प्रेमिका और अपने ही बच्चों की हत्या – भाग 3

सन 2009 में सोनू की पहली शादी जावरा रोड निवासी नगमा नाम की युवती से हुई थी, जो उम्र में सोनू से बड़ी थी. मगर ज्यादा दिनों तक उस के साथ सोनू की नहीं निभी.

2012 से दोनों का कोर्ट में तलाक का केस चला तो कोर्ट ने सोनू को 1500 रुपए महीना भरणपोषण भत्ता देने का आदेश दिया था. इसी बात को ले कर सोनू परेशान रहने लगा. उसे नगमा को ये पैसा देना बहुत अखरता था.

नगमा से तलाक न मिल पाने की वजह से अपने बच्चों को पिता का नाम नहीं दे पा रहा था. इसलिए नगमा के प्रति सोनू के मन में नफरत इस कदर घुल चुकी थी कि वह नगमा को मारने की ठान चुका था, मगर उसे मौका नहीं मिला.

सोनू और निशा भले ही 2014 से लिवइन में रह कर पतिपत्नी की तरह जिंदगी गुजार रहे थे, परंतु दोनों के पास शादी के कोई वैधानिक दस्तावेज नहीं थे. पहली पत्नी नगमा से सोनू का तलाक न होने की वजह से उस की निशा से कोर्टमैरिज भी नहीं हो पाई थी.

धीरेधीरे जब उन के बच्चे बड़े होने लगे तो निशा इस बात को ले कर परेशान रहने लगी. बच्चों को पिता का नाम नहीं मिल रहा था, इस वजह से नगर निगम के कागजों में बच्चों के नाम नहीं जुड़ पा रहे थे और न ही स्कूल में उन के बच्चों के एडमिशन हो रहे थे.

पुलिस की जांच में सामने आया है कि कुछ महीनों से निशा और सोनू के बीच झगड़ा हो रहा था. झगड़े की वजह सोनू की अय्याशी भी थी. सोनू निशा के अलावा किसी दूसरी महिला से रिलेशनशिप में था, इस बात को ले कर निशा उसे भलाबुरा कहती थी. निशा उसे बच्चों का वास्ता दे कर समझाती थी.

सोनू व निशा के बीच बच्चों को स्कूल में एडमिशन दिलाने, पिता का दरजा देने व अन्य बातों को ले कर विवाद बढ़ने लगा था. नवंबर 2022 में उन के बीच जम कर विवाद हुआ था.

बच्चों का वास्ता दे कर निशा उसे समझाती थी, ‘‘इन बच्चों की खातिर अब तो सुधर जाओ.’’

इस पर सोनू तैश में आ जाता.  हत्या वाले दिन 12 नवंबर, 2022 को भी सोनू शराब पी कर घर आया था. इस बात को ले कर दोनों के बीच जम कर लड़ाई हुई थी. नौबत हाथापाई पर आ गई तो इस के बाद ही सोनू ने आवेश में आ कर कुल्हाड़ी से अपने जिगर के टुकड़े दोनों बच्चों की और उस के बाद निशा की हत्या कर दी.

हत्या के बाद सोनू ने अपने दोस्त सैलाना यार्ड निवासी जितेंद्र उर्फ बंटी कैथवास को फोन कर के घर बुला लिया. दोनों ने मिल कर पहले तो शराब पी और फिर लाशों को ठिकाने लगाने के लिए घर में ही गड्ढा खोदने का प्लान बनाया.

दूसरे दिन पानी का टैंक बनाने के लिए 2 मजदूरों को सोनू के घर बंटी ही लाया था. मजदूर जब गड्ढा खोद कर चले गए तो बंटी और सोनू ने तीनों लाशों को उस में डाल कर ऊपर मिट्टी डाल दी. तीनों लोगों को बरामदे में दफनाने के बाद आरोपी सोनू नौकरी पर जाने लगा.

वह अकेला ही घर पर रह रहा था. घर के आसपास कोई मकान नहीं बने होने का फायदा भी सोनू को मिल रहा था. कालोनी के लोग जब बीवीबच्चों के संबंध में पूछते तो वह कहता कि बीवी घर से पैसे ले कर बच्चों के साथ घर छोड़ कर चली गई है.

कालोनी के लोगों ने जब शिकायत की तो पुलिस पूछताछ में शुरुआत में पत्नी निशा से झगड़ा होने और बच्चों को ले कर उस के कहीं चले जाने की बात कहता रहा. मगर पुलिस की खोजी नजरों से वह बच नहीं पाया और सख्ती करने पर वह जल्द ही टूट गया.

पुलिस पूछताछ में आरोपी सोनू ने बताया कि वह पारिवारिक कलह से परेशान हो चुका था.

उस ने पूछताछ के दौरान एसपी अभिषेक तिवारी के सामने यह कुबूल किया कि वह अपनी पहली पत्नी नगमा की भी हत्या करना चाहता था. इस के लिए वह एकदो बार प्रयास भी कर चुका था. उस का कहना था कि वह नगमा की हत्या करने के बाद पुलिस के सामने सरेंडर कर देता. मगर अपने बिछाए जाल में वह खुद ही फंस गया.

सोनू और बंटी को 23 जनवरी को  न्यायालय में पेश किया गया, जहां से न्यायालय ने दोनों को 25 जनवरी तक पुलिस रिमांड पर रखने के आदेश दिए थे.

2 दिन के रिमांड पर पुलिस ने दोनों से सख्त पूछताछ कर 25 जनवरी को फिर से कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें रतलाम जेल भेज दिया गया.      द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

ले बाबुल घर आपनो : सीमा ने क्या चुना पिता का प्यार या स्वाभिमान – भाग 3

कुछ दिन तक तो वे समय पर घर पहुंचते रहे थे. लेकिन क्रम टूटते ही घर में तूफान आ जाता था. एक बार तो सीमा ने हद कर दी थी. महाराज के बारबार खाने के लिए बुलाने पर उस ने खाने की मेज ही उलट कर रख दी थी, और चिल्ला कर कहा था,

‘मैं शीला चाची के यहां जा रही हूं. डाक्टर साहब के साथ शतरंज खेलूंगी. पिताजी से कह देना, जिस समय मेरा मन होगा, मैं वापस आऊंगी. मुझे वहां लेने आने की कोई जरूरत नहीं.’ और वह दनदनाती हुई चली गई थी.

जब शंभुजी को पता चला तो वे चाह कर भी उसे लेने नहीं जा सके थे. उन्हें डर था, ‘जिद्दी लड़की है, वहीं कोई नाटक न शुरू कर दे.’

12 बजे के करीब डाक्टर साहब का बेटा दीपक उसे छोड़ने आया था तो वह बिना उन्हें देखे अपने कमरे में चली गई थी. पीछेपीछे भारी कदमों से उन्हें उस के कमरे में जाना पड़ा था, ‘खाना नहीं खाओगी, बेटी?’

‘मैं ने खा लिया है,’ वह लापरवाही से बोली थी.

‘तुम डाक्टर साहब के यहां रात को क्यों गई थी?’ उन्होंने सख्ती से पूछा था.

‘आप भी तो वहां जाते हैं. वे भी हमारे घर आते हैं,’ वह भी सख्त हो गई थी.

‘वे मेरे मित्र हैं, बेटी. तुम समझती क्यों नहीं? तुम अब बड़ी हो गई हो. रात को अकेले तुम्हें…’ आगे वे बात पूरी नहीं कर सके थे.

‘मैं वहां जरूर जाऊंगी. दीपक मुझे घुमाने ले जाता है. मेरा खयाल रखता है. वह भी मेरा दोस्त है. जब आप को फुरसत नहीं मिलती तो मैं अकेली क्या करूं?’इतना सुनते ही उन का सिर चकराने लग गया था. इन बातों का तो उन्हें पता ही नहीं था. वे तो अपने काम में ही इतने व्यस्त रहते थे कि बाहर क्या हो रहा है, कुछ जानते ही न थे. डाक्टर साहब जरूर उन्हें कभीकभी खींच कर पार्टियों में या क्लब में ले जाते थे.

फिर उन्हें यह भी जानकारी मिली कि, सीमा दीपक के साथ फिल्म देखने भी जाती है तो वे बड़े परेशान हो गए थे. पहले तो उन्हें सीमा पर गुस्सा आया था कि कभी मुझ से पूछती तक नहीं, लेकिन फिर वे स्वयं पर भी नाराज हो उठे थे, उन्होंने ही बेटी से कब, कुछ जानना चाहा था.

सीमा कुछ और सयानी हो गई थी. उन्होंने भी सोचा था, ‘दीपक अच्छा लड़का है. अगर सीमा उसे पसंद करती है तो वे उस की इस खुशी को जरूर पूरा करेंगे. सीमा के सिवा उन का है ही कौन? यह घर, यह कारोबार किसी को तो संभालना ही है. फिर दीपक तो बड़ा ही प्यारा लड़का है.’ और वे निश्ंिचत हो गए थे.

अब वे सीमा से हमेशा दीपक के बारे में पूछा करते थे. वे यह भी देख रहे थे, सीमा धीरेधीरे गंभीर होती जा रही है.

एक दिन बातोंबातों में सीमा ने कहा था, ‘पिताजी, आप क्यों नहीं किसी को अपने विश्वास में ले लेते? उसे सारा काम समझा दीजिए, तो आप का कुछ बोझ तो हलका हो ही जाएगा. आप को कितना काम करना पड़ता है.’

‘हां, बेटा, मैं भी कई दिनों से यही सोच रहा था. पहले तुम्हारे हाथ पीले कर दूं, फिर कारोबार का बोझ भी अपने ऊपर से उतार फेंकूं. अब मैं भी बहुत थक गया हूं, बेटी.’

‘आप एक चैरिटेबल ट्रस्ट क्यों नहीं बना देते? उस से जितना भी लाभ हो, गरीबों की सहायता में लगा दिया जाए. गरीबों के लिए एक अस्पताल बनवा दीजिए. एक स्कूल खुलवा दीजिए. इतने पैसों का आप क्या करेंगे?’

‘बेटी, अपना हक यों बांट देना चाहती हो,’ वे हैरानी से बोले थे.

‘मैं भी इतना पैसा क्या करूंगी. आदमी की जरूरतें तो सीमित होती हैं, और उसी में उसे खुशी होती है. इतना पैसा किस काम का जो किसी दूसरे के काम न आ सके, बैकों में पड़ापड़ा सड़ता रहे. सब बांट दीजिए, पापा.’

‘कैसी बातें करती हो, मैं ने सारी जिंदगी क्या इसी लिए खूनपसीना एक किया है कि मैं कमा कर लोगों में बांटता फिरूं. तुम नहीं जानतीं. मैं ने इसी व्यापार को बढ़ाने की खातिर क्या कुछ खोया है?’

‘मुझे सब पता है, पापा. इसी लिए तो कहती हूं, आप समेटतेसमेटते फिर कुछ न खो बैठें. एक बार बांट कर तो देखिए, आप को कितना सुख मिलता है. जो खुशी दूसरों के लिए कुछ कर के हासिल होती है, वह खुद के लिए समेट कर नहीं होती.’

‘यह तुम क्या कह रही हो?’

‘डाक्टर चाचा भी तो यही कहते हैं, पापा, देखिए न, वे गरीबों का मुफ्त इलाज करते हैं. वे हमेशा यही कहते हैं, बस, जितने की मुझे जरूरत होती है, मैं रख लेता हूं, बाकी दूसरों को दे देता हूं, ताकि मेरे साथसाथ दूसरों का भी काम चलता रहे.’

वे बेटी का मुंह देखते रह गए थे. अच्छा हुआ सीमा ने बात खोल दी, नहीं तो वे कितनी बड़ी गलती कर बैठते. नहीं, नहीं, उन्हें तो ऐसा लड़का चाहिए जो व्यापार को संभाल सके. वे इस तरह अपनी दौलत को कभी नहीं लुटाएंगे. और उन्होंने निश्चय किया था, वे अपनी तरफ से तलाश शुरू कर देंगे. यह काम जल्दी ही करना होगा.

जल्दी काम करने का नतीजा भी सीमा की नजरों से छिपा नहीं रहा. शंभुजी के औफिस की टेबल पर उस ने जब कई लड़कों के फोटो देखे तो वह सबकुछ समझ गई थी. उसी दिन वे कोलकाता जाने वाले थे. सीमा ने सबकुछ देखने के बाद केवल इतना ही कहा था, ‘पापा, आप इतनी जल्दी न करें, तो अच्छा है.’

‘तुम्हें मेरे फैसले पर कोई आपत्ति है.’

‘मेरा अपना भी तो कोई फैसला हो सकता है,’ उस ने दृढ़ता से कहा था.

‘मुझे तुम्हारे फैसले पर आपत्ति नहीं, बेटी. दीपक मुझे भी पसंद है. लेकिन मेरी भी तो कुछ खुशियां हैं, कुछ इच्छाएं हैं. तुम जानती हो, दीपक को शादी के बाद…’

‘आप पहले कोलकाता हो आइए. इस बारे में हम फिर बात करेंगे,’ उस ने उन की बात काट दी थी.

वे निश्ंिचत हो कर चले गए थे, और आज वापस आए थे. लेकिन दरवाजे पर इंतजार करती सीमा कहीं नजर नहीं आ रही थी.

वे तेजी से उस के कमरे में गए, शायद उस ने कोई मैसेज छोड़ा हो लेकिन कहीं कुछ भी नहीं था. सबकुछ व्यवस्थित था. तभी नौकर ने आ कर धीरे से कहा, ‘‘सीमा बिटिया आ गई है.’’

सीमा जब उन के सामने आ कर खड़ी हुई थी तो वे उसे अपलक देखते रह गए थे. इन 6 दिनों में सीमा को क्या हो गया है. लगता है, जैसे इतने दिनों तक सोई ही न हो, ‘‘कहां गई थी, बेटी?’’

‘‘रमेशजी के यहां, मां की तबीयत ठीक नहीं थी. उन्होंने बुलवा भेजा था.’’

‘‘मां…कौन मां?’’ वे हैरान थे.

‘‘रेखा चाची, यानी शरदजी की मां. शरदजी की भी तबीयत ठीक नहीं है. मैं यही बताने आई थी, कहीं आप चिंता न करने लगें. मुझे अभी फिर वापस जाना है. उन की देखभाल करने वाला कोई नहीं. दोनों बीमार हैं. शायद मुझे रात को भी वहीं रहना पड़े.’’

‘‘उन का नौकर उन की…’’ वे बात पूरी नहीं कर सके थे.

‘‘जितनी सेवा कोई अपना कर सकता है, उतनी सेवा क्या नौकर करेगा? मेरा मतलब तो आप समझ गए न, मैं ने कहा था न, पिताजी मेरा भी कोई फैसला हो सकता है.’’

‘‘और डाक्टर का बेटा दीपक?’’ वे हैरान थे.

‘‘वह तो बचपन की पगडंडियों पर लुकाछिपी खेलने वाला दोस्त था, जो जवानी के मोड़ पर आ कर आप की दौलत से भी आंखमिचौली खेलना चाहता था. मुझे जीवनसाथी की जरूरत है, पापा, दौलत पर पहरा देने वाले पहरेदार की नहीं. मैं जानती हूं, आप को मेरी बातों से दुख हो रहा है. लेकिन यह भी तो सोचिए, लड़की के जीवन में एक वह भी समय आता है जब वह बाबुल का घर छोड़ कर पति के घर जाने के लिए आतुर हो जाती है. इसी में उसे जिंदगी का सुख मिलता है. मांबाप की भी तो यही खुशी होती है कि लड़की अपने घर में सुखी रहे. आप शरद को भी बचपन से जानते हैं, आप भी अपना फैसला बदल डालिए, इसी में मेरी खुशी है और आप का सुख,’’ और वह जाने को तैयार हो गई.

‘‘रुक जाओ, बेटी, मुझे तुम्हारा फैसला मंजूर है. तुम ने तो एकसाथ मेरे दोदो बोझ हलके कर दिए हैं. बेटी का बोझ और धन का बोझ. इसे भी अपनी मरजी से ठिकाने लगा देना, बेटी, जिस से कइयों को खुशियां मिलती रहें,’’ कहतेकहते उन की आंखें नम हो गई थीं.

‘‘पापा,’’ वह भाग कर मुद्दत से प्यासे पापा के हृदय से लग कर रो पड़ी थी.

एहसान फरामोश : भांजे ने की मामा की हत्या – भाग 3

संदीप का सोचना था कि इसी बहाने वह आगरा आता रहेगा, जहां उसे प्रेमिका से मिलने में कोई परेशानी नहीं होगी. शिवम को लगभग 1 लाख रुपए के रेडीमेड कपड़े दिलवा दिए गए. जिस से कमा कर देने की कौन कहे, शिवम ने पूंजी भी गंवा दी. संदीप को गड़बड़ी का आभास हुआ तो वह देवेंद्र के साथ आगरा पहुंचा.

आगरा पहुंच कर दोनों भाइयों को पता चला कि शिवम ने व्यापारियों से पैसे ले कर जुए और शराब पर खर्च कर दिए हैं. यह जान कर संदीप ने शिवम की पिटाई तो की ही, फिरोजाबाद ले जा कर बहन से भी उस की शिकायत की. यही नहीं, उस की प्रेमिका को बुला कर उस से भी सारी बात बता दी. जब शिवम की प्रेमिका को पता चला कि उसे गर्भवती बता कर शिवम ने मामा से पैसे ठगे हैं तो उसे बहुत गुस्सा आया. उस ने उसी दिन शिवम से संबंध तोड़ लिए.

संदीप ने तो अपनी समझ से शिवम के लिए अच्छा किया था, पर उस की यह हरकत शिवम को ही नहीं, मंजू को भी नागवार गुजरी. बहन ने बेटे को समझाने के बजाय उस का पक्ष लिया. मां की शह मिलने से शिवम का हौसला और बुलंद हो गया. फिर क्या था, वह मामा से बदला लेने की सोचने लगा.

संदीप समझ गया कि अब शिवम कभी नहीं सुधरेगा, इसलिए उस ने सोच लिया कि अब वह उस की कोई मदद नहीं करेगा. दूसरी ओर शिवम मामा से अपने अपमान का बदला लेने की योजना बनाने लगा. इस के लिए उस ने आगरा के थाना सिकंदरा के मोहल्ला नीरव निकुंज में दीवानचंद ट्रांसपोर्टर के मकान में ऊपर की मंजिल में एक कमरा किराए पर लिया. अब वह इस बात पर विचार करने लगा कि मामा को कैसे गुड़गांव से आगरा बुलाया जाए, जिस से वह उस से बदला ले सके?

काफी सोचविचार कर उस ने एक कहानी गढ़ी और 6 मई, 2017 को गुड़गांव मामा के पास पहुंचा. क्योंकि उस दिन मकान मालिक परिवार के साथ कहीं बाहर गए हुए थे. घर खाली था. उसे देख कर न संदीप खुश हुआ और न देवेंद्र. इसलिए दोनों ने ही पूछा, ‘‘अब तुम यहां क्या करने आए हो?’’

‘‘मामा, मैं जानता हूं कि आप लोग मुझ से काफी नाराज हैं, इसीलिए मुझे आना पड़ा. क्योंकि मैं फोन करता तो आप लोग मेरी बात पर यकीन नहीं करते. एक व्यापारी ने पैसे देने को कहा है, मैं चाहता हूं कि आप खुद चल कर वह पैसा ले लें.’’ शिवम ने कहा.

‘‘भैया, इस की बात पर बिलकुल विश्वास मत करना.’’ देवेंद्र ने शिवम को घूरते हुए कहा.

लेकिन शिवम कसमें खाने लगा तो संदीप को उस की बात पर यकीन करना पड़ा. शिवम के झांसे में आ कर वह उसी दिन यानी 6 मई को शिवम के साथ चल पड़ा. शाम को संदीप शिवम के साथ उस के कमरे पर पहुंच गया. गुड़गांव से चलते समय संदीप ने उमा को फोन कर के आगरा आने की बात बता दी थी.

कमरे पर पहुंचते ही शिवम ने संदीप को कोल्डड्रिंक पिलाई, जिसे पीते ही उसे अजीब सा लगने लगा. कुछ देर बाद उमा आई तो उस ने यह बात उसे भी बताई. तब उमा ने शिवम से पूछा, ‘‘तुम ने कोल्डड्रिंक में कुछ मिलाया तो नहीं था?’’

उमा के इस सवाल पर शिवम एकदम से घबरा गया. लेकिन उस ने तुरंत खुद को संभाल कर कहा, ‘‘आप भी कैसी बातें कर रही हैं, मैं भला मामा के कोल्डड्रिंक में कुछ क्यों मिलाऊंगा?’’

इस के बाद यह बात यहीं खत्म हो गई. अगले दिन रेस्टोरेंट में मिलने का वादा कर के उमा चली गई. उस दिन शिवम सुबह ही से गायब हो गया. उस का मोबाइल फोन भी बंद हो गया. शिवम का कुछ पता नहीं चला तो संदीप ने उमा को फोन किया और कमलानगर स्थित एक रेस्टोरेंट में पहुंचने को कहा.

उमा के साथ खाना खाते हुए भी संदीप ने कहा कि अभी भी उस की तबीयत ठीक नहीं है. तब उमा ने कहा, ‘‘कहीं गरमी की वजह से तो ऐसा नहीं हो रहा?’’

‘‘जो कुछ भी हो, अब मैं कमरे पर जा कर आराम करना चाहता हूं.’’ संदीप ने कहा.

इस के बाद उमा अपने घर चली गई तो संदीप कमरे पर आ गया. संदीप कमरे पर पहुंचा तो शिवम कमरे पर ही मौजूद था. उस ने उसे डांटते हुए पूछा, ‘‘कहां था तू? तुझे पता था कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है.’’

‘‘एक दोस्त से मिलने चला गया था.’’ शिवम ने कहा.

संदीप कुछ और कहता, उस के छोटे बहनोई कमल सिंह का फोन आ गया. उस ने बहनोई को बताया कि इस समय वह आगरा में शिवम के कमरे पर है. लेकिन उस की तबीयत ठीक नहीं है. ऐसा कोल्डड्रिंक पीने से हुआ है.

कमल सिंह ने उसे ग्लूकोन डी या नींबूपानी पीने की सलाह दी. शिवम तुरंत ग्लूकोन डी ले आया और पानी में घोल कर संदीप को पिला दिया. ग्लूकोन डी पीने के बाद संदीप की तबीयत ठीक होने की कौन कहे, वह बेहोश हो गया.

इस के बाद शिवम ने संदीप का ही नहीं, अपना फोन भी बंद कर दिया. वह बाजार गया और 2 नए ट्रौली बैग खरीद कर ले आया. ये बैग उस ने संदीप के पर्स से पैसे निकाल कर विशाल मेगामार्ट से खरीदे थे. चाकू उस ने पहले ही 2 सौ रुपए में खरीद कर रख लिया था. उस ने संदीप की कोल्डड्रिंक में भी नशीली दवा मिलाई थी और ग्लूकोन डी में भी. इसीलिए वह ग्लूकोन डी पीते ही बेहोश हो गया था. सारी तैयारी कर के पहले तो शिवम ने ईंट से संदीप के सिर पर वार किए, उस के बाद चाकू से उस का सिर धड़ से काट कर अलग कर दिया.

सिर को वह एक पौलीथिन में डाल कर बोदला रेलवे ट्रैक के पास की झाडि़यों में फेंक आया. इस के बाद धड़ से पैरों को अलग किया और ट्रौली बैग में भर कर बोदला रेलवे ट्रैक के पास तालाब में फेंक आया. चाकू भी उस ने उसी तालाब में फेंक दिया था.

वापस आ कर पहले उस ने कमरे का खून साफ किया, उस के बाद फिनायल से धोया. गद्दे में खून लगा था. उसे ठिकाने लगाने के लिए उस ने मकान मालिक से कहा कि उस के गद्दे में चूहा मर गया है, इसलिए वह उसे जलाने जा रहा है. इस के बाद पड़ोस के खाली पड़े प्लौट में गद्दे को ले जा कर जला दिया. इतना सब कर के वह निश्चिंत हो गया कि अब उस का कोई कुछ नहीं कर सकता.

लेकिन जिस तरह हर अपराधी कोई न कोई गलती कर के पकड़ा जाता है, उसी तरह शिवम भी कैलाश के फोन से आशीष को फोन करके पकड़ा गया. संदीप अब इस दुनिया में नहीं है, यह जान कर घर में कोहराम मच गया. पता चला कि थाना सिकंदरा द्वारा बरामद की गई लाश संदीप की ही थी. पुलिस को वह पौलीथिन तो मिल गई थी, जिस में संदीप का सिर रख कर फेंका गया था, लेकिन सिर नहीं मिला था. धड़ और पैर तालाब से बरामद हो गए थे.

पुलिस ने पोस्टमार्टम करा कर धड़ और पैर घर वालों को सौंप दिए थे. संदीप की मौत से पूरा गांव दुखी था, क्योंकि वह गांव का होनहार लड़का था. मंजू के लिए परेशानी यह है कि अब तक भाइयों से रिश्ता निभाए या बेटे की पैरवी करे. बड़े भाई विजय ने तो साफ कह दिया है कि वह बेटे की हो कर रहे या उन लोगों की. क्योंकि दोनों की हो कर वह नहीं रह सकती.

पूछताछ के बाद पुलिस ने शिवम को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. शिवम ने मामा की हत्या कर उस थाली में छेद किया है, जिस में खा कर वह इतना बड़ा हुआ है. ऐसे आदमी को जो भी सजा मिले, वह कम ही होगी.

नौकर के प्यार में : परिवार को बनाया निशाना – भाग 3

एक रोज बेटी ने अपनी मां को नौकर के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. अपनी मां का यह रूप देख कर बेटी को उस से नफरत सी हो गई. मां का यह रूप देख कर उसे कई दिन तक कुछ भी अच्छा नहीं लगा. वह सोचने लगी कि क्या किया जाए. इसी बीच एक दिन फिर उस ने अपनी मां को नौकर जितेंद्र के साथ देख लिया.

तब उस ने अपने पापा को लिखे एक पत्र में मम्मी की करतूत और नौकर को हटाने के बारे में लिखा. पत्र पापा के पास पहुंचने से पहले ही वह छोटे भाई वैभव व बहन ऋचा के हाथ लग गया. दोनों बहनभाइयों ने वह पत्र छिपा दिया. उन्हें पता था कि पापा ने यह पत्र देख लिया तो मम्मी की खैर नहीं होगी. बस, उन मासूमों को क्या पता था कि मम्मी को बचाने के चक्कर में वह पापा को एक दिन खो देंगे.

पत्र गायब हुआ तो बड़ी बेटी भी चुप्पी लगा गई. एक साल पहले प्रेमनारायण ने बेटी की शादी कर दी. वह अपनी ससुराल चली गई. कोरोना काल में प्रेमनारायण काफी समय तक घर पर रहे. तब रुक्मिणी को अपने प्रेमी से एकांत में मिलने का मौका नहीं मिला. जब स्कूल खुल गए तब प्रेमनारायण फतेहगढ़ चले गए.

पति के जाने के बाद रुक्मिणी और जितेंद्र का खेल फिर से शुरू हो गया. लेकिन छुट्टी पर प्रेमनारायण गांव आते तो बीवी को वह फूटी आंख नहीं सुहाते थे. वह उन से बिना किसी बात के लड़तीझगड़ती रहती. तब वह ड्यूटी पर चले जाते. रुक्मिणी यही तो चाहती थी. इस के बाद वह नौकर के साथ रंगरलियां मनाती.

प्रेमनारायण को अपनी बीवी और नौकर जितेंद्र के व्यवहार से ऐसा लगा कि कुछ गड़बड़ है. एकदो बार प्रेमनारायण ने बीवी से इस बारे में पूछा तो वह उलटा उस पर चढ़ दौड़ी. रुक्मिणी को अंदेशा हो गया कि उस के पति को नौकर के साथ संबंधों का शक हो गया है. तब उस ने नौकर जितेंद्र के साथ साजिश रची कि अब वह प्रेमनारायण को रास्ते से हटा कर अपने हिसाब से जीवन जिएंगे. रुक्मिणी के कहने पर जितेंद्र यह काम करने को राजी हो गया.

घटना से 10 दिन पहले प्रेमनारायण छुट्टी पर घर आए थे. होली के बाद उन्हें वापस फतेहगढ़ जाना था. इन 10 दिनों में रुक्मिणी और जितेंद्र को एकांत में मिलने का मौका नहीं मिला. ऐसे में रुक्मिणी और उस के प्रेमी ने तय कर लिया कि अब जल्द ही योजना को अंजाम दिया जाएगा, तभी वह चैन की जिंदगी जी सकेंगे. जितेंद्र ने अपने दोस्त हंसराज को 20 हजार का लालच दे कर योजना में शामिल कर लिया.

25 मार्च, 2021 की आधी रात को योजना के तहत जितेंद्र और हंसराज तलवार और कुल्हाड़ी ले कर रुक्मिणी के घर के पीछे पहुंचे.

रुक्मिणी ने पहली मंजिल पर जा कर मकान के पीछे वाली खिड़की से रस्सा नीचे फेंका. रस्से के सहारे जितेंद्र और हंसराज मकान की पहली मंजिल पर खिड़की से आ गए.

इस के बाद घर के आंगन में बरामदे में सो रहे मास्टर प्रेमनारायण पर नींद में ही तलवार और कुल्हाड़ी से हमला कर मार डाला. इस के बाद जिस रास्ते से आए थे, उसी रास्ते से अपने हथियार ले कर चले गए.

रुक्मिणी निश्चिंत हो कर कमरे में जा कर सो गई. सुबह जब मृतक का भतीजा राजू दूध लेने आया तो उस की चीखपुकार सुन कर रुक्मिणी आंखें मलती हुई कमरे से बाहर आई. वह नाटक कर के रोनेपीटने लगी. मगर उस की करतूत बच्चों ने चिट्ठी से खोल दी.

पुलिस ने पूछताछ पूरी होने पर तीनों आरोपियों को कोर्ट में पेश किया, जहां से रुक्मिणी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया. जितेंद्र व हंसराज को 3 दिन के पुलिस रिमांड पर भेजा गया. रिमांड के दौरान आरोपियों से तलवार, कुल्हाड़ी, खून सने कपड़े और मोबाइल बरामद किए गए.

रिमांड अवधि खत्म होने पर 30 मार्च, 2021 को फिर से जितेंद्र और हंसराज भील को कोर्ट में पेश कर न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

स्वार्थ की राह पर बिखरा अपनों का खून – भाग 3

आखिर रात आ ही गई. घर वाले जब सो गए तो महावीर चुपचाप दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया. वह बदन सिंह के दरवाजे पर पहुंचा तो दरवाजा भिड़ा हुआ था. हलका का धक्का देते ही वह खुल गया. जैसे ही वह अंदर गया तो निर्मला कमरे से निकल आई. महावीर को देख कर वह खुश हो गई और दरवाजे की कुंडी लगा दी. वह कमरे में महावीर के पास आ कर बोली, ‘‘इस आशिकी के चक्कर में तुम क्यों 2 परिवारों को बरबाद करना चाहते हो. जानते तो हो मेरे 2 बच्चे हैं.’’

‘‘जानता हूं, पर इस दिल का क्या करूं जो मानता ही नहीं है.’’ महावीर ने कहा.

‘‘क्या तुम सचमुच मेरे प्रति गंभीर हो?’’ निर्मला ने पूछा, ‘‘केला का क्या होगा, सोचा है कभी.’’

‘‘हां, बिलकुल गंभीर हूं. उस की चिंता मत करो. वह भी अपने बारे में सोच ही लेगी.’’ कहते हुए महावीर ने निर्मला को खींच कर गले से लगा लिया. महावीर के आगोश में निर्मला ने भी समर्पण कर दिया. उस ने अपनी जिंदगी की नाव को तूफान के हवाले कर दिया.

इस के बाद दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. इस से उन्हें संतुष्टि भले ही हासिल हुई होगी पर यह बात सच थी कि उन्होंने जो काम किया, उस से उन के पारिवारिक रिश्तों की बुनियाद हिलने की शुरुआत हो चुकी थी.

देर रात महावीर घर पहुंचा तो घर में सभी को सोते देख कर उस ने राहत की सांस ली. अब महावीर और निर्मला की आशिकी मोबाइल के जरिए चलने लगी. दोनों मिलने का समय तय कर लेते और समय निकाल कर एकदूसरे की बांहों में खो जाते.

पत्नी के कृत्य से बदन सिंह तो अभी तक बेखबर था पर केला को लगने लगा था कि जरूर कुछ गड़बड़ है. फिर गांव के एक युवक ने केला से कह भी दिया, ‘‘भाभी, महावीर भैया का बदन सिंह के घर ज्यादा आनाजाना ठीक नहीं है. लोग उन के बारे में तरहतरह की बातें करते हैं.’’

केला के पति की बदन सिंह से काफी पुरानी दोस्ती थी. इसी वजह से लोगों ने उस के बारे में कभी कुछ नहीं कहा. वह सोचने लगा कि अब ऐसी क्या बात हो गई जो लोग तरहतरह की बातें करते हैं. यही बात केला के दिमाग में घूमने लगी. एक दिन कपडे़ धोते समय महावीर की जेब में निर्मला का फोटो मिला तो उस का शक और भी गहरा गया. वह सोचने लगी कि पति से कैसे पूछे. उसे अपना और बेटे यशवीर का भविष्य खतरे में नजर आने लगा.

एक रात जब केला की नींद खुली तो महावीर बिस्तर से नदारद था. उस का दिल तेजी से धड़कने लगा. महावीर बाहर से देर रात आया और बिस्तर पर लेटने लगा तो वह बोली, ‘‘आ गए, उस से मिल कर?’’

महावीर के पैरों तले से जमीन खिसकने लगी. वह बात को छिपाते हुए बोला, ‘‘मैं तो बाहर हवा खाने गया था.’’

केला ने कुछ नहीं कहा. इस के पीछे उस की मजबूरी यह थी कि उस के मातापिता का देहांत हो चुका था. एक भाई था. सोचा अगर पति ने छोड़ दिया तो वह बच्चे को ले कर कहां जाएगी. इसलिए वह चुप रही.

अगले दिन सुबह उसे लगा कि पति से उस की दूरी बढ़ चुकी है. खाना खाते समय भी महावीर ने उस से बात नहीं की. महावीर के दिल में भी अपराधबोध था पर वह अपने दिल का क्या करता जो निर्मला के पल्लू में बंधा हुआ था.

काफी देर बाद आखिर केला ही चुप्पी तोड़ते हुए बोली, ‘‘जो तुम कर रहे हो, ठीक नहीं है.’’

‘‘मैं क्या कर रहा हूं. तुम क्या कह रही हो, मैं समझा नहीं.’’ वह बोला.

‘‘लेकिन मैं सब कुछ समझ रही हूं विनाश काल में बुद्धि विपरीत हो जाती है. डरती हूं कि कहीं तुम्हारा भी यही हाल न हो.’’

इस बीच बदन सिंह को भी पता चल गया कि उस की पत्नी के संबंध महावीर के साथ हैं. दोस्त के इस विश्वासघात पर बदन सिंह को बड़ा गुस्सा आया. उस ने महावीर से तो कुछ नहीं कहा पर पत्नी पर निगाह रखने लगा. बदन सिंह एक दिन दोपहर में घर लौटा तो घर में महावीर को देख कर उस के तनबदन में आग लग गई. उस ने महावीर को बाहर का रास्ता दिखाते हुए कहा, ‘‘अब कभी भी मेरी गैरमौजूदगी में मेरे घर मत आना.’’

महावीर घबरा गया, ‘‘यह क्या कह रहे हो दोस्त, मैं तो तुम से मिलने आया था.’’

‘‘तो फिर खेत पर मिलते.’’ कहते हुए बदन सिंह ने महावीर का हाथ पकड़ कर बाहर निकाला और दरवाजा बंद कर दिया.

निर्मला अवाक रह गई. वह बोली, ‘‘ये तुम ने ठीक नहीं किया.’’

बदन सिंह उसे घूरते हुए बोला, ‘‘अगर तुम नहीं संभली तो मैं इस से भी ज्यादा बुरा कर दूंगा.’’

निर्मला ने फोन द्वारा महावीर को सतर्क किया और इस के बाद दोनों अमापुर जा कर मिलने लगे. साथ ही उन्होंने घर से भाग जाने की योजना बना ली. बदन सिंह को पता चल गया कि निर्मला महावीर के साथ भाग जाना चाहती है. यदि ऐसा हो जाता तो उस की समाज में बहुत बदनामी होती. इस से पहले कि वह ऐसा कोई कदम उठाती, बदन सिंह ने महावीर को ही ठिकाने लगाना बेहतर समझा.

वह अपने एक दोस्त मान पाल निवासी गांव सामंती, थाना सोरों से मिला और अपनी परेशानी बताई. मान पाल ने उस का साथ देने का वादा किया. इस के बाद दोनों मौके की तलाश में लग गए. इसी बीच उन्हें पता चला कि 5 अक्तूबर, 2016 को महावीर को कल्याणपुर स्थित अपनी बहन के घर जाना है.

उस दिन बदन सिंह और मानपाल महावीर के घर से बाहर निकलने का इंतजार करने लगे. महावीर जैसे ही घर से निकला, दोनों पीछे लग गए. मानपाल ने महावीर से बात की और उसे बहलाफुसला कर शराब के ठेके पर ले आया. उस ने महावीर को खूब शराब पिलाई. इसी बीच बदन सिंह भी वहां आ गया और दोनों उसे ई-रिक्शा में डाल कर तबल नगला के जंगल में ले गए.

जंगल में पहुंचने पर उन्होंने महावीर को उतार कर ई-रिक्शा चालक को पैसे दे कर भेज दिया और महावीर को मार डाला और लाश को वहीं डाल कर भाग खड़े हुए. जिस अंगौछे से गला घोंट कर उस की हत्या की गई थी, उसे उस के गले में ही रहने दिया.

बदन सिंह दिल्ली चला गया था लेकिन उस के पास पैसे खत्म हो चुके थे. अत: उस ने मान पाल से कहा कि वह पैसों का इंतजाम कर के उसे अमापुर में भट्ठे पर मिले. यह बात मुखबिर को पता लग गई. उसी मुखबिर के इशारे पर दोनों पुलिस के हत्थे चढ़ गए.

बदन सिंह की निशानदेही पर पुलिस ने महावीर का कंकाल और गले में पड़ा अंगौछा बरामद कर लिया. पुलिस ने भादंवि की धारा 346, 302, 201, 120बी और 404 के तहत बदन सिंह और मान पाल को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया. निर्मला की आशिकी में उसे कुछ हासिल नहीं हुआ, 2 परिवार जरूर बरबाद हो गए.

हत्या के 7 साल बाद मिली आरती – भाग 3

आरती के पास पैसे नहीं थे. इस वजह से बस वाले ने उसे बीच रास्ते में महुवा में ही उतार दिया था. महुवा में उतरने के बाद वह सोनू के इंतजार में 2 दिन तक भटकती रही, लेकिन सोनू नहीं आया. किसी तरह वह बालाजी पहुंची, मगर वह वहां भी नहीं मिला.

फिर वह मिठाई के एक कारखाने में काम करने लगी. वहां मजदूरी करने वाले विशाला गांव के भगवान नाम के युवक से मुलाकात हुई और फिर दोनों ने कोर्ट में शादी कर ली.

आरती के पहले पति सोनू का कहना था उस ने आरती को नहीं छोड़ा था. उस ने आरती को महुवा से जयपुर की बस में बैठाया. इस के बाद वह टिकट लेने के लिए गया. 2 टिकट ले कर जब वह लौट कर आया तो बस वहां से जा चुकी थी. इस के बाद उस ने बालाजी तक आरती को तलाश किया, लेकिन वह नहीं मिली. यदि आरती को छोड़ना ही होता तो उस के साथ शादी क्यों करता?

सोनू ने बताया कि वृंदावन पुलिस और एसओजी टीम ने हमें उठाया था. हम ने बताया था कि आरती बिना बताए कहीं चली गई है. हम ने उस की हत्या नहीं की है. पुलिस ने  रिमांड में हमारे साथ बहुत सख्ती की. एसओजी टीम ने नाखून उखाड़ने के बाद अंगुलियां मोड़ दीं. बोले एनकाउंटर में मार डालेंगे. 7 दिन की रिमांड में हड्डियां तोड़ देंगे. पुलिस ने सोनू से कहा कि मर्डर का जुर्म गोपाल के सिर डाल कर तुम्हें बचा लेंगे. अपनी जान की खातिर पुलिस के डर से झूठा जुर्म कुबूल करने को मजबूर होना पड़ा.

आरती के संबंध में उस के परिवार की ओर से कई सवाल खड़े किए गए हैं. वहीं बेटी आरती ने पिता पर षडयंत्र रचने का आरोप लगाते हुए कहा है कि शादी की उम्र हो जाने के बाद भी वे लोग उस की शादी नहीं कर रहे थे. बल्कि उस की 7 लाख की एफडी व जमीन हड़पने के लिए उस की हत्या की झूठी रिपोर्ट दर्ज करा दी.

7 साल बाद जिंदा मिली आरती को पुलिस ने कोर्ट में पेश किया. न्यायाधीश के न होने के कारण 164 सीआरपीसी के तहत बयान नहीं हो सके. कोर्ट जाने से पहले वृंदावन थाने में आरती ने पहले पति सोनू पर अकेला छोड़ने का आरोप लगाया.

जबकि सोनू का कहना था कि उस ने आरती को नहीं छोड़ा, बल्कि वह स्वयं लापता हो गई. वह आरती का इंतजार करता रहा और उस के इंतजार में आज तक शादी नहीं की. आरती की दूसरी शादी होने के बाद अब वह उसे रखने के लिए तैयार नहीं है.

इस मामले में लोगों की नजरों में पहली गुनहगार पुलिस है तो दूसरा आरती का पिता. जिस ने अपनी बेटी की हत्या की झूठी रिपोर्ट दर्ज करा दी. इतना ही नहीं, गुनहगार की सूची में आरती भी शामिल है, जो सोनू से शादी के कुछ दिन बाद ही उसे छोड़ कर चली गई. बेगुनाह पिसते रहे.

पिछले 7 सालों से रसीदपुर निवासी सोनू सैनी और उदयपुर निवासी उस का दोस्त गोपाल सैनी हत्या के आरोप का दंश झेल रहे हैं. दोनों ने निर्दोष होते हुए भी सजा भुगती है. कभी जेल तो कभी जमानत के लिए अदालत के चक्कर काटते दोनों की जिंदगी बीत रही है. अब तक मुकदमे की पैरवी में वे लाखों रुपए खर्च कर चुके हैं. बिना जुर्म किए दोनों कत्ल जैसे गंभीर अपराध की सजा भुगत रहे हैं.

उत्तर प्रदेश पुलिस ने इन दोनों निर्दोषों को गिरफ्तार कर के न सिर्फ वाहवाही लूटी थी बल्कि 15 हजार का ईनाम भी लिया था.

आरती तो जिंदा मिल गई पर जिस महिला के शव को पुलिस ने नहर से बरामद किया था और जिसे आरती के पिता सूरज प्रसाद ने अपनी बेटी आरती का शव बताया था, वह शव आखिर किस का था? क्या उस महिला की हत्या कर शव को नहर में फेंका गया था?

अब यह सवाल भी उठ रहे हैं कि पुलिस ने कैसे इस मामले की बिना डीएनए जांच कराए सूरज प्रसाद के कहने पर ही उस शव को उन की बेटी आरती का मान लिया था? यदि पुलिस ने थोड़ी भी सूझबूझ दिखाई होती तो मृतका का डीएनए टेस्ट करा लेती, दूध का दूध और पानी का पानी तभी हो जाता. इस घटना के बाद पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लग गए हैं.

एसएसपी शैलेष कुमार पांडेय ने बताया कि आरती जीवित मिली है, वो मरी नहीं थी. हत्या के मामले में 2 आरोपी न्यायालय से जमानत पर हैं. पूरी जांच के बाद विधिक काररवाई की जाएगी. पुलिस अब महिला का डीएनए कराएगी ताकि पिछली बार की तरह कोई गलती न हो.

उधर आरती की हत्या में सोनू और उस के दोस्त गोपाल को निर्दोष पाए जाने पर उन्हें दोषमुक्त कराने की विधिक प्रक्रिया शुरू कर दी है. पुलिस आरती के संबंध में साल 2015 की फाइलों को खंगाल रही है.

मातापिता द्वारा अपनी बेटी आरती की पहचान करने के बाद पुलिस ने आरती को बयानों के लिए कोर्ट में पेश किया. आरती ने कोर्ट में अपने दूसरे पति भगवान के साथ रहने की बात कही. इस पर उसे विशाला गांव में उस के पति भगवान सिह रेबारी के पास भेज दिया गया.

पुलिस नए सिरे से जांच करने में जुटी है. आरती के पिता पर भी गिरफ्तारी की तलवार लटकी हुई है. थाना बालाजी के एसएचओ अजीत बड़सरा ने बताया कि आरती इन 7 सालों में अपने मातापिता से नहीं मिली, लेकिन मोबाइल से वह निरंतर अपने पिता के संपर्क में थी. पिता सूरज प्रसाद जान गए थे कि आरती की हत्या के आरोप में सोनू और गोपाल निर्दोष हैं.

गोपाल ने कहा, ‘‘हम ने क्या कुछ नहीं सहा. समाज से अलगथलग हो गए. पिता की मौत हो गई. हम ने जो अपराध किया ही नहीं उस की सजा मिली. पुलिसवालों से कहा कि हम निर्दोष हैं, लेकिन किसी ने एक नहीं सुनी. हमारे दुकान मालिक और घरवालों ने 10-12 लाख खर्च कर इलाहाबाद से हम दोनों की जमानत कराई. अब दुकान मालिक का कर्ज भी चुकाना है.’’

सोनू और गोपाल ने इस मामले में सीबीआई जांच की मांग की है ताकि उन्हें न्याय मिल सके.   द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सगे बेटे ने की साजिश – भाग 3

पुलिस ने घटना के परदाफाश के लिए लगभग 50 सीसीटीवी खोजे थे. घर के बाहर लगे सीसीटीवी की फुटेज से पुलिस को यह क्लू मिला कि एक महिला के हाथ से बाइक सवार बदमाशों ने कुछ सामान लिया.

इस के बाद बाइक सवार बदमाश बाईपास के रास्ते कयामपुर, ग्लोबल रेजीडेंसी होते हुए शताब्दी नगर में घुस गए थे. इस के बाद पुलिस ने अलगअलग बिंदुओं पर गहन पड़ताल की.

शनिवार की शाम एक फोन काल की मदद से मिले सुराग के आधार पर पुलिस ने कंचन वर्मा के कत्ल व लूट के आरोप में उन के बेटे योगेश उर्फ राजा, उस की पत्नी सोनम उर्फ चित्रा, राजा के दोस्त तनुज चौधरी निवासी देवनगर कालोनी, बन्नादेवी व उस की प्रेमिका शेहजल चौहान उर्फ रिनी निवासी गूलर रोड बन्नादेवी को गिरफ्तार कर लिया.

आरोपियों की निशानदेही पर 2 बैग बरामद किए गए, जिन में लगभग एक करोड़ रुपए की कीमत के हीरे, सोने, चांदी के जेवरात, 2 बाइकें, एक लाख की नकदी व तिजोरी काटने वाला ग्राइंडर बरामद किया.

राजा ने किराए के मकान से 2 पिट्ठू बैगों में पूरा माल बैड से बरामद कराया. वहीं से उस की पत्नी को गिरफ्तार किया गया. जबकि तनुज को उस के घर से गिरफ्तार कर लूटी रकम में से 50 हजार रुपए उस के कब्जे से बरामद करने के साथ रिनी को उस के घर से गिरफ्तार किया गया.

चारों आरोपियों से पूछताछ के बाद इस मर्डर व लूटपाट की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी—

टीकाराम स्कूल के पास गारमेंट्स की दुकान चलाने वाली युवती सोनम उर्फ चित्रा से योगेश उर्फ राजा की कपड़े खरीदते समय नजदीकियां हो गई थीं. यह घटना से 6 महीने पहले की बात है. राजा को पता चला कि सोनम शादीशुदा है. उस का पति विहान अरोड़ा रेलवे रोड पर गारमेंट्स की दुकान चलाता है.

सोनम ने राजा को बताया कि उस का पति उस के साथ मारपीट करता है. इस के बाद सोनम और राजा की दोस्ती हो गई और दोनों में इस कदर नजदीकियां बढ़ गईं कि राजा उस का खर्चा उठाने लगा.

सोनम ने अपने पति विहान से दूरी बना ली. बाद में राजा ने उसे रामघाट रोड पर मौल के सामने किराए पर मकान दिलवा दिया और 6 महीने पहले उस से कोर्ट में शादी कर ली.

दोस्तों से यह बात राजा के मातापिता को जब पता चली तो वे उस पर नाराज हुए. उन्होंने कहा, ‘‘तुम्हें वह शादीशुदा औरत ही मिली थी. हम तुम्हारी शादी किसी अच्छे खानदान में अच्छी लड़की से करते. इतना ही नहीं, उन्होंने चेतावनी दी कि अगर तुम ने उस का साथ नहीं छोड़ा तो तुम हमारे साथ नहीं रह पाओगे.’’

राजा ने कहा कि वह सोनम का साथ नहीं छोड़ सकता, अब वह उस की पत्नी है. इस बात पर कुलदीप ने बेटे राजा को घर से निकाल दिया. घर से निकाले जाने के बाद राजा का हाथ तंग रहने लगा. हालांकि बीचबीच में वह घर जा कर कंचन से लड़झगड़ कर रुपए ले आता था.

राजा का हाथ तंग होने पर उस के पुराने दोस्त उस से हाथ खींचने लगे, जबकि साथ में जिम करने वाला दोस्त तनुज चौधरी, जो एक बड़े शराब कारोबारी का बेटा है, ने राजा की आर्थिक मदद की.

6 महीने तक सब कुछ ठीक चलता रहा. अब तनुज ने अपनी प्रेमिका शेहजल उर्फ रिनी से शादी करनी चाही तो उसे रुपयों की जरूरत पड़ी. यह बात उस ने राजा को बताई.

दोनों दोस्तों व उन की प्रेमिकाओं ने राजा के सामने अपने घर से जेवरात लाने का प्रस्ताव रखा. इस प्रस्ताव में यह बात हुई कि जैसे लड़झगड़ कर रुपए लाते हो, ऐसे ही जेवरात ले आओ तो एक बार में काम बन जाएगा. मां किसी से कुछ कहेगी भी नहीं.

घटना से 10 दिन पहले राजा अपने दोस्त तनुज के साथ मां से मिलने घर गया था. उस दिन उस ने मां से झगड़ा किया. कहा, ‘‘मेरी बीवी 3 महीने की गर्भवती है. उसे रुपयों की जरूरत है.’’

मगर कंचन ने साफ कह दिया कि वह किसी विवाहिता को अपनी बहू नहीं बना सकती, बाद में राजा दोस्त के साथ घर से चला गया था.

मां को मार कर लूटी ज्वैलरी

इस के बाद 19 फरवरी, 2021 को योजना के तहत सोनम को डाक्टर के यहां छोड़ कर दोपहर में राजा बाइक से अपनी मां के घर पहुंचा. योजना के तहत तनुज और रिनी भी अपनी बाइक पर वहां पहुंच गए. कालबेल बजाने पर कंचन ने दरवाजा खोल दिया.

राजा व तनुज अंदर आ गए. राजा ने मां से जेवरात व रुपए की मांग की. मां ने विरोध शुरू कर दिया. इस पर राजा तो तिजोरी वाले कमरे में चला गया और तनुज उस की मां कंचन से उलझता रहा.

विरोध बढ़ता देख राजा के इशारे पर तनुज ने साड़ी से कंचन की गला घोट कर हत्या कर दी और शव को बाथरूम में बंद कर भ्रमित करने के इरादे से गैस पाइप काट दिया. हत्या व लूटपाट करने के बाद राजा व तनुज अपनीअपनी बाइकों से निकल गए, जबकि रिनी गली से निकलने के बाद आटो में बैठ कर अपने घर चली गई.

पुलिस जांच में यह बात सामने आई और सोनम ने भी स्वीकार किया कि वह मूलरूप से बुलंदशहर की रहने वाली है. काफी समय पहले वह मां के साथ नगला मवासी अपनी ननिहाल में आ कर रहने लगी थी. यहां प्राइवेट नौकरी करतेकरते पहले उस ने एक मुसलिम युवक से फिर एक अन्य युवक से और तीसरी शादी गारमेंट दुकान संचालक विहान से की थी. चौथी शादी योगेश उर्फ राजा से की और अब 3 माह की गर्भवती है.

मामले का परदाफाश करने वाली टीम में इंसपेक्टर (क्वार्सी) छोटेलाल, थानाप्रभारी (जवां) अभय शर्मा, एसआई रणजीत सिंह, सर्विलांस प्रभारी संजीव कुमार, एसआई अरविंद कुमार, संदीप सिंह, विजय चौहान, रीतेश, अलका तोमर, गीता रानी, हैडकांस्टेबल जुलकार, देव, राकेश कुमार, दुर्गविजय सिंह, विनोद कुमार, मोहन लाल, याकूब, बृजेश रावत, कांस्टेबल शोएब आलम, मनोज कुमार, तरुणेश, ज्ञानवीर कुमार, पालेंद्र सिंह, सत्यपाल और अनित कुमार शामिल थे.

मर्डर व लूट के चारों आरोपियों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.

किसी ने सोचा भी नहीं था कि मां को मुखाग्नि देने वाले बेटे ने ही अपनी मां का कत्ल किया था. जिस मां ने 9 महीने अपनी कोख में पाला और फिर 24 साल पाल कर बड़ा किया, वही बेटा प्यार और पैसों की खातिर मां के खून का प्यासा बन गया. उस ने ऐसी घटना को अंजाम दिया, जिस से बेटे के नाम पर कंलक लग गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

रौंग नंबर करके शादीशुदा को फांसा – भाग 4

अस्पताल पहुंच कर वह सुरेश को इमरजेंसी में ले आई. सुरेश की स्थिति देख कर डाक्टर्स और नर्स उस का चैकअप करने लगे. डाक्टर ने सुरेश की नब्ज टटोली. फिर दिल पर स्टेथेस्कोप लगा कर जांच करने के बाद उस ने सुरश्े की बौडी को हिलाडुला कर देखा. फिर गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘यह तो मर चुका है.’’

‘‘नहींऽऽ’’ हेमा चीखी और पछाड़ खा कर सुरेश के ऊपर गिर पड़ी. वह जोरजोर से रोने लगी. सुधा और मीना उसे संभालने लगीं.

‘‘यह कैसे मरा है?’’ डाक्टर ने सुधा

से पूछा.

‘‘हेमा का कहना है कि इस ने आज ज्यादा शराब पी ली थी,’’ सुधा ने भरे कंठ से कहा.

डाक्टर ने हेमा की ओर देखा. वह सुरेश की लाश से लिपट कर रो रही थी. डाक्टर सहानुभूति दिखाते हुए बोला, ‘‘अपने आप को संभालिए, यह अस्पताल है. यहां जोर से रोएंगी तो और मरीजों को परेशानी होगी. आप रोना बंद कर के मुझे बताइए कि इस की मौत कैसे हुई?’’

हेमा ने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘आज यह सुबह से ही पी रहे थे. पीने के बाद ये सो गए. मैं ने 2-3 घंटे बाद इन्हें खाना खाने के लिए उठाना चाहा तो यह नहीं उठे. मैं ने बहुत कोशिश की उठाने की, जब यह हिलेडुले भी नहीं तो मैं घबरा गई. मैं अपनी पड़ोसन के घर गई और इन्हें बुला लाई. सुधा दीदी ने भी इन्हें उठानेजगाने की बहुत कोशिश की. फिर कहा कि इन्हें अस्पताल ले चलो. मैं इन्हें पड़ोसिनों की मदद से यहां ले कर आ गई.’’

डाक्टर को हुआ शक तो बुलाई पुलिस

डाक्टर ने सुरेश की बौडी को गहरी नजरों से देखा. उसे सुरेश के शरीर पर लाललाल निशान दिखाई दिए. ऐसा लग रहा था, जैसे उसे पीटा गया हो. शक होने पर उन्होंने एक वार्डबौय को बुला कर पुलिस को सूचना देने की हिदायत दी.

थोड़ी सी देर में ही अस्पताल में ड्यूटी पर तैनात एसआई वहां आ गए. उन्होंने सुरेश का सरसरी तौर पर निरीक्षण करते ही अपनी राय रख दी, ‘‘मामला संदिग्ध है, लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजना होगा.’’

हेमा रोने लगी. उसे जैसेतैसे शांत करवा कर आवश्यक काररवाई पूरी की. फिर लाश को सफेद कपड़े में लपेट कर अस्पताल की मोर्चरी में पहुंचा दिया गया. हेमा अपनी पड़ोसनों के साथ अस्पताल से बाहर निकली और आटो पकड़ कर घर आ गई.

सुरेश के मरने की खबर आसपास रहने वालों को पता लगी तो वह वहां सहानुभूति दिखाने के लिए आ गए. हेमा अपने दोनों बेटों को गले से लगा कर जोरजोर से रो रही थी. औरतें उसे संभालने, सांत्वना देने में लग गईं.

चूंकि अस्पताल की मोर्चरी में डा. ए.के. लाल मौजूद नहीं थे, इसलिए उस दिन सुरेश का पोस्टमार्टम नहीं हो सका. दूसरे दिन सुरेश की लाश का पोस्टमार्टम हुआ. पुलिस को रिपोर्ट मिल गई, जिस में स्पष्ट लिखा गया था कि सुरेश की बौडी पर गहरे चोट के निशान मिले हैं. रिपोर्ट में यह भी बताया कि उस की मौत दम घुटने से हुई है.

मंडावली थाने में यह प्रकरण दर्ज कर लिया गया. एसएचओ कश्मीरी लाल ने इस हत्याकांड की सूचना जिले के डीसीपी अमृता गुगुलोथ और एसीपी सुभाष वत्स को दे दी. उन्होंने कश्मीरी लाल के नेतृत्व में एक जांच टीम गठित कर दी. इस में जांच अधिकारी इंसपेक्टर केतन सिंह, एएसआई उमेश कुमार, कांस्टेबल चेतन, बंसीलाल को शामिल किया गया.

इंसपेक्टर केतन सिंह, एएसआई उमेश कुमार, कांस्टेबल चेतन और बंसीलाल मृतक सुरेश के घर पहुंच गए. सुरेश के घर वाले वहां पर थे. हेमा का रोरो कर बुरा हाल था. आईओ ने उसे अपने सामने बुला कर पूछताछ शुरू की, ‘‘सुरेश तुम्हारा पति था?’’

‘‘जी हां,’’ हेमा ने सिसकते हुए बताया.

‘‘उस की बौडी पर गहरी चोट के निशान हैं.’’ आईओ ने हेमा के चेहरे पर पैनी नजरें गड़ा कर पूछा, ‘‘उसे यह चोट कैसे आई, बताओगी?’’

‘‘वो कल बाहर से खूब पी कर आए थे, आ कर चुपचाप सो गए…’’ हेमा ने बताया तो आईओ ने उसे घूरा, ‘‘कल अस्पताल में तो तुम कह रही थी कि सुरेश ने घर में बैठ कर खूब शराब पी थी. अब कह रही हो कि वह बाहर से पी कर आया था.’’

‘‘जी, बाहर से भी पी कर आए थे और घर में भी बैठ कर पी.’’ हेमा का स्वर कांपने लगा, ‘‘पीने के बाद यह सो गए.’’

‘‘अभी तो तुम ने बताया कि पी कर आने के बाद सुरेश सो गया. अगर यह पी कर आने के बाद सो गया तो फिर शराब घर में

कब पी?’’

‘‘जी, बीच में उठे थे पीने के लिए,’’ हेमा घबरा कर बोली, ‘‘मैं ने मना किया था ज्यादा मत पियो, तब बोतल रख कर सो गए थे.’’

इंसपेक्टर केतन सिंह हेमा के विरोधाभासी बयान से ही समझ गए कि सुरेश की हत्या में वह शामिल है. उन्होंने कुछ न कह कर उस कमरे का निरीक्षण किया, जिस में सुरेश शराब पीने के बाद सोया था और मर गया था.

झूठी कहानी से उठ गया परदा

कमरे के एक कोने में उन्हें शराब की 2 बोतलें पड़ी नजर आईं. उन्होंने सावधानी से दस्ताने पहन कर उन बोतलों को कब्जे में ले लिया. इस के बाद वह हेमा को साथ ले कर थाने लौट आए. शराब की दोनों बोतलें फोरैंसिक जांच के लिए भिजवा दी गईं. हेमा काफी डरी हुई थी. उस के माथे पर पसीना छलका हुआ था.

पहले उस के फिंगरप्रिंट्स ले कर जांच के लिए भिजवाए गए. फिर हेमा को इंक्वायरी रूम में अपने सामने बिठा कर एसएचओ कश्मीरी लाल की मौजूदगी में आईओ केतन सिंह ने बड़ी चतुराई से कहा, ‘‘देखो हेमा, मैं जो शराब की बोतलें तुम्हारे घर से लाया हूं, उस पर तुम्हारी अंगुलियों के निशान मिल गए हैं. अब बताओ, क्या तुम ने अपने पति को जाम बना कर दिए थे या खुद बोतल से शराब पी थी?’’

‘‘म…मैं क्यों पिऊंगी?’’ हेमा घबराई आवाज में बोली, ‘‘मैं तो शराब को हाथ भी नहीं लगाती हूं.’’

‘‘तो फिर तुम्हारी अंगुलियों के निशान बोतलों पर क्यों हैं?’’

‘‘म…मैं क्या जानूं?’’ हेमा घबरा गई. वह रोने लगी.

‘‘रोने का नाटक बंद करो. यह बताओ, तुम ने सुरेश की हत्या क्यों की?’’ इंसपेक्टर केतन सिंह ने सख्त लहजे में पूछा.

‘‘मैं क्यों हत्या करूंगी अपने पति की?’’

‘‘तो किस से हत्या करवाई, सुरेश की बौडी पर तो चोट के काफी निशान हैं.’’

‘‘वह बाहर मार खा कर आया था,’’ हेमा हड़बड़ा कर बोली.

‘‘किस से मार कर खा कर आया था, बताया होगा सुरेश ने?’’ आईओ केतन सिंह ने उसे बातों के जाल में उलझाया.

हेमा से कोई जवाब देते नहीं बना. वह काफी डरी हुई लग रही थी.

प्यार में कुलांचें भरने की फितरत – भाग 3

सरोजनी ने त्रियाचरित्र दिखा कर स्वयं को सतीसावित्री तो साबित कर दिया था, लेकिन वह मन ही मन डर गई थी. उस ने अवैध रिश्तों का शक होने की जानकारी अंकुर को दी और बेहद सतर्क रहने को कहा. इस के बाद मिलन में दोनों बेहद सावधानी बरतने लगे. अब अंकुर तभी मिलने जाता, जब सरोजनी मोबाइल फोन पर सूचना दे कर उसे बुलाती थी.

सरोजनी की लाइफ में आया दूसरा प्रेमी

सरोजनी और अंकुर का प्रेम प्रसंग चल ही रहा था कि सरोजनी एक अन्य युवक की ओर आकर्षित होने लगी. उस युवक का नाम राजू था. वह मोटर मैकेनिक था. उस की दुकान मेन रोड पर थी. एक रोज वह पान मसाला लेने के लिए ललित की दुकान पर रुका, तभी उस की नजर सरोजनी पर पड़ी. दोनों के बीच कुछ पल आंखमिचौली का खेल चला, फिर बातचीत भी हुई.

इस के बाद राजू अकसर किसी न किसी बहाने आने लगा. कभी वह घर का सामान लेने के बहाने आता तो कभी पान मसाला खाने के बहाने. दोनों के बीच खूब हंसीठिठोली होती. मजाकमजाक में राजू ऐसी बात कह देता, जिस से सरोजनी के शरीर में सिहरन दौड़ जाती और वह रोमांचित हो उठती.

दरअसल, राजू 25 वर्षीय हृष्टपुष्ट युवक था. उस की लच्छेदार बातें व हंसीमजाक सरोजनी को अच्छी लगने लगी थीं. इसलिए वह उस की ओर आकर्षित हो रही थी. दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल फोन नंबर भी दे दिए थे. अत: सरोजनी को जब भी मौका मिलता था, वह राजू से रस भरी बातें कर लेती थी.

सरोजनी और राजू के बीच प्रेम पनप रहा है, इस की जानकारी न सरोजनी के पति को थी और न ही प्रेमी अंकुर को. सरोजनी फोन पर बात करती और फिर उस का नंबर डिलीट कर देती थी.

हां, सौतेली बेटी अनन्या ने उसे जरूर एक बार राजू से हंसतेखिलखिलाते देख लिया था, तब उस ने कहा था, ‘‘मम्मी, राजू लफंगा है. उसे दुकान पर ज्यादा देर टिकने मत दिया करो. उस से हंसनाखिलखिलाना ठीक नहीं है.’’

लेकिन अनन्या की नसीहत के बावजूद सरोजनी राजू के आकर्षण में बंधी रही. कहा जाता है कि एक बार राजू ने उस के साथ भाग जाने और रंगीली जिंदगी जीने तक का प्रस्ताव रखा था, लेकिन इस प्रस्ताव को सरोजनी ने ठुकरा दिया था. इस तरह समय बीतता रहा और सरोजनी 2 प्रेमियों के साथ प्यार की पींगें बढ़ाती रही.

29 अक्तूबर, 2022 को अनन्या की नानी के घर पासी खेड़ा में बुद्धादेवी की पूजा थी. नानी ने अनन्या व दामाद को भी पूजा में शामिल होने के लिए बुलाया था. ललित ने दुकान की जिम्मेदारी सरोजनी को सौंपी फिर शाम 4 बजे बेटी अनन्या को साथ ले कर अपनी पहली पत्नी गीता के मायके पासी खेड़ा चला गया. वहां वह पूजा में शामिल हुआ और रात को वहीं रुका.

दूसरे दिन दोपहर बाद वह बेटी अनन्या के साथ अपने घर वापस आ गया. घर से कुछ दूरी पर वह गुटखा खाने के लिए रमेश की दुकान पर रुक गया और अनन्या को घर भेज दिया. अनन्या घर पहुंची तो दुकान बंद थी. मुख्य दरवाजे को धक्का दिया तो वह खुल गया.

अनन्या घर के अंदर गई और मम्मीमम्मी की पुकारने लगी. लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. आंगन से सटा एक कमरा था. अनन्या वहां पहुंची तो कमरे की कुंडी बाहर से बंद थी. कुंडी खोल कर वह कमरे में गई तो उस के मुंह से चीख निकल गई. चारपाई के नीचे उस की सौतेली मां सरोजनी की खून से सनी लाश पड़ी थी.

लाश देख कर अनन्या घबरा गई. वह सिर पर पैर रख कर भागी और पिता के पास दुकान पर आई. फिर बोली, ‘‘पापा… पापा, जल्दी घर चलो मम्मी…’’

‘‘क्या हुआ मम्मी को?’’ ललित ने अनन्या से पूछा.

अनन्या थूक गटक कर बोली, ‘‘पापा, मम्मी को किसी ने मार दिया है.’’

अनन्या की बात सुन कर ललित भी घबरा गया. उस समय दुकान पर कुछ और लोग भी बैठे थे, उन के साथ ललित घर आया और पत्नी का शव देख कर फफक पड़ा. अनन्या भी चीखचीख कर रोने लगी.

उस के बाद तो पूरे मोहल्ले में सरोजनी की हत्या की खबर फैल गई और लोग ललित के घर जुटने लगे. ललित पासवान ने सब से पहले मोबाइल फोन द्वारा अपने ससुर कालीचरन व सास जयदेवी को उन की बेटी सरोजनी की हत्या की सूचना दी, फिर थाना विधनू जा पहुंचा. थाने पर उस समय एसएचओ योगेश कुमार सिंह मौजूद थे. ललित ने उन्हें अपनी पत्नी सरोजनी की हत्या की खबर दी और जल्द से जल्द चलने का अनुरोध किया.

चूंकि मामला एक महिला की हत्या का था. अत: एसएचओ योगेश कुमार सिंह ने आवश्यक पुलिस टीम साथ ले कर ललित के साथ घटनास्थल को रवाना हो लिए.

रवाना होने से पहले उन्होंने महिला की हत्या की सूचना पुलिस अधिकारियों को भी दे दी. ललित का घर विधनू कस्बे में ही तुलसियापुर मोहल्ले में था, अत: पुलिस को उस के घर पहुंचने में लगभग 30 मिनट का समय लगा.

खून में लथपथ मिली लाश

उस समय ललित के घर के बाहर भीड़ जुटी थी. भीड़ को परे हटाते एसएचओ योगेश कुमार सिंह उस कमरे में पहुंचे, जहां ललित की पत्नी सरोजनी की लाश पड़ी थी.

योगेश कुमार सिंह ने बड़ी बारीकी से घटनास्थल का निरीक्षण शुरू किया. मृतक सरोजनी की लाश चारपाई के नीचे पड़ी थी. उस की हत्या किसी तेज धार वाले हथियार से गला रेत कर की गई थी. चारपाई पर पड़ा बिस्तर खून से तरबतर था. चारपाई के नीचे फर्श पर भी खून फैला था.

देखने से ऐसा लग रहा था कि हत्यारों ने चारपाई पर ही गला रेता होगा, फिर शव को चारपाई के नीचे डाल दिया होगा. मृतका की उम्र 35 वर्ष के आसपास थी. उस का रंग गोरा और शरीर स्वस्थ था. मृतका का मोबाइल फोन भी गायब था.

एसएचओ योगेश कुमार सिंह अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर डीसीपी (साउथ) प्रमोद कुमार, एसपी (आउटर) तेजस्वरूप सिंह तथा एसीपी विकास पांडेय भी आ गए. पुलिस अधिकारियों ने फोरैंसिक तथा डौग स्क्वायड टीम को भी बुलवा लिया.

पुलिस अधिकारियों ने मौकाएवारदात का निरीक्षण किया तथा मृतका के पति ललित पासवान से घटना के संबंध में पूछताछ की. जांच टीम को बाथरूम से एक चाकू मिला.

हत्या के बाद कातिल ने खून से सने हाथ भी बाथरूम में धोए थे. जूते के निशान भी मिले. आलाकत्ल चाकू को टीम ने सबूत के तौर पर सुरक्षित कर लिया. कमरे तथा बाथरूम से कई फिंगरप्रिंट भी लिए.

अवैध संबंधों ने उजाड़ दिया परिवार

विश्वप्रसिद्ध पर्यटनस्थल मांडू के नजदीक के एक गांव तारापुर में पैदा हुई पिंकी को देख कर कोई सहसा विश्वास नहीं कर सकता था कि वह एक आदिवासी युवती है. इस की वजह यह थी कि पिंकी के नैननक्श और रहनसहन सब कुछ शहरियों जैसे थे. इतना ही नहीं, उस की इच्छाएं और महत्वाकांक्षाए भी शहरियों जैसी ही थीं, जिन्हें पूरा करने के लिए वह कोई भी जोखिम उठाने से कतराती नहीं थी.

बाज बहादुर और रानी रूपमती की प्रेमगाथा कहने वाले मांडू के आसपास सैकड़ों छोटेछोटे गांव हैं, जहां की खूबसूरत छटा और ऐतिहासिक इमारतें देखने के लिए दुनिया भर से प्रकृतिप्रेमी और शांतिप्रिय लोग वहां आते हैं. वहां आने वाले महसूस भी करते हैं कि यहां वाकई प्रकृति और प्रेम का आपस में गहरा संबंध है.

यहां की युवतियों की अल्हड़ता, परंपरागत और आनुवांशिक खूबसूरती देख कर यह धारणा और प्रबल होती है कि प्रेम वाकई प्रेम है, इस का कोई विकल्प नहीं सिवाय प्रेम के. नन्ही पिंकी जब मांडू आने वाले पर्यटकों को देखती और उन की बातें सुनती तो उसे लगता कि जैसी जिंदगी उसे चाहिए, वैसी उस की किस्मत में नहीं है, क्योंकि दुनिया में काफी कुछ पैसों से मिलता है, जो उस के पास नहीं थे.

मामूली खातेपीते परिवार की पिंकी जैसेजैसे बड़ी होती गई, वैसेवैसे यौवन के साथसाथ उस की इच्छाएं भी परवान चढ़ती गईं. जवान होतेहोते पिंकी को इतना तो समझ में आने लगा था कि यह सब कुछ यानी बड़ा बंगला, मोटरगाड़ी, गहने और फैशन की सभी चीजें उस की किस्मत में नहीं हैं. लिहाजा जो है, उसे उसी में संतोष कर लेना चाहिए.

लेकिन इस के बाद भी पिंकी अपने शौक नहीं दबा सकी. घूमनेफिरने और मौजमस्ती करने के उस के सपने दिल में दफन हो कर रह गए थे. घर वालों ने समय पर उस की शादी धरमपुरी कस्बे के नजदीक के गांव रामपुर के विजय चौहान से कर दी थी. शादी के बाद वह पति के साथ धार के जुलानिया में जा कर रहने लगी थी.

पेशे से ड्राइवर विजय अपनी पत्नी की इस कमजोरी को जल्दी ही समझ गया था कि पिंकी के सपने बहुत बड़े हैं, जिन्हें पूरा करने के लिए बहुत दौलत चाहिए. उन्हें कमा कर पूरे कर पाना कम से कम इस जन्म में तो उस के वश की बात नहीं है. इस के बाद भी उस की हर मुमकिन कोशिश यही रहती थी कि वह हर खुशी ला कर पत्नी के कदमों में डाल दे.

इस के लिए वह हाड़तोड़ मेहनत करता भी था, लेकिन ड्राइवरी से इतनी आमदनी नहीं हो पाती थी कि वह सब कुछ खरीदा और हासिल किया जा सके, जो पिंकी चाहती थी. इच्छा है, पर जरूरत नहीं, यह बात विजय पिंकी को तरहतरह से समयसमय पर समझाता भी रहता था.

लेकिन अपनी शर्तों पर जिंदगी जीने की आदी होती जा रही पिंकी को पति की मजबूरी तो समझ में आती थी, लेकिन उस की बातों का असर उस पर से बहुत जल्द खत्म हो जाता था. शादी के बाद कुछ दिन तो प्यारमोहब्बत और अभिसार में ठीकठाक गुजरे. इस बीच पिंकी ने 2 बेटों को जन्म दिया, जिन के नाम हिमांशु और अनुज रखे गए.

विजय को जिंदगी में सब कुछ मिल चुका था, इसलिए वह संतुष्ट था. लेकिन पिंकी की बेचैनी और छटपटाहट बरकरार थी. बेटों के कुछ बड़ा होते ही उस की हसरतें फिर सिर उठाने लगीं. बच्चों के हो जाने के बाद घर के खर्चे बढ़ गए थे, लेकिन विजय की आमदनी में कोई खास इजाफा नहीं हुआ था.

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अकसर अपनी नौकरी के सिलसिले में विजय को लंबेलंबे टूर करने पड़ते थे. इस बीच पिंकी की हालत और भी खस्ता हो जाती थी. पति इस से ज्यादा न कुछ कर सकता है और न कर पाएगा, यह बात अच्छी तरह उस की समझ में आ गई थी. अब तक शादी हुए 17 साल हो गए थे, इसलिए अब उसे विजय से ऐसी कोई उम्मीद अपनी ख्वाहिशों के पूरी होने की नहीं दिखाई दे रही थी.

लेकिन जल्दी ही पिंकी की जिंदगी में एक ऐसा मोड़ आ गया, जो अंधा भी था और खतरनाक भी. यह एक ऐसा मोड़ था, जिस का सफर तो सुहाना था, परंतु मंजिल मिलने की कोई गारंटी नहीं थी. इस के बाद भी पिंकी उस रास्ते पर चल पड़ी. उस ने न अंजाम की परवाह की न ही पति और बच्चों की. इस से सहज ही समझा जा सकता है कि इच्छाओं और गैरजरूरी जरूरतों के सामने जिम्मेदारियों ने दम तोड़ दिया था. पिंकी को संभल कर चलने के बजाय फिसलने में ज्यादा फायदा नजर आया.

विजय का एक दोस्त था दिलीप चौहान. वह बेरोजगार था और काम की तलाश में इधरउधर भटक रहा था. काफी दिनों बाद दोनों मिले तो विजय को उस की हालत पर तरस आ गया. उस ने धीरेधीरे दिलीप को ड्राइविंग सिखा दी. धार, मांडू और इंदौर में ड्राइवरों की काफी मांग है, इसलिए ड्राइविंग सीखने के बाद वह गाड़ी चलाने लगा. दोस्त होने के साथसाथ विजय अब उस का उस्ताद भी हो गया था.

ड्राइविंग सीखने के दौरान दिलीप का विजय के घर आनाजाना काफी बढ़ गया था. एक तरह से वह घर के सदस्य जैसा हो गया था. जब विजय दिलीप को ड्राइविंग सिखा रहा था, तभी पिंकी दिलीप को जिस्म की जुबान समझाने लगी थी. उस के हुस्न और अदाओं का दीवाना हो कर दिलीप दोस्तीयारी ही नहीं, गुरुशिष्य परंपरा को भी भूल कर पिंकी के प्यार में कुछ इस तरह डूबा कि उसे भी अच्छेबुरे का होश नहीं रहा.

ऐसे मामलों में अकसर औरत ही पहल करती है, जिस से मर्द को फिसलते देर नहीं लगती. दिलीप अकेला था, उस के खर्चे कम थे, इसलिए वह अपनी कमाई पिंकी के शौक और ख्वाहिशों को पूरे करने में खर्च करने लगा. इस के बदले पिंकी उस की जिस्मानी जरूरतें पूरी करने लगी. जब भी विजय घर पर नहीं होता या गाड़ी ले कर बाहर गया होता, तब दिलीप उस के घर पर होता.

पति की गैरहाजिरी में पिंकी उस के साथ आनंद के सागर में गोते लगा रही होती. विजय इस रिश्ते से अनजान था, क्योंकि उसे पत्नी और दोस्त दोनों पर भरोसा था. यह भरोसा तब टूटा, जब उसे पत्नी और दोस्त के संबंधों का अहसास हुआ.

शक होते ही वह दोनों की चोरीछिपे निगरानी करने लगा. फिर जल्दी ही उस के सामने स्पष्ट हो गया कि बीवी बेवफा और यार दगाबाज निकला. शक के यकीन में बदलने पर विजय तिलमिला उठा. पर यह पिंकी के प्रति उस की दीवानगी ही थी कि उस ने कोई सख्त कदम न उठाते हुए उसे समझाया. लेकिन अब तक पानी सिर के ऊपर से गुजर चुका था.

चूंकि पति का लिहाज और डर था, इसलिए पिंकी खुलेआम अपने आशिक देवर के साथ रंगरलियां नहीं मना रही थी. फिर एक दिन पिंकी कोई परवाह किए बगैर दिलीप के साथ चली गई. चली जाने का मतलब यह नहीं था कि वह आधी रात को कुछ जरूरी सामान ले कर प्रेमी के साथ चली गई थी, बल्कि उस ने विजय को बाकायदा तलाक दे दिया था और उस की गृहस्थी के बंधन से खुद को मुक्त कर लिया था.

कोई रुकावट या अड़ंगा पेश न आए, इस के लिए वह और दिलीप धार आ कर रहने लगे थे. पहले प्रेमिका और अब पत्नी बन गई पिंकी के लिए दिलीप ने धार की सिल्वर हिल कालोनी में मकान ले लिया था. मकान और कालोनी का माहौल ठीक वैसा ही था, जैसा पिंकी सोचा करती थी.

यह पिंकी के दूसरे दांपत्य की शुरुआत थी, जिस में दिलीप उस का उसी तरह दीवाना था, जैसा पहली शादी के बाद विजय हुआ करता था. पति इर्दगिर्द मंडराता रहे, घुमाताफिराता रहे, होटलों में खाना खिलाए और सिनेमा भी ले जाए, यही पिंकी चाहती थी, जो दिलीप कर रहा था. खरीदारी कराने में भी वह विजय जैसी कंजूसी नहीं करता था.

यहां भी कुछ दिन तो मजे से गुजरे, लेकिन जल्दी ही दिलीप की जेब जवाब देने लगी. पिंकी के हुस्न को वह अब तक जी भर कर भोग चुका था, इसलिए उस की खुमारी उतरने लगी थी. लेकिन पत्नी बना कर लाया था, इसलिए पिंकी से वह कुछ कह भी नहीं सकता था. प्यार के दिनों के दौरान किए गए वादों का उस का हलफनामा पिंकी खोल कर बैठ जाती तो उसे कोई जवाब या सफाई नहीं सूझती थी.

जल्दी ही पिंकी की समझ में आ गया कि दिलीप भी अब उस की इच्छाएं पूरी नहीं कर सकता तो वह उस से भी उकताने लगी. पर अब वह सिवाय किलपने के कुछ कर नहीं सकती थी. दिलीप की चादर में भी अब पिंकी के पांव नहीं समा रहे थे. गृहस्थी के खर्चे बढ़ रहे थे, इसलिए पिंकी ने भी पीथमपुर की एक फैक्ट्री में नौकरी कर ली. क्योंकि अपनी स्थिति से न तो वह खुश थी और न ही संतुष्ट.

इस उम्र और हालात में तीसरी शादी वह कर नहीं सकती थी, लेकिन विजय को वह भूल नहीं पाई थी, जो अभी भी जुलानिया में रह रहा था. पिंकी को लगा कि क्यों न पहले पति को टटोल कर दोबारा उसे निचोड़ा जाए. यही सोच कर उस ने एक दिन विजय को फोन किया तो शुरुआती शिकवेशिकायतों के बाद बात बनती नजर आई.

ऐसा अपने देश में अपवादस्वरूप ही होता है कि तलाक के बाद पतिपत्नी में दोबारा प्यार जाग उठे. हां, यूरोप जहां शादीविवाह मतलब से किए जाते हैं, यह आम बात है. विजय ने दोबारा उस में दिलचस्पी दिखाई तो पिंकी की बांछें खिलने लगीं. पहला पति अब भी उसे चाहता है और उस की याद में उस ने दोबारा शादी नहीं की, यह पिंकी जैसी औरत के लिए कम इतराने वाली बात नहीं थी.

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वह 28 जुलाई की रात थी, जब दिलीप रोजाना की तरह अपनी ड्यूटी कर के घर लौटा. उसे यह देख हैरानी हुई कि उस के घर में धुआं निकल रहा है यानी घर जल रहा है. उस ने शोर मचाना शुरू किया तो देखते ही देखते सारे पड़ोसी इकट्ठा हो गए और घर का दरवाजा तोड़ दिया, जो अंदर से बंद था.

अंदर का नजारा देख कर दिलीप और पड़ोसी सकते में आ गए. पिंकी किचन में मृत पड़ी थी, जबकि विजय बैडरूम में. जाहिर है, कुछ गड़बड़ हुई थी. हुआ क्या था, यह जानने के लिए सभी पुलिस के आने का इंतजार करने लगे. मौजूद लोगों का यह अंदाजा गलत नहीं था कि दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं.

हैरानी की एक बात यह थी कि आखिर दोनों मरे कैसे थे? पुलिस आई तो छानबीन और पूछताछ शुरू हुई. दिलीप के यह बताने पर कि मृतक विजय उस की पत्नी पिंकी का पहला पति और उस का दोस्त है, पहले तो कहानी उलझती नजर आई, लेकिन जल्दी ही सुलझ भी गई.

दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. पुलिस वालों ने दिलीप से पूछताछ की तो उस की बातों से लगा कि वह झूठ नहीं बोल रहा है. उस ने पुलिस को बताया था कि वह काम से लौटा तो घर के अंदर से धुआं निकलते देख घबरा गया. उस ने मदद के लिए गुहार लगाई. इस के बाद जो हुआ, उस की पुष्टि के लिए वहां दरजनों लोग मौजूद थे.

दरवाजा सचमुच अंदर से बंद था, जिसे उन लोगों ने मिल कर तोड़ा था. सभी ने बताया कि पिंकी की लाश जली हालत में किचन में पड़ी थी और विजय की ड्राइंगरूम में. उस के गले में साड़ी का फंदा लिपटा था. पिंकी के चेहरे पर चोट के निशान साफ दिखाई दे रहे थे.

जल्दी ही इस दोहरे हत्याकांड या खुदकुशी की खबर आग की तरह धार से होते हुए समूचे निमाड़ और मालवांचल में फैल गई, जिस के बारे में सभी के अपनेअपने अनुमान थे. लेकिन सभी को इस बात का इंतजार था कि आखिर पुलिस कहती क्या है.

धार के एसपी वीरेंद्र सिंह भी सूचना पा कर घटनास्थल पर आ गए थे. उन्होंने घटनास्थल का बारीकी से जायजा लिया. पुलिस को दिए गए बयान में पिंकी की मां मुन्नीबाई ने बताया था कि पिंकी और विजय का वैवाहिक जीवन ठीकठाक चल रहा था, लेकिन दिलीप ने आ कर न जाने कैसे पिंकी को फंसा लिया.

जबकि दिलीप का कहना था कि उसे इस बात की जानकारी नहीं थी कि उस की गैरमौजूदगी में पिंकी पहले पति विजय से मिलतीजुलती थी या फोन पर बातें करती थी. पिंकी के भाई कान्हा सुवे ने जरूर यह माना कि उस ने पिंकी को बहुत समझाया था, पर वह नहीं मानी. पिंकी कब विजय को तलाक दे कर दिलीप के साथ रहने लगी थी, यह उसे नहीं मालूम था.

तलाक के बाद दोनों बेटे विजय के पास ही रह रहे थे. विजय के भाई अजय के मुताबिक हादसे के दिन विजय राजस्थान के प्रसिद्ध धार्मिकस्थल सांवरिया सेठ जाने को कह कर घर से निकला था.

वह छोटे बेटे अनुज को अपने साथ ले गया था. अनुज को उस ने एक परिचित की कार में बिठा कर अपनी साली के पास छोड़ दिया था, जो शिक्षिका है.

अब पुलिस के पास सिवाय अनुमान के कुछ नहीं बचा था. इस से आखिरी अंदाजा यह लगाया गया कि विजय पिंकी के बुलाने पर उस के घर आया था और किसी बात पर विवाद हो जाने की वजह से उस ने पिंकी की हत्या कर के घर में आग लगा दी थी. उस के बाद खुद भी साड़ी का फंदा बना कर लटक गया. फंदा उस का वजन सह नहीं पाया, इसलिए वह गिर कर बेहोश हो गया. उसी हालत में दम घुटने से उस की भी मौत हो गई होगी.

बाद में यह बात भी निकल कर आई कि विजय पिंकी से दोबारा प्यार नहीं करने लगा था, बल्कि उस की बेवफाई से वह खार खाए बैठा था. उस दिन मौका मिलते ही उस ने पिंकी को उस की बेवफाई की सजा दे दी. लेकिन बदकिस्मती से खुद भी मारा गया.

सच क्या था, यह बताने के लिए न पिंकी है और न विजय. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक दोनों की मौत दम घुटने से हुई थी, लेकिन पिंकी के पेट पर एक धारदार हथियार का निशान भी था, जो संभवत: तवे का था. विजय के सिर पर लगी चोट से अंदाजा लगाया गया कि खुद को फांसी लगाते वक्त वह गिर गया था, इसलिए उस के सिर में चोट लग गई थी.

यही बात सच के ज्यादा नजदीक लगती है कि विजय ने पहले पिंकी को मारा, उस के बाद खुद भी फांसी लगा ली. लेकिन क्यों? इस का जवाब किसी के पास नहीं है. क्योंकि वह वाकई में पत्नी को बहुत चाहता था, पर उस की बेवफाई की सजा भी देना चाहता था. जबकि पिंकी की मंशा उस से दोबारा पैसे ऐंठने की थी. शायद इसी से वह और तिलमिला उठा था.

पिंकी समझदारी से काम लेती तो विजय की कम आमदनी में करोड़ों पत्नियों की तरह अपना घर चला सकती थी. पर अपनी शर्तों पर जिंदगी जीने की जिद और ख्वाहिशें उसे महंगी पड़ीं, जिस से उस के बच्चे अनाथ हो गए. अब उन की चिंता करने वाला कोई नहीं रहा.

दिलीप कहीं से शक के दायरे में नहीं था. उस का हादसे के समय पहुंचना भी एक इत्तफाक था. परेशान तो वह भी पिंकी की बढ़ती मांगों से था, जिन से इस तरह छुटकारा मिलेगा, इस की उम्मीद उसे बिलकुल नहीं रही होगी.