दो बहनों का संसार

अप्रैल, 2017 के पहले सप्ताह में पुलिस कमिश्नर दत्तात्रय पड़सलगीकर ने मुंबई के उपनगरीय पुलिस थानों का दौरा किया तो उपनगर कांदिवली पश्चिम के थाना चारकोप में दर्ज भारतीय स्टेट बैंक के सेवानिवृत्त मैनेजर प्रकाश गंगाराम वानखेड़े की गुमशुदगी की फाइल पर उन का ध्यान चला गया. उन्होंने उस फाइल का अध्ययन किया तो उन्हें लगा कि इस मामले की जांच ठीक से नहीं की गई है. उन्होंने वह फाइल जौइंट सीपी देवेन भारती को सौंपते हुए उस की जांच ठीक से कराने को कहा.

देवेन भारती को भी इस मामले की जांच में जांच अधिकारियों की लापरवाही दिखाई दी. वह कई सालों तक मुंबई क्राइम ब्रांच सीआईडी के प्रमुख रह चुके थे. उन्हें आपराधिक मामलों के खुलासे का अच्छाखासा अनुभव था. यह मामला एक साल पुराना था और बिना किसी नतीजे पर पहुंचे इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था. फाइल का अध्ययन करने पर देवेन भारती को यह मामला संदिग्ध और रहस्यमय लगा तो उन्होंने सहायक अधिकारियों को बुला कर एक मीटिंग की और इस मामले की जांच उन्होंने अपने सब से विश्वस्त अधिकारी एसीपी श्रीरंग नादगौड़ा को सौंप दी.

श्रीरंग नादगौड़ा ने खुद के निर्देशन में थाना मालवणी के थानाप्रभारी दीपक फटांगरे के नेतृत्व में एक टीम बनाई, जिस में इंसपेक्टर बेले, एएसआई धार्गे, कान्हेरकर, एसआई जगताप, सिपाही उगले आदि को शामिल किया. थानाप्रभारी दीपक फटांगरे भी क्राइम ब्रांच की सीआईडी यूनिट में कई सालों तक काम कर चुके थे. शायद इसीलिए पुलिस अधिकारियों को उन पर पूरा भरोसा था. उन्होंने भी इस मामले को पूरी गंभीरता से लिया. इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना कर पहले तो उन्होंने फाइल का गहराई से अध्ययन किया, उस के बाद इस मामले की जांच महाराष्ट्र के जिला अहमदनगर की शिवाजी कालोनी की रहने वाली वंदना थोरवे के यहां से शुरू की.

दरअसल, वंदना गुमशुदा भारतीय स्टेट बैंक के मैनेजर प्रकाश वानखेड़े की पत्नी आशा वानखेड़े की बहन थी. आशा ने अपने एक बयान में अहमदनगर की शिवाजी कालोनी का जिक्र किया था. इसी कालोनी में आशा की बहन वंदना रहती थी.

27 अप्रैल, 2016 को कांदिवली के सेक्टर 6 स्थित आकाश गंगाराम हाऊसिंग सोसाइटी की रहने वाली आशा वानखेड़े ने थाना चारकोप में अपने पति प्रकाश वानखेड़े की गुमशुदगी दर्ज कराई थी. गुमशुदगी दर्ज कराते समय उस ने बताया था कि उस के पति 12 अप्रैल, 2016 को घर से किसी काम से निकले तो अभी तक लौट कर नहीं आए. नौकरी से रिटायर होने के बाद वह इतने दिनों तक कभी बाहर नहीं रहे, इसलिए अब उसे उन की चिंता हो रही है.

प्रकाश वानखेड़े पढ़ेलिखे आदमी थे और अच्छी नौकरी से रिटायर हुए थे. उन की समाज में प्रतिष्ठा था. इन्हीं बातों को ध्यान में रख कर थाना चारकोप के थानाप्रभारी श्री पाटिल ने तुरंत ड्यूटी पर मौजूद एसआई जगताप से डायरी बनवाई और इस बात की जानकारी पुलिस कंट्रोल रूम को देने के साथ वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी दे दी. अधिकारियों के निर्देश पर थानाप्रभारी श्री पाटिल ने थाने में मौजूद पुलिस बल को कई टीमों में बांट कर प्रकाश वानखेड़े की तलाश में लगा दिया.

इस मामले में अपहरण जैसी कोई बात नहीं थी. क्योंकि अगर प्रकाश वानखेड़े का अपहरण हुआ होता तो अब तक उन की फिरौती के लिए फोन आ चुके होते. पुलिस का ध्यान दुर्घटना की ओर गया. थाना चारकोप पुलिस ने शहर के सभी थानों को वायरलैस मैसेज भेज कर इस बारे में पता किया. इस के बाद प्रकाश वानखेड़े के फोटो वाले पैंफ्लेट छपवा कर सार्वजनिक स्थानों पर चिपकवाए. दैनिक अखबारों में भी छपवाया गया. लेकिन इस सब का कोई नतीजा नहीं निकला.

पुलिस प्रकाश वानखेड़े के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर उस का अध्ययन कर रही थी कि तभी उन की गुमशुदगी की शिकायत के 2 सप्ताह बाद उन की पत्नी आशा ने थाने आ कर बताया कि उसे पता चला है कि उस के पति प्रकाश वानखेड़े 31 मई, 2016 को अहमदगनर की शिवाजी कालोनी में रहने वाली उस की छोटी बहन वंदना थोरवे के यहां थे. वह उस की बहन वंदना को कुछ पैसे देने गए थे.

चूंकि आशा ने ही इस मामले की शिकायत की थी, इसलिए पुलिस ने उस की बातों पर विश्वास कर लिया और इस के बाद इस मामले की जांच में सुस्ती आ गई. समय आगे बढ़ता रहा, हालांकि इस बीच जांच टीम ने कई बार आशा वानखेड़े से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन पुलिस उस से मिल नहीं पाई. इस के बाद लगातार त्यौहार आते रहे, जिस की वजह से पुलिस इस मामले पर ध्यान नहीं दे पाई और एक तरह से यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया.

लेकिन अचानक 8 अप्रैल, 2017 को मुंबई के पुलिस कमिश्नर दत्तात्रय पड़सलगीकर की इस फाइल पर नजर पड़ी तो एक बार फिर इस मामले की जांच शुरू हो गई. पुलिस ने गुमशुदा प्रकाश वानखेड़े की पत्नी आशा को थाने बुलाया. लेकिन वह बहाना कर के थाने नहीं आई. ऐसा कई बार हुआ. इस बार पुलिस इस मामले को हल्के में नहीं लेना चाहती थी, इसलिए उस के पीछे हाथ धो कर पड़ गई.

पुलिस ने प्रकाश और आशा के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाने के साथसाथ लोकेशन भी निकलवाई तो जो जानकारी मिली, वह चौंकाने वाली थी. आशा ने अपने पति प्रकाश वानखेडे़ के गायब होने की जो तारीख बताई थी, उस के एक दिन पहले यानी 11 अप्रैल, 2016 को दोनों के मोबाइल फोन की लोकेशन एक साथ की मिल रही थी.

पतिपत्नी अहमदनगर की शिवाजी कालोनी में एक साथ थे. आशा की छोटी बहन वंदना थोरवे वहीं रहती थी. अगले दिन यानी 12 अप्रैल, 2016 को वंदना के मोबाइल की लोकेशन चारकोप स्थित आशा के घर की मिली थी.

जबकि पूछताछ में आशा ने पुलिस को स्पष्ट बताया था कि वंदना के पास कोई मोबाइल फोन नहीं है. वह मोबाइल फोन चला ही नहीं पाती. इस के बाद पुलिस ने आशा के फोन से वंदना का नंबर ले कर उसे फोन किया तो उस ने पुलिस से बात ही नहीं की, बल्कि यह भी बताया कि किस दिन प्रकाश वानखेड़े गायब हुए थे. जिस दिन वह गायब हुए थे, उस दिन वह मुंबई में बहन के घर थी. वह बड़ी बहन आशा को उस के घर ले आई थी.

मोबाइल फोन की लोकेशन से पुलिस को वंदना और आशा पर संदेह हुआ. इस के बाद एसीपी श्रीरंग नादगौड़ा के निर्देशन में थानाप्रभारी दीपक फटांगरे ने 12 अप्रैल, 2017 को संदेह के आधार  पर वंदना थोरवे को अहमदनगर स्थित उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. पुलिस उसे गिरफ्तार कर थाना चारकोप ले आई. पुलिस ने उसे भले ही गिरफ्तार कर लिया था, लेकिन उस के चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं थी. वह जरा भी डरी या घबराई हुई नहीं थी. थाने में पूछताछ शुरू हुई तो वह पुलिस के हर सवाल का जवाब बड़े आत्मविश्वास से देती रही. वह खुद को इस मामले में निर्दोष और अनभिज्ञ बताती रही.

लेकिन पुलिस के पास अब तक काफी सबूत जमा हो चुके थे, इसलिए पुलिस उसे आसानी से छोड़ने वाली नहीं थी. पुलिस ने उस से सबूतों के आधार पर सवाल पूछने शुरू किए तो वह जवाब देने में गड़बड़ाने लगी. धीरेधीरे पुलिस ने उसे ऐसा फांसा कि अंतत: बचाव का कोई उपाय न देख उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

इस के बाद वंदना ने प्रकाश वानखेड़े की गुमशुदगी का जो रहस्य बताया, वह चौंकाने वाला था. यही नहीं, उस ने अपने पति अशोक थोरवे की भी गुमशुदगी का रहस्य उजागर कर दिया. पता चला कि वह अपने प्रेमी नीलेश पंडित सूपेकर की मदद से बहनोई प्रकाश वानखेड़े की ही नहीं, अपने पति अशोक थोरवे की भी हत्या करा चुकी थी.

वंदना के अपराध स्वीकार करने के बाद पुलिस ने मुंबई से आशा तथा सोलापुर से वंदना के प्रेमी नीलेश पंडित सूपेकर को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में तीनों ने प्रकाश वानखेड़े और अशोक थोरवे की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

आशा और वंदना महाराष्ट्र के जिला संगली की रहने वाली थीं. इन के पिता सहदेव खेतले मुंबई पुलिस में थे. वह सरकारी नौकरी में थे, परिवार छोटा था, इसलिए वह हर तरह से सुखी थे. उन के परिवार में सिर्फ 4 ही लोग थे. घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. उन की पत्नी पार्वती संस्कारी गृहिणी थीं, इसलिए उन्होंने दोनों बेटियों को भी अच्छे संस्कार दिए थे. लेकिन समय के साथ उन के दिए सारे संस्कार दोनों बेटियों ने ताक पर रख दिए.

आशा और वंदना सयानी हुईं तो सहदेव को उन की शादी की चिंता हुई. वह दोनों बेटियों की शादी नौकरी करते हुए कर देना चाहते थे. उन्होंने किया भी ऐसा ही. उन्होंने आशा की शादी प्रकाश वानखेड़े से कर दी. प्रकाश वानखेड़े एसबीआई बैंक में नौकरी करते थे. शादी के बाद वह आशा के साथ मुंबई के उपनगर कांदिवली के चारकोप में रहने लगे थे.

बड़ी बेटी की शादी कर के सहदेव वंदना की भी शादी अहमदनगर की शिवाजी कालोनी के रहने वाले अशोक थोरवे से कर दी. अशोक का अपना कारोबार था. वंदना अपनी बड़ी बहन आशा से कुछ ज्यादा सुंदर और चंचल तो थी ही, महत्वाकांक्षी भी काफी थी. लेकिन तब उस के महत्वाकांक्षा की हत्या सी हो गई, जब उसे उस के मनपसंद का पति नहीं मिला.

वंदना कारोबारी या खेती करने वाले लड़के से शादी नहीं करना चाहती थी. वह भी बड़ी बहन आशा की तरह हैंडसम और अच्छी नौकरी वाला पति चाहती थी. लेकिन पिता ने उस के लिए ऐसा पति ढूंढ दिया था, जैसा वह बिलकुल नहीं चाहती थी. लेकिन शादी के बाद उस ने समझौता कर लिया था.

पर वंदना को तो अभी और परेशान होना था. शादी के कुछ सालों बाद वंदना के पति अशोक की तबीयत खराब रहने लगी. दिखाने पर डाक्टरों ने उसे जो बीमारी बताई, वह काफी गंभीर थी. इस के बाद वंदना का रहासहा धैर्य भी जवाब दे गया. पति के संपर्क में आने के बाद वंदना भी उस बीमारी की शिकार हो गई.

वंदना ने इस के लिए पिता को जिम्मेदार माना. इस के बाद इसी बात को ले कर वह अकसर पिता से लड़ाईझगड़ा करने लगी. बापबेटी का यह झगड़ा तभी खत्म हुआ, जब सहदेव की मौत हो गई. उन की मौत जहर से हुई थी. लेकिन तब यह पता नहीं चला था कि उन्हें जहर दिया गया था या उन्होंने खुद जहर पिया था.

पति की बीमारी की वजह से वंदना की आर्थिक स्थिति धीरेधीरे खराब होती गई, जिस के कारण उसे पति का इलाज कराने में परेशानी होने लगी थी. उस स्थिति में उस की मदद के लिए लोकहितवादी संस्था में काम करने वाला नीलेश पंडित सूपेकर आगे आया. वह भी उसी कालोनी में रहता था, जिस में वंदना रहती थी.

23 साल का नीलेश पंडित काफी स्मार्ट था. वह वंदना की हर तरह से मदद करने लगा. कहा जाता है कि जहां फूस और आग होगी, वहां शोले भड़केंगे ही. इस कहावत को वंदना और नीलेश पंडित ने चरितार्थ कर दिया. वंदना की मदद करतेकरते नीलेश उस के इतने करीब आ गया कि दोनों में मधुर संबंध बन गए.

काफी इलाज के बाद भी अशोक ठीक नहीं हुआ. बीमारी की वजह से वह काफी चिड़चिड़ा हो गया था. वह बातबात में वंदना को भद्दीभद्दी गालियां देता रहता था, जिस से परेशान हो कर वंदना और नीलेश पंडित ने एक खतरनाक फैसला ले लिया.

उन का सोचना था कि उन के इस फैसले से जहां अशोक थोरवे का कष्ट दूर हो जाएगा, वहीं उन्हें भी उस से मुक्ति मिल जाएगी. फिर क्या था, एक दिन अशोक थोरवे सो रहा था, तभी वंदना और नीलेश ने गला घोंट कर उस की हत्या कर दी. इस के बाद शव को ठिकाने लगाने के लिए वंदना और नीलेश ने उसे एक प्लास्टिक की बोरी में भर दिया और रात में ही उसे ले जा कर बीड़ जनपद के अंभोरा पुलिस थाने के अंतर्गत आने वाले जंगल में फेंक दिया.

12 नवंबर, 2012 की सुबह थाना अंभोरा पुलिस ने अशोक थोरवे की लाश बरामद की थी. लेकिन काफी कोशिश के बाद भी लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी तो पुलिस ने हत्या का मुकदमा दर्ज कर लाश को लावारिस मान कर अंतिम संस्कार कर दिया.

एक ओर जहां वंदना तरहतरह की परेशानियां झेल रही थी, वहीं आशा का दांपत्यजीवन काफी सुखमय था. उस के दांपत्य में दरार तब आई, जब प्रकाश वानखेड़े वंदना की मदद करने के बहाने उस का शारीरिक शोषण करने लगा. जब इस की जानकारी आशा को हुई तो उसे पति से नफरत सी हो गई. उस ने पति को खूब लताड़ा. इस से पतिपत्नी के बीच तनाव रहने लगा.

इस का नतीजा यह निकला कि पतिपत्नी एकदूसरे से दूर होते गए. इस की एक वजह यह भी थी कि प्रकाश आशा पर चरित्रहीनता का आरोप लगा कर उसे परेशान करने लगा था. सहनशक्ति की भी एक हद होती है. प्रकाश के लगातार परेशान करने से आशा की भी सहनशक्ति जवाब दे गई.

हार कर आशा ने अपनी परेशानी बहन वंदना को बताई तो उस ने कहा कि इस परेशानी से छुटकारा तो मिल जाएगा, लेकिन इस के लिए कुछ पैसे खर्च करने होंगे. वंदना ने उपाय बताया तो आशा के पैरों तले से जमीन खिसक गई. लेकिन रोजरोज की परेशानी के बारे में सोचा तो आखिर उस ने बहन की बात मान ली. आशा ने सवा 2 लाख रुपए में पति प्रकाश वानखेड़े की जिंदगी का सौदा कर डाला.

अशोक थोरवे की हत्या कर के बच जाने से वंदना और नीलेश पंडित के हौसले बुलंद थे. उन्होंने जिस तरह अशोक की हत्या का राज हजम कर लिया था, सोचा उसी तरह इसे भी हजम कर जाएंगे. 5 साल बीत जाने के बाद भी पुलिस अशोक थोरवे के हत्यारों तक नहीं पहुंच पाई थी. वे उसी तरह प्रकाश वानखेड़े की भी हत्या कर के बच जाना चाहते थे. लेकिन दुर्भाग्य से इस में सफल नहीं हुए. एक साल बाद ही सही, आखिर सभी पकड़े गए.

आशा की सहमति मिलने के बाद वंदना और नीलेश पंडित ने प्रकाश वानखेड़े को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली. उसी योजना के तहत वंदना ने अपने जीजा प्रकाश और बहन आशा को 10 अप्रैल, 2016 को पूजापाठ के बहाने अपने घर बुलाया. वंदना के बुलाने पर प्रकाश वानखेड़े खुशीखुशी आशा के साथ एक प्राइवेट कार से उस के घर पहुंच गए.

जिस समय वह वंदना के घर पहुंचे थे, उस समय रात के 8 बज रहे थे. घर पहुंचे प्रकाश का वंदना ने अच्छी तरह से स्वागत किया. योजना के अनुसार उन के खाने में नींद की गोलियां मिला दी गईं. जब वह सो गए तो 10-11 बजे आशा ने प्रकाश के पैर पकड़े तो वंदना ने दोनों हाथ. इस के बाद नीलेश ने गला दबा कर उन्हें मार डाला.

प्रकाश वानखेड़े की हत्या कर तीनों ने उन की लाश को बोरी में ठूंस कर भर दिया. इस के बाद नीलेश पंडित ने लाश की बोरी को स्कौर्पियो में रख कर कल्याण अहमदनगर हाईवे रोड पर स्थित जंगल में ले जा कर फेंक दिया. कुछ दिनों बाद अहमदनगर के थाना पारनेर पुलिस को प्रकाश का अस्थिपंजर मिला था.

प्रकाश की लाश ठिकाने लगा कर आशा बहन के साथ अपने घर आ गई. जब कई दिनों तक प्रकाश दिखाई नहीं दिया तो पड़ोसियों में कानाफूसी होने लगी. कुछ लोगों ने आशा से उन के बारे में पूछा भी. आशा भला उन लोगों को क्या बताती. पड़ोसियों की इस पूछताछ से घबरा कर उस ने खुद को बचाने के लिए थाना चारकोप में उन की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

पुलिस तुरंत तो नहीं, लेकिन साल भर बाद प्रकाश वानखेड़े की गुमशुदगी के रहस्य उजागर कर ही दिया. पूछताछ के बाद पुलिस ने आशा, वंदना और नीलेश पंडित को अहमदनगर के थाना पारनेर पुलिस को सौंप दिया.

वहां तीनों के खिलाफ प्रकाश वानखेड़े, अशोक थोरवे की हत्या और सबूत मिटाने का मुकदमा दर्ज कर सभी को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक तीनों अभियुक्त जेल में थे. थाना पारनेर पुलिस अब आशा और वंदना के पिता की रहस्यमय मौत की जांच कर रही है. पुलिस इस बात का पता लगा रही है कि उन्होंने आत्महत्या की थी या उन्हें जहर दे कर मारा गया था.

– कथा में सहदेव खेलते का नाम काल्पनिक है. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

जिंदगी में दौलत ही सब कुछ नहीं होती

दर्शन सिंह पंजाब के जिला कपूरथला के गांव अकबरपुर स्थित अपनी आलीशान कोठी में परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी स्वराज कौर के अलावा 2 बेटे कमलजीत सिंह और संदीप सिंह थे. संपन्न परिवार वाले दर्शन सिंह के पास कई एकड़ उपजाऊ भूमि थी. पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्होंने दोनों बेटों की शादी कर दी थी. बड़े बेटे कमलजीत सिंह की शादी उन्होंने अपने एक दोस्त की बेटी राजेंद्र कौर से और छोटे संदीप सिंह की राजदीप कौर के साथ की थी. दर्शन सिंह एक रसूखदार व्यक्ति थे, इसलिए उन का पूरे गांव में दबदबा था. पर कुछ साल पहले एक दुर्घटना में उन की मौत हो गई थी. उन की मौत के बाद उन की पत्नी स्वराज कौर अपने परिवार पर पति जैसा दबदबा कायम नहीं रख पाईं, खासकर दोनों बहुओं पर.

समय का चक्र अपनी गति से घूमता रहा. कमलजीत और संदीप सिंह 3 बच्चों के पिता बन गए. इस बीच कमलजीत सिंह अपने किसी रिश्तेदार की मदद से इंग्लैंड जा कर नौकरी करने लगा. कुछ समय बाद संदीप सिंह भी फ्रांस जा कर नौकरी पर लग गया.

बेटों के विदेश जाने के बाद स्वराज कौर ने खेती की जमीन ठेके पर दे दी थी. दोनों बेटे विदेश से हर महीने मोटी रकम घर भेज रहे थे. स्वराज कौर को बस एक चिंता थी कि उस के पोतापोती पढ़लिख कर काबिल बन जाएं.

विदेश में रह कर दोनों भाई पैसे कमाने में लगे थे तो इधर गांव में उन की पत्नियों के रंगढंग बदलने लगे थे. एक साल बाद जब छुट्टी ले कर दोनों भाई गांव लौटे तो अपनेअपने पति द्वारा लाए हुए महंगे व अत्याधुनिक उपहार देख कर राजेंद्र कौर और राजदीप कौर की आंखें चुंधियां गईं.

पति के मुंह से विदेशियों का रहनसहन, खानपान और वहां के लोगों की सभ्यता आदि के बारे में सुन कर देवरानीजेठानी का मन करता कि काश वे भी अपने पतियों के साथ विदेश में रहतीं. अपने मन की बात उन्होंने अपनेअपने पतियों से कह दी. लिहाजा दोनों भाइयों ने पत्नी और बच्चों को साथ ले जाने की व्यवस्था करनी शुरू कर दी.

उन्होंने उन के पासपोर्ट बनवाने की प्रक्रिया शुरू कर दी. इस सब में समय तो लगता ही है. बहरहाल, यह सब ऐसा ही चलता रहा. साल, दो साल में कोई न कोई भाई छुट्टी ले कर गांव आता और अपनी मां, पत्नी और बच्चों से मिल कर लौट जाता.

स्वराज कौर बड़ी खुशी और शांति से परिवार की बागडोर संभालने में लगी रहती थीं. वह एक साधारण और धार्मिक विचारों वाली महिला थीं. जबकि उन की दोनों बहुएं बनठन कर रहती थीं. उन्होंने अपने आप को पूरी तरह से आधुनिकता के रंग में रंग लिया था. स्वराज कौर समयसमय पर उन्हें टोकते हुए सिख मर्यादा में रहने का पाठ पढ़ाया करती थीं. पर बहुओं ने उन की बात अनसुनी करनी शुरू कर दी तो स्वराज कौर ने भी उन की तरफ ध्यान देना बंद कर दिया.

पंजाब विधानसभा चुनाव 4 फरवरी, 2017 को होने थे, इसलिए पुलिसप्रशासन बड़ी मुस्तैदी से क्षेत्र में अमनशांति बनाए रखने में जुटा था. दिनांक 3/4 फरवरी की रात को स्वराज कौर की छोटी बहू राजदीप कौर ने उन्हें रात का खाना दिया. बड़ी बहू राजेंद्र कौर रसोई का काम निपटा कर बच्चों को सुलाने की तैयारी कर रही थी. उसी रात लगभग एक बजे किसी ने राजदीप कौर के कमरे का दरवाजा खटखटाया.

दरवाजा खटखटाने की आवाज सुन कर राजेंद्र कौर की भी आंखें खुल गईं. दोनों ने अपनेअपने कमरे से बाहर आ कर देखा तो मारे डर के उन की चीख निकल गई. उन के कमरों के बाहर बरामदे में 12-13 लोग खड़े थे. सभी के मुंह पर कपड़ा बंधा था और उन के हाथों में चाकू, तलवार आदि हथियार थे. इस के पहले कि वे दोनों कुछ समझ पातीं, उन लोगों ने आगे बढ़ कर दोनों को दबोच लिया और धकेलते हुए उन्हें स्वराज कौर के कमरे में ले गए.

इस बीच 2 लोग मेनगेट के पास खड़े हो कर रखवाली करने लगे. 2-3 लोगों ने सोते हुए बच्चों को अपने कब्जे में कर लिया. स्वराज कौर के कमरे में पहुंचते ही उन बदमाशों ने राजेंद्र कौर और राजदीप कौर को मारनापीटना शुरू कर दिया. वे उन से अलमारी की चाबी मांग रहे थे. 2 लोगों ने राजेंद्र कौर और राजदीप कौर की पहनी हुई ज्वैलरी उतारनी शुरू कर दी.

शोरशराबा और मारपीट की आवाज सुन कर स्वराज कौर जाग गई थी. खुद को और अपनी दोनों बहुओं को हथियारबंद बदमाशों से घिरे हुए देख कर उन के होश उड़ गए. परिवार को संकट में देख वह दहाड़ते हुए अपने बैड से उठीं पर तब तक एक हमलावर ने लोहे की रौड उन के सिर पर दे मारी. स्वराज कौर के मुंह से आवाज तक न निकल पाई. वह बैड पर ही चारों खाने चित्त गिर पड़ीं.

तब डर की वजह से राजेंद्र कौर ने अलमारियों की चाबी का गुच्छा बदमाशों के हवाले कर दिया. बदमाश घर में लूटखसोट कर धमकाते हुए चले गए.

आधी रात के बाद हुई इस वारदात से राजेंद्र और राजदीप कौर बुरी तरह डर गईं. काफी देर तक दोनों दहशत में बुत बनी अपनी जगह खड़ी रहीं. जब होश आया तो राजदीप कौर ने बैड पर पड़ी सास स्वराज कौर की सुध ली और राजेंद्र कौर ने आंगन में खड़े हो कर सहायता के लिए चीखनाचिल्लाना शुरू कर दिया था.

शोर सुन कर वहां पड़ोसी जमा हो गए. लूट की बात सुन कर सभी हैरान थे. स्वराज कौर की नब्ज टटोलने पर पता चला कि उन की मौत हो चुकी है. चोटों के घाव उन के शरीर पर भी थे, पर वे इतने गंभीर न थे. तब तक गांव का सरपंच भी वहां आ गया था. सलाहमशविरा के बाद तय हुआ कि पुलिस को सूचना देने से पहले मृतका के भाई प्रीतपाल सिंह को सूचित कर दिया जाए.

प्रीतपाल सिंह जिला होशियारपुर के गांव मंसूरपुर में रहते थे. रात को 2 बजे फोन द्वारा जब उन्हें खबर दी गई तो वह अपनी पत्नी कुलदीप कौर को साथ ले कर उसी समय घर से निकले और सुबह तक बहन के गांव अकबरपुर पहुंच गए. उस से पहले सरपंच ने पुलिस को भी फोन कर दिया था.

हत्या की खबर सुन कर थानाप्रभारी गुरमीत सिंह सिद्धू टीम के साथ मौके पर आ गए. पुलिस ने जब स्वराज कौर की लाश का मुआयना किया तो उन के सिर पर बाईं ओर गहरा घाव था. उस में से खून निकलने के बाद सूख चुका था.

थानाप्रभारी ने दोनों बहुओं राजेंद्र कौर और राजदीप कौर से घटना के बारे में पूछताछ की तो उन्होंने रोते हुए रात का पूरा वाकया बता दिया. पुलिस को उन की बात पर शक तो हुआ, पर उस समय गम का माहौल था, इसलिए उन से ज्यादा पूछताछ करना जरूरी नहीं समझा. घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

पुलिस ने राजेंद्र कौर और राजदीप कौर के बयान दर्ज किए तो दोनों के बयानों में कई पेंच दिखाई दे रहे थे. उन्होंने बताया कि लुटेरे घर से लगभग 7 तोले सोने के आभूषण और कुछ हजार रुपए की नकदी लूट ले गए हैं.

2 बातें थानाप्रभारी गुरमीत सिंह सिद्धू की समझ में नहीं आ रही थीं. एक तो मामूली लूट के लिए 12 लुटेरों का आना, दूसरे 12 लोग जब कहीं लूटमार करेंगे तो वहां अच्छाखासा हंगामा खड़ा हो जाना स्वाभाविक है, जबकि यहां किसी पड़ोसी को भी वारदात की भनक नहीं लगी थी. लुटेरों ने स्वराज कौर को तो जान से मार दिया था, जबकि उन की दोनों बहुओं को मामूली सी खरोंचें ही लगी थीं. थानाप्रभारी ने अज्ञात के खिलाफ हत्या और लूट की रिपोर्ट दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

थानाप्रभारी ने जांच टीम में एएसआई परमिंदर सिंह, हैडकांस्टेबल गुरनाम सिंह, नौनिहाल सिंह, रविंदर सिंह व लेडी हैडकांस्टेबल सुरजीत कौर को शामिल किया था.

प्रीतपाल सिंह ने भी पुलिस से शक जताया कि उन की बहन की हत्या लूट की वजह से नहीं, बल्कि किसी साजिश के तहत की गई है.

थानाप्रभारी ने अब तक की काररवाई के बारे में एसएसपी अलका मीणा और डीएसपी डा. नवनीत सिंह माहल को अवगत करा दिया था. इस के बाद मुखबिर ने थानाप्रभारी को जो सूचना दी, उस के आधार पर मृतका की दोनों बहुओं राजेंद्र कौर और राजदीप कौर को हिरासत में ले लिया गया और उन की निशानदेही पर गांव अकबरपुर के ही अंचल कुमार उर्फ लवली को भी हिरासत में ले लिया गया.

इन तीनों से पूछताछ की गई तो उन्होंने स्वराज कौर की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. पुलिस ने तीनों को अदालत में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड के दौरान हुई पूछताछ में स्वराज कौर की हत्या और इस फरजी लूटपाट की जो कहानी सामने आई, वह परपुरुष की बाहों में सुख तलाशने वाली औरतों के अविवेक का नतीजा थी—

कमलजीत सिंह और संदीप सिंह के विदेश जाने के बाद स्वराज कौर के घर में नोटों की बारिश जरूर होने लगी थी, पर अपनेअपने पति से दूर होने पर दोनों बहुओं की हरीभरी जिंदगी में सूखा पड़ गया था. यानी उन्हें पैसा तो भरपूर मिल रहा था पर पति के प्यार को तरस रही थीं.

कमलजीत और संदीप दोनों ही बड़े मिलनसार थे. अपने और आसपास के गांवों में उन का अच्छा उठनाबैठना था. इस कारण उन के कई यारदोस्त थे, जो उन की गैरमौजूदगी में घर का हालचाल जानने आ जाते थे. दिखावे के लिए तो वे सब स्वराज कौर की खैरखबर जानने के लिए आते थे, पर हकीकत यह थी कि उन की नजरें राजदीप और राजेंद्र कौर पर थीं.

अकबरपुर का अंचल कुमार उर्फ लवली बड़ी बहू राजेंद्र कौर को चाहने लगा तो वहीं राजदीप की आंखें गांव जलालपुर, होशियारपुर के गुरदीप सिंह से लड़ गईं. कुछ ही दिनों में उन के बीच अवैध संबंध बन गए.

राजेंद्र कौर अपने प्रेमी अंचल कुमार को रोज रात के समय अपनी कोठी पर बुला लेती थी. गुरदीप का गांव जलालपुर दूर था, इसलिए वह रोज न आ कर सप्ताह में 2-3 बार राजदीप कौर के पास आता था.

चूंकि राजेंद्र कौर और अंचल कुमार का मिलनेमिलाने का सिलसिला चल रहा था, इसलिए राजेंद्र कौर अपनी सास स्वराज कौर के रात के खाने में नींद की गोलियां मिला देती थी, ताकि सास को कुछ पता न चले.

लाख सावधानियों के बाद भी स्वराज कौर को अपनी बहुओं के बदले व्यवहार पर संदेह होने लगा. वह बारबार उन से गैरपुरुषों से बातचीत करने से मना करती थीं. पर वे सास की बात पर ध्यान नहीं देतीं. करीब 4 सालों तक उन के संबंध जारी रहे. इस बीच राजदीप कौर का प्रेमी गुरदीप नौकरी के लिए विदेश चला गया.

स्वराज कौर को गांव के लोगों से बहुओं की बदचलनी की बातें पता चलीं तो उन्होंने दोनों बहुओं को बहुत डांटा. तब दोनों बहुओं ने सास से लड़ाई भी की. स्वराज कौर ने झगड़े की बात अपने भाई प्रीतपाल को भी बता दी थी, साथ ही उस ने बहुओं को धमकी दी कि बेटों के सामने वह उन का भांडा फोड़ देंगी.

सास की इस धमकी से राजेंद्र कौर डर गई. उस ने अंचल के साथ मिल कर सास की हत्या की ऐसी योजना बनाई, जो हत्या न लग कर कोई दुर्घटना लगे. इस काम के लिए अंचल ने अपने एक दोस्त गुरमीत को भी योजना में शामिल कर लिया. 3-4 फरवरी, 2017 की रात राजेंद्र कौर ने स्वराज के खाने में नींद की गोलियां कुछ ज्यादा मात्रा में मिला दीं.

रात करीब 12 बजे राजेंद्र कौर ने अंचल को फोन कर दिया तो वह अपने दोस्त के साथ सीधा राजेंद्र कौर के कमरे पर पहुंचा. उस समय राजदीप कौर भी वहीं थी. चारों स्वराज के कमरे में पहुंचे. राजदीप कौर ने सोती हुई सास की टांगें कस कर पकड़ लीं और राजेंद्र कौर ने दोनों बाजू काबू कर लिए.

तभी अंचल ने तकिया स्वराज के मुंह पर रख कर दबाया. फिर उन के गले में चुन्नी का फंदा डाल कर दोस्त के साथ उस फंदे को कस दिया. कुछ ही पलों में स्वराज की मौत हो गई. इस के बाद अंचल ने अपने साथ लाई हुई लोहे की रौड से स्वराज के सिर पर वार कर घायल कर दिया.

स्वराज की हत्या के बाद उन्होंने घर की अलमारियों से सामान निकाल कर कमरे में फैला दिया, ताकि देखने में मामला लूटपाट का लगे. राजेंद्र कौर और राजदीप ने घर में रखे करीब 7 तोले के आभूषण और कुछ हजार रुपए निकाल कर अंचल को दे दिए. इस के बाद अंचल ने दिखावे के लिए दोनों के शरीर पर कुछ खरोंचे मार दीं, जिस से किसी को शक न हो.

रिमांड अवधि के दौरान पुलिस ने लोहे की रौड, ज्वैलरी व रुपए भी बरामद कर लिए. पुलिस ने चौथे आरोपी संदीप को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने चारों अभियुक्तों से पूछताछ कर उन्हें 7 फरवरी, 2017 को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

अपनी मां की हत्या की खबर सुन कर कमलजीत सिंह और संदीप सिंह जब अपने गांव आए तो मां की मौत का उन्हें बड़ा दुख हुआ.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

रिश्तों का कत्ल : बेटी बनी कातिल

31दिसंबर, 2022 की रात का दूसरा पहर अभी शुरू ही हुआ था. समूचा शहर 2022 की विदाई और नए साल के आगमन के जश्न में डूबा हुआ था. उसी दौरान फूल सिंह राठौर नाम के एक शख्स ने ग्वालियर के थाना हजीरा में मोबाइल फोन द्वारा सूचना दी थी कि उस के गदाईपुरा स्थित मकान में किराएदार 45 वर्षीय ममता कुशवाहा की किसी ने हत्या कर दी है.

मकान मालिक के जरिए हत्या की सूचना मिलते ही एसएचओ संतोष सिंह एसआई, एएसआई और महिला हवलदार को साथ ले कर कुछ देर में ही घटनास्थल पर पहुंच गए.

दिल दहला देने वाली इस घटना की खबर उन्होंने एसएसपी अमित सांघी और सीएसपी रवि भदौरिया सहित फोरैंसिक विशेषज्ञ अखिलेश भार्गव को दे दी थी. कुछ ही देर में वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी वहां पहुंच गए.

घटनास्थल पर पुलिस ने देखा कि हत्यारे ने महिला को चाकू से बुरी तरह से गोद कर मारने के बाद उस की लाश कंबल में लपेट कर पलंग के नीचे छिपा दी थी.

खून से लथपथ कंबल में लिपटी लाश का निरीक्षण करने के बाद एसएचओ संतोष सिंह भदौरिया ने मकान मालिक फूल सिंह राठौर और उन के मकान में रहने वाले अन्य किराएदारों से पूछताछ की तो उन्होंने बताया मृतका ममता की शादी भिंड जिले के सुकांड गांव में हुई थी. लेकिन पति ने शादी के 6-7 साल बाद ममता को छोड़ दिया था, तभी से वह अपनी नाबालिग बेटी के साथ ग्वालियर में किराए पर कमरा ले कर पति से अलग रह रही थी.

किराएदारों ने यह भी बताया कि ममता के साथ रहने वाली उस की 17 वर्षीय बेटी कल्पना इस घटना के बाद से नजर नहीं आ रही है. संतोष भदौरिया ने यह महत्त्वपूर्ण जानकारी पाने के बाद अपना सारा ध्यान मृतका की बेटी पर लगा दिया, क्योंकि उस के पकड़े जाने पर ममता की हत्या के रहस्य से परदा उठ सकता था.

उच्चाधिकारियों के जाने के बाद पुलिस ने घटनास्थल की कागजी काररवाई पूरी की. इस के बाद ममता की लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी. फिर एसएचओ ने मकान मालिक फूल सिंह राठौर की तहरीर के आधार पर भादंवि की धारा 302, 34 के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के जांच शुरू कर दी.

ममता हत्याकांड का खुलासा करने के लिए एसएसपी अमित सांघी ने सीएसपी रवि भदौरिया और एसएचओ संतोष सिंह के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी. इस के बाद दोनों पुलिस अधिकारियों ने एक बार फिर से घटनास्थल का दौरा कर स्थिति को समझने का प्रयास किया.

परिस्थितियां बता रही थीं कि ममता की हत्या सुनियोजित ढंग से की गई है. घटनास्थल को देख कर यह स्पष्ट तौर पर लग रहा था कि हत्या के इस मामले में मृतका का कोई करीबी ही शामिल हो सकता है. इतना ही नहीं, वह घर के चप्पेचप्पे से वाफिक रहा होगा, क्योंकि हत्यारा अपना काम कर के चुपचाप वहां से निकल गया और पड़ोस में रहने वाले किराएदारों तक को भनक नहीं लगी.

पुलिस के लिए अब उस शख्स को तलाश करने की सब से बड़ी चुनौती थी. इस काम के लिए भरोसेमंद मुखबिरों को भी लगा दिया गया.

जांच के दौरान ही एक मुखबिर ने एसएचओ को चौंकाने वाली जानकारी दी. उस ने बताया कि ममता का अपनी बेटी कल्पना से उस के प्रेम संबंधों को ले कर पिछले 2 सालों से काफी मनमुटाव चल रहा था. कल्पना अपने 25 वर्षीय प्रेमी सोनू ओझा के साथ 2 बार घर से भाग भी चुकी थी, जिस पर ममता ने बेटी के प्रेमी सोनू के खिलाफ अगवा कर दुष्कर्म करने का मामला दर्ज करवाया था.

तब पुलिस ने ममता की बेटी कल्पना और उस के प्रेमी सोनू को एक बार गुजरात और दूसरी बार भिंड से बरामद कर लिया था. पड़ोसियों ने बताया कि कल्पना अपने प्रेमी सोनू ओझा से शादी करना चाहती थी और ममता इस के लिए कतई तैयार नहीं थी.

बेटी कल्पना के दूसरी बार अपने प्रेमी के साथ घर से भागने पर ममता ने बेटी के नाबालिग होने का हवाला देते हुए सोनू के खिलाफ अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करवाई थी. इस के बाद पुलिस ने जल्दी ही भिंड से कल्पना को ढूंढ निकाला.

अपनी मां के इस कदम से बेटी मां के खिलाफ हो गई. हालांकि उस वक्त कल्पना ने अपने प्रेमी सोनू को जेल जाने से बचाने के लिए अपना मैडिकल परीक्षण कराने से इंकार कर दिया था.

इस पर ममता ने तत्कालीन एसएचओ पर आरोपी की मदद करने का आरोप लगा कर न्यायालय में याचिका दायर कर एसएचओ को कड़ी फटकार लगवा कर बेटी का मैडिकल करवाने के बाद सोनू को आईपीसी की धारा 376 के तहत जेल भिजवा दिया था. मगर शातिरदिमाग कल्पना ने उल्टे अपनी मां पर गलत काम करने का आरोप लगा कर सनसनी फैला दी थी.

प्रारंभिक जांच के दौरान एसएचओ संतोष सिंह ने कल्पना का मोबाइल नंबर हासिल कर के उस की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स देख कर उन के होश उड़ गए. उस के फोन पर एक पखवाड़े में एक ही नंबर से साढ़े 3 सौ से अधिक बार बात हुई थी. घटना से पहले एक घंटे के दरम्यान में भी 12 बार काल की थी.

अत: उक्त नंबर शक के घेरे में आ गया. पुलिस ने उस नंबर की काल डिटेल्स का सारा डाटा निकलवाया तो वह नंबर सोनू ओझा निवासी प्रसाद नगर का निकला. जांच अधिकारी ने बिना समय गंवाए उसी समय सोनू के घर पर दबिश दी तो सोनू और कल्पना वहीं मिल गए.

पुलिस दोनों को ही पूछताछ के लिए हजीरा थाने ले आई. कहते हैं कि पुलिस जब अपनी पर आ जाती है तो अपराधी से सच उगलवा ही लेती है.

एसएचओ संतोष सिंह ने जब सोनू से सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि कल्पना की मां मुझे मरवाने की धमकी देती थी. यहां तक कि ममता जब भी घर से बाहर जाती थी तो घर के दोनों दरवाजों पर बाहर से ताला लगा कर कल्पना को अंदर रोता हुआ छोड़ जाती थी.

ऐसी स्थिति में हम दोनों एकदूसरे से दिल खोल कर मेलमुलाकात नहीं कर पा रहे थे. इसलिए कल्पना के कहने पर उस की मां ममता का गला दबाने के बाद पेट में चाकू मार कर हत्या की थी. सोनू ने बताया कि वह कल्पना के साथ शादी कर के अपना घर बसाना चाहता था, मगर ममता इस के लिए तैयार नहीं हो रही थी. इसलिए दोनों ने मिल कर उस की हत्या करने की योजना बनाई.

यह सुन कर एसएचओ चौंक गए, क्योंकि देखने में नाबालिग और भोलीभाली लगने वाली मृतका की बेटी नागिन से भी ज्यादा जहरीली निकली, जिस ने इश्क के नशे में अपनी मां को डंस लिया. कल्पना के कमसिन चेहरे से मासूमियत का नकाब उतर गया था.

इस के बाद कल्पना ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. उस ने बताया कि सोनू से मेलमुलाकात पर बंदिश लगा देने से उस का उस के प्रेमी से मिलनाजुलना बंद हो गया था.

वह सोनू से मिलने के लिए बहुत ही बेचैन रहने लगी, जिस से उसे अपनी मां दुश्मन नजर आने लगी और घर कैदखाना लगने लगा था. वह चाह रही थी कि किसी तरह मौका हाथ लगते ही अपने प्रेमी से मिलने जेल चली जाए.

जैसे ही उसे पता चला 15 दिसंबर को सोनू की रिहाई हो गई है तो उस ने सोनू से मुलाकात कर मां की हत्या की योजना बनाई.

योजना के अनुसार, उस ने सोनू द्वारा लाई गई नींद की गोलियां 30 दिसंबर की रात मां के खाने में मिला दीं. गोलियों का असर होते ही मां जल्द गहरी नींद में सो गई तो उस ने रात के तकरीबन 2 बजे अपने प्रेमी सोनू को फोन कर के घर के पिछले दरवाजे से कमरे में बुला लिया.

हत्या करने के दौरान मां की आवाज किसी को सुनाई न दे, इसलिए कल्पना ने मां का मुंह अपने दोनों हाथों से कस कर बंद कर लिया. इस के बाद सोनू ने मां का मुंह तब तक दबाए रखा, जब तक कि उन की सांस नहीं थम गई. वह जीवित न बच जाए, इसलिए उन के पेट पर चाकू से वार कर दिए.

नब्ज टटोलने के बाद जब मरने की संतुष्टि हो गई, उस के बाद सोनू अपने घर चला गया. सोनू के जाने के बाद कल्पना ने मां की लाश कंबल में लपेट कर बैड के नीचे छिपा दी.

सवेरा होने पर तैयार हो कर कमरे में ताला लगा कर वह अपने प्रेमी से मिलने उस के कमरे पर चली गई. सारे दिन प्रेमी के साथ मौज करने के बाद शाम को ताला खोल कर सोनू के पास प्रसाद नगर चली गई थी.

चूंकि कल्पना अब बालिग हो चुकी थी, इसलिए उस से और उस के प्रेमी सोनू से विस्तार से पूछताछ करने के बाद एसएचओ संतोष सिंह ने दोनों को न्यायलय में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में कल्पना परिवर्तित नाम है.

अधेड़ उम्र की चाहत

‘‘अब तक तो उन्हें घर आ जाना चाहिए था, दिन निकल चुका है… न तो इन्हें खाने की सुध है और न ही घर के कामकाज की, बस जंगल की रखवाली की ही फिक्र रहती है.’’ घर के आंगन में झाड़ू लगाते हुए पति जमुना प्रसाद के खयाल में डूबी शांति के मन में जो विचार आ रहे थे, वह बके जा रही थी.

झाड़ू लगाने के बाद वह दरवाजे पर आ कर पति की राह देखने लगी थी. जी नहीं माना तो बेटे संजय को आवाज लगाती हुई बोली, ‘‘जरा जा कर जंगल की ओर तो देख आते कि तुम्हारे बापू अभी तक आए क्यों नहीं?’’

मां की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि संजय ने मां की बात को काटते हुए तपाक से कहा, ‘‘तुम भी मां सुबहसुबह चिल्लाना शुरू कर देती हो. जानती हो न, बापू को कोई मिल गया होगा पीनेखाने वाला, सो लेट हो गए होंगे. आते होंगे न, क्यों शोर मचा रही हो.’’

जमुना वन विभाग में चौकीदार था.

बेटे की बात सुन कर शांति देवी शांत हो कर बैठ गई थी, लेकिन उस का मन नहीं मान रहा था. न जाने क्यों उसे रहरह कर मन में कुछ गलत खयाल आ रहे थे, जिस से उस का जी घबराने लगा था.

कुछ देर बीता था कि जब उस का मन नहीं लगा तो वह धीरे से उठी और जंगल की ओर चल दी. वह घर से तकरीबन 200 मीटर की दूरी पर पहुंची ही थी कि अचानक जंगल से लगे रास्ते के किनारे पति जमुना की लाश देख कर वह दहाड़े मार कर रोने लगी.

शांति की चीखपुकार सुन कर मौके पर ग्रामीण जमा होने लगे थे. जंगल में शांति के पति जमुना की लाश देख कर हर कोई हैरान और परेशान था. किसी को कुछ समझ में नहीं आ पा रहा था कि उस की हत्या किस ने कर दी. शांति भी रोने के सिवा कुछ बोल नहीं पा रही थी.

जंगल में वन विभाग के चौकीदार की लाश मिलने की यह खबर कानोकान होते हुए हलिया थाने तक पहुंच गई थी. यह खबर पा कर एसएचओ संजीव कुमार सिंह कुछ पुलिसकर्मियों के साथ मौके पर पहुंच गए.

पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया तो किसी वजनी पत्थर से हत्या करने का शक हुआ. वह अधेड़ उम्र का था. मृतक के घर वालों ने उस की शिनाख्त जमुना के रूप में कर ली. थानाप्रभारी ने हत्या के संबंध में वहां मौजूद लोगों से बात करने के बाद इस घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दे दी.

सूचना पा कर वन क्षेत्राधिकारी रामनारायण जैसल, स्क्वायड टीम प्रभारी पवन कुमार सिंह, संतोष कुमार के साथ वहां पहुंच गए. सभी अधिकारी घटनास्थल का निरीक्षण करने लगे.

इस के बाद उन्होंने लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला मुख्यालय भिजवा दी. फिर मृतक जमुना के बेटे धर्मेंद्र कुमार की तरफ से भादंवि की धारा 302, 201 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर के जांच शुरू कर दी थी. यह बात शनिवार 4 फरवरी, 2023 की है.

मृतक की पहचान पहले ही वन विभाग के चौकीदार जमुना प्रसाद धरिकार (58 वर्ष) निवासी ग्राम फुलयारी के रूप में हो चुकी थी. जमुना वन विभाग के हलिया वन रेंज अंतर्गत चौराबीट जंगल में पेड़पौधों की रखवाली करता था. पुलिस के सामने सब से बड़ा सवाल यह था कि उस की हत्या किन परिस्थितियों में किस ने और क्यों की है?

पूछताछ के दौरान मृतक के घर वाले भी कुछ बता पाने में जहां असमर्थ थे, वहीं आसपास के लोग भी इस मामले से साफ पल्ला झाड़ रहे थे. ऐसे में पुलिस के सामने हत्या के कारणों को ले कर कई जटिल सवाल खड़े हो रहे थे. फिर भी पुलिस छानबीन की दिशा में आगे बढ़ने की कोशिश में जुट गई थी.

मीरजापुर के एसपी संतोष कुमार मिश्रा ने एएसपी श्रीकांत प्रजापति, एएसपी (औपरेशन) महेश अत्री व सीओ (लालगंज) की निगरानी में स्वाट टीम प्रभारी राजेश चौबे, इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस प्रभारी, एसओजी प्रभारी माधव सिंह एवं थाना हलिया की पुलिस टीमें गठित कर घटना का जल्द से जल्द खुलासा कर अभियुक्तों की गिरफ्तारी करने के निर्देश दिए.

उत्तर प्रदेश के मीरजापुर जिले के हलिया थाना क्षेत्र में एक गांव है फुलयारी. यहीं का रहने वाला जमुना प्रसाद धरिकार वन विभाग में चौकीदार (वाचर) था. उस की ड्यूटी हलिया वन रेंज के चौराबीट में थी. चौराबीट जमुना के घर से तकरीबन 200 मीटर की दूरी पर है, जहां वह रोज पेड़पौधों की रखवाली के लिए जाया करता था और शाम होने पर अपने घर लौट आता था. यह उस की दिनचर्या थी.

3 फरवरी, 2023 को भी वह अपनी ड्यूटी के लिए निकल गया था, जो काफी रात होने के बाद भी घर नहीं लौटा था. उस की दूसरे दिन 4 फरवरी, 2023 को सुबह लाश मिली थी.

मीरजापुर जिले का हलिया थाना जिला मुख्यालय से तकरीबन 65 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. हलिया थाना और हलिया वन रेंज दोनों ही जिले के अंतिम छोर पर स्थित होने के साथसाथ मध्य प्रदेश की सीमा से लगते हैं.

यह इलाका उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश का सरहदी इलाका भी कहलाता है. अपराध के साथसाथ हलिया वन रेंज क्षेत्र में रहने वाले दुर्लभ वन्यजीवों के लिए भी यह क्षेत्र सुविख्यात है. यहां तेंदुआ, मगरमच्छ, हिरन, भालू, जंगली सूअर, सांभर, अजगर सहित कई अन्य वन्य जीव पाए जाते हैं. इन में कुछ दुर्लभ वन्यजीव भी हैं.

यह जंगल कभी शेर और चीते की आवाजों से गूंजा करता था. दूरदूर तक फैले हरेभरे घनघोर जंगल और पहाड़ के चलते यहां लकड़ी माफियाओं से ले कर शिकारियों की भी आहट होती रहती है. ऐसे में इस क्षेत्र में पुलिस के साथसाथ वन विभाग द्वारा जंगली जीव और पेड़पौधों की सुरक्षा की खातिर व्यापक पैमाने पर वाचर (चौकीदारों) की तैनाती की गई है, जो पेड़पौधों की सुरक्षा से ले कर जंगली जीवजंतुओं के शिकार तथा पेड़ों के कटान पर नजर रखते हैं.

ऐसे में पुलिस टीम को वाचर जमुना प्रसाद की हत्या में शिकारियों या वन माफियाओं की संलिप्तता को ले कर भी संदेह बना हुआ था. इस संदेह के 2 कारण थे. पहला यह था कि शुक्रवार को जमुना जब घर से 200 मीटर दूर पौधरोपण की देखभाल करने के लिए गया था तो जंगल से कुछ लोग जलावनी लकडि़यों को काट कर ले जा रहे थे. उस ने उन लोगों को पकड़ कर काटी गई लकडि़यां और उन्हें काटने में प्रयुक्त होने वाली कुल्हाड़ी आदि अपने कब्जे में ले कर घर भिजवा दी थी.

उस के बाद वह फिर देखभाल करने के लिए जंगल में चला गया था, जहां से काफी देर होने के बाद भी वह घर नहीं लौटा था. शाम ढलने के बाद रात हो गई थी लेकिन उस का कुछ अतापता नहीं चला था. उस का मोबाइल फोन भी बंद था. ऐसे में उस का इंतजार करतेकरते घर वाले रात काफी होने पर सो गए थे.

दूसरे जमुना प्रसाद पर एक साल पहले हमला हुआ था, जिस की शिकायत उस ने हलिया थाने में की थी. घर वालों से मिली इस जानकारी को ध्यान में रखते हुए पुलिस टीम इस पर भी नजर गड़ाए हुए थी.

जमुना प्रसाद के घर वालों से मिली जानकारी और एसपी के निर्देशन में गठित पुलिस टीमों द्वारा इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस एवं भौतिक साक्ष्यों के आधार पर छानबीन की जा रही थी कि इसी बीच मुखबिर की एक सूचना ने पुलिस टीम को मानो डूबते को तिनके का सहारा देते हुए इस घटना के खुलासे के करीब पहुंचने की राह दिखाई.

एसएचओ संजीव कुमार सिंह इस केस को ले कर उलझे हुए थे कि तभी उन का एक खास मुखबिर उन के पास आ कर बोला, ‘‘साहब, आप के लिए एक बहुत खास सूचना ले कर आया हूं?’’

‘‘…तो फिर बोलो पहेलियां क्यों बुझा रहे हो?’’

‘‘हुजूर, आप जिस बात को ले कर उलझन में पड़े हुए हैं उस उलझी हुई कड़ी की दूसरी कड़ी मृतक के घर से ही सुलझ सकती है.’’ वह बोला.

मुखबिर के मुंह से इतनी बात सुन कर एसएचओ उस की ओर मुखातिब होते हुए बोले, ‘‘मतलब मैं नहीं समझा कि तुम क्या कहना चाहते हो?’’

‘‘साहब, सीधी सी बात है जमुना प्रसाद की हत्या का राज तो उस के घर में ही छिपा हुआ है.’’

इस के बाद मुखबिर ने सारी जानकारी उन्हें दे दी. मुखबिर की इस सूचना से संजीव कुमार सिंह के चेहरे पर खुशी के भाव दिखाई देने लगे थे. यह बात 10 फरवरी, 2023 की है. इस के बाद पुलिस टीम ने मृतक जमुना के दोनों बेटों संजय कुमार (30 वर्ष), बुद्धसेन (20 वर्ष) व फूलचंद्र धरिकार (50 वर्ष) निवासी फुलयारी को हिरासत में ले लिया. इन से जमुना की हत्या के संबंध में पूछताछ की गई तो इन्होंने जमुना की हत्या करने का अपराध कुबूल कर लिया.

पूछताछ के बाद जमुना की हत्या की जो कहानी खुल कर सामने आई, वह न केवल हैरान कर देने वाली थी, बल्कि बापबेटी के समान ससुर और बहू के रिश्ते को तारतार कर देने वाली निकली, जो इस प्रकार से है—

फुलयारी गांव के रहने वाले जमुना प्रसाद धरिकार (58) का 5 बेटों और 4 बेटियों का भरापूरा परिवार था. बेटों और बेटियों का घर बसा कर जमुना अपने परिवार के साथ राजीखुशी से रह रहा था.

बेटे जहां मेहनतमजदूरी कर घर चला रहे थे तो वह वन विभाग में वाचर (चौकीदार) था. खापी कर सुबह जाता था तो शाम ढले घर लौट आया करता था.

एक दिन की बात है. रोज की तरह जमुना जल्दी से तैयार हो कर घर से निकलने ही वाला था कि तभी उस की पत्नी उस के पास आ कर बोली, ‘‘बस 5 मिनट रुको, बहू खाना ले कर आ रही है. कुछ खा लो तब जाना. मैं भी बकरियों को घास खिलाने ले जा रही हूं.’’

पत्नी की बात सुन कर जमुना रुक गया था. शांति घर से बाहर निकली थी कि तभी बेटे संजय की पत्नी सुमन भोजन की थाली ले कर आ खड़ी हुई थी. बहू के हाथ में भोजन की थाली देख कर जमुना ने भी सोचा कि जब बहू खाना ले ही आई तो खा लेता हूं. इस के बाद वह खाना खाने के लिए नीचे जमीन पर बिछी चटाई पर बैठ गया.

जमुना के चटाई पर बैठते ही सुमन भोजन की थाली नीचे रखने के लिए झुकी ही थी कि उस की साड़ी का पल्लू पूरी तरह से सरक कर नीचे आ गया, जिस से उस के गदराए बदन को देखते ही जमुना के तनमन में विचलन होने लगी थी.

झट से साड़ी का पल्लू संभालते हुए सुमन मारे शर्म से लालपीली होती हुई कमरे में चली गई तो वहीं जमुना उसे एकटक देखता ही रह गया था. खाना खाने के बाद जमुना बहू को आवाज लगाते हुए जंगल की ओर निकल तो गया था, लेकिन उस के दिलोदिमाग में बहू का गदराया बदन, उस के उभार उसे चैन से रहने नहीं दे रहे थे.

सुमन भी उस पल को याद कर शर्म से लाल हुए जा रही थी तो कभी साड़ी का पल्लू दांतों से दबाए हुए मन ही मन हंस पड़ती थी. 2 दिन बीते थे कि अचानक सुमन का सामना ससुर जमुना से हुआ तो वह उसी पल को याद कर शर्म से पानीपानी हुए जा रही थी, जबकि जमुना उसे एकटक देखे जा रहा था.

उस दिन शाम के समय जमुना जब काम से लौटा तो बहू को पानी के लिए आवाज लगाई. जैसे ही सुमन ने पानी भरा गिलास ससुर के आगे बढ़ाया तो जमुना ने गिलास के साथ बहू के हाथों को भी थाम लिया था. झट से हाथ छुड़ा कर सुमन मुसकान बिखेरते हुए चली गई थी. बहू की बस यही अदा जमुना को दीवाना कर गई थी.

फिर क्या था, जमुना अब अवसर की तलाश में जुट गया था. कुछ ही दिन बीते थे कि एक रोज जमुना दोपहर में ही घर लौट आया.

बेटे जहां कामधंधे पर निकले थे तो वहीं पत्नी शांति भी छोटी बेटी व बहू के साथ खेतों की ओर गई थी. घर में अकेली सुमन ही थी. वह भी घर के कामकाज से खाली हो कर आंगन में नहाने के लिए बैठी थी.

चूंकि उस दिन अचानक से हवा तेज होने से ठंड का असर बढ़ गया था सो उस ने यही सोचा कि थोड़ा धूप कड़क हो जाए तो नहाया जाए. सुमन जैसै ही सारे कपड़े उतार कर सिर्फ पेटीकोट पहने नहाने को हुई थी कि तभी अचानक से ससुर आंगन में आ गया. सामने बहू को उस अवस्था में देख जहां उस की आंखें फटी रह गईं तो वहीं बहू सुमन ने अपने उभारों को दोनों हाथों से ढकने का प्रयास करते हुए गरदन झुका ली.

यह देख कर झट से जमुना पीछे मुड़ा और घर की किवाड़, जो आते वक्त खुला हुई थी, को बंद कर वापस लौट आया. बिना देर किए उस ने बहू सुमन को बांहों में भर लिया और उस के बदन को सहलाने लगा.

ससुर की इस हरकत का सुमन ने विरोध करते हुए उस की बांहों की जकड़न से छूटने का प्रयास करते हुए कहा, ‘‘ब..ब.. बाबूजी, ये क्या कर रहे हैं आप? हटिए, छोडि़ए…’’

सुमन का इतना कहना था कि जमुना ने अपनी बांहों के बंधन को और मजबूत करते हुए उस के अधरों को चूमना शुरू कर दिया.

‘‘बाबूजी छोडि़ए, कोई आ गया तो…’’

उस की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि जमुना बोला, ‘‘इस की फिक्र मत करो, मैं ने किवाड़ की कुंडी चढ़ा दी है, जिसे तू चढ़ाना भूल गई थी.’’

इतना कह कर उस ने सुमन को गोद में उठा लिया. पहले तो सुमन ससुर की बांहों से मुक्त होने के लिए हाथपैर मार रही थी, लेकिन धीरेधीरे उस ने हाथपैर मारने बंद किए तो जमुना भी उस की मौन सहमति को समझ गया. फिर आंगन में ही बिछी चारपाई पर ले जा कर सुमन को लिटा दिया. इस के बाद उस ने अपनी हसरतें पूरी कीं.

जिस्मों की प्यास बुझी तो दोनों अलग हुए. एक बार यह सिलसिला शुरू हुआ तो फिर यह चलता ही रहा. दोनों को जब भी समय मिलता, दो जिस्म एक जान हो जाते थे.

ससुरबहू की इस लुकाछिपी का खेल ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाया. किसी तरह बात पत्नी शांति के कानों से होते हुए बेटे संजय तक पहुंच गई थी. फिर क्या था, पूरे घर में भूचाल आ गया था.

इस बात को ले कर घर में आए दिन कलह होने लगी. अंत में वही हुआ, जिस की जमुना ने सपने में भी कल्पना नहीं की होगी.

काफी समझाने, घर की इज्जत का हवाला देने के बाद भी जब जमुना नहीं माना तो बेटे संजय ने अपने भाई बुद्धसेन को यह बात बताई.

पिता की इस करतूत ने दोनों भाइयों के खून में उबाल ला दिया. फिर उन्होंने अपने दोस्त और पड़ोसी फूलचंद्र धरिकार के साथ मिल कर पिता को ठिकाने लगाने की योजना बनाई.

फिर योजना के अनुसार संजय कुमार ने अपने भाई बुद्धसेन व पड़ोसी फूलचंद्र धरिकार के साथ मिल कर घर पर ही पिता के सिर पर पत्थर से प्रहार कर हत्या कर दिया. किसी को शक न हो, इसलिए शव को घर से कुछ दूरी पर ले जा कर डाल दिया था और हत्या में प्रयुक्त पत्थर भी छिपा दिया.

पुलिस ने संजय कुमार, बुद्धसेन व फूलचंद्र धरिकार से पूछताछ के बाद इन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त पत्थर भी बरामद कर लिया इस के बाद सभी आरोपियों को सक्षम न्यायालय में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया है.

एसपी संतोष कुमार मिश्रा ने केस का खुलासा करने वाली टीम को पुरस्कृत करने की घोषणा करने के साथ पीठ भी थपथपाई.       द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में कुछ पात्रों के नाम काल्पनिक हैं