आखिरी गुनाह करने की ख्वाहिश – भाग 4

2 दिनों तक दोनों आपस में खिंचे खिंचे रहे. तीसरे दिन चुनन शाह ने कहा, ‘‘भावल, मैं मानता हूं कि मैं ने गलती की है. लेकिन वादा करता हूं कि अब आगे कभी इस तरह का घटिया काम नहीं करूंगा.’’

चुनन शाह की इस बात से भावल खान खुश हो गया. सुगरा छिपछिप कर दोनों की बातें सुनती रहती थी. उस ने भावल से कई बार कहा था कि चुनन शाह से पीछा छुड़ा ले. वह कहती थी कि चुनन शाह अच्छा आदमी नही है. तब वह जवाब में कहता, ‘‘सुगरा, मैं भी अच्छा आदमी नहीं हूं.’’

एक दिन अचानक चुनन शाह ने भावल खान से कहा, ‘‘भावल, इस बार तुम्हारी पसंद का काम मिला है. लेकिन काम थोड़ा जटिल है.’’

भावल खान को ऐसे ही काम करने में मजा आता था. वह तैयार हो गया. चुनन शाह ने अपने किसी पुराने साथी के साथ डकैती की योजना बनाई थी. बहुत बड़ी रकम हाथ लगने वाली थी. लेकिन काम सचमुच जटिल था.

उन्हें करेंसी से भरी वैन को लूटना था. उस वैन का ड्राइवर उन की पहचान का था, जो उन की मदद कर रहा था. योजना के अनुसार, वैन से नोटों के बैग उतार कर एक कार से फरार होना था. चुनन शाह ने कार की भी व्यवस्था कर ली थी. भावल खान सुगरा से 2 दिन बाद लौटने की बात कह कर चुनन शाह के साथ चला गया.

अगले दिन सुबह योजना को अंजाम देना था. लेकिन रात को जिस होटल में वे ठहरे थे, वहां पुलिस ने छापा मार कर उन्हें पकड़ लिया. थाने पहुंचने पर पता चला कि उन का तीसरा साथी, जो पहले से ही किसी मामले में वांछित था, उसे दोपहर में ही आते समय पुलिस ने रास्ते से पकड़ लिया था. उसी ने अगले दिन वैन लूटने के बारे में बता कर बाकी लोगों को गिरफ्तार करवा दिया था.

पकड़े जाने के बाद भावल खान को अपने मरहूम बाप की वह बात याद आ गई कि चोर हमेशा अकेला ही कामयाब होता है. लेकिन इस बार भावल खान शहरी लोगों के चक्कर में फंस गया था. उस ने कहा था कि वह इन लोगों को जानता ही नहीं. पुलिस ने जिस आदमी को गिरफ्तार किया था, वह उसे आज ही मिला था.

पुलिस वाले 7 दिनों का रिमांड ले कर भावल खान की धुनाई करते रहे, लेकिन उस से कुछ नहीं उगलवा सके. हार कर उन्होंने उस पर आवारागर्दी का मुकदमा कायम कर जेल भेज दिया. वहां उस की कोई जमानत लेने वाला नहीं था. उसे सुगरा की चिंता थी, लेकिन वह मन को तसल्ली देता कि चुनन शाह तो है ही.

6 महीने बाद भावल खान जेल से बाहर आया. जेल में उस से मिलने न चुनन शाह आया था, न सुगरा. इसलिए उसे चिंता हो रही थी कि कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं हो गई. इसलिए जेल से बाहर आते ही वह सीधे उस मकान पर जा पहुंचा, जहां वह रहता था. वहां दोनों नहीं थे. पड़ोसियों से पूछने पर पता चला कि चुनन शाह पंजाब जाने की बात कर रहा था.

भावल खान पंजाब जा पहुंचा. बुआ के घर गया तो पता चला कि सुगरा वहां भी नहीं आई थी. भावल का दिल धक से रह गया. वह समझ गया कि चुनन शाह अपना काम कर गया.

बुआ से पैसे ले कर भावल खान चल पड़ा. शकल सूरत काफी हद तक बदल गई थी, इसलिए वह आसानी से पहचाना नहीं जा सकता था. वह सुगरा और चुनन शाह को गली गली ढूंढ़ता रहा, लेकिन दोनों में से कोई नहीं मिला. इस तरह उसे 5 साल बीत गए.

एक दिन वह शहर के रेडलाइट एरिया से गुजर रहा था तो एक दलाल उस से टकरा गया. उस के लिए यह दुनिया नई नहीं थी. दलाल उसे उस कोठे पर ले गया, जहां उस के जीवन की सब से दर्दनाक स्थिति उस का इंतजार कर रही थी.

भावल खान के सामने बहुत सारी लड़कियां खड़ी थीं, उन में एक सुगरा भी थी. वह हड्डियों का ढांचा बन चुकी थी. उसे देख कर भावल की आंखें फटी की फटी रह गईं. भावल उस की ओर लपका तो वह पागलों की तरह भागी. उस ने लपक कर उस का बाजू पकड़ लिया. उस के मुंह से मुश्किल से निकला, ‘‘सुगरा, तुम यहां?’’

‘‘भावल, खुदा के लिए मेरा नाम मत लो. मुझे छुओ भी मत. सुगरा मर चुकी है.’’

पता नहीं सुगरा क्याक्या बकती रही. भावल उस के साथ एक कमरे में बैठा था. दलाल अपना काम कर के चला गया था. सुगरा ने रोरो कर उसे बताया कि चुनन शाह ने आ कर उस से कहा था कि वह पुलिस मुठभेड़ में मारा गया. अब पुलिस यहां छापा मारने वाली है.

इस के बाद चुनन शाह घर पहुंचाने के बहाने सुगरा को कार से इस अड्डे पर पहुंचा गया था. यहां आने पर उसे पता चला कि वह औरतों का पुराना दलाल था और मुद्दत से औरतों का अपहरण कर के बेचने का धंधा कर रहा था.

सुगरा की कहानी उन बदनसीब लड़कियों से मिलती जुलती थी, जो ऐसे अड्डों तक पहुंचा दी जाती थीं. उस ने भावल को यह भी बताया था कि उस ने 3 बार आत्महत्या करने की कोशिश की थी, लेकिन यहां के लोगों ने उसे मरने भी नहीं दिया था.

भावल ने जब सुगरा से साथ चलने को कहा तो वह बोली, ‘‘भावल, यहां बहादुरी से काम नहीं चल सकता. ये बड़े असरदार लोग हैं. तुम कल दोपहर को गली के अगले वाले चौराहे पर जो डाक्टर है, उस के यहां मिलना. मैं वहां दवा लेने के बहाने जाती हूं. वहां से हम निकल चलेंगे.’’

मजबूर हो कर भावल खान वापस आ गया. रात उस ने करवटों में काटी. योजना के मुताबिक वह डाक्टर के यहां पहुंच गया. लेकिन सुगरा नहीं आई. शाम तक वह उस का इंतजार करता रहा. रात में वह उस के अड्डे पर पहुंचा तो पता चला कि उस ने रात को ही नींद की गोलियां खा कर आत्महत्या कर ली थी. उसे एक लावारिस के रूप में दफना दिया गया था.

इस खबर ने भावल खान को बेचैन कर दिया था. उस की समझ में आ गया था कि उस हालत में सुगरा उस के साथ जाना नहीं चाहती थी. इस के बाद भावल के जीवन का एक ही मकसद रह गया था कि कैसे भी हो, वह उन लोगों को चुनचुन कर मार दे, जिन्होंने उस की सुगरा को और उसे जीतेजी मार डाला था. इस के बाद वह अपने मकसद को पूरा करने के लिए निकल पड़ा.

एक हफ्ते के अंदर भावल ने 10 लोगों को मार दिया था. ये सब वे लोग थे, जिन का सुगरा की बरबादी में किसी न किसी रूप में हाथ था. चुनन शाह न जाने कहां गायब हो गया था. भावल उसे ढूंढ़ता रहा. पुलिस उस के पीछे हाथ धो कर पड़ी थी.

अचानक भावल खान ने रूप बदल कर अपराधों से तौबा कर के दुकान खोल ली. अब वह एक आखिरी गुनाह करने के लिए खुदा से दुआ मांग रहा था कि किसी तरह चुनन शाह मिल जाए और वह उस दुष्ट से इस दुनिया को छुटकारा दिला दे.

भावल ने जो पाप किए थे, उन की माफी मांगने और मन की शांति के लिए कभीकभी वह धर्मगुरुओं के यहां भी चला जाता था. यही उस के लिए फायदेमंद साबित हुआ. एक दिन उसे एक धर्मगुरू के गांव में आने के बारे में पता चला तो वह उन से मिलने पहुंच गया. वहीं भावल को मंजिल मिल गई. उसी पीर के चेलों में चुनन शाह भी था. वह अपना रूप बदले हुए था.

लोग उसे बाबा चुनन शाह के नाम से पुकार रहे थे. भावल समझ गया कि उस ने यह रूप भी अपने धंधे को आगे बढ़ाने के लिए बना रखा है. भावल ने पीछा कर के उस के ठिकाने का पता लगा लिया. फिर एक दिन उस ने उस के साथियों के सामने ही उसे कुत्ते की मौत मार दिया.

भावल ने उस की हत्या कुल्हाड़ी से काट कर की थी. उसे काटते हुए वह चिल्ला चिल्ला कर कह भी रहा था, ‘‘सुगरा का बदला ले रहा हूं. मैं बहराम खान का बेटा भावल खान हूं, जिस ने भी मेरी इज्जत से खेला है, उसे जिंदा रहने का कोई अधिकार नहीं है.’’

भावल खान को रोकने की कोई हिम्मत नहीं कर सका था. वहां से वह सीधे अपने गांव गया. पिता की कब्र पर हाजिरी दी. कानूनी दस्तावेज तैयार करा कर अपनी सारी जमीन बुआ के बेटों को दे दी.

इस के बाद वहां पहुंचा, जहां नियाज अली के रूप में रह रहा था. वहीं से उसे पुलिस ने पकड़ लिया. उस का कहना था कि अगर वह चाहता तो पुलिस उसे कभी न पकड़ पाती. लेकिन अब उस की जिंदगी का कोई मकसद नहीं रह गया था, क्योंकि उस की आखिरी गुनाह करने की जो ख्वाहिश थी, वह पूरी हो गई थी.

प्यार में की थीं 3 हत्याएं : 19 साल बाद खुला राज – भाग 4

एसएचओ मीणा और एसआई जयकिशन ने मौके पर जा कर जला हुआ ट्रक देखा. बालेश की कंकाल में परिवर्तित बौडी को पोस्टमार्टम हाउस में देखने के बाद वह भी इसी नतीजे पर पहुंचे कि बालेश कुमार की जल जाने की वजह से मौत हो गई है.

दोनों बुझे मन से दिल्ली लौट आए. राजेश वर्मा की हत्या का जिम्मेदार सुंदर लाल उन की गिरफ्त में था. अब उसी को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने के लिए उन्हें चार्जशीट तैयार करनी थी.

पुलिस फाइल में बालेश मर चुका था और सुंदर लाल को राजेश वर्मा की हत्या का दोषी मान कर कोर्ट द्वारा आजीवन कारावास की सजा भी मिल गई थी. एक प्रकार से यह हत्या का केस यहीं समाप्त हो गया था और इस केस की फाइल बंद कर दी गई थी.

लेकिन 19 साल बीत जाने के बाद यह केस अक्तूबर, 2023 में फिर से चौंका देने वाली स्थिति में खुल गया. 19 साल पहले जिस बालेश कुमार को थाना बवाना और डांडियावास पुलिस मरा हुआ मान चुकी थी, वह जिंदा था और सेंट्रल रेंज (अपराध शाखा) के एसआई महक सिंह की टीम ने उसे नजफगढ़ (दिल्ली) के एक मकान से गिरफ्तार कर लिया था.

दरअसल, सन 2000 में कोटा हाउस (दिल्ली) के औफिसर मेस में चोरी हुई थी. औफिसर मेस से कीमती मैडल व प्राचीन वस्तुएं रात को चोरी कर ली गई थीं. इस चोरी में बालेश कुमार, उस के पिता चंद्रभान और साला राजेश उर्फ खुशीराम पकड़े गए थे.

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पुलिस उपायुक्त अंकित कुमार

दिल्ली के थाना तिलक मार्ग में तीनों के खिलाफ एफआईआर 341/2000 पर धारा 457/380/411/34 आईपीसी के तहत केस दर्ज हुआ था. उन्हें इस मामले में जमानत मिल गई थी. पुलिस ने इन के पास से चोरी का सामान बरामद कर लिया था. इसी की फाइल अपराध शाखा के स्पैशल पुलिस आयुक्त रविंद्र सिंह यादव के पास आई थी.

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इंसपेक्टर देवेंद्र कुमार

उन्होंने पुलिस उपायुक्त अंकित कुमार के सुपरविजन में इंसपेक्टर देवेंद्र कुमार के नेतृत्व में एसआई महक सिंह, यशपाल सिंह, एएसआई दीपक कुमार त्यागी, सुदेश कुमार, अनिल कुमार, हैडकांस्टेबल संदीप कुमार, करण सिंह, महिला सिपाही रानी की एक टीम बनाई.

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इस टीम को कोटा हाउस के औफिसर मेस में बहुमूल्य सामान की चोरी करने वालों के अपराध रिकौर्ड चेक करने थे और देखना था कि इन्होंने भारतीय पुरातत्व संस्थान के किसी अन्य जगह पर भी ऐसी चोरी तो नहीं की है.

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महिला सिपाही रानी

एसआई महक सिंह इस मामले की जांच कर रहे थे कि 17 अक्तूबर को उन के खास मुखबिर ने उन्हें फोन पर सूचना दी कि 19 साल पहले जिस कातिल बालेश कुमार की ट्रक में जल जाने से मौत हो गई थी, वह जिंदा है. वह आरजेड-167, रोशन गार्डन, नजफगढ़ (दिल्ली) में अमन सिंह पुत्र जगत सिंह के नाम से रह रहा है. उस की पत्नी और बच्चे उसी के साथ में हैं. बालेश कुमार प्रौपर्टी खरीदने बेचने का धंधा कर रहा है.

मुखबिर की इसी सूचना पर सेंट्रल रेंज (अपराध शाखा) की टीम ने उसे उस के घर से दबोच लिया था. दिलचस्प कहानी को आगे बढ़ाने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि बालेश कौन है.

बालेश कुमार पुत्र चंद्रभान मूलरूप से पट्टी कल्याण, समालखा, पानीपत (हरियाणा) का निवासी है. वह कक्षा 8वीं तक पढ़ा है. 1981 में यह नौसेना में स्टीवर्ड (मैस सहायक) के रूप में भरती हुआ और 1996 तक सेवा में रहा.

सेवानिवृत्ति के बाद बालेश कुमार अपने परिवार के साथ दिल्ली में संतोष पार्क (उत्तम नगर) में रहने लगा और प्रौपर्टी का काम करने लगा. सन 2000 में इस ने अपने पिता चंद्रभान और साले राजेश के साथ कोटा हाउस (तिलक मार्ग) में चोरी की.

तीनों पकड़े गए, चोरी का सामान इन के पास से बरामद हो गया. जमानत पर आने के बाद 2003 में बालेश ने अपने भाई महेंद्र के नाम से एक ट्रक एचआर38 एफ4832 फाइनैंस करवाया, जिसे वह खुद चलाने लगा.

खुद को मरा दिखाने के लिए कर दिए 2 और कत्ल

बालेश की पत्नी संतोष सुंदर और गृहकार्य में निपुण थी, फिर भी बालेश दूर के रिश्ते में साला लगने वाले राजेश उर्फ खुशीराम की पत्नी निशा के साथ अवैध संबंध बना कर निशा पर अपनी कमाई लुटाता रहता था. राजेश इस बात से चिढ़ता था. वह बालेश से खुन्नस रखता था. शायद मौका मिलने पर वह बालेश की हत्या कर देता, लेकिन दांव उल्टा पड़ गया.

20 अप्रैल, 2004 को बालेश ने अपने भाई सुंदर लाल के साथ मिल कर राजेश की हत्या कर दी. सुंदर लाल पकड़ा गया, बालेश फरार हो गया. जब वह फरार हुआ था तो 52 साल का था. अब वह 63 साल का हो चुका है. उसे अपराध शाखा के औफिस में लाया गया. सूचना पा कर स्पैशल पुलिस आयुक्त रविंद्र सिंह यादव और डीसीपी अंकित सिंह वहां पहुंच गए. उन के सामने बालेश कुमार से पूछताछ की गई.

”तुम राजेश उर्फ खुशीराम की हत्या कर के राजस्थान भाग गए थे. जिस ट्रक को तुम चला रहे थे, उस में आग लग गई थी और तुम जिंदा जल गए थे. हमें बताओ, वह क्या नाटक था?’’ एसआई महक सिंह ने सामने बैठे बालेश से प्रश्न किया.

”ट्रक ले कर मैं जब भागा था, तब मैं ने एक फुलप्रूफ योजना अपने दिमाग में बिठा ली थी. मैं ने बाईपास से 2 मजदूरों को काम देने का वायदा कर के अपने ट्रक में बिठा लिया था. वे दोनों बिहार के थे. उन के नाम मनोज और मुकेश थे.

”मैं ट्रक ले कर जोधपुर के थाना डांडियावास इलाके में पिथावास बाईपास रोड पर पहुंचा तो एक सुनसान जगह पर मैं ने ट्रक रोक दिया. बाईपास के एक शराब के ठेके से मैं ने 2 बोतल शराब खरीद ली थी. मैं ने ट्रक में मुकेश और मनोज को शराब पिलाई.

”दोनों जब ज्यादा शराब पीने से नशे में लुढ़क गए तो मैं ने मुकेश को जो मेरी कदकाठी का था, उसे अपने कपड़े पहना दिए और ट्रक की ड्राइविंग सीट पर बिठा दिया. मैं ने दिल्ली से ही पेप्सी लेबल के खाली गत्ते ट्रक में भर लिए थे. उन पर पेट्रोल डाल कर मैं ने ट्रक में आग लगा दी. मेरी आईडी और अन्य कागजात सामने के हिस्से में थे.

”ट्रक में आग लगाने के बाद दूर जा कर एक झाड़ी में दुबक कर मैं बैठ गया. काफी देर बाद वहां से गुजर रहे एक कार चालक ने पुलिस को फोन किया. जब फायर बिग्रेड और पुलिस वहां आई, तब तक ट्रक आग से काफी हद तक जल गया था. मैं अब निश्चिंत था.

”मैं ने घर पर फोन कर के अपने पिता और पत्नी को अपनी योजना बता दी. डांडियावास थाने की पुलिस द्वारा छानबीन करने के बाद मेरे पिता चंद्रभान को थाने में बुलाया गया तो मेरी पत्नी संतोष और भाई बिशन, महेंद्र सिंह, भीम सिंह भी उन के साथ डांडियावास थाने में आ गए. उन्हें ट्रक में जले 2 मानव कंकाल दिखाए गए तो एक की पहचान उन्होंने मेरे (बालेश) के रूप में कर दी.’’

”अपनी मौत का नाटक तुम ने इसलिए रचा ताकि राजेश के कत्ल के इलजाम से बच सको, क्या मैं ठीक कह रहा हूं?’’ इंसपेक्टर देवेंद्र कुमार ने पूछा.

योजना हुई फेल तो बालेश पहुंचा जेल

बालेश मुसकराया, ”बेशक यही कारण था साहब, मैं ने अपनी मौत हो जाने का नाटक कर के अपनी पत्नी को लाभ पहुंचाया था.’’

”वो कैसे?’’

”मेरी पत्नी और पिता ने डांडियावास से मेरी मौत का प्रमाणपत्र हासिल कर लिया था. मेरी पत्नी ने मेरा बीमा पालिसी की साढ़े 6 लाख रुपए की राशि, ट्रक इंश्योरेंस का 4 लाख रुपया हासिल कर लिया और मेरी पेंशन भी अपने नाम करवा ली.

”ओह!’’ सभी को इस खुलासे से हैरानी हुई. अपराध शाखा के पुलिस आयुक्त रविंद्र कुमार यादव ने बालेश को घूरा, ”तुम अपनी पत्नी के साथ मौत का नाटक करने के बाद कब से रह रहे हो?’’

”साहब, मौत का नाटक करने के बाद मैं 2-3 महीने इधर उधर रहा. पत्नी ने सारे रुपए हासिल कर लिए तो मैं ने नजफगढ़ में प्लौट ले लिया और अमन सिंह पुत्र जगत सिंह के नाम से बीवी बच्चों के साथ रहने लगा.

”मैं ने अपने आधार कार्ड, पैन कार्ड, पहचान पत्र आदि अमन सिंह के नाम से बनवा लिए, ताकि सभी मुझे अमन सिंह ही समझें. मैं इत्मीनान से प्रौपर्टी का धंधा करने लगा. वक्त गुजरता गया. मैं निश्चिंत था कि अब पकड़ा नहीं जाऊंगा.’’

”हम ने पकड़ लिया.’’ इंसपेक्टर देवेंद्र कुमार मुसकरा कर बोले, ”अब तुम जिंदगी भर जेल में सड़ोगे.’’

बालेश कुमार ने सिर झुका लिया.

उस के खिलाफ एफआईआर 232/2023 दर्ज करके आईपीसी की धारा 419, 420, 467, 468, 471, 474 और 120बी लगा कर उसे कोर्ट में पेश किया गया. कोर्ट ने उसे जेल भेज दिया.

अपराध शाखा (सेंट्रल रेंज) ने यह केस बवाना थाने के वर्तमान एसएचओ राकेश कुमार को सौंप दिया. उन्होंने बालेश कुमार की पत्नी संतोष को पकडऩे के लिए नजफगढ़ वाले घर पर रेड डाली, लेकिन संतोष पति के पकड़े जाते ही भूमिगत हो गई थी.

डांडियावास थाना (जोधपुर) ने यह मामला सीआरपीसी की धारा 174 के तहत 2004 में दर्ज किया था, कोई आपराधिक केस नहीं बनाया था. उसे यह सूचित कर दिया गया कि ट्रक में मरने वाला बालेश कुमार नहीं, उस का मजदूर मुकेश था. दूसरी लाश मनोज की थी. बालेश ने 2 हत्याएं उन के थानाक्षेत्र में की थीं, उस पर काररवाई की जाए.

बालेश कुमार जेल में था. पुलिस उस की पत्नी संतोष की तलाश कर रही थी, जो कथा लिखने तक फरार थी.

नोट: कथा में निशा नाम परिवर्तित है.

फारेस्ट औफीसर का कातिल प्रेमी – भाग 2

11 जून को कोचिंग सेंटर वालों ने दर्शना को सम्मानित किया. सम्मानित करने के बाद कोचिंग के प्रबंधक ने उस से अपने बारे में कुछ कहने के लिए कहा तो दर्शना ने जो बातें कही और जिस तरह कही, वे कोचिंग में पढऩे वाले बच्चों के लिए प्रेरणादायक तो थी ही, उस की इन बातों से वे सभी भी बहुत प्रभावित हुए जो निम्नमध्यम वर्ग के लोगों को कुछ नहीं समझते.

उस की बातों से उन लोगों की समझ में आ गया कि ज्ञान सचमुच बलवान बनाता है. इस से दर्शना को और तमाम लोग भी जान गए. दर्शना द्वारा कही गई बातों का लोगों ने वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर भी वायरल किया, जिस से दर्शना का तो मान बढ़ा ही, उस संस्थान की भी प्रतिष्ठा बढ़ गई, जहां पढ़ कर दर्शना ने यह कामयाबी हासिल की थी. इस के बाद दर्शना पुणे में ही अपनी सहेली के यहां रुक कर दोस्तों से मिलती रही.

12 जून को उस ने अपनी सहेली से कहा कि आज वह अपने दोस्त राहुल हंडोरे के साथ राजगढ़ और सिंहगढ़ का किला देखने जा रही है. उस ने यह बात फोन कर के अपने पैरेंट्स को भी बता दी थी. दर्शना को किला देखने जाने से किसी ने मना नहीं किया, क्योंकि सभी जानते थे कि दर्शना ने खूब मेहनत की है, तभी उसे यह सफलता मिली है. इसलिए थोड़ा घूमेगी फिरेगी तो उस का मन भी बहल जाएगा और पढ़ाई की थकान भी उतर जाएगी.

दर्शना जिस राहुल हंडोरे के साथ जा रही थी, वह वही राहुल है, जिस के साथ वह अहमदनगर में पढ़ी थी और पुणे में सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए आई थी. उस के साथ कहीं जाने में घर वालों को भी कोई ऐतराज नहीं था, क्योंकि दोनों पुराने और घनिष्ठ मित्र थे. फिर अब दर्शना खुद हर तरह सक्षम और समझदार हो गई थी. वह खुद अपना अच्छाबुरा सोच सकती थी.

दर्शना को तो नौकरी मिल गई थी, पर राहुल का अभी कुछ नहीं हुआ था. वह अभी तैयारी ही कर रहा था, साथ ही अपना खर्च चलाने के लिए पुणे में प्राइवेट नौकरी भी कर रहा था.

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राजगढ़ का किला

12 जून की सुबह दोनों राजगढ़ का किला देखने के लिए बाइक से निकल गए. दर्शना और राहुल के दोस्तों और घर वालों को पता था कि दोनों किला देखने गए हैं. पर जब शाम को इन के घर वालों ने हालचाल जानने के लिए फोन किया तो दोनों के ही फोन स्विच्ड औफ बता रहे थे.

फिर तो दोनों के ही घर वाले घबरा गए. उन के दोस्तों से पता किया गया तो उन्होंने बताया कि अभी तक दोनों लौट कर ही नहीं आए हैं. इस के बाद तो दोनों के ही घर वाले बेचैन हो उठे. क्योंकि दर्शना की जहां अच्छी बढिय़ा नौकरी लग चुकी थी, वहीं राहुल भी पढऩे में ठीकठाक था और मेहनत से तैयारी कर रहा था. इसलिए उस के घर वालों को भी उम्मीद थी कि आज नहीं तो कल उसे भी कोई न कोई अच्छी नौकरी मिल ही जाएगी.

दर्शना और राहुल के बारे में जब कुछ पता नहीं चला और न उन के फोन चालू हुए तो अगले दिन उन के घर वाले उन्हें खोजने के लिए पुणे आ गए. अपने हिसाब से उन्होंने दोनों को पुणे में खोजा, किले में भी गए, पर उन का कुछ पता नहीं चला. अब दोनों के ही घर वालों की बेचैनी और बढ़ गई थी. क्योंकि उन की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर दोनों कहां चले गए.

जब दोनों ही परिवार उन्हें ढूंढ ढूंढ कर थक गए तो 14 जून, 2023 को दर्शना के घर वालों ने जहां थाना सिंहगढ़ में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी, तो राहुल के घर वालों ने थाना मालवाड़ी में उस की गुमशुदगी दर्ज कराई.

पहाड़ी की तलहटी में मिली दर्शना की लाश

दर्शना अपनी कामयाबी से उस इलाके में चर्चा का विषय बन चुकी थी. उसे लगभग हर कोई जानने लगा था. गांव वाले भले न जानते रहे हों, पर शहर और कस्बे का तो लगभग हर कोई उसे जानता था.

इसलिए जब एक तरह से पूरे इलाके में सेलिब्रिटी हो चुकी दर्शना की गुमशुदगी की दर्ज कराई गई तो पुलिस भी सन्न रह गई. चूंकि मामला गंभीर और रहस्यमयी था, इसलिए थाना पुलिस के साथसाथ क्राइम ब्रांच पुलिस भी इस मामले की जांच में लग गई.

क्राइम ब्रांच ने दर्शना और राहुल की खोज के लिए 5-5 पुलिस वालों की 5 टीमें बनाईं और सभी टीमों को अलगअलग जिम्मेदारियां सौंप दीं.

ग्रामीण पुलिस इस मामले में जीजान से लगी थी. पर उसे कोई कामयाबी नहीं मिल रही थी. 19 जून को किसी अजनबी ने पुलिस को सूचना दी कि किले के पास पहाड़ी के नीचे तलहटी में एक महिला की लाश पड़ी है.

सूचना मिलते ही पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. दर्शना और राहुल की गुमशुदगी दर्ज थी. वे दोनों किले से ही गायब हुए थे. इस से पुलिस को लगा कि कहीं यह लाश दर्शना की तो नहीं है. तुरंत दर्शना के घर वालों को बुलाया गया. लाश देखते ही दर्शना के घर वालों पर तो जैसे दुख का पहाड़ टूट पड़ा. क्योंकि वह लाश दर्शना की ही थी. परिवार की सारी खुशियां पलभर में दुख में बदल गईं. सभी का रोतेरोते बुरा हाल हो गया.

ग्रामीण पुलिस मामले की जांच कर ही रही थी. लाश देख कर पुलिस यह अंदाजा नहीं लगा पा रही थी कि यह मामला हत्या का है या दर्शना के साथ कोई अनहोनी हुई है. क्योंकि लाश की स्थिति बहुत खराब थी. अब तक वह काफी हद तक सडग़ल चुकी थी. पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

सीसीटीवी फुटेज

इसी बीच पुलिस को किले के पास एक होटल पर लगे सीसीटीवी कैमरे से एक फुटेज मिली, जिस में सुबह करीब साढ़े 8 बजे दर्शना राहुल के साथ बाइक से किले की ओर जाती दिखाई दी. पर दिन के करीब 10 बजे राहुल किले की ओर से लौटा तो बाइक पर अकेला ही था यानी लौटते समय दर्शना उस के साथ नहीं थी. इस से साफ हो गया कि दर्शना के साथ जो कुछ भी हुआ, वह किले के अंदर या उस के आसपास ही हुआ था.

आखिरी गुनाह करने की ख्वाहिश – भाग 3

2 हथियारबंद लोगों ने बहराम खान का पीछा किया और वहां से लगभग एक फरलांग की दूरी पर उसे घेर लिया. निहत्था और घायल होने के बावजूद बहराम ने कायर की मौत मरने के बजाय एक पर छलांग लगा दी. उस की गरदन उस के कब्जे में आ गई. बहराम कुछ कर पाता, उस के पहले ही उस के साथी ने बहराम के सिर में एक के बाद एक कर के 6 गोलियां उतार कर अपने साथी को बचा लिया.

इस हमले में भावल खान के पिता तथा उम्मीदवार के साथ 2 अन्य लोग मारे गए. बाकी लोग गंभीर रूप से घायल हुए. विरोधी उम्मीदवार पुलिस की मिलीभगत से पहले ही जेल जा चुका था, इसलिए उस का इस मामले में बाल भी बांका नहीं हो सका.

भावल खान ने अपने पिता को दफनाते समय कसम खाई थी कि वह बाप की मौत का बदला जरूर लेगा. इस के लिए उसे कितनी ही कीमत क्यों न चुकानी पड़े.

बहराम खान ने उसे सिखाया था कि चोर हमेशा अकेला ही कामयाब होता है. लेकिन उस ने बाप का यह नियम चुनन शाह पर विश्वास कर के तोड़ दिया था.

चुनन शाह से भावल खान की दोस्ती हो गई थी. था तो वह भी अपराधी, लेकिन वह दूसरे तरह के अपराध करता था. वह औरतों को बहला फुसला कर ले जाता और कोठों पर बेच देता था. लेकिन उस ने भावल खान को कभी इस की भनक नहीं लगने दी थी. उस ने उस से बताया था कि वह तसकरी करता है.

जिस आदमी ने बहराम खान को मारा था, उसे पता था कि इस इलाके में भावल खान के अलावा कोई दूसरा उस का कुछ नहीं बिगाड़ सकता. शायद इसीलिए उस ने भावल से दोस्ती करने के लिए खूब कोशिश की. लेकिन भावल को तो उस से बदला लेना था. वह दोस्ती कर के उस से बदला नहीं ले सकता था. क्योंकि किसी के साथ धोखेबाजी करना उसे पसंद नहीं था.

चुनन शाह बहुत ही कमीना आदमी था. समय के साथ वह अपने रूप बदलता रहता था. भावल खान के साथ वह इसलिए लगा रहता था, क्योंकि उसे उस के विरोधियों से भावल के अलावा और कोई नहीं बचा सकता था. भावल भी उसे इसलिए साथ रखता था, क्योंकि उस ने उसे नएनए हथियार दिलाए थे. फिर दूसरे इलाकों में भी चुनन शाह की अच्छी जानपहचान थी, इसलिए जरूरत पड़ने पर वह छिपने की व्यवस्था करा सकता था.

आखिर वह मौका आ गया, जिस का भावल खान को बेचैनी से इंतजार था. मध्यावधि चुनाव की घोषणा हो गई. चुनाव प्रचार भी शुरू हो गया. विरोधी उम्मीदवार एक गांव से चुनाव सभा कर के लौट रहा था तो रात हो गई. भावल चुनन शाह के साथ रास्ते में घात लगा कर बैठा था. जैसे ही उस उम्मीदवार की जीप उन के सामने आई, उन्होंने गोलियों की बौछार कर दी, साथ ही हथगोले भी फेंके.

किराए के लोग ऐसे मौकों पर मरना नहीं चाहते. उस विरोधी उम्मीदवार के साथी भी अपनी जान बचाने के लिए गाडि़यों से कूदकूद कर भागे. उम्मीदवार और उस के 2 साथी मारे गए. उन की मौत की पुष्टि हो गई तो भावल चुनन शाह के साथ भाग निकला. भागने की तैयारी उन्होंने पहले से ही कर रखी थी.

अगले दिन भावल चुनन शाह के साथ एक सुरक्षित स्थान पर पहुंच गया. वहां चुनन शाह की जानपहचान काम आई. उस ने वहां रहने के लिए एक कमरा किराए पर ले लिया. चुनन शाह के साथ भावल वहां 3 महीने तक रहा. एक दिन चुनन शाह को बिना बताए ही भावल अपनी बुआ के यहां चला गया. उस के पिता ने बचपन में ही उस की शादी बुआ की बेटी से तय कर दी थी. बुआ उसे देख कर हैरान रह गई.

‘‘बुआजी, आप को घबराने की जरूरत नहीं है.’’ भावल खान ने कहा, ‘‘मैं पिताजी की बात का मान रखने आया हूं, क्योंकि वह चाहते थे कि मेरी शादी सुगरा से हो. मेरे बारे में आप को सब पता ही है. अगर तुम मना भी कर दोगी तो मुझे कोई ऐतराज नहीं होगा. फिर भी मैं चाहता हूं कि पिताजी की आत्मा को दुख न हो.’’

‘‘तू मेरे भाई की निशानी है,’’ बुआ ने भावल के गालों को चूमते हुए कहा, ‘‘तू अच्छा हो या बुरा, बेटियों का भाग्य ईश्वर लिखता है. सुगरा तेरी अमानत है, तू इसे ले जा.’’

तीसरे दिन एक साधारण से समारोह में सुगरा और भावल खान की शादी हो गई. चुनन शाह ने हर काम में एक सगे भाई की तरह बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया. चुनन शाह की सलाह पर भावल सुगरा को ले कर कराची आ गया.

कराची की भीड़भाड़ में भावल खान समा गया. उस ने अपना नाम नियाज अली रख लिया. इसी नाम से उस ने अपना पहचान पत्र भी बनवा लिया और 3 कमरों का बड़ा सा मकान ले लिया था. आगे वाले कमरे में चुनन शाह रहता था, बाकी के पीछे के 2 कमरों में नियाज अली सुगरा के साथ रहता था. यहां उन की जिंदगी आराम से कट रही थी.

समय के साथ बड़ेबड़े खजाने खाली हो जाते हैं. यही भावल खान के साथ भी हुआ. कुछ दिनों में उस की जमापूंजी खत्म हो गई. इस बीच सुगरा उस से कहती रही कि वह पुरानी जिंदगी भूल कर कोई छोटामोटा काम कर ले. लेकिन उसे जो चस्का लग चुका था, वह जल्दी छूटने वाला नहीं था. उस ने कभी भी मामूली चोरी तक नहीं की थी.

चुनन शाह बहुत ही कमीना आदमी था. उस ने देखा कि भावल खान परेशान है तो एक दिन बोला, ‘‘भाईसाहब, इस तरह कब तक काम चलेगा. कहीं न कहीं हाथ मारना ही पड़ेगा.’’

‘‘मैं तैयार हूं. लेकिन शहर वाले काम मैं ने कभी किए नहीं, हम ने तो मर्दों वाले काम किए हैं.’’ भावल खान ने कहा.

‘‘ठीक है, मैं ही बाहर निकलता हूं. शायद कोई पुरानी जानपहचान काम आ जाए.’’ चुनन शाह ने कहा.

‘‘जैसी तुम्हारी इच्छा. मैं तुम्हारे साथ हूं.’’ भावल खान ने कहा.

चुनन शाह चला गया. 3 दिनों बाद वह लौटा तो अकेला नहीं था. उस के साथ एक जवान लड़की थी. भावल खान ने हैरानी से पूछा, ‘‘यह कौन है?’’

चुनन शाह ने आंख से गंदा सा इशारा किया. भावल को गुस्सा आ गया. उस का हाथ उठता, उस के पहले ही चुनन शाह बोल पड़ा, ‘‘भावल यह तुम्हारा गांव नहीं, कराची शहर है. तुम जानते हो, हम दोनों फरार हत्यारे हैं. दिमाग को ठंडा रखो और हां, अगर होशियारी दिखाई तो हम दोनों मारे जाएंगे.’’

भावल खान ने खुद को कभी इतना बेबस और मजबूर नहीं महसूस किया था. शायद सुगरा से शादी कर के वह डरपोक हो गया था. उस ने चुनन शाह की इस बात का कोई जवाब नहीं दिया. अगले दिन चुनन शाह उस लड़की को ले कर गया तो शाम तक वापस आया. भावल ने अंदाजा लगाया कि उस ने उसे ठिकाने लगा दिया है.

प्यार में की थीं 3 हत्याएं : 19 साल बाद खुला राज – भाग 3

मनदीप ने सुंदर लाल को कालर से पकड़ा तो वह घबरा कर बोला, ”मुझे टार्चर रूम में मत ले जाइए, मैं सब कुछ बताता हूं.’’

”बताओ, कल रात को राजेश उर्फ खुशीराम तुम्हारे साथ था या नहीं?’’ एसआई जयकिशन ने पूछा.

”था साहब, मैं ने और राजेश ने कल सुरेंद्र शर्मा के यहां जनकपुरी में शराब की पार्टी की थी. फिर हम तीनों मेरी मारुति वैन में बैठ कर पीरागढ़ी की ओर आ गए थे. यहां एक ठेके से मैं ने शराब की बोतल और जनरल स्टोर से नमकीन खरीदी. राजेश नशे में होने के बावजूद अभी और पीने के मूड में था, इसलिए घर नहीं जाना चाहता था.

”मेरा कई बार उस से झगड़ा हुआ था, आज उस से हिसाब किताब करने का सही मौका मिल गया था. मैं ने अपने भाई बालेश कुमार को फोन कर के कहा कि पीरागढ़ी आ जाओ, राजेश मेरे साथ है, उसे निपटा देते हैं. बालेश ने हामी भर दी. यह बात सुरेंद्र शर्मा ने सुनी तो वह बहाना बना कर वैन से उतर गया और अपने घर चला गया.’’

सुंदरलाल ने रुक कर सांसें दुरुस्त कीं फिर आगे बताने लगा, ”मेरा बड़ा भाई बालेश पीरागढ़ी आ गया तो मैं वैन को चला कर शाहबाद डेरी की ओर ले आया. रास्ते में फलवालों की रेहड़ी के पास से नायलोन की रस्सी मैं ने मांग ली थी. शाहबाद डेरी में खड़े ट्रकों की आड़ में मैं ने वैन रोक दी और 3 पैग बनाए. मैं ने राजेश के गिलास में ज्यादा शराब डाली ताकि वह नशे में और बेसुध हो जाए.

”2 पैग पीते ही राजेश पर गहरा नशा चढ़ा तो वह बालेश को अपनी बीवी निशा के साथ अवैध संबंध होने का आरोप लगा कर गालियां देने लगा. बालेश से यह सहन नहीं हुआ तो उस ने राजेश के चेहरे पर 3-4 घूंसे जड़ दिए. इस से राजेश अद्र्धबेहोशी में चला गया.

”मैं ने बालेश को राजेश के पैर पकडऩे का इशारा किया तो उस ने राजेश के पैर दबोच लिए. मैं ने नायलोन की रस्सी राजेश वर्मा के गले में डाल कर पूरी ताकत से कस दी, राजेश का शरीर फडफ़ड़ाया फिर शांत हो गया. बालेश और मैं उस की लाश को ले कर प्रह्लादपुर आए और सर्वोदय बाल विद्यालय के सामने उसे फेंक कर अपने घर चले गए.’’

”तुम्हारा बड़ा भाई बालेश इस समय कहां पर है?’’

”वह अपने घर में होगा साहब, उस का पता आरजेड-121, संतोष पार्क, उत्तम नगर है.’’

एसआई जयकिशन ने सुंदर लाल को हवालात में बंद कर दिया और 4-5 पुलिस वालों को साथ ले कर बालेश की गिरफ्तारी के लिए उत्तम नगर के लिए रवाना हो गए.

ट्रक में लगी आग से भस्म हो गया आरोपी?

एसआई जयकिशन पुलिस टीम के साथ संतोष पार्क, उत्तम नगर बालेश के घर पहुंचे तो मालूम हुआ वह घर पर नहीं है. उस की पत्नी संतोष से उस के उठने बैठने के ठिकाने मालूम कर के वहां पर दबिश डाली गई, लेकिन बालेश नहीं मिला.

परेशान हो कर एसआई जयकिशन टीम के साथ थाने में लौट आए. उन्होंने यह रिपोर्ट एसएचओ राम अवतार मीणा को दी तो उन्होंने बालेश की टोह पाने के लिए अपने खास मुखबिर लगा दिए.

एक हफ्ता निकल गया लेकिन बालेश कुमार का सुराग नहीं मिला. इस बीच राजेश की लाश का पोस्टमार्टम करवा कर लाश उस के घर वालों के हवाले कर दी गई और सुंदर लाल को न्यायालय में पेश कर के 2 दिन की रिमांड पर ले लिया गया.

राजेश की हत्या के लिए प्रयोग की गई नायलोन की रस्सी, शराब की खाली बोतल, गिलास आदि उस जगह से एकत्र कर लिए गए, जहां सुंदर और बालेश ने राजेश की हत्या की थी.

राजेश की हत्या का यह केस एफआईआर 146/2004 दफा 302/201 आईपीसी की धारा में दर्ज कर लिया गया. इस केस की मजबूती के लिए बी-2, बी/98 जनकपुरी से सुरेंद्र शर्मा को थाने बुलवा कर उस का बयान लिया गया.

उस ने अपने बयान में बताया कि पीरागढ़ी में सुंदर लाल ने भाई बालेश को फोन पर यह कहा था कि राजेश नशे में है, आ जाओ, आज उसे निपटा देते हैं. मैं सुंदर लाल का खतरनाक इरादा भांप कर वैन से उतर गया था. मुझे पक्का विश्वास है कि राजेश उर्फ खुशीराम की हत्या सुंदर लाल और बालेश कुमार ने ही की है.’’

2 दिन बाद रिमांड की अवधि समाप्त होने पर सुंदर लाल को फिर से न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

मर चुका बालेश 19 साल बाद कैसे हुआ जिंदा

बालेश कुमार की टोह में मुखबिर लगे हुए थे. उन्हें केवल इतना पता चला कि बालेश बाईपास पर खड़े अपने ट्रक नंबर एचआर 38एफ 4832 में सवार हो कर राजस्थान भाग गया है. थाना बवाना पुलिस को पहली मई, 2004 को शाम 5 बजे डांडियावास थाना, जोधपुर (राजस्थान) से बालेश के पिता चंद्रभान ने फोन कर के एक बुरी खबर दी.

चंद्रभान ने एसएचओ राम अवतार मीणा को बताया कि उन का बेटा बालेश दिल्ली पुलिस से बचने के लिए अपने ट्रक से राजस्थान भागा था, मगर पीथावास बाईपास, थाना डांडियावास (जोधपुर) पर उस के ट्रक में आग लग गई और अपने क्लीनर के साथ बालेश जिंदा जल कर मर गया है.

एसएचओ रामअवतार मीणा ने उच्चाधिकारियों को सारी बात बता कर राय मांगी तो उन से कहा गया, ”हत्या का केस है और बालेश वांछित आरोपी है. जा कर खुद इस बात कि जांच करें कि चंद्रभान की बात में कितनी सच्चाई है. अपने बेटे को बचाने के लिए चंद्रभान झूठ भी बोल सकता है.’’

एसएचओ मीणा, एसआई जयकिशन के साथ जोधपुर के थाना ट्रेन से डांडियावास रवाना हुए. दूसरे दिन वह डांडियावास थाने में थे. थाने में बालेश का पिता चंद्रभान, बालेश की पत्नी संतोष और बालेश के 2 भाई महेंद्र कुमार, भीमसिंह मौजूद थे. चारों के चेहरे मुरझाए हुए थे.

डांडियावास थाने के थानेदार ने इस बात की पुष्टि कर दी कि बालेश का ट्रक पीथावास बाईपास रोड पर जल गया है. ड्राइविंग सीट पर बालेश की बुरी तरह जल चुकी बौडी और उस के अधजले पहचान के कागज मिले हैं.

उस के पिता चंद्रभान और पत्नी संतोष का कहना था कि वह जली हुई डैडबौडी बालेश की है. मैं ने पूरी कागजी काररवाई कर के अपनी संतुष्टि कर ली है. आप जैसा उचित समझें, काररवाई करें.

पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री के भाई का गोवा में मर्डर – भाग 3

नरोत्तम ढिल्लों को कैसे फंसाया जाल में

इस काम के लिए उस ने नवीन नगर, ऐशबाग, भोपाल निवासी अपनी गर्लफ्रेंड नीतू शंकर राहुजा से नरोत्तम सिंह ढिल्लों की पहचान कराई. उस ने अपनी गर्लफ्रेंड नीतू राहुजा को बताया था कि नरोत्तम सिंह ढिल्लों बहुत ही पैसे वाला आदमी है, तुम उन के साथ कुछ वक्त बिता लेना. इस से खुश हो कर ढिल्लों तुम्हें करोड़ों कपए दे देंगे, लेकिन इस के विपरीत उस ने नरोत्तम सिंह ढिल्लों को बताया था कि नीतू उन से विशेष रूप से प्रभावित है और वह अपनी इच्छा से उन से मिलने आ रही है.

शनिवार 3 फरवरी, 2024 की रात 2 बजे तक सभी पार्टी करते रहे. इसी बीच नरोत्तम सिंह ढिल्लों जितेंद्र साहू के इशारे पर नीतू के करीब आने लगे, तभी नीतू राहुजा ने ढिल्लों के गलत मंसूबे समझ कर उन की हरकतों का विरोध करना शुरू कर दिया.

नीतू ने जोर से धक्का दे कर नरोत्तम सिंह ढिल्लों को जमीन पर गिरा दिया. विवाद बढऩे पर जितेंद्र ने नीतू और अपने साथी की मदद से ढिल्लों का गला घोंट कर हत्या कर दी और उस के बाद करीब 45 लाख रुपए की नकदी व जेवर ले कर खिड़की के रास्ते वहां से फरार हो गए.

जितेंद्र साहू और नीतू राहुजा भोपाल के रहने वाले थे. जितेंद्र साहू स्टौक मार्केट में ट्रेडिंग का काम करता था, जबकि नीतू राहुजा एक इलेक्ट्रौनिक्स शोरूम में काम करती थी. नीतू राहुजा ने गोवा पुलिस को बताया कि जितेंद्र उस के ही मकान में अपनी मां के साथ रहता था. जबकि नीतू अपने मातापिता और भाई के साथ रहती थी. कुछ समय बाद एक ही मकान में रहने की वजह से उन में नजदीकियां बढऩे लगीं और फिर वे दोनों एकदूसरे से प्रेम करने लगे थे.

पूर्व मुख्यमंत्री के भाई थे नरोत्तम सिंह

पूछताछ के दौरान नीतू ने पुलिस को बताया कि 3-4 फरवरी की रात को ढिल्लों ने उस के साथ छेड़छाड़ की थी, जिस के कारण उन दोनों के बीच काफी विवाद हो गया था. उस के बाद उस ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर ढिल्लों की हत्या कर दी और वहां से नकदी व जेवर ले कर फरार हो गए थे. 4 फरवरी, 2024 की सुबह ढिल्लों के विला की मैनेजर सीमा सिंह ने उन्हें मृत देख कर गोवा पुलिस को सूचना दी थी.

मृतक नरोत्तम सिंह ढिल्लों के पास एक समय में अमेरिका में फेरारी की डीलरशिप थी. वह वर्तमान में भारत में आतिथ्य, रियल एस्टेट, लग्जरी विला और कारों को किराए पर देने के व्यवसाय में थे. गोवा में उन से मिलने आए उन के रिश्तेदारों के अनुसार निम्स ढिल्लों विलासितापूर्ण जीवन जीने के शौकीन थे और अपनी संपत्तियों पर मेहमानों की मेजबानी करना पसंद करते थे.

नरोत्तम सिंह ढिल्लों पर 1990 के दशक में लग्जरी फेरारी कारों की बिक्री और खरीद पर कर चोरी कर के अमेरिकी सरकार को धोखा देने का आरोप लगाया गया था, जिसे उन्होंने एक बार झूठा मामला करार दिया था. नरोत्तम सिंह ढिल्लों को 2003 में पंजाब सतर्कता ब्यूरो ने शिमला के एक अपार्टमेंट से गिरफ्तार किया था.

वह अमेरिका में बादल परिवार का कारोबार देखते थे और उन के ऊपर हवाला के जरिए उन की संपत्ति विदेश ले जाने का आरोप था. बाद में उन्हें अदालत द्वारा बरी कर दिया गया था.

पंजाब की लांबी पुलिस ने उस समय कथित तौर पर नकली मुद्रा का उपयोग करने, नशीले पदार्थों का कारोबार करने, विस्फोटक अधिनियम, शस्त्र अधिनियम और विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत उन के खिलाफ मामला दर्ज किया था, लेकिन उन से कोई भी बरामदगी नहीं हो पाई थी.

मेजर भूपिंदर सिंह ढिल्लों जोकि पूर्व में प्रकाश सिंह बादल के राजनीतिक सचिव के रूप में काम कर चुके हैं और बादल परिवार के सब से पुराने सदस्यों में से एक हैं, ने कहा, ”नरोत्तम सिंह ढिल्लों के पास कई संपत्तियां हैं. उन की नृशंस हत्या से पूरा परिवार सदमे में है.’’

इसी बीच मृतक नरोत्तम सिंह ढिल्लों के चचेरे भाई पवनप्रीत सिंह बादल उर्फ बौबी ने कहा, ”निम्स के पास एक समय अमेरिका में फेरारी कार शोरूम था. इस से पहले वह कनाडा में बस गए थे. पिछले कुछ सालों से वह ज्यादातर समय गोवा में ही रह रहे थे. उन की पत्नी और बेटा दिल्ली में रहते हैं. उन की बेटी की शादी विदेश में हुई है. उन का बेटा कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने और निम्स का पार्थिव शव लेने गोवा गया था.’’

पवनप्रीत सिंह बादल ने आगे कहा, ”हमें इस की जानकारी नहीं है कि उन की किसी से भी दुश्मनी थी या नहीं. उन का मुख्य व्यवसाय गोवा, दिल्ली और शिमला में था. इस के अलावा उन के पास पंजाब के बादल गांव में कृषि भूमि और एक घर भी है.

”पुलिस ने महाराष्ट्र में एक युवा जोड़े को गिरफ्तार किया है, जो कथित तौर पर उन की हत्या की रात गोवा में उन के विला में रुके थे और उन की किराए की कार में भागने की कोशिश की थी. कार के जीपीएस से पुलिस को उन्हें पकडऩे में मदद मिली. ऐसा लग रहा था जैसे निम्स का गला घोंट दिया गया हो.’’

तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर गोवा पुलिस ने यह मामला आईपीसी की धारा 302 और 392 के तहत दर्ज कर लिया है. पुलिस ने आरोपी 32 वर्षीय जितेंद्र रामचंद्र साहू और 22 वर्षीया नीतू राहुजा को गोवा कोर्ट में पेश कर 10 दिन की रिमांड में ले कर उन से विस्तृत पूछताछ कर रही थी.

मर्डर केस का एक अन्य आरोपी कुणाल, जोकि उत्तर प्रदेश के झांसी का रहने वाला है, कथा लिखे जाने तक वह फरार था, जिसे गोवा पुलिस सरगर्मी से तलाश कर रही थी.

आज के दौर में आए दिन सोशल मीडिया की दोस्ती के साइड इफेक्ट मीडिया के माध्यम से जानने सुनने को मिलते रहते हैं.

कुछ दिनों की सोशल मीडिया की चकाचौंध और दिखावटी, चिकनी चुपड़ी दोस्ती के कारण शादीशुदा महिला या पुरुष अपनी बरसों पुरानी शादी, लोकलाज व बच्चों की परवाह किए बगैर दूसरों के साथ भाग जाने के लिए तत्पर हो जाता है. यह सब आखिर क्यों होता जा रहा है?

—कहानी पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित है.

फारेस्ट औफीसर का कातिल प्रेमी – भाग 1

लाश पहाड़ी की तलहटी में पड़ी थी, जो काफी हद तक सड़गल गई थी. लाश देख कर ही लग रहा था कि इस की मौत कई दिनों पहले हुई है. पुलिस ने जब बारीकी से लाश का निरीक्षण किया तो उस के शरीर और सिर पर चोट के निशान थे. इस से पुलिस को लगा कि शायद इस की हत्या की गई है. पुलिस को लाश से थोड़ी दूर पर एक मोबाइल फोन, जूता और चश्मा पड़ा मिला. पुलिस ने अंदाजा लगया यह सामान मरने वाली लड़की का ही होगा.

Lash ke paas mila darshna ka samaan

लाश के पास मिला दर्शना का सामान

रेंज फारेस्ट औफीसर (Range Forest Officer) दर्शना पवार (Darshana Pawar) की लाश तो मिल गई थी, पर उस के दोस्त राहुल का अभी भी कुछ पता नहीं था. इसलिए अब पुलिस की जांच 2 दिशाओं में बंट गई. एक ओर पुलिस राहुल को खोज रही थी तो दूसरी ओर पुलिस अब यह पता कर रही थी कि दर्शना की मौत कैसे हुई? अगर यह दुर्घटना है तो दुर्घटना कैसे हुई? अगर हत्या हुई है तो किस ने और क्यों दर्शना की हत्या की? राहुल का फोन भी स्विच्ड औफ था, इसलिए उस के बारे में कुछ पता नहीं चल रहा था.

दर्शना की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने पर साफ हो गया कि उस की मौत दुर्घटना से नहीं हुई, बल्कि उस की हत्या की गई थी. क्योंकि उस के शरीर पर चोट के जो निशान मिले थे, वे दुर्घटना के नहीं थे, बल्कि किसी नुकीली चीज द्वारा चोट पहुंचाए जाने के थे.

पुलिस को तो पहले ही हत्या की आशंका थी, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने से साफ हो गया कि दर्शना की हत्या की गई थी. अगर दुर्घटना हुई होती तो राहुल उस के साथ ही था, चोट उसे भी लगती. वह किसी अस्पताल में होता या फिर दर्शना के घायल होने या पहाड़ी में नीचे गिरने की सूचना देता. पर वह तो गायब था, इसलिए पुलिस को अब उस पर ही शक होने लगा.

महाराष्ट्र (Maharashtra) के जिला अहमदनगर (Ahmednagar) का एक कस्बा है कोपरगांव. दर्शना अपने मम्मीपापा के साथ यहीं रहती थी. उस का एक निम्नमध्यमवर्गीय परिवार था. उस के पापा अहमदनगर की एक शुगर मिल में ड्राइवर थे और मां घर संभालती थीं.

दर्शना पढऩे में ठीकठाक थी. इसलिए मम्मीपापा उस की पढ़ाई पर विशेष ध्यान दे रहे थे. वे सोचते थे कि बिटिया पढ़लिख कर कुछ बन जाएगी तो उस की जिंदगी सुधर जाएगी. उन्होंने जिस तरह अभावों भरा जीवन जिया है, कम से कम वैसा जीवन उसे नहीं जीना पड़ेगा. इसीलिए वे तमाम परेशानियों को झेल कर उसे पढ़ा रहे थे.

अहमदनगर से पढ़ाई पूरी करने के बाद दर्शना सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करना चाहती थी. अहमदनगर से यह संभव नहीं था. इस के लिए उसे पुणे जाना पड़ता. क्योंकि सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कराने वाली अच्छी कोचिंग वहीं थी. मम्मीपापा उसे पुणे भेजने में थोड़ा झिझक रहे थे, क्योंकि एक तो उन की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, दूसरे वह बेटी को अकेली इतने बड़े शहर में भेजने से घबरा रहे थे. तब इस के लिए मदद की दर्शना के एक दोस्त राहुल हंडोरे ने.

वैसे तो राहुल हंडोरे (Rahul Handore)  मूलरूप से नासिक की सिन्नार तहसील के शाह गांव का रहने वाला था, लेकिन उस ने बचपन से ही अहमदनगर में रह कर दर्शना के साथ ही पढ़ाई की थी. बचपन से ही दोनों साथ पढ़े थे, इसलिए दोनों में अच्छी दोस्ती थी.

राहुल दर्शना के घर भी आताजाता था, इसीलिए जब दर्शना के घर वाले उसे पुणे भेजने में हिचके तो राहुल ने कहा, ”चिंता की कोई बात नहीं है. मैं भी सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने के लिए पुणे जा रहा हूं. इसलिए आप लोग दर्शना को निङ्क्षश्चत हो कर भेज दीजिए. मेरे रहते दर्शना को वहां कोई परेशानी नहीं होने पाएगी.’’

राहुल घर के सदस्य जैसा हो गया था, इसलिए दर्शना के मम्मीपापा उसे पुणे भेजने के लिए राजी हो गए. उन्होंने दर्शना से कहा, ”देखो बेटा, जैसे तैसे हम अपना काम चला लेंगे, पर तुम्हारे करिअर में किसी तरह की अड़चन नहीं आने देंगे.’’

इस तरह दर्शना अपने अरमान पूरे करने पुणे आ गई. महाराष्ट्र का पुणे शहर शिक्षा के मामले में बहुत आगे है. जिस तरह दिल्ली में सिविल सेवा परीक्षाओं की तैयारी कराने के लिए तमाम कोचिंग सेंटर खुले हैं, वैसा ही कुछ पुणे में भी है. इसी वजह से लोग इसे स्टूडेंट्स का शहर कहते हैं. क्योंकि तमाम कोचिंग सेंटर होने की वजह से उस इलाके के ज्यादातर लड़के लड़कियां तैयारी के लिए यहां आ कर रहते हैं. दर्शना भी राहुल के साथ पुणे आ कर सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने लगी.

तैयारी में किसी तरह की कमी न रह जाए, इस के लिए दर्शना जीजान से जुट गई. अपने मकसद में सफल होने के लिए उस से जितनी मेहनत हो सकती थी, वह उतनी मेहनत करने लगी. अपना करिअर बनाने के लिए उस ने एक तरह से अपनी पूरी ताकत झोंक दी. आखिर इस का परिणाम भी अच्छा ही आया.

बेटी की कामयाबी पर गदगद हुआ परिवार

दर्शना की लगन और मेहनत का ही नतीजा था कि इस साल के महाराष्ट्र पब्लिक सर्विस कमीशन (एमपीएससी) का रिजल्ट आया तो दर्शना का तीसरा स्थान था. इस तरह उस का चयन रेंज फारेस्ट औफीसर के रूप में हो गया था.

मृतका दर्शना

दर्शना के पापा एक मामूली कर्मचारी थे. उन की बेटी ने इतनी बड़ी कामयाबी हासिल की तो अब लोग बेटी के नाम से उन्हें भी जानने लगे. उन की खुशी की तो कोई सीमा ही नहीं थी. एक तरह से देखा जाए तो उन्होंने जो तपस्या की थी, बेटी की इस कामयाबी से उन्हें उस का फल मिल गया था. लोग बेटी की तारीफ तो कर ही रहे थे, साथ ही यह भी कह रहे थे कि आप भाग्यशाली हैं, जो आप को ऐसी बेटी मिली है.

दर्शना के इस तरह नौकरी पाने से उस के घर सब कुछ बहुत अच्छा हो गया था. चारों ओर उस की इस कामयाबी की चर्चा हो रही थी. इस की वजह यह थी कि वह नीचे स्तर से इस ऊंचाई पर पहुंची थी. यही वजह थी कि उस की इस कामयाबी के लिए उसे जगह जगह सम्मानित किया जा रहा था, जिस से उस के साथसाथ घर वालों का मान भी बढ़ रहा था.

इसी क्रम में दर्शना को सम्मानित करने के लिए सदाशिव पेठ स्थित उस कोचिंग वालों ने भी बुलाया, जिस कोचिंग में पढ़ कर दर्शना को यह कामयाबी मिली थी.

चयनित होने के बाद दर्शना कोपरगांव स्थित अपने घर चली गई थी. कोचिंग द्वारा बुलाए जाने पर दर्शना 9 जून, 2023 को एक बार फिर पुणे आई और इस बार वह अपनी एक सहेली के यहां ठहरी. क्योंकि चयन होने के बाद उस ने अपना कमरा छोड़ दिया था.

आखिरी गुनाह करने की ख्वाहिश – भाग 2

भावल का बाप उसूलों वाला डाकू था. एक दिन उस ने कहा, ‘‘बेटा, इधर के लोग तो हमें पहचानते हैं, इसलिए हम अपना काम सरहद पार करेंगे.’’

बहराम खान जानवरों की चोरी का उस्ताद माना जाता था. उस ने कभी मामूली जानवर पर हाथ नहीं डाला था. उस ने कभी भी सैकड़ों रुपए से कम की घोड़ी नहीं खोली थी. मजे की बात यह थी कि खोजी उस का खुरा तक नहीं उठा पाते थे. इस की वजह यह थी कि वह खुरा छोड़ता ही नहीं था.

भावल बाप के साथ मिल कर सरहद पार चोरियां करता था. जल्दी ही बाप बेटे का नाम दोनों ओर गूंजने लगा. उन दिनों गाय भैसों की चोरी आम बात थी. पुलिस वालों ने कई बार बहराम खान को गिरफ्तार किया था, लेकिन पुलिस कभी कोई चोरी उस से कुबूल नहीं करवा पाई थी.

भावल खान उस समय 15 साल का था, जब पहली बार पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया था. पुलिस उसे ले कर जाने लगी तो बहराम ने कहा, ‘‘बेटा, तू पहली बार पुलिस के चक्कर में फंसा है. मर्द बन कर हालात का मुकाबला करना. पुलिस को भी पता चल जाए कि तू बहराम खान का बेटा है.’’

भावल ने कहा था, ‘‘बाबा, तेरा यह बेटा जीतेजी ताना देने लायक कोई काम नहीं करेगा.’’

भावल 15 दिनों तक रिमांड पर रहा. थाने में घुसते ही पुलिस वाले उस पर पिल पड़े थे. लेकिन जल्दी ही उन की समझ में आ गया था कि उन का वास्ता किसी ऐरेगैरे से नहीं, बल्कि बहराम के बेटे भावल से पड़ा है.

15 दिनों तक पुलिस भावल को सूली पर लटकाए रही. कोई भी ऐसा अत्याचार बाकी नहीं रहा, जो पुलिस ने उस के ऊपर नहीं किया. रिमांड खत्म होने वाले दिन थानेदार ने उस की पीठ थपथपा कर कहा था, ‘‘तू ने साबित कर दिया कि तू बहराम का बेटा है.’’

पुलिस वालों ने मजिस्ट्रेट से और रिमांड की मांग की तो मजिस्ट्रेट ने भावल की ओर ध्यान से देखते हुए कहा, ‘‘15 साल के इस बच्चे से तुम लोग 15 दिनों में कुछ नहीं उगलवा सके तो अब 15 साल में भी कुछ नहीं उगलवा सकते.’’

मजिस्ट्रेट ने रिमांड देने से मना कर दिया था और उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया था. जेल में उस का इस तरह स्वागत हुआ, जैसे वह कोई बड़ा नेता हो. उस जेल के तमाम कैदी उस के पिता को अच्छी तरह जानते थे.

अगले दिन भावल को जमानत मिल गई थी, क्योंकि पुलिस उस से कुछ भी बरामद नहीं कर सकी थी. वह जेल से बाहर आया तो बहराम ने उसे गले लगा कर कहा था, ‘‘बेटा, तू ने मेरा सिर गर्व से ऊंचा कर दिया. पूरी बिरादरी को तुझ पर नाज है.’’

बाप के नाम के साथ भावल के नाम की भी चर्चा होने लगी थी. जहां बापबेटे रहते थे, वहां का बच्चाबच्चा उन्हें जान गया था. भावल की मां बचपन में ही मर गई थी. बाप ही उस का सब कुछ था.

बहराम ने गांव में अच्छीखासी जमीन कब्जा रखी थी. लेकिन ढंग से खेती न होने की वजह से खास पैदावार नहीं होती थी. जबकि आमदनी का स्रोत वही मानी जाती थी. गांव में ऐसा कोई नहीं था, जिस की मदद बहराम खान ने न की हो. गांव की हर लड़की की शादी में वह दिल खोल कर मदद करता था.

उम्र ढलने के साथ बहराम खान की सत्ता का सूरज चढ़ने लगा था. भावल अब तक 30-32 साल का गबरू जवान हो गया था. उस इलाके के नेता और सरकारी अधिकारी बापबेटे की मुट्ठी में थे. चुनाव के दौरान उन के घर के सामने लंबीलंबी कारें और जीपें आ कर खड़ी होती थीं. क्योंकि आसपास के लोग उसी को वोट देते थे, जिसे बहराम कहता था. इस की वजह यह थी कि वह सब की मदद करता था.

चुनाव की घोषणा हुई तो इलाके के एक नेता ने बहराम खान से संपर्क कर के कहा कि वह उन के लिए काम करे. चुनाव में दौड़धूप के लिए वह मोटी रकम भी दे गया था. अंधे को क्या चाहिए, 2 आंखें. बापबेटों को यह काम आसान लगा. उन के लिए एक जीप भी भिजवा दी गई थी.

भावल खान जीप पर सवार हो कर हथियारबंद गार्डों के साथ राजाओं की तरह घूमता और अपने उम्मीदवार के लिए प्रचार करता. हर दूसरे तीसरे दिन खर्च के लिए उस के पास नोटों के बंडल पहुंच जाते थे.

चुनन शाह से भावल की मुलाकात इसी चुनाव प्रचार के दौरान हुई थी. वह उम्मीदवार का खास आदमी था. वह अपने इलाके का जानामाना गुंडा था. लेकिन चुनन शाह जो अपराध करता था, उस से भावल घृणा करता था.

भावल का उम्मीदवार काफी पैसे वाला था. लेकिन वह जिस के खिलाफ चुनाव लड़ रहा था, वह पैसे वाला तो था ही, जानामाना गुंडा भी था. इस के अलावा वह पहले से ही असेंबली का मेंबर था. लोग उस से काफी परेशान थे, इसलिए भावल खान का प्रत्याशी जीत गया था.

यह सीट पुराने प्रत्याशी की खानदानी सीट थी. इसलिए उस की हार से लोग हैरान थे. जीत की खुशी में भावल खान के प्रत्याशी ने रैली निकाली और हारे हुए उम्मीदवार के घर के सामने बमपटाखे फोड़े.

उस समय तो हारने वाला प्रत्याशी चुप रहा. लेकिन वह भी कोई साधारण आदमी नहीं था. जिस दिन भावल खान के उम्मीदवार को शपथ लेने जाना था, विरोधियों ने उसी दिन बदला लेने का निर्णय लिया.

विजयी उम्मीदवार बहराम खान तथा दो बौडीगार्ड के साथ एक जीप में था, जबकि बाकी लोग दूसरी जीप में बैठे थे. जैसे ही जीप उस जगह पहुंची, जहां वे घात लगाए बैठे थे, उन्होंने फायरिंग शुरू कर दी.

किसी को संभलने का मौका नहीं मिला. बहराम खान आसानी से मरने वालों में नहीं था. उसे जैसे ही गोली लगी, उस ने जीप से छलांग लगा दी और दूर तक लुढ़कता चला गया. विरोधियों को पता था कि अगर बहराम जिंदा बच गया तो एक एक को चुनचुन कर मारेगा.

प्यार में की थीं 3 हत्याएं : 19 साल बाद खुला राज – भाग 2

पुलिस जब उत्तम नगर में स्थित वर्मा टेलर की दुकान पर पहुंच गई. जयकिशन ने मृतक की फोटो टेलर को दिखाई गई तो उस ने तुरंत बता दिया, ”यह तो राजेश वर्मा है. इसे खुशीराम के नाम से भी बुलाते हैं. अपनी बीवी बच्चों के साथ यह आरजेड ए-113 नंबर मकान में नंदराम पार्क में रहता है.’’

एसआई जयकिशन कांस्टेबल मनदीप के साथ टेलर वर्मा द्वारा बताए पते पर पहुंचे तो घर के अंदर राजेश वर्मा की पत्नी निशा वर्मा मिली. दरवाजे पर पुलिस को देख कर वह घबरा गई. एसआई जयकिशन ने उसे राजेश की फोटो दिखाते हुए पूछा, ”यह तुम्हारे पति हैं?’’

”हां…’’ निशा ने सिर हिलाया, ”यह कल दोपहर को घर से यह कर गए थे कि बाइक ठीक करा कर आ रहा हूं. कल से यह घर नहीं लौटे हैं.’’

”अब नहीं लौटेंगे, इन की हमें बवाना थानाक्षेत्र में डैडबौडी मिली है.’’ कांस्टेबल मनदीप ने गंभीर स्वर में बताया.

सुनते ही निशा दहाड़े मार कर रोने लगी. थोड़ी देर पति के लिए विलाप कर लेने के बाद उस ने सुबकते हुए पूछा, ”मेरे पति की मौत कैसे हो गई? वह तो घर से अच्छेभले गए थे.’’

”उन की किसी ने हत्या की है.’’ एसआई जयकिशन ने कहा, ”तुम्हारे पति की किसी से दुश्मनी थी क्या?’’

”जी, 2 साल पहले 2002 में उन के भाई सुरेश वर्मा की किसी ने हत्या कर दी थी. सुरेश की पत्नी सज्जन देवी पति की मौत के बाद हमारे साथ रही. फिर अपने मायके चली गई. अभी कुछ दिन पहले सज्जन देवी के भाई यहां आ कर सज्जन देवी का संपत्ति में हिस्सा मांगने लगे. तब मेरे पति ने उन्हें 4 लाख रुपए दे दिए थे, लेकिन वह इस से संतुष्ट नहीं थे. उन्होंने धमकी दी थी कि संपत्ति में बराबर का हिस्सा उन की बहन सज्जन देवी को नहीं दिया तो परिणाम भयंकर होंगे. मुझे शक है मेरे पति की हत्या सज्जन देवी के भाइयों ने ही की है.’’

”उन का नाम, पता हमें नोट करवाओ.’’ एसआई जयकिशन ने कहा.

निशा वर्मा ने सज्जन देवी के दोनों भाइयों के नाम और पते एसआई जयकिशन को नोट करवा दिए.

”पोस्टमार्टम होने के बाद तुम्हारे पति राजेश की डैडबौडी तुम्हें अंतिम संस्कार करने के लिए सौंप दी जाएगी. तुम कल बवाना थाने में आ जाना.’’ कांस्टेबल मनदीप ने कहा.

”आ जाऊंगी साहब.’’ निशा अपने आंसू पोंछते हुए भर्राए गले से बोली.

एसआई जयकिशन कांस्टेबल मनदीप के साथ थाने के लिए लौट गए.

राजेश वर्मा उर्फ खुशी राम की हत्या में सज्जन देवी के भाई संजय व सतीश का हाथ है. यह बात हरियाणा के सलाना गांव जा कर पुलिस द्वारा तफ्तीश करने पर गलत साबित हुई. गांव के कई जिम्मेदार लोगों से संपर्क करने पर पुलिस को यह मालूम हुआ कि सज्जन देवी और उस के भाई एक महीने से गांव में ही हैं, वह दिल्ली नहीं गए हैं. उन का राजेश की हत्या में हाथ नहीं हो सकता.

पुलिस को सज्जन देवी ने एक चौंकाने वाली बात बताई, ”साहब, निशा मक्कार औरत है. उस का अपने ननदोई बालेश कुमार के साथ चक्कर चल रहा है. यह बात मेरे जेठ राजेश को भी मालूम थी, उन का बालेश को ले कर कई बार निशा से झगड़ा भी हुआ था.’’

निशा वर्मा ने बताया चौंकाने वाला सच

एसआई जयकिशन के लिए यह जानकारी अहम थी. वह दिल्ली लौटे तो उन्होंने 2 पुलिस वाले भेज कर निशा को बवाना थाने में बुलवा लिया.

निशा को अपने सामने बिठा कर एसआई जयकिशन ने बगैर कोई भूमिका बांधे सवाल दाग दिया, ”राजेश की हत्या तुम्हारे इशारे पर हुई है निशा, हमें यह बात तुम्हारे प्रेमी बालेश कुमार ने बता दी है.’’

”झूठ है साहब.’’ निशा बौखला कर बोली, ”भला मैं अपने पति की हत्या क्यों करवाऊंगी, वह तो मेरे सुहाग थे.’’

”अगर पति को सुहाग मानती थी तो बालेश से तुम ने अवैध संबंध क्यों बना रखे थे?’’

निशा वर्मा ने सिर झुका लिया. धीरे से बोली, ”बालेश से मेरा प्रेम संबंध शादी से पहले का रहा है. राजेश से शादी के बाद मैं ने बालेश से संबंध खत्म करने की कोशिश की, लेकिन बालेश ने ऐसा नहीं होने दिया. मैं इस के लिए दोषी ठहराई जा सकती हूं, किंतु मैं ने बालेश के द्वारा अपने पति की हत्या नहीं करवाई है. मैं अपने बच्चों की कसम खाती हूं, मुझे नहीं मालूम मेरे पति की हत्या किस ने की है.’’

”तुम्हारा पति 20 तारीख की दोपहर में घर से गया था. क्या उस के देर तक न लौटने पर तुम ने फोन कर के मालूम किया था कि वह कहां है?’’

”मैं पूरा दिन अपने पति का इंतजार करती रही थी, परेशान हो कर मैं ने रात को 8 बजे उन्हें फोन मिलाया तो सुंदर लाल ने उठाया. वह नशे में लग रहा था. उस ने कहा था कि राजेश मेरे साथ है. अभी घर लौट आएगा.’’

”यह सुंदर कौन है?’’ एसआई जयकिशन ने पूछा.

”बालेश का भाई है साहब.’’

एसआई जयकिशन की आंखों में तीखी चमक उभरी, ”सुंदर कहां रहता है?’’

”वह विकास विहार, मानस कुंज रोड, उत्तम नगर में ही रहता है. उस का मकान नंबर क्यू-7 है.’’

एसआई जयकिशन ने कांस्टेबल मनदीप के साथ 2 कांस्टेबल उत्तमनगर सुंदर लाल को बुलाने के लिए रवाना कर दिए. शाम तक वह सुंदर लाल को उस के घर से पकड़ कर थाने में ले आए. सुंदर लाल 31 साल का हृष्टपुष्ट युवक था. उस का चेहरा सामान्य था. किसी प्रकार की घबराहट चेहरे पर नजर नहीं आ रही थी. एसएचओ राम अवतार मीणा भी वहां आ गए थे. उन के सामने सुंदर लाल से पूछताछ शुरू हुई.

एसआई जयकिशन ने उस के चेहरे पर नजरें जमा कर पूछा, ”तुम कल रात को अपने साले राजेश के साथ थे. तुम घर पहुंच गए, लेकिन राजेश अभी तक अपने घर नहीं पहुंचा है. बताओ, राजेश कहां है?’’

”मैं ने तो उसे 7 बजे ही घर के लिए भेज दिया था साहब… वह घर क्यों नहीं पहुंचा, मैं क्या जानूं.’’

एसआई जयकिशन ने खींच कर एक करारा थप्पड़ उस के गाल पर रसीद कर दिया, ”झूठ बोलता है, रात 8 बजे तो तूने निशा का फोन रिसीव किया था और उस को बताया था कि राजेश तेरे साथ है.’’

”नहीं साहब, मुझे निशा का कोई फोन नहीं आया था.’’

एसआई जयकिशन ने पास में खड़े कांस्टेबल मनदीप को इशारा करते हुए कहा, ”यह बगैर डंडे खाए सच नहीं बोलेगा, टार्चर रूम में ले जा कर इस की खातिरदारी करो.’’

पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री के भाई का गोवा में मर्डर – भाग 2

कपल कार ले कर क्यों हुआ फरार

ऐसे में गोवा पुलिस भी इन दोनों मामलों को एकदूसरे से जोड़ कर देखने लगी थी और पुलिस ने फौरन कार के बारे में पता लगाना शुरू कर दिया.

जांच में पता चला कि कार उस समय महाराष्ट्र के नवी मुंबई से मुंबई की तरफ दौड़ रही थी. एक बार फिर गोवा पुलिस ने कत्ल के एकदूसरे मामले में मुस्तैदी की वैसी ही मिसाल पेश की थी. इस बार गोवा पुलिस ने एक अमीर कारोबारी के कत्ल के सिलसिले में गोवा से करीब 470 किलोमीटर दूर महाराष्ट्र के पेण इलाके से 2 संदिग्ध कातिलों को धर दबोचने में सफलता प्राप्त की.

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जब गोवा पुलिस ने नवी मुंबई पुलिस से संपर्क कर उन्हें उस संदिग्ध कार की जानकारी दी, जिस में संदिग्ध कातिल फरार हुए, उन का लोकेशन भी बताई. उस के तुरंत बाद नवी मुंबई अपराध शाखा इकाई-1 की टीम ने कार को ट्रैक करना शुरू कर दिया और आखिरकार उसे महाराष्ट्र के ही रायगढ़ जिले के अतर्गत पेण इलाके से कार में बैठे लोगों को हिरासत में ले लिया.

गोवा पुलिस की शिकायत के मुताबिक नवी मुंबई पुलिस को कार में एक संदिग्ध जोड़ा मिला, जिन्हें पुलिस ने फौरन गिरफ्तार कर लिया. वैसे तो इस जोड़े के साथ कार में एक और शख्स भी था, जो उन के साथ गोवा गया था, लेकिन वह पहले ही वहां से भाग निकला था.

इस के बाद शुरू हुआ पूछताछ का सिलसिला. मुंबई पुलिस दोनों से कार ले कर भागने की वजह जानने के साथसाथ नरोत्तम सिंह ढिल्लों के मर्डर के एंगल से भी पूछताछ करने लगी.

पहले तो काफी देर तक दोनों ने कत्ल वाली बात से इंकार किया, लेकिन जब उन की तलाशी में मृतक ढिल्लों के पास से लूटे गए गहने बरामद हो गए तो सारा मामला साफ हो गया था.

पकड़े गए जोड़े की हुई पहचान

नवी मुंबई पुलिस द्वारा पकड़े गए जोड़े की पहचान 32 वर्षीय जितेंद्र साहू और उस की 22 वर्षीय प्रेमिका नीतू शंकर राहुजा के तौर पर हुई, लेकिन दोनों से शुरू हुई पूछताछ के बाद एक कहानी जो निकल कर सामने आई, उस ने नवी मुंबई पुलिस से ले कर गोवा पुलिस तक का दिमाग ही घुमा दिया था. इस कातिल जोड़े के अनुसार कि इस कत्ल के पीछे सिर्फ लूटपाट की वजह नहीं, बल्कि धोखे और बदतमीजी की कहानी छिपी थी.

कपल ने पुलिस को बताया कि नरोत्तम सिंह ढिल्लों से उन की मुलाकात सोशल मीडिया के माध्यम से हुई थी. ढिल्लों ने उन्हें अपना परिचय देते हुए गोवा में पार्टी करने के लिए और मिलने के लिए बुलवाया था. मध्य प्रदेश के भोपाल की रहने वाली यह जोड़ी नरोत्तम सिंह ढिल्लों के बुलावे पर गोवा में उन के विला होरीजंस अजर्ड पर पार्टी करने पहुंची थी.

दोनों ने पुलिस को बताया कि 3 फरवरी, 2024 की रात को पार्टी के बाद नरोत्तम सिंह ढिल्लों अपनी मेहमान लड़की से बदतमीजी पर उतर आए थे. उस के बाद जब कपल ने उन का विरोध किया तो ढिल्लों अपने रसूख का हवाला दे कर डराने धमकाने पर उतर आए थे.

बस ठीक उस के बाद गुस्से में उन की ढिल्लों से लड़ाई हो गई और इसी लड़ाई के दौरान अपना बचाव करते हुए उन के हाथों नरोत्तम सिंह ढिल्लों का अनजाने में मर्डर हो गया था. पोस्टमार्टम जांच में मौत का कारण गला घोंटना बताया गया था.

उधर नवी मुंबई अपराध शाखा इकाई-1 के वरिष्ठ निरीक्षक अबासाहेब पाटिल ने बताया, ”गिरफ्तार किए गए दोनों आरोपियों ने दावा किया है कि ढिल्लों ने आरोपी महिला का यौन उत्पीडऩ किया था, इसलिए हम दोनों आरोपियों के फोटो उजागर करने में असमर्थ हैं.

गिरफ्तार किए गए आरोपियों ने दावा किया है कि युवती के साथ यौन उत्पीडऩ करने की कोशिश करने के बाद उन्होंने नरोत्तम सिंह ढिल्लों का गला घोंट दिया था. फिर उन्होंने उन की सोने की चेन, सोने का कड़ा और मोबाइल लूट लिया. उस के बाद एक किराए की एसयूवी में मुंबई की ओर भाग गए. वे इस बात से अनजान थे कि कार में एक जीपीएस ट्रैकिंग सिस्टम लगा हुआ है.’’

पुलिस को कई सवालों के जवाबों की थी तलाश

दोनों आरोपी कत्ल करने के बावजूद मृतक नरोत्तम सिंह ढिल्लों पर ही बदतमीजी करने और यौन उत्पीडऩ करने का आरोप लगा रहे थे. जाहिर सी बात है कि एक सवाल यह भी था कि अगर वाकई गुस्से में आ कर ही ढिल्लों को जान ली तो फिर कत्ल के बाद उन्होंने ढिल्लों के जेवर और मोबाइल फोन जैसी कीमती चीजें क्यों लूट ली थीं?

गोवा पुलिस असल बात की तह तक पहुंचना चाहती थी कि कहीं कत्ल का मकसद केवल लूटपाट करना ही तो नहीं था? कहीं ऐसा तो नहीं है कि वे लूटपाट के अपने मकसद को छिपाने के लिए ढिल्लों के उत्पीडऩ या छेड़छाड़ वाली काल्पनिक कहानी सुना रहे हैं. गोवा पुलिस ने अब दोनों से इसी संबंध में अलगअलग विस्तृत पूछताछ करनी शुरू कर दी, जिस का नतीजा भी जल्द ही सामने आ गया था.

गोवा में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के चचेरे भाई नरोत्तम सिंह ढिल्लों उर्फ निम्स ढिल्लों की रहस्यमयी हत्या के आरोप में गिरफ्तार भोपाल का 32 वर्षीय जितेंद्र रामचंद्र साहू ही इस मामले का मास्टरमाइंड निकला. गोवा पुलिस के अनुसार जितेंद्र साहू पूर्व में नरोत्तम सिंह ढिल्लों का मैनेजर भी रह चुका था.

जितेंद्र साहू को इस बात का पता था कि नरोत्तम सिंह ढिल्लों पंजाब में राजनीतिक रसूख रखने वाले परिवार से दूर अकेले रह कर गोवा में शाही जिंदगी जीते हैं. गोवा में उन के नाम पर विलाज और होटल भी हैं. जितेंद्र विला को हड़पना चाहता था और ढिल्लों से करोड़ों रुपए हड़पना चाहता था, इसलिए उस ने नरोत्तम सिंह ढिल्लों को हनीट्रैप के जाल में फंसाने की एक फुलपू्रफ योजना बनाई थी.