Lady Don अस्मिता गोहिल, जिसका नाम सुनते लोग थर्रा उठते

गुजरात के सिल्क और डायमंड सिटी सूरत की गलियों में जिस समय खतरनाक हथियारों के साथ लेडी डौन (Lady Don) अस्मिता गोहिल उर्फ भूरी निकलती थी, उस समय लोग थर्रा उठते थे. शहर के कारोबारियों और दुकानदारों की रूह कांप जाती थी. वे यह सोच कर डर जाते थे कि अब पता नहीं किस का नंबर आने वाला है. यह लेडी डौन सिर्फ गुंडागर्दी कर के रंगदारी ही नहीं वसूलती बल्कि फेसबुक और यूट्यूब पर भी काफी एक्टिव रहती थी.

सोशल मीडिया पर उस के 13 हजार से अधिक फालोअर्स हैं और ढाई हजार के करीब दोस्त हैं. आए दिन वह अपने फेसबुक एकाउंट पर नईनई वीडियो पोस्ट करती रहती है. कई वीडियो में वह अपने हाथों में नंगी तलवार और रिवौल्वर ले कर लोगों से रंगदारी वसूलती दिखी.

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अपराध की दुनिया में अस्मिता उर्फ डीकू उर्फ भूरी अपने आप को बीते जमाने की लेडी डौन उर्फ गौड मदर संतोषबेन जाडेजा के रूप में देखना चाहती थी. यह प्रेरणा उसे संतोषबेन जाडेजा के जीवन पर बनी फिल्म ‘गौड मदर’ से मिली थी. यह फिल्म अस्मिता ने कई बार देखी थी. इस फिल्म का अस्मिता गोहिल पर गहरा असर पड़ा था.

जिस धमाके के साथ अस्मिता गोहिल उर्फ डीकू उर्फ भूरी ने सूरत की जमीन पर कदम रखा था, उसे देख कर सूरत के अधिकांश लोगों को लेडी डौन गौड मदर संतोषबेन जाडेजा की याद ताजा हो गई थी.

सारा शहर उस के कारनामों से भयभीत हो गया था. उस का खौफ सूरत शहर के लोगों के बीच कुछ इस प्रकार घर कर गया था कि कोई भी उस के खिलाफ पुलिस के पास जाने और बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था. मजबूरन पुलिस को उस के वायरल हुए वीडियो को सबूत के तौर पर मान कर उस के खिलाफ काररवाई करनी पड़ी थी.

13 मार्च, 2017 के इस वीडियो में जहां सूरत के वराछा इलाके में लोग होली का त्यौहार मनाने में मस्त थे तो वहीं अस्मिता गोहिल अपने कारनामों में व्यस्त थी. वह अपने प्रेमी संजय हिम्मतभाई वाघेला और गोपाल विट्ठल जाधव के साथ हाथों में नंगी तलवार और चाकू लिए उन के बीच पहुंची थी. फिर उस ने भागीरथी मार्केट की गलियों में वहां के लोगों को डरातेधमकाते हुए वहां भय का माहौल बना दिया था. उस के डर से लोग सहम गए थे.

इस वीडियो के वायरल होते ही सूरत के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के कान खड़े हो गए थे. वे पता लगाने लगे कि ये कौन सी डौन थी, जिस के आतंक से वहां के लोग इतने सहमे हुए थे. मामले की गंभीरता को देखते हुए सीनियर पुलिस अधिकारियों ने वराछा के थानाप्रभारी मयूर पटेल से उस वीडियो की सच्चाई जानने के निर्देश दिए. सीनियर अधिकारियों के निर्देश पर थानाप्रभारी मामले की जांच में जुट गए.

जांच में थानाप्रभारी को पता लग गया कि वह लेडी और कोई नहीं, बल्कि अस्मिता गोहिल उर्फ डीकू उर्फ भूरी है. पुलिस को यह जानकारी मिल गई कि इस लेडी डौन का प्रेमी संजय हिम्मतभाई वाघेला उर्फ भूरा तो सूरत शहर का कुख्यात अपराधी है.

वह शहर के एक ट्रिपल मर्डर केस में वांछित है, जिस की काफी दिनों से पुलिस को तलाश है. इस के पहले कि वह पुलिस के हत्थे चढ़ता अस्मिता गोहिल उर्फ भूरी ने उस के साथ मिल कर वराछा की भागीरथी सोसायटी और मार्केट में कुछ इस तरह से अपना आतंक फैलाया कि मजबूरन लोगों की सुरक्षा के लिए पुलिस को वहां अपनी एक चौकी स्थापित करनी पड़ी थी.

उच्चाधिकारियों के आदेश पर थानाप्रभारी के नेतृत्व में गठित पुलिस टीम ने अस्मिता और उस के प्रेमी की तलाश शुरू कर दी. उन के कई ठिकानों पर छापा मारने के बाद आखिरकार पुलिस को कामयाबी मिली और अस्मिता गोहिल पुलिस के हत्थे चढ़ गई. उस से पूछताछ करने के बाद उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस ने अस्मिता के खिलाफ अदालत में आरोपपत्र दाखिल किया. लेकिन सबूतों के अभाव में उसे जमानत मिल गई थी. यानी 3 महीने बाद वह जेल से बाहर आ गई थी.

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3 महीने जेल में रहने के बाद भी अस्मिता उर्फ भूरी में कोई बदलाव नहीं आया था, बल्कि जेल जाने के बाद वह पूरी तरह निडर हो गई और पहले से ज्यादा आपराधिक मामलों में शामिल हो गई थी. वह संजय भूरा के जिगरी दोस्त राहुल उर्फ गोदो बामनिया और उस के दोस्तों को साथ ले कर सरेआम लोगों से रंगदारी वसूलती. इतना ही नहीं, वह लोगों के पैसे भी छीनने लगी.

20 वर्षीय सुंदरी अस्मिता गोहिल उर्फ डीकू उर्फ भूरी गुजरात के सौराष्ट्र काठियावाड़ के उसी इलाके की रहने वाली थी, जिस इलाके की लेडी डौन संतोषबेन जाडेजा थी. काले साम्राज्य की दुनिया में वह भी संतोषबेन जाडेजा की तरह अपना दबदबा बना कर सूरत शहर के लोगों पर गौड मदर बन कर राज कायम करना चाहती थी.

गरीब परिवार की थी लेडी डौन अस्मिता

अस्मिता गोहिल काठियावाड़ के जिला सोमनाथ तालुका ऊना के गांगडा गांव के रहने वाले एक गरीब किसान जीमुआभाई गोहिल की बेटी थी. गांव में उन की थोड़ी सी जमीन थी, जिस पर वह काश्तकारी करते थे. परिवार बड़ा होने के नाते उन्हें बाहर भी मेहनतमजदूरी करनी पड़ती थी. तब कहीं जा कर उन के परिवार की गाड़ी आगे सरकती थी.

उन के परिवार में पत्नी जसुबेन के अलावा एक बेटा और 6 बेटियां थीं. बेटा सब से छोटा था. अस्मिता गोहिल बड़ी बेटी होने के नाते पूरे परिवार की प्यारी और दुलारी थी. पिता ने तो अस्मिता को बेटे का स्थान दिया था.

चंचल स्वभाव की अस्मिता गोहिल का बचपन गरीबी में बीता था. यही कारण था कि वह अपनी उम्र के साथ तेजतर्रार और उग्र स्वभाव की महत्त्वाकांक्षी युवती बन गई थी. जिन चीजों का उस के पास अभाव था, वह उन्हें पाने के सपने देखा करती थी. उन सपनों को पूरा करने का आइडिया उसे लेडी डौन संतोष बेन जाडेजा की जिंदगी पर बनी फिल्म ‘गौड मदर’ देख कर मिल चुका था.

अस्मिता के पिता गरीब जरूर थे, लेकिन गांव में उन का मानसम्मान था. अन्य बच्चों की तरह वह अस्मिता को भी पढ़ाना चाहते थे लेकिन अस्मिता का मन स्कूल की पढ़ाई में कम और ग्लैमरस व आपराधिक गतिविधियों की तरफ अधिक रहता था.

किसी भी बात को ले कर वह अकसर अपने सहपाठियों से उलझ जाया करती थी. वह लड़कियों के बजाय लड़कों के साथ दिखना पसंद करती थी. यही वजह थी कि उस के दोस्तों में लड़कों की संख्या अधिक थी. उस की यह आदत घर वालों को पसंद नहीं थी.

सन 2015 के दौरान वह अपने ही गांव के एक बिगड़े हुए लड़के के साथ घर से गायब हो गई. थाने में उस के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई गई. लेकिन उस का कोई पता नहीं चला था. करीब एक साल तक गायब रहने के बाद एक दिन अस्मिता अपने प्रेमी के साथ खुद पुलिस थाने में हाजिर हो गई. दोनों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने प्रेमी को जेल भेज दिया और अस्मिता को उस के मांबाप के हवाले कर दिया था.

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अस्मिता गोहिल के घर वालों ने उस के सारे गुनाह माफ कर के उसे अपने गले लगा लिया था, लेकिन एक साल तक बिगड़े हुए रईसजादे के साथ रहने के बाद अस्मिता को अपने घर का माहौल रास नहीं आया तो वह एक रात चुपके से घर से भाग कर सूरत में रहने वाले अपने मामा और मामी के पास चली गई थी. यहीं पर उस की मुलाकात भावनगर के रहने वाले कुख्यात अपराधी संजय हिम्मतभाई वाघेला उर्फ भूरा से हुई थी, जिस पर लूटपाट, मारपीट और मर्डर आदि के दरजनों मामले चल रहे थे.

संजय हिम्मतभाई वाघेला उर्फ भूरा और अस्मिता गोहिल की दोस्ती का पता जब उस के मामामामी को चला तो उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उन्होंने अस्मिता को समझानेबुझाने की काफी कोशिश की, लेकिन उन की कोई भी बात अस्मिता गोहिल के गले से नीचे नहीं उतरी थी.

प्रेमी के साथ रखा अपराध में कदम

मामामामी की बातों पर ध्यान देने के बजाय अस्मिता उन का घर छोड़ कर संजय उर्फ भूरा के साथ रहने के लिए चली गई और उस के साथ लिवइन में रहने लगी. संजय के साथ रहने और उस के साथ आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने के कारण लोग अस्मिता को भूरी डौन के नाम से पुकारने लगे थे.

ब्यूटी डौन बनी अस्मिता गोहिल उर्फ डीकू उर्फ भूरी का इलाके में खासा नाम हो गया था. जब उस के पास पैसा आया तो वह अच्छे रहनसहन के साथ अपने शौक पूरे करने में लग गई. क्रूजर मोटरसाइकिल, लग्जरी कार उस की पसंद बन गई थी, जिस के साथ फोटो खिंचवा कर वह फेसबुक और इंस्टाग्राम पर डालती रहती थी.

लोग उस की सुंदरता और अदाओं पर जम कर कमेंट करते थे. लेकिन जब वह उस का अपराधों से भरा प्रोफाइल देखते तो उन का सिर चकरा जाता था. अस्मिता गोहिल उर्फ डीकू उर्फ भूरी अपने इन्हीं वाहनों पर सवार हो कर के लोगों से रंगदारी वसूलती थी.

आतंक का पर्याय बन चुकी लेडी डौन अस्मिता गोहिल के अपराधों की जानकारी तो समयसमय पर पुलिस को मिलती रहती थी, लेकिन किसी शिकायतकर्ता के सामने न आने के कारण पुलिस बेबस रहती थी. वह चाह कर भी उस के खिलाफ काररवाई नहीं कर पाती थी.

मगर पुलिस भी हाथों पर हाथ रख कर नहीं बैठी थी. वह उस की हर हरकत पर नजर रख रही थी और इस में उसे सफलता भी मिली. पुलिस के हाथ अस्मिता गोहिल का एक और वीडियो लग गया, जिस से अस्मिता गोहिल और उस के साथियों के कारनामों का परदा हट गया था.

21 मई, 2018 को वायरल हुए इस वीडियो में अस्मिता गोहिल और उस के साथियों का चेहरा सामने आ गया था. उस दिन सुबह के साढ़े 6 बजे ही भागीरथी सोसायटी की मार्केट के एक एंब्रायडरी कारखाने में तोड़फोड़ करते हुए व उस के मालिक को डरातेधमकाते हुए अस्मिता उर्फ भूरी और उस के साथी कैमरे में कैद हो गए.

इस के एक घंटे बाद ही वह अपने एक और साथी राहुल उर्फ गोदो बामनिया के साथ अपनी क्रूजर मोटरसाइकिल पर सवार हो कर वर्षा सोसायटी की एक पान की दुकान पर पहुंची. दुकानदार को डरा कर उस ने उस के गल्ले का सारा पैसा ले लिया. इतना ही नहीं, उस ने उसे भद्दी गालियां भी दीं.

आतंक बढ़ने पर कस गया शिकंजा

वह अपने हाथों में जिस समय नंगी तलवार ले कर पान की दुकान पर आई थी, उसी समय दुकान पर इक्केदुक्के ग्राहक चुपचाप वहां से खिसक गए. पान वाले के साथ ही साथ वहां से गुजरने वाला एक दूध वाला भी उस का शिकार बन गया था. राहुल और भूरी ने उसे रोक कर उस के पास से सारे पैसे छीन लिए थे.

एक ही दिन में अस्मिता गोहिल के अपराधों के 2 वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होते ही पुलिस प्रशासन में हड़कंप मच गया था. सूरत पुलिस कमिश्नर सतीश शर्मा ने वराछा और शहर के अन्य थानों के थानाप्रभारियों को आड़े हाथों लिया और उन्हें सख्त काररवाई के आदेश दिए थे. पुलिस कमिश्नर के सख्त आदेश पर पुलिस और क्राइम ब्रांच ने अस्मिता गोहिल उर्फ भूरी को घटना के 5 दिनों बाद ही उस के साथियों के साथ गिरफ्तार कर लिया.

अस्मिता गोहिल उर्फ डीकू उर्फ भूरी के खिलाफ सूरत शहर के विभिन्न थानों में एक दरजन से अधिक मामले दर्ज हैं. लेडी डौन से विस्तृत पूछताछ कर पुलिस ने इस बार उस पान वाले और एंब्रायडरी कारखाने के मालिक को भी ढूंढ कर उन की शिकायत ली फिर सीसीटीवी के फुटेज भी जब्त कर लिए.

इस के आधार पर भूरी के खिलाफ मामला दर्ज कर उस के साथी राहुल उर्फ गोदो बामनिया, भावेशभाई, रणछोड़ देसाई, संजय मनुभाई को 26 मई, 2018 को कोर्ट में पेश कर लाजपोर जेल भेज दिया.

लेडी डौन अस्मिता गोहिल उर्फ भूरी और उस के साथियों के जेल जाने के बाद सूरत शहर के कारखाना मालिकों और दुकानदारों के साथ ही साथ आम जनता ने भी राहत की सांस ली. लेकिन उस के डर से वे पूरी तरह मुक्त नहीं हुए हैं.

उन का मानना है कि आज नहीं तो कल वह जेल से बाहर आएगी, मगर पुलिस का यह दावा है कि इस बार लेडी डौन अस्मिता गोहिल उर्फ भूरी के जेल से बाहर आने की संभावना न के बराबर है. क्योंकि इस बार उन के पास अस्मिता गोहिल के खिलाफ पुख्ता सबूत हैं. पुलिस के दावों में कितना दम है, यह तो वक्त ही बताएगा.

कथा लिखे जाने तक अस्मिता गोहिल अपने साथियों के साथ जेल की सलाखों में बंद अपनी रिहाई के दिन गिन रही थी.

महिला सुरक्षा और अंधा समाज – भाग 1

29 वर्षीय रति त्रिपाठी जम्मूतवी से इंदौर जाने वाली मालवा ऐक्सप्रैस में दिल्ली से एस-7 कोच में सवार हुई थी. पेशे से दिल्ली के एक कोचिंग इंस्टिट्यूट में काउंसलर रति उज्जैन जा रही थी. मालवा ऐक्सप्रैस तड़के 4 बजे ललितपुर रेलवे स्टेशन पहुंची तो लफंगे से दिखने वाले 2 युवक रति की बर्थ पर आ कर बैठ गए. रति ने एतराज जताया तो दोनों उठ कर चले गए.

रति चादर ओढ़, बेफिक्र हो कर दोबारा सोने का उपक्रम करने लगी पर आरक्षित कोच के यात्रियों की यह परेशानी उस के जेहन में आई कि कैसा महकमा है रेलवे का, जिसे देखो मुंह उठाए घुसा चला आता है और बर्थ पर बैठ जाता है. दूसरे आम लोगों की तरह इस अव्यवस्था पर रति पूरी तरह मन ही मन भुनभुना भी नहीं पाई थी कि दोनों युवक फिर आ धमके. ट्रेन अब तक रफ्तार पकड़ चुकी थी. इस दफा दोनों ने बजाय बैठने के सिरहाने रखा रति का पर्स उठा लिया.

रति ने हिम्मत दिखाते अपना पर्स वापस खींचा तो झूमाझटकी शुरू हो गई. इसी झूमाझटकी में इन मवालियों ने रति को धकियाते हुए उसे दरवाजे के बाहर फेंक दिया और उड़नछू हो गए.

रति जहां गिरी वह बीना के नजदीक करोंद रेलवे स्टेशन था. सुबहसुबह गांव वालों ने पटरियों के किनारे पड़ी इस युवती को देखा तो पुलिस को खबर की. पुलिस आई, रिपोर्ट दर्ज की और रति को इलाज के लिए बीना भेज दिया. बेहोश रति के सिर में गंभीर चोट थी और उस की नाक भी टूट गई थी. हालत गंभीर देख उसे बीना से सागर और फिर वहां से भोपाल रैफर कर दिया गया.

रति की मां मिथ्या त्रिपाठी 20 नवंबर की दोपहर बेटी को लेने उज्जैन स्टेशन पहुंचीं तो वह कोच में नहीं मिली. इस पर स्वाभाविक रूप से वे घबरा उठीं और उतर रहे व एस-7 कोच में बैठे यात्रियों से पूछताछ की तो पता चला रति का झगड़ा और झूमाझटकी ललितपुर स्टेशन के बाद 2 लोगों से हुई थी. तुरंत मिथ्या ने पति व बेटे को मोबाइल फोन से खबर दी. कुछ देर बाद पता चला कि रति भोपाल में अस्पताल में भरती है तो सारे लोग भागेभागे भोपाल गए.

इस बात पर बवंडर मचा पर उस से कुछ हासिल नहीं हुआ और जो हुआ वह बेहद चौंका देने वाला है. चौंका देने वाली बात यह नहीं है कि 2 गुंडों ने चलती ट्रेन से एक युवती को बाहर फेंक दिया. चौंका देने वाली बात यह है कि जब रति अपने व अपने पर्स के बचाव के लिए गुंडों से जूझ रही थी तब उस के आसपास के मुसाफिर चैन की नींद सो रहे थे. इन सो रहे यात्रियों में से कुछ ने उसी नींद में ही इस वारदात का ट्वीट किया था. बड़ी मशक्कत के बाद आरोपी पुलिस की गिरफ्त में आया.

स्लीपर कोच की बनावट ऐसी होती है कि कोई जोर से छींके तो भी सहयात्रियों को दिक्कत होती है. फिर रति तो 2 गुंडों से उलझ रही थी. जाहिर है यह सब शांतिपूर्वक नहीं हो रहा था, इस में शोर भी मचा था और रति ने चिल्ला कर मदद के लिए गुहार भी लगाई थी. रेलवे के नियमकानूनों के मुताबिक कंडक्टर को कोच में मौजूद होना चाहिए था पर वह नहीं था.

यह कडंक्टर अकसर नहीं मिलता. रात को टिकट देखने के बाद वह दूसरे कंडक्टरों की तरह एसी कोच में जा कर सो गया था. मुसाफिरों की हिफाजत के लिए चलती ट्रेन में ड्यूटी बजाने वाले रेलवे पुलिस के जवान नदारद थे. लिहाजा, हादसा तो होना ही था.

उदासीनता या डर

मुद्दे की बातें कई हैं पर उन में सब से अहम है रति के सहयात्रियों का सोते रहना. वे लोग दरअसल सो नहीं रहे थे बल्कि सोेने का नाटक कर रहे थे. यही आज का हमारा समाज और उस की उदासीनता है कि 2 गुंडे एक लड़की से झूमाझटकी कर रहे हैं तो उसे बचाओ मत, किसी लफड़े में मत पड़ो, लिहाफ ओढ़े सोते रहो और सुबह अपने गंतव्य पर उतर कर घर जाओ.

और फिर चौराहों पर, दफ्तर में, घर में व यारदोस्तों के बीच जहां भी मौका मिले चटखारे लेले कर देश की कानून व्यवस्था, असुरक्षित माहौल और पुलिस को पानी पीपी कर कोसो. साथ ही, खुद को बहस के जरिए बुद्धिजीवी व जागरूक नागरिक साबित करो.

यह वीरों की भूमि और बहादुरों का देश है जहां के मर्द एक लुटती युवती को देख दुबक जाते हैं और इस बुजदिली के पीछे उन की अपनी दलीलें हैं कि कौन बेवजह फसाद में पड़े. पहले गुंडों से पंगा ले कर जान जोखिम में डालो, फिर पुलिसअदालत के चक्कर में पड़ कर वक्त और पैसा जाया करो और हमें इस से मिलना क्या है.

मर्दों के दबदबे वाले हमारे समाज में ‘वाकई कोई मर्द है’ कहने में हिचक महसूस होती है. नामर्द कई हैं, यह कहना कतई शर्म की या घटिया बात नहीं. बातों के बताशों में बहादुरी जताने वाले लोग इतने संवेदनशील और कायर क्यों हैं कि एक लड़की की हिफाजत भी नहीं कर सकते? अगर उस दिन 2 लोग भी अपनी बुजदिली छोड़ कर गुंडों के मुकाबले में रति की मदद करते तो गुंडे दुमदबा कर भागते नजर आते.

जरूरत इस बात की महसूस होने लगी है कि इन और ऐसे लोगों को भी सहअभियुक्त बनाया जाए, सहअभियुक्त उस कंडक्टर और उन रेलवे पुलिसकर्मियों को भी बनाया जाना चाहिए जिन की ड्यूटी थी. सच, कड़वा सच यह है कि पुरुष चाहते हैं कि औरत इसी तरह लुटतीपिटती रहे और बेइज्जत होती रहे.

संगीन विश्वासघात : बेटी जैसी लड़की को बनाया शिकार – भाग 1

28 सितंबर, 2017 को जिला गुरदासपुर के गांव मिताली के रहने वाले रंजीत सिंह की विधवा जसविंदर कौर ने एसएसपी हरचरण सिंह भुल्लर को एक शिकायत दी थी, जिस में उस ने जो लिखा था, वह कुछ इस प्रकार था—

2 बच्चों की मां जसविंदर कौर के पति रंजीत सिंह पंजाब पुलिस में थे, जिन की अप्रैल, 2008 में अचानक मौत हो गई थी. जसविंदर पढ़ीलिखी थी, इसलिए अनुकंपा के आधार पर उसे पति की जगह नौकरी मिल जानी चाहिए थी. इस के लिए उस ने काफी कोशिश की, लेकिन उसे नौकरी नहीं मिल सकी. किसी ने जसविंदर कौर को सलाह दी कि इस तरह कुछ नहीं होना. अगर वह किसी मंत्री या बड़े नेता से कहलवा दे तो उस का काम आसानी से हो जाएगा. जसविंदर को याद आया कि उस की एक सहपाठिन के पिता बड़े नेता हैं. वह राज्य सरकार में मंत्री भी हैं. जसविंदर जा कर उन से मिली. यह सन 2009 के शुरू की बात है.

जसविंदर कौर ने मंत्री महोदय से पूरी बात बता कर यह भी बताया कि उन की बेटी कालेज में उस के साथ पढ़ती थी. मंत्री महोदय ने उस के सिर पर हाथ फेरते हुए हरसंभव मदद का आश्वासन दिया. उन्होंने कहा कि उन के लिए यह काम जरा भी मुश्किल नहीं है.

यह मंत्री महोदय कोई और नहीं, सरदार सुच्चा सिंह लंगाह थे, जिन से जसविंदर कौरगुरदासपुर पंजाब चंडीगढ़ स्थित उन के सरकारी आवास पर अपने घर वालों के साथ मिली थी. लंगाह ने जसविंदर को काम कराने का आश्वासन देते हुए 2-3 दिनों बाद अकेली किसान भवन में आ कर मिलने को कहा. आने से पहले फोन कर लेने की बात कहते हुए उन्होंने उसे अपना मोबाइल नंबर भी दे दिया था.

2 दिनों बाद जसविंदर कौर ने मंत्री सुच्चा सिंह लंगाह को फोन किया तो उन्होंने उसे अगले दिन दोपहर को किसान भवन आने को कहा, साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि वह वहां अकेली ही आएगी. जसविंदर कौर ने वैसा ही किया. अगले दिन दोपहर को वह अकेली ही चंडीगढ़ के सैक्टर-35 स्थित किसान भवन पहुंच गई. वहां ठहरने के लिए होटलों की तरह हर सुखसुविधा वाले कमरे बने हैं. इन्हीं कमरों में से एक कमरे में लंगाह आराम कर रहे थे. उन्होंने जसविंदर को अपने कमरे में बुलवा लिया.

जसविंदर ने अपनी शिकायत में लंगाह पर जो आरोप लगाए हैं, उस के अनुसार वह किसान भवन के उस कमरे में पहुंची तो मंत्री सुच्चा सिंह उसे अपनी बगल में बिठा कर उस के साथ अश्लील हरकतें करने लगा. इस से जसविंदर बुरी तरह डर गई.

उस ने लंगाह को रोकने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘अंकल, मैं आप की बेटी सरबजीत कौर के साथ बेबे नानकी कालेज में पढ़ी हूं. इस नाते मैं आप की बेटी की तरह हूं. आप को अपने पिता की तरह मान कर मैं आप के पास मदद के लिए आई हूं. आप मुझ पर रहम करें. मैं विधवा हूं. मेरे 2 बच्चे हैं. प्लीज, मुझे जाने दीजिए.’’

जसविंदर के अनुसार, इस चिरौरी का सुच्चा सिंह लंगाह पर कोई असर नहीं हुआ. पहले तो उस ने अपनी ऊंची पहुंच के बारे में बताते हुए उसे जल्दी सरकारी नौकरी दिलवाने का लालच दिया. लेकिन जसविंदर काबू में नहीं आई तो उस ने उसे धमकी दी कि वह चाहे तो उसे अभी किसी केस में फंसा कर उस की जिंदगी बरबाद कर सकता है. इस के बाद उस ने जबरदस्ती जसविंदर की अस्मत लूट ली.

जसविंदर ने अपनी शिकायत में आगे लिखा है कि सुच्चा सिंह लंगाह का रुतबा देख कर वह डर के मारे चुप रह गई. बस पकड़ कर वह अपने गांव लौट आई. इस बारे में उस ने किसी को कुछ नहीं बताया. फिर वह एक लाचार विधवा औरत थी, जिस के लिए अपने बच्चों को पालने की खातिर नौकरी बहुत जरूरी थी.

यही वजह थी कि इज्जत लुटने के बाद भी जसविंदर लंगाह से संबंध तोड़ नहीं सकी. वह उसे फोन कर के अपने काम के बारे में पूछती रहती. उन का एक ही जवाब होता था कि वह कोशिश कर रहा है कि उस का काम जल्दी हो जाए.

एक बार लंगाह ने बीएमडब्ल्यू कार भेज कर जसविंदर कौर को पंजाब सिविल सेक्रेटेरिएट स्थित अपने औफिस में बुलवाया और उस के सामने ही किसी बड़े पुलिस अफसर को फोन कर के कहा कि वह जसविंदर को उस के पास भेज रहे हैं, उस का काम किसी भी सूरत में आज ही हो जाना चाहिए. इस के बाद लंगाह ने जसविंदर को अपने एक आदमी के साथ उस पुलिस अधिकारी के पास भेज दिया.

पुलिस अधिकारी भला आदमी था, उस ने उसी दिन नियुक्तिपत्र जारी करवा दिया. इस तरह जसविंदर को स्टेट विजिलेंस विभाग में क्लर्क की नौकरी मिल गई. नौकरी पा कर जसविंदर कौर बहुत खुश थी. वह लंगाह को धन्यवाद देने भी गई.

जसविंदर की मजबूरी का फायदा उठाते हुए लंगाह ने एक बार नहीं, कई बार शारीरिक शोषण किया. उस दिन भी वह उसे यह कहते हुए एक जगह ले जा कर वही सब किया कि अभी उस की नौकरी कच्ची है, जल्दी वह उसे पक्की करवा देगा.

डराधमका कर मंत्रीजी करते रहे उस का यौनशोषण

इस के बाद सुच्चा सिंह लंगाह जसविंदर से यह कहने लगा कि उस ने कई लोगों को एजेंसियां दिलवाई हैं, जो हर महीने लाखों रुपए कमा रहे हैं. वह चाहे तो उस के परिवार के किसी सदस्य के नाम एजेंसी दिलवा सकता है, जिस के माध्यम से वह मोटी कमाई कर सकती है. इस तरह की बातें करते हुए अकसर वह कुछ ऐसी बातें कह देते थे, जिस से जसविंदर इतना डर जाती कि उसे अपनी मौत का अहसास होने लगता था.

‘लाइक’ के नाम पर 37 अरब की ठगी – भाग 1

दिल्ली के लक्ष्मीनगर के रहने वाले गौरव अरोड़ा नोएडा की एक रियल एस्टेट कंपनी में बढि़या नौकरी करते थे. लेकिन पिछले 2 सालों से वह काफी परेशान थे. इस की वजह यह थी कि जब से केंद्र में भाजपा सरकार आई, तब से रियल एस्टेट के क्षेत्र में मंदी आ गई है. पहले जहां प्रौपर्टी की कीमतें आसमान छू रही थीं, अब वह स्थिर हो चुकी हैं. केंद्र सरकार की नीतियों की वजह से इनवैस्टर भी अब प्रौपर्टी में इनवैस्ट करने से कतरा रहे हैं.

इस का सीधा प्रभाव उन लोगों पर पड़ रहा है, जिन की रोजीरोटी रियल एस्टेट के धंधे से चल रही थी. गौरव को हर महीने अपनी कंपनी का कुछ टारगेट पूरा करना होता था. पहले तो वह उस टारगेट को आसानी से पूरा कर लेता था, लेकिन प्रौपर्टी के क्षेत्र में आई गिरावट से अब बड़ी मुश्किल से घर का खर्च चल रहा था.

बच्चों की पढ़ाई के खर्च के अलावा उसे घर के रोजाना के खर्च पूरे करने में खासी परेशानी हो रही थी. एक दिन बौस ने उसे अपनी केबिन में बुला कर पूछा, ‘‘गौरव, यहां नौकरी के अलावा तुम और कोई काम करते हो?’’

‘‘नहीं सर, समय ही नहीं मिलता.’’ गौरव ने कहा.

‘‘देखो, मैं तुम्हें एक काम बताता हूं, जिसे तुम कहीं भी और दिन में कभी भी कर सकते हो. काम इतना आसान है कि तुम्हारी पत्नी या बच्चे भी घर बैठे कर कर सकते हैं.’’ बौस ने कहा.

‘‘सर, ऐसा क्या काम है, जो कोई भी कर सकता है?’’ गौरव ने पूछा.

‘‘नोएडा की ही एक कंपनी है सोशल ट्रेड. इस कंपनी के अलगअलग पैकेज हैं. आप जो पैकेज लेंगे, कंपनी उसी के अनुसार आप को लाइक करने को देगी. हर लाइक का 5 रुपए मिलता है.’’ बौस ने कहा.

‘‘सर, मैं कुछ समझा नहीं.’’ गौरव ने कहा.

‘‘मैं तुम्हें विस्तार से समझाता हूं.’’ कह कर बौस ने एक खाली पेपर निकाला और उस पर समझाने लगे, ‘‘देखो, कंपनी के 4 तरह के प्लान हैं. पहला है एसटीपी-10, दूसरा है एसटीपी-20, तीसरा है एसटीपी-50 और चौथा है एसटीपी-100.

‘‘एसटीपी-10 का पैकेज 5750 रुपए का है. इस में तुम्हें रोजाना 10 लाइक करनी होंगी. एसटीपी-20 का पैकेज 11500 रुपए का है. इस में तुम को रोजाना 20 लाइक करने को मिलेंगे. एसटीपी-50 के पैकेज में 28,750 रुपए जमा कर के 50 लाइक प्रतिदिन करने को मिलेंगे और एसटीपी-100 के पैकेज में 57,500 रुपए जमा कर के 125 लाइक तुम्हारी आईडी पर करने को आएंगे.

‘‘पैकेज की इस धनराशि में 15 प्रतिशत टैक्स भी शामिल है. यह लाइक शनिवार, रविवार और सरकारी छुट्टियों को छोड़ कर एक साल तक आएंगे. हर लाइक के 5 रुपए मिलेंगे. तुम्हें जो इनकम होगी, उस में से सरकार के नियम के अनुसार टैक्स भी काटा जाएगा.

‘‘तुम्हें फायदे की एक बात बताता हूं. तुम जिस पैकेज में जौइन करोगे, 21 दिनों के अंदर उसी पैकेज में 2 और लोगों को जौइन करा दिया तो तुम्हारी आईडी बूस्टर हो जाएगी. यानी उस आईडी पर दोगुने लाइक आएंगे. अगर और ज्यादा कमाई करनी है तो ज्यादा से ज्यादा लोगों को जौइन कराओ, इस से डाइरेक्ट इनकम के अलावा बाइनरी इनकम भी मिलेगी.’’

बौस ने आगे बताया, ‘‘कंपनी हंडरेड परसेंट लीगल है. बिना किसी डर के तुम यहां काम कर के अच्छी कमाई कर सकते हो. यकीन न हो तो तुम मेरी बैंक पासबुक देख सकते हो.’’ इतना कह कर बौस ने गौरव को अपनी पासबुक दिखाई.

गौरव ने पासबुक देखी तो सचमुच उस में कंपनी की तरफ से कई हजार रुपए आने की एंट्री थी. उसे यह स्कीम अच्छी लगी. उसे लगा कि यह तो बहुत अच्छा काम है, जो घर पर कोई भी कर सकता है. उस ने बौस से कह दिया कि अभी उस के पास पैसे नहीं हैं. जैसे ही पैसों का जुगाड़ हो जाएगा, वह काम शुरू कर देगा.

घर पहुंचने के बाद गौरव के दिमाग में बौस द्वारा दिखाया गया सोशल ट्रेड कंपनी का प्लान ही घूमता रहा. उस ने सोचा कि अगर वह 57,500 रुपए जमा कर देगा तो 625 रुपए प्रतिदिन मिलेंगे. सब कटनेकटाने के बाद 1,33,594 रुपए मिलेंगे यानी एक साल में उस के पैसे दोगुने से अधिक हो जाएंगे.

गौरव ने इस बारे में पत्नी को बताया तो पत्नी ने कहा कि इस तरह की कई कंपनियां लोगों के पैसे ले कर भाग चुकी हैं. इन के चक्कर में न पड़ा जाए तो बेहतर है. वैसे आप की मरजी. गौरव ने पत्नी की सलाह को अनसुना कर दिया. सोचा कि इसे कंपनी के बारे में जानकारी नहीं है, इसलिए यह ऐसी बातें कर रही है. बहरहाल उस ने ठान लिया कि वह यह काम जरूर करेगा. अगले दिन उस के एक नजदीकी दोस्त ने भी सोशल ट्रेड के प्लान के बारे में बताते हुए कहा कि वह खुद पिछले एक महीने से इस प्लान से अच्छी इनकम हासिल कर रहा है.

दोस्त ने गौरव से भी सोशल ट्रेड जौइन करने को कहा. गौरव को सोशल ट्रेड में काम करना ही था, इसलिए उस ने बौस के बजाय दोस्त के साथ जुड़ कर सोशल ट्रेड में काम करना उचित समझा.

गौरव के पास कुछ पैसे बैंक में थे, कुछ पैसे बैंक से लोन ले कर उस ने 1,15,000 रुपए कंपनी के खाते में जमा करा कर 2 आईडी ले लीं. उस की आईडी के बाईं साइड में उस की एक और आईडी लग चुकी थी. अगर उस के दाईं साइड में 57,500 रुपए की एक आईडी और लग जाती तो उस की मुख्य आईडी पर बूस्टर लग सकता था.

इसलिए गौरव इस फिराक में था कि 57,500 रुपए की एक आईडी किस की लगवाई जाए. उस ने अपने बड़े भाई कपिल अरोड़ा को सोशल ट्रेड के प्लान की इनकम के बारे में बताया. लालच में कपिल भी तैयार हो गया और उस ने भी 25 जनवरी, 2017 को 57,500 रुपए जमा करा दिए.

कपिल अरोड़ा की आईडी लगते ही गौरव की मुख्य आईडी बूस्टर हो गई और उस पर 125 के बजाए 250 लाइक आने लगे, जिस से उसे रोजाना 1250 रुपए की इनकम होने लगी. गौरव ने पेमेंट मोड 15 दिन का रखा था. 23 जनवरी, 2017 को उसे पहला पेआउट 4800 रुपए का मिला. कपिल की आईडी लग जाने के बाद उसे अगला पेआउट इस से डबल आने की उम्मीद थी, पर अगले 15 दिनों बाद उस का पेआउट नहीं आया.

यह बात गौरव ने अपने उस दोस्त से कही, जिस ने उसे जौइन कराया था. दोस्त ने उसे बताया कि कंपनी में अपग्रेडेशन का काम चल रहा है, इसलिए सभी के पेमेंट रुके हुए हैं. चिंता की कोई बात नहीं है, जो भी पेमेंट इकट्ठा होगा, वह सारा मिल जाएगा. यही नहीं, उस ने गौरव से कहा कि वह अपनी टीम बढ़ाए, जिस से इनकम बढ़ सके.

गौरव रोजाना अपनी आईडी पर आने वाले लाइक करता रहा. चूंकि उस का पेआउट नहीं आ रहा था, इसलिए उस ने और किसी को सोशल ट्रेड में जौइन नहीं कराया. उस का भाई कपिल भी अपनी आईडी पर आने वाले 125 लाइक रोजाना करता रहा. गौरव और कपिल कंपनी के एफ-472, सेक्टर-63 नोएडा स्थित औफिस भी गए.

उन की तरह अन्य सैकड़ों लोग वहां अपनी इसी समस्या को ले कर आजा रहे थे. सभी को यही बताया जा रहा था कि आईटी एक्सपर्ट सिस्टम को अपग्रेड करने में लगे हुए हैं. सोशल ट्रेड कंपनी से लाखों लोग जुड़े थे. उन में से अधिकांश के मन में इसी बात का संशय था कि पता नहीं कंपनी उन का रुका हुआ पेआउट देगी या नहीं. बहरहाल बड़े लीडर्स और कंपनी की ओर से परेशानहाल लोगों को आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिल रहा था.

उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्धनगर (नोएडा) के सूरजपुर के रहने वाले दिनेश सिंह और पूर्वी दिल्ली के आजादनगर की रहने वाली पूजा गुप्ता ने भी दिसंबर, 2016 में अलगअलग 57,500 रुपए कंपनी के खाते में जमा करा कर आईडी ली थीं. ये भी रोजाना अपनी आईडी पर 125 लाइक करते थे. जौइनिंग के एक महीना बाद भी इन को इन के किए गए लाइक का पैसा नहीं मिला तो इन्हें भी चिंता होने लगी. न तो इन्हें अपने अपलाइन से और न ही कंपनी से कोई संतोषजनक जवाब मिल रहा था.

थकहार कर दिनेश सिंह ने 31 जनवरी, 2017 को गौतमबुद्धनगर के थाना सूरजपुर में कंपनी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. इस की जांच एसआई मदनलाल को सौंपी गई. पेआउट न मिलने से असंतुष्ट कई लोगों ने पुलिस और जिला प्रशासन से शिकायतें करनी शुरू कर दी थीं. सोशल ट्रेड कंपनी के खिलाफ  ज्यादा शिकायतें मिलने पर पुलिस प्रशासन सतर्क हो गया.

अनीता प्रभा : हौसलों की उड़ान

कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों… कवि दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां प्रभात शर्मा पर सटीक बैठती हैं. इन पंक्तियों को चरितार्थ करते हुए अनीता प्रभा ने अपने दृढ़ आत्मविश्वास, अटूट लगन और अथक परिश्रम से असंभव को भी संभव कर दिखाया.

मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले के एक छोटे से कस्बे के पारंपरिक परिवार में जन्मी अनीता प्रभा जिंदगी में कुछ खास करना चाहती थीं. लेकिन पारिवारिक बंदिशों के चलते 10वीं के बाद उन की पढ़ाई बंद हुई तो वह भाई के पास ग्वालियर चली गईं और वहां से 12वीं पास की. इस के बाद मात्र 17 साल की उम्र में उन की शादी 10 साल बड़े लड़के से कर दी गई.

ससुराल के हालात कुछ अच्छे नहीं थे. अनीता ने ससुराल में जिद कर के ग्रैजुएशन करना शुरू कर दिया. लेकिन वक्त यहां भी आड़े आ गया. फाइनल ईयर के एग्जाम से पहले उन के पति का एक्सीडेंट हो गया, जिस की वजह से अनीता एग्जाम नहीं दे पाईं. फाइनल ईयर के एग्जाम उन्होंने अगले साल क्लियर किए. 4 साल में ग्रैजुएशन करने का नुकसान यह हुआ कि अनीता प्रोबेशनरी बैंक आफिसर की पोस्ट के लिए रिजेक्ट कर दी गईं.

घर की आर्थिक हालत दयनीय देख अनीता प्रभा ने ब्यूटीशियन का कोर्स किया और ब्यूटीपार्लर में काम करना शुरू कर दिया. इस से आर्थिक मदद तो होने लगी परंतु जिंदगी का सफर इतना आसान कहां था. अनीता प्रभा और उन के पति की उम्र में ही नहीं, सोच में भी अंतर था. यही वजह थी कि दोनों में टकराव शुरू हो गया.

अनीता प्रभा ने घरेलू हालात से निपटते हुए 2013 में विवादों से घिरे व्यापमं की फौरेस्ट गार्ड की परीक्षा दी. यह परीक्षा उन्होंने 4 घंटे में 14 किलोमीटर की दूरी पैदल तय कर के दी थी. उन की मेहनत रंग लाई और दिसंबर 2013 में उन्हें बालाघाट में पोस्टिंग मिल गई.

लेकिन अनीता यहीं नहीं रुकीं. उन्होंने अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए व्यापमं के सबइंस्पेक्टर पोस्ट के लिए परीक्षा दी. लेकिन इस के फिजिकल टेस्ट में सफल नहीं हो सकीं. उन्होंने हिम्मत न हारते हुए दूसरी बार प्रयास किया और 2 महीने पहले ओवरी ट्यूमर का औपरेशन कराने के बावजूद फिजिकल टेस्ट पास कर के सबइंस्पेक्टर बन गईं.

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उन्होंने बतौर सूबेदार जिला रिजर्व पुलिस लाइन में जौइन किया. इस की ट्रेनिंग के लिए वह सागर चली गईं. इसी दौरान उन के तलाक का केस भी कोर्ट में चला गया था. दूसरी तरफ व्यापमं की तैयारी करते हुए अनीता प्रभा ने मध्य प्रदेश स्टेट पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा दी. उस के रिजल्ट का इंतजार न कर के अनीता सागर के लिए रवाना हो गईं.

ट्रेनिंग के दौरान ही एमपीपीएससी के रिजल्ट आए. जिस में अनीता महिला वर्ग में 17वें नंबर पर थीं. यह एक महत्त्वाकांक्षी लड़की की अभूतपूर्व जीत थी. वह डीएसपी रैंक के लिए चयनित हो गई थीं. इस जीत का उत्सव मनाते हुए अनीता प्रभा ट्रेनिंग छोड़ कर वापस लौट आईं और अपने डीएसपी पद के जौइनिंग और्डर का इंतजार करने लगीं.

किसी फिल्म सरीखी लगने वाली यह कहानी एक ऐसी लड़की की है, जिस ने बाल विवाह का दंश झेला. समाज और परिवार की रुढि़वादी परंपराओं को सहा लेकिन अपने हौसले को पस्त नहीं होने दिया और न ही अपने सपने को मरने दिया. उस ने कांटों भरी डगर पर चल कर अपना लक्ष्य हासिल कर लिया.

लेकिन राह यहीं खत्म नहीं हुई. अनीता प्रभा का सपना और ऊंचा मुकाम हासिल करना था यानी डिप्टी कलेक्टर के पद तक पहुंचना, जिस के लिए वह प्रयासरत भी हैं. जो भी हो, इतना संघर्ष कर के मात्र 25 वर्ष की आयु में राजपत्रित पद पर पहुंचना एक अभूतपूर्व सफलता है, जो युवाओं के लिए प्रेरणास्पद भी है और अनुकरणीय भी.

मारवाड़ के लुटेरों पर पुलिस का दांव – भाग 3

टी.वी. पेरियापांडियन दीवार फांदने के बजाय जब लोहे के गेट पर चढ़ कर कूदने का प्रयास कर रहे थे, तब गेट के बाहर खड़े इंसपेक्टर मुनिशेखर अपनी पिस्टल को अनलौक कर रहे थे कि अचानक एक्सीडेंटल गोली चल गई, जो टी.वी. पेरियापांडियन को लगी. वह गेट से गिर गए और उन की मौत हो गई. इसी बीच मौका पा कर नाथूराम फरार हो गया था.

दरअसल, चेन्नै पुलिस को अनुमान नहीं था कि वहां 9-10 लोग होंगे. उस का मानना था कि नाथूराम 1-2 लोगों के साथ छिपा होगा. चेन्नै के थाना मदुरहोल थाने के इंसपेक्टर टी.वी. पेरियापांडियन दबंग और बहादुर पुलिस अफसर थे.  यह दुर्भाग्य ही था कि उन की मौत अपने ही साथी की गोली से हो गई.

पाली के एसपी दीपक भार्गव के अनुसार, चेन्नै पुलिस के इंसपेक्टर मुनिशेखर को चार्जशीट में भादंवि की धारा 304ए का आरोपी बनाया जाएगा. तथ्यात्मक जांच रिपोर्ट चेन्नै पुलिस को भेजी जाएगी. चेन्नै पुलिस इंसपेक्टर मुनिशेखर पर विभागीय काररवाई करेगी.

17 दिसंबर को पुलिस ने चेन्नै में हुई ज्वैलरी लूट की वारदात के मुख्य आरोपी नाथूराम जाट की पत्नी मंजू देवी को गिरफ्तार कर लिया था. वह जोधपुर के पीपाड़ शहर के पास मालावास गांव में अपने धर्मभाई के घर छिपी हुई थी. मंजू को चेन्नै से आई पुलिस टीम पर हमले के आरोप में पकड़ा गया था.

कथा लिखे जाने तक नाथूराम और अन्य आरोपियों को पकड़ने के लिए पुलिस लगातार छापे मार रही थी. नाथूराम के खिलाफ पाली के थाना जैतारण में मारपीट के 4 और जोधपुर के थाना बिलाड़ा में एक मुकदमा पहले से दर्ज है. वह कई सालों से अपने गांव में नहीं रहा था. वह चेन्नै बेंगलुरु आदि शहरों में रहता था.

नाथूराम और दीपाराम के पकड़े जाने के बाद चेन्नै में महालक्ष्मी ज्वैलर्स के शोरूम में हुई सवा करोड़ रुपए के गहनों की लूट का मामला भले ही सुलझ जाए, लेकिन चेन्नै पुलिस के लिए माल की बरामदगी चुनौती रहेगी. जोधपुर में गिरफ्तार चोरी के आरोपी दिनेश जाट को चेन्नै पुलिस प्रोडक्शन वारंट पर चेन्नै ले गई.

इसी तरह 29 अगस्त, 2017 को विशाखापट्टनम में एक ज्वैलर से 3 किलोग्राम सोना लूट लिया गया था. लूट की इस वारदात में ज्वैलर के पास काम करने वाला राकेश प्रजापत शामिल था.

वह राजस्थान के जिला पाली के रोहिट के पास धींगाणा का रहने वाला था. लूट के बाद वह पाली आ गया था. यहां बाड़मेर रोड पर होटल चलाने वाले हनुमान प्रजापत से उस की पुरानी जानपहचान थी. हनुमान के मार्फत राकेश ने लूट का सारा सोना श्रवण सोनी को बेच दिया.

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मामले की जांच करते हुए आंध्र प्रदेश पुलिस जोधपुर पहुंची और 3 नवंबर को झालामंड मीरानगर निवासी रामनिवास जाट को गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद जोधपुर जिले के थाना बोरानाड़ा के गांव खारडा भांडू के रहने वाले ज्वैलर श्रवण सोनी को पकड़ा गया.

श्रवण सोनी को ले जाने पर उस के घर वालों ने थाना बोरानाड़ा में उस के अपरहण का मामला दर्ज करा दिया था. बोरानाड़ा पुलिस ने जांचपड़ताल की तो श्रवण सोनी के आंध्र प्रदेश पुलिस की कस्टडी में होने की बात पता चली.

आंध्र प्रदेश पुलिस ने रामनिवास, श्रवण सोनी, हनुमान प्रजापत और राकेश प्रजापत को हिरासत में ले कर सोना बरामद कर लिया था. लेकिन कागजों में न तो उन्हें गिरफ्तार दिखाया गया था और न ही सोने की बरामदगी दिखाई गई थी, जबकि राकेश प्रजापत को बाकायदा हथकड़ी लगा कर रखा गया था. लेकिन उसे गिरफ्तार नहीं दिखाया गया था.

आंध्र प्रदेश की पुलिस टीम द्वारा रामनिवास को लूट के मामले में आरोपी न बनाने और उस की कार जब्त न करने के लिए डेढ़ लाख रुपए मांगे गए थे, साथ ही मौजमस्ती के लिए लड़कियों का इंतजाम करने को भी कहा गया था. पुलिस टीम का कहना था कि उस ने यह कार विशाखापट्टनम से लूटे गए 3 किलोग्राम सोने को बेच कर खरीदी थी.

आंध्र प्रदेश पुलिस ने 5 नवंबर को रामनिवास और श्रवण सोनी को कुछ शर्तों पर छोड़ दिया था और श्रवण सोनी से 6 नवंबर को 2 लाख रुपए लाने को कहा था. इस से पहले आंध्र प्रदेश पुलिस ने रामनिवास के एटीएम से 20 हजार रुपए निकलवा कर रख लिए थे.

छूटते ही रामनिवास सीधे भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के कार्यालय पहुंचा और आंध्र प्रदेश पुलिस द्वारा रिश्वत मांगने की शिकायत कर दी. एसीबी ने 80 हजार रुपए दे कर रामनिवास को आंध्र प्रदेश पुलिस के पास भेज कर शिकायत की पुष्टि की. इस के बाद 6 नवंबर को विशाखापट्टनम, आंध्र प्रदेश से आई 4 लोगों की पुलिस टीम को 80 हजार रुपए की रिश्वत लेते हुए रंगेहाथों गिरफ्तार कर लिया गया.

इन में विशाखापट्टनम जिले की क्राइम ब्रांच के सबडिवीजन नौर्थ के इसंपेक्टर आर.वी.आर.के. चौधरी, विशाखापट्टनम के थाना परवाड़ा के एसआई एस.के. शरीफ, थाना एम.आर. पेटा के एसआई गोपाल राव और थाना वनटाउन के कांस्टेबल एस. हरिप्रसाद शामिल थे. ये चारों जोधपुर में बाड़मेर रोड पर बोरानाड़ा स्थित एक होटल में रुके हुए थे.

गिरफ्तारी के अगले दिन 7 नवंबर को चारों लोगों को अदालत में पेश किया गया, जहां से अदालत के आदेश पर सभी को जेल भेज दिया गया. पूरी टीम के गिरफ्तार होने की सूचना मिलने पर 3 किलोग्राम सोने की लूट के मामले की जांच के लिए विशाखापट्टनम से दूसरी टीम भेजी गई. यह टीम 7 नवंबर को जोधपुर पहुंची. इस टीम ने सोने की लूट के सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया.

अतीक अहमद : खूंखार डौन की बेबसी – भाग 3

एक विधायक की हत्या के बाद भी अतीक सत्ताधारी सपा में बने रहा. इस हत्या के बाद बसपा के समर्थकों ने इलाहाबाद शहर में जम कर हंगामा किया और खूब तोड़फोड़ की.

2005 में इलाहाबाद पश्चिमी सीट पर फिर उपचुनाव हुआ, जिस में राजू पाल की पत्नी पूजा पाल को बसपा की ओर से टिकट दिया गया. इस बार भी पूजा के सामने अतीक का भाई अशरफ ही था. उस समय तक पूजा के हाथ की मेहंदी भी नहीं उतरी थी.

कहा जाता है कि चुनाव प्रचार के दौरान पूजा मंच से अपने हाथ दिखा कर रोने लगती थी. लेकिन पूजा को जनता का समर्थन नहीं मिला और वह चुनाव हार गई.

अतीक का टूटा किला

इस बार अतीक का भाई अशरफ चुनाव जीत गया. ऐसा शायद अतीक के खौफ के कारण हुआ था. इस तरह एक बार फिर अतीक की धाक जम गई. वह खुद सांसद था ही, भाई भी विधायक हो गया था. उसी समय उस पर सब से ज्यादा आपराधिक मुकदमे दर्ज हुए.

अतीक अहमद पर 83 से अधिक आपराधिक मुकदमे दर्ज हो चुके थे. परंतु हैरानी की बात यह थी कि उत्तर प्रदेश पुलिस अतीक अहमद को गिरफ्तार करने के बारे में सोच भी नहीं रही थी.

2007 के विधानसभा के चुनाव में एक बार फिर इलाहाबाद पश्चिमी सीट पर बसपा ने राजू पाल की पत्नी पूजा पाल को चुनाव में उतारा. इस बार भी सामने अतीक का भाई अशरफ ही उम्मीदवार था. इस बार पहली दफा इलाहाबाद पश्चिमी  का अतीक अहमद का किला टूटा. पूजा पाल चुनाव जीत गई.

उत्तर प्रदेश में मायावती की पूर्ण बहुमत से सरकार बनी तो मायावती ने अतीक अहमद को पहला टारगेट बनाया. मायावती के जहन में गेस्टहाउस कांड के जख्म हरे थे. इस मामले में बसपा सरकार के रहते मुलायम सिंह के इशारे पर अतीक ने गेस्टहाउस में ठहरी मायावती को बेइज्जत किया था.

एक के बाद एक कर सारे मामले खुलने लगे और मायावती सरकार ने एक ही दिन में अतीक अहमद पर सौ से अधिक मामले दर्ज करा कर औपरेशन अतीक शुरू कर दिया. अतीक भूमिगत हो गया तो उसे मोस्टवांटेड घोषित कर दिया गया और उस पर 20 हजार रुपए का इनाम भी घोषित कर दिया गया.

देश के इतिहास में एक सांसद मोस्टवांटेड घोषित हो गया हो और उस पर 20 हजार रुपए का इनाम घोषित किया गया हो, यह शायद देश का पहला मामला था. इस से पार्टी की बदनामी होने लगी तो मुलायम सिंह ने उसे पार्टी से बाहर कर दिया.

गिरफ्तारी के डर से अतीक फरार था. उस के घर, औफिस सहित 5 संपत्ति को कोर्ट के आदेश पर कुर्क कर लिया गया.

जिस इलाहाबाद में अतीक की तूती बोलती थी, पूजा पाल ने चुनाव जीतते ही बसपा सरकार में उस की नाक में ऐसा दम किया कि जिस सीट से वह 5 बार विधायक बना था, उस सीट को ही नहीं, उसे इलाहाबाद जिले को ही छोड़ कर भागना पड़ा.

अतीक अहमद समझ गया था कि उत्तर प्रदेश पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करना खतरे से खाली नहीं होगा, इसलिए उस ने दिल्ली पुलिस के सामने योजना के तहत आत्मसमर्पण कर दिया. अतीक अहमद को उत्तर प्रदेश पुलिस दिल्ली से इलाहाबाद ले आई. अतीक के बुरे दिन शुरू हो चुके थे. पुलिस और विकास प्राधिकरण के अधिकारियों ने अतीक की ड्रीम निर्माण परियोजना अलीना सिटी को अवैध घोषित कर ध्वस्त कर दिया.

औपरेशन अतीक के ही तहत 5 जुलाई, 2007 को राजू पाल हत्याकांड के मुख्य गवाह उमेश पाल ने अतीक के खिलाफ धूमनगंज थाने में अपहरण और जबरन बयान दिलाने का मुकदमा दर्ज कराया.

इस के बाद 4 अन्य गवाहों की ओर से भी उस के खिलाफ मामले दर्ज कराए गए. 2 महीने में ही अतीक के खिलाफ इलाहाबाद, कौशांबी और चित्रकूट में कई मुकदमे दर्ज हो गए. पर सपा की सरकार बनते ही उस के दिन बहुरने लगे.

2012 का साल था. अतीक अहमद जेल में था और विधानसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी थी. उस ने जेल में रहते हुए ही अपना दल की ओर से अपनी उम्मीदवारी की घोषणा की. चुनाव का पर्चा दाखिल करने के बाद अतीक अहमद ने जमानत पर छूटने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की. उसे जमानत मिल गई और वह जेल से बाहर आ गया.

बहुजन समाज पार्टी ने एक बार फिर पूजा पाल को अतीक के सामने खड़ा किया. संयोग से इस बार भी अतीक चुनाव हार गया. वह चुनाव भले ही हार गया, पर उस का अपराध का कारखाना बंद नहीं हुआ.

मुलायम सिंह ने एक बार फिर उसे अपनी पार्टी में सहारा दिया. इस बार उसे श्रावस्ती जिले से टिकट दिया गया. इस चुनाव में भी अतीक अहमद हार गया.

2016 में फिर एक बार मुलायम सिंह ने कानपुर कैंट से उसे उम्मीदवार बनाया. इस चुनाव का फार्म भरने के लिए अतीक 5 सौ गाडि़यों का काफिला ले कर कानपुर पहुंचा. जबकि वह खुद 8 करोड़ की विदेशी कार हमर में सवार था.

पूरे कानपुर में अतीक के इस काफिले ने चक्का जाम कर दिया था. मीडिया में उस के खिलाफ खूब लिखा गया. तब तक समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह के बेटे अखिलेश यादव बन गए थे. उन्होंने अतीक अहमद को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया.

एक बार फिर हुआ गिरफ्तार

फरवरी, 2017 में पुलिस ने उसे इलाहाबाद कालेज में तोड़फोड़ करने के आरोप में गिरफ्तार किया. उस के बाद से वह जेल में ही है. अतीक पर अब तक लगभग 250 मुकदमे दर्ज हो चुके हैं. मायावती के शासनकाल में एक ही दिन में उस पर 100 मुकदमे दर्ज हुए थे. बाद में जिन्हें हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था. अधिकतर मामलों में सबूत के अभाव और गवाहों के मुकरने से अतीक बरी हो गया था.

अतीक भले ही आतंक का पर्याय है, वह नेकदिल भी है. उस के पास जो भी मदद के लिए जाता है, वह खाली हाथ नहीं लौटता.

उस पर 35 मुकदमे अभी भी चल रहे हैं. इन में कुछ अदालत में पैंडिंग हैं तो कुछ की अभी जांच ही पूरी नहीं हुई है. मजे की बात यह है कि अभी तक उसे किसी भी मामले में सजा नहीं हुई है. यह सब देख कर यही लगता है कि अतीक की जिंदगी कभी इस जेल में तो कभी उस जेल में कटती रहेगी. लेकिन विकास दुबे कांड के बाद योगी सरकार अतीक के आर्थिक साग्राज्य को पूरी तरह से ध्वस्त करने में लगी है.

2017 में उत्तर प्रदेश में जब से भाजपा के मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनी है, तब से अतीक अहमद पर शिकंजा कसता गया. गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद योगी सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश के तमाम डौनों पर काररवाई करने की छूट दे देने से अब सरकार और पुलिस अतीक अहमद के गुंडों और उस की संपत्ति के पीछे पड़ गई है. रोज उस की कोई न कोई संपत्ति तोड़ी जा रही है.

मारवाड़ के लुटेरों पर पुलिस का दांव – भाग 2

पुलिस घबरा गई और हमलावरों का मुकाबला करने के बजाय वहां से भागने लगी. इसी बीच लोहे के गेट पर चढ़ रहे इंसपेक्टर टी.वी. पेरियापांडियन को गोली लग गई, जिस से वह वहीं गिर गए. जबकि उन के साथी भाग गए थे. मौका पा कर हमला करने वाले सभी लोग वहां से भाग निकले. इस हमले में टीम के कुछ अन्य लोग भी घायल हो गए थे.

थोड़ी दूर जा कर जब पुलिस टीम को पता चला कि टी.वी. पेरियापांडियन साथ नहीं हैं तो सभी वापस लौटे. भट्ठे पर जा कर देखा तो टी.वी. पेरियापांडियन घायल पड़े थे.

उन्हें जैतारण के अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. अभी तक स्थानीय पुलिस को इस घटना की कोई जानकारी नहीं थी. स्थानीय पुलिस को जैतारण अस्पताल प्रशासन से इस घटना की जानकारी मिली. इस घटना की जानकारी एसपी दीपक भार्गव को भी मिल गई.

सूचना पा कर सारे पुलिस अधिकारी अस्पताल पहुंचे और चेन्नै पुलिस से घटना के बारे में पूछताछ की. पता चला कि छापा मारने के दौरान नाथूराम ने अपने 8-10 साथियों के साथ उन पर हमला किया था. इस हमले में इंसपेक्टर टी.वी. पेरियापांडियन उन के बीच फंस गए थे. इन्होंने उन की सरकारी पिस्टल छीन ली और उसी से उन्हें गोली मार दी, जिस से उन की मौत हो गई.

पाली के पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो चेन्नै से आई पुलिस ने उन्हें जो कुछ बताया, वह उन के गले नहीं उतरा. फिर भी थाना जैतारण में चेन्नै पुलिस की ओर से नाथूराम जाट, दीपाराम जाट और दिनेश चौधरी व अन्य लोगों के खिलाफ हत्या, जानलेवा हमला करने और सरकारी काम में बाधा डालने का मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

पाली पुलिस को घटनास्थल पर गोली का एक खोखा मिला था, जो पुलिस की पिस्टल का था. एफएसएल टीम ने भी घटनास्थल पर जा कर जरूरी साक्ष्य जुटाए. पुलिस के लिए जांच का विषय यह था कि गोली किस ने और कितनी दूरी से चलाई. वह गोली एक्सीडेंटल चली थी या डिफेंस में चलाई गई थी. जैतारण पुलिस ने हमलावरों में से कुछ को पकड़ लिया, लेकिन नाथूराम नहीं पकड़ा जा सका था. पुलिस उस की तलाश में सरगर्मी से जुटी थी.

जोधपुर के मथुरादास माथुर अस्पताल में इंसपेक्टर टी.वी. पेरियापांडियन की लाश का पोस्टमार्टम मैडिकल बोर्ड द्वारा कराया गया. इस के बाद 14 दिसंबर को हवाई जहाज द्वारा उन के शव को चेन्नै भेज दिया गया. चेन्नै में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पलानीसामी, उपमुख्यमंत्री ओ. पन्नीरसेल्वम, डीजीपी टी.के. राजेंद्रन, पुलिस कमिश्नर ए.के. विश्वनाथन और विपक्ष के नेता एम.के. स्टालिन सहित तमाम राजनेताओं और पुलिस अफसरों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी.

इस मौके पर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पलानीसामी ने दिवंगत इंसपेक्टर टी.वी. पेरियापांडियन के घर वालों को 1 करोड़ रुपए की राशि बतौर मुआवजा और घायल पुलिसकर्मियों को एकएक लाख रुपए देने की घोषणा की. इस के बाद टी.वी. पेरियापांडियन के शव को उन के पैतृक गांव जिला तिरुनलवेली के मुवेराथली ले जाया गया, जहां राजकीय सम्मान के साथ उन का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

14 दिसंबर को चेन्नै पुलिस के जौइंट पुलिस कमिश्नर संतोष कुमार जैतारण पहुंचे और डीएसपी वीरेंद्र सिंह तथा चेन्नै के पुलिस इंसपेक्टर मुनिशेखर से घटना के बारे में जानकारी ली. घटनास्थल का भी निरीक्षण किया गया. इस के बाद एसपी दीपक भार्गव ने भी पाली जा कर घटना के बारे में तथ्यात्मक जानकारी ली और आरोपियों की गिरफ्तारी और लूटी गई ज्वैलरी की बरामदगी के बारे में चर्चा की.

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इंसपेक्टर टी.वी. पेरियापांडियन की मौत की जांच के लिए पाली पुलिस के बुलाने पर जयपुर से पहुंचे बैलेस्टिक एक्सपर्ट ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया. उन्होंने चेन्नै पुलिस के दोनों इंसपेक्टरों की पिस्टल, घटनास्थल तथा लाश के फोटोग्राफ और वीडियो फुटेज आदि राज्य विधिविज्ञान प्रयोगशाला जयपुर पर मंगवाए.

गोली की बरामदगी के लिए पाली पुलिस ने मेटल डिटेक्टर से घटनास्थल के आसपास जांच कराई, लेकिन गोली नहीं मिली. जबकि मृतक इंसपेक्टर की लाश में भी गोली नहीं मिली थी.

इस बीच 14 दिसंबर, 2017 को जोधपुर के थाना रातानाड़ा की पुलिस ने चेन्नै के महालक्ष्मी ज्वैलर्स के शोरूम में हुई सवा करोड़ रुपए के गहनों की लूट के मुख्य आरोपी नाथूराम के साथी जोधपुर के बिलाड़ा निवासी दिनेश जाट को गिरफ्तार कर लिया था. दिनेश जाट बिलाड़ा थाने का हिस्ट्रीशीटर था. उस के खिलाफ कई मुकदमे दर्ज थे. पुलिस ने उस की गिरफ्तारी के लिए स्टैंडिंग वारंट भी जारी कर रखा था.

15 दिसंबर को जोधपुर रेंज के आईजी हवा सिंह घुमारिया भी जैतारण पहुंचे और घटनास्थल का निरीक्षण किया. इस बीच पाली पुलिस ने घटनास्थल पर जा कर मृतक इंसपेक्टर टी.वी. पेरियापांडियन की मौत का क्राइम सीन दोहराया.

चेन्नै एवं राजस्थान के पुलिस अधिकारियों और एफएसएल विशेषज्ञों की उपस्थिति में दोहराए गए क्राइम सीन में सामने आया कि जब टी.वी. पेरियापांडियन ने लोहे के गेट पर चढ़ कर भागने की कोशिश की थी, तब पहले गेट से बाहर निकल चुके चेन्नै पुलिस के इंसपेक्टर मुनिशेखर की पिस्टल से एक्सीडेंटल गोली चल गई थी. इसी गोली से पेरियापांडियन की मौत हुई थी.

चेन्नै पुलिस के इंसपेक्टर की मौत का सच सामने आने के बाद थाना जैतारण पुलिस ने 15 दिसंबर को हमलावर तेजाराम जाट, उस की पत्नी विद्या देवी और बेटी सुगना को गिरफ्तार कर लिया.

लेकिन उन्हें हत्या का आरोपी न बना कर भादंवि की धारा 307, 331 व 353 के तहत गिरफ्तार किया गया था. चूना भट्ठे के उस कमरे में तेजाराम का परिवार रहता था.

हमलावर तेजाराम और चेन्नै पुलिस टीम से की गई पूछताछ में पता चला कि 12 दिसंबर की रात चेन्नै पुलिस ने जब चूना भट्ठे पर छापा मारा था, तब दोनों इंसपेक्टरों ने अपनी पिस्टल लोड कर रखी थीं.

पुलिस टीम जैसे ही अंदर हाल के पास पहुंची, पदचाप सुन कर तेजाराम जाग गया. पुलिस वालों को चोर समझ कर वह चिल्लाया तो हाल में सो रही उस की पत्नी, बेटियां व अन्य लोग जाग गए और उन्होंने लाठियों से पुलिस पर हमला कर दिया.

उस समय नाथूराम भी वहां मौजूद था. वह समझ गया कि ये चोर नहीं, चेन्नै पुलिस है, इसलिए वह भागने की युक्ति सोचने लगा. अचानक हुए हमले से घबराई चेन्नै पुलिस भागने लगी. इंसपेक्टर मुनिशेखर और अन्य पुलिस वाले तो दीवार फांद कर बाहर निकल गए.

फरीदाबाद में भी मस्ती की पार्टी

कोरोना वायरस का असर कम होते ही देह कारोबार के अड्डे आबाद होने लगे. लोगों का आवागमन शुरू हुआ नहीं कि सेक्स वर्कर लड़कियां, उन के दलाल और मानव तसकरी जैसे धंधे में लगे लोगों की सक्रियता बढ़ गई. दिल्ली से सटे फरीदाबाद में ऐसे मामलों की सूचना मिलते ही पुलिस बल ने भी मुस्तैदी दिखाते हुए देह के धंधेबाजों को धर दबोचा. मौके से महीने भर में दर्जनों लड़कियां भी पकड़ी गईं.

फरीदाबाद में नीलम बाटा रोड से करीब 8 किलोमीटर दूर बल्लभगढ़ के रहने वाले 48 वर्षीय आलोक को उन के जन्मदिन के बारे मे खास दोस्त प्रदीप ने याद दिलाया. वे तो भूल ही गए थे कि 4 दिनों बाद उन का जन्मदिन आने वाला है. वह फरीदाबाद के बाटा की मार्किट एसोसिएशन के प्रेसिडेंट (प्रधान) हैं.

अपना रोज का काम निपटा कर 25 जुलाई, 2021 की रात को अपनी गाड़ी में घर की ओर निकले थे. कान में इयरबड्स लगाए म्यूजिक का आनंद ले रहे थे और गाड़ी भी ड्राइव कर रहे थे. तभी उन के कान में किसी के फोन की रिंग सुनाई दी. उन्होंने सामने रखे मोबाइल पर नजर डाली. काल उन के खास दोस्त प्रदीप की थी.

‘‘हैलो भाई, कैसा है तू? 2 हफ्ते हो गए, कोई खबर नहीं मिल रही है. कहां बिजी है आजकल?’’ आलोक शिकायती लहजे में बोले.

‘‘मैं ठीक हूं. बता तू कैसा है? और सुन लौकडाउन खत्म होने के बाद लगता है बिजी मैं नहीं तू हो गया है’’ प्रदीप भी उसी अंदाज में बोले.

‘‘बस कर यार! कुछ दिनों से मार्केट में काम थोड़ा बढ़ गया था, इसीलिए फोन करने का मौका नहीं मिला. तू बता घरपरिवार में बाकि सब कैसे हैं?’’ आलोक ने पूछा.

प्रदीप जवाब देते हुए बोले, ‘‘मैं बिलकुल ठीक हूं. घर पर भी सब ठीक है. तू ये बता कि 29 को क्या कर रहा है?’’

‘‘क्यों 29 को क्या है?’’ प्रदीप ने सस्पेंस के साथ कहा, ‘‘भाई, 29 को तेरा जन्मदिन है. भूल गया है क्या?’’

प्रदीप की बात सुन कर आलोक के दिमाग में अचानक बत्ती जल उठी. उसे अपने जन्मदिन की न केवल तारीख याद आ गई, बल्कि इस मौके पर दोस्तों के साथ मौजमस्ती की पुरानी यादें ताजा हो गईं.

बोला, ‘‘अरे हां! भाई सच कहूं तो अगर तू याद नहीं दिलाता तो मुझे याद ही नहीं था. पिछले साल भी कोरोना के चलते इस मौके पर कुछ ज्यादा नहीं कर पाया, लेकिन इस बार सारी कसर निकाल दूंगा. बड़ी पार्टी दूंगा, पार्टी.’’

प्रदीप और आलोक दोनों स्कूल के दिनों के दोस्त थे. वे काफी गहरे दोस्त थे. लेकिन शादी के बाद दोनों अपनीअपनी घरगृहस्थी में व्यस्त हो गए थे. हालांकि उन के बीच फोन पर बातें होती रहती थीं.

फिर भी जब कभी वे किसी विशेष मौके पर मिलते थे, तब एकदूसरे की खैरखबर लेने के साथसाथ खूब जम कर मस्ती करते थे. उस रोज भी दोनों ने फोन पर ही जन्मदिन सेलिब्रेशन के मौके को यादगार बनाने की योजना बना ली थी.

बाटा टूल मार्केट में आलोक की तूती बोलती थी. हर दुकानदार के लिए वह बहुत ही खास और प्रिय थे. सभी उन की काफी इज्जत करते थे. मार्केट में यदि किसी को कोई भी औजार क्यों न खरीदना हो, प्रधान आलोक के रहते ही संभव हो पाता था.

इलाके के नेताओं से भी आलोक की अच्छी जानपहचान थी. एसोसिएशन का प्रधान होने की वजह से उन का अच्छा खासा पौलिटिकल कनेक्शन भी था.

अगले रोज 26 जुलाई को सुबह करीब 10 बाजे आलोक एसोसिएशन के औफिस पहुंच गए. उन्होंने सब से पहले प्रदीप को फोन कर आने का समय पूछा. उस के बाद वे छोटेमोटे काम निपटाने लगे.

आधे घंटे में ही प्रदीप आ गया. आलोक ने उस की खातिरदारी चायनमकीन से की. उस के द्वारा जन्मदिन की बात छेड़ने पर कुछ अलग करने की भी योजना बताई.

‘‘रात भर में तूने कुछ और प्लानिंग कर ली क्या?’’ प्रदीप ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘हां यार, सोच रहा हूं इस बार की बर्थडे पार्टी यादगार हो, पहले के मुकाबले सब से अलग रहे.’’ आलोक बोले.

यह सुन कर प्रदीप चौंक गया. पूछा, ‘‘क्या मतलब? कैसी अलग होगी पार्टी, जरा मुझे भी तो बताओ’’

आलोक इत्मीनान से दबी आवाज में बोले, ‘‘यार सोच रहा हूं इस बार पार्टी में नाचगाने वाली कुछ लड़कियों को भी बुलाया जाए. उन से ही शराब की पैग सर्व करवाई जाए.’’

‘‘लड़कियां! क्या कह रहा है तू?’’ प्रदीप चौंकता हुआ बोला.

‘‘लड़कियों को बुलाने से पार्टी की रौनक और मजा ही कुछ और होगा. मैं ने प्लानिंग कर ली है. कोरोना के चलते जिंदगी के सारे मजे खत्म से हो गए थे.

इसलिए मैं ने सोचा है कि अपने सारे दोस्तों और जिन के साथ बिजनैस करता हूं सभी को इस पार्टी में इनवाइट करूं. इसी बहाने सब से मुलाकात भी हो जाएगी और इसी के साथ बिजनैस में हुए घाटे की भरपाई करने के लिए कुछ टाइम भी मिल जाएगा.’’

यह सुन कर प्रदीप के मन में मानो खुशी के बुलबुले फूटने लगे. वह आलोक से बोला, ‘‘अरे यार, मैं ने तो यह सोचा ही नहीं था. लेकिन पार्टी के लिए आएंगी कहां से? कोई जुगाड़ है?’’

प्रदीप के इस सवाल का जवाब आलोक ने बड़ी बेफिक्री के साथ दिया. भरे अंदाज में दिया और कहा, ‘‘अरे मैं ने सारी प्लानिंग अपने दिमाग में कर के रखी है. दिल्ली वाली निशा के बारे में याद नहीं है क्या तुझे? वही जिस के पास हम शादी के बाद अकसर जाते थे? अब वो लड़कियां सप्लाई करती है. दलाल बन गई है. अच्छी जानपहचान है उस से मेरी. मैं आज ही लड़कियों के लिए फोन कर के कह दूंगा.’’

आलोक और प्रदीप ने औफिस में घंटों बैठ कर 29 जुलाई के लिए प्लानिंग कर ली. नीलम बाटा रोड पर ऐसा कोई भी दुकानदार नहीं था, जो आलोक को नहीं जानता हो. इसी का फायदा उठाते हुए आलोक ने उसी रोड पर मौजूद ‘द अर्बन होटल’ के मालिक को फोन कर 28 और 29 जुलाई के लिए होटल बुक कर लिया.

होटल के मालिक की आलोक से अच्छी जानपहचान थी. होटल में कमरे समेत पार्टी के लिए बने खास किस्म के हौल की भी बुकिंग हो गई.

अब बारी थी खास दोस्तों के लिस्ट बनाने की, जिन्हें आलोक बुलाना चाहता था. लिस्ट बनाने में प्रदीप ने मदद की. सभी दोस्तों को फोन से 28 जुलाई के लिए मैसेज भी कर दिया. आलोक ने अपने जरुरी बिजनैस क्लाइंट्स को भी इस पार्टी में शामिल होने का न्यौता दे दिया. उस ने निशा को फोन कर के 15 लड़कियों को पार्टी में भेजने के लिए कहा. इस तैयारी के साथसाथ होटल मैनेजमेंट को ही कैटरिंग के इंतजाम की जिम्मेदारी दे दी.

प्रदीप के मन में अभी भी ऊहापोह की स्थिति बनी हुई थी. उस से रहा नहीं गया तो उस ने उस के कान के पास मुंह सटा कर कहा,‘‘इस का मोटा खर्चा तू अकेले कैसे उठाएगा?’

आलोक मुसकराया, सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘तू आगेआगे देखता जा मैं क्या करता हूं. इसी पार्टी से तुम्हारी झोली भी भर दूंगा.’’

‘‘वो कैसे?’’ प्रदीप बोला.

‘‘मैं ने कमरे यूं ही नहीं बुक करवाए हैं? तुम सिर्फ मेरे इशारे पर नजर रखना.’’ आलोक ने बताया.

इस तरह से 28 जुलाई की शाम भी आ गई. जन्मदिन की पूर्व संध्या पर मेहमानों के लिए विशेष आयोजन किया गया था. पार्टी का इंतजाम था, जो आधी रात तक चलना था.

रात के 12 बजे के बाद आलोक ने जन्मदिन का केक काटने का इंतजाम किया था. आमंत्रित मेहमान धीरेधीरे कर हौल के किनारे लगे सोफों पर आ गए. सभी पूरी तैयारी के साथ आए थे, उन के चेहरे पर मास्क जरूर लगे थे, लेकिन वे पहचाने जा रहे थे.

आलोक और प्रदीप दोस्तों से मिलने में व्यस्त हो गए. वे अच्छे सजावटी कपड़े में एकदम अलग दिख रहे थे. वे कभी रिसैप्शन पर जाते तो कभी हौल में आमंत्रित दोस्तों से बातें करने लगते. दूसरी तरफ प्रदीप उन के बताए इशारे पर अपना काम करने में लगा हुआ था.

हौल में जगहजगह गोल टेबल और कुरसियां लगी थीं. दीवारों को तरहतरह के सजावटी फूलों, सामानों से सजाया गया था. मध्यम रोशनी माहौल को खुशनुमा बनाने के लिए काफी था. देखते ही देखते रात के 8 बज गए.

तभी एक काल को देख कर आलोक हौल के एक कोने में चले गए. काल निशा की थी. उस ने बताया कि उस की भेजी सभी लड़कियां 2 गाडि़यों में 5 मिनट के भीतर पहुंचने वाली हैं.

आलोक ने निशा को कहा कि वे लड़कियों को पीछे के दरवाजे से आने के लिए बोले. तुरंत वे रिसैप्शन पर गए. होटल के मैनेजर से इशारे में बात की और उन के साथ प्रदीप को लगा दिया. थोडी देर में प्रदीप ने आलोक को आ कर बताया कि उस ने सभी लड़कियों को उन के कमरे में ठहरा दिया है.

उस ने वहां के इंतजाम के बारे में जानकारी देने के साथसाथ आलोक को बैग दिखाया. ‘थम्स अप’ करता हुआ जाने लगा. आलोक ने टोका, ‘‘उधर नहीं, गाड़ी के पार्क में जा. बैग वहीं गाड़ी में छोड़ कर आना.’’

निशा ने अपने साथ ले कर आई सभी लड़कियों को कुछ खास हिदायतें दीं. उन्हें उन के कमरे में भेज कर मेकअप आदि कर तैयार होने को कह दिया.

कब किसे हौल में आना है और किसे किस कमरे में ठहरना है. इस बारे में निशा ने लड़कियों को अलगअलग समझाया. उन्हें लोगों के साथ शालीनता के साथ पेश आने को भी कहा.

साढ़े 9 बजे के आसपास हौल का माहौल और भी रंगीन हो चुका था. कुछ लड़कियां हौल में आ चुकी थीं. अतिथियों में कोई भी महिला नहीं थीं.

लड़कियों को देखते ही बड़ेबड़े स्पीकर पर तेज और पार्टी वाले गाने बजने के साथ सीटियों की आवाजें भी सुनाई देने लगीं. हर टेबल पर शराब परोसने की शुरुआत हुई. कुछ लोग नशे में डांसिंग प्लेटफार्म की ओर बढ़ गए.

जल्द ही लड़कियों को जिस काम के लिए बुलाया गया था, वे काम में लग गईं. नशे में चूर अतिथियों ने जिस किसी लड़की को अपनी ओर खींचना चाहा उस ने जरा भी विरोध नहीं किया.

पसंद की लड़की का हाथ पकड़ा. जेब से 2000 वाले गुलाबी नोट निकाले और उस के लोकट कपड़े में डाल दिए.

लड़की झट से नोट निकालती, अंगुलियों में दबाती और सीढि़यों की ओर बढ़ जाती. पीछे से अतिथि महोदय झूमतेमटकते रह जाते. लड़की सीढि़यों पर बैठी निशा को अंगुलियों में फंसे नोट थमाती और अतिथि के साथ होटल के कमरे की ओर बढ़ जाती.

इस दृश्य से इतना तो साफ हो गया था कि जन्मदिन के बहाने से बुलाए गए अतिथियों का स्वागत लड़कियों के साथ यौन संतुष्टि से किया जा रहा था. इस मौके के इंतजार में न केवल ग्राहक बने अतिथि थे, बल्कि वे लड़कियां भी थीं, जिन का धंधा पिछले कुछ समय से मंदा पड़ गया था.

इस पूरी पार्टी में आलोक और प्रदीप दोनों कहां गायब हो गए थे किसी को भी कोई खबर नहीं थी.  संभवत: दोनों ने अपनी पसंद की लड़की के साथ अलगअगल कमरे में खुद को बंद कर लिया हो. यानी देह व्यापार का धंधा पूरे शबाब पर था.

इस की भनक फरीदाबाद में पुलिस को भी लग गई. अनलौक के नियमों के उल्लंघन करने वालों पर नजर रखने के लिए कोतवाली पुलिस स्टेशन द्वारा फैलाए गए मुखबिरों ने इस की सूचना अधिकारियों तक पहुंचा दी थी. रात के करीब एक बजे अश्लील पार्टी के बारे में जानकारी मिलते ही थानाप्रभारी अर्जुन राठी ने एसीपी रमेशचंद्र को सूचना दे कर बिना किसी देरी के जल्द से जल्द होटल में रेड मारने की तैयारी कर दी. सभी आरोपियों को रंगे हाथों पकड़ने के लिए थाने में एक टीम का गठन किया.

जल्द से जल्द प्लान के मुताबिक टीम बिना सादा कपड़ों में होटल के बाहर पहुंची. होटल के बाहर से ही तेज गानों की आवाज आ रही थी.

प्लानिंग के मुताबिक थानाप्रभारी अर्जुन राठी ने हैडकांस्टेबल मनोज के साथ एक और कांस्टेबल को सादे कपड़ों में होटल के अंदर जाने को कहा. उन के अंदर जाने से पहले राठी ने अपनी जेब से 2000 का नोट निकाला और नोट के एक किनारे पर छोटे अक्षरों में अपने हस्ताक्षर कर के उन्हें दिया.

यह सारा काम प्लान के अनुसार ही था. वे दोनों पुलिस कर्मचारी बिना किसी झिझक के होटल के अंदर पहुंचे. होटल के रिसेप्शन पर बैठे व्यक्ति को उन पर किसी तरह का शक नहीं हुआ.  वे दोनों सीधे होटल के हौल में जा पहुंचे.

सीढि़यों से उतरते हुए उन्होंने एक युवती को सीढि़यों के पास बैठे देखा. बाद में पता चला कि वह निशा थी. वह भी उस की बगल से एक खाली टेबल और कुरसियों पर जा कर बैठ गए. उस समय हौल में बहुत कम लोग थे.

हर टेबल पर शराब के ग्लास थे. प्लेटों में स्नैक्स बिखरे पडे़ थे. हौल के एक किनारे पर 2-4 लड़कियां आपस में बातें कर रही थीं, कुछ लोग डीजे पर बजते हुए गाने पर डांस कर रहे थे.

थोड़ी देर बाद हैडकांस्टेबल मनोज ने प्लान के अनुसार साइन किया हुआ 2000 का नोट हवा में लहराया तो लड़कियों के झुंड में से एक लड़की पैसे लेने के लिए उन के टेबल पर पहुंच गई.

मनोज ने इशारे से लड़की को कमरे में ले जाने का इशारा किया. लड़की ने भी इशारे से उन्हें रुकने को कहा और निशा के पास चली गई. साइन किया हुआ नोट उस ने निशा के हाथों में थमा दिया, फिर लड़की ने मनोज को वहीं से आने का इशारा किया.

हेड कांस्टेबल ने कान में लगे ब्लूटूथ संचालित बड्स और बटन में छिपे मोबाइल माइक को औन कर दिया. उस के औन होते ही बाहर खड़ी पुलिस फोर्स को सूचना मिल गई. देखते ही देखते हेड कांस्टेबल के लड़की के साथ कमरे तक पहुंचने से पहले ही पुलिस की छापेमारी शुरू हो गई.

थानाप्रभारी अर्जुन राठी ने होटल में रेड के दौरान सब से पहले हौल में बजने वाले तेज गानों को बंद करवाया और वहां मौजूद सभी लोगों को हिरासत में ले लिया. उसी दौरान होटल के कमरों से कई लड़कियां और अतिथि अर्धनग्नावस्था में दबोच लिए गए.

रात के 12 बजे तक चली छापेमारी की इस काररवाई में करीब 4 दरजन लोगों को हिरासत में लिया गया. उन्हें 7 जिप्सियों में भर कर थाने लाया गया. उन से पूछताछ में ही खुलासा हुआ कि यह सैक्स रैकेट एक पार्टी में शमिल होने के नाम पर चलाया गया था. इस में होटल के मालिक की भी मिलीभगत थी. पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस की रेड की बात जब तक आलोक तक पहुंची तब तक काफी देर हो चुकी थी. उसे भी एक कमरे से एक लड़की के साथ पकड़ लिया गया. उसे कमरे का दरवाजा तोड़ कर बाहर निकाला गया था. प्रदीप भी उस के बगल वाले कमरे से पकड़ा गया.

पुलिस सभी आरोपियों को थाने ले गई. उन्होंने पुलिस को बताया कि वह होटल में कमेटी के ड्रा का आयोजन कर रहे थे. सभी से पूछताछ के बाद उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया.

इस के अलावा कोतवाली पुलिस ने 2 अगस्त को क्षेत्र के ही श्री बालाजी होटल में दबिश दे कर 13 लड़कियों सहित 37 लोगों को गिरफ्तार किया. यहां की गेट टुगेदर पार्टी के बहाने एंजौय का कार्यक्रम था.