आशिक बना कातिल : कमरा नंबर 209 में मिली लाश का रहस्य – भाग 2

अजरू मौके की तलाश में था. उसे एक दिन यह मौका मिल गया. जोया ने उस दिन उस से एक होटल में कमरा बुक करने के लिए कहा था. कई दिनों से अजरू महसूस कर रहा था कि जोया उसे संपूर्ण रूप से पा लेने के लिए आतुर है. वह जब भी उस से मिलती थी, उस से कस कर लिपट जाती थी. अपने जिस्म का सारा बोझ वह उस के ऊपर डाल देती थी.

जोया को अपनी सच्चाई बताने का पक्का मन बना कर उस ने अलीगढ़ में एक होटल में कमरा बुक कर लिया. जोया को उस ने कमरा बुक होने की बात बताई तो वह बहुत खुश हो गई. वह शाम को ही धोलाना से अलीगढ़ पहुंच गई.

अजरू होटल के बाहर उस का इंतजार कर रहा था. वह जोया को ले कर होटल के बुक किए कमरे में आ गया. कमरे में आते ही जोया ने उस के गले में अपनी नाजुक बांहों का हार पहना दिया. वह अपनी नाक अजरू की नाक से रगड़ती हुई चहक पड़ी, ”मैं ने तुम्हें अपना सरताज मान लिया है अजरू. मेरे इस पाक जिस्म को तुम्हें छू लेने का मैं पूरा अधिकार दे रही हूं. आज तुम मुझे कली से फूल बना दो.’’

”तुम्हें संपूर्ण पा लेने की लालसा मेरे दिल में भी है जोया, लेकिन…’’

”लेकिन क्या…?’’ जोया उसे आश्चर्य से देखती हुई खोली.

”मैं तुम्हें अपनी एक सच्चाई बता देना चाहता हूं जोया, ताकि अपना पाक जिस्म मुझे सौंपने से पहले तुम ‘हां’ या ‘न’ कहने का फैसला ले सको.’’

”ऐसी क्या बात है अजरू?’’ जोया अलग हो कर उसे हैरानी से देखने लगी.

अजरुद्दीन गंभीर हो गया. उस ने जोया की ओर देखा, वह उसे ही एकटक देख रही थी. अजरू ने मन को पक्का कर लिया और धीरे से बोला, ”मैं पहले से शादीशुदा हूं जोया, मेरे 5 बच्चे भी हैं.’’

जोया उर्फ शहजादी कुछ पलों तक अजरू को ठगी सी खड़ी देखती रही फिर मुसकरा कर बोली, ”तुम शादीशुदा हो, इस से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा. मैं तुम्हारी बेगम बन कर एक कोने में पड़ी रहूंगी’ मुझे तुम्हारा प्यार चाहिए और कुछ नहीं.’’

”सोच लो जोया, प्यार के जोश में उठाया गया यह कदम तुम्हारे लिए आगे चल कर परेशानी का सबब न बन जाए? बाद में तुम पछताओ कि तुम ने नादानी में फैसला ले कर अपना सब कुछ खो दिया.’’

”अजरू, मैं ने तुम्हें दिल की गहराइयों से प्यार किया है. तुम यदि यह बात छिपा कर मुझे पाने की चेष्टा करते तो मुझे बहुत दुख पहुंचता, तुम ने एक अच्छे आदमी होने की मिसाल कायम की है.’’

”मैं तुम्हारे लिए अच्छा हूं जोया, लेकिन मैं अपनी पत्नी जीनत को धोखा दे कर उस के साथ नाइंसाफी कर रहा हूं, जानती हो क्यों?’’

”क्यों?’’

”क्योंकि तुम दुनिया की बेहद हसीन चीज हो, तुम मेरे दिल में बस गई हो. मैं अब तुम्हारे बगैर जिंदा नहीं रह पाऊंगा.’’

”ओह! मेरे अच्छे अजरू.’’ जोया ने लरजते स्वर में कहा और अजरू से लिपट गई.

अजरू ने उस के नाजुक जिस्म को अपनी बाहों में समेट लिया और झुक कर अपने तपते होंठ जोया के पतले पतले अधरों पर टिका दिए. कुछ पलों बाद उस कमरे में 2 जिस्मों की महकती सांसों और फुसफुसाते शब्दों से भर गए.

अजरू ने क्यों बेचीं बापदादा की जमीनें

जोया उर्फ शहजादी को संपूर्ण रूप से पा लेने के बाद अजरू प्रेमिका का दीवाना हो गया. जोया पर अब वह दिल खोल कर रुपया खर्च करने लगा. वह उस के लिए महंगे महंगे गिफ्ट देने लगा. जोया को उस ने ऊपर से नीचे तक गहनों से लाद दिया. उन की लव स्टोरी गहराती चली गई.

जोया ने अजरू के इस दीवानगी की कद्र की, वह अपने मादक जिस्म की तपिश से अजरू को गरमाने में जरा भी संकोच नहीं करती थी. जोया की जवानी में अजरू पूरी तरह डूब गया था. अब उसे ख्वाबों में भी जोया ही चाहिए थी.

इस पागलपन का परिणाम यह हुआ कि अजरू अपने बापदादा की जमीनें बेचने लगा. जमीन से मिले रुपयों को वह जोया पर खर्च कर देता. जोया अजरू के इन कीमती तोहफों को पा कर आसमान में उडऩे लगी थी.

जोया का बाप और भाई जोया के बहकते कदमों से अंजान नहीं थे. वह सब देख और समझ रहे थे, लेकिन खामोश थे, क्योंकि जोया के द्वारा घर में हर कीमती सामान आ रहा था. वह लोग अजरू से ही जोया का निकाह कर देना चाहते थे.

अजरू उन के घर आता तो वह उस का गर्मजोशी से आदरसत्कार करते थे. एक प्रकार से जोया का पूरा परिवार अजरू को जोया का भावी शौहर मानने लगे थे.

इधर अजरू की बीवी जीनत बेगम अपने शौहर के बदलते रंग से परेशान थी, वह देख रही थी उस का शौहर बापदादा की जमीनें बेच रहा है, लेकिन वह रुपया घर में खर्च नहीं कर रहा है, कहीं और खर्च कर रहा है. जीनत का अनुमान था अजरू ने कोई बड़ा बिजनैस शुरू कर दिया है.

एक दिन अजरू का जानकार दोस्त उस से मिलने उस के घर आया. अजरू घर पर नहीं था. उस दोस्त ने जीनत का हाल पूछा, ”कैसी हो भाभी?’’

”अच्छी हूं.’’ जीनत ने औपचारिकतावश कहा, ”तुम्हारे भाईजान तो घर पर नहीं हैं.’’

”आजकल अजरू मिलता ही नहीं है.’’ अजरू का दोस्त परेशान हो कर बोला, ”पहले अजरू मेरे से रोज मुलाकात कर लेता था.’’

”उन्होंने कोई बिजनैस शुरू कर दिया है, इसीलिए तुम से नहीं मिल पाते हैं.’’

वह दोस्त मुसकरा दिया, ”कैसा बिजनैस भाभी, वह तो जोया के प्यार में पागल हुआ पड़ा है.’’

यह सुन कर जीनत का दिल धड़क उठा, ”यह जोया कौन है भाईजान?’’

”जोया धौलाना (हापुड़) में रहती है, भाईजान उस के इश्क में पड़ गए हैं. क्या आप यह नहीं जानतीं.’’

”नहीं, मैं उन का घर और बच्चों की देखभाल में उलझी रहती हूं. मुझे क्या खबर कि वह बाहर क्या कर रहे हैं.’’

”आप नादान और भोली हैं, घर में ही रहेंगी तो अजरू आप के हाथ से निकल जाएगा. उस के पैरों में रस्सी बांध कर रखना जरूरी है. मैं अजरू का गहरा दोस्त हूं, उस का अच्छा बुरा सोचना मेरा फर्ज है. मैं ने आप को आगाह कर दिया है. आप यह बात अजरू से मत कहना, नहीं तो हमारी दोस्ती में दरार पड़ जाएगी…’’

”आप का नाम मैं नहीं लूंगी भाईजान. आप ने मुझे उन की प्रेम कहानी की सच्चाई बता कर बहुत बड़ा एहसान किया है.’’ जीनत ने गंभीर स्वर में कहा, ”मैं आज ही उन की खबर लूंगी.’’

अजरू का दोस्त चला गया. जीनत को अपने शौहर की करतूत का पता चल चुका था. बापदादा की जमीनें बेच कर अजरू जोया के ऊपर खर्च कर रहा है, यह बात उसे परेशान और चिंता में डाल देने वाली थी.

फारेस्ट औफीसर का कातिल प्रेमी

हनीमून पर दी हत्या की सुपारी – भाग 1

सन 2009 के जुलाई महीने में एनी हिंडोचा अपनी कजिन स्नेहा से मिलने ल्यूटोन गई तो वहीं उस की मुलाकात श्रीन देवानी से हुई. श्रीन स्नेहा का पारिवारिक मित्र था. श्रीन देवानी हेल्थकेयर बिजनैस का एक जानामाना नाम था. मूलरूप से भारत का रहने वाला श्रीन देवानी का परिवार लंदन के ब्रिस्टल शहर में रहता था. सालों पहले उस के घर वाले यहां आ कर रहने लगे थे. उस के पिता पीएसपी हेल्थकेयर कंपनी चलाते थे. श्रीन देवानी का जन्म वहीं हुआ था.

यूनिवर्सिटी औफ मैनचेस्टर से इकोनौमिक्स में ग्रैजुएशन कर के श्रीन वहीं एक कंपनी में एकाउंटेंट की नौकरी करने लगा था. इसी नौकरी के दौरान स्नेहा से उस की दोस्ती हुई थी. नौकरी कर के श्रीन को जब अच्छाखासा अनुभव हो गया तो उस ने अपना पारिवारिक कारोबार संभाल लिया था. नौकरी उस ने भले छोड़ दी थी, लेकिन दोस्तों से वह पहले की ही तरह मिलताजुलता रहता था.

दोस्तों से ही मिलने जुलने में श्रीन की मुलाकात स्नेहा की कजिन एनी हिंडोचा से हुई तो पहली ही मुलाकात में खूबसूरत एनी उसे कुछ इस तरह भायी कि एक बार उस के चेहरे पर उस की नजर पड़ी तो वह अपनी नजर को हटा नहीं सका.

एनी ने श्रीन देवानी के दिल में एक अजीब सी हलचल मचा दी थी. अब तक उस के संपर्क में तमाम लड़कियां आई थीं, लेकिन जो बात उस ने एनी में पाई थी, शायद वह उन में से किसी में नहीं दिखी थी. इसीलिए वह उस पर से नजर नहीं हटा सका था.

श्रीन एनी को एकटक देख रहा था. उसे इस बात की भी परवाह नहीं थी कि वह जो कर रहा है, वह अभद्रता है और उस की इस अभद्रता पर लोग उस के बारे में क्या सोचेंगे.

एनी को उस के मन की बात भांपते देर नहीं लगी थी. श्रीन भी कम आकर्षक नहीं था. सुखी और संपन्न तो था ही. एक लड़की को जिस तरह का मर्द चाहिए, वे सारे गुण उस में थे. इसलिए उस का एकटक ताकना एनी को बुरा लगने के बजाय अच्छा ही लगा था. कहा जाए तो उस का हाल भी श्रीन से कुछ अलग नहीं था.

जब दोनों के ही दिलों की हालत एक जैसी हो गई तो वे एकदूसरे की आंखों में डूब गए. तभी स्नेहा ने चुटकी लेते हुए कहा, ‘‘यहां तुम दोनों के अलावा भी तमाम लोग मौजूद हैं. उन लोगों की ओर भी देख लो.’’

श्रीन और एनी को अपनी अपनी गलती का अहसास हुआ. दोनों शरमा गए, इसलिए कुछ कह नहीं सके, सिर्फ मुसकरा कर रह गए. दोनों बातें भले ही अन्य लोगों से करते रहे, पर नजरें एकदूसरे को ही ताकती रहीं. इतना सब होने के बाद अब उन्हें एकदूसरे से यह कहने की जरूरत नहीं रह गई थी कि वे एकदूसरे के दिलों में बस चुके हैं. इस तरह उन के प्यार का इजहार नजरों से ही हो गया था.

वहां से विदा होने से पहले एनी और श्रीन ने एकदूसरे के नंबर ले लिए थे. इस के बाद उन की मोबाइल पर बात ही नहीं होने लगी, बल्कि दोनों ऐसी जगहों पर मिलने भी लगे, जहां सिर्फ वही दोनों होते थे. एकांत में मिल कर दोनों अपनेअपने दिलों की बात कह कर बेहद सुकून महसूस करते थे. ज्यादातर वे ब्रिस्टल और स्टाकहोम के बीच मिलते थे.

एकांत में एक दिन जब श्रीन ने एनी की ठोढ़ी उठा कर उस की आंखों में झांकते हुए कहा कि वह उसे बहुत प्यार करता है तो एनी उस की हथेली अपने हाथों में दबा कर बोली, ‘‘प्यार! मैं तुम्हें तुम से भी ज्यादा प्यार करती हूं. मेरी हर धड़कन, हर सांस अब तुम्हारे लिए है. तुम भले ही मुझ से दूर रहते हो, पर यादों की वजह से हर पल मेरे साथ होते हो.’’

‘‘एनी, सागर की गहराई को तो नापा जा सकता है, लेकिन दिल की गहराई को किसी भी तरह नहीं नापा जा सकता. वरना मैं भी दिखा देता कि मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूं. तुम्हारे प्यार से इस जिंदगी को एक मकसद मिल गया है. अब इसे जीने में मजा आने लगा है. बाकी तो यह सूखी नदी जैसी थी.’’ श्रीन ने उसी तरह एनी की आंखों में झांकते हुए कहा.

‘‘तुम से प्यार करने के बाद ही मुझे भी पता चला है कि यह जिंदगी कितनी खूबसूरत होती है. तुम्हारे प्यार में बीतने वाला हर पल बहुत हसीन लगता है. मेरी जिंदगी में आ कर तुम ने इसे धन्य कर दिया. मैं तुम्हारा यह एहसान ताउम्र नहीं भूल सकती.’’ यह कहते हुए एनी भावुकता की गहराई में उतर गई.

‘‘एहसान तो तुम ने मुझ पर किया है, मेरी जिंदगी में आ कर. तुम्हारा यह प्यार मेरे लिए वह इबादत है, जो मैं मरते दम तक करता रहूंगा.’’ श्रीन ने कहा.

‘‘मुझे कभीकभी विश्वास ही नहीं होता कि मुझे तुम जैसा प्यार करने वाला मिला है. सचमुच तुम्हें पा कर मेरी जिंदगी बदल गई है.’’ एनी ने आंखें मूंद कर कहा.

प्यार मोहब्बत की बातों की कोई सीमा नहीं होती. इस के लिए तो कई जीवन भी कम पड़ जाएं. इसलिए  जब भी मिलते, इसी तरह की बातें करते रहते. मिलतेजुलते, ऐसी ही बातें करते डेढ़ साल कैसे गुजर गए, उन्हें पता ही नहीं चला.

गुजरे समय के साथ उन का प्यार गहरा होता गया. अब वे कईकई दिनों में कुछ घंटे के लिए मिलते तो उन का मन न भरता. वे चाहते थे कि उन का हर पल एकदूसरे की बांहों में गुजरे.

लेकिन इस के लिए एक बंधन की जरूरत थी. वह बंधन था शादी का और इस के लिए जरूरत थी दोनों के परिवारों की रजामंदी. दोनों भले ही पश्चिमी देशों में जन्मे और पलेबढ़े थे, लेकिन थे तो हिंदुस्तानी, जहां की संस्कृति आज भी उन के घर वालों पर हावी थी. शायद इसीलिए उन्होंने अपने प्यार को अभी तक घर वालों के सामने उजागर नहीं होने दिया था.

इसीलिए जब उन के मन में शादी का विचार आया तो एनी ने कहा, ‘‘श्रीन, शादी के लिए तुम अपने घर वालों से बात करो, क्योंकि मैं तो अपने घर वालों से कुछ कह नहीं सकती. लेकिन इतना जरूर जानती हूं कि तुम्हारे घर वाले मेरे घर रिश्ता ले कर आएंगे तो मेरे घर वाले मना नहीं करेंगे.’’

‘‘प्यार की पहल मैं ने की तो अब शादी की भी पहल मुझे ही करनी पड़ेगी.’’ श्रीन ने हंसते हुए कहा, ‘‘खैर, तुम्हारे लिए मैं यह भी करूंगा.’’

‘‘मुझ पर अधिकार पाना है तो तुम्हें यह भी करना होगा.’’

‘‘ठीक है, मैं जल्दी ही कुछ करता हूं, क्योंकि अब तुम से दूरी सहन नहीं हो रही है.’’ श्रीन ने कहा.

श्रीन ने एनी से वादा ही नहीं किया, बल्कि उस पर अमल भी किया. उस ने अपने घर वालों को अपने प्यार के बारे में बता कर एनी के घर जा कर रिश्ता मांगने के लिए कहा. उस के घर वालों को इस बात पर कोई ऐतराज नहीं था. वे बेटे की खुशी में खुश थे.

उन्हें सब से बड़ा संतोष इस बात का था कि एनी भारतीय मूल की थी. वह उन के परिवार में आराम से एडजस्ट हो जाएगी. लेकिन एनी के घर वालों से मिलने से पहले उन्होंने एनी और उस के घर वालों के बारे में पता करना जरूरी समझा.

आशिक बना कातिल : कमरा नंबर 209 में मिली लाश का रहस्य – भाग 1

कमरा नंबर 204 बाहर से बंद था. होटल के मैनेजर ने उसे खोल कर देखा तो कमरे के पलंग पर एक  युवती की लाश पड़ी हुई थी. युवती की आंखें फैली हुई थीं और मुंह से झाग निकल रहे थे.

मैनेजर ने तुरंत होटल मालिक को फोन कर के इस लाश की सूचना दी और उस के कहने पर गाजियाबाद के थाना वेव सिटी को लाश के बारे में बता कर होटल अनंत में आने को कह दिया. वहां मौजूद दानिश अपनी 22 वर्षीय बहन जोया की लाश देख कर जोरजोर से रोने लगा था.

थोड़ी देर में होटल अनंत में थाना वेव सिटी के एसएचओ अंकित चौहान और एसीपी सलोनी अग्रवाल पहुंच गईं. अंकित चौहान ने थाने से चलते समय एसीपी को लाश की सूचना दे दी थी. एसीपी सलोनी अग्रवाल और एसएचओ ने लाश का निरीक्षण किया. दोनों इस नतीजे पर पहुंचे कि युवती को जहर दिया गया है तथा उस का मुंह दबा कर उसे मारा गया है.

गोरी, छरहरी, लंबी कदकाठी वाली जोया उर्फ शहजादी बेशक किसी राजा की राजकुमारी नहीं थी, लेकिन रहनसहन और अपनी खूबसूरत छवि की वजह से वह किसी राजकुमारी से कम नहीं लगती थी.

शहजादी को घर और बाहर जोया भी कहते थे, इसलिए शहजादी भी अपना यही नाम सब को बताती थी. इस शहजादी को पाने की ललक हर युवा दिल में थी, लेकिन शहजादी के दिल में कोई और बसा हुआ था. शहजादी जिसे दिलोजान से प्यार करती थी, उस का नाम अजरुद्दीन उर्फ अजरू था.

अजरुद्दीन शादीशुदा और 5 बच्चों का बाप था. उस की पत्नी जीनत बेगम थी, जो बेहद खूबसूरत थी. करीब 4 साल पहले अलीगढ़ की एक ज्वैलरी शाप में वह अपनी पत्नी जीनत के लिए सोने की अंगूठी खरीद रहा था, वहीं पर उस ने पहली बार जोया को देखा था. उस की खूबसूरती देख कर वह ठगा सा रह गया था.

कोई उसे देख कर अपने होश भी खो सकता है, यह जान कर जोया अचंभित रह गई थी. वह खुद को संभाल कर अजरुद्दीन के पास आ कर बैठ गई मुसकराते हुए बोली थी, ”होश में आइए जनाब, मैं इंसानी बुत हूं, कोई आसमान से उतरी हुई अप्सरा नहीं हूं.’’

”तुम अप्सराओं से भी बढ़ कर हो,’’ अजरू के मुंह से बरबस ही निकल गया. वह अपनी पूर्व स्थिति में लौट आया था.

”मेरे हुस्न की तारीफ के लिए शुक्रिया.’’ जोया मुसकरा कर बोली, ”क्या मैं आप का नाम जान सकती हूंï?’’

”मेरा नाम अजरुद्दीन है. प्यार से लोग मुझे अजरू कहते हैं. गाजियाबाद से थोड़ी दूरी पर कल्लूगढ़ी गांव है, वहीं रहता हूं.’’

”मैं धोलाना (हापुड़) की बसरा कालोनी में रहती हूं.’’ जोया ने हंस कर कहा, ”एक प्रकार से हम और आप पड़ोसी हुए.’’

”धोलाना मेरा आनाजाना रहता है. यहां क्या खरीदने आई हैं आप?’’

”मेरी हाथ की अंगुली सूनी है, एक रिंग थी वह पता नहीं नहाते वक्त कहां निकल कर गटर में चली गई…’’

”बदनसीब रही वह रिंग.’’ अजरू ने दर्शन बघारा, ”इस खूबसूरत अंगुली का साथ पाने को तो अंगूठियां तरसती होंगी.’’

अजरू जौहरी की तरफ घूमा. वह किसी अन्य कस्टमर को अटेंड कर रहा था.

अजरुद्दीन ने जोया की तरफ इशारा कर के कहा, ”सेठजी, आप इन के लिए बेहतरीन अंगूठी दिखाइए.’’ उस ने बेझिझक जोया की कलाई पकड़ कर जौहरी के सामने कर दी.

जोया उस की जिंदादिली पर अवाक रह गई. वह कुछ कहती, उस से पहले ही जौहरी ने खूबसूरत अंगूठियों का बौक्स उस के सामने रख कर कहा, ”आप पसंद कर लीजिए, एक से बढ़ कर एक डिजाइन हैं.’’

जोया ने नगीने की अंगूठी पसंद की और जौहरी से पूछा, ”कितनी कीमत  है इस अंगूठी की?’’

”15 हजार की है.’’ जौहरी ने अंगूठी का वजन करने के लिए कहा तो जोया अपना पर्स खोलने लगी.

”आप रहने दीजिए, इस की कीमत मैं अदा कर रहा हूं.’’ अजरू तुरंत बोला और उस ने अपनी जेब से 15 हजार रुपए निकाल कर तुरंत जौहरी को दे दिए.

जोया हैरान परेशान हो गई. एक अजनबी जिस से कुछ पलों पहले मुलाकात हुई थी, उस की पसंद वाली अंगूठी की कीमत चुका रहा है, वह भी 10-5 रुपए नहीं, पूरे 15 हजार. कुछ क्षण तो जोया की जुबान तालू से चिपक गई, फिर वह बोली, ”अजरू, यह अंगूठी मैं ने खरीदी है, फिर आप इस की कीमत क्यों अदा कर रहे हैं?’’

”यह मेरी तरफ से आप को गिफ्ट है.’’ अजरू मुसकरा कर बोला, ”वैसे आप ने अपना नाम नहीं बताया अभी तक?’’

”मेरा नाम जोया उर्फ शहजादी है.’’ जोया ने प्यार भरी नजरों से अजरू को देखते हुए अपने लब खोले, ”यदि आप मुझे यह गिफ्ट दे रहे हैं तो अपने हाथ से इसे मेरी अंगुली में पहना भी दीजिए.’’

अजरू ने जोया की कलाई पकड़ कर उस की अंगुली में अंगूठी पहना दी. जोया ने वह अंगुली चूम ली और भावुक स्वर में बोली, ”अजरू, आज से आप मेरे बहुत करीब आ गए हैं. मैं आप के इस अनमोल गिफ्ट को जीवन भर संभाल कर रखूंगी.’’

अजरू मुसकरा दिया. इस के बाद दोनों दुकान से बाहर आ कर अपनेअपने रास्ते चले गए. मगर जाने से पहले उन्होंने एकदूसरे को अपना मोबाइल नंबर दे दिया था.

अजरू क्यों बताना चाहता था शादीशुदा होने की बात

जोया उर्फ शहजादी और अजरू के बीच पहले मोबाइल पर प्यारभरी बातों का सिलसिला शुरू हुआ, फिर वह पिकनिक स्पौट, रेस्तरां और पार्कों में मुलाकातें करने लगे. उन दोनों के बीच प्यार गहराने लगा.

अजरू ने अभी तक जोया को अपने शादीशुदा होने की बात नहीं बताई थी. वह जोया को अपनी शादी की बात बता देना चाहता था, क्योंकि जोया उसे बहुत गहराई से चाहने लगी थी. उसे ले कर वह शादी के सपने देखने लगी थी. अजरू उस से सच्चाई छिपा कर उसे इस मोड़ तक नहीं ले जाना चाहता था, जहां पहुंचने के बाद जोया को वापस लौटने में तकलीफ हो.

पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री के भाई का गोवा में मर्डर

फारेस्ट औफीसर का कातिल प्रेमी – भाग 3

एटीएम से आरोपी तक पहुंची पुलिस

जबकि राहुल जिंदा है और फोन बंद कर के फरार है. अब तक जो पुलिस को शक था, राहुल के इस तरह फोन बंद कर के लापता होने से विश्वास में बदलने लगा था. इसलिए पुलिस ने अपना पूरा ध्यान उसी पर केंद्रित कर दिया. पर उस का पता कैसे चले, क्योंकि उस ने अपना फोन तो बंद कर रखा था.

इस बीच पुलिस ने पता किया कि राहुल का खर्च कैसे चलता था. घर वाले पैसे देते थे तो कैश देते थे या बैंक के माध्यम से भेजते थे. पूछने पर घर वालों ने बताया था कि वह अपना खर्च चलाने के लिए प्राइवेट नौकरी करता था. उस का बैंक में अकाउंट है, कंपनी का वेतन उसी में आता था.

राहुल

पुलिस का सोचना था कि राहुल अगर जिंदा है तो उसे खर्च के लिए पैसों की जरूरत तो पड़ती ही होगी. खर्च के लिए वह एटीएम से पैसे जरूर निकालता होगा. पुलिस ने जब इस बारे में बैंक से पता किया तो पता चला कि राहुल ने अपने बैंक अकाउंट से एटीएम द्वारा दिल्ली से पैसे निकाले थे.

राहुल को दिल्ली में कैसे पकड़ा जाए, पुणे पुलिस इस बात पर विचार कर ही रही थी कि उस का फोन कुछ देर के लिए चालू हुआ. लेकिन थोड़ी हो देर में फिर स्विच औफ हो गया. पुलिस ने जब उस की लोकेशन पता की तो वह कोलकाता की थी. पता चला कि उस ने अपने एक रिश्तेदार को फोन कर के बात की थी.

उस रिश्तेदार से राहुल ने क्या बात की थी, जब पुलिस ने रिश्तेदार से पूछा तो उस ने बताया कि राहुल कह रहा था कि अब वह पुणे कभी लौट कर नहीं आएगा. क्योंकि उस का उस के एक दोस्त से झगड़ा हो गया है. इसलिए उस ने पुणे हमेशा हमेशा के लिए छोड़ दिया है.

राहुल की लोकेशन कोलकाता की मिली थी. इस से पहले कि पुलिस कोलकाता जाती या वहां की पुलिस से संपर्क करती, राहुल की लोकेशन मुंबई की मिली. फिर तो पुणे पुलिस ने राहुल को फोन की लोकेशन के आधार पर मुंबई के अंधेरी स्टेशन से 27 जून, 2023 की रात को गिरफ्तार कर लिया.

क्या इसी को कहते हैं प्यार

राहुल को पुणे ला कर अदालत में पेश कर के पूछताछ के लिए 3 जुलाई तक के लिए रिमांड पर लिया गया. पूछताछ में राहुल ने दर्शना की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने अपनी बाइक और वह कटर भी बरामद करा दिया था, जिस का उपयोग उस ने दर्शना की हत्या में किया था.

पुलिस कस्टडी में आरोपी राहुल

राहुल ने हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया तो एसपी (ग्रामीण) अमित गोयल की मौजूदगी में राहुल को पत्रकारों के सामने पेश किया गया, जहां उस ने दर्शना की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

साथसाथ पढ़ाई करते और उठतेबैठते राहुल हंडोरे को दर्शना से प्यार हो गया था. पर उस ने कभी अपने प्यार का इजहार दर्शना से किया नहीं था. क्योंकि उसे लगता था कि जब उचित समय आएगा, तब वह दर्शना से दिल की बात कह देगा. उस के लिए उचित समय तब आता, जब उस की कहीं नौकरी लग जाती.

दर्शना उस के मन की बात जानती थी. उसे भी राहुल पसंद था. पर उस के मन में यही था कि जब दोनों की नौकरी लग जाएगी, तब दोनों शादी कर लेंगे. दोस्ती दोनों में थी ही, वे एकदूसरे से हर बात उसी तरह शेयर करते थे, जैसे कोई अपने बौयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड से करता है.

जब दर्शना की नौकरी लग गई और राहुल की नहीं लगी तो दर्शना राहुल से दूर होने लगी. घर वालों ने उस के लिए लड़का भी देखना शुरू कर दिया. जब इस बात की जानकारी राहुल को हुई तो उस ने दर्शना के सामने ही उस के मम्मीपापा से विवाह के लिए बात की.

दर्शना के मम्मीपापा ने उस के साथ दर्शना का विवाह करने से साफ मना कर दिया. इस के बाद उस ने दर्शना की ओर देखा तो दर्शना की नजरों में उसे पैरेंट्स की बात में सहमति नजर आई. इस तरह राहुल ने दर्शना के साथ विवाह का जो सपना सालों से संजोया था, वह टूट गया. इस से राहुल को बेइज्जती सी महसूस हुई.

वह वहां से तो चुपचाप चला आया, पर उस ने मन ही मन दर्शना से बदला लेने की ठान ली. उस ने तय कर लिया कि दर्शना उस की नहीं तो वह उसे किसी और की भी नहीं होने देगा. अब वह मौके की तलाश में था.

11 जून को पुणे में दर्शना को कोचिंग सेंटर वालों ने सम्मानित करने के लिए बुलाया तो राहुल भी वहां उस से मिलने गया. अगले दिन उस ने दर्शना के साथ वेल्हा तहसील स्थित रायगढ़ और सिंहगढ़ किला घूमने का आयोजन किया तो दर्शना उस के साथ जाने के लिए खुशीखुशी तैयार हो गई. क्योंकि अच्छा दोस्त होने की वजह से वह उस पर आंख मूंद कर विश्वास करती थी. यह बात दर्शना ने अपने दोस्तों और घर वालों को बता भी दी थी.

अगले दिन यानी 12 जून को दोनों सुबह राजगढ़ और सिंहगढ़ के किलों की ट्रैकिंग के लिए निकल गए. राजगढ़ के किले के अंदर एकांत पा कर राहुल ने एक बार फिर दर्शना से विवाह की बात छेड़ दी. तब दर्शना ने साफ कह दिया कि वह वहीं विवाह करेगी, जहां उस के घर वाले चाहेंगे.

राहुल तो ठान कर ही आया था कि उसे अपने अपमान का बदला लेना है, इसीलिए तो वह दर्शना की हत्या करने के लिए हथियार के रूप में कटर ले कर आया था. दर्शना के मना करते ही राहुल ने उस पर कटर से हमला बोल दिया और उस की हत्या कर दी.

दर्शना की हत्या करने के बाद राहुल ने उस की लाश उठा कर पहाड़ी के नीचे तलहटी में फेंक दी. उसी के साथ उस के फोन, चश्मा, जूते आदि भी फेंक दिए और फिर वहां से अपने फोन को स्विच्ड औफ कर के अकेला ही लौट आया. कमरे पर बाइक खड़ी कर के वह फरार हो गया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने 3 जुलाई, 2023 को राहुल को फिर अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

आखिरी गुनाह करने की ख्वाहिश – भाग 4

2 दिनों तक दोनों आपस में खिंचे खिंचे रहे. तीसरे दिन चुनन शाह ने कहा, ‘‘भावल, मैं मानता हूं कि मैं ने गलती की है. लेकिन वादा करता हूं कि अब आगे कभी इस तरह का घटिया काम नहीं करूंगा.’’

चुनन शाह की इस बात से भावल खान खुश हो गया. सुगरा छिपछिप कर दोनों की बातें सुनती रहती थी. उस ने भावल से कई बार कहा था कि चुनन शाह से पीछा छुड़ा ले. वह कहती थी कि चुनन शाह अच्छा आदमी नही है. तब वह जवाब में कहता, ‘‘सुगरा, मैं भी अच्छा आदमी नहीं हूं.’’

एक दिन अचानक चुनन शाह ने भावल खान से कहा, ‘‘भावल, इस बार तुम्हारी पसंद का काम मिला है. लेकिन काम थोड़ा जटिल है.’’

भावल खान को ऐसे ही काम करने में मजा आता था. वह तैयार हो गया. चुनन शाह ने अपने किसी पुराने साथी के साथ डकैती की योजना बनाई थी. बहुत बड़ी रकम हाथ लगने वाली थी. लेकिन काम सचमुच जटिल था.

उन्हें करेंसी से भरी वैन को लूटना था. उस वैन का ड्राइवर उन की पहचान का था, जो उन की मदद कर रहा था. योजना के अनुसार, वैन से नोटों के बैग उतार कर एक कार से फरार होना था. चुनन शाह ने कार की भी व्यवस्था कर ली थी. भावल खान सुगरा से 2 दिन बाद लौटने की बात कह कर चुनन शाह के साथ चला गया.

अगले दिन सुबह योजना को अंजाम देना था. लेकिन रात को जिस होटल में वे ठहरे थे, वहां पुलिस ने छापा मार कर उन्हें पकड़ लिया. थाने पहुंचने पर पता चला कि उन का तीसरा साथी, जो पहले से ही किसी मामले में वांछित था, उसे दोपहर में ही आते समय पुलिस ने रास्ते से पकड़ लिया था. उसी ने अगले दिन वैन लूटने के बारे में बता कर बाकी लोगों को गिरफ्तार करवा दिया था.

पकड़े जाने के बाद भावल खान को अपने मरहूम बाप की वह बात याद आ गई कि चोर हमेशा अकेला ही कामयाब होता है. लेकिन इस बार भावल खान शहरी लोगों के चक्कर में फंस गया था. उस ने कहा था कि वह इन लोगों को जानता ही नहीं. पुलिस ने जिस आदमी को गिरफ्तार किया था, वह उसे आज ही मिला था.

पुलिस वाले 7 दिनों का रिमांड ले कर भावल खान की धुनाई करते रहे, लेकिन उस से कुछ नहीं उगलवा सके. हार कर उन्होंने उस पर आवारागर्दी का मुकदमा कायम कर जेल भेज दिया. वहां उस की कोई जमानत लेने वाला नहीं था. उसे सुगरा की चिंता थी, लेकिन वह मन को तसल्ली देता कि चुनन शाह तो है ही.

6 महीने बाद भावल खान जेल से बाहर आया. जेल में उस से मिलने न चुनन शाह आया था, न सुगरा. इसलिए उसे चिंता हो रही थी कि कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं हो गई. इसलिए जेल से बाहर आते ही वह सीधे उस मकान पर जा पहुंचा, जहां वह रहता था. वहां दोनों नहीं थे. पड़ोसियों से पूछने पर पता चला कि चुनन शाह पंजाब जाने की बात कर रहा था.

भावल खान पंजाब जा पहुंचा. बुआ के घर गया तो पता चला कि सुगरा वहां भी नहीं आई थी. भावल का दिल धक से रह गया. वह समझ गया कि चुनन शाह अपना काम कर गया.

बुआ से पैसे ले कर भावल खान चल पड़ा. शकल सूरत काफी हद तक बदल गई थी, इसलिए वह आसानी से पहचाना नहीं जा सकता था. वह सुगरा और चुनन शाह को गली गली ढूंढ़ता रहा, लेकिन दोनों में से कोई नहीं मिला. इस तरह उसे 5 साल बीत गए.

एक दिन वह शहर के रेडलाइट एरिया से गुजर रहा था तो एक दलाल उस से टकरा गया. उस के लिए यह दुनिया नई नहीं थी. दलाल उसे उस कोठे पर ले गया, जहां उस के जीवन की सब से दर्दनाक स्थिति उस का इंतजार कर रही थी.

भावल खान के सामने बहुत सारी लड़कियां खड़ी थीं, उन में एक सुगरा भी थी. वह हड्डियों का ढांचा बन चुकी थी. उसे देख कर भावल की आंखें फटी की फटी रह गईं. भावल उस की ओर लपका तो वह पागलों की तरह भागी. उस ने लपक कर उस का बाजू पकड़ लिया. उस के मुंह से मुश्किल से निकला, ‘‘सुगरा, तुम यहां?’’

‘‘भावल, खुदा के लिए मेरा नाम मत लो. मुझे छुओ भी मत. सुगरा मर चुकी है.’’

पता नहीं सुगरा क्याक्या बकती रही. भावल उस के साथ एक कमरे में बैठा था. दलाल अपना काम कर के चला गया था. सुगरा ने रोरो कर उसे बताया कि चुनन शाह ने आ कर उस से कहा था कि वह पुलिस मुठभेड़ में मारा गया. अब पुलिस यहां छापा मारने वाली है.

इस के बाद चुनन शाह घर पहुंचाने के बहाने सुगरा को कार से इस अड्डे पर पहुंचा गया था. यहां आने पर उसे पता चला कि वह औरतों का पुराना दलाल था और मुद्दत से औरतों का अपहरण कर के बेचने का धंधा कर रहा था.

सुगरा की कहानी उन बदनसीब लड़कियों से मिलती जुलती थी, जो ऐसे अड्डों तक पहुंचा दी जाती थीं. उस ने भावल को यह भी बताया था कि उस ने 3 बार आत्महत्या करने की कोशिश की थी, लेकिन यहां के लोगों ने उसे मरने भी नहीं दिया था.

भावल ने जब सुगरा से साथ चलने को कहा तो वह बोली, ‘‘भावल, यहां बहादुरी से काम नहीं चल सकता. ये बड़े असरदार लोग हैं. तुम कल दोपहर को गली के अगले वाले चौराहे पर जो डाक्टर है, उस के यहां मिलना. मैं वहां दवा लेने के बहाने जाती हूं. वहां से हम निकल चलेंगे.’’

मजबूर हो कर भावल खान वापस आ गया. रात उस ने करवटों में काटी. योजना के मुताबिक वह डाक्टर के यहां पहुंच गया. लेकिन सुगरा नहीं आई. शाम तक वह उस का इंतजार करता रहा. रात में वह उस के अड्डे पर पहुंचा तो पता चला कि उस ने रात को ही नींद की गोलियां खा कर आत्महत्या कर ली थी. उसे एक लावारिस के रूप में दफना दिया गया था.

इस खबर ने भावल खान को बेचैन कर दिया था. उस की समझ में आ गया था कि उस हालत में सुगरा उस के साथ जाना नहीं चाहती थी. इस के बाद भावल के जीवन का एक ही मकसद रह गया था कि कैसे भी हो, वह उन लोगों को चुनचुन कर मार दे, जिन्होंने उस की सुगरा को और उसे जीतेजी मार डाला था. इस के बाद वह अपने मकसद को पूरा करने के लिए निकल पड़ा.

एक हफ्ते के अंदर भावल ने 10 लोगों को मार दिया था. ये सब वे लोग थे, जिन का सुगरा की बरबादी में किसी न किसी रूप में हाथ था. चुनन शाह न जाने कहां गायब हो गया था. भावल उसे ढूंढ़ता रहा. पुलिस उस के पीछे हाथ धो कर पड़ी थी.

अचानक भावल खान ने रूप बदल कर अपराधों से तौबा कर के दुकान खोल ली. अब वह एक आखिरी गुनाह करने के लिए खुदा से दुआ मांग रहा था कि किसी तरह चुनन शाह मिल जाए और वह उस दुष्ट से इस दुनिया को छुटकारा दिला दे.

भावल ने जो पाप किए थे, उन की माफी मांगने और मन की शांति के लिए कभीकभी वह धर्मगुरुओं के यहां भी चला जाता था. यही उस के लिए फायदेमंद साबित हुआ. एक दिन उसे एक धर्मगुरू के गांव में आने के बारे में पता चला तो वह उन से मिलने पहुंच गया. वहीं भावल को मंजिल मिल गई. उसी पीर के चेलों में चुनन शाह भी था. वह अपना रूप बदले हुए था.

लोग उसे बाबा चुनन शाह के नाम से पुकार रहे थे. भावल समझ गया कि उस ने यह रूप भी अपने धंधे को आगे बढ़ाने के लिए बना रखा है. भावल ने पीछा कर के उस के ठिकाने का पता लगा लिया. फिर एक दिन उस ने उस के साथियों के सामने ही उसे कुत्ते की मौत मार दिया.

भावल ने उस की हत्या कुल्हाड़ी से काट कर की थी. उसे काटते हुए वह चिल्ला चिल्ला कर कह भी रहा था, ‘‘सुगरा का बदला ले रहा हूं. मैं बहराम खान का बेटा भावल खान हूं, जिस ने भी मेरी इज्जत से खेला है, उसे जिंदा रहने का कोई अधिकार नहीं है.’’

भावल खान को रोकने की कोई हिम्मत नहीं कर सका था. वहां से वह सीधे अपने गांव गया. पिता की कब्र पर हाजिरी दी. कानूनी दस्तावेज तैयार करा कर अपनी सारी जमीन बुआ के बेटों को दे दी.

इस के बाद वहां पहुंचा, जहां नियाज अली के रूप में रह रहा था. वहीं से उसे पुलिस ने पकड़ लिया. उस का कहना था कि अगर वह चाहता तो पुलिस उसे कभी न पकड़ पाती. लेकिन अब उस की जिंदगी का कोई मकसद नहीं रह गया था, क्योंकि उस की आखिरी गुनाह करने की जो ख्वाहिश थी, वह पूरी हो गई थी.

प्यार में की थीं 3 हत्याएं : 19 साल बाद खुला राज – भाग 4

एसएचओ मीणा और एसआई जयकिशन ने मौके पर जा कर जला हुआ ट्रक देखा. बालेश की कंकाल में परिवर्तित बौडी को पोस्टमार्टम हाउस में देखने के बाद वह भी इसी नतीजे पर पहुंचे कि बालेश कुमार की जल जाने की वजह से मौत हो गई है.

दोनों बुझे मन से दिल्ली लौट आए. राजेश वर्मा की हत्या का जिम्मेदार सुंदर लाल उन की गिरफ्त में था. अब उसी को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने के लिए उन्हें चार्जशीट तैयार करनी थी.

पुलिस फाइल में बालेश मर चुका था और सुंदर लाल को राजेश वर्मा की हत्या का दोषी मान कर कोर्ट द्वारा आजीवन कारावास की सजा भी मिल गई थी. एक प्रकार से यह हत्या का केस यहीं समाप्त हो गया था और इस केस की फाइल बंद कर दी गई थी.

लेकिन 19 साल बीत जाने के बाद यह केस अक्तूबर, 2023 में फिर से चौंका देने वाली स्थिति में खुल गया. 19 साल पहले जिस बालेश कुमार को थाना बवाना और डांडियावास पुलिस मरा हुआ मान चुकी थी, वह जिंदा था और सेंट्रल रेंज (अपराध शाखा) के एसआई महक सिंह की टीम ने उसे नजफगढ़ (दिल्ली) के एक मकान से गिरफ्तार कर लिया था.

दरअसल, सन 2000 में कोटा हाउस (दिल्ली) के औफिसर मेस में चोरी हुई थी. औफिसर मेस से कीमती मैडल व प्राचीन वस्तुएं रात को चोरी कर ली गई थीं. इस चोरी में बालेश कुमार, उस के पिता चंद्रभान और साला राजेश उर्फ खुशीराम पकड़े गए थे.

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पुलिस उपायुक्त अंकित कुमार

दिल्ली के थाना तिलक मार्ग में तीनों के खिलाफ एफआईआर 341/2000 पर धारा 457/380/411/34 आईपीसी के तहत केस दर्ज हुआ था. उन्हें इस मामले में जमानत मिल गई थी. पुलिस ने इन के पास से चोरी का सामान बरामद कर लिया था. इसी की फाइल अपराध शाखा के स्पैशल पुलिस आयुक्त रविंद्र सिंह यादव के पास आई थी.

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इंसपेक्टर देवेंद्र कुमार

उन्होंने पुलिस उपायुक्त अंकित कुमार के सुपरविजन में इंसपेक्टर देवेंद्र कुमार के नेतृत्व में एसआई महक सिंह, यशपाल सिंह, एएसआई दीपक कुमार त्यागी, सुदेश कुमार, अनिल कुमार, हैडकांस्टेबल संदीप कुमार, करण सिंह, महिला सिपाही रानी की एक टीम बनाई.

हैडकांस्टेबल संदीप कुमार

इस टीम को कोटा हाउस के औफिसर मेस में बहुमूल्य सामान की चोरी करने वालों के अपराध रिकौर्ड चेक करने थे और देखना था कि इन्होंने भारतीय पुरातत्व संस्थान के किसी अन्य जगह पर भी ऐसी चोरी तो नहीं की है.

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महिला सिपाही रानी

एसआई महक सिंह इस मामले की जांच कर रहे थे कि 17 अक्तूबर को उन के खास मुखबिर ने उन्हें फोन पर सूचना दी कि 19 साल पहले जिस कातिल बालेश कुमार की ट्रक में जल जाने से मौत हो गई थी, वह जिंदा है. वह आरजेड-167, रोशन गार्डन, नजफगढ़ (दिल्ली) में अमन सिंह पुत्र जगत सिंह के नाम से रह रहा है. उस की पत्नी और बच्चे उसी के साथ में हैं. बालेश कुमार प्रौपर्टी खरीदने बेचने का धंधा कर रहा है.

मुखबिर की इसी सूचना पर सेंट्रल रेंज (अपराध शाखा) की टीम ने उसे उस के घर से दबोच लिया था. दिलचस्प कहानी को आगे बढ़ाने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि बालेश कौन है.

बालेश कुमार पुत्र चंद्रभान मूलरूप से पट्टी कल्याण, समालखा, पानीपत (हरियाणा) का निवासी है. वह कक्षा 8वीं तक पढ़ा है. 1981 में यह नौसेना में स्टीवर्ड (मैस सहायक) के रूप में भरती हुआ और 1996 तक सेवा में रहा.

सेवानिवृत्ति के बाद बालेश कुमार अपने परिवार के साथ दिल्ली में संतोष पार्क (उत्तम नगर) में रहने लगा और प्रौपर्टी का काम करने लगा. सन 2000 में इस ने अपने पिता चंद्रभान और साले राजेश के साथ कोटा हाउस (तिलक मार्ग) में चोरी की.

तीनों पकड़े गए, चोरी का सामान इन के पास से बरामद हो गया. जमानत पर आने के बाद 2003 में बालेश ने अपने भाई महेंद्र के नाम से एक ट्रक एचआर38 एफ4832 फाइनैंस करवाया, जिसे वह खुद चलाने लगा.

खुद को मरा दिखाने के लिए कर दिए 2 और कत्ल

बालेश की पत्नी संतोष सुंदर और गृहकार्य में निपुण थी, फिर भी बालेश दूर के रिश्ते में साला लगने वाले राजेश उर्फ खुशीराम की पत्नी निशा के साथ अवैध संबंध बना कर निशा पर अपनी कमाई लुटाता रहता था. राजेश इस बात से चिढ़ता था. वह बालेश से खुन्नस रखता था. शायद मौका मिलने पर वह बालेश की हत्या कर देता, लेकिन दांव उल्टा पड़ गया.

20 अप्रैल, 2004 को बालेश ने अपने भाई सुंदर लाल के साथ मिल कर राजेश की हत्या कर दी. सुंदर लाल पकड़ा गया, बालेश फरार हो गया. जब वह फरार हुआ था तो 52 साल का था. अब वह 63 साल का हो चुका है. उसे अपराध शाखा के औफिस में लाया गया. सूचना पा कर स्पैशल पुलिस आयुक्त रविंद्र सिंह यादव और डीसीपी अंकित सिंह वहां पहुंच गए. उन के सामने बालेश कुमार से पूछताछ की गई.

”तुम राजेश उर्फ खुशीराम की हत्या कर के राजस्थान भाग गए थे. जिस ट्रक को तुम चला रहे थे, उस में आग लग गई थी और तुम जिंदा जल गए थे. हमें बताओ, वह क्या नाटक था?’’ एसआई महक सिंह ने सामने बैठे बालेश से प्रश्न किया.

”ट्रक ले कर मैं जब भागा था, तब मैं ने एक फुलप्रूफ योजना अपने दिमाग में बिठा ली थी. मैं ने बाईपास से 2 मजदूरों को काम देने का वायदा कर के अपने ट्रक में बिठा लिया था. वे दोनों बिहार के थे. उन के नाम मनोज और मुकेश थे.

”मैं ट्रक ले कर जोधपुर के थाना डांडियावास इलाके में पिथावास बाईपास रोड पर पहुंचा तो एक सुनसान जगह पर मैं ने ट्रक रोक दिया. बाईपास के एक शराब के ठेके से मैं ने 2 बोतल शराब खरीद ली थी. मैं ने ट्रक में मुकेश और मनोज को शराब पिलाई.

”दोनों जब ज्यादा शराब पीने से नशे में लुढ़क गए तो मैं ने मुकेश को जो मेरी कदकाठी का था, उसे अपने कपड़े पहना दिए और ट्रक की ड्राइविंग सीट पर बिठा दिया. मैं ने दिल्ली से ही पेप्सी लेबल के खाली गत्ते ट्रक में भर लिए थे. उन पर पेट्रोल डाल कर मैं ने ट्रक में आग लगा दी. मेरी आईडी और अन्य कागजात सामने के हिस्से में थे.

”ट्रक में आग लगाने के बाद दूर जा कर एक झाड़ी में दुबक कर मैं बैठ गया. काफी देर बाद वहां से गुजर रहे एक कार चालक ने पुलिस को फोन किया. जब फायर बिग्रेड और पुलिस वहां आई, तब तक ट्रक आग से काफी हद तक जल गया था. मैं अब निश्चिंत था.

”मैं ने घर पर फोन कर के अपने पिता और पत्नी को अपनी योजना बता दी. डांडियावास थाने की पुलिस द्वारा छानबीन करने के बाद मेरे पिता चंद्रभान को थाने में बुलाया गया तो मेरी पत्नी संतोष और भाई बिशन, महेंद्र सिंह, भीम सिंह भी उन के साथ डांडियावास थाने में आ गए. उन्हें ट्रक में जले 2 मानव कंकाल दिखाए गए तो एक की पहचान उन्होंने मेरे (बालेश) के रूप में कर दी.’’

”अपनी मौत का नाटक तुम ने इसलिए रचा ताकि राजेश के कत्ल के इलजाम से बच सको, क्या मैं ठीक कह रहा हूं?’’ इंसपेक्टर देवेंद्र कुमार ने पूछा.

योजना हुई फेल तो बालेश पहुंचा जेल

बालेश मुसकराया, ”बेशक यही कारण था साहब, मैं ने अपनी मौत हो जाने का नाटक कर के अपनी पत्नी को लाभ पहुंचाया था.’’

”वो कैसे?’’

”मेरी पत्नी और पिता ने डांडियावास से मेरी मौत का प्रमाणपत्र हासिल कर लिया था. मेरी पत्नी ने मेरा बीमा पालिसी की साढ़े 6 लाख रुपए की राशि, ट्रक इंश्योरेंस का 4 लाख रुपया हासिल कर लिया और मेरी पेंशन भी अपने नाम करवा ली.

”ओह!’’ सभी को इस खुलासे से हैरानी हुई. अपराध शाखा के पुलिस आयुक्त रविंद्र कुमार यादव ने बालेश को घूरा, ”तुम अपनी पत्नी के साथ मौत का नाटक करने के बाद कब से रह रहे हो?’’

”साहब, मौत का नाटक करने के बाद मैं 2-3 महीने इधर उधर रहा. पत्नी ने सारे रुपए हासिल कर लिए तो मैं ने नजफगढ़ में प्लौट ले लिया और अमन सिंह पुत्र जगत सिंह के नाम से बीवी बच्चों के साथ रहने लगा.

”मैं ने अपने आधार कार्ड, पैन कार्ड, पहचान पत्र आदि अमन सिंह के नाम से बनवा लिए, ताकि सभी मुझे अमन सिंह ही समझें. मैं इत्मीनान से प्रौपर्टी का धंधा करने लगा. वक्त गुजरता गया. मैं निश्चिंत था कि अब पकड़ा नहीं जाऊंगा.’’

”हम ने पकड़ लिया.’’ इंसपेक्टर देवेंद्र कुमार मुसकरा कर बोले, ”अब तुम जिंदगी भर जेल में सड़ोगे.’’

बालेश कुमार ने सिर झुका लिया.

उस के खिलाफ एफआईआर 232/2023 दर्ज करके आईपीसी की धारा 419, 420, 467, 468, 471, 474 और 120बी लगा कर उसे कोर्ट में पेश किया गया. कोर्ट ने उसे जेल भेज दिया.

अपराध शाखा (सेंट्रल रेंज) ने यह केस बवाना थाने के वर्तमान एसएचओ राकेश कुमार को सौंप दिया. उन्होंने बालेश कुमार की पत्नी संतोष को पकडऩे के लिए नजफगढ़ वाले घर पर रेड डाली, लेकिन संतोष पति के पकड़े जाते ही भूमिगत हो गई थी.

डांडियावास थाना (जोधपुर) ने यह मामला सीआरपीसी की धारा 174 के तहत 2004 में दर्ज किया था, कोई आपराधिक केस नहीं बनाया था. उसे यह सूचित कर दिया गया कि ट्रक में मरने वाला बालेश कुमार नहीं, उस का मजदूर मुकेश था. दूसरी लाश मनोज की थी. बालेश ने 2 हत्याएं उन के थानाक्षेत्र में की थीं, उस पर काररवाई की जाए.

बालेश कुमार जेल में था. पुलिस उस की पत्नी संतोष की तलाश कर रही थी, जो कथा लिखने तक फरार थी.

नोट: कथा में निशा नाम परिवर्तित है.

फारेस्ट औफीसर का कातिल प्रेमी – भाग 2

11 जून को कोचिंग सेंटर वालों ने दर्शना को सम्मानित किया. सम्मानित करने के बाद कोचिंग के प्रबंधक ने उस से अपने बारे में कुछ कहने के लिए कहा तो दर्शना ने जो बातें कही और जिस तरह कही, वे कोचिंग में पढऩे वाले बच्चों के लिए प्रेरणादायक तो थी ही, उस की इन बातों से वे सभी भी बहुत प्रभावित हुए जो निम्नमध्यम वर्ग के लोगों को कुछ नहीं समझते.

उस की बातों से उन लोगों की समझ में आ गया कि ज्ञान सचमुच बलवान बनाता है. इस से दर्शना को और तमाम लोग भी जान गए. दर्शना द्वारा कही गई बातों का लोगों ने वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर भी वायरल किया, जिस से दर्शना का तो मान बढ़ा ही, उस संस्थान की भी प्रतिष्ठा बढ़ गई, जहां पढ़ कर दर्शना ने यह कामयाबी हासिल की थी. इस के बाद दर्शना पुणे में ही अपनी सहेली के यहां रुक कर दोस्तों से मिलती रही.

12 जून को उस ने अपनी सहेली से कहा कि आज वह अपने दोस्त राहुल हंडोरे के साथ राजगढ़ और सिंहगढ़ का किला देखने जा रही है. उस ने यह बात फोन कर के अपने पैरेंट्स को भी बता दी थी. दर्शना को किला देखने जाने से किसी ने मना नहीं किया, क्योंकि सभी जानते थे कि दर्शना ने खूब मेहनत की है, तभी उसे यह सफलता मिली है. इसलिए थोड़ा घूमेगी फिरेगी तो उस का मन भी बहल जाएगा और पढ़ाई की थकान भी उतर जाएगी.

दर्शना जिस राहुल हंडोरे के साथ जा रही थी, वह वही राहुल है, जिस के साथ वह अहमदनगर में पढ़ी थी और पुणे में सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए आई थी. उस के साथ कहीं जाने में घर वालों को भी कोई ऐतराज नहीं था, क्योंकि दोनों पुराने और घनिष्ठ मित्र थे. फिर अब दर्शना खुद हर तरह सक्षम और समझदार हो गई थी. वह खुद अपना अच्छाबुरा सोच सकती थी.

दर्शना को तो नौकरी मिल गई थी, पर राहुल का अभी कुछ नहीं हुआ था. वह अभी तैयारी ही कर रहा था, साथ ही अपना खर्च चलाने के लिए पुणे में प्राइवेट नौकरी भी कर रहा था.

Rajgarh kila

राजगढ़ का किला

12 जून की सुबह दोनों राजगढ़ का किला देखने के लिए बाइक से निकल गए. दर्शना और राहुल के दोस्तों और घर वालों को पता था कि दोनों किला देखने गए हैं. पर जब शाम को इन के घर वालों ने हालचाल जानने के लिए फोन किया तो दोनों के ही फोन स्विच्ड औफ बता रहे थे.

फिर तो दोनों के ही घर वाले घबरा गए. उन के दोस्तों से पता किया गया तो उन्होंने बताया कि अभी तक दोनों लौट कर ही नहीं आए हैं. इस के बाद तो दोनों के ही घर वाले बेचैन हो उठे. क्योंकि दर्शना की जहां अच्छी बढिय़ा नौकरी लग चुकी थी, वहीं राहुल भी पढऩे में ठीकठाक था और मेहनत से तैयारी कर रहा था. इसलिए उस के घर वालों को भी उम्मीद थी कि आज नहीं तो कल उसे भी कोई न कोई अच्छी नौकरी मिल ही जाएगी.

दर्शना और राहुल के बारे में जब कुछ पता नहीं चला और न उन के फोन चालू हुए तो अगले दिन उन के घर वाले उन्हें खोजने के लिए पुणे आ गए. अपने हिसाब से उन्होंने दोनों को पुणे में खोजा, किले में भी गए, पर उन का कुछ पता नहीं चला. अब दोनों के ही घर वालों की बेचैनी और बढ़ गई थी. क्योंकि उन की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर दोनों कहां चले गए.

जब दोनों ही परिवार उन्हें ढूंढ ढूंढ कर थक गए तो 14 जून, 2023 को दर्शना के घर वालों ने जहां थाना सिंहगढ़ में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी, तो राहुल के घर वालों ने थाना मालवाड़ी में उस की गुमशुदगी दर्ज कराई.

पहाड़ी की तलहटी में मिली दर्शना की लाश

दर्शना अपनी कामयाबी से उस इलाके में चर्चा का विषय बन चुकी थी. उसे लगभग हर कोई जानने लगा था. गांव वाले भले न जानते रहे हों, पर शहर और कस्बे का तो लगभग हर कोई उसे जानता था.

इसलिए जब एक तरह से पूरे इलाके में सेलिब्रिटी हो चुकी दर्शना की गुमशुदगी की दर्ज कराई गई तो पुलिस भी सन्न रह गई. चूंकि मामला गंभीर और रहस्यमयी था, इसलिए थाना पुलिस के साथसाथ क्राइम ब्रांच पुलिस भी इस मामले की जांच में लग गई.

क्राइम ब्रांच ने दर्शना और राहुल की खोज के लिए 5-5 पुलिस वालों की 5 टीमें बनाईं और सभी टीमों को अलगअलग जिम्मेदारियां सौंप दीं.

ग्रामीण पुलिस इस मामले में जीजान से लगी थी. पर उसे कोई कामयाबी नहीं मिल रही थी. 19 जून को किसी अजनबी ने पुलिस को सूचना दी कि किले के पास पहाड़ी के नीचे तलहटी में एक महिला की लाश पड़ी है.

सूचना मिलते ही पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. दर्शना और राहुल की गुमशुदगी दर्ज थी. वे दोनों किले से ही गायब हुए थे. इस से पुलिस को लगा कि कहीं यह लाश दर्शना की तो नहीं है. तुरंत दर्शना के घर वालों को बुलाया गया. लाश देखते ही दर्शना के घर वालों पर तो जैसे दुख का पहाड़ टूट पड़ा. क्योंकि वह लाश दर्शना की ही थी. परिवार की सारी खुशियां पलभर में दुख में बदल गईं. सभी का रोतेरोते बुरा हाल हो गया.

ग्रामीण पुलिस मामले की जांच कर ही रही थी. लाश देख कर पुलिस यह अंदाजा नहीं लगा पा रही थी कि यह मामला हत्या का है या दर्शना के साथ कोई अनहोनी हुई है. क्योंकि लाश की स्थिति बहुत खराब थी. अब तक वह काफी हद तक सडग़ल चुकी थी. पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

सीसीटीवी फुटेज

इसी बीच पुलिस को किले के पास एक होटल पर लगे सीसीटीवी कैमरे से एक फुटेज मिली, जिस में सुबह करीब साढ़े 8 बजे दर्शना राहुल के साथ बाइक से किले की ओर जाती दिखाई दी. पर दिन के करीब 10 बजे राहुल किले की ओर से लौटा तो बाइक पर अकेला ही था यानी लौटते समय दर्शना उस के साथ नहीं थी. इस से साफ हो गया कि दर्शना के साथ जो कुछ भी हुआ, वह किले के अंदर या उस के आसपास ही हुआ था.

आखिरी गुनाह करने की ख्वाहिश – भाग 3

2 हथियारबंद लोगों ने बहराम खान का पीछा किया और वहां से लगभग एक फरलांग की दूरी पर उसे घेर लिया. निहत्था और घायल होने के बावजूद बहराम ने कायर की मौत मरने के बजाय एक पर छलांग लगा दी. उस की गरदन उस के कब्जे में आ गई. बहराम कुछ कर पाता, उस के पहले ही उस के साथी ने बहराम के सिर में एक के बाद एक कर के 6 गोलियां उतार कर अपने साथी को बचा लिया.

इस हमले में भावल खान के पिता तथा उम्मीदवार के साथ 2 अन्य लोग मारे गए. बाकी लोग गंभीर रूप से घायल हुए. विरोधी उम्मीदवार पुलिस की मिलीभगत से पहले ही जेल जा चुका था, इसलिए उस का इस मामले में बाल भी बांका नहीं हो सका.

भावल खान ने अपने पिता को दफनाते समय कसम खाई थी कि वह बाप की मौत का बदला जरूर लेगा. इस के लिए उसे कितनी ही कीमत क्यों न चुकानी पड़े.

बहराम खान ने उसे सिखाया था कि चोर हमेशा अकेला ही कामयाब होता है. लेकिन उस ने बाप का यह नियम चुनन शाह पर विश्वास कर के तोड़ दिया था.

चुनन शाह से भावल खान की दोस्ती हो गई थी. था तो वह भी अपराधी, लेकिन वह दूसरे तरह के अपराध करता था. वह औरतों को बहला फुसला कर ले जाता और कोठों पर बेच देता था. लेकिन उस ने भावल खान को कभी इस की भनक नहीं लगने दी थी. उस ने उस से बताया था कि वह तसकरी करता है.

जिस आदमी ने बहराम खान को मारा था, उसे पता था कि इस इलाके में भावल खान के अलावा कोई दूसरा उस का कुछ नहीं बिगाड़ सकता. शायद इसीलिए उस ने भावल से दोस्ती करने के लिए खूब कोशिश की. लेकिन भावल को तो उस से बदला लेना था. वह दोस्ती कर के उस से बदला नहीं ले सकता था. क्योंकि किसी के साथ धोखेबाजी करना उसे पसंद नहीं था.

चुनन शाह बहुत ही कमीना आदमी था. समय के साथ वह अपने रूप बदलता रहता था. भावल खान के साथ वह इसलिए लगा रहता था, क्योंकि उसे उस के विरोधियों से भावल के अलावा और कोई नहीं बचा सकता था. भावल भी उसे इसलिए साथ रखता था, क्योंकि उस ने उसे नएनए हथियार दिलाए थे. फिर दूसरे इलाकों में भी चुनन शाह की अच्छी जानपहचान थी, इसलिए जरूरत पड़ने पर वह छिपने की व्यवस्था करा सकता था.

आखिर वह मौका आ गया, जिस का भावल खान को बेचैनी से इंतजार था. मध्यावधि चुनाव की घोषणा हो गई. चुनाव प्रचार भी शुरू हो गया. विरोधी उम्मीदवार एक गांव से चुनाव सभा कर के लौट रहा था तो रात हो गई. भावल चुनन शाह के साथ रास्ते में घात लगा कर बैठा था. जैसे ही उस उम्मीदवार की जीप उन के सामने आई, उन्होंने गोलियों की बौछार कर दी, साथ ही हथगोले भी फेंके.

किराए के लोग ऐसे मौकों पर मरना नहीं चाहते. उस विरोधी उम्मीदवार के साथी भी अपनी जान बचाने के लिए गाडि़यों से कूदकूद कर भागे. उम्मीदवार और उस के 2 साथी मारे गए. उन की मौत की पुष्टि हो गई तो भावल चुनन शाह के साथ भाग निकला. भागने की तैयारी उन्होंने पहले से ही कर रखी थी.

अगले दिन भावल चुनन शाह के साथ एक सुरक्षित स्थान पर पहुंच गया. वहां चुनन शाह की जानपहचान काम आई. उस ने वहां रहने के लिए एक कमरा किराए पर ले लिया. चुनन शाह के साथ भावल वहां 3 महीने तक रहा. एक दिन चुनन शाह को बिना बताए ही भावल अपनी बुआ के यहां चला गया. उस के पिता ने बचपन में ही उस की शादी बुआ की बेटी से तय कर दी थी. बुआ उसे देख कर हैरान रह गई.

‘‘बुआजी, आप को घबराने की जरूरत नहीं है.’’ भावल खान ने कहा, ‘‘मैं पिताजी की बात का मान रखने आया हूं, क्योंकि वह चाहते थे कि मेरी शादी सुगरा से हो. मेरे बारे में आप को सब पता ही है. अगर तुम मना भी कर दोगी तो मुझे कोई ऐतराज नहीं होगा. फिर भी मैं चाहता हूं कि पिताजी की आत्मा को दुख न हो.’’

‘‘तू मेरे भाई की निशानी है,’’ बुआ ने भावल के गालों को चूमते हुए कहा, ‘‘तू अच्छा हो या बुरा, बेटियों का भाग्य ईश्वर लिखता है. सुगरा तेरी अमानत है, तू इसे ले जा.’’

तीसरे दिन एक साधारण से समारोह में सुगरा और भावल खान की शादी हो गई. चुनन शाह ने हर काम में एक सगे भाई की तरह बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया. चुनन शाह की सलाह पर भावल सुगरा को ले कर कराची आ गया.

कराची की भीड़भाड़ में भावल खान समा गया. उस ने अपना नाम नियाज अली रख लिया. इसी नाम से उस ने अपना पहचान पत्र भी बनवा लिया और 3 कमरों का बड़ा सा मकान ले लिया था. आगे वाले कमरे में चुनन शाह रहता था, बाकी के पीछे के 2 कमरों में नियाज अली सुगरा के साथ रहता था. यहां उन की जिंदगी आराम से कट रही थी.

समय के साथ बड़ेबड़े खजाने खाली हो जाते हैं. यही भावल खान के साथ भी हुआ. कुछ दिनों में उस की जमापूंजी खत्म हो गई. इस बीच सुगरा उस से कहती रही कि वह पुरानी जिंदगी भूल कर कोई छोटामोटा काम कर ले. लेकिन उसे जो चस्का लग चुका था, वह जल्दी छूटने वाला नहीं था. उस ने कभी भी मामूली चोरी तक नहीं की थी.

चुनन शाह बहुत ही कमीना आदमी था. उस ने देखा कि भावल खान परेशान है तो एक दिन बोला, ‘‘भाईसाहब, इस तरह कब तक काम चलेगा. कहीं न कहीं हाथ मारना ही पड़ेगा.’’

‘‘मैं तैयार हूं. लेकिन शहर वाले काम मैं ने कभी किए नहीं, हम ने तो मर्दों वाले काम किए हैं.’’ भावल खान ने कहा.

‘‘ठीक है, मैं ही बाहर निकलता हूं. शायद कोई पुरानी जानपहचान काम आ जाए.’’ चुनन शाह ने कहा.

‘‘जैसी तुम्हारी इच्छा. मैं तुम्हारे साथ हूं.’’ भावल खान ने कहा.

चुनन शाह चला गया. 3 दिनों बाद वह लौटा तो अकेला नहीं था. उस के साथ एक जवान लड़की थी. भावल खान ने हैरानी से पूछा, ‘‘यह कौन है?’’

चुनन शाह ने आंख से गंदा सा इशारा किया. भावल को गुस्सा आ गया. उस का हाथ उठता, उस के पहले ही चुनन शाह बोल पड़ा, ‘‘भावल यह तुम्हारा गांव नहीं, कराची शहर है. तुम जानते हो, हम दोनों फरार हत्यारे हैं. दिमाग को ठंडा रखो और हां, अगर होशियारी दिखाई तो हम दोनों मारे जाएंगे.’’

भावल खान ने खुद को कभी इतना बेबस और मजबूर नहीं महसूस किया था. शायद सुगरा से शादी कर के वह डरपोक हो गया था. उस ने चुनन शाह की इस बात का कोई जवाब नहीं दिया. अगले दिन चुनन शाह उस लड़की को ले कर गया तो शाम तक वापस आया. भावल ने अंदाजा लगाया कि उस ने उसे ठिकाने लगा दिया है.