Crime News: आशिक बन गया ब्लैकमेलर – दोस्त की दगाबाजी

Crime News: कभी दोस्ती तो कभी तथाकथित प्यार के झांसे में आ कर कई लड़कियां ब्लैकमेलरों के चक्कर में फंस जाती हैं. मतलब शरीर ही नहीं, उन से पैसे भी मांगे जाते हैं.

‘‘तुझे क्या लगता है कि आत्महत्या कर लेने से तेरी समस्या दूर हो जाएगी?’’

‘‘समस्या दूर हो या न हो, लेकिन मैं हमेशा के लिए इस दुनिया से दूर हो जाऊंगी. तू नहीं जानती नेहा मेरा खानापीना, सोना यहां तक कि पढ़ना भी दूभर हो गया है. हर वक्त डर लगा रहता है कि न जाने कब उस का फोन आ जाए और वह मुझे फिर अपने कमरे में बुला कर…’’ कहते हुए रंजना (बदला नाम) सुबक उठी तो उस की रूममेट नेहा का कलेजा मुंह को आने लगा. उसे लगा कि वह अभी ही खुद जा कर उस कमबख्त कलमुंहे मयंक साहू का टेंटुआ दबा कर उस की कहानी हमेशा के लिए खत्म कर दे, जिस ने उस की सहेली की जिंदगी नर्क से बदतर कर दी है.

अभीअभी नेहा ने जो देखा था, वह अकल्पनीय था. रंजना खुदकुशी करने पर आमादा हो आई थी, जिसे उस ने जैसेतैसे रोका था लेकिन साथ ही वह खुद भी घबरा गई थी. उसे इतना जरूर समझ आ गया था कि अगर थोड़ा वक्त रंजना से बातचीत कर गुजार दिया जाए तो उस के सिर से अपनी जिंदगी खत्म कर लेने का खयाल उतर जाएगा. लेकिन उस की इस सोच को कब तक रोका जा सकता है. आज नहीं तो कल रंजना परेशान हो कर फिर यह कदम उठाएगी. वह हर वक्त तो रूम पर रह नहीं सकती.

रंजना को समझाने के लिए वह बड़ेबूढ़ों की तरह बोली, ‘‘इस में तेरी तो कोई गलती नहीं है, फिर क्यों किसी दूसरे के गुनाह की सजा खुद को दे रही है. यह मत सोच कि इस से उस का कुछ बिगड़ेगा, उलटे तेरी इस बुजदिली से उसे शह और छूट ही मिलेगी. फिर वह बेखौफ हो कर न जाने कितनी लड़कियों की जिंदगी बरबाद करेगा, इसलिए हिम्मत कर के उसे सबक सिखा. यह बुजदिली तो कभी भी दिखाई जा सकती है. जरा अंकलआंटी के बारे में सोच, जिन्होंने बड़ी उम्मीदों और ख्वाहिशों से तुझे यहां पढ़ने भेजा है.’’

रंजना पर नेहा की बातों का वाजिब असर हुआ. उस ने खुद को संभालते हुए कहा, ‘‘फिर क्या रास्ता है, वह कहने भर से मानने वाला होता तो 3 महीने पहले ही मान गया होता. जिस दिन वह तसवीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर देगा, उस दिन मेरी जिंदगी तो खुद ही खत्म हो जाएगी. जिन मम्मीपापा की तू बात कर रही है, उन पर क्या गुजरेगी? वे तो सिर उठा कर चलने लायक तो क्या, कहीं मुंह दिखाने लायक भी नहीं रहेंगे.’’

‘‘एक रास्ता है’’ नेहा ने मुद्दे की बात पर आते हुए कहा, ‘‘बशर्ते तू थोड़ी सी हिम्मत और सब्र से काम ले तो यह परेशानी चुटकियों में हल हो जाएगी.’’ माहौल को हलका बनाने की गरज से नेहा ने सचमुच चुटकी बजा डाली.

‘‘क्या, मुझे तो कुछ नहीं सूझता?’’

‘‘कोड रेड पुलिस. वह तुझे इस चक्रव्यूह से ऐसे निकाल सकती है कि सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी.’’

कोड रेड पुलिस के बारे में रंजना ने सुन रखा था कि पुलिस की एक यूनिट है जो खासतौर से लड़कियों की सुरक्षा के लिए बनाई गई है और एक काल पर आ जाती है. ऐसे कई समाचार उस ने पढ़े और सुने थे कि कोड रेड ने मनचलों को सबक सिखाया या फिर मुसीबत में पड़ी लड़की की तुरंत मदद की.

रंजना को नेहा की बातों से आशा की एक किरण दिखी, लेकिन संदेह का धुंधलका अभी भी बरकरार था कि पुलिस वालों पर कितना भरोसा किया जा सकता है और बात ढकीमुंदी रह पाएगी या नहीं. इस से भी ज्यादा अहम बात यह थी कि वे तसवीरें और वीडियो वायरल नहीं होंगे, इस की क्या गारंटी है.

इन सब सवालों का जवाब नेहा ने यह कह कर दिया कि एक बार भरोसा तो करना पड़ेगा, क्योंकि इस के अलावा कोई और रास्ता नहीं है. मयंक दरअसल उस की बेबसी, लाचारगी और डर का फायदा उठा रहा है. एक बार पुलिस के लपेटे में आएगा तो सारी धमाचौकड़ी भूल जाएगा और शराफत से फोटो और वीडियो डिलीट कर देगा, जिन की धौंस दिखा कर वह न केवल रंजना की जवानी से मनमाना खिलवाड़ कर रहा था, बल्कि उस से पैसे भी ऐंठ रहा था.

कलंक बना मयंक

20 वर्षीय रंजना और नेहा के बीच यह बातचीत बीती अप्रैल के तीसरे सप्ताह में हो रही थी. दोनों जबलपुर के मदनमहल इलाके के एक हौस्टल में एक साथ रहती थीं और अच्छी फ्रैंड्स होने के अलावा आपस में कजिंस भी थीं. रंजना यहां जबलपुर के नजदीक के एक छोटे से शहर से आई थी और प्रतिष्ठित परिवार से थी. आते वक्त खासतौर से मम्मी ने उसे तरहतरह से समझाया था कि लड़कों से दोस्ती करना हर्ज की बात नहीं है, लेकिन उन से तयशुदा दूरी बनाए रखना जरूरी है.

बात केवल दुनिया की ऊंचनीच समझाने की नहीं, बल्कि अपनी बड़ी हो गई नन्हीं परी को आंखों से दूर करते वक्त ढेरों दूसरी नसीहतें देने की भी थी कि अपना खयाल रखना. खूब खानापीना, मन लगा कर पढ़ाई करना और रोज सुबहशाम फोन जरूर करना, जिस से हम लोग बेफिक्र रहें.

यह अच्छी बात थी कि रंजना को बतौर रूममेट नेहा मिली थी, जो उन की रिश्तेदार भी थी. जबलपुर आकर रंजना ने हौस्टल में अपना बोरियाबिस्तर जमाया और पढ़ाईलिखाई और कालेज में व्यस्त हो गई. मम्मीपापा से रोज बात हो जाने से वह होम सिकनेस का शिकार होने से बची रही. जबलपुर में उस की जैसी हजारों लड़कियां थीं, जो आसपास के इलाकों से पढ़ने आई थीं, उन्हें देख कर भी उसे हिम्मत मिलती थी. मम्मी की दी सारी नसीहतें तो उसे याद रहीं लेकिन लड़कों वाली बात वह भूल गई. खाली वक्त में वह भी सोशल मीडिया पर वक्त गुजारने लगी तो देखते ही देखते फेसबुक पर उस के ढेरों फ्रैंड्स बन गए. वाट्सऐप और फेसबुक से भी उसे बोरियत होने लगी तो उस ने इंस्टाग्राम पर भी एकाउंट खोल लिया.

इंस्टाग्राम पर वह कभीकभार अपनी तसवीरें शेयर करती थी, लेकिन जब भी करती थी तब उसे मयंक साहू नाम के युवक से जरूर लाइक और कमेंट मिलता था. इस से रंजना की उत्सुकता उस के प्रति बढ़ी और जल्द ही दोनों में हायहैलो होने लगी. यही हालहैलो होतेहोते दोनों में दोस्ती भी हो गई. बातचीत में मयंक उसे शरीफ घर का महसूस हुआ तो शिष्टाचार और सम्मान का पूरा ध्यान रखता था. दूसरे लड़कों की तरह उस ने उसे प्रपोज नहीं किया था.

मयंक बुनने लगा जाल

20 साल की हो जाने के बाद भी रंजना ने कोई बौयफ्रैंड नहीं बनाया था, लेकिन जाने क्यों मयंक की दोस्ती की पेशकश वह कुबूल कर बैठी, जो हौस्टल के रूम से बाहर जा कर भी विस्तार लेने लगी. मेलमुलाकातों और बातचीत में रंजना को मयंक में किसीतरह का हलकापन नजर नहीं आया. नतीजतन उस के प्रति उस का विश्वास बढ़ता गया और यह धारणा भी खंडित होने लगी कि सभी लड़के छिछोरे टाइप के होते हैं. मयंक भी जबलपुर के नजदीक गाडरवारा कस्बे से आया था. यह इलाका अरहर की पैदावार के लिए देश भर में मशहूर है. बातों ही बातों में मयंक ने उसे बताया था कि पढ़ाई के साथसाथ वह एक कंपनी में पार्टटाइम जौब भी करता है, जिस से अपनी पढ़ाई का खर्च खुद उठा सके.

अपने इस बौयफ्रैंड का यह स्वाभिमान भी रंजना को रिझा गया था. कैंट इलाके में किराए के कमरे में रहने वाला मयंक कैसे रंजना के इर्दगिर्द जाल बुन रहा था, इस की उसे भनक तक नहीं लगी. दोस्ती की राह में फूंकफूंक कर कदम रखने वाली रंजना को यह बताने वाला कोई नहीं था कि कभीकभी यूं ही चलतेचलते भी कदम लड़खड़ा जाते हैं. इसी साल होली के दिनों में मयंक ने रंजना को अपने कमरे पर बुलाया तो वह मना नहीं कर पाई. उस दिन को रंजना शायद ही कभी भूल पाए, जब वह आगेपीछे का बिना कुछ सोचे मयंक के रूम पर चली गई थी. मयंक ने उस का हार्दिक स्वागत किया और दोनों इधरउधर की बातों में मशगूल हो गए. थोड़ी देर बाद मयंक ने उसे कोल्डड्रिंक औफर किया तो रंजना ने सहजता से पी ली.

रंजना को यह पता नहीं चला कि कोल्डड्रिंक में कोई नशीली चीज मिली हुई है, लिहाजा धीरेधीरे वह होश खोती गई और थोड़ी देर बाद बेसुध हो कर बिस्तर पर लुढ़क गई. मयंक हिंदी फिल्मों के विलेन की तरह इसी क्षण का इंतजार कर रहा था. शातिर शिकारी की तरह उस ने रंजना के कपड़े एकएक कर उतारे और फिर उस के संगमरमरी जिस्म पर छा गया.

कुछ देर बाद जब रंजना को होश आया तो उसे महसूस हुआ कि कुछ गड़बड़ हुई है. पर क्या हुई है, यह उसे तब समझ में नहीं आया. मयंक ने ऐसा कुछ जाहिर नहीं किया, जिस से उसे लगे कि थोड़ी देर पहले ही उस का दोस्त उसे कली से फूल और लड़की से औरत बना चुका है. दर्द को दबाते हुए लड़खड़ाती रंजना वापस हौस्टल आ कर सो गई. कुछ दिन ठीकठाक गुजरे, लेकिन जल्द ही मयंक ने अपनी असलियत उजागर कर दी. उस ने एक दिन जब ‘उस दिन’ का वीडियो और तसवीरें रंजना को दिखाईं तो उसे अपने पैरों के नीचे से जमीन खिसकती नजर आई. खुद की ऐसी वीडियो और फोटो देख कर शरीफ और इज्जतदार घर की कोई लड़की शर्म से जमीन में धंस जाने की दुआ मांगने लगती. ऐसा ही कुछ रंजना के साथ हुआ.

दोस्त नहीं, वह निकला ब्लैकमेलर

वह रोई, गिड़गिड़ाई, मयंक के पैरों में लिपट गई कि वह यह सब वीडियो और फोटो डिलीट कर दे. लेकिन मयंक पर उस के रोनेगिड़गिड़ाने का कोई असर नहीं हुआ. तुम आखिर चाहते क्या हो, थकहार कर उस ने सवाल किया तो जवाब में ऐसा लगा मानो सैकड़ों प्राण, अजीत, रंजीत, प्रेम चोपड़ा और शक्ति कपूर धूर्तता से मुसकरा कर कह रहे हों कि हर चीज की एक कीमत होती है जानेमन. यह कीमत थी मयंक के साथ फिर वही सब अपनी मरजी से करना जो उस दिन हुआ था. इस के अलावा उसे पैसे भी देने थे. अब रंजना को समझ आया कि उस का दोस्त या आशिक जो भी था, ब्लैकमेलिंग पर उतारू हो आया है और उस की बात न मानने का खामियाजा क्याक्या हो सकता है, इस का अंदाजा भी वह लगा चुकी थी.

मरती क्या न करती की तर्ज पर रंजना ने उस की शर्तें मानते हुए उसे शरीर के साथसाथ 10 हजार रुपए भी दे दिए. लेकिन उस ने उस की तसवीरें और वीडियो डिलीट नहीं किए. उलटे अब वह रंजना को कभी भी अपने कमरे पर बुला कर मनमानी करने लगा था. साथ ही वह उस से पैसे भी झटकने लगा था. रंजना चूंकि जरूरत से ज्यादा झूठ बोल कर मम्मीपापा से पैसे नहीं मांग सकती थी, इसलिए एक बार तो उस ने मम्मी की सोने की चेन चुरा कर ही मयंक को दे दी. रंजना 3 महीने तक तो चुपचाप मयंक की हवस पूरी कर के उसे पैसे भी देती रही, लेकिन अब उसे लगने लगा था कि वह एक ऐसे चक्रव्यूह में फंस गई है, जिस से निकलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. ऐसे में उस ने अपनी जिंदगी खत्म करने का फैसला ले लिया.

नेहा अगर वक्त रहते न बचाती तो वह अपने फैसले पर अमल भी कर चुकी होती. लेकिन नेहा ने उसे न केवल बचा लिया, बल्कि मयंक को भी उस के किए का सबक सिखा डाला. नेहा ने कोड रेड पुलिस टीम को इस ब्लैकमेलिंग के बारे में जब विस्तार से बताया तो टीम ने रंजना को कुछ इस तरह समझाया कि वह आश्वस्त हो गई कि उस की पहचान भी उजागर नहीं होगी और वे फोटो व वीडियो भी हमेशा के लिए डिलीट हो जाएंगे. साथ ही मयंक को उस के जुर्म की सजा भी मिलेगी. कोड रेड की इंचार्ज एसआई माधुरी वासनिक ने रंजना को पूरी योजना बताई, जिस से मय सबूतों के उसे रंगेहाथों धरा जा सके. इतनी बातचीत के बाद रंजना का खोया आत्मविश्वास भी लौटने लगा था.

योजना के मुताबिक फुल ऐंड फाइनल सेटलमेंट के लिए 26 अप्रैल को रंजना ने मयंक को भंवरताल इलाके में बुलाया. सौदा 20 हजार रुपए में तय हुआ. उस वक्त सुबह के कोई 6 बजे थे, जब मयंक पैसे लेने आया. कोड रेड के अधिकारी पहले ही सादे कपड़ों में चारों तरफ फैल गए थे. माधुरी वासनिक फोन पर रंजना के संपर्क में थीं. जैसे ही मयंक रंजना के पास पहुंचा तो पुलिस वालों ने उसे चारों तरफ से घेर लिया. शुरू में तो वह माजरा समझ ही नहीं पाया और दादागिरी दिखाने लगा. लेकिन जैसे ही उसे पता चला कि सादा लिबास में ये लोग पुलिस वाले हैं तो उस के होश फाख्ता हो गए. जल्द ही वह सच सामने आ गया जो मयंक के कैमरे में कैद था.

मयंक का मोबाइल देखने के बाद जब इस बात की पुष्टि हो गई कि रंजना वाकई ब्लैकमेल हो रही थी तो बहुत देर से उस का इंतजार कर रहे पुलिस वालों ने उस की सड़क पर ही तबीयत से धुनाई कर डाली. पुलिस ने उसे कई तमाचे रंजना से भी पड़वाए, जिन्हें मारते वक्त उस के चेहरे पर प्रतिशोध के भाव साफसाफ दिख रहे थे. तमाशा देख कर भीड़ इकट्ठी होने लगी तो पुलिस वाले मयंक को जीप में बैठा कर थाने ले गए और उस पर बलात्कार और ब्लैकमेलिंग का मामला दर्ज कर के उसे हवालात भेज दिया.

फिल्म अभी बाकी है

ब्लैकमेलिंग की एक कहानी का यह सुखद अंत हर उस लड़की के नसीब में नहीं होता जो किसी मयंक के जाल में फंसी छटपटा रही होती है और थकहार कर खुदकुशी करने के अलावा उसे कोई रास्ता नजर नहीं आता. इस मामले से यह तो सबक मिलता है कि लड़कियां अगर हिम्मत से काम लें और पुलिस वालों के साथसाथ घर वालों को भी सच बता दें, तो बड़ी मुसीबत से बच सकती हैं. नेहा की दिलेरी और समझ रंजना के काम आई, इस से लगता है कि सहेलियों को भी भरोसे में ले कर ब्लैकमेलरों को सबक सिखाया जा सकता है.

ऐसी हालत में आत्महत्या करना समस्या का समाधान नहीं है. समाधान है ब्लैकमेलर्स को उन की मंजिल हवालात और अदालत का रास्ता दिखाना. मगर इस के पहले यह भी जरूरी है कि अकेले रह रहे लड़कों पर भरोसा कर के उन से अकेले में न मिला जाए. Crime News

Suicide Case: प्यार जिंदगी ही नहीं मौत भी देता है

Suicide Case: दिशा डाक्टरी पढ़ रही थी तभी उसे अपने सीनियर शुभेंदु सारस्वत से प्यार हो गया. उस ने उस से विवाह भी कर लिया. शादी के बाद आखिर ऐसा क्या हुआ कि दिशा को आत्महत्या करनी पड़ी. एकलौती बेटी होने की वजह से दिशा मांबाप की बेहद लाड़ली थी. उस के मांबाप के पास इतना कुछ था कि उस ने जो चाहा, उसे वह मिला. पिता रविंद्र सलूजा और मां अनीता सलूजा ने उस की हर इच्छा पूरी की थी. मूलरूप से टैगोर गार्डन, दिल्ली के रहने वाले रविंद्र सलूजा यूनाइटेड बैंक आफ इंडिया में मैनेजर थे. उन के परिवार में पत्नी अनीता सलूजा, बेटा रजत और बेटी दिशा सलूजा थी. उन की तबादले वाली नौकरी थी. पिछले कई सालों से उन की तैनाती आगरा के फ्रीगंज स्थित शाखा में थी.

आगरा में रविंद्र सलूजा थाना न्यू आगरा के दयालबाग स्थित प्रतीक्षा एन्कलेव में मोहनलाल की कोठी नंबर 69 का ग्राउंड फ्लोर किराए पर ले कर रह रहे थे. रजत ने गुड़गांव से सौफ्टवेयर इंजीनियरिंग की पढा़ई की तो उसे वहीं किसी कंपनी में नौकरी मिल गई थी. रजत की नौकरी लग गई तो रविंद्र सलूजा ने मुजफ्फरनगर के बिजनसमैन गुलशन बाटला की बेटी सिल्की से उस की शादी कर दी थी. गे्रजुएशन करने के बाद दिशा ने मोदीनगर के डी.जे. डेंटल कालेज में दाखिला ले लिया था. वहां वह कालेज के गर्ल्स हौस्टल में रहती थी. वे दिन दिशा की जिंदगी के गोल्डन डेज थे. उन्हीं दिनों दिशा की मुलाकात शुभेंद्र सारस्वत से हुई. वह उस का सीनियर था.

शुभेंदु दिल्ली के शाहदरा के गोरख पार्क एक्सटेंशन का रहने वाला था. वह मोदीनगर के उसी कालेज से एमडी कर रहा था, जहां से दिशा बीडीएस कर रही थी. उस के पिता स्व. भारतेंदु सारस्वत कश्मीरी ब्राह्मण थे, जबकि मां बीना सारस्वत पजांबी थीं. भारतेंदु आयुर्वेदिक डाक्टर थे, बरसों पहले उन की मौत हो चुकी थी. पति की मौत के बाद बीना सारस्वत ने बेटे शुभेंदु और बेटी सुनैना की परवरिश की थी. वह दिल्ली के सरिता विहार स्थित सेंट जोसेफ एकेडमी में अध्यापिका थीं. सुनैना की शादी अभिलेश के साथ हुई थी. वह पति के साथ दुबई में रहती थी. एकलौता बेटा होने की वजह से बीना की सारी उम्मीदें शुभेंदु पर ही टिकी थीं.

कालेज की लाइबे्ररी में जब दिशा की मुलाकात शुभेंदु से हुई तो दिशा में उस ने ऐसा न जाने क्या देखा कि उस का मन उस पर रीझ गया. इस के बाद वह दिशा के बारे में जानकारियां जुटाने लगा. आतेजाते मुलाकात होने पर दिशा और शुभेंदु के बीच हायहैलो होने लगी थी. कालेज में तमाम लड़कियां थीं, जिन में कुछ तो बहुत ही खूबसूरत थीं, लेकिन शुभेंदु का दिल दिशा पर ही आ गया था. उस का मन करता था कि वह दिशा को देखता रहे और ढेर सारी बातें करे. दिशा खूबसूरत थी तो शुभेंदु भी कम आकर्षक नहीं था. वह लंबाचौड़ा, गोराचिट्टा और खुशमिजाज नौजवान था. अपने आकर्षक व्यक्तिव से वह किसी को भी बांध लेने की क्षमता रखता था. यही नहीं, वह अपने कैरियर के प्रति भी गंभीर था. इसलिए उस का देखना दिशा को भी अच्छा लगता था.

दोनों भले ही एकदूसरे के प्रति अपनेअपने मनों में कोमल भावनाएं महसूस करने लगे थे, लेकिन आगे आ कर मन की बात कहने की पहल किसी ने नहीं की थी. जब शुभेंदु को पता चला कि दिशा मांबाप की एकलौती बेटी है. उस के पिता बैंक में मैनेजर हैं और भाई भी अच्छी नौकरी में है. इस के बाद वह दिशा के साथ भविष्य की कल्पना करने ही नहीं लगा था, बल्कि एक दिन हिम्मत कर के दिशा से कह भी दिया कि वह उस से प्यार करता है.

शुभेंदु दिशा का सीनियर था. वह उसे मन ही मन पसंद करने के साथ उस का सम्मान भी करती थी. लेकिन एकदम से फैसला नहीं ले सकती थी, इसलिए निर्णय के लिए उस ने समय मांगा. तब शुभेंदु ने कहा, ‘‘दिशा, मैं तुम्हें ले कर काफी गंभीर हूं और तुम्हें अपना जीवनसाथी बनाना चाहता हूं.’’

‘‘मैं कहां कह रही हूं कि आप गंभीर नहीं हैं, फिर भी पूरी जिंदगी का सवाल है, इसलिए एकदूसरे को समझना बेहद जरूरी है. मैं ऐसे गंभीर मामले पर इतनी जल्दी फैसला नहीं ले सकती.’’ दिशा ने कहा.

दिशा ने शुभेंदु से न मना किया था और न ही हां की थी. लेकिन जब उस ने मन ही मन गौर किया तो उसे लगा कि शुभेंदु ठीकठाक लड़का है. जीवनसाथी के रूप में एक लड़की जिस तरह के पति की कामना करती है, वह सब कुछ उस में है. इस से आकर्षण की डोर कुछ और मजबूत हुई तो दिशा ने अपना फोन नंबर शुभेंदु को दे कर उस का भी फोन नंबर ले लिया. दिशा और शुभेंदु के बीच फोन पर बातें होने लगीं. इन बातों में दोनों एकदूसरे की पसंद नापसंद बताते, घरपरिवार पर चर्चा करते. इन बातों से धीरेधीरे मन का संकोच खत्म होता गया और दोनों करीब आते गए.

अब दोनों को जब भी मौका मिलता, साथ घूमने भी चले जाते, कभीकभी खाना भी बाहर ही खा लेते. दोनों का यह प्यार मौजमस्ती के लिए नहीं, शादी के लिए था. इसलिए एक दिन दिशा ने कहा, ‘‘हम दोनों ने तो शादी का निर्णय ले लिया, जबकि हमारे घर वालों को अभी इस की भनक तक नहीं है.’’

‘‘चिंता करने की जरूरत नहीं है,’’ शुभेंदु ने कहा, ‘‘इस बार घर जाऊंगा तो मम्मी को सब बता दूंगा.’’

‘‘अगर तुम्हारी मम्मी ने मना कर दिया तो…?’’

‘‘नहीं, मम्मी मेरी खुशी को ही अपनी खुशी समझती हैं, इसलिए मना नहीं करेंगी.’’ शुभेंदु ने आश्वस्त किया.

छुट्टियां होने पर शुभेंदु दिल्ली गया तो उस ने मां को दिशा का फोटो दिखा कर शादी की बात की. दिशा सुंदर तो थी ही, डाक्टरी की पढ़ाई भी कर रही थी, इसलिए बीना ने कहा, ‘‘लड़की भी ठीकठाक है और घरपरिवार भी. लेकिन तुम ने लवमैरिज कर लिया तो मेरे उन सपनों का क्या होगा, जो मैं ने अपने एकलौते बेटे को ले कर देखे हैं कि मैं अपने बेटे की खूब धूमधाम से शादी करूंगी और खूब दहेज लूंगी.’’

‘‘मम्मी मेरे और दिशा के प्यार के बीच यह दहेज कहां से आ गया? मैं शादी उसी से करूंगा.’’

मैं ने कब मना किया तुम उस से शादी मत करो. मैं चाहती हूं कि यह शादी दिशा के मांबाप की मर्जी से होनी चाहिए. क्योंकि उन की मर्जी से शादी होगी, तभी मेरा सपना पूरा होगा.’’ बीना सारस्वत ने कहा.

शुभेंदु ने दिशा से प्यार किया था और शादी करना चाहता था. लेकिन मां ने उस के मन में दहेज का लालच भर दिया. अब उस की सोच बदल गई. छुट्टी खत्म होने पर वह कालेज पहुंचा तो उस ने दिशा से कहा, ‘‘मैं ने मम्मी से बात कर ली है. अब मैं तुम्हारे मम्मीपापा से मिलना चाहता हूं.’’

‘‘ऐसी भी क्या जल्दी है. अभी तो हम पढ़ ही रहे हैं.’’ दिशा ने कहा.

‘‘नहीं, अब मैं पूरी तरह आश्वस्त हो जाना चाहता हूं, इसलिए तुम्हारे मम्मीपापा से मिलना चाहता हूं.’’

दरअसल, दिशा के मम्मीपापा से मिल कर शुभेंदु इस बात की जानकारी ले लेना चाहता था कि वे किस हद तक उस की मां के अरमान पूरे कर सकते हैं. लेकिन दिशा ने मना कर दिया था. उस ने कहा था कि पहले वह अपने मम्मीपापा से बात करेगी. उस के बाद अगर उन की अनुमति मिलेगी तो वह उसे उन से मिलवाएगी. इस के बाद दिशा घर गई तो उस ने भी मां को शुभेंदु के बारे में बता कर उस से शादी की इच्छा प्रकट की.

अनीता को खुशी हुई कि बेटी ने उन से कुछ नहीं छिपाया था. उन्हें लगा कि बेटी ने शुभेंदु को पसंद किया है तो सोचसमझ कर ही पसंद किया होगा. उन्हें बेटी की शादी कहीं न कहीं तो करनी ही थी. अगर बेटी की पसंद का लड़का ठीकठाक है तो उसी से शादी कर देने में क्या बुराई है1 उन्होंने दिशा से कह दिया कि वह शुभेंदु को उन से मिलवाए. शुभेंदु दिशा के साथ आगरा आया तो पहली ही नजर में वह रविंद्र और अनीता सलूजा को पसंद आ गया. उन्हें लगा कि शुभेंदु अकेला बेटा है, छोटे परिवार में उन की बेटी खुश और सुखी रहेगी. शुभेंदु ने भी पहली ही नजर में रविंद्र सलूजा की आर्थिक स्थिति का अंदाजा लगा लिया था. वह समझ गया कि सलूजा दंपति शादी में दहेज देने में कोई कसर नहीं रखेंगे. आकर्षक व्यक्तित्व वाले शुभेंदु ने मीठीमीठी बातें कर के रविंद्र और अनीता सलूजा के दिल में अपने लिए जगह बना ली.

लड़का एमडी कर रहा था और अच्छे परिवार से था. सलूजा दंपति को लगा कि बेटी के लिए और क्या चाहिए. दिशा के लिए वह उन्हें उचित लगा, इसलिए वे निश्चिंत हो गए. दिशा और शुभेंदु अपनी पढ़ाई पूरी करने में लगे थे. रविंद्र सलूजा पत्नी के साथ दिल्ली गए और बीना सारस्वत से मिल कर बात आगे बढ़ाई. बीना ने भी मीठीमीठी बातें कर के सलूजा दंपति को अपने जाल में फंसा लिया. बीना ने कहा कि उन्हें अपने बेटे की खुशी के अलावा और कुछ नहीं चाहिए. बेटे की खुशी के लिए ही वह दिशा को अपनी बहू बना रही हैं.

दोनों की सगाई हो गई. जब दिशा और शुभेंदु की सगाई होने की बात कालेज के दोस्तों को पता चली तो उन्हें हैरानी हुई कि दिशा शुभेंदु से शादी को कैसे राजी हो गई? दरअसल शुभेंदु सिगरेट ही नहीं, शराब भी पीता था. उस का चरित्र भी ठीक नहीं था. जब यह सब दिशा को पता चला तो परेशान हो गई. उस ने शुभेंदु से पूछा तो वह हंसते हुए बोला, ‘‘यार, तुम भी कितनी भोली हो. लगता है, लोग हमारी खुशियों से जलने लगे हैं. हम हाई सोसाइटी के लोग हैं. कभीकभार दोस्तों के साथ पार्टी में पीनापिलाना हो जाता है. मैं कोई आदी तो नहीं हूं.’’

दिशा असमंजस मे फंस गई कि वह क्या करे? इस के अलावा उसे एक बात यह भी परेशान करने लगी थी कि अब शुभेंदु उस पर हुक्म चलाने लगा था. इसी असमंजस में दिशा घर चली गई. वह घर पहुंची भी नहीं थी कि शुभेंदु का फोन आ गया. फोन अनीता ने उठाया तो उस ने कहा, ‘‘आंटी, आप की बेटी मुझे बिना बताए ही आगरा चली गई. यह अच्छी बात नहीं है.’’

शुभेंदु का बातचीत का लहजा अनीता को अच्छा नहीं लगा कि अभी तो सगाई ही हुई है तो यह हाल है. जब शादी हो जाएगी तो पता नहीं क्या होगा. यही नहीं, बीना का भी फोन आता था तो उस का भी लहजा अजीब होता था. अब तक दिशा की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी और वह दांतों की डाक्टर बन गई थी. संयोग से उसे उसी कालेज में नौकरी मिल गई थी. अनीता ने महसूस किया कि दिशा भी कुछ परेशान सी है. उन्होंने दिशा से परेशानी की वजह पूछी तो उस ने सब कुछ सचसच बता दिया. शाम को उन्होंने रविंद्र सलूजा से पूरी बात बता कर सगाई तोड़ने को कहा तो उन्होंने दिशा से पूछा, ‘‘तुम क्या कहती हो दिशा?’’

दिशा काफी उलझन में थी. उसे डर लग रहा था कि उस का यह कदम कहीं उस के भविष्य के लिए कोई खतरा न बन जाए. काफी सोचविचार कर उस ने कहा, ‘‘पापा, पहले तो वह मुझ से बड़ी अच्छीअच्छी बातें करता था. उस की बातों में ही आ कर मैं उस से प्यार कर बैठी. अब जो बातें मुझे पता चली हैं, मैं ने आप को बता दी हैं. आप जो निर्णय लेंगे, मुझे ऐतराज नहीं होगा.’’

आखिर में तय हुआ कि यह रिश्ता करना ठीक नहीं है. अगले दिन अनीता ने फोन कर के बीना से कह दिया कि वे लोग यह रिश्ता नहीं कर सकते. यह सुन कर बीना के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उन्होंने तुरंत शुभेंदु को फोन कर के आगरा जाने को कहा. शुभेंदु आगरा पहुंचा और दिशा के मम्मीपापा से मिला. उस ने साफसाफ कहा, ‘‘मैं दिशा को आत्मा से प्यार करता हूं और उस के बिना जिंदा नहीं रह सकता. अगर यह शादी नहीं हुई तो वह आत्महत्या कर लेगा.’’

उस ने अपनी बातों से दिशा ही नहीं, उस के मम्मीपापा को विश्वास दिलाया कि वह दिशा को पलकों पर बिठा कर रखेगा. वह जहां चाहेगी, उसे नौकरी करने देगा. अगर वह अपना क्लिनिक चलाना चाहेगी तो वह उस के लिए क्लिनिक खुलवा देगा. रविंद्र और अनीता सलूजा को लगा कि शुभेंदु सचमुच दिशा को बहुत प्यार करता है. शुरूशुरू में इस तरह की बातें होती ही रहती हैं. शादी के बाद सब ठीक हो जाएगा. उन्होंने शुभेंदु से शादी की तैयारी करने को कह दिया. इस के बाद बीना भी आगरा गईं और अपनी मीठीमीठी बातों से सलूजा दंपति का मन मोह लिया. उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि उन्हें कुछ नहीं चाहिए. वे जो कुछ भी देना चाहें, अपनी बेटी को दे सकते हैं.

10 नवंबर, 2011 को दिशा और शुभेंदु की शादी धूमधाम से हो गई. दिशा दुल्हन बन कर शुभेंदु के घर आ गई. शादी में रविंद्र सलूजा ने अपनी हैसियत के हिसाब से दहेज दिया था. लेकिन बीना को लगा, वह उन के हिसाब से काफी कम है. यह बात दिशा से कह भी दी गई.

तब दिशा ने शुभेंदु से शिकायत की, ‘‘यह हमारे बीच दहेज कहां से आ गया? हम ने तो प्रेम विवाह किया है.’’

‘‘छोड़ो न यार, मैं थोड़े ही कुछ कह रहा हूं. वह तो मम्मी कह रही हैं,’’ शुभेंदु ने कहा, ‘‘मम्मी की बात का क्या बुरा मानना.’’ अगले ही दिन बीना ने घर की सारी जिम्मेदारी दिशा पर डाल दी. यही नहीं, उन्होंने यह भी कह दिया कि अब वह नौकरी नहीं करेगी. तब दिशा को लगा, उस ने शुभेंदु से शादी कर के बहुत बड़ी गलती की है. लेकिन उस ने भी सास से साफसाफ कह दिया कि वह नौकरी बिलकुल नहीं छोड़ेगी.

15 दिनों बाद दिशा शुभेंदु के साथ मायके गई तो उस ने सारी बात मां से बता दी. तब अनीता ने शुभेंदु से कहा, ‘‘तुम्हारी मां जो कह रही हैं, वह ठीक नहीं है. तुम अपनी मां को समझाओ.’’

‘‘आंटी, मेरी ओर से तो दिशा को पूरी छूट है. आप चिंता न करें. मैं मम्मी को समझा दूंगा.’’ शुभेंदु ने सास को आश्वासन दिया.

ससुराल आने के बाद दिशा दिल्ली से मोदीनगर अपनी नौकरी पर जाने लगी. शादी के बाद शुभेंदु को भी मोदीनगर के यशोदा अस्पताल में नौकरी मिल गई थी. दिशा सिर्फ नौकरी ही नहीं करती थी, बल्कि शाम को आने पर घर के सारे काम भी उसी को करने पड़ते थे. इस समस्या के निदान के लिए शुभेंदु ने कहा, ‘‘अगर तुम अपने पापा से कुछ रुपए मांग लो तो हम तुम्हारे लिए घर के निचले हिस्से में क्लिनिक खुलवा दें.’’

न चाहते हुए भी दिशा ने अपने पापा से बात की. तब रविंद्र सलूजा ने आश्वासन ही नहीं दिया, बल्कि पूरी मदद की. उन्हीं की मदद से घर के निचले हिस्से में पर्ल डेंटल क्लिनिक खुल गई. दिशा अब घर का काम करने के साथसाथ क्लिनिक भी संभालने लगी. दिशा गर्भवती हुई तो बीना का कोई भी रिश्तेदार आता तो वह यही कहती कि उसे पोता ही चाहिए. सास के मुंह से पोते की रट सुनतेसुनते दिशा डर गई कि अगर उसे बेटी हो गई तो…? उस ने शुभेंदु से बात की तो उस ने कहा, ‘‘भई, हर कोई अपनी खुशी बेटे में ही देखता है. अगर मां ऐसा सोच रही हैं तो बुराई क्या है?’’

दिशा की डिलीवरी नजदीक आई तो शुभेंदु ने कहा कि उस के पास इतने पैसे नहीं हैं कि वह उस की डिलीवरी दिल्ली में करा सके. इसलिए वह आगरा चली जाए. दिशा ने यह बात मांबाप को बताई तो वे हैरान रह गए. बहरहाल बेटी की बात थी, इसलिए रविंद्र सलूजा ने फोन कर के कहा कि पैसे की कोई बात नहीं है, वह अस्पताल का सारा पेमेंट कर देंगे. 9 मार्च, 2013 को दिशा ने बेटी को जन्म दिया. बेटी पैदा होने पर बीना अस्पताल में रोने लगी. तब दिशा ने कहा, ‘‘मम्मी, बेटी की परवरिश मुझे करनी है, आप क्यों रो रही हैं?’’

दिशा की बेटी पुष्पांजलि अस्पताल में हुई थी. अस्पताल का सारा पेमेंट रविंद्र सलूजा ने कर दिया. अस्पताल से घर आने के बाद दिशा ने महसूस किया कि उस की बेटी को न तो पिता का प्यार मिल रहा है और न ही दादी का. कुछ दिनों बाद दिशा आगरा आ गई. दिशा 2 महीने तक मायके में रही, इस बीच न तो शुभेंदु ने दिशा और बेटी का हालचाल पूछा और न बीना ने. दिशा समझ गई कि यह बेटा न पैदा होने की सजा है. इस बार दिशा ससुराल आई तो शुभेंदु ने उस के साथ मारपीट भी शुरू कर दी. मारपीट हद पार करने लगी तो दिशा बगावत कर थाना वेलकम पहुंच गई. दिशा के थाने जाने की जानकारी बीना को हुई तो वह रिश्तेदारों के साथ थाने जा पहुंची. रिर्पोट लिखी जाती, उस के पहले ही पुलिस को आश्वस्त कर के वह दिशा को समझाबुझा कर घर ले आई. रिश्तेदारों ने भी दिशा से कहा कि घर की लड़ाई थाने ले जाना ठीक नहीं है.

उसी बीच दिशा को पथरी हो गई. शुभेंदु ने उस का औपरेशन कराने से मना कर दिया. तब दिशा ने अपने पापा से बात की. उन्होंने 25 हजार रुपए खाते में डलवाए तो शुभेंदु ने दिशा का औपरेशन करवाया. उसी दौरान किसी दिन शुभेंदु का मोबाइल फोन दिशा के हाथ लग गया तो उस ने मैसेज बौक्स खोला. उस में कई लड़कियों के रोमांटिक मैसेज थे. दिशा ने शुभेंदु को फोन दिखा कर पूछा, ‘‘यह सब क्या है?’’

दिशा के हाथ में अपना मोबाइल फोन देख कर शुभेंदु को गुस्सा आ गया. उस ने तड़ातड़ कई तमाचे दिशा को जड़ कर कहा, ‘‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरा मोबाइल फोन देखने की. तुम्हें क्या लगता है, तुम्हारे लिए मैं अन्य लड़कियों से संबंध तोड़ लूंगा.’’

शुभेंदु से मार तो दिशा पहले भी कई बार खा चुकी थी, लेकिन इस बार उस ने जो बातें कह दी थीं, वे वैवाहिक जीवन की चूलें हिला देने वाली थीं. साफ हो गया था कि अब यह शादी ज्यादा दिनों तक चलने वाली नहीं थी. वह सिर थाम कर बैठ गई. उस ने सारी बात मम्मीपापा को बताई तो उस समय वे अमेरिका में थे. 14 अगस्त, 2014 को वे दिल्ली आए तो उन्होंने शुभेंदु से कहा कि वह दिशा और उस की बेटी आर्या को को छोड़ जाए. उस समय वे दिल्ली के टैगोर गार्डन स्थित अपने घर पर थे. शुभेंदु दिशा और उस की बेटी आर्या को छोड़ गया तो रविंद्र और अनीता सलूजा उसे साथ ले कर आगरा आ गए. दिशा अब काफी तनाव में रहने लगी थी.

प्यार में धोखा खाई दिशा अकेली बैठी हमेशा सोच में डूबी रहती. उसे अपने और बेटी के भविष्य की चिंता सता रही थी. मांबाप कह रहे थे कि उस का तलाक करवा कर कहीं अच्छी जगह शादी कर देंगे. लेकिन एक बार धोखा खा चुकी दिशा अब शादी नहीं करना चाहती थी. उस की भाभी सिल्की भी उसे समझाती, खुश रखने की कोशिश करती. दिशा को उम्मीद थी कि शुभेंदु को अपनी गलती का अहसास होगा और वह अपने किए की माफी मांग कर उसे ले जाएगा. करवाचौथ पर दिशा आगरा में ही थी. उस ने व्रत भी रखा, लेकिन आने की कौन कहे, शुभेंदु ने फोन तक नहीं किया. पति की इस उपेक्षा से दिशा बेचैन हो उठी. उस ने खुद ही शुभेंदु को फोन किया. दोनों के बीच क्या बातें हुईं, किसी को पता नहीं चला. लेकिन इस बातचीत के बाद दिशा अवसादग्रस्त हो गई और व्रत तोड़े बगैर ही अपने कमरे में चली गई.

12 अक्टूबर, 2014 को रविंद्र सलूजा तीन दिनों की ट्रेनिंग के लिए दिल्ली चले गए. दिशा पूरी तरह अवसादग्रस्त हो चुकी थी. वह न कुछ खाती थी, न किसी से बात करती थी. गुमसुम न जाने क्या सोचा करती थी. पूरा परिवार समझ रहा था, लेकिन शायद शुभेंदु के बिना उसे जिंदगी बेकार लग रही थी. 15 अक्टूबर को दिशा सुबह 10 बजे के आसपास बड़ी मुश्किल से उठी और 11 बजे के आसपास नाश्ता कर के आर्या को ले कर अपने कमरे में चली गई. 12 बजे के आसपास सिल्की ने देखा कि वह अपने टेबलेट पर कुछ काम कर रही है. सिल्की रसोई में चली गई, अनीता ड्राइंगरूम में थी, तभी दिशा के कमरे से कुछ गिरने की आवाज आई. इसी के साथ आर्या जोरजोर से रोने लगी. सिल्की ने कहा, ‘‘मम्मी, लगता है आर्या गिर गई है.’’

सासबहू दिशा के कमरे की ओर भागीं. लेकिन अंदर से कुंडी लगी थी. उन्होंने दरवाजा खटखटाया, अंदर से कोई रिस्पौंस नहीं मिला. शोर सुन कर आसपड़ोस के लोग आ गए. बारबार दरवाजा खटखटाने पर अंदर कोई हलचल नहीं हुई तो बगल में काम करने वाले मजदूरों को बुला कर किसी तरह कुंडी तोड़वा कर दरवाजा खुलवाया गया. अंदर दिशा पंखे से लटकी हुई थी. नीचे एक स्टूल गिरा पड़ा था. उसे इस हालत में देख कर सभी सन्न रह गए. मजदूरों की मदद से उसे नीचे उतारा गया. अनीता ने जल्दी से कार निकाली और दिशा को अस्पताल पहुंचाया. रास्ते से ही अनीता ने फोन कर के पति को इस बारे में बता दिया था.

डाक्टरों ने दिशा को मृत घोषित कर दिया था. अस्पताल से थाना न्यू आगरा पुलिस को सूचना दे दी गई थी. थानाप्रभारी अजयपाल सिंह और सीओ अशोक कुमार तुरंत अस्पताल पहुंच गए थे. जरूरी काररवाई के बाद दिशा के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. 5 बजे रविंद्र सलूजा आगरा पहुंचे तो उन्होंने पुलिस अधिकारियों को एक तहरीर दी, जिस के आधार पर थाना न्यू आगरा में अपराध संख्या 991/2014 पर भांदंवि की धारा 487ए/304बी व 3/4 के तहत दिशा की सास बीना सारस्वत और पति शुभेंदु सारस्वत के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया.

दिशा के आत्महत्या की जानकारी शुभेंदु को भी दे दी गई थी. सूचना मिलते ही वह अपने वकील के साथ यह पता लगाने के लिए ससुराल पहुंच गया कि उस के खिलाफ तो कोई काररवाई नहीं हो रही. जब रिश्तेदार उसे उलटासीधा कहने लगे तो उस ने इस के लिए सासससुर को ही दोषी ठहराते हुए कहा, ‘‘इस में मेरी क्या गलती है. जो कुछ किया है, इन लोगों ने किया है. इसलिए मेरे खिलाफ कोई काररवाई हुई तो मैं तुम सभी लोगों को देख लूंगा.’’

पुलिस को शुभेंदु के आने की सूचना दे दी गई थी, लेकिन पुलिस पहुंचती, उस के पहले ही वह भाग निकला. पोस्टमार्टम के बाद दिशा का अंतिम संस्कार कर दिया गया. गिरफ्तारी के डर से बीना और शुभेंदु घर से फरार हो गए थे. लेकिन आगरा पुलिस ने दिल्ली पुलिस की मदद से 19 अक्टूबर को दोनों को गिरफ्तार कर लिया. फिलहाल दोनों जेल में है. निचली अदालत से उन की जमानतें भी नहीं हुई हैं. अब हाईकोर्ट से कोशिश की जा रही है. दिशा के आत्महत्या की जानकारी उस के दोस्तों और कालेज के छात्रों को हुई तो सभी आगरा स्थित उस के घर पहुंचे. उन्होंने रविंद्र सलूजा को आश्वासन दिया कि इंसाफ की इस लड़ाई में वे सभी उन के साथ हैं. बेटी तो गई ही, अब सलूजा दंपत्ति को दिशा की बेटी आर्या की चिंता है. Suicide Case

—कथा पुलिस सूत्रों, रविंद्र सलूजा एवं अनीता सलूजा द्वारा दी गई जानकारी पर आधारित

Crime News: 7 साल बाद पकड़ में आए हत्यारें

Crime News: इफ्खिर अहमद सुनहरे सपनों की चाह में इंग्लैंड गया था. वहां उसे सब कुछ मिला भी. लेकिन 2 शादियों और मजहबी चक्रव्यूह के कारण वह अपनी ही बेटी का हत्यारा बन बैठा. इस चक्कर में वह तो जेल गया ही, उस की पत्नी फरजाना भी नहीं बच सकी. इफ्तिखार अहमद मूलत: पाकिस्तान के गुजरात क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले गांव उत्ताम का निवासी था. वर्षों पहले जब वह युवा था, एक हसीन जिंदगी जीने का सपना संजो कर पाकिस्तान से इंग्लैंड आ गया था.

इफ्तिखार अहमद कोई खास पढ़ालिखा नहीं था, पर ड्राइविंग अच्छी जानता था, जो विदेश में आ कर उस के रोजगार का साधन बन गई. उस का बचपन भले ही बेहद गरीबी में गुजरा था, पर वह शुरू से महत्वकांक्षी था. बंदिशें उसे पसंद नहीं थीं. अलबत्ता अपने धर्म के प्रति वह पूरी तरह आस्थावान था. वह 6-7 वर्ष का था, तभी उस का रिश्ता उस के दूर के मामा की बेटी फरजाना से तय हो गया था. बड़ेबड़े सपने देखने वाला इफ्तिखार अकसर अपने दोस्तों से कहा करता था, ‘‘देखना एक दिन मैं बहुत बड़ा आदमी बनूंगा, दुनिया का हर ऐशोआराम मेरे कदमों में होगा.’’

दोस्त उसे टोक देते, ‘‘जमीन पर ही रह, हवा में मत उड़. घर में दो वक्त की रोटी नहीं, बनेगा बड़ा आदमी.’’

इफ्तिखार गुस्सैल स्वभाव का था. ऐसे तानें भला कैसे सुनता? उस ने दोस्तों से 2-4 हाथ कर लिए और चीख कर कहा, ‘‘तुम लोग यहीं सड़ते रहोगे. देखना, बड़ा हो कर मैं विदेश जाऊंगा. वहां जा कर हर कीमत पर अपने हालात बदल दूंगा.’’

खैर, किसी तरह बचपन अभावों में गुजरा. इफ्तिखार ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा और बचपन के सपनों में रंग भरने की कोशिश शुरू कर दी. यह अलग बात थी कि कुछ घर की माली हालात के चलते तो कुछ पढ़ाई में मन न लगने की वजह से वह जैसेतैसे नौवीं कक्षा ही पास कर पाया. पढ़ न पाने के कारण उसे कोई ढंग की नौकरी नहीं मिल सकती थी, ऊपर से घर वालोें का दबाव कि हमारा ना सही, अपना ही पेट भर ले. कोई और रास्ता न देख इफ्तिखार ने अपने एक जानकार ट्रक ड्राइवर के साथ कंडक्टरी शुरू कर दी. इसी दौरान उस ने ड्राइविंग भी सीख ली. धीरेधीरे हाथ साफ हो गया तो उस ने कंडक्टरी छोड़ दी और लाहौर आ कर किराए की टैक्सी चलाने लगा. उस ने 2 साल वहीं बिताए. फिर वह अपने घर वापस आ गया. इस बीच उस ने कुछ पैसे जोड़ लिए थे. अपना ख्वाब पूरा करने के लिए उस ने अपना पासपोर्ट बनवाया और फिर एक दिन फ्लाइट पकड़ कर इंग्लैंड आ गया.

इंग्लैंड में उसे हमवतन एजाज मिल गया, जिस ने उस की मदद की और उसे किराए पर चलाने के लिए टैक्सी दिलवा दी. इफ्तिखार मन लगा कर काम करने लगा. उसे यह बात अखरती थी कि उस की कमाई का ज्यादा हिस्सा तो टैक्सी मालिक के पास चला जाता है, सो उस ने बचत शुरू कर दी. 3-4 साल में उस ने काफी पैसे जोड़ लिए. कुछ पैसे कम पड़े तो एजाज ने मदद कर दी. पैसे एकत्र हो गए तो इफ्तिखार ने खुद की टैक्सी खरीद ली. अपनी टैक्सी आने के बाद सारा पैसा इफ्तिखार की जेब में आने लगा. पैसा आया तो उसे कई ऐब लग गए. इफ्तिखार को औरत के जिस्म का चस्का लग गया. वह अकसर देह बेचने वालियों के पास रातें बिताने लगा.

इसी दरम्यान उस की मुलाकात लोन एंडरसन नाम की एक लड़की से हुई, जो मूलत: डेनमार्क की रहने वाली थी और इंग्लैंड में एक बुकशौप में काम करती थी. दोनों की मुलाकातों का सिलसिला शुरू हुआ तो फिर रुका नहीं. वे अकसर मिलते रहते थे. इफ्तिखार उसे अपनी टैक्सी में भी घुमाता था. इस का नतीजा यह हुआ कि दोनों एकदूसरे को दिल दे बैठे. इफ्तिखर ने एक दिन अपने प्यार का इजहार किया तो लोन एंडरसन ने भी अपने दिल की बात कह दी. लोन एंडरसन बेशक पश्चिमी देश की थी, पर सभ्य और शालीन थी. एक दिन जब दोनों एकांत में मिले तो इफ्तिखार ने उस के सामने शारीरिक दूरी खत्म करने की चाहत बयान करते हुए कहा, ‘‘इस के बिना हमारा प्यार अधूरा है. मैं इसे मुकम्मल कर देना चाहता हूं.’’

लोन एंडरसन ने इफ्तिखार के चेहरे को गौर से देखा. फिर गंभीर आवाज में कहा, ‘‘शादी से पहले नहीं. मैं खुले विचारों की जरूर हूं, पर शादी के बाद ही अपना तन किसी पुरुष को सौपूंगी. इसीलिए मैं ने आज तक अपने नारीत्व की गरिमा को कायम रखा है.’’

‘‘शादी भी कर लेंगे, लेकिन आज दिल न तोड़ो.’’ इफ्तिखार ने गुजारिश की.

‘‘नहीं, कतई नहीं. मैं शादी से पहले इस की मंजूरी किसी हाल में नहीं दूंगी.’’ लोन एंडरसन ने साफ लहजे में सख्ती से मना कर दिया.

सुन कर इफ्तिखार का चेहरा उतर गया. वह मायूस हो गया. जबरदस्ती वह कर नहीं सकता था, सो मन मार कर रह गया. इस घटना के कुछ महीनों बाद आखिरकार इफ्तिखार और लोन एंडरसन ने कोपेनहेगन स्थित चर्च में शादी कर ली. यह सन 1981 के जून महीने की बात है. उसी रात दोनों ने एक होटल में हनीमून मनाया. 2 दिनों बाद इफ्तिखार होटल से उसे अपने घर ले आया. इस के बाद लोन एंडरसन के कहने पर इफ्तिखार उस के साथ डेनमार्क चला गया. वहां भी उस ने अपना टैक्सी ड्राइवर वाला काम कर लिया. दोनों खूब खुश थे और हंसीखुशी जिंदगी बिता रहे थे. शादी के एक साल बाद लोन एंडरसन ने इफ्तिखार के बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम टोनी एंडरसन रखा गया. इफ्तिखार चाहता था कि उसे अपनी मरजी का कोई मुसलिम नाम दे, पर लोन एंडरसन की इच्छा और डेनमार्क के नियम के चलते वह ऐसा नहीं कर पाया.

सन 1985 के जनवरी माह में इफ्तिखार के नाम पाकिस्तान से एक खत आया. खत उस के घर वालों ने भेजा था. इफ्तिखार और उस के परिवार के बीच पत्र व्यवहार चलता रहता था, इसलिए यह कोई खास बात नहीं थी. लेकिन इस पत्र को पढ़ कर वह सोच में पड़ गया. उसे गंभीर देख कर लोन एंडरसन ने कारण पूछा तो इफ्तिखार ने कहा, ‘‘मेरी मां बहुत बीमार है. मुझे पाकिस्तान जाना होगा.’’

‘‘बिलकुल जाओ, वैसे भी तुम्हें जाना चाहिए. आखिर वह तुम्हारी मां है.’’ लोन एंडरसन ने बिना कोई आपत्ति जताए कहा. उस वक्त वह यह बिलकुल नहीं समझ पाई कि इफ्तिखार उस से फरेब कर रहा है. हकीकत में उस की मां बीमार नहीं थी, बल्कि खत में लिखा था कि बचपन में फरजाना नाम की जिस लड़की से उस का निकाह तय हुआ था, वह अब जवान हो चुकी है. उस के घर वाले निकाह के लिए दबाव बना रहे हैं. इसलिए वह फौरन स्वदेश लौट आए और घर वालों द्वारा फरजाना के परिवार से किए वादे को पूरा करे.

खैर, इफ्तिखार अहमद जनवरी, 1985 के आखिर में अपनी पत्नी लोन एंडरसन और 3 साल के बेटे टोनी एंडरसन को डेनमार्क में छोड़ कर पाकिस्तान आ गया. पाकिस्तान आ कर उस ने फरजाना के साथ निकाह कर लिया. उस ने अपने घर वालों और फरजाना पर यह जाहिर नहीं होने दिया कि वह पहले से शादीशुदा है और साथ ही एक बेटे का बाप भी. कुछ महीने इफ्तिखार पाकिस्तान में ही रहा. वजह यह कि उस पर दबाव था कि वह फरजाना को भी अपने साथ ले जाए. फरजाना का पासपोर्ट बनने और वीजा लगने में समय लग रहा था. अंतत: इफ्तिखार अपनी दूसरी पत्नी फरजाना को ले कर ब्रैडफोर्ड, इंग्लैंड आ गया. उस ने डेनमार्क में इंतजार कर रही लोन एंडरसन से कोई संपर्क नहीं किया.

कई महीने गुजर गए, इफ्तिखार नहीं लौटा तो लोन एंडरसन को चिंता हुई. पाकिस्तान का पता उस के पास था नहीं, जो वहां से कोई पूछताछ करती. अत: वह ब्रैडफोर्ड आई और इफ्तिखार के पुराने घर पर गई. वहां उसे पता चला कि इफ्तिखार ने पड़ोस में ही दूसरा घर ले लिया है. लोन एंडरसन वहां पहुंची तो फरजाना को देख कर उसे लगा कि इफ्तिखार की कोई रिश्तेदार होगी. उसी समय इफ्तिखार आ गया. उस ने यह बात छिपा ली कि फरजाना उस की बीवी है. इत्तफाक से तभी फरजाना की तबीयत खराब हो गई. इफ्तिखार और लोन एंडरसन उसे ले कर डाक्टर के पास गए. वहां पता चला कि फरजाना गर्भ से है. इस जानकारी के बाद इफ्तिखार लोन एंडरसन से सच नहीं छिपा पाया. उस ने बता दिया कि फरजाना उस की पत्नी है. वह पाकिस्तान निकाह करने गया था.

इस से लोन एंडरसन का दिल टूट गया. वह कुछ नहीं बोली और वापस डेनमार्क लौट गई. कुछ दिनों बाद वह अपने बेटे टोनी एंडरसन के साथ वापस आई और इफ्तिखार से कहा कि उस ने उस के साथ जो किया सो किया, पर वह उस के बेटे को पिता की सरपस्ती से दूर न करे. वह उसे अपने पास रखे. लेकिन इफ्तिखार इस के लिए राजी नहीं हुआ. उस ने कहा कि अगर बेटी होती तो वह उसे अपने पास रख लेता, पर बेटे को नहीं रखेगा. लोन एंडरसन ने उस पर कोई दबाव नहीं बनाया. वह बेटे को ले कर वापस लौट गई. अलबत्ता इस के बाद भी वह इफ्तिखार से संपर्क जरूर बनाए रही. दूसरी ओर इफ्तिखार बेखौफ फरजाना के साथ अपना गृहस्थ जीवन जी रहा था. 14 जुलाई, 1986 को फरजाना ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम रखा गया शेफीलिया अहमद.

इस के ठीक एक साल बाद फरजाना ने एक और बेटी को जन्म दिया. इस का नाम रखा गया अलेशा अहमद. फिर फरजाना ने एक बेटे को जन्म दिया. तीनों बच्चे कुछ बड़े हुए तो इफ्तिखार ब्रैडफोर्ड छोड़ कर परिवार सहित वारिंगटन आ बसा. शेफीलिया पढ़ाई में काफी होशियार थी. वह वकील बनना चाहती थी. वहीं उस से छोटी अलेशा की पढ़ाई में कोई रुचि नहीं थी. वह पिता के दबाव में जबरदस्ती पढ़ रही थी. बात 2003 की है. शेफीलिया का हाईस्कूल का आखिरी साल था. 11 सितंबर, 2003 को शेफीलिया की टीचर ने पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दी कि वह एक सप्ताह से ना तो स्कूल आ रही है और ना ही घर पर है. घर वाले भी कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे रहे हैं.

पुलिस ने इफ्तिखार अहमद से पूछताछ की तो उस ने बताया कि शेफीलिया की उसे भी कोई खबर नहीं है. उन लोगों ने उस की सहेलियों से भी संपर्क किया, पर उस का कोई पता नहीं चला. शेफीलिया लापता है, इस की सूचना पुलिस को क्यों नहीं दी? यह पूछने पर इफ्तिखार अहमद ने कहा कि बेटी का मामला है. वह नहीं चाहता था कि शेफीलिया के गुम होने पर उस के परिवार वालों को किसी प्रकार की जगहंसाई का सामना करना पड़े. वैसे भी यह शेफीलिया के भविष्य का भी सवाल था. अगर एक बार चरित्र पर दाग लग जाता तो उन के समाज में शेफीलिया का निकाह होना मुश्किल है.

खैर, पुलिस ने प्रिंट मीडिया और इलैक्ट्रोनिक मीडिया में शेफालिया के गायब होने की सूचना प्रसारित करवा दी. पुलिस खुद भी अपने स्तर पर उस की खोज करने लगी. न्यूज चैनलों पर उस की खोज के लिए बड़े पैमाने पर कैंपेन चलाए गए. इस के तहत अंगे्रजी फिल्मों की अभिनेत्री शोभना गुलाटी ने टीवी पर शेफीलिया द्वारा लिखित कविताओं का पाठ किया. पर शेफीलिया का कोई सुराग नहीं मिल पाया. इसी तरह कई महीने बीत गए. 24 फरवरी, 2004 को पुलिस कंट्रोल में किसी ने सूचना दी कि वारिंगटन से करीब 110 किलामीटर दूर कंब्रिया के सेडविक शहर स्थित केंट नदी के किनारे किसी लड़की का सड़ागला शव पड़ा हुआ है. नदी में भारी बाढ़ आने की वजह से शव नदी के किनारे आ लगा था. पुलिस तुरंत नदी किनारे पहुंची.

सूचना सही थी, लेकिन लड़की की लाश इतनी सड़ गई थी कि उस की पहचान करना मुश्किल था. हां, लाश के बाएं हाथ में जिगजेग गोल्ड बे्रसलेट और हाथ की एक अंगुली में ब्ल्यू टोपाज रिंग अब भी मौजूद थी. इफ्तिखार अहमद ने बेटी की गुमशुदगी के समय इन चीजों का जिक्र किया था. पुलिस ने इस की सूचना इफ्तिखार अहमद को दी और तुरंत नदी पर आने को कहा. इफ्तिखार अहमद पत्नी फरजाना सहित वहां पहुंचा. उस ने गोल्ड ब्रेसलेट और रिंग को पहचानते हुए लाश की शिनाख्त अपनी 17 वर्षीया बेटी शेफीलिया अहमद के रूप में की. लाश की शिनाख्त हो गई तो उसे पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया.

पोस्टमार्टम में मौत का कारण पता नहीं लग पाया. वजह थी, लाश का अत्यधिक सड़ जाना. पुलिस ने लाश का दूसरी बार पोस्टमार्टम करवाया, पर इस बार भी कोई परिणाम नहीं निकला. अब की बार पुलिस ने मृतका शेफीलिया के बाएं थाई बोन का डीएनए टेस्ट करवाया. इस से साफ हो गया कि लाश शेफीलिया की ही थी. वहीं निचले जबड़े को भी शेफीलिया के दंत चिकित्सक को दिखाया गया. उस ने भी पुष्टि कर दी कि लाश शेफीलिया की ही थी. पुलिस इंस्पेक्टर माइक फोरेस्टर ने जांच शुरू की तो उन्हें आशंका हुई कि कहीं यह औनर किलिंग का मामला तो नहीं. इस जांच के लिए पुलिस ने इफ्तिखार अहमद, उस की पत्नी फरजाना, इफ्तिखार के साथी टैक्सी ड्राइवर व 5 अन्य परिचितों को हिरासत में ले लिया.

सभी से अलगअलग तरहतरह से पूछताछ की गई. पर उस की हत्या का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला. इस पर बिना चार्ज लगाए सभी को छोड़ दिया गया. बावजूद इस के पुलिस इंस्पेक्टर माइक फोरेस्टर ने जांच जारी रखी. जांच के दौरान इफ्तिखार के घर से शेफीलिया के सामान से उस की डायरी बरामद हुई, जिस में काफी कविताएं लिखी हुई थीं. उस की कविताओं में एक कविता ‘आई फील टे्रप्ड’ शीर्षक से थी. यह कविता शेफीलिया की मनोदशा व्यक्त करती थी. इस से उस के निराशाजनक जीवन का साफ पता चल रहा था.

जांच के दौरान ही इफ्तिखार की पड़ोसन शैला कोस्टेलो ने बताया था कि शेफीलिया को उस का परिवार उपेक्षित रखता था. परिवार द्वारा पीडि़त करने की वजह से वह कई बार घर से भाग गई थी. 2 बार पुलिस में उस के लापता होने की रिपोर्ट भी लिखाई गई थी. दोनों बार वह अपने बौयफ्रेंड के घर पर पाई गई थी. पड़ोसन ने यह भी बताया कि उस ने सुना था कि शेफीलिया के घर वाले उस की इसी उम्र में अरेंज मैरिज करने के लिए दबाव बना रहे थे. इफ्तिखार के घर से एक वीडियो भी बरामद हुआ. यह वीडियो उस समय का था, जब सन 2003 के शुरू में इफ्तिखार अहमद परिवार सहित पाकिस्तान गया था. इस वीडियो में शेफीलिया पाकिस्तान में मस्ती करती हुई दिखाई दे रही थी.

बहरहाल, शेफीलिया की हत्या की जांच चलती रही. जनवरी, 2008 में मृत्यु समीक्षक जोजफ द्वारा की गई जांच में कहा गया कि शेफीलिया की हत्या का केस बहुत ही जघन्य हत्याकांड की श्रेणी में आता है. उस ने शंका भी व्यक्त की कि हो सकता है, इस में उस के घर वालों का हाथ रहा हो. इस के बाद पुलिस ने फिर से इफ्तिखार से पूछताछ की. उस ने बताया कि यह सही है कि शेफीलिया गुस्सैल स्वभाव की जिद्दी लड़की थी. उसे पश्चिमी पहनावा पसंद था. जबकि उस का परिवार इस के खिलाफ था. उस पर रोक लगाई जाती थी तो वह विद्रोह पर उतर आती थी. पूछताछ के दौरान कोई ऐसी बात नहीं निकल कर आई कि इफ्तिखार पर शक किया जाता.

देखतेदेखते शेफीलिया की मौत को 7 साल बीत गए. पुलिस किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाई. पर कहते हैं कि पाप एक न एक दिन जरूर बेपरदा हो जाता है. आखिर शेफीलिया अहमद हत्याकांड के ताले की चाबी बन कर उस की छोटी बहन अलेशा सामने आई. शुरू से पढ़ाई चोर और बिगड़ैल मिजाज की अलेशा गलत सोहबत में पड़ गई थी. उस के खर्चे बेपनाह थे, जबकि घर से उसे नाममात्र का ही जेबखर्च मिलता था. अपने खर्चे पूरे करने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकती थी. यहां तक कि उस ने अपने खुद के ही घर में डकैती डलवा दी थी. यह घटना 25 अगस्त, 2010 की है. घटना के समय वह अपने मातापिता व भाईबहन के साथ घर में ही मौजूद रही, ताकि उस पर घर वालों या पुलिस को कोई शक न हो. इस के लिए उस ने अपने बौयफ्रेंडों के साथ मिल कर सुरक्षित योजना बनाई थी. इस डकैती में घर से काफी गहने व नकदी लूटी गई.

डकैती की सूचना पुलिस को दी गई तो उस ने जांच शुरू की. अलेशा से पूछताछ के दौरान उस के बदले हुए भाव को देखते ही पुलिस को उस पर शक हो गया था. पर वह सहज रूप से सच नहीं उगल पा रही थी. आखिर उस के साथ थोड़ी सख्ती की गई तो वह टूटने लगी. आखिर उस ने सारा सच उगल दिया. साथ ही उस ने अपने घर वालों के भय से 7 साल से दिल में छिपा कर रखा अपनी बड़ी बहन शेफीलिया की हत्या का राज भी उगल दिया. बतौर अलेशा, शेफीलिया शुरू से आजाद ख्याल की थी. उसे पश्चिमी रहनसहन, खुलापन और पहनावा पसंद था. जबकि घर वाले इस सब के खिलाफ थे. वह चाहते थे कि शेफीलिया उन के मजहब की परंपरा के अनुसार आचरण अपनाए, घर की चारदीवारी तक सीमित रहे. बुर्का पहने और लड़कों से दोस्ती न करे. पर वह ऐसा नहीं करती थी.

वह पश्चिमी पहनावा पहनती और लड़कों से खुल कर दोस्ती करती. इसी वजह से इफ्तिखार अकसर उस की पिटाई तक कर देता था. उसे भूखा रखा जाता और अन्य तरीकों से भी प्रताडि़त किया जाता. इस से उस का स्वभाव विद्रोही हो गया. 15 वर्ष की होतेहोते उस का यह स्वभाव अपने चरम पर पहुंच गया था. अब जब भी उसे प्रताडि़त किया जाता, वह घर से भाग जाती. फिर 2-4 दिन में वापस लौट आती. उस का एक बौयफ्रेंड था मुश्ताक बगास. वह ब्लेकबर्न में रहता था और 28 साल का था. यानी वह उस से करीब 11 साल बड़ा था. 2002 में जब शेफीलिया का परिवार ब्लेकबर्न में रहता था, तब दोनों की दोस्ती हुई थी, जो प्यार के बाद शारीरिक संबंधों में बदल गई थी. इस की पहल शेफीलिया ने ही की थी.

बगास ने तो उसे रोका था कि अभी वह नाबालिग है और शादी से पहले यह उचित नहीं है, पर शेफीलिया ने जिद पकड़ ली थी. वह बोली, ‘‘मैं तुम्हें बेइंतहा प्यार करती हूं. फिर प्यार में किसी प्रकार की दीवार क्यों? जब मैं ने तुम्हें अपना मन सौंप दिया है तो तन सौंपने में क्या हर्ज है. आखिर शादी के बाद भी तो यही सब करना है. फिर शादी तक हम क्यों समय बर्बाद करें. जिंदगी मौजमस्ती का नाम है. कल किस ने देखा है. जो करना है, आज ही क्यों ना कर लें.’’

‘‘लेकिन यह गलत होगा.’’ बगास समझदार था और इस तरह का कोई फायदा नहीं उठाना चाहता था.

‘‘प्यार में गलत सही कुछ नहीं होता. फिर तुम कौन सा मुझ से जबरदस्ती कर रहे हो. मैं अपनी इच्छा से तुम्हें अपना सब कुछ सौंपना चाहती हूं.’’ शेफीलिया ने कहा. आखिर उस की दलीलों के आगे बगास की एक न चली और उस ने वैसा ही किया जैसा शेफीलिया चाहती थी.

अब जब भी शेफीलिया घर से भागती. बगास के घर ही पहुंच जाती. दोनों खुल कर मौजमस्ती करते. बातचीत के लिए बगास ने उसे एक मोबाइल फोन भी दे दिया था, जो वह छिपा कर रखती थी. मौका मिलने पर वह अपने दुखसुख की बात उस से कर लेती थी. शेफीलिया यूं तो कई बार घर से भागी थी, पर पुलिस में उस की रिपोर्ट 2-3 बार ही दर्ज कराई गई थी. दिसंबर, 2002 में उस ने बगास को स्कूल के लंच समय में मिलने के लिए बुलाया. उस दिन तो वह नहीं आया, पर अगले दिन दोनों मिले. शेफीलिया ने उसे अपने पिता द्वारा की गई पिटाई के निशान दिखाते हुए कहा, ‘‘अब सहन नहीं होता बगास. कुछ करो, वरना मैं यूं ही किसी दिन दम तोड़ दूंगी. अब हद हो गई है. मेरे घर वाले मेरा निकाह पाकिस्तान में मेरे कजिन से करना चाहते हैं, जो मुझ से 30 साल बड़ा है. मुझे अब सारा भरोसा तुम्हारे प्यार पर है, वरना…’’

बगास उस के हर दर्द से वाकिफ था. वह भी चाहता था कि शेफीलिया सदा खुश रहे. इसलिए वह उस की मदद करने को तैयार हो गया. दोनों ने घर से भागने का प्लान बना लिया. 2 जनवरी, 2003 को सुबहसवेरे ही बगास कार ले कर उस के घर से कुछ दूरी पर जा कर खड़ा हो गया. उस ने मिसकाल दे कर शेफीलिया को अपने आने की सूचना दे दी. शेफीलिया मौका देख कर एक बैग में अपने कुछ कपड़े रख कर सावधानीपूर्वक घर की खिड़की से कूद कर बाहर आ गई और बगास की कार में जा बैठी. बगास ने फौरन कार आगे बढ़ा दी. इस बार वह शेफीलिया को अपने घर नहीं ले गया. क्योंकि पहले 2 बार शेफीलिया के पिता इफ्तिखार अहमद उसे वहां से बरामद कर चुके थे.

बगास शेफीलिया को ब्लेकबर्न में ही अपने भाई के घर ले गया. वहां रात में दोनों ने एकदूसरे को खूब प्यार किया. दोनों के बीच कई बार शारीरिक संबंध भी बने. इस दौरान शेफीलिया के पिता इफ्तिखार अहमद ने कई बार उसे फोन किया, पर उस ने कोई उत्तर नहीं दिया. लेकिन इफ्तिखार अहमद ने किसी तरह शेफीलिया का पता लगा ही लिया. वह सीधे बगास के भाई के घर पहुंचा और शेफीलिया को जबरदस्ती साथ ले आया. उस ने चलते समय बगास को चेतावनी भी दी, ‘‘अगर अब की बार मैं ने तुम्हें इस के साथ देख लिया तो इस के साथ तुझे भी काट डालूंगा.’’

घर आ कर इफ्तिखार ने शेफीलिया की खूब पिटाई की और फरमान सुना दिया कि 2-4 दिन में सब लोग पाकिस्तान चले जाएंगे. वहां उस का निकाह कर दिया जाएगा. शेफीलिया बेबस हो गई. वह घर में कैद थी. जनवरी, 2003 के आखिर में पूरा परिवार पाकिस्तान गया. वहां शेफीलिया के निकाह की तैयारी भी कर ली गई. शेफीलिया को इस से बचने का कोई रास्ता नहीं सूझा तो उस ने अपनी इहलीला समाप्त करने की ठान ली. उस ने मौका देख ब्लीच पी लिया. इस से उस की हालत बिगड़ने लगी. लेकिन समय रहते घर वालों ने उसे बचा लिया. उसे अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों को बताया गया कि अंधेरा होने के कारण शेफीलिया ने दवा की जगह कोई जहरीली चीज पी ली थी.

अभी तक इफ्तिखार के रिश्तेदारों को इस की भनक नहीं लगी थी. सो मई में वह शेफीलिया और परिवार सहित वापस इंग्लैंड लौट आया. यहां उसे अस्पताल में भर्ती करवाया गया. क्योंकि वह पूरी तरह ठीक नहीं हो पाई थी. न तो उस के गले से कुछ नीचे उतरता था, न ही वह कमजोरी के कारण ठीक से चल पाती थी. यहां कई सप्ताह तक उस का इलाज चला. उस के बगल वाले बेड की मरीज ने जब शेफीलिया से पूछा कि उस ने ब्लीच क्यों पी तो उस ने बताया कि जबरन उस की शादी उस से की जा रही थी, जिसे वह पसंद ही नहीं करती.

उस का पासपोर्ट भी उस के पिता ने छीन लिया था. इफ्तिखार ने यहां अस्पताल की एक एशियन मूल की नर्स को कहा कि वह गोरी नर्सों को न बताए कि शेफीलिया ने ब्लीच पी थी. उस नर्स ने शेफीलिया से कहा कि वह कैसे अपने घर वालों के साथ रहती है. उस की फैमिली तो लवलेस फैमिली है. स्वस्थ होने के बाद शेफीलिया पर फिर से शादी के लिए दबाव बनाया जाने लगा. पर उस ने साफ मना कर दिया. उस के पिता को उस पर शक भी होने लगा था कि वह गर्भ से है. उन्हें जब विश्वास हो गया कि अब वह किसी भी तरह नहीं मानेगी तो 11 दिसंबर, 2003 को इफ्तिखार और उस की पत्नी फरजाना ने शेफीलिया की खूब पिटाई की. अलेशा थोड़ी सी खुली खिड़की से सब देख रही थी. फरजाना ने अपने पति से कहा, ‘‘यह लड़की हमें कहीं का नहीं छोड़ेगी. बेहतर है, इसे खत्म कर दो.’’

इफ्तिखार इस के लिए तैयार हो गया तो फरजाना कंबल, चादर, टेप के 2 रोल, एक काला विग और बैग ले आई. इस के बाद इफ्तिखार ने एक प्लास्टिक बैग से शेफीलिया का मुंह तब तक दबाए रखा, जब तक कि उस ने दम नहीं तोड़ दिया. तत्पश्चात दोनों ने उस की लाश को चादर व कंबल में लपेट कर बैग में भर दिया. फिर दोनों ने मिल कर बैग को चारों तरफ से टेप से पैक कर दिया. इस के बाद दोनों ने लाश को बाहर खड़ी कार में रख दिया. इफ्तिखार अकेले ही कार ले कर चला गया. उस ने लाश केंट नदी में फेंक दी और घर लौट आया. इस के कई महीने बाद पुलिस ने लाश बरामद की. शक इफ्तिखार पर गया. पर उस के खिलाफ कोई सुबूत नहीं मिला. यह केस यहीं दफन हो जाता अगर 7 साल बाद अलेशा सच उजागर न करती.

डकैती के आरोप में अलेशा को 6 महीने की सजा सुनाई गई. उस की सजा ज्यादा होती, पर उस ने मानवीयता दिखाते हुए अपनी बहन शेफीलिया की हत्या का राज खोला था, इस का उसे लाभ दिया गया. जज इरविन ने कहा, ‘‘जब सच्चाई व्यक्त करने की इच्छा होती है, तो कोई भी व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता. अलेशा ने कानून की मदद की है, इस के लिए उस का यह कदम सराहनीय है. इस से उस के मन को शांति मिलेगी, जो उस की आगे की जिंदगी को सामान्य बनाने में मदद करेगी.’’

खैर, अब फिर से इफ्तिखार अहमद तथा फरजाना को गिरफ्तार कर लिया गया. एक पेशी के दौरान जज जान स्मिथ ने कहा, ‘‘शेफीलिया हत्याकांड एक जघन्य कृत्य है. वह अपना जीवन अपने तरीके से जीना चाहती थी. वह होनहार थी और ला की पढ़ाई करना चाहती थी. उसे अपनी इच्छा से जीवन जीने का अधिकार था. पर उस के मातापिता उसे इस अधिकार से वंचित रखना चाहते थे. शेफीलिया 2 संस्कृतियों के बीच फंसी हुई थी. उसे अपने तरीके से जीने देना चाहिए था, पर उस के मातापिता ने जीवन की जगह उसे मौत दे दी. ये किसी भी तरह रहम के काबिल नहीं हैं.’’

कोर्ट में कई सुनवाई हुईं. इस दौरान शेफीलिया के जानकारों के भी बयान दर्ज किए गए. नार्थवेस्ट के नए चीफ प्रौसिक्यूटर नाजिर अफजल ने कोर्ट को बताया कि एशियन समाज में अभिभावक औनर क्राइम करने से नहीं डरते. शेफीलिया की हत्या के कई सुबूत मिले हैं. वह घरेलू हिंसा का शिकार हुई थी. घर वालों ने उस से अपनी मर्जी की जिंदगी जीने का अधिकार छीन लिया था. शेफीलिया के दोस्त साराह बैनट ने कोर्ट में बयान दिया कि शेफीलिया ने अपने बालों को रंग लिया था और नाखून बढ़ा लिए थे. इस पर उस की मां फरजाना ने कैमिकल की सहायता से उस के बालों का रंग धो दिया और उस के नाखून काट दिए थे. साथ ही उस की बेरहमी से पिटाई भी की थी. उसे गंदी गालियां भी दी जाती थीं. उस की मां उसे पकड़ती तो पिता उस की पिटाई करता था.

शेफीलिया के दूसरे दोस्त बुड्स ने बताया कि उसे शेफीलिया ने एक नोट दिया था. उस ने वही नोट कोर्ट में पढ़ कर सुनाया. उस में लिखा था, ‘‘पिछले कुछ सालों से घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ रहा है. वे मुझे कालेज जाने से रोकना चाहते थे. वे मुझ से जबरदस्ती नौकरी करवाना चाहते थे. मैं ने जेब खर्च से 2 हजार यूरो बचा कर अपने खाते में डलवाए तो मेरे पिता ने वे भी निकलवा लिए. मुझे डर रहता है, क्योंकि मेरे मातापिता मुझे पाकिस्तान ले जा कर मेरी शादी करवाना चाहते हैं. वे लोग मुझे वहीं छोड़ देना चाहते हैं. जबकि मुझे वह कल्चर कतई पसंद नहीं है. मुझे घर में घुटन होती है. मैं ने पिता द्वारा लाए गए कई रिश्ते ठुकरा दिए थे. इस कारण मुझे मार खानी पड़ती थी.’’

शेफीलिया की टीचर जोएनी कोड ने कोर्ट में बयान दिया, ‘‘शेफीलिया की मौत से करीब 11 महीने पहले उस के स्कूल से अनुपस्थित रहने पर जब मैं ने उसे फोन किया और पूछा कि क्या कोई चिंता की बात है? तब शेफीलिया ने हां कहा था. जब वह दूसरे दिन स्कूल लौटी तो मैं ने उस की गर्दन पर खरोचों के निशान देखे थे. उस के होंठों पर भी कट का निशान था. पूछने पर शेफीलिया ने बताया कि उस की मां ने उसे नीचे कर के पकड़े रखा और पिता ने पीटा. इसी से वे निशान आए थे. उसे अकसर कमरे में बंद कर के भूखा रखा जाता था. उस के उत्पीड़न की बात एक सोशल वर्कर को पता लगी तो वह स्कूल में उस से पूछताछ करने आया. पर शेफीलिया ने उसे कुछ नहीं बताया था.’’

7 सितंबर, 2011 को तमाम गवाहों के बयानों के बाद पुलिस ने इफ्तिखार अहमद और फरजाना के विरुद्ध कोर्ट में चार्जशीट पेश की. जिस में उन पर बेटी शेफीलिया की हत्या का चार्ज लगाया गया था. दोनों के खिलाफ ट्रायल मई, 2012 से 3 अगस्त, 2012 तक हुआ. इस दौरान इफ्तिखार अहमद और फरजाना ने अपना अपराध कुबूल लिया था. उन्होंने बताया कि शेफीलिया की हरकतों से वे तंग आ गए थे. वह हर तरह से उन की बदनामी करवाना चाहती थी. इसी कारण उन्हें उस की हत्या करनी पड़ी.

तमाम पेशियों के बाद 14 दिसंबर, 2014 को कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया. इफ्तिखार अहमद और फरजाना को शेफीलिया की हत्या का दोषी करार देते हुए दोनों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई. सजा सुनते ही दोनों रो पड़े. Crime News

Real Crime Story Hindi : 6 टुकड़ों में बंटी दोस्ती

Real Crime Story Hindi : महबूब अली और योगेश अच्छे दोस्त थे. दोनों की दोस्ती के बीच ऐसी क्या वजह पैदा हो गई कि महबूब ने उस की हत्या कर लाश के 6 टुकड़े कर दिए. रोजाना की तरह 16 नवंबर, 2014 को भी ओमप्रकाश अपनी परचून की दुकान खोलने गया. उस की दुकान दक्षिणपुरी में गुरुद्वारे के पास ब्लौक नंबर-13 में थी. वह अपनी दुकान के काउंटर को दुकान बंद करते समय बाहर ही छोड़ जाता था. जैसे ही वह दुकान पर पहुंचा. उसे दुकान के बाहर रखे काउंटर और दुकान के शटर के बीच प्लास्टिक की एक बोरी रखी मिली. वहां बोरी देख कर वह मन ही मन बुदबुदाया कि पता नहीं यह बोरी यहां किस ने रख दी है?

सफेद रंग की उस बोरी को वह गौर से देखने लगा. तभी उसे उस के खुले हिस्से से इंसान के पैर दिखाई दिए. यह देखते ही वह समझ गया कि इस में जरूर किसी की लाश है. घबरा कर उस ने आसपास रहने वाले लोगों को बुला लिया. इस के बाद तो वहां लोगों का मजमा जुट गया. अब सभी के मन में यही सवाल उठ रहा था कि पता नहीं इस में किस की लाश है, ओमप्रकाश ने उसी समय पुलिस कंट्रोल रूम के 100 नंबर पर यह सूचना दे दी. दक्षिणपुरी इलाका दक्षिणपूर्वी दिल्ली के थाना अंबेडकर नगर के तहत आता है, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम से खबर अंबेडकर नगर थाने को दे दी गई. सूचना मिलने पर इंसपेक्टर अजब सिंह सबइंसपेक्टर आनंद कुमार झा और कांस्टेबल संजय को ले कर सूचना में बताए गए पते की ओर रवाना हो गए.

वह स्थान थाने से बमुश्किल 500-600 मीटर दूर था इसलिए वह जल्द ही वहां पहुंच गए. उन्होंने देखा ब्लौक नंबर 13 के फ्लैट नंबर 282 के आगे भीड़ जमा थी. इंसपेक्टर अजब सिंह ने उस बोरी का मुआयना किया तो उन्हें भी वह संदिग्ध नजर आया. उन्होंने मौके पर क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को बुला लिया. टीम के सामने ही उस कट्टे को खोला गया. बोरी के खुलते ही पुलिस और वहां मौजूद लोग हक्केबक्के रह गए. उस के अंदर घुटनों से कटे हुए 2 पैर निकले. वे किसी आदमी के थे. दाहिने पैर में नीले रंग की जींस भी थी. उसी बोरी में घुटनों से कमर तक का हिस्सा भी मिला.

लोग देख कर दंग थे कि किसी ने इसे कितनी क्रूरता से काटा था. और पता नहीं यह कौन है. लाश के 3 टुकड़े मिलने के बाद पुलिस की परेशानी बढ़ गई. इंसपेक्टर अजब सिंह ने यह सूचना थानाप्रभारी पंकज मलिक को दी तो वह भी मौके पर पहुंच गए. कातिल ने लाश का आधा हिस्सा यहां डाला है तो बाकी का हिस्सा भी आसपास कहीं डाला होगा. पुलिस इधरउधर घूम कर बाकी हिस्से को ढूंढने लगी. इस काम में इलाके के लोग भी पुलिस का सहयोग करने लगे. ओमप्रकाश की परचून की दुकान से करीब 50-60 कदम की दूरी पर कुछ खोखे रखे हुए थे. वे खोखे अकसर बंद रहते थे. उन्हीं खोखों के सामने लोग अपनी कारें पार्क कर देते थे. वह जगह एकांत रहती थी.

पुलिस उन खोखों की तरफ भी गई. वहीं पर एक लोहे के खोखे और मारुति वैन के बीच की खाली जगह में पुलिस को प्लास्टिक की एक और बोरी दिखी. क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम की मौजूदगी में जब वह बोरी खोली गई तो उस में एक आदमी का सिरविहीन धड़ मिला. उस का बायां हाथ कंधे से कटा हुआ था. वह हरे, गुलाबी व नीले रंग की चेकदार शर्ट पहने था. अब पुलिस ने पहली बोरी में मिले अंगों को दूसरी बोरी में मिले धड़ से मिला कर देखा तो पता चला कि वे एक ही आदमी के हैं. सिरविहीन लाश की शिनाख्त होनी मुश्किल थी. पुलिस ने बराबर में स्थित पार्क और अन्य जगहों पर सिर को तलाशा, लेकिन वह नहीं मिला. लाश के 5 टुकड़े तो मिल चुके थे, अब केवल उस का सिर बाकी था.

पुलिस यह मान कर चल रही थी कि हत्यारे की मृतक से गहरी रंजिश रही होगी. तभी तो उस ने इतनी क्रूरता से लाश के टुकड़ेटुकड़े किए हैं. इन सब बातों से लग रहा था कि कातिल बेहद शातिर है. बोरियों में 5 टुकड़ों में लाश मिलने की बात थोड़ी ही देर में दक्षिणपुरी और अंबेडकरनगर क्षेत्र में फैल गई. तमाम लोग लाश के टुकड़ों को देखने के लिए ब्लौक नंबर-13 में पहुंचने लगे. सभी लोग इस बात से हैरान थे कि कातिल ने लाश के इतने टुकड़े क्यों किए? डीसीपी मनदीप सिंह रंधावा और एसीपी दीपक यादव भी मौके पर पहुंच गए. पुलिस ने जब लाश के सभी टुकड़ों का गौर से निरीक्षण किया तो उस के दाहिने हाथ का अंगूठा आधा कटा हुआ दिखा. वह अभी का नहीं, बल्कि पुराना कटा हुआ था.

दक्षिणपुरी के ब्लौक नंबर-13 के फ्लैट नंबर 27 में रहने वाले रामचंद्र का 23 साल का बेटा योगेश पिछले 2 दिनों से गायब था. रामचंद्र ने उसे अपनी रिश्तेदारियों में तलाशा था और उस के दोस्तों से भी पूछा, लेकिन उस के बारे में पता नहीं चला था. उस का फोन भी बंद आ रहा था. थाने में सूचना देने के बजाय रामचंद्र अपने स्तर से ही उसे खोज रहा था. उसे भी जब बोरियों में लाश के टुकड़े मिलने की जानकारी हुई तो वह भी मौके पर पहुंच गया. उस के बेटे योगेश के दाहिने हाथ का अंगूठा भी आधा कटा हुआ था. उस ने जैसे ही लाश के टुकड़े देखे, उस के होश उड़ गए. क्योंकि योगेश जिस तरह के कपड़े पहन कर घर से निकला था, वैसे ही कपड़े लाश पर थे. ‘

जब उस ने मृतक के दाहिने हाथ का अंगूठा देखा, उस की आंखों से आंसू टपकने लगे. सिर के बिना ही उस ने वह लाश पहचान ली. उस ने पुलिस को बताया कि कदकाठी, कपड़ों और कटे अंगूठे से वह लाश के टुकड़े उस के बेटे योगेश के ही हैं. लाश की शिनाख्त हो ही चुकी थी. इस के बावजूद भी पुलिस ने उस का सिर ढूंढने की कोशिश की. जब आसपास उस लाश का सिर नहीं मिला तो पुलिस ने जरूरी काररवाई पूरी कर के लाश के उन टुकड़ों को पोस्टमार्टम के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान भेज दिया और अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या कर लाश को ठिकाने लगाने का मामला दर्ज कर लिया. साथ ही एक आदमी की लाश का सिर न मिलने की सूचना जिला नियंत्रण कक्ष से सभी थानों को भेज दी, ताकि कहीं सिर मिलने पर उसे बरामद किया जा सके.

पुलिस ने रामचंद्र से प्रारंभिक पूछताछ की तो उस ने बताया कि योगेश एक प्राइवेट अस्पताल में वार्डबौय था. उस की किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं थी, इसलिए कहा नहीं जा सकता कि उस की यह हालत किस ने की. मामला बेहद पेचीदा लग रहा था, इसलिए डीसीपी मनदीप सिंह रंधावा ने एसीपी दीपक यादव के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में थानाप्रभारी पंकज मलिक, अतिरिक्त थानाप्रभारी अजब सिंह, सबइंसपेक्टर आनंद कुमार झा, राम सिंह, हेडकांस्टेबल बंसीलाल, कांस्टेबल विनीत कुमार, संजय, संदीप आदि को शामिल किया गया.

पुलिस के सामने अब सब से बड़ी चुनौती योगेश के सिर को बरामद करने की थी. पुलिस टीम ने इलाके के पार्कों, नालों में उसे खोजा. दक्षिणपुरी से ले कर जामिया हमदर्द, तारा अपार्टमेंट के पास तक काफी बड़े भाग में जहांपनाह सिटी फौरेस्ट फैला हुआ है. सिर की तलाश में टीम ने उस फौरेस्ट को भी छान मारा, लेकिन सिर का कहीं पता नहीं चला. सिर ढूंढना पुलिस के लिए एक चुनौती भरा काम हो गया था. पुलिस यही मान कर चल रही थी कि जितनी बेदर्दी के साथ हत्यारों ने लाश के टुकड़े किए थे, इस के पीछे कोई प्रेमकहानी रही होगी. मृतक के किसी लड़की के साथ प्रेमसंबंध रहे होंगे, फिर उस लड़की के घर वालों या उस के दूसरे प्रेमी ने योगेश का यह हाल किया होगा.

पुलिस ने 17 नवंबर को फिर रामचंद्र से इस बारे में पूछताछ की कि कहीं उस के बेटे योगेश का किसी लड़की से कोई चक्कर तो नहीं था. रामचंद्र ने इस बात से इनकार कर दिया. तब पुलिस ने योगेश के दोस्तों से मालूमात की तो उन्होंने भी बता दिया कि योगेश इस तरह का नहीं था. योगेश जिस निजी अस्पताल में नौकरी करता था, पुलिस वहां पहुंच गई. अस्पताल में लड़कियां भी काम करती थीं. कहीं वहीं पर उस का किसी से कोई चक्कर तो नहीं था, यह जानने के लिए पुलिस ने अस्पताल के स्टाफ से भी पूछताछ की. वहां से पुलिस को पता चला कि योगेश का वहां किसी लड़की से कोई चक्कर नहीं था. योगेश अस्पताल में बस अपने काम से मतलब रखता था. किसी से फालतू बातें तक नहीं करता था.

जब कहीं से कोई क्लू नहीं मिला तो पुलिस टीम फिर से क्षेत्र में ही लोगों से पूछताछ करने में जुट गई. उसी दौरान पुलिस को पता चला कि 14 नवंबर की रात करीब 9 बजे योगेश को महबूब अली नाम के शख्स के साथ देखा गया था. महबूब की दक्षिणपुरी में 13 नंबर ब्लौक में हेयर कटिंग की दुकान थी. पुलिस उस की दुकान पर गई तो वह बंद मिली. आसपास के लोगों ने बताया कि यह दुकान पिछले 3 दिनों से बंद है. महबूब दुकान के ऊपर ही बने कमरे में अपने परिवार के साथ रहता था. पुलिस उस के कमरे पर गई तो उस पर ताला बंद मिला. मकान मालिक ने बताया कि महबूब ने अपनी पत्नी और बच्चों को 15 नवंबर को अपने गांव भेज दिया था. उस ने बताया था कि उस की मां की तबीयत ठीक नहीं था. उस की देखभाल के लिए ही उस ने पत्नी को मायके भेजा है.

पूछने पर मकान मालिक ने बताया कि महबूब मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर के गांव राजा का ताजपुर का रहने वाला था. थानाप्रभारी योगेश मलिक ने एसआई आनंद कुमार झा के नेतृत्व में एक पुलिस टीम तुरंत बिजनौर रवाना कर दी. दिल्ली पुलिस की टीम महबूब अली के घर बिजनौर पहुंच गई. वहां उस की बीवी नसरीन तो मिल गई, लेकिन वह नहीं मिला. नसरीन ने बताया कि महबूब गांव आया ही नहीं था. वह तो दिल्ली से यहां अकेली ही आई थी. उसे यह कह कर गांव भेजा था कि मां की तबीयत खराब है. लेकिन यहां आई तो ऐसा कुछ नहीं था.

पुलिस के दिमाग में यह सवाल पैदा हुआ कि महबूब ने अपनी पत्नी को झूठ बोल कर दिल्ली से गांव क्यों भेजा? महबूब वहां नहीं मिला तो पुलिस टीम बैरंग दिल्ली लौट आई. इन सब बातों से पुलिस को महबूब पर शक होने लगा. दिल्ली लौटने के बाद पुलिस महबूब अली की खोज में जुट गई. इसी दिन 17 नवंबर को दिल्ली के जामिया नगर इलाके के जोगाबाई एक्सटेंशन में नूर मसजिद के पास कूड़ाघर में पौलीथिन की एक थैली में एक सिर मिला. वह सिर कूड़ा बीनने वाले एक लड़के ने देखा था. इस की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को मिली तो जामिया नगर थाना पुलिस वहां पहुंची.

वह सिर पौलीथिन की कई थैलियों में बंधा हुआ था, जिस की वजह से वह सड़ने लगा था. सड़ने की वजह से उस की पहचान नहीं हो पाई. अंबेडकरनगर थानाक्षेत्र में टुकड़ों में सिरविहीन लाश बरामद होने की खबर वायरलैस से दिल्ली के सभी थानों को दे दी गई थी, इसलिए पुलिस यह मान रही थी कि बरामद सिर अंबेडकरनगर में मिली लाश का हो सकता है. जामिया नगर पुलिस ने अज्ञात सिर बरामद होने की सूचना थाना अंबेडकर नगर पुलिस को दी तो थानाप्रभारी पंकज मलिक मृतक योगेश के पिता रामचंद्र को साथ ले कर जामिया नगर पहुंच गए. रामचंद्र ने उस सिर को देखते ही पहचान लिया था वह सिर योगेश का था. पुलिस ने लिखापढ़ी कर के वह सिर भी पोस्टमार्टम के लिए एम्स भेज दिया.

मृतक योगेश के शरीर के सारे अंग बरामद हो चुके थे. पुलिस को फरार महबूब अली पर ही शक था. वह उस की तलाश में जुट गई. पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर 17 नवंबर, 2014 की शाम को अंबेडकरनगर क्षेत्र में ही पुष्पा भवन के बसस्टाप से महबूब अली को हिरासत में ले लिया. थाने ला कर जब उस से योगेश की हत्या के बारे में सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि योगेश की हत्या उस ने ही की थी. उस ने यह भी बताया कि योगेश उस का दोस्त था. दोस्त की हत्या कर लाश के कई टुकड़ों में काटने की उस ने जो कहानी बताई, वह बड़ी ही दिलचस्प निकली.

महबूब अली मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर के गांव राजा का ताजपुर के रहने वाले हकीमुद्दीन का बेटा था. हकीमुद्दीन के 8 बेटे और 3 बेटियां थीं. घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने की वजह से वह किसी को पढ़ा नहीं सके. बच्चे जैसेजैसे जवान होते गए, हकीमुद्दीन उन की शादियां करते गए. महबूब अली की परवरिश भले ही गांव में हुई थी, लेकिन उस का गांव में मन नहीं लगता था. उस के गांव के कई लड़के दिल्ली में काम करते थे. 10-12 साल पहले वह भी उन के साथ काम की तलाश में दिल्ली आ गया. दिल्ली में उसे एक हेयर कटिंग सैलून पर नौकरी मिल गई.

वहां काम करने के दौरान जल्दी ही महबूब अली समझ गया था कि इस काम में कम खर्च में ज्यादा आमदनी है. लिहाजा उस ने दिल्ली के थाना अंबेडकरनगर क्षेत्र में दक्षिणपुरी के 13 नंबर ब्लौक में हेयर कटिंग की दुकान खोल ली. दुकान के ऊपर ही वह किराए पर कमरा ले कर रहने लगा. थोड़े दिनों में ही उस का काम चल निकला तो हकीमुद्दीन ने उस का निकाह नसरीन नाम की एक लड़की से कर दिया. महबूब अपनी बीवी को भी दिल्ली ले आया. दुकान से उसे अच्छी आमदनी हो रही थी. इसलिए उस की गृहस्थी बड़े मजे से चल रही थी. समय का पहिया अपनी गति से घूमता रहा और वह एकएक कर के 5 बच्चों का बाप बन गया.

परिवार बढ़ने पर भी उस के सामने कोई आर्थिक परेशानी नहीं आई, क्योंकि उसे दुकान से अच्छी आमदनी हो रही थी. लेकिन इसी दौरान महबूब अली को जुआ खेलने का शौक लग गया. दरअसल, उस की दुकान पर कुछ ऐसे लड़के आते थे, जो जुआरी थे. उन्हीं की संगत में आ कर उसे भी जुआ खेलने की लत लग गई. आए दिन जुए में पैसे हारने की वजह से महबूब अली को आर्थिक परेशानी होने लगी. नसरीन ने उसे काफी समझाया, लेकिन उस ने जुआ खेलना नहीं छोड़ा. दक्षिणपुरी का रहने वाला योगेश भी महबूब का दोस्त था. वह एक निजी अस्पताल में नौकरी करता था. वह भी पक्का जुआरी था. महबूब रात को अपनी दुकान का शटर बंद कर के दुकान के अंदर ही दोस्तों के साथ जुआ खेलता था. पिछले 2-3 महीनों में वह योगेश से करीब 70-80 हजार रुपए हार चुका था.

14 नवंबर, 2014 की रात लगभग साढ़े 9 बजे योगेश उस की दुकान पर जुआ खेलने चला आया. उस दिन योगेश शराब भी पिए था. शटर बंद कर के योगेश और महबूब अली जुआ खेलने लगे. कुछ देर बाद योगेश का दोस्त विकास भी जुआ खेलने के मकसद से उस की दुकान पर पहुंच गया. उस ने शटर खटखटा कर महबूब अली को आवाज दी और शटर खोलने को कहा. विकास की आवाज पहचान कर अंदर से ही योगेश ने कह दिया कि शटर नहीं खुलेगा. तब विकास वापस चला गया. करीब एकडेढ़ घंटे तक योगेश और महबूब जुआ खेलते रहे. उस बीच महबूब उस से करीब 2 हजार रुपए हार चुका था. महबूब के सारे पैसे खत्म हो चुके थे. उसे लगा कि योगेश कोई चालफेर कर के उस के पैसे जीत लेता है. उस ने यह शिकायत उस से की और अपने पैसे वापस मांगे.

योगेश ने पैसे देने से मना कर दिया तो महबूब उस से झगड़ने लगा. महबूब के पास घर के खर्च के लिए भी पैसे नहीं थे. योगेश द्वारा पैसे न लौटाने पर महबूब परेशान हो गया. तभी उस के दिमाग में आया कि अगर वह योगेश को जान से मार दे तो कम से कम आज के हारे हुए पैसे मिल जाएंगे. यही सोच कर उस ने दुकान में रखी कुरसी के पीछे लगे हेड रेस्ट सपोर्टर से उस पर हमला करना शुरू कर दिया. सिर पर 2-3 वार करने से योगेश बेहोश हो गया. महबूब ने सोचा कि योगेश शायद मर गया है. उस ने सब से पहले उस की जेब से सारे पैसे निकाले. उसी समय उसे उस के शरीर में हरकत होती दिखी तो उस ने उसी समय उस का गला दबा दिया. फिर वह उसे ठिकाने लगाने की सोचने लगा.

उस ने उस की लाश उठाने की कोशिश की. योगेश तगड़ा था, इसलिए उस की लाश को वह उठा नहीं पाया तो वह दुकान से बाहर निकला और शटर बंद कर के अपने कमरे पर सोने के लिए चला गया. अगले दिन उस ने पत्नी नसरीन को यह कह कर घर भेज दिया कि गांव में मां की तबीयत खराब है. बीवीबच्चों के चले जाने के बाद महबूब ने गांव में रह रहे छोटे भाई नासिर को फोन कर के बता दिया कि उस के हाथ से एक खून हो चुका है. लाश ठिकाने लगाने के लिए उस ने नासिर को दिल्ली बुला लिया. उसी दिन शाम तक नासिर उस के पास पहुंच गया. इसी दौरान महबूब बाजार से एक चापर और प्लास्टिक की बोरियां खरीद लाया.

रात होने पर महबूब ने शटर खोल कर भाई को योगेश की लाश दिखाई. दोनों ने सब से पहले चापर से योगेश की गरदन काट कर पौलीथिन की थैली में रखी. खून न बहे, इसलिए उस सिर को पौलीथिन की कई थैलियों में रखा. इस के बाद उन्होंने घुटनों से उस के दोनों पैर काटे, फिर कमर से नीचे से धड़ भी काट दिया. ये सारे टुकड़े उस ने प्लास्टिक की दोनों बोरियों में भर दिए. उस का मोबाइल नासिर ने अपने पास ही रख लिया था. आधी रात के बाद उन्होंने एक बोरी पास में ही स्थित ओमप्रकाश की परचून की दुकान के काउंटर के पास और दूसरी कुछ दूर ही खोखों के पास डाल दीं. रात में ही दोनों ने दुकान की सफाई कर दी थी.

नासिर पहले जामिया नगर इलाके में काम कर चुका था. उसे उस इलाके की अच्छी जानकारी थी. एक रंगीन थैली में सिर वाली थैली रख कर वह जामिया नगर ले गया और वह वहां एक कूड़ाघर में डाल दी. वह सिर उस ने दूर इसलिए डाला था, ताकि लाश के अन्य टुकड़ों की शिनाख्त न हो सके. योगेश का मोबाइल और बेल्ट नासिर ने जहांपनाह सिटी फौरेस्ट में डाल दिया था. अपना काम निपटाने के बाद नासिर अपने गांव लौट गया. महबूब ने लाश ठिकाने लगा कर खुद को बचाने की योजना तो बहुत अच्छी बनाई थी, लेकिन वह पुलिस के शिकंजे में फंस ही गया. उस से पूछताछ के बाद पुलिस ने नासिर को उस के गांव राजा का ताजपुर से गिरफ्तार कर लिया. दोनों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश कर न्यायिक हिरासत में भेज दिया. मामले की जांच थानाप्रभारी पंकज मलिक कर रहे हैं. Real Crime Story Hindi

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

True crime Story in Hindi : नाबालिग के यौन शोषण की कभी न खत्म होने वाली कहानी

True crime Story in Hindi : कहा जाता है- हरि अनंत हरि कथा अनंता वैसे ही समाज की आम भाषा में यह कहा जा सकता है – नाबालिक के यौन शोषण की कहानी  अनंत है. यह सच है कि इसके लिए सरकार ने नियम कायदे बना दिए हैं कानून बन चुका है. और जब बच्चों के साथ यौन शोषण करने वालों में कोई कोई पुलिस पकड़ में आता है तो चर्चा का सबब बन जाता है कि कैसा अनर्थ हो रहा है.कुल मिलाकर के यह बात दोहराई जाती है कि नाबालिग के यौन शोषण की कहानी अनंत है

आइए… आज इस रिपोर्ट में हम इस महत्वपूर्ण सामाजिक मसले पर ऐसे पक्ष उlद्घाटित कर रहे हैं जो आपको चौकाएंगे. दरअसल, बच्चों के शोषण की अनेक घटनाएं हो रही हैं ऐसे में इस महत्वपूर्ण मसले पर सामाजिक दृष्टिकोण से हर एक तरीके से रोक लगाने की आवश्यकता है. यहां यह बताना भी लाजिमी होगा कि 10 मासूम बच्चों में  सिर्फ 7 बच्चे यौन शोषण के आज भी शिकार हो रहे हैं और नाम मात्र के मामले ही सामने आ रहे हैं उसके अनुसार बच्चों के साथ दुष्कर्म करने वाले आसपास के परिजन परिवारिक इष्ट मित्र ही पाए गए हैं.

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इसलिए इसी रिपोर्ट के माध्यम से आपको सावधान करते हुए कुछ महत्वपूर्ण जानकारी दी जा रही है. जिसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर हमारे परिवार में नन्हे बच्चे हैं तो हम जागरूक रहे, हमारी जागरूकता के बगैर बच्चों के साथ यौन शोषण संभव हो सकता है.

और नाबालिग की शादी कर दी!

ऐसे ही एक सनसनीखेज मामले में छत्तीसगढ़  के जिला रायगढ़ के थाना  लैलूंगा की पुलिस द्वारा एक बालिका को परवरिश व घरेलू काम कराने के नाम पर सुन्दरगढ़ (ओडिशा) ले जाकर उसकी जबरजस्ती युवक के साथ शादी कराने वाले आरोपी पिता-पत्र को ओडिशा से पकड़ लिया गया है. हमारे  संवाददाता को  जांच अधिकारी लक्ष्मण प्रसाद पटेल ने बताया  – बालिका की मां  दिनांक 15 मई को थाना लैलूंगा में  रिपोर्ट दर्ज कर बताई कि रोजी मजदूरी का काम कर अपने बच्चों का पालन पोषण कर ती है. करीब चार माह पहले सुन्दरगढ़, ओडिशा में रहने वाला ईश्वर महाकुल  उसकी पंद्रह वर्षीय बेटी रानी (काल्पनिक नाम)  को अपने साथ ले गया और वादा किया कि बालिका घर का काम काज करेगी, मैं उसे बेटी की तरह रख कर पढ़ाऊंगा.

भरोसा कर महिला  ने अपने परिवारवालों से सलाह लेकर जान परिचित होने के कारण उस व्यक्ति के साथ बेटी को भेज दिया. कुछ माह बाद अपने रिस्तेदारो के साथ अपनी बेटी को देखने सुंदरगढ़ ओडिशा गई तो  देखा ईश्वर महाकुल के घर में बालिका से बहुत ज्यादा काम कराया जा रहा था, यही नही नाबालिक बालिका की शादी  ईश्वर महाकुल ने अपने बेटे गणेश बारीक के साथ जबरजस्ती करा दी है.

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यह सब देख कर बालिका की मां भौचक्र रह गई. सबसे बड़ा अपराध यह की बालिका के  परिवारवालों को कथित विवाह की जानकारी भी नहीं दी गई . और जब महिला ने अपनी बेटी को अपने साथ लेकर अपने घर लैलूंगा जाऊंगी कहा तो उसे झगड़ा कर भगा दिया गया . अंततः महिला ने बेटी का शोषण किये जाने के संबंध में थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई. पुलिस के समक्ष यह मामला आया तो जिला रायगढ़ पुलिस ने मामला पंजीबद्ध कर लिया.
जांच अधिकारी लक्ष्मण प्रसाद पटेल ने बताया आरोपी पिता-पुत्र  आरोपी ईश्वर बारीक पिता चक्रधर बारीक उम्र 50 वर्ष उसके पुत्र गणेश बारीक उम्र 21 साल दोनों निवासी ग्राम कुराई महकुलपारा थाना तलसरा जिला सुन्दरगढ़ ओडिशा को हिरासत में लेकर उनके बयान लिए गए और गंभीर अपराध पाए जाने पर मामला पंजीबद्ध किया गया. प्रकरण में साक्ष्य के आधार पर आरोपियों के विरूद्ध धारा 9, 10 बालविवाह प्रतिषेध अधिनियम, 4, 8 पास्को एक्ट जोड़ी गई है. True crime Story in Hindi

Bihar Crime News : मौत का सौदागर – लालच ने बनाया हत्यारा

Bihar Crime News : 25नंवबर, 2020 को देव दिवाली का त्यौहार होने के कारण एक ओर जहां रतलाम के लोग अपने आंगन में गन्ने से बने मंडप तले शालिग्राम और तुलसी का विवाह उत्सव मना रहे थेवहीं दूसरी ओर शहर भर के बच्चे दीवाली की बची आतिशबाजी खत्म करने में लगे थे. चारों तरफ धूमधड़ाके का माहौल था. लेकिन इस से अलग औद्योगिक थाना इलाके में कब्रिस्तान के पास बसे राजीव नगर में युवक बेवजह ही सड़क पर यहां से वहां चक्कर लगाते हुए कालोनी के एक तिमंजिला मकान पर नजर लगाए हुए थे.

 

यह मकान गोविंद सेन का था. लगभग 50 वर्षीय गोविंद सेन का स्टेशन रोड पर अपना सैलून था. उन का रिश्ता ऐसे परिवार से रहा जिस के पास काफी पुश्तैनी संपत्ति थी. पारिवारिक बंटवारे में मिली बड़ी संपत्ति के कारण उन्होंने राजीव नगर में यह आलीशान मकान बनवा लिया था. इस की पहली मंजिल पर वह स्वयं 45 वर्षीय पत्नी शारदा और 21 साल की बेटी दिव्या के साथ रहते थे. जबकि बाकी मंजिलों पर किराएदार रहते थे. उन की एक बड़ी बेटी भी थीजिस की शादी हो चुकी थी.

इस परिवार के बारे में आसपास के लोग जितना जानते थेउस के हिसाब से गोविंद सिंह की पत्नी घर पर अवैध शराब बेचने का काम करती थी. जबकि उन की बेटी को खुले विचारों वाली माना जाता था. लोगों का मानना था कि दिव्या एक ऐसी लड़की है जो जवानी में ही दुनिया जीत लेना चाहती थी. उस की कई युवकों से दोस्ती की बात भी लोगों ने देखीसुनी थी. पिता के सैलून चले जाने के बाद वह दिन भर घर में अकेली रहती थी. मां शारदा और बेटी दिव्या से मिलने आने वालों की कतार लगी रहती थी. मोहल्ले वाले यह सब देख कर कानाफूसी करने के बाद हमें क्या करना’ कह कर अनदेखी करते देते थे.

25 नवंबर की रात जब चारों ओर देव दिवाली की धूम मची हुई थी. राजीव नगर की इस गली मे घूम रहे युवक कोई साढे़ बजे के आसपास गोविंद के घर के सामने से गुजरे और सीढ़ी चढ़ कर ऊपर चले गए. सामने के मकान से देख रहे युवक ने जानबूझ कर इस बात पर खास ध्यान नहीं दिया. जबकि उन का चौथा साथी गोविंद के घर जाने के बजाय कुछ दूरी पर जा कर खड़ा हो गया. रात कोई सवा बजे थकाहारा गोविंद दूध की थैली लिए घर लौटा. गोविंद सीढि़यां चढ़ कर ऊपर पहुंच गया. इस के कुछ देर बाद वे तीनों युवक उन के घर से निकल कर नीचे आ गए.

जिस पड़ोसी ने उन्हें ऊपर जाते देखा थासंयोग से उस ने तीनों को वापस उतरते भी देखा तो यह सोच कर उस के चेहरे पर मुसकराहट तैर गई कि घर लौटने पर उन युवकों को अपने घर में मौजूद देख कर गोविंद सेन की मन:स्थिति क्या रही होगी. तीनों युवकों ने नीचे खड़ी दिव्या की एक्टिवा स्कूटी में चाबी लगाने की कोशिश कीलेकिन संभवत: वे गलत चाबी ले आए थे. इसलिए उन में से एक वापस ऊपर जा कर दूसरी चाबी ले आयाजिस के बाद वे दिव्या की एक्टिवा पर बैठ कर चले गए.

26 नवंबर की सुबह के बजे रतलाम में रोज की तरह सड़कों पर आवाजाही शुरू हो गई थी. लेकिन गोविंद सेन के घर में अभी भी सन्नाटा पसरा हुआ था. कुछ देर में उन के मकान में किराए पर रहने वाली युवती ज्वालिका अपने कमरे से बाहर निकल कर दिव्या के घर की तरफ गई. दिव्या की हमउम्र ज्वालिका एक प्राइवेट अस्पताल में नौकरी करती थी. गोविंद की बेटी भी एक निजी कालेज से बीएससी की पढ़ाई के साथ नर्सिंग का कोर्स कर रही थी. महामारी के कारण आजकल क्लासेस बंद थींइसलिए वह अपनी बड़ी बहन की कंपनी में नौकरी करने लगी थी.

ज्वालिका और दिव्या एक ही एक्टिवा इस्तेमाल करती थीं. जब जिस को जरूरत होतीवही एक्टिवा ले जाती. लेकिन इस की चाबी हमेशा गोविंद के घर में रहती थी. सो काम पर जाने के लिए एक्टिवा की चाबी लेने के लिए ज्वालिका जैसे ही गोविंद के घर में दाखिल हुईचीखते हुए वापस बाहर आ गई. उस की चीख सुन कर दूसरे किराएदार भी बाहर आ गए. उन्हें पता चला कि गोविंद के घर के अंदर गोविंदउस की पत्नी और बेटी की लाशें पड़ी हैं. घबराए लोगों ने यह खबर नगर थाना टीआई रेवल सिंह बरडे को दे दी.

कुछ ही देर में वह अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए और मामले की गंभीरता को देखते हुए इस तिहरे हत्याकांड की खबर तुरंत एसपी गौरव तिवारी को दी. कुछ ही देर में एसपी गौरव तिवारी एएसपी सुनील पाटीदारएफएसएल अधिकारी अतुल मित्तल एवं एसपी के निर्देश पर माणकचौक के थानाप्रभारी अयूब खान भी मौके पर पहुंच गए. तिहरे हत्याकांड की खबर पूरे रतलाम में फैल गईजिस से मौके पर जमा भारी भीड़ जमा हो गई. मौकाएवारदात की जांच में एसपी गौरव तिवारी ने पाया कि शारदा का शव बिस्तर पर पड़ा थाजिस के सिर में गोली लगी थी.

उन की बेटी दिव्या की लाश किचन के बाहर दरवाजे पर पड़ी थी. दिव्या के हाथ में आटा लगा हुआ था और आधे मांडे हुए आटे की परात किचन में पड़ी हुई थी. इस से साफ हुआ कि पहले बिस्तर पर लेटी हुई शारदा की हत्या हुई होगी. गोली की आवाज सुन कर दिव्या बाहर आई होगी तो हत्यारों ने उसे भी गोली मार दी होगी. गोविंद की लाश दरवाजे के पास पड़ी थीइस का मतलब उस की हत्या सब से बाद में हुई थी. उन के पैरों में जूते थे और हाथ में दूध की थैली.

पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारे हत्या करने के बाद भागना चाहते होंगेलेकिन भागते समय ही गोविंद घर लौट आएजिस से उन की भी हत्या कर दी गई होगी. पड़ोसियों ने गोविंद को बजे घर आते देखा था. उस के बाद लोगों को घर से बाहर जाते देखा. इस से यह साफ हो गया कि शारदा और दिव्या की हत्या बजे के पहले की गई होगी. जबकि गोविंद की हत्या बजे हुई होगी. पुलिस ने जांच शुरू की तो गोविंद सेन के परिवार के बारे में जो जानकरी निकल कर सामने आईउस से पुलिस को शक हुआ कि हत्याएं प्रेम प्रसंग या अवैध संबंध को ले कर की गई होंगी.

लेकिन गोविंद के एक रिश्तेदार ने इस बात को पूरी तरह गलत करार देते हुए बताया कि गोविंद ने कुछ ही समय पहले 30 लाख रुपए में गांव की अपनी जमीन बेची थी. दूसरा घटना के दिन ही शारदा और दिव्या ने डेढ़ लाख रुपए की ज्वैलरी की खरीदारी की थीजो घर में नहीं मिली. इस कारण पुलिस लूट के एंगल से भी जांच करने में जुट गई. चूंकि मौके पर संघर्ष के निशान नहीं थे और हत्यारे गोविंद की बेटी की एक्टिवा भी साथ ले गए थे. इस से यह साफ हो गया कि वे जो भी रहे होंगेपरिवार के परिचित रहे होंगे और उन्हें गाड़ी की चाबी रखने की जगह भी मालूम थी.

हत्यारों ने वारदात का दिन देव दिवाली का सोचसमझ कर चुना. इसलिए आतिशबाजी के शोर में किसी ने भी पड़ोस में चलने वाली गोलियों की आवाज पर ध्यान नहीं दिया था. मामला गंभीर था इसलिए आईजी राकेश गुप्ता ने मौके का निरीक्षण करने के बाद हत्यारों की गिरफ्तारी पर 30 हजार रुपए के ईनाम की घोषणा कर दी.

वहीं एसीपी गौरव तिवारी ने 10 थानों के टीआई और लगभग 60 पुलिसकर्मियों की एक टीम गठित कर दीजिस की कमान  थानाप्रभारी अयूब खान को सौंपी गई. इस टीम ने इलाके के पूरे सीसीटीवी कैमरे खंगालेइस के अलावा घटना के समय राजीव नगर में स्थित मोबाइल टावर के क्षेत्र में सक्रिय 70 हजार से अधिक फोन नंबरों की जांच शुरू की.

दिव्या को एक बोल्ड लड़की के रूप में जाना जाता था. उस की कई लड़कों से दोस्ती थी. कुछ दिन पहले उस ने एक अलबम मैनूं छोड़ के…’ में काम किया था. इस अलबम में भी उस की एक दुर्घटना में मौत हो जाती है. पुलिस ने उस के साथ काम करने वाले युवक अभिजीत बैरागी से भी पूछताछ की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. घटना वाले दिन से ले कर चंद रोज पहले तक दिव्या ने जिन युवकों से फोन पर बात की थीउन सभी से पुलिस ने पूछताछ की. गोविंद सेन की एक्टिवा देवनारायण नगर में लावारिस खड़ी मिली. तब पुलिस ने वहां भी चारों ओर लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज जमा कर हत्यारों का पता लगाने की कोशिश शुरू की.

जिस में दोनों जगहों के फुटेज से संदिग्ध युवकों की पहचान कर ली गईजिन्हें घटना से पहले इलाके में पैदल घूमते देखा गया था. और बाद में वही युवक दिव्या की एक्टिवा पर जाते हुए सीसीटीवी कैमरे में कैद हुए. जाहिर है हर बड़ी घटना के आरोपी भले ही कितनी भी दूर क्यों न भाग जाएंवे घटना वाले शहर में पुलिस क्या कर रही है. इस बात की जानकारी जरूर रखते हैंयह बात एसपी गौरव तिवारी जानते थे. इसलिए उन्होंने जानबूझ कर जांच के दौरान मिले महत्त्वपूर्ण सुराग को मीडिया के सामने नहीं रखा था.

दरअसलजब पुलिस सीसीटीवी के माध्यम से हत्यारों के भागने के रूट का पीछा कर रही थी तभी देवनारायण नगर में आ कर दोनों संदिग्धों ने दिव्या की एक्टिवा छोड़ दी थी. वहां पहले से एक युवक स्कूटर ले कर खड़ा थाजिसे ले कर वे वहां से चले गए. जबकि स्कूटर वाला युवक पैदल ही वहां से गया था. इस से एसपी को शक था कि तीसरा युवक स्थानीय हो सकता हैजो आसपास ही रहता होगा. बात सही थीवह अनुराग परमार उर्फ बौबी थाजो विनोबा नगर में रहता था.

इंदौर से बीटेक करने के बाद भी उस के पास कोई काम नहीं था. वह इस घटना में शामिल था और पुलिस की गतिविधियों पर नजर रखे हुए था. इसलिए जब उसे पता चला कि पुलिस को उस का कोई फुटेज नहीं मिला तो वह लापरवाही से घर से बाहर घूमने लगा. जिस के चलते नजर गड़ा कर बैठी पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर पूछताछ की. उस से मिली जानकारी के दिन बाद ही पुलिस ने दाहोद (गुजरात) से लाला देवल निवासी खरेड़ी गोहदा और वहीं से रेलवे कालोनी रतलाम निवासी गोलू उर्फ गौरव को गिरफ्तार कर लिया. उन से पता चला कि पूरी घटना का मास्टरमांइड दिलीप देवले हैजो खरेड़ी गोहद का रहने वाला है.

यही नहीं पूछताछ में यह भी साफ हो गया कि जून 20 में दिलीप देवल ने ही अपने ताऊ के बेटे सुनीत उर्फ सुमीत चौहान निवासी गांधीनगररतलाम और हिम्मत सिंह देवल निवासी देवनारायण के साथ मिल कर डा. प्रेमकुंवर की हत्या की थी. जिस से पुलिस ने सुनीत और हिम्मत को भी गिरफ्तार कर लिया. इन से पता चला कि तीनों हत्याएं लूट के इरादे से की गई थीं. दिलीप के बारे में पता चला कि वह रतलाम में ही छिप कर बैठा है. पुलिस को यह भी पता चला कि वह मिडटाउन कालोनी में किराए के मकान में रह रहा है. और पुलिस तथा सीसीटीवी कैमरे से बचने के लिए पीछे की तरफ टूटी बाउंड्री से आताजाता है.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने पीछे की तरफ खाचरौद रोड पर उसे घेरने की योजना बनाईजिस के चलते दिसंबर, 2020 को वह पुलिस को दिख गया. पुलिस टीम ने उसे ललकारा तो दिलीप ने पुलिस पर गोलियां चलानी शुरू कर दींजवाबी काररवाई में पुलिस ने भी गोलियां चलाईं. कुछ ही देर में मास्टरमाइंड दिलीप मारा गया. इस प्रकार असंभव से लगने वाले तिहरे हत्याकांड के सभी आरोपियों को पुलिस ने महज दिन में सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. इस में टीम प्रभारी अयूब खान और एसआई सहित पुलिसकर्मी भी घायल हुए.

लौकडाउन में घर में सैलून चलाना महंगा पड़ा गोविंद को गोविंद सेन पिछले 22 साल से स्टेशन रोड पर सैलून चलाते थे. लौकडाउन के दौरान वह चोरीछिपे अपने घर बुला कर लोगों की कटिंग करते रहे. दिलीप भी उन से कटिंग करवाने घर जाया करता था. जहां उस ने गोविंद की अमीरी देख कर उन्हें शिकार बनाने की योजना बनाई थी. दिलीप के साथियों ने बताया कि शारदा और दिव्या की हत्या करने की योजना तो वे पहले से ही बना कर आए थे. लेकिन अंतिम समय में गोविंद भी अपनी दुकान से लौट कर आ गए थे. इसलिए उन की भी हत्या करनी पड़ी. आरोपियों ने बताया कि उस के घर से उन्हें 30 लाख रुपए मिलने की उम्मीद थी. लेकिन उन्हें केवल 20 हजार नकद और कुछ जेवर ही मिले थे.

दिलीप अपने कारनामों का कोई सबूत नहीं छोड़ना चाहता था. इसलिए लूट के दौरान सामने वाले की सीधे हत्या कर देता था. दिलीप अब तक एक ही तरीके से हत्याएं कर चुका थाइसलिए पुलिस उसे साइकोकिलर मानती थी. दिलीप के साथियों का कहना था कि पुलिस से बचने के लिए हत्या तो करनी ही पड़ेगी मर्डर इज मस्ट. Bihar Crime News

True Crime Stories : पछतावा

True Crime Stories : कबड्डी खेलते समय नासिर ने चौधरी आफताब की जो बेइज्जती की थी, उस का बदला लेने के लिए उस ने हैदर अली के साथ मिल कर नासिर के साथ ऐसा क्या किया कि उसे और हैदर अली को पछताना पड़ा. उन दिनों मैं जिला छंग के एक देहाती थाने में तैनात था. वह जगह दरिया के करीब थी. मई का महीना होने की वजह से अच्छीभली गरमी पड़ रही थी. अचानक एक दिन पास के गांव से एक वारदात की खबर आई.

कांस्टेबल सिकंदर अली ने बताया कि गुलाबपुर में एक गबरू जवान का बड़ी बेदर्दी से कत्ल कर दिया गया है, जिस की लाश खेतों में पड़ी है. गुलाबपुर मेरे थाने से करीब एक मील दूर था. वहां से फैय्याज और यूनुस खबर ले कर आए थे. वे दोनों खबर दे कर वापस जा चुके थे.

मैं ने पूछा, ‘‘मरने वाला कौन है?’’

‘‘उस का नाम नासिर है, वह कबड्डी का बहुत अच्छा और माहिर खिलाड़ी था.’’ सिकंदर अली ने बताया. मैं 2 सिपाहियों के साथ गुलाबपुर रवाना हो गया. हमारे घोड़े खेतों के बीच आड़ीतिरछी पगडंडी पर चल रहे थे. जिस खेत में लाश पड़ी थी, वह गांव से एक फर्लांग के फासले पर था. कुछ लोग हमें वहां तक ले गए. वहां एक अधूरा बना कमरा था, न दीवारें न छत. जरूर कभी वहां कोई इमारत रही होगी. नासिर की लाश कमरे के सामने पड़ी थी. लाश के पास 8-9 लोग खड़े थे, जो हमें देख कर पीछे हट गए थे.

मैं उकड़ूं बैठ कर बारीकी से लाश की जांच करने लगा. बेशक वह एक खूबसूरत गबरू जवान था. उस की उम्र 23-24 साल रही होगी. वह मजबूत और पहलवानी बदन का मालिक था, रंग गोरा था और बाल घुंघराले. लाश देख कर मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि उस पर तेजधार हथियार या छुरे से हमला हुआ होगा. मारने वाले एक से ज्यादा लोग रहे होंगे. उस के हाथों के जख्म देख कर लगता था कि उस ने अपने बचाव की भरपूर कोशिश की थी. नासिर कबड्डी का अच्छा खिलाड़ी था, इसलिए गुलाबपुर के लोग उसे गांव की शान समझते थे. लाश पर चादर डाल कर मैं लोगों से पूछताछ करने लगा.

नासिर का 60 साल का बाप वहीं था, उस की हालत बड़ी खराब थी, आंखें आंसुओं से भरी थीं. उस का नाम बशीर था. मैं ने उस के कंधे पर हाथ रख कर उसे तसल्ली दी, ‘‘चाचा, आप फिकर न करो, आप के बेटे का कातिल पकड़ा जाएगा.’’

उस ने रोते हुए कहा, ‘‘साहब, मेरा बेटा तो चला गया. कातिल के पकड़े जाने से मेरा बेटा लौट कर तो नहीं आएगा.’’

बेटे के गम ने उस की सोचनेसमझने की ताकत खत्म कर दी थी. उसे बस एक ही बात याद थी कि उस का जवान बेटा कत्ल हो चुका है. मुझे उस पर बड़ा तरस आया. मैं ने उसे एक जगह बिठा दिया और अपनी काररवाई करने लगा. सब से पहले मैं ने घटनास्थल का नक्शा तैयार किया. इस कत्ल का मुझे कोई सुराग नहीं मिला था. यहां तक कि वह हथियार भी नहीं, जिस से उस का कत्ल किया गया था.  मैं ने वारदात की जगह पर मौजूद लोगों के बयान लिए. लेकिन सिवाय नासिर की तारीफ सुनने के कोई जानकारी नहीं मिली. मैं ने नासिर की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

मेरे दिमाग में एक सवाल घूम रहा था कि इतनी रात को नासिर इस सुनसान जगह पर क्या कर रहा था. मेरे अंदाज से कत्ल रात को हुआ था. मैं ने मौजूद लोगों से घुमाफिरा कर कई सवाल किए, पर काम की कोई बात पता नहीं चली. मैं ने यूनुस और फैयाज से भी पूछताछ की. पर कुछ खास पता नहीं चला. इलियास जिस ने सब से पहले लाश देखी थी, उस से भी पूछा, ‘‘इलियास, तुम सुबहसुबह कहां जा रहे थे?’’

‘‘साहबजी, मैं कुम्हार हूं. मैं मिट्टी के बरतन बनाता हूं. मैं रोजाना सुबह मिट्टी के लिए घर से निकलता हूं. मेरा कुत्ता मोती भी मेरे साथ होता है. वह मुझे इस तरफ ले आया, तभी लाश पर मेरी नजर पड़ी. लाश देख कर मैं ने ऊंची आवाज में चीखना शुरू कर दिया. उस वक्त खेतों में लोगों का आनाजाना शुरू हो गया था. कुछ लोग जमा हो गए. मौजूद लोगों से पता चला कि बशीर लोहार के बेटे नासिर का किसी ने कत्ल कर दिया है.’’

बशीर लोहार का घर गांव के बीच में था. उस का छोटा सा परिवार था. घर में नासिर के मांबाप के अलावा एक बहन थी. बशीर ने अपने घर के बरामदे में भट्ठी लगा रखी थी. वहीं पर वह लोहे का काम करता था. जब मैं उस के घर पहुंचा तो वह मुझे घर के अंदर ले गया. मैं ने उस से कहा, ‘‘चाचा बशीर, जो कुछ तुम्हारे साथ हुआ, बहुत अफसोसनाक है. मैं तुम्हारे गम में बराबर का शरीक हूं. मेरी पूरी कोशिश होगी कि जैसे भी हो, कातिल को कानून के हवाले करूं. लेकिन तुम्हें मेरी मदद करनी होगी. हर बात साफसाफ और खुल कर बतानी होगी.’’

उस की बीवी जुबैदा बोल उठी, ‘‘साहब, आप से कुछ भी नहीं छिपाएंगे. हमारी दुनिया तो अंधेरी हो ही गई है, लेकिन जिस जालिम ने मेरे बच्चे को मारा है, उसे कड़ी सजा मिलनी चाहिए.’’

‘‘आप दोनों को किसी पर शक है?’’

‘‘साहब, हमें किसी पर शक नहीं है. मेरा बेटा तो पूरे गांव की आंख का तारा था. अभी पिछले महीने ही उस ने कबड्डी का टूर्नामेंट जीता था. इस मुकाबले में 4 गांवों की टीमों ने हिस्सा लिया था. गुलाबपुर की टीम में अगर नासिर न होता तो यह जीत नजीराबाद के हिस्से में जाती. सुल्तानपुर और चकब्यासी पहले दौर में आउट हो गए थे. असल मुकाबला गुलाबपुर ओर नजीराबाद में था. जीतने पर गांव वाले उसे कंधे पर उठाए घूमते रहे. बताइए, मैं किस पर शक करूं?’’ बशीर ने तफ्सील से बताया.

‘‘नासिर कबड्डी का इतना अच्छा खिलाड़ी था, जहां 10 दोस्त थे, वहां एकाध दुश्मन भी हो सकता है.’’ मैं ने कहा.

‘‘आप बिलकुल ठीक कह रहे हैं साहब, पर मुझे इस बारे में कुछ पता नहीं है.’’ बशीर ने बेबसी जाहिर की.

‘‘मुझे उस दसवें आदमी की तलाश है, जिस ने नासिर का बेदर्दी से कत्ल किया है. जरूर यह किसी दुश्मन का काम है. हो सकता है, गांव के बाहर का कोई दुश्मन हो?’’ मैं ने कहा.

‘‘बाहर का भी कोई दुश्मन नहीं है साहब.’’ उस की बीवी जुबैदा ने कहा तो मैं सोच में पड़ गया. अचानक बशीर बोल उठा, ‘‘वह तो सारा दिन मेरे साथ काम में लगा रहता था. शाम को अखाड़े में कसरत वगैरह करता था.’’

‘‘यह अखाड़ा कहां है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘अखाड़ा ट्यूबवेल के पास है. उस टूटीफूटी इमारत के करीब, जहां यह वारदात हुई.’’ उस ने जवाब दिया.

‘‘मेरे अंदाज से कत्ल देर रात को हुआ है, इतनी रात को वह अखाड़े में क्या कर रहा था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘यह बात हमारी भी समझ में नहीं आ रही है.’’ जुबैदा बोली.

‘‘रात को क्या वह रोजाना की तरह समय पर सोया था?’’

‘‘सोया तो रोजाना की तरह ही था.’’ कहतेकहते जुबैदा रुक गई.

‘‘मुझे खुल कर बताओ, क्या बात है?’’ मैं ने कहा तो वह बोली, ‘‘आप हमारे साथ ऊपर छत पर चलिए. आप खुद समझ जाएंगे.’’

हम छत पर पहुंचे तो जुबैदा कहने लगी, ‘‘मैं रोजाना नासिर को उठाने छत पर आती थी और वह 2 पुकार में उठ जाता था. लेकिन आज ऐसा नहीं हुआ. मैं ने आगे बढ़ कर चादर उठाई तो उस के नीचे एक तकिया रखा हुआ था, जिस पर चादर ओढ़ाई हुई थी. ऐसा लग रहा था, जैसे कोई सो रहा है.’’

मैं खामोश खड़ा रहा तो जुबैदा ने कहा, ‘‘इस का मतलब है कि पिछली रात नासिर अपनी मरजी से घर से निकला था. वह नहीं चाहता था कि किसी को उस के जाने के बारे में पता चले.’’ जुबैदा बोली.

‘‘नहीं जुबैदा, ऐसा नहीं है. वह पहले भी जाता रहा होगा, पर सुबह होने से पहले आ जाता रहा होगा. इसलिए तुम्हें पता नहीं चला. तुम्हारा बेटा रात के अंधेरे में कहीं जाता था और जल्द लौट आता रहा होगा, इसलिए तुम्हें खबर नहीं मिल सकी. मुझे तो किसी लड़की का चक्कर लगता है.’’ मैं ने कहा तो वे दोनों बेयकीनी से मुझे देखने लगे, ‘‘लड़की का चक्कर…’’

बशीर ने कहा, ‘‘साहब, नासिर ऐसा लड़का नहीं था. वह तो गुलाबपुर की लड़कियों और औरतों को बहनें समझता था. वह कभी किसी की तरफ आंख उठा कर भी नहीं देखता था.’’

‘‘मैं मान नहीं सकता कि लड़की का चक्कर नहीं था. पिछली रात वह लड़की से मुलाकात करने ही खेत में पहुंचा था. अगर आप लोग लड़की का नाम बता दो तो केस जल्द हल हो जाएगा. मैं कातिलों तक पहुंच जाऊंगा, क्योंकि वही लड़की बता सकती है कि खेत में क्या हुआ था?’’ मैं ने पूरे यकीन से कहा.

‘‘जनाब, हम बड़ी से बड़ी कसम खा कर कह रहे हैं कि हम ऐसी किसी लड़की को नहीं जानते.’’ दोनों ने एक साथ कहा.

‘‘मैं आप की बात का यकीन करता हूं, पर इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. मैं कहीं न कहीं से इस का सुराग लगा ही लूंगा. आप यह बताएं कि गुलाबपुर में नासिर का सब से करीबी दोस्त कौन है?’’

‘‘जमील से उस की गहरी दोस्ती थी.’’ बशीर ने कहा.

‘‘ठीक है, अब मैं पता कर लूंगा. दोस्त दोस्त का राज जानते हैं. मुझे जमील से मिलना है. तुम उसे यहां बुला लो?’’ मैं ने कहा.

‘‘उस का घर पड़ोस में है, मैं अभी बुलाता हूं.’’ बशीर ने कहा. उस ने वापस लौट कर बताया कि जमील 2 दिनों से टोबा टेक सिंह गया हुआ है.

‘‘ठीक है, कल वह वापस आएगा तो उस से पूछ लूंगा. अभी उस के घर वालों से बात कर लेता हूं.’’ मैं ने कहा.

सामने ही उस की परचून की दुकान थी. उस का बाप वहीं मिल गया. मैं ने करीब 15 मिनट तक उस से बात की, पर कोई काम की बात पता नहीं चल सकी. वह भी कबड्डी की वजह से नासिर का बड़ा फैन था. उसे उस की मौत का बहुत गम था. मेरा दिमाग गहरी सोच में था. मुझे पक्का यकीन था कि जरूर लड़की का चक्कर है. जहां लाश मिली थी, वहां एक अधूरा कमरा था. रात में मुलाकात के लिए वह बेहतरीन जगह थी. मुझे ऐसी लड़की की तलाश थी, जो नासिर से मोहब्बत करती थी और नासिर उस के इश्क में पागल था.  वह जगह गुलाबपुर के करीब ही थी, इसलिए लड़की भी वहीं की होनी चाहिए थी.

मेरी सोच के हिसाब से कातिल इस राज से वाकिफ था कि लड़की और नासिर वहां छिपछिप कर मिलते हैं. उसे इस बात का भी यकीन रहा होगा कि नासिर वहां जरूर आएगा. निस्संदेह कातिल उन दोनों की मोहब्बत और मिलन से सख्त नाराज रहा होगा. उस ने वक्त और मौका देख कर नासिर को मौत के घाट उतार दिया होगा. मुझे उस लड़की को तलाश करना था. दोपहर के बाद मैं ने हमीदा को थाने बुलाया. वह कस्बे में घरघर जा कर क्रीमपाउडर और परांदे वगैरह बेचा करती थी. हर घर की लड़कियों को वह खूब जानती थी और कई की राजदार भी थी. पहले भी वह मेरे कई काम करा चुकी थी.

मैं उसे कुछ पैसे दे देता था तो वह खुश हो जाती थी. मैं ने उस से पूछा, ‘‘हमीदा, तुम गुलाबपुर के हर घर से वाकिफ हो. मुझे नासिर के बारे में जानकारी चाहिए. तुम जो जानती हो, बताओ.’’

‘‘साहब, वह तो गुलाबपुर का हीरो था. बच्चाबच्चा उस पर जान देता था.’’ उस ने दुखी हो कर कहा.

‘‘मुझे गुलाबपुर की उस हसीना का नाम बताओ, जो उस पर जान देती थी और नासिर भी उस का आशिक रहा हो.’’ मैं ने उस की आंखों में झांकते हुए पूछा.

‘‘ओह, तो कत्ल की इस वारदात का ताल्लुक नासिर की मोहब्बत की कहानी से जुड़ा हुआ है.’’ उस ने गहरी सांस ले कर कहा.

‘‘सौ फीसदी, उस के इश्क में ही कत्ल का राज छिपा है.’’ मैं ने पूरे यकीन से कहा.

हमीदा कुछ सोचती रही, फिर धीरे से बोली, ‘‘सच क्या है, यह तो नहीं कह सकती. पर मैं ने उड़तीउड़ती खबर सुनी थी कि रेशमा से उस का कुछ चक्कर चल रहा था. रेशमा शकूर जुलाहे की बेटी है.’’

मैं ने हमीदा को इनाम दे कर विदा किया. मैं पहले भी उस से मुखबिरी का काम ले चुका था. उस की खबरें पक्की हुआ करती थीं. अगले दिन गरमी कुछ कम थी. मैं खाने और नमाज से फारिग हो कर बैठा था कि जमील अपने बाप के साथ आ गया. मैं ने उस के बाप को वापस भेज कर जमील को सामने बिठा लिया. वह गोराचिट्टा, मजबूत जिस्म का जवान था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘जमील, तुम्हें नासिर के साथ हुए हादसे का पता चल गया होगा?’’

मेरी बात सुन कर उस की आंखें भीग गईं. वह दुखी लहजे में बोला, ‘‘साहब, मैं ने अपना सब से प्यारा दोस्त खो दिया है. पता नहीं किस जालिम ने उसे कत्ल कर दिया.’’

‘‘तुम उस जालिम को सजा दिलवाना चाहते हो?’’

‘‘जरूर, साहब मैं दिल से यही चाहता हूं.’’

‘‘तुम्हारी मदद मुझे कातिल तक पहुंचा सकती है. जमील मुझे यकीन है कि बिस्तर पर तकिया रख कर वह पहली बार रात को घर से बाहर नहीं गया होगा. जरूर वह पहले भी जाता रहा होगा. यह खेल काफी दिनों से चल रहा था. तुम उस के दोस्त हो, राजदार हो, तुम्हें सब पता होगा. मैं सारी हकीकत समझ चुका हूं, पर तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं.’’

कुछ देर सोचने के बाद वह बोला, ‘‘आप का अंदाजा सही है, इस में एक लड़की है.’’

‘‘रेशमा नाम है न उस का?’’ मैं ने बात पूरी की तो वह हैरानी से मुझे देखने लगा. फिर बोला, ‘‘साहब, उस का नाम रेशमा ही है. दोनों एकदूसरे से मोहब्बत करते थे. धीरेधीरे उन की मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो गया था. मैं उन का राजदार था या यूं कहिए मेरी वजह से ही ये मुलाकातें मुमकिन थीं. रेशमा हमारी दुकान पर सामान लेने आती थी. उसे पता था कि मैं कब दुकान पर रहता हूं. मैं ही रेशमा को बताया करता था कि उसे कब खेतों में पहुंचना है. नासिर उस की राह देखेगा, अगर वह आने को हां कह देती थी तो मैं नासिर को बता देता था. फिर वह उस जगह पहुंच जाता था. इस तरह उन दोनों की मुलाकात हो जाती थी.’’

‘‘क्या मुलाकात के वक्त तुम भी आसपास होते थे?’’

‘‘नहीं साहब, मैं कभी उस तरफ नहीं गया. हां, दूसरे दिन नासिर मुझे सब बता दिया करता था.’’

‘‘दोनों के बीच बात किस हद तक आगे बढ़ चुकी थी?’’

‘‘दोनों की मोहब्बत शादी तक पहुंच गई थी. रेशमा जल्दी शादी करने का इसरार कर रही थी. नासिर भी शादी करना चाहता था, लेकिन उसे इतनी जल्दी नहीं थी. जबकि रेशमा जल्दी रिश्ता तय करने की बात कर रही थी.’’

‘‘रेशमा की जल्दी के पीछे भी कोई वजह रही होगी?’’

‘‘हां, दरअसल रेशमा की मां सरदारा बी उस का रिश्ता अपनी बहन के लड़के से करना चाहती थी और उस का बाप उस का रिश्ता अपने भाई के लड़के से करना चाहता था. पर बात सरदारा बी की ही चलनी थी, क्योंकि वह काफी तेज है. वही सब फैसले करती है. रिश्ता खाला के बेटे से न तय हो जाए, इस डर से रेशमा नासिर को जल्दी रिश्ता लाने को कह रही थी.’’ जमील ने तफ्सील से बताया.

‘‘एक बात समझ में नहीं आई जमील, तुम्हारे मुताबिक उन की मुलाकातों के तुम अकेले राजदार थे. जबकि कत्ल वाले दिन के पहले से तुम गांव से बाहर थे. फिर उस दिन दोनों की मुलाकात किस ने तय कराई थी?’’ मैं ने पूछा.

‘‘साहब, जिस दिन मैं टोबा टेक सिंह गया था, उसी दिन मैं ने उन की दूसरे दिन की मुलाकात तय करा दी थी. नासिर ने दूसरे दिन मिलने को कहा था. मैं ने यह बात रेशमा को बता दी थी. उस के हां कहने पर मैं ने नासिर को भी प्रोग्राम पक्का होने के बारे में बता दिया था.’’

‘‘इस का मतलब प्रोग्राम के मुताबिक ही नासिर अगली रात रेशमा से मिलने खेतों में पहुंचा था. यकीनन वादे के मुताबिक रेशमा भी वहां आई होगी और उस रात नासिर के साथ जो खौफनाक हादसा हुआ, वह उस ने भी देखा होगा. उस का बयान कातिल तक पहुंचने में मदद कर सकता है. मुझे रेशमा का बयान लेना होगा.’’ मैं ने कहा.

‘‘साहब, मामला बहुत नाजुक है. नासिर तो अब मर चुका है, आप रेशमा से इस तरह मिलें कि बात फैले नहीं. नहीं तो बेवजह वह मासूम बदनाम हो जाएगी.’’

‘‘तुम इस की चिंता न करो, मैं उस से बहुत सोचसमझ कर इस तरह मिलूंगा कि किसी को पता भी नहीं चलेगा.’’ मैं ने उसे समझाया.

‘‘बहुतबहुत शुक्रिया जनाब, आप बहुत अच्छे इंसान हैं.’’

‘‘जमील, तुम एक बात का खयाल रखना, जो बातें हमारे बीच हुई हैं, उन का किसी से जिक्र मत करना.’’

जब मैं नासिर की लाश ले कर गुलाबपुर पहुंचा तो बशीर लोहार के घर तमाम लोग जमा थे. लाश देख कर एक बार फिर रोनापीटना शुरू हो गया. मौका देख कर मैं ने शकूर को एक तरफ ले जा कर कहा, ‘‘शकूर, मुझे नासिर के कत्ल के सिलसिले में तुम से कुछ पूछना है. यहां खड़े हो कर बात करने से बेहतर है तुम्हारे घर बैठ कर बात की जाए.’’

उस ने कोई आपत्ति नहीं की. मैं उस के साथ उस के घर चला आया. उस की बैठक में बैठा. उस की एक बेटी थी रेशमा और एक बेटा शमशाद. बेटा 12-13 साल का रहा होगा, जो उस वक्त बाहर खेल रहा था. थोड़ी बातचीत हुई थी कि सरदारा बी चाय की ट्रे ले कर आ गई. शकूर ने कहा, ‘‘थानेदार साहब, चाय पीएं और सवाल भी पूछते रहें. ये मेरी बीवी सरदारा बी है, इस से भी जो पूछना है पूछ लें.’’

उन की बातचीत से मैं ने अंदाजा लगाया कि उन्हें रेशमा के इश्क के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. मैं ने उन से नासिर के बारे में कुछ सवाल पूछे, उन दोनों ने उस की बहुत तारीफें कीं. बातचीत के बाद मैं ने उन से पूछा, ‘‘आप की बेटी रेशमा कहां है?’’

‘‘वह घर में ही है जनाब, कल से उसे तेज बुखार है. हकीमजी से दवा ला कर दी, पर उस का कुछ असर नहीं हुआ.’’ सरदारा बी ने कहा.

‘‘रेखमा का बुखार हकीमजी की दवा से कम नहीं होगा. यह दूसरी तरह का बुखार है.’’ मैं ने कहा तो शकूर ने चौंक कर मेरी ओर देखा. मैं ने आगे कहा, ‘‘मैं सच कह रहा हूं, यह इश्क का बुखार है. नासिर की मौत ने रेशमा के दिलोदिमाग को झिंझोड़ कर रख दिया है.’’

दोनों उलझन भरी नजरों से मुझे देखने लगे, ‘‘हमारी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा. यह सब क्या है?’’

‘‘मैं समझाता हूं. यही सच्चाई है. रेशमा और नासिर एकदूसरे से बहुत मोहब्बत करते थे. दोनों रातों को मिलते भी थे. रेशमा को उस की मौत से बहुत दुख पहुंचा है.’’ मैं ने एकएक शब्द पर जोर देते हुए कहा.

‘‘मुझे बिलकुल यकीन नहीं आ रहा है.’’ सरदारा बी बोली.

हकीकत जान कर वे दोनों परेशान थे. मैं ने कहा, ‘‘परेशान न हों, आप के घर की बात इस चारदीवारी से बाहर नहीं जाएगी. रेशमा मेरी बेटी की तरह है और बिलकुल बेगुनाह है. मुझे उस की इज्जत का पूरा खयाल है. आप मुझे उस के पास ले चलो, मैं उस से कुछ बातें करूंगा. इस बात की कानोंकान किसी को खबर नहीं हो पाएगी. आप को घबराने की जरूरत नहीं है.’’

उन्होंने मुझे रेशमा के पास पहुंचा दिया. मैं ने उन दोनों को बाहर भेज दिया. वे दरवाजे के पीछे जा कर खड़े हो गए. मैं ने रेशमा से नरम लहजे में कहा, ‘‘रेशमा, मैं तुम से कुछ सवाल पूछना चाहता हूं. दरअसल मैं तुम से नासिर के बारे में कुछ बातें जानना चाहता हूं. वैसे मैं सब जानता हूं, फिर भी तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं.’’

‘‘मैं जो जानती हूं, सब बताऊंगी.’’ उस ने बेबसी से कहा.

‘‘कत्ल की रात तुम खेतों में नासिर से मिलने गई थीं, मुझे यह बताओ कि उस पर हमला किस ने किया था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘मैं उस रात नासिर से मिलने नहीं गई थी.’’ वह मजबूती से बोली. उस के लहजे में विश्वास और यकीन साफ झलक रहा था.

‘‘जमील ने मुझे बताया है कि तुम्हारी और नासिर की मुलाकात पहले से तय थी. यह बात इस से भी साबित होती है, क्योंकि नासिर तुम से मिलने खेतों में गया था.’’

‘‘यही बात तो मेरी समझ में नहीं आ रही है कि नासिर वहां क्यों गया था? जबकि उस ने खुद ही प्रोग्राम कैंसिल कर दिया था.’’ उस ने उलझन भरे लहजे में कहा.

‘‘प्रोग्राम कैंसिल कर दिया था, यह तुम क्या कह रही हो?’’ उस की बात सुन कर मैं बुरी तरह चौंका.

‘‘मैं बिलकुल सच कह रही हूं थानेदार साहब, मुझे नहीं पता प्रोग्राम कैंसिल करने के बाद नासिर वहां क्यों गया था. कल से मैं यही बात सोच रही हूं.’’ रेशमा ने सोचते हुए कहा.

‘‘एक मिनट, तुम दोनों के बीच खबर का आदानप्रदान जमील ही करता था न, पर जमील पिछले 2 दिनों से गुलाबपुर में नहीं था. फिर प्रोग्राम कैंसिल होने की खबर तुम्हें किस ने दी?’’ मैं ने उसे देखते हुए पूछा.

‘‘इम्तियाज ने.’’ उस ने एकदम से कहा.

‘‘इम्तियाज कौन है?’’

‘‘माजिद चाचा का बेटा.’’

‘‘क्या इम्तियाज को भी तुम दोनों के मोहब्बत की खबर थी?’’

‘‘नहीं जी, वह तो 8 साल का बच्चा है. हमारे पड़ोस में ही रहता है.’’

‘‘इम्तियाज ने तुम से क्या कहा था?’’

‘‘मुझे तो यह जान कर ही बड़ी हैरानी हुई थी कि नासिर ने इम्तियाज के हाथ यह पैगाम क्यों भिजवाया था कि मुझे वहां नहीं जाना है. मैं ने चेक करने के लिए उस से पूछा, कहां नहीं जाना है. इस पर उस ने कहा था कि वह इस से ज्यादा कुछ नहीं जानता. नासिर भाई ने कहा है कि रेशमा को कह दो कि आज नहीं आना है. कुछ जरूरी काम है.’’ उस ने रुकरुक कर आगे कहा, ‘‘मैं जमील की दुकान पर जा कर पता कर लेती, पर वह टोबा टेक सिंह चला गया था. इम्तियाज से कुछ पूछना बेकार था. बहरहाल मैं ने फैसला कर लिया था कि मैं नासिर से मिलने नहीं जाऊंगी.’’

‘‘इस का मतलब है कि नासिर को पूरी मंसूबाबंदी से साजिश के तहत कत्ल किया गया है. मुझे यकीन है कि इम्तियाज उस आदमी को पहचानता होगा, जिस ने नासिर के हवाले से तुम्हारे लिए संदेश भेजा था.’’ मैं ने सोचते हुए कहा.

‘‘आप यह बात इम्तियाज से पूछें. मेरी तबीयत बहुत बिगड़ रही है. चक्कर आ रहे हैं.’’ वह कमजोर लहजे में बोली.

‘‘तुम आराम करो रेशमा, पर इन बातों का किसी से जिक्र मत करना और परेशान मत होना.’’ मैं ने उसे समझाया. जब मैं कमरे से निकला तो उस के मांबाप ने मुझे घेर कर पूछा, ‘‘थानेदार साहब, कुछ पता चला?’’

‘‘कुछ नहीं, बल्कि सब कुछ पता चल गया है.’’

‘‘हमें भी तो कुछ बताइए न?’’ शकूर ने कहा.

‘‘पहले आप पड़ोस से इम्तियाज को बुलाएं.’’

थोड़ी देर में सरदारा बी इम्तियाज को बैठक में ले आई. वह 8 साल का मासूम सा बच्चा था. मैं ने उसे प्यार से अपने पास बिठा कर पूछा, ‘‘बेटा इम्तियाज, तुम जानते हो कि मैं कौन हूं?’’

‘‘हां, आप पुलिस हैं.’’ वह मुझे गौर से देखते हुए बोला.

इधरउधर की एकदो बातें करने के बाद मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम स्कूल जाते हो, एक अच्छे बच्चे हो, सच बोलने वाले. यह बताओ, परसों शाम को तुम ने रेशमा बाजी से कहा था कि नासिर भाई ने कहा है कि आज नहीं आना है.’’ मैं ने उसे गौर से देखते हुए कहा, ‘‘ऐसा हुआ था न?’’

‘‘हां, ऐसा हुआ था साहब.’’ इम्तियाज बोला.

‘‘तुम बहुत अच्छे बच्चे हो. मैं तुम्हें टाफियां दूंगा. अब यह भी बता दो कि तुम ने रेशमा बाजी को कहां जाने से मना किया था?’’

‘‘यह मुझे नहीं पता.’’ वह मासूमियत से बोला, ‘‘आप को यकीन नहीं आ रहा है तो रब की कसम खाता हूं.’’

‘‘नहीं बेटा, कसम खाने की जरूरत नहीं है. मुझे तुम पर भरोसा है. तुम ने तो रेशमा बाजी से वही कहा था, जो नासिर भाई ने तुम से कहलवाया था, है न?’’

‘‘नहीं जी.’’ वह उलझन भरी नजरों से मुझे देखने लगा.

‘‘क्या नहीं?’’

‘‘यह बात मुझे नासिर भाई ने नहीं कही थी.’’

उस ने कहा तो मैं ने तपाक से सवाल किया, ‘‘फिर किस ने कही थी?’’

‘‘हैदर भाई ने.’’

‘‘तुम्हारा मतलब है हैदर अली? सरदारा बी का भांजा हैदर अली जुलेखा का बेटा.’’ मैं ने पूछा.

‘‘जी, जी वही हैदर भाई.’’ उस ने जल्दी से कहा.

सरदारा बी की बहन जुलेखा का घर भी गुलाबपुर में ही था. हैदर अली उसी का बेटा था और वह इसी हैदर से रेशमा की शादी करना चाहती थी. यह भी सुनने में आया था कि हैदर का दावा था कि रेशमा उस की बचपन की मंगेतर है. मैं सोचने लगा कि जब उसे रेशमा और नासिर की मोहब्बत का पता चला होगा तो उस ने अपने प्रतिद्वंदी को रास्ते से हटाने की कोशिश की होगी. मुझे लगा कि अब केस हल हो जाएगा. जैसे ही वह मेरे हत्थे चढ़ेगा, उसे डराधमका कर मैं उस की जुबान खुलवाने में कामयाब हो जाऊंगा. पर ऐसा नहीं हुआ.

जब मैं जुलेखा के घर पहुंचा तो हैदर अली घर पर नहीं था. मैं ने जुलेखा से पूछा, ‘‘हैदर अली कहां गया है?’’

‘‘मुझे तो पता नहीं, बता कर नहीं गया है जी. वैसे आप हैदर को क्यों ढूंढ रहे हैं?’’ वह परेशान हो कर बोली.

उस की परेशानी स्वाभाविक थी. अगर पुलिस किसी के दरवाजे पर आए तो घर के लोग चिंता में पड़ जाते हैं. मैं जुलेखा को अंधेरे में नहीं रखना चाहता था. मैं ने ठहरे हुए लहजे में कहा, ‘‘तुम्हें यह पता है न कि गुलाबपुर में एक लड़के का कत्ल हो गया है?’’

‘‘जी…जी मालूम है, बशीर लोहार के जवान बेटे का कत्ल हो गया है. किसी जालिम ने उसे बड़ी बेरहमी से मारा है.’’ उस ने कहा.

‘‘किसी ने नहीं, एक खास बंदे ने जिस की तलाश में मैं यहां आया हूं. तुम्हारा लाडला हैदर अली.’’

‘‘नहींऽऽ.’’ उस ने एक चीख सी मारी, ‘‘मेरा बेटा कातिल नहीं हो सकता. आप को कोई गलतफहमी हुई है थानेदार साहब.’’ वह रोनी आवाज में बोली.

‘‘हर मां का यही खयाल होता है कि उस का बेटा मासूम है. पर मैं तफ्तीश कर के पक्के सुबूत के साथ यहां आया हूं.’’

‘‘कैसा सुबूत साहब?’’ वह परेशान हो कर बोली.

‘‘हैदर अली को मेरे हाथ लगने दो, उसी के मुंह से सुबूत भी जान लेना.’’ मैं ने तीखे लहजे में कहा.

काफी देर राह देखने के बाद मैं ने गांव में अपने 2 लोग उस की तलाश में भेजे. पर वह कहीं नहीं मिला. इस का मतलब था, वह गांव छोड़ कर कहीं भाग गया था. गुलाबपुर में भी किसी को उस के बारे में कुछ पता नहीं था. हैदर अली के गांव से गायब होने से पक्का यकीन हो गया कि वारदात में उसी का हाथ था. मैं काफी देर तक गुलाबपुर में रुका रहा. फिर जुलेखा से कहा, ‘‘जैसे ही हैदर घर आए, उसे थाने भेज देना.’’

एक बंदे को उस की टोह में लगा कर मैं थाने लौट आया. अगले रोज मैं सुबह की नमाज पढ़ कर उठा ही था कि किसी ने दरवाजा खटखटाया. दरवाजा खोला तो सामने कांस्टेबल न्याजू खड़ा था. पूछने पर बोला, ‘‘साहब, जिस सिपाही को हैदर के लिए गांव में छोड़ कर आए थे, उस ने खबर भेजी है कि वह देर रात घर लौट आया है.’’

‘‘न्याजू, तुम और हवलदार समद फौरन गुलाबपुर रवाना हो जाओ और हैदर अली को साथ ले कर आओ.’’ मैं ने उसे आदेश दिया.

तैयार हो कर मैं थाने पहुंचा तो थोड़ी देर बाद हवलदार समद हैदर को गिरफ्तार कर के ले आया. उस के साथ रोती, फरियाद करती जुलेखा भी थी. मैं ने कहा, ‘‘देखो जुलेखा, रोनेधोने की जरूरत नहीं है. यह थाना है शोर मत करो.’’

‘‘साहब, आप मेरे जवान बेटे को पकड़ कर ले आए हैं, मैं फरियाद भी न करूं.’’ वह रोते हुए बोली.

‘‘मैं ने तुम्हारे बेटे को पूछताछ के लिए थाने बुलाया है, फांसी पर चढ़ाने के लिए नहीं. अगर वह बेकुसूर है तो अभी थोड़ी देर में छूट जाएगा. यह मेरा वादा है तुम से.’’

‘‘अल्लाह करे, मेरा बेटा बेगुनाह निकले.’’

‘‘मेरी सलाह है, तुम घर चली जाओ. अगर हैदर बेकुसूर है तो शाम तक घर आ जाएगा.’’

हैदर को मैं ने अपने कमरे में बुलाया. हवलदार समद भी साथ था. मैं ने उसे गहरी नजर से देखा और तीखे लहजे में कहा, ‘‘हैदर, इसी कमरे में तुम्हारी जुबान खुल जाएगी या तुम्हें ड्राइंगरूम की सैर कराई जाए.’’

मेरी बात सुन कर उस के चेहरे का रंग उतर गया. वह गिड़गिड़ाया, ‘‘साहब, मैं ने ऐसा क्या किया है?’’

‘‘क्या के बच्चे, मैं बताता हूं तेरी काली करतूत. तूने नासिर का कत्ल किया है.’’

‘‘नहीं जी, मैं ने किसी का कत्ल नहीं किया.’’ वह घबरा उठा.

‘‘फिर नासिर का कातिल कौन है?’’ मैं ने उस की आंखों में देखते हुए कहा.

‘‘मुझे कुछ पता नहीं थानेदार साहब.’’ वह हकलाया.

‘‘तुम्हें यह तो पता है न कि रेशमा तुम्हारी बचपन की मंगेतर है.’’ मैं ने टटोलने वाले अंदाज में कहा.

‘‘जी, जी हां, यह सही है.’’ उस ने कहा.

‘‘और यह भी तुम्हें मालूम होगा कि मकतूल नासिर और तुम्हारी मंगेतर रेशमा में पिछले कुछ अरसे से इश्क का चक्कर चल रहा था?’’

‘‘यह आप क्या कह रहे हैं थानेदार साहब?’’ उस ने नकली हैरत दिखाते हुए कहा.

‘‘मैं जो कह रहा हूं, तुम अच्छी तरह समझ चुके हो. सीधी तरह से सच्चाई बता दो, वरना मुझे दूसरा तरीका अपनाना पड़ेगा.’’ मैं ने सख्त लहजे में कहा.

‘‘मैं बिलकुल सच कह रहा हूं, मैं ने नासिर का कत्ल नहीं किया.’’ वह नजरें चुराते हुए बोला.

‘‘नासिर के कत्ल वाली बात पहले हो चुकी है. अभी मेरे इस सवाल का जवाब दो कि तुम्हें रेशमा और नसिर के इश्क की खबर थी या नहीं? सच बोलो.’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं साहब, मुझे इस बारे में कुछ पता नहीं था.’’

‘‘तो क्या तुम इम्तियाज को भी नहीं जानते?’’

‘‘कौन इम्तियाज?’’ वह टूटी हुई आवाज में बोला.

‘‘माजिल का बेटा, रेशमा का पड़ोसी बच्चा. याद आया कि नहीं?’’ मैं ने दांत पीसते हुए कहा.

‘‘अच्छाअच्छा, आप उस बच्चे की बात कर रहे हैं.’’

‘‘हां…हां, वही बच्चा, जिस के हाथ तुम ने रेशमा के लिए संदेह भेजा था कि नासिर भाई ने कहा है कि आज नहीं आना है.’’ मैंने एकएक शब्द पर जोर देते हुए कहा तो वह हैरानी से बोला, ‘‘मैं ने? मैं ने तो ऐसी कोई बात नहीं की…’’

‘‘तुम्हारे इस कारनामे के 2 गवाह मौजूद हैं. एक तो इम्तियाज, जिस के हाथ तुम ने संदेश भेजा था, दूसरी रेशमा, जिस के लिए तुम ने यह पैगाम भेजा था. अब बताओ, क्या कहते हो?’’

मेरी बात सुन कर वह हड़बड़ा गया. हवलदार समद ने कहा, ‘‘आप इस नालायक को मेरे हवाले कर दें, एक घंटे में फटाफट बोलने लगेगा.’’

मैं ने हैदर अली को हवलदार के हवाले कर दिया. थोड़ी देर में उस की चीखनेचिल्लाने की आवाजें आने लगीं. एक घंटे के पहले ही हवलदार ने खुशखबरी सुनाई.

‘‘हैदर अली ने जुर्म कुबूल लिया है. आप इस का बयान ले लें.’’

‘‘मतलब यह कि उस ने नासिर के कत्ल की बात मान ली है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘जी नहीं, बात कुछ और ही है, आप उसी से सुनिए.’’

हैदर अली ने नासिर का कत्ल सीधेसीधे नहीं किया था. अलबत्ता वह एक अलग तरह से इस कत्ल से जुड़ा था. यह भी सच था कि नन्हे इम्तियाज से रेशमा को पैगाम उसी ने भिजवाया था. यह पैगाम उस ने चौधरी आफताब के कहने पर रेशमा को भिजवाया था, ताकि रेशमा वारदात की रात मुलाकात की जगह न पहुंच सके और नासिर को ठिकाने लगाने में किसी मुश्किल का सामना न करना पड़े. चौधरी आफताब नजीराबाद के चौधरी का बेटा था. वह भी कबड्डी का अच्छा खिलाड़ी था. हाल ही में खेले गए टूर्नामेंट में वह नजीराबाद से खेल रहा था. फाइनल मैच में नजीराबाद की बुरी तरह से हार हुई थी. कप और इनाम गुलाबपुर के हिस्से में आए. ढेरों तारीफ व जीत की खुशी भी नासिर के नाम लिखी गई.

एक कबड्डी का दांव नासिर और आफताब के बीच पड़ा था, जिस में नासिर ने चौधरी आफताब को इतनी बुरी तरह से रगड़ा था कि उस की नाक और मुंह से खून बहने लगा था. एक तो गांव की हार, ऊपर से अपनी दुर्गति पर उस का दिल गुस्से और बदले की आग से जलने लगा था. उस का वश चलता तो वह वहीं नासिर का सिर फोड़ देता. उस ने मन ही मन इरादा कर लिया कि नासिर से बदला जरूर लेगा. इस तरह उस का अपने सब से बड़े प्रतिद्वंदी से भी पीछा छूट जाएगा. आफताब से हैदर ने कह रखा था कि रेशमा उस की बचपन की मंगेतर है. किसी तरह उसे यह भी पता चल गया था कि नासिर और रेशमा के बीच मोहब्बत और मुलाकात का सिलसिला चल रहा है. इसलिए उस ने एक तीर से दो शिकार करने का खतरनाक मंसूबा बना लिया.

हैदर अली को रेशमा और नासिर के संबंध का शक तो था ही, पर जब आफताब ने इस बारे में उसे शर्मसार किया तो वह आपे से बाहर हो गया. चौधरी आफताब ने उसे समझाया कि जोश के बजाय होश और तरीके से काम लिया जाए तो सांप भी मर जाएगा और लाठी भी सलामत रहेगी. हैदर अली ने चौधरी आफताब का साथ देने का फैसला कर लिया. हैदर अली ने अपने हाथों से नासिर का कत्ल नहीं किया था, पर वह इस साजिश का एक हिस्सा था. जिस में चौधरी के भेजे हुए दो लोगों ने तेजधार चाकू की मदद से नासिर का बेदर्दी से कत्ल कर दिया था. जब कातिल उसे मौत के घाट उतार रहे थे तो हैदर अली थोड़ी दूर अंधेरे में खड़ा यह खूनी तमाशा देख रहा था.

हैदर अली के इकबालेजुर्म और गवाही पर मैं ने उसी रोज खुद नजीराबाद जा कर नासिर के कत्ल के सिलसिले में चौधरी आफताब को भी गिरफ्तार कर लिया था. आफताब गांव के चौधरी का बेटा था, इसलिए उस की गिरफ्तारी को रोकने के लिए मुझ पर काफी दबाव डाला गया था, पर मैं ने उस के असर व पैसे की परवाह न करते हुए चौधरी आफताब और उस की निशानदेही पर उन दोनों कातिलों को भी जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया था. अपनी हर कोशिश नाकाम होते देख चौधरी ने मुझे धमकी दी थी, ‘‘मलिक साहब, आप को मेरी ताकत का अंदाजा नहीं है. मैं अपने बेटे को अदालत से छुड़वा लूंगा.’’

मैं ने विश्वास से कहा, ‘‘चौधरी साहब, मैं सिर्फ खुदा की ताकत और कानून से डरता हूं. आप को जितना जोर लगाना है, लगा लो. आप का होनहार बेटा अदालत से सीधा जेल जाएगा.’’

मैं ने हैदर अली, चौधरी आफताब और नासिर के दोनों कातिलों के खिलाफ बहुत सख्त रिपोर्ट बनाई और उन्हें अदालत के हवाले कर दिया. दोनों कातिल अपने जुर्म का इकबाल कर चुके थे, इसलिए उन की बाकी जिंदगी जेल में ही गुजरनी थी. True Crime Stories

 

Crime News : 2 रूपए के लिए हैवान बना नौकर

Crime News : होटल मालकिन सुशीला ने अगर अपने नौकर नंदू को 2 रुपए दे दिए होते तो शायद हत्या जैसा यह जघन्य अपराध न होता. नौकरों पर इलजाम लगा देना बड़ा आसान होता है, पर उन के दबेकुचले मन के आक्रोश को समझना बहुत मुश्किल. नंदू के मामले में भी शायद ऐसा ही था. तारीख थी 5 नवंबर, 2014. सुबह के 8 बज रहे थे. उत्तराखंड के हरिद्वार की वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक स्वीटी अग्रवाल उस समय हर की पौड़ी पुलिस चौकी पर अपने अधीनस्थ पुलिसकर्मियों को ड्यूटी के बारे में निर्देशित कर रही थीं, क्योंकि अगले दिन कार्तिक पूर्णिमा को होने वाले महास्नान के कारण वहां जिलेभर की पुलिस की तमाम टीमें मौजूद थीं.

उसी बीच वहां मौजूद हर की पौड़ी पुलिस चौकी के प्रभारी मोहन सिंह के मोबाइल की घंटी बजी. उन्होंने मोबाइल स्क्रीन पर नजर डाली और मोबाइल का स्विच औन कर के ‘हैलो’ कहा तो दूसरी ओर से पूछा गया, ‘‘क्या पौड़ी पुलिस चौकी इंचार्ज से बात हो सकती है?’’

‘‘हां, बोल रहा हूं. बताइए क्या बात है?’’ मोहन सिंह ने कहा.

‘‘सर, आप को एक मर्डर की खबर देनी थी.’’ फोनकर्ता बोला.

‘‘भई मर्डर कहां और किस का हुआ है?’’ मोहन सिंह ने चौंक कर पूछा तो उस ने बताया, ‘‘सर, मर्डर जाह्नवी मार्केट के निकट होटल शेरेपंजाब की मालकिन सुशीला शर्मा का हुआ है. सुशीला रात को प्रतिदिन की तरह होटल में सोई थीं. आज सुबह उन की बर्फ तोड़ने वाले सुए से गोदी हुई लाश बेड पर पड़ी मिली है.’’

‘‘सुशीला शर्मा के घर वाले क्या वहां मौजूद हैं?’’ मोहन सिंह ने पूछा.

‘‘नहीं सर, वहां पर सुशीला शर्मा का कोई घर वाला नहीं है. दरअसल वह पिछले कई महीने होटल में ही रात को सोती थीं. उन का होटल मैनेजर राहुल भी अक्सर होटल में ही सोता था.’’ फोन करने वाले ने बताया.

‘‘क्या राहुल वहां मौजूद है.’’ मोहन सिंह ने पूछा.

‘‘नहीं सर, अभी मौके पर न तो राहुल है और न ही सुशीला का कोई घर वाला,’’ फोन करने वाले ने आगे बताया, ‘‘रोजाना की तरह आधे घंटे पहले होटल के नौकर दिलवर सिंह और संतराम भट्ट होटल पहुंचे थे. वहां उन्हें होटल का आधा शटर खुला मिला. वे दोनों अपने साथ होटल के बाहर सोने वाले नौकर सहदेव के साथ अंदर गए तो उन्होंने वहां का जो नजारा देखा, उसे देख कर तीनों के होश उड़ गए.’’

‘‘क्या सुशीला की हत्या की जानकारी उस के घर वालों को दे दी गई है?’’ मोहन सिंह ने पूछा तो फोन करने वाले ने बताया, ‘‘हां सर, होटल के पड़ोसी दुकानदारों ने फोन कर के सुशीला की हत्या की जानकारी गुरदासपुर में रहने वाले उन के पति सुरेश शर्मा और दिल्ली में रह रही उन की बेटी को दे दी है. प्लीज आप जल्दी आ जाइए.’’

‘‘आप कौन साहब बोल रहे हैं?’’ मोहन सिंह ने पूछा तो फोनकर्त्ता ने कहा, ‘‘देखिए सर, मैं ने आप को इस मर्डर की खबर दे कर एक जिम्मेदार नागरिक होने का दायित्व निभया है. आप मेरे बारे में जानकारी करने के बजाय घटनास्थल पर पहुंचे और अपनी जिम्मेदारी निभाएं.’’

इतना कह कर उस ने फोन काट दिया. मामला चूंकि चौकी क्षेत्र की होटल संचालिका की हत्या का था, इसलिए मोहन सिंह ने इस मामले की सूचना कोतवाली प्रभारी इंसपेक्टर पी.सी. मठपाल, सीओ चंद्रमोहन नेगी, एसपी सिटी सुरजीत सिंह पंवार और एसएसपी स्वीटी अग्रवाल को दे दी. थोड़ी देर में सभी अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गए. तब तक शेरेपंजाब होटल के बाहर स्थानीय दुकानदारों, नेताओं और हर की पौड़ी पर आए श्रद्धालुओं की काफी भीड़ जमा हो चुकी थी.

पुलिस ने सब से पहले वहां खड़ी भीड़ को हटाया और उस के बाद मौके का गहनता से निरीक्षण करने लगी. एसएसपी स्वीटी अग्रवाल और सबइंसपेक्टर मोहन सिंह ने अंदर जा कर सब से पहले लहूलुहान पड़े सुशीला के शव को देखा. शव के चेहरे, गरदन व शरीर के अन्य भागों पर सुए से निर्ममता से गोदे जाने के दरजनों घाव थे. मृतका की सलवार उतरी हुई थी. जिसे देख कर पुलिस को कुछ संदेह हुआ. इसी के मद्देनजर हर की पौड़ी पुलिस चौकी से एक महिला कांस्टेबल को बुला कर सुशीला के सारे शरीर का निरीक्षण कराया गया. पता चला कि मृतका के शरीर के सभी जेवर गायब थे. लाश को देख कर ऐसा लग रहा था, जैसे उस का गला भी दबाया गया हो.

घटनास्थल से बर्फ तोड़ने वाला वह सुआ मिल गया था, जिस से सुशीला की हत्या की गई थी. पुलिस ने उसे जब्त कर लिया. घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद सबइंसपेक्टर मोहन सिंह मृतका सुशीला की लाश का पंचनाम बनाने लगे और एसएसपी स्वीटी अग्रवाल ने होटल मैनेजर राहुल तथा नौकरों दिलवर, संतराम व सहदेव से पूछताछ करनी शुरू कर दी. हालांकि घटनाक्रम के हिसाब से शक की सुई लापता नौकर नंदकिशोर उर्फ नंदू पर जा रही थी, लेकिन इस केस में बड़ा पेंच यह फंस गया था कि किसी को यह मालूम नहीं था कि नंदू कहां का रहने वाला था और वह कहां से यहां आया था? हत्या के बाद नंदू के गायब होने से सुशीला की हत्या की गुत्थी और उलझ गई थी. घटनास्थल से मृतका के 2 मोबाइल फोन भी गायब थे.

बहरहाल, सबइंसपेक्टर मोहन सिंह ने सुशीला की लाश को पोस्टमार्टम के लिए राजकीय हरमिलाप अस्पताल भिजवा दिया और राहुल, संतराम, दिलवर व सहदेव को ले कर कोतवाली हरिद्वार लौट आए. कोतवाली में सबइंसपेक्टर मोहन सिंह ने उन चारों से हत्या की तह में जाने के लिए गहन पूछताछ की. तत्पश्चात पुलिस ने नौकर संतराम, निवासी गांव भटवाडा, जिला टिहरी गढ़वाल की ओर से धारा 302 के तहत हत्या का केस दर्ज कर लिया. इस के साथ ही गवाहों सहदेव, दिलवर और राहुल के बयानों के आधार पर जांच शुरू कर दी. जांच की जिम्मेदारी मोहन सिंह को सौंपी गई थी. पुलिस पूछताछ में सुशीला की हत्या की जो कहानी पता चली, वह कुछ इस तरह थी.

सुशीला शर्मा के पति सुरेश शर्मा मूलत: हापुड़, गाजियाबाद के रहने वाले थे. उन के फूफा देवीराम का हरिद्वार में होटल था. उन की कोई संतान नहीं थी. उन्होंने सुरेश को गोद ले लिया था. बाद में सुरेश हरिद्वार आ कर होटल चलाने लगे थे. सुरेश ने काफी मेहनत की और पैसा कमा कर किराए के होटल की इमारत अपनी पत्नी सुशीला के नाम से खरीद ली. इस बीच उन के 2 बेटियां और एक बेटा हुआ. बच्चों के बड़े होने के बाद सुशीला ने कांगे्रस पार्टी ज्वाइन कर ली और कांगे्रस के कार्यक्रमों में भाग लेने लगी. सन 2000 में सुशीला महिला कांगे्रस की प्रदेश सचिव बन गईं. सुशीला का दिन भर घर से बाहर रहना सुरेश को पसंद नहीं था, इसलिए दोनों में आपसी तनाव रहने लगा.

जब तनाव बढ़ता गया तो सन 2006 में सुरेश अपनी पत्नी सुशीला, दोनों बेटियों और बेटे को छोड़ कर गुरदासपुर, पंजाब चला गया और एक होटल में काम करने लगा. इस के बाद सुशीला ने अपनी दोनों बेटियों और बेटे की शादियां कर दीं. 3 साल पहले सुशीला के बेटे अंकुर की छत से गिर कर मौत हो गई. उस वक्त अंकुर की मौत को आत्महत्या माना गया था. पिछले 7 महीने से सुशीला घर छोड़ कर होटल में ही रहने लगी थी. होटल का मैनेजर राहुल निवासी हाथीखाना, हरिद्वार भी रात को अकसर होटल में ही सोता था. लेकिन पिछले 7 दिनों से वह होटल में नहीं सो रहा था. यह भी पता चला कि सुशीला का अपने नौकरों के प्रति व्यवहार अच्छा नहीं था. वह नौकरों को अक्सर डांटतीफटकारती रहती थी. इतना ही नहीं, उन्हें वेतन देने में भी परेशान करती रही थी.

इसी वजह से उस के होटल में नौकर बदलते रहते थे. जब पुलिस सुशीला से अपने नौकरों के सत्यापन के लिए कहती तो वह उन के फोटो देने और उन के सत्यापन कराने में आनाकानी करती. उस की इस आनाकानी की वजह से एक बार हरिद्वार पुलिस उस पर उत्तराखंड पुलिस अधिनियम-2007 के तहत जुर्माना भी कर चुकी थी. पता चला सुशीला फरार नौकर नंदू पर अपने मैनेजर राहुल से ज्यादा भरोसा करती थी. जांचअधिकारी मोहन सिंह के सामने परेशानी यह थी कि उस के पास न तो सुशीला के नौकर नंदू का कोई फोटो था और न ही उस के बारे में किसी को कोई जानकारी थी. नंदू के बारे में पुलिस को केवल इतनी ही जानकारी मिल सकी थी कि वह खुद को राजस्थान का रहने वाला और लावारिस बताता था.

सुशीला उसे 2 महीने पहले गंगाघाट से पकड़ कर अपने होटल में काम करवाने के लिए लाई थी. इस से पहले भी वह उस के होटल में काम कर चुका था. अभी 2 माह पहले ही नंदू दोबारा उस के होटल में काम करने आया था. इस के अलावा पुलिस के लिए सुशील की हत्या की वजह पता लगाना भी किसी चुनौती से कम नहीं था. सुशीला की हत्या उस के नौकर नंदू ने ही की थी या हत्यारा कोई और था, क्योंकि प्रौपर्टी विवाद या किसी राजनैतिक प्रतिद्वंदिता के चलते भी ऐसा हो सकता था. सुशीला की लाश आपत्तिजनक हालत में मिली थी, उस के शरीर के निचले हिस्से पर कपड़े नहीं थे, इस से संभावना दुष्कर्म की भी थी. यह बात मृतका की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से ही पता चल सकती थी. पुलिस को उसी का इंतजार था.

सबइंसपेक्टर मोहन सिंह ने सुशीला के नौकर नंदू को पकड़ने के लिए अपने कुछ खास मुखबिरों को उस का हुलिया बता कर उस का पता लगाने की जिम्मेदारी सौंपी. इस के अलावा उन्होंने सुशीला के दोनों मोबाइल नंबरों को भी सर्विलांस पर लगवा दिया, जिस से उन की लोकेशन पता चल सके. अगले दिन मोहन सिंह को मृतका सुशीला की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उस की मौत का कारण सुए से हुए प्रहारों के कारण अधिक रक्त बह जाना और गला दबाना बताया गया. इसी तरह 3 दिन बीत गए, लेकिन पुलिस को नौकर नंदू के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. 9 नवंबर को मोहन सिंह को सर्विलांस के माध्यम से जानकारी मिली कि सुशीला शर्मा के एक मोबाइल से एक नंबर पर काल की गई थी.

जिस नंबर पर काल की गई थी, उस नंबर के बारे में जानकारी एकत्र की गई तो पता चला कि वह नंबर दुकानदार अंकुर अग्रवाल, निवासी निंबाड़ा, जिला चित्तौड़गढ़, राजस्थान का था. मोहन सिंह तुरंत सिपाहियों गुलशन, दिनेश चौधरी और आशीष बिष्ट को साथ ले कर निंबाड़ा जा पहुंचे और अंकुर से नंदू के बारे में पूछताछ की. उत्तराखंड पुलिस को देख कर अंकुर घबरा गया. अंकुर ने मोहन सिंह को बताया कि 2 वर्ष पूर्व नंदकिशोर उर्फ नंदू उस की दुकान पर नौकरी करता था. वह गांव रानीखेड़ा, थाना निंबाड़ा निवासी गोपाल लोहार का बेटा था.

अंकुर से पूछताछ करने के बाद पुलिस टीम नंदू के घर पहुंची. वहां नंदू के पिता गोपाल लोहार ने पुलिस टीम को निंबाड़ा थाने में दर्ज गुमशुदगी की रिपोर्ट दिखाते हुए बताया कि नंदू घर से 2 वर्ष से लापता है. उसे नहीं मालूम कि इस वक्त वह कहां है. मोहन सिंह ने नंदू के घर से उस की फोटो ली और लोगों को अजमेर, निंबाडा, चित्तौड़गढ़ तथा श्रीगंगानगर के बसस्टैंडों व रेलवे स्टेशनों पर दिखा कर नंदू का पता लगाने की कोशिश की. जब उस का कोई पता नहीं चला तो वह अपनी टीम के साथ हरिद्वार लौट आए.

13 नवंबर, 2014 को मोहन सिंह को पता चला कि सुशीला के मोबाइल के हिसाब से नंदू की लोकेशन चित्तौड़गढ़ की आ रही है. यह महत्त्वपूर्ण जानकारी थी. मोहन सिंह तुरंत अपनी टीम को ले कर चित्तौड़गढ़ के लिए निकल गए. नंदू को पहचानने वाला एक नौकर उन के साथ था. उस की निशानदेही पर नंदू को रेलवे स्टेशन पर घूमते हुए पकड़ लिया गया. उसे गिरफ्तार कर के पुलिस हरिद्वार ले आई. पूछताछ में नंदू ने सुशीला की हत्या करने की बात कुबूलते हुए जो कुछ बताया, वह कुछ इस तरह था.

नंदू के अनुसार, उस का बाप गोपाल लोहार नशे में बचपन से ही उसे खूब पीटता आया था. बाप की पिटाई से वह काफी परेशान रहता था. इसी चक्कर में उस ने घर छोड़ दिया और 2 साल तक निंबाड़ा के दुकानदार अंकुर अग्रवाल की दुकान पर नौकरी की. जब वहां से उस का मन उचट गया तो वह भाग कर ट्रेन से हरिद्वार आ गया और भिखारियों के साथ रह कर भीख मांग कर अपना पेट भरने लगा. तभी एक दिन उस पर सुशीला की नजर पड़ी. उसे वह भिखारी नहीं लगा. नंदू से बातचीत के बाद सुशीला शर्मा उसे अपने होटल शेरेपंजाब ले गई और काम पर रख लिया. कई महीने काम करने के बाद भी जब सुशीला ने उसे वेतन नहीं दिया तो वह वहां से काम छोड़ कर चला गया. इस के बाद उस ने अन्य 2-3 दुकानों पर काम किया.

2 महीने पहले हरिद्वार में ही सुशीला और नंदू का आमनासामना हो गया. सुशीला ने नंदू को समझायाबुझाया और 3 हजार रुपए महीना नियमित वेतन देने की बात तय कर के उसे अपने होटल ले आई. नंदू ठीक से अपना काम करने लगा. लेकिन जब वेतन देने की बात आई तो सुशीला पहले की ही तरह उसे वेतन देने में आनाकानी करने लगी. यहां तक कि वह सुलभ शौचालय में जाने के लिए उसे 2 रुपए तक नहीं देती थी. इस सब से वह बहुत परेशान था. घटना वाले दिन यानी 4 नवंबर को चाकू लगने से नंदू का हाथ कट गया. जब उस ने घाव पर बैंडैड लगाने के लिए सुशीला से 2 रुपए मांगे तो उस ने 2 रुपए भी देने से मना कर दिया. इस बात को ले कर उस ने 2-4 बातें कहीं तो सुशीला चिढ़ गई.

शाम को सुशीला और होटल मैनेजर राहुल ने उसे चिढ़ाते हुए उस का खाना भी फेंक दिया. इस से नंदू रात को बहुत गुस्से में था. जब उस ने सुशीला से छुट्टी मांगी तो उस ने छुट्टी देने से भी मना कर दिया. रात को डेढ़ बजे जब सुशीला होटल के अंदर सो रही थी तो नंदू ने वहीं रखी अलमारी से बर्फ तोड़ने वाला सुआ निकाला और गुस्से में उस के चेहरे, गले व शरीर पर कई ताबड़तोड़ वार कर दिए. जब सुशीला ने चिल्लाने का प्रयास किया तो नंदू ने उस का गला दबा कर उस की हत्या कर दी. इस के बाद उस ने मृत सुशीला के कपड़े उतारे और उस के साथ दुराचार किया. इस के बाद उस ने सुशीला की चेन, अंगूठी, 2 मोबाइल व 6 हजार रुपए उठाए और हरिद्वार रेलवे स्टेशन पर आ गया. वहां वह दिल्ली जा रही एक ट्रेन में बैठ गया.

दिल्ली होता हुआ नंदू चित्तौड़गढ़ पहुंचा. चित्तौड़गढ़ के बाद वह अजमेर और निंबाड़ा आदि जगहों पर घूमता रहा. यह सब वह पुलिस से छिपने के लिए कर रहा था. इसी के चलते जब वह चित्तौड़गढ़ रेलवे स्टेशन पर घूम रहा था, तभी पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया था. जांच अधिकारी मोहन सिंह ने नंदू के बयान दर्ज कर लिए और उस की निशानदेही पर सुशीला के गहने, मोबाइल और कुछ नगदी बरामद कर ली. 14 नवंबर को एसएसपी स्वीटी अग्रवाल ने आरोपी नंदू को प्रैसवार्ता के दौरान मीडिया के सामने पेश किया. इस के बाद पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक नंदू जेल में था और मोहन सिंह इस मामले की चार्जशीट बनाने में जुटे थे.

हो सकता है नंदू के बयानों में सच्चाई न हो. यह बात अदालत में ही साबित होगी. लेकिन छोटी सी यह अपराध कथा उन लोगों के लिए प्रेरणा साबित हो सकती है, जो अपने नौकरों को इंसान नहीं समझते. यह बात हमें कभी नहीं भूलनी चाहिए कि सालों से मन में दबा आक्रोश जब फूट कर निकलता है तो उस का अंजाम अच्छा नहीं होता. आक्रोश न चाहते हुए भी इंसान को अपराधी बना दे. Crime News

True Crime Stories : बेरहम बेटी ने प्रेमी के लिए कर डाली पिता की हत्या

True Crime Stories : कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु देश का तीसरा सब से बड़ा नगर है. बेंगलुरु के राजाजी नगर थाना क्षेत्र में भाष्यम सर्कल के पास वाटल नागराज रोड स्थित पांचवें ब्लौक के 17वें बी क्रौस में जयकुमार जैन अपने परिवार के साथ रहते थे. जयकुमार जैन का कपड़े का थोक व्यापार था. पत्नी पूजा के अलावा उन के परिवार में 15 वर्षीय बेटी राशि (काल्पनिक नाम) और उस से छोटा एक बेटा था. जयकुमार मूलरूप से राजस्थान के जयपुर जिले के विराटनगर के पास स्थित मेढ़ गांव के निवासी थे. पैसे की कोई कमी नहीं थी, इसलिए परिवार के सभी सदस्य ऐशोआराम की जिंदगी जीने में यकीन करते थे.

जैन परिवार को देख कर कोई भी वैसी ही जिंदगी की तमन्ना कर सकता था. इस परिवार में सब कुछ था. सुख, शांति और समृद्धि के अलावा संपन्नता भी. ये सभी चीजें आमतौर से हर घर में एक साथ नहीं रह पातीं. मातापिता अपनी बेटी व बेटे पर जान छिड़कते थे. 41 वर्षीय जयकुमार जैन चाहते थे कि उन की बेटी राशि जिंदगी में कोई ऊंचा मुकाम हासिल करे. उन की पत्नी पूजा व बेटे को पुडुचेरी में एक पारिवारिक समारोह में शामिल होना था. जयकुमार जैन शाम 7 बजे पत्नी व बेटे को कार से रेलवे स्टेशन छोड़ने के लिए गए. इस बीच घर पर उन की बेटी राशि अकेली रही. यह बात 17 अगस्त, 2019 शनिवार की है.

पत्नी व बेटे को रेलवे स्टेशन छोड़ने के बाद जयकुमार घर वापस आ गए. घर आने के बाद बापबेटी ने साथसाथ डिनर किया. रात को उन की बेटी राशि पापा के लिए दूध का गिलास ले कर कमरे में आई और उन्हें पकड़ाते हुए बोली, ‘‘पापा, दूध पी लीजिए.’’

वैसे तो प्रतिदिन रात को सोते समय ये कार्य उन की पत्नी करती थी. लेकिन आज पत्नी के चले जाने पर बेटी ने यह फर्ज निभाया था. दूध पीने के बाद जयकुमार जैन अपने कमरे में जा कर सो गए. दूसरे दिन यानी 18 अगस्त रविवार को सुबह लगभग 7 बजे पड़ोसियों ने जयकुमार जैन के मकान के बाथरूम की खिड़की से आग की लपटें और धुआं निकलते देख कर फायर ब्रिगेड के साथसाथ पुलिस को सूचना दी. इस बीच जयकुमार की बेटी राशि ने भी शोर मचाया.सूचना मिलते ही फायर ब्रिगेड की गाड़ी बताए गए पते पर पहुंची और जयकुमार के मकान के अंदर पहुंच कर उन के बाथरूम में लगी आग को बुझाया. दमकलकर्मियों ने बाथरूम के अंदर जयकुमार जैन का झुलसा हुआ शव देखा.

कपड़ा व्यापारी जयकुमार के मकान के बाथरूम में आग लगने और आग में जल कर उन की मृत्यु होने की जानकारी मिलते ही मोहल्ले में सनसनी फैल गई. देखते ही देखते जयकुमार जैन के घर के बाहर पड़ोसियों की भीड़ इकट्ठा हो गई. जिस ने भी सुना कि कपड़ा व्यवसाई की जलने से मौत हो गई, वह सकते में आ गया. आग बुझाने के दौरान थाना राजाजीपुरम की पुलिस भी पहुंच गई थी. मौकाएवारदात पर पुलिस ने पूछताछ शुरू की.

बेटी का बयान  मृतक जयकुमार की बेटी ने पुलिस को बताया कि सुबह पापा नहाने के लिए बाथरूम में गए थे, तभी अचानक इलैक्ट्रिक शौर्ट सर्किट से आग लगने से पापा झुलस गए और उन की मौत हो गई. घटना के समय जयकुमार के घर पर मौजूद युवक प्रवीण ने बताया कि आग लगने पर हम दोनों ने आग बुझाने का प्रयास किया. आग बुझाने के दौरान हम लोगों के हाथपैर भी झुलस गए.

मामला चूंकि एक धनाढ्य प्रतिष्ठित व्यवसाई परिवार का था, इसलिए पुलिस के उच्चाधिकारियों को भी अवगत करा दिया गया था. खबर पा कर सहायक पुलिस आयुक्त वी. धनंजय कुमार व डीसीपी एन. शशिकुमार घटनास्थल पर पहुंच गए. इस के साथ ही फोरैंसिक टीम भी आ गई. मौके से आवश्यक साक्ष्य जुटाने व जरूरी काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने व्यवसाई जयकुमार की लाश पोस्टमार्टम के लिए विक्टोरिया हौस्पिटल भेज दी.

पुलिस ने भी यही अनुमान लगाया कि व्यवसाई जयकुमार की मौत शौर्ट सर्किट से लगी आग में झुलसने की वजह से हुई होगी. लेकिन जयकुमार के शव की स्थिति देख कर पुलिस को संदेह हुआ. प्राथमिक जांच में मौत का कारण स्पष्ट नहीं हो पाया, इसलिए पुलिस ने इसे संदेहास्पद करार देते हुए मामला दर्ज कर गहन पड़ताल शुरू कर दी. डीसीपी एन. शशिकुमार ने इस सनसनीखेज घटना का शीघ्र खुलासा करने के लिए तुरंत अलगअलग टीमें गठित कर आवश्यक निर्देश दिए. पुलिस टीमों द्वारा आसपास रहने वाले लोगों व बच्चों से अलगअलग पूछताछ की गई तो एक चौंका देने वाली बात सामने आई.

पुलिस को मृतक जयकुमार की बेटी राशि व पड़ोसी युवक प्रवीण के प्रेम संबंधों के बारे में जानकारी मिली. घटना के समय भी प्रवीण जयकुमार के घर पर मौजूद था. पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि जरूर दाल में कुछ काला है. मकान में जांच के दौरान फोरैंसिक टीम को गद्दे पर खून के दाग मिले थे, जिन्हें साफ किया गया था. इस के साथ ही फर्श व दीवार पर भी खून साफ किए जाने के चिह्न थे.

दूसरे दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद स्थिति पूरी तरह स्पष्ट हो गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि मृतक के झुलसने से पहले उस की हत्या किसी धारदार हथियार से की गई थी. इस के बाद उच्चाधिकारियों को पूरी जानकारी से अवगत कराया गया. पुलिस का शक मृतक की बेटी राशि व उस के बौयफ्रैंड प्रवीण पर गया.

पुलिस ने दूसरे दिन ही दोनों को हिरासत में ले कर उन से घटना के संबंध में अलगअलग पूछताछ की. इस के साथ ही दोनों के मोबाइल भी पुलिस ने कब्जे में ले लिए. जब राशि और प्रवीण से सख्ती से पूछताछ की गई तो दोनों संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए और सवालों में उलझ कर पूरा घटनाक्रम बता दिया. दोनों ने जयकुमार की हत्या कर उसे दुर्घटना का रूप देने की बात कबूल कर ली. डीसीपी एन. शशिकुमार ने सोमवार 19 अगस्त को प्रैस कौन्फ्रैंस में बताया कि पुलिस ने मामला दर्ज कर गहन पड़ताल की. इस के साथ ही जयकुमार जैन हत्याकांड 24 घंटे में सुलझा कर मृतक की 15 वर्षीय नाबालिग बेटी राशि और उस के 19 वर्षीय प्रेमी प्रवीण को गिरफ्तार कर लिया गया.

उन की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल चाकू, जिसे घर में छिपा कर रखा गया था, बरामद कर लिया गया. साथ ही खून से सना गद्दा, कपड़े व अन्य साक्ष्य भी जुटा लिए गए. हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

जयकुमार जैन की बेटी बेंगलुरु शहर के ही एक इंटरनैशनल स्कूल में पढ़ती थी. उसी स्कूल में जयकुमार के पड़ोस में ही तीसरे ब्लौक में रहने वाला प्रवीण कुमार भी पढ़ता था. प्रवीण के पिता एक निजी कंपनी में काम करते थे. कुछ महीने पहले उस के पिता सहित कई कर्मचारियों को कुछ लाख रुपए दे कर कंपनी ने हटा दिया था. ये रुपए पिता ने प्रवीण के नाम से बैंक में जमा कर दिए थे. इन रुपयों के ब्याज से ही परिवार का गुजारा चलता था. प्रवीण उन का एकलौता बेटा था.

राशि और प्रवीण में पिछले 5 साल से दोस्ती थी और दोनों रिलेशनशिप में थे. प्रवीण राशि से 3 साल सीनियर था. फिलहाल राशि 10वीं की छात्रा थी, जबकि इंटर करने के बाद प्रवीण ने शहर के एक प्राइवेट कालेज में बी.कौम फर्स्ट ईयर में एडमीशन ले लिया था. अलगअलग कालेज होने के कारण दोनों का मिलना कम ही हो पाता था. इस के चलते राशि अपने प्रेमी से अकसर फोन पर बात करती रहती थी. मौडल बनने की चाह  अकसर देर तक बेटी का मोबाइल पर बात करना और चैटिंग में लगे रहना पिता जयकुमार को पसंद नहीं था. बेटी को ले कर उन के मन में सुनहरे सपने थे. राशि और प्रवीण की दोस्ती को ले कर भी पिता को आपत्ति थी. जयकुमार ने कई बार राशि को प्रवीण से दूर रहने को कहा था. राशि को पिता की ये सब हिदायतें पसंद नहीं थीं.

महत्त्वाकांक्षी राशि देखने में स्मार्ट थी. गठा बदन व अच्छी लंबाई के कारण वह अपनी उम्र से अधिक की दिखाई देती थी. उसे फैशन के हिसाब से कपड़े पहनना पसंद था. उस की सहेलियां भी उस के जैसे विचारों की थीं, इसलिए उन में जब भी बात होती तो मौडलिंग, फिल्मों और उन में दिखाए जाने वाले रोमांस की ही बात होती थी. पुलिस जांच में सामने आया कि एक बार परिवार को गुमराह कर के राशि अपनी सहेलियों के साथ शहर से बाहर घूमने के बहाने बौयफ्रैंड प्रवीण के साथ मुंबई गई थी. मुंबई में 4 दिन रह कर उस ने कई फोटो शूट कराए थे और फैशन शो में भी भाग लिया.

उस ने मुंबई से अपनी मां को फोन कर बताया था कि वह मुंबई में है और 5 दिन बाद घर लौटेगी. बेटी के चुपचाप मुंबई जाने की जानकारी जब पिता जयकुमार को लगी तो वह बेहद नाराज हुए. राशि के लौटने पर उन्होंने उस की बेल्ट से पिटाई की और उस का मोबाइल छीन लिया. जयकुमार को बेटी की सहेलियों से पता चला था कि राशि उन के साथ नहीं, बल्कि अपने बौयफ्रैंड प्रवीण के साथ मुंबई गई थी. इस जानकारी ने उन के गुस्से में आग में घी का काम किया.

बचपन को पीछे छोड़ कर बेटी जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थी. पिता जयकुमार को बेटी के रंगढंग देख कर उस की चिंता रहती थी. जबकि राशि के खयालों में हरदम अपने दोस्त से प्रेमी बने प्रवीण की तसवीर रहती थी. वह चाहती थी कि उस का दीवाना हर पल उस की आंखों के सामने रहे. पिता द्वारा जब राशि पर ज्यादा पाबंदियां लगा दी गईं, तब दोनों चोरीचोरी शौपिंग मौल में मिलने लगे. पिता द्वारा मोबाइल छीनने की बात जब राशि ने अपने प्रेमी को बताई तो उस ने राशि को दूसरा मोबाइल ला कर दे दिया. अब राशि चोरीछिपे प्रवीण के दिए मोबाइल से बात करने लगी. जल्दी ही इस का पता राशि के पिता को चल गया. उन्होंने उस का वह मोबाइल भी छीन लिया. इस से राशि का मन विद्रोही हो गया.

पिता की हिदायत व रोकटोक से नाराज राशि ने प्रवीण को पूरी बात बताने के साथ अपनी खोई आजादी वापस पाने के लिए कोई कदम उठाने की बात कही. हत्या के आरोप में गिरफ्तार मृतक की नाबालिग बेटी ने खुलासा किया कि वह पिछले एक महीने से पिता की हत्या की योजना बना रही थी. इस दौरान उस ने टीवी सीरियल, इंटरनेट और सोशल मीडिया पर हत्या करने के विभिन्न तरीकों की पड़ताल की थी. उस ने प्रेमी दोस्त प्रवीण के साथ मिल कर हत्या की योजना को अंजाम देने का षडयंत्र रचा. दोनों जुलाई महीने से ही जयकुमार की हत्या के प्रयास में लगे थे, लेकिन सफलता नहीं मिल रही थी.

अंतत: 17 अगस्त को जब राशि की मां और भाई एक पारिवारिक समारोह में शामिल होने पुडुचेरी गए तो उन्हें मौका मिल गया. यह कलयुगी बेटी अपने पिता की हत्या करने तक को उतारू हो गई. उस ने हत्या की पूरी योजना बना डाली. जालिम बेटी  राशि ने घर में किसी के नहीं होने का फायदा उठा कर योजना के मुताबिक रात को खाना खाने के बाद पिता को पीने को जो दूध दिया, उस में नींद की 6 गोलियां मिला दी थीं. कुछ ही देर में पिता बेहोश हो कर बिस्तर पर लुढ़क गए.

पिता को सोया देख राशि ने उन्हें आवाज दे कर व थपथपा कर जाना कि वह पूरी तरह बेहोश हुए या नहीं.  संतुष्ट हो जाने पर राशि ने प्रवीण  को फोन कर घर बुला लिया. वह चाकू साथ ले कर आया था. घर में रखे चाकू व प्रवीण द्वारा लाए चाकू से दोनों ने बिस्तर पर बेहोश पड़े जयकुमार जैन के गले व शरीर पर बेरहमी से कई वार किए, जिस से उन की मौत हो गई. इस के बाद दोनों शव को घसीट कर बाथरूम में ले गए.

हत्या के सबूत मिटाने के लिए कमरे में फैला खून व दीवार पर लगे खून के छींटे साफ करने के बाद बिस्तर की चादर वाशिंग मशीन में धो कर सूखने के लिए फैला दी. इस के बाद दोनों आगे की योजना बनाने लगे. सुबह 7 बजते ही राशि घर से निकली और 3 बोतलों में पैट्रोल ले कर आ गई. दोनों ने बाथरूम में लाश पर पैट्रोल डाल कर आग लगा दी.

इस दौरान दोनों के पैर व प्रवीण के हाथ भी आंशिक रूप से झुलस गए. आग लगते ही पैट्रोल की वजह से तेजी से आग की लपटें और धुआं निकलने लगा. बाथरूम की खिड़की से आग की लपटें व धुआं निकलता देख कर पड़ोसियों ने फायर ब्रिगेड व पुलिस को फोन कर दिया था. इस बीच राशि ने नाटक करते हुए मदद के लिए शोर मचाया और लोगों को बताया कि उस के पिता बाथरूम में नहाने गए थे तभी अचानक इलैक्ट्रिक शौर्ट सर्किट होने से आग लग गई, जिस से वह जल गए. इस तरह दोनों ने हत्या को दुर्घटना का रूप देने का प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हो पाए.

बेटी को पिता की हत्या करने का फिलहाल कोई मलाल नहीं है. हत्याकांड का खुलासा होने के बाद पुलिस ने जब उसे गिरफ्तार किया तब परिवार के सभी लोग अचंभित रह गए. सोमवार की शाम को राशि की मां व भाई भी लौट आए थे. मां ने कहा कि शायद हमारी परवरिश में ही कोई कमी रह गई थी. हालांकि घर वालों ने उसे पिता के अंतिम संस्कार में भाग लेने को कहा, लेकिन राशि ने साफ इनकार कर दिया. उधर प्रवीण के मातापिता को अपने बेटे के प्रेम प्रसंग की कोई जानकारी नहीं थी.

प्रवीण राशि के पिता से नाराज था. उस ने गिरफ्तारी के बाद बताया कि उन्होंने उसे सार्वजनिक रूप से चेतावनी देते हुए अपनी बेटी से दूर रहने को कहा था. साथ ही कुछ दिन पहले उन्होंने राशि का मोबाइल छीन लिया था. इस पर उस ने अपनी गर्लफ्रैंड को नया मोबाइल गिफ्ट किया तो उस के पिता ने वह भी छीन लिया. वह उस की गर्लफ्रैंड को पीटते, डांटते थे, जो उसे अच्छा नहीं लगता था. आखिर में प्रवीण ने अपनी गर्लफ्रैंड को पिता की प्रताड़ना से बचाने का फैसला लिया.

मंगलवार को हत्यारोपी बेटी से मिलने कोई भी रिश्तेदार नहीं पहुंचा. लड़की की मां भी घर पर ही रही. राशि ने पुलिस को बताया कि उस ने अपने पिता को चाकू नहीं मारा, लेकिन घटना के समय वह मौजूद थी.  राजाजीनगर पुलिस द्वारा मंगलवार को किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) के सामने राशि को पेश किया, जहां के आदेश के बाद उसे बलकियारा बाल मंदिर भेज दिया गया. राशि सामान्य दिखाई दे रही थी. जब उसे जेजेबी के सामने ले जाया गया तो उस के चेहरे पर अपने पिता की हत्या करने का कोई पश्चाताप नहीं दिखा. वहीं राशि के प्रेमी प्रवीण को मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश कर जेल भेज दिया गया.

हत्या करना इतना आसान काम नहीं होता. प्रवीण और राशि ने योजना बनाते समय अपनी तरफ से तमाम ऐहतियात बरती. दोनों हत्या को हादसा साबित करना चाहते थे. लेकिन वे भूल गए थे कि अपराधी कितना भी चालाक क्यों न हो, कानून के लंबे हाथों से ज्यादा देर तक नहीं बच सकता. बेटा हो या बेटी, मांबाप को उन के चरित्र और व्यक्तित्व का ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि मांबाप की आंखों में धूल झोंक कर गलत राहों पर उतर जाते हैं तो उन्हें संभाल पाना आसान नहीं होता. True Crime Stories

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Hindi Short Stories : स्वामी जी के चंगुल से कैसे निकली सुचित्रा

Hindi Short Stories : रात के 2 बज गए थे. बहुत कोशिश के बाद भी प्रोफेसर मुकुल बनर्जी को नींद नहीं आई. पत्नी सुचित्रा नींद के आगोश में थी. मुकुल ने उसे नींद से जगा कर फिर से अनुनयविनय करने का विचार किया. उन्हें लग रहा था कि जब तक संबंध नहीं बनाएंगे, नींद नहीं आएगी. इस के लिए वह शाम से ही बेकल थे.

सोने से पहले उसे अपनी भावना से अवगत भी कराया था. लेकिन उस ने साफ मना कर दिया था.  बोली, ‘‘बहुत थकी हूं. आप को तो पता है कल कंपनी के काम से 10 दिन के लिए इटली जा रही हूं. सुबह 6 बजे तक नहीं उठूंगी तो फ्लाइट नहीं पकड़ पाऊंगी. प्लीज सोने दीजिए.’’

उन्होंने उसे समझाने और मनाने की कोशिश की, पर कोई फायदा नहीं हुआ. वह सो गई. बाद में उन्होंने भी सोने की कोशिश की किंतु नींद नहीं आई.  26 वर्ष पहले जब उन्होंने सुचित्रा से विवाह किया था तो वह 24 वर्ष की थी. उन से 2 साल छोटी. तब वह ऐसी न थी. जब भी अपनी इच्छा बताते थे, झट से राजी हो जाती थी. उत्साह से साथ भी देती थी. उस के साथ हंसतेखेलते कैसे वर्षों गुजर गए, पता ही नहीं चला. इस बीच उन की जिंदगी में बेटा गौरांग और बेटी काकुली आए.

गौरांग 2 साल पहले पढ़ाई के लिए अमेरिका चला गया था. 4 साल का कोर्स था. काकुली उस से 4 वर्ष छोटी थी. मां को छोड़ कर कहीं नहीं गई, वह कोलकाता में ही पढ़ रही थी. सुचित्रा में बदलाव साल भर पहले से शुरू हुआ था. तब तक वह कंपनी में वाइस प्रेसीडेंट बन चुकी थी. वाइस प्रेसीडेंट बनने से पहले औफिस से शाम के 6 बजे तक घर आ जाती थी. अब रात के 10 बजे से पहले शायद ही कभी आई हो.  कपड़े चेंज करने के बाद बिस्तर पर ऐसे गिर पड़ती थी जैसे सारा रक्त निचुड़ गया हो.

ऐसी बात नहीं थी कि वह उसे सिर्फ रात में ही मनाने की कोशिश करते थे. छुट्टियों में दिन में भी राजी करने की कोशिश करते थे, पर वह बहाने बना कर बात खत्म कर देती थी. कभी बेटी का भय दिखाती तो कभी नौकरानी का. कभीकभी कोई और बहाना बना देती थी.  ऐसे में कभीकभी उन्हें शक होता था कि उस ने कहीं औफिस में कोई सैक्स पार्टनर तो नहीं बना लिया है. ऐसे विचार पर घिन भी आती थी. क्योंकि उस पर उन का पूरा भरोसा था.  कई बार यह खयाल भी आया कि सुचित्रा उन की पत्नी है. उस के साथ जबरदस्ती कर सकते हैं, लेकिन कभी ऐसा किया नहीं.

लेकिन आज उन की बेकरारी इतनी बढ़ गई थी कि उन्होंने सीमा लांघ जाने का मन बना लिया.  उन्होंने सोचा, ‘एक बार फिर से मनाने की कोशिश करता हूं. इस बार भी राजी नहीं हुई तो जबरदस्ती पर उतर जाऊंगा.’

उन्होंने नींद में गाफिल सुचित्रा को झकझोर कर उठाया और कहा, ‘‘नींद नहीं आ रही है. प्लीज मान जाओ.’’  सुचित्रा को गुस्सा आया. दोचार सुनाने का मन किया. पर ऐसा करना ठीक नहीं लगा. उस ने उन्हें समझाते हुए कहा, ‘‘दिल पर काबू रखने की आदत डाल लीजिए, प्रोफेसर साहब. जबतब दिल का मचलना ठीक नहीं है.’’

‘‘तुम्हें पाने के लिए मेरा दिल हर पल उतावला रहता है तो मैं क्या करूं? ऐसा लगता है कि अब तुम्हें मेरा साथ अच्छा नहीं लगता…’’   ‘‘यह आप का भ्रम है. सच यह है कि औफिस से आतेआते बुरी तरह थक जाती हूं.’’

‘‘रात के 10 बजे घर आओगी तो थकोगी ही. पहले की तरह शाम के 6 बजे तक क्यों नहीं आ जातीं?’’

‘‘आप समझते हैं कि मैं अपनी मरजी से देर से आती हूं. बात यह है कि पहले वाइस प्रेसीडेंट नहीं थी. इसलिए काम कम था. जब से यह जिम्मेदारी मिली है, काम बढ़ गया है.’’

‘‘जिंदगी भर ऐसा चलता रहेगा तो मैं कहां जाऊंगा. मेरे बारे में तो तुम्हें सोचना ही होगा.’’ उन की आवाज में झल्लाहट थी.

स्थिति खराब होते देख सुचित्रा ने झट से उन का हाथ अपने हाथ में लिया और प्यार से कहा, ‘‘नाराज मत होइए. वादा करती हूं कि इटली से लौट कर आऊंगी तो पहले आप की सुनूंगी, फिर औफिस जाऊंगी. फिलहाल आप सोने दीजिए.’’

सुचित्रा फिर सो गई. वह झुंझलाते हुए करवटें बदलने लगे. चाह कर भी जबरदस्ती न कर सके. जबरदस्ती करना उन के खून में था ही नहीं. तन की ज्वाला शांत हुए बिना मन शांत होने वाला नहीं था. इसलिए उन्होंने सुचित्रा से बेवफाई करने का मन बना लिया.  वह समझ गए थे कि कारण जो भी हो, सुचित्रा अब पहले की तरह साथ नहीं देगी. कुछ न कुछ बहाना बनाती रहेगी. उन्होंने जब ऐसी स्त्रियों को याद किया जो बिना शर्त, बिना हिचक संबंध बना सकती थी तो पहला नाम रूना का आया. उस से पहली मुलाकात शादी समारोह में हुई थी. 4 महीना पहले सुचित्रा की सहेली की बेटी की शादी थी. वह उस के साथ समारोह में गए थे.

पार्टी में काफी भीड़ थी. 10-15 मिनट बाद सुचित्रा बिछड़ गई. उस के बिना मन नहीं लगा तो बेचैन हो कर उसे ढूंढने लगे. 20-25 मिनट बाद मिली तो उन्होंने उलाहना दिया, ‘‘कहां चली गई थीं? ढूंढढूंढ कर परेशान हो गया हूं.’’

उस के साथ एक महिला भी थी. उस की परवाह किए बिना उन्हें झिड़कते हुए बोली, ‘‘मैं क्या 18-20 की हूं कि किसी के डोरे डालने पर उस के साथ चली जाऊंगी. आप भी अब 53 के हो गए हैं. इस उम्र में 18-20 वाली बेताबी मत दिखाइए, नहीं तो लोग हंसेंगे.’’

उस के बाद वह उस महिला के साथ चली गई. वह ठगे से खड़े रह गए. सुचित्रा ने उन के वजूद को उस ने पूरी तरह नकार दिया था. अपनी बेइज्जती महसूस की तो वह भीड़ से अलग अकेले में जा कर बैठ गए. पत्नी से अपमानित होने के दर्द ने मन को भिगो दिया, आंखों से आंसू छलक आए.  आंसू पोंछने के लिए जेब से रुमाल निकालने की सोच ही रहे थे कि अचानक एक युवती अपना रुमाल बढ़ाती हुई बोली, ‘‘आंसू पोंछ लीजिए, प्रोफेसर साहब.’’

युवती की उम्र 30 वर्ष के आसपास थी. सलवार सूट से सुसज्जित लंबी कदकाठी थी. सुंदरता कूटकूट कर भरी थी.  उन्होंने कहा, ‘‘आप को तो मैं जानता तक नहीं. रुमाल कैसे ले लूं?’’

‘‘पहली बात यह कि मुझे आप मत कहिए. आप से छोटी हूं. दूसरी बात यह कि यह सच है कि आप मुझे नहीं जानते, पर मैं आप को खूब अच्छी तरह से जानती हूं.’’

युवती ने बात जारी रखते हुए कहा, ‘‘आप की पत्नी ने कुछ देर पहले आप के साथ जो व्यवहार किया था, वह किसी भी तरह से ठीक नहीं था. इस से पता चल गया कि प्यार तो दूर, वह आप की इज्जत भी नहीं करती.’’  उन्हें लगा कि वह 50 हजार के सूटबूट, 1 लाख की हीरे की अंगूठी, गले में सोने की कीमती चेन और विदेशी कलाई घड़ी से अवश्य सुसज्जित हैं, पर उस युवती की सूक्ष्म दृष्टि ने भांप लिया है कि वजूद का तमाम हिस्सा जहांतहां से रफू किया हुआ है. युवती से किसी भी तरह की घनिष्ठता नहीं करना चाहते थे. इसलिए झटके से उठ कर खड़े हो गए.

भीड़ की तरफ बढ़ने को उद्यत ही हुए थे कि युवती ने हाथ पकड़ कर फिर से बैठा दिया और कहा, ‘‘आप का दर्द समझती हूं. पत्नी को बहुत प्यार करते हैं, इसीलिए उस की बुराई नहीं सुनना चाहते. पर सच तो सच होता है. देरसबेर सामना करना ही पड़ता है.’’

युवती की छुअन से 53 साल की उम्र में भी उन के दिल की घंटी बज उठी. युवती खुद उन से आकर्षित थी, अत: उस का दिल तोड़ना ठीक नहीं लगा. न चाहते हुए भी उन्होंने उस का परिचय पूछ ही लिया. उस ने अपना नाम रूना बताया. मल्टीनैशनल कंपनी में जौब करती थी. ग्रैजुएट थी. अब तक अविवाहित थी.  मातापिता, भाईबहन गांव में रहते थे. शहर में अकेली रहती थी. पार्कस्ट्रीट में 2 कमरे का फ्लैट ले रखा था. रूना ने बताया, ‘‘पहली बार आप को पार्क में मार्निंग वाक करते देखा था. आप की पर्सनैलिटी पर मुग्ध हुए बिना न रह सकी थी. लगा था कि आप अधिक से अधिक 40 के होंगे. आप की पत्नी ने आज आप को उम्र का अहसास कराया तो पता चला कि 53 के हैं. पर देखने में आप 40 से अधिक के नहीं लगते.’’

रूना आगे बोली, ‘‘रोजाना पार्क में वाक के लिए जाती थी, उस दिन के बाद आप को छिपछिप कर देखने लगी थी. आप से बात करने का मन होता था पर हिम्मत नहीं होती थी.  ‘‘एक दिन पार्क में आप को कोई परिचित मिल गया था. उस के साथ आप की जो बात हुई, उस से पता चला कि आप प्रोफेसर हैं. शादीशुदा तो हैं ही, 2 बड़ेबड़े बच्चों के पिता भी हैं.

‘‘किस कालेज में पढ़ाते हैं और कहां रहते हैं, इस का पता भी चल गया था. इस के बावजूद आप के प्रति मेरा झुकाव कम नहीं हुआ.  ‘‘आज इस पार्टी देने वाले की कृपा से आप से बात करने का मौका मिला है.यहां आते ही आप पर मेरी नजर पड़ी थी. मिलूं या न मिलूं, इसी उधेड़बुन में थी कि पत्नी से अपमानित हो कर आप इधर आ गए.

‘‘दुख में आप का साथ देना मुनासिब समझा और आप के पीछे आ गई. मेरी दोस्ती कबूल करें या न करें, पर जीवन भर आप को याद रखूंगी’’  उन्हें समझते देर नहीं लगी कि रूना उन के शानदार व्यक्तित्व की कायल है. इसी तरह कालेज लाइफ में भी कई लड़कियां उन पर घायल थीं. कुछ ने शादी का प्रस्ताव भी दिया था. लेकिन उन्होंने किसी का प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया था. उस समय कैरियर ही सब कुछ था.

शिक्षा क्षेत्र में जाना चाहते थे, इसीलिए एमए के बाद पीएचडी की. फिर थोड़े से प्रयास के बाद कालेज में नियुक्ति हो गई.  एक वर्ष बाद शादी की सोची तो सुचित्रा  से परिचय हुआ. शादी का प्रस्ताव उसी ने दिया था. वह उन से बहुत प्रभावित थी. काफी सोचने के बाद सुचित्रा का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था. कारण यह कि वह अपने मातापिता की एकलौती बेटी थी. उस के पिता शहर के नामी अमीरों में थे. उन का कई तरह का बिजनैस था. उस का बड़ा भाई राजनीति में था, बहुत रुतबे वाला. उस के परिवार के सामने उन की कोई हैसियत नहीं थी.

उन का परिवार सामान्य था. पिता शिक्षक थे. मां हाउसवाइफ थी. कुछ दिन पहले ही कुछ अंतराल पर दोनों का देहांत हुआ था.  संपत्ति के नाम पर पार्कस्ट्रीट पर 6 कट्ठा में बना 4 मंजिला मकान था. दूसरी मंजिल उन के पास थी. बाकी किराए पर दे रखा था. अच्छाखासा किराया आता था. कुछ बैंक बैलेंस भी था. सुचित्रा सुंदर थी और स्मार्ट भी. सीए के बाद भी उस ने कई डिग्रियां हासिल की थीं. उस के घर वाले भी उन से प्रभावित थे. फलस्वरूप जल्दी ही धूमधाम से दोनों की शादी हो गई.

उन के मना करने पर भी सुचित्रा के पापा ने दोनों के नाम एक आलीशान मकान खरीद दिया तो उन्होंने अपना घर किराए पर दे दिया और सुचित्रा के साथ नए मकान में आ गए. सुचित्रा के पिता के पास बाकुड़ा और मिदनापुर में 3 फार्महाउस थे. मिदनापुर वाला फार्महाउस 20 एकड़ का था. उसे उन्होंने सुचित्रा को दे दिया था. जबकि सुचित्रा कोलकाता में ही रह कर जौब करना चाहती थी. इसलिए फार्महाउस में मैनेजर रख दिया गया. शादी के कुछ महीने बाद सुचित्रा ने जौब करने की बात कही तो उन्होंने इजाजत दे दी. वह होनहार थी ही. जल्दी ही एक बड़ी मल्टीनैशनल कंपनी में उच्च पद पर जौब मिल गया.

एकदूसरे की मोहब्बत से लबरेज जिंदगी समय की धारा के साथ दौड़ती चली गई. उन्हें लगा था कि सुचित्रा जीवन भर अपने प्यार के झूले पर झुलाती रहेगी, पर ऐसा नहीं हुआ. पिछले एक साल से न जाने क्यों वह उन से कतराने लगी थी. कभी पराई स्त्री से संबंध बनाने के बारे में सोचना पड़ेगा, उन्होंने सोचा तक नहीं था. लेकिन सुचित्रा की अवहेलना से वह ऐसा करने पर मजबूर हो गए थे. रूना से दोस्ती करने के बाद उस से बराबर मिलते रहे. उस के साथ मौल में 2 बार रोमांटिक मूवी भी देख आए थे. कालेज से छुट्टी ले कर पिकनिक भी मना चुके थे.

एक बार रूना उन्हें घर ले गई थी. बातोंबातों में वह अचानक उन से लिपट गई और बोली, ‘‘यदि आप की पत्नी नहीं होती तो आप से शादी कर लेती. आप को प्यार जो करने लगी हूं.’’

उन्होंने भी रूना को एकाएक बांहों में कस लिया था. सीमाएं लांघ पाते, उस से पहले ही उन का विवेक लौट आया. रूना को अपने से अलग कर के उन्होंने कहा, ‘‘दोस्ती की एक सीमा होती है. मैं हमेशा तुम्हें दोस्त बनाए रखना चाहता हूं.’’

फिर रूना के कुछ कहने से पहले ही वहां से चले गए थे.  इस के बावजूद रूना ने उन से मिलना बंद नहीं किया था. वह नियमित मिलती रही थी. इस तरह 4 महीने में ही रूना ने उन के वजूद को कोहरे की चादर की तरह ढंक लिया था. इसीलिए सुचित्रा से बेवफाई करने का मन हुआ तो उस से ही संबंध बनाने का फैसला किया.  अगले दिन सुचित्रा सुबह 8 बजे एयरपोर्ट चली गई तो उन्होंने रूना को फोन किया. वह चहकती हुई बोली, ‘‘सुबहसुबह कैसे याद किया प्रोफेसर साहब? सब खैरियत है न?’’

‘‘खैरियत नहीं है. अकेला हूं और तनहाई में तुम्हारा साथ चाहता हूं.’’

‘‘मतलब?’’ रूना ने चौंक कर पूछा.   ‘‘एक बार मैं ने मना कर दिया था. पर अब मैं तुम्हें पाने के लिए बेचैन हूं. तुम मिलोगी न?’’ उन्होंने बगैर कोई संकोच के अपने मन की बात कह दी.

‘‘आप को इतना प्यार करती हूं कि जान भी दे सकती हूं. शाम को कालेज से छुट्टी होते ही मेरे घर आ जाइए. पलकें बिछा कर आप की प्रतीक्षा करूंगी.’’

वह खुशी से झूम उठे. सारा दिन कैसे बीता, पता ही नहीं चला. रूना से मिलने की कल्पना से पुलकित होते रहे थे.  छुट्टी हुई तो बिना देर किए उस के घर चले गए. रूना ने उन का भरपूर स्वागत किया. रात के 11 बजे अपने घर वापस लौट रहे थे तो जैसे हवा में उड़ रहे थे. पहली बार महसूस किया कि कभीकभी अपनों से अधिक परायों से सुख मिलता है. रूना से उन्होंने भरपूर सुख महसूस किया था. अचानक मोबाइल पर रूना का मैसेज आया, ‘‘आप को मैं अच्छी लगी तो जब जी चाहे, आ सकते हैं. आप मेरे रोमरोम में बस गए हैं. आप को नजरअंदाज कर जी नहीं सकती.’’

रूना का प्यार देख कर मन मयूर नाच उठा. फिर उन्होंने भी मैसेज किया, ‘‘तुम मेरी धड़कन बन चुकी हो. मैं भी अब तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’’  अगले दिन से ही वह प्रतिदिन बेटी से कोई न कोई बहाना बना कर रूना के घर जाने लगे. कहावत है कि सच्चाई जानते हुए भी आंखें मूंद लेने में दिल को बहुत सुकून मिलता है. उन्होंने भी ऐसा ही किया.  वह अच्छी तरह जानते थे कि जो हो रहा है, वह मृगतृष्णा है, जहां रेत को पानी समझ कर मीलों दौड़ते रहना पड़ता है. इस के बावजूद शबनम की बूंदों सी बरसती प्यार की तपिश को महसूस करने के लिए उन्होंने शतुरमुर्ग की तरह रेत में अपना मुंह छिपा लिया था.  जिस दिन सुचित्रा इटली से लौट कर आई, उस दिन वह रूना के घर नहीं गए. कुछ दिनों तक उस से न मिलने का फैसला लिया था.

मुकुल रूना को अपना फैसला फोन पर बताने की सोच ही रहे थे कि उस का ही फोन आ गया, बोली, ‘‘जानती हूं, आप की पत्नी इटली से वापस आ गई है. अब आप नहीं आ पाएंगे. आएंगे भी तो कभीकभी. कोई बात नहीं. आप आएं या न आएं, मैं तो सदैव आप को याद रखूंगी.

‘‘आप भी मुझे हमेशा याद रखेंगे. इस के लिए कुछ उपाय मैं ने किए हैं. फोन पर भेज रही हूं. अच्छे से देख लीजिए और सोचसमझ कर कदम उठाइए.’’

फिर मोबाइल पर रूना के मैसेज पर मैसेज आने लगे. उन्होंने मैसेज खोलना शुरू किया तो दिल की धड़कन बेतरह बढ़ गई. आंखों के आगे अंधेरा छा गया. मैसेज में कई एक फोटो थे. सारे के सारे रूना और उन के अंतरंग क्षणों के थे. जाहिर था रूना ने कैमरा लगा रखा था या फिर उस के किसी साथी ने छिप कर फोटो खींचे थे. उन की समझ में आ गया कि सारा कुछ सुनियोजित था. उन के हाथपैर कांपने लगे. घबराहट में भय से रुलाई छूट गई. ऐसे फोटो देखने के बाद समाज में उन की इज्जत राईरत्ती भी नहीं रहती. पत्नी की नजर में भी सदैव के लिए गिर जाते. वह उन्हें तलाक भी दे सकती थी.

कुछ देर बाद अपने आप को काबू में कर रूना को फोन किया, ‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया? तुम तो मुझे प्यार करती थी.’’  ‘‘प्यार तो अब भी करती हूं प्रोफेसर साहब, पर प्यार से पेट थोड़े भरता है. इस के लिए रुपए की जरूरत होती है. मांगने से तो देते नहीं, इसीलिए ऐसा करना पड़ा.

‘‘लेकिन आप डरिए मत. बेफिक्र हो कर मेरे घर आ जाइए. मेरी बात मान लेंगे तो सब कुछ ठीक हो जाएगा.’’ अगले दिन वह रूना के घर गए तो उस का रूप देख कर दंग रह गए. पहले तो उस ने 30 करोड़ रुपए मांगे. उन के गिड़गिड़ाने पर 25 करोड़ पर रुक गई, जबकि वह उसे 5 लाख से अधिक नहीं देना चाहते थे.

दोनों में बहुत देर तक गरमागरम बहस हुई. कोई समझौता नहीं हुआ तो रूना बोली, ‘‘आज एक सच बताती हूं. वह यह कि मैं किसी कंपनी में जौब नहीं करती. एक आश्रम के लिए काम करती हूं.

‘‘उस आश्रम के मालिक स्वामी सच्चिदानंद हैं. उन के कहने पर ही आप को अपने जाल में फंसा कर फोटो और वीडियो बनाया था. अंतिम फैसला स्वामीजी ही करेंगे.’’

उन्होंने आश्रम में जा कर स्वामीजी से बात की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. वह 30 करोड़ से कम पर राजी नहीं हुए.

उन्होंने कैश न होने की बात की तो स्वामीजी ने कहा, ‘‘आप के पास कैश है कि नहीं, मैं नहीं जानता. पर इतना जानता हूं कि आप के पास एक पुश्तैनी मकान है जो आज की तारीख में 30-35 करोड़ का है. उसे आश्रम के नाम कर दीजिए. बात खत्म हो जाएगी.’’

वह समझ गए कि रोनेगिड़गिड़ाने से कोई फायदा नहीं होगा. इस के लिए कोई योजना बना कर उन के जाल से निकलना होगा. सोचनेसमझने के नाम पर उन्होंने स्वामीजी  से 10 दिन का समय मांग लिया और घर आ कर उन्हें कानूनी चंगुल में फंसाने की योजना बनाई. 2 दिन बाद उन्होंने रूना को फोन पर कहा, ‘‘तुम से एक समझौता करना चाहता हूं, जिस में तुम्हें बहुत बड़ा फायदा होगा.’’

रूना ने अपने घर बुला लिया तो उन्होंने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘मुझे अपना मकान किसी को देना ही है तो स्वामीजी को क्यों दूं? तुम्हें क्यों न दूं? सुख तो मुझे तुम से मिला है.   ‘‘इस के बदले में तुम्हें मेरे मोबाइल में स्वामीजी के खिलाफ अपना बयान रिकौर्ड करा देना है. तुम्हें कुछ नहीं होगा, स्वामीजी जेल चले जाएंगे.’’

‘‘स्वामीजी को कानून के जाल में फंसाना इतना आसान नहीं है. आप मेरे बयान पर पुलिस की मदद लेंगे तो वह आप की पत्नी को अपना हथियार बना कर आप को सरेंडर करने पर मजबूर कर देंगे.’’

उन्होंने चौंक कर पूछा, ‘‘मैं कुछ समझा नहीं. मेरे और स्वामीजी के बीच मेरी पत्नी कहां से आ गई?’’

‘‘बात यह है कि आप की पत्नी स्वामीजी पर फिदा है. वह साल भर से उन की गुलामी कर रही है. स्वामीजी ने आप की पत्नी की कई तरह की पोर्न फिल्में बना रखी हैं.‘‘आप समझते हैं कि रात के 9 बजे तक वह औफिस में रहती है इसीलिए रात 10 बजे घर आती है. जबकि सच्चाई यह नहीं है. सच्चाई यह है कि रोज औफिस से शाम 5 बजे फ्री हो जाती है. फिर स्वामीजी के आश्रम जा कर स्वामीजी के साथ मौजमस्ती करती है, फिर घर जाती है.

‘‘10 दिनों के लिए आप की पत्नी कंपनी के काम से इटली नहीं गई थी. वह स्वामीजी के साथ मौजमस्ती करने इटली गई थी.’’

प्रमाणस्वरूप रूना ने अपने मोबाइल में उन की पत्नी और स्वामीजी का अंतरंग क्षणों का वीडियो दिखा कर कहा, ‘‘इसे मैं ने स्वामीजी से छिप कर इसलिए शूट किया था ताकि जरूरत पड़ने पर उन के खिलाफ इस्तेमाल कर सकूं.’’

सुन कर वह सकते में आ गए. जिस पत्नी को वह चरित्रवान समझ रहे थे, वह बदचलन निकली. बहुत देर बाद उन्होंने अपने आप को समझाया. रूना से रिक्वेस्ट कर के उन्होंने अपने मोबाइल में वीडियो सेंड करवाया और यह कह कर चले गए कि 2-3 दिन में अच्छी योजना के साथ उस से मिलेंगे. उन्होंने उसे यह भी कहा कि वह हर हाल में अपना मकान उसे ही देंगे. 3 दिन बाद जबरदस्त योजना ले कर वह रूना के घर आ भी गए. योजना सुन कर वह खुशी से उछल पड़ी. वाकई जबरदस्त योजना थी.  ‘‘मेरी जान भले चली जाए, लेकिन मैं आप की योजना सफल बना कर रहूंगी. मगर आप अपना मकान मेरे नाम कब करेंगे?’’ रूना ने पूछा.

‘‘मैं मकान के पेपर तैयार कर के साथ लाया हूं. योजना सफल होते ही उस पर दस्तखत कर दूंगा. इतना ही नहीं, मैं ने तुम से शादी करने का भी फैसला किया है.’’  ‘‘यह कैसे होगा? आप की पत्नी जो है?’’

‘‘अब मैं उसे अपने साथ नहीं रखना चाहता. वह भी मुझे तलाक देने के लिए राजी है.’’

रूना खुशी के मारे उन से लिपट गई.  रूना को हर तरह से खुश करने के बाद उन्होंने सब से पहले पूरे कमरे में सीसीटीवी कैमरे लगाए. उस के बाद स्वामीजी के खिलाफ रूना का बयान अपने मोबाइल में रिकौर्ड किया.  जरूरी काम कर के स्वामीजी को फोन किया, ‘‘आप के आश्रम के नाम मैं ने मकान के पेपर बनवा लिए हैं. शाम के 6 बजे रूना के घर आ जाइए. पेपर पर आप दोनों के सामने दस्तखत कर दूंगा.’’

स्वामीजी ने उन्हें पेपर ले कर आश्रम आने के लिए कहा. वह आश्रम में जाने के लिए राजी नहीं हुए तो स्वामी साढे़ 6 बजे अपने 2 सहयोगी के साथ रूना के घर आ गया. आते ही स्वामी ने मकान के पेपर मांगे तो उन्होंने कहा, ‘‘पेपर तो दूंगा ही. पहले आप यह बताइए कि मेरी पत्नी पर आप ने कौन सा जादू कर रखा है कि आप की गुलाम बन गई है. खुशीखुशी अपना सर्वस्व तक सौंप देती है? उस से आप चाहते क्या हैं?’’

‘‘मेरी शिष्या नमिता जिस कंपनी में चेयरमैन है, उसी में आप की पत्नी है. नमिता से ही पता चला कि आप की पत्नी के पास एक फार्महाउस है और आप के पास पुश्तैनी मकान है.

‘‘नमिता को आप की पत्नी के पीछे लगा दिया. वह वाइस चेयरमैन बनना चाहती थी, सो मेरे इशारे पर चलने लगी. बाद में मैं ने रूना को आप के पीछे लगा दिया था.’’  स्वामीजी आगे कुछ कहते, उस से पहले दरवाजे की घंटी बजी. रूना ने दरवाजा खोला तो सुचित्रा थी.

वह कुछ कहती, उससे पहले सुचित्रा यह कहते हुए अंदर आ गई, ‘‘मैं जानती हूं, स्वामीजी और मेरे पति अंदर हैं. मुझे तुम लोगों के बारे में सब कुछ मालूम हो गया है. स्वामीजी से बात कर के चली जाऊंगी.’’ रूना दरवाजा बंद करने लगी तो सुचित्रा ने मना कर दिया. कहा, ‘‘2 मिनट में लौट जाऊंगी. दरवाजा बंद करने की जरूरत नहीं है.’’

सुचित्रा के आ जाने से सभी सकते में थे. रूना भी परेशान हो गई थी. वह कुछ समझ नहीं पा रही थी कि अब उसे क्या करना चाहिए. सुचित्रा स्वामीजी से बोली, ‘‘आप को एक सच बताने आई हूं.’’ ‘‘क्या?’’ स्वामीजी ने पूछा.

‘‘मेरे पति रूना को प्यार करते हैं. मुझे तलाक दे कर उस से शादी करना चाहते हैं. अपना मकान भी उसी को देना चाहते हैं. इसलिए मैं ने भी अपना फार्महाउस आप के आश्रम को दे कर अपनी शेष जिंदगी आप के साथ बिताने का फैसला किया है.’’

सुचित्रा के चुप होते ही स्वामीजी दहाड़ उठे, ‘‘तुम तो अपनी संपत्ति दोगी ही. तुम्हारे पति को भी देनी होगी. अपनी संपत्ति रूना को देने वाला वह कौन होता है. यदि वह मेरी बात नहीं मानेगा तो मेरे लोग यहीं पर उस का कत्ल कर देंगे.’’

स्वामीजी प्रोफेसर साहब से कुछ कहते, उस से पहले खुले दरवाजे से पुलिस आ गई.  स्वामीजी और उन के दोनों सहयोगियों को गिरफ्तार कर लिया गया. रूना को भी गिरफ्तार कर लिया. इंसपेक्टर ने स्वामीजी से कहा, ‘‘आप पर बहुत दिनों से पुलिस की नजर थी. सबूत के अभाव में गिरफ्तार नहीं कर पा रहे थे. आज पक्का सबूत मिल गया. कमरे में आप लोगों के बीच जो बातें हुई हैं, वे सब सीसीटीवी कैमरे में कैद हो चुकी हैं.’’

बात यह थी कि प्रोफेसर साहब को जब रूना से यह पता चला कि उन की पत्नी सुचित्रा दुश्चरित्र है, स्वामीजी के साथ उस का अवैध संबंध है तो उन का दिल टूट गया. पहले तो उन्होंने उस से शादी तोड़ लेने का विचार किया. पर तुरंत अपने विचार को दरकिनार कर उसे एक मौका देने का फैसला कर लिया. वह वाकई पत्नी को बहुत प्यार करते थे.

उन्होंने सुचित्रा से स्वामीजी के बाबत पूछा तो वह फफकफफक कर रोने लगी. उन्होंने उसे आश्वस्त किया तो बोली, ‘‘आप को सब कुछ बताना चाह रही थी, पर हिम्मत नहीं जुटा पाई. अब आप को सब कुछ पता चल ही गया है तो मैं अपनी गलती स्वीकार करती हूं. प्लीज मुझे माफ कर दीजिए.’’

फिर उस ने सब कुछ सचसच बता दिया.  दरअसल, सुचित्रा कंपनी का चेयरमैन बनना चाहती थी, पर वह बन नहीं सकी. उस से 2 साल जूनियर नमिता भट्टाचार्य चेयरमैन बन गई. वह किसी की सिफारिश पर बनी थी.

इस से वह दुखी थी और जौब से त्यागपत्र देने का मन बना लिया था.  त्यागपत्र देती उस से पहले नमिता भट्टाचार्य ने उस से कहा, ‘‘जानती हूं, तुम चेयरमैन नहीं बन सकी इसलिए दुखी हो. तुम त्यागपत्र मत दो. मुझ पर भरोसा रखो. जल्दी ही तुम्हें वाइस चेयरमैन बनवा दूंगी.’’

‘‘वह कैसे?’’   ‘‘तुम्हारे जूनियर रहते हुए भी जिस ने मुझे अपने पावर से चेयरमैन बनवाया है, वही तुम्हें वाइस चेयरमैन बनवा देंगे. 3-4 महीने बाद वाइस चेयरमैन का पद खाली होने वाला है.’’

‘‘कौन है वह?’’ सुचित्रा ने पूछा.  ‘‘2 दिन बाद उन के पास ले चलूंगी. सब कुछ जान जाओगी.’’

वाइस चेयरमैन का पद सुचित्रा को खराब नहीं लगा. 2 दिन बाद नमिता भट्टाचार्य उसे एक आश्रम में ले गई. स्वामीजी से पहली बार उस का परिचय हुआ. वहीं पर उसे पता चला कि वह सर्वशक्तिमान हैं. कुछ भी कर सकते हैं.

स्वामीजी 40-45 साल के थे. बड़े ही हैंडसम और स्मार्ट. वाकपटुता में दक्ष थे. सुचित्रा उन से बहुत प्रभावित हुई.

स्वामीजी ने उसे कहा, ‘‘3 महीने बाद मैं तुम्हें हर हाल में वाइस चेयरमैन बना दूंगा. पर याद रखना किसी को कभी भी बताना मत कि तुम्हें किस ने वाइस चेयरमैन बनवाया है. दूसरी बात यह कि इस के लिए तुम्हें 3 महीने तक रोज आश्रम में आ कर साधना करनी होगी. पर घर वालों को इस के बारे में कुछ पता नहीं चलना चाहिए.’’

सुचित्रा उन की बात मान गई. अगले दिन औफिस से छुट्टी होते ही आश्रम जा कर साधना करने लगी. इस के लिए उसे घर में तरहतरह के बहाने बनाने पड़ते थे. 2 महीने में ही वह स्वामीजी से घुलमिल गई. स्वामी उसे अच्छा और सच्चा इंसान लगा. लेकिन उन की सच्चाई जल्दी ही सामने आ गई.  हुआ यह कि एक दिन स्वामीजी ने चरणामृत के नाम पर उसे कुछ ऐसी चीज पिलाई कि अचेत हो गई.

एक घंटे बाद होश आया तो अपने आप को स्वामीजी के बिस्तर पर पाया.  वह चिंता में पड़ गई. सोचने लगी कि स्वामीजी ने कहीं उस की इज्जत तो नहीं लूट ली?  तभी स्वामीजी बोले, ‘‘तुम चिंता मत करो. तुम्हारी इज्जत सलामत है. हालांकि चाहता तो आराम से सब कुछ कर सकता था. लेकिन जो आनंद स्वेच्छा में है, वह जबरदस्ती या धोखे में नहीं.

‘‘यह सच है कि मैं तुम्हें पाना चाहता हूं लेकिन तुम्हें राजी कर के, जबरदस्ती नहीं. मैं तुम्हारा काम करूंगा तो क्या तुम मुझे खुश नहीं कर सकतीं? बेहतर यही है कि तुम मुझे खुश कर दो. वैसे भी ताली दोनों हाथों से बजती है.’’

वह हर हाल में वाइस चेयरमैन बनना चाहती थी, अत: पतिव्रता धर्म को दरकिनार कर यह सोच कर अपने आप को स्वामीजी के हवाले कर दिया कि सिर्फ एक दिन की बात है. पति से बेवफाई करते समय उसे बहुत बुरा लगा था. लेकिन स्वामीजी से अथाह सुख पा कर बेवफाई की भावना को मन से निकाल फेंका.  वैसा सुख उसे पति से कभी नहीं मिला था. इसलिए चाह कर भी स्वामीजी से नफरत नहीं कर सकी. उन के द्वारा दिए गए जिस्मानी सुख को दिल से लगा बैठी.

इसी कारण 2 दिन बाद स्वामीजी ने उसे फिर से बांहों में भरा तो सुचित्रा ने कोई विरोध नहीं किया. फिर तो सिलसिला बन गया.  स्वामीजी खिलाड़ी थे, औरतों के रसिया. उन्हें ऐसी मुद्राएं आती थीं, जिन्हें समझ पाना और अमल में लाना आम आदमी के वश की बात नहीं थी. उन की इस कला से औरतें खुश रहती थीं.  स्वामीजी से तरहतरह का सुख पा कर सुचित्रा आत्मविभोर हो उठती थी. इसी वजह से पति से विमुख हो कर उस ने पूरा ध्यान स्वामीजी पर केंद्रित कर दिया था. वाइस चेयरमैन बनने के बाद स्वामीजी की सलाह पर वह प्रतिदिन औफिस से छूटते ही आश्रम में जा कर उन के साथ मौजमस्ती करने लगी थी.

स्वामीजी से उस का भ्रम तब टूटा जब उन के साथ इटली में 10 दिनों तक भरपूर आनंद लेने के बाद कोलकाता आई. बातोंबातों में उस ने स्वामीजी से कहा, ‘‘आप मेरी जिंदगी में नहीं आते तो कुएं का मेंढक ही बनी रहती. पता ही नहीं चलता कि समुद्र क्या होता है. उस की लहरें क्या होती हैं. लहरों से कितना सुख मिलता है. मैं आप को कभी नहीं भूल सकती. जरूरत पड़ी तो आप पर अपनी जान भी न्यौछावर कर दूंगी.’’

ठीक मौका देख कर स्वामीजी ने कहा, ‘‘ऐसी बात है तो यह बताओ, अगर मैं कुछ मांगू तो दोगी?’’

‘‘क्यों नहीं दूंगी? मांग कर देखिए.’’  ‘‘तुम्हारा फार्महाउस चाहिए. उस पर एक नया आश्रम बनाना चाहता हूं.’’

अब स्वामीजी की चाल उस की समझ में आ गई. इस में कोई शक नहीं था कि उसे उन से अथाह सुख मिला था. आगे भी मिलने रहने की संभावना थी. परंतु इस के लिए बच्चों का अधिकार किसी और को देना उसे मुनासिब नहीं लगा. नतीजतन उस ने स्वामीजी को फार्महाउस देने से मना कर दिया. स्वामीजी ने उसे बहुत समझाया पर वह नहीं मानी. तब उन्होंने अपने मोबाइल में ऐसा फोटो दिखाया कि उस के होश उड़ गए.  उस ने अब तक पति के अलावा सिर्फ स्वामीजी से संबंध बनाया था, जबकि फोटो में उसे अलगअलग 4 अजनबियों से 4 लोकेशन में संबंध बनाते हुए दिखाया गया था.

उसे समझते देर नहीं लगी कि स्वामीजी ने यह सब उस का फार्महाउस लेने के लिए षडयंत्र के तहत किया था. वह उन के षडयंत्र में बुरी तरह फंस गई थी. वह बहुत रोईगिड़गिड़ाई. लेकिन स्वामीजी पर कोई असर नहीं हुआ. अंतत: उस ने सोचने के लिए कुछ दिन का समय ले लिया. 4 दिन बीत गए, लेकिन उसे स्वामीजी के चक्रव्यूह से निकलने का कोई रास्ता दिखाई नहीं दिया तो उस ने सब कुछ पति को बता देने का निश्चय किया. पति पर उसे भरोसा था कि माफ कर देंगे और स्वामीजी के चंगुल से निकलने का कोई रास्ता भी निकाल लेंगे.  सुचित्रा से सच जानने के बाद उन्होंने भी अपनी और रूना की बात बता कर माफी मांगी.

एकदूसरे को माफ करने के बाद दोनों ने मिल कर स्वामीजी और रूना को जेल भेजने की योजना बनाई. सुचित्रा की सहेली का पति पुलिस में उच्च अधिकारी था. उन्हें सच्चाई बता कर मदद की गुहार की तो पुलिस की तरफ से भरपूर मदद मिल गई. सादे लिबास में कुछ पुलिस वालों को रूना के घर के बाहर तैनात कर दिया गया. उन्हें बता दिया गया था कि घर के अंदर क्या होने वाला है और उन्हें अंदर कब आना है.

स्वामीजी और रूना को पुलिस गिरफ्तार कर ले गई तो पतिपत्नी दोनों अपनी योजना की सफलता पर खुश हो कर एकदूसरे से लिपट गए.  अपनों को छोड़ कर दूसरों में सुख ढूंढने के अंजाम से दोनों वाकिफ हो गए थे.