प्रेम में डूबी जब प्रेमलता – भाग 3

स्कूल में छुट्टी होने की वजह से गवेंद्र पत्नी से मिलने आगरा पहुंच गया. उस का वहां आना प्रेमलता को अच्छा तो नहीं लगा, लेकिन वह उसे भगा भी नहीं सकती थी. रात का खाना खा कर वह सो गया.

अचानक उस की आंख खुली तो उस ने प्रेमलता को मोबाइल पर किसी से हंसहंस कर बात करते पाया. उस की बातचीत सुन कर पता चला कि वह किसी बबलू से बातें कर रही थी. उस ने फोन काटा तो गवेंद्र ने पूछा, “यह बबलू कौन है, जिस से तुम इतनी रात को बातें कर रही थी?”

“यहीं पड़ोस में रहता है. उस से किसी काम के लिए कहा था, उसी के बारे में बात कर रही थी.”

“उस के बारे में तुम सुबह भी तो पूछ सकती थी.”

“अभी पूछ लिया तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा.” प्रेमलता ने तमक कर कहा.

इस के बाद गवेंद्र को नींद नहीं आई. सुबह दोनों में बबलू को ले कर खूब झगड़ा हुआ. बबलू को पता नहीं था कि गवेंद्र अभी गया नहीं है, इसलिए जब दोनों में झगड़ा हो रहा था तो वह प्रेमलता के कमरे पर आ पहुंचा. उसे देख कर गवेंद्र ने पूछा, “तो तुम्हीं बबलू हो?”

गवेंद्र के इस सवाल पर बबलू सिटपिटा गया. घबराहट में बोला, “जी, हम ही बबलू हैं. पिंकी दीदी से कुछ काम था, इसलिए आ गया. जरूरत पडऩे पर कुछ मदद कर देता हूं.”

“कोई अपनी दीदी से देर रात को बातें नहीं करता. बबलू यह सब ठीक नहीं है. मेरे खयाल से तुम्हारा यहां आनाजाना ठीक नहीं है. इन की मदद के लिए मैं हूं न.”

गवेंद्र ने बबलू को दरवाजे से वापस कर दिया. प्रेमलता को यह बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा. इसलिए उस ने तय कर लिया कि अब उसे किसी भी तरह गवेंद्र से छुटकारा पाना है. दूसरी ओर गवेंद्र की समझ में नहीं आ रहा था कि वह प्रेमलता के बारे में पिता को बताए या न बताए. उसे लगा कि यह पतिपत्नी के बीच मामला है, इस में पिता को बता कर परेशान करना ठीक नहीं है.

इस तरह रामसेवक को कुछ पता नहीं चला. बच्चों की छुट्टियां पड़ गईं तो गवेंद्र ने बच्चों को आगरा पहुंचा दिया. इस बीच बबलू के साथसाथ उस के दोस्तों विनयकांत और सर्वेंद्र का भी प्रेमलता के यहां आनाजाना हो गया. सर्वेंद्र और विनयकांत भी उसी कालेज से बीएमएस कर रहे थे. वहां रहते हुए उमंग और तमन्ना भी बबलू से हिलमिल गए थे.

एक दिन सभी ताजमहल देखने गए, जहां बबलू ने प्रेमलता के साथ फोटो खिंचवाए. इस तरह उन के प्यार का एक प्रमाण भी हो गया. इस के बाद तय हुआ कि गवेंद्र को रास्ते से हटा कर दोनों शादी कर लेंगे. यही नहीं, उस ने पूरी तैयारी भी कर ली. अब उसे मौके की तलाश थी.

30 नवंबर को प्रेमलता ने गवेंद्र को फोन किया तो पता चला कि रामसेवक वोट डालने गांव गए हैं. खेतों की बुवाई भी करानी है, इसलिए वह खेतों की बुवाई कराने तक गांव में ही रहेंगे. प्रेमलता ने बबलू से कहा कि गवेंद्र को निबटाने का यह अच्छा मौका है. बबलू ने अपने दोनों दोस्तों, सर्वेंद्र और विनयकांत को दोस्ती के नाम पर साथ देने के लिए राजी कर लिया. इस तरह गवेंद्र की हत्या की पूरी तैयारी हो गई.

31 दिसंबर, 2015 को प्रेमलता बच्चों के साथ कीरतपुर आ गई. उसे देख कर गवेंद्र ने कहा, “फोन कर देती तो मैं बच्चों को लेने आ जाता.”

“मैं ने फोन इसलिए नहीं किया कि यहां आ कर घर भी देख लूंगी और तुम से भी मिल लूंगी.” प्रेमलता ने कहा.

योजना के अनुसार, 4 दिसंबर, 2015 को बबलू अपने दोनों दोस्तों, सर्वेंद्र और विनयकांत के साथ मैनपुरी आ गया. कीरतपुर में ही उस का एक दोस्त रहता था, वे उसी के घर ठहर गए. उन का खाना प्रेमलता ने ही उमंग के हाथों भिजवाया था.

5 दिसंबर को गवेंद्र अपनी स्कूल की ड्यूटी कर के घर आया तो प्रेमलता उसे काफी बेचैन लगी. गवेंद्र ने पूछा तो प्रेमलता ने कहा, “मैं आगरा में रहती हूं तो तुम्हारी और बच्चों की चिंता लगी रहती है.”

गवेंद्र ने कहा, “कुछ दिनों की ही तो बात है. पढ़ाई पूरी होने पर मैनपुरी के आसपास नौकरी की कोशिश की जाएगी.”

प्रेमलता की इन बातों से गवेंद्र का मन साफ हो गया. उसे क्या पता था कि अब उस की जिंदगी कुछ ही घंटों की बची है. रात का खाना बना कर प्रेमलता ने सब को खिलाया. गवेंद्र को खाना खातेखाते ही नींद आने लगी. वह बिस्तर पर जा कर सो गया. प्रेमलता ने बच्चों को भी सुला दिया. जब मोहल्ले में सन्नाटा पसर गया तो उस ने बबलू को फोन कर के आने को कहा.

बबलू तो तैयार ही बैठा था. वह अपने दोनों साथियों, सर्वेंद्र और विनयकांत के साथ आ पहुंचा. प्रेमलता उन्हें उस कमरे में ले गई, जहां गवेंद्र सो रहा था. प्रेमलता ने गवेंद्र को खाने में नींद की गोलियां दे कर सुला दिया था, इसलिए सभी उस की ओर से निङ्क्षश्चत थे.

बबलू गवेंद्र का गला दबाने लगा तो वह जाग गया. उस के विरोध में हुए शोर से दूसरे कमरे में सो रहे उमंग की नींद टूट गई. शोर क्यों हो रहा है, यह जानने के लिए वह उस कमरे में आया तो देखा 4 लोग उस के पापा को दबोचे हुए थे. लेकिन तब तक गवेंद्र मर चुका था.

उमंग को देख कर सभी के होश उड़ गए. जो जहां था, वहीं खड़ा रह गया. अबब की नजरें उमंग पर टिकी थीं. बबलू एकदम से बोला, “यह तो बड़ी गड़बड़ हो गई, इस ने जो देखा है, किसी से भी बता सकता है. अब इसे भी खत्म करना होगा.”

“नहीं, इसे कोई हाथ नहीं लगा सकता. तुम लोग लाश को इसी तरह पड़ी रहने दो. मैं इसे भी संभाल लूंगी और लाश को भी संभाल लूंगी. आगे क्या करना है, यह तुम मुझ पर छोड़ दो.” प्रेमलता ने कहा.

इस के बाद बबलू, सर्वेंद्र और विनयकांत चले गए. उन के जाने के बाद प्रेमलता बेटे को डराती रही कि वह किसी से कुछ नहीं बताएगा. अगर उस ने किसी को कुछ बताया तो वह उसे भी मार देगी. सवेरा होने पर प्रेमलता ने रोरो कर मोहल्ले वालों को इकट्ठा कर के बताया कि गवेंद्र ने आत्महत्या कर ली है. इस के बाद खुद ही थाने जा कर पति की आत्महत्या की सूचना दे दी.

बबलू को उमंग से तो खतरा था ही, ताजमहल में उस ने प्रेमलता के साथ जो फोटो ङ्क्षखचवाए थे, उन से भी वह पकड़ा जा सकता था. इसीलिए वह उन के बारे में पता करने थाने आ गया और पकड़ा गया. सर्वेंद्र और विनयकांत भी उमंग से डर रहे थे, इसलिए उन्होंने उस का अपहरण करना चाहा, लेकिन रामसेवक को इस की भनक लग गई तो उन्होंने इस बात की जानकारी थाना विछवां के थानाप्रभारी जी.पी. गौतम को दे दी. जी.पी. गौतम ने उसे पुलिस सुरक्षा मुहैया करा दी.

पूछताछ के बाद बबलू और प्रेमलता को जेल भेज दिया गया है. फरार सर्वेंद्र और विनयकांत की पुलिस तलाश कर रही है.

मनोहर सिंह यादव ने इस मामले का खुलासा मात्र 9 दिनों में कर दिया. इस से खुश हो कर एसएसपी ने उन्हें 5 हजार रुपए ईनाम दिया है. रेनू और मंसूर अहमद ने जिस तरह सूझबूझ से पकड़वाया, इस के लिए उन्हें भी ढाईढाई हजार रुपए ईनाम दिया गया है.

एक क्रूर औरत की काली करतूत – भाग 2

अर्चना भले ही नहीं चाहती थी कि सुमिक्षा वहां रहे, लेकिन अब तो उसे वहीं रहना था. आखिर वही हुआ, जैसा ऊषा ने कहा था. अर्चना पूरी तरह वैसी सौतेली मां निकली, जैसा सौतेली मांओं के बारे में कहा जाता है. मां के व्यवहार से परेशान मासूम सुमिक्षा अकसर मंदिर के बरामदे में उदास बैठी रहती.

एक तो कालोनी की महिलाओं को पता चल गया था कि सुमिक्षा मंदिर के पुजारी बुद्धिविलास की पहली पत्नी की बेटी है, दूसरे उस में ऐसा न जाने क्या आकर्षण था कि हर महिला उस की ओर आकर्षित हो जाती थी.

सुमिक्षा के आने के बाद अर्चना को बेटा पैदा हुआ, जिस का नाम उस ने सुचित रखा. भाई के पैदा होने से सुमिक्षा का ध्यान मां की ओर से हट कर भाई पर जम गया. वह भाई के साथ अपना दिल बहलाने लगी. लेकिन बेटा पैदा होने के बाद अर्चना और क्रूर हो गई.

मंदिर के पास ही बनी मातृछाया बिल्डिंग में रहने वाले दवा व्यापारी अजय कौशिक की पत्नी संध्या कौशिक भी पूजापाठ के लिए मंदिर आती रहती थीं. एक दिन संध्या पूजापाठ कर के मंदिर के सीढि़यां उतर रही थीं तो सीढि़यों पर उन्हें रोती हुई सुमिक्षा मिल गई. उन्होंने रोने की वजह पूछी तो सुमिक्षा ने बताया कि मम्मी ने मारा है.

संध्या को पता था कि सुमिक्षा की मां अर्चना सौतेली है, जो उसे परेशान करती है. इसलिए उन्हें सुमिक्षा पर दया आ गई और वह बुद्धिविलास से पूछ कर उसे अपने घर ले गईं. उस दिन सुमिक्षा ने अपनी प्यारीप्यारी बातों से संध्या का मन मोह लिया. इस के बाद पता नहीं क्यों उन के मन में आया कि अगर वह सुमिक्षा को अपना लें तो उन के बेटों को एक प्यारी सी बहन मिल जाएगी.

शाम को बुद्धिविलास सुमिक्षा को अपने घर ले गया, पर संध्या की ममता सुमिक्षा के साथ जुड़ चुकी थी. उस दिन के बाद संध्या को सुमिक्षा अपनी बेटी सी लगने लगी. मन की बात जब उन्होंने अपने पति अजय कौशिक से कही तो वह सोच में पड़ गए. पराई बेटी के प्रति पत्नी के मोह ने उन्हें चिंता में डाल दिया था. वह जानते थे कि संध्या को एक बेटी की कमी खलती है, लेकिन दूसरे की बेटी के प्रति इतना प्यार उन की समझ में नहीं आ रहा था.

उस दिन के बाद संध्या अक्सर सुमिक्षा को अपने घर ले आने लगी. इस बीच उन्होंने महसूस किया कि सुमिक्षा काफी बुद्धिमान है. अगर इसे कायदे से पढ़ायालिखाया जाए तो आगे चल कर यह कुछ कर सकती है.

लगातार आते रहने से मासूम सुमिक्षा ने अजय कौशिक के दिल में भी अपने लिए जगह बना ली. अब वह उन के घर को अपना घर समझने लगी और कौशिक दंपति को मम्मीपापा कहने लगी. संध्या ने उस का नया नाम बिट्टू रख दिया. कालोनी वालों को भी पता चल गया कि संध्या सुमिक्षा को बेटी की तरह मानती हैं.

संध्या ने बुद्धिविलास से कहा कि वह सुमिक्षा को पढ़ाना चाहती हैं. अगर वह बुरा न माने तो वह उस का दाखिला करा दें. बुद्धिविलास को भला क्यों बुरा लगता. बेटी पढ़लिख कर कुछ बन जाए, इस से अच्छा और क्या हो सकता था. उस ने हामी भर दी तो भागदौड़ कर के अजय कौशिक ने सुमिक्षा का दाखिला आगरा के जानेमाने कान्वेंट स्कूल सेंट फ्रांसिस स्कूल में करा दिया.

सुमिक्षा स्कूल जाने लगी. स्कूल में सभी को यही लगता था कि वह अजय कौशिक की बेटी है. सुमिक्षा को पढ़ाई में दिलचस्पी थी, उस की राइटिंग भी बहुत अच्छी थी. अजय कौशिक ने सुमिक्षा का ट्यूशन भी कालोनी की टीचर विजय कुलश्रेष्ठ के यहां लगवा दिया था. सुमिक्षा अक्सर संध्या से सौतेली मां के अत्याचारों के बारे में बताती रहती थी.

सुमिक्षा का एक अच्छे अंग्रेजी स्कूल में पढ़ना अर्चना को जरा भी अच्छा नहीं लग रहा था. सौतेली बेटी के प्रति लोगों का स्नेह उस के मन में ईर्ष्या पैदा कर रहा था. उस ने यह भी महसूस किया था कि बुद्धिविलास अभी भी अपनी पहली पत्नी को भुला नहीं पाया है. उसे लगता था कि जब तक सुमिक्षा उस के साथ रहेगी, तब तक वह पहली पत्नी को भुला भी नहीं पाएगा. इसलिए वह किसी भी तरह सुमिक्षा से छुटकारा पाने के बारे में सोचने लगी.

इस के बाद अर्चना सुमिक्षा को पहले से ज्यादा परेशान करने लगी. डर की वजह से सुमिक्षा पिता से कुछ कहने की हिम्मत नहीं कर पाती थी. लेकिन कालोनी की अन्य औरतों को जब पता चला कि अर्चना इधर सुमिक्षा को कुछ ज्यादा ही परेशान करने लगी है तो उन्होंने इस बात की शिकायत बुद्धिविलास से कर दी.

जब बुद्धिविलास को पता चला कि अर्चना सुमिक्षा को परेशान करती है तो वह बेचैन हो उठा. वह बेटी के लिए ही उसे ब्याह कर लाया था. गुस्से में उस ने अर्चना की पिटाई कर दी.

पति की इस हरकत से अर्चना को बहुत गुस्सा आया. सुमिक्षा से वह वैसे ही नफरत करती थी, इस घटना से उस की नफरत और बढ़ गई. उस ने निश्चय कर लिया कि अब वह सुमिक्षा से छुटकारा पा कर ही चैन की सांस लेगी. इस के बाद वह पति से नाराज हो कर मायके चली गई.

अर्चना के जाने के बाद संध्या सुमिक्षा को अपने घर ले गई. जब सुमिक्षा संध्या के घर महीने भर से ज्यादा रह गई तो संध्या का मन हुआ कि वह सुमिक्षा को कानूनी तौर पर गोद ले लें. इस के लिए उन्होंने बुद्धिविलास से बात की, लेकिन वह तैयार नहीं हुआ.

दूसरी ओर अर्चना मायके पहुंची तो घर वालों की लगा कि वह घूमने आई होगी. लेकिन जब अर्चना ने कहा कि अब वह ससुराल नहीं जाएगी तो रमेश मिश्रा ने कहा, ‘‘बेटी की शादी कर के मांबाप यह सोच लेते हैं कि वे उस से मुक्त हो गए. मैं भी तुम से मुक्त हो चुका हूं. इसलिए अब तुम्हारे लिए इस घर में कोई जगह नहीं है.’’

मायके में अर्चना को कोई कामधाम तो करना नहीं होता था, इसलिए अपना समय वह टीवी पर आने वाले धारावाहिक देख कर बिताती थी. उन में कुछ आपराधिक कहानियों वाले धारावाहिक भी थे. उन्हीं में से कोई धारावाहिक देख कर उस ने सौतेली बेटी सुमिक्षा से छुटकारा पाने का उपाय खोज लिया.

सौतेले बेटे की क्रूरता : छीन लीं पांच जिंदगियां – भाग 2

निरीक्षण में घर के अंदर ही हत्या में प्रयुक्त खून से सना चाकू और खून लगी एक शर्ट मिल गई थी. एक मेज पर शराब की खुली बोतल, स्टील का गिलास और पानी की बोतल रखी मिली थी. फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट टीम ने जरूरी नमूने उठा कर संदिग्ध सामान को सुबूत के तौर पर कब्जे में ले लिया था. इस के अलावा पुलिस को वहां कोई अन्य सुबूत नहीं मिला था. घटनास्थल को देख कर लगता था कि हत्याओं को पूरी प्लानिंग के साथ निर्दयतापूर्वक देर रात अंजाम दिया गया था.

मरने से पहले मृतक जय सिंह और कुलवंत कौर ने विरोध किया था. उन के हाथों पर आए घाव इस बात की गवाही दे रहे थे. खास बात यह थी कि घर का सामान यथास्थान रखा था. इस से जाहिर होता था कि मामला लूट का नहीं था. हरमीत गफलत की सी स्थिति में था. यह सदमा भी हो सकता था और नाटक भी. इसी बात को ध्यान में रख कर पुलिस ने पूछा, ‘‘क्या तुम कुछ बता सकते हो कि यह सब कैसे और कब हुआ?’’

हरमीत ने कोई जवाब नहीं दिया तो डीजीपी बी.एस. सिद्धू ने उस की पीठ सहलाते हुए कहा, ‘‘बेटा, हम तुम्हारा दुख अच्छी तरह समझते हैं. लेकिन कातिल को पकड़ने के लिए जांच तो करनी ही होगी. जांच में तुम्हारा सहयोग जरूरी है. तुम सहयोग करोगे, तभी हम कातिल तक पहुंच पाएंगे.’’

‘‘वे लोग बहुत खतरनाक थे सर.’’ डूबे लहजे में हरमीत ने कहा.

‘‘वे कौन थे?’’

‘‘मैं पहचानता नहीं सर. सभी नकाब बांधे हुए थे. एकएक कर के उन्होंने सब को मार दिया. वे मुझे भी मारना चाहते थे, लेकिन मैं भाग कर बाथरूम में छिप गया. कंवलजीत को भी मैं ने अपने पास छिपा लिया था. वह मेरे पास आ रहा था तो किसी बदमाश ने पीछे से चाकू मार दिया था.’’ इतना कह कर हरमीत सिर पकड़ कर रोने लगा.

उस समय ऐसी स्थिति थी कि हरमीत से ज्यादा पूछताछ नहीं की जा सकती थी. पुलिस ने डरेसहमे कवंलजीत को पुचकार कर हत्यारों के बारे में पूछा तो वह डरतेडरते बोला, ‘‘अंकल नकाब वाले 3 आदमी थी.’’

कंवलजीत बहुत डरा हुआ था, इसलिए उस से ज्यादा पूछताछ नहीं की जा सकती थी. पुलिस उस के पिता के आने का इतजार करने लगी. हरमीत और कंवलजीत ही थे, जिन से पूछताछ कर के जांच आगे बढ़ाई जा सकती थी.

मामला सामूहिक हत्याओं का था. पौश इलाके में 4 हत्याओं की यह सनसनीखेज खबर बहुत जल्दी जंगल की आग की तरह पूरे शहर में फैल गई. देखते ही देखते सैंकड़ों लोग एकत्र हो गए. इस हत्याकांड से समूची राजधानी दहल तो उठी ही थी, लोगों में आक्रोश भी था. सूचना पा कर जय सिंह के नातेरिश्तेदार आ गए थे. उन के आने के बाद माहौल काफी गमगीन हो गया था. हत्याओं का हर किसी को अफसोस था, लेकिन हत्या किस ने की, यह किसी की समझ नहीं आ रहा था.

घटनास्थल की तमाम काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने मृतकों के शव पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिए थे. इस के बाद मृतक जय सिंह के भतीजे अजीत सिंह की तहरीर पर थाना कैंट में अज्ञात हत्यारों के खिलाफ अपराध संख्या 187/14 पर धारा 302 व 307 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया था.

घटना कानूनव्यवस्था को चुनौती देने वाली थी. एडीजी राम सिंह मीना ने अधीनस्थों को मामले का जल्द से जल्द खुलासा करने का निर्देश दिया. मृतकों के नातेरिश्तेदारों और पड़ोसियों से की गई शुरुआती पूछताछ में जो सामने आया, उस के अनुसार, जय सिंह अपनी पत्नी कुलवंत कौर और बेटे हरमीत के साथ इस घर में रहते थे. हरमीत आवारा प्रवृत्ति का युवक था. उस की इस प्रवृत्ति से घर के सभी लोग परेशान थे.

हरजीत कौर की जय सिंह गोद ली हुई बेटी थी. वह हरियाणा के यमुनानगर में ट्रांसपोर्टर अरविंदर सिंह को ब्याही थी. दीवाली का त्योहार मनाने और प्रसव कराने वह अपने दोनों बच्चों कंवलजीत और सुखमणि के साथ पिता के घर आई थी. 2-4 दिनों में ही प्रसव होना था. डाक्टरों ने समय भी दे रखा था. उस के पति को भी घटना की सूचना दे दी गई थी.

पुलिस को मिली जानकारी के अनुसार, जय सिंह की पत्नी कुलवंत कौर की कोई संतान नहीं थी. हरमीत जय सिंह की दूसरी पत्नी अनीता का बेटा था. अनीता अपने छोटे बेटे पारस के साथ उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में रहती थी. चौंकाने वाली बात यह थी कि आसपड़ोस के किसी ने भी सिंह परिवार की चीखपुकार नहीं सुनी थी. सुरक्षा की दृष्टि से कालोनी के बाहर गेट लगा था. उस पर चौकीदार भी रहता था. पूछताछ में पुलिस को पता चला कि कालोनी का गेट रात साढ़े दस बजे बंद हो जाता था तो सुबह 6 बजे खुलता था. यह काम चौकीदार खुद करता था. सुबह गेट खोल कर वह अपने घर चला जाता था.

पुलिस ने इस बारे में सोचा कि अगर ऐसा था तो फिर हत्यारे अंदर कैसे आए? कहीं चौकीदार की मिलीभगत तो नहीं थी. थानाप्रभारी वी.के. जेठा ने उसे बुलवा कर पूछताछ की तो उस ने दावे के साथ कहा कि वह मुस्तैदी के साथ ड्यूटी पर था और उस रात कोई भी बाहरी आदमी कालोनी के अंदर नहीं आया था. चौकीदार की बातों से पुलिस को लगा कि वह सच बोल रहा था.

अब पारिवारिक पृष्ठभूमि और चौकीदार के बयानों से हरमीत की भूमिका संदिग्ध हो गई. सोचने वाली बात यह थी कि हत्यारों ने लूटपाट नहीं की थी. घर में रखी नगदी और कीमती सामान के अलावा कुलवंत और हरजीत कौर ने जो गहने पहन रखे थे, वे सुरक्षित थे.

सोचने वाली बात यह थी कि अगर हत्यारे पूरे परिवार को खत्म करना चाहते थे तो हरमीत को जिंदा क्यों छोड़ दिया. वह युवा था. सब से ज्यादा विरोध वही कर सकता था. इस से भी प्रमुख वजह यह थी कि उस ने रात से ले कर सुबह तक शोर मचा कर किसी को कुछ नहीं बताया था. यहां तक की नौकरानी को भी उस ने टरकाने की कोशिश की थी.

पुलिस ने हरमीत को हिरासत में ले लिया. इसी बीच मृतका हरजीत कौर का पति अरविंदर आ गया. उस ने बेटे कंवलजीत को ढांढस बंधा कर प्यार से पुचकार कर पूछा तो वह रोते हुए बोला, ‘‘पापा, सभी को मामा ने मारा है.’’

मां के प्रेम का जब खुला राज – भाग 2

राधा भी बह गई नेत्रपाल के प्यार में

जब वह मुसकान बिखेरती हुई रसोई में गई तो उस की मतवाली चाल देख कर नेत्रपाल का दिल जोरों से धडक़नें लगा. कुछ देर में राधा 2 कप चाय और बिस्कुट ले आई.

चाय पीतेपीते नेत्रपाल ने पूछा, “भाभी, एक बात पूछूं, तुम्हारी आंखों में मुझे एक उदासी सी तैरती दिखती है. तुम भैया के साथ खुश तो हो न..?”

राधा ने घूर कर नेत्रपाल को देखा, “यह खयाल तुम्हारे मन में कैसे आया?”

“बस यूं ही आ गया. तुम्हारे खूबसूरत चेहरे पर मुझे उदासी अच्छी नहीं लगती.”

“माना मैं उदास रहती हूं. अब बताओ, मेरी उदासी दूर करने को तुम क्या कर सकते हो?” अप्रत्याशित सवाल पूछ कर राधा ने अपनी नशीली आंखों से उसे देखा.

“तुम्हें खुश करने के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं.” नेत्रपाल सिंह ने भी कह दिया.

“अच्छा!” राधा ने आंखें नचाईं, “औरत को खुश कैसे रखा जाता है, यह जानते भी हो?”

“भाभी, तुम बताओगी तो जान जाऊंगा. आखिर तुम मेरी प्यारी भाभी हो, इस जहां में सब से अच्छी. सब से सुंदर.” नेत्रपाल ने उस के हाथ पर हाथ रख दिया.

राधा ने अपनी तारीफ, अपनी खूबसूरती के ऐसे बोल पहली बार सुने थे. नारी सुलभ कमजोरी उस पर हावी होने लगी. उस ने कस कर नेत्रपाल सिंह का हाथ पकड़ लिया, “हाथ पकड़ कर कभी छोड़ोगे तो नहीं?”

“कभी नहीं भाभी. मैं तुम्हें अपनी जान से ज्यादा चाहता हूं.” कह कर उस ने राधा को अपनी बांहों में भर लिया. राधा भी उस से लिपट गई. नेत्रपाल ने राधा के शरीर से छेड़छाड़ शुरू की तो राधा का मन भी बेकाबू होने लगा. लेकिन वह उचित समय न था, अपनी ख्वाहिशों में मस्ती भरने का. अत: वह नेत्रपाल की बांहों से छिटक गई.

फिर कामुक निगाहों से उसे देखती हुई बोली, “अभी जाओ, कोई आ जाएगा. रात को आना. मैं जानवरों वाले बाड़े में तुम्हारा इंतजार करूंगी.”

झोपड़ी में हुआ पहला मिलन

नेत्रपाल का दिल बल्लियों उछलने लगा. उस ने अपने कपड़े दुरुस्त किए. इधरउधर नजर दौड़ाई, फिर राधा के घर से बाहर निकल आया.

उस शाम राधा ने जल्दीजल्दी खाना खिला कर बच्चों को सुला दिया. ससुर ओमप्रकाश खेत से आते ही अपनी घासफूस की बनी झोपड़ी में चले गए. वहीं उन्होंने खाना खाया. राधा के पति अश्वनी की उस दिन तबीयत कुछ ठीक नहीं थी. अत: वह भी दवा खा कर बिस्तर पर पड़ते ही सो गया.

राधा ने जल्दीजल्दी रसोई का काम निपटाया और घर का मुख्य दरवाजा बाहर से बंद कर बगल में बने जानवरों के बाड़े में पहुंच गई. फिर वह नेत्रपाल का इंतजार करने लगी. रात के 10 बजतेबजते सिरसा दोगड़ी गांव में सन्नाटा छा गया था.  सब के दरवाजे बंद हो चुके थे. तभी एक साया अश्वनी के जानवरों वाले बाड़े के बाहर दिखाई दिया. उस ने बाड़े के दरवाजे को ढकेला तो वह खुल गया. अंदर मौजूद राधा ने साए को अंदर खींच कर दरवाजा बंद कर लिया. वह नेत्रपाल ही था.

बाड़े के अंदर आते ही नेत्रपाल ने राधा को अपनी बांहों में भरा और दोनों जमीन पर लुढक़ गए. नेत्रपाल ने राधा के कान के पास मुंह ले जा कर फुसफुसाहट की, “सब सो गए?”

“हां, लेकिन ससुर का पता नहीं, कब जाग जाएं. हमारे पास बहुत कम वक्त है. बेटा उठ गया तो रोने लगेगा.”

हसरतें पूरी करने की चाहत से दोनों सराबोर थे. उन के शरीर भी मिलन को बेताब थे. अत: जल्दी ही दोनों एकदूसरे में समा गए. फिर तो असीम सुख प्राप्त करने के बाद ही वे दोनों एकदूसरे से अलग हुए. उस रात को नेत्रपाल के लिए यह पहला स्त्री सुख था, इसलिए वह देर तक राधा को चूमता रहा. राधा के लिए यह पहला मनमुताबिक सुख था. इसलिए वह उस के बाल सहलाती रही. उस के सीने को अंगुलियों से हरारत देती रही. उस रात के बाद राधा और नेत्रपाल जैसे एक जिस्म दो जान हो गए.

उन के अवैध संबंध जारी रहे

अश्वनी तथा उस के पिता ओमप्रकाश सुबह खाना खाने के बाद खेत पर चले जाते थे. फिर शाम को ही आते. दोपहर को राधा अकेली होती थी. दोपहर का सन्नाटा होते ही नेत्रपाल उस के घर में घुस जाता. दोनों की देह एकदूजे से लिपटती, फिर शरीर का कामज्वर उतारने के बाद ही अलग होती.

राधा का जीवन अब मस्ती से भर गया था. वह पूरी तरह अवैध संबंधों के दलदल में फंस चुकी थी. वह पति की उपेक्षा भी करने लगी थी. अश्वनी समझता था कि राधा बच्चों के पालनपोषण व घर के काम में इतनी थक जाती है जिस से वह उस का ध्यान नहीं रख पाती.

नेत्रपाल सिंह जहां राधा से प्यार करता था, वहीं उस के बच्चों को भी दुलारता था और खिलाता पिलाता था. वह जब भी घर आता, बच्चों को बिस्कुट, नमकीन, चिप्स, कुरकुरे आदि जरूर लाता. इन चीजों को पा कर बच्चे खुश हो जाते. राधा की बेटी व बेटा नेत्रपाल को चाचा कह कर बुलाते थे. हालांकि अश्वनी नेत्रपाल का घर आना तथा बच्चों को सामान ला कर देना पसंद नहीं करता था.

नेत्रपाल शातिर दिमाग था. वह खुद तो शराबी था ही, उस ने राधा के पति अश्वनी को भी शराब का चस्का लगा दिया था. सप्ताह में एक या दो बार वह शराब की बोतल ले कर अश्वनी के घर आ जाता फिर थकान मिटाने का बहाना कर उसे शराब पीने को प्रेरित करता. अश्वनी भी नानुकुर के बाद राजी हो जाता. साथसाथ शराब पीने से दोनों के बीच गहरी दोस्ती हो गई थी.

नेत्रपाल के अकसर अश्वनी के घर में घुसे रहने पर आसपड़ोस को शक होने लगा तो चौपाल पर दोनों के संबंधों की चर्चाएं होने लगीं. कनबतियां एक कान से होती हुई दूसरे कान तक पहुंचीं और बात ओमप्रकाश के कानों तक पहुंच गई.

अधेड़ उम्र का खूनी प्यार – भाग 2

पिछले 8 सालों से सविता पास के ज्ञान भारती स्कूल में बच्चों को पढ़ाती थी. स्कूल से वापस आने के बाद उसे पति की गालियां सुनने को तो मिलती ही थीं, साथ में अपने पीटे जाने का दर्द भी झेलना पड़ता. 3-3 जवान बच्चों के पिता होने के बाद भी मधुसूदन की हरकतें खत्म होने का नाम नहीं ले रही थीं.

सविता को अब मधुसूदन के साथ जिंदगी का एकएक पल बिताना भारी पड़ रहा था. लेकिन वह करे भी तो क्या करे, उस का कोई और ठिकाना नहीं था. वैसे भी वह घर जितना मधुसूदन का था, उतना ही सविता का का भी. वह घर छोड़ कर जाना नहीं चाहती थी. सविता के दिमाग में अजीब सी उथलपुथल मची रहती थी.

लगभग 2 साल पहले एक खूबसूरत हैंडसम नौजवान सविता के स्कूल में बच्चों को विज्ञान और गणित पढ़ाने के लिए आया. उस नौजवान का नाम था आशीष वर्मा उर्फ टीनू. वह अविवाहित था और बादशाहपुर में ही रहता था.

आशीष सविता से 10 साल छोटा था. एक ही स्कूल में दोनों पढ़ाते थे, इसलिए दोनों का पहले मिलना जुलना, फिर बात करना शुरू हुआ. दोनों को एकदूसरे का साथ और बातें करना ऐसा भाया कि दोनों दोस्त बन गए. सविता को आशीष में एक अच्छे हमसफर के गुण दिखने लगे. हर लिहाज से आशीष साधारण से दिखने वाले शराबी पति मधुसूदन से लाख गुना अच्छा लगा था.

आशीष जैसे हमसफर की सविता ने कामना की थी, लेकिन समय और किस्मत ने कुछ ऐसा खेल खेला कि उस की शादी उस से 13 साल बड़े साधारण से दिखने वाले टेलर मास्टर मधुसूदन से हो गई. उस से शादी कर के मधुसूदन को खुश होना चाहिए था, अपनी पलकों पर बैठा के रखना चाहिए था, लेकिन हुआ इस का उल्टा. मधुसूदन ने कभी उस की कद्र नहीं की, प्यार देने के बजाय उसे गाली देता रहता और मारतापीटता रहता था.

आशीष ने दिल में बसा लिया था सविता को

जहां मधुसूदन ऐसा था, वहीं दूसरी तरफ आशीष सविता की परवाह करता था, उस की कद्र करता है, उस के लिए पलक पावड़े बिछाए रहता था. उस की तारीफ करता, उस के काम की सराहना करता, हर काम में उस की मदद करता. ऐसा इंसान जिंदगी में आ जाए तो इंसान खुशी से फूला नहीं समाता. सविता भी खुशी से फूली नहीं समा रही थी.

वह आशीष के नजदीक रहतेरहते उस से प्यार करने लगी थी, उस के साथ ही आगे की जिंदगी बिताना चाहती थी. आशीष के प्रति उस का प्यार उस की आंखों से साफ झलकता था. आशीष भी उसे चाहने लगा था, क्योंकि सविता जितनी अच्छी तरह से उसे समझती थी, अपनापन जताती थी, उतना समझने वाला अपनापन जताने वाला कोई नहीं था. सविता की खनकती हंसी और उस की मीठी बोली उस के दिल को लुभाती थी.

सविता उम्र में उस से बड़ी जरूर थी, लेकिन देखने में उस से बड़ी लगती नहीं थी. सविता उस से लाख हंस कर बातें करती थी, लेकिन आशीष उस की आंखों में उस के बात करने के लहजे में कभीकभी बहुत दर्द महसूस करता था. सविता के दिल में कैद दर्द जब भी उस के चेहरे और आवाज में झलकता तो आशीष भी बेचैन हो उठता था. घूमने, खानेपीने दोनों अकसर साथ बाहर जाते रहते थे.

एक दिन जब दोनों रेस्टोरेंट में बैठे हुए थे, तब आशीष ने सविता को थोड़ा कुरेदा और उस के दर्द की वजह जानने के उद्देश्य से सविता से पूछा, “सविता, मैं ने कई बार तुम्हारी आवाज में दर्द महसूस किया है. ऐसा क्या दर्द है तुम को, जो असहनीय है. वह समयसमय पर छलक कर बाहर आ ही जाता है. कहते हैं दर्द बांटने से हल्का होता है, तुम मुझे बता कर अपना दर्द कम कर सकती हो, अगर मुझे अपना मानती हो तो…”

आशीष ने सविता के दिल के जख्मों पर लगाया प्यार का मरहम

आशीष ने सविता की आंखों में झांकते हुए अपना मानने वाली बात कही. जैसे वह सविता के अंदर की बात जानने का प्रयास कर रहा हो कि सविता के लिए वह कितना मायने रखता है. सविता भी उस से अपना दर्द छिपातेछिपाते परेशान हो गई थी और वह भी चाहती थी कि वह अपना हाल आशीष को बता दे, फिर देखे आशीष क्या प्रतिक्रिया देता है.

आशीष उस के साथ रिश्ता बना कर आगे बढऩे का इच्छुक होगा तो उस के दर्द को समझेगा और उस के दर्द पर अपने प्यार का मरहम लगाएगा और उसे दर्द से निजात दिलाएगा, नहीं तो वह पीछे हट जाएगा.

सविता को भी आशीष की प्रतिक्रिया जानने की जल्दी थी, इसलिए उस ने आशीष से कहा, “क्या करोगे जान कर, मेरा दर्द दूर नहीं होगा, बल्कि कुरेदने से और बढ़ जाएगा. तुम भी नाहक परेशान हो जाओगे. तुम इस में कुछ कर भी नहीं सकते. वैसे तुम्हें अपना ही मानती हूं, इसीलिए तुम्हारे साथ बैठ कर बातें कर लेती हूं, घूम लेती हूं. वरना सब होते हुए भी मेरा कोई सहारा नहीं, न ही मुझे कोई समझने वाला.”

आशीष तड़प उठा, “ये कैसी बातें कर रही हो सविता. एक पल में मुझे अपना कहती हो, दूसरे ही पल मुझे पराया कर देती हो. मैं तुम्हारा अपना हूं, मैं तुम्हें अपना मानता हूं इसलिए तुम्हारे साथ समय बिताता हूं, बातें करता हूं. मेरे रहते हुए तुम्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं. कोई दिक्कत है तो मैं बनूंगा तुम्हारा सहारा.” आशीष ने सविता को विश्वास दिलाते हुए कहा.

आशीष की बातों से सविता के अंदर का विश्वास जागा कि आशीष उस का साथ जरूर निभाएगा तो उस ने अपना दर्द बयान कर दिया. पति मधुसूदन के शराबी होने की बात और उस के द्वारा रोज गालियां देते हुए पिटाई करने की बात बता दी.

दूसरी शादी का दुखद अंत – भाग 2

जरीना के घर वालों ने शैफी से उस की शादी उस की संपन्नता की वजह से की थी. शैफी 3 बच्चों का बाप था, जबकि जरीना कुंवारी थी. जरीना भले ही शैफी के 7 बच्चों की मां बन गई थी, लेकिन वह शैफी से न कभी तन से संतुष्ट हुई, न मन से. उस ने अपनी जवानी कसमाहट में निकाल दी थी. उस की भावना का जो ज्वार उफान मारता था, शैफी कभी उसे शांत नहीं कर पाया था.

समय का पहिया अपनी गति से घूमता रहा. शैफी ने पहली पत्नी से पैदा हुई संतानों का विवाह कर दिया. बड़ी बेटी हसीना का विवाह उस ने मथुरा के मांट कस्बे में किया तो बड़े बेटे शमशेर का विवाह आगरा के ही बाईपुर में किया था.

जरीना शैफी की पहली पत्नी के बेटे शमशेर को अपनी पत्नी के साथ कमरे में सोते देखती तो उस के मन में आता कि अगर उस का विवाह किसी हमउम्र के साथ हुआ होता तो वह भी इसी तरह उस के साथ कमरे में लेटी होती. ऐसा ही कुछ सोचतेसोचते उस की नजर घर के सामने रहने वाले हनीफ खां के बेटे वकील पर पड़ी, जो जवानी की दहलीज पर कदम रख रहा था.

वकील और उस की उम्र का अंतर इसी बात से लगाया जा सकता है कि जरीना की शादी के 2 साल बाद वकील पैदा हुआ था. वकील उम्र के उस दौर से गुजर रहा था, जब औरतें बहुत आकर्षित करती हैं. इस उम्र में अच्छेबुरे और रिश्तेनातों का भी खयाल नहीं रहता. आदमी की यह उम्र जल्द ही भटका देने वाली होती हैं.

जरीना की नजरें वकील पर पड़ीं तो उस ने उसे हुस्न के लटकेझटके दिखाने शुरू किए. महिला देह के आकर्षण में बंधे वकील को भटकते देर नहीं लगी. जरीना की देह को पाने के लिए उस का मन मचल उठा. पिता की मौत के बाद वकील के भाइयों ने घर का बंटवारा कर लिया था. वकील के हिस्से में भी एक कमरा आया था, जिस में वह अकेला ही रहता था. वही कमरा वकील और जरीना के मिलने का साधन बना.

पिता की मौत के बाद वकील का कोई निश्चित ठौर ठिकाना नहीं रहा था तो शैफी ने उस के खानेपीने की व्यवस्था अपने यहां करवा दी थी. कभी वह उन के घर जा कर खाना खा लेता था तो कभी जरीना उस के कमरे पर जा कर खाना दे आती थी. ऐसे ही पलों में दोनों का एकदूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ा था और परिणामस्वरूप उन के बीच अवैध संबंध बन गए थे.

दोनों मौके का फायदा उठा रहे थे. कोई उन पर शक भी नहीं करता था. इस की वजह दोनों की उम्र का अंतर था. जरीना की उम्र वकील की उम्र से दोगुनी से अधिक थी. दोनों मांबेटे जैसे लगते थे.

धीरेधीरे महीनों बीत गए. जरीना को प्रेमी से छिपछिप कर मिलना अच्छा नहीं लगता था. वह प्रेमी के साथ खुल कर मौजमजा करना चाहती थी. शैफी उस की जो इच्छाएं पूरी नहीं कर सका था, अब वह अपने आशिक के साथ पूरी कर लेना चाहती थी. लेकिन यह तभी संभव था, जब दोनों साथ रहें.

जरीना वैसे भी शैफी से बुरी तरह ऊब चुकी थी. इसी का नतीजा था कि उस ने अपनी आधी से भी कम उम्र के प्रेमी वकील के साथ भागने का निश्चय कर लिया. अपने शरीर के आकर्षण की बदौलत उस ने प्रेमी वकील को इस के लिए भी राजी कर लिया. वकील अकेला तो था ही, शायद इसीलिए जरीना ने जब उस से भागने को कहा तो वह खुशीखुशी तैयार हो गया.

योजना बनी और फिर उसी योजना के अनुसार एक दिन हैदराबाद जाने की बात कह कर वकील अपने कमरे पर ताला लगा कर जरूरत का सारा सामान अपने साथ ले कर चला गया.

वकील ने घर में भले ही हैदराबाद बताया था, लेकिन वह हाथरस गया था, जहां पहले ही उस ने मोहल्ला वालापट्टी में कमरा किराए पर ले रखा था. आगरा वाले कमरे का सामान उस ने वहां पहुंचा दिया. वह अपने साथ ऐसा कोई सामान नहीं ले गया था, जिस से लोग उस पर शक करते. वकील के जाने के 15 दिनों बाद अचानक एक दिन जरीना भी घर से गायब हो गई.

जरीना का इस तरह अचानक घर से गायब हो जाना हैरानी वाली बात थी. 7 बच्चों की मां जरीना के बेटे बेटियों में 2 की तो शादी भी हो चुकी थी. सालभर पहले वह नानी भी बन चुकी थी, इसलिए यह भी नहीं कहा जा सकता था कि किसी के प्रेम में पागल हो कर वह पति और बच्चों को छोड़ कर भाग गई होगी. 45-50 वर्षीया जरीना का अपने शौहर शैफी से कोई झगड़ा वगैरह भी नहीं हुआ था. वह किसी पराई औरत के प्यार में पागल भी नहीं था कि घर में किसी तरह का क्लेश रहा हो.

पूरे परिवार ने जरीना को कहांकहां नहीं खोजा, लेकिन उस का कोई सुराग नहीं मिला. शैफी उत्तर प्रदेश के शहर आगरा के थाना एत्माद्दौला के मोहल्ला इसलामनगर का रहने वाला था. मोहल्ले में उस की गिनती एक तरह से संपन्न और प्रभावशाली लोगों में होती थी. इसलिए दुख की इस घड़ी में पूरा मोहल्ला उस के साथ था. जरीना की खोजखबर में सभी उस की मदद कर रहे थे.

कई दिन बीत गए और जरीना का कुछ पता नहीं चला तो मोहल्ले के कुछ वरिष्ठ और प्रभावशाली लोगों के साथ वह थाना एत्माद्दौला पहुंच गया. थाना पुलिस ने जरीना की गुमशुदगी दर्ज कर ली और कहा कि वह तो जरीना को तलाश करेगी ही, वह खुद भी उस की तलाश करता रहे. यह 4 साल पहले की बात है.

पुलिस को जरीना की क्या चिंता थी, जो उस के पीछे भागती. लेकिन शैफी की तो पत्नी थी, इसलिए वह लगातार उस की तलाश करता रहा. अगर जरीना अपना मोबाइल फोन साथ ले गई होती तो उस के लोकेशन के आधार पर थाना पुलिस शायद उस का पता लगा लेती. लेकिन जरीना का फोन उस के बैड पर पड़ा मिला था.

दिन, हफ्ते, महीने ही नहीं, पूरे ढाई साल गुजर गए, जरीना का कुछ पता नहीं चला. वह जिंदा है या मर गई, इस बात का भी कुछ पता नहीं चला था. उस का इस तरह रहस्यमय ढंग से गायब हो जाना मोहल्ले वालों के लिए हैरानी की बात थी.

नाजायज रिश्ते में पति की बलि – भाग 2

प्रियंका उसी का इंतजार कर रही थी. उस ने आज खुद को विशेष रूप से सजायासंवारा था.

करन ने पहुंचते ही उसे बांहों में समेट लिया, “चाची, आज तो तुम हुस्न की परी लग रही हो, नजरें हटाने को जी नहीं चाहता.”

“थोड़ा सब्र से काम लो. इतनी बेसब्री ठीक नहीं होती.” प्रियंका ने मुसकरा कर कहा, “कम से कम दरवाजा तो भीतर से बंद कर लो, किसी की नजर पड़ गई तो हंगामा हो जाएगा.”

करन ने फौरन घर का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. जैसे ही उस ने अपनी बाहें फैलाईं, प्रियंका आ कर उन में समा गई. करन के तपते होंठ प्रियंका के नरम अधरों पर जम गए. इस के बाद वासना का ऐसा सैलाब उमड़ा कि एक शादीशुदा औरत की पवित्रता, पति से वफा का वादा, सात फेरों के वक्त पति को दिए वचन, सब बह गए.

अवैध रिश्तों का यह सिलसिला एक बार शुरू हुआ तो फिर उस ने रुकने का नाम नहीं लिया. जब भी दोनों को मौका मिलता, एक दूसरे की बाहों में सिमट कर हवस की आग बुझा लेते. चूंकि दोनों का रिश्ता चाचीभतीजे का था, इसलिए किसी को शक नहीं होता था. लेकिन ऐसी बातें समाज की नजरों से ज्यादा दिनों तक छिपतीं नहीं. धीरेधीरे पूरे गांव में करन और प्रियंका के नाजायज रिश्ते की चर्चा होने लगी.

कुछ दिनों बाद सुरेंद्र सूरत से गांव आया तो उस के कानों में पत्नी और करन के नाजायज रिश्तों की भनक पड़ी. सुन कर जैसे उस पर पहाड़ टूट पड़ा. प्रियंका को मालूम नहीं था कि उस के पति को उस के और करन के रिश्ते के बारे में पता चल चुका है.

वह खनकती आवाज में बोली, “क्या बात है, आज तुम्हारा मूड क्यों खराब है?”

“सच जानना चाहती हो तो सुनो, तुम जो कर रही हो, उसे जान कर मेरे पैरों तले से जमीन सरक गई है. तुम्हारे और करन के बारे में लोग तरहतरह की बातें कर रहे हैं. अब तुम्हारी भलाई इसी में है कि मुझ से बिना छिपाए सारा सच बता दो.” सुरेंद्र ने मन की बात कह दी.

प्रियंका पति की बातें सुन कर अवाक रह गई. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि सुरेंद्र को सब कुछ पता चल जाएगा. भय के मारे उस का चेहरा पीला पड़ गया. वह घबराए स्वर में बोली, “सब झूठ है, लोग हम से जलते हैं, इसलिए उन्होंने तुम्हारे कान भर दिए हैं.”

प्रियंका ने समझ लिया था कि त्रियाचरित्र दिखाने में ही उस की भलाई है. वह भावुक स्वर में बोली, “मैं कल भी तुम्हारी थी और आज भी तुम्हारी हंू. कोई दूसरा मेरा बदन छूना तो दूर, मेरी ओर देखने की भी हिम्मत नहीं कर सकता. तुम मुझ पर यकीन करो, तुम ने जो कुछ भी सुना है, वह सिर्फ अफवाह है. वैसे भी जिन के पति परदेश में कमाते हैं, उन की औरतों को लोग शक की निगाहों से देखते और बदनाम करते हैं.”

आखिरकार प्रियंका की बातों से सुरेंद्र को लगा कि वह सच कह रही है. उस ने पत्नी पर यकीन कर लिया. कुछ रातें पत्नी के साथ बिता कर सुरेंद्र सूरत चला गया. उस के जाते ही करन और प्रियंका की रातें फिर रंगीन होने लगीं. अब दिन में करन ने प्रियंका के घर आनाजाना बंद कर दिया, ताकि लोगों को उस पर शक न हो.

प्रियंका मोबाइल फोन से पति से मीठीमीठी बातें करती रहती थी. वह उसे भरोसा दिलाती रहती थी कि वह सिर्फ उसी की है. उस ने अपनी चरित्रहीनता छिपाने के लिए अक्टूबर  के दूसरे सप्ताह में पति को फोन पर बताया कि 30 अक्टूबर को करवाचौथ है, इसलिए वह करवाचौथ के पहले ही छुट्टी ले कर आ जाए. उस ने यह भी कहा कि इस बार वह कम से कम एक महीने की छुट्टी ले कर आए, क्योंकि करवाचौथ के बाद दीपावली का त्यौहार है.

सुरेंद्र ने प्रियंका को आश्वासन दिया कि वह करवाचौथ से 2-4 दिन पहले ही आ जाएगा. चाहे छुट्टी मिले या न मिले. इस के बाद सुरेंद्र घर आने की तैयारी करने लगा. उसे जैसे ही फैक्ट्री से पेमेंट मिला, उस ने पत्नी के लिए अच्छी सी साड़ी व अन्य सामान खरीदा, साथ ही बच्चों के लिए कपड़े भी. फिर वह ट्रेन से गांव के लिए चल पड़ा.

सुरेंद्र ने जैसा कहा था, वैसा ही किया. वह 25 अक्तूबर को अपने गांव कृपालपुर पहुंच गया. जबकि करवाचौथ 30 अक्तूबर को था. सुरेंद्र के आ जाने से करन और प्रियंका को मिलने में दिक्कत होने लगी.

इस दिक्कत को दूर करने के लिए करन मैडिकल स्टोर से नींद की गोलियां खरीद लाया. उस ने गोलियां प्रियंका को दे कर कहा कि वह रात में पति को दूध में मिला कर दे दिया करे, ताकि उस के बेसुध हो कर सो जाने के बाद वे दोनों आसानी से मिल सकें. प्रियंका ने नींद की गोलियां तो संभाल कर रख लीं, लेकिन करवाचौथ के पहले वह कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी.

करवाचौथ वाले दिन प्रियंका ने अन्य सुहागिनों की तरह दिन भर व्रत रखा. शाम को खूब शृंगार किया और चांद देख कर व्रत पूरा किया. रात को वह पूरी तरह पति को समर्पित रही. सुरेंद्र को लगा कि उस की पत्नी उसी की है. गांव वाले बेकार में उस पर लांछन लगाते हैं.

अगले दिन करन से प्रियंका का सामना हुआ तो उस ने उलाहना दिया “तुम तो अपने पति के साथ करवाचौथ मनाती रहीं और मैं तुम्हारी याद में सारी रात करवट बदलता रहा. मुझे भी तुम्हारे साथ करवाचौथ मनाना है. मैं भी तो तुम्हारे पति से कम नहीं हूं.”

प्रियंका मुसकरा कर बोली, “तुम्हें मौका जरूर मिलेगा. तुम्हारी मर्दानगी की मैं दीवानी हूं. आज रात को जब मैं मिसकाल करूं तो चुपके से आ जाना. दरवाजा खुला रहेगा.”

सुरेंद्र गांव में घूमफिर कर रात 9 बजे घर लौटा. उस ने खाना खाया और चारपाई पर लेट गया. कुछ देर बाद प्रियंका नींद की गोलियां मिला दूध ले कर आई और सुरेंद्र को थमा दिया. सुरेंद्र ने दूध पी लिया और कुछ ही देर बाद खर्राटे भरने लगा. सुरेंद्र गहरी नींद में सो गया तो प्रियंका ने करन को मिसकाल दी. थोड़ी देर बाद करन आ गया. इस के बाद दोनों एकदूसरे की बाहों में समा गए. सुरेंद्र के आने के बाद जो क्रम टूट गया था, वह फिर शुरू हो गया.

प्रेमिका के लिए पत्नी का कत्ल – भाग 2

गुरप्रीत की पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, गोली उसे कनपटी से सटा कर मारी गई थी. जबकि जसवीर का कहना था कि बदमाशों ने मोटरसाइकिल रुकवा दूर से उस पर और गुरप्रीत पर गोली चलाई थी. जसवीर और नबी बख्श के बयानों की सच्चाई पता लगाने के लिए उन्होंने दोनों के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई.

उन्होंने दोनों की काल डिटेल्स की जांच की तो जसवीर की काल डिटेल्स में 2 मोबाइल नंबर ऐसे मिले, जिन पर बहुत ज्यादा फोन किए गए थे. उन्होंने उन नंबरों की भी काल डिटेल्स निकलवाई तो उसे देख कर उन्हें लगा कि यह सारा खेल जसवीर का ही खेला है. उन्होंने सबइंसपेक्टर गौरव बिश्नोई के नेतृत्व में कुछ पुलिस वालों को जसवीर को गिरफ्तार करने भेज दिया. गौरव बिश्नोई जसवीर के घर पहुंचे तो वह घर में ही मिल गया. वह उसे पकड़ कर थाने ले आए.

अनिल कुमार सिरोही ने जसवीर से पूछताछ शुरू की तो एक बार फिर उस ने सारा आरोप नबी बख्श के ऊपर मढऩे की कोशिश की, लेकिन जब उसे उस के दोस्त पिंकू उर्फ महेंद्र और उस की काल डिटेल्स और मोबाइल फोन की लोकेशन दिखाई गई तो उस के चेहरे का रंग उड़ गया. उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उस ने जो बयान दिया, उस के अनुसार गुरप्रीत की हत्या की कहानी कुछ इस तरह सामने आई.

बरेली के थाना भोजीपुरा के गांव कैथोला बेनीराम के रहने वाले लक्खा सिंह के बेटे जसवीर सिंह की गिनती इलाके के प्रतिष्ठित और संपन्न किसानों में होती थी. उस की सौ बीघा खेतों में लहलहाती फसल स्वयं उस की संपन्नता की कहानी बयां करती थी. हर साल गन्ने की खेती से उसे लाखों की रकम मिलती थी.

18 साल पहले उस की शादी बिलासपुर की रहने वाली गुरप्रीत कौर से हुई थी. गुरप्रीत बेहद खूबसूरत थी. उस की जैसी खूबसूरत पत्नी पा कर जसवीर फूला नहीं समा रहा था. दूसरी ओर गुरप्रीत भी जसवीर जैसे बांके छैलछबीले नौजवान को जिंदगी के हमसफर के रूप में पा कर अपने मातापिता की पसंद पर गर्व कर रही थी कि जिन्होंने अपनी चांद जैसी गोरी और फूल जैसी खूबसूरत बेटी के लिए हजारों में नहीं, बल्कि लाखों में एक सुखीसंपन्न दामाद ढूंढ़ा था.

जसवीर से शादी के बाद गुरप्रीत को ऐसा लगा, जैसे उस की सारी मनोकामना पूरी हो गई है. जसवीर के घर किसी चीज की कमी नहीं थी. गुरप्रीत पति से जिस भी चीज की मांग करती, वह उस की हर मांग को पलक झपकते पूरा कर देता था. क्योंकि पत्नी की खुशी में ही वह अपनी खुशी समझता था. उन का दांपत्य हंसीखुशी से गुजर रहा था.

देखतेदेखते कई साल गुजर गए. इस बीच गुरप्रीत 3 बच्चों की मां बन गई. उस के तीनों बेटों के नाम गुरुशांत, रौकी और शैंकी थे. बच्चे जैसेजैसे बड़े हुए, जसवीर ने उन की पढ़ाई की व्यवस्था बरेली शहर के एक नामी स्कूल में कर दी. गुरप्रीत और जसवीर चाहते थे कि उन के तीनों बेटे पढ़लिख कर उन का नाम रौशन करें.

शादी के कुछ सालों बाद जसवीर के रंगढंग में बदलाव आने लगा तो गुरप्रीत को ङ्क्षचता हुई, क्योंकि जसवीर शराब पीने के साथसाथ दूसरी औरतों में रुचि लेने लगा था. उस ने पति को खानदान की इज्जत की दुहाई देते हुए समझाने की कोशिश की, लेकिन उस पर पत्नी की बातों का कोई असर नहीं हुआ. वह हमेशा शराब और शबाब में डूबा रहने लगा.

गुरप्रीत ने पहले जसवीर को प्यार से समझाबुझा कर रास्ते पर लाने की कोशिश की, लेकिन जब उस की आदत में कोई सुधार नहीं हुआ तो वह उस की बुराइयों का विरोध करते हुए उस से लडऩेझगडऩे लगी. जसवीर अब तक इस सब का आदी हो चुका था, इसलिए गुरप्रीत का रोकनाटोकना उसे अच्छा नहीं लगता था. उस का मानना था कि वह उस की सारी जरूरतें पूरी कर

देता है, उसे किसी चीज की कमी नहीं होने देता है तो वह बेवजह उस के रास्ते में टांग अड़ाती है. मर्दों के तो 10 तरह के शौक होते हैं, फिर उस के पास कमी ही किस चीज की है. जब उस के पास इतनी दौलत है तो उसे जिंदगी में सारे शौक पूरे कर लेने चाहिए.

शादी के इतने सालों बाद और 3 बच्चे होने से गुरप्रीत में अब पहले वाली खूबसूरती नहीं रह गई थी. जबकि जसवीर कमउम्र की खूबसूरत लड़कियों के साथ मौजमस्ती करना चाहता था. इस के लिए वह कुछ भी करने को तैयार रहता था. गुरप्रीत को गांव के किसी न किसी से पति की हरकतों के बारे में पता चल ही जाता था. उस समय तो वह पति की करतूतें सुन कर खून का घूंट पी कर रह जाती, लेकिन जब जसवीर घर आता तो वह उस की जम कर खबर लेती.

ऐसा रोजरोज होने से जसवीर का मन गुरप्रीत की ओर से उचट गया, अब वह घर आने से भी कतराने लगा. जबकि गुरप्रीत पति से पहले जैसा प्यार चाहती थी. लेकिन घर से बाहर मौजमस्ती कर के लौटे जसवीर के शरीर में इतनी ताकत नहीं होती थी कि वह पत्नी को संतुष्ट कर सके. वैसे भी अब उस की उम्र 55 साल के करीब थी. इस उम्र में वह जोश कहां होता है, जो जवानी के शुरुआती दिनों में होता है. नतीजतन गुरप्रीत कौर की सारी रात करवटों में बीत जाती.

अगले दिन वह पति की उलटीसीधी हरकतों का विरोध करते हुए उसे ऐसा करने से रोकने की कोशिश करती. लेकिन पत्नी के लाख विरोध के बावजूद जसवीर पर कोई असर नहीं पड़ रहा था. वह वही करता था, जो उस के मन में आता था.

दौलत के मद में चूर जसवीर अपनी अय्याशियों और शौक के लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार रहता था. एक साल पहले उस की मुलाकात बरेली के थाना सीबीगंज के गांव जौहरपुर के रहने वाले ड्राइवर बालकराम से हुई. दोनों की दोस्ती परवान चढ़ी तो एक दिन वह बालकराम के साथ उस के घर चला गया. वहां उस की सयानी बेटी शानू उस के सामने आई तो जसवीर की आंख फटी की फटी रह गई.

प्रेम में डूबी जब प्रेमलता – भाग 2

उन्होंने उस लडक़े को प्रेमलता से मिलने की इजाजत तो दे दी, लेकिन महिला सिपाही रेनू सारस्वत को उस के पीछे लगा दिया कि वह किसी भी तरह उन की बातें सुनने की कोशिश करे. रेनू उधर से गुजरी तो लडक़ा कह रहा था, “तुम ने ताजमहल वाले फोटो जला दिए हैं न?”

“हां, जला दिए हैं. तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है?”

यह सुन कर रेनू चौंकी. वह तुरंत मुंशी मंसूर अहमद के पास पहुंची और उन से बता दिया कि प्रेमलता से जो लडक़ा मिलने आया है, वही बबलू है. मंसूर अहमद तेजी से बाहर आए. बबलू को शायद शक हो गया था, इसलिए वह तेजी से बाहर की ओर चला जा रहा था. मंसूर अहमद ने संतरी को आवाज देते हुए तेजी से उस की ओर दौड़े. आखिर उन्होंने उसे दबोच ही लिया.

इस के बाद उसे अंदर ला कर पूछताछ की गई तो एक ऐसी प्रेम कहानी सामने आई, जिस में प्रेम की राह में रोड़ा बनने वाले गवेंद्र सिंह उर्फ नीलू की हत्या कर दी गई थी. यह पूरी कहानी इस प्रकार थी.

उत्तर प्रदेश के जिला मैनपुरी का एक गांव है भरथरा, जहां महेशचंद फौजी परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी, 2 बेटे और 4 बेटियां थीं. प्रेमलता उन में सब से बड़ी थी. उस ने बीए करने के बाद बीएड किया और नौकरी की तलाश में लग गई. इसी के साथ महेशचंद उस की शादी के लिए लडक़ा ढूंढऩे लगे.

महेशचंद की आर्थिक स्थिति ठीकठाक थी, बेटी भी पढ़ीलिखी थी. इसलिए वह उस के लिए खातेपीते परिवार का पढ़ा लिखा लडक़ा तलाश रहे थे. इसी तलाश में उन्हें किसी से जिला एटा के थाना बागवाला के गांव लोहाखार के रहने वाले रामसेवक के बेटे गवेंद्र के बारे में पता चला तो वह उस के घर जा पहुंचे.

रामसेवक का खातापीता परिवार था. उस के पास ठीकठाक जमीन थी. गांव में पक्का मकान था, एक मकान मैनपुरी के नगला कीरतपुर में भी था. गवेंद्र ने पौलिटैक्निक करने के साथ बीए भी कर रखा था. वह नौकरी की तलाश में था.  महेशचंद को गवेंद्र प्रेमलता के लिए पसंद आ गया. उसे लगा कि गवेंद्र को जल्दी ही कहीं न कहीं नौकरी मिल ही जाएगी. उस के बाद उन की बेटी की जिंदगी संवर जाएगी.  उस ने गवेंद्र को प्रेमलता के लिए पसंद कर लिया और उस के साथ प्रेमलता की शादी कर दी.

प्रेमलता ससुराल आ गई. रामसेवक का छोटा सा परिवार था. पतिपत्नी के अलावा एक बेटा और एक बेटी नीरज थी, जिस की वह शादी कर चुके थे. इसलिए घर में सिर्फ 4 ही लोग बचे थे. प्रेमलता को पूरा विश्वास था कि उस के पति को जल्दी ही कहीं न कहीं अच्छी नौकरी मिल जाएगी. वैसे घर में किसी तरह की कोई कमी नहीं थी, लेकिन पति की कमाई की बात अलग ही होती है.

गवेंद्र नौकरी की कोशिश में लगा था, लेकिन नौकरी मिल नहीं रही थी. इस बीच वह 2 बच्चों उमंग और तमन्ना का पिता बन गया. प्रेमलता खुद भी बीए, बीएड थी. लेकिन बच्चे छोटे थे, दूसरे गवेंद्र नहीं चाहता था कि वह नौकरी करे, इसलिए प्रेमलता ने अपने लिए कोशिश नहीं की.

सन 2012 में गवेंद्र को मैनपुरी के कीरतपुर स्थित सेवाराम जूनियर हाईस्कूल में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की नौकरी मिल गई. नौकरी भले ही चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की थी, लेकिन सरकारी थी, इसलिए उस ने इसे जौइन कर लिया. लेकिन प्रेमलता को यह नौकरी पसंद नहीं थी, वह शायद किसी अधिकारी की बीवी बनना चाहती थी. चपरासी की बीवी कहलवाना उसे बिलकुल भी पसंद नहीं था. इसलिए उस ने सोचा कि अब उसे ही कुछ करना होगा. वह अपने कैरियर के बारे में सोचने लगी. उस के बच्चे भी बड़े हो गए थे, इसलिए वह खुद कुछ कर के समाज में नाम और पैसा कमाना चाहती थी.

उसी बीच ससुराल जाते समय बस में उस की मुलाकात बबलू से हुई. बबलू भी उसी सीट पर बैठा था. रास्ते में बबलू उस के बच्चों से बातें करतेकरते उस से भी बातें करने लगा. उस ने बताया कि वह आगरा के आईआईएमटी कालेज से जीएनएम (जनरल नॄसग मिडवाइफरी) का कोर्स कर के आगरा के पुष्पांजलि अस्पताल में नौकरी करता है.

जब प्रेमलता ने कहा कि उस ने भी बीए, बीएड किया है, लेकिन लगता नहीं कि उसे नौकरी मिलेगी तो उस ने कहा, “अगर तुम जीएनएम का कोर्स कर लो तो जल्दी ही तुम्हें कहीं न कहीं नौकरी मिल जाएगी. रही बात दाखिले की तो वह तुम मुझ पर छोड़ दो.”

इस के बाद दोनों ने एकदूसरे के मोबाइल नंबर ले लिए. 2-4 दिन ससुराल में रह कर प्रेमलता पति के पास आई तो उस ने गवेंद्र से कहा, “भई अब इस तरह काम नहीं चलेगा. बच्चों के भविष्य के लिए मुझे भी कुछ करना होगा. बीए, बीएड से तो नौकरी मिल नहीं सकती, इसलिए मैं जीएनएम का कोर्स करना चाहती हूं. इस से किसी न किसी अस्पताल में नौकरी मिल जाएगी.”

गवेंद्र को लगा कि अब बच्चे समझदार हो गए हैं. ऐसे में प्रेमलता कुछ करना चाहती है तो इस में बुराई क्या है. वह प्रेमलता को जीएनएम का कोर्स कराने के लिए राजी हो गया. गवेंद्र के पिता रामसेवक रिटायर हो चुके थे. इसलिए अब वह भी उसी के साथ रहने लगे थे.

प्रेमलता ने बबलू की मदद से आईआईएमटी में अपना दाखिला करा लिया. बबलू उसे सुनहरे भविष्य का सपना दिखाने लगा. प्रेमलता की पढ़ाई शुरू हो गई. बबलू लायर्स कालोनी में कमरा किराए पर ले कर रहता था. प्रेमलता को भी उस ने उसी कालोनी में कमरा दिला दिया. अब दोनों की रोज मुलाकात होने लगी. बबलू प्रेमलता के कमरे पर भी आनेजाने लगा.

लगातार मिलने और कमरे पर आनेजाने से प्रेमलता और बबलू में प्यार ही नहीं हो गया, प्रेमलता ने उस से शारीरिक संबंध बना कर उस ने रिश्तों की मर्यादा भंग कर दी. सपनों को ख्वाहिश बनाया तो तन और मन से पति से ही नहीं, बच्चों से भी दूर हो गई.

बबलू को जब लगा कि प्रेमलता पूरी तरह से उस की हो गई है तो उस ने उस से विवाह करने की इच्छा व्यक्त की. तब प्रेमलता ने कहा, “बबलू यह सब इतना आसान नहीं है. क्योंकि गवेंद्र मुझे आसानी से छोडऩे वाला नहीं है.”

“तो ठीक है, मैं उसे रास्ते से हटाए देता हूं.” बबलू ने कहा तो प्रेमलता गंभीर हो कर बोली, “यह तो और भी आसान नहीं है.”

प्रेमलता भी अब गवेंद्र से छुटकारा पा कर बाकी की जिंदगी बबलू के साथ बिताना चाहती थी, लेकिन वह उसे छोड़ कर बबलू से शादी नहीं कर सकती थी. क्योंकि ऐसा करने पर मायके वाले उस का साथ न देते. इसलिए वह बड़ी उलझन में फंसी थी. वह इस बारे में कुछ करती, उस के पहले ही उस की पोल खुल गई.

एक क्रूर औरत की काली करतूत – भाग 1

चित्रकूट के कर्बी के रहने वाले पंडित चंद्रलेख तिवारी के 3 बेटे और एक बेटी थी. बड़ा बेटा रामअवतार एलआईसी  का एजेंट था तो उस से छोटा शिवप्रसाद दूध का व्यवसाय करता था. सब से छोटा बुद्धिविलास शास्त्री की पढ़ाई कर के पिता की तरह पूजापाठ कराने लगा था. लेकिन वहां इस काम से इतनी आमदनी नहीं हो पाती थी, जितनी वह चाहता था. इसलिए वह कहीं बाहर जा कर यह काम करना चाहता था.

बुद्धिविलास थोड़ीबहुत कमाई करने लगा तो बड़े बेटों की तरह पंडित चंद्रलेख तिवारी ने उस की भी शादी चित्रकूट में पूजापाठ कराने वाले मंजूनाथ भारद्वाज की बेटी गौरा से कर दी. उन के 10 बच्चों में 7 बेटे और 3 बेटियां थीं. परिवार बड़ा होने की वजह से उन की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी. इसलिए गौरा की शादी खातेपीते परिवार में हो जाने से मंजूनाथ काफी खुश थे.

गौरा खूबसूरत भी थी और सलीके वाली भी. इसलिए जहां उसे पा कर बुद्धिविलास खुश था, वहीं खातापीता परिवार और प्यार करने वाला पति पा कर गौरा भी खुश थी. दोनों का दांपत्य हंसीखुशी से बीतने लगा. उन के प्यार का परिणाम भी जल्दी ही आ गया. दोनों एक बच्ची के मांबाप बन गए, जिस का नाम उन्होंने सुमिक्षा रखा था.

सुमिक्षा पूरी तरह मां पर गई थी. लेकिन उसे मां की गोद का सुख नहीं मिल सका. वह 5 महीने की थी, तभी दिल का दौरा पड़ने से गौरा की मौत हो गई थी. पत्नी से ही घर होता है. पत्नी ही नहीं रही तो बुद्धिविलास का कैसा घर. उस का घर तो उजड़ा ही, एक परेशानी और खड़ी हो गई कि 5 महीने की बेटी को पालेपोसे कैसे.

पत्नी की मौत से परेशान और दुखी बुद्धिविलास बेटी को ले कर काफी परेशान था.  लेकिन उस की यह परेशानी दूर कर दी उस की बहन ऊषा ने. उस की शादी पास के ही गांव छीबो में गिरिजा पांडेय के साथ हुई थी. वह अध्यापक थे. उन की आर्थिक स्थिति काफी सुदृढ़ थी. इसलिए बुद्धिविलास की बेटी सुमिक्षा को ऊषा अपने साथ ले गई.

सुमिक्षा की व्यवस्था हो गई तो बुद्धिविलास अपनी जिंदगी को ढर्रे पर लाने की कोशिश करने लगा. पत्नी की मौत की वजह से घर में उस का मन नहीं लग रहा था, इसलिए वह कहीं बाहर जा कर काम करना चाहता था. इस के लिए उस ने तमाम लोगों से कह भी रखा था. संयोग से उसी बीच उस के किसी परिचित ने बताया कि आगरा के थाना सिकंदरा के मोहल्ला पश्चिमपुरी में काली माता का एक मंदिर बन रहा है. उस मंदिर में एक पुजारी की जरूरत है.

बुद्धिविलास को काम की जरूरत थी ही, वह वहां पहुंच गया. वह पढ़ालिखा था ही, ट्रस्ट वालों ने उसे मंदिर की सेवादारी दे दी. मंदिर के आसपास रहने वाले संपन्न लोग थे, इसलिए मंदिर में चढ़ावा ठीकठाक चढ़ता था. इस के अलावा बुद्धिविलास पूजापाठ करा कर भी अच्छीखासी कमाई कर लेता था. पैसे आने लगे तो वह एक बार फिर गृहस्थी बसाने के बारे में सोचने लगा. रहने के लिए उसे मंदिर परिसर में ही 2 कमरों का मकान मिला था, इसलिए उसे रहने की भी कोई चिंता नहीं थी.

घर वाले तो उस के लिए पहले से ही चिंतित थे. इसलिए बुद्धिविलास के हामी भरते ही उस के लिए लड़की की तलाश शुरू हो गई. बुद्धिविलास के मंझले भाई शिवप्रसाद की पत्नी के एक रिश्तेदार रमेश मिश्रा अपनी बेटी अर्चना के लिए लड़का ढूंढ़ रहे थे. उन की संतानों में 7 बेटियां और एक बेटा था.

अर्चना उन में पांचवें नंबर पर थी. वह हाईस्कूल तक पढ़ी थी. बुद्धिविलास और अर्चना की उम्र में थोड़ा अंतर था, लेकिन रमेश मिश्रा की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, इसलिए वह अपनी बेटी की शादी बुद्धिविलास से करने को तैयार थे.

लेकिन जब अर्चना को पता चला कि जिस लड़के से उस की शादी हो रही है, उस की पहली पत्नी मर चुकी है और उसे एक बेटी है तो उस ने बुद्धिविलास से शादी करने से मना कर दिया. लेकिन जब रमेश मिश्रा ने अपनी मजबूरी जाहिर की तो वह किसी तरह शादी के लिए राजी हो गई. इस के बाद बुद्धिविलास की शादी अर्चना के साथ हो गई. यह सन 2012 की बात थी.

शादी के बाद बुद्धिविलास अर्चना को आगरा ले आया. पत्नी आ गई तो वह पहली पत्नी से पैदा बेटी सुमिक्षा को साथ रखने के बारे में सोचने लगा. वह चाहता था कि अब उस की बेटी उस के साथ रहे. सुमिक्षा अब तक 4 साल की हो चुकी थी. वह अपनी बहन के यहां गया और उस ने बहन से सुमिक्षा को साथ ले जाने के लिए कहा तो बहन ऊषा ने कहा, ‘‘जब यह 5 महीने की थी, तब से मैं इसे पाल रही हूं. अब यह मुझे अपनी बेटी की तरह लगती है. इसलिए अब इसे मेरे पास ही रहने दो. इस के चले जाने से मेरा भी मन नहीं लगेगा.’’

‘‘बहन तब इसे कोई पालने वाला नहीं था, इसलिए मैं ने इसे तुम्हें सौंप दिया था. अब इस की मां आ गई है. वह इसे अच्छी तरह पाल लेगी, इसलिए मैं इसे साथ ले जाना चाहता हूं.’’ बुद्धिविलास ने कहा.

‘‘भइया, मैं इस की बूआ हूं और यह मेरा खून है. सौतेली मां सौतेली ही होती है. वह इसे कभी वह प्यार नहीं दे पाएगी, जो मुझ से मिल रहा है. इसलिए इसे मेरे पास ही पड़ी रहने दो.’’

ऊषा ने तमाम तर्कवितर्क किए, पर बुद्धिविलास नहीं माना. वह कर भी क्या सकती थी. पराई बेटी को जबरदस्ती तो रख नहीं सकती थी, मन मार कर सुमिक्षा को उस के हवाले कर दिया.

बुद्धिविलास सुमिक्षा को अपने घर ले आया. चूंकि उस ने अर्चना को बताया नहीं था कि वह सुमिक्षा को लेने जा रहा है, इसलिए जब वह उसे ले कर घर पहुंचा तो अर्चना ने हैरानी से पूछा, ‘‘यह किसे ले आए?’’

‘‘किसे नहीं, यह हमारी बेटी सुमिक्षा है. अब यह हमारे साथ ही रहेगी.’’ बुद्धिविलास ने कहा.

‘‘क्यों, यह जहां रह रही थी, वहां कोई परेशानी थी क्या, जो इसे यहां ले आए?’’ अर्चना ने मुंह फुला कर पूछा.

‘‘यह वहां इसलिए रह रही थी, क्योंकि यहां इस की कोई देखभाल करने वाला नहीं था. अब तुम आ गई हो, इसलिए इसे यहां ले आया.’’

‘‘तो क्या तुम ने मुझ से शादी इस की देखभाल करने के लिए की थी?’’

‘‘भई, पत्नी बच्चों की देखभाल नहीं करेगी तो और कौन करेगा? तुम मेरी पत्नी हो तो तुम्हें ही मेरे बच्चों की देखभाल करनी होगी.’’ बुद्धिविलास ने कहा.

मांबाप में लड़ाई होते देख सुमिक्षा डर गई. उतनी दूर से सफर कर के आई सुमिक्षा को नाश्तापानी कराने के बजाय अर्चना नाराज हो कर दूसरे कमरे में जा कर सो गई.