Extramarital Affair : भाभी को लेकर भागा देवर

Extramarital Affair  30 वर्षीय पूनम ने 40 साल के दिनेश अवस्थी से प्रेम विवाह कर जरूर लिया था, लेकिन वह उस से खुश नहीं थी. फिर पूनम ने हमउम्र देवर मनोज अवस्थी को प्यार के जाल में फांस लिया. यह बात जब दिनेश को पता चली तो उस ने क्या किया? क्या पति के सामने पूनम देवर के साथ रहती रहीï? जानने के लिए पढ़ें यह दिलचस्प कहानी.

एक रोज दिनेश ने पत्नी पूनम को अपने छोटे भाई मनोज की बांहों में समाए हुए देख लिया. तब उस ने दोनों को खूब फटकार लगाई. उस समय उन दोनों ने दिनेश से माफी मांग ली. कुछ दिनों बाद पूनम और मनोज दोबारा पकड़े गए, तब दिनेश ने दोनों की जम कर पिटाई की. इस के बाद पूनम और मनोज ने बाधक बन रहे भाई दिनेश को ठिकाने लगाने का निश्चय किया.

भाई का काम तमाम करने के लिए मनोज बिधनू बाजार गया और वहां से डेढ़ सौ रुपए में तेज धार वाला चाकू खरीदा और उसे कमरे में ला कर छिपा दिया. पूनम ने पत्थर पर रगड़ कर उस चाकू की धार तेज कर दी. 23 अप्रैल, 2024 की रात 8 बजे दिनेश घर आया. वह नशे में था और आते ही चारपाई पर लुढ़क गया. दिनेश गहरी नींद सो गया तो उस की पत्नी पूनम देवर मनोज के कमरे में पहुंच गई. उस के बाद वे दोनों मस्ती में डूब गए. आधी रात को मनोज के कमरे का दरवाजा भड़ाक से खुला तो दिनेश सामने खड़ा था.

शायद उस की नींद खुल गई थी और वह पूनम को ढूंढते हुए कमरे में आ पहुंचा था. पत्नी को छोटे भाई मनोज के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देख कर उस का खून खौल उठा था. उस ने गुस्से में पत्नी पूनम पर हाथ उठाया तो मनोज से रहा नहीं गया और उस ने बड़े भाई दिनेश का हाथ पकड़ कर मरोड़ दिया. इसी समय पूनम बोली, ”मनोज, देख क्या रहे हो. आज इस बाधा को दूर कर दो. हम दोनों का जीना हराम कर दिया है इस ने.’’

इस के बाद मनोज और पूनम ने मिल कर दिनेश को दबोच लिया और फिर चाकू से गोद कर उस का काम तमाम कर दिया. हत्या करने के बाद उस के हाथपैर रस्सी से बांधे, फिर शव को बोरी में भर कर साइकिल पर लाद कर गांव के बाहर तालाब में फेंक दिया. सुबह उन दोनों ने मिल कर खून के धब्बे साफ किए और खून लगी काटन और कपड़े चारपाई के नीचे छिपा दिए. चाकू उस ने टांड पर छिपा दिया.

26 अप्रैल की सुबह वह तालाब पर गया तो दिनेश की लाश तालाब में उतरा रही थी. उस ने लाश को डंडे से दबाने का प्रयास किया, लेकिन असफल रहा. उसी समय उसे गांव के कुछ लोग तालाब की तरफ आते दिखाई दिए तो वह डर गया और फिर डर की वजह से घर में ताला लगाया और पूनम को साथ ले कर फरार हो गया.

2 दिन दोनों बुआ के घर लखीमपुर रहे. फिर वहां से चित्रकूट पहुंचे, चित्रकूट में कुछ दिन रहे. उस के बाद बागेश्वर धाम आश्रम आ गए. पकड़े जाने के डर से उन दोनों ने अपने मोबाइल फोन बंद कर लिए थे. बागेश्वर धाम आश्रम उन्हे छिपने के लिए उचित लगा, इसलिए वे वहीं रहने लगे. जीवन चलाने के लिए उन दोनों ने आश्रम के बाहर एक चाय स्टाल पर नौकरी खोज ली. दिन भर दोनों चाय स्टाल पर रहते और रात में आश्रम आ कर सो जाते.

दिनेश की क्यों नहीं हो रही थी शादी

उत्तर प्रदेश के कानपुर जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर बिधनू थाना अंतर्गत एक गांव है- खेरसा. बिधनू कस्बा से सटे इस गांव के लोग या तो खेती करते हैं या फिर व्यापार. पढ़ेलिखे लोग सरकारी/प्राइवेट नौकरी भी करते हैं. इस गांव में बिजली पानी जैसी सभी भौतिक सुविधाएं उपलब्ध हैं. गांव के आसपास कई ईंट भट्ठे हैं, जहां सैकड़ों मजदूर काम करते हैं. अन्य प्रदेशों के मजदूर भी यहां काम की तलाश में आते हैं.

इसी खेरसा गांव में स्थित अपनी ननिहाल में दिनेश अवस्थी रहता था. दिनेश अवस्थी के पिता राजकुमार अवस्थी, लखीमपुर जनपद के मूलगांव कुडऱीरूप सेनारूप के मूल निवासी थे. उन के परिवार में पत्नी सावित्री के अलावा 3 बेटे दिनेश, मनोज व मयानंद उर्फ अशनी थे. बड़ा बेटा दिनेश अपने भाई मनोज के साथ ननिहाल (खेरसा गांव) में रहने लगा था, जबकि सब से छोटा मयानंद पिता के साथ गांव में रहता था.

दिनेश अवस्थी ट्रक चलाता था, जबकि मनोज बिधनू के ईंट भट्ठे पर काम करता था. दोनों भाइयों की अभी तक शादी नहीं हुई थी. दिनेश का कहीं रिश्ता तय नहीं हो पा रहा था. उस की शादी के लिए उस के मातापिता भी चिंतित थे. क्योंकि वह 40 वर्ष की उम्र पार कर चुका था. इन्हीं दिनों एक रोज दिनेश की मुलाकात पूनम उर्फ गुडिय़ा से हुई. पूनम के पिता रघुवर सीतापुर जनपद के गांव लहरापुर के रहने वाले थे. पूनम उन की बिगड़ैल बेटी थी. आवारा युवकों के साथ घूमना, उन के साथ मौजमस्ती करना उस का शौक था. इसी बदनामी के कारण उस का रिश्ता नहीं हो पा रहा था. रघुवर बेटी के चालचलन से बहुत दुखी थे.

दिनेश की रिश्तेदारी लहरापुर गांव में थी. रिश्तेदार के घर आतेजाते ही दिनेश की मुलाकात पूनम से हुई थी. 30 वर्षीय पूनम दिनेश को ऐसी भाई कि वह उस के पीछे ही पड़ गया. पूनम भी घर बसाना चाहती थी, इसलिए वह भी दिनेश को लिफ्ट देने लगी. दोनों के बीच मुलाकातें बढ़ीं और बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो नजदीकियां भी बढऩे लगीं.

वर्ष 2023 की जनवरी माह में दिनेश ने पूनम उर्फ गुडिय़ा से बारादेवी मंदिर में जयमाला पहना कर प्रेम विवाह कर लिया. इस विवाह की जानकारी न तो दिनेश के घरवालों को हुई और न ही पूनम के घर वालों को. हालांकि बाद में दोनों परिवारों को उन के विवाह की भनक लग गई थी. लेकिन विरोध किसी की तरफ से नहीं किया गया. शादी के वक्त पूनम की उम्र 30 वर्ष थी, जबकि दिनेश अवस्थी 40 वर्ष पार कर चुका था. शादी के बाद दिनेश खेरसा गांव में पूनम के साथ रहने लगा. चूंकि अधेड़ उम्र में दिनेश ने प्रेम विवाह किया था, अत: वह पत्नी पूनम को बेहद प्यार करता था और उस की हर डिमांड पूरी करता था.

विवाह के बाद के दिन मौजमस्ती में बीतते हैं. पूनम दिनेश से मिलने वाले सुख से इस कदर आनंदित होती रही कि किसी दूसरी ओर उस का ध्यान ही नहीं गया. लेकिन एक महीने बाद जब दिनेश काम पर जाने लगा और देर रात घर वापस आने लगा तो पूनम के दिमाग में फितूर समाना शुरू हो गया. वह सोचने लगी कि दिनेश न उसे कहीं सैरसपाटा कराने ले जाता है और न शौपिंग कराने. न कभी कोई उपहार ला कर दिया है. पत्नी को खुश रखने का न तो उसे हुनर आता है, न तमीज है. दिनेश से शादी होते ही उस के अरमानों को घुन लग गया और किस्मत का बेड़ा गर्क हो गया.

बीतते दिनों के साथ पति से पूनम का मन खट्टा होने लगा. उस ने पति की परवाह करनी छोड़ दी. न वह उस की जरूरतों का ध्यान रखती, न उस की कोई बात सुनती. दिनेश अपनी कोई जरूरत बताता तो वह एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल देती. इस के बावजूद दिनेश उस पर प्यार उड़ेलता. दिनेश ट्रक चलाता था. शराब का भी लती था. अत: वह जब घर लौटता तो नशे में झूमता आता. कभीकभी शराब की बोतल साथ भी ले आता, फिर घर में बैठ कर पीता. शराब पीने को ले कर दोनों के बीच बहस होती, फिर झगड़ा होता.

दिनेश और पूनम में झगड़ा होने लगा तो पूनम सोचने लगी कि उस ने अधेड़ उम्र के शराबी से प्रेम विवाह रचा कर बड़ी भूल की है. वह उसे देह सुख प्रदान नहीं कर सकता. पूनम अपनी हसरतों का गला नही घोंटना चाहती थी. उस ने अपने सुख के साधन की तलाश शुरू की तो नजरें मनोज पर ठहर गईं. मनोज पूनम के पति दिनेश का छोटा भाई था. रिश्ते में वह उस का सगा देवर. दोनों भाई साथ ही रहते थे. मनोज पूनम का हमउम्र था. आखों, चेहरे, Extramarital Affair  जिस्म व बातों से उस का कुंवारापन साफ झलकता था. पूनम जब भी मनोज को देखती, उस की लार टपकने लगती.

वह सोचती, मनोज से उस की शादी हुई होती तो हर दिन होली होती और हर रात दिवाली होती. दिन को चाहत के रंग बिखरते, कहकहों का गुलाल उड़ता और रात को हसरतों की फुलझडिय़ां. पूनम ने जो करना था, तय कर लिया. पूनम के दिल में देवर आया तो मनोज को रिझाने के लिए पूनम ने उसी तरह डोरे डालने शुरू कर दिए, जिस तरह देह सुख की प्यासी औरत डाला करती है. कभी वह वक्षों से आंचल गिरा देती, कभी सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में ही मनोज के सामने आ जाती. कभी सजधज कर उसे रिझाने की कोशिश करती.

पूनम के खुलेपन और छेड़छाड़ से मनोज का मन गुदगुदाता था. वह यह भी समझ गया था कि भाभी उस से क्या चाहती है? मनोज भी यही चाहने लगा था. मगर उसे बड़े भाई दिनेश का डर सता रहा था. इसलिए पहल करने से डरता था. धीरेधीरे दोनों की नजदीकियां बढऩे लगीं. पूनम देवर मनोज के साथ बिधनू कस्बे के बाजारहाट भी जाने लगी. मनोज अपनी कमाई के कुछ पैसे भाभी के हाथ पर भी रखने लगा. इस से पूनम का लगाव और भी बढऩे लगा. मनोज की अब भाभी से खूब पटती थी. देवरभाभी के बीच हंसीमजाक व ठिठोली भी होती थी. मनोज को भाभी की सुंदरता और अल्हड़पन खूब भाता था. कभीकभी वह उसे एकटक प्यार भरी नजरों से देखा करता था.

अपनी ओर टकटकी लगाए देखते समय जब कभी पूनम की नजर उस से टकरा जाती तो दोनों मुसकरा देते थे. मनोज दिनेश से ज्यादा सुंदर और अच्छी कदकाठी का था, इसलिए पूनम उस पर पूरी तरह से फिदा हो गई थी.

पूनम के देवर की तरफ क्यों बढ़े कदम

मनोज भी पूनम को चाहने लगा था. चूंकि वे देवरभाभी थे, इसलिए दोनों के साथ रहने पर दिनेश को कोई शक नहीं होता था. दिनेश सरल स्वभाव का था. पत्नी पर विश्वास भी करता था. पत्नी और भाई के बीच क्या खिचड़ी पक रही है, इस की दिनेश को कोई जानकारी नहीं थी. वह अपने में ही मस्त रहता था. देह सुख पाने की लालसा दोनों में दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी. आखिर जब मनोज से नहीं रहा गया तो उस ने एक रोज मजाकमजाक में भाभी पूनम को बाहों में भर लिया और शारीरिक छेड़छाड़ शुरू कर दी. इस छेड़छाड़ का पूनम Extramarital Affair ने विरोध नहीं किया. उस ने भी दोनों हाथों से मनोज को जकड़ लिया.

मनोज ने इस मूक आमंत्रण का फायदा उठाते हुए उस पर चुंबनों की झड़ी लगा दी. इस के बाद अपनी मर्यादाओं को लांघते हुए दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. चूंकि मनोज घर में ही रहता था. इसलिए कुछ दिनों तक दोनों का खेल पूरी तरह से चलता रहा. दिनेश को पता तक नहीं चला कि उस के पीछे घर में क्या हो रहा है. आसपड़ोस के लोग भी यही समझते रहे कि दोनों देवरभाभी हैं. इसलिए उन पर शक नहीं हुआ.

पूनम अब देवर मनोज के साथ खुल कर खेलने लगी थी और देह सुख का भरपूर आनंद उठाने लगी थी. उसे दिन दोपहर शाम जब भी इच्छा होती, वह देवर के कमरे में पहुंच जाती और उस के साथ बिस्तर पर बिछ जाती. कभीकभी तो वह रात में भी पति को बिस्तर पर नशे में धुत सोता छोड़ कर देवर के पास पहुंच जाती और देह की प्यास बुझा कर वापस पति के बिस्तर पर आ जाती.

पूनम देवर के प्यार में इतनी अंधी बन गई थी कि उसे पति नकारा और देवर प्यारा लगने लगा था. वह पति की हर तरह से उपेक्षा भी करने लगी थी. न उस का खानेपीने का ध्यान रखती थी और न ही उस से हमदर्दी जताती थी. जब कभी दिनेश कामसुख की कामना करता तो वह कोई न कोई बहाना बना देती. दिनेश की समझ में नहीं आ रहा था कि पूनम ऐसा बरताव क्यों कर रही है. गलत काम कैसा भी हो, उस की उम्र लंबी नहीं होती. पूनम और मनोज के साथ भी ऐसा ही हुुआ. एक दोपहर पड़ोस में रहने वाली ठकुराइन ने दोनों को आपत्तिजनक हालत में देख लिया.

ठकुराइन ने इस पाप की जानकारी आसपड़ोस की महिलाओं को दी. उस के बाद पहले पड़ोस में चर्चाएं शुरू हुईं, फिर उन के संबंधों की चर्चा पूरे गांव में खुल कर होने लगी. ये चर्चाएं दिनेश के कानों तक पहुंचीं तो उस ने पूनम से जवाब मांगा.

पोल खुली तो पूनम ने बहाए घडिय़ाली आंसू

ऐसे मामलों में जैसा कि होता है, कोई महिला आसानी से अपनी चरित्रहीनता स्वीकार नहीं करती. पूनम भी साफ मुकर गई, ”लोगों ने कह दिया और तुम ने मान लिया. मुझ पर लांछन लगाते हुए तुम्हें जरा भी शरम नहीं आई.’’

”किसी एक ने कहा होता तो मैं उस का मुंह तोड़ देता, लेकिन पूरा गांव कह रहा है कि तूने मेरे भाई को यार बना लिया है.’’ दिनेश ने डंडा उठा लिया, ”सच बोल, वरना तेरी हड्डियां तोड़ दूंगा.’’

पूनम सच बोलती तो शामत, सच न बोलती तो भी शामत. अत: उस ने सच ही बोलने का निश्चय कर लिया. उस ने घडिय़ाली आंसू बहाते हुए दिनेश के पांव पकड़ लिए, ”मुझ से गलती हो गई. माफ कर दो. वायदा करती हूं कि आइंदा मनोज से संबंध नहीं रखूंगी.’’

पहली गलती समझ कर तथा बदनामी के डर से दिनेश ने पत्नी को माफ कर दिया. डर कर पूनम ने पति से वादा तो कर लिया, पर वह उस पर अमल करने को मानसिक रूप से राजी नहीं थी. दरअसल, पूनम के दिल में पति की जगह देवर बस गया था, इसलिए वह उस से नाता तोडऩा नहीं चाहती थी. इधर भेद खुला तो मनोज डर की वजह से गांव चला गया. दिनेश ने फोन पर बात की, तभी वह वापस आया. आते ही उस ने भी दिनेश के पैर पकड़ लिए, ”भैया, मुझे माफ कर दो. बड़ी भूल हो गई. आइंदा ऐसी भूल नहीं होगी.’’

दिनेश ने रहम करते हुए भाई मनोज को माफ कर दिया. इस के कुछ दिनों तक तो पूनम और मनोज ठीक रहे, लेकिन मौका मिलने पर वे अपनीअपनी हसरतें पूरी कर लेते थे.

भाई के सीधेपन की वजह से मनोज की हिम्मत बढ़ गई थी. अब मनोज अपनी भाभी से शादी रचाने के ख्वाब देखने लगा था. उस ने अपने मन की बात भाभी Extramarital Affair से कही तो वह भी देवर से शादी रचाने को राजी हो गई. इधर दिनेश को विश्वास हो गया था कि पूनम को अपने किए का पछतावा है. इसी कारण उस ने मनोज से यारी तोड़ दी है. एक रोज दोपहर को वह बेवक्त घर लौटा तो फिर से एक बार उस की आंखों के आगे अंधेरा सा छा गया.

उस ने देखा कि पूनम मनोज की बांहों में पड़ी है. यह देख कर उस ने मनोज और पूनम की जम कर पिटाई कर डाली. पिटने के बाद मनोज तो भाग निकला, लेकिन पूनम कहां जाती. वह रात भर अपनी चोटों को सहलाती रही और नफरत की आग में जलती रही. दिनेश का विश्वास चकनाचूर हुआ तो वह पूनम पर निगरानी रखने लगा. दिनेश अब हमेशा उसे नजरों के पहरे में रखता था. इस कारण वह देवर से मिल नहीं पाती थी. इस का उपाय उस ने यह निकाला कि जिस रोज दिनेश ज्यादा शराब पी लेता और धुत हो कर सो जाता, वह मनोज के कमरे में पहुंच जाती. फिर सारी रात दोनों जिस्म की आग में तपते रहते.

एक रात मनोज की बांहों में लेटी पूनम ने मन की बात कह डाली, ”मनोज, हम इस तरह कब तक आंखमिचौली खेलते रहेंगे. कोई ऐसा रास्ता नहीं है, जिस से दिनेश हम दोनों के बीच से हमेशा के लिए हट जाए.’’

मनोज को तो जैसे इसी बात का इंतजार था. उस ने पूनम के गालों को सहलाते हुए कहा, ”चिंता मत करो भाभी, तुम्हारी यह इच्छा जरूर पूरी होगी.’’

दरअसल, मनोज पूनम को अपनी जागीर समझने लगा था. वह उसे अपनी पत्नी बनाना चाहता था. लेकिन भाई दिनेश बाधक था. भाई की पिटाई से भी वह आहत था. जब पूनम को अपने मन की बात उसे बताई तो उस ने भाई का काम तमाम करने का मन बना लिया. पूनम भी उस का साथ देने को तैयार थी.

26 अप्रैल, 2024 को खेरसा गांव के लोगों ने गांव के बाहर तालाब में उतराती एक लाश देखी. ग्राम प्रधान राजेश कुमार ने फोन के जरिए सूचना थाना बिधनू पुलिस को दी. सूचना पाते ही एसएचओ जितेंद्र प्रताप सिंह सहयोगी पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने गांव के 2 युवकों तथा पुलिसकर्मियों के सहयोग से तालाब में उतराती लाश को बाहर निकलवाया, साथ ही सूचना पुलिस अधिकारियों को दी.

बंद कमरे में मिले खून के निशान

लाश को देखते ही गांव वालों ने उस की पहचान कर ली. ग्राम प्रधान राजेश कुमार ने बताया कि लाश दिनेश अवस्थी की है. वह पत्नी पूनम Extramarital Affair व भाई मनोज के साथ ननिहाल में रहता था. वह मूल निवासी लखीमपुर के मूलगांव कुडऱीरूप सेनारूप का है. मनोज अपनी भाभी पूनम के साथ फरार है. घर में ताला पड़ा है. जबकि उसे सुबह तालाब के पास देखा गया था. पड़ोसी युवक राजू दूबे के पास दिनेश के छोटे भाई मयानंद उर्फ अशनी का मोबाइल नंबर था. पहले वह भी ननिहाल मे ही रहता था. तभी राजू की दोस्ती उस से हो गई थी. लेकिन 2 साल पहले वह गांव चला गया था. राजू की बात उस से फोन पर होती रहती थी.

एसएचओ जितेंद्र प्रताप सिंह ने राजू से मोबाइल नंबर ले कर मयानंद उर्फ अशनी को उस के बड़े भाई दिनेश की हत्या की सूचना दी और तत्काल ननिहाल आने को कहा. इस के बाद जितेंद्र प्रताप सिंह ने शव का बारीकी से निरीक्षण किया. दिनेश की हत्या किसी नुकीले हथियार से की गई थी. उस के गले, सीने व चेहरे पर कई घाव थे. हत्या कर हाथपैर रस्सी से बांध कर शव को बोरी में भर कर तालाब में फेंका गया था. मृतक की उम्र 43 वर्ष के आसपास थी.

एसएचओ जितेंद्र प्रताप सिंह अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर डीसीपी (साउथ) अंकिता शर्मा, एडीसीपी विजेंद्र द्विवेदी तथा एसीपी (घाटमपुर) रंजीत कुमार सिंह घटनास्थल आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तथा घटना के संबंध में इंसपेक्टर जितेंद्र प्रताप सिंह तथा गांव वालों से जानकारी जुटाई. गांव वालों से जो जानकारी मिली थी, उस से स्पष्ट था कि दिनेश की हत्या उस की पत्नी पूनम व भाई मनोज ने ही की है. वे फरार भी थे. साक्ष्य की तलाश में पुलिस अधिकारी मृतक दिनेश के घर पहुंचे. घर पर ताला लगा था.

ताला तोड़ कर पुलिस घर के अंदर दाखिल हुई. वहां कमरे में खून से सनी काटन तथा कुछ कपड़े बरामद हुए. बिस्तर व फर्श पर खून के धब्बे मिले. फर्श को साफ किया गया था. पुलिस ने साक्ष्य के तौर पर काटन, कपड़े सुरक्षित कर लिए. स्पष्ट था कि हत्या कमरे के अंदर ही की गई थी. जांचपड़ताल के बाद पुलिस ने दिनेश के शव का पोस्टमार्टम हेतु लाला लाजपत राय अस्पताल, कानपुर भिजवा दिया.

शाम 5 बजे तक मृतक दिनेश का छोटा भाई मयानंद उर्फ अशनी ननिहाल आ गया. वहां से वह थाना बिधनू पहुंचा. उस ने पुलिस के साथ जा कर मोर्चरी में रखे शव को देखा तो फफक पड़ा. उस ने बताया शव उस के भाई दिनेश का है. उस ने एसएचओ जितेंद्र प्रताप सिंह को बताया कि दिनेश की हत्या उस के भाई मनोज व भाभी पूनम ने की है.

मयानंद उर्फ अशनी की तहरीर पर इंसपेक्टर जितेंद्र प्रताप सिंह ने मृतक की पत्नी पूनम व भाई मनोज के खिलाफ हत्या कर लाश छिपाने की दर्ज कर ली तथा उन की गिरफ्तारी के लिए जुट गए.

जितेंद्र प्रताप सिंह ने आरोपियों को पकडऩे के लिए ताबड़तोड़ छापे मारे. लेकिन वे पकड़ में नहीं आए. उन्होंने नातेदारों के घर सीतापुर, विसवां लखीमपुर तथा चित्रकूट में भी छापा मारा, लेकिन उन का पता नहीं चला. पुलिस ने उन की लोकेशन जानने के लिए उन के मोबाइल फोन नंबर सर्विलांस पर लिए. लेकिन उन के मोबाइल फोन बंद थे.

आरोपियों पर घोषित हुआ ईनाम

हत्यारोपियों की तलाश में धीरेधीरे 3 महीने बीत गए. लेकिन उन का कुछ भी पता नहीं चला. पुलिस अधिकारियों ने आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए उन पर 25-25 हजार का इनाम भी घोषित कर दिया. पुलिस ने उन की फिर तलाश तेज की साथ ही मुखबिरों का भी सहारा लिया. लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी. दरअसल, मनोज व पूनम ने अपनेअपने मोबाइल फोन बंद कर लिए थे. इसलिए उन की कोई जानकारी नहीं मिल पा रही थी. करीब 6 महीने बाद नवंबर, 2024 की 5 तारीख को मनोज का मोबाइल फोन चालू हुआ तो पुलिस को उस की लोकेशन मध्य प्रदेश के छतरपुर (गढ़ा) स्थित बागेश्वर धाम आश्रम की मिली.

इंसपेक्टर जितेंद्र प्रताप सिंह तत्काल अपनी टीम के साथ बागेश्वर धाम आश्रम के लिए रवाना हो गए. पुलिस टीम यहां 3 दिन तक डेरा जमाए रही. उस के बाद टीम को सफलता मिल गई. टीम ने आश्रम के बाहर एक चाय के स्टाल से दोनों को गिरफ्तार कर लिया. मनोज व पूनम को थाना बिधनू लाया गया. इंसपेक्टर जितेंद्र प्रताप सिंह ने मनोज और पूनम से दिनेश की हत्या के बारे में पूछताछ की तो वे साफ मुकर गए. लेकिन सख्ती करने पर टूट गए और हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. यही नहीं, मनोज ने आलाकत्ल चाकू भी बरामद करा दिया, जिसे उस ने घर में ही छिपा दिया था. जानकारी होने पर पुलिस अधिकारियों ने भी उन से विस्तार से पूछताछ की.

दिनेश की हत्या किए हुए 6 महीने बीत गए. अब पूनम और मनोज को लगने लगा था कि शायद मामला ठंडा पड़ गया है. अत: मनोज ने अपना मोबाइल फोन चालू किया और किसी से बात की. उस का फोन पुलिस ने सर्विलांय पर लगा रखा था, इसलिए फोन चालू होते ही उस की लोकेशन बागेश्वर धाम की मिल गई और पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने उन दोनों के बयान दर्ज कर उन्हें विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. 10 नवंबर, 2024 को पुलिस ने आरोपी मनोज व पूनम को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हे जिला जेल भेज दिया गया.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Honeytrap Gang में शामिल पत्रकार और वकील

Honeytrap Gang बलोदा बाजार भाटापारा के इस हनीट्रैप गैंग में एडवोकेट से ले कर पत्रकार तक शामिल थे. ये लोग शहर के नामी व्यक्तियों को अपने जाल में इतनी आसानी से फांस लेते थे कि शिकार को लाखों रुपए ढीले करने पर मजबूर होना पड़ता था. जैसे ही यह बात पुलिस तक पहुंची तो…

रघुवीर सहाय की जब से कोमल से फेसबुक पर फ्रेंडशिप हुई थी, वह बहुत बेचैन हुए जा रहा था. वह उस से मिलने के लिए लालायित था. रघुवीर सहाय ने आखिर एक दिन कोमल से रिक्वेस्ट करते हुए कह दिया, ”हां तो कोमलजी, हम लोग कब मिल रहे हैं?’’

”मिलेंगे, मगर आप इतना जल्दी क्यों कर रहे हैं?’’ दूसरी तरफ से इठला कर कोमल ने कहा.

”देखो भाई, आज हम मिलें या फिर कल, मिलना तो है. ऐसे में आज के काम को आज ही क्यों न निपटा लें.’’

”वाह! आप का तो कोई जवाब नहीं. आप से बातों में मैं भला कहां जीत पाऊंगी.’’ कोमल ने कहा तो रघुवीर सहाय हंसते हुए बोला, ”तो फिर ठीक है, बताओ कहां आऊं?’’

”ठीक है, मैं आप को एक घंटे में बताती हूं कि हम को कहां मिलना चाहिए.’’

”ओके… जरा जल्दी बताना. मैं तुम से मिलने को बेताब हूं.’’

यह सुन कर कोमल हंसने लगी फिर बोली, ”अभी 4 दिन ही तो हुए हैं हमें फेसबुक पर मुलाकात किए हुए और आप इतनी जल्दी मिलना चाहते हैं. सच कहूं तो मैं भी आप से मिलने को आतुर हूं. मगर…’’ यह बात कर के कोमल चुप हो गई.

”कहो न क्या बात है, तुम्हारी

यही अदा मुझे बहुत अच्छी लगती

है. बातोंबातों में एक ऐसा रहस्य खड़ा कर देती हो कि बस पूछो मत.’’

”दरअसल , मेरा पति मुझे परेशान करता है, मैं उसे जल्द छोड़ दूंगी.’’

”ठीक है. अच्छा मिल कर बात करेंगे, तुम मुझे बताना मैं अपना कुछ काम भी निपटा लेता हूं तब तक.’’

आखिरकार रात को 10 बजे कोमल ने अपने घर पर ही मिलने का मैसेज रघुवीर सहाय को भेज दिया. उस ने बताया कि पति महाशय रायपुर गए हुए हैं और अब अगले दिन ही लौटेंगे, इसलिए हम यहां बड़े आराम से मिल सकते हैं. रघुवीर सहाय कोमल के यहां पहुंच गया और उसे वहां पहुंचे हुए अभी 15 मिनट ही हुए थे कि बाहर होहल्ला मचने लगा. वह कुछ करते, एक व्यक्ति और 2 वरदीधारी पुलिस वाले भीतर आ गए और एक शख्स रघुवीर सहाय को गालियां देते हुए मारने लगा. उस व्यक्ति ने कहा, ”मैं इस का पति हूं और मुझे इस हरामजादी पर पहले से शक था.’’

फिर उस ने मोबाइल निकाल कर के वीडियो बनानी शुरू कर दी और चिल्ला कर बोला, ”तुम को तो मैं जेल भिजवाऊंगा.’’

एक पुलिस वाले ने घुड़क कर कहा, ”चलो थाने! वहां तुम्हारी ठीक से खातिरदारी करेंगे.’’

यह सुन कर रघुवीर सहाय घबरा गया और हाथ जोड़ कर माफी मांगने लगा. एक पुलिस वाले ने कोमल के पति को शांत करते हुए कहा, ”देखो, यह इज्जतदार आदमी लगता है और थाने पुलिस से तुम्हारी भी इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी.’’

”हांहां, यह सच है…’’ रघुवीर सहाय ने कहा.

”इसे यहीं दंड दो और भगा दो.’’ दूसरे पुलिस वाले ने सलाह देते हुए कहा.

”चलो ठीक है, मुझे 10 लाख रुपए तुम अभी के अभी दो.’’

”मैं…मैं दे दूंगा.’’ रुपए देने का वादा कर रघुवीर सहाय घिघियाते हुए किसी तरह जान बचा कर वहां से नौ दो ग्यारह हो गया. यह बात छत्तीसगढ़ के बलौदा बाजार भाटापारा जिले की है.

पीडि़त ने एसपी को सुनाई आपबीती

दोपहर के यही कोई 12 बजे थे. बलौदा बाजार भाटापारा के एसपी सदानंद कुमार अपने औफिस में रोजमर्रा के काम निपटाते हुए फाइलों पर दस्तखत कर रहे थे और मिलनेजुलने वालों से बातें भी कर रहे थे कि तभी रघुवीर सहाय उन के समक्ष हाथ जोड़ कर खड़ा हुआ और बोला, ”सर, मैं आप से कुछ अकेले में कुछ बात करना चाहता हूं?’’

एसपी सदानंद कुमार ने एक नजर उस शख्स पर डाली फिर मामले की गंभीरता को समझते हुए उन्होंने कुछ देर में वहां मौजूद अन्य लोगों को बाहर भेज कर उस से रूबरू हुए तो रघुवीर सहाय रुआंसा होते हुए बोला, ”सर, मैं बरबाद हो गया हूं. दरअसल, मुझ से 20 लाख रुपए कुछ लोगों ने डराधमका कर ले लिए हैं.’’

यह सुन कर के सदानंद कुमार उस की ओर गौर से देखने लगे और बैठा कर पानी पीने को कहा और फिर कहा, ”अपनी बात को विस्तार से बताओ.’’

इस के बाद रघुवीर सहाय ने जो बातें पुलिस कप्तान के समक्ष रखीं तो उन के मुंह से बरबस निकला, ”ओह, तो यह सब (Honeytrap) हनीट्रैप का मामला है.’’

‘हनीट्रैप’ शब्द सुनते ही वह आश्चर्यचकित हो कर एसपी साहब का मुंह ताकता रह गया.

”देखो, तुम निश्चिंत रहो, इस के पीछे जो लोग भी हैं, पुलिस और कानून से बच नहीं सकते.’’ सदानंद कुमार ने उसे आश्वस्त कर के वहां से भेज दिया.

 इस के बाद उन्होंने अपने तरीके से जब जिला बलौदा बाजार भाटापारा के कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण लोगों और सूत्रों से बातचीत की तो यह बातें सामने आ गईं कि शहर में ऐसी  लगभग 10 घटनाएं घटित हो चुकी हैं और नगर के गणमान्य लोग इस में अपनी इज्जत बचाने के चक्कर में पुलिस के समक्ष शिकायत करने नहीं आ रहे हैं. एसपी सदानंद कुमार ने मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस की 5 टीमें बनाईं. उन्होंने सभी टीमों को निर्देश दिए कि वह जल्द से जल्द इस मामले को सौल्व कर हनीट्रैप के आरोपियों को गिरफ्तार कर उन्हें जेल भेजें.

कोतवाली, बलौदा बाजार के टीआई अजय झा और पुलिस की टीमों ने एसपी के निर्देशन में जांच शुरू कर दी और बहुत जल्द आरोपियों को सबूत के साथ गिरफ्त में भी ले लिया. एसडीओपी निधि नाग ने 31 मार्च, 2024 को मामले का खुलासा करते हुए पत्रकारों को बताया कि मामले की जांच में मुख्य आरोपी प्रत्यूष मरैया उर्फ मोंटी, कनक टंडन, पूर्व विधायक प्रतिनिधि शिरीष पांडेय, एडवोकेट महान मिश्रा समेत दूसरे आरोपियों के नाम सामने आए हैं.

ये सभी आरोपी गैंग की महिलाओं को जाल में फांसे गए लोगों के घर भेजते थे, जहां महिलाएं जा कर संबंधित शख्स को झूठे मामले में फंसाने की धमकी देती थीं. धमकी के बाद बदनामी के डर से आरोपी पीडि़त से मोटी रकम की उगाही करते थे. इस के बाद सर्च वारंट जारी कर पुलिस ने आरोपियों के निवास और दूसरे ठिकानों में सर्च अभियान चलाया. मुख्य आरोपी कनक टंडन, मोंटी उर्फ प्रत्यूष मरैया, शिरीष पांडेय फरार थे. कनक टंडन के घर के बाहर पुलिस बल लगाया गया और सरगना की तलाश के लिए पुलिस की टीमें लगातार पतासाजी करने लगीं.

पुलिस लगातार छापेमारी करती रही. शहर के नामी लोगों को टारगेट बना कर गिरोह लगातार ब्लैकमेल करता रहा.

मंत्री की दखल से तेज हुई पुलिस काररवाई

यह चर्चित सैक्स स्कैंडल जब कुछ समय तक ठंडे बस्ते में चला गया और आरोपी नहीं पकड़े गए तो शहर में इस की चर्चा होने लगी. समाचार पत्रों में यह मामला सुर्खियां बटोरने लगा. ऐसे में छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन के बाद नई सरकार मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में बनी थी. हनीट्रैप मामले की जानकारी स्थानीय विधायक और राज्य सरकार में खेल और युवा कल्याण मंत्री टंकराम वर्मा को हुई तो उन्होंने एसपी को शीघ्र काररवाई के लिए कहा. आखिरकार कोतवाली पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली.

बलौदा बाजार के इस सैक्स स्कैंडल मामले में टारगेट को फंसा कर रकम वसूल करने में जनप्रतिनिधि, पुलिस और कथित पत्रकार की भी भूमिका सामने आई. मंगलवार 9 जुलाई, 2024 को आखिरकार  लंबे समय से चर्चा में रहे हनीट्रैप मामले में एक महिला आरोपी को पुलिस ने बड़ी मशक्कत के बाद कोर्ट के पास गिरफ्तार कर लिया तो यह मामला फिर सुर्खियों में आ गया. पकड़ी गई महिला विनीता (27 वर्ष) शिव मंदिर, बलौदा बाजार की रहने वाली थी.

पूछताछ में विनीता ने पुलिस के सामने आखिर हथियार डाल दिए और सारेघटनाक्रम को सिलसिलेवार बयान किया. एसपी सदानंद कुमार के निर्देश पर पुलिस ने 3 युवतियों और एक युवक को पहले गिरफ्तार किया था. आरोपियों में कई नामचीन लोग शामिल थे. ये सभी एक रैकेट बना कर धनवान, शासकीय एवं प्राइवेट नौकरी से रिटायर्ड लोगों को हनीट्रैप में फंसा रहे थे. फिर उन्हें बदनाम करने की धमकी दे कर उन से मोटी रकम वसूल रहे थे.

जांच के दौरान पुलिस ने अनेक पीडि़तों से विस्तार से पूछताछ की गई, जिस में यह तथ्य सामने आया कि मुख्य सरगना शिरीष पांडे, गीतांजलि फेकर, मोंटी उर्फ प्रत्यूष मरैया, कनक टंडन, महान मिश्रा व अन्य इस सैक्स स्कैंडल में शामिल थे. पुलिस ने 5 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया था. उन्होंने हनीट्रैप (Honeytrap) के जरिए 41 लाख रुपए की वसूली करने की बात कुबूल कर ली.

गैंग में वकील और पत्रकार भी शामिल

यह गिरोह बड़े ही शातिर तरीके से अपने काम को अंजाम दिया करता था तथा गिरोह के सभी सदस्यों के काम अलगअलग थे. गिरोह का मुख्य सरगना एवं मास्टरमाइंड शिरीष पांडे एवं विनीता थे. शिरीष पांडे एवं विनीता द्वारा बलौदा बाजार नगर में मोटे पैसे वाले लोगों को चिह्निïत किया जाता था. उस के बाद शिरीष पांडे द्वारा खुद की पहुंच अपनी राजनीतिक दखल एवं पहचान का प्रभाव दिखाते हुए टारगेट से मेलजोल बढ़ा कर उन को लड़की उपलब्ध करने का झांसा दिया जाता था.

दोनों मुख्य आरोपी स्थानीय बलौदा बाजार के निवासी हैं. ये दोनों ही लड़कियों के शहर में रहने, खानेपीने एवं अन्य सुविधाओं का इंतजाम करते थे. इस के बाद उन लड़कियों को अपने टारगेट के पास भेजते थे. लड़की के जाने के थोड़ी देर बाद खुद दोनों आरोपी मौके पर पहुंच कर स्वयं को लड़की के परिजन बता कर टारगेट को ब्लैकमेल कर पैसे की मांग करते थे. इस दौरान पीडि़त उन से डर कर पैसे देने के लिए तैयार हो जाता था. इन में दीप्ति बंजारे नाम की महिला टारगेट को फंसाने के लिए लड़कियों का इंतजाम करती थी.

यही गिरोह से संपर्क के माध्यम से लड़कियों को बुला कर टारगेट के पास भी भेजती थी. खुद को पत्रकार बताने वाला आशीष शुक्ला पत्रकारिता की आड़ में हनीट्रैप (Honeytrap) में फंसे व्यक्ति को धमकाने का काम करता था. आरोपी शुक्ला धमकी देता था कि यह अपराध प्रैस के माध्यम से लोगों तक प्रसारित कर दिया जाएगा. इस प्रकार डर दिखा कर वसूली करने का काम चल रहा था. आशीष शुक्ला द्वारा एक टारगेट से सवा लाख रुपए की मांग की गई थी, जिस में पीडि़त व्यक्ति ने 75 हजार रुपए का भुगतान आरोपी आशीष शुक्ला की दुकान में जा कर किया था.

बताया जाता है कि एक आरोपी महान मिश्रा पेशे से वकील है. यह अपनी पहुंच एवं पहचान का रौब दिखा कर उगाही की गई रकम को संभालने एवं आपस में बंटवारा करने का काम करता था. पुलिस द्वारा आरोपियों को गिरफ्तार कर जुडिशियल रिमांड पर भेजा गया तथा अन्य फरार आरोपी दीप्ति बंजारे, आशीष शुक्ला, शिरीष पांडे की तलाश की जा रही थी.

पुलिस ने यह कथा लिखे जाने तक आरोपी कनक टंडन (30 साल), उस के पति प्रत्यूष उर्फ मोंटी मरैया (28 साल), डा. अब्दुल कलाम बलोदा बाजार, साकिन अब्दुल कलाम बलौदा बाजार, प्रत्यूषा (22 साल) निवासी बिल्हा जिला बिलासपुर सहित एक अन्य आरोपी महान मिश्रा को गिरफ्तार किया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में पात्रों के नाम परिवर्तित है.

 

 

Murder Story : जेठानी ने कर डाला देवर के बेटे का कत्ल

विधवा मंजीत कौर ने अपने विवाहित देवर को न सिर्फ अपने जाल में फांसा बल्कि उस की गृहस्थी उजाड़ कर शादी भी कर ली. इस के बाद उस का ऐसा कौन सा स्वार्थ रह गया जिस के चलते उस ने अपने सौतेले बेटे को भी ठिकाने लगा दिया

‘‘दखो सरदारजी, एक बात सचसच बताना, झूठ मत बोलना. मैं पिछले कई दिनों से देख रही हूं कि आजकल तुम अपनी भरजाई पर कुछ ज्यादा ही प्यार लुटा रहे हो. क्या मैं इस की वजह जान सकती हूं?’’ राजबीर कौर ने यह बात अपने पति हरदीप सिंह से जब पूछी तो वह उस से आंखें चुराने लगा. पत्नी की बात का हरदीप को जवाब भी देना था, इसलिए अपने होंठों पर हलकी मुसकान बिखेरते हुए उस ने राजबीर कौर से कहा, ‘‘तुम भी कमाल करती हो राजी. तुम तो जानती ही हो कि बड़े भाई काबल की मौत हुए अभी कुछ ही समय हुआ है. भाईसाहब की मौत से भाभीजी को कितना सदमा पहुंचा है. यह बात तुम भी समझ सकती हो. मैं बस उन्हें उस सदमे से बाहर निकालने की कोशिश कर रहा हूं. और फिर भाईसाहब के दोनों बच्चे मनप्रीत सिंह और गुरप्रीत सिंह भी अभी काफी छोटे हैं.’’

हरदीप अपनी पत्नी को प्यार से राजी कह कर बुलाता था.

‘‘हां, यह बात तो मैं अच्छी तरह समझ सकती हूं पर कोई ऐसे तो नहीं करता, जैसे तुम कर रहे हो. तुम्हें यह भी याद रखना चाहिए कि अपना भी एक बेटा किरनजोत है. तुम अपनी बीवीबच्चे छोड़ कर हर समय अपनी विधवा भाभी और उन के बच्चों का ही खयाल रखोगे तो अपना घर कैसे चलेगा.’’ राजबीर कौर बोली.

‘‘मैं समझ सकता हूं और यह बात भी अच्छी तरह से जानता हूं कि मेरी लापरवाही में तुम घर को अच्छी तरह संभाल सकती हो. फिर अब कुछ ही दिनों की तो बात है, सब ठीक हो जाएगा.’’ पति ने समझाया. कहने को तो यह बात यहीं खत्म हो गई थी पर राजबीर कौर अच्छी तरह जानती थी कि अब आगे कुछ ठीक होने वाला नहीं है. इसलिए उस ने मन ही मन फैसला कर लिया कि जहां तक संभव होगा, वह अपने घर को बचाने की पूरी कोशिश करेगी. पंजाब के अमृतसर देहात क्षेत्र के थाना रमदास के गांव कोटरजदा के मूल निवासी थे बलदेव सिंह. पत्नी के अलावा उन के 3 बेटे थे परगट सिंह, काबल सिंह और हरदीप सिंह. बलदेव सिंह ने समय रहते सभी बेटों की शादियां कर दी थीं और तीनों भाइयों में जमीन का बंटवारा भी कर के अपने फर्ज से मुक्ति पा ली थी.

अपने हिस्से की जमीन ले कर परगट सिंह ने अपना अलग मकान बना लिया था. काबल और हरदीप अपने पुश्तैनी घर में मातापिता के साथ रहते थे. काबल सिंह की शादी मनजीत कौर के साथ हुई थी. उस के 2 बच्चे थे 13 वर्षीय मनप्रीत सिंह और 12 वर्षीय गुरप्रीत सिंह.  सन 2003 में हरदीप सिंह की शादी खतराये निवासी राजबीर कौर के साथ हुई थी. शादी के बाद उन के घर किरनजोत सिंह ने जन्म लिया था. बच्चे के जन्म से दोनों पतिपत्नी बड़े खुश थे. तीनों भाइयों की अपनी अलगअलग जमीनें थीं. सब अपनेअपने कामों और परिवारों में मस्त थे. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था कि 24 जून, 2008 को काबल सिंह की दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई. इस के बाद तो उस घर पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था. उस की खेती आदि के काम कोई करने वाला नहीं था क्योंकि उस समय बच्चे भी छोटे थे. तब भाई के खेतों के काम से ले कर उस के दोनों बच्चों की देखभाल का जिम्मा हरदीप सिंह ने संभाल लिया था.

अपनी विधवा भाभी मनजीत कौर से सहानुभूति रखने और उस की मदद करतेकरते हरदीप सिंह का झुकाव धीरेधीरे अपनी विधवा भाभी की ओर होने लगा. हरदीप की पत्नी राजबीर कौर इन सब बातों से बेखबर नहीं थी.  वह समयसमय पर पति हरदीप सिंह को उस की अपनी घरेलू जिम्मेदारियों का अहसास दिलाती रहती थी. पर उस ने इन बातों को ले कर कभी पति से क्लेश या लड़ाईझगड़ा नहीं किया था. वह हर मसले को प्यार और समझदारी से निपटाने के पक्ष में थी और यही बात उस के हक में नहीं रही. उसे जब इन सब बातों की समझ आई तब पानी सिर से ऊपर गुजर चुका था. उस का पति हरदीप अब उस का नहीं रहा. वह कभी का अपनी विधवा भाभी मंजीत कौर की आगोश में जा चुका था. राजबीर कौर ने जब अपना घर उजड़ता देखा तब उस की नींद टूटी और उस ने इस रिश्ते का जम कर विरोध किया था.

बाद में उस ने इस मसले पर रिश्तेदारों से शिकायत भी की पर कोई नतीजा नहीं निकला. इस पूरे मामले में राजबीर कौर की यह गलती रही कि उस ने अपने पति पर विश्वास करते हुए समय रहते इन सब बातों का विरोध नहीं किया था. शायद उसे पति की वफादारी और अपनी समझ पर भरोसा था. बहरहाल उस का बसाबसाया घर टूट गया था. हरदीप सिंह और राजबीर कौर के बीच तलाक हो गया था. यह सन 2013 की बात है. राजबीर कौर का हरदीप सिंह से तलाक भले ही हो गया था, पर वह वहीं रहती रही. हरदीप सिंह अपने 9 वर्षीय बेटे किरनजोत सिंह और अपने दोनों भतीजों मनप्रीत सिंह और गुरप्रीत सिंह के साथ मंजीत कौर के साथ रहने लगा था. भाभी के साथ रहने पर लोगों ने कुछ दिनों तक चर्चा जरूर की पर बाद में सब शांत हो गए.

समय का पहिया अपनी गति से घूमता रहा. सब अपनेअपने कामों में व्यस्त हो गए थे. हरदीप तीनों बच्चों और दूसरी पत्नी मंजीत कौर के साथ खुशी से रह रहा था.  बात 28 जून, 2018 की है. तीनों बच्चों सहित हरदीप और मंजीत कौर रात का खाना खा कर सो गए थे. हरदीप और मंजीत कौर कमरे के अंदर और तीनों बच्चे बाहर बरामदे में सो रहे थे. बिस्तर पर लेटते ही हरदीप को तो नींद आ गई थी पर मंजीत कौर अपने बिस्तर पर लेटेलेटे ही टीवी पर कोई कार्यक्रम देख रही थी. कमरे की लाइट बंद थी पर टीवी चलने के कारण उस कमरे में पर्याप्त रोशनी थी. रात के करीब 12 बजे का समय होगा कि मंजीत कौर ने अपने कमरे में एक साया देखा. साया कमरे से बाहर की ओर निकल गया था. फिर अचानक मंजीत कौर की नजर कमरे में रखी हुई अलमारी पर पड़ी. अलमारी खुली हुई थी और पास ही सामान बिखरा पड़ा था. यह देख कर वह चौंक गई. घबरा कर उस ने पास में सोए पति हरदीप को जगाया और अलमारी की ओर इशारा किया.

कमरे में चल रहे टीवी की रोशनी में उसे भी खुली अलमारी के आसपास कपड़े आदि बिखरे दिखे. इस के बाद हरदीप ने तुरंत उठ कर घर की लाइट जला दी. वह समझ गया कि घर में चोरी हो गई है. कमरे से निकल कर जब वह बरामदे में पहुंचा तो उस की नजर बरामदे में सोए बच्चों पर गई. वहां मनप्रीत और गुरप्रीत तो सो रहे थे, लेकिन उस का अपना 9 वर्षीय बेटा किरनजोत सिंह गायब था. यह सब देख कर हरदीप ने चोरचोर का शोर मचाना शुरू कर दिया था. रात के सन्नाटे में उस की आवाज सुन कर पड़ोसी उस के घर आ गए और जब सब को पता चला कि 9 वर्षीय किरनजोत को भी चोर अपने साथ उठा कर ले गए हैं तो सब हैरान रह गए. किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. ऐसे में किरनजोत को कहां और कैसे ढूंढा जाए. फिर भी समय व्यर्थ न करते हुए सभी लोग रात में ही किरनजोत की तलाश में अलगअलग दिशाओं में निकल पड़े.

पूरी रात किरनजोत की तलाश होती रही. लोगों ने गांव से ले कर मुख्य मार्ग तक भी छान मारा पर वह नहीं मिला. पूरी रात बीत गई थी पर किरनजोत का कुछ पता नहीं चला था. हरदीप सिंह की पहली बीवी यानी किरनजोत को जन्म देने वाली मां राजबीर कौर को जब अपने बेटे के चोरी होने का पता चला तो रोरो कर उस ने अपना बुरा हाल कर लिया था. किरनजोत को तलाश करतेकरते दिन निकल आया था. बच्चे के न मिलने पर सभी लोग निराश थे. कुछ देर बाद गांव के एक आदमी ने हरदीप सिंह को आ कर यह खबर दी कि किरनजोत की लाश नहर किनारे पड़ी है.  यह सुनते ही हरदीप व अन्य लोग नहर किनारे पहुंचे तो वास्तव में वहां किरनजोत की लाश मिली. कुछ ही देर में गांव के तमाम लोग नहर किनारे जमा हो गए. किसी ने पुलिस को भी खबर कर दी.

सूचना मिलते ही थाना रमदास के थानाप्रभारी मनतेज सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस ने बच्चे की लाश को अपने कब्जे में ले कर जरूरी काररवाई कर के पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भेज दी और भादंवि की धारा 302 के तहत अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. मुकदमा दर्ज होने के बाद मनतेज सिंह ने हरदीप सिंह के घर का मुआयना किया. हरदीप सिंह से बात करने के बाद पता चला कि उस के घर का कोई सामान चोरी नहीं हुआ था. इस से यही पता लगा कि वारदात को चोरी का रूप देने की कोशिश की गई है. पुलिस को यह भी पता चला कि कमरे में कोई साया होने की बात सब से पहले हरदीप सिंह की पत्नी मंजीत कौर ने बताई थी, इसलिए थानाप्रभारी ने मंजीत कौर के ही बयान लिए.

थानाप्रभारी मनतेज सिंह को मंजीत के बयानों में काफी झोल दिखाई दे रहे थे. यह बात भी उन्हें हजम नहीं हो रही थी कि कमरे में जागते और टीवी देखते हुए कैसे चोर की हिम्मत हो गई कि वह चोरी करने के साथसाथ बच्चे को भी उठा कर अपने साथ ले गया. भला उस बच्चे से उसे क्या मतलब था और किस मकसद से उस ने बच्चे को अगवा किया था. लाख सोचने पर भी मनतेज सिंह को यह बात समझ नहीं आ रही थी. तब थानाप्रभारी ने अपने कुछ विश्वासपात्र लोगों को सच्चाई का पता करने पर लगाया. इस बीच अस्पताल में किरनजोत के पोस्टमार्टम के समय उस की मां राजबीर कौर ने खूब हंगामा खड़ा किया. उस ने अपनी जेठानी मंजीत कौर पर आरोप लगाते हुए कहा कि किरनजोत की हत्या के पीछे मंजीत कौर का ही हाथ है क्योंकि वह उसे अपना सौतेला बेटा मानती थी.

राजबीर कौर के आरोप को मद्देनजर रखते हुए पुलिस ने अपने मुखबिरों को सच्चाई का पता लगाने के लिए लगाया. इस के बाद थानाप्रभारी को मंजीत कौर के बारे में जो खबर मिली, वह चौंकाने वाली थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में किरनजोत की मौत के बारे में बताया कि उस की मौत गला घोंटने से हुई थी. सोचने वाली बात यह थी कि मारने वाले ने बच्चे को घर से उठाया और हत्या के बाद वह उसे नहर के किनारे फेंक आया. इस में इकट्ठे सो रहे तीनों बच्चों में से उस ने किरनजोत सिंह को ही क्यों उठाया. थानाप्रभारी मनतेज सिंह ने मृतक किरनजोत की मां राजबीर कौर से भी पूछताछ की. राजबीर कौर ने बताया कि 10 साल पहले उस का विवाह हरदीप सिंह के साथ हुआ था. उस के जेठ काबल सिंह की मौत हो जाने के बाद उस के पति हरदीप सिंह के उस की जेठानी मंजीत कौर से अवैध संबंध हो गए थे. इस कारण उस ने अपने पति को तलाक दे दिया और दूसरा विवाह कर लिया.

उस के पति हरदीप सिंह ने भी उस की जेठानी के साथ शादी कर ली थी. शादी के बाद न तो उस की जेठानी उसे उस के बेटे किरनजोत से मिलने देती थी और न ही वह उसे पसंद करती थी. उसे पूरा यकीन है कि उस के बेटे की हत्या मंजीत कौर ने ही करवाई है. थानाप्रभारी ने महिला हवलदार सुरजीत कौर को भेज कर मंजीत कौर को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. शुरुआती दौर में वह अपने आप को निर्दोष बताते हुए चोरी की कहानी पर डटी रही पर जब उस से पूछा गया कि क्याक्या सामान चोरी हुआ है तो यह सुन कर वह बगलें झांकने लगी.  थोड़ी सख्ती करने पर उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए कहा कि उसी ने किरनजोत की गला घोंट कर हत्या की थी और लाश को गोद में उठा कर नहर किनारे फेंक आई. फिर आधी रात को अपने पति हरदीप को जगा कर चोरी वाली कहानी सुनाई थी.

इस की वजह यह थी कि मंजीत कौर को हरदीप और किरनजोत के बीच का प्यार खलता था. वह नहीं चाहती थी कि उस के दोनों बेटों के अलावा उस का पति हरदीप अपनी पहली बीवी से हुए बेटे किरनजोत के साथ कोई भी रिश्ता रखे. पिता का यही प्यार बेटे की मौत का कारण बन गया. दरअसल हरदीप सिंह तीनों बच्चों से तो प्यार करता था पर वह सब से अधिक अपने किरनजोत को चाहता था. पति के इस प्यार की वजह से मंजीत कौर को यह भ्रम हो गया था कि हरदीप सिंह किरनजोत के बड़े होने पर अपनी सारी जायदाद उसी के नाम कर देगा.

ऐसे में उस के पैदा किए बच्चे दानेदाने को मोहताज हो जाएंगे, जबकि ऐसी कोई बात नहीं थी. हरदीप ने सपने में भी कभी यह नहीं सोचा था कि मंजीत कौर ऐसा भी कुछ सोच सकती है. मंजीत कौर के बयान दर्ज करने के बाद किरनजोत सिंह की हत्या के आरोप में उसे गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया गया. अदालत के आदेश पर उसे जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारिते

6 हजार रुपये के लिए Actress कृतिका का हुआ मर्डर

छोटे शहरों से बड़े सपने ले कर सैकड़ों लड़कियां आए दिन सपनों की नगरी मुंबई पहुंचती हैं. लेकिन इन में से गिनीचुनी लड़कियों को ही कामयाबी मिलती है. दरअसल, फिल्म इंडस्ट्री भूलभुलैया की तरह है, जहां प्रवेश करना तो आसान है, लेकिन बाहर निकलना बहुत मुश्किल. क्योंकि यहां कदमकदम पर दिगभ्रमित करने वाले मोड़ों पर गलत राह बताने वाले मौजूद रहते हैं, जिन के अपनेअपने स्वार्थ होते हैं.

फिल्म इंडस्ट्री में एक तरफ जहां श्रीदेवी, माधुरी दीक्षित, हेमामालिनी, काजोल, जैसी अभिनेत्रियों ने अपने अभिनय का परचम लहराया, वहीं दूसरी ओर दिव्या भारती, स्मिता पाटिल, जिया खान, नफीसा जोसेफ, शिखा जोशी, विवेका बाबा, मीनाक्षी थापा और प्रत्यूषा बनर्जी जैसी सुंदर व प्रतिभावान छोटे व बड़े परदे की अभिनेत्रियों ने भावनाओं में बह कर अथवा अपनी नाकामयाबी की वजह से जान गंवाई. सच तो यह है कि प्राण गंवाने वाली किसी भी अभिनेत्री की मौत का सच कभी सामने नहीं आया. अब ऐसी अभिनेत्रियों में एक और नाम जुड़ गया है कृतिका उर्फ ज्योति चौधरी का.

घटना 12 जून, 2017 की है. सुबह के करीब 10 बजे का समय था. मुंबई के उपनगर अंधेरी (वेस्ट) स्थित अंबोली पुलिस थाने के चार्जरूम में तैनात ड्यूटी अधिकारी को फोन पर खबर मिली कि चारबंगला स्थित एसआरए भैरवनाथ हाउसिंग सोसाइटी की 5वीं मंजिल के फ्लैट नंबर 503 में से दुर्गंध आ रही है. ड्यूटी पर तैनात अधिकारी ने मामले की डायरी बना कर इस की जानकारी सीनियर क्राइम इंसपेक्टर दयानायक को दी. इंसपेक्टर दयानायक मामले की गंभीरता को देखते हुए तुरंत अपने साथ पुलिस टीम ले कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. उन्होंने इस मामले की जानकारी थानाप्रभारी वी.एस. गायकवाड़ और वरिष्ठ अधिकारियों के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम को भी दे दी थी.crime story

जब पुलिस टीम घटनास्थल पर पहुंची, तब तक वहां काफी लोगों की भीड़ एकत्र हो गई थी. भीड़ को हटा कर पुलिस टीम कमरे के सामने पहुंची. पुलिस ने वहां मौजूद लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि उस फ्लैट में 2-3 सालों से फिल्म और टीवी अभिनेत्री कृतिका उर्फ ज्योति चौधरी किराए पर रह रही थी. लेकिन वह अपने फ्लैट में कब आती थी और जाती थी, इस की जानकारी किसी को नहीं थी. चूंकि उस का काम ही ऐसा था, इसलिए किसी ने उस के आनेजाने पर ध्यान नहीं दिया था. पासपड़ोस के लोगों से भी उस का संबंध नाममात्र का था. पता चला कि कई बार तो वह शूटिंग पर चली जाती थी तो कईकई दिन नहीं लौटती थी.

फ्लैट की चाबी किसी के पास नहीं थी. जबकि फ्लैट बंद था. इंसपेक्टर दया नायक ने वरिष्ठ अधिकारियों से बात कर के फ्लैट का दरवाजा तोड़वा दिया. दरवाजा टूटते ही अंदर से बदबू का ऐसा झोंका आया कि वहां खड़े लोगों को सांस लेना कठिन हो गया. नाक पर रूमाल रख कर जब पुलिस टीम फ्लैट के अंदर दाखिल हुई तो कमरे का एसी 19 डिग्री टंप्रेचर पर चल रहा था. संभवत: हत्यारा काफी चालाक और शातिर था. लाश लंबे समय तक सुरक्षित रहे और सड़न की बदबू बाहर न जाए, यह सोच कर उस ने एसी चालू छोड़ दिया था. लाश की स्थिति से लग रहा था कि कृतिका की 3-4 दिनों पहले ही मौत हो गई थी.

इंसपेक्टर दया नायक अभी अपनी टीम के साथ घटनास्थल का निरीक्षण और मृतका कृतिका के पड़ोसियों से पूछताछ कर रहे थे कि अंबोली पुलिस थाने के थानाप्रभारी वी.एस. गायकवाड़, डीसीपी परमजीत सिंह दहिया, एसीपी अरुण चव्हाण, क्राइम ब्रांच सीआईडी यूनिट-9 के अधिकारी और फौरेंसिक टीम भी मौके पर पहुंच गई. फौरेंसिक टीम का काम खत्म हो जाने के बाद पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने घटनास्थल का सरसरी निगाह से निरीक्षण किया. थानाप्रभारी वी.एस. गायकवाड़ से जरूरी बातें कर के अधिकारी अपने औफिस लौट गए.

अधिकारियों के जाने के बाद थानाप्रभारी वी.एस. गायकवाड़ ने इंसपेक्टर दया नायक और सहयोगियों के साथ मिल कर घटनास्थल और मृतका कृतिका के शव का बारीकी से निरीक्षण किया. कृतिका का शव उस के बैडरूम में बैड पर चित पड़ा था. शव के पास ही उस का मोबाइल फोन और ड्रग्स जैसा दिखने वाले पाउडर का एक पैकेट पड़ा था. पुलिस ने कृतिका का मोबाइल अपने कब्जे में ले लिया और पाउडर के पैकेट को जांच के लिए सांताकु्रज के कालिया लैब भेज दिया. फोन से कृतिका के घर वालों का नंबर निकाल कर उन्हें इस मामले की जानकारी दे दी गई.

घटनास्थल की जांच में कृतिका के बर्थडे का एक नया फोटो भी मिला, जिस में वह 2 युवकों और 3 युवतियों के बीच पीले रंग की ड्रेस में खड़ी थी और काफी खुश नजर आ रही थी. वह फोटो संभवत: 5 और 8 जून, 2017 के बीच खींची गई थी. कृतिका की हत्या बड़ी ही बेरहमी से की गई थी. उस के सिर पर किसी भारी चीज से वार किया गया था, साथ ही उस की हत्या में अंगुलियों में पहने जाने वाले नुकीले पंजों का इस्तेमाल किया गया था. कृतिका के शरीर पर कई तरह के जख्मों के निशान थे, जिस से लगता था कि हत्या के पूर्व कृतिका के और हत्यारों के बीच काफी मारपीट हुई थी. हत्या में इस्तेमाल चीजों को पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया.

बैड पर कृतिका का खून बह कर बिस्तर पर सूख गया था और उसकी लाश धीरेधीरे सड़नी शुरू हो गई थी. घटनास्थल की औपचारिकताएं पूरी करने के बाद पुलिस टीम ने कृतिका के शव को पोस्टमार्टम के लिए विलेपार्ले स्थित कूपर अस्पताल भेज दिया. घटनास्थल की प्राथमिक काररवाई पूरी करcrime story

के पुलिस टीम थाने लौट आई. थाने आ कर थानाप्रभारी वी.एस. गायकवाड़ ने इस मामले पर अपने वरिष्ठ अधिकारियों के साथ विचारविमर्श किया और तफ्तीश का काम इंसपेक्टर दया नायक को सौंप दिया. उधर कृतिका की मौत का समाचार मिलते ही उस के परिवार वाले मुंबई के लिए रवाना हो गए. कृतिका की हत्या हो सकती है, यह वे लोग सोच भी नहीं सकते थे. मुंबई पहुंच कर उन्होंने कृतिका का शव देखा तो दहाड़ें मार कर रोने लगे. पुलिस की जांच टीम ने उन्हें बड़ी मुश्किल से संभाला. पोस्टमार्टम के बाद कृतिका का शव उन्हें सौंप दिया गया.

इंसपेक्टर दया नायक ने कृतिका के परिवार वालों के बयान लेने के बाद थानाप्रभारी वी.एस. गायकवाड़ के दिशानिर्देशन में अपनी जांच की रूपरेखा तैयार की, ताकि उस के हत्यारे तक पहुंचा जा सके. एक तरफ इंसपेक्टर दया नायक अपनी तफ्तीश का तानाबाना तैयार कर रहे थे, वहीं दूसरी तरफ पुलिस कमिश्नर दत्तात्रय पड़सलगीकर और जौइंट पुलिस कमिश्नर देवेन भारती के निर्देश पर क्राइम ब्रांच सीआईडी यूनिट-9 के इंसपेक्टर महेश देसाई भी इस मामले की छानबीन में जुट गए थे.

फिल्मों, सीरियल अथवा मौडलिंग करने वाली लड़कियों पर पासपड़ोस के लोगों, सोसायटी में काम करने वालों, ड्राइवरों और गार्डों वगैरह की नजर रहती है. उदाहरणस्वरूप वडाला की रहने वाली पल्लवी पुरकायस्थ को ले सकते हैं, जिस की हत्या इमारत के कश्मीरी सिक्योरिटी गार्ड ने उस की सुंदरता पर फिदा हो कर दी थी. ऐसी ही एक और घटना अक्तूबर, 2016 में गोवा के पणजी में घटी थी. वहां सुप्रसिद्ध ब्यूटी फोटोग्राफर और जानी मानी परफ्यूमर मोनिका घुर्डे का शव सांगोल्डा विलेज की सपना राजवैली इमारत की दूसरी मंजिल पर मिला था.

उस की हत्या में भी इमारत के सिक्योरिटी गार्ड राजकुमार का हाथ था. इसी थ्योरी के आधार पर इंसपेक्टर दया नायक ने अपनी टीम के साथ तफ्तीश उसी इमारत से शुरू की, जिस में कृतिका रहती थी. उन्होंने इमारत के आसपास रहने वालों से पूछताछ की, वहां लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज खंगाले, वहां के सिक्योरिटी गार्डों से पूछताछ की और संदेह के आधार पर उसे हिरासत में भी लिया. उस इमारत का दूसरा सिक्योरिटी गार्ड लखनऊ गया हुआ था. उस की तलाश में पुलिस की एक टीम लखनऊ भी भेजी गई. लेकिन वहां से उसे खाली हाथ लौटना पड़ा.crime story

27 वर्षीया मौडल और अभिनेत्री कृतिका उत्तराखंड के हरिद्वार की रहने वाली थी. उस के पिता हरिद्वार के सम्मानित व्यक्ति थे. ऐशोआराम में पलीबढ़ी कृतिका खूबसूरत भी थी और महत्वाकांक्षी भी. वह ग्लैमर की लाइन में जाना चाहती थी. जबकि उस का परिवार चाहता था कि वह पढ़लिख कर कोई अच्छी नौकरी करे. कृतिका के सिर पर अभिनय और बौलीवुड का भूत कुछ इस तरह सवार था कि उसे मांबाप की कोई भी सलाह अच्छी नहीं लगती थी. वह बौलीवुड में जाने के लिए स्कूल और कालेजों के हर प्रोग्राम में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी. इसी के चलते उसे अनेक पुरस्कार और प्रशस्ति पत्र मिल चुके थे.

अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद कृतिका बौलीवुड की रंगीन दुनिया में काम पाने के लिए प्रयास करने लगी. इस के लिए उस ने अपना फोटो प्रोफाइल तैयार करा लिया था, जिसे वह विभिन्न विज्ञापन एजेंसियों को भेजती रहती थी. कुछ एक एजेंसियों ने उसे रिस्पौंस भी दिया और उसे औडिशन के लिए भी बुलाया. मौडलिंग की दुनिया में वह कुछ हद तक कामयाब भी हो गई थी. इस से उस का हौसला काफी हद तक बढ़ गया. उसे मौडलिंग के औफर मिलने लगे थे.

वैसे बता दें कि कृतिका मौडल नहीं बनना चाहती थी, क्योंकि शरीर के कपड़े उतार कर देह की नुमाइश करना उसे अच्छा नहीं लगता था. पर फिल्मों में काम करने की ललक उसे ऐसे विज्ञापनों में काम करने को मजबूर करती रही और इन्हीं के सहारे वह मुंबई जा पहुंची. सन 2009 में कृतिका मायानगरी मुंबई आ गई और मौडलिंग करने लगी. मौडलिंग के साथसाथ वह बौलीवुड की दुनिया में भी अपनी किस्मत आजमाती रही. इसी चक्कर में उस ने मौडलिंग एजेंसियों के कई औफर भी ठुकराए. परिणाम यह हुआ कि उस के पास मौडलिंग एजेसियों के औफर आने बंद हो गए. इस बीच वह कई फिल्म निर्माताओं और निर्देशकों से भी मिली. लेकिन उन से उसे आश्वासन तो मिले, पर काम नहीं.

इस सब के चलते एक तरह से वह निराशा से घिर गई थी. तभी एक पार्टी में उस की मुलाकात दिल्ली के बिजनैसमैन राज त्रिवेदी से हुई. जल्दी ही राज त्रिवेदी और कृतिका ने शादी कर ली. शादी के बाद दोनों दिल्ली आ गए. लेकिन कृतिका अपनी शादीशुदा जिंदगी में अधिक दिनों तक खुश नहीं रह पाई और एक साल में ही राज त्रिवेदी से तलाक ले कर आजाद हो गई. अपनी शादी की असफलता से कृतिका टूट सी गई थी, लेकिन उस ने अपने सपनों को नहीं टूटने दिया था.crime story

दिल्ली में रहते हुए कृतिका की मुलाकात शातिर ठग विजय द्विवेदी से हुई. विजय द्विवेदी मुंबई के कई बड़े फिल्मी सितारों और राजनेताओं को चूना लगा चुका था. जिन में फिल्म जगत के जानेमाने अभिनेता गोविंदा, टीवी और भोजपुरी फिल्मों की अभिनेत्री श्वेता तिवारी तथा बालाजी टेलीफिल्म्स की मालिक एकता कपूर और कांग्रेस के कद्दावर नेता अमरीश पटेल शामिल थे. 30 वर्षीय विजय द्विवेदी मूलरूप से दिल्ली का रहने वाला था. वह मध्यवर्गीय परिवार से संबंध रखता था, साथ ही सुंदर और आकर्षण व्यक्तित्व का मालिक था. खुद को वह कांग्रेस के कद्दावर नेता जनार्दन द्विवेदी का भतीजा बता कर लोगों को अपना परिचय बड़े ही रौब रुतबे वाले अंदाज में देता था. इस से लोग उस के प्रभाव में आ जाते थे. उस ने कृतिका को भी अपना परिचय इसी तरह दिया था. महत्वाकांक्षी कृतिका उस के प्रभाव में आ गई.

विजय द्विवेदी ने कृतिका को जब दिल्ली के एक मौल में शौपिंग करते देखा था, तभी उस ने सोच लिया था कि उसे किसी भी कीमत पर पाना है. वह कृतिका की सुंदरता पर कुछ इस तरह रीझा था कि जबतब कृतिका के आसपास शिकारी चील की तरह चक्कर लगाने लगा. आखिर एक दिन उसे कृतिका के करीब आने का मौका मिल ही गया. कृतिका के करीब आते ही वह उस की तारीफों के पुल बांधने लगा, साथ ही उस ने उस की दुखती रगों पर हाथ भी रख दिया.उस ने कहा कि उस के जैसी युवती को मौडल, टीवी एक्ट्रेस या फिर फिल्म अभिनेत्री होना चाहिए. उस का यह तीर निशाने पर लगा. नतीजा यह हुआ कि शादी और फिर तलाक होने के बाद भी कृतिका के दिल में बौलीवुड के जो सपने बरकरार थे, उन्हें हवा मिल गई.

आखिरकार विजय द्विवेदी ने कृतिका को अपनी झूठी बातों से अपने प्रेमजाल में फांस लिया. कृतिका की नजदीकियां पाने के लिए उस ने उस की कमजोरी पकड़ी थी. उसे करीब लाने के लिए ही उस ने हाईप्रोफाइल अभिनेताओं और राजनीतिक रसूखदारों के नाम लिए थे. बात बढ़ी तो दोनों की मुलाकातें भी बढ़ गईं. कृतिका को भी विजय द्विवेदी से प्यार हो गया. कृतिका को अपनी मुट्ठी में करने के बाद विजय द्विवेदी ने अपनी पत्नी को तलाक दे दिया और कृतिका से शादी कर ली.

सन 2011 में कृतिका विजय द्विवेदी के साथ अपनी किस्मत आजमाने वापस मुंबई आ गई. दोनों अंधेरी वेस्ट के लोखंडवाला कौंपलेक्स इलाके में किराए के एक फ्लैट में साथसाथ रहने लगे. मुंबई आने के बाद कृतिका फिर से बौलीवुड की गलियों में संघर्ष करने लगी. दूसरी ओर विजय द्विवेदी अपने शिकार ढूंढने लगा था. बहरहाल, इस बार एक तरफ कृतिका उर्फ ज्योति चौधरी की किस्मत रंग लाई, वही दूसरी ओर विजय द्विवेदी की किस्मत के सितारे गर्दिश में आ गए.

कृतिका को जल्द ही फिल्म ‘रज्जो’ में कंगना रनौत के साथ एक बड़ा मौका मिल गया. यह फिल्म सन 2013 में बन कर रिलीज हुई तो दर्शकों को कृतिका का अभिनय पसंद आया. इस के बाद कृतिका के सितारे चमकने लगे. फिल्म ‘रज्जो’ के बाद टीवी धारावाहिक ‘परिचय’ से उस की एंट्री एकता कपूर की कंपनी में हो गई. इस के साथ ही उसे क्राइम धारावाहिक ‘सावधान इंडिया’ में भी काम मिलने लगा. जहां सन 2013 से कृतिका का कैरियर संवरना शुरू हुआ, वहीं विजय द्विवेदी के कैरियर का सितारा सन 2012 डूब गया था. कांग्रेस नेता अमरीश पटेल को ठगने के बाद उस के कैरियर की उल्टी गिनती शुरू हो गई थी.

कांग्रेस नेता अमरीश पटेल के ठगे जाने की खबर जब उन की पार्टी के वरिष्ठ नेता जनार्दन द्विवेदी को मिली तो वह सन्न रह गए थे. उन्होंने इस मामले का संज्ञान लेते हुए इस की शिकायत तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण से कर दी कि कोई उन्हें अपना चाचा बता कर उन की छवि खराब करने की कोशिश कर रहा है. मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने यह मामला क्राइम ब्रांच को सौंप दिया. क्राइम ब्रांच विजय द्विवेदी के पीछे लग गई. फलस्वरूप सन 2012 के शुरुआती दौर में उसे गिरफ्तार कर लिया गया. उस वक्त वह कांग्रेसी नेता सुरेश कलमाड़ी को अपना शिकार बनाने की कोशिश कर रहा था. कलमाड़ी से भी उस ने खुद को जनार्दन द्विवेदी का भतीजा बताया था. क्राइम ब्रांच ने उसे अपनी कस्डटी में ले कर पूछताछ की तो सारा मामला सामने आ गया.

यह बात जब कृतिका को पता चली तो वह स्तब्ध रह गई. विजय द्विवेदी के संपर्क और एक साल तक उस के साथ रहने के बावजूद भी वह उस की हकीकत नहीं जान पाई थी. दरअसल, वह उस से भी बड़ा ऐक्टर था. बहरहाल, विजय द्विवेदी के ठगी का परदा उठा नहीं कि कृतिका ने उस से तलाक ले लिया. उस का साथ छोड़ कर वह अलग रहने लगी. वह अपनी जिंदगी अपनी तरह से बिता रही थी. छोटे पर्दे पर उस के लिए काम की कोई कमी नहीं थी. हत्या के पहले उस ने खुशीखुशी अपना बर्थडे मनाया था. उस के 2-3 दिनों बाद ही उस की हत्या हो गई थी.

धीरेधीरे इस घटना को घटे लगभग एक माह के करीब हो गया. लेकिन अभी तक अभियुक्तों के बारे में पुलिस को कोई जानकारी नहीं मिली थी. पुलिस अपनी तफ्तीश की कोई दिशा तय करती, तभी सांताकु्रज के कालिया लैब की रिपोर्ट देख कर उन का ध्यान एमडी ड्रग्स की तरफ गया. इसी बीच कृतिका के परिवार वालों ने बताया कि अपनी पहली शादी और तलाक के बाद वह काफी दुखी थी, जिस के चलते वह ड्रग्स लेने लगी थी. जांच अधिकारियों ने उन के इसी बयान को आधार बना कर जांच करने का फैसला किया. एसीपी अरुण चव्हाण ने एक नई टीम का गठन किया. इस टीम में उन्होंने क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर उदय राजशिर्के, नंदकुमार गोपाल, खार पुलिस थाने के असिस्टैंट इंसपेक्टर जोगदंड, वैशाली चव्हाण, दयानायक और सावले आदि को शामिल किया. टीम के लोगों को अलगअलग जिम्मेदारी सौंपी गई.

सीनियर इंसपेक्टर सी.एस. गायकवाड़ के निर्देशन में जांच टीम ने पुन: घटनास्थल का निरीक्षण किया और सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली. इस कोशिश में पुलिस को एक फुटेज में 2 संदिग्ध युवकों की परछाइयां नजर आईं. लेकिन उन का चेहरा स्पष्ट नहीं था. इस के अलावा पुलिस ने करीब 200 लोगों से पूछताछ करने के अलावा कृतिका के फोन की 2-3 सालों की काल डिटेल्स और डाटा निकलवाया. इस के बाद पुलिस को तफ्तीश की एक हल्की सी किरण नजर आई. इसी के सहारे पुलिस कृतिका के हत्यारे ड्रग्स सप्लायर तक पहुंचने में कामयाब हो गई.

दरअसल, कृतिका को ड्रग्स लेने की आदत पड़ गई थी. उसे ड्रग्स आसिफ अली उर्फ सन्नी सप्लाई करता था. वह सिर्फ कृतिका को ही नहीं, बल्कि और भी कई फिल्मी हस्तियों को ड्रग्स सप्लाई किया करता था. इस चक्कर में वह जेल भी गया था. पूछताछ में उस ने बताया कि वह जेल जाने के पहले कृतिका को ड्रग्स सप्लाई करता था, लेकिन उस के जेल जाने के बाद कृतिका उस के दोस्त शकील उर्फ बौडी बिल्डर से ड्रग्स लेने लगी थी. शकील उर्फ बौडी बिल्डर थाणे पालघर जनपद के उपनगर नालासोपारा (वेस्ट) की एक इमारत में किराए की काफी मोटी रकम दे कर रहता था. ड्रग्स सप्लाई के दौरान कृतिका और शकील खान की अच्छी दोस्ती हो गई थी. इसी के चलते वह कई बार कृतिका को उधारी में ड्रग्स दे देता था. फलस्वरूप कृतिका पर उस के 6 हजार रुपए बकाया रह गए थे. कृतिका उस का पैसा दे पाती, उस के पहले ही वह अगस्त, 2016 के पहले हफ्ते में जेल चला गया था.

शकील नसीम खान के अपने गिनेचुने ग्राहक थे. उन लोगों को ड्रग्स सप्लाई करने के लिए शकील खान बादशाह उर्फ साधवी लालदास से ड्रग्स लेता था. दोनों के बीच उधारी चलती रहती थी. नवंबर, 2016 में जब शकील जेल से बाहर आया तो उस के दोस्त बादशाह ने उस से अपने पैसों की मांग की. कृतिका पर उस के 6 हजार रुपए बाकी थे. दरअसल, एक ही धंधे में होने के कारण शकील खान ने बादशाह से ड्रग्स ले कर कृतिका को सप्लाई किया था. बादशाह ने जब शकील खान पर दबाव बनाया तो उस ने कृतिका से अपने बकाया  पैसों की मांग शुरू कर दी. लेकिन कृतिका उस का पैसा देने में आनाकानी कर रही थी. इस बीच करीब 6 महीने का समय निकल गया.

घटना के दिन शकील खान अपने दोस्त बादशाह को यह कह कर कृतिका के घर ले गया कि पैसा वह कृतिका के घर पर देगा. लेकिन ऐसा नहीं हो सका. रात का खानापीना करने के बाद चलते समय जब शकील खान ने कृतिका से अपने पैसे मांगे तो उस ने पैसे देने में मजबूरी जताई. इस की वजह से दोनों में विवाद बढ़ गया. कृतिका ने चिल्ला कर लोगों को एकत्र करने की धमकी दी तो शकील खान को गुस्सा आ गया. उस ने कृतिका के साथ मारपीट शुरू कर दी. शकील खान के पास लोहे का पंच था, जिस से उस ने कृतिका पर कई वार किए. इस के अलावा उस ने पास पड़ी किसी भारी चीज से भी उस के सिर पर वार कर दिया, जिस से उस की मौत हो गई. इस बीच उस का दोस्त बादशाह उन दोनों का बीच बचाव करता रहा. लेकिन कृतिका की जान नहीं बच सकी.

कृतिका की हत्या करने के बाद शकील खान ने कमरे का एसी चालू कर दिया. उस के बाद कृतिका के बदन के सारे जेवर और 22 सौ रुपए नकद ले कर बादशाह के साथ वहां से चला गया. बहरहाल, इन दोनों अभियुक्तों को पुलिस टीम ने 8 जुलाई को रात को नालासोपारा और पनवेल से गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में दोनों ने अपना गुनाह स्वीकार कर लिया है.

विस्तृत पूछताछ के बाद उन के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के उन्हें अदालत पर पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में आर्थर जेल भेज दिया गया. दोनों अभियुक्त अभी जेल में हैं. लेकिन जांच अधिकारियों के सामने अभी भी एक प्रश्न मुंह बाए खड़ा है कि क्या मात्र 6 हजार रुपए के लिए कृतिका की हत्या की गई. ऐसा लगता तो नहीं है. क्योंकि 6 हजार रुपए न तो ड्रग्स सप्लायरों के लिए बड़ी रकम थी और न ही कृतिका के लिए. बहरहाल मामले की जांच अभी जारी है.

TV Actress सुरभि तिवारी : भंवर में फंसी जिंदगी

लंबे समय तक चलने वाले सीरियलों की दमदार अभिनेत्री सुरभि तिवारी की वैवाहिक जिंदगी 3 साल में ही लड़खड़ा गई. उन्हें न अच्छे ‘शगुन’ और ‘कुलवधू’ की अनुभूति हो पाई और न ही पायलट पति प्रवीण कुमार के संग साझेदारी का रिश्ता ही निभाना संभव हो पाया. मुंबई, दिल्ली और पटना तक के सफर में विधायक बनने का सपना संजोए सास लीलावती सिन्हा के लिए वह एक प्रचारक मात्र थी तो पति के लिए कुछ और. यौन हिंसा की शिकार ‘दीया और बाती हम’, ‘हरी मिर्च लाल मिर्च’ और ‘तोता वेड्स मैना’ की सुरभि का अब क्या होगा…पूछ रहे हैं उन के प्रशंसक.

करीब 6 साल पहले नवंबर 2016 की बात है. ‘शगुन’ सीरियल की अभिनेत्री सुरभि तिवारी एक सीरियल की शूटिंग से फारिग हो कर रात के साढ़े 9 बजे अंधेरी स्थित अपने फ्लैट लौट रही थी. कैब सामान्य गति से अपनी लेन में थी. उस के साथ सहकलाकार और सहेली अपूर्वा भी थी. तभी उस की मां का फोन आया था.

मां देरी होने पर चिंता जता रही थीं. तब सुरभि ने फोन पर जवाब में मां को समझाया, ‘‘बस मां, मैं 20 मिनट में पहुंच रही हूं. ये कैब वाले भैया गाड़ी थोड़ी धीमी चला रहे हैं. वैसे भी मेरे साथ अपूर्वा है न.’’

‘‘मां चिंता कर रही हैं न!’’ बगल में बैठी सहेली अपूर्वा बोली.

‘‘हां यार, मां को हमेशा एक ही चिंता रहती है… देर हो गई… रात हो गई… जमाना ठीक नहीं है…’’ सुरभि बोलने लगी.

‘‘मां हैं न! हर मां को बच्चों के भविष्य के साथसाथ सुरक्षा की भी चिंता रहती है. ऐसा कर तू अब शादी कर ले. फिर देखना तुम्हारी मां की यह चिंता हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी,’’ अपूर्वा बोली.

‘‘तू तो ऐसे बोल रही है, जैसे लड़का कहीं रखा हुआ हो, और जा कर मैं उसे उठा ले जाऊं मंडप पर.’’ सुरभि बोली.

‘‘ऐसा ही समझ. अपने फील्ड के किसी को पसंद कर लाइफ पार्टनर बना ले.’’ अपूर्वा ने समझाया.

‘‘अरे ना बाबा ना,’’ सुरभि तुरंत बोल पड़ी.

‘‘क्यों अपने फील्ड के लड़के में क्या कमी है? एक से बढ़ कर एक हैं सारे. …और बिहार यूपी के भी तो हैं.’’ अपूर्वा ने तर्क किया.

‘‘बात कमी की नहीं, मेरी पसंद की है. मैं चाहती हूं कि मेरा लाइफ पार्टनर हमारे फील्ड से अलग का हो. क्योंकि दिन भर सेट पर शूटिंग के बाद जब घर पर रहूं तब वहां कैमरा, सीन, सीरियल, चैनल आदि की बातें न हों. किसी तरह के कंप्टीशन की भावना दिमाग में हलचल न पैदा करे. मैं ऐसे व्यक्ति से शादी करना चाहती हूं, जो फिल्म या टीवी जगत का न हो, भले ही वह डाक्टर, इंजीनियर या कोई बैंककर्मी या फिर बिजनैसमैन ही क्यों न हो!’’ सुरभि बोली.

‘‘हां यार, तुम ने कहा तो सही है, लेकिन किस्मत भी तो कुछ होती है.’’ अपूर्वा ने कहा.

‘‘मैं भी देखती हूं मेरी किस्मत में क्या है?’’ सुरभि बोली.

‘‘किस्मत क्या होती है मैडमजी, वह तो कर्म से बदलती रहती है.’’ सुरभि को रोजाना घर तक छोड़ने वाला कैब ड्राइवर अचानक बोल पड़ा. उस की बात सुन दोनों हंस पड़ी.

‘‘लो, अब इस की भी सुनो.’’ अपूर्वा बोली. फिर चुप्पी छा गई.

लांकि तब तक सुरभि के दिमाग में शादी की बात बैठ गई थी. वह सोच में पड़ गई, ‘38 की होने को आई. अभी नहीं तो कब करेगी शादी? अपूर्वा ठीक ही तो कह रही है मेरी जाति, समाज में इतनी उम्र की लड़कियों को तो कोई पूछता ही नहीं. आखिर कहां तलाशा जाए मम्मी की पसंद का पारिवारिक फैमिली का लड़का.’

‘‘क्या सोचने लगी? अरे मैट्रीमोनियल साइट्स हैं न इस के लिए.’’ अपूर्वा उस के मन को भांपते हुए बोली.

जवाब में सुरभि मुसकरा दी. कुछ देर बाद बोली, ‘‘तुम्हारी नजर में कोई विश्वसनीय साइट हो तो बताना.’’

‘‘अब तो समझो हो गई शादी.’’ अपूर्वा हंसते हुए बोली.

मैट्रीमोनियल साइट से मिला जीवनसाथी

सुरभि को शादी के लिए टोकने वाली अकेली अपूर्वा ही नहीं थी. घर में मां से ले कर सेट पर साथ काम करने वाले दूसरे संगीसाथी भी घर बसाने के लिए जब तब कह देते थे. एक दिन सुरभि ने आखिरकार शादी करने का निर्णय ले लिया. दिसंबर, 2016 में उस ने सहेली की मदद से ‘सायकोरियन मैट्रीमोनी सर्विसेज’ में अपनी प्रोफाइल रजिस्टर करवा दी. अपनी प्रोफाइल में उस ने स्पष्ट रूप से लिख दिया था कि वह किस तरह के व्यक्ति से शादी करना चाहती हैं. इसी के साथ उस ने अपनी कुछ शर्तें भी रखीं. उन में एक महत्त्वपूर्ण शर्त यह भी थी कि वह शादी के बाद मुंबई में ही रहेगी. वह एक्टिंग शादी के बाद भी जारी रखेगी.

कुछ दिन बाद ही मैरिज ब्यूरो की तरफ से कई लड़कों के बायोडाटा सुरभि के ईमेल पर आ गए. उन्हीं में एक इंडिगो एअरलाइंस में कार्यरत पायलट प्रवीण कुमार सिन्हा का प्रोफाइल भी था. उम्र के अंतर और कदकाठी, पर्सनैलिटी, प्रोफेशन के लिहाज से सुरभि के लिए वह सूटेबल था. सिर्फ शर्त के मुताबिक एक ही कमी थी कि उस की पोस्टिंग दिल्ली में थी. वह दक्षिणपश्चिमी दिल्ली के द्वारका इलाके में अपनी 2 बहनों श्वेता और शिल्पा सिन्हा के साथ रहता था. फिर भी वह सुरभि और उस की मां को जंच रहा था. उन्होंने सोचा क्यों न एक बार लड़के से बात की जाए.

पायलट की नौकरी तो मुंबई में भी की जा सकती है. इसी उम्मीद के साथ सुरभि ने काफी कुछ सोचविचार के बाद सितंबर, 2017 में पहली बार प्रवीण से बात की. उन की एक कैफे हाउस में मुलाकात हुई.

सुरभि ने सिर्फ एक ही सवाल किया, ‘‘क्या आप को मेरी सारी शर्तें मंजूर हैं?’’

इस पर प्रवीण चुप रहा. सुरभि कभी उस के चेहरे को तो कभी अपने हाथ में लिए कौफी के कप को देखती रही. जवाब का इंतजार था.

प्रवीण ने अपनी कौफी का प्याला उठाया. बोला, ‘‘शर्तें बदली भी जा सकती हैं.’’

‘‘कम से कम 2 शर्तें तो नहीं,’’ सुरभि तुरंत बोली.

‘‘…तो फिर मैं ही खुद को बदल लूंगा.’’ प्रवीण के इतना कहते ही सुरभि के चेहरे पर चमक आ गई.

‘‘हमारे पास मौके हैं तरक्की की मंजिल तक पहुंचने के लिए न कि शर्तों में बंध कर लड़खड़ाने के लिए.’’ प्रवीण बोला.

कौफी के अंतिम घूंट तक सुरभि को इतना तो अहसास हो ही गया था कि प्रवीण एक सुलझा हुआ और साथ देने वाला इंसान है. प्रवीण ने साफ लहजे में कह दिया था कि उसे मुंबई आ कर रहने में कोई आपत्ति नहीं है. वैसे वह मूल निवासी आरा, बिहार का है. पढ़ाई पटना में हुई और नौकरी मिली तब दिल्ली के पालम एयरपोर्ट से सटे द्वारका में आ कर रहने लगा. प्रवीण ने स्पष्ट किया कि एविएशन के उस के कई दोस्त दिल्ली से आ कर मुंबई रहने लगे हैं, इसलिए वह भी ऐसा आसानी से कर सकता है. उस रोज दोनों के बीच विवाह की सहमति बन गई. अब उन के बातविचार पर परिवार के अभिभावकों की मुहर लगनी बाकी थी. हालांकि सुरभि जल्दबाजी नहीं करना चाहती थी. उस ने अपनी तरफ से सब कुछ समझने के लिए थोड़ा समय लिया. उस ने प्रवीण के बारे में कुछ और जानकारियां जुटा लीं.

पता चला कि प्रवीण की मां लीलावती सिन्हा भाजपा की एक सक्रिय नेता हैं और विधायक बनने के प्रयास में हैं. उन की बिहार की राजनीति में अच्छी दखल है.

प्रवीण ने मान लीं सुरभि की शर्तें

30 अक्तूबर, 2017 को प्रवीण और सुरभि की दूसरी मुलाकात जुहू के होटल नोवाटेल में हुई. वह डेटिंग लंबी थी. डिनर के साथसाथ करीब 2 घंटे लंबी बातचीत के दौरान प्रवीण ने शादी के बाद की जिंदगी के बारे में काफी बातें की. प्रवीण ने कहा कि वह मुंबई में अपना मकान खरीद लेगा और अपने साथ सुरभि की मां को भी रखेगा. उस ने वादा किया कि सुरभि की इच्छा के मुताबिक उस की उम्र को देखते हुए जल्द ही परिवार भी आगे बढ़ा लेगा. वास्तव में उस वक्त तक सुरभि 39 की हो चुकी थी और शादी के बाद जल्द मां बनना चाहती थी.

प्रवीण ने इस पर भी हामी भर दी थी. उस के एक सप्ताह के भीतर ही 6 नवंबर, 2017 को प्रवीण ने एक बार फिर मुंबई पहुंच कर सांताक्रुज स्थित होटल ग्रैंड हयात में सुरभि से मुलाकात की. उन्होंने उस रोज भी मुंबई में अपना स्थायी ठिकाना बनाने का आश्वासन देते हुए बताया कि उस की  एअरलांइस कंपनी इंडिगो से ट्रांसफर की बात हो गई है. शादी के 6 महीने बाद वह दिल्ली से मुंबई शिफ्ट हो जाएगा, किंतु तब तक उसे दिल्ली में ही रहना होगा. इस पर सुरभि तिवारी ने कुछ देर सोच कर आगे का निर्णय मां के ऊपर छोड़ दिया. किंतु अगले दिन 7 नवंबर, 2017 को ही सुरभि ने ‘सायकोरियन मैट्रीमोनी सर्विसेस’ को फोन कर दूसरे लड़के की प्रोफाइल मांगी.

इस की जानकारी प्रवीण को भी हो गई. उस ने अपनी मां लीलावती सिन्हा को आगे कर दिया. अंतत: लीलावती ने सुरभि से फोन पर बात की और बीच का रास्ता निकालते हुए शादी का माहौल बनाने लगी. लीलावती के फैसले को सुरभि और उस की मां भी नहीं बदल पाईं. फिर भी शादी की तारीख तय नहीं हो पा रही थी. सुरभि की शूटिंग के साथसाथ प्रवीण संग डेटिंग भी चलती रही.

बदला गिरगिट जैसा रंग 

अंतत: सुरभि ने अपने विचार बदल लिए. उन्होंने 10 दिसंबर, 2018 को दिल्ली के फैमिली कोर्ट में जा कर शादी कर ली. हालांकि हिंदू विधि विधान से उन की शादी 10 फरवरी, 2019 को यारी रोड, मुंबई में संपन्न हुई. शादी के अगले रोज ही वे 9 दिनों के लिए हनीमून पर गोवा चले गए. दोनों गोवा के होटल में ठहरे. सुरभि ने महसूस किया कि प्रवीण बदला हुआ नजर आ रहा है. उस के बातचीत करने के ढंग और व्यवहार में से नरमी गायब हो चुकी है. वह उस के साथ एक तानाशाह की तरह पेश आ रहा है. यही नहीं, रात को बैड पर जाने से पहले ही कह दिया कि वह अभी बच्चा नहीं चाहता है. जिंदगी के मजे लेना चाहता है. देश के विभिन्न शहरों के अलावा विदेश घूमना चाहता है. उस के बाद ही बच्चे की प्लानिंग करेगा. इस पर जब सुरभि ने कहा कि बच्चा पैदा करने की उम्र काफी निकल चुकी है, तब वह उसे झिड़क दिया करता.

सुरभि ने प्रवीण में बदलाव और भी कई स्तर पर महसूस किए. बच्चे की बात पर प्रवीण का निर्णय सुन कर सन्न रह गई. उसे जोर का झटका लगा. सुरभि के विरोध पर प्रवीण ने समझा कर उसे चुप करवा दिया. हनीमून के 9 दिन बाद सुरभि अपने पति प्रवीण सिन्हा के साथ दिल्ली में द्वारका स्थित फ्लैट पर पहुंची. उस का स्वागत सास लीलावती सिन्हा, ससुर ब्रजेंद्र सिन्हा, 2 ननदें श्वेता सिन्हा और शिल्पा सिन्हा ने किया. वहां जा कर उसे पता चला कि अगले महीने 5 मार्च, 2019 को दिल्ली में शादी के रिसैप्शन का आयोजन किया गया है.

सुरभि के आते ही प्रवीण ने उस के सामने सादा कंप्यूटर पेपर और पेन देते हुए कहा, ‘‘इस पर लिख दो कि मैं ने तुम से बगैर दहेज लिए यह शादी की है. हम इस का प्रयोग आरा और पटना की चुनावी जनसभाओं में करेंगे, जिस से मेरी मां को चुनाव में जीतने के लिए अधिक से अधिक वोट मिलेंगे.’’ इस पर सुरभि तुनकती हुई बोली, ‘‘तो आप ने दहेज इस वजह से नहीं लिया कि मेरा इस्तेमाल राजनीतिक स्वार्थ के लिए कर सकें.’’

‘‘तुम हर बात को गलत ढंग से क्यों देखती हो. जब मेरी मां यानी कि अब तुम्हारी सास विधायक बन जाएगी, तब इस का फायदा तुम्हें और हम सभी को मिलेगा.’’

सुरभि को अपनी तरह से चलाना चाहते थे ससुराल वाले

घर के लोग शादी के रिसैप्शन की तैयारियों में जुट गए थे. मेहमानों के अलावा एक अलग लिस्ट पत्रकारों की भी बनी थी, लेकिन प्रवीण और उस की मां ने सुरभि को सख्त हिदायत दी थी कि वह मीडिया के सामने अकेली नहीं आएगी. उसे यहां मुंबई की बात भूलनी होगी. सब से महत्त्वपूर्ण हिदायत यह थी कि रिसैप्शन में जो भी उपहार मिलेंगे, उस पर उस का कोई अधिकार नहीं होगा. इस के साथ ही और भी कई तरह की हिदायतें दी गईं, जिसे सुन कर वह अंदर ही अंदर आने वाली विपत्तियों की कल्पना कर सिहर गई.

रिसैप्शन में लीलावती सिन्हा ने खुद को पटना में भाजपा की सक्रिय सदस्य के रूप में कार्यरत व एक माहिर राजनेता के तौर पर पेश किया. उन्होंने मीडिया के सामने सुरभि को चांदी का मुकुट पहना कर प्रदर्शित किया और उसे दहेज के बगैर लाई बहू के रूप में प्रचारित किया. 7 मार्च के बाद जब सुरभि की मां और भाई वापस मुंबई लौट आए, तब सास लीलावती ने भी अपना पैंतरा बदलते हुए सुरभि से तीखे लहजे में कहा, ‘‘देखो, अब तुम एक बिहारी परिवार की बहू हो. हमारे समाज की मान्यताओं के अनुसार रहो. कब, किस से, किस तरह मिलनाजुलना है, वह मैं बताऊंगी. अब डेली सोप वाले टीवी सीरियल में अभिनय करने के बजाय वेब सीरीज और फिल्मों में अभिनय करो. जब शूटिंग हो तब दिल्ली से मुंबई जाओ. अन्यथा दिल्ली या पटना में ही रहो.’’

इस के अलावा सास ने यह भी कहा कि वह उस के साथ कुछ भाजपा नेताओं से मिले और जब जरूरत हो, तब मेरे साथ राजनीतिक क्षेत्र में काम करना भी शुरू करे. हालांकि सुरभि ने इस का विनम्रता से विरोध जताया कि उस की राजनीति में रुचि नहीं है और किसी नेता से मिलने की इच्छा भी नहीं रखती है. अभिनय को नहीं छोड़ सकती है. वह सिर्फ एक्टर ही बनी रहना चाहती है. उस के बाद तो सुरभि की सास और उन की ननदों ने कठोर तेवर अपना लिए. उन के बदले हुए तेवर का असर सुरभि की निजी जिंदगी पर भी पड़ा. आए दिन किसी न किसी बहाने से प्रवीण की बहनें और मां उसे प्रताडि़त करने लगीं.

एक तरफ सुरभि के सामने सास और ननदों के ताने थे, दूसरी तरफ पति का अमानवीय व्यवहार. सुरभि ने अपनी समस्या मां सरिता तिवारी, भाई सौरभ तिवारी, बहन सारिका शुक्ला व सारिका के पति राजीव शुक्ला को भी सुनाई. उन से इस बारे में फोन पर बातें होती रहती थीं.

उन लोगों ने भी कई बार फोन कर प्रवीण को समझाने की कोशिश की, लेकिन बात और बिगड़ गई. बच्चे के नाम पर प्रवीण ने कहा, ‘‘तुम्हें हालात समझने चाहिए. ऐसा करो, हमें अभी बच्चे की जरूरत नहीं है. तुम कुछ दिन मुंबई में ही रह कर अभिनय करिअर को संवारो. मैं यहां किसी अच्छे कारोबार की योजना बना रहा हूं.’’

पतिपत्नी के बीच बढ़ गए मतभेद

मार्च में होली के दिन सुरभि अपने मायके मुंबई चली आई. जल्द ही प्रवीण दिल्ली लौट आया. बीचबीच में वह सुरभि को बुला कर अपने साथ फ्लाइट में ले जाने लगा. उन के बीच तनाव कुछ कम हो गया था. एक दिन पति को खुश देख कर सुरभि ने कहा, ‘‘आप अभी मुंबई में ही हो. तो फ्लैट तलाश कर खरीद लो.’’ जवाब में प्रवीण ने कहा, ‘‘यह तय है कि मैं मुंबई में घर नहीं खरीद सकता. और यहां किराए का भी मकान नहीं ले सकता. क्योंकि मेरे पास पैसे नहीं है. मेरे सारे पैसे खर्च हो चुके हैं. तुम्हें मेरे साथ दिल्ली में ही आ कर रहना होगा.’’

इस बात पर सुरभि और प्रवीण के बीच काफी बहस हुई. अंतत: प्रवीण अकेले ही दिल्ली लौट आया. पतिपत्नी के बीच बढ़ते मतभेद को देख कर सुरभि की मां ने सुरभि को कुछ दिनों तक पति के साथ रहने की सलाह दी. मां के कहने पर 2-3 दिन के बाद सुरभि भी दिल्ली आ गई. दिल्ली पहुंचते ही सुरभि की ननदों और सास की प्रताड़ना फिर शुरू हो गई. ननदें सुरभि को मोटी कह कर ताने मारने लगीं. पतली होने के लिए फास्टिंग करने का दबाव बनाने लगीं. जैसेतैसे कुछ महीने बीत गए. प्रवीण का 7 जनवरी, 2020 को जन्मदिन आने वाला था. सास ने सुरभि से कहा, ‘‘अच्छी साड़ी पहन कर तैयार हो जाओ और मेरे साथ चलो. हम भाजपा दफ्तर के अलावा कुछ नेताओं के घर जाने वाले हैं.’’

किंतु सुरभि ने मना कर दिया. उस के बाद हर दिन घर के अंदर झगड़े होने लगे. अगले महीने ही 10 फरवरी, 2020 को शादी की पहली सालगिरह थी. परिवार ने इसे जश्न के तौर पर मनाने का निर्णय कर किसकिस को बुलाना है, उस की सूची बनाई जाने लगी. सुरभि ने भी दिल्ली के अपने कुछ दोस्तों को बुलाने की सूची बनाई, मगर सास ने उसे किसी दोस्त या रिश्तेदार को बुलाने से मना कर दिया. इस बात पर सुरभि की सास के अलावा ननदों से भी काफी कहासुनी हो गई थी. इतना ही नहीं, एक बार सुरभि बीमार हो गई थी. पैरों में काफी सूजन थी. सुरभि ने पड़ोसी से पूछ कर एक मसाज करने वाली महिला को बुलवा लिया था.

संयोग से वह मुसलिम थी. बात 16 फरवरी, 2020 की थी. वह मुसलिम महिला किचन में तेल गर्म करने गई तो ननद श्वेता ने उसे खूब डांटा कि वह उस के किचन में कैसे घुस आई. महिला सुरभि के पास जा कर रोेने लगी. उस वक्त प्रवीण घर में नहीं था. शाम को प्रवीण के आने पर सुरभि ने दिन की घटना के बारे में शिकायत की. प्रवीण ने जब बहन से इस बारे बात की तब उस के साथ दोनों बहनें उलझ पड़ीं. यहां तक कि उसे ही डांटते हुए कहा, ‘‘मेरी मां ने जमीन बेच कर तुम्हें पायलट बनाया है. यह घर और तुम्हारी सारी प्रौपर्टी हमारी है. अभी का अभी तुम अपनी पत्नी सुरभि को ले कर घर से निकल जाओ.’’

सुरभि मजबूर हो कर चली आई मायके. यह सुरभि के लिए एक नई समस्या थी. उस वक्त सुरभि के ससुर व उन का मैडिकल सहायक हीरालाल भी मौजूद थे. उन्होंने इस पर जरा भी प्रतिक्रिया नहीं जताई. उस के बाद  16 फरवरी, 2020 को सुरभि दिल्ली से मुंबई आ गई. उस के बाद वह दोबारा दिल्ली नहीं गई. दिल्ली से मुंबई आते समय वह अपने जेवर ले कर आई थी, जो उस ने रिश्तेदारों को दे दिए थे. जाते वक्त वह उसे वापस नहीं मिले. सुरभि के मुंबई पहुंचने पर प्रवीण उस से अकसर वीडियो काल कर हालसमाचार लेने लगा. एक महीने बाद ही कोरोना काल का दौर आया और पूरे देश में लौकडाउन लगा दिया गया. मुंबई का जीवन भी ठप हो गया. फिल्में और सीरियलों की शूटिंग बंद हो गई. इसी के साथ सुरभि की आमदनी भी रुक गई.

दूसरी तरफ पति अकसर वीडियो काल कर के पूछता था कि वह कहां है? क्या कर रही है? इत्यादि बातों से वह एकदम तंग आ चुकी थी. वह उसे न काम करने दे रहा था और न ही खर्च के लिए पैसे ही दे रहा था. इधर मुंबई में अपने किस्त पर खरीदे फ्लैट में सुरभि के दिन मां के साथ गुजर रहे थे. सुरभि के पास कोई जमापूंजी नहीं थी. फ्लैट की ईएमआई चल रही थी. अंधेरी के लोखंडवाला में फ्लैट होने के चलते मेंटिनेंस का भी काफी खर्च था. छोटेछोटे खर्चों का सुरभि देती थी पति को हिसाब प्रवीण उसे सिर्फ 20 हजार रुपए घर खर्च वगैरह के लिए देता था. लेकिन उस के खर्च की एकएक पाई का हिसाब लेता था. घर के राशन से ले कर आटोरिक्शा आदि तक के बिल वाट्सऐप पर मंगवाता था. आटोरिक्शा के मीटर की फोटो खींच कर प्रवीण के पास भेजनी पड़ती थी.

क्रेडिट कार्ड सुरभि के पास था, पर उस का ओटीपी प्रवीण के फोन पर ही आता था. जब भी सुरभि औनलाइन सामान मंगवाती थी, तब प्रवीण से ओटीपी मांग कर ही पेमेंट कर पाती थी. प्रवीण हर माह लिखा कर सुरभि के हस्ताक्षर सहित कागज वाट्सऐप पर मंगाता था कि सुरभि ने कितने रुपए की सब्जी खरीदी. यहां तक कि 20 रुपए का वड़ा पाव खरीदा तो उस का भी बिल भेजना होता था. एक बार सुरभि ने पानीपूरी का पैकेट खरीद लिया था तो प्रवीण ने डांट कर कहा था कि घर में रह कर सामान्य खाना ही खाए. पानीपूरी खाना तो फिजूलखर्ची है. इस तरह प्रवीण से मिल रहे मेंटल टार्चर से सुरभि डिप्रेशन में चली गई थी. एक तरफ कोरोना से बचाव करना था तो दूसरी तरफ पति की मानसिक प्रताड़ना की शिकार थी. एक बार वह नजदीक के कोकिलाबेन अंबानी अस्पताल में इलाज कराने गई तो प्रवीण ने वह रकम यह कह कर नहीं दी कि यह गलत है. प्रवीण ने सुरभि से कहा कि उसे हर बार चैरिटी अस्पताल में इलाज कराना चाहिए.

एक बार मिल्लत नगर, अंधेरी के चैरिटी अस्पताल में जब वह अपना इलाज कराने गई, तब उस के कुछ दोस्तों ने देख कर सुरभि को सलाह दी कि इस तरह की नरक की जिंदगी जीने के बजाय उसे अपने पति से तलाक ले लेना चाहिए. उन की सलाह पर ही सुरभि ने मन को कड़ा करते एक दिन फोन पर प्रवीण से यह बात कह दी. प्रवीण ने कह दिया कि वह उसे तलाक नहीं देगा. पूरी जिंदगी तड़पाएगा. आखिरकार 20 जून, 2022 को मुंबई के वर्सोवा पुलिस थाने में एपीआई युवराज दलवी के सामने पति प्रवीण कुमार सिन्हा, सास लीलावती सिन्हा, ननद श्वेता व शिल्पा सिन्हा के खिलाफ सुरभि ने एक शिकायत दी.

मामला अदालत में गया और 498ए, 377, 406 आदि भादंवि की धाराओं के तहत  मुकदमा दर्ज कर लिया गया. कथा लिखे जाने तक अदालत में इस मामले की सुनवाई शुरू हो चुकी थी. इस तरह से ‘शगुन’, ‘कुमकुम’, ‘हरी मिर्च लाल मिर्च’, ‘कुलवधू’, ‘दीया और बाती हम’ व ‘एक रिश्ता साझेदारी का’ सहित कई सफल टीवी सीरियलों की अदाकारा सुरभि तिवारी ने महज 13 वर्ष की उम्र से अभिनय करना शुरू कर दिया था. सीरियल ‘शगुन’ से उसे जबरदस्त सफलता मिली थी. 2009 में सुरभि तिवारी ने ‘म्हाडा’ की लौटरी से अंधेरी इलाके में मकान खरीदा, जिस के लिए स्टेट बैंक औफ इंडिया से 30 लाख रुपए का कर्ज भी लिया, जिस की ईएमआई जारी है.

वह अभिनय में इस कदर व्यस्त रही कि विवाह कर घर गृहस्थी बसाने के बारे में सोचने का मौका तक नहीं मिला था. उसे आखिरी बार ‘एक रिश्ता साझेदारी का’ सीरियल में देखा गया था.

(कथा सुरभि तिवारी से हुई बातचीत और  एफआईआर नंबर 03

Extramarital Affair : चचेरे देवर के साथ मिलकर कर दी पति की हत्या

जब कोई पूरी योजना बना कर किसी की हत्या करता है, उस की सोच यह होती है कि वह पकड़ा नहीं जाएगा. लेकिन कानून के शिकंजे से बचना आसान नहीं होता. सरिता और बलराम ने भी…

उत्तर प्रदेश के मीरजापुर जिले में मीरजापुरइलाहाबाद मार्ग से सटा एक गांव है-महड़ौरा. विंध्यक्षेत्र की पहाड़ी से लगा यह गांव हरियाली के साथसाथ बहुत शांतिप्रिय गांवों में गिना जाता है. इसी गांव के रहने वाले बंसीलाल सरोज ने रेलवे की नौकरी से रिटायर होने के बाद बड़ा सा पक्का मकान बनवाया, जिस में वह अपने पूरे परिवार के साथ रहते थे. उन के भरेपूरे परिवार में पत्नी, 2 बेटे, एक बेटी और बहू थी. गांव में बंसीलाल सरोज के पास खेती की जमीन थी, जिस पर उन का बड़ा बेटा रणजीत कुमार सरोज उर्फ बुलबुल सब्जी की खेती करता था. खेती के साथसाथ रणजीत अपने मामा के साथ मिल कर होटल भी चलाता था.

जबकि छोटा राकेश सरोज कानपुर में बिजली विभाग में नौकरी करता था. वह कानपुर में ही रहता था. महड़ौरा में 9-10 कमरों का अपना शानदार मकान होने के साथसाथ बंसीलाल के पास गांव से कुछ दूर सरोह भटेवरा में दूसरा मकान भी था. रात में वह उसी मकान में सोया करते थे. बंसीलाल के परिवार की गाड़ी जिंदगी रूपी पटरी पर हंसीखुशी से चल रही थी. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी. दोनों बेटे अपनेअपने पैरों पर खड़े हो चुके थे, जबकि वह खुद इतनी पेंशन पाते थे कि अकेले अपने दम पर पूरे परिवार का खर्च उठा सकते थे.

बड़ा बेटा रणजीत कुमार सुबह होने पर खेतों पर चला जाता था, फिर दोपहर में उसे वहां से होटल पर जाना होता था. जहां से वह रात में वापस लौटता था और खापी कर सो जाता था. यह उस की रोज की दिनचर्या थी. रणजीत की 3 बेटियां थीं. 10 साल की माया, 7 साल की क्षमा और 3 साल की स्वाति. वह अपनी बेटियों को दिलोजान से चाहता था और उन्हें बेटों की तरह प्यार करता था. उस की बेटियां भी अपनी मां से ज्यादा पिता को चाहती थीं. व्यवहारकुशल, मृदुभाषी रणजीत गांव में सभी को अच्छा लगता था. वह जिस से भी मिलता, हंस कर ही बोलता था. खेतीकिसानी और होटल के काम से उसे फुर्सत ही नहीं मिलती थी. उसे थोड़ाबहुत जो समय मिलता था, उसे वह अपने बीवीबच्चों के साथ गुजारता था.

सोमवार 19 मार्च, 2018 का दिन था. रात होने पर रणजीत कुमार रोज की तरह होटल से घर आया तो उस की पत्नी सरिता उसे खाने का टिफिन पकड़ाते हुए बोली, ‘‘लो जी, दूसरे मकान पर बाबूजी को खाना दे आओ. आज काफी देर हो गई है, बाबूजी इंतजार कर रहे होंगे. आप खाना दे कर आओ तब तक मैं आप के लिए खाने की थाली लगा देती हूं.’’

पत्नी के हाथ से खाने का टिफिन ले कर रणजीत दूसरे मकान पर चला गया, जहां उस के पिता बंसीलाल रात में सोने जाया करते थे. उन का रात का खाना अकसर उसी मकान पर जाता था. रणजीत उन्हें खाना दे कर जल्दी ही लौट आया और घर आ कर खाना खाने बैठ गया. खाना खाने के बाद वह अपने कमरे में सोने चला गया. रणजीत की मां, पत्नी सरिता, बहन सोनी और रणजीत की तीनों बेटियां बरांडे में सो गईं. रणजीत बना निशाना रणजीत सोते समय अपने कमरे का दरवाजा खुला रखता था. उस दिन भी वह अपने कमरे का दरवाजा खुला छोड़ कर सोया था. देर रात पीछे से चारदीवारी फांद कर किसी ने रणजीत के कमरे में प्रवेश किया और पेट पर धारदार हथियार से वार कर के उसे मौत की नींद सुला दिया.

उस पर इतने वार किए गए थे कि उस की आंतें तक बाहर आ गई थीं. रणजीत की मौके पर ही मौत हो गई थी. आननफानन में घर वाले उसे अस्पताल ले कर भागे, लेकिन वहां डाक्टरों ने रणजीत को देखते ही मृत घोषित कर दिया. भोर में जैसे ही इस घटना की सूचना पुलिस को मिली वैसे ही विंध्याचल कोतवाली प्रभारी अशोक कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ गांव पहुंच गए. वहां गांव वालों का हुजूम लगा हुआ था. अशोक कुमार सिंह ने इस घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी. इस के बाद उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया. घर के उस कमरे में जहां रणजीत सोया हुआ था, काफी मात्रा में खून पड़ा हुआ था. मौकाएवारदात को देखने से यह साफ हो गई कि जिस बेदर्दी के साथ रणजीत की हत्या की गई थी, संभवत: वारदात में कई लोग शामिल रहे होंगे.

यह भी लग रहा था कि या तो हत्यारों की रणजीत से कोई अदावत रही होगी या किसी बात को ले कर वह उस से खार खाए होंगे. इसी वजह से उसे बड़ी बेरहमी से किसी धारदार हथियार से गोदा गया था. खून के छींटे कमरे के साथसाथ बाहर सीढि़यों तक फैले थे. इंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह ने आसपास नजरें दौड़ा कर जायजा लिया तो देखा, जिस कमरे में वारदात को अंजाम  दिया गया था, वह कमरा घर के पीछे था. संभवत हत्यारे पीछे की दीवार फांद कर अंदर आए होंगे और हत्या कर के उसी तरह भाग गए होंगे. इसी के साथ उन्हें एक बात यह भी खटक रही थी कि हो न हो इस वारदात में किसी करीबी का हाथ रहा हो. घटनास्थल की वस्तुस्थिति और हालात इसी ओर इशारा कर रहे थे. ताज्जुब की बात यह थी कि इतनी बड़ी घटना होने के बाद भी घर के किसी मेंबर को कानोंकान खबर नहीं हुई थी.

बहरहाल, अशोक कुमार सिंह ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर मृतक रणजीत के बारे में जानकारी एकत्र की और थाने लौट आए. उन्होंने रणजीत के पिता बंसीलाल सरोज की लिखित तहरीर के आधार पर अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत केस दर्ज कर के जांच शुरू कर दी. रणजीत की हत्या होने की खबर आसपास के गांवों तक पहुंची तो तमाम लोग महड़ौरा में एकत्र हो गए. हत्या को ले कर लोगों में आक्रोश था. आक्रोश के साथसाथ भीड़ भी बढ़ती गई. महिलाएं और बच्चे भी भीड़ में शामिल थे. आक्रोशित भीड़ ने गांव के बाहर मेन रोड पर पहुंच कर इलाहाबाद मीरजापुर मार्ग जाम कर दिया. दोनों तरफ का आवागमन बुरी तरह ठप्प हो गया. गुस्से के मारे लोग पुलिस के विरोध में नारे लगाने के साथ मृतक के हत्यारों को गिरफ्तार करने और उस की बीवी को मुआवजा दिलाने की मांग कर रहे थे.

धरना बना जी का जंजाल इस की जानकारी मिलने पर विंध्याचल कोतवाली की पुलिस वहां पहुंच गई, जहां भीड़ जाम लगाए हुए थी. जाम के चलते इंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह ने धरने पर बैठे गांव वालों को समझाने का प्रयास किया, लेकिन वे किसी भी सूरत में पीछे हटने को तैयार नहीं थे. अपना प्रयास विफल होता देख उन्होंने अपने उच्चाधिकारियों को वहां की स्थिति बता कर पुलिस फोर्स भेजने को कहा, ताकि कोई अप्रिय घटना न घट सके. वायरलैस पर सड़क जाम की सूचना प्रसारित होते ही पड़ोसी थानों जिगना, गैपुरा और अष्टभुजा पुलिस चौकी के अलावा जिला मुख्यालय से पहुंची पुलिस और पीएसी ने मौके पर पहुंच कर मोर्चा संभाल लिया. कुछ ही देर में पुलिस अधीक्षक आशीष तिवारी सहित अन्य पुलिस और प्रशासन के अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए.

अधिकारियों ने ग्रामीणों को विश्वास दिलाया कि रणजीत के हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर लिया जाएगा. काफी समझाने के बाद ग्रामीण मान गए और उन्होंने धरना समाप्त कर दिया. इस के साथ ही धीरेधीरे जाम भी खत्म हो गया. जाम समाप्त होने के बाद विंध्याचल कोतवाली पहुंचे पुलिस अधीक्षक आशीष तिवारी ने रणजीत के हत्यारों को हर हाल में जल्दी से जल्दी गिरफ्तार कर के इस केस को खोलने का सख्त निर्देश दिया. पुलिस अधीक्षक के सख्त तेवरों को देख कोतवाली प्रभारी अशोक कुमार और उन के मातहत अफसर जीजान से जांच में जुट गए. अशोक कुमार सिंह ने इस केस की नए सिरे से छानबीन करते हुए मृतक रणजीत के पिता बंसीलाल से पूछताछ करनी जरूरी समझी. इस के लिए वह महड़ौरा स्थित बंसीलाल के घर पहुंचे, जहां उन्होंने बंसीलाल से एकांत में बात की.

इस बातचीत में उन्होंने रणजीत से जुड़ी छोटी से छोटी जानकारी जुटाई. बंसीलाल से हुई बातों में एक बात चौंकाने वाली थी जो रणजीत की पत्नी सरिता से संबंधित थी. पता चला उस का चालचलन ठीक नहीं था. इस संबंध में रणजीत के पिता बंसीलाल ने इशारोंइशारों में काफी कुछ कह दिया था. पिता से मिला क्लू बना जांच का आधार इस जानकारी से इंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह की आंखों में चमक आ गई. उन्होंने पूछताछ के लिए मृतक रणजीत की पत्नी सरिता और उस के चचेरे भाई बलराम सरोज को थाने बुलाया. लेकिन इन दोनों ने कुछ खास नहीं बताया. दोनों बारबार खुद को बेगुनाह बताते रहे.

बलराम रणजीत का भाई होने का तो सरिता पति होने का वास्ता देती रही. दोनों के घडि़याली आंसुओं को देख कर इंसपेक्टर अशोक कुमार ने उस दिन उन्हें छोड़ दिया, लेकिन उन पर नजर रखने लगे. इसी बीच उन के एक खास मुखबिर ने सूचना दी कि सरिता और बलराम भागने के चक्कर में हैं. मुखबिर की बात सुन कर अशोक कुमार सिंह ने बिना समय गंवाए 29 मार्च को महड़ौरा से सरिता को थाने बुलवा लिया. साथ ही उस के चचेरे देवर बलराम को भी उठवा लिया. थाने लाने के बाद दोनों से अलगअलग पूछताछ की गई. पूछताछ के लिए पहला नंबर सरिता का आया. वह पुलिस को घुमाने का प्रयास करते हुए अपने सुहाग का वास्ता दे कर बोली, ‘‘साहब, आप कैसी बातें कर रहे हैं, भला कोई अपने ही हाथों से अपने सुहाग को उजाड़ेगा? साहब, जरूर किसी ने आप को बहकाया है. आखिरकार मुझे कमी क्या थी, जो मैं ऐसा करती?’’

उस की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि इंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह बोले, ‘‘देखो सरिता, तुम ज्यादा सती सावित्री बनने की कोशिश मत करो, तुम्हारी भलाई इसी में है कि सब कुछ सचसच बता दो वरना मुझे दूसरा रास्ता अख्तियार करना पड़ेगा.’’ लेकिन सरिता पर उन की बातों का जरा भी असर नहीं पड़ा. वह अपनी ही रट लगाए हुई थी. अशोक कुमार सिंह सरिता के बाद उस के चचेरे देवर बलराम से मुखातिब हुए, ‘‘हां तो बलराम, तुम कुछ बोलोगे या तुम से भी बुलवाना पड़ेगा.’’

‘‘म…मम…मतलब. मैं कुछ समझा नहीं साहब.’’

‘‘नहीं समझे तो समझ आओ. मुझे यह बताओ कि तुम ने रणजीत को क्यों मारा?’’

‘‘साहब, आप यह क्या कह रहे हैं, रणजीत मेरा भाई था, भला कोई अपने भाई की हत्या क्यों करेगा? मेरी उस से खूब पटती थी. उस के मरने का सब से ज्यादा गम मुझे ही है. और आप मुझे ही दोषी ठहराने पर तुले हैं.’’

उस की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि अचानक इंसपेक्टर अशोक कुमार का झन्नाटेदार थप्पड़ उस के गाल पर पड़ा. वह अपना चेहरा छिपा कर बैठ गया. अभी वह कुछ सोच ही रहा था कि इंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह बोले, ‘‘बलराम, भाई प्रेम को ले कर तुम्हारी जो सक्रियता थी, वह मैं देख रहा था. तुम्हारा प्रेम किस से और कितना था, यह सब भी मुझे पता चल चुका है. तुम ने रणजीत को क्यों और किस के लिए मारा, वह भी तुम्हारे सामने है.’’

उन्होंने सरिता की ओर इशारा करते हुए कहा तो बलराम की नजरें झुक गईं. उसे इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि उस की बनाई कहानी का अंत इतनी आसानी से हो जाएगा और पुलिस उस से सच उगलवा लेगी. तीर निशाने पर लगता देख इंसपेक्टर अशोक कुमार सिह ने बिना देर किए तपाक से कहा, ‘‘अब तुम्हारी भलाई इसी में है, दोनों साफसाफ बता दो कि रणजीत की हत्या क्यों और किसलिए की, वरना मुझे दूसरा तरीका अपनाना पड़ेगा.’’

खुल गया रणजीत की हत्या का राज सरिता और बलराम ने खुद को चारों ओर से घिरा देख कर सच्चाई उगलने में ही भलाई समझी. पुलिस ने दोनों को विधिवत गिरफ्तार कर के पूछताछ की तो रणजीत के कत्ल की कहानी परत दर परत खुलती गई. बलराम ने अपना जुर्म कबूल करते हुए बताया कि न जाने कैसे रणजीत को उस के और सरिता के प्रेम संबंधों की जानकारी मिल गई थी. फलस्वरूप वह उन दोनों के संबंधों में बाधक बनने लगा. यहां तक कि उस ने बलराम को अपनी पत्नी से मिलने के लिए मना कर दिया था. इसी के मद्देनजर सरिता और बलराम ने योजनाबद्ध तरीके से रणजीत की हत्या की योजना बनाई. योजना के मुताबिक बलराम ने घर में घुस कर बरामदे में सोए रणजीत की चाकू घोंप कर हत्या कर दी.

बलराम की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल किया गया चाकू घर से 2 सौ मीटर दूर गेहूं के खेत से बरामद कर लिया. सरिता और बलराम ने स्वीकार किया कि जिस चाकू से रणजीत की हत्या की गई थी, उसे बलराम ने हत्या से एक दिन पहले ही गांव के एक लोहार से बनवाया था. पुलिस ने उस लोहार से भी पूछताछ की. उस ने इस की पुष्टि की. पुलिस लाइन में आयोजित पत्रकार वार्ता के दौरान पुलिस अधीक्षक आशीष तिवारी ने खुलासा करते हुए बताया कि रणजीत सरोज की पत्नी के अवैध संबंध उस के चचेरे भाई बलराम से पिछले 5 वर्षों से थे. रणजीत ने दोनों को एक बार रंगेहाथों पकड़ा था. उस वक्त घर वालों ने गांव में परिवार की बदनामी की वजह से इस मामले को घर में ही दबा दिया था. साथ ही दोनों को डांटाफटकारा भी था.

रणजीत ने बलराम को घर में आने से मना भी कर दिया था. इस से सरिता अंदर ही अंदर जलने लगी थी. उसे चचेरे देवर से मिलने की कोई राह नहीं सूझी तो उस ने बलराम के साथ मिल कर पति की हत्या की योजना तैयार की ताकि पिछले 5 सालों से चल रहे प्रेम संबंध चलते रहें. पकड़े जाने पर दोनों ने पुलिस और मीडिया के सामने अपना जुर्म कबूल करते हुए अवैध संबंधों में हत्या की बात मानी. दोनों ने पूरी घटना के बारे में विस्तार से बताया. रणजीत हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने के बाद पुलिस ने पूर्व  में दर्ज मुकदमे में अज्ञात की जगह सरिता और बलराम का नाम शामिल कर के दोनों को जेल भेज दिया.

 

Double Murder की सूचना पाकर पुलिस के उड़े होश

कुछ लोग पत्नी में कमियां निकाल कर उस से पीछा छुड़ाने के लिए अपराध का रास्ता चुनते हैं. इस में वे कामयाब भी हो जाते हैं लेकिन उस वक्त वे भूल जाते हैं कि हर अपराध की एक सजा भी होती है. थाना बनियाठेर के थानाप्रभारी प्रवीण सोलंकी रात भर गश्त कर के सुबह 5 बजे अपने कमरे पर पहुंचे. वह आराम करने के लिए लेटे ही थे कि मोबाइल की घंटी बज उठी. उन्होंने काल रिसीव की तो फोन करने वाले अज्ञात व्यक्ति ने बताया कि रसूलपुर के पास कैली गांव में मांबेटी की हत्या कर दी गई है.

डबल मर्डर की सूचना से उन की नींद काफूर हो गई. वह अपने मातहतों को ले कर घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. यह बात 19 जून, 2018 की है. थानाप्रभारी ने यह जानकारी उच्च अधिकारियों को भी दे दी. गांव कैली थाने से करीब एक किलोमीटर दूर है, इसलिए प्रवीण सोलंकी करीब 10 मिनट में कैली गांव पहुंच गए. गांव जा कर उन्हें पता चला कि घटना भारत सिंह के घर में घटी है. थानाप्रभारी ने वहां जा कर देखा तो एक कमरे में एक ही चारपाई पर बेटी पूनम और उस के ऊपर उस की मां शांति की लाशें पड़ी थीं. मां के गले में उसी की साड़ी का फंदा कसा हुआ था, साथ ही उस का गला भी कटा हुआ था. चारपाई के पास जमीन पर काफी खून पड़ा था.

शुरुआती जांच में यही लगा कि दोनों को गला घोंट कर मारा गया है और बाद में गला काटा गया है. चारपाई से दूर एक कोने में कुछ टूटी हुई चूडि़यां पड़ी थीं. पूनम के शरीर पर खरोंचों के भी निशान थे, जिस से लग रहा था कि उस ने हत्यारों से अपने बचाव का प्रयास किया था. कुछ ही देर में घटनास्थल पर कप्तान राधेमोहन भारद्वाज, एडीशनल एसपी पंकज कुमार मिश्र और सीओ ओमकार सिंह यादव भी पहुंच गए. उन्होंने थानाप्रभारी को निर्देश दिए. इस के बाद थानाप्रभारी ने लाशें पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दीं.

कैली गांव उत्तर प्रदेश के जिला संभल की तहसील मुख्यालय से करीब 8 किलोमीटर दूर है. करीब 3 हजार की आबादी वाले इस गांव में चंद्रपाल का परिवार रहता था. उस के 4 बेटे और 2 बेटियां थीं. करीब 30 वर्ष पूर्व चंद्रपाल की दर्दनाक मौत हो गई थी. उस की मौत के पीछे की भी एक अलग कहानी थी. दरअसल गांव में पेयजल का संकट था. चंद्रपाल के घर के सामने कुएं की खुदाई चल रही थी. चंद्रपाल भी खुदाई कर रहा था. काफी गहराई तक मिट्टी निकाली जा चुकी थी. तभी अचानक ऊपर से मिट्टी की ढांग गिर कई और चंद्रपाल जिंदा ही दफन हो गया.

उस समय इतने संसाधन नहीं थे कि चंद्रपाल को जल्दी निकाला जा सके. फिर भी गांव वालों ने जैसेतैसे उसे बाहर निकाला लेकिन तब तक उस की मौत हो चुकी थी. इस के बाद गांव वालों ने वह कुआं फिर से मिट्टी से भर दिया. बाद में जब चंद्रपाल के बेटे जवान हुए तो उन्होंने गांव वालों के सहयोग से पिता के मिशन को पूरा किया. कुआं तैयार हो जाने के बाद गांव में पेयजल की समस्या दूर हो गई. जिस समय चंद्रपाल की मौत हुई थी, उस समय उस के सभी बच्चे छोटे थे यानी शांति भरी जवानी में विधवा हो गई थी. उस के सामने 6 बच्चों के पालनपोषण की समस्या थी. ऐसे में एक रिश्तेदार भारत सिंह ने शांति के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा.

भारत सिंह मुरादाबाद जिले की पुलिस चौकी जरगांव के अंतर्गत आने वाले भूड़ी गांव का निवासी था. उस की पत्नी की मौत भी एक हृदयविदारक घटना में हुई थी. भारत सिंह का विवाह करीब 32 साल पहले गांव नानपुर की मिलक, जिला रामपुर की महेंद्री नाम की युवती से हुआ था. एक दिन अचानक रात में डाकुओं ने भूड़ी गांव पर धावा बोल दिया. गांव वालों ने भी मोर्चा संभाला. डाकू लगातार फायरिंग कर रहे थे. ग्रामीण फायरिंग का जवाब ईंटपत्थरों से दे रहे थे. लेकिन उन का मुकाबला करने में वे नाकाम रहे. तब अधिकांश लोग जान बचाने के लिए जंगलों की ओर भागने लगे.

भारत सिंह भी अपने भाइयों राधेश्याम व सूरज सिंह के साथ जंगल में भाग गया. भारत सिंह की पत्नी महेंद्री गहरी नींद में सो रही थी. वह घर में अकेली रह गई. उस समय उस की कोख में 6 महीने का बच्चा था. महेंद्री की जब आंख खुली तो खुद को घर में अकेला देख वह घबरा गई. फायरिंग की आवाज सुन कर वह माजरा समझ गई. बदहवास महेंद्री ने भी जान बचाने की खातिर घर से जंगल की ओर दौड़ लगा दी. भागते वक्त वह ठोकर खा कर गिर गई. जब डाकू गांव में लूटपाट कर के चले गए, तब गांव के लोग घर वापस आए. रास्ते में लोगों ने महेंद्री को तड़पते हुए देखा. भारत सिंह भी पत्नी के पास पहुंच गया. उस की हालत देख कर उस के होश उड़ गए.

घर वाले महेंद्री को उठा कर घर ले आए. खून बहता देख वे लोग समझ गए कि पेट में पल रहे नवजात को हानि पहुंची है. महेंद्री भी बेहोशी की हालत में थी. आधी रात का समय था. इलाज के लिए शहर में ले जाने का कोई साधन नहीं था. घरों में लूटपाट होने की वजह से गांव में वैसे ही कोहराम मचा था. कोई भी गाड़ी ले कर जाने का साहस नहीं जुटा पा रहा था. फलस्वरूप सुबह होने से पहले ही महेंद्री की मौत हो गई. भारत सिंह की शादी हुए केवल 4 साल हुए थे. पत्नी की मौत के बाद वह खोयाखोया सा रहने लगा था. फिर एक रिश्तेदार के सुझाव पर उस ने 6 बच्चों की मां, विधवा शांति देवी के साथ कराव कर लिया. दरअसल हिंदू विवाह संस्कार के अनुसार अग्नि के सात फेरे और कन्यादान एक बार ही किया जाता है. चूंकि शादी के समय शांति सात फेरे ले चुकी थी और उस का कन्यादान भी हो चुका था, इसलिए भारत के साथ वह दूसरी बार अग्नि के फेरे नहीं ले सकती थी, इसलिए उस का कराव करा दिया गया.

इस के बाद भारत सिंह व शांति का दांपत्य जीवन हंसीखुशी से गुजरने लगा. कुछ दिनों बाद ही भारत सिंह अपने हिस्से की डेढ़ बीघा जमीन बेच कर और घर अपने भाइयों को दे कर कैली में आ कर रहने लगा. वह मेहनतमजदूरी कर के बच्चों का पालनपोषण करने लगा. इस बीच उस के 3 बच्चे और हुए. जैसेजैसे बच्चे बड़े हुए, भारत सिंह ने उन की शादी कर दी. उस ने सब से छोटी बेटी पूनम का विवाह इसी साल 18 फरवरी को अनिल के साथ कर दिया था. अनिल चंदौसी शहर के हनुमानगढ़ी मोहल्ले में रहता था. पूनम देहाती माहौल में पलीबढ़ी थी जबकि उस की शादी शहर के लड़के से हुई थी. कई महीने तक शहर में रहने के बावजूद  वह खुद को शहरी माहौल में नहीं ढाल पाई. ससुराल वाले उसे लाख समझाते पर वह खुद को बदलने के लिए तैयार नहीं थी.

अनिल विवाह आदि समारोहों में फोटोग्राफी व वीडियोग्राफी का काम करता था. रात को देर से आना उस की पेशेगत मजबूरी थी. जब वह कहीं बुकिंग पर नहीं जाता, तब भी वह शराब के नशे में देर से घर आता था. पूनम को उस का शराब पीना पसंद नहीं था. वैचारिक मतभेद के साथ दोनों के बीच मनभेद भी बढ़ता चला गया. अनिल और पूनम के 4 महीने के वैवाहिक जीवन में घरेलू कलह रहने लगी थी. विवाद बढ़ने पर कई बार अनिल ने पूनम की पिटाई भी कर दी थी, जिस से उस के कान में चोट आई थी. ससुराल में पूनम की उपेक्षा बढ़ती जा रही थी. एक बार पूनम को बुखार आया तो अनिल उसे उस के मायके छोड़ आया. मायके वालों ने पूनम का इलाज कराया.

चोट की वजह से उस के कान में दर्द रहने लगा था. मायके वालों ने उस के कान का भी इलाज कराया. पूनम के मायके वाले  उस के दांपत्य जीवन को सुखी बनाए रखने के प्रयास में लगे रहे. 25 मई, 2018 को कैली गांव में किसी की शादी थी. शादी की दावत में पूनम व उस के पति अनिल को भी आमंत्रित किया गया था. अनिल ससुराल से पत्नी को साथ ला कर विवाह समारोह में शामिल हुआ. इस के बाद अनिल अपनी पत्नी पूनम को मायके में छोड़ कर रात में ही अपने गांव चला गया. ससुराल वालों ने उस से रात में वहीं रुकने का आग्रह करते हुए कहा कि सुबह पूनम को भी साथ ले कर चला जाए. इस पर अनिल ने कहा कि 2-4 दिन बाद आ कर उसे ले आएगा. लेकिन 15 दिन बीत गए और अनिल पूनम को लेने नहीं आया. पूनम उस से मोबाइल पर बात करना चाहती तो वह कोई न कोई बहाना बना कर उस से बात नहीं करता था. वह कहता था कि 2-4 दिन में उसे लेने आ जाएगा. इस तरह वह उसे टालता रहा.

19 जून को पूनम व उस की मां की हत्या से घर में कोहराम मच गया था. पूरा गांव शोक में डूबा था. भारत सिंह का रोरो कर बुरा हाल था. मांबेटी की अर्थी जब एक साथ उठी तो शवयात्रा में शामिल ग्रामीणों की आंखें नम हो गईं.  उधर पुलिस ने अपनी जांच भारत सिंह से शुरू की. भारत ने पुलिस को बताया कि 18 जून की रात अनिल के पिता फूल सिंह का फोन आया था. उन्होंने बताया था कि अनिल पूनम को लेने गांव गया हुआ है. उस समय वह खेतों पर लगी मेंथा की टंकी पर था. वहां वह किसानों का मेंथा औयल निकालता था. इस काम से उसे अच्छीखासी आमदनी हो जाती थी. उस रात वह घर नहीं आ सका था.

पुलिस को अन्य सूत्रों से भी पता चला कि अनिल उस रात गांव में देखा गया था. पुलिस ने अनिल के घर दबिश दी तो वह घर पर ही मौजूद था. पुलिस उसे पूछताछ के लिए थाने ले आई. जब उस से पूनम और उस की मां की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो वह काफी देर तक पुलिस को गुमराह करता रहा. पुलिस ने थोड़ी सख्ती की तो वह टूट गया और उस ने अपने जुर्म का इकबाल कर लिया. फिर डबल मर्डर की कहानी कुछ इस तरह सामने आई. अनिल ने बताया कि गंवार संस्कृति की पूनम से वह पीछा छुड़ाना चाहता था. वह उस के दिल से पूरी तरह उतर चुकी थी, इसलिए वह उसे मायके छोड़ गया था. लेकिन उस के घर वाले उसे साथ ले जाने के लिए दबाव बना रहे थे. उधर पूनम भी बारबार उसे आने के लिए फोन करती रहती थी. किसी भी तरह वह उस से पीछा छुड़ाना चाहता था.

18 जून, 2018 की शाम को उस के पास पूनम का फोन आया. तब अनिल ने अपनी ससुराल के लोगों के बारे में जानकारी की. पता चला कि उस के पिता व भाई घर पर नहीं हैं. पिता मेंथा टंकी पर हैं और भाई खेत पर. कुछ अपनी रिश्तेदारियों में गए हुए हैं. घर पर पूनम और उस की मां ही है. उसे ऐसे ही मौके की तलाश थी. पूनम अपनी मां के साथ गांव की हवेली से दूर अंतिम सिरे पर स्थित घेर कहे जाने वाले मकान में थी. सुनील जानता था कि पूनम के पांचों भाई अपने परिवार के साथ अंदर वाली हवेली में रहते हैं. पूनम की मां धार्मिक प्रवृत्ति की थी. वह ज्यादातर अपने हाथ का ही बना सादा भोजन करती थी. कभीकभी वह बहुओं द्वारा बनाया गया सादा भोजन भी खा लेती थी.

अनिल अपने दोस्त कौशल के साथ बाइक से घेर वाले उस मकान पर पहुंच गया. वह हाइवे से गांव को जाने वाली सड़क से न जा कर मकान के उत्तर में खाली प्लौटों से होता हुआ गया. उस ने बाइक भी कुछ दूर मकान की दीवार से सटा कर खड़ी कर दी थी. वहां से वह योजनानुसार पैदल ही घर पहुंचे, जिस से आसपड़ोस वालों को पता न चल सके कि पूनम के घर कोई आया है. पूनम अपनी मां शांति के साथ छत पर लेटी हुई थी. अनिल को देख पूनम की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा. मांबेटी ने दोनों का आदरसत्कार किया. चायनाश्ते के बाद अनिल ने अपनी सास व अपने दोस्त को यह कह कर ऊपर छत पर भेज दिया कि पूनम से कुछ बात करनी है. अनिल ने पूनम से कह कर चारपाई बरामदे से उठा कर कमरे में डलवाई. उस समय लाइट भी नहीं थी. पूनम समझ नहीं पा रही थी कि इतनी गरमी में अंदर बैठ कर वह क्या खास बात करेंगे.

अनिल चारपाई पर बैठी पत्नी से औपचारिक बातें करने लगा, तभी अचानक उस ने अपने दोनों हाथों से पूनम का गला पकड़ लिया. पूनम समझ नहीं पाई कि वह क्या कर रहा है. गले पर हाथों का दबाव बढ़ने पर पूनम ने अपने बचाव में हाथपैर चलाने शुरू कर दिए, जिस से उस की चूडि़यां भी टूट गईं और शरीर पर खरोचों के निशान भी पड़ गए. पति के सामने पूनम का संघर्ष असफल रहा. कुछ ही देर में वह चारपाई पर लुढ़क गई. जब अनिल को यकीन हो गया कि पूनम की सांसें थम गई हैं, तब उस ने अपने दोस्त कौशल को नीचे बुलाया. उस के साथ पूनम की मां शांति भी नीचे आ गई.

शांति जब नीचे आई तो पूनम उसे बरामदे में दिखाई नहीं दी. उस ने अनिल से पूनम के बारे में पूछा. अनिल ने इशारा करते हुए कहा कि वह अंदर कमरे में है. शांति जैसे ही कमरे की तरफ बढ़ी, अनिल ने उसे पीछे से दबोच लिया. दोस्त के सहयोग से उस ने सास को भी जमीन पर गिरा कर पहले उस के मुंह में कपड़ा ठूंसा, जिस से उस की आवाज न निकल सके. फिर कौशल ने पैर जकड़े और अनिल ने उसी की साड़ी से उस का गला घोंट दिया. शांति को मारने के बाद दोनों ने उसे जमीन से उठा कर पूनम की लाश के ऊपर डाल दिया. अनिल को यह अहसास हुआ कि सास शांति देवी की सांसें अभी थमी नहीं हैं, तब उस ने उस की गरदन चारपाई से नीचे की ओर लटकाई. कौशल ने लटकती गरदन को पकड़ा और अनिल ने सब्जी काटने के चाकू से गरदन रेत दी.

इस के बाद दोनों वहां से निकल गए. इस मकान से आगे केवल 2 मकान और हैं. उस के बाद आबादी नहीं है. उन्होंने वहां आड़ में खड़ी बाइक उठाई और चले गए. सामने व पड़ोस में रहने वाले किसी भी व्यक्ति को इस दोहरे हत्याकांड की भनक तक नहीं लग सकी. पूनम का एक विकलांग भाई कुंवरपाल 5-6 मकान पहले गली के नुक्कड़ पर स्थित पशुशाला में सोने के लिए आया था. 4 साल की उम्र में उसे पोलियो हो गया था. उस की शादी भी एक विकलांग लड़की से हुई थी. वह बैसाखी के सहारे चलती है. कुंवरपाल रात 10 बजे सोने के लिए पशुशाला में चला जाता था. करीब 25 सदस्यों का इन का संयुक्त परिवार है. सभी का भोजन एक साथ बनता है. सभी भाइयों एवं उन की बहुओं में गजब का सामंजस्य है. कुंवरपाल को भी घटना की जानकारी नहीं लगी.

अनिल से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उस के और उस के दोस्त कौशल के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कर के अनिल को सीजेएम रवि कुमार के समक्ष पेश कर न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया. पुलिस ने दूसरे अभियुक्त कौशल की तलाश में इधरउधर छापे मारे तो उस ने 28 जून, 2018 को अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया. अनिल ने हत्या का कारण यह भी बताया कि पूनम मानसिक रोगी थी और यह बात उस के घर वालों ने उस से छिपाई थी. जबकि परिजनों का कहना है कि उस के इस आरोप के कारण पूनम का सीटी स्कैन कराया था, जिस में वह पूर्ण स्वस्थ पाई गई.

मामले की जांच थानाप्रभारी प्रवीण सोलंकी कर रहे हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Bathroom में संबंध बनाने के बाद विधवा को तीन टुकड़ों में काटा

प्रभाकर को लगता था कि अगर उस ने विधवा कांता से शादी की तो मांबाप की इज्जत बरबाद हो जाएगी. इस इज्जत को बचाने के लिए उस ने जो किया, उस से इज्जत तो बरबाद हुई ही, वह सलाखों के पीछे भी पहुंच गया. महानगर मुंबई के उपनगर चेंबूर की हेमू कालोनी रोड पर स्थित चरई तालाब घूमनेटहलने के लिए ठीक उसी तरह मशहूर है, जिस तरह दक्षिण मुंबई का मरीन ड्राइव यानी समुद्र किनारे की चौपाटी और उत्तर मुंबई का सांताकुंज-विलेपार्ले का जुहू. ये ऐसे स्थान हैं, जहां आ कर लोग अपना मन बहलाते हैं. इन में प्रेमी युगल भी होते हैं और घरपरिवार के लोग भी, जो अपनेअपने बच्चों के साथ इन जगहों पर आते हैं.

26 अक्तूबर, 2013 को रात के यही कोई 10 बज रहे थे. इतनी रात हो जाने के बावजूद चेंबूर के चरई तालाब पर घूमनेफिरने वालों की कमी नहीं थी. थाना चेंबूर के सहायक पुलिस उपनिरीक्षक हनुमंत पाटिल सिपाहियों के साथ क्षेत्र की गश्त करते हुए चरई तालाब के किनारे पहुंचे तो उन्होंने देखा कि एक स्थान पर कुछ लोग इकट्ठा हैं. एक जगह पर उतने लोगों को एकत्र देख कर उन्हें लगा कोई गड़बड़ है. पता लगाने के लिए वह उन लोगों के पास पहुंच गए.

पुलिस वालों को देख कर भीड़ एक किनारे हो गई तो उन्होंने जो देखा, वह स्तब्ध करने वाला था. उस भीड़ के बीच प्लास्टिक की एक थैली में लाल कपड़ों में लिपटा हाथपैर और सिर विहीन एक इंसानी धड़ पड़ा था. देखने में वह किसी महिला का धड़ लग रहा था. हत्या का मामला था, इसलिए सहायक पुलिस उपनिरीक्षक हनुमंत पाटिल ने तालाब से धड़ बरामद होने की सूचना थानाप्रभारी वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक प्रहलाद पानसकर को दे दी. धड़ मिलने की सूचना मिलते ही वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक प्रहलाद पानसकर ने मामले की प्राथमिकी दर्ज कराने के साथ ही इस घटना की जानकारी उच्च अधिकारियों और कंट्रोल रूम को दे दी.

इस के बाद वह स्वयं पुलिस निरीक्षक सुभाष खानविलकर, विजय दरेकर, शशिकांत कांबले, सहायक पुलिस निरीक्षक प्रदीप वाली, संजय भावकर, विजय शिंदे, पुलिस उप निरीक्षक वलीराम धंस और रवि मोहिते के साथ मौकाएवारदात पर पहुंच गए. अभी सिर्फ धड़ ही मिला था. उस के हाथपैर और सिर का कुछ पता नहीं था. धड़ के इन अंगों की काफी तलाश की गई, लेकिन उन का कुछ पता नहीं चला. इस से पुलिस को लगा कि हत्यारा कोई ऐरागैरा नहीं, काफी चालाक है. उस ने स्वयं को बचाने के लिए सुबूतों को मिटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. उस ने मृतक की पहचान छिपाने के लिए उस के शव के टुकड़े कर के इधरउधर फेंक दिए थे. वहां एकत्र लोगों से की गई पूछताछ में पता चला कि हाथपैर और सिर विहीन उस धड़ को तालाब से वहां घूमने आए एक युवक ने निकाला था.

पुलिस ने जब उस युवक से पूछताछ की तो उस ने बताया, ‘‘मन बहलाने के लिए अकसर मैं यहां आता रहता था. हमेशा की तरह आज मैं यहां आया तो थकान उतारने के लिए तालाब के पानी में जा कर खड़ा हो गया. तभी मुझे लगा कि मेरे पैरों के पास कोई भारी पार्सल जैसी चीज पड़ी है.

‘‘मैं ने ध्यान से देखा तो सचमुच वह प्लास्टिक की थैली में लिपटा एक बड़ा पार्सल था. उत्सुकतावश मैं ने उस पार्सल को पानी से बाहर निकाल कर देखा तो उस में से यह धड़ निकला. डर के मारे मैं चीख पड़ा. मेरी चीख सुन कर वहां टहल रहे लोग मेरे पास आ गए. थोड़ी ही देर में यहां भीड़ लग गई. उस के बाद यहां कुछ पुलिस वाले आ गए.’’

पूछताछ के बाद वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक प्रहलाद पानसकर ने धड़ का पंचनामा तैयार कर उसे डीएनए टेस्ट और पोस्टमार्टम के लिए घाटकोपर के राजावाड़ी अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद वह थाने आ कर साथियों के साथ विचारविमर्श करने लगे कि इस मामले को कैसे सुलझाया जाए. क्योंकि सिर्फ धड़ से लाश की शिनाख्त नहीं हो सकती थी और शिनाख्त के बिना जांच को आगे बढ़ाना संभव नहीं था. थाना चेंबूर पुलिस इस मामले को ले कर विचारविमर्श कर ही रही थी कि अपर पुलिस आयुक्त कैसर खालिद, पुलिस उपायुक्त लखमी गौतम, सहायक पुलिस आयुक्त मिलिंद भिसे थाने आ पहुंचे. सारी स्थिति जानने के बाद ये अधिकारी वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक प्रहलाद पानसकर को आवश्यक दिशानिर्देश दे कर चले गए.

उच्च अधिकारियों के दिशानिर्देश के आधार पर वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक प्रहलाद पानसकर ने इस मामले की जांच के लिए एक टीम गठित की, जिस में पुलिस निरीक्षक विजय दरेकर, शशिकांत कांबले, सहायक पुलिस निरीक्षक प्रदीप वाली, विजय शिंदे, संजय भावकर, पुलिस उपनिरीक्षक वलीराम धंस, रवि मोहिते, सहायक पुलिस उपनिरीक्षक राजाराम ढिंगले, सिपाही अनिल घोरपड़े, नितिन सावंत, धर्मेंद्र ठाकुर और सुनील पाटिल को शामिल किया गया. इस टीम का नेतृत्व पुलिस निरीक्षक सुभाष खानविलकर को सौंपा गया.

पुलिस निरीक्षक सुभाष खानविलकर जांच को आगे बढ़ाने की रूपरेखा तैयार कर ही रहे थे कि मृतक महिला के हाथपैर और सिर भी बरामद हो गया. उस के हाथ और सिर चेंबूर ट्रांबे के जीटी तालाब में मिले थे तो पैर चेंबूर की सेल कालोनी से. पुलिस ने इन्हें भी कब्जे में ले कर अस्पताल भिजवा दिया था. बाद में डाक्टरों ने इस बात की पुष्टि कर दी थी कि ये अंग उसी मृतक महिला के धड़ के थे, जो चरई तालाब से बरामद हुआ था. इस तरह पुलिस का आधा सिर दर्द कम हो गया था.

अब उस मृतक महिला की शिनाख्त कराना था, क्योंकि बिना शिनाख्त के जांच आगे नहीं बढ़ सकती थी. इसलिए शिनाख्त कराने के लिए पूरी टीम बड़ी सरगरमी से जुट गई. महानगर के उपनगरों के सभी पुलिस थानों से पुलिस टीम ने पता किया कि किसी थाने में किसी महिला के गायब होने की शिकायत तो नहीं दर्ज है. इस के अलावा मुंबई महानगर से निकलने वाले सभी दैनिक अखबारों में मृतक महिला का हुलिया और फोटो छपवा कर शिनाख्त की अपील की गई. 2 दिन बीत गए. इस बीच हत्यारों को पकड़ने की कौन कहे, थाना पुलिस लाश की शिनाख्त तक नहीं करा सकी थी. मुंबई की क्राइम ब्रांच भी इस मामले की जांच कर रही थी. लेकिन क्राइम ब्रांच के हाथ भी अभी तक कुछ नहीं लगा था. मृतका कौन थी, कहां रहती थी, उस का हत्यारा कौन था? यह सब अभी रहस्य के गर्भ में था.

मामले की जांच कर रही पुलिस टीम हत्यारों तक पहुंचने की हर संभव कोशिश कर रही थी. वह महानगर के अस्पतालों, डाक्टरों, कसाइयों और पेशेवर अपराधियों की भी कुंडली खंगाल रही थी. क्योंकि मृतका की हत्या कर के जिस सफाई से उस के शरीर के टुकड़ेटुकड़े किए गए थे, यह हर किसी के वश की बात नहीं थी. पुलिस को लग रहा था कि यह काम किसी पेशेवर का ही हो सकता है. काफी कोशिश के बाद आखिर पुलिस ने 14 साल के एक ऐसे लड़के को खोज निकाला, जिस ने उस आदमी को देखा था, जो धड़ वाला पार्सल चरई तालाब में फेंक गया था.

पूछताछ में उस लड़के ने पुलिस को बताया था कि उस रात साढ़े नौ बजे के आसपास वह तालाब के किनारे बैठा ठंडी हवा का आनंद ले रहा था, तभी एक सुंदर स्वस्य युवक उस के पास आया. उस के हाथों में प्लास्टिक का एक थैला था, जिस में लाल रंग के कपड़ों में लिपटा एक बड़ा सा पैकेट पार्सल जैसा था. उस युवक ने उस से पानी में फेंकने के लिए कहा. इस के लिए वह उसे कुछ पैसे भी दे रहा था. पैकेट काफी भारी और गरम था. पूछने पर उस युवक ने उसे बताया था कि इस में पूजापाठ की सामग्री के अलावा कुछ ईंटे भी हैं, सामान अभी ताजा है, इसलिए गरम है. पैकेट भारी था, इसलिए लड़के ने उसे पानी में फेंकने के लिए कुछ अधिक पैसे मांगे. पैसे कम कराने के लिए वह युवक कुछ देर तक उस लड़के से झिकझिक करता रहा.

जब वह लड़का कम पैसे लेने को तैयार नहीं हुआ तो उसने खुद ही जा कर उस पैकेट को पानी में डाला और जिस आटोरिक्शे से आया था, उसी में बैठ कर चला गया. उस लड़के ने आटो वाले का भी हुलिया पुलिस को बताया था. इस में खास बात यह थी कि आटो वाला दाढ़ी रखे था. इस तरह पुलिस को अपनी जांच आगे बढ़ाने का एक रास्ता मिल गया. अब पुलिस उस दाढ़ी वाले आटो ड्राइवर को ढूंढ़ने लगी. आखिर पुलिस ने उस दाढ़ी वाले आटो ड्राइवर को ढूंढ़ निकाला. पुलिस टीम ने उसे थाने ला कर पूंछताछ की तो उस ने बताया, ‘‘सर, वह आदमी मेरे आटो में चेंबूर के सुभाषनगर वस्ता से बैठा था. वापस ला कर भी मैं ने उसे वहीं छोड़ा था.’’

आटो ड्राइवर ने यह भी बताया था कि वह हिंदी और दक्षिणी भाषा मिला कर बोल रहा था. आटो ड्राइवर ने उस युवक का जो हुलिया बताया था, वह उस लड़के द्वारा बताए गए हुलिए से पूरी तरह मेल खा रहा था. इस से साफ हो गया कि हत्यारा कोई और नहीं, वही युवक था, जो दक्षिण भारतीय था. इस के बाद पुलिस की जांच दक्षिण भारतीय बस्तियों और दक्षिण भारतीय युवकों पर जा कर टिक गई. पुलिस ने आटो ड्राइवर और लड़के द्वारा बताए हुलिए के आधार पर हत्यारे का स्केच बनवा कर हर दक्षिण भारतीय बस्ती एवं सुभाषनगर में लगवा दिए. यह सब करने में 2 दिन और बीत गए. दुर्भाग्य से इस मामले की जांच कर रही पुलिस टीम को इस सब का कोई लाभ नहीं मिला. लेकिन पुलिस टीम इस सब से निराश नहीं हुई. वह पहले की ही तरह सरगरमी से मामले की जांच में लगी रही.

पुलिस टीम हत्यारे तक पहुंचने के लिए कडि़यां जोड़ ही रही थी कि तभी उसे थाना साकीनाका से एक ऐसी सूचना मिली, जिस से लगा कि अब उसे हत्यारे तक पहुंचने में देर नहीं लगेगी. 4 नवंबर, 2013 को दीपावली का दिन था. उसी दिन साकीनाका पुलिस ने फोन द्वारा सूचना दी कि चरई तालाब में मिले धड़ वाली मृतका का जो हुलिया बताया गया था, उस हुलिए की महिला की गुमशुदगी उन के थाने में दर्ज कराई गई है. थाना साकीनाका में जो गुमशुदगी दर्ज कराई गई थी, वह गुमशुदा महिला की बहन सुहासिनी प्रसाद हेगड़े ने दर्ज कराई थी. सूचना मिलते ही पुलिस निरीक्षक सुभाष खानविलकर ने सुहासिनी से संपर्क किया. उन्हें थाने बुला कर टुकड़ोंटुकड़ों में मिली लाश के फोटोग्राफ्सदिखाए गए तो फोटो देखते ही वह रो पड़ीं. सुहासिनी ने टुकड़ोंटुकड़ों में मिली उस लाश की शिनाख्त अपनी बहन कांता करुणाकर शेट्टी के रूप में कर दी, जो 29 अक्तूबर, 2013 से गायब थी.

कर्नाटक की रहने वाली 36 वर्षीया स्वस्थ और सुंदर कांता करुणाकर शेट्टी अपने 14 वर्षीय बेटे के साथ चांदीवली, साकीनाका की म्हाणा कालोनी के सनसाइन कौआपरेटिव हाउसिंग सोसायटी की इमारत के ‘ए’ विंग के ग्राउंड फ्लोर पर रहती थी. वह फैशन डिजाइनर थी. उस के पति करणाकर शेट्टी का मिक्सर ग्राइंडर का अपना व्यवसाय था. लेकिन 2 साल पहले करुणाकर के व्यवसाय में ऐसा घाटा हुआ कि वह स्वयं को संभाल नहीं सके और आत्महत्या कर ली. इस के बाद कांता अकेली पड़ गई. अब उस का सहारा एकमात्र 12 साल का बेटा रह गया था. पति के इस कदम के बाद कांता पर मानो पहाड़ टूट पड़ा था.

लेकिन उच्च शिक्षित कांता ने अपने मासूम बेटे के भविष्य को देखते हुए खुद को संभाला और अपने काम में लग गई. अंत में सुहासिनी ने पुलिस को बताया था कि पिछले कुछ समय से कांता चेंबूर के रहने वाले किसी लड़के से प्रेमसंबंध चल रहा था. 29 अक्तूबर, 2013 की शाम को कांता घर से निकली थी तो लौट कर नहीं आई. पूरी रात उस का बेटा इंतजार करता रहा. घर में अकेले पड़े हैरानपरेशान 14 साल के उस के बेटे ने सुबह सुहासिनी को फोन कर के मां के वापस न आने की बात बताई. सुहासिनी ने परेशान और घबराए बच्चे को ढ़ांढ़स बधाया और थोड़ी देर में उस के पास जा पहुंची.

इस के बाद सुहासिनी बच्चे को ले कर कांता शेट्टी की तलाश में निकल पड़ी. जहांजहां उस के मिलने की संभावना थी, सुहासिनी ने उस की तलाश की. जब कहीं से भी उन्हें कांता के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो वह थाना साकीनाका पहुंची और कांता की गुमशुदगी दर्ज करा दी. सुहासिनी की बातों से पुलिस टीम को उसी युवक पर संदेह हुआ, जिस से कांता का प्रेमसंबंध था. पुलिस कांता के बारे में जरूरी जानकारी लेने के साथसाथ उस के घर की तलाशी भी ली कि शायद उस युवक तक पहुंचने का कोई सूत्र मिल जाए. लेकिन काफी मेहनत के बाद भी कुछ नहीं मिला तो पुलिस कांता का मोबाइल फोन ले कर थाने आ गई. यह संयोग ही था कि उस दिन वह अपना मोबाइल फोन साथ नहीं ले गई थी.

पुलिस टीम ने कांता के नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस नंबर से सब से अधिक जिस नंबर पर बात हुई थी, वह नंबर प्रभाकर कुट्टी शेट्टी का था. पुलिस ने उस के बारे में पता किया तो पता चला कि वह सुभाषनगर में बिल्डिंग नंबर 6 एम 224 आचार्यमार्ग जोलड़ी चेंबूर में रहता है और चेंबूर जिमखाना के रेस्टोरेंट के.वी. कैटरर्स में मैनेजर है. पुलिस टीम ने पहले प्रभाकर के नंबर पर संपर्क करना चाहा. लेकिन नंबर बंद होने की वजह से उस से संपर्क नहीं हो सका. इस के बाद पुलिस टीम ने उस के घर और रेस्टोरेंट पर छापा मारा. प्रभाकर पुलिस को दोनों जगहों पर नहीं मिला. इस से पुलिस का शक और बढ़ गया. पुलिस टीम ने उस की सरगरमी से तलाश शुरू कर दी. साथ ही मुखबिरों को भी लगा दिया. आखिर 8 नवंबर, 2013 को पुलिस ने मुखबिर की ही सूचना पर घाटकोपर की एक इमारत से प्रभाकर को गिरफ्तार कर लिया.

प्रभाकर कुट्टी शेट्टी को थाने ला कर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में पूछताछ की जाने लगी. पहले तो वह हीलाहवाली करता रहा. लेकिन जब पुलिस ने उस के सामने अकाट्य साक्ष्य रखे तो उस ने कांता की हत्या की बात स्वीकार कर ली. पुलिस ने उसे अदालत में पेश कर के पूछताछ एवं सुबूत जुटाने के लिए 7 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि के दौरान की गई पूछताछ में प्रभाकर ने कांता शेट्टी से प्रेमसंबंध से ले कर उस की हत्या करने तक की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी :

30 वर्षीय प्रभाकर कुट्टी शेट्टी कर्नाटक के जिला उडि़पी के गांव इन्ना का रहने वाला था. पढ़ाईलिखाई कर के नौकरी की तलाश में वह मुंबई चला आया था, लेकिन उस के मांबाप और एक भाई तथा बहन अभी भी रह रह रहे थे. उस का पूरापरिवार सभ्यसभ्रांत और पढ़ालिखा था, जिस की वजह से गांव में उस का परिवार सम्मानित माना जाता था. प्रभाकर काफी महत्वाकांक्षी था. पढ़ाई पूरी कर के उस ने होटल मैनेजमेंट का कोर्स किया और काम की तलाश में मुंबई आ गया. मुंबई में उस का एक मित्र पहले से ही रह रहा था. वह उसी के साथ रहने लगा. थोड़ी भागदौड़ के बाद उसे एक रेस्टोरेंट में मैनेजर की नौकरी मिल गई.

लगभग डेढ़ साल पहले प्रभाकर कुट्टी शेट्टी की कांता से मुलाकात कर्नाटक से मुंबई आते समय ट्रेन में हुई थी. ट्रेन में दोनों की सीटें ठीक एकदूसरे के आमनेसामने थीं. पहले दोनों के बीच परिचय हुआ, इस के बाद बातचीत शुरू हुई तो मुंबई पहुंचतेपहुंचते दोनों एकदूसरे से इस तरह खुल गए कि अपनेअपने बारे में सब कुछ बता दिया. फिर तो ट्रेन से उतरतेउतरते दोनों ने एकदूसरे के नंबर भी ले लिए थे. कांता शेट्टी अपने घर तो आ गई थी, लेकिन उस का दिल युवा प्रभाकर के साथ चला गया था. क्योंकि यात्रा के दौरान प्रभाकर से हुई बातों ने पुरुष संबंध से वंचित कांता को हिला कर रख दिया था. प्रभाकर का व्यवहार, उस की बातें, उस की स्मार्टनेस और मजबूत कदकाठी ने उसे इस तरह प्रभावित किया था कि वह उस के दिलोदिमाग से उतर ही नहीं रहा था. प्रभाकर ने एक बार फिर उसे पति करुणाकर शेट्टी और वैवाहिक जीवन की याद जाती करा दी थी.

कांता को वह सुख याद आने लगा था, जो उसे पति से मिलता था. याद आता भी क्यों न, अभी उस की उम्र ही कितनी थी. भरी जवानी में पति छोड़ कर चला गया था. तब से वह बेटे के लिए अकेली ही जिंदगी बसर कर रही थी. वह अपने काम और बेटे में इस तरह मशगूल हो गई थी कि बाकी की सारी चीजें भूल गई थी. लेकिन प्रभाकर की इस मुलाकात ने उस की उस आग को एक बार फिर भड़का दिया था, जिसे उस ने पति की मौत के बाद दफन कर दिया था. जो हाल कांता का था, लगभग वही हाल अविवाहित प्रभाकर का भी था. पहली ही नजर में कांता की सुंदरता और जवानी उस के दिल में बस गई थी. वह किसी भी तरह कांता के नजदीक आना चाहता था. क्योंकि वह पूरी तरह उस के इश्क में गिरफ्तार हो चुका था. 2-4 दिनों तक तो किसी तरह उस ने स्वयं को रोका, लेकिन जब नहीं रहा गया तो उस ने कांता का नंबर मिला दिया.

प्रभाकर के इस फोन ने बेचैन कांता के मन को काफी ठंडक पहुंचाई. हालांकि उस दिन ऐसी कोई बात नहीं हुई थी, लेकिन बातचीत का रास्ता तो खुल ही गया. इस तरह बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो जल्दी ही दोनों मिलनेजुलने लगे. इस मिलनेजुलने में दोनों जल्दी ही एकदूसरे के काफी करीब आ गए. इस के बाद दोनों स्वयं को संभाल नहीं सके और सारी मर्यादाएं ताक पर रख कर एकदूसरे के हो गए. मर्यादा टूटी तो सिलसिला चल पड़ा. मौका निकाल कर वे शारीरिक भूख मिटाने लगे.

कांता प्रभाकर में कुछ इस तरह खो गई कि वह स्वयं को उस की पत्नी समझने लगी. फिर एक समय ऐसा आ गया कि वह प्रभाकर से शादी के लिए कहने लगी. लेकिन प्रभाकर कांता की तरह उस के प्यार में पागल नहीं था. वह पढ़ालिखा और होशियार युवक था. वह कांता के प्रति जरा भी गंभीर नहीं था. वह भंवरे की तरह था. उसे फूल नहीं, उस के रस से मतलब था. उस के मांबाप थे, जिन की गांव और समाज में इज्जत थी. अगर वह एक विधवा से शादी कर लेता तो उन की गांव और समाज में क्या इज्जत रह जाती. इसीलिए कांता जब भी उस से शादी की बात करती, बड़ी होशियारी से वह टाल जाता.

समय पंख लगाए उड़ता रहा. भंवरा फूल का रसपान करने में मस्त था तो फूल रसपान कराने में. अचानक कांता को कहीं से पता चला कि प्रभाकर मांबाप की पसंद की लड़की से शादी करने जा रहा है. यह जान कर उसे झटका सा लगा. उस ने जब इस बारे में प्रभाकर से बात की तो उस ने बड़ी ही लापरवाही से कहा, ‘‘यह तो एक दिन होना ही था. मांबाप चाहते हैं तो शादी करनी ही पड़ेगी.’’

‘‘लेकिन तुम ने वादा तो मुझ से किया था.’’ कांता ने कहा.

‘‘मांबाप से बढ़ कर तुम से किया गया वादा नहीं हो सकता. इसलिए मांबाप का कहना मानना जरूरी है.’’ कह कर प्रभाकर ने बात खत्म कर दी.

लेकिन कांता इस के लिए तैयार नहीं थी. इसलिए उस ने कहा, ‘‘आज तक मैं अपना तनमन तुम्हारे हवाले करती आई हूं. तुम ने जैसे चाहा, वैसे मेरे तन और मन का उपयोग किया. मैं ने तुम्हें हर तरह से शारीरिक सुख दिया. कभी नानुकुर नहीं की. तुम्हारी बातों से साफ लग रहा है कि तुम प्यार के नाम पर मुझे धोखा देते रहे. तुम्हें मुझ से नहीं, सिर्फ मेरे शरीर से प्यार था. लेकिन मैं इतनी कमजोर नहीं हूं कि तुम आसानी से मुझ से पीछा छुड़ा लोगे. अगर तुम ने मुझ से शादी नहीं की तो में तुम्हारे गांव जा कर तुम्हारे मांबाप से अपने संबंधों के बारे में बता दूंगी. अगर इस से भी बात नहीं बनेगी तो कानून का सहारा लूंगी.’’

कांता की इस धमकी से प्रभाकर के होश उड़ गए. उस समय तो उस ने किसी तरह समझाबुझा कर कांता को शांत किया. लेकिन वह मन ही मन काफी डर गया. उस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस कांता को फूल समझ कर वह सीने से लगा रहा था, एक दिन वह उस के लिए कांटा बन जाएगी. इस का मतलब यह हुआ कि जब तक कांता नाम का यह कांटा जीवित रहेगा, वह समाज में इज्जत की जिंदगी नहीं जी पाएगा. इसलिए उस ने कांता रूपी इस कांटे को अपने जीवन से निकाल फेंकने का फैसला कर लिया.

29 अक्तूबर, 2013 की शाम कांता के जीवन की आखिरी शाम साबित हुई. उस शाम कांता ने प्रभाकर को फोन कर के कहीं चलने के लिए अपने घर आने को कहा तो प्रभाकर ने उस के घर जाने के बजाय कांता को यह कह कर अपने घर बुला लिया कि उस की तबीयत ठीक नहीं है. इसलिए वही उस के घर आ जाए. प्रभाकर की तबीयत खराब है, यह जान कर कांता परेशान हो उठी. वह जल्दी से तैयार हुई और प्रभाकर के घर के लिए निकल पड़ी. इसी जल्दबाजी में वह अपना मोबाइल फोन ले जाना भूल गई. जिस समय कांता प्रभाकर के घर पहुंची, वह बीमारी का बहाना किए बेड पर लेटा था. कांता उस के पास बैठ गई तो वह उस से मीठीमीठी बातें कर के उसे खुश करने की कोशिश करने लगा. उसे खुश करने के लिए उस ने एक बार फिर उस से शादी का वादा किया. इस के बाद अपनी योजनानुसार उस ने कांता से शारीरिक संबंध बनाने की इच्छा जाहिर की.

कांता इस के लिए तैयार हो गई तो उस ने बाथरूम में चलने को कहा. पहले भी वह कई बार बाथरूम में उस के साथ शारीरिक संबंध बना चुका था, इसलिए कांता खुशीखुशी बाथरूम में चलने को तैयार हो गई. बाथरूम में जाने से पहले उस ने अपने सारे कपड़े उतार दिए. इस के बाद बाथरूम की फर्श पर कांता के साथ शारीरिक संबंध बनाने के दौरान ही प्रभाकर ने पहले से वहां छिपा कर रखे चाकू  से उस का गला काट दिया. कांता की मौत हो गई तो उस ने आराम से बाथरूम में ही शव के 3 टुकड़े किए. इस के बाद उन टुकड़ों को लाल कपड़ों में लपेट कर पैकेट बनाए और उन्हें पौलीथीन में लपेट कर आटो से अलगअलग स्थानों पर फेंक दिए. इस के बाद वापस आ कर बाथरूम को खूब अच्छी तरह से साफ किया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने प्रभाकर के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक वह जेल में ही था. प्रभाकर ने मांबाप की जिस इज्जत को बचाने की खातिर कांता से पीछा छुड़ाने के लिए उस के खून से अपने हाथ रंगे, जेल जाने के बाद आखिर वह बरबाद हो ही गई.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

भाभी के प्यार में पागल देवर ने ली साले की जान

फौजी सुरेंद्र के संबंध अपनी भाभी से थे. भाई की मौत के बाद वह उसे अपने साथ रखना चाहता था, जबकि सुरेंद्र की पत्नी ममता ने इस का विरोध किया तब इस सनकी फौजी ने जो किया, उस से 2 घर बरबाद हो गए. कानपुर महानगर के थाना चकेरी के अंतर्गत आने वाले गांव घाऊखेड़ा में बालकृष्ण यादव अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी वीरवती के अलावा 2 बेटियां गीता, ममता और 3 बेटे मोहन, राजेश और श्यामसुंदर थे. बालकृष्ण सेना में थे, इसलिए उन्होंने अपने सभी बच्चों की परवरिश बहुत ही अच्छे ढंग से की थी. उन की पढ़ाईलिखाई भी का भी विशेष ध्यान रखा था.

नौकरी के दौरान ही उन्होंने अपने बड़े बेटे मोहन और बड़ी बेटी गीता की शादी कर दी थी. सन 2004 में बालकृष्ण सेना से रिटायर्ड हो गए थे. अब तक उन के अन्य बच्चे भी सयाने हो गए थे. इसलिए वह एकएक की शादी कर के इस जिम्मेदारी से मुक्ति पाना चाहते थे. इसलिए घर आते ही उन्होंने ममता के लिए अच्छे घरवर की तलाश शुरू कर दी. इसी तलाश में उन्हें अपने दोस्त लक्ष्मण सिंह की याद आई. क्योंकि उन का छोटा बेटा सुरेंद्र सिंह शादी लायक था.

लक्ष्मण सिंह भी उन्हीं के साथ सेना में थे. उन के परिवार में पत्नी लक्ष्मी देवी के अलावा 2 बेटे वीरेंद्र और सुरेंद्र थे. वीरेंद्र प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था, जबकि सुरेंद्र की नौकरी सेना में लग गई थी. वीरेंद्र की शादी कानपुर के ही मोहल्ला श्यामनगर के रहने वाले रामबहादुर की बहन निर्मला से हुई थी. सुरेंद्र की नौकरी लग गई थी, इसलिए लक्ष्मण सिंह भी उस के लिए लड़की देख रहे थे. सुरेंद्र का ख्याल आते ही बालकृष्ण अपने दोस्त के यहां जा पहुंचे. उन्होंने उन से आने का कारण बताया तो दोनों दोस्तों ने दोस्ती को रिश्तेदारी में बदलने का निश्चय कर लिया.

इस के बाद सारी औपचारिकताएं पूरी कर के ममता और सुरेंद्र की शादी हो गई. ममता सतरंगी सपने लिए अपनी ससुराल गांधीग्राम आ गई. यह सन 2005 की बात है. शादी के बाद ममता के दिन हंसीखुशी से गुजरने लगे. लेकिन जल्दी ही ममता की यह खुशी दुखों में बदलने लगी. इस की वजह यह थी कि सुरेंद्र पक्का शराबी था. वह शराब का ही नहीं, शबाब का भी शौकीन था. इस के अलावा उस में सभ्यता और शिष्टता भी नहीं थी. शादी होते ही हर लड़की मां बनने का सपना देखने लगती है. ममता भी मां बनना चाहती थी.

लेकिन जब ममता कई सालों तक मां नहीं बन सकी तो वह इस विषय पर गहराई से विचार करने लगी. जब इस बात पर उस ने गहराई से विचार किया तो उसे लगा कि एक पति जिस तरह पत्नी से व्यवहार करता है, उस तरह का व्यवहार सुरेंद्र उस से नहीं करता. उसी बीच ममता ने महसूस किया कि सुरेंद्र उस के बजाय अपनी भाभी के ज्यादा करीब है. लेकिन वह इस बारे में किसी से कुछ कह नहीं सकी. इस की वजह यह थी कि उस ने कभी दोनों को रंगेहाथों नहीं पकड़ा था. फिर भी उसे संदेह हो गया था कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है.

एक तो वैसे ही ममता को सुरेंद्र के साथ ज्यादा रहने का मौका नहीं मिलता था, दूसरे जब वह घर आता था तो उस से खिंचाखिंचा रहता था. सुरेंद्र ममता को साथ भी नहीं ले जाता था, इसलिए ज्यादातर वह मायके में ही रहती थी. आखिर शादी के 5 सालों बाद ममता का मां बनने का सपना पूरा ही हो गया. उस ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम रखा गया सौम्य. ममता को लगा कि बेटे के पैदा होने से सुरेंद्र बहुत खुश होगा. उन के बीच की जो हलकीफुलकी दरार है, वह भर जाएगी. उस के जीवन में भी खुशियों की बहार आ जाएगी.

लेकिन ऐसा हुआ नहीं, क्योंकि ममता को जैसे ही बेटा पैदा हुआ, उस के कुछ दिनों बाद ही सुरेंद्र के बड़े भाई वीरेंद्र की मौत हो गई. वीरेंद्र की यह मौत कुदरती नहीं थी. वह थोड़ा दबंग किस्म का आदमी था. उस का किसी से झगड़ा हो गया तो सामने वाले ने अपने साथियों के साथ उसे इस तरह मारापीटा कि अस्पताल पहुंचने से पहले ही उस की मौत हो गई. वीरेंद्र की मौत के बाद सुरेंद्र और उस की भाभी के जो नजायज संबंध लुकछिप कर बन रहे थे, अब घरपरिवार और समाज की परवाह किए बगैर बनने लगे. ममता का जो संदेह था, अब सच साबित हो गया. भाभी को हमारे यहां मां का दरजा दिया जाता है, लेकिन सुरेंद्र और निर्मला को इस की कोई परवाह नहीं थी. जेठ के रहते ममता ने इस बात पर खास ध्यान नहीं दिया था. लेकिन जेठ की मौत के बाद सुरेंद्र खुलेआम भाभी के पास आनेजाने लगा.

ममता ने इस का विरोध किया तो उस के ससुर ने कहा, ‘‘ममता, इस मामले में तुम्हारा चुप रहना ही ठीक है. दरअसल मैं ने अपनी सारी प्रौपर्टी पहले ही वीरेंद्र और सुरेंद्र के नाम कर दी थी. निर्मला अभी जवान है. अगर वह कहीं चली गई तो उस के हिस्से की प्रौपर्टी भी उस के साथ चली जाएगी. इसलिए अगर तुम बखेड़ा न करो तो सुरेंद्र उस से शादी कर ले. इस तरह घर की बहू भी घर में ही रह जाएगी और प्रौपर्टी भी.’’

सौतन भला किसे पसंद होती है. इसलिए ससुर की बातें सुन कर ममता तड़प उठी. वह समझ गई कि यहां सब अपने मतलब के साथी हैं. उस का कोई हमदर्द नहीं है. पति गलत रास्ते पर चल रहा है तो ससुर को चाहिए कि वह उसे सही रास्ता दिखाएं और समझाएं. जबकि वह खुद ही उस का समर्थन कर रहे हैं. बल्कि उस से यह कह रहे हैं कि वह सौतन स्वीकार कर ले. उस का पति तो वैसे ही उसे वह मानसम्मान नहीं देता, जिस की वह हकदार है. अगर उस ने भाभी से शादी कर ली तो शायद वह उसे दिल से ही नहीं, घर से भी निकाल दे. यही सब सोच कर ममता ने उस समय इस बात को टालते हुए कहा, ‘‘बाबूजी, यह मेरी ही नहीं, मेरे बच्चे की भी जिंदगी से जुड़ा मामला है. इसलिए मुझे थोड़ा सोचने का समय दीजिए.’’

इस के बाद ममता मायके गई और घरवालों को पूरी बात बताई. ममता की बात सुन कर सभी हैरान रह गए. एकबारगी तो किसी को इस बात पर विश्वास ही नहीं हुआ, क्योंकि निर्मला 3 बच्चों की मां थी. उस समय उस की बड़ी बेटी लगभग 20 साल की थी, उस से छोटा बेटा 16 साल का था तो सब से छोटा बेटा 12 साल का. इस उम्र में निर्मला को अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सोचना चाहिए था, जबकि वह अपने बारे में सोच रही थी. उस की बेटी ब्याहने लायक हो गई थी, जबकि वह खुद अपनी शादी की तैयारी कर रही थी. ममता के घर वालों ने उस से साफसाफ कह दिया कि वह इस बात के लिए कतई न राजी हो. जेठानी को जेठानी ही बने रहने दे, उसे सौतन कतई न बनने दे.

मायके वालों का सहयोग मिला तो सीधीसादी ममता ने अपने ससुर से साफसाफ कह दिया कि वह कतई नहीं चाहती कि उस  का पति उस के रहते दूसरी शादी करे. ममता का यह विद्रोह न सुरेंद्र को पसंद आया, न उस के बाप लक्ष्मण सिंह को. इसलिए बापबेटे दोनों को ही ममता से नफरत हो गई. परिणामस्वरूप दोनों के बीच दरार बढ़ने लगी. ममता सुरेंद्र की परछाई बन कर उस के साथ रहना चाहती थी, जबकि सुरेंद्र उस से दूर भाग रहा था. अब वह छोटीछोटी बातों पर ममता की पिटाई करने लगा. ससुराल के अन्य लोग भी उसे परेशान करने लगे. इस के बावजूद ममता न पति को छोड़ रही थी, न ससुराल को. इतना परेशान करने पर भी ममता न सुरेंद्र को छोड़ रही थी, न उस का घर तो एक दिन सुरेंद्र ने खुद ही मारपीट कर उसे घर से निकाल दिया.

सुरेंद्र ने जिस समय ममता को घर से निकाला था, उस समय उस की पोस्टिंग लखनऊ के कमांड हौस्पिटल में थी. ममता के पिता बालकृष्ण और भाई श्यामसुंदर ने सुरेंद्र के अफसरों से उस की इस हरकत की लिखित शिकायत कर दी. तब अधिकारियों ने सुरेंद्र और ममता को बुला कर दोनों की बात सुनी. चूंकि गलती सुरेंद्र की थी, इसलिए अधिकारियों ने उसे डांटाफटकारा ही नहीं, बल्कि आदेश दिया कि वह ममता को 10 हजार रुपए महीने खर्च के लिए देने के साथ बच्चों को ठीक से पढ़ाएलिखाए. इस के बाद अधिकारियों ने कमांड हौस्पिटल परिसर में ही सुरेंद्र को मकान दिला दिया, जिस से वह पत्नी और बच्चों के साथ रह सके.

अधिकारियों के कहने पर सुरेंद्र ममता को साथ ले कर उसी सरकारी क्वार्टर में रहने तो लगा, लेकिन उस की आदतों में कोई सुधार नहीं आया. उसे जब भी मौका मिलता, वह भाभी से मिलने कानपुर चला जाता. अगर ममता कुछ कहती तो वह उस से लड़नेझगड़ने लगता. साथ रहने पर सुरेंद्र से जितना भी हो सकता था, वह ममता को परेशान करता रहा, इस के बावजूद ममता उस का पीछा छोड़ने को तैयार नहीं थी. अगर सुरेंद्र ज्यादा परेशान करता तो वह उस की ज्यादतियों की शिकायत उस के अधिकारियों से कर देती, जिस से उसे डांटाफटकारा जाता. लखनऊ में रहते हुए ममता ने एक बेटी को जन्म दिया. बेटी के पैदा होने के समय वह मायके आ गई थी. लेकिन 2 महीने के बाद वह अकेली ही लखनऊ चली गई.

धीरेधीरे सुरेंद्र सेना के नियमों का उल्लंघन करने लगा. एक दिन वह शराब पी कर बिना हेलमेट के सैन्य क्षेत्र में मोटरसाइकिल चलाते पकड़ा गया तो उसे दंडित किया गया. लेकिन उस पर इस का कोई असर नहीं पड़ा. दंडित किए जाने के बाद भी उस में कोई सुधार नहीं आया. इसी तरह दोबारा शराब पी कर बिना हेलमेट के सैन्य क्षेत्र में मोटरसाइकिल चलाने पर सेना के गार्ड ने उसे रोका तो उस ने गार्ड को जान से मारने की धमकी दी. गार्ड ने इस बात की रिपोर्ट कर दी. निश्चित था, इस मामले में उसे सजा हो जाती. इसलिए सजा से बचने के लिए वह भाग कर कानपुर चला गया.

सुरेंद्र को लगता था कि इस सब के पीछे उस के साले श्यामसुंदर का हाथ है. यह बात दिमाग में आते ही श्यामसुंदर उस की आंखों में कांटे की तरह चुभने लगा. क्योंकि श्यामसुंदर काफी पढ़ालिखा और समझदार था. वह कानपुर में ही एयरफोर्स में नौकरी कर रहा था. बात भी सही थी. उसी ने अधिकारियों से उस की शिकायत कर के ममता को साथ रखने के लिए उसे मजबूर किया था. सुरेंद्र को लग रहा था कि जब तक श्यामसुंदर रहेगा, उसे चैन से नहीं रहने देगा. इसलिए उस ने सोचा कि अगर उसे चैन से रहना है तो उसे खत्म करना जरूरी है. इसी बात को दिमाग में बैठा कर सुरेंद्र 29 सितंबर को चकेरी के विराटनगर स्थित अपने ससुर की दुकान पर जा पहुंचा. उस समय शाम के सात बज रहे थे.

श्यामसुंदर ड्यूटी से आ कर दुकान पर बैठ कर पिता की मदद करता था. संयोग से उस दिन श्यामसुंदर दुकान पर अकेला ही था. सुरेंद्र ने पहुंचते ही अपने लाइसेंसी रिवाल्वर से श्यामसुंदर पर गोली चला दी. गोली लगते ही श्यामसुंदर गिर कर छटपटाने लगा. गोली की आवाज सुन कर आसपास के लोग दौड़े तो सुरेंद्र ने हवाई फायर करते हुए कहा, ‘‘अगर किसी ने रोकने या पकड़ने की कोशिश की तो उस का भी यही हाल होगा.’’

डर के मारे किसी ने सुरेंद्र को पकड़ने की हिम्मत नहीं की. सुरेंद्र आसानी से वहां से भाग निकला. पड़ोसियों की मदद से बालकृष्ण बेटे को एयरफोर्स हौस्पिटल ले गए, जहां निरीक्षण के बाद डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. श्यामसुंदर की मौत से उस के घर में कोहराम मच गया. श्यामसुंदर की पत्नी सीमा देवी, जिस की शादी अभी 3 साल पहले ही हुई थी, उस का रोरो कर बुरा हाल था. अपने 2 साल के बेटे कार्तिक को सीने से लगाए कह रही थी, ‘‘बेटा तू अनाथ हो गया. तुझे किसी और ने नहीं, तेरे फूफा ने ही अनाथ कर दिया.’’

इस घटना की सूचना ममता को मिली तो उस का बुरा हाल हो गया. वह दोनों बच्चों को ले कर रोतीपीटती किसी तरह लखनऊ से कानपुर पहुंची. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपनी भाभी को कैसे सांत्वना दे. वह तो यही सोच रही थी कि वह स्वयं विधवा हो गई होती तो इस से अच्छा रहता. घटना की सूचना पा कर अहिरवां चौकी प्रभारी विक्रम सिंह चौहान सिपाही रूप सिंह यादव, सीमांत सिकरवार, विनोद कुमार तथा योंगेंद्र को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंचे. घटना गंभीर थी, इसलिए उन्होंने घटना की सूचना थानाप्रभारी संगमलाल सिंह को दी. इस तरह सूचना पा कर थानाप्रभारी संगमलाल सिंह, पुलिस अधीक्षक (पूर्वी) राहुल कुमार और क्षेत्राधिकारी कैंट भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

इस के बाद श्यामसुंदर के भाई राजेश यादव द्वारा दी गई तहरीर के आधार पर हत्या का यह मुकदमा थाना चकेरी में सुरेंद्र सिंह यादव पुत्र लक्ष्मण सिंह यादव निवासी गांधीग्राम, चकेरी के खिलाफ दर्ज कर लिया गया. दूसरी ओर घटनास्थल और लाश का निरीक्षण करने पुलिस ने उसे पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया था. इस के बाद मामले की जांच की जिम्मेदारी थानाप्रभारी संगमलाल सिंह ने संभाल ली. अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद श्यामसुंदर का शव मिला तो घरवालों ने सुरेंद्र की गिरफ्तारी न होने तक अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया. मृतक के घर वालों की इस घोषणा से पुलिस प्रशासन सकते में आ गया. इस के बाद पुलिस सुरेंद्र की गिरफ्तारी के लिए दौड़धूप करने लगी. परिणामस्वरूप अगले दिन यानी 1 अक्तूबर, 2013 को रामादेवी चौराहे से सुबह 4 बजे अभियुक्त सुरेंद्र सिंह यादव को गिरफ्तार कर लिया गया.

इस के बाद पुलिस ने सुरेंद्र की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त उस की लाइसेंसी रिवाल्वर बरामद कर ली. पूछताछ में सुरेंद्र ने बताया, ‘‘मेरे अपनी भाभी निर्मला से अवैध संबंध थे. भाई के मरने के बाद मैं उसे अपने साथ रखना चाहता था, जबकि ममता और उस के घर वाले इस बात का विरोध कर रहे थे. श्यामसुंदर इस मामले में सब से ज्यादा टांग अड़ा रहा था, इसलिए मैं ने उसे खत्म कर दिया.’’

सुरेंद्र की गिरफ्तारी के बाद उसी दिन शाम को श्यामसुंदर को घर वालों ने उस का अंतिमसंस्कार कर दिया. इस तरह एक सनकी फौजी ने अपनी सनक की वजह से 2 घर बरबाद कर दिए. साले के बच्चे को तो अनाथ किया ही, अपने भी बच्चों को अनाथ कर दिया.

ममता भी पति के रहते न सुहागिन रही न विधवा. उस के लिए विडंबना यह है कि वह मायके में भी रहे तो कैसे? अब उस की और उस के बच्चों की परवरिश कौन करेगा? सुरेंद्र को सजा हो गई तो उस के मासूम बच्चों का क्या होगा?

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime Story : 27 साल बाद बदले की आग में 5 हत्याएं

बचपन में जिस विक्की ने अपने मांबाप का खून होते हुए अपनी आंखों से देखा था, उसे वह चाह कर भी भुला नहीं पाया था. उस के अंदर जल रही बदले की आग 27 साल बाद जब ज्वाला बनी तो उस में 5 लोग भस्म हो गए. आखिर कौन थे वो लोग?

इस बार दीपावली के पहले 33 वर्षीय विशाल उर्फ विक्की गुप्ता अहमदाबाद से घर आया और अपनी दादी शारदा देवी से बोला, ”दादी, मैं दीवाली के दिन मम्मीपापा के हत्यारे को जिंदा नहीं छोड़ूंगा. उस दिन दीवाली के पटाखों के शोर में किसी को पता भी नहीं चलेगा.’’

अपने पोते के मुंह से यह बात सुनते ही शारदा देवी चिंता में पड़ गईं. उन्होंने विक्की को पास बुलाया और उस के सिर पर हाथ फेरते हुए उसे समझाते हुए बोलीं, ”देख विक्की, जो बीत गया, उसे भूल जा. वैसे ही मेरे पास बस यही एक बेटा राजेंद्र बचा है. बेटा, इस तरह का खयाल मन से निकाल दे, खूनखराबा करने से आखिर क्या हासिल होगा.’’

”दादी, आखिर मैं कैसे भूल जाऊं कि 27 साल पहले राजेंद्र ताऊ ने मेरे मम्मीपापा को किस तरह मेरे सामने गोलियों से भून दिया था और तो और, जेल से आने के बाद दादाजी को मरवा डाला था.’’ विक्की आवेश में आते हुए बोला.

”मुझे देख ले बेटा, तेरे दादाजी की मौत का गम सह कर भी मैं ने राजेंद्र को माफ कर दिया है. आखिर इतना बड़ा कारोबार संभालता कौन? दीवाली खुशियों का त्यौहार है, इसे मातम में मत बदल देना.’’ शारदा देवी उसे पुचकारते हुए बोलीं.

”आखिर हम कब तक ताऊ के टुकड़ों पर पलेंगे, हमारा भी तो हक है इस प्रौपर्टी पर. हम बेगानों की तरह इस घर में कब तक रहेंगे?’’ विक्की ने दादी से कहा.

”विक्की बेटा, थोड़ा धीरज रख, मैं तुझे प्रौपर्टी का हिस्सा भी दिला दूंगी. मगर कोई ऐसा कदम मत उठाना कि मुझे इस बुढ़ापे में बुरे दिन देखने पड़ें.’’ शारदा देवी के समझाने के बाद विक्की चला गया.

वाराणसी के भदैनी इलाके में पावर हाउस के सामने की गली में 56 साल के शराब कारोबारी राजेंद्र गुप्ता का 5 मंजिला मकान है. मकान के अगले हिस्से में पहले, दूसरे और तीसरे तल पर राजेंद्र का एकएक फ्लैट है, जबकि अन्य फ्लैट और उस से सटे टिनशेड में 40 किराएदार रहते हैं. राजेंद्र गुप्ता के साथ घर में 80 साल की मां शारदा देवी के अलावा उस की पत्नी नीतू, 24 साल का बेटा नवनेंद्र व 15 साल का सुबेंद्र और 17 साल की बेटी गौरांगी रहते थे.

विक्की राजेंद्र के भाई कृष्णा गुप्ता का बेटा था, जो तमिलनाडु के वेल्लोर से एमसीए करने के बाद अहमदाबाद में सौफ्टवेयर डेवलेपर था. अक्तूबर महीने के आखिरी हफ्ते में अपने घर वाराणसी आया हुआ था. विक्की का एक छोटा भाई प्रशांत उर्फ जुगनू और एक बहन अनुप्रिया है, जिस की शादी हो चुकी है.

उस दिन 5 नवंबर, 2024 की सुबह 11 बजे घर में काम करने वाली नौकरानी रीता जैसे ही फ्लैट में घुसी तो अम्मा ने ऊपर की मंजिल से आवाज दे कर पूछा, ”क्यों रीता, खाना बनाने वाली रेनू आई है कि नहीं?’’

”अभी तक तो नहीं आई अम्मा.’’ रीता ने नीचे से चिल्ला कर कहा.

”देख तो जरा नीतू क्या अभी तक सो कर नहीं उठी, कोई आवाज नहीं आ रही.’’ अम्मा ने पूछा.

”अम्मा, अभी दरवाजा लगा हुआ है. हो सकता है बाहर गई हों. फिर भी मैं देख कर बताती हूं.’’ रीता ने कहा.

इतना कह कर रीता ने झाड़ू उठाई और सफाई करते हुए नीतू भाभी के कमरे तक पहुंची. रीता ने प्रथम तल स्थित फ्लैट पर पहुंच कर दरवाजा खटखटाया, लेकिन अंदर से कोई आवाज नहीं आई. थोड़ा इंतजार के बाद रीता ने दरवाजे पर धक्का दिया तो दरवाजा खुल गया. अंदर जाने पर रीता ने जो दृश्य देखा तो उस की चीख निकल गई. कमरे में नीतू फर्श पर खून से लथपथ निढाल पड़ी थी. रीता चिल्लाती हुई दूसरी मंजिल की तरफ गई, जहां नीतू के बड़े बेटे नवनेंद्र का कमरा था. उस ने बाहर से ही आवाज दे कर पुकारा, ”बाबू भैया, बाबू भैया, नीचे जा कर तो देखो, मम्मी को क्या हुआ है.’’

कोई उत्तर नहीं मिलने पर उस ने अंदर जा कर देखा तो वहां एक कमरे में नवनेंद्र फर्श पर खून से लथपथ पड़ा था और गौरांगी एक कोने में मृत पड़ी थी. तो सुबेंद्र का शव बाथरूम में मिला. रीता फ्लैट के नीचे आई और आसपास के लोगों को उस ने घटना की जानकारी दी. आसपास रहने वाले लोगों ने घटना की सूचना पुलिस को दी. पुलिस ने इस वारदात की मौके पर पहुंच कर जांच शुरू की. सभी के सिर और सीने में एकएक गोली मारी गई थी. जबकि इतनी बड़ी वारदात के बावजूद हैरानी की बात यह थी कि घर का मुखिया राजेंद्र गुप्ता गायब था.

पुलिस जिसे कातिल समझ रही थी, उस का भी हो गया मर्डर

पूछताछ में पता चला कि राजेंद्र गुप्ता कुछ समय से पत्नी से अनबन के चलते परिवार से अलग रह रहा था. लोगों के साथ पुलिस को लगा कि शायद इन चारों कत्ल के पीछे राजेंद्र गुप्ता का ही हाथ है, जिस ने किसी वजह से अपने पूरे परिवार की जान ले ली और खुद फरार हो गया. आखिरी नतीजे पर पहुंचने से पहले पुलिस के लिए इस बात की तस्दीक जरूरी थी. जब पुलिस ने राजेंद्र गुप्ता के मोबाइल फोन की लोकेशन ट्रेस की तो फोन की लोकेशन मौकाएवारदात से दूर रोहनिया पुलिस थाना के मीरापुर-रामपुर गांव में मिल रही थी.

पुलिस यह सोच कर हैरान थी कि जिस के पूरे परिवार का कत्ल हो गया, वह शहर से दूर एक गांव में आखिर क्या कर रहा है? पुलिस की एक टीम फौरन मीरापुर-रामपुर गांव के लिए रवाना हुई. मोबाइल की लोकेशन के मुताबिक टीम एक अंडर कंस्ट्रक्शन मकान में पहुंची. यहां पुलिस को जो कुछ मिला, वो और भी हैरान करने वाला था. इस मकान के अंदर बिस्तर पर राजेंद्र गुप्ता की लाश पड़ी थी. ठीक अपने परिवार के बाकी लोगों की तरह उस के भी सिर और सीने में एकएक गोली लगी थी.

इस वारदात में एक बात परिवार के बाकी लोगों से अलग थी, वो थी राजेंद्र गुप्ता की लाश का बिलकुल बिना कपड़ों के होना. राजेंद्र गुप्ता की इस हाल में मिली लाश ने इस केस को मानो अचानक से पलट दिया. क्योंकि अब तक पुलिस यह मान कर चल रही थी कि राजेंद्र गुप्ता ने ही अपने पूरे परिवार की हत्या की होगी. कुछ लोग यह भी मान रहे थे कि हत्या करने के बाद उस ने खुद को भी गोली मार कर जान दे दी होगी, लेकिन वहां जिस तरह से उस के सिर और सीने में एकएक गोली लगी थी, उस से साफ था कि राजेंद्र गुप्ता ने कम से कम खुदकुशी तो नहीं की है. क्योंकि खुदकुशी करने वाला आदमी अपने सिर और सीने में एकएक कर 2 गोलियां नहीं मार सकता. और फिर जिस हथियार से खुद को गोली मारी, वह भी वहीं होना चाहिए था.

पुलिस के सामने सब से बड़ा सवाल यह था कि आखिर कातिल कौन है? पुलिस ने घटनास्थल से मिले खोखे के आधार पर यह दावा किया कि हत्या में .32 बोर की पिस्टल का इस्तेमाल किया गया था. उत्तर प्रदेश के शहर वाराणसी के भेलूपुर थाना इलाके में हुई इस घटना से पूरे इलाके में दहशत फैल गई. काशी जोन के डीसीपी गौरव बांसवाल के निर्देश पर पुलिस ने सभी लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, राजेंद्र गुप्ता को 3 गोलियां मारी गई थीं, 2 उस के सिर पर और एक सीने पर. उस के बड़े बेटे नवनेंद्र को 4 गोलियां मारी गई थीं, जिन में 2 सिर पर और 2 सीने पर थीं.

नीतू गुप्ता को भी 4 गोलियां मारी गईं, जबकि बेटी गौरांगी और छोटे बेटे सुबेंद्र को 2-2 गोलियां मारी गईं. रिपोर्ट के अनुसार, एक ही प्रकार की पिस्टल से गोली मारी गई थी, इस से पता चलता है कि यह सुनियोजित हत्याएं थीं. 6 नवंबर को सभी 5 शवों का पोस्टमार्टम करवाने के बाद पुलिस की मौजूदगी में अंतिम संस्कार करवाया गया. जब घर से एक साथ 5 अर्थियां उठीं तो देखने वालों की आंखें नम हो गईं. वाराणसी में पिता, पत्नी और 3 बच्चों के शव हरिश्चंद्र घाट पर जैसे ही पहुंचे, वैसे ही श्मशान घाट पर लोगों का जमावड़ा लग गया. हर कोई एक साथ परिवार के सभी सदस्यों की एक साथ जलती चिताओं को देख हैरान था.

वाराणसी के हरिश्चंद्र घाट पर भतीजे प्रशांत उर्फ जुगनू ने अपने ताऊ राजेंद्र गुप्ता, ताई नीतू, चचेरी बहन गौरांगी और चचेरे भाइयों सुबेंद्र के साथ नवनेंद्र के शवों का अंतिम संस्कार करते हुए मुखाग्नि दी. अंतिम संस्कार के बाद भतीजे जुगनू को पुलिस ने हिरासत में रखा. अंतिम संस्कार के दौरान हरिश्चंद्र घाट पर राजेंद्र गुप्ता की मां शारदा भी मौजूद रहीं और नम आंखों से अपने परिवार के सदस्यों की जलती चिताओं को देर तक निहारती रहीं.

वाराणसी पुलिस की तफ्तीश आगे बढ़ी और अब पुलिस ने परिवार में जिंदा बची सब से बुजुर्ग महिला राजेंद्र गुप्ता की मां शारदा देवी से पूछताछ की. शारदा देवी ने इस कत्ल को ले कर जो कहानी सुनाई, उस ने मामले को एक और ही नया मोड़ दे दिया. शारदा देवी ने शक जताया कि इस वारदात के पीछे उन का पोता और राजेंद्र का भतीजा विशाल उर्फ विक्की गुप्ता हो सकता है. असल में विक्की पहले भी राजेंद्र गुप्ता के पूरे परिवार के कत्ल की बात कह चुका था और विक्की की अपने ही ताऊ राजेंद्र गुप्ता से पुरानी दुश्मनी भी थी.

राजेंद्र ने क्यों किया था छोटे भाई व भाभी का मर्डर

फिल्म ‘गैंग्स औफ वासेपुर’ में नवाजुद्दीन सिद्ïदीकी का फैजल खान वाला रोल आज भी याद है. उस के डायलौग की डिलीवरी इतनी परफेक्ट थी कि वह फिल्म दर्शकों पर जादू छोड़ गई थी. विशाल गुप्ता उर्फ विक्की ने भी जब फिल्म ‘गैंग्स औफ वासेपुर’ देखी और नवाजुद्ïदीन सिद्ïदीकी द्वारा बोला गया डायलौग ‘बाप का, दादा का, भाई का, सब का बदला लेगा रे तेरा फैजल’ सुना तो इस डायलौग ने किसी चिंगारी की तरह सीने में पड़ी सुस्त राख में दबी बदले की आग को सुलगा दिया.

उस के मन में दबी बदले की आग फिर से ज्वाला बनने को बेताब होने लगी. आखिर उसे अपने मम्मीपापा के कत्ल का बदला जो लेना था. 27 साल पहले 1997 में विक्की केवल 5 साल का मासूम बच्चा था, लेकिन उसे याद है कि किस तरह उस के पापा कृष्णा गुप्ता और मम्मी बबीता का बेरहमी से मर्डर कर दिया गया था. मर्डर करने वाला कोई गैर नहीं, बल्कि विक्की का सगा ताऊ राजेंद्र गुप्ता था. असल में वाराणसी के भदैनी इलाके में रहने वाले राजेंद्र गुप्ता के पिता लक्ष्मी नारायण गुप्ता बनारस के बड़े कारोबारी थे. उन का प्रौपर्टी और शराब का लंबाचौड़ा काम था.

लक्ष्मी नारायण के 2 बेटे राजेंद्र गुप्ता और कृष्णा गुप्ता थे. लेकिन लक्ष्मी नारायण अपने बड़े बेटे राजेंद्र गुप्ता के लापरवाह रवैए को ले कर हमेशा नाखुश रहते थे, क्योंकि राजेंद्र कारोबार पर ध्यान देने के बजाय अय्याशी की राह पर चल पड़ा था. इस वजह से उन्होंने अपने कारोबार का ज्यादातर हिस्सा अपने छोटे बेटे कृष्णा गुप्ता के हवाले कर दिया था. इस बात को ले कर राजेंद्र का अपने पिता से झगड़ा भी होता था. इस का नतीजा यह हुआ कि गुस्से में आ कर राजेंद्र ने 1997 के नवंबर महीने में एक रोज अपने छोटे भाई कृष्णा गुप्ता और उस की पत्नी की सोते समय गोली मार कर हत्या कर दी थी.

इस घटना के बाद राजेंद्र को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया, लेकिन इस वारदात से अपने बड़े बेटे राजेंद्र पर लक्ष्मी नारायण गुप्ता का गुस्सा और बढ़ गया. मांबाप का साया छिन जाने के बाद लक्ष्मी नारायण ने कृष्णा के दोनों बेटों विक्की और जुगनू को काम सिखाना शुरू कर दिया.

उधर, जेल में बंद राजेंद्र अब भी अपने पिता के रवैए से गुस्से में था. करीब 6 साल जेल में गुजारने के बाद साल 2003 में उसे जैसे ही पैरोल मिली, बाहर आ कर उस ने एक और बड़ी वारदात को अंजाम दे दिया. असल में राजेंद्र अपने पिता से प्रौपर्टी और कारोबार का हिस्सा मांग रहा था, लेकिन लक्ष्मी नारायण इस के लिए तैयार नहीं थे.

राजेंद्र ने क्यों कराया पिता का मर्डर

अचानक एक रोज वाराणसी शहर के आचार्य रामचंद्र शुक्ल चौराहे के पास गुमनाम कातिलों ने लक्ष्मी नारायण गुप्ता और उन के पर्सनल सिक्योरिटी गार्ड की गोली मार कर हत्या कर दी. इस मामले में पुलिस के शक की सूई पहले ही दिन से बेटे राजेंद्र गुप्ता पर ही थी. ऐसे में जब जांच आगे बढ़ी तो पुलिस को पता चला कि राजेंद्र गुप्ता ने ही सुपारी दे कर अपने पिता और उन के सिक्योरिटी गार्ड का कत्ल करवा दिया.

राजेंद्र की पहली शादी 1995 में हुई थी, पहली पत्नी से उसे एक बेटा भी हुआ था. राजेंद्र के जिद्ïदी स्वभाव और हिंसक होने से पहली पत्नी बुरी तरह डर गई. उसे हर पल यही डर सताता कि जो शख्स अपने सगे भाई का मर्डर कर सकता है, वह उसे भी नुकसान पहुंचा सकता है. इसलिए राजेंद्र के जेल जाते ही पहली पत्नी अपने मायके पश्चिम बंगाल के आसनसोल चली गई. इस के बाद साल 2003 में जब राजेंद्र जेल से बाहर आया तो उस ने नीतू से दूसरी शादी की, जिस से उसे 3 बच्चे नवनेंद्र, सुबेंद्र और गौरांगी हुए. इन बच्चों के सिर पर तो खैर मांबाप का साया था, लेकिन राजेंद्र की वजह से ही कृष्णा के बच्चे कई साल अनाथ की तरह रहे.

कहने को तो विक्की, जुगनू और उन की बहन अनुप्रिया को राजेंद्र ने ही पाला था, लेकिन परवरिश के मामले में भी उस का परिवार अपने भतीजों के साथ सौतेला व्यवहार करता था. राजेंद्र हर समय अपने भतीजों के साथ गालीगलौज करता था और यह धमकी भी देता था कि उन के मम्मीपापा की तरह उन का भी कत्ल कर देगा. जैसेजैसे राजेंद्र के भतीजे बड़े हो रहे थे, वे गुस्से और बदले की आग में जल रहे थे. और अब जब ये वारदात हुई तो शक की सूई राजेंद्र के बड़े भतीजे विक्की पर ही जा कर टिक गई थी. क्योंकि पुलिस को उस के खिलाफ कई सबूत भी मिल चुके थे और वारदात के बाद से ही वह फरार भी था. राजेंद्र की बुजुर्ग मां शारदा देवी ने भी पुलिस को बताया था कि विक्की अपने चाचा से बदला लेना चाहता था.

विक्की और उस का भाई जुगनू दोनों दिल्ली एनसीआर में ही रह कर अपना काम करते थे. इस वारदात के बाद जुगनू तो बनारस पहुंच गया, लेकिन विक्की का कोई पता नहीं चला. इस बीच जब पुलिस ने विक्की के बारे में जानकारी जुटाई तो ये पता चला कि उस ने अपने करीबियों से कई बार राजेंद्र गुप्ता और उस के परिवार को जान से मार डालने की बात कही थी. पुलिस ने इस वारदात के बाद विक्की के बहनोई को नोएडा से हिरासत में लिया, जिस ने पूछताछ में इस बात पर मुहर लगाई. बहनोई ने बताया कि विक्की ने उस से कहा था कि इस बार दीवाली में वो अपने ताऊ और उस के परिवार को मार डालेगा.

पुलिस को मामले की छानबीन के दौरान मिली एक पर्सनल डायरी ने इस मौत की गुत्थी को और भी उलझा दिया. यह डायरी वारदात में मारे गए शख्स राजेंद्र गुप्ता की थी. डायरी में राजेंद्र ने किसी से उस की लड़की के साथ शादी करने की इच्छा जताई थी और खुद को एक काबिल, कर्मठ, सच्चा और संस्कारी लड़का बता रहा था.

डायरी से उजागर हुए राज

डायरी में लिखी लाइनों के साथ एक सवाल यह भी खड़ा हो गया कि क्या राजेंद्र गुप्ता तीसरी शादी करना चाहता था? क्योंकि डायरी में ये बातें जिन पन्नों पर लिखी थीं, उस के साथ वाले दूसरे पन्ने पर 6 नवंबर, 2016 की तारीख है.

जेल से बाहर आने के बाद राजेंद्र ने दूसरा प्रेम विवाह अपने ही घर के सामने रहने वाली ब्राह्मण परिवार की नीतू से किया था. हत्याकांड के बाद अब राजेंद्र गुप्ता का खुद लिखा हुआ लगभग ढाई पन्ने का हैंडनोट मिला, जो नवंबर 2016 का था. इस हैंडनोट में राजेंद्र किसी के सामने अपनी सफाई पेश कर रहा था कि वह किस तरह का निहायत सीधा और सरल इंसान है. साथ ही उस का पहली पत्नी से तलाक हो चुका है. इतना ही नहीं, डायरी में तमाम लोगों के नाम, नंबर और बनाई गई कुंडलियां पेन से कट की गई थीं.

राजेंद्र गुप्ता वर्ष 2016 में तीसरी शादी करने की फिराक में था. अधेड़ हो चुका राजेंद्र कहीं न कहीं अपने दिल में तीसरी शादी का सपना बुन रहा था. हैंडनोट में वह कथित तौर पर लड़की के पिता को अंकल कह कर संबोधित कर रहा था. ऐसे में पुलिस ने आशंका जताई कि कहीं यही बात तो उस की हत्या की वजह नहीं बन गई? शायद कातिल नहीं चाहता था कि राजेंद्र की अकूत संपत्ति का कोई नया वारिस आए या उस की जिदंगी में तीसरी औरत की एंट्री हो.

राजेंद्र के हैंडनोट में लिखा मिला, ‘नमस्ते अंकल, सौ बात की एक बात मैं आप से कहना चाहता हूं कि मुझ जैसा काबिल, कर्मठ, सच्चा, संस्कारी, चरित्रवान कुल मिला कर सर्वगुण संपन्न इंसान आप को ढूंढने से भी शायद न मिले. मैं अपने अंदर हमेशा कमी ढूंढता रहता हूं, लेकिन आज तक मुझे अपने अंदर कभी कोई कमी नहीं मिली. फोन पर थोड़ी देर बात कर के कोई भी, किसी को कितना समझ सकता है, फ्री माइंड हो कर आप से ठीक से बात नहीं कर पाया. घबराहट में शायद गलत बोल गया.’

हैंडनोट में राजेंद्र ने आगे लिखा था, ‘मेरा तलाक फाइनल हो चुका है, जो एकदम सत्य है. मेरी पत्नी ने अब दूसरी शादी कर ली है. मेरी ससुराल बहुत संपन्न है. बच्चों की पढ़ाई का मुझे कोई खर्च नहीं देना, सब हो चुका. हालांकि, बच्चों के लगाव की वजह से कुछ भेज देता हूं, इसलिए कि बच्चे नफरत न करें. बच्चे अपनी मां के साथ ही रहते हैं. मैं अकेला हूं. ‘अब आप लोग जो कहेंगे वो करूंगा. जीवनसाथी से कई फोन काल आते रहते हैं, लेकिन मुझे कुंडली मिला कर ही शादी करनी है. इसलिए सब को सौरी कहना पड़ रहा है. आप मुझे गलत मत समझिए. आप की बेटी से कुंडली मिला, तभी मैं ने इंटरेस्ट भेजा, नहीं मिलता तो नहीं भेजता.

‘कुंडली को गुरुजी को भी दिखाया, उन्होंने ओके बोल दिया. यदि आप की बेटी की शादी होती है तो मैं विश्वास दिलाता हूं कि उस को लाइफ में कोई कष्ट नहीं होने दूंगा. दुनिया की सब से बेहतरीन लाइफ उसे मिलेगी. आप एक राजा के घर शादी कर रहे हैं. मैं जानता हूं कि आप एक ऐसे पिता हैं, जिसे अपनी बेटी के भविष्य की चिंता है.’

विक्की को हर महीने 10 हजार रुपए क्यों भेजती थी ताई

विक्की भले ही अपने ताऊ से नफरत करता था और उन से बदला भी लेना चाहता था, मगर उस की ताई नीतू उस की काफी चिंता करती थी. विक्की की हर जरूरत का ध्यान नीतू रखती थी. विशाल का बैंक अकाउंट खंगालने पर चौंकाने वाली बात यह सामने आई कि नीतू गुप्ता यानी विशाल की ताई (राजेंद्र गुप्ता की पत्नी) उस के खर्च के लिए हर महीने 10 हजार रुपए भेजती थी.

सालों बाद इस बार दीवाली पर जब विक्की घर आया तो यम द्वितीया पर नीतू की बेटी गौरांगी ने विशाल की लंबी उम्र की कामना करते हुए भाई दूज पर टीका लगाया था और काफी वक्त एक साथ बिताया था. इन सब के बावजूद भी पुलिस को यह समझ नहीं आ रहा कि आखिर विशाल के हाथ अपनों पर गोली दागने से पहले कांपे क्यों नहीं?

राजेंद्र गुप्ता ने विक्की की बहन और अपनी भतीजी अनुप्रिया की शादी कपड़ा फैक्ट्री मालिक से करने के लिए झूठ बोला था. पुलिस को यह बात अनुप्रिया के पति ने बताई, जब उन से सवाल किया कि 4 हत्याओं के आरोपी के घर उस ने शादी कैसे की?

जिस पर अनुप्रिया के पति ने बताया कि राजेंद्र ने उन से झूठ बोलते हुए कहा था, ”मेरे छोटे भाई कृष्णा और उन की पत्नी बबीता की रोड एक्सीडेंट में मौत हो गई. इसलिए भतीजी के मम्मीपापा मैं और मेरी पत्नी नीतू ही हैं. अनुप्रिया भी मुझ से यह बात छिपाए रही. मुझे सच्चाई की जानकारी 5 हत्याओं से संबंधित खबर मीडिया में पढऩे के बाद हो पाई.’’

राजेंद्र गुप्ता से विक्की को इतनी नफरत थी कि वह बहन अनुप्रिया की शादी में नहीं आया था. जब उसे अनुप्रिया ने फोन लगा कर कहा था कि विक्की मेरी शादी में आना है तो उस ने फोन कर के बोला था, ”दीदी तुम शादी कर लो, मेरा आना ठीक नहीं रहेगा.’’

वह महीने-2 महीने में एक बार अनुप्रिया को जरूर फोन कर के उस का हालचाल पूछ लेता था. अपनी बहन पर वह बहुत प्यार दर्शाता था. इस बार भी दीवाली की मिठाई भी उस ने औनलाइन भेजी थी.

 

दादी का लाडला था विक्की

27 साल पुरानी चली आ रही इस रंजिश की असली वजह जायदाद है. इस केस में कई चौंका देने वाले खुलासे भी हुए हैं. 5 लोगों की हत्या करने का आरोपी विक्की अपनी दादी शारदा देवी से काफी क्लोज था. इस वारदात से पहले वह उन के पास घर पर आया था. दादी ने उस के लिए खाने में रोटियां भी बनवाई थीं. इस के लिए उन्होंने राजेंद्र गुप्ता की दूसरी पत्नी नीतू से कहा था कि वो नौकरानी से 3 रोटी अधिक बनवा ले.

डीसीपी गौरव बंसवाल और उन की टीम को इस हत्याकांड में पहले यह शक हुआ था कि मर्डर की इस घटना में कई शूटर शामिल होंगे, लेकिन गहराई से हुई जांच और पूछताछ में दादी शारदा देवी ने स्पष्ट बताया कि विक्की ने मंशा जाहिर की थी कि वह पूरे परिवार को खत्म कर देगा. विक्की ने 22 अक्तूबर से ही अपना मोबाइल बंद कर लिया. उस की कोई लोकेशन भी नहीं मिली. वह बगैर फोन के ही दीवाली के समय आ कर घर में रुका भी था. डीसीपी ने आगे बताया कि वारदात वाली रात में राजेंद्र गुप्ता को सोते हालत में ही उन के रोहनिया स्थित निर्माणाधीन मकान में सिर में 2 गोलियां मारी गई थीं. उस के बाद विक्की ने भदैनी के घर पर सुबह 5-6 बजे के बीच में आ कर 4 मर्डर किए थे.

विक्की घर के हर कोने से वाकिफ था. पहले उस ने पहली मंजिल पर सो रही नीतू को गोली मारी फिर वह सेकेंड फ्लोर पर गया, जहां गौरांगी और छोटू सो रहे थे. उस ने उन दोनों को भी गोली मार दी. उन की मच्छरदानी में भी गोलियों से छेद हो गए. गौरांगी का शव फर्श पर मिला था. ऐसा लगता है कि उस ने संघर्ष किया था, जबकि दूसरे बड़े बेटे का शव बाथरूम में मिला था. ऐसे में कहा जा सकता है कि दोनों ने संघर्ष कर के अपनी जान बचाने की पूरी कोशिश की थी.

विक्की की गतिविधियों को खंगालने पर पता चला है कि अहमदाबाद में उस ने 22-24 नवंबर के बीच अपना मोबाइल फोन बंद कर दिया था. इस के बाद वह बनारस आया था और यहीं पर भाईदूज तक रुका था.

कथा लिखने तक पुलिस को आरोपी विशाल विक्की के बारे में कहीं से कोई सुराग नहीं मिल सका था. पुलिस उस की तलाश में जुटी थी.

—कथा मीडिया रिपोर्ट पर आधारित