Real Crime Stories: आईपीएस शिवदीप लांडे – रियल हीरो

Real Crime Stories: आप ने दबंग छवि वाले कई पुलिस अफसरों को बड़े परदे पर देख कर तालियां बजाई होंगी. लेकिन, सही मायने में हमारे असल हीरो वो अफसर हैं, जो समाज में फैली गुंडागर्दी, भ्रष्टाचार तथा अराजकता को जड़ से खत्म करने का काम करते हैं. वर्दी पहनने का मौका तो बहुतों को मिलता है. लेकिन इस वर्दी का दम बहुत कम लोग ही दिखा पाते हैं. शिवदीप वामनराव लांडे एक ऐसे आईपीएस हैं जो बस एक पुलिस अफसर ही नहीं, बल्कि अनगिनत कहानियों के पात्र हैं. वैसे अफसर जिन के बारे में लोग बस कल्पना करते हैं, हकीकत में ऐसा इंसान सामने देखना अजूबा लगता है.

शिवदीप वामनराव लांडे एक समय बिहार के गुंडेबदमाशों के लिए खौफ बन गए थे. इन से छुटकारा पाने का सिर्फ एक ही रास्ता था और वो था इन का ट्रांसफर. इस बेखौफ आईपीएस अफसर ने फिल्मी स्टाइल में बिहार के ला ऐंड और्डर को कायम किया था. वैसे कहने को तो शिवदीप लांडे पुलिस अधिकारी हैं, लेकिन उन की भूमिका किसी फिल्मी हीरो से कम नहीं रही. बात चाहे उन के आईपीएस बनने की हो, उन के काम करने के तरीके की हो, लोगों के दिलों में उन के प्रति प्यार और सम्मान की हो या फिर उन की प्रेम कहानी की. हर तरह से उन की कहानी किसी ब्लौकबस्टर फिल्म की कहानी जैसी लगती है.

शिवदीप वामनराव लांडे का जन्म 29  अगस्त, 1976 को महाराष्ट्र के अकोला जिले के परसा गांव में एक किसान परिवार में हुआ था. शिवदीप के पिता ने तीन बार 10वीं की परीक्षा दी. लेकिन पास न हो सके. वहीं उन की मां भी केवल 7वीं तक पढ़ पाईं थीं. ऐसे में शायद शिवदीप भी एक किसान बन कर रह जाते. मगर ऐसा नहीं हुआ. क्योेंकि उन के सपने बडे़ थे. उन्होंने कड़ी मेहनत से पढ़ाई की और निष्ठा व लगन से वह सपना पूरा कर दिखाया, जिसे उन के पिता पूरा नहीं कर पाए थे. दरअसल, बचपन से ही उन में कुछ अलग हट कर करने का जुनून था. घरपरिवार में कई तरह के अभाव थे. घर की तमाम मजबूरियां और कमियों के बावजूद बाधाएं उन के पैरों की बेडि़यां नहीं बन सकीं.

2 बडे़ भाइयों से छोटे शिवदीप ने स्कौलरशिप प्राप्त कर इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की. इस के बाद उन्होंने मुंबई में रह कर यूपीएससी की तैयारी की.

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शिवदीप लांडे की परवरिश एक सामान्य परिवार में हुई थी. चूंकि मातापिता अधिक पढ़ेलिखे नहीं थे, इसलिए परिवार की तरफ से पढ़ाई के प्रति कोई दबाव या प्रेरणा नहीं मिलती थी. भले ही उन का जन्म साधारण परिवार में हुआ था. लेकिन शिवदीप के सपने बहुत ऊंचे थे. बचपन से हिंदी फिल्में देखने का शौक रहा था. जिस में अक्सर फिल्म के नायक को पुलिस अफसर के किरदार में बदमाश खलनायक का अंत करते देख वे रोमांचित हो उठते थे. वह अकसर नायक में खुद की छवि देख कर कल्पना लोक में विचरण करने लगते.

बस इन्हीं कल्पनाओं के बीच मन में एक विचार जन्मा कि क्यों न बड़े हो कर ऐसा ही दंबग पुलिस अफसर बना जाए और गुंडों का खात्मा किया जाए. इसीलिए कठिन परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने अपनी ऊंची शिक्षा पूरी की. महाराष्ट्र के श्री संत गजानन महाराज इंजीनियरिंग कालेज, शेगांव से इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने मुंबई में रह कर संघ लोक सेवा आयोग की तैयारी की.

अच्छी सर्विस छोड़ बने आईपीएस

हालांकि शिवदीप एक प्रतिष्ठित कालेज के प्रोफेसर तथा उस के बाद राजस्व विभाग में आईआरएस के पद पर भी कार्यरत रहे. लेकिन इसी बीच 2006 में उन का संघ लोक सेवा आयोग में चयन हो गया. उन का चयन आईपीएस के लिए हुआ और उन्हें बिहार कैडर मिला. 2 साल प्रशिक्षण का काम पूरा किया. शिवदीप लांडे की पहली नियुक्ति 2010 में मुंगेर जिले के नक्सल प्रभावित जमालपुर इलाके में हुई थी. अपनी पहली पोस्टिंग से ही वे मीडिया की सुर्खियों में रहे थे. लेकिन पटना में तैनाती के दौरान अनोखी कार्यशैली के कारण उन का यह कार्यकाल आज तक अविस्मरणीय है, जिस के कारण शिवदीप पूरे देश में प्रसिद्ध हो गए थे.

पुलिस महकमे में शिवदीप किसी बौलीवुड फिल्मों की कहानी के पात्र की तरह सामने आए थे. जब शिवदीप पटना आए थे, तब शहर गुंडों से त्रस्त था. तमंचे वाले तो थे ही. शरीफ गुंडे भी थे. दवाई वाले गुंडे जो बंदूक नहीं रखते थे, पर दवाओं का अकाल पैदा कर देते थे. शहर में ब्लैक मार्केटिंग कर के शराब की दुकानें जरूरत से ज्यादा खुल गई थीं, लेकिन बिना लाइसेंस के.

10 महीनों में शिवदीप ने शहर को रास्ते पर ला दिया और यह सब कुछ फिल्मी स्टाइल में होता था. यह नहीं कि पुलिस गई और गिरफ्तार कर के ले लाई. नए तरीके आजमाए जाते थे. कभी शिवदीप बहुरुपिया बन के जाते तो कभी लुंगीगमछा पहन के पहुंच जाते. कभी चलती मोटरसाइकिल से जंप मार देते तो कभी किसी की चलती मोटरसाइकिल के सामने खड़े हो जाते. शिवदीप ने पटना को 9 महीने सेवा दी और इन 9 महीनों में उन्होंने यहां के लोगों, खासकर लड़कियों के दिल में एक खास तरह का प्रेम और सम्मान बना लिया.

दरअसल, ये वह दौर था जब पटना में आवारा लफंगों के कारण स्कूली लड़कियों व महिलाओं का सड़कों पर निकलना बेहद मुश्किल था. आवारा गुंडे लड़कियों को न सिर्फ छेड़ते और भद्दे कमेंट करते थे, बल्कि कई बार तो जहांतहां छू भी देते. ऐसे समय में हुई शिवदीप लांडे की एंट्री. वह पटना के नए एसपी बन कर पहुंचे थे. लड़कियों की यह परेशानी जब उन तक पहुंची, तो वे खुद कालेज की लड़कियों से मिलने जाने लगे. लांडे ने सब को अपना नंबर दिया और एक ही बात कही कि जब कोई तंग करे तो उन्हें काल करें या एसएमएस करें. लड़कियों ने यही किया.

उन्होंने सड़कछाप रोमियो को सबक सिखाने के लिए पुरुष व महिला पुलिसकर्मियों के सादा लिबास दस्ते तैयार किए. इस के साथ ही शिवदीप भी कालेजों तथा सार्वजनिक स्थलों पर राउंड मारने लगे. वह शायद पहले आईपीएस थे जो मोटरसाइकिल पर गश्त लगाते थे. एक फोन पर शिवदीप अपनी बाइक उठा कर अकेले ही निकल जाते और अगले ही पल वे लड़कियों की मदद के लिए वहां मौजूद होते. कितने मनचले धरे गए, कई मौके पर सीधे भी किए गए. देखते ही देखते लड़कियों में हिम्मत आने लगी, उन का डर खत्म होने लगा. यही वजह थी लड़कियों के मन में शिवदीप के प्रति स्नेह और सम्मान की. लांडे ने यहां मनचलों को खूब सबक सिखाया.

कुछ ही महीनों में उन्होंने पटना शहर की सड़कों को मजनुओं की टोलियों से मुक्त करा दिया. लड़कियां खुद को सुरक्षित महसूस करने लगी थीं. शहर की हर छात्रा के मोबाइल में उन का नंबर होता था, किसी को जरा भी परेशानी होती तो नंबर मिलाते ही शिवदीप लांडे अपनी टीम के साथ पीडि़त छात्रा के सामने हाजिर हो जाते. पटना में शिवदीप लांडे की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि राजनीतिक दबाव में सरकार ने पटना से जब उन का अररिया तबादला कर दिया तो लोगों ने कैंडल मार्च निकाल कर सरकार के इस फैसले का विरोध किया था. पटना के इतिहास में किसी पुलिस अधिकारी के लिए ऐसा पहली बार हुआ था.

स्थानांतरण के बावजूद पटना के लोगों में उन के प्रति दीवानगी आज तक कायम है. उन्हें आज भी पटना की स्कूली छात्राओं के फोन और एसएमएस आते रहते हैं. लांडे के नएनए आइडियाज की वजह से उन के कार्यकाल में पटना का क्राइम रेट कम हो गया था.

जहां भी रहे, गलत कामों पर रही नजर

पटना की तरह ही रोहतास जिले में भी शिवदीप लांडे ने अपने कार्यकाल के दौरान खनन माफियाओं की नींद उड़ा दी थी.  दरअसल रोहतास, औरंगाबाद, कैमूर में खनन और रोड माफिया का छत्ता बड़ा पुराना है. इस छत्ते में सभी दलों के लोग शामिल हैं. कभी राजद का हल्ला होता, तो कभी भाजपा का शोर मचता था. संदीप लांडे जब रोहतास के एसपी बने, तो उन्होंने भी इस खेल को उजाड़ने में कसर नहीं छोड़ी. हांलाकि कुछ समय बाद रोहतास एसपी के पद से 2015 में लांडे की विदाई कैसे हुई, पुलिस महकमे में यह बात सब को पता है. क्योेंकि बिहार में राजनीतिक दबाव इतना हावी रहता है कि कोई भी पुलिस अधिकारी स्वतंत्र तरीके से काम कर ही नहीं सकता.

बहरहाल, अपनी दबंगई के कारण शिवदीप को रोहतास में भी कई बार अपनी जान तक जोखिम में डालनी पड़ी. उन दिनों शिवदीप रोहतास के एसपी थे. इन्होंने खनन माफिया की नाक में दम कर रखा था. उधर दुश्मन भी घात लगाए रहते थे. एक रोज शिवदीप अवैध खनन रोकने निकले. लेकिन वे इस बात से अनजान थे कि दुश्मन उन की जान लेने के लिए घात लगाए बैठे हैं. शिवदीप जैसे ही वहां पहुंचे, उन पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी गई.

30 से ज्यादा राउंड फायर हुए. पूरा फिल्मी सीन बन गया था. फर्क बस इतना था कि यहां कोई कट बोल कर फायरिंग रोकने वाला नहीं था. न ही बहने वाला खून नकली था. जो भी हो रहा था सब असली था. शिवदीप हटे नहीं, डटे रहे. अंत में शिवदीप के आगे गुंडे पस्त हो गए. इस के बाद शिवदीप ने खुद जेसीबी मशीन चला कर अवैध खनन की सारी मशीनें उखाड़ फेंकी, साथ ही 500 लोगों को गिरफ्तार करवाया. पश्चिम बिहार के रोहतास जिले के एसपी के तौर पर 6 महीने में ही लांडे ने अपने कारनामों से लोगों को अपना दीवाना बना लिया था. खनन माफिया से टकराव के बाद शिवदीप लावारिस छोड़ी गई नवजात बच्चियों के पालनहार के रूप में भी सुर्खियों में रहे.

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दरअसल, अपनी तैनाती के कुछ दिन बाद ही रोहतास के सासाराम स्थित जिला मुख्यालय से 2 किलोमीटर दूर गोटपा गांव के पास रेलवे ट्रैक के निकट भैरव पासवान को एक बच्ची लावारिस हालत में शाल में लिपटी मिली थी. 45 साल के पासवान और उन की पत्नी कलावती के कोई बच्चा नहीं था, इसलिए वह इस नवजात को अपनाना चाहते थे. लेकिन बच्ची की बीमारी के चलते उन्हें डर था कि वह इसे खो देंगे. जब भैरव और उन की पत्नी को कुछ समझ नहीं आया कि क्या करें, कहां जाएं तो उन्होंने जिला पुलिस के मुखिया लांडे से संपर्क किया.

पासवान को मुसीबत में देख लांडे ने चंद मिनटों के अंदर मुफस्सिल पुलिस स्टेशन के इंचार्ज विवेक कुमार को पासवान के घर भेजा जो बीमार बच्ची को पुलिस की गाड़ी में ले कर तुरंत जिला अस्पताल पहुंचे. इस के बाद लांडे खुद अपनी डाक्टर पत्नी के साथ अस्पताल पहुंचे. बच्ची को स्पैशल न्यू बोर्न केयर यूनिट में भरती कराया गया. इस के बाद एसपी लांडे ने डिस्ट्रिक्ट चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के चेयरमैन को बुला कर बच्ची को दिए जाने वाले जरूरी इलाज पर बातचीत की. लांडे की इस नेकदिली के कारण बच्ची पूरी तरह सुरक्षित रही. बच्ची को लाने वाला पासवान इस बात पर हैरान था कि वह एक गरीब आदमी है, अगर लांडे साहब और उन की पत्नी ने उस की मदद न की होती तो कोई उम्मीद नहीं थी कि बच्ची जीवित रह पाती.

बच्ची के पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद शिवदीप लांडे के हस्तक्षेप से पासवान ने बच्ची को गोद लेने की प्रक्रिया पूरी करवाई. लावारिस नवजात बच्चियों के प्रति शिवदीप लांडे के भावनात्मक प्रेम को इसी बात से समझा जा सकता है कि साल 2012 में जब वह अररिया में एसपी थे, तब भी उन्होंने एक नवजात बच्ची की जान बचाई थी. जिसे उस की मां ने कड़कती ठंड में उन के सरकारी आवास के गेट के बाहर छोड़ दिया था. मासूम का रोना सुन कर लांडे घर से बाहर आए और उसे अपने सीने से लगा कर अंदर ले गए. बच्ची को गरमी का एहसास कराने और उस की सांसें सामान्य होने के बाद उन्होंने उसे सीडब्ल्यूसी की अध्यक्ष रीता घोष के पास पहुंचा दिया, जहां उस का जरूरी उपचार हो सका.

इस के अलावा जब वह पटना के एसपी सिटी थे, तब भी उन्होंने एक नवजात बच्ची को उस समय बचाया था जब एक प्राइवेट अस्पताल द्वारा ढाई लाख रुपए का बिल बनाने के कारण उस का पिता उसे अस्पताल में ही छोड़ गया था. एसपी सिटी रहते जब इस बात की जानकारी शिवदीप लांडे को हुई तो वह बच्ची की मां का पता लगाने के लिए इस हद तक गए कि पूर्वी बिहार के कटिहार जिले में उस के घर तक जा पहुंचे. वहां पहुंचने पर पता चला कि अस्पताल के पैसे न चुकाने के कारण बच्ची के पिता ने अपनी पत्नी से बता रखा था कि जन्म के दौरान ही उस की मौत हो गई और वहीं उस का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

लांडे ने बच्ची को ही उस के घर तक नहीं पहुंचाया बल्कि उस के इलाज का भी इंतजाम किया, जिस से वह जिंदा रह सकी. खनन माफिया से टकराव के कारण भले ही लांडे का तबादला कर दिया गया. लेकिन वह जहां भी रहे, अपराध और अपराधियों से कभी समझौता नहीं किया.

अनोखी है शिवदीप की प्रेम कहानी

अब जब सब कुछ फिल्म जैसा था, तो भला शिवदीप की शादी आम कैसे होती. शिवदीप द्वारा महिला सुरक्षा के लिए उठाए गए कदम तथा उन की छवि के कारण लड़कियां उन पर मरती थीं. उन के फोन का मैसेज बौक्स हमेशा भरा रहता था. लेकिन इसे शिवदीप ने स्नेह से बढ़ कर और कुछ नहीं माना. क्योंकि उन की प्रेम कहानी तो कहीं और ही लिखी जानी थी. शिवदीप जो उस वक्त बिहार में कर रहे थे, उस की हवा उन के गृहराज्य महाराष्ट्र में भी बह रही थी. उन के कारनामों तथा लुक के कारण वहां भी शिवदीप की खूब चर्चा थी. शिवदीप मुंबई में रह कर पढ़े थे. इस कारण यहां उन का अच्छाखासा फ्रैंड सर्कल था. बिहार में होने के बावजूद वह दोस्तों से मिलने मुंबई जाया करते थे.

ऐसे ही शिवदीप एक दोस्त के किसी समारोह में उपस्थिति दर्ज कराने मुंबई गए थे. इसी पार्टी में उन की मुलाकात एक लड़की से हुई. लड़की का नाम था ममता शिवतारे. शिवदीप एसपी थे, तो ममता भी कम नहीं थी. ममता शिवतारे महाराष्ट्र सरकार में मंत्री और पुणे के पुरंदर से एमएलए विजय शिवतारे की बेटी थीं. यहीं दोनों की मुलाकात हुई. इस एक मुलाकात के बाद मुलाकातों का सिलसिला बढ़ने लगा. जिस का नतीजा यह निकला कि दोनों प्यार में पड़ गए. यह प्यार आगे चल कर शादी में बदल गया. बस ममता और शिवदीप ने 2 फरवरी, 2014 को शादी कर ली और एकदूसरे को जन्मजन्मांतर के लिए अपना मान लिया.

दिल तो कई लड़कियों के टूटे मगर शिवदीप का घर बस गया. परिवार में पत्नी ममता और उस के बाद दोनों के प्यार की निशानी के रूप में जन्म लेने वाली बेटी अरहा अब उन के जीवन की प्रेरणा बन चुकी है. शिवदीप लांडे जहां भी रहे,  जिस तरह अपराधियों की कमर तोड़ी, मीडिया ने उस से उन की ‘दबंग’ पुलिस अधिकारी की छवि बना दी. लेकिन वास्तव में वह अपनी ड्यूटी पर जितना सख्त नजर आते थे, निजी जीवन में उतने ही विनम्र.

यह न समझा जाए कि शिवदीप केवल गुंडे बदमाशों को सबक सिखाने भर के ही हीरो रहे हैं. इस दबंग अफसर के पीछे एक कोमल दिल वाला नायक छिपा बैठा है. एक तरफ जहां शिवदीप अपराधियों के लिए काल का रूप साबित हुए, वहीं दूसरी तरफ उन्होंने जरूरतमंदों की दिल खोल कर मदद की. विवाह से पहले वे अपने वेतन का 60 प्रतिशत एनजीओ को दान कर देते थे. हालांकि शादी और एक बेटी के जन्म  के बाद दान में कमी जरूर आई है परंतु बंद नहीं हुआ है. वेतन का 25 से 30 प्रतिशत भाग वे आज भी दान में दे देते हैं. इस के अलावा कई सामाजिक कार्यों में भी वह सहयोग करते हैं. उन्होंने कई गरीब लड़कियों का सामूहिक विवाह भी करवाया.

छोटेमोटे चोरउचक्कों से ले कर बड़ेबड़े माफिया तक में शिवदीप का खौफ था. उन्होंने लैंड माफिया से ले कर मैडीसिन माफिया तक की कमर तोड़ी. हालांकि, इन सब की वजह से उन्हें बारबार ट्रांसफर की तकलीफ झेलनी पड़ी. लेकिन उन का जहां से भी ट्रांसफर हुआ, वहां की आम जनता ने उन के जाने का दुख मनाया.

अब तैनाती महाराष्ट्र में

वर्तमान में शिवदीप लांडे केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर महाराष्ट्र के पुलिस विभाग में मुंबई पुलिस क्राइम ब्रांच के एंटी नारकोटिक्स सेल में एडीशनल कमिश्नर औफ पुलिस के रूप में सेवारत हैं और मादक पदार्थ तस्करों की कमर तोड़ रहे हैं. जब आप लीक से हट कर कुछ करते हैं तो आप का नाम सुर्खियों में आना स्वभाविक है. वैसे तो शिवदीप लांडे ने अपनी पुलिस की नौकरी के सारे फैसले लीक से हट कर ही लिए. लेकिन कई मौकों पर उन के नाम की खूब धूम मची. ऐसा एक मौका तब भी आया, जब शिवदीप ने एक लड़की को 3 शराबियों के गिरोह से मुक्त कराया था.

इसी तरह मुरादाबाद के एक इंस्पेक्टर को भेष बदल कर उन्होंने रिश्वत लेते रंगेहाथ पकड़ा था. यह जनवरी, 2015 की घटना है. शिवदीप को जानकारी मिली कि मुरादाबाद के इंस्पेक्टर सर्वचंद 2 व्यापारी भाइयों से उन का पुराना केस खत्म करने के बदले में पैसे की मांग कर रहे हैं. इस बात को साबित करने के लिए शिवदीप तुरंत सिर पर दुपट्टा लपेट कर पटना के डाक बंगला चौराहे पर पहुंच गए. उन की जानकारी के अनुसार इंसपेक्टर पैसे लेने के लिए यहीं आने वाला था. इंसपेक्टर जैसे ही वह पैसे लेने वहां पहुंचा, वैसे ही भेष बदल कर वहां इंतजार कर रहे शिवदीप ने उसे गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद मीडिया में शिवदीप का नाम खूब उछला था.

अच्छा काम करने के बावजूद बारबार तबादला किए जाने से परेशान शिवदीप लांडे ने बाद में बिहार छोड़ने का मन बना लिया. उन्होंने केंद्रसरकार से अपने गृह राज्य महाराष्ट्र लौटने की इच्छा जताई. शिवदीप लांडे के ससुर और महाराष्ट्र सरकार में तत्कालीन जल संसाधन मंत्री विजय शिवतारे ने खुद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से जब उन की पैरवी की तो यह काम और भी आसान हो गया. हालांकि अब शिवदीप भले ही बिहार से जा चुके हैं. लेकिन उन का एक्शन मूड अभी भी जारी है. शिवदीप इन दिनों मुंबई एंटी नारकोटिक्स सेल क्राइम ब्रांच में डीआईजी के पद पर हैं. डांस बार में छापेमारी के साथसाथ कई बार नशीले पदार्थों की धरपकड़ के कारण उन का नाम यहां भी सुर्खियों में बना रहता है.

इसी साल जनवरी में शिवदीप फिर से चर्चा में तब आए, जब उन्होंने हेरोइन तस्करों को पकड़ने के लिए आटो ड्राइवर का भेष बनाया था. इस छापेमारी में मुंबई पुलिस ने 12 करोड़ की हेरोइन बरामद की थी. एक तरह से शिवदीप ने साबित कर दिया है कि चाहे जगह जो भी हो, उन का लक्ष्य एक ही रहेगा, और वो है अपने दबंग स्टाइल में अपराध और अपराधियों का खात्मा करना. इसे एक अधिकारी की लोकप्रियता ही कहेंगे कि जब मुंगेर से शिवदीप का तबादला हुआ तो 6 किलोमीटर तक फूलों की बारिश करते हुए लोगों ने उन्हें विदा किया था. भीषण ठंड में जब पटना से उन का तबादला हुआ तो लोगों ने कई दिनों तक भूख हड़ताल और प्रर्दशन किए.

अररिया जिले से तबादला हुआ तो लोगों ने 48 घंटों तक उन्हें जिले से बाहर ही नहीं जाने दिया. रोहतास में खनन माफियाओं के खिलाफ उन की मुहिम में हमेशा लोगों का साथ मिला. लांडे की पुलिस विभाग में जहां भी नियुक्ति रही, वह लोगों की आंख का तारा बन कर रहे. लोगों ने उन्हें अपनाया. मीडिया ने उन्हें ‘दबंग’, ‘सिंघम’, ‘रौबिनहुड’ और न जाने कितने उपनाम दिए, लेकिन उन के अपने उन्हें  ‘शिवदीप’ नाम से बुलाते हैं. दंबग फिल्म में सलमान खान ने चुलबुल पांडे नाम के जिस पुलिस अफसर का किरदार निभाया है, उन में से अधिकांश किस्से आईपीएस शिवदीप लांडे की रीयल जिंदगी से जुडे़ है. ऐसा कहा जाता है कि सलमान खान ने यह फिल्म आईपीएस अफसर लांडे को केंद्र में रख कर ही बनाई थी, बस इस में कुछ बदलाव कर दिए गए थे. Real Crime Stories

Hindi Stories: जिस्म का स्वाद

Hindi Stories: हलकीहलकी बरसात से मौसम ठंडा हो चला था. हवा तेज नहीं थी. शाम गहराती जा रही थी. दिल्ली से पंजाब जाने वाली बसें एकएक कर के रवाना हो रही थीं. दिल्ली बसअड्डे पर आज भीड़ नहीं थी. दिल्ली से संगरूर जाने वाली बस आधी ही भरी थी. पौने 7 बज चुके थे. सूरज डूब चुका था. बस की रवानगी का समय हो चला था. 10 मिनट और इंतजार करने के बाद बस कंडक्टर ने सीटी बजाई. ड्राइवर ने इंजन स्टार्ट किया. गियर लगते ही बस लहरा कर भीड़ काटते हुए बसअड्डे का गेट पार कर बाहर आई और रिंग रोड की चौड़ी सड़क पर तेजी से दौड़ने लगी.

बस की रफ्तार बढ़ने के साथसाथ हलकीहलकी बरसात भी तेज बरसात में बदल गई. बस के सामने के शीशों पर लगे वाइपर भी तेजी से चलने लगे. पीरागढ़ी चौक तक आतेआते साढ़े 7 बज चुके थे. वहां पर आधा मिनट के लिए बस रुकी. 4-5 सवारियां भी चढ़ीं, पर बस अभी भी पूरी तरह से नहीं भरी थी. बस आगे बढ़ी. नांगलोई, फिर बहादुरगढ़ और फिर रोहतक. बरसात बदस्तूर जारी थी. हवा भी तेज होती जा रही थी. रोहतक बसस्टैंड पर बस 5 मिनट के लिए रुकी. भारी बरसात के चलते बसस्टैंड सुनसान था.

रोहतक पार होतेहोते बरसात भयंकर तूफान में बदल गई. 20 मिनट बाद बस लाखनमाजरा नामक गांव के पास पहुंची. वहां बड़ेबड़े ओले गिरने लगे थे. साथ ही, आंधी भी चलने लगी थी. सड़क के दोनों किनारे खड़े कमजोर पेड़ हवा के जोर से तड़तड़ कर टूटे और सड़क पर गिरने लगे. बस का आगे बढ़ना मुमकिन नहीं था. सारा रास्ता जो बंद हो गया था. ड्राइवर ने बस रोक दी और इंजन भी बंद कर दिया. जल्दी ही बस के पीछे तमाम दूसरी गाडि़यों की कतार भी लग गई. अब भीषण बरसात तूफान में बदल गई. क्या करें? कहां जाएं? दिल्ली से संगरूर का महज 6 घंटे का सफर था. ज्यादातर मुसाफिर यही सोच कर चले थे कि रात के 12 बजे तक वे अपनेअपने घर पहुंच जाएंगे, इसलिए उन्होंने खाना भी नहीं खाया था. अब तो यहीं रात के 12 बज गए थे और उन के पेट भूख से बिलबिला रहे थे.

सब ने मोबाइल फोन से अपनेअपने परिवार वालों को कहा कि वे खराब मौसम के चलते रास्ते में फंसे हुए हैं. मगर, बस के मुसाफिर कब तक सब्र करते. खाने का इंतजाम नहीं था. पानी के लिए सब का गला सूख रहा था. लाखनमाजरा गांव था. खराब मौसम के चलते वहां रात को कोई दुकान नहीं खुली थी. कहीं कोई हैंडपंप, प्याऊ वगैरह भी नजर नहीं आ रहा था.

‘‘यहां एक गुरुद्वारा है. इस में कभी गुरु तेग बहादुर ठहरे थे. गुरुद्वारे में हमें जगह मिल जाएगी,’’ एक मुसाफिर ने कहा. बस की सवारियों का जत्था गुरुद्वारे के मेन फाटक पर पहुंचा. मगर फाटक खटकाने के बाद जब सेवादार बाहर आया तो उस ने टका सा जवाब देते हुए कहा, ‘‘रात के 11 बजे के बाद गुरुद्वारे का फाटक नहीं खुलता है. नियमों को मानने के लिए गुरुद्वारा कमेटी द्वारा सख्त हिदायत दी गई है.’’

सब मुसाफिर बस में आ कर बैठ गए. बस में सत्यानंद नामक संगरूर का एक कारोबारी भी मौजूद था. वह अपने 4-5 कारोबारी साथियों के साथ दिल्ली माल लेने के लिए आया था. हर समस्या का समाधान होता है. इस बात पर यकीन रखते हुए सत्यानंद बस से उतरा और सुनसान पड़े गांव के बंद बाजार में घूमने लगा. 2 शराबी शराब पीने का लुत्फ उठाते हुए एक खाली तख्त पर बैठे उलटीसीधी बक रहे थे.

‘‘क्यों भाई, यहां कोई ढाबा या होटल है?’’ सत्यानंद ने थोड़ी हिम्मत कर के पूछा.

‘‘क्या कोई इमर्जैंसी है?’’ नशे में धुत्त एक शराबी ने सवाल किया.

‘‘तूफान में हमारी बस फंस गई है. हम शाम को दिल्ली से चले थे. अब यहीं आधी रात हो गई है. कुछ खाने को मिल जाता तो…’’ सत्यानंद ने अपनी मजबूरी बताई.

‘‘यह ढाबा है. इसे एक औरत चलाती है. मैं उसे जगाता हूं,’’ वह शराबी बोला.

‘‘साहब, इस समय रोटी, अचार और कच्चे प्याज के सिवा कुछ नहीं मिलेगा,’’ थोड़ी देर में एक जवान औरत ने बिजली का बल्ब जलाते हुए कहा.

‘‘ठीक है, आप रोटी और अचार ही दे दें.’’

थोड़ी देर में बस के सभी मुसाफिरों ने रोटी, अचार और प्याज का लुत्फ उठाया. अपने पैसे देने के बाद सत्यानंद ने पूछा, ‘‘चाय मिलेगी क्या?’’

‘‘जरूर मिलेगी,’’ उस औरत ने कहा.

तब तक दूसरे मुसाफिर बस में चले गए थे.

चाय सुड़कते हुए सत्यानंद ने उस औरत की तरफ देखा. वह कड़क जवान देहाती औरत थी.

‘‘साहब, कुछ और चाहिए क्या?’’ उस औरत ने अजीब सी नजरों से देखते हुए पूछा.

‘‘क्या मतलब…’’

‘‘आप आराम करना चाहो तो अंदर बिस्तर लगा है,’’ दुकान के पिछवाड़े की ओर इशारा करते हुए उस औरत ने कहा.

सत्यानंद अधेड़ उम्र का था. उसे अपनी पूरी जिंदगी में ऐसा ‘न्योता’ नहीं मिला था.

एक घंटा ‘आराम’ करने के बाद उन्होंने उस औरत से पूछा, ‘‘क्या दूं?’’

‘‘जो आप की मरजी,’’ उस औरत ने कपड़े पहनते हुए कहा.

100 रुपए का एक नोट उसे थमा कर सत्यानंद बस में आ बैठा. इतनी देर बाद लौटने पर दूसरे मुसाफिर उसे गौर से देखने लगे. सुबह होने के बाद ही बस आगे बढ़ी. सत्यानंद ने संगरूर बसस्टैंड से घर के लिए रिकशा किया. भाड़ा चुकाने के लिए जब उस ने अपनी कमीज की जेब में हाथ डाला तो जेब में कुछ भी नहीं था. पैंट की जेब में से पर्स निकाला, पर वह भी खाली था. हाथ में बंधी घड़ी भी नदारद थी. सत्यानंद ने पत्नी से पैसे ले कर रिकशे का भाड़ा चुकाया. उस भोलीभाली दिखती देहाती औरत ने पता नहीं कब सब पर हाथ साफ कर दिया था. जेब में 500 रुपए थे. पर्स में 7,000 रुपए और 5,000 रुपए की घड़ी थी. कड़क रोटियों के साथसाथ उस कड़क औरत के जिस्म का स्वाद सत्यानंद जिंदगी में कभी भूल नहीं पाएगा. Hindi Stories

Hindi Stories: अनोखा सबक – टीकाचंद के किस बात से दारोगाजी हैरान रह गए

Hindi Stories: सिपाही टीकाचंद बड़ी बेचैनी से दारोगाजी का इंतजार कर रहा था. वह कभी अपनी कलाई पर बंधी हुई घड़ी की तरफ देखता, तो कभी थाने से बाहर आ कर दूर तक नजर दौड़ाता, लेकिन दारोगाजी का कहीं कोई अतापता न था. वे शाम के 6 बजे वापस आने की कह कर शहर में किसी सेठ की दावत में गए थे, लेकिन 7 बजने के बाद भी वापस नहीं आए थे. ‘शायद कहीं और बैठे अपना रंग जमा रहे होंगे,’ ऐसा सोच कर सिपाही टीकाचंद दारोगाजी की तरफ से निश्चिंत हो कर कुरसी पर आराम से बैठ गया.

आज टीकाचंद बहुत खुश था, क्योंकि उस के हाथ एक बहुत अच्छा ‘माल’ लगा था. उस दिन के मुकाबले आज उस की आमदनी यानी वसूली भी बहुत अच्छी हो गई थी. आज उस ने सारा दिन रेहड़ी वालों, ट्रक वालों और खटारा बस वालों से हफ्ता वसूला था, जिस से उस के पास अच्छीखासी रकम जमा हो गई थी. उन पैसों में से टीकाचंद आधे पैसे दारोगाजी को देता था और आधे खुद रखता था.

सिपाही टीकाचंद का रोज का यही काम था. ड्यूटी कम करना और वसूली करना… जनता की सेवा कम, जनता को परेशान ज्यादा करना. सिपाही टीकाचंद सोच रहा था कि इस आमदनी में से वह दारोगाजी को आधा हिस्सा नहीं देगा, क्योंकि आज उस ने दारोगाजी को खुश करने के लिए अलग से शबाब का इंतजाम कर लिया है.

जिस दिन वह दारोगाजी के लिए शबाब का इंतजाम करता था, उस दिन दारोगाजी खुश हो कर उस से अपना आधा हिस्सा नहीं लेते थे, बल्कि उस दिन का पूरा हिस्सा उसे ही दे देते थे. रात के तकरीबन 8 बजे तेज आवाज करती जीप थाने के बाहर आ कर रुकी. सिपाही टीकाचंद फौरन कुरसी छोड़ कर खड़ा हो गया और बाहर की तरफ भागा.

नशे में चूर दारोगाजी जीप से उतरे. उन के कदम लड़खड़ा रहे थे. आंखें नशे से बुझीबुझी सी थीं. उन की हालत से तो ऐसा लग रहा था, जैसे उन्होंने शराब पी रखी हो, क्योंकि चलते समय उन के पैर बुरी तरह लड़खड़ा रहे थे. उन के होंठों पर पुरानी फिल्म का एक गाना था, जिसे वे बड़े रोमांटिक अंदाज में गुनगुना रहे थे. दारोगाजी गुनगुनाते हुए अंदर आ कर कुरसी पर ऐसे धंसे, जैसे पता नहीं वे कितना लंबा सफर तय कर के आए हों.

सिपाही टीकाचंद ने चापलूसी करते हुए दारोगाजी के जूते उतारे. दारोगाजी ने सामने रखी मेज पर अपने दोनों पैर रख दिए और फिर पैरों को ऐसे अंदाज में हिलाने लगे, जैसे वे थाने में नहीं, बल्कि अपने घर के ड्राइंगरूम में बैठे हों. दारोगाजी ने अपनी पैंट की जेब में से एक महंगी सिगरेट का पैकेट निकाला और फिल्मी अंदाज में सिगरेट को अपने होंठों के बीच दबाया, तो सिपाही टीकाचंद ने अपने लाइटर से दारोगाजी की सिगरेट जला दी.

‘‘साहबजी, आज आप ने बड़ी देर लगा दी?’’ सिपाही टीकाचंद अपनी जेब में लाइटर रखते हुए बोला. दारोगाजी सिगरेट का लंबा कश खींच कर धुआं बाहर छोड़ते हुए बोले, ‘‘टीकाचंद, आज माहेश्वरी सेठ की दावत में मजा आ गया. दावत में शहर के बड़ेबड़े लोग आए थे. मेरा तो वहां से उठने का मन ही नहीं कर रहा था, लेकिन मजबूरी में आना पड़ा.

‘‘अच्छा, यह बता टीकाचंद, आज का काम कैसा रहा?’’ दारोगाजी ने बात का रुख बदलते हुए पूछा. ‘‘आज का काम तो बस ठीक ही रहा, लेकिन आज मैं ने आप को खुश करने का बहुत अच्छा इंतजाम किया है,’’ सिपाही टीकाचंद ने धीरे से मुसकराते हुए कहा, तो दारोगाजी के कान खड़े हो गए.

‘‘कैसा इंतजाम किया है आज?’’ दारोगाजी बोले. ‘‘साहबजी, आज मेरे हाथ बहुत अच्छा माल लगा है. माल का मतलब छोकरी से है साहबजी, छोकरी क्या है, बस ये समझ लीजिए एकदम पटाखा है, पटाखा. आप उसे देखोगे, तो बस देखते ही रह जाओगे. मुझे तो वह छोकरी बिगड़ी हुई अमीरजादी लगती है,’’ सिपाही टीकाचंद ने कहा.

उस की बात सुन कर दारोगाजी के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई. ‘‘टीकाचंद, तुम्हारे हाथ वह कहां से लग गई?’’ दारोगाजी अपनी मूंछों पर ताव देते हुए बोले.

दारोगाजी के पूछने पर सिपाही टीकाचंद ने बताया, ‘‘साहबजी, आज मैं दुर्गा चौक से गुजर रहा था. वहां मैं ने एक लड़की को अकेले खड़े देखा, तो मुझे उस पर कुछ शक हुआ. ‘‘जिस बस स्टैंड पर वह खड़ी थी, वहां कोई भला आदमी खड़ा होना भी पसंद नहीं करता है. वह पूरा इलाका चोरबदमाशों से भरा हुआ है.

‘‘उस को देख कर मैं फौरन समझ गया कि यह लड़की चालू किस्म की है. उस के आसपास 2-4 लफंगे किस्म के गुंडे भी मंडरा रहे थे. ‘‘मैं ने सोचा कि क्यों न आज आप को खुश करने के लिए उस को थाने ले चलूं. ऐसा सोच कर मैं फौरन उस के पास जा पहुंचा.

‘‘मुझे देख कर वहां मौजूद आवारा लड़के फौरन वहां से भाग लिए. मैं ने उस लड़की का गौर से मुआयना किया. ‘‘फिर मैं ने पुलिसिया अंदाज में कहा, ‘कौन हो तुम? और यहां अकेली खड़ी क्या कर रही हो?’

‘‘मेरी यह बात सुन कर वह मुझे घूरते हुए बोली, ‘यहां अकेले खड़ा होना क्या जुर्म है?’ ‘‘उस का यह जवाब सुन कर मैं समझ गया कि यह लड़की चालू किस्म की है और आसानी से कब्जे में आने वाली नहीं.

‘‘मैं ने नाम पूछा, तो वह कहने लगी, ‘मेरे नाम वारंट है क्या?’ ‘‘वह बड़ी निडर छोकरी है साहब. मैं जो भी बात कहता, उसे फौरन काट देती थी.

‘‘मैं ने उसे अपने जाल में फंसाना चाहा, लेकिन वह फंसने को तैयार ही नहीं थी. ‘‘आसानी से बात न बनते देख उस पर मैं ने अपना पुलिसिया रोब झाड़ना शुरू कर दिया. बड़ी मुश्किल से उस पर मेरे रोब का असर हुआ. मैं ने उस पर 2-4 उलटेसीधे आरोप लगा दिए और थाने चलने को कहा, लेकिन थाने चलने को वह तैयार ही नहीं हुई. ‘‘मैं ने कहा, ‘थाने तो तुम्हें जरूर चलना पड़ेगा. वहां तुम से पूछताछ की जाएगी. हो सकता है कि तुम अपने दोस्त के साथ घर से भाग कर यहां आई हो.’

‘‘मेरी यह बात सुन कर वह बौखला गई और मुझे धमकी देते हुए कहने लगी, ‘‘मुझे थाने ले जा कर तुम बहुत पछताओगे, मेरी पहुंच ऊपर तक है.’ ‘‘छोकरी की इस धमकी का मुझ पर कोई असर नहीं हुआ. ऐसी धमकी सुनने की हमें आदत सी पड़ गई है…

‘‘पता नहीं, आजकल जनता पुलिस को क्या समझती है? हर कोई पुलिस को अपनी ऊंची पहुंच की धमकी दे देता है, जबकि असल में उस की पहुंच एक चपरासी तक भी नहीं होती. ‘‘मैं धमकियों की परवाह किए बिना उसे थाने ले आया और यह कह कर लौकअप में बंद कर दिया कि थोड़ी देर में दारोगाजी आएंगे. पूछताछ के बाद तुम्हें छोड़ दिया जाएगा.

‘‘जाइए, उस से पूछताछ कीजिए, बेचारी बहुत देर से आप का इंतजार कर रही है,’’ सिपाही टीकाचंद ने अपनी एक आंख दबाते हुए कहा. दारोगाजी के होंठों पर मुसकान तैर गई. उन की मुसकराहट में खोट भरा था. उन्होंने टीकाचंद को इशारा किया, तो वह तुरंत अलमारी से विदेशी शराब की बोतल निकाल लाया और पैग बना कर दारोगाजी को दे दिया.

दारोगाजी ने कई पैग अपने हलक से नीचे उतार दिए. ज्यादा शराब पीने से उन का चेहरा खूंख्वार हो गया था. उन की आंखें अंगारे की तरह लाल हो गईं. वह लुंगीबनियान पहन लड़खड़ाते कदमों से लौकअप में चले गए. सिपाही टीकाचंद ने फुरती से दरवाजा बंद कर दिया और वह बैठ कर बोतल में बची हुई शराब खुद पीने लगा.

दारोगाजी को कमरे में घुसे अभी थोड़ी ही देर हुई थी कि उन के चीखनेचिल्लाने की आवाजें आने लगीं. सिपाही टीकाचंद ने हड़बड़ा कर दरवाजा खोला, तो दारोगाजी उस के ऊपर गिर पड़े. उन का हुलिया बिगड़ा हुआ था.

थोड़ी देर पहले तक सहीसलामत दारोगाजी से अब अपने पैरों पर खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था. उन का सारा मुंह सूजा हुआ था. इस से पहले कि सिपाही टीकाचंद कुछ समझ पाता, उस के सामने वही लड़की आ कर खड़ी हो गई और बोली, ‘‘देख ली अपने दारोगाजी की हालत?’’ ‘‘शर्म आनी चाहिए तुम लोगों को. सरकार तुम्हें यह वरदी जनता की हिफाजत करने के लिए देती है, लेकिन तुम लोग इस वरदी का नाजायज फायदा उठाते हो,’’ लड़की चिल्लाते हुए बोली.

लड़की एक पल के लिए रुकी और सिपाही टीकाचंद को घूरते हुए बोली, ‘‘तुम्हारी बदतमीजी का मजा मैं तुम्हें वहीं चखा सकती थी, लेकिन उस समय तुम ने वरदी पहन रखी थी और मैं तुम पर हाथ उठा कर वरदी का अपमान नहीं करना चाहती थी, क्योंकि यह वरदी हमारे देश की शान है और हमें इस का अपमान करने का कोई हक नहीं. पता नहीं, क्यों सरकार तुम जैसों को यह वरदी पहना देती है?’’ लड़की की इस बात से सिपाही टीकाचंद कांप उठा.

‘‘जातेजाते मैं तुम्हें अपनी पहुंच के बारे में बता दूं, मैं यहां के विधायक की बेटी हूं,’’ कह कर लड़की तुरंत थाने से बाहर निकल गई. सिपाही टीकाचंद आंखें फाड़े खड़ा लड़की को जाते हुए देखता रहा.

दारोगाजी जमीन पर बैठे दर्द से कराह रहे थे. उन्होंने लड़की को परखने में भूल की थी, क्योंकि वह जूडोकराटे में माहिर थी. उस ने दारोगाजी की जो धुनाई की थी, वह सबक दारोगाजी के लिए अनोखा था.

Love Story: अंधेरे में डूबी जिंदगी

   लेखक – अशोक कुमार प्रजापति, Love Story:  मिताली ने मेरी मंगेतर होते हुए भी मेरे लिए वह कुछ किया था, जो मांबाप भी नहीं कर सकते थे. लेकिन सूर्यबाला के चक्कर में मैं ने उसे इतना बड़ा धोखा दिया कि मेरी जिंदगी ही मेरे लिए धोखा बन गई. बात उन दिनों की है जब मैं भी लाखों युवकों की तरह बेरोजगार था और एक अदद नौकरी की तलाश में दिल्ली की सड़क से ले कर गलियों तक की खाक छान रहा था. नवंबर के शुरुआती दिन थे. खाड़ी देश से मिताली के भेजे रुपए लगभग खत्म हो चुके थे. मतलब जल्दी ही मेरे फाकाकशी के दिन शुरू होने वाले थे. थकहार कर कनाट प्लेस के पालिका बाजार की कछुए की पीठ जैसी उथली पश्चिमी ढलान पर बैठ कर सितारों भरे आसमान को देखना मेरी कई फालतू आदतों में शुमार था. यह काम मैं बिना नागा करता था.

भीड़भाड़ से थोड़ा अलग इन चमकते आकाशीय पिंडों से बातें करना मुझे अनोखा सुकून देता था. मुझे दिन की अपेक्षा रातें कुछ ज्यादा लुभाती थीं. कभीकभी मैं सोचता कि रातें तो तारे गिनने के लिए होती हैं, जबकि लोग इस बढि़या काम से विमुख हो कर अपनेअपने दड़बों में बंद हो कर विभिन्न कामों में वक्त जाया करते हैं.

खैर, मैं ही कौन सा तुर्रम खां था कि तारे गिन डाले हों. मैं न तो कोई ‘एस्ट्रोलोजर’ था और न ही मुझे ऐसे बेढब आकाशीय पिंडों की खोज करनी थी, जो निकट भविष्य में धरती को नेस्तनाबूद करने के लिए इस की ओर भागे आ रहे हों. यह काम तो खगोलवेत्ताओं का है, जो आकाश पर आंख जमाए रातदिन ब्रह्मांड में टकटकी लगाए रहते हैं. बहरहाल, उस सुहानी शाम को भूखे पेट मैं सिर्फ यही कामना कर रहा था कि चांद अपने ही शक्ल की बेहिसाब रोटियां धरती पर फेंके या फिर पास की चमचमाती सड़क पर खनखनाते हुए चांदी के सिक्के बरस पड़े या तारे पिघल कर हीरेमोती में तब्दील हो जाएं और महुए की तरह टपकने लगें. मैं खाहमख्वाह नामुमकिन ख्यालों में खोया था. वैसे खुली आंखों से ख्वाब देखने के लिए वह जगह बुरी नहीं थी.

शाम के धुंधलके में पेड़ों की छाया और झाडि़यों के पीछे रूपसियों की रूमानी हरकतें शुरू हो गई थीं. लोहे के पाइपों पर लगे रोशनी के गोलाकार लैंप जल उठे थे. लोग अपनेअपने भावशून्य चेहरे संभाले कठपुतलियों की तरह इधरउधर आजा रहे थे. पार्क धीरेधीरे खाली होता जा रहा था, सिर्फ मुझ जैसे चंद निखट्टू मिट्टी के लोंदे की तरह जहांतहां पसरे पड़े थे. मेरी नजरें नीली जींस और झकाझक सफेद टौप पहने एक युवती पर जमी थीं. वह भी रहरह कर तिरछी निगाहों से मुझे देख लेती थी. लग रहा था जैसे शाम की ठंडाती हवा को अपनी बांहों में समेटे वह किसी की प्रतीक्षा में खड़ी हो.

अचानक आइस्क्रीम पार्लर से शंकुनुमा आइस्क्रीम खरीद कर खाते हुए वह लापरवाही से पालिका बाजार की ओर चली आई. मैं चारों ओर से खुद को समेटे जेब में पड़े सिर्फ 5 सौ रुपए के नोट को खर्चने के अर्थशास्त्र से जूझने लगा. अगले हफ्ते तक मिताली ने अगर खाते में 8-9 हजार रुपए न डाले तो मकानमालिक मेरा सामान सड़क पर फेंक देगा. इस के बाद बेटिकट यात्रा कर के गांव पहुंचने के अलावा मेरे पास कोई उपाय नहीं रहेगा. मेरा संघर्ष अंतहीन होता जा रहा था.

मिताली मेरी मंगेतर थी. वह बगदाद के एक बड़े प्राइवेट अस्पताल में नर्स थी. वह एक साल के अनुबंध पर वहां गई थी. लौट कर आने पर हमारी शादी होने वाली थी. उसी की सलाह पर मैं नौकरी की तलाश में दिल्ली आया था. मैं सायकोलौजी से पोस्टग्रेजुएट था, वह भी यूनिवर्सिटी टौपर गोल्ड मेडलिस्ट. लेकिन यह सब किसी काम का साबित नहीं हो रहा था. रोटी के लिए मेडल बेचने की नौबत आती दिख रही थी. मेडल का कोई बाजार भाव था या वह भी फालतू चीज थी, बाजार से ही पता चल सकता था.

‘‘दिल्ली में बहुत गरमी पड़ती है?’’ पीछे से खनकती आवाज आई तो मैं ने पलट कर देखा. आइस्क्रीम ले कर जाने वाली वही लड़की मेरे पीछे खड़ी थी.

‘‘हां, यह तो है, लेकिन दिल्ली में गरमी से राहत देने वाली चीजें भी खूब मिलती हैं.’’ मैं ने उस की बात के जवाब में कहा.

‘‘आप तो बड़े दिलचस्प आदमी लगते हैं.’’ अजीब सी नजरों से घूरते हुए वह मेरे बगल में बैठ गई.

‘‘और आप उतनी ही दिल्लगी पसंद भद्र युवती.’’

‘‘यह जगह है ही बड़ी रोमांटिक, आप का क्या ख्याल है?’’

‘‘हां, है तो, शायद आप की खूबसूरती से ही यहां की रूमानियत जिंदा है.’’ मैं कुछ गलत तो नहीं कह रहा?’’

मेरी इस बात पर वह लड़की शरमा कर झेंप गई. ऐसी ही बातों में हम ने लगभग घंटा समय गुजार दिया. इस बीच हमारे बीच तमाम तरह की बातें हुईं, परिचय भी. मुझे वह बड़े जटिल चरित्र की लड़की लग रही थी.

‘‘रात बहुत हो गई है, अब हमें ‘रोटी’ रेस्टोरेंट चलना चाहिए, कुछ खानापीना हो जाए न.’’ वह एकाएक इस तरह बोली जैसे घंटे भर की रोमांटिक बातों से मेरा जी बहलाने के बदले अपना मेहनताना मांग रही हो.

उस की इस चौंकाने वाली सलाह पर मेरे ऊपर बज्रपात सा हुआ. ‘रोटी’ जाने का मतलब था 7-8 सौ रुपए खर्च होना. जबकि मेरी जेब में सिर्फ 5 सौ रुपए का एक नोट था. 30-40 रुपए फुटकर भी रहे होंगे. मुझे आनंद विहार जाने वाली अंतिम मैट्रो भी पकड़नी थी.

‘‘मैं रोटी नहीं खाता. हमारे यहां लोग सुबहशाम भात खाते हैं. वैसे भी मैं ने पिज्जा खा लिया है, इसलिए अब कुछ खाने का मन नहीं है.’’ मैं ने उस बला से छुटकारा पाने की कोशिश में कहा.

‘‘तुम झूठ बोल रहे हो. दिल्ली में बेरोजगारों को बहुत भूख लगती है, वह भी कई तरह की. तुम ने अभीअभी बताया है कि तुम बेरोजगार हो.’’

‘‘केवल बेरोजगार ही नहीं, बिना किसी ठौरठिकाने का भी. मुझे रातें यहीं कहीं फुटपाथ पर गुजारनी है, सो कहीं जाने की जल्दी नहीं है. इसलिए कृपया आप जाइए, आप को देर हो रही होगी. देर रात तक लड़कियों का घर से बाहर रहना वैसे भी सुरक्षित नहीं है.’’ मैं ने पिंड छुड़ाने की गरज से बहाना बनाते हुए कहा.

‘‘लड़कियों जैसे नखरे मत दिखाओ. मुझे भूख लगी है, सो तुम्हें चलना ही पड़ेगा. आखिर हम घंटे भर पुराने दोस्त हैं, मेरी खातिर इतना भी नहीं कर सकते? अब इस पर भी नहीं माने तो मैं शोर मचा दूंगी कि तुम मेरे साथ छेड़खानी कर रहे हो. तुम जानते ही हो कि रेप कांड को ले कर दिल्ली सहित पूरे देश में लोग किस तरह उबल रहे हैं.’’ उस ने कुटिलता से मुसकराते हुए मेरी चेतना को झकझोर दिया.

‘‘बात यह है मिस कि मेरी जेब में सिर्फ 5 सौ रुपए ही हैं और इसी से न जाने कब तक मुझे काम चलाना पड़े. ऐसे में मैं किसी होटल रेस्टोरेंट की गद्दीदार कुर्सी पर बैठ कर गुलछर्रे उड़ाने की बिलकुल नहीं सोच सकता. और ‘रोटीबोटी’ खाने के बाद होटल वालों के जूते खाना मुझे बिलकुल पसंद नहीं है.’’

‘‘बस, इतनी सी बात है. 5 सौ का नोट ले कर मजनुओं के इस टीले पर दिल्ली के रंगीन नजारों का लुत्फ उठाने के लिए आ कर बैठ गए हो. कोई बात नहीं. मेरे पास पैसे हैं, आज तुम्हें मेरा साथ देना ही होगा. लाखों की आबादी वाली इस बेदिल दिल्ली में मैं निहायत अकेली हूं. तनहाई काटने को दौड़ती है. तुम मेरी मजबूरी समझते क्यों नहीं?’’ उदासी से उस ने कहा, ‘‘और हां, मैं रेडलाइट वाली पंछी नहीं हूं, जैसे कि तुम्हारे दिल में खयाल आ रहे होंगे.’’

कुछ मिनट बाद मैं ऊहापोह की स्थिति में उस की तलहथी की मुलायमियत का अनुभव करते हुए धीरेधीरे ‘रोटी’ की ओर चला जा रहा था. सड़क के दोनों ओर अंगे्रजों के जमाने की बनी इमारतों के बुर्ज में कबूतर आशियाना बनाए दुबके बैठे थे. इन पुरानी इमारतों में अजीब तरह की जर्जर भव्यता व्याप्त थी, जो अब इन की विशिष्ट पहचान बन चुकी थी.

‘‘रात गहरा चुकी है. मैं अकेली हूं, तुम चाहो तो मेरे फ्लैट पर रात बिता सकते हो, इतनी रात गए वैसे भी उतनी दूर जाना ठीक नहीं है. दिल्ली में इन दिनों कुछ भी सुरक्षित नहीं है.’’ रोटी रेस्टोरेंट से निकलते ही उस ने बड़ी साफगोई से कहा.

थोड़ी नानुकुर के बाद मैं उस के साथ औटो में बैठ गया. इस के बाद हम दोनों की खूब जम गई. नतीजतन मेरी कई रातें सूर्यबाला के फ्लैट पर गुजरीं. जल्दी उस का एक जोड़ी नाइट सूट मेरे र्क्वाटर पर भी रखा रहने लगा. इसी सब के चलते एक व्यस्त दोपहर को मिताली ने फोन द्वारा सूचना दी कि उस की एक सहेली का कांट्रैक्ट पूरा हो गया है. वह इंडिया जा रही है. उस के हाथों वह मेरे लिए एक उपहार और कुछ सूखे मेवे भेज रही है, दिल्ली रेलवे स्टेशन से ‘कलेक्ट’ कर लूं. मैं ने ऐसा ही किया. मिताली का भेजा गिफ्ट मुझे मिल गया. कमरे पर आ कर मैं ने पैकेट खोला तो उस में एक कीमती मोबाइल फोन था, जिस में ढेर सारे नए फीचर मौजूद थे. नेट और फेसबुक के साथसाथ फोटो भेजने वाली सुविधा भी थी. मिताली ने मेरे लिए एक पत्र भी भेजा था. जिस में उस ने लिखा था कि उस ने गुड़गांव में 70 लाख का एक फ्लैट बुक करा लिया है. उस की किस्तें भी कटने लगी हैं. लेकिन उसे दूसरे तरीके से इस की कीमत चुकानी पड़ेगी.

दरअसल, इस के लिए उस ने 2 साल के लिए अपना कांट्रैक्ट बढ़वा लिया था, जिस से कर्ज अधिक से अधिक भरा जा सके. वह शादी के बाद नए फ्लैट में रहने का अरमान पाले हुए थी. मुझे ‘नेट’ की तैयारी करने की सख्त हिदायत के साथ उस ने आश्वस्त किया था कि जरूरत पड़े तो मैं कोचिंग ज्वाइन कर लूं, पैसे वह भेज देगी. सूर्यबाला को मैं ने ये बातें जानबूझ कर नहीं बताईं. मैं अपने रोमांस और रोमांच भरे आनंदमय जीवन का इतनी जल्दी अंत नहीं करना चाहता था. सूर्यबाला के भी दिन अच्छे नहीं चल रहे थे. वह अपनी प्यारी अम्मा की दयादृष्टि पर दिल्ली में रह रही थी. सूर्यबाला के 27वें जन्मदिन पर मैं ने अपनी मंगेतर द्वारा भेजा गया फोन उसे भेंट कर दिया. मेरे लिए वह किसी काम का था भी नहीं. उसे रिचार्ज कराने के लिए मेरे पास पैसे ही नहीं होते थे.

सूर्यबाला के 27वें जन्मदिन को यादगार बनाने के लिए मैं ने उसे साथ ले कर नवंबर की उस सुबह काठगोदाम जाने वाली गाड़ी पकड़ ली और नैनीताल पहुंच गया. हमारा तीन दिन का प्रोग्राम था. वहां एक ठंडी शाम में हम नैनी झील के किनारे नैना देवी मंदिर की एक संगमरमरी बेंच पर बैठे पहाड़ से सूर्य का लुढ़कना देख रहे थे. उस के पहाड़ के पीछे छिपने के बाद भी घाटी आलोकित रही, हवा के झोंके झील को स्पर्श करते हुए मल्लीताल की ओर चले जा रहे थे.

‘‘एक बात बताओ सूर्यबाला, तुम ने ऐसी कौन सी गलती कर दी कि तुम्हारे पिता ने एकाएक तुम्हें पैसे देने बंद कर दिए?’’

‘‘पापा मुझे सिविल सेवा में भेजना चाहते थे. मैं पढ़ाई में साधारण थी, इस के बावजूद बोर्ड में जुगाड़ से मेरे अच्छे नंबर आ गए थे. लेकिन नंबरों का प्रतिशत कम होने की वजह से मेरा एडमीशन किसी नामी गिरामी कालेज में नहीं हो सका. परिणामस्वरूप मुझे डीयू के नार्थ ब्लाक के एक साधारण से कालेज में एडमीशन ले कर पढ़ाई करनी पड़ी.

‘‘ग्रैजुएशन के बाद मैं महत्त्वाकांक्षी बाप के दबाव में सिविल सर्विस की तैयारी करने लगी. लाख कोशिश के बाद भी मैं प्रारंभिक परीक्षा तक नहीं पास कर सकी. मेरी असफलता से नाराज हो कर पापा ने एक अरबपति सांसद के बेटे से मेरी शादी तय कर दी. शादी का यह सौदा 3 करोड़ में तय हुआ था.’’

‘‘यह तो बड़ी अच्छी बात थी. बाप अरबपति था तो लड़का भी कम से कम करोड़पति तो रहा ही होगा. स्विस बैंक में भी कुछ जमा होंगे. इतना होने के बावजूद समस्या क्या थी? तुम तो वहां ऐश करतीं.’’

‘‘ऐश क्या करती, लड़के पर 3-3 हत्याओं और 2 दुष्कर्म के केस दर्ज थे. उस का एक पैर जेल में तो दूसरा कोर्ट में रहता था. क्या तुम ऐसे लड़के के साथ शादी की सलाह दे सकते हो?’’

‘‘कदापि नहीं, लेकिन यहां मामला कुछ अलग है. ऐसे लोगों के लिए यह अपराध नहीं है. उन के लिए यह राजनीतिक जीवन की योग्यता है. ऐसे लोगों के खिलाफ कभी गवाहसबूत नहीं मिलते, सो सजा भी नहीं होती. अगर सजा हो भी गई तो तुम्हारे ऊपर क्या फर्क पड़ता, उस की दौलत की मालकिन तो तुम ही होती न, इस दुनिया में मर्दों की कमी तो है नहीं?’’

‘‘बात यहीं खत्म नहीं हुई थी सुशांत. मेरे पिता ने मेरे बौयफ्रैंड के हाथपैर तुड़वा दिए थे. वह बेचारा आज तक लापता है. पता नहीं जीवित भी है या नहीं? मैं इस घटना के बाद डिप्रेस हो गई थी और शादी से साफ मना कर दिया था. बस उस के बाद उन्होंने मुझे खर्च देना बंद कर दिया था. मम्मी चोरीछिपे कुछ पैसे भेज देती हैं.’’

तुम्हारी कहानी तो बड़ी ही दुखद है सूर्यबाला. खैर, तुम्हारा एक अंतिम चांस बचा है, तुम तैयारी शुरू कर लो. जनरल और औप्शनल पेपर की कोचिंग कर लो. सायकोलौजी मैं तैयार करा दूंगा.’’

‘‘क्या मास्टर डिग्री में तुम्हारा सब्जेक्ट सायकालौजी रहा है?’’ उस ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘हां, मैं यूनिवर्सिटी टौपर हूं और गोल्डमेडलिस्ट भी. मेरे पास अच्छे नोट्स हैं.’’

‘‘अरे, पहले कभी नहीं बताया?’’ वह प्यार से मेरे सीने पर मुक्का जमा कर बोली.

‘‘लेकिन कोचिंग के लिए 78 हजार रुपए कहां से आएंगे?’’

‘‘तुम्हें इस की चिंता करने की जरूरत नहीं है. उस का इंतजाम मैं कर लूंगा.’’

‘‘तो ठीक है, मैं एक कोशिश और करती हूं. तुम्हारे साथ होने से शायद सफलता मिल ही जाएं.’’

मैं ने मिताली से नेट की तैयारी के लिए कोचिंग करने की इच्छा जताई तो अगले सप्ताह ही उस ने मेरे खाते में 90 हजार रुपए डलवा दिए. मैं ने पैसे सूर्यबाला को दे दिए. इस के बाद उस ने कोचिंग ज्वाइन कर ली और मैं शिक्षा व्यवस्था को कोसता घर पर ही तैयारी करने लगा. इस बीच मैं ने एक स्कूल में टीचर की नौकरी कर ली थी. 15 हजार हर महीने वेतन का एग्रीमेंट हुआ था. लेकिन बेईमान स्कूल प्रबंधन सिर्फ 12 हजार रुपए ही देता था. जो कुछ मिल रहा था, कम से कम इस से मेरी बेरोजगारी कुछ हद तक दूर हो गई थी, साथ ही मेरी मटरगश्ती पर बे्रक भी लग गई थी. तारों की गिनती भूल गया था और चांद भी मेरे आकाश से कब का गायब हो गया था.

परीक्षा समाप्त होने पर सूर्यबाला मेरे साथ रहने लगी. मैं स्कूल से लौटता तो वह युवाओं के आजकल के खिलौने से खेलती मिलती. वह उस में इस तरह डूबी रहती कि मेरे कदमों की आहट तक उसे सुनाई न देती. खाते समय या बिस्तर पर वह बताती रहती कि उस ने आज कहांकहां, कितनों को एड किया, उस की पोस्ट को कितने लोगों ने लाइक किया. उस के लाइक करने वालों की संख्या 25 हजार के ऊपर हो चुकी थी और उस के डेढ़ हजार फालोवर थे. दुनिया का शायद ही कोई देश बचा हो, जहां उस के स्त्रीपुरुष मित्र न रहे हों. उन दिनों वह उसी में खोई रहती थी. मैं रोजाना उस में आने वाले बदलावों को समझने की नाकाम कोशिश कर रहा था. हमारे बीच का शारीरिक आकर्षण और यौन आवेश लगभग ठंडा पड़ चुका था. उपहार में उसे मोबाइल देना मुझ पर भारी पड़ता जा रहा था.

गरमी की छुट्टियां चल रही थीं. मेरा अधिकतर समय घर पर ही बीत रहा था. उन्हीं दिनों इराक में शिया अलगावादियों ने अपने ही देश के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया था. कई शहर और तेल कुओं पर उन का कब्जा हो गया था. वे तेजी से बगदाद की ओर बढ़ रहे थे. सारे संपर्क लगभग टूट चुके थे. कई दिनों की लगातार कोशिश के बाद मिताली से कुछ मिनट के लिए संपर्क हुआ. मैं ने उसे सब कुछ छोड़ कर जितनी जल्दी हो सके, किसी तरह घर लौट आने की सलाह दी. लेकिन उधर से सिर्फ उस की गहरी सिसकियां सुनाई देती रहीं.

कुछ मिनट बाद संपर्क फिर से टूट गया. अगले दिन अखबार में खबर आई कि जिस अस्पताल में वह नौकरी करती थी, उस के बाहर भारी गोलाबारी हो रही थी. नर्सें बेसमेंट में छिपी थी. 2 दिनों बाद पता चला कि नर्सों को विद्रोही अगवा कर के कहीं दूसरी जगह ले जा रहे थे. चिंता के मारे मेरी रातों की नींद उड़ गई थी. मैं अपना यह दुख सूर्यबाला से शेयर भी नहीं कर सकता था. मुझे उदास देख कर वह भी उदास हो जाती थी. लेकिन उस ने मेरी उदासी का कारण नहीं पूछा.

चंद दिनों बाद एक अखबार ने रहस्योद्घाटन किया कि कुछ नर्सें इसलिए वापस नहीं आना चाहतीं, क्योंकि उन्होंने बड़े शहरों में फ्लैट के लिए भारी कर्ज ले रखा है और गल्फ कंट्री की मोटी तनख्वाह वाली नौकरी के बगैर उन का कर्ज अदा करना संभव नहीं है. गोलीबारी में 2 नर्सें मारी भी गई थीं. घायल तो कई नर्सें हुई थीं. अपने घर वालों के दबाव में ज्यादातर नर्सें लौटना चाहती थीं. अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों की नीति के अनुसार, इराकी सरकार की मदद के लिए फौज भेजने के निर्णय के बाद तो स्थिति और भी विस्फोटक हो गई, हालात बिगड़ने लगे थे.

इसी बीच भारत सरकार की मदद से तमाम लोग वापस भी आ गए थे. उन से भी कोई पक्की खबर नहीं मिल सकी थी. वहां के समाचार के लिए हम पूरी तरह से मीडिया के मोहताज थे. मिताली और मेरे परिवार वाले भी परेशान थे. लोग सरकार से लगातार नर्सों की सुरक्षित वापसी के लिए गुहार लगा रहे थे. इस से अधिक वे लोग कर भी क्या सकते थे? मेरे दिन उदासी में कट रहे थे. उसी बीच एक दिन सूर्यबाला ने खुशखबरी सुनाई कि वह प्रारंभिक परीक्षा में पास हो गई थी. उस दिन हमारे सपनों को पंख लग गए थे. हालांकि वे पंख इतने मजबूत नहीं थे कि मैं उन की बदौलत आकाश की असीम ऊंचाइयों तक उड़ान भर सकूं. हम ने यादगार बनाने के लिए वह शाम एक पांचसितारा होटल में बिताई. एग्जाम की कौपी जांचने के मानदेय रूप में मिले 8 हजार रुपए वहां हवा हो गए.

4 दिनों बाद खबर छपी कि अगवा भारतीय नर्सों का उपयोग विद्रोही ढाल के रूप में कर रहे हैं. उन्होंने धमकी दी थी कि अगर उन पर अमेरिकी या पश्चिमी देशों द्वारा सैन्य कारवाई की गई तो वे उन्हें मार डालेंगे. यह खबर पढ़ कर मेरा दिमाग सुन्न हो गया. परिवार वालों के होश फाख्ता हो गए. नर्सों को न जाने कितनी मानसिक और शारीरिक यातनाएं दी जा रही होंगी. मैं उस दिन को कोसने लगा, जब मंगनी के 2 दिनों बाद ही मिताली बगदाद जाने की जिद करने लगी थी. मेरे लाख मना करने के बावजूद कसमोंवादों की घुट्टी पिला कर वह अपनी महत्वाकांक्षा की भारी भरकम गठरी लिए दूर देश चली गई थी. जैसेतैसे दिन तनावपूर्ण वातावरण में कट रहे थे. नर्सों की वापसी की उम्मीद धूमिल पड़ती जा रही थी. मैं भीषण मानसिक द्वंद्व में जी रहा था, साथ ही बड़ी निर्लज्जता से सोच रहा था कि मिताली का जो भी होना हो, जरा जल्दी हो जाए.

उन दिनों मेरा सारा ध्यान सूर्यबाला पर केंद्रित होता जा रहा था. हालांकि एक अनजान डर दिल में बसा था. सूर्यबाला की बोल्डनेस और एकदम खुले विचार पर मैं मुग्ध था. उस की अत्याधुनिक पश्चिमी सोच का कोई भी कायल हो सकता था. संकीर्णता उस के दिमाग में रत्ती भर भी नहीं दिखाई देती थी. उस की मुसकराहट ऐसी थी कि दुश्मन भी फिदा हो जाए. नेट क्वाईलीफाई करते ही मेरा आत्मविश्वास सातवें आसमान पर जा पहुंचा. फटाफट मैं ने 6-7 जगहों पर प्रवक्ता के लिए आवेदन कर दिया था. सूर्य बाला मुख्य परीक्षा की तैयारी में लगी थी. उस के हिस्से की घरेलू जिम्मेदारी मैं ने अपने जिम्मे ले ली थी. खाना बनाने से ले कर उस के कपड़े तक मैं धोता था. मैं चाहता था कि अंतिम चांस में वह निश्चित रूप से सफलता हासिल कर ले.

वक्त अपनी गति से बीत रहा था. जाड़ा, गरमी और बरसात अपनेअपने तामझाम के साथ आतेजाते रहे. बगदाद से किसी भी तरह की खबर मिलनी बंद हो चुकी थी. मीडिया वाले ऊब चुके थे. हम पर निराशा के बादल गहराते जा रहे थे. सूर्यबाला का अधिकतर समय बाहर घूमनेफिरने या नेट पर चैट में गुजरता था. धीरेधीरे हमारे बिस्तर अलग हो गए. हम मशीनी जिंदगी से ऊब से गए थे. एक शाम लंबे अंतराल के बाद हम दोनों आमनेसामने बैठे थे. उस ने अपने हाथों को कैंची की तरह बांध रखा था. उस के खुले चमकीले रेशमी बाल लहरा रहे थे. उस के चेहरे पर एक बेबसी भरी लाचारी छाई थी.

मैं ने बात शुरू करने की गरज से कहा, ‘‘आज रात की हवा में ठंडक है, अक्तूबर बीता जा रहा है.’’ मैं सोचता हूं कि अब हमें शादी कर लेनी चाहिए या यह कहें कि अपने रिश्ते को नाम दे दिया जाए.

‘‘आज यह बचकाना विचार तुम्हारे दिमाग में कहां से आ गया.’’ उस ने कहा.

‘‘देखो सूर्यबाला, हमारे बीच अब किसी तरह की दूरी नहीं बची है. फिर शादी तो हमें एक न एक दिन करनी ही है इसलिए जितनी जल्दी हो सके, हमें विवाह कर लेना चाहिए. क्योंकि इस में सब से बड़ी मुश्किल यह है कि हम अलगअलग जाति से हैं, इसलिए तमाम रुकावटें आएंगी.’’

‘‘यह सच है कि हमारे बीच शारीरिक संबंध हैं, लेकिन यह एक तरह की भूख है. किसी भी तरह की भूख को शांत करने के लिए जातिधर्म की बातें एकदम बेमानी हैं. हम ने एक दूसरे को भोगा है और एक जैसा आनंद प्राप्त किया है, सो हिसाबकिताब बराबर रहा. हमारे पास अब खोनेपाने को कुछ नहीं बचा. इस तरह के संबंधों पर हायतौबा मचाना बेकार है. शाम होने को है, घर में सब्जी का एक टुकड़ा नहीं है. इन अर्थहीन बातों में समय गंवाने के बजाय बाजार से सामान लाना ज्यादा महत्वपूर्ण है.’’ सूर्यबाला ने बेरुखी से कहा.

‘‘आई एम सीरियस सूर्यबाला, जबकि तुम मेरी बात का मजाक उड़ा रही हो? हम एकदूसरे से प्रेम करते हैं. जिस मोड़ पर हम पहुंच चुके हैं, वहां से पीछे लौटना संभव नहीं है.’’ मैं ने मन की बात कह दी.

‘‘लेकिन मैं ऐसी बेतुकी बातों को सीरियसली नहीं लेती. हुंह… प्रेम, हमबिस्तर होने का मतलब कब से प्रेम हो गया? हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं है. शारीरिक, आर्थिक या बौद्धिक आकर्षण और स्वार्थ सिद्धि के दांवपेंच को प्रेम कहना उस की तौहीन है. हमारातुम्हारा प्रेम सिर्फ ढोंग है, एक्साइटिंग फन, एक साथ मल्टीपल एंड प्लांड रोमांसभोग का खूब मजेदार और उत्तेजनापूर्ण गेम. इस में थ्रिल भी है और सस्पेंस भी. हमारा रोमांटिक सफर यहीं तक था. इस मोड़ से आगे 2 रास्ते हैं, जिन पर हम अलगअलग चलते हुए अपना सफर जारी रख सकते हैं.’’ उस ने बेबाकी से कहा.

‘‘तुम कल की प्रशासक हो. तुम्हें तो कम से कम ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए. ईमानदारी और सचरित्रता एक अच्छे प्रशासक की पहली शर्त है. देश की सेवा का व्रत लेने वाले का चरित्र अनुकरणीय होना चाहिए.’’

‘‘कोई सेवावेवा के लिए सिविल सर्विस में नहीं जाता, मि. सुशांत. उन के दिमाग में दंभपूर्ण और दूर का शातिराना लक्ष्य होता है, पावर और पैसा. सेवा भावना सिर्फ नैतिक पाखंड है, कंप्लीट हिपोक्रेसी. वैसे अपवाद तो सब जगह होते हैं.’’

‘‘तुम सही हो सकती हो, लेकिन वह अलग मसला है. हमारे बीच लंबे समय से शारीरिक संबंध रहे हैं. इसलिए विवाह हमारी नैतिक जिम्मेदारी बन गई है.’’ मैं ने उसे समझाना चाहा.

‘‘तुम झूठ बोल रहे हो. तुम भी मेरी तरह कपटपूर्ण जीवन जी रहे हो. आज के अधिकतर युवा गलाकाट प्रतियोगिता में तनावग्रस्त हैं. वे इस से मुक्ति के लिए शराब, सिगरेट और मादक पदार्थों का प्रयोग करते हैं, जो अंततोगत्वा उन्हें बरबाद कर देता है.

‘‘मैं ने शारीरिक संबंध को तनाव दूर करने के लिए खुराक के रूप में प्रयोग किया है और इस काम में बराबर का साथ देने के लिए मैं तुम्हें धन्यवाद देती हूं. इस से अधिक कुछ नहीं है. और तुम यौन संबंध और विवाह को एकदूसरे का पूरक मान बैठे हो. लेकिन इन दोनों में दूरदूर तक कोई संबंध नहीं है.

‘‘जिस्मानी संबंध स्थापित करना एक बात है और उसी पार्टनर से विवाह करना बिलकुल अलग बात होती है. एक का संबंध शारीरिक भूख से है, जबकि दूसरा अत्यंत संवेदनशील मुद्दा है. भूख की आंच में घृणा, आस्था, विश्वासअंधविश्वास, मानसम्मान सब जल कर खाक हो जाते हैं. विवाह के लिए कई सामाजिक शर्तें होती हैं, जिसे हमतुम पूरा नहीं करते. हम अलगअलग जाति से ताल्लुक रखते हैं. मैं विजातीय विवाह कर के जीवन में किसी तरह का टंटाबखेड़ा खड़ा नहीं करना चाहती. इसलिए तुम भी इस तरफ सोचना बंद कर दो.’’

इतना कह कर वह सब्जी लाने के लिए थैला ढूंढ़ने किचन में चली गई.

‘‘तो मैं इतने दिनों तक नाहक ही पैसे और वक्त बरबाद करता रहा?’’ उस के वापस आने पर मैं ने पूछा.

‘‘बरबाद करना मत कहो, इंजौय करना कहना उपयुक्त होगा.’’ थैला उठाते हुए उस ने कहा. मानो यह सब उस के प्लान के अनुसार हो रहा था. सूर्यबाला की 2 टूक बातों से मैं भौंचक रह गया था. मेरे दिमाग में जैसे भूसा भर गया था. वह अकेली ही बाजार चली गई. मेरे मन में सूर्यबाला की महीनों से बनी छवि एकबारगी ध्वस्त हो गई. मैं अचानक आकाश से जमीन पर आ गिरा और मिताली के प्रति विश्वासघात के दर्द से कराह उठा. सूर्यबाला के जाल में फंस कर मैं मिताली को लगभग भूल चुका था. अचानक बेतरह उस की यादें सताने लगीं. सूर्यबाला बेहद खूबसूरत तो नहीं थी, लेकिन उस के बदन की स्त्रैण खुशबू अद्वितीय थी, जिस के जादू से मैं बच नहीं सका था. मेरी वह रात जैसेतैसे करवट बदलते गुजरी.

अगले दिन स्कूल से लौटा तो सूर्यबाला घर में नहीं थी. वह अपना सामान पैक कर के जा चुकी थी. उस का मोबाइल भी बंद था. दिल तो टूटने के लिए ही बना है और वह टूट चुका था. मैं कई दिनों तक ऊहापोह की स्थिति में जीता रहा.  इसी तरह कई महीने बीत गए. जब नहीं रहा गया तो एक दोपहर को अंतिम उम्मीद ले कर मैं उस के बदरपुर स्थित फ्लैट पर पहुंच गया. संयोग से वह फ्लैट पर ही थी. मुझे सामने पा कर वह चौंकी और देर तक मुझे चुपचाप घूरती रही.

‘‘कैसी हो? अंदर आने को नहीं कहोगी?’’ मैं ने ढिठाई से कहा.

‘‘ठीक है, आ जाओ. लेकिन मुझे जरूरी काम से कहीं जाना है, इसलिए जो कुछ भी कहना है, जरा जल्दी कहो.’’ उस ने चाय का पानी इंडक्शन चूल्हे पर चढ़ाते हुए कहा.

मैं ने कमरे में इधरउधर नजर डाली. खूंटी पर 3-4 मर्दाना कपड़े टंगे थे, जहां कभी मेरे टंगे होते थे. मेज पर सुनहरे फ्रेम में जड़ी एक नवयुवक की तस्वीर रखी थी.

‘‘तुम्हारे सिविल सर्विस के रिजल्ट का क्या हुआ?’’ मैं ने उत्सुकतावश पूछा.

‘‘होना क्या था, नहीं हुआ.’’ शीशे की तिपाई पर चाय रखते हुए बिना किसी लागलपेट के उस ने कहा.

‘‘अब आगे क्या करोगी?’’

‘‘अभी कुछ सोचा नहीं. वर्षों की थकी हूं, कुछ दिन आराम करूंगी. उस के बाद डिसाइड करूंगी कि क्या करना है. और तुम?’’

‘‘अभी कहीं से काललेटर नहीं आया है. प्रतीक्षा कर रहा हूं. और अब यह नया शिकार कौन है?’’ मैं ने फोटो की ओर इशारा कर के पूछा.

‘‘यह मेरा दूर का रिश्तेदार है. अब हम ‘लिवइन रिलेशन’ में हैं और जल्दी ही शादी करने वाले हैं. एमएनसी में सौफ्टवेयर इंजीनियर है, 7 लाख का पैकेज है. यह तुम्हारे मोबाइल का ही कमाल है, उसी ने हमें मिलाया है, तुम्हें कैसा लगा?

‘‘देखने में तो ठीकठाक है, बिस्तर पर कैसा व्यवहार करता है, यह तो तुम जानो.’’ मैं ने इर्ष्यावश उसे चिढ़ाने की नीयत से कहा.

अंतिम कोशिश का विकल्प समाप्त हो चुका था. अब वहां एक पल के लिए भी रुकना मुश्किल हो रहा था. चाय के लिए थैंक्स बोल कर मैं सीढि़यां उतरने लगा. मैं ने अपने पीछे खटाक से दरवाजा बंद होने की कर्कश आवाज सुनी. वह गुस्से में थी. मैं तेजतेज कदमों से 3-4 पतली गलियों को पार कर के सड़क पर आ गया. कनेर की छांव में पल भर रुक कर गहरीगहरी सांसें लीं, सिर उठा कर ढलते सूरज को देखा और उस के अस्त होने की दिशा में चल पड़ा.

वक्त रुका नहीं था. रूस ने अंतरिक्ष में 5 सितारा होटल बना लिया, पश्चिमी वैज्ञानिकों ने कमजोर दिल को मजबूत करने वाली कोशिकाएं विकसित कर लीं. उधर अमेरिका ने अपने हथियारों के जखीरे में चंद महाघातक हथियार और शामिल कर लिए. भारत में कुछ करोड़ और बच्चे पैदा हो गए. यही नहीं भारत ने मंगल की ओर कदम बढ़ा दिए. समाज में मल्टीपल लिवइनरिलेशन का आगाज हो चुका था.

मैं एक मौकापरस्त युवती की चालाकी से आहत अपनी बेवकूफी पर लज्जित था. अपने मिथ्या प्रेम की अप्रत्याशित परिणति पर उतना ही हैरान भी. स्कूल में होली की लंबी छुट्टियां चल रही थीं. लगभग साल भर के अंतराल के बाद एक शाम मैं ने अपने गांव जाने वाली ट्रेन पकड़ ली. घर पर किसी ने उत्साह से मेरा स्वागत नहीं किया. मां के चेहरे पर मेरे लिए अतिरिक्त सहानुभूति थी और पिता 2 दिनों बाद पहला वाक्य बोले, ‘‘कब लौटना है?’’

दिल्ली के मेरे कृत्यों की जानकारी सब को हो चुकी थी. होली के 3 दिनों बाद निर्लज्जता की सफेद खाल ओढ़ कर मैं ने एक बार मंगेतर के गांव जाने का निश्चय ही नहीं किया बल्कि अगले दिन 3 घंटे की बस यात्रा कर के वहां पहुंच भी गया. मुझे अपने दरवाजे पर देख कर मेरी भावी सास रोनेपीटने लगी. मैं समझ रहा था कि शायद मिताली को कुछ हो गया है, सो मेरी सूरत रोनी हो गई.

‘‘युद्ध के खत्म होते ही वह लौट आई थी, पर अब वह पहले वाली मिताली नहीं रही. तुम चाहो तो एक बार मिल सकते हो, लेकिन मुझे लगता है कि कोई फायदा नहीं होने वाला. वह तुम्हारे बारे में सब कुछ जान चुकी है.’’ सिगरेट की खाली डिबिया पर भद्दे अक्षरों में लिखा पता थमाते हुए मिताली के बूढ़े पिता बोले और लाठी उठा कर खेतों की ओर चले गए. 2-4 कदम जा कर वह पलट कर बोले, ‘‘और हां, अब तुम्हें मेरे यहां आने की जरूरत नहीं है. समाज में मेरी भी कुछ मानमर्यादा है.’’

दरवाजे के पीछे से मिताली की छोटी बहन रुआंसा चेहरा लिए सब देखसुन रही थी. मैं तकरीबन 20 मिनट से खड़ा था, पर किसी ने बैठने तक को नहीं कहा. अपनी निरर्थक उपस्थिति को समेट कर मैं ने एक नजर उस छोटी लड़की पर डाली और चुपचाप स्टेशन जाने वाली राह पर चल पड़ा. दिल्ली पहुंचने के तीसरे दिन डाकिया 2 नियुक्ति पत्र दे गया. एक जेएनयू से था और दूसरा पटना स्थित एक बी ग्रेड कालेज का. मुझे थोड़ी खुशी हुई, पर जल्दी ही इन में से एक का चुनाव करना था. मेरे पास 2 ही सप्ताह का समय था. मैं ने जेएनयू का औफर स्वीकार कर लिया. देखतेदेखते लंबा समय गुजर गया.

साल भर बाद अप्रैल की पहली तारीख को मैं ने स्कूल के प्रिंसिपल को अपना इस्तीफा सौंप दिया और अपना हिसाबकिताब कर के दिल्ली से सदा के लिए विदा लेने का फैसला कर लिया. लेकिन जाने से पहले भीषण मानसिक कशमकश और ऊहापोह की स्थित में मैं ने एक बार अपनी मंगेतर से मिलने का फैसला किया. उस का पता मेरे पास था ही. गरमी तेज हो चुकी थी, इसलिए सुबह जल्दी ही उस के फ्लैट पर पहुंच गया और घंटी बजा कर दरवाजा खुलने की प्रतीक्षा करने लगा. दरवाजा खुला तो मैं ने कहा, ‘‘कैसी हो, अंदर आने को नहीं कहोगी?’’

‘‘मैं तुम्हें अंदर आने को क्यों कहूं? कोई वजह बची है क्या?’’ नाराज हो कर उस ने कहा.

‘‘क्यों, हमारी मंगनी हो चुकी है. यह वजह कम है क्या?’’ मैं ने अपने होंठों पर मुसकान लाने की कोशिश करते हुए बेशरमी से कहा.

‘‘अरे वाह, निर्लज्जता की किस मिट्टी के बने हो तुम? अगर तुम मेरे मंगेतर हो तो मंगेतर का मोबाइल तो दिखाओ.’’ हाथ कंगन को आरसी क्या वाली कहावत के अंदाज में उस ने हाथ नचाते हुए कहा.

‘‘वह दूसरी कहानी है, वही तो बताने आया हूं.’’

‘‘अच्छा. आओ अंदर आ जाओ. मैं भी तो सुनूं तुम्हारी वह दर्द भरी कहानी. लेकिन मुझ से किसी स्वागतसत्कार की आशा मत करना. और अगर यहां कुछ लेने आए हो तो निराश ही होना पड़ेगा. समझ गए न? मैं पहले ही काफी बेवकूफी कर चुकी हूं. अब कोई बेवकूफी नहीं करूंगी.’’

‘‘मैं समझता हूं कि जो कुछ कहनेसुनने आया था, वह सब तुम्हें पहले से ही पता है. अब कुछ भी कहना बेकार है. मुझे अफसोस है कि मैं तुम्हारे विश्वास पर खरा नहीं उतर सका. इस के लिए पूरी तरह से मैं ही जिम्मेदार हूं.

‘‘तुम्हारा वह बेशकीमती मोबाइल फोन तुम तक पहुंच गया है. तुम ने उस के अंदर स्वर्णाक्षरों में अपना नामपता लिखवा रखा था, यह सब सूर्यबाला ने मुझे बता दिया था. मैं उस के बारे में कुछ भी कहने की बेशर्मी नहीं कर सकता. मुझे खेद है कि मैं तुम्हारे विश्वास का कत्ल कर के तुम्हारे खूनपसीने की कमाई एक धूर्त और मक्कार लड़की पर लुटाता रहा, उसे बदचलन नहीं कहूंगा. हां, इतना जरूर कहूंगा कि मंगनी के बाद डेढ़ साल की प्रतीक्षा किसी लड़के के लिए बेसब्र कर देने वाली होती है. इसे मेरा इजहार मत समझना.’’

हम टेबल के आरपार बैठे थे और हमारे बीच लंबी असहजता पसरी थी. सड़क किनारे नंगे शीशम पर एक अबाबील चिडि़या बैठी अपने पर खुजला रही थी. हम एकदूसरे के दिल में अभी भी जिंदा थे. मैं ने कहा, ‘‘मंगनी के बाद तुम ने अपने दिल के दरवाजे बंद कर लिए, पर मैं वैसा नहीं कर सका. खैर, अब वक्त काफी पीछे रह गया है. मेरी वजह से तुम्हें जो पीड़ा पहुंची है, उस के लिए माफी ही मांग सकता हूं. अब इस के सिवा मैं और कुछ कर भी तो नहीं सकता.’’

वह उठ कर अंदर चली गई. किचन से बर्तन के खनकने की उदास आवाज आती रही. कुछ मिनट बाद वह एक प्याली चाय बना लाई और चुपचाप मेरे सामने रख दी. निश्चित रूप से वह एक दयालु युवती थी. वह कुछ देर पहले कही अपनी ही कठोर बातों पर अडिग नहीं रह सकी. उस के चेहरे से अब तक मेरे प्रति उपजी घृणा तिरोहित हो चुकी थी और उस की जगह गंभीर औपचारिकता और शांति ने ले ली थी.

‘‘इराक युद्ध में तबाही के सिवा उस देश को कुछ भी हासिल नहीं हुआ, लेकिन उस की बड़ी कीमत मुझे चुकानी पड़ी.’’ उस की आवाज लगभग फुसफुसाहट जैसी थी.

मैं चाय की चुस्की के लिए प्याले को होंठों से कुछ दूरी पर थामे रहा. रोकने की लाख कोशिश के बावजूद मेरी आंखों से दो बूंद आंसू प्याले में टपक पड़े. मैं ने प्याला टेबल पर वहीं रख दिया, जहां से उठाया था और नि:शब्द बैठा रहा. मेरे होंठ कांप रहे थे. मिताली निहायत उदासी में डूबी मुझे पढ़ने की कोशिश में लगी थी. मैं ने उठते हुए कहा, ‘‘चाय के लिए धन्यवाद, पर मुझे अफसोस है कि अपनी ही वजहों से मैं तुम्हारे अनुपम और अंतिम उपहार को भी संभाल न सका. अच्छा, अब मैं चलूं प्रिय, धूप तेज हो रही है?’’

‘‘क्या कहा… प्रिय?’’ वह जरा तल्खी से बोली.

‘‘हां, और शायद अंतिम बार. मुझे जेएनयू और पटना के कालेज में प्रवक्ता की नौकरी का औफर मिला है. न मालूम क्यों, मैं दिल्ली छोड़ रहा हूं. पटना का औफर स्वीकार कर लिया है. मेरे मातापिता बूढ़े हो चले हैं. मैं उन के पास रहना चाहता हूं. कुछ सामान पैक करना है, भारीभरकम वस्तुएं बेच दूंगा. और ये रुपए रख लो. तुम ने बड़े कठिन समय में मेरी सहायता की थी, 75 हजार हैं. मंगनी की अंगूठी और बाकी रुपए बाद में भेज दूंगा.’’

रुपयों से भरा लिफाफा मेज पर रख कर मैं ने अलविदा के लिए हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘हो सके तो मेरी नादानियों को माफ कर देना.’’

मिताली बिना कुछ बोले आंचल में मुंह दबा कर तेजी से बेडरूम की ओर भागी, जहां से उस के सुबकने की आवाज आ रही थी. मैं आहिस्ता से फ्लैट से बाहर आया, दरवाजा भेड़ा और मुख्य सड़क पर निकल आ गया. मैं ने एक बार पलट कर उस तिमंजिले भवन की ओर देखा, बालकनी में मिताली खड़ी थी. क्रोटन की सुनहरी पत्तियों और बेला के सफेद फूलों के बीच से उस का उदास चेहरा अंतिम बार देख रहा था.

औटो पर सवार हो कर मैं ने ड्राइवर से कहा, ‘‘आनंद विहार.’’ Love Story

 

UP News: मोहब्बत की बुनियाद पर रची साजिश

UP News: सना ने प्यार की बुनियाद रखी तो थी प्रेमी सौरभ सक्सेना के साथ, लेकिन महत्त्वाकांक्षाओं ने उस के कदम खुरशीद आलम की तरफ मोड़ दिए. फिर सना ने सौरभ को रास्ते से हटाने के लिए खुरशीद के साथ मिल कर ऐसी साजिश रची कि…

मुरादाबाद शहर की रामगंगा विहार फेज-2 कालोनी का रहने वाला सौरभ सक्सेना रोज की तरह 6 फरवरी, 2015 को भी सुबह साढ़े 6 बजे मौर्निंग वौक के लिए घर से निकला. वह घूमटहल कर घंटे-2 घंटे में घर लौट आता था, लेकिन उस दिन वह 2-3 घंटे तक नहीं लौटा तो पिता के.सी. सक्सेना  ने यह जानने के लिए उसे फोन लगाया कि वह कहां है और अब तक घर क्यों नहीं लौटा? लेकिन उस का फोन बंद था. घर वालों ने सौरभ के दोस्तों को फोन किया तो पता चला कि वह उन के पास भी नहीं गया. उस का कहीं पता न चलने पर घर वाले परेशान हो गए.

सौरभ ने कुछ दिनों पहले ही आशियाना मोहल्ले में स्थित बौडी फ्यूल फिटनेस एकेडमी जिम जाना शुरू किया था. यह बात उस के बड़े भाई गौरव को पता थी. सौरभ जिम गया था या नहीं, यह जानने के लिए वह वहां गया तो उस के गेट पर ताला लटका मिला. वहां से वह निराश हो कर घर लौट आया. दोपहर के समय के.सी. सक्सेना के फोन पर सौरभ का फोन आया तो वह खुश हुए कि बेटे का फोन आ गया. उन्होंने जैसे ही हैलो कहा, दूसरी ओर से कहा गया, ‘‘पापा, मैं इस समय नवीननगर में हूं.’’

इस के बाद दूसरी तरफ से फोन काट दिया गया. के.सी. सक्सेना उस आवाज को सुन कर हैरान थे, क्योंकि वह आवाज सौरभ की नहीं थी. वह सोच में पड़ गए कि आखिर कौन है, जो सौरभ बन कर बात कर रहा है. उसी दिन सौरभ के फोन से हिमांशु के फोन पर भी फोन आया था कि उस के पास पापा का फोन तो नहीं आया था? हिमांशु सौरभ का दोस्त था. वह आवाज सुन कर हिमांशु भी चौंका था, क्योंकि वह आवाज सौरभ की नहीं थी. हिमांशु ने यह बात सौरभ के पिता के.सी. सक्सेना को बता दी थी. के.सी. सक्सेना अब और ज्यादा परेशान हो गए कि उन का जवान बेटा न जाने कहां है और उस के फोन से न जाने कौन बात कर रहा है? वह अपने परिचितों को ले कर थाना सिविल लाइंस पहुंचे और बेटे की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

सौरभ की चिंता में उस के घर वाले रात भर परेशान रहे. अगले दिन के.सी. सक्सेना एसएसपी लव कुमार से मिले. मामले की गंभीरता को समझते हुए एसएसपी ने उसी समय एसपी (सिटी) प्रदीप गुप्ता को अपने औफिस में बुलवाया और इस मामले में आवश्यक काररवाई करने को कहा. के.सी. सक्सेना ने एसपी (सिटी) प्रदीप गुप्ता को विस्तार से पूरी बात बता कर कहा कि जिस शख्स ने सौरभ के फोन से बात की थी, वह उस शख्स को नहीं जानते. उन्होंने पुलिस को यह भी बताया कि उन की किसी से कोई रंजिश वगैरह भी नहीं है. जिस समय के.सी. सक्सेना के फोन पर सौरभ के फोन से बात की गई थी, उस समय उस की लोकेशन कहां थी, यह जानने के लिए एसपी (सिटी) प्रदीप गुप्ता ने सौरभ के फोन की काल डिटेल्स निकलवाने के साथ उस के फोन नंबर को सर्विलांस पर लगवा दिया.

एसपी (सिटी) के निर्देश पर सिविल लाइंस के सीओ मोहम्मद इमरान ने सौरभ की काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो पता चला कि 6 फरवरी को उस के फोन से दोपहर एक बजे के करीब मुरादाबाद शहर के ही पीली कोठी इलाके से बात की गई थी. इसी के साथ एक फोन नंबर ऐसा भी मिल गया, जिस से सौरभ के मोबाइल पर 6 फरवरी को सुबह 6 बज कर 25 मिनट पर बात की गई थी. उसी नंबर से 26 जनवरी, 2015 से 7 फरवरी, 2015 तक सौरभ के मोबाइल पर 6 बार बात हुई थी. यह फोन नंबर यूनिनार कंपनी का था.

यूनिनार कंपनी का यह फोन नंबर पुलिस के शक के दायरे में आ गया. मोहम्मद इमरान ने यूनिनार कंपनी के इस फोन नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई. इस में पुलिस को चौंकाने वाली यह जानकारी मिली कि इस नंबर से केवल सौरभ के मोबाइल पर ही बातें की गई थीं. इस से पुलिस को यह समझने में देर नहीं लगी कि यह नंबर केवल सौरभ से बात करने के लिए ही लिया गया था. अब पुलिस यह जानने में लग गई कि यूनिनार कंपनी का यह नंबर किस के नाम से लिया गया था. पुलिस को यूनिनार कंपनी से जो जानकारी मिली, उस से पता चला कि वह नंबर रेलवे हरथला कालोनी के दुकानदार मुन्ना पहाड़ी से खरीदा गया था. नंबर लेते समय 2-2 आईडी प्रूफ लगे थे.

ताज्जुब की बात यह थी कि दोनों आईडी पर अलगअलग लोगों के फोटो लगे थे. एक आईडी संभल के किसी आदमी की थी तो दूसरी मुरादाबाद के आदमी की थी. दोनों ही पतों पर पुलिस टीमें भेजी गईं, लेकिन दोनों पते फरजी निकले. इस से पुलिस की जांच जहां की तहां रुक गई. कहीं से कोई सुराग मिले, इस के लिए पुलिस टीम फिर से यूनिनार के उस फोन नंबर की काल डिटेल्स खंगालने लगी. पता चला कि इस नंबर की 3 दिन पहले की लोकेशन आशियाना इलाके की थी. सीओ मोहम्मद इमरान ने के.सी. सक्सेना से पूछा कि आशियाना इलाके में सौरभ का कोई परिचित तो नहीं रहता? इस पर उन्होंने बताया कि आशियाना इलाके के बौडी फ्यूल फिटनेस एकेडमी नाम के जिम में सौरभ जाता था.

सौरभ के गायब होने का राज कहीं इस जिम में तो नहीं छिपा, यह जानने के लिए मोहम्मद इमरान बौडी फ्यूल फिटनेस एकेडमी नाम के उस जिम में पहुंचे. वहां जिम संचालक खुरशीद आलम और जिम की रिसैप्शनिस्ट सना उर्फ सदफ मिली. उन्होंने दोनों से सौरभ के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि सौरभ उन के जिम में आता तो था, लेकिन 6 फरवरी से वह जिम नहीं आ रहा है. उन से बात करने के बाद सीओ साहब अपने औफिस लौट आए. कई दिन बीत जाने के बाद भी पुलिस को सौरभ के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली थी. उस का मोबाइल फोन बंद था. सौरभ अगवानपुर के एक इंटर कालेज से इंटरमीडिएट की पढ़ाई कर रहा था. मोहल्ले में और कालेज में उस के जो भी नकदीकी दोस्त थे, पुलिस ने उन सब से पूछताछ की. उन से भी सौरभ के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

11 फरवरी, 2015 को मुरादाबाद के ही थाना मझोला के अंतर्गत आने वाले भोला सिंह की मिलक के पास नाले में एक ड्रम देखा गया. ड्रम का आधा भाग पानी में डूबा था और आधा पानी के ऊपर दिखाई दे रहा था. शक होने पर किसी ने इस की सूचना थाना मझोला पुलिस को दे दी. मझोला पुलिस ने मौके पर पहुंच कर उस ड्रम को नाले से निकलवाया तो उस में से प्लास्टिक के बोरे में बंद एक युवक की लाश निकली. वह युवक ट्रैक सूट और स्पोर्ट्स शूज पहने था. मझोला पुलिस ने लाश का हुलिया बताते हुए इस बात की सूचना वायरलैस द्वारा जिला पुलिस कंट्रोलरूम को दे दी.

सिविल लाइंस के थानाप्रभारी ने वायरलैस की यह सूचना सुनी तो वह चौंके, क्योंकि लाश का जो हुलिया बताया गया था, वही हुलिया उन के क्षेत्र के गायब युवक सौरभ सक्सेना का था. थानाप्रभारी ने फोन कर के तुरंत सौरभ के पिता को थाने बुलाया और उन्हें ले कर भोला सिंह की मिलक के पास उस जगह पहुंच गए, जहां ड्रम में लाश मिली थी. जैसे ही के.सी. सक्सेना ने लाश देखी, वह दहाड़ें मार कर रोने लगे. क्योंकि वह लाश उन के 19 वर्षीय बेटे सौरभ की ही थी. उस का सिर फूटा हुआ था. उस के मुंह में एक लंगोट ठूंसा हुआ था और दूसरे लंगोट से उस की नाकमुंह को कवर करते हुए गले को बांधा गया था. देख कर ही लग रहा था किसी भारी चीज से उस के सिर पर कई वार किए गए थे. सौरभ की हत्या की खबर मिलते ही उस के घर में कोहराम मच गया. परिवार के लोग और संबंधी रोतेबिलखते घटनास्थल पर पहुंच गए.

सूचना मिलने के बाद एसएसपी लव कुमार और अन्य पुलिस अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए थे. जरूरी काररवाई के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. 11 फरवरी की शाम को ही डाक्टरों के एक पैनल ने सौरभ सक्सेना की लाश का पोस्टमार्टम किया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार सौरभ की हत्या करीब 5 दिनों पहले की गई थी यानी जिस दिन वह गायब हुआ था, उस के कुछ घंटे बाद ही उसे मार दिया गया था. हत्यारों ने लोहे की रौड जैसी किसी भारी चीज से उस के सिर पर 18 वार किए थे. वार इतनी ताकत से किए गए थे कि उस के सिर की हड्डियां तक टूट गई थीं. इस के बाद सिर को बुरी तरह कुचला गया था. डाक्टरों ने मौत की वजह हेड इंजरी बताया था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ने के बाद पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारों ने सौरभ के मुंह में लंगोट ठूंस कर दूसरे लंगोट से जिस तरह उस की नाक और मुंह को बांधा था, हत्या करने वालों की संख्या 2 से अधिक रही होगी. ऐसा उन्होंने इसलिए किया होगा, ताकि उस की चीख न निकल सके. यह सब किस ने किया था, यह पता लगाना पुलिस के लिए आसान नहीं था. लाश के पास ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला था, जिस से हत्यारों तक जल्दी पहुंचा जा सके. लंगोट और ड्रम के सहारे पुलिस ने जांच आगे बढ़ाने की कोशिश शुरू की. सब से पहले पुलिस ने के.सी. सक्सेना से पूछा कि सौरभ लंगोट बांधता था क्या?

‘‘नहीं, वह घर पर कभी लंगोट नहीं बांधता था. हो सकता है कि जिम में एक्सरसाइज करते समय लंगोट बांधता रहा हो.’’ के.सी. सक्सेना ने बताया तो सीओ मोहम्मद इमरान के नेतृत्व में एक पुलिस टीम एक बार फिर आशियाना कालोनी स्थित जिम बौडी फ्यूल फिटनेस एकेडमी पहुंची. उस जिम के बाईं ओर रेड सफायर नाम का बैंक्वेट हाल था. उस के बाहर सीसीटीवी कैमरे लगे थे. जिम के दाईं ओर एक अस्पताल था, उस के बाहर भी सीसीटीवी कैमरे लगे थे. 6 फरवरी को सौरभ जिम में आया था या नहीं, यह बात सीसीटीवी फुटेज से पता लग सकती थी. पुलिस ने बैंक्वेट हाल और अस्पताल के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी तो उस में 6 फरवरी की सुबह सौरभ एक लड़की के साथ जिम की तरफ आता दिखाई दिया.

सौरभ के भाई गौरव ने उस लड़की को तुरंत पहचान कर बताया कि यह लड़की उस के घर में काम करने वाली नौकरानी की बेटी सना उर्फ सदफ है. यह बौडी फ्यूल फिटनेस जिम में नौकरी करती है. फुटेज देखने के बाद पुलिस को इस बात पर हैरानी हुई कि जिम संचालक खुरशीद आलम और सना ने उस से यह झूठ क्यों बोला कि 6 फरवरी को सौरभ जिम नहीं आया था. जबकि फुटेज में वह सना के साथ जिम में जाता दिखाई दिया था. पुलिस टीम खुरशीद आलम के जिम पहुंची. सीओ मोहम्मद इमरान को देखते ही खुरशीद घबरा गया. उस से बात किए बिना ही पुलिस ने जिम की तलाशी ली तो वहां उसी तरह के लंगोट टंगे हुए मिले, जिस तरह के मृतक सौरभ के मुंह और गरदन पर बंधे मिले थे. उसी दौरान खुरशीद ने मोहम्मद इमरान से पूछा, ‘‘सर, सौरभ के हत्यारों का कुछ पता चला?’’

‘‘देखो, अभी पता चल जाएगा,’’ कह कर उन्होंने एक थप्पड़ खुरशीद आलम के गाल पर जड़ दिया.

खुरशीद को ऐसी उम्मीद नहीं थी. वह हक्काबक्का रह गया. उस के मुंह से कोई जवाब नहीं निकला. सीओ ने पूछा, ‘‘तुम लोगों ने सौरभ को क्यों मारा?’’

रिसैप्शनिस्ट सना उर्फ सदफ यह देख कर घबरा गई. सीओ के निर्देश पर महिला पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. दोनों को हिरासत में ले कर इमरान मोहम्मद ने उन से सौरभ की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि सौरभ की हत्या उन्होंने ही इसी जिम में की थी. उन्होंने उस की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी. मुरादाबाद महानगर के सिविल लाइंस में है एक कालोनी रामगंगा विहार फेज-2. इसी कालोनी में के.सी. सक्सेना अपनी पत्नी अलका सक्सेना और 3 बच्चों के साथ रहते थे. बच्चों में बेटा गौरव, सौरभ और बेटी साक्षी थी. के.सी. सक्सेना प्रथमा बैंक में शाखा प्रबंधक थे और उन की पोस्टिंग महानगर से 10 किलोमीटर दूर पाकबड़ा शाखा में थी. अपने छोटे परिवार के साथ वह हंसीखुशी से रह रहे थे.

पढ़ाई पूरी करने के बाद बड़ा बेटा गौरव सक्सेना चड्ढा ग्रुप के मुरादाबाद स्थित वेब मौल में नौकरी करने लगा था, जबकि सौरभ अभी अगवानपुर के एक कालेज से 12वीं की पढाई कर रहा था. के.सी. सक्सेना के यहां किसी तरह की आर्थिक समस्या नहीं थी. लेकिन वह शारीरिक रूप से अस्वस्थ थे. वह हार्ट पेशेंट थे. उन की 2 बार हार्ट सर्जरी हो चुकी थी. उन के साथसाथ उन की पत्नी अलका भी अकसर बीमार रहती थीं. जिस से उन्हें घर के काम करने और खाना बनाने में परेशानी होती थी. घर के काम करने और खाना बनाने के लिए उन्होंने शबनम को रख लिया था.

शबनम रामगंगा विहार की ही ईडब्ल्यूएस कालोनी में रहने वाले मोहम्मद इमरान की पत्नी थी. मोहम्मद इमरान टूव्हीलर मैकेनिक था और उस की 2 बीवियां थीं. शबनम उस की दूसरी बीवी थी. कभीकभी शबनम अपनी बेटी सना उर्फ सदफ को भी ले आती थी. सना के.सी. सक्सेना की बेटी साक्षी की ही उम्र की थी, इसलिए उन दोनों में दोस्ती हो गई थी. सना भी पढ़ाई कर रही थी. कभी शबनम को के.सी. सक्सेना के यहां आने में देर हो जाती तो सौरभ बाइक से उस के घर पहुंच जाता और उसे बाइक पर बैठा कर ले आता. शबनम की बेटी सना जवान और सुंदर थी. वह महानगर के ही दयानंद डिग्री कालेज से बीए की पढ़ाई कर रही थी.

घर आनेजाने की वजह से सौरभ और सना के बीच दोस्ती हो गई. धीरेधीरे यही दोस्ती प्यार में बदल गई. प्यार जब परवान चढ़ा तो उन के बीच जिस्मानी संबंध भी बन गए. हालांकि दोनों के सामाजिक स्तर में जमीनआसमान का अंतर था. इस के अलावा वे अलगअलग धर्मों से भी थे, फिर भी उन्होंने शादी कर के जिंदगी भर साथ रहने की कसमें खाईं. काफी दिनों तक उन के संबंधों की भनक किसी को नहीं लगी. सना सौरभ पर शादी के लिए दबाव डालने लगी तो वह बोला, ‘‘सना, हमारे और तुम्हारे बीच सब से बड़ी बाधा धर्म की है. तुम मुसलिम हो और मैं हिंदू.’’

सौरभ की बात पूरी होने से पहले ही सना ने कहा, ‘‘यह तुम क्या कह रहे हो सौरभ? यह बात तो तुम्हें पहले सोचनी चाहिए थी.’’

‘‘सना, तुम नाराज मत होओ. देखो, जब तक बड़े भाई गौरव की शादी नहीं हो जाती, तब तक इस बारे में घर वालों से बात करना बेकार है. गौरव की शादी के बाद मैं घर वालों को समझाने की कोशिश करूंगा.’’ सौरभ ने सना को सममझाया.

झूठी दिलासा के सहारे 3 साल गुजर गए. सना मन ही मन यही सपना संजोए बैठी थी कि सौरभ से शादी करने के बाद वह ऐश की जिंदगी जिएगी. लेकिन प्रेमी के झूठे वादों से उसे अपने सपने धूमिल होते नजर आ रहे थे. इसलिए उस ने सौरभ से दूरी बनानी शुरू कर दी.

सना पढ़ीलिखी खूबसूरत युवती थी. उसे अब अपने भविष्य की चिंता सताने लगी. अपने पैरों पर खड़ी होने के लिए उस ने नौकरी तलाशनी शुरू कर दी. कोशिश करने पर उसे महानगर में कांठ रोड पर स्थित एक जिम में रिसैप्शनिस्ट की नौकरी मिल गई. बाद में वह उसी जिम में ट्रेनर हो गई. वहां नौकरी पर लगे उसे कुछ ही दिन हुए थे कि उसे पता चला कि आशियाना कालोनी में बौडी फ्यूल फिटनेस एकेडमी नाम का एक नया जिम खुला है और वहां रिसैप्शनिस्ट की जगह खाली है. यह खबर मिलते ही वह नौकरी के लिए उस जिम में पहुंच गई, ताकि वहां उसे ज्यादा तनख्वाह मिल सके. वहां उस की बात बन गई. यानी बौडी फ्यूल जिम में उसे रिसैप्शनिस्ट व महिला ट्रेनर की नौकरी मिल गई. यह जिम हरथला कालोनी के रहने वाले खुरशीद आलम का था.

जब लोगों को पता चला कि जिम में महिला ट्रेनर भी है तो वहां महिलाओं ने भी आना शुरू कर दिया, जिस से जिम की आमदनी बढ़ने लगी. दिन भर जिम में साथ रहने की वजह से सना और खुरशीद एकदूसरे के काफी नजदीक आ गए. उन के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए. खुरशीद की बांहों में जाने के बाद सना सौरभ को भूल चुकी थी. वह खुरशीद के साथ ही बाइक पर घूमती. चूंकि दोनों एक ही धर्म के थे, इसलिए खुरशीद ने सना से शादी का वादा किया. उधर जब सौरभ को सना और खुरशीद के संबंधों के बारे में पता चला तो उसे बहुत दुख हुआ. उस ने इस बारे में सना से फोन पर बात करनी चाही, लेकिन सना ने उस का फोन रिसीव नहीं किया. जबकि इस से पहले उस की सना से फोन पर कभीकभार बात हो जाया करती थी.

तब सौरभ उस से मिलने के लिए बौडी फ्यूल फिटनेस एकेडमी जिम जाने लगा. इतना ही नहीं, वह सना पर जिम की नौकरी छोड़ने के लिए दबाव भी बनाने लगा. लेकिन सना ऐसा करने को तैयार नहीं थी. सौरभ के बारबार जिम जाने पर खुरशीद को शक हो गया. खुरशीद ने सना से सौरभ के बारे में पूछा. तब सना ने खुरशीद को सौरभ के साथ रहे अपने संबंधों के बारे में बता दिया. उस ने यह भी बता दिया कि सौरभ उस पर जिम से नौकरी छोड़ने को कह रहा है. सना ने सौरभ से जिम आने से मना करते हुए कहा कि बेहतर यही होगा कि वह उसे भूल जाए. पर सौरभ उसे भूलने को तैयार नहीं था. उस ने कहा कि वह उस के बिना जिंदा नहीं रह सकता. इतना ही नहीं, उस ने सना को धमकी भी दे दी कि अगर उस ने खुरशीद से शादी कर ली तो वह उस के अश्लील फोटो इंटरनेट पर डाल देगा.

इस धमकी से सना डर गई. उस ने फोटो वाली बात खुरशीद को बता कर इस का कोई वाजिब हल निकालने को कहा. खुरशीद सना के प्यार में पागल था. वह उस पर अंधाधुंध पैसे खर्च कर रहा था. अकसर सना के साथ घूमनेफिरने से उस के धंधे पर भी असर पड़ना शुरू हो गया था. उस का लगातार नुकसान हो रहा था, जिस से वह लोगों का कर्जदार भी हो गया था. पिछले 2 महीने से उस ने सना की तनख्वाह और बिल्डिंग का किराया भी नहीं दिया था. लगातार हो रहे घाटे से वह परेशान रहने लगा था. खुरशीद ने एक दिन अपनी परेशानी सना को बताई और कहा कि वह कोई ऐसा काम करना चाहता है, जिस में एक ही झटके में लाखों रुपए आ सकें.

सना ने सौरभ के घरपरिवार के बारे में खुरशीद को पहले ही बता दिया था. इसलिए दोनों ने प्लान बनाया कि अगर सौरभ का अपहरण कर लिया जाए तो उस के घर वालों से लाखों रुपए की फिरौती मिल सकती है. क्योंकि उस के पिता बैंक में मैनेजर हैं. खुरशीद का बचपन का एक दोस्त था निहाल जैदी. निहाल जैदी के पिता सैयद अली आजम जैदी व खुरशीद के पिता निजामुद्दीन अंसारी दोनों ही रेलवे में टीटीई थे और एक साथ मुरादाबाद मंडल में रह चुके थे. दोनों के घर वालों का एकदूसरे के यहां आनाजाना था. इसीलिए खुरशीद और निहाल जैदी में गहरी दोस्ती थी.

सैयद अली आजम जैदी मूलरूप से मुफ्तीगंज लखनऊ के रहने वाले थे. रिटायर होने के बाद वह लखनऊ चले गए थे. निहाल जैदी आवारा किस्म का था, इसलिए घर वालों ने उसे घर से निकाल दिया था. लखनऊ से वह अपने दोस्त खुरशीद के पास चला आया और उसी के साथ ही रह रहा था. निहाल जैदी भी जिम का काम देखता था. सना और खुरशीद ने निहाल को भी अपनी योजना में शामिल कर लिया था. तीनों ने योजना बनाई थी कि सौरभ का अपहरण कर उस के घर वालों से 10 लाख रुपए की फिरौती वसूल कर उसे ठिकाने लगा देंगे. योजना को सुरक्षित ढंग से अंजाम देने के लिए खुरशीद ने फरजी आईडी पर एक सिम खरीदा. यह सिम उस ने महानगर की ही रेलवे हरथला कालोनी के दुकानदार मुन्ना पहाड़ी से खरीदा था. उस सिम को उस ने अपने फोन में डालने के बजाय इस के लिए एक चाइनीज फोन खरीदा.

इस के बाद सौरभ को झांसे में लेने की जिम्मेदारी सना को सौंप दी गई. सना ने 26 जनवरी, 2015 से इसी नए नंबर से सौरभ से बात करनी शुरू कर दी. सौरभ ने फिर उस से नौकरी छोड़ने की बात कही. 26 जनवरी को सना ने सौरभ को फोन कर के कहा था, ‘‘सौरभ, मैं काम छोड़ने को तैयार हूं, लेकिन खुरशीद ने 2 महीने से मेरी तनख्वाह नहीं दी है. ऐसा करो, तुम भी जिम जौइन कर लो. हम यहीं पर मिलते रहेंगे और जैसे ही मेरी तनख्वाह मिल जाएगी, मैं नौकरी छोड़ दूंगी.’’

यह बात सौरभ की समझ में आ गई और उस ने बौडी फ्यूल फिटनेस एकेडमी जौइन कर ली. यह बात घटना से 4 दिन पहले की थी. जिम जाने की बात उस ने अपने बड़े भाई गौरव को बता दी थी. 6 फरवरी, 2015 को सुबहसुबह सौरभ के मोबाइल पर सना का फोन आया, ‘‘सौरभ, तुम अभी तक जिम नहीं आए. जल्दी आ जाओ. इस समय यहां कोई नहीं है.’’

‘‘बस, मैं थोड़ी देर में पहुंच रहा हूं.’’ सौरभ ने कहा.

सौरभ मौर्निंग वौक के लिए निकलता था. इस के बाद वह उधर से ही जिम चला जाता था. लेकिन उस दिन उस का फोन आने पर वह सीधा जिम चला गया था. जिम के पास सना उस का पहले से ही इंतजार कर रही थी. उसे देखते ही सौरभ खुश हो गया. सना ने गर्मजोशी से उस का स्वागत किया और उसे अपने साथ जिम ले गई. जिम में पहुंच कर सना ने कहा, ‘‘सौरभ, तुम चेंजिंग रूम में कपड़े बदल लो, मैं यहीं बैठी हूं. सौरभ चेंजिंग रूम में गया तो वहां पहले से ही खुरशीद और निहाल जैदी मौजूद थे. दोनों ने उस की पिटाई शुरू कर दी. सौरभ चीखने लगा तो उन्होंने जिम में रखा एक लंगोट उस के मुंह में ठूंस दिया और दूसरा उस के मुंह और नाक में लपेट कर गले में बांध दिया.

इस के बाद भी वह हाथपैर चलाने लगा तो खुरशीद ने लोहे की रौड से उस के सिर पर कई वार कर दिए, जिस से उस का सिर फट गया और खून बहने लगा. इस के बाद सौरभ उन का मुकाबला नहीं कर सका और जमीन पर गिर गया. उधर सना ने डेक बजा कर उस की आवाज तेज कर दी थी, जिस से सौरभ चीखचिल्लाहट की आवाज बाहर किसी को सुनाई नहीं दी. खुरशीद और निहाल ने देखा कि सौरभ मर गया है तो उन्होंने सना को बुला लिया. सना ने कहा कि किसी भी हालत में अब यह जिंदा नहीं बचना चाहिए. वह एक सीरिंज में बाथरूम में रखा तेजाब भर लाई और तेजाब का इंजेक्शन उस के सीने में लगा दिया.

तीनों को लगा कि सौरभ मर गया है तो उन्होंने उस की लाश पहले से ला कर रखे पौलीथिन के एक बैग में भर दी. अब उन के सामने समस्या यह थी कि वह लाश को ठिकाने लगाने के लिए बाहर कैसे ले जाएं. हरथला में ही खुरशीद के बहनोई नदीम रहते थे. उन का वहीं पर एक कौनवेंट स्कूल था. उन्होंने ही खुरशीद को यशवीर चौधरी का बड़ा हौल किराए पर दिलवाया था, जिस का किराया 20 हजार रुपए महीना था. लाश ठिकाने लगाने के लिए तीनों ने एक प्लान तैयार कर लिया. प्लान के अनुसार खुरशीद अकेला जिम से चला गया और अपने एक परिचित की माल ढोने वाली छोटी टाटा मैजिक गाड़ी ले आया.

जिम के बराबर वाली इमारत में यशवीर चौधरी का प्रौपर्टी डीलिंग का औफिस था. उन्होंने जिम के बाहर माल ढोने वाली टाटा मैजिक गाड़ी देखी तो उन्हें लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि खुरशीद उन का किराया दिए बिना हौल खाली कर के जा रहा है. क्योंकि खुरशीद ने उन का 2 महीने का किराया नहीं दिया था, इसलिए जब उन्होंने जिम के सामने गाड़ी खड़ी देखी तो खुरशीद से पूछा. तब खुरशीद ने बताया कि दौड़ने वाली मशीन खराब हो गई है, उसे ठीक कराने ले जाना है. खुरशीद, सना और निहाल ने मिल कर एक इलैक्ट्रौनिक मशीन जिम से निकाल कर उस गाड़ी में रख दी. उसे खुरशीद व निहाल ले कर चले गए.

करीब आधे घंटे बाद खुरशीद और निहाल जैदी उस मशीन को ले कर वापस आ गए. वह अपने साथ एक ड्रम भी ले आए थे. वह ड्रम एक निर्माणाधीन इमारत से लाए थे. मशीन और ड्रम को वह जिम में ले गए. उस ड्रम में उन्होंने सौरभ की लाश डाल दी. फिर उस ड्रम को उसी टाटा मैजिक गाड़ी में रख लिया. पुन: गाड़ी देख कर मकान मालिक यशवीर चौधरी ने खुरशीद से ड्रम के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि कुछ मशीनों के पार्ट्स खराब हो गए हैं. इस ड्रम में वही खराब पार्ट्स हैं, जिन्हें सही करा कर लाना है. यशवीर चौधरी को उस पर विश्वास नहीं हुआ तो उस ने खुरशीद के बहनोई नदीम को फोन किया, जिन की जमानत पर चौधरी ने उसे कमरा किराए पर दिया था.

नदीम ने भी उसे यही बताया कि उस की कुछ मशीनें खराब हो गई हैं. नदीम के कहने पर यशवीर चौधरी को विश्वास हो गया. वह अपने औफिस में बैठ कर पार्टी से बात करने लगे. खुरशीद, सना और निहाल लाश वाला ड्रम गाड़ी में रख कर निकल गए और जिम में ताला लगा दिया. वहां से खुरशीद सीधे हरथला स्थित अपने बहनोई के स्कूल पहुंचा. स्कूल के कंप्यूटर लैब में उस ने लाश वाला ड्रम रखवा दिया. बहनोई को भी उस ने यही बताया कि ड्रम में मशीनों के पुरजे हैं. अगले दिन 7 फरवरी, 2015 की रात को वह टाटा मैजिक गाड़ी से वह उस ड्रम को ले कर निकल गया और उसे भोला सिंह की मिलक के पास नाले में फेंक आया. लाश ठिकाने लगा कर वह अपने घर चला गया. डर की वजह से उन्होंने घर वालों को फिरौती के लिए फोन नहीं किया.

सना और खुरशीद से पूछताछ के बाद पुलिस ने तीसरे अभियुक्त निहाल जैदी की तलाश शुरू कर दी. पता चला कि वह लखनऊ भाग गया है. एक पुलिस टीम निहाल जैदी की तलाश में लखनऊ भेजी गई, लेकिन वह वहां भी नहीं मिला. पुलिस ने सना और खुरशीद को मुरादाबाद के एसीजेएम प्रथम की अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक तीसरा अभियुक्त निहाल जैदी गिरफ्तार नहीं हो सका था. UP News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Romantic Story: खिड़की मोहब्बत वाली

लेखक – सलोनी खान, Romantic Story: नीचे खड़े हो कर फरजान रोजाना बारबार मेरे बेडरूम की खिड़की की ओर देखा करता था. धीरेधीरे मैं उसे प्यार करने लगी. लेकिन मेरी मनोदशा भांप कर जब पापा ने उस से बात की तो पता चला कि वह मुझे नहीं देखता था बल्कि मेरे घर में लगे वाईफाई से अपने फोन की कनेक्टिविटी मिलाया करता था. फिर भी जो हुआ, अच्छा ही हुआ.  शा म का समय था. मैं ने देखा कि एक लड़का मेरे घर के सामने खड़ा था. मैं खिड़की के पास गई, बाहर झांक  कर देखा. वह ऊपर खिड़की की ओर ही देख रहा था. मैं वहां से हट गई. अगले दिन से उस लड़के की यह

रोजाना की आदत सी बन गई. वह वहां आता और घंटों खड़ा रहता. कभीकभी वह मुंह उठा कर मेरे बैडरूम की खिड़की की ओर देख लेता तो कभी अपने मोबाइल पर लगा रहता. मुझे लगता कि शायद वह मुझे फोन करने की कोशिश कर रहा है. मैं नहीं जानती थी कि उस के पास मेरा फोन नंबर है भी या नहीं वह बहुत ही सुंदर सजीला जवान था. मुझे लगता था कि उस का संबंध किसी बहुत अच्छे परिवार से रहा होगा. 10 दिन तक ऐसा ही चलता रहा.

मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था, कुछ भी नहीं. मैं जानना चाहती थी कि आखिर यह मामला क्या है. सच कहूं तो उसे ले कर मेरे दिल में कुछ भावनाएं उभर रही थीं. मैं मन ही मन सोचती थी कि कहीं मुझे उस से प्यार तो नहीं हो गया है?

‘हां…हां…, मुझे उस से प्यार हो गया है.’ मेरे दिल से आवाज उठती.

‘लेकिन क्या वह भी मुझ से प्यार करता है? शायद नहीं…’ मेरे अंदर कई तरह के अंदेशे जन्म लेते.

यही सब सोचतेसोचते मेरे मन में कई तरह की आशंकाएं पैदा हो जातीं.

अपनी सोच, अपने अस्तित्व को समेट कर मैं ने साहस बटोरा और फैसला किया कि इस बारे में मुझे अपनी मां से बात करनी चाहिए. और मैं ने ऐसा ही किया भी.

‘‘अम्मी…अम्मी… आप कहां हैं? जरा जल्दी से यहां आइए. मैं आप को एक बहुत मजेदार दृश्य दिखाना चाहती हूं. सच में बहुत मजेदार.’’ एक दिन उसे बाहर खड़ा देख कर मैं ने बेसब्री से अपनी मां को पुकारा.

‘‘अच्छा, मैं आ रही हूं.’’ कहते हुए कुछ मिनट में ही मां मेरे पास आ गईं. आते ही मां ने पूछा, ‘‘हां, अब बताओ क्या दिखाना चाह रही थी तुम मुझे?’’

मैं अपनी अम्मी को खिड़की के पास ले गई और उन्हें बाहर नीचे खड़े लड़के को दिखाया. मैं ने अपनी अम्मी को सारा किस्सा सुनाया कि वह लड़का कैसे घंटों यहां खड़ा रहता है और ऊपर खिड़की की ओर देखता रहता है.

मां ने मेरी आंखों में झांका. फिर मुसकराकर कहा, ‘‘तो, इस में खास बात क्या है?’’ मम्मी की मुसकराहट में एक रहस्य सा छिपा था.

‘‘अम्मी, मैं यही आप को दिखाना चाहती थी. अब सोचें और बताएं कि हमें क्या करना चाहिए?’’ मैं ने अपने दिल की बात उन के सामने रखी.

अम्मी मुसकरा कर बोलीं, ‘‘इस में करना क्या है?’’ बड़ी लापरवाही से अपनी बात कह कर वह चली गईं. अगली सुबह सूरज में कुछ तेजी थी, खिड़की से धूप आ रही थी. पेड़ों पर चिडि़या चहचहा रही थीं. मैं बिस्तर पर बैठी थी और मेरे हाथ में कौफी का मग था. मेरे बाल खुले हुए थे. अचानक अम्मी ने मुझे आवाज दी. वह मुझे बुला रही थीं. नीचे जाने से पहले मैं ने खिड़की से बाहर झांक कर देखा कि वह लड़का वहां खड़ा है या नहीं? वह वहीं खड़ा था. मुझे शर्म सी आ गई और मैं नीचे भाग गई. मुझे लगता था कि मैं उस के प्यार में गिरफ्तार हो चुकी हूं.

मेरी अम्मी और पापा नीचे ड्राइंगरूम में खड़े थे और उन के चेहरों पर मुसकराहट फैली थी, रहस्यमय मुसकराहट.

‘‘हां अम्मी, बोलो क्या हुआ? मुझे क्यों बुलाया?’’  मैं ने पूछा.

‘‘हां बेटी,’’ अम्मी बोलीं, ‘‘मैं ने तुम्हें एक जरूरी काम से बुलाया है.’’

‘‘तो बताइए?’’

‘‘दरअसल, मैं ने तुम्हारे पापा से उस लड़के का जिक्र किया था, इसलिए आज सुबह वह बाहर जा कर उस से मिले. उस के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त की. कुछ बातें कहीं भी.’’

‘‘क्या?’’ मैं बहुत जोर से बोल पड़ी.

‘‘हां, यह सही है मेरी बच्ची. उस का नाम फरजान है और वह एक बहुत ही अच्छे परिवार से संबंध रखता है. उस के पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं और इस वक्त वह नौकरी की तलाश में है. फरजान तुम्हारे लिए बहुत ही सही लड़का है.’’ पापा ने गंभीरता से कहा.

शादी के मुद्दे पर मेरे दिल में तुरंत यह बात आई कि मैं उस लड़के से प्यार करने लगी हूं. मैं मन ही मन सोचने लगी कि या खुदा अब मुझे क्या करना चाहिए.

‘‘मैं बाहर जा कर उसे अंदर बुला लाता हूं. उस के साथ बैठ कर कौफी पिएंगे. तब ही बातोंबातों में हम उस से अपनी बेटी की शादी के बारे मे ंबात कर लेंगे.’’ कह कर पापा बाहर चले गए. मैं शांत खड़ी देखती रही. थोड़ी देर बाद पापा उसे अंदर ले आए. उस ने हम सब को बड़े अदब के साथ सलाम किया. पापा ने उसे ड्राइंगरूम में बैठा कर अम्मी से कौफी लाने को कहा. वे दोनों मुसकराते हुए बातें कर रहे थे. घर में सेल फोन पर वाईफाई लगा हुआ था. कुछ देर बाद उस के चेहरे पर एक अजीब सा सुकून महसूस होने लगा. वहां बैठेबैठे भी वह मोबाइल पर लगा रहा. साथ ही कौफी पीतेपीते बातें भी करता रहा. लेकिन जल्दी ही उस के चेहरे पर जाने की बेचैनी नजर आने लगी. वह ऐसा दिखाने की कोशिश कर रहा था, जैसे कि वह बहुत व्यस्त हो और उसे टे्रन पकड़ने की जल्दी हो.

उस ने जल्दीजल्दी कौफी के घूंट लेने शुरू किए.

‘‘कौफी के लिए धन्यवाद अंकल.’’ फरजान ने कहा.

‘‘धन्यवाद किस लिए?’’ पापा ने पूछा.

‘‘आप ने मुझे घर के अंदर बुलाया, क्योंकि…’’ फरजान बोला.

‘‘यह भी कोई बात है.’’ हम सब हंसने लगे.

‘‘अच्छा, यह बताओ कि हम तुम्हारी अम्मी से इस बारे में बात कर सकते हैं?’’ पापा ने अपनी खुशी का इजहार करते हुए पूछा.

‘‘किस बारे में?’’ उस ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘तुम रोज हमारे घर के सामने आ कर खड़े होते हो और लैला को देखते हो इसलिए…’’ पापा के चेहरे पर कुछ चिंता सी झलकने लगी थी.

फरजान के हाथ में कौफी का मग कांपा और उस की कौफी छलक पड़ी. वह घबरा कर जल्दी से उठ खड़ा हुआ.

‘‘नहीं, नहीं प्लीज, मेरी अम्मी से कुछ मत कहना अंकल,’’ उस ने डरते हुए कहा.

‘‘लेकिन क्यों बेटा?’’

‘‘वह मुझ पर नाराज होंगी.’’

‘‘वह क्यों नाराज होंगी? उन्हें तो यह सुन कर बहुत खुशी होगी कि उन के बेटे ने शादी के लिए लड़की पसंद कर ली है.’’

‘‘क्या?’’

‘‘हां, क्या तुम्हें मेरी बेटी पसंद नहीं है? मैं लैला की बात कर रहा हूं. यह मेरी बेटी लैला.’’ पापा ने मेरी ओर इशारा कर के कहा.

‘‘क्या मजाक कर रहे हैं अंकल. मैं लैला नाम की किसी लड़की को नहीं जानता. आप की बेटी को भी नहीं, न यह कि इन का नाम लैला है.’’

‘‘क्या?’’ पापा भी आश्चर्य से उछल पडे़.

‘‘हां, यही सच है. मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता है.’’ फरजान ने जोर दे कर कहा.

‘‘तो फिर मेरे घर के पास आ कर क्या करते थे और ऊपर लैला की खिड़की में क्या देखते रहते थे?’’

फरजान कुछ देर सोचता रहा. फिर बोला, ‘‘ओह! अब समझ में आया. मैं आप को सच बताता हूं. दरअसल, बात यह है कि मैं वहां खड़े हो कर वाईफाई कनेक्शन का इस्तेमाल करता था और जब भी मेरा फोन हिलता था, कनेक्टीविटी टूट जाती थी. तब स्थिति ठीक करने के लिए मैं ऊपर की ओर देखता था. कभीकभी कनेक्टीविटी आती थी और कभीकभी गायब हो जाती थी. इसी चक्कर में मैं ऊपर देखा करता था. लेकिन लैला की खिड़की की ओर नहीं, यहां खड़े हो कर मैं बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपना सीवी भेजता था.’’ फरजान ने विस्तार से अपनी बात बताई.

‘‘तो फिर मेरे बुलाने पर तुम अंदर क्यों आ गए और यहां आ कर तुम ने धन्यवाद भी किया?’’ मेरे पापा ने एक और सवाल दाग दिया.

‘‘दरअसल, आज मुझे सही तरह से कनेक्टीविटी नहीं मिल रही थी. मैं परेशान था और उसी समय आप ने मुझे घर के अंदर आने को कहा तो मुझे बहुत खुशी हुई. क्योंकि यहां अंदर मुझे बेहतर कनेक्टीविटी मिल सकती थी.’’

‘‘और तुम यहां पर बैठ कर अपना सीवी भेजने में व्यस्त थे, क्यों क्या मैं सही कह रहा हूं?’’

‘‘हां.’’

‘‘ओह! मेरे खुदाया.’’ हम में से हर एक के मुंह से बस यही निकला.

इतनी देर में इतने उतारचढ़ाव आ गए थे. हम पता नहीं कहां से कहां तक की सोचने लगे थे.

‘‘तो… अंकल, अब मैं जाऊं? मेरी मम्मी मेरा इंतजार कर रही होंगी.’’

‘‘हां, हां बेटा, क्यों नहीं.’’

मैं अभी भी आश्चर्यचकित थी. मुझे बहुत गहरी चोट पहुंची थी, मेरी आंखों से आंसू बहने लगे. मैं ने उसे प्यार करना शुरू कर दिया था. मैं सोचती थी कि शायद वह भी मुझ से प्यार करता है. लेकिन वह मेरे लिए नहीं, बल्कि केवल वाईफाई कनेक्टीविटी उपयोग करने के लिए मेरी खिड़की के पास आता था. उस की इस हरकत ने मेरे दिल के टुकड़े कर दिए थे. लगभग 6 महीने बाद एक महिला हमारे घर आई और हमें आश्चर्य में डालते हुए उस ने अपना परिचय फरजान की मां के रूप में दिया. फरजान को एक मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छी नौकरी मिल गई थी और वह उस दिन की बात नहीं भूल पाया था.

उस ने अपने दिल के किसी कोने में मुझे भी जगह दे दी थी. हां, यह सच है कि उसे भी मुझ से प्यार हो गया था. और अब हम दोनों की शादी हो चुकी है और हम एक सुखद और सुंदर जीवन गुजार रहे हैं. मैं जब भी जिंदगी के उस नाटकीय मोड़ को याद करती हूं तो सोचती हूं कि कोई जरूरी नहीं कि दिल के अरमान दिल में ही घुट कर रह जाएं. Romantic Story

Love Story in Hindi: अधूरी उड़ान

Love Story in Hindi: अमनदास से प्रेम विवाह करने के बाद स्वच्छंद विचारों वाली चारू पति से ऊब गई. उस ने अपने दूर के रिश्तेदार अनुराग से संबंध बना कर इश्क की ऐसी अधूरी उड़ान भरी कि…

दिल्ली के दक्षिण पश्चिम जिले के थाना नजफगढ़ के डयूटी औफिसर को दोपहर 11 बजे पुलिस नियंत्रण कक्ष द्वारा सूचना मिली कि नंगली डेरी के पास गहरे नाले में एक आदमी की लाश पड़ी है. सूचना मिलने पर इंसपेक्टर अनिल कुमार, एएसआई कृष्णचंद और कांस्टेबल अमरपाल को ले कर बताई गई जगह के लिए रवाना हो गए. वह नाला थाने से करीब दोढाई किलोमीटर दूर था. थोड़ी देर में पुलिस उस नाले के पास पहुंच गई, जिस में लाश पड़ी थी. नाले के किनारे खड़े तमाम लोग लाश को देख कर तरहतरह की बातें कर रहे थे. इंसपेक्टर अनिल कुमार ने देखा, नाले के बीचोबीच एक आदमी की लाश तैर रही थी. नाला गहरा था इसलिए समस्या यह थी कि लाश को पानी के बाहर कैसे निकाला जाए. सूचना पा कर थानाप्रभारी राजबीर मलिक भी मौके पर आ गए. वह भी लाश को बाहर निकलवाने की तरकीब सोचने लगे.

सोचविचार कर उन्होंने ट्रक के हवा भरे 2 ट्यूब मंगवाए. एक आदमी को ट्यूब पर बैठा कर लाश के पास भेजा गया. वह आदमी साथ लाए गए दूसरे ट्यूब पर लाश को डाल कर किनारे पर ले आया. मौके पर क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम भी पहुंच गई थी. पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया. लाश 25-30 साल के एक युवक की थी. मृतक ब्राउन कलर की पैंट और सफेद रंग का बनियान पहने हुए था. उस की जेबों की तलाशी ली गई तो उन में ऐसी कोई चीज नहीं मिली जिस से उस की पहचान हो सकती. मृतक के सिर पर चोट के 3 घाव थे, इस से अनुमान लगाया गया कि हत्या करने से पहले उस के सिर पर किसी चीज से वार किए गए होंगे.

मृतक के गले में काले धागे में बंधा एक लौकेट था. उस के दाएं हाथ में लोहे का कड़ा था और बाएं हाथ की अंगुली में वह धातु का एक छल्ला पहने हुए था. वहां मौजूद लोगों से पुलिस ने लाश की शिनाख्त करानी चाही लेकिन कोई भी मृतक को नहीं पहचान पाया. प्राथमिक काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने लाश को जाफरपुर कलां स्थित राव तुलाराम मेमोरियल अस्पताल की मोर्चरी में रखवा दिया और अज्ञात हत्यारों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मामला दर्ज कर लिया. यह बात 12 फरवरी, 2015 की है.  हत्या के इस मामले की जांच के लिए थानाप्रभारी राजबीर मलिक के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई गई. टीम में अतिरिक्त थानाप्रभारी अनिल कुमार, एएसआई कृष्ण चंद, हेडकांस्टेबल मनजीत, कांस्टेबल अमरपाल, अनीता आदि को शामिल किया गया.

पुलिस टीम के सामने सब से बड़ी चुनौती मृतक की पहचान कराने की थी. पहचान होने के बाद ही हत्यारों का पता लगाया जा सकता था. मृतक का पता लगाने के लिए पुलिस ने सब से पहले अज्ञात लाश का हुलिया बताते हुए यह सूचना वायरलेस से दिल्ली के समस्त थानों को दे दी. इस के अलावा उस का फोटो दूरदर्शन पर प्रसारण के लिए भी भेज दिया. साथ ही पैंफ्लेट छपवा कर दक्षिणपश्चिम जिले के समस्त थानों के अलावा सार्वजनिक स्थानों पर चिपकवा दिए गए. पैंफ्लेट चिपकवाने के अगले दिन यानी 13 फरवरी, 2015 को इंसपेक्टर अनिल कुमार के पास कई लोगों के फोन आए. उन लोगों को थाने बुला कर लाश के रंगीन फोटो दिखाए गए. लेकिन लाश की पहचान नहीं हो सकी. कई लोगों को अस्पताल की मोर्चरी ले जा कर भी लाश दिखाई गई लेकिन वह उन के किसी की नहीं निकली.

13 फरवरी, 2015 को ही दक्षिणपश्चिम जिले के द्वारका (उत्तरी) थाने में जयंत कुमार नाम का एक आदमी अपनी पत्नी व कुछ अन्य लोगों के साथ पहुंचा. उस ने थानाप्रभारी को बताया कि इसी थाना क्षेत्र के हरिविहार कालोनी में उस की बेटी चारू और दामाद अमनदास रहते थे. अमनदास एक प्राइवेट कंस्ट्रक्शन कंपनी में इंजीनियर था. कल से उन दोनों में से किसी का भी फोन नहीं मिल रहा. उन के कमरे का ताला भी बंद है. चारू से उन की कल बात हुई थी. लेकिन वो दोनों अब कहां हैं पता नहीं लग रहा. जयंत कुमार के साथ अमन दास की बहन प्रियंका दास भी थी.

उन्होंने पुलिस को यह भी बताया कि वह उन के परिचितों को भी फोन कर चुके हैं. फिर भी उन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई. चारू और अमनदास ने करीब एक साल पहले ही लवमैरिज की थी. लवमैरिज की बात जान कर थानाप्रभारी को आश्ांका हुई कि कहीं वे अपने घर वालों की किसी साजिश का शिकार तो नहीं हो गए. क्योंकि औनर किलिंग की घटनाएं आए दिन सामने आती रहती हैं. इसी बात को ध्यान में रखते हुए थानाप्रभारी ने चारू और उस के पति की गुमशुदगी दर्ज कर ली. नजफगढ़ थाने में अज्ञात युवक की लाश बरामद होने का पैंफ्लेट थाना द्वारका (उत्तरी) के थानाप्रभारी के पास भी मौजूद था. जयंत कुमार ने अपने दामाद अमनदास की उम्र करीब 28 साल बताई थी और नजफगढ़ नाले से जिस युवक की लाश बरामद हुई थी वह भी करीब 25-30 साल का था, इसलिए उन्होंने वह पैंफ्लेट जयंत कुमार को दिखाया.

उस पैंफ्लेट को देखने के बाद जयंत कुमार और प्रियंका दास गंभीर हो गए. इस की वजह यह थी कि उस का लापता हुआ भाई अमनदास भी हाथ में कड़ा और अंगुली में छल्ला पहनता था. इस के अलावा वह गले में काले धागे वाला लौकेट भी डाले रहता था. वह बोली, ‘‘सर, नजफगढ़ नाले में जो लाश मिली है मैं उसे देखना चाहती हूं.’’

‘‘इस के लिए तुम्हें थाना नजफगढ़ जाना पडे़गा. क्योंकि लाश वहीं की पुलिस ने बरामद की थी.’’ थानाप्रभारी ने बताया.

इस के बाद जयंत कुमार और प्रियंका दास व उन के साथ आए लोगों ने थाना नजफगढ़ पहुंच कर इंसपेक्टर अनिल कुमार से बात की. अनिल कुमार ने उन्हें लाश के फोटो दिखाए. फोटो देख कर प्रियंका की धड़कनें बढ़ गईं. लाश पानी में पड़ी होने की वजह से फूल चुकी थी इसलिए वह स्पष्ट रूप से पहचानने में नहीं आ रही थी. इसलिए उन्होंने लाश देखने की इच्छा जाहिर की. इंसपेक्टर अनिल कुमार उन लोगों को लाश दिखाने के लिए राव तुलाराम मेमोरियल अस्पताल ले गए. वहां उन लोगों को मोर्चरी में रखी लाश दिखाई तो प्रियंका दास की चीख निकल गई. उस ने रोते हुए बताया कि लाश उस के भाई अमन दास की है. दामाद की लाश देख कर पास में खड़े जयंत कुमार की आंखों से भी आंसू बहने लगे. लाश की शिनाख्त होने पर इंसपेक्टर अनिल कुमार ने राहत की सांस ली.

चूंकि इंसपेक्टर अनिल कुमार को आगे की काररवाई भी करनी थी इसलिए उन्होंने मृतक के परिजनों को सांत्वना दे कर चुप कराया. उन्होंने प्रियंका दास से अमन दास के बारे में मालूमात की तो उस ने बताया, ‘‘वह एक प्राइवेट कंपनी में इंजीनियर था और द्वारका के हरिविहार में किराए के कमरे में अपनी पत्नी चारू के साथ रह रहा था. फोन पर उस से मेरी बात होती रहती थी. आज मेरे पास चारू के पिता जयंत कुमार का फोन आया था. उन्होंने बताया कि चारू और अमन से उन की बात नहीं हो पा रही है. उन के कमरे पर भी ताला लगा हुआ है. तब मैं नोएडा से दिल्ली आई और यहां भाई की लाश देखने को मिली.’’ कह कर वह फिर से फफकफफक कर रोने लगी.

जयंत कुमार ने इंसपेक्टर अनिल कुमार को बताया कि वह बेटी और दामाद की खैरखबर फोन से लेते रहते थे. 3-4 दिन पहले उन की चारू से बात हुई थी तो वह घबराई हुई थी. घबराने की वजह पूछने पर उस ने बताया कि उस की ननद प्रियंका को चोट लग गई है, वह अमन के पास नोएडा आई हुई है. आज जब बेटी और दामाद में से किसी का भी नंबर नहीं मिला तो मैं उन के कमरे पर गया. लेकिन कमरे पर ताला लगा देख कर मैं घबरा गया. इस पर मैं ने अमन की बहन प्रियंका को फोन किया. जयंत कुमार ने आगे बताया कि प्रियंका से बात कर के उन्हें पता चला कि उसे न तो चोट लगी थी और न ही वह चारू और अमनदास के पास गई थी. इस बात से उन्हें अंदेशा हुआ और प्रियंका को दिल्ली बुला कर वह थाना द्वारका (उत्तरी) पहुंच गए.

जयंत कुमार ने आशंका जताई कि हो न हो किसी ने दोनों की ही हत्या कर दी हो. इस अंदेशे को ध्यान में रखते हुए पुलिस ने फिर से उस नाले के आसपास चारू के शव को ढूंढा लेकिन कहीं कुछ नहीं मिला. जयंत कुमार और प्रियंका दास ने किसी पर कोई शक वगैरह नहीं जताया तो पुलिस ने अमनदास की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. अगले दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो पता चला कि अमनदास की मौत सिर में गंभीर चोट लगने की वजह से हुई थी. अब अमनदास की बहन और ससुर से बात कर के पुलिस को यह पता लगाना था कि चारू की हत्या हो चुकी है या फिर वह कहीं छिप कर रह रही है. यानी चारू के बारे में जानकारी हासिल करना पुलिस की पहली प्राथमिकता थी.

पुलिस ने सब से पहले चारू और उस के पति अमनदास के नंबर ले कर उन के फोन की काल डिटेल्स निकलवाने की काररवाई की. काल डिटेल्स से पुलिस यह जानना चाह रही थी कि उन की आखिरी बार किस से बात हुई थी और उन के फोन की अंतिम लोकेशन किस क्षेत्र में थी. उन के फोन नंबरों की काल डिटेल्स आने तक इंसपेक्टर अनिल कुमार ने अपने स्तर पर ही मामले की छानबीन शुरू कर दी. इंसपेक्टर अनिल कुमार ने मृतक अमनदास की बहन प्रियंका दास और अन्य लोगों को पूछताछ के लिए एक बार फिर थाने बुलाया. उन्होंने उन से जानना चाहा कि चारू को आखिरी बार कब और किस के साथ देखा गया था. तभी उन के एक रिश्तेदार ने बताया कि हफ्ता भर पहले चारू को अनुराग मेहरा नाम के युवक के साथ देखा गया था.

‘‘अनुराग मेहरा कौन है?’’ इंसपेक्टर अनिल कुमार ने पूछा.

‘‘सर, अनुराग मेहरा दिल्ली में बुराड़ी के पास संतनगर में रहता है. करीब एक साल  पहले अनुराग की बहन की शादी चारू के दूर के मामा के साथ हुई थी.’’ प्रियंका ने बताया.

पुलिस टीम उत्तरी दिल्ली स्थित बुराड़ी के नजदीक संतनगर कालोनी में अनुराग मेहरा के पहुंची. अनुराग घर पर ही मिल गया. पूछताछ के लिए पुलिस उसे थाने ले आई. थानाप्रभारी के सामने पहुंच कर अनुराग डर गया. थानाप्रभारी राजबीर मलिक उस की घबराहट को भांप गए. उन्होंने उस से चारू के बारे में पूछा तो उस ने अनभिज्ञता जताई. जबकि अनुराग के हावभाव से लग रहा था कि वह कुछ सच्चाई छिपा रहा है. इसलिए उन्होंने उस से सख्ती से पूछताछ की. इस पर अनुराग बोला, ‘‘सर, मैं चारू से 5-6 फरवरी की रात को मिला था. सुबह होने पर मैं अपने घर चला गया था. चारू अपने कमरे पर ही रह गई थी. बाद में वह कहां गई, पता नहीं.’’

‘‘तुम उस से रात में ही मिलने क्यों गए थे? 5-6 की रात को जब तुम उस से मिले थे तब उस का पति अमनदास कहां था?’’ राजबीर सिंह ने पूछा.

‘‘सर, वो भी अपने कमरे में ही था.’’

यह सुन कर थानाप्रभारी थोड़ा चौंके. उन्हें लगा कि अमनदास का हत्यारा वही होगा. क्योंकि जब वह रात को चारू से मिलने आया होगा तो शायद उस के पति अमनदास ने उसे और चारू को एकांत में देख लिया होगा. फिर भेद खुलने के डर से अनुराग ने अमनदास की हत्या कर दी होगी. साथ ही उन के दिमाग में यह भी आया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि चारू ने पति की हत्या का विरोध किया हो और अनुराग ने चारू को भी मार कर कहीं दूसरी जगह ठिकाने लगा दिया हो. इसलिए उन्होंने उस से सीधे सवाल किया, ‘‘तुम ने चारू की लाश कहां डाली है?’’

‘‘चारू की लाश!’’ अनुराग घबरा कर बोला.

‘‘हां, तुम सीधे बताते हो या फिर…’’

‘‘सर, मैं ने चारू को नहीं मारा. हम ने सिर्फ अमनदास की हत्या की थी. उस की हत्या में चारू खुद शामिल थी. रात को उस की लाश नाले में डालने के बाद सुबह को मैं अपने घर चला गया था.’’ अनुराग ने बताया.

अनुराग मेहरा ने चारू के साथ मिल कर उस के पति अमनदास की हत्या क्यों की, पुलिस ने इस बारे में अनुराग से पूछताछ की तो अमनदास की हत्या की जो कहानी सामने आई वह मन को झकझोर देने वाली थी. अमनदास मूलरूप से असम का रहने वाला था. उस के पिता भारतीय सेना में नौकरी करते थे जो अब रिटायर हो चुके हैं. कई साल पहले वह दिल्ली के उत्तमनगर क्षेत्र में रहते थे और एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे. उत्तमनगर में ही उन के पड़ोस में जयंत कुमार रहते थे. जयंत कुमार दिल्ली की साप्ताहिक बाजारों में दुकान लगाते हैं.

पासपास रहने की वजह से दोनों परिवारों के बीच पारिवारिक संबंध बन गए थे. अमनदास ने असम के एक पालिटेक्निक कालेज से डिप्लोमा किया था. वह दिल्ली में नौकरी की तलाश में था. उधर चारू भी जवान थी. अमनदास और चारू के अकसर मिलनेजुलने से उन के बीच प्यार हो गया और उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया. यह बात दोनों ने घर वालों को बता भी दी कि वे दोनों शादी करना चाहते हैं. अमन के घर वालों को बेटे की पसंद पर कोई एतराज नहीं था. अब सब कुछ चारू के घर वालों की इच्छा पर निर्भर था. चारू के पिता जयंत कुमार जानते थे कि अमनदास पढ़ालिखा और होनहार लड़का है. उन्होंने सोचा कि आज नहीं तो कल अमन की नौकरी लग ही जाएगी. उस के साथ चारू की जिंदगी हंसीखुशी से कटेगी.

यही सोच कर उन्होंने बेटी की बात मान ली. इस से चारू की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. इस के बाद सामाजिक रीति रिवाज से दोनों की शादी हो गई. यह सन 2011 की बात है. शादी के बाद अमनदास के घर वाले असम चले गए. चारू भी उन के साथ गई थी. अमन के पिता ने वहीं पर एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर ली. चारू और अमन असम में करीब एक साल रहे. इस दौरान चारू ने एक बेटी को जन्म दिया लेकिन जन्म के एक दिन बाद ही उस बच्ची की मौत हो गई. बेटी की मौत के बाद चारू एक तरह से सदमे में आ गई. उसे डाक्टर के पास ले जाया गया तो डाक्टर ने सलाह दी कि उसे काउंसलिंग की जरूरत है.

बहरहाल, कुछ दिनों तक असम में रहने के बाद अमन और चारू दिल्ली आ गए. दिल्ली आ कर अमन नौकरी की तलाश में जुट गया. थोड़ी कोशिश के बाद बाहरी दिल्ली के ढिचाऊं कलां के पास एक प्राइवेट कंस्ट्रक्शन कंपनी में उस की नौकरी लग गई. अमनदास को नौकरी मिल जाने के बाद पतिपत्नी ककरोला गांव में किराए पर कमरा ले कर रहने लगे. पति के नौकरी पर चले जाने के बाद चारू दिन भर घर में अकेली रहती थी. घर के कामधाम निपटाने के बाद अकेलेपन से वह ऊब जाती थी. उस ने इस बारे में एक दिन अमन से कहा, ‘‘मैं खाली समय में घर पर पड़ेपड़े बोर हो जाती हूं, इसलिए मैं चाहती हूं कि आसपास कहीं नौकरी कर लूं. इस से चार पैसे घर में आएंगे.’’

चारू पढ़ीलिखी तेजतर्रार युवती थी. इसलिए अमन को उस की तरफ से कोई चिंता नहीं थी. उस ने उसे नौकरी की इजाजत दे दी. साथ ही वह खुद भी यारदोस्तों के माध्यम से उस के लिए नौकरी तलाशने लगा. इस का नतीजा यह निकला कि एक जानने वाले व्यक्ति की  मार्फत रमेशनगर स्थित एक काल सेंटर में चारू को नौकरी मिल गई. नौकरी लगने के बाद चारू में एकदम बदलाव आने शुरू हो गए. उसे जो सेलरी मिलती थी, उस का ज्यादातर हिस्सा वह अपने बननेसंवरने पर खर्च कर देती थी. कभी अमन उस से फिजूलखर्ची रोकने की बात करता तो वह कह देती कि वह जो भी खर्च करती है अपनी कमाई का करती है. पत्नी का जवाब सुन कर अमन को गुस्सा तो आता लेकिन घर का माहौल खराब न हो यह सोच कर वह अपने गुस्से को जाहिर नहीं करता था.

जब पत्नी नौकरी करने घर से निकलती है तो उस की किसी न किसी बाहरी व्यक्ति से बातचीत तो होती ही है. चारू के साथ भी यही  हुआ. औफिस में काम करने वाले कुछ लोगों के साथ उस की दोस्ती हो गई. यह बात अमनदास को पसंद नहीं थी. उस ने चारू को समझाया कि वह केवल अपने काम से मतलब रखे और डयूटी कर के सीधी घर आ जाए. मगर चारू स्वच्छंद विचारों वाली महिला थी, उस ने पति की बातों को गंभीरता से नहीं लिया. चारू के एक दूर के मामा थे दीपक. वह अविवाहित थे. एक दिन चारू ने अपने औफिस में काम करने वाले सुधीर नाम के युवक से अपने मामा दीपक के लिए कोई लड़की बताने को कहा.

उसी औफिस में अनुराग मेहरा नौकरी करता था. अनुराग उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी थाने के अंतर्गत आने वाले संतनगर में रहता था. उस की बहन भी शादी लायक थी. अनुराग ने अपने यार दोस्तों से अपनी बहन के लिए कोई ठीक सा लड़का बताने को कह रखा था. चारू ने जब सुधीर से अपने मामा के लिए लड़की देखने की बात कही तो सुधीर ने उस से कहा, ‘‘अनुराग की बहन भी शादी योग्य है. इस बारे में तुम सीधे उस से बात कर लो. अगर दोनों के बीच बात बन गई तो इस से अच्छा क्या हो सकता है?’’

चारू ने इस बारे में सीधे अनुराग मेहरा से बात की. इस के बाद अनुराग के घर वालों ने दीपक को देखा. उन्हें दीपक का घरपरिवार ठीक लगा. दोनों तरफ से बात तय हो जाने के बाद दीपक की शादी अनुराग की बहन के साथ तय हो गई. शादी हो जाने के बाद चारू और अनुराग के औफिस के संबंध रिश्तेदारी में बदल गए. यह एक साल पहले की बात है. इस के कुछ दिन बाद अनुराग ने नौकरी छोड़ दी और संतनगर इलाके में ही मोबाइल  फोन रिचार्ज करने और उस से संबंधित अन्य सामान बेचने की दुकान खोल ली. इस बीच उस का चारू के घर आनाजाना शुरू हो गया था. दरअसल इस की वजह यह थी कि अनुराग मेहरा अविवाहित था. उस की नजर चारू पर थी. वह मन ही मन चारू को चाहने लगा था.

उधर काम बढ़ने पर अमनदास ज्यादा व्यस्त हो गया था. वह देर रात घर लौटता था. थकामांदा होने की वजह से वह खापी कर सो जाता. पत्नी की शारीरिक जरूरतों की तरफ उस का कोई ध्यान नहीं था. पति की इस बेरुखी से चारू के कदम बहक गए. चारू काफी दिनों से 25 वर्षीय अनुराग मेहरा की आंखों की भाषा को समझ रही थी. वह उस की बातों से उस के मन की चाहत को भांप गई थी. पति की बेरुखी ने उसे अनुराग की तरफ बढ़ने के लिए मजबूर कर दिया. वह अनुराग के साथ बिना किसी झिझक के घूमनेफिरने लगी. एक बार तो वह अनुराग के साथ मथुरा भी घूमने गई. वहां वे दोनों एक होटल में ठहरे. तभी उन के बीच जिस्मानी संबंध भी कायम हो गया.

मथुरा जाने से पहले चारू ने अमनदास को बताया था कि औफिस की तरफ से एक टूर मथुरा जा रहा है. उस टूर में वह भी जा रही है. अमनदास ने भी इस बारे में छानबीन नहीं की. उसे क्या पता था कि वह उस की आंखों में धूल झोंक कर अपने प्रेमी के साथ रंगरलियां मनाने जा रही है. कोई भी महिला जब इस तरह के कदम उठाती है तो वह अपने स्वार्थ में इतनी अंधी हो जाती है कि उसे इज्जतबेइज्जती की भी परवाह नहीं रहती. वह हमेशा अपने स्वार्थ को पूरे करने के तानेबाने बुनती है. चारू ने सोचा था कि उस की हरकतों का पति को पता नहीं लगेगा, इसलिए पति के ड्यूटी पर निकलते ही वह अपने कमरे पर अनुराग को बुला लेती थी. इस के बाद उन की रासलीला शुरू हो जाती थी. काफी दिनों तक यही सिलसिला चलता रहा. इसी दौरान चारू ने नौकरी भी छोड़ दी.

चारू भले ही पति की आंखों में धूल झोंक रही थी लेकिन वह मोहल्ले में रहने वालों की नजरों को धोखा नहीं दे सकती थी. अनुराग उस के पति की गैरमौजूदगी में उस के कमरे पर आ कर घंटों तक रुकता था. मोहल्ले वाले इस का मतलब समझ रहे थे. बहरहाल चारू और अनुराग के संबंधों को ले कर मोहल्ले में कानाफूसी शुरू हो गई. किसी तरह यह बात अमनदास के कानों तक भी पहुंच गई. अमनदास पत्नी पर विश्वास करता था. उसे लोगों की बातों पर यकीन नहीं आया लेकिन इन बातों ने उस के दिल में शक की लहर जरूर दौड़ा दी.

उस ने इस बारे में चारू से बात की तो वह उस के सामने एकदम सती सावित्री सी बन गई. उस ने कहा कि अनुराग हमारा रिश्तेदार है. वह कभीकभार यहां आ जाता है तो पता नहीं लोगों को क्यों जलन होती है. उस ने पति पर विश्वास जमाते हुए कहा कि उस के और अनुराग के बीच ऐसा कुछ भी नहीं है. अमन ने भी उस की बातों पर विश्वास कर लिया. पति के कुछ न कहने पर चारू अपनी चालाकी पर इतरा रही थी. वह मन ही मन खुश थी कि उस ने कितनी आसानी से पति को मूर्ख बना दिया. उस ने पहले की ही तरह अनुराग से मिलनाजुलना जारी रखा. उधर अमन ने भले ही पत्नी से कुछ नहीं कहा था लेकिन उस के दिमाग में शक का कीड़ा कुलबुलाने लगा था. सच्चाई जानने के लिए टाइमबेटाइम अपने कमरे पर आने लगा.

एक दिन दोपहर के समय वह अपने कमरे के करीब पहुंचा ही था तभी उस ने कमरे से अनुराग को निकलते देखा. अनुराग ने उसे नहीं देखा था. कमरे से निकल कर अनुराग सीधे अपनी कार में बैठ कर वहां से चला गया था. अमन कमरे में गया. उसे अचानक आया देख कर चारू चौंक गई. अमन ने उस से पूछा, ‘‘लगता है, अनुराग ने यहां आना बंद कर दिया है.’’

‘‘जब लोग फालतू की बातें करते हैं तो वो यहां क्यों आएगा.’’ चारू तपाक से बोली.

उस की बात सुन कर अमन समझ गया कि चारू उस से झूठ बोल रही है. अनुराग को उस ने घर से निकलते देखा था जबकि चारू ने यह बात उसे नहीं बताई. अपने वहम की पुष्टि के लिए उस ने फिर पूछा, ‘‘मेरे आने से पहले क्या कोई मेहमान यहां आया था?’’

‘‘नहीं तो, किस ने बताया आप को? यहां तो कोई नहीं आया था.’’ वह घबराते हुए बोली.

‘‘तुम झूठ बोल रह हो. यहां अभी अनुराग आया था. तुम्हारी बातों से तो लग रहा है कि मोहल्ले वाले तुम्हारे बारे में जो बातें कह रहे हैं वह सही हैं.’’ अमन झल्लाते हुए बोला.

पति के तेवर देख कर चारू चुप रही. पत्नी को कुछ देर डांटनेडपटने के बाद अमन भी चुप हो गया. लेकिन उस दिन के बाद दोनों के बीच मनमुटाव शुरू हो गया. रोजाना का झगड़ा आम बात हो गई. बात चारू के मायके तक पहुंची तो उस के पिता जयंत कुमार ने चारू को समझाया. लेकिन चारू अनुराग के प्यार में इतनी अंधी हो चुकी थी कि उस ने पिता की बातों को भी हवा में उड़ा दिया. उस ने मन ही मन तय कर लिया था कि वह अनुराग के साथ शादी कर के अलग घर बसाएगी. इस के लिए उस ने अमन से तलाक देने को कहा. लेकिन अमन उसे तलाक देने को राजी नहीं हुआ.

चारू को जब लगा कि सीधी अंगुली से घी नहीं निकलेगा तो उस ने अनुराग से साफ कह दिया कि अब अमन को ठिकाने लगाना ही पड़ेगा. इस के बाद ही हम साथसाथ रह सकते हैं. अनुराग ने जब कहा कि अमन को मार कर मुझे क्या मिलेगा तो चारू तपाक से बोली, ‘‘मैं मिलूंगी. मुझे हासिल करने के लिए तुम्हें यह काम करना ही पड़ेगा.’’

अनुराग भी चारू को बहुत चाहता था. जब उसे लगा कि चारू मानने वाली नहीं है तो उस ने अमन को ठिकाने लगाने की हामी भर दी. अनुराग किराए के हत्यारे से अमन की हत्या कराना चाहता था. लेकिन उस के सामने समस्या यह थी कि वह ऐसे किसी शख्स को नहीं जानता था जो पैसे ले कर यह काम कर सके. तब चारू और अनुराग ने खुद ही अमन को ठिकाने लगाने की योजना तैयार कर ली. 4 फरवरी, 2015 को अचानक अमन के हाथ से चाय का प्याला गिर गया. गर्म चाय से उस का पैर जल गया था. उस की वजह से वह 2 दिन से अपनी ड्यूटी पर नहीं जा पा रहा था. चारू और अनुराग ने इसी का फायदा उठाया.

5 फरवरी की रात को अमन पत्नी की योजना से बेखबर हो कर सो गया. तभी चारू ने अनुराग को फोन कर दिया. अनुराग अपनी सैंट्रो कार नंबर डीएल8सी एफ5776 से अमनदास के कमरे पर पहुंच गया. उस ने कमरे के बाहर पहुंच कर चारू को फोन किया. चारू ने दरवाजा खोल दिया और उसे यह कहते हुए छत पर भेज दिया कि आधी रात के बाद जब वह फोन करे तो छत से नीचे आ जाना. अनुराग छत पर चला गया. चारू पति के गहरी नींद में सो जाने का इंतजार करने लगी. जब वह गहरी नींद सो गया तो चारू ने अनुराग को छत से कमरे में बुला लिया. अनुराग अपने साथ बेसबाल का बैट लाया था. अनुराग ने योजनानुसार बेड पर सोए अमनदास पर बेसबाल बैट से जोरदार वार किया.

सिर पर प्रहार होते ही अमन की चीख निकल गई. तभी चारू ने उस की आंखों में मिर्ची पाउडर झोंक दिया. वह चीखता हुआ आंखें मलने लगा. उसी दौरान अनुराग ने उस के सिर पर कई वार किए. अमन के सिर से खून बहने लगा. वार करते समय बेसबाल के बैट का हत्था टूट गया तो चारू घर में रखी लकड़ी की सोंटी उठा लाई. उस ने उस सोंटी से अमन के सिर पर कई वार किए. कुछ ही देर में अमनदास बेहोश हो गया तो दोनों ने बेड की चादर सहित उसे फर्श पर डाल दिया. चारू कमरे में रखा लोहे का पाइप उठा लाई. चारू ने उस पाइप से पति पर वार किया. बाद में अनुराग अमन के पेट पर बैठ गया और उस का गला दबा दिया.

अमनदास की हत्या करने के बाद उन्होंने लाश उसी बेडशीट में लपेट दी फिर बाथरूम में अपने हाथ वगैरह साफ किए. एक पिलो कवर पर भी खून के ज्यादा धब्बे लगे थे, उस पिलो कवर को भी उन्होंने बेडशीट के साथ लपेट दिया. हाथपैर साफ करने के बाद चारू ने अपने कपड़े वगैरह एक बैग में भर दिए ताकि उसे ठिकाने लगाने के बाद वह भी वहां से खिसक जाए. अनुराग की सैंट्रो कार दरवाजे के बाहर खड़ी थी. दोनों ने चादर में लपेटी अमनदास की लाश सैंट्रो कार की पिछली सीट पर डाल दी. जैसे ही अनुराग ने कार स्टार्ट करनी चाही, वह स्टार्ट नहीं हुई. वह घबरा गया कि अब क्या करे.

उसी समय इत्तफाक से 2 लोग उधर से आ रहे थे, अनुराग ने उन लोगों से कार में धक्का लगवाया. कार स्टार्ट होने पर चारू बैग ले कर कार में अगली सीट पर बैठ गई. बैग ले कर वह अगली सीट पर इसलिए बैठी ताकि पुलिस चेकिंग में उन्हें परेशानी न आए. अमूमन रात में चैकिंग के दौरान गाड़ी में किसी महिला के बैठे होने पर पुलिस यही समझती है कि वह परिवार की ही महिला है. कार ले कर अनुराग पहले बहादुरगढ़ रोड पर गया. लेकिन वहां मौका न मिलने पर वह वापस नजफगढ़ की ओर लौट आया और नंगली डेरी के पास गहरे नाले में चादर से लाश निकाल कर फेंक दी. बाद में चादर और पिलो कवर भी वहीं फेंक दिया.

लाश ठिकाने लगा कर वे दोनों कमरे पर पहुंचे. चारू ने बेड और फर्श पर लगे खून के धब्बे साफ किए. अनुराग भी वहीं सो गया. सुबह होते ही अनुराग अपने घर चला गया. थोड़ी देर बाद चारू ने अंकित नाम के युवक को फोन किया. अंकित नजफगढ़ में ही रहता था और उस के औफिस में ही काम करता था. उस ने अंकित से कहा कि अमन उस से लड़झगड़ कर उसे अकेला छोड़ कर कहीं चला गया है. उस ने उस के पास रहने को कहा. अंकित ने सहानुभूति जताते हुए उसे अपने कमरे पर बुला लिया. चारू बैग में अपने कपड़े आदि भर कर दरवाजे पर ताला लगा कर अंकित के कमरे पर चली गई. इस बीच चारू की अपने घर वालों से फोन पर बात होती रही.

एक दिन चारू अंकित के सामने अपना दुखड़ा रो रही थी तभी उस के पिता जयंत कुमार का फोन आया. फोन पर बात करते समय जयंत कुमार को लगा कि चारू सामान्य नहीं है. उन्होंने उस से घबराहट की वजह पूछी तो चारू ने बता दिया कि ननद के चोट लगी है. उन्हें देखने के लिए वह नोएडा आई हुई है. लेकिन 12 फरवरी को उस ने अपना फोन स्विच्ड औफ कर दिया. 12 फरवरी के बाद जयंत कुमार की बेटी से बात नहीं हुई तो वह परेशान हो गए. उधर अनुराग और चारू ने नाले में अमनदास की जो लाश फेंकी थी वह उस समय तो पानी में डूब गई थी. बाद में वह 12 फरवरी को फूलकर पानी की सतह पर आ गई. नाले में लोगों ने लाश देखी तो उस की सूचना पुलिस को दी.

अनुराग से पूछताछ के बाद पुलिस ने 14 फरवरी, 2015 को ही चारू को अंकित के यहां से गिरफ्तार कर लिया. चारू फोन पर अनुराग से बात करती ही रहती थी. उस ने अनुराग को बता दिया था कि वह नजफगढ़ में अंकित के पास रह रही है. थाने में चारू ने अपने प्रेमी को पुलिस हिरासत में देखा तो वह समझ गई कि अनुराग ने सारी सच्चाई पुलिस को बता दी है इसलिए उस ने भी पुलिस के सामने पति की हत्या की बात कुबूल कर ली. पुलिस ने उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त बेसबाल का बैट, सोंटी और लोहे का पाइप चारू के कमरे से बरामद कर लिया. नाले में फेंकी गई बेडशीट और पिलो कवर बरामद नहीं हो सके. चारू और अनुराग मेहरा को गिरफ्तार कर पुलिस ने द्वारका कोर्ट में मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. मामले की तफ्तीश इंसपेक्टर अनिल कुमार कर रहे हैं. Love Story in Hindi

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Lucknow Crime Story: कलंक का टीका

Lucknow Crime Story: नारायण शरण और प्रियंका उर्फ चंदा ने समाज के विरुद्ध जा कर प्रेम विवाह किया था. नारायण ने मेहनत और लगन से न केवल अपने विवाह को सफल बनाया बल्कि पैसा कमा कर परिवार भी बसा लिया. लेकिन पति के इस प्रेम को भूल कर प्रियंका एक ऐसी दुनिया में रम गई जो उस के लिए नहीं थी. छोटे भाई नारायण शरण ने फोन कर के बुलाया तो हरिशंकर सहाय आधी रात को ही जानकीपुरम स्थित उस के घर जा पहुंचा. लेकिन वहां की स्थिति देख कर उस के होश उड़ गए. नारायण की पत्नी प्रियंका खून से लथपथ फर्श पर बेहोश पड़ी थी, जबकि नारायण घर से गायब था.

हरिशंकर ने घायल प्रियंका को पड़ोसियों की मदद से गाड़ी में डाल कर अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उस की नब्ज देख कर उसे मृत घोषित कर दिया. अस्पताल प्रशासन ने प्रियंका की मौत की सूचना पुलिस को दे दी, क्योंकि मृतका की हालत देख कर ही पता चल रहा था कि उस की हत्या हुई है. अस्पताल से सूचना मिलने पर थाना जानकीपुरम के थानाप्रभारी आर.बी. सिंह अपनी टीम के साथ अस्पताल पहुंच गए और प्रियंका की लाश को कब्जे में ले लिया. लाश की फोटो आदि करा कर उन्होंने उसे पोस्टमार्टम के लिए मैडिकल कालेज भिजवा दिया. इस के बाद थानाप्रभारी आर.बी. सिंह पुलिस टीम के साथ नारायण के घर पहुंचे.

घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद उन्होंने मृतका के जेठ हरिशंकर से पूछताछ की तो उस ने बताया कि आधी रात को नारायण ने फोन कर के सिर्फ इतना कहा था कि प्रियंका की तबीयत बहुत ज्यादा खराब है, उसे तुरंत अस्पताल ले जाना पड़ेगा. नारायण की बात सुन कर वह उसी समय उस के घर पहुंच गया. वहां उस के तीनों बच्चे मां की हालत देख कर बुरी तरह रो रहे थे, जबकि नारायण का कुछ अतापता नहीं था. उस ने पड़ोसियों की मदद से प्रियंका को तुरंत अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

घटनास्थल की काररवाई पूरी कर के थानाप्रभारी आर.बी. सिंह हरिशंकर को साथ ले कर थाना जानकीपुरम लौट आए और उस से एक तहरीर ले कर प्रियंका की हत्या का मुकदमा मृतका के पति नारायण शरण श्रीवास्तव के खिलाफ दर्ज करा दिया. नारायण फरार था. अब पुलिस को किसी भी तरह उसे गिरफ्तार करना था. थानाप्रभारी आर.बी. सिंह ने उस की गिरफ्तारी के लिए अपने मुखबिरों को सतर्क कर दिया. मुखबिरों की ही बदौलत हत्या के 6 दिनों बाद 27 सितंबर, 2014 को नारायण को गिरफ्तार कर लिया.

थाने में की गई पूछताछ में नारायण शरण ने प्रियंका की हत्या का अपराध तो स्वीकार किया ही, वह चाकू भी बरामद करा दिया, जिस से उस ने प्रियंका की हत्या की थी. पूछताछ में नारायण ने प्रियंका की हत्या की जो कहानी पुलिस को सुनाई, वह इस प्रकार थी. नारायण शरण श्रीवास्तव मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला बहराइच के कस्बा जरवल में अपने मातापिता के साथ रहता था. कालेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह एक डाक्टर के यहां कंपाउंडरी करने लगा. जब उस ने इंजेक्शन वगैरह लगाना सीख लिया तो अपने घर में क्लीनिक खोल कर वह खुद डाक्टर बन गया.

एक तो वह सस्ता इलाज करता था, दूसरे लोगों को फायदा भी हो जाता था, इसलिए कुछ ही दिनों में उस की डाक्टरी की दुकान चल निकली. एक दिन उस के क्लीनिक में इलाज के लिए एक लड़की आई. उस का नाम चंदा था. नारायण ने उसे दवाएं दीं, जिसे खाने के बाद वह ठीक होने लगी. इस से उसे लगा कि नारायण बहुत अच्छा डाक्टर है. वह अकसर उस के यहां दवा लेने आने लगी. एक तरफ नारायण की दवाओं से चंदा ठीक हो रही थी तो दूसरी तरफ उस की खूबसूरती और मासूम अदाओं ने तथाकथित डाक्टर नारायण के दिल में हलचल मचा दी थी. नारायण भी कदकाठी से ठीकठाक था, इसलिए वह भी चंदा को अच्छा लगता था.

चंदा जब भी उस के यहां दवा लेने आती, घंटों बैठ कर उस से बातें करती रहती. शायद यह उम्र का असर था, क्योंकि दोनों ही जवानी की दहलीज पर खड़े थे. इस का नतीजा यह हुआ कि चंदा नारायण से दवा लेने के बहाने लगभग रोज उस के यहां आने लगी. चंदा पड़ोस के गांव के रहने वाले मुश्ताक की बेटी थी. जब उस के मांबाप को बेटी के रोजरोज डा. नारायण से मिलने की जानकारी हुई तो उन्होंने चंदा को ऊंचनीच और परिवार की इज्जत का वास्ता दे कर रोकने की कोशिश की. लेकिन चंदा पर जितनी बंदिशें लगाई गईं, उस के मन में नारायण से मिलने की ललक उतनी ही बढ़ती गई.

चूंकि नारायण और चंदा अलगअलग जाति के ही नहीं, अलगअलग धर्म से भी ताल्लुक रखते थे, इसलिए दोनों के घरवालों ने ही नहीं, बल्कि अन्य लोगों ने उन के मिलने में रुकावटें डालनी शुरू कर दीं. लेकिन न चंदा को कोई रोक पाया, न नारायण को. जब नारायण और चंदा ने देखा कि उन के मिलने का विरोध कुछ ज्यादा ही हो रहा है तो उन के हाथ जो लगा, उसे ले कर दोनों अपनाअपना घरपरिवार छोड़ कर भाग गए. नारायण चंदा को ले कर दिल्ली आ गया. नारायण पढ़ालिखा समझदार लड़का था. दिल्ली में उस ने रहने की व्यवस्था तो कर ही ली, आमदनी का भी जरिया बना लिय.

धीरेधीरे वह खुद को व्यवस्थित करने की कोशिश कर ही रहा था कि न जाने कैसे चंदा के घर वालों को उस के ठिकाने का पता चल गया. लेकिन चंदा के पिता मुश्ताक उन दोनों तक पहुंचते, उस के पहले ही अपने ऊपर मंडराते खतरे को भांप कर नारायण वहां से चंदा को ले कर मुंबई चला गया. नारायण पढ़ालिखा व होशियार लड़का था. इसलिए वहां भी उसे कोई परेशानी नहीं हुई. कुछ न कुछ कर के वह इतना कमाने लगा कि दोनों की गुजरबसर आराम से हो सके. 1997 में नारायण चंदा को ले कर हरिद्वार आ गया. यहां उस ने चंदा का नाम बदल कर प्रियंका रख लिया और बकायदा उस से शादी कर ली. शादी करने के बाद नारायण और प्रियंका बाराबंकी आ गए, जहां दोनों ने एक छोटा सा जनरल स्टोर खोल लिया. जनरल स्टोर में ही वह छोटीमोटी बीमारियों का इलाज भी करने लगा था. इस से उस की कमाई दोहरी हो जाती थी.

ठीकठाक कमाई होने लगी तो घर की स्थिति में काफी सुधार आया. जल्दी ही उस ने घर में सुखसुविधा के तमाम साधन जुटा लिए. समय के साथ प्रियंका एकएक कर के 3 बच्चों की मां बनी, जिन में 2 बेटे शिवम तथा हर्ष और एक बेटी श्रेया उर्फ गुनगुन थी. दोनों बेटे स्कूल जाने लगे थे, जबकि गुनगुन अभी छोटी थी. बच्चों की वजह से घर का माहौल खुशनुमा हो गया. बच्चों के साथ हंसतेखेलते प्रियंका और नारायण का समय आराम से कट रहा था. बच्चे ठीकठाक स्कूल में पढ़ रहे थे. सब कुछ ठीकठाक था. इस के बावजूद नारायण ने बाराबंकी छोड़ कर लखनऊ में रहने का विचार बनाया. लखनऊ में उस ने जानकीपुरम थानाक्षेत्र स्थित जानकी विहार कालोनी में राजकिशोर का मकान किराए पर लिया और परिवार के साथ रहने लगा. लखनऊ आने के बाद नारायण एलएलबी की पढ़ाई करने के साथसाथ प्रौपर्टी डीलिंग का काम भी करने लगा.

एलएलबी की पढ़ाई पूरी हो गई तो रजिस्ट्रेशन करा कर नारायण वकालत करने लगा. साथ में उस का प्रौपर्टी डीलिंग का काम चल ही रहा था. घर आए मरीजों को वह दवा भी दे देता था. इस तरह पैसा कमाने के लिए वह एक साथ 3-3 काम कर रहा था. इस के लिए उसे मेहनत तो करनी पड़ रही थी, लेकिन कमाई खूब हो रही थी. इस कमाई से जल्दी ही उस का और प्रियंका का रहनसहन भी स्तरीय हो गया. नारायण ठाठ से रहने लगा तो प्रियंका भी बनठन कर रहने लगी. नारायण शरण का पूरा दिन दौड़धूप में बीतता था जिस की वजह से वह पत्नी और बच्चों को बिलकुल समय नहीं दे पाता था. जबकि प्रियंका चाहती थी कि वह भी कालोनी की अन्य महिलाओं की तरह अपने पति के साथ बांहों में बांहें डाल कर लखनऊ के बाजारों में घूमे. लेकिन पति की व्यस्तता की वजह से ऐसा हो नहीं पाता था.

नारायण के 3-3 बच्चे थे. उन का भविष्य संवारने के लिए उसे पैसों की जरूरत थी. इसलिए उस का ध्यान सिर्फ पैसा कमाने में लगा था. पैसा कमाने के चक्कर में वह यह भूल गया कि घरपरिवार की जरूरतों के अलावा पत्नी की भी कुछ इच्छाएं होती हैं. पति होने के नाते उन्हें पूरा करना उस का फर्ज है. जिस मकान में नारायण परिवार के साथ रहता था, उसी के बगल में किराए के मकान में अवधेश मिश्रा रहता था. 20 वर्षीय अवधेश काफी तेजतर्रार और आकर्षक व्यक्तित्व का युवक था. वह मूलरूप से जिला सीतापुर के थाना बिसवां के गांव लश्कर का रहने वाला था. लखनऊ में वह छोटीमोटी प्रौपर्टी डीलिंग का काम कर रहा था. लेकिन उस की उम्र चूंकि काफी कम थी इसलिए लोग उस पर ज्यादा विश्वास नहीं करते थे.

नौजवान होने की वजह से काम में उस का मन भी कम लगता था. वह दिनभर बनसंवर कर घूमा करता था. नारायण शरण भी प्रौपर्टी काम करता था और पड़ोस में ही रहता था. इसलिए अवधेश का उस के यहां भी आनाजाना था. वह नारायण की पत्नी प्रियंका को भाभी कहता था. कभीकभी वह अवधेश नारायण की अनुपस्थिति में भी उस के घर आ जाता था. उस स्थिति में वह प्रियंका से बातें करते हुए बच्चों के साथ खेलता रहता. प्रियंका को चूंकि वह भाभी कहता था, इसलिए कभीकभार उस से थोड़ीबहुत हंसीमजाक भी कर लेता था. जबकि प्रियंका अवधेश से खुल कर हंसीमजाक करती थी. अवधेश को प्रियंका का स्वभाव और बातें बहुत अच्छी लगती थीं, इसलिए नारायण के काम पर चले जाने के बाद जब वह घर में अकेली रह जाती तो अवधेश अपना ज्यादातर समय उसी के यहां बिताता.

दिन में प्रियंका के दोनों बच्चे स्कूल चले जाते थे तो वह घर में अकेली रह जाती थी. जब वह बोर होने लगती तो बातें करने के लिए या तो खुद ही अवधेश को अपने घर बुला लेती या फिर उसी के कमरे पर चली जाती. एक दिन अवधेश बातचीत करते हुए प्रियंका से हंसीमजाक कर रहा था. बातोंबातों में वह प्रियंका की खूबसूरती के कसीदे काढ़ने लगा. यह देख प्रियंका ने मजाक में अवधेश की बेचैन आंखों में आंखें डाल कर पूछा, ‘‘अवधेश, क्या सचमुच मैं तुम्हें अच्छी लगती हूं? कहीं तुम मुझे खुश करने के लिए मेरी झूठी तारीफें तो नहीं कर रहे?’’

अवधेश ने प्रियंका को चाहत भरी नजरों से देखा. वह गहरी नजरों से उसे अपलक निहार रही थी. उस ने महसूस किया कि उस के दिल में जो बातें काफी दिनों से होंठों पर आने के लिए मचल रही हैं, उसे जुबां पर लाने का यह सुनहरा मौका है. दोपहर का वक्त था. प्रियंका के दोनों बेटे स्कूल गए थे और छोटी बेटी गहरी नींद सो रही थी. वह प्रियंका के करीब आया तो प्रियंका ने उसे कमरे का दरवाजा बंद करने का इशारा किया. प्रियंका के इशारे से वह समझ गया कि उस के दिल में उस के लिए भी वही भावना है, जो उस के दिल में प्रियंका के लिए है. अवधेश ने जल्दी से दरवाजा बंद किया और प्रियंका को बांहों में ले कर उस के खूबसूरत चेहरे को बेतहाशा चूमने लगा.

अवधेश की इस हरकत से प्रियंका मदहोश हो गई और उस की आंखें बंद हो गईं. अवधेश ने जल्दीजल्दी प्रियंका के कपड़े उतारे और खुद भी उसी अवस्था में आ कर उस से लिपट गया. कुछ देर बाद वासना का तूफान शांत हुआ तो दोनों के चेहरों पर तृप्ति के भाव थे. अवधेश ने शरारत से मुसकराते हुए प्रियंका की ओर देखा तो कुछ पल पहले एकसाथ गुजारे हुए पलों की याद आते ही प्रियंका की नजरें नीचे झुक गईं. उस ने जल्दी से अपने कपड़े पहने और अवधेश को अपने कमरे पर जाने को कहा. अवधेश के मन की मुराद पूरी हो चुकी थी. वह कपड़े पहन कर अपने कमरे पर चला गया.

उस दिन के बाद दोनों को मिलन के मौके का इंतजार रहने लगा. जब भी उन्हें मौका मिलता वे दुनिया की नजरों से छिप कर अपने जिस्म की प्यास बुझा लेते. जब से प्रियंका और अवधेश के संबंध बने थे, उन के रंगढंग काफी बदल गए थे. अब प्रियंका अवधेश का ज्यादा और नारायण का खयाल कम रखती थी. कुछ महीनों तक तो किसी को उन के बीच चल रहे अवैधसंबंधों की जानकारी नहीं हुई, लेकिन ऐसी बातें ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रहतीं. कुछ लोगों ने नारायण तथा बच्चों की अनुपस्थिति में अवधेश को प्रियंका के यहां बारबार आतेजाते देखा तो उन का माथा ठनका.

एक शादीशुदा औरत का एक जवान लड़के से भला क्या रिश्ता हो सकता है? लोगों ने इस बात पर गौर किया कि अवधेश प्रियंका से मिलने तभी जाता है, जब उस का पति नारायण शरण घर के बाहर रहता था. यह बात एक कान से होती हुई दूसरे कान तक पहुंची. प्रियंका और अवधेश के अवैध संबंधों की चर्चा गर्म होतेहोते एक दिन नारायण शरण के कानों तक भी जा पहुंची. अवधेश के अपने घर में घंटों गुजारने का पता चला तो उसे प्रियंका पर बहुत गुस्सा आया. उस ने प्रियंका से अवधेश के बारबार घर आने और घंटों बैठने का कारण पूछा तो प्रियंका त्रियाचरित्र दिखाते हुए तमक कर बोली, ‘‘अवधेश अच्छे स्वभाव का लड़का है. वह कभीकभार बच्चों के साथ खेलने हमारे घर आ जाता है तो इस में बुराई क्या है?’’

अपनी बीवी को एक गैर युवक की तरफदारी करते देख नारायण शरण के मन में यह बात बैठ गई कि लोग उस की पत्नी और अवधेश के बारे में ऐसीवैसी बातें यूं ही नहीं करते. आग वहीं लगती है, जहां धुआं उठता है. अपने मन में उठ रहे भावों पर काबू पाते हुए उस ने कहा, ‘‘अवधेश तेरा सगा भाई तो है नहीं कि जब चाहे मुंह उठाए हमारे घर में चला आए. जमाना बहुत खराब है. लोग उसे ले कर तुम्हारे बारे में तरहतरह की बातें करते हैं. हम लोग यहां के प्रतिष्ठित लोगों में हैं. तुम्हें अपनी और मेरी प्रतिष्ठा का खयाल रखना चाहिए.चलो मान लिया कि उसे मुझ से कोई काम है तो उसे मेरा मोबाइल नंबर दे कर मुझ से बात करने को कह दो. मैं नहीं चाहता कि मोहल्ले में कोई उसे ले कर तुम्हारे बारे में ऐसीवैसी बातें करे. आज तुम्हें अच्छी तरह समझा देता हूं. मेरी बात का ध्यान रखना, वरना ठीक नहीं होगा.’’

पति के नाराज होने पर प्रियंका ने बात को दबा देने में ही अपनी भलाई समझी, सो उस ने पति के सामने कह दिया कि आज के बाद अवधेश यहां नहीं आएगा. प्रियंका को अच्छी तरह समझाने के बाद नारायण शरण शांत हो गया. लेकिन पति के मना करने के बाद भी प्रियंका नहीं सुधरी. नारायण शरण सुबह काम पर चला जाता, उस के बाद दोनों बच्चे स्कूल चले जाते. उन के जाने के बाद प्रियंका अवधेश को अपने घर बुला लेती. नारायण के धमकाने के बाद प्रियंका थोड़ी सावधानी बरतने लगी थी. पति का गुस्सा शांत होने तक उस ने अवधेश को घर आने से मना जरूर कर दिया था. मगर दोनों ज्यादा दिनों तक एकदूसरे से मिले बिना नहीं रह पाए. जब नारायण शरण कोर्ट के काम से घर से बाहर होता, तो अवधेश प्रियंका से मिलने उस के घर आ जाता.

प्रियंका पर अवधेश का जादू सिर चढ़ कर बोल रहा था. इसलिए थोड़े दिनों के बाद जब नारायण शरण का ध्यान उन की ओर से हट गया तो प्रियंका ने अवधेश को खुश करने के लिए पति की गाढ़ी कमाई से सोने की चेन बनवा कर दी. यही नहीं, जब अवधेश ने देखा कि प्रियंका उस पर पूरी तरह मेहरबान है तो उस ने प्रियंका से कहा कि उसे काम पर आनेजाने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, अगर वह उसे एक मोटरसाइकल खरीद दे तो उस की काफी मुश्किलें आसान हो जाएंगी. उन दिनों नारायण शरण का काम अच्छा चल रहा था, इसलिए घर में पैसों की कमी नहीं थी. अवधेश मिश्रा के प्यार में पागल प्रियंका ने मन ही मन सोचा कि अगर वह पति की नजरें बचा कर अवधेश को मोटरसाइकिल खरीदने के लिए रुपए दे देती है तो उसे पता तक नहीं चलेगा.

फलस्वरूप उस ने अवधेश को मोटरसाइकिल खरीदने के लिए रुपए दे दिए. कुछ दिनों बाद नारायण ने जब अवधेश को अपने घर के सामने से नई मोटरसाइकिल पर जाते देखा तो उसे लगा कि आजकल उसे अच्छी कमाई होने लगी है. लेकिन कुछ दिनों बाद जब नारायण ने घर में रखे रुपए गिने तो उस में काफी रुपए कम थे. उस ने इस बारे में प्रियंका से पूछा तो उस ने कहा कि उस के रखे रुपयों में उस ने हाथ तक नहीं लगाया. प्रियंका की बात सुन कर नारायण चुप रह गया. लेकिन उसे यकीन हो गया कि प्रियंका ने उसी के रुपयों से अपने प्रेमी को नई मोटरसाइकिल तथा सोने की चेन दिलाई है. इसी बात को ले कर नारायण ने प्रियंका से सवालजवाब किए तो वह नाराज हो कर मकान में चली गई.

दरअसल, कुछ दिन पहले ही नारायण ने अपना नया मकान बनवाया था जो बन कर तैयार हो गया था. वे लोग कुछ ही दिनों में उस में शिफ्ट होने वाले थे. गुस्से में नारायण ने पूरे दिन प्रियंका को वापस नहीं बुलाया. वह बिना खाएपिए ही वहां पड़ी रही. शाम ढलने पर नारायण यह सोच कर प्रियंका को बुलाने चला गया कि लोगों को उन के झगड़े का पता चलेगा तो उसी की बेइज्जती होगी. पति के द्वारा बुलाए जाने को प्रियंका ने अपनी जीत समझी. घटना वाले दिन नारायण किसी काम से बाहर गया था. देर रात को जब वह घर लौटा तो उस ने देखा कि उस के तीनों बच्चे बाहर सोए थे और घर का दरवाजा अंदर से बंद था.

उस का माथा ठनका. बच्चों को बाहर सुला कर प्रियंका घर में क्या कर रही है? मन में ऐसा विचार आते ही उस ने दरवाजे पर जोर से दस्तक दी. दरवाजा नहीं खुला तो आवाज दे कर जोरजोर से दरवाजा पीटने लगा. कुछ देर बाद दरवाजा खुला तो अवधेश निकल कर वह अपने कमरे की ओर भागा. बीवी के यार को सामने से भागता देख कर नारायण की आंखों में खून उतर आया. वह अवधेश को मारने के लिए उस के पीछे लपका लेकिन उस की किस्मत अच्छी थी, इसलिए काफी दूर तक पीछा किए जाने के बाद भी वह नारायण के हाथ नहीं लगा.

अवधेश से बच कर निकल जाने से नारायण गुस्से से तमतमाया घर लौटा और प्रियंका के ऊपर बरस पड़ा. प्रियंका उस के चुभते सवालों का जवाब भले नहीं दे सकी, लेकिन बदहवासी में उस ने नारायण के गाल पर तमाचा जड़ दिया. बदचलन बीवी की हिम्मत देख कर वह क्षणभर के लिए अवाक रह गया. लेकिन अगले ही पल उस का धैर्य जवाब दे गया. उस ने पास रखा चाकू उठाया और पूरी ताकत से 2 वार प्रियंका के गले पर और एक वार गाल पर कर दिया. बुरी तरह घायल प्रियंका वहीं फर्श पर गिर कर तड़पने लगी. प्रियंका को तड़पते देख नारायण को होश आया कि मां के बिना उस के तीनों बच्चे तो अनाथ हो जाएंगे.

उस ने तुरंत छठामील पर रहने वाले अपने बड़े भाई हरिशंकर सहाय को फोन किया कि प्रियंका की तबीयत अचानक बहुत खराब हो गई है. उसे तुरंत अस्पताल पहुंचाना होगा. हरिशंकर जानकीपुरम स्थित नारायण के घर पहुंचे तो नारायण चाकू सहित गायब था. जानकीपुरम के थानाप्रभारी आर.बी. सिंह ने जरूरी काररवाई के बाद प्रियंका उर्फ चंदा की हत्या के आरोप में उस के पति नारायण शरण को अदालत में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक जेल में बंद नारायण के तीनों बच्चे छठामील स्थित अपने ताऊ के घर रह रहे थे. Lucknow Crime Story

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Chhattisgarh News : 16 साल की प्रेगनेंट गर्लफ्रेंड ने किया बौयफ्रेंड का मर्डर

Chhattisgarh News : एक ऐसी सनसनीखेज घटना सामने आई है, जिस ने सभी को झकझोर कर कर रख दिया है. जहां एक गर्लफ्रेंड ने अपने ही बौयफ्रेंड की हत्या कर डाली. आखिर क्या वजह थी, जिस से गर्लफ्रेंड अपने ही बौयफ्रेंड की कातिल बन गई. आइए जानते हैं इस अपराध से जुड़ी पूरी जानकारी विस्तार से.

यह हैरान कर देने वाली वारदात छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले से सामने आई है, जहां 16 साल की प्रेगनेंट गर्लफ्रेंड ने सोते हुए अपने 20 वर्षीय बौयफ़्रेंड मोहम्मद सद्दाम की चाकू मारकर हत्या कर दी. सद्दाम बिहार का रहने वाला था. कुछ समय से वह छत्तीसगढ़ में रह रहा था. वहीं उस की गर्लफ्रेंड बिलासपुर की रहने वाली थी. वह अपनी मम्मी के साथ रहती थी.

पुलिस के अनुसार, जांच में सामने आया कि बौयफ्रेंड सद्दाम की हत्या करने के बाद किशोरी खुद अपनी मम्मी के साथ पुलिस स्टेशन पहुंची और अपना अपराध स्वीकार कर लिया. किशोरी लंबे समय से अपने बौयफ्रेंड के साथ लिवइन रिलेशन में रही थी.

जांच में सामने आया कि किशोरी प्रेगनेंट थी. वह अपने बौयफ्रेंड सद्दाम से शादी करना चाहती थी, लेकिन सद्दाम शादी करने के बजाय उस पर अबौर्शन कराने का दबाव बना रहा था. इस बात को ले कर दोनों में अक्सर झगड़ा होता रहता था. वह उस से नाराज थी. इसलिए 27 सितंबर, 2025 को शहर के गंज थाना क्षेत्र में स्थित ‘ए वन लौज’ में सोते हुए ही किशोरी ने उस की चाकू मार कर हत्या कर दी. हत्या के बाद वह बौयफ्रेंड का मोबाइल भी अपने साथ ले कर चली गई.

हत्या करने के बाद किशोरी ने रूम का ताला बंद कर चाबी रेलवे ट्रैक पर फेंक दी थी.
इस के बाद वह बिलासपुर लौट आई. किशोरी ने आते ही अपनी मम्मी को इस घटना के बारे में बताया तो मम्मी ने नजदीक के कोनी पुलिस स्टेशन पहुंच कर बेटी का आत्मसमर्पण कर दिया.

कोनी थाना पुलिस ने यह जानकारी गंज थाना पुलिस को दे दी, तब थाना गंज पुलिस ‘ए वन लौज’ पहुंची और लौज के कमरे से मोहम्मद सद्दाम का खून से लथपथ शव बरामद कर उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और मामला दर्ज कर लिया. अब पुलिस आगे की काररवाई कर रही है. Chhattisgarh News

UP Crime News : जमीन जायदाद के लिए बूढ़ों का अपमान

UP Crime News : आज के बदले दौर और परिवारों के टूटने से बूढ़ों की उपेक्षा बढ़ी है. आजकल कितने ही अच्छेभले परिवारों के बूढ़े अपने ही परिवार से उपेक्षित हो कर रोटीरोटी के लिए मोहताज हैं. आखिर ऐसा क्या होना चाहिए कि बुजुर्गों को इस तरह अपमानजनक जिंदगी न जीनी पड़े?

उत्तर प्रदेश के खुर्जा जिले के सौंदा के रहने वाले 52 साल के राधेश्याम के 3 बेटे थे. राधेश्याम ने बापूनगर इलाके में अपना मकान बना रखा था, जिस में बाहर की तरफ 2 दुकानें थीं. राधेश्याम का बड़ा बेटा अरविंद चाहता था कि एक दुकान उस के नाम कर दी जाए. वह करीब एक माह से अपने पिता से इस बात की मांग भी कर रहा था. राधेश्याम अपनी यह दुकान बेटे को नहीं देना चाहते थे. वह सोच रहे थे कि एक बेटे को वह दुकान दे देंगे तो बाकी दोनों बेटे भी ऐसी ही मांग करने लगेंगे. इस से बचने के लिए राधेश्याम ने अपनी दुकान किसी और को किराए पर दे दी.

एक दिन अरविंद घर आया तो दुकान पर किसी और को बैठा देख कर गुस्सा होने लगा. इसी बीच राधेश्याम वहां आ गए. पिता को देख कर अरविंद गुस्सा हो गया, फलस्वरूप पितापुत्र में कहासुनी शुरू हो गई. गुस्से में अरविंद ने पत्नी के साथ मिल कर पिता को कमरे के अंदर खींच लिया और उन का गला घोंट कर मार डाला. अपना गुनाह छिपाने के लिए अरविंद ने पिता के शव को घर के आंगन में डाला और उस पर मिट्टी का तेल डाल कर आग लगा दी. मकान में रह रही किराएदार महिला ने इस बात की शिकायत पुलिस से की.

पुलिस ने अरविंद और उस की पत्नी को पकड़ कर पूछताछ की तो अरविंद ने अपना गुनाह कबूल करते कहा, ‘‘मैं अपने पिता से दुकान देने के लिए कह रहा था. लेकिन वह मेरी बात नहीं मान रहे थे. उन्होंने दुकान किराए पर उठा दी, इस बात को ले कर हमारे बीच कहासुनी शुरू हो गई. इस के बाद गुस्से में यह सब हो गया.’’

खुर्जा के एसओ सुधीर त्यागी ने बताया कि अरविंद ने अपना गुनाह कबूल कर लिया है. वह अपनेआप को अपराधी बता रहा है. उस की पत्नी का इस में कोई हाथ शामिल नहीं पाया गया. खुर्जा की इस कहानी में 2 बड़े गुनाह हैं. एक तो पिता की हत्या करना, दूसरे हत्या करने के बाद शव को मिट्टी का तेल डाल कर जलाना. ऐसी घटनाएं समाज में तेजी से बढ़ती जा रही हैं जिन में जायदाद के लिए बेटेबहू और मांबाप के साथ अमानवीय व्यवहार कर रहे हैं. अपनों के द्वारा जायदाद के लिए मारे और सताए जा रहे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है. मांबाप बुढ़ापे की लाठी समझ कर जिन औलादों को अपनी जान से बढ़ कर पाल रहे हैं, वह ही उन का उत्पीड़न कर रहे हैं.

कुछ दिन पहले ही रायबरेली जिले के खीरों इलाके में एक पुत्र ने अपनी पत्नी के साथ मिल कर अपनी मां की हत्या कर दी थी. हत्या की वजह यह थी कि बेटा अपनी वह जमीन बेचना चाहता था, जो उस की मां के नाम पर थी. मां जमीन बेचने से इनकार कर रही थी. लखनऊ में एक बड़े कारोबारी परिवार में भी ऐसा ही कुछ हुआ. यहां पर एक भतीजे ने नौकर के साथ मिल कर अपनी चाची की हत्या करवा दी. हत्या का कारण चाची की करोड़ों की दौलत थी. हालांकि चाची पहले ही अपनी वसीयत अपने भतीजे के नाम कर चुकी थी लेकिन भतीजे को डर था कि बाद में चाची कहीं वसीयत बदल न दे. इसलिए उस ने नौकर से उन की हत्या करवा दी.

ऐसे मामले भले ही कम होते हों, पर यह समाज की बदलती मानसिकता को दिखाने के लिए काफी है. जायदाद के लालच में कई बेटे अपने मांबाप को कैदी की तरह रख रहे हैं तो कुछ उन की जमीन, जायदाद अपने नाम करवा कर या उस पर कब्जा कर के उन्हें दरदर की ठोकरें खाने को मजबूर कर रहे हैं. सुल्तानपुर जिले में ‘अन्याय के खिलाफ मंच’ चलाने वाले आरटीआई एक्टिविस्ट डा. राकेश सिंह कहते हैं, ‘गांव से ले कर शहर तक और गरीबों से ले कर अमीरों तक हर जगह एक जैसे हालात हैं. पढ़ाईलिखाई और जागरूकता भी इसे रोक नहीं पा रही है.

गांवों में हालात और भी खराब हैं. मांबाप के बूढ़े होते ही बच्चे चाहते हैं कि मांबाप जमीन, खेत, मकान सब उन्हें दे दें. जो मांबाप ऐसा कर देते हैं उन्हें घर के किसी कोने में उपेक्षितों की तरह रखा जाता है.’ लखनऊ में ‘अपना घर’ नाम से वृद्धाश्रम चला रही समाजसेवी डा. निर्मला सक्सेना कहती हैं, ‘बूढ़े मांबाप बच्चों को बोझ लगने लगे हैं. पति की मौत के बाद जीवित बची मां तो बहुत ही असहाय हालत में पहुंच जाती है. उस की देखभाल करने वाला कोई नहीं होता.’ ‘अपना घर’ वृद्धाश्रम में 100 महिलाओं के रहने की निशुल्क व्यवस्था है.

निर्मला सक्सेना कहती हैं, ‘समाज में जिस तरह से बूढ़ों की उपेक्षा अपराध का रंग लेती जा रही है, वह चिंता का कारण बन गया है.’ हमारा समाज दोहरी मानसिकता का शिकार है. एक तरफ वह इस बात का दिखावा करता है कि वह बूढ़ों का बहुत मानसम्मान करता है, वहीं दूसरी तरफ वही समाज उन की सही देखभाल तक नहीं करता. ऐसे में जरूरत है कि हर जगह बेहतर सुविधाओं वाले वृद्धाश्रम खोले जाएं. वृद्धाश्रम में बुजुर्गों के भेजने को गलत नजर से न देखा जाए. जिस तरह से बूढ़ों की उपेक्षा की जा रही है, उस से तो अच्छा है कि उन्हें वृद्धाश्रम भेज दिया जाए, जहां वह सही तरह से अपना जीवन गुजार सकें.

बूढ़ों की उपेक्षा कोई नई बात नहीं है. हम जिस संस्कृति की दुहाई देते नहीं थकते, उस में ऐसी तमाम कहानियां मौजूद हैं, जहां बूढ़ों की उपेक्षा हुई. रामायण से ले कर महाभारत तक में ऐसी कई कहानियां इस बात की गवाह हैं. हमें यथार्थ को स्वीकार करते हुए ऐसे उपाय करने चाहिए, जिस से बूढ़ों को भी समाज में बेहतर जिंदगी मिल सके. पहले लोग अपनी सेहत, बीमारी और खानपान का सही ध्यान नहीं रखते थे. ऐसे में कम उम्र में ही उन की मौत हो जाती थी.

बदलते दौर में हालात बेहतर होने से औसत उम्र बढ़ी है, जिस से बूढ़ों की संख्या बढ़ गई है. पिछले 10 सालों में 75 साल से ऊपर के लोगों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है. ऐसे में जरूरी है कि सरकार ऐसे लोगों के लिए इस तरह के खास इंतजाम करे, जिस से उन के बच्चे उन्हें न केवल अपने साथ रखें बल्कि उन की देखभाल भी करें. 75 साल से अधिक उम्र के लोगों को टैक्स में छूट दी जाए. उन के पास जो पैसा है, उस की पूछताछ न की जाए. इस से लालच में उन के बच्चे उन्हें अपने साथ रहने के लिए तैयार हो जाएंगे. इस के साथसाथ उन्हें मैडिकल सुविधाएं भी दी जाएं.

उन की परेशानियों को समझने के लिए अलग व्यवस्था हो, जिस से बच्चों के साथ विवाद की दशा में बूढ़ों को राहत मिल सके. अपनी स्थिति को देखते हुए बूढ़ों को भी बदलना होगा. उन्हें अपनी सेहत के हिसाब से ऐसे काम करने चाहिए जो वह सरलता से कर सकें. इस में वह काम ज्यादा हों, जो घर के दूसरे लोगों को मदद लगें. जैसे बच्चों की देखभाल, घर की साफसफाई, बाजार से सामान लाना. उन्हें अपनी उपयोगिता को बनाए रखने के उपाय स्वयं करने होंगे.

इस के लिए सब से जरूरी है कि वे अपनी सेहत का खयाल रखें और इन कामों के लिए तैयार रहें. यह न सोचें कि समाज क्या कहेगा? अपने जैसे आसपास के दूसरे लोगों की मदद करें और उन्हें ऐसे काम करने के लिए कहें. वे लोग ऐसे काम करें, जिस से घर के लोग बोझ न समझें. बच्चों की आजादी में खलल बनना भी ठीक नहीं है. जायदाद के विवाद में पहले बच्चों के साथ मिलबैठ कर बात करें. बात को छिपाएं नहीं. अगर किसी तरह से डर लग रहा है तो अपने करीबी नाते रिश्तेदारों या फिर कानून की मदद लें. कई बार ऐसी घटनाएं छिपाने से बात बढ़ जाती है.

जिस का खामियाजा बूढ़ों को भुगतना पड़ता है. अपने को आर्थिक रूप से हमेशा मजबूत रखें. आज तमाम तरह की बीमा पालिसी आ गई हैं, जो बुढ़ापे में मदद करती हैं. समाज को भी अपनी सोच बदलनी होगी. बूढ़ों को बोझ न समझें. उन्हें काम करने दें. उन की मदद करें. उन पर किसी तरह की दया भावना भले ही न दिखाएं पर उन पर अत्याचार न करें. आज की हकीकत को सामने रख कर काम करें तो बच्चों और बूढ़ों के बीच बेहतर संबंध बन सकेंगे. अगर पुरानी संस्कृति के भुलावे में रहेंगे तो बूढ़ों के प्रति उपेक्षा और अपराध की भावना बढ़ती रहेगी. UP Crime News