नादानी का नतीजा – भाग 2

कुसुमवती के घर के ठीक सामने मकान नंबर 153 में ओमप्रकाश कुशवाह अपने भाई चंद्रभान कुशवाह के साथ रहते थे. ओमप्रकाश विद्युत विभाग में नौकरी करते थे. उन के परिवार में पत्नी राजो के अलावा 3 बेटे प्रमोद, प्रवीन और राहुल तथा एक बेटी कृष्णा थी. नौकरी के दौरान ही ओमप्रकाश की मृत्यु हो गई तो उन की जगह पत्नी राजो को नौकरी मिल गई थी.

नौकरी मिलने से राजो का गुजरबसर तो आराम से होता रहा, लेकिन उस के तीनों बेटे उस के नियंत्रण से बाहर हो गए थे. मन होता था तो कोई कामधाम कर लेते, अन्यथा मां की तनख्वाह तो मिलती ही थी, उसी से मौज करते थे.

उसी मकान के आधे हिस्से में ओमप्रकाश के भाई चंद्रभान कुशवाह का परिवार रहता था. उस की भी मौत हो चुकी थी. उस का चाटपकौड़ी का काम था. असमय मौत के बाद उस का यह जमाजमाया व्यवसाय बंद हो गया था, क्योंकि उस के दोनों बेटों दीपू और सुनील ने इसे संभाला ही नहीं. मरने से पहले चंद्रभान बेटी बीना का ब्याह कर गया था. घर में पत्नी राजवती दोनों बेटों के साथ रहती थी.

ओमप्रकाश और चंद्रभान के पांचों बेटों में से कोई भी ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था. राजो और राजवती ने अपने अपने बेटों को संभालने की भरसक कोशिश की थी, लेकिन जवान हो चुके पांचों लड़के उन के काबू में नहीं आए. वह हर रोज कोई न कोई ऐसा कारनामा कर आते कि राजो और राजवती का सिर नीचा हो जाता. इन पांचों भाइयों की ऐसी करतूते हैं कि पूरा मोहल्ला इन्हें 5 कौरव कहता था.

नौकरी की वजह से राजो को अपना घरपरिवार चलाने में कोई परेशानी नहीं होती थी, लेकिन कमाई का कोई साधन न होने की वजह से राजवती को परेशानी हो रही थी. काफी कहने सुनने के बाद सुनील एक गारमेंट कंपनी में ठेकेदारी करने लगा, जहां से उसे ठीकठाक कमाई होने लगी थी. पास में पैसा आया तो उस के ऐब और बढ़ गए थे. भाई की कमाई पर दीपू भी ऐश कर रहा था. उस के पास कोई कामधाम तो था नहीं, इसलिए वह मोहल्ले में दबंगई करने लगा. कुछ दिनों बाद सुनील का चचेरा भाई प्रमोद भी उसी के साथ ठेकेदारी करने लगा था. उस के पास भी पैसा आया तो वह भी घमंडी हो गया.

भाइयों की देखादेखी प्रवीण का मन भी कुछ करने को हुआ. वह भी चाहता था कि हर समय उस की जेब में हजार, 2 हजार रुपए पड़े रहें. इस के लिए उस ने एक मोबाइल कंपनी की एजेंसी में नौकरी कर ली. उसी बीच उस की नजर घर के सामने रहने वाली कुसुमवती की जवान हो रही बेटी नेहा पर पड़ी तो उस के लिए उस का दिल मचल उठा.

प्रवीण उम्र में उस से 3-4 साल बड़ा था, लेकिन चाहत उम्र कहां देखती है. उम्र के अंतर के बावजूद प्रवीण नेहा को चाहने लगा तो उस तक अपनी चाहत का पैगाम भेजने की कोशिश करने लगा. शुरूशुरू में उस ने आंखों से इशारा किया. इस पर नेहा ने उस की ओर ध्यान नहीं दिया. तब उस ने उसे रास्ते में रोकना शुरू किया.

शुरूशुरू में तो नेहा प्रवीण को इग्नोर करती रही, क्योंकि वह प्रेम वे्रम के पचड़े में नहीं पड़ना चाहती थी. लेकिन जब प्रवीण उस के पीछे हाथ धो कर पड़ गया तो धीरेधीरे वह भी उसे पसंद करने लगी. लेकिन उस की यह पसंद शादी वाली नहीं थी. वह सिर्फ उस से दोस्ती करना चाहती थी. यह बात मन में आते ही उस ने प्रवीण को नजरअंदाज करना बंद कर दिया. इस के बाद वह अपने कुछ कीमती पल उस के साथ शेयर करने लगी.

मिलनेजुलने में ही उन की यह दोस्ती प्यार में बदल गई, जिस का आभास नेहा को काफी देर से हुआ. फिर तो जब तक वह दिन में 1-2 बार प्रवीण को देख न लेती, उसे चैन ही न मिलता. नेहा पूरे दिन घर में अकेली ही रहती थी, इसलिए दिन में जब उस का मन होता, वह प्रवीण से बातें कर लेती. नेहा जिस प्यार को कभी बेकार की चीज समझती थी, अब वही उसे अच्छा लगने लगा था.

नेहा को अपने प्रेमी प्रवीण से मिलने में कोई परेशानी नहीं होती थी. मां औफिस चली जाती थी और भाई स्कूल, इस के बाद नेहा जब, जहां चाहती, फोन कर के प्रवीण को बुला लेती. फिर दोनों घंटों प्यार में डूबे रहते. प्रवीण का कुसुमवती की अनुपस्थिति में उस के घर ज्यादा आनाजाना हुआ तो आसपड़ोस वालों को अंदाजा लगाते देर नहीं लगी कि मामला क्या है.

फिर इस बात की जानकारी कुसुमवती को भी हो गई. लेकिन उन्होंने कभी नेहा पर यह नहीं जाहिर होने दिया कि उन्हें उस के और प्रवीण के संबंधों का पता चल गया है. हां, वह बेटी को घुमाफिरा कर जरूर समझाती रहती थीं कि प्यारव्यार सब बेकार की चीजें हैं. लड़कियों को इन सब पचड़ों में नहीं पड़ना चाहिए.

नेहा मां के इशारों को समझती थी, लेकिन अब तक वह प्रवीण के प्रेम में इस कदर डूब चुकी थी कि चाह कर भी वह उस से अलग नहीं हो पा रही थी, क्योंकि अब तक उस के प्रवीण से शारीरिक संबंध भी बन चुके थे. मां के ड्यूटी पर और भाई गौरव के स्कूल जाने के बाद नेहा घर में अकेली रह जाती थी. फिर क्या था, वह जब चाहती, प्रवीण को बुला लेती और जैसा आनंद चाहती, निश्चिंत हो कर उठाती थी. कभी प्रवीण से दूर भागने वाली नेहा अब उस के साथ विवाह कर के पूरी जिंदगी बिताना चाहती थी.

लेकिन अचानक एक ऐसी घटना घट गई, जिसे देख कर नेहा का विचार एकदम से बदल गया. प्रवीण के साथ पूरी जिंदगी बिताने का सपना देखने वाली नेहा उस से दूर भागने लगी.

दरअसल, हुआ यह कि 14 सितंबर, 2013 को नगला भवानी सिंह के ही मकान नंबर 163 में रहने वाले बंगाली बाबू की बेटी ममता अचानक घर से गायब हो गई.

बंगाली बाबू ममता की शादी तय कर चुके थे और पूरे जोरशोर से शादी की तैयारी कर रहे थे. ऐसे में बेटी का गायब हो जाना उन के लिए किसी आघात से कम नहीं था. उन्होंने थाना सदर बाजार में ममता की गुमशुदगी दर्ज करा दी. थाना सदर बाजार पुलिस ने जब इस मामले में जांच की तो पता चला कि ममता को मोहल्ले का ही राहुल भगा ले गया है.

राहुल प्रवीण का छोटा भाई था. ममता को भगाने में प्रवीण और उस के अन्य भाइयों, प्रमोद, सुनील और दीपू ने भी उस की मदद की थी. पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार करना चाहा तो सभी घर से फरार हो गए.

नादानी का नतीजा – भाग 1

दोपहर के सवा 2 बजे के आसपास गौरव घर पहुंचा तो उसे दरवाज खुलवाने की जरूरत नहीं पड़ी, क्योंकि  दरवाजा पहले से ही खुला था. बरामदे में साइकिल खड़ी कर के वह सीधे अपने स्टडी रूम में घुस गया. बैग रख कर कपड़े बदले और किचन की ओर जाते हुए बहन को आवाज दी.

बहन ने कोई जवाब नहीं दिया तो उसे लगा कि नेहा कान में इयरफोन लगा कर गाने सुनते हुए घर के काम कर रही होगी, क्योंकि पानी की मोटर भी चल रही थी और वाशिंग मशीन में कपड़े भी धुले जा रहे थे. उस ने बहन की ओर ध्यान न दे कर प्लेट में दालचावल निकाला और अपने कमरे में जा कर खाने लगा.

गौरव खाना खा कर हाथ धो रहा था, तभी एक गंदा कुत्ता घर में घुस आया. उस के शरीर पर तमाम घाव थे, जिन से खून रिस रहा था. उसे भगाने के लिए गौरव ने डंडा उठाया तो वह भाग कर नेहा के कमरे में घुस गया. उस के पीछेपीछे गौरव कमरे में घुसा तो उस ने वहां जो देखा, उसे कुत्ते का होश ही नहीं रहा. वह बाहर आ कर चीखनेचिल्लाने लगा. उस की चीखपुकार सुन कर मोहल्ले वाले इकट्ठा हो गए.

उन लोगों ने कमरे में जा कर देखा तो पता चला कि उस की बड़ी बहन नेहा छत में लगे कुंडे में दुपट्टा बांध कर लटकी हुई थी. गौरव ने रोते हुए यह बात फोन कर के अपनी मां कुसुमवती को बताई तो वह औफिस में ही बिलखबिलख कर रोने लगीं. किसी तरह औफिस के सहयोगियों ने उन्हें घर पहुंचाया.

नेहा द्वारा कुंडे में दुपट्टा बांध कर लटकने की सूचना पुलिस को भी दे दी गई थी. सूचना मिलते ही थाना सदर बाजार के थानाप्रभारी इंसपेक्टर सत्यप्रकाश त्यागी बुंदू कटरा पुलिस चौकी के प्रभारी मनोज मिश्रा के साथ कुसुमवती के घर आ पहुंचे.

कमरे और लाश की स्थिति से प्रथमदृष्टया यही लग रहा था कि नेहा के साथ दुष्कर्म कर के हत्या कर दी गई थी. उस के बाद लाश के गले में दुपट्टा बांध कर छत में लगे कुंडे से लटका दिया गया था, जिस से लगे कि इस ने आत्महत्या की थी. इस की वजह यह थी कि उस के पैर बेड पर घुटनों के बल टिके थे.

थानाप्रभारी सत्यप्रकाश त्यागी ने घटना की जानकारी अधिकारियों को भी दे दी थी. फोरेंसिक टीम को बुला कर लाश के फोटो कराए गए और फिंगरप्रिंट उठवाए गए. इस के बाद शव को नीचे उतरवा कर कमरे को सील करवा दिया. शव को पोस्टमार्टन के लिए भेज कर थानाप्रभारी पूछताछ करना चाहते थे, लेकिन कुसुमवती होश में नहीं थी, इसलिए बिना पूछताछ किए ही वह थाने आ गए.

थाने आ कर उन्होंने अपराध संख्या 697/2013 पर भादंवि की धारा 302 के तहत अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया और विवेचना की जिम्मेदारी खुद संभाल ली. यह 8 अक्टूबर, 2013 की बात थी.

अगले दिन यानी 9 अक्टूबर को पोस्टमार्टम के बाद नेहा का शव उस के घर वालों को सौंप दिया गया तो घर वालों ने उस का अंतिम संस्कार कर दिया. 10 अक्टूबर, 2013 की दोपहर को यही कोई डेढ़ बजे कुसुमवती थाने पहुंची और थानाप्रभारी सत्यप्रकाश त्यागी को एक तहरीर दी, जिस में उन्होंने नेहा की हत्या का आरोप अपने घर के सामने ही रहने वाले स्व. ओमप्रकाश के 3 बेटों, प्रवीण, प्रमोद उर्फ कलुआ और राहुल के साथ इन के चचेरे भाइयों सुनील तथा दीपू पर लगाया था.

थानाप्रभारी सत्यप्रकाश त्यागी ने उन लोगों को नामजद करने की वजह पूछी तो कुसुमवती ने कहा, ‘‘सर, आप इन लोगों को गिरफ्तार तो कीजिए, वे खुद ही नेहा की हत्या की वजह बता देंगे.’’

कुसुमवती ने अपनी यह बात जिस दृढ़ता और विश्वास के साथ कही थी, उस से थानाप्रभारी को उन के आरोप में दम नजर आया. उन्होंने नामजद लोगों को गिरफ्तार करने के लिए उन के घरों पर छापा मारा तो सभी के सभी फरार मिले. इस बात से थानाप्रभारी का संदेह और बढ़ गया. उन्हें लगा कि नेहा की हत्या में इन लोगों की कोई न कोई भूमिका जरूर है.

लेकिन इंसपेक्टर सत्यप्रकाश त्यागी को नेहा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली तो उसे पढ़ कर उन्हें झटका सा लगा, क्योंकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार नेहा की मौत लटकने से ही हुई थी. वह शारीरिक संबंधों की भी आदी बताई गई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से सारा मामला ही उलट गया था. क्योंकि जिस स्थिति में नेहा की लाश मिली थी, ऐसे में कोई कैसे आत्महत्या कर सकता था? इस तरह के काम छिपछिपा कर किए जाते हैं, जबकि नेहा के घर के सारे दरवाजे खुले थे. पानी की मोटर भी चल रही थी और वाशिंग मशीन में कपड़े भी धुले जा रहे थे. नेहा को ऐसी क्या जल्दी थी कि वह पानी की मोटर और वाशिंग मशीन का स्विच भी नहीं औफ कर सकी?

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद नेहा की मौत रहस्यों में घिर गई थी. अब उस की मौत का रहस्य तभी खुल सकता था, जब नेहा की मां कुसुमवती द्वारा नामजद लोगों को गिरफ्तार कर के उन से सचाई उगलवाई जाती. धीरेधीरे पूरा महीना गुजर गया और पुलिस नेहा के संभावित हत्यारों तक पहुंच नहीं सकी. पुलिस पर आरोप लगने लगा तो एक बार फिर पुलिस ने तेजी दिखाई. फलस्वरूप 14 नवंबर, 2013 को थाना सदर बाजार पुलिस ने नामजद लोगों में से मुख्य अभियुक्त प्रवीण को गिरफ्तार कर लिया.

इस के बाद एकएक कर के अन्य अभियुक्त भी गिरफ्तार कर लिए गए. थानाप्रभारी सत्यप्रकाश ने इन लोगों से नेहा की मौत के बारे में पूछताछ शुरू की तो पहले ये सभी उन्हें गुमराह करते रहे. लेकिन जब पुलिस ने उन्हें घेरा तो मजबूर हो कर उन्होंने सच्चाई उगल दी. प्रवीण ने नेहा की मौत की जो कहानी सुनाई, उस में प्यार तो था ही, उस से भी ज्यादा डर था, जिस की वजह से इस प्रेम कहानी का दुखद अंत हुआ था.

उत्तर प्रदेश के जिला अंबेडकरनगर के रहने वाले मनोज कुमार की नौकरी आगरा सीओडी में लगी तो वह आगरा आ गए थे. बच्चे छोटेछोटे थे, इसलिए वह पत्नी कुसुमवती और बच्चों को अंबेडकरनगर में ही मां के पास छोड़ आए थे. मनोज कुमार पूरे तीन साल अकेले ही रहे. 3 सालों में बच्चे कुछ बड़े हो गए तो मां ने कहा कि अब वह अपनी बीवी और बच्चों को ले जाए.

मनोज कुमार अपने परिवार को आगरा लाने की तैयारी कर ही रहे थे कि मात्र 30 साल की उम्र में ही अचानक उन की असमय मौत हो गई. तब उन के बच्चों में बेटी नेहा 6 साल की थी तो बेटा गौरव 3 साल का.

कुसुमवती की मांग ही नहीं, जिंदगी भी सूनी हो चुकी थी. वह अपना दुख ले कर बैठी रहतीं तो उन के बच्चों का क्या होता? वह अपना दुख भूल कर बच्चों की परवरिश में लग गईं. 6 महीने बाद उन्हें पति की जगह सीओडी में नौकरी मिल गई तो वह बच्चों को ले कर आगरा आ गईं. वह आगरा आ कर उसी मकान में रहने लगी थीं, जिस में मनोज कुमार रहते थे.

कुसुमवती की सास भी साथ आई थीं. बहू जब पूरी तरह व्यवस्थित हो गई तो वह अंबेडकरनगर वापस लौट गईं. सास के जाने के बाद बच्चों को ले कर घर से इतनी दूर अकेले जीवन गुजारना कुसुमवती के लिए एक बड़ी चुनौती थी. लेकिन कुसुमवती ने इस चुनौती को स्वीकार किया. एकएक कर के 16-17 साल बीत गए. इस बीच उन्होंने अपनी कमाई से नगला भवानी सिंह में अपना मकान खरीद लिया था. अपना घर हो गया तो कुसुमवती का यह शहर अपना हो गया.

जिन दिनों कुसुमवती ने नगला भवानी का अपना नया मकान खरीदा था, उन दिनों नेहा पास के ही केंद्रीय विद्यालय में 9वीं में पढ़ती थी तो उस का भाई गौरव 6 ठवीं में. भाईबहन मां के संघर्ष को देख रहे थे, इसलिए मेहनत से पढ़ाई करने के साथसाथ हर काम में मां की मदद भी करते थे.

अनुराधा रेड्डी हत्याकांड : सीसीटीवी फुटेज से खुली मर्डर मिस्ट्री – भाग 4

अनुराधा ने प्रेमी से मांगी उधार की रकम

साल 2020 में कोरोना महामारी अपने पांव पसार चुकी थी, जिस के चलते जनजीवन अस्तव्यक्त हो चुका था, कितनों के व्यापार बंद हो गए थे. कितने भूख से तड़पतड़प कर मर गए थे. ऐसे में लगे सूद पर पैसे पूरी तरह डूब गए थे. जिस जिस ने उस से सूद पर पैसे लिए थे, उस में से किसी ने उस के पैसे नहीं लौटाए थे. अनुराधा पूरी तरह से बरबाद हो गई थी.

उस के बाद अनुराधा रेड्डी ने चंद्रमोहन से अपने पैसे वापस लौटाने की बात कही तो उस ने कुछ दिनों की मोहलत मांगी और कहा कि वह उस की पाईपाई लौटा देगा, जबकि हकीकत यह थी कि उस के पास लौटाने के लिए पैसे नहीं थे, जो पैसे उस ने प्रेमिका से लिए थे, वो सारे पैसे खर्च ही गए थे. कोरोना की वजह से बिजनैस भी चौपट हो गया था. वह समझ नहीं पा रहा था कि उस के पैसे कैसे और कहां से लौटाए.

पैसों को ले कर अनुराधा रेड्डी और चंद्रमोहन के रिश्तों में खटास आ गई थी. उस पर अनुराधा पैसा लौटाने के लिए अब दबाव बनाने लगी थी. प्रेमिका के दबाव से वह परेशान रहने लगा था. उस के चलते अब दोनों के बीच झगड़े होने लगे थे.

अनुराधा की हत्या कर लाश के किए टुकड़े

12 मई, 2023 को सुबह इन्हीं पैसों को ले कर अनुराधा रेड्डी और चंद्रमोहन के बीच झगड़ा हुआ था. इस झगड़े ने हाथापाई का रूप ले लिया था. गुस्से से चंद्रमोहन का चेहरा लाल हो गया था. उस ने आव देखा न ताव, किचन में रखा सब्जी काटने वाला फलदार चाकू उठाया और अनुराधा के पेट में ताबड़तोड़ वार कर दिए. वो तब तक चाकू से वार करता रहा, जब तक अनुराधा की मौत न हो गई. ये सारा खेल बरामदे में होता रहा.

अनुराधा की मौत के बाद जब चंद्रमोहन के गुस्से की आग ठंडी हुई तो वह बुरी तरह कांप गया. अब उस के सामने सब से बड़ा प्रश्न लाश को ठिकाने लगाने का था. तभी उसे दिल्ली का श्रद्धा हत्याकांड याद आ गया कि हत्यारे आफताब ने कैसे प्रेमिका के शरीर को टुकड़ेटुकड़े कर के जंगलों में फेंक दिया था, चंद्रमोहन ने भी वैसा ही करने का फैसला किया.

इस के बाद वह बरामदे से लाश को खींच कर कमरे में ले आया. फिर खून से सने चाकू और अपने हाथों को वाशरूम में जा कर अच्छी तरह धोया. यही नहीं, उस ने हत्या के साक्ष्य मिटाने के लिए फर्श पर पोंछा लगा कर साफ कर दिया था. फिर शाम को चंद्रमोहन बाजार से पत्थर काटने वाला कटर, एक बड़ा ट्रंक (संदूक), परफ्यूम की 2 शीशियां और तेज महक वाली दरजनभर अगरबत्तियों के पैकेट खरीद कर ले आया और अनुराधा के कमरे में ले जा कर रख दिए.

यह सब करने से पहले और हत्या करने के बाद उस ने अनुराधा का मोबाइल फोन अपने कब्जे में कर लिया था और उसे औन ही रखा था. ताकि लोगों को पता रहे कि वह जिंदा है. जब भी किसी की काल आती थी तो वह काल रिसीव नहीं करता था, उस का जवाब ‘मैं अभी बिजी हूं, फ्री होते ही काल करूंगी’ मैसेज के रूप में देता था.

खैर, घटना वाली रात में सब के सो जाने के बाद कटर मशीन से अनुराधा के शरीर को टुकड़ों में बांट दिया था. सिर को धड़ से, फिर दोनों बाजू, दोनों टांगें और धड़ अलगअलग कर दिया था. हृदयहीन और शातिर चंद्रमोहन के ऐसा करते हुए हाथ तक नहीं कांपे थे, जबकि उस ने उस के साथ पति के रूप में 15 सालों का समय बिताया था.

बहरहाल, चंद्रमोहन ने कटे सिर, दोनों बाजुओं और दोनों टांगों को दोहरा करते हुए फ्रिज में रख दिया था ताकि उस में से बदबू न उठे और धड़ को संदूक के भीतर रख कर उस में परफ्यूम छिडक़ दिया और अगरबत्तियां जला दी थीं, ताकि कहीं से किसी को कोई शक न हो सके.

कटे सिर को फेंकना चाहता था नदी में

इस के 3 दिनों बाद 15 मई की दोपहर में कटे सिर को काले कपड़े में अच्छी तरह लपेट कर फिर उसे काली पौलीथिन में रख कर सिर पर टोपी और मुंह पर मास्क लगा कर वह घर से निकला ताकि उसे कोई पहचान न सके और टैंपो पर सवार हो कर मुसी नदी के किनारे थीगालगुडा रोड के डंपिंग ग्राउंड पहुंचा और टैंपो से नीचे उतरा.

फिर वहां से उल्टी दिशा जा कर एक रेस्टोरेंट में पहुंचा, वहां उस ने पीने के लिए एक लीटर वाली पानी की बोतल खरीदी, और मास्क उतार कर बोतल का पानी पीया. उसी दौरान उस का चेहरा सीसीटीवी फुटेज में आ गया था. और तो और उस ने यूपीआई से पेमेंट दिया. ये भी एक साक्ष्य पुलिस वालों को मिल गया था.

पानी पीने के बाद फिर चंद्रमोहन डंपिंग ग्राउंड की ओर वापस लौटा और सुनसान देख मुसी नदी को लक्ष्य बना कर सिर वाली पौलीथिन फेंकी ताकि सिर नदी में बह जाए और इसी के साथ अनुराधा रेड्डी की मौत एक राज बन कर रह जाए. लेकिन वह पौलीथिन नदी में गिरने के बजाए डंपिंग ग्राउंड पर ही गिर गई. इस के बाद वह तेज कदमों से वहां से निकल गया था.

17 मई, 2023 को जब कटा सिर मिला तो पूरे हैदराबाद में सनसनी फैल गई थी. उस के बाद पुलिस की मेहनत, वैज्ञानिक साक्ष्य और सीसीटीवी फुटेज ने पुलिस को अनुराधा के गुनहगार तक पहुंचा दिया था.

कथा लिखे जाने तक पुलिस ने मृतका के शरीर के सभी भागों, कटर, परफ्यूम की शीशियां, अगरबत्तियों के पैकेट सभी कुछ बरामद कर लिया था. कथा संकलन तक पुलिस ने आरोपी बी. चंद्रमोहन के खिलाफ आरोप पत्र न्यायालय में पेश कर दिया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अनुराधा रेड्डी हत्याकांड : सीसीटीवी फुटेज से खुली मर्डर मिस्ट्री – भाग 3

25 मई, 2023 को डीसीपी सी.एच. रूपेश ने पुलिस लाइंस में प्रैस कौन्फ्रैंस आयोजित की और 8 दिनों से रहस्य बनी सिर कटी लाश का परदाफाश करते हुए आरोपी चंद्रमोहन को पेश किया. आरोपी बी. चंद्रमोहन ने पत्रकारों के सामने भी अपना जुर्म कुबूल किया. उस के बाद पुलिस ने उसे अदालत के सामने पेश कर जेल भेज दिया. जेल जाते समय बी. चंद्रमोहन को अपने किए पर जरा भी पछतावा नहीं था.

पुलिस पूछताछ में अनुराधा रेड्डी हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

55 वर्षीय यारम अनुराधा रेड्डी मूलरूप से तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद के दिलखुश नगर की रहने वाली थी. 4 भाईबहनों में वह सब से बड़ी थी, उस से छोटे 2 भाई और एक बहन थी, पिता किसान थे तो मां एक कुशल गृहिणी थीं. पिता ने अपनी सामथ्र्य के अनुसार चारों बच्चों को पढ़ाया और समयानुसार उन की शादियां कर के अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो गए थे. बेटियां अपनी ससुराल चली गईं तो बहू के पायल की मधुर छमछम से घरआंगन गूंज उठा था.

यारम अनुराधा रेड्डी बचपन से ही बड़ी जिद्दी थी. जिस काम को करने की ठान लेती थी तो उसे पूरा कर के ही दम भरती थी. इस के पीछे चाहे उस का बड़े से बड़ा नुकसान क्यों न हो जाए, परवाह नहीं करती थी. बस, उसे हासिल करना है तो करना है. यही उस का उद्देश्य होता था.

रमन रेड्डी के साथ पिता ने बेटी अनुराधा रेड्डी की गृहस्थी बसाई थी. हंसीखुशी दोनों की गृहस्थी चल रही थी. एक साल बाद अनुराधा ने एक बेटी को जन्म दिया. बेटी के घर में आ जाने से पतिपत्नी दोनों का जीवन खुशियों से खिल उठा था. फिर न जाने उन की खुशियों को किस की बुरी नजर लगी कि अनुराधा रेड्डी का हंसताखेलता परिवार तिनका तिनका बिखर गया.

बेटी जब एक साल की थी तभी रमन रेड्डी की दिल का दौरा पडऩे से मौत हो गई थी. पति का साथ छूट जाने के बाद अनुराधा एकदम अकेली पड़ गई थी, ऊपर से दुधमुंही बच्ची की परवरिश की जिम्मेदारी थी, सो अलग.

ऐसा नहीं था कि अनुराधा रेड्डी के सासससुर या मांबाप नहीं थे, बल्कि उस का पूरा घर भरा था नातेरिश्तेदारों से. लेकिन खुद्दार किस्म की वह किसी और से मदद लेना नहीं चाहती थी. वह अपने पैरों पर खड़ी हो कर बच्ची की परवरिश करना चाहती थी.

पति के दोस्त ने की थी काफी मदद

वह पढ़ीलिखी तो थी ही, काफी समझदार और खूबसूरत भी थी. उस ने एक प्राइवेट नर्सिंगहोम में नर्स की नौकरी कर ली. वह अपने काम से इतना कमा लेती थी कि खुद की और बेटी की जरूरतों को पूरा कर के अच्छी रकम बचा लेती थी. लेकिन यहीं से उस की जिंदगी की कांटों भरी राह शुरू हो चुकी थी. संघर्ष की दीवानी अनुराधा ने कभी हार नहीं मानी. बल्कि संघर्ष की आग में तप कर कुंदन बनती रही.

अनुराधा रेड्डी के पति रमन रेड्डी के बचपन का दोस्त बी. चंद्रमोहन था, जो चैतन्यपुर मोहल्ले में अपनी मां के साथ अकेला ही रहता था. वह अपने मांबाप की इकलौती संतान था. इकलौता होने के नाते वह मांबाप का लाडला भी था.

रमन और चंद्रमोहन के बीच में गहरी दोस्ती थी. गहरी दोस्ती ऐसी जैसे धडक़न बिना दिल नहीं, सांस बिना जिस्म नहीं और चकई बिना चकवा नहीं. इतना गहरा याराना था दोनों के बीच में. रमन की मौत पर वह सब से ज्यादा दुखी हुआ. दोस्ती की डोर जब टूटी थी तब चंद्रमोहन बहुत रोया था, कई दिनों तक उस के हलक से निवाला नीचे नहीं उतरा था. उस की हालत देख कर खुद अनुराधा भी हैरान थी.

उस वक्त चंद्रमोहन ने अनुराधा की कदम कदम पर मदद की थी. सिर्फ चंद्रमोहन की ही उस ने मदद ली थी उस समय, बाकी किसी की भी मदद लेने से उस ने इनकार कर दिया था. चंद्रमोहन के एहसानों तले अनुराधा दबी हुई थी. धीरेधीरे इन एहसानों ने दोनों के बीच में दोस्ती का रूप ले लिया था. दोनों एकदूसरे पर अटूट विश्वास और भरोसा करने लगे थे. अनुराधा विधवा थी तो क्या हुआ, वह जवान और सुंदर थी. चंद्रमोहन भी कुंवारा था.

चंद्रमोहन के दिल के एक कोने में अनुराधा के लिए एक सौफ्ट कौर्नर तैयार था. वह उस के और बेटी के लिए हर घड़ी फिक्रमंद रहने लगा था और समय आने पर अपने दिल की बात उस के सामने कहना चाहता था. जबकि अनुराधा सिर्फ और सिर्फ उस से दोस्ती का ही रिश्ता बनाए रखी थी. उसे यह कतई आभास नहीं था कि चंद्रमोहन उस की दोस्ती को प्यार समझ बैठा है.

अनुराधा ने बेटी को पढऩे भेजा आस्ट्रेलिया

धीरेधीरे वक्त समय के रथ पर सवार हो कर बढ़ता रहा. अनुराधा की बेटी भी करीब 20-25 साल की हो चुकी थी और अनुराधा नर्स की नौकरी छोड़ कर एलआईसी में बीमा एजेंट बन गई थी. इस से उस ने अपने मेहनत की बदौलत अच्छी कमाई की और बेटी को पढऩे आस्ट्रेलिया भेज दिया.

बेटी के विदेश चले जाने के बाद वह अपना मकान बेच कर चंद्रमोहन के घर लिवइन रिलेशन में रहने लगी थी. यह घटना से करीब 15 साल पहले की बात है. चैतन्यपुर में बी. चंद्रमोहन का अपना डबल स्टोरी मकान था. अपनी बूढ़ी मां के साथ वह ग्राउंड फ्लोर पर रहता था जबकि उस ने अनुराधा को रहने के लिए फस्र्ट फ्लोर दे दिया था.

यहां आने के बाद उन की दोस्ती प्यार में बदल चुकी थी. दोनों एकदूसरे से प्यार करने लगे थे. चंद्रमोदन की बूढ़ी मां को उन के रिश्ते से या उन के साथ रहने से कोई ऐतराज नहीं था. वह तो चाहती थी कि जब दोनों एकदूसरे को पसंद करते हैं तो कोर्टमैरिज कर लें, लेकिन वह दोनों अभी कोर्टमैरिज नहीं करना चाहते थे. वे जैसे अपनी जिंदगी जी रहे थे, वैसे ही जीना चाहते थे.

जब से अनुराधा रेड्डी नर्स की नौकरी छोड़ कर एलआईसी एजेंट बनी थी, उस की किस्मत के सितारे बुलंदियों पर थे. एलआईसी से अकूत पैसा कमाया. यहीं से अनुराधा के जीवन की कुंडली में यमराज कुंडली मार कर बैठ गए थे. पैसा ही उस के जीवन के लिए काल बन गया था.

हुआ कुछ यूं था कि अनुराधा रेड्डी के पास जब खूब पैसे जमा हुए तो वह सूद पर पैसे बांटने लगी. उस ने बाजार में लाखों रुपए सूद पर बांट रखे थे. यह बात चंद्रमोहन भी जानता था. चूंकि चंद्रमोहन एक कौन्ट्रैक्टर था, ठेका लेना उस का पेशा था. एक बार बिजनैस में उस को बड़ा घाटा हुआ और लाखों रुपए डूब चुके थे.

बिजनैस को खड़ा करने के लिए उसे लाखों रुपए फिर से चाहिए थे. उस ने इस बारे में अपनी प्रेमिका अनुराधा से बात की कि उसे बिजनैस संभालने के लिए 7 लाख रुपए चाहिए. बिजनैस जैसे ही फिर से स्टैंड हो जाएगा तो वो सारे रुपए उसे लौटा देगा. ये बात साल 2018 की थी.

प्रेमी चंद्रमोहन का अनुराधा रेड्डी पर काफी एहसान था, उस के एहसान का बदला चुकाने का वक्त आ चुका था. फिर क्या था उस ने चंद्रमोहन को 7 लाख रुपए दे दिए.

अपहरण का कारण बना लिव इन रिलेशन

होली पर मंगेतर को मौत का अबीर – भाग 3

शादी से पहले ही मोहित प्रियंका पर तरहतरह की बंदिशें लगाने लगा था. उस की तानाशाही प्रियंका को भी अच्छी नहीं लगती थी. वह सोचने लगी कि जब विवाह से पहले मोहित का यह व्यवहार है तो बाद में क्या होगा. प्रियंका ने मोहित के इस व्यवहार के बारे में जब बड़ी बहन सुमन को बताया तो मोहित की यह आदत उसे भी अच्छी नहीं लगी.

जब बात ज्यादा ही बढ़ने लगी तो प्रियंका के पिता को लगा कि मोहित कहीं सनकी टाइप का तो नहीं है. इस बारे में उन्होंने छानबीन शुरू की तो पता चला कि मोहित तो नौकरी पर जाने के बजाय अकसर अपने गांव में ही रहता है. इस से प्रियंका के घर वालों को इस बात पर शक होने लगा कि जब वह नेवी में नौकरी करता है तो अपनी ड्यूटी पर न जा कर घर पर ही क्यों रहता है. कहीं ऐसा तो नहीं कि उन्हें मोहित के बारे में गलत जानकारी दी गई हो. यदि ऐसा हुआ तो उन की बेटी की जिंदगी ही तबाह हो जाएगी.

यह पता चलने प्रियंका ने मोहित के साथ घूमनाफिरना कम कर दिया था. उस ने फोन पर भी लंबी बातें करनी बंद कर दीं. कभीकभी मोहित को जब प्रियंका का फोन बिजी मिलता तो उसे उस पर शक होने लगता और जब किसी तरह उस से बात हो जाती तो वह मिलने के लिए उसे नियत जगह पर बुलाता. लेकिन प्रियंका ड्यूटी पर बिजी होने की बात कह देती थी. इस से मोहित को भी लगने लगा था कि प्रियंका अब उस से मिलने में आनाकानी करने लगी है.

उधर प्रियंका के घरवालों द्वारा छानबीन करने की जानकारी भी मोहित को हो गई थी. अब उसे इस बात का अंदेशा होने लगा था कि कहीं उस का प्रियंका से रिश्ता न टूट जाए.

प्रियंका की बेरुखी से वह परेशान रहने लगा. वह प्रियंका से हरगिज दूर नहीं होना चाहता था. उस ने अपने दिल की बात प्रियंका से बताई तो उस ने मोहित की बात को गंभीरता से नहीं लिया. जो प्रियंका पहले मोहित पर जान न्यौछावर करने को तैयार रहती थी, वही अब वह कहने लगी थी कि अपने घर वालों की मरजी के बिना कहीं नहीं जाएगी.

प्रियंका के घरवालों का आरोप है कि प्रियंका को मोहित का व्यवहार और हिटलरशाही पसंद नहीं थी इसलिए उस ने मोहित के साथ शादी करने से मना कर दिया. इस पर मोहित ने प्रियंका पर शादी के लिए दबाव बनाया और उसे धमकी भी दी थी कि अगर वह उस की नहीं होगी तो उसे किसी और की भी नहीं होने देगा.

16 मार्च, 2014 को पूरे देश में होली का त्यौहार मनाया जा रहा था. इसी दिन मोहित ने प्रियंका को सबक सिखाने की ठान ली. वह अपने गांव से दिल्ली के सागरपुर इलाके में पहुंच गया. वहां पहुंच कर उस ने शाम के समय प्रियंका को फोन कर के किसी बहाने से एक नियत जगह पर बुला लिया.

प्रियंका जब उस के पास आई तो वह उसे सागरपुर इलाके के मोहन नगर स्थित नील गगन गेस्ट हाउस ले गया. रात 8 बजे वह प्रियंका के साथ गेस्ट हाउस पहुंचा तो गेस्ट हाउस के रजिस्टर में उस ने अपना नाम मोहित लिखा और प्रियंका को अपनी पत्नी बताया. गेस्ट हाउस के मैनेजर सुनील कुमार ने उन दोनों को कमरा नंबर-105 ठहरने के लिए दे दिया.

कमरे में पहुंचने के बाद मोहित प्रियंका के लिए कोल्डड्रिंक लाया. जो कोल्डड्रिंक उस ने प्रियंका को पीने के लिए दी थी, उस में उस ने पहले ही नींद की दवा मिला दी थी. कोल्डड्रिंक पीने के कुछ देर बाद ही प्रियंका की आंखें मुंदने लगीं. जब वह गहरी नींद में सो गई तो मोहित ने अपने साथ लाए तमंचे से उस पर गोली चलानी चाही लेकिन गोली मिस हो गई.

ऐसा उस ने 2 बार किया, लेकिन दोनों बार गोली नहीं चली. तब मोहित ने गुस्से में सारे कारतूस वहीं डाल दिए और प्रियंका के मुंह पर तकिया रख कर कुछ देर तक दबाए रखा. सांस घुटने पर प्रियंका ने छटपटाहट महसूस की तो मोहित ने उसे दबोच लिया. कुछ ही देर में वह शांत हो गई. कहीं वह जिंदा न रह जाए, इसलिए मोहित ने दोनों हाथों से उस का गला और दबा दिया.

प्रियंका को ठिकाने लगाने के बाद रात करीब पौने 11 बजे उस ने उस कमरे को बाहर से बंद कर दिया और किसी तरह गेस्ट से निकलने में कामयाब हो गया. इस के बाद वह दिल्ली में ही किसी परिचित के यहां चला गया.

उधर जब गेस्ट हाउस के एक कर्मचारी ने रूम नंबर 105 का दरवाजा बाहर से बंद देखा तो उस ने यह बात मैनेजर सुनील कुमार को बता दी. सुनील कुमार ने जब रोशनदान से कमरे में झांक कर देखा तो वह सन्न रह गया. फिर उस ने यह सूचना पुलिस को दे दी थी.

मोहित से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर वह तमंचा भी बरामद कर लिया जिस से उस ने प्रियंका पर गोली चलाने की कोशिश की थी. पूछताछ के बाद पुलिस ने मोहित को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. मामले की तफ्तीश थानाप्रभारी रिछपाल सिंह कर रहे थे.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार ने बना दिया नागिन – भाग 4

पिता और भाई के पकड़े जाने पर मोहर सिंह इंसपेक्टर उदयराज सिंह से मिला. उस ने उन्हें बताया कि जब वह अपने भांजे पूरन के साथ रचना को विदा करा कर ले आ रहा था तो रचना एक बैग लिए थी, उस में उस ने सफेद कपड़े लपेट कर कोई चीज रख रखी थी. उस बैग को उस ने किसी को छूने नहीं दिया था. उस बैग को ला कर उस ने घर की उस अलमारी में रख दिया था, जिस में 3 हजार रुपए और चांदी के कुछ गहने रखे थे. रचना के साथसाथ रुपए और गहने भी गायब हैं.

मोहर सिंह की बात सुन कर इंसपेक्टर उदयराज सिंह को यह सारा मामला रहस्यमय लगा. इसलिए रहस्य को उजागर करने की जिम्मेदारी उन्होंने एसएसआई शंभू सिंह को सौंप दी.

शंभू सिंह मामले की जांच शुरू करते उस के पहले ही बिहारी को पता चल गया कि जिस दिन से रचना गायब है, उसी दिन से उस का भांजा रामेश्वर भी गायब है. बिहारी को रचना और रामेश्वर के संबंधों का पता था ही, इसलिए उसे लगा कि रचना रामेश्वर के साथ ही भाग गई है.

उस ने यह बात घर वालों को बताई तो घर वाले कुछ लोगों को ले कर रामेश्वर के घर पहुंचे. तब रामेश्वर के घर वालों ने साफ कह दिया कि अब वे लोग रचना को भूल जाएं. इस से साफ हो गया कि रचना रामेश्वर के साथ भागी थी. तब उन्होंने पूरी बात जांच अधिकारी शंभू सिंह को बताई तो उन्होंने अपनी जांच का केंद्र रामेश्वर को बना लिया.

शंभू सिंह ने रामेश्वर का मोबाइल फोन सर्विलांस पर लगवा दिया. पता चला कि रामेश्वर घर वालों से लगातार बातें कर रहा है. इस से साफ हो गया कि रामेश्वर ने जो भी किया है, वह घर वालों को पता है. सर्विलांस से पुलिस ने पता कर लिया कि रामेश्वर भोपाल में है.

शंभू सिंह ने रामेश्वर के 2 भाइयों को तो हिरासत में ले ही लिया था, इंसपेक्टर उदयराज सिंह ने एसआई चंद्रभान के नेतृत्व में 2 सिपाही तथा एक महिला सिपाही पवित्रा शर्मा की टीम को भी भोपाल रवाना कर दिया. भोपाल में रामेश्वर और रचना कहां रह रहे हैं, यह पता लगाने में उन्हें ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी.

दरअसल, रामेश्वर रचना के साथ जिस मकान में रह रहा था, वह एक सिपाही ब्रजेश कुमार का था. रचना की हरकतों से ब्रजेश कुमार को संदेह हो गया था कि यह ये दोनों घर से भागे हुए हैं. कमरा किराए पर देते समय उस ने रामेश्वर से उस के बारे में पूरी जानकारी ले ली थी, इसलिए उस ने मथुरा पुलिस को उन के वहां होने की जानकारी दे दी थी.

मथुरा से गई पुलिस टीम ने भोपाल पुलिस की मदद से सिपाही ब्रजेश कुमार के घर छापा मारा. रामेश्वर तो भागने में सफल हो गया, लेकिन रचना को पुलिस ने पकड़ लिया. शायद रामेश्वर को संदेह हो गया था.

21 अक्तूबर, 2014 को पुलिस रचना को थाना गोवर्धन ले आई. जब रचना के आने की जानकारी लोगों को हुई तो उस की एक झलक पाने के लिए वहां भीड़ इकट्ठा हो गई. थाने में की गई पूछताछ में रचना ने रामेश्वर के साथ भागने की जो कहती सुनाई, वह इस प्रकार थी.

रचना रामेश्वर से प्यार करती थी और उसी से शादी भी करना चाहती थी. लेकिन जब उस की शादी बिहारी से हो गई तो उस ने सोचा कि शायद उस के नसीब में बिहारी ही था. संयोग से बिहारी रामेश्वर का मामा था. शादी के बाद रचना ने सोचा था कि अब वह रामेश्वर से बात नहीं करेगी. लेकिन लगातार मिलते रहने की वजह से रामेश्वर ने उस के दिल में फिर वही जगह बना ली, जो पहले थी.

रामेश्वर और रचना को एकदूसरे से चिपके देख कर बिहारी पत्नी के साथ मारपीट करने लगा. परेशान हो कर उस ने रामेश्वर के साथ भाग जाने का फैसला कर लिया. पकड़े जाने के डर से उस ने लोगों को भ्रमित करने के लिए नागिन बनने का ड्रामा रचा था.

पूरी योजना बना कर रामेश्वर ने एक संपेरे से नागिन खरीदी. उसे छोड़ कर वे भाग गए. बाद में पता चला कि वह नागिन नहीं, नाग है. उसी की वजह से बात पुलिस तक पहुंची.

पूछताछ के बाद पुलिस ने रचना को अदालत में पेश किया, जहां मजिस्ट्रेट के सामने उस के बयान हुए. चूंकि उस ने ऐसा कोई अपराध नहीं किया था कि उसे जेल भेजा जाता, इसलिए मजिस्ट्रेट के आदेश पर उसे मांबाप के हवाले कर दिया गया. पुलिस को अब रामेश्वर की तलाश है. अब देखना यह है कि रचना की आगे की जिंदगी पति के साथ बीतती है या प्रेमी के साथ.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

खुद ही लिख डाली मौत की स्क्रिप्ट – भाग 3

परिवार के साथ बैठ कर बनाया प्लान

कल्लू ऐशोआराम पर बड़ी रकम खर्च करता था. यही कारण रहा कि उस पर कर्ज बढ़ता चला गया. जिन से कर्ज लिया था, वह आए दिन तगादा करने घर पर आते थे. इस वजह से कल्लू का घर से निकलना मुश्किल हो गया था.

कल्लू जब लिए गए कर्ज की मासिक किस्त नहीं भर पा रहा था तो प्राइवेट बैंक के लोन वसूली करने वाले कर्मचारी उसे मकान नीलाम करने की धमकी देने लगे थे. जिस बैंक से कल्लू ने कार लोन लिया था, वह भी कार खींच कर ले जाने की तैयारी में थे. कर्ज में कल्लू बुरी तरह डूब चुका था. आसपास रहने वाले लोगों की नजर में उस के ऐशोआराम की जिंदगी की पोल खुल गई. इन सब कारणों से अब कल्लू को कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था.

एक दिन उस ने अपनी पत्नी से कहा, “मुझ पर कर्ज बढ़ता ही जा रहा है, मेरे मन में एक विचार आ रहा है.”

“कैसा विचार? कुछ उलटापुलटा मत कर लेना. कामधंधा अच्छे से करो. पैसा आएगा तो धीरेधीरे कर्ज भी पटा देंगे.” प्रियंका ने उसे ढांढस बंधाते हुए कहा.

“नहीं प्रियंका, इतना कर्ज अब कामधंधा करने से नहीं चुकेगा. यदि किसी तरह मैं अपने आप को मरा हुआ साबित कर दूं तो कर्ज से मुक्ति मिल जाएगी और जो हम ने बीमा पौलिसी ले रखी हैं, उस से तुम्हें लाखों रुपए भी मिल जाएंगे.” कल्लू ने अपना प्लान समझाते हुए कहा.

कल्लू ने अपने इस प्लान की जानकारी साथ में रहने वाले छोटे भाई दीनदयाल को भी बताई तो उस ने भी सहमति दे दी. इस साजिश में उस की पत्नी और परिवार ने भी साथ देने का वादा किया. कल्लू ने खुद को मरा साबित करने के लिए टीवी पर कई क्राइम शो देखे और अपने प्लान को अंतिम रूप दिया.

13 अप्रैल, 2023 को कल्लू ने पत्नी प्रियंका, छोटे भाई दीनदयाल चढ़ार के साथ भोपाल के भानपुर स्थित अपने घर पर यह प्लान बनाया कि पत्नी और भाई पड़ोसियों को यह कह देंगे कि कल्लू की एक्सीडेंट में मौत हो गई है. इस के बाद कल्लू भानपुर भोपाल स्थित अपने घर से इंद्रपुरी स्थित एक होटल में गया और रूम ले लिया. पत्नी प्रियंका और छोटा भाई दीनदयाल भानपुर स्थित घर पर ही रुक गए.

मौका देख कर दोनों ने रोनापीटना शुरू कर दिया. जब पड़ोसियों ने उन से रोने का कारण पूछा तो बोल दिया कि कल्लू का विदिशा में एक्सीडेंट हो गया है और मौत हो गई है. उन्होंने पड़ोसियों को बताया कि हम गांव के लिए निकल रहे हैं. यहां से दोनों अपने गांव पहुंचे और गांव जा कर रहने लगे.

कल्लू ने मोबाइल सिम प्रियंका के मोबाइल में डाल दी और खुद नया नंबर ले लिया. जब कर्जदारों के फोन आए तो पत्नी ने उन्हें भी कल्लू की मौत की कहानी सुना दी.

दोस्त को बनाया बलि का बकरा

कल्लू ने खुद को मृत घोषित करने के लिए प्लान तो बना लिया, लेकिन इस के लिए उसे एक लाश की जरूरत थी. भोपाल के आरिफ नगर, करोंद निवासी 25 साल के सलमान खान से उस की दोस्ती थी. कुछ साल पहले दोनों भोपाल के शिखा होटल में काम करते थे.

सलमान मूलरूप से विदिशा के गंज बासौदा का रहने वाला था. वह अपनी बहन के पास भोपाल के आरिफ नगर में रहता था. एक ही जिले के होने के कारण सलमान की दोस्ती कल्लू से हो गई. कल्लू ने अपने ही दोस्त से दगाबाजी कर उस की हत्या की प्लानिंग कर डाली.

सलमान नौकरी की तलाश में था. सलमान की इसी कमजोरी का फायदा उठाते हुए कल्लू ने नौकरी दिलाने का झांसा देते हुए कहा, “सलमान भाई, उदयपुरा में एक अस्पताल में मेरा एक परिचित है, वह तुम्हारी नौकरी लगवा देगा. तुम मेरे साथ उदयपुरा चलो.”

अंधा क्या चाहे दो आंखें. सलमान झट से तैयार हो गया. 19 अप्रैल को दोनों भोपाल से बस में सवार हो कर उदयपुरा रवाना हो गए. रात करीब 9 बजे वे बस से सिलवानी पहुंचे और एक ढाबे पर दोनों ने खाना खाया. खाना खा कर रात करीब 11 बजे कल्लू सलमान से बोला, “भाई, रात में उदयपुरा के लिए बस तो मिलेगी नहीं, सडक़ पर पैदल चलते हैं, रास्ते में कोई ट्रक मिलेगा तो लिफ्ट ले कर उदयपुरा चलेंगे.

सिलवानी से रात करीबन 11 बजे पैदल उदयपुरा जाने के लिए दोनों पठापोड़ी गांव के तिराहा पर पहुंच गए. वहां पहुंच कर कल्लू ने सलमान से कहा, “पैदल चल कर काफी थक गए हैं थोड़ा आराम कर लेते हैं, फिर आगे बढ़ते हैं.”

इस के बाद दोनों तिराहे पर जगह देख कर बैठ गए. कुछ देर बाद कल्लू ने कहा, “यहां बैठना खतरे से खाली नहीं है, कोई हमें चोर न समझ बैठे. आगे खेत में आराम से बैठेंगे.”

इस के बाद दोनों एक खेत पर पहुंचे. खेत में मूंग की फसल थी और वहां ठंडक का अहसास भी हो रहा था. कल्लू ने सलमान से कहा, “कुछ देर लेट कर आराम कर लेते हैं, फिर उदयपुरा चलेंगे.”

यहां सलमान ने सहमति देते हुए खेत में रुमाल आंखों पर डाल कर आंखें बंद कर लीं. कल्लू भी बगल में सो गया, मगर नींद उस से कोसों दूर थी. सलमान के गले में अंगोछा डला हुआ था. थकान की वजह से सलमान को जल्द ही नींद आ गई. कल्लू ने मौका पा कर सलमान के गले में पड़े अंगोछे को कस कर खींच दिया, फिर उस ने उसे पीछे की ओर इतनी जोर से खींचा कि वह बेसुध हो गया यानी उस की मौत हो गई.

कल्लू ने खेत के किनारे पड़े बड़े पत्थर को उठा कर सलमान के चेहरे पर 3-4 बार दे मारा. चेहरा बुरी तरह से कुचलने के बाद उस का मोबाइल, पर्स समेत सब कुछ निकाल लिया. इस के बाद कल्लू ने अपना आधार कार्ड और पाकेट डायरी, जिस में उस ने अपने घर का मोबाइल नंबर लिखा था, वह सलमान की जेब में रख दिया और सलमान की लाश को खेत पर ही छोड़ कर भोपाल लौट आया. भोपाल आ कर उस ने फोन कर के गांव में रह रही अपनी पत्नी प्रियंका को सलमान को मारने की पूरी बात बता दी.

अपराधी कितना भी शातिर क्यों न हो, कानून के लंबे हाथ उस तक पहुंच ही जाते हैं. ऐसा ही कल्लू चढ़ार के मामले में हुआ. पुलिस ने कल्लू की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त पत्थर, सलमान का पर्स और मोबाइल भी बरामद कर लिया.

23 अप्रैल, 2023 को तीनों आरोपियों कल्लू चढ़ार, दीनदयाल चढ़ार और प्रियंका के खिलाफ धारा 302 और 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें रायसेन जेल भेज दिया गया.

24 अप्रैल को रायसेन जिले के सिलवानी पुलिस थाने में एसपी विवेक साहबाल ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर घटना का खुलासा किया. चादर से ज्यादा पैर पसारने की कल्लू की फितरत ने उसे संगीन जुर्म करने पर मजबूर कर दिया. अपने दोस्त का कत्ल कर उस परिवार का चिराग बुझा दिया और खुद को पत्नी, भाई के साथ जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अनुराधा रेड्डी हत्याकांड : सीसीटीवी फुटेज से खुली मर्डर मिस्ट्री – भाग 2

सीसीटीवी फुटेज से मिला सुराग

पुलिस इस बात पर खास तवज्जो दे रही थी कि कोई व्यक्ति उस स्थान पर हाथ में काले रंग की पौलीथिन ले कर पहुंचा तो नहीं है? अगर पहुंचा है तो कैसे पहुंचा है, पैदल अथवा किसी वाहन से? अगर वाहन से पहुंचा तो उस वाहन का नंबर, रंग, मौडल और ब्रांड क्या है?

पुलिस बारीकी से और पूरी एकाग्रता से जांच में जुटी थी, लगभग सभी कैमरों की फुटेज की जांच के बाद 90 से ज्यादा गाडिय़ों और 100 से ज्यादा लोगों को शार्टलिस्ट किया गया और जांच चलती रही, लेकिन कहीं से कोई सुराग हाथ नहीं लगा. अंत में कैमरे में कैद एक शख्स पर शक हुआ, उस ने मुंह पर मास्क और सिर पर टोपी लगा रखी थी.

आमतौर पर जब कोई अपराध करता है या मौका ए वारदात पर जाता है तो उस की कोशिश होती है कि उसे कहीं भी अपना चेहरा न दिखाना पड़े. उस ने भी ऐसा ही किया था. उस शख्स की ये हरकत पुलिस को अजीब लगी, लेकिन उस का चेहरा सीसीटीवी फुटेज में कहीं साफ दिख नहीं रहा था. वह सीसीटीवी कैमरे से बारबार अपना मुंह छिपा रहा था.

उस के दाहिने हाथ में एक काले रंग की पौलीथिन थी, जब वह टैंपो से नीचे उतरा. यह वही काली पौलीथिन थी, जो मौके से बरामद की गई थी. वह रहस्यमय शख्स वहां से रेस्टोरेंट की ओर बढ़ा. वहां से (रेस्टोरेंट) उस ने पानी की एक बोतल खरीदी और दुकानदार को नकद पैसे देने के बजाय उस ने यूपीआई से पेमेंट किया और फिर कूड़ाघर की ओर वापस आया. वहां खड़े हो कर इधरउधर देखा, फिर पौलीथिन झटके से फेंक कर भीड़ में कहीं गुम हो गया.

ये क्लू पुलिस के लिए खाद जैसा काम कर गया. 23 मई की सुबह करीब 10 बजे पुलिस की टीम उस रेस्टोरेंट पर पहुंच गई थी, जहां उस संदिग्ध व्यक्ति ने 15 मई की दोपहर साढ़े 12 बजे पानी की बोतल खरीदी थी और यूपीआई से पेमेंट किया था. रेस्टोरेंट वाले से पूछताछ करने के बाद आखिरकार उस संदिग्ध शख्स तक पहुंच ही गई. उस का नाम बी. चंद्रमोहन था और पता चला कि वह दिलसुख नगर थानाक्षेत्र के चैतन्यपुर में रहता है.

संदिग्ध व्यक्ति के घर पहुंची पुलिस

24 मई, 2023 की सुबह मलकापेट पुलिस बी. चंद्रमोहन के घर चैतन्यपुर मोहल्ले में पहुंच गई और दरवाजे पर दस्तक दी. भीतर से एक शख्स ने दरवाजा खोला और सामने पुलिस को देख कर सहज भाव में पूछा, “आप किस से मिलना चाहते हैं?”

“चंद्रमोहन आप हो?” एसआई एल. भास्कर रेड्डी ने शख्स से सवाल किया.

“हां, मैं ही हूं चंद्रमोहन, क्या बात है? आप मुझ से क्यों मिलना चाहते हैं?” चंद्रमोहन से पूछा.

“बताता हूं, बताता हूं. सारे सवाल यहीं दरवाजे पर खड़ेखड़े पूछ लोगे, अंदर आने के लिए नहीं कहोगे?” इस बार इंसपेक्टर के. श्रीनिवास ने कहा.

“नहीं नहीं जी. मैं तो भूल ही गया था. आइए…आइए, अंदर आइए. फिर उस ने इंसपेक्टर के. श्रीनिवास और एसआई रेड्डी को अंदर बुलाया और ड्राइंगरूम में उन्हें बैठा दिया, बाकी पुलिस टीम घर के बाहर मुस्तैदी से तैनात रही.

“क्या लेंगे सर, चाय या पानी?” चंद्रमोहन ने सम्मानजनक तरीके से और बड़े अदब से पूछा.

“हम यहां चायपानी पीने नहीं आए हैं, बल्कि तुम से कुछ पूछताछ करने आए हैं,” इस बार इंसपेक्टर श्रीनिवास का चेहरा सख्त हो गया था.

“थीगालगुडा रोड पर डंपिंग ग्राउंड स्थित मुसी नदी के किनारे एक सीसीटीवी कैमरे में नकाबपोश के रूप में तुम्हें देखा गया है. क्या कहना चाहते हो?”

“सर, मैं स्टौक ब्रोकर हूं. शहर में बहुतेरा काम होता है. लोगों से मिलनाजुलना होता है. हो सकता है उस राह से गुजरते हुए सीसीटीवी में फोटो आ गई हो? कोई ताज्जुब की बात नहीं इस में,” चंद्रमोहन ने बड़े आत्मविश्वास के साथ पुलिस के सवाल का जवाब दिया था.

“तो तुम कहते हो, सीसीटीवी फुटेज में जो तसवीरें दिख रही हैं, वे तुम्हारी नहीं हैं किसी और की हैं.”

“मैं कब इस बात से इंकार करता हूं कि सीसीटीवी फुटेज में दिखने वाली फोटो मेरी नहीं हैं, लेकिन मैं ये भी एक्सेप्ट नहीं करता कि…”

“महिला के कटे सिर वाली लाश वाली काली पौलीथिन तुम ने नहीं किसी और ने फेंकी थी?” बीच में बात काटते हुए इंसपेक्टर के. श्रीनिवास बोले.

“हां, सच यही है, मैं ने कोई कटा हुआ सिर नहीं फेंका था.”

हाथ की चोट ने खोला हत्या का राज

बी. चंद्रमोहन के आत्मविश्वास भरे जवाब सुन कर पुलिस इस निष्कर्ष पर पहुंची थी कि वो किसी गलत घर में पूछताछ करने आ गई, जबकि उस लाश से इस का कोई लेनादेना नहीं है. वहां से पुलिस बाहर निकलने के लिए जैसे ही उठी, तभी अचानक इंसपेक्टर श्रीनिवास की नजर चंद्रमोहन की बाईं कलाई पर पड़ी तो वह ठिठक गए और चोट के बारे में उस से पूछ बैठे, “बाई द वे, तुम्हारे हाथ में ये चोट कैसे लगी?”

“ज…ज… जी… सब्जी काटने वाले चाकू से. मैं सब्जी बनाने के लिए आलू काट रहा था, तभी छिटक कर चाकू कलाई पर लग गया और हाथ कट गया. ये जख्म उसी चाकू से बने हैं.”

“बरखुरदार, तुम्हारी जुबान तुम्हारा साथ नहीं दे रही है. और तुम सच भी नहीं बोल रहे हो?” इस बार उन्होंने अंधेरे में तीर चलाया था.

“नहीं तो, सच कह रहा हूं मैं. सब्जी काटते वक्त कलाई कट गई थी.”

“तो तुम सच ऐसे नहीं कबूलोगे, तुम्हें पुलिस की खातिरदारी की जरूरत है.” कहते हुए इंसपेक्टर श्रीनिवास ने उस के गाल पर झन्नाटेदार एक थप्पड़ जड़ा. उस की आंखों के सामने अंधेरा छा गया और कानों में सीटियां बजने लगीं. कुछ पल के लिएवह जैसे बहरा हो गया था, उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था.

फ्रिज के अंदर मिले डैडबौडी के पाट्र्स

जब वह थोड़ा सामान्य स्थिति में हुआ तो घुटने दोहरा करते हुए नीचे फर्श पर बैठ गया. और कहा, “हां सर, मैं ने ही कल्ल किया था और उस का सिर काट कर नदी में फेंकना चाहा था, पर बदकिस्मती ने दगा दे दी और मैं आखिरकार पकड़ लिया गया.” चंद्रमोहन के चेहरे पर कोई पश्चाताप नहीं था.

“कौन थी वो? और तुम ने उस की हत्या क्यों की?” श्रीनिवास ने सवाल दागा.

“अनुराधा, यारम अनुराधा रेड्डी नाम था उस का.” बुत बना चंद्रमोहन आगे कहता गया, “क्या करता. उस ने हालात ही ऐसे बना दिए थे कि उसे मारने के अलावा मेरे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा था. और मैं ने उस की हत्या कर दी.”

“बाकी शरीर के अंग को कहां फेंका है तुम ने?”

“कहीं नहीं, घर में हैं.” चंद्रमोहन समझ चुका था कि उस के गुनाहों का घड़ा फूट चुका है और वह बेनकाब हो चुका है. अब सच बता देने में ही भलाई है और फिर वहां से उठा फिर पुलिस को साथ ले कर किचन में पहुंचा, जहां फ्रिज रखा था. उस ने फ्रिज खोल कर पुलिस को दिखा दिया. फ्रिज के अंदर का नजारा देख कर दोनों पुलिस अधिकारी भौचक रह गए थे.

फ्रिज के अंदर कटे हुए दोनों हाथ और पैर रखे हुए थे. यह दृश्य देख कर दोनों की जैसे रूह कांप उठी.

यही नहीं, ट्रंक के भीतर उस ने धड़ (साबूत) रखा था, जिस में से सड़ांध उठ रही थी. बदबू छिपाने के लिए, उस ने कमरे में परफ्यूम स्प्रे किया था, अगरबत्तियां भी जला रखी थीं ताकि बदबू बाहर न जा सके और उस का गुनाह पिटारे के अंदर बंद रहे.

कुल मिलाजुला कर चंद्रमोहन ने दिल्ली के श्रद्धा मर्डर कांड का रिमेक किया था और उसी की तर्ज पर मृतका के एकएक अंग को शहर के विभिन्न इलाकों में फेंक कर हमेशाहमेशा के लिए राज दफन कर एक नई जिंदगी बिताना चाहता था, लेकिन शातिर चंद्रमोहन की चालाकी चल न सकी और कानून के लंबे हाथों से धर दबोचा गया.

8 दिनों से रहस्य बनी सिर कटी लाश का परदाफाश हो चुका था और मृतका की पहचान यारम अनुराधा रेड्डी के रूप में की जा चुकी थी. मृतका कोई और नहीं, बल्कि आरोपी चंद्रमोहन की प्रेमिका थी. आखिरकार उस ने अपनी प्रेमिका की हत्या बड़ी बेरहमी से क्यों की? पुलिस पूछताछ में उस ने सारा राज उगल दिया था.

मिसकाल का प्यार – भाग 4

रूबी के बहनोई के पास रूबी का फोटो मौजूद था. फोटो के सहारे पुलिस होटलों और गेस्टहाउसों का कोनाकोना छान रही थी. कुछ देर की सर्चिंग के बाद पुलिस को एक गेस्टहाउस में रूबी मिल गई. उस के साथ एक युवक भी था. पुलिस के साथ अपने जीजा को देख कर रूबी थोड़ा चौंकी जरूर, लेकिन उसे देख कर ऐसा नहीं लग रहा था, जैसे उस का अपहरण हुआ हो. यानी उस के चेहरे पर कोई डर नहीं था.

कर्नाटक पुलिस ने रूबी को अपनी हिफाजत में लेने के बाद जब उस के किडनैप होने की बाबत पूछा तो उस ने साफ कहा कि उस का किसी ने अपहरण नहीं किया, बल्कि वह अपने घर से खुद अपने प्रेमी के पास आई है. रूबी के पिता के पास काल तो अपहरण की गई थी, लेकिन यहां बात दूसरी सामने आ रही थी.

पुलिस ने रूबी के साथ जिस युवक को हिरासत में लिया था, पूछताछ करने पर पता चला कि उस का नाम सुजाय डे है. वह पश्चिम बंगाल के 24 परगना के गांव गोबरडंग का रहने वाला है और वह रूबी से प्यार करता था. रूबी ने भी उसी समय सुजाय की बात की पुष्टि कर दी.

पुलिस ने रूबी के साथ जिस युवक को हिरासत में लिया था, पूछताछ करने पर पता चला कि उस का नाम सुजाय डे है. वह पश्चिम बंगाल के 24 परगना के गांव गोबरडंग का रहने वाला है और वह रूबी से प्यार करता था. रूबी ने भी उसी समय सुजाय की बात की पुष्टि कर दी.

पुलिस ने जब उस की तलाशी ली तो उस के पास वह मोबाइल सिम कार्ड मिल गया, जिस से रूबी के पिता को 10 लाख रुपए की फिरौती की काल की गई थी.

इस से कर्नाटक पुलिस को विश्वास हो गया कि सुजाय ने ही फिरौती की काल की होगी. जबकि रूबी प्रेमी का पक्ष लेते हुए कहती रही कि सुजाय ऐसा नहीं कर सकता. उस ने अपने जीजा से कह दिया कि वह बालिग है, सुजाय के साथ ही शादी करेगी और अब अपने घर नहीं लौटेगी.

पुलिस ने उसी के सामने जब सुजाय डे से पूछताछ की तो उस के पास सच उगलने के सिवाय कोई दूसरा रास्ता नहीं था. क्योंकि पुलिस उस का सिमकार्ड बरामद कर चुकी थी. इस बात को वह झुठला नहीं सकता था. इसलिए उस ने रूबी के पिता को फिरौती के लिए फोन करने की बात स्वीकार कर ली.

फिर रूबी को प्यार के जाल फांसने से ले कर उस के पिता से फिरौती मांगने तक की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.

27 साल का सुजाय डे कोई बड़ा बिजनैसमैन नहीं था, बल्कि उस के यहां टीशर्ट और अंडरगारमेंट्स सिलने का छोटामोटा काम होता था. इंटरमीडिएट पास करने के बाद वह भी पिता के साथ इस काम में थोड़ाबहुत सहयोग कर देता था. वह हमेशा कम समय में ज्यादा पैसे कमाने के सपने देखा करता था.

6-7 महीने पहले गलती से उस ने किसी नंबर पर मिस काल की. इत्तफाक से वह काल रूबी के मोबाइल पर लग गई. रूबी ने उस नंबर पर कालबैक की. बातों ही बातों में सुजाय ने उस पर प्यार के डोरे डालने शुरू कर दिए. उसी बातचीत में उसे रूबी के घरपरिवार, हैसियत आदि की जानकारी हो गई. प्यार के जाल में फांस कर वह उस से ज्यादा से ज्यादा पैसे ऐंठना चाहता था. तभी तो उस के कहने पर रूबी अपने मांबाप के यहां से 10 तोला सोने की ज्वैलरी और साढ़े 3 लाख रुपए नकद ले कर बंगलुरु एयरपोर्ट पहुंच गई थी.

सुजाय ने पहले ही बंगलुरु से दिल्ली जाने वाली जेट एयरवेज की 2 टिकटें बुक करा ली थीं. दिल्ली के महिपालपुर स्थित एक गेस्टहाउस में उस ने एक कमरा बुक करा लिया था.

उसे जब वहां पता चला कि रूबी अपने साथ साढ़े 3 लाख रुपए नकद और 10 तोला सोने की ज्वैलरी ले कर आई है तो वह काफी खुश हुआ. उस ने उसे शादी का झांसा दे ही रखा था, इसलिए रूबी ने उस के साथ शारीरिक संबंध बनाते समय कोई आनाकानी नहीं की. सुजाय को अब यह पता लग चुका था कि रूबी के पिता बहुत पैसे वाले हैं, रूबी के घर वालों के फोन नंबर उस के पास थे, इसलिए गेस्टहाउस के बाहर आ कर उस ने उस के पिता को 10 लाख रुपए की फिरौती का फोन कर दिया.

उन्होंने रूबी के गायब होने की सूचना पहले ही पुलिस को दे रखी थी. फिरौती की काल मिलने पर इलकल थाने की पुलिस हरकत में आ गई और दिल्ली पुलिस के सहयोग से रूबी को बरामद कर सुजाय को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने रूबी के पास से साढ़े 3 लाख रुपए नकद और सोने की वह ज्वैलरी भी बरामद कर ली थी, जो वह अपने घर से ले कर आई थी.

रूबी और सुजाय डे को कर्नाटक पुलिस 23 फरवरी को ही दिल्ली से कर्नाटक ले गई. पुलिस ने सुजाय डे को कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया तथा रूबी को उस के पिता के सुपुर्द कर दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित और रूबी परिवर्तित नाम है.