बातों बातों में: क्यों सुसाइड करना चाहती थी अवनी

मन कड़ा कर के वह छलांग लगाने ही जा रही थी कि किसी ने पीछे से उस का हाथ पकड़ लिया. देखा वह एक युवक था. युवक की इस हरकत पर अवनी को गुस्सा आ गया. उस ने नाराजगी से कहा, ‘‘कौन हो तुम, मेरा हाथ क्यों पकड़ा? छोड़ो मेरा हाथ. मुझे बचाने की कोशिश करने की कोई जरूरत नहीं है. यह मेरी जिंदगी है, इस का जो भी करना होगा, मैं करूंगी. हां प्लीज, किसी भी तरह का कोई उपदेश देने की जरूरत नहीं है.’’

जवाब देने के बजाय युवक जोर से हंसा. उस की इस ढिठाई पर अवनी तिलमिला उठी. उस ने गुस्से में कहा, ‘‘न तो मैं ने इस समय हंसने वाली कोई बात कही, न ही मैं ने कोई जोक सुनाया, फिर तुम हंसे क्यों? और हां, तुम अपना नाम तो बता दो कि कौन हो तुम?’’

‘‘एक मिनट मेरी बात तो सुनो. जिंदगी के आखिरी क्षणों में मेरा नाम जान कर क्या करोगी. लेकिन अब तुम ने पूछ ही लिया है तो बताए देता हूं. मेरा नाम अमन है.’’

‘‘मुझे अब किसी की कोई बात नहीं सुननी. तुम यह बताओ कि हंसे क्यों?’’

‘‘तुम्हें जब किसी की कोई बात सुननी ही नहीं है तो मैं कैसे बताऊं कि हंसा क्यों?’’

‘‘इसलिए कि मैं यह कह रही थी कि…’’ अवनी थोड़ा सकपकाई.

इसके बाद थोड़ी चुप्पी के बाद कहा, ‘‘इसलिए कि अगर तुम्हें आत्महत्या न करने के बारे में कुछ सीखसलाह देनी हो तो वह सब

मुझे नहीं सुनना. मैं कह रही थी कि… मुझे नहीं लगता कि इस में कोई हंसने जैसी बात थी. वैसे भी मेरा हाथ पकड़ने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं है.’’

‘‘ओह सौरी… रियली सौरी.’’ अमन ने अवनी का हाथ छोड़ दिया.

‘‘इट्स ओके… अब बताइए क्यों हंसे?’’

‘‘अब जब तुम मरने ही जा रही हो तो अंतिम पलों में कुछ भी जानने से क्या फायदा?’’

‘‘मात्र एक छोटा सा कुतूहल… नथिंग एल्स…’’

‘‘ओके… लेकिन मरने वाले की अंतिम इच्छा पूरी होनी चाहिए, वरना आत्मा भूत बन भटकती रहेगी और भूत मुझे जरा भी पसंद नहीं हैं.’’

‘‘यह जो तुम घुमाफिरा कर कह रहे हो, इस के बजाय सीधेसीधे कह दो न. क्योंकि अब मुझे देर हो रही है.’’

‘‘आज ही तो मुझे हंसी आई है, वह भी तुम्हारे भ्रम पर. कुछ भ्रम भी कितने मजेदार होते हैं. पर सभी का जानना जरूरी नहीं है.’’

‘‘भ्रम… मेरा? कैसा, किस चीज का और कैसा भ्रम?’’

‘‘बाप रे, एक साथ इतने सारे सवाल?’’

‘‘तुम इसी तरह बातें करते हुए मूल बात को खत्म करना चाहते हो.’’

‘‘बात खत्म करना चाहता हूं, वह भी तुम्हारी. नहीं जी, सुंदर लड़कियों की बात खत्म करने की बेवकूफी मैं नहीं कर सकता.’’

‘‘बस… बस, मस्का लगाने की कोई जरूरत नहीं है. लड़कियों को फंसाने का यह बहुत सरल उपाय है. पर यहां तुम्हारी दाल गलने वाली नहीं है. तुम्हें सीधीसीधी बात करनी है या नहीं?’’ अवनी की बातों में गुस्सा झलक रहा था. चेहरा भी गुस्से से थोड़ा लाल था.

‘‘अरे बाबा, एकदम सीधीसादी बात है. तुम ने कहा कि मुझे बचाने की कोई जरूरत नहीं है. मुझे तुम्हारे इसी भ्रम पर हंसी आ गई थी. वैसे भी हंसने की मेरी आदत नहीं है.’’

‘‘इस में भ्रम कैसा, फिर तुम ने मेरा हाथ क्यों पकड़ा?’’

‘‘तुम्हें बचाने के लिए नहीं, कुछ बताने के लिए.’’

‘‘क्या बताने के लिए?’’

‘‘यही कि अगर तुम्हारा इरादा सचमुच मरने का है तो इस के लिए यह जगह ठीक नहीं है. हां, हाथपैर तुड़वाने हों तो अलग बात है.’’

‘‘मतलब’’

‘‘मतलब साफ है. जरा ध्यान से नीचे देखो. यह खाई गहरी तो है, पर इस में गिर कर मौत हो जाएगी, इस की कोई गारंटी नहीं है.’’

‘‘इस गहरी खाई में कोई इतनी ऊंचाई से कूदेगा तो मरेगा नहीं तो क्या होगा.’’

‘‘आई एम सौरी टू से… पर तुम्हारा आब्जर्वेशन पावर यानी निरीक्षण शक्ति बहुत कमजोर है.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘देख नहीं रही हो खाई में नीचे कितने पेड़ हैं. कहीं जमीन दिखाई दे रही है? अगर तुम यहां से कूदती हो तो गारंटी नहीं कि जमीन पर ही गिरो. किसी पेड़ पर गिरोगी तो हाथपैर तो टूट जाएगा, पर जान नहीं जाएगी. पेड़ में फंस गई तो न मर सकती हो न जी सकती हो. न नीचे जा सकती हो, न ऊपर आ सकती हो. त्रिशंकु की तरह लटकी रहोगी.

‘‘बस, उसी दृश्य की कल्पना कर के हंस पड़ा था. तुम पेड़ पर लटकी रहोगी तो देखने में कैसा लगेगा? बचाने के लिए भी चिल्लाओगी तो कोई बचाने के लिए भी नहीं पहुंच सकेगा. क्योंकि तुम्हारी आवाज किसी तक पहुंचेगी ही नहीं.’’

अवनी ने नीचे देखा. अमन की बात सच थी. नीचे घाटी पेड़ों से भरी थी. कहीं भी जमीन नहीं दिख रही थी. उस में फंस जाने की संभावना से नकारा नहीं जा सकता था. पर अभी उस का गुस्सा वैसा ही था. उस ने कहा, ‘‘लगता है, तुम्हारा दिमाग ठीक नहीं है. पेड़ में भी फंस गई तो नीचे गिर ही जाऊंगी. पेड़ मुझे पकड़ तो नहीं लेगा.’’

‘‘ओह यस, यू आर राइट. यह तो मैं ने सोचा ही नहीं, यू आर जीनियस.’’

‘‘फिर खुशामद, मैं ने पहले ही कह दिया है कि इस की कोई जरूरत नहीं है.’’

‘‘यस, यह तो मुझे पता है कि अब तुम्हारी खुशमद करने की मुझे कोई जरूरत नहीं है. यह सीधीसादी बात मैं सोच ही नहीं सका. जबकि तुम ने आगे तक सोच लिया. इसीलिए मैं ने कहा. तुम्हारी परफेक्ट प्लानिंग, अब तुम कूद सकती हो. गो अहेड…’’

अवनी ने अमन को गौर से देखा, वह उस का मजाक तो नहीं उड़ा रहा? पर अमन गंभीर दिखाई दिया. वह खाई में गौर से झांक रहा था. न चाहते हुए अवनी के मुंह से निकल गया, ‘‘तुम भी नीचे जाना चाहते हो क्या?’’

‘‘नहीं…नहीं.’’ उसी तरह खाई में झांकते हुए अमन ने कहा.

‘‘लग तो ऐसा रहा है, जैसे खाई के पेड़ गिन रहे हो?’’ अवनी ने व्यंग्य किया.

‘‘नहीं जी, इस तरह पेड़ गिनने में मेरी कोई रुचि नहीं है.’’

‘‘तो इस तरह गिद्ध की तरह नीचे…’’

अवनी को बीच में ही रोक कर अमन ने कहा, ‘‘थैंक्स फार कौम्पलीमैंट्स, पर जरा नीचे देखिए.’’

‘‘क्या है वहां?’’

‘‘नीचे, एकदम नीचे तक पेड़ हैं. साफ दिखाई दे रहे हैं.’’

‘‘हां, तो क्या हुआ इन का?’’

‘‘इन्हें देख कर तुम्हारे मन में कोई विचार नहीं आया?’’

‘‘इस में विचार क्या करना है?’’

‘‘कोई महान विचार नहीं, एकदम सीधासादा, सिंपल, शुद्ध विचार.’’

अवनी की नाक फूलने पिचकने लगी. रंग भी लाल गुड़हल की तरह हो गया. किसी के मरते वक्त भला कोई इस तरह का मजाक करता है. लड़के बड़े होशियार होते हैं. इस पर भी विश्वास नहीं किया जा सकता. अवनी का मन हुआ उसे ठीक से सुना दे.

‘‘इस में इतना उत्तेजित मत होइए. मैं तुम्हें समझाता हूं. तुम जो कह रही हो सच है, सौ प्रतिशत सच. कोई पेड़ तुम्हें पकड़ नहीं लेगा. चलो मान लेते हैं वह छोड़ देगा. पर मेरी बात भी एकदम झुठलाई नहीं जा सकती. छलांग लगाने के बाद तुम किसी पर गिरी तो उस में फंस जाओगी.

‘‘कहां फंसोगी, यह कोई निश्चित नहीं है. क्योंकि पेड़ पर फंसने के बाद जमीन और पेड़ में ज्यादा अंतर नहीं रह जाएगा. पेड़ पर और फिर जमीन पर गिरने पर हाथ पैर जरूर टूट जाएंगे. उस के बाद तो परेशानी और बढ़ जाएगी. इसलिए चलो मैं इस की अपेक्षा अच्छी जगह बताता हूं, जहां पर मर जाना निश्चित है. एक छलांग और खेल खत्म, पूरी गारंटी के साथ.’’ अमन ने कहा.

‘‘तुम मरने की जगह खोजने के एक्सपर्ट हो क्या?’’

‘‘नहीं दरअसल, हम दोनों एक ही गाड़ी की सवारी हैं, इसलिए…’’

‘‘यानी कि तुम भी मेरी तरह…’’

‘‘हां, मैं भी तुम्हारी तरह यहां मरने के भव्य इरादे के साथ आया हूं. इसीलिए अच्छी और गारंटेड जगह की तलाश कर रहा था. काफी शोध के बाद मैं ने यह निष्कर्ष निकाला है कि संदेह वाला कोई भी काम करना ठीक नहीं है. जो भी काम करो, पक्का करो.’’

‘‘इस का मतलब तुम भी यहां आत्महत्या करने आए हो?’’

‘‘शंका का कोई समाधान नहीं है. इस सुनसान जगह पर घूमने नहीं आया, वह भी अकेले. तुम्हारी जैसी सुंदर लड़की साथ हो, तब इस सुनसान जगह पर आने में फायदा है.’’

‘‘बस, अब कुछ मत कहिएगा.’’

अवनी चुपचाप खड़ी अमन को ताक रही थी. उस ने अचानक कहा. ‘‘छोड़ो इस अंतहीन चर्चा को. पर तुम तो पुरुष हो. तुम्हें मरने की क्या जरूरत पड़ गई?’’

‘‘क्यों, दुखी होने का अधिकार केवल औरतों का है क्या? तुम्हारा मानना है कि हम दुखी नहीं हो सकते?’’

‘‘पुरुष प्रधान समाज में सहन करने वाला काम ज्यादातर महिलाओं के हिस्से में आता है. इस से…’’

‘‘यह तुम्हारी व्यक्तिगत मान्यता है. इस अंतिम समय में मेरी इच्छा किसी तरह का वादविवाद करने की नहीं है. चलिए, मैं तुम्हें मरने की परफेक्ट जगह बताता हूं. अगर तुम्हारा मन हो तो चलो मेरे साथ. एक से दो भले.

‘‘जीवन में कोई अच्छा साथी नहीं मिला तो कोई बात नहीं, कम से कम मरते समय तो अच्छा साथी मिल गया. जीवन में हमसफर तो सभी को मिलते हैं, मौत का हमसफर किसे मिलता है. अकेले मरने में उतना मजा नहीं आता, अब तो तुम्हारे जैसा साथी पा कर मरने में भी मजा आ जाएगा.’’

‘‘तुम पर ऐसा कौन सा पहाड़ टूट पड़ा, जो तुम मरने आ गए?’’ अवनी ने पूछा. उस की हैरानी अभी खत्म नहीं हुई थी. भला पुरुष को कौन सा दुख हो सकता है, जो इस तरह मरने आ जाएगा. उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह लड़का भी उस की तरह आत्महत्या करने आया है.’’

‘‘छोड़ो न अब इस बात को. मैं ने कहा न, मुझे अब चर्चा में कोई रूचि नहीं है. दुख का नगाड़ा बजाने से क्या फायदा. मुझे पता है, मेरे मरने से मांबाप को बहुत तकलीफ होगी. वे बहुत रोएंगे. पर अब क्या, मर जाने के बाद मैं तो देखूंगा नहीं. मर जाने के बाद कौन देखता है, जिस को जो करना होगा, करता रहेगा.’’

इस के बाद अमन ने जेब से च्यूइंगम निकाल कर अवनी की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘लो च्यूइंगम खाओगी? अपनी इस अंतिम मुलाकात की सहयात्री के रूप में अंतिम भेंट.’’

‘‘एक नंबर के स्वार्थी हो. तुम्हें मम्मीपापा के रोने की जरा भी चिंता नहीं. तुम्हें उन से कोई मतलब नहीं.’’

‘‘यह तुम कह रही हो, तुम भी तो…?’’

अवनी चुप हो गई. वह सोच में पड़ गई. उसे सोच में डूबा देख कर अमन ने कहा. ‘‘छोड़ो इन फालतू के विचारों को. अगर इस तरह सब के बारे में सोचने लगे तो मर नहीं पाएंगे. लो यह च्युंगम खाओ.’’

‘‘मरते समय यह च्युंगम तुम भी न…’’

‘‘च्युंगम मुझे बहुत प्रिय है. तुम इसे एक तरह से आदत कह सकती हो. मरने से पहले अपनी अंतिम इच्छा खुद ही पूरी करनी है.’’ मुंह में च्युंगम डालते हुए अमन ने लंबी सांस ले कर कहा, ‘‘आज की यह अंतिम च्युंगम तुम भी ले लो… लेनी है या नहीं?’’

अवनी सोच में डूबी थी. उसे इस तरह सोच में डूबी देख कर अमन ने कहा, ‘‘च्युंगम ही है, कोई जहर नहीं. फिर जहर ही होगा, अब मुझ पर या तुम पर कौन सा फर्क पड़ने वाला है. इस के बाद तो हमें खाई में छलांग लगाने की भी जरूरत नहीं पडे़गी.’’

अवनी ने च्युंगम ले कर मुंह में रख लिया.

‘‘छलांग लगाने के लिए ज्यादा हिम्मत की जरूरत नहीं है, पर थोड़ा डर जरूर लगता है. तुम्हें डर नहीं लग रहा? अमन ने पूछा’’

‘‘जब मरना है तो डर किस बात का.’’

‘‘पर मुझे तो डर लग रहा है. नीचे गिरने पर कितना लगेगा, कहां लगेगा, गिरते ही जान निकल जाएगी, यह निश्चित तो नहीं. गिरने के बाद थोड़ी देर भी जीवित रहे तो… बाप रे कितनी तकलीफ होगी. मरने से पहले वह पीड़ा सहन करनी पड़ेगी. मरना कोई आसान काम नहीं है. ‘मरने के एक हजार सरल उपाय’ नाम की एक किताब के बारे में सुना था. तुम ने इस किताब के बारे में सुना है कि नहीं?’’

अवनी ने ‘न’ में सिर हिला दिया.

‘‘मैं ने भी खाली सुना है देखा नहीं है. अगर पढ़ने को मिल जाती तो बहुत अच्छा होता. मरने का कोई सरल उपाय सूझ जाता. पर वह किताब यहां मिलती ही नहीं है. इस तरह की किताब न तो यहां मिलती है, न यहां के लेखक लिखते हैं. इस तरह का काम विदेशी लेखक ही करते हैं. छोड़ो इस बात को, अब इस सब के लिए बहुत देर हो चुकी है. चलो, अब उठो, जो करना है, करते हैं.’’

कोई जवाब देने के बजाय अवनी चुपचाप अमन को ताकती रही. जबकि अमन की नजरें सामने दिखाई दे रहे सूरज पर टिकी थीं. अवनी की ओर नजर घुमा कर उस ने धीरे से पूछा, ‘‘पांच मिनट और बैठ कर इंतजार कर सकते हैं?’’

‘‘किस का इंतजार?’’

‘‘सूर्य के अंतर्ध्यान होने की, देखो न उधर. अस्त होने की तैयारी में है. कल का उगता सूरज तो अब हम देख नहीं पाएंगे, चलो आज का अस्त होता सूरज ही देख लें. पर एक तरह से यह हमारा भ्रम ही है. यह सूरज यहां अस्त हो रहा है तो कहीं उग रहा होगा. यही नहीं, सूरज तो एक ही है, पर सवेरा रोजरोज अलग होता है.

‘‘कब, कौन सवेरा क्या रंग लाता है, कौन जानता है? अस्त होता सूरज मनुष्य को दार्शनिक बना देता है. देखो न, जातेजाते सूरज कैसा रंग वैभव फैला रहा है.’’ अमन ने सूरज की ओर ऊंगली उठा कर इशारा किया तो अवनी उसी ओर देखने लगी. आकाश में संध्या की लालिमा फैल रही थी. पहाड़ के उस पार का दृश्य बड़ा अद्भुत था.

‘‘चलो, अब अपने इरादे को अंतिम अंजाम देते हैं, तैयार हो जाओ.’’ अमन ने कहा, पर अवनी ने कोई जवाब नहीं दिया. थोड़ी देर दोनों मौन का आवरण ओढ़े च्यूइंगम चबाते रहे.

सूरज धीरेधीरे क्षितिज से ओझल हो रहा था. पक्षी पेड़ों पर कलरव कर रहे थे. इस तरह घाटी में अनजाना शोर फैल रहा था. अचानक अवनी ने धीमे से कहा, ‘‘मुझे बचाने के लिए आप को बहुतबहुत धन्यवाद… क्षणिक आवेश से उबारने के लिए…’’

‘‘मैं कोई तुम्हें बचाने के लिए थोड़े ही…मैं तो खुद…’’

अमन अपनी बात पूरी कर पाता, उस के पहले ही अवनी ने कहा, ‘‘आई एम श्योर, तुम यहां आत्महत्या करने नहीं आए थे.’’

शाम के धुंधलके में अमन के चेहरे पर हलकी मुसकराहट फैल गई तो अवनी की आंखों में नए जीवन की चमक थी. पेड़ और घाटी पक्षियों के कोलाहल से गूंज रही थी.

कलंकित मां का यार : बेटी को बनाया शिकार

बात 21 अक्तूबर, 2019 की है. मध्य प्रदेश के धार जिले के थाना बगदून के टीआई आनंद तिवारी अपने औफिस में बैठे थे, अनीता नाम की महिला ने टीआई को बताया कि इस लड़की के साथ बहुत ही घिनौना कृत्य किया गया है. महिला की बात को समझ कर थानाप्रभारी ने तुरंत एसआई रेखा वर्मा को बुला लिया.

रेखा वर्मा ने उस महिला व उस के साथ आई लड़की से पूछताछ की तो उन की कहानी सुन कर वह आश्चर्यचकित रह गईं. वह सोच में पड़ गईं कि क्या कोई मां ऐसी भी हो सकती है. उन दोनों ने पूछताछ के बाद महिला एसआई रेखा वर्मा ने टीआई आनंद तिवारी को सारी बात बता दी.

सुन कर टीआई भी बुरी तरह चौंके. वही क्या कोई भी इस बात पर भरोसा नहीं कर सकता था कि एक मां अपनी मासूम बेटी के साथ एक अधेड़ व्यक्ति से बलात्कार जैसा घिनौना कृत्य करवाया.

प्रारंभिक पूछताछ में थाने आई किशोरी ने बताया था कि वह कक्षा 6 में पढ़ती है. पिता मांगीराम की मौत के बाद मां 4 भाईबहनों के साथ रह कर मेहनतमजदूरी करती थी. लेकिन 4 साल पहले मां ने तब मजदूरी करनी छोड़ दी जब उस की दोस्ती मटन बेचने वाले महमूद से हुई. तब से महमूद अकसर उस के घर आने लगा था.

पीडि़त बच्ची ने आगे बताया कि महमूद के आने पर मां सब भाईबहनों को बाहर के कमरे में बैठा कर खुद उस के साथ कमरे में चली जाती थी. ऐसा बारबार होने लगा तो मैं ने एक दिन चुपचाप झांक कर देखा. मां और महमूद पूरी तरह नंगे हो कर गंदा खेल खेल रहे थे. मैं ने मां को इस बात के लिए मना किया तो उस ने उलटा मुझे डांट दिया और खामोश रहने की हिदायत दी.

उस लड़की ने आगे बताया कि 15 अक्तूबर को महमूद शाम को हमारे घर आया तो मां ने मुझे उस के साथ पीछे के कमरे में भेज दिया. उस कमरे में महमूद मुझ से अश्लील हरकतें करने लगा. मैं ने भागने की कोशिश की तो मां ने मेरे हाथपैर बांध दिए और खुद दरवाजे पर आ कर खड़ी हो गई. तब महमूद ने मेरे साथ गंदा काम किया.

इस के बाद वह मां को 600 रुपए दे कर चला गया. इस बात की जानकारी मैं ने पड़ोस में रहने वाली अनीता आंटी को दी तो उन्होंने मदद करने का वादा किया. आज फिर महमूद हमारे घर आया और मुझे पकड़ कर पीछे के कमरे में ले जाने लगा, जिस पर मैं मां और उस की पकड़ से छूट कर बाहर भाग आई. काफी देर बाद जब घर वापस लौटी तो मेरी मां ने मेरे साथ मारपीट की, जिस के बाद मैं आंटी को ले कर थाने आ गई.

पड़ोस में रहने वाली अनीता के साथ आई मासूम बच्ची के झूठ बोलने की कोई संभावना और कारण नहीं था, इसलिए टीआई आनंद तिवारी ने उसी वक्त मासूम किशोरी का मैडिकल परीक्षण करवाया, जिस में उस के साथ दुष्कर्म किए जाने की पुष्टि हुई.

इस के बाद टीआई ने किशोरी की आरोपी मां ऊषा और उस के आशिक महमूद शाह के खिलाफ बलात्कार एवं पोक्सो एक्ट का मामला दर्ज कर के इस घटना की जानकारी एसपी (धार) आदित्य प्रताप सिंह को दे दी.

जबकि वह स्वयं पुलिस टीम ले कर आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए निकल गए. दोनों आरोपी घर पर ही मिल गए. आधे घंटे में पुलिस 30 वर्षीय ऊषा और उस के 42 वर्षीय आशिक महमूद को हिरासत में ले कर थाने लौट आई.

पूछताछ की गई तो पहले तो मां और उस का आशिक दोनों बेटी को झूठा बताने की कोशिश करते रहे. लेकिन थोड़ी सी सख्ती करने पर उन्होंने सच्चाई बता दी. उन से पूछताछ के बाद जो हकीकत सामने आई, उस ने मां शब्द पर ही ग्रहण लगा दिया. कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि मां ऐसी भी हो सकती है.

मध्य प्रदेश के धार जिले के पीतमपुर गांव की रहने वाली ऊषा के पति मांगीराम की अचानक मौत हो गई थी. पति की मौत के बाद ऊषा के सामने बच्चों को पालने की समस्या खड़ी हो गई. उस के 4 बच्चे थे. 30 वर्षीय ऊषा को किसी तरहघर का खर्च तो चलाना ही था, लिहाजा वह मेहनतमजदूरी करने लगी.

जवान औरत के सिर से अगर पति का साया उठ जाए तो कितने ही लोग उसे भूखी नजरों से देखने लगते हैं. ऊषा पर भी तमाम लोगों ने डोरे डालने शुरू कर दिए थे. इसी दौरान खूबसूरत ऊषा पर मटन की सप्लाई करने वाले महमूद शाह की नजर पड़ी.

महमूद का बगदून में पोल्ट्री फार्म था. अपने फार्म से वह ढाबे और होटलों में मटन सप्लाई करता था. महमूद ऊषा के नजदीक पहुंचने के लिए जाल बुनने लगा. इस से पहले महमूद गरीब घर की ऐसी कई लड़कियों और महिलाओं को अपना शिकार बना चुका था, वह जानता था कि गरीब औरतें जल्दी ही पैसों के लालच में आ जाती हैं.

उस ने काम के बहाने ऊषा से जानपहचान बढ़ाई और उस के बिना मांगे ही उसे मटन देने लगा. ऊषा ने जब उस से कहा कि वह पैसा नहीं चुका पाएगी तो उस ने कहा कि कभी मुझे अपने घर बुला कर मटन खिला देना. मैं समझ लूंगा कि सारे पैसे वसूल हो गए. जवाब में ऊषा ने कह दिया कि आज ही आ जाना, खिला दूंगी. इस पर महमूद ने मिर्चमसाले आदि के लिए उसे 200 रुपए भी दे दिए.

ऊषा खुश हुई. उस ने उस के लिए मटन बना कर रखा लेकिन महमूद नहीं आया. अगले दिन ऊषा ने महमूद से शिकायत की तो उस ने कोई बहाना बना दिया और फिर किसी दिन आने को कहा. उस के बाद अकसर ऐसा होने लगा.

ऊषा मटन बना कर उस का इंतजार करती. अब वह मटन के साथ उसे खर्च के पैसे भी देने लगा. इस तरह ऊषा का उस की तरफ झुकाव होने लगा.

महमूद ऊषा की बातों और मुसकराहट से समझ गया था कि वह उस के जाल में फंस चुकी है, लिहाजा एक दिन वह दोपहर के समय ऊषा के घर चला गया. उस समय ऊषा के बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ने गए हुए थे. महमूद को घर आया देख ऊषा खुश हुई. महमूद उस से प्यार भरी बातें करने लगा. उसी दौरान दोनों ने अपनी हसरतें भी पूरी कर लीं.

हालांकि महमूद शादीशुदा और 2 बच्चों का पिता था. लेकिन ऊषा ने जिस तरह उसे खुश किया, उस से वह बहुत प्रभावित हुआ. इस के बाद उसे जब भी मौका मिलता, ऊषा के घर चला आता.

कुछ महीनों बाद उस के कहने पर ऊषा ने मजदूरी करना बंद कर दिया. उस के घर का पूरा खर्च महमूद ही उठाने लगा. वह भी दिन भर महमूद के साथ बिस्तर में पड़ी रहने लगी.

ऊषा की बड़ी बेटी 12-13 साल की थी. मां के साथ महमूद को देख कर वह भी समझ गई थी कि मां किस रास्ते पर चल रही है.

बेटी ने मां की इस हरकत का विरोध करने की कोशिश की. लेकिन ऊषा पर बेटी के समझाने का तो कोई फर्क नहीं पड़ा, उलटे महमूद की नजर बेटी पर जरूर खराब हो गई.

कुछ समय बाद महमूद ने ऊषा को 2 हजार रुपए दे कर बड़ी बेटी को उस के साथ सोने के लिए तैयार करने को कहा. 2 हजार रुपए देख कर वह लालच में अंधी हो गई और बेटी को उसे सौंपने को तैयार हो गई. जिस के चलते 15 अक्तूबर की शाम को महमूद ऊषा की बेटी के संग ऐश करने की सोच कर उस के घर पहुंचा.

ऊषा ऐसी निर्लज्ज हो गई थी कि वह अपनी कोमल सी बच्ची को उस के हवाले करने को तैयार हो गई.

महमूद के पहुंचने पर ऊषा ने बेटी को महमूद के साथ बात करने के लिए कमरे में भेज दिया. उसे देखते ही महमूद उस पर टूट पड़ा तो वह रोनेचिल्लाने लगी.

यह देख बेदर्द ऊषा कमरे में आई और बेटी की चीख पर दया दिखाने के बजाए उलटा उसे समझाने लगी, ‘‘कुछ नहीं होगा, थोड़ा प्यार कर लेने दे. तू महमूद को खुश कर देगी तो यह तुम्हें लैपटौप और मोबाइल दिला देंगे.’’

बच्ची डर के मारे रो रही थी. वह नहीं मानी तो बेहया ऊषा ने अपनी बेटी के हाथ और पैर बांध कर बिस्तर पर पटक दिया. इस के बाद महमूद को अपनी मन की करने का इशारा कर के वह कमरे के दरवाजे पर बैठ कर चौकीदारी करने लगी.

महमूद वासना का भूखा भेडि़या बन कर उस कोमल बच्ची पर टूट पड़ा. असहाय और मासूम बच्ची दर्द से कराहती रही, लेकिन न तो उस दानव का दिल पसीजा और न ही जन्म देने वाली मां का. उस के नाजुक जिस्म को लहूलुहान करने के बाद महमूद मुसकराते हुए उठा और अपने कपड़े पहनने के बाद ऊषा को 600 रुपए दे कर दूसरे दिन फिर आने को कह कर वहां से चला गया.

बच्ची अपने शरीर से बहता खून देख कर डर गई तो ऊषा ने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘नाटक मत कर. हर लड़की के साथ पहली बार यही होता है. तू इस से मरेगी नहीं, 1-2 दिन में सब ठीक हो जाएगा.’’

दूसरे दिन हवस का भेडि़या बन कर महमूद फिर आया पर ऊषा ने उसे समझाया कि बच्ची अभी घायल है. 2-4 दिन उस से मुलाकात नहीं कर सकती. इस पर महमूद ऊषा के संग कमरे में कुछ समय बिता कर चला गया.

इधर डर के मारे बच्ची कांप रही थी. वह सीधे आंटी अनीता के पास पहुंची और उन से मदद की गुहार लगाई.

21 अक्तूबर को ऊषा ने फिर अपनी बेटी को महमूद के साथ कमरे में भेजने की कोशिश की, जिस पर वह घर से बाहर भाग गई. लौटने पर ऊषा ने उस की पिटाई की तो उस ने अनीता आंटी को सारी बात बताई.

इस के बाद अनीता बच्ची को ले कर थाने पहुंच गईं. पुलिस ने कलयुगी मां ऊषा और उस के प्रेमी महमूद से पूछताछ के बाद कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

—कथा में अनीता परिवर्तित नाम है

सौजन्य- सत्यकथा, फरवरी 2020

पति की दूरी ने बढ़ाया यार से प्यार

घटना मध्य प्रदेश के ग्वालियर क्षेत्र की है. 17 मार्च, 2019 की दोपहर 2 बजे का समय था. इस समय अधिकांशत:
घरेलू महिलाएं आराम करती हैं. ग्वालियर के पुराने हाईकोर्ट इलाके में स्थित शांतिमोहन विला की तीसरी मंजिल पर रहने वाली मीनाक्षी माहेश्वरी काम निपटाने के बाद आराम करने जा रही थीं कि तभी किसी ने उन के फ्लैट की कालबेल बजाई. घंटी की आवाज सुन कर वह सोचने लगीं कि पता नहीं इस समय कौन आ गया है.बैड से उठ कर जब उन्होंने दरवाजा खोला तो सामने घबराई हालत में खड़ी अपनी सहेली प्रीति को देख कर वह चौंक गईं. उन्होंने प्रीति से पूछा, ‘‘क्या हुआ, इतनी घबराई क्यों है?’’
‘‘उन का एक्सीडेंट हो गया है. काफी चोटें आई हैं.’’ प्रीति घबराते हुए बोली.‘‘यह तू क्या कह रही है? एक्सीडेंट कैसे हुआ और भाईसाहब कहां हैं?’’ मीनाक्षी ने पूछा.‘‘वह नीचे फ्लैट में हैं. तू जल्दी चल.’’ कह कर प्रीति मीनाक्षी को अपने साथ ले गई.
मीनाक्षी अपने साथ पड़ोस में रहने वाले डा. अनिल राजपूत को भी साथ लेती गईं. प्रीति जैन अपार्टमेंट की दूसरी मंजिल पर स्थित फ्लैट नंबर 208 में अपने पति हेमंत जैन और 2 बच्चों के साथ रहती थी.
हेमंत जैन का शीतला माता साड़ी सैंटर के नाम से साडि़यों का थोक का कारोबार था. इस शाही अपार्टमेंट में वे लोग करीब साढ़े 3 महीने पहले ही रहने आए थे. इस से पहले वह केथ वाली गली में रहते थे. हेमंत जैन अकसर साडि़यां खरीदने के लिए गुजरात के सूरत शहर आतेजाते रहते थे. अभी भी वह 2 दिन पहले ही 15 मार्च को सूरत से वापस लौटे थे.
मीनाक्षी माहेश्वरी डा. अनिल राजपूत को ले कर प्रीति के फ्लैट में पहुंची तो हेमंत की गंभीर हालत देख कर वह घबरा गईं. पलंग पर पड़े हेमंत के सिर से काफी खून बह रहा था. वे लोग हेमंत को तुरंत जेएएच ट्रामा सेंटर ले गए, जहां जांच के बाद डाक्टरों ने हेमंत को मृत घोषित कर दिया.
पुलिस केस होने की वजह से अस्पताल प्रशासन द्वारा इस की सूचना इंदरगंज के टीआई को दे दी. इस दौरान प्रीति ने मीनाक्षी को बताया कि उसे एक्सीडेंट के बारे में कुछ नहीं पता कि कहां और कैसे हुआ.
प्रीति ने बताया कि वह अपने फ्लैट में ही थी. कुछ देर पहले हेमंत ने कालबेज बजाई. मैं ने दरवाजा खोला तो वह मेरे ऊपर ही गिर गए. उन्होंने बताया कि उन का एक्सीडेंट हो गया. कहां और कैसे हुआ, इस बारे में उन्होंने कुछ नहीं बताया और अचेत हो गए. हेमंत को देख कर मैं घबरा गई. फिर दौड़ कर मैं आप को बुला लाई.
अस्पताल से सूचना मिलते ही थाना इंदरगंज के टीआई मनीष डाबर मौके पर पहुंचे तो प्रीति जैन ने वही कहानी टीआई मनीष डाबर को सुनाई, जो उस ने मीनाक्षी को सुनाई थी.

एक्सीडेंट की कहानी पर संदेह

टीआई मनीष डाबर को लगा कि हेमंत की कहानी एक्सीडेंट की तो नहीं हो सकती. इस के बाद उन्होंने इस मामले से एसपी नवनीत भसीन को भी अवगत करा दिया. एसपी के निर्देश पर टीआई अस्पताल से सीधे हेमंत के फ्लैट पर जा पहुंचे.
उन्होंने हेमंत के फ्लैट की सूक्ष्मता से जांच की. जांच में उन्हें वहां की स्थिति काफी संदिग्ध नजर आई. प्रीति ने पुलिस को बताया था कि एक्सीडेंट से घायल हेमंत ने बाहर से आ कर फ्लैट की घंटी बजाई थी, लेकिन न तो अपार्टमेंट की सीढि़यों पर और न ही फ्लैट के दरवाजे पर धब्बे तो दूर खून का छींटा तक नहीं मिला. कमरे में जो भी खून था, वह उसी पलंग के आसपास था, जिस पर घायल अवस्था में हेमंत लेटे थे.
बकौल प्रीति हेमंत घायलावस्था में थे और दरवाजा खुलते ही उस के ऊपर गिर पड़े थे, लेकिन पुलिस को इस बात का आश्चर्य हुआ कि प्रीति के कपड़ों पर खून का एक दाग भी नहीं था.
टीआई मनीष डाबर ने इस जांच से एसपी नवनीत भसीन को अवगत कराया. इस के बाद एडीशनल एसपी सत्येंद्र तोमर तथा सीएसपी के.एम. गोस्वामी भी हेमंत के फ्लैट पर पहुंच गए. सभी पुलिस अधिकारियों को प्रीति द्वारा सुनाई गई कहानी बनावटी लग रही थी.
प्रीति के बयान की पुष्टि करने के लिए टीआई ने फ्लैट के सामने लगे सीसीटीवी कैमरे के फुटेज अपने कब्जे में लिए. फुटेज की जांच में चौंकाने वाली बात सामने आई. पता चला कि घटना से करीब आधा घंटा पहले हेमंत के फ्लैट में 2 युवक आए थे. दोनों कुछ देर फ्लैट में रहने के बाद एकएक कर बाहर निकल गए थे.
उन युवकों के चले जाने के बाद प्रीति भी एक बार बाहर आ कर वापस अंदर गई और कपड़े बदल कर मीनाक्षी को बुलाने तीसरी मंजिल पर जाती दिखी.
मामला साफ था. सीसीटीवी फुटेज में घायल हेमंत घर के अंदर या बाहर आते नजर नहीं आए थे. अलबत्ता 2 युवक फ्लैट में आतेजाते जरूर दिखे थे. प्रीति ने इन युवकों के फ्लैट में आने के बारे में कुछ नहीं बताया था. जिस की वजह से प्रीति खुद शक के घेरे में आ गई.
जो 2 युवक हेमंत के फ्लैट से निकलते सीसीटीवी कैमरे में कैद हुए थे, पुलिस ने उन की जांच शुरू कर दी. जांच में पता चला कि उन में से एक दानाखोली निवासी मृदुल गुप्ता और दूसरा सुमावली निवासी उस का दोस्त आदेश जैन था.
दोनों युवकों की पहचान हो जाने के बाद मृतक हेमंत की बहन ने भी पुलिस को बताया कि प्रीति के मृदुल गुप्ता के साथ अवैध संबंध थे. इस बात को ले कर प्रीति और हेमंत के बीच विवाद भी होता रहता था.
यह जानकारी मिलने के बाद टीआई मनीष डाबर ने मृदुल और आदेश जैन के ठिकानों पर दबिश दी लेकिन दोनों ही घर से लापता मिले. इतना ही नहीं, दोनों के मोबाइल फोन भी बंद थे. इस से दोनों पर पुलिस का शक गहराने लगा.
लेकिन रात लगभग डेढ़ बजे आदेश जैन अपने बडे़ भाई के साथ खुद ही इंदरगंज थाने आ गया. उस ने बताया कि मृदुल ने उस से कहा था कि हेमंत के घर पैसे लेने चलना है. वह वहां पहुंचा तो मृदुल और प्रीति सोफे के पास घुटने के बल बैठे थे जबकि हेमंत सोफे पर लेटा था.
इस से दाल में कुछ काला नजर आया, जिस से वह वहां से तुरंत वापस आ गया था. उस ने बताया कि वह हेमंत के घर में केवल डेढ़ मिनट रुका था. आदेश के द्वारा दी गई इस जानकारी से हेमंत की मौत का संदिग्ध मामला काफी कुछ साफ हो गया.
दूसरे दिन पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई. रिपोर्ट में बताया गया कि हेमंत के माथे पर धारदार हथियार के 5 और चेहरे पर 3 घाव पाए गए. उन के सिर पर पीछे की तरफ किसी भारी चीज से चोट पहुंचाई गई थी, जिस से उन की मृत्यु हुई थी.
इसी बीच पुलिस को पता चला कि मृतक की पत्नी प्रीति जैन रात के समय घर में आत्महत्या करने का नाटक करती रही थी. सुबह अंतिम संस्कार के बाद भी उस ने आग लगा कर जान देने की कोशिश की. पुलिस उसे हिरासत में थाने ले आई.
दूसरी तरफ दबाव बढ़ने पर मृदुल गुप्ता भी शाम को अपने वकील के साथ थाने में पेश हो गया. पुलिस ने प्रीति और मृदुल से पूछताछ की तो बड़ी आसानी से दोनों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उन्होंने स्वीकार कर लिया कि हेमंत की हत्या उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से की थी.
पूछताछ के बाद हेमंत की हत्या की कहानी इस तरह सामने आई—

हेमंत के बड़े भाई भागचंद जैन करीब 20 साल पहले ग्वालियर के खिड़की मोहल्लागंज में रहते थे. हेमंत का अपने बड़े भाई के घर काफी आनाजाना था. बड़े भाई के मकान के सामने एक शुक्ला परिवार रहता था. प्रीति उसी शुक्ला परिवार की बेटी थी. वह हेमंत की हमउम्र थी.
बड़े भाई और शुक्ला परिवार में काफी नजदीकियां थीं, जिस के चलते हेमंत का भी प्रीति के घर आनाजाना हो जाने से दोनों में प्यार हो गया. यह बात करीब 18 साल पहले की है. हेमंत और प्रीति के बीच बात यहां तक बढ़ी कि दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया. लेकिन प्रीति के घर वाले इस के लिए राजी नहीं थे. तब दोनों ने घर वालों की मरजी के खिलाफ प्रेम विवाह कर लिया था.
इस से शुक्ला परिवार ने बड़ी बेइज्जती महसूस की और वह अपना गंज का मकान बेच कर कहीं और रहने चले गए जबकि प्रीति पति के साथ कैथवाली गली में और फिर बाद में दानाओली के उसी मकान में आ कर रहने लगी, जिस की पहली मंजिल पर मृदुल गुप्ता अकेला रहता था. यहीं पर मृदुल की प्रीति के पति हेमंत से मुलाकात और दोस्ती हुई थी.
हेमंत ने साड़ी का थोक कारोबार शुरू कर दिया था, जिस में कुछ दिन तक प्रीति का भाई भी सहयोगी रहा. बाद में वह कानपुर चला गया. इधर हेमंत का काम देखते ही देखते काफी बढ़ गया और वह ग्वालियर के पहले 5 थोक साड़ी व्यापारियों में गिना जाने लगा. हेमंत को अकसर माल की खरीदारी के लिए गुजरात के सूरत शहर जाना पड़ता था.
हेमंत का काम काफी बढ़ चुका था, जिस के चलते एक समय ऐसा भी आया जब महीने में उस के 20 दिन शहर से बाहर गुजरने लगे. इस दौरान प्रीति और दोनों बच्चे ग्वालियर में अकेले रह जाते थे. इसलिए उन की देखरेख की जिम्मेदारी हेमंत अपने सब से खास और भरोसेमंद दोस्त मृदुल को सौंप जाता था.
हेमंत मृदुल पर इतना भरोसा करता था कि कभी उसे बाहर से बड़ी रकम ग्वालियर भेजनी होती तो वह मृदुल के बैंक खाते में ही ट्रांसफर कर देता था. इस से हेमंत की गैरमौजूदगी में भी मृदुल का प्रीति के घर में लगातार आनाजाना बना रहने लगा था.
प्रीति की उम्र 35 पार कर चुकी थी. वह 2 बच्चों की मां भी बन चुकी थी लेकिन आर्थिक बेफिक्री और पति के अति भरोसे ने उसे बिंदास बना दिया था. इस से वह न केवल उम्र में काफी छोटी दिखती थी बल्कि उस का रहनसहन भी अविवाहित युवतियों जैसा था.
कहते हैं कि लगातार पास बने रहने वाले शख्स से अपनापन हो जाना स्वाभाविक होता है. यही प्रीति और मृदुल के बीच हुआ. दोनों एकदूसरे से काफी घुलेमिले तो थे ही, अब एकदूसरे के काफी नजदीक आ गए थे. उन के बीच दोस्तों जैसी बातें होने लगी थीं, जिस के चलते एकदूसरे के प्रति उन का नजरिया भी बदल गया था. इस का नतीजा यह हुआ कि लगभग डेढ़ साल पहले उन के बीच शारीरिक संबंध बन गए.
दोस्त बन गया दगाबाज

प्रीति का पति ज्यादातर बाहर रहता था और मृदुल अभी अविवाहित था. इसलिए दैहिक सुख की दोनों को जरूरत थी. उन्हें रोकनेटोकने वाला कोई नहीं था. क्योंकि खुद हेमंत ने ही मृदुल को प्रीति और बच्चों की देखरेख की जिम्मेदारी सौंप रखी थी. इसलिए हेमंत के ग्वालियर में न रहने पर मृदुल की रातें प्रीति के साथ उस के घर में एक ही बिस्तर पर कटने लगीं.
दूसरी तरफ प्रीति के नजदीक बने रहने के लिए मृदुल जहां हेमंत के प्रति ज्यादा वफादारी दिखाने लगा, वहीं जवान प्रेमी को अपने पास बनाए रखने के लिए प्रीति न केवल उसे हर तरह से सुख देने की कोशिश करने लगी, बल्कि मृदुल पर पैसा भी लुटाने लगी थी.
इसी बीच करीब 6 महीने पहले एक रोज जब हेमंत ग्वालियर में ही बच्चों के साथ था, तब बच्चों ने बातोंबातों में बता दिया कि मम्मी तो मृदुल अंकल के साथ सोती हैं और वे दोनों दूसरे कमरे में अकेले सोते हैं.
बच्चे भला ऐसा झूठ क्यों बोलेंगे, इसलिए पलक झपकते ही हेमंत सब समझ गया कि उस के पीछे घर में क्या होता है. हेमंत ने मृदुल को अपनी जिंदगी से बाहर कर दिया और उस के अपने यहां आनेजाने पर भी रोक लगा दी.

इस बात को ले कर उस का प्रीति के साथ विवाद भी हुआ. प्रीति ने सफाई देने की कोशिश भी की लेकिन हेमंत ने मृदुल को फिर घर में अंदर नहीं आने दिया. इस से प्रीति परेशान हो गई.
दोनों अकेलेपन का लाभ न उठा सकें, इसलिए हेमंत अपना घर छोड़ कर परिवार को ले कर अपनी बहन के साथ आ कर रहने लगा. ननद के घर में रहते हुए प्रीति और मृदुल की प्रेम कहानी पर ब्रेक लग गया.
लेकिन हेमंत कब तक अपना परिवार ले कर बहन के घर रहता, सो उस ने 3 महीने पहले पुराना मकान बेच कर इंदरगंज में नया फ्लैट ले लिया. यहां आने के बाद प्रीति और मृदुल की कामलीला फिर शुरू हो गई.
प्रीति अपने युवा प्रेमी की ऐसी दीवानी थी कि उस ने मृदुल पर दबाव बनाना शुरू कर दिया कि वह उसे अपने साथ रख ले. इस पर जनवरी में मृदुल ने प्रीति से कहीं दूर भाग चलने को कहा लेकिन प्रीति बोली, ‘‘यह स्थाई हल नहीं है. पक्का हल तो यह है कि हम हेमंत को हमेशा के लिए रास्ते से हटा दें.’’
मृदुल को भी अपनी इस अनुभवी प्रेमिका की लत लग चुकी थी, इसलिए वह इस बात पर राजी हो गया. जिस के बाद दोनों ने घर में ही हेमंत की हत्या करने की योजना बना कर 17 मार्च, 2019 को उस पर अमल भी कर दिया.
योजना के अनुसार उस रोज प्रीति ने पति की चाय में नींद की ज्यादा गोलियां डाल दीं, जिस से वह जल्द ही गहरी नींद में चला गया. फिर मृदुल के आने पर प्रीति ने गहरी नींद में सोए पति के पैर दबोचे और मृदुल ने हेमंत की गला दबा दिया.
इस दौरान हेमंत ने विरोध किया तो दोनों ने उसे उठा कर कई बार उस का सिर दीवार से टकराया, जिस से उस के सिर से खून बहने लगा और कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.
टीआई मनीष डाबर ने प्रीति और मृदुल से विस्तार से पूछताछ के बाद दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से प्रीति को जेल भेज दिया और मृदुल को 2 दिनों के रिमांड पर पुलिस को सौंप दिया ताकि उस से वह कपड़े बरामद हो सकें जो उस ने हत्या के समय पहन रखे थे.
कथा लिखने तक पुलिस मृदुल से पूछताछ कर रही थी. हेमंत की हत्या में आदेश जैन शामिल था या नहीं, इस की पुलिस जांच कर रही थी.

सौजन्य- मनोहर कहानियां, मई 2019

एक थप्पड़, 2 हत्याएं : बदले ने बनाया कातिल

सौ.रभ गुप्ता जब डा. दीपक गुप्ता के घर पहुंचे तब उन के होंठों पर भावभीनी मुसकराहट थी और मन में प्रसन्नता. जिस गली में डा. गुप्ता का घर था, उस में लोगों की आवाजाही थी. कहीं भी ऐसा कुछ नहीं था जो अजीब सा लगे.

सौरभ ने डा. दीपक गुप्ता का दरवाजा खटखटाया लेकिन दरवाजा नहीं खुला. न ही अंदर कोई प्रतिक्रिया हुई. इस पर सौरभ ने धक्का दिया तो दरवाजा खुल गया.

दरवाजे के अंदर डा. दीपक का 2 साल का बेटा दिवित जिसे प्यार से सब लाला कहते थे, खड़ा था. उस के दोनों हाथ व कपड़े खून से रंगे हुए थे. घर में सन्नाटा पसरा था. सौरभ ने किसी अनहोनी की आशंका से जैसे ही मकान में प्रवेश किया, तो सामने ही डा. गुप्ता की 70 वर्षीय मां शिवदेवी की लाश पड़ी थी.

घबराहट में सौरभ की नजर कमरे में गई तो वहां दीपक के बड़े भाई अमित की 35 वर्षीय पत्नी रानी गुप्ता की खून से लथपथ लाश नजर आई. चारों ओर खून फैला हुआ था. यह मंजर देख सौरभ का कलेजा कांप उठा और मुंह से चीख निकल गई.

इस बीच बालक दिवित दरवाजे से बाहर निकल गया था. मकान के बगल में ही चूड़ी का कारखाना था. कारखाने में लोग काम कर रहे थे. चूड़ी के गोदाम पर बैठे रामू गुप्ता की नजर दिवित पर गई तो उस के हाथों और कपड़ों पर खून देख कर उन्हें लगा कि उसे शायद गिरने से चोट लग गई है.

उन्होंने दिवित को गोद में उठा लिया और उस की चोट तलाशने लगे. तभी सौरभ चीखते हुए घर के बाहर आए. उन के शोर मचाने पर आसपास के लोग आ गए.

यह बात 8 अगस्त, 2019 की है. घटना का समय साढ़े 11 बजे. घटनास्थल दुनिया भर में कांचनगरी के नाम से प्रसिद्ध फिरोजाबाद का मोहल्ला नया रसूलपुर. सौरभ गुप्ता डा. दीपक के दोस्त थे और उन से मिलने आए थे.

डा. प्रदीप गुप्ता के घर के बाहर एकत्र लोगों को लगा कि हत्या करने के बाद बदमाश शायद छत पर चढ़ कर छिप गए होंगे, इसी आशंका के चलते लोग लाठीडंडे ले कर मकान की छत पर गए, लेकिन वहां कोई नहीं मिला.

यह मकान शहर के नामचीन बालरोग विशेषज्ञ डा. एल.के. गुप्ता का पैतृक मकान था, जिस में उन के तीसरे नंबर के भाई डा. दीपक गुप्ता अपनी पत्नी, बेटे, दूसरे नंबर के भाई अमित गुप्ता, उन की पत्नी रानी और मां शिवदेवी के साथ रहते थे.

डा. एल.के. गुप्ता अपने परिवार और वृद्ध पिता डा. वेदप्रकाश के साथ शहर के ही मोहल्ला नई बस्ती में रहते थे. उन का सब से छोटा भाई पिंटू भी उन्हीं के साथ रहता था.

सौरभ ने फोन कर के घटना की जानकारी डा. दीपक गुप्ता व उन के बड़े भाई डा. एल.के. गुप्ता को दे दी. साथ ही उन्होंने घटना की सूचना देने के लिए थाना रसूलपुर के थानाप्रभारी बी.डी. पांडे को देने की कोशिश की, लेकिन उन का मोबाइल स्विच्ड औफ था. इस पर उन्होंने 100 नंबर पर काल की. लेकिन कई बार नंबर डायल करने के बाद भी काल रिसीव नहीं की गई.

अंतत: उन्होंने यह सूचना एसएसपी सचींद्र पटेल को दे दी. एसएसपी के निर्देश पर दोपहर करीब 12 बजे एसपी (सिटी) प्रबल प्रताप सिंह, सीओ (सिटी) इंदुप्रभा सिंह पुलिस टीम के साथ मौकाएवारदात पर पहुंच गए.

जब यह सूचना डा. एल.के. गुप्ता को मिली, तब वह और उन की पत्नी डा. नीता गुप्ता मैडिकल कालेज, फिरोजाबाद में मरीजों को देख रहे थे. आननफानन में डा. एल.के. गुप्ता पत्नी के साथ पैतृक घर पहुंच गए. कुछ देर में अन्य घर वाले भी वहां जा पहुंचे.

पुलिस ने घटनास्थल को पीला फीता लगा कर सील कर दिया ताकि सबूतों से किसी तरह की छेड़छाड़ न की जा सके. इस के बाद थानाप्रभारी बी.डी. पांडे भी पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए. मामले की गंभीरता को देखते हुए एसएसपी सचींद्र पटेल व एसपी (ग्रामीण) राजेश कुमार भी आ गए थे.

फोरैंसिक टीम को भी मौके पर बुला लिया गया था. दिनदहाड़े हुए इस डबल मर्डर की खबर कुछ ही देर में पूरे इलाके में फैल गई. देखते ही देखते मौके पर लोगों की भारी भीड़ एकत्र हो गई.

लोगों के आक्रोश व भीड़ बढ़ती देख किसी अनहोनी की आशंका से अधिकारियों को फिरोजाबाद के थाना दक्षिण, थाना उत्तर व थाना लाइनपार के अलावा जिले के अन्य थानों से भी फोर्स मंगानी पड़ी. सूचना पर सीओ (टूंडला) डा. अरुण कुमार सिंह, सीओ (सिरसागंज) संजय वर्मा भी मौकाएवारदात पर पहुंच गए.

पुलिस अधिकारियों ने शवों का निरीक्षण किया तो पता चला दोनों महिलाओं की हत्या बड़ी बेरहमी से की गई थी. कमरे में रानी का शव पड़ा था. शव के पास ही सोने की चूड़ी, हथौड़ा व चाकू पड़ा मिला. दोनों महिलाओं की हत्या गला रेत कर की गई थी. रानी के पैरों के पास ही सास शिवदेवी का शव पड़ा था. उन के पैर कमरे के बाहर आंगन में थे.

निरीक्षण के दौरान यह बात भी सामने आई कि खुद को हत्यारे से बचाने के लिए सासबहू ने काफी संघर्ष किया था क्योंकि दोनों के गले कटे होने के अलावा उन के शरीर पर भी कई जगह चोट के निशान थे. घटनास्थल के हालात देखने से लग रहा था कि रानी की हत्या पहले हुई. उस समय सास शिवदेवी ऊपर वाले कमरे में रही होंगी. ऊपर की मंजिल पर पड़े लोहे के जाल के पास लगे नाली के पाइप पर भी खून लगा था.

पुलिस का अनुमान था कि शिवदेवी के सिर पर पहले हथौड़े से प्रहार किया गया, बाद में उन्हें घसीटते हुए नीचे लाया गया. नीचे ला कर उन की भी गला रेत कर हत्या कर दी गई. घर में चारों तरफ खून फैला हुआ था.

नीचे वाले कमरे में पलंग के पास रखी अलमारी खुली हुई थी और उस का सामान बिखरा पड़ा था. मकान के ऊपर वाले हिस्से में सीढि़यों के बाईं तरफ वाले कमरे में रखी अलमारी भी टूटी हुई थी. उस का सामान भी बिखरा पड़ा था. दूसरे कमरे में रखी अलमारी का केवल हैंडल टूटा था. अनुमान था कि इस अलमारी को भी खोलने का प्रयास किया गया था, लेकिन हत्यारे सफल नहीं हो सके थे.

इस बीच फोरैंसिक टीम ने अलमारी व अन्य स्थानों से फिंगरप्रिंट व अन्य साक्ष्य एकत्र किए. घर वालों ने बताया कि मकान के ऊपरी हिस्से में छोटा भाई डा. दीपक गुप्ता, उन की पत्नी डा. दीप्ति गुप्ता, मां शिवदेवी और 2 बेटे दर्श व दिवित रहते थे, जबकि नीचे वाले हिस्से में दूसरे नंबर का भाई अमित गुप्ता अपनी पत्नी रानी, बेटी रिया व बेटे ईशू के साथ रहता था.

दिवित को छोड़ कर बाकी बच्चे स्कूल गए हुए थे. अमित की अपनी पैथलैब थी. घटना के बाद सभी बच्चों को स्कूल से बुला लिया गया.

सदर विधायक मनीष असीजा उस दिन लखनऊ में थे. घटना की जानकारी मिलने पर उन्होंने इस बारे में गृह सचिव व डीजीपी को बताया. डीजीपी तक मामला पहुंचने के बाद दोपहर लगभग सवा 2 बजे आईजी (आगरा जोन) ए. सतीश गणेश अपने साथ डौग स्क्वायड की टीम ले कर मौकाएवारदात पर पहुंच गए.

खोजी कुत्ते के आने से पहले तक गली के अंदर व घटनास्थल पर सैकड़ों लोग आ जा चुके थे, इसलिए खोजी कुत्ता हत्यारे के बारे में कोई भी सुराग नहीं दे सका.

लोगों के मन में इस बात को ले कर आक्रोश था कि घटनास्थल से थाना मात्र 300 मीटर की दूरी पर है, इस के बावजूद पुलिस सूचना देने के आधा घंटे बाद घटनास्थल पर आई.

गुस्साए लोगों को एसएसपी सचींद्र पटेल ने भरोसा दिया कि इस जघन्य घटना का शीघ्र खुलासा कर दिया जाएगा. डौग स्क्वायड व फोरैंसिक टीम का काम निपट जाने के बाद पुलिस ने दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दीं.

एसएसपी सचींद्र पटेल ने हत्यारों के शहर से बाहर भागने की बात के मद्देनजर पुलिस को रेलवे स्टेशन, रोडवेज बस स्टैंड तथा प्राइवेट बस स्टैंड पर चैकिंग करने के आदेश दिए.

ऐसा लगता था कि वारदात को अंजाम देने वाले बदमाशों को पहले से ही घर की पूरी स्थिति का पता था कि सुबहसुबह घर पर कौनकौन रहता है. मृतका रानी की बेटी रिया 10वीं कक्षा की तथा ईशू 8वीं कक्षा के छात्र थे. गुरुवार को दोनों सुबहसुबह स्कूल चले गए थे. वहीं डा. दीपक गुप्ता का बड़ा बेटा 6 वर्षीय दर्श गुप्ता जो पहली कक्षा में पढ़ता था, वह भी स्कूल गया हुआ था.

सुबह 9 बजे डा. दीपक गुप्ता रामनगर स्थित स्वास्थ्य केंद्र पर थे, जबकि रानी गुप्ता के पति अमित गुप्ता दोनों बच्चों का लंच बौक्स देने के लिए साढ़े 9 बजे उन के स्कूल चले गए थे. वहां से वह अपनी पैथोलौजी लैब पर चले गए.

डा. दीपक गुप्ता की पत्नी दीप्ति अपनी ड्यूटी पर फतेहाबाद स्थित स्वास्थ्य केंद्र पर चली गई थीं. घटना के समय घर पर रानी, उस की सास शिवदेवी और डा. दीपक गुप्ता का 2 वर्षीय छोटा बेटा दिवित ही थे.

पूछताछ के दौरान घर वालों ने पुलिस को बताया कि घर के बाहर वाले कमरे में ब्यूटीपार्लर खोलने के लिए फरनीचर बनवाया था. फरनीचर दीपा नाम के कारपेंटर ने बनाया था. वह पिछले 2 महीने से फरनीचर बनाने का काम कर रहा था. वह घर के सभी सदस्यों से परिचित था. इस पर पुलिस का शक कारपेंटर पर गया.

पुलिस ने जांच की काररवाई में घटनास्थल के आसपास के 3 घरों में लगे सीसीटीवी कैमरे खंगाले. 2 फुटेज में संदिग्ध व्यक्ति रिकौर्ड हुआ था.

एक फुटेज में एक व्यक्ति सुबह 10 बज कर 37 मिनट पर डा. गुप्ता के घर के मुख्य गेट से अंदर जाता दिखा दे रहा था. वही व्यक्ति 10.55 बजे मकान के बाहरी कमरे, जिस में ब्यूटीपार्लर बनना था, के गेट से बाहर निकलता दिखाई दिया. बाहरी गेट की कुंडी पर खून भी लगा मिला था.

इस से साफ जाहिर हो रहा था कि 18 मिनट में 2 हत्या करने के बाद हत्यारा इसी गेट से बाहर निकला था. संदिग्ध व्यक्ति कारपेंटर दिलीप उर्फ दीपा हो सकता था, जो नया रसूलपुर, टंकी के पास गली नंबर-5 में रहता था.

जांच के दौरान पुलिस को पता चला कि मृतका रानी ने घर के बहारी कमरे में ‘टिपटौप ब्यूटीपार्लर’ खोला था. ब्यूटीपार्लर खोलने के लिए रानी ने पहले घर वालों को मनाया फिर ब्यूटीशियन का कोर्स किया. इस का उद्घाटन एक दिन पहले 6 अगस्त को हुआ था.

इस ब्यूटीपार्लर के लिए फरनीचर बनाने का काम कारपेंटर दिलीप उर्फ दीपा ने ही किया था. रानी का सपना धरातल पर तो आ गया, लेकिन एक दिन बाद ही वह क्रूर हत्यारों का शिकार हो गई.

मासूम दिवित को अपनी जेठानी के पास छोड़ कर दीप्ति अपनी ड्यूटी पर चली जाती थी. पूरा दिन वह अपनी दादी और ताई को हंसाता रहता था. लेकिन घटना के बाद से 2 साल का मासूम दिवित बेहद उदास था. कभी एकटक देखता तो कभी चीखचीख कर रोने लगता. उस की आंखों में अपनी दादी और ताई के कत्ल का खौफनाक मंजर कैद हो गया था.

शक के दायरे में कारपेंटर दिलीप के आने पर दोपहर 2 बजे पुलिस उस के घर पहुंची. पुलिस ने उस की पत्नी रोली से उस के पति के बारे में पूछताछ की. रोली ने पति से मोबाइल पर बात की तो उस ने बताया कि इस समय वह काम करने आसफाबाद की तरफ आया है. इस के बाद दिलीप का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ हो गया. पुलिस दिलीप के इंतजार में पूरी रात उस के घर के बाहर डेरा डाले रही.

8 अगस्त की शाम को पोस्टमार्टम के बाद दोनों शव परिजनों को सौंप दिए गए. शवों का अंतिम संस्कार देर रात उसी दिन कर दिया गया.

9 अगस्त की सुबह लगभग साढ़े 4 बजे मोटरसाइकिल से भाग रहे दिलीप की पुलिस ने घेराबंदी कर ली. फतेहाबाद रोड स्थित बरी चौराहे के पास घिरने पर दिलीप ने पुलिस पर फायरिंग की. पुलिस द्वारा जवाबी फायरिंग में दिलीप के पैर में गोली लगी और वह गिर गया.

पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. मुठभेड़ में थाना रसूलपुर में तैनात सिपाही कन्हैयालाल भी फायरिंग से बचने के दौरान फिसल कर घायल हो गया था. पकड़े गए दिलीप की पुलिस ने तलाशी ली तो उस के पास से तमंचा, लूटे गए हार, अंगूठियां व अन्य आभूषण बरामद हुए. पूछताछ करने पर सासबहू की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

25 वर्षीय दिलीप उर्फ दीपा ने बताया कि ब्यूटीपार्लर का फरनीचर बनाते समय एक दिन बड़ी बहू रानी गुप्ता ने किसी बात को ले कर मजदूरों के सामने उसे बेइज्जत किया और थप्पड़ मार दिया था. उस समय वह अपमानित हो कर तिलमिला उठा था.

दिलीप अपनी बेइज्जती पर खून का घूंट पी कर रह गया. उस ने तय कर लिया था कि वह इस अपमान का बदला जरूर लेगा. उसी दिन से वह बदले की आग में जल रहा था.

घटना वाले दिन वह हथौड़ा छूटने के बहाने घर में घुसा. उस के सिर पर खून सवार था. दिलीप ने घर में घुसते ही सामने दिखी रानी से कहा, ‘‘मैडमजी, यहां मेरी हथौड़ी रह गई थी. मैं उसे लेने आया हूं.’’

इस पर रानी ने कहा, ‘‘देख लो कहां रह गई थी तुम्हारी हथौड़ी.’’ इस के बाद वह रानी के पीछेपीछे कमरे में पहुंचा और साथ लाए चाकू से रानी का गला रेत दिया. उस की चीख सुन कर सास शिवदेवी, जो ऊपरी मंजिल से नीचे आ रही थी, ने यह दृश्य देखा. उन्होंने बहू को बचाने के लिए शोर मचाने की कोशिश की. इस पर दिलीप ने उन का भी गला रेत कर हत्या कर दी.

2 साल के दिवित पर उसे प्यार आ गया. वह मासूम था, बोल भी नहीं पाता था, इसलिए उसे जिंदा छोड़ दिया. इस के बाद उस ने अलमारियों में रखी नकदी व आभूषण बटोरे और ब्यूटीपार्लर वाले कमरे के गेट से बाहर निकल गया.

हत्या के दौरान सासबहू द्वारा अपने बचाव के लिए किए गए संघर्ष के दौरान दिलीप के हाथ की एक अंगुली भी कट गई थी. घटना के बाद उस ने अपनी दुकान के पास एक क्लीनिक पर जा कर अंगुली पर पट्टी भी बंधवाई.

इस जघन्य हत्याकांड को अंजाम देने वाले दिलीप उर्फ दीपा की कहानी किसी साइको किलर जैसी थी. किराए के मकान में  पत्नी रोली और 2 बच्चों के साथ रहने वाला दिलीप गुरुवार को सुबह घर से अपनी दुकान पर गया था. अचानक उस के मन में बदले की भावना पैदा हुई और मात्र 18 मिनट में उस ने इस जघन्य वारदात को अंजाम दे दिया.

दोहरे हत्याकांड को अंजाम देने के बाद दीपा कुछ देर बाद घटनास्थल पर पहुंचा और घर के बाहर शर्ट उतार कर गुस्साई भीड़ में तमाशबीन भी बना रहा. इस बीच वह दूर से पुलिस की जांच देख रहा था. इस दौरान कई लोगों ने मोबाइल से घटनास्थल के फोटो खींचे और वीडियो बनाए. सोशल मीडिया पर जब उस की तसवीर वायरल हुई, तब लोगों को उस के बारे में जानकारी हुई. दोपहर 12 बजे वह अपने दोनों बच्चों को स्कूल से घर छोड़ कर फरार हो गया.

पुलिस ने घायल हत्यारोपी दिलीप तथा सिपाही कन्हैयालाल को उपचार के लिए फिरोजाबाद के मैडिकल कालेज में भरती कराया. दोपहर तक उपचार चला. इस के बाद दिलीप को कोर्ट में पेश किया गया. दीपा के खिलाफ हत्या और लूट के अलावा पुलिस मुठभेड़ का मुकदमा भी दर्ज किया था. अदालत से उसे जेल भेज दिया गया.

बदले की आग में दिलीप उर्फ दीपा अपना आपा खो बैठा और बेइज्जती का बदला लेने के चक्कर में उस ने 2 बेकसूरों की जान ले ली. अगर रानी ने किसी बात से नाराज हो कर उसे थप्पड़ मार भी दिया था तो उम्र में वह उस से बड़ी थीं. लेकिन उस ने इस बात को दिल पर ले लिया था.

घटना को अंजाम देने से पहले उस ने अपनी बच्चों व पत्नी के भविष्य के बारे में भी नहीं सोचा कि उस के पकड़े जाने और जेल जाने के बाद उस के परिवार का क्या होगा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2019

 

सोनभद्र नरसंहार: जंगल पर कब्जा जमाने का अंजाम

शैलेंद्र सिंह

इस जमीन के चक्कर में दबंगों ने 10 लोगों को मौत के घाट उतार दिया. जबकि 25 लोग घायल हुए. हकीकत में इस नरसंहार का जिम्मेदार सरकारी अमला ही है…

उस दिन 2019 की तारीख थी 17 जुलाई. उत्तर प्रदेश के जिला सोनभद्र के घोरावल स्थित गांव उम्भापुरवा का हालहवाल कुछ बिगड़ा हुआ था. दरजनों ट्रैक्टर, जिन की ट्रौलियों में 300 से ज्यादा लोग भरे थे, 148 बीघा जमीन को घेरे खड़े थे. उन में गांव का प्रधान यज्ञदत्त गुर्जर भी था, जिस के साथ आए कुछ दबंग हाथों में लाठीडंडे, भालाबल्लम, राइफल और बंदूक आदि हथियार लिए हुए थे.

दूसरी तरफ जब गांव वालों ने देखा कि दबंग उस 148 बीघा जमीन को जोतने आए हैं तो उन्होंने उन्हें खेत जोतने से रोकने का फैसला किया. वे लोग उन्हें रोकने के लिए आगे बढे़. गरमागरमी में बातचीत हुई, लेकिन दोनों ही तरफ के लोग अपनीअपनी जिद पर अड़े रहे. इस का नतीजा यह हुआ कि उन के बीच विवाद बढ़ गया.

ग्राम प्रधान के साथ आए लोगों ने गांव वालों पर हमला बोल दिया. लाठीडंडों से हुए हमले के बीचबीच में गोली चलने की आवाजें भी आने लगीं. गांव वाले बचने के लिए इधरउधर भागने लगे. कुछ लोग वहीं जमीन पर गिर पड़े. लगभग आधे घंटे तक नरसंहार चलता रहा.

उम्भापुरवा गांव सोनभद्र से 55-56 किलोमीटर दूर है. यहीं पर ग्राम प्रधान यज्ञदत्त गुर्जर ने 2 साल पहले करीब 90 बीघे जमीन  खरीदी थी. वह उसी जमीन पर कब्जा करने के लिए आया था. लेकिन स्थानीय लोगों ने उस का विरोध किया, जिस के बाद प्रधान के साथ आए लोगों ने आदिवासियों पर अंधाधुंध फायरिंग कर दी.

संघर्ष के दौरान असलहा से ले कर गंडासे तक चलने लगे. आदिवासियों के विरोध के बाद प्रधान के लोगों ने उन पर आधे घंटे तक गोलीबारी की.

इस के बाद मची भगदड़ में तमाम ग्रामीण जमीन पर गिर गए तो उन पर लाठियों से हमला शुरू कर दिया गया. वहां का दृश्य बहुत खौफनाक था. इस हमले में 10 लोगों की मौत हो गई. जबकि 25 लोग घायल हो गए थे. मृतकों में 3 महिलाएं और 7 पुरुष शामिल थे.

इस इलाके में गोंड और गुर्जर आदिवासी रहते हैं. गुर्जर लोग वहां दूध बेचने का काम करते हैं. यह इलाका जंगलों से घिरा है और यहां ज्यादातर वनभूमि है. सिंचाई का कोई साधन नहीं है, इसलिए लोग बारिश के मौसम में बरसात के पानी से वनभूमि पर मक्का और अरहर की खेती करते हैं. इस इलाके में वनभूमि पर कब्जे को ले कर अकसर झगड़ा होता रहता है.

घोरावल के उम्भापुरवा में खूनी जमीन की कहानी बहुत लंबी है. इस की शुरुआत सन 1940 से हुई थी. इस के पहले यहां की जमीन पर आदिवासी काबिज थे. वे लोग इस जमीन पर  बोआईजोताई करते थे. 17 दिसंबर, 1955 में मुजफ्फरपुर, बिहार के रहने वाले माहेश्वरी प्रसाद नारायण सिन्हा ने आदर्श कोऔपरेटिव सोसाइटी बना कर यहां की 639 बीघा जमीन सोसाइटी के नाम करा ली थी.

इस के बाद माहेश्वरी प्रसाद नारायण सिन्हा ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर के 149 बीघा जमीन अपनी बेटी आशा मिश्रा के नाम करा दी. आशा मिश्रा के पति प्रभात कुमार मिश्रा एक आईएएस अफसर थे. यह काम राबर्ट्सगंज के तहसीलदार ने दबाव में आ कर किया था.

यही जमीन बाद में आशा मिश्रा की बेटी विनीता शर्मा उर्फ किरन कुमारी पत्नी भानु प्रसाद आईएएस, निवासी भागलपुर के नाम कर दी. जमीन परिवार के लोगों के नाम होती रही पर उस पर खेती का काम आदिवासी लोग ही करते रहे. जमीन से जो फसल पैदा होती थी, उस का पैसा आदिवासी आईएएस अधिकारी के परिवार को देते रहे.

17 अक्तूबर, 2017 को विनीता शर्मा ने जमीन गांव के ही प्रधान यज्ञदत्त गुर्जर को बेच दी. तभी से ग्राम प्रधान यज्ञदत्त इस 148 बीघा जमीन पर कब्जा करने की योजना बना रहा था. इस जमीन के विवाद की जानकारी सभी जिम्मेदार लोगों को थी. यहां तक कि इस की शिकायत आईजीआरएस पोर्टल पर मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश सरकार से भी की गई थी. लेकिन ताज्जुब की बात यह कि बिना किसी तरह से निस्तारण के इस शिकायत को निस्तारित बता कर मामले को रफादफा कर दिया गया.

मूर्तिया के रहने वाले रामराज की शिकायत पर मार्च 2018 में अपर मुख्य सचिव राजस्व एवं आपदा विभाग और जुलाई 2018 में जिलाधिकारी सोनभद्र को नियमानुसार काररवाई के लिए यह मामला भेजा गया.

अगस्त 2018 में तहसीलदार की जांच आख्या प्रकरण के बाबत यह मामला न्यायालय सिविल जज सीनियर डिवीजन सोनभद्र के यहां विचाराधीन है. इस सिलसिले में दर्शाया गया कि वर्तमान में प्रशासनिक आधार पर इस मामले में किसी प्रकार की काररवाई किया जाना संभव नहीं है. इस के बाद यह निस्तारित दिखा गया.

7 अप्रैल, 2019 को राजकुमार ने शिकायत दर्ज कराई कि हमारी अरहर की फसल आदिवासियों ने काट ली. इस के बाद थाना घोरावल में 30 आदिवासियों के नाम मुकदमा लिखाया गया. जबकि आदिवासियों की शिकायत पर दूसरे पक्ष के खिलाफ कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई. नरसंहार के बाद अब ग्राम प्रधान यज्ञदत्त के बारे में छानबीन की जा रही है. उस के द्वारा कराए गए कामों की भी समीक्षा की जा रही है.

भूमि विवाद गुर्जर व गोंड जाति के बीच शुरू हुआ था, जो देखते ही देखते खूनी संघर्ष में बदल गया. गांव में लाशें बिछ गईं. घटना से पूरे जनपद में हड़कंप मच गया. सोनभद्र और मिर्जापुर ही नहीं उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ और देश की राजधानी दिल्ली तक हिल गई.

गांव के लोग बताते हैं कि पुलिस को बुलाने के लिए 100 नंबर डायल करने के बाद भी पुलिस वहां बहुत देर से पहुंची थी. घटना के बाद पहुंची पुलिस ने घायलों को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, घोरावल में भरती कराया. गंभीर रूप से घायल आधा दरजन लोगों को जिला अस्पताल भेजा गया.

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में जमीन पर कब्जे को ले कर हुए हत्याकांड में पुलिस ने मुख्य आरोपी ग्राम प्रधान यज्ञदत्त, उस के भाई और भतीजे समेत 26 लोगों को गिरफ्तार किया. इस मामले में पुलिस ने 28 लोगों के खिलाफ नामजद और 50 अज्ञात लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की, एसपी सलमान ताज पाटिल ने बताया कि फरार आरोपियों को जल्द गिरफ्तार कर लिया जाएगा.

पुलिस ने बताया कि उस ने हत्याकांड में इस्तेमाल किए गए 2 हथियार भी बरामद कर लिए हैं. पुलिस ने गांव के लल्लू सिंह की तहरीर पर मुख्य आरोपी ग्राम प्रधान यज्ञदत्त और उस के भाइयों समेत सभी पर हत्या और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) ओ.पी. सिंह को मामले पर नजर रखने का निर्देश दिया. योगी ने घटना को संज्ञान में लेते हुए मिर्जापुर के मंडलायुक्त तथा वाराणसी जोन के अपर पुलिस महानिदेशक को घटना के कारणों की संयुक्त रूप से जांच करने के निर्देश दिए.

सोनभद्र नरसंहार में जमीन के विवाद में प्रशासनिक लापरवाही और स्थानीय पुलिस की मिलीभगत भी सामने आई. 1955 से चल रहे जमीन के विवाद पर सरकार की नींद 10 लोगों की जान ले कर टूटी.

हत्या का आरोप भले ही प्रधान यज्ञदत्त के ऊपर है, पर सही मायने में हत्या में तहसील और थाना स्तर से ले कर जिला प्रशासन तक का हर अमला जिम्मेदार है. सोनभद्र हत्याकांड कोई अकेला मामला नहीं है. हर गांव में छोटेबड़े ऐसे मसले हैं, जो तहसील और प्रशासन की लापरवाही से ज्वालामुखी के मुहाने पर हैं.

सोनभद्र की घटना के बाद ही सही, अगर प्रशासन सचेत हो कर ऐसे मामलों को संज्ञान में ले कर तत्काल कदम उठाए तो ऐसे विवादों के रोका जा सकता है. जमीन से जुडे़ मामलों में थाना और तहसील विवाद को एकदूसरे पर टालते रहते हैं. ऐसे में नेताओं और दबंगों की पौ बारह रहती है और कमजोर आदमी अपनी ही जमीन पर कब्जा करने के लिए इधरउधर भटकता रहता है.

सोनभद्र में हुए जमीनी विवाद में 10 लोगों की जान जाने के बाद भी उत्तर प्रदेश सरकार तब जागी जब दिल्ली से कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने सोनभद्र में डेरा डाला और आदिवासी परिवारों से मिलने की बात पर अड़ गईं. प्रियंका को सोनभद्र जाने से रोक कर चुनार गढ़ किले में बने गेस्ट हाउस में रखा गया.

शुरुआत में प्रदेश सरकार ने मरने वालों को 5 लाख रुपए का मुआवजा देने की बात कही पर प्रियंका गांधी की मांग के बाद मुआवजे की रकम बढ़ा कर 20 लाख कर दी गई. साथ ही यह भी कि जमीन को वही लोग जोतेबोएं, यह भरोसा भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को देना पड़ा.

मुख्यमंत्री खुद पीडि़तों से मिलने गए. जानकार लोग मानते हैं कि प्रियंका के सोनभद्र मामले में सक्रिय होने के बाद भाजपा और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ही सक्रिय नहीं हुए, बल्कि अन्य दलों ने भी अपने नेताओं को सोनभद्र भेजा.

करीब 1200 की आबादी वाले उम्भापुरवा गांव के 125 घरों की बस्ती में टूटी सड़कें, तार के इंतजार में खड़े बिजली के खंभे बदहाली की कहानी बताते हैं. इस गांव के लोग सरकार की योजनाओं के पहुंचने का सालों से इंतजार कर रहे थे लेकिन 17 जुलाई को हुए नरसंहार के बाद यहां पहली बार शासन की योजनाएं पहुंचने लगीं.

63 साल से अधिक की कमलावती कहती हैं कि हमारी उम्र के लोगों को वृद्धावस्था पेंशन मिलती है लेकिन हमारा नाम काट दिया गया. हमें आज तक पेंशन का लाभ नहीं मिला. न ही किसी अन्य सरकारी  योजना का लाभ मिला. इस घटना के बाद लगे कैंप में अब फार्म भरवाया गया है.

इतने दिन तक तो हमें पता ही नहीं था कि सरकार की क्याक्या योजनाएं चलती हैं. राशनकार्ड तो बना था, लेकिन राशन नहीं मिलता था. इस नरसंहार में हम ने अपना बेटा खोया है. तब जा कर आवास आदि के लिए फार्म भरवाए गए हैं.

इसी गांव की रहने वाली मालती देवी कहती हैं कि पहले न तो गांव में बिजली थी और न ही किसी के पास पक्का मकान था. इतनी बड़ी बस्ती में महज एक पक्का मकान था. घटना के बाद आवास के लिए फार्म भरवाया गया है. राशन कार्ड भी बन गया. इलाज के लिए आयुष्मान भारत का कार्ड भी बना दिया गया.

मिर्जापुर जिले से अलग कर के 4 मार्च, 1989 को सोनभद्र को अलग जिला बनाया गया था. 6,788 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ यह उत्तर प्रदेश का दूसरा सब से बड़ा जिला माना जाता है. यहां जंगल सब से अधिक हैं. खाली पड़ी जमीनें बहुत पहले से नेताओं और अफसरों को अपनी तरफ आकर्षित करती रही हैं. सोनभद्र जिले के पश्चिमी में सोन नदी बहती है.

सोन नदी के नाम पर ही सोनभद्र बना है. सोनभद्र की पहाडि़यों में चूना पत्थर तथा कोयला मिलने के साथ इस क्षेत्र में पानी की बहुतायत होने के कारण यह औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकसित किया गया.

यहां पर देश की सब से बड़ी सीमेंट फैक्ट्रियां, बिजली घर (थर्मल तथा हाइड्रो) हिंडाल्को अल्युमिनियम कारखाना, आदित्य बिड़ला केमिकल, रिहंद बांध, चुर्क, डाला सीमेंट कारखाना, एनटीपीसी के अलावा कई सहायक इकाइयां एवं असंगठित उत्पादन केंद्र, विशेष रूप से स्टोन क्रशर इकाइयां भी स्थापित हुए हैं.

सोनभद्र का सलखन फौसिल पार्क दुनिया का सब से पुराना जीवाश्म पार्क है. जिसे देखने व घूमने के लिए पूरी दुनिया के लोग यहां आते हैं. भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इस जिले को भारत का स्विटजरलैंड बनाने का सपना देखा था. लेकिन बाद में इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. जिस से जवाहरलाल नेहरू का सपना सपना ही रह गया.

सोनभद्र में एक लाख हेक्टेयर से ज्यादा वन भूमि पर अवैध रूप से नेता, अफसर और दबंग काबिज हैं. जिले में तैनात हुए अधिकतर अफसरों ने वन और राजस्व  विभाग कर्मियों की मिलीभगत से करोड़ों की जमीन अपने नाम कर ली.

पीढि़यों से जमीन जोत रहे वनवासियों का शोषण भी किसी से छिपा नहीं है. 5 साल पहले सन 2014 में वन विभाग के ही मुख्य वन संरक्षक (भू-अखिलेख एवं बंदोबस्त) ए.के. जैन ने यह रिपोर्ट दी थी कि पूरे मामले की सीबीआई जांच कराई जाए. लेकिन यह रिपोर्ट फाइलों में दबी रह गई.

इस रिपोर्ट के अनुसार सोनभद्र में जंगल की जमीन की लूट मची हुई है. यहां की जमीन अवैध रूप से बाहर से आए रसूखदारों या उन की संस्थाओं के नाम की जा चुकी है. यह प्रदेश की कुल वनभूमि का 6 प्रतिशत हिस्सा है.

इस पूरे मामले से सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराने की सिफारिश भी की गई थी. रिपोर्ट के अनुसार, सोनभद्र में सन 1987 से ले कर अब तक एक लाख हेक्टेयर भूमि को अवैध रूप से गैर वन भूमि घोषित कर दिया गया है. जबकि भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा-4 के तहत यह जमीन वन भूमि घोषित की गई थी.

रिपोर्ट में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट की अनुमति के बिना इसे किसी व्यक्ति या प्रोजेक्ट के लिए नहीं दिया जा सकता. वन की जमीन को ले कर होने वाला खेल रुका नहीं है.

धीरेधीरे अवैध कब्जेदारों को असंक्रमणीय से संक्रमणीय भूमिधर अधिकार यानी जमीन एकदूसरे को बेचने के अधिकार भी दिए जा रहे हैं. यह वन संरक्षण अधिनियम 1980 का सरासर उल्लंघन है. 2009 में राज्य सरकार की ओर से उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की गई थी.

जिस में कहा गया था कि सोनभद्र में गैर वन भूमि घोषित करने में वन बंदोबस्त अधिकारी (एफएसओ) ने खुद को प्राप्त अधिकारों का दुरुपयोग कर के अनियमितता की है.

हालात का अंदाजा इस से लगा सकते हैं कि 4 दशक पहले सोनभद्र के रेनुकूट इलाके में 1,75,894.490 हेक्टेयर भूमि को धारा-4 के तहत लाया गया था. लेकिन इस में से मात्र 49,044.89 हेक्टेयर जमीन ही वन विभाग को पक्के तौर पर (धारा 20 के तहत) मिल सकी. यही हाल ओबरा व सोनभद्र वन प्रभाग और कैमूर वन्य जीव विहार क्षेत्र का है.

सौजन्य- सत्यकथा, सितंबर 2019

 

ऊंची उड़ान : जिम्मेदारियों के बनाया शिकार

घटना 13 नवंबर, 2018 की है. तृप्ति जय तेलवानी जिस समय अपने 3 साल के बेटे के साथ पुणे शहर के थाना चिखली पहुंची, उस वक्त दोपहर का एक बजने वाला था. महिला एसआई रत्ना सावंत उस समय किसी पुराने मामले की फाइल देख रही थीं. घबराई और रोती हुई तृप्ति जब उन के पास पहुंची तो वह समझ गई कि इस के साथ जरूर कुछ गलत हुआ है.

उन्होंने तृप्ति को सामने कुरसी पर बैठा कर उस से इत्मीनान से बात की. उस ने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘मैडम मेरा नाम तृप्ति जय तेलवानी है. मैं चिखली के घरकुल इलाके की साईं अपार्टमेंट सोसायटी में पति के साथ रहती हूं.’’ कह कर तृप्ति फिर से रोने लगी.

एसआई रत्ना सावंत ने उसे धीरज बंधाते हुए कहा, ‘‘देखिए, आप रोइए मत. आप के साथ जो भी हुआ है, मुझे विस्तार से बताएं ताकि मैं आप की मदद कर सकूं.’’

रत्ना सावंत की सहानुभूति पर तृप्ति अपने आंसू पोंछते हुए बोली, ‘‘मैडम, मैं बरबाद हो गई हूं. मेरी तो दुनिया ही उजड़ गई. मेरे पति ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली है.’’

तृप्ति की बात सुन कर एसआई रत्ना सावंत चौंकी. वह उसी समय पुलिस टीम के साथ मौके की ओर रवाना हो गईं. इस की सूचना उन्होंने उच्चाधिकारियों को भी दे दी थी.

एसआई रत्ना सावंत अपनी टीम के साथ जब मौके पर पहुंचीं तो वहां लोगों की भीड़ लगी थी. मृतक जय तेलवानी के मातापिता और अन्य लोग भी वहां मौजूद थे.

पुलिस जब बैडरूम  में पहुंची तो बैड पर जय तेलवानी का शव पड़ा था. मांबाप और अन्य लोग उस के शव के साथ लिपट कर रो रहे थे. एसआई रत्ना सावंत ने जब लाश का निरीक्षण किया तो उस के गले पर फंदे का निशान देख कर उन्हें पहली नजर में मामला आत्महत्या का लगा.

एसआई रत्ना सावंत ने मृतक की पत्नी तृप्ति जय तेलवानी से इस संबंध में पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह पिछले कुछ दिनों से अपनी लाइलाज बीमारी से परेशान थे. इन्हें ब्लड कैंसर था. आज सुबह जब मैं 11 बजे अपने बच्चे को लेने स्कूल गई तो ये ठीक थे, लेकिन जब स्कूल से लौटी तो दरवाजा अंदर से बंद मिला.

कई बार कालबैल बजाने और आवाज देने के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला, न कोई आहट हुई तो मैं घबरा गई. मैं ने दूसरी चाबी ला कर दरवाजा खोला तो मेरी चीख निकल गई. जय गले में साड़ी बांध कर पंखे से लटके हुए थे.

चीखनेचिल्लाने की आवाजें सुन कर पड़ोसी फ्लैट में आ गए. उन्होंने पति को नीचे उतार कर बैड पर लिटा दिया और अस्पताल जाने के लिए एंबुलेंस भी मंगा ली, लेकिन तब तक उन की मौत हो चुकी थी.

पुलिस की जांच में आत्महत्या के निशान तो मिल रहे थे, लेकिन आत्महत्या का कारण समझ नहीं आ रहा था. तृप्ति तेलवानी अपने बयान में जिस लाइलाज बीमारी की बात कह रही थी, उस बीमारी के संबंध में वह यह भी नहीं बता सकी कि जय का किस अस्पताल में इलाज चल रहा था.

यह बात पुलिस के गले नहीं उतर रही थी. जब मृतक को ब्लड कैंसर था तो उस का किसी अस्पताल में इलाज क्यों नहीं कराया. और फिर बिना जांच कराए यह कैसे पता चला कि जय को ब्लड कैंसर है. उसी दौरान थानाप्रभारी बालाजी सोनटके मौकाएवारदात पर पहुंच गए. उन के साथ फोरैंसिक टीम भी थी.

मौकामुआयना करने के बाद अधिकारियों ने मृतक के घर वालों से इस बारे में पूछताछ की. इस के बाद वह थानाप्रभारी को आवश्यक दिशानिर्देश दे कर चले गए.

वरिष्ठ अधिकारियों के जाने के बाद थानाप्रभारी बालाजी सोनटके ने मौके की काररवाई पूरी कर के जय तेलवानी के शव को पोस्टमार्टम के लिए पुणे के सेसून डाक अस्पताल भेज दिया. थानाप्रभारी ने इस मामले की जांच एसआई रत्ना सावंत को सौंप दी.

एसआई रत्ना सावंत ने मृतक जय तेलवानी की कैंसर की बीमारी के संबंध में आसपड़ोस के लोगों से बात की. उन्होंने बताया कि इस बारे में उन्हें वाट्सऐप मैसेज द्वारा ही जानकारी मिली थी कि जय तेलवानी को ब्लड कैंसर है. लेकिन यह बात जय तेलवानी ने नहीं बताई, वह तो एकदम स्वस्थ दिखता था.

अगले दिन पुलिस के पास पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कैंसर जैसी घातक बीमारी का कोई जिक्र नहीं था. इस का मतलब यह था कि सोशल मीडिया पर जय तेलवानी को कैंसर रोगी होने की बात किसी ने एक सोचीसमझी साजिश के तहत फैलाई थी. यह बात फैला कर किसे लाभ हो सकता है, पुलिस इस की जांच में जुट गई.

इसी दौरान जय तेलवानी के मातापिता पुलिस थाने पहुंचे. उन्होंने थानाप्रभारी बालाजी सोनटके को बताया कि उन के बेटे की आत्महत्या की जिम्मेदार उन की बहू तृप्ति है. इस के बाद पुलिस ने अपनी तफ्तीश का रुख तृप्ति की तरफ मोड़ दिया.

तृप्ति पर नजर रख कर जांच अधिकारी उस वीडियो की तलाश में जुट गईं जो सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी. इस वीडियो में जय तेलवानी को कैंसर रोगी बता कर आर्थिक सहायता की मांग की गई थी.

बताया जाता है कि यह वीडियो देख कर जय तेलवानी मानसिक रूप से परेशान हो गए थे. चूंकि वह भलेचंगे स्वस्थ थे और किसी ने उन का कैंसर रोगी का वीडियो बना लिया. वह वीडियो क्लिप जांच अधिकारी रत्ना सावंत को को भी मिल गई थी.

पुलिस की आईटी टीम ने जब उस वीडियो की जांच की तो पता चला कि तृप्ति ने ही उसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म टिकटौक पर अपलोड किया था. तृप्ति के खिलाफ सबूत मिल गया तो पुलिस ने उसे पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. वीडियो के आधार पर जब तृप्ति तेलवानी से पूछताछ की गई तो पहले तो वह साफ मुकर गई, लेकिन बाद में उस ने अपना गुनाह स्वीकार कर लिया.

21 वर्षीय तृप्ति तेलवानी ने बताया कि अपनी महत्त्वाकांक्षा और ख्वाहिशें पूरी करने के लिए उस ने सोशल मीडिया का सहारा लिया था. पूछताछ में यह बात सामने आई है कि पूछताछ में यह बात सामने आई है कि वह पुणे के छोटे से गांव की रहने वाली थी लेकिन उस के सपनों की उड़ान ऊंची थी. उस ने अपने दोस्तों और सहेलियों के बीच अपना एक क्रेज बना कर रखा था.

कालेज समय में नित नए फैशन के कपड़े पहनना, दिल खोल कर पैसे खर्च करना उस का शौक बन गया था. उस के इस अनापशनाप खर्च और मांग पर मांबाप परेशान रहते थे.

उन्हें चिंता इस बात की भी थी कि आगे चल कर इस लड़की का क्या होगा. वह तृप्ति को समझाने की काफी कोशिश करते थे पर तृप्ति ने मांबाप की सलाह को कभी गंभीरता से नहीं लिया.

तृप्ति के लक्षणों को देखते हुए मांबाप ने 16 साल की उम्र में ही उस की शादी पिपरी चिचवड़, पुणे के रहने वाले देवीदास तेलवानी के बेटे जय तेलवानी के साथ कर दी. यह 2017 की बात है. जय तेलवानी उस परिवार का एकलौता बेटा था.

25 वर्षीय जय तेलवानी सीधासादा युवक था. वह अपनी पढ़ाई पूरी कर अपने एक रिश्तेदार के प्लंबिंग बिजनैस में सहयोगी था.

तृप्ति को बहू के रूप में पा कर देवीदास और सभी घर वाले खुश थे. उन्हें क्या पता था कि तृप्ति के सुंदर चेहरे के पीछे उस की कितनी गंदी सोच छिपी है. इस का एहसास उन्हें धीरेधीरे होने लगा था.

आजादी के साथ रहने वाली तृप्ति को ससुराल जेल की तरह लगती थी. वह वहां से बाहर निकलने के लिए फड़फड़ाने लगी तो सास ने उसे समाज की मर्यादा का पाठ पढ़ाया. उस ने सास की सीख न सिर्फ हवा में उड़ा दी बल्कि वह उन से झगड़ने भी लगी.

बातबात पर वह जय तेलवानी के मांबाप और परिवार वालों से लड़ बैठती थी, जिसे ले कर जय परेशान हो जाता था. जब वह तृप्ति को समझाने की कोशिश करता तो उस का सीधा जवाब होता, ‘‘मेरी शादी तुम्हारे साथ हुई है, तुम्हारे मांबाप और परिवार वालों के साथ नहीं.’’

आखिरकार रोजरोज की किचकिच से तंग आ कर जय के परिवार वालों ने तृप्ति जो चाहती थी, वही कर दिया. उन्होंने उसे चिखली के साईं अपार्टमेंट घरकुल सोसायटी में एक किराए का फ्लैट ले कर दे दिया. अब तृप्ति पूरी तरह से आजाद थी. उस के मन में जो आता, वह करती थी. अनापशनाप खर्चा, पार्टी और सहेलियों दोस्तों के साथ कंपीटिशन करना उस की आदत में शुमार हो गया.

इस बीच वह एक बच्चे की मां भी बन गई थी. फिर भी उस की आदतों में कोई सुधार नहीं आया था. वह जब तृप्ति को समझाने की कोशिश करता तो वह यह कह कर उसे चुप करा देती कि भगवान ने जिंदगी दी है तो ऐश करो.

तृप्ति का मन घर के कामों के बजाए सोशल मीडिया पर अधिक लगता था. वह फेसबुक, वाट्सऐप पर अपने नएपुराने मित्रों के साथ चैटिंग में लगी रहती थी.

पति से नईनई फरमाइश करती थी. नहीं मिलने पर उस से झगड़ा करती थी. लाचार जय किसी तरह उस की मांगें पूरी करता. पैसे न होने पर वह दोस्तों से पैसे उधार लेता. इस के लिए कर्जदार भी हो गया. लाखों रुपए का कर्जदार होने के बावजूद भी तृप्ति के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया था.

हर रोज नएनए फैशनपरस्त कपड़े पहन कर वह अलगअलग ऐंगल से फोटो खींच कर उन्हें फेसबुक और वाट्सऐप पर डालती और यह दिखाने की कोशिश करती कि वह भी किसी से कम नहीं है.

इस के लिए जब पति मना करता तो वह जय से झगड़ा कर के मारपीट पर उतर आती थी. इतना ही नहीं, वह पति पर व्यंग्य कसते हुए कहती, ‘‘तुम्हारी तरह मेरे दोस्त और सहेलियां भिखारी नहीं हैं. वे सब मेरे फोटो लाइक करते हैं. मुझ से फेसबुक और वाट्सऐप पर बातें करते हैं. देशविदेश की सैर करते हैं. वहां के खूबसूरत फोटो भेजते हैं. तुम ने आज तक मेरे लिए क्या किया है? देशविदेश तो छोड़ो, कभी पुणे तक में नहीं घुमाया. पता नहीं मेरे मांबाप ने तुम में क्या देखा था. मेरी तो किस्मत ही फूट गई है. तुम में मेरे शौक पूरे कराने की भी हैसियत नहीं है.’’

‘‘तृप्ति जब तुम यह सब जानती हो तो हैसियत से बड़े सपने क्यों देखती हो? हमारी आर्थिक स्थिति तुम्हारे दोस्तों जैसी नहीं है. मैं एक मामूली इंसान हूं. तुम्हारे लिए मैं लाखों रुपए का कर्ज तो पहले ही ले चुका हूं. अब और कर्ज नहीं ले सकता.’’ जय तेलवानी बोला.

इस बात पर तृप्ति को इतना गुस्सा आया कि उस ने अपने पति के गाल पर एक जोरदार तमाचा जड़ दिया और कहा, ‘‘चुपचाप रहो, मूर्ख इंसान. तुम क्या जानो सपना क्या होता है?’’

तृप्ति के इस व्यवहार से जय सन्न रह गया. उसे तृप्ति से ऐसी आशा नहीं थी. उसे गुस्सा तो बहुत आया लेकिन कड़वा घूंट समझ कर पी गया. उस ने सोचा बात बढ़ाने से क्या फायदा, बदनामी उस की ही होगी.

लेकिन उस की इस चुप्पी से तृप्ति का हौसले बुलंद हो गए. वह आए दिन जय से छोटीछोटी बातों को ले कर उलझ जाती थी. इतना ही नहीं, वह सोशल मीडिया पर अपने पति की बुराई कर सहानुभूति बटोरती थी.

उस ने और ज्यादा सहानुभूति पाने के लिए अपना टिकटौक एकाउंट खोला और उस पर नईनई वीडियो बना कर अपलोड करने लगी. बिना यह सोचे कि आगे चल कर इस का क्या नतीजा निकलेगा.

तृप्ति का सोशल मीडिया पर इतना ज्यादा एक्टिव होना जय और उस के परिवार वालों को बुरा लगता था. तृप्ति पति पर बुरी तरह हावी थी. ऊपर से सोशल मीडिया में जय की जो बदनामी हो रही थी, वह अलग बात थी. जय ने जबजब पत्नी को समझाने की कोशिश की, तबतब वह भड़क जाती थी. कहती थी कि क्या अच्छा है, क्या बुरा मैं सब समझती हूं. मैं जो कर रही हूं करने दो. तुम लोग हमारे बीच में मत पड़ो. नहीं तो मैं कुछ कर लूंगी तो पछताओगे.

तृप्ति की आत्महत्या करने की धमकी से जय और उस का पूरा परिवार डर गया था. तृप्ति अपने दोस्तों के साथ नएनए वीडियो तैयार करती और सोशल मीडिया पर अपलोड कर देती. इस से उसे सहानुभूति तो मिलती ही थी, एकाउंट में अच्छाखासा पैसा भी आ जाता था. जिन्हें वह अपने शौक और यारदोस्तों के साथ पार्टियों में खर्च करती थी.

घर और परिवार की बदनामी से तृप्ति का कोई लेनादेना नहीं था. हद तो तब हो गई जब एक दिन तृप्ति ने जय से बड़ी रकम की मांग कर दी. उस ने पैसे देने में असमर्थता जताई तो तृप्ति ने योजना बना कर अपने पति पर एक वीडियो बनाई.

उस वीडियो में उस ने पति को ब्लड कैंसर का मरीज बताया. फिर उस वीडियो में उस ने किसी दूसरे की आवाज डाल कर के सोशल मीडिया पर डाल दिया. साथ ही उस ने आर्थिक मदद करने का भी अनुरोध किया.

इस से तृप्ति को ढेर सारी सहानुभूति तो मिली ही, साथ ही उस के एकाउंट में काफी पैसा भी आया. लेकिन इस से जय को जिस मानसिक तनाव से गुजरना पड़ा, उसे वह बरदाश्त नहीं कर पाया. उस की सारे दोस्तों और नातेरिश्तेदारों में काफी बदनामी हुई.

पत्नी के इस कृत्य से वह अपनों से नजरें नहीं मिला पा रहा था, क्योंकि अब वह लोगों की नजरों में कैंसर का ऐसा मरीज बन गया था, जो लोगों से इलाज के लिए पैसे मांग रहा था. लोग उसे सहानुभूति की नजरों से देखते और धीरज बंधाते थे.

वह उस बीमारी को ले कर जी रहा था, जिस का उसे पता ही नहीं था. वह तृप्ति के व्यवहार से बुरी तरह टूट गया था. अंतत: उस ने एक दिन दिल दहला देने वाला निर्णय ले लिया. अपने मांबाप से फोन पर बात करने के बाद जय ने मौत को गले लगा लिया.

जय तेलवानी के परिवार वालों की शिकायत और सोशल मीडिया की जांचपड़ताल कर एसआई रत्ना सावंत ने तृप्ति से पूछताछ कर उसे विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. उस के विरुद्ध भादंवि की धारा 306 के तहत मामला दर्ज कर कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उसे यरवदा जेल भेज दिया गया.

सौजन्य- सत्यकथा, सितंबर 2019

अधूरी मौत-भाग 3 : क्यों अपने ही पति की खूनी बन गई शीतल

शीतल की जिंदगी में बदलाव अब स्पष्ट दिखाई देने लगा था. एक दिन शीतल क्लब से रात 12 बजे लौटी. कार से उतरते हुए उसे घर की दूसरी मंजिल पर किसी के खड़े होने का अहसास हुआ.

उस ने ध्यान से देखने की कोशिश की मगर धुंधले चेहरे के कारण कुछ समझ में नहीं आ रहा था. आश्चर्य की बात यह थी कि जिस गैलरी में वह शख्स खड़ा था, वह उस के ही बैडरूम की गैलरी थी. और वह ऊपर खड़ा हो कर बाहें फैलाए शीतल को अपनी तरफ आने का इशारा कर रहा था.

शीतल अपने बैडरूम की तरफ भागी, मगर वह बाहर से उसी प्रकार बंद था जैसे वह कर के गई थी. दरवाजा बाहर से बंद होने के बावजूद कोई अंदर कैसे जा सकता है, यह सोच कर वह गैलरी की तरफ गई. गैलरी की तरफ जाने वाला दरवाजा भी अंदर से लौक था.

शीतल ने सोचा शायद कोई चोर होगा, अत: वह सुरक्षा के नजरिए से अपने साथ बैडरूम में रखी अनल की रिवौल्वर ले कर गैलरी में गई. मगर वहां कोई नहीं था. शीतल को अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था.

उस ने चौकीदार को आवाज दी. चौकीदार के आने पर उस ने पूछा, ‘‘ऊपर कौन आया था?’’

‘‘नहीं मैडम, ऊपर तो क्या आप के जाने के बाद बंगले में कोई नहीं आया.’’ चौकीदार ने जवाब दिया.

सुबह जैसे ही शीतल की नींद खुली, उसे रात की घटना याद आ गई.

शाम को शीतल पूरी तरह चौकन्नी थी. वह कल जैसी गलती दोहराना नहीं चाहती थी. बंगले से निकलते समय उस ने खुद अपने बैडरूम को लौक किया और चौकीदार को लगातार राउंड लेने की हिदायत दी.

रात को वह क्लब से घर लौटी, तभी उस के मोबाइल की घंटी बज उठी.

‘‘हैलो..’’

‘‘मेरे दिल ने जो मांगा मिल गया, मैं ने जो भी चाहा मिल गया…’’ दूसरी तरफ से किसी पुरुष के गुनगुनाने की आवाज आ रही थी.

‘‘कौन है?’’ शीतल ने तिलमिला कर पूछा.

जवाब में वह व्यक्ति वही गीत गुनगुनाता रहा. शीतल ने झुंझला कर फोन काट दिया और आए हुए नंबर की जांच करने लगी. मगर स्क्रीन पर नंबर डिसप्ले नहीं हो रहा था. उसे याद आया यह तो वही पंक्तियां थीं, जो वह उस हिल स्टेशन पर होटल में अनल के सामने बुदबुदा रही थी.

कौन हो सकता है यह व्यक्ति? मतलब होटल के कमरे में कहीं गुप्त कैमरा लगा था जो उस होटल में रुकने वाले जोड़ों की अंतरंग तसवीरें कैद कर उन्हें ब्लैकमेल करने के काम में लिया जाता होगा. लेकिन जब उन्हें उस की और अनल की ऐसी कोई तसवीर नहीं मिली तो इन पंक्तियों के माध्यम से उस का भावनात्मक शोषण कर ब्लैकमेल कर रुपए ऐंठना चाहते होंगे.

शीतल बैडरूम में जाने के लिए सीढि़यां चढ़ ही रही थी कि एक बार फिर से मोबाइल की घंटी बज उठी. इस बार उस ने रिकौर्ड करने की दृष्टि से फोन उठा लिया. फिर वही आवाज और फिर वही पंक्तियां. उस ने फोन काट दिया. मगर फोन काटते ही फिर घंटी बजने लगी. बैडरूम का लौक खोलने तक 4-5 बार ऐसा हुआ.

झुंझला कर शीतल ने मोबाइल ही स्विच्ड औफ कर दिया. उसे डर था कि यह फोन उसे रात भर परेशान करेगा और वह चैन से नहीं सो पाएगी.

शीतल कपड़े चेंज कर के आई और लाइट्स औफ कर के लेटी ही थी कि उस के बैडरूम में लगे लैंडलाइन फोन पर आई घंटी से वह चौंक गई. यह तो प्राइवेट नंबर है और बहुत ही चुनिंदा और नजदीकी लोगों के पास थी. क्या किसी परिचित के यहां कुछ अनहोनी हो गई. यही सोचते हुए उस ने फोन उठा लिया.

फोन उठाने पर फिर वही पंक्तियां कानों में पड़ने लगीं. शीतल बुरी तरह से घबरा गई. एसी के चलते रहने के बावजूद उस के माथे पर पसीना उभर आया. कोई उसे डिस्टर्ब न करे, इसलिए उस ने लैंडलाइन फोन का भी प्लग निकाल कर डिसकनेक्ट कर दिया.

फोन डिसकनेक्ट कर के वह मुड़ी ही थी कि उस की नजर बैडरूम की खिड़की पर लगे शीशे की तरफ गई. शीशे पर किसी पुरुष की परछाई दिख रही थी, जो कल की ही तरह बाहें फैलाए उसे अपनी तरफ बुला रहा था.

वह जोरों से चीखी और बैडरूम से निकल कर नीचे की तरफ भागी. चेहरे पर पानी के छीटें पड़ने से शीतल की आंखें खुलीं.

‘‘क्या हुआ?’’ उस ने हलके से बुदबुदाते हुए पूछा.

घर के सारे नौकर और चौकीदार शीतल को घेर कर खड़े थे और उस का सिर एक महिला की गोद में था.

‘‘शायद आप ने कोई डरावना सपना देखा और चीखते हुए नीचे आ गईं और यहां गिर कर बेहोश हो गईं.’’ चौकीदार ने बताया.

‘‘सपना…? हां शायद,’’ कुछ सोचते हुए शीतल बोली, ‘‘ऐसा करो, वह नीचे वाला गेस्टरूम खोल दो, मैं वहीं आराम करूंगी.’’

सुबह उठ कर शीतल पुलिस में शिकायत करने के बारे में सोच ही रही थी कि एक नौकर ने आ कर सूचना दी.

‘‘मैडम, वीर सर आप से मिलाना चाहते हैं.’’

‘‘वीर? अचानक? इस समय?’’ शीतल मन ही मन बुदबुदाते हुई बोली.

‘‘भाभीजी जैसा कि आप ने कहा था मैं ने इंश्योरेंस कंपनी के औफिसर्स से बात की है. चूंकि यह केस कुछ पेचीदा है फिर भी वह कुछ लेदे कर केस निपटा सकते हैं.’’ वीर ने कहा.

‘‘कितना क्या और कैसे देना पड़ेगा? हमारी तरफ से कौनकौन से पेपर्स लगेंगे?’’ शीतल ने शांत भाव से पूछा.

‘‘हमें उस हिल स्टेशन वाले थाने से पिछले तीन केस की ऐसी रिपोर्ट निकलवानी होगी, जिस में लिखा होगा कि उस खाई में गिरने के बाद उन लोगों की लाशें नहीं मिलीं.

‘‘इस काम के लिए अधिकारियों को मिलने वाली राशि का 25 परसेंट मतलब ढाई करोड़ रुपए देना होगा. यह रुपए उन्हें नगद देने होंगे. कुछ पैसा अभी पेशगी देना होगा बाकी क्लेम सेटल होने के बाद. चूंकि बात मेरे माध्यम से चल रही है अत: पेमेंट भी मेरे द्वारा ही होगा.’’ वीर ने बताया.

‘‘ढाई करोड़ऽऽ..’’ शीतल की आंखें चौड़ी हो गईं, ‘‘यह कुछ ज्यादा नहीं हो जाएगा?’’ वह बोली.

‘‘देखिए भाभीजी, अगर हम वास्तविक क्लेम पर जाएंगे तो सालों का इंतजार करना होगा. शायद कम से कम 7 साल. फिर उस के बाद कोर्ट का अप्रूवल.’’ वीर ने अपना मत रखा.

‘‘आप क्या चाहते हैं, इस डील को स्वीकार कर लिया जाए?’’ शीतल ने पूछा.

‘‘जी मेरे विचार से बुद्धिमानी इसी में है.’’ वीर बोला, ‘‘अभी हमें सिर्फ 25 लाख रुपए देने हैं. ये 25 लाख लेने के बाद इंश्योरेंस औफिस एक लेटर जारी करेगा, जिस के आधार पर हम उस हिल स्टेशन वाले थाने से पिछले 3 केस की केस हिस्ट्री लेंगे.

‘‘इस हिस्ट्री के आधार पर कंपनी हमारे क्लेम को सेटल करेगी और 10 करोड़ का चैक जारी करेगी.’’ वीर ने पूरी योजना विस्तार से समझाई.

‘‘ठीक है 1-2 दिन में सोच कर बताती हूं. 25 लाख का इंतजाम करना भी आसान नहीं होगा.’’ शीतल बोली.

‘‘अच्छा भाभीजी, मैं चलता हूं.’’ वीर उठते हुए नमस्कार की मुद्रा बना कर बोला.

क्वीन हरीश का निधन: वह रानी नहीं, राजा था

नृत्य एक ऐसी कला है, जिस पर किसी का एकाधिकार नहीं है. नृत्य करने और सिखाने वालों में स्त्री और पुरुष दोनों होते हैं. किन्नरों में भी अच्छे नर्तकों और नर्तकियों की कमी नहीं है. लेकिन नृत्य सीखना अलग बात है और नृत्य की प्रस्तुति देना अलग बात. नृत्यकला अत्यधिक सुंदरता की मुरीद हो, ऐसा भी नहीं है. कहने का तात्पर्य यह है कि पुरुष भी नृत्य प्रवीण हो सकते हैं और स्त्री भी. यहां हम जिस नृत्य के पुजारी का जिक्र कर रहे हैं, वह पुरुष था नाम था हरीश कुमार सुथार.

हरीश कुमार भले ही पुरुष नर्तक था, लेकिन लोग उसे क्वीन कहते थे. खास बात यह कि हजारों नहीं लाखों दीवाने थे इस क्वीन के नृत्य के. राजस्थान के रेतीले धोरों वाले शहर जैसलमेर की शान माना जाता था क्वीन हरीश को.

जब वह राजस्थानी वेशभूषा में घाघराचोली पहन, पूरा शृंगार कर स्टेज या रेतीले धोरों पर नृत्य करता था तो लोग आंखें झपकाना भूल जाते थे. वह राजस्थान का ऐसा कलाकार था, जिस ने मरुभूति की लोक संस्कृति को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाया.

हरीश का मेकअप किट किसी फिल्मी सितारे से कम नहीं था. उस के मेकअप किट में देसीविदेशी सौंदर्य प्रसाधन का सारा सामान रहता था. मेकअप कर तैयार होने में उसे घंटा भर लग जाता था. वजह यह कि अपना मेकअप वह खुद करता था. नाक में नथुनी, पैरों में पायल और हाथों में चूडि़यां पहन कर खनकाते हुए जब वह चुस्त चोली और गोटापत्ती से सजे घाघरे में नृत्य करता था, जो नौजवानों के दिल पर छुरियां सी चल जाती थीं.

क्वीन हरीश ने हाल ही रिलायंस के चेयरमैन मुकेश अंबानी की बेटी ईशा अंबानी और अजय पीरामल के बेटे आनंद पीरामल की शादी में अपनी परफौरमेंस दे कर सुर्खियां बटोरी थीं. इसी दौरान हरीश ने अभिनेत्री ऐश्वर्या राय बच्चन और उन की बेटी आराध्या को नृत्य के टिप्स दिए थे. यह वीडियो पूरे देश में वायरल हुआ था.

हरीश ने मशहूर फिल्म निर्माता प्रकाश झा की फिल्म ‘जय गंगाजल’ में आइटम सौंग ‘नजर तोरी राजा…’ पर नृत्य किया था. इस फिल्म के कितने ही दर्शकों को आज तक इस बात का अहसास नहीं होगा कि आइटम डांसर कोई लड़की नहीं, बल्कि एक लड़का हरीश सुथार था.

हरीश ने कई बंगाली और मराठी फिल्मों में भी काम किया था. वह 2010 में इंडियन फैशन वीक में रैंप वाक भी कर चुका था. क्वीन हरीश राजस्थानी लोकनृत्य घूमर, कालबेलिया, चंग, भवई, चरी सहित कई लोक कलाओं में पारंगत था.

हरीश ने अपनी कला के बल पर ही दुनिया भर में अपनी पहचान बनाई थी. वह दुनिया के 60 से अधिक देशों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुका था. उस ने इन में सब से ज्यादा शो जापान और कोरिया में किए. अमेरिका, फ्रांस और इंग्लैंड में भी हरीश ने अपनी कला के जलवे दिखाए.

राजस्थानी लोकनृत्य के अलावा हरीश को बैले डांस के लिए भी दुनिया भर में जाना जाता रहा. उस ने कई बैले डांस चैंपियनशिप में हिस्सा लिया. राजस्थानी स्टाइल में बैले डांस परफौर्म करने के कारण उसे डेजर्ट क्वीन भी कहा जाता था. हरीश कलर्स चैनल के इंडियाज गौट टैलेंट का हिस्सा भी बना.

करीब 38 साल की उम्र के हरीश सुथार उर्फ क्वीन हरीश का इसी 2 जून को जोधपुर में कापरड़ा के पास हुए हादसे में निधन हो गया. वह जैसलमेर से एक टवेरा कार में अपने साथी कलाकारों के साथ जयपुर में प्रस्तावित कार्यक्रम में भाग लेने आ रहा था.

सुबह करीब 6 बजे उस की कार सड़क किनारे खड़े एक ट्रक से जा टकराई और चकनाचूर हो गई. इस हादसे में 3 अन्य लोक कलाकारों की भी मौके पर ही मौत हो गई. इन में जैसलमेर के रहने वाले लोक कलाकार लतीफ खां, रवींद्र उर्फ बंटी गोस्वामी और बाड़मेर के भीखे खां शामिल थे.

लोक कलाकार क्वीन हरीश के असामयिक निधन पर पूरे देश के कला जगत में शोक छा गया. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, विधानसभा अध्यक्ष डा. सी.पी. जोशी, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सहित अनेक राजनेताओं और कलाकारों के अलावा उन के प्रशंसकों ने हरीश के निधन को अपूरणीय क्षति बताया.

हरीश के परिवार में पत्नी व 2 बेटों के अलावा एक बहन है. दुनिया भर में नाम कमाने वाले हरीश का जन्म जैसलमेर के एक छोटे से गांव में गरीब परिवार में हुआ था. उन के पिता का भी कम उम्र में ही निधन हो गया था. गरीबी के कारण हरीश ने अपनी स्कूली पढ़ाई भी पूरी नहीं की. बाद में उस ने जीवन यापन के लिए डाकघर में भी काम किया.

हरीश को बचपन से ही डांस का शौक था. जब भी मौका मिलता, वह राजस्थानी लोकगीतों पर डांस करने लगता. उसे लड़की बन कर डांस करना अच्छा लगता था. इस का कारण यह था कि राजस्थानी नृत्य मूलरूप से महिलाएं ही करती हैं. जबकि हरीश कुछ अलग हट कर करना चाहता था.

डाकघर की नौकरी करते हुए भी हरीश ने अपने डांस के शौक को नहीं छोड़ा. वह दिन में काम करता और रात को डांस की प्रैक्टिस. हरीश ने सब से पहले 1995 में जैसलमेर में अपनी नृत्य कला का प्रदर्शन किया.

बाद में वह जैसलमेर आने वाले विदेशी सैलानियों के सामने महिला नर्तकी के रूप में अपनी कला का प्रदर्शन करने लगा. विदेशी मेहमानों के लिए क्वीन हरीश के नृत्य की महफिल जैसलमेर के रेतीले धोरों पर खुले आसमान तले चांद की दूधिया रोशनी में सजती थी.

बाद में हरीश की कला में जैसेजैसे निखार आया, उस के प्रशंसकों की संख्या बढ़ती गई. बाद में वह 1997 से राजस्थान के डांस ग्रुप्स के साथ मिल कर विदेशों में मेहमान कलाकार के रूप में अपनी कला दिखाने जाने लगा. यह सिलसिला उस की मौत से पहले तक चल रहा था.

जैसलमेर में हरीश ने अपनी डांस एकेडमी भी शुरू की. यहां वह विदेशी और भारतीय युवाओं को डांस की बारीकियां सिखाता था. उन के पास कई देशों के लड़केलड़कियां और सांस्कृतिक ग्रुप डांस के गुर सीखने के लिए जैसलमेर आते थे. हजारों विदेशी बालाएं हरीश के नृत्य की फैन थीं.

हर साल सैकड़ों विदेशी सैलानी खासतौर से हरीश से नृत्य का हुनर सीख कर जाते और अपने देश में परफौरमेंस देते. हरीश की पूरी दुनिया में 15 हजार से ज्यादा विदेशी युवतियां शिष्य हैं. उन्हें अपने गुरु की असामयिक मौत का यकीन ही नहीं हो रहा.

हरीश की सफलता का कारवां विदेशी डौक्युमेंटरी फिल्म ‘जिप्सी’ से शुरू हुआ था. यह फिल्म जैसलमेर के लोक संगीत से जुड़े लोगों पर बनी थी. इस के बाद हरीश पर्यटन से जुड़ गए और देश के विभिन्न शहरों और विदेशों में स्टेज शो के दौरान राजस्थान की मरुभूमि की लोक संस्कृति से दर्शकों का मन मोहा. हरीश भारत से ज्यादा विदेशों में विख्यात थे. उन्होंने बौलीवुड और लोक संगीत के फ्यूजन पर शानदार डांस किए.

उन्होंने पेरिस फुटबाल कप, बैली डांस रेग्स फैस्टिवल बेल्जियम, सेंट्रल पार्क समर स्टेज अमेरिका, हौलीवुड बाउल अमेरिका, दिवाली मेला न्यूजीलैंड, इंडिया शो जर्मनी में शानदार प्रस्तुतियां दे कर राजस्थन का नाम ऊंचा किया. वर्ल्ड रिकौर्ड और इंडिया की ओर से सन 2018 में उन्हें डांस जीनियस का अवार्ड दिया गया था.

कहानी सौजन्यसत्यकथा,  जुलाई 2019

5 सालों का रहस्य : किस वजह से जागीर को जान गंवानी पड़ी

मनप्रीत कौर सालों के बाद मामा के घर आई थी. गुरप्रीत सिंह और उस की पत्नी ने मनप्रीत की खूब खातिरदारी की. मामामामी और मनप्रीत के बीच खूब बातें हुईं. बातोंबातों में मनप्रीत ने गुरप्रीत से पूछा, ‘‘मामाजी, बड़े मामा जागीर सिंह के क्या हालचाल हैं. उन से मुलाकात होती है या नहीं?’’

‘‘नहीं, हम 5 साल पहले मिले थे अनाजमंडी में. जागीर उस समय परेशान भी था और दुखी भी. गले लग कर खूब रोया. उस ने बताया कि भाभी (मंजीत कौर) के किसी कुलवंत सिंह से संबंध हैं और दोनों मिल कर उस की हत्या भी कर सकते हैं.’’

गुरप्रीत ने यह भी बताया कि उस ने जागीर सिंह से कहा था कि वह भाभी का साथ छोड़ कर मेरे साथ मेरे घर में रहे. लेकिन उस ने इनकार कर दिया. वजह वह भी जानता था और मैं भी. उस ने मुझे समझाने के लिए कहा कि वह भाभी को अपने ढंग से संभाल लेगा. बस उस के बाद जागीर सिंह मुझे नहीं मिला.

‘‘वाह मामा वाह, बड़े मामा ने तुम से अपनी हत्या की आशंका जताई और आप ने 5 साल से उन की खबर तक नहीं ली?’’

‘‘खबर कैसे लेता, भाभी ने तो लड़झगड़ कर घर से निकाल दिया था. मैं उस के घर कैसे जाता? जाता तो गालियां सुननी पड़तीं.’’ गुरमीत ने अपनी स्थिति साफ कर दी.

बात चिंता वाली थी. मनप्रीत ने खुद ही बड़े मामा जागीर सिंह का पता लगाने का निश्चय किया. उस ने मामा के पैतृक गांव से ले कर गुरमीत द्वारा बताई गई संभावित जगह रेलवे बस्ती, गुरु हरसहाय नगर तक पता लगाया. उस की इस छानबीन में जागीर सिंह का तो कोई पता नहीं लगा, पर यह जानकारी जरूर मिल गई कि जागीर सिंह की पत्नी मंजीत कौर रेलवे बस्ती में किसी कुलवंत सिंह नाम के व्यक्ति के साथ रह रही है.

सवाल यह था कि मंजीत कौर अगर किसी दूसरे आदमी के साथ रह रही थी तो जागीर सिंह कहां था? मंजीत ने ये सारी बातें छोटे मामा गुरमीत को बताईं. इन बातों से साफ लग रहा था कि जागीर सिंह के साथ कोई दुखद घटना घट गई थी. सोचविचार कर गुरमीत और मंजीत ने थाना गुरसहाय नगर जा कर इस बारे में पूरी जानकारी थानाप्रभारी रमन कुमार को दी.

बठिंडा (पंजाब) के रहने वाले गुरदेव सिंह के 2 बेटे थे जागीर सिंह और गुरमीत सिंह. उन के पास खेती की कुछ जमीन थी, जिस से जैसेतैसे घर का खर्च चलता था. सालों पहले उन के परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था. पत्नी के बीमार होने पर उन्हें अपनी जमीन बेचनी पड़ी. इस के बावजूद वह उसे बचा नहीं पाए थे.

पत्नी की मौत के बाद गुरदेव सिंह टूट से गए थे. जैसेतैसे उन्होंने अपने दोनों बेटों की परवरिश की. आज से करीब 15 साल पहले गुरदेव सिंह भी दुनिया छोड़ कर चले गए. पर मरने से पहले गुरदेव सिंह यह सोच कर बड़े बेटे जागीर सिंह का विवाह अपने एक जिगरी दोस्त की बेटी मंजीत कौर के साथ कर गए थे कि वह जिम्मेदारी के साथ उस का घर संभाल लेगी.

मंजीत कौर तेजतर्रार और झगड़ालू किस्म की औरत थी. उस ने घर की जिम्मेदारी तो संभाल ली, लेकिन पति और देवर की कमाई अपने पास रखती थी. दोनों भाई जमींदारों के खेतों में मेहनतमजदूरी कर के जो भी कमा कर लाते, मंजीत कौर के हाथ पर रख देते. लेकिन पत्नी की आदत को देखते हुए जागीर सिंह कुछ पैसे बचा कर रख लेता था.

इसी बीच जागीर सिंह ने जैसेतैसे अपने छोटे भाई गुरमीत की भी शादी कर दी थी. गुरमीत की शादी के बाद मंजीत कौर और गुरमीत की पत्नी के बीच आए दिन लड़ाईझगड़े होने लगे थे. रोज के क्लेश से दुखी हो कर गुरमीत सिंह अपनी पत्नी को ले कर अलग हो गया. उस के अलग होने के बाद दोनों भाइयों का आपस में मिलना कभीकभार ही हो पाता था. ऐसे ही दोनों भाइयों का जीवनयापन हो रहा था.

समय का चक्र अपनी गति से चलता रहा. इस बीच जागीर सिंह और मंजीत कौर के बीच की दूरियां बढ़ती गईं. उन के घर में हर समय क्लेश रहने लगा था.

जागीर सिंह की समझ में यह नहीं आ रहा था कि अब मंजीत कौर घर में टेंशन क्यों करती है. पहले तो उस के भाई गुरमीत की पत्नी की वजह से वह घर में झगड़ा करती थी, पर अब उसे भी घर से अलग हुए कई साल हो गए थे. फिर एक दिन जागीर सिंह को पत्नी द्वारा घर में कलह रखने का कारण समझ आ गया था.

दरअसल, मंजीत कौर के पड़ोसी गांव जुवाए सिंघवाला निवासी कुलवंत सिंह के साथ गलत संबंध थे. दोनों के बीच के संबंधों के बारे में उसे कई लोगों ने बताया था. लेकिन उसे लोगों की बातों पर विश्वास नहीं हुआ. जब एक दिन उस ने दोनों को अपनी आंखों से देखा और रंगेहाथों पकड़ लिया तो अविश्वास की कोई वजह नहीं बची.

उस दिन वह सिरदर्द होने की वजह से समय से पहले ही काम से घर लौट आया था. तभी उसे पत्नी की सच्चाई पता चली थी. पत्नी की यह करतूत देख कर उसे गहरा आघात लगा.

शोर मचाने पर उस के घर की ही बदनामी होती, इसलिए उस ने पत्नी को समझाना उचित समझा. उस ने उस से कहा, ‘‘मंजीत, तुम जो कर रही हो उस से बदनामी के अलावा कुछ नहीं मिलेगा. समझदारी से काम लो. अब तक जो हुआ, उसे मैं भी भूल जाता हूं और तुम भी यह सब भूल कर आगे से एक नया जीवन शुरू करो.’’

उस समय तो मंजीत कौर ने अपनी गलती मान कर पति से माफी मांग ली, पर उस ने अपने प्रेमी कुलवंत से मिलनाजुलना बंद नहीं किया. बल्कि कुछ समय बाद ही उस ने कुलवंत के साथ मिल कर जागीर सिंह को ही रास्ते से हटाने की योजना बना ली.

मंजीत कौर ने घर में क्लेश कर पति जागीर सिंह को इस बात के लिए राजी कर लिया कि वह गांव वाला घर छोड़ कर गुरुसहाय नगर की रेलवे बस्ती में किराए का मकान ले कर रहे.

मकान बदलने की योजना कुलवंत ने बनाई थी. उसी के कहने पर मंजीत कौर ने यह फैसला लिया था. उस ने जानबूझ कर पति को मकान बदलने के लिए मजबूर किया था. पत्नी की बातों और हावभाव से जागीर सिंह को इस बात की आशंका होने लगी थी कि कहीं जागीर कौर उस की हत्या न करा दे. अचानक उन्हीं दिनों अनाजमंडी में जागीर सिंह की मुलाकात अपने छोटे भाई गुरमीत सिंह से हुई.

दोनों भाई आपस में गले मिल कर बहुत रोए. अपनेअपने मन का गुबार शांत करने के बाद जागीर सिंह ने अपने और मंजीत कौर के रिश्तों के बारे में उसे बताते हुए यह भी शक जताया था कि मंजीत कौर किसी दिन उस की हत्या करा सकती है.

गुरमीत सिंह ने बड़े भाई से कहा कि घर का माहौल ऐसा है तो उस का मंजीत कौर के साथ रहना ठीक नहीं है. उस ने जागीर सिंह को यह सलाह भी दी कि वह मंजीत कौर को छोड़ दे और बाकी जिंदगी उस के घर आ कर गुजारे. लेकिन जागीर सिंह ने उसे आश्वासन देते हुए कहा, ‘‘तुम चिंता मत करो, मैं मंजीत को समझा कर उसे सीधे रास्ते पर ले आऊंगा.’’

इस बातचीत के बाद दोनों भाई अपनेअपने रास्ते चले गए थे. उस दिन के बाद वे दोनों आपस में फिर कभी नहीं मिले. यह बात सन 2013 के आसपास की है.

गुरमीत सिंह 5 वर्ष पहले अपने भाई से हुई मुलाकात को भूल गया था. एक दिन उस के घर उस के साले बलदेव सिंह की बड़ी बेटी मनप्रीत कौर मिलने के लिए आई और बातोंबातों में उस ने पूछ लिया, ‘‘मामाजी, बड़े मामा जागीर सिंह के क्या हाल हैं और आजकल वह कहां रह रहे हैं?’’

गुरमीत सिंह ने उसे बताया कि करीब 5 साल पहले अनाजमंडी में मुलाकात हुई थी. तब उन्होंने बताया था कि वह गुरु हरसहाय नगर में रह रहे हैं. उस दिन के बाद फिर कभी उन से नहीं मिला.

बहरहाल, 20 सितंबर 2018 को गुरमीत सिंह की तहरीर पर एसएचओ रमन कुमार ने मंजीत कौर और कुलवंत सिंह के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी. जरूरी जांच के बाद उन्होंने अगले दिन ही मंजीत कौर और कुलवंत को हिरासत में ले लिया.

थाने ला कर जब दोनों से जागीर सिंह के बारे में पूछताछ की तो मंजीत कौर ने बताया कि उस के पति के किसी महिला के साथ नाजायज संबंध थे. उस महिला की वजह से वह उससे मारपीट किया करता था. फिर 5 साल पहले एक दिन वह उस से झगड़ा और मारपीट करने के बाद घर से निकल गया. इस के बाद वह कहां गया, पता नहीं.

रमन कुमार समझ गए कि मंजीत झूठ बोल रही है. इसलिए उन्होंने उस से और उस के प्रेमी से सख्ती से पूछताछ की. आखिर उन्होंने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि 5 साल पहले 23 अप्रैल, 2013 को उन्होंने जागीर सिंह की हत्या कर उस की लाश घर के सीवर में डाल दी थी.

मंजीत कौर ने बताया कि पिछले लगभग 12 सालों से कुलवंत के साथ उस के अवैध संबंध थे, जिन का जागीर सिंह को पता लग गया था और वह इस बात को ले कर उस से झगड़ा किया करता था. इसीलिए उस ने अपने प्रेमी कुलवंत के साथ मिल कर पति को अपने रास्ते से हटाने के लिए उस की हत्या करने की योजना बनाई.

योजनानुसार 23 अप्रैल, 2013 को जागीर सिंह को चाय में नशे की गोलियां मिला कर पिला दीं. जब वह बेहोश हो गया तो गला दबा कर उस की हत्या करने के बाद उन्होंने उस की लाश सीवर में डाल दी.

एसएचओ रमन कुमार ने मंजीत कौर और कुलवंत सिंह को 21 सितंबर, 2018 को अदालत में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया. रिमांड के दौरान दोनों की निशानदेही पर गांव वालों, गांव के सरपंच और मजिस्ट्रैट की मौजूदगी में उस के घर के सीवर से हड्डियां बरामद कीं.

उस समय म्युनिसिपल कारपोरेशन के अधिकारियों के साथ एफएसएल टीम भी मौजूद थी. पुलिस ने जरूरी काररवाई के बाद हड्डियां एफएसएल टीम के सुपुर्द कर दीं.

दोनों हत्यारोपियों से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने 23 सितंबर, 2018 को मंजीत कौर और कुलवंत सिंह को अदालत में पेश कर जिला जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कहानी सौजन्यसत्यकथा, मई 2019

चाहत जब नफरत में बदली

जून, 2017 को अपने नए एलबम ‘सावन’ की शूटिंग कर के सोनी सिन्हा वाराणसी से उत्तर प्रदेश के जिला मऊ के थाना सरायलखंसी के मोहल्ला रस्तीपुर में रहने वाली अपनी बड़ी बहन पुष्पा के घर पहुंची तो रात के 9 बज रहे थे. उसे एक अन्य कार्यक्रम में जाना था, इसलिए वह जल्दीजल्दी तैयार होने लगी. उस के तैयार होतेहोते पुष्पा ने उस के लिए नाश्ता ला कर रख दिया. सोनी ने नाश्ता करने से मना किया तो उन्होंने उसे डांटने वाले अंदाज में प्यार से कहा, ‘‘जो लाई हूं, चुपचाप खा ले. तू हमेशा घोड़े पर सवार रहती है.’’

नाश्ते की प्लेट उठाते हुए सोनी ने कहा, ‘‘दीदी, आप मेरी कितनी फिक्र करती हैं. सचमुच मैं बड़ी भाग्यशाली हूं, जो मुझे आप जैसी बड़ी बहन मिली. पर मैं क्या करूं, काम के लिए तो जाना ही पड़ेगा. काम की ही वजह से कभी हमें बैठ कर बातें करने का भी मौका नहीं मिलता.’’

बातें करतेकरते ही सोनी ने नाश्ता किया और घर से बाहर आ गई. बिजली न होने की वजह से उस समय गली में अंधेरा था. सोनी घर से थोड़ी दूर ही गई थी कि वह जोर से चीखी. उस की चीख सुन कर लोग टार्च ले कर बाहर आ गए. सोनी जमीन पर पड़ी कराह रही थी.

टार्च ले कर आए लोगों ने उस पर टार्च की रौशनी डाली तो देखा, उस के कपड़े खून से तर थे. एक लड़का हाथ में खून से सना चाकू लिए तेजी से भाग रहा था. पड़ोसियों को समझते देर नहीं लगी कि इसी लड़के ने सोनी पर चाकू से हमला किया है. उन्होंने उसे दौड़ा कर पकड़ लिया.

शोर सुन कर पुष्पा और उस के पति मीरचंद भी वहां आ गए थे. पड़ोसियों ने हमला करने वाले लड़के की लातघूसों से पिटाई शुरू कर दी थी. लेकिन कसरती बदन वाला वह युवक मार खाते हुए उन के चंगुल से छूट कर अंधेरे का लाभ उठाते हुए भाग निकला था.

सोनी की गर्दन और शरीर पर कई जगह गहरे घाव हो गए थे. वहां से खून तेजी से बह रहा था. उस की हालत देख कर पुष्पा और मीरचंद घबरा गए. सोनी को जल्दी से जिला अस्पताल पहुंचाया गया, जहां डाक्टरों ने उस का प्राथमिक इलाज कर के उसे बीएचयू के ट्रामा सेंटर ले जाने को कहा.

मीरचंद सोनी को ले कर बीएचयू के ट्रामा सेंटर पहुंचे, जहां उसे भर्ती कर लिया गया. 2 सिपाही मऊ से उस के साथ आए थे, इसलिए सोनी का इलाज शुरू होने में कोई परेशानी नहीं हुई. दरअसल, सोनी को अस्पताल ले जाने से पहले मीरचंद ने 100 नंबर पर फोन कर के घटना की सूचना पुलिस को दे दी थी.

पुलिस कंट्रोल रूम से थाना सरायलखंसी के थानाप्रभारी सुनील तिवारी को घटना की सूचना मिली तो वह मऊ के जिला चिकित्सालय पहुंच गए थे. सोनी की बिगड़ती हालत की वजह से वह उस का बयान तो नहीं ले सके, लेकिन एसपी अभिषेक यादव के आदेश पर वाराणसी जाते समय उस की सुरक्षा के लिए 2 सिपाहियों को उस के साथ जरूर भेज दिया था.

किस ने किया था सोनी पर हमला सोनी के जाने के बाद थानाप्रभारी सुनील तिवारी ने सोनी की बड़ी बहन पुष्पा से हमलावर के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि सोनी पर हमला राहुल गुप्ता ने किया था. वह सोनी का दोस्त था और उस से एकतरफा प्यार करता था.

इस के बाद पुष्पा से तहरीर ले कर राहुल गुप्ता के खिलाफ हत्या की कोशिश एवं एससीएसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया था. मुकदमा दर्ज होने के बाद थाना सरायलखंसी पुलिस ने राहुल गुप्ता की तलाश में कई जगहों पर छापे मारे, लेकिन वह मिला नहीं. सोनी कोई मामूली लड़की नहीं थी, इसलिए अगले दिन उस पर हुए हमले की खबर अखबारों में प्रमुखता से छपी.

दरअसल, सोनी भोजपुरी गीतों की लोकप्रिय गायिका थी. उस ने कई भोजपुरी फिल्मों में काम भी किया था. इसलिए पुलिस उस पर हमला करने वाले राहुल गुप्ता के पीछे हाथ धो कर पड़ गई थी. लेकिन पूरा सप्ताह बीत जाने के बाद भी राहुल गुप्ता पुलिस की पकड़ में नहीं आया था. इस बीच पुलिस के लिए सुकून देने वाली बात यह रही कि सही इलाज मिल जाने से सोनी बच गई थी.

सोनी बयान देने लायक हो गई है, यह पता चलने पर सुनील तिवारी उस का बयान लेने बीएचयू पहुंच गए. गले में गहरा जख्म था, इसलिए सोनी को बाचतीत करने में परेशानी हो रही थी. खुशी की बात यह थी कि उस की आवाज जातेजाते बच गई थी, जबकि राहुल ने गले पर इसीलिए चाकू से वार किए थे कि वह कभी बोल न सके.

पुलिस को दिए अपने बयान में सोनी ने बताया था कि राहुल गुप्ता ने ही उस पर जानलेवा हमला किया था. वह पिछले कई दिनों से फोन कर के उसे परेशान कर रहा था. वह उस से प्यार करता था और उस पर शादी के लिए दबाव डाल रहा था. जबकि वह न तो उस से प्यार करती थी और न ही उस से शादी करना चाहती थी. इसी बात से नाराज हो कर उस ने उसे जान से मारने की कोशिश की थी.

सोनी के इस बयान से साफ हो गया था कि यह मामला एकतरफा प्यार का था. राहुल सोनी से एकतरफा प्यार करता था. प्यार में असफल होने के बाद राहुल को सोनी से नफरत हो गई थी और उस ने उस की जान लेने की कोशिश की थी.

पुलिस से बचने के लिए राहुल अपने बहनोई के घर जा कर छिप गया था. अखबारों के माध्यम से जब राहुल के बहनोई को उस की करतूत का पता चला तो घबरा कर उन्होंने उस से आत्मसमर्पण करने के लिए कहा. आखिर बहनोई के कहने पर थानाप्रभारी 3 जुलाई, 2017 को शाम को राहुल गुप्ता ने थाना सरायलखंसी के थानाप्रभारी सुनील तिवारी के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था.

पुलिस ने राहुल गुप्ता से पूछताछ शुरू की  तो बिना किसी हीलाहवाली के उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. यही नहीं, उसने वह चाकू और अपने खून सने कपड़े भी बरामद करा दिए. उस ने चाकू और कपड़े घर में ही छिपा कर रखे थे. इस के बाद पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. पूछताछ में राहुल ने सोनी पर हमला करने की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थीं—

21 साल की सोनी सिन्हा उत्तर प्रदेश के जिला मऊ के थाना घोसी के गांव सेमरा जमालपुर की रहने वाली थी. कैलाश प्रसाद की 5 संतानों में वह सब से छोटी थी. छोटी होने के नाते वह घर में सब की दुलारी थी. मांबाप से ले कर भाईबहन तक उसे हाथोंहाथ लिए रहते थे. वह 6 साल की थी, तभी भजन गा कर उस ने सब को चौंका दिया था.

जैसेजैसे सोनी बड़ी होती गई, उस की इस प्रतिभा में निखार आता गया. उस के गले से निकलने वाली स्वर लहरियां बुलंदियों को छूती गईं. उस की प्रतिभा को निखारने में घर वालों ने उस का पूरा साथ दिया.

गांव में रह कर उसे सही मंजिल नहीं मिल सकती थी, इसलिए घर वालों ने उसे उस की बड़ी बहन पुष्पा की ससुराल रस्तीपुर भेज दिया. यहीं रह कर सोनी ने गायन सीखा और जहांतहां गाने जाने लगी.

सन 2013 में सोनी को महुआ चैनल के रियालिटी शो में गाने का मौका मिला. अपनी सुरीली आवाज से उस ने जजों का दिल जीत लिया. 4 प्रतिभागियों को कड़ी टक्कर दे कर सोनी ने बाजी मार ली.

इस के बाद मऊ में एक कार्यक्रम हुआ, इस में भी उस ने बाजी मार ली. इस के बाद भोजपुरी गायकी में उस का नाम चर्चा में आ गया. उस ने ‘पूरा मऊ बाजार’, ‘माई हो फूकब पाकिस्तान के’, ‘अंगरेजी पिचकारी’, ‘चढ़ल फगुनवा’, ‘धंधा वाली’, ‘जवानी चाकलेट भइल’ और ‘कांवर भजन’ एलबम बनाए, जिन्होंने धूम मचा दिए. सोनी सिन्हा का सितारा बुलंदियों पर पहुंच गया. वह स्टेज शोे के अलावा शादीविवाहों में भी गाने जाती थी.

भाई की शादी में पहली बार मिला था राहुल सोनी से बात 2017 के अप्रैल महीने की है. बलिया जिले के थाना भीमपुरा के गांव बेलौझा के रहने वाले राहुल के भाई की शादी थी. रंगीनमिजाज उस के पिता चाहते थे कि बेटे की शादी में कोई नामीगिरामी गाने वाली आए, जिस से पार्टी में चार चांद लग जाए. अब तक पूर्वांचल में सोनी का बड़ा नाम हो चुका था. राहुल के पिता ने बारातियों के मनोरंजन के लिए सोनी को बुलवाया. सोनी समय पर अपना प्रोग्राम देने पहुंच गई.

खूबसूरत सोनी को राहुल ने पहली बार भाई की शादी में देखा था. तभी उस ने उसे दिल में उतार लिया था. राहुल भी छोटामोटा गायक था. वह आर्केस्ट्रा पार्टियों में गाता था. इसलिए सोनी से उस का परिचय हो गया. सोनी से उस की बातचीत भी होने लगी. धीरधीरे बातचीत का सिलसिला बढ़ता गया.

एक समय ऐसा भी आ गया, जब सोनी से बात किए बिना राहुल को चैन नहीं मिलता था. उसे सोनी से प्यार हो गया था. इसलिए वह उसी के ख्यालों में खोया रहने लगा था. राहुल गुप्ता गायक तो था ही, एक प्रतिष्ठित अस्पताल में कंपाउंडर भी था. यह बात सोनी को पता थी. उसी बीच सोनी के पिता कैलाश प्रसाद की तबीयत खराब हुई तो उस ने सोचा कि क्यों न राहुल की मदद से वह पिता को किसी अच्छे डाक्टर को दिखा दे.

जिस अस्पताल में राहुल काम करता था, सोनी ने राहुल की मदद से उसी अस्पताल में पिता को भरती करा दिया. राहुल की वजह से अस्पताल में कैलाश प्रसाद का बढि़या इलाज हुआ. वह जल्दी ही स्वस्थ हो गए. राहुल की इस सेवा से सोनी ही नहीं, उस के घर के सभी लोग काफी प्रभावित हुए. उस दिन के बाद राहुल जब भी उन के घर आता, घर वाले उसे काफी सम्मान देते. इस बीच सोनी से भी उस की गहरी दोस्ती हो गई थी.

राहुल अकसर सोनी के साथ उस के कार्यक्रमों में जाने लगा. दोस्ती की वजह से घर वालों ने किसी तरह की रोकटोक भी नहीं की. साथ आनेजाने और उठनेबैठने से दोनों के बीच काफी नजदीकी हो गई. सोनी भी राहुल से खूब घुलमिल गई. बातें भी उस से खुल कर हंसहंस कर करने लगी. राहुल ने इस का गलत मतलब निकाल लिया.

राहुल तो सोनी को चाहने ही लगा था, सोनी के बातव्यवहार से उसे लगा कि वह भी उसे चाहती है. जबकि सोनी उसे बिलकुल नहीं चाहती थी. वह उसे सिर्फ अपना सच्चा दोस्त मानती थी. इस तरह देखा जाए तो राहुल के दिल में उस के प्रति एकतरफा प्यार था.

जून, 2017 की बात है. राहुल सेमरा जमालपुर स्थित सोनी के घर पहुंचा और सीधे सोनी के घर वालों से कहा कि वह सोनी से शादी करना चाहता है. उस की इस बात से सभी हैरान रह गए, क्योंकि उन लोगों ने सोचा भी नहीं था कि कभी इस तरह की भी बात हो सकती है. राहुल का यह व्यवहार और बात किसी को पसंद नहीं आई. लेकिन उन लोगों ने कुछ कहा नहीं, बाद में बताएंगे कह कर बात को टाल दिया.

कैलाश प्रसाद ने जब इस बारे में सोनी से बात की तो पिता की बात सुन कर सोनी भी दंग रह गई. उस ने कहा, ‘‘पापा, वह सिर्फ मेरा दोस्त है. मैं उसे बिलकुल प्यार नहीं करती. अगर वह कुछ इस तरह की बात सोचता है तो यह उस का भ्रम है. खैर, मैं उस से पूछूंगी कि उस के मन में ऐसा ख्याल आया कैसे?’’

राहुल मिला तो सोनी ने उस से साफसाफ कह दिया कि वह उसे सिर्फ दोस्त मानती है, उसे बिलकुल प्यार नहीं करती. उस के लिए कभी उस के मन में ऐसी भावना आई भी नहीं. इसलिए उस के मन में जो गलतफहमी है, उसे वह निकाल दे. सम्मान देना या हंसहंस कर बातें करने का मतलब यह नहीं होता कि वह उस से प्यार करने लगी है.

सोनी ने राहुल से साफ कह दिया कि वह न उस से प्यार करती है और न उस से शादी करने का इरादा है. उस के मांबाप जहां कहेंगे, वह वहीं शादी करेगी. इसलिए अब वह कभी न उस से और न ही उस के घर वालों से इस तरह की बात करेगा.

प्यार करने वाले राहुल को कैसे हुई सोनी से नफरत सोनी का निर्णय सुन कर राहुल सन्न रह गया. उसे पैरों तले से जमीन खिसकती लग रही थी. पल भर तो उस की समझ में ही नहीं आया कि वह क्या करे. उसे गहरा सदमा लगा था, क्योंकि सोनी ने जो कहा था, वह दिल तोड़ने वाली बात थी. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि सोनी उस के प्यार को इस तरह ठुकरा देगी. उस का सपना रेत के घरौंदे की तरह बिखर गया.

उस समय तो राहुल कुछ नहीं बोला, लेकिन उस ने हार नहीं मानी. क्योंकि उस का मानना था कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती. 2 दिनों बाद उस ने सोनी को फोन किया, लेकिन राहुल का नंबर देख कर सोनी ने फोन रिसीव नहीं किया. उसी दिन ही नहीं, इस के बाद जब भी राहुल ने फोन किया, सोनी ने उस से बात नहीं की.

यह बात राहुल के लिए कष्ट देने वाली थी. इस की वजह यह थी कि वह सोनी के लिए तड़प रहा था. किसी तरह वह उस से बात कर के अपने दिल की बात कहना चाहता था. सोनी थी कि उस का फोन ही रिसीव नहीं कर रही थी. लेकिन राहुल ने सोनी को फोन करना बंद नहीं किया. परेशान हो कर सोनी ने एक दिन राहुल का फोन रिसीव कर लिया तो उस ने फोन रिसीव न करने की वजह पूछी. लेकिन सोनी ने बताने से मना कर दिया. इस पर राहुल, अपने किए की माफी मांग कर कहा, ‘‘सोनी, आजकल मैं काफी मुसीबत में हूं. मुझे कुछ पैसों की जरूरत है. अगर मेरी मदद कर दो तो बड़ी कृपा होगी. पैसे मिलते ही मैं तुम्हारे पैसे वापस कर दूंगा.’’

बिना कोई जवाब दिए सोनी ने फोन काट दिया. इस के बाद राहुल ने सोनी को न जाने कितने फोन किए, सोनी ने उस का फोन रिसीव नहीं किया. सोनी से एकतरफा प्यार करने वाला राहुल घायल सा हो गया.

जुनून की हद तक एकतरफा प्यार करने वाला राहुल दिनरात सोनी के ही ख्यालों में खोया रहता था. उसे लगता था कि वह उस के बिना जी नहीं पाएगा. किसी न किसी बहाने से वह सोनी के करीब जाना चाहता था, जबकि सोनी उस से दूर भाग रही थी. न जाने किसकिस से उस ने सोनी से बात कराने को कहा, लेकिन सोनी ने उस से बात नहीं की. इस तरह उस का प्यार नफरत में बदल गया. अब उस ने उसे सबक सिखाने का निश्चय कर लिया.

राहुल ने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि वह सोनी का ऐसा हश्र करेगा कि वह जिंदा रहते हुए भी लाश जैसी जिंदगी जिएगी. उसे अपनी जिस सुरीली आवाज पर नाज है, वह उसे हमेशाहमेशा के लिए खत्म कर देगा. इस के बाद वह उस पर नजर रखने लगा. साथ रहतेरहते उसे सोनी की ज्यादातर गतिविधियों का पता था. वह कब उठती थी, कहां जाती थी, किस से मिलती थी, उसे सब पता था.

नफरत करने वाले राहुल ने कैसे सिखाया सबक उन दिनों सोनी वाराणसी में अपने एक भोजपुरी गाने के नए एलबम ‘सावन’ की शूटिंग में व्यस्त थी. राहुल को यह पता था. 27 जून, 2017 को वह रस्तीपुर स्थित बहन के घर आएगी, उसे यह भी पता था. इस के बाद उसे एक कार्यक्रम में जाना है, उसे यह भी पता था. इन्हीं जानकारियों के आधार पर वह सोनी के घर से थोड़ी दूरी पर गली में एक चाकू ले कर छिप कर बैठ गया.

संयोग से उसी बीच बिजली चली गई. इस से राहुल का काम और आसान हो गया. करीब साढ़े 9 बजे सोनी घर से निकल कर गली के मोड़ तक पहुंची थी कि घात लगाए बैठे राहुल ने सोनी पर हमला कर दिया. घायल होने पर सोनी चीखी, लेकिन राहुल बिना डरे अपना काम करता रहा.

सोनी की चीख सुन कर पड़ोसी बाहर आ गए. इस बीच राहुल सोनी के गले पर वार कर चुका था. मोहल्ले वालों ने टार्च की रोशनी में देखा कि एक लड़का सोनी पर चाकू से वार कर रहा है तो सब उस की ओर दौड़े. लोगों को आता देख कर राहुल भागा. लेकिन लोगों ने उसे दौड़ा कर पकड़ लिया. मारपीट के दौरान वह उन के चंगुल से निकल भागा. अंधेरा था फिर भी सोनी ने उसे पहचान लिया था.

पूछताछ और सबूत जुटा कर पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उस की जमानत नहीं हुई थी. ताज्जुब की बात यह है कि उसे अपने किए पर जरा भी मलाल नहीं है. सोनी को अब राहुल से खतरा है, इसलिए वह होशियार रहती है. अस्पताल से छुट्टी पा कर वह घर आ चुकी है.   ?

सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2017