
सुबह मैं ने जाहिद को अपने औफिस में बुला कर कहा, “जाहिद मियां, तुम इतना झूठ बोल चुके हो कि अब मैं तुम्हें कोई मौका नहीं दूंगा. तुम यह बताओ कि यह झूठ किस लिए बोला था. अब तुम बताओ कि करामत और तुम्हारी पत्नी कहां हैं?”
“मुझे क्या पता साहब.” उस ने जवाब में कहा.
मैं ने चीख कर पूछा, “तुम्हारी पत्नी और करामत कहां हैं?”
उस के होंठ कांपने लगे, लेकिन आवाज नहीं निकली. मैं ने गरज कर कहा, “जल्दी बोलो…”
इस पर भी उस ने कुछ नहीं बताया तो मैं ने एक हैडकांस्टेबल को बुला कर जाहिद को उस के हवाले कर के कहा, “यह कुछ कहना चाहता है, लेकिन कह नहीं पा रहा है. इस की सुन लो.”
हैडकांस्टेबल उसे पकड़ कर ले गया
मैं ने उन आदमियों में से एक को, जो जाहिद के घर आए थे, बुला कर पूछा, “यहां कब से आए हुए हो?”
“कल सुबह आए थे.”
“पहले कब आए थे?”
“पिछली बार… कोई एक महीना हो गया.”
उसे भेज कर दूसरे को बुलाया, उस से भी यही सवाल किया. उस ने जवाब दिया, “कोई डेढ़दो महीने पहले आए थे.”
मैं ने अभी जाहिद के छोटे भाई को नहीं बुलाया और अपने काम में लग गया. कोई एक घंटे बाद हैडकांस्टेबल हंसता हुआ आया. उस ने कहा, “सर, आप को जाहिद बुला रहा है.”
मैं वहां गया. हैडकांस्टेबल ने उसे जिस पोजीशन में रखा था, जाहिद 15 मिनट से अधिक सहन नहीं कर सकता था. उस की आंखें मांस की तरह लाल हो गई थीं.
मैं ने उसे बिठाया, पानी पिलाया. उस के सामान्य होने पर मैं ने कहा, “देख, तेरे साथ यह जो हुआ है, वह ट्रेलर है. अब भी मुंह नहीं खोला तो समझ ले आगे क्या होगा?”
उस की आंखों से आंसू टपकने लगे. वह बोला, “साहब, मुझे बचा लो.”
मैं ने कहा, “कुछ कहो तो सही, पहले अपना अपराध बताओ, फिर मैं कुछ करूंगा. तुम मेरे दुश्मन नहीं हो, मेरा तुम ने क्या बिगाड़ा है.”
उस की जबान पर बात आती और चली जाती. अपराध स्वीकार करने से पहले हर अपराधी का यही हाल होता है. मैं ने उसे तसल्ली दी, “मुझे यह बताओ कि तुम्हारी पत्नी और करामत कहां हैं?”
“अब वे जिंदा नहीं हैं.”
इस के बाद उस ने जो कहानी सुनाई, उस के अनुसार, वह मुनव्वरी की करतूत से तंग आ गया था लेकिन उस के बाप से डरता था, इसलिए उसे तलाक नहीं दे सकता था. मुनव्वरी के मातापिता बेटी को समझाने के अलावा उसे उलटा पाठ पढ़ाते थे. तंग आ कर जाहिद ने अपने इन दोनों रिश्तेदारों से बात की.
दोनों ने जाहिद के साथ मिल कर करामत और मुनव्वरी को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली. जाहिद को पता था कि करामत रोज अपने दोस्तों के साथ रात को ताश खेलने जाता है. उन्होंने दिन के समय टीलों के पास वह जगह देख ली, जहां दोनों की लाशों को छिपाया जा सकता था. घटना की रात जाहिद ने मुनव्वरी का गला उस समय दबा दिया, जब वह सोई हुई थी. जाहिद के भाई और दोनों रिश्तेदारों ने उस की लाश को एक बोरी में डाल कर सिल दिया.
जाहिद का भाई देख आया कि करामत अपने दोस्तों के साथ ताश खेल रहा है. चारों गली के मोड़ पर घात लगा कर करामत का इंतजार करने लगे. करामत जब ताश खेल कर लौट रहा था तो चारों ने चाकू के बल पर उसे रोक लिया. उस के बाद वे उसे खेतों की तरफ ले गए. डर की वजह से करामत उन के साथ चला गया.
खेतों में जा कर एक आदमी ने पीछे से उस का गला दबा दिया. वह मर गया तो उस की लाश को बोरी में डालने के बाद कंधे पर रख कर चल पड़े. बारीबारी से वे उसे ले कर चलते रहे और टीले के पास ले गए. टीले पर दीवार की तरफ कुदरती गड्ढा था. अंदर से वह चौड़ा था. उन्होंने करामत की लाश को उस गढ्ढे में डाल कर दबा दिया. जाहिद और उस के भाई ने दोनों रिश्तेदारों के साथ घर से मुनव्वरी की लाश को भी ला कर वहीं दबा दिया, जहां करामत की लाश दबाई थी.
करामत को जब वे लोग ले जा रहे थे तभी उस की जेब से एक लिफाफा गिर गया था. घसीटने में उस के पैरों से स्लीपर निकल गए थे. स्लीपर गिरा, जिस का उन चारों को पता नहीं चल पाया था. मुनव्वरी की जूतियां घर में थीं, क्योंकि उसे मार कर बोरी में भर दिया गया था. उन लोगों की योजना थी कि सुबह जाहिद थाने जा कर रिपोर्ट करेगा कि करामत और उस की पत्नी भाग गए हैं. जाहिद ने किया भी वही.
मैं ने मुलजिमों की निशानदेही पर करामत और मुनव्वरी की लाशें टीले के पास से निकलवाईं और पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दीं. अदालत में जब मामला चला तो मैं ने पुख्ता सुबूत पेश किए, जिस से जाहिद और उस के दोनों रिश्तेदारों को फांसी की सजा तथा भाई को अपराध में शामिल होने का दोषी होने पर 5 साल की सजा हुई. उन्होंने सजा के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील की, लेकिन उन की अपील खारिज हो गई.
प्रवीण ने एक औटो तय किया, जिस में दोनों बैठ गए. महेंद्र फुरती से उस जगह आ गया, जहां उस के साथी खड़े थे. महेंद्र ने उन्हें वह औटो दिखा दिया, जिस में भरत और प्रवीण बैठे थे. पल्सर को जसपाल उर्फ रिंकू चला रहा था और उस पर महेंद्र तथा मोहम्मद आरिफ बैठे थे. दूसरी मोटरसाइकिल अपाचे को अरुण नागर उर्फ बौबी चला रहा था, जिस पर मनीष शर्मा और रोशन गुप्ता बैठ गए. वे सभी उस औटो का पीछा करने लगे, जिस में भरतभाई और प्रवीण बैठे थे.
जैसे ही वह औटो तांगा स्टैंड के पास पहुंचा, जसपाल ने उसे ओवरटेक कर के रोक लिया. इस के बाद अरुण नागर ने अपाचे मोटर-साइकिल औटो के बराबर में खड़ी कर दी. औटोचालक सरोज पटेल समझ नहीं पाया कि उन लोगों ने ऐसा क्यों किया, क्योंकि उस से तो कोई गलती भी नहीं हुई थी.
औटो रुकते ही आरिफ चाकू ले कर और मनीष शर्मा पिस्तौल ले कर भरतभाई और प्रवीण के पास पहुंच गए. महेंद्र ने भरत के हाथ से बैग छीनना चाहा तो उस ने बैग नहीं छोड़ा. तभी डराने के लिए आरिफ ने प्रवीण के पैर पर चाकू मार दिया. इसी के साथ महेंद्र ने ड्राइवर सरोज पटेल के 2 थप्पड़ जड़ दिए.
थप्पड़ लगते ही औटोचालक वहां से भाग कर सडक़ के उस पार चला गया. प्रवीण और भरतभाई भी डर गए थे. महेंद्र ने भरतभाई के हाथ से बैग छीन कर रोशन को पकड़ाया तो वे फुरती से यूटर्न ले कर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन की ओर चले गए. वहां से गलियों में होते हुए वे शीला सिनेमा के सामने फ्लाईओवर के पास पहुंचे.
जसपाल ने वहां पल्सर मोटरसाइकिल रोकी और एक औटोरिक्शा तय कर के उस में महेंद्र और आरिफ के साथ बैठ कर सीमापुरी बौर्डर चला गया. उन के पीछेपीछे अपाचे मोटरसाइकिल पर मनीष, अरुण और रोशन आ रहे थे. वहां से वे जनकपुरी, साहिबाबाद पहुंचे. जनकपुरी में मनीष का एक प्लौट था, जिस में एक कमरा बना हुआ था. वह जगह सुनसान थी. वहां उन्होंने बैग खोल कर देखा तो उस में अलगअलग डिब्बों में सोने के गहने भरे थे. कुछ अंगूठियां, टौप्स और पैंडेंट ऐसे थे, जिन में हीरे जड़े थे. हीरे जड़ी सारी ज्वैलरी उन्होंने आपस में बांट ली.
अब उन के सामने समस्या यह थी कि उन गहनों को कैसे और कहां बेचा जाए, क्योंकि गहने को बेचने पर पकड़े जाने की आशंका थी, इसलिए वे असमंजस में थे कि उसे कैसे ठिकाने लगाया जाए. तभी जसपाल ने कहा, “मेरे एक मौसा हैं किशनलाल, जो यहीं शालीमार गार्डन के रहने वाले हैं. अंडमान निकोबार में उन की गहनों की दुकान हैं. इस समय वह किसी परिचित की शादी में दिल्ली आए हुए हैं. गहनों को बेचने में वह मदद कर सकते हैं.”
इस बात पर सभी तैयार हो गए तो जसपाल उर्फ रिंकू ने किशनलाल से बात की. उसने बताया कि सारे गहनों को पिघला कर अगर छड़ें बना दी जाए तो उन छड़ों को बाजार में आसानी से बेचा जा सकता है. सभी को यह सुझाव पसंद आया तो अगले दिन किशनलाल ज्वैलरी पिघलाने के लिए गैस बर्नर और अन्य सामान ले कर जनकपुरी के उसी प्लौट पर बने कमरे में पहुंच गया.
किशनलाल ने पांच साढ़े पांच किलोग्राम सोने की ज्वैलरी को पिघला कर एक गोला बना दिया. वह गोला सोने की तरह चमकता हुआ न हो कर कुछ काले रंग का था. किशनलाल ने बताया कि इसे रिफाइंड कर के छड़ें बनानी पड़ेंगी. तब उन सभी ने किशनलाल से कह दिया कि इस गोले को वह अपने साथ ले जाएं और छड़ें बना दें.
किशनलाल उस गोले को ले गया. 3 दिन बाद आ कर उस ने कहा, “मैं ने उस गोले से अभी एक छड़ बनाई है, जो साढ़े 12 लाख रुपए की बाजार में बिकी है. जैसेजैसे छड़ें बनती जाएंगी, मैं उन्हें बेच कर तुम लोगों को पैसे देता रहूंगा.”
किशनलाल से मिले साढ़े 12 लाख रुपयों में से एक लाख रुपए महेंद्र ने सरजू पंडित को दे दिए, जिस की सूचना पर उन्होंने घटना को अंजाम दिया था. बाकी के पैसे उन्होंने आपस में बांट लिए.
महेंद्र से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने 9 जनवरी को मनीष शर्मा, मोहम्मद आरिफ, अरुण नागर उर्फ बौबी, जसपाल उर्फ रिंकू, रोशन गुप्ता और सरजू पंडित को उन के ठिकानों से गिरफ्तार कर लिया. उन की निशानदेही पर पुलिस ने 2 पिस्तौलें, 7 जीवित कारतूस, साढ़े 12 लाख रुपए नकद, 18 डायमंड रिंग्स, 2 जोड़ी डायमंड टौप्स और एक डायमंड पैंडेंट के अलावा अपाचे मोटरसाइकिल बरामद कर ली थी.
किशनलाल को जब पता चला कि पुलिस ने जसपाल व अन्य लोगों को पकड़ लिया है तो वह फरार हो गया. पुलिस ने उस के ठिकाने पर भी छापा मारा था, लेकिन वह नहीं मिला.
सभी अभियुक्तों से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि 6 सितंबर, 2015 को दिल्ली के कमला मार्केट इलाके में भी उन्होंने एक कूरियर बौय से 39 लाख रुपए के गहने लूटे थे. इस के अलावा 2 जुलाई, 2015 को देशबंधु गुप्ता रोड पर ढाई लाख रुपए की नकदी लूटी थी.
इन 2 मामलों के खुलासे के बाद पुलिस को लगा कि इस गैंग ने राजधानी में और भी वारदातें की होंगी, इसलिए पुलिस ने 10 जनवरी, 2016 को इन सभी अभियुक्तों को तीसहजारी कोर्ट में ड्यूटी एमएम श्री आर.के. पांडेय के समक्ष पेश किया. उस समय उन्होंने सभी अभियुक्तों को एक दिन के लिए जेल भेज दिया. अगले दिन सभी अभियुक्तों को महानगर दंडाधिकारी अंबिका सिंह की कोर्ट में पेश किया, जहां से पुलिस ने उन्हें 7 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया था.
कथा लिखे जाने तक पुलिस सभी अभियुक्तों से पूछताछ कर रही थी.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
इजाबेला को देख कर भले ही फिलिप मुसकरा देता था, लेकिन सही मायने में उसे देख कर उसे गुस्सा आता था. उस ने बाप के साथ मिल कर एलेक्स को प्यार के नाम पर धोखा देने की कोशिश की थी. अगर वह सचमुच एलेक्स को प्यार करती होती तो आत्महत्या कर लिया होता. आत्महत्या नहीं करती तो कम से कम बीमार तो पड़ ही गई होती या अपने कमीने बाप को छोड़ दिया होता. लेकिन उस ने ऐसा कुछ नहीं किया था. इस का मतलब उस का प्यार नाटक था.
एक दिन इजाबेला फिलिप के एकदम सामने पड़ गई तो उस ने नमस्ते किया. फिलिप ने उसे बताया कि आजकल एलेक्स कैलिफोर्निया में है और बहुत खुश है. वह टेनिस का अच्छा खिलाड़ी है. हर समय लड़कियां उस के पीछे लगी रहती हैं.
यह बताते हुए फिलिप उस के चेहरे को गौर से देख रहा था कि प्रतिक्रियास्वरूप उस पर कैसे भाव आते हैं. लेकिन उस का चेहरा भावशून्य बना रहा. बल्कि उसे लगा कि वह मुसकरा रही है. तब बेचैनी से फिलिप ने कहा, ‘‘कभी तुम उस से बहुत प्यार करती थीं?’’
‘‘जी, शायद वह मेरी बेवकूफी थी.’’ इजाबेला ने झट कहा, ‘‘कई महीने पहले एलेक्स ने भी फोन कर के कहा था.’’
‘‘तुम उतनी नहीं भोली हो, जितनी दिखती हो,’’ फिलिप ने कहा, ‘‘कितनी आसानी से तुम ने उसे बुद्धू बना दिया.’’
‘‘इन बातों का अब क्या मतलब मि. फिलिप. आप ने ही कहा था कि एलेक्स को छोड़ दो. मैं ने छोड़ दिया. अब आप शिकायत कर रहे हैं कि मैं ने बड़ी आसानी से उसे भुला दिया.’’
‘‘तुम जैसी लड़कियां कुछ भी कर सकती हैं. किसी पर भी हक जमा सकती हैं.’’
‘‘कैसा हक मि. फिलिप? मुझे पता है कि एलेक्स आप का बेटा है. वह आप से अलग थोड़े ही हो सकता है. उस समय वह भावुक हो रहा था, वरना मुझ में ऐसा क्या था, जिस के लिए वह आप को और आप की जायदाद को छोड़ देता. वह मुझ से सिविल मैरिज के लिए कह रहा था, पर मैं ने मना कर दिया.’’
फिलिप चौंका, फिर स्वयं को संभाल कर बोला, ‘‘कर लेना चाहिए था सिविल मैरिज. तुम दोनों बालिग तो हो ही चुके हो.’’
‘‘वह मुझ से कह रहा था कि मैं उस के साथ कैलिफोर्निया चलूं, लेकिन मैं ने मना कर दिया था. मुझे पता था कि वह बाद में पछताता. क्योंकि उस की शक्लसूरत, आदत और मिजाज सब कुछ आप जैसे हैं. वह भी दौलत से उतना ही प्यार करता है, जितना आप. बाद में अपनी गरीबी के लिए मुझ पर आरोप लगता. उसे मेहनतमजदूरी करनी पड़ती तो प्यार का नशा उतर जाता और लड़ाईझगड़ा होने लगता. अंत में तलाक हो जाता.’’ इजाबेला ने व्यंग्यात्मक हंसी हंसते हुए कहा.
‘‘ये बातें तुम्हें एलेक्स से कहनी चाहिए थीं.’’
‘‘अब कोई फायदा नहीं, जो होना था, वह हो चुका है. अब इस बारे में सोचने से क्या फायदा.’’
इजाबेला की बातें सुन कर फिलिप को लगा, वह सचमुच एलेक्स से प्यार करती थी. उस ने बिना मतलब एक मासूम लड़की का दिल तोड़ा. उस पूरे सप्ताह वह काफी उदास रहा. एक दिन उस ने रोजा से कहा, ‘‘काश, इजाबेला किसी और की बेटी होती तो एलेक्स से उस की शादी हो गई होती.’’
‘‘किसी और की नहीं, किसी करोड़पति की बेटी कहो. तब तुम्हारा मकसद पूरा हो जाता.’’ रोजा ने कहा.
अगले ही दिन एलेक्स आ गया. उस का रवैया एकदम नार्मल था. वह खुश भी नजर आ रहा था. इस से फिलिप को तसल्ली हुई. उस ने स्पोर्ट कार खरीद ली थी. वह रोज टेनिस खेलने जाता था. उस के आने के बाद फिलिप ने एक दिन डिनर रखा. उस में इजाबेला को खासतौर से बुलाया. फिलिप एलेक्स के साथ दरवाजे पर खड़े हो कर आने वाले मेहमानों का स्वागत कर रहा था.
इजाबेला आई तो बहुत ही खूबसूरत और ग्रेसफुल लग रही थी. उस के आते समय फिलिप की नजरें एलेक्स पर ही जमी थीं. एलेक्स ने उस पर खास ध्यान नहीं दिया था. सब की ही तरह हाथ मिला कर हालचाल पूछ लिया था. उसी तरह फिलिप ने भी हालचाल पूछा था. इजाबेला रोजा से बड़े प्यार से बातें कर रही थी.
फिलिप सब से मिलजुल रहा था, लेकिन उस की नजरें एलेक्स पर ही टिकी थीं. उस ने देखा, दोनों एकदूसरे के प्रति लापरवाह नजर आ रहे थे, जैसे उन का एकदूसरे से कोई ताल्लुक ही नहीं था. उस ने इत्मीनान की सांस ली कि उस की दूर की सोच ने उसे बुरे अंजाम से बचा लिया. इस तरह इजाबेला को पार्टी में बुलाने का उस का मकसद पूरा हो गया.
पार्टी खत्म हुई तो इजाबेला ने जाने की इजाजत मांगी. फिलिप ने एलेक्स से कहा कि वह इजाबेला को उस के घर तक छोड़ आए. उन के बाहर निकलने से पहले फिलिप पिछले दरवाजे से निकल कर वहां गया, जिधर से वे जाने वाले थे. वह एक झाड़ी के पीछे छिप कर खड़ा हो गया. बाहर आते ही एलेक्स बेताबी से इजाबेला को बांहों में भर कर प्यार करने लगा.
इजाबेला ने उस के सीने से लग कर रोते हुए कहा, ‘‘एलेक्स, अब मैं और इंतजार नहीं कर सकती. मुझे लगता है, मैं पागल हो जाऊंगी.’’
‘‘बेवकूफी वाली बातें मत करो. जिस तरह तुम ने एक साल बिता दिया, उसी तरह कुछ दिन और बिता दो. यही तो दूर की सोच है.’’ इजाबेला के बालों को सहलाते हुए एलेक्स ने कहा.
‘‘लेकिन इस बात का क्या भरोसा कि अब हमें ज्यादा दिन इंतजार नहीं करना पड़ेगा, क्योंकि अब मैं ज्यादा दिनों तक यह नाटक नहीं कर सकती.’’
‘‘बस, कुछ दिनों की ही बात है. मैं खुद जा कर डाक्टर से मिला था. उस ने बताया है कि डैडी का दिल काफी कमजोर होने के साथ बहुत ज्यादा बढ़ चुका है, इसलिए वह ज्यादा दिनों तक जिंदा रहने वाले नहीं हैं. बस कुछ हफ्ते या 2-4 महीने के मेहमान हैं. उस के बाद हमारे इंतजार की घडि़यां और दुख के दिन खत्म हो जाएंगे.’’
ये बातें सुन कर फिलिप को लगा कि उस ने एलेक्स का प्यार छीना तो इजाबेला ने उस से उस का बेटा छीन लिया. वह उस की जायदाद का एकलौता वारिस था. कहां उसे अपनी दूर की सोच पर नाज था, अपनी अक्ल पर घमंड था, आज उस का बेटा उस से ज्यादा दूर की सोच वाला और समझदार निकल चुका था. कितनी आसानी से बिना किसी लड़ाईझगड़े के उस ने अपनी दूर की सोच की वजह से अपने प्यार को पा लिया था.
उस के घर पर सेहन में 3 आदमी बैठे थे, जिन में एक जवान और 2 ज्यादा उम्र के थे. जवान लडक़ा देखने में जाहिद का भाई लगता था. दूसरे आदमियों के बारे में बताया कि वे उस के रिश्तेदार हैं, जो पास के गांव में रहते हैं. मुझे याद आया कि मुनव्वरी के बाप ने बताया था कि जाहिद की रिश्तेदारी पड़ोस के गांव में ऐसे लोगों से थी, जिन के यहां दुश्मनी में हत्या, मारकुटाई आम बात है.
मैं ने दोनों के नाम पूछे. दोनों चचाजाद भाई थे. दोनों के पिता के नाम पूछे तो पता चला कि उन में से एक के पिता को दफा 307 में 5 साल की जेल हुई थी. मैं ने उस से पूछा कि वह अपने पिता से जेल में मिलने जाता है या नहीं तो उस ने कहा कि मैं और घर वाले उन से मिलने जेल जाते रहते हैं. मैं जाहिद को कमरे में ले गया तो देखा वे दोनों जा रहे थे. मैं ने उन्हें आवाज दे कर कहा, “अभी जाओ नहीं, यहीं बैठो.”
जाहिद से मैं ने पूछा, “गहने कौन से ट्रंक में रखे थे.”
उस ने ट्रंक खोल कर दिखाया, “बस यही ट्रंक है. मैं ने आप से सच बताया था कि वह सब गहने ले गई है.”
मैं गहनों के बारे में ज्यादा गंभीर नहीं था. उस ने 2-3 बार कहा, “यही ट्रंक है. आप सब खोल कर देख लें. किसी में भी गहने नहीं मिलेंगे.”
मैं दूसरे कमरे में गया, उस में 2 पलंग थे, मैं कोई और सुराग तलाश रहा था. तभी मुझे एक पलंग के नीचे एक और ट्रंक दिखाई दिया. मैं ने जाहिद से कहा, “तुम तो कह रहे थे कि बस यही ट्रंक है तो यह ट्रंक किस का है?”
वह बोला, “ओह, मुझे यह याद नहीं रहा. मैं ने कहा था कि उस कमरे में यही ट्रंक है.”
वह अपनी कही बात को घुमाने की कोशिश करने लगा. उस की इस बात पर मुझे गुस्सा आ गया. मैं समझ गया कि यह आदमी मुझे मूर्ख बना कर मुझ से कुछ छिपा रहा है. मैं ने गुस्से में कहा, “इस ट्रंक को बाहर निकाल कर खोलो.”
उस ने मेरी बात को अनसुना सा कर दिया. वह उस ट्रंक को खोलना नहीं चाह रहा था. मैं ने चीख कर कहा, “खोलो इस ट्रंक को, खोलते क्यों नहीं?”
उस ने ट्रंक को घसीटा. फिर मेरी ओर देख कर कहा, “ओह इस की चाबियां तो मेरे पास नहीं हैं. मेरी पत्नी के पास थीं, पता नहीं वह कहां रख गई है?”
मैं ने पास खड़े कांस्टेबल से लोहार को बुलाने को कहा.
“इस में आप को क्या मिलेगा मलिक साहब?” जाहिद ने मेरी तरफ देखते हुए कहा.
“मैं तुम से यह नहीं कहूंगा कि चाबियां ढूंढो, क्योंकि चाबियां घर में ही रखी हैं.” मैं ने कहा.
आखिर चाबियां घर में ही मिल गईं, ट्रंक खोल कर देखा तो उस में कुछ कपड़े और नीचे एक लंबे से डिब्बे में गहने रखे थे. गहने देखते ही जाहिद के हावभाव बदल गए.
“यह किस के गहने हैं?” मैं ने जाहिद से पूछा.
“ओह… गहने तो यहीं पड़े हैं. मुझे लगा था कि वह गहने साथ ले गई है.”
मैं ने उस से कुछ नहीं कहा. अभी मैं यह देख रहा था कि यह आदमी मुझे किस तरह मूर्ख समझ कर कैसे खेल तमाशे कर रहा है. उस मकान में एक कमरा और था. मैं उस में गया तो वहां भी एक पलंग बिछा था. दीवार के साथ एक खूंटी पर 2 जोड़ी जनाना कपड़े टंगे थे. पलंग के नीचे एक जोड़ी जनाना चप्पलें पड़ी थीं. पलंग के तकिए की ओर दीवार के साथ 4 जोड़ी सैंडिलें और एक जरी की जूती रखी थी.
मैं ने जाहिद को बुला कर कहा, “यह तेरी पत्नी का कमरा है?”
“जी, वह इसी कमरे में सोती थी.”
“और तुम.”
“जी 6-7 महीने से हम दोनों अलगअलग कमरों में सो रहे थे.”
मैं ने मुनव्वरी की सहेलियों के बारे में पूछा तो जाहिद ने एक का नाम बताया. मैं ने उसे बुला कर पूछा, “मुनव्वरी अपने पति के बारे में तो तुम से बातें करती रही होगी, क्या बातें करती थी?”
उस लडक़ी का जवाब बहुत लंबा था. संक्षेप में यह कि जाहिद को मुनव्वरी ने शुरूशुरू में कबूल कर लिया था, लेकिन जाहिद इतना बेहूदा इंसान था कि मुनव्वरी पर चरित्रहीनता के झूठे आरोप लगाता रहता था. शादी से पहले मुनव्वरी का करामत से प्रेम था, लेकिन शादी के बाद खत्म हो गया था.
कोई एक साल पहले मुनव्वरी ने जाहिद के तानों से तंग आ कर करामत से मिलना शुरू कर दिया था. उस लडक़ी ने यह भी बताया कि पिछले 6 महीने से दोनों के संबंध ऐसे हो गए थे कि बोलचाल बंद थी. केवल काम की बातें होती थीं.
“क्या मुनव्वरी ने तुम से कभी कहा था कि वह घर से भाग जाएगी?” मैं ने पूछा.
“हां जी, यह तो उस ने कई बार कहा था. वह बहुत तंग हो गई थी. वह कहती थी कि अम्मी और अब्बा तलाक नहीं लेने देते. जी करता है कि कहीं भाग जाऊं. कभी वह इतनी दुखी होती थी कि कहती थी कि कुछ खा कर मर जाऊं.”
उस लडक़ी से मैं ने बहुत से सवाल पूछे. रात के 12 बज चुके थे. मैं ने उस से कहा, “एक सवाल और, जिस रात मुनव्वरी गई थी, उस रात को याद करो. जाते समय वह तुम से मिली थी या तुम उस के घर गई थीं?”
“वह आई थी, थोड़ी देर बैठी और चली गई थी. मैं ने उसे कुछ देर और बैठने को कहा तो उस ने बुरा सा मुंह बना कर कहा था कि गांव से उस के पति के 2 रिश्तेदार अभीअभी घर पहुंचे हैं. उन के लिए कुछ करना है.”
यह बात मेरे लिए बहुत खास थी. अब मुझे यह देखना था कि उस के वे यहां जो रिश्तेदार आए थे, वे कौन थे?
उस लडक़ी से बात कर के मैं कमरे में चला गया. जाहिद का भाई खड़ा था. मैं ने उस से पूछा कि उस रात जाहिद के कौन मेहमान आए थे? उस ने बताया कि यही दोनों थे, जो अब भी घर में बैठे हैं.
मैं ने उस से और कुछ नहीं पूछा. जाहिद, उस के भाई और उन दोनों रिश्तेदारों को मैं थाने ले आया. थाने ला कर मैं ने उन्हें बिठा दिया और सिपाहियों से कह दिया कि उन्हें एकदूसरे से दूर बिठा कर उन पर निगरानी रखी जाए.
उस ने तपन से बदला लेने की ठान ली थी. एक बार तो उस के मन में आया कि वह रात में सोते समय तपन की हत्या कर दे. लेकिन दिल्ली में ऐसा करने पर वह फंस सकता था, इसलिए वह ऐसी योजना बनाने लगा, जिस में सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. इसी वजह से वह अपनी इस योजना में किसी को शामिल नहीं करना चाहता था. उस के मन में क्या चल रहा है, यह उस ने तपन को महसूस नहीं होने दिया. वह पहले की ही तरह रोजाना अपने काम पर जाता रहा.
उस ने तपन को सबक सिखाने की जो योजना बनाई थी, उस के दिसंबर, 2015 के पहले हफ्ते में वह मथुरा गया. वहां वह कोसी में रहने वाले अपने दोस्त पाल सिंह से मिला. उस के सहयोग से उस ने 2 हजार रुपए में एक देशी तमंचा और 2 कारतूस खरीदे, जिन्हें ले कर वह दिल्ली लौट आया. अपनी योजना के बारे में उस ने अपनी पत्नी तक को कुछ नहीं बताया था. अब वह अपनी योजना को सुरक्षित तरीके से अंजाम देने की सोचने लगा.
12 दिसंबर, 2015 की सुबह साढ़े 9 बजे वह नोएडा अपने काम पर पहुंचा. तमंचा और कारतूस वह साथ ले गया था. थोड़ी देर बाद तपन भी वहां पहुंचा. दिन भर दोनों वहीं रहे. शाम को तपन के साथ ही वह कमरे पर लौटा.
कमरे पर आते ही उस ने कहा, “भाईसाहब, मेरी सास की तबीयत बहुत ज्यादा खराब है. मुझे उन से मिलने के लिए अभी जाना है. आप मोटरसाइकिल से मेरे साथ चले चलें, हम सुबह लौट आएंगे.”
रात को तपन मथुरा नहीं जाना चाहता था, लेकिन उमेश ने जिद की तो वह उस के साथ जाने को तैयार हो गया. इस के बाद उमेश ने पत्नी से कहा कि कुछ काम से वह तपन के साथ मथुरा जा रहा है, सुबह लौट आएगा. जाते समय उस ने पत्नी को अपना मोबाइल दे दिया.
तपन अपनी मोटरसाइकिल यूपी16ए एच3937 पर उमेश को बैठा कर राधाकुंड मथुरा के लिए चल पड़ा. रात करीब साढ़े 10 बजे मोटरसाइकिल अकबरपुर शेरपुर रोड पर नहर के पास पहुंची तो उमेश ने पेशाब करने के बहाने मोटरसाइकिल रुकवा ली. मोटरसाइकिल खड़ी कर के दोनों उतर गए. तपन एक ओर खड़े हो कर पेशाब करने लगा. सडक़ उस समय सुनसान थी. उमेश को ऐसे ही मौके का इंतजार था. उस ने तमंचे में कारतूस पहले से ही भर रखा था.
उमेश धीरेधीरे तपन के पीछे पहुंचा. पेशाब कर रहे तपन को उस के आने का अहसास नहीं हुआ. उस ने पीछे से तपन की गरदन से तमंचा सटा कर फायर कर दिया. गोली लगते ही तपन जमीन पर गिरा और बिना कोई आवाज किए मर गया. उमेश ने फटाफट उस की जेबों की तलाशी ली. एक जेब में पर्स और दूसरी में उस का मोबाइल मिला. उमेश ने उन्हें निकाल कर अपनी जेब में रख लिए. बचे हुए एक कारतूस और कट्टे को उस ने वहीं झाडिय़ों में फेंक दिया.
तपन को ठिकाने लगा कर वह अपने गांव दलोता चला गया. वहां उस ने तपन का पर्स देखा तो उस में ढाई हजार रुपए नकद के अलावा उस का वोटर आईडी कार्ड, आधार कार्ड, मेट्रो कार्ड और एक भारतीय स्टेट बैंक का एटीएम कार्ड था. अगले दिन वह मोटरसाइकिल को गांव में ही खड़ी कर के दिल्ली लौट आया और पत्नी को ले कर गांव चला गया.
अगले दिन कुछ लोगों ने नहर के पास लाश देखी तो इस की सूचना थाना छाता पुलिस को दे दी. थानाप्रभारी यशकांत सिंह वहां पहुंचे. उन्होंने लाश की शिनाख्त करानी चाही, पर कोई उसे पहचान नहीं सका. तब लाश के फोटो करा कर उन्होंने उसे पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया और अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया.
मृतक के फोटो के पैंफलेट चिपकवाने के बाद भी जब शिनाख्त नहीं हुई तो छाता पुलिस ने लावारिस मान कर उस का अंतिम संस्कार करा दिया. जब छाता पुलिस तपन की लाश की शिनाख्त नहीं करा सकी तो उमेश को लगा कि जब पुलिस लाश की शिनाख्त ही नहीं करा सकी तो मामले का खुलासा कैसे होगा?
उमेश का कुछ सामान दिल्ली में तपन के कमरे पर था. कहीं दिल्ली पुलिस उस सामान के जरिए उस तक न पहुंच जाए, यह सोच कर 24 दिसंबर, 2015 की रात के अंधेरे में वह अपना सामान ले कर भागना चाहता था, लेकिन मुखबिर की सूचना ने उस की इस योजना पर पानी फेर दिया और वह क्राइम ब्रांच के हत्थे चढ़ गया.
उमेश कुमार से पूछताछ के बाद इंसपेक्टर अशोक कुमार ने मथुरा के थाना छाता के थानाप्रभारी यशकांत सिंह को पूरी बात बता कर उस के गिरफ्तार करने की सूचना दे दी. अगले दिन क्राइम ब्रांच ने उसे रोहिणी कोर्ट में ड्ïयूटी मजिस्ट्रेट विपुल डबास के समक्ष पेश किया.
उस समय तक यशकांत सिंह वहां पहुंच चुके थे. उसी समय उन्होंने कोर्ट में एक दरख्वास्त दे कर उमेश कुमार को 24 घंटे के ट्रांजिट रिमांड पर ले लिया. थाना छाता पुलिस पूछताछ के लिए उमेश को अपने साथ ले गई. उस की निशानदेही पर पुलिस ने मृतक की मोटरसाइकिल, पर्स, एटीएम कार्ड, वोटर आई कार्ड, आधार कार्ड और हत्या में प्रयुक्त तमंचा व एक जीवित कारतूस बरामद कर लिया.
विस्तार से पूछताछ के बाद उसे न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. मामले की जांच यशकांत सिंह कर रहे हैं.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
महेंद्र को कहीं से पता चला कि चांदनी चौक में ऐसे तमाम लोग हैं, जो यहां से लाखों रुपए के गहने गुजरात ले जाते हैं और वहां से भी उसी तरह गहने दिल्ली आते हैं. उस ने सोचा कि अगर उन्हीं में से किसी को शिकार बना लिया जाए तो एक ही झटके में लाखों रुपए हाथ लग सकते हैं.
इस के बाद वह यह पता लगाने लगा कि यह काम कौनकौन करते हैं. किसी जानकार ने उसे बताया कि दिल्ली के कूचा घासीराम में कई आंगडि़ए हैं, जो दिल्ली से बाहर गहने भेजते हैं. वहीं एक सरजू पंडित नाम का आदमी है, जो उन आंगडिय़ों के बारे में अच्छी तरह से जानता है. क्योंकि वह उन्हें चायपानी पिलाता है. अगर सरजू पंडित को विश्वास में ले लिया जाए तो मोटा माल हाथ लग सकता है.
महेंद्र कूचा घासीराम के सरजू पंडित के पास पहुंच गया. उस ने पहले तो किसी जरिए उस से जानपहचान की. इस के बाद वह रोजाना उस से मिलने लगा. धीरेधीरे दोनों के बीच दोस्ती हो गई. जब दोनों के बीच गहरी दोस्ती हो गई तो एक दिन महेंद्र ने सरजू को अपनी योजना के बारे में बता कर पैसों का लालच दे कर कि जो भी माल हाथ लगेगा, उस में से एक हिस्सा उसे दिया जाएगा, के बाद आंगडि़ए के बारे में पूछा.
सरजू पंडित लालच में आ गया. 60 वर्षीय सरजू पंडित ने महेंद्र को प्रवीण कुमार के बारे में बताया ही नहीं, उसे पहचनवा भी दिया. प्रवीण कूचा घासीराम स्थित राजेश कुमार अरविंद कुमार आंगडिय़ा की फर्म में काम करता था. यह फर्म गहनों की कूरियर का काम करती थी. दिल्ली के कुछ ज्वैलर्स इस फर्म द्वारा पुराने गहने अहमदाबाद भेज कर वहां से नए डिजाइन के तैयार गहने मंगाते थे. यह काम इस फर्म का कूरियर बौय भरतभाई करता था. वह हर 2 दिन बाद दिल्ली आता था.
सरजू पंडित ने महेंद्र को पूरी बात बता तो दी, लेकिन महेंद्र यह फैसला नहीं कर सका कि कूरियर बौय भरतभाई से माल कैसे झटका जाए. महेंद्र का एक दोस्त था रोशन गुप्ता, जो विवेक विहार की झिलमिल कालोनी में रहता था. वह पेशे से ड्राइवर था. उस के 2 बच्चे थे, जो बड़े हो चुके थे. उन की शादी को ले कर वह काफी परेशान था. कुछ दिनों पहले उस ने मकान बनवाया था, जिस से उस पर ढाई लाख रुपए का कर्ज हो गया था. उसे इस बात की भी चिंता रहती थी कि वह कर्ज कैसे चुकाएगा.
महेंद्र ने लूट की योजना रोशन को समझाई तो पैसों की सख्त जरूरत की वजह से वह भी उस के साथ यह काम करने को तैयार हो गया. इस के बाद दोनों ने एक महीने तक उस रूट की रेकी की, जिस रूट से भरतभाई और प्रवीण माल ले कर नई दिल्ली स्टेशन आतेजाते थे. रेकी में रोशन ने अपनी स्प्लेंडर मोटरसाइकिल का उपयोग किया था.
रूट को अच्छी तरह समझने के बाद बात हुई कि वारदात को कैसे अंजाम दिया जाए, क्योंकि इस में रिस्क था, इसलिए हथियारबंद लोगों का भी इस में शामिल होना जरूरी था. रोशन मनीष शर्मा और मोहम्मद आरिफ नाम के बदमाशों को जानता था. दोनों ही गाजियाबाद जिले के साहिबाबाद के रहने वाले थे.
मनीष शार्पशूटर था तो मोहम्मद आरिफ शातिर चाकूबाज. रोशन ने दोनों से बात की. वे राजी हो गए तो उन्हें भी योजना में शामिल कर लिया. दोनों बदमाशों को शामिल करने के बाद उन के दिमाग में बात आई कि ज्वैलरी लूटने के बाद मोटरसाइकिल से तुरंत भागना होगा. इस के लिए उन्हें भीड़भाड़ वाली जगह में भी तेजी से मोटरसाइकिल चलाने वाले 2 लोग चाहिए.
इस बारे में आपस में चर्चा हुई तो मनीष शर्मा ने बताया कि वह जसपालदास उर्फ रिंकू को जानता है. वह भी साहिबाबाद में रहता है. पहले वह दिल्ली में क्लस्टर बस चलाता था. कुछ दिनों पहले उस ने नौकरी छोड़ा है. वह एक अच्छा बाइक रेसर है. जसपाल को एक खतरनाक जानलेवा बीमारी थी, उसी के इलाज के लिए उसे पैसों की जरूरत थी. मनीष ने उसे लूट की योजना बताई तो वह भी तैयार हो गया. उस के पास चोरी की एक पल्सर मोटरसाइकिल भी थी.
उन्हें एक मोटरसाइकिल चलाने वाला मिल गया था, एक की अभी और जरूरत थी. इस के लिए जसपाल ने अरुण नागर उर्फ बौबी से बात कराई. अरुण नागर मोटरसाइकिल से स्टंट करता था. वह बेरोजगार था. पैसों के लालच में वह भी उन के साथ काम करने को तैयार हो गया. अरुण ने भी किसी की अपाचे मोटरसाइकिल चुरा रखी थी, जिस की नंबर प्लेट बदल कर वह उसे खुद ही चलाता था.
पूरी टीम तैयार हो गई तो सभी ने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से कूचा घासीराम बाजार तक का कई बार चक्कर लगाया. इस के बाद इस बात पर विचार किया जाने लगा कि घटना को किस जगह अंजाम दिया जाए, जहां से वे आसानी से भाग सकें.
काफी सोचनेविचारने के बाद कुतुब रोड पर तांगा स्टैंड के पास वारदात को अंजाम देना निश्चित किया गया. क्योंकि वहां जो दुकानें बनी थीं, वे सुबह के समय बंद रहती थीं और सामने की पार्किंग भी खाली रहती थी. सुनसान रहने की वजह से वहां से यूटर्न ले कर भागना आसान था. वारदात की जगह निश्चित करने के बाद इस बात का भी कई बार रिहर्सल किया गया कि बैग को छीन कर किस तरह वहां से भागना है.
महेंद्र और रोशन गुप्ता को इस बात की पुख्ता जानकारी मिल गई थी कि अहमदाबाद से माल ले कर भरतभाई अहमदाबाद- नई दिल्ली राजधानी एक्सप्रैस से 2 जनवरी को नई दिल्ली स्टेशन पर उतरेगा. उसे पता ही था कि भरतभाई को लेने प्रवीण कुमार आता है. वहां से दोनों औटो से औफिस जाते हैं.
पूरा प्लान तैयार कर के महेंद्र, मनीष शर्मा, अरुण नागर उर्फ बौबी, रोशन गुप्ता, जसपाल उर्फ रिंकू और मोहम्मद आरिफ पल्सर और अपाचे मोटरसाइकिलों से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंच गए. महेंद्र ने सब से पहले रेलवे स्टेशन की इनक्वायरी से यह पता लगाया कि अहमदाबाद से नई दिल्ली आने वाली राजधानी एक्सप्रैस कब आ रही है.
वहां से उसे पता चला कि ट्रेन स्टेशन पर 8 बजे पहुंचेगी. भरतभाई को लेने के लिए सुबह 7 बज कर 40 मिनट पर प्रवीण स्टेशन पहुंच गया था. महेंद्र प्रवीण को पहचानता था, इसलिए वह कुछ दूरी से उस पर नजर रखने लगा, क्योंकि भरतभाई को ट्रेन से उतर कर उसी के पास आना था.
कुछ देर बाद अहमदाबाद से चल कर नई दिल्ली आने वाली राजधानी एक्सप्रैस के दिल्ली पहुंचने की घोषणा हुई, महेंद्र सतर्क हो गया. स्टेशन से बाहर निकलने वाले यात्रियों को महेंद्र गौर से देख रहा था. जब उसे भरतभाई दिखा तो वह खुश हो गया. भरत के हाथ में एक बैग था. भरत को पहले से ही पता था कि प्रवीण कहां खड़ा हो कर उस का इंतजार करता है, इसलिए वह स्टेशन से बाहर सीधे उसी स्थान पर पहुंच गया, जहां प्रवीण खड़ा था.
प्यारेलाल को जब पता चला कि रचना नाराज हो कर उन की बेटी के पास नवादा चली गई है तो उन्हें ज्यादा चिंता नहीं हुई. उन्होंने सोचा कि 2-4 दिन में गुस्सा शांत हो जाएगा तो वह लौट आएगी. बहन के यहां रह कर रचना अपने लिए नौकरी तलाशने लगी. थोड़ी कोशिश करने के बाद नांगलोई में एक होम्योपैथी फार्मेसी में उस की नौकरी भी लग गई.
रचना स्वच्छंद विचारों की थी, इसलिए नवादा में अपनी बहन से भी उस की नहीं बनी तो बहन का मकान छोड़ कर वह द्वारका सेक्टर-7 में किराए पर रहने लगी. अब द्वारका में उस से कोई कुछ कहनेसुनने वाला नहीं था. उस का जहां मन करता, घूमतीफिरती थी. फेसबुक और अन्य सोशल साइटों के जरिए नएनए दोस्त बनाना उसे अच्छा लगता था. सोशल साइट के जरिए उस की दोस्ती नाइजीरियन युवक चिनवेंदु अन्यानवु से हुई.
चिनवेंदु जयपुर नेशनल यूनिवर्सिटी से आईटी की पढ़ाई कर रहा था. धीरेधीरे उन की दोस्ती बढ़ती गई तो वह रचना से मिलने दिल्ली आने लगा. इस का नतीजा यह हुआ कि उन के बीच प्यार हो गया. यह प्यार शारीरिक संबंधों तक भी पहुंच गया. इस के बाद तो रचना उस की ऐसी दीवानी हुई कि अपनी नौकरी छोड़ कर उस के साथ जयपुर में लिव इन रिलेशन में रहने लगी. वह जयपुर में करीब एक साल रही.
चिनवेंदु का एक दोस्त था जेम्स विलियम. वह भी नाइजीरिया का ही रहने वाला था. वह ग्रेटर नोएडा के किसी इंस्टीट्यूट से पढ़ाई कर रहा था. जेम्स अकसर चिनवेंदु से मिलने जयपुर जाता रहता था, इसलिए वह रचना को भी जान गया था.
जयपुर से पढ़ाई पूरी करने के बाद चिनवेंदु रचना को ले कर ग्रेटर नोएडा पहुंच गया. वे दोनों जानते थे कि रचना सोशल साइट पर लोगों से दोस्ती करने में माहिर है. इसलिए दोनों युवकों ने लोगों से पैसे ऐंठने का नया आइडिया रचना को बताया तो रचना ने तुरंत हामी भर दी. फिर योजना बना कर किसी पैसे वाली पार्टी को फांसने का फैसला किया गया.
रचना ने सोशल साइट टैग्ड डौटकाम के जरिए नोएडा के मनीष नाम के युवक से दोस्ती की. मनीष को अपने जाल में पूरी तरह फांसने के बाद रचना ने उसे अपने कमरे पर बुलाया. बातचीत के बाद रचना और मनीष जब आपत्तिजनक स्थिति में पहुंच गए तो चिनवेंदु ने किसी तरह उन के फोटो खींच लिए. फिर क्या था, उन फोटोग्राफ के जरिए वह मनीष को ब्लैकमेल करने लगा. मगर मनीष ने पैसे देने के बजाय पुलिस को सूचना देने की धमकी दी.
इस से वे लोग डर गए और उन्होंने उसे कमरे से भगा दिया. पहला वार खाली जाने के बाद उन्होंने अब नया शिकार तलाशना शुरू किया. फिर रचना ने अगला शिकार गुड़गांव के रहने वाले जोगिंद्र को बनाया. जोगिंद्र से दोस्ती गांठने के बाद रचना ने उसे भी अपने कमरे पर बुलाया. उन्होंने जोगिंद्र को भी ब्लैकमेल करने की कोशिश की. लेकिन जोगिंद्र भी रचना और उस के साथियों की धमकी में नहीं आया. लिहाजा उन्होंने जोगिंद्र को भी कमरे से भगा दिया.
इस के बाद रचना और उस के साथियों ने दिल्ली के चित्तरंजन पार्क में एक कमरा किराए पर लिया. रचना और उस के साथियों के 2 वार खाली जा चुके थे. अब वे मोटे आसामी की फिराक में थे. टैग्ड डौटकाम के जरिए अब रचना नया मुर्गा फांसने में जुट गई. रचना ने अरुण वाही से दोस्ती कर ली. अरुण वाही लुधियाना के सुंदरनगर के रहने वाले थे. वह चार्टर्ड एकाउंटेंट थे. 46 साल के अरुण वाही भी रचना के जाल में फंस गए. दोनों ने एकदूसरे को नेट के जरिए अपने फोटो भी भेज दिए.
अरुण वाही उस पर एक तरह से मोहित हो गए थे. सोशल साइट के जरिए वह एकदूसरे से बात करते रहते थे. रचना ने अरुण वाही को दिल्ली मिलने के लिए बुलाया. 18 दिसंबर की रात को अरुण वाही की रचना से फोन पर 3 बार बात भी हुई थी. वह रचना से मिलने के लिए बेचैन थे, इसलिए 18 दिसंबर को सुबह 4 बजे लुधियाना से ट्रेन द्वारा दिल्ली के लिए निकल पड़े.
अरुण वाही को लेने रचना दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुंच गई थी. वह स्टेशन से उन्हें कमरे पर ले गई. वाही ने सोचा कि वह उस से एकांत में मन की बात करेंगे, इसलिए किराए की कार से रचना के साथ चित्तरंजन पार्क स्थित उस के कमरे पर पहुंचे. वहां भी चिनवेंदु ने रचना के साथ आपत्तिजनक हरकतें करते हुए वाही के फोटो खींच लिए. फिर उन का मोबाइल जब्त करने के बाद उन से 4 लाख रुपए की मांग की.
अरुण वाही एक इज्जतदार परिवार से थे, इसलिए उन्होंने मामले को दबाने के लिए पैसे देने की हामी भी भर ली. फिर पैसे हासिल करने के लिए वाही ने लुधियाना में रहने वाले अपने दोस्त राजेंदर सिंह का नंबर उन लोगों को बता दिया. चिनवेंदु भारत में रह कर हिंदी सीख गया था. उस ने ही वाही के फोन से राजेंदर सिंह से बात कर के अरुण वाही के बदले 4 लाख रुपए देने की मांग की. बाद में उन्होंने जब राजेंदर सिंह को बैंक एकाउंट नंबर भेजा तो वाही के बजाए अपना फोन नंबर प्रयोग किया. उसी के जरिए वे लोग पुलिस के चंगुल में फंस गए.
पुलिस ने 20 दिसंबर, 2013 को अभियुक्त रचना नायक राजपूत, चिनवेंदु अन्यानवु और जेम्स विलियम को गिरफ्तार कर तीसहजारी कोर्ट में ड्यूटी मजिस्ट्रेट के यहां पेश कर के 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उन के पास से विभिन्न कंपनियों के 46 सिमकार्ड, 2 लैपटौप, 5 मोबाइल फोन, एक कैमरा, 3 लाख 98 हजार 5 सौ रुपए नकद बरामद किए. उन से विस्तार से पूछताछ के बाद उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया. मामले की विवेचना एसआई घनश्याम किशोर कर रहे हैं.
—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित. राजेंदर सिंह और मनीष परिवर्तित नाम हैं.