डीपफेक : टेक्नोलॉजी का गलत इस्तेमाल

जब से प्रो. वरिंदर कालेज के मास कम्युनिकेशन विभाग में आए थे, तब से इस विभाग में स्टूडेंट्स काफी बढ़ गए थे. हर स्टूडेंट प्रो. वरिंदर के पढ़ाने के तरीके से प्रभावित था. यह हिमाचल के रहने वाले थे और कालेज के हौस्टल में ही रहते थे. सभी स्टूडेंट्स उन के दीवाने थे, क्योंकि वह काफी हैंडसम थे.

किसी को भी अंदाजा नहीं था कि प्रो. वरिंदर का अश्लील वीडियो वायरल हो जाएगा. सभी तरफ इस वीडियो की ही चर्चा हो रही थी. प्रो. वरिंदर खुद हैरान थे कि यह कैसे हो सकता है.

कालेज, शहर, देशविदेश में यह वीडियो जंगल की आग की तरह फैल गया था. प्रिंसिपल गुरदयाल सिंह ने प्रो. वरिंदर को अपनी केबिन में बुलाया और उस वायरल वीडियो के बारे में पूछा.

”सर, यह वीडियो मेरा नहीं है.’’ प्रो. वङ्क्षरदर ने प्रिंसिपल साहब को सफाई दी.

”लेकिन वीडियो में तो आप ही हैं. वरिंदरजी, आप खुद देखो न, आप खुद हो, साथ में लड़की नैना है, जो बार बार आप से कई टौपिक पर पूछती रहती थी. यह कमरा, बैडरूम, दीवार अपने ही हैं. दीवार पर अलगअलग स्टिकर लगे हुए हैं. यह कमरा तो अपने ही हौस्टल का ही है. सौरी वरिंदरजी, हम कालेज की बदनामी नहीं करा सकते. जब तक यह वीडियो वाली बात साफ नहीं हो जाती, सच्चाई पता नहीं चल जाती, प्लीज आप कालेज मत आना. मुझे इस की जानकारी पुलिस को देनी पड़ेगी.’’

”पर सर, मैं नहीं हूं. जो लड़की है वह मेरी स्टूडेंट है, फिर मैं यह कैसे कर सकता हूं.’’ प्रो. वङ्क्षरदर ने कहा.

प्रिंसिपल गुरदयाल सिंह ने खुद ही इंसपेक्टर को फोन मिलाया और कहा, ”मलकीतजी, कालेज जल्दी आना.’’

इंसपेक्टर मलकीत सिंह पिं्रसिपल का दोस्त था.

”कोई खास वजह?’’ इंसपेक्टर मलकीत ने पूछा.

”मेरे कालेज के प्रो. वरिंदर हैं, उन का एक वीडियो काफी वायरल हो रहा है.’’

”अच्छा…. वो वाला वीडियो… यह तो काफी वायरल है. मैं आता हूं.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

प्रो. वरिंदर काफी उदास थे. उन का एक स्टूडेंट रमन उन्हें काफी हौसला दे रहा था. रमन मास कम्युनिकेशन का स्टूडेंट था. उसे तकनीकी जानकारी बहुत थी. अच्छे वीडियो बनाता था. उसे फोटोग्राफी का भी शौक था. मौडलिंग भी करता था. कालेज के स्टूडेंट्स को ले कर वह शार्ट मूवीज भी बनाता रहता था.

उस ने प्रो. वङ्क्षरदर से कहा, ”सर,  आप चिंता न करें. हम इस का हल ढूंढ निकालेंगे.’’

प्रो. वरिंदर को रमन की बातें सुन कर हौसला मिलता था कि मेरा यह कितना खयाल रख रहा है.

इंसपेक्टर मलकीत सिंह पुलिस टीम के साथ कालेज पहुंच गए. कालेज में छुट्टी होने के कारण स्टूडेंट्स नहीं थे. पुलिस ने प्रिंसिपल गुरदयाल के साथ काफी लंबी बातचीत की. प्रो. वरिंदर को भी बुलाया.

”प्रो. साहब, यह वीडियो आप की है?’’ इंसपेक्टर मलकीत सिंह ने पूछा.

”नहीं सर, मेरी नहीं है.’’ प्रो. वङ्क्षरदर ने बताया.

”पर लग तो आप ही रहे हैं.’’

”नहीं सर, यह मेरी वीडियो नहीं है.’’

”यह लड़की कौन है?’’

”सर, यह लड़की नैना है. पर सर, मैं तो इस लड़की से मिला ही नहीं. बस यह किसी टौपिक के बारे में मुझ से पूछती और चली जाती थी. वह हमेशा अपनी सहेलियों के साथ ही आती थी.

“पर प्रोफेसर साहब, यह वीडियो तो आप की ही लगती है.’’

”नहीं इंसपेक्टर साहब, यह मैं नहीं हूं. आप मेरा रिकौर्ड चैक करवा सकते हैं.’’

”रिकौर्ड तो सामने ही है,’’ इंसपेक्टर मलकीत ने हंसते हुए कहा.

”नहीं सर, सच मानो मैं नहीं हूं.’’

वीडियो देख कर प्रिंसिपल को क्यों आया पसीना

इस मौके पर लड़की नैना को भी बुलाया गया, जो काफी रो रही थी. वह भी बोली, ”सर, यह मैं नहीं हूं. मैं तो अकेली सर को मिली ही नहीं. जब भी मिली हूं तो मेरी सहेलियां नमिता, नीतिका साथ में ही होती थीं.’’

”बेटा हम समझते हैं, पर आप हमारा साथ दोगे तो अच्छा रहेगा.’’ इंसपेक्टर ने समझाया.

”सर, मैं सच कहती हूं, यह मैं नहीं हूं. मैं तो अकेले कभी सर से मिली ही नहीं.’’

वे बात ही कर रहे थे कि प्रिंसिपल गुरदयाल के चेहरे पर पसीना छलक आया था. वह कोई वीडियो मोबाइल पर देख रहे थे, जिस में 2 निर्वस्त्र लड़कियां थीं…

इंसपेक्टर मलकीत सिंह ने कहा, ”गुरदयाल सिंहजी क्या हुआ..?’’

प्रिंसिपल ने साइड में इंसपेक्टर मलकीत को ले जा कर वीडियो दिखाते हुए कहा, ”यह भी कालेज की लड़कियों का है जो बिलकुल नंगी हैं और एकदूसरे के साथ चिपक रही हैं.’’

नीचे एक मैसेज भी लिखा था ‘आप देखते जाओ, मेरे पास आप के कालेज के काफी वीडियो हैं. जो एक के बाद एक बाहर आऐंगे. हां प्रिंसिपल साहब, आप के वीडियो भी हैं मेरे पास… जितने मरजी एक्सपर्ट बुला लें, आप को नहीं पता चलेगा कि वीडियो कहां से लोड हो रही है.’

इंसपेक्टर मलकीत ने प्रो. वरिंदर और नैना को जाने को कहा.

”गुरदयालजी, यह मामला सिर्फ प्रो. वरिंदर और नैना का नहीं है. यह तो आप के कालेज का मामला लगता है. ये दोनों लड़कियां कौन हैं?’’

”ये हमारे कालेज की ही रानी और मोना हैं. ये इतनी घटिया हरकत कर सकती हैं, मैं ने सोचा नहीं था.’’

इंसपेक्टर ने प्रिंसिपल गुरदयाल, प्रो. वरिंदर, नैना, रानी, मोना सभी के मोबाइल नंबर लिए और कालेज से चले गए. उन को थाने से फोन आया था कि गांव के सरपंच ने अपनी बुजुर्ग मां को घर से बाहर निकाल दिया है, सारा गांव ही थाने आया है.

प्रिंसिपल की हालत बहुत खराब थी. प्रो. वरिंदर का मामला सुलझा नहीं था कि एक और वीडियो सामने आ गया. प्रिंसिपल सोच में डूबे थे कि स्टूडेंट रमन उन के पास आया, ”सर, मेरे कई दोस्त एक्सपर्ट हैं, जो पता लगा सकते हैं कि वीडियो कहां से अपलोड हो रहे हैं. ये साइबर एक्सपर्ट हैं.’’

रमन की बात प्रिंसिपल गुरदयाल को अच्छी लगी. रमन ने प्रिंसिपल के कहने पर अपने एक्सपर्ट दोस्तों को कालेज के बाहर ही रूम ले कर दे दिया. वे खोज खबर में लग गए. रमन अपने दोस्तों के साथ रात को जाम भी छलकाने लगा.

प्रिंसिपल गुरदयाल को उम्मीद थी कि बहुत जल्दी ही दोषी पकड़ा जाएगा.

शाम 5 बजे कालेज से सभी स्टूडैंट्स चले जाते थे. इंसपेक्टर मलकीत अपनी टीम के साथ आए और काफी बातें कीं.

”आप की पत्नी डा. नीता कहां है?’’ इंसपेक्टर मलकीत ने प्रिंसिपल से पूछा.

पत्नी का नाम सुन कर प्रिंसिपल हैरान हो गए.

प्रिंसिपल का चेहरा पढ़ते हुए वह बोले, ”जी हां, आप की पत्नी डा. नीता जी…’’

”मेरी पत्नी से कई साल से बोलचाल बंद है. हमारे संबंध ठीक नहीं हैं. क्या यह मेरी पत्नी ने..?

”नहीं, नहीं… मैं ने ऐसा नहीं कहा. दरअसल, हम ने कालेज के कई पुराने लोगों से बात की तो पता चला कि आप की पत्नी के साथ आप के संबंध ठीक नहीं हैं.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

डा. नीता क्यों हुई पति के खिलाफ

इंसपेक्टर मलकीत ने उन से डा. नीता का मोबाइल नंबर लिया. उन्होंने डा. नीता को थाने बुलाया. पूछताछ करने पर डा. नीता ने कहा, ”इस प्रिंसिपल ने तो मेरी जिंदगी ही बरबाद कर दी. मैं पछता रही हूं इन से शादी कर के.’’

”डा. नीताजी, आप यह बताएं कि आप के पति प्रिंसिपल गुरदयाल कैसे आदमी हैं?

”बहुत ही घटिया हैं,’’ डा. नीता ने बिंदास कहा, ”मैं तो शादी कर के पछता रही हूं. मुझे पता है कि मैं ने अपनी बेटी को कैसे पाला. फिर विदेश भेजा, इन को तो पूरी जिंदगी कालेज से ही फुरसत नहीं मिली. मैं तो डाक्टर थी, काम अच्छा था तो मैं ठीक रही, नहीं तो मैं भी इन के साथ किताबों में गुम हो जाती.’’

”डा. नीता, कालेज के एक प्रोफेसर का वीडियो काफी वायरल हुआ है. इसी के लिए मैं ने आप को बुलाया है.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

”आप का मतलब यह मैं ने किया…’’

”नहीं, हम यह नहीं कह रहे हैं कि आप ने किया, हमें तो सिर्फ यह जानना था कि आप के पास भी कारण है कि प्रिंसिपल साहब को बदनाम करने का…’’

”क्या फालतू सवाल है? मुझे इन को बदनाम करना होता तो 12 साल पहले ही कर देती, जब मैं इन से अलग हुई थी. नहीं, यह सब झूठ है. आप मेरा मोबाइल चैक कर सकते हैं… मेरा नंबर तो आप के पास है ही, मेरी बेटी का यह नंबर है.

आप के पास तो अडवांस टैक्निक है, आप पता कर सकते हैं. हमारे रिश्ते बेशक ठीक नहीं हैं, मैं एक डाक्टर के नाते ऐसा नहीं कर सकती. मेरी भी सोशल इमेज है. मेरे अस्पताल जा कर भी आप मेरे बारे में पूछ सकते हैं.’’ डा. नीता ने सफाई दी.

”वह हम पता लगा लेंगे, लेकिन जब तक यह केस हल नहीं हो जाता, आप शहर के बाहर हमें बता कर जाना.’’

रमन और उस की टीम कोई न कोई खबर बना कर प्रिंसिपल गुरदयाल से काफी पैसे ले चुकी थी. रमन और दोस्तों का शाम का दारू और लेट नाइट बार डांस अच्छा चल रहा था.

इंसपेक्टर ने प्रो. वरिंदर को फिर थाने बुलाया. उन्होंने पूछा, ”आप के प्रिंसिपल सर कैसे हैं?’’

”सर अच्छे हैं.’’

”उन के पत्नी के साथ रिलेशन कैसे हैं?’’ इंसपेक्टर मलकीत ने पूछा.

”इतना ही पता है कि पत्नी अलग रहती है और बेटी विदेश में है.’’

रमन प्रिंसिपल से जब भी मिलता तो कुछ न कुछ पैसे ले लेता.

”सर, ये वीडियो विदेश की आईडी से लोड किए गए हैं.’’ सीआईए स्टाफ के रणजीत सिंह की टीम ने जांच कर इंसपेक्टर मलकीत से कहा.

इंसपेक्टर मलकीत ने प्रो. वरिंदर को फिर बुलाया और उन से पूछा, ”आप की यहां पर कोई दुश्मनी, कालेज स्टडी समय हिमाचल में कोई दुश्मनी आदि तो नहीं थी?’’

”दुश्मनी तो मेरी किसी से नहीं… लेकिन एक बार रमन के साथ झगड़ा हुआ था, जब इस ने एक लड़की की कुछ अश्लील तसवीरें खींची थीं. मैं ने रमन को मना किया था तो उस ने सौरी भी बोला था कि आगे से ऐसा नहीं करेगा… यह बात जब प्रिंसिपल सर को पता चली तो उन्होंने रमन को थप्पड़ मारा था. यह मामला तो 2 साल पहले का है. पर रमन तो अब काफी बदल चुका है.’’ प्रो. वरिंदर ने बताया.

पुलिस ने कई ऐंगल से इस को ध्यान से देखा. अपने खबरी भी अलर्ट किए. हर छोटी से छोटी जानकारी हासिल की.

छात्रों ने प्रिंसिपल से किस बात का लिया बदला

संडे का दिन था, प्रिंसिपल गुरदयाल सिंह नाश्ता कर रहे थे. तभी इंसपेक्टर मलकीत पुलिस टीम के साथ कालेज के हौस्टल में पहुंच गए. गुरदयाल ने उन से नाश्ता करने को कहा.

तभी इंसपेक्टर ने कहा, ”नहीं सर, पहले काम बाकी बातें और नाश्ता बाद में. प्रिंसिपल साहब, आप यह बताएं कि पिछले कुछ दिनों से आप एक नंबर पर पैसे ट्रांसफर कर रहे हैं. वह बैंक खाता यूपी का है, लेकिन पैसे कालेज के एटीएम से निकाले जा रहे हैं.’’

”पैसे… कौन से पैसे…’’ प्रिंसिपल ने अनजान बनते हुए कहा.

”प्रिंसिपल साहब, झूठ न बोलो, असल मुद्दे पर आओ.’’

प्रिंसिपल को पता चल गया था कि अब झूठ बोल कर कोई फायदा नहीं, इसलिए उन्होंने हकीकत बयां कर दी.

उन्होंने कहा, ”दरअसल, हमारे कालेज के स्टूडेंट रमन ने मुझ से कहा था कि उस के कई दोस्त साइबर एक्सपर्ट हैं. वह पता कर लेंगे कि वीडियो कहां से अपलोड हुई है.’’

”फिर पता चला?’’ इंसपेक्टर मलकीत ने पूछा.

”नहीं…’’

”प्रिंसिपल साहब, यह सब फ्रौड है. यह तो यूपी बिहार के टौप के क्रिमिनल हैं, जो आप को लाखों का चूना लगा रहे हैं.’’

प्रिंसिपल ने अपनी गलती मानी. कालेज के नजदीक नया बाजार में रमन को, जो घर किराए पर ले कर दिया था, पुलिस ने वहां रेड की तो सभी फरार हो चुके थे.

रमन के कई मोबाइल नंबर थे. पुलिस ने अलगअलग स्थानों पर रेड कर के रमन को रेलवे स्टेशन से पकड़ लिया, लेकिन उस के साथी फरार हो गए.

थाने पहुंचते ही रमन ने सारे राज उगल दिए. उस ने कहा, ”मैं ने प्रिंसिपल साहब से बदला लेने के लिए यह सब किया. प्रिंसिपल साहब ने सब स्टूडैंट्स के सामने मुझे थप्पड़ मारे थे, वह भी प्रो. वरिंदर की वजह से. फिर मैं ने डीपफेक तकनीक से चेहरे बदल कर यह सब किया.’’

रमन ने आगे बताया, ”सर, इस वीडियो में वरिंदर सर नहीं हैं, न ही वह लड़की… यह सब मैं ने तैयार करवाए. जो 2 लड़कियों का वीडियो था, वह किसी विदेश की साइट से लिया वीडियो था. मेरे पास मौडलिंग की काफी फोटो थीं, उन्हीं से मैं ने आसानी से वीडियो तैयार कर लिया. वीडियो के पीछे जो बैकग्राऊंड है, वह हमारे कालेज की है.

रमन की स्टोरी सुन कर पुलिस हैरान थी.

पुलिस ने रमन के महंगे मोबाइल को जब देखा तो उस में और भी वीडियो मिले, जिन्हें देख कर इंसपेक्टर मलकीत हैरान रह गए. लड़कियों के नहाने के कई असल वीडियो भी थे. पुलिस ने रमन के कमरे की तलाशी ली तो वहां से ढेर सारी अश्लील मैगजीन, कई लड़कियों के नग्न फोटो, विदेशी अश्लील फिल्में, क्राइम पर लिखी गई कई किताबें मिलीं.

पुलिस यह भी देख कर दंग रह गई कि प्रिंसिपल गुरदयाल का वीडियो तैयार किया जा रहा था. वहां से पुलिस ने कंप्यूटर, सीडी, हार्डडिस्क, टूटा लैपटाप अपने कब्जे में ले लिया.

हकीकत सामने आने के बाद प्रिंसिपल साहब को विश्वास हो गया कि प्रो. वरिंदर बेकुसूर हैं, इसलिए उन्होंने प्रो. वरिंदर को फिर कालेज में रख लिया. इस के बाद उन्होंने कालेज में मोबाइल लाने पर सख्त पाबंदी लगा दी. डीपफेक का राज उजागर कर पुलिस ने रमन के साथियों को भी गिरफ्तार कर लिया.

अकाल बाल मौत प्रेम की – भाग 3

नोटिस के दौरान मैं ने अपने लिए दूसरे शहर में नौकरी तलाश ली थी. रहने के लिए जगह की भी व्यवस्था कर ली थी. दो दिन पहले असीम का फोन फिर आया. उस ने मुझ से मिलने की इच्छा प्रकट की. मैं मना नहीं कर सकी. मैं ने कहा कि हम स्टेशन पर मिलेंगे. उस की ट्रेन साढ़े 10 बजे आती थी और मेरी ट्रेन साढ़े 12 बजे की थी. हमारे पास 2 घंटे का समय था. अंतिम मुलाकात के लिए इतना समय पर्याप्त था.

अनु ये बातें कर रही थी, तभी न जाने क्यों मुझे लगा कि मैं उस के प्रेम, उस की संवेदनशीलता की ओर आकर्षित होने लगा हूं. शायद उसे प्रेम करने लगा हूं. पर उस समय चुपचाप उस की बातें सुनने के अलावा मैं कुछ नहीं कर सकता था. मेरा मूक श्रोता बने रहना ही उचित था. मैं सिर्फ उस की बातें सुनता रहा. उस ने अपनी और असीम की अंतिम मुलाकात की बातें बतानी शुरू कीं.

असीम की ट्रेन 15 मिनट लेट थी. इसलिए उस की ट्रेन पौने 11 बजे आई. मैं अपना सामान ले कर निकी के साथ 10 बजे ही स्टेशन पर पहुंच गई थी. असीम आया, मैं ने उस से हाथ मिलाया. हम स्टेशन के सामने वाले रेस्टोरेंट में कोने की मेज पर आमनेसामने बैठे. सुबह का समय था इसलिए ज्यादा चहलपहल नहीं थी.

हम दोनों की स्थिति ऐसी थी कि दोनों एक शब्द भी नहीं बोल पा रहे थे. फिर भी बात शुरू हुई. उस ने मेरा हाथ हलके से हथेली में ले कर कहा, ‘‘अनु, आई एम वेरी सौरी, मेरी वजह से तुम्हें यह तकलीफ सहन करनी पड़ रही है.’’

‘‘प्लीज असीम, डू नाट से सौरी. मेरे नसीब में तुम्हारा बस इतना ही प्यार था. और हां, हम ने साथ बिताए समय के दौरान अगर कभी तुम्हें मेरे लिए, मात्र मेरे लिए सहज भी प्रेम महसूस हुआ हो तो उसी प्रेम की कसम, तुम कभी भी मेरे लिए गिल्टी कांसेस फील मत करना. प्रियम को खूब प्रेम करना. प्रियम को खुश होते देख, समझना मैं खुश हो रही हूं. मुझे पूरा विश्वास है कि तुम मेरी कसम नहीं तोड़ोगे. अब एक बढि़या सी स्माइल कर दो.’’

असीम ने तो स्माइल की, पर मेरी आंखों से आंसू टपक पड़े. आंसू गिरते देख उस ने कहा, ‘‘प्लीज अनु, रोना मत.’’

‘‘नहीं, मैं बिलकुल नहीं रोऊंगी.’’ मैं ने कहा.

‘‘तुम्हें तो पता है अनु, तुम मेरे सामने बिलकुल झूठ नहीं बोल सकती, तो फिर क्यों बेकार की कोशिश कर रही हो. मैं तुम्हें अच्छी तरह से जानता हूं अनु. मुझे पता है कि तुम रोओगी, खूब रोओगी और मुझे यह हर्ट करेगा. जबकि मैं नहीं चाहता कि तुम मेरी वजह से रोओ, जी जलाओ.’’

तभी निकी का फोन आ गया कि ट्रेन के आने का एनाउंसमेंट हो गया है. हम दोनों एकदूसरे को देखते रहे. थोड़ी देर तक हमारे बीच मौन छाया रहा. अचानक असीम ने पूछा, ‘‘अनु, तुम कम से कम यह तो बता दो कि तुम जा कहां रही हो?’’

‘‘नहीं, अब मैं कुछ नहीं बताऊंगी. मेरा यह मोबाइल नंबर भी कल सुबह से बंद हो जाएगा. जहां भी जाऊंगी, नया नंबर ले लूंगी. अब अंत में सिर्फ इतना ही कहूंगी कि तुम खुश रहना, सुखी रहना और प्रियम को भी खुश और सुखी रखना, उसे खूब प्रेम करना और हमारी मुलाकात को एक सुंदर सपना समझ कर भूल जाना. इस के बाद हम स्टेशन पर आ गए. हमारे स्टेशन आतेआते ट्रेन आ गई थी. उस के बाद जो हुआ, उसे आप ने देखा ही है.’’ कह कर अनु चुप हो गई.

मैं मन ही मन अनु के प्रेम, उस की संवेदनशीलता, उस की समर्पण भावना को सलाम करते हुए सोच रहा था कि काश! इसी तरह प्रेम करने वाली सुंदर लड़की मुझे भी मिल जाती तो मेरे लिए स्वर्ग इसी धरती पर उतर आता. सच बात तो यह थी कि मुझे अनु से मुझे प्यार हो गया था. मन कर रहा था, क्यों न मैं उस से अपने दिल की बात कह कर देखूं.

मैं मन की बात कहने का विचार कर ही रहा था कि उस ने एक ऐसी बात कह दी, जिस से मेरे मन में जो प्रेम पैदा हुआ था, उस की अकाल मौत हो गई थी. एक तरह मेरा प्रेम पैदा होते ही मर गया था. उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मैं यह नौकरी छोड़ ने की जो बात कर रही हूं, यह सब नाटक है. मैं ने न नौकरी छोड़ी है और न यह शहर छोड़ कर जा रही हूं.’’

‘‘क्या?’’ मैं एकदम से चौंका, ‘‘आप ने यह नाटक क्यों किया, आप ने इतना बड़ा झूठ क्यों बोला?’’

‘‘क्योंकि असीम और निकी ने सलाह कर के प्रियम नाम के झूठे करेक्टर को खड़ा कर के मेरे साथ नाटक किया, शायद उन्हें पता नहीं कि मैं उन दोनों से बड़ी नाटकबाज हूं. अगर असीम मेरे बारे में सब जानता है, तो मैं भी बेवकूफ नहीं हूं कि उस के बारे में सब कुछ न जानती. मैं उस से प्रेम करने लगी थी तो उस के बारे में एकएक चीज का पता लगा कर ही प्रेम किया था. जिस दिन निकी ने मेरे सामने प्रियम का नाम ले कर मुझे चिढ़ाने और परेशान करने के लिए नाटक शुरू किया, उसी के अगले दिन ही मैं ने सच्चाई का पता लगा लिया था, क्योंकि मुझे तुरंत शक हो गया था.’’

‘‘कैसे?’’ मैं ने पूछा.

क्योंकि अगर प्रियम से असीम का प्यार चल रहा होता तो निकी इतने दिनों तक इंतजर न करती. क्योंकि उसे मेरे और असीम के प्रेम संबंध की एकएक बात पता थी. अगर असीम के जीवन में कोई प्रियम होती तो वह मुझे पहले ही बता कर असीम के साथ इतना आगे न बढ़ने देती.

अगले दिन मुझे इस का सबूत भी मिल गया था. निकी सुबह नहा रही थी तो उस का मोबाइल मेरे हाथ लग गया, उस में कुछ मैसेज थे, जिस से मेरा शक यकीन में बदल गया. बस, फिर मैं ने भी नाटक शुरू कर दिया.

मैं ने ऐसा नाटक किया कि उन्हें लगा मैं सचमुच बहुत दुखी हूं. मुझे तो सच्चाई पता थी. पर उन्हें पता नहीं था कि मैं भी नाटक कर रही हूं. इस खेल में मैं उन से ज्यादा होशियार निकली. क्योंकि वे दोनों मेरे आते वक्त तक सच्चाई उजागर नहीं कर पाए. अब उन्हें डर सता रहा है कि सच्चाई उजागर करने पर मैं उन पर खफा हो जाऊंगी?’

मैं ने अनु को बीच में रोक कर पूछा, ‘‘इस का मतलब आप ने नौकरी छोड़ी नहीं है, सिर्फ उन लोगों से कहा कि नौकरी छोड़ कर जा रही हो.’’

‘‘पागल हूं, जो नौकरी छोड़ देती. केवल एक सप्ताह की छुट्टी ले कर घर जा रही हूं. घर पहुंच कर फोन का सिम निकाल दूंगी. औफिस वालों को दूसरा नंबर दे आई हूं्. असीम मुझे परेशान करना चाहता था. बदले में मैं ने उसे सबक सिखाया. मैं उसे इतना प्यार करती हूं कि उस के बिना जी नहीं सकती. अगर सचमुच में प्रियम होती तो मैं आप को अपनी यह कहानी बताने के लिए न होती. किसी मानसिक रोगी अस्पताल में अपना इलाज करा रही होती.’’

‘‘सलाम है आप के प्रेम को, जब लौट कर  आओगी तो…’’

मेरी बात बीच में ही काट कर अनु ने कहा, ‘‘यही तो सरप्राइज होगा असीम के लिए.’’

अनु के बारे में सोचते हुए कब आंख लग गई, मुझे पता ही नहीं चला. मुझे असीम से ईर्ष्या हो रही थी. ट्रेन स्टेशन पर रुकी तो मेरी आंख खुली. पता चला ट्रेन कानपुर में खड़ी थी. अनु खड़ी हुई, अपना बैग और पर्स लिया और उतर कर निकास गेट की ओर बढ़ गई. वह जैसेजैसे दूर जा रही थी, मैं यही सोच रहा था, काश! सचमुच प्रियम होती, तो आज मेरे प्यार की अकाल बाल मौत न होती.

अकाल बाल मौत प्रेम की – भाग 2

सब ठीक चल रहा था कि एक दिन निकी ने मुझ से कहा, ‘‘अनु, असीम और तुम पिछले 4 महीने से एकदूसरे को जानते हो और जहां तक मैं समझती हूं, 3 महीने से तुम दोनों एकदूसरे को प्रेम करते हो. इस बीच असीम ने तुम से कभी प्रियम के बारे में कोई बात की?’’

‘‘प्रियम…? प्रियम कौन है?’’

‘‘सौरी टू से यू बट… मुझे लगा कि तुम्हें प्रियम के बारे में पता नहीं है. अगर पता होता तो तुम इस संबंध में इतना आगे न बढ़ती.’’ निकी ने कहा.

‘‘यार निकी प्लीज, अब तू इस तरह पहेली मत बुझा, जो भी बात है सीधे सीधे बता दे. कौन है यह प्रियम और असीम से उस का क्या संबंध है?’’ मैं ने झल्ला कर कहा.

‘‘अनु, असीम और प्रियम ने एक साथ एमबीए किया था और पिछले 4 सालों से दोनों एक साथ प्रणयफाग खेल रहे हैं. 6 महीने पहले प्रियम फ्यूचर स्टडीज के लिए यूएसए चली गई है.’’

‘‘निकी इतने दिनों तक तुम ने मुझ से यह बात छुपाए क्यों रखी, तुम्हें पहले ही बता देना चाहिए था.’’

‘‘अनु, मैं सोच रही थी कि यह बात तुम से असीम खुद कहे तो ज्यादा अच्छा होगा. पर जब मुझे लगा कि शायद असीम भी तुम्हें प्यार करने लगा है तो अब वह तुम से यह बात नहीं कह सकता. तब मुझे यह बात कहनी पड़ी. अनु, असीम प्रियम को बहुत प्यार करता है, इसलिए अब तुम्हें इस संबंध में और अधिक गहरे जाने की जरूरत नहीं है. क्योंकि बाद में जब सहन करने की बात आएगी तो वह तुम्हारे हिस्से में ही आएगी.’’ निकी ने कहा.

‘‘सहन करने वाली बात मेरे ही हिस्से में क्यों आएगी?’’ निकी की बात मेरी समझ में नहीं आई, इसलिए मैं ने पूछा.

‘‘अगर प्रियम को अंधेरे में रख कर यानी उसे धोखा दे कर असीम तुम से शादी कर लेता है और भविष्य में कभी तुम्हें प्रियम और असीम के पुराने संबंध के बारे में पता चलता तो मन में अपराध बोध की जो भावना पैदा होगी वह तुम्हें.

‘‘अनु, तुम मेरी बात पर गहराई से विचार करो. उस के बाद खूब सोचसमझ कर आगे बढ़ो. मेरे कहने का मतलब यह है कि इस मामले में पूरी परिपक्वता दिखा कर ही निर्णय लो. मुझे तुम पर पूरा विश्वास है कि तुम जो भी निर्णय लोगी, सोचसमझ कर ही लोगी. तुम्हारा जो भी निर्णय होगा, उस में मैं तुम्हारे साथ हूं.’’ निकी ने कहा.

निकी की बात सुन कर मेरे मन में भूकंप सा आ गया था. उस की इन बातों से मेरे दिल पर क्या बीती, यह सिर्फ मैं ही जानती हूं. मैं पूरे दिन रोती रही. मैं ने न तो असीम को फोन किया और न ही मैसेज भेजा. उस के मैसेज के जवाब भी नहीं दिए. सच बात तो यह थी कि मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था. मैं बिजी होऊंगी. यह सोच कर असीम ने भी कोई रिएक्ट नहीं किया.

पर शाम को जब उस ने फोन किया तो मेरी बातों से ही उसे लग गया कि कुछ गड़बड़ है. तब उस ने पूछा, ‘‘अनु बात क्या है, आज तुम्हारी आवाज अलग क्यों लग रही है? ऐसा लगता है आज तुम खूब रोई हो, शायद अभी भी रो रही हो?’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है.’’ मैं ने कहा.

पर असीम कहां मानने वाला था. उस ने कहा, ‘‘अनु, तुम्हें तो पता है कि तुम मेरे सामने झूठ नहीं बोल पातीं. इसलिए बेकार की कोशिश मत करो. सच सच बताओ, क्या बात है? तुम्हें मेरी कसम, बताओ तुम डिस्टर्ब क्यों हो? औफिस में कुछ हुआ है? किसी ने कुछ कहा है? प्लीज अनु, आइ एम वरीड यार…’’

‘‘मैं आज औफिस गई ही नहीं थी.’’ मैं ने कहा.

‘‘ क्यों? जब तुम औफिस नहीं गई थीं तो फोन क्यों नहीं किया, मैसेज करने की कौन कहे, जवाब भी नहीं दिया? क्यों अनु?’’ असीम को मेरी बात पर आश्चर्य हुआ.

‘‘असीम, यह प्रियम कौन है?’’ मैं ने असीम से सीधे पूछा.

मेरे इस सवाल पर पहले वह थोड़ा हिचकिचाया, फिर बोला, ‘‘…तो यह बात है. आखिर निकी ने बता ही दिया.’’

‘‘हां, उसी ने बताया है मुझे.’’ मैं ने बेरुखी से कहा, ‘‘पिछले 4 महीने में तुम ने कभी भी नहीं बताया, तुम्हें कभी नहीं लगा कि तुम्हें प्रियम के बारे में मुझे बताना चाहिए?’’

‘‘लगा था मुझे, कई बार लगा था, कई बार सोचा भी कि तुम से प्रियम के बारे में बता दूं. पर जुबान ही नहीं खुलती थी.’’

‘‘ऐसा क्यों?’’

‘‘बिकाज…बिकाज… आई लव यू. अनु एंड आई नो दैट यू आलसो लव मी. इसी बात से डर लग रहा था कि प्रियम के बारे में पता चलने पर कहीं तुम्हें खो न दूं.’’

असीम की बात सुन कर मैं फफक फफक कर रो पड़ी. रोते हुए मैं ने कहा, ‘‘असीम तुम्हें पता है कि प्रियम तुम्हें कितना चाहती है और तुम भी उसे कितना चाहते हो. मात्र 4 महीने के अपने इस संबंध में तुम अपने और प्रियम के 4 सालों के प्यार को कैसे भुला सकोगे? और हमारे बीच संबंध ही क्या है?

‘‘असीम, आज भी तुम मात्र प्रियम को ही प्यार करते हो. जितना पहले करते थे, उतना ही, शायद उस से भी ज्यादा. वह अभी तुम्हारे पास यानी तुम्हारे साथ नहीं है. तुम उसे खूब मिस कर रहे हो.

‘‘ऐसे में मेरे प्रेम की वजह से तुम्हें ऐसा लगता है कि तुम मुझे प्रेम करते हो. जबकि सच्चाई यह है कि तुम ने मुझे कभी प्रेम किया ही नहीं. तुम मुझ में प्रियम को खोजते हो. मेरा तुम्हारा केयर करना, तुम्हारी छोटीछोटी बातों का ध्यान रखना, तुम्हें लगता है तुम्हारे लिए यह सब प्रियम कर रही है. तुम्हें ऐसा लगा, इसीलिए तुम मेरे प्रति आकर्षित हुए. बट इट्स नाट लव. असीम, यू नाट लव मी.’’

‘‘पर अनु तुम…’’

‘‘मैं… यस औफकोर्स आई लव यू. आई लव यू सो मच.’’

‘‘तो क्या यह काफी नहीं है.’’

‘‘नहीं असीम, यह काफी नहीं है. प्रियम और तुम एकदूसरे को बहुत प्यार करते हो. हां, यह बात भी सच है कि मैं भी तुम्हें बहुत प्यार करती हूं. पर मैं इतनी स्वार्थी नहीं हूं कि अपने प्यार के लिए प्रियम के साथ धोखा करूं या धोखा होने दूं. नहीं असीम, मैं अपने सपनों का महल प्रियम की हाय पर नहीं खड़ा करना चाहती. इसीलिए मैं ने तय किया है कि मैं यहां से दूर चली जाऊंगी, तुम से बहुत ही दूर.’’

‘‘अरे, तुम कहां और क्यों जाओगी? जरूरत ही क्या है यहां से कहीं जाने की?’’

‘‘क्यों जाऊंगी, कहां जाऊंगी, यह तय नहीं है. पर जाऊंगी जरूर, यह तय है.’’

‘‘प्लीज अनु, डोंट डू दिस यू मी. मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’’

‘‘असीम, मैं भी तुम से यही कहती हूं, डोंट डू दिस टू प्रियम, मात्र 4 महीने के प्रेम के लिए तुम 4 साल के प्रियम के प्रेम को कैसे भूल सकते हो. उस के प्रेम की कुर्बानी मत लो असीम.’’

‘‘अनु, तुम ने जो निर्णय लिया है, बहुत सही लिया है.’’ निकी ने कहा.

मैं निकी के गले लग कर खूब रोई. उस ने भी मुझे रोने दिया. रोने से दिल हलका हो गया. उस रात मैं ने कुछ नहीं खाया. निकी ने मुझे बहुत समझाया, पर कौर गले के नीचे नहीं उतरा. मैं सो गई. सुबह उठी तो काफी ठीक थी. फ्रैश हो कर मैं औफिस गई.

मैं ने व्यक्तिगत कारणों से नौकरी छोड़ने की बात लिख कर एक महीने का नोटिस दे कर नौकरी से इस्तीफा दे दिया. बौस और सहकर्मियों ने पूछा कि बात क्या है, बताओ तो सही, सब मिल कर उस का हल निकालेंगे, पर मैं अपने निर्णय पर अडिग रही.

उस के बाद मैं कैसे जी रही हूं, मैं ही जानती हूं. जीवन जैसे यंत्रवत हो गया है. हंसना बोलना तो जैसे भूल ही गई हूं. कलेजा अंदर ही अंदर फटता है. मेरी व्यथा या तो मैं जानती हूं या फिर निकी, हां कुछ हद तक असीम भी. किसी तरह 20 दिन बीत गए. इस बीच मैं ने न तो असीम को फोन किया और न मैसेज.

उस के फोन भी आ रहे थे अैर मैसेज भी. पर मैं न फोन उठा रही थी और न मैसेज के जवाब दे रही थी. मैं जानती थी कि उस की भी मेरी जैसी ही व्यथा है. इसलिए मैं ने निकी से कहा कि वह उस के कांटैक्ट में रहे. मेरे साथ तो निकी थी. लेकिन वह तो एकदम अकेला था.

एक दिन उस ने निकी से बहुत रिक्वेस्ट की तो निकी ने मुझ से कहा कि असीम से बात कर लो. मैं ने बात की तो असीम ने कहा, ‘‘अनु, मैं ने जब गंभीरता से विचार किया तो तुम्हारी बात सच निकली, सचमुच मैं आज भी प्रियम को उतना ही प्यार करता हूं. उस की कमी मुझे खूब खलती है. पर अनु तुम…? हमने इतना समय साथ बिताया, तुम मुझ से काफी जुड़ गई थीं, मुझे तुम्हारी बहुत चिंता हो रही है.’’

‘‘इट्स ओके असीम, आई एम फाइन. तुम मेरी जरा भी चिंता मत करो. मैं इतनी डरपोक या कमजोर नहीं कि खुद को किसी तरह का नुकसान पहुंचाऊं या आत्महत्या जैसी कायराना हरकत के बारे में सोचूं. असीम, मुझे मरना नहीं जीना है, तुम्हारे प्रेम में. और मैं जीऊंगी भी. मैं जानती हूं कि ऐसी स्थिति में मरना बहुत आसान है, जीना बहुत मुश्किल. पर तुम्हारी चाहत और प्रेम को मैं अपने हृदय में संभाल कर जीऊंगी. मैं भले ही तुम्हारा प्रेम नहीं पा सकी, पर तुम्हें, मात्र तुम्हें प्रेम करती हूं और इसी प्रेम के साथ जी सकती हूं.’’ कह कर मैं ने फोन काट दिया.

विकृत : कौन समझेगा दुष्कर्म की पीड़ा? – भाग 3

‘‘बस करो दीदी,’’ लड़का चीखा, ‘‘मुझे मार दो, लेकिन इस तरह शर्मिंदा मत करो. मैं भी जीना नहीं चाहता. मैं भाई के नाम पर कलंक हूं. मैं नशे में होश खो बैठता था.’’

‘‘अब अपनी करनी का दोष शराब को दे रहा है.’’ लड़की ने कहा. उस की सहेली के साथ उस के इस भाई ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर क्रूरतम कांड किया था.

‘‘नीलेश, अब मैं तेरी बहन नहीं, मौत हूं.’’

‘‘हां सुरभि, मुझे मार दो. मौत ही अब मेरी मुक्ति का उपाय है.’’ नीलेश ने कहा,’’ लेकिन कोशिश करना कि कानूनी, गैरकानूनी रूप से चलने वाला नशे का व्यापार बंद हो जाए, क्योंकि नशे में आदमी अपना होश खो बैठता है.’’

‘‘तुम खुद बताओ,’’ डाक्टर ने कहा, ‘‘एक बलात्कारी की सजा क्या होनी चाहिए? क्या उसे नपुंसक बना देना चाहिए?’’

‘‘आप चाहें तो बना सकते है डाक्टर साहब. लेकिन इस से तो आदमी और भी विकृत हो जाएगा. वह महिलाओं का खूंखार हत्यारा हो जाएगा.’’ खुशाल ने कहा.

‘‘तो आजीवन कारावास उचित रहेगा?’’ डाक्टर की पत्नी ने पूछा.

‘‘लेकिन डाक्टर साहब, आप उन लोगों के बारे में सोचिए, जिन पर झूठे आरोप लगा कर जीवन भर जेल में सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है. यह उन के साथ अत्याचार नहीं होगा, मैं ने 10 साल जेल में बिताए हैं. वहां आधे से अधिक लोग झूठे आरोपो में सजा काट रहे हैं, तमाम लोगों की न जाने कितने दिनों से सुनवाई चल रही है.’’

‘‘तो क्या दुष्कर्मियों को छोड़ दिया जाए?’’ सुरभि ने पूछा.

‘‘एक स्वस्थ समाज, जिस में न कोई नशीले पदार्थ का सेवन करता हो, न मानसिक रूप से विकृत हो, वहां दुष्कर्म के लिए जो भी सजा दी जाए, कम है.’’ खुशाल ने कहा तो जवाब में सुरभि बोली, ‘‘ऐसा व्यक्ति दुष्कर्म करेगा ही क्यों, जो नशा भी न करे और विकृत भी न हो.’’

‘‘वही तो मैं भी कह रहा हूं कि दुष्कर्म के पीछे दुष्कर्मी की शारीरिक, मानसिक और सामाजिक परिस्थितियों को देखना जरूरी है.’’

‘‘ऐसे भी लोग हैं, जो नशा नहीं करते, विकृत होने के कोई कारण भी नहीं हैं, फिर भी दुष्कर्म करते हैं.’’ सुरभि ने कहा.

‘‘ऐसे ही लोग दुष्कर्म के सही आरोपी हैं, जो अपनी हवस शांत करने के लिए छोटे बच्चों, कमउम्र की बच्चियों को बहलाफुसला कर उन के साथ संबंध बनाते हैं. ऐसे लोग समाज को गंदा कर रहे हैं. अपनी यौन पिपासा मिटाने के लिए अपनी मर्यादा को लांघते हैं. इन में स्त्रियां भी हैं.’’ खुशाल ने कहा.

‘‘तो तुम लोगों को छोड़ दिया जाए, यही चाहते हो न तुम लोग?’’ सुरभि ने कहा, ‘‘तुम अपराधी नहीं हो, तुम यही कहना चाहते हो न?’’

नीलेश ने नजरें नीची कर के कहा, ‘‘नहीं दीदी, मुझे मौत चाहिए.’’

‘‘बेटी,’’ डाक्टर ने कहा, ‘‘इन के किए की सजा इन्हें कानून देगा. हम क्यों अपने हाथ खून से रंगे. चलो, ये तो वैसे भी मरे और बीमार लोग हैं.’’

डाक्टर की पत्नी ने कहा, ‘‘चलो बेटी, इन्हें अनदेखा करना, इन से सावधान रहना और इन से कोई रिश्ता मत रखना. इन्हें अपने से अलग कर देना ही इन के लिए उचित सजा है. शर्म होगी तो खुद मुंह छिपाते हुए मर जाएंगें.’’

‘‘लेकिन मैं इन्हें मार देना चाहती हूं. ये दुष्कर्मी और हत्यारे हैं’’ सुरभि गुस्से में  चीखी.

‘‘किसी को योजनाबद्ध तरीके से जाल में फांस कर उन के साथ अत्याचार कर के मार देना विकृत और अपराधी किस्म के लोगों का काम है. जान लेना कोई बड़ा काम नहीं, यह काम कायर करते हैं. बेटी, हम सभ्य समाज के सभ्य लोग हैं. हमारा काम जान बचाना है, लेना नहीं.’’

इस के बाद डाक्टर और उन की पत्नी ने दोनों को पानी पिलाया. डाक्टर की पत्नी ने कहा, ‘‘जिस बच्चे को हम अपने गर्भ में पालते हैं, सीने का दूध पिला कर पालते हैं, वही बड़ा हो कर हम से ताकत दिखा कर खुद को मर्द साबित करना चाहता है. हमें प्रकृति ने कोमल और नाजुक इसलिए बनाया है, ताकि बच्चों को गर्भ का बिछौना और पोषण के लिए भोजन मिल सके. लेकिन तुम जैसे लोगों की समझ में यह बात नहीं आएगी.’’

दोनों के पैरों को बंधा छोड़ कर डाक्टर ने कहा, ‘‘मैं तुम लोगों को माफ करता हूं.’’

इस के बाद डाक्टर ने दोनों के हाथों के बंधन इतने ढीले कर दिए कि उन के जाने के बाद वे थोड़ी मेहनत के बाद स्वयं को बंधन मुक्त कर सकें.

‘‘ये क्षमा या दया के योग्य नहीं, वध के योग्य हैं.’’ सुरभि ने कहा.

‘‘नहीं बेटी, हम इन के जैसे घिनौने और विकृत नहीं है.’’ डाक्टर ने सुरभि के हाथ से पिस्तौल ले कर फेंकते हुए कहा. इस के बाद वह पत्नी और सुरभि को ले कर बाहर आ गए. अपनी कार स्टार्ट की और चले गए.

उन के जाने के बाद कोशिश कर के नीलेश और खुशाल ने खुद को बंधन मुक्त किया और थकेहारे वहीं बैठे रहे. शर्म और ग्लानि उन के चेहरे पर स्पष्ट झलक रही थी. पिस्तौल, तलवार, रौड वहीं पड़ी हुई थी.

‘‘मैं जीना नहीं चाहता’’ नीलेश ने कहा, ‘‘तुम्हारी वजह से मेरी जिंदगी बरबाद हुई है.’’

‘‘अब मैं भी नहीं जीना चाहता.’’ खुशाल ने कहा.

कुछ देर दोनों खामोश बैठे रहे. उस के बाद खुशाल ने कहा, ‘‘सोचा तो था कि जेल से बाहर आने के बाद नई जिंदगी शुरू करूंगा. लेकिन अब पता चला कि हमें जीने का कोई अधिकार नहीं है. हम जीने लायक नहीं हैं.’’

‘‘हम इतने गिर चुके हैं कि किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं हैं. जिस की बहन ही अपने भाई पर भरोसा न करे, जो खुद से नजरे न मिला सके, ऐसे जीने से मर जाना ही ठीक है. कितना अच्छा होता अगर वे मुझे मार देते.’’ नीलेश ने कहा.

‘‘मैं खुद को उसी तरह सजा दे कर अपने पापों से मुक्त होना चाहता हूं.’’ खुशाल ने कहा और वहां पड़ी लोहे की रौड एवं तलवार उठाई. लेकिन आगे की बात सोच कर उस का दिल कांप उठा.

‘‘मैं भी स्वयं को वही सजा देना चाहता हूं, जो मैं ने लड़कियों को दी है.’’ नीलेश ने कहा तो खुशाल ने तलवार और रौड नीलेश की ओर फेंक कर कहा, ‘‘यह लो, लेकिन हम में इतना साहस नहीं है कि हम स्वयं को उसी तरह बेरहमी से दंडित कर सकें.’’

नीलेश तलवार ले कर काफी देर तक सोचता रहा. उस के बाद तलवार फेंक कर बोला, ‘‘मैं कायर और डरपोक हूं.’’

‘‘काश! हम ने किसी लड़की को समझा होता?’’ खुशाल ने रोते हुए कहा.

‘‘लेकिन मैं खुद को जरूर सजा दूंगा. स्वस्थ समाज के लिए मेरा मर जाना ही ठीक है.’’ नीलेश ने पास पड़ी पिस्तौल उठा कर कनपटी पर लगाते हुए कहा.

‘‘मैं बूढ़ा हूं. मुझे मर जाने दो. तुम्हारा जीवन तो अभी शुरू हुआ है. तुम में सुधार की गुंजाइश है. अगर तुम ठान लो तो बेहतर नागरिक बन सकते हो.’’ खुशाल ने नीलेश को समझाते हुए कहा.

‘‘क्या पता मेरा विकृत मन अपने दोस्तों के साथ नशा कर के फिर कोई नीच हरकत कर बैठे. उस के बाद तीनों को अपनी उदारता पर पश्चाताप होगा. इस के बाद वे फिर कभी किसी को और स्वयं को माफ नहीं कर सकेंगे.’’

इस के बाद धांय की आवाज हुई और नीलेश जमीन पर गिर कर छटपटाने लगा. फिर खुशाल ने वही पिस्तौल उठा कर अपनी कनपटी पर लगाई. उसे उन तमाम लड़कियों की चीखें, कराहें सुनाई दीं, जिन के साथ उस ने दुष्कर्म किया था. वह मन ही मन बड़बड़ाया, ‘‘मेरे पापों के लिए इस से आसान मौत दूसरी नहीं हो सकती. हम तो इस लायक हैं कि हमारे शरीर में लोहे की रौड डाली जाए. हमारा गुप्तांग काट कर हमें हिजड़ों की जमात में भेज दिया जाए. लेकिन मैं खुद के लिए आसान सजा का चुनाव कर रहा हूं.’’

इस के बाद एक गोली और चली. उसी के साथ खुशाल का शरीर एक ओर लुढ़क गया. शायद यही उन के किए की सजा थी.

अकाल बाल मौत प्रेम की – भाग 1

लड़की मेरे सामने वाली विंडो सीट पर बैठी थी. जबकि लड़का खिड़की की रौड पकड़ कर प्लेटफार्म पर खड़ा  था. दोनों मूकदृष्टि से एकदूसरे को देख रहे थे. लड़की अपने दाहिने हाथ की सब से छोटी अंगुली से लड़के के हाथ को बारबार छू रही थी, मानों उसे महसूस करना चाहती हो. दोनों में कोई भी कुछ नहीं बोल रहा था. बस, अपलक एकदूसरे को ताके जा रहे थे. ट्रेन का हार्न बजा.

धक्के के साथ ट्रेन खिसकी तो दोनों एक साथ बोल पड़े, ‘‘बाय…’’ और इसी के साथ लड़की की आंखों में आंसू छलक आए.

‘‘टेक केयर. संभल कर जाना.’’ लड़के ने कहा.

लड़की ने सिर्फ ‘हां’ में सिर हिला दिया. आंखों से ओझल होने तक दोनों की नजरें एकदूसरे पर ही टिकी रहीं. जहां तक दिखाई देता रहा, दोनों एकदूसरे को देखते रहे. न चाहते हुए भी मैं उन दोनों के व्यक्तिगत पलों को देखता रहा. लड़की अभी भी खिड़की से बाहर की ओर ही ताक रही थी. मैं अनुभव कर रहा था कि वह आंखों के कोनों में उतर आए आसुंओं को रोकने का निरर्थक प्रयास कर रही है.

मुझ से रहा नहीं गया, मैं ने बैग से पानी की बोतल निकाल कर उस की ओर बढ़ाई. उस ने इनकार में सिर हिलाते हुए धीरे से ‘थैंक्स’ कहा. इस के बाद वक्त गुजारने के लिए मैं मोबाइल में मन लगाने की कोशिश करने लगा. पता नहीं क्यों, उस समय मोबाइल की अपेक्षा सामने बैठी लड़की ज्यादा आकर्षित कर रही थी.

मोबाइल मेरे हाथ में था, पर न तो फेसबुक खोलने का मन हो रहा था. न किसी दोस्त से चैट करने में मन लगा. मेरा पूरा ध्यान उस लड़की पर था.

खिड़की से आने वाली हवा की वजह से उस के बालों की लटें उस के गालों को चूम रही थीं. वह बहुत सुंदर या अप्सरा जैसा सम्मोहन रखने वाली तो नहीं थी, फिर भी उस में ऐसा तो कुछ था कि उस पर से नजर हटाने का मन नहीं हो रहा था.

आंखों में दर्द लिए मध्यम कदकाठी की वह लड़की सादगी भरे हलके गुलाबी और आसमानी सलवार सूट में बहुत सुंदर लग रही थी. उस ने अपना एक हाथ खिड़की पर टिका रखा था और दूसरे हाथ की अंगुली में अपने लंबे काले घुंघराने बालों को अंगूठी की तरह ऐसे लपेट और छोड़ रही थी, जैसे मन की किसी गुत्थी को सुलझाने का प्रयास कर रही हो.

कोई जानपहचान न होने के बावजूद ऐसा लग रहा था, जैसे वह मेरी अच्छी परिचित हो. शायद इसीलिए मुझ से रहा नहीं गया और मैं ने उस से पूछ लिया, ‘‘लगता है, आप ने अपने किसी बहुत करीबी को खोया है, कोई अप्रिय घटना घटी है क्या आप के साथ?’’

बाहर की ओर से नजर फेर कर उस ने मेरी ओर देख कर कहा, ‘‘हां, अकाल बाल मृत्यु हुई है, इस के बाद धीरे से बोली, ‘‘मेरे प्रेम की.’’

उस के ये शब्द मुझे अंदर तक स्पर्श कर गए थे. उस ने जो कुछ कहा वह मेरी समझ में नहीं आया था. इसलिए मैं ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘क्याऽऽ?’’

‘‘अकाल बाल मृत्यु हुई है मेरे प्यार की.’’ उस ने फिर वही बात कही. और इसी के साथ उस की आंखों से आंसू छलक कर गालों पर आ गए. उस ने अश्रुबिंदु को अंगुली पर लिया और खिड़की के बाहर उड़ा दिया.

मैं ने खुद को रोकने का काफी प्रयास किया, पर मुझ से रहा नहीं गया और मैं ने अंत में पूछ ही लिया, ‘‘आप का क्या नाम है?’’

उस ने मेरी ओर देख कर बेफिक्री से कहा, ‘‘क्या करेंगे मेरा नाम जान कर? वैसे असीम मुझे अनु कहता था.’’

‘‘मैं आप की कोई मदद…?’’ मैं ने बात को आगे बढ़ाने की कोशिश में पूछा, पर मेरी बात पूरी होने के पहले ही वह बीच में बोल पड़ी, ‘‘मेरी मदद…? शायद अब कोई भी मेरी मदद नहीं कर सकता.’’

‘‘पर इस तरह आप यह दर्द कब तक सहन करती रहेंगी? मैं अजनबी हूं, पर आप चाहें तो अपना दर्द मुझे बता सकती हैं. कहते हैं दर्द बयां कर देने से कम हो जाता है.’’ मैं ने कहा.

वह भी शायद हृदय का दर्द कम करना चाहती थी, इसलिए उस ने बताना शुरू किया, ‘‘मैं और वैभवी रूममेट थीं. दोनों नौकरी करती थीं और पीजी में रहती थीं. असीम निकी का दोस्त था. दोस्त भी ऐसावैसा नहीं, खास दोस्त. दोनों की फोन पर लंबीलंबी बातें होती थीं. एक दिन शाम को निकी कमरे में नहीं थी, पर उस का मोबाइल कमरे में ही पड़ा था, तभी उस के फोन की घंटी बजी. मैं ने फोन रिसीव कर लिया. असीम से वह मेरी पहली और औपचारिक बातचीत थी.

‘‘हम दोनों एकदूसरे से परिचित थे. यह अलग बात थी कि हमारी बातचीत कभी नहीं हुई थी. निकी मुझ से असीम की बातें करती रहती थी तो असीम से मेरी. इस तरह हम दोनों एकदूसरे से परिचित तो थे ही. यही वजह थी कि पहली बातचीत में ही हम घुलमिल गए थे. हम दोनों ने मोबाइल नंबर भी शेयर कर लिए थे.

‘‘इस के बाद फोन पर बातचीत और मैसेज्स का सिलसिला चल निकला था. औफिस की, घर की, दोस्ती की, पसंद नापसंद, फिल्में, हौबी हमारी बातें शुरू होतीं तो खत्म ही नहीं होती थीं. मुझे लिखने का शौक था और असीम को पढ़ने का शौक. मैं कविता या कहानी, कुछ भी लिखती, असीम को अवश्य सुनाती और उस से चर्चा करती.

हम लगभग सभी बातें शेयर करते. हमारी मित्रता में औरत या मर्द का बंधन कभी आड़े नहीं आया. इस तरह हम कब ‘आप’ से ‘तुम’ पर आ गए और कब एकदूसरे के प्रेम में डूब गए. पता ही नहीं चला. फिर भी हम ने कभी अपने प्रेम को व्यक्त नहीं किया. जबकि हम दोनों ही जानते थे लेकिन दोनों में से किसी ने पहल नहीं की.

‘‘शायद जरूरत ही महसूस नहीं हुई. या फिर दोनों में से कोई हिम्मत नहीं कर सका. हम दोनों के इस प्यार की मूक साक्षी थी निकी. पर पता नहीं क्यों उस ने भी हमारे प्रेम को एकदूसरे के सामने व्यक्त नहीं किया.’’

‘‘तुम और असीम, कभी मिले नहीं?’’ मैं ने अनु को रोक कर पूछा.

‘‘नहीं, कभी जरूरत ही महसूस नहीं हुई.’’ उस ने कहा.

‘‘तुम लोगों की मिलने की इच्छा भी नहीं हुई? एकदूसरे को देखने का भी मन नहीं हुआ?’’ मैं ने पूछा.

‘‘क्यों नहीं हुआ? इच्छा तो होती ही है, लेकिन आधुनिक टेक्नोलौजी थी न जोड़े रखने के लिए हम हर रविवार को वीडियो चैट करते थे. यह मिलने जैसा ही था. आज हमारी पहली और अंतिम रूबरू मुलाकात थी.’’ कह कर वह सहज हंसी हंस पड़ी.

‘‘जब तुम दोनों के बीच इतनी अच्छी ट्यूनिंग थी तो फिर इस में तुम दोनों के अलग होने की बात कहां से आ गई?’’ मैं ने पूछा.

उस ने अपनी बात आगे बढ़ाई.

हम दोनों का एक दूसरे के प्रति प्रेम चरम पर था. अब तक असीम मुझे मुझ से ज्यादा जानने पहचानने और समझने लगा था. मेरी छोटी से छोटी तकलीफ को बिना बताए ही जान जाता था. कई बार छोटीछोटी बात में मेरा मूड औफ हो जाता था. पर मुझे मनाने में उस का जवाब नहीं था. मुझे हंसा कर ही रहता था. मैं कभी भी उस से झूठ नहीं बोल पाती थी. वह तुरंत पकड़ लेता था कि मैं कुछ छुपा रही हूं. सच्चाई जान कर ही रहता था.

उस का ध्यान रखना. उस की देखभाल करना मुझे अच्छा लगता था. उस की मीटिंग हो या उसे कहीं बाहर जाना हो, मैं उसे सभी चीजों की याद दिलाती. उस के खाने, सोने और उठने, लगभग सभी बातों का मैं खयाल रखती थी.

साजिश का तोहफा

विकृत : कौन समझेगा दुष्कर्म की पीड़ा? – भाग 2

लड़का अधेड़ को जलती नजरों से इस तरह देख रहा था, जैसे वह उस का अपराधी हो. अपराधी था भी. वह अपने बचाव के लिए गिड़गिड़ाने लगा, ‘‘मुझे माफ कर दो. मुझे दुष्कर्मी बनाने में इस का हाथ है. फिर मेरे ऊपर तो मुकदमा चल रहा है. सजा तो होनी ही है. हम जैसे पापियों के लिए जेल की कोठरी ही ठीक है.’’

इसी के साथ एक और गोली चली. इस बार लड़के की चीख निकली. गोली चलाने वाली औरत ने कहा, ‘‘कमीने, जेल की कोठरी तेरे लिए कुछ नहीं है. जेल इंसानों के लिए है. तुम जैसे राक्षसों के लिए तो मौत ही उचित सजा है.’’

‘‘मुझे पानी पिला दो.’’ लड़के ने कहा.

‘‘तुम औरतों, मासूम बच्चियों के साथ दुष्कर्म करो और पानी मांगने पर उन्हें पेशाब पिलाओ. अब समझ में आई पानी की कीमत? अब मैं तुम्हें दुष्कर्म की पीड़ा बताऊंगी.’’

तभी 2 लोग और आ गए. वे भी उसी तरह लबादे से ढके थे. उन में से एक के हाथ में लोहे की मोटी रौड थी तो दूसरे के हाथ में तलवार. उन्हें देख कर लड़के ने पूछा, ‘‘ये लोग कौन हैं?’’

‘‘हम कोई भी हों, तुम जैसों के लिए मात्र मांस का टुकड़ा हैं. तुम्हें क्या फर्क पड़ता है कि हम किसी की मां हैं, बहन हैं या पत्नी हैं. तुम्हें तो सिर्फ औरतों की चीखें सुनने में मजा आता है. आज देखते हैं, तुम कितना दर्द बरदाश्त कर पाते हो?’’

‘‘नहीं, हमें माफ कर दो. गोली मार दो, लेकिन हमें तड़पा तड़पा कर मत मारो.’’ दोनों एक साथ गिड़गिड़ाए.

‘‘तुम्हें उस दर्द का अहसास कराना जरूरी है. तुम्हें नपुंसक बना कर छोड़ देना ही तुम्हारे लिए उचित सजा है.’’

‘‘मेरी बच्चियों, मेरी बात सुनो. मैं मरने से नहीं डरता. हत्यारे को अपनी हत्या से डरना भी नहीं चाहिए. मेरी उम्र 50 साल है और ज्यादा से ज्यादा 10-5 साल और जिऊंगा. तुम लोगों को इस पापी देह के साथ जो करना है, करो. लेकिन पहले मेरी बात सुन लो.’’

‘‘अभी भी कुछ कहना बाकी है?’’ तीनों में से एक ने कहा. वह पुरुष था.

‘‘हां, बहुत कुछ कहना है. लेकिन अपनी जान बचाने के लिए नहीं. मैं नहीं जानता कि तुम लोग कौन हो. मैं यह जानना भी नहीं चाहता. इस बच्चे को मैं ने अपने पाप के लिए इस्तेमाल किया. तब मैं ने सोचा भी नहीं था कि मेरे कर्मों का इस पर क्या दुष्प्रभाव पड़ेगा. उसी तरह मेरे दुष्कर्मी होने में मात्र मेरा पुरुष होना ही नहीं है. इस के पीछे समाज की वे गंदगियां हैं, जो हमारे मस्तिष्क को विकृत करती हैं.

‘‘मैं केवल सिनेमा, साहित्य या इंटरनेट को ही इस का दोष नहीं दूंगा. क्योंकि इस का असर कोमल मस्तिष्क पर तो पड़ सकता है, मुझ जैसे थके दिमाग वालों पर नहीं. लेकिन मैं कितनी भी वजहें गिना दूं, इस से मेरे अपराध कम नहीं होंगे. दुष्कर्म पहले भी होते थे. हर ताकतवर ने कमजोर की स्त्री के साथ मौका मिलते ही दुष्कर्म किया. लेकिन अभी जो बाढ़ सी आ गई है, यह समाज में फैला प्रदूषण है.

‘‘स्त्रियों को सम्मान की दृष्टि से न देखना, यह पुरुष प्रधान समाज की देन है. पुरुष औरतों को तुच्छ और कमजोर समझते हैं. जो दंड आप लोग हमें आज दे रहे हैं, अगर यह पहले ही स्त्रियां देना शुरू कर देतीं तो शायद आज यह स्थिति न आती. कोई जवाब देने वाला ही नहीं होगा तो हमला करने वाला कैसे पीछे हटेगा.’’

‘‘यही बकवास सुनानी थी तुम्हें?’’ तीनों में से एक ने पूछा.

‘‘मैं बकवास नहीं कर रहा. मैं मां के पेट से ही दुष्कर्मी बन कर पैदा नहीं हुआ और मेरी हत्या के बाद दुष्कर्म बंद भी नहीं हो जाएंगे. क्या इस में सारा दोष हम मर्दों का ही है? तुम स्त्रियों का कोई दोष नहीं है? क्यों नहीं दिया संसार के पहले दुष्कर्मी को सजा, क्यों सहती रही यह सब, क्यों सृष्टि के आरंभ से ही अबला बनी रहीं, क्यों नहीं दिया उसी समय जवाब?

‘‘तुम्हारी कायरता और कमजोरी की ही वजह से समाज को नियम बनाने पडे़. कानून को स्वयं कठोर बनना पड़ा. आज भी समाज और कानून के भरोसे बैठी हैं औरतें. अकेले नहीं, संगठित हो कर तो हमला कर सकती थीं. जो हालात शुरू में थे, आज वही इतने बिगड़ गए हैं कि दुष्कर्म खत्म करने के लिए आधे से अधिक पुरुषों को मृत्युदंड देना होगा. आप लोगों की कमजोरी की वजह से ही आप लोगों का शोषण होता रहा. सजा ही देनी है तो उन औरतों को भी दो, जो सभ्यता की शुरुआत से यह सब सहती आ रही हैं.’’

‘‘ऐसा नहीं है, जबजब औरतों पर अत्याचार हुए हैं, तब तब विनाश हुआ है. मर्दों को अगर प्रकृति ने शारीरिक रूप से अधिक ताकतवर बनाया है तो स्त्रियों को भी दूसरी शक्तियां दी हैं. प्रकृति किसी के साथ अत्याचार नहीं करती. फूल नाजुक है तो क्या हुआ, खूशबू बिखेरता है, उद्यान की शोभा बढ़ाता है. अगर कोई दुष्ट उसे मसल दे तो इस में फूल का क्या दोष?’’ सब से पहले आई महिला ने कहा.

‘‘एक स्त्री पूरे समाज को प्रभावित करती है. अगर यह ज्यादा है तो कम से कम एक परिवार को तो प्रभावित करती ही है. मकान को घर बनाने वाली स्त्रियां अगर घर को मकान बना दें या बाजार बना दें तो क्या उस घरपरिवार के पुरुष श्रेष्ठ हो सकते हैं?’’

खुशाल की यह बात सुन कर उन तीनों में जो पुरुष था, उस ने कहा, ‘‘खत्म करो इसे. इसी की वजह से मेरी बेटी पागलखाने में मरी थी. यह दुष्कर्मी है. हत्यारा है मेरी बेटी का. डाक्टर होते हुए भी मैं अपनी बेटी को नहीं बचा सका. इस के जुल्म के आगे मेरी चिकित्सा हार गई.’’

खुशाल समझ गया कि यह डाक्टर उसी लड़की का बाप है, जिस के साथ उस ने दुष्कर्म किया था. उसे सजा न होने पर वह लड़की पागल हो गई थी. इस के अनुसार अब वह मर चुकी है. उस ने कहा, ‘‘मेरी मां मेरे पिता की गैरहाजिरी में एक आदमी को बुला कर उस के साथ कमरे में बंद हो जाती थी. एक दिन मेरे चाचा ने उसे देख लिया तो उस ने पिता के सामने रोते हुए चाचा पर दुष्कर्म का झूठा आरोप लगा कर उन्हें जेल भिजवा दिया.

‘‘जमानत पर वापस आ कर जब समाज ने, परिवार ने चाचा को प्रताडि़त किया तो उन्होंने आत्महत्या कर ली. जब मेरे पिता ने अपनी आंखों से मां को गैरमर्द के साथ देख लिया तो मां ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर उन की हत्या कर दी. बाद में पकड़ी गई और जेल चली गई. मां की इस हरकत से मुझे सारी स्त्रियां हत्यारिन और कामलोलुप नजर आने लगीं.

‘‘बड़े होने पर मेरा विवाह हुआ. मेरे साथ भी वही हुआ, जो मेरे पिता के साथ हुआ था. किसी गैर मर्द की संगत की वजह से मेरी पत्नी ने मुझ पर दहेज प्रताड़ना का आरोप लगा कर मुझे जेल भिजवा दिया और खुद अपने आशिक के साथ रंगरलियां मनाती रही. मैं जमानत पर जेल से बाहर आया तो मुझ से तलाक ले लिया. बस उसी के बाद से मैं ने औरतों को अपमानित करना शुरू कर दिया.’’

‘‘इस का मतलब यह हुआ कि तुम 2 औरतों के किए का बदला सारी स्त्री जाति से लेना चाहते थे?’’ लड़की ने पूछा.

लड़की की बात का जवाब देने के बजाय खुशाल ने डाक्टर से कहा, ‘‘डाक्टर साहब, पढ़ेलिखे हो कर आप भी गैरकानूनी काम कर रहे हैं. आप गुस्से में विकृत हो चुके हैं. मेरा भी मनमस्तिष्क विकृत हो चुका है. आप भले मुझे गोली मार दें, लेकिन इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि मेरे दुष्कर्मी होने के पीछे औरतों का हाथ था. बेवफाई और बेहयाई ने मुझे ऐसा बनाया. इस की छाप मेरे मस्तिष्क पर बचपन से पड़ चुकी थी.’’

तीनों में से महिला ने अपना चोंगा उतार फेंका. उस की उम्र 60 साल के आसपास थी. उस ने कहा, ‘‘तुम्हारी बातों से मैं कुछ हद तक सहमत हूं. मैं ने भी अपनी मां की वजह से पिता को तिलतिल मरते देखा था. परिवार की वजह से मैं स्वयं भी काफी समय तक अवसाद में रही. लेकिन मैं ने खुद को संभाला, पढ़ाई की और डाक्टर बन गई. एक बेटी को जन्म दिया, जिसे तुम ने मौत के मुंह में धकेल दिया. तुम्हें अतीत ने विकृत किया, इस की वजह से तुम्हारे अपराध कम नहीं हो सकते. उन्हें माफ भी नहीं किया जा सकता.’’

इस के बाद खुद को डाक्टर कहने वाले ने भी अपना चोंगा उतार दिया. वह उस महिला का पति था. बेटी के साथ हुए अत्याचार का बदला लेने के लिए उन्होंने खुशाल के रिहा होने का इंतजार किया था.

उस के जेल से बाहर आते ही वे उस का अपहरण कर के यहां ले आए थे. उस ने कहा, ‘‘एक डाक्टर होने के नाते मुझे पता है, तुम्हें दंड की नहीं, इलाज की जरूरत है. लेकिन तुम ने मेरी बेटी के साथ जो जुल्म किए हैं, मैं उन्हें बिलकुल नहीं भूल सकता.’’

‘‘गोली मार कर अपने बदले की आग बुझा लीजिए डाक्टर साहब.  मैं भी अपने इस जीवन से ऊब चुका हूं. इस से मैं भी छुटकारा पाना चाहता हूं.’’

‘‘मुझे लगता है, तुम्हारा जिंदा रहना ही तुम्हारे लिए सब से बड़ी सजा है.’’ डाक्टर की पत्नी ने कहा, ‘‘अगर हम ने तुम्हें इस तरह बेरहमी से मार दिया तो तुम में और हम में अंतर ही क्या रह जाएगा?’’

उन दोनों की इस बात से दुखी हो कर उन के साथ आई लड़की ने कहा, ‘‘इन्हें इस तरह छोड़ने के लिए हम ने इतनी मेहनत नहीं की है? इन्हें छोड़ दिया गया तो ये फिर वही करेंगे. इसलिए इन्हें मार देना ही ठीक है.’’

दर्द से बिलबिला रहे लड़के ने कहा, ‘‘तुम लोगों का दुश्मन तो खुशाल है, फिर मुझे क्यों बांध रखा है. इसी की वजह से मेरा जीवन नरक हुआ है. इसे मार दो और मुझे छोड़ दो.’’

‘‘नाबालिग होने की वजह से जिस दुष्कर्म के जुर्म में तुम रिहा हो गए थे, वह जुर्म रिहाई के योग्य नहीं था. कानून की नजर में तुम भले नाबालिग थे, लेकिन अपराध की दृष्टि से नहीं.’’ लड़की ने उस की ओर रिवाल्वर तान कर कहा.

‘‘दीदी…’’ लड़के ने कांपती आवाज में कहा.

‘‘मत कहो मुझे दीदी. तू भाई के नाम पर कलंक है. तुझ से बदला लेने के लिए ये लोग मेरी तलाश कर रहे थे कि जैसा भाई ने किया है, वैसा ही उस की बहन के साथ किया जाए. शुक्र था कि पिता के मित्र होने के नाते ये मुझे अपने घर ले गए, वरना मेरा भी वही हाल होता, जो तूने अपने दोस्तों के साथ मिल कर लड़कियों के साथ किया था. तब तुम यह भी भूल गए थे कि तुम्हारी भी एक बहन है. तू भी किसी का भाई है. वे लड़कियां भी किसी की बहनें थीं. उन का भी भाई रहा होगा. तेरे जैसे हैवान किसी के भाई नहीं हो सकते. मौका मिलता तो तू मुझे भी नहीं छोड़ता.’’

विकृत : कौन समझेगा दुष्कर्म की पीड़ा? – भाग 1

उस बंद पड़ी मिल में कोई आता-जाता नहीं था. उस की दीवारों का सीमेंट उधड़ चुका था, लोहे के पाइपों में जंग लग चुका था, सारी मशीनें कबाड़ हो चुकी थीं. मिल तक पहुंचने का रास्ता भी खराब हो चुका था. शहर के बाहर होने की वजह से वहां कोई कितना भी चीखे, कोई उसे सुनने वाला नहीं होता था.

उसी मिल के अंदर मशीन से एक 50-55 साल का आदमी बंधा था. लेकिन वह अपनी उम्र से काफी बड़ा दिखाई दे रहा था. साधारण से कपड़े, बढ़ी हुई दाढ़ी, अस्तव्यस्त बाल. उस के दोनों हाथ पीछे की ओर बंधे थे. उस से कुछ दूरी पर एक लड़का बंधा था. उस के कपड़े, जूते आदि उम्दा किस्म के थे. दोनों बेहोश पड़े थे.

जब दोनों को होश आया तो लड़के ने अधेड़ से पूछा, ‘‘मैं यहां कैसे आया, तुम कौन हो?’’

‘‘मुझे क्या पता? देखो न, मैं भी तो तुम्हारी तरह बंधा हूं.’’ अधेड़ ने झल्ला कर कहा.

दोनों पसीने से तरबतर थे. छत टिन की थी, जो मई की गर्मी में तप रही थी. कहीं से हवा भी नहीं आ सकती थी. जो खिड़कियां थीं, वे बंद थीं. लड़का चीखा, ‘‘कोई है?’’

गला सूखा होने की वजह से उसे खांसी आ गई. उस की आंखों से पानी बहने लगा. लड़के ने खांसी पर काबू पाते हुए कहा, ‘‘अगर किसी ने रुपयों के लिए मेरा अपहरण किया है तो वह महामूर्ख है. मेरे न तो मांबाप हैं और न मेरे पास रुपए ही हैं.’’

‘‘मैं ने किसी का क्या बिगाड़ा था. मैं तो वैसे ही 10 सालों बाद जेल से बाहर आया हूं.’’ अधेड़ ने कहा.

दोनों खामोश हो कर याद करने की कोशिश करने लगे कि वे यहां कैसे पहुंचे?

अधेड़ जेल से 10 साल की सजा काट कर जेल से बाहर निकला था. रात 8 बजे उस की रिहाई हुई थी. जेल से कुछ दूर आने पर अचानक पीछे से आ रही कार ने उसे टक्कर मारी तो वह गिर गया. कार से एक व्यक्ति उतरा. उस ने माफी मांगते हुए कहा, ‘‘आइए, आप की मरहमपट्टी करवा कर आप के घर छोड़ देता हूं.’’

अधेड़ कार में बैठा ही था कि पीछे से किसी ने उस के मुंह पर कुछ रखा, जिस से वह बेहोश हो गया. उस के बाद वह होश में आया तो यहां बंधा था. उस की किसी से क्या दुश्मनी हो सकती है? 10 सालों से वह किसी के संपर्क में नहीं रहा. कहीं कोई गलती से तो उसे नहीं उठा लाया.

लड़का शराब की दुकान से शराब पी कर घर लौट रहा था, तभी रास्ते में एक छोटा सा बच्चा उसे रोता हुआ मिला. बच्चे के गले में एक रेशम की डोरी से उस के घर का पता बंधा था. बच्चे को देख कर उसे लगा कि यह अपने घर वालों से भटक गया है. उस ने सोचा कि अगर वह इसे इस के घर पहुंचा देता है तो इस के मांबाप उसे कुछ इनाम देंगे, जिस से उस के शराब पीने का इंतजाम हो जाएगा.

वह बच्चे के बारे में सोच ही रहा था कि उस के पास एक कार आ कर रुकी. उस में से एक बुजुर्ग महिला उतरी. उस के कुछ कहने से पहले ही महिला ने उसे बच्चे की सलामती के लिए धन्यवाद देते हुए कहा, ‘‘आप मेरे घर चलिए. हम आप को कुछ इनाम देना चाहते हैं.’’

इनाम के लालच में वह कार में ड्राइवर की बगल वाली सीट पर बैठ गया. औरत बच्चे को ले कर पिछली सीट पर बैठ गई. उस के कार में बैठते ही पिछली सीट से किसी ने उस के मुंह पर रूमाल रखा तो वह बेहोश हो गया. लड़के ने कहा, ‘‘मुझे क्लोरोफार्म सुंधा कर बेहोश किया गया था.’’

‘‘मुझे भी.’’ अधेड़ ने हैरानी से कहा.

‘‘मेरा अपहरण क्यों किया गया, यह मेरी समझ नहीं आ रहा है?’’ लड़के ने कहा.

‘‘अपहरण कोई क्यों करता है, पैसों के लिए या फिर बदला लेने के लिए?’’ अधेड़ ने कहा, ‘‘लेकिन मेरे पास न पैसे हैं और न किसी से ऐसी दुश्मनी है. मैं तो जेल से छूट कर आ रहा हूं.’’

‘‘किस जुर्म में जेल गए थे?’’ लड़के ने होंठों पर जीभ फेरते हुए पूछा.

‘‘तुम्हें उस से क्या लेना. यह सोचो कि हमें यहां क्यों लाया गया है? तुम्हारी जरूर किसी से दुश्मनी रही होगी? अपहरण करने वाले को पता होगा कि तुम्हारे पास रुपए नहीं हैं. ऐसा काम करने से पहले आदमी पूरी जानकारी कर लेता है.’’

‘‘लेकिन तुम्हारे मामले में तो उस ने गलती की है.’’

‘‘मेरा मामला अलग है. तुम अपनी बात करो.’’

दोनों बातें कर ही रहे थे कि तभी दरवाजे के चरमराने की आवाज आई. इस के बाद कदमों की आहट सुनाई दी, जो निरंतर उन के करीब आती जा रही थी. एक आदमी जो सिर से पैर तक ढका था, सिर्फ उस की आंखें दिख रही थीं, आ कर उन के पास खड़ा हो गया. लड़के ने पूछा, ‘‘कौन हो तुम?’’

‘‘जवाब क्यों नहीं देते?’’ अधेड़ चीखा, ‘‘मुझे थोड़ा पानी पिला दो.’’

वह आदमी लौट गया. वापस आया तो उस के हाथ में एक बोतल थी. उस ने अधेड़ के मुंह से बोतल लगाई. एक घूंट पीने के बाद अधेड़ उसे उगल कर गुस्से से चीखा, ‘‘यह क्या है?’’

उस आदमी ने वही बोतल लड़के के मुंह लगा दी. लड़का छटपटाया. लेकिन कुछ बूंदें उस के मुंह में चली गईं. लड़के ने किसी तरह बोतल से मुंह हटा कर हांफते हुए कहा, ‘‘पेशाब क्यों पिला रहे हो?’’

‘‘यह क्या हैवानियत है?’’ अधेड़ ने कहा.

उस आदमी ने अधेड़ को एक ठोकर मारी. वह दर्द से बिलबिला उठा. इस के बाद लड़के को उसी तरह ठोकर मार कर बोला, ‘‘दुष्कर्म करने के बाद रोती गिड़गिड़ाती लड़कियों को तुम यही पिलाते थे न?’’

‘‘लेकिन मैं तो अपने अपराध की सजा काट चुका हूं. ’’ महिला की आवाज सुन कर अधेड़ गिड़गिड़ाया. उसी वक्त उसे पता चला कि वह आदमी नहीं औरत है.

‘‘तभी तो 50 की उम्र में 60 के लग रहे हो खुशाल.’’ उस महिला ने कहा.

अपना नाम सुन कर खुशाल ने पूछा, ‘‘कौन हो तुम?’’

‘‘पहले यह पूछो कि यह लड़का कौन है? जानते हो इसे?’’ लबादे से ढकी औरत ने चीख कर पूछा.

‘‘नहीं, इस से मेरा क्या वास्ता?’’ खुशाल ने लड़के की तरफ अजनबी निगाहों से देखते हुए कहा.

‘‘यह वही लड़का है, जिस के मातापिता अस्पताल जाते समय तुम्हें अपना भाई और इस का चाचा समझ कर इसे तुम्हारे पास छोड़ जाते थे और तुम इस के गले में अपने गोदाम का, जहां तुम काम करते थे, पता लटका कर गर्ल्स हौस्टल, वर्किंग वुमेन हौस्टल, गर्ल्स स्कूल या कालेज के पास छोड़ देते थे. जब कोई लड़की या महिला अपनी नारी सुलभ आदत की वजह से इसे तुम्हारे पास पहुंचाने जाती थी तो तुम अपने नीच दोस्तों के साथ इस मासूम बच्चे के सामने उस के साथ दुष्कर्म करते थे.

‘‘तुम्हारी हरकतों की वजह से इस का दिमाग इतना विकृत हो गया कि यह डाक्टर, इंजीनियर बनने के बजाय दुष्कर्मी बन गया. तुम ने इस के मातापिता से उन का बेटा छीन लिया, इस का पूरा भविष्य छीन लिया. जानते हो इस ने क्या किया है? जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही इस ने अपनी रिश्ते की बहन के साथ वही किया, जो तूने इसे सिखाया था. इस के मातापिता ने शरम से आत्महत्या कर ली.

‘‘कानून ने तुझे सिर्फ एक दुष्कर्म की सजा दी है. इस के मातापिता को आत्महत्या के लिए विवश करने की सजा और इसे दुष्कर्मी बनाने की सजा तो अभी बाकी है. जिन लड़कियों के साथ तूने दुष्कर्म किया था, बता सकता है उन का क्या हुआ था?’’ इतना कह कर उस औरत ने रिवाल्वर निकाला और खुशाल के दाएं पैर पर गोली मार दी. खुशाल दर्द से चीख पड़ा. उस के पैर से खून बहने लगा.

‘‘बताता हूं…बताता हूं. मुझे मत मारो. मैं सब बताता हूं. एक लड़की ने आत्महत्या कर ली थी, दूसरी जबरदस्ती करते वक्त ज्यादा चोट लगने से मर गई थी. तीसरी ने केस किया. लेकिन कोर्ट से मेरे बाइज्जत बरी होने के बाद उसे ऐसा सदमा लगा कि वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठी. सुना है पागलखाने में है. लेकिन तुम कौन हो?’’

देवर को बचाने के लिए ननद की हत्या

उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के गैनी गांव में छोटेलाल कश्यप अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में उन की पत्नी रामवती के अलावा 2 बेटे नरेश व तालेवर, 2 बेटियां सुनीता व विनीता थीं. छोटेलाल खेती किसानी का काम करते थे. इसी की आमदनी से उन्होंने बच्चों की परवरिश की. बच्चे शादी लायक हो गए तो उन्होंने बड़े बेटे नरेश का विवाह नन्ही देवी नाम की युवती से करा दिया.

कालांतर में नन्ही ने एक बेटे शिवम व एक बेटी सीमा को जन्म दिया. बाद में उन्होंने बड़ी बेटी सुनीता का भी विवाह कर दिया. अब 2 बच्चे शादी के लिए रह गए थे. छोटेलाल उन दोनों की शादी की भी तैयारी कर रहे थे.

इसी बीच दूसरे बेटे तालेवर ने ऐसा काम कर दिया, जिस से उन की गांव में बहुत बदनामी हुई. तालेवर ने सन 2014 में अपने ही पड़ोस में रहने वाली एक महिला के साथ रेप कर दिया था. जिस के आरोप में उस को जेल जाना पड़ा था.

उधर छोटेलाल की छोटी बेटी विनीता भी 20 साल की हो चुकी थी. यौवन की चमक से उस का रूपरंग दमकने लगा था. वह ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं थी, पर उसे फिल्म देखना, फैशन के अनुसार कपड़े पहनना अच्छा लगता था. उस की सहेलियां भी उस के जैसे ही विचारों की थीं, इसलिए उन में जब भी बात होती तो फिल्मों की और उन में दिखाए जाने वाले रोमांस की ही होती थी. यह उम्र का तकाजा भी था.

विनीता के खयालों में भी एक अपने दीवाने की तसवीर थी, लेकिन यह तसवीर कुछ धुंधली सी थी. खयालों की तसवीर के दीवाने को उस की आंखें हरदम तलाशती थीं. वैसे उस के आगेपीछे चक्कर लगाने वाले युवक कम नहीं थे, लेकिन उन में से एक भी ऐसा न था, जो उस के खयालों की तसवीर में फिट बैठता हो.

बात करीब 2 साल पहले की है. विनीता अपने पिता के साथ एक रिश्तेदारी में बरेली के कस्बा आंवला गई, जो उस के यहां से करीब 13 किलोमीटर दूर था. वहां से वापसी में वह आंवला बसअड्डे पर खड़ी बस का इंतजार कर रही थी तभी एक नवयुवक जोकि वेंडर था, पानी की बोतल बेचते हुए उस के पास से गुजरा.

उस युवक को देख कर विनीता का दिल एकाएक तेजी से धड़कने लगा. निगाहें तो जैसे उस पर ही टिक कर रह गई थीं. उस के दिल से यही आवाज आई कि विनीता यही है तेरा दीवाना, जिसे तू तलाश रही थी. उस युवक को देखते ही उस के खयालों में बनी धुंधली तसवीर बिलकुल साफ हो गई.

वह उसे एकटक निहारती रही. उसे इस तरह निहारता देख कर वह युवक भी बारबार उसी पर नजर टिका देता. जब उन की निगाहें आपस में मिल जातीं तो दोनों के होंठों पर मुसकराहट तैरने लगती.

उसी समय बस आ गई और विनीता अपने पिता के साथ बस में बैठ गई. वह पिता के साथ बस में बैठ जरूर गई थी, पर पूरे रास्ते उस की आंखों के सामने उस युवक का चेहरा ही घूमता रहा. विनीता उस युवक के बारे में पता कर के उस से संपर्क करने का मन बना चुकी थी.

अगले ही दिन सहेली के यहां जाने का बहाना बना कर विनीता आंवला के लिए निकल गई. बसअड्डे पर खड़े हो कर उस की आंखें उसे तलाशने लगीं. कुछ ही देर में वह युवक विनीता को दिख गया. पर उस युवक ने विनीता को नहीं देखा था.

विनीता उस पर नजर रख कर उस का पीछा कर के उस के बारे में जानने की कोशिश में लग गई. कुछ देर में ही उस ने उस युवक के बारे में किसी से जानकारी हासिल कर उस का नाम व मोबाइल नंबर पता कर लिया. उस युवक का नाम हरि था और वह अपने परिवार के साथ आंवला में ही रहता था.

एक दिन हरि सुबह के समय अपनी छत पर बैठा था, तभी उस का मोबाइल बज उठा. हरि ने स्क्रीन पर बिना नंबर देखे ही काल रिसीव करते हुए हैलो बोला.

‘‘जी, आप कौन बोल रहे हैं?’’ दूसरी ओर से किसी युवती की मधुर आवाज सुनाई दी तो हरि चौंक पड़ा.

वह बोला, ‘‘आप कौन बोल रही हैं और आप को किस से बात करनी है?’’

‘‘मैं विनीता बोल रही हूं. मुझे अपनी दोस्त से बात करनी थी, लेकिन लगता है नंबर गलत डायल हो गया.’’

‘‘कोई बात नहीं, आप को अपनी दोस्त का नंबर सेव कर के रखना चाहिए. ऐसा होगा तो दोबारा गलती नहीं होगी.’’

‘‘आप पुलिस में हैं क्या?’’

‘‘जी नहीं, आम आदमी हूं.’’

‘‘किसी के लिए तो खास होंगे?’’

‘‘आप बहुत बातें करती हैं.’’

‘‘अच्छी या बुरी?’’

‘‘अच्छी.’’

‘‘क्या अच्छा है, मेरी बातों में?’’

अब हंसने की बारी थी हरि की. वह जोर से हंसा, फिर बोला, ‘‘माफ करना, मैं आप से नहीं जीत सकता.’’

‘‘और मैं माफ न करूं तो?’’

‘‘तो आप ही बताइए, मैं क्या करूं?’’ हरि ने हथियार डाल दिए.

‘‘अच्छा जाओ, माफ किया.’’

दरअसल विनीता को हरि का मोबाइल नंबर तो मिल गया था. लेकिन विनीता के पास खुद का मोबाइल नहीं था, इसलिए उस ने अपनी सहेली का मोबाइल फोन ले कर बात की थी. पहली ही बातचीत में दोनों काफी घुलमिल गए थे. दोनों के बीच कुछ ऐसी बातें हुईं कि दोनों एकदूसरे के प्रति अपनापन महसूस करने लगे.

फिर उन के बीच बराबर बातें होने लगीं.  विनीता ने हरि को बता दिया था कि उस दिन अनजाने में उस के पास काल नहीं लगी थी बल्कि उस ने खुद उस का नंबर हासिल कर के उसे काल की थी और उन की मुलाकात भी हो चुकी है.

जब हरि ने मुलाकात के बारे में पूछा तो विनीता ने आंवला बसअड्डे पर हुई मुलाकात का जिक्र कर दिया. हरि यह जान कर बहुत खुश हुआ क्योंकि उस दिन विनीता का खूबसूरत चेहरा आंखों के जरिए उस के दिल में उतर गया था.

इस के बाद दोनों एकदूसरे से रूबरू मिलने लगे. इसी बीच एक मुलाकात में दोनों ने अपने प्यार का इजहार भी कर दिया. दिनप्रतिदिन उन का प्यार प्रगाढ़ होता जा रहा था. विनीता तो दीवानगी की हद तक दिल की गहराइयों से हरि को चाहने लगी थी.

धीरेधीरे उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. प्रेम दीवानों के प्यार की खुशबू जब जमाने को लगती है तो वह उन दीवानों पर तरहतरह की बंदिशें लगाने लगता है. यही विनीता के परिजनों ने किया. विनीता के घर वालों को पता चल गया कि वह जिस लड़के से मिलती है, वह बदमाश टाइप का है.

इसलिए उन्होंने विनीता पर प्रतिबंध लगाने शुरू कर दिए. लेकिन तमाम बंदिशों के बाद भी विनीता हरि से मिलने का मौका निकाल ही लेती थी.

धीरेधीरे दोनों के इश्क के चर्चे गांव में होने लगे. गांव के लोगों ने कई बार विनीता को हरि के साथ देखा. इस पर वह तरहतरह की बातें बनाने लगे. गांव वालों के बीच विनीता के इश्क के चर्चे होने लगे. इस से छोटेलाल की गांव में बदनामी हो रही थी.

घरपरिवार के सभी लोगों ने विनीता को खूब समझाया लेकिन प्यार में आकंठ डूबी विनीता पर इस का कोई असर नहीं हुआ. पूरा परिवार गांव में हो रही बदनामी से परेशान था. रोज घर में कलह होती लेकिन हो कुछ नहीं पाता था.

29 सितंबर की सुबह करीब 8 बजे विनीता अपनी भाभी नन्ही देवी के साथ दिशामैदान के लिए खेतों की तरफ गई थी. कुछ समय बाद नन्ही देवी घर लौटी तो विनीता उस के साथ नहीं थी. घर वालों ने उस से विनीता के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि जब वह दिशामैदान के बाद बाजरे के खेत से बाहर निकली तो उसे विनीता नहीं दिखी.

उस ने सोचा कि विनीता शायद अकेली घर चली गई होगी. लेकिन यहां आ कर पता चला कि वह यहां पहुंची ही नहीं है. नन्ही ने कहा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि विनीता अपनी किसी सहेली के यहां चली गई हो.

कुछ ही देर में गांव के एक किसान चंद्रपाल ने विनीता के घर पहुंच कर बताया कि रामानंद शर्मा के बाजरे के खेत में विनीता की लाश पड़ी है. उस समय छोटेलाल पत्नी के साथ डाक्टर के पास दवा लेने गए थे. छोटेलाल के धान के खेत के बराबर में ही रामानंद का बाजरे का खेत था.

यह खबर सुन कर सभी घर वाले लगभग दौड़ते हुए घटनास्थल पर पहुंचे. विनीता की लाश देख कर सब बिलखबिलख कर रोने लगे. इसी बीच वहां गांव के काफी लोग पहुंच गए थे. ग्रामप्रधान भी मौके पर थे. उन्होंने घटना की सूचना स्थानीय थाना अलीगंज को दे दी.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी विशाल प्रताप सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. विनीता के पेट में गोली लगने के निशान थे. निशान देख कर ऐसा लग रहा था कि किसी ने काफी नजदीक से गोली मारी है. इस का मतलब था कि हत्यारे को विनीता काफी अच्छी तरह से जानती थी. इसी बीच रोतेबिलखते छोटेलाल और उन की पत्नी भी वहां पहुंच गए.

थानाप्रभारी विशाल प्रताप सिंह ने नन्ही और बाकी घर वालों से आवश्यक पूछताछ की. फिर विनीता की लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.

थाने वापस आ कर उन्होंने छोटेलाल कश्यप की लिखित तहरीर पर गांव के ही इंद्रपाल, हरपाल, उमाशंकर और धनपाल के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. तहरीर में हत्या का कारण इन लोगों से रंजिश बताया गया था.

थानाप्रभारी सिंह ने केस की जांच शुरू की तो पता चला कि विनीता का भाई तालेवर अपने मकान के पीछे रहने वाली युवती से दुष्कर्म के मामले में 2014 से जेल में बंद है. पुलिस को पता चला कि जिस युवती ने रेप का आरोप लगाया था, छोटेलाल ने उस युवती के पिता को भी विनीता की हत्या में आरोपी बनाया गया था.

साथ ही विनीता के किसी हरि नाम के युवक से प्रेम संबंध की बात पता चली. बेटी की इस हरकत से घर वाले काफी परेशान थे. इस से पुलिस का शक विनीता के परिवार पर केंद्रित हो गया.

थानाप्रभारी ने सोचा कि कहीं एक तीर से दो शिकार करने की कोशिश तो नहीं की गई. विनीता से छुटकारा तो मिलता ही साथ ही तालेवर को जेल भेजने वाले को भी जेल की चारदीवारी में कैद कराने में सफल हो जाते.

पूरी घटना की जांच में यही निष्कर्ष निकला कि परिवार का ही कोई सदस्य इस घटना में शामिल है. लेकिन मांबाप तो थे नहीं, उन का बेटा नरेश गांव में नहीं था. बची बेटे की पत्नी नन्ही जो विनीता के साथ ही गई थी और अकेली वापस लौटी थी. नन्ही पर ही हत्या का शक गहराया. थानाप्रभारी ने गांव के लोगों से पूछताछ की तो ऐसे में एक व्यक्ति ऐसा मिल गया, जिस ने ऐसा कुछ बताया कि थानप्रभारी की आंखों में चमक आ गई.

इस के बाद 2 अक्तूबर को उन्होंने नन्ही देवी को घर से पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. जब महिला आरक्षी की उपस्थिति में नन्ही से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह टूट गई. उस ने विनीता की हत्या अपने नाबालिग बेटे शिवम के साथ मिल कर किए जाने की बात स्वीकार कर ली और पूरी कहानी बयान कर दी.

विनीता के हरि नाम के युवक से प्रेम संबंध की बात से घर का हर कोई नाराज था. समझाने के बावजूद भी विनीता नहीं मान रही थी. गांव में हो रही बदनामी से घर वालों का जीना मुहाल हो गया था.

नन्ही अपनी ननद विनीता की कारगुजारियों से कुछ ज्यादा ही खफा थी. वह अपने परिवार को बदनामी से बचाना चाहती थी. इसलिए उस ने विनीता की हत्या अपने नाबालिग बेटे शिवम से कराने का फैसला कर लिया.

इस हत्या में उस इंसान को भी फंसा कर  जेल भेजने की योजना बना ली, जिस की बेटी से दुष्कर्म के मामले में उस का देवर तालेवर जेल में बंद था. उस इंसान के जेल जाने पर उस से समझौते का दबाव बना कर वह देवर तालेवर को जेल से छुड़ा सकती थी. घर में एक .315 बोर का तमंचा पहले से ही रखा हुआ था. नन्ही ने शिवम के साथ मिल कर विनीता की हत्या की पूरी योजना बना ली.

29 सितंबर की सुबह 8 बजे नन्ही ने बेटे शिवम को तमंचा ले कर घर से पहले ही भेज दिया. फिर विनीता को साथ ले कर दिशामैदान के लिए खुद घर से निकल पड़ी. विनीता को ले कर नन्ही अपने धान के खेत के बराबर में बाजरे के खेत में पहुंची. शिवम वहां पहले से मौजूद था.

विनीता के वहां पहुंचने पर शिवम ने तमंचे से विनीता पर फायर कर दिया. गोली सीधे विनीता के पेट में जा कर लगी. विनीता जमीन पर गिर कर कुछ देर तड़पी, फिर शांत हो गई.

विनीता की लीला समाप्त करने के बाद शिवम ने अपने धान के खेत में तमंचा छिपाया और वहां से छिपते हुए निकल गया. नन्ही भी वहां से घर लौट गई. लेकिन पुलिस के शिकंजे से वह न अपने आप को बचा सकी और न ही अपने बेटे को.

थानाप्रभारी विशाल प्रताप सिंह ने नन्ही को मुकदमे में 120बी का अभियुक्त बना दिया. शिवम की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त तमंचा भी पुलिस ने बरामद कर लिया.

आवश्यक लिखापढ़ी के बाद नन्ही को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया, और शिवम को बाल सुधार गृह.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में शिवम नाम परिवर्तित है.

कंकाल से खुला हत्या का राज

कोतवाल नरेंद्र बिष्ट ने सब से पहले कंकाल का निरीक्षण किया. इस के बाद उन्होंने आसपास की झाडिय़ों पर नजर दौड़ाई. पास में एक फटा सलवारसूट पड़ा था, जिसे देख कर लग रहा था कि यह कंकाल किसी युवती का रहा होगा. इस के बाद उन्होंने आसपास पड़ी किसी अन्य वस्तु को भी खोजना शुरू किया जिस से उन्हें इस कंकाल के बारे में और जानकारी प्राप्त हो सके.

3 दिन बीत गए थे. मगर युवती के कंकाल की शिनाख्त नहीं हो सकी थी. इस के बाद एसएसपी अजय सिंह ने इस कंकाल की शिनाख्त के लिए एसओजी प्रभारी विजय सिंह तथा थाना सिडकुल के एसएचओ नरेश राठौर को लगा दिया था. साथ ही पुलिस टीम कंकाल मिलने वाली जगह के आसपास चलने वाले मोबाइल फोनों की डिटेल भी जुटा रही थी.

हरिद्वार के रानीपुर क्षेत्र में स्थित शिवालिक पर्वत की निचली सतह की ओर घनी झाडिय़ां फैली हुई थीं. कई दिनों से क्षेत्र में हो रही मूसलाधार बारिश के कारण ये झाडिय़ां काफी घनी हो गई थीं. इन्हीं झाडिय़ों के पास से हो कर गांवों से एक रास्ता जिला मुख्यालय की ओर जाता है. सैकड़ों लोग अकसर सुबहशाम इसी रास्ते से हो कर अपने घर आतेजाते थे.

कई दिनों से कुछ लोग यह महसूस कर रहे थे कि झाडिय़ों के एक कोने से काफी बदबू आ रही है. पहले तो लोगों को यह लग रहा था कि यह बदबू किसी कुत्ते या बिल्ली की लाश से आ रही होगी, मगर जब यह बदबू ज्यादा हो गई थी और इसे सहन करना भी असहनीय हो गया था तो कुछ लोगों ने नाक पर रुमाल रख इसे देखने का फैसला किया था.

उधर से गुजरने वाले कई लोग उत्सुकता से जब झाडिय़ों से लगभग 100 मीटर अंदर की ओर पहुंचे तो वहां का दृश्य देख कर उन सब की चीख निकल गई थी. वहां पर एक मानव कंकाल पड़ा हुआ था.

कंकाल के पास ही किसी युवती के कपड़े भी पड़े थे, जो बारिश के कारण भीगे हुए थे. तब सभी लोग सहम कर वापस सड़क पर आ गए थे और उन्होंने झाडिय़ों में कंकाल पड़ा होने की जानकारी पुलिस को देने का विचार बनाया था.

यह स्थान उत्तराखंड के हरिद्वार जिले के रोशनाबाद मुख्यालय के निकट कोतवाली रानीपुर के क्षेत्र टिबड़ी में पड़ता है. घटनास्थल कोतवाली रानीपुर से मात्र 3 किलोमीटर तथा एसएसपी कार्यालय से केवल 5 किलोमीटर दूर है. इस के बाद राहगीरों ने टिबड़ी क्षेत्र में कंकाल पड़े होने की सूचना कोतवाल रानीपुर नरेंद्र बिष्ट को दे दी. अपने क्षेत्र में कंकाल मिलने की सूचना पा कर नरेंद्र बिष्ट चौंक पड़े थे.

सब से पहले उन्होंने यह सूचना एसपी (क्राइम) रेखा यादव, सीओ (ज्वालापुर) निहारिका सेमवाल व एसएसपी अजय सिंह को दी. इस के बाद नरेंद्र बिष्ट अपने साथ कोतवाली के एसएसआई नितिन चौहान तथा अन्य पुलिसकर्मियों को ले कर घटनास्थल की ओर चल पड़े. घटनास्थल वहां से ज्यादा दूर नहीं था, इसलिए पुलिस टीम 10 मिनट में ही मौके पर पहुंच गई थी.

जब पुलिस टीम मौके पर पहुंची थी तो उस वक्त कुछ लोग उस कंकाल के आसपास खड़े थे. जिस स्थान पर कंकाल मिला था, वह स्थान सुनसान होने के साथसाथ वन्य क्षेत्र से लगा हुआ है. हिंसक पशु गुलदार व जंगली हाथी अकसर इस क्षेत्र में घूमते हुए देखे जा सकते हैं.

आखिर किस का था वह कंकाल

कोतवाल नरेंद्र बिष्ट अभी घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण कर ही रहे थे कि तभी वहां एसएसपी अजय सिंह, एसपी (क्राइम) रेखा यादव तथा (सीओ) ज्वालापुर निहारिका सेमवाल सहित कुछ मीडियाकर्मी भी पहुंच गए थे. इस के बाद पुलिसकर्मियों ने कंकाल के अलगअलग कोणों से फोटो लिए थे.

कंकाल की शिनाख्त करने के लिए अजय सिंह ने कोतवाल नरेंद्र बिष्ट को निर्देश दिए कि वह आसपास के पुलिस स्टेशनों से यह जानकारी करे कि इस हुलिए की कोई युवती उन के क्षेत्र से कहीं लापता तो नहीं है. शिनाख्त न होने पर इस बाबत अखबारों में कंकाल के इश्तहार छपवाने को कहा था. यह बात 26 जुलाई, 2023 की है.

पुलिस ने कंकाल का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए हरमिलापी अस्पताल हरिद्वार भेज दिया था. अब सब से पहले कोतवाल नरेंद्र बिष्ट के सामने युवती की शिनाख्त न होने की समस्या थी. यदि युवती की शिनाख्त हो जाती तो पुलिस उस की काल डिटेल्स आदि के आधार पर जांच में जुट जाती. अगले दिन जब कंकाल के फोटो अखबारों में छपे तो कोई भी व्यक्ति उसे पहचानने वाला पुलिस के पास नहीं आया था.

इस के अलावा पुलिस स्टेशनों से भी कोई खास जानकारी नहीं मिली. एक बार तो नरेंद्र बिष्ट के दिमाग में यह भी आया कि युवती को कहीं किसी नरभक्षी गुलदार ने निवाला न बना लिया हो. मगर बाद में उन्हें ऐसा नहीं लगा था.

युवती के कंकाल की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी पुलिस को ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली जिस से कि पुलिस कातिल तक पहुंच पाती.

वह 30 जुलाई, 2023 का दिन था. थाना सिडकुल के एसएचओ नरेश राठौर के पास करीब 55 वर्षीय राम प्रसाद निवासी कस्बा किरतपुर बिजनौर उत्तर प्रदेश अपनी बेटी प्रवीना के साथ वहां पहुंचा था. राम प्रसाद ने नरेश राठौर को बताया कि उस की 21 वर्षीया बेटी रवीना इसी महीने की 11 जुलाई से लापता है.

राम प्रसाद ने बताया कि रवीना सिडकुल की एक कंपनी में नौकरी करती थी तथा उस के बाद से ही वह लापता हो गई थी.

इस के बाद राठौर ने राम प्रसाद को कोतवाली रानीपुर भेज दिया था. राम प्रसाद व उन की बेटी रवीना कोतवाल नरेंद्र बिष्ट से मिले और उन्हें 11 जुलाई से रवीना के लापता होने की बात बता दी. जब बिष्ट ने राम प्रसाद को गत 26 जुलाई को उन के क्षेत्र में रवीना जैसी युवती का कंकाल मिलने की जानकारी दी थी तो राम प्रसाद ने कंकाल के पास मिले कपड़े देखने की इच्छा जताई.

जब कोतवाल ने कंकाल के पास मिले कपड़े ला कर दिखाने को कहा तो मुंशी कपड़े ले आया. राम प्रसाद व उन की बेटी प्रवीना उन कपड़ों को देखते ही फफक कर रो पड़े थे.

इस से पुष्टि हो गई कि टिबड़ी क्षेत्र में मिला कंकाल रवीना का ही था. खैर, किसी तरह बिष्ट ने दोनों बापबेटी को चुप कराया था और उन से रवीना के बारे में जानकारी हासिल की.

पुनीत से रवीना की कैसे हुई दोस्ती

राम प्रसाद ने बिष्ट को बताया कि पिछले 2 साल से रवीना की धामपुर बिजनौर निवासी पुनीत धीमान से खासी दोस्ती थी तथा उन की आपस में शादी करने की योजना भी थी. मगर बीच में कुछ गड़बड़ हो गई थी. कुछ समय पहले पुनीत ने किसी अन्य युवती से शादी कर ली थी. पुनीत व रवीना सिडकुल की कंपनी ऋषिवेदा में साथसाथ काम करते थे. पुनीत कंपनी में सुपरवाइजर था.

यह जानकारी मिलते ही नरेंद्र बिष्ट ने तुरंत पुनीत धीमान व रवीना के मोबाइल की काल डिटेल्स खंगालने के लिए एसओजी प्रभारी विजय सिंह को कहा था. उसी दिन शाम को ही पुलिस को दोनों के नंबरों की काल डिटेल्स मिल गई थी.

दोनों की काल डिटेल्स जब पुलिस ने देखी तो उस से पुनीत खुद ही संदेह के दायरे में आ गया. इस के बाद पुलिस ने पुनीत से पूछताछ करने की योजना बनाई.

उसी दिन रात को ही पुलिस टीम ने पुनीत को पूछताछ के लिए सिडकुल से हिरासत में ले लिया था. इस के बाद पुलिस उसे पूछताछ करने के लिए कोतवाली रानीपुर ले आई. पुनीत से पूछताछ करने के लिए एसपी (क्राइम) रेखा यादव व एसएसपी अजय सिंह भी वहां पहुंच गए.

पहले तो पुलिस ने पुनीत से रवीना के उस के साथ प्रेम संबंधों व उस की हत्या की बाबत पूछताछ की थी, मगर पुनीत पुलिस को गच्चा देते हुए बोला कि मेरा तो रवीना से या उस की हत्या से कोई लेनादेना नहीं है.

पुनीत के मुंह से यह बात सुन कर वहां खड़े कोतवाल नरेंद्र बिष्ट को गुस्सा आ गया और उन्होंने पुनीत को डांटते हुए कहा, ”पुनीत, या तो तुम सीधी तरह से रवीना की मौत का सच बता दो अन्यथा याद रखो, पुलिस के सामने मुर्दे भी सच बोलने लगते हैं.’’

बिष्ट के इस वाक्य का पुनीत पर जादू की तरह असर हुआ था. पुनीत ने रवीना की हत्या की बात कुबूल करते हुए पुलिस को जो जानकारी दी, वह इस प्रकार है—

क्यों नहीं हो सकी प्रेमी युगल की शादी

बात 4 साल पुरानी है. पुनीत और रवीना सिडकुल की कंपनी ऋषिवेदा में साथसाथ काम करते थे. हम दोनों में पहले दोस्ती हुई थी, जो बाद में प्यार में बदल गई थी. फिर दोनों ने भविष्य में शादी करने की भी योजना बना ली थी. यह अंतरजातीय प्यार गहरा हो गया. इस बाबत जब पुनीत ने अपने घर वालों से बात की तो दोनों की जातियां अलगअलग होने के कारण घर वालों ने शादी करने से साफ मना कर दिया था.

इस के बाद पुनीत के घर वाले किसी और सजातीय लड़की से उस की शादी कराने के प्रयास में जुट गए. उन्होंने फरवरी 2023 में उस की शादी कर दी थी. दूसरी ओर रवीना के पिता राम प्रसाद ने भी उस की सगाई कहीं और कर दी थी. इस के बाद पुनीत ने रवीना पर अपनी सगाई तोडऩे के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया. रवीना ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया.

रवीना के मना करने से पुनीत तिलमिला गया. इस के बाद रवीना ने उस का फोन अटैंड करना भी बंद कर दिया था और अपना फोन नंबर भी बदल लिया. यह बात पुनीत को बहुत बुरी लगी. वह गुस्से में पागल हो गया था. तभी उस ने रवीना की हत्या की योजना बनाई.

योजना के अनुसार, पुनीत 11 जुलाई, 2023 को रवीना से मिला था और उसे घुमाने के लिए टिबड़ी रोड पर ले गया था. वहां सुनसान होने के कारण उस ने रवीना की गला घोंट कर हत्या कर दी और धामपुर आ कर रहने लगा था.

इस के बाद कोतवाल नरेंद्र बिष्ट ने पुनीत के ये बयान दर्ज कर लिए थे. फिर बिष्ट ने रवीना की गुमशुदगी को हत्या की धाराओं 302 व 201 में तरमीम कर दिया था. अगले दिन रोशनाबाद स्थित पुलिस कार्यालय में एसएसपी अजय सिंह ने प्रैसवार्ता का आयोजन कर के इस ब्लाइंड मर्डर केस का परदाफाश कर दिया.

अजय सिंह ने इस केस को सुलझाने वाली पुलिस टीम में शामिल कोतवाल नरेंद्र बिष्ट, एसओजी प्रभारी विजय सिंह, एसएचओ (सिडकुल) नरेश राठौर की पीठ थपथपाई.

इस के बाद पुलिस ने हत्या के आरोपी पुनीत धीमान को कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया. इस हत्याकांड की विवेचना कोतवाल नरेंद्र बिष्ट द्वारा की जा रही थी. वह शीघ्र ही इस केस की विवेचना पूरी कर के पुनीत के खिलाफ चार्जशीट अदालत में भेजने की तैयारी कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित