हिना की शातिर चाल – भाग 3

आखिर मुखबिरों के जरिए यह बात पुलिस तक पहुंच गई. थाना लिंक रोड पुलिस ने जांच की तो पता चला कि हिना और मुमताज नकली नोटों की तस्करी से जुड़ी हैं.

तत्कालीन एसएसपी नितिन तिवारी को जब इस बात की जानकारी हुई तो उन्होंने तुरंत काररवाई करने का आदेश दिया. पुलिस ने जानकारियां जुटा कर अपना जाल बिछाया और 23 अप्रैल, 2013 को कौशांबी बसअड्डे से हिना, उस की बहन मुमताज, रफीक, नुरैन और मोइनुद्दीन को उस समय गिरफ्तार कर लिया गया, जब वे नोटों का लेनदेन कर रहे थे.

पुलिस ने इन लोगों के कब्जे से 7 लाख रुपए के नकली नोट बरामद किए. इन नोटों में 5 लाख 100 के और बाकी 5 सौ के नोट थे. पूछताछ में पता चला कि अब तक ये लोग लाखों के नकली नोट खपा चुके थे. गाजियाबाद पुलिस द्वारा नकली नोटों की अब तक की यह सब से बड़ी बरामदगी थी.

इस की सूचना गृह मंत्रालय, खुफिया एजेंसियों एनआईए, आईबी और रा को भी दी गई. हिना से गहन पूछताछ की गई. उस के बाद सभी को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें डासना जेल भेज दिया गया.

हिना के लिए जेल की जिंदगी गरीबी के दिनों से भी ज्यादा बदतर थी. वह बाहर आने के लिए छटपटा रही थी. लेकिन उस का कोई भी ऐसा अपना नहीं था, जो उस की जमानत कराता. जेल में ही उस की मुलाकात वर्षा से हुई. वर्षा भी किसी अपराध में जेल में बंद थी. एक ही बैरक में होने की वजह से उन में दोस्ती हो गई थी.

जेल में वर्षा से मिलने उस के तमाम परिचित आते रहते थे. जबकि हिना से मिलने कोई नहीं आता था. वर्षा से मिलने अनिल यादव भी आता था. अनिल को देखते ही हिना ताड़ गई थी कि वह न सिर्फ पैसे वाला है, बल्कि शरीफ भी है. उसी को ध्यान में रखते हुए हिना ने एक दिन वर्षा से कहा कि वह किसी भी तरह उस की जमानत करा दे.

‘‘लेकिन मैं तो खुद ही जेल में हूं. ऐसे में मैं तुम्हारी जमानत कैसे करा सकती हूं?’’ वर्षा ने कहा.

‘‘अगर तुम चाहो तो जेल में रहते हुए भी यह काम करा सकती हो.’’

‘‘वह कैसे?’’ वर्षा ने पूछा.

‘‘वह जो तुम से मिलने आए थे, क्या नाम था उन का?’’

‘‘अनिल यादव, वह बहुत अच्छे आदमी हैं.’’

‘‘वह तो देख कर ही लग रहा था. उन से कह कर मेरी जमानत करा दो. मम्मी कह रही थीं कि जमानती तो मिल गए हैं, लेकिन इतने पैसे नहीं हैं कि वह वकील कर लें.’’

‘‘ठीक है, इस बार आएंगे तो मैं बात कर के तुम्हारी मुलाकात करा दूंगी. हो सकता है, तुम्हारी जमानत करवा ही दें.’’

कुछ दिनों बाद अनिल वर्षा से मिलने गया तो उस ने हिना की मुलाकात उस से करा दी. हिना ने उस से इस तरह दुखड़ा रोया कि वह उस की बातों में आ गया.

हिना का भोलाभाला चेहरा देख कर अनिल को लगा कि यह मुसीबत की मारी है. मन में दया आ गई और उस ने उसे मदद का आश्वासन दे दिया. हिना ने मां का पता अनिल को दे दिया था. अनिल के मन में दूसरों के लिए कुछ करने का भाव था, इसलिए दिल्ली जा कर वह हिना की मां से मिला.

संतान कैसी भी हो, मांबाप के मन में उस के लिए हमेशा तड़प होती है. शकीला का भी यही हाल था. अनिल ने हिना की जमानत के लिए पैसे तो दिए ही, वकील का भी इंतजाम करा दिया. शकीला ने जमानती की व्यवस्था कर के उस की जमानत करा ली. इस के बाद हिना ने बाहर आ कर अपनी बहन मुमताज की भी जमानत करा ली.

जेल में रहते हुए हिना ने सोचा था कि अब वह कोई ऐसा काम नहीं करेगी, जिस से फिर उसे जेल जाना पड़े. लेकिन बाहर आते ही उस के इरादे बदल गए. उस ने अनिल से संपर्क बनाए रखा, क्योंकि उस से उस के कुछ सपने पूरे हो सकते थे.

सीधासादा अनिल आसानी से बातों में आ जाने वाला इंसान था. उस की इसी कमजोर नस को हिना ने पकड़ लिया था. जेल से आने के बाद वह मां के ही पास रह रही थी.

शकीला ने हिना को खूब समझाया. लेकिन वह पाई पाई के लिए मोहताज थी. उसे जिंदगी की शुरुआत फिर से करनी थी. अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए वह कुछ करने के बारे में सोचने लगी. उस की एक बहन शहनाज संभल कस्बे में ब्याही थी. उस के पति का इंतकाल हो चुका था. हिना उस के यहां गई और एक ज्वैलर्स की दुकान पर खरीद के बहाने गहनों पर हाथ साफ कर दिया. उस की बदकिस्मती थी कि वह रंगेहाथों पकड़ी गई. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

जिस परेशानी से हिना ने किसी तरह पीछा छुड़ाया था, वही फिर उस के गले पड़ गई इस के लिए वह खुद ही जिम्मेदार थी. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि इतनी जल्दी उस की आजादी छिन जाएगी.  मुरादाबाद में उस का कोई अपना नहीं था, इसलिए जमानत का भी इंतजाम नहीं हो सकता था.

लेकिन शातिर हिना ने इस का इंतजाम कर लिया. उसी जेल में जिला बिजनौर के कस्बा नजीबाबाद का हिस्ट्रीशीटर नाजिम बंद था. नजीबाबाद कोतवाली में उस की हिस्ट्रीशीट खुली हुई थी. जेल में भी वह दबंगई से रह रहा था. हिना को नाजिम काम का आदमी लगा तो उस ने उस पर निशाना साध दिया. नाजिम को भी हिना अच्छी लगी. उस ने उस से दोस्ती कर ली.

हिना ने नाजिम से दोस्ती अपना काम निकालने के लिए की थी. इस के अलावा उस जैसा आदमी प्रौपर्टी के धंधे में भी काम आ सकता था. हिना उस से मिल कर अपना दर्द बयां करने लगी.

लेकिन नाजिम भी कम चलाक नहीं था. हिना ने जब उस से कहा कि वह उसे पसंद करती है. अगर वह उस की जमानत करा देगा तो वह उस की अहसानमंद रहेगी. नाजिम ने उस की जमानत कराने का वादा करते हुए कहा, ‘‘हिना, तुम्हें पसंद तो मैं भी करता हूं और तुम्हारी जमानत भी करा दूंगा. लेकिन बाहर निकल कर तुम्हें मुझ से निकाह करना पड़ेगा.’’

हिना को जरूरत थी, इसलिए उस ने हामी भर दी. नाजिम हिना पर फिदा तो था ही, उस से निकाह कर के उसे पुलिस से बचने का एक नया ठिकाना भी मिल सकता था. इसलिए उस ने अपने लोगों और वकील से संपर्क कर के हिना की जमानत करा दी.

हिना की यह हकीकत जान कर शकीला काफी नाराज थी. घर आने पर उस ने हिना को डांटाफटकारा तो वह घर छोड़ कर चली गई. वह अनिल से मिली और उसे अपनी परेशानी बताते हुए कहा, ‘‘अनिल, मुझे तुम्हारा सहारा चाहिए. मां से लड़ाई हो गई है. मेरे पास रहने की भी कोई जगह नहीं है.’’

अनिल भला आदमी था. हिना को परेशान देख कर वह उसे अपने फ्लैट पर ले गया. मामला एक जवान लड़की का था, इसलिए घर वालों ने उस से हिना के बारे में पूछा. तब अनिल ने उसे अपने दोस्तों की दोस्त बता कर घर में ही रहने की व्यवस्था करा दी. हिना तेज तो थी ही, उस ने कुछ ही देर में लच्छेदार बातें कर के अनिल की पत्नी सुनीता को वश में कर लिया.

हिना की शातिर चाल – भाग 2

अगले दिन कोतवाली प्रभारी रीता यादव ने जेल जा कर हिना से पूछताछ की. जेल में उस ने अनिल की हत्या में अपना हाथ होने से साफ मना कर दिया. जेल में हिना पर कोई दबाव नहीं बनाया जा सकता था. वैसे भी वह काफी तेजतर्रार लग रही थी, इसलिए रीता यादव ने अदालत में उस के रिमांड की अर्जी लगाई.

मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट सुनितचंद्र ने अर्जी मंजूर कर के 7 मई को हिना को 12 घंटे के पुलिस रिमांड पर दे दिया. हिना बहुत ही शातिर थी. पूछताछ में पहले तो वह पुलिस को बरगलाती रही, लेकिन जब उस ने देखा कि वह बचने वाली नहीं है तो वह फूटफूट कर रोने लगी.

पुलिस ने हिना को चुप करा कर लंबी पूछताछ की. इस पूछताछ में चौंकाने वाली जो कहानी निकल कर सामने आई, उस में अनिल ने अपनी सज्जनता और विश्वास की कीमत जान दे कर चुकाई थी.

हिना खान उर्फ रूबी कौसर मूलरूप से जिला मुरादाबाद के एक गांव के रहने वाले साबिद खान की बेटी थी. साबिद के परिवार में पत्नी शकीला के अलावा 5 बच्चे थे. हिना उन में सब से अधिक महत्वाकांक्षी थी. बचपन से ही वह ठाठबाट से रहने के सपने देखती आई थी.

साबिद की हैसियत ऐसी नहीं थी कि वह अपने बच्चों की हर ख्वाहिश पूरी कर पाता. आर्थिक तंगियों से जूझ कर उस ने किसी तरह बच्चों को बड़ा किया. बेटे काम से लग गए तो उस ने दोनों बड़ी बेटियों का निकाह कर दिया.

उसी बीच साबिद का इंतकाल हो गया तो परिवार की जिम्मेदारी बेटों पर आ गई. बाप के मरने के बाद हिना के दोनों भाई आपराधिक प्रवृत्ति के हो गए. तीसरी तक पढ़ी हिना अब तक जवान हो चुकी थी. वह काफी खूबसूरत थी.

भाइयों की वजह से पुलिस आए दिन घर पर दबिशें देने लगी तो परिवार में बिखराव की स्थिति बन गई. पुलिस जब बहुत ज्यादा परेशान करने लगी तो शकीला हिना और बेटों को ले कर दिल्ली आ गई और मौजपुर में रहने लगी.

दिल्ली बिलकुल हिना के सपनों जैसी थी. यहां के लोगों की चमकदमक वाली जीवनशैली, ऊंची इमारतें और उन के पास खड़ी महंगी कारें, इन सब ने हिना को खूब लुभाया. गांव में रह कर उस ने कभी सोचा भी नहीं था कि दुनिया इस तरह की भी है. हिना भले ही न के बराबर पढ़ी थी, लेकिन भाईबहनों में वह सब से ज्यादा तेजतर्रार थी.

गरीबी की वजह से हिना ने अपने जिन सपनों को कुचला था, दिल्ली आ कर वह उन्हें पूरा करना चाहती थी. खूबसूरत हिना को तमाम आंखें ताकती रहती थीं. इस से उसे जल्दी ही अपनी अहमियत का अंदाज हो गया.

हिना किसी भी तरह ऐशोआराम की जिंदगी हासिल करना चाहती थी. उसी बीच उस की दोस्ती आसिफ से हो गई. आसिफ हिना पर खूब पैसे खर्च करता था. वह उस के साथ दिल्ली के पार्कों और रेस्टोरेंटों में घूमती जरूर रही, लेकिन वह उस की मंजिल नहीं थी.

आसिफ को हिना की सच्चाई का पता तब चला, जब उस ने दरियागंज के रहने वाले एक अन्य युवक से दोस्ती कर ली. आसिफ को यह बात बेहद नागवार गुजरी. आखिर एक दिन संदिग्ध हालातों में उस ने आत्महत्या कर ली.

समय अपनी गति से चलता रहा और हिना उस के साथ खुले आकाश में पंख फैला कर उड़ने की कोशिश रहती रही.

दरियागंज के जिस युवक के साथ हिना ने दोस्ती और प्यार का सफर शुरू किया था, वक्त के साथ वह भी उसे छोटा मोहरा नजर आने लगा. लेकिन ऐसे लोग उसे बेहतरीन जिंदगी से रूबरू करा कर उस की अहमियत का अंदाजा जरूर कराते थे.

हिना ऐसे ही लोगों की बदौलत ऊंचाइयों को छूना चाहती थी. उस के संपर्क बढ़े तो उस ने उसे भी किनारे लगा दिया. उस युवक ने हिना के रवैए से आहत हो कर जहर खा लिया. लेकिन उस की किस्मत अच्छी थी कि समय पर इलाज मिल गया, जिस से वह बच गया.

अब तक हिना के सपनों को पंख लग चुके थे. वह पैसे वाले लोगों को इस्तेमाल करना भी सीख गई थी. उस की जिंदगी में इस तरह के लोग आतेजाते भी रहे. उधर शकीला उस का निकाह करना चाहती थी. हिना ने भी सोचा कि शायद निकाह से ही जिंदगी आराम से कट जाए, इसलिए उस ने निकाह कर लिया. निकाह के साल भर बाद उसे एक बेटी भी पैदा हुई.

हिना का पति उस की हसरतों को पूरी नहीं कर पा रहा, जिस से दोनों में अनबन रहने लगी. फिर जल्दी ही दोनों अलग हो गए. हिना बेटी को अपने साथ ले आई. वह कुछ ऐसा करना चाहती थी, जिस से जिंदगी आराम से कटे,  क्योंकि उस का हर शौक महंगा था.

हिना की बहन मुमताज का भी पति से विवाद रहता था, जिस से वह भी मायके में ही रहती थी. जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए दोनों बहनों ने गाजियाबाद की ओर रुख किया. उन्होंने दिल्ली बौर्डर पर स्थित पौश इलाके वसुंधरा के सेक्टर-4 में एक फ्लैट किराए पर लिया और कुछ लोगों से संपर्क कर के प्रौपर्टी का धंधा शुरू कर दिया.

हिना खूबसूरत तो थी ही, तेजतर्रार भी थी. उसे लोगों से काम निकालने का हुनर भी बखूबी आता था, जिस से वह ठीकठाक कमाई करने लगी थी. यह सन 2011 की बात है.

उसी दौरान हिना के तार नकली नोटों के कारोबारियों से जुड़ गए. उस का संपर्क रफीक, नुरैन व मोइनुद्दीन से हुआ. ये तीनों नेपाल से बंगलादेश के रास्ते नकली नोट ला कर भारत के अलगअलग हिस्सों में खपाते थे. ये नकली नोट पाकिस्तान से आते थे. रफीक बिहार के गोपालगंज जिले का रहने वाला था तो नुरैन और मोइनुद्दीन उत्तरप्रदेश के देवरिया के रहने वाले थे.

भारत में 1 लाख रुपए नकली नोट 35 हजार रुपए में दिए जाते थे. दिल्ली या उस के आसपास के इलाकों तक आते आते इन की कीमत 50 हजार रुपए हो जाती थी. 15 हजार के फायदे के लिए लोग हिना से डील करने लगे.

दिल्ली और उस के आसपास के इलाकों में नकली नोटों की तस्करी की पूरी जिम्मेदारी हिना और मुमताज के हाथों में थी. उन के पास पैसा आने लगा तो रातोंरात उन के रंगढंग बदल गए. हिना के फ्लैट में सुखसुविधा की हर चीज आ गई. उस ने बढि़या कार भी खरीद ली.

दोनों बहनें प्रौपर्टी के बिजनैस की आड़ में नकली नोटों का धंधा कर रही थीं. राष्ट्रद्रोह का काम कर के वे ठाठ से रह रही थीं.  बड़ेबड़े तस्कर उन से फोन पर संपर्क करते थे. उन तक नोट पहुंचाने का काम रफीक, नुरैन और मोइनुद्दीन करते थे. नकली नोट ट्रेन द्वारा ले जाए जाते थे, जबकि डील बसअड्डे पर होती थी. हिना के पास अब दौलत की कमी नहीं थी. अनापशनाप पैसा आया तो उसे शेखी बघारने का चस्का लग गया.

वेटर से ले कर दुकानदारों तक को वह हजार-पांच सौ का नोट देती तो बचे रुपए वापस नहीं लेती थी. लोग रुपए लौटाने लगते तो वह गर्व से कहती, ‘‘रख लीजिए, अगर हम ने बचे हुए रुपए वापस लिए तो यह हमारी तौहीन होगी.’’

दुकानदार या वेटर उसे ताकते रह जाते और उस की दरियादिली के कायल हो जाते. हिना का पर्स हमेशा नोटों से भरा रहता था. वह सौ, 2 सौ रुपए के सामान के भी हजार रुपए दे देती थी.

हिना की शातिर चाल – भाग 1

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुका देश की राजधानी दिल्ली से सटा उत्तर प्रदेश का जिला गौतमबुद्ध नगर (नोएडा)  जिस तेजी से विकास कर रहा है, उतनी ही तेजी से वहां अपराध का ग्राफ भी बढ़ रहा है. सच है, जहां पैसा होगा वहां अपराध भी होगा. क्योंकि ये दोनों साथसाथ चलते हैं. पुलिस के सजग रहने के बावजूद कब कौन किस तरह के अपराध का शिकार हो जाए, कोई नहीं जानता.

20 अप्रैल, 2014 को उत्तरप्रदेश में सत्तासीन समाजवादी पार्टी के युवा नेता और नगर के महासचिव अनिल यादव के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. रात सवा 8 बजे के करीब उस की पत्नी सुनीता को हिना ने फोन कर के बताया, ‘‘अनिल की हत्या हो गई है और उन की लाश मेरे फ्लैट में पड़ी है.’’

हिना की बात सुन कर सुनीता के होश उड़ गए. वह हड़बड़ा कर बोली, ‘‘क…क्… क्या?’’

सुनीता कुछ और पूछ पाती, उस से पहले ही दूसरी ओर से फोन काट दिया गया. उस ने पलट कर फोन मिलाया, लेकिन दूसरी ओर से फोन नहीं उठाया गया. इस अनहोनी से सुनीता कांप उठी. कुछ देर पहले ही अनिल हिना के फ्लैट पर जाने की बात कह कर घर से निकला था. अनिल अपनी पत्नी और 2 बेटों, आर्यन तथा अवि के साथ सेक्टर-71 के एक अपार्टमेंट में रहता था.

सुनीता ने अपने देवर सुनील को फोन कर के यह बात बताई तो वह भी घबरा गया. सुनील अपने रिश्ते के भाई सुभाष को साथ ले कर थोड़ी ही देर में हिना के सेक्टर-71 स्थित डी-20/2 नंबर के फ्लैट पर पहुंच गया.

फ्लैट के दरवाजे पर बाहर से कुंडा लगा था. सुनील ने कुंडा खोला तो अंदर का नजारा देख कर उस के होश उड़ गए. अनिल फर्श पर सीधा अचेत पड़ा था. उस के बाएं हाथ की कलाई पर कटे के निशान थे. होंठ और चेहरा नीला पड़ा हुआ था. गले पर भी दबाने का निशान था. इस के अलावा फर्श पर खून के धब्बे भी थे.

सुनील ने सुभाष की मदद से अनिल को कार में डाला और सेक्टर-62 स्थित फोर्टिस अस्पताल ले गए. वहां के डाक्टरों ने अनिल को भरती करने से मना कर दिया तो वे उसे ले कर मेट्रो अस्पताल गए, जहां डाक्टरों ने चैक कर के उसे मृत घोषित कर दिया.

अनिल की मौत की खबर से उस के घर में कोहराम मच गया. घर वाले और नाते रिश्तेदार अस्पताल पहुंच गए. घटना की सूचना पा कर कोतवाली सेक्टर-58 के प्रभारी एस.के. यादव भी मौके पर जा पहुंचे.

मामला सत्तारूढ़ दल के युवा नेता से जुड़ा था, इसलिए पुलिस अधीक्षक योगेश सिंह, पुलिस उपाधीक्षक विश्वजीत श्रीवास्तव भी मौके पहुंच गए थे. जिस फ्लैट में घटना घटी थी, उस का सामान बिखरा हुआ था. वहां शराब की 2 खाली बोतलें और कुछ गिलास रखे थे.

पीले रंग की एक चुन्नी बैड के ठीक ऊपर पंखे से लटक रही थी. चुन्नी में नीचे की ओर फंदा नहीं था. पहली ही नजर में लग रहा था कि हत्या को आत्महत्या का रूप देने की कोशिश की गई थी.

इस बीच पुलिस ने अनिल की लाश को अस्पताल से पोस्टमार्टम हाउस भिजवा दिया था. अनिल के घर वाले रिपोर्ट दर्ज कराने कोतवाली पहुंचे तो पुलिस ने सुबह आने को कहा. अगले दिन अनिल के घर वालों ने हिना और उस के साथियों के खिलाफ कोतवाली सेक्टर 58 में अनिल की हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया.

पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने अनिल की लाश को उस के घर वालों के हवाले कर दिया. कोतवाली प्रभारी एस.के. यादव की कार्यशैली से अनिल के घर वाले काफी नाराज थे, क्योंकि अभी तक वह उन से मिले तक नहीं थे.

अनिल की हत्या और कोतवाली प्रभारी की कार्यशैली से क्षुब्ध घर वालों ने कुछ लोगों के साथ मिल कर सड़क पर जाम लगा दिया और इंसपेक्टर के खिलाफ काररवाई कर के हत्यारों को गिरफ्तार करने की मांग करने लगे.

इस हंगामें की सूचना पुलिस अधिकारियों को मिली तो वे मौके पर पहुंच गए. उन्होंने जाम लगाने वालों को समझाबुझा कर जांच थाना सेक्टर-20 की थानाप्रभारी रीता यादव को सौंप दी.

पुलिस ने अनिल के घर वालों से पूछताछ की तो पता चला कि हिना अनिल की परिचित थी. उसे वह फ्लैट अनिल ने ही किराए पर दिलाया था. हिना पर उस के 6 लाख रुपए उधार थे. वह उन्हें लेने गया था, तभी उस की हत्या कर दी गई थी.

अनिल नोएडा से सटे गांव बहलोलपुर के रहने वाले छोटेलाल यादव का बेटा था. छोटेलाल के परिवार में पत्नी सरोज के अलावा 3 बेटियां कृष्णा, मोनिका, सोनी और 2 बेटे अनिल तथा सुनील थे.

छोटेलाल के पास ठीकठाक जमीन थी. नोएडा बसा तो उन की सारी जमीन प्राधिकरण ने ले ली. छोटेलाल सुलझे हुए व्यक्ति थे. उन्हें जमीन के मुआवजे के रूप में जो पैसा मिला, उस से उन्होंने प्रौपर्टी की खरीदफरोख्त का काम शुरू कर दिया था.

इस के लिए छोटेलाल ने नोएडा में अपना औफिस भी बना रखा था. प्रौपर्टी के काम में उन के बेटे भी उन का हाथ बंटाते थे. अनिल को राजनीति में रुचि थी, इसलिए बीए करने के बाद वह राजनीति में आ कर समाजवादी पार्टी से जुड़ गया. उस का युवाओं में खासा प्रभाव था, इसलिए पार्टी ने उसे महानगर इकाई का सचिव बना दिया था.

मामला गंभीर था. एसएसपी डा. प्रीतिंदर सिंह ने अपने अधीनस्थों को इस मामले को जल्द से जल्द सुलझाने का आदेश दिया. कोतवाली प्रभारी रीता यादव हिना की तलाश में जुट गईं. जानकारियों के आधार पर पुलिस ने उस के कई ठिकानों पर दबिश दी, परंतु वह हाथ नहीं लगी.

प्रौपर्टी डीलर जगदीप सिंह गिल को भी हिरासत में ले कर पूछताछ की गई, क्योंकि उसी के माध्यम से हिना को फ्लैट किराए पर दिलाया गया था. लेकिन उस से पूछताछ में पुलिस किसी नतीजे पर नहीं पहुंची.

इसी बीच पुलिस को खबर मिली कि हिना अदालत में आत्मसमर्पण की फिराक में है. उसे गिरफ्तार करने के लिए पुलिस ने 29 अप्रैल को अदालत के बाहर अपना जाल बिछाया, लेकिन पुलिस को चकमा दे कर वह बुर्के में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश हो गई. उसे न्यायिक हिरासत में लुक्सर स्थित जिला जेल भेज दिया गया.

जशन की एक गोली ने ली जान – भाग 3

पूछताछ में पता चला कि अर्चना के पति विकास गुप्ता और राजू सिंह के भाई संजीव सिंह पिछले 3 साल से साझे में रियल एस्टेट का बिजनैस कर रहे थे. इसीलिए उन्हें पार्टी में बुलाया गया था.

5 आरोपियों को गिरफ्तार करने के बाद जांच अधिकारी सी.एल. मीणा ने कुछ प्रत्यक्षदर्शियों को जब पूछताछ के लिए बुलाया, तो उन के मोबाइल से घटना के वक्त बनाई गई कुछ वीडियो क्लिप बरामद हुईं. इस मामले में पुलिस ने 55 लोगों से पूछताछ की.

दरअसल, पुलिस को शुरुआती पूछताछ में ही जानकारी मिल गई थी कि पार्टी में शामिल कुछ लोगों ने इस पार्टी की विडियो बनाई थी. हालांकि घटना के बाद राजू सिंह के परिवार वालों ने ज्यादातर लोगों के मोबाइल फोन से इन वीडियो को डिलीट करा दिया था.

राजू कुमार सिंह बिहार के मुजफ्फरपुर में पारू प्रखंड के बड़ा दाउद गांव के रहने वाले हैं. 48 वर्षीय राजू सिंह 3 भाइयों में मंझले हैं. उन के पिता उदयप्रताप सिंह कई बार पारू प्रखंड की आनंदपुर खरौनी पंचायत के मुखिया रहे हैं. राजू कुमार सिंह ने सन 2005 में राजनीति में एंट्री ली थी. वे पहली बार लोक जनशक्ति पार्टी के टिकट पर साहेबगंज से विधायक चुने गए थे.

उसके बाद 2005 में ही हुए अक्तूबर में हुए चुनाव में पार्टी बदल कर वह जनता दल यूनाइटेड के टिकट पर साहेबगंज से दोबारा विधायक चुने गए. फिर साल 2010 में यहीं से वह दोबारा विधायक बने. इस तरह वे 4  बार विधायक चुने गए. इस के बाद राजू कुमार सिंह ने सन 2015 में जेडीयू को छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया था.

2015 के विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा. राजू कुमार सिंह ने साल 2009 में अपनी पत्नी रेनू सिंह को भी निर्दलीय चुनाव लड़ा कर एमएलसी बनवा दिया. पूर्वी चंपारण से पंचायती राज कोटे से रेनू सिंह एमएलसी की सीट पर विजयी हुई थीं.

रसूखदार परिवार के हैं पूर्व विधायक

राजू कुमार सिंह ने 1984 में बिहार के मुजफ्फरपुर से मैट्रिक के बाद 1996 में महाराष्ट्र से बीटेक की पढ़ाई पूरी की थी. इस के बाद उन्होंने यूक्रेन से एमटेक करने के बाद महाराष्ट्र से पीएचडी की डिग्री भी हासिल की.

हालांकि राजू सिंह आमतौर पर बिहार में ही रहते थे, लेकिन परिवार दिल्ली में होने की वजह से अकसर यहां आते रहते थे. संपन्न परिवार से ताल्लुक रखने वाले राजू सिंह की गिनती बिहार में राजपूतों के दंबग नेता के रूप में होती थी. बिहार के रसूखदार सियासतदारों में शामिल राजू सिंह न सिर्फ राजनीति की चर्चित हस्ती थे, बल्कि उद्योग और व्यवसाय में भी उन की तूती बोलती थी.

वैसे राजू कुमार सिंह के परिवार की पहचान दवा के बड़े व्यवसाई के रूप में भी होती है. उनका दवाओं का कारोबार नोएडा, अहमदाबाद समेत कई बड़े शहरों फैला है. इस के अलावा रूस और अमेरिका में भी उन का दवाओं का कारोबार बताया जाता है.

बताया जाता है कि सोवियत संघ के विघटन और आर्थिक मंदी के समय राजू सिंह का परिवार दवा के कारोबार को सोवियत संघ तक ले कर गया और फिर करोड़ों की दवाओं का साम्राज्य स्थापित कर लिया.

राजू सिंह के पैतृक गांव बड़ा दाउद में उन का कोल्ड स्टोरेज, पारू प्रखंड में चीनी मिल, मुजफ्फरपुर शहर के कलम बाग चौक और मोतीझील में 2 व्यावसायिक प्रतिष्ठान और सुप्रसिद्ध डीआरबी मौल में भी राजू सिंह की हिस्सेदारी है.

अर्चना गुप्ता की हत्या का मामला उन के खिलाफ दर्ज पहला आपराधिक मामला नहीं है. उन के बारे में कहा जाता है कि वह शराब पी कर अकसर अपने लाइसेंसी हथियारों से फायरिंग करते रहते थे.

अनेक मामले दर्ज हैं पूर्व विधायक पर

राजू कुमार सिंह के खिलाफ 2015 के चुनाव के समय 5 आपराधिक मामले दर्ज थे जिस में धमकी देने, मारपीट करने, जान से मारने का प्रयास और आर्म्स एक्ट से जुड़ी कई संगीन धाराओं में उन के खिलाफ मामले दर्ज हैं. उन के खिलाफ एक नाबालिग लड़की को वेश्यावृत्ति के लिए बेचने समेत सरकारी काम में बाधा डालने के भी मामले चल रहे हैं.

हाल के दिनों में अमर भगत हत्याकांड में भी उन का नाम उछला था, लेकिन पुलिस को उन के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं मिला. राजू सिंह हमेशा नक्सलियों और माओवादियों से खुद को खतरा बताते रहे हैं. यही कारण था कि प्रशासन ने उन्हें विशेष सुरक्षा भी मुहैया कराई थी.

नए साल की पूर्वसंध्या पर राजू सिंह व उन के भाइयों ने अपने फार्महाउस पर 55-60 लोगों को पार्टी में बुलाया था. देर रात सभी मेहमान शराब के नशे में धुत नाच रहे थे. इसी बीच आरोपी पूर्व विधायक ने 3 राउंड गोली चलाईं, जिस में एक गोली अर्चना गुप्ता के सिर में लगी.

फार्महाउस पर म्यूजिक बजा रहे 2 डिस्क जौकी (डीजे) ने पुलिस को दिए अपने बयानों में बताया है कि उस रात राजू सिंह एक हाथ में पिस्टल और दूसरे हाथ में शराब का गिलास ले कर नाच रहे थे. साथ ही अर्चना गुप्ता की हत्या के एक घंटे बाद तक राजू सिंह खून से सने उस डांस फ्लोर पर शराब पीते रहे.

पुलिस ने दोनों डीजे के बयान मजिस्ट्रैट के सामने भी दर्ज करा दिए हैं, जिस का यह अर्थ है कि अदालत के समक्ष इसे अहम सबूत के रूप में स्वीकार किया जाएगा.

प्रतिभाशाली महिला थीं अर्चना गुप्ता

इस बयान में बताया गया कि डांस फ्लोर पर करीब 14 लोग थे. डांस फ्लोर पर मौजूद कुछ लोगों ने पुलिस को बयान दिया है कि उन्होंने राजू सिंह के हाथ में पिस्टल देखी थी. पुलिस को जांच के बाद यह भी पता चला कि फार्महाउस में पिस्टल से 6 और राइफल से 2 फायर किए गए थे. लेकिन नशे और सियासी उन्माद में उन की फायरिंग से एक प्रतिभाशाली महिला की जिंदगी खत्म हो गई.

42 साल की अर्चना गुप्ता, जो एक किताब लिख चुकी थीं, 2 किताबों को फाइनल टच देने का काम कर रही थीं. वह एक डौक्यूमेंट्री पर भी काम कर रही थीं. वह सन 2017 तक आईपी यूनिवर्सिटी में पढ़ाती थीं. वह बेहतरीन मां, उम्दा आर्किटेक्ट, अच्छी राइटर और शानदार टीचर थीं. वह आगे भी बहुत कुछ करना चाहती थीं. लेकिन नए साल के इस जश्न की पार्टी ने सब पर पानी फेर दिया.

विकास गुप्ता जो रियल एस्टेट के कारोबार से जुड़े थे, राजू सिंह के भाई संजीव सिंह के 25 साल पुराने जिगरी दोस्त हैं, इसीलिए विकास की जानपहचान संजीव के दूसरे भाइयों राजेश व राजू सिंह से भी थी.

जिस फार्महाउस में पार्टी चल रही थी, वह फार्महाउस भी संजीव सिंह का ही था. पारिवारिक दोस्ती के कारण विकास गुप्ता अपनी पत्नी अर्चना व बेटी को ले कर नए साल की इस पार्टी में आए थे, लेकिन खुशी का यह जश्न उन की पत्नी की जिंदगी लील गया.

अर्चना गुप्ता ने भले ही दम तोड़ दिया, लेकिन मरने के बाद भी उन्होंने एक मिसाल पेश कर दी. भले ही अब वह इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन जातेजाते वह 2 लोगों को जिंदगी दे गईं. उन्होंने मरने से पहले अपनी दोनों किडनियां डोनेट कर दीं.

गोली लगने के बाद अर्चना के पति विकास गुप्ता ने उन्हें वसंत कुंज के फोर्टिस अस्पताल में एडमिट कराया था, जहां उन्होंने आखिरी सांस ली. मौत के बाद उन की एक किडनी फोर्टिस अस्पताल के एक 43 साल के मरीज को ट्रांसप्लांट की गई, तो दूसरी अपोलो अस्पताल में एडमिट 67 साल की एक महिला को डोनेट की गई.

वैलेंटाइन डे पर मिली अनोखी सौगात – भाग 3

किरण और रामबाबू के बीच एक बार जिस्मानी संबंध बनने के बाद उन का सिलसिला चलता रहा. लेकिन ज्यादा दिनों तक सिलसिला कायम न रह सका. करतार सिंह को पत्नी के हावभाव से उस पर शक होने लगा. उसे रामबाबू का उस के यहां ज्यादा आना अच्छा नहीं लगता था. इस बात का ऐतराज उस ने पत्नी से भी जताया और कहा कि वह रामबाबू को यहां आने से मना कर दे. लेकिन किरण ने ऐसा नहीं किया.

इसी बात को ले कर पत्नी से करतार की नोकझोंक होती रहती थी. उसी दौरान किरण की छोटी बहन सलीना भी उस के पास रहने के लिए आ गई. 22 साल की सलीना खूबसूरत थी. जवान साली को देख कर करतार की भी नीयत डोल गई. वह उस पर डोरे डालने लगा लेकिन घर में अकसर पत्नी के रहने की वजह से उस की दाल नहीं गल पाई.

उधर किरण और रामबाबू के अवैध संबंध का खेल कायम रहा और 7 फरवरी को वह रामबाबू के साथ भाग गई. बदनामी की वजह से करतार ने इस की रिपोर्ट थाने में भी नहीं लिखवाई. करीब एक हफ्ते तक दोनों इधरउधर घूम कर मौजमस्ती कर के घर लौट आए. करतार ने किरण को आडे़ हाथों लिया तो किरण ने पति के पैरों में गिर कर माफी मांग ली. पत्नी के घडि़याली आंसू देख कर करतार का दिल पसीज गया और उस ने पत्नी को माफ कर दिया.

13 फरवरी की शाम को रामबाबू करतार के यहां आया. करतार को पता था कि उस की पत्नी को रामबाबू ही भगा कर ले गया था इसलिए उस के घर आने पर वह मन ही मन कुढ़ रहा था. फिर भी उस ने उस से कुछ कहना जरूरी नहीं समझा.

उस ने उस की खातिरदारी की और उस के साथ शराब भी पी. शराब पीने के दौरान ही बातोंबातों में उन का झगड़ा हो गया. झगड़ा बढ़ने पर रामबाबू वहां से चला गया. किरण ने इसे अपने प्रेमी रामबाबू की बेइज्जती समझा और उलटे वह भी पति से झगड़ने लगी.

अगले दिन 14 फरवरी को वैलेंटाइन डे था. प्यार का इजहार करने के इस दिन का तमाम लोगों को बेसब्री से इंतजार रहता है. 40 साल का करतार भी अपनी 22 साल की साली सलीना को मन ही मन चाहता था. उस दिन सलीना किरण के साथ महिपालपुर में रामबाबू के घर चली गई थी. इस बात की जानकारी करतार सिंह को थी.

करतार सिंह ने भी वैलेंटाइन डे के दिन ही सलीना को अपने प्यार का इजहार करने का फैसला कर लिया. वह दुकान पर अपने बेटे को बिठा कर रामबाबू के कमरे पर पहुंच गया. उस समय वहां रामबाबू नहीं था. वह किरण और सलीना को कमरे पर छोड़ कर किसी काम से घर से बाहर चला गया था और उस की पत्नी प्रभा मायके गई हुई थी.

करतार सलीना के लिए बेचैन हुआ जा रहा था. जिस समय किरण किचन में कोई काम कर रही थी, सलीना कमरे में थी, तभी मौका देख कर करतार ने सलीना का हाथ पकड़ लिया.

सलीना घबरा गई. जब उस ने हाथ छुड़ाने की कोशिश की तो करतार ने उस के सामने प्यार का इजहार करते हुए उसे किस कर दी और वह उस के साथ अश्लील हरकतें करने लगा. सलीना चीखी तो किचन से किरण आ गई. पति की हरकतों को देख कर उसे भी गुस्सा आ गया. तब सलीना ने किसी तरह खुद को उस के चंगुल से छुड़ा लिया और किचन की ओर भाग गई.

उधर किरण पति को डांट ही रही थी तभी सलीना किचन से चाकू ले आई. इस से पहले कि वह कुछ समझ पाता, सलीना ने करतार के पेट में चाकू घोंप दिया.

चाकू लगते ही करतार के पेट से खून का फव्वारा फूट पड़ा. सलीना ने उसी चाकू से एक वार उस के पेट की दूसरी साइड में कर दिया. इस के बाद करतार सिंह फर्श पर गिर गया और बेहोश हो गया.

बहन के इस कदम पर किरण भी हैरान रह गई. जो हो चुका था, उस में अब वह कुछ नहीं कर सकती थी. उस ने छोटी बहन से कुछ नहीं कहा. बल्कि वह यह सोच कर खुश हुई कि करतार के मरने के बाद वह रामबाबू के साथ बिना किसी डर के रहेगी. करतार कहीं जिंदा न रह जाए, इसलिए किरण ने उसी चाकू से उस का गला काट दिया. इस के बाद किरण ने फोन कर के रामबाबू को करतार की हत्या करने की खबर दे दी. उस ने उसे बुला लिया.

दोनों बहनों द्वारा करतार की हत्या करने पर वह भी हैरान रह गया. अब उन तीनों ने उस की लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. सब से पहले उन्होंने उस की बौडी के खून को साफ किया फिर लाश को प्लास्टिक के कट्टे में रख लिया.

अंधेरा होने के बाद रामबाबू ने उस की लाश अपने आटोरिक्शा में रख ली. किरण और सलीना भी आटो में बैठ गईं. रामबाबू आटो को वसंत कुंज इलाके की तरफ ले गया. वसंत वाटिका पार्क के पास उन्हें बिना ढक्कन का एक मेनहोल दिखा तो उसी मेनहोल में उन्होंने लाश गिराने का फैसला ले लिया.

आटो से कट्टा उतार कर उस मेनहोल के पास ले गए और कट्टे का मुंह खोल कर लाश उस मेनहोल में गिरा दी और कट्टा वहीं फेंक कर वे उसी कमरे पर चले गए जहां करतार की हत्या की गई थी.

तीनों ने फर्श धो कर खून के धब्बे साफ किए फिर किरण और सलीना वहां से करतार के कमरे पर आ गईं. उन्हें देख कर घर का कोई भी सदस्य यह अनुमान तक नहीं लगा पाया कि वे कोई जघन्य अपराध कर के आई हैं.

जब देर रात तक करतार घर नहीं पहुंचा तो उस के घर वालों ने किरण से उस के बारे में पूछा. तब किरण ने यही जवाब दिया कि उसे करतार के बारे में कुछ नहीं पता. घर वालों के साथ वह भी करतार को इधरउधर ढूंढती रही.

10-12 दिनों तक घर वाले परेशान होते रहे, लेकिन करतार का कहीं पता नहीं चला. करतार के घर वाले जब उस के गुम होने की रिपोर्ट दर्ज कराने की बात करते तो किरण उन्हें यह कह कर मना करती कि वह कहीं गए होंगे. अपने आप लौट आएंगे. घर वालों के दबाव देने पर किरण ने 25 फरवरी को थाना वसंत कुंज (नार्थ) जा कर पति की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखा दी.

उधर करतार सिंह के मातापिता का कहना है कि सलीना ने उन के बेटे पर छेड़खानी का जो आरोप लगाया है वह सरासर गलत है. हकीकत यह है कि सलीना करतार के साथ पहले से ही उस के कमरे में सोती थी. जब किरण रामबाबू के साथ भाग गई थी तब सलीना करतार के साथ ही सोती थी.

हफ्ता भर तक जब जीजासाली बंद कमरे में सोए थे तो उन्होंने भजनकीर्तन तो किया नहीं होगा. जाहिर है उन्होंने सीमाएं भी लांघी होंगी. ऐसे में उस के द्वारा छेड़छाड़ का आरोप लगाने वाली बात एकदम गलत है.

उन्होंने आरोप लगाया कि करतार की हत्या रामबाबू, किरण और सलीना ने साजिश के तहत की है. तीनों के खिलाफ सख्त काररवाई की जानी चाहिए.

बहरहाल अब यह बात अदालत ही तय करेगी कि करतार सिंह का हत्यारा कौन है. किरण और सलीना से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने एक बार फिर रामबाबू के यहां दबिश दी, लेकिन वह नहीं मिला.

पुलिस को पता चला कि करतार की लाश ठिकाने लगाने में रामबाबू ने अपने जिस आटोरिक्शा का प्रयोग किया था, वह किसी के यहां खड़ा है. पुलिस उस जगह पर पहुंच गई जहां उस का आटोरिक्शा खड़ा था. उस आटोरिक्शा को ले कर पुलिस थाने लौट आई.

पुलिस ने किरण और सलीना को भादंवि की धारा 302 (हत्या करना), 201 (हत्या कर के लाश छिपाने की कोशिश) और 120बी (अपराध की साजिश रचने) के तहत गिरफ्तार कर के उन्हें न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया.

कथा संकलन तक दोनों अभियुक्त जेल में बंद थीं जबकि रामबाबू की तलाश में पुलिस अनेक स्थानों पर दबिश डाल चुकी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

जशन की एक गोली ने ली जान – भाग 2

पुलिस ने मेहमानों की मांगी लिस्ट

उस वक्त वहां सिर्फ 22 पुरुष व महिलाएं और कुछ कर्मचारी मौजूद थे. लेकिन कोई भी यह जानकारी नहीं दे सका कि फायरिंग होने के दौरान अर्चना गुप्ता को किस के हथियार से चली गोली लगी. पुलिस ने संजीव सिंह को हिदायत दी कि उस रात पार्टी में मौजूद सभी मेहमानों के नामपते की सूची व फोन नंबर अगले कुछ घंटों के भीतर पुलिस को उपलब्ध कराएं.

इस के बाद फार्महाउस पर पुलिस का पहरा बैठा दिया गया और उस क्षेत्र में जहां गोली चलने की घटना हुई थी, किसी को भी नहीं जाने की हिदायत दे दी गई. पुलिस टीम घटनास्थल पर मौजूद फार्महाउस के कुछ कर्मचारियों और वहां डीजे बजा रहे 2 जौकी को पूछताछ के लिए अपने साथ फतेहपुर बेरी थाने ले आई.

दूसरी ओर इंसपेक्टर सी.एल. मीणा फोर्टिस अस्पताल से अर्चना के पति विकास गुप्ता को अपने साथ थाने ले आए, जहां विस्तारपूर्वक उन का बयान लिया गया.

विकास गुप्ता का साफ कहना था कि उन की पत्नी को पूर्व विधायक राजू सिंह द्वारा पिस्टल से की गई फायरिंग में गोली लगी है. लिहाजा पुलिस ने पहली जनवरी, 2019 की सुबह हत्या की कोशिश व शस्त्र अधिनियम के तहत राजू सिंह के खिलाफ नामजद एफआईआर दर्ज कर ली.

इस दौरान पुलिस ने कई काम एक साथ किए. सब से पहले पुलिस ने कब्जे में ली गई सीसीटीवी फुटेज देखी, जिस से साफ पता चल रहा था कि उस फुटेज के साथ छेड़छाड़ की गई है. घटना के वक्त 3-4 लोगों ने फायरिंग की थी. लेकिन जिस वक्त राजू सिंह ने पिस्टल लहरा कर गोली चलाई, उस दौरान कुछ मिनट की वीडियो को डिलीट कर दिया गया था.

इसका मतलब था कि घटना के साक्ष्य मिटाने की कोशिश की गई थी. साथ ही सीसीटीवी से यह भी खुलासा हुआ कि राजू सिंह शाम के 7 बजे से ही शराब पी रहा था. रात करीब 12 बज कर 4 मिनट पर जब घटना घटी, उस वक्त वह बुरी तरह नशे में झूम रहा था और उस का खुद पर नियंत्रण नहीं था. रात साढ़े 11 बजे के बाद उस ने कई बार अपनी जेब में खोंसा पिस्टल निकाल कर हवा में लहराया था.

सीसीटीवी फुटेज में की गई छेड़छाड़

सीसीटीवी देखने के बाद तसवीर काफी हद तक साफ हो गई थी. लेकिन जब पुलिस ने फार्महाउस में काम करने वाले कर्मचारियों और जौकी से पूछताछ शुरू की, तो सारा सच सामने आने लगा.

पता चला कि रात को 12 बजते ही सब से पहले राजू सिंह के एक बेहद करीबी राम इंद्र सिंह और राजू सिंह के ड्राइवर हरी सिंह ने रायफल से हवा में 3-4 राउंड गोलियां चलाई थीं. उस वक्त तक अर्चना गुप्ता एकदम ठीक थीं. लेकिन बाद में जब राजू सिंह ने हवा में हाथ लहराते हुए अपने पिस्टल से एक के बाद एक 3 फायर किए तो एक गोली अर्चना के सिर में जा लगी थी.

थानाप्रभारी दिलीप कुमार व एसीपी राजेंद्र सिंह पठानिया को कुछ साल पहले महरौली इलाके में हुए एक बहुचर्चित हादसे के बारे में पता था, जिस में कुछ अमीरजादों ने शराब नहीं देने पर नशे में एक मौडल जेसिका लाल की गोली मार कर हत्या कर दी थी. दिल्ली के बेहद चर्चित इस मामले में भी सबूत मिटाने की कोशिश की गई थी.

बाद में कई कारणों से पुलिस की आलोचना भी हुई थी. लिहाजा एसीपी पठानिया इस तरह की कोई लापरवाही नहीं बरतना चाहते थे. उन्होंने उसी दिन पूर्व विधायक राजू सिंह के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगवा दिया. डीसीपी रोमिल बानिया ने राजू सिंह की गिरफ्तारी के लिए जिले के स्पैशल स्टाफ, एंटी आटो थेफ्ट सेल और फतेहपुर बेरी थाना पुलिस की 4 टीमों को हर उस जगह के लिए रवाना कर दिया, जहां राजू सिंह के मिलने की संभावना थी.

1 जनवरी की शाम होतेहोते अर्चना सिंह ने फोर्टिस अस्पताल में दम तोड़ दिया. पुलिस ने उन के शव का पंचनामा भर कर एम्स के चिकित्सकों की विशेष टीम से पोस्टमार्टम कराने के लिए भिजवा दिया. इधर अर्चना की मौत के बाद जांच अधिकारी सी. एल. मीणा ने इस मामले में हत्या की धारा 302 व 201 भी जोड दी. अगली सुबह पोस्टमार्टम रिपोर्ट से साफ हो गया कि मृतक अर्चना के सिर में राजू सिंह की लाइसेंसी पिस्टल की गोली लगी थी.

इधर साइबर टीम की मदद से पुलिस को लगातार राजू सिंह व उन के ड्राइवर हरी सिंह की लोकेशन उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में मिल रही थी. डीसीपी रोमिल बानिया ने 2 विशेष टीमों को तत्काल कुशीनगर के लिए रवाना कर दिया. ये टीमें लगातार सर्विलांस के काम में लगी टीम से संपर्क बनाते हुए 2 जनवरी को कुशीनगर पहुंच गईं.

अरेस्ट हो गए पूर्व विधायक

पुलिस ने स्थानीय पुलिस का सहयोग ले कर राजू कुमार सिंह व उन के ड्राइवर हरी सिंह को कुशीनगर के फाजिल नगर बाजार से 2 जनवरी, 2019 की शाम को गिरफ्तार कर लिया.

वे दोनों एक सफेद रंग की इनोवा कार में सवार थे और बिहार जाने की तैयारी कर रहे थे. पुलिस ने उन के कब्जे से घटना में इस्तेमाल पिस्टल भी जब्त कर ली. पूछताछ में राजू सिंह ने बताया कि इस पिस्टल का लाइसैंस उन्होंने बिहार से बनवाया है और देश भर के लिए मान्य है.

राजू सिंह के पकड़े जाने पर उन के खास और गाड़ी के ड्राइवर हरी सिंह ने यह कह कर पूरी वारदात को अपने सिर लेने की कोशिश की कि गोली उस ने चलाई थी.

पुलिस दोनों को दिल्ली ले आई और उन्हें पार्टी में शामिल लोगों के बयान से अवगत कराया तो राजू सिंह ने अपना अपराध कबूल कर लिया. पूछताछ के बाद यह साफ हो गया कि उस रात पार्टी में फायरिंग राजू सिंह व 2 अन्य लोगों ने भी की थी. अर्चना की मौत राजू सिंह की ही गोली से हुई थी.

पुलिस ने राजू सिंह व उन के ड्राइवर हरी सिंह को साकेत कोर्ट में पेश किया, जहां से उन दोनों को 7 दिन के पुलिस रिमांड पर भेज दिया गया. शुरुआती पूछताछ में राजू ने कहा कि उस ने शराब पी रखी थी और नशे में गोली चला दी थी.

आरोपी के परिवार के बिजनैस पार्टनर थे विकास गुप्ता

राजू सिंह ने पुलिस से यह भी कहा कि उन्हें अपने किए पर कोई पछतावा नहीं है. राजू सिंह ने बताया कि घटना के बाद वह अपने रिश्तेदार के यहां छिपा था और बिहार के रास्ते नेपाल भागने की फिराक में था ताकि सियासी प्रभाव का फायदा उठा सके. राजू सिंह ने पुलिस के सामने यह भी कबूल किया कि उस ने वारदात के बाद कारतूस छिपाए थे और कपड़े भी बदले थे.

राजू सिंह व हरी सिंह से पूछताछ के बाद चश्मदीदों के बयान और सीसीटीवी की फुटेज से यह बात साफ हो गई कि डांस फ्लोर पर बहे अर्चना गुप्ता के खून को साफ करने व सबूत मिटाने में राजू सिंह की पत्नी और बिहार की पूर्व एमएलसी रेनू सिंह, उन के भाई राजेश सिंह और राजू सिंह के एक करीबी राम इंद्र सिंह शामिल थे. लिहाजा पुलिस ने राजू सिंह व हरी सिंह को हत्या और उन तीनों को सबूत मिटाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया.

वैलेंटाइन डे पर मिली अनोखी सौगात – भाग 2

करतार रंगपुरी पहाड़ी पर रहता था. महिपालपुर से लौटने के बाद पुलिस ने रंगपुरी पहाड़ी पर पहुंच कर वहां के लोगों से करतार के बारे में जानकारी जुटानी शुरू कर दी. इस से पुलिस को कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां मिलीं, जिस के बाद किरण और उस की छोटी बहन सलीना भी शक के दायरे में आ गईं.

दोनों बहनों को पुलिस ने उसी दिन पूछताछ के लिए थाने बुलवा लिया. किरण और सलीना को जब अलगअलग कर के पूछताछ की तो करतार के मर्डर की कहानी खुल गई. दोनों बहनों ने स्वीकार कर लिया कि उस की हत्या उन दोनों ने ही की थी और लाश रामबाबू के आटो में रख कर वसंत वाटिका पार्क में लाए और उसे वहां के गटर में डाल कर अपनेअपने घर चले गए थे. पति की हत्या की जो कहानी किरण ने बताई, वह प्रेम से सराबोर निकली.

पिल्लूराम मूलरूप से हरियाणा के गुड़गांव जिले के मेवात क्षेत्र स्थित नूनेरा गांव के रहने वाले थे. अब से तकरीबन 40 साल पहले अपनी पत्नी रतनी और 2 बेटों के साथ वे दिल्ली आए थे और दक्षिणी दिल्ली के वसंत कुंज इलाके में स्थित रंगपुरी पहाड़ी पर रहने लगे. उन से पहले अनेक लोगों ने इसी पहाड़ी पर तमाम झुग्गियां डाल रखी थीं.

दिल्ली की चकाचौंध ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि वह यहीं पर बस गए. छोटेमोटे काम कर के वह परिवार को पालने लगे. दिल्ली आने के बाद रतनी 4 और बेटों की मां बनी. अब उन के पास 6 बेटे हो गए थे जिन में करतार सिंह तीसरे नंबर का था.

पिल्लूराम की हैसियत उस समय ऐसी नहीं थी कि वे बच्चों को पढ़ा सकें. फिर भी उन्होंने सरकारी स्कूलों में बच्चों का दाखिला कराया लेकिन सभी ने पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी. कोई भी बच्चा उच्चशिक्षा हासिल नहीं कर सका, तब पिल्लूराम ने उन्हें अलगअलग कामों में लगा दिया.

सभी बच्चे कमाने लगे तो घर के हालात सुधरने लगे. पैसा जमा करने के बाद करतार सिंह ने रंगपुरी पहाड़ी पर ही किराना स्टोर और चाय की दुकान खोल ली. कुछ ही दिनों में करतार सिंह का काम चल निकला तो उसे अच्छी आमदनी होने लगी. तब पिल्लूराम ने उस की शादी सीमा नाम की एक लड़की से कर दी.

शादी के बाद हर किसी के जीवन की एक नई शुरुआत होती है. यहीं से एक नए परिवार की जिम्मेदारी उठाने की कोशिश शुरू हो जाती है. सीमा से शादी करने के बाद करतार ने भी गृहस्थ जीवन की शुरुआत की. वह सीमा से बहुत खुश था. सीमा सपनों के जिस राजकुमार से शादी करना चाहती थी, करतार वैसा ही था. इसलिए उस ने बहुत जल्द ही करतार के दिल को काबू में कर लिया था.

इस दौरान सीमा एक बेटी और एक बेटे की मां बनी. उस का परिवार हंसीखुशी से चल रहा था. इसी बीच परिवार में ऐसा भूचाल आया जिस का दुख उसे सालता रहा.

करीब 4-5 साल पहले सीमा की कैंसर से मौत हो गई. करतार ने उस का काफी इलाज कराया था. लाख कोशिश करने के बाद भी वह ठीक नहीं हो सकी और परिवार को हमेशा हमेशा के लिए छोड़ कर चली गई.

सीमा की मौत पर वैसे तो पूरे परिवार को दुख हुआ था लेकिन सब से ज्यादा दुख करतार ही महसूस कर रहा था. होता भी क्यों न, वह उस की अर्द्धांगिनी जो थी. जीवन के जितने दिन उस ने पत्नी के साथ गुजारे थे, उन्हीं दिनों को याद करकर के उस की आंखों में आंसू भर आते थे.

36 साल का करतार दुकान पर बैठेबैठे खाली समय में अपने वैवाहिक जीवन की यादों में खोया रहता था. उस के मांबाप भी उसे काफी समझाते रहते थे. खैर, जैसेजैसे समय गुजरता गया, करतार सिंह भी सामान्य हो गया.

उसी दौरान उस की मुलाकात किरण नाम की एक युवती से हुई जो झारखंड के केरल गांव की थी. वह भी रंगपुरी पहाड़ी पर रहती थी. किरण वसंत कुंज इलाके में कोठियों में बरतन साफ करने का काम करती थी. करतार एकाकी जीवन गुजार रहा था. किरण को देख कर उस का झुकाव उस की ओर हो गया. किरण भी अकसर उस के पास आने लगी. उसे भी करतार से बातचीत करने में दिलचस्पी होने लगी. दोनों ने एकदूसरे को अपने फोन नंबर दे दिए थे.

फिर तो करतार जब भी फुरसत में होता, किरण को फोन मिला देता. दोनों में बातचीत का सिलसिला शुरू हो जाता और काफी देर तक बातें होती रहतीं. बातों ही बातों में वे एकदूसरे से खुलते गए. यह नजदीकी उन्हें प्यार के मुकाम तक ले गई.

चूंकि किरण भी अकेली ही थी और करतार उस की नजरों में सही था. उस की किराने की दुकान अच्छी चल रही थी इसलिए उस ने काफी सोचनेसमझने के बाद ही उस की तरफ प्यार का हाथ बढ़ाया था. करतार ने उस के सामने पूरी जिंदगी साथ रहने की पेशकश की तो किरण ने सहमति जता दी. इस के बाद किरण करतार के साथ पत्नी की तरह रहने लगी. यह करीब 4 साल पहले की बात है.

करतार की जिंदगी फिर से हरीभरी हो गई थी. किरण के प्यार ने उस के बीते दुखों को भुला दिया था. दोनों की उम्र में करीब 8 साल का अंतर था इस के बाद भी किरण उस से खुश थी.

इन 4 सालों में किरण मां नहीं बन सकी थी. करतार सिंह की पहली पत्नी से 2 बच्चे थे. इसलिए किरण के बच्चा पैदा न होने पर करतार को कोई मलाल नहीं था. लेकिन किरण इस चिंता में घुलती जा रही थी. वह चाहती थी कि उस के भी बच्चा हो. उस की गोद भी भर जाए.

किरण के कहने पर करतार ने उस का इलाज भी कराया. इस के बावजूद भी उस की इच्छा पूरी नहीं हुई तो करतार ने अपने एक संबंधी की एक साल की बेटी गोद ले ली जिस से किरण का मन लगा रहे. किरण उस गोद ली हुई बेटी की परवरिश में लग गई.

किरण के गांव की ही प्रभा नाम की एक लड़की की शादी महिपालपुर में रहने वाले रामबाबू के साथ हुई थी. रामबाबू आटोरिक्शा चलाता था. एक ही गांव की होने की वजह से किरण प्रभा से फोन पर बात भी करती रहती थी. कभी प्रभा उस के यहां तो कभी वह प्रभा के घर जाती रहती थी. एकदूसरे के यहां आनेजाने से करतार और रामबाबू के बीच भी दोस्ती हो गई थी. दोनों साथसाथ खातेपीते थे.

इसी बीच किरण का झुकाव रामबाबू की ओर हो गया. वह उस से हंसीमजाक करती रहती थी. किरण की ओर से मिले खुले औफर को भला रामबाबू कैसे ठुकरा सकता था. शादीशुदा होने के बावजूद भी उस ने अपने कदम किरण की ओर बढ़ा दिए. दोनों ही अनुभवी थे इसलिए उन्हें एकदूसरे के नजदीक आने में झिझक महसूस नहीं हुई.

जशन की एक गोली ने ली जान – भाग 1

नए साल के स्वागत के लिए हर कोई अपने तरीके से जश्न मनाता है. जिस की जैसी औकात वैसा जश्न. दिल्ली  और मुंबई जैसे महानगर चूंकि रईसों के शहर माने जाते हैं, इसलिए यहां नए साल के जश्न भी निराले होते हैं. दिल्ली की बात करें तो देश की इस राजधानी में रईसों से ले कर नौकरशाही और सियासत से जुड़े लोग 5 सितारा होटलों और फार्महाउसों में शराब और शबाब की महफिलें सजाते हैं.

दक्षिणी दिल्ली के फतेहपुर बेरी थाना क्षेत्र के मांडी गांव के पास एक फार्महाउस रोज फार्म नाम से है. रोज फार्म में नए साल 2019 का स्वागत करने व जश्न मनाने के लिए एक पार्टी का आयोजन किया गया था.

दवाइयां बनाने व बेचने का व्यवसाय करने वाले संजीव सिंह अपने दूसरे भाइयों राजेश सिंह व राजू सिंह के साथ इस पार्टी के मेजबान थे. रोज फार्महाउस की मालिक इन भाइयों की मां हैं. राजू सिंह बिहार के मुजफ्फरपुर में साहेबगंज से विधायक रह चुके हैं.

न्यू ईयर की इस पार्टी में तीनों भाइयों के परिवारों ने पारिवारिक दोस्तों को निमंत्रण दे कर बुलाया गया था. पार्टी में तीनों भाइयों के परिवारों के अलावा करीब 55-60 मेहमान शामिल हुए थे, जिन में से कुछ दोस्त मौस्को और अमेरिका से भी आए थे. शाम 7 बजे से ही महफिल में शराब के साथ लजीज व्यंजनों का दौर शुरू हो गया था. मेहमान डीजे की धुन पर डांस के साथ मस्ती कर रहे थे.

रात 12 बजे जैसे ही नए साल का आगाज हुआ, लोग और भी ज्यादा जोश में डांस करने लगे. इन में से ज्यादातर लोग डांस फ्लोर पर डांस कर रहे थे. कुछ लोग फार्महाउस के दूसरे हिस्सों में भी शराब की चुस्कियां और खाने का स्वाद लेते हुए एकदूसरे को नए साल की बधाइयां दे रहे थे.

उसी वक्त डांस स्टेज के पास कुछ लोगों ने एक के बाद एक कई हवाई फायर करके जश्न की उमंग को बढ़ा दिया. एक के बाद एक कई गोलियां चलीं तो स्टेज पर डांस कर रही अर्चना गुप्ता (42) चीख के साथ लहरा कर जमीन पर गिर पड़ीं. उन की चीख सुन सभी ने चौंक कर स्टेज की तरफ देखा.

अर्चना के पति विकास गुप्ता भी दौड़ कर स्टेज पर पहुंच गए. अर्चना के सिर से खून का फव्वारा सा फूट निकला था. वह जहां गिरीं, वहां आसपास खून का दरिया बन गया था. गोली चलने के बाद फार्महाउस में हड़बड़ी और भगदड़ सी मच गई थी. मेहमानों के चेहरों पर दहशत के भाव उभर आए. किसी को नहीं सूझ रहा था कि अचानक ये सब क्या और कैसे हो गया.

पत्नी अर्चना की चीख सुन कर आए विकास गुप्ता उन्हें खून से लथपथ देख पहले तो पलभर के लिए सदमे में आए. लेकिन अगले ही पल जैसे वे नींद से जागे और पत्नी को गोद में उठा कर अपनी गाड़ी की तरफ दौड़ पड़े. पार्टी में मौजूद कुछ मेहमान भी उन के साथ हो लिए.

किसी के हिस्से में खुशी, किसी के हिस्से में अंधेरा

अर्चना को उन्होंने अपनी गाड़ी की पिछली सीट पर डाला और कुछ ही देर में उन की कार फर्राटे भरती हुई वसंत कुंज के फोर्टिस अस्पताल पहुंच गई. डाक्टरों को जब यह पता चला कि उन के सामने मौजूद महिला को गोली लगी है, तो अस्पताल की तरफ से तत्काल पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दे दी गई. इस के बाद अर्चना को गहन चिकित्सा कक्ष में ले जा कर उन का इलाज शुरू कर दिया गया.

कुछ ही देर में पीसीआर की गाड़ी आ गई.  पुलिस के अस्पताल पहुंचने के बाद अर्चना गुप्ता के पति विकास गुप्ता ने बताया कि उन्हें गोली फार्महाउस में की गई फायरिंग से लगी है. उन से जरूरी जानकारी ले कर पीसीआर कर्मियों ने इस घटना की सूचना दक्षिण जिले के फतेहपुर बेरी थाने को दे दी. क्योंकि रोज फार्म इसी थाना क्षेत्र में आता था.

सूचना मिलते ही फतेहपुर बेरी थानाप्रभारी दिलीप कुमार थाने के इंसपेक्टर (इन्वैस्टीगेशन) सी.एल. मीणा, एसआई मंजीत सिंह और अन्य स्टाफ को साथ ले कर फोर्टिस अस्पताल पहुंच गए. वहां पहुंचने पर पता चला कि अर्चना गुप्ता की हालत बेहद गंभीर है और सिर में गोली लगने की वजह से उन के बचने की बहुत कम उम्मीद है.

अर्चना के पति विकास गुप्ता अस्पताल में ही मौजूद थे. दिलीप कुमार ने उन से घटना के बारे में जानकारी ली, तो उन्होंने आरोप लगाया कि उन की पत्नी को गोली रोज फार्महाउस में लगी है. उन्होंने बताया कि डांस फ्लोर पर शराब के नशे में धुत फार्महाउस के मालिक, बिहार के पूर्व विधायक राजू कुमार सिंह ने फायरिंग की थी. इसी फायरिंग में एक गोली उन की पत्नी के सिर में भी लग गई.

पुलिस पहुंची फार्महाउस

फतेहपुर बेरी थानाप्रभारी दिलीप कुमार ने अपने सर्किल के एसीपी राजेंद्र सिंह पठानिया और दक्षिणी जिले के डीसीपी रोमिल बानिया को भी घटना के बारे में जानकारी दे दी. डीसीपी रोमिल बानिया ने थानाप्रभारी दिलीप कुमार को तत्काल घटनास्थल पर जा कर मामले की तहकीकात करने के निर्देश दिए. जिस वक्त थानाप्रभारी दिलीप कुमार रोज फार्म पर पहुंचे, वहां से अधिकांश मेहमान जा चुके थे. घटनास्थल पर भी ऐसा कोई चिह्न नहीं था, जिस से पता चल सकता कि वहां कोई घटना हुई है.

डांस फ्लोर के फर्श से ऐसा लगता था कि उसे पानी डाल कर धो दिया गया था. एसीपी राजेंद्र पठानिया भी दलबल के साथ वहां पहुंच गए. जब उन्होंने फार्महाउस के दूसरे मालिक संजीव सिंह से घटना के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि सब लोग हंसीखुशी डांस कर रहे थे. 12 बजे कुछ लोगों ने नया साल शुरू होने की खुशी में हवाई फायरिंग शुरू कर दी, जिस में से कोई गोली उन के दोस्त विकास गुप्ता की पत्नी अर्चना गुप्ता को लग गई.

गोली किस ने मारी, फायरिंग कौन कर रहे थे, इस के बारे में संजीव सिंह या वहां मौजूद किसी व्यक्ति ने कोई जानकारी नहीं दी. जब उन से पूछा गया कि उन के विधायक भाई कहां हैं, तो संजीव सिंह ने बताया कि उन्हें कोई जरूरी काम था, इसलिए वे इस हादसे के कुछ देर बाद अपने ड्राइवर हरी सिंह को ले कर शहर से बाहर चले गए हैं.

थानाप्रभारी दिलीप कुमार और एसीपी पठानिया समझ गए कि ये बड़े लोगों की पार्टी है, इतनी आसानी से सच सामने नहीं आएगा. लिहाजा जब उन्होंने देखा कि फार्महाउस में अलगअलग जगह पर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, तो उन्होंने दिल्ली पुलिस के आईटी विभाग के साथ क्राइम व फोरैंसिंक टीम को भी मौके पर बुला लिया.

सुबह होने तक पुलिस ने फार्महाउस में लगे सीसीटीवी कैमरों की सभी फुटेज अपने कब्जे में ले ली. इस के अलावा उन्होंने घटनास्थल की फोटो के अलावा सभी स्थानों से फिंगरप्रिंट उठवाए. फार्महाउस की तलाशी कराई गई, तो पुलिस भी हैरान रह गई.

पुलिस को फार्महाउस से 2 बंदूकें और 820 कारतूस मिले. इन में 750 कारतूस राइफल के और 70 कारतूस पिस्टल के थे. इस के अलावा घटनास्थल से 3-4 खाली कारतूस भी बरामद हुए. संजीव सिंह ने बताया पूर्व विधायक राजू सिंह को गोलियां चलाने का शौक है. उन्होंने इन सभी हथियारों के लाइसेंस बिहार से बनवाए थे.

फार्महाउस के मालिक संजीव सिंह ने बताया कि बरामद बंदूकें और कारतूसों के उन के पास लाइसेंस हैं, जिन्हें वह जल्द ही पुलिस को दिखा देंगे. पुलिस ने तब तक के लिए बंदूकें व कारतूस अपने कब्जे में ले लिए. इस के बाद पुलिस ने घटनास्थल पर मौजूद सभी लोगों के अलगअलग बयान लेने शुरू किए.

वैलेंटाइन डे पर मिली अनोखी सौगात – भाग 1

दक्षिणी दिल्ली के वसंत कुंज इलाके में एमसीडी के कर्मचारी गटर की सफाई कर रहे थे. सफाई करते हुए वे सी-2 ब्लौक में वसंत  वाटिका पार्क पहुंचे तो गटर के एक मेनहोल के पास तीक्ष्ण गंध महसूस हुई. वह गंध सीवर की गंध से कुछ अलग थी. जिस मेनहोल से बदबू आ रही थी, उस पर ढक्कन नहीं था. सफाई कर्मचारी उस मेनहोल के पास पहुंचे तो बदबू और ज्यादा आने लगी. अपनी नाक पर कपड़ा रख कर उन्होंने जब मेनहोल में झांक कर देखा तो उन की आंखें फटी की फटी रह गईं. उस में एक आदमी की लाश पड़ी थी.

लाश मिलने की खबर उन्होंने अपने सुपरवाइजर को दी. उधर से गुजरने वालों को जब गटर में लाश पड़ी होने की जानकारी मिली तो वे भी उस लाश को देखने लगे. थोड़ी ही देर में खबर आसपास के तमाम लोगों को मिली तो वे भी वसंत वाटिका पार्क में पहुंचने लगे. थोड़ी ही देर में वहां लोगों का हुजूम लग गया. इसी बीच किसी ने खबर पुलिस कंट्रोलरूम को दे दी. यह 25 फरवरी, 2014 दोपहर 1 बजे की बात है.

यह इलाका दक्षिणी दिल्ली के थाना वसंत कुंज (नार्थ) के अंतर्गत आता है, इसलिए गटर में लाश मिलने की खबर मिलते ही थानाप्रभारी मनमोहन सिंह, एसआई नीरज कुमार यादव, कांस्टेबल संदीप, बलबीर को ले कर वसंत वाटिका पार्क पहुंच गए. थानाप्रभारी ने जब गटर के मेनहोल से झांक कर देखा तो वास्तव में उस में एक आदमी की लाश पड़ी थी. वह सड़ गई थी जिस से वहां तेज बदबू फैली हुई थी.

पुलिस ने लाश बाहर निकाल कर जब उस का निरीक्षण किया तो उस का गला कटा हुआ था और पेट पर दोनों साइडों में गहरे घाव थे. लाश की हालत देख कर लग रहा था कि उस की हत्या कई दिनों पहले की गई होगी. जहां लाश मिली थी, उस से कुछ दूर ही रंगपुरी पहाड़ी थी, जहां झुग्गी बस्ती है.

लाश मिलने की खबर जब इस झुग्गी बस्ती के लोगों को मिली तो वहां से तमाम लोग लाश देखने के लिए वसंत वाटिका पार्क पहुंच गए. उन्हीं में प्रताप सिंह भी था.

प्रताप सिंह का छोटा भाई करतार सिंह भी 14 फरवरी, 2014 से लापता था. जैसे ही उस ने वह लाश देखी, उस की चीख निकल गई. क्योंकि वह लाश उस के भाई करतार सिंह की लग रही थी. अपनी संतुष्टि के लिए उस ने उस लाश का दायां हाथ देखा. उस पर हिंदी में करतार-सीमा गुदा हुआ था. यह देख कर उसे पक्का यकीन हो गया कि लाश उस के भाई की ही है. सीमा करतार की पहली बीवी थी.

करतार सिंह के घर के अन्य लोगों को भी पता चला कि उस की लाश गटर में मिली है तो वे घर से वसंत वाटिका पार्क पहुंच गए. वे भी करतार की लाश देख कर रोने लगे.

कुछ देर बाद पुलिस ने मृतक करतार के पिता पिल्लूराम से पूछा तो उन्होंने बताया, ‘‘यह 14 फरवरी से लापता था. इस की पत्नी किरण ने आज ही इस की गुमशुदगी थाने में लिखवाई थी. इस का यह हाल न जाने किस ने कर दिया?’’

‘‘जब यह 14 फरवरी से गायब था तो गुमशुदगी 12 दिन बाद क्यों कराई?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘पता नहीं साहब, हम ने तो इसे सब जगह ढूंढा था. इस का मोबाइल फोन भी बंद था.’’ पिल्लूराम ने रोते हुए बताया.

‘‘तुम चिंता मत करो, हम इस बात का जल्दी पता लगा लेंगे कि इस की हत्या किस ने की है.’’

‘‘साहब, हमारा तो बेटा चला गया. हम बरबाद हो गए.’’

थानाप्रभारी ने किसी तरह पिल्लूराम को समझाया और उन्हें भरोसा दिया कि वह हत्यारे के खिलाफ कठोर काररवाई करेंगे.

कोई भी लाश मिलने पर पुलिस का पहला काम उस की शिनाख्त कराना होता है. शिनाख्त के बाद ही पुलिस हत्यारों का पता लगा कर उन तक पहुंचने की काररवाई करती है. गटर में मिली इस लाश की शिनाख्त उस के घर वाले कर चुके थे. इसलिए पुलिस ने लाश का पंचनामा कर के उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

मामला मर्डर का था इसलिए दक्षिणी दिल्ली के डीसीपी भोलाशंकर जायसवाल ने थानाप्रभारी मनमोहन सिंह के निर्देशन में एक पुलिस टीम बनाई जिस में सबइंसपेक्टर नीरज कुमार यादव, संदीप शर्मा, कांस्टेबल बलबीर सिंह, संदीप, विनय आदि को शामिल किया गया.

मृतक करतार सिंह की पत्नी किरण ने 25 फरवरी, 2014 को उस की गुमशुदगी की सूचना थाने में लिखाई थी. जिस में उस ने कहा था कि उस का पति 14 फरवरी से लापता है. पुलिस ने उस से मालूम भी किया था कि सूचना इतनी देर से देने की वजह क्या है.

तब किरण ने बताया था कि पति के गायब होने के बाद से ही वह उसे हर संभावित जगह पर तलाशती रही. उस के जानकारों से भी पूछताछ की थी, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. उस ने सुबह के समय गुमशुदगी लिखाई थी और दोपहर में लाश मिल गई. इसलिए पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ हत्या कर लाश छिपाने का मामला दर्ज कर लिया.

पुलिस टीम ने सब से पहले मृतक के घर वालों से पूछताछ की तो पता चला कि करतार अपनी किराने की दुकान पर बैठता था. उस की किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं थी इसलिए कहा नहीं जा सकता कि उस की हत्या किस ने की है. पिता पिल्लूराम ने बताया कि करतार के गायब होने के 2 दिन पहले उस का झगड़ा रामबाबू से हुआ था.

‘‘यह रामबाबू कौन है?’’ थानाप्रभारी मनमोहन सिंह ने पिल्लूराम से पूछा.

‘‘साहब, रामबाबू की बीवी और किरण एक ही गांव की हैं. उसी की वजह से रामबाबू करतार के पास आता था. करतार के गायब होने के 2 दिन पहले ही उस की रामबाबू से किसी बात पर कहासुनी हो गई थी.’’ पिल्लूराम ने बताया.

‘‘…और रामबाबू रहता कहां है?’’

‘‘साहब, ये तो मुझे पता नहीं. लेकिन किरण को जरूर पता होगा. क्योंकि वह उस के यहां जाती थी.’’

थानाप्रभारी ने किरण को थाने बुलवाया. पति की लाश मिलने के बाद उस का रोरो कर बुरा हाल था. थानाप्रभारी ने उस से पूछा, ‘‘तुम रामबाबू को जानती हो? वह कहां रहता है और करतार से उस का जो झगड़ा हुआ था, उस की वजह क्या थी?’’

‘‘रामबाबू की बीवी और हम एक ही गांव के हैं, इसलिए वह कभीकभी हमारे यहां आता रहता था. वह महिपालपुर में रहता है. करतार और रामबाबू 12 फरवरी को साथसाथ शराब पी रहे थे, उसी समय किसी बात पर दोनों के बीच झगड़ा हो गया था.’’ किरण ने बताया.

चूंकि करतार का झगड़ा रामबाबू से हुआ था इसलिए पुलिस सब से पहले रामबाबू से ही पूछताछ करना चाहती थी. पुलिस किरण को ले कर महिपालपुर स्थित रामबाबू के कमरे पर पहुंची. लेकिन उस का कमरा बंद मिला. पड़ोसियों से जब उस के बारे में पूछा तो उन्होंने भी उस के बारे में अनभिज्ञता जताई. इस से पुलिस के शक की सुई रामबाबू की तरफ घूम गई.

कानपुर में टप्पेबाज गिरोह