इस तरह 29 सितंबर, 2017 को गुरदासपुर के थाना सिटी में अपराध संख्या 168 पर उपर्युक्त धाराओं के तहत सुच्चा सिंह लंगाह के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो गया. इस के बाद लंगाह की वह अश्लील वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गई.
इस के बाद सुच्चा सिंह लंगाह ने भूमिगत हो कर पार्टी के सभी पदों तथा शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) की सदस्यता से इस्तीफा दे कर अदालत में आत्मसमर्पण करने की घोषणा कर दी. अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने उस के इस्तीफे को तत्काल प्रभाव से स्वीकार कर लिया. एसएसपी हरचरण सिंह भुल्लर ने मामले की जांच डीएसपी आजाद दविंद्र सिंह एवं इंसपेक्टर सीमा देवी को सौंपने के अलावा जसविंदर कौर को सुरक्षा मुहैया करा दी.
उसी दिन सुच्चा सिंह ने बयान जारी करते हुए कहा कि उन के विरुद्ध यह झूठा मामला सरकार द्वारा गुरदासपुर उपचुनाव जीतने के लिए एक सोचीसमझी साजिश के तहत दर्ज कराया गया है. लेकिन उन्हें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है. वह 30 सितंबर, 2017 को माननीय अदालत में आत्मसमर्पण कर देंगे.
लेकिन सुच्चा सिंह 30 सितंबर को किसी भी अदालत में आत्मसमर्पण करने नहीं पहुंचा. हालांकि उस दिन छुट्टी थी, फिर भी गुरदासपुर की अदालत में ड्यूटी मजिस्ट्रैट दिन भर बैठे रहे. इतना ही नहीं, मीडियाकर्मी, पुलिस फोर्स और अकाली दल के समर्थक भी अदालत पहुंच कर उस के बंद होने तक उस का इंतजार करते रहे.
जिस तरह सोशल मीडिया पर सुच्चा सिंह लंगाह का आपत्तिजनक वीडियो वायरल हुआ था, उसी तरह यह खबर भी सामने आई कि केस दर्ज करवाने वाली महिला ने 12 दिन पहले उसे चेतावनी देते हुए कहा था कि जो हुआ, सो हुआ. अब वह उस का पीछा छोड़ दें, वरना उसे मजबूरन पुलिस की शरण में जाना पड़ेगा.
लेकिन सुच्चा सिंह लंगाह ने उस की इस चेतावनी की जरा भी परवाह नहीं की थी. वह जाने कहां छिपा बैठा था. उसी बीच पहली अक्तूबर को भाजपा के पंजाब प्रभारी प्रभात झा ने बयान जारी करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह अकाली नेता पूर्वमंत्री सुच्चा सिंह लंगाह को फंसाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन उसी दिन शाम को शिरोमणि अकाली दल पार्टी ने उसे निकाले जाने का आदेश सार्वजनिक कर दिया.
गिरफ्तारी के डर से भूमिगत हो गया सुच्चा सिंह
मुकदमा दर्ज होने के 3 दिनों बाद सुच्चा सिंह लंगाह वकीलों की टीम के साथ चंडीगढ़ की जिला अदालत में आत्मसमर्पण करने पहुंचा, पर अदालत ने उसे गुरदासपुर जाने को कहा. इस के बाद सुच्चा सिंह फिर भूमिगत हो गया. श्री अकालतख्त साहिब समेत अन्य तख्तों के जत्थेदारों ने इस मामले पर नोटिस लेते हुए उस पर कड़ी काररवाई करने की बात की.
श्री अकालतख्त साहिब के जत्थेदार सिंह साहिब ज्ञानी गुरबचन सिंह ने इस घटना की भर्त्सना करते हुए अपना बयान जारी किया कि सुच्चा सिंह लंगाह ने एसजीपीसी जैसी सर्वोच्च धार्मिक संस्था का सदस्य रहते हुए जो कृत्य किया है, वह अति निंदनीय है. दुनिया भर में बैठी संगत इस की जोरदार शब्दों में निंदा करती है. जल्दी ही इस मामले पर सिंह साहिबान की बैठक बुला कर और उस में धार्मिक मामलों को ले कर गठित कमेटी की राय ले कर लंगाह के खिलाफ जो काररवाई की जानी चाहिए, वह की जाएगी.
3 अक्तूबर को सुच्चा सिंह लंगाह की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने लुकआउट नोटिस जारी कर दिया. उस ने अग्रिम जमानत के लिए हाईकोर्ट में जमानत की अर्जी लगाई, जो खारिज कर दी गई. आखिर 4 अक्तूबर को उस ने अपने वकीलों के साथ जा कर गुरदासपुर की सीजेएम कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया. पुलिस ने पूछताछ के लिए उसे 9 अक्तूबर तक के लिए कस्टडी रिमांड पर ले लिया.
उस समय सुच्चा सिंह ने अदालत में मौजूद पत्रकारों से कहा था कि उन के विरुद्ध साजिश रची गई है, जिस में एक कांग्रेसी नेता तथा एक पुलिस अधिकारी ने मुख्य भूमिका निभाई है. इसी के साथ उस ने यह भी कहा कि उसे न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है.
अदालत परिसर में ही कुछ लोगों ने सुच्चा सिंह पर हमला कर दिया, जिस में वह बालबाल बच गया. इस घटना के बाद पुलिस ने एक हमलावर युवक को नंगी तलवार के साथ गिरफ्तार कर लिया था.
उसी दिन सरबतखालसा पंथ के जत्थेदारों की ओर से सिख पंथ के नाम जारी एक हुकमनामे के अनुसार, सुच्चा सिंह को पंथ से निकाल दिया गया. इस के बाद इस फैसले पर 5 सिंह साहिबानों श्री अकालतख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी गुरबचन सिंह, तख्त श्री दमदमा साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह, तख्त श्री पटनासाहिब के जत्थेदार ज्ञानी इकबाल सिंह, ज्ञानी जगतार सिंह व ज्ञानी रघबीर सिंह ने इस फैसले पर मुहर लगा दी.
कस्टडी रिमांड के दौरान सुच्चा सिंह लंगाह की उम्र अथवा रुतबे की परवाह न करते हुए पुलिस ने उस से गहन पूछताछ की.
कपूरथला से 10वीं पास कर के राजनीति में आने वाले सुच्चा सिंह लंगाह का मूल गांव था लंगाह, जहां उस के पिता तारा सिंह खेतीकिसानी करते थे. माझा में उस की अच्छी पहचान थी. उस के राजनीतिक कद को देखते हुए पार्टी में कई अहम पदों की जिम्मेदारी उसे सौंपी गई थी. क्योंकि वह पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का बहुत करीबी और खासमखास था.
सुच्चा सिंह सन 1997 से 2002 तक बादल के नेतृत्व वाली सरकार में लोकनिर्माण मंत्री रहा. इस के बाद सन 2007 से 2012 तक की अकाली-भाजपा सरकार में उसे कृषि मंत्री बनाया गया था. सन 2012 के विधानसभा चुनाव में डेरा बाबा नानक सीट पर वह कांग्रेस के सुखजिंदर सिंह रंधावा से चुनाव हार गया.
उस ने 2 शादियां की थीं. उस के 2 बेटे और 2 बेटियां हैं. उस की पहली पत्नी गुरदासपुर के कस्बा धारीवाल में रहती है, जबकि दूसरी पत्नी नरेंद्र कौर नयागांव (मोहाली) में रहती है. 61 साल के हो चुके सुच्चा सिंह लंगाह पुलिस रिकौर्ड के अनुसार हिस्ट्रीशीटर है. जमीनों पर नाजायज कब्जे के उस पर अनेक मामले चले हैं. सन 2002 में उसे पंजाब के सतर्कता विभाग ने गिरफ्तार कर उस पर मुकदमा चलाया था. सन 2015 में उसे 3 साल की कैद हुई थी. इस फैसले के खिलाफ की गई उस की अपील हाईकोर्ट में विचाराधीन है.
इस मामले में सुच्चा सिंह लंगाह बुरी तरह से फंस चुके है. अन्य धाराओं के अलावा पुलिस ने उस के खिलाफ धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने की धारा 295-ए जोड़ कर उस के कस्टडी रिमांड में एक दिन की बढ़ोत्तरी करवाई थी. 10 अक्तूबर को उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया है.
बहरहाल, अपनी बेटी की सहपाठिन रही विधवा औरत के साथ विश्वासघात का संगीन खेल खेल कर पूर्व मंत्री सुच्चा सिंह ने अपने इर्दगिर्द नफरत की एक ऐसी फसल उगा ली है, जिसे काट पाना उस के लिए आसान नहीं है.
कहानी सौजन्य – मनोहर कहानियां
22 जनवरी, 2021 की बात है. 12 साल की मानसी पास की दुकान से चिप्स लेने गई थी. जब वह काफी देर बाद भी घर नहीं लौटी तो घर वालों को उस की चिंता हुई. घर वाले उस दुकानदार के पास पहुंचे, जिस के पास वह अकसर खानेपीने का सामान लाती थी. उन्होंने उस दुकानदार से मानसी के बारे में पूछा तो दुकानदार ने बताया कि मानसी तो काफी देर पहले ही चिप्स का पैकेट ले कर जा चुकी है.
जब वह चिप्स ले कर जा चुकी है तो घर क्यों नहीं पहुंची, यह बात घर वालों की समझ में नहीं आ रही थी. उन्होंने आसपास के बच्चों से उस के बारे में पूछा, लेकिन उन से भी मानसी के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.
घर वालों की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर मानसी गई तो गई कहां. उन्होंने उसे इधरउधर तमाम संभावित जगहों पर ढूंढा लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. तब उन्होंने इस की सूचना पश्चिमी दिल्ली के थाना राजौरी गार्डन में दे दी. चूंकि मामला एक नाबालिग लड़की के लापता होने का था, इसलिए पुलिस ने इस मामले को गंभीरता से लिया. पुलिस ने मानसी के पिता की तरफ से गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर ली.
डीसीपी (पश्चिमी दिल्ली) उर्विजा गोयल को जब 12 वर्षीय मानसी के गायब होने की जानकारी मिली तब उन्होंने थाना पुलिस को इस मामले में तीव्र काररवाई करने के आदेश दिए. डीसीपी का आदेश पाते ही थानाप्रभारी ने इस मामले की जांच के लिए एएसआई विनती प्रसाद के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गठित कर दी.
एएसआई विनती प्रसाद ने सब से पहले लापता बच्ची के घर वालों से उस के बारे में विस्तार से जानकारी ली. इतना ही नहीं, उन्होंने घर वालों से यह भी जानना चाहा कि उन की किसी से कोई रंजिश तो नहीं है. घर वालों ने उन से साफ कह दिया कि उन की किसी से कोई दुश्मनी नहीं है. इस के बाद पुलिस अपने स्तर से मानसी को तलाशने लगी.
जिस जगह से मानसी गायब हुई थी, पुलिस ने उस क्षेत्र के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी. इस के अलावा स्थानीय लोगों से भी बच्ची के बारे में जानकारी हासिल की. पुलिस ने सोशल मीडिया पर भी निगरानी कर दी, लेकिन कहीं से भी मानसी के बारे में कोई सुराग नहीं मिला.
पुलिस टीम को जांच करतेकरते करीब 2 महीने बीत चुके थे. जब बच्ची कहीं नहीं मिली तो पुलिस ने ह्यूमन ट्रैफिकिंग के एंगल को ध्यान में रखते हुए केस की जांच शुरू कर दी. यानी पुलिस को यह शक होने लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि बच्ची जिस्मफरोशी गैंग के चंगुल में फंस गई हो.
इस बिंदु पर जांच करते करते पुलिस टीम ने कई जगहों पर दबिशें दीं, लेकिन लापता बच्ची का सुराग नहीं मिला.
करीब 2 महीने बाद पुलिस को सूचना मिली कि मानसी का अपहरण करने के बाद उसे दिल्ली के मजनूं का टीला इलाके में रखा गया है और वहीं पर उस से जिस्मफरोशी का धंधा कराया जा रहा है. यह सूचना रोंगटे खड़े कर देने वाली थी. क्योंकि मानसी की उम्र केवल 12 साल थी और इस उम्र में उस बच्ची के साथ जिस तरह का कार्य कराने की जानकारी मिली, वह मानवता को शर्मसार करने वाली ही थी.

जांच अधिकारी विनती प्रसाद ने यह खबर अपने उच्चाधिकारियों को दी फिर उन्हीं के दिशानिर्देश पर पुलिस टीम ने 17 मार्च, 2021 को मजनूं का टीला इलाके में एक घर पर दबिश दी. मुखबिर की सूचना सही निकली. मानसी वहीं पर मिल गई.
पुलिस ने मानसी को सब से पहले अपने कब्जे में लिया. इस के बाद पुलिस ने वहां 2 महिलाओं सहित 4 लोगों को गिरफ्तार किया.
पुलिस ने उन सभी से पूछताछ की तो उन्होंने स्वीकार किया कि वे बड़े स्तर पर एस्कौर्ट सर्विस मुहैया कराते थे और उन का धंधा ज्यादातर वाट्सऐप ग्रुप और इंटरनेट के माध्यम से चलता है. उन के पास से पुलिस ने 5 मोबाइल फोन बरामद किए. फोनों की जांच की गई तो तमाम वाट्सऐप ग्रुप में ऐसी लड़कियों के अनेक फोटो मिले, जिन से वे जिस्मफरोशी कराते थे.
पुलिस ने गिरफ्तार किए हुए उन चारों लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि उन में से संजय राजपूत और कनिका राय मजनूं का टीला के रहने वाले थे जबकि अंशु शर्मा मुरादाबाद का और सपना गोयल मुजफ्फरनगर की.
ये सभी औनलाइन सैक्स रैकेट चलाते थे. जांच में पता चला कि इन लोगों के काम करने का तरीका एकदम अलग था. यह गिरोह सोशल साइट पर ज्यादा सक्रिय था. गैंग के लोग 150 से ज्यादा वाट्सऐप ग्रुप में सक्रिय थे. एस्कौर्ट सर्विस मुहैया कराने वाली लड़की के फोटो ये वाट्सऐप ग्रुप में शेयर करते थे. इस के बाद ग्रुप से जो कस्टमर इन के संपर्क में आता था, उस से यह पर्सनल चैटिंग करने के बाद पैसों की डील फाइनल करते थे. फिर औनलाइन ही पेमेंट अपने खाते में ट्रांसफर कराने के बाद कस्टमर के बताए गए स्थान पर ये लड़की को सप्लाई करते थे.
इस तरह यह गैंग देश के अलगअलग बड़े शहरों में लड़कियों की सप्लाई करते था. इतना ही नहीं, फाइव स्टार होटलों में भी इन के पास से लड़कियां सप्लाई की जाती थीं.
आरोपियों ने बताया कि उन के गैंग के सदस्य अलगअलग जगहों से लड़कियां उन के पास लाते थे. मानसी का भी गैंग के 2 लोगों ने अपहरण उस समय किया था, जब वह दुकान पर गई थी. उस का अपहरण करने के बाद वह उसे अपने घर पर ले गए थे.
उन्होंने मानसी से कहा था कि आज उन के यहां पर जन्मदिन है इसलिए वह बच्चों को इकट्ठा कर के केक काटेंगे. उन्होंने मानसी को केक खाने को दिया. केक खाते ही मानसी को नशा हो गया. इस के बाद दोनों मानसी को मजनूं का टीला ले गए, वहां पर संजय राजपूत, अंशु शर्मा, सपना गोयल और कनिका राय मिली. 12 साल की बच्ची को देख कर ये चारों खुश हो गए कि अब इस से मोटी कमाई की जा सकती है. क्योंकि वह तो उसे सोने का अंडा देने वाली मुरगी समझ रहे थे.
जब मानसी पर हल्का नशा सवार था, तभी उस के साथ रेप किया गया. होश आने पर मानसी दर्द से कराहती रही. इस के बाद भी इन लोगों को उस पर दया नहीं आई. उन्होंने उसी रात उसे किसी दूसरे ग्राहक के सामने पेश किया.
इस तरह वह मानसी का शारीरिक शोषण करते रहे. जब वह विरोध करती तो ये लोग उसे प्रताडि़त करते थे. इस तरह मानसी इन लोगों के चंगुल में बुरी तरह फंस चुकी थी. वहां से निकलने का उस के पास कोई उपाय नहीं था.
आरोपियों के 2 अन्य साथी फरार हो चुके थे. पुलिस ने उन की तलाश में अनेक स्थानों पर दबिश दी, लेकिन उन का पता नहीं चला. आरोपी 35 वर्षीय संजय राजपूत, 21 वर्षीय अंशु शर्मा, 24 साल की सपना गोयल और 28 साल की कनिका राय से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.
अभियुक्तों के पास से बरामद की गई 12 वर्षीय मानसी को पुलिस ने उपचार के लिए अस्पताल में भरती करा दिया. मानसी ने अपने साथ घटी सारी घटना पुलिस को बता दी.
आरोपियों को जेल भेजने के बाद पुलिस गंभीरता से इस बात की जांच करने में जुट गई. इस गैंग के तार देश में किनकिन लोगों से जुड़े थे और इन्होंने अब तक कितनी लड़कियों का अपहरण किया था.
(कथा में मानसी परिवर्तित नाम है)
जैसे जैसे तकनीकी का विकास होता जा रहा है, लोग भी जागरूक होते जा रहे हैं. अब ठगों ने भी आधुनिक तकनीकी का लाभ उठाते हुए पढे लिखे लोगों को एक नए तरीके से ठगना शुरू कर दिया है. अब कुछ ठगों ने लोगों को रेडियो धर्मी नामक दुर्लभ धातु ‘राइस पुलर’ के नाम पर लाखोंकरोड़ों रुपए की ठगी करनी शुरू कर दी है.
ऐसा ही एक मामला दिल्ली पुलिस ने व्यापारी संजय गुप्ता की शिकायत पर उजागर किया है. पुलिस ने जिन ठगों को गिरफ्तार किया है, उन्होंने स्वीकार किया है कि वह लगभग 100 लोगों से 10 करोड़ रुपए की ठगी कर चुके हैं.
उत्तर पश्चिमी दिल्ली के आदर्श नगर के रहने वाले व्यापारी संजय गुप्ता की एक दिन मुन्नालाल नाम के व्यक्ति से मुलाकात हुई. बाद में उन दोनों के संबंध बहुत गहरे हो गए. तो मुन्नालाल ने संजय गुप्ता को राइस पुलर के बारे में बताया.
व्यापारी संजय गुप्ता राइस पुलर के बारे में कुछ नहीं जानते थे. मुन्नालाल ने बताया है कि राइस पुलर एक बेशकीमती धातु होती है. जिस का प्रयोग नासा, डीआरडीओ, इसरो स्पेस में भेजे जाने वाले अपने उपग्रह में करते हैं.
उस की बात सुनकर संजय गुप्ता के मन में भी एक जिज्ञासा पैदा हुई. उन्होंने उसी समय अपने मोबाइल फोन में गूगल पर राइस पुलर के बारे में सर्च करना शुरू कर दिया. कुछ ही देर में राइस पुलर के बारे में तमाम जानकारी उन के सामने आ गई.
गूगल पर राइस पुलर के बारे में ढेर सारी जानकारी मिलते ही संजय गुप्ता समझ गए कि राइस पुलर वास्तव में एक महंगी धातु है. वहां से उन्हें यह भी पता चल गया कि असली राइस पुलर की पहचान क्या होती है.
इस के बाद मुन्नालाल ने उन से कहा कि मेरे पास एक ऐसी पार्टी है, जो राइस पुलर की तांबे की प्लेट को बांग्लादेश से स्मगलिंग कर के लाई है. आप चाहें तो खुद उस प्लेट को देख लें. लेकिन यह बात तय है कि जितने पैसे में आप उसे खरीदेंगे, उस से कई गुना दामों में नासा वाले उसे खरीद लेंगे.
संजय गुप्ता व्यापारी थे, उन्हें इस धंधे में फायदा होता दिखा तो उन की दिलचस्पी भी बढ़ गई. उन्होंने उस से पूछा कि यह कितने पैसों में मिल सकती है.
‘सर, सौदे की बात तो बाद में हो जाएगी. सब से पहले आप यह देख लें कि हम जिस चीज का सौदा करने वाले हैं, वह असली भी है या नहीं. वैसे मेरे पास उस की एक वीडियो है. आप पहले इस वीडियो को देख लीजिए.’ मुन्नालाल ने कहा.
तब मुन्नालाल ने अपने फोन में एक वीडियो संजय गुप्ता को दिखाई. संजय गुप्ता उस वीडियो को बड़ी गौर से
देखने लगे.
इस वीडियो में एक तांबे की प्लेट रखी हुई थी उस प्लेट से कुछ दूर पर कुछ चावल बिखरे हुए थे. उन्होंने देखा कि धीरेधीरे वह चावल उस तांबे की प्लेट की तरफ खिंचे आ रहे थे. ठीक उसी तरह जैसे कोई चुंबक लोहे को अपनी ओर खींचता है.
मुन्नालाल से उन्होंने उस प्लेट की कीमत मालूम की. उस ने बताया है कि वैसे तो इस प्लेट की कीमत एक करोड़ रुपए से ज्यादा है, लेकिन वह उन्हें
80 लाख रुपए में इस का सौदा करा सकता है.
‘‘इस बात की क्या गारंटी है कि यदि मैं आप लोगों से इस प्लेट को खरीद लूं तो नासा या इसरो वाले उस से इस प्लेट को खरीद ही लेंगे.’’ संजय गुप्ता ने अपना शक जाहिर करते हुए कहा.
‘‘आप ने बिलकुल सही सवाल पूछा है. किसी के भी मन में ऐसा सवाल उठना स्वाभाविक बात है. इस के बारे में मैं बताना चाहता हूं कि हम जिस प्लेट का सौदा आप से करेंगे उस प्लेट को नासा और डीआरडीओ वाले खुद जांच करेंगे कि यह प्लेट असली भी है या नहीं. जब वह संतुष्ट हो जाएंगे. तब वह उसी समय एक जांच सर्टिफिकेट देंगे. उस सर्टिफिकेट में लिखा हुआ होगा कि यह प्लेट वास्तव में रेडियोधर्मी पदार्थ यानी राइस पुलर है.
‘‘यह बात आप भी जानते हैं कि नासा, डीआरडीओ या इसरो कोई छोटीमोटी एजेंसी तो हैं नहीं. यह देश की जानीमानी संस्थाएं हैं. उसी सर्टिफिकेट के आधार पर आप यह प्लेट नासा को अपनी मुंह मांगी कीमत पर बेच सकते हैं.’’ मुन्नालाल ने कहा.
मुन्नालाल से 4-5 बार हुई मीटिंग के आधार पर संजय गुप्ता को विश्वास हो गया कि वह जो सौदा करने जा रहा है वह घाटे का नहीं है. इस दौरान मुन्नालाल ने हरेंद्र कुमार और ठाकुरदास मंडल नाम के 2 व्यक्तियों से उन की फोन पर कई बार बात कराई.
इन दोनों ने खुद को नासा का वैज्ञानिक बताया था. इतना ही नहीं इन दोनों ने यह भी कहा कि वास्तव में जब वह कोई उपग्रह अंतरिक्ष में भेजते हैं तो उस में राइस पुलर पदार्थ का उपयोग किया जाता है. जरूरत के उस समय वह पदार्थ उन्हें मोटे दामों पर खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ता है.
तब उन दोनों वैज्ञानिकों ने संजय गुप्ता को आरबीआई द्वारा जारी किया गया एक सर्टिफिकेट, यूनाइटेड नेशन एंटी टेररिस्ट विभाग की ओर से जारी किया गया सर्टिफिकेट और नासा का एक सर्टिफिकेट दिखाया.
दोनों वैज्ञानिकों से मिल कर संजय गुप्ता पूरी तरह संतुष्ट हो गए. तब मुन्नालाल ने उन से कहा कि ये दोनों वैज्ञानिक ही प्लेट की जांच करने के बाद एक सर्टिफिकेट जारी करेंगे. लेकिन उस परीक्षण में कुछ खर्चा होगा जो आप को ही वहन करना पड़ेगा.
‘‘किस तरह का और कितना खर्चा होगा आप मुझे बताइए मैं देखता हूं.’’ संजय गुप्ता ने कहा.
तब हरेंद्र कुमार ने संजय गुप्ता को समझाया, ‘‘देखिए यह राइस पुलर उच्च रेडियोधर्मी पदार्थ होते हैं. इन के परीक्षण के समय विशेष सावधानी बरतने की जरूरत होती है. इन की रेडियोधर्मी किरणों से बचने के लिए हमें वही जैकेट आदि पहननी होती है, जो मंगलयान पर जाते समय पहनी जाती है. और इस के अलावा कुछ केमिकल भी लाने होते हैं. इन सब में करीब 15 लाख खर्च होंगे.’’ संजय गुप्ता ने उन्हें 11 लाख रुपए दे दिए.
पैसे लेने के बाद इन लोगों ने कहा कि वह इस की टेस्टिंग घनी आबादी से दूर करेंगे. इस के लिए मुन्नालाल ने संजय गुप्ता से कोई सुनसान जगह तलाशने को कहा. कारोबारी संजय गुप्ता ने कह दिया कि दिल्ली से बाहर एक गांव में उन के एक दोस्त का खेत में एक मकान बना हुआ है, वहीं पर इस की टेस्टिंग हो जाएगी. इस पर वह लोग तैयार हो गए और उन्होंने टेस्टिंग का दिन निर्धारित कर दिया.
लेकिन निर्धारित तिथि पर उन तीनों में से कोई भी उस प्लेट को ले कर टेस्टिंग के लिए नहीं पहुंचा. काफी देर इंतजार करने के बाद संजय गुप्ता ने मुन्नालाल को फोन लगाया लेकिन उस का फोन उस समय स्विच्ड औफ आ रहा था.
कुछ देर बाद फिर से मुन्नालाल का फोन लगाया. इस बार भी मुन्नालाल का फोन बंद मिला. जब कई बार ऐसा हुआ तो संजय परेशान हो गए. कई घंटे इंतजार करने के बाद वह अपने घर दिल्ली लौट आए.
घर आने के बाद भी वह लगातार मुन्नालाल को फोन लगाने का प्रयास करते रहे लेकिन हर बार उस का फोन स्विच्ड औफ ही आ रहा था. अब संजय गुप्ता के मन में कई आशंकाओं ने जन्म ले लिया है. सोचने लगे कहीं ऐसा तो नहीं उन लोगों ने उन से 11 लाख रुपए ठग लिए हों.
कई दिन बाद भी जब मुन्नालाल का फोन नहीं मिला तो संजय गुप्ता अपने दोस्त के साथ दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के डीसीपी भीष्म सिंह से मिले. उन्होंने डीसीपी साहब को अपने साथ की गई ठगी की सारी बात बता दी. तब डीसीपी भीष्म सिंह ने एडिशनल डीसीपी शिवेश सिंह के नेतृत्व में एक टीम बनाई जिस में साइबर सेल के एसीपी अरविंद कुमार और राजीव कुमार को शामिल किया गया. पुलिस टीम ने अपने स्तर से उन लोगों को खोजना शुरू कर दिया और कुछ ही दिन में पुलिस को सफलता हासिल हो गई.
पुलिस ने कोलकाता से 36 वर्षीय हरेंद्र कुमार और 53 वर्षीय ठाकुरदास मंडल को गिरफ्तार कर लिया. मुन्नालाल भी पुलिस के हत्थे चढ़ गया.
तीनों आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस ने 2 लैपटौप, 5 मोबाइल फोन, 6 सिम कार्ड, 14 डेबिट कार्ड, एक पेन ड्राइव, 22 हजार करोड़ जमा करने का आरबीआई द्वारा जारी किया गया फरजी सर्टिफिकेट, यूनाइटेड नेशन एंटी टेररिस्ट विभाग की ओर से जारी किया गया फरजी सर्टिफिकेट, नासा का एक फरजी सर्टिफिकेट बरामद हुआ. पुलिस ने उन का बैंक खाता भी सीज करा दिया जिस में 6 लाख से ज्यादा रुपए जमा थे.
जांच में पता चला है कि यह करीब 100 लोगों से करोड़ों रुपए की ठगी कर चुके हैं. इन सभी आरोपियों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने इन्हें न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.
बात दुष्कर्म की न हो कर कैब और कैब टैक्सियों की होने लगी कि रेडियो कैब शहर आधारित टैक्सी सेवा है, इस का खास नंबर होता है. निगरानी के लिए सारी कैब जीपीएस सिस्टम से जुड़ी रहती हैं और सवारी भुगतान ड्राइवर को करती है. वेब आधारित कंपनी स्मार्ट फोन के जरिए ग्राहक को सेवाएं देती है जिस का भुगतान डैबिट या क्रैडिट कार्ड के जरिए किया जाता है जो सीधे कंपनी के खाते में पहुंचता है, वगैरह.
उपेक्षा और प्रताड़ना
गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी कुछ कहा, जिस का सार यह था कि सभी कैब टैक्सियों पर रोक लगेगी और इस के लिए राज्यों को निर्देश जारी कर दिए गए हैं. पुलिस ने शिवकुमार यादव के साथसाथ उबेर टैक्सी सर्विस के खिलाफ भी धोखाधड़ी का मामला दर्ज कर लिया. आरोप यह लगाया कि यह कंपनी सुरक्षित सफर और वैरिफाइड 77ड्राइवर्स का दावा मात्र करती है, जबकि ऐसा नहीं है.
कंपनी के जीएम राजन भाटिया को दिल्ली महिला आयोग ने तलब किया तो उन की गिरफ्तारी की सुगबुगाहट भी शुरू हो गई. चर्चा संसद में भी हुई पर पीडि़ताओं, महिला सुरक्षा पर नहीं बल्कि इस बात पर कि सभी राज्य वैब टैक्सियों पर रोक लगाएं, रजिस्ट्रेशन के बाद यह पाबंदी हटा ली जाएगी. गृहमंत्री के इस बयान के उलट नितिन गडकरी का कहना यह था कि पाबंदी लगाने से लोगों को परेशानी होगी.
खामी लाइसैंस सिस्टम में है. 30 फीसदी लाइसैंस फर्जी हैं, उसे सुधारने की जरूरत है. रति और रीतिका जैसी पीडि़ताएं इस बौद्धिक, प्रशासनिक और संसदीय बहस में कहीं नहीं थीं गोया कि लाइसैंसधारी ड्राइवर बलात्कार करें, तभी इस बारे में सरकार सोचेगी.
सोचने की बातें ये हैं कि पीडि़ताओं को क्यों गैरजरूरी लंबी पुलिस और अदालती कार्यवाही से हो कर गुजरना पड़े जबकि उन की कोई गलती ही नहीं, सिवा इस के कि वे औरत हैं. पुलिस थानों में यह नहीं देखा जाता कि पीडि़ता पर क्या गुजरी है, बलात्कार, हिंसक लूट और छेड़खानी में ज्यादा फर्क नहीं है.
इन सभी की शिकार महिलाओं को रिपोर्ट लिखाने के लिए घंटों बैठना पड़ता है जो उन की मानसिक यंत्रणा को बढ़ाने वाली बात है. मैडिकल जांच की एक गैरजरूरी बात है. इस का कानूनी महत्त्व बताना या गिनाना कानूनी तकनीक नहीं, बल्कि कानूनी तकलीफ की बात है, जिस का फायदा अकसर आरोपी को ही मिलता है. बात यहीं खत्म नहीं हो जाती.
सामाजिक उपेक्षा और प्रताड़ना झेल रही पीडि़ता को कई बार आपबीती, कहानी की शक्ल में दोहराना पड़ती है. बलात्कार पीडि़ता की तो मानो शामत आ जाती है. अपराधी का खौफ तो उस के सिर मंडराता ही रहता है पर वकीलों की बहस उसे सोचने को मजबूर करती है कि अगर यही इंसाफ का तरीका है तो बलात्कार के बाद खामोशी से घर आ कर सो जाना बेहतर था.
मर्द बदलें अपनी सोच
बी आर चोपड़ा की फिल्म ‘इंसाफ का तराजू’ में इस तकलीफ को बेहद बारीकी से दिखाया गया था. माहौल आज भी वही है. वकील बना कोई श्रीराम लागू जो सवाल पूछता है, उन पर कानूनी रोक आज भी नहीं है. सरकारें हल्ला खूब मचाती रही हैं कि ऐसा नहीं है और है तो खत्म किया जाएगा. शिवकुमार का वकील रीतिका से पूछेगा कि इतनी छोटी जगह में बलात्कार कैसे किया गया था.
आप ने बचाव के लिए हाथपैर चलाए होते तो टैक्सी के कांच टूटने चाहिए थे. वह अपने मुवक्किल के इस कथन को सच साबित करने की कोशिश करेगा कि यह संबंध सहमति से बना था. रीतिका के हक में इकलौती बात यही है कि अगर बलात्कार नहीं हुआ था तो उस ने रिपोर्ट क्यों लिखाई. दो कौड़ी के टैक्सी ड्राइवर से उस के क्या स्वार्थ हो सकते थे जिस की महीनेभर की पगार उस की एक दिन की तनख्वाह के बराबर होती है. यह या कोई टैक्सी ड्राइवर इतना प्रतिष्ठित भी नहीं होता कि उसे धूमिल किया जा सके.
दिनभर थाने और अदालत में पीडि़ता को बैठाना उसे दिमागी तौर पर तोड़ने वाली बात ही है. आधा तो अपराधी उन्हें पहले ही तोड़ चुका होता है. रीतिका कांड पर बयानबाजी भी खूब हुई. ‘बलात्कारी को फांसी हो’ की मांग फिर दोहराई गई पर यह मांग करने वाले नहीं जानते कि बलात्कार बंद कैसे होंगे.
फिल्मकारों का फोकस
इस कांड पर जो सलीके वाली बातें कही गईं उन में एक अभिनेत्री सोनम कपूर ने कही कि भारत में मूलतया मर्दों की परवरिश ही गलत ढंग से होती है. दिल्ली कैब रेप कांड को सोनम ने पुरुषों की कुत्सित मानसिकता को गलत दोषी नहीं ठहराया. बकौल सोनम, आज भी लड़कों को बड़े लाड़प्यार से पाला जाता है लेकिन उन्हें यह नहीं सिखाया जाता कि औरतों की इज्जत कैसे करनी चाहिए.
लड़का कुछ भी गलत हरकत करे तो मांबाप उस का बचाव करते यही कहते हैं कि हमारा लाड़ला तो ऐसा कर ही नहीं सकता. सोनम की नजर में लड़कियों पर कई पाबंदियां लगाई जाती हैं. मसलन, देर रात तक घर के बाहर मत रहो, पार्टियों में मत जाओ, जींस मत पहनो वगैरह. ये पाबंदियां समस्याओं का हल नहीं हैं.
बलात्कार के लिए औरत को नसीहत न देने की वकालत करने वाली सोनम मर्दों की सोच बदलने पर जोर देती हैं. दूसरी उल्लेखनीय बात अभिनेता अक्षय कुमार ने अपना खुद का उदाहरण देते कही कि ऐसे हादसों से मुझे डर लगता है. मैं अपनी बेटी को ले कर प्रोटैक्टिव हूं लेकिन उस की सुरक्षा और खुशियों को ले कर हमेशा डर बना रहता है. एक पिता होने के नाते उस की हिफाजत मेरी जिम्मेदारी है लेकिन मैं चाहता हूं कि सरकार भी उस की रक्षा करे, सड़कों को सुरक्षित बनाना उस का काम है.
अक्षय के मुताबिक, हम टैक्स इसलिए भरते हैं कि बिना किसी डर के घर के बाहर निकल सकें. बलात्कार करने वालों को तत्कालीन सजा के तौर पर उन्हें नपुंसक बना देना चाहिए क्योंकि बलात्कारी बारबार अपराध करते हैं और मुझे नहीं लगता कि जेल में ज्यादा से ज्यादा सजा भी उन्हें इस तरह के जुर्म करने से रोक सकती है.
इन दोनों फिल्मकारों की बातों का फोकस समाज, बच्चों की परवरिश के तौरतरीकों और कानून के इर्दगिर्द है लेकिन एक बड़ा सच यह भी है कि पुरुष प्रधान समाज अभी भी औरत को पांव की जूती समझता है. वह असंगठित होते हुए भी महिला अत्याचारों के मामले में संगठित है.
बीते 2 दशकों में तेजी से लड़कियां नौकरियों में आई हैं, उन की आर्थिक निर्भरता पुरुषों पर कम हो चली है लेकिन सामाजिक निर्भरता बनी रहे इसलिए उन के प्रति छेड़छाड़, हिंसा और बलात्कार के मामले बढ़ रहे हैं. यह पुरुष का सामाजिक अहं है जो अपराधों के जरिए व्यक्त होता है. चौंका देने वाली बात यह है कि अधिकांश पुरुष अपराधी एक अलग वर्ग के हैं.
जैसे भी हो औरत को दबाए रखो, यह सोच मूलतया धर्म से समाज और परिवारों में आई है. औरत अभी भी ताड़न की अधिकारी है. यह ताड़नाप्रताड़ना अब चोला बदल रही है. कसबों से ले कर महानगरों तक में युवतियां काम करते हुए अपने स्वाभिमान और आत्मसम्मान को कायम रख रही हैं. यह बात पुरुषों को रास नहीं आ रही है इसलिए औरतों की हिफाजत के सवाल पर हर बार बवाल मचने पर उन्हें ही दोष देने के अलावा बात कैब, वैब और लाइसैंस में उलझ जाती है. सामाजिक माहौल, पुलिस और कानून प्रक्रिया में सुधार की बात करने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पाता.
कारोबार बढ़ा तो कंपनी ने आगामी योजनाएं बनानी शुरू कीं. पहला कदम ईकौमर्स में रखना था. इस के जरिए वह जरूरत की हर चीज ग्राहकों को उपलब्ध कराना चाहता था. सोशल ट्रेड डौट बिज के बाद उस ने फ्री हब डौटकौम नाम की कंपनी बनाई. ईकौमर्स के लिए उस ने इनमार्ट डौटकौम नाम की कंपनी बनाई. इस के जरिए खरीदारी करने पर भी उस ने अतिरिक्त इनकम का प्रावधान रखा.
अभिनव जानता था कि भारत में करोड़ों लोग फेसबुक यूज करते हैं, जिस से मोटी कमाई फेसबुक के ओनर को होती है. फेसबुक की ही तरह भारतीय सोशल साइट बनाने का विचार उस के दिमाग में आया. इस बारे में उस ने अपनी आईटी टीम से विचारविमर्श किया. अपनी टीम के साथ मिल कर अनुभव ने इस तरह की सोशल साइट बनाने पर काम शुरू कर दिया, जिस में फेसबुक से ज्यादा फीचर हों. अपनी इस सोशल साइट का नाम उस ने डिजिटल इंडिया डौट नेट रखा. इस में इस तरह की तकनीक डालने की उन की कोशिश थी कि किसी की आवाज या फोटो डालने पर उस व्यक्ति के एकाउंट पर पहुंचा जा सके.
उधर सोशल ट्रेड में भारत से ही नहीं, विदेशों से भी एंट्री लगनी शुरू हो चुकी थीं. इनवेस्टरों ने भी मोटा पैसा यहां इनवेस्ट करना शुरू कर दिया. अब कंपनी को करोड़ों रुपए की कमाई होने लगी. किसी वजह से कंपनी ने लोगों को पेआउट देना बंद कर दिया. लोगों ने अपने सीनियर लीडर्स और कंपनी औफिस जा कर संपर्क किया तो उन्हें यही बताया गया कि कंपनी के सौफ्टवेयर में अपग्रेडिंग का काम चल रहा है. जैसे ही यह काम पूरा हो जाएगा, सारे पेआउट रिलीज कर दिए जाएंगे.
अब तक कंपनी में करीब साढ़े 6 लाख लोगों ने 9 लाख से अधिक आईडी लगा रखी थीं. कंपनी के पास इन्होंने लगभग 3 हजार 726 करोड़ रुपए जमा करा रखे थे. जब उन्हें कंपनी की तरफ से पैसे आने बंद हो गए तो लोगों में बेचैनी बढ़नी स्वाभाविक थी. कुछ लोगों ने मोटी रकम लगाई थी, उन की तो नींद हराम हो गई.
सीनियर लीडर उन्हें यही भरोसा दिलाते रहे कि उन का पैसा कहीं नहीं जाएगा. जो लोग कंपनी से लंबे समय से जुड़े थे, उन्हें विश्वास था कि कंपनी कहीं जाने वाली नहीं है. अपग्रेडेशन का काम पूरा होने के बाद सभी के पैसे खाते में भेज देगी. लेकिन जिन लोगों को जौइनिंग के बाद फूटी कौड़ी भी नहीं मिली थी, उन की चिंता लगातार बढ़ती जा रही थी. आखिर वे भरोसे की गोली कब तक लेते रहते.
लोगों ने नोएडा के जिला और पुलिस प्रशासन से सोशल ट्रेड की शिकायतें करनी शुरू कर दीं. लोगों ने सोशल ट्रेड के औफिस पर जब 3 डब्ल्यू का बोर्ड लगा देखा तो उन्हें शक हो गया कि कंपनी भाग गई है. कंपनी के अंदर ही अंदर बदलाव की क्या प्रक्रिया चल रही है, इस से लोग अनजान थे.
15 दिनों की गोपनीय जांच करने के बाद पुलिस प्रशासन को भी लगा कि अनुभव मित्तल ने सोशल ट्रेड कंपनी के नाम पर लोगों से अरबों रुपए की ठगी की है. तब पुलिस ने 1 फरवरी, 2017 को अनुभव मित्तल और कंपनी के 2 पदाधिकारियों श्रीधर प्रसाद और महेश दयाल को हिरासत में ले लिया.
अनुभव मित्तल से पूछताछ के बाद पता चला कि उस की कंपनी के गाजियाबाद के राजनगर में कोटक महिंद्रा बैंक में एक एकाउंट, यस बैंक में 2 एकाउंट, एक्सिस बैंक में 2 एकाउंट, केनरा बैंक में 3 एकाउंट हैं. जांच में पुलिस को केनरा बैंक में 480 करोड़ रुपए और यस बैंक में 44 करोड़ रुपए मिले. पुलिस ने इन खातों को फ्रीज करा दिया.
जांच में पुलिस को जानकारी मिली है कि कंपनी ने दिसंबर, 2016 के अंत में सोशल ट्रेड डौट बिज से माइग्रेट कर के फ्री हब डौटकौम लांच कर दिया और उस के 10 दिन के अंदर ही फ्री हब डौटकौम से इनमार्ट डौटकौम पर माइग्रेट किया. इस के बाद 27 जनवरी, 2017 को इनमार्ट से फ्रिंजअप डौटकौम पर माइग्रेट कर लिया.
कंपनी में इतनी जल्दीजल्दी बदलाव करने के बाद अनुभव मित्तल ने गिरफ्तारी के 7 दिनों पहले ही दिल्ली की एक नई कंपनी 3 डब्ल्यू खरीद कर उस का बोर्ड भी अपने औफिस के बाहर लगा दिया. इस के अलावा अनुभव मित्तल ने सोशल ट्रेड डौट बिज के डोमेन पर प्राइवेसी प्रोटेक्शन प्लान भी ले लिया था, ताकि कोई भी व्यक्ति या जांच एजेंसी डोमेन की डिटेल के बारे में पता न लगा सके.
पुलिस को पता चला कि वह फेसबुक पेज लाइक करने के नाम पर लोगों को बेवकूफ बना रहा था. कंपनी द्वारा सदस्यों को धोखे में रख कर उन से पैसे लिए जाते थे और जब अपने पेज को लौगइन करते तो विज्ञापन पेजों के या तो गलत यूआरएल होते थे या उन्हीं सदस्यों के यूआरएल को आपस में ही लाइक कराया जा रहा था. कंपनी द्वारा कोई वास्तविक विज्ञापन या कोई लौजिकल या रियल सर्विस नहीं उपलब्ध कराई जा रही थी.
कंपनी के पास आमदनी का कोई जरिया नहीं था, वह सदस्यों के पैसों को ही इधर से उधर घुमा रही थी, जोकि द प्राइज चिट्स ऐंड मनी सर्कुलेशन स्कीम्स (बैनिंग) एक्ट 1978 की धारा 2(सी)/3 के तहत अवैध है. इस एक्ट की धारा 4 में यह अपराध है.
पुलिस ने अनुभव मित्तल, सीओओ श्रीधर प्रसाद और टेक्निकल हैड महेश दयाल को विस्तार से पूछताछ करने के बाद 2 फरवरी, 2017 को गौतमबुद्धनगर के सीजेएम-3 की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.
पुलिस ने लखनऊ की फोरैंसिक साइंस लेबोरैटरी, रिजर्व बैंक औफ इंडिया, इनकम टैक्स डिपार्टमेंट, सेबी, कारपोरेट अफेयर मंत्रालय की फ्रौड इनवेस्टीगेशन टीम को भी जानकारी दे दी है. सभी विभागों के अधिकारी अपनेअपने स्तर से मामले की जांच में लग गए हैं. जांच में पता चला है कि अनुभव मित्तल ने लाइक के जरिए 3700 करोड़ रुपयों की ठगी की है.
उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक जावीद अहमद ने मामले की गहन जांच के लिए एसआईटी का गठन कर दिया है. आईजी (क्राइम) भगवानस्वरूप के नेतृत्व में बनी इस जांच टीम में मेरठ रेंज के डीआईजी के.एस. इमैनुअल, एडिशनल एसपी (क्राइम) गौतमबुद्धनगर, एसटीएफ के एडिशनल एसपी राजीव नारायण मिश्रा, सीओ राजकुमार मिश्रा, गौतमबुद्धनगर के 2 इंसपेक्टर, एसआई सर्वेश कुमार पाल, सौरभ आदि को शामिल किया गया है.
टीम ने इस ठगी में फंसे लोगों को अपनी शिकायत भेजने के लिए एक ईमेल आईडी सार्वजनिक कर दी है. मीडिया में यह ईमेल जारी हो जाने के बाद देश से ही नहीं, विदेशों से भी भारी संख्या में शिकायतें आनी शुरू हो गई हैं. कथा लिखे जाने तक एसटीएफ के पास करीब साढ़े 6 हजार शिकायतें ईमेल से आ चुकी थीं. इन में से 100 से अधिक नाइजीरिया से मिली है. केन्या और मस्कट से भी पीडि़तों ने ईमेल से शिकायतें भेजी हैं.
पुलिस अब यह जानने की कोशिश कर रही है कि अभिनव ने इतनी मोटी रकम आखिर कहां इनवैस्ट की है. बहरहाल जिन लोगों ने अनुभव मित्तल की कंपनी में पैसा लगाया है, अब उन्हें पछतावा हो रहा होगा.
– कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित
जसविंदर कौर के अनुसार, मंत्री सुच्चा सिंह लंगाह अकसर उस से कहा करते थे कि उन की इतनी पहुंच है कि अगर वह किसी का कत्ल भी करवा दें तो कोई उन का कुछ नहीं बिगाड़ सकता. यूपी, बिहार के कई गैंगस्टरों से उन की बहुत पटती है. वे उन के इशारे पर कभी भी कुछ भी कर सकते हैं. यहां तक कि वह जिस का कह दें, वे उस का कत्ल भी कर सकते हैं. इस तरह लंगाह जसविंदर को डरा कर अलगअलग जगहों पर ले जा कर उस का यौनशोषण करता रहा.
एसएसपी को दी गई अपनी शिकायत में जसविंदर ने आगे जो लिखा था कि मंत्री सुच्चा सिंह लंगाह ने उसे अलगअलग जगहों पर ले जा कर उस के साथ इतनी बार दुष्कर्म किया है कि अब वह बता भी नहीं सकती. कुछ ऐसी जगहों पर भी वह उसे ले गया था, जिन के बारे में उसे आज भी कुछ पता नहीं है. लंगाह जब भी उसे कहीं ले जाता था, गाड़ी खुद चलाता था. उस आदमी ने उस से सिर्फ अपनी हवस ही नहीं मिटाई, बल्कि आर्थिक रूप से भी उसे खूब लूटा.
सुच्चा सिंह लंगाह ने जसविंदर को चंडीगढ़ में प्लौट दिलाने के नाम पर गांव की उस की जमीन बिकवा दी. उस रकम से सिपहिया नामक आदमी को प्लौट खरीदने के नाम पर बयाने के रूप में 15 लाख रुपए दिलवा दिए. इस के बाद एक वकील को 30 लाख रुपए दिए. बाद में उस से कहा गया कि अब वे लोग अपना प्लौट नहीं बेचना चाहते. जसविंदर को एक लाख रुपए दे कर लंगाह ने कहा कि बकाया रकम उसे धीरेधीरे दे दी जाएगी. कुछ दिनों बाद साढ़े 3 लाख रुपए दे कर उस से कहा गया कि उसे जो रकम मिल गई, वही बहुत है, बयाने की रकम भला कोई वापस करता है. इस तरह बाकी रकम लंगाह ने खुद रख ली थी.
जसविंदर कठपुतली बनी हुई थी मंत्री की
इस के बाद सुच्चा सिंह लंगाह ने जसविंदर के नाम पर सहकारी बैंक से 8 लाख रुपए कर्ज ले कर 1 लाख रुपए उसे दे दिए और बाकी के 7 लाख रुपए खुद रख लिए. इस के बाद यह कह कर जसविंदर के गांव वाले मकान का सौदा करवा दिया कि वह उसे जालंधर शहर में फ्लैट खरीदवा देगा. इस के बाद उस से प्रार्थना पत्र लिखवा कर उस का तबादला जालंधर करवा दिया.
जसविंदर कौर के अनुसार, लंगाह उसे नदी पार अपनी जमीनों के बीच बनी कोठी पर भी बुलाया करता था, जहां जाने में उसे बहुत डर लगता था. जसविंदर को लगता कि अगर उसे मार कर वहां दफना दिया गया तो किसी को पता तक नहीं चलेगा. वैसे भी उस ने उसे इतना डरा दिया था कि वह उस के हाथों की कठपुतली बनी हुई थी. इसीलिए वह उस के खिलाफ किसी के सामने मुंह खोलने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी.
एक बार जसविंदर के बेटे का एक्सीडेंट हुआ तो लंगाह ने यह कह कर उसे और डरा दिया कि कहीं यह एक्सीडेंट किसी ने कराया तो नहीं? उस ने यह बात इस तरह कही थी कि जसविंदर ने सोचा कि अगर उस ने कभी उस के खिलाफ जाने की सोची तो वह उस के परिवार को नुकसान पहुंचा सकता है.
जसविंदर जितना सुच्चा सिंह से डरती रही, वह उस का उतना ही शारीरिक और आर्थिक शोषण करता रहा. क्योंकि बेसहारा अकेली जसविंदर कौर की उस के सामने औकात ही क्या थी? इस बीच जसविंदर को पता चल गया कि सुच्चा सिंह ने उस की तरह और भी कई औरतों को उसी की तरह लूट कर उन की जिंदगी बरबाद कर दी.
इस के बाद जसविंदर को लगने लगा कि अब वह अति की सीमा पार कर चुका है. आखिर अपनी जान हथेली पर रख कर किसी तरह हिम्मत जुटा कर जसविंदर कौर ने सुच्चा सिंह लंगाह के खिलाफ उपर्युक्त शिकायत लिख कर एसएसपी को दे दी थी.
अपने ऊपर हुई ज्यादतियों को साबित करने के लिए मजबूरन जसविंदर ने इस सब की वीडियो बना ली थी. क्योंकि अगर वह ऐसा न करती तो अपनी पहुंच की बदौलत लंगाह उस की शिकायत को दबवा कर वह उसे किसी केस में फंसवा सकता था. इसीलिए सबूत के तौर पर जसविंदर ने एक वीडियो शिकायत पत्र के साथ नत्थी कर दी थी.
जसविंदर कौर ने शिकायत देने के बाद गुहार लगाई थी कि उसे और उस के परिवार को सुच्चा सिंह लंगाह से बहुत ज्यादा खतरा है. वह इतना खतरनाक आदमी है कि कभी भी उस पर हमला करवा कर मरवा सकता है. इसलिए उस ने निवेदन किया था कि उस की व उस के परिवार की सुरक्षा की व्यवस्था की जाए. उसे इंसाफ दिलवाया जाए और उस के आर्थिक नुकसान की भरपाई करवाई जाए.
सुच्चा सिंह लंगाह ने मंत्री और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का सदस्य रहते हुए तमाम गैरजिम्मेदाराना काम करते हुए बहुत ज्यादतियां की हैं. इसलिए इस मामले को अत्यंत गंभीरता से लेते हुए एक बेसहारा मजलूम औरत की फरियाद पर ध्यान दे कर उस के खिलाफ तुरंत काररवाई की जाए.
शिकायत पत्र के अंत में जसविंदर कौर ने अपने दस्तखत कर के नामपता और मोबाइल नंबर भी लिख दिया था. इस के साथ एक एफिडेविट के अलावा पैनड्राइव और सीडी भी संलग्न थी, जिस में 20 मिनट की वीडियो थी, जो किसी नीली फिल्म से कम नहीं थी. उस में लंगाह को निर्वस्त्र हो कर शिकायतकर्ता के साथ शारीरिक संबंध बनाते दिखाया गया था.
सबूतों के आधार पर सुच्चा सिंह के खिलाफ दर्ज हो गई शिकायत
एसएसपी हरचरण सिंह भुल्लर ने मार्क कर के जसविंदर की शिकायत की काररवाई के लिए डीएसपी (सिटी) गुरबंस सिंह बैंस को भिजवा दी. उन्होंने इस के तथ्यों एवं वीडियो वगैरह की जांच कर के कानूनी राय लेने के लिए उसे जिला न्यायवादी के पास भिजवा दिया. डिस्ट्रिक्ट अटार्नी ने भादंवि की धारा 376, 384, 420 एवं 506 के तहत आपराधिक मामला दर्ज करने की संस्तुति दे दी.
हम ने उस की हिफाजत का ठेका नहीं ले रखा है. उलटे यह सब करने की गुंडों को शह व छूट दे रखी है. शुक्र इस बात का है कि ऐसी वारदातों के वक्त सभ्य समाज के ये शरीफजादे गुंडों का साथ नहीं देते, यह उन का एहसान है, सामाजिक सरोकारों और नैतिक जिम्मेदारियों की तो बात करना बेमानी है.
अहम सवाल अब पुरुष मानसिकता का है जो औरत को ‘सामान’, ‘आइटम’, ‘पटाखा’, ‘फुलझड़ी’ और ललितपुर के गुंडों की भाषा में कहें तो ‘माल’ समझता व कहता है. अकेली लड़की को देख वे उस पर हमला करते हैं तो उन्हें मालूम रहता है कि कोई कुछ नहीं बोलेगा.
इस वारदात ने साबित कर दिया है कि दबंग वे लोग नहीं हैं जो कान में ईयरफोन लगाए दीनदुनिया से बेखबर गीतसंगीत सुनते रहते हैं, फेसबुक और वाट्सऐप पर चैट करते रहते हैं. लंबीलंबी बातें, बहसें नैतिकता और आदर्शों की करते हैं. असल दबंग वे हैं जो सरेआम एक लड़की का पर्स लूट कर उसे मरने के लिए फेंक देते हैं और फिर हाथ झाड़ कर चलते बनते हैं.
कैब और बलात्कार
29 वर्षीय रीतिका (बदला नाम) गुड़गांव की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में एग्जीक्यूटिव है. जाहिर है नए जमाने की उन करोड़ों युवतियों में से एक है जो अपने बलबूते पर नौकरी करते सम्मान और स्वाभिमान से जिंदगी गुजार रही हैं.
शुक्रवार, 5 दिसंबर यानी वारदात के दिन रीतिका ने शाम 7 बजे अपनी शिफ्ट खत्म होने के बाद एक रैस्टोरैंट में दोस्तों के साथ डिनर लिया. उस के एक दोस्त ने उसे अपने वाहन पर बसंत विहार छोड़ा जहां से उसे अपने घर इंद्रलोक जाना था.
लेटेस्ट गैजेट्स की आदी रीतिका को बेहतर यही लगा कि कैब (टैक्सी) कर ली जाए. लिहाजा, उस ने मोबाइल ऐप के जरिए अमेरिकी कंपनी उबेर की कैब बुक करा ली. कैब आई और उस के शिवकुमार यादव नाम के ड्राइवर ने इज्जत से दरवाजा खोला. दिनभर की थकीहारी रीतिका डिनर के बाद की सुस्ती का शिकार हो गई. लिहाजा, कैब में उसे झपकी आ गई. पीछे की सीट पर अकेली खूबसूरत लड़की को देख शिवकुमार का मन डोल गया और उस ने टैक्सी का रास्ता बदल दिया.
रीतिका की नींद खुली तो कैब सुनसान में खड़ी थी. उस ने दरवाजा खोलने की कोशिश की तो वह नहीं खुला. शिवकुमार ने गेट लौक कर दिए थे. रीतिका ड्राइवर का इरादा भांपते चिल्लाई तो शिवकुमार ने उस की पिटाई कर दी और धमकी दी कि अगर शोर मचाया तो पेट में सरिया घुसा दूंगा. अब बचाव के लिए कुछ नहीं बचा था, इसलिए बाज के पंजे में फंसी चिडि़या की तरह फंसी रीतिका गिड़गिड़ाई कि प्लीज, मुझे छोड़ दो, मैं तुम्हारे हाथपैर जोड़ती हूं.
लेकिन अपनी पर आमादा हो आया शिवकुमार पसीजा नहीं. उस ने रीतिका का बलात्कार टैक्सी में ही किया और समझदारी कह लें या चालाकी कि रीतिका को घर के बताए पते के नजदीक उतार दिया. रीतिका ने बलात्कार सहने के बाद भी होश नहीं खोया था. इस के बाद खुद को संभालते रीतिका ने 100 नंबर डायल किया.
पीसीआर वैन आई और रीतिका को थाने ले गई. महिला पुलिसकर्मियों ने उस से पूछताछ की और एक सरकारी अस्पताल में जा कर उस की मैडिकल जांच कराई. इसी बीच, रीतिका ने फोन कर अपने मम्मीपापा को भी बुला लिया. विदेश में भी एक कंपनी में नौकरी कर चुकी रीतिका अपने मांबाप की इकलौती संतान है.
वह कुछ महीनों पहले ही दिल्ली शिफ्ट हुई थी और खुश थी कि अब मम्मीपापा के पास रहेगी. उस के पापा ने निर्भया कांड के प्रदर्शन में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था. अपनी ही बेटी को इस हालत में देखा तो हफ्तेभर उस के साथ बैठे आंसू बहाते रहे.
बलात्कार, बवाल और पुलिस
सुबह होतेहोते दुष्कर्मों के लिए कुख्यात हो चुकी दिल्ली में खासा बवाल मच गया कि लो, एक और लड़की की इज्जत लुट गई, वह भी टैक्सी में बलात्कार के बाद रीतिका को रातभर पुलिस की पूछताछ और मैडिकल जांच से गुजरना पड़ा था.
सालों पुरानी इन कानूनी खानापूर्तियों से पीडि़ता को जरूर समझ आता है कि दरअसल बलात्कार क्या होता है और क्यों पीडि़ताएं रिपोर्ट नहीं लिखवातीं. मैडिकल जांच किस बेरहमी और अमानवीय तरीके से की जाती है, यह बात भी किसी सुबूत की मुहताज नहीं. शिवकुमार 40 घंटे बाद मथुरा से गिरफ्तार कर लिया गया.
यह पुलिस की मुस्तैदी नहीं बल्कि मजबूरी हो चली थी क्योंकि इस बलात्कार पर निर्भया मामले जैसी हायहाय मचने लगी थी. बाद में पता चला कि शिवकुमार आदतन अपराधी है और पहले भी बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार हो कर जेल जा चुका है. इस के बाद भी पुलिस ने उसे चरित्र प्रमाणपत्र दे दिया था जो इस मामले में बलात्कार करने का लाइसैंस साबित हुआ. दिल्ली में सामाजिक संगठनों और आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया लेकिन पहले सा यानी निर्भया कांड जैसा समर्थन उसे नहीं मिला.
इधर, हंगामा देख झल्लाए केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने एक वाजिब बात यह भी कही कि क्या रेल में दुष्कर्म हो तो रेल और जहाज में हो जाए तो जहाज बंद कर दें. गडकरी बलात्कार बंद या कम करने के बाबत कुछ नहीं बोले, जिस की कि जरूरत व अहमियत थी. जल्द ही मामला अमेरिका की उबेर कंपनी के इर्दगिर्द आ कर सिमट गया कि 2,480 अरब रुपए वाली 52 देशों में कारोबार करने वाली इस कंपनी पर नीदरलैंड, स्पेन और कई अन्य देशों में भी रोक लगी है.
नोएडा पुलिस ने जांच की तो पता चला कि सोशल ट्रेड कंपनी के नोएडा सेक्टर-63 स्थित कंपनी के औफिस में देश के अलगअलग शहरों से सैकड़ों लोग अपने पेमेंट न मिलने की शिकायत करने आ रहे हैं. तमाम लोगों ने कंपनी में मोटी रकम जमा करा रखी है.
पुलिस को मामला बेहद गंभीर लगा, इसलिए नोएडा पुलिस प्रशासन ने पुलिस महानिदेशक को इस मामले से अवगत करा दिया. पुलिस महानिदेशक ने स्पैशल टास्क फोर्स के एसएसपी अमित पाठक को इस मामले में आवश्यक काररवाई करने के निर्देश दिए.
एसएसपी अमित पाठक ने एसटीएफ के एडिशनल एसपी राजीव नारायण मिश्र के नेतृत्व में एक टीम बनाई, जिस में एसटीएफ लखनऊ के एडिशनल एसपी त्रिवेणी सिंह, एसटीएफ के सीओ आर.के. मिश्रा, एसआई सौरभ विक्रम, सर्वेश कुमार पाल आदि को शामिल किया गया.
टीम ने करीब 15 दिनों तक इस मामले की जांच कर के रिपोर्ट एसएसपी अमित पाठक को सौंप दी. कंपनी के जिस औफिस पर पहले सोशल ट्रेड का बोर्ड लगा था, उस पर हाल ही में 3 डब्ल्यू का बोर्ड लग गया. एसटीएफ को जांच में यह जानकारी मिल गई थी कि सोशल ट्रेड के जाल में कोई 100-200 नहीं, बल्कि कई लाख लोग फंसे हुए हैं.
इस के बाद उच्चाधिकारियों के निर्देश पर स्पैशल स्टाफ टीम ने सोशल ट्रेड के एफ-472, सेक्टर-63 नोएडा औफिस पर छापा मार कर वहां से कंपनी के डायरेक्टर अनुभव मित्तल, सीओओ श्रीधर प्रसाद और टेक्निकल हैड महेश दयाल से पूछताछ कर के हिरासत में ले लिया. इसी के साथ पुलिस ने उन के औफिस से जरूरी दस्तावेज और अन्य सामान जांच के लिए जब्त कर लिए.
एसटीएफ टीम ने सूरजपुर स्थित अपने औफिस ला कर तीनों से पूछताछ की. इस पूछताछ में सोशल ट्रेड के शुरुआत से ले कर 37 अरब रुपए इकट्ठे करने की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—
अनुभव मित्तल उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के पिलखुआ कस्बे के रहने वाले सुनील मित्तल का बेटा था. उन की हापुड़ में मित्तल इलैक्ट्रौनिक्स के नाम से दुकान है. अनुभव मित्तल शुरू से ही पढ़ाई में तेज था. स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद अनुभव का रुझान कोई नौकरी करने के बजाए अपना खुद का कोई बिजनैस करने का था. उस का रुझान आईटी क्षेत्र में ही कुछ नया करने का था, इसलिए वह नोएडा के ही एक संस्थान से कंप्यूटर साइंस से बीटेक करने लगा.
सन 2011 में उस का बीटेक पूरा होना था. वह समय के महत्त्व को अच्छी तरह समझता था, इसलिए नहीं चाहता था कि बीटेक पूरा होने के बाद वह खाली बैठे. बल्कि कोर्स पूरा होते ही वह अपना काम शुरू करना चाहता था. पढ़ाई के दौरान ही वह इसी बात की प्लानिंग करता रहता था कि बीटेक के बाद कौन सा काम करना ठीक रहेगा.
बीटेक पूरा होने के एक साल पहले ही उस ने अपने एक आइडिया को अंतिम रूप दे दिया. सन 2010 में इंस्टीट्यूट के हौस्टल में बैठ कर उस ने अब्लेज इंफो सौल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी बना ली और इस का रजिस्ट्रेशन 878/8, नई बिल्डिंग, एसपी मुखर्जी मार्ग, चांदनी चौक, नई दिल्ली के पते पर करा लिया. अनुभव ने अपने पिता सुनील मित्तल को इस का डायरेक्टर बनाया.
बीटेक फाइनल करने के बाद उस ने छोटे स्तर पर सौफ्टवेयर डेवलपमेंट का काम शुरू कर दिया. अपनी इस कंपनी से उस ने सन 2015 तक मात्र 3-4 लाख रुपए का बिजनैस किया. जिस गति से उस का यह बिजनैस चल रहा था, उस से वह संतुष्ट नहीं था. इसलिए इसी क्षेत्र में वह कुछ ऐसा करना चाहता था, जिस से उसे अच्छी कमाई हो.
उसी दौरान सन 2015 में उस ने सोशल ट्रेड डौट बिज नाम से एक औनलाइन पोर्टल बनाया और सदस्यों को जोड़ने के लिए 5750 रुपए से 57,500 रुपए का जौइनिंग एमाउंट फिक्स कर दिया. इस में 15 प्रतिशत टैक्स भी शामिल कर लिया. जौइन होने वाले सदस्यों को यह बताया गया कि औनलाइन पोर्टल पर कुछ पेज लाइक करने पड़ेंगे. एक पेज लाइक करने के 5 रुपए देने की बात कही गई.
शुरुआत में अनुभव ने अपने जानपहचान वालों की आईडी लगवाई. धीरेधीरे लोगों ने माउथ टू माउथ पब्लिसिटी करनी शुरू कर दी. जिन लोगों की जौइनिंग होती गई, उन्हें कंपनी से समय पर पैसा भी दिया जाता रहा, जिस से लोगों का विश्वास बढ़ने लगा और कंपनी में लोगों की जौइनिंग बढ़ने लगी.
कंपनी ने सन 2015 में 9 लाख रुपए का बिजनैस किया. लोगों को बिना मेहनत किए पैसा मिल रहा था. उन्हें काम केवल इतना था कि कंपनी का कोई भी पैकेज लेने के बाद अपनी आईडी पर निर्धारित लाइक करने थे. एक लाइक लगभग 30 सैकेंड में पूरी हो जाता था. इस तरह कुछ ही देर में यह काम पूरा कर के एक निर्धारित धनराशि सदस्य के बैंक एकाउंट में आ जाती थी. शुरूशुरू में लोगों ने इस डर से कंपनी में कम पैसे लगाए कि कंपनी भाग न जाए. पर जब जौइन किए हुए सदस्यों के पैसे समय से आने लगे तो अधिकांश लोगों ने अपनी आईडी बड़े पैकेज में अपग्रेड करा लीं.
सन 2016 में ही अनुभव ने श्रीधर प्रसाद को अपनी कंपनी का चीफ औपरेटिंग औफीसर (सीओओ) बनाया. श्रीधर प्रसाद भी एक टेक्निकल आदमी था. उस ने सन 1994 में कौमर्स से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्ली के एनआईए इंस्टीट्यूट से एमबीए किया था. इस के बाद उस ने 1996 में ऊषा माटेन टेलीकौम कंपनी में सेल्स डिपार्टमेंट में काम किया. मेहनत से काम करने पर सेल्स मैनेजर बन गया.
सन 2001 में उस की नौकरी विजय कंसलटेंसी हैदराबाद में बिजनैस डेवलपर के पद पर लग गई. इस दौरान वह कई बार यूके भी गया. सन 2005 में उस ने आईबीएम कंपनी जौइन कर ली. इस कंपनी में वह सौफ्टवेयर सौल्यूशन कंसल्टैंट के पद पर बंगलुरु में काम करने लगा. यहां पर उसे कंट्री हैड बनाया गया. आईबीएम कंपनी में सन 2009 तक काम करने के बाद उस ने नौकरी छोड़ कर सन 2010 में ओरेकल कंपनी जौइन कर ली.
कंपनी ने उसे बिजनैस डेवलपर के रूप में नाइजीरिया भेज दिया. बिजनैस डेवलपमेंट में उस का विशेष योगदान रहा. सन 2013 में श्रीधर प्रसाद बंगलुरु आ गया. लेकिन सफलता न मिलने पर वह सन 2014 में वापस नाइजीरिया ओरेकल कंपनी में चला गया.
सन 2016 में श्रीधर प्रसाद की पत्नी ने किसी के माध्यम से सोशल ट्रेड डौट बिज में अपनी एंट्री लगाई. पत्नी ने यह बात उसे बताई तो श्रीधर को यह बिजनैस मौडल बहुत अच्छा लगा. बिजनैस मौडल समझने के लिए वह कई बार अभिनव मित्तल से मिला.
बातचीत के दौरान अभिनव श्रीधर प्रसाद की काबिलियत को जान गया. उसे लगा कि यह आदमी उस के काम का है, इसलिए उस ने श्रीधर को अपनी कंपनी में नौकरी करने का औफर दिया. विदेश जाने के बजाय श्रीधर को अच्छे पैकेज की अपने देश में ही नौकरी मिल रही थी, इसलिए वह अनुभव मित्तल की कंपनी में नौकरी करने के लिए तैयार हो गया और सीओओ के रूप में नौकरी जौइन कर ली.
अनुभव मित्तल ने मथुरा के महेश दयाल को कंपनी में टेक्निकल हैड के रूप में नौकरी पर रख लिया. अनुभव के पास टेक्निकल विशेषज्ञों की एक टीम तैयार हो चुकी थी. उन के जरिए वह कंपनी में नएनए प्रयोग करने लगा. लालच ही इंसान को ले डूबता है. जिन लोगों की सोशल टे्रड डौट बिज से अच्छी कमाई हो रही थी, उन्होंने वह कमाई अपने सगेसंबंधियों व अन्य लोगों को दिखानी शुरू की तो उन की देखादेखी उन लोगों ने भी कंपनी में मोटे पैसे जमा करा कर काम शुरू कर दिया.
बड़ेबड़े होटलों में कंपनी के सेमिनार आयोजित होने लगे. फिर तो लोग थोक के भाव से जुड़ने लगे. इस तरह से भेड़चाल शुरू हो गई और सन 2016 तक कंपनी से 4-5 लाख लोग जुड़ गए. जब इतने लोग जुड़े तो जाहिर है कंपनी का टर्नओवर बढ़ना ही था. सन 2016 में कंपनी का कारोबार उछाल मार कर 26 करोड़ हो गया.