Hindi Crime Story: तांत्रिक की तीसरी शादी

Hindi Crime Story: समझदार होते ही सोनू की समझ में आ गया था कि यह दुनिया मूर्खों से अटी पड़ी है, बस मूर्ख बनाने का तरीका मालूम होना चाहिए. इस के बाद उस ने तंत्रमंत्र सीखा और अंधविश्वास में डूबे लोगों को मूर्ख बनाने लगा. उस की पोल तो तब खुली, जब वह तीसरी शादी के चक्कर में पड़ा.

निशा उन दिनों कुछ ज्यादा ही परेशान थी. उस की परेशानी का आलम यह था कि उसे खानेपीने तक की सुध नहीं रहती थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर यह सब हो क्या रहा है? पिछले 2-3 महीने से कुछ ऐसा उलटा चक्कर चल रहा था कि उस का अच्छाखासा चल रहा घर डूबते जहाज की तरह हिचकोले लेने लगा था. पहले मां बीमार हुई, उस के बाद छोटे भाई का हाथ टूट गया. उन दोनों को संभालने के चक्कर में उस की अपनी नौकरी चली गई. मां कुछ ठीक हुई तो उस ने दौड़भाग कर छोटामोटा काम ढूंढा, लेकिन मां एक बार फिर बीमार पड़ गई.

रोज कुआं खोद कर पानी पीने वालों के घर पैसा होता ही कहां है? निशा ने जो थोड़ाबहुत जमा कर रखा था, वह सब मां और भाई के इलाज पर खर्च हो गया. अब मां का इलाज कराने की कौन कहे, खाने के भी लाले पड़ गए. वह मां का इलाज कराए या खाने का इंतजाम करे. मकान मालिक का किराया भी वह 3 महीने से नहीं दे पाई थी. निशा परेशान थी कि ऐसे में कैसे क्या होगा? वह मां के इलाज और खानेपीने का जुगाड़ करने में जूझ ही रही थी कि एक अन्य खबर ने उसे झकझोर कर रख दिया. मकान मालिक ने उसे बुला कर कहा कि वह उस का पिछला सारा किराया अदा कर के मकान खाली कर दे.

निशा ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘अंकलजी, आप का किराया मैं धीरेधीरे अदा कर दूंगी. रही बात मकान खाली करने की तो इस हालत में हम कहां जाएंगे? अचानक मकान खाली करना हमारे लिए आसान नहीं है अंकलजी. पहले आप अपना पिछला किराया तो अदा हो जाने दीजिए. उस के बाद हम कोई इंतजाम कर के आप का मकान खाली करेंगे. आप हमें थोड़ी मोहल्लत दीजिए.’’

‘‘भई, मोहल्लत देने का सवाल ही नहीं उठता. तुम लोगों का हर महीने का यही तमाशा है. वैसे भी अगले महीने मेरे घर बेटी की शादी है. नातेरिश्तेदार आएंगे तो उन के उठनेबैठने के लिए जगह तो चाहिए. जब अपने पास जगह है तो बाहर इंतजाम करने की क्या जरूरत है. इसलिए तुम मेरा मकान खाली कर दो.’’ मकान मालिक ने साफसाफ कह दिया. निशा के लिए मकान खाली करना इतना आसान नहीं था. क्योंकि मकान का बकाया किराया, राशन और दूध वाले को मिला कर लगभग 15 हजार रुपए होते थे. अगर वह मकान खाली करती तो नए मकान का एडवांस किराया, सामान वगैरह की ढुलाई आदि को ले कर इतने ही रुपए और चाहिए थे.

इतनी बड़ी रकम का इंतजाम वह कहां से कर सकती थी? जबकि उस के पास उस समय 20 रुपए भी नहीं थे. अपनी यह परेशानी निशा ने अपनी सहेली सुधा से बताई तो सहेली की परेशानी सुन कर वह भी सोच में पड़ गई. अगर उस के पास पैसे होते तो इस हालत में वह अवश्य ही सहेली की मदद कर देती. अचानक उसे जैसे कुछ याद आया हो तो वह बोली, ‘‘निशा, मुझे लगता है तुझे सोनू तांत्रिक से मिलना चाहिए. वह तेरी समस्या का कोई न कोई समाधान जरूर कर देगा.’’

‘‘यह सोनू तांत्रिक कौन है और वह हमारी समस्या का समाधान कैसे कर सकता है?’’

‘‘यह तो वहां चलने पर ही पता चलेगा. लेकिन जहां तक मुझे उस के बारे में जानकारी मिली है, वह हर छोटीबड़ी समस्या का समाधान चुटकी बजा कर कर देता है. बस तू तैयार हो जा, कौन हमें दूर जाना है. यहीं न्यू कंपनी बाग की गली नंबर 3 में उस की कोठी है.’’

‘‘लेकिन सुधा, मैं तंत्रमंत्र के चक्कर में नहीं पड़ना चाहती. मुझे अपने कर्म पर भरोसा है. आज नहीं तो कल हालात बदल ही जाएंगे.’’ निशा ने कहा.

निशा तांत्रिक सोनू के पास जाना नहीं चाहती थी, लेकिन सुधा की जिद के आगे उसे झुकना पड़ा. निशा सुधा के साथ जिस समय तांत्रिक सोनू की कोठी पर पहुंची, वह कमरे में पूजा कर रहा था, इसलिए उन्हें बाहर बैठ कर पूजा खत्म होने का इंतजार करना पड़ा. पूजा खत्म होते ही सोनू ने दोनों को अपने कमरे में बुलाया. तांत्रिक को देख कर निशा हैरान रह गई, क्योंकि वह तांत्रिक जैसा लग ही नहीं रहा था. सोनू तांत्रिक 32-35 साल का राजकुमार जैसा युवक था. आसमानी रंग के सफारी सूट में वह किसी प्रतिष्ठित परिवार का लड़का लग रहा था. निशा के मन में तांत्रिक की जो छवि थी, वह उस के एकदम विपरीत था. उस ने तो सोचा था कि काले से कू्रर चेहरे पर बड़ीबड़ी दाढ़ीमूंछें और गले में ढेरों रुद्राक्ष की मालाएं पहने कोई आदमी बैठा होगा. लेकिन यहां तो मामला एकदम उलटा था.

बहरहाल, तांत्रिक सोनू को प्रणाम कर के दोनों बैठ गईं. सुधा ने निशा का परिचय करा कर उस की समस्या बतानी चाही तो तांत्रिक सोनू ने अपना दायां हाथ उठा कर उसे रोकते हुए कहा, ‘‘देवी, अगर आप ही सब कुछ बता देंगी तो मेरी साधना किस काम आएगी? मुझे पता नहीं है क्या कि आजकल देवी किन हालात से गुजर रही हैं? मां की दवा के लिए भी अभी तक इंतजाम नहीं कर पाई हैं. रात के खाने की भी व्यवस्था करनी है. लेकिन अब चिंता की कोई बात नहीं है. आप मेरे यहां आ गई हैं, अब आप की सारी समस्याएं दूर हो जाएंगीं.’’

सोनू द्वारा अपने घर की स्थिति बताने से जहां निशा शरम से पानीपानी हो गई थी, वहीं वह उस की इस बात से काफी प्रभावित भी हुई. क्योंकि बिना कुछ बताए ही उस ने उस के बारे में सब कुछ जान लिया था. इस तरह पहली ही मुलाकात में वह उस की अंधभक्त बन गई. सोनू ने अंगुलियों पर कुछ गणना कर के कहा, ‘‘मैं नाम तो नहीं बताऊंगा, लेकिन तुम्हारे किसी अपने बहुत खास ने ही तुम्हारे परिवार पर ऐसा इल्म चलवाया है कि तुम दानेदाने को मोहताज हो जाओ. आज रात को मैं उस इल्म को कील दूंगा और फिर किसी दिन श्मशान पूजा कर के उस डाकिनी को भस्म कर दूंगा.’’

निशा मंत्रमुग्ध भाव से सोनू को देखती रही. उस ने होंठों ही होंठों में कुछ मंत्र पढ़े और निशा पर फूंक मारे. इस के बाद सुधा को बाहर भेज कर अपनी गद्दी के नीचे से 5 सौ रुपए का एक नोट निकाल कर निशा की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘लो मांजी के लिए दवाओं और आज के खानेपीने की व्यवस्था कर लेना. कल की कल देखी जाएगी.’’

‘‘नहीं, मैं आप के रुपए कैसे ले सकती हूं.’’

‘‘यह मेरा नहीं, मां का आदेश है. मां काली ने मुझे अभीअभी आदेश दिया है कि मैं तुरंत तुम्हारी मदद करूं. मैं मां का सेवक हूं, इसलिए मुझे उन की आज्ञा का पालन करना ही होगा. तुम नि:संकोच ये रुपए रख लो.’’ इस तरह मां के नाम पर सोनू ने निशा को 5 सौ रुपए का नोट लेने पर मजबूर कर दिया.

निशा रुपए ले कर घर आ गई. वह यह सोचसोच परेशान थी कि उस के घर की एकएक बात की जानकारी तांत्रिक सोनू को कैसे हो गई? मकान मालिक ने मकान खाली करने के लिए कहा था, यह बात भी उसे मालूम थी. अगले दिन स्वयं सोनू तांत्रिक निशा के घर आ पहुंचा. वह मां की दवाएं और कुछ सामान भी साथ लाया था. स्वयं को संस्कारी दिखाने के लिए आते ही उस ने निशा की मां के पांव छुए. न चाहते हुए भी निशा को सोनू तांत्रिक की मदद लेनी पड़ी. क्योंकि इस के अलावा उस के पास कोई उपाय भी नहीं था. इस के बाद सोनू निशा और उस के घर वालों की हर तरह से मदद करने लगा.

तंत्रमंत्र और पूजापाठ के नाम पर वह निशा को अपनी कोठी पर बुलाता. थोड़ी देर पूजापाठ कर के निशा से इधरउधर की बातें करने लगता. इस बातचीत में वह उस के घरपरिवार के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए हमदर्दी दिखाने की कोशिश करता. निशा के मकान खाली करने की बात आई तो सोनू तांत्रिक ने मकान मालिक का बकाया अदा कर के निशा को रहने के लिए गली नंबर शून्य वाला अपना मकान दे दिया. सोनू से मिलने के बाद निशा और उस के घर वालों की मुसीबतें लगभग खत्म हो गईं. इस तरह उन की सभी समस्याओं का समाधान हो गया.

धीरेधीरे सोनू तांत्रिक ने निशा और उस के घर के हर सदस्य पर अपना वर्चस्व कायम कर लिया. घर में था ही कौन, मांबेटी और एक लड़का. निशा के उस घर में अब वही होता था, जो सोनू चाहता था. निशा के घर वालों को भी सोनू का उन के घर में दखल देना अच्छा लगता था. इस में वे अपनी शान भी समझते थे, क्योंकि सोनू तांत्रिक से उन के संबंध थे. सोनू तांत्रिक धनी तो था ही, इलाके में उस का काफी दबदबा भी था. तांत्रिक होने की वजह से लोग उस की इज्जत तो करते ही थे, डरते भी थे. लोग उस के आशीर्वाद के लिए उस के घर के चक्कर लगाते थे.

यही वजह थी कि निशा और उस के घर वाले सोनू तांत्रिक की कृपा पा कर स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहे थे. बड़ी होशियारी से सोनू तांत्रिक ने निशा के दिल में अपनी जगह बना ली थी. इस के बाद एक रात उस ने डाकिनी पूजा के नाम पर निशा को अपने घर बुलाया. निशा सोनू की कोठी पर जा पहुंची. थोड़ी देर बाद उस ने पूजा शुरू की. पूजा खत्म होने के बाद उस ने कहा कि उस ने उस डाकिनी को भस्म कर दिया है, जो उस के घर वालों को तकलीफ पहुंचाती थी. अब चिंता की कोई बात नहीं है. तथाकथित डाकिनी के खत्म हो जाने की बात पर निशा बहुत खुश हुई. पूजा खत्म होने के बाद सोनू ने निशा का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा,

‘‘निशा, आज मैं तुम से अपने मन की एक ऐसी बात कहने जा रहा हूं, जिस का जवाब तुम्हें काफी सोचसमझ कर देना होगा.’’

हैरानी से निशा ने पूछा, ‘‘ऐसी कौन सी बात है महाराज? खैर, कोई भी बात हो, आप मुझे बताएं क्या, आदेश करें.’’

‘‘निशा, ऐसे मामलों में जोरजबरदस्ती या आदेश नहीं दिया जाता. यह सब प्रेम की भावना के अंतर्गत होता है. प्रेम में वह ताकत होती है, जो 1-2 क्या, हजारों डाकिनीशाकिनी के मुंह मोड़ सकती है. बहरहाल तुम इतना जान लो कि मैं तुम से प्रेम करता हूं और तुम से विवाह करना चाहता हूं.’’ सोनू ने निशा को फंसाने के लिए जाल फेंका.

सोनू की बात सुन कर निशा सन्न रह गई. उस के मुंह से सिर्फ इतना ही निकला, ‘‘महाराज, आप यह क्या कह रहे हैं. कहां आप और कहां मैं? आप में और मुझ में जमीन आसमान का अंतर है.’’

तंत्रमंत्र की दुकान चलाने वाले सोनू ने निशा को अपनी बाहों में ले कर कहा, ‘‘जब मेरा और तुम्हारा मिलन हो जाएगा तो सारे अंतर स्वयं ही खत्म हो जाएंगे. यह मिलन सभी भेदभाव खत्म कर देगा.’’

सम्मोहित सी निशा सोनू तांत्रिक की बातें सुनती रही. इतने बड़े तांत्रिक ने उसे इस योग्य समझा, यह जान कर वह खुद को बड़ी भाग्यशाली समझ रही थी. निशा की कमर में हाथ डाल कर सोनू उसे बैडरूम में ले गया, जहां उस ने वह सब पा लिया, जिस के लिए उस ने इतने बड़े चक्रव्यूह की रचना की थी. दरअसल, सोनू तांत्रिक न हो कर एक ऐसा धूर्त था, जो लोगों की अंधी आस्था की बदौलत उन का आर्थिक एवं शारीरिक शोषण करता था. लोगों को बेवकूफ बना कर वह दोनों हाथों से धन बटोर रहा था. इस के पीछे उस का कोई दोष नहीं था, लोग खुद ही उस के पास अपना शोषण कराने आते थे. अपनी खूनपसीने की कमाई उसे अय्याशी के लिए सौंप रहे थे. समस्या समाधान के नाम पर अपनी बहनबेटियों की इज्जत से खिलवाड़ करा रहे थे.

दुनिया कितनी भी आधुनिक क्यों न हो जाए, मंगल ग्रह पर पहुंच जाए या किसी नए ब्रह्मांड की खोज कर ले, पर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि लोगों के मन में जो अंधविश्वास बैठा है, उसे निकालना आसान नहीं है. जब तक दुनिया में अंधविश्वास है, तब तक सोनू जैसे तथाकथित ढोंगी आम लोगों की बहूबेटियों की इज्जत से खेलते रहेंगे और तंत्रमंत्र का भय दिखा कर लूटते रहेंगे.’

सोनू तांत्रिक यानी सोनू शर्मा मूलरूप से हरियाणा के जिला जींद के रहने वाले चंद्रभान शर्मा का मंझला बेटा था. चंद्रभान धार्मिक प्रवृत्ति के शरीफ इंसान थे. वह कर्म को पूजा मानते थे. लेकिन उन के बेटे सोनू शर्मा की नीति उन के एकदम विपरीत थी. सोनू शुरू से ही अतिमहत्त्वाकांक्षी और आपराधिक प्रवृत्ति का युवक था. जल्दी ही उस की समझ में आ गया था कि दुनिया मूर्ख है. बस उसे मूर्ख बनाने वाला होना चाहिए. जो मजा लोगों को बेवकूफ बना कर कमाने में है, वह हाड़तोड़ मेहनत करने में नहीं है. उसे पता चल ही गया था कि अंधी आस्था को ले कर लोग अपना सर्वस्व तक लुटाने को तैयार रहते हैं.

और मजे की बात यह कि लुटने के बाद किसी को बताते भी नहीं. यह एक ऐसा कारोबार था, जिस में कुछ खास लगाना भी नहीं था, जबकि कमाई इतनी मोटी थी कि इस का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. इस के अलावा लोग उसे पूजते भी भगवान की तरह हैं. यही सब देखसुन कर सोनू को इस कारोबार से अच्छा और कोई दूसरा कारोबार नहीं लगा. इस के बाद कुछ तंत्रमंत्र और टोटके सीख कर वह तांत्रिक बन गया. हरियाणा के कई शहरों में तंत्रमंत्र की छोटीमोटी ठगी करते हुए वह हिमाचल के जिला कांगड़ा जा पहुंचा. वहां उस का यह ठगी का धंधा तो चल ही निकला, वहीं उस की मुलाकात सोनिया से हुई.

सोनिया राजेश शर्मा की बेटी थी. उन का अच्छाखासा कारोबार था, लेकिन किन्हीं वजहों से उन के कारोबार में घाटा होने लगा तो उन की आर्थिक स्थिति कुछ खराब हो गई. सोनिया अपनी ऐसी ही किसी समस्या के समाधान के लिए सोनू तांत्रिक के पास गई तो पहली ही मुलाकात में वह सोनू की नजरों में ऐसी चढ़ी कि वह उसे किसी भी कीमत पर हासिल करने को तैयार हो गया. लेकिन राजेश शर्मा का परिवार एक संस्कारी परिवार था. वही संस्कार सोनिया में भी थे. इसलिए सोनू ने सोनिया को जो सब्जबाग दिखाए, उन का सोनिया पर कोई असर नहीं हुआ. तब उसे पाने के लिए सोनू ने उस से शादी का फैसला कर लिया और इस के बाद सोनिया के मातापिता की सहमति से दिसंबर, 2003 में उस ने सोनिया के साथ विवाह कर लिया.

समय के साथ दोनों 2 बच्चों के मातापिता बने, जिन में 8 साल का आदित्य और 6 साल की एलियन है. इस बीच सोनू हिमाचल के अलावा पंजाब के भी कई शहरों में अपने पांव जमाने की कोशिश करता रहा. कई शहरों के चक्कर लगाने के बाद उसे लुधियाना कुछ इस तरह पसंद आया कि वहां टिब्बा रोड पर उस ने तंत्रमंत्र की अपनी स्थाई दुकान खोल ली. यह सन् 2010 की बात है. लुधियाना का टिब्बा रोड इलाका हिंदूमुस्लिम और अमीरगरीब सभी तरह के लोगों से भरा है. जल्दी यहां सोनू का प्रभाव इस तरह बढ़ा कि लोग उस की पूजा करने लगे. यहां से कमाई दौलत से उस ने 2 मकान और एक आलीशान कोठी अपने लिए बनवा डाली.

यहां आने के बाद वह धीरेधीरे कांगड़ा में रह रही अपनी पत्नी सोनिया और बच्चों को लगभग भूल सा गया. अब वह कईकई महीनों बाद उन से मिलने कांगड़ा जाता था. लुधियाना में रहते हुए सोनू ने अपने लिए नई लड़की की तलाश शुरू कर दी, क्योंकि सोनिया अब उसे पुरानी लगने लगी थी. उसी बीच किसी शादी समारोह में उस की नजर स्टेज पर थिरकती निशा पर पड़ी तो वह उस पर मर मिटा. निशा एक आर्केस्ट्रा ग्रुप में डांस करती थी. निशा की एक ही झलक में सोनू उस का दीवाना बन गया था और हर कीमत पर उसे पा लेना चाहता था. सोनू तांत्रिक की एक आदत यह भी थी कि जो चीज उसे पसंद आ जाती थी, उसे वह हर हाल में पा लेना चाहता था.

पसंद आने के बाद उस ने निशा को हासिल करने के प्रयास शुरू किए तो सब से पहले उस ने उस के और उस के घर वालों के बारे में पता किया. सोनू को पता चला कि निशा के पिता प्रेमशाही ठाकुर की कई सालों पहले उस समय मृत्यु हो गई थी, जब बच्चे छोटेछोटे थे. निशा की मां ने मेहनतमजदूरी कर के किसी तरह बच्चों को पालपोस कर बड़ा किया था. युवा होने पर निशा ने छोटीमोटी नौकरी कर के परिवार का खर्च चलाने की कोशिश की. वह खूबसूरत थी, उस की अदाएं इतनी कातिल थीं कि कोई भी उसे देख कर पागल हो सकता था. इसीलिए जब आर्केस्ट्रा ग्रुप ने उसे अपने डांस ग्रुप में शामिल होने को कहा तो वह उस में मिलने वाली मोटी रकम के लालच में उस में शामिल होने के लिए खुशीखुशी तैयार हो गई थी.

अपनी खूबसूरती, मेहनत और अच्छे डांस की वजह से वह जल्दी ही प्रसिद्ध हो गई. आर्केस्ट्रा में डांस कर के निशा की इतनी कमाई हो जाती थी कि पूरा परिवार मजे से रह रहा था. सोनू को जब पता चला कि निशा ही अपने परिवार का एकमात्र सहारा है तो सब से पहले उस ने अपने प्रभाव से निशा को उस आर्केस्ट्रा से निकलवा दिया, जिस में वह डांस करती थी. काम छूटा तो निशा के घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई. अचानक राह चलते निशा के भाई को किसी मोटरसाइकिल वाले ने टक्कर मार दी, जिस से उस का एक हाथ टूट गया. मां पहले से ही बीमार रहती थी.

इस तरह निशा चारों ओर से टूट गई तो सोनू के इशारे पर ही मकान मालिक ने उस से मकान खाली करने के लिए कह दिया. इस के बाद अचानक सोनू तांत्रिक ने हीरो की भांति उस के जीवन में एंट्री मारी और अपने तंत्रमंत्र का नाटक कर के निशा और उस के घर की समस्याओं का समाधान कर दिया. इस से वह उन की नजरों में भगवान बन बैठा. बहरहाल, सोनू ने जैसा चाहा था, ठीक वैसा ही हुआ था. लगभग हर रात निशा सोनू के पहलू में होती थी. क्योंकि उसे पूरा विश्वास था कि सोनू उस से शादी करेगा. लेकिन यह उस की गलतफहमी थी. उस का यह भ्रम 13 मार्च, 2015 को बैसाखी वाले दिन तब टूटा, जब उसे पता चला कि सोनू किसी खूबसूरत लड़की के साथ चंडीगढ़ रोड स्थित मोहिनी रिसौर्ट में शादी कर रहा है.

यह जानकारी मिलने के बाद निशा के पैरों तले से जमीन खिसक गई. इस का सीधा मतलब यह था कि शादी का झांसा दे कर सोनू तांत्रिक ने 2 सालों तक उस की इज्जत से खेला था और अब मन भर जाने के बाद दूसरी लड़की से शादी कर रहा था. यह बात भला निशा कैसे बरदाश्त कर सकती थी. वह सीधे मोहिनी रिसौर्ट पहुंची, ताकि सोनू तांत्रिक की शादी रुकवा सके. लेकिन सोनू के गुर्गों ने उसे अंदर जाने नहीं दिया और बाहर से ही भगा दिया. सोनू और गीता चड्ढा का विवाह आराम से हो गया. जबकि अपने भाग्य पर आंसू बहाते हुए निशा घर लौट आई. वह घर तो लौट आई, लेकिन उसे चैन नहीं मिल रहा था. चैन मिलता भी कैसे, सोनू ने उस के साथ जो बेवफाई की थी, उसे वह भुला नहीं पा रही थी.

अगले दिन शाम को निशा को पता चला कि सोनू तांत्रिक अपनी नईनवेली दुलहन गीता के साथ गली नंबर 3 वाली कोठी में मौजूद है तो एक बार फिर हिम्मत कर के निशा उस से बात करने के लिए उस की कोठी पर जा पहुंची. इस बार सोनू से उस का सामना हो गया. उस ने हंगामा खड़ा करते हुए सोनू से पूछा, ‘‘तुम शादी का वादा कर के 2 सालों तक मेरे शरीर से खेलते रहे. जबकि अब शादी किसी और से कर ली. तुम ने यह ठीक नहीं किया. मैं ऐसा कतई नहीं होने दूंगी.’’

‘‘अब तो जो होना था, वह हो गया. मुझे जिस से शादी करनी थी, कर ली. अब तुम कर ही क्या सकती हो? मैं ने तुम से शादी का जो वादा किया था, वह वादा ही रहा. अगर मैं वादा करने वाली हर लड़की से शादी करने लगूं तो पता चला कि मैं हर साल शादी कर रहा हूं.’’ इस के बाद निशा को घूरते हुए बोला, ‘‘अच्छा यही होगा कि तुम चुपचाप यहां से चली जाओ. फिर कभी दिखाई भी मत देना, वरना मुझ से बुरा कोई नहीं होगा.’’

सोनू से अपमानित हो कर निशा घर तो आ गई, लेकिन उस के साथ जो छल हुआ था वह उसे पचा नहीं पा रही थी. काफी देर तक वह रोती रही. और जब मन का गुबार निकल गया तो उस ने तय किया कि वह सोनू जैसे ढोंगी और धोखेबाज को अवश्य सबक सिखाएगी. अगर उस ने उसे सबक न सिखाया तो वह उस जैसी न जाने कितनी लड़कियों की इसी तरह जिंदगी बरबाद करता रहेगा. दृढ़ निश्चय कर के निशा थाना बस्ती जोधेवाल पहुंची और थानाप्रभारी इंसपेक्टर हरपाल सिंह से मिल कर उन्हें अपनी आपबीती सुनाई.

हरपाल सिंह ने निशा की पूरी बात सुनने के बाद टिब्बा रोड पुलिस चौकी के इंचार्ज एएसआई हरभजन सिंह को आदेश दिया कि वह निशा के बयान के आधार पर सोनू तांत्रिक के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के तुरंत काररवाई करें. इस के बाद एएसआई हरभजन सिंह ने निशा के बयान के आधार पर 16 मार्च, 2015 को सोनू तांत्रिक के खिलाफ शादी का झांसा दे कर यौन शोषण करने और धोखाधड़ी का मामला दर्ज कर के पूछताछ के लिए उसे पुलिस चौकी बुलवाया. लेकिन सफाई देने के लिए चौकी आने के बजाय सोनू गायब हो गया.

तब हरभजन सिंह ने हेडकांस्टेबल जगजीत सिंह जीता, कांस्टेबल लखविंदर सिंह, दविंदर सिंह और जसबीर सिंह की एक टीम बना कर सोनू की तलाश के लिए उस के पीछे लगा दिया. सोनू की तलाश चल ही रही थी कि अखबारों में छपी खबर पढ़ कर कांगड़ा में रह रही उस की पहली पत्नी सोनिया शर्मा भी लुधियाना आ पहुंची. उस ने पुलिस चौकी जा कर बयान ही नहीं दर्ज कराया, बल्कि सोनू से अपनी शादी और 2 बच्चे होने के प्रमाण भी दिए. सोनिया के बयान के आधार पर उस की ओर से भी सोनू के खिलाफ धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज किया गया. फिर उसी दिन शाम को हेडकांस्टेबल जगजीत सिंह की टीम ने जालंधर बाईपास से सोनू तांत्रिक को उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब वह बस से शहर छोड़ कर भागने के चक्कर में वहां पहुंचा था.

चौकी ला कर सोनू से पूछताछ की गई तो उस ने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को स्वीकार कर लिया. उसे अदालत में पेश कर के साक्ष्य जुटाने के लिए एक दिन के पुलिस रिमांड पर लिया गया. रिमांड अवधि समाप्त होने पर 18 मार्च, 2015 को उसे पुन: मैडम प्रीतमा अरोड़ा की अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. 20 मार्च, 2015 को निशा का मैडिकल कराया गया. मैडिकल रिपोर्ट के अनुसार वह सहवास की आदी पाई गई. मैडम प्रीतमा अरोड़ा की अदालत में धारा 164 के तहत उस के बयान भी दर्ज किए गए.

निशा ने यहां भी वही बयान दिए, जो उस ने आपबीती में बताया था. उस का कहना था कि ऐसे ढोंगी अपराधियों को सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए. ऐसे लोग लोगों की धार्मिक व कोमल भावनाओं को भड़का कर उन का शारीरिक और आर्थिक शोषण करते हैं. Hindi Crime Story

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है, कथा में कुछ पात्रों के नाम बदले गए हैं.

Hindi Story: अपराधिक सोच

Hindi Story: साधारण परिवार में पलाबढ़ा काजी कयूम किसी भी तरह रुपए जमा कर बड़ा आदमी बनना चाहता था. उस ने 2 पैसे वाली बेवा औरतों से शादी कर उन्हें  ठिकाने लगा दिया,   लेकिन जब  तीसरी का कत्ल किया तो…

मैं ने फाइल पर हाथ मारते हुए कहा, ‘‘वकील साहब मेरे मुवक्किल को मुजरिम कह रहे हैं, यह गलत बात है. जब तक जुर्म साबित नहीं हो जाता, मेरे मुवक्किल को मुजरिम नहीं कहा जा सकता.’’

‘‘ऐतराज दुरुस्त है.’’ जज ने कहा, ‘‘वकील साहब अपने बयान से खतरनाक मुजरिम हटा दीजिए.’’

वादी वकील मुझे घूर कर रह गया. मैं ने अपने मुवक्किल की जमानत के लिए जोर देते हुए कहा, ‘‘योरऔनर, इस मुकदमे को चलते 4 महीने हो गए हैं. मेरे मुवक्किल पर कत्ल का आरोप है. लेकिन वादी अब तक कोई भी ठोस सबूत उस के खिलाफ पेश नहीं कर सका, न ही कोई खास काररवाही हो सकी है. मैं ने केस आज ही हाथ में लिया है.’’

‘‘बेग साहब, काररवाही धीमी होने की वजह वादी और बचाव, दोनों की जिम्मेदारी है. इस स्थिति में जमानत मंजूर नहीं हो सकती.’’ जज ने कहा. बचाव वकील की लापरवाही की ही वजह से यह मुकदम्मा मेरे पास आया है. मुझे पता है कि कत्ल के केस में जमानत वैसे भी मुश्किल से मिलती है. पहले वाले वकील ने केस में जरा भी मेहनत नहीं की थी. मेरा मुवक्किल खलील एक बेवा मां का बेटा था. मध्यमवर्गीय लोग थे. खलील अपनी बेवकूफी और बदकिस्मती से एक कत्ल के केस में फंस गया था. काजी कयूम एक बेहद शातिर और चालाक आदमी था. एक फ्लैट में उस ने अपना औफिस खोल रखा था.

उस की काजी ट्रेडिंग नाम से एक छोटी सी कंपनी थी. उस की यह कंपनी कई काम करती थी. एक्सपोर्ट, इंपोर्ट, मैनुफैक्चरिंग, सप्लाई आदि. वह किसी आदमी को मायूस नहीं लौटाता था. असल में वह कुछ नहीं था, महज एक फ्रौड था, जो सिर्फ जुबान से सभी को उल्लू बना रहा था. औफ द रिकौर्ड उस का असली काम था लोगों से बड़ीबड़ी रकमें इनवेस्ट करवाना, जिस पर वह बहुत ज्यादा ब्याज देता था. वह देखभाल कर, सीधेसादे, उम्र वाले रिटायर लोगों या जरूरतमंदों को शिकार बनाता था. काजी जो ब्याज देता था, वह बैंक से बहुत ज्यादा यानी 10 फीसदी होता था, इसलिए लोग लालच में उस के जाल में फंस जाते थे.

खलील के वालिद के मरने के बाद उन के डिपार्टमेंट से अच्छीखासी रकम मिली थी. उस की मां ने समझदारी से काम लेते हुए मकान की बाकी किस्तें एक साथ भर कर मकान अपने नाम करा लिया था. बाकी के छोटेमोटे कर्जे अदा करने के बाद उस के पास करीब 10 लाख रुपए बच गए थे. उसे 9 हजार रुपए पेंशन मिल रही थी. खलील एक प्रिंटिंग प्रेस में नौकरी करता था, जहां से उसे 10 हजार रुपए मिलते थे. इतने में मांबेटे का अच्छी तरह से गुजरबसर हो रहा था. लेकिन खलील इस नौकरी से संतुष्ट नहीं था. वह कोई दुकान किराए पर ले कर अपना कारोबार शुरू करना चाहता था. उस ने कारोबार करने के लिए मां से 1 लाख रुपए मांगे. तब मां ने कहा, ‘‘खलील, तुम अभी छोटे और नासमझ हो. मैं इतनी बड़ी रकम तुम्हारे हाथ में नहीं दे सकती.’’

लेकिन जब खलील ने बहुत जोर दिया तो उस ने कहा, ‘‘अच्छा मैं सोच कर बताऊंगी. तुम्हारी नौकरी अच्छी है, इसलिए मेरे खयाल से कारोबार के झंझट में मत पड़ो.’’

खलील रोज बस से अपनी नौकरी पर जाता था. एक दिन बस में उस की असद से मुलाकात हो गई. वह 28-29 साल का नवजवान था. वह टीवी की दुकान पर सेल्समैन था. एक दिन उस ने खलील से कहा, ‘‘अगर मैं 2 लाख रुपए जमा कर लूं या कहीं से जुगाड़ कर लूं तो मैं अपनी दुकान खोल सकता हूं.’’

खलील भी अपनी दुकान खोलने के चक्कर में था. अगर उसे कहीं से 1 लाख रुपए मिल जाते तो वह भी अपनी दुकान खोल सकता था. इसीलिए उस ने पूछा, ‘‘भाई, यह बताओ तुम इतने रुपए का जुगाड़ कहां से करोगे?’’

‘‘यार, काजी कयूम की एक इनवेस्टमेंट कंपनी है. उस में मैं ने अब्बा के 5 लाख रुपए लगवा दिए हैं. यह कंपनी बहुत ज्यादा ब्याज देती है. 5 लाख रुपए पर हमें 50 हजार रुपए महीने मिल रहे हैं.’’

‘‘क्या, महीने में या एक साल में?’’ खलील ने हैरानी से पूछा.

‘‘भाई, महीने में 50 हजार रुपए मिल रहे हैं. 5 महीने में मुझे ढाई लाख रुपए मिल जाएंगे. वे रुपए अब्बा से ले कर मैं अपनी दुकान खोल लूंगा. मैं ने अब्बा को बताया है कि 5 प्रतिशत ब्याज मिलेगा. इस तरह मुझे एक लाख रुपए वैसे ही मिल जाएंगे. बाकी मांग लूंगा. मेरा काम हो जाएगा.’’ असद ने कहा.

‘‘भई, यह तो बहुत बढि़या स्कीम है. इतना ब्याज तो कोई भी बैंक नहीं देता. मुझे लगता है, मैं भी इस कंपनी में पैसा लगा दूं.’’ खलील ने कहा.

अगले 10 मिनट तक असद उसे काजी कयूम की इनवेस्टमेंट कंपनी के बारे में बताता रहा. उस कंपनी के बारे में जान कर खलील बहुत कुछ सोचने पर मजबूर हो गया. ब्याज के बारे में जानकर वह लालच में आ गया. अगर वह अम्मा को राजी कर के 10 लाख रुपए 2 महीने के लिए इनवेस्ट करा दे तो उसे 2 लाख रुपए मिल जाएंगे. उस में से एक लाख रुपए ले कर बाकी रुपए वह अम्मा को वापस कर देगा. मूल रकम के साथ एक लाख रुपए उन्हें ब्याज भी मिल जाएगा. वह खुश हो जाएंगी. इस के बाद उस ने असद से पूछा, ‘‘जब तुम्हारे अब्बा के पास 5 लाख रुपए थे तो तुम ने उन से रुपए क्यों नहीं ले लिए?’’

‘‘वह मुझ पर इतना भरोसा नहीं करते थे कि मुझे अपनी रकम दे देते. लंबे फायदे की बात है, शायद इसीलिए रुपए दिए हैं.’’ असद ने कहा.

‘‘मेरी भी यही मुश्किल है. अम्मा मुझे भी नादान समझती हैं, इसलिए बड़ी रकम देना नहीं चाहतीं. मैं भी ज्यादा ब्याज बता कर ही रुपए मांगूंगा.’’

उस दिन खलील का मन काम में नहीं लगा. बारबार वह रकम इनवेस्ट करने के बारे में ही सोचता रहा. काफी सोचने के बाद एक आइडिया उस के दिमाग में आ गया. अगले दिन उस ने मां को शहर में होने वाली ठगी के बारे में खूब विस्तार से बताया. यह सब सुन कर अम्मा थोड़ी परेशान हो गईं. इस के अगले दिन भी उस ने अम्मा को ठगी के 2-4 किस्से सुना दिए. 4-5 दिनों तक वह इसी तरह करता रहा. इस के बाद इनवेस्टमेंट स्कीम के बारे में इस तरह समझाया कि ठगी से डरी हुई अम्मा 10 लाख रुपए इनवेस्ट करने को राजी हो गईं, क्योंकि फायदा खासा था. रकम जस की तस रहती, 2 महीने में खलील की दुकान भी खुल जाती.

असद खलील को ले कर काजी कयूम के औफिस गया. बड़ी सी मेज के पीछे काजी बैठा था. वह दुबलापतला छोटे कद का शातिर आदमी था. आने की वजह पूछने पर खलील ने कहा, ‘‘मैं 10 लाख रुपए आप की कंपनी में इनवेस्ट करना चाहता हूं.’’

‘‘कितने दिनों के लिए इनवेस्ट करना चाहते हो?’’ काजी ने पूछा.

‘‘मैं सिर्फ 2 महीने के लिए इनवेस्ट करना चाहता हूं.’’

‘‘भई, फिर तो मुश्किल है. बात यह है कि मैं 6 महीने से कम के लिए रकम इनवेस्ट नहीं कराता, क्योंकि कारोबार में रकम लगाना तो आसान है, लेकिन निकालना बहुत मुश्किल. फंसी रकम को निकालना बहुत दुश्वार है.’’

असद और खलील उस का मुंह देखने लगे. उन्हें शीशे में उतारने  और अपनी बात उन के दिमाग में बैठाने के लिए उस ने 10 दलीलें दीं. अंत में उस ने कहा, ‘‘देखो भाई, नुकसान से बचने के लिए मैं ने कुछ अलग नियम बना रखे हैं, जैसे एक महीने के लिए इनवेस्ट करोगे तो 2 प्रतिशत ब्याज मिलेगा, 2 महीने पर 5 प्रतिशत और 6 महीने पर 10 प्रतिशत. इस तरह मैं कारोबार में नुकसन से बच सकता हूं.’’

‘‘यह हमारे लिए घाटे का सौदा होगा.’’ खलील ने कहा.

‘‘इसीलिए तो कह रहा हूं कि 6 महीने के लिए पैसे जमा कराओ.’’ काजी ने कहा.

काफी बातचीत के बाद खलील इस नतीजे पर पहुंचा कि काजी की बात मान कर रकम 6 महीने के लिए इनवेस्ट कराने के लिए मां को राजी करे. महीने के अंत में एक बड़ी रकम उन के हाथ पर रखेगा तो वह खुद ही खुश हो कर 6 महीने के लिए इनवेस्ट करने को राजी हो जाएंगी. इस तरह 2 महीने में खलील को दुकान खोलने के लिए रुपए मिल जाएंगे. मां को भरोसे में ले कर वह उन्हें सारी बात समझा देगा. यह सब सोच कर वह 6 महीने के लिए रुपए जमा कराने के लिए राजी हो गया. इस तरह खलील ने 10 लाख रुपए 6 महीने के लिए इनवेस्ट कर दिए.

महीन भर बाद वह असद के साथ अपने ब्याज के रुपए लेने काजी के औफिस पहुंचा तो काजी ने उसे 10 प्रतिशत के हिसाब से एक लाख रुपए दे दिए. असद को दूसरे महीने का ब्याज भी मिल गया. खुशीखुशी खलील मां के पास पहुंचा और उसे एक लाख रुपए दे कर बोला, ‘‘ये रुपए मैं रख लेता हूं. अगले महीने के रुपए ले कर बाकी के रुपए आप को दे दूंगा.’’

एक लाख रुपए देख कर मां खुश हो गई. ब्याज से खलील की दुकान खुल जाने की बात जान कर उसे बड़ी तसल्ली मिली. इसलिए खुशी से उस ने पैसे दे दिए, ताकि कुछ सामान खरीद कर वह काम शुरू कर सके. मां को खुश देख कर खलील ने कहा, ‘‘अम्मा, हमें ब्याज में एक मोटी रकम मिल रही है, इसलिए हम अपनी रकम 2 महीने में वापस लेने के बजाय 6 महीने में लें, जिस से हमें काफी फायदा हो जाए.’’

मां भी लालच में आ गई और राजी हो गई. अगले महीने भी सही समय पर ब्याज की रकम मिल गई. खलील ने नौकरी छोड़ कर अपनी दुकान शुरू कर दी. उस की दुकान भी चलने लगी. तीसरे महीने का ब्याज मिलने में अभी एक हफ्ता बाकी था कि असद परेशान सा उस के पास आ कर कहने लगा, ‘‘यार, काजी कयूम 3-4 दिनों से अपने औफिस में नहीं मिल रहा है. अपने पैसों के लिए मैं कई चक्कर काट चुका हूं. वह मिल ही नहीं रहा है.’’

‘‘वह रहता कहां है? उस के घर के बारे में पता करो.’’

‘‘काजी की सेक्रैट्री कंवल से कई बार पूछा, वह कहती है कि उसे नहीं मालूम. मुझे मालूम है, वह झूठ बोल रही है.’’

खलील का पैसा मिलने में अभी एक हफ्ता बाकी था. वह भी परेशान हो गया. दोनों ही मिडल क्लास परिवारों से थे. उन के लिए यह रकम बहुत बड़ी थी. अगले दिन दोनों काजी कयूम के औफिस पहुंचे. वहां सेक्रैट्री कंवल बैठी थी. काजी के बारे में पूछने पर उस ने कहा, ‘‘उन्हें तेज बुखार है, वह आराम कर रहे हैं. एकदो दिनों में ठीक हो जाएंगे तो औफिस आएंगे.’’

खलील और असद नीचे खड़ी काजी की फिएट देख चुके थे. दोनों बिना कुछ कहे काजी के कमरे की ओर बढ़े तो कंवल उन्हें रोकने लगी. लेकिन वे जबरदस्ती काजी की केबिन में घुस गए. काजी अपनी केबिन में भलाचंगा बैठा था. साफ था, उसी के कहने पर कंवल बहाने बना रही थी. खलील और असद को देख कर काजी घबरा गया. उस ने हैरानी से पूछा, ‘‘तुम… तुम दोनों… अंदर कैसे आ गए?’’

‘‘हम आप की खैरियत पता करने आए हैं. सुना है, आप को तेज बुखार है.’’

‘‘बैठो…बैठो.’’ काजी ने बौखला कर कहा, ‘‘दरअसल, मेरी तबीयत ठीक नहीं थी.’’

‘‘आप 4 दिनों से कहां थे? मैं ने कई चक्कर लगाए.’’ असद ने कहा.

‘‘भई कारोबार में उतारचढ़ाव आते ही रहते हैं. मैं ने 10 लाख रुपए का माल मिडल ईस्ट भेजा था. उस की रिकवरी में देर हो रही थी, उसी के उलझन में फंसा था.’’ काजी ने कहा.

असद ने चिढ़ कर कहा, ‘‘आप की उलझन ने मेरा तो सत्यानाश मार दिया. अभी तक इस महीने के मेरे पैसे नहीं मिले.’’

‘‘6 दिनों बाद मेरे पैसों की भी तारीख है.’’ खलील ने याद दिलाया.

‘‘बिलकुल भई. तुम लोग चिंता क्यों करते हो. आज ही चेक कैश हो जाएगा. उस के बाद तुम्हारी रकम दे दूंगा.’’

इस के बाद उस ने इतनी विनम्रता से उन्हें समझाया कि वे संतुष्ट हो कर चले आए. काजी बहुत चालाक और शातिर आदमी था, दोनों को तसल्ली और दिलासा दे कर उस ने विदा कर दिया था. लेकिन उन के दिल में एक डर बैठ गया था कि कहीं काजी उन्हें लंबी चपत न लगा दे.

3 दिनों बाद खलील की असद से मुलाकात हुई तो उस का चेहरा उतरा हुआ था. उस ने उदासी से कहा, ‘‘यार, काजी कयूम एक बार फिर गायब हो गया है. मुझे तो वह आदमी फ्राडिया लगता है. मुझे लगता है वह मेरे पैसे नहीं देना चाहता, लेकिन मैं उस से एकएक पाई वसूल लूंगा. मैं ही जानता हूं कि मैं ने अब्बा को किस मुश्किल से समझाया था.’’

असद की बातों से खलील भी परेशान हो उठा. उस ने पूछा, ‘‘उस की सेक्रैट्री कंवल क्या कहती है?’’

‘‘वह कह रही है कि शहर से बाहर गया है, पर उस के औफिस में जब भी जाओ, 3-4 लोग बैठे उस का इंतजार करते रहते हैं. अगर काजी बाहर गया है तो वे किस से मिलने आते हैं?’’ असद ने कहा.

‘‘यार, काजी मुझे पक्का फ्राडिया लगता है. उस दिन भी उस ने कंवल से झूठ कहलाया था, जबकि वह अंदर ही बैठा था. अब वह हम से बच रहा है. यार मुझे तो अभी 2 महीने का ही ब्याज मिला है. तुम्हारे सुझाने पर ही मैं ने पैसे इनवेस्ट किए थे. अगर काजी ने मेरे साथ भी यही किया तो मैं बरबाद हो जाऊंगा.’’ खलील लगभग रुआंसा हो गया.

‘‘यार घबराओ मत, मैं भी तो फंसा हुआ हूं. आज फिर उस के औफिस चलते हैं, कुछ न कुछ तो होगा ही.’’ असद ने दिलासा दिया.

दोनों काजी के औफिस पहुंचे और कंवल से काजी के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘अभी 20 मिनट पहले ही वह घर गए हैं.’’

बात बढ़ी तो वहां बैठे लोगों ने वजह पूछी. वजह जानने के बाद उन्होंने कहा कि वे भी काजी के इंतजार में बैठे हैं. उन्होंने भी मोटीमोटी रकमें इनवेस्ट कर रखी है. 3 महीने तक तो उन्हें ब्याज के पैसे मिले, अब वे भी रोज चक्कर लगा रहे हैं. काजी मिलता ही नहीं है. यह सेक्रैट्री बहाने बना कर टाल देती है.

‘‘यह तो सरासर जालसाजी है. हम ने भी उस के पास मोटी रकम इनवेस्ट कर रखी है. वह हमें भी टाल रहा है.’’ असद ने कहा.

सभी अपनाअपना रोना रोने लगे, उन लोगों ने भी लाखों रुपए इनवेस्ट कर रखे थे. सभी को 2 या 3 महीने ब्याज के रुपए मिले थे, उस के बाद सभी चक्कर लगा रहे थे. खलील और असद नाकाम हो कर लौट आए. खलील के पास अभी कुछ करने के लिए 3 दिन बाकी थे, पर असद, फैजान, सरवर और नूरखां बहुत परेशान और गुस्से में थे. उन की तारीखें निकल चुकी थीं. चारों ने काजी के औफिस में खूब हंगामा किया. काजी को घेर लिया और तोड़फोड़ भी की. इस के बाद काजी ने पुलिस बुला ली.

पुलिस चारों को गिरफ्तार कर के ले गई. बाद में चारों बड़ी मुश्किल से दे दिला कर पुलिस के चंगुल से छूटे. यह सुन कर खलील के पांवों तले से जमीन निकल गई. उस ने किसी तरह काजी के घर का पता लगा लिया. अगले दिन खलील काजी के घर पहुंच गया. उस का नरसरी के इलाके में खूबसूरत बंगला था, जहां वह अपनी खूबसूरत बीवी नौशीन के साथ रहता था. खलील को देख कर काजी हैरानपरेशान रह गया. खलील ने कहा, ‘‘आज मेरे पैसों की तारीख है. आप मेरे पैसे दे दें. मुझे तो डर लग रहा था कि कहीं आप उन चारों की तरह मुझे भी पुलिस के हवाले न कर दें.’’

काजी कयूम ने बड़े दोस्ताना लहजे में कहा, ‘‘अरे भाई, ऐसी बात नहीं है. वे तोड़फोड़ कर रहे थे, इसलिए पुलिस बुलानी पड़ी. मैं एक कारोबारी आदमी हूं, मुझे सब की तारीखें याद रहती हैं. मैं सब के रुपए दूंगा. थोड़ा धैर्य से काम लें. तुम्हारा दोस्त असद तो मारपीट और तोड़फोड़ कर रहा था. वह उन के साथ मिल कर गुंडागर्दी कर रहा था. उन्हें भी भड़का रहा था. इसलिए मजबूरन मुझे यह सब करना पड़ा. बिजनैस में जल्दबाजी नहीं होती. मैं तुम्हारे रुपए जरूर दूंगा. अभी तो शाम हो गई है, तुम कल सुबह 11 बजे यहीं आ जाना. मैं तुम्हें बैंक ले चलूंगा और तुम्हारे रुपए वहीं दे दूंगा.’’

काजी ने इतने दोस्ताना अंदाज में बात की थी कि खलील को तसल्ली हो गई. वह जाने के लिए खड़ा हुआ तो काजी ने कहा, ‘‘गुस्से और गुंडागर्दी से काम नहीं बनेगा. अपने दोस्त असद को भी समझाओ. उस के पैसे मिल जाएंगे.’’

दूसरे दिन ठीक साढ़े 10 बजे खलील काजी कयूम के बंगले पर पहुंच गया. घंटी बजाने पर गेट नौशीन ने खोला. वह 28-29 साल की खूबसूरत औरत थी. खलील ने कहा, ‘‘मैं खलील हूं, मुझे काजी कयूम ने बुलाया था.’’

‘‘आप वक्त से पहले आ गए.’’ उस ने सपाट लहजे में कहा.

‘‘मैं आधा घंटा इंतजार कर लूंगा.’’ खलील ने जल्दी से कहा.

‘‘आप इंतजार में अपना वक्त बेकार न करें. वह किसी जरूरी काम से बाहर गए हैं. शाम से पहले नहीं आएंगे.’’

‘‘मुझे बुला कर वह कहां चले गए?’’ खलील ने परेशान हो कर पूछा.

‘‘यह तो मुझे नहीं मालूम कि वह कहां गए हैं. इतना जानती हूं कि औफिस नहीं गए हैं. आप के लिए एक मैसेज छोड़ गए हैं कि आप रात 8 बजे आ कर अपने रुपए ले जाइए.’’ नौशीन ने कहा.

नौशीन गेट के अंदर बंगले के लौन में थी, जबकि खलील गेट के बाहर खड़ा था. काजी का मैसेज सुन कर उसे थोड़ा सुकून मिला. सामने हसीन औरत वादा कर रही हो तो कुछ कहा भी नहीं जा सकता था. उस ने कहा, ‘‘ठीक है, मैं रात 8 बजे आ जाऊंगा. आप काजी साहब को बता दीजिएगा.’’

‘‘जरूर बता दूंगी.’’ नौशीन ने मुसकरा कर कहा.

खलील के सिर पर तब आसमान टूट पड़ा, जब उसी दिन एक बजे पुलिस ने उसे उस की दुकान से नौशीन के कत्ल के इल्जाम में गिरफ्तार कर लिया. यह थी मेरे मुवक्किल खलील की दुखभरी कहानी. खलील ने कत्ल के इल्जाम से साफ इनकार कर दिया था. पिछली पेशी में मैं ने उस की जमानत की कोशिश की थी, पर नाकाम रहा था. अब तक मैं ने मुकदमें की फाइल ठीक से देख ली थी और जरूरी जानकारियां भी जुटा ली थीं. असद ने जानकारियां जुटाने में मेरी बहुत मदद की थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, नौशीन को गला दबा कर मारा गया था. पिछले 4 महीने में मुकदमे में कुछ खास नहीं हुआ था. इस पेशी पर जज ने नए सिरे से मुल्जिम का बयान रिकौर्ड कराया. वादी वकील ने पूछना शुरू किया, ‘‘मकतूल नौशीन से तुम्हारी क्या दुश्मनी थी?’’

‘‘मेरी उस से कोई दुश्मनी नहीं थी. मेरी उस से एक बार मुलाकात हुई थी, वह भी मैं गेट के बाहर था और वह अंदर लौन में. यह बात मैं अपने बयान में पहले भी बता चुका हूं.’’ खलील ने कहा.

‘‘तुम्हारा झगड़ा तो काजी कयूम से था.’’

‘‘जी नहीं, मेरा उन से भी कोई झगड़ा नहीं था. मुझे उन से अपने पैसे लेने थे.’’

‘‘तब तुम ने उन की बीवी नौशीन का कत्ल क्यों किया?’’

‘‘मुझ पर झूठा इल्जाम क्यों लगा रहे हैं. मैं ने कहा न कि मैं ने कत्ल नहीं किया. घटना वाले दिन मैं काजी से मिलने गया था. वह नहीं था तो मैं गेट के बाहर से बात कर के लौट आया था.’’

‘‘तुम्हें काजी के घर में किसी चीज की तलाश थी, जब नौशीन ने तुम्हें रोका तो तुम ने उस का गला दबा दिया?’’

 

‘‘यह झूठ है, मैं ने ऐसा कुछ नहीं किया. मैं घर के अंदर गया ही नहीं. मैं गेट के बाहर से ही लौट आया था.’’

वादी वकील ने 4-5 सवाल और किए, पर कोई नतीजा नहीं निकला. इस के बाद उस ने पैंतरा बदला, ‘‘योरऔनर, 3 दिनों पहले मुल्जिम के खास दोस्त असद ने 2-4 बेकार लोगों के साथ काजी कयूम के औफिस में मारपीट और तोड़फोड़ की थी. काजी ने सब को गिरफ्तार करा दिया था. उसी का बदला लेने के लिए इस ने काजी की बीवी नौशीन का कत्ल किया है.’’

मैं ने इस का जोरदार विरोध किया, ‘‘आई औब्जेक्ट योरऔनर, वादी वकील बारबार पैंतरा बदल रहे हैं. पहले इन्होंने कहा कि मुल्जिम कोई चीज तलाश रहा था, जब मकतूला ने रोका तो उस का गला दबा दिया. अब कह रहे हैं कि अपने दोस्त असद की गिरफ्तारी का बदला लेने के लिए नौशीन का कत्ल कर दिया. ये इन की बचकानी वहजे हैं.’’

‘‘कैसी बचकानी दलील है?’’ वादी वकील ने कहा.

‘‘जनाब, असद और खलील की कोई बहुत गहरी दोस्ती नहीं थी. बस में मुलाकात हुई थी. इस के बाद वे कभीकभी मिलने लगे थे. ऐसी कोई दोस्ती नहीं थी कि वह उस के लिए कत्ल जैसा जुर्म करता.’’

जज ने मेरी बात में वजन महसूस किया. उस ने कुछ नोट किया. इस के बाद जिरह की बारी मेरी थी.

मैं ने कहा, ‘‘मि. खलील, आप मकतूला को कब से जानते हैं, आप का उस से क्या ताल्लुक था?’’

‘‘मेरी मकतूला से सिर्फ एक मुलाकात हुई थी, वह भी गेट पर खड़ेखड़े. मकतूला के शौहर काजी कयूम से मेरे कारोबारी संबंध थे, करीब 3 महीने से.’’

‘‘किस किस्म के संबंध थे. आप के काजी कयूम से?’’

इस बार उस ने 10 लाख रुपए के इनवेस्ट की पूरी कहानी सुना दी. आखिर में कहा, ‘‘मैं तीसरे महीने का ब्याज लेने काजी कयूम के घर गया था, क्योंकि वह औफिस में मिल नहीं रहा था. मैं औफिस जाना भी नहीं चाहता था, क्योंकि वहां पहले ही हंगामा हो चुका था. काजी ने मुझे 11 बजे पैसे लेने के लिए बुलाया था.’’

‘‘तुम्हें असद, सरवर, नूर खां के पैसों की कोई फिक्र नहीं थी. तुम अकेले ही अपना पैसा लेने चले गए थे?’’

‘‘साहब, ऐसे मौके पर सब को अपनीअपनी पड़ी होती है.’’

मैं ने अपने सवालों के जरिए काजी का दूसरा रूप अदालत के सामने रख दिया, जो एक फ्राडी इनवेस्टर का था. खलील ने एकएक बात खोल कर रख दी थी. अन्य लोगों के पैसे डूबने की बात भी बता दी थी. वादी वकील ने 2 बार ऐतराज किया, पर जज ने रद्द कर दिया. खलील के जवाबों का खुलासा करते हुए मैं ने कहा, ‘‘योरऔनर काजी टे्रडिंग कंपनी के अलावा इनवेस्टमेंट का भी काम करता था, जो सरासर फ्राड पर आधारित था. इस ने जिन लोगों के पैसे इनवेस्ट कराए. अब वे चक्कर काट रहे हैं. 5 हमारे सामने ही मौजूद हैं. फैजान के 5 लाख, सरवर ने 8 लाख, नूरखां ने 3 लाख, असद के 5 लाख, खलील ने 10 लाख रुपए इनवेस्ट किए थे. सारे लोग तो झूठ नहीं बोल रहे हैं. मुल्जिम अपने पैसे लेने काजी के घर गया तो उसे कत्ल के इल्जाम में फंसा दिया गया. बाकी लोगों के पैसे नहीं मिले हैं.’

जज ने मेरी बातें ध्यान से सुनी और वादी वकील से पूछा, ‘‘क्या काजी कयूम अदालत में मौजूद है?’’

उस के ‘हां’ कहने पर काजी कयूम को विटनेस बौक्स में बुलाया गया. हलफ लेने के बाद जज ने उस से काजी इनवेिस्टंग के बारे में पूछा. काजी ने अदब से जवाब दिया, ‘‘हुजूर, मेरी सिर्फ काजी ट्रेडिंग कंपनी है, जो एक्सपोर्टइंपोर्ट का काम करती है. काजी इनवेस्टिंग जैसी झूठी व फ्राडी कंपनी से मेरा कोई ताल्लुक नहीं है, न ही मेरी ऐसी कोई कंपनी है.’’

वादी वकील फौरन बोला, ‘‘जज साहब, बेग साहब मेरे मुवक्किल पर झूठे इल्जाम लगा रहे हैं.’’

जज ने मुझ से पूछा, ‘‘मि. बेग, काजी साहब तो किसी इनवेस्टिंग कंपनी की बात नहीं मान रहे हैं, आप के पास कोई दस्तावेजी सबूत है?’’

‘‘दस्तावेजी सुबूत तो नहीं है, क्योंकि फ्राड का काम करने वाले बड़ी चालाकी से काम करते हैं, ताकि पकड़ में न आएं. काजी ने भी सादे कागजों पर 10 लाख रुपए की रसीद दी थी, उस में भी उस के साइन फर्जी हैं. ब्याज इतना ज्यादा था कि लोग लालच में अंधे हो कर बिना सोचेसमझे पैसे लगा रहे थे. मैं सिर्फ लुटने वाले लोगों को बुलवा कर गवाही दिला सकता हूं.’’

इसी के साथ अदालत का वक्त खत्म हो गया. वैसे भी मुझे मेरे मुवक्किल को कत्ल के इल्जाम से बचाना था. इनवेस्टमेंट की बात बाद में देखी जाएगी. नौशीन के कत्ल से उसे किस तरह छुड़ाना है, इस की पूरी प्लानिंग मेरे दिमाग में चल रही थी. बाहर मुझे खलील की मां मिली, जो लपक कर मेरे पास आई. जमानत न होने से वह बहुत दुखी थी. मैं ने उसे समझाया कि कत्ल के केस में जमानत बड़ी मुश्किल से मिलती है. आगे बेहतर होगा, इस का दिलासा दिया.

अगली पेशी पर मैं ने जज साहब से केस के इन्क्वायरी अफसर से चंद सवाल करने की इजाजत मांगी, जो इंसपेक्टर वहीद खां थे. मैं ने उन से पूछा, ‘‘इंसपेक्टर साहब, इस्तगासा के अनुसार, वारदात की खबर आप को 22 मार्च को साढ़े 11 बजे मिली थी. 12 बजे आप वहां पहुंच गए थे. आप को किस ने और क्या खबर दी थी?’’

‘‘वारदात की जानकारी मुझे काजी कयूम ने दी थी. फोन पर कहा था कि उन की बीवी नौशीन कत्ल कर दी गई है. खलील नामी किसी शख्स ने उस का कत्ल किया है.’’

‘‘आप ने घटनास्थल पर जा कर क्या देखा था?’’

‘‘पूरा घर इस तरह उलटापलटा पड़ा था, जैसे डकैती पड़ी हो, पर काजी कयूम के मुताबिक कुछ चोरी नहीं हुआ था. काजी की बीवी नौशीन की लाश ड्राइंगरूम में फर्श पर पड़ी थी.’’

‘‘इंसपेक्टर साहब, यह कत्ल 10 से साढ़े 11 के बीच हुआ था. पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के मुताबिक मौत की वजह गला घोंटना है. क्या आप ने गले पर से फिंगरप्रिंट्स उठाए थे?’’

‘‘हम ने फिंगरप्रिंट्स लेने की कोशिश की थी, पर हमें कामयाबी नहीं मिली. शायद मुल्जिम ने दस्ताने पहन रखे थे.’’ उस ने हड़बड़ाते हुए जवाब दिया.

‘‘पर आप की तैयार की गई रिपोर्ट में इस बात का कहीं कोई जिक्र नहीं है.’’

‘‘शायद यह बात रिपोर्ट में आने से रह गई है.’’

‘‘शायद नहीं, यकीनन. लेकिन यह बहुत बड़ी गलती है. अभी आप ने कहा कि बंगले की हालत से लगता था कि वहां डाका पड़ा था. आप ने बाकी जगहों के फिंगरप्रिंट्स उठाए थे?’’

‘‘मैं ने सभी जगहों से फिंगरप्रिंट्स उठाने की कोशिश की थी, पर कोई अजनबी फिंगरप्रिंट्स नहीं मिले थे. शायद इस की वजह दस्ताने थे.’’

‘‘घटनास्थल का काम निपटाने के बाद आप ने क्या किया था?’’

‘‘मैं ने मुल्जिम खलील को उस की दुकान से गिरफ्तार कर लिया था.’’ इंसपेक्टर वहीद खां ने कहा.

‘‘आप को यह बात किस ने बताई थी कि खलील दुकान पर होगा? दुकान का पता किस ने बताया था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘दोनों बातें मुझे काजी कयूम ने बताई थीं.’’

मेरी जिरह खत्म होने के बाद गवाह अनवर की बारी आई. वह 60-65 साल का मजबूत काठी का आदमी था. उस की काजी कयूम के बंगले के पास कोल्डड्रिंक, पान, सिगरेट वगैरह की दुकान थी. वादी वकील ने उस से मामूली सवाल किए, जिस का खुलासा यह था कि वह दिन भर दुकान पर बैठता था. उस ने मुल्जिम को काजी कयूम के बंगले के पास मंडराते देखा था, उस के चेहरे पर घबराहट थी. इस के बाद मैं जिरह करने के लिए खड़ा हुआ. मैं ने पूछा, ‘‘अनवर, तुम कितने सालों से दुकान चला रहे हो और तुम्हारी दुकान कैसी चलती है?’’

‘‘मैं करीब 10 सालों से यह दुकान चला रहा हूं. बहुत अच्छी चलती है. मुझे सिर उठाने की फुरसत नहीं मिलती.’’

‘‘तुम काजी कयूम को जानते हो? उस के इनवेस्टिंग के कारोबार के बारे में भी जानते होंगे?’’

‘‘मैं काजी साहब को जानता हूं. मुझे इतना पता है कि वह कोई कंपनी चलाते हैं. इनवेस्टिंग का पता नहीं.’’

‘‘आप ने वारदात के दिन मुल्जिम को पहली बार देखा था? अब आप ने अच्छे से देख लिया कि मुल्जिम वही आदमी है, जिसे आप ने काजी के घर के पास देखा था?’’

‘‘जी हां, यह वही आदमी है.’’

‘‘आप की दूर की नजर कैसी है?’’

‘‘बहुत अच्छी, एकदम ठीकठाक.’’

मैं ने अदालत के खुले दरवाजे की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘दरवाजे में जो आदमी खड़ा वकील साहब से बातें कर रहा है, उस की टाई का रंग बताइए तो कैसा है?’’

वह बेहद परेशान नजर आने लगा, फिर उलझन से बोला, ‘‘वह टाई गे्र नहीं, डार्क ग्रीन…’’

अचानक वह खामोश हो गया. मैं ने व्यंग से कहा, ‘‘अनवर खां, आप का और दरवाजे का फासला करीब डेढ़ सौ गज है, जबकि आप की दुकान और काजी कयूम के बंगले की दूरी करीब 2 सौ गज से ज्यादा है. आप को सामने खड़े आदमी की टाई का रंग समझ में नहीं आ रहा है. वहां इतनी दूर से आप ने मुल्जिम के चेहरे के भाव देख लिए. क्या कमाल है. आप को इस गवाही के कितने पैसे मिले थे?’’

‘‘जी नहीं, दरअसल बात यह है कि कलर… मैं रुपए ले कर नहीं आया.’’ वह हड़बड़ा कर बोला.

‘‘अनवर साहब, आप ने इसे पहले नहीं देखा था, न वह आप की दुकान पर आया था. फिर आप अपनी दुकान पर इतने मसरूफ रहते हैं, उइस के बावजूद आप ने इतना देख लिया. अभी मैं ने अदालत के सामने साबित कर दिया कि यह डेढ़ सौ गज दूर की चीज नहीं देख सकते. सरासर फर्जी गवाही है जनाबेआली, एक मसरूफ आदमी इतनी दूर से इतनी बारीकी से हरगिज नहीं देख सकता, इस का दावा निराधार है.’’

जज ने कुछ नोट किया, इसी के साथ अदालत का वक्त खत्म हो गया.

विटनेस बौक्स में काजी कयूम की सेक्रैट्री कंवल खड़ी थी. वादी वकील की जिरह में सारे पौइंट्स काजी कयूम के पक्ष में जा रहे थे. उस ने इनवेस्टिंग कंपनी से साफ इनकार कर दिया था. खलील, असद को पहचानने से भी उस ने इनकार कर दिया था. उस ने सिर्फ यह बात मानी थी कि कुछ गुंडे जैसे लोगों ने दफ्तर में तोड़फोड़ की थी. वादी वकील ने पूछा, ‘‘22 मार्च को क्या हुआ था?’’

‘‘22 मार्च को काजी साहब 10 बजे औफिस आए तो उस के 5 मिनट बाद उन के घर से फोन आया कि घर में डाकू घुस आए हैं, उन्हें जल्द से जल्द घर पहुंचने को कहा गया था.’’

इस के बाद मैं ने जिरह शुरू की. मैं ने कठघरे में खड़े खलील की तरफ इशारा कर के पूछा, ‘‘क्या आप इसे जानती हैं?’’

‘‘सिर्फ इस हद तक कि यह आदमी मुकदमे का मुल्जिम है, इस पर कत्ल का इल्जाम है.’’

कंवल बड़ी सफाई और ढिठाई से झूठ बोल रही थी.

मैं ने कहा, ‘‘याद करिए, यह आदमी 3 महीने से काजी कयूम के पास आ रहा था, कभी अकेले, कभी असद के साथ. इस ने काजी के पास 10 लाख रुपए इनवेस्ट किए थे.’’

‘‘इस तरह के किसी मामले की मुझे कोई जानकारी नहीं है.’’

मैं समझ गया कि यह फ्राडी इनवेस्टमेंट के बारे में एक भी शब्द नहीं बोलेगी. मैं ने फिर पूछा, ‘‘वारदात के 4 दिन पहले औफिस में किस बात पर हंगामा हुआ था, उस की वजह क्या थी?’’

‘‘उस दिन 4-5 नवजवान औफिस में घुस आए और तोड़फोड़ तथा मारपीट करने लगे. वे किसी फायदे की बात कह रहे थे. जब काजी साहब ने इनकार कर दिया तो वे मारपीट पर उतारू हो गए. मजबूर हो कर काजी साहब को पुलिस बुला कर उन्हें गिरफ्तार      कराना पड़ा, क्योंकि उन का किसी इनवेस्टमेंट से कोई ताल्लुक नहीं था.’’

बाकी उस ने हर बात से इनकार कर दिया. यहां तक कि जब असद और खलील जबरदस्ती काजी से मिलने पहुंचे थे, उस ने साफ कह दिया था कि ऐसी कोई बात वह नहीं जानती. अगली पेशी पर काजी कयूम ने अपना बयान दर्ज कराया. मैं ने जिरह शुरू की, ‘‘काजी साहब, मकतूल नौशीन से आप की शादी कब हुई थी?’’

‘‘मेरी शादी को 2 साल हो रहे हैं.’’

‘‘आप नरसरी वाले बंगले में कब शिफ्ट हुए? इस से पहले आप गुलशन इकबाल में ब्लाक, 13 में रहते थे न?’’

‘‘इस बंगले में आए मुझे 3 साल हुए हैं, पहले मैं गुलशन इकबाल में ही रहता था.’’

‘‘आप यह ट्रेडिंग कंपनी कब से चला रहे हैं?’’

‘‘करीब 8 सालों से.’’

‘‘यानी आप की पहली बीवी सूफिया के जमाने से?’’ मैं ने चुभते हुए लहजे में पूछा.

ये सारी जानकारी बड़ी मेहनत से असद ने जुटा कर मुझे दी थी. पहली बीवी का नाम सुनते ही काजी कयूम घबरा गया. उस ने उखड़े लहजे में कहा, ‘‘आप ठीक कह रहे हैं.’’

‘‘सूफिया से जब आप की शादी हुई थी, वह एक बेसहारा, पर काफी मालदार औरत थी. उस वक्त आप की जेब खाली थी. सूफिया की दौलत ने आप को मजबूत सहारा दिया. कुछ समय बाद उसी के माल से आप ने टे्रडिंग कंपनी खोल ली. फिर आप दिनरात तरक्की करते गए. 4 सालों बाद आप की बीवी सूफिया छत से गिर कर काफी जख्मी हो गई. जब आप उसे कार से अस्पताल ले जाने लगे तो उस ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया. मैं ठीक कह रहा हूं न?’’

विटनेस बौक्स में खड़ा काजी बदहवास नजर आने लगा, उस ने बौखला कर कहा, ‘‘एकदम ठीक.’’

वादी वकील ने काजी की हालत देख कर बोलना जरूरी समझा, ‘‘योरऔनर, बेग साहब नौशीन के कत्ल को भूल कर गवाह के अतीत को उखाड़ने में लग गए हैं.’’

मैं ने फौरन कहा, ‘‘योरऔनर, कत्ल काजी साहब की मौजूदा बीवी का हुआ है. उस का राज खोलने को पहली बीवी का जिक्र जरूरी है, क्योंकि काजी साहब की पहली 2 बीवियों की हादसे में मौत हो चुकी है. उस बात पर परदा डालना इंसाफ के उसूलों के विरुद्ध होगा.’’

मेरी बात खत्म होते ही जज ने जोर से कहा, ‘‘2 बीवियां और दोनों की हादसे में मौत?’’

‘‘यह बड़ी कड़वी सच्चाई है योरऔनर.’’ मैं ने मजबूती से कहा.

जज ने दिलचस्पी लेते हुए कहा, ‘‘आप इसी लाइन पर जिरह जारी रखें.’’

काजी का चेहरा फीका पड़ रहा था. मैं ने आगे पूछा, ‘‘काजी साहब, सूफिया की मौत पर आप को एक भारी रकम इंश्योरेंस से भी मिली थी. उस के बाद आप गुलशन इकबाल छोड़ कर मुस्लिमाबाद में आ बसे और वहां आप ने जमीला नाम की काफी मालदार बेवा औरत से शादी कर ली.’’

थोड़ा रुक कर मैं ने जज की ओर देखा. वह हैरान थे और कुछ लिख रहे थे. मैं ने बात आगे बढ़ाई, ‘‘काजी साहब, आप को जमीला से शादी रास नहीं आई, पर उस की दौलत तो आप के हाथ लग गई. जबकि वह बेचारी एक रोड ऐक्सीडेंट में चल बसी. कश्मीरी रोड पर उस की गाड़ी को एक वाटर टैंकर ने इतने जोर से टक्कर मारी कि वह उसी वक्त चल बसी. यह बात भी ताज्जुब की है कि वाटर टैंकर वालों का अड्डा आप के घर से दूर नहीं था. जमीला की हादसे में मौत का क्लेम आप ने 50 लाख रुपए वसूल किए. अगर मेरे बयान में कुछ गलत है तो मुझे टोक दें.’’

काजी कयूम की हालत देखने लायक थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहे. जज भी उस की घबराहट और हालत देख रहा था. मैं ने जिरह शुरू रखी, ‘‘काजी साहब, आप ने नौशीन की लाइफ पौलिसी एक करोड़ रुपए की करा रखी है. बेचारी की मौत को 8 महीने हो गए, क्या आप ने इंश्योरेंस क्लेम वसूल कर लिया है?’’

वह मुझे घूर कर रह गया. वादी वकील ने जल्दी से कहा, ‘‘जज साहब, गवाह की प्राइवेट लाइफ को उजागर करना सरासर गलत है.’’

मैं ने जल्दी से कहा, ‘‘मकतूल के क्लेम के बारे में पूछा कानूनन सही है, जवाब दें काजी साहब.’’

उस ने कमजोर लहजे में कहा, ‘‘क्लेम में कुछ कानूनी अड़चनें आ गई हैं.’’

‘‘वे कानूनी अड़चनें भी आप की लाई हुई हैं काजी साहब.’’ मैं ने कहा.

जज फौरन बोल उठे, ‘‘कैसी लाई गईं कानूनी अड़चनें? खुलासा करें बेग साहब?’’

‘‘काजी कयूम ने नौशीन से तीसरी शादी की थी, जो एक तलाकशुदा, पैसे वाली औरत थी. इस बार भी अगर काजी साहब बीवी की मौत को हादसे का रंग देते तो कुछ न बिगड़ता. कहानी एकदम सिंपल होती कि कोई नामालूम आदमी या डाकू घर में घुसा और नौशीन के विरोध करने पर उस का गला घोंट कर चला गया. अगर खलील को बीच में न फंसाते तो मामला अदालत तक नहीं पहुंचता और न ही इंश्योरेंस क्लेम मिलने में अड़चन खड़ी होती.’’

मेरे खामोश होते ही अदालत में बातें शुरू हो गईं.

मैं ने काजी से पूछा, ‘‘काजी साहब, आप इस आदमी को कब से जानते हैं?’’

मेरा इशारा खलील की ओर था.

‘‘अपनी बीवी की कत्ल की वारदात के बाद से.’’

‘‘मतलब, आप मुल्जिम के आप की इनवेस्टिंग कंपनी में 10 लाख रुपए जमा करने की बात से इनकार करते हैं?’’

‘‘इनवेस्टिंग कंपनी व भारी ब्याज की कहानी झूठी है.’’

‘‘क्या आप को मालूम था कि मुल्जिम की बिजनेस रोड पर दुकान है?’’ मैं ने तीखे लहजे में पूछा.

‘‘मुल्जिम के बारे में सारी जानकारी इस कत्ल के बाद मुझे हुई है.’’

‘‘क्या आप की या आप की बीवी की मुलिजम से कोई दुश्मनी थी?’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं थी.’’

‘‘फिर आप के खयाल में कत्ल का मकसद क्या हो सकता है? यूं ही तो कोई किसी को मार नहीं देता, कोई तो वजह होगी?’’

काजी घबरा कर बोला, ‘‘वह…वह… शायद चोरी की नीयत से मेरे घर में घुसा था. नौशीन के विरोध करने पर उसे मौत के घाट उतार कर फरार हो गया.’’

‘‘अब एक और नई कहानी कि चोरी करने आया था, जबकि चोरी हुई नहीं. पहले कहा था कि असद का बदला लेने घुसा और कत्ल कर दिया. ये कैसी बातें हैं कयूम साहब?’’

‘‘वह भी हो सकता है.’’ वह एकदम बौखला कर बोला.

‘‘यह भी हो सकता है, वह भी हो सकता है, अदालत में यह नहीं चलता. आप का दावा है काजी साहब कि आप मुल्जिम को बिलकुल नहीं जानते थे कत्ल होने तक. आप के बयान के अनुसार, जब आप मकतूल के खबर देने पर घर पहुंचे तो पूरा घर उलटापलटा पड़ा था और नौशीन की लाश ड्राइंगरूम में पड़ी थी. आप ने यह देख कर पुलिस को फोन किया. मेरा सवाल यह है कि घर पहुंचने के कितनी देर बाद आप ने पुलिस को हादसे की खबर दी थी?’’

‘‘लगभग 15 मिनट बाद.’’ उस ने घबराते हुए कहा.

मैं ने कहा, ‘‘पुलिस रोजनामचे के अनुसार, 22 मार्च को दिन के साढ़े 11 बजे आप ने फोन किया, जिस का जिक्र चालान में भी है. इस हिसाब से आप सवा ग्यारह बजे घर पहुंचे थे, जबकि आप की सेक्रैट्री कंवल ने कहा है कि आप सवा 10 बजे औफिस से निकले थे. आप के औफिस से आप के घर तक पहुंचने के लिए ज्यादा से ज्यादा 30 मिनट लगते हैं, फिर आप मौकाएवारदात पर एक घंटे बाद क्यों पहुंचे. आप तो अपनी कार में थे. मुश्किल से 20 मिनट लगने चाहिए थे?’’

वह कांपती आवाज में बोला, ‘‘दरअसल, रास्ते में मेरी गाड़ी खराब हो गई थी. इसलिए देर हो गई.’’

‘‘काजी साहब, इतना भी कमाल न करें, गाड़ी खराब हो गई थी तो आप टैक्सी ले सकते थे. नौशीन ने बड़ी इमरजैंसी में आप को फोन किया था. आप को तो उड़ कर वहां पहुंचना चाहिए था.’’

वह खामोश मुझे देखता रहा. हाथ मलता रहा. मैं ने एक वार और किया, ‘‘पुलिस रिकौर्ड के मुताबिक आप ने थाने फोन कर के कहा था कि खलील नाम के एक आदमी ने आप की बीवी नौशीन का कत्ल कर दिया है. जब आप हादसे से पहले मुल्जिम को जानते ही नहीं थे तो फिर आप ने उस का नाम कैसे लिया? क्या जादू से नाम पता चल गया था?’’

वह खामोश कठघरे का सहारा लिए खड़ा रहा, जो उस के मुजरिम होने का सुबूत था. मैं ने गिरती दीवार को एक धक्का और दिया, ‘‘काजी साहब, आप ने पैसे इनवेस्ट नहीं किए, आप खलील को नहीं जानते, फिर आप ने इन्क्वायरी अफसर को उस की दुकान का पता कैसे बताया. इन्क्वायरी अफसर यह बात बता चुका है कि मुल्जिम का नामपता आप ने उसे बताया था. इस सब का क्या मतलब निकलता है?’’

अब अपना रुख जज की तरफ फेरते हुए मैं ने कहा, ‘‘जनाबेआली, वादी की खामोशी यह बताती है कि वह कत्ल के पहले से ही मुल्जिम को अच्छी तरह जानता था और यह भी जानता था कि बिजनैस रोड पर उस की दुकान है. उस की गवाही कानून के उसूलों के विरुद्ध है. इस ने सरासर झूठ बोला है, नोट किया जाए.’’

मेरी बात पूरी होतेहोते अदालत का वक्त खत्म हो गया.

आगे वादी वकील ने मुल्जिम के खिलाफ तमाम दलीलें दीं, पर किसी दलील में दम नहीं था. अपनी बारी आने पर सारे झूठे बयानों का मैं ने खुलासा कर दिया. मुकदमा तो पिछली पेशी पर ही मेरी तरफ पलट चुका था. मैं ने फिंगरप्रिंट्स की रिपोर्ट गायब होने पर पुलिस पर सवाल उठाए, फिर अनवर की झूठी गवाही पर ऐतराज किया. काजी की सेक्रैट्री कंवल की झूठ बयानी और हठधर्मी पर अंगुली उठाई. रहीसही कसर काजी की 2 बीवियों की हादसे में मौत ने पूरी कर दी. अब जज पूरी तरह मेरे मुवक्किल के पक्ष में हो चुका था. फैसले की तारीख दे कर जज ने अदालत बरखास्त कर दी.

अगली पेशी पर अदालत ने मेरे मुवक्किल को बाइज्जत बरी कर दिया. इस के साथ पुलिस को आदेश दिया कि वह नौशीन के असली कातिल को गिरफ्तार कर जल्द से जल्द चालान पेश करे. पुलिस के लिए जज का हुक्म पकेपकाए हलवे से कम नहीं था. अगले ही दिन पुलिस पंजे झाड़ कर काजी कयूम के पीछे पड़ गई. काजी कयूम पुलिस की सख्ती ज्यादा देर नहीं सहन कर सका और उस ने नौशीन के साथसाथ अपनी पहली 2 बीवियों के कत्ल का भी इकरार कर लिया. मगर आखिर तक इनवेस्टिंग कंपनी के फ्राड से इनकार करता रहा.

मैं ने खलील को कत्ल से तो बाइज्जत बरी करवा लिया, पर पैसे नहीं दिला सका. शायद सब मिल कर पैसों के लिए फिर केस करें. काजी ने कत्ल का इकरार कर लिया, पर फ्राड का नहीं किया. पता नहीं यह उस के मुजरिम जेहन की कौन सी अदा थी? Hindi Story

 

 

 

 

UP Crime: सीमा के स्वप्न संसार में सेंध

UP Crime: महत्त्वाकांक्षी होना बुरी बात नहीं है, लेकिन अतिमहत्त्वाकांक्षा हमेशा कष्टदायी होती है. सीमा अगर खुद पर नियंत्रण रख कर अपने पति पर भरोसा रखती तो उस का और उस के परिवार का ऐसा भयानक अंजाम कभी न होता.

उत्तर प्रदेश के जिला इटावा के कस्बा बकेवर के रहने वाले रामलाल तोमर के परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटा व 3 बेटियां थीं, जिन में सीमा सब से बड़ी थी. वह अपने भाई बहनों से हर मामले में तेज थी. पढ़नेलिखने में भी वह पीछे नहीं थी. उस ने हाईस्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की थी. सीमा जब जवान हुई तो उस के मातापिता को उस की शादी की चिंता होने लगी.  रामलाल तोमर ने सीमा के लिए रिश्ता देखना शुरू किया तो औरैया के मोहल्ला आर्यनगर का राकेश उर्फ राजू उन्हें पसंद आ गया. पेशे से ड्राइवर राजू का अपना मकान था. देखने में भी वह हृष्टपुष्ट था. उस का एक ही भाई था नरेश, जो प्राइवेट नौकरी करता था. लड़का भी ठीक था और उस का परिवार भी. रामलाल तोमर ने बेटी का रिश्ता उस के साथ तय कर दिया.

सीमा खूबसूरत लड़की थी. राकेश को भी वह पसंद आ गई. फलस्वरूप दोनों की शादी हो गई. यह सन 2006 की बात है. गोरा रंग, भरा हुआ चेहरा, कटीले नैननक्श, छरहरा बदन, ऊपर से भरपूर जवानी. राकेश को लगा जैसे सीमा के रूप में उसे हूर मिल गई है. वह उस की खूबसूरती में डूब कर रह गया. सीमा भी राकेश को पा कर खुश थी. दोनों का जीवन हंसीखुशी से कटने लगा. परिवार की स्थिति के अनुसार जीवन की लगभग हर आर्थिक जरूरत पूरी हो रही थी. विवाह के शुरुआती दिनों में तो पतिपत्नी दोनों खूब खुश थे, लेकिन जब जिम्मेदारियां बढ़ीं तो धीरेधीरे दोनों का एकदूसरे के प्रति आकर्षण कम होने लगा. वक्त के साथ राकेश को लगने लगा कि सीमा कुछ ज्यादा ही महत्त्वाकांक्षी औरत है.

वजह यह थी कि अब वह राकेश से तरहतरह की फरमाइशें करने लगी थी. जबकि ड्राइवरी कर के अपने परिवार का बोझ उठाने वाले राकेश के लिए उस की फरमाइशें पूरा करना आसान नहीं था. लेकिन यह बात सीमा की समझ में नहीं आती थी. वह पति की मजबूरी समझने के बजाय उस से लड़ाईझगड़ा करने लगती थी. सीमा के इसी स्वभाव की वजह से दोनों के दांपत्य जीवन में कटुता आने लगी. फिर भी विषम परिस्थितियों के बावजूद वक्त अपनी चाल चलता रहा. इस बीच सीमा एक बेटी हिना और एक बेटे रूपेश की मां बन गई थी.

सीमा अपने बच्चों का पालनपोषण अच्छी तरह से करना चाहती थी. वह उन्हें अच्छे स्कूल में पढ़ाना चाहती थी, लेकिन राकेश की सीमित आय में यह संभव नहीं था. सीमा बच्चों की परवरिश और उन की पढ़ाईलिखाई को ले कर अकसर पति से झगड़ती रहती थी. रोजरोज के झगड़े से राकेश तनाव में रहने लगा था. इस तनाव को दूर करने के लिए उस ने शराब का सहारा लेना शुरू कर दिया था. दिन भर के कामकाज से थका मादा राकेश अब ज्यादातर नशे में धुत हो कर देर रात घर लौटता था. घर आ कर वह थोड़ाबहुत खाना खाता और बिस्तर पर लुढक जाता. सीमा अभी जवान थी, उस की रातें बिस्तर पर करवटें बदलते गुजरतीं. उस का मन करता था कि उस का पति उसे प्यार करे, उस की शारीरिक जरूरतों को पूरा करे. लेकिन राकेश की उपेक्षा की वजह से वह मन मार कर रह जाती थी.

आर्यनगर मोहल्ले में ही सीमा के घर से कुछ दूरी पर सुरेश शर्मा का अपना मकान था, जहां वह सपरिवार रहता था. सुरेश शर्मा प्रौपर्टी डीलर था, साथ ही जरूरतमंदों को ब्याज पर पैसा भी देता था. उस ने अपने घर के भूतल पर प्रौपर्टी डीलिंग का औफिस बना रखा था. उस का काम अच्छा चल रहा था. एक दिन अचानक सीमा की बेटी हिना की तबियत खराब हो गई. उसे नर्सिंगहोम में भरती कराना पड़ा. सीमा को पैसों की जरूरत थी, इसलिए वह अपने पति राकेश के साथ प्रौपर्टी डीलर सुरेश शर्मा के औफिस जा पहुंची. खूबसूरत सीमा को देख कर सुरेश के दिल में हलचल मच गई. उस ने आने का कारण पूछा तो सीमा बोली, ‘‘शर्माजी, मेरी बेटी हिना अस्पताल में भरती है. मुझे 10 हजार रुपए चाहिए.’’

सुरेश शर्मा गोरी रंगत व तीखे नयननक्श वाली सीमा के चेहरे पर नजरें गड़ाते हुए बोला, ‘‘मैडम, आप जरूरतमंद हैं और मैं जरूरतमंदों को कभी निराश नहीं करता, लेकिन आप को मूल के साथसाथ ब्याज भी देना होगा.’’

‘‘यह मेरे पति राकेश हैं, ड्राइवर की नौकरी करते हैं. हम आप की पाईपाई चुका देंगे.’’ सीमा ने गारंटी सी दी.

सुरेश शर्मा सोचने लगा, ‘इतनी खूबसूरत औरत एक मामूली ड्राइवर की बीवी. इसे तो किसी उस जैसे दौलतवाले की होना चाहिए.’

सोचविचार कर शर्मा सीमा के पति से मुखातिब हुआ, ‘‘क्यों भाई राजू, तुम्हारी बीवी जो वादा कर रही है, उसे पूरा करोगे?’’

‘‘हां शर्माजी, मैं वादा करता हूं कि आप का पैसा ब्याज समेत चुका दूंगा.’’ राजू हाथ जोड़ कर बोला.

‘‘फिर ठीक है.’’ कह कर शर्मा ने 10 हजार रुपए सीमा को दे दिए. सीमा तो पैसे ले कर चली गई, लेकिन सुरेश शर्मा के दिल में खलबली मचा गई. दरअसल वह पहली ही नजर में उस के दिलोदिमाग पर छा गई थी. फलस्वरूप वह उसे हासिल करने के लिए तानेबाने बुनने लगा. उस ने थोड़ी छानबीन की तो उसे पता चला कि सीमा का पति राकेश शराब का लती है. सुरेश शर्मा खुद भी शराब का शौकीन था. उस ने कोशिश की तो पीनेपिलाने के नाम पर जल्द ही दोनों की दोस्ती हो गई. बस फिर क्या था, दोनों की राकेश के घर में महफिल जमने लगी. पीनेपिलाने के दौरान सुरेश शर्मा की नजरें सीमा पर ही टिकी रहती थीं.

30 वर्षीया सीमा 2 बच्चों की मां जरूर थी, लेकिन उस की खूबसूरती में कोई कमी नहीं आई थी. उस का गोरा रंग, मांसल शरीर तथा बड़ीबड़ी आंखें किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर सकती थीं. वह सजसंवर कर आंखों पर काला चश्मा पहन कर जब घर से निकलती तो किसी हीरोइन से कम नहीं लगती थी. अधेड़ उम्र का सुरेश शर्मा सीमा का दीवाना बन गया था. अपनी दीवानगी के चलते जबतब उस ने सीमा के घर आनाजाना शुरू कर दिया था. वह जब भी आता, बच्चों और सीमा के लिए कुछ न कुछ ले कर आता. वह सीमा से लच्छेदार बातें करता, जो उसे बहुत अच्छी लगतीं. रहीबची कमी उस के लाए उपहार पूरी कर देते. फलस्वरूप धीरेधीरे वह भी सुरेश शर्मा की ओर आकर्षित होने लगी.

सीमा महत्त्वाकांक्षी औरत थी. उसे लगा कि धनाढ्य सुरेश शर्मा के माध्यम से उस की महत्त्वाकांक्षा पूरी हो सकती है. एक रोज जब सुरेश शर्मा उस के घर आया तो वह उस के सामने खुलेपन से पेश आई. बातोंबातों में उस ने कहा, ‘‘शर्माजी, मेरी एक चाहत है. अगर आप चाहें तो पूरी कर सकते हैं.’’

सही मौका देख सुरेश शर्मा उस का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘बोलो, क्या चाहती हो?’’

‘‘मेरे पति राकेश दूसरे की वैन चलाते हैं. नौकरी से घर का खर्चा नहीं चल पाता. मैं चाहती हूं कि आप उन्हें एक वैन खरीदवा दें. कमाई का आधा रुपया वह आप को देंगे और बाकी रुपए से घर का खर्च चलता रहेगा.’’

सीमा की डिमांड बड़ी थी. सुरेश शर्मा खामोश हो गया. वह मन ही मन सोचने लगा, ‘सीमा वाकई चालाक औरत है. अभी पिछला कर्ज चुका नहीं पाई, दूसरी बड़ी डिमांड कर दी. लेकिन वह भी प्रौपर्टी डीलर है. घाटे का सौदा नहीं करेगा. सीमा कर्ज नहीं चुका पाएगी तो वह उस के शरीर से वसूल कर लेगा.’

सुरेश शर्मा को खामोश देख कर सीमा ने पूछा, ‘‘क्या बात है शर्माजी, आप को तो सांप सूंघ गया. कोई जोरजबरदस्ती नहीं है. मैं तो वैसे ही आप की एहसानमंद हूं. आप ने मदद न की होती तो पता नहीं मेरी बेटी का क्या हाल होता.’’

‘‘नहीं…नहीं सीमा, तुम निराश मत हो. तुम्हारी चाहत पूरी होगी.’’ इस के बाद महीना बीतते सुरेश शर्मा ने सीमा के पति राकेश को वैन खरीद कर दे दी. वैन पा कर राकेश शर्मा खुशी से झूम उठा. उस ने वैन को एक अंगे्रजी माध्यम स्कूल में अटैच करा लिया. दिन में वह बच्चों को ढोता और रात में शादी समारोह या बुकिंग पर चला जाता. इस तरह वह दोहरी कमाई करने लगा. कमाई बढ़ी तो घर की आर्थिक स्थिति भी ठीक हो गई. सुरेश शर्मा वैन की कमाई के रुपए लेने अकसर सीमा के घर आता रहता था. पहले वह आता था तो गंभीर बना रहता था. लेकिन अब वह सीमा से हंसीमजाक के साथ उस के शरीर से हलकीफुलकी छेड़छाड़ भी कर लेता था. सीमा न उस के मजाक का बुरा मानती थी, न शारीरिक छेड़छाड़ का.

कहते हैं, औरत मर्द की निगाहों की बेहद पारखी होती है. सीमा भी समझ गई थी कि प्रौपर्टी डीलर सुरेश शर्मा उस से क्या चाहता है. सीमा का पति बिस्तर पर उस का साथ नहीं देता था. वह शराब पी कर देर रात घर आता और खापी कर चारपाई पर लुढ़क जाता. वह रात भर तड़पती रहती. यही वजह थी कि जब सुरेश शर्मा ने उस से शारीरिक छेड़छाड़ शुरू की तो उस ने उसे रोकने की कोई कोशिश नहीं की. एक दिन एकांत पा कर सुरेश शर्मा ने जब सीमा को छेड़ा तो वह स्वयं को रोक नहीं सकी और मुसकराते हुए पूछ लिया, ‘‘शर्माजी, आप चाहते क्या हैं?’’

‘‘मैं तो तुम्हें चाहता हूं.’’ सुरेश शर्मा ने आगे बढ़ कर सीमा के कंधों पर हाथ रखते हुए मादक स्वर में कहा. उस वक्त उस के स्वर में ही नहीं, आंखों में भी मादकता तैर रही थी. सीमा चाह कर भी सुरेश शर्मा के हाथ को अपने कंधों से नहीं हटा सकी. सुरेश शर्मा का हौसला बढ़ा तो वह उस के शरीर से छेड़छाड़ करने लगा. फिर उस ने सीमा को अपनी बांहों में भर लिया. सीमा भी उस से लिपट गई. इस के बाद दोनों तभी अलग हुए, जब उन के चेहरों पर पूर्ण संतुष्टि के भाव उभर आए.

सुरेश शर्मा और सीमा के बीच जब एक बार नाजायज रिश्ते बन गए तो फिर यह सिलसिला दिनोंदिन बढ़ता ही गया. जब भी मौका मिलता, दोनों एकदूसरे में समा जाते. शर्मा से शारीरिक सुख मिलने लगा तो सीमा ने पति को दिल से ही निकाल दिया. वह केवल प्रौपर्टी डीलर सुरेश शर्मा की हो कर रह गई. कहते हैं, पाप कितना भी छिपा कर किया जाए, एक न एक दिन उजागर हो ही जाता है. धीरेधीरे सुरेश शर्मा और सीमा के अवैध रिश्तों को ले कर पासपड़ोस में तरहतरह की चर्चाएं होने लगीं. जब इस बात की भनक राकेश तोमर को लगी तो उस का माथा ठनका. उसे अपनी बीवी पर शक तो पहले से ही था, लेकिन लोगों की चर्चाओं ने उस के शक को पक्का कर दिया.

राकेश दोनों को रंगेहाथ पकड़ना चाहता था. इसलिए उस ने गुप्तरूप से सुरेश शर्मा और सीमा पर नजर रखनी शुरू कर दी. एक शाम राकेश यह कह कर घर से निकला कि वह वैन ले कर बुकिंग पर जा रहा है. अब वह सुबह तक आ पाएगा. राकेश के जाते ही सीमा ने सुरेश शर्मा को मोबाइल से यह जानकारी दे कर उसे घर बुला लिया. कुछ देर तक दोनों हंसीठिठोली करते रहे, फिर बिस्तर पर पहुंच गए. दोनों रंगरेलियां मना ही रहे थे कि दरवाजे पर दस्तक हुई. सीमा ने दरवाजा खोला तो सामने राकेश खड़ा था. उसे देख कर सीमा ने घबरा कर पूछा, ‘‘तुम तो सुबह आने को कह कर गए थे?’’

सीमा के अस्तव्यस्त कपड़े, उलझे बाल और घबराहट देख कर राकेश समझ गया कि कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है. वह सीमा को परे धकेल कर घर के अंदर कमरे में पहुंचा तो सुरेश शर्मा वहां मौजूद था. वह कपड़े पहन चुका था. शर्मा राकेश को देखते ही बोला, ‘‘तुम आ गए, दरअसल मुझे पैसों की सख्त जरूरत थी, इसलिए तुम्हारा इंतजार कर रहा था.’’

राकेश गुस्से में बोला, ‘‘शर्माजी, आज के बाद तुम मेरे घर में कदम भी नहीं रखोगे. पैसे मैं खुद देने आऊंगा. तुम्हारे कारण हमारी कितनी बदनामी हो रही है, इस का अंदाजा है तुम्हें? मैं तुम्हारे एहसान के बोझ तले दबा हूं, ऊपर से तुम्हारी उम्र का खयाल. वरना अब तक मेरे हाथ तुम्हारी गर्दन तक पहुंच गए होते.’’

राकेश के तेवर देख कर सुरेश शर्मा ने नजरें झुका लीं और वहां से चला गया. उस के जाते ही राकेश का सारा गुस्सा सीमा पर फूट पड़ा. उस ने उस की जम कर पिटाई की. सीमा चीखनेचिल्लाने लगी. पत्नी के साथ मारपीट कर के राकेश चारपाई पर जा कर लेट गया. कुछ देर में उसे नींद आग गई. जबकि सीमा रात भर दर्द से तड़पती रही. इस के बाद तो मारपीट का सिलसिला सा चल पड़ा. राकेश शराब तो पीता ही था, लेकिन अब वह कुछ ज्यादा ही पीने लगा. देर रात वह नशे में धुत हो कर आता. बातबेबात सीमा से उलझता और फिर उसे जानवरों की तरह पीटता. कभीकभी दोनों का झगड़ा घर से शुरू होता और सड़क पर आ जाता. पासपड़ोस के लोग बड़े मजे से दोनों का झगड़ा देखते. लेकिन सीमा की मदद के लिए कोई नहीं आता.

मारपीट और बदनामी के बावजूद सीमा ने सुरेश शर्मा का साथ नहीं छोड़ा. उसे जब भी मौका मिलता मोबाइल से बात कर के वह उसे बुला लेती और दोनों हमबिस्तर हो जाते. यह अलग बात थी कि अब वे सतर्कता बरतने लगे थे. लेकिन उन की सतर्कता के बावजदू एक दिन राकेश ने दोनों को फिर रंगेहाथों पकड़ लिया. उस दिन राकेश ने पहले सुरेश शर्मा की पिटाई की, उस के बाद सीमा को मारमार कर अधमरा कर दिया. सीमा कहीं उस के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट न दर्ज करा दे, राकेश घर से गायब हो गया. इधर जब सुरेश शर्मा को इस बात का पता चला कि राकेश घर से गायब है तो वह सीमा का हालचाल जानने जा पहुंचा. सीमा उसे देख कर फफक कर रो पड़ी,

‘‘राकेश का जुल्म अब मुझ से बरदाश्त नहीं होता. उस ने पीटपीट कर मेरा पूरा शरीर काला कर दिया है. अब मैं उस से छुटकारा पाना चाहती हूं.’’

‘‘छुटकारा… मतलब… हत्या?’’ शर्मा चौंका.

‘‘हां, मेरे पति को मार डालो, वरना एक दिन वह हम दोनों को मार डालेगा.’’ सीमा ने मन की बात कह दी.

‘‘शायद, तुम ठीक कहती हो. लेकिन इस काम के लिए हम दोनों को प्रयास करना होगा. पैसा तो मैं खर्च कर सकता हूं, पर भरोसे का कोई आदमी चाहिए.’’ सुरेश शर्मा ने भी अपनी बात कह दी.

‘‘भरोसे का आदमी है, मैं उस की पत्नी से बात करती हूं.’’ सीमा ने कहा तो सुरेश शर्मा ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘कौन है वह?’

‘‘मेरी सहेली छाया वर्मा का पति राजेश वर्मा.’’

‘‘सुपारी किलर राजेश वर्मा?’’ सुरेश ने चौंक कर पूछा.

‘‘हां, वही राजेश वर्मा, पर कितनी रकम लेगा, यह बात कर के बताऊंगी.’’

‘‘ठीक है, तुम बात करो. मैं पैसे का बंदोबस्त करता हूं.’’ शर्मा ने आश्वासन दिया.

इस के बाद सीमा शुक्ला टोला में रहने वाली अपनी सहेली छाया वर्मा से मिली और उस से पति से निजात दिलाने की बात कही. इस के लिए छाया वर्मा ने 2 लाख रुपए मांगे. लेकिन बातचीत के बाद एक लाख 60 हजार रुपए में सौदा तय हो गया. छाया वर्मा का पति राजेश वर्मा दिखावे के लिए तो कार ड्राइवर था, लेकिन असल में वह अपराधी था और पैसा ले कर हत्या जैसे जघन्य अपराध करता था. छाया वर्मा ने अपने पति राजेश वर्मा को राकेश उर्फ राजू तोमर की हत्या के लिए राजी कर लिया. सीमा ने सुरेश शर्मा की मुलाकात राजेश वर्मा व उस की पत्नी छाया वर्मा से करवाई और सुपारी किलर राजेश वर्मा को 20 हजार रुपए एडवांस दिलवा दिए. शेष रुपए काम हो जाने के बाद देने को कहा गया. सुपारी लेने के बाद राजेश वर्मा ने इस काम में अपने दोस्त कल्लू सक्सेना को भी शामिल कर लिया.

करीब एक सप्ताह तक इधरउधर घूमने के बाद राकेश घर लौट आया. अब वह पूरी तरह निश्चिंत था. क्योंकि सीमा ने पुलिस में कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई थी. उस ने बच्चों से प्यार भरी बातें कीं और सीमा के साथ भी सहज व्यवहार किया. यहां तक कि उस ने सीमा से मारपीट के लिए माफी भी मांग ली. सीमा के व्यवहार में भी बदलाव आ चुका था. दिखावे के लिए वह भी उस से प्यार करने लगी थी. राकेश को क्या मालूम था कि पत्नी का यह प्यार उस के लिए मौत की दस्तक है.

16 मार्च, 2015 की सुबह औरैया के कुछ लोगों ने शहर के पास वाली नहर के किनारे स्थित वीरेंद्र कुशवाहा के खेत में लगे ट्यूबवेल के कमरे के पास एक युवक की लाश पड़ी देख कर औरैया कोतवाली पुलिस को सूचना दी. सूचना मिलते ही कोतवाली प्रभारी अजय पाठक अपने सहयोगी उपनिरीक्षक मोहम्मद शाकिर व अनिल पांडेय के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. पाठक ने लाश पाए जाने की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दे दी और निरीक्षण में जुट गए. युवक की हत्या किसी तेज धार वाले हथियार से की गई थी. उस का गला आधे से ज्यादा कटा हुआ था. हाथ पर भी जख्म थे. मृतक की उम्र 35 साल के आसपास थी. जामातलाशी में उस के पास से ऐसा कुछ भी बरामद नहीं हुआ, जिस से उस का नामपता मालूम हो जाता. लाश को सैकड़ों लोगों ने देखा, लेकिन कोई भी मृतक को पहचान नहीं सका.

थानाप्रभारी अजय पाठक अभी लाश का निरीक्षण कर रहे थे कि सूचना पा कर एसपी मनोज तिवारी, एएसपी विपुल कुमार श्रीवास्तव और सीओ (सिटी) रमेशचंद्र भारतीय भी आ गए. उन्होंने डौग स्क्वायड को भी बुला लिया. वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने बारीकी से घटनास्थल का निरीक्षण किया और वहां मौजूद लोगों से पूछताछ की. लेकिन मृतक की पहचान नहीं हो सकी. खोजी कुत्ता भी लाश को सूंघ कर भौंकता हुआ नहर तक गया और वापस लौट आया. शिनाख्त न होने पर पुलिस ने लाश की फोटो वगैरह करा कर उसे पोस्टमार्टम हाउस भिजवा दिया. पुलिस अधीक्षक मनोज तिवारी ने मृतक और हत्यारों का पता लगाने के लिए एएसपी विपुल कुमार श्रीवास्तव के निर्देशन में एक सशक्त पुलिस टीम बनाई.

इस टीम में सीओ सिटी रमेशचंद्र भारतीय, कोतवाली प्रभारी निरीक्षक अजय पाठक, एसआई मोहम्मद शाकिर, अनिल पांडेय तथा सर्विलांस टीम को शामिल किया गया. यह पुलिस टीम 4 दिनों तक पसीना बहाती रही, लेकिन मृतक की हत्या का रहस्य खुलना तो दूर उस की शिनाख्त तक नहीं हो सकी. 21 मार्च, 2015 को आर्यनगर मोहल्ला निवासी नरेश तोमर ने थाना कोतवाली आ कर बताया कि उस का भाई राकेश उर्फ राजू तोमर करीब एक हफ्ते से गायब है. इस पर अजय पाठक ने उसे मृतक की फोटो दिखाई. फोटो देखते ही नरेश फफक पड़ा. उस ने बताया कि यह फोटो उस के भाई राकेश की है.

लाश की शिनाख्त होते ही पुलिस हरकत में आ गई. पुलिस टीम ने नरेश से पूछताछ की तो उस ने अपने भाई की हत्या का संदेह प्रौपर्टी डीलर सुरेश शर्मा और उस के बेटे शिवम शर्मा पर जाहिर किया. पुलिस ने दोनों को हिरासत में ले लिया. थाना कोतवाली ला कर जब पुलिस टीम ने सुरेश शर्मा से पूछताछ की तो वह टूट गया और उस ने हत्या का जुर्म कबूल लिया. पूछताछ में सुरेश शर्मा ने बताया कि राकेश की पत्नी सीमा से उस के नाजायज संबंध बन गए थे. राकेश इन संबंधों का विरोध करता था और सीमा को बुरी तरह पीटता था. आजिज आ कर सीमा और उस ने राकेश की हत्या की साजिश रची. इस के बाद उन दोनों ने सुपारी किलर राजेश वर्मा और उस की पत्नी छाया वर्मा से बात की.

बातचीत के बाद सीमा ने अपने सुहाग का सौदा एक लाख 60 हजार में कर डाला और एडवांस के तौर पर 20 हजार रुपए भी दे दिए. राजेश वर्मा ने ही राकेश की हत्या की है. सुरेश शर्मा के बयान के आधार पर पुलिस टीम ने ताबड़तोड़ छापे मार कर राजेश वर्मा, उस की पत्नी छाया वर्मा और मृतक की पत्नी सीमा तोमर को गिरफ्तार कर लिया. थाना कोतवाली में जब उन से पूछताछ की गई तो सभी ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. राजेश वर्मा ने कत्ल में प्रयोग किया गया गंड़ासा भी बरामद करा दिया, जिसे उस ने नहर के किनारे झाडि़यों से छिपा दिया था. राजेश के पास से पुलिस टीम ने 7500 रुपए भी बरामद कर लिए. शेष रुपए वह खर्च कर चुका था.

राजेश वर्मा ने पूछताछ में बताया कि सुपारी लेने के बाद उस ने यह काम करने के लिए अपने दोस्त कल्लू सक्सेना को शामिल कर लिया था. पीनेपिलाने के दौरान उस ने राजू से दोस्ती गांठ ली थी. 15 मार्च को वह राजेश उर्फ राजू को शहर के बाहर नहर पर ले गया और फिर खेत पर वहां पहुंचा, जहां ट्यूबवेल था. ट्यूबवेल के पास कमरा था. राकेश वहीं पसर गया. सही मौका देख कर उस ने कल्लू की मदद से राजू की गर्दन गंड़ासे से काट दी और गंड़ासा छिपा दिया. उस के बाद राकेश की हत्या की सूचना सुरेश शर्मा को दे दी. राकेश की हत्या कर के राजेश और कल्लू सक्सेना घर लौट आए थे.

चूंकि अभियुक्तों ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, इसलिए थानाप्रभारी अजय कुमार पाठक ने मृतक के भाई नरेश को वादी बना कर भादंवि की धारा 302/201/120बी, के तहत, सुरेश शर्मा, राजेश वर्मा, छाया वर्मा, सीमा तोमर और कल्लू सक्सेना के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली. 24 मार्च, 2015 को पुलिस ने अभियुक्त सुरेश शर्मा, राजेश वर्मा, छाया वर्मा तथा सीमा तोमर को औरैया की कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जिला कारागार भेज दिया गया. कल्लू सक्सेना फरार था. UP Crime

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारि

Uttar Pradesh Crime Story: खुले दिल वाली औरत

Uttar Pradesh Crime Story: 3 शादियां करने के बाद भी सरस्वती अपने दिल को काबू में नहीं कर सकी. उस का दिल पड़ोस के ओमवीर पर आ गया. इस नए प्रेमी के साथ उस ने ऐसी साजिश रची कि…

रामपुर बुजुर्ग गांव में सुबहसुबह रोने बिलखने की आवाज सुन कर लोगों की नींद टूट गई. वह आवाज किसी महिला की थी. लोग सोचने लगे कि पता नहीं क्या हो गया जो वह महिला इस तरह रो रही है. लोगों की जिज्ञासा बढ़ गई और वे अपनेअपने घरों से बाहर निकल कर उस तरफ जाने लगे, जिधर से रोने की आवाज आ रही थी. वह आवाज रामस्वरूप के घर की तरफ से आ रही थी. इसलिए लोगों का उस के घर के बाहर जुटना शुरू हो गया. बाद में पता चला कि रामस्वरूप की मौत हो गई है. रामस्वरूप की पत्नी सरस्वती रोते हुए कह रही थी कि उस के पति ने आत्महत्या कर ली है. उस की लाश कमरे में एक चारपाई पर पड़ी थी. रामस्वरूप की मां मोरकली और भाई ऋषिपाल भी वहां खड़े आंसू बहा रहे थे.

वहां मौजूद लोगों में से किसी ने फोन कर के रामस्वरूप के आत्महत्या करने की जानकारी भमोरा थाने को दे दी. जानकारी मिलते ही थानाप्रभारी राकेश सिंह यादव गांव रामपुर बुजुर्ग में रामस्वरूप के घर पहुंच गए. यह गांव उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के अंतर्गत आता है. पुलिस को देखते ही सरस्वती दहाड़े मार कर रोने लगी. थानाप्रभारी ने सरस्वती को दिलासा देते हुए चुप कराया. इस के बाद उस से रामस्वरूप की मौत के बारे में बात की. उस ने रुंधे गले से बताया कि थकान होने की वजह से रात को वह बच्चों के साथ सो गई थी. सुबह आंखें खुलीं तो उस ने पति की लाश धोती के फंदे से लटकी देखी. इस हाल में उस ने जल्दी से धोती को बीच से काट दिया और लोगों को बुलाया.

थानाप्रभारी ने लाश का मुआयना किया तो देखा कि रामस्वरूप की लाश चारपाई पर चित अवस्था में पड़ी थी. उस के शरीर पर कमीज और केवल अंडरवियर था. गले पर किसी रस्सी के बांधने जैसे निशान थे. पुलिस ने मृतक के छोटे भाई ऋषिपाल से पूछताछ की तो उस ने बताया कि रामस्वरूप ने 2 दिन पहले ही अपने हिस्से की जमीन बेची थी. इसलिए फांसी लगा कर आत्महत्या करने का कोई कारण समझ में नहीं आ रहा. ऋषिपाल की बातों से थानाप्रभारी को दाल में काला नजर आने लगा. चूंकि उस समय सरस्वती बुरी तरह बिलख रही थी, इसलिए उस से पूछताछ करनी जरूरी नहीं समझी. उन्होंने लाश का पंचनामा करने के बाद पोस्टमार्टम के लिए बरेली के जिला अस्पताल  भेज दिया. यह बात 17 दिसबंर, 2014 की है.

अगले दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो थानाप्रभारी राकेश सिंह यादव रिपोर्ट पढ़ कर हैरान रह गए. रिपोर्ट में बताया गया था कि रामस्वरूप की मौत गला घुटने से हुई थी. जिस तरह उस के गले पर रस्सी के बांधने का निशान था. उस से यही लगता था कि सोते समय उस के गले में रस्सी बांध कर उस का गला घोंटा गया था. पुलिस को यह मामला हत्या का लगा. जबकि उस की पत्नी इसे आत्महत्या बता रही थी. केस की गुत्थी सुलझाने के लिए थानाप्रभारी उस के घर पहुंचे. घर में सरस्वती तथा उस की सास मोरकली मिलीं. उन्होंने सरस्वती से पूछताछ शुरू की तो उस ने वही कहानी बताई, जो घटना वाले दिन बताई थी. इस के अलावा उस ने इस बार एक नई बात बताई कि उस का पति अपने छोटे भाई ऋषिपाल तथा मां के भी हिस्से की 8 बीघा जमीन बेचना चाहता था.

पहले तो वे दोनों इस के लिए राजी थे. लेकिन जब जमीन लिखने की बात आई तो दोनों मुकर गए. इस के बाद शर्मिंदगी के मारे उन्होंने आत्महत्या कर ली. सरस्वती के बयान की तसदीक करने के लिए पुलिस ने ऋषिपाल और उस की मां मोरकली से पूछताछ की तो दोनों ने बताया कि रामस्वरूप ने केवल अपने ही हिस्से की जमीन श्रीपाल को बेची थी. उन के हिस्से की जमीन बेचने की तो कोई चर्चा ही नहीं हुई. इस से पुलिस को यही लगा कि सरस्वती ने जो कुछ बताया, वह सरासर झूठ था. ऋषिपाल ने आरोप लगाया कि रामस्वरूप की हत्या में उस की पत्नी सरस्वती और उस के तीनों भाइयों रामवीर, भगवानदास तथा जानकी प्रसाद का हाथ है. इन सभी के खिलाफ रिपोर्ट लिखाने की तहरीर उस ने 9 जनवरी, 2015 को थाने में दे दी. इस के बाद पुलिस ने उन चारों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

सरस्वती का मायका बरेली जिले के कैंट थाने के पालपुर गांव में था. उस के भाइयों की तलाश में पुलिस अगले दिन ही पालपुर गांव पहुंच गई. रामवीर, भगवानदास तथा जानकी घर पर ही मिल गए. तीनों को हिरासत में ले कर पुलिस टीम थाने लौट आई. तीनों से पूछताछ शुरू की तो तीनों ने खुद को बेगुनाह बताया. उन्होेंने बताया कि रामस्वरूप ने अपनी 8 बीघा जमीन का बैनामा 15 दिसबंर, 2014 को कराया था तो उस दिन वे उस के साथ थे. अगले दिन 16 दिसबंर की शाम को वे अपने घर लौट आए थे. उस समय तक रामस्वरूप बिलकुल ठीक था और सभी से हंसबोल रहा था. इस के बाद रात में उस की मौत कैसे हो गई, उन्हें नहीं पता?

थानाप्रभारी को शक हो गया कि हो न हो, जमीन की बिक्री से मिले रुपयों को पाने के लिए उन लोगों ने रामस्वरूप की हत्या कर दी और रात में ही अपने घर लौट गए हों. इस के बाद सरस्वती ने लोगों को दिखाने के लिए रोनेचिल्लाने का नाटक करना शुरू कर दिया हो. इसी बात को ध्यान में रखते हुए पुलिस ने तीनों भाइयों से सख्ती से पूछताछ करनी शुरू की. सरस्वती को जब पता चला कि पुलिस उस के भाइयों से सख्ती कर रही है तो वह घबरा गई. अपने भाइयों को पुलिस से बचाने के लिए उस ने थानाप्रभारी राकेश सिंह यादव को फोन कर के बताया कि वह पति की हत्या के बारे में कुछ अहम बातें बताना चाहती है. सरस्वती की बात सुन क र थानाप्रभारी 11 जनवरी, 2015 की सुबह सरस्वती के घर पहुंच गए.

सरस्वती ने पति की हत्या के बारे में उन्हें जो कुछ बताया उसे सुन कर वह हैरान रह गए. सरस्वती ने बताया कि पति की हत्या उसी ने अपने प्रेमी ओमवीर साहू के साथ मिल कर की थी. उस के तीनों भाई बेकुसूर हैं, उन्हें हत्या के बारे में कुछ पता नहीं है. वे उस दिन शाम को ही अपने गांव पालपुर लौट गए थे. इस तरह अचानक केस खुलने पर थानाप्रभारी ने राहत की सांस ली. उन्होंने उसी समय सरस्वती को गिरफ्तार कर थाने ले आए. उस के तीनों भाई बेकुसूर थे, इसलिए उन्हें रिहा कर दिया. एक पुलिस टीम उस के प्रेमी ओमवीर को गिरफ्तार करने के लिए उस के घर भेजी गई, लेकिन वह घर पर नहीं मिला. उसी दौरान पुलिस को मुखबिर से सूचना मिली कि ओमवीर गांव के बाहर मोड पर अपने कुछ साथियों के साथ मौजूद है. यह सूचना मिलते ही टीम उसी जगह पहुंच गई. मुखबिर की सूचना सही निकली. ओमवीर अपने दोस्तों के साथ गपशप करता मिल गया.

पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. ओमवीर को इस बात की बिलकुल भी जानकारी नहीं थी कि उस की प्रेमिका सरस्वती पुलिस गिरफ्त में है और वह अपना गुनाह कुबूल कर चुकी है. इसलिए जब उस से रामस्वरूप की हत्या के बारे में पूछा गया तो वह खुद को बेगुनाह बताता रहा. लेकिन जब थाने में उस का सामना सरस्वती से कराया गया तो उस का चेहरा सफेद पड़ गया. उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया. सरस्वती और ओमवीर से की गई पूछताछ में रामस्वरूप की हत्या के पीछे अवैध संबंधों की जो दास्तान उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार थी.

उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के कैंट थाने का एक गांव है पालपुर. पतिराम इसी गांव में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी सोनादेवी के अलावा 3 बेटे और एक बेटी सरस्वती थी. वह किसी तरह मेहनतमजदूरी कर के अपने परिवार का भरणपोषण कर रहा था. घर की आर्थिक तंगी की वजह से वह बच्चों को पढ़ालिखा भी नहीं सका. वक्त गुजरने के साथसाथ बच्चे भी बड़े होते गए. सरस्वती 3 भाइयों की एकलौती बहन थी. इसलिए भाई उसे पलकों पर बिठा कर रखते थे. सरस्वती जवान हुई तो गांव के ही कुछ लड़के उस पर डोरे डालने लगे. वे उस के घर के आसपास चक्कर काटने लगे. लड़कों को देख कर सोनादेवी बेटी पर नजर रखने लगी. पतिराम तो सारा दिन घर से बाहर रहता था.

उसे इन सब बातों की जानकारी नहीं थी. एक दिन सोनादेवी ने पति को इस की जानकारी दी. पतिराम गरीब था, इसलिए उस ने किसी से पंगा लेने के बजाय बेटी के हाथ पीले करने की सोची. वह उस के लिए लड़का देखने लगा. उस के एक रिश्तेदार ने उसे बरेली के ही सीबीगंज थानाक्षेत्र के मथुरापुर गांव के एक युवक ओमप्रकाश के बारे में बताया. पतिराम ने ओमप्रकाश के बारे में जांच की तो पता चला कि वह मेहनती है. उस का घर परिवार भी ठीक था. वह बेटी के लिए सही लगा तो उस ने उस के साथ सरस्वती की शादी कर दी. यह 10 साल पहले की बात है.

शादी के बाद कुछ दिनों तक तो सबकुछ ठीक था, परंतु बाद में उन दोनों के बीच छोटीछोटी बातों को ले कर झगड़े होने शुरू हो गए. अभी उन की शादी को एक साल पूरा भी नहीं हुआ था कि सरस्वती को लगा कि अब उस का ओमप्रकाश के साथ गुजारा होना मुश्किल है. इसी दौरान उस की मुलाकात बदायूं जिले के मोहल्ला टिकटगंज निवासी पप्पू से हुई. पप्पू बनठन कर रहने वाला युवक था. दोनों के बीच नजदीकी इतनी बढ़ गई कि सरस्वती पति ओमप्रकाश को छोड़ कर पप्पू के साथ रहने लगी. करीब एक साल बाद सरस्वती ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम स्वाति रखा गया. सरस्वती पति को छोड़ कर पप्पू के पास इसलिए आई थी कि उस के साथ उस की जिंदगी हंसीखुशी से कटेगी. लेकिन ऐसा नहीं हो सका. एक दिन जब वह सो कर उठी तो पप्पू अपने बिस्तर पर मृत मिला. पप्पू की मौत के बाद सरस्वती की जिंदगी में जैसे अंधेरा छा गया था.

पप्पू की मौत के 1-2 महीने बाद ही पप्पू के घर वालों ने सरस्वती के ऊपर आरोप लगाने शुरू कर दिए कि पप्पू की मौत स्वाभाविक नहीं हुई, बल्कि उस ने खाने में जहर दे कर उस की हत्या की थी. सरस्वती इस का लाख विरोध करती रही. उस की बात पर किसी ने विश्वास नहीं किया. मामला पुलिस तक तो नहीं गया, लेकिन घर वालों ने उस का ससुराल में रहना दूभर कर दिया. रोजरोज की किचकिच से तंग आ कर एक दिन वह बेटी को ले कर अपने मायके आ गई. बरेली के ही भमोरा थानाक्षेत्र के रामपुर बुजुर्ग गांव में रछपाल अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी मोरकली के अलावा 2 बेटे थे, रामस्वरूप और ऋषिपाल. रछपाल की गांव में खेती की काफी जमीन थी, कुल मिला कर वह साधनसंपन्न थे. दोनों बच्चे बड़े हुए तो सब को उन की शादी की चिंता हुई.

चूंकि रामस्वरूप बड़ा था, इसलिए उस की शादी के रिश्ते आने शुरू हुए तो रामस्वरूप लड़की में सौ कमियां निकाल कर शादी करने से इनकार कर देता. गांव में अपनी हैसियत को देखते हुए रछपाल को उम्मीद थी कि बेटे के लिए कोई अच्छा सा रिश्ता अवश्य आएगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. जब रामस्वरूप हर रिश्ते में कोई न कोई कमी निकालने लगा तो उस के लिए रिश्ते आने बंद हो गए. समय के साथ उस की उम्र भी बढ़ती गई. अब उसे कोई अपनी लड़की नहीं देना चाहता था. इस से उस के घर वाले भी परेशान रहने लगे कि इस की शादी कैसे हो. यही हाल रहा तो यह कुंवारा ही रह जाएगा. ऐसी हालत में उन्होंने तय कर लिया कि किसी भी हालत में उस का घर बसाने की कोशिश करेंगे. अब वह तलाकशुदा या गरीब परिवार की महिला तक से उस का घर बसाने की बात करने लगे.

इसी बीच एक दिन किसी परिचित ने उन्हें पालपुर की सरस्वती के बारे में बता कर कहा कि वह एक बेटी की मां है और मायके में रह रही है. अगर वह कहें तो उस से शादी की बात चलाई जाए. अंधा क्या चाहे दो आंखें, रछपाल ने तुरंत हामी भर दी. इस बार रामस्वरूप कुछ नहीं बोला. सरस्वती के भाई भी बहन की शादी रामस्वरूप से करने के लिए तैयार हो गए. एक सादे समारोह में सरस्वती और रामस्वरूप की शादी हो गई. सरस्वती की यह तीसरी ससुराल थी. उस ने अपने व्यवहार से सभी लोगों का दिल जीत लिया. रामस्वरूप तो सरस्वती का दीवाना था. वह उस की बातों पर आंखें मूंद कर विश्वास करने लगा. वह भी बहुत खुश थी. रामस्वरूप से सरस्वती को 2 बच्चे हुए. बेटा गौरव तथा बेटी गुडि़या.

समय के साथ सरस्वती का घर में दखल बढ़ता गया. यह देख कर उस की सास मोरकली को आभास होने लगा कि यदि बहू को नहीं रोका गया तो जल्दी ही पूरे घर में सिर्फ उस का ही सिक्का चलने लगेगा. इसलिए मोरकली ने उसे बातबात पर टोकना शुरू कर दिया. सरस्वती को सास की दखलंदाजी पसंद नहीं थी. लिहाजा उन दोनों के बीच झगड़ा होने लगा. घर में रोजरोज ही कलह होने लगी. रामस्वरूप भी मां के बजाय पत्नी का पक्ष लेता था. रछपाल और मोरकली ने देखा कि उन का बेटा ही बीवी का गुलाम बन कर अच्छेबुरे को नहीं पहचान रहा तो उन्होंने बेटाबहू को अलग कर दिया. फिर वह गांव में ही दूसरे घर में रहने लगा. अलग होने पर सरस्वती बहुत खुश हुई. क्योंकि अब उसे ज्यादा जनों का काम नहीं करना पड़ता था.

रामस्वरूप के पड़ोस में हरिबाबू का परिवार रहता था. वह आबकारी विभाग में नौकरी करते थे. उन के परिवार में पत्नी कमलेश तथा 6 बच्चे थे. इन में चार लड़के और 2 लड़कियां थीं. वह साधनसंपन्न थे. जैसेजैसे बच्चे जवान होते गए. वह उन की शादियां करते गए. शादी के लिए उन का सब से छोटा बेटा ओमवीर ही बचा था.पड़ोसी होने की वजह से रामस्वरूप और हरिबाबू के परिवार के लोगों का एकदूसरे के घर आनाजाना बना रहता था. ओमवीर सरस्वती को भाभी कहता था. वह उस से उम्र मे कई साल छोटा था. 28 साल की सरस्वती अपनी उम्र से छोटे ओमवीर से अकसर हंसीमजाक करती रहती थी. ओमवीर को भी यह सब अच्छा लगता था. वह भी मौका ताड़ कर सरस्वती के दिल की थाह लेने लगा. वह उस के मजाक करने का मतलब समझ चुका था. इसलिए उस के मन में भी चाहत पैदा हो गई. वह भी उसी के अंदाज में उस से मजाक करने लगा.

रामस्वरूप और ओमवीर की उम्र में इतना अंतर था कि रामस्वरूप ने उसे गोद खिलाया था. इसलिए सरस्वती का झुकाव ओमवीर की तरफ हो गया. ओमवीर जब भी उस के घर आता सरस्वती के चेहरे की रौनक बढ़ जाती. एक दिन जब रामस्वरूप घर में नहीं था, तभी ओमवीर ‘भाभीभाभी…’ पुकारता हुआ उस के घर में आया तो देखा कि सरस्वती आईने के सामने खड़ी शृंगार कर रही थी. ओमवीर दबे पांव उस के पीछे खड़ा हो गया. लेकिन सरस्वती ने उसे आईने में देख लिया था. वह चहकते हुए बोली, ‘‘आओ ओमवीर इधर बैठो.’’ सरस्वती ने कुरसी की तरफ इशारा किया.

वह बहुत खूबसूरत लग रही थी. ओमवीर सरस्वती के पास कुरसी पर बैठ गया. उस समय उस के दिल की धड़कनें तेज हो गईं. सरस्वती ने उस की आंखों में झांकते हुए पूछा, ‘‘ओमवीर, मैं तुम्हें कैसी लगती हूं?’’

‘‘भाभी, तुम कितनी खुबसूरत हो, यह बात मेरे दिल से पूछो. तभी तो मैं तुम्हारी खुबसूरती का दीदार करने यहां चला आता हूं.’’ अपनी तारीफ सुनते ही सरस्वती ओमवीर के करीब आ गई. वह उस के गले में बांहें डालते हुए बोली, ‘‘सच, क्या मैं इतनी सुदंर हूं?’’

उस के नजदीक आते ही ओमवीर की धड़कनें बढ़ गईं. उस का शरीर जैसे तपने लगा. अब वह अपनी भाभी के इरादे समझ चुका था. वह भी अपनी कुरसी से खड़ा हो गया. उस ने भी झट से उस के गाल पर चुम्मा लेते हुए कहा, ‘‘सचमुच तुम बहुत खुबसूरत हो,’’

सरस्वती भी खिलाड़ी थी. उस ने मौके का फायदा उठाना मुनासिब समझा और अपना खेल दिखाना शुरू कर दिया. फिर क्या था, थोड़ी ही देर में उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कर लीं. सरस्वती को ढलती उम्र के पति की जगह ओमवीर का साथ अच्छा लगा. इस के बाद तो पति के जाते ही सरस्वती उसे फोन कर के उसे अपने घर में बुला लेती. जब पति की गैरमौजूदगी में ओमवीर के सरस्वती के घर कुछ ज्यादा चक्कर लगने शुरू हो गए तो पड़ोसियों को शक हो गया. यह बात रामस्वरूप के कानों में भी पहुंची, मगर पत्नी पर अंधविश्वास की वजह से उस ने लोगों की बातों को गंभीरता से नहीं लिया.

सरस्वती के चक्कर में ओमवीर अपने कामधंधे पर भी ध्यान नहीं दे रहा था. इस के अलावा वह रामस्वरूप के घर के काम में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेता था. ओमवीर के घर वालों को यह सब अच्छा नहीं लगता था, इसलिए वे उसे रामस्वरूप के घर जाने को मना करते थे, लेकिन वह घर वालों की बातों पर ध्यान न दे कर उस के घर चला जाता था. रामस्वरूप की रेलवे लाइन के नजदीक 8 बीघा जमीन थी. वह ज्यादा उपजाऊ नहीं थी. दिसंबर, 2014 में एक दिन सरस्वती ने पति से उस जमीन को बेच कर कोई अच्छा सा ध्ांधा करने को कहा. पहले तो रामस्वरूप को बीवी की बात अटपटी लगी. मगर जब सरस्वती ने जिद की तो उसे बीवी की बात माननी पड़ी. इस बारे में उस ने अपने तीनों सालों से बात की तो उन्होंने भी अपनी बहन की बात में हां मिला दिया. पत्नी और ससुराल वालों की बातों में आ कर रामस्वरूप ने अपनी 8 बीघा जमीन बेचने का फैसला कर लिया.

रामस्वरूप ने भी सोचा कि जमीन बेच कर वह शहर में कोई अच्छा धंधा कर लेगा. उस ने यह बात पत्नी को बताई कि यहां रह कर धंधा करने से कोई फायदा नहीं है. अगर शहर में जा कर कोई धंधा करे तो ज्यादा अच्छा रहेगा. शहर में रहने से बच्चों की पढ़ाई भी ठीक से हो जाएगी. पति के मुंह से शहर जाने की बात सुन कर सरस्वती को पांव तले से धरती खिसकती हुई दिखाई दी. वह किसी भी हालत में ओमवीर से दूर नहीं जाना चाहती थी. इस के लिए पहले तो उस ने जमीन बेचने के बाद भी पति को गांव में रहने के लिए मनाना शुरू किया, मगर जब वह नहीं माना तो वह इस का कोई समाधान निकालने में लग गई.

इसी बीच रामस्वरूप की गैरमौजूदगी में जब ओमवीर उस से मिलने पहुंचा तो सरस्वती ने उस से कहा, ‘‘रामस्वरूप जमीन बेच कर शहर में रहने की बातें कह रहा है. यदि ऐसा हो गया तो हम दोनों एकदूसरे से दूर हो जाएंगे.’’

‘‘बताओ, इस क ा उपाय क्या है?’’ ओमवीर गंभीर हो कर बोला.

‘‘उपाय यह है कि जमीन बेचने के बाद उसे ठिकाने लगा दिया जाए. हमारे पास पैसे भी आ जाएंगें और हमारे बीच का रोड़ा भी हट जाएगा.’’ सरस्वती ने अपने मन की बात कही.

ओमवीर भी सरस्वती से दूर नहीं होना चाहता था, इसलिए वह सरस्वती के साथ मिल कर रामस्वरूप की हत्या करने के लिए तैयार हो गया. 15 दिसंबर, 2014 को रामस्वरूप की जमीन का बैनामा होना तय हुआ था, इसलिए सरस्वती के तीनों भाई जानकीप्रसाद, रामवीर और भगवानदास पालपुर से रामपुर बुजुर्ग आ गए. जमीन का बैनामा होने के बाद 16 दिसंबर की शाम को तीनों भाई गांव लौट गए. जमीन बेचने से जो रकम मिली थी, वह रामस्वरूप ने सरस्वती को रखने के लिए दे दी थी.

16 दिसंबर की रात को खाना खाने के बाद रामस्वरूप ने थोड़ी देर बच्चों से बातें की. इस के बाद बिस्तर पर जा कर सो गया. योजना के मुताबिक आधी रात होने पर ओमवीर अपने घर की मुंडेर फांद कर उस के घर में आ गया. उस समय सरस्वती जाग रही थी. वह भी बेचैनी से उसी के आने का इंतजार कर रही थी. ओमवीर के आने के बाद उस ने पति को हिलाडुला कर देखा. वह गहरी नींद में था. पति को गहरी नींद में देख कर सरस्वती ने ओमवीर को आंखों से इशारा किया. ओमवीर अपने साथ प्लास्टिक की रस्सी का टुकड़ा लाया था. प्रेमिका का इशारा मिलते ही उस ने प्लास्टिक की रस्सी रामस्वरूप के गले में लपेटी और पूरी ताकत से खींचने लगा. कुछ देर छटपटाने के बाद रामस्वरूप ने दम तोड़ दिया.

रामस्वरूप की हत्या करने के बाद ओमवीर और सरस्वती ने शारीरिक संबंध बनाए. प्रेमी को खुश करने के बाद सरस्वती ने जमीन बेचने से मिली रकम में से कुछ ओमवीर को दे दी. इस हत्या को आत्महत्या का रूप देने के लिए सरस्वती ने सुबह होते ही रोनापीटना शुरू कर दिया और उस ने पति के आत्महत्या करने की कहानी गढ़ दी. लेकिन उस का गुनाह छिप न सका. थानाप्रभारी राकेश सिंह ने सरस्वती और ओमवीर को हत्या के केस में गिरफ्तार कर सक्षम न्यायालय में पेश किया. वहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारि

Crime Thriller Hindi: जन्मदिन में मिली मौत – बेकसूर को मिली सजा

Crime Thriller Hindi: शहाबुद्दीन ने अपनी होने वाली पत्नी हसमतुल निशां से कहा. ‘‘निशां अपने जन्मदिन की पार्टी पर हमें दावत नहीं दोगी क्या?’’  ‘‘क्यों नहीं, जब आप ने मांगी है तो पार्टी जरूर मिलेगी. हम कार्यक्रम तय कर के आप को बताते हैं.’’ निशा ने अपने मंगेतर को भरोसा दिलाया.

निशां घर वालों के दबाव में बेमन से शहाबुद्दीन से शादी करने के लिए तैयार हुई थी, क्योंकि वह तो शाने अली को प्यार करती थी. इसलिए मंगेतर द्वारा शादी की पार्टी मांगने वाली बात उस ने अपने प्रेमी शाने अली को बताई तो वह भड़क उठा. उस ने कहा ‘‘निशा तुम एक बात साफ समझ लो कि जन्मदिन की पार्टी में शहाबुद्दीन और मुझ में से केवल एक ही शामिल होगा. तुम जिसे चाहो बुला लो.’’

निशा को इस बात का अंदाजा पहले से था कि शाने अली को यह बुरा लगेगा. उस ने कहा, ‘‘शाने अली, तुम तो खुद जानते हो कि मुझे वह पसंद नहीं है. लेकिन अब घर वालों की बात को नहीं टाल सकती.’’

‘‘निशा, तुम यह समझ लो कि यह शादी केवल दिखावे के लिए है.’’ शाने अली ने जब यह कहा तो निशा ने साफ कह दिया कि शादी दिखावा नहीं होती. शादी के बाद उस का मुझ पर पूरा हक होगा.’’

‘‘नहीं, शादी के पहले और शादी के बाद तुम्हारे ऊपर हक मेरा ही रहेगा. जो हमारे बीच आएगा, उसे हम रास्ते से हटा देंगे.’’ यह कह कर शाने अली ने फोन रख दिया.

हसमतुल निशां ने बाद में शाने अली से बात की और उन्होंने यह तय कर लिया कि वे दोनों एक ही रहेंगे. उन को कोई जुदा नहीं कर पाएगा. दोनों के बीच जो भी आएगा, उसे राह से हटा दिया जाएगा.

शहाबुद्दीन की शादी हसमतुल निशां के साथ तय हुई थी. निशां लखनऊ स्थित पीजीआई के पास एकता नगर में रहती थी. वह अपने 2 भाइयों में सब से छोटी और लाडली थी. शहाबुद्दीन भी अपने घर में सब से छोटा था. वह निशां के घर से करीब 35 किलोमीटर दूर बंथरा में रहता था.

शहाबुद्दीन ट्रांसपोर्ट नगर में एक दुकान पर नौकरी करता था, जो दोनों के घरों के बीच थी. हसमतुल निशां ने अपने घर वालों के कहने पर शहाबुद्दीन के साथ शादी के लिए हामी तो भर दी थी पर वह अपने प्रेमी शाने अली को भूलने के लिए भी तैयार नहीं थी.

ऐसे में जैसेजैसे शहाबुद्दीन के साथ शादी का दिन करीब आ रहा था, दोनों के बीच तनाव बढ़ रहा था. हसमतुल निशां ने पहले ही फैसला ले लिया था कि वह शादी का दिखावा ही करेगी. बाकी मन से तो अपने प्रेमी शाने अली के साथ रहेगी.

hindi-manohar-love-crime-story

शहाबुद्दीन के साथ हसमतुल निशां की सगाई होने के बाद दोनों के बीच बातचीत होने लगी. शहाबुद्दीन अकसर उसे फोन करने लगा. मिलने के लिए भी दबाव बनाने लगा. यह बात निशां को अच्छी नहीं लग रही थी.

शाने अली भी नहीं चाहता था कि निशां अपने होने वाले पति शहाबुद्दीन से मिलने जाए. जब भी उसे यह पता चलता कि दोनों की फोन पर बातचीत होती है और वे मिलते भी हैं. इस बात को ले कर वह निशां से झगड़ता था. दोनों के बीच लड़ाईझगड़े के बाद यह तय हुआ कि अब शहाबुद्दीन को रास्ते से हटाना ही होगा.

शहाबुद्दीन को अपनी होने वाली पत्नी और उस के प्रेमी के बारे में कुछ भी पता नहीं था. वह दोनों को आपस में रिश्तेदार समझता था और उन पर भरोसा भी करता था. अपनी होने वाली पत्नी हसमतुल निशां को अच्छी तरह से जाननेसमझने के लिए वह उस के करीब आने की कोशिश कर रहा था. उसे यह नहीं पता था कि उस की यह कोशिश उसे मौत की तरफ ले जा सकती है.

शहाबुद्दीन अपनी मंगेतर के साथ संबंधों को मधुर बनाने की कोशिश कर रहा था पर प्रेमी के मायाजाल में फंसी हसमतुल निशां अपने को उस से दूर करना चाहती थी. परिवार के दबाव में वह खुल कर बोल नहीं पा रही थी.

12 मार्च, 2021 को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के मोहनलालगंज थाना क्षेत्र में स्थित कल्लू पूरब गांव के पास झाडि़यों में शहाबुद्दीन उर्फ मनीष की खून से लथपथ लाश पड़ी मिली. करीब 26 साल के शहाबुद्दीन के सीने में चाकू से कई बार किए गए थे.

गांव वालों की सूचना पर पुलिस ने शव को बरामद किया. शव मिलने वाली जगह से कुछ दूरी पर ही एक बाइक खड़ी मिली. बाइक में मिले कागजात से पुलिस को पता चला कि वह बाइक मृतक शहाबुद्दीन की ही थी. इस के आधार पर पुलिस ने उस के घर पर सूचना दी.

शहाबुद्दीन के भाई ने अनीस ने शव को पहचान भी लिया. अनीस की तहरीर पर पुलिस ने धारा 302 आईपीसी के तहत मुकदमा कायम किया.

हत्या की घटना को उजागर करने और अपराधियों को पकड़ने के लिए डीसीपी (दक्षिण लखनऊ) रवि कुमार, एडिशनल डीसीपी पुर्णेंदु सिंह, एसीपी (दक्षिण) दिलीप कुमार सिंह ने घटनास्थल पर पहुंच कर फोरैंसिक टीम व डौग स्क्वायड बुला कर मामले की पड़ताल शुरू की.

शहाबुद्दीन के शव की तलाशी लेने पर पर्स और मोबाइल गायब मिला. शव के पास 2 टूटी कलाई घडि़यां और एक चाबी का गुच्छा मिला. यह समझ आ रहा था कि हत्या के दौरान आपसी संघर्ष में यह हुआ होगा.

पुलिस के सामने शहाबुद्दीन के घर वालों ने उस की होने वाली पत्नी हसमतुल निशां के परिजनों पर हत्या का आरोप लगाया. डीसीपी रवि कुमार ने इस केस को सुलझाने के लिए एसीपी दिलीप कुमार के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गठित की.

टीम में इंसपेक्टर दीनानाथ मिश्रा, एसआई रमेश चंद्र साहनी, राजेंद्र प्रसाद, धर्मेंद्र सिंह, महिला एसआई शशिकला सिंह, कीर्ति सिंह, हैडकांस्टेबल अश्वनी दीक्षित, कांस्टेबल संतोश मिश्रा, शिवप्रताप और विपिन मौर्य के साथ साथ सर्विलांस सेल के सिपाही सुनील कुमार और रविंद्र सिंह को शामिल किया गया. पुलिस ने सर्विलांस की मदद से जांच शुरू की.

शहाबुद्दीन बंथरा थाना क्षेत्र के बनी गांव का रहने वाला था. वह ट्रांसपोर्ट नगर में खराद की दुकान पर काम करता था. 11 मार्च, 2021 को वह अपने पिता मीर हसन की बाइक ले कर घर से जन्मदिन की पार्टी में हिस्सा लेने के लिए निकला था. शहाबुद्दीन की मंगेतर हसमतुल निशां ने उसे जन्मदिन की पार्टी में शामिल होने का न्योता दिया था.

शहाबुद्दीन ने यह बात अपने घर वालों को बताई और दुकान से सीधे पार्टी में शामिल होने चला गया था. देर रात वह घर वापस नहीं आया. अगले दिन यानी 12 मार्च की सुबह 11 बजे पुलिस ने उस की हत्या की सूचना उस के घर वालों को दी.

अनीस ने पुलिस का बताया कि 27 मई को शहाबुद्दीन और हसमतुल निशां का निकाह होने वाला था. बारात लखनऊ में पीजीआई के पास एकता नगर में नवाबशाह के घर जाने वाली थी. शहाबुद्दीन की हत्या की सूचना पा कर पिता मीर हसन, मां कमरजहां, भाई इश्तियाक, शफीक, अनीस और राजू बिलख रहे थे.

मां कमरजहां रोते हुए कह रही थी, ‘‘मेरे बेटे की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. वह घर का सब से सीधा लड़का था. उस ने किसी का कुछ भी नहीं बिगाड़ा था. ऐसे में उस के साथ क्या हुआ?’’

पुलिस ने जन्मदिन में बुलाए जाने और लूट की घटना को सामने रख कर छानबीन शुरू की.

शहाबुद्दीन की हत्या को ले कर परिवार के लोगों को एक वजह शादी लग रही थी. परिवार को शहाबुद्दीन की हत्या के पीछे उस की होने वाली पत्नी और उस के भाइयों पर शक था. इसलिए अनीस की तहरीर पर पुलिस ने हसमतुल निशां और उस के भाइयों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया.

पुलिस ने तीनों को हिरासत में ले कर पूछताछ शुरू कर दी. पुलिस की विवेचना में यह बात खुल कर सामने आई कि शहाबुद्दीन की हत्या में उस की होने वाली पत्नी हसमतुल निशां का हाथ था. यह भी साफ था कि हसमतुल निशां का साथ उस के भाइयों ने नहीं, बल्कि उस के प्रेमी शाने अली ने दिया था.

शहाबुद्दीन उर्फ मनीष की हत्या की साजिश उस की मंगेतर हसमतुल निशां और उस के प्रेमी शाने अली ने अपने 6 अन्य साथियों के साथ मिल कर रची थी. मोहनलालगंज कोतवाली के इंसपेक्टर दीनानाथ मिश्र के मुताबिक बंथरा कस्बे के रहने वाले शहाबुद्दीन की शादी हसमतुल निशां के साथ 27 मई को होनी थी. इस से हसमतुल खुश नहीं थी.

वह पीजीआई के पास रहने वाले शाने अली से प्यार करती थी. इस के बाद भी परिवार वालों के दबाव में शहाबुद्दीन से मिलती रही. जैसेजैसे शादी का समय पास आता जा रहा हसमतुल निशां अपने मंगेतर शहाबुद्दीन से पीछा छुड़ाने के बारे में सोचने लगी.

इस के लिए उस ने अपने प्रेमी शाने अली के साथ मिल कर योजना बनाई. हसमतुल निशां चाहती थी कि शाने अली उस के मंगेतर शहाबुद्दीन को किसी तरह रास्ते से हटा दे.

योजना को अंजाम देने के लिए शाने अली ने अपने जन्मदिन के अवसर पर 11 मार्च, 2021 को शहाबुद्दीन को मिलने के लिए बुलाया.

गुरुवार रात के करीब साढ़े 8 बजे शाने अली और उस के दोस्त बाराबंकी निवासी अरकान, मोहनलालगंज निवासी संजू गौतम, अमन कश्यप और पीजीआई निवासी समीर मोहम्मद बाबूखेड़ा में जमा हुए. जैसे ही शहाबुद्दीन वहां पहुंचा शाने अली और उस के दोस्तों ने उस पर चाकू से ताबड़तोड़ हमला कर दिया.

अपने ऊपर चाकू से हमला होने के बाद भी शहाबुद्दीन ने हार नहीं मानी और अपनी जान बचाने के लिए वह हमलावरों से भिड़ गया.

शाने अली और उस के हमलावर दोस्तों को जब लगा कि शहाबुद्दीन बच निकलेगा तो उन लोगों ने कुत्ते को बांधी जाने वाली जंजीर से शहाबुद्दीन का गला कस दिया, जिस से शहाबुद्दीन अपना बचाव नहीं कर पाया और अपनी जान से हाथ धो बैठा.

अगले दिन जब शहाबुद्दीन का शव मिला तो उस के भाई अनीस ने हसमतुल निशां के भाइयों पर हत्या का शक जताया. पुलिस ने संदेह के आधार पर ही उन से पूछताछ शुरू की थी. इस बीच पुलिस को हसमतुल निशां और शाने अली के प्रेम संबंधों के बारे में पता चला. पुलिस ने जब हसमतुल निशां से पूछताछ शुरू की तो वह टूट गई.

हसमतुल निशां ने पुलिस को बताया कि उस ने प्रेमी शाने अली के साथ मिल कर मंगेतर शहाबुद्दीन की हत्या कर दी. इस के बाद पुलिस ने शाने अली और उस साथियों को पकड़ने के लिए उन के घरों पर दबिशें दे कर गिरफ्तार कर लिया.

शहाबुद्दीन की हत्या के आरोप में पुलिस ने हसमतुल निशां, शाने अली, अरकान, संजू गौतम, अमन कश्यप, समीर मोहम्मद को जेल भेज दिया. पुलिस को आरोपियों के पास से एक चाकू, गला घोटने के लिए प्रयोग में लाई गई चेन, संजू की मोटरसाइकिल, 2 कलाई घडि़यां, 6 मोबाइल फोन और आधार कार्ड बरामद हुए.

सभी आरोपियों से पूछताछ के बाद उन्हें न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया. 24 घंटे के अंदर केस का खुलासा करने वाली पुलिस टीम की डीसीपी (दक्षिण) रवि कुमार ने सराहना की. Crime Thriller Hindi

Hindi crime story: अपनी अपनी ख्वाहिश

Hindi crime story: वालिद चाहते थे कि उन की बेटी फूलों से खेले, बहारों में डोले. मगर उस की जिंदगी में आए हर इंसान की अपनीअपनी ख्वाहिश ने उस के दामन में आंसुओं के फूल ही खिलाए. ना दिया बहुत देर से बालकनी में बैठी सड़क पर आतीजाती गाडि़यों को दिलचस्पी से देख ॒रही थी. जिंदगी कितनी तेज रफ्तार है. घंटों का सफर मिनटों में किस तरह तय हो जाता है. मशीनी पहिए ने फासलों को कितना करीब कर दिया है. लेकिन ये पहिए?

उस का दिमाग पहिए पर आ कर ठहर गया था. नादिया का हाथ बेअख्तियार व्हील चेयर के पहिए पर पहुंच गया. उस ने एक ठंडी आह भरी… लेकिन पहिए ने मुझे कितनी बेबस और मजबूर कर दिया है. मुझे जिंदगी की हलचल से काट कर इस फ्लैट की बालकनी पर रोक दिया है. मैं चाहूं भी तो जिंदगी के साथ कदम मिला कर नहीं चल सकती. अपने पैरों पर खड़े होने का अरमान तो मुद्दत हुई, टूटे सपने की शक्ल में दफन हो गया है. नादिया की आंखों में आंसू भर आए.

उसी समय अम्मी की आवाज ने उसे अपनी ओर मुखाबित कर लिया, ‘‘बेटा, रात बहुत हो गई है. अब अपने कमरे में जा कर आराम करो.’’ मां ने व्हीलचेयर का रुख उस के कमरे की तरफ कर दिया, ‘‘बेटा, रात में कुछ सो लिया करो. सारी रात तुम्हारे कमरे की लाइट जलती रहती है.’’

‘‘अम्मी जी, सोने को किस का दिल नहीं चाहता, लेकिन नींद की देवी मेहरबान हो तब न.’’ नादिया ने मोहब्बत से मां का हाथ थामते हुए कहा.

‘‘बेटा, सब मुकद्दर का खेल है. जो बीत गया, उस पर मिट्टी डालो और आने वाली खुशियों से मुंह मत मोड़ो.’’

नादिया जानती थी कि अम्मी आने वाली खुशियों की आड़ में किस खुशी की बात कर रही थीं. वह चाहती थीं कि नादिया की जिंदगी में फिर से बहार आ जाए, दिल की वीरान बस्ती फिर से जगमगा उठे. वह मां थीं न. अब नादिया को शादआबाद करने का ख्वाब ही तो उन की आखिरी तमन्ना थी. न जाने वक्त इतना जालिम क्यों होता है कि बुढ़ापे में भी आदमी को दुख देने से नहीं चूकता. इस उम्र में वह कब तक नादिया का सहारा बन सकती थीं? वह अपने इस खयाल में सही थीं कि नादिया तनहाई के इस लबादे को उतार फेंके और उस हाथ को थाम ले, जो उसे सहारा देने के लिए आगे बढ़ रहा था. मगर नादिया 4 हफ्ते बीत जाने के बाद भी यह फैसला नहीं कर पा रही थी कि उसे किस रास्ते को चुनना चाहिए.

जब उस ने दिल से चाहत की तमन्ना की थी तो मंजिल कितनी नजदीक आ कर दूर हो गई थी और अब जबकि वह हालात के भंवर में फंस कर अपाहिज हो गई थी तो चाहत ने बढ़ कर उस का रास्ता रोक लिया. नादिया रात भर सोचों में घिरी अपने आप से लड़ती रही, लेकिन किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी. सुबह उस की तबीयत बोझिल थी. नाश्ते की मेज पर वह बड़ी बेदिली से चाय गले में उड़ेल रही थी.

‘‘बेटी, आज जमाल ने आने के लिए फोन किया था.’’ मां ने नादिया को याद दिलाया.

‘‘बेटी, जो भी फैसला करना, खूब सोचसमझ कर करना.’’ उन्होंने फिर एक बार यह बात दोहराई.

नादिया सोचने लगी कि भला सोचनासमझना कैसा, फैसला तो वक्त करता है. इंसान हमेशा वक्त के फैसलों के आगे सिर झुकाता आया है. नाश्ते के बाद मां घर के कामों में व्यस्त हो गईं. नादिया स्टडीरूम में चली गई, जो उस की पनाहगाह थी. कुछ ही देर बाद मां ने खबर दी कि जमाल आया है. ड्राइंगरूम में उस का इंतजार कर रहा है. नादिया को मालूम था कि आज जमाल उस का फैसला सुन कर ही जाएगा. लगातार कई हफ्तों से उस ने नादिया को मुश्किल में डाल रखा है. वह नादिया से शादी करना चाहता है.

खानदान भर में नादिया की हैसियत किसी हीरे से कम न थी. खुदा ने सुंदर शक्ल के साथसाथ उसे सुंदर सीरत भी दी थी. नादिया शफीक बेग की एकलौती औलाद थी. उन्हें अपनी बेटी से बहुत प्यार था. अल्लाह की दी हुई नियामतें उन के पास बेशुमार थीं. वह चाहते भी यही थे कि उन की बेटी फूलों से खेले, बहारों में डोले. दुनिया का कोई दुख उसे छू कर न गुजरे. नादिया का बचपन इस लिहाज से आम बच्चों से अलग था कि बगैर इच्छा और जिद के उस के सामने दुनिया भर के खिलौने ढेर कर दिए जाते. वह जरा सिर में दर्द की शिकायत करती तो डाक्टरों की लाइन लगा दी जाती. लेकिन इतने प्यारदुलार ने नादिया के दिल में नरमी और हमदर्दी ही पैदा की थी.

बुजुर्ग लोग खानदान की लड़कियों को नादिया की मिसाल दे कर कहा करते थे कि सलीका और हुनरमंदी सीखना हो तो कोई नादिया से सीखे. नादिया ने जब मैट्रिक में टौप किया तो शफीक बेग ने बेहद शानदार तरीके से पार्टी दी. इस जलसे में नादिया के करीबी रिश्तेदारों के अलावा शफीक बेग के मिलनेजुलने वाले कारोबारी लोगों की एक बड़ी तादाद शामिल थी. हुसैन अहमद शफीक बेग के बिजनैस पार्टनर के साथसाथ अच्छे दोस्त भी थे. मईन उन का एकलौता बेटा था. वह इंटर कौमर्स का छात्र था. पार्टी में अपने वालिद हुसैन अहमद के साथ वह भी शरीक था. उस ने नादिया का जिक्र अक्सर अपने वालिद से सुना था, लेकिन मुलाकात का मौका उस दिन पहली बार मिला था.

मईन की नजरें पार्टी में सारे वक्त नादिया पर जमी रहीं. नादिया बहुत प्यारी लग रही थी. सफेद सिल्क पर स्याह और सुर्ख सितारों के काम ने उस के हुस्न को चार चांद लगा दिए थे. किसी नाजुकसी रंगीन तितली की तरह नादिया पार्टी में अपने डैडी का हाथ थामे उड़ती फिर रही थी. पार्टी खत्म हो गई, लेकिन मईन के दिमाग से नादिया का जादू न टूटा. उस दिन के बाद वह अक्सर नादिया के तसव्वुर में खोया रहता. यह एक ऐसा बदलाव था, जिसे तजुर्बेकार हुसैन अहमद ने फौरन भांप लिया. उन्हें खुशी थी कि उन के बेटे की पसंद लाजवाब थी. उन्होंने दिल में पक्का इरादा कर लिया कि वह अपने बेटे की शादी करेंगे तो नादिया से.

नादिया ने मैट्रिक के बाद इंटर में दाखिला ले लिया. पढ़ाई में तो वह पहले ही से तेज थी. कालेज की खुली फिजा मिली तो वह खेलकूद में भी हिस्सा लेने लगी. वह अच्छी एथलीट निकली. दौड़ के मुकाबलों में तो जैसे उसे पर लग जाते थे. खेलकूद के माहौल में ही अख्तर जमाल से उस की आंखें चार हुईं और दोनों एकदूसरे पर फिदा हो गए. अख्तर जमाल ने नादिया की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया तो उस ने खुशदिली से थाम लिया. अख्तर जमाल अपनी तालीम पूरी करने के फौरन बाद नादिया से शादी करना चाहता था. लेकिन इस सिलसिले में सब से पहला पड़ाव खुद अपने मांबाप से बात करना और उन्हें नादिया से रिश्ता करने पर रजामंद करना था.

उस ने अपने मांबाप से नादिया के रिश्ते के लिए बात की तो उन्होंने पहले तो बेटे की इस हिमाकत पर उसे खूब खरीखोटी सुनाई, फिर साफ कह दिया कि वे किसी भी हालत में गैरबिरादरी की लड़की को बहू बना कर नहीं लाएंगे. यह पूरी बिरादरी का मामला है. अगर आज उन्होंने बिरादरी से हट कर यह कदम उठाया तो कल वे अपनी बेटियां कहां ब्याहेंगे? अख्तर जमाल के लिए यह बड़ा मुश्किल पड़ाव था. वह हर सूरत में अपने मांबाप को राजी कर के यह रिश्ता करना चाहता था. उस ने घर छोड़ देने की धमकी दे दी और कभी शादी न करने को कहा. अख्तर जमाल की वालिदा तो थोड़ी रजामंद हो भी गई थीं, लेकिन वालिद का खौफ पूरे घर पर छाया हुआ था.

आखिर जबजब बाप ने जवान बेटे को मुस्तकिल तौर पर गमगीन देखा तो अपनी जिद छोड़ दी. हालांकि यह तो उन का दिल ही जानता था कि बिरादरी से हट कर अख्तर जमाल की शादी का फैसला करना उन के लिए कितना बड़ा सदमा था. मगर औलाद की खातिर तकलीफें सहना ही मांबाप का मुकद्दर है. अख्तर जमाल के मांबाप नादिया के रिश्ते के लिए आए तो शफीक बेग को पहली बार अहसास हुआ कि वह एक जवान बेटी के बाप हैं और बेटी पराई अमानत है. शफीक बेग को अख्तर जमाल के मांबाप का रूखा और फीकासा रवैया पसंद नहीं आया. अगर बेटी का मामला न होता तो शायद इस किस्म के बदमिजाज और घमंडी लोगों को वह एक मिनट भी बरदाश्त न करते. उन्होंने मन ही मन हालात से समझौता कर के अख्तर जमाल और उस के मांबाप की बड़ी आवभगत की.

शफीक बेग कभी इस रिश्ते पर राजी न होते, अगर नादिया की अम्मी ने उन्हें बेटी की ख्वाहिश बता न दी होती. उन्हें यह जान कर थोड़ासा दुख तो हुआ था कि नादिया ने जिंदगी का इतना अहम फैसला सिर्फ अपनी मर्जी से कर लिया, लेकिन उन्हें अपनी बेटी से मोहब्बत भी थी. अख्तर जमाल के मांबाप को उन्होंने जुबान दे दी. शादी की तारीख तय हो गई. तैयारियां भी होने लगीं. अख्तर जमाल बहुत खुश था. उस की तमन्ना और ख्वाहिश हकीकत जो बनने वाली थी. नादिया की आंखों में भी आने वाले हसीन दिनों के तसव्वुर ने समां बांध दिया था.

नादिया को बहू बनाने के सपने देखने वाले हुसैन अहमद और उन का बेटा मईन अचानक यह रिश्ता तय होने और शादी के हंगामे शुरू होने पर हैरान रह गए. हुसैन अहमद को बड़ा दुख था कि शफीक बेग ने बेटी के रिश्ते के लिए एक दोस्त की हैसियत से मशविरा करना तो दूर की बात, जिक्र तक न किया था. उन्हें लगा कि वाकई उन से गलती हो गई. नादिया के लिए मईन से बेहतर कोई साथी नहीं हो सकता था. लेकिन अब क्या करते? वह सब्रशुक्र कर के बैठ गए. शादी की तारीख से एक हफ्ता पहले अख्तर जमाल और उस के मांबाप को नादिया का जोड़ा लाना था. शफीक बेग के खानदान में यह रिवाज था कि बेटी के निकाह से हफ्ता भर पहले, होने वाले सासससुर और शौहर सुहाग का जोड़ा और दूसरी जरूरी चीजों को साथ ले कर धूमधाम से आते थे.

अख्तर जमाल और उस के वालिद नादिया के लिए जब सुहाग का जोड़ा लाए तो शफीक बेग मारे दुख और सदमे के गूंगे से रह गए. उन्होंने तो अच्छीखासी पार्टी का इंतजाम किया था. लेकिन अख्तर जमाल सिर्फ अपने वालिद के साथ आया था. सुहाग का जोड़ा देख कर तो उन्हें और ज्यादा दुख हुआ. उन की बेटी इतनी गिरीपड़ी नहीं थी कि उस के लिए मामूली कपड़े और तीसरे दर्जे के गोटाकिनारी से सजा सूट दिया जाता. बेटी की मोहब्बत में वह शायद यह सब कुछ बर्दाश्त भी कर लेते, लेकिन जब अख्तर जमाल के वालिद ने उतनी बड़ी पार्टी और मेहमान देखे तो मुंह बनाते हुए बोले कि शादी में यह सब नहीं होगा, सिर्फ कुछ गवाहों की मौजूदगी में निकाह पढ़ा कर बेटी को विदा कर दें.

यह सुन कर शफीक बेग गुस्से से लालपीले हो गए. वह बेटी ब्याह रहे थे. शहर में उन की इज्जत थी. अगर अख्तर जमाल के मांबाप को बिरादरी का इतना ही खौफ था तो वह यह रिश्ता ही न करते. उन्होंने साफ मना करते हुए कहा कि शादी होगी धूमधाम से और उन्हें भी उसी जोशखरोश और जश्न का इंतजाम करना होगा. अख्तर जमाल के वालिद इस बात पर कतई राजी नहीं हुए. बात इतनी बढ़ी कि नौबत इनकार तक आ गई. शफीक बेग ने गुस्से में अख्तर और उस के वालिद को बेइज्जत कर दिया. वह उसी वक्त रिश्ता खत्म कर के अख्तर जमाल को साथ लिए लौट गए. सारी तैयारियां यूं ही धरी रह गईं. नादिया का रोरो कर बुरा हाल था. वह जानती थी कि उस ज्यादती की जिम्मेदारी उस के बाप से ज्यादा अख्तर जमाल और उस के मांबाप पर आयद होती है. उन्होंने उसे कमजोर और बेबस समझ लिया था.

नादिया ने मोहब्बत बेशक की थी, लेकिन वह भीख या खैरात में मिली हुई मोहब्बत को पसंद नहीं करती थी. अपने डैडी के फैसले से उसे दुख तो बहुत पहुंचा था, मगर डैडी की इज्जत उसे अपनी मोहब्बत से ज्यादा प्यारी थी. उस की शादी के कार्ड बांटे जा चुके थे. शफीक बेग बेहद परेशान थे. यही वह मौका था, जिस की तलाश में थे हुसैन अहमद. उन्होंने शफीक अहमद को सहारा दिया. उन की हिम्मत बंधाई और दोस्त की खातिर मईन का रिश्ता दे दिया. उधर नादिया को अब इस में कोई दिलचस्पी नहीं थी कि अख्तर जमाल की जगह उस का हमसफर कौन होगा. शफीक बेग ने झटपट मईन का रिश्ता कबूल कर लिया और वह हुसैन अहमद के एहसानमंद भी हुए कि दोस्त ने उन की इज्जत रख ली थी.

नादिया दुल्हन बन कर मईन के घर पहुंच गई. वह मईन की पहली मोहब्बत का वह अछूता ख्वाब थी, जिसे वह खुली आंखों से देखता आया था. लेकिन वक्त ने नादिया को उस का हमसफर बनाया भी तो तब, जब नादिया के दिल की धड़कनों में पहले ही से एक नाम गूंज रहा था. मईन नादिया और अख्तर जमाल की मोहब्बत का सब हाल जानता था. वह इस रिश्ते पर राजी तो हो गया था, मगर दिल से वह यह ख्याल निकाल न सका कि नादिया अख्तर जमाल की मोहब्बत थी. नादिया और मईन की जिंदगी दरिया के 4 किनारों की तरह थी, जो आमनेसामने तो रहते हैं, मगर कभी एक नहीं होते. नादिया शायद अख्तर जमाल को भूल भी जाती, अगर मईन बेगर्ज मोहब्बत करने वाला शौहर साबित होता.

लेकिन मईन ने तो आम मर्दों की तरह नादिया की पहली मोहब्बत को निशाना बना लिया था. वह अक्सर अख्तर जमाल का नाम ले कर उसे ताने देता. बहरहाल, नादिया और मईन की शादी हुए 6 साल का लंबा अरसा बीत गया. मगर नादिया की गोद हरी न हो सकी. ताल्लुक की वह कड़ी जो बीवी और शौहर को जोड़ देती है, बच्चे की शक्ल में नादिया के हाथ न आ सकी. नादिया के वालिद शफीक बेग अल्लाह को प्यारे हो गए थे. दुनिया में अब नादिया का सहारा उस की मां ही थीं, जो अकेली नौकरों के साथ रहती थीं. नादिया अक्सर मईन से इजाजत ले कर मां के घर रहने आ जाती. एक दिन जब वह मईन के साथ मां के पास आ रही थी तो उस की गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया. मईन को तो मामूली चोटें लगीं, मगर नादिया की दोनों टांगें बुरी तरह कुचल गई थीं.

वह कई महीनों तक अस्पताल में रही. डाक्टरों ने उस की जान तो बचा ली, लेकिन अपाहिज होने से न बचा सके. अब बैसाखियां ही नादिया का मुकद्दर थीं. इस सारे अरसे में मईन का रवैया एक हमदर्द इंसान जैसा रहा. लेकिन मोहब्बत करने वाले शौहर की तरह उस ने कभी नादिया की दिलजोई नहीं की. नादिया अस्पताल से घर आ गई. घर के माहौल में अब कुछ और ज्यादा रूखापन आ गया था. वैसे उस की हर जरूरत का खयाल रखा जाता, रुपएपैसे की कोई तंगी नहीं थी. फिर भी जिस छत तले शौहर का प्यार ही न मिले, वह सोनेचांदी की भी हो तो किस काम की?

हुसैन अहमद पोते की इच्छा से मजबूर हो कर मईन की दूसरी शादी करना चाहते थे. मईन को भी कोई ऐतराज नहीं था. बात नादिया की इजाजत की थी और उस के लिए वह बात किसी कयामत से कम नहीं थी. उस ने शादी के बाद पाया ही क्या था? अब जबकि कुदरत ने उसे अपंग कर दिया था तो मईन दूसरी शादी करने जा रहा था. वह भला किस तरह दिनरात मईन के साथ दूसरी औरत को बर्दाश्त कर सकती थी? वह उस की राह में रुकावट भी नहीं बनना चाहती थी. उसे जब घर के एक कोने में ही पड़ी रहना था तो अपनी मां के घर जा कर क्यों न रहे? नादिया ने मईन से तलाक ले लिया और हमेशाहमेशा के लिए मां के घर आ गई. मांबेटी गले लग कर खूब रोईं.

इस हादसे के बाद नादिया की तबीयत खराब रहने लगी थी. मां ने इलाज के लिए उसे अस्पताल में दाखिल करा दिया. वहां अचानक एक दिन अख्तर जमाल मां से टकरा गया. वह अपने छोटे बेटे की दवा लेने अस्पताल आया था. उसे जब मां की जुबानी नादिया के हालात का पता चला तो वह बहुत दुखी हुआ. नादिया से मिल कर तो उस का दुख और भी बढ़ गया. इन 7-8 बरसों में नादिया कितनी बदल गई थी. मुसकराहट ने तो जैसे कभी उस के होठों को छुआ ही न हो. बीमारी और हादसों ने उसे निढाल कर दिया था. अख्तर जमाल से मिल कर वह लम्हे भर के लिए मुसकराई. अख्तर भी तो कितना बदल गया था. उस का जिस्म भारी हो गया था. कनपटी पर सफेद बालों ने उस की शख्सियत को रौबदार बना दिया था.

अख्तर जमाल ने बताया कि उस के 5 बच्चे थे. सब से बड़ी बेटी की उम्र 8 साल थी. सब से छोटा साल भर का बेटा था, जिस के जन्म के समय उस की बीवी सदा के लिए जुदा हो गई थी. अख्तर जमाल की शादी बिरादरी में हुई थी. नादिया की तबीयत संभली तो वह घर आ गई. फिर कुछ महीने बीत गए. एक दिन अख्तर जमाल ने मां जी से अपनी यह ख्वाहिश जाहिर की कि अगर नादिया खुशीखुशी राजी हो जाए तो वह उसे अपना सकता है, क्योंकि उसे आज भी नादिया से उतनी ही मोहब्बत है. मां जी खुद कोई फैसला करना नहीं चाहती थीं. वह नादिया की खुशी को हर सूरत में जरूरी समझती थीं. नादिया को जब अख्तर जमाल के इस इरादे की खबर हुई तो दुख से उस की आंखें भर आईं.

पिछली बार अख्तर जमाल आया तो उस ने कहा था कि वह इस बार जरूर नादिया की रजामंदी हासिल कर के जाएगा. वह इस नेक काम में और देर करना नहीं चाहता था. नादिया इंतजार करती रही. 2 हफ्ते बीत गए, मगर जमाल नहीं आया. फिर अचानक उस ने नादिया को फोन कर के कहा, ‘‘नादिया, वक्त की सब से बड़ी मार यही है कि हम जो चाहते हैं, वह नहीं हो पाएगा. पहली बार जब मैं ने तुम्हारी आरजू की थी तो बुजुर्गों के फैसलों की भेंट चढ़ गया था. अब जबकि कुदरत फिर हमें एक रास्ते पर ले आई तो…तो मैं खुद पीछे हट रहा हूं. खुदा के लिए नादिया, तुम इसे मेरी बेरुखी या बेवफाई न समझना. तुम आज भी मेरे लिए वही पहले वाली नादिया हो, लेकिन मैं… मैं पहले वाला अख्तर जमाल नहीं रहा.

‘‘अब मैं एक बाप बन गया हूं और बाप बन कर ही अपनी खुशियों को अधूरी छोड़ रहा हूं. जानती हो, मेरी और तुम्हारी होने वाली शादी की खबर मेरी बड़ी बेटी राबिया को मिल गई. 8 साल की राबिया अपनी उम्र से कहीं ज्यादा समझदार है. उस के लिए यह दुख और सदमा भयानक था कि मां की जगह नई अम्मा आ जाए. वह बीमार पड़ गई. मैं ने उस का हर तरह से इलाज कराया. डाक्टर का खयाल था कि उसे कोई बीमारी नहीं, सिर्फ दिमागी सदमा पहुंचा था.

‘‘जब मैं ने बाप बन कर प्यार से उस का सिर सहलाते हुए पूछा, तो उस ने मुझ से वादा लेते हुए बताया, ‘पापा, आप दूसरी अम्मी न लाएं. पप्पूगुड्डू को मैं पाल लूंगी.’ मैं ने अपनी वालिदा और वालिद से यही कहा था कि मैं छोटे बच्चों की परवरिश के लिए शादी कर रहा हूं. बताओ नादिया, अगर तुम मेरी जगह होती तो क्या फैसला करती? मैं खुदगर्ज बन कर अपने बच्चों को अपनी मोहब्बत की भेंट नहीं चढ़ा सकता. मैं ने राबिया से वादा कर लिया. नादिया, तुम भूल जाना कि हम दोबारा मिले भी थे. मेरी ख्वाहिश है कि खुदा तुम्हें जिंदगी की भरपूर खुशियां दे.’’

इन बातों के बाद नादिया ने सिर झुका लिया. आंखों से बहते आंसू उस का दामन भिगो रहे थे. Hindi crime story

लेखक – नादिया

 

Hindi Crime Story: रंगीन धोखा

Hindi Crime Story: मोहब्बत में तकलीफ तो होती है पर बेवफाई ऐसा घाव देती है जो सारी उम्र नहीं भरता. जमाल ने भी मोहब्बत के नाम पर एक साजिश में फंस कर इतना बड़ा धोखा खाया कि जिंदगी बरबाद हो गई. महबूबा की मदद के चक्कर में वह खुद ही जेल पहुंच गया.

‘‘ज माल, क्या तुम मुझ से मोहब्बत करते हो?’’ सोनिया की प्यार भरी आवाज में हकीकत जानने की उत्सुकता थी. उस की बड़ीबड़ी खूबसूरत आंखें मेरे चेहरे पर टिकी थीं. उस का सिर मेरे कंधे पर रखा था. मैं ने गरदन घुमा कर उस के हसीन चेहरे पर नजरें जमाते हुए कहा, ‘‘सोनिया तुम अच्छी तरह जानती हो कि मैं तुम से कितना प्यार करता हूं. देखो, मैं कसम खा कर यकीन दिलाने के पक्ष में नहीं हूं.’’

सोनिया इठला कर बोली, ‘‘मैं कैसे यकीन कर लूं कि तुम मुझ से इतनी मोहब्बत करते हो?’’ उस के इस सवाल ने मुझे बेचैन कर दिया. मैं शायर तो था नहीं जो उस के हुस्न और चाहत में शेर सुनाता या गजलें गाता.

‘‘क्या तुम मेरे लिए जान दे सकते हो?’’ उस ने अचानक प्रश्न किया तो मैं ने अपने प्यार के मद्देनजर कह दिया, ‘‘यकीनी तौर पर जान दे सकता हूं.’’

यह सुन कर सोनिया मुसकरा दी, फिर तुनक कर बोली, ‘‘तुम पुलिस अफसर हो. फर्ज की बात हो तो तुम किसी अनजान आदमी के लिए भी जान दे सकते हो.’’

‘‘मेरा खयाल है, अपना फर्ज पूरा करते हुए मैं जान भी दे सकता हूं. निस्संदेह मैं एक कर्त्तव्यनिष्ठ अफसर हूं. तुम यह बात अच्छी तरह जानती थीं कि मैं पुलिस वाला हूं, फिर भी तुम ने मुझ से मोहब्बत की, इस की कोई खास वजह थी क्या?’’

‘‘ये तो दिल का मामला है बस, तुम पर दिल आ गया.’’

‘‘अच्छा ये बताओ कि तुम कैसे कह सकती हो कि तुम्हें भी मुझ से मोहब्बत है?’’ मैं ने पूछा.

सोनिया ने मेरी आंखों में झांका और दिल पर हाथ रख कर बड़े मीठे स्वर में बोली ‘‘तुम से मिल कर यहां खुशी होती है और तुम्हारी जुदाई के खयाल से यहां तकलीफ होती है. तुम से अलग हो कर जब भी मैं अपने डैडी को देखती हूं, और मन में ये खयाल आता है कि वह कभी भी तुम्हें कुबूल नहीं करेंगे, तो दिल डूबने लगता है. बड़ी तकलीफ होती है, मन बेचैन हो जाता है. इस बिना पर मैं कह सकती हूं कि मैं तुम से मोहब्बत करती हूं.’’

चांद की सफेद चांदनी में सोनिया की आंखें चमक रही थीं, चेहरे पर प्यार के रंग थे.

‘‘ठीक है जानम, आई एम सौरी. मुझे तुम्हारी मोहब्बत पर यकीन हो गया. तुम्हारी यह बात सही है कि मैं पुलिस अफसर हूं और किसी अनजान शख्स के लिए भी जान दे सकता हूं, लेकिन तुम्हारे लिए मैं एक काम कर सकता हूं. ऐसा काम जो मैं किसी और के लिए हरगिज नहीं करूंगा.’’ मैं ने पूरे विश्वास से कहा.

यह सुन कर सोनिया मेरे कंधे से सिर उठा कर बोली, ‘‘कौन सा काम?’’

‘‘मैं तुम्हारी खातिर कत्ल कर सकता हूं.’’ मैं ने धमाका सा किया. मेरी बात सुन कर सोनिया का मुंह खुला का खुला रह गया, जैसे उसे अपने कानों पर यकीन न हुआ हो.

‘‘तुम मजाक कर रहे हो जमाल.’’

‘‘नहीं, मैं सचमुच तुम्हारे लिए किसी का भी कत्ल कर सकता हूं.’’ मैं ने गंभीरता से कहा.

सोनिया एकदम उठ कर पार्क के गेट की तरफ बढ़ी.

‘‘सुनो, तुम कहां जा रही हो?’’ मैं ने उसे टोका.

‘‘तुम्हें इस तरह की बात नहीं करनी चाहिए.’’ इतना कह कर वह अपनी कार का दरवाजा खोल कर ड्राइविंग सीट पर बैठ गई. मैं ने झुक कर उस का हाथ पकड़ कर बाहर निकाला. इसी बीच मेरा सर्विस रिवाल्वर नीचे गिर पड़ा. उसे उठा कर मैं ने सोनिया का हाथ पकड़ा और उसे प्यार करते हुए बोला, ‘‘तुम यूं अचानक बिना कुछ कहे जा रही थीं, क्यों? क्या हुआ तुम्हें?’’

‘‘मुझे कुछ समझ में नहीं आया कि क्या करूं. मैं एकदम शौक्ड रह गई थी. दरअसल, मैं खुद भी कत्ल का ही सोच रही थी.’’

‘‘क्या मतलब है तुम्हारा?’’ मैं ने चौंक कर पूछा.

वह मुझ से अलग होते हुए बोली, ‘‘मेरा यही मतलब है, सचमुच मैं कत्ल के बारे में ही सोच रही थी. तुम जानते हो, मैं कभी भी तुम्हारी नहीं हो सकती. मेरे डैडी तुम से मेरी शादी करने के लिए कभी भी राजी नहीं होंगे, यह बात मुझे अंदर ही अंदर खाए जा रही है.’’ उस ने उदास स्वर में कहा.

‘‘तुम्हारे डैडी अभी तक मुझ से मिले नहीं हैं, फिर तुम यह बात इतने यकीन से कैसे कह सकती हो कि वह मुझे पसंद नहीं करेंगे?’’ मैं ने पूछा.

‘‘मैं उन्हें अच्छी तरह समझती हूं, जानती हूं इसलिए.’’

‘‘तुम्हारी उम्र 23 साल है. तुम बालिग हो, समझदार हो, वह जो भी कहते हैं उसे भाड़ में डालो. तुम वहां से चली आओ, हम शादी कर के आराम से अलग रहेंगे. अगर वह तुम्हें कुछ देना चाहे तो दें, वरना हमें कुछ नहीं चाहिए.’’ मैं ने उसे समझाना चाहा.

‘‘ये सब इतना आसान नहीं है.’’ वह परेशान सी हालत में बोली.

‘‘इतना मुश्किल भी नहीं है, क्योंकि शादी के बाद तुम मेरी जिम्मेदारी होगी.’’ मैं ने उसे यकीन दिलाते हुए कहा.

‘‘क्या तुम मेरी इस महंगी कार की किस्तें भर सकोगे? मेरे क्रेडिट कार्ड के बिल पे कर सकोगे? ऊपर से मेरी पढ़ाई का खर्चा, क्या ये सब कर सकोगे?’’

‘‘नहीं.’’ मैं ने होंठ भींच लिए.

‘‘तो फिर इंतजार करो. मेरी कालेज की पढ़ाई पूरी होने में अभी 3 साल बाकी हैं. जब मुझे डिग्री मिल जाएगी तो अच्छी जौब मिलने में आसानी होगी. फिर मैं वहां से निकल आऊंगी और हम एक हो जाएंगे.’’ उस ने सोच कर कहा.

‘‘और तब तक?’’ मैं ने बेचैनी से पूछा.

सोनिया की आंखों में आंसू भर आए. उस ने रोनी आवाज में कहा, ‘‘बेहतर यही होगा तब तब हम एकदूसरे से मिलना छोड़ दें.’’

मैं एक झटके से पीछे हट गया, मेरे दिल में दर्द सा उठा, पेशानी पर पसीना आ गया. मुझे उस से बहुत मोहब्बत थी, न मिलने के खयाल से ही मुझे तकलीफ होने लगी. मैं उस की परेशानी को भी समझ रहा था.

‘‘इतनी लंबी जुदाई मुझ से बरदाश्त नहीं होगी. इस का कोई न कोई हल तो होगा?’’ मैं ने मायूसी से कहा.

‘‘नहीं इस का कोई हल नहीं है.’’ वह बोली.

मेरी आंख से गिरने वाला हर आंसू मेरे गुरूर को मिटा रहा था. मैं ने सोनिया को देखे बगैर कहा, ‘‘अगर इस बारे में मैं तुम्हारे डैडी से बात करूं तो?’’

‘‘ऐसा हरगिज न करना, अगर उन्हें पता चल गया कि मेरा कोई बौयफ्रैंड है तो वह मुझे कत्ल कर देंगे. इस मामले में वह बहुत ज्यादा स्ट्रिक्ट हैं.’’ वह सिहर कर बोली.

‘‘तुम ने मुझे बताया था कि वह मुझे इसलिए नापसंद करते हैं क्योंकि मेरा ताल्लुक पुलिस से है.’’

‘‘हां.’’ सोनिया ने सिर हिलाया.

‘‘तब वह तुम्हें सिर्फ इस बात पर क्यों कत्ल कर देंगे कि तुम्हारा कोई बौयफ्रैंड है?’’

इस सवाल पर सोनिया ने एक गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘ये एक उलझा हुआ मसला है.’’

‘‘मुझे बता कर देखो, शायद कोई हल निकल आए?’’

‘‘मैं नहीं बता सकती, वह सच में मुझे कत्ल कर देंगे और कोई भी कुछ नहीं कर सकेगा. वह बहुत पावरफुल और रसूख वाले आदमी हैं.’’

‘‘ठीक है, उन का अपना बिजनैस है, बहुत पैसा है पर इस से क्या होता है? ये बातें उन्हें कानून से ऊपर तो नहीं कर सकती.’’

‘‘उन का करोड़ों का कारोबार है, जो विदेशों तक फैला हुआ है. तुम अच्छी तरह जानते हो, पैसा कानून को भी खरीद सकता है.’’

मैं ने जज्बाती हो कर उस का चेहरा दोनों हाथों में थाम लिया और पूछा, ‘‘क्या तुम सचमुच ये चाहती हो कि हम अपनी मोहब्बत को भूल जाएं.’’

‘‘हां, पर अगर…’’ वह कहतेकहते रुक गई.

‘‘अगर क्या? बोलो, तुम्हें मेरी कसम?’’

‘‘जमाल, मैं ने कई रातें जाग कर गुजारी हैं. जब भी नींद लगी, मैं ने उन्हें जहर देने का ख्वाब देखा है.’’ सोनिया ने धीमे से कहा.

‘‘तुम्हारा मतलब उन के कत्ल से है?’’

सोनिया ने हां में सिर हिलाया.

‘‘लेकिन वह तुम्हारे डैडी हैं.’’

‘‘नहीं, वह मेरे डैडी नहीं, बल्कि एक वहशी दरिंदा है.’’ सोनिया गुस्से से फट पड़ी. फिर मेरे कंधे पर सिर रख कर फूटफूट कर रो पड़ी.

उस की खूबसूरत आंखों से आंसू मोतियों की तरह झड़ रहे थे. उस की हालत ने मुझे परेशान कर दिया. मैं ने प्यार से उस का सिर सहलाया, तो वह मुझ से लिपटते हुए हलकी चीख भरी रोंआसी आवाज में बोली, ‘‘वो मेरे साथ जबरदस्ती करता है, मुझ से गलत संबंध बनाता है.’’ उस की सिसकियां तेज हो गईं.

मेरे दिल की धड़कन जैसे थम सी गई. मेरी रगों में दौड़ता खून जैसे बरफ बन गया.

‘‘ये क्या कह रही हो, मुझे सबकुछ ठीक से बताओ.’’ मेरे दुलारने पर वह थोड़ा संभली, फिर एक आह भर कर बोली, ‘‘वह मेरे साथ उस वक्त से ज्यादती कर रहा है, जब मैं सिर्फ 14 साल की थी. मम्मी के मरने के बाद से ही उस ने ये घिनौना काम शुरू कर दिया था.’’

‘‘तुम ने किसी को बताया क्यों नहीं?’’ अगर मैं ऐसा करती तो वह मुझे मार डालता. वैसे भी इतने बड़े आदमी के सामने मेरी बात पर कौन यकीन करता? सोनिया ने एक झुरझुरी ले कर कहा.

‘‘यकीन तो कोई तब करता जब तुम बतातीं.’’

‘‘उस ने मुझे पूरी तरह अपने चंगुल में फंसा लिया था. जब मैं 15 साल की थी तभी उस ने जोड़ जुगत कर के मेरे दिमागी मरीज होने की पूरी हिस्ट्री बनवा ली थी. मेरे पागल होने के कागज, डाक्टर के सर्टिफिकेट सब कुछ था उस हिस्ट्री में. मेरे हलफिया बयान के बाद भी जज और अदालत उसे मुजरिम करार नहीं देती, हां मुझे पागलखाने जरूर भेज दिया जाता. अब मेरे पास दो ही रास्ते बचे हैं. या तो मैं ये सब बरदाश्त करती रहूं या उसे जहर दे दूं.’’

‘‘तुम उसे जहर नहीं दे सकती, ऐसा करने से सब को पता चल जाएगा कि जहर तुम ने दिया है. तब यकीनी तौर पर तुम्हें जेल जाना पड़ेगा और हम एकदूसरे से कभी नहीं मिल सकेंगे.’’ मैं ने उसे समझाया.

‘‘उस के सैंकड़ों दुश्मन हैं, कोई भी ये काम कर सकता है. फिर मुझ पर ही शक क्यों जाएगा?’’ सोनिया ने कहा.

‘‘उस के दुश्मनों में कुछ ऐसे लोग हैं, जो इतना बड़ा खतरा उठा सकते हैं?’’ मैं ने कुछ सोचते हुए सोनिया से पूछा.

सोनिया ने एक आह भर कर कहा, ‘‘हां, हैं तो लेकिन मेरा खयाल है मुझे ये सब बरदाश्त करना ही पड़ेगा.’’

मेरा खून खौल उठा. नफरत के तेजाब ने मेरे दिल को जला कर रख दिया. मेरी नजर उस लड़की पर टिकी हुई थी जिसे मैं ने जीजान से प्यार किया था. उस की इज्जत की धज्जियां उड़ाने वाले उस के बाप के बारे में जान कर, दिल दिमाग नफरत से जल उठा. चांदनी रात में चांदनी से भीगा उस का उदास चेहरा मेरे दिल की गहराई में उतर आया था. मैं ने उसे प्यार करते हुए कहा, ‘‘तुम घबराओ मत, जल्द ही ये डरावना ख्वाब खत्म हो जाएगा और वह दरिंदा अपने अंजाम पर जरूर पहुंचेगा.’’ मेरी आवाज में जहर घुला हुआ था. उसी वक्त मैं ने सोनिया से कुछ जरूरी बातें पूछी. उस से जानकारी लेने के बाद मैं ने एक योजना बनाई और उसे बता दिया कि उसे क्या करना है.

उसी योजना के अनुसार 2 हफ्तों बाद सोनिया पार्क में फिर मुझ से मिली. हम दोनों एक बेंच पर बैठ गए. उस ने मुझे एक पेपर थमाते हुए कहा, ‘‘ये मकान का पूरा नक्शा है, जो मैं ने बड़ी सावधानी से बनाया है.’’

मैं ने नक्शे को ध्यान से देखा. वाकई उसे बड़े कायदे से बनाया गया था. मैं ने उस से कहा, ‘‘ये तो ठीक है, अलार्म वगैरह और सुरक्षा के इंतजाम कैसे हैं?’’

सोनिया ने मुसकरा कर कहा, ‘‘उसे अपनी ताकत और पहुंच पर बड़ा घमंड है. उसे लगता है कि कोई उस का बाल भी बांका नहीं कर सकता. इसलिए उस ने न तो पहरेदार रखे हैं, न अलार्म लगवाए हैं.’’

‘‘तुम उस की आयरन गोल्फ स्टिक लाई हो.’’ मैं ने पूछा.

सोनिया ने ‘हां’ में सिर हिलाया.

‘‘उस वक्त वो कहां होगा?’’

‘‘सोफे पर मदहोश पड़ा होगा.’’

‘‘क्या तुम्हें यकीन है कि आज रात को भी वह पोकर खेलेगा?’’

‘‘हर थर्सडे की रात वो देर तक पोकर खेलता है.’’ उस की बात सुन कर मैं ने एक बार फिर गौर से नक्शा देखा.

‘‘वह घर कब तक वापिस आता है?’’

‘‘आधी रात के वक्त, कभीकभी जल्दी भी आ जाता है.’’

‘‘क्या वो नशे में होगा?’’

‘‘एक बात तो पक्की है, एक बार पीने के बाद जब वह मदहोश हो कर सोता है, तो फिर उसे कोई तूफान भी नहीं उठा सकता.’’

‘‘ओके, क्या तुम ने रिपोर्ट दर्ज करा दी?’’ मैं ने नक्शा जेब में रखते हुए पूछा.

‘‘हां, मेरी इंसपेक्टर दुर्रानी से बात हुई थी.’’

‘‘वह बड़ा तेज व कर्मठ इंसपेक्टर है, उसे कोई शक तो नहीं हुआ?’’

‘‘मेरे खयाल से तो नहीं, क्यों?’’

‘‘वह और उस का असिस्टेंट कामरान बड़े काबिल और तेज तर्रार पुलिस अफसरों में गिने जाते हैं. खैर छोड़ो, ये बताओ तुम ने उसे क्या बताया?’’

‘‘मैं ने उसे कहा कालेज में कोई मेरा पीछा करता है और मुझे शक है कि उस ने मेरे घर का पता लगा लिया है.’’

‘‘इस के अलावा और कुछ?’’

‘‘हां, मैं ने ये भी बताया कि 2 दिन पहले मैं ने एक अजीब से आदमी को अपने घर के पास देखा था, ये वही हो सकता है जो कालेज में मेरा पीछा करता है.’’

तुम ने उस का हुलिया क्या बताया है?

‘‘मैं ने एक ऐसे आदमी का हुलिया बयान कर दिया जो एक टैक्सी से जा रहा था.’’

‘‘फिर इंसपेक्टर दुर्रानी ने क्या कहा?’’

उन्होंने सब कुछ लिख लिया और कहा कि 2 से ज्यादा पुलिस वालों को पेट्रोलिंग ड्यूटी पर लगा देगा. मैं ने संतुष्ट हो कर सिर हिलाया. उस रात मेरी ड्यूटी नाइट शिफ्ट में थी और सोनिया का बंगला मेरी पेट्रोलिंग की हद में आता था.

‘‘और कुछ तो नहीं पूछना है?’’ सोनिया ने कहा.

सोनिया के साथ होने वाली ज्यादती और जुल्म ने मुझे बुरी तरह तड़पा दिया था और मैं ने उसे उस शैतान से निजात दिलाने का इरादा कर लिया था. यह सारी प्लानिंग सोनिया की ही थी. मैं ने सोनिया को तसल्ली दे कर कहा, ‘‘आज की रात तुम घर पर नहीं रहोगी.’’

‘‘आज रात मेरी सहेली की मेहंदी का फंक्शन है. हम सारी फ्रैंड्स रात वहीं गुजारेंगी, खूब हल्लागुल्ला होगा, डांसपार्टी भी है. मेरी वहां मौजूदगी के कई गवाह मिल जाएंगे.’’

‘‘ओके.’’ मुझे तसल्ली हो गई. फिर हम दोनों वहां से उठ गए. मैं ने सोनिया का हाथ मजबूती से थामते हुए कहा, ‘‘अगली बार जब हम मिलेंगे तो तुम उस वहशी दरिंदे के चंगुल से आजाद होगी.’’

सोनिया ने मेरी आंखों में झांका और बोली, ‘‘जानते हो, मुझे तुम्हारी बात पर यकीन नहीं आया था.’’

‘‘कौन सी बात पर?’’ मैं ने चौंकते हुए पूछा, तो वह बोली, ‘‘जब तुम ने मुझ से कहा था कि तुम मुझ से इस हद तक मोहब्बत करते हो कि मेरी खातिर किसी का कत्ल भी कर सकते हो.’’

‘‘यकीनन करूंगा, लेकिन इस कत्ल के पीछे एक अच्छा मकसद होगा.’’ मैं ने जोश से कहा. बातचीत के बाद वह चली गई.

मैं मन ही मन आगे की प्लानिंग के बारे में सोचते हुए लौट आया. उस रात जब मैं ड्यूटी पर था तो मैं ने घड़ी पर नजर डाली, रात का 1 बज रहा था. यह मेरे काम के लिए सही वक्त था. मैं ने अपना वाकीटाकी औन किया, ‘‘वन थ्री सिक्स, हेड क्वार्टर.’’

वाकीटाकी में कुछ देर खड़खड़ हुई फिर डिसपैचर की आवाज उभरी. ‘‘गो अहेड, वन थ्री सिक्स.’’

‘‘टेन फोर सेवेन – टेन फोर टू,’’ मैं ने कहा ताकि वह यह समझे कि मैं घर पर खाना खा रहा हूं.

‘‘टेन फोर वन थ्री सिक्स.’’

मैं अपनी पेट्रोल कार से नीचे उतर आया. वाकीटाकी की आवाज कम कर दी. अब मेरे पास एक घंटे का वक्त था. मैं ने खास टोपी, एक लबादा (ढीले ओवर कोट जैसा) दस्ताने व नरम जूते पहन लिए. फिर सीट के नीचे से गोल्फ आयरन स्टिक निकाल कर एक गहरी लंबी सांस ली. मेरे काम का वक्त हो गया था. मैं दौड़ता हुआ सोनिया के फादर मुबारक डायमंड की कोठी तक जा पहुंचा. एक नजर मैं ने अपनी पुलिस पेट्रोलिंग वाली कार पर डाली जो कोठी से दूर झाड़ों की आड़ में खड़ी थी और नजरों से ओझल थी. जोशोजुनून में मैं ने कत्ल का इरादा कर लिया था. मुझ पर सोनिया की मोहब्बत भले ही हावी थी. पर यह एक संगीन जुर्म था.

मैं कोठी के पिछले दरवाजे के पास पहुंच कर रुक गया. मेरा दिल बुरी तरह धड़क रहा था, हाथ कांप रहे थे. मैं ने आज तक किसी का कत्ल नहीं किया था. बेशक मैं ने कत्ल के बारे में, उस के अंजाम के बारे में जरूर सोचा था और प्लानिंग पूरी सावधानी से की थी. मैं ने कत्ल के मंजर को बारबार दिमाग में लाने की कोशिश की पर मेरा दिमाग खाली स्लेट की तरह हो गया था. पता नहीं मुझे क्या हुआ, मैं वापसी के लिए पलटा, लेकिन फिर सोचा सोनिया को क्या जवाब दूंगा, मैं ठिठक कर रुक गया. अचानक मेरी आंखों के आगे सोनिया की इज्जत लुटने का, उस के बाप की ज्यादती और जुल्म का दृश्य उभर आया. मुझे याद आई सोनिया की मजबूरी और बेबसी.

मेरा खून खौलने लगा और मैं अचानक पलटा और कोठी के दरवाजे पर पहुंच गया. मैं ने दरवाजे पर जोर की एक लात मारी, तो दरवाजा खुल गया. मैं तेज कदमों से अंदर दाखिल हो कर नक्शे के मुताबिक लिविंगरूम की तरफ बढ़ा, तो मुझे टीवी की आवाज सुनाई दी. मतलब सोनिया ने नक्शा सही बनाया था, टीवी चलने की वजह से कमरे में खासी रोशनी थी. मैं आयरन स्टिक संभाल कर सोफे की तरफ बढ़ा, मेरी सांस सीने में अटक सी गई. वह सोफे पर मौजूद नहीं था. सोफा खाली पड़ा था.

तभी एक आवाज गूंजी, ‘‘कौन हो तुम? मेरे घर में क्या कर रहे हो?’’

मैं तेजी से आवाज की तरफ घूम गया. मुबारक डायमंड एक हाथ में शराब की बोतल और दूसरे हाथ में टीवी का रिमोट लिए मुझे घूर रहा था. मैं वहीं जम कर रह गया. मेरे सामने वह शैतान खड़ा था, जिस ने मेरी महबूबा की इज्जत तारतार की थी.

‘‘मैं ने तुम से पूछा कि तुम कौन हो और क्यों आए हो?’’

उस ने पूछा तो मैं ने एक कदम आगे बढ़ाया और स्टिक को बेस बाल के बैट की तरह पूरी ताकत से घुमाया. इस के साथ ही एड़ी पर जोर डालते हुए मैं ने उस पर जोरदार वार किया. वार इतना जोरदार था कि जब स्टिक उस के सिर से टकराई, तो मेरा हाथ झनझना गया. उस के सिर से खून बहने लगा और वह जमीन पर ढेर हो गया. शराब की बोतल जमीन पर गिर कर टूट गई. मैं ने चारों तरफ नजर दौड़ाई, सबकुछ ठीक दिखाई दे रहा था. मैं ने एक गहरी सांस ले कर एक बार फिर आयरन स्टिक मुबारक डायमंड के सिर पर दे मारी और फिर मारता ही चला गया. उस ने एक झुरझुरी ली और उस का जिस्म स्थिर हो गया. मैं ने झुक कर उस की नब्ज देखी तो वह बंद हो चुकी थी. मैं ने तेजी से उस का पर्स और ज्वेलरी समेटी और बाहर निकल गया.

मैं बाहर निकला तो ठंडी हवा मेरे चेहरे से टकराई. मुझे उबकाई सी आ रही थी. मैं लड़खड़ाता हुआ दौड़ पड़ा. मैं ने वहां कोई सुबूत नहीं छोड़ा था. उस वक्त मेरा गला सूख रहा था. कुछ अजीब सी हालत हो रही थी. मैं ने अपनी पुलिस कार के पास पहुंच कर दस्ताने, जूते, लबादा उतारा और मुबारक डायमंड की ज्वैलरी, मनीपर्स एक प्लास्टिक बैग में ठूंस दिए. मेरी सांसें अभी भी तेजतेज चल रही थीं. मैं ने लंबीलंबी सांसें लीं तो कुछ अच्छा लगा. प्लास्टिक बैग कार की डिक्की में डाल कर मैं ने कार स्टार्ट की और वहां से रवाना हो गया. रास्ते में एक वीराने में मैं ने चीजों सहित प्लास्टिक बैग एक गड्ढे में रख कर जला दिया. गड्ढा मैं ने बंद कर दिया. यह जगह मैं ने पहले से देख रखी थी. घर पहुंच कर मैं ने शावर ले कर कपड़े बदले, फिर डिस्पैचर को बताया कि मुझे आने में थोड़ी देर हो सकती है. उस ने कहा, ‘‘मैं संभाल लूंगा, पर मेरे लिए बर्गर ले कर आना.’’

मैं रात के ढाई बजे औफिस पहुंचा. वहां से फिर अपनी पेट्रोलिंग कार में लौट आया. मैं ने कुछ देर अपने आगे के प्लान के बारे में सोचा. मेरे पेट में अजीब सी गुड़गुड़ हो रही थी. दिल भी घबरा रहा था. कुछ देर मैं यूं ही बैठा रहा. फिर सीधा मुबारक डायमंड की कोठी की तरफ रवाना हो गया. उस का नाम तो मुबारक था पर शायद डायमंड पहनने की वजह से उस के नाम के साथ डायमंड जुड़ गया था. मैं ने गाड़ी उस की कोठी के पास ले जा कर रोक दी. फिर वाकीटाकी पर कहा, ‘‘वन थ्री सिक्स हेडक्वार्टर.’’

‘‘यस.’’

‘‘मैं मुबारक डायमंड के बंगले के पास हूं. रूटीन निरीक्षण करने जा रहा हूं.’’ उधर से आवाज आई. ‘‘टेन फोर.’’

मैं गाड़ी से नीचे उतर कर बंगले के पीछे वाले दरवाजे पर पहुंच गया. फिर एक गहरी सांस ले कर वाकीटाकी चालू कर के कहा, ‘‘मुझे बंगले का एक दरवाजा खुला दिख रहा है, लगता है नकब लगी है. मैं अंदर देखने जा रहा हूं. हेलो हेडक्वार्टर, मुझे मदद की जरूरत पड़ सकती है.’’

‘‘ओ.के.’’

मैं सीधा अंदर पहुंचा. मुबारक डायमंड जमीन पर अपने ही खून में भीगा पड़ा था. यकीनन वह मर चुका था. मैं ने एक झटके से वाकीटाकी औन किया, ‘‘हैलो हेडर्क्वाटर, अंदर एक लाश पड़ी है. जल्दी से मैडिकल स्टाफ भेजो. पुलिस वायरलैस में जिंदगी दौड़ गई, धड़ाधड़ संदेश और आदेश शुरू हो गए.’’

मैं ने झुक कर मुबारक की गरदन को छुआ और जानबूझ कर अपनी उंगलियों के निशान यहांवहां छोड़ दिए ताकि बाद में निशान मिलने पर कोई सवाल न उठे. फिर मैं ने मुलजिम की तलाश के बहाने पूरे बंगले का चक्कर लगाया. साथ ही लाश के आसपास खास किस्म का टेप लगा दिया और बरामदे में रुक कर टीम के आने का इंतजार करने लगा. थोड़ी देर बाद मैडिकल स्टाफ और फोर्स आ गई.

‘‘जब तुम्हें इस वारदात का पता चला, उस वक्त क्या बजा था?’’ इंसपेक्टर दुर्रानी ने घटनास्थल का मुआयना करने के बाद पूछा. मैं ने खुद को सामान्य रखते हुए कहा, ‘‘पौने 3 बजे होंगे.’’

फ्लैश लाइट की रोशनी में उस की ब्राउन रंग की चालाक आंखें एकएक चीज को ध्यान से देख रही थीं.

‘‘तुम्हें इस इलाके में एक्सट्रा पेट्रोलिंग के बारे में मेरे आर्डर मिल गए थे?’’ दुर्रानी ने जानना चाहा.

‘‘जी हां, मिल गए थे. इसलिए मैं हर एक घंटे के बाद यहां की गश्त लगा रहा था.’’ मैं ने बताया.

‘‘हर बार, वक्त नोट करवा रहे थे?’’

‘‘जी हां.’’

‘‘कोई शक की बात दिखाई दी थी?’’

‘‘जी नहीं, हर तरफ सन्नाटा था.’’ मैं ने जवाब दिया.

इंसपेक्टर दुर्रानी हर बात नोट कर रहा था.

‘‘अजीब बात है, खुद की गोल्फ स्टिक से खुद की मौत.’’ मैं ने सवाल उठाया.

‘‘वह मुबारक डायमंड की स्टिक नहीं थी, उस की अपनी गोल्फ आयरन स्टिक्स गिनी जा चुकी हैं, सब अपनी जगह पर मौजूद हैं.’’

‘‘ओह, मैं समझा लाश के पास पड़ी है, उसी की होगी.’’ मैं ने अपनी हैरानी छुपाते हुए कहा.

‘‘वह कमीना बड़ा दीदादिलेर और शातिर था, तुम हर एक घंटे में गश्त लगा रहे थे. फिर भी उस ने अपना काम कर दिखाया. क्या तुम ने खाने के बे्रक की खबर दी थी?’’ दुर्रानी का लहजा अजीब सा था.

‘‘मैं हमेशा पैगाम दर्ज करा देता हूं.’’ मैं ने गौर से उस का चेहरा देखा. वह सोच में डूबा हुआ था. मैं ने फिर पूछा, ‘‘क्या सोच रहे हो?’’

‘‘हां, वह मर चुका है.’’ वह फोन ले कर टहलते हुए बाहर निकल गया. इतना मैं ने इतना जरूर सुना, ‘‘मामला डकैती का लगता है, पर कोई चीज मुझे खटक रही है. कहीं न कहीं कोई गड़बड़ है. हमें इस की बेटी को ढूंढ़ना है, वह पहले ही एक रिपोर्ट दर्ज करा चुकी है.’’

दुर्रानी पलट कर अंदर की जांच करने आया और कमरे की तरफ बढ़ गया. मैं ने अपनी ड्यूटी संभाल ली. प्राथमिक काररवाई के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज कर सब थाने लौट आए. मैं ने लौगबुक में उस वक्त की सारी बातें दर्ज कर दीं, जब मेरा रिलीवर आ गया तो मैं ने लौग बुक उसे सौंपते हुए कहा, ‘‘अंदर इंसपेक्टर दुर्रानी जांच में लगे हैं, मैं चलता हूं.’’

सुबह 6 बजे मैं पुलिस कार में घर के लिए निकल गया. घर पहुंच कर कपड़े बदल कर मैं गहरी नींद सो गया. अचानक मैं एक झटके से बिस्तर पर उठ बैठा. मुझे समझने में 2-3 सेकेंड लगे कि मैं कहां हूं? मुझे सब याद आ गया. ये मैं ने क्या कर दिया? एक पुलिस वाला हो कर प्यार में ये क्या कर बैठा? अभी मैं सोच में था कि दरवाजा धड़धड़ बजने लगा. आवाजें भी आ रही थीं.

‘‘इंसपेक्टर जमाल दरवाजा खोलो मैं इंसपेक्टर कामरान हूं.’’

मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा, मैं बड़बड़ाया, ‘‘ये कमबख्त यहां क्या लेने आ गया. इसे मेरी क्या जरूरत पड़ गई.’’ मैं ने जल्दी से शर्ट पहन कर दरवाजा खोला तो मेरे होश उड़ गए. कामरान के साथ 5-6 सिपाही घेरा बना कर खड़े थे. इंसपेक्टर कामरान ने मेरी कलाई खींच कर एक झटके से मुझे बाहर घसीट लिया. मैं ने हाथ छुड़ाने की कोशिश की तो उस ने मेरा बाजू मरोड़ कर मेरा हाथ पीठ से लगा दिया. फिर एक झटके से मेरे दोनों हाथों में हथकडि़यां लगा दीं. मैं लड़खड़ाया.

‘‘ये सब क्या हो रहा है?’’ मैं ने पूछा, तो इंसपेक्टर र्दुरानी ने आगे आ कर कहा, ‘‘जमाल, तुम्हें चुप रहने का हक हासिल है, तुम जो कहोगे वह तुम्हारे खिलाफ भी जा सकता है.’’

मुझे घबराहट होने लगी, सिर चकराने लगा. मुझे मेरे अधिकार बता कर पुलिस कार में धकेल दिया गया. मैं ने जाली में से सामने लगे आइने पर नजर डाली. एसपी सुहेल मुझे घूर रहा था, ‘‘ये तुम ने क्या कर डाला? पुलिस वाले हो कर ऐसा जुर्म?’’

मैं ने बेबसी से कहा, ‘‘सर, ये मेरे साथ क्या हो रहा है?’’

‘‘जमाल, बेवकूफों जैसी बातें न करो, न ही हमें उल्लू बनाओ. इन लोगों ने तुम्हें रंगे हाथों पकड़ा है. इन से बात कर के मामला तय करो, शायद सजा में कुछ कमी हो जाए.’’

‘‘सर, सच में मैं ने कुछ नहीं किया है.’’

‘‘इन के पास बतौर सुबूत तुम्हारी वीडियो मौजूद है.’’

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है सर.’’

‘‘लगता है डायमंड ने अपने बंगले के अंदर बाहर खुफिया कैमरे लगा रखे थे. मैं ने वह वीडियो टेप खुद देखी है, जिस में सफेद लबादे, ब्राउन टोपी में तुम सारी हरकतें कर रहे हो. तुम्हारे एक्शन और फोटो एकदम साफ आए हैं. लबादे से भी तुम्हारी पहचान छिप न सकी, क्योंकि चेहरा बिलकुल साफ नजर आ रहा था. पहचानने में कोई मुश्किल नहीं हुई, अब झूठ मत बोलो.’’

सदमे और हैरत से मेरी हालत खराब हो गई. मैं आंखें गाड़े आतीजाती गाडि़यों को देख रहा था.

मुझे अपने पकड़े जाने का यकीन ही नहीं हो रहा था. ये कैसे हो गया? मुझे लग रहा था ये एक डरावना सपना है, जल्द ही मेरी आंख खुल जाएंगी, फिर मैं इस ख्वाब पर खूब हंसूंगा. हेड क्वार्टर पहुंच कर एसपी सुहेल ने उतरने में मेरी मदद की. वह शुरू से मुझ पर मेहरबान था. हां, कामरान और र्दुरानी से जरूर मेरी तनातनी चलती रहती थी. पर इस में कोई शक नहीं कि दोनों ही बेहद जमीन और अपने काम और ड्यूटी में परफेक्ट थे. मैं शर्मसार सा सीढि़यां चढ़ कर औफिस में आया. मेरी नजरें जमीन पर गड़ी हुई थीं. मेरे साथियों की नजरें मेरे चेहरे पर तीर सी चुभ रही थीं. मैं हैरान था कि वह…

‘‘ये वही है, वही है, ओ माय गाड.’’ एक जानीपहचानी आवाज सुन कर मुझे झटका सा लगा. मेरी निगाहें कमरे में घूम गईं. ‘वह’ वहां मौजूद थी. एक सिपाही उस की हिफाजत के लिए तैनात था.

वह सोनिया थी और हाथ उठा कर मेरी तरफ इशारा कर रही थी, साथ ही उस की आंखों से आंसू भी बह रहे थे. वह रोतेरोते कह रही थी, ‘‘यही है वह आदमी. जो मेरा पीछा करता था.’’ फिर एकदम मेरी तरफ देख कर चीखते हुए मुझ पर झपटी, ‘‘तुम कमीने हो, तुम ने मेरे बाप को कत्ल किया है. मेरे बाप को कत्ल कर के तुम ने मुझे अनाथ कर दिया, तुम खुद भी मौत के पंजे से नहीं बच सकोगे. तुम्हारा अंत भी बुरा होगा.’’

मैं ने अपनी आंखें खोल दीं. मेरे हाथ में हथकड़ी थी. सुहेल मेरे सामने था, मैं ने एकदम घबरा कर पूछा, ‘‘मुझे क्या हो गया था?’’

‘‘तुम बेहोश हो कर गिर पड़े थे.’’

मैं ने अपना बदन समेटा और उठते हुए कराह कर कहा, ‘‘ये सब क्या हो रहा है, ये कैसा मजाक है?’’

‘‘अगर ये मजाक है तो इस में सब से ज्यादा मजा सामने खड़ी लड़की उठा रही है, जिस ने तुम पर इल्जाम लगाया है.’’ एसपी सुहेल ने कहा.

‘‘सोनिया.’’ मैं ने हैरान हो कर कहा.

‘‘तुम इसे जानते हो?’’ उस ने पूछा.

‘‘इस के साथ मेरा इश्क चल रहा है.’’ मैं ने कहा.

‘‘सुहेल ने सिर को झटका दिया और हंस पड़ा.’’

‘‘यह बात जज को बताना शायद वह कुछ करे.’’

‘‘ये सच है.’’ मैं ने गंभीरता से कहा.

‘‘किसी का पीछा करना, फिर उस से इश्क करना एक ही बात नहीं हो सकती जमाल. सोनिया अभी बहुत दुखी है, बाप के मरने का सदमा है. पर जब उसे पता लगेगा कि उसे पूरी जिंदगी कुछ करने की जरूरत नहीं है. तो उस के आंसू सूख जाएंगे. वह करोड़ों की एकलौती वारिस है. पता चला है कि उस का बाप फालतू खर्चों के लिए उसे ज्यादा पैसे नहीं देता था. पर एक अच्छा बाप था. अब इतना छोड़ गया है कि दोनों हाथों से लुटाएगी तो भी कम नहीं पड़ेगा.’’

एसपी सुहेल ने पूरी बात बताई. मैं मुंह फाड़े उस की सूरत ताकने लगा. उस ने आगे कहा, ‘‘जमाल तुम ने उस की तकदीर बना दी, कहां वह थोड़े से पैसों के लिए तरसती थी, अब बेशुमार दौलत की अकेली मालिक है. और ये दौलत तुम ने अपने हाथों से उस की झोली में डाली है, उस के बाप को कत्ल कर के. उस की राह का रोड़ा हटा कर. क्या खूब काम किया तुम ने.’’

मेरा मुंह खुला का खुला रह गया. मेरे दिमाग में वह सारी बातें घूमने लगीं जो सोनिया ने मुझ से कही थीं अब सब कुछ साफसाफ मेरी समझ में आ गया. कितनी आसानी से उस ने मोहब्बत का नाटक कर मुझे उल्लू बनाया. उस का बाप उसे मनमाना खर्च नहीं देता था. कितनी चालाकी से उस पर झूठा घिनौना इल्जाम लगा कर उस ने मुझे उस के कत्ल के लिए उकसाया. उस ने जो कुछ मुझ से कहा था, सब झूठ था. इस झूठ में उस ने अपने बाप को भी नहीं छोड़ा. उस ने अपना मकसद हासिल करने के लिए मुझे बेवकूफ बनाया. उस ने बाप पर घिनौना इलजाम लगा कर उसे एक शैतान एक दरिंदा बना कर मेरे सामने पेश किया, जिस बात ने मुझे जुनूनी बना दिया और मैं एक जघन्य अपराध कर बैठा.

सोनिया ने अपने बाप के साथसाथ मुझे भी रास्ते से हटा दिया था ताकि उस के गुनाह का कोई सुबूत, कोई गवाह न रहे. उस ने वीडियो कैमरे के बारे में मुझे न बता कर मेरी मौत का सामान कर दिया. कितनी चालाकी से उस ने मेरे खिलाफ साजिश की और मैं एक पुलिस वाला होने के बावजूद उस की मोहब्बत की खातिर उस के इशारों पर नाचता रहा और अपने आप को बरबाद कर बैठा. उस की सारी बातें झूठ थीं सिवाय एक बात के कि मोहब्बत तकलीफ देती है. उस की झूठी मोहब्बत और बेवफाई ने मुझे बेमौत मार दिया. Hindi Crime Story

Best Crime Story: प्यार का अधिकार

Best Crime Story: देवेंद्र को जहां सहानुभूति और आत्मीयता की जरूरत थी, वहीं ममता को धैर्य और विश्वास  की. आखिर  ऐसा क्या हुआ  था कि न उसे सिंपथी मिली   और न वह धैय से काम ले  सकी. कुछ दिनों पहले कानपुर के एक नामीगिरामी इंजीनियरिंग संस्थान के गर्ल्स हौस्टल में कुछ ज्यादा ही चहलपहल थी, क्योंकि अगले दिन रविवार होने की वजह से संस्थान में छुट्टी थी. अधिकतर लड़कियां हौस्टल के बरामदे में बैठी गपशप कर रही थीं तो कुछ अगले दिन पिकनिक मनाने का प्रोग्राम बना रही थीं. अचानक किसी लड़की के चीखने की आवाज ने सभी को चौंका दिया.

लड़कियां यह जानने की कोािशश करने लगीं कि चीख की आवाज आई कहां से. काजोल, ज्योति और निशा अपनेअपने कमरे से निकल कर बाहर आईं. काजोल ने कहा, ‘‘शायद आवाज कमरा नंबर 212 से आई है.’’

वह कमरा एमटेक की छात्रा ममता शुक्ला का था. ज्योति और निशा ने ममता को आवाज दे कर दरवाजा खटखटाया. लेकिन कमरे के अंदर से कोई जवाब नहीं आया. दरवाजा अंदर से बंद था. तब तक कई अन्य लड़कियां वहां आ गई थीं. उन में से एक लड़की ने कहा, ‘‘रोशनदान से झांक कर देखो कि ममता दरवाजा क्यों नहीं खोल रही है.’’

कुछ लड़कियां एक मेज उठा लाईं. मेज पर कुरसी रख कर 2 लड़कियों ने उसे मजबूती से पकड़ लिया. दीप्ति ने कुरसी पर खड़े हो कर दरवाजे के ऊपर लगे रोशनदान से अंदर झांका. लेकिन कमरे के अंदर कुछ दिखाई नहीं पड़ा. तब दीप्ति ने रोशनदान का शीशा तोड़ दिया और अंदर हाथ डाल कर दरवाजे की सिटकनी खोल दी. दरवाजा खुलते ही काजोल और ज्योति कमरे के अंदर गईं. अंदर का दृश्य देख कर वे स्तब्ध रह गईं. तब तक दीप्ति और अन्य कई लड़कियां भी अंदर पहुंच गईं. अंदर का हाल देख कर सभी डर गईं. दीप्ति ने सभी लड़कियों को कमरे से बाहर निकाल कर दरवाजा बाहर से बंद कर दिया. उस ने निशा और ज्योति को दरवाजे के बाहर रुकने को कहा और खुद काजोल के साथ वार्डन को सूचना देने चल पड़ी.

सूचना मिलते ही वार्डन डा. आर.पी. अस्थाना, मुख्य सुरक्षा अधिकारी डी.पी. गोयल, सहायक मुख्य सुरक्षा अधिकारी आर.एन. श्रीवास्तव के साथ कमरे पर आ पहुंचे. वार्डन श्री अस्थाना ने सुरक्षा अधिकारियों के साथ कमरे में प्रवेश किया. कमरे की दक्षिणी दीवार के पास फर्श पर ममता पड़ी थी. उस से थोड़ी दूरी पर एक युवक पड़ा था. फर्श पर ढेर सी उल्टी पड़ी थी. वार्डन श्री अस्थाना ने फौरन सुरक्षा अधिकारी को भेज कर संस्थान के हेल्थ सेंटर से डा. एस.के. तिवारी को बुलवाया. डा. तिवारी ने ममता का परीक्षण कर के उसे मृत घोषित कर दिया. युवक बेहोश था. उसे होश में लाने का प्रयास किया गया तो थोड़ी देर में वह होश में आ गया.

युवक ने अपना नाम देवेंद्र सिंह बताया. उस ने यह भी बताया कि वह ममता से प्रेम करता था. प्रेम में निराश हो कर उस ने ममता को जहर दे दिया था और खुद भी जहर खा लिया था. वार्डन श्री अस्थाना ने आर.एन. श्रीवास्तव के साथ देवेंद्र को अस्पताल भिजवा दिया. फिर एक सिक्योरिटी गार्ड को लिखित सूचना दे कर कोतवाली भेज दिया. सिक्योरिटी गार्ड कोतवाली पहुंचा तो उस समय कोतवाली प्रभारी इंसपेक्टर इंद्रनाथ अपने कक्ष में बैठे थे. गार्ड ने वार्डन द्वारा दी गई लिखित सूचना उन्हें दे दी. सूचना पढ़ कर इंसपेक्टर ने रिपोर्ट लिखने का आदेश दिया. उन्होंने अपने उच्चाधिकारियों को भी घटना की सूचना दे दी और खुद पुलिस दल के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

घटनास्थल पर पहुंच कर इंसपेक्टर इंद्रनाथ ने ममता के शव का निरीक्षण किया. ममता के कपड़े अस्तव्यस्त थे. उस के चेहरे पर सफेद पाउडर जमा हुआ था. शरीर पर कोई घाव का निशान नहीं था. आसपास का सामान बिखरा पड़ा था. देखने से ही लगता था कि ममता ने जान बचाने के लिए काफी संघर्ष किया था. इसी बीच तमाम पुलिस अधिकारी भी घटनास्थल पर पहुंच गए. इन अधिकारियों ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया. ममता के कमरे की तलाशी लेने पर पुलिस को आर्सेनिक पाउडर 500 ग्राम, आर्सेनिक पाउडर की रसीद, मिठाई, दवा के कुछ कैप्सूल, एक टेप रिकौर्डर, कैसेट, 2 मोबाइल फोन, 3 पोस्टर, जिन पर देवेंद्र ने अपनी प्रेमकथा लिखी थी. एक सीरिंज और देवेंद्र सिंह के नाम की एक चैकबुक मिली. इन सब चीजों को पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया. कमरे में पड़ी उल्टी को भी पुलिस ने सील कर के कब्जे में ले लिया. आवश्यक काररवाई के बाद पुलिस ने ममता के शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

इंसपेक्टर इंद्रनाथ ने इस मामले की जांच इंसपेक्टर जयकरन को सौंप दी. अभियुक्त देवेंद्र सिंह पुलिस के कब्जे में था. जयकरन ने सब से पहले उसी से पूछताछ की. देवेंद्र का कहना था कि वह ममता से प्रेम करता था. उस ने ममता को मारा नहीं था. जबकि घटनास्थल पर प्राप्त साक्ष्य कुछ और ही कह रहे थे. जांच के दौरान पूरी कहानी कुछ इस तरह प्रकाश में आई. देवेंद्र सिंह के पिता आर.के. सिंह लखनऊ स्थित सचिवालय में मुख्य प्रशासनिक अधिकारी थे. देवेंद्र के अलावा उन की 2 बेटियां थीं. देवेंद्र अकेला बेटा था, इसलिए वह मातापिता का बड़ा दुलारा था. वह देवेंद्र को किसी बात की कमी नहीं होने देते थे. इस प्यारदुलार ने देवेंद्र को जिद्दी बना दिया था. वह जिस चीज के लिए अड़ जाता, उसे ले कर ही मानता था. घर में किसी बात की कमी तो थी नहीं, इसलिए उस की हर ख्वाहिश पूरी हो जाती थी.

देवेंद्र में कई गुण भी थे. वह बहुत महत्त्वाकांक्षी तथा धुन का पक्का था. पिता उसे इंजीनियर बनाना चाहते थे. विज्ञान से पढ़ाई पूरी करने के बाद देवेंद्र इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा की तैयारी में जुट गया. वह मेहनती तो था ही. इलाहाबाद के मोतीलाल नेहरू इंजीनियरिंग कालेज में बीटेक के लिए उसे चुन लिया गया. वह लखनऊ से इलाहाबाद चला गया और वहां हौस्टल में रह कर पढ़ाई करने लगा. नया सत्र शुरू हुआ था, इसलिए कालेज में इंट्रोडक्शन चल रहा था. पुराने छात्र नए लड़केलड़कियों की खिंचाई कर रहे थे. ऐसे में देवेंद्र की मुलाकात एक लड़की से हुई, जिस ने उसी साल बीटेक में प्रवेश लिया था. लड़की का नाम था ममता शुक्ला. ममता आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी थी. पहली मुलाकात में ही देवेंद्र ममता से बहुत प्रभावित हुआ.

ममता के पिता महिपाल शुक्ला लखनऊ में रेलवे विभाग में अभियंता थे. श्री शुक्ल की 3 बेटियां थीं. उन में ममता दूसरे नंबर पर थी. चूंकि देवेंद्र भी लखनऊ का रहने वाला था, इसलिए ममता और देवेंद्र में मित्रता हो गई. देवेंद्र जब लखनऊ जाता, ममता उसे अपने भी काम सौंप देती. इस तरह वह ममता के घर भी आनेजाने लगा. कुछ ही दिनों में वे अच्छे दोस्त बन गए. उसी बीच ममता बीमार पड़ गई. इलाहाबाद में देवेंद्र के सिवा उस का कोई अन्य आत्मीय नहीं था. उस समय देवेंद्र ने बड़ी लगन से ममता की देखभाल की. कुछ ही दिनों में ममता स्वस्थ हो गई. देवेंद्र की सेवा ने ममता का दिल जीत लिया. वह देवेंद्र से प्रेम करने लगी. देवेंद्र तो मन ही मन ममता को पहले से ही चाहता था.

दोनों प्यार की राह पर चल पड़े. उन की मुलाकातें ही नहीं होने लगीं, बल्कि दोनों की फोन पर लंबीलंबी बातें भी होने लगीं. जल्दी ही उन का प्रेम चर्चा का विषय बन गया. न जाने कैसे  इस बात की खबर ममता के घर वालों तक पहुंच गई. महिपाल शुक्ला को यह बात नागवार गुजरी. ममता किसी अन्य जाति के लड़के से संबंध जोड़े, यह उन्हें पसंद नहीं था. लेकिन जवान बेटी से खुल कर कुछ कह भी नहीं सकते थे. हां, अप्रत्यक्ष रूप से उन्होंने ममता को कई बार अवश्य टोका. लेकिन ममता ने उस पर ध्यान नहीं दिया. ममता जब भी लखनऊ आती, देवेंद्र के घर अवश्य जाती. देवेंद्र के परिवार वाले ममता को बहुत मानते थे, खासतौर पर उस की मां. वह ममता को अपनी बहू बनाने के लिए बहुत लालायित थीं.

देवेंद्र ने बीटेक पूरा कर लिया तो लखनऊ आ गया. उसे ममता से दूर होने का बहुत दुख हुआ. लेकिन मजबूरी थी. लखनऊ और इलाहाबाद के बीच ज्यादा फासला नहीं था. इसलिए वह बीचबीच में इलाहाबाद का चक्कर लगा लेता था. ममता भी छुट्टी मिलते ही लखनऊ अपने घर पहुंच जाती थी. कुछ समय बाद देवेंद्र को भारत इलैक्ट्रौनिक्स लिमिटेड, गाजियाबाद में नौकरी मिल गई. अब देवेंद्र   का ममता से मिलना और कम हो गया. सिर्फ फोन से वह ममता से दिल की बातें कर लेता था. इसी दौरान एक ऐसी घटना घट गई, जिस ने ममता और संजय को बेचैन कर दिया.

उन दिनों ममता की छुट्टियां चल रही थीं. वह लखनऊ में थी. देवेंद्र व्यस्तता के कारण काफी दिनों तक ममता से मिलने नहीं आ सका था. इसलिए एक दिन ममता खुद उस के घर जा पहुंची. ममता को देख कर देवेंद्र की मां बहुत खुश हुईं. उन्होंने ममता को अपने पास बिठा कर कहा, ‘‘बेटी, मुझे तुम से कुछ जरूरी बात करनी है.’’

‘‘कहिए आंटीजी, क्या बात है?’’ ममता ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘बेटी, जब तक बच्चा छोटा होता है, मां उसे अपने आंचल तले हर बुराई से दूर रखती है. लेकिन उस के बड़े होने पर मांबाप का नियंत्रण कम हो जाता है. फिर वह अपनी जिंदगी में दखल पसंद नहीं करता.’’

‘‘आंटीजी, मैं समझी नहीं. आप कहना क्या चाहती हैं?’’

‘‘ममता, देवेंद्र में एक बहुत बड़ा अवगुण है, जो शायद तुम्हें नहीं मालूम. वह नशीली दवाएं खाने लगा है. मैं तो उसे समझासमझा कर थक गई. वह मेरी एक नहीं सुनता. लेकिन बेटी, मुझे विश्वास है कि अगर तुम समझाओगी तो वह जरूर मान जाएगा.’’

यह सुन कर ममता सन्न रह गई. देवेंद्र ऐसा होगा, उस ने सपने में भी नहीं सोचा था. उस के निश्छल एवं भावुक हृदय को गहरी ठेस लगी. आंखों में आंसू भर आए. वह उसी वक्त अपने घर लौट आई. दिन भर अपने कमरे में पड़ी रोती रही. शाम को जब महिपाल शुक्ला घर लौटे तो बेटी का उतरा चेहरा देख कर उन्होंने पूछा, ‘‘ममता, बहुत सुस्त हो, तबीयत तो ठीक है न?’’

ममता ने पिता की बात पर कोई जवाब नहीं दिया. बस गुमसुम बैठी रही. श्री शुक्ला दिन भर के थके थे, इसलिए उन्होंने ज्यादा पूछताछ नहीं की. वह अपने कमरे में चले गए. 2 दिनों बाद रविवार को नौकर ने आ कर कहा, ‘‘बिटिया, देवेंद्र बाबू आए हैं.’’

देवेंद्र का नाम सुनते ही ममता उत्तेजित हो गई. भावावेश में वह नौकर को डांटते हुए बोली, ‘‘उन से कह दो, यहां से चले जाएं. मैं उन का मुंह नहीं देखना चाहती.’’ नौकर सिर झुका कर चला गया.

फिर देवेंद्र खुद वहां आ गया. उसे देखते ही ममता उठ कर कमरे से बाहर जाने लगी तो उस ने उस का हाथ पकड़ कर बिठाते हुए कहा, ‘‘क्या बात है, सरकार के तेवर बदलेबदले से हैं?’’

‘‘छोड़ो देवेंद्र, मुझे तुम्हारा मजाक हर समय अच्छा नहीं लगता.’’ ममता उस का हाथ झटक कर बोली.

‘‘लो छोड़ दिया, पर इतना तो बता दो, बंदे से खता क्या हुई है?’’

‘‘गलती तुम से नहीं, मुझ से हुई है, वरना तुम्हारे फरेब को पहले ही समझ लेती.’’

‘‘ममता, तुम्हें गलतफहमी हो गई है.’’

‘‘नहीं देवेंद्र, अब मेरी आंखें खुल गई हैं.’’

‘‘लेकिन मैं ने किया क्या है, पहले यह तो बताओ.’’

‘‘देवेंद्र, तुम ड्रग्स लेते हो. यह बात तुम ने मुझे कभी नहीं बताई.’’ ममता कांपते स्वर में बोली. यह सुन कर देवेंद्र को झटका लगा. अगले क्षण खुद को संभालते हुए बोला, ‘‘यह तुम से किस ने कहा?’’

‘‘तुम्हारी मम्मी ने मुझे बताया है. देवेंद्र, आज से हमारा रिश्ता खत्म. मैं तुम से शादी नहीं कर सकती.’’

‘‘ऐसा न कहो ममता, मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकता.’’ देवेंद्र भावुक हो गया. वह बहुत देर तक ममता को समझाता रहा कि वह सारी बुरी आदतें छोड़ देगा. लेकिन ममता पर उस का कोई असर नहीं हुआ. अंत में देवेंद्र उठ कर चला गया. उस के जाने के बाद ममता ने यह बात घर में सब को बता दी. महिपाल शुक्ला मन ही मन आश्वस्त हुए कि चलो यह कांटा अपने आप ही निकल गया. घर में छुट्टियां बिता कर ममता इलाहाबाद आ गई. इस बीच देवेंद्र ने कई बार ममता से मिलने की कोशिश की. लेकिन ममता उस के सामने नहीं आई. उस के इस तरह रूठ जाने से देवेंद्र बहुत परेशान था. वह ममता को लगातार फोन भी करता रहा, पर उस का नंबर देखते ही ममता फोन काट देती. बाद में उस ने अपना नंबर ही बदल लिया. वह ममता से मिलने कई बार इलाहाबाद भी गया, लेकिन वहां भी ममता ने उस से सीधे मुंह बात नहीं की.

प्यार के बदले उपेक्षा मिलने के बावजूद देवेंद्र ममता को भूल नहीं सका. वह उस के पीछे लगा रहा. उसे समझाता रहा. उसे विश्वास था कि एक न एक दिन ममता का गुस्सा शांत हो जाएगा. फिर वह उसे पहले की तरह चाहने लगेगी. लेकिन उस का सोचना गलत निकला. ममता उस से दूर होती गई. वह पागलों की तरह उस के इर्दगिर्द मंडराता रहा. अब वह नशा भी कुछ ज्यादा ही करने लगा था. कहा जाता है कि उस ने एक बार आत्महत्या करने की भी कोशिश की थी. कुछ दिनों बाद देवेंद्र पर एक और कहर टूटा. उसे कहीं से पता चला कि ममता किसी हरिहर तिवारी नामक लड़के से प्रेम करने लगी थी. ममता ऐसा करेगी, उसे यकीन नहीं हुआ. वह ममता से मिलने इलाहाबाद जा पहुंचा. उसे देखते ही ममता बोली, ‘‘देवेंद्र, मैं ने कितनी बार कहा कि तुम मुझ से मिलने मत आया करो.’’

‘‘ममता, मैं तुम से कुछ पूछने आया हूं.’’ देवेंद्र ने गंभीर स्वर में कहा.

‘‘अब क्या पूछना बाकी है?’’

‘‘ममता, क्या यह सच है कि तुम किसी और को चाहने लगी हो?’’

‘‘क्यों, आप को कोई ऐतराज है क्या?’’

‘‘ममता, तुम ऐसा नहीं कर सकतीं. तुम मेरी हो, मेरी ही रहोगी.’’

ममता चिल्ला कर बोली, ‘‘देवेंद्र, होश की दवा करो. मैं तुम्हारी बांदी नहीं हूं, जो तुम्हारे हुक्म की तामील करूं. फिर तुम मुझे राकेने वाले होते कौन हो? क्या अधिकार है मुझ पर तुम्हारा? सुनना ही चाहते हो तो सुन लो, मैं हरि से प्रेम करती हूं और उसी से शादी भी करूंगी.’’

देवेंद्र का खून खौल उठा. वह गुस्से से आगे बढ़ा, फिर कुछ सोच कर पीछे हट गया. तभी ममता की कुछ सहेलियां वहां आ गईं. देवेंद्र उठ कर चला गया.  इस के बाद से देवेंद्र के विचार बदलने लगे. उसे लगा कि अब वह ममता को कभी नहीं पा सकेगा. धीरेधीरे ममता के प्रति देवेंद्र का प्यार नफरत में बदलने लगा. उसे जब भी ममता के अंतिम शब्द याद आते, वह पागल हो उठता. उस के मन में प्रतिशोध की लहरें उठने लगतीं. उस ने कई बार ममता को धमकी दी कि वह उस से विवाह कर ले, वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा. लेकिन ममता ने उस की धमकियों की परवाह नहीं की. अंत में उस ने ममता से बदला लेने के लिए एक खतरनाक योजना बना डाली.

ममता का बीटेक पूरा हो गया था. उस के पिता चाहते थे कि ममता एमटेक करे. इसलिए ममता ने कानपुर के उस संस्थान में प्रवेश ले लिया और वहीं हौस्टल में रहने लगी. चूंकि देवेंद्र हर वक्त ममता की टोह में रहा करता था, इसलिए उसे सारी जानकारी थी. दिसंबर महीने में देवेंद्र ने अपनी योजना के अनुसार, लखनऊ के अमीनाबाद से 5 सौ ग्राम आर्सेनिक पाउडर खरीदा. फिर उसी शाम वह अपनी मारुति आल्टो कार से ममता से मिलने के लिए रवाना हो गया. रास्ते में उस ने मिठाई भी खरीद ली थी. 15 दिसंबर की दोपहर 3 बजे देवेंद्र कानपुर पहुंच गया और अपने एक दोस्त के घर ठहरा. आराम करने के बाद देवेंद्र गर्ल्स हौस्टल पहुंचा. ममता का कमरा ढूंढ़ने में उसे खास दिक्कत नहीं हुई.

लेकिन कमरे में ताला लगा देख कर वह सोच में पड़ गया, आखिर ममता कहां चली गई? उस ने हौस्टल में पूछा तो पता चला कि वह अपनी सहेली के घर गई है. पर वह किस सहेली के घर, कहां गई है, यह कोई नहीं बता सका. वहां से निराश हो कर देवेंद्र ममता के परिचितों के यहां चक्कर काटने लगा. काफी भागदौड़ के बाद उसे ममता के बारे में पता चल गया. ममता अपनी सहेली सुष्मिता के यहां गई थी. सुष्मिता ममता के साथ पढ़ती थी. इसलिए देवेंद्र भी उस से परिचित था. वह उसी दिन सुष्मिता के घर जा पहुंचा. वहां उस की मुलाकात सुष्मिता के पिता डा. डी.एन. मेहरा से हुई. उस ने डा. मेहरा को बताया कि वह ममता का दोस्त है और उस से मिलना चाहता है तो उन्होंने ममता को बुलवा दिया. अचानक उसे देख कर ममता हैरान रह गई. उस ने तीखे स्वर में पूछा, ‘‘यहां क्यों आए हो?’’

उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘ममता, मैं तुम्हें लेने आया हूं. मैं ने घूमने का प्रोग्राम बनाया है. बस तुम जल्दी तैयार हो जाओ.’’

‘‘मुझे तुम्हारे साथ कहीं नहीं जाना. तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम इसी वक्त यहां से चले जाओ.’’

‘‘नहीं, तुम को चलना ही पड़ेगा. आज मैं तुम्हें साथ लिए बगैर नहीं जाऊंगा.’’ कह कर देवेंद्र ने ममता का हाथ पकड़ लिया. ममता चिल्ला पड़ी. शोर सुन कर डा. मेहरा आ गए. उन्हें देवेंद्र की बदतमीजी पर बड़ा क्रोध आया. उन्होंने आगे बढ़ कर ममता को छुड़ाया और उसे डांट कर घर से बाहर निकाल दिया.

अगले दिन ममता अपने हौस्टल आ गई. वह पिछले दिन की घटना से काफी परेशान थी. कुछ देर बाद उस की सहेलियां उसे बुलाने आईं. लेकिन ममता ने तबीयत खराब होने का बहाना बना कर क्लास में जाने से इनकार कर दिया. लड़कियों के जाने के बाद वह कमरा बंद कर के बिस्तर पर लेट गई. सोचतेसोचते ही उस की आंख लग गई. करीब साढ़े 11 बजे किसी ने दरवाजा खटखटाया. ममता ने उठ कर दरवाजा खोला तो चौंक पड़ी. सामने देवेंद्र खड़ा था. ममता की भृकुटि तन गई. उस ने गुस्से से पूछा, ‘‘अब यहां क्या लेने आए हो?’’

देवेंद्र ने धीमे से कहा, ‘‘ममता, मैं तुम से कुछ बात करना चाहता हूं.’’

‘‘देवेंद्र प्लीज, तुम यहां से चले जाओ. मैं कुछ सुनना नहीं चाहती हूं.’’

‘‘नहीं ममता, आज तो तुम्हें सुनना ही पड़ेगा.’’ कहते हुए देवेंद्र कमरे के अंदर आ गया. उस की इस जबरदस्ती पर ममता को बड़ा क्रोध आया. लेकिन कुछ बोली नहीं. अपना सामान रखने के बाद देवेंद्र ने भीतर से दरवाजा बंद कर दिया. फिर कुरसी पर बैठ कर बोला, ‘‘तुम ने सुष्मिता के घर मेरे साथ बड़ा बुरा सुलूक किया.’’

ममता ने उस की बात का जवाब देने के बजाय पूछा, ‘‘देवेंद्र, तुम इस तरह मुझे क्यों तंग कर रहे हो? आखिर तुम चाहते क्या हो?’’

‘‘यह तुम अच्छी तरह जानती हो.’’ देवेंद्र ने कहा.

‘‘लेकिन अब वह संभव नहीं है.’’

‘‘मैं नहीं मानता ममता, तुम्हें मैं अपना कर ही रहूंगा. कुछ पा कर खो देना मेरी फितरत में नहीं है.’’

‘‘यह तुम्हारी भूल है देवेंद्र, ऐसा कभी नहीं होगा.’’

‘‘एक बार फिर सोच लो ममता.’’

‘‘मैं ने खूब सोच लिया है. तुम से शादी कर के मैं अपना जीवन नष्ट नहीं कर सकती,’’ ममता उठते हुए बोली, ‘‘अपनी बात कह चुके हो तो जा सकते हो.’’

‘‘अरे तुम तो नाराज हो गई. बैठो तो सही. देखो, मैं तुम्हारे लिए मिठाई लाया हूं.’’ देवेंद्र ने हंसते हुए कहा.

‘‘मुझे नहीं खानी तुम्हारी मिठाई.’’ ममता ने रूखे स्वर में कहा.

लेकिन देवेंद्र नहीं माना. वह खुद ही उठ कर पानी भी ले आया. फिर उस के बहुत जोर देने पर ममता ने मिठाई खा ली. दोनों काफी देर तक बैठे बातें करते रहे. बातों का सिलसिला अंत में फिर शादी पर आ कर अटक गया. देवेंद्र ने ममता को बहुत समझाया, पर वह अपने पर अड़ी रही. तब देवेंद्र उग्र हो उठा. वह बोला, ‘‘ममता, तुम मेरी हो, मेरी ही रहोगी. हमें कोई अलग नहीं कर सकता.’’

इस के बाद उस ने बलपूर्वक ममता के मुंह में आर्सेनिक का घोल उड़ेल दिया. ममता ने बचाव के लिए बहुत हाथपांव मारे, चीखीचिल्लाई. पर देवेंद्र की पकड़ से छूट न सकी. इस हाथापाई में थोड़ा सा घोल ममता के चेहरे पर भी छलक गया. धीरेधीरे ममता पर जहर का असर होने लगा. उस की पलकें बंद होने लगीं. ममता के अचेत होने तक संजय भी होश खो बैठा. वह पागलों की तरह दीवार पर लगे पोस्टरों पर अपनी प्रेमकथा लिखने लगा. कुछ समय बाद उस की भी हालत ममता जैसी होने लगी. वह भी जमीन पर गिर पड़ा. तभी हौस्टल की लड़कियां आ कर दरवाजा पीटने लगी थीं.

कथा लिखे जाने तक देवेंद्र जेल में था. उस की जमानत नहीं हो सकी थी. वह प्यार का अधिकार पाने के लिए बेचैन था. लेकिन यह नहीं समझ पाया कि प्यार कोई वस्तु नहीं, जिसे जबरदस्ती हासिल किया जा सके. Best Crime Story

(कथा सत्य घटना पर आधारित है. कुछ पात्रों एवं स्थान के नाम बदल दिए गए हैं.)

 

Superstition: टोनाटोटका करने के बाद 4 मौसियों ने मासूम को पटकपटक कर मारा

Superstition: एक ऐसी दहला देने वाली वारदात सामने आई है, जिस ने पुलिस तक को सन्न कर दिया. जब जांच टीम घर के अंदर पहुंची तो वहां का मंजर बिलकुल अलग और खौफनाक था. एक नवजात को बेरहमी से पटकपटक कर मार डाला गया था. वहीं, कमरे से जादूटोने के कई सामान भी मिले, जिन्हें देखकर पुलिस भी हैरान रह गई. आखिर क्या था इस सनसनीखेज घटना के पीछे का पूरा सच? क्या आलोक इस रहस्य का परदाफाश कर पाए थे? आइए पढ़ते हैं पूरी कहानी विस्तार से, जो आप को करेगी आने वाली घटनाओं से सचेत और सावधान.

यह सनसनीखेज वारदात राजस्थान के जोधपुर के एयरफोर्स थाना क्षेत्र की एक कालोनी से सामने आई है. यहां 17 महीने के मासूम प्रत्यूष की हत्या उस की ही 4 मौसियों ने मिलकर कर दी. मामला तब सामने आया, जब सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ, जिस में एक महिला प्रत्यूष को गोद में लिए बैठी थी और सामने चारों मौसियां मंत्रोच्चारण कर रही थीं. बताया गया कि इसी के बाद प्रत्यूष को जमीन पर पटकपटक कर मार डाला गया.

पुलिस पूछताछ में चारों बहनें एक ही बात दोहरा रही हैं कि उन्होंने प्रत्यूष को नहीं मारा, बल्कि ‘शैतान’ ने मारा.  टोनेटोटके का हवाला दे कर वे जांच में सहयोग नहीं कर रहीं.  इधर पुलिस ने मृतक प्रत्यूष की मम्मी सुमन और पापा पूनाराम के बयान दर्ज कर लिए हैं. प्रत्यूष के मामा ने घटना का वीडियो बनाया था और बहनों को रोकने की कोशिश भी की, लेकिन चारों बहनों ने मिलकर मासूम की जान ले ली. वीडियो पुलिस ने जब्त कर लिया है.

नेहरू कालोनी में 15 नवंबर शनिवार को ममता, गीता, मंजू और रामेश्वरी ने 17 दिन के प्रत्यूष की बेरहमी से हत्या कर दी. फूल जैसे बच्चे के हाथपैर तोड़ डाले, गला दबाया और उस पर कूदकर उसे खत्म कर दिया. इतना ही नहीं, उन्होंने 6 वर्षीय निशांत को भी छत से फेंककर मारने की कोशिश की, पर उस की मम्मी सुमन ने किसी तरह उसे बचा लिया.  निशांत के पापा पूनाराम का आरोप है कि मौसियां तांत्रिक क्रियाएं करती थीं और सुमन का घर बस जाने, बच्चे होने और सुखी रहने से उन से जलन रखती थी.इसी जलन ने उन्हें इस भयावह वारदात तक पहुंचा दिया.

पुलिस ने हत्या की आरोपी चारों बहनों को गिरफ्तार कर मज़िस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें 4 दिन की पुलिस रिमांड पर भेज दिया गया. अब उन्हें 20 नवंबर को दोबारा अदालत में पेश किया जाएगा. Superstition

Love Story in Hindi: अधूरी उड़ान

Love Story in Hindi: अमनदास से प्रेम विवाह करने के बाद स्वच्छंद विचारों वाली चारू पति से ऊब गई. उस ने अपने दूर के रिश्तेदार अनुराग से संबंध बना कर इश्क की ऐसी अधूरी उड़ान भरी कि…

दिल्ली के दक्षिण पश्चिम जिले के थाना नजफगढ़ के डयूटी औफिसर को दोपहर 11 बजे पुलिस नियंत्रण कक्ष द्वारा सूचना मिली कि नंगली डेरी के पास गहरे नाले में एक आदमी की लाश पड़ी है. सूचना मिलने पर इंसपेक्टर अनिल कुमार, एएसआई कृष्णचंद और कांस्टेबल अमरपाल को ले कर बताई गई जगह के लिए रवाना हो गए. वह नाला थाने से करीब दोढाई किलोमीटर दूर था. थोड़ी देर में पुलिस उस नाले के पास पहुंच गई, जिस में लाश पड़ी थी. नाले के किनारे खड़े तमाम लोग लाश को देख कर तरहतरह की बातें कर रहे थे. इंसपेक्टर अनिल कुमार ने देखा, नाले के बीचोबीच एक आदमी की लाश तैर रही थी. नाला गहरा था इसलिए समस्या यह थी कि लाश को पानी के बाहर कैसे निकाला जाए. सूचना पा कर थानाप्रभारी राजबीर मलिक भी मौके पर आ गए. वह भी लाश को बाहर निकलवाने की तरकीब सोचने लगे.

सोचविचार कर उन्होंने ट्रक के हवा भरे 2 ट्यूब मंगवाए. एक आदमी को ट्यूब पर बैठा कर लाश के पास भेजा गया. वह आदमी साथ लाए गए दूसरे ट्यूब पर लाश को डाल कर किनारे पर ले आया. मौके पर क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम भी पहुंच गई थी. पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया. लाश 25-30 साल के एक युवक की थी. मृतक ब्राउन कलर की पैंट और सफेद रंग का बनियान पहने हुए था. उस की जेबों की तलाशी ली गई तो उन में ऐसी कोई चीज नहीं मिली जिस से उस की पहचान हो सकती. मृतक के सिर पर चोट के 3 घाव थे, इस से अनुमान लगाया गया कि हत्या करने से पहले उस के सिर पर किसी चीज से वार किए गए होंगे.

मृतक के गले में काले धागे में बंधा एक लौकेट था. उस के दाएं हाथ में लोहे का कड़ा था और बाएं हाथ की अंगुली में वह धातु का एक छल्ला पहने हुए था. वहां मौजूद लोगों से पुलिस ने लाश की शिनाख्त करानी चाही लेकिन कोई भी मृतक को नहीं पहचान पाया. प्राथमिक काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने लाश को जाफरपुर कलां स्थित राव तुलाराम मेमोरियल अस्पताल की मोर्चरी में रखवा दिया और अज्ञात हत्यारों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मामला दर्ज कर लिया. यह बात 12 फरवरी, 2015 की है.  हत्या के इस मामले की जांच के लिए थानाप्रभारी राजबीर मलिक के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई गई. टीम में अतिरिक्त थानाप्रभारी अनिल कुमार, एएसआई कृष्ण चंद, हेडकांस्टेबल मनजीत, कांस्टेबल अमरपाल, अनीता आदि को शामिल किया गया.

पुलिस टीम के सामने सब से बड़ी चुनौती मृतक की पहचान कराने की थी. पहचान होने के बाद ही हत्यारों का पता लगाया जा सकता था. मृतक का पता लगाने के लिए पुलिस ने सब से पहले अज्ञात लाश का हुलिया बताते हुए यह सूचना वायरलेस से दिल्ली के समस्त थानों को दे दी. इस के अलावा उस का फोटो दूरदर्शन पर प्रसारण के लिए भी भेज दिया. साथ ही पैंफ्लेट छपवा कर दक्षिणपश्चिम जिले के समस्त थानों के अलावा सार्वजनिक स्थानों पर चिपकवा दिए गए. पैंफ्लेट चिपकवाने के अगले दिन यानी 13 फरवरी, 2015 को इंसपेक्टर अनिल कुमार के पास कई लोगों के फोन आए. उन लोगों को थाने बुला कर लाश के रंगीन फोटो दिखाए गए. लेकिन लाश की पहचान नहीं हो सकी. कई लोगों को अस्पताल की मोर्चरी ले जा कर भी लाश दिखाई गई लेकिन वह उन के किसी की नहीं निकली.

13 फरवरी, 2015 को ही दक्षिणपश्चिम जिले के द्वारका (उत्तरी) थाने में जयंत कुमार नाम का एक आदमी अपनी पत्नी व कुछ अन्य लोगों के साथ पहुंचा. उस ने थानाप्रभारी को बताया कि इसी थाना क्षेत्र के हरिविहार कालोनी में उस की बेटी चारू और दामाद अमनदास रहते थे. अमनदास एक प्राइवेट कंस्ट्रक्शन कंपनी में इंजीनियर था. कल से उन दोनों में से किसी का भी फोन नहीं मिल रहा. उन के कमरे का ताला भी बंद है. चारू से उन की कल बात हुई थी. लेकिन वो दोनों अब कहां हैं पता नहीं लग रहा. जयंत कुमार के साथ अमन दास की बहन प्रियंका दास भी थी.

उन्होंने पुलिस को यह भी बताया कि वह उन के परिचितों को भी फोन कर चुके हैं. फिर भी उन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई. चारू और अमनदास ने करीब एक साल पहले ही लवमैरिज की थी. लवमैरिज की बात जान कर थानाप्रभारी को आश्ांका हुई कि कहीं वे अपने घर वालों की किसी साजिश का शिकार तो नहीं हो गए. क्योंकि औनर किलिंग की घटनाएं आए दिन सामने आती रहती हैं. इसी बात को ध्यान में रखते हुए थानाप्रभारी ने चारू और उस के पति की गुमशुदगी दर्ज कर ली. नजफगढ़ थाने में अज्ञात युवक की लाश बरामद होने का पैंफ्लेट थाना द्वारका (उत्तरी) के थानाप्रभारी के पास भी मौजूद था. जयंत कुमार ने अपने दामाद अमनदास की उम्र करीब 28 साल बताई थी और नजफगढ़ नाले से जिस युवक की लाश बरामद हुई थी वह भी करीब 25-30 साल का था, इसलिए उन्होंने वह पैंफ्लेट जयंत कुमार को दिखाया.

उस पैंफ्लेट को देखने के बाद जयंत कुमार और प्रियंका दास गंभीर हो गए. इस की वजह यह थी कि उस का लापता हुआ भाई अमनदास भी हाथ में कड़ा और अंगुली में छल्ला पहनता था. इस के अलावा वह गले में काले धागे वाला लौकेट भी डाले रहता था. वह बोली, ‘‘सर, नजफगढ़ नाले में जो लाश मिली है मैं उसे देखना चाहती हूं.’’

‘‘इस के लिए तुम्हें थाना नजफगढ़ जाना पडे़गा. क्योंकि लाश वहीं की पुलिस ने बरामद की थी.’’ थानाप्रभारी ने बताया.

इस के बाद जयंत कुमार और प्रियंका दास व उन के साथ आए लोगों ने थाना नजफगढ़ पहुंच कर इंसपेक्टर अनिल कुमार से बात की. अनिल कुमार ने उन्हें लाश के फोटो दिखाए. फोटो देख कर प्रियंका की धड़कनें बढ़ गईं. लाश पानी में पड़ी होने की वजह से फूल चुकी थी इसलिए वह स्पष्ट रूप से पहचानने में नहीं आ रही थी. इसलिए उन्होंने लाश देखने की इच्छा जाहिर की. इंसपेक्टर अनिल कुमार उन लोगों को लाश दिखाने के लिए राव तुलाराम मेमोरियल अस्पताल ले गए. वहां उन लोगों को मोर्चरी में रखी लाश दिखाई तो प्रियंका दास की चीख निकल गई. उस ने रोते हुए बताया कि लाश उस के भाई अमन दास की है. दामाद की लाश देख कर पास में खड़े जयंत कुमार की आंखों से भी आंसू बहने लगे. लाश की शिनाख्त होने पर इंसपेक्टर अनिल कुमार ने राहत की सांस ली.

चूंकि इंसपेक्टर अनिल कुमार को आगे की काररवाई भी करनी थी इसलिए उन्होंने मृतक के परिजनों को सांत्वना दे कर चुप कराया. उन्होंने प्रियंका दास से अमन दास के बारे में मालूमात की तो उस ने बताया, ‘‘वह एक प्राइवेट कंपनी में इंजीनियर था और द्वारका के हरिविहार में किराए के कमरे में अपनी पत्नी चारू के साथ रह रहा था. फोन पर उस से मेरी बात होती रहती थी. आज मेरे पास चारू के पिता जयंत कुमार का फोन आया था. उन्होंने बताया कि चारू और अमन से उन की बात नहीं हो पा रही है. उन के कमरे पर भी ताला लगा हुआ है. तब मैं नोएडा से दिल्ली आई और यहां भाई की लाश देखने को मिली.’’ कह कर वह फिर से फफकफफक कर रोने लगी.

जयंत कुमार ने इंसपेक्टर अनिल कुमार को बताया कि वह बेटी और दामाद की खैरखबर फोन से लेते रहते थे. 3-4 दिन पहले उन की चारू से बात हुई थी तो वह घबराई हुई थी. घबराने की वजह पूछने पर उस ने बताया कि उस की ननद प्रियंका को चोट लग गई है, वह अमन के पास नोएडा आई हुई है. आज जब बेटी और दामाद में से किसी का भी नंबर नहीं मिला तो मैं उन के कमरे पर गया. लेकिन कमरे पर ताला लगा देख कर मैं घबरा गया. इस पर मैं ने अमन की बहन प्रियंका को फोन किया. जयंत कुमार ने आगे बताया कि प्रियंका से बात कर के उन्हें पता चला कि उसे न तो चोट लगी थी और न ही वह चारू और अमनदास के पास गई थी. इस बात से उन्हें अंदेशा हुआ और प्रियंका को दिल्ली बुला कर वह थाना द्वारका (उत्तरी) पहुंच गए.

जयंत कुमार ने आशंका जताई कि हो न हो किसी ने दोनों की ही हत्या कर दी हो. इस अंदेशे को ध्यान में रखते हुए पुलिस ने फिर से उस नाले के आसपास चारू के शव को ढूंढा लेकिन कहीं कुछ नहीं मिला. जयंत कुमार और प्रियंका दास ने किसी पर कोई शक वगैरह नहीं जताया तो पुलिस ने अमनदास की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. अगले दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो पता चला कि अमनदास की मौत सिर में गंभीर चोट लगने की वजह से हुई थी. अब अमनदास की बहन और ससुर से बात कर के पुलिस को यह पता लगाना था कि चारू की हत्या हो चुकी है या फिर वह कहीं छिप कर रह रही है. यानी चारू के बारे में जानकारी हासिल करना पुलिस की पहली प्राथमिकता थी.

पुलिस ने सब से पहले चारू और उस के पति अमनदास के नंबर ले कर उन के फोन की काल डिटेल्स निकलवाने की काररवाई की. काल डिटेल्स से पुलिस यह जानना चाह रही थी कि उन की आखिरी बार किस से बात हुई थी और उन के फोन की अंतिम लोकेशन किस क्षेत्र में थी. उन के फोन नंबरों की काल डिटेल्स आने तक इंसपेक्टर अनिल कुमार ने अपने स्तर पर ही मामले की छानबीन शुरू कर दी. इंसपेक्टर अनिल कुमार ने मृतक अमनदास की बहन प्रियंका दास और अन्य लोगों को पूछताछ के लिए एक बार फिर थाने बुलाया. उन्होंने उन से जानना चाहा कि चारू को आखिरी बार कब और किस के साथ देखा गया था. तभी उन के एक रिश्तेदार ने बताया कि हफ्ता भर पहले चारू को अनुराग मेहरा नाम के युवक के साथ देखा गया था.

‘‘अनुराग मेहरा कौन है?’’ इंसपेक्टर अनिल कुमार ने पूछा.

‘‘सर, अनुराग मेहरा दिल्ली में बुराड़ी के पास संतनगर में रहता है. करीब एक साल  पहले अनुराग की बहन की शादी चारू के दूर के मामा के साथ हुई थी.’’ प्रियंका ने बताया.

पुलिस टीम उत्तरी दिल्ली स्थित बुराड़ी के नजदीक संतनगर कालोनी में अनुराग मेहरा के पहुंची. अनुराग घर पर ही मिल गया. पूछताछ के लिए पुलिस उसे थाने ले आई. थानाप्रभारी के सामने पहुंच कर अनुराग डर गया. थानाप्रभारी राजबीर मलिक उस की घबराहट को भांप गए. उन्होंने उस से चारू के बारे में पूछा तो उस ने अनभिज्ञता जताई. जबकि अनुराग के हावभाव से लग रहा था कि वह कुछ सच्चाई छिपा रहा है. इसलिए उन्होंने उस से सख्ती से पूछताछ की. इस पर अनुराग बोला, ‘‘सर, मैं चारू से 5-6 फरवरी की रात को मिला था. सुबह होने पर मैं अपने घर चला गया था. चारू अपने कमरे पर ही रह गई थी. बाद में वह कहां गई, पता नहीं.’’

‘‘तुम उस से रात में ही मिलने क्यों गए थे? 5-6 की रात को जब तुम उस से मिले थे तब उस का पति अमनदास कहां था?’’ राजबीर सिंह ने पूछा.

‘‘सर, वो भी अपने कमरे में ही था.’’

यह सुन कर थानाप्रभारी थोड़ा चौंके. उन्हें लगा कि अमनदास का हत्यारा वही होगा. क्योंकि जब वह रात को चारू से मिलने आया होगा तो शायद उस के पति अमनदास ने उसे और चारू को एकांत में देख लिया होगा. फिर भेद खुलने के डर से अनुराग ने अमनदास की हत्या कर दी होगी. साथ ही उन के दिमाग में यह भी आया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि चारू ने पति की हत्या का विरोध किया हो और अनुराग ने चारू को भी मार कर कहीं दूसरी जगह ठिकाने लगा दिया हो. इसलिए उन्होंने उस से सीधे सवाल किया, ‘‘तुम ने चारू की लाश कहां डाली है?’’

‘‘चारू की लाश!’’ अनुराग घबरा कर बोला.

‘‘हां, तुम सीधे बताते हो या फिर…’’

‘‘सर, मैं ने चारू को नहीं मारा. हम ने सिर्फ अमनदास की हत्या की थी. उस की हत्या में चारू खुद शामिल थी. रात को उस की लाश नाले में डालने के बाद सुबह को मैं अपने घर चला गया था.’’ अनुराग ने बताया.

अनुराग मेहरा ने चारू के साथ मिल कर उस के पति अमनदास की हत्या क्यों की, पुलिस ने इस बारे में अनुराग से पूछताछ की तो अमनदास की हत्या की जो कहानी सामने आई वह मन को झकझोर देने वाली थी. अमनदास मूलरूप से असम का रहने वाला था. उस के पिता भारतीय सेना में नौकरी करते थे जो अब रिटायर हो चुके हैं. कई साल पहले वह दिल्ली के उत्तमनगर क्षेत्र में रहते थे और एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे. उत्तमनगर में ही उन के पड़ोस में जयंत कुमार रहते थे. जयंत कुमार दिल्ली की साप्ताहिक बाजारों में दुकान लगाते हैं.

पासपास रहने की वजह से दोनों परिवारों के बीच पारिवारिक संबंध बन गए थे. अमनदास ने असम के एक पालिटेक्निक कालेज से डिप्लोमा किया था. वह दिल्ली में नौकरी की तलाश में था. उधर चारू भी जवान थी. अमनदास और चारू के अकसर मिलनेजुलने से उन के बीच प्यार हो गया और उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया. यह बात दोनों ने घर वालों को बता भी दी कि वे दोनों शादी करना चाहते हैं. अमन के घर वालों को बेटे की पसंद पर कोई एतराज नहीं था. अब सब कुछ चारू के घर वालों की इच्छा पर निर्भर था. चारू के पिता जयंत कुमार जानते थे कि अमनदास पढ़ालिखा और होनहार लड़का है. उन्होंने सोचा कि आज नहीं तो कल अमन की नौकरी लग ही जाएगी. उस के साथ चारू की जिंदगी हंसीखुशी से कटेगी.

यही सोच कर उन्होंने बेटी की बात मान ली. इस से चारू की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. इस के बाद सामाजिक रीति रिवाज से दोनों की शादी हो गई. यह सन 2011 की बात है. शादी के बाद अमनदास के घर वाले असम चले गए. चारू भी उन के साथ गई थी. अमन के पिता ने वहीं पर एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर ली. चारू और अमन असम में करीब एक साल रहे. इस दौरान चारू ने एक बेटी को जन्म दिया लेकिन जन्म के एक दिन बाद ही उस बच्ची की मौत हो गई. बेटी की मौत के बाद चारू एक तरह से सदमे में आ गई. उसे डाक्टर के पास ले जाया गया तो डाक्टर ने सलाह दी कि उसे काउंसलिंग की जरूरत है.

बहरहाल, कुछ दिनों तक असम में रहने के बाद अमन और चारू दिल्ली आ गए. दिल्ली आ कर अमन नौकरी की तलाश में जुट गया. थोड़ी कोशिश के बाद बाहरी दिल्ली के ढिचाऊं कलां के पास एक प्राइवेट कंस्ट्रक्शन कंपनी में उस की नौकरी लग गई. अमनदास को नौकरी मिल जाने के बाद पतिपत्नी ककरोला गांव में किराए पर कमरा ले कर रहने लगे. पति के नौकरी पर चले जाने के बाद चारू दिन भर घर में अकेली रहती थी. घर के कामधाम निपटाने के बाद अकेलेपन से वह ऊब जाती थी. उस ने इस बारे में एक दिन अमन से कहा, ‘‘मैं खाली समय में घर पर पड़ेपड़े बोर हो जाती हूं, इसलिए मैं चाहती हूं कि आसपास कहीं नौकरी कर लूं. इस से चार पैसे घर में आएंगे.’’

चारू पढ़ीलिखी तेजतर्रार युवती थी. इसलिए अमन को उस की तरफ से कोई चिंता नहीं थी. उस ने उसे नौकरी की इजाजत दे दी. साथ ही वह खुद भी यारदोस्तों के माध्यम से उस के लिए नौकरी तलाशने लगा. इस का नतीजा यह निकला कि एक जानने वाले व्यक्ति की  मार्फत रमेशनगर स्थित एक काल सेंटर में चारू को नौकरी मिल गई. नौकरी लगने के बाद चारू में एकदम बदलाव आने शुरू हो गए. उसे जो सेलरी मिलती थी, उस का ज्यादातर हिस्सा वह अपने बननेसंवरने पर खर्च कर देती थी. कभी अमन उस से फिजूलखर्ची रोकने की बात करता तो वह कह देती कि वह जो भी खर्च करती है अपनी कमाई का करती है. पत्नी का जवाब सुन कर अमन को गुस्सा तो आता लेकिन घर का माहौल खराब न हो यह सोच कर वह अपने गुस्से को जाहिर नहीं करता था.

जब पत्नी नौकरी करने घर से निकलती है तो उस की किसी न किसी बाहरी व्यक्ति से बातचीत तो होती ही है. चारू के साथ भी यही  हुआ. औफिस में काम करने वाले कुछ लोगों के साथ उस की दोस्ती हो गई. यह बात अमनदास को पसंद नहीं थी. उस ने चारू को समझाया कि वह केवल अपने काम से मतलब रखे और डयूटी कर के सीधी घर आ जाए. मगर चारू स्वच्छंद विचारों वाली महिला थी, उस ने पति की बातों को गंभीरता से नहीं लिया. चारू के एक दूर के मामा थे दीपक. वह अविवाहित थे. एक दिन चारू ने अपने औफिस में काम करने वाले सुधीर नाम के युवक से अपने मामा दीपक के लिए कोई लड़की बताने को कहा.

उसी औफिस में अनुराग मेहरा नौकरी करता था. अनुराग उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी थाने के अंतर्गत आने वाले संतनगर में रहता था. उस की बहन भी शादी लायक थी. अनुराग ने अपने यार दोस्तों से अपनी बहन के लिए कोई ठीक सा लड़का बताने को कह रखा था. चारू ने जब सुधीर से अपने मामा के लिए लड़की देखने की बात कही तो सुधीर ने उस से कहा, ‘‘अनुराग की बहन भी शादी योग्य है. इस बारे में तुम सीधे उस से बात कर लो. अगर दोनों के बीच बात बन गई तो इस से अच्छा क्या हो सकता है?’’

चारू ने इस बारे में सीधे अनुराग मेहरा से बात की. इस के बाद अनुराग के घर वालों ने दीपक को देखा. उन्हें दीपक का घरपरिवार ठीक लगा. दोनों तरफ से बात तय हो जाने के बाद दीपक की शादी अनुराग की बहन के साथ तय हो गई. शादी हो जाने के बाद चारू और अनुराग के औफिस के संबंध रिश्तेदारी में बदल गए. यह एक साल पहले की बात है. इस के कुछ दिन बाद अनुराग ने नौकरी छोड़ दी और संतनगर इलाके में ही मोबाइल  फोन रिचार्ज करने और उस से संबंधित अन्य सामान बेचने की दुकान खोल ली. इस बीच उस का चारू के घर आनाजाना शुरू हो गया था. दरअसल इस की वजह यह थी कि अनुराग मेहरा अविवाहित था. उस की नजर चारू पर थी. वह मन ही मन चारू को चाहने लगा था.

उधर काम बढ़ने पर अमनदास ज्यादा व्यस्त हो गया था. वह देर रात घर लौटता था. थकामांदा होने की वजह से वह खापी कर सो जाता. पत्नी की शारीरिक जरूरतों की तरफ उस का कोई ध्यान नहीं था. पति की इस बेरुखी से चारू के कदम बहक गए. चारू काफी दिनों से 25 वर्षीय अनुराग मेहरा की आंखों की भाषा को समझ रही थी. वह उस की बातों से उस के मन की चाहत को भांप गई थी. पति की बेरुखी ने उसे अनुराग की तरफ बढ़ने के लिए मजबूर कर दिया. वह अनुराग के साथ बिना किसी झिझक के घूमनेफिरने लगी. एक बार तो वह अनुराग के साथ मथुरा भी घूमने गई. वहां वे दोनों एक होटल में ठहरे. तभी उन के बीच जिस्मानी संबंध भी कायम हो गया.

मथुरा जाने से पहले चारू ने अमनदास को बताया था कि औफिस की तरफ से एक टूर मथुरा जा रहा है. उस टूर में वह भी जा रही है. अमनदास ने भी इस बारे में छानबीन नहीं की. उसे क्या पता था कि वह उस की आंखों में धूल झोंक कर अपने प्रेमी के साथ रंगरलियां मनाने जा रही है. कोई भी महिला जब इस तरह के कदम उठाती है तो वह अपने स्वार्थ में इतनी अंधी हो जाती है कि उसे इज्जतबेइज्जती की भी परवाह नहीं रहती. वह हमेशा अपने स्वार्थ को पूरे करने के तानेबाने बुनती है. चारू ने सोचा था कि उस की हरकतों का पति को पता नहीं लगेगा, इसलिए पति के ड्यूटी पर निकलते ही वह अपने कमरे पर अनुराग को बुला लेती थी. इस के बाद उन की रासलीला शुरू हो जाती थी. काफी दिनों तक यही सिलसिला चलता रहा. इसी दौरान चारू ने नौकरी भी छोड़ दी.

चारू भले ही पति की आंखों में धूल झोंक रही थी लेकिन वह मोहल्ले में रहने वालों की नजरों को धोखा नहीं दे सकती थी. अनुराग उस के पति की गैरमौजूदगी में उस के कमरे पर आ कर घंटों तक रुकता था. मोहल्ले वाले इस का मतलब समझ रहे थे. बहरहाल चारू और अनुराग के संबंधों को ले कर मोहल्ले में कानाफूसी शुरू हो गई. किसी तरह यह बात अमनदास के कानों तक भी पहुंच गई. अमनदास पत्नी पर विश्वास करता था. उसे लोगों की बातों पर यकीन नहीं आया लेकिन इन बातों ने उस के दिल में शक की लहर जरूर दौड़ा दी.

उस ने इस बारे में चारू से बात की तो वह उस के सामने एकदम सती सावित्री सी बन गई. उस ने कहा कि अनुराग हमारा रिश्तेदार है. वह कभीकभार यहां आ जाता है तो पता नहीं लोगों को क्यों जलन होती है. उस ने पति पर विश्वास जमाते हुए कहा कि उस के और अनुराग के बीच ऐसा कुछ भी नहीं है. अमन ने भी उस की बातों पर विश्वास कर लिया. पति के कुछ न कहने पर चारू अपनी चालाकी पर इतरा रही थी. वह मन ही मन खुश थी कि उस ने कितनी आसानी से पति को मूर्ख बना दिया. उस ने पहले की ही तरह अनुराग से मिलनाजुलना जारी रखा. उधर अमन ने भले ही पत्नी से कुछ नहीं कहा था लेकिन उस के दिमाग में शक का कीड़ा कुलबुलाने लगा था. सच्चाई जानने के लिए टाइमबेटाइम अपने कमरे पर आने लगा.

एक दिन दोपहर के समय वह अपने कमरे के करीब पहुंचा ही था तभी उस ने कमरे से अनुराग को निकलते देखा. अनुराग ने उसे नहीं देखा था. कमरे से निकल कर अनुराग सीधे अपनी कार में बैठ कर वहां से चला गया था. अमन कमरे में गया. उसे अचानक आया देख कर चारू चौंक गई. अमन ने उस से पूछा, ‘‘लगता है, अनुराग ने यहां आना बंद कर दिया है.’’

‘‘जब लोग फालतू की बातें करते हैं तो वो यहां क्यों आएगा.’’ चारू तपाक से बोली.

उस की बात सुन कर अमन समझ गया कि चारू उस से झूठ बोल रही है. अनुराग को उस ने घर से निकलते देखा था जबकि चारू ने यह बात उसे नहीं बताई. अपने वहम की पुष्टि के लिए उस ने फिर पूछा, ‘‘मेरे आने से पहले क्या कोई मेहमान यहां आया था?’’

‘‘नहीं तो, किस ने बताया आप को? यहां तो कोई नहीं आया था.’’ वह घबराते हुए बोली.

‘‘तुम झूठ बोल रह हो. यहां अभी अनुराग आया था. तुम्हारी बातों से तो लग रहा है कि मोहल्ले वाले तुम्हारे बारे में जो बातें कह रहे हैं वह सही हैं.’’ अमन झल्लाते हुए बोला.

पति के तेवर देख कर चारू चुप रही. पत्नी को कुछ देर डांटनेडपटने के बाद अमन भी चुप हो गया. लेकिन उस दिन के बाद दोनों के बीच मनमुटाव शुरू हो गया. रोजाना का झगड़ा आम बात हो गई. बात चारू के मायके तक पहुंची तो उस के पिता जयंत कुमार ने चारू को समझाया. लेकिन चारू अनुराग के प्यार में इतनी अंधी हो चुकी थी कि उस ने पिता की बातों को भी हवा में उड़ा दिया. उस ने मन ही मन तय कर लिया था कि वह अनुराग के साथ शादी कर के अलग घर बसाएगी. इस के लिए उस ने अमन से तलाक देने को कहा. लेकिन अमन उसे तलाक देने को राजी नहीं हुआ.

चारू को जब लगा कि सीधी अंगुली से घी नहीं निकलेगा तो उस ने अनुराग से साफ कह दिया कि अब अमन को ठिकाने लगाना ही पड़ेगा. इस के बाद ही हम साथसाथ रह सकते हैं. अनुराग ने जब कहा कि अमन को मार कर मुझे क्या मिलेगा तो चारू तपाक से बोली, ‘‘मैं मिलूंगी. मुझे हासिल करने के लिए तुम्हें यह काम करना ही पड़ेगा.’’

अनुराग भी चारू को बहुत चाहता था. जब उसे लगा कि चारू मानने वाली नहीं है तो उस ने अमन को ठिकाने लगाने की हामी भर दी. अनुराग किराए के हत्यारे से अमन की हत्या कराना चाहता था. लेकिन उस के सामने समस्या यह थी कि वह ऐसे किसी शख्स को नहीं जानता था जो पैसे ले कर यह काम कर सके. तब चारू और अनुराग ने खुद ही अमन को ठिकाने लगाने की योजना तैयार कर ली. 4 फरवरी, 2015 को अचानक अमन के हाथ से चाय का प्याला गिर गया. गर्म चाय से उस का पैर जल गया था. उस की वजह से वह 2 दिन से अपनी ड्यूटी पर नहीं जा पा रहा था. चारू और अनुराग ने इसी का फायदा उठाया.

5 फरवरी की रात को अमन पत्नी की योजना से बेखबर हो कर सो गया. तभी चारू ने अनुराग को फोन कर दिया. अनुराग अपनी सैंट्रो कार नंबर डीएल8सी एफ5776 से अमनदास के कमरे पर पहुंच गया. उस ने कमरे के बाहर पहुंच कर चारू को फोन किया. चारू ने दरवाजा खोल दिया और उसे यह कहते हुए छत पर भेज दिया कि आधी रात के बाद जब वह फोन करे तो छत से नीचे आ जाना. अनुराग छत पर चला गया. चारू पति के गहरी नींद में सो जाने का इंतजार करने लगी. जब वह गहरी नींद सो गया तो चारू ने अनुराग को छत से कमरे में बुला लिया. अनुराग अपने साथ बेसबाल का बैट लाया था. अनुराग ने योजनानुसार बेड पर सोए अमनदास पर बेसबाल बैट से जोरदार वार किया.

सिर पर प्रहार होते ही अमन की चीख निकल गई. तभी चारू ने उस की आंखों में मिर्ची पाउडर झोंक दिया. वह चीखता हुआ आंखें मलने लगा. उसी दौरान अनुराग ने उस के सिर पर कई वार किए. अमन के सिर से खून बहने लगा. वार करते समय बेसबाल के बैट का हत्था टूट गया तो चारू घर में रखी लकड़ी की सोंटी उठा लाई. उस ने उस सोंटी से अमन के सिर पर कई वार किए. कुछ ही देर में अमनदास बेहोश हो गया तो दोनों ने बेड की चादर सहित उसे फर्श पर डाल दिया. चारू कमरे में रखा लोहे का पाइप उठा लाई. चारू ने उस पाइप से पति पर वार किया. बाद में अनुराग अमन के पेट पर बैठ गया और उस का गला दबा दिया.

अमनदास की हत्या करने के बाद उन्होंने लाश उसी बेडशीट में लपेट दी फिर बाथरूम में अपने हाथ वगैरह साफ किए. एक पिलो कवर पर भी खून के ज्यादा धब्बे लगे थे, उस पिलो कवर को भी उन्होंने बेडशीट के साथ लपेट दिया. हाथपैर साफ करने के बाद चारू ने अपने कपड़े वगैरह एक बैग में भर दिए ताकि उसे ठिकाने लगाने के बाद वह भी वहां से खिसक जाए. अनुराग की सैंट्रो कार दरवाजे के बाहर खड़ी थी. दोनों ने चादर में लपेटी अमनदास की लाश सैंट्रो कार की पिछली सीट पर डाल दी. जैसे ही अनुराग ने कार स्टार्ट करनी चाही, वह स्टार्ट नहीं हुई. वह घबरा गया कि अब क्या करे.

उसी समय इत्तफाक से 2 लोग उधर से आ रहे थे, अनुराग ने उन लोगों से कार में धक्का लगवाया. कार स्टार्ट होने पर चारू बैग ले कर कार में अगली सीट पर बैठ गई. बैग ले कर वह अगली सीट पर इसलिए बैठी ताकि पुलिस चेकिंग में उन्हें परेशानी न आए. अमूमन रात में चैकिंग के दौरान गाड़ी में किसी महिला के बैठे होने पर पुलिस यही समझती है कि वह परिवार की ही महिला है. कार ले कर अनुराग पहले बहादुरगढ़ रोड पर गया. लेकिन वहां मौका न मिलने पर वह वापस नजफगढ़ की ओर लौट आया और नंगली डेरी के पास गहरे नाले में चादर से लाश निकाल कर फेंक दी. बाद में चादर और पिलो कवर भी वहीं फेंक दिया.

लाश ठिकाने लगा कर वे दोनों कमरे पर पहुंचे. चारू ने बेड और फर्श पर लगे खून के धब्बे साफ किए. अनुराग भी वहीं सो गया. सुबह होते ही अनुराग अपने घर चला गया. थोड़ी देर बाद चारू ने अंकित नाम के युवक को फोन किया. अंकित नजफगढ़ में ही रहता था और उस के औफिस में ही काम करता था. उस ने अंकित से कहा कि अमन उस से लड़झगड़ कर उसे अकेला छोड़ कर कहीं चला गया है. उस ने उस के पास रहने को कहा. अंकित ने सहानुभूति जताते हुए उसे अपने कमरे पर बुला लिया. चारू बैग में अपने कपड़े आदि भर कर दरवाजे पर ताला लगा कर अंकित के कमरे पर चली गई. इस बीच चारू की अपने घर वालों से फोन पर बात होती रही.

एक दिन चारू अंकित के सामने अपना दुखड़ा रो रही थी तभी उस के पिता जयंत कुमार का फोन आया. फोन पर बात करते समय जयंत कुमार को लगा कि चारू सामान्य नहीं है. उन्होंने उस से घबराहट की वजह पूछी तो चारू ने बता दिया कि ननद के चोट लगी है. उन्हें देखने के लिए वह नोएडा आई हुई है. लेकिन 12 फरवरी को उस ने अपना फोन स्विच्ड औफ कर दिया. 12 फरवरी के बाद जयंत कुमार की बेटी से बात नहीं हुई तो वह परेशान हो गए. उधर अनुराग और चारू ने नाले में अमनदास की जो लाश फेंकी थी वह उस समय तो पानी में डूब गई थी. बाद में वह 12 फरवरी को फूलकर पानी की सतह पर आ गई. नाले में लोगों ने लाश देखी तो उस की सूचना पुलिस को दी.

अनुराग से पूछताछ के बाद पुलिस ने 14 फरवरी, 2015 को ही चारू को अंकित के यहां से गिरफ्तार कर लिया. चारू फोन पर अनुराग से बात करती ही रहती थी. उस ने अनुराग को बता दिया था कि वह नजफगढ़ में अंकित के पास रह रही है. थाने में चारू ने अपने प्रेमी को पुलिस हिरासत में देखा तो वह समझ गई कि अनुराग ने सारी सच्चाई पुलिस को बता दी है इसलिए उस ने भी पुलिस के सामने पति की हत्या की बात कुबूल कर ली. पुलिस ने उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त बेसबाल का बैट, सोंटी और लोहे का पाइप चारू के कमरे से बरामद कर लिया. नाले में फेंकी गई बेडशीट और पिलो कवर बरामद नहीं हो सके. चारू और अनुराग मेहरा को गिरफ्तार कर पुलिस ने द्वारका कोर्ट में मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. मामले की तफ्तीश इंसपेक्टर अनिल कुमार कर रहे हैं. Love Story in Hindi

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित