लड़की, लुटेरा और बस – भाग 4

इस बीच नजमा को होश आ गया तो उस ने शारिक के घर फोन कर दिया. इस के बाद वह शारिक को ले कर वापस आया तो उसे देख कर नजमा हैरान रह गई. गुरविंदर सिंह ने दोनों को सलाह दी कि वे उस के गांव चले जाएं, वहां वे पूरी तरह से सुरक्षित रहेंगे. उस का बाप एक बड़ा जमींदार और रसूखदार आदमी था. क्या किया जाए, अभी वे लोग सोच ही रहे थे कि मैं वहां पहुंच गया. लेकिन अभी भी कुछ बातें मुझे उलझन में डाल रही थीं.

नजमा का बाप चुपचाप फौरन उस की शादी क्यों कर रहा था? उन लोगों ने शारिक से शादी का इरादा क्यों बदल दिया था? अंग्रेज डीसी इस मामले में इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहा था?

अब तक उस के करीब 10-12 फोन आ चुके थे. शायद एसपी साहब जानते हों, पर उन्होंने कुछ बताया नहीं था. इसी उधेड़बुन में मैं टहलता हुआ मुंशी के कमरे की तरफ निकल गया. वहां 2 लोग अपनी लड़कियों के गायब होने की रिपोर्ट लिखा रहे थे. वे लड़कियां रोजाना कालेज की बस से घर आती थीं, पर आज बस ही नहीं आई थी. उन लोगों ने कालेज जा कर पता किया तो जानकारी मिली कि बस लड़कियों को ले कर कालेज से चली गई थी.

पूरी बात बताने में कालेज का स्टाफ टालमटोल कर रहा था. वे दोनों झिकझिक कर रहे थे कि कुछ और पैरेंट्स वहां आ गए. उन की भी लड़कियां घर नहीं पहुंची थीं. वे सब भी परेशान थे. 4 बजे के करीब उन्हें बताया गया कि बस मिल गई है और लड़कियां एक घंटे में घर पहुंच जाएंगी.

कुछ देर में कालेज की अंग्रेज ङ्प्रसिपल आ गई. उस ने बताया कि गल्र्स कालेज की बस में 2 गुंडे सवार हो गए थे. वे ड्राइवर को पिस्तौल दिखा कर बस को वीराने में ले गए हैं, पर खतरे की कोई बात नहीं है. उन्होंने किसी लडक़ी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया है. वे रुपए की मांग कर रहे हैं. कमिश्नर साहब ने उन की बात मान ली है. थोड़ी देर में बस वापस कालेज पहुंच जाएगी.

कुछ पैरेंट्स वापस जाने लगे तो उन्हें यह कह कर रोक लिया गया कि एसपी साहब के आदेश के अनुसार किसी को जाने की इजाजत नहीं है, लड़कियों के आने तक सभी को यहां रुकना पड़ेगा. इस के बाद जो भी अपनी लड़कियों के बारे में पूछने आया, उसे वहीं रोक लिया गया. रात 8 बजे बाहर से आने वाले एक आदमी से पता चला कि एक लेक्चरार और एक लडक़ी को जख्मी हालत में अस्पताल में भरती कराया गया है. उन की हालत हर किसी से छिपाई जा रही है.

रिपोर्ट लिखाने वाले दोनों आदमी सगे भाई थे और वकील थे. बड़े भाई की 2 लड़कियां बस में बंधक थीं. दोनों बड़ी होशियारी से कालेज से निकल कर थाने पहुंच गए थे. मैं ने जब उन की बातें सुनीं तो लगा कि मामला बड़ा गंभीर है. लड़कियों से भरी बस 2 गुंडों के रहमोकरम पर थी. किसी वजह से पुलिस सख्त काररवाई करने से बच रही थी और पूरे मामले को छिपाने की कोशिश कर रही थी. परेशान पैरेंट्स को कालेज में ही रोक लिया गया था, ताकि बात खुले न.

उसी वक्त एक सबइंसपेक्टर ने आ कर बताया कि डीएसपी साहब बुला रहे हैं. मैं अंदर पहुंचा तो वे काफी परेशान थे. एक चिट देते हुए वह मुझ से बोले, “नवाज खान इस आदमी को अभी गिरफ्तार करो.”

मैं ने चिट देखी, उस पर अरुण अग्रवाल एडवोकेट लिखा था, साथ ही उस का पता भी लिखा था. यह अरुण अग्रवाल वही आदमी था, जो मुंशी के पास लड़कियों की गुमशुदगी लिखवा रहे थे. मैं ने पूछा, “सर, आखिर यह मामला क्या है?”

डीएसपी ने रूखे स्वर में कहा, “मामले के चक्कर में मत पड़ो. बस समझो टौप सीके्रट है.”

अब मुझे इस पूरे मामले से दहशत होने लगी थी. मैं ने आगे झुक कर दृढ़ता से कहा, “सर, कुछ टौप सीक्रेट नहीं है. आप क्यों एक बिगड़े हुए मामले को और बिगाड़ रहे हैं?”

डीएसपी साहब नाराज हो कर बोले, “तुम्हें क्या मालूम, क्या मामला है?”

मैं ने कहा, “जनाब, मुझे पता है. 2 गुंडों ने कालेज की बस अगवा कर ली है. 2 लोगों को जख्मी भी कर दिया है और बाकी लड़कियों की ङ्क्षजदगी खतरे में है. जब मुझे पता है तो और लोगों को भी पता होगा. आप को मालूम नहीं कि अभी थोड़ी देर पहले अरुण अग्रवाल इस मामले की रिपोर्ट लिखवा रहा था. आप ने और्डर देने में थोड़ी देर कर दी.”

एसपी और ज्यादा परेशान हो गए. मुझ से बैठने को कह कर बोले, “मुझे लगता है नवाज खान, तुम्हें सारी बात बता देनी चाहिए. जैसा कि तुम जानते हो, बस अगवा हो चुकी है और उस में गोली भी चल गई है, जिस से एक लेक्चरार और एक स्टूडैंट घायल हो गई हैं. स्थिति यह है कि बस में सिर्फ एक बदमाश है. उस का नाम बदरु है. वह सनकी और खतरनाक आदमी है.

“बस अगवा करने के बाद उस ने एक बड़ी अजीब सी मांग रखी है. उस का कहना है कि एक लडक़ी, जो उस की महबूबा है, उसे उस के हवाले कर दिया जाए. वह उस के बिना जिन्दा नहीं रह सकता. और वह लडक़ी कोई और नहीं, इनायत खां की बेटी नजमा है.

“बदरू काफी दिनों से उस के पीछे पड़ा था. कुछ दिनों पहले उस ने नजमा को रास्ते में परेशान भी किया था. उस पर उस के भाइयों ने बदरू की जम कर पिटाई की थी. पर वह बहुत ढीठ और जिद्दी है. वह सिर्फ नजमा को अगवा करने के लिए बस में घुसा था. लेकिन नजमा बस में नहीं थी, क्योंकि कल वह कालेज नहीं गई थी.

“नजमा को न पा कर वह गुस्से से पागल हो गया और ड्राइवर के सिर पर पिस्तौल रख कर उसे वीराने में चलने को मजबूर किया. अब वह बस सडक़ से हट कर वीराने में झाडिय़ों के बीच खड़ी है. बस का कंडक्टर किसी तरह से भागने में कामयाब हो गया. उसी ने कालेज जा कर इस घटना की सूचना दी.

“मैं ने खुद मौके पर जा कर बदरू से बात की. वह आधा पागल है. उस के पास एक हथगोला और भरी पिस्तौल है. उस ने मुझे खिडक़ी से बम दिखाया था. वह एक ही बात कह रहा है कि उसे उस की महबूबा नजमा और 5 लाख रुपए चाहिए. वह अन्य किसी लडक़ी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा. उस की मांग पूरी कर दो.”

“जनाब, क्या आप ने उस की मांग पूरी करने का फैसला कर लिया है?”

“हां, शायद उस की मांग पूरी करनी ही पड़ेगी.” उन्होंने कहा.

लड़की, लुटेरा और बस – भाग 3

मायूसी बढ़ रही थी कि अचानक वायरलैस जाग उठा. दूसरी ओर मेरा सबइंसपेक्टर बोला, “हैलो साहब थोड़ी देर पहले जीप के इंजन की आवाज सुनाई दी थी. पर अब नहीं सुनाई दे रही है.”

मैं ने कहा, “हसन, हम जीप पीछे करते हैं, तुम फिर बताओ.”

हम धीरेधीरे जीप पीछे करने लगे. हम थोड़ा पीछे लौटे थे कि उस की आवाज आई, “जी साहब, अब आवाज आ रही है.” हम थोड़ा और पीछे चले तो उस ने कहा, “अब ज्यादा तेज आवाज आ रही है.” हम ने जीप वहीं रोक दी.

सामने एक बड़ी सी कोठी थी. अपने 2 सिपाहियों और एक सबइंसपेक्टर को बाहर होशियारी से ड्यूटी देने के लिए कह कर कहा कि अगर फायर की आवाज आए तो तुरंत अंदर आ जाना. इस के बाद मैं ने गेट से अंदर झांका. चौकीदार वगैरह नहीं दिखाई दिया. गैराज में एक कार खड़ी थी, चारदीवारी ज्यादा ऊंची नहीं थी. मैं आसानी से अंदर कूद गया. गहरा सन्नाटा और अंधेरा था. धीरेधीरे मैं कोठी की ओर बढ़ा.

अचानक मेरे ऊपर हमला हुआ तो मैं फर्श पर गिर पड़ा. उस के हाथ में कोई लंबी वजनी चीज थी. जैसे ही उस ने मारने के लिए उठाया, मैं ने जोर से उस के पेट पर एक लात मारी. चोट करारी थी, वह पीछे दीवार से जा टकराया. जल्दी से खड़े हो कर मैं ने देखा, उस के हाथ में बैट था. जैसे ही उस ने मारने को बैट उठाया, मैं ने तेजी से एक बार फिर उस के पेट पर लात मारी. वह गिर पड़ा तो एक लात और उस के मुंह पर जमा दिया.

वह चकरा कर पलटा. एक और वार में वह बेसुध हो गया. तभी किसी ने पीछे से जोरदार धक्का दिया. इस के बाद वह मेरी कमर से लिपट गया. मैं ने फुरती से रिवौल्वर निकाली और हवाई फायर कर दिया. हमलावर ठिठका तो मैं ने पलट कर एक जोरदार घूंसा उस के मुंह पर मारा तो वह घुटनों के बल बैठ गया.

जैसा मैं ने साथियों से कहा था, फायर की आवाज सुनते ही वे अंदर आ गए. उन्होंने उसे पकड़ लिया और अंदर ले गए. अंदर सारी लाइटें जला दी गईं. वह काफी बड़ी कोठी थी. सामान ज्यादा नहीं था, लेकिन जो था, उस से लगा कि कोई स्टूडैंट वहां रहता है. मैं ने सबइंसपेक्टर से तलाशरी लेने को कहा. पल भर बाद वह एक खूबसूरत 17-18 साल की लडक़ी को ले कर मेरे सामने आ खड़ा हुआ. वह सलवारकमीज पहने थी, पैरों में जूती नहीं थी. वह काफी घबराई हुई थी.

वह कुछ कहना चाहती थी कि तभी एसपी, डीएसपी कुछ सिपाहियों के साथ आ पहुंचे. उन के साथ लडक़ी के घर वाले भी थे. लडक़ी मां से लिपट गई. वह नौजवान, जिस ने मुझ पर बाद में हमला किया था, उस की ठोड़ी से खून बह रहा था. उसे देख कर इनायत खां चीखा, “यही है वह कमीना शारिक, इसी ने मेरी बेटी को अगवा किया था.”

रात करीब 1 बजे हम थाने लौटे. उसी समय डीसी साहब का फोन आ गया. उन्हें खबर दे दी गई थी कि लडक़ी मिल गई है, मुलजिम पकड़े गए हैं. याकूब अली के बेटे शारिक ने अपने दोस्त गुरविंदर के साथ इस वारदात को अंजाम दिया था.

यह किस्सा कुछ यूं था. गुरविंदर सिंह कालेज में आखिरी साल में था. वह स्टूडैंट यूनियन का अध्यक्ष था. उस के साथ मिल कर शारिक ने यह काम किया था. डीसी साहब ने सब को बधाई और शाबासी दी. मेरा सिर दर्द खत्म हो गया था. लडक़ी मिल गई थी, पर मुझे लग रहा था कि अभी कोई बात मुझ से छिपी हुई है. बात कुछ और भी है. डीसी का इस मामले में इतना ज्यादा इंट्रैस्ट लेना मेरी समझ में नहीं आ रहा था.

शारिक और गुरविंदर सिंह से पूछताछ की तो बात खुल कर सामने आई कि अपहरण वाले दिन दोपहर को शारिक के औफिस नजमा ने फोन किया था कि बहुत बड़ी मुश्किल आ गई है, वह जल्दी से जल्दी उस से मिले. शारिक औफिस से छुट्टी ले कर नजमा से मिलने पहुंच गया. दोनों एक नजदीक के पार्क में मिले तो नजमा ने रोते हुए बताया कि उस का सौतेला बाप उस की शादी चंद घंटों के अंदर कहीं और कर रहा है. यह सुन कर शारिक हैरान रह गया.

2 महीने में उन दोनों की शादी होने वाली थी, जिस की तैयारियां भी चल रही थीं. नजमा ने आगे बताया कि उस के अब्बा बहुत परेशान थे. 2-3 बार उन्हें एक कार ले जाने और छोडऩे आई थी. बारबार फोन आ रहे थे. थोड़ी देर पहले उस ने अम्मी अब्बू की बातें छिप कर सुनी थीं.

अब्बू अम्मी को समझाने की कोशिश कर रहे थे, “रईसा, हमें नजमा की शादी वहां करनी ही पड़ेगी, वरना हम कौड़ीकौड़ी को मोहताज हो जाएंगे. लडक़ी के बारे में मत सोचो, अपने और अन्य बच्चों के बारे में सोचो. शादी करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है.”

इस के बाद अम्मी रोते हुए बोलीं, “मेरी बिटिया का क्या होगा, दुनिया क्या कहेगी?”

अब्बू ने कहा, “उस की तुम फिकर मत करो, सब हो जाएगा. शादी कर के हम 2 महीनों के लिए कश्मीर चले जाएंगे. इतनेदिनों में लोग सब भूल जाएंगे.”

काफी बहस के बाद अम्मी मजबूरी में उस की इस शादी के लिए राजी हो गईं. कुछ ही घंटे में नजमा को किसी अजनबी आदमी के हवाले करने की बात तय हो गई.

शारिक नजमा की बातें सुन कर दंग रह गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपनी महबूबा को क्या और कैसे तसल्ली दे? बेहद परेशानी की इस हालत में वह एक होटल में जा बैठा. वहां उस के पक्के दोस्त गुरविंदर सिंह से उस की मुलाकात हो गई. उस ने उस की परेशानी की वजह पूछी तो उस ने दुखी मन से सारी बात बता दी.

गुरविंदर सिंह ने उस का दुख सुना और चुपचाप वहां से उठ कर चला गया. वह सीधे नजमा के घर पहुंचा और अपनी 2 सीटर गाड़ी कोठी के पीछे खड़ी कर के थोड़ी देर हालात जांचता रहा. इस के बाद मौका देख कर खिडक़ी से नजमा के कमरे में दाखिल हो गया और बड़ी होशियारी से उसे बेहोश कर के अपनी कोठी में ले कर आ गया. उसे एक कमरे में बंद कर के खुद शारिक की तलाश में निकल गया.

स्पेशल 26 की तर्ज पर लाखों की ठगी – भाग 3

पुलिस टीम प्रदीप की तलाश में जुटी थी, लेकिन अगले कई दिनों तक वह हाथ नहीं आया. पुलिस प्रदीप और उस के भाई के मोबाइल नंबरों की जांच कर रही थी. लेकिन वे बंद हो चुके थे. पुलिस हर सूरत में पूरे मामले का परदाफाश करना चाहती थी. एसपी (सिटी) अजय सिंह समयसमय पर टीम के काम की

समीक्षा करते रहते थे. देखते ही देखते घटना को घटे डेढ़ महीने से ज्यादा का समय बीत गया, लेकिन आरोपियों का कोई सुराग नहीं मिला. कोई महत्त्वपूर्ण सुराग हाथ लग जाए, इस के लिए पुलिस ने जेल में बंद राखी और बेबी से दोबारा पूछताछ की.

पुलिस आरोपियों के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स पर भी काम कर रही थी. इस से कडिय़ां जुड़ती चली गईं. इस कड़ी में एक नाम धर्मपाल भाटिया का सामने आया. धर्मपाल हरियाणा के जिला करनाल के हांसी रोड पर रहता था. पुलिस उसे गिरफ्तार कर के देहरादून ले आई और उस से पूछताछ के आधार पर देहरादून के थाना क्लेमन टाउन के गोकुल एन्कलैव में रहने वाले दीपक मनचंदा को भी 4 जनवरी, 2016 को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने दोनों से पूछताछ की. इन से पूछताछ में पुलिस को पता चला कि यह पूरी योजना एक महिला द्वारा तैयार की गई थी तो हैरानी बढ़ गई. सभी लोगों ने योजना बना कर जिस तरह फिल्मी अंदाज में छापा मारा था, पुलिस उलझ कर रह गई थी. ठगी का शिकार हुए यशपाल टंडन का उन का अपना कलैक्शन एजेंट ही उन्हें दगा दे गया था.

दरअसल, दीपक मनचंदा यशपाल के दोस्त विजय मनचंदा का भतीजा था. इसी नाते उन्होंने भरोसा कर के उसे अपने यहां कमेटी का पैसा जुटाने और अन्य कामों के लिए रख लिया था. दीपक ने खूब मेहनत कर के काम किया, जिस से यशपाल टंडन को उस पर पूरा भरोसा हो गया. वह उस के साथ परिवार के सदस्य की तरह व्यवहार करने लगे.

जरूरी नहीं कि इंसान जैसा दिखता है, ठीक वैसा हो ही. दीपक के साथ भी ऐसा ही था. वह बुरी आदतों का शिकार था. उन में एक आदत अनापशनाप खर्च करना भी थी. यशपाल के लिए वह मोटी रकम इकट्ठा करता था. धीरेधीरे उस ने उन से 5 लाख रुपए उधार ले लिए. जब रुपए लौटाने की बात आई तो वह परेशान रहने लगा.

दीपक मूलरूप से करनाल का ही रहने वाला था और कुछ सालों पहले ही देहरादून आया था. उस की जानपहचान धर्मपाल भाटिया और उस की पत्नी निशा उर्फ रेखा से थी. निशा तेजतर्रार महिला थी. एक दिन बातोंबातों में उस ने अपनी परेशानी दोनों को बताने के साथ यह भी बताया कि उस का मालिक काफी दौलतमंद आदमी है.

“तुम उसी से पैसा क्यों नहीं कमाते?” निशा ने रहस्यमय अंदाज में कहा.

“वह कैसे?” दीपक ने हैरानी से पूछा.

“इस की तरकीब मैं तुम्हें बताऊंगी.” निशा ने कहा.

आश्वासन मिलने पर दीपक को थोड़ी राहत मिल गई. जहांगीरपुरी में रहने वाले प्रदीप और बबलू निशा के भाई थे. दोनों काफी शातिर थे. वे एनजीओ की आड़ में ब्लैकमेलिंग का धंधा करते थे. निशा और धर्मपाल ने इस मुद्दे पर उन से बात की तो काफी सोचविचार कर उन्होंने फिल्म ‘स्पैशल 26’ की स्टाइल में यशपाल टंडन को लूटने की सोची.

इस के बाद उन्होंने दीपक से बात की तो उस ने यशपाल के बारे में सब कुछ बता दिया. उस ने यह भी बताया कि यशपाल चूंकि कमेटी के साथ ब्याज पर भी रुपए देने का काम करते हैं, इसलिए उन के पास बिना हिसाबकिताब की मोटी रकम होती है. प्रदीप और निशा को वह सौफ्ट टारगेट लगे. प्रदीप स्मार्ट युवक था और अधिकारियों वाले अंदाज में रहता था.

सभी ने मिल कर यशपाल को प्रवर्तन निदेशालय के फरजी छापे के जरिए अपना शिकार बनाने का फैसला किया. प्रदीप ने इस योजना में अपने एक दोस्त पंकज तिवारी, भांजे रमन और एनजीओ में काम करने वाली बेबी और राखी को भी लालच दे कर शामिल कर लिया.

प्रदीप, उस का भाई, दोस्त, भांजा और दोनों लड़कियों ने कई बार ‘स्पैशल 26’ फिल्म देखी. प्रदीप को अधिकारी की भूमिका में रहना था, जबकि बाकी को टीम के सदस्य के रूप में. योजना बन गई तो तय दिन 2 नवंबर के एक दिन पहले ही धर्मपाल दीपक के पास देहरादून पहुंच गया.

अगले दिन प्रदीप ने बहाने से पुष्पा की कार मांगी और बबलू, पंकज, रमन, बेबी और राखी के साथ शाम को दिल्ली से चल कर करीब 8 बजे देहरादून पहुंच गया. यशपाल और दीपक तय योजना के तहत उन्हें रास्ते में मिल गए. सभी लोग यशपाल की कोठी पर पहुंचे.

चूंकि यशपाल दीपक को पहचानते थे, इसलिए वह धर्मपाल के साथ बाहर कार ही में रुक गया. यशपाल को उन के फरजी ईडी होने का शक न हो, इस के लिए प्रदीप ने उन्हें उन के दोस्त के यहां पूर्व में पड़े आयकर विभाग के छापे का जिक्र किया. यह बात दीपक उसे पहले ही बता चुका था. उन्होंने बेहद शातिराना अंदाज में 21 लाख कैश और गहने ठग लिए. जातेजाते वे स्कूटी भी ले गए, जिसे उन्होंने कारगी चौक पर छोड़ दिया.

इस के बाद दीपक अपने घर चला गया. धर्मपाल करनाल और बाकी लोग दिल्ली. प्रदीप ने कहा कि वह माल का बंटवारा बाद में करेगा. लेकिन वह सभी से शातिर निकला और अपने भाई के साथ पूरी रकम ले कर फरार हो गया. उस ने सिर्फ बेबी और राखी को 6 हजार रुपए खर्च के लिए दिए थे.

पूछताछ के बाद पुलिस ने आरोपियों का सामना यशपाल टंडन से कराया. वह अपने दोस्त के भतीजे द्वारा दी गई दगा से आहत थे. एसएसपी डा. सदानंद दाते ने 5 जनवरी, 2016 को आरोपियों को मीडिया के सामने पेश कर के केस का खुलासा किया और पुलिस टीम को ढाई हजार रुपए इनाम देने की घोषणा की.

पुलिस ने बाद में गिरफ्तार किए गए दोनों आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक जेल गए आरोपियों की जमानत नहीं हो सकी थी. बाकी अन्य आरोपी निशा उर्फ रेखा, प्रदीप, बबलू, पंकज और रमन की तलाश जारी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

काली कमाई का कुबेर : यादव सिंह – भाग 3

यादव सिंह के खिलाफ सरकार ने तत्काल कोई काररवाई नहीं की थी. इस पर राजनीतिक दलों ने घेराबंदी शुरू की. जब सरकार पर सवाल उठने लगे तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने साफ किया कि आयकर विभाग और अन्य एजेंसियों की जांच रिपोर्ट आने के बाद सरकार यादव सिंह के खिलाफ कोई काररवाई करेगी. आखिर 8 दिसंबर को यादव सिंह समेत 3 लोगों को सस्पैंड कर दिया गया. यादव सिंह यह सोच कर बेफिक्र था कि इस बार भी वह पुराने फार्मूले अपना कर बच जाएगा.

लेकिन यादव सिंह का समय अनुकूल नहीं था. फिर भी उसे अपनी पहुंच और रसूख पर पूरा भरोसा था. उसे पूरी उम्मीद थी कि धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. लेकिन यादव सिंह के सितारे गर्दिश में थे. शायद उस का बिगड़ा खेल बन भी जाता, लेकिन सी बीच उत्तर प्रदेश के चर्चित सीनियर आईपीएस अमिताभ ठाकुर की पत्नी और सामाजिक कार्यकर्ता डा. नूतन ठाकुर ने 11 दिसंबर को हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर दी.

उन्होंने तर्क दिया कि यादव सिंह के यहां आयकर छापों में करोड़ों की अवैध संपत्ति के सुबूत मिले हैं. इसलिए उस के खिलाफ सीबीआई जांच होनी चाहिए. अदालत ने 16 दिसंबर को सरकार से जवाब तलब किया तो सरकार ने इसी बीच 10 फरवरी को यादव सिंह के खिलाफ जांच करने के लिए रिटायर्ड जस्टिस अमरनाथ वर्मा की अध्यक्षता में एक सदस्यीय जांच आयोग गठित कर दिया.

बाद में हुई सुनवाई में याची ने अदालत में तर्क दिया कि राज्य सरकार ने काररवाई करने के बजाय न्यायिक आयोग बना दिया. ऐसा इसलिए किया गया, ताकि सूबे में पूर्व और मौजूदा सरकारों में ऊंची पहुंच रखने वाले यादव सिंह के मामले को रफादफा किया जा सके. आरोप लगाया गया कि सन 2002 से 2014 के बीच यादव सिंह करीब 2 हजार करोड़ की परियोजनाओं से ने बड़ी तादाद में अवैध संपत्ति अर्जित की. याची सीधे तौर पर सीबीआई जांच की मांग की.

इस पर कोर्ट ने एसआईटी से भी जानकारियां हासिल कीं. कई सुनवाइयों के बाद आखिर 16 जुलाई, 2015 की हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच के मुख्य न्यायमूर्ति डा. धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति नारायण शुक्ल की खंडपीठ ने सीबीआई जांच के आदेश दे दिए. हाईकोर्ट ने कहा कि ‘हमारे मतानुसार इस मामले के हालात सीबीआई के सुपुर्द करने लायक हैं. क्योंकि इस में भ्रष्टचार का मामला बनता है.’

अदालत के हस्तक्षेप के बाद यादव सिंह की बचाव की तैयारियां धरी की धरी रह गई. उस के लिए यह बड़ी मुसीबत थी. इस बुरे वक्त में उस के नातेरिश्तेदारों से ले कर बड़े घरानों और नेताओं ने भी पल्ला झाड़ लिया था. वजह यह थी कि कोई भी जांच के लपेटे में नहीं आना चाहता था.

इस दौरान वह खुद भी सामने नहीं आया. आखिर हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने इस मामले में 30 जुलाई, 2015 को यादव सिंह व उस के साथियों के खिलाफ धारा 120बी, 409, 420, 466, 467, 469, 471 के अंतर्गत केस दर्ज कर लिया. इस पूरे प्रकरण की जांच का जिम्मा एसटीएफ व एंटी करैप्शन विंग के सुपुर्द कर दिया गया. सीबीआई जानती थी कि यादव सिंह बड़ा खिलाड़ी है. इसलिए वह उसे बचने का कोई मौका नहीं देना चाहती थी.

4 अगस्त, 2015 को सीबीआई की टीमों ने एक साथ दिल्ली, आगरा, नोएडा व फिरोजाबाद समेत 12 स्थानों पर छापेमारी की और यादव सिंह की 38 प्रौपर्टी का पता लगाने के साथ ही महत्वपूर्ण दस्तावेज बरामद कर लिए. सीबीआई की 14 सदस्यीय टीम ने यादव सिंह की कोठी में घंटों जांचपड़ताल की. आयकर विभाग ने भी सबूत एकत्र किए. अगले कुछ महीनों में जांच में जुटी सीबीआई ने धीरेधीरे टेंडर व जमीनों के आवंटन से जुड़ी 3 हजार फाइलों का जखीरा एकत्र कर लिया.

सीबीआई ने इस दौरान कई बार नोएडा अथौरिटी जा कर जांच की और टेंडर से जुड़ी मूल पत्रावलियों को जब्त किया. यादव सिंह ने सन 2002 से ले कर 1 दिसंबर, 2014 तक विभिन्न कार्यों के हजारों करोड़ रुपए के टेंडर जारी किए थे. सन 2014 में तो महज 8 दिनों के भीतर उस ने 950 करोड़ रुपए के ठेके बांट दिए थे. यह भी साफ हो गया कि यादव सिंह के पास आय से अधिक संपत्ति है.

सीबीआई ने इस की भी जांच की कि 950 करोड़ के बड़े घोटाले में आखिर यादव सिंह बच कैसे गया? इस की नए सिरे से जांच हुई. सीबीआई ने बिल्डरों के ठिकानों पर छापेमारी की और दस्तावेज बरामद किए. इस में खुलासा हुआ कि यादव सिंह ने 5 फीसदी कमीशन के बदले टेंडर बांटे थे. 17 दिसंबर को सीबीआई ने नोएडा के सहायक परियोजना अभियंता रामेंद्र को गिरफ्तार कर लिया. उस से कड़ी पूछताछ के बाद सुबूत जुटाए और उसे जेल भेज दिया गया.

इस बीच अथौरिटी से पता किया गया कि यादव सिंह को तैनाती के बाद से कुल कितना वेतन मिला. पता चला कि सैकड़ों करोड़ की प्रौपर्टी जुटाने वाले यादव सिंह को सन 1980 से निलंबन तक की अवधि में वेतन के रूप में 70 लाख रुपए दिए गए थे. सैकड़ों पत्रावलियों और छापेमारी में बरामद दस्तावेजों की जांच में भ्रष्टïाचार के पुख्ता सबूत मिले. जांच टीम ने सीबीआई के डायरेक्टर अनिल कुमार सिन्हा से विचारविमर्श के बाद यादव सिंह को गिरफ्तार करने का फैसला किया.

आखिरकार सीबीआई ने 3 फरवरी को यादव सिंह को अपने हैड क्वार्टर बुला कर गिरफ्तार कर लिया. रिमांड अवधि पूरी होने पर सीबीआई ने यादव सिंह को पुन: अदालत में पेश किया और 5 दिनों का रिमांड और ले लिया. यादव सिंह जांच में सहयोग नहीं कर रहा था. फलस्वरूप सीबीआई को उस की रिमांड अवधि बढ़वानी पड़ी. 17 फरवरी को उसे पुन: अदालत पर पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. फिलहाल वह जेल में है.

कथा जांच एजेंसियों की कार्यवाई व जनचर्चाओं पर आधारित

लड़की, लुटेरा और बस – भाग 2

फोन की घंटी बजी, मैं ने लपक कर फोन उठाया. दूसरी ओर मेरा एक सबइंसपेक्टर था, जिसे मैं ने शारिक के बारे में पता करने के लिए उस के दोस्तों के यहां और औफिस भेजा था. उस ने बताया, “दोस्तों से तो कुछ पता नहीं चला, लेकिन औफिस वालों से पता चला है कि 2 बजे शारिक के लिए किसी का फोन आया था. इस के बाद वह हड़बड़ा कर औफिस से निकल गया था. तब से वह किसी को दिखाई नहीं दिया.”

मोहल्ले वालों से पता चला था कि 8 दिन पहले नजमा के भाइयों ने किसी लडक़े की घर के पास जम कर पिटाई की थी. वजह मालूम नहीं हो सकी, पर वह लडक़ा शारिक नहीं था.

फोन एक बार फिर बजा. मैं ने रिसीवर उठा कर कान से लगाया तो दूसरी ओर से किसी लडक़ी की घबराई हुई आवाज आई, “अकबर भाई बोल रहे हैं न?”

मैं ने कहा, “हां.”

लडक़ी घबराहट में आवाज नहीं पहचान पाई और जल्दीजल्दी कहने लगी, “अकबर भाई, एक आदमी मुझे पकड़ कर यहां ले आया है. मुझे एक कमरे में बंद कर के खुद न जाने कहां चला गया है? यह फोन दूसरे कमरे में था, खिडक़ी का शीशा तोड़ कर किसी तरह मेरा हाथ वहां पहुंचा है. सारे दरवाजे बंद हैं. प्लीज, मेरे अब्बा तक खबर पहुंचा दें.”

इतना कह कर वह रोने लगी. मैं ने कहा, “मैं अकबर का दोस्त बोल रहा हूं. वह अभी घर पर नहीं है. आप यह बताएं कि आप बोल कहां से रही हैं?”

“यह मुझे नहीं मालूम. मुझे बेहोश कर के यहां लाया गया है. मुझे पता नहीं है.”

“तुम उसे पहचानती हो, जो तुम्हें वहां ले आया है?”

“नहीं, पर वह लंबातगड़ा आदमी है. पतलूनकमीज पहने है, हाथ में कड़ा भी है. वह मेरे कमरे की खिडक़ी से अंदर आया था. उस ने मेरे मुंह पर कोई चीज रखी और मैं बेहोश हो गई. प्लीज, कुछ कीजिए. शारिक या उस के अब्बा से बात करवा दीजिए.”

मैं ने कहा, “मिस नजमा, हम सब आप की तलाश में लगे हैं. लेकिन जब तक आप पता या जगह नहीं बताएंगी, हम कुछ नहीं कर सकते. खिडक़ी से देख कर कुछ अंदाजा नहीं लगता क्या?”

अब तक सभी फोन के पास आ कर खड़े हो गए थे और बात समझने की कोशिश कर रहे थे. मैं ने पूछा, “मिस नजमा, वह आदमी घर में है या कहीं बाहर गया है?”

“मुझे होश आया तो मैं ने गाड़ी स्टार्ट होने की आवाज सुनी. शायद वह कहीं बाहर गया है.”

मैं ने कहा, “मिस नजमा, फोन काट कर तुम टेलीफोन एक्सचैंज फोन करो. वे लोग पता लगा लेंगे कि तुम कहां से बोल रही हो. और इस के बाद एक्सचैंज का नंबर बता कर मैं ने फोन रख दिया. सभी जानने को बेचैन थे कि क्या हुआ. मैं ने उन्हें चुप रहने को कहा और एक्सचैंज फोन किया. सब की निगाहें फोन पर जमी थीं. एक्सचैंज वालों ने कहा, “जैसे ही नंबर ट्रेस होगा, पता बता देंगे.”

एकएक मिनट भारी पड़ रहा था. 15 मिनट बीत गए. घंटी नहीं बजी. मुझे ङ्क्षचता हो रही थी. इस के बाद एक्सचैंज से फोन आया कि उन्हें कहीं से कोई फोन नहीं किया गया. बात हो ही रही थी कि फोन आने का संकेत मिला. मैं ने फोन काट कर दोबारा फोन उठाया तो दूसरी ओर नजमा थी.

उस ने कहा कि वह एक्सचैंज फोन करने की कोशिश कर रही थी, पर कामयाब नहीं हुई, क्योंकि टेलीफोन करने के चक्कर में रिसीवर नीचे गिर गया. डायल में कोई खराबी आ गई है. वहां फोन नहीं लगा. बड़ी मुश्किल से न जाने कैसे आप को लग गया. वह रो रही थी और मिन्नतें कर रही थी कि उसे किसी तरह बचा लें, कहीं अगवा करने वाला आ न जाए.

हम कितने बेबस थे. एक मजबूर लडक़ी की फरियाद सुन रहे थे, पर उस के लिए कुछ कर नहीं पा रहे थे. वह बारबार कह रही थी, “अब फोन काटना मत, वरना दोबारा फोन नहीं मिल पाएगा.”

उसी बीच डीएसपी और एसपी साहब भी आ गए थे. याकूब अली का ड्राइंगरूम थाने का औफिस बन गया था. पूरी स्थिति जानने के बाद एसपी साहब ने कहा, “डीसी साहब का सख्त आदेश है कि किसी भी तरह जल्दी से जल्दी लडक़ी की तलाश की जाए.”

उसी समय नजमा के मांबाप भी दाखिल हुए. नजमा फोन पर थी. उस की आवाज सुन कर उस की मां जोरजोर से रोने लगी. तभी नजमा ने चीखते हुए कहा, “वह आ गया है, गाड़ी की आवाज आ रही है, वह किसी कमरे का दरवाजा खोल रहा है, उस के कदमों की आवाज साफ सुनाई दे रही है.”

मैं ने जल्दी से कहा, “मिस नजमा, हौसले से काम लो. मैं तुम से वादा करता हूं कि मैं तुम्हें जरूर बचाऊंगा.”

इसी के साथ मुझे दूर से गाडिय़ों और हौर्न की आवाजें आती सुनाई दीं. इस का मतलब वह घर किसी बड़ी सडक़ के किनारे था, जिस से बड़ी गाडिय़ां और ट्रक गुजरते थे. तभी उस की धीमी आवाज आई, “कोई दरवाजा खोल रहा है.”

मैं ने उस से कहा, “रिसीवर क्रेडिल के बजाय नीचे रख दो और खिडक़ी के टूटे शीशे के सामने खड़ी हो जाओ.”

उसी वक्त रिसीवर के नीचे गिरने की आवाज आई. शायद नजमा ने घबराहट में रिसीवर छोड़ दिया था. इस के बाद दरवाजा खुलने और किसी मर्द के कुछ कहने की आवाज आई. वह क्या कह रहा था, यह समझ में नहीं आ रहा था. इस के बाद दरवाजा बंद हुआ और बातें खत्म हो गईं. अब बस ट्रैफिक का शोर सुनाई दे रहा था.

एक तरकीब मेरे दिमाग में आई. मैं ने एसपी साहब से पूछा, “सर, आप की जीप में वायरलैस और रिसीवर है?”

उन्होंने कहा, “हां है.”

मैं ने भाग कर उन के ड्राइवर के पास जा कर कहा, “जल्दी से जीप का साइलैंसर निकाल दो.”

इस के बाद साहब से कहा, “मैं ने साइलैंसर निकलवा दिया है. मैं इस जीप से शहर की सडक़ों पर गुजरूंगा. आप अपना कान इस टेलीफोन से लगाए रखें. जब और जहां आप को हमारी जीप की आवाज सुनाई दे, आप वायरलैस से हमें खबर कर दें.”

बात डीएसपी साहब की समझ में आ गई. उन्होंने हैरत से मुझे देखा. एसपी साहब भी खुश और जोश में नजर आए. मैं कुछ बंदों के साथ फौरन जीप से रवाना हो गया. रात के साढ़े 10 बज रहे थे, पर सडक़ें जाग रही थीं. मैं ने वायरलैस चालू कर के एक सबइंसपेक्टर को पकड़ा कर बैठा दिया. मैं ने वे सडक़ें चुनी, जहां से भारी वाहन गुजरते थे. जीप तेजी से सडक़ों पर दौड़ रही थी. उस के शोर से लोग मुड़ कर देख रहे थे. आधा घंटे तक कुछ हासिल नहीं हुआ.

स्पेशल 26 की तर्ज पर लाखों की ठगी – भाग 2

इस घटना से जिला पुलिस में हडक़ंप मच गया था. एसपी (सिटी) अजय सिंह और सीओ मनोज कत्याल भी मौके पर पहुंच गए थे. सभी ने यशपाल से पूछताछ की तो उन्होंने पूरी घटना सिलसिलेवार बता दी. पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि यशपाल टंडन को छापे के बहाने शातिराना अंदाज में ठगा गया है. प्रवर्तन निदेशालय के क्षेत्रीय प्रमुख पी.के. चौधरी ने भी स्पष्ट कर दिया कि उन की किसी टीम ने छापा नहीं डाला है.

यशपाल बुरी तरह हताश हो गए. ठग पूरी तैयारी के साथ आए थे और बड़ी चालाकी से उन्हें ठग कर चले गए थे. मामला बेहद गंभीर था. थाना कोतवाली में यशपाल द्वारा दी गई तहरीर के आधार पर अज्ञात लोगों के खिलाफ अपराध संख्या- 304/2015 पर भादंवि की धारा 595, 419, 420, 120 बी, 406 व 506 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

एसएसपी डा. सदानंद दाते को भी इस घटना की सूचना मिल गई थी. वह काफी हैरान थे. इस की वजह यह थी कि यह फिल्मी स्टाइल में किया गया अपनी तरह का एक अलग अपराध था. उन्होंने एसपी (सिटी) अजय सिंह से सलाह कर के इस मामले के खुलासे के लिए एक टीम का गठन करने का आदेश दिया.

इस स्पैशल औपरेशन ग्रुप की संयुक्त टीम में थानाप्रभारी एस.एस. बिष्ट, लक्खीबाग चौकीप्रभारी राकेश शाह, एसआई दिलबर सिंह, एएसआई सर्वेश कुमार, कांस्टेबल अरङ्क्षवद भट्ट, मनमोहन सिंह, कुलवीर, सत्येंद्र नेगी, प्रमोद, गंभीर सिंह और महिला कांस्टेबल रजनी कोहली तथा सुमन को शामिल किया गया.

इस का नेतृत्व खुद एसपी (सिटी) अजय सिंह कर रहे थे. पुलिस टीम तुरंत अपने काम में लग गई. यशपाल टंडन से हुई पूछताछ के आधार पर पुलिस ने एक्सपर्ट से एक आरोपी का स्कैच भी बनवा कर जारी कर दिया. यशपाल ने कार का जो नंबर बताया था, पुलिस ने अगले दिन उस की जांच की तो वह पंजाब प्रांत की किसी मोटरसाइकिल का निकला. 2 बातें स्पष्ट होती थीं, एक तो यह कि यशपाल को ठीक से नंबर याद नहीं था या फिर कार में फरजी नंबर प्लेट का इस्तेमाल किया गया था.

यशपाल की स्कूटी पुलिस ने उसी दिन कारगी चौक से लावारिस अवस्था में खड़ी बरामद कर ली थी. उन की कोठी के बाहर बाईं ओर एसजीआरआर स्कूल था. उस के बाहर सीसीटीवी कैमरे लगे थे. पुलिस ने उस की रिकौॄडग चैक की, लेकिन उस से कार का नंबर पकड़ में नहीं आ सका.

राजधानी के मुख्य चौराहों पर भी सुरक्षा की दृष्टि से हाई डैफिनेशन कैमरे लगे हैं. पुलिस ने रात 9 से साढ़े 11 बजे तक की उन की फुटेज बारीकी से चैक की तो आशारोड़ी क्षेत्र के कैमरे में वह कार दिख गई, जिस में सवार हो कर कथित ईडी टीम के सदस्य आए थे.

इस में कार का नंबर स्पष्ट नजर आ रहा था. इस तरह पुलिस को नंबर मिल गया. अब तक कई दिन बीत चुके थे. चूंकि नंबर दिल्ली का था, इसलिए एसआई राकेश शाह के नेतृत्व में एक टीम दिल्ली भेज दी गई. दिल्ली पहुंची पुलिस टीम ने आरटीओ औफिस से कार के मालिक के बारे पता किया. पुलिस आरटीओ औफिस से मिले पते पर पहुंची तो वहां जो मिला, पता चला उस ने कार बेच दी थी. जिस व्यक्ति को उस ने कार बेची थी, पुलिस उस के पास पहुंची तो वहां भी निराश होना पड़ा, क्योंकि उस ने भी किसी अन्य को कार बेच दी थी.

पुलिस टीम दिल्ली में ही डेरा डाले थी. कार आदर्शनगर निवासी पुष्पा को बेची गई थी. पुलिस खोजबीन करते हुए पुष्पा के यहां पहुंची तो उस ने बताया कि उस की कार को एक एनजीओ संचालक प्रदीप सिंह मांग कर ले गया था. प्रदीप के बारे में पूछताछ की गई तो पता चला कि वह अपने भाई बबलू और कुछ अन्य साथियों के साथ जहांगीरपुरी में एक औफिस खोल कर एनजीओ चलाता है. उस के यहां स्टाफ भी था. पुलिस ने पूछताछ कर के उस के बारे में जानकारी इकट्ठा कर ली. पुलिस को कार पुष्पा के यहां मिल गई थी.

पुलिस को जो सुराग मिले थे, वे काम के थे. 25 नवंबर को पुलिस टीम जहांगीरपुरी स्थित फ्लैट नंबर डी 268 पर पहुंची. फ्लैट में औफिस चल रहा था. पुलिस को वहां प्रदीप तो नहीं मिला, उस के यहां काम करने वाली 2 लड़कियां मिल गईं.

ईडी के छापे में चूंकि 2 लड़कियां भी शामिल थीं, इसलिए पुलिस ने उन्हें शक के दायरे में रख कर पूछताछ शुरू कर दी. उन लड़कियों में एक श्रद्धानंद कालोनी निवासी बेबी पुत्री वीरेंद्र और दूसरी राखी पुत्री कल्लू थीं. दोनों बेहद साधारण परिवारों से थीं. वे दोनों कई महीने से इस एनजीओ में काम कर रही थीं.

पुलिस ने उन से घुमाफिरा कर सवाल किए तो वे जवाब देने में उलझ गईं. उन्होंने जो सच बताया, उसे सुन कर पुलिस भी हैरान रह गई. इस फरजी छापे की योजना किस ने तैयार की थी, यह तो वे नहीं जानती थीं, लेकिन प्रदीप के साथ छापे में वे भी गई थीं. पुलिस दोनों को हिरासत में ले कर देहरादून आ गई. पुलिस प्रदीप के जहांगीरपुरी स्थित एमसीडी में फ्लैट नंबर 306 पर भी गई थी, लेकिन वहां ताला लगा था.

पुलिस ने दोनों लड़कियों से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि 2 नवंबर को प्रदीप छापा मारने की बात कह कर उन्हें अपने साथ ले गया था. उस के साथ उस का भाई बबलू और 2 दोस्त भी थे, जबकि 2 लोग उन्हें देहरादून में मिले थे. बेबी और राखी प्रदीप एवं बबलू के अलावा किसी और को नहीं पहचानती थीं.

पुलिस ने यशपाल टंडन से लड़कियों का आमनासामना कराया तो उन्होंने उन्हें पहचान लिया. लड़कियों ने हैरान करने वाली बात यह बताई कि प्रदीप ने यह छापा फिल्म ‘स्पैशल-26’ की स्टाइल में मारा था. इस के लिए उस ने खुद तो रिहर्सल किया ही था, उन्हें भी रिहर्सल कराया था. उन्हें कई बार फिल्म भी दिखाई थी.

टीम असली लगे, इस के लिए उन्होंने सफेद रंग के कपड़े सिलवाए थे. अपनी बनाई योजना के अनुसार वे छापा मार कर चले गए थे. प्रदीप के पास ही पूरी रकम थी. छापा मारने के पहले जो 2 लोग देहरादून में मिले थे, वे देहरादून में ही रह गए थे. लड़कियों ने बताया था कि यशपाल टंडन ने टीम को पूरा सहयोग दिया था. उन्होंने खुद ही बताया था कि अमुकअमुक स्थान पर तलाशी लें. इस से यशपाल की भूमिका भी संदिग्ध हो गई थी.

यशपाल कमेटी डलवाते थे. हो सकता था कि घाटा दिखाने के लिए उन्होंने ही यह योजना बनाई हो. इस मुद्दे पर उन से भी पूछताछ की गई, लेकिन इस में उन का कोई हाथ नहीं निकला. अलबत्ता लड़कियों और उन के बयानों में थोड़ा विरोधाभास जरूर बना रहा. अभी मामले का खुलासा पूरी तरह नहीं हो सका था.

एसएसपी डा. सदानंद दाते ने 26 नवंबर को अपने औफिस में प्रेसवार्ता कर के इस फरजी छापे का खुलासा किया. इस के बाद पुलिस ने दोनों लड़कियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. लड़कियों की गिरफ्तारी के बाद पुलिस को विश्वास हो गया कि वारदात में स्थानीय लोगों का भी हाथ जरूर था.

काली कमाई का कुबेर : यादव सिंह – भाग 2

अखिलेश सरकार आई तो यादव सिंह पर शिकंजा कसने की तैयारी की गई. 950 करोड़ के टेंडर घोटाले में अथौरिटी के चीफ इंजीनियर के खिलाफ 13 जून, 2012 को थाना सैक्टर-39 में विभिनन धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया गया. इस बार यादव सिंह को सस्पैंड कर दिया गया.

विरोधी खुश हुए कि यादव सिंह अब लपेटे में आ जाएगा, क्योंकि मामला काफी बड़ा था. लेकिन यह विरोधियों की सोच थी. उन की खुशफहमी को तब झटका लगा, जब यादव सिंह ने अपने दिमागी गणित का फार्मूला मौजूदा सरकार में भी चला दिया. सस्पैंड होने के बावजूद अथौरिटी में यादव सिंह का हस्तक्षेप बराबर बना रहा. बड़े आवंटनों में यादव सिंह की सहमति ली जाती थी. इस रसूख का नतीजा यह निकला कि नोएडा पुलिस ने यादव सिंह को इस मामले में क्लिीनचिट दे दी और अदालत में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी.

फिर कभी इस घोटाले पर सवाल खड़ा न हो, इसलिए इस मामले की सीबीसीआईडी जांच भी हुई, लेकिन यादव सिंह इस में भी बच गया. कुछ महीनों की गर्दिशों के बाद यादव सिंह को न केवल बहाल कर दिया गया, बल्कि प्रमोशन भी मिला. उसे यमुना एक्सप्रेस वे अथौरिटी का चीफ इंजीनियर बना दिया गया.

एक बार फिर यादव सिंह को पंख लगे. वह अपने रसूख को बरकरार रख कर मजे से नौकरी करने लगा. इस के बाद एक तरह से उस की ताकत और भी बढ़ गई थी. अब उस का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता था. यादव सिंह औडी जैसी महंगी लग्जरी गाडिय़ा रखता था. लेकिन वह अपनी कारों पर सरकारी ड्राइवर नहीं रखता था.

यादव सिंह के रसूख का आलम यह था कि उस से मिलने के लिए लोग तरसते थे. वह कहीं किसी फंक्शन में जाता था तो बड़े अफसर और नेता उस के इर्दगिर्द मंडराते नजर आते थे. यादव सिंह का व्यवहार आला दर्जे के अधिकारी जैसा होता था. फंक्शन किसी का भी हो, लेकिन सारी रौनक यादव सिंह पर आ कर सिमट जाती थी. औफिस आने वाले बड़े बिल्डर और ठेकेदार सब से पहले यादव सिंह को खुश करते थे. अथौरिटी में वही होता था, जो यादव सिंह चाहता था. उस की मर्जी के बिना न कोई ठेका दे सकता था और न ही कोई छोटेबड़े आवंटन हो सकते थे. उस की खुशी और अनुमति दोनों के ही मायने होते थे. सरकारी लोगों को वह अपनी निजी जिंदगी से दूर ही रखता था.

यादव सिंह की दौलत पर किसी को कोई शक नहीं था, लेकिन उस की दौलत का दायरा कितना था, यह कोई नहीं जानता था. इस की भी वजह थी, क्योंकि मोटी डील वह अपने घर और होटलों में करता था. किसी की आर्थिक हैसियत का अंदाजा 2 तरीकों से ही होता है. पहला वह खुद जम कर उस का प्रदर्शन करे या फिर कोई दूसरा मय तथ्यों के उस का खुलासा कर दे. यादव सिंह के मामले में वक्त के साथ दूसरा तरीका अपनाया गया.

वह अकूत दौलत का मालिक है, यह बात 17 नवंबर, 2014 को तब पता चली, जब आयकर महानिदेशक (जांच) कृष्णा सैनी के निर्देश पर आयकर निदेशक (जांच) अशोक कुमार त्रिपाठी के नेतृत्व में आयकर विभाग की कई टीमों ने उस की नोएडा वाली कोठी सहित उस के कई ठिकानों पर एक साथ छापेमारी की. इस से उन लोगों की गलतफहमी तो दूर हुई ही, जो उन्हें छोटामोटा अमीर समझते थे, आयकर विभाग भी बुरी तरह चौंक गया.

2 दिनों तक चली इस छापेमारी में यादव सिंह की करोड़ों की संपत्ति पकड़ में आई. प्रौपर्टी के कागजात व अन्य दस्तावेज कई सूटकेसों में भरे हुए थे. कोठी के बाहर खड़ी सफेद रंग की औडी कार की डिग्गी से ही 10 करोड़ रुपए नगद बरामद हुए. घर में रखी तिजोरियों और अलमारियों को खंगालने के साथ ही आयकर विभाग ने उन के कई बैंकों के लौकर भी खंगाले और वहां से संपत्तियों के पेपर्स के साथसाथ करीब 2 करोड़ रुपए के आभूषण बरामद किए. इन आभूषणों में 9 लखा हार, हीरे के कई सैट, हीरे जड़ाऊ कंगन और गहनों के गिफ्ट आदि थे. घर में ही गहनों का मिनी शोरूम बना था. उस के परिवार और नजदीकियों के नाम करोड़ों की संपत्तियां थीं.

यह बड़ी काररवाई थी. इस से यादव सिंह छटपटा गया. इस के चलते ही यह राज भी खुल गया कि यादव सिंह ने अपनी पत्नी को तलाक दे रखा था. इस की वजह भी पता चल गई. दरअसल यादव सिंह ने पत्नी व बच्चों के नाम पर कारोबारी घरानों के साथ मिल कर 30 से ज्यादा कपंनियां खड़ी कर दी थीं. इन कंपनियों में कुसुम गारमेंटï्स प्रा.लि., न्यू एरा सौफ्टवेयर, चाहत टैक्नौलोजी प्रा.लि., केएस अल्ट्राटैक प्रा.लि., क्विक इन्फौटैक सौल्यूशन प्रा.लि. व हिचकी क्रियेशंस प्रा.लि. प्रमुख थीं.

खास बात यह थी कि महज कुछ हजार से शुरू होने वाली ये कंपनियां कुछ ही दिनों में करोड़ों के टर्नओवर तक पहुंच गई थीं. बताते हैं कि यादव सिंह ब्लैकमनी को कंपनियों में लगा कर उसे व्हाइट मनी बनाना चाहता था. वैसे यादव सिंह खुद इन कंपनियों के मालिक नहीं था. इन कंपनियों को उस ने सन 2006 से ही खड़ा करना शुरू कर दिया.

एक तरफ की काली कमाई दूसरी तरफ जा रही थी. कंपनियों में नोट गिनने की मशीनें थीं. करोड़ों रुपयों की शिफ्टिंग में निजी सुरक्षाकर्मियों का सहारा लिया जाता था. बात यहीं खत्म नहीं हुई. यादव सिंह के यहां से छापे में मिले आभूषणों के आंकलन और परख के लिए सर्राफों को बुलाया गया. आभूषणों को देख कर सर्राफों को भी पसीने आ गए, क्योंकि सभी जेवरात न केवल महंगे थे, बल्कि सौ फीसदी खरे थे.

यादव सिंह भ्रष्ष्टचार का मगरमच्छ बन कर सामने आया था. अपने पद पर रहते हुए उस ने अपने नाते रिश्तेदारों को धड़ाधड़ महंगे प्लाट आवंटित किए थे. आयकर विभाग ने यादव सिंह का पासपोर्ट भी जब्त कर लिया था. इस सब के बावजूद यादव सिंह बेफिक्र था. इस की वजह थी उन की सियासी पकड़ और पहुंच. चर्चा होने लगी थी कि यादव सिंह आयकर विभाग को टैक्स चुका कर पाकसाफ बच जाएगा. क्योंकि आयकर विभाग को बरामद संपत्तियों, नगदी पर टैक्स से मतलब होता है. बहरहाल, आयकर विभाग ने अपनी जांच जारी रखी.

इसी जांच में पता चला कि यादव सिंह के परिवार के नाम जो कंपनियां थीं, उन का लेनदेन विदेशों में भी था. प्रवर्तन निदेशालय को इस से अवगत करा दिया गया. इसी बीच यादव सिंह सुप्रीम कोर्ट की तरफ से भ्रष्टïाचार के मामलों को ले कर बनाए गए विशेष जांच दल (एसआईटी) के रडार पर वह आ गया. एसआईटी ने इस मामले को संज्ञान में ले कर काररवाई शुरू कर दी.

अमीर बनने की चाहत

लड़की, लुटेरा और बस – भाग 1

यह एक शहरी थाने का मामला है. शाम को मैं औफिस में बैठा एक पुराने मामले की फाइल पलट रहा था, तभी 2-3 लोग काफी घबराए हुए मेरे पाए आए. शक्लसूरत से वे लोग ठीकठाक लग रहे थे. उन में एक दुबलापतला और अधेड़ उम्र का आदमी था, उस का नाम इनायत खां था, वह शहर का चमड़े का सब से बड़ा व्यापारी था.

उस ने बताया कि उस की बेटी गायब है. उसे शारिक नाम के युवक ने अगवा किया है. वह उन का दूर का रिश्तेदार है, जिस की अभी जल्दी ही किसी औफिस में नौकरी लगी है. इस के पहले वह आवारागर्दी किया करता था. उस की मां उस के पास उन की बेटी का रिश्ता मांगने आई थी, पर उन्होंने उसे कोई जवाब नहीं दिया था.

इनायत खां ने आगे बताया कि उस की बेटी नजमा मुकामी कालेज में पढ़ रही थी. उस की उम्र 17 साल थी. शरीफ उसे बहलाफुसला कर भगा ले गया था. मैं ने उस की शिकायत दर्ज कर ली और एक एसआई तथा 2 सिपाहियों को शारिक के बारे में पता करने उस के घर भेज दिया. आधे घंटे में वे शारिक के पिता और बड़े भाई को साथ ले कर थाने आ गए. दोनों के चेहरों पर परेशानी झलक रही थी.

शारिक के बाप ने कहा, “थानेदार साहब, मेरा बेटा शारिक ऐसा गलत काम नहीं कर सकता. फिर उसे ऐसा करने की जरूरत ही क्या थी? 2-3 महीने में वैसे भी नजमा से उस की शादी होने वाली थी.”

इस पर नजमा का बाप भडक़ उठा, “याकूब अली, तुम ने बेटे के लिए नजमा का रिश्ता मांगा जरूर था, पर अभी शादी तय कहां हुई थी? शायद इसी वजह से उस ने मेरी बेटी को गायब कर दिया है. तुम लोगों की बदनीयती सामने आ गई है.”

दोनों के बीच तकरार होने लगी. मैं ने उन्हें चुप कराया. याकूब अली इस बात पर अड़ा था कि शारिक और नजमा की शादी तय हो चुकी थी, जबकि इनायत खां मना कर रहा था. मैं ने उन्हें समझाबुझा कर घर भेज दिया.

मैं ने सोचा, थोड़े काम निपटा कर इनायत खां के घर जाता हूं कि तभी डिप्टी कमिश्नर साहब का फोन आ गया. मैं चौंका, अंग्रेज हाकिम के मिजाज को वही लोग समझ सकते हैं, जिन्होंने उन के अंडर में काम किया हो. उन्होंने लडक़ी के अगवा के मामले का जिक्र करते हुए कहा, “तुम फौरन लडक़ी के बारे में पता करो. किसी भी कीमत पर कुछ ही घंटों में मुझे लडक़ी चाहिए.”

मैं ने उन्हें यकीन दिला कर फोन बंद कर दिया. इस के तुरंत बाद डीएसपी साहब को फोन लगाया. उन्होंने भी कहा, “डीसी साहब का फोन आया था. तुम फौरन लडक़ी की तलाश में लग जाओ, शारिक को पकडऩे के लिए छापा मारो, मैं ने शहर से निकलने वाले सारे रास्तों पर नाकाबंदी करा दी है. रेलवे स्टेशन और बसस्टैंड पर भी आदमी भेज दिए हैं.”

डीएसपी साहब से सलाह कर के मैं सहयोगियों के साथ याकूब अली के घर जा पहुंचा. उस समय रात के 8 बज रहे थे. शारिक के भाई अकबर ने दरवाजा खोला. याकूब अली घर पर नहीं था. मैं ने थोड़ा तेज लहजे में कहा कि शारिक को छिपाने की गलती न करें, वरना परेशानी में पड़ जाएंगे. शारिक की मां अपने बेटे की सफाई में दुहाई देने लगी.

उस ने बताया कि नजमा इनायत खां की सगी बेटी नहीं थी. उस ने बीवी की मौत के बाद दूसरी शादी की थी. यह लडक़ी उसी दूसरी बीवी की है और उस के साथ इनायत खां के यहां आई थी. नजमा की मां रईसा उन की रिश्तेदार थी, इसलिए उन का एकदूसरे के यहां आनाजाना था.

नजमा शारिक को पसंद करने लगी थी. वह अकसर उन के घर आ कर छोटेमोटे काम वगैरह भी कर देती थी. शारिक की मां को वह अम्मीजान कहती थी. शारिक भी उसे पसंद करने लगा था. उस के छोटे भाई भी उसे खूब चाहते थे. इसी वजह से उस ने शारिक के रिश्ते की बात चलाई थी, जो उन्होंने मंजूर कर ली थी. 3-4 महीने में शादी होने वाली थी. वह उलझन में थी कि अब वे लोग ऐसा क्यों कह रहे थे कि शादी तय नहीं थी, जबकि सब कुछ तय हो चुका था.

रईसा शारिक की मां की चचेरी बहन थी. वह खुशीखुशी बेटी देने को तैयार थी. अब क्यों इनकार कर रही हैं, यह बात समझ के बाहर थी. मुझे लगा रईसा से मिल कर सच्चाई मालूम करनी पड़ेगी. मैं इसी बात पर विचार कर रहा था कि फोन की घंटी बजी. अकबर ने फोन उठाया, आवाज सुन कर उस का रंग उड़ गया. 2 शब्द बोल कर उस ने रिसीवर रख दिया.

“कौन था?” उस की मां ने पूछा.

“रौंग नंबर था.” उस ने जल्दी से कहा.

मैं समझ गया कि वह कुछ छिपा रहा है. मैं ने कहा, “तुम कह रहे थे कि शारिक 8 बजे तक घर आ जाता है, अब तो 9 बज रहे हैं, वह आया नहीं, बताओ कहां है? और हां, अब फोन आएगा तो तुम नहीं, मैं उठाऊंगा.”

इस के बाद मैं एक सिपाही को चौधरी इनायत खां के यहां भेज कर खुद शारिक की मां और उस के भाई से पूछताछ करने लगा. उन्होंने बताया कि शारिक औफिस से 3 बजे आता है, खाना खा कर थोड़ा आराम करता है, इस के बाद जाता है तो 7-8 बजे आता है, पर आज वह एक बार भी घर नहीं आया. मां अपने बेटे की तारीफें करती रही.

सिपाही इनायत खां के यहां से पूछताछ कर के आ गया. उस ने बताया, “साहब, उन की पौश इलाके में शानदार कोठी है. नजमा की मां रईसा से बात हुई. उन का कहना है कि शारिक का रिश्ता आया था, लेकिन बात बनी नहीं. जहां तक नजमा के अपहरण की बात है, उस में पक्के तौर पर शारिक का हाथ है.”

जिस सबइंसपेक्टर को जांच के लिए भेजा था, उस ने बताया, “नजमा शाम से पहले लौन में बैठी थी. इस के बाद अपने कमरे में चली गई. थोड़ी देर बाद मां उस के कमरे में गई तो वह कमरे से गायब थी. कमरे की पिछली खिडक़ी खुली थी. जनाब मैं ने खुद कमरा बारीकी से देखा है, शीशे का एक गिलास टूटा पड़ा था, तिपाई गिरी पड़ी थी, लडक़ी की एक जूती कमरे में पड़ी थी, हालात बताते हैं कि लडक़ी को खिडक़ी के रास्ते से जबरदस्ती ले जाया गया था.”

सबइंसपेक्टर की बातें सुन कर मैं उलझन में पड़ गया. नजमा के घर वाले शारिक पर इल्जाम लगा रहे थे. जबकि शारिक की मां का कहना था कि जब शारिक की उस से शादी होने वाली थी तो वह ऐसा क्यों करेगा? उस का कहना था कि यह सब लडक़ी के सौतेले बाप की साजिश है.

स्पेशल 26 की तर्ज पर लाखों की ठगी – भाग 1

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून की सडक़ों पर रोज की तरह उस दिन भी वाहनों की आवाजाही लगी थी. रात के लगभग 9 बजे दिल्ली नंबर की एक चमचमाती सफेद रंग की एलैंट्रा कार नंबर- डीएल 3सी एक्यू 0504 सहारनपुर चौक से राजपुर की ओर चली जा रही थी. कार में 4 आदमी और 2 औरतें सवार थीं. सभी ने सफेद रंग की पैंट और कमीज पहन रखी थी.

कार कारगी चौक पहुंच एक किनारे खड़ी हो गई. कार के रुकते ही वहां पहले से खड़े 2 लोग उस के नजदीक आए तो कार की ड्राइविंग सीट पर बैठा युवक उन से मुखातिब हुआ, “सब ठीक है न?”

“यस, लाइन क्लियर है. बस आप लोगों का ही इंतजार था.” कह कर वे दोनों भी कार में सवार हो गए. इस के बाद कार फिर चल पड़ी तो कुछ देर में वह पौश इलाके सरकुलर रोड पर कोठी नंबर 92 के सामने जा कर रुकी.

यह कोठी बिल्डर यशपाल टंडन की थी. यशपाल प्रौपर्टी का काम करते थे. इस के अलावा बड़ीबड़ी कमेटियां भी डालते थे, जिस में लाखों रुपए का लेनदेन होता था. यशपाल का अपना औफिस भी था, जिस में वह सुबह से शाम तक बैठते थे. कोई नहीं जानता था कि उस दिन यशपाल का वास्ता एक बड़ी मुसीबत से पडऩे वाला था. कार में बाद में सवार हुए दोनों लोगों को छोड़ कर बाकी सभी कार से नीचे उतरे. उन में से एक के हाथ में ब्रीफकेस था. कार से उतरे लोग कोठी के गेट पर जा कर खड़े हो गए.

उन्होंने डोरबैल बजाई तो कुछ सेकैंड बाद दरवाजे पर यशपाल टंडन खुद आए. उन के दरवाजा खोलते सब से आगे खड़े एक आदमी ने पूछा, “आप यशपाल टंडन?”

“जी हां, लेकिन आप कौन?” उन्होंने पूछा तो उसी आदमी ने रौब जमाते हुए सख्त लहजे में कहा, “हम लोग प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से हैं. आइए अंदर बैठ कर बातें करते हैं.”

टंडन सकपका गए. एकाएक उन की कुछ समझ में नहीं आया. आने वालों के तेवर उन्हें ठीक नहीं लग रहे थे. उन्होंने हकलाते हुए कहा, “ल…ल…लेकिन इस तरह.”

“कहा न, चलो अंदर चल कर बात करते हैं.” कहने के साथ ही टीम का नेतृत्व कर रहे उस आदमी ने साथियों से कहा, “दरवाजा बंद कर के इन्हें अंदर ले आइए और बाहर खड़े लोगों से कहिए कि बिना इजाजत कोई अंदर न आने पाए.”

हालात अचानक बदल गए थे. टंडन चुपचाप उन के साथ अंदर आ गए. ड्राइंगरूम में आते ही उन्होंने टंडन को सोफे पर बैठा कर कहा, “मि. टंडन, हमें तुम्हारे घर की तलाशी लेनी है. हमें शिकायत मिली है कि तुम्हारे पास बहुत ब्लैकमनी है.”

“ऐसा तो कुछ भी नहीं है सर, जरूर आप को किसी ने गलत सूचना दी है.” टंडन ने सफाई देनी चाही तो टीम का नेतृत्व कर रहा आदमी बड़े ही आत्मविश्वास से बोला, “हमारी इन्फौरमेशन गलत नहीं है. हम तुम पर तभी से नजर रख रहे हैं, जब तुम्हारे दोस्त विजय मनचंदा के यहां आयकर का छापा पड़ा था, उस समय तुम खुद भी तो वहां मौजूद थे.”

उस की इस बात पर यशपाल चौंके, क्योंकि उस अधिकारी ने जो कहा था, वह एकदम सही था. दरअसल 4 महीने पहले उन के दोस्त विजय मनचंदा के यहां जब आयकर विभाग ने छापा मारा था, तब वह भी वहां मौजूद थे. इतना ही नहीं, आयकर विभाग ने उन का पहचान पत्र ले कर उन्हें गवाह भी बना लिया था. वह घबरा गए. यह सब उन की पत्नी भी देखसुन रही थीं. वह भी घबरा गईं. टंडन और उन की पत्नी को सोफे पर एक तरह से बंधक बना कर बैठा दिया गया.

“मि. टंडन, हमें कोऔपरेट कीजिए.” सामने बैठे आदमी ने कहा तो टीम में शामिल युवा लड़कियां टंडन दंपति के इर्दगिर्द खड़ी हो गईं, जबकि बाकी लोग कोठी की तलाशी लेने लगे. करीब आधा घंटे तक जब कुछ हाथ नहीं लगा तो उन्होंने सेफ की चाबी ले कर सारा सामान उलटपलट दिया. इस जांचपड़ताल में उन के हाथ संपत्ति के कुछ कागजात, नकदी और गहने लगे. उन्हें जो भी मिला, वह सब एक स्थान पर रखते गए. उन के बारे में तरहतरह के सवाल भी करते रहे.

टीम का नेतृत्व कर रहे अधिकारी ने यशपाल को गहरी नजरों से घूरते हुए कहा, “इन सब का हिसाब देने तुम्हें कल औफिस आना होगा. तुम्हारे खिलाफ एफआईआर तो होगी ही, जरूरत पड़ी तो गिरफ्तारी भी हो सकती है.”

यशपाल के तो होश उड़ गए. उन्हें परेशान देख कर अधिकारी ने कहा, “हमारे पास एक बीच का रास्ता है.”

“क्या?” डरेसहमे यशपाल टंडन ने पूछा तो राजदाराना अंदाज में वह बोला, “अगर हमें 50 लाख रुपए मिल जाएं तो तुम आगे की काररवाई से बच सकते हो.”

इस काररवाई से दहशत में आए यशपाल सोच में पड़ गए. गिड़गिड़ाने वाले अंदाज में उन्होंने कहा, “सर, मेरे पास इतनी बड़ी रकम नहीं है. कुछ कम हो जाए तो मैं कोशिश कर सकता हूं.”

“ठीक है, रकम कम करेंगे तो हम इन्हें अपने साथ ले जाएंगे.” उस ने गहनों की ओर इशारा कर के कहा.

यशपाल इजाजत ले कर सोफे से उठे और घर में रखे 6 लाख रुपए निकाल कर उन्हें दे दिए. लेकिन छापा मारने वाली टीम ने उन्हें लेने से मना कर दिया. उन्होंने कहा कि इतने में बात नहीं बनेगी. इस के बाद टंडन ने फोन कर के अपने किसी परिचित व्यापारी से 10 लाख रुपए मंगा कर लिए. यह रकम लेने टंडन खुद दरवाजे तक गए थे. इतने पर भी बात नहीं बनी तो उन्होंने अपने किसी अन्य परिचित से 5 लाख रुपए और मंगा कर दिए.

टीम का मुखिया इतने पर भी संतुष्ट नजर नहीं आया. उस ने सारी नकदी और आभूषण एक बैग में रख लिए. इस के बाद चलने लगा तो कहा, “थोड़ी देर के लिए अपनी स्कूटी देना.”

टंडन ने मना किया तो उस ने कहा, “आप चिंता न करें, हमारा कर्मचारी आ कर उसे दे जाएगा.”

करीब सवा 2 घंटे की काररवाई के बाद पूरी टीम चली गई.

यशपाल टंडन के यहां ईडी का यह छापा 2 नवंबर, 2015 की रात पड़ा था. इस छापे से वह काफी परेशान थे. उन्होंने अपने परिचितों को फोन कर के इस छापे की जानकारी दी तो बिना पुलिस के रात में छापा मारना और स्कूटी मांग कर ले जाने वाली बात से उन लोगों को यह सब संदिग्ध लगा.

जब यह साफ हो गया कि आयकर विभाग या प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) रात में छापा नहीं मारता तो लगा कि उन के साथ कोई बड़ी गड़बड़ हुई है. परिचितों से सलाहमशविरा कर के यशपाल टंडन ने इस की सूचना पुलिस कंट्रौल रूम को दे दी.

फरजी ईडी टीम द्वारा छापे के बहाने लाखों रुपए ले जाने की घटना की सूचना पा कर थाना कोतवाली के प्रभारी एस.एस. बिष्ट और लक्खीबाग चौकीप्रभारी राकेश शाह पुलिस बल के साथ टंडन की कोठी पर पहुंच गए. अधिकारियों को भी सूचित कर दिया गया था.