Family Crime : मां ने ही बेटी को उतारा मौत के घाट, वजह जानकर रह जाएंगे दंग

Family Crime :  कहते हैं पूत कपूत भले बन जाए, लेकिन माता कभी कुमाता नहीं बनती. लेकिन एकलौते बेटे जितेंद्र के अत्याचारों ने आखिर गीता देवी को कुमाता बनने के लिए मजबूर कर ही दिया…

राजस्थान के भरतपुर जिले और उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले की सीमाएं एकदूसरे से सटी हुई हैं. इसी सीमा पर भरतपुर जिले की ग्राम पंचायत जाटौली रथभान का गांव कोलीपुरा बसा हुआ है. इसी साल 21 मार्च की बात है. पौ फट गई थी, लेकिन सूरज निकलने में अभी देर थी. कुछ लोग खेतों की तरफ जा रहे थे, तभी उन्होंने कोलीपुरा गांव के पास एक खेत में एक युवक का शव पड़ा देखा. कुछ लोगों ने शव के पास जा कर देखा. वहां शराब की बोतल, गिलास, नमकीन और पानी के पाउच पड़े थे.

खेत में लाश मिलने की बात जल्दी ही आसपास के गांवों में फैल गई. इस के बाद कोलीपुरा समेत दूसरे गांवों के लोग भी मौके पर जमा हो गए. किसी गांव वाले ने पुलिस को इस की सूचना दे दी. सूचना मिलने पर भरतपुर जिले की चिकसाना थाना पुलिस मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने लाश का मुआयना किया. करीब 25 साल के उस युवक की कनपटी पर गोली लगी हुई थी. लग रहा था कि उसे नजदीक से गोली मारी गई थी. पुलिस ने वहां इकट्ठा लोगों से मृतक युवक के बारे में पूछताछ की. लोगों ने शव देख कर उस की शिनाख्त कर ली. उस का नाम जितेंद्र उर्फ टल्लड़ था. वह मथुरा जिले के ओल गांव के रहने वाले नत्थी सिंह का बेटा था.

एकलौता बेटा था जितेंद्र कोलीपुरा गांव में जिस जगह जितेंद्र की लाश मिली थी, वह जगह उस के गांव से करीब दोढाई किलोमीटर ही दूर थी. उस जगह से कुछ ही दूरी पर शराब का ठेका भी था. पुलिस ने मौके पर मौजद कोलीपुरा गांव के लोगों से पूछताछ की. इस में पता चला कि एक दिन पहले यानी 20 मार्च की शाम को 7-8 बजे के आसपास गांव वालों ने 3-4 युवकों को उस जगह देखा था. गांव वालों से पूछताछ में जो बातें पता चलीं, उस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि जितेंद्र अपने दोस्तों के साथ रात में खाली खेत में शराब पी रहा होगा. इस दौरान किसी बात पर उन दोस्तों में झगड़ा हो गया होगा. झगड़े में ही किसी ने उसे गोली मार दी होगी. गोली पास से मारी गई, जो उस की आंख के नीचे कनपटी पर धंस गई.

लाश की शिनाख्त हो गई थी. मृतक जितेंद्र का गांव भी वहां से ज्यादा दूर नहीं था. इसलिए थानाप्रभारी ने एक सिपाही ओल गांव भेज कर उस के घर वालों को मौके पर बुला लिया. घर वालों ने लाश की शिनाख्त जितेंद्र के रूप में कर दी. उन्होंने पुलिस को बताया कि जितेंद्र कल शाम को आसपास घूमने जाने की बात कह कर घर से निकला था. इस के बाद वह रात को घर नहीं लौटा. रात को उस की तलाश भी की, लेकिन पता नहीं चला. पुलिस ने जितेंद्र के घर वालों से जरूरी पूछताछ की. इस के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भिजवा दी. पोस्टमार्टम कराने के बाद उसी दिन पुलिस ने लाश जितेंद्र के घर वालों को दे दी.

एकलौते जवान बेटे जितेंद्र की लाश देख कर उस की मां गीता दहाड़े मार कर रोने लगी. जितेंद्र की मौत से दुखी दोनों बहनों और बहनोइयों की आंखों से भी आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. जवान मौत का गम तो पूरे गांव को था. फिर वे तो घर के लोग थे. उन का रोना, विलाप करना स्वाभाविक था. मृतक के चाचा राधाचरण ने जितेंद्र की हत्या का मामला भरतपुर जिले के चिकसाना पुलिस थाने में दर्ज करा दिया. थानाप्रभारी रामनाथ सिंह गुर्जर ने इस मामले की जांच खुद अपने हाथ में ले ली. पुलिस ने शुरू की जांच मृतक जितेंद्र के पिता नत्थी सिंह की मौत हो चुकी थी. जितेंद्र शादीशुदा था. करीब 9 महीने पहले उस की शादी ज्योति से हुई थी. ज्योति के साथ वह खुश था.

पतिपत्नी में किसी तरह की कोई अनबन नहीं थी. दोनों का दांपत्य जीवन सुखी था. परिवार में केवल 2 ही प्राणी थे. जितेंद्र की मां गीता और उस की पत्नी ज्योति. पुलिस ने इन दोनों से पूछताछ की, लेकिन न तो कातिलों के बारे में कुछ पता चला और न ही कत्ल के कारण का राज सामने आया. पुलिस ने ओल गांव के लोगों से भी पूछताछ की, लेकिन कोई खास बात पता नहीं चली. यह बात जरूर पता चली कि जितेंद्र के घर उस की 2 शादीशुदा बहनों और बहनोइयों का आनाजाना रहता था. पुलिस ने दोनों बहनोइयों विपिन और सुनील से भी पूछताछ की, लेकिन जितेंद्र की हत्या के बारे में ऐसा कोई सुराग नहीं मिला, जिस से कातिलों तक पहुंचा जा सके.

जांचपड़ताल में मृतक जितेंद्र की किसी से दुश्मनी या खराब चालचलन की बात भी सामने नहीं आई. यह पता चला कि जितेंद्र शराब पीने का आदी था. शराब पी कर वह घर में क्लेश और अपनी मां से मारपीट करता था. जितेंद्र के घर वालों और गांव वालों से पूछताछ में कोई बात पता नहीं चलने पर पुलिस ने ओल गांव से कोलीपुरा तक 2 किलोमीटर के दायरे में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखने का फैसला किया. सीसीटीवी फुटेज में एक पलसर बाइक पुलिस के संदेह के दायरे में आई. पुलिस ने नंबरों के आधार पर इस बाइक के मालिक का पता लगाया. इस के बाद पुलिस ने महेंद्र ठाकुर को पकड़ा. वह मथुरा जिले के फरह थानांतर्गत परखम गांव का रहने वाला है.

किराए के हत्यारे ने उगला राज सख्ती से पूछताछ में महेंद्र ठाकुर ने जितेंद्र की हत्या का राज उगल दिया. उस ने जो बताया, उस से पुलिस को भी एक बार तो भरोसा नहीं हुआ कि कोई मां भी अपने बेटे को मरवा सकती है. पुलिस ने महेंद्र ठाकुर को गिरफ्तार कर लिया. उस से पूछताछ के आधार पर मृतक के बहनोई विपिन को भी गिरफ्तार कर लिया. विपिन मथुरा जिले के फरह थाना इलाके के गांव सनोरा का रहने वाला है. विपिन से पूछताछ के बाद पुलिस ने पहली अप्रैल को जितेंद्र की मां गीता देवी को भी गिरफ्तार कर लिया. इन से पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह एक मां की अपनी कोख से पैदा किए एकलौते बेटे के प्रति नफरत की इंतहा की कहानी है.

मथुरा जिले के ओल गांव के रहने वाले नत्थी सिंह के परिवार में उस की पत्नी गीता देवी के अलावा 2 बेटियां और एक बेटा था. नत्थी के पास खेतीबाड़ी थी. इस से अच्छी गुजरबसर हो जाती थी. घरपरिवार में मौज थी. किसी तरह की कोई कमी नहीं थी. नत्थी सिंह की कुछ साल पहले मृत्यु हो गई. गीता देवी पर परिवार की जिम्मेदारी आ गई. दोनों बेटियां जवान हो रही थीं. इसलिए उसे उन के हाथ पीले करने की ज्यादा फिक्र थी. रिश्तेदारों से पूछ परखने के बाद उस ने अपनी दोनों बेटियों की शादी पास के ही गांव सनोरा में एक ही परिवार में तय कर दी. सनोरा गांव भी मथुरा जिले के फरह थाना इलाके में आता है. गीता ने सनोरा गांव के रहने वाले विपिन से बड़ी बेटी की शादी कर दी और विपिन के छोटे भाई सुनील से छोटी बेटी की शादी कर दी.

बेटियों की शादी के बाद गीता देवी के सिर से एक बोझ सा उतर गया. उस की आधी चिंता खत्म हो गई. दोनों बेटियां पास के ही गांव में ब्याही थीं, इसलिए उन का जब मन होता, मां गीता के पास आ जाती थीं. गीता का दोनों बेटियों से ज्यादा मोह था. इसलिए बेटी या जमाई आते तो वह खुले हाथ से उन पर पैसे खर्च करती थी. उन्हें दान या शगुन देने में कोई कंजूसी नहीं करती थी. कभी कोई दुखतकलीफ होती तो गीता फोन कर दोनों में से किसी भी बेटी को अपने पास बुला लेती. 2-4 दिन रुक कर वे चली जातीं. गीता का मन अपनी बेटियों में ज्यादा लगता था. होने को तो वे जितेंद्र की ही बहनें थी, लेकिन मां का बेटियों के प्रति लाडप्यार देख कर जितेंद्र को कोफ्त होती थी.

शराब पी कर कलह करता था जितेंद्र जितेंद्र शराब पीता था. उस की इस बुरी लत पर मां टोकती थी. बहनें जब घर पर होतीं, तो वे भी जितेंद्र को लताड़ लगाती थीं. मां और बहनों के टोकने पर उसे बुरा लगता था. ऐसा 1-2 बार नहीं, बीसियों बार हुआ. धीरेधीरे जितेंद्र के मन में मां और बहनों के प्रति गुस्सा बढ़ने लगा. शराब पीने के बाद जितेंद्र कई बार अपनी मां से मारपीट करने लगा. पहले तो मां और बहनबहनोइयों ने उसे समझाया, लेकिन उस के दिमाग में यह बात बैठ गई कि मां उस से ज्यादा प्यार दोनों बहनों को करती है. इस से जितेंद्र के मन में हीनभावना बढ़ती गई.

वह मां की बातों पर ऐतराज जताने लगा. मां जब अपनी बेटियों और जमाई को पैसे या कोई सामान देती तो जितेंद्र को बुरा लगता था. वह घर में मां से झगड़ा करता और उसे पीटता था. बुढ़ापे की ओर बढ़ रही गीता बेटे की रोजरोज की पिटाई को आखिर कब तक बरदाश्त करती. घर में हालत यह हो गए कि मां और बेटा दोनों एकदूसरे से नफरत करने लगे. दोनों नफरत की आग में जलते थे. जितेंद्र तो अपनी नफरत की आग को मां की पिटाई कर शांत कर लेता था, लेकिन गीता क्या करती? वह जवान बेटे का मुकाबला भी नहीं कर सकती थी. एक दिन गीता ने अपने बड़े जमाई विपिन को घर बुला कर सारी बातें बताईं. विपिन को पहले से ही अपने साले जितेंद्र की सारी हरकतों के बारे में पता था.

विपिन को यह भी पता था कि जितेंद्र को समझानेबुझाने का कोई फायदा नहीं है. उस ने अपनी सास को कोई न कोई रास्ता निकालने का भरोसा दिया और यह सुझाव दिया कि जितेंद्र की शादी कर दी जाए. हो सकता है शादी के बाद वह सुधर जाए. गीता को भी यह बात ठीक लगी. उस ने रिश्ता ढूंढ कर पिछले साल जितेंद्र की शादी कर दी. ज्योति से उस की शादी धूमधाम से हो गई. गीता ने सोचा था कि शादी के बाद बेटा सुधर जाएगा. शादी का लड्डू खा कर जितेंद्र ज्योति के साथ खुश था. इसी हंसीखुशी के बीच, शादी के कुछ समय बाद ही ज्योति गर्भवती हो गई.

मां ने कराया गर्भपात ज्योति के गर्भवती होने से जितेंद्र खुश था, लेकिन गीता के मन में इस की जरा भी खुशी नहीं थी. बेटे के अत्याचारों से नफरत की आग में सुलगती गीता नहीं चाहती थी कि घर में कोई नया वारिस आए. इसलिए उस ने बहू ज्योति को भरोसे में ले कर उस का ढाई महीने का गर्भपात करा दिया. दरअसल, गीता के पास करीब 50 लाख रुपए की संपत्ति थी. यह संपत्ति वह अपनी दोनों बेटियों को देना चाहती थी. बेटे जितेंद्र को संपत्ति में से फूटी कौड़ी भी नहीं देना चाहती थी. जितेंद्र जब गीता को पीटता था, तो वह कई बार यह बात कह चुकी थी. जितेंद्र को भी इस का अंदेशा था कि पैतृक संपत्ति में से मां उसे कुछ नहीं देगी. इसीलिए वह मां पर अत्याचार और अपनी बहनों का विरोध करता था.

शादी के बाद भी बेटा जितेंद्र नहीं सुधरा. वह अपनी मां पर अत्याचार करता रहा, तो गीता उस से तंग आ गई. उस ने अपने बड़े जमाई विपिन के साथ मिल कर जितेंद्र की रोजरोज की पिटाई से छुटकारा पाने के लिए उस का काम तमाम करने की योजना बनाई. विपिन को इस में अपना फायदा नजर आया. एक तो जितेंद्र मां के लाडप्यार के कारण अपनी बहनों से भी नफरत करता था. इसलिए विपिन ने सोचा कि यदि जितेंद्र नाम का कांटा निकल जाएगा तो नफरत की झाड़ी हमेशा के लिए कट जाएगी. फिर सास गीता भी बेटे की रोज की पिटाई से बच जाएगी. इस के अलावा गीता की संपत्ति भी उस के हाथ में आ जाएगी.

विपिन ने अपनी सास के भरोसे का फायदा उठाया. योजना के तहत, उस ने सास का खाता अपने नजदीकी बैंक में ट्रांसफर करवा लिया और खुद नौमिनी बन गया. गीता के बैंक खाते में करीब 7 लाख रुपए थे. गीता ने विपिन की मदद से इसी साल जनवरी महीने में मथुरा जिले के कुख्यात सुपारी किलर छविराम ठाकुर के गैंग को अपने बेटे जितेंद्र की हत्या की 3 लाख रुपए की सुपारी दे दी. उसी दिन एडवांस के रूप में उसे 50 हजार रुपए भी दे दिए. छविराम ठाकुर ने अपनी गैंग के शार्पशूटर महेंद्र ठाकुर को जितेंद्र की हत्या का जिम्मा सौंप दिया.

मां ही बनी हत्यारिन योजनाबद्ध तरीके से महेंद्र ठाकुर ने शराब पिलाने के बहाने जितेंद्र से दोस्ती की. इस के बाद 20 मार्च की शाम महेंद्र ने जितेंद्र को बुलाया. महेंद्र के साथ एकदो लोग और भी थे. उन्होंने कोलीपुरा गांव के पास ठेके से शराब खरीदी. इन सभी ने पास ही एक खाली खेत में बैठ कर शराब पी. रात करीब 8-साढ़े 8 बजे शराब का दौर खत्म हुआ तो जितेंद्र ने अपने घर जाने की बात कही. महेंद्र ने उसे पकड़ कर वापस बैठा लिया और तमंचा निकाल कर उस की कनपटी पर गोली मार दी. जितेंद्र कुछ बोलता, उस से पहले ही उस के प्राण निकल गए.

सीसीटीवी फुटेज के आधार पर महेंद्र ठाकुर की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने जितेंद्र की हत्या के मामले में उस के बहनोई विपिन और मां गीता को भी गिरफ्तार कर लिया. गीता को अपने ही बेटे की हत्या कराने का कतई मलाल नहीं था. उस ने कहा, ‘‘मैं ने उसे जनम दिया और मैं ने ही उसे मरवा दिया, इस का कोई अफसोस नहीं है. पति की मौत के बाद दोनों बेटियां ही मेरा खयाल रखती थीं. बेटा तो रोज पैसे मांगता और मारपीट करता था. कभी बेटियां मेरे पास आ जातीं, तो वह उन का विरोध करता था.

‘‘वह मेरे बैंक खाते और सारी संपत्ति का अकेला ही मालिक बनना चाहता था. मैं ने उसे कई बार समझाया, लेकिन वह किसी भी कीमत पर दोनों बहनों को स्वीकार नहीं करता था. मैं उस की रोजरोज की कलह से तंग आ गई थी. इसलिए उसे रास्ते से हटाना ही उचित समझा. कोई नया वारिस न आए, इसलिए बहू ज्योति का भी गर्भपात करा दिया.’’ सभी आरोपियों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. Family Crime

hindi crime story : पति के दोस्त की गर्दन कटर से काटकर मार डाला

hindi crime story : कमल और पप्पन मिल कर गांजे की तसकरी करते थे. पप्पन का 2 लाख का माल पकड़ा गया और उसे जेल जाना पड़ा तो उसे शक हुआ कि कमल ने मुखबिरी की है. उस ने यह बात अपनी पत्नी रानी को भी बता दी. फिर रानी ने ऐसा दांव खेला कि कमल तब शिकार बना जब वह…

23 सिंतबर की शाम रात में बदलने को थी. विदिशा के सिविललाइंस थानाप्रभारी कमलेश सोनी रात के समय में अपने थाना क्षेत्र की सुरक्षा व्यवस्था चाकचौबंद करने की कवायद में लगे थे. तभी उन के पास आए एक युवक ने जो जानकारी दी, वह चौंका देने वाली थी. युवक भोपाल का रहने वाला था, जिस के साथ उस की मां सविता सिंधी भी थाने आई थी. दोनों ने टीआई कमलेश सोनी को बताया कि उन के पति कमल सिंधी की हत्या कर दी गई है, जिस का शव हालाली कालोनी में एफसीआई गोदाम के पास रहने वाले पप्पन सिंधी के घर के अंदर पलंग में पड़ा है.

हत्या के मामले की ऐसी सूचना विरली ही होती है. आमतौर पर लाशें नदी, तालाबों या फिर सुनसान जगहों पर मिलती हैं. लेकिन यहां फरियादी खुद लाश के ठिकाने की जानकारी ले कर थाने आया था. बहरहाल, हत्या का ममला गंभीर होता है, सो टीआई सिविललाइंस कमलेश सोनी तत्काल पुलिस टीम के साथ हालाली कालोनी के लिए रवाना हो गए. हालाली कालोनी के उस मकान में लगभग 50 वर्षीय पप्पन सिंधी अपने परिवार के साथ रहता था. पुलिस ने घर के अंदर जा कर देखा. तलाशी ली तो पाया कि कमरे में पड़े पलंग के बौक्स के अंदर कमल सिंधी की लाश बुरी तरह खून से लथपथ हालत में पड़ी थी.

जाहिर है पलंग के बौक्स के अंदर तो उस का कत्ल किया नहीं गया होगा. बौक्स में उसे लाश छिपाने की गरज से डाला गया होगा. इसलिए मौके की बारीकी से जांच करने पर यह साफ हो गया कि फर्श से खून साफ करने की कोशिश की गई थी. यानी कमल की हत्या उसी मकान में की गई थी. सविता ने बताया कि यहां पप्पन की दूसरी पत्नी रानी, उस की बहन मोनिका और एक सहेली अंजलि के अलावा घर का नौकर अभिषेक लोधी रहता था. लेकिन उस वक्त सभी घर से लापता थे. जबकि खुद पप्पन को कुछ समय पहले ही विदिशा पुलिस ने 200 किलो गांजे के साथ पकड़ा था, इसलिए वह जेल में था.

मामला गंभीर था, इसलिए वारदात की सूचना पा कर एसपी विनायक वर्मा, एडिशनल एसपी संजय साहू और सीएसपी विकास पांडे भी एफएसएल की टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. जांच में सामने आया कि मृतक कमल का गला काटने के अलावा उस के सिर पर किसी भारी चीज से चोट की गई थी, जिस से उस का भेजा निकल कर बाहर आ गया था. शुरुआती पूछताछ में मृतक कमल की पत्नी सविता ने बताया कि वे लोग मूलरूप से भोपाल के बैरागड़ में रहते हैं. पप्पन और कमल गहरे दोस्त होने के कारण भाइयों की तरह रहते थे. पप्पन के जेल जाने के बाद कमल कभीकभी पप्पन की पत्नी रानी की मदद करने यहां आता था.

उस ने आगे बताया कि वे आज एक परिचित और अपने बेटे के साथ थाने द्वारा जब्त की गई अपनी गाड़ी सुपुर्दगी में लेने अदालत गए थे. कमल भी उन के साथ था. लेकिन दोपहर के समय कमल ने अचानक कहा कि उसे कुछ याद आ गया है. वह 10-15 मिनट में लौट आएगा. इस के बाद वह अदालत से अपनी कार ले कर कहीं चला गया था. जब कमल काफी देर तक वापस नहीं आया तो उन्होंने उसे फोन लगाया. इस पर कमल ने बताया कि रानी को कुछ पैसों की जरूरत है इसलिए वह पप्पन के घर आया हुआ है. कुछ देर में कोर्ट पहुंच जाएगा. हो चुका था कत्ल इस के बाद भी कमल घंटों बीत जाने पर वापस नहीं आया.

उस का मोबाइल भी स्विच्ड औफ हो गया तो कमल का बेटा अपने पिता की खबर लेने पप्पन के घर पहुंचा. पप्पन के घर पर कोई नहीं था लेकिन घर का दरवाजा खुला पड़ा था. जब वह अंदर पहुंचा तो उसे पलंग के बौक्स में अपने पिता का शव पड़ा मिला, जिस के बाद उस ने अपनी मां को खबर की. मामला अजीब था. लाश पप्पन के घर में मिली इसलिए यह तो लगभग साफ था कि हत्यारे भी इसी घर में मौजूद रहे होंगे. इसलिए शक पप्पन के परिवार वालों पर ही था. लेकिन हत्या करने के बाद लाश को यूं अधखुले पलंग के बौक्स में पटक कर बिना दरवाजा बंद किए भागने की बात पुलिस के गले नहीं उतर रही थी.

सब लोग मृतक की कार में ही बैठ कर फरार हुए थे, जिन की तलाश के लिए एसपी विनायक वर्मा ने एडिशनल एसपी संजय साहू, सीएसपी विकास पांडे और सिविल लाइंस टीआई कमलेश सोनी के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी. टीआई कमलेश सोनी ने जांच शुरू की तो पता चला कि पप्पन के जेल चले जाने के बाद घर में पप्पन की पत्नी रानी की छोटी बहन मोनिका भी उस के साथ आ कर रहने लगी थी. इस के अलावा रानी की एक युवा सहेली अंजलि भी ज्यादातर समय रानी के साथ उस के घर में ही रहती थी. पप्पन का एक नौकर था अभिषेक लोधी. अभिषेक मालिक के जेल जाने के बाद पूरी तरह इसी घर में रहने लगा था.

पूछताछ में टीआई सोनी को इस तरह के संकेत भी मिले द्भिद्बक अभिषेक का बर्ताव मालिक के जेल जाने के बाद घर के मालिक जैसा हो गया था. वहीं घर में रहने वाली रानी, मोनिका और अंजलि से मिलने के लिए कई युवकों का आनाजाना भी बना रहता था. जांच में सामने आया कि मृतक कमल खुद भी पहले पप्पन के साथ मिल कर नशीले पदार्थों की तसकरी का काम करता था. लेकिन पप्पन अकेला पकड़ा गया था. और उस के जेल जाने के बाद कमल अकसर रानी और उस की सहेली अंजलि से मिलने यहां आता रहता था. इन तमाम जानकारियों से टीआई सोनी समझ गए कि पूरे कुएं में भांग घुली है.

इसलिए उन्होंने आरोपियों की धरपकड़ के लिए अपनी टीम के साथ कुछ खास मुखबिर भी तैनात कर दिए, जिस से तीसरे दिन ही सभी आरोपी पकड़े गए. पकड़े गए लोगों में पप्पन की पत्नी रानी, रानी की बहन मोनिका एवं सहेली अंजलि, नौकर अभिषेक लोधी तथा अभिषेक के दोस्त सतीश मेहरा, मोहन उर्फ बिट्टू रघुवंशी और 2 अन्य नाबालिग भी पुलिस गिरफ्त में आ गए. इन के पास से पुलिस ने मृतक कमल की कार, हत्या में प्रयुक्त कटर और फावड़ा भी बरामद कर लिया. सभी आरोपियों को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल तथा अपाचारियों को बाल सुधार गृह भेज दिया गया. जिस के बाद नशे और सैक्स

के काकटेल में डूबी यह कहानी इस प्रकार सामने आई. कमल सिंधी के बारे में बताया जाता है कि वह कभी पप्पन के साथ मिल कर गांजे की तसकरी किया करता था. पप्पन की 2 पत्नियां थीं, जिन में से रानी केवट अभी केवल 25 साल की थी, इसलिए वह अपनी इसी जवान पत्नी के साथ विदिशा की हलाली कालोनी में रहता था. पप्पन और कमल के संबंध कुछ समय पहले उस समय बिगड़े जब पप्पन को विदिशा पुलिस ने 2 क्विंटल गांजे के साथ गिरफ्तार कर लिया. इस मामले में पप्पन तो जेल चला गया, लेकिन उसे शक था कि उस के खिलाफ कमल ने मुखबिरी की थी. इस से न केवल उस का लाखों का माल पकड़ा गया बल्कि उसे जेल भी जाना पड़ा था.

नफरत भी शारीरिक संबंध भी पप्पन को शक था तो फिर उस की पत्नी रानी भी कमल पर शक करने लगी, जिस से वह कमल से रंजिश रखने लगी थी. क्योंकि उस को लगता था कि उस के बुरे दिनों के लिए कमल ही जिम्मेदार है. लेकिन ये नफरत कुछ अलग किस्म की थी. बताया जाता है कि रानी कमल से नफरत तो करती थी, लेकिन साथ ही उस के साथ उस के अवैध संबंध भी बन गए थे. इसलिए कमल अकसर वक्त बिताने रानी के पास आया करता था. रानी काफी खुले विचारों की युवती थी. उस की दोस्ती अपनी जैसी कई युवतियों से थी. इसलिए पप्पन के जेल जाने के बाद रानी की छोटी बहन मोनिका और 20 साल की एक सहेली अंजलि ने रानी के घर को ही अपना ठिकाना बना लिया था.

इस बात का सब से बड़ा फायदा पप्पन का नौकर अभिषेक उठा रहा था. पप्पन के जेल जाने के बाद अपनी शारीरिक जरूरत पूरी करने के लिए रानी अभिषेक का उपयोग करने लगी थी. मालकिन से संबंध बनाने के बाद अभिषेक खुद भी मालिक की तरह बर्ताव करने लगा. मोनिका और अंजलि भी उसी नाव में सवार थीं, जिस में रानी सफर कर रही थी. इसलिए तीनों के बीच कोई परदा नहीं था. रात में रानी, मोनिका और अंजलि एक ही कमरे में सोती थीं, जहां एक कोने में रानी और अभिषेक अंजलि और मोनिका के सामने खुलेआम अपनी कामलीला करते थे. जिस के चलते कभीकभी लाइव शो में इन दोनों के साथ अंजलि भी शामिल हो जाती थी.

कुल मिला कर रानी के घर नौकरी करते हुए अभिषेक की पांचों अंगुलियां घी में थीं. क्योंकि नशे के काले कारोबार में पप्पन ने खूब पैसा कमाया था सो उस के जेल जाने के बाद भी रानी के ऐश में कोई कमी नहीं आई थी. लेकिन पैसा कब तक चलता. रानी, उस की बहन तथा सहेली और अभिषेक चारों मिल कर रोज दारूमुर्गा की दावत उड़ाते थे. इसलिए कुछ ही समय में रानी को पैसों की तंगी होने लगी. रानी अकसर जेल में बंद अपने पति से मिलने जाया करती थी, इसलिए उस ने जब यह बात पप्पन को बताई तो उस ने कहा कि उस ने कमल के कहने पर उस के एक आदमी को बड़ी रकम दी है. इसलिए कमल को बोलो वह उस से पैसा वापस ला कर तुम्हें दे.

रानी और कमल में तो खास किस्म की दोस्ती भी थी, इसलिए रानी को लगा कि कमल उस की मदद करेगा. उस ने कमल को पप्पन की कही बात बता कर पैसा वापस मांगा. कमल ने जिसे पैसा दिलवाया था, वह अब पैसा नहीं लौटा रहा था या पैसों को ले कर कमल के मन में पाप आ गया था, जो भी हो रानी को वह पैसा नहीं मिल पा रहा था. लेकिन ऐसा भी नहीं कि कमल रानी की मदद नहीं कर रहा था. कभीकभी वह घर आ कर कुछ पैसे दे जाता था. लेकिन रानी जानती थी कि कमल जितने पैसे दे कर जाता था, उस से कहीं ज्यादा का वह ऐश भी कर लेता था.

कमल रानी की 20 साल की सहेली अंजलि का तो दीवाना हो गया था जो शराब पी कर प्राय: रानी के घर में ही पड़ी रहती थी. इसलिए कमल की हरकतों से तंग आ चुकी रानी उस पर बारबार पैसों के लिए दबाव बनाने लगी. लेकिन जब उस ने देखा कि कमल पैसा देना नहीं चाहता तो उस ने कमल को खत्म करने की योजना बना कर अभिषेक को इस काम के लिए और लड़कों की मदद लेने को कहा. रानी जानती थी कि कमल शारीरिक रूप से बेहद मजबूत है. उसे काबू करना उन 3 लड़कियों और एकमात्र पुरुष अभिषेक के वश की बात नहीं थी.अभिषेक रानी का गुलाम जैसा था जो दिनरात सेवा करने के अलावा रानी के इशारे पर उस की शारीरिक जरूरत भी पूरी करता था.

इसलिए उस ने अपने दोस्त सतीश मेहरा, मोहन उर्फ बिट्टू रघुवंशी तथा 2 नाबालिग दोस्तों से बात की. इन सभी को यह बात पता थी कि अभिषेक अपनी मालकिन और उस की सहेली के साथ ही सोता है, इसलिए चारों ने एक स्वर में कहा कि इस से उन्हें क्या फायदा होगा. इस पर अभिषेक ने चारों से वादा कर लिया कि काम पूरा होने के बाद वह अंजलि के साथ सभी को एकएक बार ऐश करवा देगा. अंजलि चारों को पसंद थी, इसलिए वे कमल की हत्या में उस का साथ देने के लिए राजी हो गए. इस के बाद रानी ने 23 सिंतबर को कमल का फाइनल हिसाब करने की योजना बना कर दोपहर में उसे फोन लगाया कि उसे कुछ पैसों की सख्त जरूरत है.

उस समय कमल अपनी पत्नी सविता और बेटे के साथ कोर्ट में था, इसलिए वह कुछ देर में लौट कर आने की बात कह कर कोर्ट से अपनी कार ले कर सीधे पप्पन के घर पहुंच गया. कमल की हत्या की तारीख तय हो चुकी थी, इसलिए अभिषेक लोधी पहले से ही अपने चारों दोस्तों को ले कर मकान के ऊपर बन रही मंजिल पर छिप कर बैठा था. जबकि नीचे अंजलि उसे अपने साथ बिस्तर पर ले जाने को तैयार बैठी थी. दरअसल, योजना यही थी कि कमल के आने पर अंजलि उसे अपने साथ बिस्तर पर ले जाएगी और जब कमल पूरी तरह निर्वस्त्र होगा तब बाकी के लोग मिल कर उस की हत्या कर देंगे. कमल पप्पन के घर पहुंचा तो वहां अंजलि और मोनिका के साथ रानी नीचे वाले हिस्से में मौजूद थी. रानी ने कमल से मीठीमीठी बातें कीं और चाय बनाने अंदर चली गई.

चूंकि रानी के घर में किसी तरह का परदा नहीं चलता था, सब एकदूसरे के सामने ही खुलेआम ऐश करते थे. इसलिए जब रानी अंदर चाय बनाने गई तो कमल रानी की छोटी बहन मोनिका के सामने ही अंजलि को ले कर बिस्तर में घुस गया. ऐसे वक्त पर की हत्या अंजलि को पहले ही पता था कि आज कमल को मदहोश करना है, इसलिए वह कमल के साथ जल्द ही गहरी सांसें लेने लगी तो कमल भी पागलों की तरह जल्द से जल्द अपना सफर पूरा करने की कोशिश करने लगा. इसी बीच रानी चाय ले कर बाहर आ गई. उस ने कमल को अंजलि के साथ बुरी तरह हांफते देखा तो वह समझ गई कि अब कमल अंजलि के नशे से जल्द बाहर निकल आएगा.

इसलिए वह चुपचाप कटर ले कर उस बिस्तर पर चढ़ी, जिस पर कमल और अंजलि आपस में गुंथे हुए थे और मौका देख कर उस ने एक झटके में कमल की गरदन कटर से रेत दी. चूंकि उत्तेजना में डूबा कमल उस समय गहरी सांसें ले रहा था, इसलिए गला कटते ही सांस के साथ निकले खून के फव्वारे से अंजलि बुरी तरह भीग गई. इधर गले पर कटर चलते ही कमल समझ गया कि रानी का इरादा ठीक नहीं है, इसलिए गरदन में गहरा घाव होने के बाद भी वह उसी अवस्था में पीछे के दरवाजे की तरफ भागा जो गली में खुलता था. कमल गली से हो कर भागना चाहता था, लेकिन रानी ने उसे मौका नहीं दिया और उस के दरवाजे तक पहुंचने से पहले ही उस पर टूट पड़ी.

यह देख कर उस ने अभिषेक और उस के साथियों को नीचे बुला लिया जो मकान के काम के लिए रखे फावड़े ले कर नीचे आए और सभी ने मिल कर कमल के सिर पर फावड़ों से वार करना शुरू कर दिया, कुछ ही देर में कमल का भेजा सिर से बाहर आ गया और उस की मौत हो गई. यही रानी और उस की टीम चाहती थी. इसलिए कमल की मौत पर सब ने एकदूसरे को बधाई दी. अब लाश को ठिकाने लगाने की जरूरत थी. इस के लिए रात का वक्त तय किया गया. जिस के बाद कमल के शव को पलंग के बौक्स के अंदर पटक कर उन्होंने फर्श पर पड़ा खून साफ किया और फिर रात में लौट कर आने की योजना बना कर सभी वहां से निकल गए.

लेकिन इस से पहले कि वे रात में आ कर कमल की लाश ठिकाने लगाते, सविता की रिपोर्ट पर सिविल लाइन टीआई कमलेश सोनी वहां पहुंच चुके थे. सभी आरोपी फरार हो गए लेकिन एसपी विनायक वर्मा, एडिशनल एसपी संजय साहू और सीएसपी विकास पांडेय के नेतृत्व में सिविल लाइन थाना टीआई कमलेश सोनी की टीम ने 2 नाबालिग आरोपियों सहित सभी 8 आरोपियों को जल्द ही गिरफ्तार कर लिया. hindi crime story

 

सीवर का ढक्कन : क्या हुआ उन मासूमों के साथ

Kahaniyan Crime Story in Hindi : आज तीसरे दिन कर्फ्यू में 4 घंटे की छूट दी गई थी. इंस्पैक्टर राकेश अपनी पुलिस टीम के साथ हालात पर काबू पाने के लिए गश्त पर निकले हुए थे. रास्ते में आम लोगों से ज्यादा रैपिड ऐक्शन फोर्स के जवान नजर आ रहे थे. सड़कों के किनारे लगे अधजले, अधफटे बैनरपोस्टर दंगों की निशानदेही कर रहे थे.

अपनी गाड़ी से आगे बढ़ते हुए इंस्पैक्टर राकेश ने देखा कि एक सीवर का ढक्कन ऊपरनीचे हो रहा था. उन्होंने फौरन गाड़ी रुकवाई. सीवर के करीब पहुंचने पर मालूम हुआ कि अंदर से कोई सीवर के ढक्कन को खोलने की कोशिश कर रहा था. इंस्पैक्टर राकेश ने जवानों से ढक्कन हटाने को कहा.

सीवर का ढक्कन खुलने के बाद जब पुलिस का एक सिपाही अंदर झांका तो दंग रह गया. वहां 2 नौजवान गंदे पानी में उकड़ू बैठे हुए थे. उन के कपड़े कीचड़ में सने हुए थे. उन के चेहरे पर मौत का खौफ साफ नजर आ रहा था.

ढक्कन खुलते ही वे दोनों नौजवान हाथ जोड़ कर रोने लगे. उन के गले से ठीक ढंग से आवाज भी नही निकल पा रही थी. उन में से एक ने किसी तरह हिम्मत कर के कहा, “सर… हमें बाहर निकालें…”

बहरहाल, कीचड़ से लथपथ और बदबू में सने हुए उन दोनों लड़कों को बाहर निकाला गया. इस बीच एंबुलैंस भी वहां आ चुकी थी.

बाहर निकलने के बाद वे दोनों लड़के गहरी गहरी सांसें लेने लगे. दोनों के पैरों को कीड़े मकोड़ों ने काट खाया था, जिन से अभी भी खून बह रहा था. उन के शरीर के कई हिस्सों पर जोंक चिपकी हुई खून पी रही थीं और तिलचट्टे व कीड़े रेंग रहे थे. उन्हें झाड़ने या हटाने की भी ताकत उन में नहीं बची थी.

उन दोनों को जल्दीजल्दी एंबुलैंस में लिटाया गया. एंबुलैंस चलने के पहले ही एक नौजवान बोल पड़ा, “अंदर 2 जने और हैं सर…”

पुलिस टीम को यह समझते देर नहीं लगी कि सीवर में 2 और लोग फंसे हुए हैं. पुलिस का एक जवान सीवर में झांकते हुए बोला, “सर, अंदर 2 डैड बौडी नजर आ रही हैं.”

इंस्पैक्टर राकेश के मुंह से अचानक निकला, “उफ…”

बड़ी मशक्कत से उन दोनों लाशों को बाहर निकाला गया, जो पानी में फूल कर सड़ने लगी थीं. बदबू के मारे नाक में दम हो गया था.

अगले दिन जिंदा बचे उन दोनों लड़कों के बयान से मालूम हुआ कि उन में से एक का नाम महेश और दूसरे का नाम मकबूल है. मरने वाले माजिद और मनोहर थे.

उन में से एक ने बताया, “हम लोग नेताजी का भाषण सुनने आए थे. अभी भाषण शुरू भी नहीं हुआ था कि सभा स्थल के बाहर कहीं से धमाके की आवाज सुनाई पड़ी. पलक झपकते ही अफवाहों का बाजार गरम हो गया और लोगों में भगदड़ मच गई. ‘आतंकवादी हमला’ का शोर सुन कर हम लोग भी भागने लगे.

“लोग अपनी जान बचाने के लिए जिधर सुझाई दे रहा था, उधर भागे जा रहे थे. उसी भगदड़ में कुछ लोग मौके का फायदा उठा कर लूटपाट करने में मसरूफ हो गए. हालात की गंभीरता को देखते हुए घंटेभर में कर्फ्यू का ऐलान होने लगा. पुलिस की गाड़ियों के सायरन चीखने लगे. साथ छूटने के डर से हम चारों ने एकदूसरे का हाथ पकड़ रखा था.

घरों और दुकानों के दरवाजे बंद हो चुके थे. कहां जाएं, किस के घर में घुसें… कौन इस आफत में हमें पनाह देगा, यह समझ में नही आ रहा था. यह सोचते हुए हम चारों दोस्त भागे जा रहे थे कि तभी पीछे गली से गुजर रही पुलिस की गाड़ी से फायरिंग की आवाज आई. ऐसा लगा जैसे वह फायरिंग हम लोगों पर की गई थी.

“हम लोग हांफ भी रहे थे और कांप भी रहे थे. दौड़ने के चक्कर में हम में से किसी एक का पैर सीवर के अधखुले ढक्कन से टकराया. वह लड़खड़ा कर गिरने लगा. हाथ पकड़े होने के चलते हम चारों ही एकसाथ गिर पड़े.

“हम लोगों को तत्काल छिपने के लिए सीवर ही महफूज जगह लगा. इस तरह एक के बाद एक हम चारों लोग सीवर में उतरते चले गए और उस का ढक्कन किसी तरह से बंद कर लिया… और फिर…” इतना कह कर वह लड़का रोने लगा. देखते ही देखते वही सीवर 2 नौजवानों की कब्रगाह जो बन गया था.

Social Crime : अमीर शख्‍स ने 6 लाख के लिए जला दिया भिखारी को

Social Crime : अनूपसिंह अमीर आदमी था, शायद इसलिए उस ने ख्वाब भी अमीरी का देखा. लेकिन वह यह बात भूल गया कि स्वप्निल रश्मियां जिन अंधेरों में ख्वाब बुनती हैं उन का कोई अस्तित्व नहीं होता, क्योंकि उजाले से वह…

5 दिसंबर, 2019 की सुबह करीब 10 बजे की बात है. पंजाब के तरनतारन जिले के थाना हरिके के प्रभारी इंसपेक्टर जरनैल सिंह को फोन पर किसी अज्ञात व्यक्ति से सूचना मिली कि हरिके से पट्टी जाने वाली रोड के किनारे एक लाश पड़ी है, जिस का चेहरा जला हुआ है. लाश के पास कुछ डाक्युमेंट्स पड़े हैं और एक कार भी खड़ी है. यह खबर सुनते ही थानाप्रभारी उसी समय कुछ पुलिसकर्मियों को साथ ले कर घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए. इंसपेक्टर जरनैल सिंह पुलिस टीम के साथ आधे घंटे में मौके पर पहुंच गए. उन्होंने जब मृतक की लाश का मुआयना किया तो वह इतनी ज्यादा जली हुई थी कि उसे पहचानना संभव नहीं था. मृतक का गला भी कटा हुआ था. पेट पर भी कई घाव थे.

लाश के पास ही एक आधार कार्ड, पैन कार्ड, एटीएम कार्ड और फोटो पड़े थे. वहां पड़े डाक्युमेंट पर अनूप सिंह पुत्र तरलोक सिंह, निवासी वाहेगुरु सिटी, चभाल रोड, अमृतसर लिखा था. लाश के पास ही पीबी02सी एल9351 नंबर की शेवरले कार खड़ी थी. कार का ड्राइवर के साइड वाला दरवाजा खुला था. इस आधार पर इंसपेक्टर जरनैल सिंह ने अनुमान लगाया कि कार शायद मृतक की होगी. या फिर हत्यारों ने इसी कार में हत्या कर के लाश यहां ला कर डाली होगी और उस की पहचान छिपाने के लिए चेहरा जला दिया होगा. इंसपेक्टर जरनैल सिंह ने इस घटना की सूचना एसएसपी धु्रव दहिया, एसपी जगजीत सिंह वालिया और डीएसपी कंवलजीत सिंह को भी दे दी. कुछ ही देर में वरिष्ठ अधिकारी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने भी लाश का मुआयना किया.

पुलिस अधिकारियों ने सड़क के किनारे खड़ी कार की जांच की. कार के भीतर से मिट्टी के तेल की एक खाली बोतल मिली. जांच के दौरान कार की पिछली सीट पर खून के सूखे धब्बे मिले. इस का मतलब हत्यारों ने इसी कार में पहले अनूप की गला रेत कर हत्या की और फिर पहचान छिपाने के लिए लाश पर मिट्टी का तेल छिड़क कर उसे आग के हवाले कर दिया. घटनास्थल से मिले तमाम दस्तावेजों में एक मोबाइल नंबर भी बरामद हुआ था. इंसपेक्टर जरनैल सिंह ने जब उस नंबर पर फोन किया तो किसी करनदीप सिंह ने काल रिसीव की. इंसपेक्टर जरनैल सिंह ने करनदीप सिंह से पूछा, ‘‘क्या आप वाहेगुरु सिटी के रहने वाले किसी अनूप सिंह को जानते हैं?’’

‘‘हां सर, जानता हूं,’’ करनदीप सिंह बोला, ‘‘वह मेरे बड़े भाई हैं. लेकिन बात क्या है सर, आप उन के बारे में क्यों पूछ रहे हैं?’’

‘‘दरअसल, तरनतारन जिले की हरिके पट्टी रोड पर एक जली हुई लाश मिली है. लाश के पास से तमाम दस्तावेज भी मिले हैं. उन्हीं दस्तावेजों में यह नंबर मिला है. आप यहां आ कर लाश देख लीजिए कि कहीं वह लाश अनूप की तो नहीं है.’’

‘‘ठीक है सर, मैं अभी पापा को ले कर वहां पहुंचता हूं.’’ कह कर करनदीप सिंह ने काल डिसकनेक्ट कर दी. करनदीप सिंह ने जब यह बात अपने परिवार में बताई तो घर में रोना शुरू हो गया. क्योंकि अनूप एक दिन पहले यानी 4 दिसंबर को कार ले कर घर से निकला था और अभी तक घर नहीं लौटा था. रोतेरोते घर वालों का बुरा हाल हो गया था, क्योंकि नए साल 2020 के फरवरी महीने में अनूप की शादी होनी थी. रहस्य की पर्त से हटी धुंध हरिके अमृतसर से करीब 80-90 किलोमीटर दूर है. इसलिए तरलोक सिंह छोटे बेटे करनदीप सिंह को साथ ले कर तरनतारन के लिए रवाना हो गए और डेढ़ घंटे में घटनास्थल पर जा पहुंचे. एसएसपी धु्रव दहिया को छोड़ कर सभी आला अफसर मौके पर मौजूद थे. करनदीप सिंह ने वहां पड़ी लाश बड़े गौर से देखी लेकिन वह उसे नहीं पहचान सका.

लाश के पास से जो दस्तावेज मिले थे, वे उन्होंने अपने भाई अनूप के बताए. वहां खड़ी शेवरले कार भी उस ने पहचान ली, कार उस के बड़े भाई अनूप की ही थी. कार और दस्तावेजों की पहचान के बाद पुलिस ने अनुमान लगाया कि लाश अनूप सिंह की ही होगी. करनदीप सिंह ने इन सबूतों के आधार पर लाश की पहचान अपने भाई अनूप सिंह के रूप में कर दी. पुलिस ने जब तरलोक सिंह से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि उन का 27 वर्षीय बेटा अनूप कल रात करीब साढ़े 11 बजे इसी कार से दिल्ली के लिए रवाना हुआ था. उस ने कहा था कि वह किसी पार्टी से मिलने जा रहा है. उस के साथ नौकर काका उर्फ करन भी था. हम सब हैरान हैं कि उस की कार यहां कैसे पहुंच गई.

यह कह कर पितापुत्र दोनों रोने लगे. पुलिस ने किसी तरह दोनों को सांत्वना दे कर चुप कराया और कागजी काररवाई पूरी कर ली. काररवाई के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी. इंसपेक्टर जरनैल सिंह ने तरलोक सिंह की तहरीर पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मामला दर्ज कर के जांच शुरू कर दी. अगले दिन यानी 6 दिसंबर को पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई. रिपोर्ट पढ़ कर इंसपेक्टर जरनैल सिंह हैरान रह गए. रिपोर्ट में बताया गया कि मृतक का किसी तेजधार हथियार से गला रेता गया था, जिस से उस की मौत हुई. मृतक के पेट पर भी कई घाव मिले.

डाक्टरों ने मृतक की उम्र करीब 20 वर्ष बताई थी, जबकि उस के घर वालों ने अनूप की उम्र 25 साल बताई थी. इस बात से इंसपेक्टर सिंह हैरान थे. पोस्टमार्टम के बाद लाश पुलिस ने पिता तरलोक सिंह को सौंप दी. मृतक की आयु में अंतर और उस के घर वालों के हावभाव देख कर इंसपेक्टर जरनैल सिंह को थोड़ा अजीब लग रहा था. जिस घर में जवान बेटे की खौफनाक तरीके से मौत हुई हो, वह भी तब जब घर में उस की शादी की तैयारियां चल रही हों, तो उस परिवार पर वज्रपात जैसा माहौल होना चाहिए. लेकिन तरलोक सिंह के परिवार में ऐसा कुछ नहीं दिख रहा था. खटकने वाली यह बात जरनैल सिंह ने एसएसपी धु्रव दहिया और एसपी जगजीत सिंह को बताई. इस पर वरिष्ठ अधिकारियों ने इंसपेक्टर जरनैल सिंह को कुछ दिशानिर्देश दिए. उन्हीं दिशानिर्देशों के आधार पर इंसपेक्टर सिंह ने जांच की दिशा बदल दी.

दरअसल, अनूप कोई छोटामोटा आदमी नहीं था. वह अमृतसर का नामचीन कोल्डड्रिंक व्यवसायी था, करोड़ों के बिजनैस का मालिक. परेशान करने वाला बड़ा सवाल यह था कि कोई उस की हत्या क्यों करेगा?

हत्या से अथवा बाद में किसी बदमाश की ओर से फिरौती की डिमांड भी नहीं की गई थी, जिस से यह साबित होता कि बदमाशों ने फिरौती के लिए अनूप का अपहरण कर के हत्या कर दी होगी. इस से भी बड़ी बात यह थी कि अनूप के साथ उस का पुराना नौकर काका उर्फ करन भी गया था. उस का कहीं पता नहीं था. उस का मोबाइल फोन भी बंद आ रहा था. इन तमाम सवालों को ले कर इंसपेक्टर सिंह परेशान थे और गुत्थियां सुलझाने में लगे थे. इंसपेक्टर जरनैल सिंह ने अनूप के छोटे भाई करनदीप सिंह को टारगेट कर लिया. बातचीत के आधार पर उन्हें ऐसा लग रहा था कि अनूप की मौत के पीछे का राज करनदीप जानता है. उन्होंने करनदीप सिंह को थाने ला कर उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ शुरू की.

खुलने लगा रहस्य करनदीप उन के सवालों के आगे ज्यादा देर नहीं टिक सका. उस ने इंसपेक्टर सिंह के सामने घुटने टेक दिए और रोते हुए पांव पकड़ कर गिड़गिड़ाने लगा, ‘‘मुझे माफ कर दो साहब, रब दी सौं, मैं और झूठ नहीं बोल सकता. जली हुई लाश मेरे भाई की नहीं बल्कि वह एक भिखारी की थी.’’

करनदीप के मुख से हैरान कर देने वाला सच सुन कर इंसपेक्टर सिंह अचंभित रह गए. उन्होंने चौंकने वाले अंदाज में करनदीप से सवाल किया, ‘‘लाश अनूप की नहीं, एक भिखारी की है, तो अनूप कहां है?’’

‘‘अनूप जिंदा है सर,’’ फिर उस ने पूरी घटना विस्तार से बता दी. अनूप के जिंदा होने की बात सुन कर इंसपेक्टर सिंह जल्द से जल्द उसे सब के सामने सहीसलामत पेश करने के लिए उतावले हो गए. क्योंकि पिछले 2 दिनों से मीडिया ने अखबारों में व्यापारी अनूप सिंह की हत्या की खबर छापछाप कर पुलिस की नाक में दम कर दिया था. पुलिस की कार्यप्रणाली पर तरहतरह के सवाल उठा कर उन का काम करना तक दूभर कर रखा था. खैर, इंसपेक्टर जरनैल सिंह ने करनदीप सिंह को हिरासत में ले लिया. उन्होंने अनूप का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा दिया. सर्विलांस के जरिए अनूप की लोकेशन टोहाना, जिला फतेहाबाद, हरियाणा में मिली. इंसपेक्टर सिंह पुलिस टीम और करनदीप को साथ ले कर फतेहाबाद पहुंच गए.

जरनैल सिंह ने अपनी सूझबूझ और दिनरात की मेहनत की बदौलत अनूप सिंह और उस के नौकर काका उर्फ करन को गिरफ्तार कर लिया. यह बात 6 दिसंबर, 2019 की रात की है. इंसपेक्टर जरनैल सिंह दोनों को गिरफ्तार कर के फतेहाबाद से तरनतारन ले आए. अनूप और नौकर काका को सहीसलामत गिरफ्तार करने की जानकारी उन्होंने एसएसपी धु्रव दहिया और एसपी जगजीत सिंह वालिया को दे दी. आरोपियों को गिरफ्तार किए जाने की जानकारी मिलते ही एसपी जगजीत सिंह वालिया हरिके थाना पहुंच गए. उन्होंने तीनों आरोपियों अनूप सिंह, करनदीप सिंह और काका उर्फ करन से अलगअलग पूछताछ की. पूछताछ में अनूप ने जो चौंकाने वाली जानकारी दी, उसे सुन कर एसपी वालिया भी हैरत में रह गए.

7 दिसंबर, 2019 को एसपी जगजीत सिंह वालिया ने थाना परिसर में पत्रकारवार्ता का आयोजन कर जब अनूप सिंह और उस के नौकर को पत्रकारों के सामने पेश किया तो सभी आश्चर्यचकित रह गए. खुद की हत्या की साजिश रचने वाले व्यापारी अनूप से जब पत्रकारों ने झूठी कहानी रचने के बारे में पूछा तो उस ने चौंकाने वाला ऐसा सच बताया, जिसे सुन कर सभी का कलेजा दहल गया था. 27 वर्षीय अनूप सिंह अमृतसर के झब्बाल रोड पर स्थित वाहेगुरु सिटी कालोनी का मूल निवासी है. उस के पिता का नाम तरलोक सिंह है. 3 भाईबहनों में वह सब से बड़ा है. उस से छोटी बहन और एक भाई करनदीप सिंह है. तरलोक सिंह वाहेगुरु सिटी कालोनी के सब से अमीर व्यक्ति हैं. उन के बड़े बेटे अनूप सिंह की शहर के शक्तिनगर में कोल्डड्रिंक्स एजेंसी है, जिस का गोदाम अन्नगढ़ में है.

यह बिजनैस अनूप सिंह का है, जिसे पिता तरलोक सिंह और छोटा भाई करनदीप सिंह संभालते थे. सालों की कड़ी मेहनत और लगन के बाद कोल्डड्रिंक्स के बिजनैस से अनूप ने इतना कमा लिया था कि उस के पास जरूरत की सभी भौतिक वस्तुओं के साथसाथ आलीशान कोठी थी. वह शेवरले कार से चलता था. पापा और छोटे भाई के लिए उस ने दूसरी कारें दे रखी थीं. घर में कई नौकरचाकर थे. अनूप का रहनसहन किसी राजामहाराजा से कम नहीं था. अच्छे से अच्छा खाना, ब्रांडेड कपड़े पहनना, लग्जरी कार और स्पोर्ट्स बाइक चलाना उस के शगल थे. बिजनैस की आय से उस ने अपने लिए 6 करोड़ रुपए की जीवनबीमा पौलिसी ले रखी थी. इस के अलावा उस ने लगभग 75 लाख रुपए के कर्ज का भी बीमा कराया हुआ था. यह कर्ज उस की मौत के बाद ही माफ हो सकता था.

जितना बड़ा आदमी उतना ही मोटा लालच अनूप अपने व्यापारी दोस्तों से तकरीबन एक करोड़ रुपए का कर्ज ले चुका था. कर्ज की रकम लौटाने को ले कर वह काफी परेशान था. लेनदारों के तकाजे दिनबदिन बढ़ते जा रहे थे. इस से अनूप बुरी तरह परेशान था. भारीभरकम कर्ज से निजात पाने का उसे कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा था. 19 जनवरी, 2020 को बहन की शादी और 14 फरवरी, 2020 को खुद अनूप की शादी की तारीखें निश्चित हो गई थीं. दोनों की शादियों में लाखों रुपए खर्च होने थे. रुपयों के इंतजाम को ले कर अनूप और उस के पिता तरलोक सिंह परेशान थे. अनूप दिनरात यही सोचता रहता था कि जल्द से जल्द कैसे इन कर्जों से मुक्ति पाए.

इन्हीं परेशानियों के चलते अनूप के दिमाग में एक खौफनाक विचार आया. यह खौफनाक विचार था खुद की फरजी मौत का नाटक करने का. यह विचार आते ही अनूप का चेहरा खिल उठा और वह खुद को तनावमुक्त महसूस करने लगा. अनूप ने जीवन बीमा के 6 करोड़ रुपयों को ले कर योजना बनाई. वह जानता था कि उस के मरते ही लिया गया कर्ज पूरी तरह माफ हो सकता है और जीवन बीमा के 6 करोड़ रुपए भी मिल सकते हैं. बीमे की उस बडी़ रकम से वह अपनी पहचान बदल कर कहीं और जा कर ठाठ से रह सकता था. अनूप ने इस खतरनाक योजना को अमलीजामा पहनाने की कवायद शुरू कर दी. वह जानता था कि यह काम उस के अकेले के वश का नहीं है, इसलिए उस ने इस योजना में अपने छोटे भाई करनदीप और सब से पुराने और वफादार नौकर काका उर्फ करन को शामिल कर लिया.

अनूप ने योजना इतनी फूलप्रूफ बनाई थी कि इस की भनक उस के मांबाप या दादी और बहन तक को नहीं लग पाई. यह दिसंबर 2019 के पहले सप्ताह की बात है. योजना के अनुसार, अनूप को अपनी कदकाठी से मेल खाते एक ऐसे इंसान की जरूरत थी जो अकेला हो, जिस की मौत के बाद आगेपीछे रोने वाला कोई न हो. उस ने किसी ऐसे व्यक्ति की जोरशोर से तलाश शुरू कर दी. आखिरकार उस की तलाश तरनतारन जिले में जा कर पूरी हुई. उस ने बलि का बकरा बनाने के लिए वहां के एक भिखारी को चुना, जो सड़कों पर भीख मांग कर अपना पेट भरता था. इत्तफाक से उस की कदकाठी और शरीर की लंबाई अनूप जैसी थी.

अनूप की खोज पूरी हो चुकी थी. वह योजना को जल्द से जल्द पूरी कर लेना चाहता था. 25 दिसंबर, 2019 की रात साढ़े 11 बजे अनूप अपनी शेवरले कार पीबी02सी एल9351 ले कर दिल्ली के लिए रवाना हुआ. उस ने मांबाप से झूठ बोलते हुए कहा कि वह एक पार्टी से मिलने दिल्ली जा रहा है. घर से निकलने से पहले अनूप ने अपना आधार कार्ड, पैन कार्ड, एटीएम कार्ड, रस्सी, उस्तरा, दरांती, कुल्हाड़ी, अंगरेजी शराब की बोतल, प्लास्टिक के गिलास और एक लीटर वाली प्लास्टिक की बोतल में मिट्टी का तेल भर कर कार में पिछली सीट के नीचे छिपा दिया था. अनूप जब भी दिल्ली जाता था, अकेला ही जाता था. लेकिन इस बार उस ने नौकर करन को साथ ले लिया था. यह देख कर पिता तरलोक सिंह को कुछ अजीब लगा, लेकिन वह कुछ सोच कर चुप रह गए थे.

कार खुद अनूप चला रहा था. कार ले कर अनूप जब घर से निकला तो उस के पीछे करनदीप भी अपनी कार ले कर चल दिया. करनदीप ने पापा से कहा था कि भाई को कुछ दूर छोड़ कर लौट आऊंगा. बेटे की बात सुन कर तरलोक सिंह कुछ नहीं बोले और मुसकरा कर मुख्य गेट बंद कर के अंदर कमरे में आ गए थे. अनूप योजना के मुताबिक चल रहा था. वह दिल्ली जाने के बजाए तरनतारन की ओर निकला. रात करीब 12 बजे के आसपास वह तरनतारन के हरिके इलाके में पहुंचा तो ठंड से सिकुड़ा एक भिखारी सड़क के बाईं ओर बैठा मिल गया. यह वही भिखारी था जिसे अनूप ने कुछ दिनों पहले तलाश किया था.

उसे देखते ही अनूप ने कार रोक दी. करनदीप ने भी उसी के पीछे अपनी कार लगा दी और दरवाजा खोल कर बाहर आ गया. और भाई के पास जा पहुंचा. भिखारी को अनूप ने भावनात्मक प्रलोभन दे कर अपनी कार में बैठा लिया. नौकर करन ने प्लास्टिक के 4 गिलासों में अंगरेजी शराब उड़ेल कर सभी को बांट दी. अंगरेजी शराब देख कर भिखारी के मुंह से लार टपकने लगी. उसे क्या पता था कि यही शराब उस की जिंदगी का आखिरी जाम साबित होगी. शराब पिलाने वाला कोई दानीदाता नहीं, बल्कि साक्षात यमराज है.

थोड़ी देर बाद जब भिखारी के सिर पर शराब का नशा सवार हुआ तो उस ने अपना रंग दिखाया. तभी अनूप ने सीट के नीचे से उस्तरा निकाल कर उस के गले पर चला दिया. उस समय करन और करनदीप सिंह भिखारी को हाथों से दबोचे हुए थे. अचानक हमले से भिखारी डर गया और उन की पकड़ से छूटने के लिए संघर्ष करने लगा. अनूप ने देखा कि मामला बिगड़ रहा है तो उस ने दरांती निकाली और उस के पेट में कई वार कर के उसे मौत के घाट उतार दिया. तीनों ने उसे हिलाडुला कर देखा, वह मर चुका था. उस के बाद उन तीनों ने उसे कार से बाहर निकाला. अनूप के कहने पर नौकर करन ने मिट्टी का तेल उस के ऊपर उड़ेल दिया और आग लगा दी.

भिखारी की लाश को अनूप की लाश साबित करने के लिए कार के पास नीचे सड़क पर अनूप ने अपना आधार कार्ड, पैन कार्ड और एटीएम कार्ड डाल दिए ताकि आसानी से यह साबित हो सके कि मरने वाला अमृतसर का व्यापारी अनूप सिंह है. यह साबित होेते ही जीवन बीमा के 6 करोड़ रुपए उस के घर वालों को मिल जाते. अपनी शेवरले कार भी लाश के पास खड़ी कर के तीनों करनरदीप की कार से भाग निकले. खुद की फरजी मौत की मसालेदार कहानी गढ़ कर नौकर काका उर्फ करन को साथ ले कर अनूप हरियाणा के फतेहाबाद के टोहाना स्थित अपने एक दोस्त के घर पहुंच गया. उस ने अपना मोबाइल फोन बंद कर दिया था. साथ ही उस ने अपने बाल और दाढ़ी कटवा दी थी ताकि कोई उसे आसानी से न पहचान सके.

उधर करनदीप जब देर रात घर पहुंचा तो दरवाजा पिता तरलोक सिंह ने खोला. उस के चेहरे की रंगत उड़ी देख उन्होंने पूछा तो करनदीप बात टाल गया. तरलोक सिंह ने भी बेटे की बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. उन्हें क्या पता था कि 6 करोड़ रुपए के लालच में पड़ कर उन के बेटे किसी बड़ी साजिश को अं%E

Rajasthan Crime : ठेकदारों को पैसा नहीं दिया तो कर लिया अपहरण

Rajasthan Crime : नैचुरल पावर एशिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को बाड़मेर के गांव उत्तरलाई में सोलर प्लांट लगाना था. इस के लिए नैचुरल पावर कंपनी ने बंगलुरु की सबलेट कंपनी को ठेका दिया, जो काम अधूरा छोड़ कर भाग गई. प्लांट की स्थिति जानने के लिए जब हैदराबाद से कंपनी के एमडी के. श्रीकांत रेड्डी अपने दोस्त सुरेश रेड्डी के साथ बाड़मेर आए तो…    

हैदराबाद निवासी के. श्रीकांत रेड्डी नैचुरल पावर एशिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर थे. हैदराबाद की यह कंपनी भारत के विभिन्न राज्यों में सरकारी कामों का ठेका ले कर काम करती है. इस कंपनी को राजस्थान के जिला बाड़मेर के अंतर्गत आने वाले उत्तरलाई गांव के पास सोलर प्लांट के निर्माण कार्य का ठेका मिला था. बड़ी कंपनियां प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए छोटीछोटी कंपनियों को अलगअलग काम का ठेका दे देती हैं. नैचुरल पावर एशिया प्रा. लि. कंपनी ने भी इस सोलर प्लांट प्रोजेक्ट का टेंडर सबलेट कर दिया था

बंगलुरू की इस सबलेट कंपनी ने बाड़मेर और स्थानीय ठेकेदारों को प्लांट का कार्य दे दिया. ठेकेदार काम करने में जुट गएतेज गति से काम चल रहा था कि इसी बीच नैचुरल पावर एवं सबलेट कंपनी के बीच पैसों को ले कर विवाद हो गया. ऐसे में सबलेट कंपनी रातोंरात काम अधूरा छोड़ कर स्थानीय ठेकेदारों का लाखों रुपयों का भुगतान किए बिना भाग खड़ी हुई. स्थानीय ठेकेदारों को जब पता चला कि सबलेट कंपनी उन का पैसा दिए बगैर भाग गई है तो उन के होश उड़ गए क्योंकि सबलेट कंपनी ने इन ठेकेदारों से करोड़ों का काम करवाया था, मगर रुपए आधे भी नहीं दिए थे. स्थानीय ठेकेदार नाराज हो गए. उन्होंने एमइएस के अधिकारियों से मिल कर अपनी पीड़ा बताई. एमइएस को इस सब से कोई मतलब नहीं था.

मगर जब काम बीच में ही रुक गया तो एमईएस ने मूल कंपनी नैचुरल पावर एशिया प्रा. लि. से कहा कि वह रुके हुए प्रोजेक्ट को पूरा करे. तब कंपनी ने अपने एमडी के. श्रीकांत रेड्डी को हैदराबाद से उत्तरलाई (बाड़मेर) काम देखने पूरा करने के लिए भेजा. के. श्रीकांत रेड्डी अपने मित्र सुरेश रेड्डी के साथ उत्तरलाई (बाड़मेर) पहुंच गए. यह बात 21 अक्तूबर, 2019 की है. वे दोनों राजस्थान के उत्तरलाई में पहुंच चुके थे. जब ठेकेदारों को यह जानकारी मिली तो उन्होंने अपना पैसा वसूलने के लिए दोनों का अपहरण कर के फिरौती के रूप में एक करोड़ रुपए वसूलने की योजना बनाई.

ठेकेदारों ने अपने 3 साथियों को लाखों रुपए का लालच दे कर इस काम के लिए तैयार कर लिया. यह 3 व्यक्ति थे. शैतान चौधरी, विक्रम उर्फ भीखाराम और मोहनराम. ये तीनों एक योजना के अनुसार 22 अक्तूबर को के. श्रीकांत रेड्डी और सुरेश रेड्डी से उन की मदद करने के लिए मिलेश्रीकांत रेड्डी एवं सुरेश रेड्डी मददगारों के झांसे में गए. तीनों उन के साथ घूमने लगे और उसी शाम उन्होंने के. श्रीकांत और सुरेश रेड्डी का अपहरण कर लिया. अपहर्त्ताओं ने सुनसान रेत के धोरों में दोनों के साथ मारपीट की, साथ ही एक करोड़ रुपए की फिरौती भी मांगी

अपहर्त्ताओं ने उन्हें धमकाया कि अगर रुपए नहीं दिए तो उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा. अनजान जगह पर रेड्डी दोस्त बुरे फंस गए थे. ऐसे में क्या करें, यह बात उन की समझ में नहीं रही थी. दोनों दोस्त तेलुगु भाषा में एकदूसरे को तसल्ली दे रहे थेचूंकि अपहर्त्ता केवल हिंदी और राजस्थान की लोकल भाषा ही जानते थे, इसलिए रेड्डी बंधुओं की भाषा नहीं समझ पा रहे थे. यह बात रेड्डी बंधुओं के लिए ठीक थी. इसलिए वे अपहर्त्ताओं के चंगुल से छूटने की योजना बनाने लगेअपहर्त्ता मारपीट कर के दिन भर उन्हें इधरउधर रेत के धोरों में घुमाते रहे. इस के बाद एक अपहर्त्ता ने के. श्रीकांत रेड्डी से कहा, ‘‘एमडी साहब अगर आप एमडी हो तो अपने घर वालों के लिए हो, हमारे लिए तो सोने का अंडा देने वाली मुरगी हो.

इसलिए अपने घर पर फोन कर के एक करोड़ रुपए हमारे बैंक खाते में डलवा दो, वरना आप की जान खतरे में पड़ सकती है.’’ कह कर उस ने फोन के श्रीकांत रेड्डी को दे दिया. श्रीकांत रेड्डी बहुत होशियार और समझदार व्यक्ति थे. वह फर्श से अर्श तक पहुंचे थे. उन्होंने गरीबी देखी थी. गरीबी से उठ कर वह इस मुकाम तक पहुंचे थेश्रीकांत करोड़पति व्यक्ति थे. वह चाहते तो करोड़ रुपए अपहर्त्ताओं को फिरौती दे कर खुद को और अपने दोस्त सुरेश रेड्डी को मुक्त करा सकते थे, मगर वह डरपोक नहीं थे. वह किसी भी कीमत पर फिरौती दे कर अपने दोस्त और खुद की जान बचाना चाहते थे

अपहत्ताओं ने अपने मोबाइल से के. श्रीकांत रेड्डी के पिता से उन की बात कराई. श्रीकांत रेड्डी ने तेलुगु भाषा में अपने पिताजी से बात कर कहा, ‘‘डैडी, मेरा और सुरेश का उत्तरलाई (बाड़मेर) के 3 लोगों ने अपहरण कर लिया है और एक करोड़ रुपए की फिरौती मांग रहे हैं. आप इन के खाते में किसी भी कीमत पर रुपए मत डालना

‘‘जिस बैंक में मेरा खाता है, वहां के बैंक मैनेजर से मेरी बात कराना. आप चिंता मत करना, ये लोग हमारा बाल भी बांका नहीं करेंगे. हमें मारने की सिर्फ धमकियां दे सकते हैं ताकि रुपए ऐंठ सकें. आप बैंक जा कर मैनेजर से मेरी बात कराना. बाकी मैं देख लूंगा.’’

इस स्थिति में भी उन्होंने धैर्य और साहस से काम लिया. उन्होंने नैचुरल पावर कंपनी के अन्य अधिकारियों को भी यह बात बता दी. इस के बाद वह कंपनी के अधिकारियों के साथ हैदराबाद की उस बैंक में पहुंचे, जहां श्रीकांत रेड्डी का खाता थाश्रीकांत रेड्डी ने बैंक मैनेजर को मोबाइल पर सारी बात बता कर कहा, ‘‘मैनेजर साहब, मैं अपने दोस्त के साथ बाड़मेर में कंपनी का काम देखने आया था, लेकिन मददगार बन कर आए 3 लोगों ने हमारा अपहरण कर लिया और एक करोड़ की फिरौती मांग रहे हैं. आप से मेरा निवेदन है कि आप 25 लाख रुपए का आरटीजीएस करवा दो

‘‘लेकिन ध्यान रखना कि यह धनराशि जारी करते ही तुरंत रद्द हो जाए. ताकि अपहर्त्ताओं को धनराशि खाते में आने का मैसेज उन के फोन पर मिल जाए लेकिन बदमाशों को रुपए नहीं मिले.’’ उन्होंने यह बात तेलुगु और अंग्रेजी में बात की थी, जिसे अपहर्त्ता नहीं समझ सके. बैंक मैनेजर ने ऐसा ही किया. बदमाशों से एमडी के पिता और कंपनी के अधिकारी लगातार बात करते रहे और झांसा देते रहे कि जैसे ही 75 लाख रुपए का जुगाड़ होता है, उन के खाते में डाल दिए जाएंगे. चूंकि एक अपहर्त्ता के फोन पर खाते में 25 लाख रुपए जमा होने का मैसेज गया था इसलिए वह मान कर चल रहे थे कि उन्हें 25 लाख रुपए तो मिल चुके हैं और बाकी के 75 लाख भी जल्द ही मिल जाएंगे

अपहर्त्ताओं ने के. श्रीकांत रेड्डी से स्टांप पेपर पर भी लिखवा लिया था कि वह ये पैसा ठेके के लिए दे रहे हैं. अपहर्त्ता अपनी योजना से चल रहे थे, वहीं एमडी, उन के पिता और कंपनी मैनेजर अपनी योजना से चल रहे थे. उधर नैचुरल पावर कंपनी के अधिकारी ने 24 अक्तूबर, 2019 को हैदराबाद से बाड़मेर पुलिस कंट्रोल रूम को कंपनी के एमडी के. श्रीकांत रेड्डी और उन के दोस्त सुरेश रेड्डी के अपहरण और अपहत्ताओं द्वारा एक करोड़ रुपए फिरौती मांगे जाने की जानकारी दे दी. कंपनी अधिकारी ने वह मोबाइल नंबर भी पुलिस को दे दिया, जिस से अपहर्त्ता उन से बात कर रहे थे

बाड़मेर पुलिस कंट्रोल रूम ने यह जानकारी बाड़मेर के एसपी शरद चौधरी को दी. एसपी शरद चौधरी ने उसी समय बाड़मेर एएसपी खींव सिंह भाटी, डीएसपी विजय सिंह, बाड़मेर थाना प्रभारी राम प्रताप सिंह, थानाप्रभारी (सदर) मूलाराम चौधरी, साइबर सेल प्रभारी पन्नाराम प्रजापति, हैड कांस्टेबल महीपाल सिंह, दीपसिंह चौहान आदि की टीम को अपने कार्यालय बुलायाएसपी शरद चौधरी ने पुलिस टीम को नैचुरल पावर कंपनी के एमडी और उन के दोस्त का एक करोड़ रुपए के लिए अपहरण होने की जानकारी दी उन्होंने अतिशीघ्र उन दोनों को सकुशल छुड़ाने की काररवाई करने के निर्देश दिए. उन्होंने टीम के निर्देशन की जिम्मेदारी सौंपी एएसपी खींव सिंह भाटी को.

इस टीम ने तत्काल अपना काम शुरू कर दिया. साइबर सेल और पुलिस ने कंपनी के मैनेजर द्वारा दिए गए मोबाइल नंबरों की काल ट्रेस की तो पता चला कि उन नंबरों से जब काल की गई थी, तब उन की लोकेशन सियाणी गांव के पास थीबस, फिर क्या था. बाड़मेर पुलिस की कई टीमों ने अलगअलग दिशा से सियाणी गांव की उस जगह को घेर लिया जहां से अपहत्ताओं ने काल की थी. पुलिस सावधानीपूर्वक आरोपियों को दबोचना चाहती थी, ताकि एमडी और उन के साथी सुरेश को सकुशल छुड़ाया जा सके

पुलिस के पास यह जानकारी नहीं थी कि अपहर्त्ताओं के पास कोई हथियार वगैरह है या नहीं? पुलिस टीमें सियाणी पहुंची तो अपहर्ता सियाणी से उत्तरलाई होते हुए बाड़मेर पहुंच गए. आगेआगे अपहर्त्ता एमडी रेड्डी और उन के दोस्त सुरेश रेड्डी को गाड़ी में ले कर चल रहे थे. उन के पीछेपीछे पुलिस की टीमें थींएसपी शरद चौधरी के निर्देश पर बाड़मेर शहर और आसपास की थाना पुलिस ने रात से ही नाकाबंदी कर रखी थी. अपहर्त्ता बाड़मेर शहर पहुंचे और उन्होंने बाड़मेर शहर में जगहजगह पुलिस की नाकेबंदी देखी तो उन्हें शक हो गया. वे डर गए. वे लोग के. श्रीकांत रेड्डी और सुरेश रेड्डी को ले कर सीधे बाड़मेर रेलवे स्टेशन पहुंचे. बदमाशों ने दोनों अपहर्त्ताओं को बाड़मेर रेलवे स्टेशन पर वाहन से उतारा. तभी पुलिस ने घेर कर 3 अपहर्त्ताओं शैतान चौधरी, भीखाराम उर्फ विक्रम एवं मोहनराम को गिरफ्तार कर लिया.

शैतान चौधरी और भीखाराम उर्फ विक्रम चौधरी दोनों सगे भाई थे. पुलिस तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर थाने ले आई. अपहरण किए गए हैदराबाद निवासी नैचुरल पावर एशिया प्रा. लि. कंपनी के एमडी के. श्रीकांत रेड्डी और उन के दोस्त सुरेश रेड्डी को भी थाने लाया गयापुलिस ने आरोपी अपहरण कार्ताओं के खिलाफ अपहरण, मारपीट एवं फिरौती का मुकदमा कायम कर पूछताछ कीश्रीकांत रेड्डी ने बताया कि उत्तरलाई के पास सोलर प्लांट निर्माण का ठेका उन की नैचुरल पावर एशिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी हैदराबाद को मिला था

उन की कंपनी ने यह काम सबलेट कंपनी बंगलुरु को दे दिया. सबलेट कंपनी ने स्थानीय ठेकेदारों को पावर प्लांट का कार्य ठेके पर दिया. कार्य पूरा होने से पूर्व सबलेट कंपनी और नैचुरल पावर एशिया कंपनी में पैसों के लेनदेन पर विवाद हो गया. सबलेट कंपनी ने जितने में ठेका नैचुरल कंपनी से लिया था, उतना पेमेंट नैचुरल कंपनी ने सबलेट कंपनी को कर दिया. मगर काम ज्यादा था और पैसे कम थे. इस कारण सबलेट कंपनी ने और रुपए मांगेनैचुरल पावर कंपनी ने कहा कि जितने रुपए का ठेका सबलेट को दिया था, उस का पेमेंट हो चुका है. अब और रुपए नैचुरल कंपनी नहीं देगी

तब सबलेट कंपनी सोलर प्लांट का कार्य अधूरा छोड़ कर भाग गई. सबलेट कंपनी ने स्थानीय ठेकेदारों को जो ठेके दिए थे, उस का पेमेंट भी सबलेट ने आधा दिया और आधा डकार गई. तब एमइएस ने मूल कंपनी नैचुरल पावर एशिया प्रा. लि. के एमडी को बुलाया. मददगार बन कर शैतान चौधरी, भीखाराम उर्फ विक्रम चौधरी और मोहनराम उन से मिलेउन के लिए यह इलाका नया था. इसलिए उन्हें लगा कि वे अच्छे लोग होंगे, जो मददगार के रूप में उन्हें साइट वगैरह दिखाएंगे. मगर ये तीनों ठेकेदारों के आदमी थे, जो दबंग और आपराधिक प्रवृत्ति के थे

इन्होंने ही उन का अपहरण कर एक करोड़ रुपए की फिरौती मांगी. एमडी रेड्डी ने इस अचानक आई आफत से निपटने के लिए अपनी तेलुगु और अंग्रेजी भाषा का प्रयोग कर के सिर्फ स्वयं को बल्कि अपने दोस्त को भी बचा लिया. पुलिस अधिकारियों ने थाने में तीनों अपहर्त्ताओं से पूछताछ की. पूछताछ में आरोपियों ने अपने अन्य साथियों के नाम बताए, जो इस मामले में शामिल थे और जिन के कहने पर ही इन तीनों ने एमडी और उन के दोस्त का अपहरण कर एक करोड़ की फिरौती मांगी थी. तीनों अपहर्त्ताओं से पूछताछ के बाद पुलिस ने 25 अक्तूबर, 2019 को अर्जुनराम निवासी बलदेव नगर, बाड़मेर, कैलाश एवं कानाराम निवासी जायड़ु को भी गिरफ्तार कर लिया. इस अपहरण में कुल 6 आरोपी गिरफ्तार किए गए थे. आरोपियों को थाना पुलिस ने 26 अक्तूबर 2019 को बाड़मेर कोर्ट में पेश कर के उन्हें रिमांड पर ले लिया.

पूछताछ में आरोपियों ने स्वीकार किया कि उन लोगों का ठेकेदारी का काम है. कुछ ठेकेदार थे और कुछ ठेकेदारों के मुनीम कमीशन पर काम ले कर करवाने वाले. अर्जुनराम, कैलाश एवं कानाराम छोटे ठेकेदार थे, जो ठेकेदार से लाखों रुपए का काम ले कर मजदूर और कारीगरों से काम कराते थेसबलेट कंपनी ने जिन बड़े ठेकेदारों को ठेके दिए थे. बड़े ठेकेदारों से इन्होंने भी लाखों रुपए का काम लिया था. मगर सबलेट कंपनी बीच में काम छोड़ कर बिना पैसे का भुगतान किए भाग गई तो इन का पैसा भी अटक गया. मजदूर और कारीगर इन ठेकेदारों से रुपए मांगने लगे, क्योंकि उन्होंने मजदूरी की थी. जब ठेकेदारों ने पैसा नहीं दिया तो ये लोग परेशान हो गए

ऐसे में इन लोगों ने जब नैचुरल पावर कंपनी के एमडी के आने की बात सुनी तो इन्होंने उस का अपहरण कर के फिरौती के एक करोड़ रुपए वसूलने की योजना बना लीइन लोगों ने सोचा था कि एक करोड़ रुपए वसूल लेंगे तो मजदूरों एवं कारीगरों का पैसा दे कर लाखों रुपए बच जाएंगेसभी आरोपियों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

Jaipur crime news : नौकरानी ने करवाई मालिक के घर में 24 लाख की चोरी

Jaipur crime news : कृष्णकांत गुप्ता अपनी नौकरानी प्रिया को मोटी सैलरी के अलावा सारी सुविधाएं देते थे ताकि वह खुश रहे. इस के बावजूद प्रिया ने अपने प्रेमी नदीम के साथ मिल कर कृष्णकांत गुप्ता से ऐसा विश्वासघात किया कि…   

18 जुलाई, 2018 की बात है. रात के करीब 11 बजने वाले थे. रिटायर्ड बैंक अधिकारी कृष्णकांत गुप्ता ने कुछ देर पहले ही रात का भोजन किया था. इस के बाद कुछ देर टीवी देखा और ड्राइंग रूम में बैठ कर पत्नी चंद्रकांता से इधरउधर की बातें कीं. गुप्ता और उन की पत्नी जब घरपरिवार की बातें कर रहे थे तो उन की 10 महीने की पोती नितारा दादी की गोद में ही सो गई थी. इस बीच नौकरानी प्रिया ने भोजन के बरतन वगैरह साफ कर लिए थे.

अब कोई काम भी नहीं था. कृष्णकांत गुप्ता को नींद आने लगी तो उन्होंने पत्नी चंद्रकांता से कहा, ‘‘मैं तो सोने जा रहा हूं. तुम भी दिन भर की थकी हुई हो, अब सो जाओ और नितारा को भी अपनी गोद से बिस्तर पर लिटा दो.’’

‘‘हां, मैं भी थक गई हूं, अपने कमरे में जा कर सोती हूं.’’ चंद्रकांता ने कहा.

कृष्णकांत गुप्ता ड्राइंग रूम से उठ कर अपने कमरे में जाने लगे तो उन्हें अपने मकान के पोर्च में कुछ हलचल सी महसूस हुई. उन्होंने गेट खोल कर देखा तो 3 अनजान लोग घर के अंदर खड़े मिले. उन्होंने उन लोगों से पूछा, ‘‘क्या बात है, तुम कौन हो और यहां क्यों खड़े हो?’’

कृष्णकांत गुप्ता के सवालों से घबरा कर वे तीनों आदमी सौरी बोलते हुए यह कह कर वहां से चले गए कि रात के अंधेरे में हम गलती से रामदेव का घर समझ कर आप के घर के अंदर गए. हमें रामदेव के घर जाना है. वे तीनों अनजान आदमी भले ही वहां से चले गए. लेकिन गुप्ताजी के मन में कई तरह की शंकाएं उठने लगीं. कृष्णकांत गुप्ता जयपुर के गोपालपुरा बाईपास पर स्थित पौश कालोनी 10बी स्कीम में रहते थे. 3 साल पहले ही वह इलाहाबाद बैंक से अधिकारी पद से रिटायर हुए थेइस मकान में वह अपनी पत्नी चंद्रकांता और 10 महीने की पोती नितारा के साथ रहते थे. उन का बेटा अंकुर और बहू अंकिता मुंबई में रहते हैं. बेटा अंकुर मुंबई में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) में काम करता है

कृष्णकांत गुप्ता ने घर के छोटेमोटे कामकाज और पोती की देखभाल के लिए एक नौकरानी प्रिया साहू को काम पर रख लिया था. उसे रहने के लिए अपने मकान में ही एक कमरा दे दिया था. उसे वह 16 हजार रुपए महीने की सैलरी देते थे. वह पश्चिम बंगाल की रहने वाली थी. कृष्णकांत गुप्ता को शंका हुई तो उन्होंने कालोनी समिति के अध्यक्ष हंसराज और सचिव गोपाल को फोन कर के अपने घर बुलाया. इसी के साथ उन्होंने पुलिस को भी सूचना दे दी. 3 संदिग्ध लोगों की बात सुन कर कालोनी के लोग उन के यहां जमा हो गए. लोगों ने रात में ही गलियों में घूम कर उन संदिग्ध लोगों को ढूंढा, लेकिन वे नहीं मिले.

इस बीच सूचना पा कर 2 पुलिसकर्मी वहां पहुंच गए. कृष्णकांत गुप्ता ने उन्हें अपने यहां आए 3 संदिग्ध लोगों के बारे में बताया तो उन पुलिस वालों ने भी मोटरसाइकिल से गलियों के चक्कर लगाए और वहां से चले गए. तब तक रात के करीब 1 बज गए थे. उन तीनों अनजान लोगों का कुछ पता नहीं चला तो कालोनी के लोग भी गुप्ताजी को सावधान रहने की बात कह कर अपनेअपने घर जा कर सो गए. तड़के करीब 3 बजे कृष्णकांत गुप्ता अपने कमरे में जब गहरी नींद में सो रहे थे तो उन की नींद घर में कुछ लोगों की हलचल की आवाज से टूट गई. वह कुछ समझ पाते, इस से पहले ही 2-3 बदमाश उन के घर में घुस आए और उन का मुंह हाथपैर साड़ी चुनरी से बांध दिए. इस के बाद बदमाश चंद्रकांता के कमरे में पहुंचे. बदमाश उन्हें चाकू दिखा कर धमकाते हुए उन के पति के कमरे में ले आए.

इस के बाद बदमाशों ने उन के घर से तमाम कीमती सामान बटोर लिया. बदमाशों ने अलमारी के ऊपर रखे चांदी के बरतन उतारने के लिए चंद्रकांता से कहा तो चंद्रकांता ने अपने पैर में रौड लगी होने की वजह से ऊपर चढ़ने से इनकार कर दियाबदमाशों ने चाकू दिखा कर उन्हें जान से मारने की धमकी दी तो चंद्रकांता ने कहा कि टेबल पर चढ़ कर गिरने से मरूंगी, इस से अच्छा है कि तू ही मुझे मार दे. बाद में एक बदमाश ने टेबल पर चढ़ कर चांदी के बरतन उतारे. लूटपाट के दौरान बदमाशों ने अपने साथ टिफिन में लाया खाना भी खाया. उस टिफिन को बाद में वह मकान के बाहर फेंक गए थे.

करीब आधे घंटे तक लूटपाट करने के बाद बदमाश वहां से करीब 15 लाख रुपए के गहने, चांदी के बरतन और ढाई लाख रुपए नकद बटोरने के बाद गुप्ता दंपति की 10 महीने की पोती नितारा को साथ ले जाने की धमकी देने लगे. इस पर चंद्रकांता बिफर गईं. वह बोलीं कि सब कुछ ले जाओ लेकिन मेरी पोती की तरफ आंख उठा कर भी मत देखना. मेरे जीते जी तुम मेरी पोती को नहीं ले जा सकते. चंद्रकांता का रौद्र रूप देख कर बदमाशों ने नितारा को तो छोड़ दिया लेकिन वह 3 मोबाइल फोन और एक टैबलेट तथा कृष्णकांत गुप्ता का एटीएम कार्ड भी ले गए. बदमाशों ने लूटे गए माल को बैगों में भर लिया. फिर उन्होंने चंद्रकांता और उन की पोती को एक कमरे में बंद कर दिया और कृष्णकांत गुप्ता को दूसरे कमरे में.

इस के बाद बदमाश पोर्च में खड़ी गुप्ताजी की टोयटा इटियोस कार नंबर आरजे14सी आर5236 में सवार हो कर नौकरानी प्रिया को भी अपने साथ ले गए. जिस समय बदमाश घर में लूटपाट कर रहे थे, उस समय नौकरानी प्रिया चुपचाप तमाशा देख रही थी. प्रिया अपना सारा सामान समेट कर उन बदमाशों के साथ चली गई थी. बदमाशों के जाने के बाद चंद्रकांता ने कमरे की खिड़की से पड़ोसियों को कई आवाजें लगाईं, लेकिन किसी ने नहीं सुनीं. इस बीच, दूसरे कमरे में हाथपैर बंधे पड़े कृष्णकांत ने किसी तरह खुद को आजाद किया. उन्होंने पत्नी चंद्रकांता को आवाज दी तो पता चला कि वह कमरे में बंद है. उन्होंने पत्नी और पोती को कमरा खोल कर बाहर निकाला. इस के बाद मौर्निंग वाक पर निकले कालोनी के लोगों को बुला कर वारदात की जानकारी दी.

इस के बाद पुलिस को सूचना दी गई. शिप्रापथ थाना पुलिस ने मौके पर पहुंच कर जांचपड़ताल शुरू की. फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट्स ने मकान से अंगुलियों के निशान लिए. डौग स्क्वायड की भी मदद ली गई. बाद में डीसीपी डा. विकास पाठक और अन्य पुलिस अधिकारी भी मौके पर पहुंचे और गुप्ता दंपति से बदमाशों के हुलिया, बोलचाल आदि के बारे में पूछताछ की. पूछताछ में पता चला कि घर में लूटपाट करते हुए 3 बदमाश नजर आए थे. इन में एक ने सफेद रंग की शर्ट और 2 बदमाशों ने टीशर्ट जींस पहन रखी थी. बदमाशों के साथ प्रिया के भी जाने से यह बात साफ हो गई कि नौकरानी प्रिया पहले से ही बदमाशों से मिली हुई थी

उसी ने बदमाशों के लिए मकान का गेट खोला था. बाद में वह उन्हीं बदमाशों के साथ चली गई. पुलिस का अनुमान था कि घर में भले ही 3 बदमाश घुसे थे, लेकिन उन के साथी आसपास बाहर निगरानी पर जरूर रहे होंगे. पुलिस ने नौकरानी प्रिया साहू के बारे में जांचपड़ताल की तो पता चला कि करीब 4 महीने पहले जयपुर सर्वेंट सेंटर के मार्फत उसे 16 हजार रुपए महीने की तनख्वाह पर रखा था. तब उन्हें बताया गया था कि प्रिया साहू 3 साल तक भीलवाड़ा में एक डाक्टर के घर पर भी काम कर चुकी हैएजेंसी ने प्रिया का पुलिस वेरिफिकेशन होने का भी दावा किया था. उसी समय कृष्णकांत गुप्ता ने प्रिया को सैलरी के अलावा रहने और खानेपीने की सुविधाएं देने की बात कही थी. कुछ दिनों अपने यहां काम पर रखने के बाद कृष्णकांत गुप्ता ने प्रिया को मुंबई में अपने बेटेबहू के पास एक महीने तक काम करने के लिए भी भेजा था.

पुलिस ने जब जयपुर सर्वेंट सेंटर के संचालक फहीम को थाने बुला कर पूछताछ की तो पता चला कि उस ने प्रिया का पुलिस सत्यापन नहीं कराया था. इस के अलावा उस का नाम प्रिया नहीं बल्कि परवीन खातून था. प्रिया फर्राटे से अंगरेजी बोलती थी और समझती भी थी लेकिन वह हिंदी नहीं जानने और घड़ी में समय नहीं देखने आने की बात कहती थी. कृष्णकांत ने पुलिस को बताया कि बेटे ने अमेरिका से लाया हुआ एक मोबाइल फोन वारदात से 12 घंटे पहले ही कुरियर से भेजा था. बदमाश उन दोनों के फोनों के अलावा उस नए मोबाइल को भी ले गए. चंद्रकांता जिस टैबलेट पर रात को समय काटने के लिए फिल्म वगैरह देखती थी. वह टैबलेट भी बदमाश ले गए थे.

वारदात की सूचना मिलने पर कृष्णकांत गुप्ता के बेटेबहू भी 19 जुलाई को ही मुंबई से जयपुर पहुंच गए. गुप्ता के बड़े भाई अशोक गुप्ता जयपुर के ही प्रतापनगर और छोटे भाई अनिल मानसरोवर में रहते हैंचंद्रकांता के सासससुर भी जयपुर में मानसरोवर कालोनी में रहते हैं. उन की बेटी भी पति के साथ हैदराबाद से जयपुर गई. वारदात का पता चलने पर उन के घर रिश्तेदारों और जानपहचान वालों की भीड़ जुड़ने लगी थी. पुलिस के लिए चुनौती की बात यह थी कि कालोनी के जिस मकान में डकैती की वारदात हुई, उस के पास ही राजस्थान के पूर्व पुलिस महानिदेशक मनोज भट्ट और जयपुर के महापौर अशोक लाहोटी रहते थे. वारदात का पता चलने पर महापौर कृष्णकांत गुप्ता के घर पहुंचे और मामला दर्ज कराने उन के साथ शिप्रापथ थाने भी गए.

मामला दर्ज होने पर डीसीपी (दक्षिण) डा. विकास पाठक ने अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त (दक्षिण) मनोज चौधरी के निर्देशन और एसीपी (मानसरोवर) दीपक कुमार की अध्यक्षता में एक विशेष टीम गठित की. इस के अलावा अभियुक्तों की तलाश में शिप्रापथ थानाप्रभारी सुरेंद्र यादव और श्यामनगर थानाप्रभारी अनिल कुमार जैमिनी के नेतृत्व में 2 अलगअलग टीमें पश्चिम बंगाल भेजी गईं. इन में एक पुलिस टीम हवाई मार्ग से गई थी. इस बीच पुलिस अपने तरीके से बदमाशों के बारे में सुराग लगाती रही. इस में पता चला कि वारदात से करीब 20 दिन पहले कृष्णकांत के घर पर नौकरानी प्रिया से मिलने एक युवक आया था. प्रिया ने उस युवक को अपना पति बताया था.

पुलिस कृष्णकांत गुप्ता की उस कार का भी पता लगाने में जुट गई, जिस में सवार हो कर बदमाश नौकरानी के साथ भागे थे. जांच में पता चला कि वह कार जयपुर से आगरा रोड हो कर 19 जुलाई की सुबह करीब साढ़े 10 बजे आगरा का मथुरा टोलनाका पार कर के गई थी. इस के अलावा गुप्ता के एटीएम कार्ड से गाजियाबाद में 3 बार में 12 हजार रुपए निकाले गए थे. ये जानकारियां मिलने पर पुलिस की एक टीम गाजियाबाद भेजी गई. तकनीकी जानकारियों और खुफिया सूचनाओं के आधार पर वारदात के पांचवें दिन जयपुर पुलिस ने 23 जुलाई, 2018 को नौकरानी परवीन खातून उर्फ प्रिया के अलावा उस के प्रेमी नदीम और एक अन्य बदमाश आमिर खान उर्फ समीर खान को गाजियाबाद से गिरफ्तार कर लिया

इन के कब्जे से पुलिस ने कृष्णकांत गुप्ता की लूटी गई कार और वारदात में प्रयोग किए 2 चाकू तथा 34 हजार 460 रुपए नकद बरामद किए. इन बदमाशों ने लूट का बाकी सामान अपने एक अन्य साथी के पास होना बताया. इस के बाद पुलिस ने 24 जुलाई को वारदात के मुख्य मास्टरमाइंड दयाराम सिंह को दिल्ली से गिरफ्तार कर लिया. बाद में 26 जुलाई को पांचवें आरोपी दिलशाद को भी गिरफ्तार किया गया. इन अभियुक्तों से पुलिस ने गुप्ता के घर से लूटे गए गहने, चांदी के बरतन अन्य सामान बरामद कर लिया. बदमाशों ने लूटी गई धनराशि में से करीब एक लाख रुपए खर्च कर दिए थे. चूंकि वारदात में 5 लोग शामिल थे, इसलिए पुलिस ने केस में डकैती की धाराएं जोड़ दीं

इन के अलावा पुलिस ने फरजी दस्तावेज के आधार पर परवीन खातून को प्रिया साहू के नाम से गुप्ता के घर पर नौकरानी पर लगवाने वाले जयपुर सर्वेंट सेंटर के संचालक फहीम को भी 26 जुलाई को गिरफ्तार कर लिया. इन सभी आरोपियों से पूछताछ के बाद डकैती डालने की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी

नदीम उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के कांठ थाना इलाके के गांव पैगंबरपुर सुखवासी लाल के रहने वाले आरिफ का बेटा था. कांठ थाने के गांव बिच्छपुरी का रहने वाला आमिर खान उर्फ समीर खान और पास के ही गांव देहरी जुम्मन का रहने वाला दयाराम उर्फ विकास करीब डेढ़ साल पहले यूपी की जेल में बंद थेचूंकि तीनों एक ही जिले के रहने वाले थे, इसलिए तीनों की ही जेल में दोस्ती हो गई. वहां से जमानत पर बाहर आने के बाद भी ये आपस में एकदूसरे के संपर्क में रहे. बाद में नदीम अहमदाबाद चला गया. अहमदाबाद में प्रिया की बड़ी बहन अपने पति के साथ रहती थी. वह नदीम के साथ ही एक फैक्ट्री में काम करती थी. प्रिया की बहन ने नदीम को अपना एक मोबाइल फोन बेचा था. उस फोन में प्रिया के घर वालों के नंबर भी सेव थे

उस फोन में जो नंबर लड़कियों के नाम से सेव थे, फुरसत मिलने पर नदीम एकएक कर के उन नंबरों पर बात करता. इसी दौरान एक दिन उस ने प्रिया का नंबर मिलाया. प्रिया ने उस से प्यार से बात की. नदीम को उस की बातें अच्छी लगीं. इस के बाद वह अकसर प्रिया से बातें करने लगा. प्रिया का अपने पति से तलाक हो चुका था. वह अकेली रहती थी. धीरेधीरे नदीम और प्रिया की दोस्ती हो गई. परवीन खातून उर्फ प्रिया कोलकाता के 24 परगना में रहने वाले आबिद हुसैन की बेटी थी. परवीन खातून घरों में नौकरानी का काम और नवजात शिशुओं की देखभाल का काम करती थी. उस ने प्रिया साहू के नाम से फरजी आईडी बनवा रखी थी. इस आईडी के जरिए वह जयपुर सर्वेंट सेंटर के माध्यम से कृष्णकांत गुप्ता के घर पर नौकरी करने आई थी.

प्रिया उर्फ परवीन खातून ने ही अपने प्रेमी नदीम को जयपुर में रिटायर्ड बैंक अधिकारी कृष्णकांत गुप्ता के घर की सारी जानकारी दी थी. उस ने नदीम को बताया था कि यह अमीर परिवार है और घर में केवल बुड्ढेबुढि़या और उन की पोती रहती है. प्रिया से गुप्ता के परिवार की जानकारी हासिल करने के बाद नदीम ने प्रिया से शादी करने का वादा भी कर दिया था. इस के बाद वारदात से पहले 5 जुलाई, 2018 को नदीम अपने साथी दयाराम उर्फ विकास के साथ जयपुर चला आयानदीम उस दिन अकेला ही गुप्ता के घर जा कर प्रिया से मिला और उसे शादी करने का विश्वास दिलाने के लिए अंगूठी पहनाई. इस दौरान प्रिया ने गुप्ता और उन की पत्नी चंद्रकांता को बताया था कि वह उस का पति है. प्रिया ने नदीम को चायनाश्ता भी कराया था

नदीम ने कुछ देर प्रिया से बातचीत के दौरान ही गुप्ता के मकान की रेकी कर ली. नदीम के साथी दयाराम ने गुप्ता के मकान के बाहर रह कर कालोनी की रेकी की और आनेजाने के रास्ते देखे. इस के बाद पूरी योजना बना कर नदीम, आमिर और दयाराम 18 जुलाई को जयपुर पहुंचे. वे सीधे कृष्णकांत गुप्ता के घर पहुंचे. वे तीनों रात को 11 बजे ही वारदात के लिए पहुंच गए. लेकिन कृष्णकांत गुप्ता ने उन्हें देख लिया तो वे वहां से भाग कर आसपास छिप गए. बाद में उन्होंने रात करीब ढाई बजे परवीन खातून उर्फ प्रिया के मोबाइल पर फोन कर के गेट खुलवाया और लूटपाट की वारदात की.

वारदात के बाद वे नौकरानी प्रिया को साथ ले कर गुप्ता की टोयटा इटियोस कार से भाग गए थे. इस के बाद पुलिस ने काल डिटेल्स और एटीएम कार्ड प्रयोग करने की लोकेशन के आधार पर अभियुक्तों तक पहुंचने में सफलता हासिल की. गिरफ्तार अभियुक्त नदीम के खिलाफ चोरी, बलात्कार और आर्म्स एक्ट के 5 मामले विभिन्न थानों में दर्ज हैं. आमिर खान उर्फ समीर खान के खिलाफ भी 8 आपराधिक मामले गुड़गांव, नोएडा, गाजियाबाद मुरादाबाद में दर्ज हैं. आमिर खान ने लूट की वारदात के बाद कृष्णकांत की कार की फरजी आरसी और खुद का फरजी ड्राइविंग लाइसेंस भी बनवा लिया था

अभियुक्त दयाराम उर्फ विकास के खिलाफ चोरी, अपहरण, लूट, एनडीपीएस एक्ट आदि के 9 मामले दर्ज हैं. गुप्ता के घर डाली गई डकैती में गिरफ्तार पांचवें अभियुक्त दिलशाद ने बाकी चारों आरोपियों को गाजियाबाद में फ्लैट में छिपाने में मदद की थी. वह इस वारदात में भी शामिल था. दिलशाद अपहरण के मामले में मुरादाबाद में गिरफ्तार हो चुका है. पुलिस ने जयपुर सर्वेंट सेंटर के संचालक फहीम को गिरफ्तार कर जांचपड़ताल की तो पता चला कि उस की भूमिका कई मामलों में संदिग्ध हैफहीम ने केवल प्रिया उर्फ परवीन खातून को ही फरजी पहचानपत्र के आधार पर नौकरी नहीं दिलवाई बल्कि कई अन्य लड़कियों को भी कोलकाता से ला कर राजस्थान में कई अन्य लोगों के घरों में बतौर नौकरानी रखवाया था

इन लड़कियों की पुलिस तसदीक कराने का काम सेंटर संचालक फहीम ही करता था, लेकिन फहीम जानबूझ कर इन युवतियों के फरजी नाम पते से पहचानपत्र बनवा कर लोगों की जानमाल को खतरे में डालता था, इसलिए पुलिस ने उस के खिलाफ अलग से मुकदमा दर्ज किया. यह विडंबना रही कि प्रिया उर्फ परवीन खातून जिस नदीम के साथ जीवन भर साथ निभाने के सपने देख रही थी, उसी नदीम और उस के साथियों के साथ वह जेल पहुंच गई. प्रिया ने केवल गुप्ता परिवार के साथ ही विश्वासघात नहीं किया बल्कि नौकरानी की पूरी जमात से भरोसा उठा दिया.

                                           

MP Crime : किन्नर ने अपमान का बदला लेने की ठानी

MP Crime : किन्नर किरण खूबसूरती की मिसाल थी. तभी तो श्रीनगर के जहांगीर ने उस पर फिदा हो कर उस से शादी कर ली. सच्चाई पता चलने पर जहांगीर ने उसे छोड़ दिया तो किरण ने इस अपमान का बदला लेने की ठान ली, फिर…  

शा के करीब 6 बजे का वक्त था. मध्य प्रदेश के देवास जिला मुख्यालय में चामुंडा कांपलेक्स के ग्राउंड फ्लोर पर स्थित गोल्डन कौफी हाउस में रोज की तरह काफी रौनक थी. उस समय उज्जैन की तरफ से एक कार और इंदौर की तरफ से एक और कार कर गोल्डन कौफी हाउस के सामने रुकी. एक कार से करीब 45 साल की एक निहायत ही खूबसूरत महिला उतरी. वहीं दूसरी कार से 25-26 साल के 2 युवक नीचे उतरे

उन युवकों ने उस महिला का अभिवादन किया तो उस महिला ने दोनों के अभिवादन का सिर हिला कर जवाब दिया, उन्हें साथ ले कर वह उस कौफी हाउस में दाखिल हो गई. यह बात 20 फरवरी, 2018 की है. दोनों गाडि़यों के ड्राइवर कौफी हाउस के बाहर ही रहे. दोनों ही ड्राइवर तब तक आपस में बातचीत करने लगे. करीब सवा घंटे बाद वह तीनों कौफी हाउस से बाहर आने के बाद अपनीअपनी कार में कर बैठ गए. वह महिला इंदौर की तरफ रवाना हो गई. इस के कुछ देर बाद दोनों युवकों ने अपने ड्राइवर को उस महिला की कार का पीछा करने को कह दिया.

देवास से इंदौर रोड पर लगभग 6 किलोमीटर आगे क्षिप्रा नदी का पुल है. यह पुल देवास और इंदौर जिले की सीमा बनाता है. चूंकि शाम के समय सड़क पर ट्रैफिक अधिक था इसलिए क्षिप्रा तक पहुंचने में दोनों गाडि़यों को 15 से 18 मिनट का समय लगा. उन युवकों की कार महिला की कार से सुरक्षित दूरी बना कर पीछा कर रही थी, ताकि कार में बैठी महिला को उस की कार का पीछा किए जाने का शक हो सके. क्षिप्रा निकलने के बाद उन युवकों ने अपने ड्राइवर से कहा कि वह ओवरटेक कर के उस महिला की कार के आगे गाड़ी लगा दे. इस के बाद उस ड्राइवर ने कार की गति तेज कर दी.

इसी बीच उस महिला ने अपनी कार एक शराब की दुकान के सामने रुकवा दी. वह महिला कार से उतर कर शराब की दुकान से ठंडी बियर लेने लगी. तब तक उन युवकों की कार भी वहां कर रुक गई. उन में से एक युवक हाथ में रिवौल्वर ले कर कार से उतर कर शराब की दुकान पर खड़ी उस महिला के पास पहुंचामहिला बियर पसंद करने में खोई हुई थी. इसलिए उस ने इस बात पर जरा भी ध्यान नहीं दिया कि कुछ देर पहले वह जिस युवक से कौफी हाउस में मिल कर रही है वह उस के पीछेपीछे यहां तक पहुंचा है.

दूसरी तरफ युवक ने उस के पास जा कर रिवौल्वर उस की गरदन पर रख कर ट्रिगर दबा दिया और तेजी से अपनी कार में बैठ गया. फिर वह दोनों युवक देवास की तरफ निकल गए. भरे बाजार में महिला की हत्या होने के बाद बाजार में खलबली मच गई. सूचना मिलने पर थाना औद्योगिक क्षेत्र के थानाप्रभारी एस.पी.एस. राघव तत्काल एसआई श्रीराम वर्मा आदि के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. घायल अवस्था में पड़ी उस महिला को तुरंत पहले देवास के अपेक्स अस्पताल ले जाया गया. हालत गंभीर होने की वजह से उसे इंदौर के एम.वाई. अस्पताल भेज दिया गया. जहां इलाज के दौरान उस की मौत हो गई.

पुलिस ने मृत महिला के कार चालक से पूछताछ की तो पता चला कि मरने वाली औरत नहीं बल्कि किन्नर किरण थी. जिस की खूबसूरती के चर्चे इंदौर के अलावा दिल्ली और श्रीनगर में भी थे. कार चालक ने यह भी बताया कि किरण को गोली मारने वाला युवक लाल रंग की कार में बैठ कर देवास की तरफ भागा है. इस पर थानाप्रभारी एस.पी.एस. राघव ने यह खबर बिना देर किए पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. इस का नतीजा यह निकला कि कुछ ही देर के बाद उज्जैन तिराहे से गुजर रही लाल रंग की कार एमपी09बीसी 0821 को यातायात पुलिस के एसआई रमेश मालवीय एवं रूपेश पाठक ने रोक ली.

उस समय उस गाड़ी में ड्राइवर के अलावा और कोई नहीं था. उस ड्राइवर का नाम मोहम्मद रईस था जो सारंगपुर का रहने वाला था. दोनों एसआई उसे थाने ले आए. पूछताछ करने पर मोहम्मद रईस ने बताया कि यह गाड़ी कनाड़ निवासी एक व्यापारी की है. वह तो गाड़ी का ड्राइवर है. इस गाड़ी को आज उज्जैन के बेगम बाग निवासी भूरा और ऐजाज खान किराए पर ले कर देवास आए थे. उस ने यह भी बताया कि किन्नर की हत्या करने के बाद दोनों उस की गाड़ी में सवार हो कर कुछ दूर तक आए थे. बाद में पुलिस के डर से गाड़ी से उतर कर वे पैदल ही कहीं चले गए.

यह जानकारी मिलने के बाद देवास के एसपी अंशुमान सिंह ने एएसपी अनिल पाटीदार के नेतृत्व में गठित थानाप्रभारी एस.पी.एस. राघव की टीम को फरार हो चुके दोनों आरोपियों को ढूंढने में लगा दिया. टीम पूरी मेहनत से आरोपियों को खोजने में जुट गई. जिस का नतीजा यह हुआ कि अगले ही दिन मुख्य आरोपी भूरा को पुलिस ने उज्जैन से गिरफ्तार कर लियापूछताछ में हर अपराधी की तरह भूरा ने भी पहले तो किरण को जानने तक से इनकार कर दिया. लेकिन जब पुलिस ने उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की तो उस ने किन्नर किरण की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया.

इस के बाद पुलिस ने भूरा की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त रिवौल्वर और उस के खून सने कपड़े भी बरामद कर लिए. जिस के बाद पूरी कहानी इस प्रकार सामने आई. आज से कोई 45 साल पहले मध्य प्रदेश के शहर इंदौर में जन्मे चांद से खूबसूरत बच्चे का नाम रखा गया अनीस मोहम्मद अंसारी. लेकिल अंसारी परिवार की खुशियां उस समय मिट्टी में मिल गईं जब उस बच्चे के बड़ा होने पर यह बात सामने आई कि अनीस सामान्य लड़का नहीं बल्कि एक किन्नर है5-7 साल की उम्र से ही उस के चेहरेमोहरे में जनाना भाव आने लगे थे. जिस तरह की नजाकत उस में आने लगी थी, उस जैसी नजाकत और खूबसूरती कई लड़कियों में भी देखने को नहीं मिलती.

किशोरावस्था में पहुंच कर अनीस अपनी सच्चाई समझ चुका था. इसलिए 15-16 साल की उम्र में ही वह इंदौर से दिल्ली चला गया और वहां एक किन्नर जमात में शामिल हो गया. जहां उस का नाम रखा गया किरण. देखते ही देखते किरण दिल्ली की सब से खूबसूरत किन्नर बन गई. जिस के चलते उस ने अपने गुरु के साथ रहते हुए करोड़ों की प्रौपर्टी भी जमा कर ली. इतना ही नहीं गुरु के बाद किरण को ही अपने गुरु की पदवी मिल गई. इस के बाद तो उस के इलाके के किन्नर जो भी कमाई कर के लाते, किरण के हाथ में रख देते थे, जिस से उसे और ज्यादा कमाई होने लगी.

किरण की खूबसूरती लगातार बढ़ती जा रही थी. रंगरूप और शारीरिक बनावट से हर कोई उसे औरत समझने का धोखा खा जाता था. इसलिए दिल्ली में तो उस के दीवाने थे ही, दिल्ली के बाहर भी उस के चाहने वालों की संख्या बढ़ गई. परिवार के इंदौर में रहने के कारण उस का इंदौर में भी आनाजाना लगा रहता था, सो इंदौर में भी उस के दीवानों की संख्या कम नहीं थी. किरण की जिंदगी में महत्त्वपूर्ण बदलाव कुछ साल पहले उस समय आया जब वह श्रीनगर, कश्मीर घूमने गई. इस दौरान वह डल झील में चलने वाले सब से महंगे बोट हाउस में ठहरी. शिकारा का मालिक जहांगीर उस की खूबसूरती पर मर मिटा था. सो उस ने किरण की खूब मेहमाननवाजी की थी 

जहांगीर के कई शिकारा डल झील में चला करते थे, जिस के चलते श्रीनगर में उस की खासी संपत्ति थी. अपितु जहांगीर उम्र में किरण से छोटा था, लेकिन किरण का जादू उस के ऊपर कुछ यूं चला कि वह उस के सामने अपने प्यार का इजहार करने से खुद को रोक नहीं सका. किरण जानती थी कि जहांगीर उसे औरत समझने की गलती कर यह बात कह रहा है. ऐसे में किरण को पीछे हट जाना था, लेकिन प्यार की तलाश हर किसी को होती है. इसलिए किरण ने उस का प्यार स्वीकार ही नहीं किया बल्कि उस से शादी कर ली. ऐसे में किरण के किन्नर होने की सच्चाई जहांगीर के सामने खुलनी तय थी. सुहागरात के मौके पर इस सच को वह स्वीकार नहीं कर सका. इस का नतीजा यह निकला कि जहांगीर ने किरण को जल्द ही छोड़ दिया. यह बात किरण को बहुत बुरी लगी. वह अपनी खूबसूरती की ऐसी बेइज्जती सहन नहीं कर पाई. लिहाजा उस ने जहांगीर को खत्म करने का फैसला कर लिया

घटना से 2 महीने पहले एक शादी समारोह में किरण और भूरा की उज्जैन में पहली मुलाकात हुई थी. इस मुलाकात में भूरा यह जान गया था कि किरण एक किन्नर है, इस के बावजूद भी वह उस की खूबसूरती पर मर मिटा था. किरण को भी एक मोहरे की तलाश थी. जिस से वह जहांगीर की हत्या करा सके. उसे इस बात की भी जानकारी थी कि नाबालिग उम्र में भूरा हत्या के एक आरोप में जेल जा चुका था. इसलिए मौका देख कर उस ने भी भूरा को निराश नहीं किया

किरण ने जब देखा कि भूरा पूरी तरह से उस के कब्जे में चुका है तो एक दिन उस ने भूरा से जहांगीर की हत्या करने को कहा. इस के लिए उस ने भूरा को 25 लाख रुपए का लालच देने के साथ ढाई लाख रुपए एडवांस में भी दे दिए. भूरा, किरण का दीवाना हो चुका था, सो उस ने जहांगीर की हत्या करने की बात स्वीकार तो कर ली लेकिन कुछ दिनों बाद उसे लगने लगा कि कश्मीर में जा कर वहां के किसी आदमी की हत्या कर के भाग कर वापस आना आसान काम नहीं है. लिहाजा वह काम करने में आनाकानी करने लगाइस पर किरण ने खुद भूरा को धमकी दे डाली. किरण ने उस से कहा कि अगर जहांगीर को मरवाने में 25 लाख खर्च कर सकती है तो तुम जैसों के लिए तो कोई 25 हजार ले कर ही निपटा देगा. यह धमकी दे कर उस ने भूरा पर जहांगीर की हत्या करने के लिए दबाव बनाया

भूरा जानता था कि किरण के पास पैसों की कमी नहीं है, वह पैसों के बल पर उस की हत्या भी करा देगी. इसलिए उस ने अपने दोस्त ऐजाज के साथ मिल कर किरण की हत्या करने की योजना बना डाली. जिस के बाद उस ने 20 फरवरी, 2018 को किरण को देवास बुला कर जहांगीर की फोटो दिखाने को कहा. उस ने किरण से कहा था कि वह जहांगीर का काम करने श्रीनगर जा रहा है. इसलिए पहचान के लिए जहांगीर की फोटो की जरूरत पड़ेगी. किरण ने जहांगीर का फोटो देने के लिए भूरा को देवास बुलाया था. यहां चामुंडा कांपलेक्स स्थित कौफी हाउस में भूरा और किरण की मुलाकात हुई. वहीं पर उस ने भूरा को जहांगीर का फोटो दे दिया था. फोटो देने के बाद लौटते समय वह ठंडी बियर लेने के लिए शराब की दुकान पर रुकी तभी भूरा ने उस की हत्या कर दी.

ड्राइवर मोहम्मद रईस और भूरा से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उस के दोस्त ऐजाज खान को भी गिरफ्तार कर लिया. फिर तीनों को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक तीनों आरोपियों की जमानत नहीं हो सकी थी.

 

Murder story : बहन के प्रेमी को भाई ने उतारा मौत के घाट

Murder story : जोबन और पम्मी एक ही गांव के थे. दोनों यह बात अच्छी तरह से जानते थे कि एक ही गांव के लड़केलड़की की शादी नहीं हो सकती. इसके बावजूद भी वह एकदूसरे से प्यार कर बैठे. फिर उन के प्यार का भी वही अंजाम हुआ, जैसा कि ऐसे मामलों में होता है…

जुलाई का महीना था. अन्य महीनों की अपेक्षा उस दिन गरमी कुछ अधिक थी. जतिंदर उर्फ जोबन ने चाटी से लस्सी निकाल उस में बर्फ मिलाया. फिर एक गिलास भर कर अपने पिता तरसेम सिंह को देते हुए कहा, ‘‘ले बापू, लस्सी पी ले. आज बड़ी गरमी है.’’

20 वर्षीय जोबन अपने 60 वर्षीय पिता के साथ घर के आंगन में बैठा गपशप कर रहा था. लस्सी का गिलास अपने हाथ में लेते हुए तरसेम सिंह बोले, ‘‘बेटा, गरमी हो या सर्दी, हम जट्ट किसानों को तो खेतों में ही रहना पड़ता है. हम एसी में तो नहीं बैठ सकते न.’’

जोबन ने पिता से मजाक करते हुए कहा, ‘‘बापू क्यों न हम अपने खेतों में एसी लगवा लें.’’

‘‘क्या ये बिना सिरपैर की बातें कर रहा है.’’ तरसेम बेटे की बात पर हंसते हुए बोले, ‘‘कहीं खेतों में भी एसी लगते हैं.’’

यूं ही फिजूल की इधरउधर की बातें कर के बापबेटा अपना मन बहला रहे थे कि जोबन के मोबाइल फोन की घंटी बजी. अचानक फोन की घंटी ने उन की बातों पर विराम लगा दिया. जोबन पिता के पास से उठ कर एक तरफ चला गया और फोन पर किसी से बातें करने लगा. तरसेम सिंह अपनी जगह ही बैठे रहे. जोबन फोन पर बातें करते हुए जब घर से बाहर जाने लगा तो तरसेम सिंह ने उसे टोका, ‘‘ओए पुत्तर, खाने के वक्त कहां जा रहा है?’’

‘‘अभी आया पापाजी,’’ जोबन ने फोन सुनते हुए ही पिता को आवाज दे कर कहा और बातें करते हुए घर से बाहर निकल गया. यह बात 17 जुलाई, 2018 रात 9 बजे की है. जोबन के चले जाने के बाद तरसेम सिंह पोतेपोतियों से बातें करने लगे. तरसेम सिंह पंजाब के जिला अमृतसर देहात के कस्बा ब्यास के पास वाले गांव शेरों निगाह के रहने वाले थे. गांव में उन का बहुत बड़ा कुनबा था. उन के पिता मोहन सिंह गांव के नामी जमींदार थे. उन की मृत्यु के बाद तरसेम सिंह ने भी अपने पुरखों की जागीर को संभाल कर रखा था. तरसेम सिंह ने 2 शादियां की थीं. दोनों ही पत्नियों की मृत्यु हो चुकी थी.

पहली पत्नी से उन की 2 बेटियां और 2 बेटे थे. पहली पत्नी की मृत्यु के बाद बच्चों की परवरिश के लिए उन्होंने दूसरी शादी की थी. दूसरी पत्नी से उन्हें 2 बेटियां और एक बेटा जतिंदर उर्फ जोबन था. पूरे परिवार में जोबन ही सब से छोटा था और इसी वजह से सब का प्यारा था. तरसेम सिंह के सभी बेटे शादीशुदा थे और गांव में पासपास बने घरों में रहते थे. जोबन को घर से निकले काफी देर हो चुकी थी. जबकि अपने पिता से वह यह कह कर गया था कि अभी लौट आएगा. तरसेम सिंह के पोतेपोतियां भी सोने चले गए थे. उन्होंने समय देखा तो रात के 11 बज चुके थे. उन का चिंतित होना स्वाभाविक ही था. उन्होंने जोबन को फोन मिलाया तो उस का फोन बंद मिला. बारबार फोन मिलाने पर भी जब हर बार फोन बंद मिला तो वह अकेले ही गांव में उस की तलाश के लिए निकल पड़े.

उन्होंने पूरा गांव छान मारा पर जोबन का कहीं कोई पता नहीं चला. अंत में उन्होंने घर लौट कर अपने दूसरे बेटों को जगा कर सारी बात बताई. बेटे की तलाश के लिए उन्होंने अपने भाई सुखविंदर सिंह और शादीशुदा दोनों बेटियों को भी फोन कर के अपने यहां बुला लिया था. सभी लोग एक बार फिर से जोबन को ढूंढने के लिए निकल पड़े. तरसेम के बेटों के साथ गांव के कुछ और लोग भी थे. पूरा कुनबा सारी रात ढूंढता रहा पर जोबन का पता नहीं चला. उसे हर उस संभावित जगह पर तलाशा गया था, जहां उस के मिलने की उम्मीद थी.

अगली सुबह जोबन के लापता होने की खबर थाना ब्यास में दे दी गई. उस की गुमशुदगी दर्ज करने के बाद पुलिस ने भी उस की तलाश शुरू कर दी. अपने घर फोन पर किसी से बात करतेकरते जोबन अचानक कहां गायब हो गया, यह बात किसी की समझ में नहीं आ रही थी. जोबन को लापता हुए 24 घंटे से भी अधिक का समय बीत चुका था. उस का फोन अब भी बंद था. शाम के समय गांव जोधा निवासी जोबन के एक दोस्त तरसपाल सिंह ने तरसेम सिंह को फोन पर बताया कि उस ने पहली जुलाई की रात जोबन को सुखबीर सिंह के साथ गांव से बाहर जाते देखा था.

उस वक्त सुखबीर के साथ 2 लड़के और भी थे. वह उन्हें पहचान नहीं पाया, क्योंकि उन दोनों ने अपने चेहरे कपड़े से ढक रखे थे. इस से पहले रात करीब 8 बजे सुखबीर उस के घर आया था और बहुत घबराया हुआ था. बता रहा था कि उस का स्कूल के ग्राउंड में किसी से झगड़ा हो गया था. विस्तार से बात समझने के लिए तरसेम सिंह ने तरसपाल को अपने पास बुलवा लिया और उस से पूरी बात पूछी. उस के बाद तरसेम सिंह को पूरा विश्वास हो गया कि उन के बेटे के लापता होने में सुखबीर का ही हाथ हो सकता है. वह जानते थे कि जोबन का सुखबीर की बहन के साथ चक्कर चल रहा था. उन के दिमाग में यह बात भी आई कि कहीं इस रंजिश की वजह से सुखबीर ने जोबन को सबक सिखाने के लिए गायब तो नहीं करवा दिया.

बहरहाल, तरसेम ने इन सब बातों से अपने रिश्तेदारों को अवगत करवाया और तरसपाल को अपने साथ ले कर थाने पहुंच गया. थानाप्रभारी किरणदीप सिंह को उन्होंने जोबन के लापता होने से ले कर अब तक की पूरी बात विस्तार से बता दी. थानाप्रभारी के पूछने पर तरसपाल ने बताया कि जोबन को फोन कर के सुखबीर सिंह उर्फ हीरा ने ही बुलाया था. सुखबीर के साथ 2 और युवक भी थे, जिन्होंने मुंह पर कपड़ा बांध रखा था. वे तीनों जोबन को गांव शेरो बागा के स्कूल के ग्राउंड में ले गए थे, जहां पर झगड़े के दौरान सुखबीर ने जोबन के सिर पर ईंट से वार किया. इस से जोबन की मौके पर ही मौत हो गई थी. इस के बाद सुखबीर ने अपने साथियों के साथ मिल कर जोबन की लाश ब्यास नदी में फेंक दी.

तरसपाल का बयान दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी किरणदीप सिंह ने 3 जुलाई, 2018 को भादंवि की धारा 302 के तहत सुखबीर सिंह और 2 अन्य लोगों के खिलाफ जोबन की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के बाद पुलिस ने सुखबीर के घर दबिश दे कर उसे गिरफ्तार कर लिया. सुखबीर से प्रारंभिक पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर जोबन की हत्या में शामिल दूसरे युवक लवप्रीत सिंह को भी गांव के बाहर से गिरफ्तार कर लिया. 4 जुलाई, 2018 को पुलिस ने सुखबीर और लवप्रीत को अदालत में पेश कर 2 दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया. रिमांड के दौरान हुई पूछताछ के दौरान सुखबीर सिंह ने जोबन की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था. विस्तार से की गई पूछताछ के बाद इस हत्या की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस प्रकार से थी. कह सकते हैं कि यह मामला औनर किलिंग का था.

सुखबीर सिंह उर्फ हीरा अमृतसर के गांव अर्क के एक मध्यवर्गीय परिवार से था. उस के पिता बलबीर सिंह इतना कमा लेते थे जिस से घर खर्च और अन्य जरूरतें आराम से पूरी हो जाती थीं. सुखबीर 2 भाईबहन थे. किसी कारणवश सुखबीर ने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी थी. अब सुखबीर और उस के मातापिता का एक ही सपना था कि वे किसी तरह अपनी बेटी पम्मी को उच्चशिक्षा दिलाएं. इस के लिए सुखबीर भी जीतोड़ मेहनत कर रहा था. एक कहावत है कि जब इंसान के जीवन में 16वां साल तूफान बन कर आता है तो कोई विरला ही अपने आप को इस तूफान से बचा पाता है, ज्यादातर लोग तूफान की चपेट में आ जाते हैं. जोबन और पम्मी के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ था. जोबन करीब 20 साल का  था और पम्मी 16 पार कर चुकी थी. दोनों एक ही गांव के और एक ही जाति के थे.

आग और घी जब आसपास हों तो आंच पा कर घी पिघल ही जाता है. दुनिया और समाज के अंजाम की परवाह किए बिना जोबन और पम्मी प्रेम अग्नि के कुंड में कूद पड़े थे. लगभग एक साल तक तो किसी को उन की प्रेम कहानी का पता नहीं चला था. क्योंकि मिलनेजुलने में दोनों बड़ी ऐहतियात बरतते थे. पर ये बात जगजाहिर है कि इश्क और मुश्क कभी छिपाए नहीं छिपते. एक न एक दिन किसी न किसी को तो खबर लग ही जाती है. किसी माध्यम से सुखबीर को जब अपनी बहन के प्रेम प्रसंग के बारे में पता चला तो जैसे घर में तूफान आ गया. सुखबीर को ज्यादा गुस्सा इस बात पर था कि वह बहन पम्मी को ऊंचाई तक पहुंचाना चाहता था और वह गलत रास्ते पर जा रही थी. गुस्सा या मारपीट करने से कोई लाभ नहीं था. उस ने पम्मी को प्यार से काफी समझाया.

पम्मी ने भी भाई को साफसाफ बता दिया कि वह जोबन के बिना नहीं रह सकती. सुखबीर अपनी बहन की खुशियों के लिए शायद उस की बात मान भी लेता, पर समस्या यह थी कि जोबन पर अदालत में एक आपराधिक मुकदमा चल रहा था. सुखबीर नहीं चाहता था कि उस की बहन ऐसे आदमी से शादी करे जो अपराधी किस्म का हो. बहन को समझाने के बाद उस ने जोबन के पास जा कर उस के सामने हाथ जोड़ कर उसे समझाया, ‘‘जोबन, हम एक ही गांव के हैं और एक साथ खेलकूद कर बड़े हुए हैं. मैं तुम्हारे हाथ जोड़ता हूं कि मेरी बहन का पीछा छोड़ दो और हमें और हमारे सपनों को बरबाद न करो.’’

जोबन ने आश्वासन तो दे दिया कि वह आइंदा पम्मी से नहीं मिलेगा पर ऐसा हुआ नहीं. वह पम्मी से मिलता रहा. घटना से एक दिन पहले सुखबीर ने जोबन को पम्मी के साथ गांव के बाहर खेतों में देख लिया. उस समय वह खून का घूंट पी कर खामोश रह गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह इस समस्या का समाधान कैसे करे. काफी सोचने के बाद उस ने जोबन को अपनी बहन की जिंदगी से हमेशा के लिए दूर करने का फैसला कर लिया. पर यह काम वह अकेले नहीं कर सकता था, इसलिए इस काम के लिए उस ने अपने दोस्त लवप्रीत और सुरजीत को भी अपनी योजना में शामिल कर लिया. जोबन सहित ये सभी लोग एकदूसरे के दोस्त थे.

अगले दिन पहली जुलाई की रात में सुखबीर ने जोबन को फोन कर के मिलने के लिए गांव के स्कूल के ग्राउंड में बुलाया. उस ने कहा था कि पम्मी के बारे में जरूरी बात करनी है. उस वक्त लवप्रीत और सुरजीत उस के साथ थे. सुखबीर ने पहले से ही तय कर लिया था कि पहले वह जोबन को समझाएगा. अगर वह नहीं माना तो उसे अंत में ठिकाने लगा देगा. पर ऐसा नहीं हुआ. बातोंबातों में उन के बीच बात इतनी बढ़ गई कि दोनों का आपस में झगड़ा हो गया. इसी दौरान सुखबीर ने पास पड़ी ईंट उठा कर पूरी ताकत से जोबन के सिर पर दे मारी, जिस से जोबन लुढ़क गया और मौके पर ही उस की मौत हो गई.

जोबन की मौत के बाद तीनों घबरा गए. अपना अपराध छिपाने के लिए उन्होंने मिल कर उस की लाश पास में बह रही ब्यास नदी में बहा दी और अपनेअपने घर चले गए. चूंकि नदी से जोबन की लाश बरामद करनी थी, इसलिए पुलिस ने गोताखोरों की टीम बुलवा कर काफी खोजबीन की. 4-5 दिनों की कड़ी मेहनत के बाद भी जोबन की लाश नहीं मिल सकी. जिन थाना क्षेत्रों से नदी गुजरती थी, थानाप्रभारी ने वहां की पुलिस से भी संपर्क किया कि उन के क्षेत्र में कोई लाश तो बरामद नहीं हुई है. कथा लिखे जाने तक जोबन की लाश पुलिस को नहीं मिली थी.

रिमांड अवधि खत्म होने के बाद पुलिस ने सुखबीर और लवप्रीत को अदालत में पेश कर जिला जेल भेज दिया. इस हत्या में शामिल तीसरे अभियुक्त सुरजीत की पुलिस तलाश कर रही है.

—पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में पम्मी परिवर्तित नाम है.

UP Crime news : पत्थर से वार कर दोस्त की खोपड़ी के किए कई टुकड़े

UP Crime news : मनीष जिस सौरभ को अपना सब से अच्छा दोस्त समझता था, पैसों के लालच में वही उस का सब से खतरनाक दुश्मन बन गया था. मनीष को घर से गए 24 घंटे से ज्यादा बीत गए थे. इतनी देर तक वह घर वालों को बताए बिना कभी गायब नहीं रहा था. उस के भाई अनिल ने कई बार उस के दोनों फोन नंबरों पर फोन किया था, लेकिन हर बार उस के दोनों नंबरों ने स्विच्ड औफ बताया था. इस के बावजूद वह बीचबीच में फोन मिलाता रहा कि शायद फोन मिल ही जाए. पूरा घर मनीष को ले कर काफी परेशान था.

संयोग से सुबह 7 बजे के लगभग मनीष का फोन मिल गया. मनीष के फोन रिसीव करते अनिल ने कहा, ‘‘मनीष, तू कहां है? कल से तेरा कुछ पता नहीं चल रहा है, तुझे घरपरिवार की इज्जत की भी फिक्र नहीं है. तू किसी को कुछ बताए बगैर ही दोस्तों के साथ मटरगश्ती कर रहा है?’’

‘‘भाई… मैं घंटे भर में घर पहुंच रहा हूं.’’ दूसरी तरफ से मनीष की लड़खड़ाती आवाज आई.

लड़खड़ाती आवाज सुन कर अनिल चौंका. उस की समझ में नहीं आया कि वह इस तरह क्यों बोल रहा है. उस ने कहा, ‘‘वो तो ठीक है. तू घंटे भर में नहीं सवा घंटे में आ जाना, लेकिन यह तो बता कि कल शाम से तेरे दोनों फोन बंद क्यों हैं? और तेरी आवाज को क्या हुआ है, जो इस तरह आ रही है?’’

‘‘भैया, वो क्या है कि मेरे फोन गाड़ी में रह गए थे.’’ मनीष की आवाज फिर लड़खड़ाई. इस के साथ फोन कट गया. अनिल ने तुरंत फोन मिलाया, लेकिन फोन का स्विच औफ हो गया. जिस तरह मनीष की आवाज लड़खड़ा रही थी. साफ लग रहा था कि वह बहुत ज्यादा नशे में है. 24 वर्षीय मनीष संगत की वजह से शराब भी पीने लगा था. इसलिए अनिल ने तय किया कि उस के आते ही वह उस से बात करेगा कि वह अपनी आदत सुधारेगा या नहीं?

जिस समय अनिल मनीष से फोन पर बातें कर रहा था, उस समय उस की मां और घर के अन्य लोग भी वहीं बैठे थे. मनीष से हुई बातचीत अनिल ने घर वालों को बताई तो वे और ज्यादा परेशान हो उठे. उन्हें चिंता होने लगी कि वह गलत लोगों के साथ तो नहीं उठनेबैठने लगा. चूंकि अनिल की मनीष से बात हो चुकी थी, इसलिए वह यह सोच कर अपनी दुकान पर चला गया कि घंटे, 2 घंटे में मनीष घर लौट ही आएगा. अब वह शाम को उस से बात करेगा.

शाम के 5 बज गए, लेकिन न तो मनीष घर आया और न ही उस का कोई फोन ही आया. बूढ़े पिता ओमप्रकाश गुप्ता बेटे की चिंता में पिछली रात भी नहीं सो पाए थे. बेटे को ले कर सारी रात उन के मन में उलटेसीधे विचार आते रहे. अब दूसरा दिन भी बीत गया था और उस का कुछ पता नहीं चल रहा था. अनिल दुकान से जल्दी ही घर आ गया था. वह मनीष के कुछ दोस्तों को जानता था. उस ने उन से भाई के बारे में पूछा, लेकिन उन से उस के बारे में कोई खास जानकारी नहीं मिली. 12 फरवरी को जब मनीष घर से निकला था, तो बड़ी बहन शशि ने उसे फोन किया था. तब उस ने कहा था कि वह मोंटी के मेडिकल स्टोर पर बैठा है और आधे घंटे में घर आ जाएगा.

मोंटी उर्फ मुकेश शर्मा का मेडिकल स्टोर लंगड़े की चौकी में था. अनिल अपने भाई राजीव के साथ मोंटी की दुकान पर पहुंचा. जब अनिल ने मोंटी से मनीष के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘मनीष कल दोपहर को यहां आया तो था, लेकिन घंटे भर बाद मोटरसाइकिल से चला गया था. यहां से वह कहां गया, यह मुझे पता नहीं. वहां से निराश हो कर दोनों भाई मनीष की अन्य संभावित स्थानों पर तलाश करने लगे, लेकिन उस का कहीं कुछ पता नहीं चला. थकहार कर दोनों भाई रात 11 बजे तक घर लौट आए. बीचबीच में वह मनीष को फोन भी मिलाते रहे, लेकिन उस के दोनों फोन स्विच्ड औफ ही बताते रहे. किसी अनहोनी की आशंका से घर की महिलाओं ने रोनापीटना शुरू कर दिया. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि मनीष ऐसी कौन सी जगह चला गया है, जहां से उस से फोन पर बात नहीं हो पा रही है.

खैर, जैसेतैसे रात कटी. अगले दिन पूरे मोहल्ले में मनीष के 2 दिनों से गायब होने की खबर फैल गई. मोहल्ले वाले गुप्ता के यहां सहानुभूति जताने के लिए आने लगे. उन्हीं लोगों के साथ राजीव और अनिल जीवनी मंडी पुलिस चौकी पहुंचे और चौकी प्रभारी सूरजपाल सिंह को मनीष के लापता होने की जानकारी दी. यह पुलिस चौकी थाना छत्ता के अंतर्गत आती है, इसलिए सूरजपाल सिंह उन्हें ले कर थाने पहुंचे. थानाप्रभारी भानुप्रताप सिंह को जब मनीष के गायब होने की जानकारी दी गई तो उन्होंने तुरंत उस की गुमशुदगी दर्ज करा कर मामले की जांच एसएसआई रमेश भारद्वाज को सौंप दी.

जब उन्हें पता चला कि मनीष अपनी मोटरसाइकिल (UP Crime news) यूपी80एवाई 4799 से घर से निकला था तो उन्होंने वायरलैस से जिले के समस्त थानों को मनीष का हुलिया और उस की मोटरसाइकिल का नंबर बता कर उस के गायब होने की सूचना देने के साथ कहलवाया कि अगर इन के बारे में कुछ पता चलता है तो तुरंत थाना छत्ता को सूचना दें. यह मैसेज प्रसारित होने के कुछ देर बाद ही थाना सदर बाजार से थाना छत्ता को सूचना मिली कि मैसेज में बताई गई नंबर की नीले रंग की मोटरसाइकिल पिछली शाम को एक रेस्टोरेंट के सामने लावारिस हालात में बरामद हुई है. थाना सदर बाजार आगरा कैंट रेलवे स्टेशन के नजदीक है.

एसएसआई रमेश भारद्वाज ने यह खबर मिलने के बाद अनिल को थाने बुलाया और उसे साथ ले कर थाना सदर बाजार पहुंचे, ताकि वह मनीष की बाइक को पहचान कर सके. थाना सदर बाजार पुलिस ने जब उसे रेस्टोरेंट के सामने से लावारिस हालत में बरामद की गई मोटरसाइकिल दिखाई गई तो अनिल ने उसे तुरंत पहचान लिया. वह मोटरसाइकिल मनीष की थी. मनीष गुप्ता का परिवार आर्थिक रूप से काफी संपन्न था. वह हाथों में सोने की वजनी  अंगूठियां और गले में सोने की काफी वजनी चेन पहने था. उस के मोबाइल फोन भी काफी महंगे थे. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी ने लूटपाट कर के उस का कत्ल कर के लाश कहीं फेंक दी हो. लव एंगल की भी संभावना थी. इस बारे में पुलिस ने अनिल से पूछा भी, लेकिन उस का कहना था कि इस तरह की कोई बात उस ने नहीं सुनी थी. अगले महीने उस की शादी भी होने वाली थी.

एसएसआई रमेश भारद्वाज ने मनीष के दोनों फोन नंबरों को सर्विलांस पर लगवाने के साथ उन की पिछले 5 दिनों की काल डिटेल्स भी निकलवाई. 13 फरवरी, 2014 को मनीष के दोनों फोनों की लोकेशन लंगड़े की चौकी की मिली थी. इस के बाद लोकेशन खेरिया मोड़ अर्जुननगर की आई. वहीं से उस की अनिल से अंतिम बार बात हुई थी. इस का मतलब वह वहीं से लापता हुआ था. घर वाले भी अपने स्तर से मनीष के बारे में छानबीन कर रहे थे. उस के स्टेट बैंक औफ बीकानेर, आईडीबीआई, एक्सिस बैंक और एचडीएफसी बैंकों में खाते थे, जिन में उस के लाखों रुपए जमा थे. मनीष के पास हर समय इन बैंकों के डेबिड कार्ड रहते थे.’

मनीष के बड़े भाई राजीव ने सभी बैंकों में जा कर छानबीन की तो पता चला कि अयोध्या कुंज, अर्जुननगर की आईसीआई सीआई बैंक के एटीएम से 13 फरवरी की शाम 17 हजार 5 सौ रुपए निकाले गए थे. इस के अलावा 14,15 और 16 फरवरी को अलगअलग एटीएम कार्डों से साढ़े 3 लाख रुपए निकाले गए थे. यह बात जान कर घर वालों को आश्चर्य हुआ कि मनीष ने इतने पैसे क्यों निकाले. यह जानकारी उन्होंने पुलिस को दी. जीवन मंडी पुलिस चौकी के इंचार्ज सूरजपाल सिंह राजीव गुप्ता के साथ पास ही स्थित एचडीएफसी बैंक गए. उन्होंने ब्रांच मैनेजर से इस बारे में बात की तो ब्रांच मैनेजर ने बताया कि मनीष गुप्ता के खाते से एटीएम कार्ड द्वारा उस रोज 11 बज कर 19 मिनट पर डेबिड कार्ड द्वारा पैसे निकाले गए थे. वे रुपए मोतीलाल नेहरू रोड स्थित भारतीय स्टेट बैंक के एटीएम बूथ से निकाले गए थे.

पुलिस जानती थी कि पैसे निकालने वाले का भारतीय स्टेट बैंक के एटीएम बूथ पर लगे सीसीटीवी कैमरे में फोटो जरूर आया होगा. उस दिन की फुटेज हासिल करने के लिए पुलिस ने स्टेट बैंक औफ इंडिया के अधिकारियों से बात की. जब बैंक अधिकारियों ने पुलिस और राजीव गुप्ता को फुटेज दिखाई तो पता चला, मनीष के खाते से पैसे निकालने वाला कोई और नहीं, मनीष का दोस्त सौरभ शर्मा था. सौरभ शर्मा मुकेश शर्मा उर्फ मोंटी का सगा भांजा था. उस की मोबाइल फोन रिचार्ज करने और एसेसरीज बेचने की दुकान थी. राजीव गुप्ता अकसर उसी के यहां से अपना मोबाइल रिचार्ज कराते थे. उस की दुकान मोंटी के मेडिकल स्टोर के बराबर में ही थी.

मनीष ने अपने पैसे सौरभ से क्यों निकलवाए थे, इस बारे में सौरभ ही बता सकता था. पुलिस राजीव को साथ ले कर सौरभ शर्मा की दुकान पर पहुंची. वह दुकान पर ही मिल गया. पुलिस के साथ राजीव और अनिल को देख कर वह सकपका गया. सबइंस्पेक्टर सूरजपाल सिंह ने उस से मनीष के बारे में पूछा तो उस ने उस के बारे में कुछ भी बताने से साफ मना कर दिया. परंतु जब उसे एटीएम के कैमरे की फुटेज दिखाई गई तो उस ने कहा, ‘‘क्या इस में मैं मनीष गुप्ता के एटीएम कार्ड्स से रुपए निकालता दिख रहा हूं. सर, उस समय मैं अपने कार्ड से रुपए निकालने गया था.’’

सौरभ झूठ बोला रहा था, यह बात पुलिस और राजीव गुप्ता अच्छी तरह जान रहे थे. पुलिस उस के खिलाफ और सुबूत जुटाना चाहती थी, इसलिए उस समय उस से ज्यादा कुछ नहीं कहा. चौकीप्रभारी ने यह बात थानाप्रभारी भानुप्रताप सिंह को बताई. मनीष के बारे में कोई जानकारी न मिलने से लोगों में पुलिस के प्रति गुस्सा बढ़ता जा रहा था. जनता आंदोलन न कर दे, इस से पहले ही एसएसपी शलभ माथुर ने इस मामले को ले कर एसपी (सिटी) सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज, क्षेत्राधिकारी करुणाकर राव और थानाप्रभारी भानुप्रताप सिंह को अपने औफिस में बुला कर मीटिंग की और जल्द से जल्द इस मामले का खुलासा करने के निर्देश दिए.

वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का आदेश मिलते ही थानाप्रभारी ने सौरभ शर्मा और उस के मामा मोंटी उर्फ मुकेश शर्मा को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. मोंटी ने बताया कि जिस समय मनीष उस के मेडिकल स्टोर पर आया था, वह दुकान पर नहीं था. उस समय मेडिकल पर सौरभ था. सौरभ ने मोंटी की इस बात की पुष्टि भी की. इस के बाद पुलिस ने सौरभ से मनीष के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि मनीष पर बाजार का करीब 15 लाख रुपए का कर्ज हो गया है, इसलिए वह गोवा भाग गया है.

‘‘अगर वह गोवा भाग गया है तो उस का एटीएम कार्ड तुम्हारे पास कैसे आया, जिस से तुम ने पैसे निकाले थे?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘सर, मैं ने उस के नहीं, अपने कार्ड से पैसे निकाले थे.’’ सौरभ ने कहा.

पुलिस ने जब उस के खाते की जांच की तो पता चला कि उस ने उस दिन अपने खाते से पैसे निकाले ही नहीं थे. इस सुबूत को सौरभ झुठला नहीं सकता था, इसलिए उस ने स्वीकार कर लिया कि मनीष के एटीएम कार्ड्स से पिछले 3-4 दिनों में साढ़े 3 लाख रुपए उसी ने निकाले थे. पुलिस ने जब उस से मनीष के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि अपने भांजे रिंकू शर्मा के साथ मिल कर उस ने मनीष की हत्या कर उस की लाश को चंबल के बीहड़ों में फूंक दी है. जब घर वालों को पता चला कि उस के दोस्तों ने मनीष की हत्या कर दी है तो घर में हाहाकार मन गया.

पुलिस मनीष की लाश बरामद करना चाहती थी. चूंकि उस समय अंधेरा हो चुका था इसलिए बीहड़ में लाश ढूंढना आसान नहीं था. अगले दिन यानी 18 फरवरी, 2014 की सुबह इंसपेक्टर भानुप्रताप सिंह की अगुवाई में गठित  एक पुलिस टीम सौरभ शर्मा को ले कर चंबल के बीहड़ों में जा पहुंची. टीम सौरभ शर्मा द्वारा बताए स्थान पर पहुंची तो वहां लाश नहीं मिली. सौरभ पुलिस टीम को वहां 3 घंटे तक इधरउधर घुमाता रहा. पुलिस ने जब सख्ती की तो आखिर वह पुलिस को वहां से करीब 4 किलोमीटर दूर अरंगन नदी के पास स्थित एक पैट्रोल पंप के पीछे ले गया. उस ने बताया कि यहीं से उस ने मनीष की लाश को खाई में फेंकी थी.

खाई में भी पुलिस को लाश दिखाई नहीं दी. इस से अनुमान लगाया गया कि जंगली जानवर लाश खींच ले गए हैं. लिहाजा पुलिस इधरउधर लाश ढूंढने लगी. करीब 15 मिनट बाद एक पुराने खंडहर के पीछे एक सड़ीगली लाश दिखाई दी. लाश काफी विकृत अवस्था में थी. उस का चेहरा किसी भारी चीज से कुचला गया था. उस का दाहिना हाथ शरीर के सारे कपड़े गायब थे. बाएं हाथ की एक अंगुली में सोने की अंगूठी थी. उसी अंगूठी और जूतों से मनीष के भाई राजीव ने लाश की शिनाख्त की. लाश की स्थिति से अनुमान लगाया कि मनीष की हत्या कई दिनों पहले की गई थी. मनीष की लाश बरामद होने की बात राजीव ने अपने घर वालों को बता दी.

मौके की जरूरी काररवाई पूरी कर के पुलिस लाश ले कर आगरा आ गई. जैसे ही लाश पोस्टमार्टम हाउस पहुंची, सैकड़ों की संख्या में लोग वहां पहुंच गए. पुलिस के खिलाफ लोगों का गुस्सा भड़क उठा और वहां से जीवनी मंडी पुलिस चौकी पहुंच कर वहां से गुजरने वाले वाहनों को अपने गुस्से का शिकार बनाना शुरू कर दिया. लोग दुकानों पर तोड़फोड़ और लूटपाट करने लगे. इस में कई राहगीर भी घायल हुए. मौके पर जो 2-4 पुलिसकर्मी थे वे उन्हें समझाने और रोकने में असमर्थ रहे. उसी समय शहर के मेयर वहां पहुंचे तो भीड़ ने उन की गाड़ी को भी क्षतिग्रस्त कर दिया. किसी तरह गनर के साथ भाग कर वह सुरक्षित जगह पर पहुंचे. यह हंगामा लगभग एक घंटे तक चलता रहा.

ऐसा लग रहा था मानो शहर में पुलिस नाम की कोई चीज ही नहीं है. जब एसपी (सिटी) सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज काफी फोर्स के साथ वहां पहुंचे और हंगामा करने वालों पर लाठीचार्ज किया गया तब जा कर हंगामा रुका. पूछताछ में सौरभ शर्मा ने मनीष की हत्या की जो कहानी पुलिस को बताई, वह ‘मन में राम बगल में छुरी’ वाली कहावत को चरितार्थ करने वाली थी. मनीष गुप्ता आगरा जिले के थाना छत्ता के मोहल्ला मस्वा की बगीची का रहने वाला था. वह अपने 9 बहनभाइयों में 8वें नंबर पर था. उस के पिता ओमप्रकाश गुप्ता की इलैक्ट्रिकल की दुकान थी, जिस से उन्हें अच्छी आमदनी होती थी. बीएससी करने के बाद मनीष पिता के साथ दुकान पर बैठने लगा था.

पिछले 8-9 महीने से मनीष दवाइयों का कारोबार करने लगा था. उस के संबंधों और व्यवहार की वजह से उस का यह कारोबार चल निकला था. उसे मोटी कमाई होने लगी थी. उस ने कई बैंकों में अपने खाते खोल लिए थे. मनीष गुप्ता अपने खानपान और पहनावे का काफी खयाल रखता था. शौकीन होने की वजह से वह महंगे मोबाइल फोन रखता था. दोनों हाथों की अंगुलियों में 7 सोने की अंगूठियां और गले में काफी वजनी सोने की चेन पहने रहता था. यह सब देख कर कोई भी उस की संपन्नता को समझ सकता था. वैसे तो अपनी उम्र के तमाम लड़कों के साथ उस का उठनाबैठना था, लेकिन उन में से 5-7 लोग उस के काफी करीबी थे. उन के साथ उस की दांत काटी रोटी थी. उन्हीं में से एक था सौरभ शर्मा. खेरिया मोड़, अर्जुननगर का रहने वाला सौरभ मनीष का ऐसा दोस्त था, जो मनीष की हर बात को जानता था.

सौरभ के पिता का देहांत हो चुका था. वह अपने परिवार के साथ किराए के मकान में रहता था. उस के मामा मोंटी उर्फ मुकेश शर्मा का लंगड़े की चौकी में मेडिकल स्टोर था. इस के अलावा मोंटी प्रौपर्टी डीलिंग का काम भी करता था. मोंटी ने अपने मेडिकल स्टोर के पास एक केबिन बनवा कर उस में सौरभ को मोबाइल रिचार्ज और एसेसरीज का धंधा करा दिया था. मनीष मोंटी के मेडिकल स्टोर पर दवाएं सप्लाई करता था. इसलिए वहां आने पर सौरभ से अपना मोबाइल फोन रिचार्ज करा लेता था. सौरभ मनीष के हमउम्र था, इसलिए उस की उस से दोस्ती हो गई.

सौरभ काफी तेजतर्रार था. उसी की मार्फत मनीष ने आईसीआईसीआई और एचडीएफसी बैंकों में खाते खुलवाए थे. मनीष को उस पर इतना विश्वास हो गया था कि कई बार उस ने अपने खातों में मोटी रकम जमा कराने के लिए सौरभ को भेज दिया था. सौरभ और मनीष बेशक गहरे दोस्त थे, लेकिन दोनों के स्तर में जमीनआसमान का अंतर था. सौरभ भी चाहता था कि उस के पास भी ढेर सारे पैसे हों. लेकिन उस छोटी सी दुकान की आमदनी से उस की यह इच्छा पूरी नहीं हो सकती थी. लिहाजा उस ने अपने धनवान दोस्त की दौलत के सहारे अपनी इच्छा पूरी करने की योजना बनाई. उस योजना में उस ने अपने भांजे रिंकू को भी शामिल कर लिया. रिंकू की स्थिति भी सौरभ जैसी ही थी. दोनों ने सलाहमशविरा कर के मनीष के पैसे हड़पने की एक फूलप्रूफ योजना बना डाली.

13 फरवरी, 2014 को देपहर के समय मनीष घर से खापी कर अपनी मोटरसाइकिल से मोंटी के मेडिकल स्टोर पर पहुंचा. उस समय मोंटी अपनी दुकान पर नहीं था. सौरभ ही वहां बैठा था. सौरभ ने मनीष से अपनी प्रेमिका से मिलवाने की बात कही. पहले तो मनीष ने टाल दिया, लेकिन बारबार कहने पर मनीष तैयार हो गया. तब सौरभ ने मनीष को अर्जुननगर अपने घर के पास भेज कर इंतजार करने को कहा. मनीष अर्जुननगर तिराहे पर पहुंच कर सौरभ का इंतजार करने लगा. करीब 2 मिनट बाद सौरभ वहां पहुंचा. सौरभ उस की मोटरसाइकिल पर बैठ गया तो मनीष उस के बताए स्थान की तरफ चल दिया. रास्ते में सौरभ का भांजा रिंकू शर्मा भी मिल गया. सौरभ ने उसे भी उसी मोटरसाइकिल पर बैठा लिया.

सौरभ उसे अर्जुननगर के ही एक कमरे पर ले गया, जिसे रिंकू शर्मा ने अपनी पढ़ाई के लिए किराए पर ले रखा था. कुछ देर बाद रिंकू मनीष के लिए कोल्डड्रिंक की एक बोतल ले आया. उस कोल्डड्रिंक में रिंकू ने नींद की दवा मिला रखी थी. कोल्डड्रिंक पीने के बाद मनीष बेहोश होने लगा. तब तक अंधेरा हो चुका था. मनीष की आंखें झपकने लगीं तो सौरभ अपने असली रूप में आते हुए बोला, ‘‘मनीष, मैं ने तुम्हें किडनैप कर लिया है. अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो तुम्हें काट कर किसी नाले में फेंक दिया जाएगा.’’

मनीष जानता था कि उस का दोस्त सौरभ गुस्सैल और लड़ाकू है, लेकिन उसे यह पता नहीं था कि वह पैसों के लिए इतना गिर सकता है. उस की जान खतरे में थी. वह बेहोशी की तरफ बढ़ रहा था. फिर भी जान खतरे में देख कर उस ने हाथ जोड़ कर सौरभ से पूछा, ‘‘तुझे क्या चाहिए भाई? मुझे बता दे. मैं तुझे वह सब कुछ दे दूंगा.’’

‘‘फिलहाल तो तू अपनी जेब में रखे सभी एटीएम कार्ड्स मुझे दे कर उन के पिन नंबर बता दे. अर्द्धबेहोशी की हालत में भी मनीष समझ रहा था कि अगर उस ने एटीएम कार्ड्स और पिन नंबर नहीं दिए तो ये दोनों उस के साथ कुछ भी कर सकते हैं. लिहाजा उस ने अपने सभी एटीएम कार्ड्स उसे सौंपते हुए उन के पिन नंबर बता दिए. इस के थोड़ी देर बाद मनीष पूरी तरह बेहोश हो गया. मनीष के बेहोश होते ही सौरभ ने उसी शाम एक एटीएम कार्ड का इस्तेमाल कर के पास के ही आईसीआईसीआई बैंक के एटीएम से साढ़े 7 हजार रुपए निकाल लिए. उस समय रिंकू मनीष की निगरानी कर रहा था.

सौरभ ने मनीष के दोनों मोबाइल फोनों को स्विच औफ कर दिया था. रात में मनीष को होश न आ जाए, सौरभ ने उसे बेहोशी का इंजेक्शन लगा दिया. मनीष के परिवार वालों को गुमराह करने के लिए अगले दिन सुबह सौरभ ने उस के दोनों फोन चालू कर दिए. दूसरी ओर मनीष के गायब होने से उस के घर वाले परेशान थे. इस बीच जब मनीष के भाई अनिल का फोन आया तो मनीष होश में नहीं था. फिर सौरभ ने उसे पहले ही बता दिया था कि उसे फोन पर क्या कहना है. इसलिए फोन रिसीव कर के मनीष ने वही कहा जो सौरभ ने कहने के लिए कहा था.

भाई से बात कराने के बाद सौरभ ने उसे पुन: बेहोशी का इंजेक्शन लगा दिया. उस के बाद दोनों मोबाइल फिर बंद कर दिए. उन्होंने उस के हाथों की अंगूठियां और गले से चेन निकाल ली. योजना के अनुसार उन्होंने एक ही अंगूठी छोड़ दी थी. अब वह उसे ठिकाने लगाने योजना बनाने लगे. योजनानुसार 14 फरवरी, 2014 की सुबह करीब साढ़े 9 बजे रिंकू अरनौटा गांव जाने को कह कर एक टैंपो ले आया. यह गांव चंबल के बीहड़ में पड़ता है.

अर्द्धबेहोशी की हालत में उन दोनों ने मनीष को उस टैंपो में बैठा दिया. सौरभ मनीष के साथ टैंपो में बैठ गया तो रिंकू मनीष की मोटरसाइकिल ले कर टैंपो के पीछेपीछे चलने लगा. अरनौटा गांव के पास सुनसान जगह पर मनीष को टैंपो से उतार कर उन्होंने मोटरसाइकिल पर बैठा लिया और बसई अरेला गांव के नजदीक आंगन नदी के पैट्रोल पंप के पीछे की झाडि़यों में जा पहुंचे. वहां उन्होंने उस की गला दबा कर हत्या कर दी.

मनीष की शिनाख्त न होने पाए इस के लिए उन्होंने उस के कपड़ों व चेहरे पर तेजाब डाल कर उसे जला दिया. तेजाब वे अपने साथ ले कर आए थे. मनीष के दाहिने हाथ को पत्थर पर रख कर दूसरा भारी पत्थर पटक कर उस के उस हाथ को शरीर से अलग कर दिया. दूसरे हाथ की भी सारी अंगुलियां तोड़ दीं. एक अंगूठी इन लोगों ने जानबूझ कर उस की अंगुली में छोड़ दी थी कि अगर पुलिस को लाश मिल भी जाए तो वह उसे प्रेम प्रसंग के चलते नफरत में की गई हत्या समझे, लूट की वजह से नहीं. वहां से चलने से पहले सौरभ और रिंकू ने एक भारी पत्थर उठा कर मनीष के सिर पर दे मारा. मनीष की खोपड़ी कई टुकड़ों में बंट गई. लाश को बुरी तरह क्षतिग्रस्त करने के बाद दोनों ने उसे 40-50 फुट नीचे गहरी खाई में फेंक दी और फिर आगरा लौट आए.

फतेहाबाद रोड स्थित एटीएम से एक लाख 10 हजार रुपए अलगअलग कार्डों के जरिए निकाल लिए. इस के बाद उन्होंने मनीष की मोटरसाइकिल (UP Crime news) आगरा कैंट रेलवे स्टेशन के बाहर खड़ी कर दी और घर चले गए. सौरभ ने मनीष एटीएम कार्डों से कुल साढ़े 3 लाख रुपए निकाले. मनीष के गहने और एटीएम से निकाले रुपए दोनों ने आपस में बांट लिए. मनीष की मोटरसाइकिल आगरा कैंट स्टेशन के बाहर जीआरपी ने बरामद कर के इस की सूचना थाना सदर बाजार को दे दी थी, जिसे बाद में मनीष के भाई ने पहचान लिया था. सौरभ और रिंकू के खिलाफ भादंवि की धारा 364, 302, 201 के तहत मामला दर्ज कर लिया गया. इस के बाद उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

दूसरे अभियुक्त रिंकू की गिरफ्तारी के लिए कई जगहों पर दविश डाली गई, लेकिन वह नहीं मिल सका. कथा संकलन तक वह फरार था. पुलिस उसे सरगर्मी से तलाश रही है. मामले की विवेचना एसएसआई रमेश भारद्वाज कर रहे हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.