एक पल की खामोशी के बाद मनोज दबी आवाज में बोला, ‘‘कल शाम 7 बजे के आसपास रमेश ने मुझे फोन कर के कहा कि वह नहीं चाहता कि उस की वजह से उसे और उस की मां को तकलीफ पहुंचे. इस के बाद उस ने जो कुछ कहा, मैं उसी के शब्दों में आप को बता रहा हूं.
उस ने कहा था, ‘‘तुम्हारा बाप नंबर एक का बदमाश और जालसाज था. लेकिन उस की मृत्यु के बाद इस बात को दबा दिया गया था. अगर तुम चाहते हो कि यह बात अभी भी उसी तरह दबी रहे तो तुरंत किसी आदमी के हाथ अपने वकील को एक पत्र भेज कर उसे यह मुकदमा वापस लेने को कह दो और शहर छोड़ कर चले जाओ. अगर तुम ने ऐसा नहीं किया तो जहां तुम्हारी मां रहती है, उस पूरे इलाके में उन के बारे में बता कर उन्हें बदनाम कर दिया जाएगा. उस के बाद तुम्हारी मां की क्या हालत होगी, यह तुम जानते ही हो.’’
‘‘मैं ने और स्वाति ने इस बात पर गहराई से विचार किया. हम ने सोचा कि इस उम्र में मां को क्यों परेशान किया जाए. वह चैन से रह रही हैं तो उन्हें उसी तरह चैन से रहने दिया जाए. यही सोच कर हम यहां चले आए. लेकिन जब आप यह मुकदमा लड़ ही रहें हैं और मां को सच्चाई का पता चल ही गया है तो अब आप जो कहेंगे, हम वही करेंगे.’’
‘‘एक घंटे पहले रमेश का फोन यहां भी आया था. इत्तेफाक से फोन मैं ने रिसीव किया था. वह मनोज से बात करना चाहता था, स्वाति ने कहा, लेकिन मैं ने डांट कर फोन काट दिया.’’
‘‘बहुत अच्छा किया,’’ सावित्री सोलकर ने कहा, ‘‘बेटा, यह तुम्हारा फर्ज था कि मेरे बारे में सोच कर तुम ने यह मुकदमा वापस लेने का निर्णय लिया. लेकिन जो गलत है, उस से भी भागना ठीक नहीं है. मैं अभी भी अपनी समस्याओं से निपटने की क्षमता रखती हूं. मुझे इस बात का दुख है कि तुम ने रमेश की बात पर विश्वास कर लिया कि वह तुम्हारे पिता के बारे में जो कहा, वह सही है.’’
‘‘पापा की जिंदगी पर सदैव रहस्य का परदा पड़ा रहा, शायद इसीलिए ऐसा हुआ.’’ मनोज ने सिर झुका कर कहा, ‘‘बहरहाल, मैं अपनी इस गलती पर शर्मिंदा हूं.’’
‘‘क्या आप मनोज के पिता के बारे में मुझे कुछ बताएंगी?’’ नवीन ने कहा.
‘‘क्यों नहीं,’’ सावित्री ने कहा. इस के बाद वह अतीत में खो गईं. थोड़ी देर बाद वह संभल कर बोलीं, ‘‘जब अनिल से मेरी शादी हुई, वह अपने पिता की ही कंपनी में काम करते थे, जिस में उन के पिता सोमनाथ सोलकर के आविष्कार किए हुए बिजली के सामान बनते थे. मेरे ससुर का सोचना था कि मैं ने उन के बेटे को बरबाद कर दिया है. मेरी वजह से वह निकम्मा हो गया है. जबकि सच्चाई यह थी कि अनिल को घूमने फिरने और उन स्थानों के बारे में लिखने का शौक था. अपने इसी शौक की वजह से उन्होंने कंपनी छोड़ने का निर्णय लिया.
‘‘जबकि उन के इस निर्णय में मेरी कोई भूमिका नहीं थी. उन के निर्णय पर सोमनाथ सोलकर ने खूब हंगामा किया. उन का कहना था कि मेरी वजह से उन का एकलौता बेटा अपनी राह से भटक गया है. कंपनी से अलग हो कर अनिल ने एक हवाई जहाज खरीदा और इधर उधर की यात्रा करने लगे. ट्रैवल से संबंधित उन के अनेक लेख विभिन्न पत्रिकाओं में छपने लगे.
‘‘मनोज के जन्म के बाद मेरा उन के साथ जाना कम हो गया. अब वह अकसर अकेले ही जाने लगे थे. 1985 के अप्रैल में जयपुर से आगे रेगिस्तान में उड़ते समय अनिल का जहाज दुर्घटनाग्रस्त हो गया. इस दुर्घटना में केवल जहाज का मलबा मिला था, अनिल की लाश नहीं मिली थी.’’
पल भर की चुप्पी के बाद सावित्री सोलकर ने आगे कहा, ‘‘मुझे जो याद आता है, उस के हिसाब से रमेश गायकवाड़ का मेरे ससुर सोमनाथ सोलकर से दूर का कोई संबंध है. वह उन दिनों कंपनी में ही काम करता था. अनिल की मौत के बाद वह मेरे पास आया था. उस ने मुझ से कहा था कि अनिल के बारे में कुछ ऐसी सच्चाई सामने आई है, जिस का राज बना रहना ठीक है.
‘‘उस ने मुझे कुछ पैसे देते हुए कहा कि इन्हें मेरे ससुर ने भेजे हैं और उन्होंने कहा है कि भविष्य में वह मुझ से कोई संबंध नहीं रखना चाहते. मैं ने पैसे वापस करते हुए कहा था कि मैं वे बातें जरूर जानना चाहूंगी, जिन की वजह से मेरे ससुर मुझ से संबंध खत्म करना चाहते हैं. अनिल ने ऐसा क्या किया था, जिस से उन्हें शर्मिंदगी महसूस हो रही है.
‘‘मैं ने उन से संपर्क करने की कोशिश की, उन्हें पत्र लिखे, समय मांगा, फोन पर बात करने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली. मजबूर हो कर मैं शांत हो गई. अनिल की मौत के एक साल बाद मुझे पता चला कि मेरे ससुर ने कोई इंस्टीटयूट बनवाया है, जिस का डायरेक्टर रमेश गायकवाड़ को बनाया है. इस से मुझे लगा कि उस ने अनिल पर जो आरोप लगाए थे, वे किसी साजिश के तहत लगाए थे. अब मनोज को वह चोर बता रहा है तो इस के पीछे भी कोई साजिश है.’’
‘‘मुझे लगता है कि अपनी वकील शशांक ठाकरे के साथ मिल कर वह इंस्टीटयूट में कुछ गड़बड़ कर रहा है,’’ नवीन ने कहा, ‘‘लेकिन दोनों यह काम इस तरह कर रहे हैं कि पकड़ में नहीं आ रहे हैं. रमेश रहता भी बहुत साधारण तरीके से है. शायद वे गड़बड़ी इस तरह कर रहे हैं कि इस का लाभ उन्हें भविष्य में मिले. मेरी समझ में यह नहीं आता कि सोमनाथ सोलकर अपने इंस्टीटयूट को पूरी तरह कैसे भूल गए. उन्हें इंस्टीटयूट के बारे में सब से ज्यादा मालूम होगा, क्योंकि यह उन्हीं का बनवाया है. वह कभी नहीं चाहेंगे कि उन का इंस्टीटयूट बरबाद हो. अगर किसी तरह मि. सोमनाथ सोलकर से संपर्क हो जाए तो…?
‘‘अब वह काफी बूढ़े हो चुके हैं, इसलिए बहुत कम लोगों से मिलते हैं?’’ सावित्री ने कहा, ‘‘उन का फोन नंबर भी डायरेक्टरी में नहीं है. लेकिन संयोग से मेरे पास है.’’
नवीन ने वह नंबर डायल किया तो दूसरी ओर से एक कमजोर सी आवाज आई, ‘‘सोमनाथ सोलकर स्पीकिंग.’’
नवीन ने अपना नाम बताया तो उस आवाज में थोड़ी तेजी आई, ‘‘तुम यकीनन गवाह के तौर पर मुझे अदालत में बुलाना चाहते होगे?’’
‘‘जी हां,’’ नवीन ने कहा, ‘‘इस के अलावा मैं आप को इस केस के बारे में भी कुछ बताना चाहता हूं.’’
‘‘मुझे केस के बारे में सब पता है और तुम्हारे बारे में भी.’’ सोमनाथ सोलकर ने बेरुखी से कहा, ‘‘बहरहाल मैं कल सुबह अदालत पहुंच जाऊंगा.’’