तब्दील किया जा सके या उस का ठीकरा किसी और के सिर फूटे, नहीं तो उसे तो ये लोग 16 जनवरी, 2022 को ही ऊपर पहुंचा चुके थे. गलत नहीं कहा जाता कि मुलजिम कितना भी चालाक हो, कोई न कोई सबूत छोड़ ही देता है फिर शखावत और फरहाद तो नौसिखिए थे, जो यह मान कर चल रहे थे कि उन्होंने बड़ी चालाकी से अपने गुनाह को अंजाम दिया है, इसलिए पकडे़ जाने का तो कोई सवाल ही पैदा नहीं होगा. कुछ दिन हल्ला मचेगा और फिर सब कुछ ठीक हो जाएगा.

पुलिस के सामने शखावत ने शरीफ बच्चों की तरह मान लिया कि राइमा से कलह के चलते उस ने उस का कत्ल किया, लेकिन हकीकत में वह अव्वल दरजे का शराबी और ड्रग एडिक्ट था, जो पत्नी को मार कर उस की सारी दौलत हड़प कर लेना चाहता था, जिस से ताउम्र मौज और अय्याशी की जिंदगी जी सके. पर अब उसे जिंदगी भर जेल की चक्की पीसना तय दिख रहा है. हो सकता है अदालत कोई रहम न दिखाते हुए शखावत को फांसी की सजा ही दे दे, जिस का कि वह हकदार भी है. Actress Murder Case

Hindi stories: अबू सलेम की आवाज पर धड़कता था इस अभिनेत्री का दिल

Hindi stories: 1993 में मुंबई बम धमाकों के मामले की सुनवाई कर रही टाडा अदालत अबू सलेम समेत 5 अन्य दोषियों को सजा सुना दी है. इस वजह से अबू सलेम तो चर्चा में हैं ही, एक्ट्रेस मोनिका बेदी का नाम भी सुर्खियों में आ गया है. मोनिका लंबे समय तक अबू सलेम की गर्लफ्रेंड रही थीं. इन दिनों वह बेशक फिल्मी दुनिया से दूर हैं, लेकिन एक समय वो भी था जब अबू की वजह से ही उन्हें फिल्में मिलनी शुरू हुई थी.

ये जानना दिलचस्प है कि एक अंडरवर्ल्ड डौन और एक स्ट्रगलिंग एक्ट्रेस के बीच प्यार की ये कहानी कहां और कैसे पनपी. मोनिका बेदी मूल रूप से पंजाब की हैं. उन्होंने ब्रिटेन की आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी इंग्लिश लिटरेचर की पढ़ाई की. डांस और माडलिंग में भी मोनिका को काफी दिलचस्पी थी. यही दिलचस्पी उन्हें मुंबई लाई और यहां आकर 1995 में उन्हें उनकी पहली फिल्म ‘सुरक्षा’ मिली.

कहा जाता है कि अबू सलेम से मोनिका की मुलाकात एक बौलीवुड पार्टी के दौरान हुई थी. लेकिन एक मुलाकात ने ही दोनों के बीच कुछ ऐसा आकर्षण पैदा किया कि फिर मुलाकातों का सिलसिला बढ़ गया.

मोनिका की मानें तो थोड़े वक्त के लिए ही सही, मोनिका का दिल अबू के लिए धड़का जरूर था. मोनिका के मुताबिक उन्हें नहीं पता था कि जिस शख्स के लिए उनका दिल धड़क रहा था वो अंडरवर्ल्ड का मोस्ट वान्टेड है. उन्हें नहीं पता था कि जिसके साथ वो प्यार कर बैठी हैं उसका असली नाम अबु सलेम है.

साल 1998 में मोनिका पहली दफा फोन पर सलेम के संपर्क में आईं. मोनिका दुबई में थीं, फोन पर उन्हें दुबई में एक स्टेज शो करने का आफर मिला. बस उसी के बाद वो अबू को चाहने लगीं. मोनिका सलेम की आवाज पर फिदा हो गई थीं. अबू सलेम भी मोनिका से बेहद प्यार करता था.

बताया तो यहां तक जाता है कि मोनिका को उनकी पहली हिट फिल्म ‘जोड़ी नंबर वन’ में भी सलेम ने ही काम दिलवाया था. बौलीवुड में मोनिका के लिए वह एक ऐसा दौर था, जब सब उनकी इज्जत करने लगे थे. हर कोई उन्हें खुश करने की कोशिश करता था. जबकि ये सब मोनिका की परफार्मेंस की वजह से नहीं, बौलीवुड में सलेम के खौफ की वजह से हो रहा था.

1993 मुंबई सीरियल ब्लास्ट के आरोपी अबू सलेम को साल 2005 में पुर्तगाल से प्रत्यर्पित किया गया था. बताया जाता है कि जब यह गिरफ्तारी हुई, तब होटल में उनके साथ मोनिका बेदी भी थीं.

सुनने में आया था कि इसके बाद मोनिका ने सलेम का साथ छोड़ दिया था और सरकारी गवाह बन गई थीं. बता दें कि मोनिका फर्जी पासपोर्ट के मामले में चार साल जेल में बीता चुकी हैं.

अपने हिस्से की सजा काटकर वह कई टीवी रिएलिटी शोज में भी नजर आ चुकी हैं. वह बिग बौस सीजन 2 के अलावा झलक दिखला जा में भी नजर आई थीं. उन्होंने यूनिवर्सल म्यूजिक के एक एलबम के लिए इक ओंकार भी गाया है. साल 2013 में उन्होंने स्टार प्लस के शो सरस्वतीचंद्र में नेगेटिव रोल भी किया था.

Superstition: टोनाटोटका करने के बाद 4 मौसियों ने मासूम को पटकपटक कर मारा

Superstition: एक ऐसी दहला देने वाली वारदात सामने आई है, जिस ने पुलिस तक को सन्न कर दिया. जब जांच टीम घर के अंदर पहुंची तो वहां का मंजर बिलकुल अलग और खौफनाक था. एक नवजात को बेरहमी से पटकपटक कर मार डाला गया था. वहीं, कमरे से जादूटोने के कई सामान भी मिले, जिन्हें देखकर पुलिस भी हैरान रह गई. आखिर क्या था इस सनसनीखेज घटना के पीछे का पूरा सच? क्या आलोक इस रहस्य का परदाफाश कर पाए थे? आइए पढ़ते हैं पूरी कहानी विस्तार से, जो आप को करेगी आने वाली घटनाओं से सचेत और सावधान.

यह सनसनीखेज वारदात राजस्थान के जोधपुर के एयरफोर्स थाना क्षेत्र की एक कालोनी से सामने आई है. यहां 17 महीने के मासूम प्रत्यूष की हत्या उस की ही 4 मौसियों ने मिलकर कर दी. मामला तब सामने आया, जब सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ, जिस में एक महिला प्रत्यूष को गोद में लिए बैठी थी और सामने चारों मौसियां मंत्रोच्चारण कर रही थीं. बताया गया कि इसी के बाद प्रत्यूष को जमीन पर पटकपटक कर मार डाला गया.

पुलिस पूछताछ में चारों बहनें एक ही बात दोहरा रही हैं कि उन्होंने प्रत्यूष को नहीं मारा, बल्कि ‘शैतान’ ने मारा.  टोनेटोटके का हवाला दे कर वे जांच में सहयोग नहीं कर रहीं.  इधर पुलिस ने मृतक प्रत्यूष की मम्मी सुमन और पापा पूनाराम के बयान दर्ज कर लिए हैं. प्रत्यूष के मामा ने घटना का वीडियो बनाया था और बहनों को रोकने की कोशिश भी की, लेकिन चारों बहनों ने मिलकर मासूम की जान ले ली. वीडियो पुलिस ने जब्त कर लिया है.

नेहरू कालोनी में 15 नवंबर शनिवार को ममता, गीता, मंजू और रामेश्वरी ने 17 दिन के प्रत्यूष की बेरहमी से हत्या कर दी. फूल जैसे बच्चे के हाथपैर तोड़ डाले, गला दबाया और उस पर कूदकर उसे खत्म कर दिया. इतना ही नहीं, उन्होंने 6 वर्षीय निशांत को भी छत से फेंककर मारने की कोशिश की, पर उस की मम्मी सुमन ने किसी तरह उसे बचा लिया.  निशांत के पापा पूनाराम का आरोप है कि मौसियां तांत्रिक क्रियाएं करती थीं और सुमन का घर बस जाने, बच्चे होने और सुखी रहने से उन से जलन रखती थी.इसी जलन ने उन्हें इस भयावह वारदात तक पहुंचा दिया.

पुलिस ने हत्या की आरोपी चारों बहनों को गिरफ्तार कर मज़िस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें 4 दिन की पुलिस रिमांड पर भेज दिया गया. अब उन्हें 20 नवंबर को दोबारा अदालत में पेश किया जाएगा. Superstition

UP Crime: बेटे की गेम की लत ने छीन ली मां की जान

UP Crime: एक चौंका देने वाली घटना सामने आई है, जहां गेम खेलने के आदी बेटे से परेशान एक मां ने फांसी लगाकर अपनी जान दे दी, लेकिन सवाल यह है कि क्या मां वाकई सिर्फ गेम से परेशान थी या इस कहानी के पीछे छिपा था कोई और गहरा राज? इस दर्दनाक सच को जानने के लिए आइए पूरी घटना का विस्तार से पता लगाते हैं, जो आप को आने वाले अपराधों से सतर्क और सचेत करेगी.

यह दर्दनाक घटना उत्तर प्रदेश के झांसी से सामने आई है, जहां इकलौते बेटे की मोबाइल गेम लत से परेशान मां शीतला देवा ने फांसी लगाकर अपनी जान दे दी. बेटा 8वीं कक्षा में पढ़ता था, लेकिन दिनभर दोस्तों के साथ औनलाइन गेम में खोया रहता था. न पढ़ाई पर ध्यान देता था और न फेमिली वालों के समझाने का उस पर कोई असर होता था. लगातार तनाव और बेटे के भविष्य की चिंता ने बच्चे की मम्मी शीतला को इतना तोड़ दिया कि वह गहरे डिप्रेशन में चली गई.

मंगलवार रात शीतला ने पति रविंद्र प्रताप से आखिरी बार कहा था कि बेटे को संभालो, नहीं तो उस का जीवन बरबाद हो जाएगा, लेकिन रविंद्र ने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया और पतिपत्नी व बच्चा सो गए.

रात के सन्नाटे में शीतला अपने कमरे में गई और फंदा लगा लिया. देर रात पति की नींद खुली तो वह पूजा वाले कमरे में पत्नी को लटके हुए देखकर दंग रह गया. फौरन उसे नीचे उतारकर अस्पताल पहुंचाया, जहां डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया. यह हृदय विदारक मामला झांसी के रक्सा कस्बे की आर.एस. रेजीडेंसी का है.

इस चौंकाने वाली घटना की सूचना मिलते ही शीतला के मायके वाले चित्रकूट से झांसी पहुंच गए. रविंद्र के चाचा ओमप्रताप सिंह ने बताया कि लड़का लगातार मोबाइल चलाता था और डांटने पर भी नहीं मानता था. इसी तनाव और मानसिक दबाव में बहू ने यह खौफनाक कदम उठा लिया. परिजनों ने बताया कि पोस्टमार्टम के बाद अब वे शव को ले कर चित्रकूट लौट रहे हैं.

रक्सा थाने के एसएचओ रूपेश कुमार के अनुसार प्रारंभिक जांच में यही सामने आया है कि महिला बेटे की मोबाइल की लत से बेहद परेशान थी और इसी कारण उस ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. पुलिस ने शव का पंचनामा भरकर पोस्टमार्टम कराया है, और पूरे मामले की गहन जांच जारी है. UP Crime

MP Crime: पैसों की भूखी एक प्रेमिका का हैरतअंगेज खेल

MP Crime: आज एक की बांहों में, तो कल दूसरे की बांहों में. इस तरह के कई प्रेमी देखने को मिल जाएंगे, पर कई लड़कों से इश्क लड़ा कर उन के पैसों पर ऐश करने का शौक रखने वाली लड़कियां कम ही मिलती हैं. विदिशा, मध्य प्रदेश की स्वीटी (बदला हुआ नाम) उन में से एक थी. उसे बौयफ्रैंड बनाने का शौक था. वह आए दिन नएनए बौयफ्रैंड बनाती थी. जिस की जेब उसे तंग लगने लगती, वह उस को अपनी जिंदगी से दूर कर देती थी.

हाल ही में स्वीटी ने गोपाल रैकवार को अपने हुस्न के जाल में फंसाया. कुछ समय तक उस के पैसों पर खूब ऐश की. जब उस ने महसूस किया कि गोपाल की जेब तंग हो रही है, तो उस ने एक बकरा काट कर बेचने वाले मोटे आसामी अकरम को हुस्न का चारा दिखा कर अपना आशिक बना लिया और उसे हलाल करने लगी. इस बात का पता गोपाल को चला. वह स्वीटी को अकरम से दूर रखने की कोशिश करने लगा. स्वीटी कम होशियार नहीं थी. उस ने दोनों हाथों में लड्डू हासिल करने के लिए अपने प्रेमियों के सामने दिल्ली सरकार के ईवनऔड वाले फार्मूले की तरह तारीख को आपस में बांट लेने का औफर रखा.

गोपाल को स्वीटी का औफर पसंद नहीं आया, तो उस की लाश शहर के बाहर एक कुएं में मिली. मध्य प्रदेश के विदिशा जिले के लोहांगीपुरा की रहने वाली 19 साला स्वीटी दिखने में काफी खूबसूरत थी. उस के पिता की मौत कई साल पहले हो गई थी. उस की विधवा मां बच्चों की सही तरीके से देखभाल नहीं कर पा रही थी. वह मंडी में मजदूरी कर के अपने तीनों बच्चों का पेट पाल रही थी.

कहते हैं कि गरीब की बेटी जल्दी ही जवान हो जाती है. ऐसा ही स्वीटी के साथ भी हुआ. अपनी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए उस ने अपने हुस्न को ही चारा बना लिया. उस ने खातेपीते घरों के लड़कों को पटाना शुरू किया. स्वीटी के हुस्न को पाने के लालच में कई लड़के बहुत कुछ लुटाने को तैयार थे. वह उन्हें हुस्न का स्वाद चखाती, इस के बदले में उन से मोटी रकम लेती. उस रकम से वह ऐश करती.

स्वीटी को मोटरसाइकिल चलाने का शौक था.  विदिशा और बीना की भीड़ भरी सड़कों पर तेज स्पीड में मोटरसाइकिल चला कर वह लोगों के आकर्षण का केंद्र बन चुकी थी. गोपाल खातेपीते घर से था. वह स्वीटी की खूबसूरती के जाल में फंस कर उस से प्यार करने लगा. वह उस पर मनमाना खर्च भी करने लगा. जब भी वे दोनों मोटरसाइकिल पर शहर में घूमने निकलते, तो स्वीटी गोपाल को पीछे बिठा कर मोटरसाइकिल खुद चलाती थी. उस वक्त गोपाल स्वीटी की कमर को कस कर पकड़ लेता था.

पूरे शहर में दोनों के प्यार की चर्चा हो रही थी. यह बात गोपाल के घर वालों तक भी पहुंच गई. उन्हें स्वीटी का स्वभाव बिलकुल भी पसंद नहीं था. वे स्वीटी को चालू किस्म की लड़की मानते थे. गोपाल के परिवार वालों ने समझाते हुए उसे स्वीटी से दूर रहने की हिदायत दी, पर गोपाल पर स्वीटी के प्यार का नशा बुरी तरह से चढ़ा हुआ था. इधर स्वीटी ने महसूस किया कि गोपाल का हाथ कुछ तंग होता जा रहा है. ऐसे में वह दूसरे प्रेमी की तलाश में लग गई. एक दिन स्वीटी की मुलाकात 28 साला अकरम से हुई. वह मांस बेचने का धंधा करता था. उस की कमाई अच्छी थी. स्वीटी ने उसे अपने हुस्न के जाल में फंसा लिया. वह उस पर दिल खोल कर खर्च करने लगा.

स्वीटी इस बात का ध्यान रखती थी कि उस की और अकरम की दोस्ती की खबर गोपाल को न लगे. इस के लिए वह गोपाल से भी मिलती रही. गोपाल से स्वीटी और अकरम की दोस्ती की खबर ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रह सकी. उस ने स्वीटी पर अपना हक जताते हुए उसे अकरम से दूर रहने की हिदायत दी. स्वीटी ने गोपाल से कहा, ‘‘तुम मेरे मामले में दखलअंदाजी मत करो. मैं किस से मिलूंगी या नहीं मिलूंगी, यह मेरा पर्सनल मामला है. तुम अगर चाहते हो कि मेरा प्यार तुम्हें भी बराबर मिलता रहे, तो मेरे पास एक फार्मूला है. तुम दिल्ली सरकार के ईवनऔड फार्मूले की तरह तारीख तय कर लो. मैं उस दिन तुम्हारे पास रहूंगी और अगले दिन अकरम के साथ.’’

गोपाल को उस की बात पसंद नहीं आई. वह स्वीटी को हमेशा अपनी बांहों में रखना चाहता था. उस ने स्वीटी के फार्मूले को मानने से इनकार कर दिया. इधर गोपाल स्वीटी को रोकने में लगा था कि वह अकरम से न मिले. साथ ही, अकरम को भी वह बारबार मोबाइल कर के स्वीटी से दूर रहने की हिदायत देता रहा था. अकरम ने स्वीटी को फोन कर के कहा, ‘‘अपने आशिक गोपाल को संभाल ले, वरना मैं उसे ऊपर पहुंचा दूंगा.’’

स्वीटी को गोपाल अब सिरदर्द लगने लगा था, क्योंकि वह काफी टोकाटाकी करने लगा था. स्वीटी ने अकरम से कहा, ‘‘रोजरोज के झगड़े से अच्छा है कि गोपाल को निबटा ही दें.’’

अपनी प्रेमिका का आदेश मिलते ही अकरम ने 28 मार्च, 2016 की रात को गोपाल को अपनी दुकान पर बुलाया. अपने नौकर सुरेश पाल के साथ मिल कर उस ने गोपाल को जम कर शराब पिलाने के बाद उस की हत्या कर दी. अकरम ने यह सूचना स्वीटी को दे दी. गोपाल की हत्या की खबर सुन कर स्वीटी काफी खुश हुई. वह अकरम की दुकान पर पहुंच गई. वहां तीनों ने जम कर शराब पी और जश्न मनाया.

बाद में पुलिस ने हत्या के आरोप में अकरम, उस के नौकर सुरेश पाल व स्वीटी को गिरफ्तार कर लिया. इस केस की जांच कर रहे अधिकारी राजेश तिवारी का कहना है, ‘‘जवानी के जोश में नौजवानों को किसी बात का होश ही नहीं रहता है. लड़के खेलीखाई लड़की से मेलजोल बढ़ाते वक्त उस पर भरोसा न रखें, क्योंकि ऐसी लड़की अपने फायदे के लिए कुछ भी कर सकती है.’’ MP Crime

UP Crime story : बुआ के दिल ने जब भतीजे को छुआ

वेदराम बेहद सीधासादा और मेहनती युवक था. वह उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद के एक चूड़ी कारखाने में काम करता था, जबकि उस के बीवीबच्चे कासगंज जिले के नगला लालजीतगंज में रहते थे. यह वेदराम का पैतृक गांव था. वहीं पर उस का भाई मिट्ठूलाल भी परिवार के साथ रहता था. जिला कासगंज के ही थाना सहावर का एक गांव है बीनपुर कलां. यहीं के रहने वाले आलम सिंह का बेटा नेकसे अकसर नगला लालजीतगंज में अपनी बुआ के घर आताजाता रहता था. उस की बुआ की शादी वेदराम के भाई मिट्ठूलाल के साथ हुई थी.

वेदराम की पत्नी सुनीता पति की गैरमौजूदगी में भी घर की जिम्मेदारी  ठीकठाक निभा रही थी. वह अपनी बड़ी बेटी की शादी कर चुकी थी. जिंदगी ने कब करवट ले ली, वेदराम को पता ही नहीं चला. पिछले कुछ समय से वेदराम जब भी छुट्टी पर घर जाता था, उसे पत्नी सुनीता के मिजाज में बदलाव देखने को मिलता था. उसे अकसर अपने घर में नेकसे भी बैठा मिलता था.

नेकसे हालांकि उस के भाई मिट्ठूलाल की पत्नी का भतीजा था, फिर भी वह यही सोचता था कि आखिर यह उस के घर में क्यों डेरा डाले रहता है. उस ने एकदो बार नेकसे को टोका भी कि बुआ के घर पड़े रहने से अच्छा है वह कोई कामकाज देखे. सुनीता ने भी नेकसे पर कोई ज्यादा ध्यान नहीं दिया था, लेकिन वह जब भी आता था, वह उस की खूब मेहमाननवाजी करती थी. नेकसे के मन में क्या था, यह सुनीता को पता नहीं था. एक दिन नेकसे दोपहर में उस के घर आया और चारपाई पर बैठ कर इधरउधर की बातें करने लगा. अचानक वह उस के पास आ कर बोला, ‘‘बुआ, तुम जानती हो कि तुम कितनी सुंदर हो?’’

नेकसे की इस बात पर पहले तो सुनीता चौंकी, उस के बाद हंसती हुई बोली, ‘‘मजाक अच्छा कर लेते हो.’’

‘‘नहीं बुआ, ये मजाक नहीं है. तुम मुझे सचमुच बहुत अच्छी लगती हो. तुम्हें देखने को दिल चाहता है, तभी तो मैं तुम्हारे यहां आता हूं.’’ नेकसे ने हंसते हुए कहा.

नेकसे की बातें सुन कर सुनीता के माथे पर बल पड़ गए. उस ने कहा, ‘‘तुम यह क्या कह रहे हो, क्या मतलब है तुम्हारा?’’

‘‘कुछ नहीं बुआ, तुम बैठो और यह बताओ कि फूफाजी कब आएंगे?’’ उस ने पूछा.

‘‘उन्हें छुट्टी कहां मिलती है. तुम सब कुछ जानते तो हो, फिर भी पूछ रहे हो?’’ सुनीता ने थोड़ा रोष में कहा.

‘‘तुम्हारे ऊपर दया आती है बुआ, फूफाजी को तो तुम्हारी फिक्र ही नहीं है. अगर उन्हें फिक्र होती तो इतने दिनों बाद घर न आते. वह चाहते तो गांव में ही कोई काम कर सकते थे.’’ यह कह कर नेकसे ने जैसे सुनीता की दुखती रग पर हाथ रख दिया था.

इस के बाद सुनीता के करीब आ कर वह उस का हाथ पकड़ते हुए बोला, ‘‘बुआ, अब तुम चिंता मत करो, सब कुछ ठीक हो जाएगा.’’

इतना कह कर नेकसे तो चला गया, लेकिन सुनीता के मन में कई सवाल छोड़ गया. वह सोचने लगी कि आखिर नेकसे का उस के यहां आनेजाने का मकसद क्या है? 28 साल का नेकसे देखने में ठीकठाक था. वह अविवाहित था. और अपने गांव के एक ईंट भट्ठे पर काम करता था. तनख्वाह तो ज्यादा नहीं थी, पर वहां उसे अच्छी कमाई हो जाती थी. बुआ के यहां आतेआते उस का दिल बुआ की देवरानी सुनीता पर आ गया था.

सुनीता पति की दूरी से बहुत परेशान थी. इसी का बहाना बना कर उस ने उस के दिल में जगह बनानी शुरू कर दी थी. रिश्ते की नजदीकियां रास्ते में बाधक थीं. नेकसे को इस बात का भी डर लग रहा था कि अगर सुनीता को बुरा लग गया तो परिवार में तूफान आ जाएगा. उस दिन नेकसे के जाने के बाद सुनीता देर तक उसी के बारे में सोचती रही कि आखिर नेकसे चाहता क्या है. उस रात सुनीता को देर तक नींद नहीं आई. नेकसे की बातचीत का अंदाज मन मोहने वाला था, लेकिन सुनीता उम्र और रिश्ते में नेकसे से बड़ी थी. मन में पति के प्रति गुस्सा भी आया, क्योंकि पति से दूरी के कारण ही उस का मन डगमगा रहा था.

उस ने तय कर लिया कि इस बार जब पति घर आएगा तो वह उस से कहेगी कि या तो वह गांव में रह कर कोई काम करे या फिर उसे भी अपने साथ ले चले. कुछ दिनों बाद वेदराम छुट्टी पर आया तो सुनीता ने कहा, ‘‘देखो, तुम्हारे बिना मेरा यहां बिलकुल भी मन नहीं लगता. या तो तुम यहीं कोई काम कर लो या फिर मैं भी बच्चों को ले कर फिरोजाबाद चल कर तुम्हारे साथ रहूंगी.’’

पत्नी की बात सुन कर वेदराम बोला, ‘‘लगता है, तुम पगला गई हो. तुम अपनी उम्र तो देखो. बच्चे बड़े हो रहे हैं और तुम्हें रोमांस सूझ रहा है.’’

‘‘तो क्या अब मैं बूढ़ी हो गई हूं?’’ सुनीता ने कहा.

‘‘नहीं…नहीं, ऐसा नहीं है. पर सुनीता यह मेरी मजबूरी है. मेरी तनख्वाह इतनी नहीं कि वहां किराए पर कमरा ले कर तुम्हें साथ रख सकूं. और तुम क्या सोच रही हो कि वहां मैं खुश हूं. नहीं, तुम्हारे बिना मैं भी कम परेशान नहीं हूं.’’

पति के जवाब पर सुनीता कुछ नहीं बोली. वेदराम 3 दिनों तक घर पर रहा, तब तक सुनीता काफी खुश रही. पर पति के जाने के बाद उस के जिस्म की भूख फिर सिर उठाने लगी. वह उदास हो गई. तब उस के दिलोदिमाग में नेकसे घूमने लगा. वह उस से मिलने को उतावली हो उठी. इतना ही नहीं, वह अपनी जेठानी के घर जा कर बोली, ‘‘दीदी, नेकसे आया नहीं क्या?’’

जेठानी ने कहा, ‘‘आया तो था, पर जल्दी में था. क्यों, कोई काम है क्या?’’

‘‘नहीं, मैं ने तो यूं ही पूछ लिया.’’ उदास मन से सुनीता वापस आने को हुई, तभी जेठानी ने कहा, ‘‘शायद वह कल आएगा.’’

जेठानी की बात सुन कर सुनीता का दिल बल्लियों उछलने लगा. उसे लग रहा था कि नेकसे उस से नाराज है, तभी तो वह उस के घर नहीं आया. अगले दिन अचानक उस के दरवाजे पर दस्तक हुई. उस ने दरवाजा खोला, सामने नेकसे खड़ा था.

‘‘तुम?’’ उसे देख कर सुनीता हैरानी से बोली.

‘‘हां, मैं ही हूं बुआ, लेकिन तुम मुझे देख कर इतना हैरान क्यों हो? बड़ी बुआ ने बताया कि तुम मुझे याद कर रही थीं, सो मैं आ गया. अब बताओ, क्या कहना है?’’ नेकसे ने घर में दाखिल होते हुए कहा.

सुनीता ने मुख्यद्वार बंद किया और अंदर आ कर नेकसे से बातें करने लगी. कुछ देर में सुनीता 2 गिलासों में चाय ले कर आई तो नेकसे ने पूछा, ‘‘फूफा आए थे क्या?’’

‘‘हां, आए तो थे, लेकिन 3 दिन रह कर चले गए.’’ सुनीता बेमन से बोली.

नेकसे को लगा कि वह फूफा से खुश नहीं है. उस ने मौके का फायदा उठाते हुए कहा, ‘‘बुआ, मैं कुछ कहना चाहता हूं, पर डर लगता है कि कहीं तुम बुरा न मान जाओ.’’

‘‘नहीं, तुम बताओ क्या बात है?’’

‘‘बुआ, सच तो यह है कि तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो और मैं तुम से प्यार करने लगा हूं.’’ नेकसे ने एक ही झटके में मन की बात कह दी.

नेकसे की बात पर सुनीता भड़क उठी, ‘‘क्या मतलब है तुम्हारा? और हां, प्यार का मतलब जानते हो? अपनी और मेरी उम्र में फर्क देखा है. मैं रिश्ते में तुम्हारी बुआ लगती हूं.’’

‘‘हां, लेकिन इस दिल का क्या करूं, जो तुम पर आ गया है. अब तो दिलोदिमाग पर हमेशा तुम ही छाई रहती हो.’’ नेकसे ने कहा.

‘‘लगता है, तुम पागल हो गए हो. जरा सोचो, अगर घर वालों को यह सब पता चल गया तो मेरा क्या हाल होगा?’’ सुनीता ने कहा.

नेकसे चारपाई से उठा और सुनीता के पास जा कर उस के गले में बांहें डाल दीं. सुनीता ने इस का कोई विरोध नहीं किया. इस से नेकसे की हिम्मत बढ़ गई. इस के बाद सुनीता भी खुद को नहीं रोक सकी तो मर्यादा भंग हो गई. जोश उतरने पर जब होश आया तो दोनों में से किसी के भी मन में पछतावा नहीं था.

सुनीता को अपना मोबाइल नंबर दे कर और फिर आने का वादा कर के नेकसे चला गया. उस दिन के बाद सुनीता की तो जैसे दुनिया ही बदल गई. पर कभीकभी उसे डर भी लगता था कि अगर भेद खुल गया तो क्या होगा. अब नेकसे का आनाजाना लगा रहने लगा. इसी बीच एक दिन वेदराम अचानक घर आ गया. उस की तबीयत खराब थी. पर उस समय घर पर नेकसे नहीं था. सुनीता डर गई कि कहीं पति की मौजूदगी में नेकसे न आ जाए, इसलिए उस ने नेकसे को फोन कर के सतर्क कर दिया. हफ्ते भर बाद वेदराम चला तो गया, पर सुनीता के मन में डर सा समा गया.

पड़ोसियों को सुनीता के घर नेकसे का आनाजाना अखरने लगा था. आखिर एक दिन पड़ोसन ने सुनीता को टोक ही दिया, ‘‘जवान लड़के का इस तरह घर आनाजाना ठीक नहीं है. अपनी जवान बेटी का कुछ तो खयाल करो.’’

सुनीता तमक कर बोली, ‘‘अपने घर का खयाल मैं खुद रख लूंगी. तुम हमारी फिक्र मत करो.’’

नेकसे उस के यहां बेखौफ और बिना रोकटोक आताजाता था. पड़ोसियों के मन में भी शक के बीज पड़ चुके थे. एक दिन जब वेदराम घर आया तो एक पड़ोसी ने कहा, ‘‘नेकसे तुम्हारी गैरमौजूदगी में तुम्हारे घर अकसर आता है. तुम्हें इस बात पर ध्यान देना चाहिए.’’

इस बात से वेदराम को लगा कि जरूर कुछ गड़बड़ है. उस ने सुनीता से पूछा, ‘‘यह नेकसे का क्या चक्कर है?’’

पति की बात सुन कर सुनीता की धड़कनें बढ़ गईं, ‘‘यह क्या कह रहे हो तुम, तुम्हारा रिश्तेदार है. कभीकभी यहां आ जाता है. इस में गलत क्या है?’’

‘‘घर में जवान बच्ची है. तुम उसे यहां आने के लिए मना कर दो.’’ वेदराम ने कहा.

‘‘अपनी बेटी की देखरेख मैं खुद कर सकती हूं, पर कभी सोचा है कि तुम्हारे बिना मैं कैसे रहती हूं.’’

‘‘तुम लोगों के लिए ही तो मैं बाहर रहता हूं. जरा सोचो क्या तुम्हारे बिना मुझे वहां अच्छा लगता है क्या?’’

वेदराम को सुनीता की इस बात से विश्वास होने लगा कि पड़ोसियों ने उसे उस की पत्नी और नेकसे के बारे में जो खबर दी है, वह सही है. वेदराम 2-4 दिन रुक कर अपने काम पर फिरोजाबाद चला गया. पर इस बार उस का काम में मन नहीं लगा. उसे लगता था, जैसे उस की गृहस्थी की नींव हिल रही है. एक दिन अचानक वह छुट्टी ले कर बिना बताए घर से आ गया. उस ने घर में कदम रखा तो घर में कोई बच्चा दिखाई नहीं दिया. उस ने कमरे का दरवाजा खोला तो सन्न रह गया. उस की पत्नी नेकसे की बांहों में थी. गुस्से में वेदराम ने डंडा उठाया और सुनीता की खूब पिटाई की. जबकि नेकसे भाग गया.

पिटने के बाद भी सुनीता के चेहरे पर डर नहीं था. वह गुर्रा कर बोली, ‘‘इस सब में मेरी नहीं, बल्कि तुम्हारी गलती है. मैं ने कहा था न कि मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती, पर तुम ने मेरी भावनाओं का खयाल कहां रखा.’’

वेदराम का गुस्सा बढ़ गया. वह हैरान था कि सुनीता ने रिश्तों का भी खयाल नहीं रखा. नेकसे तो उस के बेटे की तरह है. उस ने कहा, ‘‘ठीक है, अब मैं आ गया हूं, सब संभाल लूंगा.’’

‘‘मैं आ गया हूं, से क्या मतलब है तुम्हारा?’’ सुनीता ने पूछा.

‘‘अब मैं नौकरी छोड़ कर हमेशा के लिए आ गया हूं. यहीं खेतीबाड़ी करूंगा. फिर देखूंगा तुझे.’’ वेदराम ने कहा.

पति के नौकरी छोड़ने की बात सुन कर सुनीता परेशान हो उठी. क्योंकि अब उसे नेकसे से मिलने का मौका नहीं मिल सकता था. उस ने नेकसे को सारी बात बता कर सतर्क रहने को कहा. अब वह किसी भी कीमत पर नेकसे को छोड़ने को तैयार नहीं थी. उस के मन में पति के प्रति नफरत पैदा हो गई.

वेदराम को अब इस बात का डर लगा रहता था कि सुनीता नेकसे के साथ भाग न जाए. अगर ऐसा हो गया तो समाज में उस की नाक ही कट जाएगी. लिहाजा उसे अपनी दुराचारी पत्नी से नफरत हो गई. बेटी भी जवान थी पर वह मां की ही तरफ से बोलती थी. उसे इस बात का भी डर था कि कहीं बेटी भी गुमराह न हो जाए.

वेदराम की चौकसी के बावजूद सुनीता और नेकसे मौका पा कर घर से बाहर मिलने लगे. यह बात भी वेदराम से ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रह सकी. उस ने सुनीता को एक बार फिर समझाने की कोशिश की, पर वह कुछ भी मानने को तैयार नहीं थी. वेदराम समझ गया कि अब कोई बड़ा कदम उठाना ही पड़ेगा, वरना उस की गृहस्थी डूब जाएगी. घर का वातावरण काफी तनावपूर्ण रहने लगा था. नेकसे वेदराम की खुशियों के रास्ते में बाधा बन गया था. काफी सोचनेविचारने के बाद वेदराम को लगा कि इस समस्या का अब एक ही हल है कि रास्ते के कांटे को जड़ से निकाल दिया जाए.

दूसरी ओर रोजरोज पिटने से सुनीता को लगने लगा था कि अब वह पति के साथ ज्यादा दिनों तक नहीं रह सकती. वह खुल कर नेकसे के साथ अपनी दुनिया बसाना चाहती थी.

वेदराम धीरेधीरे अपने इरादे को मजबूत कर रहा था. बेशक यह काम उस के लिए कठिन था. पर एक ओर चरित्रहीन पत्नी थी तो दूसरी ओर बेलगाम भतीजा. दोनों उस केगुस्से को हवा दे रहे थे. योजना के अनुसार, वेदराम उसी ईंट भट्ठे पर काम करने लगा, जहां नेकसे करता था. वेदराम जानता था कि नेकसे रात में भट्ठे पर ही सोता है. उसे लगा कि वह वहीं पर अपना काम आसानी से कर सकता है. वह भी भट्ठे पर ही सोने लगा और मौके की तलाश में लग गया.

नेकसे अपने फूफा वेदराम के इरादे से बेखबर था. जबकि वेदराम ने तय कर लिया था कि अपनी इज्जत पर हाथ डालने वाले को वह जिंदा नहीं छोड़ेगा. अपनी नौकरी के तीसरे दिन 5 दिसंबर, 2016 को वेदराम को मौका मिल गया. उस ने देखा, नेकसे अकेला सो रहा था. वह अपनी जगह से उठा और फावड़े से नेकसे पर प्रहार कर दिया. चोट नेकसे के कंधे पर लगी तो वह चीख कर उठा और भागने की कोशिश की. लेकिन वेदराम ने उस पर ताबड़तोड़ प्रहार कर दिए, जिस से वह वहीं पर मर गया.

नेकसे की हत्या करने के बाद वेदराम ने राहत की सांस ली, पर उस की दिमागी हालत ठीक नहीं थी. वह फावड़ा ले कर सीधे थाना सहावर पहुंचा और पुलिस को सारी बात बता दी. थानाप्रभारी रफत मजीद वेदराम से पूछताछ कर के उसे उस जगह ले गए, जहां उस ने नेकसे की हत्या की थी. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

पुलिस ने वेदराम के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. थानाप्रभारी रफत मजीद केस की तफ्तीश कर रहे थे. UP Crime story

कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

 

Crime Story in Hindi: देह व्यापार में प्यार की कोई जगह नहीं

Crime Story in Hindi: 10 नवंबर, 2016 को दोपहर के करीब 2 बजे राजस्थान के जिला राजसमंद के थाना केवला की पुलिस को सूचना मिली कि उदयपुर से गोमती जाने वाले फोरलेन नेशनल हाईवे के किनारे पड़ासली भैरूंघाटी के पास एक लाश पड़ी है. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी भरत योगी अधिकारियों को घटना के बारे में बता कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए थे. उन के पहुंचतेपहुंचते एसपी डा. विष्णुकांत भी मौके पर पहुंच गए थे.

लाश सड़क से 2 सौ मीटर की दूरी पर एक खाई में पड़ी थी. वह एक औरत की लाश थी, जो टीशर्ट और लैगिंग पहने हुए थी. मृतका का रंग गोरा, कद ठिगना तथा शरीर थोड़ा मोटा था. हाथ की अंगुलियों पर टैटू बने थे और नाखूनों पर नेलपौलिश लगी थी. बालों का रंग भूरा था, जिस से अंदाजा लगाया गया कि बालों पर कलर किया गया होगा. एक कान में बाली थी. गले पर गहरे जख्म थे. मृतका की उम्र 30-35 साल के बीच थी. लाश के पास बीयर की बोतलें पड़ी थीं. देख कर ही लग रहा था कि हत्या कहीं और कर के लाश वहां ला कर फेंकी गई थी. पहनावे से मृतका मेवाड़ क्षेत्र की नहीं लग रही थी.

अनुमान लगाया गया कि मृतका किसी बड़े शहर की रहने वाली थी. आसपास बड़ा शहर उदयपुर था. गुजरात की सीमा भी नजदीक थी. पुलिस ने घटनास्थल से मिले सबूतों को जुटा कर आसपास के लोगों से लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की, लेकिन कोई भी उस की शिनाख्त नहीं कर सका. इस के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए केवला के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के मुर्दाघर में रखवा दिया. लाश देख कर डाक्टरों ने बताया कि मृतका की हत्या 10 से 15 घंटे पहले गला घोंट कर की गई थी. बाद में लाश को राजसमंद के सरकारी अस्पताल भिजवा दिया गया था. इसी के साथ लाश की शिनाख्त होने के बाद ही पोस्टमार्टम कराने का निर्णय लिया गया.

पुलिस के सामने समस्या मृतका की शिनाख्त की थी. इस के लिए पुलिस ने लाश के फोटो व वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर डाल दिए. इस के अलावा उदयपुर, प्रतापगढ़ और डूंगरपुर के सभी थानों को लाश के फोटो भेज कर कहा गया कि मृतका का पता लगाने की कोशिश करें. हो सकता है कहीं उस महिला की गुमशुदगी दर्ज हो. इसी के साथ ही हाईवे पर स्थित नेगडि़या और मांडावाड़ा टोल प्लाजा की सीसीटीवी फुटेज भी खंगाली गईं.

मृतका की लाश के फोटो और वीडियो सोशल मीडिया पर डालने से पुलिस को सूचनाएं मिलीं कि मृतका उदयपुर की हो सकती है. इन्हीं सूचनाओं के आधार पर पुलिस ने उदयपुर जा कर स्थानीय पुलिस की मदद ली. लाश मिलने के तीसरे दिन यानी 12 नवंबर को पता चला कि वह लाश रोमा उर्फ रेशमा की थी, जो मुंबई की रहने वाली थी. उदयपुर में रोमा जिस्मफरोशी करती थी. पुलिस ने जिस्मफरोशी करने वाली महिलाओं के संपर्क में रहने वाले कुछ लोगों से पता किया तो उन से रोमा का फोन नंबर मिल गया. उस नंबर को वाट्सऐप वाले दूसरे फोन पर डाला गया तो उस की डीपी में मृतका की तसवीर आ गई. वह लाश रोमा उर्फ रेशमा की ही थी.

इस के बाद पुलिस को यह भी पता चल गया कि रोमा उदयपुर में रेखा उर्फ पूजा छाबड़ा के लिए काम करती थी. रेखा उर्फ पूजा छाबड़ा का नाम उदयपुर पुलिस के लिए नया नहीं था. सैक्स रैकेट के मामले में वह उदयपुर की जानीमानी हस्ती थी. रोमा की हत्या की गुत्थी सुलझाने के लिए पुलिस ने उसे 12 नवंबर को हिरासत में लिया. उस से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के बडे़ बेटे अनिल और ड्राइवर धनराज मीणा को भी हिरासत में ले लिया.

उदयपुर पुलिस ने तीनों को राजसमंद की थाना केवला पुलिस को सौंप दिया. पूछताछ के बाद पुलिस ने तीनों को 13 नवंबर को रोमा की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. इस पूछताछ में रोमा के मुंबई से उदयपुर आने और जिस्मफरोशी के धंधे की सरगना रेखा के बेटे से प्रेम करने से ले कर हत्या तक की कहानी सामने आ गई. उदयपुर राजस्थान का पर्यटनस्थल है. यहां रोजाना तमाम देशीविदेशी सैलानी आते हैं. अन्य महानगरों की तरह यहां भी जिस्मफरोशी का कारोबार धड़ल्ले से होता है. उदयपुर की हिरणमगरी कालोनी के सेक्टर-9 की रहने वाली रेखा उर्फ पूजा काफी समय से सैक्स रैकेट चला रही थी.

उस के खिलाफ थाना हिरणमगरी में पीटा के 7 मामले दर्ज हैं. इस के अलावा वह शांतिभंग के मामलों में भी कई बार गिरफ्तार हो चुकी थी. रेखा की उम्र 50 साल के आसपास है. उस की शादी ललित छाबड़ा से हुई थी, जिस से उस के 2 बेटे हुए, बड़ा अनिल और छोटा मनीष. रेखा पहले उदयपुर की हिरणमगरी के सेक्टर-5 में रहती थी. अभी भी वहां उस का मकान है, जिस में वह लड़कियों से जिस्मफरोशी कराती थी. इसी धंधे की बदौलत उस के संपर्क मुंबई, दिल्ली और कोलकाता की लड़कियों से हो गए थे. उदयपुर के कई नामीगिरामी होटलों के अलावा हाईवे पर स्थित फार्महाउसों व गेस्टहाउसों के संचालकों से उस के संपर्क थे.

जिस्म के शौकीनों के लिए वह मुंबई, दिल्ली और कोलकाता से लड़कियां बुलाती थी. रेखा लड़कियों की खूबसूरती और देह के आधार पर ग्राहकों से रकम वसूलती थी. बाहर से आई लड़कियां कुछ दिन उदयपुर में रह कर लौट जाती थीं. ग्राहकों की जरूरत के हिसाब से रेखा फोन कर के लड़कियां बुला लेती थी. इस धंधे से उस ने करोड़ों की दौलत कमाई. इसी कमाई से उस ने उदयपुर के हिरणमगरी के सेक्टर-9 में 3 हजार वर्गमीटर का भूखंड खरीद कर आलीशान कोठी बनवाई. कोठी के बेसमेंट में अनैतिक गतिविधियों के लिए ठिकाने बनवाए. उस ने कोठी में चारों तरफ कैमरे लगवाए, ताकि बाहर की गतिविधियों पर नजर रखी जा सके. कहा जाता है कि जब रेखा ने यह मकान बनवाना शुरू किया था, उस के कारनामों की वजह से मोहल्ले वालों ने काफी विरोध किया था, लेकिन उस ने आपराधिक लोगों की मदद से सब को चुप करा दिया था. इस मकान की कीमत इस समय करीब 5 करोड़ रुपए है.

रोमा उर्फ रेशमा भी रेखा के बुलाने पर जिस्मफरोशी के लिए मुंबई से उदयपुर आई थी. कहा जाता है कि रोमा मूलरूप से बांग्लादेश की रहने वाली थी. वह गरीबी की वजह से इस दलदल में फंस गई थी. कुछ दिनों वह कोलकाता में रही, फिर वहां से मुंबई चली गई. अन्य कालगर्ल्स की तरह वह भी बुलाने पर मुंबई से दूसरे शहरों में जाने लगी. इसी तरह रेखा के बुलाने पर वह उदयपुर आई थी. रोमा को उदयपुर अच्छा लगा, इसलिए वह रेखा के साथ रह कर जिस्मफरोशी करने लगी. शुरू में तो उस के चाहने वाले काफी थे, लेकिन धीरेधीरे उस का शरीर और उम्र बढ़ी तो चाहने वालों की संख्या घटने लगी.

यह सच्चाई भी है कि उम्र बढ़ने के साथ कालगर्ल्स के चहेतों की तादाद कम होने लगती है. रोमा की उम्र जरूर ज्यादा हो गई थी, लेकिन जब वह टाइट वेस्टर्न ड्रैस पहनती थी तो उस के उभार चाहने वालों को आकर्षित करते थे. बालों को भी वह कलर करने लगी थी. फिर भी उस का धंधा टूटता जा रहा था. इस के अलावा जिस्म बेचने के बाद भी उसे पूरा पैसा नहीं मिलता था. उस की कमाई का अधिकांश हिस्सा रेखा रख लेती थी. इसलिए अब उसे इस धंधे में अपना भविष्य खतरे में दिखाई दे रहा था.

रोमा के जो भी आशिक थे, वे सिर्फ उस के जिस्म से मतलब रखते थे. उन में से किसी की नजरों में उसे अपनापन नजर नहीं आता था. रोमा जब से उदयपुर आई थी, रेखा के साथ उसी के घर में रह रही थी. वह उस की आंटी भी थी और मालकिन भी. साथ रहने की वजह से रोमा का आमनासामना रोजाना रेखा के छोटे बेटे मनीष से होता था. कभीकभी रोमा अपने छोटेमोटे काम भी मनीष से करा लेती थी. मनीष को पता ही था कि उस की मां रेखा देहव्यापार कराती है. उस के घर एक से एक खूबसूरत और हर उम्र की लड़कियां आतीजाती रहती थीं.

मनीष करीब 28 साल का युवा था. उस की अपनी शारीरिक जरूरतें थीं. अगर वह चाहता तो घर आने वाली किसी भी कालगर्ल्स से अपनी शारीरिक जरूरत पूरी कर सकता था, लेकिन रोमा उस के दिल में जगह बनाने लगी थी. अपनी जरूरतों के हिसाब से वह भी मनीष से प्यार करने लगी थी. कब दोनों एकदूसरे के प्यार में खो गए, पता ही नहीं चला.

रोमा और मनीष के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए. ये संबंध लगातर चलते रहे, जिस से रेखा को उन के संबंधों की जानकारी हो गई. रेखा इस धंधे की खेलीखाई और घाघ औरत थी. उसे पता था कि इस तरह के संबंधों का क्या हश्र होता है. भविष्य के बारे में सोच कर रोमा रेखा की चिंता किए बगैर मनीष के साथ लिवइन रिलेशन में रहने लगी. मनीष से रोमा को गर्भ भी ठहर गया. अब वह मनीष से शादी की बात करने लगी. उसे पता था कि मनीष से शादी करने के बाद वह रेखा की करोड़ों की जायदाद में आधे की हिस्सेदार हो जाएगी. इस के लिए ही वह मनीष पर शादी के लिए दबाव बनाने लगी.

इस बात की भनक रेखा को लगी तो उसे मामला गड़बड़ नजर आने लगा. वह कतई नहीं चाहती थी कि उस का बेटा कालगर्ल्स से शादी करे और उस की जायदाद में हिस्सा मांगे. पहले उसे लगता था कि इस मामले को वह अपने स्तर से निपटा देगी. लेकिन उस की चिंता तब बढ़ गई, जब उस का अपना बेटा मनीष भी रोमा की भाषा बोलने लगा. रोमा को ले कर घर में लगभग रोज ही झगड़े होने लगे. इस से रेखा परेशान रहने लगी. अब वह रोमा से छुटकारा पाने के उपाय सोचने लगी. काफी सोचविचार कर उस ने फैसला किया कि इस झगड़े की जड़ रोमा है, इसलिए उसे ही मनीष के रास्ते से हटा दिया जाए.

रेखा ने काफी सोचविचार कर साजिश रची. उसी साजिश के तहत उस ने मनीष को तलवारबाजी के एक झगड़े में पुलिस से गिरफ्तार करवा कर जेल भिजवा दिया. मनीष के जेल जाते ही रेखा ने अपने ड्राइवर धनराज मीणा और बड़े बेटे अनिल से बात की. इस के बाद योजना के अनुसार, 9 नवंबर की शाम को धनराज ने रोमा को इतनी शराब पिलाई कि वह सुधबुध खो बैठी. उसी हालत में धनराज और रेखा ने सलवार के नाड़े से रोमा का गला घोंट कर उस की हत्या कर दी. अधिक नशा होने की वजह से वह विरोध भी नहीं कर सकी.

रेखा को पूरा विश्वास हो गया कि रोमा की मौत हो चुकी है तो उस ने अनिल और धनराज से कहा कि वे लाश को गाड़ी से ले जा कर कहीं फेंक आएं. अनिल और धनराज हुंडई आई10 कार की पिछली सीट पर लाश रख कर निकल पड़े. कार धनराज चला रहा था. दोनों नेगडि़या टोलनाका, नाथद्वारा, राजनगर, केवला होते हुए मांडावाड़ा टोलनाके से हो कर पड़ासली के पास पहुंचे. वहीं हाईवे पर सुनसान जगह देख कर धनराज ने सड़क के किनारे कार रोक दी. फिर अनिल की मदद से कार की पिछली सीट पर पड़ी रोमा की लाश को निकाल कर हाईवे से करीब 2 सौ मीटर दूर ले जा कर खाई में फेंक दिया. इस तरह लाश को ठिकाने लगा कर दोनों उसी कार और उसी रास्ते से रात में ही घर आ गए.

रोमा की हत्या का खुलासा होने पर पुलिस ने सबूत जुटाने के लिए नेगडि़या टोलनाका व मांडावाड़ा टोलनाका की सीसीटीवी फुटेज की फिर से जांच की तो उन की कार आतीजाती दिखाई दे गई. पुलिस ने दोनों की उस रात की मोबाइल की लोकेशन और काल डिटेल्स भी सबूत के तौर पर जुटाए. कथा लिखे जाने तक पुलिस यह पता करने की कोशिश कर रही थी कि रोमा कौन थी, वह कहां की रहने वाली थी, उस के परिवार में कोई है या नहीं? अभियुक्तों की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने रोमा की लाश का पोस्टमार्टम करा कर अंतिम संस्कार करा दिया था.

बहरहाल, देहव्यापार करने वाली रोमा ने कभी नहीं सोचा होगा कि प्यार करने की उसे ऐसी सजा मिलेगी. रोमा के साथ जो हुआ, उस से एक बार फिर साबित हो गया है कि इस तरह की औरतों का कोई भविष्य नहीं होता. Crime Story in Hindi

UP Crime Story: वाराणसी की पौश कालोनी में सजता देह बाजार

UP Crime Story: कोरोना कर्फ्यू का वीकेंड यानी शनिवार का दिन था. चेतगंज की थानाप्रभारी इंसपेक्टर संध्या सिंह लौकडाउन के दौरान सुबहसुबह साढ़े 6 बजे के करीब चाय की चुस्कियों के साथ इलाके का एक बार मुआयना करने की योजना बना रही थीं. तभी अचानक 4 लोग थाने  में आए.

उन्हें देख कर वह बोलीं, ‘‘जी, बताइए मैं आप लोगों की क्या मदद कर सकती हूं?’’

एक आगंतुक दाएंबाएं देखता हुआ हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘साहब, हम लोग पिशाचमोचन क्षेत्र के रहने वाले हैं. हमारे मोहल्ले के एक मकान में इन दिनों तरहतरह के लोगों का आनाजाना होने लगा है.’’

‘‘तरहतरह के लोगों से आप का क्या मतलब है?’’ संध्या सिंह ने पूछा.

‘‘हमें संदेह है कि मकान में कोई गलत काम होता है. क्योंकि वहां हमेशा नएनए लोग आतेजाते देखे गए हैं. प्लीज, आप वहां की जांच कीजिए, अपने आप पता चल जाएगा कि बात क्या है.’’

उस व्यक्ति की बात पूरी होते ही साथ में आया दूसरा व्यक्ति बोल पड़ा, ‘‘जी मैडम, वहां की संदिग्ध गतिविधियों का खुलासा हो जाएगा.’’

‘‘वे किस तरह के लोग होते  हैं?’’ संध्या को अधिक जानने की जिज्ञासा हुई.

‘‘मैडमजी, आनेजाने वाले लोग दिखने में संभ्रांत लगते हैं, वे 40-45 की उम्र के दिखते हैं. उन के हाथों में रैपर में लिपटा कोई न कोई गिफ्ट पैकेट भी होता है.’’ एक अन्य व्यक्ति बोला.

मोहल्ले के लोगों की बातों को गौर से सुनने के बाद संध्या सिंह ने शिकायत करने वालों के नाम और कौन्टैक्ट के लिए मोबाइल नंबर के साथ कुछ पौइंट नोट कर लिए और छानबीन करने का आश्वासन दे कर उन्हें जाने को कहा.

पिशाचमोचन मोहल्ले के नागरिकों द्वारा बताई गई बातों पर गौर करते हुए उन्होंने तुरंत एसीपी (चेतगंज) नितेश प्रताप सिंह को भी अवगत करवा दिया. उन्हें शिकायत संबंधी पूरी जानकारी दी. मामला उत्तर प्रदेश के पौराणिक शहर वाराणसी का था. ऊपर से यह देश के प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र है. इसे देखते हुए पुलिस ने संदिग्ध मकान में छापेमारी की योजना बना ली. संध्या सिंह सहित पुलिस टीम में कुछ और महिला पुलिसकर्मियों को शामिल किया गया.

सूचना के आधार पर एक पुलिसकर्मी ने पिशाचमोचन स्थित मकान नंबर सी 21/24 के मुख्य गेट पर दस्तक दी. उस की कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. कई बार आवाज लगाने और गेट पीटने के बाद तो एक उम्रदराज व्यक्ति ने मुख्य गेट का चैनल खोल कर बाहर की ओर झांकते हुए तेज आवाज में पूछा, ‘‘कौन है?’’

बाहर पुलिस टीम को देख कर उस की आवाज धीमी पड़ गई. वह धीमे से बोला, ‘‘क्या बात है भई, आप लोग यहां?’’

उस का कोई जवाब दिए बगैर पुलिस टीम गेट को एक झटके में बाहर की ओर खोलते हुए मकान के भीतर धड़धड़ाती हुई घुस गई. कुछ पल में ही पूरी पुलिस टीम एक कमरे में थी. सभी पुलिसकर्मी संदिग्ध निगाहों से कमरे में इधरउधर देखने लगे. संध्या सिंह की पैनी निगाहें कुछ तलाशने की स्थिति में थीं. पुलिस की निगाह कमरे से जुड़े एक दरवाजे की तरफ गई. वहां का परदा हटाते ही एक महिला पुलिसकर्मी अनायास बोल पड़ी, ‘‘मैडमजी, इधर देखिए… ये दुष्ट लोग.’’

जब संध्या ने उस कमरे में जा कर देखा तो उन की आंखें भी फटी की फटी रह गईं. अंदर का नजारा देख कर महिला पुलिसकर्मी शर्म से आंखें झुकाए तुरंत बाहर आ गई. जबकि एसीपी चेतगंज ने फौरन कड़क आवाज में सभी को कपड़े पहन कर बाहर आने को कहा.

एसीपी ने कमरे से बाहर आ कर पूछा, ‘‘मकान का मालिक कौन है?’’

वहीं पास खड़े व्यक्ति ने कहा, ‘‘जी मैं हूं.’’

‘‘क्या नाम है तुम्हारा?’’ एसीपी बोले.

‘‘सुरेश कुमार,’’ वह व्यक्ति बोला.

‘‘ये सब यहां क्या है? कौन हैं  ये लोग?’’

तब तक कई लड़कियां और लड़के अंदर के कमरे से बाहर आ चुके थे. उन की ओर ऊंगली उठाते हुए एसपी ने पूछा.

अब सुरेश को काटो तो खून नहीं. वह हक्काबक्का डरी जुबान में बोला, ‘‘साहब, मैं इन लोगों के बारे में कुछ नहीं जानता, केवल इतना जानता हूं कि ये लोग किसी कंपनी में काम करते हैं.’’

मकान मालिक की बात पूरी होने वाली ही थी कि तभी इंसपेक्टर संध्या सिंह एक जोरदार तमाचा जड़ते हुए बोलीं, ‘‘तुम्हारे मकान में कोई इस प्रकार से रह रहा है और तुम्हें कोई जानकारी नहीं. वह भी एकदो नहीं कई लोग.’’

‘‘…जी…जी साहब, मैं सच कह रहा हूं, मुझे कुछ नहीं पता.’’

इतना कहने पर उस के गाल पर दूसरा जोरदार तमाचा पड़ा. लेडी पुलिस से कई लोगों के सामने तमाचा खा कर वह शर्मसार हो गया.

संध्या सिंह बोलीं, ‘‘जब तुम्हें इन लोगों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी तो फिर उन्हें कमरा किराए पर कैसे दे दिया था?’’ इस का जवाब देने के बजाय वह सिर झुकाए खड़ा रहा. पुलिस सभी को थाने ले आई. उन से अलगअलग गहन पूछताछ की जाने लगी.  इस दौरान कालोनी के कई लोग भी काफी संख्या में जमा हो गए. हर कोई जिज्ञासा भरी नजरों से देख रहा था. पूछताछ में कई बातें खुल कर सामने आईं. पुलिस टीम को मौके पर 2 युवतियां व 3 युवक बिलकुल आपत्तिजनक स्थिति में मिले थे. कमरे की तलाशी लेने के दौरान आपत्तिजनक सामग्रियों में कंडोम के पैकेट, 4 मोबाइल फोन व नशीली दवाएं बरामद हुईं.

इस तरह से शहर की पौश कालोनी में सैक्स रैकेट गिरोह का परदाफाश हो चुका था. थोड़े समय में इस की खबर पूरे शहर में फैल गई थी. जिस का असर यह हुआ था कि मीडिया के लोग और कुछ समाजसेवी संगठन भी थाने पहुंच गए. कुछ मानवाधिकार संगठन के लोगों ने चेतगंज थाने जा कर मामले की तह में जाने का दबाव बनाया. इस की सूचना काशी जोन के डीसीपी अमित कुमार को भी दी गई. वे भी चेतगंज थाने पहुंच गए.

पूछताछ के दौरान पकड़ी गई 20 से 25 साल के बीच की उम्र वाली दोनों लड़कियों ने बताया, ‘‘उन्होंने नौकरी करने वाली बता कर कमरा किराए पर लिया था.’’

वह जानबूझ कर ऐशोआराम और मौजमस्ती की जिंदगी के लिए इस धंधे में उतरी थी. उसे अपनी शानोशौकत वाली जिंदगी की जरूरतों को पूरा करने के लिए अत्यधिक पैसे की लालसा थी. पुलिस के अनुसार पढ़ाई के साथसाथ वे अन्य कामों के बहाने देह व्यापार के धंधे में उतर आई थीं. पूछताछ के दौरान 25 वर्षीय पारो (बदला हुआ नाम) ने बताया कि वह इस धंधे में पिछले 2 सालों से है. मोबाइल फोन की मदद से वह अपने इस धंधे को अंजाम देती है. इस के लिए उस ने अपना कोडवर्ड बना रखा है. उस के कोडवर्ड को ग्राहक ही समझ पाते हैं.

पारो ने अपने धंधे के बारे में आगे बताया कि उन के इस धंधे में कई लोगों का हिस्सा होता है. उन का वह नाम नहीं जानती है. हां, चेहरा देखने पर जरूर पहचान लेगी. पकड़े गए युवकों में एक रमेश 28 वर्ष, सुमित कुमार 29 वर्ष एवं राठौर 30 वर्ष ने बताया कि वे सभी वाराणसी शहर के ही निवासी हैं. पुलिस हिरासत में आने के बाद वे बारबार अपने बयानों को पलटते हुए अपना सही पताठिकाना बताने से कतराते रहे. उन का कहना था कि उन्हें वहां धोखे से लाया गया था, लेकिन जब पुलिस ने सख्ती दिखाई तब उन्होंने इस धंधे में शामिल होना स्वीकार कर लिया.

इसी प्रकार पुलिस टीम ने पकड़ी गई दूसरी लड़कियों और लड़कों से अलगअलग कमरों में पूछताछ के बाद पांचों के खिलाफ 29 मई, 2021 को देह व्यापार अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर लिया गया. उन की डाक्टरी जांच करवाई गई. बाद में उन्हें न्यायालय में पेश कर न्यायिकहिरासत में भेज दिया गया. कथा के लिखे जाने तक किसी भी आरोपी को जमानत नहीं मिल पाई थी.

सैक्स कारोबार का गढ़ बनता जा रहा है मड़ुआडीह 

वाराणसी में सैक्स अपराध का धंधा कोई नया नहीं है. दिल्ली के जीबी रोड, इलाहाबाद, मेरठ इत्यादि शहरों की तरह वाराणसी का मड़ुआडीह इलाका सैक्स बाजार के रूप में कुख्यात बताया गया है. जानकारों की मानें तो वाराणसी में पड़ोसी देश नेपाल से ले कर देश के कई राज्यों मसलन असम, बिहार, ओडिशा, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र इत्यादि से कम उम्र की लड़कियां बुलाई जाती हैं. उन से सैक्स के लिए मोबाइल फोन से संपर्क साधा जाता है. उन का अपना नेटवर्क बना हुआ है.

हाल के महीनों में जिस तेजी के साथ वाराणसी में एक पर एक कई जगहों पर सैक्स रैकेट का पुलिस ने खुलासा किया है, उसे देख कर इस बात को बल मिलने लगा है कि इस गिरोह की जड़ें वाराणसी में काफी गहरी हो चुकी हैं. वाराणसी के पौश इलाकों में से जगतगंज के कैलगढ़ कालोनी में 31 मई, 2021 को एक सैक्स रैकेट का खुलासा हुआ था. तब पुलिस ने एक मकान के फर्स्ट फ्लोर पर चल रहे रैकेट का खुलासा करते हुए 3 युवतियों समेत 6 लोगों को पकड़ा था. पुलिस के अनुसार सैक्स रैकेट के लिए लड़कियां फोन द्वारा बुलाई जाती थीं. फोन पर ही ग्राहकों से सौदा तय हो जाता था.

गिरफ्तार युवतियों में एक प्रयागराज की और 2 वाराणसी की थीं. गिरफ्तार युवकों में शिवपुर के लक्ष्मणपुर निवासी सोनू पटेल, चोलापुर के अतुल सिंह और रोहनिया के राजेश सिंह शामिल थे. सैक्स रैकेट की सूचना मिलने पर रात में छापेमारी की गई थी. इस मामले में मकान मालिक ने बगैर पुलिस सत्यापन के मकान किराए पर उठा लिया गया था. एक अन्य मामला वाराणसी के नाटी इमली मोहल्ले के नई बस्ती का भी सामने आया. वहां के रिहायशी इलाके के एक मकान में जब 30 मई, 2021 को छापेमारी की गई तब सैक्स रैकेट का भंडाफोड़ हुआ.  मौके से मकान मालकिन और 2 युवतियों की गिरफ्तारी हुई. पुलिस की काररवाई के दौरान 2 युवक चकमा दे कर भाग गए.

पुलिस ने मकान से छापे के दौरान कई आपत्तिजनक सामान भी बरामद किए. महिला और दोनों युवतियों के खिलाफ जैतपुरा थाने में मुकदमा दर्ज किया गया. मौके से भागे खोजवां निवासी राकेश गुप्ता सहित 2 युवकों की तलाश में पुलिस की टीमें लगाई गईं. नाटी इमली क्षेत्र की नई बस्ती स्थित इस मकान में सैक्स रैकेट चलाए जाने की सूचना पा कर जैतपुरा थाने की पुलिस ने एसीपी (चेतगंज) नितेश प्रताप सिंह के निर्देशानुसार इंसपेक्टर (जैतपुरा) शशिभूषण राय के साथ चिह्नित मकान में छापा मारा था. मकान मालकिन और दोनों युवतियों के खिलाफ देह व्यापार अधिनियम के तहत मामले दर्ज किए गए.

इस तरह से एक सप्ताह के भीतर ही वाराणसी पुलिस ने कई सैक्स ठिकानों पर की छापेमारी की. इस में वाराणसी के चेतगंज थाना की पुलिस ने 29 मई को पिशाचमोचन स्थित कालोनी में किराए के मकान में छापेमारी के अलावा 31 मई को चेतगंज थाने की पुलिस ने लहुराबीर क्षेत्र के कैलगढ़ कालोनी स्थित अपार्टमेंट में किराए के फ्लैट में छापेमारी कर 3 युवतियों और 3 युवकों को गिरफ्तार कर लिया. इस के पहले भी वाराणसी की घनी आबादी वाले रिहायशी इलाके में देह व्यापार का धंधा बीते कुछ महीनों में काफी फलफूल गया था.

जैतपुरा, लालपुर, पांडेयपुर, और चेतगंज थाना क्षेत्रों में जो भी सैक्स रैकेट पकड़े गए, वह घनी आबादी वाले रिहायशी इलाकों में स्थित किराए के मकानों में संचालित हो रहे थे. इस संबंध में डीसीपी काशी जोन अमित कुमार ने सभी थानाप्रभारियों को किराएदारों के सत्यापन करवाने का निर्देश दिया है. UP Crime Story

—कथा में कुछ पात्रों के नाम काल्पनिक एवं पुलिस सूत्रों व समाचार पत्रों पर आधारित है