संतान के लिए मासूम की बलि

उत्तर प्रदेश के जिला मुख्यालय अलीगढ़ से लगभग 30 किलो. मीटर दूर इगलास कोतवाली का एक कस्बा है बेसवां. इसी कस्बे के वार्ड नंबर 3 में श्रीकिशन अपनी पत्नी राखी के साथ रहता था. शादी के कई सालों बाद भी उन्हें कोई बच्चा नहीं हुआ था. उन्होंने तमाम डाक्टरों और हकीमों से इलाज कराया, लेकिन उन्हें संतान सुख नहीं मिल पाया. औलाद न होने से दोनों बहुत चिंतित रहते थे. राखी को तो और ज्यादा चिंता थी.

गांवदेहात में आज भी बांझ औरत को इज्जत की नजरों से नहीं देखा जाता. और तो और किसी शुभकार्य में बांझ औरत को बुलाया तक नहीं जाता. इस बात को राखी महसूस भी कर रही थी. इस से वह खुद को अपमानित तो समझती ही थी, मन ही मन घुटती भी रहती थी. उस की एक ही मंशा थी कि किसी भी तरह वह मां बन जाए. उस की गोद भर जाए, जिस से उस के ऊपर से बांझ का कलंक मिट जाए.

इस के लिए वह फकीरों और तांत्रिकों के पास भी चक्कर लगाती रहती थी. पर नतीजा कुछ नहीं निकल रहा था. श्रीकिशन का एक बड़ा भाई था धर्म सिंह, जो उस के साथ ही रहता था और अविवाहित था. वह कस्बे के ही श्मशान में जा कर तांत्रिक क्रियाएं करता रहता था.

एक दिन राखी गुमसुम बैठी थी. श्रीकिशन ने जब उस से वजह पूछी तो उस की आंखों से आंसू टपकने लगे. पति ने उसे ढांढस बंधाया तो वह बोली, “पता नहीं हमारी मुराद कब पूरी होगी, कब तक हम यह दंश सहते रहेंगे?”

“राखी, हम ने अपना इलाज भी कराया और इधरउधर भी दिखाया. इस के बावजूद भी तुम मां नहीं बन सकीं तो इस में तुम्हारा क्या दोष है? हम लोग कोशिश तो कर ही रहे हैं.” श्रीकिशन ने समझाया.

“देखोजी, हम भले ही कोशिश कर चुके हैं. लेकिन एक बार क्यों न तुम्हारे भाई (जेठ) से कोई उपाय करने को कहें. श्मशान में न जाने कितने लोग अपनी समस्याएं ले कर उन के पास आते हैं, लेकिन हम ने उन्हें कुछ समझा ही नहीं. शायद उन्हीं की तंत्र विद्या से हमारा कुछ भला हो जाए.” राखी ने कहा.

“ठीक है, अब तुम सो जाओ, सुबह मैं उन से बात करूंगा.” श्रीकिशन ने कहा.

सुबह उठ कर श्रीकिशन ने बड़े भाई धर्म सिंह से राखी के मन की पीड़ा बताई. चाय बना रही राखी भी उस की बातें सुन रही थी. श्रीकिशन की बात पर धर्म सिंह ने कहा, “आज तू ने कहा है तो मैं जरूर कुछ करूंगा. ऐसा कर तू आज काम पर मत जा. पतिपत्नी गद्दी पर बैठो, तभी मैं कुछ उपाय बता सकूंगा.”

दोपहर के बाद धर्म सिंह मरघट से घर लौटा. जिस कमरे में वह रहता था, वहां भी उस ने तंत्र क्रियाएं करने के लिए गद्दी बना रखी थी. श्रीकिशन और राखी को सामने बैठा कर वह तंत्र क्रियाएं करने लगा. तंत्र क्रियाएं करतेकरते धर्म सिंह जैसे किसी अदृश्य शक्ति से बात करने लगा. इसी बातचीत में उस ने ऐसी बात कही, जिसे सुन कर श्रीकिशन और राखी के रोंगटे खड़े हो गए. राखी तो कांपने लगी. धर्म सिंह किसी की बलि देने की बात कर रहा था.

बातें खत्म हुईं तो श्रीकिशन ने अपने भाई से पूछा, “भैया बलि का काम तो बड़ा मुश्किल है, फिर आप ने बलि देने का वादा क्यों कर लिया?”

“तू चुप रह. तू नादान है, जिस बच्चे की बलि देनी है, ऊपर वाले ने उस बच्चे पर बलि का नाम लिख कर इस दुनिया में भेजा है.” धर्म सिंह ने उसे समझाते हुए कहा.

“बलि देने वाला वह बच्चा कौन है, यह कैसे पता चले?” श्रीकिशन ने शंका व्यक्त की.

“इस की चिंता तू मत कर. जब तेरी पत्नी पूजा के समय बैठी होगी, वह खुदबखुद हमें बताएगी.” धर्म सिंह ने धूर्त हंसी हंसते हुए कहा.

“किस की बलि देनी है, भला यह मुझे कौन बताएगा?” राखी ने पूछा.

“तुझे वही बताएगा, जो अभी मुझ से बातें कर रहा था. वह तुझे नाम भी बताएगा और पता भी.” धर्म सिंह ने कहा.

“फिर यहां तक उस बच्चे को ले कर कौन आएगा?” श्रीकिशन ने पूछा.

“वह खुद इस की गोद में आ जाएगा.” कह कर धर्म सिंह ने दोनों को वहां से हटा दिया.

2-3 दिन बाद राखी ने अपने जेठ से पूछा, “भाई साहब, पूजा वगैरह करने में अभी कितने दिन लगेंगे?”

“राखी, एक बात है, जो मैं तुम से नहीं कह पा रहा हूं. आखिर किस मुंह से कहूं?” धर्म सिंह ने कहा.

“कोई खास बात है, जो तुम इतना हिचक रहे हो?” राखी ने पूछा.

“हां, खास ही है.” उस ने कहा.

“तो बता दो, मैं भला कोई बाहरी थोड़े ही हूं, जो बुरा मान जाऊंगी. बता दो, क्या बात है?” राखी ने पूछा.

“दरअसल, बात यह है कि बलि से पूर्व कुछ तंत्र क्रियाएं करनी पड़ेंगी. उस वक्त तुझे गद्दी पर निर्वस्त्र हो कर बैठना होगा.” धर्म सिंह ने कहा.

“तो क्या हुआ. अपनी गोद भरने के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूं. देर मत करो, जल्द पूजा की तैयारी करो.”

राखी अपने जेठ का स्वभाव पहले से ही जानती थी. वह निहायत ही शरीफ इंसान था. शुरू से ही औरत जाति से परहेज रखता था.

श्रीकिशन की गैरहाजिरी में एक दिन धर्म सिंह ने अनुष्ठान शुरू किया. उस ने तंत्र क्रियाएं शुरू कीं. सामने बैठी राखी ने एकएक कर के सारे कपड़े उतार दिए. निर्वस्त्र बैठी राखी धर्म सिंह के कहे अनुसार हवन में आहुतियां देने लगी. उसी बीच धर्म सिंह ने जैसे ही शराब की शीशी खोल कर हवन कुंड में जल रही अग्नि पर डाली, राखी बैठेबैठे ही झूमने लगी.

तंत्र क्रिया करने वाले धर्म सिंह ने पूछा, “अब बता क्या नजर आ रहा है?”

इसी के साथ शराब की कुछ बूदें आग में डालीं. तभी राखी ने कहा, “यह तो मोहिनी है, विनोद की बेटी.”

“कहां है?” धर्म सिंह ने पूछा.

“यह आ गई मेरी गोद में.” राखी के दोनों हाथ ऐसे उठे, जैसे उस की गोद में कोई बच्चा आ गया हो. उस ने आगे कहा, “लो, दे दो इस की बलि.”

“ठीक है. तेरी मनोकामना शीघ्र ही पूरी होगी.” कह कर धर्म सिंह ने पानी के छींटे राखी पर फेंके. छींटे पड़ते ही राखी होश में ऐसे आ गई, जैसे नींद से जागी हो. वह उठी और सारे कपड़े समेट कर तेजी से दूसरे कमरे में भाग गई.

श्रीकिशन के घर के पास ही विनोद रहता था. उस के परिवार में 3 बेटे और एक बेटी मोहिनी थी.

23 अक्तूबर को 2 साल की मोहिनी घर के बाहर खेल रही थी. थोड़ी देर बाद उस की तो सीमा को उस का खयाल आया तो वह उसे लेने बाहर आई. लेकिन मोहिनी कहीं दिखाई नहीं दी. उस ने बच्चों से मोहिनी के बारे में पूछा. बच्चों ने कहा कि वह अभी तो यहीं खेल रही थी. सीमा ने उसे आसपास देखा. लेकिन वह कहीं दिखाई नहीं दी.

ऐसा भी नहीं था कि 2 साल की बच्ची खेलतेखेलते कहीं दूर चली जाए. फिर भी उस ने तमाम लोगों से बेटी के बारे में पूछा, पर कहीं से उस के बारे में पता नहीं चला. इस के बाद घर के सभी लोग मोहिनी को ढूंढने लगे. अंधेरा हो गया. गांव वाले भी मोहिनी को ढूंढने में मदद कर रहे थे. पर मोहिनी नहीं मिली.

पता नहीं क्यों सीमा एक ही रट लगाए रही कि मेरी बेटी कहीं नहीं गई, वह श्रीकिशन के घर में ही होगी. सीमा की इस रट पर दूसरे दिन सुबह मोहल्ले वालों ने धर्म सिंह से कहा कि जब सीमा कह रही है तो वह उस अपने घर में ढूंढऩे दे.

श्रीकिशन और धर्म सिंह ने साफ कहा कि उस के घर में कोई भी नहीं घुस सकता. गांव वालों की समझ में नहीं आ रहा था कि इन दोनों भाइयों को अपने घर की तलाशी देने में क्यों ऐतराज है? घर की चौखट पर खड़ी राखी की घबराहट देख कर कुछ लोगों को शक हुआ कि कुछ गड़बड़ जरूर है. उसी दौरान किसी ने इगलास पुलिस को इस की सूचना दे दी थी.

उस दिन मोहर्रम था. थाना पुलिस मोहर्रम का जुलूस निकलवाने की तैयारी कर थी. इंसपेक्टर संजीव चौहान को बच्ची के गायब होने की जानकारी मिली तो वह पुलिस बल के साथ बेसवां जा पहुंचे. धर्म सिंह के घर के बाहर खड़े मोहल्ले के लोगों ने विनोद की बच्ची के कल से गायब होने की बात उन्हें बताने के साथ उन से यह भी कहा कि श्रीकिशन घर की तलाशी नहीं लेने दे रहा है.

संजीव चौहान कुछ लोगों के साथ श्रीकिशन के घर में घुस गए. तलाशी ली गई तो जीने के नीचे कबाड़ में मासूम मोहिनी की लाश मिल गई. संजीव चौहान लाश उठा कर बाहर ले आए.

मोहिनी के शरीर से निकला खून सूख चुका था. उस की जीभ पर चीरा लगा हुआ था. इस के अलावा उस के पूरे शरीर पर राख मली हुई थी. इस सब से साफ लग रहा था कि उस की बलि दी गई थी. लोगों का शक सही निकला. इस के बाद नाराज मोहल्ले वालों ने धर्म सिंह, श्रीकिशन और राखी की पिटाई शुरू कर दी.

पुलिस ने किसी तरह तीनों को भीड़ के चंगुल से छुड़ा कर अपने कब्जे में लिया. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के मोहिनी की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

पुलिस ने धर्म सिंह, श्रीकिशन और राखी के खिलाफ भादंवि की धारा 364, 302, 201 और 34 के तहत मुकदमा दर्ज कर के पूछताछ की तो पता चला कि बलि देने के लिए राखी ने ही  मोहिनी का घर के बाहर से अपहरण किया था. अपहरण कर के उस ने उसे जेठ धर्म सिंह को सौंप दिया था.

उस के बाद तंत्र क्रियाएं करते समय धर्म सिंह ने ही उस मासूम बच्ची की गरदन व जीभ काट कर खून तंत्र क्रिया में चढ़ाया था. बच्ची के मरने के बाद उन्होंने लाश जीने के नीचे रखे कबाड़ में छिपा दी थी. जब मोहिनी को उस के घर वाले और कस्बे वाले ढूंढऩे लगे तो धर्म सिंह व श्रीकिशन घबरा गए. वह उस की लाश को कहीं ठिकाने लगाने का मौका ढूंढ़ रहे थे. अगली रात में शायद वह ऐसा करते, लेकिन उस के पहले ही पुलिस उन के यहां पहुंच गई.

पूछताछ के बाद पुलिस ने तीनों को न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

इस घटना से यही लगता है कि इतनी तरक्की के बावजूद गांवों में आज भी शिक्षा का इतना प्रचारप्रसार नहीं हुआ है, जिस से लोगों की रूढि़वादी सोच में बदलाव आ सके. राखी और उस के घर वालों ने संतान की चाह में जो अपराध किया है, उस से वे तीनों जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गए हैं. अगर वे किसी अच्छे डाक्टर से सलाह ले कर अपना इलाज कराते तो शायद उन्हें संतान सुख अवश्य मिल जाता और उन के जेल जाने की नौबत भी न आती.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

खतरनाक मंसूबे में शामिल लड़की

एक और युग का अंत

एक रात में टूटी दोस्ती की इमारत

ईमानदारी के वजूद पर वार

चंद्रलोक कालोनी चौराहा इंदौर का पौश इलाका है. यहां की 4 लेन पर स्थित एक बहुमंजिला बिल्डिंग रवि अपार्टमेंट के भूतल पर इंटेक्स टैक्नोलौजी इंडिया लिमिटेड का औफिस है. इस औफिस में इंटेक्स के  मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के प्रभारी ताहिर हुसैन डार बैठते थे. 24 जून, 2014 को करीब साढ़े 12 बजे भी ताहिर हुसैन रोजाना की तरह अपने औफिस में बैठे थे.

उसी समय इंटेक्स का एक पुराना एजेंट गोविंद वर्मा कंपनी के औफिस आया और अपने परिचित कर्मचारियों को हाय हैलो करता हुआ ताहिर हुसैन के केबिन में चला गया. गोविंद चूंकि वहां अकसर आता रहता था, इसलिए कंपनी के सभी 18 कर्मचारी उसे अच्छी तरह जानते थे.

गोविंद जब ताहिर हुसैन के केबिन में पहुंचा तो वहां एक आदमी पहले ही बैठा हुआ था. अतिरिक्त कुरसी एक ही थी जिस पर पहले आया व्यक्ति बैठा था. गोविंद को आया देख ताहिर हुसैन ने घंटी बजा कर औफिस बौय संजू को बुलाया और उस से कुरसी लाने को कहा. संजू कुरसी लेने चला गया.

उसी वक्त केबिन में तेज धमाके की आवाज के साथ चीख की आवाज उभरी. इस से बाहर बैठे कर्मचारियों ने समझा कि ताहिर साहब के केबिन में कंप्यूटर का सीपीयू फट गया होगा. इसी बीच कुरसी ले कर आए संजू ने केबिन का दरवाजा अंदर की ओर धकेला तो गोविंद हाथ में तमंचा लिए बाहर निकला. उस के साथ एक आदमी और भी था.

बाहर निकलते ही गोविंद ने तमंचा लहराते हुए कहा, ‘‘अगर कोई बीच में आया तो बेमौत मारा जाएगा.’’ इस के साथ ही उस ने एक फायर भी कर दिया. उस के तमंचे से निकली गोली शीशे के मुख्य द्वार को भेद कर बाहर निकल गई.

गोविंद का यह रूप देख सभी कर्मचारी बुरी तरह डर गए. डर के मारे कई कर्मचारी तो अपनी मेजों के नीचे छिप गए थे. ताहिर हुसैन के पास जो आदमी पहले से बैठा था, वह गोविंद का ही साथी था और उस के साथ ही बाहर आ गया था. उस के हाथ में भी तमंचा था. गोविंद और उस का साथी कांच का मुख्य द्वार खोल कर बाहर निकल गए.

गोविंद और उस के साथी के बाहर जाते ही कंपनी के कर्मचारी केबिन की ओर दौड़े. केबिन में खून से लथपथ ताहिर हुसैन फर्श पर पड़े कराह रहे थे. उन्हें कंधे में गोली लगी थी जो पार निकल गई थी. कंपनी के कर्मचारी उन्हें निजी वाहन से पास के सीएचएल अस्पताल में ले गए. जहां तुरंत उन का इलाज शुरू कर दिया गया. इस बीच इस मामले की सूचना थाना पलासिया को दे दी गई थी.

खबर मिलते ही पलासिया के थानाप्रभारी शिवपाल सिंह कुशवाह सबइंसपेक्टर के.एन. सिंह व 2 हवलदारों के साथ मौका ए वारदात पर पहुंच गए. उन्होंने घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दे दी थी.

चूंकि वारदात कंपनी के एक बड़े अधिकारी के साथ हुई थी इसलिए थोड़ी देर में वहां पुलिस वालों की अच्छी भली भीड़ एकत्र हो गई. पुलिस ने फोरेंसिक अधिकारी डा. सुधीर शर्मा को भी मौके पर बुला लिया था.  पुलिस की एक टीम ने घटनास्थल का मुआयना किया और दूसरी टीम सीएचएल अस्पताल पहुंच गई ताकि ताहिर हुसैन का बयान लिया जा सके. लेकिन वह बयान देने की स्थिति में नहीं थे.

ताहिर हुसैन डार मूलत: कश्मीर के जिला श्रीनगर के गांव सोनवार के रहने वाले थे. उन के बड़े भाई शब्बीर और पिता गुलाम मोहम्मद डार सोनवार में अपना प्रोवीजनल स्टोर चलाते थे. ताहिर ने इंदौर स्थित इंटेक्स टैक्नोलौजी इंडिया लिमिटेड में 3 साल पहले बतौर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ प्रभारी के रूप में पद संभाला था. यहां वह अपनी पत्नी नाजनीन और डेढ़ वर्षीय बेटे अयान के साथ निपानिया टाउनशिप स्थित नरीमन प्वाइंट बिल्डिंग के फ्लैट नंबर 428 में रहते थे. उन के मातापिता कश्मीर स्थित अपने गांव में ही रह रहे थे.

खुशमिजाज और मिलनसार स्वभाव के ताहिर हुसैन की पत्नी नाजनीन भी कश्मीर की ही रहने वाली थीं. उन के पिता जबलपुर के बिजली विभाग में औडीटर थे, जिस की वजह से उन का पूरा परिवार ग्वालियर शिफ्ट हो गया था.  नाजनीन ने दिल्ली में पढ़ाई की थी, उस के बाद वह सीए की पढ़ाई के लिए भोपाल आ गई थीं. उस समय ताहिर हुसैन भोपाल में अपनी बुआ के बेटे डा. रईस खान के कोहेफिजा स्थित घर पर रह कर एमबीए की पढ़ाई कर रहे थे.

भोपाल में ही नाजनीन और ताहिर हुसैन की मुलाकात हुई. दोनों हमवतन भी थे और आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक भी. पहले दोनों में जानपहचान हुई, फिर दोस्ती. वक्त के साथ दोस्ती प्यार में बदली और बात शादी तक जा पहुचीं. इस शादी में दोनों के ही परिवारों को कोई ऐतराज नहीं था.

भोपाल से एमबीए करने के बाद ताहिर हुसैन को चंडीगढ़ की एक टायर कंपनी में जौब मिल गया तो वह चंडीगढ़ चले गए. लेकिन वहां उन्हें ज्यादा दिन नहीं रहना पड़ा. इसी बीच उन्हें मोबाइल कंपनी इंटेक्स की इंदौर स्थित ब्रांच इंटेक्स टैक्नोलौजी इंडिया लिमिटेड में नौकरी मिल गई थी. इस ब्रांच में उन्हें मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाया गया. यह 3 साल पहले की बात है.

इंदौर में नौकरी करते हुए ही ताहिर हुसैन ने नाजनीन से शादी की. शादी के लिए दोनों के परिवार इंदौर में ही एकत्र हुए. शादी के बाद ताहिर हुसैन ने निपानिया टाउनशिप की नरीमन प्वाइंट बिल्डिंग में फ्लैट ले लिया था और पत्नी के साथ वहीं रहने लगे थे. शादी के करीब डेढ़ साल बाद नाजनीन अयान की मां बनी. बेटे के जन्म के बाद नाजनीन और ताहिर हुसैन खूब खुश थे.

ताहिर हुसैन का काम था, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के अलगअलग शहरों में लोगों को इंटेक्स मोबाइल की फेंचाइजी देना. इस के लिए वसूली जाने वाली रकम और एजेंट का कमीशन वही तय करते थे. कंपनी के काम के अधिकार प्राप्त लोग जितना अधिक काम देते थे, उन्हें उसी हिसाब से कमीशन दिया जाता था. ये सारे अधिकार ताहिर हुसैन के पास थे.

गोविंद वर्मा ने इंदौर के यशवंत प्लाजा, स्टेशन रोड के भूतल पर साईंनाथ मोबाइल सेंटर के नाम से सर्विस सेंटर खोल रखा था. यह सेंटर गोविंद की बहन नीतू के नाम पर था. गोविंद के पास यूं तो कई मोबाइल कंपनियों की फेंचाइजी थी, लेकिन उसे सब से ज्यादा लाभ इंटेक्स से होता था1

ताहिर हुसैन को कुछ महीने पहले जब  गोविंद वर्मा द्वारा इंटेक्स के नाम पर हेराफेरी किए जाने की बात पता चली तो उन्होंने उसे दी गई फे्रंचाइजी वापस ले ली. यह बात गोविंद को अच्छी नहीं लगी. उस ने कई बार इंटेक्स टैक्नोलौजी इंडिया लिमिटेड के औफिस जा कर इस बारे में ताहिर हुसैन से बात की. फे्रंचाइजी वापस लिए जाने के बावजूद ताहिर हुसैन उस से पूर्ववत ही बात करते थे. उन के औफिस के कर्मचारी भी गोविंद से पहले की तरह ही पेश आते थे.

अलबत्ता ताहिर हुसैन ने उसे पुन: फ्रेंचाइजी देने से साफ इनकार कर दिया था. इस से गोविंद काफी बौखलाया हुआ था.   उस की बौखलाहट की वजह यह भी थी कि ताहिर हुसैन ने उस की फे्रंचाइजी समाप्त करने की वजह और उस की हेराफेरी की रिपोर्ट अपने दिल्ली स्थित हेड औफिस को भेज दी थी और कंपनी ने उसे हमेशा के लिए ब्लैकलिस्टेड कर दिया था. हालांकि गोविंद की हर कोशिश बेकार गई थी, इस के बावजूद वह ताहिर हुसैन से मिलने उन के औफिस आता रहता था.

जब गोविंद को लगा कि अब कुछ नहीं होने वाला है तो उस ने ताहिर हुसैन से बदला लेने की एक खतरनाक योजना बनाई. इस के लिए उस ने न केवल 2 तमंचों की व्यवस्था की बल्कि अपने एक दोस्त राजेंद्र वर्मा को भी लालच दे कर अपनी येजना में शामिल कर लिया. 24 जून को राजेंद्र और गोविंद दोनों ही ताहिर हुसैन के औफिस आए थे और उन्होंने ही इस घटना को अंजाम दिया था. ये बातें पुलिस की प्राथमिक जांच में सामने आई.

पुलिस ने गोविंद और उस के दोस्त के खिलाफ हत्या के प्रयास का मामला दर्ज कर के दोनों की तलाश शुरू कर दी थी. बाद में जब उसी शाम ताहिर हुसैन की मृत्यु हो गई तो इस मामले को हत्या की धारा में तबदील कर दिया गया.

उधर पति की हत्या की बात सुन कर नाजनीन का रोरो कर बुरा हाल हो गया. उस की तो दुनिया ही उजड़ गई थी. इंदौर में उस का अपना भी कोई नहीं था जो उसे संभालता. खबर मिलने पर उसी रात भोपाल से ताहिर के फुफेरे भाई डा. रईस खान और उन की पत्नी नाहिदा इंदौर पहुंचे और उन्होंने नाजनीन को संभाला. उसी रात नाजनीन के मातापिता भी जबलपुर से इंदौर पहुंच गए थे.

श्रीनगर से ताहिर हुसैन के बुजुर्ग मातापिता का आना संभव नहीं था. विचारविमर्श के बाद डा. रईस खान और नाजनीन के पिता ने तय किया कि ताहिर के शव को श्रीनगर ही ले जाएं. उन के आग्रह पर अस्पताल के डाक्टरों ने ऐसी व्यवस्था कर दी कि अगले 2 दिनों तक शव खराब न हो. अंतत: 26 जून को ताहिर हुसैन के शव को वायु मार्ग से श्रीनगर ले जाया गया, वहां से सड़क मार्ग से उन के गांव सोनवार. उसी दिन उन्हें सुपुर्द ए खाक भी कर दिया गया.

उधर पुलिस गोविंद को खोज रही थी जबकि उस का कोई पता नहीं चल रहा था. वह अपने विजय नगर स्थित घर से फरार था. उस पर दबाव बनाने के लिए पुलिस उस के पिता और बहन नीतू को थाने उठा लाई. इस का नतीजा यह हुआ कि 29 जून की रात 10 बजे गोविंद अपने एक दोस्त मयूर के साथ थाना पलासिया पहुंचा और दोनों ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. उस वक्त दोनों नशे में चूर थे. थानाप्रभारी शिवपाल सिंह कुशवाह उस वक्त थाने में नहीं थे.

उन्हें सूचना दी गई तो वह तत्काल थाने पहुंच गए. शिवपाल सिंह ने दोनों को हवालात से निकलवा कर पूछताछ की तो मयूर ने बताया कि घटना वाले दिन वह गोविंद के साथ नहीं था. उसे तो गोविंद चाकू की नोक पर धमका कर थाने लाया है. उस का कहना था कि हत्या के समय गोविंद के साथ वह नहीं बल्कि भूरा था.

पूछताछ में गोविंद ने ताहिर हुसैन की हत्या की वजह बताते हुए कहा कि उस ने इंटेक्स की फे्रंचाइजी के बूते पर ही यशवंत प्लाजा के ग्राउंड फ्लोर पर 20 हजार रुपए किराए पर दुकान ली थी. साथ ही 3 लाख रुपए कर्ज ले कर पूरा सेटअप भी तैयार किया था. लेकिन जब फ्रेंचाइजी वापस ले ली गई तो उस का पूरा धंधा चौपट हो गया. इस के लिए वह 3 महीने तक ताहिर हुसैन के पास चक्कर लगाता रहा, लेकिन वह नहीं माने. इस से उसे बहुत गुस्सा आया और उस ने उन्हें ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया.

गोविंद ने हत्या की बात जरूर कुबूल ली थी, लेकिन वह अभी भी झूठ बोल रहा था.  उस ने जहां तमंचा छिपाने की बात बताई थी वहां तमंचा भी नहीं मिला था. अलबत्ता पुलिस ने यह जरूर पता कर लिया था कि घटना के समय उस के साथ राजेंद्र वर्मा था. गोविंद से वह तमंचा बरामद करना जरूरी था जिस से उस ने ताहिर हुसैन की हत्या की थी. इसलिए 30 जून को पुलिस ने उसे अदालत में पेश कर के उस का 6 दिन का पुलिस कस्टडी रिमांड ले लिया.

अगले दिन शिवपाल कुशवाह को एक मुखबिर से सूचना मिली कि गोविंद का साथी राजेंद्र वर्मा ग्वालियर की अशोक कालोनी में रहने वाले अपने भाई के यहां छिपा हुआ है. शिवपाल सिंह ग्वालियर में तैनात रह चुके थे. उन्होंने उसी समय ग्वालियर के उस क्षेत्र के थानाप्रभारी को फोन कर के कहा कि वह ग्वालियर पहुंच रहे हैं. तब तक राजेंद्र वर्मा के भाई के घर पर ध्यान रखें.

शिवपाल सिंह की टीम ने उसी दिन ग्वालियर जा कर राजेंद्र वर्मा को गिरफ्तार कर लिया. राजेंद्र को इंदौर ला कर पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार किया कि वह गोविंद के साथ न केवल इंटेक्स के औफिस गया था बल्कि ताहिर हुसैन पर गोली भी उसी ने चलाई थी. यह बात चौंकाने वाली इसलिए थी क्योंकि गोविंद के अनुसार ताहिर हुसैन पर गोली उस ने चलाई थी.

जब यह बात राजेंद्र से पूछी गई तो वह बोला, ‘‘गोविंद मुझे बचाने के लिए मेरा जुर्म स्वीकार रहा है.’’ वह ऐसा क्यों कर रहा है, यह पूछने पर राजेंद्र ने बताया कि गोविंद ने जब उसे इस योजना में शामिल किया था तो वादा किया था कि कहीं भी उस का नाम नहीं आने देगा. अगर नाम आ भी गया तो वह उस का जुर्म अपने सिर ले लेगा.

गोविंद, राजेंद्र और मयूर से पूछताछ में यह बात साबित हो गई कि मयूर इस मामले में कहीं शामिल नहीं था. गोविंद उसे पैसे दे कर और शराब पिला कर थाने लाया था ताकि वह ताहिर हुसैन की हत्या का जुर्म अपने सिर ले ले. इस सिलसिले में एक बेकुसूर को फंसाने की साजिश के लिए गोविंद के खिलाफ एक केस और दर्ज किया गया. मयूर को पुलिस ने छोड़ दिया.

गोविंद और राजेंद्र की निशानदेही पर पुलिस ने 5 जुलाई को उन के घर के पास बहने वाले गंदे नाले के किनारे वाली झाडि़यों से वे दोनों तमंचे भी बरामद कर लिए जिन्हें वारदात में इस्तेमाल किया गया था. साथ ही उन की वे दोनों मोटरसाइकिल भी पुलिस ने अपने कब्जे में ले लीं जिस पर बैठ कर वे इंटेक्स के औफिस गए थे.

गोविंद और राजेंद्र से पूछताछ में इस बात का भी खुलासा हुआ कि इन लोगों ने ताहिर हुसैन की हत्या की योजना परदेसीपुरा स्थित बमचक बाबा के आश्रम में बैठ कर बनाई थी इस योजना में गोविंद और राजेंद्र के अलावा नंदनगर का शिवम उर्फ भैय्यू तथा नंदनगर का ही उमाशंकर उर्फ भूरा भी शामिल थे.

भैय्यू और भूरा अपराधी प्रवृत्ति के थे. इन दोनों ने ही गोविंद को खरगौन के एक व्यक्ति से 2 तमंचे खरीदवाए थे. घटना वाले दिन गोविंद और राजेंद्र के साथ ये दोनों भी इंटेक्स के औफिस गए थे. लेकिन भैय्यू और भूरा अंदर न जा कर मोटरसाइकिल लिए बाहर ही खड़े रहे थे. हत्या के बाद ये चारों जने मोटर साइकिलों पर बैठ कर फरार हो गए थे. गोविंद ने भैय्यू और भूरा को 50-50 हजार रुपए दिए थे. साथ ही यह आश्वासन भी कि उन का नाम कहीं नहीं आएगा.

यह भी पता चला कि घटना वाले दिन भी ये चारों बमचक बाबा के आश्रम में एकत्र हुए थे और फूलप्रूफ योजना बनाने के बाद वहीं से इंटेक्स के औफिस गए थे. वहां गोविंद और राजेंद्र अंदर गए और ताहिर हुसैन की हत्या कर के बाहर आ गए. इस के बाद चारों वहां से फरार हो गए थे. हकीकत पता चलने पर पुलिस ने शिवम उर्फ भैय्यू को भी उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. लेकिन उमाशंकर उर्फ भूरा पुलिस के हाथ नहीं आया.

पुलिस ने 10 जुलाई, 2014 को गोविंद, राजेंद्र और शिवम उर्फ भैय्यू को अदालत में पेश किया जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. मुखबिर की सूचना पर उमाशंकर उर्फ भूरा को भी 18 जुलाई, 2014 को गिरफ्तार कर पूछताछ के बाद जेल भेज दिया.

अगर इस पूरे मामले को देखा जाए तो गोविंद की बददिमागी ही उभर कर सामने आती है. उन की भूल थी तो सिर्फ यह कि फे्रंचाइजी खत्म होने के बाद भी उन्होंने गोविंद को अपने केबिन में आने से कभी नहीं रोका. बदमजगी होने के बाद भी वह उसे सम्मान से अपने सामने बैठाते और चाय पिलाते रहे.

बहरहाल, ताहिर हुसैन नहीं रहे. उन के न रहने से जहां उन की पत्नी नाजनीन की दुनिया उजड़ गई, वहीं उन के बूढ़े मांबाप का सहारा भी छिन गया. देखना यह है कि कानून गोविंद और उस के साथियों को क्या सजा देता है.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जिंदादिल आइवी सिंह : वफा की बुलंद इमारत

दोपहर का वक्त था. श्रीमती आइवी सिंह सोफे पर बैठी सोच में गुम थीं. जिंदगी में आए उतारचढ़ाव की कल्पना ने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया था. सोच का यह सागर अकसर दस्तक दे ही देता था. वह जिस कमरे में बैठी थीं, वह अस्पतालनुमा था. वह बिस्तर पर बेसुध से लेटे अपने पति आनंद सिंह को एकटक निहारे जा रही थीं. उन के साथ बिताए खुशगवार पलों की यादें एक तरफ खुशी दे रही थीं तो दूसरी तरफ दर्द का एक ऐसा तूफान भी था, जिस के थमने की कोई उम्मीद नहीं थी.

वर्तमान में उन के पास यूं तो हर खुशी थी, लेकिन पति की बीमारी की टीस उन्हें पलपल ऐसा अहसास कराती थी, जैसे कोई नाव किनारों की तलाश में बारबार लहरों से टकरा रही हो. अच्छेबुरे अनुभवों से उन की आंखों के किनारों को आंसुओं ने अपनी जद में ले लिया.

इसी तरह कुछ समय बीता तो उन्हें अपने सिर पर किसी के हाथ की छुअन का अहसास हुआ. आइवी सिंह ने नजरें उठा कर देखा. उन की मां आर. हिगिंस पास खड़ी थीं. बेटी को देख कर उन की भी आंखें नम हो गईं. वह शांत लहजे में बोलीं, ‘‘यूं परेशान नहीं होते बेटा.’’

आइवी ने हथेलियों से आंसू पोंछ कर पलकें उठाईं और मां का हाथ थाम कर बोलीं, ‘‘समझ नहीं आता मां क्या करूं?’’

‘‘सभी दिन एक जैसे नहीं रहते बेटी. एक न एक दिन आनंद ठीक हो जाएंगे, सब्र रखो.’’

‘‘सब्र तो कर ही रही हूं मां, लेकिन डाक्टर तो ना कर चुके हैं.’’

‘‘ऐसा नहीं है. कोई न कोई इलाज जरूर निकलेगा, बस तुम हौसला रखो.’’

आइवी सिर्फ कहने को सुहागन थीं. पति आनंद जीवित तो थे, लेकिन न वह चल फिर सकते थे न बोल सकते थे और न ही कुछ खा सकते थे. किसी अबोध बच्चे की तरह उन की देखभाल करना रोजमर्रा की बात थी.

उन की यह हालत कुछ दिनों या महीनों से नहीं, बल्कि लगातार 25 सालों से बनी हुई थी. दुनिया कितने रंग बदल चुकी है, वक्त का चक्र कैसे घूम रहा है और जिंदगी ने जवानी से बुढ़ापे की राह कैसे पकड़ ली है, आनंद को इस का रत्ती भर भी अहसास नहीं था.

आइवी ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन ऐसे हालात आ जाएंगे. जिंदगी इस तरह जवानी से बुढ़ापे की ओर बढ़ेगी. पति की ऐसी दशा में सुहागन हो कर भी बेगानी सी जिंदगी का दर्द क्या होता है, यह आइवी ने अनगिनत बार बहुत करीब से महसूस किया था.

विवाह के बाद पति के साथ बिताए गए चंद महीनों की खुशनुमा यादों का महज एक गुलिस्तां आइवी के दिलोदिमाग में था. उसी के सहारे पति को जिंदा रखने की जुगत में जिंदगी अपनी रफ्तार से बीत रही थी. लेकिन उन की जिंदगी का इम्तिहान खत्म होने का नाम नहीं ले रहा था.

हर इंसान अपनी जिंदगी के खुशगवार होने की उम्मीदों के चिराग रोशन रखता है, लेकिन यह भी सच है कि वह वक्त का गुलाम होता है. दरअसल आइवी के पति पिछले 25 सालों से बिस्तर पर कोमारूपी बीमारी ‘ब्रेन स्टेम’ के शिकार थे. दुनिया में अभी तक कोई चिकित्सक ऐसा नहीं मिला था, जो उन के पति का इलाज कर सके.

ZINDAGI-IMTIHAN

आधुनिक दौर के बिखरते रिश्तों की कुछ कड़वी सच्चाइयों की तरह अगर उन्होंने भी पतिपत्नी के नाजुक रिश्तों को चटका दिया होता तो आनंद न जाने कब दुनिया को अलविदा कह चुके होते. वह हर मुसीबत का सामना कर के पति के लिए अकल्पनीय हालात से लगातार जूझ रही थीं.

इस के बावजूद आइवी ने हिम्मत न हारने की कसम खा ली थी. दुनिया में आइवी सिंह जैसी बहुत कम महिलाएं होती हैं, जो मुसीबत के दौर में उस शख्स से किनारा नहीं करतीं, जिस के साथ उन का दिल की गहराइयों से नाता हो. पतिपत्नी के नाजुक रिश्ते की डोर को अपने समर्पण से न सिर्फ उन्होंने मजबूत कर दिया था, बल्कि अपनी हिम्मत से वफा की एक ऐसी बुलंद इमारत खड़ी कर दी थी, जो किसी के भी दिल को छू जाए.

वफा की यह इमारत उन के लिए दुनिया के हर खजाने से ज्यादा अनमोल थी. वक्त ने आइवी की दुनिया कैसे बदली थी, इस के पीछे भी एक कहानी थी.

आइवी की जिंदगी कभी किसी महकते हुए चमन की तरह थी. वक्त का हर पल जैसे उन के लिए मोती की तरह था. उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर के एक ईसाई परिवार में जन्मी आइवी बी. हिगिंस की एकलौती बेटी थीं. हिगिंस सरकारी मुलाजिम थे. आर्थिक रूप से संपन्न हिगिंस की पत्नी आर. हिगिंस अध्यापिका थीं.

परिवार की माली हालत अच्छी थी, लिहाजा आइवी की परवरिश अच्छे माहौल में हुई. हिगिंस दंपति ने बेटी को अच्छे संस्कार दिए. आइवी को उन्होंने नाजों से पाला था. प्यार, समर्पण व जिम्मेदारियों की पूंजी आइवी को मातापिता से बचपन से ही मिली थी. परिवार पढ़ालिखा था और सभी सदस्य मृदुभाषी थे, इसलिए समाज में उन्हें इज्जत की नजरों से देखा जाता था.

प्राथमिक शिक्षा के बाद आइवी ने उच्च शिक्षा हासिल की. आइवी जीवन के उस मुकाम पर थीं, जहां लड़कियां अकसर अपनी कल्पना के शहजादों को ख्वाबों में देखती हैं.

हर मातापिता की तरह हिगिंस दंपति भी चाहते थे कि वह बेटी को अलग दुनिया बसाने के लिए अपने घर से विदा कर दें. उन्होंने उस के लिए रिश्ते की तलाश शुरू की. जल्द ही उन्हें रिश्तेदारी के माध्यम से एक युवक का पता चला. युवक का नाम था आनंद सिंह.

आकर्षक व्यक्तित्व के आनंद भारतीय नौसेना के इंजीनियरिंग विभाग में कार्यरत थे. आनंद उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जनपद के धारचूला के रहने वाले थे. उन के पिता निर्मल सिंह पादरी थे, जबकि मां पुष्पा सिंह कुशल गृहिणी थीं. आनंद सिंह अपने परिवार की होनहार संतान थे. बचपन से ही वह चाहते थे कि बड़े हो कर देश की सेवा करें, इसलिए उन की राह में बाधा नहीं आई और उन्होंने मेहनत से तैयारी कर के सन 1976 में मनचाही नौकरी पा ली.

आनंद सिंह देहरादून के नेवल हाइड्रोग्राफिक कार्यालय में तैनात थे. दोनों परिवारों के बीच बातचीत हुई तो आइवी का रिश्ता आनंद के साथ तय कर दिया गया. इस रिश्ते से दोनों परिवार भी खुश थे और आइवी व आनंद भी.

22 मई, 1986 को आइवी और आनंद परिणयसूत्र में बंध गए. एकदूसरे को पा कर पतिपत्नी खुश थे. इतने खुश कि उन्हें अपने सामने दुनिया की हर खुशी फीकी नजर आती थी. आनंद ठीक वैसे ही थे, जैसे जीवनसाथी की कल्पना आइवी ने की थी.

आनंद चूंकि नौसेना का हिस्सा थे, इसलिए अनुशासन वहां पहली शर्त थी. उन का जिंदगी जीने का अंदाज दूसरों से जुदा था. वह साफसफाई व नियमबद्ध जीवन के मुरीद थे. आइवी खुद भी ऐसी ही थीं. उन्होंने आनंद के अनुरूप खुद को ढाल लिया था.

दोनों की शादी को कुछ महीने ही बीते थे कि आइवी के पिता बी. हिगिंस का देहांत हो गया. उन की मृत्यु ने आर. हिगिंस को अकेला सा कर दिया. आइवी को भी पिता की मृत्यु से धक्का लगा था. वह मेरठ चली आईं और उन्होंने मां के गम को बांटने की पूरी कोशिश की. करीब 2 महीने बाद वह वापस ससुराल चली गईं. आनंद उन्हें अपने साथ देहरादून अपने तैनाती स्थल पर ले आए. अभी कुछ महीने ही बीते थे कि एक दिन आनंद को इंडियन पीस कीपिंग कोर्स की 6 महीने की ट्रेनिंग के लिए विशाखापट्टनम जाना पड़ा.

उन के ट्रेनिंग पर जाने के बाद आइवी मेरठ आ गईं और कानून की पढ़ाई करने लगीं. उन दिनों चूंकि मोबाइल फोन नहीं होते थे, इसलिए पत्र ही संदेश पहुंचाने का एक जरिया थे. आनंद पत्नी से बराबर पत्राचार करते रहे.

आनंद आईएनएस एंड्रो जहाज पर तैनात थे. श्रीलंका में उन दिनों ताकतवर गुरिल्ला लड़ाकों वाले प्रतिबंधित संगठन लिट्टे का आतंक था. नौसेना भी उन के खिलाफ रणनीति तैयार कर रही थी. आनंद को रहने के लिए अलग कमरा मिला हुआ था. ड्यूटी आनेजाने के लिए वह अपनी बुलेट मोटरसाइकिल का इस्तेमाल करते थे.

किस इंसान के साथ कब क्या हो जाए, कोई नहीं जानता. बुरा वक्त जब खुशियों को ग्रहण लगाता है तो भविष्य के सारे सपने एक झटके में टूट जाते हैं और सपनों के घरौंदे ताश के पत्तों की तरह बिखर जाते हैं. आनंद के मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ.

देहरादून स्थित नौसेना के नेवल हाइड्रोग्राफिक कार्यालय में आए एक सिगनल ने सभी की चिंता बढ़ा दी. आनंद के धारचूला स्थित आवास पर नौसेनाकर्मी सुबहसुबह पहुंच गए. उन्होंने जो बताया उसे सुन कर आनंद सिंह के पिता निर्मल सिंह और मां पुष्पा का दिल बैठ गया.

दरअसल, आनंद एक दुर्घटना का शिकार हो गए थे. 12 अगस्त, 1989 की रात जब वह जहाज से वापस अपने कमरे पर जा रहे थे तो रास्ते में एक दुर्घटना का शिकार हो गए. दुर्घटना होते चूंकि किसी ने नहीं देखी थी, इसलिए अंदाजा यही लगाया गया कि बारिश की वजह से शायद उन की मोटरसाइकिल फिसल गई होगी.

आनंद अस्पताल में भरती थे. हताश परेशान निर्मल सिंह यह सूचना देने के लिए तुरंत मेरठ रवाना हो गए. उन्हें अचानक इस तरह आया देख कर आर. हिगिंस व आइवी का दिल धड़क उठा. निर्मल सिंह के चेहरे पर झलक रही परेशानी की लकीरें उन की धड़कनों की रफ्तार बढ़ा रही थीं.  निर्मल सिंह ने उन्हें जो बताया उसे सुन कर आइवी के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई.

हंसती मुसकराती जिंदगी में अचानक ऐसा झटका लगेगा, इस बारे में उन्होंने सोचा भी नहीं था. नौसेना ने आनंद के परिवार को विशाखापट्टनम ले जाने के लिए निजी विमान की व्यवस्था कर दी थी. सभी लोग वहां के लिए रवाना हो गए. आनंद अस्पताल में बेसुध पड़े थे. दुर्घटना गंभीर थी. डाक्टर इसलिए चिंतित थे, क्योंकि उन्हें बाहरी चोटों के अलावा दिमाग में अंदरूनी चोटें भी आई थीं.

आनंद की दिमागी चोटों को जांचने के लिए कोई प्रमुख यंत्र नहीं था. सीटी स्कैन (कंप्यूटर टोमोग्राफी स्कैनर) मशीन वहां नहीं थी, जिस से यह पता लगाया जा सकता कि अंदर क्या चोटें हैं. मस्तिष्क का इलाज करने वाले न्यूरोलौजिस्ट भी वहां नहीं थे. नौसेना ने बाहर से डाक्टरों की टीम को बुलवा कर आनंद की जांच कराई. कई दिनों के बाद भी आनंद होश में नहीं आए और वह कोमा में चले गए.

ऐसी स्थिति में वहां उन का इलाज संभव नहीं था. इसलिए डाक्टरों की राय पर नौसेना ने उन्हें हवाई जहाज से कोलकाता स्थित कमांड अस्पताल भेज दिया. आनंद का वहां भी इलाज किया गया, लेकिन सब से ज्यादा परेशानी की बात यह थी कि वह डीप कोमा में चले गए थे.

यह अवस्था ऐसी होती है, जिस में इंसान की सभी तरह की गतिविधियों का संपर्क दिमाग से टूट जाता है. यानी वह काम करना बंद कर देता है. नौसेना ने उन्हें कोमा से उबारने के लिए 2 डाक्टरों को स्थाई रूप से लगा दिया, परंतु कोई लाभ नहीं हुआ.

आनंद के कोमा में चले जाने से दोनों परिवार सदमे में थे. उन की खुशियों को जैसे किसी की नजर लग गई थी. आइवी इस बेबसी पर आंसू बहा कर रह जाती थीं. उन्हें आनंद की बातें, हंसमुख स्वभाव व यादें रहरह कर परेशान कर रही थीं. जिंदगी ने उन्हें गम के सागर किनारे खड़ा कर दिया था. वह ऐसी दुलहन थीं, जो पति के साथ खुशी के चंद महीने ही बिता पाई थीं.

यह ऐसा वक्त था, जब जिंदगी ने आइवी का इम्तिहान लेना शुरू कर दिया था. निर्मल सिंह व पुष्पा भी उम्मीद खो रहे थे. खूबसूरत आइवी का दुख उन्हें भी साल रहा था. उन्होंने एक दिन आर. हिगिंस से कहा, ‘‘बेटे के साथ ऐसा कुछ होना हमारी किस्मत का पन्ना हो सकता है, लेकिन आइवी के सामने पूरा जीवन पड़ा है. आप चाहें तो उसे दूसरे विवाह की इजाजत दे सकती हैं.’’

हिगिंस को यह बात बहुत नागवार गुजरी, वह बोलीं, ‘‘नहीं भाईसाहब, हम लोग ऐसे नहीं हैं. आनंद आखिर पति है उस का.’’

‘‘पता नहीं आनंद कब तक ठीक होगा…’’

‘‘आप इस की फिक्र मत कीजिए. फिर भी मैं आइवी से बात करूंगी.’’ पुष्पा बोलीं.

इस के बाद पुष्पा और हिगिंस ने आइवी को दूसरा विवाह करने की सलाह दी, लेकिन आइवी ने साफ कह दिया कि वह दूसरा विवाह करने की कभी सोच भी नहीं सकती. वह पति की सेवा कर के उन्हें ठीक करने की कोशिश करेगी.

आनंद की बीमारी कब ठीक होगी, कुछ कहा नहीं जा सकता था. उन की घर ले जाने लायक स्थिति नहीं थी. लेकिन अस्पताल में भी हमेशा नहीं रखा जा सकता था. आइवी उन्हें अपने घर में रखना चाहती थीं.

उन के कहने पर डाक्टरों ने उन्हें घर ले जाने की इजाजत तो दे दी, लेकिन वहां अस्पताल की तरह इंतजाम करने थे. आइवी का घर काफी बड़ा था. एक कमरे को डाक्टरों की मदद से अस्पताल के कमरे जैसा रूप दे दिया गया. वहां पर जरूरी मशीनें भी लगा दी गईं. औक्सीजन के अलावा मिनी वेंटीलेटर मशीन भी वहां लगा दी. इस के बाद वह आनंद को घर ले आईं.

घर पर एक नर्स की व्यवस्था भी कर दी गई. इस तरह उन की घर पर ही देखरेख होने लगी. कभी ज्यादा दिक्कत होती तो आइवी उन्हें अस्पताल ले जाती थीं. साल दर साल बीतते रहे. आदमनी कम होने लगी और खर्च बढ़ने से परिवार की आर्थिक स्थिति भी डगमगाने लगी.

आर. हिगिंस घर के ही एक हिस्से में स्कूल चलाती थीं. उस से उन की आजीविका चलती थी. नौसेना के अधिकारियों ने देशविदेश के कई चिकित्सकों से भी उन का इलाज कराया. लेकिन आनंद की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ. आइवी चाहती थीं कि किसी भी तरह आनंद ठीक हो जाएं, इसलिए उन्होंने उन का आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक इलाज भी कराया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

आइवी की बेटी भूमिका, जो सिर्फ पिता को देखती तो थी लेकिन उन से बात नहीं कर सकती थी. उधर नौसेना ने आनंद को पेंशन देनी शुरू कर दी. भारतीय नौसेना ने कई बार आइवी के सामने नौकरी की पेशकश की, लेकिन पति की देखभाल करने की वजह से उन्होंने उसे ठुकरा दिया.

इस बीच आइवी ने वकालत शुरू कर दी थी. हालांकि इस काम को वह ज्यादा समय नहीं दे पाती थीं. जीवन के इस सफर में उन्होंने बहुत लोगों को बदलते देखा. लेकिन संस्कारों और आत्मविश्वास की पूंजी के हौसलों ने उन के कदमों को कभी डगमगाने नहीं दिया. पति की सेवा करनी थी, इसलिए कई महीने उन्होंने नर्स का प्रशिक्षण हासिल किया.

आनंद की पूरी दुनिया कई सालों से एक कमरे में सिमटी हुई है. वह दिनरात वहां लेटे रहते हैं. लेकिन वह अपनी कोई इच्छा नहीं जता सकते. खुली आंखों से वह शून्य को निहारते रहते हैं. देख कर विश्वास नहीं होता कि कभी फिल्मी हीरो की मानिंद रहा एक नौजवान 25 साल से एक जैसे हालात में बुढ़ापे की तरफ बढ़ चुका है.

आनंद का पालनपोषण किसी बच्चे की तरह किया जाता है. खाने के नाम पर उन्हें उच्च प्रोटीन भोजन व फल तरल रूप में दिए जाते हैं. घर का एक बड़ा कमरा किसी मिनी अस्पताल से कम नहीं है. एक बेड पर आनंद सिंह लेटे रहते हैं.

आनंद की जिंदगी में न जाने कितने डाक्टर आए, लेकिन कोई डाक्टर ऐसा नहीं मिला जो उन के सफल इलाज का फार्मूला जानता हो. एक अलमारी आनंद के अब तक के हुए इलाज के कागजी दस्तावेजों से चुकी है. कमरे में एसी लगा है और अंदर जूतेचप्पल ले जाने की इजाजत नहीं है.

मरीज को बिजली के चले जाने पर कोई परेशानी न हो, इस के लिए जनरेटर भी लगा हुआ है. आनंद को नहलाया नहीं जा सकता. गीले कपड़े से उन के बदन को साफ किया जा सकता है. पति की शेविंग से ले कर सभी काम आइवी ही करती हैं.

भूमिका भी अपनी मां आइवी का हाथ बंटाती है और पिता से बहुत प्यार करती है. यह वक्त का क्रूर मजाक ही है कि भूमिका ने पिता को कभी चलतेफिरते या बोलते नहीं देखा. वह अपने पिता से किसी चीज की इच्छा भी नहीं जता सकती. एक प्रतिष्ठित स्कूल में छठी कक्षा में पढ़ने वाली भूमिका बहुत होनहार है. बड़ी हो कर वह डाक्टर बनना चाहती है.

कई चिकित्सकों द्वारा अभी आनंद का इलाज किया जा रहा है. आइवी सिंह फिजिशियन डा. विनेश अग्रवाल, डा. ए.के. चौहान, डा. वी.के. बिंद्रा, डा. अनिल चौहान व न्यूरोलौजिस्ट डा. गिरीश त्यागी, संदीप सहगल आदि का विशेष सहयोग बताती हैं. व्यस्त दिनचर्या के बीच भी वह आनंद के लिए हर वक्त तैयार रहते हैं.

आनंद के इलाज पर इतना अधिक रुपए खर्च हो चुके हैं कि हिसाब से किसी बड़े रजिस्टर के सभी पन्ने भर जाएं. उन के लिए दौलत पति की सेवा और उन की जिंदगी से ज्यादा मायने नहीं रखती.

आइवी अपने स्कूल में खुद भी पढ़ाती हैं और वकालत के लिए कचहरी भी जाती हैं. प्रशिक्षित नर्स की तरह पति का खयाल भी रखती हैं. मन बहलता रहे, इसलिए उन्होंने अपने घर में पालतू परिंदों के अलावा इंसान का वफादार साथी कुत्ता भी पाल रखा है.

आइवी पति के चेहरे के भावों को किसी जौहरी की तरह पहचानते हैं. वह कुछ बोल नहीं पाते, लेकिन वह कब क्या चाहते हैं, वह चेहरा देख कर ही पलभर में जान जाती हैं.

आइवी सिंह कहती हैं कि किसी ऐसे शख्स को जो असहाय हो, बोल भी न सके, उसे छोड़ना आसान नहीं होता और फिर जीवन प्यार और पति का साथ छोड़ने के लिए नहीं होता.

पति की सेवा करते हुए आइवी ने 25 साल गुजार दिए. उन के अंदर गजब का आत्मविश्वास भरा है, जो उन्हें डगमगाने नहीं देता. उन्हें विश्वास है कि कभी तो वह पल आएगा, जब उन की जिंदगी का इम्तिहान खत्म होगा और उन के पति ठीक हो जाएंगे.

—कथा आइवी सिंह के साक्षात्कार पर आधारित

गोवा की खौफनाक मुलाकात – भाग 7

अनुज वहीं खड़ा रहा और महेंद्र बाहर चला गया. थोड़ी देर बाद जब वह वापस लौटा तो उस के हाथों में बीयर की 2 बोतलें थीं. वह एक बोतल अनुज को देते हुए बोला, ‘‘नशा उतरने लगा है. एकएक बीयर और पीते हैं. उस के बाद थोड़ी देर यहां रुक कर वापस चलेंगे.’’

अनुज पर थोड़ाबहुत नशा हावी था. उसी की झोंक में महेंद्र के कहने से वह बीयर पी गया. उसे क्या पता था कि उस बीयर में उस की मौत का सामान है. बीयर पीने के बाद जैसे ही अनुज को नशा चढ़ना शुरू हुआ, महेंद्र उसे डिस्कोथेक के बाहर ले आया और कार में बिठा दिया. वहां से वह अनुज को अंजुना तट की जगह कोलबा बीच पर ले गया.

कोलबा बीच 9 बजे के बाद सुनसान हो जाता है. अनुज नशे में भी था और जहर भी अपना असर दिखाने लगा था. महेंद्र उस से बोला, ‘‘कैसे मर्द हो यार, जरा सी बीयर पी कर झूमने लगे. इतने नशे में सोनम और कामिनी के सामने जाना ठीक नहीं है. यह कोलबा बीच है. यहां रोशनी में समुद्र की लहरों में नहाने का मजा ही कुछ और है. चलो, थोड़ी देर नहाते हैं. नहाने से नशा उतर जाएगा. इस के बाद वापस चलेंगे.’’

अनुज नशे में तो था ही. उसे महेंद्र की बात सही लगी. उस के कहने पर उस ने उस का दिया हुआ स्विमिंग सूट पहन लिया और उस के साथ झूमती हुई समुद्र की लहरों में उतर गया. महेंद्र सागर अपनी योजना के अनुरूप स्विमिंग सूट पहले ही साथ लाया था.

महेंद्र अपनी योजना के अनुसार अनुज को कोलबा बीच पर समुद्र की उछलती लहरों में ले गया और उस के नशे का लाभ उठा कर उसे डुबो कर मार डाला. इस तरह अनुज को ठिकाने लगा कर महेंद्र जब अंजुना बीच पर कामिनी और सोनम के पास लौटा तो रात के सवा 11 बज चुके थे. सोनम काफी परेशान थी. कामिनी ने नाटकीय अंदाज में महेंद्र को डांटते हुए पूछा, ‘‘कहां गए थे तुम लोग? और अनुज कहां है?…सोनम कब से परेशान हो रही है.’’

‘‘परेशान मत हो.’’ महेंद्र मुसकराते हुए बोला, ‘‘सुनोगी तो तुम भी खुश हो जाओगी और सोनम भी. मैं इन लोगों के ठहरने का इंतजाम कर के आ रहा हूं. अब ये हमारे साथ रहेंगे, 2 दिन. कल का जाना कैंसल. इन्हें मुंबई से शिरडी और महाबलेश्वर जाना था. वहां का प्रोग्राम गोवा में एडजस्ट हो गया. अनुज ने मुंबई और दिल्ली फोन कर के बता दिया है.’’

‘‘वाव…’’ कामिनी खुश होते हुए बोली, ‘‘अनुज कहां है?’’

‘‘अनुज मेरे साथ था. वह हमारा इंतजार कर रहा है. हम लोग जरा डिस्कोथेक में रुक गए थे. मैं ने कहा भी, पर वह बोला थोड़ी देर और ठहरो. देर हो रही थी, सो मैं उसे छोड़ कर इधर आ गया. वह थोड़ी देर में यहीं आ जाएगा. चलो, तब तक होटल से इन लोगों का सामान ले आते हैं. अनुज ने कहा है, होटल का बिल चुका कर बता देना कि हम जा रहे हैं.’’

सोनम को अजीब भी लगा और गोवा में 2 दिन रुकने की बात सुन कर कुछकुछ अच्छा भी. लेकिन यह अनुज का फैसला था और वह वहां था नहीं, इसलिए वह कह भी क्या सकती थी.

कामिनी और महेंद्र सोनम को साथ ले कर होटल पहुंचे और होटल का बिल चुकाने के बाद अनुज और सोनम का सारा सामान आल्टो में रख कर लौट आए. सोनम ने होटल कर्मचारियों को बता दिया कि उन्हें दिल्ली के कुछ दोस्त मिल गए हैं, अब वे उन्हीं के साथ रहेंगे.

महेंद्र और कामिनी सोनम को साथ ले कर काफी देर इधरउधर घुमाते रहे. इसी बीच कामिनी ने एक जगह कार से उतर कर आइसक्रीम खरीदी और सोनम वाली आइसक्रीम में जहर मिला दिया. आइसक्रीम खाने के बाद सोनम पर जहर का असर होने लगा.

सोनम को आइसक्रीम खिलाने के बाद कामिनी और महेंद्र अंजुना तट पर एक जगह एकांत में पहुंचे. तब तक सोनम पर जहर पूरी तरह असर कर चुका था. सुनसान जगह कार रोक कर कामिनी ने सोनम के कपड़े उतारे और उसे स्विमिंग सूट पहना दिया. इस के बाद उन्होंने अर्द्धबेहोशी की हालत में उसे उठा कर समुद्र में फेंक दिया.

इस तरह अनुज और सोनम को ठिकाने लगाने के बाद महेंद्र और कामिनी उन का सामान ले कर अपने घर चले गए. बाद में समुद्र की लहरों में लुढ़कती हुई सोनम और अनुज की लाशें किनारे आ लगी थीं. अगले दिन दोनों लाशें अलगअलग थानों की पुलिस को मिल गई थीं.

उधर महेंद्र और कामिनी ने सोनम और अनुज के सामान से मिले रुपए और अन्य सामान अपने पास रख लिया और उन के लाखों के गहने बेच दिए.

बाद में जब गोवा पुलिस को पता चला कि मृतक अनुज और सोनम के साथ अंतिम दिन महेंद्र सागर और कामिनी को देखा गया था तो उस ने उन की तलाश शुरू की. इस पर महेंद्र और कामिनी गोवा छोड़ कर दिल्ली आ गए. काफी समय वे लोग दिल्ली में रहे और फिर मेरठ चले गए थे.

महेंद्र और कामिनी से विस्तार से पूछताछ करने के बाद मेरठ पुलिस ने उन की गिरफ्तारी की सूचना गोवा पुलिस को दे दी. गोवा पुलिस मेरठ आ कर उन दोनों को ट्रांजिट वारंट पर गोवा ले गई.

—कथा एक सत्य घटना पर आधारित

गोवा की खौफनाक मुलाकात – भाग 6

खाना खाने के बाद वे चारों फिर बीच पर आ गए. अनुज और सोनम को गोवा के रहने वालों, वहां के रीतिरिवाजों और विदेशी सैलानियों की बातें बतातेबताते लगभग 3 बज गए. बातें चल ही रही थीं कि अचानक महेंद्र सागर कुछ सोचते हुए अनुज से बोला, ‘‘ये अपने ड्राइवर को किस बात की सजा दे रहे हो आप?’’

‘‘मतलब?’’ अनुज ने चौंकते हुए पूछा तो महेंद्र बोला, ‘‘मतलब यह कि आप लोग हनीमून पर आए हो, औफिस की ड्यूटी करने नहीं. ऊपर से हमारे जैसे निठल्ले दोस्त मिल गए. सुबह से दोपहर हो गई. दोपहर से शाम हो जाएगी और फिर रात. वक्त का पता तक नहीं चलेगा. ड्राइवर गाड़ी में बैठा कोसता रहेगा, आप लोगों को भी और हमें भी.’’

महेंद्र की बात सुन कामिनी खिलखिला कर हंस पड़ी. सोनम ने शरमा कर मुंह फेर लिया. अनुज के होठों पर भी भावभीनी मुसकराहट उभर आई. वह कुछ जवाब देता, इस से पहले ही महेंद्र उस की ओर देख कर बोला, ‘‘जाओ, गाड़ी वापस भेज दो. घूमने के लिए हमारे पास अपनी आल्टो है. हम आप को होटल में छोड़ कर आएंगे.’’

अनुज को महेंद्र की बात सही लगी. वह पार्किंग में गया और ड्राइवर को गाड़ी ले जाने को कह कर वापस लौट आया.

शाम को सूरज ढलने के बाद ज्योंज्यों रात का अंधेरा गोवा की धरती पर उतरने लगता है, त्योंत्यों वहां की रंगीनी और मौजमस्ती शबाब में आनी शुरू हो जाती है. होटल रेस्तरां, पबों, डिस्कोथेक और शराबखानों से ले कर समुद्र तटों तक को रंगीन रोशनियां अपनी बांहों में समेट लेती हैं. लगता है, जैसे धरती पर स्वर्ग उतर आया हो.

महेंद्र और कामिनी के साथ अनुज और सोनम का वह दिन खूब मस्ती में गुजरा था. दिन भर घूमते रहने की वजह से हल्कीहल्की थकान थी फिर भी उन का मन उन दोनों को छोड़ कर जाने का नहीं कर रहा था. रात को 8 बजे जब वे चारों अंजुना तट पर बैठे बातें कर रहे थे तो महेंद्र ने अनुज को उठाते हुए उस ओर इशारा कर के कहा जिधर समुद्र की लहरें शोर करते हुए किनारे से अठखेलियां कर रही थीं, ‘‘इन दोनों को छोड़ो, ये दोनों अपनी मस्ती में हैं. चलो, हम उधर बैठते हैं.’’

अनुज ने मुड़ कर मुसकराते हुए एक नजर सोनम पर डाली और महेंद्र के साथ उस ओर बढ़ गया, जिधर महेंद्र ने इशारा किया था. उसे क्या मालूम था कि वह अपनी सोनम को अंतिम बार देख रहा है.

अनुज को शोर मचाती लहरों के पास ले जा कर महेंद्र उस से बोला, ‘‘देखो ये लहरें कितनी मस्ती में झूम रही हैं. इन लहरों की शोखियों से अपने लिए थोड़ी सी मस्ती चुराने ही तो लोग गोवा आते हैं. हमारे देश की सब से मदमस्त जगह है गोवा. इस गोवा के भी 2 रूप हैं. एक वो जो तुम 2 दिन से देख रहे हो और एक वो जो अब मैं तुम्हें दिखाऊंगा.’’

‘‘क्या दिखाओगे?’’ अनुज ने मासूमियत से मुसकराते हुए पूछा तो महेंद्र शरारत भरी नजरों से उस की ओर देख कर बोला, ‘‘डिस्को. दिल्ली में भी गए हो डिस्को में?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘जाते भी तो कोई फायदा नहीं था. दिल्ली के डिस्कोथेक मैं ने देखे हैं. वहां वह मस्ती और रंगीनी नहीं है जो होनी चाहिए.’’ महेंद्र जुबान से लक्ष्य पर बाण साधते हुए बोला, ‘‘गोवा के डिस्कोथेक की बात ही अलग है. रंगीन रोशनियों में नहाए देशीविदेशी जोड़ों को मदमस्त म्यूजिक की ताल पर थिरकते देखोगे तो लगेगा जैसे इंद्र के अखाड़े में आ गए हो. 15-16 साल से ले कर 25 तक हर उम्र की लड़कियां साथ देने के लिए मिल जाती हैं. देशी चाहो तो देशी और विदेशी चाहो तो विदेशी. बस बात इतनी सी है कि वहां बीवियों को साथ ले कर नहीं जा सकते.’’

‘‘नहीं, मैं सोनम को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगा. वैसे भी ऐसी जगहों में मेरी कोई रुचि नहीं है.’’ अनुज ने इनकार किया तो महेंद्र प्यार से उस का हाथ थामते हुए बोला, ‘‘क्या बच्चों वाली बातें करते हो यार. ऐसे मौके रोजरोज थोड़े ही आते हैं. …मुझे देखो, मैं गोवा में रहते हुए भी नहीं जा पाता. तुम्हारे बहाने मुझे भी मौका मिल जाएगा. थोड़ी देर की तो बात है. ये लोग यहीं बैठी रहेंगी. वैसे भी जब 2 औरतें आपस में बात करती हैं तो उन्हें पता नहीं रहता कि एक घंटा गुजरा या चार?’’

‘‘नहीं सोनम बुरा मान जाएगी.’’ अनुज ने कहा तो महेंद्र उस के कान के पास मुंह ले जा कर बोला, जैसे कोई गोपनीय बात कर रहा हो, ‘‘बुरा तो कामिनी भी मान जाएगी. लेकिन हम उन्हें पता ही नहीं चलने देंगे.’’

अनुज सोनम को छोड़ कर जाना नहीं चाहता था. लेकिन महेंद्र सागर ने उसे अपनी बातों के जाल में ऐसा उलझाया कि वह चाह कर भी इनकार नहीं कर सका. वह मान गया तो महेंद्र बोला, ‘‘तुम यहीं ठहरो, मैं उन लोगों से बहाना बना कर आता हूं.’’

‘‘बहाने की क्या जरूरत है, मैं सोनम से कह देता हूं थोड़ी देर में लौट आएंगे.’’ अनुज ने कहा तो महेंद्र बोला, ‘‘और अगर साथ चलने की जिद पकड़ ली तो सारा मजा किरकिरा नहीं हो जाएगा? …नहीं मेरे दोस्त, तुम यहीं ठहरो, मैं उन दोनों को पट्टी पढ़ा कर आता हूं.’’

अनुज आगे कुछ बोलता इस से पहले ही महेंद्र कामिनी और सोनम की ओर बढ़ गया. वे दोनों बातों में मशगूल थीं. महेंद्र ने उन से कहा, ‘‘हम लोग एक घंटे में लौट कर आते हैं, तब तक तुम लोग यहां का नजारा देखो.’’

उसी वक्त उस ने कामिनी को विशेष इशारा करते हुए कहा, ‘‘कामिनी, ध्यान रखना सोनम जरा भी बोर न होने पाए.’’

इस के बाद महेंद्र अनुज को वहां से एक बीयर बार में ले गया और उस के मना करतेकरते भी जिद कर के उसे बीयर पिला दी. अनुज ने पहले कभी बीयर नहीं पी थी. एक बीयर में ही उसे नशा हो गया. बीयर पिलाने के बाद महेंद्र अनुज को एक डिस्कोथेक में ले गया. वहां उन दोनों ने एकडेढ़ घंटा गुजारा. जब नशा हलका होने लगा तो अनुज को सोनम की याद आई. उस ने महेंद्र से वापस चलने को कहा तो वह बोला, ‘‘तुम 5 मिनट ठहरो, मैं आता हूं.’

गोवा की खौफनाक मुलाकात – भाग 5

जब अमीर लोगों में पैठ बन गई तो महेंद्र सागर ने दिल्ली में अपना जाल फैलाने के बाद ठगी के कुछ और रास्ते निकालने शुरू किए. अपनी नई योजना के तहत उस ने और कामिनी ने दिल्ली और गुड़गांव के कई लोगों और कंपनियों से लाखों ठगे. यहां तक इन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय बैंकों को भी मोटा चूना लगाया. इसी पैसे से इन्होंने लग्जरी कार भी खरीदी और ठाठबाट भी बनाए.

जब दिल्ली और गुड़गांव के लेनदार महेंद्र को ज्यादा तंग करने लगे तो वह पत्नी और बच्चों के साथ चुपचाप गोवा चला गया. गोवा पहुंच कर भी महेंद्र और कामिनी ने वही सब किया, जो वे दिल्ली में करते रहे थे. वहां उन्होंने अपनी ठगी का शिकार पर्यटकों को बनाना शुरू किया. पैसे वाले लोगों को फंसाने के लिए महेंद्र और कामिनी वहां भी सैक्स क्लबों के मेंबर बन गए.

दरअसल कामिनी इतनी सुंदर और विशिष्ट व्यक्तित्व की स्वामिनी थी कि एक बार बाहों में आने के बाद कोई भी उस से मिलन का मोह नहीं छोड़ सकता था. लेकिन जो एक बार उस के जाल में फंस जाता था, वह बिना सब कुछ लुटाए नहीं बच सकता था.

महेंद्र ने कितने ही लोगों को पत्नी की आड़ ले कर लूटा था. कभीकभी पैसा न होने की स्थिति में वह अपनी खूबसूरत पत्नी को पैसे के लिए किसी अमीर के पास भेजने से भी नहीं हिचकता था.

महेंद्र ने गोवा में किराए का मकान ले लिया था और उस में लौज चलाने लगा था. लौज क्या यह उस का और कामिनी का ठगी का अड्डा था, जहां वह अंजुना बीच, बामा बीच और बैगेटर बीच आदि से पैसे वाले पर्यटकों को फंसा कर लाते थे और इस ढंग से उस की जेब खाली कराते थे कि वह किसी से कह तक न सके.

जब अनुज और सोनम अंजुना बीच पर घूम रहे थे तो महेंद्र और कामिनी की नजर उन पर पड़ी. नवविवाहित जोड़ा था. ऊपर से सोनम भारीभरकम सोने के गहने पहने थी. महेंद्र और कामिनी ने आंखों ही आंखों में एकदूसरे को इशारा कर के बताया कि शिकार सामने है.

अनुज और सोनम पैर फैलाए आराम से रेत पर बैठे उछलउछल कर पर्यटकों का अभिनंदन करती लहरों को देख रहे थे. तभी वहां से गुजरते महेंद्र और कामिनी पल भर के लिए रुके. रूपसी कामिनी ने अनुज को बड़ी अजीब सी नजरों से इस तरह देखा, जैसे पहचानने का प्रयास कर रही हो. अनुज और सोनम को बड़ा अजीब लगा. वह कुछ कहतेपूछते इस से पहले ही कामिनी ने अनुज की ओर बढ़ते हुए मुसकरा कर पूछा, ‘‘आप को कहीं देखा है, लेकिन याद नहीं आ रहा. कहां से आए हैं आप?’’

कामिनी की बातों में शालीनता भी थी और अपनापन भी. अनुज ने सीधे स्वभाव कह दिया, ‘‘दिल्ली से.’’

दिल्ली का नाम सुन कर कामिनी के चेहरे पर खुशी के भाव झलकने लगे. वह अनुज और सोनम के पास रेत पर बैठते हुए बोली, ‘‘हम भी दिल्ली से ही हैं. परदेस में कोई अपना मिल जाए तो कितना अच्छा लगता है. आप लोग हनीमून मनाने आए हो न?’’

सोनम ने बिना कुछ कहे शरमाते हुए हां में गरदन हिलाई तो कामिनी ने अपनापन दर्शाते हुए कहा, ‘‘चलो, अच्छा हुआ आप लोग मिल गए. आप लोग तो पहली बार गोवा आए हो न?’’

‘‘हां, कल शाम को ही यहां पहुंचे हैं. गोवा वाकई बहुत खूबसूरत जगह है.’’ अनुज ने कहा तो कामिनी ने थोड़ी दूरी पर खड़े महेंद्र को आवाज दी, ‘‘ऐ…इधर आओ न. देखो, ये लोग दिल्ली से आए हैं.’’

फिर वह अनुज और सोनम की ओर देखते हुए बोली, ‘‘गोवा वाकई बहुत खूबसूरत जगह है. प्रेमियों का स्वर्ग कहा जाता है इसे. लेकिन पहली बार आने वाले लोग यहां के खूबसूरत नजारों का पूरा आनंद नहीं उठा पाते. मालूम नहीं होता न, कौन जगह कहां है. खैर, हम दिखाएंगे आप लोगों को गोवा की असली सुंदरता.’’

महेंद्र पास आ गया तो कामिनी ने उस से अनुज और सोनम का परिचय कराया. वह भी उन लोगों के पास बैठ गया. कहीं दूरदराज की जगह पर अपने शहर, कस्बे या गांव का कोई व्यक्ति मिल जाए तो वाकई बहुत अच्छा लगता है. अनुज और सोनम को भी महेंद्र व कामिनी का मिलना अच्छा लगा. बातचीत शक्लोसूरत और व्यवहार से महेंद्र और कामिनी उच्चशिक्षा प्राप्त तथा किसी संपन्न परिवार के लग रहे थे.

बातों का दौर चला तो उन दोनों ने अनुज और सोनम से जरा सी देर में दोस्ती गांठ ली. कामिनी तो स्वयं को दिल्ली की बता कर अनुज को अपना भाई तक कह चुकी थी. महेंद्र को जब पता चला कि सोनम सिरसा से है तो उस ने खुद को हरियाणा का रहने वाला बताते हुए उसे बहन कहना शुरू कर दिया.

महेंद्र और कामिनी दिल्ली और हरियाणा के बारे में सब कुछ जानते थे. उन की बातों से अनुज और सोनम को पूरा विश्वास हो गया कि हरियाणा और दिल्ली से उन का गहरा संबंध है. जब उन दोनों ने अनुज और सोनम को यह बता कर कि वे लोग 8 साल अमेरिका में रह कर आए हैं, वहां की बातें सुनाईं तो वे और भी ज्यादा प्रभावित हुए. अमेरिका से उच्च शिक्षा की डिग्री ले कर आया कोई कंप्यूटर इंजीनियर इतना सरल हृदय और मिलनसार हो सकता है, ये बात वे सोच भी नहीं सकते थे.

उस दिन शाम तक का समय उन्होंने महेंद्र और कामिनी के साथ अंजुना बीच और गोवा की खूबसूरत वादियों में बिताया. सब ने एक अच्छे होटल में खाना भी साथसाथ खाया. शाम को जब दोनों जोड़े अलग हुए तो कामिनी शरमा कर मुसकराते हुए बोली, ‘‘आप लोगों के साथ मजा आ गया. इतने अच्छे दोस्त बड़े नसीब से मिलते हैं. रात को हम आप को डिस्टर्ब नहीं करना चाहते. लेकिन कल यहीं मिलना. गोवा की कुछ खास चीजें दिखाएंगे.’’

अगले दिन अनुज और सोनम महेंद्र सागर और कामिनी से फिर अंजुना तट पर मिले. चारों ने समुद्र की लहरों और बीच की रेत में घंटों मस्ती की. फिर किनारे के एक रेस्तरां में जा कर साथसाथ खाना खाया. उस समय अनुज और सोनम कल्पना भी नहीं कर सकते थे कि इतने प्यार से पेश आने वाले और बातोंबातों में अपनों जैसी घनिष्ठता दिखाने वाले महेंद्र और कामिनी उन के लिए मौत का जाल बुन चुके हैं. वह खाना उन की जिंदगी का अंतिम आहार है और उन का हनीमून टूर चंद घंटों बाद मौत के सफर में बदलने जा रहा है.