UP Crime : 30 करोड़ के लिए पत्नी बनी पति की कातिल

UP Crime :  उर्मिला ने शैलेंद्र को रिझाने के जतन शुरू कर दिए. कभी वह उसे तिरछी नजरों से देख कर मुसकराती तो कभी शरमाने का अभिनय करती. शैलेंद्र पहले से ही उसे हसरत भरी निगाहों से देखता था. उर्मिला ने मुसकरा कर उसे देखना शुरू किया तो उस की हसरतें उफान मारने लगीं. जब उर्मिला के कामुक बाणों का शैलेंद्र पर प्रभाव हुआ तो वह एक कदम आगे बढ़ी. यही नहीं, अब वह निर्माणाधीन मकान देखने भी जाने लगी. वहां दोनों खुल कर बतियाते और हंसीमजाक भी करते. शैलेंद्र समझ गया कि उर्मिला उस की बांहों में समाने को बेताब है.

एक दिन उस ने साहस दिखाते हुए उर्मिला को बाहुपाश में जकड़ लिया, ”भाभी, बहुत ललचा चुकी हो,  आज मर्यादा टूट जाने दो.’’

”तोड़ दो,’’ उम्मीद के विपरीत उर्मिला शैलेंद्र की आंखों में देखते हुए मुसकराई, ”मैं भी यही चाहती हूं.’’

राजेश गौतम स्कूल गया था और दोनों बेटे पढऩे के लिए स्कूल जा चुके थे. सुनहरा मौका देख कर शैलेंद्र उर्मिला को बैड पर ले गया. इस के बाद दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं.

4 नवंबर, 2023 की सुबह 7 बजे किसी परिचित ने कानपुर के अनिगवां निवासी ब्रह्मदीन गौतम को फोन पर सूचना दी कि उन का शिक्षक भाई राजेश गौतम स्वर्ण जयंती विहार स्थित पार्क के पास सड़क पर घायल पड़ा है. उस का एक्सीडेंट हुआ है. किसी तेज रफ्तार कार ने उसे कुचल (UP Crime) दिया है. यह जानकारी मिलते ही ब्रह्मदीन ने अपने बेटे कुलदीप को साथ लिया और स्वर्ण जयंती विहार पहुंच गए. वहां पार्क के पास राजेश सड़क पर औंधे मुंह पड़ा था.

उस के सिर से खून बह रहा था. थोड़ी ही देर में घर के अन्य लोगों के साथ राजेश की पत्नी उर्मिला भी वहां पहुंच गई. पति की हालत देख कर उर्मिला की चीख निकल गई. ब्रह्मदीन व महेश भी भाई की हालत देख कर हैरान रह गए थे. कुलदीप तो समझ ही नहीं पा रहा था कि चाचा हर रोज मार्निंग वाक पर इसी सड़क पर आते थे, लेकिन आज इतना खतरनाक एक्सीडेंट कैसे हो गया. राजेश को हिलाडुला कर देखा गया तो उस के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई. लेकिन सांस की आस में राजेश को कांशीराम अस्पताल ले जाया गया, जहां के डाक्टरों ने उसे रीजेंसी ले जाने को कहा. इसी बीच किसी ने राजेश के (UP Crimes) एक्सीडेंट की सूचना थाना सेन पश्चिम पारा पुलिस को दे दी थी.

सूचना मिलते ही एसएचओ पवन कुमार कुछ पुलिसकर्मियों के साथ कांशीराम अस्पताल पहुंच गए. डाक्टरों के अनुसार राजेश की सांसें थम चुकी थीं, लेकिन घर वालों की जिद की वजह से पुलिस उसे पहले रीजेंसी फिर जिला अस्पताल हैलट ले गई. वहां के डाक्टरों ने भी राजेश गौतम को मृत घोषित कर दिया. इस के बाद पुलिस ने शव को कब्जे में ले लिया और घटना की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. कुछ देर बाद एसएचओ पवन कुमार दुर्घटनास्थल का निरीक्षण करने पहुंचे तो वहां भीड़ जुटी थी. सुबह की सैर करने वाले कई लोग भी वहां मौजूद थे. उन में से एक कमल गौतम ने बताया कि राजेश गौतम से वह परिचित था. वह हर रोज मार्निंग वाक पर आते थे.

आज सुबह साढ़े 6 बजे के लगभग वह सड़क पर तेज कदमों से टहल रहे थे, तभी एक कार उन के नजदीक से पास हुई. फिर उसी कार ने कुछ दूरी पर जा कर यू टर्न लिया और तेज रफ्तार से आ कर राजेश को टक्कर मार दी. राजेश उछल कर दूर जा गिरे. एसएचओ पवन कुमार घटनास्थल पर जांच कर ही रहे थे, तभी एसीपी (घाटमपुर) दिनेश कुमार शुक्ला तथा एडीसीपी अंकिता शर्मा भी वहां पहुंच गईं. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तथा वहां मौजूद कुछ लोगों से पूछताछ की.

अंतिम संस्कार के बाद मृतक का भाई ब्रह्मदीन, महेश तथा भतीजा कुलदीप, उर्मिला के घर में ही रात को रुक गए. रात में राजेश की मौत पर चर्चा शुरू हुई तो कुलदीप बोला, ”उर्मिला चाची, हमें लगता है कि चाचा को सोचीसमझी रणनीति के तहत मौत के घाट उतारा गया है और दुर्घटना का रूप दिया गया है. लगता है कि चाचा से कोई खुन्नस खाए बैठा था.’’

”कुलदीप, ऐसा कुछ भी नहीं है. तुम सब लोग मेरे घर पर फालतू की बकवास मत करो और मेरा दिमाग खराब न करो. अच्छा होगा, तुम सब हमारे घर से चले जाओ.’’

घर वालों को उर्मिला पर क्यों हुआ शक

उर्मिला का व्यवहार देख कर कुलदीप ने उर्मिला से बहस नहीं की और अपने पिता व परिवार के अन्य लोगों के साथ वापस घर लौट आया.

इधर तमतमाई उर्मिला सुबह 10 बजे ही एडीसीपी कार्यालय जा पहुंची. उस ने एडीसीपी अंकिता शर्मा को एक तहरीर देते हुए कहा कि उसे शक है कि पति के भतीजे कुलदीप व उस के घर वालों ने पति की करोड़ों की प्रौपर्टी हड़पने के लिए दुर्घटना का रूप दे कर उन की (UP Crimes ) हत्या की है.

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एडीसीपी अंकिता शर्मा

इधर कुलदीप को जब पता चला कि उर्मिला चाची ने उस के व घर वालों के खिलाफ शिकायत की है तो कुलदीप एडीसीपी अंकिता शर्मा से मिला और बताया कि वह नेवी में कार्यरत है. उसे शक है कि उस के चाचा राजेश की मौत किसी षड्यंत्र के तहत हुई है. वह चाहता है कि इस की गंभीरता से जांच हो. इस के बाद पुलिस ने घटनास्थल के आसपास के सीसीटीवी फुटेज खंगाली. इस से पता चला कि राजेश को कुचलने के बाद कार बेकाबू हो कर खंभे से टकराई तो कार चालक पीछे आ रही दूसरी वैगन आर कार में सवार हो कर भाग गया था.

इन सबूतों को देख कर एडीसीपी अंकिता शर्मा ने एसीपी दिनेश शुक्ला की देखरेख में एक जांच टीम भी गठित कर दी. टीम में 2 महिला सिपाही व एक तेजतर्रार महिला एसआई को भी शामिल किया गया.

पुलिस कैसे पहुंची आरोपियों तक

ईको स्पोर्ट कार, जिस से राजेश को टक्कर मारी गई थी, का पता लगाया तो वह कार आवास विकास 3 कल्याणपुर, कानपुर निवासी सुमित कठेरिया की निकली. वैगनआर कार के नंबर की जांच करने पर पता चला कि यह नंबर फरजी है. यह नंबर किसी लोडर का था. अब पुलिस का शक और गहरा गया.

जांच में पुलिस टीम को 12 संदिग्ध मोबाइल नंबर मिले थे, उन में एक नंबर मृतक राजेश की पत्नी उर्मिला का भी था. पुलिस ने जब उर्मिला के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि उस ने एक फोन नंबर पर महीने भर में 400 बार काल्स की थीं. घटना वाले दिन भी उस की इस नंबर पर कई बार बातें हुई थीं. पुलिस ने इस नंबर की जांचपड़ताल की तो पता चला कि यह नंबर शैलेंद्र सोनकर का है.

पुलिस ने शैलेंद्र सोनकर के बारे में मृतक के घर वालों से जानकारी जुटाई तो पता चला कि शैलेंद्र सोनकर आर्किटेक्ट इंजीनियर है. उसी ने राजेश के कोयला नगर वाले मकान को बनाने का ठेका लिया था. मकान बनवाने के दौरान ही शैलेंद्र का उर्मिला के घर आनाजाना शुरू हुआ और दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ी थीं.

पुलिस जांच से अब तक यह साफ हो चुका था कि उर्मिला और ठेकेदार इंजीनियर शैलेंद्र के बीच कोई चक्कर है. पुलिस ने अब हत्यारोपियों को गिरफ्तार करने की योजना बनाई. पुलिस टीम ने विकास सोनकर, शैलेंद्र सोनकर व सुमित कठेरिया को गिरफ्तार करने के लिए उन के घरों पर दबिश दी, लेकिन वह अपने घरों से फरार थे.

29 नवंबर, 2023 की शाम 5 बजे एसएचओ पवन कुमार को मुखबिर के जरिए पता चला कि उर्मिला व उस के साथी इस समय कोयला नगर स्थित गणेश चौराहे पर मौजूद हैं. शायद वे शहर से फरार होने की फिराक में हैं. चूंकि सूचना खास थी, अत: एसएचओ पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए और उर्मिला को उस के 2 साथियों के साथ हिरासत में ले लिया. लेकिन सुमित कठेरिया वहां से फरार हो गया था. तीनों को थाने लाया गया. पुलिस अधिकारियों ने उन से पूछताछ की तो  तीनों ने राजेश की हत्या में शामिल होने का जुर्म कुबूल कर लिया.

चूंकि तीनों हत्यारोपियों ने शिक्षक राजेश की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया था, इसलिए मृतक के बड़े भाई ब्रह्मदीन की तरफ से शैलेंद्र सोनकर, विकास, सुमित कठेरिया तथा उर्मिला गौतम के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया और सुमित के अलावा तीनों को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. सुमित कठेरिया की तलाश में पुलिस जी जान से जुट गई.

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पुलिस कस्टडी में आरोपी

पुलिस द्वारा की गई जांच, आरोपियों के बयानों एवं मृतक के घर वालों द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर इस वारदात के पीछे औरत और जुर्म की एक ऐसी कहानी सामने आई, जिस ने प्यार और प्रौपर्टी के लालच में अपने ही सुहाग की सुपारी दे दी.

उर्मिला की शादी की अजीब थी कहानी

उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर के चकेरी थाने के अंतर्गत आता है- दहेली सुजानपुर. 2 दशक पहले दहेली सुजानपुर गांव था और यहां खेती होती थी. लेकिन जैसे जैसे शहर का विकास हुआ, यह गांव शहर की परिधि में आ गया. कानपुर विकास प्राधिकरण ने किसानों की जमीन अधिग्रहण कर कालोनियां बनाईं और लोगों को बसाया. प्रौपर्टी डीलरों ने भी प्लौट काट कर बेचे तथा फ्लैट भी बनाए. सालों पहले जो जमीन कौडिय़ों के दाम बिकती थी, वही जमीन अब लाखोंकरोड़ों की हो गई है.

इसी दहेली सुजानपुर में राजाराम गौतम रहते थे. उन के 3 बेटे ब्रह्मïादीन, राजेश व महेश थे. राजाराम के पास 20 एकड़ जमीन थी. उन्होंने अपने जीते जी मकान व जमीन का बंटवारा तीनों बेटों में कर दिया था. हर बेटे के हिस्से में करोड़ों की जमीन आई थी. उन के 2 बेटे ब्रह्मदीन व महेश, सनिगवां में मकान बना कर परिवार सहित रहने लगे थे. बड़ा बेटा ब्रह्मदीन एमईएस चकेरी में नौकरी करता था. ब्रह्मादीन के बेटे कुलदीप का इंडियन नेवी में चयन हो गया था.

राजेश गौतम 3 भाइयों में मंझला था. वह अन्य भाइयों से ज्यादा तेजतर्रार था. वह दहेली सुजानपुर में ही रहता था. उस के परिवार में पत्नी उर्मिला के अलावा 2 बेटे थे. वह सरसौल ब्लाक के सुभौली गांव स्थित प्राथमिक पाठशाला में अध्यापक था. राजेश दबंग शिक्षक था.

वर्ष 2012 में राजेश का विवाह खूबसूरत उर्मिला के साथ बड़े ही नाटकीय ढंग से हुआ था. दरअसल, राजेश अपने दोस्त विमल के लिए उर्मिला को देखने उस के साथ बनारस गया था. विमल ने तो उर्मिला को देखते ही पसंद कर लिया था, लेकिन उर्मिला ने विमल को यह कह कर नकार दिया था कि विमल गंजा है. वहीं उस ने राजेश को पसंद कर लिया था.

बनारस से लौटने के बाद उर्मिला और राजेश के बीच मोबाइल फोन पर प्यार भरी बातें होने लगीं. 2-3 महीने बाद उर्मिला ने अपने घर वालों को और राजेश ने भी अपने घर वालों से एकदूसरे से शादी कराने की बात कही तो घर वालों ने भी इजाजत दे दी. उस के बाद 17 जून, 2012 को उर्मिला का विवाह राजेश के साथ धूमधाम से हो गया.

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राजेश गौतम और उर्मिला

खूबसूरत उर्मिला को पा कर राजेश गौतम अपने भाग्य पर इतरा उठा था. उर्मिला भी उस से शादी कर के खुश थी. उर्मिला ने आते ही घर संभाल लिया था और पति को अपनी अंगुलियों पर नचाने लगी थी. शादी के एक साल बाद उर्मिला ने एक बेटे को जन्म दिया. बेटे के जन्म से घर में खुशियां दोगुनी हो गईं. इस के 2 साल बाद उर्मिला ने एक और बेटे को जन्म दिया. 2 बच्चों के जन्म के बाद राजेश ने पत्नी की इच्छाओं पर गौर करना कम कर दिया. क्योंकि उस ने नौकरी के साथसाथ प्रौपर्टी डीलिंग का काम भी शुरू कर दिया था.

पति की बेरुखी पर उर्मिला रात भर बेचैन रहती. उसे घर में सब सुख था, किसी चीज की कमी न थी, लेकिन पति के प्यार से वंचित थी. इस तरह उर्मिला नीरस जिंदगी गुजारने लगी. उस ने दोनों का एडमिशन कोयला नगर स्थित मदर टेरेसा स्कूल में करा दिया. राजेश गौतम ने प्रौपर्टी डीलिंग में करोड़ों रुपए कमाए. साथ ही कोयला नगर क्षेत्र में ही उस ने 5-6 प्लौट भी खरीद लिए, जिन की कीमत करोड़ों रुपए थी. राजेश कमाई में इतना व्यस्त हो गया कि पत्नी की भावनाओं की कद्र करना ही भूल गया.

30 करोड़ की संपत्ति थी राजेश के पास

वह सुबह उठता, पहले टहलने जाता, फिर तैयार होकर स्कूल चला जाता. दोपहर बाद स्कूल से आता, फिर प्रौपर्टी के काम में व्यस्त हो जाता. इस के बाद देर रात आता और खाना खा कर सो जाता. यही उस का रुटीन था. राजेश गौतम की तमन्ना थी कि वह कोयला नगर में एक ऐसा आलीशान मकान बनाए, जिस की चर्चा क्षेत्र में हो. अपनी तमन्ना पूरी करने के लिए उस ने 300 वर्गगज वाले अपने प्लौट पर मकान बनाने का फैसला किया. इस के लिए उस ने 6 करोड़ रुपए का इंतजाम भी कर लिया.

राजेश ने मकान का ठेका अपने दोस्त हेमंत सोनकर के रिश्तेदार इंजीनियर शैलेंद्र सोनकर को दे दिया. ठेका मिलने के बाद शैलेंद्र ने राजेश के घर आनाजाना शुरू कर दिया. इसी आनेजाने में शैलेंद्र सोनकर की नजर राजेश की खूबसूरत पत्नी उर्मिला पर पड़ी. पहली ही नजर में उर्मिला उस के दिलो दिमाग में रचबस गई. उर्मिला भी जवान और हैंडसम शैलेंद्र को देख कर प्रभावित हुई.

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इंजीनियर शैलेंद्र सोनकर

उर्मिला देह सुख से वंचित थी, इसलिए उस का मन बहकने लगा. जब औरत का मन बहकता है तो उसे पतित होने में देर नहीं लगती. इस के बाद उर्मिला की आंखों के सामने शैलेंद्र की तसवीर घूमने लगी. वैसे भी उर्मिला ने महसूस किया था कि वह जब भी घर आता है, उस की मोहक नजरें हमेशा ही उस से कुछ मांगती सी प्रतीत होती हैं. दोनों के बीच प्यार के बीज अंकुरित हो गए. फिर जल्द ही उन के बीच शारीरिक संबंध भी कायम हो गए.

आखिर क्यों बहकी उर्मिला

कुछ समय बाद उर्मिला शैलेंद्र की इस कदर दीवानी हो गई कि वह अपने निर्माणाधीन मकान पर भी जाने लगी. मौका निकाल कर वह वहां भी शैलेंद्र के साथ मौजमस्ती कर लेती थी.

विवाहित और 2 बच्चों की मां उर्मिला ने पति से विश्वासघात कर शैलेंद्र के साथ अवैध संबंध तो बना लिए थे, लेकिन उस वक्त उस ने यह नहीं सोचा था कि इस का अंजाम क्या होगा. 2 नावों पर पैर रखना हमेशा नुकसानदायक ही होता है. हुआ यह कि मार्च 2023 की एक दोपहर राजेश अचानक स्कूल से घर वापस आ गया और उस ने उर्मिला व शैलेंद्र को आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया. फिर तो राजेश का खून खौल उठा. शैलेंद्र फुरती से भाग गया. तब उस ने उर्मिला की जम कर पिटाई की.

बाद में उस ने शैलेंद्र को खूब फटकार लगाई. उर्मिला की अनैतिकता को ले कर कभीकभी झगड़ा इतना बढ़ जाता कि वह उर्मिला को जानवरों की तरह पीटता. एक दिन तो हद ही हो गई. राजेश की पिटाई से आहत हो कर उर्मिला नग्नावस्था में ही घर के बाहर आ गई थी. अड़ोसपड़ोस तथा परिवार के लोग उर्मिला की अनैतिकता से वाकिफ थे, इसलिए किसी ने भी उस का पक्ष नहीं लिया. पति की पिटाई से उर्मिला राजेश से नफरत करने लगी थी. इसी नफरत के चलते उस ने एक रोज राजेश को खाने में जहर दे दिया. उस की तबीयत बिगड़ी तो घर वालों ने उसे प्राइवेट अस्पताल में भरती कराया, जहां उस का 2 सप्ताह इलाज चला. तब जा कर वह ठीक हुआ.

उर्मिला अपने आशिक शैलेंद्र को भी पति के खिलाफ उकसाती थी. वह वीडियो काल कर उसे अपने शरीर के जख्म दिखाते हुए ताने देती थी कि यह जख्म तुम्हारे प्यार की निशानी के तौर पर दिए गए हैं. उर्मिला के शरीर पर जख्म देख कर शैलेंद्र का गुस्सा फट पड़ता था.

पति की हत्या क्यों कराना चाहती थी उर्मिला

एक दिन उर्मिला ने शैलेंद्र से कहा, ”मैं अब अपने पति से छुटकारा चाहती हूं. वह हम दोनों के मिलन में बाधा बना है. प्रताडि़त भी करता है. तुम इस कांटे को हमेशा के लिए दूर कर दो. राजेश के पास 3 करोड़ का जीवन बीमा और 20 करोड़ की अचल संपत्ति तथा यह 6 करोड़ का आलीशान मकान है. उस के मरने के बाद यह सब हमारा होगा. मैं तुम से ब्याह कर लूंगी. फिर हम दोनों आराम से रहेंगे. उस की सरकारी नौकरी भी मुझे मिल जाएगी.’’

शैलेंद्र सोनकर का ममेरा भाई विकास सोनकर शास्त्री नगर में रहता था. वह ड्राइवर था. उस ने अपनी मंशा उसे बताई तो विकास ने शैलेंद्र को अपने साथी ड्राइवर सुमित कठेरिया से मिलवाया, जो आवास विकास-3 कल्याणपुर में रहता था. सुमित ने शैलेंद्र को एक ट्रक ड्राइवर से मिलवाया. ट्रक ड्राइवर ने राजेश को ट्रक से कुचल कर मारने का वादा किया और 2 लाख में हत्या की सुपारी ली. इस के बाद उर्मिला ने रुपयों का इंतजाम किया और डेढ़ लाख रुपए ड्राइवर को दे दिए, लेकिन उस ट्रक ड्राइवर ने काम तमाम नहीं किया और डेढ़ लाख रुपया ले कर फरार हो गया.

उस के बाद सुमित कठेरिया ने विकास के साथ मिल कर राजेश की हत्या की सुपारी 4 लाख में ली. उर्मिला और शैलेंद्र हर हाल में राजेश को मौत (New Year 2025 Crimes ) के घाट उतारना चाहते थे, अत: उन्होंने रकम मंजूर कर ली. इस के बाद उर्मिला, शैलेंद्र, सुमित व विकास ने राजेश को कुचल कर मारने की पूरी योजना बनाई. 4 नवंबर, 2023 की सुबह 6 बजे राजेश गौतम मार्निंग वाक पर निकला, तभी उस की पत्नी उर्मिला ने शैलेंद्र को फोन पर सूचना दे दी. सूचना पा कर सुमित कठेरिया अपनी ईको स्पोर्ट कार से तथा शैलेंद्र विकास के साथ अपनी वैगनआर कार से स्वर्ण जयंती विहार पहुंच गए.

उन लोगों ने पहले रेकी की, फिर राजेश की पहचान कर सुमित कठेरिया ने अपनी ईको स्पोर्ट कार से राजेश को जोरदार टक्कर मारी. राजेश टकरा कर करीब 20 मीटर दूर जा गिरा और तड़पने लगा. टक्कर मारने के बाद भागते समय सुमित की कार बिजली के खंभे से टकरा गई और उस का टायर फट गया. तब सुमित अपनी कार वहीं छोड़ कर कुछ दूरी बनाए खड़ी शैलेंद्र की वैगनआर कार के पास पहुंचा और उस में बैठ कर शैलेंद्र के साथ फरार हो गया.

पूछताछ करने के बाद पुलिस ने 30 नवंबर, 2023 को आरोपी उर्मिला गौतम, शैलेंद्र सोनकर तथा विकास सोनकर को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. आरोपी सुमित कठेरिया ने भी बाद में अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया था.

राजेश के दोनों बेटे अपने ताऊ ब्रह्मदीन के पास रह रहे थे. ताऊ ने दोनों बच्चों के पालनपोषण की जिम्मेदारी ली है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Smuggling : शराब तस्करी से कमाए करोड़ों रुपए

Smuggling  गुजरात पुलिस में कांस्टेबल नीता चौधरी शाही जिंदगी जीने की शौकीन है. उस के पास अनेक लग्जरी गाडिय़ां हैं. एक मामूली सिपाही के पास आखिर कहां से आई करोड़ों रुपए की संपत्ति?

गुजरात पुलिस की भचाऊ लोकल क्राइम ब्रांच को शराब तस्कर युवराज सिंह जडेजा की तलाश थी, जो कच्छ क्राइम ब्रांच के एसआई डी.जे. झाला की वाचलिस्ट में था. एसआई झाला जब से भचाऊ आए थे, तब से उन्होंने युवराज सिंह जडेजा के खिलाफ 5 प्रोहिबिशन (शराब तस्करी) के अपराध दर्ज किए थे, जिन में वह वांटेड था.

उसी बीच 30 जून, 2024 दिन रविवार को एसआई डी.जे. झाला रोज की तरह अपने रूटीन काम में लगे थे, तभी शाम पौने 7 बजे एक सिपाही ने सूचना दी कि साहब, युवराज सिंह जडेजा सफेद रंग की थार से समखियाणी से गांधीधाम की ओर जा रहा है. थोड़ी देर में वह भचाऊ के चोपडवा ब्रिज से गुजरने वाला है.

युवराज क्यों चढ़ाना चाहता था पुलिस पर थार

एसआई झाला ने यह जानकारी पूर्वी कच्छ के एसपी सागर बागमार को दी तो उन्होंने तुरंत आदेश दिया कि जैसे भी हो, युवराज सिंह बच कर नहीं जाना चाहिए. फिर तो पल भर में एसआई झाला ने 6 पुलिसकर्मियों की 3 टीमें बना कर जांच करना शुरू कर दिया.

ये पुलिस टीमें भचाऊ के चोपड़वा ब्रिज के नीचे प्राइवेट कार से चोपड़वा ब्रिज पर पहुंच गए और युवराज सिंह की उस थार के आने का इंतजार करने लगे. रात के ठीक सवा 8 बजे पुलिस को सफेद रंग की थार आती दिखाई दी. उस थार को आते देख कर पुलिस टीमें चौकन्नी हो गईं. पूरी रफ्तार से आ रही थार को रोकने के लिए पुलिस ने बैरिकेड्स लगा कर रास्ता ब्लौक कर दिया. पुलिस के पास 3 प्राइवेट वाहन थे. बैरिकेड्स पर रुकने के बजाय युवराज सिंह ने बैरिकेड्स को तोड़ते हुए पुलिस के एक खाली वाहन को टक्कर मारी.

अब तक युवराज सिंह ब्रिज के बीचोबीच पहुंच चुका था. तब तक पुलिस के वाहनों ने उसे आगे और पीछे से घेर लिया. एसआई डी.जे. झाला कांस्टेबल भवानभाई के साथ उतर कर सड़क के बीचोबीच खड़े थे. युवराज सिंह की थार को आते देख सिपाही भवानभाई ने अपना डंडा दिखा कर चिल्लाते हुए उसे गाडी रोकने को कहा. युवराज सिंह ने अपनी गाड़ी रोकने के बजाय सीधे एसआई झाला और सिपाही भवानभाई की ओर मोड़ दी.

उसे डराने के लिए युवराज सिंह की थार के बोनट पर फायर कर दिया.

गोली बोनट पर लगने के बजाय बम्पर लगी थी. फिर भी गोली चलाने से युवराज सिंह घबरा गया था और थार रोक दी. पुलिस टीमों ने दौड़ कर थार को घेर लिया. युवराज सिंह ने थार तो रोक दी थी, पर वह न तो दरवाजा खोल रहा था और न ही शीशा खोल रहा था. थार के शीशे काले थे. तब एक पुलिस वाले ने ड्राइवर के बगल वाले कांच को अपने डंडे से शीशा तोड़ दिया. शीशा तोड़ कर पुलिस वाले युवराज सिंह को पकड़ कर बाहर खींच रहे थे, तभी एसआई झाला की नजर ड्राइविंग सीट की बगल वाली सीट पर बैठी एक महिला पर पड़ी. उन्हें पता नहीं था कि यह महिला कौन है. वह उस से कुछ पूछते, तभी एक सिपाही ने कहा, ”अरे यह तो लेडी कांस्टेबल नीताबेन चौधरी है. इस की ड्यूटी तो इस समय सीआईडी क्राइम ब्रांच में है.’’

डीजे झाला ने नीता चौधरी को थार से उतरने के लिए कहा. वह उस समय शराब के नशे में धुत थी. थार से बाहर आते ही नीता चौधरी ने एसआई झाला से कहा, ”साहब, मुझे जाने दीजिए.’’

जब एसआई झाला ने कोई जवाब नहीं दिया तो नीता चौधरी ने विनती करते हुए कहा, ”साहब, मेरी युवराज सिंह से दोस्ती थी. मैं आ रही थी तो यह रास्ते में मिल गया, इसीलिए हम दोनों साथ थे.’’

एसआई झाला ने तुरंत पुलिस अधिकारियों को फोन कर के इस घटना की सूचना दे दी थी. शराब तस्कर युवराज सिंह के साथ पकड़ी गई कांस्टेबल नीता चौधरी गुजरात के जिला सुरेंद्रनगर की तहसील पालनपुर के नजदीक के गांव बादरपुर की रहने वाली थी. नौकरी से छुट्टी ले कर वह अपने गांव गई थी.

नीता की थार गाड़ी में कहां से आई थी शराब

पुलिस ने जब नीता चौधरी और युवराज सिंह को पकड़ा तो तलाशी में उन की थार से भारतीय शराब (Smuggling) की 16 बोतलें मिली थीं. चूंकि गुजरात में शराब बंदी है, इसलिए शराब लाना तो क्या, वहां शराब पीना भी अपराध है. युवराज सिंह और नीता चौधरी को शराब तस्करी और पुलिस पर गाड़ी चढ़ाने की कोशिश के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था. इस के बाद दोनों को अदालत में पेश किया गया, जहां से नीता चौधरी को जमानत मिल गई थी, जबकि युवराज सिंह पर तो वैसे भी तमाम केस थे, इसलिए उस की जमानत होने का सवाल ही नहीं था.

इस के बाद पुलिस ने दौड़भाग कर के सेशन कोर्ट में नीता की जमानत रद करने की अरजी दी तो सेशन कोर्ट ने पुलिस वालों पर थार चढ़ाने की कोशिश और एक सिपाही द्वारा शराब की तस्करी को गंभीर मानते हुए नीता चौधरी की भी जमानत रद कर दी. जमानत रद होने के बाद नीता चौधरी फरार हो गई. इस के बाद कच्छ पुलिस उस की तलाश में लग गई. पुलिस जब एक सप्ताह तक उसे नहीं खोज पाई तो यह मामला जांच एजेंसी एटीएस (एंटी टेररिस्ट स्क्वायड) को सौंपा गया.

इंसपेक्टर पीयूष देसाई की टीम उस की तलाश में गांधीधाम की ओर लगी थी, पर वहां उस की लोकेशन नहीं मिल रही थी. उसने अपने मोबाइल फोन का यूज करना बंद कर दिया था. तब एटीएस ने मुखबिरों की मदद ली, जिस में उसे सफलता मिल भी गई. एटीएस को सूचना मिली कि नीता जिला सुरेंद्रनगर की तहसील लींमडी के गांव भलगामडा में हो सकती है. यह सूचना मिलने के बाद एक गुप्त औपरेशन शुरू हुआ, जिस के बारे में केवल एटीएस के उच्च अधिकारियों को ही मालूम था.

इस के लिए सब से पहला काम था नीता की लोकेशन का पता करना. एटीएस ने दूसरी एक टीम इंसपेक्टर पीयूष देसाई के नेतृत्व में बनाई, जिस में 2 एसआई, एक महिला कांस्टेबल सहित 3 कांस्टेबल शामिल थे.

नीता को किस ने दी थी पनाह

इंसपेक्टर देसाई अपनी टीम को साथ ले कर प्राइवेट कार से निकल पड़े. कार अहमदाबाद-राजकोट हाइवे पर चली जा रही थी. उन्हें सूचना मिल गई थी कि नीता चौधरी भलगामडा के किसी घर में छिपी है. पर उस घर के बारे में किसी को पता नहीं था. इसलिए पहले तो यह पता करना था कि वह घर कौन सा है. इस बात का भी ध्यान रखना था कि नीता को इस बारे में पता न चले, वरना वह वहां से भाग सकती थी. किसी को यह भी पता न चले कि वे पुलिस वाले हैं, इस के लिए इंसपेक्टर देसाई और उन की टीम के लोग साधारण कपड़ों में वहां पहुंचे थे.

भलगामड़ा पहुंचने पर इंसपेक्टर देसाई को पता चला कि नीता चौधरी अपने दोस्त शराब तस्कर युवराज सिंह के किसी जानपहचान वाले की मदद से यहां छिपी है. जल्दी ही एटीएस को पता चल गया कि युवराज सिंह के साले आदित्य राणा के दोस्त मयूर ने नीता को शरण दी है. पुलिस ने जब इस बारे में पता किया तो एक और परेशानी खड़ी हो गई. भलगामड़ा में मयूर के 2 घर थे. जिन में से एक घर गांव में था तो दूसरा गांव से बाहर खेतों था, जो 2 बीएचके था. एटीएस टीम के सामने अब सवाल यह था कि उसे पता नहीं था कि नीता चौधरी मयूर के किस घर में है. मयूर के दोनों घरों के बीच एक किलोमीटर का अंतर था. तब एटीएस टीम 2 भागों में बंट गई. आधे लोग एक घर पर नजर रखने लगे तो आधे लोग दूसरे घर पर.

इस बीच एटीएस ने देखा कि मयूर सुबह-शाम फूड पैकेट ले कर गांव के बाहर खेतों वाले घर पर जाता है. खेतों वाले उस घर का दरवाजा हमेशा बंद रहता था. जब मयूर फूड पैकेट ले कर जाता था, तभी दरवाजा खुलता था. यह देख कर एटीएस टीम को लगा कि नीता यहीं होगी. उस घर के पास से एक रास्ता गुजरता था. वह रास्ता एटीएस के लिए उपयोगी साबित हुआ. उसी रास्ते पर आटो, बाइक और इसी तरह के वाहनों से एटीएस उस घर पर और ज्यादा नजर रखने लगी. उस घर में कौनकौन जाता है? घर से कोई बाहर आता है या नहीं? घर में कहां क्या हो रहा है? इन सभी बातों पर एटीएस ने अपना ध्यान केंद्रित किया.

एटीएस इसी तरह लगातार 3 दिनों तक उस घर पर नजर रखे रही. आखिर तीसरे दिन अंत में तय हो गया कि नीता चौधरी मयूर के इसी खेत वाले घर में ही रह रही है. नीता की पक्की लोकेशन मिल जाने के बाद एटीएस ने राहत की सांस ली. इंसपेक्टर देसाई ने मयूर के घर पर नजर रखने वाली टीम को भी वहीं बुला लिया और उस की गिरफ्तारी के लिए टीम आगे बढ़ी. 16 जुलाई, 2024 की शाम लगभग साढ़े 5 बजे एटीएस की टीम ऐक्शन में आ गई. टीम के सभी सदस्यों ने पहले से तय की गई रणनीति के अनुसार उस घर को चारों ओर से घेर लिया, जिस में नीता के होने की संभावना थी. क्योंकि अगर नीता को पता चल जाता कि एटीएस उसे पकडऩे आई है तो वह भाग सकती थी.

घर का मुख्य दरवाजा लोहे का था, जिसे खोल कर एटीएस की टीम अंदर घुसी. अंदर जा कर घर का दरवाजा खटखटाया. थोड़ी देर में दरवाजा खुला तो एटीएस की टीम ने देखा कि सामने नीता खड़ी थी. पिछले एक सप्ताह से नीता मीडिया और पुलिस विभाग में चर्चा का विषय बनी हुई थी, इसलिए उसे पहचानने में एटीएस को जरा भी देर नहीं लगी. अचानक घर के दरवाजे पर अनजान लोगों को देख कर नीता को भी झटका सा लगा. क्योंकि शायद उसे भरोसा था कि कोई उसे खोज नहीं पाएगा. उस के मन में तमाम सवाल उठे. पर उन तमाम सवालों का जवाब महिला कांस्टेबल को एक ही वाक्य में दे दिया, ”हम लोग एटीएस से हैं.’’

सामने खड़े लोगों की पहचान जान कर नीता चौंक उठी. इस के बाद एटीएस की टीम घर के अंदर गई. नीता अभी तक अचंभित थी. टीम के एक सदस्य ने कहा, ”मैडम शांति से बैठ जाइए.’’

नीता टीम की महिला कांस्टेबल के पास खड़ी थी. टीम के बाकी लोगों ने घर की फटाफट तलाशी ली. तलाशी में एटीएस को कुछ खास नहीं मिला. सिर्फ एक बैग मिला. जिसे खोल कर देखा गया तो उस में नीता के कपड़े थे.

एटीएस ने नीता से कोऔपरेट करने के  लिए कहा तो नीता चुपचाप पुलिस द्वारा लाई कार में बैठ गई. इस के बाद एटीएस टीम तुरंत वहां से रवाना हो गई. एटीएस नीता को सुरेंद्रनगर के भलगामड़ा गांव से सीधे अहमदाबाद ले आई, जहां से उसे कच्छ पुलिस को सौंप दिया गया.

लग्जरी कारों की शौकीन थी नीता

अब सवाल यह था कि नीता भचाऊ से सुरेंद्रनगर कैसे पहुंची? नीता का तो कहना था कि वह पब्लिक ट्रांसपोर्ट से वहां आई थी. लेकिन पुलिस का कहना है कि सेशन कोर्ट से जमानत रद होने के बाद वह जिस शराब तस्कर युवराज सिंह के साथ पकड़ी गई थी, उस का साला आदित्य सिंह राणा उसे यहां पहुंचा गया था. यहां वह जिस मयूर के घर छिपी थी, वह आदित्य सिंह राणा का दोस्त था. नीता का इरादा ऊपरी अदालत से जमानत मिलने तक फरार रहने का था.

नीता चौधरी ने सेशन कोर्ट के जमानत रद करने के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. नीता की अरजी देख कर हाईकोर्ट ने कहा था, ”अरजी देने वाले पर गंभीर आरोप है. वह अपनी जिंदगी में क्या करती है, कोर्ट को बताया जाए. अगर अपीलकर्ता निर्दोष थी तो भाग क्यों गई. आरोपी की जमानत रद कर के सेशन कोर्ट ने ठीक किया है. अगर अपीलकर्ता अपनी अपील को वापस नहीं लेता तो कोर्ट उस पर 5 लाख रुपए से अधिक का जुरमाना कर सकता है. अपीलकर्ता पुलिस में रहते हुए शराब तस्कर को सेफ पैसेज दे रही थी.’’

नीता चौधरी के वकील का कहना था कि अपीलकर्ता सीआईडी क्राइम में कांस्टेबल है. वह सीनियर अधिकारियों के कहे अनुसार काम कर रही थी. इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि पुलिस विभाग में होते हुए इस ने शराब (Smuggling) तस्कर की मदद की. पुलिस की गाड़ी को टक्कर मार कर पुलिस कर्मचारियों को मारने की कोशिश की. यह चाहती तो अपराधी को रोक कर पुलिस की मदद कर सकती थी. नीता चौधरी जब से पकड़ी गई, तब से सोशल मीडिया पर शोर सा मच गया था. क्योंकि शायद उस ने वरदी इसलिए पहनी थी कि कानून को ठेंगा दिखा कर हवा में उडऩे वाले अपराधियों को जमीन पर ला सके.

लेकिन पैसों के लालच में वह अपना फर्ज निभाने के बजाय अपने फर्ज के साथ गद्ïदारी कर के शानोशौकत वाली जिंदगी जीते हुए हवा में उडऩे लगी. जैसे ही नीता चौधरी को गिरफ्तार किया गया, उस के किस्से सोशल मीडिया पर वायरल होने लगे. फिर तो सोशल मीडिया ने उस की पूरी कुंडली ही खोल कर रख दी. फटाफट इस खूबसूरत कांस्टेबल की जो तसवीरें सामने आईं, देख कर लोग अचंभे में पड़ गए. सोशल मीडिया से ही पता चला कि यह लेडी कांस्टेबल फर्ज निभाने से कहीं ज्यादा अपनी लग्जरी लाइफस्टाइल से सुर्खियां बटोरती है. तसवीरों में जो दिखाई दे रहा है, वह किसी को भी दांतों तले अंगुली दबाने को मजबूर कर दे. आखिर एक सिपाही इतने महंगे शौक कैसे पूरे करती है?

नीता चौधरी एक बेहद ग्लैमरस और आलीशान जिंदगी जीने की आदी है. उस की पसंद वाली चीजों में महंगी कारें, महंगी बाइक्स के अलावा, हेलीकौप्टर, याट के साथ अरबी घोड़े हैं. इस के पहले भी वह इसी तरह इंस्टग्राम पर वीडियो डालने लिए सस्पेंड हो चुकी है, लेकिन सस्पेंड होने के बाद भी न उस पर कोई फर्क पड़ा था और न उस की लाइफस्टाइल में कोई अंतर आया था. अगर नीता चौधरी के कारों के शौक के बारे में देखा जाए तो उस के पास खुद का लग्जरी कारों का अच्छाखासा कलेक्शन है. उसके विभाग वाले हंसीहंसी में कहते भी हैं कि अगर जिंदगी जीनी है तो नीता चौधरी की तरह, जो गुजरात पुलिस में एक सिपाही होते हुए भी राजसी शानोशौकत के जीती है. लेकिन हर कोई नीता चौधरी की तरह अपने फर्ज से गद्ïदारी नहीं कर सकता. इसलिए  वे लोग सिर्फ नीता को देख कर जलते हैं.

एटीएस ने दौड़भाग कर के नीता चौधरी को भलगामड़ा गांव से गिरफ्तार किया था. नीता को गिरफ्तार कर के एटीएस ने थाना भचाऊ पुलिस के हवाले किया तो भचाऊ पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया था.

नीता और वीरसंग की कैसे शुरू हुई लव स्टोरी

कांस्टेबल नीता चौधरी गुजरात के जिला बनासकांठा की तहसील पालनपुर के गांव मोरिया की रहने वाली है. 15 साल पहले उस ने वीरसंग चौधरी से लवमैरिज की थी. वह भी पालनपुर के पास के गांव बादरपुर का रहने वाला है. वीरसंग खेतीबाड़ी करने के अलावा प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता है. वह अपने गांव का सरपंच भी रह चुका है. इस समय उस की भाभी गांव की सरपंच हैं. नीता ने वीरसंग के साथ लवमैरिज कर ली तो उस के मम्मीपापा से संबंध पहले जैसे नहीं रहे.

नीता और उस का पति वीरसंग चौधरी एक ही स्कूल में पढ़ते थे. वहीं दोनों में प्यार हुआ था. इसलिए दोनों का आपस में मिलनाजुलना होता रहता था. 15 साल पहले दोनों ने कोर्ट में प्रेमविवाह कर लिया था. जिस के साथ कांस्टेबल नीता चौधरी पकड़ी गई है, वह शराब तस्कर युवराज सिंह जडेजा गुजरात के जिला कच्छ के चिरई गांव का रहने वाला है. उस ने मात्र 9वीं तक पढ़ाई की है. वह शादीशुदा है. उस का मुख्य धंधा शराब तस्करी का है. उस के पिता भी उसी की तरह शराब तस्कर थे. काफी समय से गांधीधाम में रहने की वजह से अन्य पुलिसकर्मियों की तरह वह नीता चौधरी को भी जानता था.

नीता चौधरी की तैनाती जिन दिनों गांधीधाम लोकल क्राइम ब्रांच में थी, उन्हीं दिनों सोशल मीडिया के जरिए वह नीता चौधरी के संपर्क में आया था. कहा जाता है कि युवराज सिंह खुद शराब पीने का शौकीन नहीं है. वह सिर्फ शराब बेचता है. सामान्य रूप से युवराज सिंह जब भी शराब मंगाता था, शराब की डिलीवरी हो जाती थी. उसे कभी भी शराब लेने जाना नहीं पड़ा. पर इस बार उस के पास से शराब मिली है. कहा जाता है कि उस की कई नेताओं से अच्छी पटती है. पटेगी क्यों नहीं, शराब की जरूरत तो नेताओं को भी पड़ती है.

युवराज सिंह सालों से गांधीधाम और भुज में बड़े पैमाने पर शराब का धंधा कर रहा था. उस पर प्रोहिबिशन के 16 मामले दर्ज हैं. एकदो बार झगड़ा भी हुआ था, पर इन झगड़ों में वह सीधे इनवौल्व नहीं था. ये झगड़े उस के आदमियों ने किए थे. बीच में पड़ कर उसने इन झगड़ों को शांत करा दिया था. उस का फोकस अपने शराब के धंधे पर रहता था. नीता चौधरी पर केस हुआ और वह चर्चा में आई तो सोशल मीडिया पर उस के फालोअर्स बढ़ गए. इंस्टाग्राम पर उस के पहले लगभग 41 हजार फालोअर्स थे, केस होने के बाद वह संख्या 1 लाख 14 हजार हो गई. 73 हजार फालोअर्स एकाएक बढ़ गए हैं.

कच्छ पुलिस ने जब नीता चौधरी को गिरफ्तार कर के मीडिया के सामने पेश किया था तो उस के चेहरे पर किसी तरह का पछतावा नहीं था. वह जिस युवराज सिंह के साथ पकड़ी गई थी, वह गुजरात का मोस्टवांटेड शराब तस्कर है.

जिस सफेद थार से शराब की 16 बोतलें पकड़ी गई थीं, कहा जाता है कि वह नीता की ही थी. उस के पीछे चौधरी लिखा भी था. मजे की बात यह है कि इस सफेद थार में नंबर प्लेट भी नहीं थी. नीता चौधरी की तसवीरें और कारनामे तमाम सवाल खड़े कर रहे हैं कि आखिर गुजरात पुलिस कब सुधरेगी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 

Extramarital Affair : भाभी को लेकर भागा देवर

Extramarital Affair  30 वर्षीय पूनम ने 40 साल के दिनेश अवस्थी से प्रेम विवाह कर जरूर लिया था, लेकिन वह उस से खुश नहीं थी. फिर पूनम ने हमउम्र देवर मनोज अवस्थी को प्यार के जाल में फांस लिया. यह बात जब दिनेश को पता चली तो उस ने क्या किया? क्या पति के सामने पूनम देवर के साथ रहती रहीï? जानने के लिए पढ़ें यह दिलचस्प कहानी.

एक रोज दिनेश ने पत्नी पूनम को अपने छोटे भाई मनोज की बांहों में समाए हुए देख लिया. तब उस ने दोनों को खूब फटकार लगाई. उस समय उन दोनों ने दिनेश से माफी मांग ली. कुछ दिनों बाद पूनम और मनोज दोबारा पकड़े गए, तब दिनेश ने दोनों की जम कर पिटाई की. इस के बाद पूनम और मनोज ने बाधक बन रहे भाई दिनेश को ठिकाने लगाने का निश्चय किया.

भाई का काम तमाम करने के लिए मनोज बिधनू बाजार गया और वहां से डेढ़ सौ रुपए में तेज धार वाला चाकू खरीदा और उसे कमरे में ला कर छिपा दिया. पूनम ने पत्थर पर रगड़ कर उस चाकू की धार तेज कर दी. 23 अप्रैल, 2024 की रात 8 बजे दिनेश घर आया. वह नशे में था और आते ही चारपाई पर लुढ़क गया. दिनेश गहरी नींद सो गया तो उस की पत्नी पूनम देवर मनोज के कमरे में पहुंच गई. उस के बाद वे दोनों मस्ती में डूब गए. आधी रात को मनोज के कमरे का दरवाजा भड़ाक से खुला तो दिनेश सामने खड़ा था.

शायद उस की नींद खुल गई थी और वह पूनम को ढूंढते हुए कमरे में आ पहुंचा था. पत्नी को छोटे भाई मनोज के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देख कर उस का खून खौल उठा था. उस ने गुस्से में पत्नी पूनम पर हाथ उठाया तो मनोज से रहा नहीं गया और उस ने बड़े भाई दिनेश का हाथ पकड़ कर मरोड़ दिया. इसी समय पूनम बोली, ”मनोज, देख क्या रहे हो. आज इस बाधा को दूर कर दो. हम दोनों का जीना हराम कर दिया है इस ने.’’

इस के बाद मनोज और पूनम ने मिल कर दिनेश को दबोच लिया और फिर चाकू से गोद कर उस का काम तमाम कर दिया. हत्या करने के बाद उस के हाथपैर रस्सी से बांधे, फिर शव को बोरी में भर कर साइकिल पर लाद कर गांव के बाहर तालाब में फेंक दिया. सुबह उन दोनों ने मिल कर खून के धब्बे साफ किए और खून लगी काटन और कपड़े चारपाई के नीचे छिपा दिए. चाकू उस ने टांड पर छिपा दिया.

26 अप्रैल की सुबह वह तालाब पर गया तो दिनेश की लाश तालाब में उतरा रही थी. उस ने लाश को डंडे से दबाने का प्रयास किया, लेकिन असफल रहा. उसी समय उसे गांव के कुछ लोग तालाब की तरफ आते दिखाई दिए तो वह डर गया और फिर डर की वजह से घर में ताला लगाया और पूनम को साथ ले कर फरार हो गया.

2 दिन दोनों बुआ के घर लखीमपुर रहे. फिर वहां से चित्रकूट पहुंचे, चित्रकूट में कुछ दिन रहे. उस के बाद बागेश्वर धाम आश्रम आ गए. पकड़े जाने के डर से उन दोनों ने अपने मोबाइल फोन बंद कर लिए थे. बागेश्वर धाम आश्रम उन्हे छिपने के लिए उचित लगा, इसलिए वे वहीं रहने लगे. जीवन चलाने के लिए उन दोनों ने आश्रम के बाहर एक चाय स्टाल पर नौकरी खोज ली. दिन भर दोनों चाय स्टाल पर रहते और रात में आश्रम आ कर सो जाते.

दिनेश की क्यों नहीं हो रही थी शादी

उत्तर प्रदेश के कानपुर जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर बिधनू थाना अंतर्गत एक गांव है- खेरसा. बिधनू कस्बा से सटे इस गांव के लोग या तो खेती करते हैं या फिर व्यापार. पढ़ेलिखे लोग सरकारी/प्राइवेट नौकरी भी करते हैं. इस गांव में बिजली पानी जैसी सभी भौतिक सुविधाएं उपलब्ध हैं. गांव के आसपास कई ईंट भट्ठे हैं, जहां सैकड़ों मजदूर काम करते हैं. अन्य प्रदेशों के मजदूर भी यहां काम की तलाश में आते हैं.

इसी खेरसा गांव में स्थित अपनी ननिहाल में दिनेश अवस्थी रहता था. दिनेश अवस्थी के पिता राजकुमार अवस्थी, लखीमपुर जनपद के मूलगांव कुडऱीरूप सेनारूप के मूल निवासी थे. उन के परिवार में पत्नी सावित्री के अलावा 3 बेटे दिनेश, मनोज व मयानंद उर्फ अशनी थे. बड़ा बेटा दिनेश अपने भाई मनोज के साथ ननिहाल (खेरसा गांव) में रहने लगा था, जबकि सब से छोटा मयानंद पिता के साथ गांव में रहता था.

दिनेश अवस्थी ट्रक चलाता था, जबकि मनोज बिधनू के ईंट भट्ठे पर काम करता था. दोनों भाइयों की अभी तक शादी नहीं हुई थी. दिनेश का कहीं रिश्ता तय नहीं हो पा रहा था. उस की शादी के लिए उस के मातापिता भी चिंतित थे. क्योंकि वह 40 वर्ष की उम्र पार कर चुका था. इन्हीं दिनों एक रोज दिनेश की मुलाकात पूनम उर्फ गुडिय़ा से हुई. पूनम के पिता रघुवर सीतापुर जनपद के गांव लहरापुर के रहने वाले थे. पूनम उन की बिगड़ैल बेटी थी. आवारा युवकों के साथ घूमना, उन के साथ मौजमस्ती करना उस का शौक था. इसी बदनामी के कारण उस का रिश्ता नहीं हो पा रहा था. रघुवर बेटी के चालचलन से बहुत दुखी थे.

दिनेश की रिश्तेदारी लहरापुर गांव में थी. रिश्तेदार के घर आतेजाते ही दिनेश की मुलाकात पूनम से हुई थी. 30 वर्षीय पूनम दिनेश को ऐसी भाई कि वह उस के पीछे ही पड़ गया. पूनम भी घर बसाना चाहती थी, इसलिए वह भी दिनेश को लिफ्ट देने लगी. दोनों के बीच मुलाकातें बढ़ीं और बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो नजदीकियां भी बढऩे लगीं.

वर्ष 2023 की जनवरी माह में दिनेश ने पूनम उर्फ गुडिय़ा से बारादेवी मंदिर में जयमाला पहना कर प्रेम विवाह कर लिया. इस विवाह की जानकारी न तो दिनेश के घरवालों को हुई और न ही पूनम के घर वालों को. हालांकि बाद में दोनों परिवारों को उन के विवाह की भनक लग गई थी. लेकिन विरोध किसी की तरफ से नहीं किया गया. शादी के वक्त पूनम की उम्र 30 वर्ष थी, जबकि दिनेश अवस्थी 40 वर्ष पार कर चुका था. शादी के बाद दिनेश खेरसा गांव में पूनम के साथ रहने लगा. चूंकि अधेड़ उम्र में दिनेश ने प्रेम विवाह किया था, अत: वह पत्नी पूनम को बेहद प्यार करता था और उस की हर डिमांड पूरी करता था.

विवाह के बाद के दिन मौजमस्ती में बीतते हैं. पूनम दिनेश से मिलने वाले सुख से इस कदर आनंदित होती रही कि किसी दूसरी ओर उस का ध्यान ही नहीं गया. लेकिन एक महीने बाद जब दिनेश काम पर जाने लगा और देर रात घर वापस आने लगा तो पूनम के दिमाग में फितूर समाना शुरू हो गया. वह सोचने लगी कि दिनेश न उसे कहीं सैरसपाटा कराने ले जाता है और न शौपिंग कराने. न कभी कोई उपहार ला कर दिया है. पत्नी को खुश रखने का न तो उसे हुनर आता है, न तमीज है. दिनेश से शादी होते ही उस के अरमानों को घुन लग गया और किस्मत का बेड़ा गर्क हो गया.

बीतते दिनों के साथ पति से पूनम का मन खट्टा होने लगा. उस ने पति की परवाह करनी छोड़ दी. न वह उस की जरूरतों का ध्यान रखती, न उस की कोई बात सुनती. दिनेश अपनी कोई जरूरत बताता तो वह एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल देती. इस के बावजूद दिनेश उस पर प्यार उड़ेलता. दिनेश ट्रक चलाता था. शराब का भी लती था. अत: वह जब घर लौटता तो नशे में झूमता आता. कभीकभी शराब की बोतल साथ भी ले आता, फिर घर में बैठ कर पीता. शराब पीने को ले कर दोनों के बीच बहस होती, फिर झगड़ा होता.

दिनेश और पूनम में झगड़ा होने लगा तो पूनम सोचने लगी कि उस ने अधेड़ उम्र के शराबी से प्रेम विवाह रचा कर बड़ी भूल की है. वह उसे देह सुख प्रदान नहीं कर सकता. पूनम अपनी हसरतों का गला नही घोंटना चाहती थी. उस ने अपने सुख के साधन की तलाश शुरू की तो नजरें मनोज पर ठहर गईं. मनोज पूनम के पति दिनेश का छोटा भाई था. रिश्ते में वह उस का सगा देवर. दोनों भाई साथ ही रहते थे. मनोज पूनम का हमउम्र था. आखों, चेहरे, Extramarital Affair  जिस्म व बातों से उस का कुंवारापन साफ झलकता था. पूनम जब भी मनोज को देखती, उस की लार टपकने लगती.

वह सोचती, मनोज से उस की शादी हुई होती तो हर दिन होली होती और हर रात दिवाली होती. दिन को चाहत के रंग बिखरते, कहकहों का गुलाल उड़ता और रात को हसरतों की फुलझडिय़ां. पूनम ने जो करना था, तय कर लिया. पूनम के दिल में देवर आया तो मनोज को रिझाने के लिए पूनम ने उसी तरह डोरे डालने शुरू कर दिए, जिस तरह देह सुख की प्यासी औरत डाला करती है. कभी वह वक्षों से आंचल गिरा देती, कभी सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में ही मनोज के सामने आ जाती. कभी सजधज कर उसे रिझाने की कोशिश करती.

पूनम के खुलेपन और छेड़छाड़ से मनोज का मन गुदगुदाता था. वह यह भी समझ गया था कि भाभी उस से क्या चाहती है? मनोज भी यही चाहने लगा था. मगर उसे बड़े भाई दिनेश का डर सता रहा था. इसलिए पहल करने से डरता था. धीरेधीरे दोनों की नजदीकियां बढऩे लगीं. पूनम देवर मनोज के साथ बिधनू कस्बे के बाजारहाट भी जाने लगी. मनोज अपनी कमाई के कुछ पैसे भाभी के हाथ पर भी रखने लगा. इस से पूनम का लगाव और भी बढऩे लगा. मनोज की अब भाभी से खूब पटती थी. देवरभाभी के बीच हंसीमजाक व ठिठोली भी होती थी. मनोज को भाभी की सुंदरता और अल्हड़पन खूब भाता था. कभीकभी वह उसे एकटक प्यार भरी नजरों से देखा करता था.

अपनी ओर टकटकी लगाए देखते समय जब कभी पूनम की नजर उस से टकरा जाती तो दोनों मुसकरा देते थे. मनोज दिनेश से ज्यादा सुंदर और अच्छी कदकाठी का था, इसलिए पूनम उस पर पूरी तरह से फिदा हो गई थी.

पूनम के देवर की तरफ क्यों बढ़े कदम

मनोज भी पूनम को चाहने लगा था. चूंकि वे देवरभाभी थे, इसलिए दोनों के साथ रहने पर दिनेश को कोई शक नहीं होता था. दिनेश सरल स्वभाव का था. पत्नी पर विश्वास भी करता था. पत्नी और भाई के बीच क्या खिचड़ी पक रही है, इस की दिनेश को कोई जानकारी नहीं थी. वह अपने में ही मस्त रहता था. देह सुख पाने की लालसा दोनों में दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी. आखिर जब मनोज से नहीं रहा गया तो उस ने एक रोज मजाकमजाक में भाभी पूनम को बाहों में भर लिया और शारीरिक छेड़छाड़ शुरू कर दी. इस छेड़छाड़ का पूनम Extramarital Affair ने विरोध नहीं किया. उस ने भी दोनों हाथों से मनोज को जकड़ लिया.

मनोज ने इस मूक आमंत्रण का फायदा उठाते हुए उस पर चुंबनों की झड़ी लगा दी. इस के बाद अपनी मर्यादाओं को लांघते हुए दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. चूंकि मनोज घर में ही रहता था. इसलिए कुछ दिनों तक दोनों का खेल पूरी तरह से चलता रहा. दिनेश को पता तक नहीं चला कि उस के पीछे घर में क्या हो रहा है. आसपड़ोस के लोग भी यही समझते रहे कि दोनों देवरभाभी हैं. इसलिए उन पर शक नहीं हुआ.

पूनम अब देवर मनोज के साथ खुल कर खेलने लगी थी और देह सुख का भरपूर आनंद उठाने लगी थी. उसे दिन दोपहर शाम जब भी इच्छा होती, वह देवर के कमरे में पहुंच जाती और उस के साथ बिस्तर पर बिछ जाती. कभीकभी तो वह रात में भी पति को बिस्तर पर नशे में धुत सोता छोड़ कर देवर के पास पहुंच जाती और देह की प्यास बुझा कर वापस पति के बिस्तर पर आ जाती.

पूनम देवर के प्यार में इतनी अंधी बन गई थी कि उसे पति नकारा और देवर प्यारा लगने लगा था. वह पति की हर तरह से उपेक्षा भी करने लगी थी. न उस का खानेपीने का ध्यान रखती थी और न ही उस से हमदर्दी जताती थी. जब कभी दिनेश कामसुख की कामना करता तो वह कोई न कोई बहाना बना देती. दिनेश की समझ में नहीं आ रहा था कि पूनम ऐसा बरताव क्यों कर रही है. गलत काम कैसा भी हो, उस की उम्र लंबी नहीं होती. पूनम और मनोज के साथ भी ऐसा ही हुुआ. एक दोपहर पड़ोस में रहने वाली ठकुराइन ने दोनों को आपत्तिजनक हालत में देख लिया.

ठकुराइन ने इस पाप की जानकारी आसपड़ोस की महिलाओं को दी. उस के बाद पहले पड़ोस में चर्चाएं शुरू हुईं, फिर उन के संबंधों की चर्चा पूरे गांव में खुल कर होने लगी. ये चर्चाएं दिनेश के कानों तक पहुंचीं तो उस ने पूनम से जवाब मांगा.

पोल खुली तो पूनम ने बहाए घडिय़ाली आंसू

ऐसे मामलों में जैसा कि होता है, कोई महिला आसानी से अपनी चरित्रहीनता स्वीकार नहीं करती. पूनम भी साफ मुकर गई, ”लोगों ने कह दिया और तुम ने मान लिया. मुझ पर लांछन लगाते हुए तुम्हें जरा भी शरम नहीं आई.’’

”किसी एक ने कहा होता तो मैं उस का मुंह तोड़ देता, लेकिन पूरा गांव कह रहा है कि तूने मेरे भाई को यार बना लिया है.’’ दिनेश ने डंडा उठा लिया, ”सच बोल, वरना तेरी हड्डियां तोड़ दूंगा.’’

पूनम सच बोलती तो शामत, सच न बोलती तो भी शामत. अत: उस ने सच ही बोलने का निश्चय कर लिया. उस ने घडिय़ाली आंसू बहाते हुए दिनेश के पांव पकड़ लिए, ”मुझ से गलती हो गई. माफ कर दो. वायदा करती हूं कि आइंदा मनोज से संबंध नहीं रखूंगी.’’

पहली गलती समझ कर तथा बदनामी के डर से दिनेश ने पत्नी को माफ कर दिया. डर कर पूनम ने पति से वादा तो कर लिया, पर वह उस पर अमल करने को मानसिक रूप से राजी नहीं थी. दरअसल, पूनम के दिल में पति की जगह देवर बस गया था, इसलिए वह उस से नाता तोडऩा नहीं चाहती थी. इधर भेद खुला तो मनोज डर की वजह से गांव चला गया. दिनेश ने फोन पर बात की, तभी वह वापस आया. आते ही उस ने भी दिनेश के पैर पकड़ लिए, ”भैया, मुझे माफ कर दो. बड़ी भूल हो गई. आइंदा ऐसी भूल नहीं होगी.’’

दिनेश ने रहम करते हुए भाई मनोज को माफ कर दिया. इस के कुछ दिनों तक तो पूनम और मनोज ठीक रहे, लेकिन मौका मिलने पर वे अपनीअपनी हसरतें पूरी कर लेते थे.

भाई के सीधेपन की वजह से मनोज की हिम्मत बढ़ गई थी. अब मनोज अपनी भाभी से शादी रचाने के ख्वाब देखने लगा था. उस ने अपने मन की बात भाभी Extramarital Affair से कही तो वह भी देवर से शादी रचाने को राजी हो गई. इधर दिनेश को विश्वास हो गया था कि पूनम को अपने किए का पछतावा है. इसी कारण उस ने मनोज से यारी तोड़ दी है. एक रोज दोपहर को वह बेवक्त घर लौटा तो फिर से एक बार उस की आंखों के आगे अंधेरा सा छा गया.

उस ने देखा कि पूनम मनोज की बांहों में पड़ी है. यह देख कर उस ने मनोज और पूनम की जम कर पिटाई कर डाली. पिटने के बाद मनोज तो भाग निकला, लेकिन पूनम कहां जाती. वह रात भर अपनी चोटों को सहलाती रही और नफरत की आग में जलती रही. दिनेश का विश्वास चकनाचूर हुआ तो वह पूनम पर निगरानी रखने लगा. दिनेश अब हमेशा उसे नजरों के पहरे में रखता था. इस कारण वह देवर से मिल नहीं पाती थी. इस का उपाय उस ने यह निकाला कि जिस रोज दिनेश ज्यादा शराब पी लेता और धुत हो कर सो जाता, वह मनोज के कमरे में पहुंच जाती. फिर सारी रात दोनों जिस्म की आग में तपते रहते.

एक रात मनोज की बांहों में लेटी पूनम ने मन की बात कह डाली, ”मनोज, हम इस तरह कब तक आंखमिचौली खेलते रहेंगे. कोई ऐसा रास्ता नहीं है, जिस से दिनेश हम दोनों के बीच से हमेशा के लिए हट जाए.’’

मनोज को तो जैसे इसी बात का इंतजार था. उस ने पूनम के गालों को सहलाते हुए कहा, ”चिंता मत करो भाभी, तुम्हारी यह इच्छा जरूर पूरी होगी.’’

दरअसल, मनोज पूनम को अपनी जागीर समझने लगा था. वह उसे अपनी पत्नी बनाना चाहता था. लेकिन भाई दिनेश बाधक था. भाई की पिटाई से भी वह आहत था. जब पूनम को अपने मन की बात उसे बताई तो उस ने भाई का काम तमाम करने का मन बना लिया. पूनम भी उस का साथ देने को तैयार थी.

26 अप्रैल, 2024 को खेरसा गांव के लोगों ने गांव के बाहर तालाब में उतराती एक लाश देखी. ग्राम प्रधान राजेश कुमार ने फोन के जरिए सूचना थाना बिधनू पुलिस को दी. सूचना पाते ही एसएचओ जितेंद्र प्रताप सिंह सहयोगी पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने गांव के 2 युवकों तथा पुलिसकर्मियों के सहयोग से तालाब में उतराती लाश को बाहर निकलवाया, साथ ही सूचना पुलिस अधिकारियों को दी.

बंद कमरे में मिले खून के निशान

लाश को देखते ही गांव वालों ने उस की पहचान कर ली. ग्राम प्रधान राजेश कुमार ने बताया कि लाश दिनेश अवस्थी की है. वह पत्नी पूनम Extramarital Affair व भाई मनोज के साथ ननिहाल में रहता था. वह मूल निवासी लखीमपुर के मूलगांव कुडऱीरूप सेनारूप का है. मनोज अपनी भाभी पूनम के साथ फरार है. घर में ताला पड़ा है. जबकि उसे सुबह तालाब के पास देखा गया था. पड़ोसी युवक राजू दूबे के पास दिनेश के छोटे भाई मयानंद उर्फ अशनी का मोबाइल नंबर था. पहले वह भी ननिहाल मे ही रहता था. तभी राजू की दोस्ती उस से हो गई थी. लेकिन 2 साल पहले वह गांव चला गया था. राजू की बात उस से फोन पर होती रहती थी.

एसएचओ जितेंद्र प्रताप सिंह ने राजू से मोबाइल नंबर ले कर मयानंद उर्फ अशनी को उस के बड़े भाई दिनेश की हत्या की सूचना दी और तत्काल ननिहाल आने को कहा. इस के बाद जितेंद्र प्रताप सिंह ने शव का बारीकी से निरीक्षण किया. दिनेश की हत्या किसी नुकीले हथियार से की गई थी. उस के गले, सीने व चेहरे पर कई घाव थे. हत्या कर हाथपैर रस्सी से बांध कर शव को बोरी में भर कर तालाब में फेंका गया था. मृतक की उम्र 43 वर्ष के आसपास थी.

एसएचओ जितेंद्र प्रताप सिंह अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर डीसीपी (साउथ) अंकिता शर्मा, एडीसीपी विजेंद्र द्विवेदी तथा एसीपी (घाटमपुर) रंजीत कुमार सिंह घटनास्थल आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तथा घटना के संबंध में इंसपेक्टर जितेंद्र प्रताप सिंह तथा गांव वालों से जानकारी जुटाई. गांव वालों से जो जानकारी मिली थी, उस से स्पष्ट था कि दिनेश की हत्या उस की पत्नी पूनम व भाई मनोज ने ही की है. वे फरार भी थे. साक्ष्य की तलाश में पुलिस अधिकारी मृतक दिनेश के घर पहुंचे. घर पर ताला लगा था.

ताला तोड़ कर पुलिस घर के अंदर दाखिल हुई. वहां कमरे में खून से सनी काटन तथा कुछ कपड़े बरामद हुए. बिस्तर व फर्श पर खून के धब्बे मिले. फर्श को साफ किया गया था. पुलिस ने साक्ष्य के तौर पर काटन, कपड़े सुरक्षित कर लिए. स्पष्ट था कि हत्या कमरे के अंदर ही की गई थी. जांचपड़ताल के बाद पुलिस ने दिनेश के शव का पोस्टमार्टम हेतु लाला लाजपत राय अस्पताल, कानपुर भिजवा दिया.

शाम 5 बजे तक मृतक दिनेश का छोटा भाई मयानंद उर्फ अशनी ननिहाल आ गया. वहां से वह थाना बिधनू पहुंचा. उस ने पुलिस के साथ जा कर मोर्चरी में रखे शव को देखा तो फफक पड़ा. उस ने बताया शव उस के भाई दिनेश का है. उस ने एसएचओ जितेंद्र प्रताप सिंह को बताया कि दिनेश की हत्या उस के भाई मनोज व भाभी पूनम ने की है.

मयानंद उर्फ अशनी की तहरीर पर इंसपेक्टर जितेंद्र प्रताप सिंह ने मृतक की पत्नी पूनम व भाई मनोज के खिलाफ हत्या कर लाश छिपाने की दर्ज कर ली तथा उन की गिरफ्तारी के लिए जुट गए.

जितेंद्र प्रताप सिंह ने आरोपियों को पकडऩे के लिए ताबड़तोड़ छापे मारे. लेकिन वे पकड़ में नहीं आए. उन्होंने नातेदारों के घर सीतापुर, विसवां लखीमपुर तथा चित्रकूट में भी छापा मारा, लेकिन उन का पता नहीं चला. पुलिस ने उन की लोकेशन जानने के लिए उन के मोबाइल फोन नंबर सर्विलांस पर लिए. लेकिन उन के मोबाइल फोन बंद थे.

आरोपियों पर घोषित हुआ ईनाम

हत्यारोपियों की तलाश में धीरेधीरे 3 महीने बीत गए. लेकिन उन का कुछ भी पता नहीं चला. पुलिस अधिकारियों ने आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए उन पर 25-25 हजार का इनाम भी घोषित कर दिया. पुलिस ने उन की फिर तलाश तेज की साथ ही मुखबिरों का भी सहारा लिया. लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी. दरअसल, मनोज व पूनम ने अपनेअपने मोबाइल फोन बंद कर लिए थे. इसलिए उन की कोई जानकारी नहीं मिल पा रही थी. करीब 6 महीने बाद नवंबर, 2024 की 5 तारीख को मनोज का मोबाइल फोन चालू हुआ तो पुलिस को उस की लोकेशन मध्य प्रदेश के छतरपुर (गढ़ा) स्थित बागेश्वर धाम आश्रम की मिली.

इंसपेक्टर जितेंद्र प्रताप सिंह तत्काल अपनी टीम के साथ बागेश्वर धाम आश्रम के लिए रवाना हो गए. पुलिस टीम यहां 3 दिन तक डेरा जमाए रही. उस के बाद टीम को सफलता मिल गई. टीम ने आश्रम के बाहर एक चाय के स्टाल से दोनों को गिरफ्तार कर लिया. मनोज व पूनम को थाना बिधनू लाया गया. इंसपेक्टर जितेंद्र प्रताप सिंह ने मनोज और पूनम से दिनेश की हत्या के बारे में पूछताछ की तो वे साफ मुकर गए. लेकिन सख्ती करने पर टूट गए और हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. यही नहीं, मनोज ने आलाकत्ल चाकू भी बरामद करा दिया, जिसे उस ने घर में ही छिपा दिया था. जानकारी होने पर पुलिस अधिकारियों ने भी उन से विस्तार से पूछताछ की.

दिनेश की हत्या किए हुए 6 महीने बीत गए. अब पूनम और मनोज को लगने लगा था कि शायद मामला ठंडा पड़ गया है. अत: मनोज ने अपना मोबाइल फोन चालू किया और किसी से बात की. उस का फोन पुलिस ने सर्विलांय पर लगा रखा था, इसलिए फोन चालू होते ही उस की लोकेशन बागेश्वर धाम की मिल गई और पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने उन दोनों के बयान दर्ज कर उन्हें विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. 10 नवंबर, 2024 को पुलिस ने आरोपी मनोज व पूनम को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हे जिला जेल भेज दिया गया.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Murder Story : जेठानी ने कर डाला देवर के बेटे का कत्ल

विधवा मंजीत कौर ने अपने विवाहित देवर को न सिर्फ अपने जाल में फांसा बल्कि उस की गृहस्थी उजाड़ कर शादी भी कर ली. इस के बाद उस का ऐसा कौन सा स्वार्थ रह गया जिस के चलते उस ने अपने सौतेले बेटे को भी ठिकाने लगा दिया

‘‘दखो सरदारजी, एक बात सचसच बताना, झूठ मत बोलना. मैं पिछले कई दिनों से देख रही हूं कि आजकल तुम अपनी भरजाई पर कुछ ज्यादा ही प्यार लुटा रहे हो. क्या मैं इस की वजह जान सकती हूं?’’ राजबीर कौर ने यह बात अपने पति हरदीप सिंह से जब पूछी तो वह उस से आंखें चुराने लगा. पत्नी की बात का हरदीप को जवाब भी देना था, इसलिए अपने होंठों पर हलकी मुसकान बिखेरते हुए उस ने राजबीर कौर से कहा, ‘‘तुम भी कमाल करती हो राजी. तुम तो जानती ही हो कि बड़े भाई काबल की मौत हुए अभी कुछ ही समय हुआ है. भाईसाहब की मौत से भाभीजी को कितना सदमा पहुंचा है. यह बात तुम भी समझ सकती हो. मैं बस उन्हें उस सदमे से बाहर निकालने की कोशिश कर रहा हूं. और फिर भाईसाहब के दोनों बच्चे मनप्रीत सिंह और गुरप्रीत सिंह भी अभी काफी छोटे हैं.’’

हरदीप अपनी पत्नी को प्यार से राजी कह कर बुलाता था.

‘‘हां, यह बात तो मैं अच्छी तरह समझ सकती हूं पर कोई ऐसे तो नहीं करता, जैसे तुम कर रहे हो. तुम्हें यह भी याद रखना चाहिए कि अपना भी एक बेटा किरनजोत है. तुम अपनी बीवीबच्चे छोड़ कर हर समय अपनी विधवा भाभी और उन के बच्चों का ही खयाल रखोगे तो अपना घर कैसे चलेगा.’’ राजबीर कौर बोली.

‘‘मैं समझ सकता हूं और यह बात भी अच्छी तरह से जानता हूं कि मेरी लापरवाही में तुम घर को अच्छी तरह संभाल सकती हो. फिर अब कुछ ही दिनों की तो बात है, सब ठीक हो जाएगा.’’ पति ने समझाया. कहने को तो यह बात यहीं खत्म हो गई थी पर राजबीर कौर अच्छी तरह जानती थी कि अब आगे कुछ ठीक होने वाला नहीं है. इसलिए उस ने मन ही मन फैसला कर लिया कि जहां तक संभव होगा, वह अपने घर को बचाने की पूरी कोशिश करेगी. पंजाब के अमृतसर देहात क्षेत्र के थाना रमदास के गांव कोटरजदा के मूल निवासी थे बलदेव सिंह. पत्नी के अलावा उन के 3 बेटे थे परगट सिंह, काबल सिंह और हरदीप सिंह. बलदेव सिंह ने समय रहते सभी बेटों की शादियां कर दी थीं और तीनों भाइयों में जमीन का बंटवारा भी कर के अपने फर्ज से मुक्ति पा ली थी.

अपने हिस्से की जमीन ले कर परगट सिंह ने अपना अलग मकान बना लिया था. काबल और हरदीप अपने पुश्तैनी घर में मातापिता के साथ रहते थे. काबल सिंह की शादी मनजीत कौर के साथ हुई थी. उस के 2 बच्चे थे 13 वर्षीय मनप्रीत सिंह और 12 वर्षीय गुरप्रीत सिंह.  सन 2003 में हरदीप सिंह की शादी खतराये निवासी राजबीर कौर के साथ हुई थी. शादी के बाद उन के घर किरनजोत सिंह ने जन्म लिया था. बच्चे के जन्म से दोनों पतिपत्नी बड़े खुश थे. तीनों भाइयों की अपनी अलगअलग जमीनें थीं. सब अपनेअपने कामों और परिवारों में मस्त थे. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था कि 24 जून, 2008 को काबल सिंह की दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई. इस के बाद तो उस घर पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था. उस की खेती आदि के काम कोई करने वाला नहीं था क्योंकि उस समय बच्चे भी छोटे थे. तब भाई के खेतों के काम से ले कर उस के दोनों बच्चों की देखभाल का जिम्मा हरदीप सिंह ने संभाल लिया था.

अपनी विधवा भाभी मनजीत कौर से सहानुभूति रखने और उस की मदद करतेकरते हरदीप सिंह का झुकाव धीरेधीरे अपनी विधवा भाभी की ओर होने लगा. हरदीप की पत्नी राजबीर कौर इन सब बातों से बेखबर नहीं थी.  वह समयसमय पर पति हरदीप सिंह को उस की अपनी घरेलू जिम्मेदारियों का अहसास दिलाती रहती थी. पर उस ने इन बातों को ले कर कभी पति से क्लेश या लड़ाईझगड़ा नहीं किया था. वह हर मसले को प्यार और समझदारी से निपटाने के पक्ष में थी और यही बात उस के हक में नहीं रही. उसे जब इन सब बातों की समझ आई तब पानी सिर से ऊपर गुजर चुका था. उस का पति हरदीप अब उस का नहीं रहा. वह कभी का अपनी विधवा भाभी मंजीत कौर की आगोश में जा चुका था. राजबीर कौर ने जब अपना घर उजड़ता देखा तब उस की नींद टूटी और उस ने इस रिश्ते का जम कर विरोध किया था.

बाद में उस ने इस मसले पर रिश्तेदारों से शिकायत भी की पर कोई नतीजा नहीं निकला. इस पूरे मामले में राजबीर कौर की यह गलती रही कि उस ने अपने पति पर विश्वास करते हुए समय रहते इन सब बातों का विरोध नहीं किया था. शायद उसे पति की वफादारी और अपनी समझ पर भरोसा था. बहरहाल उस का बसाबसाया घर टूट गया था. हरदीप सिंह और राजबीर कौर के बीच तलाक हो गया था. यह सन 2013 की बात है. राजबीर कौर का हरदीप सिंह से तलाक भले ही हो गया था, पर वह वहीं रहती रही. हरदीप सिंह अपने 9 वर्षीय बेटे किरनजोत सिंह और अपने दोनों भतीजों मनप्रीत सिंह और गुरप्रीत सिंह के साथ मंजीत कौर के साथ रहने लगा था. भाभी के साथ रहने पर लोगों ने कुछ दिनों तक चर्चा जरूर की पर बाद में सब शांत हो गए.

समय का पहिया अपनी गति से घूमता रहा. सब अपनेअपने कामों में व्यस्त हो गए थे. हरदीप तीनों बच्चों और दूसरी पत्नी मंजीत कौर के साथ खुशी से रह रहा था.  बात 28 जून, 2018 की है. तीनों बच्चों सहित हरदीप और मंजीत कौर रात का खाना खा कर सो गए थे. हरदीप और मंजीत कौर कमरे के अंदर और तीनों बच्चे बाहर बरामदे में सो रहे थे. बिस्तर पर लेटते ही हरदीप को तो नींद आ गई थी पर मंजीत कौर अपने बिस्तर पर लेटेलेटे ही टीवी पर कोई कार्यक्रम देख रही थी. कमरे की लाइट बंद थी पर टीवी चलने के कारण उस कमरे में पर्याप्त रोशनी थी. रात के करीब 12 बजे का समय होगा कि मंजीत कौर ने अपने कमरे में एक साया देखा. साया कमरे से बाहर की ओर निकल गया था. फिर अचानक मंजीत कौर की नजर कमरे में रखी हुई अलमारी पर पड़ी. अलमारी खुली हुई थी और पास ही सामान बिखरा पड़ा था. यह देख कर वह चौंक गई. घबरा कर उस ने पास में सोए पति हरदीप को जगाया और अलमारी की ओर इशारा किया.

कमरे में चल रहे टीवी की रोशनी में उसे भी खुली अलमारी के आसपास कपड़े आदि बिखरे दिखे. इस के बाद हरदीप ने तुरंत उठ कर घर की लाइट जला दी. वह समझ गया कि घर में चोरी हो गई है. कमरे से निकल कर जब वह बरामदे में पहुंचा तो उस की नजर बरामदे में सोए बच्चों पर गई. वहां मनप्रीत और गुरप्रीत तो सो रहे थे, लेकिन उस का अपना 9 वर्षीय बेटा किरनजोत सिंह गायब था. यह सब देख कर हरदीप ने चोरचोर का शोर मचाना शुरू कर दिया था. रात के सन्नाटे में उस की आवाज सुन कर पड़ोसी उस के घर आ गए और जब सब को पता चला कि 9 वर्षीय किरनजोत को भी चोर अपने साथ उठा कर ले गए हैं तो सब हैरान रह गए. किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. ऐसे में किरनजोत को कहां और कैसे ढूंढा जाए. फिर भी समय व्यर्थ न करते हुए सभी लोग रात में ही किरनजोत की तलाश में अलगअलग दिशाओं में निकल पड़े.

पूरी रात किरनजोत की तलाश होती रही. लोगों ने गांव से ले कर मुख्य मार्ग तक भी छान मारा पर वह नहीं मिला. पूरी रात बीत गई थी पर किरनजोत का कुछ पता नहीं चला था. हरदीप सिंह की पहली बीवी यानी किरनजोत को जन्म देने वाली मां राजबीर कौर को जब अपने बेटे के चोरी होने का पता चला तो रोरो कर उस ने अपना बुरा हाल कर लिया था. किरनजोत को तलाश करतेकरते दिन निकल आया था. बच्चे के न मिलने पर सभी लोग निराश थे. कुछ देर बाद गांव के एक आदमी ने हरदीप सिंह को आ कर यह खबर दी कि किरनजोत की लाश नहर किनारे पड़ी है.  यह सुनते ही हरदीप व अन्य लोग नहर किनारे पहुंचे तो वास्तव में वहां किरनजोत की लाश मिली. कुछ ही देर में गांव के तमाम लोग नहर किनारे जमा हो गए. किसी ने पुलिस को भी खबर कर दी.

सूचना मिलते ही थाना रमदास के थानाप्रभारी मनतेज सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस ने बच्चे की लाश को अपने कब्जे में ले कर जरूरी काररवाई कर के पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भेज दी और भादंवि की धारा 302 के तहत अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. मुकदमा दर्ज होने के बाद मनतेज सिंह ने हरदीप सिंह के घर का मुआयना किया. हरदीप सिंह से बात करने के बाद पता चला कि उस के घर का कोई सामान चोरी नहीं हुआ था. इस से यही पता लगा कि वारदात को चोरी का रूप देने की कोशिश की गई है. पुलिस को यह भी पता चला कि कमरे में कोई साया होने की बात सब से पहले हरदीप सिंह की पत्नी मंजीत कौर ने बताई थी, इसलिए थानाप्रभारी ने मंजीत कौर के ही बयान लिए.

थानाप्रभारी मनतेज सिंह को मंजीत के बयानों में काफी झोल दिखाई दे रहे थे. यह बात भी उन्हें हजम नहीं हो रही थी कि कमरे में जागते और टीवी देखते हुए कैसे चोर की हिम्मत हो गई कि वह चोरी करने के साथसाथ बच्चे को भी उठा कर अपने साथ ले गया. भला उस बच्चे से उसे क्या मतलब था और किस मकसद से उस ने बच्चे को अगवा किया था. लाख सोचने पर भी मनतेज सिंह को यह बात समझ नहीं आ रही थी. तब थानाप्रभारी ने अपने कुछ विश्वासपात्र लोगों को सच्चाई का पता करने पर लगाया. इस बीच अस्पताल में किरनजोत के पोस्टमार्टम के समय उस की मां राजबीर कौर ने खूब हंगामा खड़ा किया. उस ने अपनी जेठानी मंजीत कौर पर आरोप लगाते हुए कहा कि किरनजोत की हत्या के पीछे मंजीत कौर का ही हाथ है क्योंकि वह उसे अपना सौतेला बेटा मानती थी.

राजबीर कौर के आरोप को मद्देनजर रखते हुए पुलिस ने अपने मुखबिरों को सच्चाई का पता लगाने के लिए लगाया. इस के बाद थानाप्रभारी को मंजीत कौर के बारे में जो खबर मिली, वह चौंकाने वाली थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में किरनजोत की मौत के बारे में बताया कि उस की मौत गला घोंटने से हुई थी. सोचने वाली बात यह थी कि मारने वाले ने बच्चे को घर से उठाया और हत्या के बाद वह उसे नहर के किनारे फेंक आया. इस में इकट्ठे सो रहे तीनों बच्चों में से उस ने किरनजोत सिंह को ही क्यों उठाया. थानाप्रभारी मनतेज सिंह ने मृतक किरनजोत की मां राजबीर कौर से भी पूछताछ की. राजबीर कौर ने बताया कि 10 साल पहले उस का विवाह हरदीप सिंह के साथ हुआ था. उस के जेठ काबल सिंह की मौत हो जाने के बाद उस के पति हरदीप सिंह के उस की जेठानी मंजीत कौर से अवैध संबंध हो गए थे. इस कारण उस ने अपने पति को तलाक दे दिया और दूसरा विवाह कर लिया.

उस के पति हरदीप सिंह ने भी उस की जेठानी के साथ शादी कर ली थी. शादी के बाद न तो उस की जेठानी उसे उस के बेटे किरनजोत से मिलने देती थी और न ही वह उसे पसंद करती थी. उसे पूरा यकीन है कि उस के बेटे की हत्या मंजीत कौर ने ही करवाई है. थानाप्रभारी ने महिला हवलदार सुरजीत कौर को भेज कर मंजीत कौर को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. शुरुआती दौर में वह अपने आप को निर्दोष बताते हुए चोरी की कहानी पर डटी रही पर जब उस से पूछा गया कि क्याक्या सामान चोरी हुआ है तो यह सुन कर वह बगलें झांकने लगी.  थोड़ी सख्ती करने पर उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए कहा कि उसी ने किरनजोत की गला घोंट कर हत्या की थी और लाश को गोद में उठा कर नहर किनारे फेंक आई. फिर आधी रात को अपने पति हरदीप को जगा कर चोरी वाली कहानी सुनाई थी.

इस की वजह यह थी कि मंजीत कौर को हरदीप और किरनजोत के बीच का प्यार खलता था. वह नहीं चाहती थी कि उस के दोनों बेटों के अलावा उस का पति हरदीप अपनी पहली बीवी से हुए बेटे किरनजोत के साथ कोई भी रिश्ता रखे. पिता का यही प्यार बेटे की मौत का कारण बन गया. दरअसल हरदीप सिंह तीनों बच्चों से तो प्यार करता था पर वह सब से अधिक अपने किरनजोत को चाहता था. पति के इस प्यार की वजह से मंजीत कौर को यह भ्रम हो गया था कि हरदीप सिंह किरनजोत के बड़े होने पर अपनी सारी जायदाद उसी के नाम कर देगा.

ऐसे में उस के पैदा किए बच्चे दानेदाने को मोहताज हो जाएंगे, जबकि ऐसी कोई बात नहीं थी. हरदीप ने सपने में भी कभी यह नहीं सोचा था कि मंजीत कौर ऐसा भी कुछ सोच सकती है. मंजीत कौर के बयान दर्ज करने के बाद किरनजोत सिंह की हत्या के आरोप में उसे गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया गया. अदालत के आदेश पर उसे जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारिते

Gangster काला जठेड़ी : मोबाइल स्नैचर से बना जुर्म का माफिया

हरियाणा के जिला सोनीपत में 1984 में जन्मे संदीप उर्फ काला जठेड़ी को दिल्ली पुलिस बेसब्री से तलाश रही थी. उस पर मकोका (महाराष्ट्र कंट्रोल औफ आर्गेनाइज्ड क्राइम एक्ट) लगा हुआ था, जिस में जमानत नहीं मिलती है. उसे पहली फरवरी, 2020 को फरीदाबाद अदालत में पेशी के लिए ले कर आई थी. पेशी के बाद वापस ले जाने के दौरान गुड़गांव मार्ग पर उस के गुर्गों ने पुलिस की बस को घेर लिया था.

ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं और काला जठेड़ी को छुड़ा ले भागे थे. सारे बदमाश उस के गैंग के थे. यह पूरी वारदात एकदम से फिल्मी अंदाज में काफी तेजी से घटित हुई थी. इस मामले को ले कर तब डबुआ थाने में मुकदमा दर्ज किया गया था. तभी से वह फरार था. पुलिस को आशंका थी कि वह नेपाल के रास्ते दुबई भाग निकला है. पुलिस का यह भी मानना था कि ऐसा उसे भ्रमित करने और उस पर से ध्यान हटाने के लिए किया गया है कि वह दुबई में है. यानी काला जठेड़ी की तलाश में जुटी पुलिस टीम अच्छी तरह से समझ रही थी कि उन्हें अपने निशाने से हटाने की उस की यह एक चाल हो सकती है.

इस बारे में दिल्ली के डीसीपी (काउंटर इंटेलिजेंस, स्पैशल सेल) मनीषी चंद्रा का कहना था कि जठेड़ी एक भूत की तरह रहता था, क्योंकि वह 2020 में पुलिस हिरासत से भागने के बाद कभी नहीं दिखा. कानून प्रवर्तन एजेंसियों का ध्यान हटाने के लिए ही जठेड़ी गैंग के सदस्यों ने इस अफवाह को बढ़ावा दिया कि वह विदेश से ही गिरोह को संचालित कर रहा है. इस पर गौर करते हुए पुलिस ने जठेड़ी की कमजोर नस का पता लगाने की पहल की. इस में पुलिस को अनुराधा चौधरी के रूप में सफलता भी मिल गई. वह जठेड़ी की बेहद करीबी थी और गोवा में रह रही थी. पुलिस ने सब से पहले उसे ही अपने कब्जे में लेने की योजना बनाई.

अनुराधा चौधरी के बारे में दिल्ली की स्पैशल सेल ने कई जानकारियां जुटा ली थीं. पुलिस को मिली जानकारी के अनुसार, अनुराधा चौधरी का जन्म राजस्थान के सीकर में हुआ था, लेकिन दिल्ली के एक कालेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की और उस की शादी दीपक मिंज से हुई थी. दोनों एक समय में शेयर ट्रेडिंग का काम करते थे, जिस में उन्हें लाखों रुपए का नुकसान हुआ था. वे कर्ज में दबे होने के उस की वापसी कर पाने असमर्थ थे. इसी परेशानी से जूझते हुए उस का संपर्क एक गैंगस्टर आनंद पाल सिंह से हुआ. वह राजस्थान का एक शातिर और फरार अपराधी था. उस पर राजस्थान पुलिस ने ईनाम रखा हुआ था.

आनंद पाल सिंह ने ही उसे अनुराधा को अपराध की दुनिया में घसीट लिया था और जल्द ही उस की पहचान मैडम मिंज की बन गई थी. 2017 में पुलिस मुठभेड़ में आनंद पाल सिंह की मौत हो जाने के बाद वह काला जठेड़ी के संपर्क में आ गई थी, वह उसे ‘रिवौल्वर रानी’ कहता था.  वह उस के गिरोह की एकमात्र अंगरेजी बोलने वाली सदस्य थी. उस ने काला जठेड़ी से हरिद्वार में शादी कर ली थी. शादी के बाद वे कनाडा शिफ्ट होने की फिराक में थे. उन की योजना वहीं से अपराध का काला कारोबार चलाने की थी.

जठेड़ी को दबोचने के लिए ‘औप डी24’

जठेड़ी को दबोचने के लिए दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल ने अनुराधा तक पहुंचने की योजना बनाई. सेल ने कुल 30 पुलिसकर्मियों को शामिल किया और एक अभियान के तहत औपरेशन का कोड नाम दिया ‘औप डी24’, इस का अर्थ ‘अपराधी पुलिस से 24 घंटे आगे था.’ सर्विलांस सीसीटीवी फुटेज से ले कर मोबाइल फोन ट्रैकिंग तक की थी. करीब 4 महीने की मेहनत के बाद 30 जुलाई, 2021 को तब सफलता मिली, जब सहारनपुर-यमुना नगर राजमार्ग पर सरसावा टोल प्लाजा के पास एक ढाबे तक ट्रैक किया गया.

इस औपरेशन को अंजाम तक पहुंचाने के लिए स्पैशल सेल की टीम टुकडि़यों में बंट कर कुल 12 राज्यों तक अलर्ट हो गई थी. राज्य सरकार की पुलिस को भी इस की जानकारी दे दी गई थी और जरूरत पड़ने पर उन से मदद करने का अनुरोध किया जा चुका था. जठेड़ी और अनुराधा के संबंध में हर तरह की मिली सूचना की दिशा में सर्विलांस का सहारा लिया गया था. टीम को अनुराधा और जठेड़ी गैंग के सदस्यों के गोवा में होने की तकनीकी जानकारी मिली. हालांकि तब पुलिस की निगाह में यह निश्चित नहीं था, इसलिए उस जानकारी को जांचने के लिए एक टीम गोवा भेजी गई.

टीम के सदस्यों को वहां कुछ सुराग मिले. उन्हें 2 वाहन मिले, जिस पर हरियाणा के नंबर लिखे थे. फिर क्या था पुलिस टीम ने उन गाडि़यों का पीछा करना शुरू कर दिया. इस सिलसिले में टीम को गोवा से गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तराखंड और दिल्ली तक का सफर करना पड़ा. पीछा करने के सिलसिले में ही टीम को तिरुपति से एक सीसीटीवी फुटेज मिला. उस में अनुराधा चौधरी को जठेड़ी गैंग के कुछ सदस्यों के साथ देखा गया था. उस के बाद कई टीमें उन वाहनों का पीछा करने लगीं, जो उन के द्वारा उपयोग किए जा रहे थे. लगभग 10,000 किलोमीटर तक उन का पीछा करने के बाद टीम को एक और खास इनपुट मिली. सूचना थी कि चौधरी और जठेड़ी एक एसयूवी में पंजाब की यात्रा पर हैं. पुलिस टीम ने उन का पीछा जारी रखा.

उत्तर प्रदेश में सहारनपुर-यमुना नगर राजमार्ग पर सरसावा टोल प्लाजा के पास एक ढाबे पर दोनों उसी वाहन से दबोच लिए गए. वहां से दोनों को दिल्ली लाया गया.

मोबाइल स्नैचर से माफिया तक

बात 2004 की है. तब फीचर मोबाइल फोन के बाद टचस्क्रीन का स्मार्टफोन आया था. वे फोन काफी महंगे हुआ करते थे. काला जठेड़ी और उस के साथियों ने दिल्ली के समयपुर बादली में शराब की दुकान पर एक व्यक्ति से टचस्क्रीन का स्मार्टफोन छीन लिया था.

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इस का मामला थाने में दर्ज करवाया गया था. वह इस स्नैचिंग में पकड़ा गया और जेल भेज दिया गया. तब उस की उम्र करीब 19 साल की थी. उस के खिलाफ दर्ज मामले में नाम संदीप जठेड़ी और निवासी सोनीपत का लिखवाया गया था. रंग काला होने के कारण मीडिया में उसे नया नाम काला जठेड़ी का मिल गया. मोबाइल स्नैचिंग की छोटी सी सजा काट कर जेल से छूटने के बाद उस ने अपराध की दुनिया में तेजी से कदम बढ़ा लिया. कई तरह के अपराध करने लगा, जिस में स्नैचिंग के साथसाथ हिंसा भी शामिल हो गई. उस की पढ़ाई 12वीं के बाद छूट गई, किंतु जल्द ही वह शार्पशूटर बन गया. वह एक गैंग में शामिल हो गया और अपना आदर्श लारेंस बिश्नोई को मान लिया.

पुलिस के अनुसार वर्ष 2006 में गांव के कुछ लोगों के साथ वह दिल्ली के डाबड़ी इलाके में आया. उस ने यहां विवाद में पीट कर एक व्यक्ति की हत्या कर दी. उसे इस मामले में तिहाड़ जेल भेज दिया गया. जेल में उस की अनिल रोहिल्ला उर्फ लीला से दोस्ती हो गई. अनिल रोहिल्ला ने ही उसे बताया कि रोहतक स्थित उस के गांव में एक परिवार से दुश्मनी चल रही है. उस परिवार में 7 भाई हैं और उन्होंने उस के पिता की हत्या की है. इस का बदला लेने के लिए उस ने गैंग बनाया है. इस परिवार के 5 भाइयों सहित 8 लोगों को काला जठेड़ी ने मार डाला. इस हत्याकांड से ही संदीप का नाम काला जठेड़ी के रूप में अपराध की दुनिया में मशहूर हो गया.

फिर कुछ साल बाद ही हरियाणा के सांपला और फिर गोहाना में हुई हत्याओं में उस का नाम आ गया. उस के बाद उस ने मुड़ कर नहीं देखा. और फिर जठेड़ी का नाम 2012 में हरियाणा पुलिस के मोस्टवांटेड अपराधियों की सूची में तब जुड़ गया, जब उस ने 3 सहयोगियों के साथ मिल कर हरियाणा के झज्जर जिले में दुलिना गांव के पास एक जेल वैन को ट्रक से टक्कर मार दी थी. यह टक्कर जानबूझ कर मारी गई थी. उस का मकसद उस में सवार कैदियों को मारना था. इस वारदात में उस ने 3 कैदियों की गोली मार कर हत्या कर दी थी और 2 पुलिसकर्मी भी घायल हो गए थे. बताते हैं कि वे कैदी उस के दुश्मन थे. बाद में जठेड़ी को गिरफ्तार कर लिया गया और इस मामले में आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई.

दरअसल, वर्ष 2012 में काला जठेड़ी को हरियाणा पुलिस ने गिरफ्तार किया था. जेल में उस की मुलाकात गैंगस्टर नरेश सेठी से हो गई. उस ने काला जठेड़ी को राजू बसोडी से मिलवाया. राजू बसोडी ने उक्त परिवार के छठे भाई को 2018 में मरवा दिया. उस समय काला जठेड़ी जेल में ही था. गैंगस्टर नरेश सेठी के जीजा को उस ने इसलिए मार डाला, क्योंकि उस ने नरेश की बहन को मार दिया था. जेल में रहने के दौरान ही काला जठेड़ी की दोस्ती लारेंस बिश्नोई से हो गई थी.  वह उस के गैंग में शामिल हो गया था. लारेंस ने ही उसे पुलिस हिरासत से फरवरी, 2020 में फरार करवाया था. उस के बाद से ही वह लगातार फरार चल रहा था और उस के नाम साल भर में 20 से ज्यादा हत्याओं को अंजाम देने का आरोप लग चुका था.

हत्या समेत अपहरण की वारदातों को तो काला जठेड़ी जेल में रह कर ही अंजाम दे दिया करता था. जेल से बाहर उस ने अपना जबरदस्त गिरोह बना रखा है. उन में 100 से अधिक शूटर हैं. गैंग के लोग दिल्ली समेत हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड और राजस्थान में सक्रिय हैं. वे एक इशारे पर मरनेमारने को तैयार रहते हैं.

रंगदारी वसूलने में भी माहिर

वे बड़े ही सुनियोजित तरीके से अपराध को अंजाम देने में माहिर हैं. रंगदारी का एक मामला मोहाली के कारोबारी का सामने आया, जिसे उस ने जेल में रहते हुए अंजाम दिया. वह पंजाब के लारेंस बिश्नोई के 7 सहयोगियों में एक खास बदमाश है. बात  2021 की है. पंजाब की मोहाली पुलिस को एक ईंट भट्ठा कारोबारी कुदरतदीप सिंह ने शिकायत लिखवाई कि 8 अक्तूबर को काला जठेड़ी ने उस से एक करोड़ रुपए की रंगदारी मांगी है. इस शिकायत पर भारतीय दंड संहिता की धारा 506 और 387 के तहत मोहाली पुलिस ने काला जठेड़ी के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया. तब तक काला जठेड़ी एक कुख्यात अपराधी घोषित हो चुका था. उस के खिलाफ जबरन वसूली और हत्या के करीब 40 मामले दर्ज थे.

काला जठेड़ी गैंग के गुर्गे भी कुछ कम शातिर नहीं हैं. एक गुर्गे अक्षय अंतिल उर्फ अक्षय पलड़ा की हिम्मत देखिए, उस ने जेल में एक सिपाही से सिमकार्ड मांगा. वहां से ही एक कारोबारी को फोन कर उस से 5 करोड़ की रंगदारी मांग ली. दिल्ली पुलिस जब इस मामले में सक्रिय हुई तब काला जठेड़ी गैंग से जुड़े अक्षय अंतिल को गिरफ्तार कर लिया गया. हैरानी की बात यह थी कि 22 साल का अक्षय दिल्ली की मंडोली जेल में बंद था और वहीं से काला जठेड़ी का भय दिखा कर दिल्ली के करोलबाग के एक कारोबारी से 5 करोड़ की रंगदारी मांगी थी.

उस के बाद पुलिस ने मंडोली जेल से फिरौती के लिए इस्तेमाल किए गए सिम कार्ड के साथ एक एप्पल आईफोन12 मिनी फोन भी बरामद किया है. इस का खुलासा तब हुआ, जब करोलबाग के एक कारोबारी ने 30 मई, 2021 को शिकायत दे कर बताया कि उसे 5 करोड़ रुपए की रंगदारी के लिए धमकी भरे काल आ रहे हैं. फोन करने वाले ने खुद को लारेंस बिश्नोई गैंग का शार्पशूटर बताया था. जांच में पता चला कि काल बीएसएनएल सिम वाले फोन का उपयोग कर मंडोली जेल दिल्ली से की गई थी. ब्यौरा लेने के बाद मेरठ के एक दुकानदार और सिम जारी करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली आईडी वाले ग्राहक का पता लगाया गया.

उन से गहन पूछताछ में पता चला कि थाना कंकड़खेड़ा, मेरठ, यूपी में तैनात एक कांस्टेबल ने एक सीएनजी मैकेनिक के नाम से यह सिम लिया था. तकनीकी जांच में पता चला कि काल मंडोली जेल से अक्षय पलड़ा द्वारा की गई थी. इस मामले के संदर्भ में पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला मर्डर केस को ले कर भी कान खड़े हो गए. उस में बिश्नाई जठेड़ी गैंग की भूमिका होने की आशंका जताई है. पूछताछ के दौरान इस बात का भी खुलासा हुआ कि पूरी साजिश अक्षय और नरेश सेठी ने मिल कर रची थी. दोनों काला जठेड़ी गैंग से जुड़े हैं.

इस के लिए उन्होंने काला जठेड़ी गैंग के एक अन्य सदस्य राजेश उर्फ रक्का के माध्यम से 2 सिम कार्ड (बीएसएनएल और वोडाफोन) और 2 मोबाइल एप्पल के मिनी और छोटे चाइनीज कीपैड वाले फोन हासिल किए थे. बीएसएनएल सिमकार्ड को एप्पल आईफोन12 मिनी में और वोडाफोन सिम को चाइनीज फोन में लगाया गया था. अक्षय हरियाणा के सोनीपत का रहने वाला है और काला जठेड़ी गिरोह का शातिर शार्प शूटर है. उस पर कत्ल, अपहरण और फिरौती के कई मामले दर्ज हैं. उस का नाम मूसेवाला हत्याकांड में भी एक संदिग्ध के रूप में सामने आया है.

बहरहाल, पिछले साल फरवरी में भागने के बाद काला जठेड़ी विदेशों के दूसरे गैंगस्टरों के साथ जुड़ा रहा. उन में वीरेंद्र प्रताप उर्फ काला राणा (थाईलैंड से संचालित), गोल्डी बराड़ (कनाडा में स्थित) और मोंटी (यूके से संचालित) हैं. उन के साथ वह एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय अपराध गठबंधन का नेतृत्व कर रहा था.

अनुराधा का मिला साथ

पुलिस के अनुसार उन का गठबंधन हाईप्रोफाइल जबरन वसूली, शराब के प्रतिबंधित राज्यों में शराब का अवैध,  अंतरराज्यीय व्यापार, अवैध हथियारों की तसकरी और जमीन पर कब्जा करना शामिल था.

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काला जठेड़ी के साथ सक्रियता के साथ काम करने वालों में शिक्षित युवती अनुराधा भी थी. उस के काला जठेड़ी के साथ लिवइन रिलेशन थे.  पूछताछ में काला जठेड़ी ने अनुराधा के संपर्क में आने का कारण बताया. दरअसल, लारेंस बिश्नोई ने काला जठेड़ी को निर्देश दिया कि वह लेडी डौन अनुराधा की मदद करे. आनंदपाल सिंह की दोस्त अनुराधा से उस की मुलाकात कब प्यार में बदल गई उसे भी नहीं पता चला.

हालांकि बताते हैं दोनों ने हाल में ही शादी भी कर ली थी. लेडी डौन के नाम से कुख्यात अनुराधा के खिलाफ भी कई आपराधिक मामले दर्ज हैं, जो काला जठेड़ी के नाम पर करती रही. यहां तक कि भारत से भागने की कहानी भी उसी ने फैलाई. कहने को तो उस की योजना काला जठेड़ी के साथ कनाडा में शिफ्ट होने की थी, किंतु इस में सफलता नहीं मिल पाई. गैंगस्टर काला जठेड़ी के साथ लेडी डौन अनुराधा की गिरफ्तारी के बाद कई नए खुलासे हुए. वैसे तो कई ऐसे राज का परदाफाश होना अभी बाकी है, लेकिन दोनों के संबंधों और कुख्यात साजिशों के बारे में जो कुछ सामने आया, वह काफी चौंकाने वाला है. उसे सुन कर सुरक्षा एजेंसियों पर भी सवाल खड़े हो गए हैं.

दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल को उन्होंने बताया कि दोनों बतौर पतिपत्नी कनाडा में शिफ्ट होने के लिए नेपाल से पासपोर्ट बनवाने की तैयारी में थे. इस के लिए उन्होंने शादी रचाई थी. पुलिस पर अपना प्रभाव जमाने के लिए अनुराधा पूछताछ के दौरान जांच अधिकारियों से सिर्फ फर्राटेदार अंगरेजी में ही बात करती है. खाली वक्त में अंगरेजी की किताब मांगती है. पूछताछ में अनुराधा ने बताया कि उसी ने काला जठेड़ी को हुलिया बदलने के लिए कहा था. उल्लेखनीय है कि जब काला जठेड़ी पकड़ा गया था, तब वह सिख के वेश में था. उस के कहने पर ही जठेड़ी ने सरदार का हुलिया बना लिया था.

मंदिर में शादी के बाद दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे थे और अपनी पहचान बदल कर फरजी आईडी पर दोनों ने अपना नाम पुनीत भल्ला और पूजा भल्ला रख लिया था. स्पैशल सेल के सूत्रों के अनुसार, जब अनुराधा राजस्थान के गैंगस्टर आंनदपाल सिंह के साथ काम करती थी, तब उस समय उस का भी हुलिया उस ने ही बदलवाया था. आंनदपाल के कपड़े पहनने, रहनसहन और बौडी लैंग्वेज के अनुसार बोलचाल आदि की भी ट्रेनिंग दी थी. यहां तक कि अपना जुर्म का काला धंधा कैसे चलाए, इस का फैसला भी अनुराधा ही करती थी.

बताते हैं कि अनुराधा की ही प्लानिंग थी कि पुलिस की नजरों में काला जठेड़ी का ठिकाना विदेश बताया जाए. उस ने ही काला जठेड़ी के गैंग के सभी सदस्यों को यह कह रखा था कि अगर वह पुलिस के हत्थे चढ़ जाएं तो पुलिस को यही बताएं कि काला जठेड़ी अब विदेश में है और वहीं से अपना गैंग औपरेट कर रहा है. यह सब एक सोचीसमझी प्लानिंग थी. अनुराधा जानती थी कि जुर्म की दुनिया में अगर पुलिस को थोड़ी सी भी भनक लग गई तो काला जठेड़ी का हाल भी आंनदपाल जैसा हो सकता है.

गैंगस्टर ने पूछताछ में बताया है कि उस के गुर्गे दिल्ली और देश के कई अन्य राज्यों में फैले हुए हैं. उस के बाद से दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल अब राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब समेत अन्य राज्यों में इन गुर्गों की तलाश में जुट गई है. उन में हरियाणा के सोनीपत का रहने वाला मनप्रीत राठी व बच्ची गैंगस्टर, गोल्डी बरार, कैथल निवासी मंजीत राठी और झज्जर का रहने वाला दीपक है.

पिछले दिनों ओलंपिक में मेडल जीतने वाले सुशील कुमार पर भी हत्या का आरोप लगा था और उस का नाम भी गैंगस्टर में शामिल हो गया था. गिरफ्तारी से पहले सुशील कुमार ने भी दिल्ली में जमीन की खरीदफरोख्त सहित अन्य काले कारनामों के लिए जठेड़ी के साथ हाथ मिला लिया था. बाद में दोनों में दुश्मनी हो गई. दिल्ली के स्टेडियम में पहलवान सागर धनखड़ की पिटाई के बाद मौत के मामले में सुशील गिरफ्तार हो गया. सागर के साथ सोनू महाल नामक शख्स की भी पिटाई हुई थी, जो रिश्ते में काला जठेड़ी का भांजा होने के साथ ही दाहिना हाथ भी माना जाता है.

बनना चाहता था सिपाही

पूछताछ में काला जठेड़ी ने एक और चौंकाने वाला खुलासा किया. उस ने बताया कि वह दिल्ली पुलिस का सिपाही बनना चाहता था. इस के लिए उस ने परीक्षा भी दी थी, लेकिन पास नहीं हो पाया था. उस ने हरियाणा पुलिस में भी सिपाही का आवेदन किया था, लेकिन सेलेक्शन नहीं हुआ. उस ने बताया कि अगर उस का सपना न टूटा होता तो वह अपराधी भी नहीं होता. उस के बाद ही वह बदमाशों के संपर्क में आ गया और कई राज्यों का वांछित बदमाश बन गया.

इस बारे में उस ने स्पैशल सेल को बताया कि वर्ष 2002 में सोनीपत आईटीआई से सर्टिफिकेट कोर्स कर रहा था. उसी दौरान उस ने पुलिस में सिपाही बनने के लिए आवेदन किया था. इस के लिए उस ने दिल्ली और हरियाणा पुलिस में सिपाही भरती में हिस्सा लिया. दोनों ही जगह परीक्षा पास नहीं कर सका. सिपाही में भरती न हो पाने के बाद वह परिजनों से कुछ रुपए ले कर दिल्ली आ गया. यहां आ कर वह छोटेछोटे अपराध में लिप्त हो गया.

वर्ष 2004 में दिल्ली के समयपुर बादली थाना पुलिस ने पहली बार मोबाइल झपटमारी में काला को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. झपटमारी में जमानत मिलने पर वह वापस गांव लौट आया. वहीं खेती में पिता का हाथ बंटाने के साथ केबल कारोबार में लग गया.

बहरहाल, काला जठेड़ी भले ही जेल में हो, लेकिन उस के गैंग के कई राज्यों में फैले हुए गुर्गे उस के इशारे पर कब किसी अपराध को अंजाम दे दें कहना मुश्किल है.

Extramarital Affair : चचेरे देवर के साथ मिलकर कर दी पति की हत्या

जब कोई पूरी योजना बना कर किसी की हत्या करता है, उस की सोच यह होती है कि वह पकड़ा नहीं जाएगा. लेकिन कानून के शिकंजे से बचना आसान नहीं होता. सरिता और बलराम ने भी…

उत्तर प्रदेश के मीरजापुर जिले में मीरजापुरइलाहाबाद मार्ग से सटा एक गांव है-महड़ौरा. विंध्यक्षेत्र की पहाड़ी से लगा यह गांव हरियाली के साथसाथ बहुत शांतिप्रिय गांवों में गिना जाता है. इसी गांव के रहने वाले बंसीलाल सरोज ने रेलवे की नौकरी से रिटायर होने के बाद बड़ा सा पक्का मकान बनवाया, जिस में वह अपने पूरे परिवार के साथ रहते थे. उन के भरेपूरे परिवार में पत्नी, 2 बेटे, एक बेटी और बहू थी. गांव में बंसीलाल सरोज के पास खेती की जमीन थी, जिस पर उन का बड़ा बेटा रणजीत कुमार सरोज उर्फ बुलबुल सब्जी की खेती करता था. खेती के साथसाथ रणजीत अपने मामा के साथ मिल कर होटल भी चलाता था.

जबकि छोटा राकेश सरोज कानपुर में बिजली विभाग में नौकरी करता था. वह कानपुर में ही रहता था. महड़ौरा में 9-10 कमरों का अपना शानदार मकान होने के साथसाथ बंसीलाल के पास गांव से कुछ दूर सरोह भटेवरा में दूसरा मकान भी था. रात में वह उसी मकान में सोया करते थे. बंसीलाल के परिवार की गाड़ी जिंदगी रूपी पटरी पर हंसीखुशी से चल रही थी. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी. दोनों बेटे अपनेअपने पैरों पर खड़े हो चुके थे, जबकि वह खुद इतनी पेंशन पाते थे कि अकेले अपने दम पर पूरे परिवार का खर्च उठा सकते थे.

बड़ा बेटा रणजीत कुमार सुबह होने पर खेतों पर चला जाता था, फिर दोपहर में उसे वहां से होटल पर जाना होता था. जहां से वह रात में वापस लौटता था और खापी कर सो जाता था. यह उस की रोज की दिनचर्या थी. रणजीत की 3 बेटियां थीं. 10 साल की माया, 7 साल की क्षमा और 3 साल की स्वाति. वह अपनी बेटियों को दिलोजान से चाहता था और उन्हें बेटों की तरह प्यार करता था. उस की बेटियां भी अपनी मां से ज्यादा पिता को चाहती थीं. व्यवहारकुशल, मृदुभाषी रणजीत गांव में सभी को अच्छा लगता था. वह जिस से भी मिलता, हंस कर ही बोलता था. खेतीकिसानी और होटल के काम से उसे फुर्सत ही नहीं मिलती थी. उसे थोड़ाबहुत जो समय मिलता था, उसे वह अपने बीवीबच्चों के साथ गुजारता था.

सोमवार 19 मार्च, 2018 का दिन था. रात होने पर रणजीत कुमार रोज की तरह होटल से घर आया तो उस की पत्नी सरिता उसे खाने का टिफिन पकड़ाते हुए बोली, ‘‘लो जी, दूसरे मकान पर बाबूजी को खाना दे आओ. आज काफी देर हो गई है, बाबूजी इंतजार कर रहे होंगे. आप खाना दे कर आओ तब तक मैं आप के लिए खाने की थाली लगा देती हूं.’’

पत्नी के हाथ से खाने का टिफिन ले कर रणजीत दूसरे मकान पर चला गया, जहां उस के पिता बंसीलाल रात में सोने जाया करते थे. उन का रात का खाना अकसर उसी मकान पर जाता था. रणजीत उन्हें खाना दे कर जल्दी ही लौट आया और घर आ कर खाना खाने बैठ गया. खाना खाने के बाद वह अपने कमरे में सोने चला गया. रणजीत की मां, पत्नी सरिता, बहन सोनी और रणजीत की तीनों बेटियां बरांडे में सो गईं. रणजीत बना निशाना रणजीत सोते समय अपने कमरे का दरवाजा खुला रखता था. उस दिन भी वह अपने कमरे का दरवाजा खुला छोड़ कर सोया था. देर रात पीछे से चारदीवारी फांद कर किसी ने रणजीत के कमरे में प्रवेश किया और पेट पर धारदार हथियार से वार कर के उसे मौत की नींद सुला दिया.

उस पर इतने वार किए गए थे कि उस की आंतें तक बाहर आ गई थीं. रणजीत की मौके पर ही मौत हो गई थी. आननफानन में घर वाले उसे अस्पताल ले कर भागे, लेकिन वहां डाक्टरों ने रणजीत को देखते ही मृत घोषित कर दिया. भोर में जैसे ही इस घटना की सूचना पुलिस को मिली वैसे ही विंध्याचल कोतवाली प्रभारी अशोक कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ गांव पहुंच गए. वहां गांव वालों का हुजूम लगा हुआ था. अशोक कुमार सिंह ने इस घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी. इस के बाद उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया. घर के उस कमरे में जहां रणजीत सोया हुआ था, काफी मात्रा में खून पड़ा हुआ था. मौकाएवारदात को देखने से यह साफ हो गई कि जिस बेदर्दी के साथ रणजीत की हत्या की गई थी, संभवत: वारदात में कई लोग शामिल रहे होंगे.

यह भी लग रहा था कि या तो हत्यारों की रणजीत से कोई अदावत रही होगी या किसी बात को ले कर वह उस से खार खाए होंगे. इसी वजह से उसे बड़ी बेरहमी से किसी धारदार हथियार से गोदा गया था. खून के छींटे कमरे के साथसाथ बाहर सीढि़यों तक फैले थे. इंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह ने आसपास नजरें दौड़ा कर जायजा लिया तो देखा, जिस कमरे में वारदात को अंजाम  दिया गया था, वह कमरा घर के पीछे था. संभवत हत्यारे पीछे की दीवार फांद कर अंदर आए होंगे और हत्या कर के उसी तरह भाग गए होंगे. इसी के साथ उन्हें एक बात यह भी खटक रही थी कि हो न हो इस वारदात में किसी करीबी का हाथ रहा हो. घटनास्थल की वस्तुस्थिति और हालात इसी ओर इशारा कर रहे थे. ताज्जुब की बात यह थी कि इतनी बड़ी घटना होने के बाद भी घर के किसी मेंबर को कानोंकान खबर नहीं हुई थी.

बहरहाल, अशोक कुमार सिंह ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर मृतक रणजीत के बारे में जानकारी एकत्र की और थाने लौट आए. उन्होंने रणजीत के पिता बंसीलाल सरोज की लिखित तहरीर के आधार पर अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत केस दर्ज कर के जांच शुरू कर दी. रणजीत की हत्या होने की खबर आसपास के गांवों तक पहुंची तो तमाम लोग महड़ौरा में एकत्र हो गए. हत्या को ले कर लोगों में आक्रोश था. आक्रोश के साथसाथ भीड़ भी बढ़ती गई. महिलाएं और बच्चे भी भीड़ में शामिल थे. आक्रोशित भीड़ ने गांव के बाहर मेन रोड पर पहुंच कर इलाहाबाद मीरजापुर मार्ग जाम कर दिया. दोनों तरफ का आवागमन बुरी तरह ठप्प हो गया. गुस्से के मारे लोग पुलिस के विरोध में नारे लगाने के साथ मृतक के हत्यारों को गिरफ्तार करने और उस की बीवी को मुआवजा दिलाने की मांग कर रहे थे.

धरना बना जी का जंजाल इस की जानकारी मिलने पर विंध्याचल कोतवाली की पुलिस वहां पहुंच गई, जहां भीड़ जाम लगाए हुए थी. जाम के चलते इंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह ने धरने पर बैठे गांव वालों को समझाने का प्रयास किया, लेकिन वे किसी भी सूरत में पीछे हटने को तैयार नहीं थे. अपना प्रयास विफल होता देख उन्होंने अपने उच्चाधिकारियों को वहां की स्थिति बता कर पुलिस फोर्स भेजने को कहा, ताकि कोई अप्रिय घटना न घट सके. वायरलैस पर सड़क जाम की सूचना प्रसारित होते ही पड़ोसी थानों जिगना, गैपुरा और अष्टभुजा पुलिस चौकी के अलावा जिला मुख्यालय से पहुंची पुलिस और पीएसी ने मौके पर पहुंच कर मोर्चा संभाल लिया. कुछ ही देर में पुलिस अधीक्षक आशीष तिवारी सहित अन्य पुलिस और प्रशासन के अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए.

अधिकारियों ने ग्रामीणों को विश्वास दिलाया कि रणजीत के हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर लिया जाएगा. काफी समझाने के बाद ग्रामीण मान गए और उन्होंने धरना समाप्त कर दिया. इस के साथ ही धीरेधीरे जाम भी खत्म हो गया. जाम समाप्त होने के बाद विंध्याचल कोतवाली पहुंचे पुलिस अधीक्षक आशीष तिवारी ने रणजीत के हत्यारों को हर हाल में जल्दी से जल्दी गिरफ्तार कर के इस केस को खोलने का सख्त निर्देश दिया. पुलिस अधीक्षक के सख्त तेवरों को देख कोतवाली प्रभारी अशोक कुमार और उन के मातहत अफसर जीजान से जांच में जुट गए. अशोक कुमार सिंह ने इस केस की नए सिरे से छानबीन करते हुए मृतक रणजीत के पिता बंसीलाल से पूछताछ करनी जरूरी समझी. इस के लिए वह महड़ौरा स्थित बंसीलाल के घर पहुंचे, जहां उन्होंने बंसीलाल से एकांत में बात की.

इस बातचीत में उन्होंने रणजीत से जुड़ी छोटी से छोटी जानकारी जुटाई. बंसीलाल से हुई बातों में एक बात चौंकाने वाली थी जो रणजीत की पत्नी सरिता से संबंधित थी. पता चला उस का चालचलन ठीक नहीं था. इस संबंध में रणजीत के पिता बंसीलाल ने इशारोंइशारों में काफी कुछ कह दिया था. पिता से मिला क्लू बना जांच का आधार इस जानकारी से इंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह की आंखों में चमक आ गई. उन्होंने पूछताछ के लिए मृतक रणजीत की पत्नी सरिता और उस के चचेरे भाई बलराम सरोज को थाने बुलाया. लेकिन इन दोनों ने कुछ खास नहीं बताया. दोनों बारबार खुद को बेगुनाह बताते रहे.

बलराम रणजीत का भाई होने का तो सरिता पति होने का वास्ता देती रही. दोनों के घडि़याली आंसुओं को देख कर इंसपेक्टर अशोक कुमार ने उस दिन उन्हें छोड़ दिया, लेकिन उन पर नजर रखने लगे. इसी बीच उन के एक खास मुखबिर ने सूचना दी कि सरिता और बलराम भागने के चक्कर में हैं. मुखबिर की बात सुन कर अशोक कुमार सिंह ने बिना समय गंवाए 29 मार्च को महड़ौरा से सरिता को थाने बुलवा लिया. साथ ही उस के चचेरे देवर बलराम को भी उठवा लिया. थाने लाने के बाद दोनों से अलगअलग पूछताछ की गई. पूछताछ के लिए पहला नंबर सरिता का आया. वह पुलिस को घुमाने का प्रयास करते हुए अपने सुहाग का वास्ता दे कर बोली, ‘‘साहब, आप कैसी बातें कर रहे हैं, भला कोई अपने ही हाथों से अपने सुहाग को उजाड़ेगा? साहब, जरूर किसी ने आप को बहकाया है. आखिरकार मुझे कमी क्या थी, जो मैं ऐसा करती?’’

उस की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि इंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह बोले, ‘‘देखो सरिता, तुम ज्यादा सती सावित्री बनने की कोशिश मत करो, तुम्हारी भलाई इसी में है कि सब कुछ सचसच बता दो वरना मुझे दूसरा रास्ता अख्तियार करना पड़ेगा.’’ लेकिन सरिता पर उन की बातों का जरा भी असर नहीं पड़ा. वह अपनी ही रट लगाए हुई थी. अशोक कुमार सिंह सरिता के बाद उस के चचेरे देवर बलराम से मुखातिब हुए, ‘‘हां तो बलराम, तुम कुछ बोलोगे या तुम से भी बुलवाना पड़ेगा.’’

‘‘म…मम…मतलब. मैं कुछ समझा नहीं साहब.’’

‘‘नहीं समझे तो समझ आओ. मुझे यह बताओ कि तुम ने रणजीत को क्यों मारा?’’

‘‘साहब, आप यह क्या कह रहे हैं, रणजीत मेरा भाई था, भला कोई अपने भाई की हत्या क्यों करेगा? मेरी उस से खूब पटती थी. उस के मरने का सब से ज्यादा गम मुझे ही है. और आप मुझे ही दोषी ठहराने पर तुले हैं.’’

उस की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि अचानक इंसपेक्टर अशोक कुमार का झन्नाटेदार थप्पड़ उस के गाल पर पड़ा. वह अपना चेहरा छिपा कर बैठ गया. अभी वह कुछ सोच ही रहा था कि इंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह बोले, ‘‘बलराम, भाई प्रेम को ले कर तुम्हारी जो सक्रियता थी, वह मैं देख रहा था. तुम्हारा प्रेम किस से और कितना था, यह सब भी मुझे पता चल चुका है. तुम ने रणजीत को क्यों और किस के लिए मारा, वह भी तुम्हारे सामने है.’’

उन्होंने सरिता की ओर इशारा करते हुए कहा तो बलराम की नजरें झुक गईं. उसे इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि उस की बनाई कहानी का अंत इतनी आसानी से हो जाएगा और पुलिस उस से सच उगलवा लेगी. तीर निशाने पर लगता देख इंसपेक्टर अशोक कुमार सिह ने बिना देर किए तपाक से कहा, ‘‘अब तुम्हारी भलाई इसी में है, दोनों साफसाफ बता दो कि रणजीत की हत्या क्यों और किसलिए की, वरना मुझे दूसरा तरीका अपनाना पड़ेगा.’’

खुल गया रणजीत की हत्या का राज सरिता और बलराम ने खुद को चारों ओर से घिरा देख कर सच्चाई उगलने में ही भलाई समझी. पुलिस ने दोनों को विधिवत गिरफ्तार कर के पूछताछ की तो रणजीत के कत्ल की कहानी परत दर परत खुलती गई. बलराम ने अपना जुर्म कबूल करते हुए बताया कि न जाने कैसे रणजीत को उस के और सरिता के प्रेम संबंधों की जानकारी मिल गई थी. फलस्वरूप वह उन दोनों के संबंधों में बाधक बनने लगा. यहां तक कि उस ने बलराम को अपनी पत्नी से मिलने के लिए मना कर दिया था. इसी के मद्देनजर सरिता और बलराम ने योजनाबद्ध तरीके से रणजीत की हत्या की योजना बनाई. योजना के मुताबिक बलराम ने घर में घुस कर बरामदे में सोए रणजीत की चाकू घोंप कर हत्या कर दी.

बलराम की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल किया गया चाकू घर से 2 सौ मीटर दूर गेहूं के खेत से बरामद कर लिया. सरिता और बलराम ने स्वीकार किया कि जिस चाकू से रणजीत की हत्या की गई थी, उसे बलराम ने हत्या से एक दिन पहले ही गांव के एक लोहार से बनवाया था. पुलिस ने उस लोहार से भी पूछताछ की. उस ने इस की पुष्टि की. पुलिस लाइन में आयोजित पत्रकार वार्ता के दौरान पुलिस अधीक्षक आशीष तिवारी ने खुलासा करते हुए बताया कि रणजीत सरोज की पत्नी के अवैध संबंध उस के चचेरे भाई बलराम से पिछले 5 वर्षों से थे. रणजीत ने दोनों को एक बार रंगेहाथों पकड़ा था. उस वक्त घर वालों ने गांव में परिवार की बदनामी की वजह से इस मामले को घर में ही दबा दिया था. साथ ही दोनों को डांटाफटकारा भी था.

रणजीत ने बलराम को घर में आने से मना भी कर दिया था. इस से सरिता अंदर ही अंदर जलने लगी थी. उसे चचेरे देवर से मिलने की कोई राह नहीं सूझी तो उस ने बलराम के साथ मिल कर पति की हत्या की योजना तैयार की ताकि पिछले 5 सालों से चल रहे प्रेम संबंध चलते रहें. पकड़े जाने पर दोनों ने पुलिस और मीडिया के सामने अपना जुर्म कबूल करते हुए अवैध संबंधों में हत्या की बात मानी. दोनों ने पूरी घटना के बारे में विस्तार से बताया. रणजीत हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने के बाद पुलिस ने पूर्व  में दर्ज मुकदमे में अज्ञात की जगह सरिता और बलराम का नाम शामिल कर के दोनों को जेल भेज दिया.

 

Double Murder की सूचना पाकर पुलिस के उड़े होश

कुछ लोग पत्नी में कमियां निकाल कर उस से पीछा छुड़ाने के लिए अपराध का रास्ता चुनते हैं. इस में वे कामयाब भी हो जाते हैं लेकिन उस वक्त वे भूल जाते हैं कि हर अपराध की एक सजा भी होती है. थाना बनियाठेर के थानाप्रभारी प्रवीण सोलंकी रात भर गश्त कर के सुबह 5 बजे अपने कमरे पर पहुंचे. वह आराम करने के लिए लेटे ही थे कि मोबाइल की घंटी बज उठी. उन्होंने काल रिसीव की तो फोन करने वाले अज्ञात व्यक्ति ने बताया कि रसूलपुर के पास कैली गांव में मांबेटी की हत्या कर दी गई है.

डबल मर्डर की सूचना से उन की नींद काफूर हो गई. वह अपने मातहतों को ले कर घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. यह बात 19 जून, 2018 की है. थानाप्रभारी ने यह जानकारी उच्च अधिकारियों को भी दे दी. गांव कैली थाने से करीब एक किलोमीटर दूर है, इसलिए प्रवीण सोलंकी करीब 10 मिनट में कैली गांव पहुंच गए. गांव जा कर उन्हें पता चला कि घटना भारत सिंह के घर में घटी है. थानाप्रभारी ने वहां जा कर देखा तो एक कमरे में एक ही चारपाई पर बेटी पूनम और उस के ऊपर उस की मां शांति की लाशें पड़ी थीं. मां के गले में उसी की साड़ी का फंदा कसा हुआ था, साथ ही उस का गला भी कटा हुआ था. चारपाई के पास जमीन पर काफी खून पड़ा था.

शुरुआती जांच में यही लगा कि दोनों को गला घोंट कर मारा गया है और बाद में गला काटा गया है. चारपाई से दूर एक कोने में कुछ टूटी हुई चूडि़यां पड़ी थीं. पूनम के शरीर पर खरोंचों के भी निशान थे, जिस से लग रहा था कि उस ने हत्यारों से अपने बचाव का प्रयास किया था. कुछ ही देर में घटनास्थल पर कप्तान राधेमोहन भारद्वाज, एडीशनल एसपी पंकज कुमार मिश्र और सीओ ओमकार सिंह यादव भी पहुंच गए. उन्होंने थानाप्रभारी को निर्देश दिए. इस के बाद थानाप्रभारी ने लाशें पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दीं.

कैली गांव उत्तर प्रदेश के जिला संभल की तहसील मुख्यालय से करीब 8 किलोमीटर दूर है. करीब 3 हजार की आबादी वाले इस गांव में चंद्रपाल का परिवार रहता था. उस के 4 बेटे और 2 बेटियां थीं. करीब 30 वर्ष पूर्व चंद्रपाल की दर्दनाक मौत हो गई थी. उस की मौत के पीछे की भी एक अलग कहानी थी. दरअसल गांव में पेयजल का संकट था. चंद्रपाल के घर के सामने कुएं की खुदाई चल रही थी. चंद्रपाल भी खुदाई कर रहा था. काफी गहराई तक मिट्टी निकाली जा चुकी थी. तभी अचानक ऊपर से मिट्टी की ढांग गिर कई और चंद्रपाल जिंदा ही दफन हो गया.

उस समय इतने संसाधन नहीं थे कि चंद्रपाल को जल्दी निकाला जा सके. फिर भी गांव वालों ने जैसेतैसे उसे बाहर निकाला लेकिन तब तक उस की मौत हो चुकी थी. इस के बाद गांव वालों ने वह कुआं फिर से मिट्टी से भर दिया. बाद में जब चंद्रपाल के बेटे जवान हुए तो उन्होंने गांव वालों के सहयोग से पिता के मिशन को पूरा किया. कुआं तैयार हो जाने के बाद गांव में पेयजल की समस्या दूर हो गई. जिस समय चंद्रपाल की मौत हुई थी, उस समय उस के सभी बच्चे छोटे थे यानी शांति भरी जवानी में विधवा हो गई थी. उस के सामने 6 बच्चों के पालनपोषण की समस्या थी. ऐसे में एक रिश्तेदार भारत सिंह ने शांति के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा.

भारत सिंह मुरादाबाद जिले की पुलिस चौकी जरगांव के अंतर्गत आने वाले भूड़ी गांव का निवासी था. उस की पत्नी की मौत भी एक हृदयविदारक घटना में हुई थी. भारत सिंह का विवाह करीब 32 साल पहले गांव नानपुर की मिलक, जिला रामपुर की महेंद्री नाम की युवती से हुआ था. एक दिन अचानक रात में डाकुओं ने भूड़ी गांव पर धावा बोल दिया. गांव वालों ने भी मोर्चा संभाला. डाकू लगातार फायरिंग कर रहे थे. ग्रामीण फायरिंग का जवाब ईंटपत्थरों से दे रहे थे. लेकिन उन का मुकाबला करने में वे नाकाम रहे. तब अधिकांश लोग जान बचाने के लिए जंगलों की ओर भागने लगे.

भारत सिंह भी अपने भाइयों राधेश्याम व सूरज सिंह के साथ जंगल में भाग गया. भारत सिंह की पत्नी महेंद्री गहरी नींद में सो रही थी. वह घर में अकेली रह गई. उस समय उस की कोख में 6 महीने का बच्चा था. महेंद्री की जब आंख खुली तो खुद को घर में अकेला देख वह घबरा गई. फायरिंग की आवाज सुन कर वह माजरा समझ गई. बदहवास महेंद्री ने भी जान बचाने की खातिर घर से जंगल की ओर दौड़ लगा दी. भागते वक्त वह ठोकर खा कर गिर गई. जब डाकू गांव में लूटपाट कर के चले गए, तब गांव के लोग घर वापस आए. रास्ते में लोगों ने महेंद्री को तड़पते हुए देखा. भारत सिंह भी पत्नी के पास पहुंच गया. उस की हालत देख कर उस के होश उड़ गए.

घर वाले महेंद्री को उठा कर घर ले आए. खून बहता देख वे लोग समझ गए कि पेट में पल रहे नवजात को हानि पहुंची है. महेंद्री भी बेहोशी की हालत में थी. आधी रात का समय था. इलाज के लिए शहर में ले जाने का कोई साधन नहीं था. घरों में लूटपाट होने की वजह से गांव में वैसे ही कोहराम मचा था. कोई भी गाड़ी ले कर जाने का साहस नहीं जुटा पा रहा था. फलस्वरूप सुबह होने से पहले ही महेंद्री की मौत हो गई. भारत सिंह की शादी हुए केवल 4 साल हुए थे. पत्नी की मौत के बाद वह खोयाखोया सा रहने लगा था. फिर एक रिश्तेदार के सुझाव पर उस ने 6 बच्चों की मां, विधवा शांति देवी के साथ कराव कर लिया. दरअसल हिंदू विवाह संस्कार के अनुसार अग्नि के सात फेरे और कन्यादान एक बार ही किया जाता है. चूंकि शादी के समय शांति सात फेरे ले चुकी थी और उस का कन्यादान भी हो चुका था, इसलिए भारत के साथ वह दूसरी बार अग्नि के फेरे नहीं ले सकती थी, इसलिए उस का कराव करा दिया गया.

इस के बाद भारत सिंह व शांति का दांपत्य जीवन हंसीखुशी से गुजरने लगा. कुछ दिनों बाद ही भारत सिंह अपने हिस्से की डेढ़ बीघा जमीन बेच कर और घर अपने भाइयों को दे कर कैली में आ कर रहने लगा. वह मेहनतमजदूरी कर के बच्चों का पालनपोषण करने लगा. इस बीच उस के 3 बच्चे और हुए. जैसेजैसे बच्चे बड़े हुए, भारत सिंह ने उन की शादी कर दी. उस ने सब से छोटी बेटी पूनम का विवाह इसी साल 18 फरवरी को अनिल के साथ कर दिया था. अनिल चंदौसी शहर के हनुमानगढ़ी मोहल्ले में रहता था. पूनम देहाती माहौल में पलीबढ़ी थी जबकि उस की शादी शहर के लड़के से हुई थी. कई महीने तक शहर में रहने के बावजूद  वह खुद को शहरी माहौल में नहीं ढाल पाई. ससुराल वाले उसे लाख समझाते पर वह खुद को बदलने के लिए तैयार नहीं थी.

अनिल विवाह आदि समारोहों में फोटोग्राफी व वीडियोग्राफी का काम करता था. रात को देर से आना उस की पेशेगत मजबूरी थी. जब वह कहीं बुकिंग पर नहीं जाता, तब भी वह शराब के नशे में देर से घर आता था. पूनम को उस का शराब पीना पसंद नहीं था. वैचारिक मतभेद के साथ दोनों के बीच मनभेद भी बढ़ता चला गया. अनिल और पूनम के 4 महीने के वैवाहिक जीवन में घरेलू कलह रहने लगी थी. विवाद बढ़ने पर कई बार अनिल ने पूनम की पिटाई भी कर दी थी, जिस से उस के कान में चोट आई थी. ससुराल में पूनम की उपेक्षा बढ़ती जा रही थी. एक बार पूनम को बुखार आया तो अनिल उसे उस के मायके छोड़ आया. मायके वालों ने पूनम का इलाज कराया.

चोट की वजह से उस के कान में दर्द रहने लगा था. मायके वालों ने उस के कान का भी इलाज कराया. पूनम के मायके वाले  उस के दांपत्य जीवन को सुखी बनाए रखने के प्रयास में लगे रहे. 25 मई, 2018 को कैली गांव में किसी की शादी थी. शादी की दावत में पूनम व उस के पति अनिल को भी आमंत्रित किया गया था. अनिल ससुराल से पत्नी को साथ ला कर विवाह समारोह में शामिल हुआ. इस के बाद अनिल अपनी पत्नी पूनम को मायके में छोड़ कर रात में ही अपने गांव चला गया. ससुराल वालों ने उस से रात में वहीं रुकने का आग्रह करते हुए कहा कि सुबह पूनम को भी साथ ले कर चला जाए. इस पर अनिल ने कहा कि 2-4 दिन बाद आ कर उसे ले आएगा. लेकिन 15 दिन बीत गए और अनिल पूनम को लेने नहीं आया. पूनम उस से मोबाइल पर बात करना चाहती तो वह कोई न कोई बहाना बना कर उस से बात नहीं करता था. वह कहता था कि 2-4 दिन में उसे लेने आ जाएगा. इस तरह वह उसे टालता रहा.

19 जून को पूनम व उस की मां की हत्या से घर में कोहराम मच गया था. पूरा गांव शोक में डूबा था. भारत सिंह का रोरो कर बुरा हाल था. मांबेटी की अर्थी जब एक साथ उठी तो शवयात्रा में शामिल ग्रामीणों की आंखें नम हो गईं.  उधर पुलिस ने अपनी जांच भारत सिंह से शुरू की. भारत ने पुलिस को बताया कि 18 जून की रात अनिल के पिता फूल सिंह का फोन आया था. उन्होंने बताया था कि अनिल पूनम को लेने गांव गया हुआ है. उस समय वह खेतों पर लगी मेंथा की टंकी पर था. वहां वह किसानों का मेंथा औयल निकालता था. इस काम से उसे अच्छीखासी आमदनी हो जाती थी. उस रात वह घर नहीं आ सका था.

पुलिस को अन्य सूत्रों से भी पता चला कि अनिल उस रात गांव में देखा गया था. पुलिस ने अनिल के घर दबिश दी तो वह घर पर ही मौजूद था. पुलिस उसे पूछताछ के लिए थाने ले आई. जब उस से पूनम और उस की मां की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो वह काफी देर तक पुलिस को गुमराह करता रहा. पुलिस ने थोड़ी सख्ती की तो वह टूट गया और उस ने अपने जुर्म का इकबाल कर लिया. फिर डबल मर्डर की कहानी कुछ इस तरह सामने आई. अनिल ने बताया कि गंवार संस्कृति की पूनम से वह पीछा छुड़ाना चाहता था. वह उस के दिल से पूरी तरह उतर चुकी थी, इसलिए वह उसे मायके छोड़ गया था. लेकिन उस के घर वाले उसे साथ ले जाने के लिए दबाव बना रहे थे. उधर पूनम भी बारबार उसे आने के लिए फोन करती रहती थी. किसी भी तरह वह उस से पीछा छुड़ाना चाहता था.

18 जून, 2018 की शाम को उस के पास पूनम का फोन आया. तब अनिल ने अपनी ससुराल के लोगों के बारे में जानकारी की. पता चला कि उस के पिता व भाई घर पर नहीं हैं. पिता मेंथा टंकी पर हैं और भाई खेत पर. कुछ अपनी रिश्तेदारियों में गए हुए हैं. घर पर पूनम और उस की मां ही है. उसे ऐसे ही मौके की तलाश थी. पूनम अपनी मां के साथ गांव की हवेली से दूर अंतिम सिरे पर स्थित घेर कहे जाने वाले मकान में थी. सुनील जानता था कि पूनम के पांचों भाई अपने परिवार के साथ अंदर वाली हवेली में रहते हैं. पूनम की मां धार्मिक प्रवृत्ति की थी. वह ज्यादातर अपने हाथ का ही बना सादा भोजन करती थी. कभीकभी वह बहुओं द्वारा बनाया गया सादा भोजन भी खा लेती थी.

अनिल अपने दोस्त कौशल के साथ बाइक से घेर वाले उस मकान पर पहुंच गया. वह हाइवे से गांव को जाने वाली सड़क से न जा कर मकान के उत्तर में खाली प्लौटों से होता हुआ गया. उस ने बाइक भी कुछ दूर मकान की दीवार से सटा कर खड़ी कर दी थी. वहां से वह योजनानुसार पैदल ही घर पहुंचे, जिस से आसपड़ोस वालों को पता न चल सके कि पूनम के घर कोई आया है. पूनम अपनी मां शांति के साथ छत पर लेटी हुई थी. अनिल को देख पूनम की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा. मांबेटी ने दोनों का आदरसत्कार किया. चायनाश्ते के बाद अनिल ने अपनी सास व अपने दोस्त को यह कह कर ऊपर छत पर भेज दिया कि पूनम से कुछ बात करनी है. अनिल ने पूनम से कह कर चारपाई बरामदे से उठा कर कमरे में डलवाई. उस समय लाइट भी नहीं थी. पूनम समझ नहीं पा रही थी कि इतनी गरमी में अंदर बैठ कर वह क्या खास बात करेंगे.

अनिल चारपाई पर बैठी पत्नी से औपचारिक बातें करने लगा, तभी अचानक उस ने अपने दोनों हाथों से पूनम का गला पकड़ लिया. पूनम समझ नहीं पाई कि वह क्या कर रहा है. गले पर हाथों का दबाव बढ़ने पर पूनम ने अपने बचाव में हाथपैर चलाने शुरू कर दिए, जिस से उस की चूडि़यां भी टूट गईं और शरीर पर खरोचों के निशान भी पड़ गए. पति के सामने पूनम का संघर्ष असफल रहा. कुछ ही देर में वह चारपाई पर लुढ़क गई. जब अनिल को यकीन हो गया कि पूनम की सांसें थम गई हैं, तब उस ने अपने दोस्त कौशल को नीचे बुलाया. उस के साथ पूनम की मां शांति भी नीचे आ गई.

शांति जब नीचे आई तो पूनम उसे बरामदे में दिखाई नहीं दी. उस ने अनिल से पूनम के बारे में पूछा. अनिल ने इशारा करते हुए कहा कि वह अंदर कमरे में है. शांति जैसे ही कमरे की तरफ बढ़ी, अनिल ने उसे पीछे से दबोच लिया. दोस्त के सहयोग से उस ने सास को भी जमीन पर गिरा कर पहले उस के मुंह में कपड़ा ठूंसा, जिस से उस की आवाज न निकल सके. फिर कौशल ने पैर जकड़े और अनिल ने उसी की साड़ी से उस का गला घोंट दिया. शांति को मारने के बाद दोनों ने उसे जमीन से उठा कर पूनम की लाश के ऊपर डाल दिया. अनिल को यह अहसास हुआ कि सास शांति देवी की सांसें अभी थमी नहीं हैं, तब उस ने उस की गरदन चारपाई से नीचे की ओर लटकाई. कौशल ने लटकती गरदन को पकड़ा और अनिल ने सब्जी काटने के चाकू से गरदन रेत दी.

इस के बाद दोनों वहां से निकल गए. इस मकान से आगे केवल 2 मकान और हैं. उस के बाद आबादी नहीं है. उन्होंने वहां आड़ में खड़ी बाइक उठाई और चले गए. सामने व पड़ोस में रहने वाले किसी भी व्यक्ति को इस दोहरे हत्याकांड की भनक तक नहीं लग सकी. पूनम का एक विकलांग भाई कुंवरपाल 5-6 मकान पहले गली के नुक्कड़ पर स्थित पशुशाला में सोने के लिए आया था. 4 साल की उम्र में उसे पोलियो हो गया था. उस की शादी भी एक विकलांग लड़की से हुई थी. वह बैसाखी के सहारे चलती है. कुंवरपाल रात 10 बजे सोने के लिए पशुशाला में चला जाता था. करीब 25 सदस्यों का इन का संयुक्त परिवार है. सभी का भोजन एक साथ बनता है. सभी भाइयों एवं उन की बहुओं में गजब का सामंजस्य है. कुंवरपाल को भी घटना की जानकारी नहीं लगी.

अनिल से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उस के और उस के दोस्त कौशल के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कर के अनिल को सीजेएम रवि कुमार के समक्ष पेश कर न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया. पुलिस ने दूसरे अभियुक्त कौशल की तलाश में इधरउधर छापे मारे तो उस ने 28 जून, 2018 को अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया. अनिल ने हत्या का कारण यह भी बताया कि पूनम मानसिक रोगी थी और यह बात उस के घर वालों ने उस से छिपाई थी. जबकि परिजनों का कहना है कि उस के इस आरोप के कारण पूनम का सीटी स्कैन कराया था, जिस में वह पूर्ण स्वस्थ पाई गई.

मामले की जांच थानाप्रभारी प्रवीण सोलंकी कर रहे हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

भाभी के प्यार में पागल देवर ने ली साले की जान

फौजी सुरेंद्र के संबंध अपनी भाभी से थे. भाई की मौत के बाद वह उसे अपने साथ रखना चाहता था, जबकि सुरेंद्र की पत्नी ममता ने इस का विरोध किया तब इस सनकी फौजी ने जो किया, उस से 2 घर बरबाद हो गए. कानपुर महानगर के थाना चकेरी के अंतर्गत आने वाले गांव घाऊखेड़ा में बालकृष्ण यादव अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी वीरवती के अलावा 2 बेटियां गीता, ममता और 3 बेटे मोहन, राजेश और श्यामसुंदर थे. बालकृष्ण सेना में थे, इसलिए उन्होंने अपने सभी बच्चों की परवरिश बहुत ही अच्छे ढंग से की थी. उन की पढ़ाईलिखाई भी का भी विशेष ध्यान रखा था.

नौकरी के दौरान ही उन्होंने अपने बड़े बेटे मोहन और बड़ी बेटी गीता की शादी कर दी थी. सन 2004 में बालकृष्ण सेना से रिटायर्ड हो गए थे. अब तक उन के अन्य बच्चे भी सयाने हो गए थे. इसलिए वह एकएक की शादी कर के इस जिम्मेदारी से मुक्ति पाना चाहते थे. इसलिए घर आते ही उन्होंने ममता के लिए अच्छे घरवर की तलाश शुरू कर दी. इसी तलाश में उन्हें अपने दोस्त लक्ष्मण सिंह की याद आई. क्योंकि उन का छोटा बेटा सुरेंद्र सिंह शादी लायक था.

लक्ष्मण सिंह भी उन्हीं के साथ सेना में थे. उन के परिवार में पत्नी लक्ष्मी देवी के अलावा 2 बेटे वीरेंद्र और सुरेंद्र थे. वीरेंद्र प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था, जबकि सुरेंद्र की नौकरी सेना में लग गई थी. वीरेंद्र की शादी कानपुर के ही मोहल्ला श्यामनगर के रहने वाले रामबहादुर की बहन निर्मला से हुई थी. सुरेंद्र की नौकरी लग गई थी, इसलिए लक्ष्मण सिंह भी उस के लिए लड़की देख रहे थे. सुरेंद्र का ख्याल आते ही बालकृष्ण अपने दोस्त के यहां जा पहुंचे. उन्होंने उन से आने का कारण बताया तो दोनों दोस्तों ने दोस्ती को रिश्तेदारी में बदलने का निश्चय कर लिया.

इस के बाद सारी औपचारिकताएं पूरी कर के ममता और सुरेंद्र की शादी हो गई. ममता सतरंगी सपने लिए अपनी ससुराल गांधीग्राम आ गई. यह सन 2005 की बात है. शादी के बाद ममता के दिन हंसीखुशी से गुजरने लगे. लेकिन जल्दी ही ममता की यह खुशी दुखों में बदलने लगी. इस की वजह यह थी कि सुरेंद्र पक्का शराबी था. वह शराब का ही नहीं, शबाब का भी शौकीन था. इस के अलावा उस में सभ्यता और शिष्टता भी नहीं थी. शादी होते ही हर लड़की मां बनने का सपना देखने लगती है. ममता भी मां बनना चाहती थी.

लेकिन जब ममता कई सालों तक मां नहीं बन सकी तो वह इस विषय पर गहराई से विचार करने लगी. जब इस बात पर उस ने गहराई से विचार किया तो उसे लगा कि एक पति जिस तरह पत्नी से व्यवहार करता है, उस तरह का व्यवहार सुरेंद्र उस से नहीं करता. उसी बीच ममता ने महसूस किया कि सुरेंद्र उस के बजाय अपनी भाभी के ज्यादा करीब है. लेकिन वह इस बारे में किसी से कुछ कह नहीं सकी. इस की वजह यह थी कि उस ने कभी दोनों को रंगेहाथों नहीं पकड़ा था. फिर भी उसे संदेह हो गया था कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है.

एक तो वैसे ही ममता को सुरेंद्र के साथ ज्यादा रहने का मौका नहीं मिलता था, दूसरे जब वह घर आता था तो उस से खिंचाखिंचा रहता था. सुरेंद्र ममता को साथ भी नहीं ले जाता था, इसलिए ज्यादातर वह मायके में ही रहती थी. आखिर शादी के 5 सालों बाद ममता का मां बनने का सपना पूरा ही हो गया. उस ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम रखा गया सौम्य. ममता को लगा कि बेटे के पैदा होने से सुरेंद्र बहुत खुश होगा. उन के बीच की जो हलकीफुलकी दरार है, वह भर जाएगी. उस के जीवन में भी खुशियों की बहार आ जाएगी.

लेकिन ऐसा हुआ नहीं, क्योंकि ममता को जैसे ही बेटा पैदा हुआ, उस के कुछ दिनों बाद ही सुरेंद्र के बड़े भाई वीरेंद्र की मौत हो गई. वीरेंद्र की यह मौत कुदरती नहीं थी. वह थोड़ा दबंग किस्म का आदमी था. उस का किसी से झगड़ा हो गया तो सामने वाले ने अपने साथियों के साथ उसे इस तरह मारापीटा कि अस्पताल पहुंचने से पहले ही उस की मौत हो गई. वीरेंद्र की मौत के बाद सुरेंद्र और उस की भाभी के जो नजायज संबंध लुकछिप कर बन रहे थे, अब घरपरिवार और समाज की परवाह किए बगैर बनने लगे. ममता का जो संदेह था, अब सच साबित हो गया. भाभी को हमारे यहां मां का दरजा दिया जाता है, लेकिन सुरेंद्र और निर्मला को इस की कोई परवाह नहीं थी. जेठ के रहते ममता ने इस बात पर खास ध्यान नहीं दिया था. लेकिन जेठ की मौत के बाद सुरेंद्र खुलेआम भाभी के पास आनेजाने लगा.

ममता ने इस का विरोध किया तो उस के ससुर ने कहा, ‘‘ममता, इस मामले में तुम्हारा चुप रहना ही ठीक है. दरअसल मैं ने अपनी सारी प्रौपर्टी पहले ही वीरेंद्र और सुरेंद्र के नाम कर दी थी. निर्मला अभी जवान है. अगर वह कहीं चली गई तो उस के हिस्से की प्रौपर्टी भी उस के साथ चली जाएगी. इसलिए अगर तुम बखेड़ा न करो तो सुरेंद्र उस से शादी कर ले. इस तरह घर की बहू भी घर में ही रह जाएगी और प्रौपर्टी भी.’’

सौतन भला किसे पसंद होती है. इसलिए ससुर की बातें सुन कर ममता तड़प उठी. वह समझ गई कि यहां सब अपने मतलब के साथी हैं. उस का कोई हमदर्द नहीं है. पति गलत रास्ते पर चल रहा है तो ससुर को चाहिए कि वह उसे सही रास्ता दिखाएं और समझाएं. जबकि वह खुद ही उस का समर्थन कर रहे हैं. बल्कि उस से यह कह रहे हैं कि वह सौतन स्वीकार कर ले. उस का पति तो वैसे ही उसे वह मानसम्मान नहीं देता, जिस की वह हकदार है. अगर उस ने भाभी से शादी कर ली तो शायद वह उसे दिल से ही नहीं, घर से भी निकाल दे. यही सब सोच कर ममता ने उस समय इस बात को टालते हुए कहा, ‘‘बाबूजी, यह मेरी ही नहीं, मेरे बच्चे की भी जिंदगी से जुड़ा मामला है. इसलिए मुझे थोड़ा सोचने का समय दीजिए.’’

इस के बाद ममता मायके गई और घरवालों को पूरी बात बताई. ममता की बात सुन कर सभी हैरान रह गए. एकबारगी तो किसी को इस बात पर विश्वास ही नहीं हुआ, क्योंकि निर्मला 3 बच्चों की मां थी. उस समय उस की बड़ी बेटी लगभग 20 साल की थी, उस से छोटा बेटा 16 साल का था तो सब से छोटा बेटा 12 साल का. इस उम्र में निर्मला को अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सोचना चाहिए था, जबकि वह अपने बारे में सोच रही थी. उस की बेटी ब्याहने लायक हो गई थी, जबकि वह खुद अपनी शादी की तैयारी कर रही थी. ममता के घर वालों ने उस से साफसाफ कह दिया कि वह इस बात के लिए कतई न राजी हो. जेठानी को जेठानी ही बने रहने दे, उसे सौतन कतई न बनने दे.

मायके वालों का सहयोग मिला तो सीधीसादी ममता ने अपने ससुर से साफसाफ कह दिया कि वह कतई नहीं चाहती कि उस  का पति उस के रहते दूसरी शादी करे. ममता का यह विद्रोह न सुरेंद्र को पसंद आया, न उस के बाप लक्ष्मण सिंह को. इसलिए बापबेटे दोनों को ही ममता से नफरत हो गई. परिणामस्वरूप दोनों के बीच दरार बढ़ने लगी. ममता सुरेंद्र की परछाई बन कर उस के साथ रहना चाहती थी, जबकि सुरेंद्र उस से दूर भाग रहा था. अब वह छोटीछोटी बातों पर ममता की पिटाई करने लगा. ससुराल के अन्य लोग भी उसे परेशान करने लगे. इस के बावजूद ममता न पति को छोड़ रही थी, न ससुराल को. इतना परेशान करने पर भी ममता न सुरेंद्र को छोड़ रही थी, न उस का घर तो एक दिन सुरेंद्र ने खुद ही मारपीट कर उसे घर से निकाल दिया.

सुरेंद्र ने जिस समय ममता को घर से निकाला था, उस समय उस की पोस्टिंग लखनऊ के कमांड हौस्पिटल में थी. ममता के पिता बालकृष्ण और भाई श्यामसुंदर ने सुरेंद्र के अफसरों से उस की इस हरकत की लिखित शिकायत कर दी. तब अधिकारियों ने सुरेंद्र और ममता को बुला कर दोनों की बात सुनी. चूंकि गलती सुरेंद्र की थी, इसलिए अधिकारियों ने उसे डांटाफटकारा ही नहीं, बल्कि आदेश दिया कि वह ममता को 10 हजार रुपए महीने खर्च के लिए देने के साथ बच्चों को ठीक से पढ़ाएलिखाए. इस के बाद अधिकारियों ने कमांड हौस्पिटल परिसर में ही सुरेंद्र को मकान दिला दिया, जिस से वह पत्नी और बच्चों के साथ रह सके.

अधिकारियों के कहने पर सुरेंद्र ममता को साथ ले कर उसी सरकारी क्वार्टर में रहने तो लगा, लेकिन उस की आदतों में कोई सुधार नहीं आया. उसे जब भी मौका मिलता, वह भाभी से मिलने कानपुर चला जाता. अगर ममता कुछ कहती तो वह उस से लड़नेझगड़ने लगता. साथ रहने पर सुरेंद्र से जितना भी हो सकता था, वह ममता को परेशान करता रहा, इस के बावजूद ममता उस का पीछा छोड़ने को तैयार नहीं थी. अगर सुरेंद्र ज्यादा परेशान करता तो वह उस की ज्यादतियों की शिकायत उस के अधिकारियों से कर देती, जिस से उसे डांटाफटकारा जाता. लखनऊ में रहते हुए ममता ने एक बेटी को जन्म दिया. बेटी के पैदा होने के समय वह मायके आ गई थी. लेकिन 2 महीने के बाद वह अकेली ही लखनऊ चली गई.

धीरेधीरे सुरेंद्र सेना के नियमों का उल्लंघन करने लगा. एक दिन वह शराब पी कर बिना हेलमेट के सैन्य क्षेत्र में मोटरसाइकिल चलाते पकड़ा गया तो उसे दंडित किया गया. लेकिन उस पर इस का कोई असर नहीं पड़ा. दंडित किए जाने के बाद भी उस में कोई सुधार नहीं आया. इसी तरह दोबारा शराब पी कर बिना हेलमेट के सैन्य क्षेत्र में मोटरसाइकिल चलाने पर सेना के गार्ड ने उसे रोका तो उस ने गार्ड को जान से मारने की धमकी दी. गार्ड ने इस बात की रिपोर्ट कर दी. निश्चित था, इस मामले में उसे सजा हो जाती. इसलिए सजा से बचने के लिए वह भाग कर कानपुर चला गया.

सुरेंद्र को लगता था कि इस सब के पीछे उस के साले श्यामसुंदर का हाथ है. यह बात दिमाग में आते ही श्यामसुंदर उस की आंखों में कांटे की तरह चुभने लगा. क्योंकि श्यामसुंदर काफी पढ़ालिखा और समझदार था. वह कानपुर में ही एयरफोर्स में नौकरी कर रहा था. बात भी सही थी. उसी ने अधिकारियों से उस की शिकायत कर के ममता को साथ रखने के लिए उसे मजबूर किया था. सुरेंद्र को लग रहा था कि जब तक श्यामसुंदर रहेगा, उसे चैन से नहीं रहने देगा. इसलिए उस ने सोचा कि अगर उसे चैन से रहना है तो उसे खत्म करना जरूरी है. इसी बात को दिमाग में बैठा कर सुरेंद्र 29 सितंबर को चकेरी के विराटनगर स्थित अपने ससुर की दुकान पर जा पहुंचा. उस समय शाम के सात बज रहे थे.

श्यामसुंदर ड्यूटी से आ कर दुकान पर बैठ कर पिता की मदद करता था. संयोग से उस दिन श्यामसुंदर दुकान पर अकेला ही था. सुरेंद्र ने पहुंचते ही अपने लाइसेंसी रिवाल्वर से श्यामसुंदर पर गोली चला दी. गोली लगते ही श्यामसुंदर गिर कर छटपटाने लगा. गोली की आवाज सुन कर आसपास के लोग दौड़े तो सुरेंद्र ने हवाई फायर करते हुए कहा, ‘‘अगर किसी ने रोकने या पकड़ने की कोशिश की तो उस का भी यही हाल होगा.’’

डर के मारे किसी ने सुरेंद्र को पकड़ने की हिम्मत नहीं की. सुरेंद्र आसानी से वहां से भाग निकला. पड़ोसियों की मदद से बालकृष्ण बेटे को एयरफोर्स हौस्पिटल ले गए, जहां निरीक्षण के बाद डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. श्यामसुंदर की मौत से उस के घर में कोहराम मच गया. श्यामसुंदर की पत्नी सीमा देवी, जिस की शादी अभी 3 साल पहले ही हुई थी, उस का रोरो कर बुरा हाल था. अपने 2 साल के बेटे कार्तिक को सीने से लगाए कह रही थी, ‘‘बेटा तू अनाथ हो गया. तुझे किसी और ने नहीं, तेरे फूफा ने ही अनाथ कर दिया.’’

इस घटना की सूचना ममता को मिली तो उस का बुरा हाल हो गया. वह दोनों बच्चों को ले कर रोतीपीटती किसी तरह लखनऊ से कानपुर पहुंची. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपनी भाभी को कैसे सांत्वना दे. वह तो यही सोच रही थी कि वह स्वयं विधवा हो गई होती तो इस से अच्छा रहता. घटना की सूचना पा कर अहिरवां चौकी प्रभारी विक्रम सिंह चौहान सिपाही रूप सिंह यादव, सीमांत सिकरवार, विनोद कुमार तथा योंगेंद्र को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंचे. घटना गंभीर थी, इसलिए उन्होंने घटना की सूचना थानाप्रभारी संगमलाल सिंह को दी. इस तरह सूचना पा कर थानाप्रभारी संगमलाल सिंह, पुलिस अधीक्षक (पूर्वी) राहुल कुमार और क्षेत्राधिकारी कैंट भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

इस के बाद श्यामसुंदर के भाई राजेश यादव द्वारा दी गई तहरीर के आधार पर हत्या का यह मुकदमा थाना चकेरी में सुरेंद्र सिंह यादव पुत्र लक्ष्मण सिंह यादव निवासी गांधीग्राम, चकेरी के खिलाफ दर्ज कर लिया गया. दूसरी ओर घटनास्थल और लाश का निरीक्षण करने पुलिस ने उसे पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया था. इस के बाद मामले की जांच की जिम्मेदारी थानाप्रभारी संगमलाल सिंह ने संभाल ली. अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद श्यामसुंदर का शव मिला तो घरवालों ने सुरेंद्र की गिरफ्तारी न होने तक अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया. मृतक के घर वालों की इस घोषणा से पुलिस प्रशासन सकते में आ गया. इस के बाद पुलिस सुरेंद्र की गिरफ्तारी के लिए दौड़धूप करने लगी. परिणामस्वरूप अगले दिन यानी 1 अक्तूबर, 2013 को रामादेवी चौराहे से सुबह 4 बजे अभियुक्त सुरेंद्र सिंह यादव को गिरफ्तार कर लिया गया.

इस के बाद पुलिस ने सुरेंद्र की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त उस की लाइसेंसी रिवाल्वर बरामद कर ली. पूछताछ में सुरेंद्र ने बताया, ‘‘मेरे अपनी भाभी निर्मला से अवैध संबंध थे. भाई के मरने के बाद मैं उसे अपने साथ रखना चाहता था, जबकि ममता और उस के घर वाले इस बात का विरोध कर रहे थे. श्यामसुंदर इस मामले में सब से ज्यादा टांग अड़ा रहा था, इसलिए मैं ने उसे खत्म कर दिया.’’

सुरेंद्र की गिरफ्तारी के बाद उसी दिन शाम को श्यामसुंदर को घर वालों ने उस का अंतिमसंस्कार कर दिया. इस तरह एक सनकी फौजी ने अपनी सनक की वजह से 2 घर बरबाद कर दिए. साले के बच्चे को तो अनाथ किया ही, अपने भी बच्चों को अनाथ कर दिया.

ममता भी पति के रहते न सुहागिन रही न विधवा. उस के लिए विडंबना यह है कि वह मायके में भी रहे तो कैसे? अब उस की और उस के बच्चों की परवरिश कौन करेगा? सुरेंद्र को सजा हो गई तो उस के मासूम बच्चों का क्या होगा?

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Love Passion Crime Story : सुहागन बनने से पहले प्रेमिका बनी विधवा

23 वर्षीय गुलशन गुप्ता ड्यूटी से थकामांदा कुछ ही देर पहले घर पहुंचा था, तभी उस ने फोन देखा तो पता चला कि उस के जिगरी यार राहुल सिंह का कई बार फोन आ चुका था. उस ने सोचा कि पता नहीं राहुल ने क्यों फोन किया है. झट से उस ने राहुल को फोन कर वजह पूछी तो राहुल बोला, ”गुलशन, तू घर पहुंच गया हो तो मेरे घर आ जा, कहीं चलना है.’’

”ठीक है, मैं आता हूं.’’ गुलशन ने कहा और उस ने अपनी मम्मी से चाय बनवाई.

वह चाय की चुस्की ले फटाफट हलक के नीचे गरमागरम उतारता गया. मिनटों में चाय की प्याली खाली कर अपनी बाइक निकाली और मम्मी को दोस्त राहुल के घर जाने की बात कह कर चल दिया. कुछ देर बाद वह राहुल के घर पहुंच गया था. यह बात 16 सितंबर, 2023  की है. गुलशन गुप्ता पंजाब के लुधियाना जिले की डाबा थानाक्षेत्र के न्यू गगन नगर कालोनी में मम्मी सोनी देवी और 3 बहनों के साथ रहता था. उस के पापा की पहले ही मृत्यु हो चुकी थी. मां सोनी देवी और खुद गुलशन यही दोनों मिल कर परिवार की जिम्मेदारी संभाले हुए थे.

गुलशन का दोस्त 25 वर्षीय राहुल सिंह लुधियाना के माया नगर में अपने मम्मीपापा के साथ रह रहा था. वह अपने मम्मीपापा की इकलौती संतान था. सब का लाडला था. उस की एक मुसकान से मांबाप की सुबह होती थी. वह अपनी जो भी ख्वाहिश उन के सामने रखता था, वह पूरी कर देते थे. पापा अशोक सिंह एक प्राइवेट कंपनी में थे, पैसों की उन के पास कोई कमी नहीं थी, बेटे पर वह अपनी जान छिड़कते थे.

गुलशन को देख कर राहुल का चेहरा खुशी से खिल उठा था तो गुलशन ने भी उसी अंदाज में राहुल के साथ रिएक्ट किया था. वैसे ऐसा कोई दिन नहीं होता था, जब वे एकदूसरे से न मिलते हों. इन की यारी ही ऐसी थी कि बिना मिले इन्हें चैन नहीं आता था. ये जिस्म से तो दो थे, लेकिन जान एक ही थी. खैर, राहुल गुलशन के ही आने का इंतजार कर रहा था. उस के आते ही उस की बाइक अपने घर के सामने खड़ी कर दी और बाहर खड़ी अपनी एक्टिवा ड्राइव कर गुलशन को पीछे बैठा कर मम्मी से थोड़ी देर में लौट कर आने को कह निकल गया.

दोनों दोस्त कैसे हुए लापता

राहुल सिंह के साथ गुलशन गुप्ता को निकले करीब 4 घंटे बीत गए थे, लेकिन न तो राहुल घर लौटा था और न गुलशन ही घर लौटा था. और तो और दोनों के सेलफोन भी बंद आ रहे थे. राहुल के जितने भी दोस्त थे, पापा अशोक सिंह ने सब के पास फोन कर के उस के बारे में पूछा. यही नहीं लुधियाना में रह रहे अपने रिश्तेदारों और चिरपरिचितों से भी राहुल के बारे में पूछ लिया था, लेकिन किसी ने भी उस के वहां आने की बात नहीं कही.

दोनों के घर वालों ने रात आंखों में काट दी थी. अगले दिन 17 सितंबर को सुबह 10 बजे राहुल के पापा अशोक सिंह और गुलशन की मम्मी सोनी देवी दोनों डाबा थाने जा पहुंचे. उन्होंने राहुल और गुलशन के गायब होने की पूरी बात बता दी. गुलशन की मम्मी सोनी देवी ने बताया कि सर, हमें पूरा यकीन है कि हमारे बच्चों का अमर यादव ने अपहरण किया है.

”क्या..?’’ सोनी देवी की बात सुन कर इंसपेक्टर सिंह उछले, ”अमर यादव ने आप के बच्चों का अपहरण किया है? लेकिन यह अमर यादव है कौन और उस ने दोनों का अपहरण क्यों किया?’’

अमर यादव पर क्यों लगाया अपहरण का आरोप

सोनी देवी ने राहुल और गुलशन के अपहरण किए जाने की खास वजह इंसपेक्टर कुलवीर सिंह को बता दी. उन की बातों में दम था. फिर इंसपेक्टर ने राहुल और गुलशन की एक एक फोटो मांगी तो उन्होंने दोनों के फोटो उन के वाट्सऐप पर सेंड कर दिए. सोनी ने लिखित तहरीर इंसपेक्टर कुलवीर सिंह को सौंप दी थी. इस बीच एक जरूरी काल आने के बाद अशोक सिंह वहां से जा चुके थे. उधर कुलदीप सिंह ने सोनी देवी से तहरीर ले कर अपने पास रख ली और आवश्यक काररवाई करने का आश्वासन दे कर उन्हें वापस घर भेज दिया था.

राहुल सिंह के पिता अशोक सिंह को एक परिचित ने फोन कर के बताया कि टिब्बा रोड कूड़ा डंप के पास लावारिस हालत में राहुल की एक्टिवा खड़ी है और वहीं मोबाइल फोन भी पड़ा है. यह सुन कर वह इंसपेक्टर कुलवीर सिंह से टिब्बा रोड चल दिए थे. वह जैसे ही वहां पहुंचे, सफेद एक्टिवा और मोबाइल देख कर अशोक पहचान गए, दोनों ही चीजें उन के बेटे राहुल की थीं. अभी वह खड़े हो कर कुछ सोच ही रहे थे कि उसी वक्त एक और चौंका देने वाली सूचना उन्हें मिली. टिब्बा रोड से करीब 2 किलोमीटर दूर वर्धमान कालोनी से गुलशन का मोबाइल फोन बरामद कर लिया गया.

राहुल की एक्टिवा और दोनों के लावारिस हालत में पड़े हुए फोन की सूचना अशोक ने डाबा थाने के इंसपेक्टर कुलवीर सिंह को फोन द्वारा दे दी थी. सूचना मिलने के बाद कुलवीर सिंह मय दलबल के मौके पर पहुंच गए, जहां अशोक सिंह खड़े उन के आने का इंतजार कर रहे थे.

दोनों मोबाइल फोन बंद थे. इंसपेक्टर कुलवीर सिंह ने दोनों फोन औन किए. उन्होंने राहुल के फोन की काल हिस्ट्री चैक की तो पता चला कि बीती रात साढ़े 5 बजे के करीब उस के फोन पर एक नंबर से फोन आया था. उसी नंबर से 15 सितंबर को करीब 3 बार काल आई थी.

इंसपेक्टर सिंह ने इस नंबर पर काल बैक किया तो वह नंबर लग गया. काल रिसीव करने वाले से उस का नाम पूछा गया तो उस ने अपना नाम अमर यादव बताया और टिब्बा रोड स्थित रायल गेस्टहाउस का कर्मचारी होना बताया.

अमर यादव का नाम सुन कर वह चौंक गए, क्योंकि सोनी देवी ने भी बच्चों के अपहरण करने की अपनी आशंका इसी के प्रति जताई थी और राहुल के फोन में आखिरी काल भी अमर यादव की ही थी. इस का मतलब था कि राहुल और गुलशन के गायब होने में कहीं न कहीं से अमर यादव का हाथ हो सकता है.

पुलिस ने बरामद कीं दोनों दोस्तों की लाशें

फिर देर किस बात की थी. पुलिस रायल गेस्टहाउस पहुंच गई, जो मौके से कुछ ही दूरी पर स्थित था. गेस्टहाउस पहुंच कर इंसपेक्टर सिंह अमर यादव को पूछते हुए सीधे अंदर घुस गए. मैनेजर वाले कमरे में एक 23 वर्षीय सांवले रंग का दुबलापतला गंदलुम कपड़े पहने युवक बैठा मिला. सामने पुलिस को देख उस को पसीना छूट गया.

”अमर यादव तुम हो?’’ गुर्राते हुए इंसपेक्टर सिंह बोले.

”हां जी सर, मैं ही अमर यादव हूं.’’ बेहद सम्मानित तरीके से उस ने जवाब दिया था, ”बात क्या है, क्यों मुझे खोज रहे हैं.’’

”अभी पता चल जाएगा बेटा. राहुल और गुलशन कहां हैं? तुम ने कहां छिपा कर दोनों को रखा है? सीधे तरीके से बता दे वरना…’’

”बताता हूं सर, बताता हूं. दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं,’’ बिना किसी डर के वह आगे कहता गया, ”मैं ने अपने साथियों के साथ मिल कर दोनों को मौत के घाट उतार दिया है और मैं करता भी क्या. मेरे पास इस के अलावा कोई और रास्ता भी नहीं बचा था.

”राहुल मेरे प्यार को मुझ से छीनने की कोशिश कर रहा था, इसलिए मैं ने अपने रास्ते का कांटा सदा के लिए हटा दिया. यहीं नहीं जो जो भी मेरे प्यार के रास्ते का रोड़ा बनेगा, मैं उसे ऐसे ही मिटाता रहूंगा.’’ और फिर अमर ने पूरी पूरी घटना विस्तार से उन्हें बता दी.

इंसपेक्टर कुलवीर सिंह ने अमर यादव को गिरफ्तार कर लिया और उसी की निशानदेही पर 3 और आरोपियों अभिषेक राय, अनिकेत उर्फ गोलू और नाबालिग मनोज को शेषपुर से गिरफ्तार कर लिया. चारों को हिरासत में ले कर पुलिस ताजपुर रोड स्थित सेंट्रल जेल के पास बहने वाले कक्का धौला बुड्ढा नाला (भामियां) पास पहुंची, जहां आरोपियों ने हत्या कर राहुल और गुलशन की लाश कंबल में लपेट कर बोरे में भर कर फेंकी थीं.

थोड़ी मशक्कत के बाद राहुल और गुलशन गुप्ता की लाशें बरामद कर ली थीं. इस के बाद दोहरे हत्याकांड की घटना पल भर में समूचे लुधियाना में फैल गई थी. घटना से जिले में सनसनी फैल गई थी. लोगबाग कानूनव्यवस्था पर सवाल उठाने लगे थे.

खैर, इस घटना की सूचना मिलते ही पुलिस कमिश्नर मनदीप सिंह सिद्धू, डीसीपी (ग्रामीण) जसकिरनजीत सिंह तेजा, एडीसीपी (सिटी-2) सुहैल कासिम मीर और एसीपी (इंडस्ट्रियल एरिया-15) संदीप बधेरा मौके पर पहुंच गए थे.

खुशियां कैसे बदलीं मातम में

मौके पर पहुंचे पुलिस अधिकारियों ने लाशों का निरीक्षण किया. दोनों में से राहुल की लाश विकृत हो चुकी थी. हत्यारों ने धारदार हथियार से उस की गरदन पर हमला किया था. उसे इतनी बेरहमी से मारा था कि उस की बाईं आंख बाहर निकल गई थी. मौके पर मौजूद मृतक राहुल के पापा ने दिल पर पत्थर रख कर बेटे की पहचान कर ली थी. 4 महीने बाद उस की शादी होने वाली थी, उस से पहले ही वह दुनिया से विदा हो गया. घर में शादी की खुशियां मातम में बदल गई थीं. घर वालों का रोरो कर हाल बुरा हुए जा रहा था.

बहरहाल, पुलिस ने दोनों लाशों का पंचनामा तैयार कर उन्हें पोस्टमार्टम के लिए लुधियाना जिला अस्पताल भेज दिया और चारों आरोपियों को अदालत में पेश कर उन्हें जेल भेज दिया. आरोपियों से की गई कड़ी पूछताछ के बाद इस दोहरे हत्याकांड की जो कहानी पुलिस के सामने आई, वह मंगेतर के बीच मोहब्बत की जंग पर रची हुई थी. 25 वर्षीय राहुल सिंह मम्मीपापा का इकलौता था. वही मांबाप के आंखों का नूर था और उन के जीने का सहारा भी. वह जवान हो चुका था और एक प्राइवेट कंपनी में एचआर की नौकरी भी करता था. अच्छा खासा कमाता था.

चूंकि राहुल जवान भी हो चुका था और कमा भी रहा था, इसलिए पापा अशोक सिंह ने सोचा कि बेटे की शादी वादी हो जाए. घर में बहू आ जाएगी तो उस की मम्मी को भी सहारा हो जाएगा. यही सोच कर अशोक सिंह ने अपने जानपहचान और रिश्तेदारों के बीच में बेटे की शादी की बात चला दी थी कि कोई अच्छी और पढ़ीलिखी बहू मिले जो घरगृहस्थी संभाल सके.

जल्द ही राहुल के लिए कई रिश्ते आए. उन में से जमालपुर थाना क्षेत्र स्थित मुंडिया कलां के रहने वाले अजय सिंह की बेटी स्नेहा घर वालों को पसंद आ गई. खुद राहुल ने भी उसे पसंद किया था. स्नेहा पढ़ीलिखी और सुंदर थी. 2 बहनों और एक भाई में वह सब से बड़ी थी. राहुल और स्नेहा की शादी पक्की हो गई और फरवरी 2023 में दोनों की मंगनी भी हो गई और शादी फरवरी 2024 में होने की बात पक्की हुई.

इंस्टाग्राम के किस फोटो को ले कर हुई कलह

अपनी शादी तय होने से राहुल बहुत खुश था. अपने दिल का हर राज अपने खास दोस्तों गुलशन और सूरज के बीच शेयर करता था. मंगनी के दिन राहुल ने स्नेहा को देखा तो अपनी सुधबुध खो दी थी. वह थी ही इतनी सुंदर. उस की सुंदरता पर वह फिदा था. उस के बाद दोनों के बीच फोन पर अकसर दिल की बातें होती रहती थीं. वह अपने दिल की बात स्नेहा से करता और स्नेहा अपने दिल की बातें मंगेतर से करती. धीरेधीरे दोनों के बीच प्यार हो गया था और वे चाहते थे कि उन का मिलन जल्द से जल्द हो जाए.

लेकिन उन का मिलन होने में अभी 4 महीने बचे थे. जैसे तैसे वे अपने दिल पर काबू किए थे. वह जून-जुलाई, 2023 का महीना रहा होगा, जब राहुल के परिवार पर दुखों के बादल मंडराने लगे थे.

एक दिन की बात थी. इंस्टाग्राम पर गुलशन अपना अकाउंट देख रहा था. अचानक उस की एक नजर ठहर गई और 2 फोटो देख कर वह चौंक गया.फोटो में स्नेहा किसी अमर यादव के साथ गलबहियों में चिपकी पड़ी थी. फिर उस ने फोटो का स्क्रीनशौट ले कर सेव कर लिया और सूरज को दिखाया. फोटो देख कर वह हैरान था, ये तो राहुल की होने वाली पत्नी स्नेहा है. उस के पीठ पीछे क्या गुल खिलाया जा रहा है. दोनों ने राहुल से सारी बातें साफसाफ बता दीं.

फिर राहुल ने समझदारी का परिचय देते हुए इंस्टाग्राम पर स्नेहा का अकाउंट चैक किया तो बात सच साबित हो गई थी. इस के बाद उस ने स्नेहा से बात की. स्नेहा अपनी ओर से सफाई देती हुई बोली, ”आप ने जिस फोटो को देखा था, वो उस का अतीत था. कभी अमर नाम के लड़के से वह प्यार करती थी, लेकिन शादी पक्की होने के बाद से उस ने उस से अपनी ओर से रिश्ता तोड़ लिया है. वह अब अमर से नहीं मिलती. पुरानी बातों को मुद्दा बना कर वह उसे हर समय परेशान करता रहता है.’’

पूर्व प्रेमी और मंगेतर के बीच बढ़ता गया विवाद

राहुल को अपनी मंगेतर स्नेहा की बातों पर पूरा विश्वास हो गया था कि वह जो कह रही है, सच कह रही है. उस के बाद राहुल ने अमर यादव को सावधान करते हुए पोस्ट लिखा कि स्नेहा उस की होने वाली पत्नी है. आने वाले साल 2024 में हमारी शादी होनी है. तुम उस का पीछा करना छोड़ दो. उसे बदनाम न करो वरना इस का परिणाम बुरा हो सकता है.

इस पर अमर यादव ने भी पलट कर जवाब दिया था, ”स्नेहा उस का प्यार है. उसे वह टूट कर प्यार करता है. तेरे कारण उस ने उस से बात करनी बंद कर दी है और दूरदूर रहती है. मुझ से इस की जुदाई, उस की तन्हाई जीने नहीं देती. मेरे और मेरे प्यार के बीच में जो भी रोड़ा बनने की कोशिश करेगा, उसे हमेशा हमेशा के लिए मिटा दूंगा और तू भी समझ ले, अभी वक्त है हम दोनों के बीच से हट जा, उसी में तेरी भलाई है. नहीं तो मैं किस हद तक चला जाऊंगा, मुझे खुद भी नहीं पता.’’

उस दिन के बाद राहुल और अमर यादव के बीच स्नेहा को ले कर वर्चस्व की टेढ़ी लकीर खिंच गई थी. बारबार राहुल इंस्टाग्राम पर फोन कर के स्नेहा से दूर रहने को धमकाता था. वहीं अमर भी स्नेहा से दूर हट जाने को धमकाता था. राहुल ने अप्रत्यक्ष तौर पर अपने घर वालों को बता भी दिया था कि अमर यादव नाम का एक लड़का स्नेहा को बदनाम करने के एवज में उसे परेशान करता रहता है. घर वालों ने इस बात को हल्के में लिया और समझा दिया कि शादी हो जाने के बाद सब ठीक हो जाएगा. नाहक परेशान होने की जरूरत नहीं है. इस के बाद राहुल भी थोड़ा बेफिक्र हो गया था.

शादी के दिन जैसे जैसे नजदीक आ रहे थे, अमर को प्रेमिका स्नेहा से जुदाई के दिन साफ नजर आ रहे थे. यह सोच कर गुस्से से पागल हो जाता था कि उस के जीते जी कोई उस के प्यार को उड़ा ले जाए, ये कैसे हो सकता है. क्यों न रास्ते के कांटे को ही जड़ से ही उखाड़ दिया जाए. न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी.

जैसे ही उस के दिमाग में यह विचार आया, खुशी से उछल पड़ा. उस ने अपने दोस्तों को रायल गेस्टहाउस बुला लिया. यह गेस्टहाउस टिब्बा थाने के टिब्बा रोड पर स्थित था, गेस्टहाउस एक डीसीपी (पुलिस अधिकारी) का था, जो इन दिनों उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में तैनात है.

नौकर क्यों समझता था खुद को डीसीपी

अमर यादव मूलरूप से बिहार के दरभंगा जिले का रहने वाला था, लेकिन सालों से वह लुधियाना के शेषपुर मोहल्ले में किराए का मकान ले कर रहता था. उस के मांबाप घर रहते थे. उज्जवल भविष्य की कामना ले कर ही वह दरभंगा से लुधियाना चला था. पहले से वहां उस के कई परिचित रहते थे. उन्हीं के सहारे वह यहां रहने आया था. देखने में तो वह एकदम दुबलापतला मरियल जैसा लगता था, लेकिन था वह अपराधी प्रवृत्ति वाला. बातबात पर हर किसी से झगड़ जाना उस की आदत थी और अपराधियों और नशे का कारोबार करने वालों से उस की खूब बनती थी.

जिस दिन से डीसीपी के गेस्टहाउस पर काम करना शुरू किया था, खुद को ही अमर डीसीपी समझ बैठा. दूसरों पर डीसीपी जैसा रौब झाड़ता था और इसी गेस्टहाउस के तले नशे का कारोबार भी करता था. कुछ महीनों पहले भी यह गेस्टहाउस खासी चर्चा का विषय बना था. उस के दोस्तों में अभिषेक राय, अनिकेत ऊर्फ गोलू और मनोज खास थे. अमर जब भी कोई जुर्म करता था तो इन्हीं को अपना हमराज बनाता था. इन के मुंह बंद करने के लिए वह इन पर खर्च भी खूब करता था.

बहरहाल, राहुल को रास्ते से हटाने के लिए अमर ने अभिषेक राय, अनिकेत उर्फ गोलू और मनोज को 14 सितंबर, 2023 को रायल गेस्टहाउस बुलाया और चारों ने आपस में बैठ कर मीटिंग की कि राहुल की हत्या कैसे करनी है और फिर लाश को कैसे ठिकाने लगाना है.

सब कुछ तय हो जाने के बाद 15 सितंबर, 2023 को अमर ने बाजार से लोहे का दांत और रौड खरीद लाया और गेस्टहाउस के एक कमरे में छिपा दिए.

15 सितंबर, 2023 की शाम करीब 5 बजे अमर यादव ने राहुल को फोन किया और उसे मिलने के लिए रायल गेस्टहाउस बुलाया. इस पर राहुल ने कोई जवाब नहीं दिया और उस का फोन काट दिया था. इस के बाद उस ने 3 बार और उसे फोन कर के गेस्टहाउस बुलाया, लेकिन राहुल नहीं गया.

किस वजह से राहुल अपने दुश्मन के पास जाने को मजबूर हुआ

16 सितंबर की शाम को अमर यादव ने फिर से राहुल को फोन किया और बताया कि उस के पास स्नेहा के साथ आपत्तिजनक स्थिति का एक वीडियो है, जो उसे देना चाहता है. आ कर ले जा सकता है.

इस पर राहुल ने कहा, ”ठीक है, वह आज मिलने जरूर आएगा.’’

और फिर ड्यूटी से राहुल जल्दी छुट्टी ले कर घर पहुंच आया. ड्यूटी से निकलते हुए राहुल ने गुलशन को भी फोन कर दिया कि अमर ने फोन कर के बताया है कि स्नेहा की कोई खास वीडियो उस के पास है, आ कर ले जाए. मेरे दोस्त, वो वीडियो किसी तरह से हासिल करनी है तो तुम्हें मेरे साथ उस से मिलने टिब्बा रोड रायल गेस्टहाउस चलना होगा.

साढ़े 8 बजे गुलशन गुप्ता जब घर से अपनी बाइक ले कर निकला तो मम्मी को बता दिया था कि वह राहुल से मिलने उस के घर जा रहा है, थोड़ी देर बाद वह लौट आएगा. कौन जानता था इस के बाद वह कभी नहीं आएगा.थोड़ी देर बाद वह राहुल के सामने खड़ा था. दोनों ने चाय की चुस्की ली और अमर से मिलने टिब्बा रोड पहुंच गए. सनद रहे, गुलशन ने अपनी बाइक राहुल के घर खड़ी कर दी थी और राहुल अपनी एक्टिवा ले कर गया था. आधे घंटे बाद राहुल और गुलशन रायल गेस्टहाउस के बाहर खड़े थे. उस ने अपनी एक्टिवा गेस्टहाउस के बाहर खड़ी कर दी थी.

”अमर…अमर…’’ की आवाज लगाते हुए राहुल गेस्टहाउस के अंदर दाखिल हुआ तो गुलशन भी उसी के पीछे हो लिया था. 2 मिनट बाद एक लड़का बाहर निकला और राहुल के सामने खड़ा हो गया. उसे अपनी बातों में उलझा लिया. तब तक वहां अभिषेक राय और मनोज भी पहुंच गए और स्नेहा को ले कर राहुल से भिड़ गए.

अभी यह सब हो ही रहा था कि तभी अचानक अमर यादव लोहे का दांत लिए बाहर निकला और राहुल की गरदन पर जोरदार तरीके से वार किया. वहां कटे वृक्ष के समान हवा में लहराते हुए धड़ाम से फर्श पर जा गिरा. उस के बाद अभिषेक उसे लोहे की रौड से मारता गया.

राहुल को देख कर अमर गुस्से से इतना पागल हो गया था कि लोहे के दांत उस के बाईं आंख में घुसेड़ कर आंख बाहर निकाल दी थी. राहुल मर चुका था. उस के सिर से खून बह रहा था. यह देख गुलशन सन्न रह गया और वहां से भागने लगा लेकिन चारों ने उसे घेर लिया और उसे भी मार डाला. अमर यादव उसे नहीं मारना चाहता था. चूंकि पूरी घटना गुलशन की आंखों के सामने घटी थी और हत्या का वह एकमात्र चश्मदीद गवाह था, इसलिए अमर और उस के साथियों ने उसे भी उसी लोहे के दांत से मौत के घाट उतार दिया था.

इस के बाद चारों ने मिल कर राहुल और गुलशन की लाश कंबल में लपेट दीं. राहुल की ही एक्टिवा पर दोनों की लाश बारीबारी से सेंट्रल जेल के ताजपुर रोड स्थित कक्का धौला बुड्ढा नाले में फेंक आए. फिर गेस्टहाउस में फर्श पर फैले खून को पानी से धो कर सारे सबूत मिटा दिए और राहुल की एक्टिवा टिब्बा रोड कूड़ा डंप के पास खड़ी कर दी. स्विच औफ कर के उस के मोबाइल फोन को भी गाड़ी के बगल में गिरा दिया.

अमर वहीं गेस्टहाउस में ही रुका रहा जबकि अभिषेक राय, मनोज और अनिकेत उर्फ गोलू अपने घर शेषपुर निकल गए. घर जाते हुए तीनों ने गुलशन के मोबाइल को वर्धमान कालोनी में स्विच औफ कर के फेंक दिया था. इश्क की जंग में पागल प्रेमी अमर यादव इस कदर हैवान बन चुका था कि उसे स्नेहा के अलावा कुछ नहीं दिख रहा था जबकि स्नेहा ने उस से अपना संबंध तोड़ लिया था. वह एक नई जिंदगी बसाने का हसीन ख्वाब देख रही थी, लेकिन सुहागन बनने से पहले ही विधवा बन गई.

खैर, कथा लिखे जाने तक पुलिस चारों आरोपियों अमर यादव, अभिषेक राय, अनिकेत उर्फ गोलू और मनोज को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी थी और हत्या में प्रयुक्त लोहे की दांत, रौड, 2 मोबाइल फोन बरामद कर लिए थे. पुलिस ने अपहरण की धारा को 302, 201, 120बी व 34 आईपीसी में तरमीम कर दिया.

जुर्म सामने आ ही गया : कैसे खुला कादिर की हत्या का राज?

मेरी तैनाती एक ऐसे कस्बे में थी, जो अब बहुत बड़ा शहर बन चुका है. थाने में रिपोर्ट आई कि एक  जवान आदमी की लाश खेत में पड़ी है. उस का बाप और बड़ा भाई 2 आदमियों को साथ ले कर थाने आए थे. उन्होंने मृतक का नाम कादिर बताया. रिपोर्ट लिखवा कर मैं घटनास्थल के लिए चल दिया. कस्बा जहां खत्म होता था, वहां से खेत शुरू हो जाते थे. मार्च का आखिरी सप्ताह था. खेतों में फसल खड़ी थी.

लाश मेंड़ से 7-8 कदम फसल के अंदर पड़ी थी. मेंड़ के पास बहुत सारी फसल टूटी पड़ी थी. इस से साफ लगता था कि वहां 2 या 2 से अधिक आदमियों की लड़ाई हुई थी. वहां से खेत के अंदर 2-4 कदम तक फसल टूटी हुई थी. इस का मतलब था कि लाश को थोड़ी दूर घसीट कर ले जाया गया था. लोगों के वहां जाने से पैरों के निशान मिट गए थे. मेंड़ पर भी कोई निशान नहीं था.

मृतक कादिर की उम्र करीब 28 साल थी. पता चला कि वह जिले के शहर में एक सरकारी दफ्तर में काम करता था. शहर कस्बे से 21 मील दूर था. मृतक 5 दिनों की छुट्टी पर आया हुआ था. मैं ने लाश उलटपलट कर देखी, कपड़े हटा कर शरीर को देखा, लेकिन कहीं भी कोई चोट का निशान नहीं था.

उस के गले में एक गज की रस्सी पड़ी थी, जिस में एक हलकी सी गांठ बंधी थी. अनुमानत: रस्सी उस के गले में डाल कर पीछे की ओर खींचा गया था. मृतक मर गया तो हत्यारे रस्सी गले में ही छोड़ भागे थे. इस में कोई शक नहीं था कि यह हत्या का मामला था.

मैं ने उस की जेब की तलाशी ली तो उस में करीब 100 रुपए निकले. साथ ही एक फोटो भी जिस में उस लड़के के साथ एक सुंदर सी लड़की का फोटो था. मृतक की एक अंगुली में सोने की अंगूठी और हाथ में घड़ी थी. मैं ने उस के पिता से पूछा तो उस ने बताया कि यह लड़की इस की पत्नी है.

फोटो मृतक की अपनी पत्नी से प्रेम की निशानी थी. इसीलिए वह उस का फोटो अपने बटुए में रखे घूम रहा था. बटुए में पैसे, अंगुली में सोने की अंगूठी और कलाई में घड़ी. ये इस बात का सबूत था कि हत्या लूट के लिए नहीं की गई थी और यह काम रहजनों का भी नहीं था. रहजन कैसे लूटते हैं और जरूरत होने पर कैसे हत्या करते हैं, मैं अच्छी तरह जानता था.

मैं ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और मृतक के मोहल्ले में चला गया. वहां मुझे एक सरकारी रिटायर्ड कर्मचारी के घर बिठाया गया. घर के रखरखाव से पता लगता था कि वह किसी अच्छे शिक्षित व्यक्ति का घर है.

मैं ने उस घर में मौजूद लोगों से वे सब बातें पूछीं जो जरूरी होती हैं. मैं ने उन से कहा, ‘‘क्या आप मेरी मदद करेंगे? मरने वाले के घर वालों का व्यवहार कैसा है, इन की किसी के साथ कोई दुश्मनी है या नहीं, आप मुझे सब कुछ बता दें.’’

‘‘जी हां, मैं इसी मोहल्ले का रहने वाला हूं. मैं मृतक कादिर को उस के पिता को, उस के भाई को और उस के घर की औरतों को जानता हूं. पूरा परिवार शरीफ है. कादिर भी शरीफ था. उस के घर की औरतें भी बेहद शरीफ हैं.’’

‘‘मृतक की किसी से दुश्मनी थी?’’

‘‘जहां तक मुझे पता है उस की किसी से दुश्मनी नहीं थी. लेकिन अगर उस के दफ्तर में किसी से दुश्मनी हो तो मैं कह नहीं सकता.’’

मैं ने कहा, ‘‘अगर ऐसा होता तो उसकी हत्या उसी शहर में होती, यहां नहीं.’’

‘‘मैं तो जो जानता हूं, आप को बता रहा हूं. यह देखना आप का काम है. एक मामूली सी दुश्मनी तो है लेकिन उस में हत्या नहीं हो सकती. दरअसल, कादिर की पत्नी एक साल से अपने घर बैठी है. ये लोग उसे बुलाते भी नहीं और तलाक भी नहीं देते.’’

‘‘इस का कारण क्या था?’’

उस ने कहा, ‘‘जहां तक मुझे पता है, कादिर की मां बहुत सख्त है. बहू से हमेशा लड़ती रहती थी. ये लोग कहते हैं कि लड़की ठीक नहीं थी और उन लोगों का कहना है कि लड़की और कादिर में बहुत प्रेम था, जो उस की मां को पसंद नहीं था.’’

मैं ने उस से कहा, ‘‘कादिर के बटुए से जो लड़की का फोटो निकला है, उस से तो यही लगता है कि कादिर को लड़की से बहुत प्यार था. आप बताइए, लड़की का चालचलन कैसा था?’’

‘‘मैं क्या बता सकता हूं,’’ उस ने कहा, ‘‘आप खुद तफ्तीश कर लीजिए. सुनी सुनाई बात तो मैं आप को बता सकता हूं. मैं ने सुना है कि लड़की एक महीने से घर से गायब है.’’

‘‘गायब है? लेकिन मेरे पास उस के गुम होने की रिपोर्ट नहीं आई.’’

‘‘हो सकता है, बात गलत हो. मैं ने कहा न कि मैं सुनी बात कह रहा हूं. जब से वह घर बैठी है, तब से तरहतरह की बातें सुनने को मिलने लगीं. सुना है, लड़की को रात में कहीं जाते देखा गया है.’’

उस की सुनीसुनाई बात पर मैं यकीन नहीं कर सकता था, लेकिन एकदो इशारे मिल गए थे, जिन पर मुझे काम करना था. मैं ने मृतक के पिता को बुलाया. मैं ने उस से पहला सवाल यही किया कि क्या आप की किसी से दुश्मनी थी?

उस ने रोते हुए जवाब दिया, ‘‘हमारी किसी से कोई दुश्मनी नहीं है, साहब.’’

मैं ने उस से कहा, ‘‘देखो, मुझे तुम्हारे बेटे के हत्यारे को पकड़ना है, इसलिए जो बात भी मैं पूछूं, उस का ठीकठीक जवाब देना, कोई बात छिपाना नहीं. यह बताओ, क्या लड़के की ससुराल वालों से तुम्हारा झगड़ा चल रहा है?’’

‘‘उन की बेटी मेरे बेटे के साथ नहीं रह सकी. शादी के 6 महीने तक वह हमारे घर रही, फिर अपने घर चली गई और उस के बाद वापस नहीं आई.’’

‘‘मुझे इस से कोई मतलब नहीं कि लड़की को घर बिठाने में किस की गलती है, मुझे केवल इतना बता दो कि क्या लड़की वालों से तुम्हारी दुश्मनी इतनी बढ़ गई कि उन्होंने तुम्हारे बेटे की हत्या कर दी?’’

उस ने कहा, ‘‘मेरे जवान बेटे की हत्या हो गई है. मैं तो हर किसी को दोषी बता दूंगा. शुरू में तो उस के सालों पर शक था, लेकिन बाद में मैं ने बहुत सोचा कि अगर उन्हें हत्या ही करनी होती तो काफी दिन पहले कर चुके होते, क्योंकि बहू को मायके में एक साल हो गया.’’

‘‘उन के पास कारण तो है, आप उन की बेटी को तलाक देना नहीं चाहते. उन की बेटी जवान है, सुंदर है. हो सकता है, उन्होंने सोचा हो लड़के को रास्ते से हटा दें, उस के बाद अपनी बेटी की शादी कर देंगे.’’

‘‘कौन सी बेटी की शादी करेंगे?’’ उस ने कहा, ‘‘वह तो एक महीने से लापता है.’’

‘‘आप को पूरा यकीन है?’’

‘‘सारे मोहल्ले की औरतें कहती हैं, पहले वह आती जाती दिखाई दे जाती थी, लेकिन अब बिलकुल नहीं दिखती.’’

मैं ने पूछा, ‘‘लड़की के कितने भाई हैं, उस के पिता का आचरण कैसा है?’’

‘‘पैसे के मामले में तो खुशहाल हैं, पिता होशियार आदमी है. काफी असर रखता है. 3 बेटे हैं, 2 बड़े बेटे तो ठीक हैं, लेकिन छोटा ठीक नहीं है. उस की उम्र 16-17 साल है, वह बदमाश लड़कों में बैठता है.’’

मैं ने पूछा, ‘‘एक बात बताओ, लड़की को कौन तलाक नहीं देना चाहता था, आप, लड़का या उस की मां?’’

‘‘मेरा बेटा कादिर,’’ वह दहाड़ें मार कर रोने लगा, ‘‘वह तो अपनी पत्नी को अपने साथ रखना चाहता था और मैं भी यही चाहता था. लेकिन मेरी पत्नी बहुत खराब है. उस ने कह दिया था कि तलाक देनी ही है. बहुत जिद्दी और झगड़ालू औरत है. मेरे काबू में नहीं है. मैं ने दोनों बेटों से कह दिया था कि इस औरत के साथ रहना है तो आंख और कान बंद कर के रहना.’’

‘‘क्या कादिर के ससुराल वालों को पता था कि कादिर लड़की को रखना चाहता है?’’

उस ने कहा, ‘‘यह बात तो कादिर ही बता सकता था. मुझे तो इतना पता है कि वे लोग तलाक के लिए कहते रहे और मेरी पत्नी जवाब देती रही.’’

‘‘क्या लड़की अब कुछ खराब हो गई थी?’’

‘‘बातें कुछ ऐसी ही सुनी हैं.’’ मृतक के पिता ने कहा, ‘‘यह भी सुना है कि उसे रात को कहीं आतेजाते देखा गया था.’’

‘‘क्या तुम्हें पता है कि वह किस के पास जाती थी?’’

‘‘यह तो पता नहीं किस के पास जाती है लेकिन अब पता करूंगा.’’ उस ने जवाब दिया.

इस बातचीत के बाद मैं ने मृतक के पिता को भेज दिया और लड़की के पिता को बुलाया. उस के आते ही मैं ने उस से सवाल किया कि लड़की कहां है. वह चुप रहा. मैं ने फिर पूछा तो वह इधरउधर देखने लगा. जब मैं ने उसे थानेदार वाले अंदाज में डांट कर पूछा तो वह बोल पड़ा, ‘‘वह तो यहां नहीं है.’’

‘‘मुझ से इज्जत कराना चाहते हो तो सचसच बताओ, वह कहां गई है और किस तरह गई है?’’

‘‘बस जी…’’ उस के कहने के अंदाज से लग रहा था कि वह सब कुछ बताना नहीं चाह रहा था. उस ने कहा, ‘‘एक रात वह सोई थी और सुबह को देखा तो गायब थी. उस की अटैची भी नहीं थी. कुछ जेवर, कीमती सामान, अच्छे कपडे़ और 2 जोड़ी सैंडिल ले गई.’’

‘‘क्या आप जाहिल आदमी हैं, थाने में रिपोर्ट क्यों नहीं लिखवाई?’’

‘‘नहीं…बिलकुल साफ मामला था. अटैची, कपड़े, जेवर, जूते ले जाने का अर्थ था कि वह अपनी मरजी से गई थी. अगर कोई जबरदस्ती ले जाता तो यह सब कुछ न ले जाती. रिपोर्ट अपनी इज्जत के लिए नहीं लिखवाई.’’

‘‘कहीं तलाश किया था? उस की ससुराल जा कर पता करते.’’ मैं ने कहा.

‘‘ससुराल से क्यों पूछते, उन से तो उस की बोलचाल भी बंद थी.’’ उस ने जवाब दिया.

‘‘आप की बेटी रातों को किस से मिलती थी,’’ मैं ने पूछा, ‘‘आप को पता तो होगा?’’

‘‘नहीं सर, ऐसा नहीं है. यह उसे बदनाम करने के लिए उस की सास द्वारा उड़ाई हुई बात है. इस से वह यह साबित करना चाहती है कि उस का चालचलन खराब था इसलिए उस के बेटे ने उसे घर से निकाल दिया.’’

उस से मैं ने बहुत बातें पूछीं लेकिन कोई काम की बात पता नहीं लगी. मैं ने लड़की की मां को बुला कर पूछा कि लड़की कहां है तो उस ने भी वही जवाब दिया जो उस के पिता ने दिया था.

पोस्टमार्टम के बाद लाश घर आ गई. मरने का कारण सांस का रुकना लिखा था. सांस रस्सी से रोकी गई थी. मरने का समय रात के 10, साढ़े 10 बजे का लिखा था. मैं ने मुखबिरों का जाल बिछा दिया था. वे अपनी रिपोर्ट ले कर आ रहे थे. कोई कुछ और कोई कुछ बता रहा था, लेकिन एक आदमी ने जो खबर दी, उस से मेरी कुछ हिम्मत बढ़ी.

उस ने बताया कि एक आदमी जो उसी कस्बे में रहता है, मृतक का मित्र था, कस्बे में मनिहार की सब से बड़ी दुकान उसी की थी. वह जवान और सुंदर था. 2 मुखबिरों ने बताया कि उस लड़की को रात के समय उस के घर से निकलते देखा है. उन दोनों मुखबिरों में से एक ने बताया कि एक बार शाम के बाद एक गली में दोनों को खड़े देखा था. जब मैं उधर से गुजरा तो मुझे देख कर वह लड़की तेजी से अपने घर की ओर चली गई.

मैं ने अगले दिन थाने में कई लोगों को बुलवाया, जिन में मृतक की मां और मृतक का वह मित्र भी था. मैं ने उसे अलग बुला कर पूछा कि क्या मृतक की पत्नी तुम से मिलने आती थी?

उस ने कहा, ‘‘जी, मेरे पास आ कर वह क्या करती, मैं तो उसे अपनी बहन मानता था. हां, वह 2-3 बार मेरे पास आई और कहने लगी कि वह अपने पति के घर जाना चाहती है. यह बात आप कादिर को कह दें. आप यकीन करें, मेरी और मृतक की दोस्ती दिल की गहराइयों में उतरी हुई थी. लड़की को जो लोग बदनाम करते हैं, वह सब बकवास है. वह बेचारी तो अपने पति के पास जाने के लिए तड़पती थी.’’

वह इस तरह की बातें करता रहा और अपने मित्र को याद कर के रोता रहा. उस ने बहुत सी बातें कीं लेकिन एक बात का जवाब वह ठीक से नहीं दे सका. मैं ने उस से पूछा था कि लड़की कहां गायब हुई है?

उस ने कहा, ‘‘उस के लापता हो जाने से मैं उसे खराब नहीं कहूंगा. वह इतनी नीच नहीं है कि जिस पति के साथ रहना चाहती थी, उसे धोखा दे. अगर वह जिंदा है तो जरूर वापस आएगी.’’

‘‘क्या बात करते हो,’’ मैं ने कहा, ‘‘वह तो घर से बहुत सामान ले कर गई है. कैसे वापस आएगी?’’

‘‘मुझे उस पर पूरा भरोसा है, वह जरूर आएगी.’’

मैं ने कहा, ‘‘ये बातें कह कर मुझे शक में डाल रहे हो. साफ कहूं तो मुझे लगता है कि तुम मुझ से कुछ छिपा रहे हो.’’

‘‘सर, मैं आप को यह बताने वाला था कि कादिर के साले मेरे पास भी आते थे. उन से दोस्ती तो नहीं थी, लेकिन दूर से दुआसलाम थी. फिर अचानक ऐसा न जाने क्या हुआ कि जो भाई भी मिलता, वह कादिर को गालियां देता. वे कहते थे कि हम पूरे खानदान को बरबाद कर देंगे.

‘‘छोटा भाई तो यहां तक कहता था कि कादिर और उस की मां अब 2-3 दिन के मेहमान हैं. मैं हैरान था कि ये लोग अब ऐसी बातें क्यों कह रहे हैं, जबकि इन की बहन को ससुराल से गए एक साल हो गया है. 2-3 दिन बाद पता लगा कि उन की बहन घर से भाग गई है.’’

‘‘सुना है, कादिर के छोटे साले का गुंडों से याराना है और वह अपने आप को बहुत बड़ा बदमाश समझता है.’’

‘‘आप ने ठीक सुना है, वह बहुत छिछोरा लड़का है.’’

इस आदमी से मुझे बहुत काम की बातें पता चलीं. मैं ने उसे जाने दिया.

मुझे बताया गया कि कादिर की पत्नी की 2 सहेलियां और उन के पिता आए हैं. मैं ने उन्हें बुलाया और उन के पिताओं से कहा कि आप निश्चिंत रहें, ये मेरी बहनों के बराबर हैं. मैं केवल इन से कादिर की पत्नी के बारे में पूछूंगा.

मैं ने एक लड़की को बुलाया और उस से कुछ सवाल किए. फिर दूसरी को बुला कर कुछ सवाल पूछे. दोनों ने एक ही बात बताई. उन्होंने बताया कि वह लड़की बहुत हिम्मत वाली और चरित्रवान थी और अपने पति के अलावा किसी और का नाम नहीं लेती थी.

उन लड़कियों को भेजने के बाद मैं ने कादिर के बड़े साले को बुलाया. मैं ने उस से कहा, ‘‘अपना इकबाली बयान दे दो और मुझ से फायदा हासिल कर लो. मैं तुम्हें बरी भी करवा सकता हूं. मेरी तुम्हारी कोई दुश्मनी नहीं और जो मारा गया वह मेरा रिश्तेदार नहीं लगता था.’’

उस ने घबरा कर कहा, ‘‘हम ने कोई हत्या नहीं की है. अगर हमें हत्या करनी होती तो उसी दिन कर देते, जिस दिन उस ने हमारी बहन को ले जाने से मना कर दिया था.’’

दूसरे नंबर के भाई ने भी यही बयान दिया. तीसरे नंबर का भाई मेरे कमरे में ऐसे झूमता हुआ आया, जैसे कोई माना हुआ गुंडा हो. मैं ने उसे कुरसी पर बिठा कर कहा, ‘‘तुम्हें देख कर मैं बहुत खुश हुआ. सुना है, तुम्हारी इस शहर में बहुत इज्जत है और दबदबा भी. लोग तुम से डरते हैं.’’

उस ने झूम कर कहा, ‘‘किसी की हिम्मत नहीं जो मेरे सामने बोल सके.’’

मैं ने उस के अंदर इतनी हवा भरी कि वह गुब्बारे की तरह फूलता चला गया. उस का नाम आबिद था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘एक बात बताओ, तुम्हारी बहन कहां चली गई?’’

उस ने कहा, ‘‘अगर उस का पता लग जाता तो क्या वह आदमी और मेरी बहन जिंदा रहते?’’

‘‘तुम्हारी यह बात सुन कर मुझे बहुत खुशी हुई,’’ मैं ने उस से इस तरह बात की जैसे मैं थानेदार नहीं उस का दोस्त हूं. मैं ने आगे कहा, ‘‘तुम्हारे जैसे भाई अपनी इज्जत के लिए अपनी जान की भी परवाह नहीं करते. पर एक बात मेरी समझ में नहीं आई कि तुम्हारे जीजा को किस ने मारा?’’

‘‘यह तो मैं भी नहीं बता सकता. वैसे एक बात है, ऐसे आदमी का अंत ऐसा ही होना चाहिए था. किसी की बहनबेटी का घर उजाड़ देना ठीक नहीं है. पुलिस और कानून के पास इस की भले ही कोई सजा न हो, लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि ऐसे आदमी का कुछ न किया जा सके.’’

‘‘तुम ने उस की मां को क्यों माफ कर दिया, उसे भी उड़ा देना चाहिए था. असली कुसूरवार तो वही है.’’ मैं ने कहा.

‘‘अब उसी की बारी है,’’ उस ने ऐसे कहा जैसे नशे में हो.

‘‘बरी कराना मेरा काम है,’’ मैं ने उस के कंधे पर हाथ रख कर दोस्तों की तरह कहा.

वह अपना हाथ बढ़ा कर मेरा हाथ पकड़ते हुए बोला, ‘‘वादा रहा.’’

‘‘तुम वास्तव में शेर हो, अब देखना कादिर की हत्या से मैं तुम्हें कैसे बरी कराता हूं. एक दिन की भी सजा नहीं होने दूंगा. मैं भी 2 बहनों का भाई हूं. तुम ने मेरा दिल खुश कर दिया.’’

फिर मैं ने उस की ओर झुक कर उस के कान में कहा, ‘‘वैसे तुम अकेले थे या…’’

‘‘नहीं,’’ उस के मुंह से एकदम निकल गया, ‘‘मैं अकेला नहीं था.’’

यह कह कर वह एकदम चौंक पड़ा, जैसे नींद से जाग गया हो. वह घबरा गया. उस ने दाएंबाएं देख कर मेरी ओर देखा. उस के चेहरे का रंग पीला पड़ गया था. फिर आहिस्ता आहिस्ता उस के मुंह से आवाजें निकलने लगीं, ‘‘मैं ने उस की हत्या नहीं की…नहीं जी…आप यकीन करें, खुदा कसम मैं ने किसी की हत्या नहीं की.’’

मैं चुपचाप उस के मुंह की ओर देख रहा था. उस के मुंह से ऐसे शब्द निकल रहे थे, जिस का कोई अर्थ नहीं था.

थानेदार के सामने अपराध स्वीकार करने की कोई वैल्यू नहीं होती. क्योंकि बाद में लोग मजिस्ट्रैट के सामने अपने बयान से पलट जाते हैं. केस के लिए सबूत और गवाहों की जरूरत होती है.

‘‘तुम बोलबोल कर थक गए हो,’’ मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम इकबाली बयान दे दो. मैं तुम्हें साफ बचा लूंगा.’’

‘‘मैं ने कहा न,’’ बड़ी मुश्किल से उस के मुंह से शब्द निकले, ‘‘आप मेरे ऊपर विश्वास करें, मैं ने कोई हत्या नहीं की.’’

‘‘तुम ने नहीं की तो तुम्हारे किसी दोस्त ने की होगी. तुम ने तो केवल उस के हाथ पकड़े होगे, गले में रस्सी तो तुम्हारे दोस्त ने डाली होगी. तुम उस का नाम बता दो, मैं तुम्हें सरकारी गवाह बना दूंगा और तुम छूट जाओगे.’’

वह अपने आप को निर्दोष बताने में लगा रहा. मैं ने उसे चेतावनी दी कि अगर उस ने अपराध स्वीकार नहीं किया तो फिर मैं बहुत बुरा सलूक करूंगा.

मैं ने एक कांस्टेबल को बुला कर कहा कि इसे हवालात में बंद कर दे. वह हवालात में जाने को तैयार नहीं था. मेरे कमरे में कूदकूद कर अपने आप को छुड़ा रहा था. कांस्टेबल उसे घसीट कर हवालात में ले गया.

थाने में जितने लोग थे, मैं ने उन्हें जाने के लिए कह दिया. मैं ने एक कांस्टेबल और एएसआई को यह पता करने के लिए लगा दिया कि आबिद के कौनकौन दोस्त हैं. मैं ने उन से कहा कि मैं घर जा रहा हूं और रात को 11 बजे आ कर आबिद से पूछताछ करूंगा.

मैं घर चला गया. अभी बैठा ही था कि एक कांस्टेबल ने आ कर बताया कि वह लड़की अपने घर आ गई है और सीधी मृतक के घर गई है. वहां जा कर उस ने रोना पीटना शुरू कर दिया है. उस ने जाते ही अपनी सास को गालियां देनी शुरू कर दीं. औरतों ने उसे पकड़ लिया.

मैं ने कांस्टेबल से कहा कि तुम लड़की के बाप के पास जाओ और उसे कहो कि लड़की को तुरंत थाने में पेश करे. मैं खाना खा कर थाने पहुंच कर उस लड़की की प्रतीक्षा करने लगा.

कुछ देर बाद लड़की मेरे कमरे में लाई गई. उस ने अपने मुंह पर हाथ मारमार कर चेहरा लाल कर लिया था. बालों को नोचा था, इसलिए बाल बिखरे हुए थे. आंखें लाल हो रही थीं, मैं ने उस के बाप और भाई को बाहर भेज दिया. मैं ने उसे कुरसी पर बिठा कर पानी पिलाया और उस के पति के मरने का अफसोस जताया. मैं ने उसे हर तरह से सांत्वना दी.

‘‘न थाने से डरो न मुझ से.’’ मैं ने कहा, ‘‘समझो, तुम मेरी छोटी बहन हो. मैं तुम से केवल यह पता करना चाहता हूं कि तुम्हारे पति की हत्या किस ने की है.’’

‘‘उस की मां ने…’’ उस ने मेरी ओर देखते हुए कहा.

यह पहली बात थी, जो उस के मुंह से निकली थी. वह चुपचाप बैठी फटीफटी आंखों से मुझे देख रही थी.

वह थोड़ा पानी पी कर बोली, ‘‘उस चुड़ैल ने अपने ही बेटे को खा लिया है.’’

मैं ने उसे बोलने दिया ताकि उस के दिल का बोझ हलका हो जाए.

उस ने आगे कहा, ‘‘मैं तो कहती हूं, मेरे पति की मेरे बाप और मेरे भाइयों ने भी हत्या की है. मैं उन से कहती थी कि जिस तरह से कादिर का बड़ा भाई अपने घर से अलग हो कर उसी हवेली में रह रहा है, उसी तरह कादिर को भी मैं अलग कर लूंगी. लेकिन मेरा बाप और भाई कहते थे कि कादिर पर यकीन मत करो, वह अपनी मां जैसा है. वह एक कहता है तो तुम 10 सुनाओ. आप नहीं जानते कादिर को. वह मुझ से कितना प्यार करता था.’’ इतना कह कर वह इतना रोई कि मुझे भी हिला दिया.

कुछ देर बाद जब उस ने रोना बंद किया तो मैं ने उस से पूछा, ‘‘यह बताओ, तुम चली कहां गई थी?’’

‘‘अपने पति के पास गई थी.’’ उस ने जवाब दिया.

‘‘क्या?’’

इस के बाद उस ने जो बयान दिया, वह अपने शब्दों में सुनाता हूं.

उस लड़की का नाम खदीजा था. उस के मांबाप ने उसे घर बिठा लिया था. कादिर खदीजा को तलाक नहीं देना चाहता था और न ही वह तलाक लेना चाहती थी. कादिर की मां उसे तंग करने के लिए तलाक नहीं दिलवाना चाहती थी. लेकिन कादिर और उस की पत्नी खदीजा की सोच कुछ और थी. वे एकदूसरे से अलग हो कर तड़प रहे थे.

कुछ महीने बाद कादिर ने अपने दोस्त जलील से बात की. जलील ने अपनी पत्नी की मदद से दोनों को मिलवाने का प्रबंध कर दिया. जलील की पत्नी ने खदीजा से जा कर कहा कि कादिर उस से मिलना चाहता है. वह उस के घर आ गई. उस ने एक कमरे में दोनों को मिलवा दिया.

कादिर जिस शहर में काम करता था, वह उन के कस्बे से 20-22 किलोमीटर दूर था. रविवार की छुट्टी हुआ करती थी. कादिर हर शनिवार की शाम को घर आ जाता था और वहां से जलील के घर चला जाता, जहां खदीजा से उस की मुलाकात हो जाती थी.

जलील की पत्नी ने खदीजा से गहरी दोस्ती कर ली थी. खदीजा के मातापिता जलील की पत्नी पर विश्वास करते थे. वह हर शनिवार को आ कर उन से कह कर खदीजा को ले जाया करती थी.

जलील और उस की पत्नी ने खदीजा के मिलने का प्रबंध तो कर दिया था, लेकिन इस में खतरा यह था कि कभी न कभी यह राज खुल सकता था. इसलिए वह उन्हें एक सप्ताह छोड़ कर मिलवाती थी.

एक दिन कादिर ने यह फैसला किया कि खदीजा अपना घर छोड़ कर हमेशा के लिए आ जाए और कादिर उसे अपने साथ शहर ले जा कर रख ले. वे दोनों फिर कभी इधर नहीं आएंगे. और अगर उन के मातापिता को पता लग गया तो वह इस शर्त पर वापस आएंगे कि आपसी झगड़े खत्म करो और हमें चैन से रहने दो.

एक रात कादिर शहर से आया. उस के घर वालों को पता नहीं था. खदीजा ने दिन के समय अपने वे कपड़े और जेवर जो उस ने अपने साथ ले जाने थे, चोरीचोरी एक अटैची में डाल लिए. रात को जब सब सोए हुए थे, वह चुपके से घर से निकल गई.

कादिर और जलील खेत में खड़े थे. वे दोनों जलील के घर गए और सुबहसुबह कादिर और उस की पत्नी शहर जाने वाली बस में सवार हो कर शहर चले गए. वहां कादिर ने एक मकान किराए पर लिया हुआ था. वहां दोनों चैन से रहने लगे.

कादिर ने किसी वजह से दफ्तर से 4-5 दिन की छुट्टी ले ली थी. उस के घर का कोई काम था. वह खदीजा को शहर में अकेला छोड़ आया था और उस ने अपने 2 मित्रों से घर की देखभाल के लिए कह दिया था. खदीजा ने मुझे बताया कि कादिर ने तय किया था कि वह एक महीने बाद अपने मातापिता को बता देगा कि खदीजा उस के पास है और वह कभी वापस नहीं आएगा.

‘‘क्या तुम कादिर की हत्या की बात सुन कर आई हो?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हां जी,’’ उस ने कहा, ‘‘जलील भाईजान ने अपने एक आदमी को यह कह कर कादिर के दफ्तर भेजा था कि वह कादिर के दोस्त को कह दे कि उस की हत्या हो गई है. उस दोस्त ने घर आ कर मुझे बताया और उसी ने मुझे बस में बिठाया था. अगर किसी को शक है कि मैं झूठ बोल रही हूं तो आप किसी को मेरे साथ भेज दें, मैं उसे वह मकान दिखाऊंगी जिस में हम दोनों रहते थे. कादिर के और मेरे कपड़े व जेवर अभी भी उस मकान में पड़े हैं. चलिए, मैं चल कर दिखाती हूं.’’

यह लड़की जिसे मैं कुछ और समझ रहा था, मेरी नजरों में बहुत ऊंचे कैरेक्टर की हो गई. मैं ने एक कांस्टेबल को जलील को लाने के लिए भेज दिया.

मैं ने खदीजा से पूछा, ‘‘तुम्हारा शक किस पर है? ऐसा तो नहीं कि तुम्हारे भाइयों को तुम्हारे जाने का पता लग गया हो और उन्होंने इस में अपनी बेइज्जती समझी हो.’’

‘‘मैं क्या बताऊं, यह हो तो सकता है लेकिन इस के लिए पहले वे मेरे पास आते और पूरी बात पता करते, मुझ से घर चलने के लिए कहते.’’

मैं ने उसे यह नहीं बताया कि उस का छोटा भाई हवालात में बंद है. मैं ने खदीजा से और कुछ नहीं पूछा और उस के बाप को बुला कर खदीजा को उस के हवाले कर दिया. मैं ने उस से कह दिया कि यह अपने पति के घर गई थी, लोगों से कह दो कि इसे बदनाम न करें.

जलील मेरे पास आया और मैं ने उस से पूछा कि तुम ने खदीजा के बारे में क्यों नहीं बताया? क्या तुम नहीं जानते कि तफ्तीश के दौरान कोई भी बात पुलिस से नहीं छिपानी चाहिए?

उस ने कहा, ‘‘मैं जानता था या नहीं, मैं ने यह बात छिपाई. आप जो भी चाहें मेरे खिलाफ कानूनी काररवाई कर सकते हैं. मैं ने अपना फर्ज पूरा किया है, आप अपना फर्ज पूरा करें.’’

मुझे उम्मीद थी कि वह डर जाएगा, लेकिन वह तो बहुत निडर निकला. मैं ने उस से पूछा कि उस ने कौन सा फर्ज पूरा किया है.

वह बोला, ‘‘दोस्ती का फर्ज पूरा किया है. मुझे कादिर ने कुछ भी बताने से मना कर दिया था. खदीजा ने भी मना कर रखा था. खदीजा मेरी बहन लगती है, उस से किया हुआ वादा मैं नहीं तोड़ सकता था. मैं ने आप की नजरों में अपराध किया है, आप जो चाहे, मुझे सजा दे सकते हैं.’’

वैसे उस ने कोई अपराध नहीं किया था, क्योंकि खदीजा के गुम होने की मेरे पास कोई रिपोर्ट नहीं आई थी. इसलिए अगर उस ने कोई बात छिपाई तो वह कानून की नजरों में अपराध नहीं थी. मैं तो उस से खदीजा के बयान की पुष्टि चाहता था.

जलील ने कहा, ‘‘मैं आप को एक बात बताता हूं. जिस समय कादिर की हत्या हुई थी, उस से आधे घंटे पहले एक आदमी ने खदीजा के भाई को एक आदमी के साथ खेत की मेंड़ पर बैठे देखा था. उन दोनों की उस आदमी के साथ दुआसलाम भी हुई थी. कादिर उस रास्ते से मेरे घर आया करता था. गलियों से आने में रास्ता लंबा पड़ता है. आप चाहें तो उस आदमी को बुला सकते हैं.

‘‘जो आदमी आबिद के साथ बैठा था, मैं उसे जानता हूं. वह एक बार का सजायाफ्ता सलीम था. उस ने किसी को चाकू मारा था. वह तो बच गया लेकिन चाकू मारने वाले को दफा 307 में 3 साल की सजा हुई थी.’’

मैं ने एक कांस्टेबल को सलीम को बुलाने के लिए भेजा.

मैं ने आबिद को हवालात से निकलवा कर अपने कमरे में बुलाया. उसे बिठा कर मैं ने कहा, ‘‘हां भई आबिद, कुछ सोचा? अपराध स्वीकार कर लो, फायदे में रहोगे.’’

उस ने मना कर दिया और छोड़ने के लिए मिन्नतें करने लगा.

मैं ने उस से कहा, ‘‘अच्छा यह तो बताओ, सलीम के साथ खेत में बैठे तुम क्या बातें कर रहे थे?’’

उस ने कहा, ‘‘कब?’’

‘‘अपने जीजा की हत्या करने से आधे घंटा पहले.’’

‘‘यूं ही बातें कर रहे थे.’’

‘‘इतनी ठंडी रात में तुम्हें बात करने के लिए वही जगह मिली थी. लोग घरों में दरवाजे खिड़की बंद कर के लिहाफ में लेटे हुए थे. तुम दोनों को गरमी लग रही थी. सलीम से क्या बातें हुई थीं, सोच लो अगर झूठ बोलोगे तो मैं सलीम से पूछ लूंगा. फिर तुम्हारा झूठ खुल जाएगा.’’

‘‘सच्ची बात है जी, मैं अपनी बहन और जीजा के बारे में बात कर रहा था. उस ने हमारी इज्जत मिट्टी में मिला दी थी. सलीम मेरे जीजा और उस की मां को गालियां दे रहा था.’’

‘‘फिर कादिर आ गया और तुम्हारी बातें रुक गईं.’’

‘‘कादिर नहीं आया था जी,’’ उस ने कहा.

मैं ने उस के मुंह पर जोरदार थप्पड़ मारा. वह रोने लगा. मैं उस से पूछता रहा, वह झूठ बोलता रहा. मैं हर झूठ पर उसे थप्पड़ मार रहा था. मैं ने उस से कहा कि पिटाई के और भी बहुत से तरीके हैं मेरे पास. अगर वह पिटाई से मर भी गया तो उस की लाश गायब कर दी जाएगी.

एक कांस्टेबल ने आ कर बताया, ‘‘सलीम आ गया है.’’

मैं ने उसे अंदर बुलाया और आबिद से पूछा, ‘‘यही था न उस वक्त तुम्हारे साथ?’’

उस ने हां कर दी.

मैं उसे कमरे में छोड़ कर सलीम को हवालत के एक खाली कमरे में ले गया और उस से पूछा, ‘‘तेरे यार ने सब कुछ बक दिया है. तू तो गुरु आदमी है, तूने यह क्या गलती की, इतने कच्चे आदमी के साथ जा कर उस का काम तमाम कर दिया.’’

पलभर रुक कर मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम ने हमारी बहुत मदद की है. मैं तुम्हें बचाना चाहता हूं. अगर तुम ने सच नहीं बोला तो थाने में तुम्हारा पूरा रिकौर्ड मौजूद है. मैं उसे अदालत में पेश कर दूंगा और तुम सीधे फांसी चढ़ जाओगे.’’

उस ने कहा, ‘‘मुझे सरकारी गवाह बना लो.’’

‘‘अरे तुम बयान तो दो, यह मेरे ऊपर छोड़ दो. देखो मैं क्या करता हूं.’’

मैं ने उस से कई तरह की बातें कर के उस का बयान ले लिया. उसे संक्षेप में सुनाता हूं.

आबिद और सलीम की दोस्ती थी. सलीम पक्का बदमाश था और आबिद तो बदमाशी में मुंह मारता ही था. उसे घर से पैसे मिल जाया करते थे. वह घर में पैसों की चोरी भी कर लिया करता था. सलीम और दूसरे दोस्तों ने आबिद को जुए का चस्का भी लगा दिया था.

आबिद की बहन ससुराल से आ कर घर बैठ गई थी. उस की सास उस के साथ जो सलूक करती थी, वह घर आ कर सुनाती थी. सुन कर आबिद को गुस्सा आता था. उस ने सलीम से कहा कि वह बदला लेना चाहता है. सलीम उसे रोकता था. कुछ दिन बाद आबिद की बहन घर से गायब हो गई. घर वालों ने इस बात को छिपा कर रखा. लेकिन धीरेधीरे सब को पता लग गया.

आबिद अपने आप को बहुत बड़ा बदमाश समझता था. उसे यह वहम था कि सारा कस्बा उस से डरता है. एक दिन उस की किसी से लड़ाई हो गई तो उस ने उसे ताना दिया, ‘‘जा पहले अपनी बहन को तो ढूंढ, जो तुम्हारे मुंह पर थूक कर अपने यार के साथ चली गई.’’

आबिद को अपनी बहन के बजाय कादिर पर गुस्सा आया. अगर उस की बहन को कादिर अपने घर रहने देता तो वह घर से क्यों भागती. उसे इस बात पर भी गुस्सा था कि कादिर उस की बहन को तलाक नहीं दे रहा था.

उन्हीं दिनों सलीम को कुछ पैसे की जरूरत पड़ गई. आबिद ने उस के आगे अपने घर का रोना रोया और कादिर की हत्या करने का इरादा जाहिर किया. उस ने सलीम से कहा कि वह उस की मदद करे. सलीम को पैसों की जरूरत थी. उस ने कहा कि अगर उसे एक हजार रुपए मिल जाएं तो उस की जरूरत पूरी हो सकती है.

आबिद ने उस से कहा, ‘‘मैं तुम्हें अभी तो एक हजार नहीं दे सकता. 2-3 दिन में 5 सौ रुपए दे सकता हूं. बाकी बाद में दे दूंगा. तुम कादिर की हत्या करने में मेरी मदद करो. यह रकम तुम से वापस भी नहीं लूंगा.’’

उस जमाने के एक हजार आज के 50 हजार के बराबर होते थे. सलीम तुरंत तैयार हो गया. वे दोनों कादिर की हत्या करने की योजना बनाने लगे. वे चाहते थे कि काम भी हो जाए और उन का नाम भी न आए.

दोनों इस काम के लिए शहर गए, जिस से कि कादिर की हत्या वहां की जा सके. सलीम ने यह काम अपने ऊपर ले लिया कि वह शहर जा कर कादिर से उस का पता ले लेगा और फिर आसानी से उस की हत्या उस के घर में ही कर दी जाएगी.

संयोग से कादिर छुट्टी ले कर घर आया और उसे आबिद ने देख लिया. आबिद ने देखा कि कादिर जलील के घर खेतों से हो कर जाता है. हत्या की रात आबिद ने कादिर को जलील के घर जाते देख लिया, उस ने सलीम को बताया और उसे 3 सौ रुपए भी दे दिए. सलीम अपने घर से रस्सी ले आया और दोनों कादिर के रास्ते में घात लगा कर बैठ गए.

कादिर वापस आया तो दोनों धीरेधीरे उस के पीछे चलने लगे, जिस से कि कादिर को शक न हो और वह उन्हें पहचान न सके.

कादिर ने अंधेरे के कारण उन्हें नहीं पहचाना. वह अभी कुछ ही दूर गया होगा कि आबिद ने उसे पीछे से जकड़ लिया और सलीम ने पीछे से उस के गले में रस्सी डाल कर एक गांठ लगा दी. आबिद ने कादिर को छोड़ कर रस्सी का एक सिरा पकड़ लिया. दूसरा सिरा सलीम ने पकड़ा और दोनों ने रस्सी को अपनीअपनी ओर खींचा. कादिर गिरा तो दोनों उसे खींच कर खेतों के अंदर ले गए. सलीम ने उस के दिल और कलाई पर हाथ रख कर देखा, वह मर चुका था.

मैं ने यह बयान आबिद को बताया और उसे चकमा दिया कि मौके का कोई गवाह नहीं है, इसलिए वह बच जाएगा. उस ने भी अपना बयान दे दिया. मैं ने दोनों के बयान जुडीशियल मैजिस्ट्रैट के सामने करा कर दोनों को जुडीशियल लौकअप में भेज दिया.

मैं ने मुकदमा बहुत मेहनत से तैयार किया. कोई भी खाना खाली नहीं छोड़ा. दोनों अभियुक्तों को मृत्युदंड मिला. सैशन में अपील की गई तो वह भी निरस्त हो गई. रहम की अपील भी. दोनों को फांसी दे दी गई.

— इंसपेक्टर रियाज अहमद