एहसान फरामोश : भांजे ने की मामा की हत्या – भाग 2

विजय और प्रदीप ज्यादा नहीं पढ़ पाए थे. शादी के बाद दोनों भाई खेती करने के अलावा खर्चे के लिए गांव में ही घर की जरूरतों के सामानों की एक दुकान खोल ली थी. दोनों भाई भले ही नहीं पढ़ पाए थे, लेकिन वे अपने छोटे भाइयों संदीप और देवेंद्र की पढ़ाई पर विशेष ध्यान दे रहे थे.

इसी का नतीजा था कि संदीप ने बीटेक कर लिया. इस के बाद उसे दिल्ली में नौकरी मिल गई तो वह देवेंद्र को भी अपने साथ दिल्ली ले आया. देवेंद्र नौकरी करने के साथसाथ सीए की तैयारी भी कर रहा था. विजय का अपना परिवार तो व्यवस्थित हो गया था, लेकिन बड़ी बहन मंजू के पति की मौत हो जाने से वह परेशानी में पड़ गई. उस के 3 बच्चे थे, 2 बेटे शिवम और दीपक तथा एक बेटी मानसी.

पति की मौत से मंजू को खर्चा चलाना मुश्किल हो गया तो विजय भांजों की पढ़ाई का नुकसान न हो, यह सोच कर उन्हें अपने घर ले आया. उधर मंजू को एक स्कूल में आया की नौकरी मिल गई तो उस की परेशानी थोड़ी कम हो गई.

शिवम ने मामा के घर रह कर इंटर तक की पढ़ाई की. बहन की परेशानी को देखते हुए विजय उसे अपने घर रख कर पढ़ा तो रहा था, लेकिन वह भांजे से खुश नहीं था. इस की वजह यह थी कि उस के खर्चे बहुत ज्यादा थे. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि वह रुपए कहां खर्च करता है.

जब तक शिवम ननिहाल में रहा, तब तक थोड़ाबहुत मामा के अंकुश में रहा. लेकिन 12वीं पास कर के वह मां के पास आ गया तो पूरी तरह से आजाद हो गया. फिरोजाबाद में उस ने बीएससी करने के लिए एक कालेज में दाखिला ले लिया.

ननिहाल से उसे पढ़ाई का खर्चा मिल रहा था, इस के बावजूद अपने अन्य खर्चों के लिए वह जब चाहता, घर का कोई न कोई सामान बेच देता. इसी तरह धीरेधीरे एकएक कर के उस ने पिता की बैंड पार्टी के सारे बाजे बेच दिए. उस की इन हरकतों से मां ही नहीं, मामा भी दुखी थे. लेकिन सब यही सोच रहे थे कि पढ़लिख कर वह कुछ करने लगेगा तो चिंता खत्म हो जाएगी. लेकिन ऐसा हो नहीं सका.

सब की अपनीअपनी परेशानियां थीं, ऐसे में शिवम पर नजर रखना आसान नहीं था. शिवम ने बीएससी कर लिया तो विजय ने गुड़गांव में अच्छी कंपनी में इंजीनियर के रूप में काम करने वाले अपने छोटे भाई संदीप से कहा कि वह शिवम को अपने साथ रख कर कहीं कोई काम दिला दे, वरना वह हाथ से निकल जाएगा.

संदीप गुड़गांव में छोटे भाई देवेंद्र के साथ रहता था. वह वहां एक प्राइवेट कंपनी में इंजीनियर था. उसे बढि़या तनख्वाह मिल रही थी. वह अपनी रिश्तेदारी की एक लड़की उमा से प्यार करता था. वह आगरा के दयालबाग में परिवार के साथ रहती थी. लेकिन उमा के घर वाले संदीप से उस की शादी नहीं करना चाहते थे.

जबकि उमा ने घर वालों से साफ कह दिया था कि वह शादी संदीप से ही करेगी. यही नहीं, वह संदीप से खुलेआम मिलनेजुलने भी लगी थी. दोनों जल्दी ही शादी करने वाले थे.

भाई के कहने पर संदीप ने शिवम को अपने पास गुड़गांव बुला लिया और किसी प्राइवेट कंपनी में उस की नौकरी लगवा दी. सब को लगा कि अब शिवम सुधर जाएगा. लेकिन ऐसा हो नहीं सका. उस ने करीब एक साल तक नौकरी की, लेकिन इस बीच एक पैसा उस ने न मां को दिया और न मामा को. देने की कौन कहे, वह उलटा मां या मामाओं से पैसे लेता रहा.

फिर एक दिन अचानक शिवम नौकरी छोड़ कर फिरोजाबाद चला गया. वहां वह एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने लगा. सब ने सोचा कि कुछ तो कर ही रहा है, इसलिए किसी ने कुछ नहीं कहा. लेकिन जब मंजू को पता चला कि शिवम जो कमाता है, वह जुए और शराब पर उड़ा देता है तो उसे चिंता हुई. उस ने यह बात भाइयों को बताई तो वे भी परेशान हो उठे.

मामा शिवम की जिंदगी बनाना चाहते थे. इस की वजह यह थी कि उन्हें बहन की चिंता थी. फिरोजाबाद में रहते हुए शिवम को किसी लड़की से प्यार हो गया. अब उस का एक खर्च और बढ़ गया. उस के इस प्यार की जानकारी संदीप को हुई तो उस ने उसे समझाया कि उस की कमाईधमाई है नहीं और वह लड़की के चक्कर में पड़ा है.

पर शिवम को कहां किस की फिक्र थी. वह तो अपने में ही मस्त था. उसी बीच एक दिन वह गुड़गांव पहुंचा और संदीप से कहा कि वह एक बहुत बड़ी मुसीबत में फंस गया है.

उस की प्रेमिका गर्भवती हो गई है. अगर किसी को पता चल गया तो वह मुसीबत में फंस जाएगा. अगर वह उसे कुछ पैसे दे दें तो वह इस मुसीबत से छुटकारा पा ले.

शिवम की बात पर संदीप को गुस्सा तो बहुत आया, पर मरता क्या न करता. मुसीबत से बचने के लिए संदीप ने उसे 6 हजार रुपए दे दिए.

गुड़गांव में नौकरी करते हुए संदीप और देवेंद्र ने ब्राबो टेक्सटाइल्स नाम से एक कंपनी खोली. उन्हें उत्तर प्रदेश में मार्केटिंग के लिए एक तेजतर्रार आदमी की जरूरत थी. अब तक संदीप को पता चल चुका था कि शिवम ने प्रेमिका के गर्भवती होने की बात बता कर जो पैसे लिए थे, वह झूठी थी. इस के बावजूद उस ने सोचा कि अगर वह शिवम को उत्तर प्रदेश में मार्केटिंग में लगा दें तो शायद वह सुधर जाए.

संदीप ने शिवम को फोन कर के गुड़गांव बुलाया और ऊंचनीच समझा कर उस से अपने लिए काम करने को कहा. संदीप के कहने पर शिवम उस के लिए काम करने को तैयार हो गया. संदीप ने उसे 12 हजार रुपए प्रति महीना वेतन देने को कहा. कारोबार के लिए के.के. नगर, आगरा में एक कमरा भी ले लिया.

रौंग नंबर करके शादीशुदा को फांसा – भाग 3

सवा 3 बजे सचिन का नंबर हेमा के मोबाइल फोन के स्क्रीन पर चमका. साथ ही फोन की घंटी बजने लगी. हेमा ने तुरंत काल रिसीव की, ‘‘कहां हो सचिन?’’

‘‘मैं बस से उतर गया हूं. तुम बताओ, मुझे कहां आना है?’’

हेमा ने उसे बाहर मेनरोड पर आने का पूरा विवरण समझाते हुए कहा, ‘‘मैं बाहर मेनगेट के दाईं ओर खड़ी हूं.’’

उम्मीद से भी ज्यादा हैंडसम निकला प्रेमी

कुछ ही देर में सचिन आनंद विहार के प्रवेश द्वार पर पहुंच गया. लाल साड़ी में सजीसंवरी खड़ी युवती पर नजर पड़ी तो सचिन ने अनुमान लगा लिया कि वही हेमा है. उस ने अपना हाथ उठा कर हिलाया. हेमा अपने से कुछ दूरी पर खड़े जवान और हैंडसम युवक को टकटकी बांधे देखती रह गई.

उस की सोच से कहीं अधिक स्मार्ट था वह युवक. किसी हीरो जैसा खूबसूरत, यही सचिन होगा. अनुमान लगा कर हेमा उस युवक की ओर लपकी. सचिन भी उस की तरफ लपका. दोनों करीब आ गए तो हेमा के मुंह से चहकता स्वर निकला, ‘‘सचिन?’’

‘‘हेमा…’’ सचिन उत्साह से बोला.

और उस ने हेमा की ओर से हां का इशारा मिलते ही जोश में भर कर हेमा का हाथ पकड़ कर चूम लिया, ‘‘तुम्हारी आवाज ही नहीं, तुम भी बहुत स्वीट हो हेमा.’’

हेमा शरमा गई. सचिन द्वारा बेहिचक हाथ पकड़ कर चूम लेने से उस के गालों पर सुर्खी दौड़ गई. वह शरमाए स्वर में बोली, ‘‘यह पब्लिक प्लेस है सचिन, हाथ छोड़ो.’’

सचिन मुसकराया और उस ने हेमा का हाथ छोड़ दिया. कुछ क्षण वे एकदूसरे को ऊपर से नीचे तक देखते रहे. जैसे मन ही मन निर्णय ले रहे हो कि उन दोनों से दोस्त चुनने में कोई चूक तो नहीं हो गई. जब दोनों ने एकदूसरे को जी भर कर देख लिया तो सचिन बोला, ‘‘चलो किसी अच्छे रेस्टोरेंट में चल कर खाना खाएंगे, वहीं बैठ कर बातें भी

कर लेंगे.’’

‘‘चलो,’’ हेमा ने कहा.

दोनों एक आटो में सवार हो गए. हेमा ने आटो वाले को मयूर विहार फेज-1 चलने को कहा. आटो में बैठे दोनों एकदूसरे की धड़कनों की आवाज सुनते रहे. होंठों से इन के कोई बोल नहीं निकला.

आटो से वे मयूर विहार फेज-1 आ गए.  आटो का किराया सचिन ने दिया. हेमा यहां के बाजार में कई बार आई थी, उस ने अपने पति के साथ एक रेस्टोरेंट में बैठ कर एक बार डोसा खाया था. वह सचिन को उसी रेस्टोरेंट में ले कर आई. दोनों एक खाली टेबल के पास पड़ी कुरसियों पर बैठ गए. वेटर तुरंत उन के करीब आ गया.

‘‘क्या खाओगी हेमा?’’ सचिन ने उस की आंखों में देखते हुए पूछा.

‘‘जो तुम्हें पसंद हो,’’ हेमा ने मुसकरा कर कहा.

सचिन ने वेटर को डोसा का आर्डर दे दिया. हेमा की यही चौइस थी. सचिन ने उस की मनपसंद डिश मंगवाई थी. डोसा आ गया तो दोनों खाने लगे. दोनों कनखियों से एकदूसरे को देख रहे थे. खामोशी अखरने लगी तो सचिन ने हेमा की ओर झुक कर इस खामोशी को तोड़ा.

‘‘अपने बारे में बताओ हेमा, मंडावली में कहां रहती हो? घर में कौनकौन हैं तुम्हारे?’’

‘‘मैं अपनी सच्चाई तुम से नहीं छिपाऊंगी सचिन,’’ हेमा गंभीर स्वर में बोली, ‘‘अगर छिपाऊंगी तो बाद में मेरे विषय में सब मालूम होने पर तुम्हें मुझ से नफरत हो सकती है. अभी हमारी पहली मुलाकात है, तुम्हें मेरी सच्चाई सुन लेने के बाद फैसला लेने का पूरा अधिकार होगा कि तुम इस दोस्ती को निभाओ या यहीं से दोस्ती तोड़ कर मथुरा लौट जाओ.’’

‘‘ऐसी क्या बात है हेमा, जो तुम इतना गंभीर हो गई?’’ सचिन हैरान हो कर बोला.

‘‘सचिन, मैं शादीशुदा औरत हूं. मेरा पति भी है और 2 बेटे भी हैं.’’

‘‘और कुछ?’’ सचिन ने मुसकरा कर कहा.

‘‘तुम मुसकरा रहे हो?’’ हेमा ने उसे आश्चर्य से देखा, ‘‘तुम्हें मेरी सच्चाई सुन लेने के बाद तो उठ कर चले जाना चाहिए था.’’

‘‘हेमा, मैं ने पहली बार तुम्हें फोन लगाया था, तभी अनुमान लगा लिया था कि तुम शादीशुदा हो. हां, तुम 2 बेटों की मां हो, यह अब मालूम हुआ है.’’

‘‘तो अब आगे?’’ हेमा ने उस की आंखों में देखा.

‘‘अरे मैडम, जब शादी हुई तो बच्चे भी होंगे 2 हों या 4, मुझे फर्क नहीं पड़ता. तुम जैसी हो, मेरी नजर में अच्छी हो.’’ सचिन इस बार गंभीर हो गया.

‘‘मेरी उम्र 37 साल हो गई है सचिन, क्या तब भी तुम्हारी दोस्ती मेरे लिए कायम रहेगी?’’ हेमा ने पूछा.

‘‘हां हेमा,’’ सचिन के स्वर में वही गंभीरता थी, ‘‘मैं ने तुम्हारी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया है, मेरी दोस्ती तुम कुबूल करोगी या नहीं, अब यह तुम्हें बताना है.’’

‘‘मैं तो खुद को भाग्यशाली मान रही हूं सचिन, तुम्हारे जैसा सच्चा दोस्त मुझे मिला है. बस मुझे कभी भुला मत देना,’’ हेमा ने भावुक स्वर में कहा.

‘‘कभी नहीं. अभी मैं सिर्फ 22 साल का हूं हेमा, मैं 82 साल का हो जाऊंगा, तब भी तुम्हें यूं ही अपनी दोस्त मानता रहूंगा.’’ सचिन ने दृढ़ स्वर में कहा.

डोसा खत्म हुआ तो सचिन ने रसमलाई और फिर आइसक्रीम भी मंगवा कर हेमा को पहली मुलाकात और दोस्ती के नाम पर खिला कर विदा लिया. शाम को वह वापस मथुरा के लिए रवाना हो गया. इस के बाद दोनों की फोन पर बातें होती रहतीं.

पति को ले कर पहुंची अस्पताल

दिसंबर 2022 को हेमा घबराई हुई अपने घर से निकल कर अपनी पड़ोसन सुधा (परिवर्तित नाम) के घर पहुंची. सुधा उस की हालत देख कर चौंक पड़ी. उस ने हैरानी से पूछा, ‘‘क्या हुआ हेमा? तू इतनी घबराई हुई क्यों है?’’

‘‘मेरे पति सुरेश ने बहुत ज्यादा शराब पी रखी है दीदी, काफी देर से सो रहे हैं. जब मैं ने उठाने की कोशिश की तो वह उठ नहीं रहे. चल कर देखो तो…’’ हेमा घबराए स्वर में बोली.

‘‘चलो, देखती हूं.’’ सुधा ने कहा और हाथ में उठाया जग नीचे रख कर वह दौड़ती हुई हेमा के साथ उस के घर में आ गई. एक चारपाई पर हेमा का पति सोता नजर आया. सुधा ने उस के पास पहुंच कर 2-3 बार पुकारा, ‘‘भाई सुरेश, आंखें खोलो. भाई उठ कर बैठो.’’

सुरेश बेहोश पड़ा रहा. तब सुधा ने उसे जोरजोर से हिलाया. सुरेश के शरीर में कोई हरकत न होते देख कर वह घबरा गई, ‘‘हेमा, मुझे तो लगता है ज्यादा पी लेने से बेहोश हो गया है. इसे अस्पताल ले जाओ.’’

‘‘दीदी, आप भी साथ चलिए, मेरा तो जी घबरा रहा है.’’ हेमा कहते हुए लगभग रो पड़ी.

‘‘हिम्मत रखो हेमा. चलो, मैं साथ चलती हूं. मैं मीना (परिवर्तित नाम) को भी साथ चलने को कह देती हूं.’’ सुधा ने कहा और तेजी से बाहर निकल गई.

थोड़ी ही देर में हेमा, सुधा और मीना के साथ अपने बेहोश पड़े पति सुरेश को ले कर पास में ही स्थित लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल के लिए आटो से निकली.

स्वार्थ की राह पर बिखरा अपनों का खून – भाग 2

मन में अजीब सी कशमकश लिए महावीर दिल्ली चला तो गया लेकिन वहां उस का मन नहीं लगा. निर्मला उस के जेहन में हलचल मचाती रही. 15 दिन बाद उस ने फिर छुट्टी ली और घर आ गया. इतनी जल्दी घर लौटने पर घर वालों ने पूछा तो उस ने तबीयत खराब होने का बहाना बना दिया.

महावीर को मालूम था कि बदन सिंह दोपहर के समय खेतों पर चला जाता है और फिर शाम ढले ही लौटता है. इसी मौके का फायदा उठा कर वह निर्मला का दिल टटोलना चाहता था. अगले दिन दोपहर में वह नहाधो कर तैयार हुआ और पत्नी से यह कह कर घर से निकल गया कि वह डाक्टर के पास दवा लेने जा रहा है. अपने घर से वह सीधा बदन सिंह के घर पहुंचा.

अचानक महावीर को आया देख कर निर्मला बोली, ‘‘अरे देवरजी, तुम इतनी जल्दी दिल्ली से आ गए.’’

‘‘आप को देखने का दिल कर रहा था, इसलिए आ गया.’’ महावीर ने मजाक किया. उस की बात पर निर्मला हंसते हुए बोली, ‘‘आप तो बड़े मजाकिया हो.’’ कह कर निर्मला रसोई में गई और फिर कुछ देर में उस के लिए चाय बना कर ले आई.

महावीर चुपचाप चाय पीने लगा. उस के दिमाग में यही बात घूम रही थी कि अपने मन की बात उस से कैसे कहे. तभी निर्मला ने उस से पूछा, ‘‘चुप क्यों हो, क्या हमारी देवरानी से झगड़ा हुआ है?’’

‘‘नहीं भाभी, ऐसी कोई बात नहीं है. दरअसल, मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं थी पर आप की इस चाय ने मुझे भलाचंगा कर दिया है.’’

‘‘क्यों, हमारी देवरानी को चाय बनानी भी नहीं आती क्या?’’ कहते हुए निर्मला हंसी.

‘‘नहीं भाभी, वो सब तो ठीक है पर बहुत सी बातें हैं जो आप को आती हैं और उसे नहीं आतीं. भाभी, कभी आप ने खुद को आईने के सामने गौर से देखा है. आप जितनी सुंदर हैं, पूरे गांव में इतनी सुंदर औरत कोई नहीं है.’’ महावीर ने तारीफ की.

‘‘ओह देवरजी, बहुत हो गया. अब मुद्दे पर आ जाओ. आखिर इतनी तारीफें क्यों कर रहे हो. कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं है?’’ निर्मला हंसते हुए बोली.

इस से महावीर की थोड़ी हिम्मत बढ़ी, तभी उस ने आगे बढ़ कर निर्मला का हाथ पकड़ लिया. महावीर की इस हरकत से निर्मला को झटका सा लगा. उस ने अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा, ‘‘ये सब क्या है?’’

‘‘भाभी, मैं खुद को रोक नहीं पा रहा हूं. पर यह सच है कि मैं आप से बहुत प्यार करता हूं.’’

‘‘अजीब आदमी हो, तुम जानते हो कि अगर तुम्हारे दोस्त को पता चल गया तो क्या होगा? लगता है तुम्हारी तबीयत सचमुच ठीक नहीं है इसलिए अभी अपने घर चले जाओ और आराम करो.’’  निर्मला ने नसीहत दी.

महावीर ने तो सोचा था कि वह अपनी मीठीमीठी बातों से निर्मला को बहला लेगा पर पासा उलटा पड़ गया. वह अपमानित सा वहां से चला आया और घर में आ कर सिर पकड़ कर बैठ गया.

केला चाय बना कर ले आई और पूछा, ‘‘दवा ले आए?’’

‘‘नहीं, डाक्टर की दुकान बंद थी.’’

केला कुछ नहीं बोली. महावीर चाय पी कर चादर ओढ़ कर लेट गया. उसे इस बात का डर था कि अगर निर्मला ने अपने पति को उस के बारे में बता दिया तो तूफान आ जाएगा. पर रात तक कुछ नहीं हुआ तो महावीर ने चैन की सांस ली. अगले दिन महावीर दिल्ली चला गया.

बेशक निर्मला ने उस के प्यार को स्वीकार नहीं किया था फिर भी दिल्ली में उस का मन नहीं लगा. आखिर नौकरी छोड़ कर वह घर लौट आया.

सामान सहित घर लौटे महावीर को देख कर घर वाले चौंके. पत्नी ने पूछा, ‘‘ये सब क्या है?’’

‘‘तुम हमेशा कहती थी न कि मैं खेती देखूं. अब हम साथसाथ रहेंगे. सच कहूं केला, तुम्हारे और यशवीर के बिना मेरा दिल्ली में दिल नहीं लगता था इसलिए चला आया.’’ महावीर ने कहा. पर इस की असल वजह उस के अलावा कोई नहीं जानता था.

बदन सिंह ने जब निर्मला को बताया कि महावीर नौकरी छोड़ कर आ गया है तो वह उस के गांव लौटने की असल वजह समझ गई.

निर्मला ने उस दिन महावीर का प्रस्ताव ठुकरा दिया था पर बाद में न जाने क्यों उस का झुकाव महावीर की ओर हो गया था. उसे अब अपने किए का पछतावा हो रहा था. उस का मन कर रहा था कि वह महावीर से इस  के लिए माफी मांगे. इसी तरह के विचार उसे बेचैन कर रहे थे.

आखिर निर्मला को एक तरीका सूझा. उस ने पति का मोबाइल चैक किया तो उसे उस में महावीर का नंबर मिल गया. दोपहर को जब बदन सिंह खेत पर चला गया तो उस ने महावीर का नंबर मिलाया. महावीर ने हैलो कहा तो निर्मला के दिल की धड़कनें तेज होने लगीं. तभी महावीर ने कहा, ‘‘अरे भाई बोलो भी, चुप क्यों हो.’’

तभी निर्मला ने हैलो कहा तो महावीर के दिल में घंटियां सी बजने लगीं. निर्मला अब सीधेसीधे मुद्दे पर आ गई. उस ने कहा, ‘‘आग लगा कर अब दूर क्यों भाग रहे हो?’’

‘‘ये क्या कह रही हो भाभी, मैं ने क्या किया?’’ वह नासमझ बनते हुए बोला.

‘‘ओह, तो यह भी हम ही बताएं कि तुम ने किया क्या है. यहां हम बेचैन हो रहे हैं और तुम वहां मौज कर रहे हो. अच्छा, सुनो आज रात को घर आ जाना. तुम्हारे दोस्त बाहर जा रहे हैं.’’

महावीर का हाल अजीब था. दिल की धड़कनें बेकाबू हो रही थीं. उस ने अच्छा कह कर फोन काट दिया और सोचने लगा कि क्या सचमुच निर्मला भी उसे चाहने लगी है. दिन भर वह सोच में रहा. न ठीक से खाया न ही खेत पर चैन मिला. वह बड़ी बेसब्री से रात होने का इंतजार करने लगा.

इंजीनियर ने किये ताई के 10 टुकड़े – भाग 2

13 दिसंबर, 2022 को शाम के वक्त मोनिका ने देखा कि अनुज दीवार पर घिसता हुआ कुछ साफ कर रहा है. मोनिका उस के पास गई. उस ने देखा कि दीवार पर कुछ लाल धब्बे थे, जिन पर अनुज डिटरजेंट का झाग रगड़ रहा था. वह उस पर अंगुली लगा कर पूछ बैठी, ‘‘अनुज, यह तो खून के धब्बे लगते हैं, दीवार पर कैसे?’’

‘‘अरे, दीदी! ये मेरे नाक के हैं. मैं नकसीर से परेशान हो गया हूं. आज ही दिन में नाक से खून निकल पड़ा था. हाथ में लग गया था.’’ घबराहट के साथ अनुज बोला.

‘‘अरे भाई, तू ठीक से इलाज क्यों नहीं करवाता है?’’ कह कर मोनिका वहां से चली गई.

थोड़ी देर बाद वह दोबारा उस दीवार के पास आई, जहां अनुज ने सफाई की थी. वहां खून के कई छोटेबड़े साफ किए गए निशान थे. वह उलझन में पड़ गई कि नकसीर में इतना सारा खून निकला है, वह भी सर्दी में.

वह यह नहीं समझ पा रही थी कि अनुज से इस बारे में पूछने पर घबरा क्यों गया था. उस वक्त उस के चेहरे का रंग सफेद क्यों पड़ गया था?

अपने मन की बात उस ने शिवी को भी बताई. शिवी ने अनुज की नकसीर वाली बात सिरे से इनकार कर दी. वह यहां तक बोली कि ऐसा अनुज की किसी बीमारी के बारे में पहली बार सुनने को मिला है.

शिवी को भी अनुज की नकसीर वाली बात हजम नहीं हुई. वह अनुज के पागलों जैसे तेवर और उस की आदतों से परिचित थी. कई बार उस ने उसे काफी तनाव में भी देखा और उस की अनर्गल बातें भी सुनी थीं. उस से वह न केवल आत्महत्या की बातें करता रहा था, बल्कि उस की डेट तक निर्धारित कर देता था. उस की बातों को वह मजाक में टाल दिया करती थी.

किंतु मोनिका की बात सुन कर वह भी चौंक गई. मन तो नहीं मान रहा था, फिर भी सोच में पड़ गई कि कहीं अनुज ने ताई के साथ कुछ गलत न कर दिया हो. तुरंत अपने मन को समझाया, ‘नहीं नहीं, उस का भाई ऐसा हरगिज नहीं कर सकता. क्योंकि वह तो धार्मिक विचारों का भी है. मंदिरों के कीर्तन और दूसरे धार्मिक समागम में शामिल होता रहता है. जयपुर के अलावा दिल्ली के धार्मिक संस्थानों से भी जुड़ा हुआ है.’

फिर भी उस ने एक बार उस से पूछने की हिम्मत जुटाई. शिवी ने अपनी ताई के बारे में अनुज को कुरेद दिया. अनुज पहले तो सकपकाया, सिर्फ इतना ही बताया कि जब वह इंदौर गई हुई थी, उस रोज ताई से थोड़ी बकझक हो गई थी. ताई के डांटने पर वह नाराज हो कर घर से चला गया था.

शिवी ने दीवार पर लगे खून और नकसीर की बात भी पूछी. उस के जवाब में अनुज ने स्वीकार कर लिया कि नकसीर की बात गलत है, लेकिन उस ने एक नई बात बताई. वह सुन कर शिवी चौंक पड़ी.

उस ने बताया कि वह जिस रोज पापा के साथ इंदौर गई हुई थी, उसी रोज ताई से तूतूमैंमैं हो गई थी. तब बात बहुत बढ़ गई थी. उन्होंने मारने के लिए उस पर हाथ उठा लिया था.

तब उस ने बचाव करते हुए ताई को धक्का दे दिया था. इसी धक्के के चलते ताई का सिर दीवार से टकरा गया था. उन के सिर से खून भी निकल आया था. इस के बाद वह उसी वक्त घर से चली गई थीं.

अनुज ने बताया कि उस के थोड़ी देर बाद ही वह भी घर से चला गया था. वापस लौटने पर उस ने दीवार पर खून के धब्बे देखे थे, जो सूख चुके थे. उसे ही साफ करते हुए मोनिका ने देखा था. शिवी को अनुज की बात न जाने क्यों अधूरी और कुछ छिपाने जैसी लगी कि ताई के साथ जरा सी बात पर उस ने आखिर जोर का धक्का क्यों मारा होगा?

ताई तो अकसर उसे किसी न किसी बात पर समझाती रहती थीं, उस की आदतों को सुधारने की कोशिश में लगी रहती थीं. डांटती जरूर थीं, लेकिन मां की तरह प्यारदुलार भी करती थीं.

शिवी ने अनुज की कहानी पापा को बताई. साथ ही उस ने आशंका जताई, ‘‘पापा, कहीं अनुज ने ताई का मर्डर तो नहीं कर दिया. वह सनकी तो है ही.’’

‘‘अरे नहीं…नहीं! तुम्हारा भाई ऐसा कर ही नहीं सकता है. वह समझदार है. पढ़ालिखा इंजीनियर है. ताई को मां की तरह मानता है. हां, मां के निधन के बाद थोड़ा दुखी जरूर रहता है. मां के जाने का गम भुला नहीं पाया है…’’ बद्रीप्रसाद बेटी को समझाते हुए बोले.

‘‘लेकिन पापा, उस ने मोनिका दीदी को कुछ और बताया और मुझे कुछ और!’’ शिवी ने तर्क किया.

‘‘तुम कहती हो तो मैं उस से कल दिन में पूछूंगा, यदि इस में जरा सा भी मुझे शक हुआ तो मैं उसे कानून के हवाले करने से पीछे नहीं हटूंगा.’’ बद्री प्रसाद बोले.

शिवी का अनुज पर शक बना हुआ था. इसी तरह मोनिका ने भी जब से अनुज को दीवार पर खून के धब्बे साफ करते देखा था, तभी से उस पर संदेह करने लगी थी. उस के दिमाग में भी एक ही विचार बारबार आ रहा था कि कहीं अनुज ने उस की मां को मार न डाला हो. वह तो है ही अधपागल इंसान.

परिवार में सभी के मन में अनुज के प्रति शक का कीड़ा दौड़ने लगा था. इस का कारण भी था कि 5 दिन बीत जाने के बावजूद लापता सरोज शर्मा का कोई सुराग नहीं मिल रहा था.

इसी बीच मोनिका की बहन पूजा भी अपनी ससुराल से अजमेर पहुंच चुकी थी. उस की नजर अपार्टमेंट में लगे सीसीटीवी कैमरे पर गई. उस ने इस की जांच करवाने के लिए पुलिस को कहा.

उस से पहले उस ने 11 दिसंबर की फुटेज देखी. उस में अनुज शाम को बाल्टी और सूटकेस ले कर आता हुआ दिखा.

यह बात उस ने सिर्फ अपनी बहन मोनिका को बताई और अगले रोज 16 दिसंबर को दोनों बहनें विद्यानगर थाने जा कर एसएचओ वीरेंद्र कुरील से मिलीं और नए सिरे से जांच करने का अनुरोध किया. उन्होंने अपनी मां की हत्या की आशंका जताई. चचेरे भाई अनुज शर्मा को बुला कर उस से पूछताछ करने की विनती की. कारण, जिस दिन उन की मां लापता हुई थीं, उस दिन घर में केवल अनुज ही था.

नौकर के प्यार में : परिवार को बनाया निशाना – भाग 2

वैभव को पुचकार कर पुलिस अधिकारियों ने कुछ और जानकारी पूछी तो उस ने एक पत्र ला कर पुलिस अधिकारियों को दिया. वैभव ने कहा, ‘‘यह चिट्ठी मेरी बड़ी बहन, जो शादीशुदा है, ने पापा को लिखी थी. यह पत्र हम भाईबहनों को मिला तो हम ने छिपा दिया था.’’

उस पत्र में मृतक की बड़ी बेटी ने पापा प्रेमनारायण को लिखा था कि वह मम्मी को बदनाम नहीं करना चाहती है. नौकर जितेंद्र को अब अपने यहां नहीं रखना चाहिए.

पुलिस ने चिट्ठी के आधार पर तथा वारदात से जुड़े अन्य पहलुओं पर जांच करते हुए जांच आगे बढ़ाई. पुलिस ने साइबर एक्सपर्ट सत्येंद्र सिंह की भी मदद ली.

बच्चों ने पुलिस अधिकारियों से यहां तक कहा कि पापा की हत्या किसी और ने नहीं बल्कि मम्मी ने ही नौकर जितेंद्र उर्फ जीतू बैरवा (मेघवाल) के साथ मिल कर रात में की है. रात में वैभव कमरे से बाहर आना चाहता था मगर कमरा बाहर से लौक था. इस कारण वह वापस जा कर सो गया था.

इसी दौरान मुखबिरों ने भी पुलिस को जानकारी दी. इन सब तथ्यों पर गौर किया गया तो मृतक की पत्नी का किरदार संदिग्ध नजर आया. पुलिस अधिकारियों ने तब उसे पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया.

पुलिस ने रुक्मिणी से कड़ी पूछताछ की. पूछताछ में वह टूट गई. उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस ने अपने प्रेमी व नौकर जितेंद्र उर्फ जीतू बैरवा और एक अन्य हंसराज भील के साथ मिल कर पति की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया. बस, फिर क्या था, पुलिस ने उसी दिन जितेंद्र और हंसराज भील को भी दबोच लिया. थाने ला कर उन से पूछताछ की.

पूछताछ में उन्होंने भी अपना जुर्म कबूल कर लिया.  जितेंद्र ने बताया कि वह पिछले 2 साल से टीचर प्रेमनारायण के घर नौकर था. वह खेतों की रखवाली और खेतीबाड़ी करता था. जितेंद्र को 65 हजार रुपए सालाना तनख्वाह पर रखा हुआ था.

प्रेमनारायण ज्यादातर समय अपनी ड्यूटी पर फतेहगढ़, मध्य प्रदेश में रहते थे. वह 15-20 दिन बाद ही अपने गांव आखाखेड़ी आते थे. प्रेमनारायण की अपनी बीवी से नहीं बनती थी. दोनों में मनमुटाव रहता था. इस कारण रुक्मिणी ने पति की गैरमौजूदगी में अपने नौकर से अवैध संबंध बना लिए थे.

प्रेमनारायण की बड़ी बेटी ने एक दिन अपनी मम्मी और नौकर जितेंद्र को रंगरलियां मनाते देख लिया था. इस कारण वह चिट्ठी लिख कर पापा को अपनी मम्मी की करतूत बताना चाहती थी. मगर यह चिट्ठी उस के छोटे भाईबहनों के हाथ लग गई थी. तब उन्होंने चिट्ठी पढ़ कर छिपा ली.

26 मार्च, 2021 को यह चिट्ठी बच्चों ने पुलिस अधिकारियों को सौंपी. तब जा कर इस घटना की परतें खुलनी शुरू हुईं. प्रेमनारायण को किसी तरह बीवी और नौकर के अवैध संबंधों की खबर लग गई थी. इस कारण वह इन दोनों के बीच राह का रोड़ा बन चुके थे. इस रोड़े को हमेशा के लिए रास्ते से हटाने के लिए रुक्मिणी ने एक योजना बना ली.

फिर जितेंद्र ने 31 वर्षीय हंसराज भील को 20 हजार रुपए दे कर योजना में शामिल कर लिया. हंसराज जितेंद्र का दोस्त था. पुलिस ने मात्र 3 घंटे में ही मास्टर प्रेमनारायण मीणा की हत्या का राजफाश कर दिया.

मृतक के शव का मैडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम करा कर शव परिजनों को सौंप दिया गया. परिजनों ने उसी रोज दोपहर बाद अंतिम संस्कार कर दिया. आखाखेड़ी में मास्टर की मौत से सनसनी फैल गई थी. जिस ने भी बीवी और उस के प्रेमी नौकर की करतूत के बारे में सुना, सन्न रह गया.

आरोपी पुलिस हिरासत में थे, जिन से पुलिस अधिकारियों ने पूछताछ की. पूछताछ में जो घटना प्रकाश में आई, वह इस प्रकार थी.

प्रेमनारायण मीणा अपनी पत्नी रुक्मिणी और 3 बच्चों के साथ जिला बारां के गांव आखाखेड़ी में रहते थे. वह सरकारी अध्यापक थे.

प्रेमनारायण की ड्यूटी इन दिनों मध्य प्रदेश के जिला गुना के फतेहगढ़ में थी. वह महीने में एकाध बार अपने गांव बीवीबच्चों से मिलने आते रहते थे.

प्रेमनारायण जहां शांत स्वभाव के थे तो वहीं उन की बीवी कर्कश स्वभाव की थी. उन की शादी को 20 साल से ज्यादा हो गए थे मगर इतना समय साथ गुजारने के बाद भी मियांबीवी में अकसर झड़प हो जाया करती थी. उन के बच्चे बड़े हो गए थे. मगर दोनों का मनमुटाव कम नहीं हुआ.

रुक्मिणी दिनरात काम कर के थक जाने का रोना रोती रहती थी. तब प्रेमनारायण ने वार्षिक तनख्वाह पर जितेंद्र उर्फ जीतू बैरवा  को 2 साल पहले घर का नौकर रख लिया. जितेंद्र जहां खेतों पर काम करता, वहीं घर पर भी काम करता था. रुक्मिणी और जितेंद्र का रिश्ता मालकिन और नौकर का था. मगर पति के दूर रहने और मनमुटाव के चलते रुक्मिणी शारीरिक सुख से वंचित थी.

जब उसे जितेंद्र नौकर के रूप में मिला तो वह उसे बिस्तर तक ले आई. रुक्मिणी की उम्र 40 साल थी. इस के बावजूद वह अपने से 8 साल छोटे नौकर के साथ सेज सजाने लगी. उस ने नौकर को प्रेमी बना लिया और उस की बांहों में झूला झूलने लगी.

रुक्मिणी की बड़ी बेटी शादी लायक हो गई थी. इस के बावजूद अधेड़ उम्र में उस पर वासना का ऐसा भूत सवार हुआ कि वह जबतब मौका पा कर नौकर जितेंद्र बैरवा के साथ शारीरिक संबंध बनाने लगी.

हत्या के 7 साल बाद मिली आरती – भाग 2

पत्नी आरती की गुमशुदगी की रिपोर्ट सोनू ने थाने में नहीं लिखाई. क्योंकि उसे डर था कि आरती खुद अपने घर से भाग कर आई है. ऐसे में यदि वह पुलिस के पास गया तो एक नई आफत गले लग जाएगी. उस की गुमशुदगी लिखा कर वह कोई मुसीबत मोल नहीं लेना चाहता था. सोनू अपने दोस्तों के साथ आरती को तलाश करता रहा. जब आरती नहीं मिली तो थकहार कर वह मेहंदीपुर बालाजी में एक दुकान पर काम करने लगा.

जेल से बाहर आने के बाद दौसा आ कर सोनू और गोपाल दोनों दुकानों पर काम करने लगे. इस के साथ ही दोनों अपने स्तर से आरती की तलाश भी करते रहे. साल 2021 में सोनू को पता चला कि उस की पत्नी आरती जिंदा है.

हुआ यह कि मेहंदीपुर बालाजी में एक युवक की सोनू के दोस्त गोपाल से मुलाकात हुई. वह युवक भी एक दुकान पर काम करता था. बातों ही बातों में उस युवक ने गोपाल को बताया कि रेबारी समाज के एक घर में उत्तर प्रदेश के जालौन की एक महिला कोर्ट मैरिज कर कुछ सालों से रह रही है. गोपाल को शक हुआ तो उस ने सोनू को यह बात बताई. इस के बाद दोनों दोस्तों ने आरती को तलाशने की योजना बनाई.

सोनू और गोपाल को पता चला कि आरती दौसा के विशाला गांव में दूसरे की पत्नी के रूप में रह रही है. इस जानकारी के बाद सोनू और गोपाल भेष बदल कर कभी सब्जी वाला तो कभी ऊंट गाड़ी चलाने वाला बन कर पहुंचे. इसी दौरान गांव में उन्हें आरती दिखाई दी, जिसे उन्होंने पहचान लिया.

आरती के जिंदा होने की जानकारी दोनों ने 5 फरवरी, 2021 को मेहंदीपुर बालाजी थाने में दी. इस पर पुलिस ने उन से आरती के दस्तावेज मांगे. तब गोपाल और सोनू ने एक योजना बनाई.

सोनू और गोपाल ने एक युवक को स्वच्छ भारत मिशन का कर्मचारी बना कर विशाला गांव के उस घर में भेजा, जहां आरती रह रही थी. यहां इस युवक ने सरकारी योजना के तहत शौचालय बनाने और पैसा देने का झांसा दिया तो घर के लोग लालच में आ गए.

युवक ने कहा, ‘‘योजना का लाभ लेने के लिए घर की महिला मुखिया के दस्तावेज चाहिए.’’

उन्होंने इस योजना के लिए घर की महिला मुखिया के सारे दस्तावेज युवक को दे दिए. इन दस्तावेजों से स्पष्ट हो गया कि महिला कोई और नहीं, बल्कि आरती ही थी. सोनू और गोपाल ने आरती की आईडी भी सरकारी कार्यालय के माध्यम से निकलवाई, जिस में कई महीने लग गए.

पहचानपत्र हाथ लगने और पूरी तरह पुष्टि होने के बाद दोनों बेगुनाहों ने दौसा जिले के बालाजी एसएचओ अजीत बड़सरा से संपर्क कर उन्हें सभी पेपर्स सौंप दिए.

इस के बाद दौसा पुलिस ने वृंदावन थाना पुलिस को सूचना दी. मृत महिला के जिंदा होने की खबर पा कर स्वाट टीम प्रभारी अजय कौशल और वृंदावन थाने के एसएचओ विजय कुमार सिंह सूचना के बाद टीम सहित दौसा पहुंचे.

दोनों पीडि़तों की निशानदेही पर जब पुलिस ने महिला की तलाश की तो वह बैजूपारा थाना क्षेत्र के विशाला गांव में अपने दूसरे पति भगवान सिंह रेबारी  के साथ रहती मिली. 11 दिसंबर, 2022 को विशाला गांव पहुंची टीम के एक सदस्य ने वेरीफिकेशन के लिए अकेले पहुंच कर पहले महिला से बात कर पहचान की पुष्टि की और दस्तावेजों का सत्यापन किया गया. इस के बाद टीम ने दबिश दे कर उसे हिरासत में ले लिया.

उत्तर प्रदेश पुलिस भी आरती को जिंदा देख हैरान रह गई. आरती पिछले 7 सालों से दूसरी शादी कर भगवान सिंह रेबारी के साथ रह रही थी. वृंदावन थाने में 13 दिसंबर, 2022 को आरती को कागजों में दर्ज कर लिया गया.

पुलिस ने उरई में महिला के मातापिता से संपर्क किया. उन्होंने फोटो देख कर उसे पहचानने से इंकार कर दिया. पिता सूरज प्रसाद ने कहा है कि पुलिस ने जिस महिला को पकड़ा है वो उन की बेटी आरती हो ही नहीं सकती, उन की बेटी मर चुकी है. उन का कहना था कि मगोर्रा में जो शव मिला था, उस के बारे में अखबार में पढ़ा था, जिस के बाद वे थाने गए.

पुलिस ने मरी हुई महिला की फोटो दिखाई थी, जिस की उन्होंने बेटी आरती के रूप में शिनाख्त भी की थी. अगर पुलिस पकड़ी गई आरती से आमनासामना कराएगी, तब देख कर बता सकेंगे कि वह उन की बेटी आरती है या कोई और महिला.

इस के बाद पुलिस पिता सूरज प्रसाद गुप्ता व मां उर्मिला को वृंदावन अपने साथ ले आई. देर रात यहां पर आरती के सामने आते ही पिता सूरज प्रसाद ने आखिरकार उसे पहचान लिया. बेटी को जिंदा देख मातापिता की आंखों में आंसू छलक आए. आरती के मातापिता का कहना है कि फोटो देख कर वे आरती को नहीं पहचान सके थे.

आरती की कहानी भी किसी फिल्मी स्टोरी से कम नहीं है. पुलिस को जानकारी देते हुए आरती ने बताया कि दूसरे पति भगवान के साथ शादी किए लगभग 7 साल हो गए हैं. अभी 6 महीने पहले भगवान के छोटे भाई को पता चला कि मेरा पहला पति सोनू और उस का दोस्त गोपाल उसे तलाश रहे हैं. इस के बाद देवर ने उसे नागौर जिले के कुचामन सिटी में रहने वाले एक व्यक्ति को 5 लाख रुपए में बेच दिया.

कुचामन सिटी का रहने वाला वह व्यक्ति आरती को अपने साथ ले गया. अभी 20 दिन पहले ही आरती कुचामन सिटी से भाग कर वापस विशाला गांव अपने दूसरे पति भगवान के पास पहुंची. आरती का कहना था कि वह अपने दूसरे पति भगवान के साथ ही रहना चाहती है.

देवर द्वारा उसे बेच दिए जाने के बारे में उस का कहना था कि मेरा पति ड्राइवर है. वह अकसर घर से बाहर रहता है. उसे धोखे में रख कर देवर ने उसे बेच दिया था. यह हमारे घर का मामला है. हम उसे निपटा लेंगे.

आरती ने पहले पति सोनू पर आरोप लगाते हुए कहा कि सोनू ने उसे छोड़ दिया था. सोनू से शादी बांदीकुई कोर्ट में हुई थी. इस के बाद वह पति सोनू और ननदोई के साथ बाइक से गोवर्धन घूमने गई. 2 दिन बाद तीनों वापस बालाजी पहुंचे. तब सास ने पति सोनू से कहा, ‘‘आरती को घर ले कर मत आना. उसे वहीं छोड़ दे.’’ इस के बाद सोनू ने उसे बालाजी से हिंडौन की बस में बैठा दिया.

हत्यारी पत्नी सपना : कानपुर में मारा पति और ससुर को – भाग 2

करोड़पति परिवार में हुई सपना की शादी

ऋषभ के पिता किशोरचंद्र तिवारी कानपुर शहर के कल्याणपुर के शिवली रोड पर रहते थे. वह उत्तर प्रदेश पुलिस में दरोगा के पद से रिटायर हो चुके थे. उन की पत्नी मधु तिवारी फूड इंसपेक्टर थीं. उन की असमय मौत हो चुकी थी.

किशोरचंद्र व मधु निस्संतान थे. ऋषभ को उन्होंने किसी आश्रम से बचपन में गोद लिया था. उन्होंने ऋषभ को पढ़ालिखा कर योग्य बनाया था. ऋषभ कंप्यूटर का व्यवसाय करता था.

किशोरचंद्र तिवारी की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. वह करोड़पति आदमी थे. शिवली रोड पर उन का तिमंजिला आलीशान मकान था. इस के अलावा कई प्लौट और लखनऊ में भी एक बड़ा प्लौट था. उन का बैंक बैलेंस भी अच्छाखासा था. इस पूरी प्रौपर्टी का वारिस ऋषभ ही था.

पत्नी की मौत के बाद घर संभालने वाला कोई नहीं था. इसलिए वह ऋषभ की शादी को लालायित थे. वह किसी सामान्य परिवार की ब्राह्मण लड़की को बहू बनाना चाहते थे. अत: जब राम औतार पांडेय अपनी बेटी सपना का रिश्ता ले कर आए तो उन्होंने रिश्ते को स्वीकार कर लिया.

इधर सपना को जब पता चला कि उस के घर वालों ने उस का रिश्ता तय कर दिया है, तो वह चिंतित हो उठी. उस ने इस रिश्ते का विरोध भी किया, लेकिन जब मां द्वारा उसे पता चला कि लड़का करोड़पति बाप का बेटा है और सास की भी समस्या नहीं है. वह घर पर एकछत्र राज करेगी तो उस का विरोध बंद हो गया.

उस ने तो तय कर लिया था कि वह ऋषभ से नहीं, उस की दौलत से शादी रचा रही है.

राजकपूर उर्फ राज को जब सपना की शादी तय हो जाने की जानकारी हुई तो उस के आश्चर्य का ठिकाना न रहा. उस ने उसी वक्त फोन पर सपना से बात की और उसे पतारा के रोड किनारे स्थित हनुमान मंदिर पर मिलने को कहा.

कुछ देर बाद सपना मंदिर पहुंची तो राज उस का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. उस ने सपना को अजीब नजरों से देखा फिर पूछा, ‘‘सपना, मैं ने सुना है कि तुम्हारी शादी तय हो गई है?’’

‘‘हां राज, तुम ने सच सुना है.’’

‘‘लेकिन प्यार तो तुम मुझ से करती हो. तुम ने मुझ से शादी रचाने का वादा भी किया था. फिर किसी दूसरे के साथ शादी क्यों रचा रही हो?’’

‘‘राज, यह मेरी मजबूरी है. घर वालों की इज्जत की खातिर मैं ऋषभ से शादी कर रही हूं. वह मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं है. मैं ने शादी का विरोध भी किया था. लेकिन घर वाले नहीं माने.’’

‘‘अब मेरा क्या होगा सपना? मैं तुम्हारे प्यार को सपना समझ कर नहीं भुला पाऊंगा.’’

‘‘राज, तुम परेशान मत हो. मैं जितना प्यार तुम से करती हूं, शादी के बाद भी उतना ही करती रहूंगी. तुम मेरा पहला प्यार हो, जिसे मैं ताउम्र नहीं भुला पाऊंगी. एक वादा मैं तुम से और करती हूं कि शारीरिक मिलन शादी के बाद भी होता रहेगा. इस के लिए मुझे चाहे कोई भी जतन करना पड़े. वैसे भी राज, मैं शादी ऋषभ से नहीं, उस की दौलत से कर रही हूं.’’

शादी के बाद भी बने रहे प्रेमी से संबंध

चूंकि सपना शादी को राजी हो गई थी. इसलिए राम औतार पांडेय ने 22 फरवरी, 2020 को सपना का विवाह ऋषभ तिवारी के साथ धूमधाम से कर दिया. सपना ऋषभ की दुलहन बन कर ससुराल आ गई. ससुराल में सपना को जिस ने भी देखा, उसी ने उस के रूपसौंदर्य की सराहना की. किशोरचंद्र तिवारी भी सुंदर व पढ़ीलिखी बहू पा कर खुश थे.

शादी के बाद बड़े प्यार से सपना और ऋ़षभ ने जिंदगी की शुरुआत की. सपना ने ससुराल आते ही घर संभाल लिया था. उस ने ससुर किशोरचंद्र की सेवा कर उन का भी दिल जीत लिया था. वह सपना पर अटूट विश्वास करने लगे थे. यही कारण था कि उन्होंने सपना को घर की चाबी सौंप दी थी.

सपना ने बैंक में खाता खुलवा लिया था और लाकर भी ले लिया था. इस लाकर में सपना ने शादी में उपहारस्वरूप मिले लाखों रुपए के जेवरात रख दिए थे. इस तरह सपना ने लगभग 70 लाख रुपए की ज्वैलरी पर अपना अधिकार जमा लिया था.

किशोरचंद्र तिवारी बीमार रहते थे. वह शुगर व ब्लडप्रेशर के मरीज थे. सपना उन की सेवा में लगी रहती थी. खानेपीने व दवा देने का खयाल सपना ही रखती.

सपना अपनी इस सेवा के बदले ससुर से कोई न कोई डिमांड करती रहती थी. न चाहते हुए भी किशोरचंद्र को सपना की डिमांड पूरी करनी पड़ती थी. सपना ने अपनी खूबसूरती के लटकेझटके दिखा कर पति ऋषभ को भी अंगुलियों पर नचाना शुरू कर दिया था.

ससुराल में सपना मोबाइल फोन पर अपने प्रेमी राज से अकसर बातें करती थी. बतियाने को ले कर उस का पति ऋषभ उसे टोकता तो बहाना बना देती कि वह अपनी सहेली से बतिया रही थी.

शादी को अभी 6 महीने भी नहीं बीते थे कि राजकपूर सपना की ससुराल आनेजाने लगा. उस ने सपना से शारीरिक रिश्ता भी बना लिया था. वह प्रेमी राज को ऐसे समय बुलाती, जब उस का पति ऋषभ घर से बाहर होता और ससुर गहरी नींद में होते.

किशोरचंद्र के मकान में सुरेंद्र सिंह यादव नाम का एक युवक किराए पर रहता था. उस का घर से कुछ दूरी पर ही आशा मैडिकल स्टोर था. राजकपूर का घर में वक्तबेवक्त आना शुरू हुआ तो उस ने सपना से उस के बारे में पूछताछ की.

सपना ने उसे बताया कि राजकपूर उस का रिश्तेदार है. लेकिन सुरेंद्र सिंह को सपना की बात पर विश्वास नहीं हुआ और वह दोनों की निगरानी करने लगा. इस का परिणाम जल्द ही सामने आ गया. एक दोपहर सुरेंद्र सिंह ने राजकपूर व सपना को रंगरलियां मनाते रंगेहाथों पकड़ लिया.

रौंग नंबर करके शादीशुदा को फांसा – भाग 2

शराबी पति नहीं कर रहा था कद्र

हेमा पति से कहती थी, यदि वह शराब पीना छोड़ दे तो काफी पैसे बच जाएंगे, जिसे जोड़ कर वह अपना घर बना लेंगे. लेकिन सुरेश की दारू पीने की लत नहीं छूट रही थी. न वह यह छोड़ने वाला था.

वह हेमा को समझाता था, ‘‘फैक्ट्री में हाड़तोड़ मेहनत करने के कारण मेरा सारा शरीर बुरी तरह टूटने लगता है. 2 घूंट शराब पीने से मेरी थकान भी उतर जाती है और नींद भी अच्छी आती है. क्या तुम चाहती हो कि मैं शराब छोड़ दूं और थका बदन ले कर घर में पड़ा रहूं?’’

‘‘ना जी, तुम घर में पड़े रहोगे तो घर का खर्च कैसे पूरा होगा, बच्चे कैसे पढ़लिख पाएंगे? तुम शराब पीते हो तो कम पिया करो, इस से तुम्हारी सेहत ठीक रहेगी. मेरा तो बस यही कहना है.’’

‘‘कम तो पीता हूं हेमा. दूसरे शराबियों की तरह इतनी कहां पीता हूं कि पी कर किसी नाली में पड़ा रहूं.’’

‘‘देखो जी, अगर मैं तुम्हारे हाथपांव दबाऊं और रात को तुम्हारा पहलू गरम करूं तो क्या तुम्हारी थकान नहीं उतरेगी.’’ हेमा ने तर्क रखा.

‘‘अब तुम्हारे बदन में वह लोच, वह कसाव कहां रह गया है, जो मुझे पूरी संतुष्टि दे सके. 2 बच्चों की मां बन गई हो हेमा रानी, अब मेरी थकान तुम नहीं उतार सकती.’’ वह हंस कर कहता.

पति की इस बात पर हेमा गुर्रा पड़ती, ‘‘बस, यही मत कहा करो, 2 बच्चों की मां बन गई हूं लेकिन अभी मेरी देह में इतना आकर्षण है कि तुम्हारे जैसे लाखों को मैं पानी पिला सकती हूं और अपने सामने गिड़गिड़ाने को मजबूर कर सकती हूं.’’

सुरेश झेंप जाता, क्योंकि वह जानता था हेमा जो कह रही है, वह सच है. हेमा की देह में वह आकर्षण, वह कसाव अब भी वैसा ही है जैसा शादी के वक्त था. उस के पहले में वह टिक नहीं पाता था, हांफने लगता था. हकीकत जानते हुए भी सुरेश अपना तर्क उलटीसीधा इसलिए रखता था कि हेमा उसे शराब पीने से न रोके.

उधर हेमा पति को लताड़ तो देती लेकिन फिर उस की बात पर सोच में पड़ जाती, ‘क्या सचमुच उस की देह का कसाव और आकर्षण खत्म हो गया है? क्या पति उस से अब संतुष्ट नहीं हो पाता?’

‘ऊंह.’ अपने खयालों को वह जेहन से झटक देती, ‘बकवास करता है सुरेश, 2 बच्चे जन कर वह बूढ़ी थोड़ी हो गई है. अभी तो वह अच्छेअच्छों को पानी पिला सकती है.’

एकाएक उसे सचिन का ध्यान हो आया. सचिन उस की सुरीली आवाज सुन कर फिदा हो गया था.

‘लेकिन सचिन ने उस की आवाज सुनी है, उसे देखा नहीं है. उसे देखने के बाद वह उस से मुंह तो नहीं मोड़ लेगा?’ खुद ही बड़बड़ाती हुई हेमा सोच के भंवरजाल में फंस गई. सचिन ने उस की आवाज ही तो सुनी है, क्या उसे सचिन से मुलाकात कर के यह जान लेना चाहिए कि वह उस की आवाज का ही दीवाना है, क्या उस की देह उसे आकर्षित नहीं कर रही है?

इसे आजमाने के लिए हेमा उतावली हो गई. लेकिन 2 दिन से सचिन का फोन नहीं आया था. क्या वह उसे 2 दिन में ही भूल गया. क्या सचिन ने उस की आवाज की झूठी तारीफ की थी. उस ने 2 दिन से उसे दोबारा फोन क्यों नहीं किया. लेकिन उस ने भी कहां सचिन का नंबर मिलाया, नंबर तो उस के पास है.

उधेड़बुन में फंसी हेमा ने अंत में निर्णय ले लिया कि वह खुद सचिन से आज दोपहर में बात करेगी. वह सुबह जल्दी बिस्तर से उठी, सुरेश का डिब्बा तैयार कर के उसे काम पर भेजा. घर का झाड़ूपोंछा कर के काम निपटाया. फिर बाथरूम में बैठ कर बदन को खूब रगड़रगड़ कर साफ किया. नहाने के बाद इस तरह बनावशृंगार किया, जैसे सचिन से आज ही आमनासामना करेगी.

हेमा से मिलने सचिन पहुंच गया दिल्ली

दोपहर में बच्चों को तैयार कर के स्कूल भेजने के बाद उस ने अंदर से दरवाजा बंद किया और पलंग पर बैठ गई. उस का दिल बहुत तेजी से धड़कने लगा. अपना मोबाइल रुमाल से साफ करने के बाद उस ने सचिन का नंबर निकाला और जब उस का नंबर मिलाया तो उस की अंगुलियां कांप रही थीं.

दूसरी ओर रिंगटोन बजते ही सचिन का उतावला स्वर उभरा, ‘‘मैं तुम्हारे ही फोन का इंतजार कर रहा था हेमा.’’

‘‘अच्छा?’’ हेमा खुश हो कर इतरा उठी. फिर दिखावटी नाराजगी जाहिर करती हुई बोली, ‘‘तुम ने 2 दिन से फोन क्यों नहीं किया?’’

‘‘डरता था हेमा, कहीं तुम मेरे दोबारा फोन करने से नाराज न हो जाओ.’’

‘‘लेकिन परसों तो बारबार फोन कर रहे थे. मैं तब भी तो नाराज हो सकती थी.’’

‘‘सौरी बाबा, मुझे दूसरे दिन ही तुम्हें फोन कर लेना चाहिए था,’’ सचिन अपनी गलती मान कर बोला, ‘‘अब बताओ, फोन कैसे किया?’’

‘‘तुम से बात करने का मन हुआ तो फोन मिला लिया.’’ हेमा आवाज में लोच पैदा कर के बोली.

‘‘बात करने का मन हुआ यानी मिलने का अभी मन नहीं हुआ है?’’ सचिन ने पूछा.

‘‘मिलने का भी मन हो रहा है, लेकिन मथुरा दूर है सचिन, मैं वहां नहीं आ सकती.’’

‘‘मैं दिल्ली आ जाता हूं यार. बोलो, कहां आऊं?’’ सचिन ने उतावलेपन से पूछा.

‘‘आनंद विहार आ जाओ बस से, मैं वहां मिल जाऊंगी.’’ हेमा ने अपनी धड़कनों को नियंत्रित करने की कोशिश कर के कहा.

‘‘मैं कल आ जाता हूं. तुम बताओ, कितने बजे बस अड्डे पर आ सकती हो. मैं उसी के हिसाब से मथुरा से बस पकड़ूंगा हेमा.’’

‘‘दोपहर 3 बजे आ जाना. मैं लाल साड़ी पहन कर आऊंगी. तुम बस से उतर कर मुझे फोन कर लेना, मेरा मोबाइल मेरे हाथ में ही रहेगा.’’

‘‘ठीक है, मैं कल आ रहा हूं.’’ सचिन ने कहा और फोन काट दिया.

हेमा ने खुशी से फोन को चूम लिया. यह मोबाइल उस के लिए लक्की साबित हो रहा था. जो एक चाहत रखने वाले अजनबी को उस के करीब ला रहा था. एक मादक अंगड़ाई ले कर हेमा ने आंखें बंद कर लीं. उस की कल सचिन से मुलाकात होगी, इस बात ने उसे रोमांच से भर दिया था.

हेमा ठीक 3 बजे आनंद विहार बस अड्डे पर पहुंच गई. उस ने लाल रंग की रेशमी जरी वाली साड़ी ब्लाउज पहना था. बालों का जूड़ा बना कर एक लट अपने माथे पर बिखेर दी थी. हाथ में अपना सफेद पर्स लटका कर वह उस गेट पर आ कर खड़ी हो गई जो मुख्य सड़क की ओर था. उस के हाथ में मोबाइल फोन था जिस पर सचिन की काल आने का उसे बेचैनी से इंतजार था.

मां-बाप के हत्यारे संदीप जैन को सजा-ए-मौत – भाग 2

‘‘सामाजिक तानाबाना एक सूत्र में पिरोया रहे, ऐसे में न्यायालयों का भी दायित्व है तथा ऐसे प्रकरणों में न्यायालयों से भी अपेक्षा होती है कि इस प्रकार की निर्दयी मानसिकता रखने वाले आरोपी को उदाहरणस्वरूप कठोर से कठोर दंड से दंडित किया जाए. आरोपी का अपराध प्लानिंग के तहत एवं संपूर्ण मानव समाज के लिए रोंगटे खड़ा कर देने वाला कृत्य है.

‘‘इसीलिए जन्मदाता की हत्या करने वाले आरोपी बेटे संदीप जैन को मृत्युदंड से दंडित किया जाना एकमात्र उचित व पर्याप्त दंड होगा. यह अदालत संदीप जैन को उस के क्रूरतम कार्य का दोषी करार देते हुए मृत्युदंड की सजा सुनाती है. इस कृत्य में संदीप जैन को हथियार देने वाले भगत सिंह गुरुदत्ता और शैलेंद्र सागर को 5-5 साल की कठोर सजा दी जाती है.’’

माननीय न्यायाधीश अपना फैसला सुनाने के बाद अपनी कुरसी से उठ गए.

पहली जनवरी, 2018 को संदीप जैन ने अपनी मां और पिता की बड़ी निर्ममता से हत्या कर दी थी. 5 साल बाद कोर्ट ने अपने 310 पेज के फैसले में संदीप जैन को दोषी करार दे कर मृत्युदंड दिया. इस जघन्य हत्याकांड की गूंज पूरे देश में सुनाई दी थी.

रावतमल जैन कौन थे और किस तरह उन की और उन की पत्नी की हत्या की गई, यह जानने के लिए हमें अतीत में जाना होगा.

रावतमल जैन एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. उन की और पत्नी सूरजी देवी की हत्या का प्रकरण काफी दिनों तक इलेक्ट्रौनिक्स और प्रिंट मीडिया में चर्चा का विषय बना रहा था, लेकिन पुलिस ने पूरी मुस्तैदी दिखाते हुए अपराधी को धर दबोचा था. आज वह कानून के कटघरे में खड़ा था.

जानेमाने समाजसेवी और साहित्यकार थे रावतमल जैन

रावतमल जैन का जन्म मध्य प्रदेश के जिला दुर्ग में 4 जनवरी, 1938 को साजा तहसील के गांव परसबोड़ में हुआ था. उन के परिवार में पत्नी सूरजी देवी, एक बेटा संदीप और एक बेटी थी.

रावतमल जैन काफी धनी व्यक्ति थे. उन का काफी मानसम्मान था. वह एक समाजसेवी होने के साथसाथ नगपुरा तीर्थ पर उव सग्गहर पार्श्वतीर्थ के प्रमुख ट्रस्टी तथा सामाजिक गतिविधियों की तरह हिंदी की शिक्षा देने, भाषा साहित्य का प्रचारप्रसार करने, ग्रामीण क्षेत्रों में हिंदी भाषा के विस्तार के लिए पठन केंद्रों की स्थापना सहित दरजनों कार्य करते थे.

रावतमल जैन एक प्रसिद्ध साहित्यकार भी थे, उन्होंने 108 कृतियों की रचना की है, जिस में 8 काव्य संग्रह, 12 कहानियां संग्रह, 27 आयुर्वेद, समाजशास्त्र, राजनीति व विधि विषयक पुस्तकों के साथ जैन साहित्य और अनेक किताबों का संपादन भी किया है.

इकलौता बेटा होने के कारण संदीप शुरू से ही काफी लाड़प्यार में पला. अपनी हर बात मांबाप से मनवा लेने के कारण वह काफी जिद्दी भी हो गया था.

रावतमल जैन चाहते थे कि संदीप भी उन की तरह एक प्रसिद्ध समाजसेवी व्यक्ति बने, लेकिन संदीप का रुझान इस में नहीं था. वह इश्कविश्क, यारीदोस्ती में ही ज्यादा उलझा रहता था. पैसों की बरबादी करने में उसे बहुत आनंद आता था. रावतमल ने उसे जब बेकार के खर्च के लिए पैसे देने कम किए तो संदीप ने पिता से पैसा वसूलने के लिए दूसरा रास्ता अख्तियार कर लिया.

पिता की रुचि साहित्य की ओर थी, इसलिए संदीप ने शहर में कवि सम्मेलन करने के लिए कवियों को आमंत्रित करना शुरू कर दिया. वह मंच लगाता और उन पर कवियों का काव्य पाठ करवाता. श्रोताओं की भीड़ जुटती, लेकिन उन से कुछ हासिल होना नहीं था. इस के लिए वह पिता की पौकेट ढीली करवा लेता. तर्क देता कि इस प्रकार मंच पर कवि सम्मेलन कर के वह साहित्य की ओर धीरेधीरे अपने कदम बढ़ा रहा है.

पिता रावतमल जैन समझते कि बेटे ने अच्छी राह पकड़ ली है, वह संदीप को कवि सम्मेलन का मंच सजाने के लिए खर्चा दे देते. संदीप थोड़ाबहुत खर्च करता, बाकी जेब में सरका कर मौजमस्ती करता. अब रोजरोज तो कवि सम्मेलन होगा नहीं, यह सोच कर रावतमल जैन ने अपने घर के बाहरी कमरे में संदीप को एक साडि़यों की दुकान खुलवा दी.

रावतमल जैन चाहते थे, संदीप किसी भी तरह अच्छी राह पकड़ ले, ताकि वह उस की शादी कर सकें. बेटी बड़ी हो गई थी, इसलिए उन्होंने उस के हाथ पीले कर के उसे उस की ससुराल विदा कर दिया.

संदीप को दुकान पर खरीदारी करने आई सुधा से हो गया था प्यार

संदीप साड़ी की दुकान कभी खोलता, कभी नहीं. एक दिन वह साड़ी की दुकान पर बैठा मोबाइल पर अपने दोस्त से बात कर रहा था, तब एक महिला अपनी बेटी के साथ साड़ी खरीदने के लिए आई.

महिला के साथ आई उस की बेटी गोरी और तीखे नाकनक्श वाली थी, उम्र 21-22 साल के आसपास होगी. युवती ने हरे रंग का सलवारसूट पहन रखा था. उस के चेहरे पर हलकी मुसकान थी.

पहली नजर में ही संदीप उस पर मर मिटा. उस ने मुसकरा कर दोनों मांबेटी का स्वागत करते हुए कहा, ‘‘गरमी बहुत है, आप बैठिए, मैं आप लोगों के लिए ठंडा ले कर आता हूं.’’

‘‘अरे बेटा, उस की क्या जरूरत है.’’ महिला ने जल्दी से कहा, ‘‘तुम हमें बस साडि़यां दिखला दो.’’

‘‘वह तो मैं दिखलाऊंगा ही मांजी, लेकिन पहले आप को ठंडा पिलाऊंगा. देखिए आप दोनों पसीने से तरबतर हो रही हैं.’’ कहने के बाद संदीप तेजी से बाहर निकला और घर में से कोल्डड्रिंक ले कर तुरंत वापस आ गया.

वह महिला उस की इस रिस्पेक्ट पर बहुत खुश और प्रभावित थी. कोल्डड्रिंक दोनों को देने के बाद संदीप अपनी गद्दी पर बैठ गया. उस की नजर उस युवती पर ही थी.

उस ने देखा कि युवती उसे चोर नजरों से देख रही है. संदीप के दिल की धड़कनें बढ़ गईं. उस की नजरें उस युवती की नजरों से टकराईं तो युवती ने शरमा कर नजरें झुका लीं. संदीप भी मुसकरा पड़ा.

कोल्डड्रिंक पी लेने के बाद संदीप ने उस महिला को साडि़यां दिखलाईं. 2 साडि़यां पसंद कर के उस ने बिल चुकता किया. इस बीच युवती खामोश बैठी रही थी. वह अब भी चोर नजरों से संदीप की ओर देख रही थी.

‘‘बेटा, तुम्हारी दुकान में फ्रैश होने के लिए टायलेट नहीं है क्या?’’ उठतेउठते महिला ने पूछा.

‘‘है न!’’ संदीप जल्दी से बोला, ‘‘आप मेरे साथ आइए.’’

प्यार में कुलांचें भरने की फितरत – भाग 2

सरोजनी को घर में हर सुख नसीब था, लेकिन पति की सैक्स के प्रति कमी उसे खलती थी. वह हर रात पति की बांहों का हार बनना चाहती थी, पर ललित उस से दूर भागता था. दरअसल, ललित मेहनती था. वह सुबह से 12 बजे तक किराने की दुकान चलाता था. उस के बाद खेतों पर चला जाता था फिर शाम को ही घर लौटता था.

अंकुर से लड़ गए नैना

दिन भर की मेहनत से वह इतना थक जाता था कि उसे चारपाई ही सूझती थी. ललित रात में खर्राटें भरता रहता और सरोजनी गीली लकड़ी की तरह सुलगती रहती.

ललित पासवान का एक दोस्त था अंकुर श्रीवास्तव. वह तुलसियापुर में ही ललित के घर से कुछ दूरी पर रहता था. अंकुर की विधनू कस्बे में सिलाई मशीनों की दुकान थी. वह नई मशीन तो बेचता ही था, पुरानी सिलाई मशीनों की मरम्मत भी करता था.

अंकुर मजाकिया स्वभाव का था. ललित को जब भी फुरसत मिलती तो वह अंकुर की दुकान पर पहुंच जाता था. वहां दोनों साथ खातेपीते और खूब बातें करते. ललित पहले शराब नहीं पीता था. अंकुर की संगत ने ही उसे शराब का लती बना दिया था.

सरोजनी सिलाई मशीन चलाती थी. वह अपने घर के कपड़े घर पर ही सिल लेती थी. एक दिन उस की मशीन खराब हो गई तो उस ने पति से मशीन मरम्मत कराने की बात कही. ललित ने तब मरम्मत के लिए अंकुर को बुलवा लिया.

ललित की दूसरी शादी के बाद अंकुर उस दिन पहली बार ललित के घर आया था. उस ने रूपयौवन से लदी हुई ललित की दूसरी पत्नी सरोजनी को देखा तो वह उस की आंखों में बस गई.

सिलाई मशीन ठीक होने के बाद सरोजनी अंकुर को पैसे देने लगी, तो अंकुर ने पैसे नहीं लिए. उस ने कहा, ‘‘भाभी, ललित भैया हमारे दोस्त हैं, फिर पैसे किस बात के. आप बहुत सुंदर है. एक बार देख कर मुसकरा देंगी तो हम समझेंगे कि पैसा मिल गया.’’

अपने रूप की तारीफ सुन कर सरोजनी अंकुर को गौर से निहारने लगी. फिर मुसकरा कर अपना सिर नीचे कर लिया. दिल में सरोजनी को बसा कर अंकुर भी वहां से चला गया. इस के बाद अंकुर और ललित जब कभी मिलते, ललित उसे घर ले आता. अंकुर चाहता भी यही था.

सरोजनी को आकर्षित करने के लिए वह कभी उस के लिए साड़ी ले आता तो कभी साजशृंगार का सामान. थोड़ी नानुकुर के बाद सरोजनी उस के गिफ्ट स्वीकार कर लेती. ललित को खुश करने के लिए वह उस के साथ शराब पार्टी करता था.

अंकुर श्रीवास्तव की आमदनी अच्छी थी, इसलिए वह खूब खर्च करता था. कभीकभी वह सरोजनी को भी हजार, 2 हजार रुपए दे देता था. इस तरह सरोजनी का झुकाव उस की तरफ होता गया.

दरअसल, सरोजनी पति से असंतुष्ट रहती थी. अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए उसे किसी मर्द की तलाश थी. इसलिए वह अंकुर की ओर आकर्षित होने लगी. वह अपने हावभाव से उसे रिझाने भी लगी.

जून की तपती दोपहर में एक दिन अंकुर सरोजनी के घर पहुंचा. उस समय सरोजनी घर पर अकेली थी. ललित किराने का सामान लेने कानपुर गया था और उस की बेटी अनन्या अपनी ननिहाल गई थी. सरोजनी उस समय कमरे में अकेली सो रही थी. गरमी अधिक होने की वजह से सरोजनी सिर्फ पेटीकोट व ब्लाउज पहने हुई थी. आसपास सन्नाटा पा कर अंकुर सरोजनी के घर पहुंचा तो उस का कमरा बंद था. मगर खिड़की खुली हुई थी.

बेलिबास में हुए बेहया

अंकुर ने खिड़की से कमरे में झांका तो अस्तव्यस्त कपड़े में सो रही सरोजनी को देख कर वह बेकाबू हो उठा. पेटीकोट से बाहर झांकती सरोजनी की अधखुली टांगें तथा उफनते वक्ष देख कर अंकुर की धड़कनें बढ़ गईं. उस ने दरवाजा खटखटाया तो सरोजनी की आंखें खुल गईं.

सरोजनी ने जैसे ही दरवाजा खोला, सामने मंदमंद मुसकराते अंकुर को देख कर वह शर्म से चारपाई की तरफ बढ़ी. उस ने चारपाई पर पड़ी साड़ी लपेटनी चाही, पर अंकुर ने उस की साड़ी एक तरफ फेंक कर दरवाजा भीतर से बंद कर लिया. इस के बाद सरोजनी को अपनी बांहों में भर कर बोला, ‘‘कब तक तरसाओगी भाभी?’’

इस के बाद अंकुर ने सरोजनी के बदन को चूमना शुरू कर दिया. सरोजनी ने उस का कोई विरोध नहीं किया तो अंकुर ने उस के बचे हुए कपड़े भी उतार दिए. सरोजनी भी उस से लिपट गई और चंद मिनटों में उन्होंने सारी मर्यादाएं तोड़ दीं. इस के बाद अवैध संबंधों का यह खेल आए दिन खेला जाने लगा.

ललित अपनी पत्नी सरोजनी पर अटूट विश्वास करता था. वह पत्नी के प्रेम प्रसंग से बिलकुल अंजान था. लेकिन उस के बगल में रहने वाले भाई राजेश व उस की पत्नी अंजू को अंकुर का देरसवेर सरोजनी के घर आना खलने लगा था. राजेश ने इस बाबत ललित को टोका और दोनों में मुंहाचाही भी हुई. अंजू ने भी जेठानी को घर की इज्जत संभाल कर रखने की नसीहत दी.

अंकुर के देरसवेर घर आने के बाबत जब ललित ने सरोजनी से सवालजवाब किए तो सरोजनी बिफर पड़ी, ‘‘क्या मैं तुम्हें बदचलन लगती हूं? जिन के पति अधिक उम्र के और दूसरी पत्नी ब्याह कर लाते हैं, उन पर ऐसे ही लांछन लगाए जाते हैं. यदि उन से कोई मर्द हंसबोल ले तो बदचलन कही जाने लगती है. मैं भी तुम्हारी दूसरी पत्नी हूं. तुम्हारा दोस्त अंकुर हंसबोल लेता है तो लोग बदचलन कहने लगे हैं.’’

सरोजनी यहीं नहीं रुकी. उस ने देवर राजेश व देवरानी अंजू को भी आड़ेहाथों लेते हुए कहा, ‘‘वे दोनों तुम्हारी खुशहाल जिंदगी में आग लगाना चाहते हैं. वे तो चाहते ही नहीं थे कि तुम दूसरी ब्याह कर लाओ. ताकि अनन्या की शादी के बाद घरजमीन पर उन का कब्जा हो जाए. तुम दरदर की ठोकरें खाते फिरो.’’

ललित को लगा कि सरोजनी सोलह आना सच कह रही है. अत: उस ने पत्नी पर लगे बदचलनी के इल्जाम को दरकिनार कर दिया. अंकुर को ले कर दोनों भाइयों में अकसर कहासुनी होने लगी थी. दोनों में कभीकभी बात इतनी बढ़ जाती कि नौबत मारपीट तक आ जाती थी. सरोजनी और अंजू के बीच भी कलह शुरू हो गई थी. तूतूमैंमैं के बाद दोनों में महीनों बोलचाल बंद हो जाती थी.