Lucknow Crime : शेल्टर होम में लड़कियों के साथ जबरन कराया जाता देह व्यापार

Lucknow Crime : शेल्टर होम वृद्ध, अनाथ बच्चों, बेसहारा महिलाओं वगैरह के लिए बनाए जाते हैं, जिन्हें सरकार से प्रोजेक्टों के नाम पर मोटा पैसा मिलता है, लेकिन इन शेल्टर होम्स के अंदर की सच्चाई कुछ और ही होती है. देवरिया का शेल्टर होम भी…  

5 अगस्त, 2018 की दोपहर का समय था. उत्तर प्रदेश के देवरिया शहर के स्टेशन रोड स्थित एक शेल्टर होम से निकल कर 15 साल की एक लड़की शहर कोतवाली पहुंची. वह पहली बार किसी थाने में आई थी, इसलिए उसे यह समझ नहीं रहा था कि किस से क्या बात करे. उस ने मन को पक्का कर लिया था कि आज चाहे कुछ भी हो जाए, अपनी बात पुलिस को बता कर ही रहेगी. थाने में घुसते ही कुरसी पर बैठे जो अधिकारी दिखे वह उन के पास ही पहुंच गई. वह थानाप्रभारी थे. उस लड़की ने थानाप्रभारी से कहा, ‘‘अंकल, हम जिस शेल्टर होम में रहते हैं, उस में क्याक्या होता है, हम आप से बताना चाहते हैं.’’

थानाप्रभारी ने उसे पूरी बात बताने को कहा तो वह आगे बोली, ‘‘अंकल, हफ्ते के आखिरी दिनों में शेल्टर होम से लड़कियों को जबरदस्ती अनजान लोगों के साथ लाल और नीली बत्ती लगी गाडि़यों में भेजा जाता है, जहां उन का यौनशोषण होता है.

‘‘यही नहीं, जब कोई लड़की उन की बात मानने से इनकार करती है तो उसे परेशान किया जाता है, उस पर जुल्म ढाए जाते हैं. लड़कियां रात भर बाहर रहती हैं और सुबह मुंहअंधेरे उन्हीं गाडि़यों से शेल्टर होम लौट आती हैं.

‘‘जो लड़कियां मैडम के कहे अनुसार काम करती हैं, उन से मैडम खुश रहती हैं और उन के साथ अच्छा व्यवहार करती हैं. लड़कियों को लगता है कि मैडम की बात और उन की पहुंच बहुत ऊपर तक है, इसलिए वे उन से डरती हैं.’’

उस लड़की की बात सुनने के बाद थानाप्रभारी को मामला गंभीर दिखाई दिया. वह लड़की जो थाने आई थी, मां विंध्यवासिनी महिला एवं बालिका संरक्षण गृह, देवरिया की थी. इस संस्था के गोरखपुर और सलेमपुर में भी शेल्टर होम हैं. इस की संचालिका गिरिजा त्रिपाठी हैंशेल्टर होम की ऐसी ही घटना बिहार के मुजफ्फरपुर में घटी थी, जिस की पूरे देश में किरकिरी हो रही थी. इस घटना से बिहार सरकार भी बैकफुट पर थी, इसलिए थानाप्रभारी ने यह जानकारी तुरंत एसपी रोहन पी. कनय को दी. एसपी ने पहले इस मामले की जांच के आदेश दिए. उसी शाम को थाना पुलिस जब मां विंध्यवासिनी महिला एवं बालिका संरक्षण गृह पहुंची तो वहां कई लड़कियां और बच्चे गायब मिले.  

यह जानकारी जब देवरिया पुलिस ने लखनऊ में बैठे पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को दी तो सभी के होश उड़ गए. क्योंकि संस्था की संचालिका गिरिजा त्रिपाठी एक जानीमानी शख्सियत थी. उस के पति मोहन त्रिपाठी और बेटी लता त्रिपाठी भी संस्था चलाने में सहयोग करते थे. गिरिजा त्रिपाठी पहले हाउसवाइफ थी, जबकि पति भटनी शुगर मिल में काम करता था. पति के वेतन से ही किसी तरह घर का खर्च चलता था. ऐसे में गिरिजा त्रिपाठी ने सामान्य औरतों की तरह घर पर ही कपड़े सिलने का काम शुरू किया, जो वक्त के साथ सिलाई सेंटर बन गया.

पति की नौकरी जाने के बाद उस ने सन 1993 में चिटफंड कंपनी खोली. बाद में इसी कंपनी का प्रारूप बदल कर एनजीओ बना दिया गया. वैसे गिरिजा त्रिपाठी रूपई गांव की रहने वाली थी. उस की ससुराल पड़ोस के ही नूनखार गांव में थी. सन 2003 के करीब गिरिजा त्रिपाठी की संस्था को शेल्टर होम खोलने का प्रोजेक्ट मिला. सरकार ने इस के लिए बजट भी देना शुरू कर दियाधीरेधीरे गिरिजा त्रिपाठी ने शासन और प्रशासन में गहरी पैठ बना ली, जिस का फायदा उठाते हुए उस ने देवरिया के अलावा गोरखपुर और सलेमपुर में भी वृद्धाश्रम खोल लिया. रजना बाजार और उसरा के पास भी संस्था के नाम से उस ने काफी प्रौपर्टी खरीद ली.

उत्तर प्रदेश सरकार की कई योजनाओं के संचालन के काम भी गिरिजा त्रिपाठी की संस्था मां विंध्यवासिनी महिला एवं बालिका संरक्षण गृह को मिलने लगे, इस में सरकार की महत्त्वाकांक्षी पालन गृह योजना भी थी. इस के अलावा योगी सरकार ने जब सामूहिक विवाह योजना का काम शुरू किया तो इन लोगों को उस में भी जगह मिल गई. मां विंध्यवासिनी महिला एवं बालिका संरक्षण गृह की संचालिका गिरिजा त्रिपाठी बच्चों को गोद देने का भी एक सेंटर चलाती थी, जो बाल कल्याण समिति के अधीन काम करता था. वहां से बच्चों को गोद दिया जाता था. किसी वजह से 23 जून, 2017 के बाद इस संस्था की मान्यता रद्द कर दी गई थी. इस के बावजूद यहां पर शेल्टर होम के लिए लड़कियां और बच्चे लाए जा रहे थे.

कई लड़कियां ऐसी थीं, जिन्होंने घर से भाग कर शादी की थी. ऐसे मामलों में पुलिस लड़के को जेल भेजने के बाद लड़की को शेल्टर होम भेज देती है. पता चला कि शेल्टर होम में ऐसी लड़कियों को डराधमका कर उन से जिस्मफरोशी कराई जाती थीपुलिस ने ऐसी बालिग लड़कियों को उन के मांबाप के पास भेजने की कोशिश की, लेकिन उन लड़कियों ने यह सोच कर घर जाने से मरा कर दिया कि अगर घरपरिवार वालों को पता चला कि वे गलत काम करती हैं तो उन की बदनामी तो होगी ही, साथ ही जेल से आने के बाद उन का पति भी साथ रखने से मना कर देगा.

कई लड़कियों ने बताया कि उन से घरेलू नौकर का काम कराने के लिए भी दूसरी जगह भेजा जाता था. पुलिस के पास जो लड़की शिकायत दर्ज कराने आई थी, उस का नाम नीता (परिवर्तित नाम) था. वह भी घर से भाग कर आई थी और गरीब घर की थी. उस के घर वालों को खाने तक के लाले पड़े थे. नीता इस संस्था में करीब 3 महीने पहले ही आई थी. जब उसे रात को कार से कहीं भेजा गया तो वह मौका पा कर भाग निकली और पुलिस तक पहुंच गई. मां विंध्यवासिनी महिला एवं बालिका संरक्षण गृह की संचालिका गिरिजा त्रिपाठी का रसूख देवरिया, गोरखपुर से ले कर राजधानी लखनऊ तक था. वह हर सरकार में सत्ता के ऊंचे पदों पर बैठे लोगों तक अपनी पहुंच रखती थी. इसी वजह से संस्था की मान्यता रद्द होने के बावजूद उस के शेल्टर होम में लड़कियां भेजी जाती रहीं

पुलिस खुलासे के बाद उत्तर प्रदेश सरकार हरकत में आई और पुलिस की उच्चस्तरीय जांच कमेटी का गठन किया गया. एसआईटी जांच की अगुवाई की जिम्मेदारी एडीजी संजय सिंघल को सौंपी गई. जांच में 2 महिला आईपीएस अधिकारियों पूनम और भारती सिंह के अलावा सीओ अर्चना सिंह, इंसपेक्टर ब्रजेश सिंह आदि को भी शामिल किया गया. पुलिस और प्रोबेशन विभाग अलगअलग जांच करने में जुट गए. पुलिस ने संस्था के खिलाफ अलगअलग मामलों में भादंवि की धारा 188, 189, 310, 343, 354, 504, 506 के साथ 7/8 पोक्सो एक्ट और जेजे एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया. सरकार के साथ हाईकोर्ट ने भी इस मामले को संज्ञान में लिया.

पुलिस की एसआईटी ने जांच के काम को जिस तरह से आगे बढ़ाया, उस में कई ऐसे प्रमाण मिले, जिस से पता चला कि शेल्टर होम में तमाम तरह की गड़बडि़यां थीं. सैक्स रैकेट तो बस उस का एक हिस्सा भर था. इस के अलावा चाइल्ड लेबर और बच्चों को गोद दिए जाने के भी तमाम मामले थे. गिरिजा ने अपने बेटे, बहू और बेटियों को भी संस्था से जोड़ रखा था. जांच कर रही पुलिस टीम के पास अलगअलग तरह की शिकायतें रही थीं. कई परिवारों की लड़कियां गायब थीं और कुछ के नाम ही दर्ज नहीं थे. ऐसे में वहां पर सच्चाई का पता लगाना बहुत मुश्किल काम था.

पुलिस ने देवरिया के साथ गोरखपुर की चाणक्यपुरी कालोनी में ओल्ड एज होम का पता लगाया. गोरखपुर के इस शेल्टर होम को गिरिजा की दूसरी बेटी कनकलता देख रही थी. वह जिले के प्रोबेशन विभाग में थी. गोरखपुर प्रशासन इस बात की जांच कर रहा है कि ओल्ड एज होम में लड़कियों का आनाजाना तो नहीं थागोरखपुर के डीएम विजयेंद्र पांडियन और एसएसपी शलभ माथुर ने अपनी देखरेख में जांच आगे बढ़ाई. यहां पुलिस ने कई लोगों को पकड़ा भी. यह होम बिना मान्यता के चल रहा था. आरोप तो यह भी है कि यहां देवरिया से ला कर लड़कियों को रखा जाता था.

देवरिया शेल्टर होम प्रकरण में सरकार ने जिले के आला अफसरों को बदल दिया. बस्ती की रहने वाली एक लड़की ने बताया कि उसे धमकी दे कर शेल्टर होम से बाहर ले जाया जाता था. डराया जाता था कि अगर तुम बाहर नहीं गई तो तुम्हारे पति को मरवा देंगे. इस लड़की ने बताया कि शेल्टर होम में नाबालिग लड़कियां थीं, जो प्रेम विवाह करने के बाद यहां रह रही थीं. उन का भी शोषण होता था. उत्तर प्रदेश महिला कल्याण मंत्री रीता बहुगुणा जोशी ने कहा कि इस में स्थानीय पुलिस प्रशासन की भूमिका ठीक नहीं पाई गई. जब सन 2017 से इस शेल्टर होम की मान्यता नहीं थी तो वहां पर लड़कियों को पुलिस क्यों भेज रही थी?

सरकार ने सूचना मिलते ही कड़े कदम उठाए हैं. देवरिया के शेल्टर होम को सन 2010 में मान्यता दी गई थी. उसी समय बाल संरक्षण, बालिका संरक्षण महिला संरक्षण के प्रोजेक्ट दिए गए थे. रीता बहुगुणा ने कहा कि विपक्ष के जो लोग देवरिया कांड की आलोचना कर रहे हैं, उन के कार्यकाल में ही ऐसी संस्थाओं को लाइसैंस दिया गया था. ऐसे में विपक्ष बेकार का मुद्दा बना रहा है. योगी सरकार ने इस मामले पर त्वरित काररवाई कर के कड़ा संदेश दिया है. शेल्टर होम की जांच कर रही एसआईटी टीम 20 अगस्त को शेल्टर होम की अधीक्षिका कंचनलता को जांच के लिए साथ ले गई. बालगृह भवन में प्रवेश करते समय अंदर की बिजली गुल थी. कमरों में अंधेरा छाया हुआ था. उन्हीं बंद कमरों में लड़कियों को रखा जाता था. एसआईटी ने कई तथ्य जुटाए.

सुबह जांच करने गई टीम ने शाम 5 बजे तक जांच की और मिली सामग्री अपने कब्जे में ले ली. एसआईटी ने गिरिजा त्रिपाठी के परिवार की लाल रंग की बत्ती लगी कार को जब्त कर लियाजांच में पुलिस की भूमिका संदेह के घेरे में है, जिस के बाद 100 से अधिक एसआई जांच में फंस सकते हैं. टीम ने लड़कियों के कपड़े, खिलौने, बिस्तर की भी जांच की. शेल्टर होम के कार्यालय में टंगी फोटो से यह पता चला कि कौनकौन से लोग यहां कार्यक्रमों में आते रहे हैं. पुलिस उन से भी पूछताछ कर सकती है. दूसरी ओर इलाहाबाद हाईकोर्ट इस मामले की सुनवाई कर रहा है. कोर्ट ने लड़कियों के नाम सार्वजनिक करने वालों को भी गलत बताया और पूछा कि जब कोर्ट ने लड़कियों को किसी से मिलने देने से मना किया था तो प्रशासन ने लड़कियों की गोपनीयता का खयाल क्यों नहीं रखा.

हाईकोर्ट के मुख्य न्यायमूर्ति डी.बी. भोसले और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा इस केस को सुन रहे हैं. जांच और कोर्ट के फैसले के बाद ही शेल्टर होम का सच सामने सकेगापूरे प्रकरण में एक बात साफ है कि शेल्टर होम जिस मकसद से बने हैं, उन को वे पूरा नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे में कोई कोई पारदर्शी व्यवस्था प्रशासन और सरकार को बनानी चाहिए, तभी ये जरूरतमंदों को सहयोग कर सकेंगे.

MP Crime : किन्नर ने अपमान का बदला लेने की ठानी

MP Crime : किन्नर किरण खूबसूरती की मिसाल थी. तभी तो श्रीनगर के जहांगीर ने उस पर फिदा हो कर उस से शादी कर ली. सच्चाई पता चलने पर जहांगीर ने उसे छोड़ दिया तो किरण ने इस अपमान का बदला लेने की ठान ली, फिर…  

शा के करीब 6 बजे का वक्त था. मध्य प्रदेश के देवास जिला मुख्यालय में चामुंडा कांपलेक्स के ग्राउंड फ्लोर पर स्थित गोल्डन कौफी हाउस में रोज की तरह काफी रौनक थी. उस समय उज्जैन की तरफ से एक कार और इंदौर की तरफ से एक और कार कर गोल्डन कौफी हाउस के सामने रुकी. एक कार से करीब 45 साल की एक निहायत ही खूबसूरत महिला उतरी. वहीं दूसरी कार से 25-26 साल के 2 युवक नीचे उतरे

उन युवकों ने उस महिला का अभिवादन किया तो उस महिला ने दोनों के अभिवादन का सिर हिला कर जवाब दिया, उन्हें साथ ले कर वह उस कौफी हाउस में दाखिल हो गई. यह बात 20 फरवरी, 2018 की है. दोनों गाडि़यों के ड्राइवर कौफी हाउस के बाहर ही रहे. दोनों ही ड्राइवर तब तक आपस में बातचीत करने लगे. करीब सवा घंटे बाद वह तीनों कौफी हाउस से बाहर आने के बाद अपनीअपनी कार में कर बैठ गए. वह महिला इंदौर की तरफ रवाना हो गई. इस के कुछ देर बाद दोनों युवकों ने अपने ड्राइवर को उस महिला की कार का पीछा करने को कह दिया.

देवास से इंदौर रोड पर लगभग 6 किलोमीटर आगे क्षिप्रा नदी का पुल है. यह पुल देवास और इंदौर जिले की सीमा बनाता है. चूंकि शाम के समय सड़क पर ट्रैफिक अधिक था इसलिए क्षिप्रा तक पहुंचने में दोनों गाडि़यों को 15 से 18 मिनट का समय लगा. उन युवकों की कार महिला की कार से सुरक्षित दूरी बना कर पीछा कर रही थी, ताकि कार में बैठी महिला को उस की कार का पीछा किए जाने का शक हो सके. क्षिप्रा निकलने के बाद उन युवकों ने अपने ड्राइवर से कहा कि वह ओवरटेक कर के उस महिला की कार के आगे गाड़ी लगा दे. इस के बाद उस ड्राइवर ने कार की गति तेज कर दी.

इसी बीच उस महिला ने अपनी कार एक शराब की दुकान के सामने रुकवा दी. वह महिला कार से उतर कर शराब की दुकान से ठंडी बियर लेने लगी. तब तक उन युवकों की कार भी वहां कर रुक गई. उन में से एक युवक हाथ में रिवौल्वर ले कर कार से उतर कर शराब की दुकान पर खड़ी उस महिला के पास पहुंचामहिला बियर पसंद करने में खोई हुई थी. इसलिए उस ने इस बात पर जरा भी ध्यान नहीं दिया कि कुछ देर पहले वह जिस युवक से कौफी हाउस में मिल कर रही है वह उस के पीछेपीछे यहां तक पहुंचा है.

दूसरी तरफ युवक ने उस के पास जा कर रिवौल्वर उस की गरदन पर रख कर ट्रिगर दबा दिया और तेजी से अपनी कार में बैठ गया. फिर वह दोनों युवक देवास की तरफ निकल गए. भरे बाजार में महिला की हत्या होने के बाद बाजार में खलबली मच गई. सूचना मिलने पर थाना औद्योगिक क्षेत्र के थानाप्रभारी एस.पी.एस. राघव तत्काल एसआई श्रीराम वर्मा आदि के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. घायल अवस्था में पड़ी उस महिला को तुरंत पहले देवास के अपेक्स अस्पताल ले जाया गया. हालत गंभीर होने की वजह से उसे इंदौर के एम.वाई. अस्पताल भेज दिया गया. जहां इलाज के दौरान उस की मौत हो गई.

पुलिस ने मृत महिला के कार चालक से पूछताछ की तो पता चला कि मरने वाली औरत नहीं बल्कि किन्नर किरण थी. जिस की खूबसूरती के चर्चे इंदौर के अलावा दिल्ली और श्रीनगर में भी थे. कार चालक ने यह भी बताया कि किरण को गोली मारने वाला युवक लाल रंग की कार में बैठ कर देवास की तरफ भागा है. इस पर थानाप्रभारी एस.पी.एस. राघव ने यह खबर बिना देर किए पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. इस का नतीजा यह निकला कि कुछ ही देर के बाद उज्जैन तिराहे से गुजर रही लाल रंग की कार एमपी09बीसी 0821 को यातायात पुलिस के एसआई रमेश मालवीय एवं रूपेश पाठक ने रोक ली.

उस समय उस गाड़ी में ड्राइवर के अलावा और कोई नहीं था. उस ड्राइवर का नाम मोहम्मद रईस था जो सारंगपुर का रहने वाला था. दोनों एसआई उसे थाने ले आए. पूछताछ करने पर मोहम्मद रईस ने बताया कि यह गाड़ी कनाड़ निवासी एक व्यापारी की है. वह तो गाड़ी का ड्राइवर है. इस गाड़ी को आज उज्जैन के बेगम बाग निवासी भूरा और ऐजाज खान किराए पर ले कर देवास आए थे. उस ने यह भी बताया कि किन्नर की हत्या करने के बाद दोनों उस की गाड़ी में सवार हो कर कुछ दूर तक आए थे. बाद में पुलिस के डर से गाड़ी से उतर कर वे पैदल ही कहीं चले गए.

यह जानकारी मिलने के बाद देवास के एसपी अंशुमान सिंह ने एएसपी अनिल पाटीदार के नेतृत्व में गठित थानाप्रभारी एस.पी.एस. राघव की टीम को फरार हो चुके दोनों आरोपियों को ढूंढने में लगा दिया. टीम पूरी मेहनत से आरोपियों को खोजने में जुट गई. जिस का नतीजा यह हुआ कि अगले ही दिन मुख्य आरोपी भूरा को पुलिस ने उज्जैन से गिरफ्तार कर लियापूछताछ में हर अपराधी की तरह भूरा ने भी पहले तो किरण को जानने तक से इनकार कर दिया. लेकिन जब पुलिस ने उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की तो उस ने किन्नर किरण की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया.

इस के बाद पुलिस ने भूरा की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त रिवौल्वर और उस के खून सने कपड़े भी बरामद कर लिए. जिस के बाद पूरी कहानी इस प्रकार सामने आई. आज से कोई 45 साल पहले मध्य प्रदेश के शहर इंदौर में जन्मे चांद से खूबसूरत बच्चे का नाम रखा गया अनीस मोहम्मद अंसारी. लेकिल अंसारी परिवार की खुशियां उस समय मिट्टी में मिल गईं जब उस बच्चे के बड़ा होने पर यह बात सामने आई कि अनीस सामान्य लड़का नहीं बल्कि एक किन्नर है5-7 साल की उम्र से ही उस के चेहरेमोहरे में जनाना भाव आने लगे थे. जिस तरह की नजाकत उस में आने लगी थी, उस जैसी नजाकत और खूबसूरती कई लड़कियों में भी देखने को नहीं मिलती.

किशोरावस्था में पहुंच कर अनीस अपनी सच्चाई समझ चुका था. इसलिए 15-16 साल की उम्र में ही वह इंदौर से दिल्ली चला गया और वहां एक किन्नर जमात में शामिल हो गया. जहां उस का नाम रखा गया किरण. देखते ही देखते किरण दिल्ली की सब से खूबसूरत किन्नर बन गई. जिस के चलते उस ने अपने गुरु के साथ रहते हुए करोड़ों की प्रौपर्टी भी जमा कर ली. इतना ही नहीं गुरु के बाद किरण को ही अपने गुरु की पदवी मिल गई. इस के बाद तो उस के इलाके के किन्नर जो भी कमाई कर के लाते, किरण के हाथ में रख देते थे, जिस से उसे और ज्यादा कमाई होने लगी.

किरण की खूबसूरती लगातार बढ़ती जा रही थी. रंगरूप और शारीरिक बनावट से हर कोई उसे औरत समझने का धोखा खा जाता था. इसलिए दिल्ली में तो उस के दीवाने थे ही, दिल्ली के बाहर भी उस के चाहने वालों की संख्या बढ़ गई. परिवार के इंदौर में रहने के कारण उस का इंदौर में भी आनाजाना लगा रहता था, सो इंदौर में भी उस के दीवानों की संख्या कम नहीं थी. किरण की जिंदगी में महत्त्वपूर्ण बदलाव कुछ साल पहले उस समय आया जब वह श्रीनगर, कश्मीर घूमने गई. इस दौरान वह डल झील में चलने वाले सब से महंगे बोट हाउस में ठहरी. शिकारा का मालिक जहांगीर उस की खूबसूरती पर मर मिटा था. सो उस ने किरण की खूब मेहमाननवाजी की थी 

जहांगीर के कई शिकारा डल झील में चला करते थे, जिस के चलते श्रीनगर में उस की खासी संपत्ति थी. अपितु जहांगीर उम्र में किरण से छोटा था, लेकिन किरण का जादू उस के ऊपर कुछ यूं चला कि वह उस के सामने अपने प्यार का इजहार करने से खुद को रोक नहीं सका. किरण जानती थी कि जहांगीर उसे औरत समझने की गलती कर यह बात कह रहा है. ऐसे में किरण को पीछे हट जाना था, लेकिन प्यार की तलाश हर किसी को होती है. इसलिए किरण ने उस का प्यार स्वीकार ही नहीं किया बल्कि उस से शादी कर ली. ऐसे में किरण के किन्नर होने की सच्चाई जहांगीर के सामने खुलनी तय थी. सुहागरात के मौके पर इस सच को वह स्वीकार नहीं कर सका. इस का नतीजा यह निकला कि जहांगीर ने किरण को जल्द ही छोड़ दिया. यह बात किरण को बहुत बुरी लगी. वह अपनी खूबसूरती की ऐसी बेइज्जती सहन नहीं कर पाई. लिहाजा उस ने जहांगीर को खत्म करने का फैसला कर लिया

घटना से 2 महीने पहले एक शादी समारोह में किरण और भूरा की उज्जैन में पहली मुलाकात हुई थी. इस मुलाकात में भूरा यह जान गया था कि किरण एक किन्नर है, इस के बावजूद भी वह उस की खूबसूरती पर मर मिटा था. किरण को भी एक मोहरे की तलाश थी. जिस से वह जहांगीर की हत्या करा सके. उसे इस बात की भी जानकारी थी कि नाबालिग उम्र में भूरा हत्या के एक आरोप में जेल जा चुका था. इसलिए मौका देख कर उस ने भी भूरा को निराश नहीं किया

किरण ने जब देखा कि भूरा पूरी तरह से उस के कब्जे में चुका है तो एक दिन उस ने भूरा से जहांगीर की हत्या करने को कहा. इस के लिए उस ने भूरा को 25 लाख रुपए का लालच देने के साथ ढाई लाख रुपए एडवांस में भी दे दिए. भूरा, किरण का दीवाना हो चुका था, सो उस ने जहांगीर की हत्या करने की बात स्वीकार तो कर ली लेकिन कुछ दिनों बाद उसे लगने लगा कि कश्मीर में जा कर वहां के किसी आदमी की हत्या कर के भाग कर वापस आना आसान काम नहीं है. लिहाजा वह काम करने में आनाकानी करने लगाइस पर किरण ने खुद भूरा को धमकी दे डाली. किरण ने उस से कहा कि अगर जहांगीर को मरवाने में 25 लाख खर्च कर सकती है तो तुम जैसों के लिए तो कोई 25 हजार ले कर ही निपटा देगा. यह धमकी दे कर उस ने भूरा पर जहांगीर की हत्या करने के लिए दबाव बनाया

भूरा जानता था कि किरण के पास पैसों की कमी नहीं है, वह पैसों के बल पर उस की हत्या भी करा देगी. इसलिए उस ने अपने दोस्त ऐजाज के साथ मिल कर किरण की हत्या करने की योजना बना डाली. जिस के बाद उस ने 20 फरवरी, 2018 को किरण को देवास बुला कर जहांगीर की फोटो दिखाने को कहा. उस ने किरण से कहा था कि वह जहांगीर का काम करने श्रीनगर जा रहा है. इसलिए पहचान के लिए जहांगीर की फोटो की जरूरत पड़ेगी. किरण ने जहांगीर का फोटो देने के लिए भूरा को देवास बुलाया था. यहां चामुंडा कांपलेक्स स्थित कौफी हाउस में भूरा और किरण की मुलाकात हुई. वहीं पर उस ने भूरा को जहांगीर का फोटो दे दिया था. फोटो देने के बाद लौटते समय वह ठंडी बियर लेने के लिए शराब की दुकान पर रुकी तभी भूरा ने उस की हत्या कर दी.

ड्राइवर मोहम्मद रईस और भूरा से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उस के दोस्त ऐजाज खान को भी गिरफ्तार कर लिया. फिर तीनों को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक तीनों आरोपियों की जमानत नहीं हो सकी थी.

 

Murder story : बहन के प्रेमी को भाई ने उतारा मौत के घाट

Murder story : जोबन और पम्मी एक ही गांव के थे. दोनों यह बात अच्छी तरह से जानते थे कि एक ही गांव के लड़केलड़की की शादी नहीं हो सकती. इसके बावजूद भी वह एकदूसरे से प्यार कर बैठे. फिर उन के प्यार का भी वही अंजाम हुआ, जैसा कि ऐसे मामलों में होता है…

जुलाई का महीना था. अन्य महीनों की अपेक्षा उस दिन गरमी कुछ अधिक थी. जतिंदर उर्फ जोबन ने चाटी से लस्सी निकाल उस में बर्फ मिलाया. फिर एक गिलास भर कर अपने पिता तरसेम सिंह को देते हुए कहा, ‘‘ले बापू, लस्सी पी ले. आज बड़ी गरमी है.’’

20 वर्षीय जोबन अपने 60 वर्षीय पिता के साथ घर के आंगन में बैठा गपशप कर रहा था. लस्सी का गिलास अपने हाथ में लेते हुए तरसेम सिंह बोले, ‘‘बेटा, गरमी हो या सर्दी, हम जट्ट किसानों को तो खेतों में ही रहना पड़ता है. हम एसी में तो नहीं बैठ सकते न.’’

जोबन ने पिता से मजाक करते हुए कहा, ‘‘बापू क्यों न हम अपने खेतों में एसी लगवा लें.’’

‘‘क्या ये बिना सिरपैर की बातें कर रहा है.’’ तरसेम बेटे की बात पर हंसते हुए बोले, ‘‘कहीं खेतों में भी एसी लगते हैं.’’

यूं ही फिजूल की इधरउधर की बातें कर के बापबेटा अपना मन बहला रहे थे कि जोबन के मोबाइल फोन की घंटी बजी. अचानक फोन की घंटी ने उन की बातों पर विराम लगा दिया. जोबन पिता के पास से उठ कर एक तरफ चला गया और फोन पर किसी से बातें करने लगा. तरसेम सिंह अपनी जगह ही बैठे रहे. जोबन फोन पर बातें करते हुए जब घर से बाहर जाने लगा तो तरसेम सिंह ने उसे टोका, ‘‘ओए पुत्तर, खाने के वक्त कहां जा रहा है?’’

‘‘अभी आया पापाजी,’’ जोबन ने फोन सुनते हुए ही पिता को आवाज दे कर कहा और बातें करते हुए घर से बाहर निकल गया. यह बात 17 जुलाई, 2018 रात 9 बजे की है. जोबन के चले जाने के बाद तरसेम सिंह पोतेपोतियों से बातें करने लगे. तरसेम सिंह पंजाब के जिला अमृतसर देहात के कस्बा ब्यास के पास वाले गांव शेरों निगाह के रहने वाले थे. गांव में उन का बहुत बड़ा कुनबा था. उन के पिता मोहन सिंह गांव के नामी जमींदार थे. उन की मृत्यु के बाद तरसेम सिंह ने भी अपने पुरखों की जागीर को संभाल कर रखा था. तरसेम सिंह ने 2 शादियां की थीं. दोनों ही पत्नियों की मृत्यु हो चुकी थी.

पहली पत्नी से उन की 2 बेटियां और 2 बेटे थे. पहली पत्नी की मृत्यु के बाद बच्चों की परवरिश के लिए उन्होंने दूसरी शादी की थी. दूसरी पत्नी से उन्हें 2 बेटियां और एक बेटा जतिंदर उर्फ जोबन था. पूरे परिवार में जोबन ही सब से छोटा था और इसी वजह से सब का प्यारा था. तरसेम सिंह के सभी बेटे शादीशुदा थे और गांव में पासपास बने घरों में रहते थे. जोबन को घर से निकले काफी देर हो चुकी थी. जबकि अपने पिता से वह यह कह कर गया था कि अभी लौट आएगा. तरसेम सिंह के पोतेपोतियां भी सोने चले गए थे. उन्होंने समय देखा तो रात के 11 बज चुके थे. उन का चिंतित होना स्वाभाविक ही था. उन्होंने जोबन को फोन मिलाया तो उस का फोन बंद मिला. बारबार फोन मिलाने पर भी जब हर बार फोन बंद मिला तो वह अकेले ही गांव में उस की तलाश के लिए निकल पड़े.

उन्होंने पूरा गांव छान मारा पर जोबन का कहीं कोई पता नहीं चला. अंत में उन्होंने घर लौट कर अपने दूसरे बेटों को जगा कर सारी बात बताई. बेटे की तलाश के लिए उन्होंने अपने भाई सुखविंदर सिंह और शादीशुदा दोनों बेटियों को भी फोन कर के अपने यहां बुला लिया था. सभी लोग एक बार फिर से जोबन को ढूंढने के लिए निकल पड़े. तरसेम के बेटों के साथ गांव के कुछ और लोग भी थे. पूरा कुनबा सारी रात ढूंढता रहा पर जोबन का पता नहीं चला. उसे हर उस संभावित जगह पर तलाशा गया था, जहां उस के मिलने की उम्मीद थी.

अगली सुबह जोबन के लापता होने की खबर थाना ब्यास में दे दी गई. उस की गुमशुदगी दर्ज करने के बाद पुलिस ने भी उस की तलाश शुरू कर दी. अपने घर फोन पर किसी से बात करतेकरते जोबन अचानक कहां गायब हो गया, यह बात किसी की समझ में नहीं आ रही थी. जोबन को लापता हुए 24 घंटे से भी अधिक का समय बीत चुका था. उस का फोन अब भी बंद था. शाम के समय गांव जोधा निवासी जोबन के एक दोस्त तरसपाल सिंह ने तरसेम सिंह को फोन पर बताया कि उस ने पहली जुलाई की रात जोबन को सुखबीर सिंह के साथ गांव से बाहर जाते देखा था.

उस वक्त सुखबीर के साथ 2 लड़के और भी थे. वह उन्हें पहचान नहीं पाया, क्योंकि उन दोनों ने अपने चेहरे कपड़े से ढक रखे थे. इस से पहले रात करीब 8 बजे सुखबीर उस के घर आया था और बहुत घबराया हुआ था. बता रहा था कि उस का स्कूल के ग्राउंड में किसी से झगड़ा हो गया था. विस्तार से बात समझने के लिए तरसेम सिंह ने तरसपाल को अपने पास बुलवा लिया और उस से पूरी बात पूछी. उस के बाद तरसेम सिंह को पूरा विश्वास हो गया कि उन के बेटे के लापता होने में सुखबीर का ही हाथ हो सकता है. वह जानते थे कि जोबन का सुखबीर की बहन के साथ चक्कर चल रहा था. उन के दिमाग में यह बात भी आई कि कहीं इस रंजिश की वजह से सुखबीर ने जोबन को सबक सिखाने के लिए गायब तो नहीं करवा दिया.

बहरहाल, तरसेम ने इन सब बातों से अपने रिश्तेदारों को अवगत करवाया और तरसपाल को अपने साथ ले कर थाने पहुंच गया. थानाप्रभारी किरणदीप सिंह को उन्होंने जोबन के लापता होने से ले कर अब तक की पूरी बात विस्तार से बता दी. थानाप्रभारी के पूछने पर तरसपाल ने बताया कि जोबन को फोन कर के सुखबीर सिंह उर्फ हीरा ने ही बुलाया था. सुखबीर के साथ 2 और युवक भी थे, जिन्होंने मुंह पर कपड़ा बांध रखा था. वे तीनों जोबन को गांव शेरो बागा के स्कूल के ग्राउंड में ले गए थे, जहां पर झगड़े के दौरान सुखबीर ने जोबन के सिर पर ईंट से वार किया. इस से जोबन की मौके पर ही मौत हो गई थी. इस के बाद सुखबीर ने अपने साथियों के साथ मिल कर जोबन की लाश ब्यास नदी में फेंक दी.

तरसपाल का बयान दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी किरणदीप सिंह ने 3 जुलाई, 2018 को भादंवि की धारा 302 के तहत सुखबीर सिंह और 2 अन्य लोगों के खिलाफ जोबन की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के बाद पुलिस ने सुखबीर के घर दबिश दे कर उसे गिरफ्तार कर लिया. सुखबीर से प्रारंभिक पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर जोबन की हत्या में शामिल दूसरे युवक लवप्रीत सिंह को भी गांव के बाहर से गिरफ्तार कर लिया. 4 जुलाई, 2018 को पुलिस ने सुखबीर और लवप्रीत को अदालत में पेश कर 2 दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया. रिमांड के दौरान हुई पूछताछ के दौरान सुखबीर सिंह ने जोबन की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था. विस्तार से की गई पूछताछ के बाद इस हत्या की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस प्रकार से थी. कह सकते हैं कि यह मामला औनर किलिंग का था.

सुखबीर सिंह उर्फ हीरा अमृतसर के गांव अर्क के एक मध्यवर्गीय परिवार से था. उस के पिता बलबीर सिंह इतना कमा लेते थे जिस से घर खर्च और अन्य जरूरतें आराम से पूरी हो जाती थीं. सुखबीर 2 भाईबहन थे. किसी कारणवश सुखबीर ने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी थी. अब सुखबीर और उस के मातापिता का एक ही सपना था कि वे किसी तरह अपनी बेटी पम्मी को उच्चशिक्षा दिलाएं. इस के लिए सुखबीर भी जीतोड़ मेहनत कर रहा था. एक कहावत है कि जब इंसान के जीवन में 16वां साल तूफान बन कर आता है तो कोई विरला ही अपने आप को इस तूफान से बचा पाता है, ज्यादातर लोग तूफान की चपेट में आ जाते हैं. जोबन और पम्मी के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ था. जोबन करीब 20 साल का  था और पम्मी 16 पार कर चुकी थी. दोनों एक ही गांव के और एक ही जाति के थे.

आग और घी जब आसपास हों तो आंच पा कर घी पिघल ही जाता है. दुनिया और समाज के अंजाम की परवाह किए बिना जोबन और पम्मी प्रेम अग्नि के कुंड में कूद पड़े थे. लगभग एक साल तक तो किसी को उन की प्रेम कहानी का पता नहीं चला था. क्योंकि मिलनेजुलने में दोनों बड़ी ऐहतियात बरतते थे. पर ये बात जगजाहिर है कि इश्क और मुश्क कभी छिपाए नहीं छिपते. एक न एक दिन किसी न किसी को तो खबर लग ही जाती है. किसी माध्यम से सुखबीर को जब अपनी बहन के प्रेम प्रसंग के बारे में पता चला तो जैसे घर में तूफान आ गया. सुखबीर को ज्यादा गुस्सा इस बात पर था कि वह बहन पम्मी को ऊंचाई तक पहुंचाना चाहता था और वह गलत रास्ते पर जा रही थी. गुस्सा या मारपीट करने से कोई लाभ नहीं था. उस ने पम्मी को प्यार से काफी समझाया.

पम्मी ने भी भाई को साफसाफ बता दिया कि वह जोबन के बिना नहीं रह सकती. सुखबीर अपनी बहन की खुशियों के लिए शायद उस की बात मान भी लेता, पर समस्या यह थी कि जोबन पर अदालत में एक आपराधिक मुकदमा चल रहा था. सुखबीर नहीं चाहता था कि उस की बहन ऐसे आदमी से शादी करे जो अपराधी किस्म का हो. बहन को समझाने के बाद उस ने जोबन के पास जा कर उस के सामने हाथ जोड़ कर उसे समझाया, ‘‘जोबन, हम एक ही गांव के हैं और एक साथ खेलकूद कर बड़े हुए हैं. मैं तुम्हारे हाथ जोड़ता हूं कि मेरी बहन का पीछा छोड़ दो और हमें और हमारे सपनों को बरबाद न करो.’’

जोबन ने आश्वासन तो दे दिया कि वह आइंदा पम्मी से नहीं मिलेगा पर ऐसा हुआ नहीं. वह पम्मी से मिलता रहा. घटना से एक दिन पहले सुखबीर ने जोबन को पम्मी के साथ गांव के बाहर खेतों में देख लिया. उस समय वह खून का घूंट पी कर खामोश रह गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह इस समस्या का समाधान कैसे करे. काफी सोचने के बाद उस ने जोबन को अपनी बहन की जिंदगी से हमेशा के लिए दूर करने का फैसला कर लिया. पर यह काम वह अकेले नहीं कर सकता था, इसलिए इस काम के लिए उस ने अपने दोस्त लवप्रीत और सुरजीत को भी अपनी योजना में शामिल कर लिया. जोबन सहित ये सभी लोग एकदूसरे के दोस्त थे.

अगले दिन पहली जुलाई की रात में सुखबीर ने जोबन को फोन कर के मिलने के लिए गांव के स्कूल के ग्राउंड में बुलाया. उस ने कहा था कि पम्मी के बारे में जरूरी बात करनी है. उस वक्त लवप्रीत और सुरजीत उस के साथ थे. सुखबीर ने पहले से ही तय कर लिया था कि पहले वह जोबन को समझाएगा. अगर वह नहीं माना तो उसे अंत में ठिकाने लगा देगा. पर ऐसा नहीं हुआ. बातोंबातों में उन के बीच बात इतनी बढ़ गई कि दोनों का आपस में झगड़ा हो गया. इसी दौरान सुखबीर ने पास पड़ी ईंट उठा कर पूरी ताकत से जोबन के सिर पर दे मारी, जिस से जोबन लुढ़क गया और मौके पर ही उस की मौत हो गई.

जोबन की मौत के बाद तीनों घबरा गए. अपना अपराध छिपाने के लिए उन्होंने मिल कर उस की लाश पास में बह रही ब्यास नदी में बहा दी और अपनेअपने घर चले गए. चूंकि नदी से जोबन की लाश बरामद करनी थी, इसलिए पुलिस ने गोताखोरों की टीम बुलवा कर काफी खोजबीन की. 4-5 दिनों की कड़ी मेहनत के बाद भी जोबन की लाश नहीं मिल सकी. जिन थाना क्षेत्रों से नदी गुजरती थी, थानाप्रभारी ने वहां की पुलिस से भी संपर्क किया कि उन के क्षेत्र में कोई लाश तो बरामद नहीं हुई है. कथा लिखे जाने तक जोबन की लाश पुलिस को नहीं मिली थी.

रिमांड अवधि खत्म होने के बाद पुलिस ने सुखबीर और लवप्रीत को अदालत में पेश कर जिला जेल भेज दिया. इस हत्या में शामिल तीसरे अभियुक्त सुरजीत की पुलिस तलाश कर रही है.

—पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में पम्मी परिवर्तित नाम है.

UP Crime : प्यार करने के बहाने प्रेमिका को बाहों में भरकर घोंटा गला

UP Crime : शादीशुदा होने के बावजूद साथ काम करने वाली प्रभावती पर तेजभान का दिल आया तो कोशिश कर के उस ने उस से संबंध बना लिए. फिर इस संबंध का भी वैसा ही अंत हुआ, जैसा अकसर होता आया है. प्रभावती को गौर से देखते हुए प्लाईवुड फैक्ट्री के मैनेजर ने कहा, ‘‘इस उम्र में तुम नौकरी करोगी, अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है? मुझे

लगता है तुम 15-16 साल की होओगी? यह उम्र तो खेलनेखाने की होती है.’’

‘‘साहब, आप मेरी उम्र पर मत जाइए. मुझे काम दे दीजिए. आप मुझे जो भी काम देंगे, मैं मेहनत से करूंगी. मेरे परिवार की हालत ठीक नहीं है. भाईबहनों की शादी हो गई है. बहनें ससुराल चली गई हैं तो भाई अपनी अपनी पत्नियों को ले कर अलग हो गए हैं. मांबाप की देखभाल करने वाला कोई नहीं है. पिता बीमार रहते हैं. इसलिए मैं नौकरी कर के उन की देखभाल करना चाहती हूं.’’ प्रभावती ने कहा.

रायबरेली की मिल एरिया में आसपास के गांवों से तमाम लोग काम करने आते थे. प्लाईवुड फैक्ट्री में भी आसपास के गांवों के तमाम लोग नौकरी करते थे. लेकिन उतनी छोटी लड़की कभी उस फैक्ट्री में नौकरी मांगने नहीं आई थी. प्रभावती ने मैनेजर से जिस तरह अपनी बात कही थी, उस ने सोच लिया कि इस लड़की को वह अपने यहां नौकरी जरूर देगा. उस ने कहा, ‘‘ठीक है, तुम कल समय पर आ जाना. और हां, मेहनत से काम करना. मैं तुम्हें दूसरों से ज्यादा वेतन दूंगा.’’

‘‘ठीक है साहब, आप की बहुतबहुत मेहरबानी, जो आप ने मेरी मजबूरी समझ कर अपने यहां नौकरी दे दी. मैं कभी कोई ऐसा काम नहीं करूंगी, जिस से आप को कुछ कहने का मौका मिले.’’ कह कर प्रभावती चली गई. अगले दिन से प्रभावती काम पर जाने लगी. उस के काम को देख कर मैनेजर ने उस का वेतन 3 हजार रुपए तय किया. 15 साल की उम्र में ही मातापिता की जिम्मेदारी उठाने के लिए प्रभावती ने यह नौकरी कर ली थी.

उत्तर प्रदेश के जिला रायबरेली के शहर से कस्बातहसील लालगंज को जाने वाली मुख्य सड़क पर शहर से 10 किलोमीटर की दूरी पर बसा है कस्बा दरीबा. कभी यह गांव हुआ करता था. लेकिन रायबरेली से कानपुर जाने के लिए सड़क बनी तो इस गांव ने खूब तरक्की की. लोगों को तरहतरह के रोजगार मिल गए. सड़क के किनारे तमाम दुकानें खुल गईं. लेकिन जो परिवार सड़क के किनारे नहीं आ पाए, उन की हालत में खास सुधार नहीं हुआ.

ऐसा ही एक परिवार महादेव का भी था. उस के परिवार में पत्नी रामदेई के अलावा 2 बेटे फूलचंद, रामसेवक तथा 4 बेटियां, कुसुम, लक्ष्मी, सविता और प्रभावती थीं. प्रभावती सब से छोटी थी. छोटी होने की वजह से परिवार में वह सब की लाडली थी. महादेव की 3 बेटियों की शादी हो गई तो वे ससुराल चली गईं. बेटे भी शादी के बाद अलग हो गए. अंत में महादेव और रामदेई के साथ रह गई उन की छोटी बेटी प्रभावती. भाइयों ने मांबाप के साथ जो किया था, उस से वह काफी दुखी और परेशान रहती थी. यही वजह थी कि उस ने उतनी कम उम्र में ही नौकरी कर ली थी.

प्रभावती को जब काम के बदले फैक्ट्री से पहला वेतन मिला तो उस ने पूरा का पूरा ला कर पिता के हाथों पर रख दिया. बेटी के इस कार्य से महादेव इतना खुश हुआ कि उस की आंखों में आंसू भर आए. उस ने कहा, ‘‘मेरी सभी औलादों में तुम्हीं सब से समझदार हो. जहां बुढ़ापे में मेरे बेटे मुझे छोड़ कर चले गए, वहीं बेटी हो कर तुम मेरा सहारा बन गईं. तुम जुगजुग जियो, सभी को तुम्हारी जैसी औलाद मिले.’’

‘‘बापू, आप केवल अपनी तबीयत की चिंता कीजिए, बाकी मैं सब संभाल लूंगी. मुझे बढि़या नौकरी मिल गई है, इसलिए अब आप को चिंता करने की जरूरत नहीं है.’’ प्रभावती ने कहा. बदलते समय में आज लड़कियां लड़कों से ज्यादा समझदार हो गई हैं. यही वजह है, वे बेटों से ज्यादा मांबाप की फिक्र करती हैं. प्रभावती के इस काम से महादेव और उन की पत्नी रामदेई ही खुश नहीं थे, बल्कि गांव के अन्य लोग भी उस की तारीफ करते नहीं थकते थे. उस की मिसालें दी जाने लगी थीं.

समय बीतता रहा और प्रभावती अपनी जिम्मेदारी निभाती रही. प्रभावती जिस फैक्ट्री में नौकरी करती थी, उसी में बंगाल का रहने वाला एक कारीगर था मनोज बंगाली. वह प्रभावती की हर तरह से मदद करता था, इसलिए प्रभावती उस से काफी प्रभावित थी. मनोज उस से उम्र में थोड़ा बड़ा जरूर था, लेकिन धरीरेधीरे प्रभावती उस के नजदीक आने लगी थी. जब यह बात फैक्ट्री में फैली तो एक दिन प्रभावती ने कहा, ‘‘मनोज, हमारे संबंधों को ले कर लोग तरहतरह की बातें करने लगे हैं. यह मुझे अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘लोग क्या कहते हैं, इस की परवाह करने की जरूरत नहीं है. तुम मुझे प्यार करती हो और मैं तुम्हें प्यार करता हूं. बस यही जानने की जरूरत है.’’ इतना कह कर मनोज ने प्रभावती को सीने से लगा लिया.

‘‘मनोज, तुम मेरी बातों को गंभीरता से नहीं लेते. जब भी कुछ कहती हूं, इधरउधर की बातें कर के मेरी बातों को हवा में उड़ा देते हो. अगर तुम ने जल्दी कोई फैसला नहीं लिया तो मैं तुम से मिलनाजुलना बंद कर दूंगी.’’ प्रभावती ने धमकी दी तो मनोज ने कहा, ‘‘अच्छा, तुम चाहती क्या हो?’’

‘‘हम दोनों को ले कर फैक्ट्री में चर्चा हो रही है तो एक दिन बात हमारे गांव और फिर घर तक पहुंच जाएगी. जब इस बात की जानकारी मेरे मातापिता को होगी तो वे किसी को क्या जवाब देंगे. मैं उन की बहुत इज्जत करती हूं, इसलिए मैं ऐसा कोई काम नहीं करना चाहती, जिस से उन के मानसम्मान को ठेस लगे. उन्हें पता चलने से पहले हमें शादी कर लेनी चाहिए. उस के बाद हम चल कर उन्हें सारी बात बता देंगे.’’ प्रभावती ने कहा.

‘‘शादी करना आसान तो नहीं है, फिर भी मैं वह सब करने को तैयार हूं, जो तुम चाहती हो. बताओ मुझे क्या करना है?’’ मनोज ने पूछा.

‘‘मैं तुम से शादी करना चाहती हूं. मेरे मातापिता मुझे बहुत प्यार करते हैं. वह मेरी किसी भी बात का बुरा नहीं मानेंगे. मैं चाहती हूं कि हम किसी दिन शहर के मंशा देवी मंदिर में चल कर शादी कर लें. इस के बाद मैं अपने घर वालों को बता दूंगी. फिर मैं तुम्हारी हो जाऊंगी, केवल तुम्हारी.’’ प्रभावती ने कहा.

प्रभावती की ये बातें सुन कर मनोज की खुशियां दोगुनी हो गईं. उस ने जब से प्रभावती को देखा था, तभी से उसे पाने के सपने देखने लगा था. लेकिन प्रभावती उस के लिए शराब के उस प्याले की तरह थी, जो केवल दिखाई तो देता था, लेकिन उस पर वह होंठ नहीं लगा पा रहा था. प्रभावती जो अभी कली थी, वह उसे फूल बनाने को बेचैन था. रायबरेली का मंशा देवी मंदिर रेलवे स्टेशन के पास ही है. करीब 5 साल पहले सितंबर महीने के पहले रविवार को प्रभावती मनोज के साथ वहां गई. दोनों ने मंदिर में मंशा देवी के सामने एकदूसरे को पतिपत्नी मानते हुए जिंदगी भर साथ निभाने का वादा किया. इस के बाद एकदूसरे के गले में फूलों की जयमाल डाल कर दांपत्य बंधन में बंध गए.

मंदिर में शादी कर के मनोज प्रभावती को अपने कमरे पर ले गया. मनोज को इसी दिन का बेताबी से इंतजार था. वह प्रभावती के यौवन का सुख पाना चाहता था. अब इस में कोई रुकावट नहीं रह गई थी, क्योंकि प्रभावती ने उसे अपना जीवनसाथी मान लिया था. इसलिए अब उस की हर चीज पर उस का पूरा अधिकार हो गया था. मनोज को प्रभावती किसी परी की तरह लग रही थी. छरहरी काया में उस की बोलती आंखें, मासूम चेहरा किसी को भी बहकने पर मजबूर कर सकता था. प्रभावती में वह सब कुछ था, जो मनोज को दीवाना बना रहा था. मनोज के लिए अब इंतजार करना मुश्किल हो रहा था.

वह प्रभावती को ले कर सुहागरात मनाने के लिए कमरे में पहुंचा. प्रभावती को भी अब उस से कोई शिकायत नहीं थी. मन तो वह पहले ही सौंप चुकी थी, उस दिन तन भी सौंप दिया. इस तरह प्रभावती की विवाहित जीवन की कल्पना साकार हो गई थी. यह बात प्रभावती ने अपने मातापिता को बताई तो उन्होंने बुरा नहीं माना. कुछ दिनों तक रायबरेली में साथ रहने के बाद वह मनोज के साथ उस के घर बंगाल चली गई. मनोज बंगाल के हुगली शहर के रेल बाजार का रहने वाला था. लेकिन मनोज अपने घर न जा कर कोलकाता की एक फैक्ट्री में नौकरी करने लगा और वहीं मकान ले कर प्रभावती के साथ रहने लगा. साल भर बाद प्रभावती ने वहीं एक बेटे को जन्म दिया. मनोज नौकरी करता था तो प्रभावती घर और बेटे को संभाल रही थी. दोनों मिलजुल कर आराम से रह रहे थे.

मनोज बेटे और प्रभावती के साथ खुश था. लेकिन वह प्रभावती को अपने घर नहीं ले जा रहा था. प्रभावती कभी ले चलने को कहती तो वह कोई न कोई बहाना कर के टाल जाता. कोलकाता में रहते हुए काफी समय हो गया तो प्रभावती को मांबाप की याद आने लगी. एक दिन उस ने मनोज से रायबरेली चलने को कहा तो मनोज ने कहा, ‘‘यहां हमें रायबरेली से ज्यादा वेतन मिल रहा है, इसलिए अब मैं वहां नहीं जाना चाहता. अगर तुम चाहो तो जा कर अपने घर वालों से मिल आओ. वहां से आने के बाद मैं तुम्हें अपने घर ले चलूंगा.’’

मातापिता से मिलने के लिए प्रभावती रायबरेली आ गई. कुछ दिनों बाद वह मनोज के पास कोलकाता पहुंची तो पता चला कि मनोज तो पहले से ही शादीशुदा है. क्योंकि प्रभावती के रायबरेली जाते ही मनोज अपनी पत्नी सीमा को ले आया था. उस की पत्नी ने उसे घर में घुसने नहीं दिया. उसे धमकाते हुए सीमा ने कहा, ‘‘तुम जैसी औरतें मर्दों को फंसाने में माहिर होती हैं. जवानी के लटकेझटके दिखा कर पैसों के लिए किसी भी मर्द को फांस लेती हैं. अब यहां कभी दिखाई मत देना. अगर यहां फिर आई तो ठीक नहीं होगा.’’

सीमा की बातें सुन कर प्रभावती के पास वापस आने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं बचा था. उसे जलालत पसंद नहीं थी. वह एक बार मनोज से मिल कर रिश्ते की सच्चाई के बारे में जानना चाहती थी. लेकिन लाख कोशिश के बाद भी न तो मनोज उस के सामने आया और न उस ने फोन पर बात की. उस से मिलने के चक्कर में प्रभावती कुछ दिन वहां रुकी रही. लेकिन जब वह उस से मिलने को तैयार नहीं हुआ तो वह परेशान हो कर रायबरेली वापस चली आई.

जिस मनोज को उस ने पति मान कर अपना सब कुछ सौंप दिया था, वह बेवफा निकल गया था. प्रभावती का दिल टूट चुका था. वापस आने पर उस की परेशानियां और भी बढ़ गईं. अब मातापिता की जिम्मेदारी के साथसाथ बेटे की भी जिम्मेदारी थी. गुजरबसर के लिए प्रभावती फिर से काम करने लगी. बदनामी के डर से वह प्लाईवुड फैक्ट्री में नहीं गई. थोड़ी दौड़धूप करने पर उसे रायबरेली शहर में दूसरा काम मिल गया था. जीवन फिर से पटरी पर आने लगा था. शादी के बाद प्रभावती की सुंदरता में पहले से ज्यादा निखार आ गया था. दूसरी जगह काम करते हुए उस की मुलाकात तेजभान से हुई. तेजभान उसी की जाति का था. प्रभावती रोजाना अपने काम पर साइकिल से रायबरेली आतीजाती थी.

कभी कोई परेशानी होती या देर हो जाती तो तेजभान उसे अपनी मोटरसाइकिल से उस के घर पहुंचा देता था. लगातार मिलनेजुलने से दोनों के बीच नजदीकी बढ़ने लगी. तेजभान के साथ प्रभावती को खुश देख कर उस के मांबाप भी खुश थे. तेजभान रायबरेली के ही डीह गांव का रहने वाला था. एक दिन प्रभावती को कुछ ज्यादा देर हो गई तो तेजभान ने उस से अपने कमरे पर ही रुक जाने को कहा. थोड़ी नानुकुर के बाद प्रभावती तेजभान के कमरे पर रुक गई. मनोज से संबंध टूटने के बाद शारीरिक सुख से वंचित प्रभावती एकांत में तेजभान का साथ पाते ही पिघलने लगी. उस की शारीरिक सुख की कामना जाग उठी थी. तेजभान तो उस से भी ज्यादा बेचैन था.

उम्र में बड़ा होने के बावजूद तेजभान का जिस्म मजबूत और गठा हुआ था. उस की कदकाठी मनोज से काफी मिलतीजुलती थी. वह मनोज जैसा सुंदर तो नहीं दिखता था, लेकिन बातें उसी की तरह प्यारभरी करता था. प्रभावती की सोई कामना को उस ने अंगुलियों से जगाना शुरू किया तो वह उस के करीब आ गई. इस के बाद दोनों के बीच वह सब हो गया जो पतिपत्नी के बीच होता है. तेजभान और प्रभावती के बीच रिश्ते काफी प्रगाढ़ हो गए थे. वह प्रभावती के घर तो पहले से ही आताजाता था, लेकिन अब उस के घर रात में रुकने भी लगा था. प्रभावती के मातापिता से भी वह बहुत ही प्यार और सलीके से पेश आता था. इस के चलते वे भी उस पर भरोसा करने लगे थे.

तेजभान के पास जो मोटरसाइकिल थी, वह पुरानी हो चुकी थी. वह उसे बेच कर नई मोटरसाइकिल खरीदना चाहता था. लेकिन इस के लिए उस के पास पैसे नहीं थे. अपने मन की बात उस ने प्रभावती से कही तो उस ने उसे 10 हजार रुपए दे कर नई मोटरसाइकिल खरीदवा दी. तेजभान का प्यार और साथ पा कर वह मनोज को भूलने लगी थी. तेजभान में सब तो ठीक था, लेकिन वह थोड़ा शंकालु स्वभाव का था. वह प्रभावती को कभी किसी हमउम्र से बातें करते देख लेता तो उसे बहुत बुरा लगता. वह नहीं चाहता था कि प्रभावती किसी दूसरे से बात करे. इसलिए वह हमेशा उसे टोकता रहता था.

प्रभावती को ही नहीं, उस के घर वालों को भी पता चल गया था कि तेजभान शादीशुदा है. एक शादीशुदा आदमी के साथ जिंदगी नहीं पार हो सकती थी, इसलिए प्रभावती की बड़ी बहन सविता ने अपनी ससुराल लोहारपुर में उस के लिए एक लड़का देखा. वह उस के साथ प्रभावती की शादी कराना चाहती थी. लड़के को देखने और बातचीत करने के लिए उस ने प्रभावती को अपनी ससुराल बुला लिया. जब इस बात की जानकारी तेजभान को हुई तो वह भी लोहारपुर पहुंच गया. जब उस ने देखा कि वहां एक लड़के के साथ प्रभावती बात कर रही है तो उसे गुस्सा आ गया. उस ने प्रभावती का हाथ पकड़ कर उस लड़के को 2-4 थप्पड़ लगाते हुए कहा, ‘‘तूने अपनी शकल देखी है जो इस से शादी करेगा.’’

प्रभावती के घर वाले उस की शादी जल्द से जल्द करना चाहते थे. लेकिन तेजभान टांग अड़ा रहा था. वह उस से खुद तो शादी कर नहीं सकता था लेकिन वह उस की शादी किसी ऐसे आदमी से कराना चाहता था, जो शादी के बाद भी उसे प्रभावती से मिलने से न रोके. क्योंकि वह प्रभावती को खुद से दूर नहीं जाने देना चाहता था. इसीलिए तेजभान ने अपने एक रिश्तेदार प्रदीप को तैयार किया. वह रिश्ते में उस का मामा लगता था. तेजभान को पूरा विश्वास था कि प्रदीप से शादी होने के बाद भी उसे प्रभावती से मिलनेजुलने में कोई परेशानी नहीं होगी. प्रदीप उम्र में तेजभान से काफी बड़ा था. प्रभावती का भरोसा जीतने के लिए उस ने उस की एक जीवनबीमा पौलिसी भी करा दी थी.

प्रदीप से बात कर के तेजभान ने प्रभावती से कहा, ‘‘अगर तुम कहो तो मैं तुम्हारी शादी प्रदीप से करा दूं. वह अच्छा आदमी है. खातेपीते घर का भी है.’’

प्रभावती ने तेजभान की इस बात का कोई जवाब नहीं दिया. 2 दिनों बाद तेजभान प्रदीप को साथ ले कर प्रभावती से मिला. तीनों ने साथ खायापिया. प्रदीप चला गया तो तेजभान ने कहा, ‘‘प्रभावती, प्रदीप तुम्हें कैसा लगा? मैं इसी से तुम्हारी कराना चाहता हूं.’’

एक तो प्रदीप शक्लसूरत से ठीक नहीं था, दूसरे उस की उम्र उस से दोगुनी थी. वह शराब भी पीता था, इसलिए प्रभावती ने कहा, ‘‘इस बूढ़े के साथ तुम मेरी शादी कराना चाहते हो?’’

‘‘यह बहुत अच्छा आदमी है. उस से शादी के बाद भी हमें मिलने में कोई परेशानी नहीं होगी. दूसरी जगह शादी करोगी तो हमारा मिलनाजुलना नहीं हो पाएगा.’’

‘‘उस दिन मारपीट कर के तुम ने मेरी शादी तुड़वा दी थी. मैं उस बूढ़े से हरगिज शादी नहीं कर सकती. अब मैं तुम्हीं से शादी करूंगी. तुम्हें ही मुझे अपने घर में रखना पड़ेगा.’’ प्रभावती ने गुस्से में कहा.

प्रभावती अब तेजभान के लिए मुसीबत बन गई. वह उस से पीछा छुड़ाने की कोशिश करने लगा. तब प्रभावती उस से अपने वे पैसे मांगने लगी, जो उस ने उसे मोटरसाइकिल खरीदने के लिए दिए थे. दोनों के बीच टकराव होने लगा. तेजभान के साथ शादी कर के घर बसाने का प्रभावती का सपना तेजभान के लिए गले की हड्डी बन गया. प्रभावती ने कह भी दिया कि जब तक वह शादी नहीं कर लेता, तब तक वह उसे अपने पास फटकने नहीं देगी. वह प्रभावती से शादी तो करना चाहता था, लेकिन उस की मजबूरी यह थी कि वह पहले से ही शादीशुदा था. उस की पत्नी को प्रभावती और उस के संबंधों के बारे में पता भी चल चुका था.

तेजभान को प्रभावती से पीछा छुड़ाने की कोई राह नहीं सूझी तो उस ने उसे रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. इस के बाद 7 दिसंबर, 2013 की शाम प्रभावती को समझाबुझा कर वह पूरे मौकी मजरा जगदीशपुर चलने के लिए राजी कर लिया. प्रभावती तैयार हो गई तो वह उसे मोटरसाइकिल पर बैठा कर चल पड़ा. परशदेपुर गांव के पास वह नइया नाला पर रुक गया. मोटरसाइकिल सड़क पर खड़ी कर के वह बहाने से प्रभावती को सड़क के नीचे पतावर के जंगल में ले गया. सुनसान जगह पर प्यार करने के बहाने उस ने प्रभावती को बांहों में समेटा और फिर उस का गला घोंट कर मार दिया.

प्रभावती को मार कर उस की लाश उस ने नाले के किनारे पतावर में इस तरह छिपा दिया कि वह सड़गल जाए. इस के बाद उस का मोबाइल फोन और अन्य सामान ले कर वह अपने गांव डीह चला गया. प्रभावती अपने घर नहीं पहुंची तो घर वालों को चिंता हुई. उन्होंने तेजभान को फोन किया तो उस ने कहा कि वह प्रभावती से कई दिनों से नहीं मिला है. उसी दिन प्रभावती के घर जा कर उस ने उस के घर वालों को प्रभावती के बारे में पता करने का आश्वासन दिया. प्रभावती के घर वालों ने पुलिस को सूचना देने की बात कही तो ऐसा करने से उस ने उन्हें रोक दिया. उस का सोचना था कि कुछ दिन बीत जाने पर प्रभावती की लाश सड़गल जाएगी तो वैसे ही उस का पता नहीं चलेगा.

प्रभावती की तलाश करने के बहाने वह रोज उस के घर जाता रहा. 4-5 दिनों बाद जब उसे लगा कि अब प्रभावती की लाश नहीं मिलेगी तो वह अपने काम पर जाने लगा. उस ने अपने साथियों से भी कह दिया था कि अगर उन से कोई प्रभावती के बारे में पूछे तो वे कह देंगे कि उन्होंने 10-15 दिनों से उसे नहीं देखा है. 11 दिसंबर, 2013 की सुबह चौकीदार छिटई को गांव वालों से पता चला कि नइया नाला के पास पतावर के बीच एक लड़की की लाश पड़ी है, जिस की उम्र 23-24 साल होगी. चौकीदार ने यह सूचना थाना डीह पुलिस को दी. उस दिन थानाप्रभारी बी.के. यादव छुट्टी पर थे. इसलिए सबइंसपेक्टर आर.के. कटियार सिपाहियों के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे. शव की पहचान नहीं हो पाई.

घटना की सूचना पा कर पुलिस अधीक्षक राजेश कुमार पांडेय और क्षेत्राधिकारी महमूद आलम सिद्दीकी भी पहुंच गए थे. उस समय जोरदार ठंड पड़ रही थी. चारों ओर घना कोहरा छाया था. निरीक्षण के दौरान देखा गया कि लड़की के हाथ पर ‘आई लव यू’ लिखा है. पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. पुलिस अधीक्षक राजेश कुमार पांडेय ने थाना डीह पुलिस को हत्यारे को जल्द से जल्द पकड़ने का आदेश दिया था. वह इस की रोज रिपोर्ट भी लेने लगे थे. पुलिस ने लड़की के कपड़े और उस के पास से मिले सामान को थाने में रख लिया था. 13 दिसंबर को जब इस घटना के बारे में अखबारों में छपा तो खबर पढ़ कर प्रभावती के घर वाले थाना डीह पहुंचे. उन्हें पूरा विश्वास था कि वह 6 दिनों पहले गायब हुई प्रभावती की ही लाश होगी.

थाने आ कर प्रभावती के भाई फूलचंद और पिता महादेव ने लाश से मिला सामान देखा तो उन्होंने बताया कि वह सारा सामान प्रभावती का है. अब तक थानाप्रभारी बी.के. यादव वापस आ चुके थे. शव की शिनाख्त होते ही उन्होंने जांच आगे बढ़ा दी.

प्रभावती के घर वालों से पूछताछ के बाद पुलिस की नजरें तेजभान पर टिक गईं. प्रभावती के गायब होने के कुछ दिनों बाद तक तो वह प्रभावती के घर जाता रहा था, लेकिन 2 दिनों से वह नहीं गया था. 15 दिसंबर को 2 बजे के आसपास तेजभान डीह के रेलवे मोड़ पर मिल गया तो थानाप्रभारी बी.के. यादव ने उसे पकड़ लिया. शुरूशुरू में तो तेजभान प्रभावती के संबंध में कोई भी जानकारी देने से मना करता रहा, लेकिन जब पुलिस ने उस के और प्रभावती के संबंधों के बारे में बताना शुरू किया तो मजबूर हो कर उसे सारी सच्चाई उगलनी पड़ी. प्रभावती की हत्या का अपना अपराध स्वीकार करते हुए उस ने कहा, ‘‘साहब, वह बहुत मतलबी और चालू औरत थी.

मेरे अलावा भी उस के कई लोगों से संबंध थे. मैं ने उसे मना किया तो वह मुझ से शादी के लिए कहने लगी. उस ने मुझे जो पैसे दिए थे, उस से मैं ने उस का बीमा करा दिया था. फिर भी वह मुझ से अपने पैसे मांग रही थी. परेशान हो कर मैं ने उसे मार दिया.’’

पुलिस ने तेजभान के पास रखा प्रभावती का सामान भी बरामद कर लिया था. इस के तेजभान के खिलाफ प्रभावती की हत्या का मुकदमा दर्ज कर उसे अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक वह जेल में ही था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सांसद के बेटे ने फाइवस्टार होटल में लड़की पर तानी बंदूक

नेता अगर लोगों के सामने कोई अच्छी मिसाल पेश करें तभी उन्हें जन प्रतिनिधि माना जाना चाहिए. लेकिन इस के इतर आजकल ज्यादातर नेता दबंगई के लिए जाने जाते हैं. उन की औलादें भी कम नहीं होतीं. आशीष पांडे ने हयात रीजेंसी में जो किया, वह कोई बड़ी घटना भी…

दिल्ली देश की राजधानी है. यहां देश भर के नेताओं के परिवार रहते हैं. इस के चलते दिल्ली में कभीकभार इनके हंगामे चर्चा में आते रहते हैं. बसपा के पूर्व सांसद के बेटे आशीष पांडे ने जिस तरह फाइवस्टार (five star hotel) होटल  हयात रीजेंसी में रिवौल्वर लहराते हुए धमकी दी, उस से जेसिका लाल और नीतीश कटारा हत्याकांड की खौफनाक पुनरावृत्ति की स्थिति बनते दिखी. होटल की ओर से घटना को दबाने की कोशिश की गई. अगर इस घटना से जुड़ा वीडियो वायरल नहीं हुआ होता तो शायद किसी को इस का पता भी नहीं चलता.

‘जानता नहीं मुझे अभी तक तू. मैं लखनऊ का हूं. बात नहीं करता, सीधा ठोंक देता हूं.’ आशीष पांडे ने जब गौरव के सामने पिस्तौल लहराते हुए कहा तो उस की महिला मित्र बीच में आ गई. उस ने साहस दिखाया और आशीष को रोक लिया. आशीष की बातों और गुस्से से होटल का सिक्योरिटी स्टाफ भी सहम गया था. दिल्ली के फाइवस्टार होटलों में देर रात तक चलने वाली पार्टियों में रईसजादों की कहानियां अमूमन ढकीछिपी ही रह जाती हैं. कोई बड़ी घटना होने पर ही वस्तुस्थिति सब के सामने आ पाती है. दिल्ली के पांचसितारा होटल हयात रीजेंसी में रविवार 14 अक्तूबर की सुबह करीब 3 से 4 बजे के बीच जो कुछ हुआ, वह खौफनाक घटना में भी तब्दील हो सकता था.

असल में शनिवार की रात हुई इस पार्टी का आयोजन साहिल गिरधर नाम के एक इवेंट आर्गनाइजर ने किया था. इस पार्टी में तमाम लोगों के साथ 2 रईसजादे भी हिस्सा लेने गए थे. इन में से एक दिल्ली के पूर्व कांग्रेसी विधायक कुंवर करन सिंह का बेटा गौरव था और दूसरा उत्तर प्रदेश के पूर्व सांसद राकेश पांडे का बेटा आशीष पांडे. करीब आधी रात से शुरू हुई यह पार्टी देर रात तक चलती रही. इसी दौरान पार्टी में शामिल गौरव की महिला मित्र की तबीयत खराब हो गई. उसे उल्टियां आ रही थीं, जिस की वजह से वह वाशरूम गई थी. उस के पीछेपीछे गौरव भी था.

वाशरूम लेडीज था, इसलिए गौरव बाहर ही खड़ा हो गया. जब अंदर से उस की महिला मित्र की उलटी करने की तेज आवाजें बाहर आने लगीं तो गौरव उस  की मदद के लिए लेडीज वाशरूम के अंदर चला गया. इसी दौरान आशीष पांडे की 3 महिला मित्र उसी लेडीज वाशरूम में आईं. उन्होंने लेडीज वाशरूम में गौरव को देखा तो हक्कीबक्की रह गईं. इस बात को ले कर उन तीनों महिलाओं और गौरव के बीच कहासुनी शुरू होने लगी, जिस की तेज आवाज वाशरूम के बाहर तक आ रही थी. आशीष पांडे भी लेडी वाशरूम के बाहर खड़ा था. उस ने अपनी विदेशी महिला मित्रों के साथ बदतमीजी होने की आवाज सुनी तो वह भी लेडीज वाशरूम के अंदर चला गया.

आशीष के अंदर जाने पर वहां होने वाली बहस तीखी हो गई. बहरहाल, किसी तरह से मामला शांत हुआ तो आशीष अपनी तीनों विदेशी महिला मित्रों के साथ होटल के बाहर पोर्च में आ गया. आशीष ने होटल की पार्किंग में खड़ी अपनी बीएमडब्ल्यू कार मंगाई. कार के अंदर उस की पिस्टल रखी थी. इसी दौरान गौरव भी अपनी महिला दोस्त के साथ होटल (five star hotel) के बाहर पोर्च में आ गया था. उन दोनों को देखते ही आशीष भड़क उठा और उस ने अपनी कार के अंदर रखी पिस्टल निकाल ली. इस के बाद वह एक हाथ में पिस्टल ले कर गाड़ी से उतरा और गौरव को धमकाने जा पहुंचा. गौरव के साथ उस की महिला मित्र भी थी, उस ने आशीष को गौरव के साथ बदतमीजी करने से रोका और उसे धक्का दे कर सीढि़यों से नीचे उतरने पर मजबूर कर दिया.

इसी दौरान पार्टी का आयोजक साहिल गिरधर भी आ गया. उस ने बात खत्म करने के लिए आशीष को समझाया और उसे वहां से चले जाने की रिक्वेस्ट की. जब आशीष चला गया, तब गौरव फिर से अपनी महिला मित्र को ले कर होटल के अंदर गया. डिनर करने के बाद सब अपनेअपने घर चले गए. इस घटना पर किसी भी पक्ष ने किसी तरह की शिकायत नहीं की. सब से आश्चर्यजनक पहलू यह रहा कि होटल हयात रीजेंसी ने इस घटना को ले कर पुलिस में कोई शिकायत नहीं की. मामला रसूखदार परिवारों से जुड़ा था, इसलिए होटल ने भी कोई कदम नहीं उठाया.

होटल मैनेजमेंट को शायद यह चिंता रही होगी कि ऐसे मामले में उस का अपना नाम भी खराब होगा. लेकिन अगले दिन यानी सोमवार को इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. राजधानी दिल्ली की यह घटना राजनीति की गलियों में चर्चा का सबब बन गई. घटना में 2 राजनीतिक परिवारों से जुड़े होने से चर्चा और तेजी से बढ़ी. इस घटना के बाद आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में कानूनव्यवस्था की स्थिति को ले कर केंद्र सरकार पर निशाना साधा, साथ ही जवाब भी मांगा. कांग्रेस की सर्वेसर्वा सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा ने भी कानूनव्यवस्था की स्थिति पर चिंता जताई. गृह राज्यमंत्री किरण रिजीजू ने भी ट्वीट कर के कहा कि इस घटना की जांच दिल्ली पुलिस कर रही है. जल्दी ही सख्त और उचित काररवाई की जाएगी.

इस कवायद से पुलिस के काम में तेजी आई. मामले को तूल पकड़ता देख पुलिस ने केस दर्ज कर के आशीष की गिरफ्तारी के लिए लखनऊ समेत कई जगह छापे मारे. उसे विदेश भागने से रोकने के लिए इंटरनैशनल एयरपोर्ट पर लुकआउट सर्कुलर भी जारी कर दिया गया. बाहुबली परिवार दबंगई के आरोपी आशीष पांडे के पिता राकेश पांडे बीएसपी से सांसद रह चुके हैं. उन के भाई रितेश पांडे उत्तर प्रदेश से अब भी विधायक हैं. आशीष पूर्व बाहुबली विधायक पवन पांडे का भतीजा है. उस के दूसरे चाचा कृष्णकुमार पांडे सुलतानपुर के इसौली से बीएसपी से चुनाव लड़ चुके हैं.

पांडे बंधुओं का यूपी के कई जिलों में रियल एस्टेट, शराब और खनन का कारोबार है. आशीष को लग्जरी गाडि़यों और हथियारों का शौक रहा है. वह रियल एस्टेट का काम करता है. उस के दोनों चाचाओं का अंबेडकर नगर जिले में लंबा आपराधिक इतिहास है. हालांकि आशीष के परिवार पर कोई आपराधिक केस नहीं है. आशीष के पास पिस्टल के अलावा राइफल और बंदूक के लाइसेंस भी हैं. आशीष की पत्नी कामना स्वयंसेवी संस्था चलाती है, जिस के तहत वह कुत्तों के संरक्षण के लिए काम करती है. आशीष को तेजरफ्तार में गाडि़यां दौड़ाने का शौक है. कुछ दिनों पहले लखनऊ में देर रात पार्टी से लौट रहे आशीष ने हाईस्पीड गाड़ी दौड़ाई, लेकिन वह संभाल नहीं सका और डिवाइडर से टकरा कर गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया. हालांकि उसे मामूली चोटें आईं.

देहरादून से शुरुआती पढ़ाई के बाद आशीष विदेश पढ़ने चला गया था. पढ़ाई खत्म करने के बाद पिता राकेश पांडे ने जब बेटे का झुकाव बिजनैस की तरफ देखा तो शहर के फैजाबाद रोड पर फैक्ट्री लगवा दी. लेकिन फैक्ट्री नहीं चली. इस के बाद आशीष ने ठेकेदारी शुरू कर दी और लखनऊ शिफ्ट हो गया. यहां उस ने रियल एस्टेट और शराब के साथ खनन का काम भी शुरू कर दिया. फलस्वरूप उस ने दोनों हाथों से दौलत बटोरी. आशीष पांडे का परिवार राजनीतिक रसूखों वाला है. उस के पिता राकेश पांडे जलालपुर से पहली बार सपा के विधायक चुने गए. लेकिन बाद में उन्होंने बीएसपी का दामन थाम लिया और बीएसपी से अकबरपुर लोकसभा से एमपी बने. राजनीतिक रसूख हासिल करने के बाद राकेश पांडे ने बड़े बेटे रितेश पांडे को राजनीति में उतारा और 2017 के विधानसभा चुनाव में जलालपुर सीट से बीएसपी से विधायक बनवा दिया.

धमकी देने वाला वीडियो अगर वायरल न हुआ होता तो शायद इस मामले को दबा दिया जाता, क्योंकि एफआईआर में दर्ज होटल के असिस्टेंट सिक्योरिटी मैनेजर ने जो बयान दिया है, उस में उस ने साफ लिखा है कि हमें इस घटना के बारे में पूरी जानकारी थी, लेकिन हम ने इस के बारे में पुलिस या अन्य किसी को नहीं बताया. जब इस का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ तो आर.के. पुरम थाना पुलिस ने होटल जा कर पूछताछ की. पूछताछ के बाद होटल के असिस्टेंट सिक्योरिटी मैनेजर की ओर से शिकायत दर्ज कराई गई.

सच्चाई यह है कि फाइवस्टार होटल वाले इस तरह की छोटीमोटी घटनाओं की कभी शिकायत नहीं करते, क्योंकि उन्हें अपने कस्टमर्स की प्राइवेसी और होटल की इमेज भी देखनी होती है. वरना ऐसे होटल में कोई नहीं जाना चाहेगा. सिक्योरिटी गार्ड देखते रहे तमाशा दूसरी ओर, होटल की ओर से स्पष्टीकरण दे कर कहा गया है कि वह देश और दुनिया में अपने होटलों के कस्टमर्स की सुरक्षा को ले कर बहुत गंभीर रहता है. इस मामले में भी वे पुलिस को पूरा सहयोग करेंगे. लेकिन वायरल वीडियो में यह साफ दिखाई दे रहा है कि किस तरह से एक शख्स हाथ में पिस्टल ले कर एक महिलापुरुष को धमका रहा है और होटल का सिक्योरिटी स्टाफ कुछ नहीं कर रहा है.

वीडियो में पहले एक महिला सिक्योरिटी गार्ड समेत 4 सुरक्षाकर्मी नजर आते हैं. फिर इन की संख्या बढ़ कर 5 हो जाती है. लेकिन इन में से कोई भी सुरक्षाकर्मी हाथ में पिस्टल लिए आशीष पांडे को समझाने या रोकने की कोशिश करता नजर नहीं आता. यहां तक कि एक सिक्योरिटी गार्ड तो मौके से ही साइड होता नजर आता है.ऐसे में आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि यहां कस्टमर्स की सुरक्षा किस स्तर की है. होटल के अंदर जा रही गाडि़यों की जांच भी केवल लीपापोती ही होती है. होटल के अंदर जाने वाली गाडि़यों की डिक्की को खुलवा कर जरूर देखा जाता है. लेकिन गाडि़यों के अंदर क्या रखा है, इस की कोई जांच नहीं की जाती.

जांच करने वाले कार के नीचे, कुछ संदिग्ध चीज न लगी हो, की जांच छड़ी लगे शीशे से करते हैं. लेकिन यह भी बस दिखावा मात्र ही होता है. अगर सही से जांच होती तो आशीष पांडे की पिस्टल होटल तक पहुंच ही नहीं पाती. होटल के सिक्योरिटी मैनेजर की शिकायत पर पुलिस ने आशीष पांडे के खिलाफ आईपीसी की धारा 323, 341, 354, 506, 509 के तहत थाना आर.के. पुरम में केस दर्ज किया है. आशीष पांडे की तलाश में पुलिस ने लखनऊ और अंबेडकरनगर स्थित उस के घरों पर छापे मारे. लखनऊ के गौतमपल्ली स्थित सृष्टि अपार्टमेंट में पुलिस ने मंगलवार शाम को 4 बजे छापा मारा. आशीष के गोमतीनगर स्थित औफिस में भी छानबीन की गई. इस मामले में लखनऊ पुलिस ने दिल्ली पुलिस को पूरा सहयोग दिया.

आशीष के राजनीतिक परिवार से जुड़े होने के कारण घटना पर राजनीति शुरू हो गई. चाचा पवन पांडे ने घटना को राजनीतिक साजिश करार दिया. सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल होने के बाद आशीष ने अपने परिचितों और मित्रों को 17 अक्तूबर को एक मैसेज भेजा, जिस में उस ने कहा, ‘मेरी गलती है, मैं ने गलती की है. मैं गलती मानता हूं. मुझे आप के सहयोग की जरूरत है. इस वीडियो को वायरल होने से रोकें.’

उस दिन पुलिस उत्तर प्रदेश में जहांतहां उसे ढूंढ रही थी. उसी दिन दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट उस के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी कर दिया था. साथ ही हथियारों के उस के 3 लाइसेंस भी निरस्त कर दिए गए. 18 अक्तूबर गुरुवार को आशीष पांडे ने दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट में सरेंडर कर दिया. पुलिस की मांग पर उस का एक दिन का रिमांड भी दिया गया. पूछताछ के बाद उसे फिर से अदालत पर पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

Himachal Crime : 2 साल तक पानी की टंकी में पड़ा रहा बच्चे का शव

Himachal Crime : शिमला का बहुचर्चित युग गुप्ता हत्याकांड एक ऐसा केस था, जिस की सुनवाई पिछले डेढ़ साल से फास्ट ट्रैक कोर्ट में चल रही थी. इस केस के फैसले पर राज्य की ही नहीं, बल्कि पूरे देश की निगाहें टिकी थीं. आखिर…

शिमला के जिला एवं सत्र न्यायाधीश वीरेंदर सिंह की अदालत में अंदर और बाहर 6 अगस्त, 2018 को लोगों की भीड़ को देख ऐसा लग रहा था जैसे पूरा शिमला शहर ही कचहरी में उमड़ आया हो. अदालत परिसर के अंदर व बाहर सुरक्षा के कड़े प्रबंध किए गए थे और अतिरिक्त सुरक्षा बल तैनात किया गया था. दरअसल, उस दिन 4 वर्षीय युग गुप्ता के अपहरण और हत्या का फैसला सुनाया जाना था. युग का अपहरण 4 करोड़ रुपए की फिरौती के लिए किया गया था. लेकिन फिरौती की रकम न मिलने के कारण अपहर्त्ताओं ने मासूम की हत्या कर दी थी.

युग के परिजनों के अलावा पूरे राज्य को करीब पौने 2 साल से अदालत के इस फैसले का इंतजार था. यह शायद देश का एकमात्र ऐसा ऐतिहासिक फैसला था, जिसे सुनने के लिए राज्य के मुख्यमंत्री भी अदालत पहुंचे थे.अपहर्त्ता कौन थे और उन्होंने युग का अपहरण कर उसे कितनी दर्दनाक मौत दी, जानने के लिए पूरी कहानी समझनी होगी. अचानक युग हुआ गायब बात 14 जून, 2014 की है. राजधानी शिमला के रामबाजार से एक व्यापारी विनोद कुमार गुप्ता का 4 वर्षीय बेटा युग लापता हो गया था. विनोद गुप्ता शहर के जानेमाने व्यापारी थे. शहर में उन की किराने की थोक दुकानें और गारमेंट का बिजनैस था. स्थानीय सदर थाना पुलिस ने मामले की जांच शुरू की, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली. बाद में नगरवासियों का आक्रोश देखते हुए यह मामला सीबीसीआईडी को सौंप दिया गया था.

युग 14 जून को अचानक लापता हुआ था. इस के 13 दिन बाद 27 जून को युग का जन्मदिन था. उसी दिन विनोद गुप्ता के घर डाक से एक बड़ा पैकेट आया, जिस में युग के कपड़े थे. ये वही कपड़े थे, जो वह लापता होने वाले दिन पहने हुए था. पैकेट में एक पत्र भी था, जिस में युग को वापस लौटाने के बदले 3 करोड़ 60 लाख रुपए की मांग की गई थी. ये पैसे विनोद गुप्ता के नौकर हरिओम के माध्यम से अंबाला में देने को कहा गया था. इस पैकेट के मिलने से यह बात साफ हो गई थी कि किसी ने युग का अपहरण फिरौती के लिए किया है.

इस के एक हफ्ते बाद विनोद गुप्ता के नाम फिर एक पत्र आया, उस में 4 करोड़ रुपए की मांग की गई थी. उस के बाद फिर एक और पत्र आया, जिस में 10 करोड़ रुपए मांगे गए थे. लेकिन जब उन्होंने पैसे नहीं दिए तो घटना के 3 महीने बाद एक और पत्र आया, जिस में दोबारा 4 करोड़ की मांग की गई थी. यह आखिरी पत्र था. इस के बाद यह मामला जब सीबीसीआईडी को ट्रांसफर हो गया तो विनोद के पास पत्र आने बंद हो गए. सीबीसीआईडी की जांच भी लगभग 2 साल तक चलती रही, लेकिन ऐसा कोई सुराग हाथ नहीं लगा, जिस से वह अपहर्त्ताओं तक पहुंच पाती. पहले इस मामले की जांच सीबीसीआईडी के डीएसपी भूपिंदर बरागटा के नेतृत्व में गठित टीम द्वारा की जा रही थी.

लेकिन जब शहर में जनता का आक्रोश भड़का और मामले की गूंज विधानसभा से होते हुए संसद तक पहुंची तो सीबीसीआईडी के डीआईजी विनोद धवन ने इस मामले में हस्तक्षेप किया. डीआईजी विनोद धवन की निगरानी में युग मामले ने रफ्तार पकड़ी और यहीं से एकएक अनसुलझी कड़ी को जोड़ कर अपराध की तह तक पहुंचा जा सका. डीआईजी के हस्तक्षेप के बाद बढ़ी उम्मीदें एसपी (क्राइम) अशोक कुमार, डीएसपी भूपिंदर बरागटा, एसआई सुरेश कुमार, एएसआई राजेश कुमार, अनिल, हैडकांस्टेबल रवि, उमेश्वर सिंह, कांस्टेबल दीपक के अलावा एफएसएल के डायरेक्टर डा. अरुण शर्मा, डा. जगजीत सिंह, डा. संजीव कुमार और डा. बी. पटियाल ने क्राइम सीन विजिट में वैज्ञानिक तरीके से सबूतों को एकत्रित करना शुरू किया.

सीबीसीआईडी ने कई संदिग्ध लोगों के नारको टेस्ट भी करवाए, जिन में से एक विनोद गुप्ता का नौकर हरिओम भी था. चूंकि अपहर्त्ताओं ने जब पहली बार फिरौती की मांग की थी तो अंबाला में रकम पहुंचाने के लिए उन्होंने नौकर हरिओम को ही चुना था. इस का मतलब यह था कि अपहर्त्ता हरिओम को जानते थे. नारको टेस्ट के दौरान नौकर हरिओम बारबार चंद्र शर्मा का नाम ले रहा था. इस से जांच टीम को संदेह हो गया कि इस मामले से किसी चंद्र शर्मा का जरूर कोई वास्ता है. लेकिन चंद्र शर्मा कौन है, कहां रहता है, यह टीम को पता नहीं था.

जांच टीम ने इस के बाद चंद्र शर्मा की तलाश शुरू कर दी. इत्तफाक से उन्हीं दिनों अगस्त 2016 में न्यू शिमला में एक चोरी के मामले में चंद्र शर्मा का नाम आया. उस के साथ 2 और लोगों तेजिंदरपाल सिंह और विक्रांत बख्शी के भी नाम थे. जब तीनों आरोपियों का नाम सामने आया तो जांच टीम का शक यकीन में बदल गया. तीनों के मोबाइल खंगाले गए. इस बीच विक्रांत बख्शी के मोबाइल से युग की 60 सैकेंड की एक वीडियो क्लिप और फोटो बरामद हुई. इस से पुष्टि हो गई कि युग के अपहरण में इन लोगों का हाथ है. इस के बाद पुलिस ने 22 अगस्त को तेजिंदर और चंद्र शर्मा को हिरासत में ले लिया.

चंद्र शर्मा, तेजिंदरपाल सिंह व विक्रांत से बरामद मोबाइल फोन सीबीसीआईडी ने कोर्ट के माध्यम से अपने कब्जे में ले लिए. फोरैंसिक टीम ने सभी फोन नंबरों का डिलीट किया गया डाटा रिकवर कर लिया. इस से युग के अपहरण का एक बड़ा सबूत जांच टीम के हाथ आ गया. पता चला कि वे लोग बच्चे के वीडियो व औडियो दोनों बनाते थे, जो मोबाइल फोन में मिले. पकड़े जाने के डर से उन्होंने विनोद को वीडियो नहीं भेजे थे. दोषियों की निशानदेही पर टीम ने उस जगह भी छापा मारा, जहां युग को अपहरण के बाद रखा गया था. उस कमरे की तलाशी ली गई. सीबीसीआईडी की विशेष जांच के साथ फोरैंसिक टीम भी मौजूद रही.

वहां से ट्रेसिंग पेपर, अन्य पेपर, कोल्डड्रिंक व बैड के बौक्स में निशान पाए गए. इसी आधार पर दोषियों की गिरफ्तारी हुई. 20 अगस्त, 2016 को विक्रांत और 22 अगस्त को तेजिंदर और चंद्र शर्मा को पकड़ा गया. 2 साल तक लोग उस टैंक का पानी पीते रहे, जिस में युग की लाश पड़ी थी 4 वर्षीय युग गुप्ता हत्याकांड का सब से दर्दनाक पहलू अपराधियों द्वारा वारदात को अंजाम देने का रहा. रामबाजार स्थित घर से करीब 3 किलोमीटर दूर युग को शराब पिलाने के बाद पत्थरों से बांध दिया गया था, फिर उसे केलेस्टन क्षेत्र स्थित नगर निगम के पानी के टैंक में जिंदा फेंक दिया गया.

हत्यारों ने फिरौती न मिलने का गुस्सा मासूम युग पर निकाला था. टैंक में युग की किस तरह तड़पतड़प कर मौत हुई होगी, इस की कल्पना मात्र से ही दिल दहल जाता है. उस का शव टैंक में ही पड़ा सड़ता रहा था. इस वाटर टैंक से शिमला के कई हिस्सों केलेस्टन और भराड़ी को पेयजल सप्लाई किया जाता है. मतलब करीब 25 हजार लोगों ने 2 साल तक इस टैंक का पानी पीया था. उन्हें पता ही नहीं था कि टैंक में बच्चे का शव है. ऐसा सरकारी तंत्र की लापरवाही से हुआ. बाद में नगर निगम कर्मियों ने टैंक की सफाई की तो युग का कंकाल बरामद हुआ.

युग की हत्या ने सरकारी तंत्र के मुंह पर जोरदार तमाचा मारा था. कागजों में टैंकों की सफाई हर 6 महीने में होती थी, मगर बच्चे का शव बरामद नहीं हुआ. नगर निगम के कनिष्ठ अभियंता की मौजूदगी में टैंक की सफाई की जाती है, लेकिन नगर निगम अधिकारियों की हकीकत युग का कंकाल बरामद होने के बाद सामने आई. बहरहाल, सीबीसीआईडी ने केलेस्टन टैंक के अंदर और बाहर से युग के अवशेष बरामद कर इस केस को सुलझा दिया था.

22 अगस्त, 2016 को भराड़ी टैंक से युग का कंकाल निकाला गया था. इस के बाद अवशेषों को आईजीएमसी भेजा गया, जहां डाक्टरों ने इसे इंसानी बच्चे का कंकाल होने की पुष्टि की. इस के बाद युग के मातापिता के डीएनए से मिलान करा कर इस बात की तसदीक की गई कि बरामद कंकाल युग का ही है. इस केस की सुनवाई के दौरान अदालत में भी वैज्ञानिक सबूतों के आधार पर यह साबित कर दिया गया कि टैंक से मिला कंकाल युग का ही था. युग के अवशेषों को बतौर सबूत मालखाने में जमा करवा दिया गया था. युग के परिजनों को अपने बेटे की अस्थियां अंतिम संस्कार के लिए अदालत के आदेश पर ही मिलनी थीं.

अपहर्त्ताओं ने युग का 7 दिनों तक उत्पीड़न किया था. उसे जहां रखा गया था, वहां ट्रेसिंग पेपर व दूसरे कागजात भी रखे गए थे. इस केस के मास्टरमाइंड और मुख्य आरोपी चंद्र शर्मा ने फोरैंसिक साइंस का कोर्स किया हुआ था. उसे पता था कि अगर ट्रेसिंग पेपर पर फिरौती का पत्र लिखेंगे तो हैंडराइटिंग मैच नहीं होगी. लेकिन फोरैंसिक एक्सपर्ट्स ने विनोद को फिरौती के लिए लिखे गए पत्रों से हैंडराइटिंग के नमूनों को मैच कराया तो वह चंद्र शर्मा की निकली. आखिर हत्यारे आ ही गए पकड़ में मासूम युग की गुमशुदगी के रहस्य को सुलझाने और आरोपियों को सलाखों के पीछे पहुंचाने के लिए डीआईजी (सीबीसीआईडी) की टीम ने रातदिन एक किया था.

कई बार ऐसा भी हुआ, जब जांच अधिकारियों के हौसले पस्त हो गए. लेकिन टीम ने हिम्मत नहीं हारी. इस स्थिति में वह बारबार 4 साल के मासूम युग की फोटो देख कर प्रण लेते रहे कि इस के पीछे जो कोई भी हों और कहीं पर भी हों, उसे पकड़ कर ही दम लेंगे. आखिरकार टीम ने कत्ल के तीनों आरोपियों को पकड़ कर ही दम लिया था. इन सब के पीछे एडीजीपी बी.एन.एस. नेगी, डीआईजी सिक्योरिटी क्राइम रहे दलजीत ठाकुर का भी अहम रोल रहा, जिन्होंने टीम के हौसले को कम नहीं होने दिया और हरसंभव मदद दी थी.

25 अक्तूबर, 2016 को जांच टीम ने जिला एवं सत्र न्यायालय में आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट पेश कर दी. मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए सीबीसीआईडी ने चालान पेश करने के साथ ही अदालत में अरजी दाखिल करते हुए अनुरोध किया कि इस केस को फास्टट्रैक कोर्ट में सुना जाए, ताकि सुनवाई जल्द पूरी हो सके. करीब पौने 2 साल तक चले इस केस के ट्रायल में कुल 135 गवाह बनाए गए थे, जिन में से 105 गवाहों के बयान दर्ज किए गए थे. 13 अगस्त और 21 अगस्त को सुनवाइयों के दौरान अदालत ने दोषियों के मातापिता को भी तलब किया था.

न्यायाधीश के समक्ष अपने बयान में घर वालों ने अपनी बीमारी का हवाला दिया और दोषियों की सजा कम करने की गुहार लगाई. इस हत्याकांड को अंजाम देने वाले तीनों आरोपी संपन्न परिवारों से ताल्लुक रखते थे. 2 आरोपियों के घर वालों की शिमला के रामबाजार में किराने और गारमेंट्स की दुकानें हैं और वे युग के पिता विनोद गुप्ता के पड़ोसी थे. अदालत में जज वीरेंदर सिंह ने 4 वर्षीय मासूम के हत्यारों को खड़े हो कर सजा सुनाई. एकएक कर तीनों दोषियों की सजा का ऐलान करने में जज ने मात्र 10 मिनट का वक्त लिया. सजा पर फैसला सुनाने के बाद जज वीरेंदर सिंह ने कलम तोड़ कर पीछे की ओर फेंक दी और सीधे अपने चैंबर में चले गए.

तीनों दोषियों को जब अदालत के सामने पेश किया गया तो उस समय अदालत का माहौल बिलकुल शांत था. अदालत ने एकएक कर तीनों को फांसी की सजा सुनाने की प्रक्रिया शुरू की. सब से पहले चंद्र शर्मा को फांसी की सजा सुनाई गई. इस के बाद तेजिंदर पाल और फिर विक्रांत बख्शी की सजा का ऐलान किया गया. सजा सुन कर तीनों के चेहरे पीले पड़ गए. उन के चेहरों पर खौफ झलक रहा था. अदालत में मौजूद सभी की नजरें उस समय जज और हत्यारों पर टिकी थीं. हत्याकांड में दोषियों की सजा पर 6 अगस्त, 2018 को सुनवाई हुई. जिला एवं सत्र न्यायालय में युग हत्याकांड के दोषियों की सजा पर एक घंटे तक बहस हुई. कोर्टरूम के बंद दरवाजे के भीतर बहस प्रक्रिया पूरी हुई. सजा पर हुई बहस की वीडियो रिकौर्डिंग भी की गई थी.

सुनवाई में तीनों आरोपियों को दोषी करार देने के बाद अदालत ने 800 पन्नों का अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. बहस के दौरान तीनों दोषियों के अलावा युग के पिता विनोद गुप्ता भी वहां मौजूद रहे. अदालत ने फांसी की सजा दे कर किया न्याय न्यायाधीश वीरेंदर सिंह की अदालत ने इस अपराध को रेयरेस्ट औफ रेयर श्रेणी का करार दिया था. युग हत्याकांड में अदालत ने आईपीसी की धारा 302, 120बी हत्या और हत्या का षडयंत्र रचने, 364ए में फिरौती की मांग करने का दोषी करार देते हुए तीनों दोषियों को मौत की सजा सुनाई.

वहीं धारा 347 में बंधक बनाने का दोषी पाए जाने पर एक साल की सजा और 20 हजार रुपए जुरमाने की अलग सजा सुनाई गई. जुरमाना अदा न करने की सूरत में 3 माह की अतिरिक्त सजा सुनाई गई थी. अदालत ने तीनों को धारा 201 और 120बी के तहत सबूत नष्ट करने और षडयंत्र रचने का दोषी होने पर 7 साल के कठोर कारावास, 50 हजार रुपए के जुरमाने की सजा सुनाई और कहा कि जुरमाना अदा न करने पर 6 माह के अतिरिक्त कारावास की सजा होगी. अदालत ने इन दोषियों को आईपीसी की धारा 506 और 120बी के तहत धमकियां देने और षडयंत्र रचने पर एक साल के कठोर कारावास और 10 हजार रुपए के जुरमाने की सजा सुनाई. इस में जुरमाना अदा न करने की सूरत में एक महीने की अतिरिक्त जेल का प्रावधान था.

फैसला आने पर 4 साल से न्याय का इंतजार कर रहे युग की मां पिंकी, पिता विनोद कुमार और दादी चंद्रलेखा की आंखों से आंसू छलक पड़े. कोर्ट ने मौत की सजा के आदेशों को कन्फरमेशन के लिए उच्च न्यायालय भेज दिया. वहीं दोषियों को हाइकोर्ट में फैसले को ले कर अपील करने के लिए 30 दिन का समय दिया था. भीड़ कम होने तक सुरक्षा कारणों और फैसले की प्रति देने के लिए दोषियों को कुछ देर के लिए कोर्ट में रोका गया. इस के बाद पुलिस की कड़ी सुरक्षा के बीच तीनों को अदालत परिसर से शाम को फिर से कंडा जेल ले जाया गया. अदालत का यह फैसला लगभग पौने 2 साल बाद आया था.

4 साल के युग के लिए मांबाप ने सैकड़ों सपने देखे थे. एक दिन आंगन में खेलते हुए युग लापता हो गया था. किसी ने नहीं सोचा था कि वह कभी लौट कर नहीं आएगा. जिस दिन युग लापता हुआ, उस की मां उसी दिन से बेसुध सी हो गई थी. जिस दिन मां ने सुना कि युग इस दुनिया में नहीं है तो वह गुमसुम रहने लगी.  युग की मां भी अपने बच्चे की एक झलक देखना चाहती थी. लेकिन दरिंदों ने उसे बेरहमी से मार दिया था. मां की आंखें सिर्फ आंसुओं से भरी रहती थीं. घर में युग की एक छोटी सी फोटो को मां हमेशा सीने से लगाए रखती थी. वह हर रोज यही प्रार्थना करती थी कि उस के बेटे को मुक्ति देनी है तो हत्यारों को फांसी की सजा होनी चाहिए.

जब भी कोर्ट में पेशी होती तो पूरे परिवार को उम्मीद होती कि हत्यारों को फांसी होगी. जब कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई तो बेटे की हत्या करने वाले तीनों दरिंदे अदालत में उन के सामने थे. मां की आंखों से एकदम आंसू निकल आए. उन्होंने कहा कि दोषियों को मृत्युदंड सुना कर युग के साथ इंसाफ हुआ है लेकिन वह दोषियों को कभी माफ नहीं करेंगी.

 

UP Crime : मांबेटी को जलाया जिंदा

UP Crime : उत्तर प्रदेश के कानपुर (देहात) जनपद के रूरा थाने से 5 किलोमीटर दूर मैथा ब्लौक के अंतर्गत एक बड़ी आबादी वाला गांव है मड़ौली. अकबरपुर और रूरा 2 बड़े कस्बों के बीच लिंक रोड से जुड़े ब्राह्मण बाहुल्य इसी गांव में कृष्ण गोपाल दीक्षित सपरिवार रहते थे. उन के परिवार में पत्नी प्रमिला के अलावा 2 बेटे शिवम, अंश तथा एक बेटी नेहा थी. कृष्ण गोपाल दीक्षित के पास मात्र 2 बीघा जमीन थी. इसी जमीन पर खेती कर और बकरी पालन से वह अपना परिवार चलाते थे. बेटे जवान हुए तो वह भी पिता के काम में सहयोग करने लगे.

कृष्ण गोपाल के घर के ठीक सामने अशोक दीक्षित का मकान था. अशोक दीक्षित के परिवार में पत्नी सुधा के अलावा 3 बेटे गौरव, अखिल व अभिषेक थे. अशोक दीक्षित दबंग व संपन्न व्यक्ति थे. उन के पास खेती की अच्छीखासी जमीन थी. इस के अलावा उन के 2 बेटे गौरव व अभिषेक फौज में थे. संपन्नता के कारण ही गांव में उन की तूती बोलती थी. उन के बड़े बेटे गौरव का विवाह रुचि दीक्षित के साथ हो चुका था. रुचि खूबसूरत थी. वह अपनी सास सुधा के सहयोग से घर संभालती थी.

घर आमनेसामने होने के कारण अशोक व कृष्ण गोपाल के बीच बहुत नजदीकी थी. दोनों परिवारों का एकदूसरे के घर आनाजाना था. अशोक की पत्नी सुधा व कृष्ण गोपाल की पत्नी प्रमिला की खूब पटती थी, लेकिन दोनों के बीच अमीरीगरीबी का बढ़ा फर्क था. कृष्ण गोपाल व उस के परिवार के मन में सदैव गरीबी की टीस सताती रहती थी.

मड़ौली गांव से लगभग एक किलोमीटर दूर सडक़ किनारे ग्राम समाज की भूमि पर कृष्ण गोपाल दीक्षित का पुश्तैनी कब्जा था. सालों पहले इस वीरान पड़ी भूमि पर कृष्ण गोपाल के पिता चंद्रिका प्रसाद दीक्षित व बाबा ने पेड़ लगा कर कब्जा किया था. बाद में पेड़ों ने बगीचे का रूप ले लिया. इसी बगीचे में कृष्ण गोपाल ने एक कमरा बना लिया था और सामने झोपड़ी डाल ली थी. इसी में वह रहते थे और पशुपालन करते थे.

भू अभिलेखों में ग्राम समाज की यह जमीन गाटा संख्या 1642 में 3 बीघा दर्ज है, जिस में से एक बीघा भूमि पर कृष्ण गोपाल का कब्जा था. लेकिन जो 2 बीघा जमीन थी, उस पर कृष्ण गोपाल किसी को भी कब्जा नहीं करने देता था. उस पर भी वह अपना अधिकार जमाता था. कृष्ण गोपाल ही नहीं, गांव के दरजनों लोग ग्राम समाज की जमीन पर काबिज हैं. किसी ने खूंटा गाड़ कर कब्जा किया तो किसी ने कूड़ाकरकट डाल कर. किसी ने कच्चापक्का निर्माण करा कर कब्जा किया तो किसी ने सडक़ किनारे दुकान बना ली. इस काबिज ग्राम समाज की भूमि पर किसी ने अंगुली नहीं उठाई और आज भी काबिज हैं.

सिपाही लाल ने शुरू किया विवाद…

लेकिन कृष्ण गोपाल की काबिज भूमि पर आंच तब आई, जब गांव के ही सिपाही लाल दीक्षित ने गाटा संख्या 1642 की 2 बीघा में से एक बीघा जमीन अपनी बेटी रानी के नाम तत्कालीन ग्रामप्रधान के साथ मिलीभगत कर पट्टा करा दी. रानी का विवाह रावतपुर (कानपुर) (UP Crime) निवासी रामनरेश के साथ हुआ था. लेकिन उस की अपने पति से नहीं पटी तो वह मायके आ कर रहने लगी थी. उस का पति से तलाक हुआ या नहीं, यह तो पता नहीं चला, पर उस का पति से लगाव खत्म हो गया था.

यह बात सन 2005 की है. सिपाही लाल ने बेटी के नाम पट्ïटा तो करा दिया, लेकिन वह कृष्ण गोपाल के विरोध के कारण उस पर कब्जा नहीं कर पाया. बस यही बात कृष्ण गोपाल के पड़ोसी अशोक दीक्षित को चुभने लगी. दरअसल, रानी रिश्ते में अशोक की बहन थी. वह चाहते थे कि रानी पट्टे वाली जमीन पर काबिज हो. इस मामले को ले कर अशोक दीक्षित ने परिवार के अनिल दीक्षित, निर्मल दीक्षित, गेंदनलाल व बढ़े बउआ को भी अपने पक्ष में कर लिया. अब ये लोग कृष्ण गोपाल के विपक्षी बन गए और मन ही मन रंजिश मानने लगे.

अशोक दीक्षित का बेटा गौरव दीक्षित फौज में था. उसे भी इस बात का मलाल था कि उस के पिता रानी बुआ को पट्टे वाली जमीन पर काबिज नहीं करा पाए. वह जब भी छुट्टी पर गांव आता, वह कृष्ण गोपाल के परिवार को नीचा दिखाने की कोशिश करता. एक बार उस ने शिवम की बहन नेहा के फैशन को ले कर भद्दी टिप्पणी कर दी. इस पर नेहा और उस की मां प्रमिला ने उसे तीखा जवाब दिया, जिस से वह तिलमिला उठा.

कृष्ण गोपाल दीक्षित के दोनों बेटे शिवम व अंशु भी दबंगई में कम न थे. दोनों विश्व हिंदू परिषद के सक्रिय सदस्य थे. विहिप के धरनाप्रदर्शन में दोनों भाग लेते रहते थे. दोनों भाई आर्थिक रूप से भले ही कमजोर थे, लेकिन खतरों के खिलाड़ी थे. अब तक शिवम की शादी शालिनी के साथ हो गई थी. वह पुश्तैनी मकान में रहता था. दिसंबर, 2022 में गौरव छुट्टी पर आया तो एक रोज सडक़ किनारे एक दुकान पर किसी बात को ले कर उस की अंशु से तकरार होने लगी. तकरार बढ़ती गई और दोनों एकदूसरे को देख लेने की धमकी देने लगे.

इस घटना के बाद गौरव ने फैसला कर लिया कि वह कृष्ण गोपाल व उस के बेटों को सबक जरूर सिखाएगा और उन की अवैध कब्जे वाली ग्राम समाज की भूमि को मुक्त करा कर ही दम लेगा. इस के बाद गौरव ने अपने पिता अशोक दीक्षित व परिवार के अन्य लोगों के साथ कान से कान जोड़ कर सलाह की और पूरी योजना बनाई. योजना के तहत गौरव ने लेखपाल अशोक सिंह चौहान से मुलाकात की. पहली ही मुलाकात में दोनों एकदूसरे से प्रभावित हुए. कारण, अशोक सिंह चौहान भी पहले फौज में था. रिटायर होने के बाद उसे लेखपाल की नौकरी मिल गई थी.

चूंकि दोनों फौजी थे, अत: जल्द ही उन की दोस्ती हो गई. इस के बाद गौरव ने लेखपाल को पैसों का लालच दे कर उसे अपनी मुट्ठी में कर लिया. योजना के तहत ही गौरव ने अपने पिता अशोक दीक्षित के मार्फत परिवार के एक व्यक्ति गेंदनलाल दीक्षित को उकसाया और उसे शिकायत करने को राजी कर लिया. गेंदन लाल ने तब दिसंबर के अंतिम सप्ताह में एक प्रार्थनापत्र कानपुर (देहात) की डीएम नेहा जैन को दिया. इस प्रार्थना पत्र में उस ने लिखा कि मड़ौली गांव के निवासी कृष्ण गोपाल दीक्षित व उस के बेटों ने ग्राम समाज की भूमि पर अवैध कब्जा कर कमरा बना लिया है व झोपड़ी भी डाल ली है. इस जमीन को खाली कराया जाए.

गेंदन लाल को बनाया मोहरा…

गेंदन लाल के इस शिकायती पत्र पर डीएम नेहा जैन ने काररवाई करने का आदेश एसडीएम (मैथा) ज्ञानेश्वर प्रसाद को दिया. ज्ञानेश्वर प्रसाद ने इस संबंध में जानकारी लेखपाल अशोक सिंह चौहान से जुटाई तो पता चला कि कृष्ण गोपाल जिस जमीन पर काबिज है, वह जमीन ग्राम समाज की है.

लेखपाल अशोक सिंह चौहान घूसखोर था. वह कोई भी काम बिना घूस के नहीं करता था. उस की निगाह अवैध कब्जेदारों पर ही रहती थी. जो उसे पैसा देता, उस का कब्जा बरकरार रहता, जो नहीं देता उन को धमकाता. मड़ौली के ग्राम प्रधान मानसिंह की भी उस से कहासुनी हो चुकी थी. उन्होंने उस की शिकायत भी डीएम साहिबा से की थी. लेकिन उस का बाल बांका नहीं हुआ. उस ने अधिकारियों को गुमराह कर अपना उल्लू सीधा कर लिया था. मैथा ब्लाक में एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद भी उस के जायजनाजायज काम में लिप्त रहते थे.

13 जनवरी, 2023 को बिना किसी नोटिस के एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद की अगुवाई में राजस्व विभाग की एक टीम कृष्ण गोपाल के यहां पहुंची और ग्राम समाज की भूमि पर बना उस का कमरा ढहा दिया. कमरा ढहाए जाने के पहले कृष्ण गोपाल ने एसडीएम (मैथा) के पैरों पर गिर कर ध्वस्तीकरण रोकने की गुहार लगाई, लेकिन वह नहीं पसीजे. लेखपाल अशोक सिंह चौहान तो उन्हें बेइज्जत ही करता रहा. एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद ने कृष्ण गोपाल से कहा कि 5 दिन के अंदर वह अपनी झोपड़ी भी हटा ले, वरना इसे भी ढहा दिया जाएगा. काररवाई के दौरान एक मैमो भी बनाया गया, जिस में गवाह के तौर पर 15 ग्रामीणों के हस्ताक्षर कराए गए.

14 जनवरी, 2023 को पीडि़त कृष्ण गोपाल दीक्षित व उन के घर के अन्य लोग लोडर से बकरियां ले कर माती मुख्यालय धरना देने पहुंच गए. समर्थन में विहिप नेता आदित्य शुक्ला व गौरव शुक्ला भी पहुंच गए. पीडि़त परिजनों ने आवास की मांग की तो अफसरों ने उन्हें माफिया बताया. माफिया बताने पर विहिप नेताओं का पारा चढ़ गया. उन्होंने सर्दी में गरीब का घर ढहाने व प्रशासन की संवेदनहीनता पर नाराजगी जताई. उन की एडीएम (प्रशासन) केशव गुप्ता से झड़प भी हुई.

दूसरे दिन पीडि़तों की आवाज दबाने के लिए तहसीलदार रणविजय सिंह ने अकबरपुर कोतवाली में शांति भंग की धारा में कृष्ण गोपाल दीक्षित, उन की पत्नी प्रमिला, बेटों शिवम व अंशु, बेटी नेहा व बहू शालिनी तथा सहयोग करने वाले विहिप नेता आदित्य व गौरव शुक्ला के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया.

14 जनवरी, 2023 को ही लेखपाल अशोक सिंह चौहान ने थाना रूरा में कृष्ण गोपाल व उन के दोनों बेटों के खिलाफ एक मुकदमा दर्ज कराया, जिस में उस ने लिखा, ‘13 जनवरी को प्रशासन अवैध कब्जा हटाने गया था. उस वक्त कृष्ण गोपाल व उन के बेटे शिवम व अंशु प्रशासन से गालीगलौज करते हुए मारपीट पर उतारू हो गए थे. जोरजोर से झगड़ा करने लगे थे. गांव के लोगों को सरकारी कर्मचारियों पर हमला करने के लिए उकसाने लगे थे. वह कहने लगे कि यहां से भाग जाओ वरना बिकरू वाला कांड अपनाएंगे.’

लेखपाल की तहरीर के आधार पर रूरा पुलिस ने रिपोर्ट तो दर्ज कर ली थी, लेकिन किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया. दूसरी तरफ इस मामले के खिलाफ पीडि़त कृष्ण गोपाल ने तहसील अकबरपुर में वाद दायर किया, जिस की सुनवाई की तारीख 20 फरवरी निर्धारित की गई.

बदले की भावना से चलाया बुलडोजर…

मड़ौली गांव में दरजनों लोग ग्रामसमाज की भूमि पर काबिज थे, उन की भूमि पर प्रशासन का बुलडोजर नहीं चला, लेकिन बदले की भावना से तथा मुट्ïठी गर्म होने पर कृष्ण गोपाल को निशाना बनाया गया. पर कृष्ण गोपाल भी जिद्ïदी था. उस ने कमरा ढहाए जाने के बाद उसी जगह पर ईंटों का पिलर खड़ा कर उस पर घासफूस की झोपड़ी बना ली थी. यही नहीं, उस ने हैंडपंप को ठीक करा लिया था और शिव चबूतरे को भी नया लुक दे दिया था.

कृष्ण गोपाल दीक्षित को 5 दिन में जगह को कब्जामुक्त करने का अल्टीमेटम प्रशासनिक अधिकारियों ने दिया था, लेकिन 2 सप्ताह बीत जाने के बावजूद भी उस ने जगह खाली नहीं की थी. दरअसल, कृष्ण गोपाल ने तहसील में वाद दाखिल किया था और सुनवाई 20 फरवरी को होनी थी. इसलिए वह निश्चिंत था और जगह खाली नहीं की थी. लेखपाल अशोक सिंह चौहान व अन्य प्रशासनिक अधिकारी जमीन कब्जा मुक्त न होने से खफा थे. लेखपाल उन के कान भी भर रहा था और उन्हें गुमराह भी कर रहा था. अत: प्रशासनिक अधिकारियों ने कृष्ण गोपाल की झोपड़ी भी ढहाने का मन बना लिया.

13 फरवरी, 2023 की शाम 3 बजे एसडीएम (मैथा) ज्ञानेश्वर प्रसाद, कानूनगो नंदकिशोर, लेखपाल अशोक सिंह चौहान और एसएचओ दिनेश कुमार गौतम बुलडोजर ले कर मड़ौली गांव पहुंचे. साथ में 15 महिला, पुरुष पुलिसकर्मी भी थे. लोडर चालक दीपक चौहान था. अचानक इतने अधिकारियों और पुलिस को देख कर झोपड़ी में आराम कर रहे कृष्ण गोपाल और उन की पत्नी प्रमिला बाहर निकले. प्रशासनिक अधिकारियों ने जमीन पर अवैध कब्जा बताते हुए उन से तुरंत जगह खाली करने को कहा.

इस पर प्रमिला, उन के बेटे शिवम व बेटी नेहा ने कहा कि कोर्ट में उन का वाद दाखिल है और सुनवाई 20 फरवरी को है. लेकिन पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी नहीं माने. उन्होंने जगह को तुरंत खाली करने की चेतवनी दी. इस के बाद शिवम अपने पिता के साथ झोपड़ी का सामान निकाल कर बाहर रखने लगा. इसी समय एसडीएम (मैथा) ज्ञानेश्वर प्रसाद ने बुलडोजर चालक दीपक चौहान को संकेत दिया कि वह काररवाई शुरू करे. बुलडोजर शिव चबूतरा ढहाने आगे बढ़ा तो एसएचओ (रूरा) दिनेश गौतम ने उसे रोक दिया. वह चबूतरे पर चढ़े. उन्होंने शिवलिंग व नंदी को प्रणाम कर माफी मांगी फिर चबूतरे से उतर आए. उन के उतरते ही बुलडोजर ने चबूतरा ढहा दिया और मार्का हैंडपंप को उखाड़ फेंका.

जीवित भस्म हो गईं मांबेटी…

अब तक प्रमिला के सब्र का बांध टूट चुका था. उन्हें लगा कि अधिकारी उन की झोपड़ी नेस्तनाबूद कर देंगे. वह पुलिस व लेखपाल से भिड़ गईं. उस ने लेखपाल अशोक सिंह चौहान के माथे पर हंसिया से प्रहार कर दिया. फिर वह बेटी नेहा के साथ चीखती हुई बोली, ‘‘मर जाऊंगी, लेकिन कब्जा नहीं हटने दूंगी.’’

इस के बाद वह नेहा के साथ झोपड़ी के अंदर चली गई और दरवाजा बंद कर लिया. महिला पुलिसकर्मियों ने दरवाजा खुलवाने का प्रयास किया, लेकिन दरवाजा नहीं खुला. इधर प्रशासनिक अधिकारियों को लगा कि मांबेटी ध्वस्तीकरण रोकने के लिए नाटक कर रही हैं. उन्होंने झोपड़ी गिराने का आदेश दे दिया. बुलडोजर ने छप्पर ढहाया तो झोपड़ी में आग लग गई. हवा तेज थी. देखते ही देखते आग ने विकराल रूप धारण कर लिया.

आग की लपटों के बीच मांबेटी धूधू कर जलने लगी. कृष्ण गोपाल चिल्लाता रहा कि पत्नी और बेटी झोपड़ी के अंदर है. परंतु अफसरों ने नहीं सुनी और जलता छप्पर जेसीबी से और दबवा दिया. इस से उन का निकल पाना तो दूर, दोनों को हिलने तक का मौका नहीं मिला और दोनों जल कर भस्म हो गईं.

कृष्ण गोपाल व उन का बेटा शिवम मां व बहन को बचाने किसी तरह झोपड़ी में घुस तो गए. लेकिन वे उन दोनों तक नहीं पहुंच पाए. आग की लपटों ने उन दोनों को भी झुलसा दिया था. शिवम बाहर खड़ा चीखता रहा, ‘‘हाय दइया, कोउ हमरी मम्मी बहना को बचा लेऊ.’’ पर उस की चीख अफसरों ने नहीं सुनी. वे आंखें मूंदे खतरनाक मंजर देखते रहे.

इधर मड़ौली गांव के लोगों ने कृष्ण गोपाल के बगीचे में आग की लपटें देखीं तो वे उस ओर दौड़ पड़े. वहां का भयावह दृश्य देख कर ग्रामीणों का गुस्सा फूट पड़ा और वे पुलिस तथा प्रशासनिक अधिकारियों पर पथराव करने लगे. ग्रामीणों का गुस्सा देख कर पुलिस व अफसर किसी तरह जान बचा कर वहां से भागे. ग्रामीणों का सब से ज्यादा गुस्सा लेखपाल पर था. उन्होंने उस की कार पलट दी और तोड़ डाली. वे कार को फूंकने जा रहे थे, लेकिन कुछ समझदार ग्रामीणों ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया.

सूर्यास्त होने से पहले ही मांबेटी के जिंदा जलने की खबर जंगल की आग की तरह मड़ौली व आसपास के गांवों में फैल गई. कुछ ही देर बाद सैकड़ों की संख्या में लोग घटनास्थल पर आ पहुंचे. लोगों में भारी गुस्सा था और वह शासनप्रशासन मुर्दाबाद के नारे लगाने लगे थे. शिव चबूतरा तोड़े जाने से लोगों में कुछ ज्यादा ही रोष था. इस बर्बर घटना की जानकारी पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों को हुई तो चंद घंटों बाद ही एसपी (देहात) बी.बी.जी.टी.एस. मूर्ति, एएसपी घनश्याम चौरसिया, एडीजी आलोक सिंह, आईजी प्रशांत कुमार, कमिश्नर डा. राजशेखर तथा डीएम (कानपुर देहात) नेहा जैन आ गईं और उन्होंने घटनास्थल पर डेरा जमा लिया.

कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए पुलिस अधिकारियों ने भारी संख्या में पुलिस व पीएसी बल बुलवा लिया. कमिश्नर डा. राजशेखर, एडीजी आलोक सिंह तथा आईजी प्रशांत कुमार ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तथा कृष्ण गोपाल व उन के बेटों को धैर्य बंधाया. निरीक्षण के बाद अधिकारियों ने मृतक मांबेटी के घर वालों से पूछताछ की. मृतका प्रमिला के पति कृष्ण गोपाल ने अफसरों को बताया कि एसडीएम (मैथा), कानूनगो व लेखपाल बुलडोजर ले कर आए थे. उन के साथ गांव के अशोक दीक्षित, अनिल, निर्मल व बड़े बउआ और गांव के कई अन्य लोग भी थे. ये लोग अधिकारियों से बोले कि आग लगा दो तो अफसरों ने आग लगा दी. हम और हमारा बेटा उन दोनों को बचाने में झुलस गए. लेकिन उन्हें बचा नहीं पाए और वे आग में जल कर खाक हो गईं. कृष्ण गोपाल के बेटे शिवम दीक्षित ने भी इसी तरह का बयान दिया.

दोषियों को बचाने में जुटा प्रशासन…

अधिकारियों ने कुछ ग्रामीणों से भी पूछताछ की. राजीव द्विवेदी नाम के व्यक्ति ने बताया कि अशोक दीक्षित का बेटा गौरव दीक्षित फौज में है. वह दबंग है. उसी ने पूरी साजिश रची. उस के साथ गांव के कुछ लोग हैं. इस में एसडीएम, एसएचओ और लेखपाल भी मिले हैं. डीएम साहिबा अपने कर्मचारियों को बचा रही हैं. ग्रामीणों ने बताया कि इस पूरे मामले में प्रशासन दोषी है. अफसरों ने पैसा लिया है. वह जबरदस्ती कब्जा हटाने पर अड़े हुए थे. उन्होंने कहा मृतका प्रमिला की बेटी नेहा की शादी तय हो गई थी. उस की अब डोली की जगह अर्थी उठेगी. प्रमिला भी समझदार महिला थी. उस ने कभी किसी का अहित नहीं सोचा.

ग्रामीण व मृतका के परिजन जहां अफसरों को दोषी ठहरा रहे थे, वहीं प्रशासनिक अफसर उन का बचाव कर रहे थे. जिलाधिकारी नेहा जैन ने इस मामले पर सफाई देते हुए कहा कि अतिक्रमण हटाने के लिए राजस्व टीम पुलिस के साथ मौके पर पहुंची थी. महिलाएं आईं और रोकने का प्रयास किया. लेखपाल पर हंसिया से अटैक भी किया. इस के बाद मांबेटी ने झोपड़ी के अंदर जा कर आग लगा ली.

कानपुर (देहात) के एसपी बी.बी.जी.टी.एस. मूर्ति ने कहा, ‘‘एसडीएम व अन्य कर्मचारी अवैध कब्जा हटाने गए थे. इस दौरान कुछ लोग विरोध कर रहे थे. महिला व उन की बेटी भी विरोध में शामिल थी. विरोध करतेकरते उन दोनों ने खुद को झोपड़ी के अंदर बंद कर लिया. थोड़ी देर बाद झोपड़ी के अंदर आग लग गई. इस में महिला व उन की बेटी की मौत हो गई. आग लगी या लगाई गई, इस की जांच होगी.’’

पूछताछ के बाद रूरा पुलिस थाने में मृतका प्रमिला के बेटे शिवम दीक्षित की तहरीर के आधार पर मुअसं 38/2023 पर भादंवि की धारा 302/307/429/436/323 व 34 के तहत 11 नामजद, 15 पुलिसकर्मियों व 13 अन्य के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की गई. नामजद आरोपियों में एसडीएम (मैथा) ज्ञानेश्वर प्रसाद, लेखपाल अशोक कुमार सिंह चौहान, रूरा प्रभारी निरीक्षक दिनेश गौतम, कानूनगो नंद किशोर, जेसीबी चालक दीपक चौहान, मड़ौली गांव के अशोक दीक्षित, अनिल दीक्षित, निर्मल दीक्षित, गेंदन लाल, गौरव दीक्षित व बढ़े बउआ के नाम थे. मामले की जांच थाना अकबरपुर के इंसपेक्टर प्रमोद कुमार शुक्ला को सौंपी गई.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद शासन ने एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद को सस्पेंड कर दिया तथा 2 आरोपियों जेसीबी चालक दीपक चौहान व लेखपाल अशोक सिंह चौहान को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. सस्पेंड एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद व थाना रूरा के एसएचओ दिनेश गौतम भूमिगत हो गए. अन्य आरोपियों की धरपकड़ के लिए 5 पुलिस टीमें लगा दी गईं.  इधर जल कर खाक हुई मांबेटी का मामला प्रदेश की राजधानी लखनऊ तक पहुंचा तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भावुक हो उठे. उन्होंने पीडि़त परिवार को हरसंभव मदद का आश्वासन दिया तथा अपनी टीम को लगा दिया. यही नहीं, उन्होंने पूरे घटनाक्रम की जानकारी अफसरों से ली और सख्त काररवाई का आदेश दिया.

इसी कड़ी में भाजपा की क्षेत्रीय विधायक व राज्यमंत्री प्रतिभा शुक्ला देर रात घटनास्थल मड़ौली गांव पहुंचीं. उन्होंने पीडि़त परिवार को धैर्य बंधाया फिर कहा, ‘‘मैं इस क्षेत्र की विधायक हूं और यहां ऐसी बर्बर घटना घट गई. महिलाओं के साथ अत्याचार हुआ. ऐसे में मेरा कल्याण विभाग में होना बेकार है. जब हम अपनी बेटी और मां को नहीं बचा पा रहे. पहले घर के बाहर निकालते फिर गिराते. जमीन तो यूं ही पड़ी है. आगे भी पड़ी रहेगी. कोई कहीं नहीं ले जा रहा है.’’

गांव वालों का फूटा आक्रोश…

पुलिस अधिकारी मांबेटी के शवों को रात में ही पोस्टमार्टम हाउस भेजने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन पीडि़त घर वालों व गांव वालों ने शव नहीं उठाने दिए. उन्होंने एक मांग पत्र कमिश्नर डा. राजशेखर को सौंपा और कहा कि जब तक उन की मांगें पूरी नहीं होती वह शव नहीं उठने देंगे. उन्होंने मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री को भी घटनास्थल पर आने की शर्त रखी. पीडि़त परिजनों ने जो मांग पत्र कमिश्नर को सौंपा था, उन में 5 मांगें थी.

1- मृतक परिवार को 5 करोड़ रुपए का मुआवजा,

2-मृतका के दोनों बेटों को सरकारी नौकरी,

3-मृतका के दोनों बेटों को आवास,

4- परिवार को आजीवन पेंशन तथा

5- दोषियों को कठोर सजा.

चूंकि पीडि़त परिवार की मांगें तत्काल मान लेना संभव न था, अत: अधिकारियों ने पीडि़त परिवार को समझाया और उनकी मांगों को शासन तक पहुंचाने की बात कही, लेकिन परिजन अपनी बात पर अड़े रहे. उन्होंने राज्यमंत्री प्रतिभा शुक्ला की भी बात नहीं मानी. लाचार अधिकारी मौके पर ही डटे रहे और मानमनौवल करते रहे.

14 फरवरी, 2023 की सुबह कानपुर नगर/देहात से प्रकाशित समाचार पत्रों में जब मांबेटी की जल कर मौत होने की खबर सुर्खियों में छपी तो पूरे प्रदेश में राजनीतिक भूचाल आ गया. कांग्रेस पार्टी प्रमुख राहुल गांधी, सपा प्रमुख अखिलेश यादव तथा बसपा प्रमुख मायावती ने जहां ट्वीट कर योगी सरकार की कानूनव्यवस्था पर तंज कसा तो दूसरी ओर इन पार्टियों के नेता घटनास्थल पर पहुंचने को आमादा हो गए. लेकिन सतर्क पुलिस प्रशासन ने इन नेेताओं को घटनास्थल तक पहुंचने नहीं दिया. किसी विधायक को उन के घर में नजरबंद कर दिया गया तो किसी को रास्ते में रोक लिया गया.

एसआईटी के हाथ में पहुंची जांच…

इधर 24 घंटे बीत जाने के बाद भी जब घर वालों तथा गांववालों ने मांबेटी के शवों को नहीं उठने दिया तो कमिश्नर डा. राजशेखर ने प्रदेश के उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक से वीडियो काल कर पीडि़तों की बात कराई. उपमुख्यमंत्री ने मृतका के बेटे शिवम दीक्षित से कहा कि आप हमारे परिवार के सदस्य हो. पूरी सरकार आप के साथ खड़ी है. दोषियों के खिलाफ केस दर्ज हो गया है और कड़ी से कड़ी काररवाई होगी. उन्हें ऐसी सख्त सजा दिलाएंगे कि पुश्तें याद रखेंगी.

डिप्टी सीएम बात करतेकरते भावुक हो गए. उन्होंने शिवम से कहा कि आप कतई अकेला महसूस न करें, जिन्होंने तुम्हारी मांबहन को तुम से छीना है, उन्हें इस का खामियाजा भुगतना पड़ेगा. इस घटना से हम सभी द्रवित है. इस के बाद उन्होंने शिवम की पत्नी शालिनी तथा भाई अंशु से भी बात की और उन्हें धैर्य बंधाया. डिप्टी सीएम से बात करने के बाद पीडि़त परिवार शव उठाने को राजी हो गया. इस के बाद पुलिस अधिकारियों ने मांबेटी के शवों के पोस्टमार्टम हेतु माती भेज दिया. शाम साढ़े 6 से साढ़े 7 बजे के बीच 3 डाक्टरों (डा. गजाला अंजुम, डा. शिवम तिवारी तथा डा. मुनीश कुमार) के पैनल ने वीडियोग्राफी के बीच पोस्टमार्टम किया.

मांबेटी के अंतिम संस्कार के बाद पुलिस ने आरोपी अशोक दीक्षित के घर रात 2 बजे छापा मारा, लेकिन घर पर महिलाओं के अलावा कोई नहीं मिला. पुलिस टीम ने महिलाओं से पूछताछ की तो गौरव की पत्नी रुचि दीक्षित ने बताया कि उन के परिवार का इस केस से कोई लेनादेना नहीं है. उन के पति गौरव दीक्षित फौज में है. वह श्रीनगर में तैनात है. उन का देवर अभिषेक दीक्षित राजस्थान में फौज में है. छोटा देवर अखिल 29 जुलाई से घर से लापता है. उन के ससुर अशोक दीक्षित खेती करते हैं. रुचि ने पुलिस टीम की अपने पति गौरव से फोन पर बात भी कराई.

आरोपी अशोक दीक्षित की पत्नी सुधा दीक्षित ने पुलिस को बताया कि उन के पति व बेटों को इस मामले में साजिशन फंसाया जा रहा है. इधर शासन ने भी मांबेटी की मौत को गंभीरता से लिया और जांच के लिए अलगअलग 2 विशेष जांच टीमों (एसआईटी) का गठन किया. पहली टीम का गठन डीजीपी हाउस लखनऊ द्वारा किया गया.5 सदस्यीय इस टीम में हरदोई के एसपी राजेश द्विवेदी को अध्यक्ष, हरदोई सीओ (सिटी) विकास जायसवाल को विवेचक बनाया गया. जबकि हरदोई के कोतवाल संजय पांडेय, हरदोई महिला थाने की एसएचओ राम सुखारी तथा क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर रमेश चंद्र पांडेय को शामिल किया गया.

दूसरी विशेष जांच टीम (एसआईटी) का प्रमुख कमिश्नर डा. राजशेखर व एडीजी आलोक सिंह को बनाया गया और विवेचक कन्नौज के एडीएम (वित्त एवं राजस्व) राजेंद्र कुमार को बनाया गया. इस टीम को भी तत्काल प्रभाव से जांच के आदेश दिए. एसआईटी की दोनों टीमें मड़ौली गांव पहुंची और जांच शुरू की. एसपी राजेश द्विवेदी की टीम ने घटनास्थल का निरीक्षण किया फिर पीडि़त परिवार के लोगों से पूछताछ कर बयान दर्ज किए. टीम ने गांव के प्रधान व कुछ अन्य लोगों से भी जानकारी जुटाई. टीम ने थाना अकबरपुर व रूरा में पीडि़तों के खिलाफ दर्ज रिपोर्ट का भी अध्ययन किया. टीम ने उन 15 लोगों को भी नोटिस जारी किया जो गवाह के रूप में दर्ज थे.

दूसरी विशेष जांच टीम ने भी जांच शुरू की. डा. राजशेखर की टीम ने लगभग 60 लोगों की लिस्ट तैयार की और उन्हें जिला मुख्यालय पर शिविर कार्यालय निरीक्षण भवन में बयान दर्ज कराने को बुलाया. टीम ने कुछ मोबाइल फोन नंबर भी जारी किए, जिस पर कोई भी व्यक्ति घटना से संबंधित बयान दर्ज करा सके.

बहरहाल, कथा लिखने तक एसआईटी की जांच जारी थी. रूरा पुलिस ने गिरफ्तार आरोपी लेखपाल अशोक सिंह चौहान व चालक दीपक चौहान को माती कोर्ट में पेश किया, जहां से उन दोनों को जिला जेल भेज दिया गया. आरोपी एसएचओ दिनेश गौतम व एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद भूमिगत हो चुके थे. अन्य आरोपियों को पकडऩे के लिए पुलिस प्रयासरत थी. मृतका प्रमिला के दोनों बेटों शिवम व अंशु को 5-5 लाख रुपए की सहायता राशि शासन द्वारा प्रदान कर दी गई थी तथा उन्हें सुरक्षा भी मुहैया करा दी गई थी.

-कथा पुलिस सूत्रों तथा पीडि़त परिवार से की गई बातचीत पर आधारित

UP Crime news : पत्थर से वार कर दोस्त की खोपड़ी के किए कई टुकड़े

UP Crime news : मनीष जिस सौरभ को अपना सब से अच्छा दोस्त समझता था, पैसों के लालच में वही उस का सब से खतरनाक दुश्मन बन गया था. मनीष को घर से गए 24 घंटे से ज्यादा बीत गए थे. इतनी देर तक वह घर वालों को बताए बिना कभी गायब नहीं रहा था. उस के भाई अनिल ने कई बार उस के दोनों फोन नंबरों पर फोन किया था, लेकिन हर बार उस के दोनों नंबरों ने स्विच्ड औफ बताया था. इस के बावजूद वह बीचबीच में फोन मिलाता रहा कि शायद फोन मिल ही जाए. पूरा घर मनीष को ले कर काफी परेशान था.

संयोग से सुबह 7 बजे के लगभग मनीष का फोन मिल गया. मनीष के फोन रिसीव करते अनिल ने कहा, ‘‘मनीष, तू कहां है? कल से तेरा कुछ पता नहीं चल रहा है, तुझे घरपरिवार की इज्जत की भी फिक्र नहीं है. तू किसी को कुछ बताए बगैर ही दोस्तों के साथ मटरगश्ती कर रहा है?’’

‘‘भाई… मैं घंटे भर में घर पहुंच रहा हूं.’’ दूसरी तरफ से मनीष की लड़खड़ाती आवाज आई.

लड़खड़ाती आवाज सुन कर अनिल चौंका. उस की समझ में नहीं आया कि वह इस तरह क्यों बोल रहा है. उस ने कहा, ‘‘वो तो ठीक है. तू घंटे भर में नहीं सवा घंटे में आ जाना, लेकिन यह तो बता कि कल शाम से तेरे दोनों फोन बंद क्यों हैं? और तेरी आवाज को क्या हुआ है, जो इस तरह आ रही है?’’

‘‘भैया, वो क्या है कि मेरे फोन गाड़ी में रह गए थे.’’ मनीष की आवाज फिर लड़खड़ाई. इस के साथ फोन कट गया. अनिल ने तुरंत फोन मिलाया, लेकिन फोन का स्विच औफ हो गया. जिस तरह मनीष की आवाज लड़खड़ा रही थी. साफ लग रहा था कि वह बहुत ज्यादा नशे में है. 24 वर्षीय मनीष संगत की वजह से शराब भी पीने लगा था. इसलिए अनिल ने तय किया कि उस के आते ही वह उस से बात करेगा कि वह अपनी आदत सुधारेगा या नहीं?

जिस समय अनिल मनीष से फोन पर बातें कर रहा था, उस समय उस की मां और घर के अन्य लोग भी वहीं बैठे थे. मनीष से हुई बातचीत अनिल ने घर वालों को बताई तो वे और ज्यादा परेशान हो उठे. उन्हें चिंता होने लगी कि वह गलत लोगों के साथ तो नहीं उठनेबैठने लगा. चूंकि अनिल की मनीष से बात हो चुकी थी, इसलिए वह यह सोच कर अपनी दुकान पर चला गया कि घंटे, 2 घंटे में मनीष घर लौट ही आएगा. अब वह शाम को उस से बात करेगा.

शाम के 5 बज गए, लेकिन न तो मनीष घर आया और न ही उस का कोई फोन ही आया. बूढ़े पिता ओमप्रकाश गुप्ता बेटे की चिंता में पिछली रात भी नहीं सो पाए थे. बेटे को ले कर सारी रात उन के मन में उलटेसीधे विचार आते रहे. अब दूसरा दिन भी बीत गया था और उस का कुछ पता नहीं चल रहा था. अनिल दुकान से जल्दी ही घर आ गया था. वह मनीष के कुछ दोस्तों को जानता था. उस ने उन से भाई के बारे में पूछा, लेकिन उन से उस के बारे में कोई खास जानकारी नहीं मिली. 12 फरवरी को जब मनीष घर से निकला था, तो बड़ी बहन शशि ने उसे फोन किया था. तब उस ने कहा था कि वह मोंटी के मेडिकल स्टोर पर बैठा है और आधे घंटे में घर आ जाएगा.

मोंटी उर्फ मुकेश शर्मा का मेडिकल स्टोर लंगड़े की चौकी में था. अनिल अपने भाई राजीव के साथ मोंटी की दुकान पर पहुंचा. जब अनिल ने मोंटी से मनीष के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘मनीष कल दोपहर को यहां आया तो था, लेकिन घंटे भर बाद मोटरसाइकिल से चला गया था. यहां से वह कहां गया, यह मुझे पता नहीं. वहां से निराश हो कर दोनों भाई मनीष की अन्य संभावित स्थानों पर तलाश करने लगे, लेकिन उस का कहीं कुछ पता नहीं चला. थकहार कर दोनों भाई रात 11 बजे तक घर लौट आए. बीचबीच में वह मनीष को फोन भी मिलाते रहे, लेकिन उस के दोनों फोन स्विच्ड औफ ही बताते रहे. किसी अनहोनी की आशंका से घर की महिलाओं ने रोनापीटना शुरू कर दिया. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि मनीष ऐसी कौन सी जगह चला गया है, जहां से उस से फोन पर बात नहीं हो पा रही है.

खैर, जैसेतैसे रात कटी. अगले दिन पूरे मोहल्ले में मनीष के 2 दिनों से गायब होने की खबर फैल गई. मोहल्ले वाले गुप्ता के यहां सहानुभूति जताने के लिए आने लगे. उन्हीं लोगों के साथ राजीव और अनिल जीवनी मंडी पुलिस चौकी पहुंचे और चौकी प्रभारी सूरजपाल सिंह को मनीष के लापता होने की जानकारी दी. यह पुलिस चौकी थाना छत्ता के अंतर्गत आती है, इसलिए सूरजपाल सिंह उन्हें ले कर थाने पहुंचे. थानाप्रभारी भानुप्रताप सिंह को जब मनीष के गायब होने की जानकारी दी गई तो उन्होंने तुरंत उस की गुमशुदगी दर्ज करा कर मामले की जांच एसएसआई रमेश भारद्वाज को सौंप दी.

जब उन्हें पता चला कि मनीष अपनी मोटरसाइकिल (UP Crime news) यूपी80एवाई 4799 से घर से निकला था तो उन्होंने वायरलैस से जिले के समस्त थानों को मनीष का हुलिया और उस की मोटरसाइकिल का नंबर बता कर उस के गायब होने की सूचना देने के साथ कहलवाया कि अगर इन के बारे में कुछ पता चलता है तो तुरंत थाना छत्ता को सूचना दें. यह मैसेज प्रसारित होने के कुछ देर बाद ही थाना सदर बाजार से थाना छत्ता को सूचना मिली कि मैसेज में बताई गई नंबर की नीले रंग की मोटरसाइकिल पिछली शाम को एक रेस्टोरेंट के सामने लावारिस हालात में बरामद हुई है. थाना सदर बाजार आगरा कैंट रेलवे स्टेशन के नजदीक है.

एसएसआई रमेश भारद्वाज ने यह खबर मिलने के बाद अनिल को थाने बुलाया और उसे साथ ले कर थाना सदर बाजार पहुंचे, ताकि वह मनीष की बाइक को पहचान कर सके. थाना सदर बाजार पुलिस ने जब उसे रेस्टोरेंट के सामने से लावारिस हालत में बरामद की गई मोटरसाइकिल दिखाई गई तो अनिल ने उसे तुरंत पहचान लिया. वह मोटरसाइकिल मनीष की थी. मनीष गुप्ता का परिवार आर्थिक रूप से काफी संपन्न था. वह हाथों में सोने की वजनी  अंगूठियां और गले में सोने की काफी वजनी चेन पहने था. उस के मोबाइल फोन भी काफी महंगे थे. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी ने लूटपाट कर के उस का कत्ल कर के लाश कहीं फेंक दी हो. लव एंगल की भी संभावना थी. इस बारे में पुलिस ने अनिल से पूछा भी, लेकिन उस का कहना था कि इस तरह की कोई बात उस ने नहीं सुनी थी. अगले महीने उस की शादी भी होने वाली थी.

एसएसआई रमेश भारद्वाज ने मनीष के दोनों फोन नंबरों को सर्विलांस पर लगवाने के साथ उन की पिछले 5 दिनों की काल डिटेल्स भी निकलवाई. 13 फरवरी, 2014 को मनीष के दोनों फोनों की लोकेशन लंगड़े की चौकी की मिली थी. इस के बाद लोकेशन खेरिया मोड़ अर्जुननगर की आई. वहीं से उस की अनिल से अंतिम बार बात हुई थी. इस का मतलब वह वहीं से लापता हुआ था. घर वाले भी अपने स्तर से मनीष के बारे में छानबीन कर रहे थे. उस के स्टेट बैंक औफ बीकानेर, आईडीबीआई, एक्सिस बैंक और एचडीएफसी बैंकों में खाते थे, जिन में उस के लाखों रुपए जमा थे. मनीष के पास हर समय इन बैंकों के डेबिड कार्ड रहते थे.’

मनीष के बड़े भाई राजीव ने सभी बैंकों में जा कर छानबीन की तो पता चला कि अयोध्या कुंज, अर्जुननगर की आईसीआई सीआई बैंक के एटीएम से 13 फरवरी की शाम 17 हजार 5 सौ रुपए निकाले गए थे. इस के अलावा 14,15 और 16 फरवरी को अलगअलग एटीएम कार्डों से साढ़े 3 लाख रुपए निकाले गए थे. यह बात जान कर घर वालों को आश्चर्य हुआ कि मनीष ने इतने पैसे क्यों निकाले. यह जानकारी उन्होंने पुलिस को दी. जीवन मंडी पुलिस चौकी के इंचार्ज सूरजपाल सिंह राजीव गुप्ता के साथ पास ही स्थित एचडीएफसी बैंक गए. उन्होंने ब्रांच मैनेजर से इस बारे में बात की तो ब्रांच मैनेजर ने बताया कि मनीष गुप्ता के खाते से एटीएम कार्ड द्वारा उस रोज 11 बज कर 19 मिनट पर डेबिड कार्ड द्वारा पैसे निकाले गए थे. वे रुपए मोतीलाल नेहरू रोड स्थित भारतीय स्टेट बैंक के एटीएम बूथ से निकाले गए थे.

पुलिस जानती थी कि पैसे निकालने वाले का भारतीय स्टेट बैंक के एटीएम बूथ पर लगे सीसीटीवी कैमरे में फोटो जरूर आया होगा. उस दिन की फुटेज हासिल करने के लिए पुलिस ने स्टेट बैंक औफ इंडिया के अधिकारियों से बात की. जब बैंक अधिकारियों ने पुलिस और राजीव गुप्ता को फुटेज दिखाई तो पता चला, मनीष के खाते से पैसे निकालने वाला कोई और नहीं, मनीष का दोस्त सौरभ शर्मा था. सौरभ शर्मा मुकेश शर्मा उर्फ मोंटी का सगा भांजा था. उस की मोबाइल फोन रिचार्ज करने और एसेसरीज बेचने की दुकान थी. राजीव गुप्ता अकसर उसी के यहां से अपना मोबाइल रिचार्ज कराते थे. उस की दुकान मोंटी के मेडिकल स्टोर के बराबर में ही थी.

मनीष ने अपने पैसे सौरभ से क्यों निकलवाए थे, इस बारे में सौरभ ही बता सकता था. पुलिस राजीव को साथ ले कर सौरभ शर्मा की दुकान पर पहुंची. वह दुकान पर ही मिल गया. पुलिस के साथ राजीव और अनिल को देख कर वह सकपका गया. सबइंस्पेक्टर सूरजपाल सिंह ने उस से मनीष के बारे में पूछा तो उस ने उस के बारे में कुछ भी बताने से साफ मना कर दिया. परंतु जब उसे एटीएम के कैमरे की फुटेज दिखाई गई तो उस ने कहा, ‘‘क्या इस में मैं मनीष गुप्ता के एटीएम कार्ड्स से रुपए निकालता दिख रहा हूं. सर, उस समय मैं अपने कार्ड से रुपए निकालने गया था.’’

सौरभ झूठ बोला रहा था, यह बात पुलिस और राजीव गुप्ता अच्छी तरह जान रहे थे. पुलिस उस के खिलाफ और सुबूत जुटाना चाहती थी, इसलिए उस समय उस से ज्यादा कुछ नहीं कहा. चौकीप्रभारी ने यह बात थानाप्रभारी भानुप्रताप सिंह को बताई. मनीष के बारे में कोई जानकारी न मिलने से लोगों में पुलिस के प्रति गुस्सा बढ़ता जा रहा था. जनता आंदोलन न कर दे, इस से पहले ही एसएसपी शलभ माथुर ने इस मामले को ले कर एसपी (सिटी) सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज, क्षेत्राधिकारी करुणाकर राव और थानाप्रभारी भानुप्रताप सिंह को अपने औफिस में बुला कर मीटिंग की और जल्द से जल्द इस मामले का खुलासा करने के निर्देश दिए.

वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का आदेश मिलते ही थानाप्रभारी ने सौरभ शर्मा और उस के मामा मोंटी उर्फ मुकेश शर्मा को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. मोंटी ने बताया कि जिस समय मनीष उस के मेडिकल स्टोर पर आया था, वह दुकान पर नहीं था. उस समय मेडिकल पर सौरभ था. सौरभ ने मोंटी की इस बात की पुष्टि भी की. इस के बाद पुलिस ने सौरभ से मनीष के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि मनीष पर बाजार का करीब 15 लाख रुपए का कर्ज हो गया है, इसलिए वह गोवा भाग गया है.

‘‘अगर वह गोवा भाग गया है तो उस का एटीएम कार्ड तुम्हारे पास कैसे आया, जिस से तुम ने पैसे निकाले थे?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘सर, मैं ने उस के नहीं, अपने कार्ड से पैसे निकाले थे.’’ सौरभ ने कहा.

पुलिस ने जब उस के खाते की जांच की तो पता चला कि उस ने उस दिन अपने खाते से पैसे निकाले ही नहीं थे. इस सुबूत को सौरभ झुठला नहीं सकता था, इसलिए उस ने स्वीकार कर लिया कि मनीष के एटीएम कार्ड्स से पिछले 3-4 दिनों में साढ़े 3 लाख रुपए उसी ने निकाले थे. पुलिस ने जब उस से मनीष के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि अपने भांजे रिंकू शर्मा के साथ मिल कर उस ने मनीष की हत्या कर उस की लाश को चंबल के बीहड़ों में फूंक दी है. जब घर वालों को पता चला कि उस के दोस्तों ने मनीष की हत्या कर दी है तो घर में हाहाकार मन गया.

पुलिस मनीष की लाश बरामद करना चाहती थी. चूंकि उस समय अंधेरा हो चुका था इसलिए बीहड़ में लाश ढूंढना आसान नहीं था. अगले दिन यानी 18 फरवरी, 2014 की सुबह इंसपेक्टर भानुप्रताप सिंह की अगुवाई में गठित  एक पुलिस टीम सौरभ शर्मा को ले कर चंबल के बीहड़ों में जा पहुंची. टीम सौरभ शर्मा द्वारा बताए स्थान पर पहुंची तो वहां लाश नहीं मिली. सौरभ पुलिस टीम को वहां 3 घंटे तक इधरउधर घुमाता रहा. पुलिस ने जब सख्ती की तो आखिर वह पुलिस को वहां से करीब 4 किलोमीटर दूर अरंगन नदी के पास स्थित एक पैट्रोल पंप के पीछे ले गया. उस ने बताया कि यहीं से उस ने मनीष की लाश को खाई में फेंकी थी.

खाई में भी पुलिस को लाश दिखाई नहीं दी. इस से अनुमान लगाया गया कि जंगली जानवर लाश खींच ले गए हैं. लिहाजा पुलिस इधरउधर लाश ढूंढने लगी. करीब 15 मिनट बाद एक पुराने खंडहर के पीछे एक सड़ीगली लाश दिखाई दी. लाश काफी विकृत अवस्था में थी. उस का चेहरा किसी भारी चीज से कुचला गया था. उस का दाहिना हाथ शरीर के सारे कपड़े गायब थे. बाएं हाथ की एक अंगुली में सोने की अंगूठी थी. उसी अंगूठी और जूतों से मनीष के भाई राजीव ने लाश की शिनाख्त की. लाश की स्थिति से अनुमान लगाया कि मनीष की हत्या कई दिनों पहले की गई थी. मनीष की लाश बरामद होने की बात राजीव ने अपने घर वालों को बता दी.

मौके की जरूरी काररवाई पूरी कर के पुलिस लाश ले कर आगरा आ गई. जैसे ही लाश पोस्टमार्टम हाउस पहुंची, सैकड़ों की संख्या में लोग वहां पहुंच गए. पुलिस के खिलाफ लोगों का गुस्सा भड़क उठा और वहां से जीवनी मंडी पुलिस चौकी पहुंच कर वहां से गुजरने वाले वाहनों को अपने गुस्से का शिकार बनाना शुरू कर दिया. लोग दुकानों पर तोड़फोड़ और लूटपाट करने लगे. इस में कई राहगीर भी घायल हुए. मौके पर जो 2-4 पुलिसकर्मी थे वे उन्हें समझाने और रोकने में असमर्थ रहे. उसी समय शहर के मेयर वहां पहुंचे तो भीड़ ने उन की गाड़ी को भी क्षतिग्रस्त कर दिया. किसी तरह गनर के साथ भाग कर वह सुरक्षित जगह पर पहुंचे. यह हंगामा लगभग एक घंटे तक चलता रहा.

ऐसा लग रहा था मानो शहर में पुलिस नाम की कोई चीज ही नहीं है. जब एसपी (सिटी) सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज काफी फोर्स के साथ वहां पहुंचे और हंगामा करने वालों पर लाठीचार्ज किया गया तब जा कर हंगामा रुका. पूछताछ में सौरभ शर्मा ने मनीष की हत्या की जो कहानी पुलिस को बताई, वह ‘मन में राम बगल में छुरी’ वाली कहावत को चरितार्थ करने वाली थी. मनीष गुप्ता आगरा जिले के थाना छत्ता के मोहल्ला मस्वा की बगीची का रहने वाला था. वह अपने 9 बहनभाइयों में 8वें नंबर पर था. उस के पिता ओमप्रकाश गुप्ता की इलैक्ट्रिकल की दुकान थी, जिस से उन्हें अच्छी आमदनी होती थी. बीएससी करने के बाद मनीष पिता के साथ दुकान पर बैठने लगा था.

पिछले 8-9 महीने से मनीष दवाइयों का कारोबार करने लगा था. उस के संबंधों और व्यवहार की वजह से उस का यह कारोबार चल निकला था. उसे मोटी कमाई होने लगी थी. उस ने कई बैंकों में अपने खाते खोल लिए थे. मनीष गुप्ता अपने खानपान और पहनावे का काफी खयाल रखता था. शौकीन होने की वजह से वह महंगे मोबाइल फोन रखता था. दोनों हाथों की अंगुलियों में 7 सोने की अंगूठियां और गले में काफी वजनी सोने की चेन पहने रहता था. यह सब देख कर कोई भी उस की संपन्नता को समझ सकता था. वैसे तो अपनी उम्र के तमाम लड़कों के साथ उस का उठनाबैठना था, लेकिन उन में से 5-7 लोग उस के काफी करीबी थे. उन के साथ उस की दांत काटी रोटी थी. उन्हीं में से एक था सौरभ शर्मा. खेरिया मोड़, अर्जुननगर का रहने वाला सौरभ मनीष का ऐसा दोस्त था, जो मनीष की हर बात को जानता था.

सौरभ के पिता का देहांत हो चुका था. वह अपने परिवार के साथ किराए के मकान में रहता था. उस के मामा मोंटी उर्फ मुकेश शर्मा का लंगड़े की चौकी में मेडिकल स्टोर था. इस के अलावा मोंटी प्रौपर्टी डीलिंग का काम भी करता था. मोंटी ने अपने मेडिकल स्टोर के पास एक केबिन बनवा कर उस में सौरभ को मोबाइल रिचार्ज और एसेसरीज का धंधा करा दिया था. मनीष मोंटी के मेडिकल स्टोर पर दवाएं सप्लाई करता था. इसलिए वहां आने पर सौरभ से अपना मोबाइल फोन रिचार्ज करा लेता था. सौरभ मनीष के हमउम्र था, इसलिए उस की उस से दोस्ती हो गई.

सौरभ काफी तेजतर्रार था. उसी की मार्फत मनीष ने आईसीआईसीआई और एचडीएफसी बैंकों में खाते खुलवाए थे. मनीष को उस पर इतना विश्वास हो गया था कि कई बार उस ने अपने खातों में मोटी रकम जमा कराने के लिए सौरभ को भेज दिया था. सौरभ और मनीष बेशक गहरे दोस्त थे, लेकिन दोनों के स्तर में जमीनआसमान का अंतर था. सौरभ भी चाहता था कि उस के पास भी ढेर सारे पैसे हों. लेकिन उस छोटी सी दुकान की आमदनी से उस की यह इच्छा पूरी नहीं हो सकती थी. लिहाजा उस ने अपने धनवान दोस्त की दौलत के सहारे अपनी इच्छा पूरी करने की योजना बनाई. उस योजना में उस ने अपने भांजे रिंकू को भी शामिल कर लिया. रिंकू की स्थिति भी सौरभ जैसी ही थी. दोनों ने सलाहमशविरा कर के मनीष के पैसे हड़पने की एक फूलप्रूफ योजना बना डाली.

13 फरवरी, 2014 को देपहर के समय मनीष घर से खापी कर अपनी मोटरसाइकिल से मोंटी के मेडिकल स्टोर पर पहुंचा. उस समय मोंटी अपनी दुकान पर नहीं था. सौरभ ही वहां बैठा था. सौरभ ने मनीष से अपनी प्रेमिका से मिलवाने की बात कही. पहले तो मनीष ने टाल दिया, लेकिन बारबार कहने पर मनीष तैयार हो गया. तब सौरभ ने मनीष को अर्जुननगर अपने घर के पास भेज कर इंतजार करने को कहा. मनीष अर्जुननगर तिराहे पर पहुंच कर सौरभ का इंतजार करने लगा. करीब 2 मिनट बाद सौरभ वहां पहुंचा. सौरभ उस की मोटरसाइकिल पर बैठ गया तो मनीष उस के बताए स्थान की तरफ चल दिया. रास्ते में सौरभ का भांजा रिंकू शर्मा भी मिल गया. सौरभ ने उसे भी उसी मोटरसाइकिल पर बैठा लिया.

सौरभ उसे अर्जुननगर के ही एक कमरे पर ले गया, जिसे रिंकू शर्मा ने अपनी पढ़ाई के लिए किराए पर ले रखा था. कुछ देर बाद रिंकू मनीष के लिए कोल्डड्रिंक की एक बोतल ले आया. उस कोल्डड्रिंक में रिंकू ने नींद की दवा मिला रखी थी. कोल्डड्रिंक पीने के बाद मनीष बेहोश होने लगा. तब तक अंधेरा हो चुका था. मनीष की आंखें झपकने लगीं तो सौरभ अपने असली रूप में आते हुए बोला, ‘‘मनीष, मैं ने तुम्हें किडनैप कर लिया है. अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो तुम्हें काट कर किसी नाले में फेंक दिया जाएगा.’’

मनीष जानता था कि उस का दोस्त सौरभ गुस्सैल और लड़ाकू है, लेकिन उसे यह पता नहीं था कि वह पैसों के लिए इतना गिर सकता है. उस की जान खतरे में थी. वह बेहोशी की तरफ बढ़ रहा था. फिर भी जान खतरे में देख कर उस ने हाथ जोड़ कर सौरभ से पूछा, ‘‘तुझे क्या चाहिए भाई? मुझे बता दे. मैं तुझे वह सब कुछ दे दूंगा.’’

‘‘फिलहाल तो तू अपनी जेब में रखे सभी एटीएम कार्ड्स मुझे दे कर उन के पिन नंबर बता दे. अर्द्धबेहोशी की हालत में भी मनीष समझ रहा था कि अगर उस ने एटीएम कार्ड्स और पिन नंबर नहीं दिए तो ये दोनों उस के साथ कुछ भी कर सकते हैं. लिहाजा उस ने अपने सभी एटीएम कार्ड्स उसे सौंपते हुए उन के पिन नंबर बता दिए. इस के थोड़ी देर बाद मनीष पूरी तरह बेहोश हो गया. मनीष के बेहोश होते ही सौरभ ने उसी शाम एक एटीएम कार्ड का इस्तेमाल कर के पास के ही आईसीआईसीआई बैंक के एटीएम से साढ़े 7 हजार रुपए निकाल लिए. उस समय रिंकू मनीष की निगरानी कर रहा था.

सौरभ ने मनीष के दोनों मोबाइल फोनों को स्विच औफ कर दिया था. रात में मनीष को होश न आ जाए, सौरभ ने उसे बेहोशी का इंजेक्शन लगा दिया. मनीष के परिवार वालों को गुमराह करने के लिए अगले दिन सुबह सौरभ ने उस के दोनों फोन चालू कर दिए. दूसरी ओर मनीष के गायब होने से उस के घर वाले परेशान थे. इस बीच जब मनीष के भाई अनिल का फोन आया तो मनीष होश में नहीं था. फिर सौरभ ने उसे पहले ही बता दिया था कि उसे फोन पर क्या कहना है. इसलिए फोन रिसीव कर के मनीष ने वही कहा जो सौरभ ने कहने के लिए कहा था.

भाई से बात कराने के बाद सौरभ ने उसे पुन: बेहोशी का इंजेक्शन लगा दिया. उस के बाद दोनों मोबाइल फिर बंद कर दिए. उन्होंने उस के हाथों की अंगूठियां और गले से चेन निकाल ली. योजना के अनुसार उन्होंने एक ही अंगूठी छोड़ दी थी. अब वह उसे ठिकाने लगाने योजना बनाने लगे. योजनानुसार 14 फरवरी, 2014 की सुबह करीब साढ़े 9 बजे रिंकू अरनौटा गांव जाने को कह कर एक टैंपो ले आया. यह गांव चंबल के बीहड़ में पड़ता है.

अर्द्धबेहोशी की हालत में उन दोनों ने मनीष को उस टैंपो में बैठा दिया. सौरभ मनीष के साथ टैंपो में बैठ गया तो रिंकू मनीष की मोटरसाइकिल ले कर टैंपो के पीछेपीछे चलने लगा. अरनौटा गांव के पास सुनसान जगह पर मनीष को टैंपो से उतार कर उन्होंने मोटरसाइकिल पर बैठा लिया और बसई अरेला गांव के नजदीक आंगन नदी के पैट्रोल पंप के पीछे की झाडि़यों में जा पहुंचे. वहां उन्होंने उस की गला दबा कर हत्या कर दी.

मनीष की शिनाख्त न होने पाए इस के लिए उन्होंने उस के कपड़ों व चेहरे पर तेजाब डाल कर उसे जला दिया. तेजाब वे अपने साथ ले कर आए थे. मनीष के दाहिने हाथ को पत्थर पर रख कर दूसरा भारी पत्थर पटक कर उस के उस हाथ को शरीर से अलग कर दिया. दूसरे हाथ की भी सारी अंगुलियां तोड़ दीं. एक अंगूठी इन लोगों ने जानबूझ कर उस की अंगुली में छोड़ दी थी कि अगर पुलिस को लाश मिल भी जाए तो वह उसे प्रेम प्रसंग के चलते नफरत में की गई हत्या समझे, लूट की वजह से नहीं. वहां से चलने से पहले सौरभ और रिंकू ने एक भारी पत्थर उठा कर मनीष के सिर पर दे मारा. मनीष की खोपड़ी कई टुकड़ों में बंट गई. लाश को बुरी तरह क्षतिग्रस्त करने के बाद दोनों ने उसे 40-50 फुट नीचे गहरी खाई में फेंक दी और फिर आगरा लौट आए.

फतेहाबाद रोड स्थित एटीएम से एक लाख 10 हजार रुपए अलगअलग कार्डों के जरिए निकाल लिए. इस के बाद उन्होंने मनीष की मोटरसाइकिल (UP Crime news) आगरा कैंट रेलवे स्टेशन के बाहर खड़ी कर दी और घर चले गए. सौरभ ने मनीष एटीएम कार्डों से कुल साढ़े 3 लाख रुपए निकाले. मनीष के गहने और एटीएम से निकाले रुपए दोनों ने आपस में बांट लिए. मनीष की मोटरसाइकिल आगरा कैंट स्टेशन के बाहर जीआरपी ने बरामद कर के इस की सूचना थाना सदर बाजार को दे दी थी, जिसे बाद में मनीष के भाई ने पहचान लिया था. सौरभ और रिंकू के खिलाफ भादंवि की धारा 364, 302, 201 के तहत मामला दर्ज कर लिया गया. इस के बाद उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

दूसरे अभियुक्त रिंकू की गिरफ्तारी के लिए कई जगहों पर दविश डाली गई, लेकिन वह नहीं मिल सका. कथा संकलन तक वह फरार था. पुलिस उसे सरगर्मी से तलाश रही है. मामले की विवेचना एसएसआई रमेश भारद्वाज कर रहे हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

 

Haryana Crime : 2 करोड़ रुपए की प्रौपर्टी के लिए बेटे ने किया पिता का कत्ल

Haryana Crime : सेवानिवृत्त कैप्टन पारसराम के पास किसी चीज की कमी नहीं थी. करोड़ों की संपत्ति के मालिक होने के बावजूद वह इतने कंजूस थे कि बेटों को तो घर से निकाल ही दिया, बेटी का भी इलाज नहीं कराते थे. यहां तक कि उन की पत्नी एक आश्रम में काम कर के खाना लाती थी. इस कंजूसी का नतीजा उन की हत्या के रूप में सामने आया पारसराम पुंज सेना के कैप्टन पद से रिटायर जरूर हो गए थे, लेकिन लोगों पर हुकुम और डिक्टेटरशिप चलाने की उन की

आदत नहीं गई थी. सेवानिवृत्त के बाद यह बात उन की समझ में नहीं आई थी कि सेना और समाज के नियमों में जमीनआसमान का अंतर होता है. अपने घर वालों के साथ मोहल्ले वालों पर भी वह अपनी हिटलरशाही दिखाते रहते थे. घर वालों की बात दूसरी थी, लेकिन मोहल्ले वाले या और दूसरे लोग उन के गुलाम तो थे नहीं जो उन की डिक्टेटरशिप सहते. लिहाजा इसी सब को ले कर मोहल्ले वालों से उन की अकसर कहासुनी होती रहती थी. उन की पत्नी अनीता उन्हें समझाने की कोशिश करती तो वह उलटे उसे ही डांट देते थे. उन के घर में पत्नी के अलावा एक बेटी निष्ठा थी.

22 अक्तूबर, 2013 को करवाचौथ का त्यौहार था. इस त्यौहार के मौके पर महिलाओं के साथसाथ आजकल तमाम लड़कियां भी हाथों पर मेहंदी लगवाने लगी है. करवाचौथ से एक दिन पहले 21 अक्तूबर को निष्ठा भी अपने हाथों पर मेहंदी लगवा कर रात 8 बजे घर लौटी थी. उस समय घर पर पारसराम पुंज भी मौजूद थे. निष्ठा की मां अनीता पंजाबी बाग स्थित एक संत के आश्रम में गई हुई थीं. तभी निष्ठा ने कहा, ‘‘पापा, मम्मी ने बाहर से सरगी (करवाचौथ का सामान) लाने को कहा था, आप ले आइए.’’

मार्केट पारसराम पुंज के घर से कुछ ही दूर था. वह पैदल ही सरगी का सामान लेने बाजार चले गए. जब वह सामान खरीद कर घर लौटे तो उन के दोनों हाथों में सामान भरी पौलिथीन की थैलियां थीं. अभी वह अपने दरवाजे पर पहुंचे ही थे कि किसी ने उन के ऊपर चाकू से हमला कर दिया. दर्द से छटपटा कर उन्होंने जोर से बेटी को आवाज लगाई. उस समय तकरीबन साढ़े 8 बज रहे थे.

निष्ठा ने जब पिता के चीखने की आवाज सुनी थी, तब वह पहली मंजिल पर थी. चीख की आवाज सुन कर उस ने सोचा कि शायद आज फिर पापा का किसी से झगड़ा हो गया है. वह जल्दीजल्दी सीढि़यां उतर कर नीचे आई. घर का मुख्य दरवाजा भिड़ा हुआ था उस ने जैसे ही दरवाजा खोला, उस के पिता सामने गिरे पड़े थे और हाथ में चाकू लिए एक युवक वहां से भाग रहा था. कुछ आगे एक युवक लाल रंग की मोटरसाइकिल पर बैठा था. जिस ने सिर पर हेलमेट लगा रखा था. कुछ लोग गली में मौजूद थे, लेकिन उन्हें पकड़ने की किसी की भी हिम्मत नहीं हुई. युवक मोटरसाइकिल पर बैठ कर भाग गए.

पिता को लहूलुहान देख कर निष्ठा जोरजोर से रोने लगी. उस के रोने की आवाज सुन कर आसपास के लोग वहां आ गए. पीछे वाली गली में निष्ठा का ममेरा भाई नरेंद्र रहता था. वह दौड़ीदौड़ी उस के पास गई और यह बात उसे बताई. जब तक वह आता, तब तक वहां काफी लोग जमा हो गए थे. मामा को लहूलुहान देख कर वह भी घबरा गया. लोगों के सहयोग से वह पारसराम को नजदीक के आचार्यश्री भिक्षु सरकारी अस्पताल ले गया, लेकिन डाक्टरों ने पारसराम पुंज को मृत घोषित कर दिया. इसी दौरान किसी ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर के सूचना दे दी कि मोतीनगर के सुदर्शन पार्क स्थित मकान नंबर बी-462 के सामने एक आदमी का मर्डर हो गया है.

पीसीआर ने यह सूचना थाना मोतीनगर को दे दी. हत्या की खबर मिलते ही थानाप्रभारी शैलेंद्र तोमर, इंसपेक्टर (तफ्तीश) रमेश कलसन, हेडकांस्टेबल सत्यप्रकाश और कांस्टेबल कृष्ण राठी आदि के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने देखा कि सुदर्शन पार्क के मकान नंबर बी-462 के सामने काफी मात्रा में खून पड़ा था. पता चला कि किसी ने रिटायर्ड कप्तान पारसराम पुंज को कई चाकू मारे थे, जिन्हें आचार्यश्री भिक्षु अस्पताल ले जाया गया है. थानाप्रभारी अस्पताल पहुंचे तो डाक्टरों से पता चला कि पारसराम की अस्पताल लाने से पहले ही मौत हो गई थी.

पुलिस ने लाश कब्जे में ले कर उसे पोस्टमार्टम के लिए दीनदयाल अस्पताल भेज दिया. थानाप्रभारी ने सेना के पूर्व कैप्टन पारसराम पुंज की हत्या की खबर आला अधिकारियों को भी दे दी. थोड़ी देर में डीसीपी रणजीत सिंह और एसीपी ईश सिंघल भी मौकाएवारदात पर पहुंच गए. मौका मुआयना करने के बाद पुलिस अधिकारियों ने आसपास के लोगों से बात की. मृतक की बेटी निष्ठा और कुछ लोगों ने पुलिस को बताया कि उन्होंने हमलावर को हाथ में चाकू लिए वहां से भागते देखा था.

डीसीपी रणजीत सिंह ने इस केस को सुलझाने के लिए एसीपी ईश सिंघल के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में थानाप्रभारी शैलेंद्र तोमर, इंसपेक्टर रमेश कलसन, एसआई गुलशन नागपाल, हेडकांस्टेबल सत्यप्रकाश, कांस्टेबल कृष्ण राठी, अमित कुमार, रणधीर आदि को शामिल किया गया. पुलिस को घटनास्थल से ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला, जिस के सहारे हत्यारों तक पहुंचा जा सकता. यह एक तरह से ब्लाइंड मर्डर केस था. इसलिए पुलिस ने सब से पहले पूर्व कैप्टन पारसराम और उस के परिवार के बारे में छानबीन करनी शुरू की.

छानबीन में पता चला कि मृतक पारसराम पुंज तेजतर्रार व्यक्ति थे. उन के मिजाज की वजह से मोहल्ले के लोगों से उन की अकसर कहासुनी होती रहती थी. लेकिन इस मामूली कहासुनी की वजह से कोई उन की हत्या नहीं कर सकता है. पुलिस को ऐसा नहीं लग रहा था. फिर भी पुलिस ने मोहल्ले के उन लोगों से भी पूछताछ की, जिन से कप्तान साहब की नोंकझोंक होती रहती थी. इस के बाद पुलिस ने पारसराम पुंज और बेटी निष्ठा पुंज के मोबाइल फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. इस से पता चला कि निष्ठा की कुछ नंबरों पर ज्यादा बातें होती थीं. 16 साल की निष्ठा जवान होने के साथ साथ खूबसूरत भी थी. इसी मद्देनजर पुलिस ने यह सोचना शुरू कर दिया कि कहीं निष्ठा का किसी लड़के के साथ कोई चक्कर तो नहीं चल रहा था. हो सकता है कप्तान साहब उस के प्यार में रोड़ा बन रहे हों और इसलिए उस ने अपने प्रेमी की मार्फत अपने पिता को ठिकाने लगवा दिया हो.

जिन नंबरों पर निष्ठा की ज्यादा बात होती थी, पुलिस ने उन का पता लगाया तो वे एक झुग्गी बस्ती में रहने वाले युवकों के नंबर निकले. पूछताछ के लिए पुलिस ने उन युवकों को थाने बुलवा कर पूछताछ करनी शुरू की. उन्होंने बताया कि उन की निष्ठा से केवल दोस्ती थी. उस के पिता के मर्डर से उन का कोई लेनादेना नहीं था. उन लड़कों से सख्ती से की गई पूछताछ के बाद भी कोई नतीजा सामने नहीं आया. इसी बीच पुलिस टीम को मुखबिर से खास जानकारी यह मिली कि हमलावर लाल रंग की जिस पैशन मोटरसाइकिल से आए थे, उस पर (Haryana Crime) हरियाणा का नंबर था. वह नंबर क्या था, यह पता नहीं लग सका. जबकि बिना नंबर के मोटरसाइकिल ढूंढना आसान नहीं था.

जांच टीम ने एक बार फिर घटनास्थल से मेन रोड तक आने वाले रास्तों का मुआयना किया. उन्होंने देखा कि जहां पारसराम पुंज का मर्डर हुआ था, उस के सामने वाले मकान के बाहर सीसीटीवी कैमरा लगा हुआ था. संभावना थी कि कातिलों की और उन की मोटरसाइकिल की फोटो उस कैमरे में जरूर कैद हुई होगी. यही सोच कर पुलिस ने उस मकान के मालिक से बात की. उस ने बताया कि उस के कैमरे की डीवीआर नहीं हो रही है. इस से पुलिस की उम्मीद पर पानी फिर गया.

जिस गली में पारसराम का मकान था, उस के बाहर मोड़ पर सुरेश का चावल का गोदाम था. गोदाम के बाहर भी सीसीटीवी कैमरे लगे हुए थे. पूछताछ के बाद पता चला कि वहां लगे सीसीटीवी कैमरे भी काम नहीं कर रहे थे. पुलिस टीम जांच का जो कदम आगे बढ़ा रही थी, वह आगे नहीं बढ़ पाता था. इस तरह जांच करते हुए पुलिस को 2 सप्ताह बीत गए. टीम ने निष्ठा के फोन की काल डिटेल्स का एक बार फिर अध्ययन किया. उस से पता चला कि घटना वाले दिन एक फोन नंबर पर निष्ठा की 4 बार बात हुई थी. उस नंबर के बारे में निष्ठा से पूछा गया तो उस ने बताया कि यह नंबर उस के भाई यानी कप्तान साहब की पहली पत्नी ऊषा से पैदा हुए बेटे लाल कमल पुंज का है. इस के बाद ही पुलिस को पता लगा कि कप्तान साहब ने 2 शादियां की थीं. निष्ठा उन की दूसरी पत्नी अनीता की बेटी थी.

पुलिस ने निष्ठा से पूछा कि उस की लाल कमल से क्या बात हुई थी तो उस ने जवाब दिया कि उस ने घर का हालचाल जानने के लिए फोन किया था. उस ने यह भी बताया की लाल कमल कभीकभी घर भी आता रहता था. पूछताछ में जानकारी मिली कि लाल कमल अपनी पत्नी के साथ पानीपत में रहता था. पुलिस को यह बात पहले ही पता लग चुकी थी कि हमलावर जिस मोटरसाइकिल से आए थे, वह हरियाणा की थी. लाल कमल भी (Haryana Crime) हरियाणा में ही रह रहा था. इस से पुलिस को शक होने लगा कि कहीं लाल कमल ने ही तो पिता को ठिकाने नहीं लगवा दिया. उस के फोन नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई गई तो पता चला कि घटना वाले दिन उस के फोन की लोकेशन पानीपत में ही थी.

फिर भी पुलिस टीम लाल कमल पुंज से पूछताछ करने के लिए पानीपत पहुंच गई. पुलिस ने जब उस से उस के पिता की हत्या के बारे में मालूमात की तो उस ने बताया कि उन के मर्डर की सूचना निष्ठा ने दी थी. उस के बाद वह दिल्ली गया था.

‘‘क्या तुम्हारे पास कोई मोटरसाइकिल है?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘हां सर, मेरे पास हीरो की पैशन बाइक है.’’ लाल कमल ने बताया.

पारसराम पर हमला करने के बाद हमलावर लाल रंग की पैशन बाइक से फरार हुए थे, इसलिए पुलिस को लाल कमल पर शक होने लगा. पुलिस ने उस से कुछ कहने के बजाए उस के दोस्तों से पूछताछ की तो पता चला कि कमल अपने पिता से  नाराज रहता था. उन्होंने उसे अपनी प्रौपर्टी से हिस्सा देने से मना कर दिया था. इस जानकारी के बाद पुलिस का शक विश्वास में बदलने लगा. बिना किसी सुबूत के पुलिस लाल कमल को टच करना ठीक नहीं समझ रही थी. इसलिए वह सुबूत जुटाने में लग गईर्. पुलिस को लाल कमल की बाइक का नंबर भी मिल गया था. अब पुलिस यह जानने की कोशिश करने लगी कि 21 अक्तूबर को कमल की बाइक दिल्ली आई थी या नहीं.

पारसराम पुंज की हत्या 21 अक्तूबर को हुई थी. इसलिए पुलिस ने पानीपत से दिल्ली वाले रोड पर जितने भी पेट्रौल पंप थे, सब के सीसीटीवी कैमरों की घटना से 2 हफ्ते पहले तक की फुटेज देखी कि कहीं कमल ने किसी पेट्रोल पंप पर पैट्रोल तो नहीं भराया था. इस काम में कई दिन लग गए, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली. दिल्ली पुलिस ने करनाल हाइवे पर कई सीसीटीवी कैमरे लगा रखे हैं. उन कैमरों की मौनिटरिंग अलीपुर थाने में होती है और वहीं पर उन कैमरों की डिजिटल वीडियो रिकौर्डिंग होती है. थानाप्रभारी शैलेंद्र तोमर, इंसपेक्टर रमेश कलसन और हेडकांस्टेबल सत्यप्रकाश ने थाना अलीपुर जा कर 21 अक्तूबर, 2013 की फुटेज देखी. उस हाईवे पर रोजाना हजारों की संख्या में वाहन गुजरते हैं, इसलिए 2-3 दिनों तक फुटेज देखने की वजह से उन की आंखें भी सूज गई. लेकिन सफलता की उम्मीद में उन्होंने इस की परवाह नहीं की. वह अपने मिशन में लगे रहे.

उन की कोशिश रंग लाई. फुटेज में लाल कमल पुंज की पैशन मोटरसाइकिल नंबर एचआर 60 डी 7511 दिखाई दे गई. बाइक चलाने वाले के अलावा उस पर एक युवक और बैठा था. कपड़ों और कदकाठी से लग रहा था कि बाइक लाल कमल चला रहा था. रिकौर्डिंग में उस बाइक के दिल्ली आते समय की और रात को दिल्ली से जाते समय की फुटेज मौजूद थी. यह सुबूत मिलने के बाद पुलिस ने लाल कमल पुंज से फिर पूछताछ की तो उस ने बताया कि 21 अक्तूबर को वह अपने दोस्त दिनेश मणिक के साथ दिल्ली गया था, लेकिन वह सुदर्शन पार्क नहीं गया था.

पुलिस को लगा कि वह झूठ बोल रहा है, इसलिए पुलिस उसे और दिनेश माणिक को पूछताछ के लिए पानीपत से दिल्ली ले आई. पुलिस ने दोनों से अलगअलग पूछताछ करनी शुरू कर दी. वे दोनों सच्चाई को ज्यादा देर तक नहीं छिपा सके. उन्होंने स्वीकार कर लिया कि पूर्व कैप्टन पारसराम पुंज की हत्या उन्होने ही की थी. दोनों से पूछताछ के बाद उन की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी. पश्चिमी दिल्ली के मोतीनगर क्षेत्र स्थित सुदर्शन पार्क के मकान नंबर बी-462 में रहने वाले पारसराम पुंज सेना में कैप्टन थे. उन की शादी ऊषा से हुई थी, जो मूलरूप से उड़ीसा की रहने वाली थी. बाद में ऊषा 2 बेटों लाल कमल उर्फ सोनू और दीपक उर्फ बाबू के अलावा एक बेटी की मां बनी. 3 बच्चों के साथ ऊषा हंसीखुशी से रह रही थी. लेकिन कैप्टन पारसराम का स्वभाव कुछ अलग था. वह आर्मी की तरह अपने घर में भी डिक्टेटरशिप चलाते थे और छोटीछोटी बातों पर पत्नी और बच्चों को गलती की सजा देते थे.

जब तक कप्तान साहब ड्यूटी पर रहते थे, घर के सभी लोग अमनचैन से रहते थे, लेकिन उन के छुट्टियों पर घर आते ही घर में एकदम से खामोशी छा जाती थी. घर के सभी सदस्य भीगी बिल्ली बन कर रह जाते थे. उन के डर की वजह से घर वाले ज्यादा नहीं बोलते थे. वह सोचते थे कि पता नहीं किस बात पर उन्हें सजा मिल जाए. कप्तान पारसराम परिवार के सदस्यों को सेना के जवानों की तरह कड़े अनुशासन में रखना चाहते थे. वह यह बात नहीं समझते थे कि सेना और समाज के नियम कायदों में जमीनआसमान का अंतर होता है.

सेना से रिटायर होने के बाद पारसराम ने चांदनी चौक इलाके में सर्जिकल सामान बेचने की दुकान खोल ली. उन के तीनों बच्चे पढ़ रहे थे. शाम को दुकान से घर लौटने के बाद वह किसी न किसी बात को ले कर पत्नी से झगड़ने लगते थे. कभीकभी वह उस की पिटाई भी कर देते थे.

पारसराम स्वभाव से बेहद कंजूस थे. पत्नी को खर्चे के लिए जो भी पैसे देते थे, एकएक पैसे का हिसाब लेते थे. उन की इजाजत के बिना वह एक भी पैसा खर्च करने से डरती थी. इस तरह पति के रिटायर होने के बाद ऊषा अंदर ही अंदर घुटती रहती थी. फिर एक दिन वह किसी को बिना बताए बेटी को ले कर कहीं चली गई, जिस का आज तक कोई पता नहीं चला. यह करीब 20 साल पहले की बात है.

पारसराम ने पत्नी को संभावित जगहों पर तलाशा, लेकिन वह नहीं मिली. बाद में सन 1995 में पारसराम ने अनीता नाम की महिला से शादी कर ली. करनाल के एक गांव की रहने वाली अनीता की पहली शादी यमुनानगर हरियाणा में हुई थी. लेकिन पति की मौत हो जाने की वजह से उस की जिंदगी में अंधेरा छा गया था. पारसराम से शादी कर के वह मोतीनगर के सुदर्शन पार्क स्थित उन के घर में रहने लगी. 3 मंजिला मकान में उस का परिवार ही रहता था. उस ने मकान का कोई भी फ्लोर किराए पर नहीं उठा था.

पारसराम ने चांदनी चौक में दुकान खरीदने के अलावा रोहिणी सेक्टर-23 में भी 200 वर्ग गज का एक प्लौट खरीद कर डाल दिया था. इसी बीच अनीता एक बेटे और बेटी की मां बन गई, जिन का नाम लाल कमल और निष्ठा रखा गया. पारसराम ने बड़े बेटे लाल कमल को भी अपने साथ सर्जिकल सामान की दुकान पर बैठाना शुरू कर दिया था. उस ने पत्राचार से बीकौम किया था.

लाल कमल पारसराम के साथ दुकान पर बैठता जरूर था, लेकिन उस की मजाल नहीं थी कि वह वहां के पैसों से अपने शौक पूरे कर सके. जवान बच्चों का अपना भी कुछ खर्च होता है, इस बात को पारसराम नहीं समझते थे. वह चाहते तो बच्चों का दाखिला किसी अच्छे स्कूल में करा सकते थे, लेकिन कंजूस होने की वजह से उन्होंने ऐसा नहीं किया. बेटी निष्ठा का दाखिला भी उन्होंने नजदीक के ही एक सरकारी स्कूल में करा दिया था.

पारसराम घमंडी स्वभाव के थे. वह मोहल्ले वालों से भी उसी अंदाज में बात करते थे. तानाशाही रवैये की वजह से मोहल्ले वालों से उन की अकसर नोकझोंक होती रहती थी. कभीकभी तो वह गली में रेहड़ी पर सब्जी बेचने वालों से भी झगड़ बैठते थे. उन की पत्नी और बच्चे उन की इस आदत से परेशान थे.

सन 2006 में पारसराम ने लाल कमल की शादी पानीपत की ज्योति से करा दी. शादी होने के बाद लाल कमल का खर्च बढ़ गया, लेकिन पिता उसे खर्च के लिए पैसे नहीं देते थे. पारसराम अपनी पेंशन और दुकान की कमाई अपने पास ही रखते थे. इस से लाल कमल काफी परेशान रहता था. इस के अलावा अपनी बहू के प्रति भी उन की नीयत खराब हो चुकी थी. ज्योति ससुर की नीयत भांप चुकी थी. उस ने यह बात पति को बताई तो लाल कमल ने अपनी मां अनीता से शिकायत की. अनीता ने पति से डरते हुए यह बात पूछी तो उन्होंने उल्टे पत्नी को ही डांट दिया.

बताया जाता है कि बाद में पारसराम ने अपनी दुकान बेच दी और दिन भर घर पर ही रहने लगे. वह घर में तनाव वाला माहौल रखते थे. इस से घर वाले और ज्यादा परेशान हो गए. पिता की आदतों को देखते हुए लाल कमल पत्नी को ले कर परेशान रहने लगा. घर में रोजाना होने वाली कलह से परेशान हो कर लाल कमल अपने भाई और पत्नी को ले कर पानीपत चला गया और इधरउधर से पैसों का इंतजाम कर के उस ने वहीं पर इनवर्टर, बैटरी बेचने और मोबाइल रिजार्च करने की दुकान खोल ली. अब पारसराम के साथ पत्नी अनीता और बेटी निष्ठा ही रह गई थी.

पारसराम के पास करीब 2 करोड़ रुपए की संपत्ति थी. इस के बावजूद वह बेटों को फूटी कौड़ी देने को तैयार नहीं थे. घर में अकसर तनाव का माहौल रहने की वजह से निष्ठा को भी माइग्रेन का दर्द रहने लगा था. पारसराम ने बेटी का इलाज भी नहीं कराया. जब भी वह दर्द से कराहती तो वह उसे मेडिकल स्टोर से दर्द निवारक दवा ला कर दे देते थे.

दिल्ली के पंजाबी बाग इलाके में एक संत का आश्रम है. अनीता उस आश्रम में जाती थी. वहां उसे मानसिक शांति मिलती थी. आश्रम में ही वह सेवा करती, वहीं चलने वाले भंडारे में खाना खाती और शाम को घर जाते समय पति और बेटी के लिए भी आश्रम से खाना ले आती थी. पूरे दिन आश्रम में रहने के बाद वह शाम को करीब 9 बजे घर लौटती थी. पारसराम ने उस से कह दिया था कि शाम का खाना वह आश्रम से ही लाया करे. इसलिए वह वहां से बेटी और पति के लिए खाना लाती थी.

उधर लाल कमल चाहता था कि पिता उसे कोई अच्छी सी दुकान खुलवा दें, लेकिन उन के जीते जी ऐसा संभव नहीं था. जब वह बेटी का इलाज तक नहीं करा रहे थे तो उनसे बिजनैस के लिए पैसे देने की उम्मीद कैसे की जा सकती थी. लाल कमल की दुकान के पास ही पानीपत की नागपाल कालोनी में दिनेश मणिक उर्फ दीपू की मोबिल औयल और स्पेयर पार्टस की दुकान थी. लाल कमल की उस से दोस्ती थी. वह उस से हमेशा पिता की बुराई करता रहता था.

लाल कमल कभीकभी दिल्ली जा कर निष्ठा और आश्रम में मां से मिलता रहता था. निष्ठा उसे अपनी माइग्रेन बीमारी के बारे में बताया करती थी. निष्ठा का इलाज न कराने पर लाल कमल को पिता पर गुस्सा आता था. लाल कमल को लगता था कि उसे पिता की मौत के बाद ही उन की प्रौपर्टी मिल सकती है, इसलिए उस ने पिता को ठिकाने लगाने की ठान ली. यह काम वह अकेला नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने अपने दोस्त दिनेश मणिक उर्फ दीपू से बात की. लाल कमल ने दिनेश से कहा कि अगर वह उस के पिता की हत्या कर देगा तो वह उसे उन की प्रौपर्टी का 25 प्रतिशत दे देगा.

यह बात उस ने पहले ही बता दी थी कि प्रौपर्टी की कीमत करीब 2 करोड़ रुपए है. इसी लालच में दिनेश उस का साथ देने को तैयार हो गया.

इस के बाद दोनों पारसराम को ठिकाने लगाने की योजना बनाने लगे. इस बीच लाल कमल ने निष्ठा से फोन कर के जानकारी ले ली कि मां आश्रम के लिए कितने बजे घर से निकलती है और कितने बजे घर लौटती है. दिनेश ने लाल कमल के साथ जा कर कई बार उस के घर और इलाके की रेकी की. हत्या के लिए उन्होंने पानीपत से एक चाकू भी खरीद लिया था.

पूरी योजना बनाने के बाद लाल कमल  21 अक्तूबर, 2013 को अपनी पैशन मोटरसाइकिल नंबर एचआर 60 डी 7511 से दिनेश को साथ ले कर दिल्ली के लिए रवाना हुआ. वह जानता था कि अगर वह फोन अपने साथ दिल्ली ले जाएगा तो फोन की लोकेशन के आधार पर पुलिस उस तक पहुंच सकती है. इसलिए उस ने अपना ही नहीं, बल्कि दिनेश का फोन भी पानीपत दिल्ली रोड से चांदनी बाग की तरफ जाने वाली सड़क पर एक जगह छिपा दिया. ये दोनों शाम 8 बजे के करीब मोतीनगर के सुदर्शन पार्क की मार्केट में पहुंच गए.

दोनों ने तय कर लिया था कि वारदात को घर में ही अंजाम देंगे. इत्तफाक से लाल कमल ने बाजार में खरीदारी करते हुए अपने पिता को देख लिया. वह उस समय पत्नी के करवा चौथ व्रत का सामान खरीद रहे थे. उन्हें क्या पता था कि पत्नी के व्रत रखने से पहले ही मौत उन्हें आगोश में ले लेगी. लाल कमल एक ओर छिप कर उन पर निगाहें रखने लगा.

सामान ले कर जैसे ही पारसराम घर की तरफ चले, लाल कमल भी बाइक से धीरेधीरे उन के पीछे चल दिया. उस ने हेलमेट लगा रखा था. उस के पीछे दिनेश बैठा था. लाल कमल ने दिनेश को शिकार दिखा दिया था. जैसे ही पारसराम अपने घर के दरवाजे पर पहुंचे, दिनेश ने बाइक से उतर कर पारसराम पर चाकू से कई वार किए.

लाल कमल ने कुछ आगे जा कर बाइक खड़ी कर ली थी. अचानक हमला होने से वह घबरा गए. वह चिल्लाए तो दिनेश तेजी से भाग कर मोटरसाइकिल पर बैठ गया तो दोनों वहां से नौ दो ग्यारह हो गए.

हत्या करने के बाद वे सीधे पानीपत गए. सब से पहले उन्होंने चांदनी बाग रोड पर छिपाए गए अपने मोबाइल फोन उठाए. फिर गोहाना रोड से पहले गऊशाला की प्याऊ पर दिनेश ने खून से सने हाथ धोए. फिर देवी माता रोड पर नाले के पास वह चाकू फेंक दिया, जिस से मर्डर किया था.

पुलिस ने लाल कमल और दिनेश मणिक उर्फ दीपू से पूछताछ करने के बाद उन्हें 9 नवंबर, 2013 को हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर उन्हें उसी दिन तीस हजारी कोर्ट में महानगर दंडाधिकारी सुनील कुमार शर्मा के समक्ष पेश कर के उन का 2 दिनों का पुलिस रिमांड लिया.

रिमांड अवधि में लाल कमल और दिनेश की निशानदेही पर पुलिस ने नाले के पास से चाकू, खून सने कपड़े, मोटरसाइकिल, हेलमेट आदि बरामद कर लिए. रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद पुलिस ने 11 नवंबर, 2013 को लाल कमल पुंज उर्फ सोनू और दिनेश मणिक उर्फ दीपू को पुन: न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक दोनों अभियुक्त जेल में बंद थे.

कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित कथा में निष्ठा परिवर्तित नाम है.

 

Punjab crime : रात में लड़की बनकर घूमता था सीरियल किलर, 18 महीने में किए 11 कत्ल

Punjab crime : एक खतरनाक सीरियल किलर (Serial Killer) की दास्तां, जिसने 11निर्दोष लोगों की हत्या कर दी. इस खौफनाक सीरियल किलर के वारदातों को सुनकर आप की रूह कांप उठेगी.

अक्सर ऐसे सीरियल किलर के बारे में पढ़ते रहे हैं जो आसानी से पकड़े नहीं जाते हैं, लेकिन यहां आपको एक अजीबोगरीब (Serial Killer) के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसने धोखेबाजों को मारना अपना मिशन बना लिया था. वह कत्ल करने के बाद उनके पैर छूकर माफी मांगता और मारने के बाद उनकी पीठ पर ‘धोखेबाज’ लिख देता था.

दिन में पुरुष और रात में महिला दिखता

इस सीरियल  किलर का नाम रामस्वरूप है. जिसे पंजाब पुलिस ने पकड़ा है, यह सीरियल किलर एक अनोखी पहचान रखता है. रामस्‍वरूप दिन में दिन में पुरुष जैसी और रात में महिला जैसी रूप बनाता था. पंजाब पुलिस ने इस किलर की पहचान के लिए स्केच भी जारी किया था.

भूलने वाला सीरियल किलर

यह सीरियल किलर 11 कत्ल कर चुका था और कैमरे के सामने उसने अपना जुर्म कबूल कर लिया. हैरानी की बात यह है कि कबूल करने के बाद यह सीरियल किलर खुद कहता है कि मेरी याददाश्त कमजोर है और मुझे अभी तक याद नहीं है कि मैंने कितने कत्ल किए हैं. किलर अपने आप को एक भुलक्कड़ मानता है.

अजीबोगरीब हरकतें करनेवाला रामस्‍वरूप

रामस्‍वरूप कत्ल करने के बाद लोगों की पीठ पर धोखेबाज लिख देता था. इतना ही नहीं, वह मृतक के हाथ पैर पकड़कर उससे माफी भी मांगता था. इसकी इस अजीब हरकत ने उसे इसे एक रहस्यमय और डरावना शख्स बना दिया था.

इस सीरियल किलर ने 18 अगस्त को कीरतपुर साहिब गढ़ मोड़ा टोल प्लाजा के करीब चाय पानी की दुकान वाले 37 वर्षीय शख्स की हत्या कर दी और उसका मोबाइल अपने साथ ले गया. इसी मोबाइल के जरिए पुलिस मोबाइल बेचने वाले के पास पहुंचती है जहां उसे पता चलता है कि मोबाइल बेचने के लिए एक महिला आई थी लेक‍िन देखने में वह पुरुष जैसा लग रहा था. पंजाब पुलिस ने इस शख्स के जरिए सीरियल किलर का स्केच तैयार किया और उसकी तलाश शुरू की. मोबाइल और स्केच के आधार पर ही रामस्वरूप की पहचान और गिरफ्तारी संभव हो सकी. इसके बाद पंजाब पुलिस स्केच के आधार पर उस रामस्वरूप के पास तक पहुंचती है और उसे अरेस्ट कर लेती है.

जब पुलिस उसे पकड़ती है तो लगता है कि उसने सिर्फ एक कत्ल किया होगा लेकिन जब वह अपना मुंह खोलता है तो पुलिस शौक्‍ड रह जाती है उसने ऐसे खुलासे किए कि पुलिस कुछ ही देर में समझ गई कि वह एक खतरनाक सीरियल किलर के सामने खड़ी है.

किस तरह से करता था कत्ल

रामस्‍वरूप एक “गे सेक्स वर्कर” था. यह रात को महिलाओं की तरह सजता था और घूंघट में चेहरा ढक कर ग्राहकों की तलाश में जुड़ जाता. जब इसे कोई ग्राहक मिल जाता है तो वह उस ग्राहक से पैसे के लिए लड़ता और उस ग्राहक का गला घोंट कर हत्या कर देता.

पंजाब पुलिस के मुताबिक इस सीरियल किलर ने डेढ़ साल में 11 कत्ल किए है. अभी पुलिस इससे जुड़े और सबूत तलाश रही है.