सौतेले बेटे की क्रूरता : छीन लीं पांच जिंदगियां – भाग 1

दीपावली के ठीक अगले दिन यानी 24 अक्टूबर, 2014 को सवेरा होते ही उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के लोग अपनी दिनचर्या  में लीन होना शुरू हो गए थे. आर्थिक रूप से काफी संपन्न सरदार जय सिंह के घर भी सवेरा होते ही चहलपहल शुरू हो जाती थी, लेकिन उस दिन उन के यहां इस तरह खामोशी छाई थी, जैसे वहां कोई रहता ही न हो.

व्यवहारकुशल जय सिंह का खुशहाल परिवार थाना कैंट के चकराता रोड स्थित पौश इलाके आदर्शनगर में रहता था. उन की विज्ञापन एजेंसी तो थी ही, होर्डिंग्स का भी काफी बड़ा कारोबार था. उन के घर काम करने वाली नौकरानी राजो सुबह ही काम करने के लिए आ जाती थी. उस दिन भी 7 बजे के करीब वह काम करने के लिए आ गई थी.

घर का मुख्य दरवाजा देख कर उसे आश्चर्य हुआ, क्योंकि रोजाना उसे दरवाजा खुला मिलता था. लेकिन उस दिन बंद था. घर के अंदर से किसी तरह की आवाज भी नहीं आ रही थी. ऐसा लग रहा था, जैसे घर खाली पड़ा है. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि घर के लोग इतनी देर तक सोए क्यों पड़े हैं, लेकिन ऐसा हो नहीं सकता था.

जय सिंह सुबह ही मार्निंग वौक के लिए निकल जाते थे, लेकिन राजो के आने से पहले ही वह आ जाते थे. दरवाजे पर बाहर ताला नहीं लगा था, इसलिए राजो ने दरवाजे पर दस्तक दी. कोई बाहर नहीं आया तो उस ने कौलबेल बजाई. कौलबेल बजाने के थोड़ी देर बाद जय सिंह का 21 वर्षीय युवा बेटा हरमीत दरवाजे पर आया.

‘‘सब ठीक तो है बाबूजी, आज दरवाजा क्यों बंद है?’’ राजो ने पूछा.

उस की बात का जवाब देने के बजाय हरमीत ने कहा, ‘‘आज यहां तुम्हारा कोई काम नहीं है.’’

उस का यह जवाब राजो को अटपटा सा लगा, क्योंकि घर की साफसफाई का काम वही करती थी. जब से उस ने वहां काम शुरू किया था, एक भी दिन ऐसा नहीं बीता था, जब उस ने काम न किया हो. इसलिए उस ने दबी जबान से सवाल किया, ‘‘क्यों?’’

‘‘आज पानी ही नहीं आ रहा है तो तुम साफसफाई कैसे करोगी, इसलिए लौट जाओ.’’ हरमीत ने बेरुखी से कहा.

राजो को हरमीत का व्यवहार कुछ बदलाबदला सा लग रहा था. उस ने ध्यान से देखा तो हरमीत के बाएं हाथ पर रूमाल बंधा था, जिस में खून लगा था. चूंकि वह नौकरानी थी, इसलिए उस की ज्यादा सवालजवाब करने की हिम्मत नहीं हुई. लिहाजा वह लौट गई.

राजो लौट तो पड़ी, लेकिन उसे लगा कि हरमीत के इस तरह कह देने से लौटना ठीक नहीं है. बाद में वह बाबूजी और माताजी को क्या जवाब देगी. यह बात मन में आते ही वह पड़ोस में रहने वाले जय सिंह के भतीजे अजीत सिंह के घर जा पहुंची. अजीत सिंह बाहर ही मिल गए तो बोली, ‘‘साहब, मैं बाबूजी के घर काम करने गई थी, लेकिन हरमीत ने मना कर दिया. वह काम नहीं करने दे रहा.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘पता नहीं, उस ने घर का दरवाजा बंद कर रखा था, इसलिए कोई दिखाई भी नहीं दिया.’’

‘‘ठीक है, तुम रुको. मैं बात करता हूं.’’ कहने के साथ ही अजीत ने जय सिंह का मोबाइल नंबर मिलाया. लेकिन फोन हरमीत ने ही रिसीव किया. अजीत ने पूछा, ‘‘चाचाजी कहां हैं हरमीत?’’

‘‘वह घर में नहीं हैं, कहीं गए हैं.’’

‘‘ठीक है, आ जाएं तो मेरी बात कराना. और सुनो, राजो को घर का काम करने दो.’’

अजीत सिंह के कहने पर राजो दोबारा गई तो हरमीत ने दरवाजा खोल दिया और खुद जा कर बरामदे में बैठ गया. राजो ड्राईंगरूम में पहुंची तो वहां की हालत देख कर उस के होश उड़ गए. ड्राईंगरूम में खून ही खून फैला था.

खून देख कर राजो चीखते हुए बाहर भागी. राजो इतने जोर से चीखी थी कि उस की वह चीख आसपास रहने वालों ने सुन ली थी. पलभर में सब भाग कर आ गए. अजीत सिंह भी आ गए थे. राजो के चेहरे पर हवाईयां उड़ रही थीं. आते ही उन्होंने पूछा, ‘‘क्या हुआ राजो?’’

‘‘अंदर खून ही खून फैला है और मेमसाहब की लाश पड़ी है.’’

खून और लाश पड़ी होने की बात से सभी के रोंगटे खड़े हो गए. हरमीत बेहाल हालत में सिर थामे बरामदे में बैठा था. कुछ लोगों ने पूछा, ‘‘क्या हुआ हरमीत?’’

‘‘सब बरबाद हो गया भाईजी.’’ हरमीत ने बस इतना ही कहा.

लोग कुछ और पूछते, तभी घर के अंदर से 5-6 साल का एक बच्चा रोता हुआ बाहर आया. वह बहुत घबराया हुआ था और उस की पीठ में चोट के निशान थे. वह जय सिंह का नाती कंवलजीत था. कंवलजीत की हालत देख कर कुछ लोग उस की ओर दौड़े, ‘‘क्या हुआ बेटा?’’

डर के मारे कंवलजीत की घिग्घी बंधी हुई थी. कोई जवाब देने के बजाय उस ने अंगुली से अंदर की ओर इशारा कर दिया.

किसी ने कहा, ‘‘चलो अंदर चल कर देखते हैं, क्या बात है?’’

इस के बाद कुछ लोग हिम्मत कर के अदंर गए तो पता चला, सचमुच सब बरबाद हो चुका था. घर के अंदर एक नहीं, बल्कि 4 लाशें पड़ीं थीं और पूरे घर में खून ही खून फैला था. खून और लाशें देख कर सब गम में डूब गए. किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि अंदर इस तरह का दिल दहला देने वाला नजारा देखने को मिलेगा.

किसी ने घटना की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. यह ऐसी सूचना थी, जिस से पुलिस विभाग में हड़कंप मच गया. तुरंत यह सूचना संबंधित थाना कैंट पुलिस को दी गई. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी वी.के. जेठा पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंच गए. घर के अंदर की स्थिति दिल दहला देने वाली थी. सरदार जय सिंह, उन की पत्नी कुलवंत कौर, बेटी हरजीत कौर और नातिन सुखमणि की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी.

बेटे हरमीत के हाथ में चोट लगी थी और नाती कंलवजीत भी घायल था. हरजीत कौर गर्भवती थी, जिस का समय पूरा हो चुका था. पुलिस ने तुरंत हरजीत को इस उम्मीद में दून अस्पताल पहुंचाया कि शायद गर्भ में पल रहा बच्चा बच जाए. लेकिन जांच के बाद पता चला कि बच्चा मर चुका है.

मामला काफी गंभीर था, इसलिए थानाप्रभारी ने घटना की सूचना एसएसपी अजय रौतेला समेत अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी थी. त्योहार के अगले दिन की सुबह इतनी भयानक होगी, किसी ने कल्पना भी नहीं की थी. 4-4 हत्याओं की खबर से समूचे पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया था.

सूचना मिलते ही एसएसपी अजय रौतेला, एसपी सिटी अजय सिंह और एसपी देहात मणिकांत मिश्रा के अलावा अन्य थानों की पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. मामला 4 हत्याओं का था, इसलिए इस की सूचना आला अधिकारियों को भी दे दी गई थी. इसी सूचना के आधार पर डीजीपी बी.एस. सिद्धू, एडीजी राम सिंह मीना, डीआईजी संजय गुंज्याल भी आ गए थे. इस घटना से पुलिस अधिकारी हैरानपरेशान थे.

बाहर के कमरे में दरवाजे के पास खून से लथपथ 60 वर्षीय जय सिंह की लाश पड़ी थी. ड्राइंगरूम में उन की पत्नी 55 वर्षीया कुलवंत कौर, 27 वर्षीया हरजीत कौर, जिसे अस्पताल भेजा गया था और 3 वर्षीया सुखमणि की लाशें पड़ी थीं. सभी कत्ल बेहद क्रूरता से किए गए थे.

पुलिस ने लाशों का निरीक्षण किया तो सभी के पेट, छाती, गर्दन, चेहरे और हाथों पर चाकू के घाव थे. सभी लाशों से खून निकल कर फर्श पर फैला हुआ था. इस तरह क्रूरता से की गई हत्याएं देख कर पुलिस अधिकारी भी सकते में थे. फ्रिंगरप्रिंट एक्सपर्ट की टीम बुलवा ली गई थी.

मां के प्रेम का जब खुला राज – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जालौन जिले का एक ऐतिहासिक कस्बा है- कालपी. इसी कालपी कस्बे के स्टेशन रोड पर नरेश कुमार तिवारी सपरिवार रहते थे. उन के परिवार में पत्नी उमा के अलावा 2 बेटियां राधा व सुधा थीं. नरेश कुमार प्राइवेट नौकरी करते थे. उन की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. बड़ी मुश्किल से वह परिवार की दोजून की रोटी जुटा पाते थे.

गरीबी में पलीबढ़ी राधा जब जवान हुई तो उस के रंगरूप में निखार आ गया. हर मांबाप बेटी के लिए अच्छा घर तथा सीधा शरीफ वर ढूंढते हैं, वे यह नहीं देखते कि बेटी ने अपने जीवनसाथी को ले कर क्या सपने संजोए हुए हैं. राधा के मातापिता ने भी बेटी का मन नहीं टटोला. उन्होंने अश्वनी दुबे से उस का विवाह रचा कर अपने कर्तव्य की इतिश्री भर कर दी.

अश्वनी के पिता ओमप्रकाश दुबे जालौन जिले के माधौगढ़ थाना अंतर्गत सिरसा दोगड़ी गांव के निवासी थे. अश्वनी दुबे उन का इकलौता बेटा था. ओमप्रकाश किसान थे. किसानी में बेटा अश्वनी भी उन का हाथ बंटाता था. खेती के अलावा वह दुधारू जानवर भी पाले हुए थे. दूध के कारोबार से उन की अतिरिक्त आमदनी हो जाती थी.

अश्वनी दुबे जैसा मेहनती और सीधासादा दामाद पा कर नरेश कुमार निश्ंचत हो गया था कि बेटी का जीवन संवर गया. राधा के मन के दर्पण में क्याक्या दरका, यह कोई नहीं जानता था. राधा एक महत्त्वाकांक्षी युवती थी. उस ने अपने मन में सपना संजोया हुआ था कि शादी के बाद उस के पास बड़ा सा घर, खूब सारा पैसा और स्मार्ट पति होगा. लेकिन मिला क्या? मामूली सा घर और रोटी के लिए जूझता हुआ मामूली सा पति.

अश्वनी के पास थोड़ी सी जमीन थी, जिस के सहारे वह गृहस्थी की नैया को खे रहा था. ससुर और पति के खेत पर चले जाने के बाद राधा अपने टूटे हुए सपनों को जोडऩे की उधेड़बुन में लगी यही सोचती कि अब कभी उस की चाहतें पूरी नहीं होंगी.

बहरहाल, शादी हुई थी तो निभाना ही था और बच्चे भी होने ही थे. राधा ने पहले बेटी साहनी को जन्म दिया, उस के बाद बेटे को. लेकिन 2 बच्चों के बाद भी राधा दिल से अश्वनी के साथ जुड़ नहीं पाई. उसे हमेशा यह एहसास सालता रहता था कि उसे मनपसंद पति नहीं मिला.

राधा के पड़ोस में रहता था नेत्रपाल सिंह. वह कुंवारा था. पड़ोसी होने के नाते उस का राधा के घर आनाजाना था. राधा को वह भाभी कहता था. देवरभाभी के नाते कभीकभार राधा उस से हंसबोल लिया करती थी.

एक दिन राधा गांव में लगने वाले साप्ताहिक बाजार में गई तो वहां उसे नेत्रपाल सिंह मिल गया. नेत्रपाल सिंह ने उस से कहा, “भाभी, चलो आज आप को चाट खिलाऊं. वो देखो, उस ठेले पर कनपुरिया चाट मिलती है.”

चाट का नाम सुन कर राधा के मुंह में पानी आ गया. फिर वह सकुचाते हुए बोली, “लेकिन मेरे पास तो अब पैसे बचे ही नहीं है.”

“अरे भाभी, पैसों की बात मत करो, मैं हूं न, मैं खिलाउंगा तुम्हें.”

राधा उस की बात टाल नहीं सकी. चाट वाले के पास पहुंच कर नेत्रपाल सिंह बोला, “यार रामू, जरा बढिय़ा सी चाट खिलाना हमारी भाभी को.”

नेत्रपाल डालने लगा राधा पर डोरे

कुछ ही देर में चाट का पत्ता राधा के हाथ में था. राधा ने चाट खाई, फिर पानी पूरी भी खाई. चूंकि रामू नेत्रपाल सिंह का दोस्त था, अत: उस ने राधा को भरपूर आदर के साथ हर चीज पेश की. चाट खाने के बाद नेत्रपाल सिंह ने रामू को पैसे देने चाहे तो उस ने नाराजगी से कहा, “कैसी बात करता है यार, तेरी भाभी मेरी भाभी नहीं है क्या?”

बाजार से लौटते वक्त नेत्रपाल ने राधा का थैला उठाया और उसे घर के बाहर तक छोड़ गया. रास्ते में दोनों के बीच खूब बातें हुईं. नेत्रपाल का बातबात में खिलखिलाना और राधा के चेहरे को निहारना, उसे अच्छा लगा था. पहली बार उस ने नेत्रपाल को गौर से देखा था. वह स्मार्ट भी था और स्वस्थ भी. राधा की कद्र भी खूब कर रहा था.

जाते वक्त उस ने नेत्रपाल का शुक्रिया अदा किया तो वह हंसते हुए बोला, “मेरी सारी मेहनत को इस एक शब्द में बहा दिया न भाभी आप ने. अपनों को भी शुक्रिया कहा जाता है क्या?”

उस की यह अदा भी राधा को बहुत अच्छी लगी थी. उस सारी रात राधा की आंखों में नेत्रपाल सिंह का चेहरा ही घूमता रहा. उस का अपनापन, उस का अंदाज उस के उदास मन की तनहाइयों को सहलाता रहा.

तीसरे दिन की बात थी. राधा को सुबह खाना बनाने में देर हो गई थी. अश्वनी ने कहा, “राधा हमारा खाना तुम खेत पर ही दे जाना.”

खाना बना कर राधा ने टिफिन में डाला. बेटी को पड़ोस के घर छोड़ा और मासूम बेटे को गोद में ले कर वह खेत की ओर बढ़ चली. टिफिन पति को थमा कर वह खेत से घर की ओर आ ही रही थी कि रास्ते में नेत्रपाल सिंह टकरा गया. देखते ही बोला, “अरे भाभी, तुम यहां?”

“हां, तुम्हारे भैया का खाना देने खेत पर गई थी.” राधा ने मुसकरा कर जवाब दिया.

“लाओ बेटे को हमें दे दो. हम ले कर चलते हैं,” कहते हुए नेत्रपाल सिंह ने राधा की गोद से बच्चा ले लिया.

बच्चा पकड़तेे वक्त उस की अंगुलियां राधा के उरोजों के साथसाथ उस के हाथों को छू गईं. पता नहीं उस स्पर्श में ऐसा क्या था कि राधा की देह में एक सनसनी सी भर गई. पति के स्पर्श से उस ने कभी ऐसा रोमांच महसूस नहीं किया था.

घर पहुंच कर नेत्रपाल ने अनुज को गोद से उतार कर राधा की गोद में दे दिया तो एक बार फिर दोनों की अंगुलियां टकरा गईं. वही सनसनी फिर राधा की देह से गुजर गई. नेत्रपाल ने मुसकरा कर कहा, “अब चलता हूं भाभी.”

“अरे ऐसे कैसे जाओगे? तुम ने मेरी इतनी मदद की है, बदले में मेरा भी तो फर्ज बनता है. अंदर चलो, चाय पी कर जाना.” कहते हुए राधा ने घर का ताला खोला और नेत्रपाल का हाथ पकड़ कर उसे अंदर ले आई.

भीतर आ कर उस ने बेटे को गोद से उतार कर बिस्तर पर लिटा दिया. इस के बाद उस ने साड़ी का पल्लू सिर से उतारा ही था कि झटके से उस का जूड़ा खुल गया. लंबे बाल कंधों पर लहराने लगे. नेत्रपाल को राधा की यह दिलकश अदा भा गई.

अधेड़ उम्र का खूनी प्यार – भाग 1

देश की राजधानी दिल्ली की सीमा से सटा हरियाणा का एक जिला है गुरुग्राम. इसी गुरुग्राम जिले के बादशाहपुर के बड़ा बाजार में सिटी हेल्थ सेंटर के पास रहता था मधुसूदन सिंगला. मधुसूदन की उम्र करीब 52 वर्ष थी. मधुसूदन घर में ही टेलरिंग शौप चलाता था. 22 वर्ष पहले मधुसूदन का विवाह सविता से हुआ था. सविता बादशाहपुर के ज्ञान भारती स्कूल में टीचर थी.

उन के 3 बच्चे हुए, जिन में 2 बेटियां और एक बेटा है. इस समय बड़ी बेटी 21 साल की, दूसरी बेटी 19 साल की और बेटा 18 साल का है. तीनों बच्चे पढ़ रहे थे. रोज तीनों बच्चे कालेज चले जाते थे. सविता भी स्कूल बच्चों को पढ़ाने के लिए चली जाती थी. घर दुकान में अकेला रह जाता था मधुसूदन.

26 जून 2023 को भी मधुसूदन रोज की तरह घर में अकेला था. दोपहर ढाई बजे के करीब मधुसूदन की बड़ी बेटी रवीना कालेज से वापस घर आई तो घर का मेन गेट खुला हुआ था. गेट से जब वह अंदर पहुंची तो कमरे में सामने ही अपने पिता को खून से लथपथ पड़ा देखा. अपने पिता को उस हाल में देख कर उसकी चीख निकल गई. वह फौरन वहां से तेजी से बाहर निकली और थोड़ी दूर पर रहने वाले अपने चाचा सोनू के पास पहुंच गई.

उस ने रोतेबिलखते चाचा को पिता के खून से लथपथ कमरे में पड़े होने की बात बता दी. यह सुनते ही सोनू और घर के अन्य लोग तेज कदमों से मधुसूदन के घर पहुंच गए. सोनू और घर वालों ने जब मधुसूदन को देखा तो पता चला कि मधुसूदन की मौत हो चुकी है. चीखपुकार सुन कर आसपास के लोग भी वहां एकत्र हो गए. उन में से ही किसी व्यक्ति ने स्थानीय बादशाहपुर थाने को घटना की सूचना दे दी.

खून से लथपथ मिली लाश

बादशाहपुर पुलिस और पुलिस के आला अधिकारीगण घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने लाश का निरीक्षण किया. मृतक मधुसूदन के सिर पर किसी भारी वस्तु से प्रहार किया गया था, यह बात उस के सिर के घाव देखने के बाद पता चली. इस के अलावा उस के गले को किसी तेज धारदार हथियार से काटा गया था.

कमरे का सारा सामान बिखरा पड़ा था, अलमारियां खुली पड़ी थीं. शुरुआती जांच में मामला लूट के बाद हत्या का लग रहा था. अनुमान लगाया जा रहा था कि मधुसूदन घर में अकेले थे, इसलिए कोई बदमाश लूट के इरादे से घर में घुसा, मधुसूदन ने विरोध किया तो बदमाश ने उन की हत्या कर दी होगी.

बदमाश घर से कोई सामान ले जाने में सफल हुआ कि नहीं, ये पता नहीं चला. पति की हत्या की खबर मिलने पर सविता भी घर आ गई थी. पुलिस ने उस से पूछताछ की तो उस ने किसी पर शक नहीं जताया. घर से क्या कुछ गायब हुआ है तो सविता भी कुछ न बता सकी.

पुलिस ने आसपास के लोगों से जानकारी जुटाई तो पता चला कि मृतक के घर की जमीन के लेनदेन को ले कर कुछ समझौता हुआ था, जिस के एवज में कई लाख रुपए मिले थे, जिस की सूचना उन के परिचित व कुछ निजी लोगों को थी. हो सकता है, उन पैसों के कारण यह घटना तो अंजाम नहीं दी गई. यह बात भी पता चली कि घटना से पहले मधुसूदन के पास बिना मूंछों वाला एक व्यक्ति बैठा देखा गया था.

क्राइम ब्रांच ने की जांच शुरू

फिलहाल पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई पूरी कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया. फिर थाने में अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. इस हत्याकांड की जांच क्राइम ब्रांच सेक्टर 39 की यूनिट को सौंप दी गई. इस यूनिट के प्रभारी थे पंकज कुमार.

थाना पुलिस के सहयोग से क्राइम ब्रांच यूनिट ने केस की जांच शुरू कर दी. पुलिस ने घटनास्थल के आसपास के सीसीटीवी कैमरे खंगाले. उन कैमरों की फुटेज में कोई भी संदिग्ध व्यक्ति नहीं दिखा, लेकिन घटना से पहले मधुसूदन की पत्नी जरूर घर आतीजाती एक युवक के साथ दिखी. उस युवक के हाथ में एक छाता था.

घटना से पहले और बाद में भी उन का साथ जाना पुलिस वालों के जेहन में शक पैदा कर गया. आनेजाने के बीच का समय काफी ज्यादा था. घटना भी दोपहर एक बजे से दो बजे के बीच अंजाम दी गयी थी. घटना का समय और उन दोनों के आने जाने का समय इस बात का यकीन दिला रहा था कि मधुसूदन की हत्या इन दोनों द्वारा ही की गई है.

सविता के साथ वाले युवक के बारे में पता किया गया तो पता चला कि सविता के साथ दिखने वाला युवक आशीष वर्मा उर्फ टीनू है. वह सविता के स्कूल में ही टीचर है. जानकारी जुटाने के बाद पुलिस ने दोनों के खिलाफ और सुबूत जुटाने शुरू किए.

पुलिस ने सविता के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई, जिस में सविता द्वारा एक नंबर पर हर रोज ज्यादा बात किए जाने की बात पता चली. घटना वाले दिन भी उस फाने पर बातें हुई थीं. घटना के समय दोनों के नंबरों की लोकेशन भी घटनास्थल पर पाई गई. जांच करने पर वह नंबर किसी और का नहीं, बल्कि आशीष वर्मा का ही निकला. आशीष बादशाहपुर में ही रहता था.

इस के बाद अगले ही दिन 27 जून, 2023 को पुलिस ने सविता और आशीष वर्मा को गिरफ्तार कर लिया. बादशाहपुर थाने ला कर जब सविता और आशीष से पूछताछ की गई तो दोनों पुलिस को बरगलाने लगे, लेकिन जब पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज, काल डिटेल्स और लोकेशन रिपोर्ट दोनों के सामने सुबूत के तौर पर रखी तो दोनों समझ गए कि इन का भांडा फूट गया है. तब दोनों ने इस मर्डर केस का जुर्म स्वीकार करते हुए हत्या के पीछे की पूरी कहानी बयान कर दी.

स्कूल के टीचर से हो गया प्यार

मधुसूदन सिंगला के साथ सविता 22 साल से किसी तरह निभा रही थी. मधुसूदन शराब का शौकीन था. ये शौक उस की आदत में इस कदर शुमार था, कि वह हर रोज शराब पीता था. यहां तक तो चलो कोई दिक्कत नहीं थी, लेकिन इस के बाद जो होता था, वह बरदाश्त के बाहर वाला मामला था. शराब पीने के बाद मधुसूदन हैवान बन जाता था, वह रोज किसी न किसी बात को ले कर सविता से झगड़ पड़ता था और उस की जम कर पिटाई कर देता था.

प्रेमिका के लिए पत्नी का कत्ल – भाग 1

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिला बरेली के थाना भोजीपुरा का एक गांव है कैथोला बेनीराम. जसवीर अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. गांव का वह बेहद संपन्न किसान था.

22 नवंबर को वह बरेली शहर में रह कर पढ़ रहे अपने तीनों बच्चों से मिलने जाने लगा तो पत्नी गुरप्रीत से कहा कि चाहे तो वह भी साथ चल सकती है. गुरप्रीत को भी तीनों बच्चों से मिले काफी समय हो गया था, इसलिए उस ने सोचा कि वह भी चली जाए. एक तो बच्चों से मुलाकात हो जाएगी, दूसरे वहां से वह अपनी जरूरत के सामान भी खरीद लेगी.

गुरप्रीत तैयार हो गई तो जसवीर उसे मोटरसाइकिल से बरेली ले गया. पहले गुरप्रीत ने खरीदारी की, उस के बाद दोनों बच्चों से मिलने गई. मम्मीपापा को साथ आया देख कर बच्चे काफी खुश हुए. बच्चों से मिलने में उन्हें काफी देर हो गई. गुरप्रीत की इच्छा बच्चों को छोड़ कर घर आने की नहीं हो रही थी, लेकिन जब अंधेरा होने लगा तो जसवीर ने उस से घर चलने को कहा.

गुरप्रीत को भी लगा कि देर करना ठीक नहीं है, इसलिए बच्चों को प्यार कर के वह पति के साथ मोटरसाइकिल से गांव की ओर चल पड़ी. जाड़े के दिनों में दिन छोटा होने की वजह से अंधेरा जल्दी घिर आता है. जसवीर जल्दी घर पहुंचना चाहता था, इसलिए वह खेतों के बीच बनी सडक़ से तेजी से घर की ओर चला जा रहा था.

रास्ता सुनसान था. जैसे ही वह गांव के पास नत्थू मुखिया के खेतों के नजदीक पहुंचा, 2 मोटरसाइकिल सवारों ने उसे ओवरटेक कर के अपनी मोटरसाइकिल उस के आगे अड़ा दी. मजबूरन जसवीर को अपनी मोटरसाइकिल रोकनी पड़ी. तभी एक और मोटरसाइकिल उस के पीछे आ कर इस तरह खड़ी हो गई कि वह उन लोगों से बच कर भाग न सके. दोनों मोटरसाइकिलों पर बैठे चारों लोग उतर कर उस के सामने आ गए.

जसवीर कुछ समझ पाता, उन में से एक ने तमंचा निकाल कर उस पर गोली चला दी. गोली उसे लगने के बजाय उस के सिर को छूते हुए निकल गई. उस ने दूसरी गोली चलाई तो वह उसे लगने के बजाय मोटरसाइकिल पर पीछे बैठी गुरप्रीत की कनपटी पर जा लगी. वह नीचे गिर कर तड़पने लगी.

सडक़ से थोड़ी दूरी पर जसवीर के चाचा नरेंद्र सिंह और मामा बलविंदर सिंह खेतों में पानी लगाए हुए थे. गोली चलने की आवाज सुन कर वे उस की ओर दौड़े तो उन्हें आते देख कर बदमाश भाग गए. जसवीर ने मोटरसाइकिल की हैडलाइट के उजाले में हमलावरों में से एक को पहचान लिया था. उस का नाम नबी बख्श था और वह उस से रंजिश रखता था. बाकी लोगों के चेहरों पर कपड़ा बंधा था, इसलिए वह उन्हें नहीं पहचान पाया था.

बदमाशों के भाग जाने के बाद जसवीर चाचा और मामा की मदद से बुरी तरह से घायल गुरप्रीत को अस्पताल ले जा रहा था कि रास्ते में उस की मौत हो गई. लाश अस्पताल में ही छोड़ कर वह थाना भोजीपुरा पहुंचा और थानाप्रभारी अनिल कुमार सिरोही को पूरी बात बताई.

अनिल कुमार सिरोही पुलिस बल ले कर जसवीर के साथ अस्पताल पहुंचे और लाश का निरीक्षण करने के बाद उसे पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस के बाद थाने आ कर जसवीर ने नबी बख्श और उस के 3 अज्ञात साथियों के खिलाफ जो तहरीर दी, उसी के आधार पर अपराध संख्या 637/2015 भादंवि की धारा 302/307 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

मुकदमा दर्ज होने के बाद अनिल कुमार सिरोही ने नामजद नबी बख्श और उस के साथियों को पकडऩे के लिए एक टीम बनाई, जिस में सबइंसपेक्टर गौरव बिश्नोई, कांस्टेबल धीरेंद्र सिंह, संजीव कुमार आदि को शामिल किया. इस का नेतृत्व वह खुद कर रहे थे. वह टीम के साथ नबी बख्श की तलाश में उस के घर पहुंचे तो वह घर पर ही मिल गया.

वह उसे हिरासत में ले कर थाने ले आए और जब उस से जसवीर पर जानलेवा हमला और उस की पत्नी की हत्या के बारे में पूछताछ शुरू की तो उस ने कहा कि जिस समय जसवीर घटना को अंजाम देने की बात कर रहा है, उस समय तो वह कुछ लोगों के साथ अपने घर पर था.

अनिल कुमार सिरोही ने जब नबी बख्श के बयान की उन लोगों से तसदीक की तो बात सही निकली. तब नबी बख्श ने कहा, ‘‘साहब, कुछ दिनों पहले औटो में बैठने को ले कर मेरा जसवीर से झगड़ा हुआ था. उस झगड़े में मारपीट भी हो गई थी. उसी मारपीट का बदला लेने के लिए जसवीर उसे और उस के साथियों को झूठे मुकदमे में फंसा रहा है.’’

अनिल कुमार सिरोही को नबी बख्श निर्दोष लगा तो उन्होंने उसे हिदायत दे कर छोड़ दिया. अब सवाल यह था कि नबी बख्श ने गुरप्रीत की हत्या नहीं की थी तो हत्या किस ने की थी? उस की जसवीर से क्या रंजिश थी?

गुरप्रीत के हत्यारों को पकडऩे की पुलिस के सामने कठिन चुनौती थी. थाना भोजीपुरा पुलिस गुरप्रीत के हत्यारों की तलाश कर ही रही थी कि पंचायत चुनाव पड़ गए, जिस से इस मामले पर वह ज्यादा ध्यान नहीं दे पाई. चुनाव खत्म होते ही अनिल कुमार सिरोही गुरप्रीत के हत्यारों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे थे कि 16 दिसंबर की शाम 4 बजे जसवीर घायल अवस्था में थाना भोजीपुरा पहुंचा. उस के पेट में गोली लगी थी, जहां से उस समय भी खून बह रहा था.

संयोग से गोली एकदम किनारे लगी थी. एक तरह से वह मौत के मुंह में जाने से बालबाल बचा था. इस बार भी उस ने गोली मारने का आरोप नबी बख्श पर लगाया. जसवीर ने भले ही नबी बख्श पर आरोप लगा कर तहरीर दी थी, लेकिन थानाप्रभारी ने इस बार नामजद मुकदमा दर्ज कराने के बजाय अपराध संख्या 680/2015 पर भादंवि की 307 के तहत अज्ञात हमलावर के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था.

एक तो अनिल कुमार ने नबी बख्श को छोड़ दिया था, दूसरे इस बार जब उस के खिलाफ नामजद मुकदमा दर्ज नहीं किया तो जसवीर को यह बात बड़ी नागवार गुजरी, लेकिन वह कुछ करने की स्थिति में नहीं था, इसलिए चुपचाप चला गया.

अनिल कुमार सिरोही की समझ में नहीं आ रहा था कि जसवीर आखिर ऐसा कर क्यों रहा है? वह जिस तरह हमलों में बारबार बचा जा रहा था, उस से उन्हें लगा कि कहीं वह खुद तो ऐसा नहीं कर रहा? जसवीर जिस तरह नबी बख्श पर आरोप लगा रहा था, उस से उन्हें उस पर शक हुआ.

दूसरी शादी का दुखद अंत – भाग 1

26 जुलाई, 2014 को जिला हाथरस कोतवाली सदर के प्रभारी बी.एस. त्यागी को सुबहसुबह सूचना मिली कि कोटा रोड पर नरहौली बंबे के पास एक युवक की लाश  पड़ी है. सूचना मिलने के थोड़ी देर बाद थानाप्रभारी बी.एस. त्यागी सिपाहियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

शुरुआती निरीक्षण से ही पता चल गया कि यह हत्या का मामला है. मृतक का चेहरा किसी भारी पत्थर से कुचल दिया गया था. शायद ऐसा शिनाख्त मिटाने के लिए किया गया था. तलाशी में भी उस के पास से ऐसा कुछ नहीं मिला, जिस से उस की शिनाख्त हो पाती. जब वहां इकट्ठा लोगों ने भी उसे पहचानने से मना कर दिया तो थानाप्रभारी बी.एस. त्यागी ने घटनास्थल की औपचारिक काररवाई निपटाई और लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

हत्या का यह मामला हाथरस कोतवाली सदर में अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कर लिया गया और अज्ञात युवक की हत्या के इस मामले की जांच एसएसआई रविंद्र कुमार को सौंप दी गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, मृतक मुसलिम था, जिस की हत्या किसी भारी पत्थर से कुचल कर की गई थी. मृतक के पुरुषांग को भी कुचला मसला गया था.

इस बात से मामले की जांच कर रहे रविंद्र कुमार को लगा कि हत्यारा मृतक से काफी नफरत करता रहा होगा. ऐसा अधिकतर अवैध संबंधों के मामले में ही होता है. इसलिए इसी बात को ध्यान में रख कर जांच बढ़ाई गई. लेकिन जांच तभी आगे बढ़ सकती थी, जब मृतक की शिनाख्त हो जाती.

संयोग से उन्हें मृतक की शिनाख्त के लिए ज्यादा परेशान नहीं होना पड़ा. 27 जुलाई की शाम को एक आदमी ने आ कर थानाप्रभारी बी.एस. त्यागी को बताया कि उस का किराएदार वकील 2 दिनों से गायब है. उस का फोन भी बंद है. पूछने पर जब उस आदमी ने वकील का हुलिया बताया तो वह हुलिया नरहौली के बंबे पर मिली लाश से पूरी तरह से मेल खा रहा था.

थानाप्रभारी बी.एस. त्यागी ने तुरंत उस आदमी को थाने की जीप से पोस्टमार्टम हाउस भिजवाया तो उस ने मृतक की शिनाख्त अपने किराएदार वकील के रूप में कर दी.

पूछताछ में उस आदमी ने बताया कि वकील ने लगभग 6 महीने पहले विष्णुपुरी स्थित उस के मकान में एक कमरा किराए पर लिया था, जिस में वह अपनी पत्नी के साथ रहता था. इस समय उस की पत्नी मथुरा के मांट में ब्याही अपनी बेटी की ससुराल गई हुई है.

उस आदमी से पुलिस को मृतक वकील की पत्नी का फोन नंबर मिल गया था. इसलिए पुलिस ने उसे वकील की हत्या की सूचना दे दी. लगभग दोढाई घंटे बाद मृतक की पत्नी थानाप्रभारी बी.एस. त्यागी के सामने हाजिर हुई तो उसे देख कर वह हैरान रह गए. क्योंकि उस की उम्र 45 साल से ज्यादा थी, जबकि मृतक वकील की उम्र 20 साल थी. पूछताछ में उस ने अपना नाम जरीना बताया.

मामला अजीबोगरीब था, 20 साल के युवक की 45-50 साल की पत्नी को देख कर सभी हैरान थे, लेकिन पुलिस को इस से क्या मतलब था? जरीना रोरो कर कह रही थी उस के शौहर की हत्या उस के पहले पति, बेटे और चचेरे देवर ने की है.

इस के बाद जरीना की तहरीर पर उस के शौहर वकील की हत्या का मुकदमा उस के पहले शौहर शैफी मोहम्मद, बेटे शमशेर और चचेरे देवर फुर्रा के खिलाफ दर्ज कर लिया गया.  लाश की शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने मृतक वकील के घर वालों को भी सूचना दे दी थी.

घर वालों ने हाथरस कोतवाली पहुंच कर वकील की हत्या का आरोप जरीना पर ही लगा दिया. वकील के बड़े भाई शब्बीर का कहना था कि जरीना ने ही अपने पहले शौहर शैफी मोहम्मद, देवर फुर्रा और बेटे शमशेर के साथ साजिश रच कर उस के भाई वकील की हत्या कराई है. उन्होंने वकील की हत्या के इस मामले में उसे भी अभियुक्त बनाया जाए.

इस के बाद हत्यारों में जरीना का नाम भी जोड़ दिया गया और कोतवाली में मौजूद जरीना को हिरासत में ले लिया गया. इस के बाद हाथरस पुलिस ने आगरा के इसलामनगर जा कर शैफी मोहम्मद, उस के भाई फुर्रा और बेटे शमशेर को भी गिरफ्तार कर लिया.

कोतवाली ला कर तीनों से पूछताछ शुरू हुई तो उन का कहना था कि 4 साल से वकील से न उस की मुलाकात हुई है, न कोई बातचीत. ऐसे में वे उस की हत्या कैसे कर सकते हैं. लेकिन जब थानाप्रभारी बी.एस. त्यागी ने उन के मोबाइल फोनों की काल डिटेल्स और लोकेशन उन के सामने रख दी तो तीनों ने वकील की हत्या का अपना अपराध स्वीकार करने के साथ हत्या के पीछे की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी.

मूलरूप से जिला हाथरस के सादाबाद के गांव जरिया की गढ़ी के रहने वाले हनीफ खां रोजीरोटी की तलाश में वर्षों पहले आगरा आ बसे थे. यह उस समय की बात है, जब आगरा में यमुना नदी के किनारे इसलामनगर मोहल्ला बस रहा था. हनीफ खां जब आगरा आए तब उन की 2 संतानें थीं. बाद में वह कुल 9 बच्चों के बाप बने, जिन में 4 बेटियां और 5 बेटे थे. वकील उन का सब से छोटा बेटा था. हनीफ जैसेतैसे बच्चों की शादी करते गए थे, सब अपनीअपनी पत्नियों के साथ अलग होते गए थे.

अंत में उन के साथ सब से छोटा बेटा वकील बचा. जिन दिनों वह हाईस्कूल में पढ़ रहा था, तभी हनीफ खां की तबीयत खराब हुई. पिता की देखरेख की वजह से वकील हाईस्कूल की परीक्षा नहीं दे सका. इस से भी दुखद यह रहा कि उस के अब्बू भी चल बसे.

हनीफ खां के इंतकाल के बाद वकील का कोई नहीं रह गया. उसे कभी एक भाई के यहां खाना पड़ता तो कभी दूसरे के यहां. कोई भी भाई उसे अपने साथ स्थाई रूप से रखने को तैयार नहीं था. पढ़ाई तो छूट ही गई थी, धक्के खाते हुए मोटर मैकेनिक का काम सीखने लगा. भाइयों ने मदद नहीं की तो ऐसे में उस की मदद के लिए आगे आए उसी मोहल्ले के रहने वाले शैफी मोहम्मद.

शैफी मोहम्मद का घर हनीफ खां के घर के ठीक सामने था. मोहल्ले में उस की गिनती संपन्न लोगों में होती थी. 3 बच्चों के पैदा होने के बाद उस की पत्नी की मौत हो गई. इस के बाद उस ने दूसरी शादी जरीना से की थी. जरीना से भी उसे 7 बच्चे हुए. जरीना ने बेशक अपनी कोख से 7 बच्चों को जन्म दिया था, लेकिन उसे देख कर कहीं से नहीं लगता था कि वह इतने बच्चों की मां होगी.

नाजायज रिश्ते में पति की बलि – भाग 1

कानपुर देहात जनपद के थाना मूसानगर का एक गांव है कृपालपुर, जिस में रामसुमेर यादव अपने 2 बेटों रघुराज व सुरेंद्र के साथ रहता था. रामसुमेर की खेतीबाड़ी की कुछ जमीन थी, जिस से परिवार का भरणपोषण होता था. वह भले ही संपन्न किसान नहीं था, लेकिन गांव में उस की अच्छीभली इज्जत थी.

रामसुमेर का बड़ा बेटा रघुराज तो पिता के साथ खेती में हाथ बंटाने लगा था, लेकिन सुरेंद्र का मन खेतीबाड़ी में नहीं लगता था. समय के साथ रामसुमेर ने रघुराज का घर बसा दिया, लेकिन सुरेंद्र के साथ परेशानी यह थी कि उस की संगत ठीक नहीं थी. वह नशा करने का आदी हो गया था. नशे में वह लड़ाईझगड़ा और मारपीट करता तो उस की शिकायत रामसुमेर तक पहुंचती.

ऐसे में लोगों ने सलाह दी कि सुरेंद्र का विवाह कर दिया जाए. इस के पांव में गृहस्थी की बेडिय़ां पड़ेंगी तो यह अपनेआप सुधर जाएगा. लोगों की सलाह मान कर रामसुमेर सुरेंद्र के लिए लडक़ी की तलाश में जुट गया. नतीजा सार्थक रहा. कुछ ही दिनों बाद सुरेंद्र का विवाह घाटमपुर तहसील के सजेती गांव निवासी सूरज सिंह यादव की बेटी प्रियंका से हो गया.

प्रियंका काफी खूबसूरत थी. सुरेंद्र ने सपने में भी नहीं सोचा था कि इतनी खूबसूरत बीवी मिलेगी. उस के रूपसौंदर्य ने उस पर जादू सा कर दिया. प्रथम मिलन की रात प्रियंका जिस तरह उसे समर्पित हुई, उस से सुरेंद्र उस का दीवाना हो गया. सुंदर और समझदार प्रियंका ने सुरेंद्र के आवारा कदमों में ऐसी बेडिय़ां डालीं कि वह घरगृहस्थी के कामों में रम गया.

विवाह के बाद परिवार का खर्च बढ़ा तो खेती की पैदावार से दोनों भाइयों का गुजारा होना मुश्किल हो गया. तंगी की वजह से परिवार में कलह शुरू हो गई. यह देख कर रामसुमेर ने दोनों बेटों का बंटवारा कर दिया. बंटवारे के बाद सुरेंद्र प्रियंका के साथ अलग रहने लगा. उस का मन खेती में कम लगता था, इसलिए वह किसी दूसरे काम की तलाश में जुट गया.

गांव के कुछ लडक़े गुजरात के सूरत शहर की कपड़ा मिलों में काम करते थे. वे काफी खुशहाल थे. सुरेंद्र ने पत्नी से सूरत जाने की बात की तो उस ने इजाजत दे दी. इस के बाद वह अपने एक दोस्त के साथ सूरत चला गया. वहां वह उसी दोस्त के साथ रहा. उसी के सहयोग से उसे एक फैक्ट्री में नौकरी मिल गई, बाद में वह किराए का कमरा ले कर अलग रहने लगा.

सुरेंद्र सूरत में था और प्रियंका गांव में. नईनवेली दुलहन को पति के साथ रहने के बजाय तनहाई में रहना पड़ रहा था. उस की उमंगें दम तोड़ रही थीं. पति से सिर्फ उस की मोबाइल के जरिए बात हो पाती थी. प्रियंका अपने मन की बात पति से कहती तो वह हफ्ते भर की छुट्टी ले कर घर आ जाता.

तब वह उस से कहती, “तुम सूरत में रहते हो और मैं यहां गांव में अकेली पड़ी रहती हूं, क्यों नहीं मुझे भी अपने साथ ले चलते?”

सुरेंद्र हर बार प्रियंका से वादा करता कि अगली बार जब आएगा तो वह उसे साथ ले जाएगा. लेकिन वह दिन कभी नहीं आया. इस तरह 4 साल से अधिक बीत गए. इस दौरान प्रियंका 2 बच्चों आलोक और अंशिका की मां बन गई.

प्रियंका की सभी जरूरतें तो पति के हिस्से की जमीन तथा उस के भेजे पैसे से पूरी हो जाती थीं, लेकिन देह की जरूरतें वह कैसे पूरी करती? तनहा रातों में बिस्तर उसे काटने दौड़ता था. आखिर उस ने एक ऐसे मर्द की तलाश शुरू कर दी, जो उस के तनमन का सच्चा साथी बन सके.

प्रियंका के घर से चंद कदमों के फासले पर करन सिंह रहता था. वह शरीर से हृष्टपुष्ट और भरपूर जवान था. वह नौकरी कर के अच्छा कमाता था. रहता भी खूब ठाटबाट से था. वह सिगरेट और शराब का शौकीन था. सुरेंद्र और करन रिश्ते में चाचाभतीजा थे.

सुरेंद्र परिवार से अलग रहता था. चूंकि वह सूरत में नौकरी करता था और उस की पत्नी बच्चों के साथ गांव में अकेली रहती थी, इसलिए करन ने उस के घर आनाजाना शुरू कर दिया. सुरेंद्र जब छुट्टी पर घर आता, दोनों की सुरेंद्र के घर पर ही महफिल जमती.

करन प्रियंका को चाची कहता था. प्रियंका के मन में पाप समाया तो वह करन से हंसीमजाक करने लगी. कभीकभी मजाक में वह कोई ऐसी बात कह देती कि करन झेंप जाता. करन कोई दूधपीता बच्चा तो था नहीं, इसलिए जल्द ही समझ गया कि चाची उस से क्या चाहती है. परिणामस्वरूप वह भी उस के रूपसौंदर्य की तारीफें करते हुए उस के आगेपीछे मंडराने लगा.

दो बच्चों की मां बनने के बावजूद प्रियंका के रूपलावण्य में कोई कमी नहीं आई थी. उस की चाल में ऐसी मस्ती थी कि देखने वालों के मुंह से आह निकलती थी. गांव के कई युवक उस का दीदार करने को तरसते थे. एक करन ही ऐसा था, जिसे प्रियंका के पास घंटों बैठने और बतियाने का मौका मिलता था. प्रियंका उस से खूब हंसीमजाक करती थी.

चूंकि करन सुरेंद्र का भतीजा था, इसलिए उस ने कभी चाचीभतीजे के रिश्ते से अलग हट कर नहीं देखा. लेकिन सुरेंद्र को क्या मालूम था कि उस का भतीजा ही उस की पीठ में छुरा घोंपेगा. घर आतेजाते करन अक्सर प्रियंका की तारीफें करता तो वह गदगद हो जाती.

एक दिन करन जब उस की खूबसूरती की तारीफ करने लगा तो वह बोली, “ऐसी खूबसूरती किस काम की, जिस की पति ही कद्र न करे. मैं ने कितनी बार कहा कि साथ ले चलो, लेकिन वह हर बार टाल जाते हैं.”

करन को प्रियंका की किसी ऐसी ही कमजोर नस की तलाश थी. जब उस ने अपने पति की बेरुखी बयां की तो करन उस का हाथ थाम कर बोला, “तुम क्यों चिंता करती हो चाची, आज से तुम्हारे सारे दुख मेरे और मेरी सारी खुशियां तुम्हारी.”

“सच करन?” प्रियंका ने मुसकरा कर पूछा.

“हां चाची, सोलह आने सच.”

“तो कल दोपहर में आना. मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.”

करन ने वह रात करवटें बदलते हुए काटी. सारी रात वह प्रियंका के खयालों में डूबा रहा. अगले दिन दोपहर होते ही वह प्रियंका के घर जा पहुंचा.

प्रेम में डूबी जब प्रेमलता – भाग 1

अभी सुबह का उजाला भी ठीक से फैला नहीं था कि मैनपुरी कोतवाली के गेट से एक महिला अंदर घुसी. वह काफी अस्तव्यस्त और घबराई हुई लग रही थी, इसलिए ड्यूटी पर तैनात संतरी ने आगे बढ़ कर पूछा, “कहो, कैसे आई?”

“साहब से मिलना है.”

“क्यों, क्या परेशानी है?” संतरी ने पूछा.

संतरी का इतना कहना था कि महिला रोने लगी. संतरी ने उसे चुप कराते हुए कहा, “साहब तो अभी आए नहीं हैं. तुम अपनी परेशानी बताओ. अगर कोई ज्यादा परेशानी वाली बात होगी तो मैं साहब से जा कर बता दूंगा.”

“मेरे पति ने रात में आत्महत्या कर ली है. उन की लाश घर में पड़ी है.” महिला ने सिसकते हुए कहा.

इस के बाद संतरी महिला को ड्यूटी पर तैनात मुंशी के पास ले गया और उसे पूरी बात बताई. मामला गंभीर था, इसलिए मुंशी ने संतरी से कोतवाली प्रभारी को सूचना देने के लिए कहा.

सूचना पा कर कुछ ही देर में कोतवाली प्रभारी मनोहर सिंह यादव आ गए. उन्होंने महिला को अपने कक्ष में बुला कर पूछा,

“क्या नाम है तुम्हारा?”

“जी प्रेमलता, घर में सब पिंकी कहते हैं.”

“कहां से आई हो?”

“नगला कीरत से. वहीं अपने पति और बच्चों के साथ रहती थी.”

“पति का क्या नाम था?”

“गवेंद्र सिंह उर्फ नीलू.”

“बच्चे कितने हैं?”

“2, बेटा 8 साल का और बेटी 5 साल की है.”

प्रेमलता जिस तरह टकर टकर मनोहर सिंह के सवालों का जवाब दे रही थी, उस से उन्हें उस पर संदेह हुआ. जिस औरत का पति मरा हो, वह इस तरह कतई बातें नहीं कर सकती. उन्होंने पूछा, “यह सब हुआ कैसे?”

“साहब, हम क्या बताएं. रात को हम सब खाना खा कर सोए और सवेरे उठे तो उन की लाश मिली. आप चलिए और लाश कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम करा दीजिए. हम उन का जल्दी से अंतिम संस्कार करना चाहते हैं.”

आगे कुछ पूछने के बजाय कोतवाली प्रभारी कुछ सिपाहियों और प्रेमलता को साथ ले कर कीरतपुर नगला जा पहुंचे. प्रेमलता के घर के सामने भीड़ लगी थी. भीड़ को हटा कर मनोहर सिंह अंदर पहुंचे तो कमरे में पड़ी चारपाई अस्तव्यस्त हालत में पड़ी थी.

मनोहर सिंह ने लाश का निरीक्षण किया तो उस के शरीर पर चोट का कहीं कोई निशान नहीं था. गले पर जरूर कुछ इस तरह का निशान था, जो गला दबाने पर पड़ जाते हैं. उन्हें जो आशंका थी, लाश देख कर वह सच नजर आ रही थी. घर में एक ही दरवाजा था, उसी से अंदर आया या बाहर जाया जा सकता था. प्रेमलता का कहना था कि रात में उस ने खुद कुंडी लगाई थी.

मनोहर सिंह ने औपचारिक काररवाई पूरी कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद उन्होंने एक बार फिर प्रेमलता से पूछताछ की. उस का कहना था कि वह रहते भले तनाव में थे, लेकिन ऐसी कोई बात नहीं कि उन्हें आत्महत्या करनी पड़े. शाम को सब ठीकठाक था. बात भी अच्छी तरह कर रहे थे. कहीं से नहीं लगता था कि वह रात में आत्महत्या कर लेंगे.

पूछताछ में पता चला कि मृतक गवेंद्र सिंह की सरकारी नौकरी थी. वह सरकारी स्कूल में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी था. वह बहुत खुशदिल था. हर किसी से हमेशा हंस कर मिलता था. मनोहर सिंह को गवेंद्र सिंह की आत्महत्या का यह मामला पूरी तरह से संदिग्ध लग रहा था, लेकिन जब तक पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं आ जाती, वह कुछ नहीं कर सकते थे.

प्रेमलता ने 6 बजे ही अपने ससुर रामसेवक को फोन कर के गवेंद्र की मौत की सूचना दे दी थी. उसी सूचना पर रामसेवक 9 बजे घर वालों के साथ नगला कीरतपुर पहुंचे तो पुलिस वहां मौजूद थी. बेटे की लाश देख कर रामसेवक ने रोते हुए कहा,

“साहब, मेरे बेटे ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि उस की हत्या की गई है. आखिर वह आत्महत्या क्यों करेगा, उसे किसी चीज की कमी थोड़े ही थी.”

“कोई बात नहीं, पोस्टमार्टम रिपोर्ट से सब पता चल जाएगा. उस के पहले हम कुछ नहीं कह सकते.” मनोहर सिंह ने उसे आश्वासन दिया.

मनोहर सिंह ने मृतक के पिता रामसेवक की ओर से अपराध संख्या 1341/2015 पर अज्ञात लोगों के खिलाफ गवेंद्र सिंह उर्फ नीलू की हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया था. मनोहर सिंह ने मुखबिरों से प्रेमलता के बारे में पता लगाने को कहा, क्योंकि उन्हें उस का चरित्र संदिग्ध लग रहा था.

आखिर जब उन्हें पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली तो सारा मामला साफ हो गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार मृतक की मौत दम घुटने से हुई थी. उस की गला दबा कर हत्या की गई थी. ऐसे में संदेह प्रेमलता पर ही था, क्योंकि घर में मृतक के साथ वही थी और थाने आ कर उस ने झूठ भी बोला था.

मनोहर सिंह ने पूरे परिवार को इकट्ठा किया तो उन की नजरें मृतक के बच्चों पर जम गईं. हत्या वाली रात वे भी साथ थे. बच्चे डरे हुए लग रहे थे. बेटी तो छोटी थी, लेकिन बेटा उमंग 8 साल का था. वह कुछ बता सकता है, यह सोच कर उन्होंने उसे अपने पास बुलाया और प्यार से पुचकार कर पूछा तो उस ने कहा, “मम्मी ने बबलू अंकल और 2 लोगों के साथ मिल कर पापा को मारा है.”

अब क्या था, पुलिस ने तुरंत प्रेमलता उर्फ पिंकी को हिरासत में ले लिया. लेकिन जब उस से हत्या में शामिल बबलू तथा 2 अन्य लोगों के बारे में पूछा गया तो उस ने कहा कि न वह बबलू को जानती है और न 2 अन्य लोगों को. उमंग ने बबलू का नाम तो बता दिया था, लेकिन वह कौन था, कहां का रहने वाला था, यह सब वह नहीं बता सका था.

पुलिस बबलू के बारे में पता करने लगी. उसी बीच उसे पता चला कि प्रेमलता इन दिनों आगरा की लायर्स कालोनी स्थित आईआईएमटी से नॄसग की पढ़ाई कर रही थी और वहीं कमरा ले कर रहती थी. इस से पुलिस को लगा कि कहीं बबलू आगरा का ही रहने वाला तो नहीं है.

पुलिस वहां जा कर बबलू के बारे में पता लगाने की सोच ही रही थी कि प्रेमलता से मिलने एक लडक़ा आया. उस ने थानाप्रभारी से प्रेमलता को अपनी बहन बता कर मिलने की गुजारिश की तो मनोहर सिंह ने उसे प्रेमलता से मिलने की इजाजत दे दी.

भांजी को प्यार के जाल में फांसने वाला पुजारी

देवर के इश्क़ में

भांजी को प्यार के जाल में फांसने वाला पुजारी – भाग 3

काफी भटकने के बाद भी लकड़ी की व्यवस्था नहीं हो सकी तो उस ने अप्सरा की जूतियां और कपड़े वहीं झाड़ियों में छिपा दिए. इस के बाद लाश उठा कर उस ने कार की डिक्की में रखा और मंदिर लौट आया. अब उस के सामने लाश को ठिकाने लगाने की समस्या थी.

वह काफी देर तक विचार करता रहा. सोचते हुए वह मंदिर के पीछे गया. मंदिर के पीछे राजस्व विभाग की पुरानी इमारत है. वह सोचतेविचारते हुए मंदिर के पीछे टहल रहा था कि उस की नजर राजस्व विभाग की उस पुरानी इमारत के सामने बने मेनहोल पर पड़ी. उस पर नजर पड़ते ही उस की समस्या हल हो गई.

साईंकृष्णा तुरंत मंदिर में आया और कार की डिक्की से लाश निकाल कर ले जा कर मेनहोल का ढक्कन हटा कर लाश उसी में डाल दी और ढक्कन बंद कर मंदिर में वापस आ गया. रात में ही उस ने कार साफ की और अप्सरा का हैंडबैग वगैरह जला कर उस की राख भी उसी मेनहोल में ले जा कर फेंक दी. फिर वह आराम से सो गया.

अगले दिन सुबह वह अप्सरा के घर गया तो उस की मां ने कहा, “अप्सरा को कल रात से ही फोन कर रही हूं. उस का फोन ही नहीं लग रहा है. जब भी फोन करो, स्विच्ड औफ बताता है.”

“यही पता करने तो मैं भी आया हूं. मैं ने भी फोन किया था. उस का फोन बंद ही बताए जा रहा था. कहीं उस का फोन चोरी तो नहीं हो गया. पर फोन चोरी होता तो अपनी किसी सहेली के फोन से फोन कर सकती थी.” साईंकृष्णा ने कहा.

दुर्गंध न आने का कर दिया पुख्ता इंतजाम

अप्सरा के घर से लौट कर पुजारी साईंकृष्णा मेनहोल के पास गया तो उसे लगा कि मेनहोल से लाश के सडऩे की बदबू आ रही है. उसे लगा कि अगर यह बदबू फैली और मेनहोल का ढक्कन उठा कर देखा गया तो वह फंस जाएगा. उस ने ढक्कन के किनारे सीमेंट और कंक्रीट लगा कर 2 ट्रक लाल मिट्टी मंगा कर मेनहोल के ढक्कन के ऊपर डलवा दी, जिस से ढक्कन पूरी तरह बंद हो गया. अब वह निश्चिंत हो गया.

इसी तरह इंतजार में पूरा दिन भी बीत गया और रात भी. जब अप्सरा का कुछ पता नहीं चला तो 5 जून, 2023 को दोपहर के बाद पुजारी साईंकृष्णा अप्सरा की गुमशुदगी दर्ज कराने थाना आरजीआईए पहुंच गया. वहां गुमशुदगी दर्ज कराने के बाद असलियत सामने आ गई और अप्सरा मर्डर केस में वह खुद ही पकड़ा गया. थाना शम्साबाद पुलिस ने वह पत्थर भी बरामद कर लिए, जिन से अप्सरा की हत्या की गई थी. गौशाला के पास से अप्सरा की जूतियां और कपड़े भी मिल गए थे.

पुलिस ने पुजारी अय्यागिरि वेंकट सूर्या साईंकृष्णा के खिलाफ हत्या (धारा 302) और सबूत मिटाने (धारा 120) के तहत मुकदमा दर्ज कर उसे रंगा रेड्डी कोर्ट में पेश किया, जहां से 14 दिनों के रिमांड पर लिया गया. रिमांड अवधि में पुलिस ने उस से पूछताछ कर कुछ और सबूत जुटाए. रिमांड अवधि पूरी होने पर उसे दोबारा अदालत में पेश किया गया, जहां से कातिल पुजारी को जेल भेज दिया गया.

पुजारी की पापलीला और अप्सरा की हत्या को ले कर मीडिया में अप्सरा की एक से एक फोटो के साथ पुजारी के फोटो दिखाए जा रहे थे. तभी इस मामले में एक और नया रहस्य निकल कर सामने आया.

अप्सरा और उस की मां अरुणा एक साल पहले ही हैदराबाद रहने आई थीं. इस के पहले दोनों चेन्नै में रहती थीं. अप्सरा की हत्या का समाचार सुन कर चेन्नै की धनलक्ष्मी राजा नाम की एक महिला ने सोशल मीडिया पर अप्सरा के फोटोग्राफ्स, वीडियो और आडियो डाल कर हडक़ंप मचा दिया.

सामने आई नई जानकारी

धनलक्ष्मी ने वीडियो वायरल कर के कहा था कि दुनिया में देर है पर अंधेर नहीं है. प्रकृति हर किसी को उस के कर्म की सजा देती है. मेरा एकलौता बेटा कार्तिक सौफ्टवेयर इंजीनियर था. उसे अप्सरा से प्यार हो गया. उस की सुंदरता पर वह ऐसा मोहित हुआ था कि मेरे मना करने के बावजूद उस ने उस रूपसुंदरी से विवाह कर लिया.

विवाह कर के घर आते ही अप्सरा ने हम दोनों को परेशान करना शुरू कर दिया था. मेरा बेटा तो सीधासादा था और वह महारानी हर शनिवार और रविवार को बाहर घूमने जाती और हद से ज्यादा खर्च कराती. इस मामले में उस की मां अरुणा भी बेटी का पक्ष ले कर मेरे बेटे को धमकाती. जब देखो तब लड़ाईझगड़ा कर के मांबेटी ने कार्तिक का जीना हराम कर दिया था.

एक दिन घर में थोड़ा ज्यादा झगड़ा हो गया. अप्सरा ऐसी बिफरी की मुझे और कार्तिक को गंदीगंदी गालियां देने लगी. कार्तिक को भी गुस्सा आ गया. उस ने अप्सरा पर हाथ उठा दिया. इस के बाद अप्सरा थाने चली गई और कार्तिक के खिलाफ तरहतरह के आरोप लगा कर शिकायत दर्ज करा दी. अप्सरा की सुंदरता देख कर पुलिस ने भी फटाफट मुकदमा दर्ज कर लिया और कार्तिक को गिरफ्तार कर के अदालत में पेश कर दिया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस के बाद अप्सरा अपनी मां के साथ चेन्नै से हैदराबाद चली गई.

करीब डेढ़ महीने बाद कार्तिक जमानत पर जेल से बाहर आया. जेल जाने से उस की नौकरी भी चली गई थी, जिस की वजह से वह भारी डिप्रेशन में आ गया. मां धनलक्ष्मी ने उसे बहुत समझाया, हिम्मत दी. पर अप्सरा ने उसे जिस तरह परेशान किया था, उस से वह इस हद तक टूट गया था कि वह इस हादसे से उबर नहीं पाया और जेल से बाहर आने के चौथे दिन उस ने फंदे से लटक कर आत्महत्या कर ली.

धनलक्ष्मी ने कार्तिक और अप्सरा के विवाह के जो फोटो और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल किए थे, उन्हें ले कर लोगों में यही चर्चा हो रही थी कि अप्सरा की वजह से जिस तरह कार्तिक की मां बिलख रही है, ठीक उसी तरह से बेटी के मौत हो जाने पर अब खुद अरुणा को भी बिलखना पड़ रहा है.