Crime story : आशिक ने माशूका के चेहरे को चाकू से गोद डाला

Crime story : मार्निंग वौक पर निकले कुछ लोगों ने हाईवे के किनारे एक महिला की लाश पड़ी देखी तो उन्होंने  इस बात की सूचना थाना नौबस्ता पुलिस को दे दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह सहयोगियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां काफी लोग इकट्ठा थे, लेकिन उन में से कोई भी महिला की शिनाख्त नहीं कर सका. मृतका की उम्र 35 साल के आसपास थी. वह साड़ीब्लाउज और पेटीकोट पहने थी. उस के सिर पर गंभीर चोट लगी थी, चेहरा किसी नुकीली चीज से Crime story गोदा गया था. गले में भी साड़ी का फंदा पड़ा था.

लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी तो पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई कर के उसे पोस्टमार्टम के लिए कानपुर स्थित लाला लाजपत राय चिकित्सालय भिजवा दिया. लेकिन घटनास्थल की काररवाई में पुलिस ने काफी समय बरबाद कर दिया था, इसलिए देर हो जाने की वजह से उस दिन लाश का पोस्टमार्टम नहीं हो सका. यह 5 जुलाई, 2014 की बात थी.

अगले दिन यानी 6 जुलाई को कानपुर से निकलने वाले समाचार पत्रों में जब एक महिला का शव नौबस्ता में हाईवे पर मिलने का समाचार छपा तो थाना चकेरी के मोहल्ला रामपुर (श्यामनगर) के रहने वाले शिवचरन सिंह भदौरिया को चिंता हुई. इस की वजह यह थी कि उस की पत्नी नीलम उर्फ पिंकी पिछले 2 दिनों से गायब थी. इस बीच उस ने अपने हिसाब से उस की काफी खोजबीन की थी, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला था. अखबार में समाचार पढ़ने के बाद शिवचरन सिंह अपने दोनों बेटों, सचिन और शिवम को साथ ले कर थाना नौबस्ता पहुंचा और थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह को बताया कि उस की पत्नी परसों से गायब है. वह हाईवे के किनारे मिली महिला की लाश को देखना चाहता है.

चूंकि शव पोस्टमार्टम हाऊस में रखा था, इसलिए थानाप्रभारी ने उन लोगों को एक सिपाही के साथ वहां भेज दिया. शिवचरन सिंह बेटों के साथ वहां पहुंचा तो लाश देखते ही वह फूटफूट कर रो पड़ा. क्योंकि वह लाश उस की पत्नी नीलम की थी. उस के दोनों बेटे सचिन और शिवम भी मां की लाश देख कर रोने लगे थे. इस तरह हाईवे के किनारे मिले महिला के शव की शिनाख्त हो गई थी. लाश की शिनाख्त कर शिवचरन सिंह बेटों के साथ थाने आ गए. थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह ने शिवचरन से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस की पत्नी नीलम 4 जुलाई की शाम 4 बजे से गायब है. घर से निकलते समय उस ने बच्चों से कहा था कि वह उन की स्कूली ड्रेस लेने दर्जी के यहां जा रही है. उधर से ही वह घर का सामान भी ले आएगी. लेकिन वह गई तो लौट कर नहीं आई.

आज सुबह उस ने अखबार में महिला के शव मिलने की खबर पढ़ी तो वह थाने आया और पोस्टमार्टम हाउस जा कर देखी तो पता चला कि उस की तो हत्या हो चुकी है.

‘‘हत्या किस ने की होगी, इस बारे में तुम कुछ बता सकते हो?’’ थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह ने पूछा.

‘‘साहब, हमें संदेह नहीं, पूरा विश्वास है कि नीलम की हत्या सबइंसपेक्टर जगराम सिंह ने की है. वह हमारे बड़े भाई का चचेरा साला है. उस का हमारे घर बहुत ज्यादा आनाजाना था. उस के नीलम से अवैध संबंध थे. पीछा छुड़ाने के लिए उसी ने उस की हत्या की है. वह अपने परिवार के साथ बर्रा में रहता है. इन दिनों उस की तैनाती लखनऊ में है.’’

शिवचरन सिंह ने जैसे ही कहा कि नीलम की हत्या सबइंसपेक्टर जगराम सिंह ने की है, थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह ने उसे डांटा, ‘‘तुम्हारा दिमाग खराब है. नीलम की हत्या नहीं हुई है. मुझे लगता है, उस की मौत एक्सीडेंट से हुई है. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आएगी तो पता चल जाएगा कि वह कैसे मरी है.’’

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, नीलम की हत्या बड़ी ही बेरहमी से की गई थी. उस की मौत सिर की हड्डी टूटने से हुई थी. उस के चेहरे को चाकू की नोक से गोदा गया था. गला भी साड़ी से कसा गया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से साफ हो गया था कि नीलम की हत्या हुई थी. इस के बावजूद थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह ने हत्या की रिपोर्ट दर्ज नहीं की. इस का मतलब था कि जगराम सिंह ने सिफारिश कर दी थी. विभागीय मामला था, इसलिए थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह उस का पक्ष ले रहे थे.

हत्या के इस मामले को दबाने की खबर जब स्थानीय अखबारों में छपी तो आईजी आशुतोष पांडेय ने इसे गंभीरता से लिया. उन्होंने इस मामले को ले कर थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह से 2 बार बात की, लेकिन उस ने उन्हें कोई उचित जवाब नहीं दिया. इस के बाद उन्होंने क्षेत्राधिकारी ओमप्रकाश को इस मामले की जांच कर के तुरंत रिपोर्ट देने को कहा.

क्षेत्राधिकारी ओमप्रकाश ने उन्हें जो रिपोर्ट दी, उस में सबइंसपेक्टर जगराम सिंह पर हत्या का संदेह व्यक्त किया गया था. थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह ने जो किया था, उस से पुलिस की छवि धूमिल हुई थी, इसलिए आईजी आशुतोष पांडेय ने उन्हें लाइनहाजिर कर दिया और खुद 10 जुलाई को थाना नौबस्ता जा पहुंचे. उन्होंने सबइंसपेक्टर जगराम सिंह को थाने बुला कर पूछताछ की और उसे साथ ले कर घटनास्थल का निरीक्षण भी किया.

मृतका नीलम और जगराम सिंह के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो उस में नीलम के मोबाइल फोन पर अंतिम फोन जगराम सिंह का ही आया था. दोनों के बीच बात भी हुई थी. इस के बाद नीलम का फोन बंद हो गया था. नीलम के मोबाइल फोन की अंतिम लोकेशन थाना चकेरी क्षेत्र के श्यामनगर की थी. काल डिटेल्स से पता चला कि जगराम और नीलम की रोजाना दिन में कई बार बात होती थी. कभीकभी दोनों की घंटों बातें होती थीं.

सारे सुबूत जुटा कर आईजी आशुतोष पांडेय ने सबइंसपेक्टर जगराम सिंह से नीलम की हत्या के बारे में पूछा तो उसने स्वीकार कर लिया कि साले की मदद से उसी ने नीलम की Crime story हत्या की थी और लाश ले जा कर नौबस्ता में हाईवे के किनारे फेंक दी थी. जगराम सिंह ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया तो थाना नौबस्ता पुलिस ने शिवचरन सिंह भदौरिया की ओर से नीलम की हत्या का मुकदमा सबइंसपेक्टर जगराम सिंह और उस के साले लक्ष्मण सिंह के खिलाफ दर्ज कर लिया. इस के बाद जगराम सिंह ने नीलम की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह जिस्म के नाजायज रिश्तों में जिंदगी लेने वाली थी.

उत्तर प्रदेश के जिला फतेहपुर के कस्बा खागा के रहने वाले राम सिंह के परिवार में पत्नी चंदा के अलावा 2 बेटे पप्पू, बब्बू और बेटी नीलम उर्फ पिंकी थी. राम सिंह पक्का शराबी था. अपनी कमाई का ज्यादा हिस्सा वह शराब में उड़ा देता था. बाप की देखा देखी बड़े बेटे पप्पू को भी शराब का शौक लग गया. जैसा बाप, वैसा बेटा. पप्पू कुछ करता भी नहीं था.

नीलम उर्फ पिंकी राम सिंह की दूसरे नंबर की संतान थी. वह सयानी हुई तो राम सिंह को उस की शादी की चिंता हुई. उस के पास कोई खास जमापूंजी तो थी नहीं, इसलिए वह इस तरह का लड़का चाहता था, जहां ज्यादा दानदहेज न देना पड़े. उस ने तलाश शुरू की तो जल्दी ही उसे कानपुर शहर के थाना चकेरी के श्यामनगर (रामपुर) में किराए पर रहने वाला शिवचरन सिंह भदौरिया मिल गया. शिवचरन सिंह शहर के मशहूर होटल लिटिल में चीफ वेटर था. राम सिंह को शिवचरन पसंद आ गया. उस के बाद अपनी हैसियत के हिसाब से लेनदेन कर के उस ने नीलम की शादी शिवचरन सिंह के साथ कर दी.

नीलम जैसी खूबसूरत पत्नी पा कर शिवचरन बेहद खुश था.  से समय गुजरने लगा. समय के साथ नीलम 2 बेटों सचिन और शिवम की मां बनी. बच्चे होने के बाद खर्च तो बढ़ गया, जबकि आमदनी वही रही. शिवचरन को 5 हजार रुपए वेतन मिलता था, जिस में से 2 हजार रुपए किराए के निकल जाते थे, हजार, डेढ़ हजार रुपए नीलम के फैशन पर खर्च हो जाते थे. बाकी बचे रुपयों में घर चलाना मुश्किल हो जाता था. इसलिए घर में हमेशा तंगी बनी रहती थी.

पैसों को ले कर अक्सर शिवचरन और नीलम में लड़ाईझगड़ा होता रहता था. रोजरोज की लड़ाई और अधिक कमाई के चक्कर में शिवचरन ने नीलम की ओर ध्यान देना बंद कर दिया. पत्नी की किचकिच की वजह से वह तनाव में भी रहने लगा. इस सब से छुटकारा पाने के लिए वह शराब पीने लगा. संयोग से उसी बीच शिवचरन के घर उस के बड़े भाई के चचेरे साले यानी नीलम की जेठानी प्रीति के चचेरे भाई जगराम सिंह का आनाजाना शुरू हुआ.

जगराम सिंह अपने परिवार के साथ बर्रा कालोनी में रहता था. वह हेडकांस्टेबल था, लेकिन इधर प्रमोशन से सबइंस्पेक्टर हो गया था. उस की ड्यूटी लखनऊ में दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री सुदीप रंजन सेन के यहां थी. नीलम जगराम सिंह की मीठीमीठी बातों और अच्छे व्यवहार से काफी प्रभावित थी. एक तरह से नीलम उस की बहन थी, लेकिन 2 बच्चों की मां होने के बावजूद नीलम की देहयष्टि और सुंदरता ऐसी थी कि किसी भी पुरुष की नीयत खराब हो सकती थी. शायद यही वजह थी कि भाई लगने के बावजूद जगराम सिंह की भी नीयत उस पर खराब हो गई थी.

घर आनेजाने से जगराम सिंह को नीलम की परेशानियों का पता चल ही गया था, इसलिए उस तक पहुंचने के लिए वह उस की परेशानियों का फायदा उठाते हुए हर तरह से मदद करने लगा. नीलम जब भी उस से पैसा मांगती, वह बिना नानुकुर किए दे देता. अगर कभी शिवचरन पैसे मांग लेता तो वह उसे भी दे देता. शिवचरन भले ही जगराम की मन की बात से अंजान था, लेकिन नीलम सब जानती थी. वह जान गई थी कि जगराम उस पर इतना क्यों मेहरबान है. उस की नजरों से उस ने उस के दिल की बात जान ली थी. एक तो नीलम को पति का सुख उस तरह नहीं मिल रहा था, जिस तरह मिलना चाहिए था, दूसरे जगराम अब उस की जरूरत बन गया था.

इसलिए उसे जाल में फंसाए रखने के लिए नीलम उस से हंसी मजाक ही नहीं करने लगी, बल्कि उस के करीब भी आने लगी थी. आसपड़ोस में सभी लोगों को उस ने यही बता रहा था कि यह उस के जेठानी का भाई है. इसलिए नीलम को लगता था कि उस के आने जाने पर कोई शक नहीं करेगा. नीलम की मौन सहमति पा कर एक दिन उसे घर में अकेली पा कर जगराम सिंह ने उस का हाथ पकड़ लिया. बनावटी नानुकुर के बाद उस ने जगराम को अपना शरीर सौंप दिया. जगराम से उसे जो सुख मिला, उस ने रिश्तों की मर्यादा को भुला दिया.

इस के बाद नीलम और जगराम जब भी मौका पाते, एक हो जाते. नीलम को जगराम सिंह के साथ शारीरिक सुख में कुछ ज्यादा ही आनंद आता था, इसलिए वह उस का भरपूर सहयोग करने लगी थी. कभीकभी तो जगराम से मिलने वाले सुख के लिए वह बच्चों को बहाने से घर के बाहर भी भेज देती थी. कुछ सालों तक तो उन का यह संबंध लोगों की नजरों से छिपा रहा, लेकिन जगराम सिंह का शिवचरन के घर अक्सर आना और घंटो पड़े रहना, लोगों को खटकने लगा. नीलम और उस के सबइंसपेक्टर भाई के हावभाव और कार्यशैली से लोगों को विश्वास हो गया कि उन के बीच गलत संबंध है.

जगराम सिंह बेहद चालाकी से काम ले रहा था. वह जब भी शिवचरन की मौजूदगी में आता, काफी गंभीर बना रहता. वह इस बात का आभास तक न होने देता कि उस के और नीलम के बीच कुछ चल रहा है. तब वह पूरी तरह से रिश्तेदार बना रहता. लेकिन एकांत मिलते ही वह रिश्तेदार के बजाय नीलम का प्रेमी बन जाता. जब मामला कुछ ज्यादा ही बढ़ गया तो पड़ोसियों ने शिवचरन के कान भरने शुरू किए. उसने अतीत में झांका तो उसे भी संदेह हुआ. फिर एक दिन जगराम घर आया तो वह होटल जाने की बात कह कर घर से निकला जरूर, लेकिन आधे घंटे बाद ही वापस आ गया. उस ने देखा कि दोनों बेटे बाहर खेल रहे हैं और कमरे की अंदर से सिटकनी बंद है.

उस ने सचिन से पूछा, ‘‘क्या बात है, कमरे का दरवाजा क्यों बंद है, तुम्हारी मम्मी कहां हैं.?’’

‘‘मम्मी और मामा कमरे में हैं. हम कब से उन्हें बुला रहे हैं, वे दरवाजा खोल ही नहीं रहे हैं.’’ सचिन ने कहा.

शिवचरन को संदेह तो था ही, अब विश्वास हो गया. वह नीलम को आवाज दे कर दरवाजा पीटने लगा. अचानक शिवचरन की आवाज सुन कर दोनों घबरा गए. वे जल्दी से उठे और अपने अपने कपड़े ठीक किए. इस के बाद नीलम ने आ कर दरवाजा खोला. नीलम की हालत देख कर शिवचरन सारा माजरा समझ गया. उसे कुछ कहे बगैर वह कमरे के अंदर आया तो देखा जगराम सोने का नाटक किए चारपाई पर लेटा था. शिवचरन खून का घूंट पी कर रह गया. उस समय उस ने न तो नीलम से कुछ कहा और न ही जगराम सिंह से. लेकिन उस के हावभाव से नीलम समझ गई कि उस के मन में क्या चल रहा है. उस ने अपने भयभीत चेहरे पर मुसकान लाने की कोशिश तो बहुत की, लेकिन तनाव में होने की वजह से सफल नहीं हो पाई.

शिवचरन सोच ही रहा था कि वह क्या करे, तभी जगराम जम्हुआई लेते हुए उठा और शिवचरन को देख कर बोला, ‘‘अरे तुम इतनी जल्दी कैसे आ गए, तबीयत तो ठीक है?’’

शिवचरन ने जगराम सिंह के चेहरे पर नजरें जमा कर दबे स्वर में कहा, ‘‘तबीयत तो ठीक है, लेकिन दिमाग ठीक नहीं है.’’

इतना कह कर ही शिवचरन बाहर चला गया. उस ने जिस तरह यह बात कही थी, उसे सुन कर जगराम ने वहां रुकना उचित नहीं समझा और चुपचाप बाहर निकल गया. उस के जाते ही शिवचरन वापस लौटा और नीलम की चोटी पकड़ कर बोला, ‘‘बदलचन औरत, इस उम्र में तुझे यह सब करते शरम भी नहीं आई? वह भी उस आदमी के साथ जो तेरा भाई लगता है.’’

नीलम की चोरी पकड़ी गई थी, इसलिए वह कुछ बोल नहीं पाई. गुस्से में तप रहे शिवचरन ने नीलम को जमीन पर पटक दिया और लात घूसों से पिटाई करने लगा. नीलम चीखतीचिल्लाती रही, लेकिन शिवचरन ने उसे तभी छोड़ा, जब वह उसे मारते मारते थक गया. इस के बाद शिवचरन नीलम पर नजर रखने लगा था. उस ने बेटों से भी कह दिया था कि जब भी मामा घर आए, वे उस से बताएं. जिस दिन शिवचरन को पता चलता कि जगराम आया था, उस दिन शिवचरन नीलम पर कहर बन कर टूटता था. अब जगराम और नीलम काफी सावधानी बरतने लगे थे. वह तभी नीलम से मिलने आता था, जब उसे पता चलता था कि घर पर न बेटे हैं और न शिवचरन.

इसी बात की जानकारी के लिए जगराम सिंह ने नीलम को एक मोबाइल फोन खरीद कर दे दिया था. इस से दोनों की रोजाना बातें तो होती ही रहती थीं, इसी से मिलने का समय भी तय होता था. एक दिन शिवचरन ने नीलम को जगराम से बातचीत करते पकड़ लिया तो मोबाइल फोन छीन कर पटक दिया. लेकिन अगले ही दिन जगराम ने उसे दूसरा मोबाइल फोन खरीद कर दे दिया. काफी प्रयास के बाद भी शिवचरन नीलम और जगराम को अलग नहीं कर सका तो उस ने जगराम के घर जा कर उस की पत्नी लक्ष्मी से सारी बात बता दी. इस के बाद जगराम के घर कलह शुरू हो गई. यह कलह इतनी ज्यादा बढ़ गई कि लक्ष्मी ने बच्चों के साथ आत्मदाह करने की धमकी दे डाली.

पत्नी की इस धमकी से जगराम डर गया. उस ने पत्नी से वादा किया कि अब वह नीलम से संबंध तोड़ लेगा. उस ने नीलम से मिलना कम कर दिया तो इस से नीलम नाराज हो गई. इधर उस ने पैसों की मांग भी अधिक कर दी थी, जिस से जगराम को परेशानी होने लगी थी. एक ओर जगराम सिंह अपनी पत्नी और बच्चों को छोड़ नहीं सकता था. दूसरी ओर अब नीलम से भी पीछा छुड़ाना आसान नहीं रह गया था. वह बदनाम करने की धमकी देने लगी थी. उस की धमकी और मांगों से तंग आ कर जगराम सिंह ने नीलम से पीछा छुड़ाने के लिए अपने साले लक्ष्मण के साथ मिल कर उसे खत्म करने की योजना बना डाली.

संयोग से उसी बीच नीलम ने बच्चों की ड्रेस, फीस, कापीकिताब और घर के खर्च के लिए जगराम से 10 हजार रुपए मांगे. जगराम ने कहा कि पैसों का इंतजाम होने पर वह उसे फोन से बता देगा. 24 जुलाई, 2014 की शाम 4 बजे जगराम सिंह ने नीलम को फोन किया कि पैसों का इंतजाम हो गया है, वह श्यामनगर चौराहे पर आ कर पैसे ले ले. फोन पर बात होने के बाद नीलम ने बेटों से कहा कि वह उन की ड्रेस लेने दर्जी के पास जा रही है और उधर से ही वह घर का सामान भी लेती आएगी.

नीलम श्यामनगर चौराहे पर पहुंची तो जगराम अपने साले लक्ष्मण सिंह के साथ कार में बैठा था. नीलम को भी उस ने कार में बैठा लिया. कार चल पड़ी तो नीलम ने जगराम से पैसे मांगे. लेकिन उस ने पैसे देने से मना कर दिया. तब नीलम नाराज हो कर उसे बदनाम करने की धमकी देने लगी. नीलम की बातों से जगराम को भी गुस्सा आ गया. वह उस से छुटकारा तो पाना ही चाहता था, इसलिए पैरों के नीचे रखी लोहे की रौड निकाली और नीलम के सिर पर पूरी ताकत से दे मारा. उसी एक वार में नीलम लुढ़क गई. इस के बाद जगराम ने नीलम की साड़ी गले में लपेट Crime story कर कस दी. नीलम मर गई तो चाकू से उस के चेहरे को गोद दिया.

जगराम अपना काम करता रहा और लक्ष्मण कार चलाता रहा. चलती कार में नीलम की बेरहमी से हत्या कर के जगराम और लक्ष्मण ने देर रात उस की लाश को नौबस्ता ले जा कर हाईवे के किनारे फेंक दिया और खुद कार ले कर अपने घर चले गए.

पूछताछ के बाद 10 जुलाई, 2014 को थाना नौबस्ता पुलिस ने अभियुक्त सबइंसपेक्टर जगराम सिंह को कानपुर की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उस की जमानत नहीं हुई थी. उस का साला लक्ष्मण फरार था. पुलिस उस की तलाश में जगहजगह छापे मार रही थी.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

काली दुनिया का कुख्यात Gangster

Gangster story : बदन सिंह बद्दो मूलरूप से पंजाब का रहने वाला है. उस के पिता चरण सिंह पंजाब के जालंधर से 1970 में मेरठ आए और यहां के एक मोहल्ला पंजाबीपुरा में बस गए. चरण सिंह एक ट्रक ड्राइवर थे. ट्रक चला कर उस आमदनी से किसी तरह अपने 7 बेटेबेटियों के बड़े परिवार को पाल रहे थे. बदन सिंह बद्दो सभी भाईबहनों में सब से छोटा था. 8वीं के बाद उस ने स्कूल जाना बंद कर दिया. कुछ बड़ा हुआ तो बाप के साथ ट्रक चलाने लगा. एक शहर से दूसरे शहर माल ढुलाई के दौरान उस का वास्ता पहले कुछ छोटेमोटे अपराधियों से और फिर शराब माफियाओं से पड़ा. उस ने कई बार पैसे ले कर शराब की खेप एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाई.

धीरेधीरे पश्चिमी यूपी के बौर्डर के इलाकों में उस ने बड़े पैमाने पर शराब की तस्करी शुरू कर दी. फिर स्मगलिंग के बड़े धंधेबाजों से उस की दोस्ती हो गई. वह स्मगलिंग का सामान बौर्डर के आरपार करने लगा. हरियाणा और दिल्ली बौर्डर पर तस्करी से उस ने खूब पैसा कमाया. इस के बाद तो वह पूरी तरह अपराध के कारोबार में उतर गया और उस की दिन की कमाई लाखों में होने लगी. दिखने के लिए बद्दो खुद को ट्रांसपोर्ट के बिजनैस से जुड़ा दिखाता रहा, मगर उस का धंधा काला था.

अपराध की राह पर बड़ी तेजी से आगे बढ़ते बद्दो की मुलाकात जब पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 2 बड़े बदमाश सुशील मूंछ और भूपेंद्र बाफर से हुई तो इन दोनों के साथ उस का मन लग गया. इन के साथ ने बद्दो को निडर बनाया. बद्दो ने कई गुर्गे पाल लिए जो उस के इशारे पर सुपारी ले कर हत्या और अपहरण का धंधा चलाने लगे. सुशील मूंछ और बद्दो के गठजोड़ ने जमीनों पर अवैध कब्जे का धंधा भी शुरू कर दिया. सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे कर वहां दुकानें बना कर करोड़ों में खरीदनेबेचने के इस धंधे में सरकारी सिस्टम में बैठी काली भेड़ें भी शामिल थीं, जो अपना हिस्सा ले कर किसी भी फाइल को आगे बढ़ा देती थीं.

बदन सिंह बद्दो और सुशील मूंछ की दोस्ती जब बहुत गहरी हुई तो भूपेंद्र बाफर और सुशील मूंछ में दूरियां बढ़ गईं और एक समय वह आया जब बाफर सुशील मूंछ का दुश्मन हो गया. तब मूंछ और बद्दो एकदूसरे का सहारा बन गए. सुशील मूंछ का बड़ा गैंग था. विदेश तक उस के कारनामों की गूंज थी. जरायम की दुनिया के इन 2 बड़े कुख्यातों का याराना पुलिस फाइल और अपराध की काली दुनिया में बड़ी चर्चा में रहता था. दोस्ती भी अजीबोगरीब थी. हैरतअंगेज था कि जब एक किसी अपराध में गिरफ्तार हो कर जेल जाता तो दूसरा बाहर रहता था और धंधा संभालता था. 3 दशकों तक ये दोनों पुलिस से आंखमिचौली खेलते रहे. मूंछ जब 3 साल जेल में बंद रहा तो उस दौरान बद्दो जेल से बाहर था. मूंछ का सारा काम बद्दो संभालता था.

वहीं 2017 में जब बद्दो को उम्रकैद की सजा हुई तो मूंछ बाहर था और बद्दो की पूरी मदद कर रहा था. 2019 में जब बद्दो पुलिस को चकमा दे कर कस्टडी से फरार हुआ तो दूसरे ही दिन सुशील मूंछ ने सरेंडर कर दिया और जेल चला गया. पुलिस कभी भी इन दोनों की साजिश को समझ नहीं पाई. कहते हैं कि बद्दो को कस्टडी से फरार करवाने की सारी प्लानिंग सुशील मूंछ ने की. इस के लिए पुलिस और कुछ सफेदपोशों को बड़ा पैसा खिलाया गया. लेकिन बद्दो कहां है यह राज आज तक पुलिस सुशील मूंछ से नहीं उगलवा पाई. कहा जाता है कि वह दुनिया के किसी कोने में बैठ कर हथियारों का धंधा करता है.

पर्सनैलिटी में झलकता रईसी अंदाज

बदन सिंह बद्दो सिर्फ 8वीं पास था, लेकिन उस में बात करने की सलाहियत ऐसी थी कि लगता वह दर्शन शास्त्र का कोई बड़ा गहन जानकार हो. बातबात में वह शायरी और महापुरुषों के वक्तव्यों को कोट करता था. एक पार्टी के दौरान जब एक रिपोर्टर ने उस से पूछ लिया कि जरायम की दुनिया से कैसे जुड़ गए तो विलियम शेक्सपियर को कोट करते हुए बद्दो ने कहा, ‘ये दुनिया एक रंगमंच है और हम सब इस मंच के कलाकार.’ पश्चिमी उत्तर प्रदेश का कुख्यात गैंगस्टर बदन सिंह बद्दो अब खुल कर लग्जरी लाइफ जीने लगा था. बद्दो का रहनसहन देख कर कोई भी उस के रईसी शौक का अंदाजा आसानी से लगा सकता है. लूई वीटान जैसे महंगे ब्रांड के जूते और कपड़े पहनना बदन सिंह बद्दो को अन्य अपराधियों से अलग बनाता है. वह आंखों पर लाखों रुपए मूल्य के विदेशी चश्मे लगाता है. हाथों में राडो और रोलैक्स की घडि़यां पहनता है.

बदन सिंह बद्दो महंगे विदेशी हथियार रखने का भी शौकीन है. उस के पास विदेशी नस्ल की बिल्लियां और कुत्ते थे, जिन के साथ वह अपनी फोटो फेसबुक पर भी शेयर करता था. इन तसवीरों को देख कर कोई कह नहीं सकता कि मासूम जानवरों को गोद में खिलाने वाले इस हंसमुख चेहरे के पीछे एक खूंखार गैंगस्टर छिपा हुआ है. बुलेटप्रूफ कारों का लंबा जत्था उस के साथ चलता था. उस के महलनुमा कोठी में सीसीटीवी कैमरे समेत आधुनिक सुरक्षा तंत्र का जाल बिछा है. ब्रांडेड कपड़े और जूते पहन कर जब वह किसी फिल्मी हस्ती की तरह विदेशी हथियारों से लैस बौडीगार्ड्स और बाउंसर्स की फौज के साथ घर से निकलता तो आसपास देखने वालों की भीड़ लग जाती थी. वह हमेशा बुलेटप्रूफ बीएमडब्ल्यू या मर्सिडीज कार से ही चलता था. उस की शानोशौकत भरी जिंदगी देख कर कोई यकीन नहीं करता था कि वह एक हार्डकोर क्रिमिनल है.

पहली हत्या और फिर हत्याओं का सिलसिला

बदन सिंह बद्दो की हिस्ट्रीशीट के मुताबिक, उस पर पहला आपराधिक मामला साल 1988 में दर्ज हुआ था, जब उस ने एक जमीन विवाद में मेरठ के गुदरी बाजार कोतवाली इलाके में राजकुमार नाम के व्यक्ति की दिनदहाड़े हत्या कर दी थी. इस हत्या के बाद उस का नाम मेरठ से निकल कर हापुड़, गाजियाबाद और बागपत तक पहुंच गया. बदमाशों के बीच चर्चा शुरू हो गई कि बदन Gangster story  सिंह नाम का नया गैंगस्टर आ गया है, जिसे ‘न’ सुनना पसंद नहीं है. बद्दो को इस अपराध में पुलिस ने एक राइफल और 15 जिंदा कारतूस के साथ गिरफ्तार किया था. वह कुछ समय तक जेल में रहा, फिर जमानत पर बाहर आ गया. इस के बाद तो उस की हिम्मत और बढ़ गई.

1994 में बदन सिंह बद्दो ने प्रकाश नाम के एक युवक की गोली मार कर हत्या कर दी. साल 1996 में बदन सिंह ने वकील राजेंद्र पाल की हत्या की. इस के बाद तो जैसे हत्याओं का सिलसिला ही शुरू हो गया. वह सुपारी ले कर हत्याएं करवाने का धंधा भी करने लगा. बद्दो के बारे में कहा जाता है कि उस का गुस्सा तभी शांत होता था, जब वह अपने दुश्मन से बदला ले लेता था. कहते हैं कि उसे टोकाटाकी कतई बरदाश्त नहीं है. वकील राजेंद्र पाल की हत्या ने बद्दो को खूब मशहूर किया.

दरअसल, वकील राजेंद्र पाल भी कुछ कम दबंग नहीं था. एक पार्टी में बदन सिंह बद्दो ने किसी बात से चिढ़ कर वकील राजेंद्र पाल के पारिवारिक मित्र की पत्नी के बारे में अनुचित टिप्पणी कर दी थी, जिस से नाराज राजेंद्र पाल ने उसे सरेआम थप्पड़ जड़ दिया. बस फिर क्या था, राजेंद्र को मौत के घाट उतार कर बद्दो ने बदला पूरा किया और फरार हो गया. पुलिस ने केस दर्ज किया और जांच शुरू की. यह केस कई साल चलता रहा. इस बीच बद्दो ने जमानत करवा ली और अपने आपराधिक कारनामे बदस्तूर चलाता रहा.

उस के क्राइम का ग्राफ दिनबदिन बढ़ता ही चला गया.

2011 में जहां उस ने मेरठ के हस्तिनापुर क्षेत्र के जिला पंचायत सदस्य संजय गुर्जर की गोली मार कर हत्या की, वहीं साल 2012 में उस ने केबल नेटवर्क के एक संचालक पवित्र मैत्रेय की हत्या कर दी. इन हत्याओं के अलावा बदन सिंह के खिलाफ दिल्ली और पंजाब में किडनैपिंग, जमीन कब्जाने के कई केस दर्ज हुए. मेरठ जिले के प्रतिष्ठित व्यवसायी राजेश दीवान से 2 करोड़ रुपए की रंगदारी मांगने और धमकी देने के मामले में भी बद्दो के खिलाफ परतापुर और लालकुर्ती थाने में मुकदमे दर्ज हुए. इस मामले में चार्जशीट भी दाखिल हो चुकी है.

सफेदपोश नेताओं और अधिकारियों का खास उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में उस पर हत्या, वसूली, लूट, डकैती के 40 से ज्यादा मामले दर्ज हैं. सुपारी किंग के नाम से मशहूर हो चुके बदन सिंह बद्दो ने सुपारी ले कर कई हत्याएं करवाईं. उस से यह सेवा लेने वाले कई सफेदपोश नेता भी हैं, जिन्होंने बद्दो के जरिए अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों का सफाया करवाया. बदले में बद्दो को मोटी रकम मिली. राजेंद्र पाल हत्या के मामले में 21 साल बाद वर्ष 2017 में बद्दो को उम्रकैद की सजा सुनाई गई और उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. बदन सिंह बद्दो की दोस्ती के ख्वाहिशमंद सिर्फ अपराध की दुनिया के लोग ही नहीं थे, बल्कि बड़ेबड़े कारोबारी, सफेदपोश नेता और पुलिस अधिकारी भी उस से अच्छे रिश्ते बना कर रखते थे. बद्दो भी इन तमाम लोगों का खास खयाल रखता था. खासतौर से पुलिस के साथ तो उस का दोस्ताना साफ दिखाई देता था. इस की एक बानगी देखिए.

2012 में बद्दो को पुलिस ने धमकी देने के एक मामले में गिरफ्तार किया. उसे लालकुर्ती थाने ले जाया गया. बद्दो जैसे ही थाने पहुंचा, थानेदार उछल कर अपनी कुरसी से खड़ा हो गया. थानेदार के मुंह से एकाएक निकला, ‘अरे बद्दो तुम यहां कैसे?’ बद्दो ने उसे देखा और मुसकरा कर सामने पड़ी कुरसी पर फैल कर बैठ गया. उस को थाने ले कर आने वाले एसआई और सिपाही इस बदली सिचुएशन से सकपका गए. बद्दो अभी थाने में बैठा ही था कि एसएसपी समेत कई बड़े कारोबारी थाने पहुंच गए. अब एफआईआर हुई थी तो पुलिस को काररवाई तो दिखानी थी.

अगले दिन जब बद्दो को कचहरी ले जाया गया तो शहर के सारे बड़े कारोबारी उस के पीछे चल रहे थे. साल 2000 के बाद से बदन सिंह बद्दो नेताओं को मोटी फंडिंग करने वाला बन गया था. यही कारण था कि उस के धंधों पर हाथ डालने से पुलिस अधिकारी पीछे हटने लगे.

वकील हत्याकांड में हुई उम्रकैद की सजा

21 साल बाद 31 अक्तूबर, 2017 को वकील राजेंद्र पाल हत्याकांड में गौतमबुद्धनगर के जिला न्यायालय ने 9 गवाहों की गवाही के बाद बदन सिंह बद्दो को उम्रकैद की सजा सुनाई. उस दिन बद्दो कोर्ट में मौजूद था. सजा का ऐलान होते ही वह रो पड़ा. इस से पहले 13 अक्तूबर को बदन सिंह बद्दो ने फेसबुक पर एक पोस्ट डाली थी. उस में लिखा था, ‘जब गिलाशिकवा अपनों से हो तो खामोशी ही भली, अब हर बात पर जंग हो यह जरूरी तो नहीं.’ उस को जानने वाले कहते हैं कि इस मामले में उसे सजा का एहसास हो गया था. कोर्टरूम में सजा सुनाए जाने के तुरंत बाद बद्दो को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

बदन सिंह बद्दो 2 साल जेल में रहा. जेल के अंदर से भी उस के काले कारनामे बदस्तूर चलते रहे, जिन्हें बाहर उस का खास दोस्त सुशील मूंछ संभालता रहा. 28 मार्च, 2019 का दिन था जब बद्दो को फतेहगढ़ जेल से एक पुराने मामले में पेशी के लिए गाजियाबाद कोर्ट ले जाना था. पुलिस का दस्ता बख्तरबंद गाड़ी में बद्दो को ले कर गाजियाबाद पहुंचा और कोर्ट में उस की पेशी हुई. वापसी में बद्दो ने पुलिसकर्मियों को कुछ देर के लिए मेरठ चलने के लिए राजी कर लिया. एवज में बड़ी रकम का लालच दिया गया.

5-5 सौ रुपए के लिए कानून को धता बताने वाले पुलिसकर्मी इतने बड़े औफर को भला कैसे ठुकरा देते. बद्दो के लिए पुलिस की गाड़ी मेरठ की ओर मुड़ गई. वहां एक शानदार थ्री स्टार मुकुट महल होटल में बद्दो ने सभी पुलिसकर्मियों को छक कर उन का मनपसंद खाना खिलवाया और जम कर शराब पिलवाई. इतनी शराब कि सारे होश खो बैठे. उन्हें होटल में बेसुध छोड़ कर बदन सिंह बद्दो ऐसा फरार हुआ कि फिर आज तक किसी को नजर नहीं आया. कहते हैं बद्दो को फरार करवाने की पूरी प्लानिंग उस के दोस्त सुशील मूंछ ने की और जेल से ले कर होटल तक सब को मैनेज किया. पूरा प्लान जेल के अंदर बद्दो तक पहुंचाया गया. इस प्लानिंग में होटल का मालिक और स्टाफ भी शामिल था.

होटल के बाहर पार्किंग में पहले से ही एक लग्जरी गाड़ी मय ड्राइवर खड़ी थी. पुलिसकर्मियों को दारू के नशे में धुत कर के बद्दो कब उस गाड़ी में बैठ कर मेरठ की सीमा लांघता हुआ विदेश पहुंच गया, कोई नहीं जानता. मजे की बात तो यह है कि जिस दिन यह घटना घटी उस दिन मेरठ में हाई अलर्ट था, क्योंकि 28 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी घटनास्थल से लगभग 18 किलोमीटर दूर टोल प्लाजा के पास एक चुनावी रैली को संबोधित कर रहे थे. पुलिस डिपार्टमेंट और इंटेलिजेंस के लिए इस से शर्मनाक और क्या होगा.

देश भर की पुलिस इस खूंखार अपराधी को पकड़ने के लिए बीते 3 सालों से हाथपैर मार रही है, मगर उस की छाया तक कहीं नहीं मिल रही है. उस को पकड़ने के लिए इंटरपोल तक से मदद मांगी गई है. उस के सिर पर जिंदा या मुर्दा मिलने पर ढाई लाख रुपए का ईनाम घोषित है. मगर बद्दो किस बिल में जा छिपा है, कोई नहीं जानता. पुलिस व एजेंसियां मानती हैं कि वह अपने बेटे के साथ विदेश में है, लेकिन अभी  तक कोई भी सुराग पुलिस के हाथ नहीं लग पाया है. बदन सिंह बद्दो के पुलिस कस्टडी से फरार होने के बाद मेरठ पुलिस ने उस के बेटे सिकंदर पर 25 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर दिया और कुछ दिनों बाद उसे अरेस्ट कर लिया.

लेकिन बदन सिंह की तलाकशुदा पत्नी ने जब आस्ट्रेलिया से मेरठ के एसएसपी को फोन कर के कहा कि उस का बेटा बेकुसूर है और बदन सिंह बद्दो के गलत कामों की सजा उसे न दी जाए तो उस के कुछ ही दिन बाद सिकंदर को छोड़ दिया गया. इस के बाद तो सिकंदर भी ऐसा गायब हुआ जैसे गधे के सिर से सींग. अब बापबेटे दोनों की तलाश में पुलिस लकीर पीट रही है. बद्दो की फरारी मामले में 2 दरोगा, 3 सिपाही और 2 ड्राइवरों को तुरंत निलंबित कर दिया गया था. फर्रुखाबाद जिले के 6 पुलिसकर्मियों सहित कुल 21 व्यक्तियों को आरोपी बनाया गया.

इन में मेरठ के कई नामचीन व्यापारियों सहित होटल मुकुट महल के मालिक मुकेश गुप्ता और करण पब्लिक स्कूल के संचालक भानु प्रताप भी जेल भेज दिए गए. बद्दो और उस के बेटे के खिलाफ रेड कौर्नर नोटिस जारी हो चुका है. इंटरपोल से भी मदद मांगी गई, मगर कोई फायदा नहीं हुआ. इंटरपोल ने यह कहते हुए इंकार कर दिया कि बद्दो के पासपोर्ट पर कोई एंट्री ही नहीं है. कहते हैं कि बद्दो की 2 प्रेमिकाएं थीं. एक मेरठ के साकेत में ब्यूटीपार्लर चलाती थी और दूसरी गुरुग्राम में रहने वाली एक महिला थी. पुलिस कहती है कि बद्दो जब होटल से भागा तो सीधे मेरठ वाली प्रेमिका के घर पहुंचा.

आज तक ढूंढ नहीं सकी पुलिस

बद्दो को शहर की सीमा से निकलने में परेशानी न हो, इस के लिए उस ने बद्दो का लुक बदल दिया, जबकि गुरुग्राम वाली प्रेमिका ने देश छोड़ कर भागने में बद्दो की मदद की. मेरठ से अपनी वेशभूषा बदल कर निकले बद्दो को उस की गुड़गांव वाली प्रेमिका दिल्ली मेट्रो स्टेशन पर मिली और उस के बाद बद्दो उसी के साथ उस की कार में गया. बद्दो की यह प्रेमिका अपने फ्लैट पर ताला लगा कर बीते 2 साल से गायब है. कहते हैं गुड़गांव वाली प्रेमिका बद्दो से नाराज भी थी, क्योंकि बद्दो के बेटे को इसी प्रेमिका ने अपने बेटे की तरह पाला था और बद्दो ने उस से वादा किया था कि वह उसे अपने साथ विदेश ले जाएगा. मगर फरार होने के बाद बद्दो ने पलट कर अपनी प्रेमिकाओं की ओर कभी नहीं देखा.

माना जाता है कि बदन सिंह बद्दो नीदरलैंड और मलेशिया में अपना ठिकाना बना चुका है और वहीं से वह अवैध हथियारों का धंधा करता है. उस के धंधे में उस का बेटा Gangster story  सिकंदर अब उस का पार्टनर बन चुका है. जब उत्तर प्रदेश एसटीएफ, क्राइम ब्रांच और दूसरे राज्यों की स्पैशल पुलिस भी बदन सिंह बद्दो का कुछ पता नहीं लगा पाई तो खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे की तर्ज पर बीते साल योगी सरकार ने इस गैंगस्टर की संपत्तियों को खंगालना और उन्हें जब्त करने की काररवाई शुरू करवाई. 20 जनवरी, 2021 को मेरठ नगर निगम के अधिकारी मनोज सिंह 2 बुलडोजर और 20 मजदूर ले कर पंजाबीपुरा पहुंचे और बद्दो की आलीशान कोठी को जमींदोज कर दिया गया. गैंगस्टर बदन सिंह बद्दो के गुर्गे अजय सहगल की संपत्ति पर भी बाबा का बुलडोजर चला.

अजय सहगल को गैंगस्टर बदन सिंह बद्दो का राइट हैंड माना जाता है. उस की 7 अवैध दुकानों को तोड़ दिया गया. ये दुकानें 1500 वर्गमीटर के सरकारी जमीन पर बने पार्क पर अवैध रूप से कब्जा कर के बनाई गई थीं और इन का बैनामा भी करा लिया गया था.

इस से पहले नवंबर, 2020 में बद्दो की कुछ अन्य संपत्तियां कुर्क की गई थीं. मेरठ प्रशासन को बद्दो के पास दरजनों लग्जरी गाडि़यां होने का पता था, मगर उन में से वह एक भी जब्त नहीं कर पाई, क्योंकि बद्दो ने तमाम गाडि़यां दूसरों के नाम से खरीदी थीं.

 

Crime story : लूटे हुए लाखों रुपए को घर की ही जमीन में गाड़ा

Crime story : राजामहाराजाओं का बसाया हुआ जयपुर शहर सैकड़ों साल पुराना है. कभी इस शहर के चारों ओर परकोटा हुआ करता था. अब ये परकोटे टूट चुके हैं. फिर भी पुराने शहर को परकोटा ही कहते हैं. इसी परकोटे में किशनपोल बाजार है. इस बाजार में एक खूंटेटों का रास्ता है. खूंटेटों का रास्ता की एक संकरी गली में भूतल पर केडीएम एंटरप्राइजेज कंपनी का औफिस है. इसे कंपनी का औफिस भले ही कह लें, लेकिन यह पुराने शहर के एक मकान का कमरा है. कमरे में 2-4 कुर्सियां और एक काउंटर आदि रखे हैं. दरअसल, यह एक

हवाला कंपनी का औफिस है. आजकल हवाला कंपनी को मनी ट्रांसफर कंपनी भी कहते हैं. इस औफिस में न तो बिक्री लायक कोई सामान है और न ही यहां ग्राहक आते हैं. दिनभर में यहां 10-20 लोग आते हैं. वे कोई पर्ची या मोबाइल में सबूत दिखाते हैं और औफिस में काम करने वाले कर्मचारी उस की पहचान कर पर्ची या मोबाइल में मौजूद सबूत के आधार पर रकम गिन कर दे देते हैं. हवाला का कामकाज ऐसे ही चलता है. हवाला का काम सभी बड़े शहरों में होता है. यह काम बैंकों जैसा ही है. फर्क बस इतना है कि बैंकों में लिखापढ़ी और नियमकानून हैं. जबकि हवाला में कोई नियमकानून नहीं है. हवाला को आप घरेलू बैंक भी कह सकते हैं. इस के जरिए मामूली कमीशन पर एक से दूसरी जगह पैसे भेजे जाते हैं.

एक पर्ची पर रकम लिख कर दे दी जाती है. यह पर्ची दिखाने पर जहां रकम भेजी जाती है, वहां से ली जा सकती है. हवाला के जरिए कितनी भी रकम भेजी जा सकती है. 10-20 हजार से लेकर 10-20 लाख और 10-20 करोड़ रुपए तक. कानून की नजर में यह काम अवैध है, फिर भी यह धंधा बहुत सालों से चल रहा है. केवल भारत में ही नहीं, विदेशों में भी. बात इसी 10 मार्च की है. केडीएम एंटरप्राइजेज कंपनी के 2 कर्मचारी प्रियांशु उर्फ बंटी और पार्थ औफिस में बैठे थे. दोनों के पास कोई खास काम तो था नहीं, इसलिए मोबाइल पर वाट्सऐप चैटिंग कर रहे थे. दोपहर के तकरीबन साढ़े 12 बज चुके थे. उन्हें भूख लगने लगी थी.

कंपनी के इस औफिस में कोई लंच ब्रेक नहीं होता. इसलिए भूख लगने पर वे एक ही मेज पर टिफिन खोल कर घर से लाया भोजन कर लेते थे. कभी कुछ खाने या किसी दूसरी चीज की जरूरत होती, तो उन में से एक कर्मचारी बाजार जा कर जरूरत की चीज ले आता था. प्रियांशु और पार्थ लंच बौक्स लाए थे. वे लंच करने के लिए आपस में बात कर रहे थे, तभी एक युवक सीढि़यां चढ़ कर औफिस में आया. उस ने सिर पर हेलमेट लगा रखा था. सफेद रंग की शर्ट और जींस के अलावा उस के पैरों में स्पोर्ट्स शूज थे. सिर पर हेलमेट लगा होने के कारण उस का चेहरा पहचान में नहीं आ रहा था. युवक के कंधे पर एक बैग लटक रहा था.

पार्थ और प्रियांशु ने युवक को आया देख सोचा कि वह रकम लेने आया होगा. वे दोनों उस से कुछ कहते या पूछते, इस से पहले ही उस ने फुरती से अपने बैग से एक पिस्तौल निकाली और दोनों को धमकाते हुए कहा, ‘‘चिल्लाना मत, वरना ठोक दूंगा.’’

पिस्तौल देख और युवक की धमकी सुन कर दोनों कर्मचारी सहम गए. दोनों को धमकाते हुए युवक ने उन के मुंह पर सेलो टेप चिपका दी ताकि वे शोर ना मचा सकें. सेलो टेप वह अपनी जेब में डाल कर लाया था. उसी सेलो टेप से उस ने दोनों कर्मचारियों के हाथ भी बांध दिए. हाथ बांधने के बाद युवक ने उन से पूछा कि रकम कहां रखी है? पार्थ और प्रियांशु के मुंह पर टेप चिपकी थी, वे कैसे बोलते? दोनों चुप रहे, तो युवक ने खुद ही काउंटर की दराजें खोल कर देखी. एक दराज में रुपयों से भरा बैग था. उस बैग में 45 लाख रुपए थे. वह बैग युवक ने अपने बैग में डाला और दोनों कर्मचारियों को धमकाते हुए चला गया.

3 मिनट में 45 लाख रुपए लूट की वारदात कर वह युवक वापस चला गया. उस गली और औफिस में इक्कादुक्का लोगों की आवाजाही रहती है. इसलिए न तो किसी ने उसे आते देखा और न ही जाते हुए. लुटेरे के जाने के काफी देर बाद तक पार्थ और प्रियांशु डर के मारे चुपचाप बैठे रहे. बाद में उन्होंने अपने हाथों और मुंह पर बंधी चिपकी टेप हटाई. फिर मकान मालिक राधावल्लभ शर्मा को वारदात के बारे में बताया, शोर मचाया. आसपास के लोगों ने इधरउधर देखा भी, लेकिन लुटेरे का कुछ पता नहीं चला.

बाद में कर्मचारियों ने कंपनी के मैनेजर रोहित कुमार शर्मा को वारदात के बारे में बताया. रोहित ने औफिस पहुंच कर दोनों से लूट के बारे में पूछा. वारदात के करीब ढाई घंटे बाद दोपहर करीब 3 बजे पुलिस को सूचना दी गई. जयपुर के प्रमुख बाजार से दिनदहाड़े हवाला कंपनी के औफिस से 45 लाख रुपए लूटे जाने की वारदात की बात सुन कर पुलिस अफसर भी हैरान रह गए.

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सूचना मिलने पर पुलिस कमिश्नरेट और नौर्थ पुलिस जिले के अधिकारी मौके पर पहुंचे. पुलिस ने हवाला कंपनी के दोनों कर्मचारियों पार्थ और प्रियांशु से पूछताछ की. डीसीपी (क्राइम) दिगंत आनंद ने भी मौके पर पहुंच कर उन दोनों से पूछताछ की. पुलिस अधिकारियों ने आसपास के सीसीटीवी फुटेज दिखवाए. इन में हेलमेट लगाए हुए एक युवक पैदल आ कर हवाला औफिस में जाता हुआ दिखा. युवक ने हेलमेट के नीचे मुंह पर मास्क भी लगाया हुआ था. हाथों में दस्ताने पहन रखे थे. वारदात के बाद लुटेरा किशनपोल बाजार तक पैदल जाता दिखा.

पूछताछ में पता चला कि गुजरात के पाटन जिले के रहने वाले रोहित कुमार शर्मा ने एक महीने पहले ही राधावल्लभ के मकान में यह औफिस किराए पर लिया था. फरवरी में बसंत पंचमी पर औफिस का मुहूर्त किया गया था. औफिस में पार्थ और प्रियांशु ही काम करते थे. यही औफिस खोलते और लेनदेन करते थे. रोहित इस कंपनी का मैनेजर था. रोहित की कंपनी के देश के विभिन्न शहरों में करीब 15 औफिस हैं. इन सभी औफिसों में मनी ट्रांसफर का ही काम होता है.

मौके के हालात और पूछताछ में मिली जानकारियों से पुलिस अधिकारियों के गले कई बातें नहीं उतर रही थीं. सब से बड़ी बात यह थी कि 45 लाख की लूट होने के बावजूद दोनों कर्मचारी न तो चिल्लाए और न ही लुटेरे का पीछा किया. पुलिस को 3 घंटे देरी से सूचना देने के बारे में भी वे लोग संतोषजनक जवाब नहीं दे सके. पुलिस अधिकारियों को शुरुआती जांच में यह अहसास हो गया कि वारदात में किसी नजदीकी आदमी का हाथ हो सकता है. इस का कारण यह था कि इस औफिस को खुले एक महीना भी नहीं हुआ था. इसलिए कोई बाहरी आदमी इतनी आसानी से वारदात नहीं कर सकता था.

पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज के आधार पर लुटेरे की तलाश शुरू कर दी. फुटेज में लुटेरा किशनपोल बाजार तक पैदल जाता हुआ दिखाई दिया. इस के बाद उस के फुटेज नहीं मिले. इस से अनुमान लगाया गया कि वह आगे किसी वाहन से भागा होगा. पुलिस ने हुलिए के आधार पर रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड और जयपुर से बाहर जाने वाले रास्तों पर नाकेबंदी करा दी, लेकिन शाम तक कोई सुराग नहीं मिला. इस बीच, गुजरात के पाटन जिले के हारिज बोरतवाड़ा निवासी हवाला कंपनी के मैनेजर रोहित कुमार शर्मा ने जयपुर नौर्थ पुलिस जिले के कोतवाली थाने में इस लूट का मुकदमा दर्ज करा दिया. पुलिस ने मुकदमा आईपीसी की धारा 392 के तहत दर्ज कर लिया.

पुलिस के सामने हेलमेट से चेहरा छिपाए हुए लुटेरे को तलाश करना बड़ा चुनौती भरा काम था. इस का कारण यह था कि सीसीटीवी फुटेज में लुटेरे का चेहरा हेलमेट और मास्क लगा होने के कारण नजर नहीं आ रहा था. केवल उस की कदकाठी का ही अनुमान लग रहा था. हवाला कंपनी के कर्मचारियों और आसपास के लोगों से पूछताछ में भी कोई ऐसा क्लू नहीं मिला, जिस से लुटेरे का पता चलता. लुटेरे का पता लगाने के लिए पुलिस कमिश्नर आनंद श्रीवास्तव और अतिरिक्त पुलिस कमिश्नर (प्रथम) अजयपाल लांबा के निर्देश पर 3 टीमों का गठन किया गया. एक टीम में एडिशनल डीसीपी धर्मेंद्र सागर और प्रशिक्षु एसीपी कल्पना वर्मा के सुपरविजन में कोतवाली थानाप्रभारी विक्रम सिंह चारण और नाहरगढ़ थानाप्रभारी मुकेश कुमार को रखा गया.

दूसरी टीम में डीसीपी (क्राइम) दिगंत आनंद के सुपरविजन में एडिशनल डीसीपी सुलेश चौधरी और सीएसटी प्रभारी रविंद्र प्रताप सिंह को शामिल किया गया. तीसरी टीम में डीएसटी नौर्थ प्रभारी जयप्रकाश पूनिया के नेतृत्व में डीएसटी टीम को लिया गया. इन तीनों टीमों में 50 से ज्यादा Crime story पुलिसवाले शामिल किए गए. तीनों पुलिस टीमों ने वारदातस्थल खूंटेटों का रास्ता से किशनपोल बाजार, अजमेरी गेट, अहिंसा सर्किल, गवर्नमेंट प्रेस चौराहा, विशाल मेगामार्ट, अजमेर पुलिया और 2 सौ फुट बाइपास तक सैकड़ों सीसीटीवी फुटेज खंगाले. इन मार्गों पर चलने वाले आटो चालकों, मिनी व लो फ्लोर बस चालकों और कंडक्टरों से पूछताछ की गई.

दूसरे दिन फुटेज देखने से पता चला कि लुटेरा किशनपोल बाजार से आटो में सवार हो कर अहिंसा सर्किल तक गया. तीसरे दिन देखी गई फुटेज से पता चला कि लुटेरा अहिंसा सर्किल से मिनी बस में सवार हो कर पुलिस कमिश्नरेट तक गया. वहां से दूसरी बस में बैठ कर वह अजमेर पुलिया पहुंचा. हेलमेट, मास्क व दस्ताने पहन कर वारदात करने और इस के बाद बारबार वाहन बदलने से पुलिस को यह अहसास जरूर हो गया कि लुटेरा बहुत शातिर है. चौथे दिन पुलिस को कुछ और सुराग मिले. इस बीच, पुलिस अधिकारी हवाला औफिस के दोनों कर्मचारियों पार्थ व प्रियांशु को रोजाना थाने बुला कर पूछताछ करते रहे.

आखिर पुलिस ने 14 मार्च को हवाला कंपनी के औफिस से हुई 45 लाख रुपए की लूट का खुलासा कर 6 लोगों को गिरफ्तार कर लिया. इन में गुजरात के पाटन जिले के चानस्मा थाना इलाके के कंबोई गांव का रहने वाला प्रियांशु शर्मा उर्फ बंटी, उस का भाई रवि शर्मा, इन की मां हंसा शर्मा उर्फ पूजा के अलावा गुजरात के पाटन जिले के चंद्रूमाणा गांव के रहने वाले पार्थ व्यास, जयपुर के भांकरोटा इलाके में केशुपुरा का रहने वाला हनुमान सहाय बुनकर और जयपुर के चित्रकूट इलाके में गोविंद नगर डीसीएम का रहने वाला मोहित कुमावत शामिल थे.

इनमें प्रियांशु अपनी मां हंसा उर्फ पूजा और भाई रवि शर्मा के साथ आजकल जयपुर में चित्रकूट थाना इलाके के वैशाली नगर में सेल बी हौस्पिटल के पास रहता था. प्रियांशु शर्मा उर्फ बंटी इसी हवाला कंपनी में करता था. लुटेरे ने प्रियांशु और दूसरे कर्मचारी पार्थ को धमका कर टेप से उन के मुंह बंद कर दिए और हाथ बांध दिए थे. आरोपी पार्थ व्यास को गुजरात के पाटन और बाकी 5 अपराधियों को जयपुर से पकड़ा गया. पुलिस ने इन आरोपियों से लूट की पूरी 45 लाख रुपए की रकम बरामद कर ली.

गिरफ्तार किए गए आरोपियों से पुलिस की पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह रिश्तों में विश्वासघात का किस्सा था. गुजरात के पाटन जिले के चानस्मा थाना इलाके में आने वाले गांव कंबोई की रहने वाली हंसा देवी शर्मा उर्फ पूजा का पति कैलाश चंद शर्मा लेबर कौन्ट्रैक्ट का काम करता था. मार्च, 2020 में कोरोना के कारण हुए लौकडाउन के दौरान उस का काम ठप हो गया. मजदूर अपने गांव चले गए. लौकडाउन खुलने के बाद भी वह परेशानी से नहीं उबर पाया. उसे लेबर कौन्ट्रैक्ट का काम मिलना कम हो गया. इस से कैलाश के परिवार को आर्थिक परेशानी होने लगी.

इस से पहले कैलाश और हंसा ने मिल कर जयपुर की वैशाली नगर कालोनी में लोन पर एक फ्लैट ले लिया था. पहले लौकडाउन और फिर आई आर्थिक परेशानी के कारण उन के सामने फ्लैट के लोन की किश्तें चुकाना मुश्किल हो गया था. फ्लैट की कुर्की की नौबत आने लगी थी. उन पर बाजार का कर्ज भी चढ़ गया था. हंसा देवी के 2 बेटे हैं. एक रवि और दूसरा प्रियांशु. इन में रवि शर्मा प्राइवेट नौकरी कर रहा था, लेकिन उसे तनख्वाह कम मिलती थी. दूसरा बेटा प्रियांशु कोई काम नहीं कर रहा था. परिवार का गुजारा बड़ी मुश्किल से चल रहा था.

परेशानी की इस हालत में हंसा को पता चला कि गुजरात के पाटन का रहने वाला रोहित शर्मा जयपुर में हवाला कंपनी केडीएम एंटरप्राइजेज का मैनेजर है. रोहित शर्मा दूरदराज के रिश्ते में हंसा का भाई लगता था. उस ने रोहित से रिश्तेदारी निकाल कर फरवरी में बेटे प्रियांशु को उस की हवाला कंपनी में नौकरी पर लगवा दिया. गुजरात के ही रहने वाले पार्थ व्यास ने जयपुर की ही एक हवाला फर्म में नौकरी की थी. करीब एकडेढ़ साल पहले उसे किसी बात पर नौकरी से हटा दिया गया था. पार्थ व्यास भी रिश्ते में प्रियांशु का मामा और हंसादेवी का भाई लगता था.

पार्थ व्यास नौकरी से हटाए जाने से खफा था. उसे शक था कि केडीएम एंटरप्राइजेज के मालिक और उस के रिश्तेदार रोहित तथा दूसरे लोगों के कहने से ही उसे हवाला कंपनी से नौकरी से हटाया गया था. वह इस का बदला लेना चाहता था. जब उसे पता चला कि उस के भांजे प्रियांशु ने रोहित की हवाला फर्म में नौकरी कर ली है, तो वह अपनी बहन हंसा के जरिए इस फर्म को लूटने की योजना बनाने लगा. पार्थ व्यास को हवाला कारोबार के बारे में सब कुछ जानकारी थी. कब और कैसे रकम आती है. कंपनी का क्या काम है? कैसे रुपयों का लेनदेन होता है. रकम की क्या सुरक्षा व्यवस्था है? कंपनी के औफिस में कौनकौन लोग काम करते हैं? पार्थ व्यास को इन सब बातों का पता था. भांजे प्रियांशु के इसी फर्म में नौकरी पर लग जाने से उसे ताजा जानकारियां भी मिल गईं.

इस के बाद हंसा, पार्थ व्यास और प्रियांशु मिल कर इस हवाला कंपनी से रकम लूटने की योजना बनाने लगे. ये लोग फोन पर बात कर योजना बनाते. बीच में एकदो बार पार्थ व्यास Crime story गुजरात से जयपुर भी आया था. आखिर इन्होंने रकम लूटने का फैसला कर लिया.

तय योजना के अनुसार, पार्थ व्यास अहमदाबाद से 10 मार्च को सुबह 6 बजे जयपुर पहुंच गया. वह सुबह करीब 8 बजे वैशाली नगर में बहन के घर गया. वहां उसे बहन हंसा, भांजे प्रियांशु और रवि मिले. इन्होंने मिल कर योजना बनाई कि किस तरह वारदात करनी और कैसे भागना है. सारी बातें तय हो जाने पर प्रियांशु उर्फ बंटी सुबह 9 बजे अपनी नौकरी पर खूंटेटों का रास्ता स्थित हवाला कंपनी चला गया. कंपनी का दूसरा कर्मचारी पार्थ भी अपने तय समय पर औफिस आ गया. पार्थ वैसे तो हवाला कंपनी के मैनेजर रोहित का साला था, लेकिन कर्मचारी के रूप में काम करता था. बाद में पार्थ व्यास ओला बाइक बुक कर वैशाली नगर से किशनपोल बाजार पहुंचा. इस दौरान उस ने सिर पर हेलमेट लगा रखा था. बाद में उस ने चेहरे पर मास्क लगाया और हाथों में दस्ताने पहने और सिर पर हेलमेट लगा कर वह पैदल चल कर हवाला कंपनी के औफिस पहुंचा और 45 लाख रुपए से भरा बैग लूट कर चला गया. यह कहानी आप शुरू में पढ़ चुके हैं.

पार्थ व्यास पैदल ही किशनपोल बाजार पहुंचा. वहां से आटो फिर 2 बसें बदल कर वह अजमेर पुलिया पहुंचा, यह फुटेज पुलिस को तीसरे दिन मिल गए थे. अजमेर पुलिया पर प्रियांशु की मां हंसा शर्मा, दोस्त मोहित और ड्राइवर हनुमान सहाय बुन कर उसे लेने के लिए आए थे. शातिर पार्थ व्यास पुलिस को गुमराह करने के लिए वारदात के समय 2 शर्ट पहन कर आया था. हंसा के साथ कार में बैठने के दौरान अजमेर पुलिया के पास उस ने एक शर्ट उतार कर रेल की पटरियों पर फेंक दी.

पार्थ व्यास हंसा व मोहित के साथ कार से प्रियांशु के घर पहुंचा. वहां पार्थ व्यास और प्रियांशु की मां हंसा ने लूटी गई रकम का आधाआधा बंटवारा किया. हंसा ने साढ़े 22 लाख रुपए खुद रख लिए और साढ़े 22 लाख रुपए पार्थ व्यास को दे दिए. पार्थ व्यास उसी दिन 2 सौ फुट बाइपास से बस में सवार हो कर गुजरात चला गया. उस ने गुजरात पहुंच कर लूट की रकम अपने घर में जमीन में गाड़ कर छिपा दी थी. जबकि हंसा शर्मा ने लूट की रकम में से 50 हजार रुपए अपने घर में बने मंदिर में चढ़ा दिए थे.

सीसीटीवी फुटेज के सहारे पुलिस हंसा के मकान के आसपास तक पहुंच गई. इस बीच, हवाला कंपनी के कर्मचारियों पार्थ व प्रियांशु से पुलिस लगातार पूछताछ करती रही. चौथे दिन प्रियांशु ने लूट की वारदात की सारी कहानी बता दी. पुलिस को प्रियांशु पर पहले से शक था. उसी ने अपने साथी कर्मचारी और हवाला कंपनी मैनेजर रोहित के साले पार्थ को पुलिस को सूचना देने से रोका था. पुलिस जब हंसा के मकान पर पहुंची, तो वह परिवार के साथ गुजरात भागने की तैयारी में थी, लेकिन पालतू कुत्ते के कारण फंस गई थी. वारदात के बाद से ही वह अपने पालतू कुत्ते को किसी के यहां छोड़ कर जाने की सोच रही थी, लेकिन ऐसे किसी परिवार का इंतजाम नहीं हो सका, जो कुछ दिनों के लिए उन के कुत्ते को रख लेता.

गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस ने पार्थ व्यास की निशानदेही पर अजमेर पुलिया के पास रेल की पटरियों से उस की फेंकी हुई शर्ट बरामद की. हंसा के घर में बने मंदिर से 50 हजार रुपए भी बरामद हो गए. हंसा के पास राष्ट्रीय भ्रष्टाचार निरोधक एवं मानवाधिकार संस्था के Crime story फरजी आईकार्ड भी मिले. इन में उसे स्टेट सेक्रेटरी बताया गया था. बहरहाल, रिश्तों के विश्वासघात ने मां और 2 बेटों सहित 6 आरोपियों को जेल पहुंचा दिया. पार्थ व्यास ने बदला लेने और प्रियांशु ने लालच में अपने मामा के भरोसे को तोड़ दिया था. इस वारदात से रिश्तों के साथ मालिक और कर्मचारी के भरोसे की दीवार भी दरक गई.

महिला ने लगाया आरोप काली गाड़ी में हुआ गैंगरेप

Gang Rape Case  : नगेश शर्मा, रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना पर झूठा आरोप लगा कर उन्हें ब्लैकमेल करना चाहता था. इस के लिए उस ने शालू को मोहरा बनाया, शालू ने दोनों पर बलात्कार का आरोप भी लगाया पर…

19 फरवरी 2014 की बात है. करीब 8 बजे गाजियाबाद, हापुड़ रोड पर सड़क किनारे बने एक स्थानीय बस स्टैंड के पास 25-26 साल की एक लड़की के रोने की आवाज सुन कर लोगों का ध्यान उस की ओर चला गया. लग रहा था कि लड़की किसी हादसे का शिकार हुई है. उस के कपड़े अस्तव्यस्त थे और वह नशे की वजह से ठीक से नहीं बोल पा रही थी. उस की हालत देख कर किसी व्यक्ति ने इस की सूचना 100 नंबर पर पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. कुछ ही देर में इलाकाई गश्ती पुलिस की जीप वहां पहुंच गई. पुलिस को आया देख वहां मौजूद तमाशबीन इधरउधर हट गए. पुलिस ने लड़की से पूछताछ की तो उस ने अपना नाम शालू शर्मा बताया. वह मेरठ की रहने वाली थी.

शालू ने बताया कि वह आज सुबह ही काम की तलाश में गाजियाबाद आई थी. यहां कुछ लोगों ने उस का अपहरण कर के उस के साथ बलात्कार किया और उसे एक काली गाड़ी से यहां फेंक कर भाग गए. सामूहिक दुष्कर्म की बात सुन कर पुलिस टीम ने इस घटना की सूचना उच्चाधिकारियों को दे दी और पीडि़ता को जीप में बिठा कर महिला थाना ले आई. अभी पुलिस शालू से पूछताछ कर ही रही थी कि एक अन्य महिला पीडि़ता को ढूंढते हुए थाने पहुंच गई. उस औरत ने अपना नाम बृजेश कौशिक बताते हुए कहा कि वह मेरठ की रहने वाली है और शालू की चाची है.

बृजेश के अनुसार वह शालू को ढूंढ रही थी. तभी उसे बस स्टैंड के पास अस्तव्यस्त हालत में मिली एक लड़की के बारे में पता चला तो वह थाने आ गई. इस मामले की सूचना पा कर थाना कविनगर के थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह, सीओ (द्वितीय) अतुल कुमार यादव, एसपी (सिटी) शिवहरि मीणा व एसएसपी धर्मेंद्र कुमार यादव भी महिला थाना आ गए. पीडि़ता ने पूछताछ में बताया कि उस का नाम सुनीता शर्मा उर्फ शालू शर्मा है और वह पति से अनबन की वजह से अलग किराए के मकान में रहती है. आज सुबह ही वह काम की तलाश में मेरठ से गाजियाबाद आई थी.

बेहोश करके किया सामूहिक दुष्कर्म

गाजियाबाद में कलेक्ट्रेट के पास उस की मुलाकात कामेश सक्सेना नाम के व्यक्ति से हुई, जिस ने उसे काम दिलाने का भरोसा दिया. बातचीत के बाद वह उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बिठा कर लोनी स्थित विधि विभाग के औफिस ले गया. इस के बाद वह उसे कुछ उच्च अधिकारियों से मिलवाने का बहाने बैंक कालोनी गाजियाबाद स्थित मित्रगण सहकारी आवास समिति के औफिस ले गया. वहां शाम 6 बजे कामेश ने उसे रविंद्र कुमार सैनी व कुछ अन्य लोगों से यह कह कर मिलवाया कि ये सब गाजियाबाद के बड़े लोग हैं. ये काम भी दिलवाएंगे और पैसा भी देंगे. वहीं पर उसे एक कप चाय पिलाई गई, जिसे पी कर वह बेहोश हो गई. बेहोशी की ही हालत में उन सभी ने उस के साथ सामूहिक Gang Rape Case दुष्कर्म किया. बाद में वे उसे एक काली कार मे डाल कर हापुड़ रोड पर गोविंदपुरम के पास फेंक कर भाग गए.

शालू जिस तरह बात कर रही थी, उस से पुलिस को कतई नहीं लग रहा था कि उस के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ है. दूसरे बिना किसी सूचना के उस की चाची का थाने आना भी पुलिस को अजीब लग रहा था. इसलिए पुलिस ने आगे बढ़ने से पहले दोनों से ठीक से पूछताछ कर लेना उचित समझा. पूछताछ में शालू ने बताया था कि पति से अलग रहने की वजह से उस का और उस के बेटे का खर्चा नहीं चल पा रहा था. उसे नौकरी की तलाश थी. उस ने नौकरी के लिए अपने पड़ोस में रहने वाली अपनी चाची बृजेश कौशिक से कह रखा था. वह चूंकि समाजसेविका थी और उस के संपर्क भी अच्छे लोगों से थे इसलिए वह उसे नौकरी दिला सकती थी.

काम दिलाने के नाम पर ले गया

19 फरवरी की सुबह उस की चाची का फोन आया कि वह गाजियाबाद आ जाए. वह उसे नौकरी दिला देगी. उस ने यह भी कहा कि वह उसे गाजियाबाद कलेक्ट्रेट के पास मिलेगी. चाची के कहने पर ही वह गाजियाबाद कलेक्ट्रेट पहुंची थी. वहां चाची तो नहीं मिली, कामेश सक्सेना मिल गया. वह काम दिलाने के नाम पर उसे अपने साथ ले गया था. उधर बृजेश ने बताया था कि जब वह कलेक्ट्रेट पहुंची तो शालू उसे वहां नहीं मिली. उस के बाद वह दिन भर उसे ढूंढती रही. उसे शालू की बहुत चिंता हो रही थी. फिर रात गए जब उसे पता चला कि हापुड़ रोड के एक बसस्टैंड के पास एक लड़की पड़ी मिली है और उसे महिला थाने ले जाया गया है तो वह यहां आ गई. यहां पता चला कि वह लड़की शालू ही थी और उस के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ था.

शालू और बृजेश के बयानों में काफी विरोधाभास था. पुलिस को शक हुआ तो उस ने शालू और बृजेश से पूछा कि जब दोनों के पास मोबाइल फोन थे तो उन्होंने एकदूसरे से फोन पर बात क्यों नहीं की. इस पर दोनों नेटवर्क का रोना रोने लगीं. यह बात पुलिस के गले नहीं उतरी, जिस से उसे शालू और बृजेश की बातों पर कुछ शक हुआ. बहरहाल, पुलिस ने शालू शर्मा के बयान के आधार पर नामजद अभियुक्तों के खिलाफ रात साढ़े 8 बजे धारा 342, 506 व 376 के तहत केस दर्ज कर लिया. इस के साथ ही उसे मैडिकल जांच के लिए जिला अस्पताल भेज दिया गया. मैडिकल जांच में इस बात की पुष्टि हो गई कि शालू के साथ दुष्कर्म हुआ था. चूंकि शालू गैंगरेप की बात कर रही थी, इसलिए मामले की गंभीरता को समझते हुए पुलिस उच्चाधिकारियों ने मीटिंग की और इस की जांच का जिम्मा सीओ (द्वितीय) अतुल यादव को सौंप दिया. उन्हें निर्देश दिया गया कि आरोपियों को गिरफ्तार कर के जल्द से जल्द मामले का खुलासा करें.

पुलिस को हुआ शालू की बातों पर शक

सीओ अतुल कुमार यादव, थानाप्रभारी कविनगर अरुण कुमार सिंह, महिला थानाप्रभारी अंजू सिंह तेवतिया व सबइंस्पेक्टर अमन सिंह ने इस मामले पर आपस में विचारविमर्श किया तो उन्हें शालू और बृजेश के बयानों में विरोधाभास नजर आया. रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना के फोन नंबर शालू से ही मिल गए. पुलिस ने उन से संपर्क किया तो बात भी हो गई. दोनों ही सम्मानित व्यक्ति थे. रविंद्र सैनी प्रौपर्टी का काम करते थे, जबकि कामेश सक्सेना बिजली विभाग में जूनियर इंजीनियर थे. चूंकि Gang Rape Case दुष्कर्म का मामला दर्ज हो चुका था, इसलिए पुलिस ने रात में ही रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना को थाने बुला लिया. दोनों का ही कहना था कि उन पर यह झूठा आरोप लगाया जा रहा है, पुलिस चाहे तो उन की काल डिटेल्स रिकलवा कर उन की लोकेशन पता कर सकती है. चूंकि पुलिस को शालू की बातों पर शक था, इसलिए पुलिस ने रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना का उस से आमनासामना नहीं कराया.

इस की जगह उन्होंने एक बार फिर पीडि़ता शालू से गहन पूछताछ का मन बनाया, ताकि सच्चाई सामने आ सके. लेकिन इस से पहले पुलिस टीम में पीडि़ता और दोनों नामजद आरोपियों के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवा कर चैक कर लिया. तीनों की काल डिटेल्स की पड़ताल से पता चला कि पूरे दिन शालू और कामेश सक्सेना के फोन लोकेशन कलेक्ट्रेट या लोनी के आसपास नहीं थी. जबकि शालू अपने बयान में दावा कर रही थी कि वह कामेश से कलक्ट्रेट पर मिली थी. काल डिटेल्स से यह भी पता चला कि रविंद्र सैनी का कामेश सक्सेना या पीडि़ता से एक बार भी मोबाइल फोन से संपर्क नहीं हुआ था. इस से पुलिस को लगा कि शालू संभवत: कामेश सक्सेना और रविंद्र सैनी को जानती ही नहीं है.

पुलिस ने काल डिटेल्स निकलवाई तो किसका नंबर निकला

ऐसी स्थिति में इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता था कि हो न हो शालू किसी लालच के तहत या किसी के कहने पर रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना पर आरोप लगा रही हो. इस सच्चाई का पता लगाने के लिए पुलिस ने रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना सहित 8 लोगों को शालू के सामने खड़ा कर के पूछा कि वह दुष्कर्मियों को पहचाने. लेकिन वह रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना में से किसी को नहीं पहचान सकी. इस का मतलब वह झूठ बोल रही थी. पुलिस की इस काररवाई ने जांच की दिशा ही बदल दी. अब शालू खुद ही जांच के दायरे में आ गई. दोनों आरोपियों की काल डिटेल्स से यह साबित हो गया था कि वे दोनों भी एकदूसरे के संपर्क में नहीं थे. जबकि पीडि़ता ने अपने बयान में कहा था कि कामेश ने ही उसे रविंद्र से सोसाइटी के औफिस में मिलवाया था. अगर ऐसा होता तो दोनों के बीच बातचीत जरूर हुई होती.

इसी बात को ध्यान में रख कर जब शालू की काल डिटेल्स को फिर से जांचा गया तो उस में एक खास नंबर पर पुलिस की निगाह पड़ी. शालू ने मेरठ से गाजियाबाद आने के बाद उस नंबर पर दिन में कई बार बात की थी. काल डिटेल्स से यह बात भी सामने आ गई थी कि शालू और उस नंबर से फोन करने वाले की ज्यादातर लोकेशन नवयुग मार्केट, गाजियाबाद के आसपास थी. शालू की तथाकथित चाची बृजेश के मोबाइल नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई गई थी. जांच में पता चला कि दिनभर वह भी उस नंबर के संपर्क में रही थी. उस नंबर से उस के मोबाइल पर कई बार फोन आए थे. जब उस संदिग्ध फोन नंबर की आईडी निकलवाई गई तो पता चला कि वह नंबर नगेशचंद्र शर्मा, निवासी गांव रामपुर, जिला हापुड़ का है.

पुलिस ने उस नंबर पर फोन किया तो वह बंद मिला. इस से पुलिस को पक्का यकीन हो गया कि इस मामले में कोई न कोई झोल जरूर है. अगले दौर की पूछताछ के लिए शालू उर्फ सुनीता शर्मा को एक बार फिर से तलब किया गया. इस बार शालू से जब उस के फोन की काल डिटेल्स को आधार बना कर पूछताछ की गई तो वह अधिक देर तक पुलिस के सवालों का सामना नहीं कर सकी. उस ने इस फरजी दुष्कर्म कांड का सारा राज खोल दिया. मेरठ रोड, नई बस्ती निवासी तेजपाल शर्मा की बेटी सुनीता शर्मा उर्फ शालू भले ही अभावों में पलीबढ़ी थी, लेकिन थी महत्त्वाकांक्षी, जब वह 16 साल की थी, तभी उस की शादी मेरठ के ही प्रवीण शर्मा से हो गई. मायके में तो गरीबी थी ही, शालू की ससुराल की आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं थी. शादी के 2 साल बाद ही शालू प्रवीण के बेटे की मां बन गई.

शालू और प्रवीण में वैचारिक मतभेद रहते थे, जो धीरेधीरे बढ़ते गए. जब दोनों में झगड़ा रहने लगा तो शालू ससुराल छोड़ कर अपने बेटे के साथ मायके में रहने आ गई. अपने और बेटे के पालनपोषण के लिए चूंकि नौकरी करना जरूरी था, इसलिए वह नौकरी की तलाश में लग गई. नौकरी तो उसे नहीं मिली, पर राजकुमार गुर्जर उर्फ राजू भैया जरूर मिल गया, जो बसपा के टिकिट पर जिला पंचायत का चुनाव लड़ रहा था. राजनीति की नैया पर सवार हो कर आगे बढ़ने की चाह में शालू ने राजकुमार गुर्जर से नजदीकियां बना लीं और उस के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगी. लेकिन कुछ दिनों बाद शालू को लगने लगा कि उसे अपने और अपने बेटे के लिए नौकरी तो करनी ही पड़ेगी. नौकरी की जरूरत महसूस हुई तो शालू ने पड़ोस में रहने वाली अपनी रिश्ते की चाची बृजेश कौशिक से मदद मांगी. उस के कहने पर ही वह गाजियाबाद आई थी.

पुलिस को दिए अपने इकबालिया बयान में शालू शर्मा ने बताया था कि वह अपनी चाची बृजेश कौशिक के माध्यम से नगेशचंद्र शर्मा को जानती थी और उसी के बुलाने पर 19 फरवरी को मेरठ से गाजियाबाद आई थी. नगेशचंद्र का औफिस नवयुग मार्केट में था. उस के नवयुग मार्केट स्थित औफिस पहुंचने के कुछ देर बाद उस की चाची बृजेश कौशिक भी वहां आ गई थी. नगेशचंद्र शर्मा ने शालू को एक परचा लिख कर दिया, जिस पर 2 आदमियों के नाम व फोन नंबर लिखे थे. इन में एक नाम रविंद्र सैनी का और दूसरा कामेश सक्सेना का था. नगेश ने उन दोनों के फोटो शालू को दिखा कर कहा कि उसे उन के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज कराना है. जब वह एफआईआर दर्ज करा देगी तो उसे 20 हजार रुपए दिए जाएंगे. उस कागज को पढ़ कर शालू ने चाची की ओर देखा तो उस ने कहा कि अगर पैसों की ज्यादा जरूरत है तो यह काम कर दे. इस काम में वह भी उस की मदद करेगी.

अर्द्धबेहोशी की हालत में किया दुष्कर्म

इस के बाद नगेश ने फोन कर के लोनी के एक लड़के शहजाद को बुलाया. उस के आने के बाद नगेश ने उसे कप में डाल कर चाय पिलाई, जिसे पी कर शालू अर्द्धबेहोशी की हालत में आ गई. इस बीच नगेश शहजाद को वहीं छोड़ कर चाची के साथ बाहर चला गया. अर्द्धबेहोशी की हालत में शहजाद ने उस के साथ दुष्कर्म किया. शालू ने आगे बताया कि उस ने अपनी पहली एफआईआर में रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना का नाम नगेशचंद्र शर्मा के कहने पर लिखवाया है, जिन्हें वह जानती तक नहीं थी. शालू शर्मा के इस इकबालिया बयान को अगले दिन धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज कराया गया. शालू के इस बयान के बाद इस मामले की सभी बिखरी कडि़यां जुड़ गई थीं.

पुलिस ने मुखबिरों की निशानदेही और फोन लोकेशन के आधार पर जाल बिछा कर 20 फरवरी, 2014 की सुबह साढ़े 9 बजे बसअड्डे के सामने संतोष अस्पताल के गेट के पास से नगेशचंद्र शर्मा, शहजाद निवासी बंगाली पीर, कस्बा लोनी और बृजेश कौशिक निवासी शिवपुरम, मेरठ को गिरफ्तार कर लिया. उस समय ये तीनों काली वैगनआर कार से कहीं भागने की फिराक में थे. तीनों को थाने ला कर पूछताछ की गई तो नगेश चंद्र शर्मा ने बताया कि वह रविंद्र सैनी व कामेश सक्सेना को पहले से ही जानता था. दोनों ही करोड़पति हैं. उन्हें वह दुष्कर्म के झूठे केस में फंसा कर मोटी रकम वसूलना चाहता था. नगेशचंद्र शर्मा खुद को एटूजेड न्यूज चैनल का पत्रकार बताता था. इसी नाम से उस ने नवयुग मार्केट में औफिस भी खोल रखा था. जबकि शहजाद फोटोग्राफर था और नगेशचंद्र शर्मा के साथ ही रहता था. वैसे एटूजेड चैनल का कहना है कि उस ने नगेशचंद्र शर्मा को काफी पहले निकाल दिया था.

बहरहाल, आरोपी शहजाद ने बताया कि उस ने जो भी किया, नगेशचंद्र शर्मा के कहने पर किया था, वह भी रविंद्र और कामेश को नहीं जानता था. बृजेश कौशिक का भी यही कहना था कि उस ने भी जो किया वह नगेशचंद्र शर्मा के कहने पर किया था. वह भी रविंद्र सैनी या कामेश सक्सेना को नहीं जानती थी. 66 वर्षीय रविंद्र सैनी अपने परिवार के साथ सैक्टर 9, राजनगर गाजियाबाद में रहते थे. उन के दोनों बेटे उच्च शिक्षा प्राप्त थे और अपनेअपने परिवार के साथ अमेरिका और बंगलूरु में रहते थे. रविंद्र सैनी स्टेट बैंक औफ इंडिया की महाराजपुर, गाजियाबाद शाखा से 1998 में रिटायर हुए थे. डिप्टी मैनेजर के पद पर कार्य करते हुए उन्होंने रिटायर होने से पहले एक आवासीय समिति बनाई थी. यह उस समय की बात है, जब दिल्ली और एनसीआर में जमीनों के दाम बहुत कम थे. तब जमीनें आसानी से उपलब्ध थीं.

उसी जमाने में रविंद्र सैनी ने किसानों से 14 एकड़ जमीन खरीद कर एक सोसायटी बनाई, जिस का नाम रखा गया राष्ट्रीय बैंककर्मी एवं मित्रगण आवास समिति. यह आवासीय समिति सदरपुर गाजियाबाद के पास है. इस आवास समिति के पहले चुनाव में प्रमोद कुमार त्यागी को अध्यक्ष व रविंद्र सैनी को सचिव पद के लिए चुना गया था. इस समिति के 203 सदस्य हैं. इस समिति ने जो आवासीय कालोनी बनाई उस का नाम संयोगनगर रखा गया. यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि समिति के पहले चुनाव में ही रविंद्र सैनी को सर्वसम्मति से आजीवन सचिव बनाया गया था. इस पद पर कार्य करते हुए अध्यक्ष प्रमोद त्यागी को जब कई तरह की वित्तीय अनियमितताओं में लिप्त पाया गया तो 2005 के चुनाव में उन्हें पद से हटा दिया गया. उन की जगह वीरेंद्र त्यागी को अध्यक्ष चुना गया. प्रमोद त्यागी ने पद से हटाए जाने का कारण रविंद्र सैनी को माना और उन से रंजिश रखने लगे.

करीब 2 साल तक चुप रहने के बाद प्रमोद त्यागी ने अधिगृहीत जमीन के किसानों के साथ मिल कर कई तरह की अनियमितताओं की शिकायतें जीडीए व अन्य सरकारी विभागों में कीं. लेकिन जब कोई सफलता नहीं मिली तो उन्होंने अपने एक दोस्त विजय पाल त्यागी द्वारा सितंबर, 2010 में रविंद्र सैनी के खिलाफ गाजियाबाद की सिविल कोर्ट में एक मुकदमा दर्ज कराया. इस में कहा गया था कि रविंद्र सैनी ने गाजियाबाद के डूंडाहेड़ा इलाके में उन्हें एक भूखंड दिलाने की एवज में 3 किश्तों में 16 लाख 10 हजार रुपए लिए थे, जिन्हें हड़प लिया है और जमीन की रजिस्ट्री भी नहीं कराई है. यह मुकदमा आज भी अदालत में विचाराधीन है. 18 अक्टूबर 2013 को दोपहर करीब 1 बजे रविंद्र सैनी को जैन नाम के किसी व्यक्ति ने फोन कर के कहा कि वह उन का मकान किराए पर लेना चाहता है.

लेकिन रविंद्र सैनी जब वहां पहुंचे तो बंदूक और रिवाल्वर की नोक पर उन्हें बंधक बना कर उन के बैंक कालोनी स्थित मकान की तीनों मंजिलों की रजिस्ट्री उन के नाम करने, 15 लाख रुपए नकद देने तथा समिति के सचिव पद से हट जाने को कहा गया. ऐसा न करने पर उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी गई. इस घटना की तहरीर उसी दिन देर शाम रविंद्र सैनी ने थाना कविनगर में दर्ज कराने की कोशिश की. लेकिन पुलिस ने रिपोर्ट लिखने से इनकार कर दिया. इस पर रविंद्र सैनी ने अदालत की शरण ली. अदालत के आदेश पर नामजद अभियुक्तों प्रमोद कुमार त्यागी और विजय पाल त्यागी के खिलाफ 18 अक्तूबर, 2013 को भादंवि की धारा 384, 323, 386, 452, 504 व 506 के तहत मुकदमा दर्ज तो कर लिया गया, लेकिन कोई भी काररवाई नहीं की गई.

कोई काररवाई न होती देख रवींद्र सैनी ने अपनी व्यथा एसएसपी गाजियाबाद, डीआईजी मेरठ जोन, मंडलायुक्त मेरठ, डीजीपी लखनऊ, मानव अधिकार आयोग व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तक भी पहुंचाई. लेकिन सिवाय आश्वासनों के उन्हें कुछ नहीं मिला. अभी तक यह लड़ाई और रंजिश व्यक्तिगत थी, लेकिन अब उन्हें एक और झूठे दुष्कर्म केस में फंसाने की कोशिश की गई. इस मामले में नाम आने पर रवींद्र सैनी और उन के परिवार की काफी बदनामी होती, लेकिन पुलिस की तत्परता से वह बालबाल बच गए. इस कथित दुष्कर्म कांड में नामजद दूसरे आरोपी कामेश सक्सेना, गाजियाबाद के बिजली विभाग में कार्यरत हैं और परिवारसहित विजयनगर में रहते हैं.

20 फरवरी, 2014 को रवींद्र सैनी द्वारा दी गई तहरीर के आधार पर भादंवि धारा 384/511 व 120बी के तहत एक एफआईआर दर्ज की गई, जिस में नगेशचंद्र शर्मा, शहजाद व बृजेश कौशिक को आरोपी बनाया गया. इसी मामले में एक अन्य एफआईआर कथित पीडि़ता सुनीता शर्मा उर्फ शालू द्वारा भी दर्ज कराई गई, जिस में नगेशचंद्र शर्मा, शहजाद और बृजेश कौशिक को आरोपी बनाया गया. इन के खिलाफ धारा 376, 342, 506 व 120बी के तहत मामला दर्ज कर काररवाई की गई. गिरफ्तार किए गए तीनों आरोपियों को उसी दिन गाजियाबाद कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित है

Social Crime Stories : 20 लाख के लिए साले ने किया जीजा के भाई का कत्ल

Social Crime Stories : आगरा के संजय पैलेस स्थित आईसीआईसीआई बैंक के कैशियर के सामने जैसे ही एक करोड़ रुपए का चैक आया, उस ने नजरें उठा कर चैक रखने वाले को देखा तो एकदम से उस के मुंह से निकल गया, ‘‘नमस्कार इमरान भाई, कहो कैसे हो?’’

‘‘ठीक हूं भाईजान, आप कैसे हैं?’’ जवाब में इमरान ने कहा.

‘‘मैं भी ठीक हूं्.’’ कैशियर ने कहा.

‘‘भाईजान थोड़ा जल्दी कर देंगे, बड़े भाईजान का फोन आ चुका है. वह मेरा ही इंतजार कर रहे हैं.’’ इमरान ने कहा.

कैशियर अपनी सीट से उठा और मैनेजर के कक्ष में गया. थोड़ी देर बाद लौट कर उस ने कहा, ‘‘इमरानभाई, आज तो बैंक में इतनी रकम नहीं है. जो है वह ले लीजिए, बाकी का भुगतान कल कर दूं तो..?’’

‘‘कोई बात नहीं. आज कितना कर सकते हैं?’’ इमरान ने पूछा.

‘‘20-25 लाख होंगे. ऐसा है, आप को आज 20 लाख दे देता हूं. बाकी कल ले लीजिएगा.’’ कैशियर ने कहा तो इमरान ने एक करोड़ वाला चैक वापस ले कर 20 लाख का दूसरा चैक दे दिया. कैशियर ने उसे 20 लाख रुपए दिए तो उन्हें बैग में डाल कर वह बाहर खड़ी अपनी मारुति 800 से शहर से 15 किलोमीटर दूर कुबेरनगर स्थित अपने ताऊ के बेटे पूर्व विधायक जुल्फिकार अहमद भुट्टो के स्लाटर हाउस (कट्टीखाने) की ओर चल पड़ा.

यह शाम के सवा 4 बजे की बात थी. साढे़ 4 बजे के आसपास इमरान पैसे ले कर वाटर वर्क्स चौराहे पर पहुंचा था कि उस के बड़े भाई इरफान का फोन आ गया. फोन रिसीव कर के उस ने कहा, ‘‘भाईजान, बैंक से 20 लाख रुपए ही मिल सके हैं. मैं उन्हें ले कर 10-15 मिनट में पहुंच रहा हूं.’’

इमरान ने 10-15 मिनट में पहुंचने को कहा था. लेकिन एक घंटे से भी ज्यादा समय हो गया और वह स्लाटर हाउस नहीं पहुंचा तो उस के बड़े भाई इरफान को चिंता हुई. उस ने इमरान को फोन किया तो पता चला कि उस के दोनों फोन बंद हैं. इरफान परेशान हो उठा.  वह बारबार नंबर मिला कर इमरान से संपर्क करने की कोशिश करता रहा, लेकिन फोन बंद होने की वजह से संपर्क नहीं हो पाया. अब तक शाम के 7 बज गए थे. इरफान को हैरानी के साथसाथ चिंता भी होने लगी.

इमरान और इरफान आगरा छावनी से बसपा के विधायक रह चुके जुल्फिकार अहमद भुट्टो के चचेरे भाई थे. दोनों भाई आगरा शहर से यही कोई 15 किलोमीटर दूर कुबेरपुर स्थित जुल्फिकार अहमद भुट्टो के स्लाटर हाउस (कट्टीखाने) का कामकाज देखते थे. इरफान फैक्ट्री का एकाउंट संभालता था तो उस से छोटा इमरान फील्ड का काम देखता था. बैंक में रुपए जमा कराने, निकाल कर लाने आदि का काम वही करता था.

चूंकि उन के चचेरे भाई बसपा के विधायक रह चुके थे, इसलिए यह काम इमरान अकेला ही करता था. अपने साथ वह कोई हथियार भी नहीं रखता था. इस की वजह यह थी कि वह खुद तो साहसी था ही, फिर सिर पर बड़े भाई का हाथ भी था. लेकिन जब से उस के बड़े भाई इरफान का साला भोलू स्लाटर हाउस से जुड़ा था, वह इमरान के साथ रहने लगा था. बड़े भाई का साला होने की वजह से भोलू भरोसे का आदमी था. इसीलिए बैंक आनेजाने में इमरान उसे साथ रखने लगा था.

लेकिन 3 दिसंबर को भोलू ने फोन कर के कहा था कि वह जानवरों की खरीदारी के लिए शमसाबाद जा रहा है, इसलिए आज नहीं आ पाएगा. भोलू ने यह बात इमरान और इरफान दोनों भाइयों को बता दी थी, जिस से वे उस का इंतजार न करें. भोलू नहीं आया तो इमरान अकेला ही बैंक चला गया था. वह चला तो गया था, लेकिन लौट कर नहीं आया था.

7 बजे के आसपास पैसे ले कर इमरान के वापस न आने की बात इरफान ने बड़े भाई जुल्फिकार अहमद भुट्टो को बताई तो वह भी परेशान हो उठे. उन्हें पैसों की उतनी चिंता नहीं थी, जितनी भाई की थी. वह इमरान को बहुत पसंद करते थे. इसीलिए उन्होंने उसे अपने यहां रखा था. उन के यहां काम करते उसे लगभग ढाई साल हो गए थे. इस बीच उस ने एक पैसे की भी हेराफेरी नहीं की थी.

जुल्फिकार अहमद भुट्टो ने भी इमरान के दोनों नंबरों पर फोन किया. जब दोनों नंबर बंद मिले तो वह इरफान के अलावा फैक्ट्री के 20-25 लोगों को 6-7 गाडि़यों से ले कर वाटर वर्क्स चौराहे पर जा पहुंचे, क्योंकि इमरान ने वहीं से बड़े भाई इरफान को आखिरी फोन किया था. इधरउधर तलाश करने के बाद वहां के दुकानदारों से ही नहीं, बीट पर मौजूद सिपाहियों से भी पूछा गया कि यहां कोई हादसा तो नहीं हुआ था.

वाटर वर्क्स चौराहे पर इमरान के बारे में कुछ पता नहीं चला तो वाटर वर्क्स चौराहे से फैक्ट्री तक ही नहीं, पूरे शहर में उस की तलाश की गई. लेकिन उस के बारे में कहीं कुछ पता नहीं चला. सब हैरानपरेशान थे. लोगों की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर इमरान कहां चला गया. ऐसे में जब कुछ लोगों ने आशंका व्यक्त की कि कहीं पैसे ले कर इमरान भाग तो नहीं गया, तब पूर्व विधायक जुल्फिकार अहमद ने चीख कर कहा था, ‘भूल कर भी ऐसी बात मत करना. वह मेरा भाई है, ऐसा हरगिज नहीं कर सकता.’

सुबह होते ही फिर इमरान की खोज शुरू हो गई थी. उस के इस तरह गायब होने से उस के घर में कोहराम मचा हुआ था. घर के किसी भी सदस्य के आंसू थम नहीं रहे थे. सब को इस बात की आशंका सता रही थी कि कहीं इमरान के साथ कोई अनहोनी तो नहीं घट गई. बैंक जा कर भी इमरान के बारे में पूछा गया. बैंक में लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज भी देखी गई. पता चला, वह बैंक में अकेला ही आया था और अकेला ही गया था.

अब इमरान के घर वालों के पास इमरान की गुमशुदगी दर्ज कराने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं बचा था. जुल्फिकार अहमद भुट्टो पुलिस अधीक्षक (नगर) पवन कुमार से मिले और उन्हें सारी बात बताई. उन्होंने तुरंत थाना हरिपर्वत के थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार और क्षेत्राधिकारी समीर सौरभ को इस मामले को प्राथमिकता से देखने का आदेश दिया. थाना हरि पर्वत पुलिस ने इमरान की गुमशुदगी दर्ज कर इमरान के दोनों नंबर सर्विलांस सेल को दे कर उन की काल डिटेल्स और आखिरी लोकेशन बताने का आग्रह किया.

पुलिस अधीक्षक (नगर) पवन कुमार ने इस मामले की जानकारी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर को भी दे दी थी. पुलिस इस मामले में तत्परता से लग गई. इमरान के मोबाइल जब बंद हुए थे, तब वे वाटर वर्क्स और रामबाग चौराहे के टावरों की सीमा में थे. काल डिटेल्स में ऐसा कोई भी नंबर नहीं था, जिस पर संदेह किया जाता. जो भी फोन आए थे या किए गए थे, वे अपनों को ही किए गए थे या आए थे. जैसे कि इरफान, पूर्व विधायक के घर के नंबरों व भोलू के नंबरों के थे. एक दिन पहले भी इरफान या भोलू के फोन आए थे या इन्हें ही किए गए थे. चूंकि पुलिस को इन फोनों में कुछ नया या संदेहास्पद नजर नहीं आया, इसलिए पुलिस अन्य बातों पर विचार करने लगी.

इस काल डिटेल्स और लोकेशन की एकएक कौपी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर, पुलिस अधीक्षक पवन कुमार और क्षेत्राधिकारी समीर सौरभ को भी दी गई थी. इन अधिकारियों ने जब काल डिटेल्स और लोकेशन का अध्ययन किया तो उन्हें एक नंबर पर संदेह हुआ. पुलिस ने उस नंबर की लोकेशन निकलवाई तो यह संदेह और बढ़ गया. यह आदमी कोई और नहीं, इरफान का साला भोलू था, जो इमरान के साथ बैंक आता जाता था.

पुलिस ने भोलू को थाने बुलाया तो उस के साथ पूरा परिवार ही चला आया. सभी पुलिस से उस पर शक की वजह पूछने लगे तो क्षेत्राधिकारी समीर सौरभ ने कहा, ‘‘पुलिस शक के आधार पर ही अभियुक्तों तक पहुंचती है. हम किसी पर भी शक कर सकते हैं. वह सगा हो या पराया. आप लोग निश्चिंत रहें, हम किसी निर्दोष व्यक्ति को कतई नहीं फंसाएंगे.’’

क्षेत्राधिकारी के इस आश्वासन पर सभी को विश्वास हो गया कि भोलू को सिर्फ पूछताछ के लिए बुलाया गया है. क्योंकि वही उस के साथ बैंक आताजाता था. पुलिस भोलू से पूछताछ करती रही, जबकि वह स्वयं को निर्दोष बताते हुए पुलिस की इस काररवाई को अपने साथ अन्याय कहता रहा था. इस तरह 4 दिसंबर का दिन भी बीत गया. कोई जानकारी न मिलने से इमरान के घर वालों की चिंता बढ़ती ही जा रही थी. 5 दिसंबर की सुबह आगरा से यही कोई 20 किलोमीटर दूर यमुना एक्सप्रेसवे से सटे गांव चौगान के पंचमुखी महादेव मंदिर के पुजारी ने एक्सप्रेसवे से सटे एक गड्ढे में एक Social Crime Stories युवक की लाश देखी. चूंकि लाश खून से लथपथ थी, इसलिए उसे समझते देर नहीं लगी कि किसी ने इस अभागे को मार कर यहां फेंक दिया है.

पुजारी ने इस घटना की सूचना ग्रामप्रधान को दी तो उस ने इस बात की जानकारी थाना एत्मादपुर पुलिस को दे दी. थाना एत्मादपुर पुलिस तुरंत घटनास्थल पर पहुंची और लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की. लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी तो उन्होंने इस बात की सूचना जिले के वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. साथ ही उन्होंने मृतक का हुलिया भी बता दिया था. थाना एत्मादपुर पुलिस ने मृतक का जो हुलिया बताया था, वह 3 दिसंबर की शाम से लापता इमरान से हुबहू मिल रहा था. इसलिए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण-पश्चिम) बबीता साहू, क्षेत्राधिकारी अवनीश कुमार, समीर सौरभ के अलावा कई थानों का पुलिस बल एवं इमरान के घर वालों को साथ ले कर गांव चौगान पहुंच गए.

शव इमरान का ही था. हत्यारों ने उसे बड़ी बेरहमी से मारा था. उसे गोली तो मारी ही थी, उस का गला भी काट दिया था. पुलिस ने जहां लाश पड़ी थी, वहीं से थोड़ी दूरी पर पड़े चाकू और पिस्टल को भी बरामद कर लिया था. साफ था, इन्हीं से इमरान की हत्या की गई थी. हत्या करने वाले दोनों चीजें वहीं फेंक गए थे. घटनास्थल की काररवाई निपटा कर पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए आगरा मैडिकल कालेज भिजवा दिया. लाश बरामद होने से साफ हो गया कि इमरान की हत्या हो चुकी है. लाश के पास उस की कार और पैसे नहीं मिले थे, इस का मतलब यह हत्या उन्हीं पैसों के लिए की गई थी, जो वह बैंक से ले कर चला था. लाश बरामद होने के बाद पुलिस ने भोलू से सख्ती से पूछताछ शुरू की. इस की वजह यह थी कि पुलिस के पास उस के खिलाफ अब तक पुख्ता सुबूत मिल चुके थे.

पुलिस ने उस के मोबाइल फोन की 3 दिसंबर की लोकेशन निकलवाई तो चौगान की मिली थी. पुलिस ने इसी लोकेशन को आधार बना कर भोलू के साथ सख्ती की तो उसे इमरान की हत्या की बात स्वीकार करनी ही पड़ी. इस के बाद उस ने अपने उस साथी का भी नाम बता दिया, जिस के साथ मिल कर उस ने इस घटना को अंजाम दिया था. इमरान की हत्या का राज खुला तो इमरान के घर वाले ही नहीं, रिश्तेदार और दोस्त यार भी हैरान रह गए. हैरान होने वाली बात ही थी. इमरान की हत्या करने वाला भोलू इमरान के बड़े भाई का साला तो था ही, इमरान का पक्का दोस्त भी था. इस के बावजूद उस ने हत्या कर दी थी. आइए, अब यह जानते हैं कि आखिर भोलू ने ऐसा क्यों किया था?

हाजी सलीमुद्दीन और हाजी मोहम्मद आशिक, दोनों सगे भाई आगरा के ताजगंज के कटरा उमर खां में रहते हैं. हाजी मोहम्मद आशिक के बड़े बेटे मोहम्मद जुल्फिकार अहमद भुट्टो उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी के विधायक भी रह चुके हैं. मायावती प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं तो भुट्टो की प्रदेश में खासी इज्जत थी. इस की वजह यह थी कि वह मायावती के खासमखास नसीमुद्दीन सिद्दीकी के खासमखास थे. भुट्टो के विधायक रहते हुए आगरा के कुबेरपुर स्थित उन के स्लाटर हाउस ने खासी तरक्की की. इस की खपत एकाएक बढ़ गई. काम बढ़ा तो वर्कर भी बढ़ गए. तभी उन्होंने अपने चाचा सलीमुद्दीन के बड़े बेटे इरफान को अपने स्लाटर हाउस का हिसाबकिताब देखने के लिए रख लिया. इरफान को यह काम पसंद आ गया तो 2 साल पहले उस ने अपने छोटे भाई इमरान को भी अपनी मदद के लिए स्लाटर हाउस में रख लिया.

20 वर्षीय इमरान मेहनती युवक था. स्लाटर हाउस में नौकरी करने से पहले वह ताजमहल में गाइड का काम करता था. वहां वह ठीकठाक कमाई कर रहा था, लेकिन जब भुट्टो ने उस से इरफान की मदद के लिए स्लाटर हाउस में काम करने को कहा तो उस ने गाइड का काम छोड़ दिया और भाई के स्लाटर हाउस का काम देखने लगा. 5 भाइयों में सब से छोटे Social Crime Stories इमरान ने स्लाटर हाउस में आते ही रुपयों के लेनदेन से ले कर बाहर के सारे काम संभाल लिए. इस तरह इमरान ने आते ही इरफान का बोझ आधा कर दिया.

इरफान की शादी हो चुकी थी. उस का विवाह आगरा शहर के ही वजीरपुरा के रहने वाले अहसान की बेटी सीमा के साथ हुआ था. उस के ससुर दरी के अच्छे कारीगर थे, इसलिए उन का दरियों का कारोबार था. उन के इंतकाल के बाद इस पुश्तैनी काम में ज्यादा मुनाफा नहीं दिखाई दिया तो उन के सब से छोटे बेटे भोलू ने जूतों के डिब्बे बनाने का काम शुरू कर दिया. जबकि उस के 3 अन्य भाई और चाचा दरी का पुश्तैनी कारोबार ही करते रहे. भोलू का जूतों के डिब्बे बनाने का काम बढि़या चल निकला. उसी की कमाई से जल्दी ही उस ने मारुति स्विफ्ट कार खरीद ली. भोलू अपनी बहन सीमा के यहां आताजाता ही रहता था. इसी आनेजाने में उस ने महसूस किया कि स्लाटर हाउस में जो लोग जानवर सप्लाई करते हैं, उन की अच्छीखासी कमाई होती है. उस के पास पैसे तो थे ही, उस ने अपने बहनोई इरफान से इस संबंध में बात की तो उस ने भुट्टो से बात कर के भोलू को जानवर खरीद कर लाने के लिए कह दिया.

इस के बाद भोलू आगरा के जानवरों के बाजारों, किरावली, शमसाबाद, बटेश्वर आदि से सस्ते दामों में जानवर खरीद कर बहनोई की मार्फत स्लाटर हाउस में बेचने लगा. इस काम में उसे अच्छीखासी कमाई होने लगी. जूतों के डिब्बों का उस का काम चल ही रहा था. इस तरह महीने में वह एक लाख रुपए से अधिक की कमाई करने लगा. किरावली बाजार में जानवरों की खरीदारी के दौरान भोलू की मुलाकात सलमान से हुई तो उसे यह आदमी भा गया. सलमान भी जानवरों की खरीदफरोख्त करता था. इस की वजह यह थी कि एक तो भोलू को कई काम देखने पड़ते थे, दूसरे सलमान इस काम में काफी तेज था. इसीलिए पहली मुलाकात में ही भोलू ने सलमान को बिजनैस पार्टनर बना लिया था. इस के बाद दोनों मिल कर जानवर खरीदने और बेचने लगे.

भोलू ने सलमान को बिजनैस पार्टनर तो बना लिया, लेकिन उस के बारे में उसे ज्यादा कुछ पता नहीं था. उस के बारे में उसे सिर्फ इतना पता था कि वह किरावली का रहने वाला है और उस का मोबाइल नंबर यह है. भोलू के साथ रहने में सलमान को फायदा दिखाई दिया, इसलिए वह उस के साथ रहने लगा. बड़े भाई का साला होने की वजह से इमरान की भोलू से खूब पटती थी. जिस दिन भोलू पशु मेले या बाजार नहीं गया होता था, सारा दिन इमरान उसे अपने साथ रखता था. उसी के सामने वह बैंक से पैसे भी निकालता था और जमा भी कराता था. 50 लाख से ले कर करोड़ रुपए निकालना उस के लिए आम बात थी.

भोलू ने कभी कोई ऐसी वैसी हरकत नहीं की थी, इसलिए इमरान उस पर पूरा विश्वास करने लगा था. भोलू का काम दोनों ओर से ठीकठाक चल रहा था. उस की कमाई महीने में लाख रुपए से ऊपर थी. लेकिन कमाई बढ़ी तो उस की पैसों की भूख भी बढ़ गई थी. अब वह करोड़पति बनने के सपने देखने लगा.

एक दिन शाम को वह सलमान के साथ बैठा था तो उस के मुंह से निकला, ‘‘यार सलमान, मेरे पास एक ऐसी योजना है, जिस के तहत हमें एक करोड़ रुपए आसानी से मिल सकते हैं.’’

‘‘कैसे?’’ सलमान ने पूछा.

इस के बाद भोलू ने उसे जो योजना बताई, सुन कर सलमान की रूह कांप उठी. लेकिन जब भोलू ने उसे पूरी योजना समझा कर मिलने वाली रकम का लालच दिया तो वह उस की योजना में शामिल हो गया.  3 दिसंबर को उन्होंने अपनी इस योजना को अंजाम देने की तैयारी भी कर ली. 2 दिसंबर यानी सोमवार को भोलू इमरान के साथ ही रहा. उस दिन बैंक का कोई काम नहीं था, इसलिए बैंक जाना नहीं हुआ. लेकिन उस दिन भोलू को पता चल गया कि अगले दिन इमरान को बैंक जाना है और लगभग एक करोड़े रुपए निकाल कर लाना है. शाम को घर जाते समय इमरान ने भोलू को वाटर वर्क्स चौराहे पर छोड़ दिया तो वहां से वह वजीरपुरा स्थित अपने घर चला गया.

इमरान की गाड़ी से उतरते ही भोलू ने सलमान को फोन कर के अगले दिन चाकू और पिस्तौल ले कर तैयार रहने के लिए कह दिया था. अगले दिन यानी 3 दिसंबर, 2013 दिन मंगलवार को योजनानुसार 10 बजे के आसपास भोलू ने अपने बहनोई इरफान को फोन कर के बताया कि आज वह सलमान के साथ जानवरों की खरीदारी करने शमसाबाद जा रहा है. इसलिए वह देर शाम तक ही स्लाटर हाउस आ पाएगा. तब इरफान ने उस से कहा था, ‘‘आज इमरान को बैंक से बड़ी रकम निकाल कर लाना है, हो सके तो तुम यह काम करा कर जाओ.’’

इस पर भोलू ने कहा, ‘‘दरअसल वहां कुछ व्यापारी सस्ते जानवर ले कर आने वाले हैं, अगर उन से सौदा पट गया तो काफी मोटा मुनाफा हो सकता है. इसलिए वहां जाना जरूरी है.’’

इस के बाद भोलू ने इमरान को भी फोन कर के कहा था, ‘‘इमरानभाई, मैं सलमान के साथ शमसाबाद जानवर खरीदने जा रहा हूं. इसलिए तुम अकेले ही बैंक चले जाना. क्योंकि मैं देर शाम तक ही वापस आ पाऊंगा.’’

योजनानुसार न तो भोलू शमसाबाद गया न सलमान. दोनों साए की तरह इमरान के पीछे इस तह लगे रहे कि वह उन्हें देख न पाए. इस बीच इमरान को फोन कर के वह पूछता रहा कि वह क्या कर रहा है? लेकिन उस ने यह नहीं पूछा था कि आज वह कितने रुपए निकाल रहा है?

इमरान जैसे ही रुपए ले कर बैंक से निकला, भोलू और सलमान टूसीटर से उस से पहले वाटर वर्क्स चौराहे पर पहुंच गए और वहीं खड़े हो कर इमरान पर नजर रखने लगे. जब उन्हें लगा कि इमरान वाटर वर्क्स चौराहे पर पहुंच गया होगा तो भोलू ने उसे फोन किया, ‘‘इमरानभाई, मैं शमसाबाद से लौट आया हूं और वाटर वर्क्स चौराहे पर खड़ा हूं. इस समय तुम कहां हो?’’

‘‘मैं यहीं वाटर वर्क्स चौराहे पर जाम में फंसा हूं. जहां से जवाहर पुल शुरू होता है, तुम वहीं पहुंचो. मैं वहीं से तुम्हें ले लूंगा.’’

भोलू सलमान के साथ जवाहर पुल के पास जा कर खड़ा हो गया. 5-7 मिनट बाद इमरान वहां पहुंचा तो भोलू इमरान की बगल वाली सीट पर बैठ गया तो सलमान पीछे वाली सीट पर. गाड़ी आगे बढ़ गई. इमरान को बातों में उलझा कर भोलू ने डैशबोर्ड पर रखे उस के दोनों मोबाइल फोन के स्विच औफ कर दिए. कार जैसे ही कुबेरपुर के पास पहुंची, भोलू ने कहा, ‘‘इमरानभाई, मेरे 2 दोस्त चौगान गांव के पास एक्सप्रेसवे के नीचे मेरा इंतजार कर रहे हैं. अगर तुम मुझे वहां तक छोड़ देते तो अच्छा रहता.’’

इमरान ने नानुकुर की, लेकिन चौगान गांव वहां से कोई बहुत ज्यादा दूर नहीं था. फिर भोलू पर उसे पूरा विश्वास था, इसलिए साथ में इतने रुपए होने के बावजूद इमरान ने कार चौगान गांव की ओर मोड़ दी. चौगान से कोई आधा किलोमीटर पहले ही सुनसान जंगली रास्ते पर लघुशंका के बहाने भोलू ने इमरान से कार रुकवा ली. भोलू नीचे उतरा और इधरउधर देख कर अंदर बैठे सलमान को इशारा किया. जैसे ही सलमान नीचे उतरा, भोलू ने तमंचा निकाल कर ड्राइविंग सीट पर बैठे इमरान के सीने पर गोली मार दी. उस ने दूसरी गोली मारनी चाही, लेकिन तमंचा धोखा दे गया. गोली लगते ही इमरान के मुंह से हलकी सी चीख निकली और वह छटपटाने लगा. भोलू ने सलमान से छुरा ले कर इमरान पर कई वार करने के साथ गला भी काट दिया कि कहीं यह बच न जाए. चाकू चलाने के दौरान भोलू के दोनों हाथ जख्मी हो गए, जिस में उस ने रूमाल बांध ली.

इस के बाद इमरान की लाश घसीट कर दोनों ने हाईवे से सटे एक गड्ढे में फेंक दी. वहीं पास ही उन्होंने चाकू और तमंचा भी फेंक दिया. इस के बाद कार ले कर भाग निकले. रास्ते में एक हैंडपंप पर कार रोक कर थोड़ीबहुत धुलाई की. वहां से थोड़ा आगे आ कर एक्सप्रेसवे पर उन्होंने रकम गिनी तो पता चला कि ये तो सिर्फ 20 लाख रुपए ही हैं. जबकि उन्हें एक करोड़ रुपए होने की उम्मीद थी. दोनों ने ही अपना अपना सिर पीट लिया. बहरहाल अब तो जो होना था, वह हो गया था. दोनों ने आधीआधी रकम ले ली. भोलू ने  सलमान को कार ठिकाने लगाने के लिए दे कर एक जगह रकम छिपाई और खुद स्लाटर हाउस पहुंच गया.

स्लाटर हाउस में इमरान के न आने की वजह से इरफान परेशान था. बहनोई से हालचाल पूछ कर वह इमरान की तलाश करने के बहाने बाहर आ गया. इरफान ने उस के हाथों पर रूमाल बंधी देखी तो उस के बारे में पूछा था. तब उस ने बहाना बना दिया था. स्लाटर हाउस से निकल कर भोलू ने छिपा कर रखे रुपए अपने एक परिचित के पास रखे और वापस जा कर इरफान के साथ इमरान की तलाश करने लगा.

दूसरी ओर इमरान की कार ले कर गया सलमान वहां से 5 किलोमीटर दूर एक ढाबे पर पहुंचा और एक दुर्घटनाग्रस्त ट्रेलर के पीछे कार खड़ी कर के ढाबे के एक कर्मचारी को 5 सौ रुपए का नोट दे कर कहा कि वह दिल्ली जा रहा है, इसलिए एक दिन के लिए अपनी इस कार को यहीं खड़ी कर रहा है. ढाबे के उस कर्मचारी को क्या ऐतराज होता, उस ने कह दिया कि खड़ी कर दो. सलमान ने वहीं अपने फोन का स्विच औफ किया और रुपए ले कर फरार हो गया.

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पुलिस ने मोबाइल फोन की लोकेशन के आधार पर इमरान की हत्या में भोलू को गिरफ्तार किया था. इस की वजह यह थी कि उस ने सब से कहा था कि वह शमसाबाद जा रहा है, जबकि उस के मोबाइल फोन की लोकेशन आईसीआईसीआई बैंक से ले कर जहां से इमरान की लाश बरामद हुई थी, वहां तक मिली थी. मामले का खुलासा होने के बाद पुलिस ने इमरान की कार तो उस ढाबे से बरामद कर ली थी, लेकिन सलमान का मोबाइल बंद होने की वजह से उसे नहीं पकड़ पाई. पूछताछ के बाद पुलिस ने भोलू को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया था.

सलमान की तलाश में आगरा के कई थानों की पुलिस तो लगी ही है, मृतक इमरान के घर वाले भी उस की खोज में लगे हैं. उन्हें 10 लाख रुपयों से ज्यादा इमरान के हत्यारे को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने की चिंता है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Child Murders : लंदन में रची दत्तक पुत्र की हत्या की साजिश

Child Murders : बाइक सवारों ने कार को टक्कर मारी. कार के रुकने के बाद बाइक सवारों ने 11 वर्षीय गोपाल को कार से बाहर खींच लिया. हरसुखभाई करदानी ने गोपाल को बचाने की कोशिश की. वह भी तुंरत कार से बाहर निकल आया. उस के विरोध करने पर हमलावरों ने दोनों पर ही चाकू से हमला कर दिया. दोनों बुरी तरह से जख्मी हो गए थे. उन्हें उसी अवस्था में सड़क के किनारे छोड़ कर हमलावर फरार हो गए थे.

गोपाल का जख्म काफी गहरा था. कुछ समय में वहां से गुजरते रिक्शा चालक ने दोनों घायलों को सड़क किनारे घायल अवस्था में पाया तो वह उन्हें अस्पताल ले जाया गया. वहां उन का उपचार शुरू किया गया. इलाज के 5 दिन बाद 11 वर्षीय गोपाल की मौत हो गई. उस के हफ्ते भर बाद हरसुखभाई की भी अस्पताल में मौत हो गई थी.

गुजरात के छोटे से पिछड़े इलाके में रहने वाले गरीब हरसुखभाई करदानी ने उस समय राहत की सांस ली थी, जब उस की पत्नी अल्पा के 8 वर्षीय छोटे भाई गोपाल को एक अमीर विदेशी जोड़े ने गोद ले लिया था. जिन्होंने उसे गोद लिया था, वे वैसे तो भारत के ही रहने वाले निस्संतान दंपति थे, लेकिन ब्रिटेन में रहते थे. पति कंवलजीत सिंह रायजादा हीथ्रो का एक कर्मचारी था. जबकि उस की पत्नी आरती धीर चैरिटी का काम करती थी. हालांकि उन की उम्र में काफी अंतर था. वे दिखने में मांबेटे की तरह लगते थे.

सच तो यह था कि करदानी दंपति गोपाल के गोद लिए जाने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद बेहद खुश था. क्योंकि वे अपने ऊपर से उस के लालनपालन की बड़ी जिम्मेदारी का बोझ उतरा हुआ महसूस कर रहे थे. आर्थिक तंगी का सामना करते हुए बच्चे की जैसेतैसे परवरिश हो रही थी.

गोपाल उन के साथ 2 साल की उम्र से ही रह रहा था. मां ने उसे छोड़ दिया था और पिता बीमार रहते थे. उस हालत में वह इधरउधर गली और पड़ोसियों के घरों में अनाथों की तरह घूमता रहता था. इस हाल में देख मोहल्ले के लोगों ने कुछ दिनों तक उस की देखभाल की, फिर उन्होंने केशोद में पति के साथ रह रही उस की बड़ी विवाहित बहन अल्पा को सौंप दिया.

उसे ब्रिटेन में पश्चिमी लंदन स्थित हनवेल के रहने वाले अप्रवासी भारतीय दंपति आरती धीर और कंवलजीत सिंह रायजादा ने अपना दत्तक पुत्र बना लिया था. उन्होंने गोपाल के गोद लेने की सारी कानूनी प्रक्रिया पूरी कर ली थी और कानून का पालन करते हुए उन्होंने सारे दस्तावेज भी बना लिए थे.

तब आरती धीर 50 साल की थी और उस का पति आधी उम्र का था. दोनों ने साल 2013 में शादी कर ली थी. शादी का छोटा सा समारोह ईलिंग टाउन हाल के लंचटाइम रजिस्टर औफिस में हुआ था. दरअसल, उन्होंने अपना वीजा बढ़वाने के लिए यह शादी की थी.

उस के बाद उन्होंने बच्चा गोद लेने की योजना बनाई थी. उस के लिए वे साल 2015 में गुजरात आए थे. उन्होंने एक बच्चा गोद लेने के लिए स्थानीय अखबारों में विज्ञापन दिया था. इस बारे में केशोद के रहने वाले हरसुखभाई को भी किसी ने बताया था.

विज्ञापन में लिखा था कि भारतीय मूल का ब्रिटिश जोड़ा किसी अनाथ बच्चे को लंदन में रहने के लिए गोद लेना चाहता है. हरसुखभाई का विज्ञापन के अनुसार विदेशी जोड़े से संपर्क किया.

वैसे कंवलजीत सिंह रायजादा गुजरात के मालिया हटिना का रहने वाला था. गोपाल का जन्म भी वहीं हुआ था. रायजादा के पिता सहकारी बैंक की मालिया हटिना शाखा में मैनेजर थे. मालिया हटिना में रायजादों का एक पड़ोसी था, उसे जब पता चला कि कंवलजीत की पत्नी आरती धीर किसी बच्चे को गोद लेना चाहती है, तब उस के दिमाग में अचानक गोपाल का चेहरा कौंध गया. उसे पता था कि वह बच्चा अनाथ है और उन दिनों अपने बहनोई हरसुखभाई करदानी के साथ केशोद में रह रहा है.

जब धीर और रायजादा आधिकारिक तौर पर शादी के तुरंत बाद 2014 में मालिया हटिना में उन से मिले तो उस की बहन और बहनोई गोद देने के लिए सहमत हो गए.

तब उन्हें रायजादा की पत्नी धीर ने कहा कि वह गोपाल की अपने बेटे की तरह परवरिश करेगी. उस के साथ अच्छा व्यवहार बर्ताव रखेगी और उसे एक अच्छा ब्रिटिश नागरिक बनाएगी और उस का जीवन खुशियों से भर देगी.

गरीबी की वजह से एनआरआई को दिया बच्चा गोद

इस आश्वासन को सुन कर वे काफी खुश हो गए. साथ ही उन्होंने यह भी पाया कि जिन्हें वह बच्चा गोद दे रहे हैं, वह उन के इलाके से ही रायजादा समाज के स्थानीय परिवार हैं.

हरसुखभाई अपने साले गोपाल का अभिभावक था. वह विदेशी जोड़े पर विश्वास कर गोपाल को गोद देने के लिए राजी हो गया. गोद लेने की कागजी काररवाई पूरी कर ब्रिटिश जोड़ा ब्रिटेन लौट गया. वे हरसुख को भरपूर आश्वासन दे गए कि गोपाल को अपने साथ रखने के लिए विदेशी कानूनी प्रक्रिया पूरी होते ही वे जल्द आ कर गोपाल को अपने साथ ले जाएंगे.

हरसुखभाई ने जो सोचा था, वैसा नहीं हुआ. उन के इंतजार में 2 साल गुजर गए, लेकिन वे गुजरात नहीं आए. हां, बीच बीच में उन दोनों ने गोपाल की खोजखबर जरूर ली और उस के खर्च आदि के लिए छोटीमोटी रकम भेजते रहे.

आखिरकार इंतजार की घडिय़ां खत्म होने को आ गईं. साल 2017 के फरवरी माह में हरसुखभाई को गोपाल के ब्रिटेन ले जाने की सूचना मिली. हरसुखभाई खुश हो गया कि गोपाल अब अपने गोद लिए हुए मांबाप के पास कुछ दिनों के भीतर ही चला जाएगा.

उन्होंने उसे गोपाल को वीजा लगवाने के लिए जूनागढ़ जाने को कहा. केशोद उसी जिले में आता है. वहां आनेजाने पर होने वाले खर्च आदि के लिए कुछ पैसे भी भेजे.

गोपाल को तो मानो खुशी का ठिकाना नहीं था. ब्रिटेन जाने को ले कर वह इतना उत्साहित था कि उस ने अपने जीजा से कह कर एक अंगरेजी गुजराती पौकेट डिक्शनरी मंगवा ली थी. वह गर्व से भरा हुआ था. उस ने स्कूल में सभी सहपाठियों को यह बता दिया था. अपने शिक्षकों से भी कहा था कि उसे अब नई स्कूल ड्रेस की जरूरत नहीं है, क्योंकि वह जल्द ही इंग्लैंड जा रहा है.

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वह गोपाल के वीजा कागजात तैयार करने के लिए लगभग 100 मील दूर राजकोट शहर गए थे. वहां से काम पूरा कर गोपाल अपने बहनोई हरसुखभाई के साथ 8 फरवरी, 2017 को अपने शहर केशोद लौट रहे थे. रात के करीब 9 बज चुके थे. वे एक कार में सवार थे. वे अभी अपने घर पहुंचने वाले ही थे कि रास्ते में बाइक पर सवार 2 लोगों ने कार रुकवा कर उन के ऊपर चाकू से जानलेवा हमला कर दिया था.

वे गोपाल का अपहरण करना चाहते थे. हमलावरों ने बाइक से टक्कर मार कर रोक दी. फिर हमलावरों ने गोपाल को चाकू से गोद दिया. गोपाल को बचाने की जब हरसुखभाई ने कोशिश की तो हमलावरों ने उस पर भी चाकू से वार किए. इलाज के दौरान दोनों की ही अस्पताल में मृत्यु हो गई.

इस मामले को केशोद के थाने में दर्ज किया गया. वहां से पुलिस इंसपेक्टर अशोक तिलवा ने इस की जांचपड़ताल की. घटना की तहकीकात के बाद नीतीश नाम के व्यक्ति की गिरफ्तारी हुई. उस से पूछताछ होने पर इस वारदात में भाड़े पर शामिल किए गए दोनों हमलावरों के नाम भी सामने आए. वे हमलावर उन के द्वारा ही 55 लाख रुपए दे कर बुलाए गए थे.

जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई, तब एक चौंकाने वाली जानकारी सामने आई. नीतीश ने बताया कि उस ने ब्रिटेन में रहने वाले दंपति कंवलजीत सिंह रायजादा और आरती धीर के इशारे पर इस वारदात को करवाया. पूछताछ में नीतीश मुंड ने यह भी बताया कि गोपाल की हत्या की 2 असफल कोशिशें पहले भी हो चुकी थीं.

हत्या से 4 हफ्ते पहले उस ने नीतीश को एक फरजी आईडी पर लिया गया सिम कार्ड खरीदने के लिए 25,000 रुपए भी भेजे थे, ताकि साजिश में शामिल दूसरे लोगों के साथ किसी का फोन काल नहीं जुडऩे पाए.

आरती धीर और कंवलजीत सिंह रायजादा का नाम सुन कर हरसुखभाई की पत्नी अल्पा भी चौंक पड़ी. कारण, यह वही जोड़ा था, जिस ने उस के भाई गोपाल को गोद लिया था. यह बात उस ने पुलिस को भी पूछताछ के दरम्यान बताई.

वह इस बात से आश्चर्यचकित थी कि आखिर उस ने उसे क्यों मरवाया? उन्हें उस के पति से क्या शिकायत थी, जो पति को भी मरवा दिया?

अल्पा ने पुलिस को बताया कि नीतीश मुंड की गिरफ्तारी के बाद कंवलजीत के पिता उस से मिलने आए थे, जो स्थानीय बैंक में मैनेजर हैं. उन्होंने उसे पुलिस को यह बताने के लिए पैसे की पेशकश की थी कि मुंड निर्दोष है. हत्या की साजिश के सिलसिले में पुलिस ने उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया था. बाद में उन की जमानत हो गई थी.

लंदन से रची गई थी हत्या की साजिश

पुलिस यह भी पता लगा रही थी कि इस घटना के तार और किनकिन लोगों के साथ जुड़े हो सकते हैं? इस में किन की क्या भूमिका हो सकती है? गोद लेने वाले दंपति की मंशा क्या थी? मासूम गोपाल का अपहरण क्यों किया जा रहा था?

बहुत जल्द ही इस का राज पकड़े गए नीतीश मुंड के बयानों से खुल गया. पुलिस जांच के अनुसार नीतीश मुंड इस मामले का एक बिचौलिया था, जो पहले हनवेल में आरती धीर और कंवलजीत के फ्लैट पर रहता था. गुजरात में पुलिस के सामने उस का एक कुबूलनामा कलमबद्ध किया गया था, जिस में दंपति को Child Murders हत्या की साजिश में शामिल बताया गया था.

गोपाल की मौत का कारण वही एनआरआई दंपति था, जिस ने उसे 2 साल पहले गोद लिया था. पुलिस ने अल्पा की तरफ से दर्ज रिपोर्ट में उन पर ही 11 वर्षीय दत्तक पुत्र गोपाल की हत्या करने का आरोप लगाया गया. यह दंपति गोपाल की आकस्मिक मौत दिखा कर उस के नाम की गई बीमा के मुआवजे की एक बड़ी धनराशि हड़पना चाहते थे. लंदन में रहने वाले दंपति ने गोपाल को गोद ले कर उस का डेढ़ लाख पाउंड अर्थात एक करोड़ 57 लाख 50 हजार रुपए का जीवन बीमा करा लिया था.

उस की हत्या करवाने के लिए दंपति ने नीतीश मुंड नामक व्यक्ति से मिल कर साजिश रची थी, जो वीजा समाप्त होने और भारत लौटने तक लंदन में रहता था.

पुलिस की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट के अनुसार आरती धीर और कंवलजीत सिंह ने नीतीश मुंड के साथ मिल कर गोपाल को गोद लेने, उस का बीमा करवाने और फिर उसे मार डालने की साजिश रची थी. नीतीश लंदन में रहता था और अकसर गुजरात आताजाता था.

पुलिस जांच में गोपाल की गतिविधियों की भी जानकारी मिली. उस की बड़ी बहन अल्पा ने बताया कि वह बड़ा हो कर पुलिस औफिसर बनना चाहता था. वह बौलीवुड फिल्म ‘सिंघम’ से बहुत प्रभावित था. फिल्म में बाजीराव सिंघम की नकल करता हुआ चोर पुलिस का खेल खेला करता था. वह अपने दोस्तों पर चिल्लाता था, ‘बचना असंभव है!’

वह पढ़ाई में अव्वल था. उसे कार्टून बनाना बहुत पसंद था. उस ने महात्मा गांधी के चित्र के लिए स्कूल में पुरस्कार भी जीता था. उस के दोस्त, शिक्षक, गांव के सभी लोग उस के साथ हुई आकस्मिक घटना को ले कर हैरान थे.

उस के हमलावरों को पकडऩे में पुलिस ने तत्परता दिखाई. उस पर हमला करने वालों की यह सोच गलत साबित हुई कि एक गरीब छोटे लड़के का जीवन कोई मायने नहीं रखता है और भारत के पश्चिमी तट पर पुलिस उन्हें नहीं पकड़ पाएगी. लेकिन पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए एक एक कर 5 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया. उन पर हत्या और अपहरण की धाराएं लगाई गईं और मुकदमा चलाया गया.

लेकिन गोपाल की मौत की गूंज गुजरात के पुलिस महकमे तक ही नहीं गूंजी, बल्कि 4 हजार मील से अधिक दूर ब्रिटेन के पश्चिम लंदन में हैनवेल में भी सुनाई दी. यह वह जगह है, जहां हीथ्रो की पूर्व कर्मचारी आरती धीर और उन के पति कंवलजीत सिंह रायजादा कतार से बनी विक्टोरियन घरों की एक पंक्ति के अंत में रहते थे.

लंदन में गूंजी गुजरात में कराई गई हत्याओं की गूंज

उन का घर एक आधुनिक ब्लौक की पहली मंजिल पर था. वे इस चौंकाने वाली घटना से इलाके में रह रहे अन्य लोगों की निगाह मेें तब आ गए, जब ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

उन्हें आसपास की दुकान वाले अच्छी तरह जानते पहचानते थे और आसपास के डाकघर में अपने बिलों का भुगतान करने के लिए जाते रहते थे. उन्हें सभी लोग एक अच्छे दंपति के तौर पर जानते थे. उन का व्यवहार लोगों के साथ अच्छा था और वे मिलनसार हो कर भी अपने काम से ही अधिक मतलब रखते थे.

हां, उन के बीच उम्र के अंतर और कदकाठी को देख कर कुछ समय पहले लोगों को उन के मांबेटा होने का संदेह हो जाता था, लेकिन धीरेधीरे सभी उन के पतिपत्नी होने का सच जान चुके थे. उन के बारे में कहने के लिए किसी के पास कोई बुरा शब्द नहीं था.

उन के बारे में लोगों के प्रति अच्छी धारणा थी. वह स्तन कैंसर चैरिटी के लिए धन जुटाने का काम करते थे. यही उन की इलाके में पहचान थी. उन के बारे में गुजरात पुलिस को सिर्फ यही पता था कि वे  एक साधारण गली के एक साधारण फ्लैट में एक साधारण जीवन जी रही हैं.

गुजरात पुलिस के अनुसार उन्होंने गोपाल पर ली गई जीवन बीमा पौलिसी से डेढ़ लाख पाउंड का दावा करने की योजना बनाई थी. यह योजना आरती धीर ने अपने पति कंवलजीत की मदद से बनाई थी. वे चाहते थे कि गोपाल की हत्या के बाद उस की लाश नाले में पड़ी बरामद हो ताकि बीमे की रकम के लिए दावेदारी की जा सके. इस योजना के तहत आरती धीर ने उसे मारने के लिए एक गिरोह की मदद ली थी.

गुजरात पुलिस को हैरानी इस बात की भी थी कि गोपाल की हत्या की साजिश लंदन के एक हाउसिंग एसोसिएशन के फ्लैट से रची गई थी. उन के फ्लैट की खिड़कियों में भारतीय शैली में परदे लटके हुए थे, साथ ही दरवाजे की चौखट पर नींबू और सूखी मिर्च झूल रहे थे. वहां भारतीय संस्कृति की झलक साफ देखी जा सकती थी. जबकि उस पर भारत में हत्या और अपहरण की साजिश सहित 6 आरोप थे.

आरती धीर और कंवलजीत रायजादा वल्र्डवाइड फ्लाइट सर्विसेज (डब्ल्यूएफएस) के लिए हवाई माल ढुलाई का काम करते थे. हालांकि कंपनी से पूछताछ के बाद मालूम हुआ कि उन को 2016 में ‘अनुबंध के उल्लंघन’ के चलते बरखास्त कर दिया गया था.

आरती वहां भी काफी लोकप्रिय थी. उस के साथ काम करने वाली एक सहकर्मी ने लंदन पुलिस को पूछताछ में बताया कि उस के साथ काम करना और साथ रहना मजेदार था.

आरती धीर और कंवलजीत रायजादा के खिलाफ पहली नजर में ही आपराधिक साजिश का मामला सामने आया. उसे गोद लेने से ले कर बीमा संबंधी दस्तावेजों के सबूत के तौर पर जुटाया गया. इस आधार पर ही मामला मुख्य मजिस्ट्रैट और उच्च न्यायालय तक ले जाया गया.

गोपाल को गोद लेने का राज आया सामने

गोपाल को गोद लेने के दस्तावेज तैयार किए जाने के ठीक एक महीने बाद ही 26 अगस्त, 2015 को आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल लाइफ इंश्योरेंस कंपनी के साथ बीमा के लिए आवेदन किया गया था. इस कंपनी का मुख्यालय मुंबई में है.

गोपाल के लिए ली गई जीवन बीमा पौलिसी का नाम ‘वेल्थ बिल्डर’ था. इस के जरिए ‘प्रस्तावित’ या ‘नामांकित’ को वार्षिक प्रीमियम के मूल्य का 10 गुना भुगतान किया जाता है. इस की प्रस्तावक आरती धीर थी. इस का अर्थ यह था कि गोपाल की मौत पर बीमा का लाभ आरती को ही मिलता.

जूनागढ़ के एसपी सौरव सिंह के अनुसार इस के लिए सिर्फ वार्षिक प्रीमियम 15 हजार पौंड (15 लाख 75 हजार रुपए) की 2 किस्तें ही दी गई थीं. उन की बीमा राशि बहुत बड़ी थी. वे यह अच्छी तरह से जानते थे कि गोपाल की मृत्यु की स्थिति में उसे बीमा राशि का 10 गुना भुगतान मिल जाएगा. इस अनुसार आरती धीर को गोपाल की मृत्यु के बाद करीब एक करोड़ 57 लाख 50 हजार रुपए (डेढ़ लाख पाउंड) मिलते.

गुजरात पुलिस के सामने लंदन में बैठे मुख्य आरोपियों के प्रत्यर्पण के जरिए भारत ला कर पूछताछ करने की मुख्य समस्या थी ताकि उन्हें यहां मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया जा सके.

कारण, दंपति ने लंदन पुलिस को बीमा भुगतान के लिए गोपाल को मारने की योजना बनाने से साफतौर पर इनकार कर दिया था. साथ ही ब्रिटेन ने मानवाधिकार के आधार पर भारत में मुकदमे का सामना करने के लिए जोड़े को प्रत्यर्पित करने के अनुरोध को खारिज कर दिया था. जबकि इसे ले कर गुजरात पुलिस ने भारत सरकार से अनुमति मांगी थी और भारत सरकार ने अपील करने की अनुमति दे दी थी.

भारत सरकार के अनुरोध के बाद जून 2017 में यूके में दोनों गिरफ्तार तो कर लिए किए गए, लेकिन 2 जुलाई, 2017 को वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रैट कोर्ट के एक न्यायाधीश ने मानवाधिकार के आधार पर उन के प्रत्यर्पण से इनकार कर दिया.

अपने फैसले में वरिष्ठ जिला न्यायाधीश एम्मा अर्बुथनौट ने पाया कि उन के प्रत्यर्पण को उचित ठहराने के लिए पर्याप्त सबूत थे. परिस्थितियों के मुताबिक पहले दृष्टिकोण में मामला आरती धीर और उस के पति कंवलजीत सिंह रायजादा द्वारा मिल कर काम करने तथा अन्य लोगों के साथ मिल कर अपराध करने के कई साक्ष्य उजागर हो चुके थे.

इस वजह से नहीं हो पाया आरोपियों का यूके से प्रत्यर्पण

इस के विपरीत गुजरात में दोहरे हत्याकांड की सजा पैरोल के बिना आजीवन कारावास है. इसे देखते हुए उन्होंने कहा कि प्रत्यर्पण ब्रिटेन के कानून के तहत जोड़े के मानवाधिकारों के विपरीत होगा. इस कारण यदि प्रत्यर्पित किया जाता है तो जोड़े को ‘एक अपरिवर्तनीय सजा’ दी जा सकती है, जो ‘अमानवीय और अपमानजनक’ होगी.

इस तरह से गोपाल और उस के बहनोई की हत्या का मामला 2 देशों के बीच प्रत्यर्पण कानून और मानवाधिकारों में उलझने के कारण ठंडे बस्ते में चला गया. दंपति लंदन में आजाद घूमते रहे और दूसरे धंधे में लग गए.

हालांकि भारत के प्रत्यर्पण अनुरोध को 2019 में अस्वीकार किए जाने के बाद 2020 में लंदन के हाईकोर्ट में एक अपील की गई, लेकिन वह भी असफल हो गई.

आरती और कंवलजीत के काले धंधे के कारनामों में नशीली दवाओं की तस्करी, मनी लौंड्रिंग मुख्य थे. वे गुजरात में हत्या के मामले में भले ही बच गए, लेकिन आस्ट्रेलिया में नशीली दवाओं की तस्करी के मामले में पकड़े जाने के बाद वे अंतरराष्ट्रीय Child Murders कानून के शिकंजे में आ चुके थे. उन पर आस्ट्रेलिया में आधा टन से अधिक कोकीन निर्यात करने का आरोप लग चुका था.

दरअसल, मई 2021 में सिडनी पहुंचने पर आस्ट्रेलियाई सीमा बल द्वारा कोकीन पकड़े जाने के बाद राष्ट्रीय अपराध एजेंसी (एनसीए) ने आरती और कंवलजीत की पहचान की थी. नशीली दवाओं को यूके से एक वाणिज्यिक उड़ान के माध्यम से भेजा गया था और 6 धातु के टूलबौक्स के भीतर छिपाया गया था.

इस मामले की सुनवाई लंदन की कोर्ट में होने के बाद कई आपराधिक मामलों का खुलासा होने लगा था. उन में ही बीमा की राशि हासिल करने के लिए दत्तक पुत्र की हत्या का मामला भी था.

लंदन की साउथवार्क क्राउन कोर्ट ने सुनवाई के सिलसिले में पाया कि उन्हें भारत में दत्तक पुत्र गोपाल की हत्या के लिए भी तलाश है. वे निर्यात के 12 और मनी लौंड्रिंग के 18 मामलों में दोषी हैं.

इस सुनवाई के दौरान न्यायाधीश ने दंपति के कई आपराधों में लिप्त होने और उन की काम करने में आपराधिक गतिविधियों की तुलना लोकप्रिय अपराध नाटक ‘ओजार्क’ और ‘ब्रेकिंग बैड’ से की.

इस बाबत तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार अभियोजक ह्यू फ्रेंच ने उन्हें एक वैसे ‘क्रूर और लालची’ जोड़े के रूप का विवरण दिया, जो अंतरराष्ट्रीय संगठित अपराध की दुनिया में सक्रिय बना हुआ था. उन्हें अंतरराष्ट्रीय संगठित अपराध की दुनिया में काम करने वाला पाया गया.

एनसीए के जांचकर्ताओं ने दोनों पर यूके से नशीली दवाएं सिडनी एक कामर्शियल उड़ान के जरिए भेजने का आरोप लगाया था. 6 टूलबौक्स में 514 किलोग्राम कोकीन पाई गई थी.

दंपति ने ड्रग्स की तस्करी के लिए ही जून 2015 में विफ्लाई फ्रेट सर्विसेज नामक एक कंपनी बनाई थी. पतिपत्नी ही इस के डायरेक्टर थे. जांच में कंवलजीत की अंगुलियों के निशान धातु के टूलबौक्स की रैपिंग पर पाए गए थे और टूलबौक्स के आर्डर की रसीदें दंपति के घर से बरामद हुई थीं.

काली कमाई से जुटाए करोड़ों रुपए

इस संबंध में एनसीए ने खुलासा किया कि जून 2019 से आस्ट्रेलिया को 37 खेप भेजी गईं, जिन में से 22 नकली थीं और 15 में कोकीन थी. उन्होंने हवाई अड्डे से माल ढुलाई प्रक्रियाओं की बारीक जानकारी हीथ्रो में एक उड़ान सेवा कंपनी में नौकरी करते हुए सीखी थी. एनसीए के वरिष्ठ जांच अधिकारी पियर्स फिलिप्स के अनुसार आरती धीर और कंवलजीत सिंह रायजादा ने यूके से आस्ट्रेलिया तक लाखों पाउंड मूल्य की कोकीन की तस्करी के लिए हवाई माल ढुलाई उद्योग के अपने अंदरूनी जानकारी का इस्तेमाल किया था, जहां वे जानते थे कि कैसे अधिक से अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है.

उन्होंने अपने काले धंधे की कमाई के पैसे और धन को छिपाने के भी सफल प्रयास किए. अवैध मुनाफे की कमाई को नकदी के रूप घर और अनाज आदि रखने के कंटेनरों में रखा. साथ ही सोना और चांदी भी खरीदी. जैसेजैसे उन की काली कमाई बढ़ती जा रही थी, वैसेवैसे उन का लालच और अधिक बढ़ता जा रहा था.

दोनों को जांच टीम ने 21 जून, 2021 को हैनवेल में उन के घर से गिरफ्तार कर लिया था. उन के फ्लैट की तलाशी में 5,000 पाउंड मूल्य की सोने की परत चढ़ी चांदी की छड़ें, घर के अंदर 13,000 पाउंड और बौक्स में 60,000 पाउंड नकद मिले.

इस बारे में पूछताछ में पाया गया कि उन्होंने ईलिंग में 8,00,000 पाउंड में एक फ्लैट और 62,000 पाउंड में एक लैंड रोवर कार भी खरीदी थी.

उन्होंने 2019 से 22 अलगअलग बैंक खातों में लगभग 7,40,000 पाउंड (लगभग 7 करोड़ 77 लाख रुपए) नकद जमा किए थे और उन पर मनी लौंड्रिंग का आरोप लगाया गया था.

इस पूरे मामले पर काम करने वाले 3 एनसीए अधिकारियों ने दंपति के खिलाफ कोर्ट में सारे सबूत जुटा दिए थे. हालांकि दोनों ने आस्ट्रेलिया को कोकीन निर्यात करने और मनी लौंड्रिंग से इनकार किया. बावजूद इस के लंदन की साउथवार्क क्राउन कोर्ट में एक मुकदमे के बाद जूरी द्वारा उन्हें निर्यात के 12 मामलों और मनी लौंड्रिंग के 18 मामलों में 7 साल तक चले मुकदमे के बाद 31 जनवरी, 2024 दोषी ठहराया गया.

अगले रोज 31 जनवरी, 2024 को आरती धीर और उस के पति कंवलजीत रायजादा को 33-33 साल जेल की सजा सुना दी गई.

गुजरात में गोपाल की बहन अल्पा को एक स्थानीय पत्रकार ने फोन कर इस की जानकारी दी. यह सुनते ही अल्पा ने तुरंत अपना टीवी चालू किया और उस के भाई और पति के हत्यारे को जेल की सजा सुनाए जाने पर राहत की सांस ली. दोनों को 33-33 साल जेल की सजा सुनाई गई थी.

कहानी लिखे जाने तक दंपति जेल में थे, लेकिन गुजरात में अल्पा को यह समझ में नहीं आ रहा था कि उस के भाई और पति की हत्या के मामले को नशीली दवाओं की तस्करी के मामले से कम क्यों आंका गया?

2 भगोड़े एनआरआई को 33 साल की सजा दिए जाने की घटना ने ब्रिटिश के दोहरे मानदंडों को ले कर सवाल खड़े कर दिए कि आखिर हत्या की साजिश से अधिक महत्त्वपूर्ण ड्रग तस्करी क्यों हो गई? गोपाल के परिवार वालों के सामने यह सवाल बना हुआ है कि क्या 2 जनों की कीमत उस से कम थी?

50 करोड़ का खेल : भीलवाड़ा का बिल्डर अपहरण कांड

21 मार्च, 2019 की बात है. उस दिन होली थी. होलिका दहन के अगले दिन रंग गुलाल से खेले जाने वाले त्यौहार का आमतौर पर दोपहर तक ही धूमधड़ाका रहता है. दोपहर में रंगेपुते लोग नहाधो कर अपने चेहरों से रंग उतारते हैं. फिर अपने कामों में लग जाते हैं. कई जगह शाम के समय लोग अपने परिचितों और रिश्तेदारों से मिलने भी जाते हैं.

भीलवाड़ा के पाटील नगर का रहने वाला शिवदत्त शर्मा भी होली की शाम अपने दोस्त राजेश त्रिपाठी से मिलने के लिए अपनी वेरना कार से बापूनगर के लिए निकला था. शिवदत्त ने जाते समय पत्नी शर्मीला से कहा था कि वह रात तक घर आ जाएगा. थोड़ी देर हो जाए तो चिंता मत करना.

शिवदत्त का मोबाइल स्विच्ड क्यों था

शिवदत्त जब देर रात तक नहीं लौटा तो शर्मीला को चिंता हुई. रात करीब 10 बजे शर्मीला ने पति के मोबाइल पर फोन किया, लेकिन मोबाइल स्विच्ड औफ मिला. इस के बाद शर्मीला घरेलू कामों में लग गई. उस के सारे काम निबट गए, लेकिन शिवदत्त घर नहीं आया था. शर्मीला ने दोबारा पति के मोबाइल पर फोन किया. लेकिन इस बार भी उस का फोन स्विच्ड औफ ही मिला. उसे लगा कि शायद पति के मोबाइल की बैटरी खत्म हो गई होगी, इसलिए स्विच्ड औफ आ रहा है.

शर्मीला बिस्तर पर लेट कर पति का इंतजार करने लगी. धीरेधीरे रात के 12 बज गए, लेकिन शिवदत्त घर नहीं आया. इस से शर्मीला को चिंता होने लगी. वह पति के दोस्त राजेश त्रिपाठी को फोन करने के लिए नंबर ढूंढने लगी, लेकिन त्रिपाठीजी का नंबर भी नहीं मिला.

शर्मीला की चिंता स्वाभाविक थी. वैसे भी शिवदत्त कह गया था कि थोड़ीबहुत देर हो जाए तो चिंता मत करना, लेकिन घर आने की भी एक समय सीमा होती है. शर्मीला बिस्तर पर लेटेलेटे पति के बारे में सोचने लगी कि क्या बात है, न तो उन का फोन आया और न ही वह खुद आए.

पति के खयालों में खोई शर्मीला की कब आंख लग गई, पता ही नहीं चला. त्यौहार के कामकाज की वजह से वह थकी हुई थी, इसलिए जल्दी ही गहरी नींद आ गई.

वाट्सऐप मैसेज से मिली पति के अपहरण की सूचना

22 मार्च की सुबह शर्मीला की नींद खुली तो उस ने घड़ी देखी. सुबह के 5 बजे थे. पति अभी तक नहीं लौटा था. शर्मीला ने पति को फिर से फोन करने के लिए अपना मोबाइल उठाया तो देखा कि पति के नंबर से एक वाट्सऐप मैसेज आया था.

शर्मीला ने मैसेज पढ़ा. उस में लिखा था, ‘तुम्हारा घर वाला हमारे पास है. इस पर हमारे एक करोड़ रुपए उधार हैं. यह हमारे रुपए नहीं दे रहा. इसलिए हम ने इसे उठा लिया है. हम तुम्हें 2 दिन का समय देते हैं. एक करोड़ रुपए तैयार रखना. बाकी बातें हम 2 दिन बाद तुम्हें बता देंगे. हमारी नजर तुम लोगों पर है. ध्यान रखना, अगर पुलिस या किसी को बताया तो इसे वापस कभी नहीं देख पाओगी.’

मोबाइल पर आया मैसेज पढ़ कर शर्मीला घबरा गई. वह क्या करे, कुछ समझ नहीं पा रही थी. पति की जिंदगी का सवाल था, घबराहट से भरी शर्मीला ने अपने परिवार वालों को जगा कर मोबाइल पर आए मैसेज के बारे में बताया.

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मैसेज पढ़ कर लग रहा था कि शिवदत्त का अपहरण कर लिया गया है. बदमाशों ने शिवदत्त के मोबाइल से ही मैसेज भेजा था ताकि पुष्टि हो जाए कि शिवदत्त बदमाशों के कब्जे में है. यह मैसेज 21 मार्च की रात 9 बज कर 2 मिनट पर आया था, लेकिन उस समय शर्मीला इसे देख नहीं सकी थी.

शिवदत्त के अपहरण की बात पता चलने पर पूरे परिवार में रोनापीटना शुरू हो गया. जल्दी ही बात पूरी कालोनी में फैल गई. चिंता की बात यह थी कि अपहर्त्ताओं ने शिवदत्त पर अपने एक करोड़ रुपए बकाया बताए थे और वह रकम उन्होंने 2 दिन में तैयार रखने को कहा था.

शर्मीला 2 दिन में एक करोड़ का इंतजाम कहां से करती? शिवदत्त होते तो एक करोड़ इकट्ठा करना मुश्किल नहीं था लेकिन शर्मीला घरेलू महिला थी, उन्हें न तो पति के पैसों के हिसाब किताब की जानकारी थी और न ही उन के व्यवसाय के बारे में ज्यादा पता था. शर्मीला को बस इतना पता था कि उस के पति बिल्डर हैं.

शर्मीला और उस के परिवार की चिंता को देखते हुए कुछ लोगों ने उन्हें पुलिस के पास जाने की सलाह दी. शर्मीला परिवार वालों के साथ 22 मार्च को भीलवाड़ा के सुभाषनगर थाने पहुंच गई और पुलिस को सारी जानकारी देने के बाद अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

पुलिस ने शर्मीला और उन के परिवार के लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि कपड़ा नगरी के नाम से देश भर में मशहूर भीलवाड़ा के पथिक नगर की श्रीनाथ रेजीडेंसी में रहने वाले 42 साल के शिवदत्त शर्मा की हाइपर टेक्नो कंसट्रक्शन कंपनी है. शिवदत्त का भीलवाड़ा और आसपास के इलाके में प्रौपर्टी का बड़ा काम था. उन के बिजनैस में कई साझीदार हैं और इन लोगों की करोड़ों अरबों की प्रौपर्टी हैं.

रिपोर्ट दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी अजयकांत शर्मा ने इस की जानकारी एडिशनल एसपी दिलीप सैनी को दे दी. इस के बाद पुलिस ने शिवदत्त की तलाश शुरू कर दी. साथ ही शिवदत्त की पत्नी से यह भी कह दिया कि अगर अपहर्त्ताओं का कोई भी मैसेज आए तो तुरंत पुलिस को बता दें.

चूंकि शिवदत्त अपने दोस्त राजेश त्रिपाठी के घर जाने की बात कह कर घर से निकले थे, इसलिए पुलिस ने राजेश त्रिपाठी से पूछताछ की. राजेश ने बताया कि शिवदत्त होली के दिन शाम को उन के पास आए तो थे लेकिन वह रात करीब 8 बजे वापस चले गए थे.

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जांचपड़ताल के दौरान 23 मार्च को पुलिस को शिवदत्त की वेरना कार भीलवाड़ा में ही सुखाडि़या सर्किल से रिंग रोड की तरफ जाने वाले रास्ते पर लावारिस हालत में खड़ी मिल गई. पुलिस ने कार जब्त कर ली. पुलिस ने कार की तलाशी ली, लेकिन उस से शिवदत्त के अपहरण से संबंधित कोई सुराग नहीं मिला. कार भी सहीसलामत थी. उस में कोई तोड़फोड़ नहीं की गई थी और न ही उस में संघर्ष के कोई निशान थे.

पुलिस ने शिवदत्त के मोबाइल को सर्विलांस पर लगा दिया. लेकिन मोबाइल के स्विच्ड औफ होने की वजह से उस की लोकेशन नहीं मिल रही थी. जांच की अगली कड़ी के रूप में पुलिस ने शिवदत्त, उस की पत्नी और कंपनी के स्टाफ के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. इस के अलावा शिवदत्त के लेनदेन, बैंक खातों, साझेदारों के लेनदेन से संबंधित जानकारियां जुटाईं. यह भी पता लगाया गया कि किसी प्रौपर्टी को ले कर कोई विवाद तो नहीं था.

पुलिस जुट गई जांच में

इस बीच 24 मार्च का दिन भी निकल गया. लेकिन अपहर्त्ताओं की ओर से कोई सूचना नहीं आई. जबकि उन्होंने 2 दिन में एक करोड़ रुपए का इंतजाम करने को कहा था. घर वाले इस बात को ले कर चिंतित थे कि कहीं अपहर्त्ताओं को उन के पुलिस में जाने की बात पता न लग गई हो. क्योंकि इस से चिढ़ कर वे शिवदत्त के साथ कोई गलत हरकत कर सकते थे.

शर्मीला पति को ले कर बहुत चिंतित थी. अपहर्त्ताओं की ओर से 3 दिन बाद भी शिवदत्त के परिजनों से कोई संपर्क नहीं किया गया. ऐसे में पुलिस को भी उस की सलामती की चिंता थी.

पुलिस ने शिवदत्त की तलाश तेज करते हुए 4 टीमें जांचपड़ताल में लगा दी. इन टीमों ने शिवदत्त के रिश्तेदारों से ले कर मिलनेजुलने वालों और संदिग्ध लोगों से पूछताछ की, लेकिन कहीं से कोई सुराग नहीं मिला. शिवदत्त की कार जिस जगह लावारिस हालत में मिली थी, उस के आसपास सीसीटीवी फुटेज खंगालने की कोशिश भी की गई, लेकिन पुलिस को कोई सुराग नहीं मिल सका.

इस पर पुलिस ने 25 मार्च को शिवदत्त के फोटो वाले पोस्टर छपवा कर भीलवाड़ा जिले के अलावा पूरे राजस्थान सहित गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र के पुलिस थानों को सार्वजनिक स्थानों पर चस्पा करने के लिए भेजे.

पुलिस को भी नहीं मिला शिवदत्त

जांच में पता चला कि शिवदत्त ने कुछ समय पहले महाराष्ट्र में भी अपना कारोबार शुरू किया था. इसलिए किसी सुराग की तलाश में पुलिस टीम मुंबई और नासिक भेजी गई. लेकिन वहां हाथपैर मारने के बाद पुलिस खाली हाथ लौट आई.

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उधर लोग इस मामले में पुलिस की लापरवाही मान रहे थे. पुलिस के प्रति लोगों में आक्रोश बढ़ता जा रहा था. 26 अप्रैल, 2019 को ब्राह्मण समाज के प्रतिनिधि मंडल ने भीलवाड़ा के कलेक्टर और एसपी को ज्ञापन दे कर शिवदत्त को सुरक्षित बरामद कर अपहर्त्ताओं को गिरफ्तार करने की मांग की. ऐसा न होने पर उन्होंने आंदोलन की चेतावनी दे दी.

दिन पर दिन बीतते जा रहे थे, लेकिन न तो अपहर्त्ताओं ने शिवदत्त के परिजनों से कोई संपर्क किया था और न ही पुलिस को कोई सुराग मिला था. इस से शिवदत्त के परिजन भी परेशान थे. उन के मन में आशंका थी कि अपहर्त्ताओं ने शिवदत्त के साथ कुछ गलत न कर दिया हो. क्योंकि इतने दिन बाद भी न तो अपहर्त्ता संपर्क कर रहे थे और न ही खुद शिवदत्त.

पुलिस की चिंता भी कम नहीं थी. वह भी लगातार भागदौड़ कर रही थी. पुलिस ने शिवदत्त के फेसबुक, ट्विटर, ईमेल एकाउंट खंगालने के बाद संदेह के दायरे में आए 50 से अधिक लोगों से पूछताछ की.

पुलिस की टीमें महाराष्ट्र और गुजरात भी हो कर आई थीं. शिवदत्त और उस के परिवार वालों के मोबाइल की कालडिटेल्स की भी जांच की गई. भीलवाड़ा शहर में बापूनगर, पीऐंडटी चौराहा से पांसल चौराहा और अन्य इलाकों में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली गई, लेकिन इन सब का कोई नतीजा नहीं निकला.

बिल्डर शिवदत्त के अपहरण का मामला पुलिस के लिए एक मिस्ट्री बनता जा रहा था. पुलिस अधिकारी समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर अपहर्त्ता शिवदत्त को कहां ले जा कर छिप गए. ऐसा कोई व्यक्ति भी पुलिस को नहीं मिल रहा था जिस ने राजेश त्रिपाठी के घर से निकलने के बाद शिवदत्त को देखा हो. त्रिपाठी ही ऐसा शख्स था, जिस से शिवदत्त आखिरी बार मिला था. पुलिस त्रिपाठी से पहले ही पूछताछ कर चुकी थी. उस से कोई जानकारी नहीं मिली थी तो उसे घर भेज दिया गया था.

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जांचपड़ताल में सामने आया कि शिवदत्त का करीब 100 करोड़ रुपए का कारोबार था. साथ ही उस पर 20-30 करोड़ की देनदारियां भी थीं. महाराष्ट्र के नासिक और गुजरात के अहमदाबाद में भी उस ने कुछ समय पहले नया काम शुरू किया था.

शिवदत्त ने सन 2009 में प्रौपर्टी का कारोबार शुरू किया था. शुरुआत में उस ने इस काम में अच्छा पैसा कमाया. कमाई हुई तो उस ने अपने पैर पसारने शुरू कर दिए. एक साथ कई काम शुरू करने से उसे नुकसान भी हुआ. इस से उस की आर्थिक स्थिति गड़बड़ाने लगी तो उस ने लोन लेने के साथ कई लोगों से करोड़ों रुपए उधार लिए. भीलवाड़ा जिले का रहने वाला एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी भी शिवदत्त की प्रौपर्टीज में पैसा लगाता था.

शिवदत्त भीलवाड़ा में ब्राह्मण समाज और अन्य समाजों के धार्मिक कार्यक्रमों में मोटा चंदा देता था. इस से उस ने विभिन्न समाजों के धनी और जानेमाने लोगों का भरोसा भी जीत रखा था. ऐसे कई लोगों ने शिवदत्त की प्रौपर्टीज में निवेश कर रखा था.

शिवदत्त के ऊपर उधारी बढ़ती गई तो लेनदार भी परेशान करने लगे. शिवदत्त प्रौपर्टी बेच कर उन लोगों का पैसा चुकाना चाहता था, लेकिन बाजार में मंदी के कारण प्रौपर्टी का सही भाव नहीं मिल रहा था. इस से वह परेशान रहने लगा था. लोगों के तकाजे से परेशान हो कर उसने फोन अटेंड करना भी कम कर दिया था.

हालांकि शर्मीला ने पुलिस थाने में पति के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कराई थी, लेकिन पुलिस को एक भी ऐसा सबूत नहीं मिला, जिस के उस के अपहरण की पुष्टि होती. एक सवाल यह भी था कि शिवदत्त अगर उधारी का पैसा नहीं चुका रहा था तो अपहर्त्ता उन के किसी परिजन को उठा कर ले जाते, क्योंकि लेनदारों को यह बात अच्छी तरह पता थी कि पैसों की व्यवस्था शिवदत्त के अलावा कोई दूसरा नहीं कर सकता.

घूमने लगा पुलिस का दिमाग

आधुनिक टैक्नोलौजी के इस जमाने में पुलिस तीनचौथाई आपराधिक मामले मोबाइल लोकेशन, काल डिटेल्स व सीसीटीवी फुटेज से सुलझा लेती है, लेकिन शिवदत्त के मामले में पुलिस के ये तीनों हथियार फेल हो गए थे. उस का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ था. सीसीटीवी फुटेज साफ नहीं थे. काल डिटेल्स से भी कोई खास बातें पता नहीं चलीं.

प्रौपर्टी का काम करने से पहले शिवदत्त के पास बोरिंग मशीन थी. वह हिमाचल प्रदेश, जम्मूकश्मीर सहित कई राज्यों में ट्यूबवैल के बोरिंग का काम करता था. इन स्थितियों में तमाम बातों पर गौर करने के बाद पुलिस शिवदत्त के अपहरण के साथ अन्य सभी पहलुओं पर भी जांच करने लगी.

इसी बीच शिवदत्त की पत्नी शर्मीला ने राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर पीठ में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर दी. इस में शर्मीला ने अपने पति को ढूंढ निकालने की गुहार लगाई. इस पर हाईकोर्ट ने पुलिस को आदेश दिया कि शिवदत्त को तलाश कर जल्द से जल्द अदालत में पेश किया जाए.

अब पुलिस के सामने शिवदत्त मामले में दोहरी चुनौती पैदा हो गई. पुलिस ने शिवदत्त की तलाश ज्यादा तेजी से शुरू कर दी. मई के पहले सप्ताह में शिवदत्त का मोबाइल स्विच औन किया गया. इस से उस की लोकेशन का पता चल गया. पता चला कि वह मोबाइल देहरादून में है. भीलवाड़ा से तुरंत एक पुलिस टीम देहरादून भेजी गई. देहरादून में पुलिस ने मोबाइल की लोकेशन ढूंढी तो वह मोबाइल एक धोबी के पास मिला.

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धोबी ने बताया कि पास के ही एक गेस्टहाउस में रहने वाले एक साहब के कपड़ों में एक दिन गलती से उन का मोबाइल आ गया. उस मोबाइल को धोबी के बेटे ने औन कर के अपने पास रख लिया था. मोबाइल औन होने से उस की लोकेशन पुलिस को पता चल गई.

पुलिस ने 4 मई, 2019 को धोबी की मदद से शिवदत्त को देहरादून के अरोड़ा पेइंग गेस्टहाउस से बरामद कर लिया. शिवदत्त अपने औफिस के कर्मचारी राकेश शर्मा की आईडी से इस गेस्टहाउस में ठहरा हुआ था. देहरादून से वह लगातार जयपुर की अपनी एक परिचित महिला के संपर्क में था. इस दौरान शिवदत्त ने देहरादून में एक कोचिंग सेंटर में इंग्लिश स्पीकिंग क्लास भी जौइन कर ली थी.

42 दिन तक कथित रूप से लापता रहे शिवदत्त को पुलिस देहरादून से भीलवाड़ा ले आई. उस से की गई पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं थी.

नाटक और हकीकत में फर्क होता है

शिवदत्त ने प्रौपर्टी व्यवसाय में कई जगह पैर पसार रखे थे. उस ने भीलवाड़ा में विनायक रेजीडेंसी, सांगानेर रोड पर मल्टीस्टोरी प्रोजैक्ट, अजमेर रोड पर श्रीमाधव रेजीडेंसी, कृष्णा विहार बाईपास, कोटा रोड पर रूपाहेली गांव के पास वृंदावन ग्रीन फार्महाउस आदि बनाए. इन के लिए उस ने बाजार से मोटी ब्याज दर पर करीब 50 करोड़ रुपए उधार लिए थे, लेकिन कुछ प्रोजैक्ट समय पर पूरे नहीं हुए.

बाद में प्रौपर्टी व्यवसाय में मंदी आ गई. इस से उसे अपनी प्रौपर्टीज के सही भाव नहीं मिल पा रहे थे. जिन लोगों ने शिवदत्त को रकम उधार दी थी, वह उन पर लगातार तकाजा कर रहे थे. ब्याज का बोझ बढ़ता जा रहा था. इस से शिवदत्त परेशान रहने लगा. वह इस समस्या से निकलने का समाधान खोजता रहता था.

इस बीच जनवरी में शिवदत्त अपने घर पर सीढि़यों से फिसल गया. उस की रीढ़ की हड्डी में चोट आई थी. कुछ दिन वह अस्पताल में भरती रहा. फिर चोट के बहाने करीब 2 महीने तक घर पर ही रहा. इस दौरान उस ने अपना कारोबार पत्नी शर्मीला और स्टाफ के भरोसे छोड़ दिया था. पैसा मांगने वालों को घरवाले और स्टाफ शिवदत्त के बीमार होने की बात कह कर टरकाते रहे.

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घर पर आराम करने के दौरान एक दिन शिवदत्त ने सारी समस्याओं से निपटने के लिए खुद के अपहरण की योजना बनाई. उस का विचार था कि अपहरण की बात से कर्जदार उस के परिवार को परेशान नहीं करेंगे. उन पर पुलिस की पूछताछ का दबाव भी नहीं रहेगा. यहां से जाने के बाद वह भीलवाड़ा से बाहर जा कर कहीं रह लेगा और मामला शांत हो जाने पर किसी दिन अचानक भीलवाड़ा पहुंच कर अपने अपहरण की कोई कहानी बना देगा.

अपनी योजना को मूर्तरूप देने के लिए उस ने होली का दिन चुना. इस से पहले ही शिवदत्त ने अपनी कार में करीब 8-10 जोड़ी कपड़े और जरूरी सामान रख लिया था. करीब एक लाख रुपए नकद भी उस के पास थे. शिवदत्त ने अपनी योजना की जानकारी पत्नी और किसी भी परिचित को नहीं लगने दी. उसे पता था कि अगर परिवार में किसी को यह बात बता दी तो पुलिस उस का पता लगा लेगी. इसलिए उस ने इस बारे में पत्नी तक को कुछ बताना ठीक नहीं समझा.

योजना के अनुसार, शिवदत्त होली की शाम पत्नी से अपने दोस्त राजेश त्रिपाठी से मिलने जाने की बात कह कर कार ले कर घर से निकल गया. वह अपने दोस्त से मिला और रात करीब 8 बजे वहां से निकल गया. शिवदत्त ने राजेश त्रिपाठी के घर से आ कर अपनी कार सुखाडि़या सर्किल के पास लावारिस छोड़ दी. कार से कपड़े और जरूरी सामान निकाल लिया. कपड़े व सामान ले कर वह भीलवाड़ा से प्राइवेट बस में सवार हो कर दिल्ली के लिए चल दिया.

भीलवाड़ा से रवाना होते ही शिवदत्त ने अपने मोबाइल से पत्नी के मोबाइल पर खुद के अपहरण का मैसेज भेज दिया था. इस के बाद उस ने अपना मोबाइल स्विच्ड औफ कर लिया. भीलवाड़ा से दिल्ली पहुंच कर वह ऋषिकेश चला गया.

ऋषिकेश में शिवदत्त ने अपने औफिस के कर्मचारी राकेश शर्मा की आईडी से नया सिमकार्ड खरीदा. फिर एक नया फोन खरीद कर वह सिम मोबाइल में डाल दिया. कुछ दिन ऋषिकेश में रुकने के बाद शिवदत्त देहरादून चला गया. देहरादून में 29 मार्च को उस ने राकेश शर्मा की आईडी से अरोड़ा पेइंग गेस्टहाउस में कमरा ले लिया.

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खेल एक अनाड़ी खिलाड़ी का

देहरादून में उस ने दिखावे के लिए इंग्लिश स्पीकिंग क्लास जौइन कर ली. वह अपने कपड़े धुलवाने और प्रैस कराने के लिए धोबी को देता था. एक दिन गलती से शिवदत्त का पुराना मोबाइल उस के कपड़ों की जेब में धोबी के पास चला गया. इसी से उस का भांडा फूटा.

शुरुआती जांच में सामने आया कि देहरादून में रहने के दौरान शिवदत्त मुख्यरूप से जयपुर की एक परिचित महिला के संपर्क में था. इस महिला से शिवदत्त की रोजाना लंबीलंबी बातें होती थीं. जबकि वह अपनी पत्नी या अन्य किसी परिजन के संपर्क में नहीं था.

भीलवाड़ा के सुभाष नगर थानाप्रभारी अजयकांत शर्मा ने शिवदत्त को 6 मई को जोधपुर ले जा कर हाईकोर्ट में पेश किया और उस के अपहरण की झूठी कहानी से कोर्ट को अवगत कराया. इस पर मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस संदीप मेहता और विनीत कुमार माथुर की खंडपीठ ने शिवदत्त के प्रति नाराजगी जताई. जजों ने याचिका का निस्तारण करते हुए अदालत और पुलिस को गुमराह करने पर याचिकाकर्ता शर्मीला पर 5 हजार रुपए का जुरमाना लगाते हुए यह राशि पुलिस कल्याण कोष में जमा कराने के आदेश दिए.

बाद में सुभाष नगर थाना पुलिस ने शिवदत्त के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया. उस के खिलाफ अपने ही अपहरण की झूठी कहानी गढ़ कर पुलिस को गुमराह करने, अवैध रूप से देनदारों पर दबाव बनाने और षडयंत्र रचने का मामला दर्ज किया गया. इस मामले की जांच सदर पुलिस उपाधीक्षक राजेश आर्य कर रहे थे.

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पुलिस ने इस मामले में 7 मई, 2019 को बिल्डर शिवदत्त को गिरफ्तार कर लिया. अगले दिन उसे अदालत में पेश कर 6 दिन के रिमांड पर लिया गया. रिमांड अवधि में भी शिवदत्त से विस्तार से पूछताछ की गई, फिर उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया.

बहरहाल, बिल्डर शिवदत्त मोहमाया के लालच में अपने ही बिछाए जाल में फंस गया. अपहरण की झूठी कहानी से उस के परिजन भी 42 दिन तक परेशान रहे. पुलिस भी परेशान होती रही. भले ही वह जमानत पर छूट कर घर आ जाएगा, लेकिन सौ करोड़ के कारोबारी ने बाजार में अपनी साख तो खराब कर ही ली. इस का जिम्मेदार वह खुद और उस का लोभ है.

True Crime Stories : कोल्ड ड्रिंक पिलाकर की पांच लोगों की हत्या

True Crime Stories : पुलिस अधिकारियों को बरामदे में ही 2 महिलाएं घायल पड़ी दिखाई दीं. पूछने पर सुभाष ने बताया कि एक महिला उस की बहू डौली है तथा दूसरी रिश्तेदार सुषमा है. पुलिस अधिकारियों ने इन दोनों को इलाज हेतु सैफई अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद पुलिस अधिकारी आंगन में पहुंचे तो वहां 3 लाशें पड़ी थीं. इन की हत्या गला काट कर बड़ी बेरहमी से की गई थी. आंगन में खून ही खून फैला था.

पूछने पर सुभाष ने बताया कि एक लाश उस के छोटे बेटे अभिषेक उर्फ भुल्लन (20 वर्ष) की है, जबकि दूसरी लाश दामाद सौरभ (26 वर्ष) की है. तीसरी लाश बेटे के दोस्त दीपक (21 वर्ष) की है.

Bhullan (Mratak)               Sonu (Mratak)

     अभिषेक उर्फ भुल्लन                                 मृतक सोनू

लाश के पास ही खून सना फरसा पड़ा था. शायद उसी फरसे से उन का कत्ल किया गया था, इसलिए फरसे को पुलिस ने सुरक्षित कर लिया.

एसपी विनोद कुमार सहयोगियों के साथ आंगन से जीने के रास्ते छत पर पहुंचे तो वहां का दृश्य देख कर वह चौंक गए. कमरे के अंदर सुभाष के बेटे सोनू व उस की नई नवेली दुलहन True Crime Stories सोनी की लाश पड़ी थी. उन दोनों के हाथ की मेहंदी व पैरों की महावर अभी छूटी भी न थी कि उन्हें मौत की नींद सुला दिया गया था. उन दोनों की हत्या भी गला काट कर ही की गई थी. सोनू की उम्र 23 साल के आसपास थी, जबकि सोनी की उम्र 20 वर्ष थी.

निरीक्षण करते हुए एसपी विनोद कुमार जब मकान के पिछवाड़े पहुंचे तो वहां एक और युवक की लाश पड़ी थी. पूछताछ से पता चला कि वह लाश सुभाष के बड़े बेटे शिववीर (Shivvir) की है.

पता चला कि शिववीर ने ही पूरे परिवार का कत्ल किया था, फिर पकड़े जाने के डर से खुदकुशी कर ली थी. शिववीर की उम्र 28 साल के आसपास थी.

शिववीर के शव के पास ही एक तमंचा पड़ा था. इसी तमंचे से गोली मार कर उस ने खुदकुशी की थी. पुलिस ने तमंचे को सुरक्षित कर लिया. पुलिस ने शिववीर की तलाशी ली तो उस की जेब से मिर्च स्प्रे तथा नींद की गोलियों के 2 खाली पत्ते मिले. पुलिस ने इसे भी सुरक्षित कर लिया.

इस के अलावा पुलिस ने कमरे से कुल्हाड़ी व फावड़ा भी कब्जे में लिया, जिस से शिववीर ने पत्नी, भाभी व पिता पर हमला किया था.  यह बात 24 जून, 2023 की है.

शिववीर ने घर के 5 जनों को क्यों काटा

यह वीभत्स घटना उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के मैनपुरी (Mainpuri) जिले के किशनी थाने के गांव गोकुलपुरा अरसारा में बीती रात घटित हुई थी. सामूहिक नरसंहार (Mainpuri Mass Murder Case) की खबर थाना किशनी पुलिस को मिली तो पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया.

पुलिस अधिकारी भी घटनास्थल की तरफ रवाना हो लिए. कुछ ही देर में एसएचओ अनिल कुमार, एसपी विनोद कुमार, एएसपी राजेश कुमार तथा सीओ चंद्रशेखर सिंह घटनास्थल पर आ गए.

सुभाष के दरवाजे पर अब तक भारी भीड़ जुट चुकी थी. ग्रामीणों की इतनी भीड़ देख कर पुलिस अधिकारी भी हैरान रह गए. उन्हें लगा कि असामाजिक तत्त्व भीड़ को गुमराह कर कहीं कोई बवाल खड़ा न कर दें. इसलिए उन्होंने अतिरिक्त फोर्स मंगा कर गोकुलपुरा गांव में तैनात करा दी.

सामूहिक हत्याकांड (Mainpuri Mass Murder) की खबर सुन कर अब तक सुभाष यादव के घर पर रिश्तेदारों का जमावड़ा शुरू हो गया था. जब भी कोई खास रिश्तेदार आता, महिलाओं का करुण रुदन कलेजा चीरने लगता. माहौल उस समय तो बेहद गमगीन हो उठा, जब नईनवेली दुलहन True Crime Stories मृतका सोनी के मम्मीपापा के साथ सैकड़ों लोग आ गए.

वेदराम व उन की पत्नी सुषमा बेटी दामाद का शव देख कर बिलख पड़े. उन का करुण रुदन इतना द्रवित कर देने वाला था कि वहां मौजूद शायद ही कोई ऐसा हो, जिस की आंखों में आंसू न आए हों. पुलिसकर्मी तक अपने आंसू न रोक सके.

Deepak (Mratak)                  Saurabh (Mratak)

मृतक दीपक                                              मृतक सौरभ

मृतक दीपक के मम्मीपापा भी फिरोजाबाद से आ गए थे. वह भी बेटे की लाश के पास सुबक रहे थे. प्रियंका भी पति सौरभ की लाश के पास बिलख रही थी. उस की मम्मी शारदा देवी उसे ढांढस बंधा रही थी. यह बात दीगर थी कि उन की आंखों से भी लगातार आंसू बह रहे थे. क्योंकि उन की आंखों के सामने ही बेटे, बहू और दामाद की लाश पड़ी थी.

पुलिस अधिकारियों ने संवेदना व्यक्त करते हुए किसी तरह समझाबुझा कर मृतकों के घर वालों को शवों से अलग किया, फिर पंचनामा भरवा कर मृतक सोनू, भुल्लन, दीपक, सौरभ, शिववीर तथा सोनी के शवों को पोस्टमार्टम के लिए मैनपुरी के जिला अस्पताल भिजवा दिया.

शवों को पोस्टमार्टम हाउस भिजवाने के बाद एसपी विनोद कुमार ने घर के मुखिया सुभाष यादव से घटना के बारे में जानकारी जुटाई. सुभाष यादव ने बताया कि यह खूनी खेल उस के बड़े बेटे शिववीर ने ही खेला है. 22 जून को उस के मंझले बेटे सोनू की शादी थी. बारात गंगापुरा (इटावा) गई थी. 23 जून को दोपहर बाद बारात वापस आई. घर में बहू की मुंहदिखाई व अन्य रस्में पूरी हुईं. खूब गाना बजाना हुआ.

रात 12 बजे तक डीजे पर सब नाचतेझूमते रहे. शिववीर भी जश्न में शामिल रहा. लेकिन उस के मन में क्या चल रहा है, हम लोग भांप नहीं पाए. रात के अंतिम पहर में इस क्रूर हत्यारे ने हमला कर 5 जनों को काट कर मौत की नींद सुला दिया. शायद उस का इरादा सभी को खत्म करने का था, लेकिन पत्नी बेटी सहित वह बच गए.

Ghar Ke Mukhiya Se Puch-Tach Karte S.P. Vinod Kumar

घर के मुखिया सुभाषचंद यादव से बातचीत करते हुए एसपी विनोद कुमार

एसपी विनोद कुमार ने गोकुलपुरा अरसारा गांव में डेरा जमा लिया था. शवों के अंतिम संस्कार तक वह कोई रिस्क नहीं लेना चाहते थे. देर शाम एडीजी राजीव कृष्ण व आईजी दीपक कुमार गोकुलपुरा पहुंचे और उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण कर घर के मुखिया सुभाषचंद यादव से बातचीत की. उन्होंने एसपी विनोद कुमार से भी घटना से संबंधित जानकारी हासिल की तथा कुछ आवश्यक निर्देश दिए.

मृतकों के शवों का पोस्टमार्टम वीडियोग्राफी के साथ 3 डाक्टरों के पैनल ने किया. वहां क्षेत्रीय विधायक बृजेश कठेरिया मृतकों के परिजनों के साथ रहे और उन्हे धैर्य बंधाते रहे.

पोस्टमार्टम के बाद शव उन के परिजनों को सौंप दिए गए. पुलिस व्यवस्था के साथ दीपक का शव फिरोजाबाद तथा सौरभ का शव उस के गांव चांद हविलिया (किशनी) भेज दिया गया. 3 बेटों सोनू, भुल्लन व शिववीर का दाह संस्कार सुभाष ने किया.

इधर वेदराम यादव अपनी बेटी सोनी का शव ले कर अपने गांव गंगापुरा पहुंचे तो माहौल बेहद गमगीन हो गया. लाडली बेटी का शव देखने के लिए पूरा गांव उमड़ पड़ा. हर आंख में आंसू थे.

दर्द इस बात का था कि जिस बेटी को पूरे गांव ने हंसी खुशी से ससुराल भेजा था, उस का कफन में लिपटा शव गांव आया था. पूर्व दर्जाप्राप्त राज्यमंत्री रामसेवक यादव भी बेहद दुखी थे. क्योंकि लाडली बेटी सोनी उन के गांव व परिवार की थी. वेदराम को ढांढस बंधाते वह स्वयं भी रो रहे थे.

Ghatna Sthal Par Pahuchi Sansad Dimple Yadav

घटनास्थल पर पहुंची डिंपल यादव

सामूहिक नरसंहार से राजनीतिक गलियारों में भी हलचल शुरू हो गई थी. चूंकि मामला यादव परिवार से जुड़ा था और डिंपल यादव भी मैनपुरी से सांसद हैं, इसलिए वह दूसरे रोज ही गोकुलपुरा गांव जा पहुंचीं.

पर्यटन राज्यमंत्री जयवीर सिंह ने भी सामूहिक नरसंहार (Mainpuri Mass Killing) पर गहरा दुख व्यक्त किया. शिववीर ने अपने सगे भाइयों की हत्या क्यों की? परिवार के प्रति उस के मन में ईष्र्या, द्वेष और नफरत की भावना क्यों पनपी? वह क्या हासिल करना चाहता था? यह सब जानने के लिए हमें उस की पारिवारिक पृष्ठभूमि को समझना होगा.

 

UP Crime : 30 करोड़ के लिए पत्नी बनी पति की कातिल

UP Crime :  उर्मिला ने शैलेंद्र को रिझाने के जतन शुरू कर दिए. कभी वह उसे तिरछी नजरों से देख कर मुसकराती तो कभी शरमाने का अभिनय करती. शैलेंद्र पहले से ही उसे हसरत भरी निगाहों से देखता था. उर्मिला ने मुसकरा कर उसे देखना शुरू किया तो उस की हसरतें उफान मारने लगीं. जब उर्मिला के कामुक बाणों का शैलेंद्र पर प्रभाव हुआ तो वह एक कदम आगे बढ़ी. यही नहीं, अब वह निर्माणाधीन मकान देखने भी जाने लगी. वहां दोनों खुल कर बतियाते और हंसीमजाक भी करते. शैलेंद्र समझ गया कि उर्मिला उस की बांहों में समाने को बेताब है.

एक दिन उस ने साहस दिखाते हुए उर्मिला को बाहुपाश में जकड़ लिया, ”भाभी, बहुत ललचा चुकी हो,  आज मर्यादा टूट जाने दो.’’

”तोड़ दो,’’ उम्मीद के विपरीत उर्मिला शैलेंद्र की आंखों में देखते हुए मुसकराई, ”मैं भी यही चाहती हूं.’’

राजेश गौतम स्कूल गया था और दोनों बेटे पढऩे के लिए स्कूल जा चुके थे. सुनहरा मौका देख कर शैलेंद्र उर्मिला को बैड पर ले गया. इस के बाद दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं.

4 नवंबर, 2023 की सुबह 7 बजे किसी परिचित ने कानपुर के अनिगवां निवासी ब्रह्मदीन गौतम को फोन पर सूचना दी कि उन का शिक्षक भाई राजेश गौतम स्वर्ण जयंती विहार स्थित पार्क के पास सड़क पर घायल पड़ा है. उस का एक्सीडेंट हुआ है. किसी तेज रफ्तार कार ने उसे कुचल (UP Crime) दिया है. यह जानकारी मिलते ही ब्रह्मदीन ने अपने बेटे कुलदीप को साथ लिया और स्वर्ण जयंती विहार पहुंच गए. वहां पार्क के पास राजेश सड़क पर औंधे मुंह पड़ा था.

उस के सिर से खून बह रहा था. थोड़ी ही देर में घर के अन्य लोगों के साथ राजेश की पत्नी उर्मिला भी वहां पहुंच गई. पति की हालत देख कर उर्मिला की चीख निकल गई. ब्रह्मदीन व महेश भी भाई की हालत देख कर हैरान रह गए थे. कुलदीप तो समझ ही नहीं पा रहा था कि चाचा हर रोज मार्निंग वाक पर इसी सड़क पर आते थे, लेकिन आज इतना खतरनाक एक्सीडेंट कैसे हो गया. राजेश को हिलाडुला कर देखा गया तो उस के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई. लेकिन सांस की आस में राजेश को कांशीराम अस्पताल ले जाया गया, जहां के डाक्टरों ने उसे रीजेंसी ले जाने को कहा. इसी बीच किसी ने राजेश के (UP Crimes) एक्सीडेंट की सूचना थाना सेन पश्चिम पारा पुलिस को दे दी थी.

सूचना मिलते ही एसएचओ पवन कुमार कुछ पुलिसकर्मियों के साथ कांशीराम अस्पताल पहुंच गए. डाक्टरों के अनुसार राजेश की सांसें थम चुकी थीं, लेकिन घर वालों की जिद की वजह से पुलिस उसे पहले रीजेंसी फिर जिला अस्पताल हैलट ले गई. वहां के डाक्टरों ने भी राजेश गौतम को मृत घोषित कर दिया. इस के बाद पुलिस ने शव को कब्जे में ले लिया और घटना की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. कुछ देर बाद एसएचओ पवन कुमार दुर्घटनास्थल का निरीक्षण करने पहुंचे तो वहां भीड़ जुटी थी. सुबह की सैर करने वाले कई लोग भी वहां मौजूद थे. उन में से एक कमल गौतम ने बताया कि राजेश गौतम से वह परिचित था. वह हर रोज मार्निंग वाक पर आते थे.

आज सुबह साढ़े 6 बजे के लगभग वह सड़क पर तेज कदमों से टहल रहे थे, तभी एक कार उन के नजदीक से पास हुई. फिर उसी कार ने कुछ दूरी पर जा कर यू टर्न लिया और तेज रफ्तार से आ कर राजेश को टक्कर मार दी. राजेश उछल कर दूर जा गिरे. एसएचओ पवन कुमार घटनास्थल पर जांच कर ही रहे थे, तभी एसीपी (घाटमपुर) दिनेश कुमार शुक्ला तथा एडीसीपी अंकिता शर्मा भी वहां पहुंच गईं. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तथा वहां मौजूद कुछ लोगों से पूछताछ की.

अंतिम संस्कार के बाद मृतक का भाई ब्रह्मदीन, महेश तथा भतीजा कुलदीप, उर्मिला के घर में ही रात को रुक गए. रात में राजेश की मौत पर चर्चा शुरू हुई तो कुलदीप बोला, ”उर्मिला चाची, हमें लगता है कि चाचा को सोचीसमझी रणनीति के तहत मौत के घाट उतारा गया है और दुर्घटना का रूप दिया गया है. लगता है कि चाचा से कोई खुन्नस खाए बैठा था.’’

”कुलदीप, ऐसा कुछ भी नहीं है. तुम सब लोग मेरे घर पर फालतू की बकवास मत करो और मेरा दिमाग खराब न करो. अच्छा होगा, तुम सब हमारे घर से चले जाओ.’’

घर वालों को उर्मिला पर क्यों हुआ शक

उर्मिला का व्यवहार देख कर कुलदीप ने उर्मिला से बहस नहीं की और अपने पिता व परिवार के अन्य लोगों के साथ वापस घर लौट आया.

इधर तमतमाई उर्मिला सुबह 10 बजे ही एडीसीपी कार्यालय जा पहुंची. उस ने एडीसीपी अंकिता शर्मा को एक तहरीर देते हुए कहा कि उसे शक है कि पति के भतीजे कुलदीप व उस के घर वालों ने पति की करोड़ों की प्रौपर्टी हड़पने के लिए दुर्घटना का रूप दे कर उन की (UP Crimes ) हत्या की है.

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एडीसीपी अंकिता शर्मा

इधर कुलदीप को जब पता चला कि उर्मिला चाची ने उस के व घर वालों के खिलाफ शिकायत की है तो कुलदीप एडीसीपी अंकिता शर्मा से मिला और बताया कि वह नेवी में कार्यरत है. उसे शक है कि उस के चाचा राजेश की मौत किसी षड्यंत्र के तहत हुई है. वह चाहता है कि इस की गंभीरता से जांच हो. इस के बाद पुलिस ने घटनास्थल के आसपास के सीसीटीवी फुटेज खंगाली. इस से पता चला कि राजेश को कुचलने के बाद कार बेकाबू हो कर खंभे से टकराई तो कार चालक पीछे आ रही दूसरी वैगन आर कार में सवार हो कर भाग गया था.

इन सबूतों को देख कर एडीसीपी अंकिता शर्मा ने एसीपी दिनेश शुक्ला की देखरेख में एक जांच टीम भी गठित कर दी. टीम में 2 महिला सिपाही व एक तेजतर्रार महिला एसआई को भी शामिल किया गया.

पुलिस कैसे पहुंची आरोपियों तक

ईको स्पोर्ट कार, जिस से राजेश को टक्कर मारी गई थी, का पता लगाया तो वह कार आवास विकास 3 कल्याणपुर, कानपुर निवासी सुमित कठेरिया की निकली. वैगनआर कार के नंबर की जांच करने पर पता चला कि यह नंबर फरजी है. यह नंबर किसी लोडर का था. अब पुलिस का शक और गहरा गया.

जांच में पुलिस टीम को 12 संदिग्ध मोबाइल नंबर मिले थे, उन में एक नंबर मृतक राजेश की पत्नी उर्मिला का भी था. पुलिस ने जब उर्मिला के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि उस ने एक फोन नंबर पर महीने भर में 400 बार काल्स की थीं. घटना वाले दिन भी उस की इस नंबर पर कई बार बातें हुई थीं. पुलिस ने इस नंबर की जांचपड़ताल की तो पता चला कि यह नंबर शैलेंद्र सोनकर का है.

पुलिस ने शैलेंद्र सोनकर के बारे में मृतक के घर वालों से जानकारी जुटाई तो पता चला कि शैलेंद्र सोनकर आर्किटेक्ट इंजीनियर है. उसी ने राजेश के कोयला नगर वाले मकान को बनाने का ठेका लिया था. मकान बनवाने के दौरान ही शैलेंद्र का उर्मिला के घर आनाजाना शुरू हुआ और दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ी थीं.

पुलिस जांच से अब तक यह साफ हो चुका था कि उर्मिला और ठेकेदार इंजीनियर शैलेंद्र के बीच कोई चक्कर है. पुलिस ने अब हत्यारोपियों को गिरफ्तार करने की योजना बनाई. पुलिस टीम ने विकास सोनकर, शैलेंद्र सोनकर व सुमित कठेरिया को गिरफ्तार करने के लिए उन के घरों पर दबिश दी, लेकिन वह अपने घरों से फरार थे.

29 नवंबर, 2023 की शाम 5 बजे एसएचओ पवन कुमार को मुखबिर के जरिए पता चला कि उर्मिला व उस के साथी इस समय कोयला नगर स्थित गणेश चौराहे पर मौजूद हैं. शायद वे शहर से फरार होने की फिराक में हैं. चूंकि सूचना खास थी, अत: एसएचओ पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए और उर्मिला को उस के 2 साथियों के साथ हिरासत में ले लिया. लेकिन सुमित कठेरिया वहां से फरार हो गया था. तीनों को थाने लाया गया. पुलिस अधिकारियों ने उन से पूछताछ की तो  तीनों ने राजेश की हत्या में शामिल होने का जुर्म कुबूल कर लिया.

चूंकि तीनों हत्यारोपियों ने शिक्षक राजेश की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया था, इसलिए मृतक के बड़े भाई ब्रह्मदीन की तरफ से शैलेंद्र सोनकर, विकास, सुमित कठेरिया तथा उर्मिला गौतम के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया और सुमित के अलावा तीनों को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. सुमित कठेरिया की तलाश में पुलिस जी जान से जुट गई.

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पुलिस कस्टडी में आरोपी

पुलिस द्वारा की गई जांच, आरोपियों के बयानों एवं मृतक के घर वालों द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर इस वारदात के पीछे औरत और जुर्म की एक ऐसी कहानी सामने आई, जिस ने प्यार और प्रौपर्टी के लालच में अपने ही सुहाग की सुपारी दे दी.

उर्मिला की शादी की अजीब थी कहानी

उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर के चकेरी थाने के अंतर्गत आता है- दहेली सुजानपुर. 2 दशक पहले दहेली सुजानपुर गांव था और यहां खेती होती थी. लेकिन जैसे जैसे शहर का विकास हुआ, यह गांव शहर की परिधि में आ गया. कानपुर विकास प्राधिकरण ने किसानों की जमीन अधिग्रहण कर कालोनियां बनाईं और लोगों को बसाया. प्रौपर्टी डीलरों ने भी प्लौट काट कर बेचे तथा फ्लैट भी बनाए. सालों पहले जो जमीन कौडिय़ों के दाम बिकती थी, वही जमीन अब लाखोंकरोड़ों की हो गई है.

इसी दहेली सुजानपुर में राजाराम गौतम रहते थे. उन के 3 बेटे ब्रह्मïादीन, राजेश व महेश थे. राजाराम के पास 20 एकड़ जमीन थी. उन्होंने अपने जीते जी मकान व जमीन का बंटवारा तीनों बेटों में कर दिया था. हर बेटे के हिस्से में करोड़ों की जमीन आई थी. उन के 2 बेटे ब्रह्मदीन व महेश, सनिगवां में मकान बना कर परिवार सहित रहने लगे थे. बड़ा बेटा ब्रह्मदीन एमईएस चकेरी में नौकरी करता था. ब्रह्मादीन के बेटे कुलदीप का इंडियन नेवी में चयन हो गया था.

राजेश गौतम 3 भाइयों में मंझला था. वह अन्य भाइयों से ज्यादा तेजतर्रार था. वह दहेली सुजानपुर में ही रहता था. उस के परिवार में पत्नी उर्मिला के अलावा 2 बेटे थे. वह सरसौल ब्लाक के सुभौली गांव स्थित प्राथमिक पाठशाला में अध्यापक था. राजेश दबंग शिक्षक था.

वर्ष 2012 में राजेश का विवाह खूबसूरत उर्मिला के साथ बड़े ही नाटकीय ढंग से हुआ था. दरअसल, राजेश अपने दोस्त विमल के लिए उर्मिला को देखने उस के साथ बनारस गया था. विमल ने तो उर्मिला को देखते ही पसंद कर लिया था, लेकिन उर्मिला ने विमल को यह कह कर नकार दिया था कि विमल गंजा है. वहीं उस ने राजेश को पसंद कर लिया था.

बनारस से लौटने के बाद उर्मिला और राजेश के बीच मोबाइल फोन पर प्यार भरी बातें होने लगीं. 2-3 महीने बाद उर्मिला ने अपने घर वालों को और राजेश ने भी अपने घर वालों से एकदूसरे से शादी कराने की बात कही तो घर वालों ने भी इजाजत दे दी. उस के बाद 17 जून, 2012 को उर्मिला का विवाह राजेश के साथ धूमधाम से हो गया.

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राजेश गौतम और उर्मिला

खूबसूरत उर्मिला को पा कर राजेश गौतम अपने भाग्य पर इतरा उठा था. उर्मिला भी उस से शादी कर के खुश थी. उर्मिला ने आते ही घर संभाल लिया था और पति को अपनी अंगुलियों पर नचाने लगी थी. शादी के एक साल बाद उर्मिला ने एक बेटे को जन्म दिया. बेटे के जन्म से घर में खुशियां दोगुनी हो गईं. इस के 2 साल बाद उर्मिला ने एक और बेटे को जन्म दिया. 2 बच्चों के जन्म के बाद राजेश ने पत्नी की इच्छाओं पर गौर करना कम कर दिया. क्योंकि उस ने नौकरी के साथसाथ प्रौपर्टी डीलिंग का काम भी शुरू कर दिया था.

पति की बेरुखी पर उर्मिला रात भर बेचैन रहती. उसे घर में सब सुख था, किसी चीज की कमी न थी, लेकिन पति के प्यार से वंचित थी. इस तरह उर्मिला नीरस जिंदगी गुजारने लगी. उस ने दोनों का एडमिशन कोयला नगर स्थित मदर टेरेसा स्कूल में करा दिया. राजेश गौतम ने प्रौपर्टी डीलिंग में करोड़ों रुपए कमाए. साथ ही कोयला नगर क्षेत्र में ही उस ने 5-6 प्लौट भी खरीद लिए, जिन की कीमत करोड़ों रुपए थी. राजेश कमाई में इतना व्यस्त हो गया कि पत्नी की भावनाओं की कद्र करना ही भूल गया.

30 करोड़ की संपत्ति थी राजेश के पास

वह सुबह उठता, पहले टहलने जाता, फिर तैयार होकर स्कूल चला जाता. दोपहर बाद स्कूल से आता, फिर प्रौपर्टी के काम में व्यस्त हो जाता. इस के बाद देर रात आता और खाना खा कर सो जाता. यही उस का रुटीन था. राजेश गौतम की तमन्ना थी कि वह कोयला नगर में एक ऐसा आलीशान मकान बनाए, जिस की चर्चा क्षेत्र में हो. अपनी तमन्ना पूरी करने के लिए उस ने 300 वर्गगज वाले अपने प्लौट पर मकान बनाने का फैसला किया. इस के लिए उस ने 6 करोड़ रुपए का इंतजाम भी कर लिया.

राजेश ने मकान का ठेका अपने दोस्त हेमंत सोनकर के रिश्तेदार इंजीनियर शैलेंद्र सोनकर को दे दिया. ठेका मिलने के बाद शैलेंद्र ने राजेश के घर आनाजाना शुरू कर दिया. इसी आनेजाने में शैलेंद्र सोनकर की नजर राजेश की खूबसूरत पत्नी उर्मिला पर पड़ी. पहली ही नजर में उर्मिला उस के दिलो दिमाग में रचबस गई. उर्मिला भी जवान और हैंडसम शैलेंद्र को देख कर प्रभावित हुई.

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इंजीनियर शैलेंद्र सोनकर

उर्मिला देह सुख से वंचित थी, इसलिए उस का मन बहकने लगा. जब औरत का मन बहकता है तो उसे पतित होने में देर नहीं लगती. इस के बाद उर्मिला की आंखों के सामने शैलेंद्र की तसवीर घूमने लगी. वैसे भी उर्मिला ने महसूस किया था कि वह जब भी घर आता है, उस की मोहक नजरें हमेशा ही उस से कुछ मांगती सी प्रतीत होती हैं. दोनों के बीच प्यार के बीज अंकुरित हो गए. फिर जल्द ही उन के बीच शारीरिक संबंध भी कायम हो गए.

आखिर क्यों बहकी उर्मिला

कुछ समय बाद उर्मिला शैलेंद्र की इस कदर दीवानी हो गई कि वह अपने निर्माणाधीन मकान पर भी जाने लगी. मौका निकाल कर वह वहां भी शैलेंद्र के साथ मौजमस्ती कर लेती थी.

विवाहित और 2 बच्चों की मां उर्मिला ने पति से विश्वासघात कर शैलेंद्र के साथ अवैध संबंध तो बना लिए थे, लेकिन उस वक्त उस ने यह नहीं सोचा था कि इस का अंजाम क्या होगा. 2 नावों पर पैर रखना हमेशा नुकसानदायक ही होता है. हुआ यह कि मार्च 2023 की एक दोपहर राजेश अचानक स्कूल से घर वापस आ गया और उस ने उर्मिला व शैलेंद्र को आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया. फिर तो राजेश का खून खौल उठा. शैलेंद्र फुरती से भाग गया. तब उस ने उर्मिला की जम कर पिटाई की.

बाद में उस ने शैलेंद्र को खूब फटकार लगाई. उर्मिला की अनैतिकता को ले कर कभीकभी झगड़ा इतना बढ़ जाता कि वह उर्मिला को जानवरों की तरह पीटता. एक दिन तो हद ही हो गई. राजेश की पिटाई से आहत हो कर उर्मिला नग्नावस्था में ही घर के बाहर आ गई थी. अड़ोसपड़ोस तथा परिवार के लोग उर्मिला की अनैतिकता से वाकिफ थे, इसलिए किसी ने भी उस का पक्ष नहीं लिया. पति की पिटाई से उर्मिला राजेश से नफरत करने लगी थी. इसी नफरत के चलते उस ने एक रोज राजेश को खाने में जहर दे दिया. उस की तबीयत बिगड़ी तो घर वालों ने उसे प्राइवेट अस्पताल में भरती कराया, जहां उस का 2 सप्ताह इलाज चला. तब जा कर वह ठीक हुआ.

उर्मिला अपने आशिक शैलेंद्र को भी पति के खिलाफ उकसाती थी. वह वीडियो काल कर उसे अपने शरीर के जख्म दिखाते हुए ताने देती थी कि यह जख्म तुम्हारे प्यार की निशानी के तौर पर दिए गए हैं. उर्मिला के शरीर पर जख्म देख कर शैलेंद्र का गुस्सा फट पड़ता था.

पति की हत्या क्यों कराना चाहती थी उर्मिला

एक दिन उर्मिला ने शैलेंद्र से कहा, ”मैं अब अपने पति से छुटकारा चाहती हूं. वह हम दोनों के मिलन में बाधा बना है. प्रताडि़त भी करता है. तुम इस कांटे को हमेशा के लिए दूर कर दो. राजेश के पास 3 करोड़ का जीवन बीमा और 20 करोड़ की अचल संपत्ति तथा यह 6 करोड़ का आलीशान मकान है. उस के मरने के बाद यह सब हमारा होगा. मैं तुम से ब्याह कर लूंगी. फिर हम दोनों आराम से रहेंगे. उस की सरकारी नौकरी भी मुझे मिल जाएगी.’’

शैलेंद्र सोनकर का ममेरा भाई विकास सोनकर शास्त्री नगर में रहता था. वह ड्राइवर था. उस ने अपनी मंशा उसे बताई तो विकास ने शैलेंद्र को अपने साथी ड्राइवर सुमित कठेरिया से मिलवाया, जो आवास विकास-3 कल्याणपुर में रहता था. सुमित ने शैलेंद्र को एक ट्रक ड्राइवर से मिलवाया. ट्रक ड्राइवर ने राजेश को ट्रक से कुचल कर मारने का वादा किया और 2 लाख में हत्या की सुपारी ली. इस के बाद उर्मिला ने रुपयों का इंतजाम किया और डेढ़ लाख रुपए ड्राइवर को दे दिए, लेकिन उस ट्रक ड्राइवर ने काम तमाम नहीं किया और डेढ़ लाख रुपया ले कर फरार हो गया.

उस के बाद सुमित कठेरिया ने विकास के साथ मिल कर राजेश की हत्या की सुपारी 4 लाख में ली. उर्मिला और शैलेंद्र हर हाल में राजेश को मौत (New Year 2025 Crimes ) के घाट उतारना चाहते थे, अत: उन्होंने रकम मंजूर कर ली. इस के बाद उर्मिला, शैलेंद्र, सुमित व विकास ने राजेश को कुचल कर मारने की पूरी योजना बनाई. 4 नवंबर, 2023 की सुबह 6 बजे राजेश गौतम मार्निंग वाक पर निकला, तभी उस की पत्नी उर्मिला ने शैलेंद्र को फोन पर सूचना दे दी. सूचना पा कर सुमित कठेरिया अपनी ईको स्पोर्ट कार से तथा शैलेंद्र विकास के साथ अपनी वैगनआर कार से स्वर्ण जयंती विहार पहुंच गए.

उन लोगों ने पहले रेकी की, फिर राजेश की पहचान कर सुमित कठेरिया ने अपनी ईको स्पोर्ट कार से राजेश को जोरदार टक्कर मारी. राजेश टकरा कर करीब 20 मीटर दूर जा गिरा और तड़पने लगा. टक्कर मारने के बाद भागते समय सुमित की कार बिजली के खंभे से टकरा गई और उस का टायर फट गया. तब सुमित अपनी कार वहीं छोड़ कर कुछ दूरी बनाए खड़ी शैलेंद्र की वैगनआर कार के पास पहुंचा और उस में बैठ कर शैलेंद्र के साथ फरार हो गया.

पूछताछ करने के बाद पुलिस ने 30 नवंबर, 2023 को आरोपी उर्मिला गौतम, शैलेंद्र सोनकर तथा विकास सोनकर को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. आरोपी सुमित कठेरिया ने भी बाद में अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया था.

राजेश के दोनों बेटे अपने ताऊ ब्रह्मदीन के पास रह रहे थे. ताऊ ने दोनों बच्चों के पालनपोषण की जिम्मेदारी ली है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित