दर्द आशना: सच्चे प्यार की खातिर क्या किया आजर ने

‘‘तुम गई नहीं..?’’

‘‘कहां?’’

‘‘आजर भाई को देखने…’’

‘‘मैं क्यों जाऊं?’’

‘‘घर के सब लोग जा चुके हैं लेकिन तुम हो कि अभी तक नहीं गई. आखिर वह तुम्हारे मंगेतर हैं.’’

‘‘मंगेतर…मंगेतर थे. लेकिन अब नहीं. एक अपाहिज मेरा मंगेतर नहीं हो सकता. मुझे उस की बैसाखी नहीं बनना.’’

वह आईने के सामने खड़ी बाल संवार रही थी और अपनी बहन के सवालों के जवाब लापरवाही से दे रही थी. जब बाल सेट हो गए तो उस ने आईने में खुद को नीचे से ऊपर तक देखा और पर्स नचाती हुई दरवाजे से बाहर निकल गई.

आजर के यहां का दस्तूर था कि रिश्ते आपस में ही हुआ करते थे. और शायद इसी रिवायत को जिंदा रखने के लिए मांबाप ने बचपन में उस का रिश्ता उस के चाचा की बेटी से तय कर दिया था.

आजर कम बोलने वाला सुलझा हुआ लड़का था. जबकि जोया को मां के बेजा लाड़प्यार ने जिद्दी और खुदसर बना दिया था. शायद यही वजह थी कि दोनों साथसाथ खेलतेखेलते झगड़ने लगते थे. जो खिलौना आजर के हाथ में होता, जोया उसे लेने की जिद करती और जब तक आजर उसे दे नहीं देता, वह चुप न होती.

उस दिन तो हद हो गई. आजर पुरानी कौपी का उधड़ा हुआ कवर लिए था. कवर पर कोई तसवीर बनी थी, शायद उसे पसंद थी. जोया की नजर पड़ गई, वह चिल्लाने लगी, ‘‘वह मेरा है…उसे मैं लूंगी.’’

आजर भी बच्चा था. बजाए उसे देने के दोनों हाथ पीछे करके छिपा लिए. वह चीखती रही, चिल्लाती रही यहां तक कि बड़े लोग आ गए.

‘‘तौबा है दफ्ती के टुकड़े के लिए जिद कर रही थी. अभी ये आजर के हाथ में न होता तो रद्दी होता. क्या लड़की है, कयामत बरपा कर दी.’’ बड़ी अम्मी बड़बड़ाईं और अपने बेटे आजर को ले कर चली गईं.

यूं ही लड़तेझगड़ते दोनों बड़े हो गए. बचपन पीछे छूट गया. दोनों उम्र के उस मुकाम पर थे, जहां जागती आंखें ख्वाब देखने लगती हैं. और जब आजर ने जोया की आंखों में देखा तो हया की लाली उतर आई.

नजर अपने आप झुकती चली गई. शायद उसे मंगेतर का मतलब समझ आ गया था. अब वह आजर की इज्जत करती, उस की बातों में शरीक होती, उस के नाम पर हंसती. घर वालों को इत्मीनान हो गया कि चलो सब कुछ ठीक हो गया है.

बड़ी अम्मी इन दिनों मायके गई हुई थीं और जब लौटीं तो उन के साथ एक दुबलीपतली सी लड़की थी. जिस की मां बचपन में गुजर चुकी थी. बाप ने दूसरी शादी कर ली थी. अब उस के भी 4 बच्चे थे. बेचारी कोल्हू के बैल की तरह लगी रहती. बिस्तर पर जाती तो बिस्तर बिछाने का होश न रहता. पता नहीं कब सुबह हो जाती.

दादा से पोती की हालत देखी न जाती. दादा बड़ी अम्मी के रिश्ते के चचा थे, जब बड़ी अम्मी उन से मिलने गईं तो पोती का दुखड़ा ले कर बैठ गए.

‘‘अल्ला न करे किसी की मां मरे.’’ बड़ी अम्मी ने ठंडी सांस ली.

‘‘आप उसे हमारे साथ भेज दीजिए.’’ बड़ी अम्मी ने कुछ सोच कर कहा.

अंधा क्या चाहे दो आंखें, वह खुशीखुशी राजी हो गए. लेकिन बहू का खयाल आते ही उन की सारी खुशी काफूर हो गई. वह ले जाने देगी या नहीं. और जब नजर उठी तो वह दरवाजे में खड़ी थी. उस ने सारी बातें सुन ली थीं.

बड़ी अम्मी कब हारने वाली थीं. उन्होंने अपने तरकश से एक तीर छोड़ा, जो सही निशाने पर बैठा. उन्होंने हर महीने कुछ रकम भेजने का वादा किया और उसे अपने साथ ले आईं.

सना ने आते ही पूरा घर संभाल लिया था. इतना काम उस के लिए कुछ नहीं था. वह घर का काम आंखें बंद कर के कर लेती. उसे सौतेली मां के जुल्म व सितम से निजात मिल गई थी. अर्थात वह यहां आ कर खुश थी.

अगर कभी घर में गैस खत्म हो जाती तो लकडि़यों के चूल्हे पर सेंकी हुई सुर्खसुर्ख रोटियां और धीमीधीमी आंच पर दम की हुई हांडी की खुशबू फैलती तो भूख अपने आप लग जाती.

चाची की तरफ मातम बरपा होता. अरे गैस खत्म हो गई…अब क्या करें…भाभी सिलेंडर वाला आया क्या? फिर बाजार से पार्सल आते तब जा कर खाना नसीब होता.

और अगर कभी मिरची पाउडर खत्म हो जाता, सना साबुत मिर्च निकालती. सिलबट्टे पर पीस कर खाना तैयार कर देती. सालन देख कर अम्मी को पता चलता कि मिरची खत्म हो गई है.

और चाची की तरफ ऐसा होता तो जोया कहती, ‘‘न बाबा न मेरे हाथ में जलन होने लगती है. हया तुम पीस लो.’’ हया भी साफ मना कर देती.

सना तुम कौन हो…कहां से आई हो…सादगी की मूरत…वफा का पैकर…जिंदगी का आइडियल, सना तुम्हारी सना (तारीफ) किन लफ्जों में करूं. आजर का दिल बिछबिछ जाता. फिर उसे जोया का खयाल आता.

वह तो उस का मंगेतर है. कल को उस से उस की शादी हो जाएगी, फिर ये कशिश क्यों. मैं सना की तरफ क्यों खिंचा जा रहा हूं. अकसर तनहाई में वह उस के बारे में सोचता रहता.

आजर एक दिन लौंग ड्राइव से लौट रहा था. उस का एक्सीडेंट हो गया. अस्पताल पहुंचने पर डाक्टर ने कहा, ‘‘अब ये अपने पैरों पर नहीं चल सकेंगे.’’

सारा घर जमा था. सब का रोरो कर बुरा हाल था. जब से आजर का एक्सीडेंट हुआ था, जोया ने अपने कालेज के दोस्तों से मिलना शुरू कर दिया था. आज भी वह तैयार हो कर किसी से मिलने गई थी. हया के लाख समझाने पर भी उस पर कोई असर न हुआ था.

आजर अस्पताल के बैड पर दोनों पैरों से माजूर लेटा हुआ था. हर आहट पर देखता, शायद वह आ जाए, जिस से दिल का रिश्ता जुड़ा है. वफा के सिलसिले हैं, जीने के राब्ते हैं, जो उस का मुस्तकबिल है, लेकिन दूर तक उस का कहीं पता न था.

एक आहट पर उस के खयालात बिखर गए. अम्मी आ रही थीं. उन के पीछे सना थी. अम्मी ने इशारा किया तो वह सामने स्टूल पर बैठ गई.

अम्मी रात का खाना ले कर आई थीं. आजर खाना खा रहा था और कनखियों से उसे देख रहा था. फुल आस्तीन की जंपर, चूड़ीदार पजामा, सर पर पल्लू डाले वह खामोश बैठी थी. काश! इस की जगह जोया होती, उस ने सोचा.

फिर जल्दी से नजरें झुका लीं. कहीं उस के चेहरे से अम्मी उस का दर्द न पढ़ लें. वह मुंह में निवाला रख कर चबाने लगा. जब खाने से फारिग हो गया तो अम्मी बरतन समेटने लगीं.

‘‘अम्मी, आप रहने दीजिए मैं कर लूंगी.’’ उस की महीनमहीन सी आवाज आई.

उस ने बरतन समेट कर थैले में रखे और खड़ी हो गई. जब वह बरतन उठा रही थी तो खुशबू का झोंका उस के पास से आया और आजर को महका गया. अम्मी उसे अपना खयाल रखने की हिदायत दे कर चली गईं.

आज आजर को डिस्चार्ज मिल गया था. बैसाखियों के सहारे जब वह अंदर आया तो अम्मी का कलेजा मुंह को आने लगा. लेकिन होनी को कौन टाल सकता है. सना आजर का पहले से ज्यादा खयाल रखती. बहरहाल दिन गुजरते रहे.

एक दिन देवरानीजेठानी दरम्यानी बरामदे में बैठी हुई थीं. देवरानी शायद बात का सिरा ढूंढ रही थी.

‘‘भाभी, हम आप से कुछ कहना चाहते हैं.’’ उन्होंने उन की आंखों में देखा.

‘‘जोया ने इस रिश्ते के लिए मना कर दिया है. वह आजर से रिश्ता नहीं करना चाहती, क्योंकि आजर तो…’’ उन्होंने जुमला अधूरा छोड़ दिया. वह जबान से कुछ न बोलीं और उठ कर चली आईं.

आजर ने नोटिस किया था, अम्मी बहुत बुझीबुझी सी रहती हैं. आखिर वह पूछ बैठा, ‘‘अम्मी क्या बात है, आप बहुत उदास रहती हैं.’’

‘‘कुछ नहीं, बस ऐसे ही, जरा तबीयत ठीक नहीं है.’’

‘‘मैं जानता हूं आप क्यों परेशान हैं, जोया ने इस रिश्ते से मना कर दिया है.’’

अम्मी ने चौंक कर बेटे की तरफ देखा.

‘‘हां अम्मी, मुझे मालूम है. वह मुझे देखने तक नहीं आई. अगर रिश्ता नहीं करना था, तो न सही. लेकिन इंसानियत के नाते तो आ सकती थी, जिस का इंसानियत से दूरदूर तक वास्ता न हो, मुझे खुद उस से कोई रिश्ता नहीं रखना.’’

‘‘मेरे बच्चे…’’ अम्मी की आंखों से बेअख्तियार आंसू निकल पडे़. उन्होंने उसे गले से लगा लिया.

‘‘अम्मी मेरी शादी होगी…उसी वक्त पर होगी..’’ अम्मी ने उसे परे करते हुए उस की आंखों में देखा. जिस का अर्थ था अब तुझ से कौन शादी करेगा.

‘‘अम्मी, मैं सना से शादी करूंगा. सना मेरी शरीकेहयात बनेगी…मैं ने सना से बात कर ली है.’’ यह सुन कर अम्मी ने फिर उसे गले से लगा लिया.

शादी की तैयारियां होने लगीं. और जो वक्त जोया के साथ शादी के लिए तय था, उसी वक्त पर आजर और सना का निकाह हो गया. आजर को याद आया, एक बार जोया ने बातोंबातों में कहा था, शादी के बाद वह हनीमून के लिए स्विटजरलैंड जाएगी. आजर ने ख्वाहिश जाहिर की तो अम्मी ने उसे जाने की इजाजत दे दी.

आज वह हनीमून से लौट रहा था. सना अंदर दाखिल हुई तो कितनी निखरीनिखरी, कितनी खुश लग रही थी. फिर उस ने दरवाजे की ओर मुसकरा कर देखा, ‘‘आइए न…’’

इतने पर आजर अंदर दाखिल हुआ.

उसे देख कर अम्मी की आंखें हैरत से फैलती चली गईं. वह अपने पैरों पर चल कर आ रहा था.

‘‘बेटे, ये सब क्या है?’’ उन्होंने बढ़ कर उसे थाम लिया.

‘‘बताता हूं…पहले आप बैठिए तो सही.’’ उस ने दोनों बांहें पकड़ कर उन्हें बिठा दिया.

‘‘आप वालिदैन अपने बच्चों के फैसले तो कर देते हैं लेकिन यह भूल जाते हैं कि बड़े हो कर उन की सोच कैसी होगी. उन के खयालात कैसे होंगे. उन का नजरिया कैसा होगा.

‘‘और मुझे सच्चे दर्द आशना की तलाश थी. जिस के अंदर कुरबानी का जज्बा हो, एकदूसरे के लिए तड़प हो. …और ये सारी खूबियां मुझे सना में नजर आईं, इसलिए मैं ने डाक्टर से मिल कर एक प्लान बनाया.

‘‘वह एक्सीडेंट झूठा था. मेरे पैर सहीसलामत थे. ये मेरा सिर्फ नाटक था, नतीजा आप के सामने है. जोया ने खुद इस रिश्ते से इनकार कर दिया. सना ने मुझ अपाहिज को कबूल किया. मैं सना का हूं, सना मेरी है.’’

जोया ने सारी बातें सुन ली थीं. उस का जी चाह रहा था सब कुछ तोड़फोड़ डाले.

श्वेतलाना और शशिकुमार के प्यार में दूरियां नहीं बनीं रोड़ा

राजस्थान का जिला जैसलमेर मेहमानों की आवभगत के लिए प्रसिद्ध है. महारावल जैसल द्वारा त्रिकुट पहाड़ी पर बनवाए गए यहां के सोनार दुर्ग को देख कर अनुमान लगाया जा सकता है कि उस जमाने में जैसलमेर कितना भव्य नगर रहा होगा.

इस के साथ ही स्वर्णनगरी कहे जाने वाले जैसलमेर के इतिहास के पन्नों की सच्चाई पर यहां की स्वर्ण जैसी आभा वाले पीले पत्थरों से बनी हवेलियां और छतरियां भी इस शहर के स्वर्णिम काल पर मोहर लगाती हैं. शायद यही कारण है कि मरुभूमि वाले इस शहर को देखने हर साल दुनिया भर के लाखों पर्यटक आते हैं. जैसलमेर की भव्यता और नगर के आसपास फैले रेत के धोर किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर सकते हैं.

पर्यटकों के आगमन की वजह से यहां करीब 200 होटल और रेस्टोरेंट हैं. अक्तूबर से मार्च तक यहां के होटल और रेस्टोरेंट पर्यटकों से गुलजार रहते हैं. दरअसल, सच यह है कि चारों ओर रेतीले धोरों से घिरे जैसलमेर के ज्यादातर लोगों की आय का साधन पर्यटन ही है.

यहां के सम और खुहड़ी के रेतीले धोरों पर कैमल सफारी का अलग ही आनंद है. इसी रोमांच की ओर आकर्षित हो कर विदेशी पर्यटक यहां आते हैं. कैमल सफारी की वजह से यहां के ऊंट पालकों को भी अच्छी आय हो जाती है.

जैसलमेर जिले की एक तहसील है पोकरण, जिसे परमाणु परीक्षण की वजह से पोखरण भी कहा जाता है. दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी के समय में भारत ने 11 से 13 मई, 1998 के बीच पोखरण परमाणु स्थल पर 5 परमाणु परीक्षण कर के दुनिया भर में तहलका मचा दिया था.

जैसलमेर से 110 किलोमीटर दूर कस्बा पोकरण जोधपुर रेल व सड़क मार्ग पर स्थित है. राव मालदेव ने सन 1550 में यहां लाल पत्थरों से एक सुंदर दुर्ग का निर्माण कराया था.

जैसलमेर को विश्व पर्यटन के मानचित्र पर उभारने का काम मरु महोत्सव ने भी किया है. त्रिदिवसीय मरु महोत्सव माघ महीने की शुक्ल पक्ष को शुरू होता है और इस का समापन पूर्णिमा की धवल चांदनी में रेतीले धोरों पर होता है.

जैसलमेर में मरु महोत्सव की शुरुआत 4 दशक पहले हुई थी. पूनम के चांद की उज्जवल धवल चांदनी में जब रेतीले धोरों पर स्थानीय कलाकारों का गायन राजस्थानी संगीत की स्वरलरियों के साथ नृत्य शुरू होता है तो समां बंध जाता है. विदेशी पर्यटक ऐसे संगीतमय माहौल में रम कर रह जाते हैं.

प्रेम कहानी की बुनियाद

बात जनवरी 2017 की है. रूस की राजधानी मास्को की रहने वाली स्वेतलाना अपने कुछ फ्रैंड्स के साथ भारत घूमने आई थी. घूमते हुए फरवरी में वह जैसलमेर पहुंची तो राजस्थान की इस स्वर्णनगरी ने उसे बहुत प्रभावित किया. यहीं पर उस की मुलाकात सन 2012 के ‘मिस्टर डेजर्ट’ शशिकुमार व्यास से हुई.

उन दिनों मरु महोत्सव चल रहा था. स्वेतलाना अपने दोस्तों के साथ मरु महोत्सव में शामिल हुई. मरु महोत्सव की शुरुआत गड़ीसर सरोवर से शोभायात्रा के रूप में हुई. इस महोत्सव की शोभायात्रा में भाग लेने वाले तमाम कलाकार अलगअलग राज्यों से आए थे.

इस के अलावा शोभायात्रा में स्थानीय वेशभूषा में मरुश्री (मिस्टर डेजर्ट) और मिस मूमल भी शामिल होते हैं, जो पूर्व में मरुश्री और मिस मूमल चुने गए थे. इन के अलावा वे प्रतियोगी भी इस प्रतियोगिता में भाग लेने वाले थे, जिन में से मरुश्री और मिस मूमल चुना जाना था. ये सभी दर्शकों के आकर्षण का केंद्र थे.

ऊंटों और ऊंट गाडि़यों पर सवार मरुश्री प्रतियोगी व मिस मूमल प्रतियोगी युवतियों के अलावा मूमल महेंद्रा की झांकियां भी आकर्षण का केंद्र बिंदु थीं. 2017 के मरु महोत्सव का आगाज शोभायात्रा से शुरू हुआ.

स्वेतलाना सुबहसवेरे होटल से गड़ीसर पहुंच गई थी. शोभायात्रा शुरू हुई तो उस यात्रा में स्वेतलाना भी शामिल थी. स्वेतलाना को शोभायात्रा बहुत अच्छी लगी. इस शोभायात्रा में भाग लेने पूर्व मरुश्री भी आए थे.

प्रतियोगिता में भाग लेने वाले छैलछबीले नवयुवक दाढ़ीमूछों के अलावा राजस्थानी वेशभूषा (जैसलमेरी पोशाक) साफा, कुरता, अंगरखी और तेवटा के अलावा कोनों में गोखरू, गले में सोने की कंठी पहने हाथों में तलवार लिए किसी योद्धा से लग रहे थे.

इन्हीं में मरुश्री प्रतियोगिता के 2012 के विजेता पोकरण निवासी ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखने वाले शशिकुमार व्यास भी थे. वह किसी रणबांकुरे की तरह लग रहे थे. स्वेतलाना की नजर शशिकुमार व्यास पर पड़ी तो वह एकटक निहारती रह गई.

बलिष्ठ शरीर, कपड़े, गहने, सलीके की दाढ़ीमूंछ शशिकुमार का रोबीला व्यक्तित्व स्वेतलाना को मन भा गया.

शोभायात्रा का समापन पूनम सिंह स्टेडियम में हुआ. शशिकुमार के व्यक्तित्व से प्रभावित स्वेतलाना शशिकुमार से मिली. दोनों के सामने ही भाषा की समस्या थी. लेकिन भारत आ कर स्वेतलाना ने हिंदी के कुछ शब्द सीख लिए थे. शशिकुमार का वास्ता देशविदेश के पर्यटकों से पड़ता था, इसलिए वह भी रूसी भाषा के कुछ शब्द जानता समझता था.

टूटीफूटी भाषा में दोनों की बात हुई. स्वेतलाना ने शशिकुमार के व्यक्तित्व की खूब तारीफ की, जिस से वह खुश हुआ. पहली ही मुलाकात में दोनों ने एकदूसरे के बारे में जाना समझा. शशि ने स्वेतलाना को बताया कि वह 2012 में मरु महोत्सव में मरुश्री (मिस्टर डेजर्ट) चुना गया था.

शशि और स्वेतलाना ने दिल खोल कर बातें कीं. स्वेतलाना पढ़ाई पूरी कर चुकी थी. शशि भी पढ़ालिखा हैंडसम युवक था. दोनों ही कुंवारे थे. बातोंबातों में दोनों एकदूसरे के बारे में बहुत कुछ जान गए.

दोनों जवान और कुंवारे थे, पढ़ेलिखे और सुंदर व्यक्तित्व वाले भी. दोनों पहली नजर में ही एकदूसरे पर मर मिटे. उस रोज मरु महोत्सव में जितने भी कार्यक्रम हुए, शशि ने उन का पूरा ब्यौरा स्वेतलाना को सुनाया. 3 दिन के कार्यक्रम में दोनों साथ घूमेफिरे और खूब आनंद लिया.

मरु महोत्सव खत्म हुआ तो स्वेतलाना शशि से बोली, ‘‘शशि, मैं मास्को जा रही हूं. मगर तुम्हें भुला नहीं पाऊंगी. तुम मुझे हमेशा याद आओगे. मैं तुम्हें अपना कौंटैक्ट नंबर दे रही हूं. इस नंबर पर मुझ से बात करते रहना. तुम अपना नंबर मुझे दे दो ताकि मैं जब चाहूं तुम से बात कर सकूं. लगता है, 2-3 दिन के साथ ने हमें काफी पास ला दिया है. मन करता है तुम्हारे साथ रहूं. लेकिन वीजा अवधि खत्म हो रही है, इसलिए जाना तो पड़ेगा ही.’’

‘‘स्वेतलाना, मुझे भी तुम्हारी बहुत याद आएगी. न जाने क्यों बिछुड़ने का मन नहीं कर रहा. लेकिन…’’ कहते हुए शशि का गला रुंध गया. वह आगे कुछ नहीं बोल पाया. यही हाल स्वेतलाना का भी था.

दोनों एकदूसरे से बिछुड़ने की कल्पना मात्र से ही सिहर उठे थे. दोनों को लग रहा था, जैसे दोनों एकदूसरे के लिए ही बने हों. बहरहाल, स्वेतलाना को शशि ने नम आंखों से मास्को रवाना कर दिया.

स्वदेश जा कर भी स्वेतलाना

नहीं भूली शशिकुमार को

स्वेतलाना भारत से मास्को पहुंच गई. मास्को से वह इंटरनेट के माध्यम से मोबाइल पर शशि व्यास से बात करने लगी. दोनों आए दिन मोबाइल पर घंटों बातें करने लगे. बातें करतेकरते दोनों पक्के मित्र बन गए. थोड़े दिनों की मित्रता के बाद वह दिन भी आ गया, जब दिल की बात जुबां पर आ गई.

प्यार का इजहार हुआ तो दोनों ने हां कहने में तनिक भी देर नहीं लगाई. इजहार के बाद दोनों मोबाइल पर और भी ज्यादा बात करने लगे. समय के साथ दिनबदिन दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. एक दिन शशि व्यास ने फोन पर स्वेतलाना से कहा, ‘‘स्वेतलाना, अगर तुम्हारे घर वालों ने हम दोनों की शादी के लिए मना कर दिया तो?’’

‘‘शशि, तुम बेफिक्र रहो. मेरे घर वालों ने मुझे छूट दे रखी है अपना जीवनसाथी चुनने की. हम रूस में रहते हैं, इंडिया में नहीं कि बच्चों की जिंदगी का हर फैसला मांबाप ही करें.’’

स्वेतलाना ने हंसते हुए कहा तो शशि के दिल को चैन मिला. स्वेतलाना ने अपने पिता, भाई, भाभी, बहन सभी को अपने प्यार और शादी करने की बात बताई. इस पर किसी को कोई ऐतराज नहीं था. जब स्वेतलाना ने इस बारे में शशि को बताया तो उसे लगा कि उसे उस का प्यार मिल जाएगा.

इस पूरी कवायद में लगभग 2 साल का समय गुजर गया. 2019 का नया साल शुरू हो चुका था. एक दिन बातोंबातों में स्वेतलाना ने शशि को बताया कि वह बहुत जल्द अपने परिवार के साथ शादी करने के लिए राजस्थान आ रही है.

सुन कर शशि की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. शशि ने इस बाबत अपने परिजनों को बताया तो एकबारगी सब लोग सकते में आ गए. वे लोग ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते थे, जबकि स्वेतलाना रूस की गोरी मेम थी. ऐसे में उन का विवाह कैसे हो सकता था? लेकिन शशि ने ठान रखा था कि वह शादी करेगा तो सिर्फ और सिर्फ स्वेतलाना से, वरना सारी उम्र कुंवारा रहेगा.

जैसलमेर शहर ही नहीं, आसपास के गांवों के भी कई युवकों ने विदेशी बालाओं से शादियां की हैं. पोकरण शहर में यह ऐसा पहला विवाह था. शशिकुमार व्यास के घर वाले उस की शादी रूसी लड़की से करने को राजी हो गए.

जब यह बात शशि ने स्वेतलाना को बताई तो वह भी बहुत खुश हुई. दोनों ओर से बात पक्की हो गई तो स्वेतलाना घर वालों, करीबी रिश्तेदारों और अपने फ्रैंड्स के साथ मार्च, 2019 के दूसरे सप्ताह में रूस से भारत आ गई. अपने सगेसंबंधियों के साथ पहले वह दिल्ली पहुंची, फिर जैसलमेर और वहां से पोखरण.

पोखरण में वह अपने सगेसंबंधियों के साथ सीधे शशि व्यास के घर जा पहुंची. दोनों करीब 2 साल बाद मिले थे. खुशी स्वाभाविक ही थी. शशि ने पहले से ही स्वेतलाना, उस के मातापिता, भाईभाभी, बहन और फ्रैंड्स के ठहरने का इंतजाम पोखरण के एक होटल और बालागढ़ फोर्ट में कर रखा था.

दुलहन बनने जा रही स्वेतलाना के साथ उस के घर वाले ही नहीं, शादी में शामिल होने के लिए दरजन भर सहेलियां भी आई थीं. मास्को से स्वेतलाना के साथ आई उस की 8-10 सहेलियां पहली बार भारत आई थीं. भारत की पारंपरिक शादियों के बारे में उन्होंने सुन रखा था. लेकिन वे अपनी आंखों से देखने को उत्सुक थीं.

यह शादी हिंदू रिवाज से होने वाली थी. विदेशी मेहमानों को जोधपुर रोड स्थित निजी होटल और बालागढ़ फोर्ट में ठहराया गया था. उन का स्वागतसत्कार भी वहीं हुआ.

भारत की महान संस्कृति से प्रभावित हो कर कितने ही विदेशी पर्यटक आए और 7 जन्मों के बंधन में बंध कर यहीं रह गए. स्वेतलाना की कहानी भी कुछ ऐसी ही थी. वह रूस से भारत शशि के साथ परिणय सूत्र में बंधने आई थी. स्थानीय लोग उसे देखने के लिए बेताब थे.

रूसी युवती द्वारा शशि व्यास के साथ शादी की बात सोशल मीडिया और अखबारों के माध्यम से लोगों तक पहुंची तो पोखरण में यह चर्चा का विषय बन गया. स्थानीय लोग शादी देखने को उत्सुक थे.

दूल्हे, दुलहन के कपड़े, गहने और शृंगार सामग्री खरीदी गई. 12 मार्च, 2019 मंगलवार के दिन दूल्हा, दुलहन को बंदोला बिठा कर ‘पीठी’ हल्दी चढ़ाई गई. गानाबजाना हुआ. हल्दी की रस्म के बाद मेहंदी रचाई गई. मंगलवार, 12 मार्च को दोपहर 12 बजे के बाद गणेश स्थापना और हल्दी की रस्म के साथ शादी के शुभ कार्यों की शुरुआत हुई.

हिंदू रीतिरिवाज से हुई शादी

दूल्हे शशि व्यास और दुलहन स्वेतलाना के हाथों पर मेहंदी रचाई गई. रात में महिला संगीत का कार्यक्रम हुआ. शादी का मांगलिक कार्यक्रम पोखरण शहर के फलसूंड रोड स्थित व्यास बगेची में रखा गया था.

सारे कार्यक्रम वहीं पर हो रहे थे. स्वेतलाना के साथ आई उस की सहेलियों ने स्वेतलाना के गोरे गालों और हाथपैरों पर हल्दी का उबटन पीठी लगाई तो दुलहन का गोरा रंग और निखर आया.

वह अप्सरा सी सुंदर लग रही थी. व्यासों की बगेची, बालागढ़ फोर्ट और होटल में चहलपहल थी. कहते हैं, प्यार में दूरियां मायने नहीं रखतीं. कुछ ऐसा ही पोकरण के शशिकुमार व्यास और रूस की स्वेतलाना के मामले में था.

अगले रोज यानी बुधवार 13 मार्च, 2019 को दोनों प्रेमियों का विवाह होना था. शशि को उस के घर पर ही दूल्हा बनाया गया. दूसरी ओर स्वेतलाना को व्यासों की बगेची में दुलहन बनाया गया. उस का शृंगार किया गया, गहनों और राजस्थानी पोशाक में वह बहुत खूबसूरत लग रही थी. नियत समय पर शशि व्यास की बारात निकाली गई.

हाथ में तलवार, तन पर राजस्थानी लिबास, शशि बिलकुल रणबांकुरे की तरह लग रहे थे. सिर पर साफा और कलंगी खूब जंच रही थी. शशि के घर से बारात रवाना हुई. डीजे पर राजस्थानी बन्नाबन्नी के शादी के गीत ‘केसरियो हजारी गुल रो फूल, केसरिए ने नजर लागसी…’ ‘बन्ना थारो बंगलो कित्ती दूर…’ ‘बन्ना थारे धुंधलिए धोरां में रेंवत घोड़ा थाका…’ वगैरह गानों पर बाराती नाचते हुए बारात की शोभा बढ़ा रहे थे.

ऐसा लगता था जैसे पूरा पोखरण इस शादी को ले कर उत्साहित हो. शहरवासी पोखरण के इतिहास में होने वाली ऐसी अनोखी शादी के गवाह बनना चाहते थे. बारात में शामिल होने के लिए लोगों का हुजूम सा उमड़ पड़ा था.

स्वेतलाना हो गई शशिकुमार की

गांधी चौक पहुंचने पर लोगों ने बारात का स्वागत किया. इस के बाद बारात फिर से रवाना हो कर व्यासों की बगेची पहुंची. व्यासों की बगेची पहुंचने पर दुलहन पक्ष के विदेशी मेहमानों ने भारतीय रीतिरिवाज से बारात का जम कर स्वागत किया.

विदेशी मेम और देसी युवक की शादी का समारोह देखने के लिए व्यासों की बगेची में लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी. स्वेतलाना की शादी में भारतीय संस्कृति की सभी रस्में अदा की गईं. रूस से शादी में शरीक होने आए मेहमानों को हिंदू रिवाज से भारतीय संस्कृति से हुई शादी खूब भाई.

शादी की सभी रस्मों के बाद स्टेज कार्यक्रम के बाद वरवधू विवाह मंडप में पहुंचे और अग्नि को साक्षी मान कर सात फेरे ले कर जन्मजन्म तक साथ निभाने की कसमें खाईं और हमेशा के लिए एकदूसरे के हो गए.

सात फेरों के बाद स्वेतलाना भारतीय बहू बन गई और उस के घर वाले पोखरण के व्यास परिवार के सदस्य सगेसंबंधी.

इस शादी में बस एक ही परेशानी आई थी. वह भी तब जब शशि कुमार ने अपने घर वालों को बताया कि वह स्वेतलाना से शादी करना चाहते हैं. शशि पुष्करणा ब्राह्मण परिवार से थे और स्वेतलाना रूस से थी, जहां धर्म जाति, वर्ण अपने हिसाब से होते हैं.

लेकिन जब शशि जिद पर अड़े रहे तो विद्वानों से बात की गई. उन्होंने यह कह कर बीच का रास्ता निकाल दिया कि जैसे छोटेमोटे नाले का जल नदी में मिल कर वैसा ही बन जाता है, वैसे ही शादी के बाद लड़की भी उसी धर्म जाति और वर्ण की बन जाती है, जहां उस की शादी हुई होती है.

बहरहाल, शादी के बाद स्वेतलाना के साथ आए लोग रूस लौट गए और स्वेतलाना हमेशा के लिए शशि कुमार की बन गई. दोनों ही अपने इस विवाह से खुश हैं.

आशिक बन गया ब्लैकमेलर

‘‘तुझे क्या लगता है कि आत्महत्या कर लेने से तेरी समस्या दूर हो जाएगी?’’

‘‘समस्या दूर हो या न हो, लेकिन

मैं हमेशा के लिए इस दुनिया से दूर हो जाऊंगी. तू नहीं जानती नेहा मेरा खानापीना, सोना यहां तक कि पढ़ना भी दूभर हो गया है. हर वक्त डर लगा रहता है कि न जाने कब उस का फोन आ जाए और वह मुझे फिर अपने कमरे में बुला कर…’’ कहते हुए रंजना (बदला नाम) सुबक उठी तो उस की रूममेट नेहा का कलेजा मुंह को आने लगा. उसे लगा कि वह अभी ही खुद जा कर उस कमबख्त कलमुंहे मयंक साहू का टेंटुआ दबा कर उस की कहानी हमेशा के लिए खत्म कर दे, जिस ने उस की सहेली की जिंदगी नर्क से बदतर कर दी है.

अभीअभी नेहा ने जो देखा था, वह अकल्पनीय था. रंजना खुदकुशी करने पर आमादा हो आई थी, जिसे उस ने जैसेतैसे रोका था लेकिन साथ ही वह खुद भी घबरा गई थी. उसे इतना जरूर समझ आ गया था कि अगर थोड़ा वक्त रंजना से बातचीत कर गुजार दिया जाए तो उस के सिर से अपनी जिंदगी खत्म कर लेने का खयाल उतर जाएगा. लेकिन उस की इस सोच को कब तक रोका जा सकता है. आज नहीं तो कल रंजना परेशान हो कर फिर यह कदम उठाएगी. वह हर वक्त तो रूम पर रह नहीं सकती.

रंजना को समझाने के लिए वह बड़ेबूढ़ों की तरह बोली, ‘‘इस में तेरी तो कोई गलती नहीं है, फिर क्यों किसी दूसरे के गुनाह की सजा खुद को दे रही है. यह मत सोच कि इस से उस का कुछ बिगड़ेगा, उलटे तेरी इस बुजदिली से उसे शह और छूट ही मिलेगी. फिर वह बेखौफ हो कर न जाने कितनी लड़कियों की जिंदगी बरबाद करेगा, इसलिए हिम्मत कर के उसे सबक सिखा. यह बुजदिली तो कभी भी दिखाई जा सकती है. जरा अंकलआंटी के बारे में सोच, जिन्होंने बड़ी उम्मीदों और ख्वाहिशों से तुझे यहां पढ़ने भेजा है.’’

रंजना पर नेहा की बातों का वाजिब असर हुआ. उस ने खुद को संभालते हुए कहा, ‘‘फिर क्या रास्ता है, वह कहने भर से मानने वाला होता तो 3 महीने पहले ही मान गया होता. जिस दिन वह तसवीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर देगा, उस दिन मेरी जिंदगी तो खुद ही खत्म हो जाएगी. जिन मम्मीपापा की तू बात कर रही है, उन पर क्या गुजरेगी? वे तो सिर उठा कर चलने लायक तो क्या, कहीं मुंह दिखाने लायक भी नहीं रहेंगे.’’

‘‘एक रास्ता है’’ नेहा ने मुद्दे की बात पर आते हुए कहा, ‘‘बशर्ते तू थोड़ी सी हिम्मत और सब्र से काम ले तो यह परेशानी चुटकियों में हल हो जाएगी.’’ माहौल को हलका बनाने की गरज से नेहा ने सचमुच चुटकी बजा डाली.

‘‘क्या, मुझे तो कुछ नहीं सूझता?’’

‘‘कोड रेड पुलिस. वह तुझे इस चक्रव्यूह से ऐसे निकाल सकती है कि सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी.’’

कोड रेड पुलिस के बारे में रंजना ने सुन रखा था कि पुलिस की एक यूनिट है जो खासतौर से लड़कियों की सुरक्षा के लिए बनाई गई है और एक काल पर आ जाती है. ऐसे कई समाचार उस ने पढ़े और सुने थे कि कोड रेड ने मनचलों को सबक सिखाया या फिर मुसीबत में पड़ी लड़की की तुरंत मदद की.

रंजना को नेहा की बातों से आशा की एक किरण दिखी, लेकिन संदेह का धुंधलका अभी भी बरकरार था कि पुलिस वालों पर कितना भरोसा किया जा सकता है और बात ढकीमुंदी रह पाएगी या नहीं. इस से भी ज्यादा अहम बात यह थी कि वे तसवीरें और वीडियो वायरल नहीं होंगे, इस की क्या गारंटी है.

इन सब सवालों का जवाब नेहा ने यह कह कर दिया कि एक बार भरोसा तो करना पड़ेगा, क्योंकि इस के अलावा कोई और रास्ता नहीं है. मयंक दरअसल उस की बेबसी, लाचारगी और डर का फायदा उठा रहा है. एक बार पुलिस के लपेटे में आएगा तो सारी धमाचौकड़ी भूल जाएगा और शराफत से फोटो और वीडियो डिलीट कर देगा, जिन की धौंस दिखा कर वह न केवल रंजना की जवानी से मनमाना खिलवाड़ कर रहा था, बल्कि उस से पैसे भी ऐंठ रहा था.

कलंक बना मयंक

20 वर्षीय रंजना और नेहा के बीच यह बातचीत बीती अप्रैल के तीसरे सप्ताह में हो रही थी. दोनों जबलपुर के मदनमहल इलाके के एक हौस्टल में एक साथ रहती थीं और अच्छी फ्रैंड्स होने के अलावा आपस में कजिंस भी थीं.

रंजना यहां जबलपुर के नजदीक के एक छोटे से शहर से आई थी और प्रतिष्ठित परिवार से थी. आते वक्त खासतौर से मम्मी ने उसे तरहतरह से समझाया था कि लड़कों से दोस्ती करना हर्ज की बात नहीं है, लेकिन उन से तयशुदा दूरी बनाए रखना जरूरी है.

बात केवल दुनिया की ऊंचनीच समझाने की नहीं, बल्कि अपनी बड़ी हो गई नन्हीं परी को आंखों से दूर करते वक्त ढेरों दूसरी नसीहतें देने की भी थी कि अपना खयाल रखना. खूब खानापीना, मन लगा कर पढ़ाई करना और रोज सुबहशाम फोन जरूर करना, जिस से हम लोग बेफिक्र रहें.

यह अच्छी बात थी कि रंजना को बतौर रूममेट नेहा मिली थी, जो उन की रिश्तेदार भी थी. जबलपुर आ कर रंजना ने हौस्टल में अपना बोरियाबिस्तर जमाया और पढ़ाईलिखाई और कालेज में व्यस्त हो गई. मम्मीपापा से रोज बात हो जाने से वह होम सिकनेस का शिकार होने से बची रही. जबलपुर में उस की जैसी हजारों लड़कियां थीं, जो आसपास के इलाकों से पढ़ने आई थीं, उन्हें देख कर भी उसे हिम्मत मिलती थी.

मम्मी की दी सारी नसीहतें तो उसे याद रहीं लेकिन लड़कों वाली बात वह भूल गई. खाली वक्त में वह भी सोशल मीडिया पर वक्त गुजारने लगी तो देखते ही देखते फेसबुक पर उस के ढेरों फ्रैंड्स बन गए. वाट्सऐप और फेसबुक से भी उसे बोरियत होने लगी तो उस ने इंस्टाग्राम पर भी एकाउंट खोल लिया.

इंस्टाग्राम पर वह कभीकभार अपनी तसवीरें शेयर करती थी, लेकिन जब भी करती थी तब उसे मयंक साहू नाम के युवक से जरूर लाइक और कमेंट मिलता था. इस से रंजना की उत्सुकता उस के प्रति बढ़ी और जल्द ही दोनों में हायहैलो होने लगी. यही हालहैलो होतेहोते दोनों में दोस्ती भी हो गई. बातचीत में मयंक उसे शरीफ घर का महसूस हुआ तो शिष्टाचार और सम्मान का पूरा ध्यान रखता था. दूसरे लड़कों की तरह उस ने उसे प्रपोज नहीं किया था.

मयंक बुनने लगा जाल

20 साल की हो जाने के बाद भी रंजना ने कोई बौयफ्रैंड नहीं बनाया था, लेकिन जाने क्यों मयंक की दोस्ती की पेशकश वह कुबूल कर बैठी, जो हौस्टल के रूम से बाहर जा कर भी विस्तार लेने लगी. मेलमुलाकातों और बातचीत में रंजना को मयंक में किसीतरह का हलकापन नजर नहीं आया. नतीजतन उस के प्रति उस का विश्वास बढ़ता गया और यह धारणा भी खंडित होने लगी कि सभी लड़के छिछोरे टाइप के होते हैं.

मयंक भी जबलपुर के नजदीक गाडरवारा कस्बे से आया था. यह इलाका अरहर की पैदावार के लिए देश भर में मशहूर है. बातों ही बातों में मयंक ने उसे बताया था कि पढ़ाई के साथसाथ वह एक कंपनी में पार्टटाइम जौब भी करता है, जिस से अपनी पढ़ाई का खर्च खुद उठा सके.

अपने इस बौयफ्रैंड का यह स्वाभिमान भी रंजना को रिझा गया था. कैंट इलाके में किराए के कमरे में रहने वाला मयंक कैसे रंजना के इर्दगिर्द जाल बुन रहा था, इस की उसे भनक तक नहीं लगी.

दोस्ती की राह में फूंकफूंक कर कदम रखने वाली रंजना को यह बताने वाला कोई नहीं था कि कभीकभी यूं ही चलतेचलते भी कदम लड़खड़ा जाते हैं. इसी साल होली के दिनों में मयंक ने रंजना को अपने कमरे पर बुलाया तो वह मना नहीं कर पाई.

उस दिन को रंजना शायद ही कभी भूल पाए, जब वह आगेपीछे का बिना कुछ सोचे मयंक के रूम पर चली गई थी. मयंक ने उस का हार्दिक स्वागत किया और दोनों इधरउधर की बातों में मशगूल हो गए. थोड़ी देर बाद मयंक ने उसे कोल्डड्रिंक औफर किया तो रंजना ने सहजता से पी ली.

रंजना को यह पता नहीं चला कि कोल्डड्रिंक में कोई नशीली चीज मिली हुई है, लिहाजा धीरेधीरे वह होश खोती गई और थोड़ी देर बाद बेसुध हो कर बिस्तर पर लुढ़क गई. मयंक हिंदी फिल्मों के विलेन की तरह इसी क्षण का इंतजार कर रहा था. शातिर शिकारी की तरह उस ने रंजना के कपड़े एकएक कर उतारे और फिर उस के संगमरमरी जिस्म पर छा गया.

कुछ देर बाद जब रंजना को होश आया तो उसे महसूस हुआ कि कुछ गड़बड़ हुई है. पर क्या हुई है, यह उसे तब समझ में नहीं आया. मयंक ने ऐसा कुछ जाहिर नहीं किया, जिस से उसे लगे कि थोड़ी देर पहले ही उस का दोस्त उसे कली से फूल और लड़की से औरत बना चुका है. दर्द को दबाते हुए लड़खड़ाती रंजना वापस हौस्टल आ कर सो गई.

कुछ दिन ठीकठाक गुजरे, लेकिन जल्द ही मयंक ने अपनी असलियत उजागर कर दी. उस ने एक दिन जब ‘उस दिन’ का वीडियो और तसवीरें रंजना को दिखाईं तो उसे अपने पैरों के नीचे से जमीन खिसकती नजर आई. खुद की ऐसी वीडियो और फोटो देख कर शरीफ और इज्जतदार घर की कोई लड़की शर्म से जमीन में धंस जाने की दुआ मांगने लगती. ऐसा ही कुछ रंजना के साथ हुआ.

दोस्त नहीं, वह निकला ब्लैकमेलर

वह रोई, गिड़गिड़ाई, मयंक के पैरों में लिपट गई कि वह यह सब वीडियो और फोटो डिलीट कर दे. लेकिन मयंक पर उस के रोनेगिड़गिड़ाने का कोई असर नहीं हुआ. तुम आखिर चाहते क्या हो, थकहार कर उस ने सवाल किया तो जवाब में ऐसा लगा मानो सैकड़ों प्राण, अजीत, रंजीत, प्रेम चोपड़ा और शक्ति कपूर धूर्तता से मुसकरा कर कह रहे हों कि हर चीज की एक कीमत होती है जानेमन.

यह कीमत थी मयंक के साथ फिर वही सब अपनी मरजी से करना जो उस दिन हुआ था. इस के अलावा उसे पैसे भी देने थे. अब रंजना को समझ आया कि उस का दोस्त या आशिक जो भी था, ब्लैकमेलिंग पर उतारू हो आया है और उस की बात न मानने का खामियाजा क्याक्या हो सकता है, इस का अंदाजा भी वह लगा चुकी थी.

मरती क्या न करती की तर्ज पर रंजना ने उस की शर्तें मानते हुए उसे शरीर के साथसाथ 10 हजार रुपए भी दे दिए. लेकिन उस ने उस की तसवीरें और वीडियो डिलीट नहीं किए. उलटे अब वह रंजना को कभी भी अपने कमरे पर बुला कर मनमानी करने लगा था. साथ ही वह उस से पैसे भी झटकने लगा था.

रंजना चूंकि जरूरत से ज्यादा झूठ बोल कर मम्मीपापा से पैसे नहीं मांग सकती थी, इसलिए एक बार तो उस ने मम्मी की सोने की चेन चुरा कर ही मयंक को दे दी.

रंजना 3 महीने तक तो चुपचाप मयंक की हवस पूरी कर के उसे पैसे भी देती रही, लेकिन अब उसे लगने लगा था कि वह एक ऐसे चक्रव्यूह में फंस गई है, जिस से निकलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. ऐसे में उस ने अपनी जिंदगी खत्म करने का फैसला ले लिया.

नेहा अगर वक्त रहते न बचाती तो वह अपने फैसले पर अमल भी कर चुकी होती. लेकिन नेहा ने उसे न केवल बचा लिया, बल्कि मयंक को भी उस के किए का सबक सिखा डाला.

नेहा ने कोड रेड पुलिस टीम को इस ब्लैकमेलिंग के बारे में जब विस्तार से बताया तो टीम ने रंजना को कुछ इस तरह समझाया कि वह आश्वस्त हो गई कि उस की पहचान भी उजागर नहीं होगी और वे फोटो व वीडियो भी हमेशा के लिए डिलीट हो जाएंगे. साथ ही मयंक को उस के जुर्म की सजा भी मिलेगी.

कोड रेड की इंचार्ज एसआई माधुरी वासनिक ने रंजना को पूरी योजना बताई, जिस से मय सबूतों के उसे रंगेहाथों धरा जा सके. इतनी बातचीत के बाद रंजना का खोया आत्मविश्वास भी लौटने लगा था.

योजना के मुताबिक फुल ऐंड फाइनल सेटलमेंट के लिए 26 अप्रैल को रंजना ने मयंक को भंवरताल इलाके में बुलाया. सौदा 20 हजार रुपए में तय हुआ. उस वक्त सुबह के कोई 6 बजे थे, जब मयंक पैसे लेने आया. कोड रेड के अध

1 करोड़ की रंगदारी : बढ़ता अपराध

पिछले कुछ दिनों में देश की राजधानी दिल्ली ही नहीं, बल्कि सभी बड़े शहरों में क्राइम का ग्राफ बढ़ा है. आश्चर्य की बात यह है कि अब नई उम्र के लड़के भी लूटपाट, रंगदारी और गुंडा टैक्स वसूलने लगे हैं. आखिर इस की वजह क्या है, बेरोजगारी या परिवार से मिलने वाले संस्कार पिछले एक दशक से देखने में आ रहा है कि कई जघन्य वारदातों में नाबालिगों के नाम शामिल होते हैं.

इस की वजह मामूली पढ़ाईलिखाई, बेरोजगारी तो है ही, लेकिन उस से भी बड़ी वजह यह है कि नाबालिगों के मुकदमे बाल न्यायालय में चलते हैं और उन्हें कम सजा दी जाती है, जो 2-3 साल से ज्यादा नहीं होती.

दिसंबर, 2012 में दिल्ली में हुए देश के सब से चर्चित सामूहिक बलात्कार और हत्या के दोषियों में एक नाबालिग भी था. उसी ने निर्भया के साथ सब से ज्यादा बर्बरता, सच कहें तो इंतहा की आखिरी हद तक दरिंदगी की थी. लेकिन नाबालिग होने की वजह से वह मामूली सजा भोग कर जेल से बाहर आ गया और हालफिलहाल नाम बदल कर दक्षिण भारत में कुक की नौकरी कर रहा है.

5 साल पहले मेरठ में भी एक नाबालिग ने पारिवारिक रंजिश के चलते एक व्यक्ति को दिनदहाड़े गोलियों से भून दिया था, जो अब छूट चुका है. ऐसे और भी तमाम मामले हैं. 13 जून, 2019 को दिल्ली के रोहिणी में हुई प्रौपर्टी डीलर अमित कोचर की हत्या में भी एक आरोपी नाबालिग है, जिसे शार्पशूटर बताया जा रहा है. पुलिस के अनुसार अमित कोचर से एक करोड़ रुपए की सुपारी मांगी गई थी, जो उन्होंने नहीं दी. इसी के फलस्वरूप उन की हत्या कर दी गई.

विकासपुरी में रहने वाले अमित कोचर ने कई साल तक बीपीओ (कालसेंटर) चलाया था. इस के बाद वह प्रौपर्टी डीलिंग का काम करने लगे थे. उन की पत्नी एनसीआर के एक कालसेंटर में कार्यरत थीं. 13 जून बृहस्पतिवार को अमित ने अपने दोस्तों को खाने पर बुलाया था. अमित ने औनलाइन खाना और्डर कर दिया था. 11 बजे डोरबैल बजी तो अमित ने सोचा, डिलिवरी बौय आया होगा. उन्होंने दरवाजा खोल दिया. दरवाजे पर खड़े बदमाशों ने अमित को बिना कोई मौका दिए बाहर खींच लिया.

बदमाश उन्हें घसीट कर घर के बाहर ले गए और उन्हें उन की ही गाड़ी में बैठा कर उन की हत्या कर दी. उन्हें 9 गोलियां मारी गई थीं. जब अमित के दोस्तों ने गोली की आवाज सुनी तो वे बाहर आए. बदमाशों ने उन पर पिस्तौल तान दी और अपनी कार में बैठ कर भाग निकले. घटना के बाद लोग एकत्र हुए तो सब को लगा कि यह घटना संभवत: कार पार्किंग के विवाद को ले कर हुई है.

अमित कोचर के दोस्त उन्हें दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल ले गए. लेकिन डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. पुलिस ने जब इस मामले की जांच शुरू की तो सीसीटीवी फुटेज के आधार पर पता चला कि बदमाश क्रेटा कार से भागे थे.

कार के नंबर के आधार पर पता लगाया गया तो जानकारी मिली कि क्रेटा कार भिवाड़ी, राजस्थान से लूटी गई थी. बदमाशों ने एक मौल के बाहर से क्रेटा कार के मालिक को कार सहित अपहृत कर लिया था. बाद में उसे रास्ते में उतार दिया गया. केवल इतना ही नहीं, बल्कि उन्होंने उसे किराए के लिए एक हजार रुपए भी दिए थे.

रोहिणी मामले में पुलिस ने अपने मुखबिरों की मदद ली तो पता चला कि अमित कोचर की हत्या गैंगस्टर मंजीत महाल के भांजे लोकेश उर्फ सूर्या के गैंग के लोगों ने की थी. 15 जून की सुबह 4 बजे मुखबिरों से ही पता चला कि जिस गैंग ने अमित कोचर की हत्या की है, उस गैंग के बदमाश सुबह 4 बजे रोहिणी के सेक्टर-25 में हेलीपैड के पास मौजूद हैं.

पुलिस टीम वहां पहुंची तो हत्या की वारदात में इस्तेमाल की गई क्रेटा कार खड़ी दिखाई दी. कार के बाहर नाबालिग शार्पशूटर खड़ा था, जो शायद किसी का इंतजार कर रहा था. पुलिस को देख वह कार की ओट में छिप गया.

पुलिस ने उसे समर्पण करने को कहा तो वह भागने लगा. पुलिस टीम उसे पकड़ने के लिए दौड़ी तो उस ने गोली चला दी. गनीमत यह रही कि गोली किसी पुलिस वाले को नहीं लगी. पुलिस ने उसे पकड़ लिया. उस से कार और पिस्तौल बरामद कर ली गई.

पूछताछ में नाबालिग ने बताया कि प्रौपर्टी डीलर अमित कोचर बुकी भी थे. यानी वह सट्टा खेलाते थे. गैंग ने उन से एक करोड़ की रंगदारी मांगी थी, पैसा न देने की वजह से ही उन की हत्या की गई थी.

पिछले साल दिसंबर में इस गैंग के लोगों ने बिंदापुर के एक डाक्टर से एक करोड़ की रंगदारी मांगी थी. इस मामले में पुलिस ने इस गैंग के बदमाश जितेंद्र को नजफगढ़ से गिरफ्तार किया था. इस गिरोह ने अपने प्रतिद्वंदी गिरोह के बदमाश हरिओम को गोलियों से भून दिया था, लेकिन उस की जान बच गई थी.

इस मामले में नाबालिग के अलावा नजफगढ़ का रहने वाला लोकेश उर्फ सूर्या, प्रदीप, सोनीपत निवासी नीरज और रोहतक का रहने वाला रोहित भी शामिल था.

इस गिरोह ने 29 अप्रैल, 2019 को जनकपुरी के एक डिपार्टमेंटल स्टोर से 15 लाख रुपए लूटे थे. इस मामले में थाना जनकपुरी में केस दर्ज हुआ था. बाद में बदमाशों ने डिपार्टमेंटल स्टोर के मालिक को केस वापस लेने के लिए धमकाया भी था.

सौजन्य- मनोहर कहानियां, जुलाई 2019

500 टुकड़ों में बंटा दोस्त

मुंबई के विरार (पश्चिम) में स्थित है ग्लोबल सिटी. यहीं पर पैराडाइज सोसाइटी के फ्लैट बने हुए हैं. जिन में सैकड़ों लोग रहते हैं. 20 जनवरी, 2019

को इस सोसाइटी में रहने वाले लोग जब नीचे आ जा रहे थे, तभी उन्हें तेज बदबू आती महसूस हुई. वैसे तो यह बदबू पिछले 2 दिनों से महसूस हो रही लेकिन उस दिन बदबू असहनीय थी.

कई दिन से बदबू की वजह से लोग नाक बंद कर चले जाते थे. उन्हें यह पता नहीं लग रहा था कि आखिर दुर्गंध आ कहां से रही है. सोसाइटी के गार्डों ने भी इधरउधर देखा कि कहीं कोई बिल्ली या कुत्ता तो नहीं मर गया, पर ऐसा कुछ नहीं मिला.

20 जनवरी को अपराह्न 11 बजे के करीब सोसाइटी के लोग इकट्ठा हुए और यह पता लगाने में जुट गए कि आखिर बदबू आ कहां से रही है. थोड़ी देर की कोशिश के बाद उन्हें पता चल गया कि बदबू और कहीं से नहीं बल्कि सेप्टिक टैंक के चैंबर से आ रही है. किस फ्लैट की टायलेट का पाइप बंद है, यह पता लगाने और उसे खुलवाने के लिए सोसाइटी के लोगों ने 2 सफाईकर्मियों को बुलवाया.

सफाई कर्मचारियों ने चैक करने के बाद पता लगा लिया कि सोसाइटी की सी विंग के फ्लैटों का जो पाइप सैप्टिक टैंक में आ रहा था, वह बंद है. सी विंग में 7 फ्लैट थे, उन्हीं का पाइप नीचे से बंद हो गया था. पाइप बंद होना आम बात होती है जो आए दिन फ्लैटों में देखने को मिलती रहती है.

सफाई कर्मियों ने जब वह पाइप खोलना शुरू किया तो उस में मांस के टुकड़े मिले. पाइप में मांस के टुकड़े फंसे हुए थे, जिन की सड़ांध वहां फैल रही थी.

सोसाइटी के लोगों को यह बात समझ नहीं आ रही थी कि किसी ने मांस डस्टबिन में फेंकने के बजाए फ्लैट में क्यों डाला. जब पाइप में मांस ज्यादा मात्रा में निकलने लगा तो सफाईकर्मियों के अलावा सोसाइटी के लोगों को भी आश्चर्य हुआ. शक होने पर सोसाइटी के एक पदाधिकारी ने पुलिस को फोन कर इस की जानकारी दे दी.

सूचना मिलने पर अर्नाला थाने के इंसपेक्टर सुनील माने पैराडाइज सोसाइटी पहुंच गए. पाइप में फंसा मांस देख कर उन्हें भी आश्चर्य हुआ. उसी दौरान उन्हें उस मांस में इंसान के हाथ की 3 उंगलियां दिखीं.

उंगलियां देखते ही उन्हें माजरा समझते देर नहीं लगी. वह समझ गए कि किसी ने कत्ल कर के, लाश के छोटेछोटे टुकड़े कर के इस तरह ठिकाने लगाने की कोशिश की है. जल्दी ही यह बात पूरी सोसाइटी में फैल गई, जिस के चलते आदमियों के अलावा तमाम महिलाएं भी वहां जुटने लगीं.

मामला सनसनीखेज था इसलिए इंसपेक्टर माने ने फोन द्वारा इस की सूचना पालघर के एसपी गौरव सिंह और डीवाईएसपी जयंत बजबले के अलावा अपने थाने के सीनियर इंसपेक्टर घनश्याम आढाव को दे दी.

पुलिस कंट्रोल रूम में यह सूचना प्रसारित होने के बाद क्राइम ब्रांच की टीम भी मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने मांस के समस्त टुकड़े अपने कब्जे में लिए. पुलिस की समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि जिस की हत्या की गई है, वह इसी सोसाइटी का रहने वाला था या फिर कहीं बाहर का.

जिस पाइप में मांस के टुकड़े फंसे मिले थे वह पाइप सी विंग के फ्लैटों का था. इस से यह बात साफ हो गई थी कि कत्ल इस विंग के ही किसी फ्लैट में किया गया है. सी विंग में 7 फ्लैट थे. पुलिस ने उन फ्लैटों को चारों ओर से घेर लिया ताकि कोई भी वहां से पुलिस की मरजी के बिना कहीं न जा सके. फोरेंसिक एक्सपर्ट की टीम भी बुला ली गई थी.

रहस्य फ्लैट नंबर 602 का वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में पुलिस ने उन सभी फ्लैटों की तलाशी शुरू कर दी. तलाशी के लिए पुलिस फ्लैट नंबर 602 में पहुंची. वह फ्लैट बाहर से बंद था. लोगों ने बताया कि वैसे तो इस फ्लैट की मालिक पूनम टपरिया हैं लेकिन कुछ दिनों पहले उन्होंने यह फ्लैट किशन शर्मा उर्फ पिंटू नाम के एक आदमी को किराए पर दे दिया था. वही इस में रहता है.

किशन शर्मा उस समय वहां नहीं था इसलिए सोसाइटी के लोगों की मौजूदगी में पुलिस ने उस फ्लैट का ताला तोड़ कर तलाशी ली तो वहां इंसान की कुछ हड्डियां मिलीं. इस से इस बात की पुष्टि हो गई कि कत्ल इसी फ्लैट में किया गया था. कत्ल किस का किया गया था यह जानकारी किशन शर्मा से पूछताछ के बाद ही मिल सकती थी. बहरहाल, पुलिस ने मांस के टुकड़े, हड्डियां आदि अपने कब्जे में ली.

थोड़ी कोशिश कर के पुलिस को किशन शर्मा उर्फ पिंटू का फोन नंबर भी मिल गया था. वह कहीं फरार न हो जाए इसलिए पुलिस ने बड़े रेलवे स्टेशनों, बस अड्डे व हवाई अड्डे पर भी पुलिस टीमें भेज दीं.

इस के अलावा सीनियर पुलिस इंसपेक्टर घनश्याम आढाव ने किशन शर्मा का मोबाइल नंबर मिलाया. इत्तेफाक से उस का नंबर मिल गया. उन्होंने अपनी पहचान छिपाते हुए किसी बहाने से उसे एक जगह मिलने के लिए बुलाया. उस ने आने के लिए हां कर दी तो वहां पुलिस टीम भेज दी गई. वह आया तो सादा लिबास में मौजूद पुलिस कर्मियों ने उसे दबोच लिया.

40 वर्षीय किशन शर्मा को हिरासत में ले कर पुलिस थाने लौट आई. एसपी गौरव सिंह की मौजूदगी में जब उस से उस के फ्लैट नंबर- 602 में मिली मानव हड्डियों और मांस के बारे में पूछताछ की गई तो थोड़ी सी सख्ती के बाद उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने अपने 58 वर्षीय लंगोटिया यार गणेश विट्ठल कोलटकर की हत्या की थी.

पुलिस ने मृतक के शरीर के अन्य हिस्सों के बारे में पूछा तो किशन ने बताया कि उस ने गणेश की लाश के करीब 500 टुकड़े किए थे. कुछ टुकड़े टायलेट में फ्लश कर दिए और कुछ टुकड़े टे्रन से सफर के दौरान फेंक दिए थे. किशन के अनुसार, उस ने सिर तथा हड्डियां भायंदर की खाड़ी में फेंकी थीं.

गणेश विट्ठल किशन शर्मा का घनिष्ठ दोस्त था तो आखिर ऐसा क्या हुआ कि दोनों के बीच दुश्मनी हो गई. दुश्मनी भी ऐसी कि किशन शर्मा ने उस की हत्या कर लाश का कीमा बना डाला. इस बारे में पुलिस ने किशन शर्मा से पूछताछ की तो इस हत्याकांड की दिल दहला देने वाली कहानी सामने आई—

किशन शर्मा मुंबई के सांताक्रुज इलाके की राजपूत चाल के कमरा नंबर 4/13 में अपनी पत्नी और 2 बच्चों के साथ रहता था. उस ने मुंबई विश्वविद्यालय से मानव शरीर रचना एवं क्रिया विज्ञान में सर्टिफिकेट कोर्स किया था.

लेकिन अपने कोर्स के मुताबिक उस की कहीं नौकरी नहीं लगी तो वह शेयर मार्केट में काम करने लगा. करीब 8 महीने पहले उस की मुलाकात थाणे जिले के मीरा रोड की आविष्कार सोसाइटी में रहने वाले गणेश विट्ठल कोलटकर से हुई जो बाद में गहरी दोस्ती में तब्दील हो गई थी. गणेश की अपनी छोटी सी प्रिंटिंग प्रैस थी.

एक दिन गणेश ने किशन शर्मा से कहा कि अगर वह प्रिंटिंग प्रैस के काम में एक लाख रुपए लगा दे तो पार्टनरशिप में प्रिंटिंग प्रैस का धंधा किया जा सकता है. किशन इस बात पर राजी हो गया और उस ने एक लाख रुपए अपने दोस्त गणेश को दे दिए. इस के बाद दोनों दोस्त मिल कर धंधा करने लगे. किशन मार्केट का काम देखता था.

कुछ दिनों तक तो दोनों की साझेदारी ईमानदारी से चलती रही पर जल्द ही गणेश के मन में लालच आ गया. वह हिसाब में हेराफेरी करने लगा. किशन को इस बात का आभास हुआ तो उस ने साझेदारी में काम करने से मना करते हुए गणेश से अपने एक लाख रुपए वापस मांगे. काफी कहने के बाद गणेश ने उस के 40 हजार रुपए तो वापस दे दिए लेकिन 60 हजार रुपए वह लौटाने का नाम नहीं ले रहा था.

किशन जब भी बाकी पैसे मांगता तो वह कोई न कोई बहाना बना देता था. वह उसे लगातार टालता रहा. इसी दौरान किशन को सूचना मिली कि गणेश 56 साल की उम्र में शादी करने वाला है. इस बारे में किशन ने उस से बात की तो गणेश ने साफ कह दिया कि अभी उस के पास पैसे नहीं हैं. पहले वह शादी करेगा. इस के बाद पैसों की व्यवस्था हो जाएगी तो दे देगा.

गणेश की यह बात किशन को बहुत बुरी लगी. वह समझ गया कि गणेश के पास पैसे तो हैं लेकिन वह देना नहीं चाहता. लिहाजा उस ने दोस्त को सबक सिखाने की ठान ली. उस ने तय कर लिया कि वह गणेश को ठिकाने लगाएगा.

योजना बनाने के बाद उस ने विरार क्षेत्र की पैराडाइज सोसाइटी में फ्लैट नंबर 602 किराए पर ले लिया. वह फ्लैट पूनम टपरिया नाम की महिला का था. किशन कभीकभी अकेला ही उस फ्लैट में सोने के लिए चला आता था.

योजना के अनुसार 16 जनवरी, 2019 को किशन शर्मा अपने दोस्त गणेश विट्ठल कोलटकर को ले कर पैराडाइज सोसाइटी के फ्लैट में गया. फ्लैट में घुसते ही किशन ने उस से अपने 60 हजार रुपए मांगे. इसी बात पर दोनों के बीच झगड़ा हो गया. झगड़े के दौरान किशन ने कमरे में रखा डंडा गणेश के सिर पर मारा. एक ही प्रहार में गणेश फर्श पर गिर गया. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

गणेश की मौत हो जाने के बाद किशन के सामने सब से बड़ी समस्या उस की लाश को ठिकाने लगाने की थी. इस के लिए उस ने असिस्टेंट पुलिस इंसपेक्टर अश्वनि बिदरे गोरे की हत्या से संबंधित जानकारियां इकट्ठा कीं, ताकि पुलिस को आसानी से गुमराह किया जा सके. उस ने यूट्यूब पर भी डैड बौडी को ठिकाने लगाने के वीडियो देखे. उन में से उसे एक वीडियो पसंद आया जिस में लाश को छोटेछोटे टुकड़ों में काट कर उन्हें ठिकाने लगाने का तरीका बताया गया था.

यह तरीका उसे आसान भी लगा. क्योंकि वह मानव शरीर रचना एवं क्रिया विज्ञान की पढ़ाई कर चुका था. इस के लिए तेजधार के चाकू की जरूरत थी. किशन शर्मा सांताकु्रज इलाके की एक दुकान से बड़ा सा चाकू और चाकू को तेज करने वाला पत्थर खरीद लाया.

खरीद लाया मौत का सामान फ्लैट पर पहुंच कर किशन शर्मा ने सब से पहले गणेश विट्ठल कोलटकर की लाश का सिर धड़ से अलग कर उसे एक पालीथीन में रख लिया. इस के बाद उस ने लाश के 500 से अधिक टुकड़े कर दिए. शरीर की हड्डियों और पसलियों को उस ने तोड़ कर अलग कर लिया था.

वह मांस के टुकड़ों को टायलेट की फ्लश में डालता रहा. सिर और हड्डियां उस ने भायंदर की खाड़ी में फेंक दीं. कुछ हड्डियां उस ने पालीथिन की थैली में भर कर ट्रेन से सफर के दौरान रास्ते में फेंक दी थी. उस का फोन भी उस ने तोड़ कर फेंक दिया था.

उधर गणेश विट्ठल कई दिनों से घर नहीं पहुंचा तो उस की बहन अनधा गोखले परेशान हो गई. उस ने भाई को फोन कर के बात करने की कोशिश की लेकिन उस का फोन बंद मिला. फिर वह 20 जनवरी को मीरा रोड के नया नगर थाने पहुंची और पिछले 4 दिनों से लापता चल रहे भाई गणेश विट्ठल की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

पुलिस ने किशन शर्मा से पूछताछ के बाद गणेश विट्ठल का सिर बरामद करने की कोशिश की लेकिन वह नहीं मिला. अंतत: जरूरी सबूत जुटाने के बाद हत्यारोपी किशन शर्मा को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. पुलिस मामले की तफ्तीश कर रही है.

हनी ट्रैप का रुख, गांवों की ओर

बदलते परिवेश में एक तरफ जहां महिलाओं के प्रति अपराध बढ़े हैं, वहीं दूसरी ओर अपराधों में महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ी है. इस की वजह जो भी हो, लेकिन कुछ महिलाएं मोटी कमाई के चक्कर में अपना जमीर तक बेच देती हैं.

ऐसी महिलाएं किसी व्यक्ति को अपने आकर्षणपाश में फांस कर उसे ब्लैकमेल करती हैं और मोटी रकम वसूलती हैं. उन के लिए यह मोटी कमाई का आसान जरिया होता है.

प्रस्तुत कथा ऐसे ही अलगअलग गिरोहों की है, जिन में महिलाएं भी शामिल थीं. गैंग के सदस्य शिकार को अपने जाल में इतनी आसानी से फांसते थे कि उस का उन के चंगुल से निकलना मुश्किल हो जाता था. इन की पहली चाल शुरू हो जाती थी ब्लैकमेलिंग से.

14 अगस्त, 2019 को सिद्धमुख (चुरू) गांव में डेयरी पर नौकरी करने वाले सागर शर्मा के घर विपिन शर्मा अपनी पत्नी रितु शर्मा को ले कर पहुंचा. 6 महीने पहले वह पत्नी के साथ उसी डेयरी पर बने कमरे में किराए पर रहता था और सिद्धमुख गांव में गोलगप्पे की रेहड़ी लगाता था. बाद में वह कमरा खाली कर जयपुर चला गया था. सागर शर्मा ने दोनों की आवभगत की. फिर सागर और विपिन में इधरउधर की बातें होने लगीं.

उसी दौरान चाय का घूंट लेते हुए विपिन ने सागर से कहा, ‘‘भैया, मुझे रुपयों की सख्त जरूरत है. प्लीज, एक लाख रुपए उधार दे दो. अगर आप के पास नहीं हैं तो किसी से उधार ले कर दे दो. मैं अगले महीने सूद सहित लौटा दूंगा.’’

‘‘देखो विपिन, तुम्हें तो पता ही है कि मैं विनोद सेठ की दूध डेयरी पर नौकरी करता हूं. मेरे लिए यह बहुत बड़ी है. अगर तुम्हें 2-4 हजार की जरूरत हो तो मालिक से ले कर दे सकता हूं.’’ सागर ने कहा.

सागर के इस जवाब पर विपिन व रितु मुंह लटका कर वहां से चले गए.

अगले दिन 16 अगस्त की सुबह सागर के मोबाइल पर विपिन की काल आई. उस ने काल रिसीव की तो विपिन ने उसे गालियां देते हुए कहा, ‘‘तू बड़ा कमीना निकला सागर. तूने दोस्ती की आड़ में मेरे साथ दगा किया है. मेरी बीवी के साथ गलत काम करते हुए कुछ तो शरम कर लेता.’’

इतना सुन कर सागर के होश उड़ गए. वह बोला, ‘‘अरे भैया, यह तुम क्या कह रहे हो. तुम भी तो भाभी के साथ थे. यह सरासर झूठ है.’’

‘‘देख सागर, तेरे कहने से कुछ नहीं होगा. जब रितु थाने जा कर तेरे खिलाफ बलात्कार का मुकदमा दर्ज करवाएगी तो तुझे दिन में तारे दिखाई दे जाएंगे.’’ विपिन ने सागर को धमकी दी.

सागर बालबच्चेदार था. बात झूठ थी फिर भी जलालत की सोच कर उस की रूह कांप गई. विपिन उसे फिर से गाली देते हुए बोला, ‘‘अब जल्दी से 25 लाख रुपयों का इंतजाम कर ले. नहीं तो तुझे जेल जाने से कोई नहीं बचा सकता.’’

विपिन के साथी गौरधन मीणा ने उस से फोन ले कर सागर को घुड़का. उस ने कहा, ‘‘जैसा विपिन कह रहा है, मान ले. विपिन को राजी कर ले, नहीं तो जेल में सड़ेगा.’’

सागर ने उसे बताया कि उस के पास इतने पैसे नहीं हैं, जो बन सकेंगे, वह दे देगा.

‘‘ठीक है, अब मैं बाद में बात करूंगा.’’ कह कर विपिन ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

अचानक आई इस मुसीबत से सागर घबरा गया. वह समझ नहीं पा रहा था कि वह इस परेशानी से कैसे बाहर निकले. उसी रात विपिन ने सागर को फिर फोन किया.

वह बोला, ‘‘देख सागर, तेरे लिए 25 लाख का इंतजाम करना संभव नहीं है तो तू 15 लाख का इंतजाम कर ले. इतने में मामला सैटल हो जाएगा नहीं तो कल मीडिया में तेरी काली करतूत सामने आएगी तो तू जरूर आत्महत्या कर लेगा.’’

इस धमकी से सागर और भी ज्यादा डर गया. चूंकि विपिन पहले डेयरी मालिक विनोद अग्रवाल के यहां किराए पर रहता था, इसलिए विपिन को समझाने के लिए सागर ने अपने मालिक की विपिन से बात कराई. लेकिन विपिन नहीं माना.

2 दिनों बाद विपिन ने विनोद अग्रवाल को फोन कर कहा कि अगर 15 लाख का इंतजाम न हो पा रहा हो तो 10 लाख का जुगाड़ कर लो. इतने पैसों में मामला रफादफा कर देंगे. विपिन ने यह भी विश्वास दिलाया कि रकम मिलने पर रितु स्टांप पेपर पर लिख कर सागर को क्लीन चिट दे देगी.

अगले दिन सागर के पास फिर विपिन का फोन आया. वह बोला, ‘‘देख सागर रितु की बुआ रावतसर में रहती है. तू कल रकम ले कर रावतसर आ जा. 8 लाख से काम चल जाएगा. कल अगर सारे पैसों की व्यवस्था न हो पाए तो अगले दिन के चेक दे देना.’’

‘‘ठीक है, मैं पहुंच जाऊंगा.’’ सागर ने उस से कहा.

11 सितंबर को विपिन, रितु, बाबूलाल कीर, गोरेधन मीणा व मूलचंद मीणा को ले कर रावतसर आ गया. सागर भी रावतसर आ गया था. वे लोग रावतसर से 7 किलोमीटर दूर चाइया गांव के पास एक होटल में रुके. विपिन ने फोन कर सागर को भी वहीं बुला लिया था.

वहां पहुंचते ही सब लोग सागर को एक सुनसान जगह पर ले गए. उसे डराधमका कर उन लोगों ने सागर की जेब से 60 हजार रुपए निकाल लिए. बकाया रकम के लिए उन्होंने आईसीआईसीआई बैंक के 7,40,000 के 2 चैक ले लिए.

सागर को साथ ले कर वे लोग रावतसर के तहसील कार्यालय पहुंच गए. रितु ने 50 रुपए को स्टांप पेपर पर लिख कर दे दिया कि अब उसे सागर शर्मा से कोई शिकायत नहीं है.

उस की एक फोटोकौपी उस ने सागर को दे कर बाकी रकम अगले दिन तक देने को कह दिया. इस के बाद सागर घर लौट गया. विपिन भी गिरोह के साथ रिश्तेदारी में चला गया.

सागर को बाकी की रकम देने की चिंता थी. उधर विपिन ने विनोद सेठ को फोन कर रकम का तकाजा कर दिया था. अगले दिन सागर विपिन के बताए अनुसार उसी होटल पर पहुंच गया. दूसरी तरफ विनोद ने विपिन को फोन कर रावतसर पहुंचने की सूचना दे दी थी. विनोद अपने एक दोस्त के साथ पहले ही रावतसर पहुंच गया था.

तीनों सलाहमशविरा कर के रावतसर पुलिस स्टेशन पहुंच गए. थाने में मौजूद सीआई अरुण चौधरी को पीडि़त पक्ष ने अपनी व्यथा सुना दी. सीआई के आदेश पर पुलिस पार्टी ने सादे कपड़ों में होटल पर दबिश दे कर ब्लैकमेलर विपिन शर्मा, उस की पत्नी रितु शर्मा, गोरेधन मीणा, बाबूलाल और मूलचंद मीणा को हिरासत में ले लिया.

पुलिस ने उन के पास से नकदी, चैक, शपथपत्र वगैरह बरामद कर के उन से पूछताछ की. उन लोगों ने सागर शर्मा को ब्लैकमेल करने की बात स्वीकार कर ली. पुलिस ने पांचों आरोपियों से पूछताछ कर उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में धान का कटोरा माने जाने वाली एक तहसील है टिब्बी. घाघर नदी का बहाव क्षेत्र रही यहां की भूमि श्रेष्ठतम उपजाऊ है. इसी तहसील का एक गांव है पीर कामडि़या. अख्तर उर्फ अकरम इसी गांव का बाशिंदा था. वह 16 सितंबर, 2019 को हनुमानगढ़ के जिला स्वास्थ्य केंद्र में दवा लेने आया हुआ था. मरीजों की लाइन में लगे अख्तर के आगे सोमप्रकाश खड़ा था.

दोनों में बातचीत शुरू हुई तो उन्होंने एकदूसरे को अपनेअपने बारे में बताया. सोमप्रकाश ने बताया कि उस का हनुमानगढ़ में जूतेचप्पलों का शोरूम है. तब अख्तर ने सोम से कहा, ‘‘भैया, मेरे एक जानकार के पास पीरकामडि़या गांव में एक काउंटर व एक अलमारी पड़ी है. दोनों ही बहुत बढि़या हालत में हैं. आप के फायदे का सौदा है. आधे दाम में आप को दिला दूंगा.’’

सोम का मन ललचा गया. फिर दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर दे दिए थे, ताकि बात हो सके.

अगले दिन सोमप्रकाश अपनी बाइक से पीरकामडि़या गांव पहुंच गया. फोन करने पर अख्तर आ गया. अख्तर सोम को रशीदा बीबी के घर ले गया. उस के कहने पर वह अलमारी व काउंटर देखने के लिए एक कमरे में घुस गया. तभी वहां मोमन खां व 2 महिलाएं, जो परदे के पीछे थीं, अचानक आ गईं. सभी ने सोम के साथ मारपीट कर उसे निर्वस्त्र कर दिया.

कमरे में मौजूद महिलाएं भी नंगधड़ंग हो गईं. अख्तर ने सोम व महिलाओं की उसी अवस्था में वीडियो बना ली. इस के बाद मोमन खां ने सोम को छुरा दिखाते हुए धमकाया कि अगर उस ने उन का कहा नहीं माना तो वह उसे हलाल कर देंगे. आरोपियों का मंतव्य भांपते ही सोम को जैसे सांप सूंघ गया. वह वैसा ही करता गया, जैसा उन्होंने कहा.

वीडियो बनाने के बाद मोमन खां ने उसे धमकाया, ‘‘देख सोम, तूने 2 महिलाओं का रेप किया है. अब 10 लाख रुपयों की व्यवस्था कर हमें दे दे, नहीं तो तेरे खिलाफ बलात्कार का मुकदमा दर्ज करवाएंगे.’’

अख्तर ने राजीनामे की बात कह कर सोम को मामूली सी राहत की किरण दिखाई.

‘‘अरे भैया, मैं ने किसी का रेप नहीं किया. क्यों झूठी तोहमत लगा रहे हो. आप दोनों भी उस समय कमरे में मौजूद थे.’’ सोम गिड़गिड़ाया.

‘‘सोम, हम दोनों की मौजूदगी ही तुझे बलात्कारी साबित करेगी. हमारे बयान तेरे खिलाफ होंगे.’’ अख्तर ने उसे फिर डपट दिया.

‘‘भैया, 10 लाख रुपयों का इंतजाम तो मेरी सात पुश्तें भी नहीं कर पाएंगी. हां, 5-7 हजार रुपयों का इंतजाम मैं जरूर कर लूंगा.’’ जैसे सोम ने अपना दिल खोल कर रख दिया.

सभी ने मिल कर सोम को 30 हजार रुपए अदा करने का फरमान सुना दिया. उन्होंने सोम की बाइक भी अपने पास रख ली. फिर सोम को अपने पास से किराया दे कर अगले दिन 30 हजार रुपए लाने के लिए पाबंद कर भगा दिया.

निढाल हुआ सोम जैसेतैसे टिब्बी पुलिस थाने पहुंचा और सीआई मोहम्मद अनवर को आपबीती सुनाई. उस की व्यथा सुनने के बाद सीआई ने आरोपियों को गिरफ्तार करने की योजना बना ली. अगले दिन निर्धारित समय पर सोम पीरकामडि़या गांव पहुंच गया.  उस ने अपने आने की सूचना फोन से अख्तर को दे दी थी.

सभी आरोपी रशीदा बीबी के घर इकट्ठे हो गए थे. सोम रुपए ले कर घर में घुसा तो सादे कपड़ों में आए पुलिसकर्मियों ने पांचों को हिरासत में ले लिया.

थाने में पांचों आरोपियों अकरम उर्फ अख्तर, मोमन खां, अनारा बीबी, रशीदा बीबी और अनीश बीबी से पूछताछ के बाद उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

हनीट्रैप की तीसरी घटना भी हनुमानगढ़ की ही है. इसी जिले की जिला जेल में तैनात जेल वार्डन निहाल सिंह 9 सितंबर, 2019 को अपनी ड्यूटी पूरी करने के बाद बैरक में आराम कर रहे थे. तभी उन के मोबाइल की घंटी बजी.

उन्होंने काल रिसीव की तो दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘निहाल साहब हैं क्या?’’

‘‘हां, मैं बोल रहा हूं.’’ निहाल सिंह बोले.

‘‘साहब, प्लीज एकांत में आइएगा, आप से खास बात करनी है.’’ दूसरी तरफ से आवाज आई.

निहाल सिंह ने बाहर आ कर कालबैक की तो वह बोला, ‘‘साहब, मैं यूनुस खान बोल रहा हूं. पहचान गए न, लखुवाली निवासी यूनुस उर्फ मिर्जा. आप के यहां कई महीने जेल में रहा था.’’

‘‘अरे याद आया, तू अनवर उर्फ लंबा के साथ जेल में रहा था.’’ निहाल सिंह को याद आ गया.

‘‘साहब, हमारा जेल आनेजाने का क्रम लंबे समय से चल रहा है. अभी पिछले दिनों जमानत पर बाहर आए हैं. आप का अच्छा व्यवहार हमें बहुत पसंद आया था. हम आप को पार्टी देना चाहते हैं. देखो साहब, मना मत करना.’’ युनूस ने कहा, ‘‘साहब, हम ने आज का ही प्रोग्राम बना लिया है. अनवर भी मेरे साथ है. साथसाथ बैठेंगे तो आनंद आएगा.’’

मनचाहा पांसा फेंक यूनुस और अनवर प्रफुल्लित थे. वहीं दूसरी ओर निहाल सिंह भी आनंदविभोर थे. आज उन के अच्छे व्यवहार के सच्चे पारखी मिल गए थे. यूनुस ने कहा कि वह अनवर के साथ बाइक ले कर किला के पास उन का इंतजार कर रहा है.

आधे घंटे में निहाल सिंह वहां पहुंच गए. दोनों निहाल सिंह को बाइक पर बिठा कर गाहड़ू गांव की एक ढाणी में ले गए. वहां मौजूद 2 लोग और एक महिला निहाल सिंह की आवभगत में लग गए.

उन लोगों ने जेल वार्डन को कोल्डड्रिंक पीने को दी. कोल्डड्रिंक पीते ही निहाल सिंह पर नशा छा गया. महिला ने निहाल सिंह को नंगा कर दिया और खुद भी नंगी हो गई. दूसरे लोगों ने निहाल सिंह और महिला का आपत्तिजनक वीडियो बना लिया.

इस के बाद निहाल के साथ मारपीट कर उन्हें डरायाधमकाया गया. दोनों आरोपी हनुमानगढ़ पुलिस थाने के हिस्ट्रीशीटर थे. यूनुस के खिलाफ 32 मामले दर्ज थे तो अनवर के खिलाफ भी दरजनों मुकदमे दर्ज थे.

निहाल सिंह का नशा उतरने के बाद यूनुस बोला, ‘‘देख निहाल, तूने एक महिला का रेप किया है. यह हम नहीं, मोबाइल में सेव वीडियो कह रहा है. अगर अपनी नौकरी व मिलने वाले फंड को बचाना चाहता है तो हमें 3 लाख रुपए दे दे, अन्यथा नौकरी तो जाएगी ही साथ में जेल में भी सड़ना पड़ेगा.’’

यह सुन कर निहाल को कंपकंपी आ गई, ‘‘देखो भैया, मेरे पास अब कुछ भी नहीं है. आप ने मेरे विश्वास की हत्या की है. मैं ने किसी का रेप नहीं किया.’’ निहाल सिंह हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाया.

‘‘देखो साहब, विश्वास को मारो गोली. सीधेसपाट शब्दों में सुन लो, हमें 3 लाख रुपए चाहिए तो चाहिए. तुम कैंटीन वाले पप्पू को फोन कर के अपनी चैकबुक हनुमानगढ़ बसस्टैंड पर मंगवा लो. वहां से चैकबुक अनवर ले आएगा. बस इतनी मोहलत मिल सकती है तुम्हें.’’

बचने का कोई रास्ता न देख निहाल ने जेल की कैंटीन में काम करने वाले पप्पू को फोन कर चैकबुक मंगाई और अनवर को देने को कह दिया.

आधे घंटे में अनवर पप्पू से चैकबुक ले कर ढाणी में आ गया. निहाल ने 2 चैक में डेढ़डेढ़ लाख रुपए की धनराशि भर कर चैक यूनुस खां को दे दिए. आरोपियों ने उस की जेब में पड़ी नकदी भी छीन ली थी. बाद में यूनुस निहाल को हनुमानगढ़ छोड़ गया था.

10 सितंबर, 2019 को जेल वार्डन निहाल सिंह ने थाना हनुमानगढ़ जा कर सीआई नंदराम भादू को अपना दुखड़ा सुनाया. निहाल सिंह ने रिपोर्ट दर्ज कर मामले की जांच एएसआई जसकरण सिंह को सौंप दी. दोनों हिस्ट्रीशीटर आरोपी अनवर व यूनुस खां फरार हो गए थे. पुलिस उन के पीछे लगी थी.

करीब 20 दिनों बाद जांच अधिकारी जसकरण सिंह ने मुखबिर की सूचना पर यूनुस खान को गिरफ्तार कर लिया. रिमांड की अवधि में यूनुस ने चैक अपने सहयोगियों के पास होना बताया. अदालत के आदेश पर यूनुस को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

लगभग एक महीने में पुलिस के सामने हनीट्रैप के 3 मामले आए. संभव है, कुछ मामले पुलिस तक पहुंचे ही न हों. सभ्य समाज के लिए यह शुभ संकेत नहीं है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2019

 

25 हजार करोड़ के मालिक ने की आत्महत्या

29जुलाई, 2019 को दोपहर बाद 60 वर्षीय वीरप्पा गंगैय्या सिद्धार्थ हेगड़े उर्फ वीजी सिद्धार्थ नहाधो कर तैयार हुए तो वे काफी खुश थे. जब वे बाथरूम से बाहर निकले थे तो उन की पत्नी मालविका सिद्धार्थ उन के सामने आ कर खड़ी हो गईं. पति को खुश देख कर उन्होंने मजाक में कहा, ‘‘क्या बात है, साहब. आज तो आप बड़े मूड में लग रहे हो. कहीं घूमने जाना है क्या?’’

‘‘नहीं कंपनी के काम से हासन जाना है, वहां मीटिंग है.’’ वीजी सिद्धार्थ ने दीवार घड़ी पर नजर पर नजर डालते हुए कहा, ‘‘तुम ऐसा करो, मेरा नाश्ता टेबल पर लगा दो. वैसे भी बहुत देर हो गई है. मैं नहीं चाहता कि मेरी वजह से मीटिंग लेट हो. मैं कपड़े पहन कर आता हूं.’’

‘‘आप कपड़े पहन कर आओ, नाश्ता टेबल पर तैयार मिलेगा.’’ मालविका ने कहा.

‘‘सुनो, मालविका… जरा देखना, बासवराज कहां है? उस से कहो गाड़ी तैयार रखे, मैं तुरंत आता हूं.’’

‘‘जी ठीक है. मैं देखती हूं. आप तैयार हो कर आओ.’’

कहती हुई मालविका किचन की ओर चली गई. उन्होंने अपने हाथों से पति का नाश्ता तैयार कर के डाइनिंग टेबल पर लगा दिया. साथ ही पति को आवाज दे कर बता भी दिया कि नाश्ता डाइनिंग टेबल पर लगा दिया है, नाश्ता कर के ही बाहर जाएं. उन्होंने ड्राइवर बासवराज को आवाज दे कर साहब की गाड़ी तैयार करने को भी कह दिया. बासवराज साहब की गाड़ी तैयार कर उन के आने का इंतजार करने लगा.

वीजी सिद्धार्थ नाश्ता कर के डाइनिंग रूम से बाहर निकले तो पत्नी मालविका भी उन के पीछेपीछे आईं. और उन्हें बाहर आ कर सी औफ किया. जब कार आंखों के सामने से ओझल हो गई तो मालविका अपने कमरे में लौट आईं. उस समय दोपहर के 2 बजे थे. बंगलुरु से हासन 182 किलोमीटर था यानी करीब साढ़े 3 घंटे का सफर.

सिद्घार्थ के दोनों बेटे अमर्त्य सिद्धार्थ और ईशान सिद्धार्थ अपनी कंपनी कैफे कौफी डे इंटरप्राइजेज लिमिटेड की ड्यूटी पर चले गए थे. पिता के व्यवसाय को उन के दोनों बेटों ने ही संभाल रखा था. दरअसल, कौफी का व्यवसाय उन के पूर्वजों से चला आ रहा था.

वीजी सिद्धार्थ ने पूर्र्वजों के व्यवसाय को  आगे बढ़ाने के लिए पिता से 5 लाख रुपए ले कर सन 1996 में बेंगलुरु के ब्रिगेट रोड पर कारोबार शुरू किया था. उन्होंने कड़ी मेहनत और लगन से उस व्यवसाय को 25000 करोड़ के एंपायर में बदल दिया था. इसी बिजनैस के सिलसिले में वह बंगलुरु से हासन की मीटिंग करने जा रहे थे.

न जाने क्यों अचानक वीजी सिद्धार्थ का मूड बदल गया. उन्होंने रास्ते में ड्राइवर बासवराज पाटिल से हासन के बजाए मंगलुरु की ओर गाड़ी मोड़ने को कहा. मालिक के आदेश पर बासवराज ने गाड़ी हासन के बजाए मंगलुरु की ओर मोड़ दी.  मंगलुरु से पहले रास्ते में जिला कन्नड़ पड़ता था.

कन्नड़ जिले से हो कर ही मंगलुरु जाया जाता था. बासवराज ने कार कन्नड़ मंगलुरु के रास्ते पर दौड़ानी शुरू कर दी. उस समय शाम के 5 बज कर 28 मिनट हो रहे थे. करीब एक घंटे बाद यानी शाम के 6 बज कर 30 मिनट पर उन की कार कन्नड़ जिले की ऊफनती हुई नेत्रवती नदी के पुल पर पहुंची.

पुल पर पहुंच कर सिद्धार्थ ने बासवराज से गाड़ी रोकने के लिए कहा. मालिक का आदेश मिलते ही बासवराज पाटिल ने गाड़ी पुल शुरू होते ही रोक दी. चमकदार शूट पहने सिद्धार्थ ने गाड़ी से उतर कर ड्राइवर से कहा कि वह टहलने जा रहे हैं. उन के वापस लौटने तक वहीं इंतजार करे. फिर वह टहलते हुए आगे चले गए.

सिद्धार्थ की यह बात बासवराज को कुछ अजीब लगी. उस की समझ में नहीं आया कि साहब को अचानक क्या सूझा जो उन का पुल पर टहलने का मन बन गया. लेकिन उस में इतनी हिम्मत नहीं थी कि मालिक से इस बारे में कुछ पूछ सके. वह अपलक और चुपचाप मालिक को आगे जाते हुए देखता रहा.

वीजी सिद्धार्थ को टहलने को निकले करीब डेढ़ घंटा बीत चुका था. बासवराज बारबार कलाई घड़ी पर नजर डालतेडालते थक चुका था. सिद्धार्थ टहल कर वापस नहीं लौटे थे. फिर उस ने हिम्मत जुटा कर उन के फोन पर काल की तो उन का फोन स्विच्ड औफ मिला.

उस ने जितनी बार सिद्धार्थ के फोन पर काल की उतनी ही बार उन का फोन स्वीच्ड औफ मिला. मालिक का फोन स्विच्ड औफ मिला तो ड्राइवर बासवराज पाटिल परेशान हो गया. उस के मन में कई तरह की आशंकाएं उमड़नेघुमड़ने लगीं. वह समझ नहीं पा रहा था कि वह क्या करे?

बासवराज पाटिल को जब कुछ समझ में नहीं आया तो उस ने मालकिन मालविका को फोन कर के पूरी बात बता दी और वहां से घर लौट आया.

पहले तो मालविका ड्राइवर की बात सुन कर हैरान रह गई. फिर वह पति के फोन पर काल कर के उन से संपर्क करने की कोशिश करने लगीं, लेकिन हर बार उन का फोन स्विच्ड औफ ही मिला. पति का  फोन बंद देख मालविका परेशान हो गईं. उन्होंने ये बातें अपने दोनों बेटों अमर्त्य और ईशान को बता कर पिता का पता लगाने को कहा.

बेटों ने भी पिता के फोन पर बारबार काल कीं, लेकिन उन का फोन स्विच्ड औफ ही मिला. रात गहराती जा रही थी. बेटों ने पिता के दोस्तों और उन के करीबियों को फोन कर के उन के बारे में पूछा तो सब ने अनभिज्ञता जताते हुए कहा कि सिद्धार्थ न तो उन के पास आए और न ही  उन्होंने फोन किया.

बहरहाल, मालिक का पता न चलने पर घर लौटे ड्राइवर बासवराज पाटिल से मालविका और उन के दोनों बेटों ने सवालों की झड़ी लगा दी. उन के सवालों का उस ने वही जवाब दिया जो वह जानता था. बासवराज की बात सुन कर मालविका और उन के बेटों को पिता के अपहरण किए जाने की आशंका सताने लगी, लेकिन वे किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सके. वीजी सिद्धार्थ के रहस्यमय तरीके से लापता होने घर में कोहराम मचा था.

सिद्धार्थ कोई मामूली इंसान नहीं थे. वह जानेमाने बिजनैस टायकून थे. 25000 हजार करोड़ की संपत्ति के मालिक और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एस.एम. कृष्णा के दामाद. सिद्धार्थ के लापता होने की खबर मीडिया तक पहुंच गई थी. इस के बाद यह खबर न्यूज चैनलों की लीड खबर बन कर न्यूज पट्टी पर चलने लगी.

अगले दिन 30 जुलाई को अमर्त्य छोटे भाई ईशान और चालक बासवराज पाटिल को ले कर कन्नड़ जिले के लिए रवाना हो गए. वहां पहुंच कर अमर्त्य पुलिस उपायुक्त से मिले ओर उन्हें पूरी बात बता कर पिता का पता लगाने को कहा. उन के आदेश पर कर्नाटक पुलिस ने सिद्धार्थ की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर के उन की खोजबीन शुरू कर दी.

दूसरी ओर मालविका पति को ले कर परेशान थीं. दरअसल सिद्धार्थ पिछले कई दिनों से बिजनैस को ले कर काफी तनाव में थे. पूछने पर उन्होंने अपनी परेशानी का कोई ठोस जवाब नहीं दिया था.

मालविका ने पति की अलमारी खोली तो अलमारी से उन की एक डायरी हाथ लग गई. उत्सुकतावश मालविका डायरी खोल कर उस के पन्नों को उलटनेपलटने लगीं. इस कवायद में उन के हाथ पति की हाथ से लिखी एक चिट्टी मिली.

वह चिट्ठी उन्होंने अपनी कंपनी के कर्मचारियों को संबोधित करते हुए लिखी थी. पत्र पढ़ कर मालविका के पैरों तले से जमीन खिसक गई. वीजी सिद्धार्थ ने पत्र में जो लिखा था, उस का आशय साफ था. पत्र के हिसाब से वीजी सिद्धार्थ का अपहरण नहीं हुआ था, बल्कि उन्होंने आत्महत्या कर ली थी.

वह पत्र सिद्धार्थ ने कैफे कौफी डे के कर्मचारियों और निदेशक मंडल को संबोधित करते हुए लिखा था. पत्र में उन्होंने लिखा था कि हर वित्तीय लेनदेन मेरी जिम्मेदारी है. कानून को मुझे और केवल मुझे जवाबदेह मानना चाहिए.

सिद्धार्थ ने आगे लिखा कि जिन लोगों ने मुझ पर विश्वास किया उन्हें निराश करने के लिए मैं माफी मांगता हूं. मैं लंबे समय से लड़ रहा था, लेकिन आज मैं हार मान गया हूं, क्योंकि मैं एक प्राइवेट लेंडर पार्टनर का दबाव नहीं झेल पा रहा हूं, जो मुझे शेयर वापस खरीदने के लिए विवश कर रहा है.

इस का आधा लेनदेन मैं 6 महीने पहले एक दोस्त से बड़ी रकम उधार लेने के बाद पूरा कर चुका हूं. उन्होंने आगे लिखा कि दूसरे लेंडर भी दबाव बना रहे थे, जिस की वजह से वह हालात के सामने झुक गए.

पत्र पढ़तेपढ़ते मालविका की आंखें नम हो गईं उन्होंने बेटों को फोन कर के बता दिया कि उन के पापा का अपहरण नहीं हुआ है, बल्कि उन्होंने नदी में कूद कर आत्महत्या कर ली है. उस के बाद उन्होंने पति के हाथों लिखे  गए सुसाइड नोट के बारे में सारी बातें बता दी.

अमर्त्य ने यह बात जब पुलिस उपायुक्त शशिकांत सेतिल को बताई तो वे भी चौंके. यह बात उन की समझ में आ गई कि सिद्धार्थ ड्राइवर वासवराज को पुल पर खड़ा कर अकेले टहलने क्यों गए थे.

पुलिस उपायुक्त शशिकांत सेतिल ने सिद्धार्थ के शव की खोज में नैशनल डिजास्टर रिस्पांस फोर्स (एनडीआरएफ), तटरक्षक, अग्निशमन दल और तटवर्ती पुलिस की टीमों को लगा दिया. पुलिस और गोताखोरों की टीमें भी उन की तलाश में लग गईं.

25 नौकाओं के जरिए 200 से अधिक पुलिसकर्मी और 3 गोताखोर उन की तलाश में लग गए. हेलीकौप्टर और खोजी कुत्तों को भी मदद ली जा रही थी. लापता सिद्धार्थ ने आखिरी बार फोन पर किस से बात की थी, इस की भी छानबीन की जा रही थी.

60 वर्षीय वीजी सिद्धार्थ का जन्म कर्नाटक के चिकमंगलुरु में हुआ. उन का परिवार लंबे समय से कौफी उत्पादन से जुड़ा था. सिद्धार्थ ने मंगलुरु यूनिवर्सिटी से इकोनौमिक्स में मास्टर की डिग्री ली थी. वह अपने दम पर कुछ करना चाहते थे. इसलिए उन्होंने विरासत में मिली खेती से आराम की जिंदगी न गुजार कर अपने सपने पूरा करने की ठानी.

21 साल की उम्र में उन्होंने अपने पिता को बताया कि वह मुंबई जाना चाहते हैं. इस पर उन के पिता ने उन्हें 5 लाख रुपए दे कर कहा कि अगर वह असफल हो जाएं तो वापस आ कर परिवार का कारोबार संभाल सकते हैं. 5 लाख रुपए में से सिद्धार्थ ने 3 लाख रुपए की जमीन खरीदी और 2 लाख रुपए बैंक में जमा कर दिए.

इस के बाद मुंबई आ कर उन्होंने जेएम फाइनेंशियल सर्विसेज (अब जेएम मौर्गन स्टैनली) में मैनेजमेंट ट्रेनी के रूप में काम करना शुरू कर दिया. यहां उन्होंने 2 साल तक काम किया. 2 साल की ट्रेनिंंग के बाद सिद्धार्थ ने अपना कारोबार शुरू करने की सोची. नौकरी छोड़ कर वे बंगलुरु वापस  आ गए.

उन के पास 2 लाख रुपए बचे थे. उस पैसे से उन्होंने वित्तीय कंपनी खोलने का फैसला किया. सोचविचार कर उन्होंने सिवन सिक्योरिटीज के साथ अपने सपने को साकार किया. यह कंपनी इंटर मार्केटिंग टे्रनिंग के लिए थी. उस दौर में इंटर मार्केटिंग से पैसे बनाना आसान था. इस के लिए वे अपने मुंबई (तब बंबई) के दोस्तों के शुक्रगुजार थे. इसी दौर में उन्होंने स्टौक मार्केट से खूब कमाई की.

बहरहाल, सन 1985 में सिद्धार्थ ने कौफी की फसल खरीदनी शुरू कर दी. धीरेधीरे सिद्धार्थ का यह कारोबार 3 हजार एकड़ में फैल गया. उन के परिवार में कौफी का यह कारोबार 140 वर्षों से चलता आ रहा था. इस के बाद सिद्धार्थ ने कारोबार का विस्तार किया. यहीं से सीसीडी की बुनियाद भी रखी जाने लगी.

वह कर्नाटक के ऐसे पहले इंटरप्रेन्योर थे,  जिन्होंने सन् 1996 में सीसीडी की स्थापना की थी. इस काम में उन्हें बहुत बड़ी सफलता मिली.

कैफे कौफी डे कंपनी के भारत के 250 शहरों में 1751 आउटलेट हैं. इस के अलावा आस्ट्रिया, मलेशिया, मिस्र, नेपाल, कराची और दुबई आदि में भी कंपनी के आउटलेट हैं.

वीजी सिद्धार्थ के सितारे बुलंदियों पर थे. उन के लिए यह ऐसा समय था कि अगर वे मिटटी को भी छू देते तो सोना बन जाती थी. 5 लाख से बिजनेस आरंभ करने वाले सिद्धार्थ 25000 करोड़ के मालिक बन गए थे. वे फर्श से उठ कर अर्श तक पहुंचे थे. उद्योगजगत में सिद्धार्थ का नाम बड़े उद्योगपतियों के रूप में लिया जाता था. सफलता की बुलंदियों पर पहुंचते ही कैफे कौफी डे का सीधा मुकाबला टाटा ग्रुप की स्टारबक्स से हुआ.

मुकाबला टाटा ग्रुप के स्टारबक्स से ही नहीं, बल्कि बरिस्ता और कोस्टा जैसी कंपनियों से भी था. इस के अलावा कंपनी को चायोस से भी चुनौती मिल रही थी.

सिद्धार्थ अमीरी की जिंदगी जरूर जी रहे थे, लेकिन ऐसा नहीं था कि सामान्य लोगों की तरह उन के जीवन में तनाव नहीं था. सच तो यह है कि उन की जिंदगी कांटों की सेज पर बनी हुई थी. वह करवट बदलते थे तो उन्हें तनाव भरे कांटें चुभते थे.

दरअसल, कैफे कौफी डे का परिचालन करने वाली सीसीडी इंटरप्राइजेज में कारपोरेट संचालन का मुद्दा रहरह कर उठता रहा.

सन 2018 में कंपनी में उस समय भूचाल आ गया जब आयकर विभाग ने वीजी सिद्धार्थ की परिसंपत्तियों पर छापे मारे. आयकर विभाग को पता चला था कि सीसीडी कंपनी ने बड़े पैमाने पर टैक्स की चोरी की है. इसी सिलसिले में विभाग ने छापे डाले थे.

सिद्धार्थ ने स्वीकार किया कि उन के पास 365 करोड़ की अघोषित संपत्ति है. इसी दौरान कंपनी माइंडट्री में हिस्सेदारी बेचने और इस्तेमाल को ले कर भी सवाल उठे. इस पर कई विभागों की नजर जमी थी.

दरअसल, सिद्धार्थ ने माइंडट्री में भी निवेश कर रखा था. माइंडट्री में सिद्धार्थ की करीब 21 फीसदी हिस्सेदारी थी. हालांकि पिछले दिनों उन्होंने अपने शेयर एलएंडटी को बेच दिए थे. इस सौदे से उन्हें करीब 2856 करोड़ रुपए का फायदा हुआ था. वह करीब एक दशक से इस कंपनी में निवेश कर रहे थे और 18 मार्च, 2019 को उन्होंने एलएंडटी से 3269 करोड़ रुपए का सौदा किया था.

बहरहाल, पिछले 2 सालों में सीसीडी के विस्तार की रफ्तार घटी और कंपनी कर्ज में डूबती चली गई. सीएमआईई के डाटा के अनुसार, कंपनी पर मार्च 2019 तक 6547.38 करोड़ रुपए का कर्ज चढ़ चुका था. जबकि कंपनी (सीसीडी) ने मार्च 2019 में खत्म हुई तिमाही में 76.9 करोड़ रुपए की स्टैंडअलोन नेट सेल्स दर्ज की थी.

मार्च तिमाही में कंपनी को 22.28 करोड़ रुपए का लौस भी हुआ था. इस से साल भर पहले की इसी तिमाही में लौस का यह आंकड़ा 16.52 करोड़ रुपए था. कंपनी में लगातार हो रहे लौस से वीजी सिद्धार्थ परेशान थे, लेकिन वे इस बात से और भी ज्यादा परेशान थे कि आखिर कंपनी में यह लौस कैसे और क्यों हो रहा है. यह बात उन की समझ से परे थी.

कंपनी में लगातार हो रहे लौस और कर्ज के संकट से उबरने के लिए उन्होंने अपनी रियल एस्टेट प्रौपर्टी को बेचने का फैसला कर लिया था.

इस के लिए कोका कोला कंपनी से 8 से 10 हजार  करोड़ में बेचने की बात भी चल रही थी. लेकिन इस  में सफलता नहीं मिल पा रही थी. ऐसा नहीं था कि अगर 10 हजार करोड़ में संपत्ति बिक जाती तो वे आर्थिक संकट से निबट जाते. हां, आर्थिक मुश्किलें कुछ कम जरूर हो जातीं.

जब वे इस में सफल नहीं हुए तो 29 जुलाई, 2019 से देश के एक बड़े बैंक से 1600 करोड़ रुपए का कर्ज लेने की कोशिश कर रहे थे, यहां पर भी बात बनती नजर नहीं आ रही थी, जिस से वे तनाव में आ गए और जिंदगी से हार मान बैठे. 29 जुलाई, 2019 को उन्होंने उफनती नेत्रवती नदी में कूद कर आत्महत्या कर ली.

बहरहाल, लापता होने के तीसरे दिन यानी 31 जुलाई, 2019 की दोपहर में पुल से करीब एक किमी दूर सिद्धार्थ की लाश बरामद हुई. सिद्धार्थ के बेटों और दोस्तों ने उन के शव की पहचान की. शव मिलने के बाद मंगलुरु के सरकारी हौपिस्टल में उस का पोस्टमार्टम कराया गया.

पोस्टमार्टम के बाद शव को उन के बेटों को सौंप दिया गया. उन का अंतिम संस्कार सीसीडी कंपनी के परिसर में किया गया. सिद्धार्थ के इस आत्मघाती फैसले से उद्योग जगत में शोक की लहर दौड़ गई थी, आखिरकार इस असामयिक मौत के लिए जिम्मेदारी कौन है? यह सवाल मुंह बाए खड़ा है.

सौजन्य- सत्यकथा, अक्टूबर 2019

वेलेंसिया की भूल : दोस्ती पड़ी भारी

वेलेंसिया अपनी फ्रैंड रीमा वलीप के माध्यम से शैलेश वलीप के संपर्क में आई. उस ने शैलेश से दोस्ती भी की और बात 7 जून, 2019 की है. उस समय सुबह के यही कोई 4 बजे थे. सैलानियों के लिए स्वर्ग कहे जाने वाले गोवा राज्य के मडगांव की रहने वाली जूलिया फर्नांडीस अपने साथ 4-5 रिश्तेदारों को ले कर कुडतरी पुलिस थाने पहुंची. वह किसी अनहोनी की आशंका से घबराई हुई थी.

थाने में मौजूद ड्यूटी अफसर ने जूलिया से थाने में आने की वजह पूछी तो उस ने अपना परिचय देने के बाद कहा कि उस की बहन वेलेंसिया फर्नांडीस कल से गायब है, उस का कहीं पता नहीं लग रहा है.

‘‘उस की उम्र क्या थी और कैसे गायब हुई?’’ ड्यूटी अफसर ने पूछा.

‘‘वेलेंसिया की उम्र यही कोई 30 साल थी. रोजाना की तरह वह कल सुबह 8 बजे अपनी ड्यूटी पर गई थी. वह मडगांव के एक जानेमाने मैडिकल स्टोर पर नौकरी करती थी. अपनी ड्यूटी पर जाते समय वेलेंसिया काफी खुश थी. क्योंकि आज से 10 दिनों बाद उस का जन्मदिन आने वाला था, उन का परिवार उस के जन्मदिन की पार्टी धूमधाम से मनाता था.

‘‘घर से निकलते समय वह कह कर गई थी कि आज उसे घर लौटने में देर हो जाएगी. फिर भी वह 9 बजे तक घर पहुंच जाएगी. उस का कहना था कि ड्यूटी के बाद वह मौल जा कर जन्मदिन की पार्टी की कुछ शौपिंग करेगी.

‘‘मगर ऐसा नहीं हुआ. रात 9 बजे के बाद भी जब वेलेंसिया नहीं आई तो घर वालों की चिंता बढ़ गई. उस के मोबाइल नंबर पर फोन किया गया तो उस का फोन नहीं मिला. इस के बाद सारे नातेरिश्तेदारों और उस की सभी सहेलियों को फोन कर के उस के बारे में पूछा गया. लेकिन कहीं से भी उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.’’ जूलिया फर्नांडीस ने बताया.

जूलिया फर्नांडीस और उन के साथ आए रिश्तेदारों की सारी बातें सुन कर ड्यूटी अफसर ने वेलेंसिया फर्नांडीस की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर इस की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम को भी दे दी. इस के बाद उन्होंने वेलेंसिया का फोटो लेने के बाद आश्वासन दिया कि पुलिस वेलेंसिया को खोजने की पूरी कोशिश करेगी.

वेलेंसिया की गुमशुदगी की शिकायत को अभी 4 घंटे भी नहीं हुए थे कि वेलेंसिया के परिवार वालों को उस के बारे में जो खबर मिली, उसे सुन कर पूरा परिवार हिल गया.

दरअसल, सुबहसुबह वायना के कुडतरी पुलिस थाने से लगभग 7 किलोमीटर दूर रीवन गांव के जंगल में कुछ लोगों ने सफेद रंग की चादर में एक लाश देखी तो उन में से एक शख्स ने इस की जानकारी गोवा पुलिस के कंट्रोलरूम को दे दी. पुलिस कंट्रोलरूम ने वायरलैस द्वारा यह सूचना शहर के सभी पुलिस थानों में प्रसारित कर दी.

जिस जंगल में लाश मिलने की सूचना मिली थी, वह इलाका मडगांव केपे पुलिस थाने के अंतर्गत आता था, सूचना मिलते ही केपे थाने की पुलिस लगभग 10 मिनट में मौके पर पहुंच गई. पुलिस को वहां काफी लोग खड़े मिले.

इस बीच जंगल में लाश मिलने की खबर आसपास के गांवों तक पहुंच गई थी. देखते ही देखते वहां काफी लोगों की भीड़ एकत्र हो गई. पुलिस ने मुआयना किया तो सफेद रंग की चादर में बंधे शव के थोड़े से पैर दिखाई दे रहे थे, जिस से लग रहा था कि शव किसी महिला का हो सकता है. जब पुलिस ने चादर खोली तो वास्तव में शव युवती का ही निकला.

मृतका के हाथपैर एक नायलौन की रस्सी से बंधे थे और गले में उस का दुपट्टा लिपटा हुआ था. लेकिन हत्यारे ने उस का चेहरा इतनी बुरी तरह से विकृत कर दिया था कि उसे पहचानना आसान नहीं था. हत्यारे ने यह शायद इसलिए किया होगा ताकि उस की शिनाख्त न हो सके.

फिर भी पुलिस को अपनी काररवाई तो करनी ही थी. सब से पहले मृतका की शिनाख्त जरूरी थी, लिहाजा पुलिस ने मौके पर मौजूद लोगों से मृतका के बारे में पूछा, लेकिन कोई भी उसे पहचान नहीं सका. मृतका के कपड़ों की तलाशी लेने के बाद कोई ऐसी चीज नहीं मिली, जिस से उस की शिनाख्त हो सके.

वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को मामले की सूचना देने के बाद केपे पुलिस ने मौके पर फोरैंसिक टीम और डौग स्क्वायड टीम को भी बुला लिया. खोजी कुत्ते से पुलिस को एक साक्ष्य मिल गया. शव सूंघने के बाद वह वहां से कुछ दूर झाडि़यों में पहुंच कर भौंकने लगा. पुलिस ने वहां खोजबीन की तो एक मोबाइल फोन मिला. जिसे पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया.

केपे थाना पुलिस घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रही थी कि दक्षिणी गोवा के एसपी अरविंद गावस अपने सहायकों के साथ घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने शव और घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया और केपे थाने के थानाप्रभारी को आवश्यक दिशानिर्देश दे कर लौट गए.

इस के बाद थानाप्रभारी ने जरूरी काररवाई कर युवती की लाश पोस्टमार्टम के लिए गोवा के जिला अस्पताल भेज दी.

थाने लौट कर थानाप्रभारी ने मृतका की शिनाख्त पर जोर दिया. क्योंकि बिना शिनाख्त के मामले की तफ्तीश आगे बढ़ना संभव नहीं थी. इस के लिए थानाप्रभारी ने गोवा शहर और जिलों के सभी पुलिस थानों में मृतका का फोटो भेज कर यह पता लगाने की कोशिश की कि कहीं किसी पुलिस थाने में उस की गुमशुदगी तो नहीं दर्ज है.

कुडतरी थाने में जब लाश की फोटो हुलिए के साथ पहुंची तो वहां के थानाप्रभारी को एक दिन पहले अपने थाने में दर्ज वेलेंसिया फर्नांडीस की गुमशुदगी की सूचना याद आ गई. बरामद लाश का हुलिया वेलेंसिया के हुलिए से मिलताजुलता था. कुडतरी थानाप्रभारी ने उसी समय केपे के थानाप्रभारी को फोन कर इस बारे में बात की.

इस के बाद उन्होंने तुरंत वेलेंसिया के परिवार वालों को थाने बुला कर उन्हें लाश की शिनाख्त करने के लिए केपे थाने भेज दिया. केपे थानाप्रभारी ने जिला अस्पताल की मोर्चरी ले जा कर युवती की लाश वेलेंसिया के घर वालों को दिखाई. चेहरे से तो नहीं, लेकिन कपड़ों और चप्पलों को देखते ही घर वाले फूटफूट कर रोने लगे. उन्होंने लाश की शिनाख्त वेलेंसिया फर्नांडीस के रूप में की.

थानाप्रभारी ने उन्हें सांत्वना दे कर शांत कराया. इस के बाद उन से पूछताछ की. लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद उन्होंने केस की जांच शुरू कर दी. घटनास्थल पर बंद हालत में मिले मोबाइल की सिम निकाल कर उन्होंने दूसरे फोन में डाली और मोबाइल की काल हिस्ट्री खंगालने लगे. इस जांच में एक नंबर संदिग्ध लगा.

वह नंबर शैलेश वलीप के नाम पर लिया गया था. शैलेश वलीप ने 7 जून, 2019 को ही वेलेंसिया से बातें की थीं. पुलिस टीम जब शैलेश वलीप के घर पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला. घर पर मिली उस की बहन भी उस के बारे में कोई जानकारी नहीं दे सकी. पुलिस ने जब उस की बहन से बात की तो वेलेंसिया और शैलेश वलीप के संबंधों की पुष्टि हो गई.

पुलिस को पक्का यकीन हो गया कि वेलेंसिया की हत्या में जरूर शैलेश का हाथ रहा होगा. इसलिए उस की तलाश सरगरमी से शुरू हो गई. थानाप्रभारी ने अपने मुखबिरों को भी अलर्ट कर दिया.

एक मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने शैलेश को गोवा के अमोल कैफे में दबोच लिया. पुलिस टीम ने जिस समय उसे गिरफ्तार किया, उस समय वह शराब के नशे में धुत था.

जब नशा उतर जाने के बाद थाने में उस से पूछताछ की गई तो पहले तो वह पुलिस अधिकारियों को गुमराह करने की कोशिश करते हुए वेलेंसिया हत्याकांड से खुद को अनभिज्ञ और बेगुनाह बताता रहा. लेकिन जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने अपना गुनाह स्वीकार करते हुए हत्याकांड में शामिल रहे अपने सहयोगी देवीदास गावकर का भी नाम बता दिया. शैलेश वलीप की निशानदेही पर पुलिस टीम ने देवीदास गांवकर को भी गिरफ्तार कर लिया.

इन दोनों से पूछताछ करने के बाद वेलेंसिया फर्नांडीस की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

30 वर्षीया वेलेंसिया फर्नांडीस दक्षिणी गोवा के मडगांव के थाना कुडतरी गांव मायना की रहने वाली थी. वह अपनी चारों बहनों में तीसरे नंबर की थी. उस के पिता जोसेफ फर्नांडीस एक सीधेसादे और सरल स्वभाव के थे. वह अपनी बेटियों में कोई भेदभाव नहीं रखते थे.

वेलेंसिया फर्नांडीस की दोनों बड़ी बहनों की शादी हो चुकी थी. वे अपने परिवार के साथ अपनी ससुराल में खुश थीं. वेलेंसिया अपनी छोटी बहन जूलिया फर्नांडीस के साथ रहती थी. उस की सारी जिम्मेदारी वेलेंसिया पर थी. वेलेंसिया ने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद जब नौकरी की कोशिश की तो उसे बिना किसी परेशानी के गोवा मडगांव के एक जानेमाने बड़े मैडिकल शौप में सेल्सगर्ल की नौकरी मिल गई.

वेलेंसिया देखने में जितनी सुंदर थी, उतनी ही वह महत्त्वाकांक्षी भी थी. जिस मैडिकल शौप में वह काम करती थी, वहां रीमा वलीप नाम की लड़की भी काम करती थी. वह वेलेंसिया की अच्छी दोस्त बन गई थी.

रीमा वलीप अपने बड़े भाई शैलेश वलीप के साथ गोवा के मडगांव के संगम तालुका में रहती थी. परिवार के नाम पर वह सिर्फ बहनभाई ही थे. रीमा का भाई शैलेश वलीप भी उसी शौप में सिक्योरिटी गार्ड था. लेकिन वह आपराधिक प्रवृत्ति का था.

यह बात जब शौप मालिक को पता चली तो उस ने शैलेश को नौकरी से निकाल दिया. इस के बाद वह घर पर ही रहने लगा. उस का सारा खर्च रीमा पर ही था. वह बहन से पैसे लेता और सारा दिन अपने आवारा दोस्तों के साथ इधरउधर मटरगश्ती करता था. कभीकभी वह बहन रीमा से मिलने मैडिकल शौप पर भी जाता था.

वहीं पर उस की मुलाकात वेलेंसिया फर्नांडीस से हुई थी. पहली ही नजर में वह उस पर फिदा हो गया था. चूंकि उस की बहन रीमा वलीप की दोस्ती वेलेंसिया से थी, इसलिए उसे वेलेंसिया के करीब आने में अधिक समय नहीं लगा.

अब वह जब भी अपनी बहन से मिलने मैडिकल स्टोर आता तो वेलेंसिया से भी मीठीमीठी बातें कर लिया करता था. सहेली का भाई होने के नाते वह शैलेश से बात कर लेती थी.

कुछ ही दिनों में शैलेश वेलेंसिया के दिल में अपनी एक खास जगह बनाने में कामयाब हो गया था. वेलेंसिया जब उस के करीब आई तो शैलेश की तो जैसे लौटरी लग गई थी. क्योंकि वेलेंसिया के पैसों पर शैलेश मौज करने लगा था. इस के अलावा जब भी उसे पैसों की जरूरत पड़ती तो वह उधार के बहाने उस से मांग लिया करता था.

वेलेंसिया उस के भुलावे में आ जाती थी और उसे पैसे दे दिया करती थी. इस तरह वह वेलेंसिया से लगभग एक लाख रुपए ले चुका था. वेलेंसिया उसे अपना जीवनसाथी बनाने का सपना सजा रही थी, इसलिए वह शैलेश को दिए गए पैसे नहीं मांगती थी.

अगर वेलेंसिया के सामने शैलेश की हकीकत नहीं आती तो पता नहीं वह वेलेंसिया के पैसों पर कब तक ऐश करता रहता. सच्चाई जान कर वेलेंसिया का अस्तित्व हिल गया था. वह जिस शख्स को अपना जीवनसाथी बनाने का ख्वाब देख रही थी, स्थानीय थाने में उस के खिलाफ कई आपराधिक मामले दर्ज थे.

यह जानकारी मिलने के बाद वेलेंसिया को अपनी गलती पर पछतावा होने लगा. उसे शैलेश से नफरत होने लगी और वह उस से दूरियां बनाने लगी.

इसी बीच नवंबर, 2018 में एक दिन वेलेंसिया का रिश्ता कहीं और तय हो गया. शादी की तारीख सितंबर 2019 तय हो गई. शादी तय हो जाने के बाद वेलेंसिया ने शैलेश वलीप से अपनी दोस्ती खत्म कर दी और उस से अपने पैसों की मांग करने लगी.

एक कहावत है कि चोट खाया सांप और धोखा खाया प्रेमी दोनों खतरनाक होते हैं. वेलेंसिया को अपने से दूर जाते हुए देख शैलेश का खून खौल उठा. एक तो वेलेंसिया ने उसे उस के प्यार से वंचित कर दिया था, दूसरे वह उस से उधार दिए पैसे की मांग कर रही थी.

पैसे लौटाने में वह सक्षम नहीं था. इसलिए आजकल कर के वह वेलेंसिया को टाल देता था. शैलेश अब वेलेंसिया से निजात पाने का उपाय खोजने लगा. इसी दौरान योजना बनाने के बाद उस योजना को अमलीजामा पहनाने का सही मौका मिला 6 जून, 2019 को.

6 जून को जब उसे यह जानकारी मिली कि वेलेंसिया आज अपनी ड्यूटी के बाद मौल से शौपिंग करेगी. इस के लिए उस ने एटीएम से पैसे भी निकाल लिए हैं. इस के बाद शैलेश का दिमाग तेजी से काम करने लगा.

अपनी योजना को साकार करने के लिए शैलेश अपने दोस्त देवीदास गावकर के पास गया और उस से यह कह कर उस की स्कूटी मांग लाया कि उसे एक जरूरी काम से गोवा सिटी जाना है. स्कूटी की डिक्की में उस ने वेलेंसिया की मौत का सारा सामान, नायलौन की रस्सी और प्लास्टिक की एक बड़ी थैली रख ली थी.

स्कूटी से वह वेलेंसिया के मैडिकल शौप के सामने पहुंच कर उस का इंतजार करने लगा. उस ने वहीं से वेलेंसिया को फोन मिलाया तो न चाहते हुए भी उस ने शैलेश की काल रिसीव कर ली. शाम 8 बजे वेलेंसिया अपनी ड्यूटी पूरी कर शौप से बाहर निकली तो वह स्कूटी ले कर उस के पास पहुंच गया और उस का पैसा लौटाने के बहाने उसे अपनी स्कूटी पर बैठा लिया.

पैसे मिलने की खुशी में वेलेंसिया अपने जन्मदिन की शौपिंग करना भूल गई. अपनी स्कूटी पर बैठा कर वह उसे एक सुनसान जगह पर ले गया. रास्ते में उस ने वेलेंसिया को जूस में नींद की गोलियों का पाउडर डाल कर पिला दिया, जिस के कारण वेलेंसिया जल्द ही बेहोशी की हालत में आ गई थी.

वेलेंसिया के बेहोश होने के बाद शैलेश ने उस के हाथपैर अपने साथ लाई नायलौन की रस्सी से कस कर बांध दिए और उस के गले में उस का ही दुपट्टा डाल कर उसे मौत की नींद सुला दिया.

वेलेंसिया को मौत के घाट उतारने के बाद शैलेश वलीप ने उस के पर्स में रखे रुपए निकाल कर उस का मोबाइल फोन कुछ दूर जा कर झाडि़यों में फेंक दिया था.

शैलेश वलीप अपनी योजना में कामयाब तो हो गया था लेकिन अब उस के सामने सब से बड़ी समस्या थी, शव को ठिकाने लगाने की. शव गांव के करीब पड़ा होने के कारण उस के पकड़े जाने की संभावना ज्यादा थी और बिना किसी की मदद के अकेले उसे ठिकाने लगाना उस के लिए संभव नहीं था.

ऐसे में उसे अपने दोस्त देवीदास गावकर की याद आई. वह तुरंत गांव वापस गया. देवीदास को पूरी बात बताते हुए जब उस ने शव ठिकाने लगाने में उससे मदद मांगी तो देवीदास गावकर के चेहरे का रंग उड़ गया. पहले तो देवीदास इस के लिए तैयार नहीं हुआ, लेकिन जब शैलेश ने उसे 2 हजार रुपए शराब पीने के लिए दिए तो वह फौरन तैयार हो गया.

उस ने अपने घर से एक सफेद चादर ली और घटनास्थल पर पहुंच कर वेलेंसिया का चेहरा बिगाड़ कर उस के शव को पौलीथिन में डाला. फिर वह थैली चादर में लपेट ली और उसे स्कूटी पर रख कर घटनास्थल से करीब 10 किलोमीटर दूर ले जा कर केपे पुलिस थाने की सीमा में फातिमा हाईस्कूल के जंगलों में डाल दिया.

शैलेश वलीप और देवीदास गावकर से पूछताछ कर उन के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें मडगांव कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया.

—कथा के कुछ नाम काल्पनिक हैं

सौजन्य- सत्यकथा, अक्टूबर 2019   

सास अच्छी तो बहू भी अच्छी: नए जमाने के नए रिश्ते

साल 1980 में प्रदर्शित फिल्म ‘सौ दिन सास के’ में ललिता पवार द्वारा निभाया गया भवानी देवी का किरदार हिंदी फिल्मों की सासों का प्रतिनिधित्व किरदार था. ललिता पवार एक नहीं बल्कि कई फिल्मों में क्रूर सास की भूमिका में दिखी थीं.

एक दौर में तो वे क्रूर सास का पर्याय बन गई थीं और आज भी जिस किसी बहू को अपनी सास की बुराई करना होती है, वह ये पांच शब्द कह कर अपनी भड़ास निकाल लेती है ‘वह तो पूरी ललिता पवार है.’

60 साल बाद भी यह फिल्म प्रासंगिक है तो महज इस वजह के चलते कि पहली बार एक क्रूर सास को सबक सिखा कर सही रास्ते पर लाने वाली बहू मिली थी. ललिता पवार अपनी बड़ी बहू आशा पारेख पर बेइंतहा अत्याचार करती रहती है.

क्योंकि वह गरीब घर की थी और बिना दहेज के आई थी. छोटी बहू बन कर रीना राय घर आती है तो उस से जेठानी पर हो रहे अत्याचार बरदाश्त नहीं होते और वह क्रूरता का बदला क्रूरता से लेती है.

फिल्म पूरी तरह पारिवारिक मामलों से लबरेज थी जिस में ललिता पवार बहुओं को प्रताडि़त करने के लिए बेटी दामाद को भी मिला लेती है. नीलू फुले इस फिल्म में एक धूर्त और अय्याश दामाद के रोल में थे जो ललिता पवार को बहलाफुसला कर उन की सारी जायदाद अपने नाम करवा कर उन्हें ही गोदाम में बंद कर देते हैं.

चूंकि हिंदी फिल्म थी, इसलिए अंत सुखद ही हुआ. सास को अक्ल आ गई, अच्छेबुरे की भी पहचान हो गई और क्रूर सास को बहुओं ने मांजी मांजी कहते माफ कर दिया.

लेकिन अब ऐसा नहीं होता. आज की बहू सास की क्रूरता और प्रताड़ना को न तो भूलती है और न ही उसे माफ करती है. बदले दौर में सासें भी हालांकि समझदार हो चली हैं और जो ललिता पवार छाप हैं, उन्हें समझदार हो जाना चाहिए नहीं तो बुढ़ापे में या अशक्तता में बहू कोई रहम न कर के अपने साथ हुए दुर्व्यवहार का सूद समेत बदला लेने से नहीं चूकेगी.

ऐसा ही एक दिलचस्प मामला इंदौर का है, जिस में सासबहू की लड़ाई थाने तक जा पहुंची. रिटायर्ड सीएसपी प्रभा चौहान का अपनी सबइंसपेक्टर बहू श्रद्धा सिंह से विवाद हो गया. सास ने थाने में रिपोर्ट लिखाई तो बहू ने अपनी बहन और मां के साथ एक दिन देर रात घर में आ कर उन्हें पीटा और हाथ में काटा भी.

अब बहू भी भला क्यों खामोश रहती, उस ने भी सास के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी कि सास ने अपने बेटे यानी उस के पति और ननद के साथ मिल कर उस की मां और बहन को घर में घेर कर मारापीटा.

बकौल श्रद्धा घटना की रात जैसे ही वह घर में दाखिल हुई तो सास के गालियां देने पर विवाद हुआ. मैं ने उन्हें शालीलता से बात करने को कहा तो विवाद घर की दहलीज पार कर थाने तक जा पहुंचा. बात सिर्फ आज की नहीं है बल्कि सास शादी के बाद से ही उसे प्रताडि़त करती थी.

इस मामले में दिलचस्पी वाली एकलौती बात यही है कि बहू ने अपने साथ हुए दुर्व्यवहार पर सास को माफ नहीं किया.

मुमकिन है कि कुछ गलती उस की भी रही हो, लेकिन इंदौर की ही एक काउंसलर की मानें तो आजकल की बहुएं आशा पारेख और रीना राय की तरह सास को माफ नहीं करतीं बल्कि ऐसे टोनेटोटकों से परेशान कर देती हैं कि उसे छठी का दूध याद आ जाता है. उसे पछतावा होता है कि काश शुरू में बहू को परेशान न किया होता तो आज ये दिन नहीं देखने पड़ते और बुढ़ापा चैन से कट रहा होता.

भोपाल की एक प्रोफेसर सविता शर्मा (बदला नाम) की मानें तो उन की शादी कोई 25 साल पहले हुई थी. शादी के बाद सास का व्यवहार ललिता पवार जैसा ही रहा. वह बातबात पर टोकती थी और हर काम में मीनमेख निकालती थी.

पति के प्यार और उन के मां से लगाव होने के कारण वह अलग नहीं हो पाई और सास के बर्ताव से समझौता कर लिया लेकिन शुरुआती दिनों के दुर्व्यवहार को वे भूल नहीं पाईं.

सविता के मुताबिक मैं ने उस की (उन की नहीं) हर ज्यादती बरदाश्त की लेकिन जब वह मेरे मम्मीपापा को भलाबुरा कहतीं तो मेरा खून खौलता कि जो कुछ कहना है मुझ से कहो, मांबाप को तो बीच में मत घसीटो.

अब हालत यह है कि उन की सास पैरालिसिस के चलते बिस्तर में पड़ी कराहती रहती हैं और चायपानी तक के लिए उन की मोहताज रहती हैं. सविता कहती हैं, ‘उन की इस हालत को देख कर मुझे खुशी भी होती है और कभीकभी दुख भी होता है. मैं चाह कर भी उन की वैसी सेवा नहीं कर पाती जैसी कि एक बहू को करनी चाहिए.’

यूं पति ने मां की सेवा के लिए नौकरानी रखी है लेकिन वह चौबीसों घंटे तो नहीं रह सकती. जब वे मुझ से चाय मांगती हैं तो मुझे शादी के बाद के वे शुरुआती दिन याद हो आते हैं, जब मैं खुद की चाय बनाने के लिए उन की इजाजत की मोहताज रहती थी.

कई बार तो बिना चाय पिए ही कालेज चली जाती थी. अब जब वे 4-5 बार आवाज लगा कर चाय मांगती हैं तब कहीं जा कर उन के पलंग के पास स्टूल पर चाय रख कर पांव पटक कर चली आती हूं, ताकि उन्हें अपना किया याद आए. मैं समझ नहीं पा रही कि ऐसा करने से सुख क्यों मिलता है और मैं बीती बातों को भुला क्यों नहीं पा रही.

यानी सविता वही कर रही हैं जो सास ने उन के साथ किया था. इस से साफ लगता है कि वे अभी तक आहत हैं और सास को अपने किए की सजा नहीं दे रहीं तो अहसास तो करा ही रही हैं कि जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे.

सविता के बेटे की भी 2-3 साल में शादी हो जाएगी. वे कहती हैं मैं ने अभी से तय कर लिया है कि अपनी बहू के साथ वैसा व्यवहार नहीं करूंगी जो मेरी सास ने मेरे साथ किया था. जाहिर है सविता अपनी सास की हालत को देख कर कहीं न कहीं दुखी भी हैं कि अगर वे कांटे बोएंगी तो उन्हें भी कांटों का ही गुलदस्ता मिलेगा.

समाजशास्त्र की प्रोफेसर सविता मानती हैं कि आजकल की बहुएं ज्यादा बंदिशें बरदाश्त नहीं करतीं. वे आजाद खयालों की होती हैं. बहू चाहेगी तो उसे मैं जींसटौप पहनने दूंगी. बेटे के साथ घूमनेफिरने जाने देने से रोकूंगी नहीं, क्योंकि यह उस का हक भी है और इच्छा भी.

भावुक होते वे कहती हैं कि मैं उसे इतना प्यार दूंगी कि अगर कभी मुझे पैरालिसिस का अटैक आ जाए तो मांगने के पहले वह खुद चाय दे और कुछ देर मेरे पास बैठ कर बतियाए भी.

इंदौर की प्रभा और श्रद्धा की तरह आए दिन सासबहू के विवाद कलह और मारापीटी के मामले हर थाने में दर्ज होते हैं जिन की असल वजह अधिकतर मामलों में सास का वह व्यवहार होता है जो उस ने शादी के बाद बहू से किया होता है.

इसलिए सविता जैसी सास बनने जा रही महिलाओं ने अच्छी बात यह सीख ली है कि उन्हें अपनी बहू के साथ वह व्यवहार नहीं करना है, जिस से बुढ़ापे में उन्हें बहू की प्रताड़नाएं झेलनी पड़ें.

जाहिर है अच्छी सास बनने के लिए आप को बहू का खयाल रखना पड़ेगा. बहू जब शादी कर घर में आती है तो उस के जेहन में सास की इमेज ललिता पवार या शशिकला जैसी होती है, जबकि वह चाहती है कि निरुपा राय, कामिनी कौशल, उर्मिला भट्ट और सुलोना जैसी सास जो हर कदम पर बहू का खयाल रखते हुए उस का साथ दें.

इसलिए अगर बुढ़ापा सुकून से काटना है तो बहू को सुकून से रखना ही बेहतर भविष्य सुखशांति और सेवा की गारंटी है. वैसे भी आजकल एकल होते परिवारों में सास का एकलौता सहारा आखिर में बहू ही बचती है. अगर उस से भी संबंध शुरू से ही खटास भरे होंगे तो उन का अंत हिंदी फिल्मों जैसा सुखद तो कतई नहीं होगा.

इस में कोई शक नहीं कि सासें अब बदल रही हैं. क्योंकि उन्हें अपने बुढ़ापे की चिंता है और यह भी मालूम है कि बहू ही वह एकलौता सहारा होगी जो उसे सुख आराम दे पाएगी. तो फिर खामख्वाह क्यों ललिता पवार जैसा सयानापन दिखाते हुए बेवजह का पंगा लिया जाए.

यानी बहू बुढ़ापे और अशक्तता के दिनों के लिए एक ऐसा इंश्योरेंस है, जिस में प्रीमियम प्यार और अपनेपन के अलावा आत्मीयता का भरना है, इस से रिटर्न अच्छा मिलेगा. हालांकि हर मामले में ऐसा होना जरूरी नहीं लेकिन बहू से अच्छा व्यवहार करना कोई हर्ज की बात नहीं. यह वक्त की मांग भी है जिस से घर में सुखशांति बनी रहती है और बेटा भी खुश और बेफिक्र रहता है. शादी के बाद के शुरुआती दिन बहू के लिए तनाव भरे होते हैं, वह सास के व्यवहार को ले कर स्वभावत: आशंकित रहती है.

ऐसे में अगर आप उसे सहयोग और प्यार दें तो वह यह भी नहीं भूलती कि सास कितनी भली है, लिहाजा बुढ़ापे में वह पैर भले ही न दबाए, लेकिन पैर तोड़ेगी नहीं, इस की जरूर गारंटी है.

प्रभा सिंह और सविता की सास ने अगर शुरू में बहू को अच्छे से रखा होता तो आज वे एक सुखद जिंदगी जी रही होतीं, प्यार दिया होता तो प्यार ही मिलता.

राजनीति की तरह घर की सत्ता भी पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती रहती है लेकिन जो सासें इमरजेंसी लगा कर तानाशाही दिखाती हैं, उन्हें जेल की सी ही जिंदगी जीना पड़ती है इसलिए जरूरी है कि परिवार में भी लोकतंत्र हो, आजादी हो, अधिकारों पर अतिक्रमण न हो और कमजोर पर अत्याचार न हों.

क्योंकि जो बहू आज कमजोर है कल को सत्ता हाथ में आते ही ताकतवर हो जाएगी और बदला तो लेगी ही. इसलिए अभी से संभल जाइए और बहू को बजाए क्रूरता के प्यार से अपने वश में रखिए.

यह इनवैस्टमेंट अच्छे दिनों की गारंटी है खासतौर से उस वक्त की जब आप अशक्त, असहाय बीमार और अकेली पड़ जाती हैं, तब वह बहू ही है जो उसी तरह आप का ध्यान रखेगी जैसा शादी के बाद आप ने उस का रखा था.

मन की खोट : परिवाज बना प्यार का दुश्मन

बिजनैसमैन सुरेंद्र जायसवाल ने भी नेहा को पाने के लिए यही किया. लेकिन वह पिता की मौत के बाद घर में नेहा और उस की मां सपना ही रह गई थीं. पिता ही कमाने वाले थे, उन के न होने पर घर की माली हालत काफी खराब थी. मांबेटी को समझ नहीं आ रहा था कि अपना जीवन आगे कैसे चलाएं.

सपना को खुद की चिंता कम और जवान बेटी की ज्यादा चिंता थी. वह सोच रही थी कि किसी तरह बेटी की शादी हो जाए तो वह इस बड़ी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाएगी. क्योंकि गरीब की जवान होती बेटी हर किसी की आंखों में चढ़ जाती है. नेहा के पिता मनोहरलाल लखनऊ के ठाकुरगंज इलाके में रहते थे. उन का छोटा सा कारोबार था. उन की मृत्यु के बाद कारोबार तो बंद हो ही गया, साथ ही घर में रखी जमापूंजी भी कुछ दिनों में खत्म हो गई.

मनोहरलाल के एक दोस्त थे सुरेंद्र जायसवाल. सुरेंद्र का पहले से ही मनोहरलाल के घर आनाजाना था. उन की मृत्यु के बाद सुरेंद्र जायसवाल का मदद के बहाने सपना के घर आनाजाना कुछ ज्यादा ही बढ़ गया. सुरेंद्र बिजनैसमैन थे और रकाबगंज में रहते थे. वह सपना के घर का पूरा खर्च उठाने लगे. एक दिन सुरेंद्र ने नेहा और उस की मां सपना के सामने प्रस्ताव रखा कि नेहा को कपड़े की दुकान खुलवा देते हैं. वह दुकान पर काम करेगी तो उस का मन भी लगा रहेगा, साथ ही चार पैसे की आमदनी भी होगी.

इस पूरी मदद के पीछे समाज और सपना को सुरेंद्र की इंसानियत दिखाई दे रही थी, पर असल में इस के पीछे सुरेंद्र का मकसद कुछ और ही था. वह किसी भी तरह नेहा के करीब जाना चाहता था. हालांकि नेहा सुरेंद्र की बेटी की उम्र की थी, इस के बावजूद उस की नीयत में खोट था.

सुरेंद्र नेहा पर दोनों हाथों से पैसे खर्च कर रहा था, इसलिए धीरेधीरे नेहा का झुकाव भी उस की तरफ हो गया. दोनों में करीबी रिश्ते बन गए. समय के साथ नेहा को इस बात का आभास हो गया था कि सुरेंद्र शादीशुदा है और उस के साथ यह संबंध बहुत दिनों तक नहीं चल सकेंगे.

इस के बाद नेहा ऐसे साथी को तलाशने लगी जो उस का हमउम्र हो. इसी दौरान नेहा की दोस्ती प्रभात से हो गई. नेहा प्रभात को पसंद करती थी. फलस्वरूप दोनों की दोस्ती जल्दी ही प्यार में बदल गई. दोनों ने शादीशुदा जोड़े की तरह रहना शुरू कर दिया. नेहा और प्रभात ने अपने परिजनों से बात कर के शादी करने का फैसला कर लिया.

उधर सुरेंद्र को नेहा और प्रभात के संबंधों की जानकारी मिली तो उसे यह बात अच्छी नहीं लगी. वह उन दोनों को अलग कराना चाहता था, इसलिए उस ने उस की मां सपना के कान भरे और उसे प्रभात के प्रति भड़काया.

सपना ने इस बारे में नेहा से बात की तो उस ने कह दिया कि वह और प्रभात एकदूसरे को बहुत चाहते हैं और दोनों ने जीवन भर साथ रहने का फैसला कर लिया है. इस पर सपना ने कहा कि ऐसा हरगिज नहीं हो सकता क्योंकि प्रभात अच्छा लड़का नहीं है.

मां और सुरेंद्र के आगे नेहा की एक नहीं चली. सुरेंद्र ने दबाव बना कर न सिर्फ नेहा को प्रभात से अलग कराया बल्कि उस ने नेहा की तरफ से महिला थाने में प्रभात के खिलाफ उत्पीड़न की शिकायत भी दर्ज करा दी.

प्रभात का साथ छूट जाने के बाद नेहा फेसबुक पर ज्यादा समय बिताने लगी. फेसबुक के जरिए नेहा की दोस्ती शरद निगम से हुई. चैटिंग और बातचीत से दोनों के बीच घनिष्ठता बढ़ गई. बातचीत से पता चला कि शरद लखनऊ के ठाकुरगंज की बंशीविहार कालोनी में रहता है और एचसीएल में सौफ्टवेयर इंजीनियर है.

उस के पिता सरकारी विभाग में एकाउंटेंट थे जो रिटायर हो चुके थे. शरद उन का एकलौता बेटा था. शरद के बारे में यह जानकारी मिलने के बाद नेहा के मन में लड्डू फूटने लगे. फलस्वरूप शरद में नेहा की दिलचस्पी बढ़ गई.

बात आगे बढ़ी तो नेहा और शरद की मुलाकातें होने लगीं. दोनों घर से बाहर भी मिलने लगे. कुछ समय के बाद नेहा शरद को अपने घर भी बुलाने लगी. जल्दी ही इस की जानकारी सुरेंद्र जायसवाल को हो गई.

सुरेंद्र ने नेहा को शरद से दूर रहने को कहा. साथ ही उस ने शरद को धमकी भी दी कि वह नेहा से दूर रहे. लेकिन उन दोनों में से कोई भी उस की बात को मानने को तैयार नहीं था. शरद ने सुरेंद्र की धमकी पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

इस पर अपराधी स्वभाव के सुरेंद्र को गुस्सा आ गया. उस ने शरद को रास्ते से हटाने की ठान ली. वह नेहा को तो ज्यादा कुछ नहीं कह सकता था पर शरद को अपने रास्ते से हटाने के लिए उस ने योजना बनानी शुरू कर दी. उस ने अपने दोस्त सूरज से रेकी करानी शुरू कर दी कि शरद नेहा से मिलने कब आता है.

22 जुलाई, 2019 को शरद नेहा से मिलने उस के घर आया. इस के बाद दोनों सहारागंज मौल घूमने गए. वहां दोनों ने रौयल कैफे में खाना खाया. सूरज नेहा और शरद पर नजर रख रहा था. उसी दिन सुरेंद्र और सूरज ने शरद को मारने का प्लान बना लिया.

सुरेंद्र और सूरज यही सोच कर उन का पीछा करने लगे कि सुनसान जगह मिलते ही शरद को गोली मार देंगे. उन्होंने अपनी बाइक शरद की बाइक के पीछे लगा दी. लेकिन हजरतगंज से ठाकुरगंज के बीच उन्हें शरद को टपकाने का मौका नहीं मिला.

22 जुलाई का मौका चूकने के बाद भी सुरेंद्र के मन की आग नहीं बुझी थी. उस ने सूरज से सही मौके की तलाश में लगे रहने को कहा.

23 जुलाई, 2019 को शरद शाम को करीब 6 बजे अपने औफिस से निकला. वह औफिस से अपने घर न जा कर सीधे नेहा के घर गया. करीब 3 घंटे वह नेहा के घर पर रहा. इस बात की सूचना जब सुरेंद्र को मिली तो उस का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया. तभी सुरेंद्र ने सूरज से कहा, ‘‘सूरज, आज फील्डिंग सही से करनी है. आज इसे आउट कर ही देंगे.’’

‘‘भैया, चिंता मत करो. आज तो यह आउट होने से नहीं बचेगा. शरद आज हाथ से नहीं निकल पाएगा.’’ सूरज बोला.

सुरेंद्र और सूरज दोनों शरद के वहां से निकलने की राह देखने लगे. दोनों उस के इंतजार में घात लगाए बैठे थे. शरद जब घर जाने के लिए वहां से निकला तो दोनों ने काफी दूर तक उस का पीछा किया. लेकिन रास्ते में उन्हें गोली चलाने का मौका नहीं मिला.

करीब साढ़े 10 बजे शरद अपने घर के पास पहुंचा. कैंपवेल रोड पर मरी माता के मंदिर के पास सुनसान जगह दिखी तो सूरज अपनी बाइक शरद की बाइक के बराबर में चलाने लगा. तभी सूरज के पीछे बैठे सुरेंद्र ने शरद के हेलमेट से रिवौल्वर सटा कर उसे गोली मार दी.

सिर में गोली लगने के बाद शरद वहीं गिर गया. इस के बाद सुरेंद्र और सूरज वहां से फरार हो गए. गोली की आवाज सुन कर लोग अपने घरों से बाहर निकल आए. लोगों ने खून से लथपथ पड़े शरद को पहचान लिया. इस के बाद उस के परिजनों को सूचना दे दी गई.

शरद को लखनऊ मैडिकल कालेज के ट्रामा सेंटर पहुंचाया गया. लेकिन डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. घटना की सूचना पाते ही आईजी एस.के. भगत और एसएसपी कलानिधि नैथानी सहित तमाम पुलिस अफसर घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस ने वहां के सीसीटीवी फुटेज देख कर इस मामले को हल करने का प्रयास शुरू कर दिया.

इस केस की रिपोर्ट ठाकुरगंज थाने में लिखी गई. इंसपेक्टर ठाकुरगंज नीरज ओझा ने सीओ दुर्गाप्रसाद तिवारी के मार्गदर्शन में जांच शुरू कर दी.

हत्या के तरीके से यह साफ हो गया था कि हत्या लूट के इरादे से नहीं की गई है. ऐसे में मामला प्रेम प्रसंग से जोड़ कर देखा जाने लगा. पुलिस ने सीसीटीवी और सोशल मीडिया की नेटवर्किंग साइट से मामले को खोलने का काम शुरू किया.

शरद के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स और सोशल साइट से पता चला कि शरद के प्रेम संबंध नेहा नाम की एक लड़की से थे. सोशल मीडिया की छानबीन में यह भी पता चल गया कि नेहा के साथ ठाकुरगंज के ही रहने वाले एक कारोबारी सुरेंद्र जायसवाल के भी संबंध थे.

पुलिस ने नेहा से पूछताछ की. नेहा से बातचीत में सुरेंद्र की भूमिका और भी खुल कर सामने आ गई. पुलिस ने सुरेंद्र को उस के घर पर तलाशा लेकिन वह नहीं मिला. मुखबिरों से पता चला कि वह नेपाल भाग गया है. इस से पुलिस का शक यकीन में बदल गया.

नेपाल में पैसा खत्म होने पर सुरेंद्र पैसे के इंतजाम के लिए वापस लखनऊ आया. तभी मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

उस ने आसानी से शरद की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने पुलिस को बता दिया कि इस हत्या में उस का दोस्त सूरज भी शामिल था. सुरेंद्र की निशानदेही पर पुलिस ने सूरज को भी गिरफ्तार कर लिया.

दोनों से पूछताछ कर पुलिस ने उन्हें हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. कथा लिखने तक आरोपी सुरेंद्र जायसवाल और उस का दोस्त सूरज जेल में बंद थे.

—मनोहरलाल, सपना और नेहा परिवर्तित नाम हैं

सौजन्य- सत्यकथा, अक्टूबर 2019