संत आसाराम : जिस ने आस्था को सब से बड़ी चोट पहुंचाई

17 अप्रैल, 1941 को बंटवारे से पहले के भारत के नवाबशाह जिले के बेराणी गांव, जो अब पाकिस्तान में है, वहां आसूमल सिरूमलानी का जन्म हुआ था. उस की मां का नाम महंगीबा एवं पिता का नाम थाऊमल सिरूमलानी था.

1947 में भारतपाक विभाजन के समय वह और उस के परिवार के सभी लोग भारत के गुजरात राज्य के अहमदाबाद में बस गए. धनवैभव सब कुछ छूट जाने के कारण परिवार आर्थिक संकट में फंस गया.

अहमदाबाद आने के बाद आजीविका के लिए थाऊमल ने शक्कर बेचने का धंधा शुरू किया. पिता के निधन के बाद, अपनी मां से ध्यान और आध्यात्मिकता की शिक्षा प्राप्त कर आसूमल ने घर छोड़ दिया और देश भ्रमण पर निकल गया. भ्रमण करतेकरते वह स्वामी श्री लीलाशाहजी महाराज के आश्रम नैनीताल पहुंच गए. नैनीताल में गुरु से दीक्षा लेने के बाद गुरु ने आसूमल को नया नाम दिया आसाराम.

इस के बाद आसाराम घूमघूम कर आध्यात्मिक प्रवचन के साथसाथ स्वयं भी गुरुदीक्षा देने लगा. उस के सत्संग में श्रद्धालु भारी संख्या में पहुंचने लगे. आसाराम बापू पहली बार अगस्त, 2013 में कानून के शिकंजे में फंसा, जब उस के ऊपर जोधपुर में उस के ही आश्रम में 16 साल की एक लड़की के साथ अप्राकृतिक दुराचार के आरोप लगे.

लड़की के पिता ने दिल्ली जा कर पुलिस में इस कांड की रिपोर्ट दर्ज कराई. बाद में लड़की का बयान दर्ज कर सारा मामला राजस्थान पुलिस को ट्रांसफर कर दिया.

आसाराम को पूछताछ के लिए 31 अगस्त 2013 तक का समय देते हुए सम्मन जारी किया गया. इस के बावजूद जब वह हाजिर नहीं हुआ तो दिल्ली पुलिस ने उस के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 342 (गलत तरीके से बंधक बनाना), 376 (बलात्कार), 506 (आपराधिक हथकंडे) के अंतर्गत मुकदमा दर्ज करने हेतु जोधपुर की अदालत में सारा मामला भेज दिया.

फिर भी आसाराम गिरफ्तारी से बचने के उपाय करता रहा. पहली सितंबर 2013 को राजस्थान पुलिस ने आसाराम को गिरफ्तार कर लिया . इस मामले में 25 अप्रैल, 2018 को आसाराम को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई.

साबरमती नदी के किनारे एक झोपड़ी से शुरुआत करने से ले कर देश और दुनियाभर में 400 से अधिक आश्रम बनाने वाले आसाराम ने 4 दशक में 10,000 करोड़ रुपए का साम्राज्य खड़ा कर लिया था. आसाराम बापू को अब तक दुष्कर्म के 2 मामलों में अदालत से सजा मिल चुकी है.

अध्यात्म यूनिवर्सिटी के नाम पर अय्याशी का घिनौना सच 

जिन दिनों देश में धर्म और अध्यात्म के नाम पर डेरा सच्चा सौदा प्रमुख बाबा राम रहीम के पाखंड और बड़ी संख्या  में महिलाओं के यौनशोषण की गूंज सुनी जा रही थी. उसी वक्त देश की राजधानी दिल्ली से एक ऐसे बाबा के रंगीन किस्से सामने आ रहे थे, जो महिलाओं को अध्यात्म दीक्षा के नाम पर उन का यौन शोषण करता था.

वीरेंद्र देव दीक्षित नाम के इस बाबा के आश्रमों से 190 नाबालिग व बालिग लड़कियों और महिलाओं को मुक्त  कराया गया, जिन्हें अध्यात्म के नाम पर यौनशोषण का शिकार बनाया गया था.

दिल्ली के रोहिणी, नांगलोई, द्वारका जैसे इलाकों में बड़े भूभाग पर आध्यात्मिक विश्वविद्यालय के नाम से बने इन आश्रमों के अलावा देश के करीब 9 राज्यों में इस रंगीनमिजाज बाबा के 80 आश्रम थे.

वीरेंद्र देव दीक्षित उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद जिले के गांव चौधरियान का रहने वाला है. 1975 में वीरेंद्र देव का अपने पिता से किसी बात को ले कर विवाद हो गया था.

इस से नाराज हो कर वह घर से निकल गया. इस के बाद उस ने गुजरात यूनिवर्सिटी में संस्कृत में शोध शुरू किया. बाद में वह राजस्थान के माउंट आबू में प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय से जुड़ गया, लेकिन जल्दी  ही उसे वहां से भगा दिया गया.

1984 में पिता की मृत्यु के बाद वीरेंद्र देव घर लौटा तो अपने पैतृक मकान में कुछ स्थानीय लोगों के सहयोग से आध्यात्मिक कार्यक्रम शुरू किया. कुछ समय बाद ही उस ने आश्रम का निर्माण कराया.

यह आश्रम पहली बार 1998 में तब चर्चा में आया जब 3 अलगअलग राज्यों के लोगों की शिकायतों पर पुलिस ने 3 लड़कियों को बरामद कर उसे व उस के कई सेवादारों को गिरफ्तार किया. इस के बाद उस ने खुद को बाबा के तौर पर स्थापित किया और देशभर में 80 आश्रम खोले.

12 नवंबर को यह मामला तब सामने आया, जब राजस्थान के झुंझनूं व दिल्ली के 2 परिवारों ने रोहिणी के आध्यात्मिक विश्वविद्यालय पहुंच कर हंगामा करते हुए आरोप लगाया कि उन की बेटी वहां जबरन कैद है और उन के साथ सैक्सुअल हिंसा होती है.

मामला बढ़ा तो फाउंडेशन फौर सोशल एम्पावरमेंट नाम के एनजीओ ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर इस आश्रम के क्रियाकलापों की जांच की मांग की. हाईकोर्ट के आदेश पर आश्रम की छानबीन के लिए बनी कमेटी में दिल्ली पुलिस के अलावा दिल्ली महिला आयोग और शिकायकर्ता पक्ष तथा कुछ अन्य एजेंसियों के सदस्यों को भी शामिल किया गया.

21 दिसंबर से छापेमारी शुरू हुई तो आध्यात्मिक विश्वविद्यालय की सच्चाई सामने आई. दिल्ली के 8 आश्रमों से शुरू हुई जांच दूसरे राज्यों तक पहुंच गई. हर जगह एक ही शिकायत मिली कि आश्रमों में लड़कियों का यौन शोषण होता था. बाबा खुद उन्हें अपनी हवस का शिकार बनाता था.

हाईकोर्ट ने अपराध का दायरा बढ़ता देख इस मामले की छानबीन और वीरेंद्र देव को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश करने का जिम्मा सीबीआई को सौंप दिया.

आटा-साटा कुप्रथा में पिसी सुमन

सहयोग: मनीष व्यास

सुमन 3 भाइयों के बीच अकेली बहन थी, इसलिए वह घर में सभी की लाडली थी. वह पढ़ाईलिखाई में होशियार थी लेकिन पिता की मृत्यु हो जाने के बाद वह ग्रैजुएशन से आगे नहीं पढ़ सकी.

अन्य लड़कियों की तरह सुमन ने भी रंगीन ख्वाब देखे थे. उस की चाहत थी कि उसे भी सपनों का राजकुमार मिलेगा, जो सुंदर और बांका होने के साथ पढ़ालिखा और उस का हर तरह से खयाल रखने वाला होगा.

जवान होने पर सुमन का रूपसौंदर्य निखर आया था. उस की मोहक मुसकान देख कर देखने वाला एकटक उसे ताकता रह जाता था. सुमन चौधरी जाट थी. इसलिए उस के रिश्तेदारों और उस की बिरादरी के कई लोग अपने घर की बहू बनाने को लालायित हो उठे.

रिश्तेदार सुमन के लिए अच्छेअच्छे रिश्ते लाने लगे. मगर सुमन के चाचा व भाइयों ने ये रिश्ते लौटा दिए और रिश्तेदारों से कहा, ‘‘सुमन का रिश्ता तो बचपन में ही तय हो चुका है. बात पक्की हो रखी है आटासाटा प्रथा के तहत.’’

तब रिश्तेदार शांत बैठ गए. सुमन जब 19 बरस की हो गई थी तो आज से 2 साल पहले उस की शादी तय कर दी गई. सुमन की शादी गांव भूणी जिला नागौर के नेमाराम चौधरी से तय कर दी. सुमन उस वक्त नहीं जानती थी कि उस का पति न केवल मामूली सा पढ़ालिखा है बल्कि उम्र में भी उस से दोगुना है और वह बकरियां चराने वाला व खेती करने वाला मजदूर है.

सुमन के चाचा और भाइयों ने सुमन के बदले 4 शादियों की सौदेबाजी की. वैसे भी राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में आज भी लड़की का रिश्ता उस के परिजन ही तय करते हैं. परिजन लड़की का रिश्ता जिस युवक से कर देते हैं, उसी से लड़की को शादी करनी पड़ती है. लड़की को भले ही वह लड़का पसंद न हो, मगर परिजनों द्वारा किए गए रिश्ते को लड़की को निभाना ही होता है.

सुमन के बदले हुईं 4 शादियां

सुमन भी ग्रामीण परिवेश की शर्मीली लड़की थी. उस ने सोचा था कि उस की पढ़ाई और उस की सुंदरता के अनुरूप हमउम्र युवक से शादी तय की होगी, मगर जब नेमाराम शादी करने हेमपुरा आया और दुलहन बना कर सुमन को अपने साथ भूणी गांव ले गया, तब सुमन को अपने पति की असलियत पता चली.

सुमन ससुराल चली तो गई लेकिन अपने भाग्य को कोसने लगी. मगर अब क्या हो सकता था. वह चुप लगा गई. सुमन की 2 ननदों की शादी गांव लिचाना जिला नागौर में सुमन के भाइयों के सालों से की गई.

इस शादी के बाद सुमन के 2 भाई उस की ननदों की 2 ननदों से शादी कर अपने घर हेमपुरा ले आए. सुमन को अब जा कर आटासाटा के खेल के बारे में पूरा पता लगा था.

सुमन को उस के पति नेमाराम ने एक दिन कहा, ‘‘तुझ से शादी करने के लिए मैं ने अपनी 2 बहनें तुम्हारे भाइयों के 2 सालों से ब्याही हैं. और मेरी बहनों की 2 ननदें तुम्हारे भाइयों से ब्याही हैं. यानी तेरे बदले 4 शादियों की सौदेबाजी हुई है. अब समझ गई न कि तेरी जैसी ग्रैजुएट और सुंदर लड़की की मुझ गंवार व उम्र में दोगुने से शादी किस कारण की गई. तेरे कारण 4 घर और बसे हैं.’’

सुन कर सुमन को सारा माजरा समझ में आ गया. उस के सगे भाइयों ने अपना घर बसाने के लिए उस का सौदा किया था. वह टूट गई. उसे रिश्ते बेमानी लगने लगे. उस के सगे भाइयों और चाचाताऊ ने अपने फायदे के लिए उसे एक ऐसे व्यक्ति के पल्लू से बांध दिया था, जो उस के किसी तरह काबिल नहीं था.

सुमन ने अपने आसपास अपने जाट समाज के अलावा अन्य कई जातियों में आटासाटा कुप्रथा का कुरूप चेहरा देखा था. उस ने कभी ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि वह भी इस प्रथा के तहत ऐसे व्यक्ति से ब्याह दी जाएगी जो उस के लायक नहीं होगा.

सुमन ने सोचा कि वह तलाक ले कर अपनी मरजी से शादी कर लेगी. मगर जब उसे पता चला कि उस की शादी से पहले ही नेमाराम के घर वालों ने यह भी शर्त रखी थी कि अगर शादी के बाद सुमन ने नेमाराम से तलाक लिया तो उस के बदले में की गई चारों शादियां टूट जाएंगी.

सुमन के तलाक लेने पर सुमन की ननदें और भाभियां भी तलाक ले लेंगी. यानी सुमन की शादी टूटने पर 4 शादियां और टूट जाएंगी. इस कारण सुमन ने तलाक लेने का खयाल अपने मन से निकाल दिया. वह अपनी सुख की खातिर 4 परिवार नहीं बिखरने देना चाहती थी.

सुमन अपने जीवन में सामंजस्य बिठाने की कोशिश करने लगी. इस के अलावा वह कुछ कर भी नहीं सकती थी. समय का पहिया अपनी गति से घूम रहा था. सुमन की शादी को सवा साल हो गया था.

उन्हीं दिनों नेमाराम ने सुमन से एक दिन कहा, ‘‘मैं इराक काम करने जा रहा हूं.’’

सुन कर सुमन बोली, ‘‘आप 3-4 साल बाद आओगे. मैं अकेली कैसे जी सकूंगी. आप इराक मत जाओ. हम यहीं पर कोई कामधंधा देख लेंगे.’’

‘‘तुम समझती क्यों नहीं, बड़ी मुश्किल से नंबर आया है. मैं किसी हाल में नहीं रुक सकता और तुम अकेली कहां हो, भरापूरा परिवार है तो सही.’’ नेमाराम ने कहा.

‘‘तुम्हें इराक में भी मजदूरी ही करनी है तो फिर यहीं रह कर करो न. तुम जितना कमाओगे, मैं उसी में खुश रहूंगी.’’ सुमन बोली.

‘‘सुमन, तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि तुम्हारा पति परदेश में कमाने जा रहा है. यह सब मैं अपने घरपरिवार के लिए ही तो कर रहा हूं.’’ नेमाराम ने समझाया.

सुमन ने खूब मिन्नतें कीं मगर नेमाराम नहीं माना और करीब 8 महीने पहले वह इराक चला गया. सुमन भरी दुनिया में तनहा और अकेली रह गई. वह टूट गई और कुछ दिन बाद ससुराल से मायके हेमपुरा आ गई.

सुमन मायके में रह रही थी. उस ने ससुराल का रास्ता भुला दिया था. उस का पति इराक जा बैठा था. वह शादीशुदा हो कर भी मायके में बैठी थी. उस की मायके में अब पहले जैसी इज्जत भी नहीं थी. उस की भाभियां उस से सीधे मुंह बात नहीं करती थीं. भाई भी उस से पल्ला झाड़ने लगे थे.

सुमन का छोटा भाई जरूर उस का लाडला था. दोनों भाईबहन अपना दुखसुख आपस में जरूर बांट लेते थे.

सुमन ने मन ही मन विचार किया कि वह शादीशुदा हो कर मायके में कितने दिन गुजारेगी. पति जाने कब इराक से लौटेगा. उस के जीने की इच्छा खत्म हो गई थी.

वह दुनियादारी को समझ गई थी. रिश्तेनाते सब मतलब के हैं. मतलब निकलने के बाद कोई उसे पूछ नहीं रहा था.

कुप्रथा ने झकझोर दिया सुमन को

इसी दौरान वह 28-29 जून, 2021 की रात को घर के पास वाले कुएं में कूद गई. सुमन के कुएं में कूदने पर घरपरिवार में हड़कंप मच गया. गांव वालों ने नावां थाने में सूचना दी और सुमन को कुएं से निकाला. वह उसे अस्पताल ले गए. लेकिन डाक्टर ने सुमन को मृत घोषित कर दिया.

सुमन के चाचा तब नावां थाने पहुंचे और थानाप्रभारी धर्मेश दायमा को तहरीर दे कर बताया कि पति के इराक जाने के बाद सुमन मायके आ कर रहने लगी. पिछले 4-5 दिनों से वह मानसिक रोगी और पागलों जैसी हरकतें कर रही थी. आज उस ने घर के पास बने कुएं में कूद कर आत्महत्या कर ली.

थानाप्रभारी धर्मेश दायमा रिपोर्ट दर्ज कर पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचे. गांव वालों से इस संबंध में बात करने के बाद वह अस्पताल पहुंचे और सुमन का पोस्टमार्टम करा कर शव परिजनों को सौंप दिया.

पुलिस इसे आत्महत्या मान कर जांच कर रही थी. वहीं परिजन सुमन को मानसिक रोगी व पागल बता कर आटासाटा के तहत हुई शादी की बात को दबाना चाहते थे.

मगर इसी दौरान सोशल मीडिया पर एक पोस्ट वायरल हो गई. वह सुमन का सुसाइड नोट था, जो उस ने आटासाटा कुप्रथा के खिलाफ लिखा था. आत्महत्या करने से पहले उस ने उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया था. उस ने उस में लिखा था—

मेरा नाम सुमन चौधरी है. मुझे पता है कि सुसाइड करना गलत है, पर सुसाइड करना चाहती हूं. मेरे मरने की वजह मेरा परिवार नहीं, पूरा समाज है, जिस ने आटासाटा नाम की कुप्रथा चला रखी है. इस में लड़कियों को जिंदा मौत मिलती है. लड़कियों ंको समाज के समझदार परिवार अपने लड़कों के बदले बेचते हैं.

समाज के लोगों की नजरों में तलाक लेना गलत है, परिवार के खिलाफ शादी करना गलत है तो फिर यह आटासाटा प्रथा भी गलत है. आज इस कुप्रथा के कारण हजारों लड़कियों की जिंदगी और परिवार बरबाद हो गए हैं.

इस कुप्रथा के कारण पढ़ीलिखी लड़कियों की जिंदगी खराब हो जाती है. इसी प्रथा के तहत 17 साल की लड़की की शादी 70 साल के बुजुर्ग से कर दी जाती है. केवल अपने स्वार्थ के कारण.

मैं चाहती हूं कि मेरी मौत के बाद यह बातें बनाने और मेरे परिवार वालों पर अंगुली उठाने के बजाय इस प्रथा के खिलाफ आवाज उठाएं. इस प्रथा को बंद करने के लिए शुरुआत करनी होगी. मेरी हरेक भाइयों को अपनी बहन की राखी की सौगंध, अपनी बहन की जिंदगी खराब कर के अपना घर न बसाएं.

आज इस प्रथा के कारण समाज की सोच इतनी खराब हो गई है कि लड़की के पैदा होते ही तय कर लेते हैं कि इस के बदले किस की शादी करानी है.

सुसाइड नोट में सुमन ने लिखा कि आज समाज के लोगों से मेरी हाथ जोड़ कर विनती है इस प्रथा को बंद कर दें. मेरे मरने की वजह समाज है. सजा देनी है तो उन को दें.

और मेरी इच्छा है कि मेरी लाश को अग्नि मेरा छोटा भाई दे और कोई नहीं. मेरा पति भी नहीं. मेरे इन विचारों को सभी लोग अपने परिवार वालों में समझाएं व स्टेटस लगाएं.

सुमन ने अपने पापा के लिए आई लव यू लिखा और साथ ही कहा कि इस प्रथा के खिलाफ जानकारी स्कूलकालेज की पुस्तकों तथा अखबारों में दें, जिस से कुछ की जिंदगी बचेगी तो मैं सोचूंगी कि मेरी जिंदगी किसी के काम आ गई.

नावां थानाप्रभारी धर्मेश दायमा कथा लिखने तक सुमन सुसाइड मामले की जांच कर रहे थे. सुमन ने सुसाइड नोट में समाज को ही अपनी मौत का जिम्मेदार बताया है. उस ने व्यक्ति विशेष को मौत का जिम्मेदार नहीं बताया. इस कारण पुलिस भी इस मामले में कोई काररवाई कर पाएगी, यह लगता नहीं है.

जिंदा मौत है आटासाटा कुप्रथा

आटासाटा एक सामाजिक कुप्रथा है. इस के तहत किसी एक लड़की की शादी के बदले ससुराल पक्ष को भी अपने घर से एक लड़की की शादी उस के पीहर पक्ष में करानी होती है. इस में योग्यता और गुण नहीं बल्कि लड़की के बदले लड़की की सौदेबाजी होती है.

वर्तमान दौर में जब लड़कियों की बेहद कमी है तो कई समाज में इसे खुले तौर पर किया जाने लगा है. इस के चलते कई पढ़ीलिखी जवान लड़कियों की शादी अनपढ़ और उम्रदराज लोगों से कर दी जाती है. जिस के चलते सुमन जैसी अनेक लड़कियों की जिंदगी तबाह हो रही है.

सुमन के घर वाले उसे पागल और मानसिक बीमार भले ही अपने बचाव के लिए कह रहे हों लेकिन सुमन का सुसाइड नोट साफ इशारा कर रहा है कि वह आटासाटा कुप्रथा के चक्रव्यूह में ऐसी उलझी कि उसे अपनी मुक्ति के लिए मौत ही दिखी.

राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों में समाज की कई जातियों में फैली इस कुप्रथा के बारे में लेखक ने पड़ताल की तो सामने आया कि आटासाटा एक ऐसी कुप्रथा है जहां लड़कियों की 2 नहीं 3 से 4 परिवारों के बीच सौदेबाजी होती है. वह भी सिर्फ इसलिए ताकि उन के नाकारा और उम्रदराज बेटे की शादी हो जाए.

और उन के घरपरिवारों में दूसरे जो लड़के हैं, जिन की किसी कारणवश शादी नहीं हो पा रही है, उन की भी शादी हो जाए.

वैसे राजस्थान के ज्यादातर गांवों में इस कुप्रथा का चलन है. ऐसे में पढ़ीलिखी लड़कियों की जिंदगी भी खराब हो रही है. इस कुप्रथा का एक दर्दनाक सच यह भी है कि बेटी होने से पहले ही उस का रिश्ता तय कर दिया जाता है.

कई बार ऐसा भी होता है कि बेटी नहीं होती तो रिश्तेदार की बेटी को दबावपूर्वक दिलाया जाता है. इस शर्त पर कि उन्हें भी वे बेटी दिलाएंगे.

ज्यादातर मामलों में लड़के और लड़की के बीच उम्र को भी नजरअंदाज कर  दिया जाता है और 21 साल की लड़की  45-50 साल के व्यक्ति से ब्याह दी जाती है.

कई मामलों में घर में बड़ी बहन होती है और भाई छोटा होता है. दोनों में 7-8 साल का अंतर होता है.

ऐसे में घर वाले बड़ी लड़की की तब तक शादी नहीं करते, जब तक उन का छोटा बेटा शादी लायक न हो जाए.

जब वह शादी लायक हो जाता है तो बड़ी बेटी के आटासाटा के बदले में उस की शादी की जाती है. ऐसे में बेटियों की उम्र निकलने के बाद उम्रदराज व्यक्ति से जबरदस्ती शादी कर दी जाती है.

राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा का कहना है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारा समाज अभी भी इस तरह की प्रथाओं का पालन कर रहा है. महिलाओं को अपना जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्रता है और हम अपनी बेटियों को नहीं खो सकते. राजस्थान सरकार को इस प्रथा को रोकने के लिए उपाय करने चाहिए.

राजस्थान महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष सुमन शर्मा ने इस बारे में कहा, ‘‘आटासाटा प्रथा बहुत ही कष्टदायक है, विशेषकर उन महिलाओं के लिए जिन का कुरीतियों के नाम पर पूरा जीवन ही कुरबान कर दिया गया हो.

‘‘जब मैं आयोग की अध्यक्ष थी तो मेरे पास आटासाटा से जुड़ी 4 बड़ी घटनाएं आई थीं जो इतनी पीड़ादायक थीं कि बेवजह 2 घरों की जिंदगियां बरबाद हो रही थीं. इस में कुछ लोगों को हम ने सजा भी दिलाई थी पर सीधे तौर पर इस में कोई कानून न होने से कोई सख्त काररवाई नहीं की जा सकती थी.

‘‘आजादी के बाद से महिलाओं के कल्याण के लिए कई सुधार हुए और कानूनी प्रावधान भी लाए गए पर दुर्भाग्य है कि अब तक आटासाटा पर रोकथान के लिए कोई कानून या नियमकायदे ही नहीं हैं. जबकि राजस्थान के कई इलाकों में ये बहुतायत से किया जा रहा है. सरकार को चाहिए कि इस कुप्रथा पर प्रभावी रोक लगाने के लिए जल्द से जल्द कानून बनाए जाए.’’

मृत्युदूत बने तांत्रिक : तंत्रमंत्र के चक्कर में गई अनीता की जान

“भैया, दरवाजा खोलो.’’ गेट की कुंडी खटखटाते हुए मोहिनी ने तेज आवाज में कहा.

घर के अंदर से कोई आवाज नहीं आई तो मोहिनी ने और तेज आवाज लगाते हुए एक बार फिर दरवाजे की कुंडी खटखटाई. इस बार घर के अंदर से किसी पुरुष की आवाज आई, ‘‘कौन है?’’

‘‘भैया, मैं हूं.’’ मोहिनी ने बाहर से जवाब दिया.

इस के बाद घर के अंदर से किसी के चल कर आने की पदचाप सुनाई दी तो मोहिनी आश्वस्त हो गई.

दरवाजा श्याम सिंह ने खोला. गेट पर छोटी बहन मोहिनी को देख कर उस ने पूछा, ‘‘मोहिनी, रात को आने की ऐसी क्या जरूरत पड़ गई. घर पर मम्मीपापा तो सब ठीक हैं न?’’

‘‘भैया, मम्मीपापा तो सब ठीक हैं, लेकिन बड़ी दीदी ठीक नहीं हैं.’’ मोहिनी ने चिंतित स्वर में कहा, ‘‘भैया, अंदर चलो. मैं सारी बात बताती हूं.’’ मोहिनी श्याम सिंह को घर के अंदर ले गई.

श्याम सिंह ने पहले घर का दरवाजा बंद किया, फिर मोहिनी को ले कर अपने कमरे में आ गया. मोहिनी से कमरे में बिछी चारपाई पर बैठने को कह कर वह उस के लिए मटके से पानी का गिलास भर कर ले आया. गिलास मोहिनी के हाथ में देते हुए श्याम सिंह ने कहा, ‘‘मोहिनी, तुम पहले पानी पी लो, फिर बताओ ऐसी क्या बात हुई, जिसे ले कर तुम परेशान हो.’’

मोहिनी एक ही बार में पूरा पानी पी गई. फिर लंबी सांस ले कर कुछ देर चुपचाप बैठी रही. मोहिनी को चुप बैठा देख श्याम सिंह बेचैन हो गया. उस ने मोहिनी के सिर पर स्नेह से हाथ रख कर पूछा, ‘‘आखिर बात क्या है?’’

चुप बैठी मोहिनी की आंखों में आंसू आ गए. वह बोली, ‘‘भैया, आप को यह तो पता ही है कि अनीता दीदी बहुत दिनों से बीमार थीं. दीदी 14 जनवरी को मकर संक्रांति के दिन ज्यादा बीमार हो गईं. फिर अगले दिन बेहोश हो गई थीं. उस दिन के बाद से मैं ने दीदी को नहीं देखा, पता नहीं वह जिंदा भी हैं या नहीं?’’

श्याम सिंह ने बहन की आंखों में डबडबा आए आंसू पोंछ कर उस के इस शक की वजह पूछी.

‘‘मुझे शक इसलिए है कि घर में जिन तांत्रिकों ने डेरा जमा रखा है, वे मुझे दीदी के कमरे में जाने तक नहीं देते. दीदी के कमरे से बदबू आती है, लेकिन तांत्रिक दिन भर अगरबत्ती जलाए रखते हैं और इत्र छिड़कते रहते हैं ताकि बदबू न आए.’’

बहन की बातें सुन कर श्याम सिंह चिंता में पड़ गया. उसे पता था कि उस की बड़ी बहन अनीता बीमार रहती है और कुछ तांत्रिक उस का इलाज करने के नाम पर लंबे समय से घर में डेरा जमाए हुए हैं. उन तांत्रिकों ने उस के मातापिता को भी अपने जाल में कुछ इस तरह फंसा रखा था कि वे उन के कहे अनुसार ही चलते थे.

श्याम सिंह ने मोहिनी से पूछा, ‘‘मम्मीपापा को इस बात का पता है या नहीं कि दीदी के कमरे से बदबू आ रही है?’’

‘‘भैया, तांत्रिकों ने तंत्रमंत्र के नाम पर मम्मीपापा को अंधविश्वास में इतना डुबो दिया है कि वे उन की बातों से आगे कुछ नहीं सोचतेसमझते.’’ मोहिनी ने अपनी बेबसी जाहिर करते हुए कहा, ‘‘अब तो तांत्रिक मम्मीपापा को भी दीदी के कमरे में नहीं जाने देते.’’

कुछ देर चुप रहने के बाद मोहिनी ने कहा, ‘‘भैया, कुछ करो वरना वे तांत्रिक मम्मीपापा और मुझे भी मार देंगे.’’

‘‘तू चिंता मत कर, हम अभी थाने चलते हैं और उन तांत्रिकों की करतूत पुलिस को बता देते हैं.’’

यह बीती 27 फरवरी की रात करीब 9-10 बजे की बात है. श्याम सिंह छोटी बहन मोहिनी को साथ ले कर गंगापुर सिटी थाने जा पहुंचा.

थाने में मौजूद ड्यूटी अफसर को श्याम सिंह ने सारी बातें बताईं. मामला गंभीर था. ड्यूटी अफसर ने सूचना दे कर थानाप्रभारी दीपक ओझा को बुलवाया.

थानाप्रभारी ओझा ने श्याम सिंह से पूरी बात पूछी और लिखित में शिकायत देने को कहा. श्याम सिंह ने पुलिस को लिखित शिकायत दे दी. थानाप्रभारी ओझा ने मामले की गंभीरता को देखते हुए डीएसपी नरेंद्र शर्मा को सारी जानकारी दी. इस पर डीएसपी ने कहा कि वे गंगापुर सिटी थाने आ रहे हैं और अभी तुरंत काररवाई करेंगे.

कुछ ही देर में डीएसपी नरेंद्र शर्मा थाने पहुंच गए. थानाप्रभारी दीपक ओझा से सारा मामला समझ कर शर्मा ने कहा कि यह एक लड़की के जीवनमरण से जुड़ा मामला है. पता नहीं कि वह लड़की जिंदा भी है या नहीं. इसलिए हमें अभी रात में ही काररवाई करनी होगी. उन्होंने थानाप्रभारी को तुरंत एक टीम तैयार करने को कहा. इसी के साथ उन्होंने श्याम सिंह को बुला कर उस से तांत्रिकों के बारे में कुछ सवाल पूछे. इतनी देर में पुलिस टीम तैयार हो गई. तब तक रात के करीब 11 बज गए थे. डीएसपी नरेंद्र शर्मा के नेतृत्व में गंगापुर सिटी थानाप्रभारी दीपक ओझा अपनी टीम के साथ श्याम सिंह और मोहिनी को साथ ले कर उन के बताए पते पर रवाना हो गए.

10-15 मिनट में पुलिस टीम इंद्रा मार्केट पहुंच गई. मोहिनी अपने मातापिता के साथ इसी मार्केट में बने मकान में रहती थी. श्याम सिंह ने इंद्रा मार्केट में एक जगह पुलिस टीम को रोक कर एक मकान की ओर इशारा कर के बताया कि यह हमारा मकान है.

पुलिस टीम उस मकान पर पहुंची, लेकिन वहां ताला लटक रहा था. पुलिस को पता लगा कि घर के लोग और तांत्रिक अंदर ही हैं. इस पर पुलिस टीम ने पड़ोस के मकान से हो कर उस घर में प्रवेश किया.

पुलिस टीम जब घर के अंदर पहुंची तो हैरान रह गई. एक कमरे में जमीन पर लगे बिस्तर पर अनीता की लाश पड़ी थी. उस की लाश पर चादर डाली हुई थी. अनीता के शरीर पर कपड़े भी नहीं थे. शरीर पर कई जगह पट्टियां बंधी हुई थीं.

घर में 6 लोग मौजूद थे. इन में मोहिनी के पिता ताराचंद राजपूत और मां उर्मिला देवी के अलावा 4 तांत्रिक थे. पुलिस ने ताराचंद और उस की पत्नी उर्मिला से पूछताछ की तो पता चला कि तांत्रिक उन्हें लगातार डरातेधमकाते रहे, उन्होंने अनीता का इलाज नहीं करवाने दिया. तांत्रिक उन से कहते रहे कि अनीता जीवित है और जल्दी ही ठीक हो जाएगी. इस के लिए तांत्रिक कमरे में तंत्रमंत्र का नाटक करते रहे.

पुलिस रात को ही अनीता के पिता ताराचंद राजपूत, मां उर्मिला के अलावा चारों तांत्रिकों को पकड़ कर गंगापुर सिटी थाने ले आई. पुलिस ने मकान सीज कर के वहां पुलिस कांस्टेबल तैनात कर दिया.

थाने ला कर चारों तांत्रिकों से पूछताछ की गई. पूछताछ में पता चला कि उस दिन रात घिरते ही मोहिनी मौका देख कर बिना किसी को बताए घर से निकल गई थी. वह अपने भाई श्याम सिंह को तांत्रिकों की करतूत बताने के लिए गई थी. तांत्रिकों को जब पता चला कि मोहिनी घर से गायब है तो एक तांत्रिक सपोटरा निवासी गजेंद्र उर्फ पप्पू शर्मा उस की तलाश में घर से निकला.

जाते समय गजेंद्र ने घर के बाहर से ताला लगा दिया था. इसी वजह से वह मौके पर नहीं मिला. बाद में वह फरार हो गया था. पुलिस ने 28 फरवरी को अनीता के मातापिता और चारों तांत्रिकों को गैरइरादतन हत्या और आपराधिक षडयंत्र की धाराओं में गिरफ्तार कर लिया. इन तांत्रिकों में सपोटरा निवासी गजेंद्र उर्फ पप्पू शर्मा की पत्नी मंजू, मथुरा निवासी बंटी उर्फ संदीप शर्मा, महूकलां निवासी नीटू चौधरी और धूलवास निवासी गोपाल सिंह शामिल थे.

उसी दिन पुलिस ने विधिविज्ञान प्रयोगशाला के वैज्ञानिकों की टीम बुला कर मौके की जांचपड़ताल कराई. इस के बाद अनीता का शव सिविल अस्पताल पहुंचाया गया. शव का पोस्टमार्टम अस्पताल में 3 डाक्टरों के मैडिकल बोर्ड से कराया गया. मैडिकल बोर्ड में डा. बी.एल. बैरवा, डा. कपिल जायसवाल और डा. मनीषा गोयल शामिल थीं.

बाद में डा. बी.एल. बैरवा ने बताया कि शव काफी दिनों पुराना था. जांच के लिए विसरा ले कर विधिविज्ञान प्रयोगशाला भेजा गया. पोस्टमार्टम कराने के बाद पुलिस ने अनीता का शव अंतिम संस्कार के लिए उस के भाई को सौंप दिया.

पुलिस की पूछताछ और जांचपड़ताल में अंधविश्वास की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार है—

रणथंभौर अभयारण्य बाघों की शरणस्थली के रूप में पूरी दुनिया में जाना जाता है. यह बाघ अभयारण्य राजस्थान के सवाई माधोपुर में है. इसी सवाई माधोपुर जिले में गंगापुर सिटी है. गंगापुर सिटी के इंद्रा मार्केट में ताराचंद राजपूत अपनी पत्नी उर्मिला और परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में 3 बेटे श्याम सिंह, गोविंद और नरेंद्र तथा 2 बेटियां थीं अनीता और मोहिनी.

अनीता कई साल पहले से बीमार रहती थी. ताराचंद ने बेटी का इलाज कराया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. ताराचंद पुराने विचारों के आदमी थे. कुछ लोगों ने उन्हें सयानेभोपों से बेटी का इलाज कराने की बात कही. उस दौरान तांत्रिक गजेंद्र और उस के साथी गोपाल सिंह, नीटू चौधरी और बंटी उर्फ संदीप शर्मा ताराचंद के संपर्क में आए. इन लोगों ने अनीता पर भूतप्रेत का साया बताया और ताराचंद के घर पर ही आ कर तंत्रमंत्र के नाम पर उस का इलाज करते रहे.

उन्होंने अपने अंधविश्वास से ताराचंद को इस कदर वशीभूत कर लिया कि उस की सोचनेसमझने की शक्ति कमजोर पड़ती गई. ताराचंद पूरी तरह उन तांत्रिकों के चंगुल में फंस गया.

कुछ दिन पहले इन तांत्रिकों ने ताराचंद से कहा कि अनीता अब बिलकुल ठीक हो गई है. साथ ही उसे यह भी बताया कि तंत्रमंत्र से उन्होंने अनीता के शरीर में देवी का प्रवेश करवा दिया है. इस के बाद इन तांत्रिकों ने अनीता को मोहरा बना कर ताराचंद के मकान के एक कमरे में मंदिर बना दिया. उस मंदिर में उन्होंने अनीता को एक गद्दी पर बैठा दिया.

बाद में ये तांत्रिक अनीता के शरीर में देवी होने की बात प्रचारित करके तंत्रमंत्र से दूसरे लोगों का इलाज करने लगे. गांवदेहात के नासमझ लोग बहकावे में आ कर ताराचंद के मकान पर इन तांत्रिकों के पास आने लगे. ये लोग इलाज करने के बहाने लोगों से किसी न किसी रूप में जेवर व पैसा आदि वसूलने लगे.

अपने घर में तांत्रिकों का डेरा देख कर ताराचंद के बेटे विरोध करने लगे. उन्होंने मातापिता को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन वे नहीं माने. तीनों बेटे बड़े हो गए थे. अनीता भी बड़ी थी.

पहले बीमार रहने और फिर तांत्रिकों के चक्कर में पड़ने की वजह से उस की शादी की उम्र भी निकल गई थी. बड़ी बहन की शादी नहीं होने और मातापिता के लगातार उन तांत्रिकों पर बढ़ते विश्वास के कारण घर में कलह रहने लगी.

रोजरोज की कलह से तंग आ कर तीनों भाई अलगअलग रहने लगे. उन्होंने अपने मातापिता का मकान छोड़ दिया. इन में 2 भाई श्याम सिंह और गोविंद गंगापुर सिटी में ही नहर रोड पर रहने लगे थे. तीसरा भाई नरेंद्र हरियाणा के बल्लभगढ़ में जा कर रहने लगा था. बड़ी बेटी अनीता और छोटी बेटी मोहिनी मातापिता के साथ इंद्रा मार्केट में अपने मकान में ही रहती रहीं.

तांत्रिकों ने ताराचंद को पूरी तरह से अपने प्रभाव में ले रखा था. अनीता के बहाने उन्हें लोगों को ठगने का ठिकाना मिल गया था. हालांकि इन सभी तांत्रिकों के अपने घरपरिवार थे, लेकिन ये दिनरात ताराचंद के मकान पर जब चाहे आतेजाते रहते थे.

इसी साल 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर अनीता ज्यादा बीमार हो गई. इन तांत्रिकों ने ताराचंद और उस की पत्नी को डरा दिया कि अगर उसे अस्पताल ले गए तो यह मर जाएगी. इस का इलाज हम ही करेंगे.

ताराचंद पहले से ही तांत्रिकों के अंधविश्वास में डूबा हुआ था. अनीता की मां उर्मिला भी उन तांत्रिकों को बेटी पर तंत्रमंत्र करने से मना नहीं कर सकी. तांत्रिकों ने अनीता पर तंत्रमंत्र किया, लेकिन अगले ही दिन यानी 15 जनवरी को अनीता की तबीयत ज्यादा बिगड़ गई. वह बेहोश हो गई.

इस के बाद उन तांत्रिकों ने अनीता को एक कमरे में बंद कर दिया और तंत्रमंत्र के नाम पर उस का इलाज करने की बात कहते रहे. उस कमरे में केवल ये तांत्रिक ही आतेजाते थे. ये लोग दूसरे लोगों को उस कमरे में नहीं जाने देते थे.

ताराचंद और उर्मिला के बहुत जिद करने पर उन्हें कभीकभार उस कमरे में जाने देते थे. मोहिनी को भी वे लोग अनीता के कमरे में नहीं जाने देते थे. तांत्रिक मोहिनी को घर से बाहर भी नहीं निकलने देते थे.

ताराचंद या उर्मिला जब उस कमरे में जाते तो अनीता उन्हें बिस्तर पर लेटी ही मिलती. कमरे में दिनरात अगरबत्ती जलती रहती थीं. कमरा इत्र की खुशबू से महकता रहता था. तांत्रिक कहते थे कि अनीता जीवित है, लेकिन अभी वह तुम से बात नहीं कर सकती. कुछ दिन ठहर जाओ, वह पूरी तरह ठीक हो जाएगी, तब बात कर लेना. ताराचंद और उर्मिला उन तांत्रिकों की बातों पर भरोसा कर के चुप रह जाते थे.

मोहिनी उसी घर में रह रही थी. वह नहीं समझ पा रही थी कि बहन अगर जीवित है तो कमरे से बाहर क्यों नहीं निकलती? उसे बहन से मिलने क्यों नहीं दिया जाता? कुछ दिनों से उसे अनीता के कमरे से दुर्गंध आने लगी थी. कई बार वह उस कमरे में जाने की कोशिश करती, लेकिन तांत्रिक उसे रोक देते थे. उस कमरे में लगातार सुगंधित अगरबत्ती जलने और इत्र का छिड़काव होने से दुर्गंध इतनी ही थी कि घर में लेगों को महसूस हो जाए. घर से बाहर तक दुर्गंध नहीं जा रही थी.

लगातार कई दिनों तक बदबू आने से मोहिनी को शक हुआ कि दाल में जरूर कुछ काला है. उसे सब से ज्यादा चिंता अपनी बहन अनीता की थी, इसीलिए 27 फरवरी की रात मौका मिलते ही वह घर से निकल कर सीधे नहर रोड स्थित अपने भाई श्याम सिंह के घर पहुंच गई थी.

भाई को तांत्रिकों की सारी करतूतें बता कर उस ने अपना शक जाहिर कर दिया था. इस के बाद श्याम सिंह ने कोतवाली थाने पहुंच कर रिपोर्ट दर्ज कराई और पुलिस ने उस के मातापिता सहित चारों तांत्रिकों को गिरफ्तार कर लिया.

करीब 35 साल की बीमार युवती को इलाज के नाम पर डेढ़ महीने तक कमरे में बंद रखने और इस बीच उस की मौत हो जाने के बाद उस का शव घर में ही रख कर तंत्रमंत्र करने वाले तांत्रिकों को डर था कि मोहिनी उन का भेद खोल सकती है.

इसलिए वे उसे घर से बाहर नहीं निकलने देते थे. एक दिन मोहिनी ने उन तांत्रिकों से अनीता की मौत की आशंका जताई तो उन्होंने पिस्तौल दिखा कर उसे डरायाधमकाया कि उस ने अगर इस बारे में किसी से जिक्र किया तो अच्छा नहीं होगा.

तांत्रिकों ने अनीता के मातापिता और बहन मोहिनी को उन के ही घर में एक तरह से कैद कर के रखा हुआ था. उन के बाहर आनेजाने, किसी को फोन करने, मिलनेजुलने और बाहर की दुनिया से किसी तरह का संबंध रखने की सख्त मनाही थी. तांत्रिकों व उन के साथियों का 24 घंटे उन पर अघोषित पहरा रहता था.

तांत्रिक और उन के साथी अपने लिए कोई सामान खरीदने बाहर जाते तो वे घर के बाहर ताला लगा कर जाते थे ताकि बाहर का कोई आदमी अंदर न आ सके और अंदर से कोई बाहर न जा सके.

पुलिस ने तांत्रिकों से पूछताछ के बाद नीटू चौधरी की निशानदेही पर ताराचंद के मकान में उस कमरे से एक पिस्तौल और 8 जिंदा कारतूस बरामद किए, जिस कमरे में तांत्रिकों ने मंदिर बना रखा था. इसी कमरे की तलाशी में पुलिस को लाखों रुपए के जेवरात भी मिले. ये जेवरात ताराचंद और उस के परिवार के नहीं थे, बल्कि तांत्रिकों ने तंत्रमंत्र के नाम पर लोगों से ठगे थे. पुलिस ने अवैध हथियार मिलने पर नीटू चौधरी और फरार गजेंद्र शर्मा के खिलाफ आर्म्स एक्ट के तहत अलग मामला दर्ज किया.

कथा लिखे जाने तक एक तांत्रिक गजेंद्र शर्मा फरार था. गिरफ्तार किए गए चारों तांत्रिक और मृतका अनीता के मातापिता अदालत के आदेश पर न्यायिक हिरासत में जेल में थे. गंगापुर सिटी थाने के सबइंसपेक्टर महेंद्र राठी इस मामले की जांच कर रहे थे.

यह विडंबना ही है कि विज्ञान के इस युग में तंत्रमंत्र के नाम पर ठगों ने अपना ऐसा जाल बिछा रखा है कि नासमझ और गांवदेहात को छोडि़ए, पढ़ेलिखे और अमीर लोग भी अंधविश्वास में फंस कर इन के बहकावे में आ जाते हैं. लेकिन यह अंधविश्वास की पराकाष्ठा है कि करीब एकडेढ़ महीने तक मृत युवती के शव को जीवित करने के नाम पर तांत्रिक कथित तौर पर जादूटोना करते रहे. दूसरों का भविष्य बताने वाले इन तांत्रिकों को खुद के भविष्य का पता नहीं था कि उन्हें जेल जाना पड़ेगा.

हेलीकॉप्टर ब्रदर्स ने की 600 करोड़ की ठगी

भारत के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई से करीब ढाई सौ किलोमीटर दूर तंजावुर जिला मुख्यालय है. इसी जिले का एक प्राचीन शहर कुंभकोणम है. यह शहर तंजावुर जिला मुख्यालय से कोई 40 किलोमीटर दूर है.

कुंभकोणम शहर के उत्तर में कावेरी और दक्षिण में अरसालर नदी बहती है. यह शहर टेंपल टाउन के नाम से भी विख्यात है. इस का कारण है कि यहां बड़ी संख्या में मंदिर हैं. कुंभकोणम शहर में हर साल होने वाले ‘महामहम’ फेस्टिवल में पूरे देश से लोग आते हैं.

मूलरूप से तिरवरूर जिले के गांव मरियूर के रहने वाले 2 भाई मरियूर रामदास गणेश और मरियूर रामदास स्वामीनाथन कोई 5-6 साल पहले कुंभकोणम शहर में आ कर बसे थे. इन के पिता रामदास बिजली विभाग में अधिकारी थे.

नौकरी के सिलसिले में रामदास पहले मदुलमपेट्टई और बाद में चेन्नई रहने लगे थे. बाद में वे सिंगापुर चले गए. सिंगापुर से कुंभकोणम में आ कर बसने पर उन्होंने विदेशी नस्ल की गायों से डेयरी कारोबार शुरू किया. दोनों भाई शहर के पौश इलाके श्रीनगर कालोनी में रहते थे.

देखते ही देखते ही उन का कारोबार तेजी से फलनेफूलने लगा. उन के व्यापार में खूब बरकत होने लगी. पैसा आने लगा तो वे अपना कारोबार धीरेधीरे बढ़ाने लगे. उन्होंने सिंगापुर सहित दूसरे देशों में भी अपना व्यापार फैला लिया. फार्मास्युटिकल का काम शुरू कर दिया.

इस बीच, उन्होंने कुंभकोणम में ही विक्ट्री फाइनेंस नामक एक वित्तीय कंपनी शुरू कर दी. यह कंपनी कर्ज देने और लोगों के पैसे जमा करने का काम करती थी. कुछ दिनों बाद उन्होंने अर्जुन एविएशन प्राइवेट लिमिटेड नामक एक विमानन कंपनी बना ली.

इस कंपनी को केंद्र सरकार से पंजीकृत भी करा लिया. इस कंपनी के नाम से उन्होंने एक हेलीकौप्टर भी खरीद लिया. उन्होंने हेलीकौप्टरों के लिए कोरुक्कई गांव में एक विशाल हेलीपैड भी बना लिया. उस समय प्रचारित किया गया कि एंबुलेंस सेवा और यात्रा के लिए हेलीकौप्टर उपलब्ध रहेंगे.

2 साल पहले की बात है. जून 2019 के पहले सप्ताह में एक दिन सुबह के समय कुंभकोणम शहर के आसमान में एक हेलीकौप्टर मंडरा रहा था. इस हेलीकौप्टर से काफी देर तक पूरे शहर पर गुलाब के फूलों की वर्षा की गई. हेलीकौप्टर ने पुष्पवर्षा के लिए कई बार उड़ान भरी.

फूलों की वर्षा देख कर शहर के लोगों को आश्चर्य हुआ, क्योंकि इस शहर में पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था. उन दिनों न तो कोई बड़ा त्यौहार था और न ही कोई नेता शहर में आ रहा था. इसलिए लोग इस बात पर चर्चा करने लगे.

पता चला कि उस दिन एम.आर. गणेश (मरियूर रामदास गणेश) के बेटे अर्जुन का जन्मदिन था. बेटे के जन्मदिन की खुशी में ही एम.आर. गणेश ने पूरे शहर पर हेलीकौप्टर से पुष्पवर्षा कराई थी. उस दिन गणेश ने अपने बेटे के जन्मदिन की खुशी में बड़े स्तर पर भोज का भी आयोजन किया था.

दोनों भाइयों को हेलीकौप्टर ब्रदर्स के नाम से जानते थे लोग

गणेश के बेटे के जन्मदिन पर हुए भव्य आयोजन ने दोनों भाइयों को पूरे शहर में चर्चित कर दिया. उस दिन से लोग उन्हें ‘हेलीकौप्टर ब्रदर्स’ के नाम से पुकारने लगे.

दोनों भाई गणेश और रामदास जल्दी ही आसपास के इलाके में ही नहीं, राजधानी चेन्नई सहित पूरे तमिलनाडु में हेलीकौप्टर ब्रदर्स के नाम से मशहूर हो गए. इस के बाद से इन भाइयों का हेलीकौप्टर कई बार शहर में मंडराता और इधरउधर उड़ान भरता नजर आता था.

कारोबार अच्छा चलने से वे पैसा तो पहले ही खूब कमा रहे थे. नए नाम से ख्याति मिलने से उन का रुतबा भी बढ़ गया था. आलीशान जिंदगी जीते हुए लग्जरी गाडि़यों के काफिले और सुरक्षाकर्मियों के साथ तो वे पहले से ही चलते थे. बाद में राजनीति में भी आ गए.

भारतीय जनता पार्टी ने गणेश को ट्रेडर्स विंग में जिला अध्यक्ष बना दिया. भाजपा में शामिल होने से पूरे प्रदेश में उन की राजनीतिक ताकत भी बढ़ गई. दिग्गज भाजपा नेता उन के घर आनेजाने लगे.

कोई 2 साल पहले उन्होंने अपनी कंपनी विक्ट्री फाइनेंस और दूसरी कंपनियों के जरिए एक साल में दोगुनी रकम करने का वादा कर लोगों से पैसा जमा करना शुरू कर दिया.

अच्छाखासा कारोबार करने और कई कंपनियां चलाने के कारण हेलीकौप्टर ब्रदर्स ने पहले से ही शहर की जनता पर अपना विश्वास बना लिया था. इसी विश्वास के भरोसे लोग उन की कंपनी में पैसा जमा कराने लगे.

सैकड़ों लोगों ने अपनी जमापूंजी उन की कंपनी में जमा करा दी. योजना की अवधि पूरी होने पर इन भाइयों ने लोगों को वादे के मुताबिक समय पर दोगुनी रकम वापस दे दी. इस से लोगों का विश्वास जमता गया. इस से उन की जमापूंजी भी बढ़ने लगी. पिछले साल तक सब कुछ ठीकठाक चला. जमाकर्ताओं को अपना पैसा वापस मिल गया.

हालांकि न तो सरकारी स्तर पर और न ही चिटफंड कंपनियों तथा साहूकारी स्तर पर एक साल में पैसा दोगुना करने की पहले कोई योजना थी और न अब है. लेकिन लालच में लोग हेलीकौप्टर ब्रदर्स की कंपनी में अपनी मेहनत की कमाई जमा कराते रहे. जिन लोगों ने पहले पैसा जमा कराया था, उन्होंने दोगुनी रकम वापस मिलने पर वही रकम फिर से एक साल के लिए जमा करा दी.

लोगों के लालच का दोनों भाइयों ने फायदा उठाया. उन्होंने पैसा जमा कराने के लिए कमीशन पर अपने एजेंट नियुक्त कर दिए. एक साल में उन की कंपनी की साख बन गई थी.

लालच में फंस रहे थे लोग

इस का नतीजा यह हुआ कि रोजाना सैकड़ों लोग बिना आगेपीछे सोचे उन की कंपनी में पैसा जमा कराने लगे. बहुत से लोगों ने बैंकों या साहूकारों के पास जमा अपनी रकम निकाल कर हेलीकौप्टर ब्रदर्स की फाइनेंस कंपनी में जमा करा दी.

नौकरीपेशा लोगों ने भी एक साल में रकम दोगुनी होने के लालच में अपनी जमापूंजी का निवेश उन की कंपनी में कर दिया. दोनों भाइयों के झांसे में आ कर कई व्यापारियों और अमीर लोगों ने भी उन की कंपनी में करोड़ों रुपए की राशि जमा करा दी.

इस साल जब अवधि पूरे होने पर जमाकर्ता अपने पैसे वापस मांगने लगे तो कंपनी की ओर से उन्हें कोरोना महामारी के कारण कामकाज ठप होने की बात कह कर कुछ दिन रुकने के लिए कहा गया.

अप्रैल के महीने में कोरोना का असर ज्यादा बढ़ने पर लोगों को पैसों की आवश्यकता हुई तो उन्हें फिर टाल दिया गया. जमाकर्ताओं को दोगुनी रकम तो दूर कुछ राशि या ब्याज का पैसा भी नहीं दिया गया.

छोटे जमाकर्ता रोजाना उन की कंपनियों के चक्कर लगा कर निराश लौट जाते थे. जिन लोगों के करोड़ों रुपए जमा थे, वे सब से ज्यादा परेशान थे. अवधि पूरी होने के बावजूद न तो उन का मूलधन वापस मिल रहा था और न ही कोई ब्याज दिया जा रहा था.

कुछ बड़े जमाकर्ताओं ने अपनी रकम वापस लेने के लिए हेलीकौप्टर ब्रदर्स गणेश और रामदास स्वामीनाथन से संपर्क किया तो उन्होंने कोरोना के कारण नुकसान होने की बात कह कर उन सभी को जल्द भुगतान करने का आश्वासन दिया.

ले भागे 600 करोड़ रुपए

भुगतान में लगातार देर हो रही थी. जमाकर्ताओं को किसी न किसी बहाने से टाला जा रहा था. ज्यादा बातें करने पर जमाकर्ताओं को धमकाया भी गया.

इस से लोगों को कंपनी के मालिकों की नीयत पर शक होने लगा. उन्हें अपनी जमापूंजी की चिंता होने लगी. कुछ ही दिनों में पूरे शहर में यह बात फैलने लगी कि दोनों भाइयों का अब जमाकर्ताओं को पैसा वापस देने का मन नहीं है.

लोगों को असलियत का पता चलने पर दोनों भाई शहर से लापता हो गए. इस पर कुछ लोगों ने इसी साल के जुलाई महीने में शहर में जगहजगह हेलीकौप्टर ब्रदर्स के पोस्टर लगवा दिए. इन में आरोप लगाया था कि दोनों भाई लोगों के 600 करोड़ रुपए ले कर उड़ गए हैं.

इन पोस्टरों के माध्यम से लोगों ने दोनों भाइयों के खिलाफ काररवाई की मांग की. कहा जाता है कि ये पोस्टर दोनों भाइयों के एजेंटों ने लगवाए थे, क्योंकि इन भाइयों ने एजेंटों को भी उन का कमीशन नहीं दिया था.

पुलिस कोई काररवाई करने की सोच रही थी कि एक दंपति जफरुल्लाह और फैराज बानो ने तंजावुर जिले के एसपी देशमुख शेखर संजय के पास जुलाई के तीसरे सप्ताह में एक शिकायत दी.

इस शिकायत में दंपति ने कहा कि उन्होंने दोनों भाइयों की कंपनी में 15 करोड़ रुपए जमा कराए थे. योजना की अवधि पूरी होने के बाद भी उन्हें पैसे वापस नहीं दिए गए. दोनों भाइयों ने उन्हें अपने निजी सुरक्षाकर्मियों से पिटवाने की धमकी भी दी.

पुलिस ने दंपति की शिकायत पर भारतीय दंड संहिता की धारा 406, 420 और 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

इन के अलावा एक निवेशक गोविंदराज ने पुलिस को बताया कि उस ने दोस्तों और परिवार से कर्ज ले कर हेलीकौप्टर ब्रदर्स की कंपनी में 25 लाख रुपए जमा कराए थे, लेकिन ये रकम वापस नहीं दे रहे हैं.

एक और निवेशक ए.सी.एन. राजन ने 50 लाख रुपए जमा कराने की बात पुलिस को बताई. पुलिस के पास कई और शिकायतें भी दोनों भाइयों के खिलाफ आईं.

कुछ लोगों ने बताया कि उन्हें कुछ राशि का चैक दिया गया, लेकिन वह बाउंस हो गया. कोरकाई के रहने वाले पझानिवेल ने 10 लाख रुपए जमा कराए थे. बदले में उसे 20 लाख रुपए मिलने थे, लेकिन बारबार चक्कर काटने पर भी उसे पैसे नहीं मिले.

भाजपा ने गणेश को पार्टी से निकाला

ज्यादा कहासुनी करने पर एक दिन 10 लाख रुपए का चैक दिया. वह चैक बाउंस हो गया. जब उस ने चैक बाउंस होने की बात इन भाइयों को बताई तो उन्होंने अपने राजनीतिक संपर्क होने की धमकी दी.

मुकदमा दर्ज होने पर पुलिस ने दोनों भाइयों गणेश और रामदास स्वामीनाथन की तलाश शुरू की, लेकिन उन के मकान और दफ्तर बंद मिले.

इस बीच, भाजपा ने गणेश को पार्टी के जिलाध्यक्ष पद से हटा दिया. इस संबंध में तंजावुर (उत्तर) के भाजपा नेता एन. सतीश कुमार ने 18 जुलाई को बयान जारी किया.

दोनों भाइयों के आवास, कार्यालय और दूसरे ठिकाने बंद मिलने पर पुलिस ने उन की तलाश के लिए कई टीमों का गठन किया. मोबाइल फोन की लोकेशन से उन का

पता लगाने का प्रयास किया. पता नहीं चलने पर पुलिस की टीमों को विभिन्न स्थानों पर भेजा गया. दोनों भाइयों के विभिन्न कारोबार के ब्यौरे जुटाए गए. साथ ही पुलिस ने इन भाइयों की कंपनियों में काम करने वाले लोगों का पता लगाना शुरू किया.

कुछ कर्मचारियों का पता चलने पर पुलिस ने उन से पूछताछ की, लेकिन दोनों भाइयों का सुराग नहीं मिला. कर्मचारी यह नहीं बता सके कि दोनों भाई कहां गए.

पूछताछ के बाद पुलिस ने 23 जुलाई को इन भाइयों की कंपनी के मैनेजर 56 साल के श्रीकांत को गिरफ्तार कर लिया.

जांचपड़ताल में पता चला कि दोनों भाइयों के विदेशों में भी कारोबारी संपर्क हैं. इस से उन के विदेश भाग जाने की आशंका हुई. इस आधार पर पुलिस ने उन के पासपोर्ट का पता लगा कर विदेश भागने से रोकने के लिए काररवाई शुरू कर दी.

पुलिस ने इन भाइयों के ठिकानों का पता लगाया. इन्होंने कई जगह अपने कार्यालय और ठहरने के ठिकाने बना रखे थे. एक बड़ा मकान तो केवल कारें रखने के लिए ही था. इन के पास दरजनों लग्जरी कारें थीं.

जांच के दौरान पुलिस ने इन के ठिकानों से 2 बीएमडब्ल्यू सहित 12 लग्जरी कारें जब्त कीं. एक कार्यालय से कंप्यूटर, हार्ड डिस्क और दस्तावेज जब्त किए.

दोनों भाइयों की तलाश के दौरान पुलिस ने एक दिन उन की कंपनी में अकाउंटेंट का काम करने वाले भाईबहन मीरा और श्रीराम को कुंभकोणम के बसस्टैंड से गिरफ्तार कर लिया. वे शहर छोड़ कर भाग रहे थे. इन के अलावा दोनों भाइयों की कंपनी के एक और मैनेजर वेंकटेशन को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

इन से पूछताछ के आधार पर फरार एम.आर. गणेश की पत्नी अखिला को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.

क्राइम ब्रांच के हत्थे चढ़े हेलीकौप्टर ब्रदर

लगातार कई दिनों की भागदौड़ के बाद तंजावुर जिले की क्राइम ब्रांच पुलिस ने 5 अगस्त, 2021 को दोनों भाइयों एम.आर. गणेश और एम.आर. स्वामीनाथन को पुडुककोट्टई जिले में वेंथनपट्टी गांव के एक फार्महाउस से गिरफ्तार कर लिया. यह फार्महाउस उन के दोस्त का था. इसे उन्होंने छिपने के लिए किराए पर लिया था.

कथा लिखे जाने तक दोनों भाइयों के अलावा गणेश की पत्नी और इन की कंपनी के 2 मैनेजर व 2 अकाउंटेंट गिरफ्तार किए जा चुके थे.

पुलिस इन से पूछताछ कर जमा की गई रकम का पूरा ब्यौरा हासिल करने के प्रयास में जुटी थी. इस के साथ ही इन के बैंक खाते भी सीज करने की काररवाई चल रही थी.

बहरहाल, अभी यह तो किसी को नहीं पता कि हेलीकौप्टर ब्रदर्स की कंपनी में निवेश करने वाले लोगों को उन का पैसा वापस मिल सकेगा या नहीं.

लेकिन इस में कोई दोराय नहीं कि लोगों ने एक साल में रकम दोगुनी होने के लालच में बिना कोई जांचपड़ताल किए एक निजी फाइनेंस कंपनी में अपनी जमापूंजी निवेश कर दी. यह लालच ही अब उन निवेशकों की रात की नींद और दिन का चैन छीने हुए है.

यह अकेले तमिलनाडु की बात नहीं है. पूरी दुनिया में ऐसा हो रहा है. चालाक लोग लोगों की लालच की मानसिकता का फायदा उठा कर ठगी कर रहे हैं.

भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में एक साल में कोई भी सरकारी या निजी कंपनी पैसा दोगुना नहीं करती. ऐसा करने का दावा करने वाले केवल ठगी करते हैं. लोगों को ऐसे ठगों की यह मानसिकता पहचाननी चाहिए.

स्मार्ट वाच में छिपा हत्या का राज

ग्रीस में 20 वर्षीया युवती कैरोलिन क्राउच की हत्या हुई थी. उस के 33 वर्षीय पति बाबिस एनाग्नोस्टोपोलोस, जोकि हेलीकौप्टर पायलट था, ने 11 मई को पुलिस को फोन द्वारा सूचना दी थी कि उस की पत्नी की हत्या अज्ञात लुटेरों ने ग्लयका नेरा स्थित उस के ही घर के बैडरूम में कर दी है.

सूचना पा कर ग्रीक पुलिस मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने देखा कि घर में बाबिस की पत्नी कैरोलिन की लाश के अलावा एक कुत्ता भी मरा पड़ा था. घर का सामान भी बिखरा पड़ा था. पुलिस को मामला लूट का ही लग रहा था.

बाबिस ने पुलिस को बताया कि उन्हें लुटेरों ने बांध दिया था. वे 3 थे. उन्होंने घर से पैसे लूटने के बाद उस की पत्नी का गला घोंट डाला था. उस ने लुटेरों से अपने परिवार को नुकसान नहीं पहुंचाने की गुहार भी लगाई थी.

पुलिस ने घटनास्थल से सारे सबूत इकट्ठे कर जांच शुरू कर दी. इतना ही नहीं, पुलिस ने इस हाईप्रोफाइल अपराध की जानकारी देने वाले को 2,57,000 पाउंड स्टर्लिंग (करीब 2 करोड़ 65 लाख रुपए) ईनाम देने की भी घोषणा कर दी. इस ईनाम की घोषणा एथेंस की पुलिस औफिसर्स एसोसिएशन के डिप्टी चेयरमैन निकोस रिगास ने की थी.

उन्होंने मीडिया को भी जांच में अपनाई जाने वाली तमाम लेटेस्ट सिस्टम इस्तेमाल करने की बात कहते हुए दावा किया कि बहुत जल्द ही वे इस मामले का पता लगा लेंगे.

इस पर मीडिया ने उन्हें निशाने पर ले लिया था. कारण कोरोना वायरस संक्रमण के कारण हुए लौकडाउन के बाद से महिलाओं की हत्या और घरेलू अपराध की घटनाएं वहां काफी बढ़ गई थीं.

इसे देखते हुए रिगास ने घटनास्थल से मोबाइल उपकरणों, एक स्मार्टवाच और कैमरों की जांच करने के लिए एक समयरेखा भी निर्धारित कर दी.

घटनास्थल की सीसीटीवी फुटेज की जांच के बाद एथेंस पुलिस  की क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम इस नतीजे पर पहुंची थी कि युवती की हत्या जिन 3 लुटेरों ने की, उन्हें दबोचा जाना बाकी है. क्योंकि पुलिस को वहां से काफी सबूत मिल चुके थे.

इसी बीच पुलिस के अधिकारी ने अपने सहकर्मियों से सवाल किया, ‘‘तुम यह कैसे कह सकते हो कि हत्या प्रोफैशनल लुटेरों ने ही की है?’’

‘‘सर घटनास्थल पर मिले सारे प्रमाण तो यही बताते हैं. इस के अलावा, लुटेरों ने युवती के हाथपांव बांध दिए थे, और…’’ एक सहकर्मी पुलिस ने कहा.

‘‘… और उस ने पालतू कुत्ते को भी मार डाला था. तुम तो यही कहोगे न?’’ अधिकारी ने दूसरे सहकर्मी को देखते हुए सवाल किया.

‘‘ यस सर! ’’

‘‘वाट यस सर..? लुटेरों ने घर से जो रुपए लूटे, वे कहां रखे थे? तुम लोगों को तो केवल 13 हजार पाउंड अमाउंट के बारे पता चला है.’’

‘‘उस की डिटेल्स नहीं मिली सर. कोई निशान नहीं मिल पाया.’’ फोरैंसिक जांच वाले ने सफाई दी.

‘‘तुम्हें तो यह भी पता नहीं चला है कि लुटेरों के गिरोह ने युवती को कैसे बांधा, उस की मौत दम घुटने से हुई या फिर कोई और वजह थी.’’ अधिकारी ने सभी को जबरदस्त डांट पिलाई.

‘‘सर, सीसीटीवी कैमरे घटना के समय बंद थे,’’ तकनीकी जांच करने वाले ने बताया.

‘‘अब तुम लोग मुझे यह समझाओ कि मृत युवती की बगल में सिरहाने 11 माह की बच्ची चुपचाप कैसे लेटी थी?’’ जांच अधिकारी ने सख्ती के साथ पूछा.

ग्रीक जांच अधिकारी की बात सुन कर सभी चुप हो गए थे. क्योंकि यह मामला साधारण नहीं था.

मृतका के पति पायलट बाबिस द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार पुलिस ने जांच शुरू की, जिस में कई विरोधाभास देखने को मिले. बाबिस ने मीडिया को बताया था कि वह घटना के समय लुटेरों से घिरा हुआ था.

जबकि पुलिस जांच में पता चला कि उस दौरान वह घर के बाहर चारों ओर घूम रहा था. उस का आवागमन बेसमेंट से ले कर बालकनी तक हुआ था. इस विरोधाभास पर पुलिस को बाबिस पर ही शक हो गया.

डेटा एनालिस्ट की ली मदद

इस आधार पर पुलिस औफिसर निकोस रिगास ने अपने सहकर्मियों को नए सिरे से जांच करने का आदेश दिया. उन्होंने जांच टीम से कहा, ‘‘संदिग्ध युवती का पति भी हो सकता है. यह भी हो सकता है कि क्राइम सीन उस के द्वारा बनाया गया हो. वह खुद को बचाने की कोशिश में हो.’’

‘‘…लेकिन सर, इस पालतू कुत्ते को किस ने मारा होगा?और सर वह छोटी बच्ची..?’’ एक सहकर्मी ने जिज्ञासा जताई.

‘‘यही तो समझने की बात है, जिस ओर तुम लोगों का ध्यान ही नहीं गया?’’ निकोस रिगास बोले.

‘‘वह कैसे सर?’’ फोरैंसिक जांचकर्ता ने सवाल किया.

‘‘मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि पालतू कुत्ते को संदिग्ध ने ही मारा होगा और हत्या को सही ठहराने के लिए बच्ची को उस की मां के मृत शरीर के बगल में रख दिया. हैरत की बात है कि उसे कोई चोट नहीं आई. यह भी हो सकता है उस वक्त बच्ची कहीं और सो रही हो.’’ रिगास ने समझाया.

‘‘तो सर, हमें अब क्या करना चाहिए?’’

‘‘आप लोग इस में अब कुछ अधिक नहीं कर पाएंगे. इस केस को डेटा एनलिस्ट की मदद से हैंडल किया जाएगा.’’

‘‘वह कैसे सर?’’ सभी चौंक पड़े.

‘‘बस आप सभी देखते जाइए और अपनीअपनी रिपोर्ट का डेटा सौफ्ट कौपी के साथ हार्ड कौपी में 12 घंटे के भीतर उपलब्ध करवाइए.’’ रिगास ने आदेश दिया.

‘‘यस सर!’’ सभी सहकर्मियों ने एक साथ कहा.

‘‘और हां, आईटी के क्राइम सेल के साथ अभी घंटे भर के अंदर मीटिंग तय करवाइए.’’ यह आदेश उन्होंने अपने पीए को दिया.

इसी दौरान एक सहकर्मी ने उत्सुकता के साथ बताया, ‘‘सर, क्या मृतका के पति बाबिस एनाग्नोस्टोपोलास से पूछताछ की जाए?’’

‘‘अभी उस पर नजर रखिए. मुझे जानकारी मिली है कि वह इस समय ग्रीस में नहीं है, लेकिन इंस्टाग्राम पर सक्रिय है. उस ने पुर्तगाल यात्रा के दौरान अपनी पत्नी के साथ एक तसवीर पोस्ट की है.’’

‘‘जी सर, मैं ने वह तसवीर देखी है. उस में उस ने लिखा है— हमेशा एक साथ! विदाई, मेरे प्यार!’’ महिला सहकर्मी तपाक से बोल पड़ी.

‘‘तुम उस पर नजर रखो. उस के डेटा का कलेक्शन करो. हर तरह की डिटेल्स जुटाओ… जैसे उन के आपसी संबंध, शादीब्याह, अफेयर, डेटिंग, चैटिंग, डिनर, साथसाथ ट्रैवलिंग, फैमिली बैकग्राउंड, हौबी, उन के फ्रैंड सर्कल, प्रोफेशन इत्यादिइत्यादि. इंस्टाग्राम के अतिरिक्त दूसरे सोशल साइट्स और डेटिंग ऐप को भी खंगालो.’’

जांच दल की महिला सहकर्मी के द्वारा हेलीकौप्टर पायलट बाबिस और कैरोलिन के बारे में जुटाई गई जानकारी के बाद पता चला कि कैरोलिन क्राउच और बाबिस का प्रेम विवाह हुआ था. उन की शादी जुलाई, 2019 में अलगार्वे में हुई थी.

सोशल साइट पर उस की शादी की कई यादगार तसवीरें देखने को मिलीं. उन में एक मार्मिक तसवीर उस की शादी के लिए तैयार होने की है, जिस में उस के बाल और मेकअप 2 स्थानीय स्टाइलिस्टों द्वारा किया गया था.

इस तसवीर को उतारने वाले फोटोग्राफर को जब कैरोलिन की हत्या की जानकारी मिली तो वह स्तब्ध हो गया था, क्योंकि उसे मिला वह पहला असाइनमेंट था.

 

कैरोलिन जब 15 साल की थी, तभी उस की मुलाकात बाबिस से हुई थी. उन के बीच प्यार हो गया. उन की शादी एथेंस के उसी अपमार्केट इलाके में हुई थी, जहां कैरोलिन मृत पाई गई.

शादी के समय वह 18 साल की थी. बाबिस के मातापिता एथेंस में रहते हैं, जबकि कैरोलिन के मातापिता एलोनिसोस द्वीप पर वहां से 6 घंटे की दूरी पर रहते हैं. हालांकि कैरोलिन का जन्म यूके में हुआ था, जिस से वह ब्रिटिश नागरिक बन गई थी.

शादी के बाद वह अपने पति और बच्ची के साथ ग्लाइका नेरा में रह रही थी. इसी तरह से पुलिस ने उन के बारे में कई जानकारियां जुटाईं, जिन में कैरोलिन द्वारा लिखी गई डायरी भी थी. डायरी में उस ने अपने से करीब दोगुनी उम्र के पति के साथ संबंधों की अंतरंगता के बारे में लिखा था.

कैरोलिन की हत्या की जांच ग्रीक पुलिस ने नए सिरे से शुरू की. उन्होंने तमाम तकनीकी उपकरणों को अपने कब्जे में ले लिया और उन में दर्ज डेटा का विश्लेषण किया.

इसी क्रम में पुलिस अधिकारी को वह सुराग मिल गया, जिस की उन्हें तलाश थी. वह सुराग कैरोलिन के स्मार्टवाच में छिपा था.

खास तरह की उस बायोमैट्रिक घड़ी में उन की मौत का दिन और उन की नाड़ी के जीवित रहने तक चलने की रीडिंग दर्ज थी. उस के साथ बाबिस के मोबाइल की काल डिटेल्स आदि का मिलान किया गया. इस काम के लिए पुलिस ने गूगल के सर्विलांस सिस्टम का उपयोग किया.

इस तरह से की गई तकनीकी जांच में संदिग्ध के तौर पर कैरोलिन के पति बाबिस के होने का शक पुख्ता हो गया. बाबिस ने भले ही कहा कि उसे लुटेरों ने बांध दिया था, लेकिन जांच में इस बात का पुष्टि हो गई कि उस दौरान उस का फोन इस्तेमाल में था. उस का डेटा उस की पत्नी के स्मार्टवाच के डेटा से मेल नहीं खा रहा था.

कैरोलिन की स्मार्टवाच से पता चला कि कैरोलिन का दिल उस वक्त भी धड़क रहा था, जिस वक्त उस के पति द्वारा हत्या किए जाने का दावा किया गया था. उस के फोन पर गतिविधि ट्रैकर ने उसे घर के चारों ओर घूमते हुए दिखाया, जबकि उस ने कहा कि वह बंधा हुआ था.

इस तरह से रिकौर्ड किए गए समय, जिस पर घर के सीसीटीवी कैमरे से डेटा कार्ड निकाल लिए गए थे, से घटना की अलग ही कहानी सामने आई.

बाबिस ने पुलिस को बताया था कि 11 मई, 2021 की सुबह 5 बजे के आसपास लुटेरों ने उस के घर में दरवाजा तोड़ कर प्रवेश किया और उस के साथ कैरोलिन को बांध दिया. घर में लूटपाट की और कैरोलिन की गला घोंट कर हत्या कर दी. सुबह 6 बजे पुलिस को बुलाने पर लुटेरे भाग गए.

दिल की धड़कनें घड़ी में हुईं कैद

इस के विपरीत जांच में पाया गया कि आधी रात को 12 बज कर 35 मिनट पर दंपति की ग्राउंड फ्लोर पर लगी सीसीटीवी कैमरे ने आखिरी तसवीर उतारी थी. उस में बाबिस सोफे पर बैठा दिखा था. उस की गोद में बेटी बैठी थी, उस के हाथ में फोन था. उस समय उस की कैरोलिन से बातचीत चल रही थी, जो किसी बात को ले कर कड़वी बहस में बदल गई थी.

रात 1.20 बजे कैमरे की डिवाइस में स्टोर डेटा के अनुसार उस में से मेमोरी कार्ड हटा दिया गया था. पुलिस का कहना है कि ऐसा कैरोलिन द्वारा स्टूपिड कहने के बाद किया गया. पुलिस ने पाया कि मेमोरी कार्ड को आधा काट कर शौचालय में बहा दिया गया था. इसे अधिकारी ने पूर्वनियोजित हत्या की योजना बताया.

रात 12.35 बजे से सुबह 4 बजे तक बाबिस और कैरोलिन के बीच टेक्स्ट मैसेज के साथ बहस होती रही. उस दौरान कैरोलिन ने अपने एक दोस्त को भी मैसेज किया, जिस में उस ने लिखा कि वह अपने पति को छोड़ रही है और अभी रात में ही घर से किसी होटल में चली जाएगी.

उसी बहस में बात इतनी बिगड़ गई कि कैरोलिन ने बाबिस से तलाक लेने तक के लिए कह दिया.

कैरोलिन की कलाई से जुड़े फिटनैस ट्रैकर से पुलिस को पता लग गया कि उस दिन सुबह 4 बजे कैरोलिन के दिल की धड़कनें बढ़ गई थीं. अचानक दिल की बदली हुई गतिविधि से पता चला कि इस से दंपति के बीच लड़ाई बढ़ गई थी.

बाबिस ने इस बारे में पूछने पर बताया कि कैरोलिन ने उसे मारा, जिस से उसे भी उस पर गुस्सा आ गया और उसे बिस्तर पर धकेल दिया. उस के बाद उस ने तकिए से चेहरा दबा दिया.

कैरोलिन के फिटनैस ट्रैकर से ही पता चला कि 4.11 बजे उस के दिल की धड़कनें रुक गईं. उस समय वह मर चुकी थी. पुलिस जांच में पता चला कि बाबिस ने उस के मुंह में रुई भर दी थी और फिर उस का गला घोंट दिया था.

इस के बाद बाबिस ने ठंडे दिमाग से हत्या को नाटकीय रूप देने की योजना बनाई. पुलिस जांच के अनुसार, उस ने खिड़की के नीचे की कुंडी तोड़ी और अलमारी में थोड़ी तोड़फोड़ की. घर में लूटपाट का सीन बनाया.

इसी तरह से उस ने अपने पालतू कुत्ते को मार कर सीढ़ी के डब्बे में लटका दिया. उसे दिखा कर ही पुलिस को बताया लुटेरों ने उसे रास्ते में ही मार डाला होगा. फिर उस ने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली और खुद को बिस्तर से बांध लिया. उस के बाद पड़ोसी को फोन कर लुटेरों के बारे में बताया.

इस डेटा ट्रेल के आगे बाबिस की एक नहीं चली. हालांकि उसे दबोचने में भी पुलिस को काफी मशक्कत करनी पड़ी.

कारण जब तक पुलिस को उस के आरोपी होने का प्रमाण मिला था, तब तक वह दूसरे देश में जा छिपा था. इस तरह से स्मार्टवाच ने कैरोलिन के अंतिम क्षण की जानकारी दे कर इस केस को खोलने में मदद की.

बाद में पुलिस ने बाबिस को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल कर ली. उसे ग्रीक की बड़ी जेल कोरयाडालोस में रखा गया. उस की गिरफ्तारी एक बहुचर्चित घटना थी.

मीडिया जगत से ले कर सोशल एक्टिविस्टों में उन की घोर निंदा हुई. सामाजिक संस्थाओं ने उसे सख्त सजा देने की मांग के साथ प्रदर्शन किए.

पुलिस के सामने बाबिस को जेल से कोर्ट तक ले जाने की समस्या थी. इस की वजह यह थी कि प्रदर्शनकारी बाबिस को अपने हाथों से सजा देने की मांग कर रहे थे. रास्ते में बाबिस की जान को खतरा भी था, इसलिए भारी पुलिस सुरक्षा के बीच बाबिस को बुलेटपू्रफ जैकेट पहना कर जेल ले जाया गया और जज के सामने पेश किया.

वकीलों की शुरू हुई बहस में वह जल्द ही टूट गया और उस ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. उस ने 17 जून, 2021 को अपनी पत्नी को गला घोंट कर मारने की बात स्वीकार कर ली.

साथ ही भावुकता के साथ कहा कि वह उस दौर के 6 मिनट का समय कभी नहीं भूल सकता है. क्योंकि पत्नी का गला घोंटते वक्त उस की बेटी लिडिया का चेहरा उस के सामने ही था.

हालांकि उस ने हत्या का नाटक रचने के बारे में बताया कि ऐसा उस ने इसलिए किया, क्योंकि वह जेल नहीं जाना चाहता था और अपनी बेटी की परवरिश करना चाहता था.

पूछताछ में बाबिस ने अपने पालतू कुत्ते का गला घोंटने की भी बात स्वीकार ली. उस ने कहा कि उस ने ऐसा बनावटी घटना को प्रभावशाली दिखाने के लिए किया.

हैलीकौप्टर पायलट बाबिस एनाग्नोस्टोपोलोस के अपना जुर्म स्वीकार करने के बाद अदालत ने 17 जून, 2021 को उसे कैरोलिन क्राउच और पालतू कुत्ते की हत्या का दोषी ठहराते हुए 15 साल जेल की

सजा सुनाई.

खूबसूरत पत्नी की हत्या के बाद बाबिस को अब पछतावा हो रहा है, जबकि उस की बेटी लिडिया के पालनपोषण की जिम्मेदारी कैरोलिन क्राउच के ब्रिटिश पिता ने उठा ली है.

हालांकि बाबिस चाहता है कि सजा काटने के बाद वही अपनी बेटी की देखभाल करे, लेकिन लिडिया के नानानानी नहीं चाहते कि वह अपनी ही मां के हत्यारे पिता की

बेटी कहलाए.

सुकेश चंद्रशेखर : सिंह बंधुओं से 200 करोड़ ठगने वाला नया नटवरलाल-भाग-2

दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने रेलिगेयर फिनवेस्ट में धोखाधड़ी के मामले में अक्तूबर 2019 में दोनों भाइयों को गिरफ्तार कर लिया था. सिंह बंधुओं की गर्दिश के दिन रैनबेक्सी कंपनी बेचने के बाद ही शुरू हो गए थे. हालांकि उन्होंने फोर्टिस के 66 हौस्पिटल की शृंखला बना कर अपने पैर जमाने की कोशिश की थी, लेकिन वित्तीय गड़बडि़यों और कई गलतियों ने उन्हें जेल की सींखचों के पीछे पहुंचा दिया.

बाद में उन पर दूसरे मामले भी जुड़ते गए. इस कारण दोनों सिंह बंधु अक्तूबर 2019 से दिल्ली की जेल से बाहर नहीं निकल सके. उन की जमानत की कोशिशें बेकार हो गईं.

हालांकि गिरफ्तारी से पहले ही दोनों भाइयों में मतभेद हो गए थे. फिर भी दोनों भाइयों के परिवार अपनेअपने तरीकों से उन को जेल से बाहर निकालने की कोशिशों में जुटे हुए थे.

अरबों रुपए की संपत्तियां होने और भारत ही नहीं कई देशों में मंत्रियों, संतरियों से ले कर टौप ब्यूरोक्रेट्स से अच्छे संबंध होने के बावजूद वह पैसा उन के कोई काम नहीं आ पा रहा था.

ठग सुकेश चंद्रशेखर 2017 से दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद था. उस के तिहाड़ जेल पहुंचने की कहानी आप आगे पढ़ेंगे. जेल में बंद सुकेश को जब सिंह बंधुओं की अकूत दौलत और जमानत की सारी कोशिशें बेकार होने का पता चला तो उस ने उन के घरवालों को ठगने की योजना बनाई.

इस के लिए योजनाबद्ध तरीके से ही अदिति सिंह को कानून मंत्रालय के सचिव अनूप कुमार के नाम से फोन किया गया.

कुछ दिन बाद फिर उसी शख्स का फोन अदिति सिंह के पास आया. ट्रूकालर पर फोन नंबर प्रधानमंत्री कार्यालय में सलाहकार पी.के. मिश्रा का प्रदर्शित हो रहा था.

फोन पर अनूप कुमार ने कहा कि मैं स्पीकर फोन पर हूं. मेरे साथ गृहमंत्री अमित शाह साहब हैं. अनूप ने कहा मेरे जूनियर अभिनव के टच में रहो और मुझे अपने पति के केस से जुड़े सभी दस्तावेज भेजो ताकि उन की जेल से जल्द रिहाई की व्यवस्था हो सके और वे कोविड के इस दौर में सरकार के साथ काम कर सकें.

बाद में अभिनव ने खुद को अंडर सेक्रेटरी बताते हुए अदिति सिंह से टेलीग्राम पर संपर्क किया. उस ने कहा कि सरकार उन का पूरा सपोर्ट करेगी. लेकिन वह यह बात किसी को नहीं बताएं, क्योंकि उस पर खुफिया एजेंसियों की नजर है.

इसीलिए सरकार के बड़े लोग लैंडलाइन फोन से बात करते हैं या टेलीग्राम पर संपर्क रखते हैं, क्योंकि वाट्सऐप भी अब सुरक्षित नहीं है. अभिनव ने यह भी बताया कि कई कारोबारी घराने उस के प्रोटेक्शन में हैं.

इस तरह संपर्क कर अभिनव अदिति सिंह का भरोसा जीतता गया. उसे उन की कंपनियों और तमाम कारोबार सहित घरपरिवार की पूरी जानकारी थी.

एक दिन अनूप का फोन आया. उस ने अदिति से कहा कि पार्टी फंड में 20 करोड़ रुपए जमा कराने होंगे. इस के बाद उन्हें अमित शाहजी या रविशंकर प्रसादजी से पार्टी औफिस अथवा नार्थ ब्लौक में मिलना होगा.

अनूप ने पार्टी फंड का पैसा विदेश भेजने को कहा. बाद में उस ने कहा कि हमारा आदमी आप से यह पैसा ले जाएगा.

अदिति के लिए 100-50 करोड़ रुपए बड़ी बात नहीं थी. वह अपने पति को जेल से बाहर निकालने के लिए सही या गलत तरीके से हर कीमत देने को तैयार थीं.

पैसे का इंतजाम होने पर रोहित नाम का एक युवक सेडान गाड़ी से एक महिला के साथ आया और उन से 20 करोड़ रुपए ले गया. बाद में फिर एक बार अनूप का फोन आया. उस ने कहा कि पार्टी आप से खुश है. इस बार उस ने 30 करोड़ रुपए और मांगे.

अदिति ने पूछा कि ये पैसे किस काम के लिए होंगे, तो उसे धमकाया गया कि उन के पति पर सरकार नए केस लगा देगी और उन की जमानत में ज्यादा मुश्किलें आ जाएंगी.

अदिति ने 30 करोड़ रुपए भी दे दिए. फिर एक दिन अनूप का फोन आया. उस ने कहा कि गृह सचिव अजय भल्ला आप से बात करेंगे. अजय भल्ला ने कहा कि आप के पति को आप से जल्दी ही मिलवाया जाएगा.

इस तरह कभी किसी मंत्री और कभी किसी टौप ब्यूरोक्रेट के नाम से फोन आते रहे. ये लोग अदिति को उन के पति की जेल से रिहाई की दिलासा दिलाते रहे और बदले में किसी न किसी बहाने से मोटी रकम मांगते रहे.

सरकार के भरोसे अपने पति की रिहाई की उम्मीद में अदिति ने अपनी जमापूंजी, निवेश और जेवरात आदि दांव पर लगा कर इन लोगों को एक साल में अलगअलग किस्तों में 200 करोड़ रुपए दे दिए.

इतनी रकम लेने के बाद भी ये लोग उसे धमकाते रहे और विदेश में पढ़ रहे बच्चों को देख लेने की धमकी देते रहे.

सरकार के सपोर्ट के बावजूद एक साल बाद भी कुछ नहीं होने पर अदिति ने अनूप कुमार, अभिनव, अजय भल्ला आदि से हुई बातों को याद कर उन पर गौर किया. उसे महसूस हुआ कि ये सब लोग दक्षिण भारतीय हैं. उन की बातचीत का लहजा दक्षिण भारत का था.

अदिति को ठगी होने का शक हुआ, तो उस ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के एक अधिकारी से शिकायत की. ईडी के अधिकारी ने दिल्ली के पुलिस कमिश्नर को यह जानकारी दी.

इसी साल अगस्त के पहले सप्ताह में दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा को इस मामले की भी जांच सौंपी गई. जांच में पता चला कि अदिति सिंह को दिल्ली की रोहिणी जेल से फोन किए गए थे.

पुलिस ने 8 अगस्त को रोहिणी जेल में छापा मार कर सुकेश को गिरफ्तार कर लिया. उस के पास से 2 स्मार्टफोन बरामद हुए. सुकेश से पूछताछ के आधार पर दिल्ली के रहने वाले 2 भाइयों दीपक रामदानी और प्रदीप रामदानी को गिरफ्तार किया गया. वे ठगी की साजिश में भागीदार थे.

सुकेश से पूछताछ में ठगी के मामले में जेल अधिकारियों की मिलीभगत भी सामने आई. इस पर जेल प्रशासन ने 23 डिप्टी सुपरिटेंडेंट के तबादले कर दिए. और 6 जेल अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया.

पुलिस ने जेल अधिकारियों से पूछताछ के बाद एक डिप्टी सुपरिटेंडेंट सुभाष बत्रा और एक असिस्टेंट जेल सुपरिटेंडेंट धर्मसिंह मीणा को गिरफ्तार कर लिया.

सुकेश की ठगी की काली कमाई को कमीशन ले कर सफेद करने के मामले में दिल्ली के एक निजी बैंक के वाइस प्रेसीडेंट मैनेजर कोमल पोद्दार और उस के 2 सहयोगियों अविनाश कुमार व जितेंद्र नरूला को गिरफ्तार किया गया.

इस मामले में प्राथमिकी दर्ज करने के बाद प्रवर्तन निदेशालय ने 23 अगस्त को सुकेश और उस की फिल्म अभिनेत्री पत्नी लीना मारिया पाल सहित उन के साथियों के विभिन्न ठिकानों पर छापे मारे.

इन के चेन्नई में समुद्र के ठीक सामने बने आलीशान बंगले पर ईडी अधिकारियों ने जब छापेमारी की, तो दौलत की चकाचौंध देख कर उन की आंखें फटी रह गईं.

इन छापों में 16 लग्जरी और महंगी कारें, 82 लाख रुपए से ज्यादा नकदी और 2 किलोग्राम सोने के जेवरात के अलावा कपड़े, जूते व चश्मों सहित काफी कीमती सामान जब्त किया गया.

चेन्नई में समुद्र के ठीक सामने बना सुकेश लीना का बंगला किसी रिसौर्ट से कम नहीं है. इस बंगले में ऐशोआराम की चीजें मौजूद थीं. करोड़ों रुपए के इंटीरियर डेकोरेशन, होम थिएटर और तमाम सुखसुविधाएं थीं. बंगले में बीएमडब्ल्यू, मर्सिडीज, बेंटले, फैरारी, रोल्स रायस घोस्ट और रेंज रोवर जैसी करोड़ों रुपए की गाडि़यां मिलीं.

कीमती फरनीचर से सुसज्जित बंगले में दुनिया के नामी ब्रांड फरागमो, चैनल, डिओर, लुइस वुइटटो, हरमेस आदि के सैकड़ों जोड़ी जूते तथा बैग मिले.

पत्रकार दानिश सिद्दीकी : सच बोलती तस्वीरों का नायक

भारत के पड़ोसी मुल्क अफगानिस्तान का कंधार शहर इस वक्त तालिबान के हमले से जूझ रहा है. यही कारण है कि तालिबान भारत के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है. तालिबान चाहता है कि अफगानिस्तान में 2001 से पहले जैसे उस ने शासन किया, उसी प्रकार उसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता और पहचान मिले.

अफगानिस्तान के लगभग 85 फीसदी हिस्से पर वो अपना कब्जा जमा चुका है और वह अफगानिस्तान की चुनी हुई सरकार और उस के सैनिकों को खत्म करने पर आमादा है. तालिबान को इस बात का पूरा यकीन हो चला है कि अब उस के रास्ते में कोई आने वाला नहीं है.

तालिबान पाकिस्तान सीमा से लगे ज्यादातर प्रमुख इलाकों पर कब्जा कर चुका है. जबकि अफगान के बाकी क्षेत्र को दोबारा हासिल करने की कोशिश में अफगान बलों और तालिबान के लड़ाकों के बीच काबुल के स्पिन बोल्डक शहर में लगातार झड़प चल रही है.

भारतीय पत्रकार दानिश सिद्दीकी इसी इलाके में युद्ध हालात को कवर कर रहे थे. वह अपने कैमरे की नजर से तालिबानी हमले से हो रही हिंसा से दुनिया को रूबरू करा  रहे थे.

हर दिन अफगान सेना और तालिबान लड़ाकों के बीच गोलाबारूद से होने वाली खूनी झड़पों में सैकड़ों मौतें हो रही हैं, उन्हीं  में 15 जुलाई, 2021 को हुई एक भारतीय फोटो पत्रकार की मौत ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है.

दानिश सिद्दीकी 15 जुलाई  को कंधार में तब अपनी जान गंवा बैठे, जब वह तालिबान और अफगान सुरक्षा बलों के बीच चल रही लड़ाई को कवर कर रहे थे.

दानिश सिद्दीकी दुनिया की सब से बड़ी समाचार एजेंसी रायटर्स के लिए बतौर फोटो जर्नलिस्ट काम करते थे और युद्धग्रस्त अफगान क्षेत्र में अफगान सुरक्षा बलों के साथ एक रिपोर्टिंग असाइनमेंट पर थे.

दानिश सिद्दीकी 13 जुलाई को भी उस समय बालबाल बचे थे, जब अफगान सेना पर तालिबानी हमला हुआ था. उस दिन वह अफगानिस्तान में मौत से पहली बार रूबरू हुए थे.

दरअसल, उस दिन वह अफगान सेना के उस वाहन में मौजूद थे, जो हिंसाग्रस्त इलाकों से लोगों को बचाने जा रहा था. उस वक्त सेना की गाड़ी पर भी गोलीबारी की गई थी, जिस में दानिश बालबाल बचे थे.

दानिश ने इस घटना के वीडियो व फोटो ट्विटर पर पोस्ट किए थे, जिस में गाड़ी पर आरपीजी की 3 राउंड फायरिंग होती नजर आई. उस दौरान दानिश ने लिखा था कि भाग्यशाली हूं कि सुरक्षित हूं.

उसी दिन उन्होंने ट्विटर पर एक तसवीर भी साझा की थी, जिस में उन्होंने लिखा था कि 15 घंटे के औपरेशन के बाद उन्हें महज 15 मिनट का ब्रेक मिला.

भारत में अफगानिस्तान के राजदूत फरीद ममुंडजे ने कंधार में भारतीय फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी की कवरेज के दौरान हत्या किए जाने की सूचना सार्वजनिक की.

अफगानिस्तान के राजदूत फरीद ममुंडजे ने 17 जुलाई को सुबह ट्वीट किया, ‘कल रात कंधार में एक दोस्त दानिश सिद्दीकी की हत्या की दुखद खबर से बहुत परेशान हूं. भारतीय पत्रकार और पुलित्जर पुरस्कार विजेता अफगान सुरक्षा बलों के साथ कवरेज कर रहे थे. मैं उन से 2 हफ्ते पहले उन के काबुल जाने से पहले मिला था. उन के परिवार और रायटर के प्रति संवेदना.’

पत्नी व बच्चे थे जर्मनी में

एजेंसी रायटर्स से जुड़े फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी पुलित्जर पुरस्कार विजेता थे. हालांकि तालिबान के प्रवक्ता जबिउल्लाह मुजाहिद ने सिद्दीकी की मौत पर दुख जाहिर करते हुए कहा, ‘‘हमें इस बात की जानकारी नहीं है कि किस की गोलीबारी में पत्रकार दानिश की मौत हुई. हम नहीं जानते उन की मौत कैसे हुई. लेकिन युद्ध क्षेत्र में प्रवेश कर रहे किसी भी पत्रकार को हमें सूचित करना चाहिए. हम उस व्यक्ति का खास ध्यान रखेंगे.’’

दानिश का यूं असमय चले जाना उन के पूरे परिवार को तोड़ गया है. दानिश सिद्दीकी का जन्म साल 1980 में महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में हुआ था. दानिश सिद्दीकी के पिता  प्रोफेसर अख्तर सिद्दीकी जामिया मिलिया इस्लामिया से रिटायर्ड हैं. इस के अलावा अख्तर सिद्दीकी राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) के निदेशक भी रह चुके हैं.

दानिश सिद्दीकी के परिवार में उन की पत्नी और 2 बच्चे हैं. दानिश सिद्दीकी की पत्नी जर्मनी की रहने वाली हैं. उन का 6 साल का एक बेटा और 3 साल की एक बेटी है.

घटना के समय उन की पत्नी व बच्चे जर्मनी में ही थे. दानिश की मौत की खबर मिलने के बाद वे भारत के लिए रवाना हो गए.

दानिश सिद्दीकी ने दिल्ली की जामिया मिलिया इस्लामिया से पढ़ाई की थी. यहीं से उन्होंने इकोनौमिक्स में स्नातक किया था. जामिया से 2005-07 बैच में उन्होंने मास कम्युनिकेशन की मास्टर डिग्री हासिल की. पत्रकारिता की पढ़ाई के बाद दानिश ने ‘आजतक’ टीवी चैनल में बतौर पत्रकार अपना करियर शुरू किया था.

इस के बाद उन का रुझान फोटो जर्नलिज्म की तरफ बढ़ता चला गया और सन 2010 में वह अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी रायटर्स के साथ बतौर इंटर्न जुड़ गए. दानिश सिद्दीकी ने जब कैमरे से फोटो लेनी शुरू कीं तो उन की तसवीरें पसंद की जाने लगीं.

रिपोर्टर से की करियर की शुरुआत

क्योंकि उन की तसवीरें बोलती थीं. उन के पीछे एक सच छिपा होता था, जो पूरी व्यवस्था और घटनाक्रम को बयां करती थीं. उन की एकएक तसवीर लाखों शब्दों के बराबर होती थी, जो पूरी कहानी बयान कर देती थी.

दानिश के करियर के शुरुआती सहयोगियों में से एक वरिष्ठ पत्रकार राना अयूब बताती हैं कि उस वक्त उन लोगों की उम्र 23-24 साल थी. हम लोग मुंबई में ‘न्यूज एक्स’ में काम कर रहे थे और दानिश जामिया से नयानया निकल कर आया स्टूडेंट था.

वह था तो रिपोर्टर, लेकिन उसे कैमरे से इतना ज्यादा लगाव था कि मौका मिलते ही वह फोटोग्राफरों और वीडियोग्राफरों से उन का कैमरा ले कर खुद शूट करने लग जाता था.

हम लोग उस से कहते भी थे कि जब तुम इतनी अच्छी फोटोग्राफी करते हो, तो फोटाग्राफर क्यों नहीं बन जाते हो और बाद में वही हुआ. दानिश ने करियर में अपने हार्ड वर्क और लगन से एक ऐसी जंप लगाई कि सब को पीछे छोड़ दिया.

दानिश के फोटोग्राफर बनने की कहानी भी कम रोचक नहीं है. उन के मित्र कमर सिब्ते ने बताया कि दानिश ने पहले न्यूज एक्स और उस के बाद हेडलाइंस टुडे में बतौर पत्रकार काम किया था.

चूंकि उसे फोटोग्राफी का बहुत शौक था. उसी दौरान एक बार वह अपने काम से छुट्टी ले कर मोहर्रम की कवरेज के लिए उत्तर प्रदेश के शहर अमरोहा चला गया, जहां उस की मुलाकात रायटर्स के चीफ फोटोग्राफर से हुई.

रायटर्स के फोटोग्राफर ने जब दानिश के फोटोज देखे, तो वह उस से इतने ज्यादा प्रभावित हुए कि उन्होंने कुछ ही समय बाद उसे अपनी एजेंसी में जौब का औफर दिया और उस के बाद दानिश की लाइफ ही बदल गई.

मुंबई में टाइम्स औफ इंडिया के स्पैशल फोटो जर्नलिस्ट एस.एल. शांता कुमार बताते हैं कि दानिश हर फोटो को स्टोरी के नजरिए से शूट करता था. हम लोग जब भी मिलते थे, उस से हमें कुछ न कुछ नया सीखने को मिलता था.

जब उसे पुलित्जर पुरस्कार मिला तो मैं ने सुबहसुबह उठ कर उसे फोन पर बधाई दी और बाद में उस से मिल कर उस के साथ सेल्फी भी ली थी.

दिल्ली दंगों की भी की थी कवरेज

दानिश ने दिल्ली दंगों के दौरान भी फोटोग्राफी की थी. इस दंगे के दौरान जब दानिश एक शख्स पर हमला कर रही भीड़ का फोटो शूट कर रहे थे तो उस वक्त मारने वाले लोगों का ध्यान उन पर नहीं था.

लेकिन जैसे ही उन्होंने नोटिस किया कि कोई उन की फोटो खींच रहा है तो वो लोग दानिश को पकड़ने के लिए उन के पीछे भी भागे, लेकिन दानिश किसी तरह वहां से भाग कर अपनी जान बचाने में कामयाब रहे.

यूं कहें तो गलत न होगा कि इस वक्त भारत में दानिश से अच्छा और कोई फोटो जर्नलिस्ट नहीं था. पिछले एकडेढ़ साल के दौरान देश में जितनी भी बड़ी घटनाएं हुई थीं, उन के सब से बेहतरीन फोटो दानिश ने ही लिए थे.

चाहे वो नौर्थईस्ट दिल्ली के दंगों के दौरान खून से लथपथ एक शख्स पर हमला कर रही भीड़ की तसवीर हो या कोविड वार्ड में एक ही बैड पर औक्सीजन लगा कर लेटे 2 मरीजों की फोटो हो या फिर श्मशान घाट में जलती चिताओं की तसवीर हो, उन का काम अलग ही बोलता था और उस की खातिर वह किसी भी खतरे का सामना करने और कहीं भी जाने के लिए हर वक्त तैयार रहते थे.

2018 में दानिश को मिला पुलित्जर अवार्ड

भारतीय फोटो पत्रकार दानिश अंतिम सांस तक तसवीरों के जरिए दुनिया को अफगानिस्तान के हालातों से रूबरू कराते रहे. अब दानिश हमारे बीच नहीं हैं, मगर उन के काम हमारे बीच हमेशा जिंदा रहेंगे.

उन की तसवीरें बोलती थीं, यही वजह है कि दानिश सिद्दीकी को उन के बेहतरीन काम के लिए पत्रकारिता का प्रतिष्ठित पुलित्जर अवार्ड भी मिला था.

दानिश सिद्दीकी ने रोहिंग्या शरणार्थियों की समस्या को अपनी तसवीरों से दिखाया था और ये तसवीर उन तसवीरों में शामिल हैं, जिस की वजह से उन्हें 2018 में पुलित्जर अवार्ड मिला था.

दानिश सिद्दीकी अपनी तसवीरों के जरिए आम आदमी की भावनाओं को सामने लाते थे. वह इन दिनों भारत में रायटर्स की फोटो टीम के हैड थे.

कोरोना काल की वह तसवीर किसे याद नहीं होगी, जब लोग लौकडाउन में अपने घरों की ओर भागने लगे थे. तब हाथ में कपड़ों की पोटली और कंधों पर बच्चे को लादे लोगों की तसवीरें सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई थीं. ऐसी तमाम दर्दनाक तसवीरें दानिश ने ही अपने कैमरे में कैद की थीं और प्रवासी मजदूरों की व्यथा को देशदुनिया के सामने लाए थे.

दानिश की उस वायरल तसवीर को भी कोई नहीं भूला होगा, जब  12 सितंबर, 2018 को उत्तर कोरिया के प्योंगयांग में एक चिडि़याघर का दौरा करते हुए महिला सैनिक आइसक्रीम खाते हुए कैमरे में कैद हुई थी.

दानिश सिद्दीकी ने अपने करियर के दौरान साल 2015 में नेपाल में आए भूकंप, साल 2016-17 में मोसुल की लड़ाई, रोहिंग्या नरसंहार से पैदा हुए शरणार्थी संकट और हांगकांग को कवर किया.

इस के अलावा साल 2020 में दिल्ली में हुए दंगों के दौरान भी दानिश सिद्दीकी की तसवीरें खासी चर्चा में रहीं. दिल्ली दंगों के दौरान जामिया के पास गोपाल शर्मा नाम के शख्स की फायरिंग करते हुए तसवीर दानिश सिद्दीकी ने ही ली थी. यह तसवीर उस समय दिल्ली दंगों की सब से चर्चित तसवीरों में से एक थी.

जामिया नगर की गफ्फार मंजिल के रहने वाले दानिश सिद्दीकी के गमजदा परिवार में 17 जुलाई की सुबह से ही मिलनेजुलने वालों और परिचितों के दुख जताने का सिलसिला जारी हो गया. पिता प्रोफेसर अख्तर सिद्दीकी को विश्वास ही नहीं हो रहा कि उन का बेटा अब इस दुनिया में नहीं रहा.

वे बताते हैं कि 2 दिन पहले ही दानिश से उन की फोन पर बातचीत हुई थी. उन्होंने दानिश से अपनी सुरक्षा का ध्यान रखने के लिए कहा तो दानिश ने कहा था कि वे फिक्र न करें अफगानी आर्म्ड फोर्स उन्हें पूरी सुरक्षा दे रही है. अविश्वसनीय भाव से बेटे की तसवीर को निहारते प्रोफेसर अख्तर सिद्दीकी की आंखों से आंसू टपक रहे थे.

अफगानी फोर्स की थी सुरक्षा

दूसरी तरफ दानिश की तालिबानी हमले में मौत के बाद विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला ने यूएनएससी की बैठक में कहा कि भारत अफगानिस्तान में पत्रकार दानिश सिद्दीकी की हत्या की कड़ी निंदा करता है.

साथ ही सशस्त्र संघर्ष के हालात में मानवीय कार्यकर्ताओं के खिलाफ हिंसा पर गंभीर चिंता व्यक्त भी की है. भारत में अधिकांश राजनेताओं ने दानिश की मौत पर दुख व्यक्त किया.

रायटर्स के अध्यक्ष माइकल फ्रिडेनबर्ग और एडिटर इन चीफ एलेसेंड्रा गैलोनी ने भी दानिश सिद्दीकी की हत्या पर शोक जाहिर किया है.

18 जुलाई, 2021 को जब एयर इंडिया के विमान से उन का पार्थिव शरीर भारत लाया गया तो एयरपोर्ट पर उन के पिता ने शव रिसीव किया.

पार्थिव शरीर आने से पहले ही सरकार ने जरूरी इंतजाम किए हुए थे, जिस की वजह से क्लीयरेंस व अन्य किसी चीज में दिक्कत नहीं आई. शव ले कर एंबुलेंस जब जामिया नगर पहुंची तो सड़क के दोनों ओर गमगीन लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा.

दिल्ली के जामिया नगर के गफ्फार मंजिल इलाके में स्थित उन के घर पर लोगों का तांता लग गया. सभी ने उन की मौत पर शोक व्यक्त किया. रविवार यानी 18 जुलाई की देर रात को उन्हें जामिया के कब्रिस्तान में सुपुर्द-ए-खाक किया गया.

अब फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी भले ही हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन इन की तसवीरें हमेशा उन के साहसिक कार्य की कहानी बयां करती रहेंगी.

 

प्यार में किया बॉर्डर पार : एक अनोखी प्रेम कहानी

कहते हैं प्यार को सीमा में बांध कर नहीं रखा जा सकता. तभी तो पश्चिम बंगाल के रहने वाले जयकांतोचंद्र राय को फेसबुक के जरिए बांग्लादेश की परिमिता से प्यार हो गया. जयकांतो ने बांग्लादेश जा कर उस से विधिविधान से शादी भी कर ली, लेकिन…

पश्चिम बंगाल के जिला नदिया के थाना शांतिपुर के गांव बल्लवपुर के रहने वाले नोलिनीकांत राय के 20 साल के बेटे जयकांतोचंद्र राय ने कालेज में दाखिला ले लिया था. कालेज की पढ़ाई के साथसाथ वह पिता के साथ खेती के काम में हाथ भी बंटा देता था.

नोलिनीकांत के पास खेती की जमीन के अलावा कई तालाब थे, जिन में वह मछली पालन करते थे. मछली पालन से उन्हें अच्छीखासी आमदनी हो रही थी, इसलिए उन्हें किसी बात की चिंता नहीं थी. साधनसंपन्न होने की वजह से गांव में भी रह कर वह सुख की जिंदगी जी रहे थे.

जयकांतो उन का इकलौता बेटा था, इसलिए उन के पास इतना कुछ था कि उन के बेटे को कहीं बाहर जाने की जरूरत ही नहीं थी. जब वह घर में रहता तो स्मार्टफोन में लगा रहता. यह फोन उस के पिता ने कालेज में दाखिला लेने के बाद दिया था.

फोन हाथ में आते ही जयकांतो सोशल मीडिया पर ऐक्टिव हो गया था.

जयकांतो ज्यादातर उन्हीं लड़कियों को फेसबुक पर फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजता था, जो पश्चिम बंगाल की रहने वाली होती थीं. इस के अलावा वह बांग्लादेश की भी उन लड़कियों को फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजता था, जो उस की किसी फ्रैंड की कौमन फ्रैंड होतीं. रिक्वेस्ट कंफर्म होने बाद वह उन से मैसेंजर द्वारा चैटिंग (मैसेज द्वारा बातचीत) करने की कोशिश करता.

20-21 साल का लड़का किसी हमउम्र लड़की से घरपरिवार की बात तो करेगा नहीं, वह जो बातें करता था, वह ज्यादातर लड़कियों को पसंद नहीं आती थीं. तब वे उसे ब्लौक कर देतीं.

जयकांतो को ऐसी लड़कियों से बड़ी चिढ़ और कोफ्त भी होती थी कि ये कैसी लड़कियां हैं, जो उस के दिल की बात नहीं समझतीं.

फेसबुक पर अब तक के अनुभव के बाद जयकांतो अब मैसेंजर पर अपने मन की बात नहीं, बल्कि जो बात लड़कियों को अच्छी लगती थीं, उस तरह की बातें करने लगा. इस का नतीजा यह निकला कि लड़कियां जवाब भले न देतीं, पर उसे ब्लौक नहीं करती थीं.

जयकांतो की इस तरह की तमाम लड़कियों और महिलाओं से बातचीत भी होती थी, जो मैसेंजर पर अश्लील बातचीत करने के साथसाथ अश्लील फोटो और वीडियो भेजती थीं. लेकिन इस में दिक्कत यह होती है कि इस तरह के लड़कियों और महिलाओं की दोस्ती टिकाऊ नहीं होती. 2-4 दिन बातचीत कर के वे दोस्ती खत्म कर देती थीं.

जयकांतो अब इस तरह के दोस्तों से ऊब गया था. वह कोई ऐसी दोस्त चाहता था, जो उस से सिर्फ प्यार की बातें करे. पर काफी प्रयास के बाद भी इस तरह की कोई दोस्त नहीं मिल रही थी.

बौर्डर के उस पार मिला दिल

जयकांतो की गांव या कालेज में भी कोई इस तरह की दोस्त नहीं थी, जो अपने दिल की बात उस से कहती और उस के दिल की बात सुनती.

उस ने बहुत लड़कियों से अपने दिल की बात कहने की कोशिश की थी, पर किसी ने भी उस के दिल की बात नहीं सुनी थी. जिस से भी उस ने दिल की बात कहने की कोशिश की, उस ने हंसी में उड़ा दिया था. फिर भी जयकांतो निराश नहीं हुआ. वह कोशिश करता रहा.

आखिर उस की कोशिश रंग लाई और उस की दोस्ती एक ऐसी लड़की से हो गई, जो उस के दिल की बात सुनने को तैयार हो गई. वह लड़की परिमिता बांग्लादेश के थाना नेरेल की रहने वाली थी. उस समय उस की उम्र मात्र 15 साल थी और जयकांतो की 20 साल.

उस मासूम को जयकांतो की बातें पसंद आने लगी थीं. जयकांतो उस से जो भी पूछता, वह खुशीखुशी उस की बातों का जवाब देती थी. ऐसे में ही एक दिन जयकांतो ने मैसेज कर के उस से पूछा, ‘‘तुम्हारा कोई बौयफ्रैंड भी है?’’

‘‘अभी तो नहीं है, पर अब बनाने की सोच रही हूं.’’ परिमिता ने मैसेज कर के जवाब दिया.

‘‘कौन है वह भाग्यशाली, जिसे तुम्हारा बौयफ्रैंड बनने का मौका मिल रहा है?’’ जयकांतो ने पूछा.

‘‘कोई भी हो सकता है. तुम भी हो सकते हो. क्यों तुम मेरे बौयफ्रैंड बनने लायक नहीं क्या?’’ परिमिता ने पूछा.

‘‘मैं इतना भाग्यशाली कहां, जो तुम जैसी लड़की मुझे अपना बौयफ्रैंड बनाए. अगर ऐसा हो जाए तो मैं खुद को बड़ा ही खुशनसीब समझूंगा.’’ आह सी भरते हुए जयकांतो ने जवाब भेजा.

‘‘अगर मैं कहूं कि मैं तुम्हें ही अपना बौयफ्रैंड बनाना चाहती हूं तो..’’

‘‘यह तो मेरा बड़ा सौभाग्य होगा,’’ जयकांतो ने जवाब दिया, ‘‘तुम्हारे इस मैसेज से मैं मारे खुशी के फूला नहीं समा रहा हूं.’’

‘‘एक बात बताऊं?’’ परिमिता ने मैसेज किया.

‘‘बताओ,’’ जयकांतो ने मैसेज द्वारा पूछा.

‘‘जितना तुम खुश हो, उस से कहीं ज्यादा मैं खुश हूं तुम्हें बौयफ्रैंड बना कर.’’

‘‘सच?’’

‘‘अब कसम खाऊं तब विश्वास करोगे क्या?’’ परिमिता ने यह मैसेज भेज कर अपनी दोस्ती का विश्वास दिला दिया.

इस के बाद दोनों में पक्की दोस्ती हो गई. अब दोनों एकदूसरे से अपनेअपने दिल की बात कहनेसुनने लगे. धीरेधीरे उन का बात करने का समय बढ़ता गया तो उन के दिलों में  एकदूसरे के लिए जगह बनने लगी.

दोनों ही एकदूसरे से बात करने के लिए बेचैन रहने लगे. बेचैनी ज्यादा बढ़ने लगी तो एक दिन जयकांतो ने परिमिता को मैसेज किया, ‘‘परिमिता, मैं तुम से एक बात कहना चाहता हूं. पर डरता हूं कि कहीं तुम नाराज न हो जाओ?’’

‘‘मुझे पता है तुम क्या कहना चाहते हो. लड़के इस तरह की बात तभी करते हैं, जब उन्हें अपने प्यार का इजहार करना होता है. तुम यही कहना चाहते होगे. परिमिता ने मैसेज किया.

प्यार का हुआ इजहार

‘‘बात तो तुम्हारी सच है परिमिता. मैं कहना तो यही चाहता था. पर तुम्हें कैसे पता चला कि मैं प्यार का इजहार करने वाला हूं?’’ जयकांतो ने पूछा.

‘‘और कोई ऐसी बात हो ही नहीं सकती, जिसे सुन कर नाराज होने वाली होती. रही प्यार की बात तो उस में भी क्यों नाराज होना. मरजी की बात है. मन हो तो हां कर दो, वरना मना कर दो. फिर तुम तो वैसे भी मेरे बौयफ्रैंड हो, फ्रैंड की बात पर तो कोई नाराज नहीं होता.’’ परिमिता ने जवाब में मैसेज भेजा.

‘‘तो फिर मैं हां समझूं?’’ एक बार फिर जयकांतो ने पूछा.

‘‘अब किस तरह कहूं. कसम खानी होगी क्या?’’

‘‘मुझे तो अभी भी विश्वास नहीं हो रहा कि तुम ने हां कर दिया है.’’ जयकांतो ने कहा.

‘‘विश्वास करो जयकांतो, मैं भी तुम्हें प्यार करती हूं. मैं तो कब से इंतजार कर रही थी तुम्हारे इस इजहार का. अगर तुम से प्यार न कर रही होती तो तुम्हारे पीछे अपना इतना समय क्यों बरबाद करती.’’

परिमिता के इस जवाब से जयकांतो बहुत खुश हुआ. इसी बात के लिए तो वह कब से राह देख था. न जाने कितनी लड़कियों की गालियां सुनी थीं, उपेक्षा और तिरस्कार सहा था.

आज कितने दिनों बाद उस का सपना पूरा हुआ था. यही शब्द सुनने के लिए उस ने अपना कितना समय बरबाद किया था.

परिमिता द्वारा प्यार स्वीकार कर लेने पर अब जयकांतो फूला नहीं समा रहा था. भले ही परिमिता सीमा पार की रहने वाली थी, पर जयकांतो को इस बात की खुशी थी कि कोई तो है इस संसार में जो उसे प्यार करती है. इस की वजह यह थी कि सोशल मीडिया पर न तो कोई दोस्त होता है और न कोई प्यार करने वाला.

प्यार हो भी कैसे सकता है. जिसे कभी देखा नहीं, जिस के बारे में कुछ जानते नहीं, उस ने फेसबुक पर जो अपने बारे में जानकारी दी है, वह गलत है या सही, ऐसे आदमी से दोस्ती या प्यार कैसे हो सकता है.

फेसबुक के दोस्त सिर्फ कहने के दोस्त हो सकते हैं. इन में न कोई भावनात्मक लगाव होता है और न किसी तरह की संवेदना होती है.

ऐसे में अगर जयकांतो को कोई प्यार करने वाली मिल गई थी तो वह सचमुच भाग्यशाली था. भले ही वह सीमा पार बांग्लादेश की रहने वाली थी.

जब जयकांतो और परिमिता एकदूसरे को प्यार करने लगे तो दोनों ही एकदूसरे को ज्यादा से ज्यादा समय देने लगे. जो परिमिता कभी अपना नंबर जयकांतो को देने को तैयार नहीं थी, प्यार होने के बाद उस ने तुरंत अपना नंबर जयकांतो को दे दिया था. फिर तो दोनों में लंबीलंबी बातें भी होने लगीं.

अब तक जयकांतो और परिमिता को फेसबुक द्वारा संपर्क में आए करीब 2 साल बीत चुके थे. प्यार की बात कहने में उन्हें 2 साल लग गए थे. लेकिन मनमाफिक परिणाम मिलने से उन्हें इस बात का जरा भी गम नहीं था कि उन का इतना समय बरबाद हो गया.

दोनों के घर वाले हुए राजी

बेटे को हर समय फोन पर लगे देख कर नोलिनीकांत सोचने लगे कि आखिर बेटा फोन में इतना क्यों लगा रहता है. ऐसा कोई रिश्तेदार भी नहीं है, जिस से वह इतनी लंबीलंबी बातें करे. जितनी लंबीलंबी बातें जयकांतो करता था, कोई भी बाप सोचने को मजबूर हो जाता.

कई बार उन्होंने उसे रात में भी किसी से बातें करते सुना था. उन से नहीं रहा गया तो एक दिन उन्होंने टोक दिया. बाप के पूछने पर जयकांतो ने भी कुछ छिपाया नहीं और अपने तथा परिमिता के प्यार की पूरी कहानी बता कर कह दिया कि वह उस से शादी करना चाहता है.

नोलिनीकांत को बेटे की शादी परिमिता से करने में कोई ऐतराज नहीं था. वह इस के लिए तैयार भी थे, पर परेशानी की बात यह थी कि वह सीमा पार बांग्लादेश की रहने वाली थी.

उस से शादी करने के लिए उन्हें बहुत झमेला करना पड़ता. पासपोर्ट बनवाना पड़ता, वीजा लगवाना पड़ता, इसलिए उन्होंने बेटे को समझाया कि जब यहीं तमाम लड़कियां हैं तो बांग्लादेश की लड़की के झमेले में वह क्यों पड़ रहा है.

पर जयकांतो ने तो परिमिता से सच्चा प्यार किया था, इसलिए उस ने बाप से साफ कह दिया कि वह शादी करेगा तो परिमिता से ही करेगा, वरना शादी नहीं करेगा. इस के लिए उसे कुछ भी करना पड़े.

नोलिनीकांत मजबूर हो गए. ऐसा ही कुछ हाल परिमिता का भी था. वह भी जयकांतो के अलावा किसी और से विवाह करने को राजी नहीं थी. बात जब दोनों के घर वालों की जानकारी में आई तो उन्होंने आपस में भी बात की. इस मामले को कैसे हल किया जाए, अब वे इस बात पर विचार करने लगे.

परिमिता के घर वालों का कहना था कि जयकांतो अकेला ही बांग्लादेश आ जाए, वे बेटी की शादी उस के साथ कर देंगे. उस के बाद जयकांतो दुलहन ले कर लौट जाएगा. नोलिनीकांत ने जब इस बात की चर्चा अपने कुछ दोस्तों से की तो सब ने यही सलाह दी कि दस्तावेज तैयार कराने के झमेले में वह न पड़े.

रोजाना न जाने कितने लोग अवैध रूप से सीमा पार से इस पार आते हैं तो न जाने कितने लोग उस पार जाते हैं. उसी तरह किसी दलाल से बात कर के जयकांतो को सीमा पार करा दिया जाए. वह वहां शादी कर के उसी तरह दलाल के माध्यम से पत्नी के साथ सीमा पार कर के आ जाएगा.

बांग्लादेश में हो गई शादी

नोलिनीकांत को यह रास्ता ठीक लगा. वह अप्पू नामक एक दलाल से मिला तो सीमा पार कराने के लिए उस ने 10 हजार रुपए मांगे. जयकांतो को परिमिता से मिलने के लिए इतनी रकम ज्यादा नहीं लगी. 10 हजार रुपए अप्पू को दे कर जयकांतो 8 मार्च, 2021 को सीमा पार परिमिता के घर पहुंच गया.

परिमिता के घर वाले शादी के लिए तैयार थे ही. उन्होंने शादी की पूरी तैयारी कर रखी थी. 10 मार्च को उन्होंने परिमिता का ब्याह जयकांतो से करा दिया.

ब्याह के बाद जयकांतो कुछ दिन ससुराल में रुका रहा. लेकिन कितने दिन वह ससुराल में पड़ा रहता. उसे घर तो आना ही था. वह जिस तरह चोरीछिपे से सीमा पार कर के बांग्लादेश गया था, अब उसी तरह चोरी से ही उसे बांग्लादेश से भारत आना था.

इस के लिए उस ने वहां दलाल की तलाश की तो उस की मुलाकात राजू मंडल से हुई. उस ने सीमा पार कराने के लिए 10 हजार बांग्लादेशी टका मांगे. जयकांतो राजू मंडल को यह रकम दे कर 26 जून, 2021 को भारत की सीमा में घुस रहा था कि बीएसएफ (बौर्डर सिक्योरिटी फोर्स यानी सीमा सुरक्षा बल) ने दोनों को पकड़ लिया.

दरअसल, बीएसएफ की खुफिया शाखा ने मधुपुरा सीमा पर तैनात जवानों को सूचना दी कि कुछ लोग बांग्लादेश की ओर से भारत की सीमा में घुस रहे हैं. इसी सूचना के आधार पर बीएसएफ के जवानों ने शाम करीब 4 बजे जयकांतो और परिमिता को भारतबांग्लादेश की सीमा पर गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ में जयकांतो और परिमिता ने फेसबुक द्वारा होने वाले अपने प्यार से ले कर विवाह तक की पूरी कहानी सुना दी.

जयकांतो ने अपनी पहचान बताने के साथ अपने भारतीय होने के सारे साक्ष्य भी उपलब्ध करा दिए. लेकिन उस की पत्नी परिमिता तो बांग्लादेश की रहने वाली थी.

विस्तृत पूछताछ के लिए दोनों को मधुपुरा चौकी लाया गया, जहां बीएसएफ की इंटेलिजेंस शाखा के कमांडिंग औफिसर संजय प्रसाद सिंह ने दोनों से विस्तार से पूछताछ की.

दरअसल, अकसर लोग प्यार या विवाह के नाम पर बांग्लादेश की मासूम लड़कियों को फंसा कर देहव्यापार के दलदल में धकेल देते हैं.

इस तरह की मानव तस्करी को रोकने के लिए दक्षिण बंगाल फ्रंटियर ने बौर्डर पर एंटी ट्रैफिकिंग रैकेट तैनात किया है. बीएसएफ ऐसे मामलों में हर तरह से जांच करती है, जिस से किसी गरीब मासूम का शोषण न हो सके.

पूछताछ के बाद बीएसएफ ने जयकांतो और परिमिता को कानूनी कररवाई के लिए थाना भीमपुर पुलिस को सौंप दिया. पुलिस ने भी दोनों से विस्तारपूर्वक पूछताछ की. उस के बाद दोनों को अदालत में पेश किया गया.

अदालत से जयकांतो को तो जमानत मिल गई, पर परिमिता को नारी निकेतन भेज दिया गया. अब दोनों को एक होने के लिए एक बार फिर संघर्ष करना पड़ेगा. लेकिन जहां प्यार है, वहां कुछ भी संभव है. परिमिता भारत आ गई है तो जयकांतो की हो कर रहेगी.

लाल सूटकेस का खौफनाक रहस्य

तिरुपति भारत के प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में एक है. आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित तिरुपति शहर में हर साल लाखों की तादाद में दर्शनार्थी आते हैं. समुद्र तल से करीब 3200 फीट की ऊंचाई पर तिरुमला की पहाडि़यों पर बना श्री वेंकटेश्वर मंदिर यहां का सब से बड़ा आकर्षण है.

कई शताब्दी पहले बना यह मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला और शिल्पकला का अद्भुत उदाहरण है. तिरुपति आने वाले हरेक श्रद्धालु की सब से बड़ी इच्छा श्री वेंकटेश्वर के दर्शन करने की होती है. इस के अलावा भी यहां कई अन्य मंदिर हैं.

इन मंदिरों में सामान्य दिनों में देशविदेश से रोजाना हजारोंलाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं. इसलिए तिरुपति को दक्षिण भारत की सब से बड़ी धार्मिक नगरी भी कहा जाता है.

इसी धार्मिक नगरी में सब से बड़ा सरकारी अस्पताल है. इस का नाम श्री वेंकटा रमाना रुईया (एसवीआरआर) है. इस 23 जून, 2021 को अस्पताल के पिछवाड़े एक जला हुआ सूटकेस पड़ा होने की सूचना पुलिस को मिली.

सूचना पर तिरुपति के अलिपिरी थाने की पुलिस मौके पर पहुंची. पुलिस ने उस बड़े से सूटकेस का मुआयना किया. सूटकेस जला हुआ था. उस में से किसी इंसान का जला हुआ शव नजर आ रहा था.

पुलिस ने सूटकेस से शव को निकलवाया. शव पूरी तरह जला हुआ था. कई जगह  से चमड़ी और मांस भी जल चुका था.  केवल हड्डियां बची हुई थीं. मामला बेहद गंभीर था.

अलिपिरी थाने की पुलिस ने अपने उच्चाधिकारियों को इस की सूचना दी. इस के बाद पुलिस के आला अफसर भी मौके पर पहुंच गए.

पुलिस अधिकारियों ने शव का मुआयना किया, लेकिन जला हुआ शव देख कर यह भी पता नहीं चल रहा था कि यह पुरुष का है या महिला का.

ऐसी हालत में शव की शिनाख्त होना तो दूर की बात थी. मौके से पुलिस को ऐसी कोई संदिग्ध चीज नहीं मिली, जिस से मृतक या शव फेंकने वाले के बारे में कोई सुराग मिलता.

पुलिस अधिकारियों ने विधि विज्ञान प्रयोगशाला से फोरैंसिक टीम बुलाई. फोरैंसिक वैज्ञानिकों ने कुछ साक्ष्य जुटाए. इस के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए इसी अस्पताल की मोर्चरी में भेज दिया गया.

डाक्टरों ने पोस्टमार्टम के बाद केवल इतना बताया कि शव किसी महिला का है और उस की उम्र 25 से 30 साल के बीच है. इस के बाद तिरुपति के अलिपिरी पुलिस थाने में मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

डाक्टरों की रिपोर्ट से पुलिस को बहुत ज्यादा मदद नहीं मिली. पुलिस अधिकारी हैरान थे कि धार्मिक नगरी में ऐसा जघन्य कांड किस ने और क्यों किया? महिला का शव होने से अधिकारी इस बात पर विचार करने लगे कि कहीं यह कोई प्रेम प्रसंग का मामला तो नहीं है?

शव की शिनाख्त में जुटी पुलिस

सब से पहले यह पता करना जरूरी था कि शव किस का था? इस के लिए पुलिस अधिकारियों ने तिरुपति सहित चित्तूर जिले के सभी थानों और आसपास की पुलिस को सूचना दे कर यह पता कराया कि किसी महिला के लापता या गुमशुदा होने की कोई रिपोर्ट तो हाल ही दर्ज नहीं हुई है.

लगभग सभी थानों से पुलिस को न में ही जवाब मिला. 2-4 थानों से लापता महिलाओं की सूचना मिली, लेकिन वे उस उम्र के दायरे में नहीं आ रही थी.

पुलिस की कई टीमें मृतका की शिनाख्त करने और कातिल का पता लगाने की कोशिशों में जुटी हुई थीं, लेकिन कोई सुराग नहीं मिल रहा था. 2-3 दिन बीत गए.

पुलिस के लिए यह मर्डर मिस्ट्री बन गई थी. यह तय था कि महिला की हत्या कर सोचीसमझी साजिश के तहत सूटकेस में रख कर शव जलाया गया है ताकि कोई सबूत नहीं बचे.

मतलब कातिल जो भी हो, वह शातिर दिमाग था. जांचपड़ताल में पुलिस अधिकारियों को खयाल आया कि सूटकेस में शव जलाया गया है तो यह भारीभरकम सूटकेस किसी वाहन में रख कर लाया गया होगा.

यह खयाल आते ही अधिकारियों ने एसवीआरआर अस्पताल परिसर और आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखने का फैसला किया.

सीसीटीवी फुटेज खंगालने के बाद पुलिस को पता चला कि एक व्यक्ति टैक्सी से भारीभरकम सूटकेस ले कर अस्पताल आया था. उस व्यक्ति के साथ डेढ़दो साल की एक छोटी बच्ची थी. टैक्सी से लाल रंग के उस ट्रौली सूटकेस को उतारने के बाद वह व्यक्ति उसे पहियों के सहारे खींचता हुआ अस्पताल के पिछवाड़े ले गया था.

कैमरे की ये फुटेज मिलने पर इस मर्डर मिस्ट्री में उम्मीद की कुछ किरण नजर आई. पुलिस के लिए उस व्यक्ति की तलाश करना ज्यादा मुश्किल काम था. इसलिए सब से पहले उस टैक्सी वाले का पता लगाया गया. 1-2 दिन की भागदौड़ के बाद पुलिस को वह टैक्सी वाला मिल गया.

पुलिस ने उस से पूछताछ की, तो पता चला कि 22 जून की रात एक व्यक्ति उस की टैक्सी में लाल रंग का ट्रौली वाला सूटकेस रख कर लाया था. सूटकेस भारीभरकम था. उसे खींचने में उसे जोर लगाना पड़ रहा था. उस व्यक्ति के साथ डेढ़दो साल की एक बच्ची भी थी.

अस्पताल में उस व्यक्ति ने टैक्सी से सूटकेस उतारा. बच्ची उस समय सो गई थी. इसलिए उस व्यक्ति ने टैक्सी वाले से कहा कि मुझे यह सूटकेस किसी को देना है. मैं कुछ देर में आता हूं. यह बच्ची सो गई है. इसलिए इसे टैक्सी में छोड़ जाता हूं.

टैक्सी ड्राइवर से मिला सुराग

उस व्यक्ति ने टैक्सी वाले को रुकने के एवज में और बच्ची का ध्यान रखने के लिए कुछ पैसे देने का वादा किया.

टैक्सी वाले ने पैसों के लालच में हामी भर दी. इस के बाद वह व्यक्ति पहियों के सहारे उस ट्रौली बैग को खींचते हुए ले गया.

करीब आधे घंटे बाद वह व्यक्ति वापस आया. तब तक बच्ची टैक्सी में सोती हुई ही मिली. यह देख कर उस ने टैक्सी वाले को धन्यवाद दिया और वापस चलने के लिए टैक्सी में सवार हो गया. टैक्सी वाला उस व्यक्ति को जहां से लाया था, उसी जगह वापस छोड़ आया.

उस व्यक्ति ने बच्ची को गोद में उठाया और टैक्सी से उतर कर किराए का हिसाब किया. इस के बाद वह व्यक्ति लंबेलंबे डग भरता हुआ तेजी से एक तरफ चला गया. उस व्यक्ति को जाता देख कर टैक्सी वाला भी वहां से चल दिया.

टैक्सी वाले से पुलिस को काफी कुछ सुराग मिल गया था. अब उस व्यक्ति का पताठिकाना तलाश करना बाकी था. टैक्सी वाले ने उस व्यक्ति को जिस जगह छोड़ा था, पुलिस ने उस के आसपास के इलाकों में लोगों को फोटो दिखा कर उस व्यक्ति की तलाश शुरू कर दी.

इस काम में पुलिस की कई टीमें लगाई गईं. इस से परिणाम भी जल्दी ही सामने आ गए. पता चला कि उस व्यक्ति का नाम श्रीकांत रेड्डी था. यह भी पता चल गया कि सूटकेस में जिस महिला का जला हुआ शव मिला था, वह करीब 26-27 साल की उस की पत्नी भुवनेश्वरी थी.

पुलिस को अब श्रीकांत रेड्डी की तलाश थी. इस बीच भुवनेश्वरी की एक रिश्तेदार महिला पुलिस एसआई ममता ने अपने स्तर पर जुटाए कुछ सीसीटीवी फुटेज अलिपिरी थाना पुलिस को उपलब्ध करा दिए.

इन फुटेज से श्रीकांत के अपराधी होने की पुष्टि हो गई. पुलिस ने मोबाइल लोकेशन के आधार पर पता कर 30 जून को श्रीकांत रेड्डी को गिरफ्तार कर लिया.

श्रीकांत से पुलिस की पूछताछ और सीसीटीवी फुटेज के आधार पर भुवनेश्वरी की हत्या की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

श्रीकांत रेड्डी आंध्र प्रदेश के कडपा जिले के बडवेल का रहने वाला था और भुवनेश्वरी चित्तूर जिले के रामासमुद्रम गांव की रहने वाली थी. भुवनेश्वरी एक सौफ्टवेयर इंजीनियर थी. वह हैदराबाद शहर में टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज में नौकरी करती थी. श्रीकांत भी टेक्नो इंजीनियर था. वह भी हैदराबाद की एक कंपनी में काम करता था.

एक ही प्रोफैशन में होने के कारण दोनों में पहले यारीदोस्ती हुई. यह दोस्ती बाद में प्यार में बदल गई. दोनों ने शादी करने का फैसला किया. वर्ष 2019 के शुरू में उन्होंने शादी कर ली. दोनों हैदराबाद में रहते थे. पतिपत्नी दोनों इंजीनियर थे. वेतन भी ठीकठाक था. इसलिए किसी तरह की कोई परेशानी नहीं थी. भुवनेश्वरी भी खुश थी और श्रीकांत भी.

आपसी झगड़े में उड़नछू हो गया लव

दोनों की खुशियां तब और बढ़ गईं, जब 2019 के आखिर में उन के घर एक नन्ही परी ने जन्म लिया. हालांकि पतिपत्नी दोनों नौकरीपेशा थे, लेकिन फिर भी बेटी के जन्म से उन की खुशियों की दुनिया और ज्यादा रंगीन हो गई.

बेटी 4 महीने की हुई थी कि देश में कोरोना की पहली लहर आ गई. इस पहली लहर में पिछले साल श्रीकांत की नौकरी छूट गई. कुछ दिन तो घर में ठीकठाक चलता रहा, लेकिन बाद में पतिपत्नी के बीच झगड़े होने लगे. झगड़े का कारण था कि श्रीकांत अपने तमाम तरह के खर्चे के पैसे भुवनेश्वरी से लेता था.

भुवनेश्वरी उसे पैसे तो दे देती, लेकिन वह उस से कोई कामधंधा भी करने को कहती थी. स्थितियां ऐसी रहीं कि श्रीकांत को कोई अच्छी नौकरी नहीं मिली.

वह पत्नी पर ही आश्रित रहने लगा. भुवनेश्वरी भी आखिर कब तक उसे शौक पूरे करने के लिए पैसे देती? नतीजतन घर में रोजाना किसी न किसी बात पर झगड़े होने लगे.

इस बीच, इस साल कोरोना की दूसरी लहर आ गई. छोटीबड़ी कंपनियों ने अपने कर्मचारियों से वर्क फ्रौम होम शुरू करा दिया. भुवनेश्वरी भी घर से ही कंपनी का काम करने लगी. खर्चे कम करने के लिए इसी साल भुवनेश्वरी और श्रीकांत हैदराबाद से तिरुपति आ कर रहने लगे.

तिरुपति में दोनों पतिपत्नी अपनी सवाडेढ़ साल की बेटी के साथ एक अपार्टमेंट में रहते थे. तिरुपति आने के बाद भी श्रीकांत निठल्ला बना रहा. उस के निठल्लेपन के कारण घर में झगड़े बढ़ते जा रहे थे. पत्नी उसे कई बार पैसे देने से मना कर देती थी. इस से श्रीकांत चिढ़ जाता था.

पत्नी की पाबंदियों और रोज की रोकटोक से श्रीकांत के मन में उस के प्रति घृणा बढ़ती गई. लिहाजा उस ने भुवनेश्वरी को ठिकाने लगाने का फैसला किया.

गला दबा कर मारा था पत्नी को

22 जून, 2021 को भुवनेश्वरी जब अपने फ्लैट में सो रही थी तो श्रीकांत ने तकिए से गला दबा कर उसे मौत की नींद सुला दिया.

पत्नी की सांसें थमने के बाद वह उस का शव ठिकाने लगाने के बारे में सोचने लगा. काफी सोचविचार के बाद उस ने घर में रखा एक लाल रंग का बड़ा ट्रौली सूटकेस निकाला और उस में भुवनेश्वरी की लाश बंद कर दी.

वह अपनी डेढ़ साल की बेटी के बारे में सोचने लगा. वह उस मासूम को अकेला कहीं छोड़ कर भी नहीं जा सकता था और उस को मारना भी नहीं चाहता था.

शाम का धुंधलका होने पर श्रीकांत ने बेटी को गोद में उठाया और भुवनेश्वरी की लाश वाला ट्रौली सूटकेस बाहर निकाल कर फ्लैट में ताला लगाया. वह लिफ्ट के सहारे ट्रौली सूटकेस ले कर नीचे आया और गलियारे से हो कर अपार्टमेंट से बाहर निकल गया.

बाहर सड़क पर आ कर उस ने टैक्सी ली. उस में वह सूटकेस रखा. बेटी को गोद में लिए हुए वह टैक्सी से एसवीआरआर अस्पताल पहुंचा और टैक्सी वाले को रुकने को कह कर सूटकेस ले कर चला गया. मासूम बेटी को वह टैक्सी में ही सोते हुए छोड़ गया.

सूटकेस को धकेलता हुआ वह अस्पताल के पिछवाड़े ले गया. वहां अंधेरा और घासफूस थी. सूटकेस को एक कोने में ले जा कर उस ने उस पर अपने साथ लाया हुआ पैट्रोल छिड़क दिया और आग लगा दी. आग लगाने के बाद वह छिप कर खड़ा हो गया और सूटकेस को जलता हुआ देखता रहा.

करीब आधे घंटे बाद जब उसे यह इत्मीनान हो गया कि अब पत्नी की लाश जल गई होगी और उस की पहचान नहीं हो सकेगी, तब वह वहां से चल दिया. टैक्सी के पास पहुंच कर उस ने पीछे की सीट पर सोई मासूम बेटी को संभाला. फिर उसी टैक्सी में सवार हो कर वापस उसी जगह उतर गया, जहां से सूटकेस ले कर बैठा था.

दूसरे दिन श्रीकांत ने अपने रिश्तेदारों को यह बता दिया कि भुवनेश्वरी कोरोना के डेल्टा प्लस वैरिएंट से संक्रमित थी. इस से उस की मौत हो गई ओर कोरोना संक्रमित होने के कारण अस्पताल वालों ने ही उस का अंतिम संस्कार कर दिया.

भुवनेश्वरी के पीहरवालों को हालांकि इस बात पर भरोसा नहीं हो रहा था, लेकिन उन्होंने श्रीकांत की बात पर मजबूरी में विश्वास कर लिया. क्योंकि वे कोरोना के कहर को जानते थे. इस बीच श्रीकांत फ्लैट से फरार हो गया.

भुवनेश्वरी की एक रिश्तेदार ममता प्रशिक्षु सबइंसपेक्टर है. उसे भुवनेश्वरी की मौत का पता चला तो उसे भरोसा नहीं हुआ. चूंकि वह पुलिस अधिकारी थी, इसलिए उस ने अपने तरीके से इस की खोजबीन की और जिस अपार्टमेंट में वह रहता था, वहां की सीसीटीवी फुटेज खंगाले तो सारे सबूत मिल गए.

तमाम सबूतों के आधार पर आरोपी श्रीकांत पकड़ा गया. कथा लिखे जाने तक वह जेल में था.

इंजीनियर श्रीकांत ने अपने निठल्लेपन के कारण सौफ्टवेयर इंजीनियर पत्नी के खून से अपने हाथ तो रंग ही लिए. साथ ही डेढ़ साल की मासूम बेटी के सिर से ममता का आंचल भी छीन लिया.