बीवी ने मरवाया अमीर पति को – भाग 2

रामखेलावन का आनाजाना पूनम की ससुराल में बढ़ा तो पूनम की सास माधुरी के कान खड़े हुए. उन्होंने फोन पर अमित से बात की और बहू व बच्चों को मुंबई अपने साथ ले जाने की सलाह दी. अमित मां का इशारा समझ चुका था, अत: वह पूनम व बच्चों को अपने साथ मुंबई ले आया.

मुंबई आ कर पूनम कुछ महीने तक पति के साथ खुश रही, उस के बाद फिर से उसे जीजा की याद सताने लगी.

चूंकि रामखेलावन भी साली के इश्क में अंधा था, सो पत्नी से बहाना कर वह मुंबई पहुंच गया. पूनम उसे देख कर चहक उठी. अमित भी साढ़ू को आया देख कर खुश हुआ. लेकिन मन में फांस भी चुभी कि वह साली से मिलने इतना लंबा सफर कर आ गया.

पूनम और रामखेलावन जब हंसतेबतियाते तो अमित विरोध नहीं करता. अमित ने कई बार पूनम को उस की हरकतों के लिए आगाह किया किंतु वह हर बार अमित को अपनी लगीलपटी बातों से फुसला लेती.

अमित खून का घूंट पी कर दिन काट रहा था. लेकिन पूनम पर अमित की इन बातों का कोई असर नहीं हुआ.

एक रोज अमित गुप्ता कारखाने से थकाहारा घर लौटा. उस ने घर के भीतर कदम रखा तो वह हैरान रह गया. भरी दोपहर में पूनम और रामखेलावन रंगरलियां मना रहे थे. कमरे का दरवाजा भीतर से बंद था. अमित के तनबदन में आग सी लग गई. उस ने उसी समय पूनम को भलाबुरा कहा और पिटाई भी कर दी. उस ने साढ़ू रामखेलावन को भी खूब लताड़ा और उसी समय घर से भगा दिया.

इस के बाद जीजा से नाजायज रिश्तों को ले कर अमित व पूनम में तकरार व मारपीट होने लगी. जिस दिन अमित पूनम को जीजा से फोन पर बतियाते सुन लेता, उस दिन वह उस की पिटाई कर देता. कई बार तो वह गुस्से में पूनम का मोबाइल फोन भी तोड़ कर फेंक चुका था.

घर में कलह शुरू हुई तो पतिपत्नी के रिश्तों में भी दरार पड़ गई. अब वे दोनों हफ्तों एकदूसरे से बात नहीं करते थे. बच्चे भी सहमेसहमे रहते. अमित का लगाव अब पत्नी से कम हो गया था. महीनों उन का शारीरिक मिलन नहीं होता था.

मुंबई में भी खरीद ली अच्छीखासी प्रौपर्टी

अमित को जब पत्नी से नफरत हो गई तो उस का मन भटकने लगा. वह अपने घर बिंदकी जल्दीजल्दी आने लगा. घर आतेजाते ही उस के मधुर संबंध परिवार की एक सजातीय महिला से बन गए. इस महिला से वह फोन पर भी बतियाने लगा था.

अमित गुप्ता ने अब तक अकूत संपत्ति हासिल कर ली थी. उस ने भिवंडी (मुंबई) में 6 फ्लैट खरीद लिए थे और करोड़ों का मालिक बन बैठा था. इन में से उस ने एक फ्लैट 40 लाख रुपए में बेच कर बिंदकी कस्बा के महाजनी गली में तीन मंजिला एक आलीशान मकान बना लिया था. इस मकान में अमित की मां माधुरी देवी व विधवा बहन अनीता अपने बच्चों के साथ रहने लगी थी.

पूनम को फ्लैट बेच कर कस्बे में मकान बनवाना नागवार लगा था. उस ने विरोध भी किया, लेकिन अमित ने उस की एक न सुनी. मकान बनवाने को ले कर दोनों के बीच महीनों झगड़ा चलता रहा.

एक रोज अमित किसी युवती से फोन पर रसीली बातें कर रहा था. पूनम ने उस की बातें सुनीं तो उस का माथा ठनका. क्या अमित के किसी महिला से नाजायज संबंध हैं. बात करने के बाद अमित बाथरूम गया तो पूनम ने उस का फोन चैक किया. वह जिस नंबर से बात कर रहा था, वह अर्चना के नाम सेव था. अमित बाथरूम से निकला तो उस ने आंखें नचा कर पूछा, ‘‘परी के पापा, यह अर्चना कौन है? इस से तुम्हारा क्या नाता है?’’

‘‘क्या करोगी जान कर? है कोई जिस से मैं अपनी बात कह लेता हूं. खैर छोड़ो, तुम बताओ, तुम्हें क्या परेशानी है?’’

‘‘मैं तुम्हारी पत्नी हूं. मुझे पूरा हक है यह जानने का कि मेरी सौतन बनने की कौन कोशिश कर रही है?’’

‘‘क्या तुम पति धर्म निभा रही हो?’’ अमित ने व्यंग्य कसा.

‘‘तुम्हारे बच्चों की देखभाल कर रही हूं. उन्हें पढ़ालिखा रही हूं. यह पति धर्म नहीं तो और क्या है?’’

‘‘चुप भी करो. मेरा मुंह मत खुलवाओ. वरना घर में कलह होते देर न लगेगी.’’

पूनम ने ठान लिया था कि वह पता लगा कर ही रहेगी कि यह अर्चना कौन है. पति के उस के साथ क्या ताल्लुकात हैं. इस की जानकारी के लिए वह बच्चों को साथ ले कर मुंबई से अपनी ससुराल बिंदकी आ गई. यहां उस ने गुप्तरूप से जानकारी हासिल की तो पता चला कि अर्चना परिवार की ही युवती है.

लेकिन पूनम नहीं मानी. वह जीजा रामखेलावन के घर चमनगंज गई और आंसू बहा कर अपनी व्यथा बताई. रामखेलावन के घर उस समय अविनाश यादव उर्फ उमेंद्र भी मौजूद था. वह कानपुर के गांव बीरनखेड़ा का रहने वाला था. वह दबंग और लोडर चालक था. अपराधियों से उस की जानपहचान थी. रामखेलावन का वह दोस्त था और उस के घर उस का आनाजाना बना रहता था.

रामखेलावन के घर पर ही पूनम और अविनाश की पहली मुलाकात हुई. खूबसूरत पूनम को देख कर अविनाश पहली ही नजर में उस का दीवाना बन गया. उस ने पूनम से उस का मोबाइल फोन नंबर लिया और उसे मदद का आश्वासन दिया.

कहते हैं कि औरत जब फिसलती है तो वह फिसलती ही चली जाती है. यही पूनम के साथ भी हुआ. जीजा से उस का नाजायज रिश्ता पहले से ही था. अब उस ने जीजा के दोस्त अविनाश उर्फ उमेंद्र के साथ भी अवैध संबंध बना लिए थे.

लगभग एक महीने बाद अमित बिंदकी घर आया तो उसे पत्नी के नए आशिक अविनाश उर्फ उमेंद्र के बारे में पता चला. अमित उद्योगपति था. लड़ाईझगड़े से उस का ही नुकसान होता, अत: उस ने अविनाश से उलझना उचित नहीं समझा और पत्नी व बच्चों को साथ ले कर मुंबई आ गया.

पति की ‘वो’ से पूनम की बढ़ी चिंता

वापस मुंबई आने के बाद पूनम ने कुछ दिन तो ठीक से बिताए. इस के बाद वह फिर पुराने ढर्रे पर उतर आई. वह देर रात तक अपने जीजा व नए आशिक अविनाश से बतियाती और खूब हंसीठिठोली करती.

अमित कभी तो अनसुनी कर देता तो कभी गुस्से में आगबबूला हो जाता. इस के बाद पतिपत्नी में झगड़ा शुरू हो जाता. पूनम उलाहना देती जब तुम महिला मित्र से बात कर सकते हो तो वह पुरुष मित्र से बात क्यों नहीं कर सकती.

जेठ के चक्कर में पति की हत्या- भाग 2

मनमोहन दास जिला कामरूप मेट्रो, असम के रहने वाले थे. उन के 2 बेटे थे. बड़ा तपन और छोटा उत्तम. उत्तम ने रूपा से लवमैरिज की थी. रूपा उन महिलाओं की तरह थी, जो कभी एक मर्द के पल्ले से बंध कर नहीं रहतीं.

उत्तम से लव मैरिज के बाद रूपा को अहसास हुआ कि उस ने गलत और ठंडे व्यक्ति से शादी की है. रूपा चाहती थी कि उसे पति रात भर बांहों में भर कर मथता रहे. मगर उत्तम में इतना दमखम नहीं था.

ऐसे में जब कई महीनों तक भी रूपा के बदन की आग मंद नहीं पड़ी तब उस के कदम बहक गए. उस ने घर में ही अपने जेठ तपन दास पर ध्यान देना शुरू कर दिया. तपन उस से उम्र में 10 साल बड़ा था, मगर वह था गबरू. हृष्टपुष्ट तपन ने छोटे भाई की पत्नी रूपा को अपनी तरफ ताकते व मूक आमंत्रण देते देखा तो वह आशय समझ गया.

एक रोज घर में जब कोई नहीं था तो तपन ने रूपा को अपनी मजबूत बांहों में भर लिया. रूपा ने कुछ प्रतिक्रिया नहीं की, तो तपन का हौसला बढ़ गया. वह उसे बिस्तर पर ले गया. तब दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं.

वैसे तो रूपा तपन की बहू लगती थी. मगर उन दोनों ने जेठ बहू के रिश्ते को कलंकित कर के एक नया रिश्ता बना लिया था, अवैध संबंधों का रिश्ता. एक बार दोनों के बीच की मर्यादा रेखा टूटी तो वे अकसर मौका निकाल कर हसरतें पूरी करते रहे.

तपन उदयपुर, राजस्थान स्थित एक कंपनी में नौकरी करता था. वह छुट्टी पर घर आता तो रूपा के इर्दगिर्द ही मंडराता रहता था. दोनों एकदूसरे से खुश थे. मगर कभीकभार उन का मन होने पर भी उत्तम के होने की वजह से संबंध नहीं बना पाते थे. ऐसे में उन्हें उत्तम राह का कांटा दिखने लगा.

उत्तम दास वहीं कामरूप में ही काम करता था. कई साल तक रूपा और तपन के बीच यह खेल चोरीछिपे चलता रहा. घरपरिवार में किसी को भनक तक नहीं लगी थी.

तपन की उम्र 50 वर्ष की हो गई थी फिर भी वह बिस्तर का अच्छा खिलाड़ी था. रूपा ने तय कर लिया कि वह उत्तम को रास्ते से हटवा कर उस की पैतृक संपत्ति एवं इंश्योरेंस के पैसे से तपन के साथ ताउम्र मौज करेगी.

उस ने अपनी योजना प्रेमी जेठ तपन को बताई तो वह बहुत खुश हुआ. वह भी यही चाहता था. सन 2020 में कोरोना के कारण कामधंधा बंद हो गया था. तपन उदयपुर से अपने घर कामरूप लौट आया.

जब कामधंधा शुरू होने वाला था तब तपन ने अपने भाई उत्तम से कहा, ‘‘उत्तम, यहां काम नहीं है. मैं ने तेरे लिए उदयपुर स्थित अपनी कंपनी में बात की है. तुम वहां जा कर साइट देख लो. पसंद आए तो वहीं काम करना.’’

उत्तम को बड़े भाई की बात बात जंच गई. वह अगले दिन ही उदयपुर के लिए निकल पड़ा. तपन ने इस से पहले रूपा के साथ मिल कर उत्तम की कहानी खत्म करने की योजना बना ली थी.

रूपा ने तपन को साढ़े 12 लाख रुपए दे कर कहा था कि पति जिंदा नहीं लौटना चाहिए. तपन अपने भाई से मोबाइल के जरिए कांटैक्ट में रहा. तपन ने उदयपुर में अपनी पहचान के राकेश लोहार को फोन कर के कहा, ‘‘एक आदमी जयपुर आ रहा है. उसे गाड़ी में ले जा कर उस का काम तमाम कर देना. तुम्हें साढ़े 12 लाख रुपए दे दूंगा.’’

‘‘ठीक है तपन भाई. उस का मोबाइल नंबर दे दो. मैं मिलता हूं और उस का खेल खत्म कर दूंगा.’’ राकेश लोहार ने भरोसा दिया.

राकेश लोहार ने उत्तम का मोबाइल नंबर ले लिया. राकेश ने अपने 4 साथियों सुरेंद्र, संजय, अजय व जयवर्द्धन को पूरी बात बता कर कहा कि एक दिन में 2-2 लाख रुपए मिलेंगे. राकेश ने खुद साढ़े 4 लाख रुपए रखे.

सब दोस्त गाड़ी ले कर जयपुर पहुंच गए. मोबाइल पर उत्तम से संपर्क कर उसे गाड़ी में बिठा लिया. उधर तपन भी असम से फ्लाइट पकड़ कर उदयपुर आ गया. ये लोग जयपुर से उदयपुर तक मौका नहीं मिलने के कारण उत्तम को मार नहीं सके. ये लोग उदयपुर आ गए. उन से तपन भी आ मिला. इस के बाद शराब में नींद की गोलियां डाल कर उत्तम को रास्ते में ही पिला कर नींद की आगोश में पहुंचा दिया.

प्यार से निकला नफरत का दर्द – भाग 2

30 वर्षीय रविंद्र महतो उर्फ रवि मूलरूप से झारखंड के गुमला शहर में स्थित गुमला थाने के अंतर्गत पतिया मोहल्ले का रहने वाला था. पत्नी पूनम और 2 बच्चे यही उस का परिवार था. अपने इस छोटे से परिवार में वह बेहद खुश था. प्राइवेट नौकरी थी, जितना कमाता था उस से परिवार का पालनपोषण आराम से हो जाता था.

जिस गांव में रविंद्र रहता था, उसी में कौशल्या भी रहती थी. वह विधवा थी. उस के पति की अज्ञात बीमारी से मौत हो चुकी थी. यह बात रविंद्र को पता थी.

जवानी में ही कौशल्या के सिर से पति का साया उठ गया था, यह बात रविंद्र को बहुत खलती थी. खलती इसलिए भी थी क्योंकि कौशल्या का पति उस के बचपन का दोस्त था. एक साथ पलेबढ़े और खेलेकूदे फिर वही उस का साथ छोड़ कर चल गया, यह बात सोचसोच कर रविंद्र का मन दुखी हो जाता था तो कौशल्या कितना दुखी होती होगी, इस की कल्पना ही की सकती है.

कौशल्या के जख्म पर सहानुभूति का मरहम लगातेलगाते कब रविंद्र खुद घायल हो गया, उसे पता ही नहीं चला. उसे अहसास तब हुआ जब वह कौशल्या से अलग होता था. वह उसे अपने आसपास होने को महसूस करता था. वह जब उस के पास नहीं होती थी तो उस के लिए बेचैन सा रहता था. यानी उसे कौशल्या से प्यार हो गया था.

कौशल्या एक विधवा थी. रविंद्र महतो के उस के प्रति आकर्षित होने की बात पता चल चुकी थी. वह यह भी जानती थी कि रविंद्र शादीशुदा है और उस के 2 बच्चे भी हैं. वह भी खुद को रोक नहीं सकी और उस की बांहों में झूल गई. दोनों ने एकदूसरे से अपने प्रेम का इजहार कर दिया.

जब से दोनों ने अपने प्यार का इजहार किया था, तब से इन के बीच शरमोहया मिट गई थी. रविंद्र महतो यह भी भूल गया था कि वह शादीशुदा है. उस का अपना घरपरिवार है. पत्नी को जब उस के इश्क के बारे में पता चलेगा तो उस के दिल पर क्या बीतेगी, उसे कितना दुख पहुंचेगा. विधवा कौशल्या के प्यार में रविंद्र इस कदर अंधा हो चुका था कि जागतेसोते, उठतेबैठते, खातेपीते हर घड़ी उसे सिर्फ कौशल्या ही नजर आ रही थी.

एक दिन की बात है. रात के करीब 8 बज रहे थे. कौशल्या घर में अकेली थी. खाना पका कर किचन से हाथमुंह धो कर कमरे में चारपाई पर जा कर बैठी थी कि तभी रविंद्र कहीं से घूमते हुए पहुंच गया था.

‘‘अरे, इतनी रात गए यहां? लोग देखेंगे तो क्या सोचेंगे?’’ कौशल्या उसे देखते ही हैरत से बोली.

‘‘लोग देखेंगे तो क्या सोचेंगे? जो सोचेंगे उन्हें सोचने दो. मुझे इस से क्या लेनादेना?’’ रविंद्र ने पलट कर जवाब दिया, ‘‘मैं ने किसी के सोचने का ठेका ले रखा है क्या? मैं तो अपने प्यार से मिलने आया हूं.’’ रविंद्र ने जवाब दिया.

‘‘ठीक है तो मैं ने तुम को यहां आने से कब रोका है. तुम्हारे लिए मेरे दिल और घर दोनों के दरवाजे हमेशा खुले हैं. मैं तो यह कह रही थी…’’

‘‘क्या कह रही थी मेरी जान…’’ रविंद्र आशिकी भरे शब्दों में बोला, ‘‘इन सुरमई आंखों में डूब जाने का जी चाहता है.’’

‘‘तो डूब जाओ,’’ कौशल्या रविंद्र की आंखों में झांकती हुई बोली, ‘‘किस ने रोका है, ये दिल भी तुम्हारा है, ये जिस्म भी तुम्हारा. जिस्म का अंगअंग तुम्हारा है. डूब जाओ और मेरे जलते बदन को अपने प्यार की ठंडी फुहार से शांत कर दो.’’

कहती हुई कौशल्या बिस्तर पर बिछती गई. प्रेमिका की नशीली बातों से रविंद्र के जिस्म में पहले ही आग लग चुकी थी. उस के जिस्म को स्पर्श करते ही रविंद्र के जिस्म में झुरझुरी सी दौड़ पड़ी. दिल जोरजोर से धड़कने लगा जैसे सीने से उछल कर बाहर आ जाएगा.

धीरेधीरे रविंद्र कौशल्या के गदराए जिस्म पर बिछता गया. थोड़ी देर में दोनों सामाजिक मर्यादा को तोड़ते हुए प्रेम के समंदर में डूब गए. जब होश आया तो दोनों के वासनायुक्त जिस्म में ठंडक पड़ चुकी थी. एकदूसरे से नजरें जब टकराईं तो दोनों मुसकरा उठे.

दोनों ने अपने अस्तव्यस्त कपड़े ठीक किए और रविंद्र ने कौशल्या से विदा होते हुए उस के गाल पर एक चुंबन जड़ दिया और अपने घर लौट गया.

कौशल्या बहुत खुश थी. उस के मन की मुराद बरसों बाद पूरी हुई थी. रविंद्र भी कुछ कम खुश नहीं था. वह तो अपनी प्रेमिका से भी ज्यादा खुश था. उस दिन के बाद रविंद्र और कौशल्या जब एक होते तब अपनी जिस्मानी प्यास बुझा लेते.

बात घटना से एक साल पहले नवंबर 2021 की है. रविंद्र उस दिन बहुत खुश था और खुशीखुशी कौशल्या से मिलने उस के घर पहुंचा. शाम के 4-5 बजे के आसपास का टाइम था. उसे देख कर वह उतनी खुश नहीं हुई, जितनी पहले होती थी. यह देख रविंद्र परेशान हो गया कि उस से ऐसी क्या खता हो गई, जो वह बदलीबदली सी नजर आ रही है. यहां तक कि उस ने ठीक से उस से बात भी नहीं की.

थोड़ी देर तक रविंद्र वहां बैठा रहा. जब उसे अपनी उपेक्षा का अहसास हुआ तो वह उठ कर अपने घर चला गया और घर लौटते समय रास्ते में यही सोच रहा था कि आखिर उस से गलती कहां हुई, जो उस की माशूका में इतना बदलाव आ गया.

यह रविंद्र के लिए काफी परेशान करने वाली बात थी. उस दिन के बाद से प्रेमिका कौशल्या रविंद्र को देख कर मुंह फेर लेती थी. इस बात से रविंद्र भीतर ही भीतर घुटने लगा था.

फिर क्या था, रविंद्र इस बात का पता लगाने में जुट गया कि प्रेमिका के अचानक मुंह मोड़ने के पीछे असल वजह क्या हो सकती है. आखिरकार पता लगाने में वह सफल हो ही गया. जब कौशल्या की सच्चाई रविंद्र के सामने खुल कर आई तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. जलन के मारे वह जलभुन गया.

दरअसल, कौशल्या का मन रविंद्र से भर गया था और वह पुराने कपड़े की तरह रविंद्र को बदल कर गांव के ही राजेंद्र साहू से दिल लगा बैठी थी. राजेंद्र साहू रविंद्र से ज्यादा मालदार था और स्वस्थ भी. पानी की तरह पैसे कौशल्या पर बहाता था. उस की इसी अदा पर वह फिदा थी.

यारों की बाहों में सुख की तलाश – भाग 2

3 नवंबर, 2022 को शाम करीब साढ़े 5 बजे मोहन सिंह मकान के बाहर कुरसी पर बैठा किसी से बात कर रहा था तभी काजल घबराई हुई उस के पास आई और रुआंसी आवाज में बोली, ‘‘भाईसाहब, मेरे पति ने फांसी लगा ली है. अभी जान है, चल कर नीचे उतारने में मेरी मदद करें. वह बच जाएंगे.’’

सुनते ही मोहन सिंह पड़ोसी के साथ सीढि़यों की तरफ दौड़ा. पीछेपीछे काजल भी लपकी.

मोहन सिंह ऊपर आया तो उस ने उत्तम को एक चुन्नी के सहारे छत में लगे पंखे से लटकता पाया. उस के शरीर में कोई हलचल नहीं थी.

‘‘यह तो मर गया लगता है.’’ मोहन सिंह घबराई आवाज में बोला.

सुनते ही काजल ने जोरजोर से रोना शुरू कर दिया. उस के रोने की आवाज सुन कर आसपड़ोस के लोग मोहन सिंह के मकान की ओर झांकने लगे. पड़ोस में ही राजेश रहता था. रोने की आवाज सुन कर वह दौड़ता हुआ उत्तम के कमरे में आ गया. उत्तम को फंदे से लटकता देख कर उस के होश गुम हो गए. उस ने चिल्ला कर कहा, ‘‘सरदारजी, इसे नीचे उतरवाइए.’’

‘‘ना…ना, मैं यह काम नहीं करूंगा. मामला पुलिस का बनता है, उसे बुलाना पड़ेगा.’’ मोहन सिंह घबरा कर बोला और तेजी से कमरे से बाहर हो गया.

राजेश ने खुद ही उत्तम की लाश को नीचे उतार लिया और उत्तम की नब्ज टटोलने लगा. उत्तम की नब्ज नहीं चल रही थी. राजेश ने बुझे मन से कहा, ‘‘यह मर चुका है. मैं पुलिस को खबर देता हूं.’’

काजल का रोना तेज हो गया. वह अपने बेटे शुभम को गले से लगा कर जोरजोर से रोने लगी.

राजेश ने राजौरी गार्डन थाने में उत्तम के फांसी लगा कर मर जाने की सूचना दी और बाहर खड़े मोहन सिंह के पास आ कर खड़ा हो गया.

आधा घंटा बीततेबीतते राजौरी गार्डन थाने के एसएचओ रविंद्र वर्मा, एसआई मुकेश यादव, हैडकांस्टेबल मनजीत, जया और संदीप के साथ वहां आ गए. मोहन सिंह के मकान में किराएदार ने फांसी लगा ली है, यह खबर आसपास में फैल चुकी थी. लोगों की भीड़ मोहन सिंह के मकान के बाहर जमा हो गई थी. पुलिस जिप्सी को देख कर भीड़ आजूबाजू हट गई.

 

एसएचओ रविंद्र वर्मा अपनी टीम के साथ ऊपरी मंजिल पर आ गए. वहां मोहन सिंह, उस की पत्नी, राजेश, उस की पत्नी और बच्चों के अलावा आसपड़ोस के 2-3 बुजुर्ग खड़े थे.

अभी तक काजल सिसक रही थी. पुलिस को देख कर वह दहाड़े मार कर रोने लगी. एसएचओ वर्मा ने हैडकांस्टेबल दीपा को इशारा किया तो वह काजल के पास पहुंच कर उसे ढांढस बंधाने लगी.

एसएचओ ने देखा. फांसी लगा कर मरने वाला युवक चारपाई पर चित पड़ा हुआ था. उस के पास मैरून कलर की चुन्नी और लाइट ब्लू रंग का एक परदा पड़ा हुआ था. परदे और चुन्नी के सिरे आपस में बंधे हुए थे. चारपाई पर एक पायल पड़ी थी.

एसएचओ ने युवक की नब्ज टटोली. नब्ज बंद थी स्पष्ट था कि वह मर चुका है. उन्होंने बारीकी से मृत पड़े युवक की जांच की तो उन्हें मृतक के गले पर चुन्नी के कसे जाने के निशान साफतौर पर दिखाई दिए. उस के जिस्म पर दूसरे कोई चोट के निशान नहीं थे. पहली ही नजर में लगता था कि युवक ने फंदे से लटक कर ही जान दी है. उस के जिस्म पर पायजामा और पूरे बांह की कमीज थी.

रविंद्र वर्मा ने काजल की तरफ देखा. वह अब सिसक रही थी, उस का जोरजोर से रोना रुक गया था. ऐसा हैडकांस्टेबल दीपा के समझाने से हुआ था.

‘‘क्या यह तुम्हारे पति थे?’’ एसएचओ ने काजल से प्रश्न किया.

‘‘जी… यह इन के पति थे,’’ उत्तर आगे आ कर राजेश ने दिया.

‘‘आप कौन हैं?’’ एसएचओ ने उसे गौर से देख कर पूछा.

‘‘मैं उत्तम को बड़ा भाई मानता था, इसी के गांव से हूं. मैं ने ही आप को इस के फांसी लगा लेने की सूचना मोबाइल से दी थी सर.’’

‘‘क्या नाम है आप का?’’

‘‘राजेश… मैं यहीं पास में किराए पर रहता हूं.’’ राजेश ने बताया.

‘‘इस ने फांसी क्यों लगा ली, बता सकते हो मुझे?’’

‘‘जी, यह बात तो मैं नहीं जानता, यह आप भौजी काजल से पूछिए.’’ राजेश ने धीरे से कहा.

‘‘काजल, ऐसा क्या हुआ था कि आप के पति को फांसी लगा कर अपनी जिंदगी खत्म करनी पड़ी.’’ श्री वर्मा ने काजल के चेहरे पर नजरें डाल कर पूछा.

काजल ने अपने आंसू पोंछते हुए गहरी सांस ली और रुंधे गले से बोली कि यह बहुत सीरियस किस्म के इंसान थे. छोटीछोटी बात पर गंभीर हो जाते थे. यह कह सकते हैं, यह जज्बाती किस्म के आदमी थे. आज शाम को काम से जल्दी घर लौट आए थे. मैं ने कारण पूछा तो बोले, ‘‘तबीयत ठीक नहीं लग रही है. 2-4 दिन से बुखार लग रहा है, थकान भी है.’’

‘‘अरे, तो आप फिर भी काम पर जा रहे थे. आप को आराम करना चाहिए था.’’ मैं ने कहा तो वह गंभीर हो गए.

अगर घर में रहूंगा तो घर कैसे चलेगा. शुभम को डाक्टर बनाने का मेरा सपना कैसे पूरा होगा.

काजल सांस लेने को रुकी और फिर से बताने लगी कि मैं ने इन्हें प्यार से समझाया कि हम कम खा लेंगे. थोड़े में गुजारा कर लेंगे. आप इतनी चिंता कर के अपनी सेहत से खिलवाड़ मत करिए. बस सर इतनी ही बात हुई थी.

मैं इन्हें कमरे में छोड़ कर छत पर कपड़े उतारने चली गई. नीचे आई तो यह पंखे से झूलते मिले. इन्हें शायद यह अच्छा नहीं लगा कि हम थोड़े में गुजरबसर करें.

एसएचओ को हैरत हुई कि इतनी छोटी बात को कोई दिल पर ले कर जान दे देगा. कुछ अटपटा सा लगता है.

‘‘कहा न सर, यह जज्बाती इंसान थे. हमें बहुत प्यार करते थे, हमारी खुशियों के लिए दिनरात मेहनत करते थे. उन्हें लगा होगा कि यदि बीमारी में घर बैठ गया तो मैं और शुभम क्या खाएंगे. बस, यही

बात सोच कर इन्होंने फांसी लगा ली.’’ काजल बोली.

एसएचओ ही नहीं, उन के साथ आए स्टाफ के लोग भी इस बात को हजम नहीं कर सके कि इतनी छोटी वजह से कोई अपनी जान दे सकता है.

श्री वर्मा ने अपने उच्चाधिकारियों को इस घटना की सूचना दे दी और फोरैंसिक टीम को भी घटनास्थल पर बुलवा लिया. 20-25 मिनट में डीसीपी (वेस्ट) घनश्याम बंसल और एसीपी इंद्रपाल (राजौरी गार्डन) घटनास्थल पर पहुंच गए. कुछ देर बाद फोरैंसिक टीम भी वहां आ गई और अपने काम में लग गई.

एसएचओ ने अधिकारियों को उत्तम के फांसी लगाने की वजह बताई तो वह गंभीर हो गए. डीसीपी घनश्याम बंसल ने हैरानी जताते हुए कहा, ‘‘मिस्टर वर्मा, आत्महत्या करने के लिए कोई बड़ी वजह होती है, जैसे झगड़ा, अपमान, कर्ज या किसी जघन्य अपराध की वजह से शर्मिंदगी अथवा डर.

‘‘लेकिन यहां तो बात बीवीबच्चे के भविष्य को ले कर आत्महत्या की है, जबकि ऐसा हुआ भी नहीं था यानी उत्तम काम से हटा नहीं दिया गया था. जरा सोचिए, एकदो दिन कोई बीमारी के कारण घर रह जाए तो क्या उस के बीवीबच्चे की जिंदगी बेहाल हो जाएगी. हां, 2-3 महीना आदमी बेरोजगार रहे तो एक परसेंट ऐसा वह कर सकता है.’’

‘‘तो क्या सर, काजल झूठी मनगढ़ंत कहानी सुना रही है?’’ श्री वर्मा ने पूछा.

‘‘ऐसा ही लगता है,’’ डीसीपी गंभीर स्वर में बोले, ‘‘खैर, आप लाश का पंचनामा बना कर इसे पोस्टमार्टम के लिए भिजवाइए. और यहां मिलने वाली छोटी से छोटी संदिग्ध वस्तु को कब्जे में लीजिए. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही पता चलेगा कि हकीकत क्या थी.’’

‘‘ठीक है सर, मैं काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा देता हूं.’’ श्री वर्मा ने कहा.

डीसीपी घनश्याम बंसल और एसीपी इंद्रपाल वापस लौट गए.

ले बाबुल घर आपनो : सीमा ने क्या चुना पिता का प्यार या स्वाभिमान – भाग 2

मीरा भी उन जैसा पति पा कर गर्व से फूल उठी थी और मन ही मन उस ने अपने मातापिता की बुद्धि को सराहा भी था. कुछ समय तक तो सबकुछ ठीकठाक चलता रहा था, लेकिन बाद में मीरा महसूस करने लगी थी जैसे पिताजी ने, दामाद नहीं, गुलाम खरीदा हो. शंभुजी सोए हों, या उस से प्रेमालाप कर रहे हों, बस पिताजी का एक बुलावा आया नहीं कि वे उठ कर चल देते. ऐसे में मीरा प्यार से उन्हें समझाती और कहती, ‘पिताजी से कह क्यों नहीं देते कि वक्तबेवक्त न बुलाया करें.’

‘अरे भई, काम होता है, तभी तो बुलाते हैं, और काम कोई वक्त देख कर तो नहीं आता,’ शंभूजी भी प्यार से जवाब देते.

‘पहले भी तो वे स्वयं काम संभालते थे, अब क्यों नहीं संभालते?’ मीरा उखड़ जाती.

‘इसी लिए तो उन्होंने तुम जैसी पत्नी का मुझे पति बना दिया है, ताकि मैं उन का बोझ हलका करूं,’ शंभुजी हंस कर टाल देते.

‘फिर उन्हें बेटी देने की क्या जरूरत थी. बोझ हलका करने के लिए तुम्हें रुपयों से खरीदा भी जा सकता था. तुम नहीं बोल सकते तो मैं पिताजी से कहूंगी कि आप साथसाथ काम करने के लिए कोई दूसरा नौकर रख लीजिए,’ मीरा नाराज हो जाती.

‘तुम तो बहुत भावुक हो, मीरा. जितनी मेहनत और ईमानदारी से अपने घर का आदमी काम कर सकता है, कोई दूसरा करेगा क्या?’ वे तर्क देते.

‘यह क्यों नहीं कहते कि तुम बिक गए हो. तुम्हें पत्नी की नहीं, सिर्फ दौलत की जरूरत थी,’ और मीरा फफक कर रो पड़ी थी.

शंभुजी कितने ही प्यार से क्यों न समझाते लेकिन मीरा को यह कतई पसंद नहीं था कि वे घरदामाद बन कर रहें. वह हमेशा यही कहती थी, ‘घरदामाद तो पालतू कुत्ते की तरह होता है, जो टुकड़े खा कर दिनरात वफादारी करता है. तुम क्यों नहीं अलग मकान ले लेते. तुम जैसे भी रखोगे, मैं उसी तरह रहूंगी. तुम से कभी गिला नहीं करूंगी. मुझे यह तो एहसास रहेगा, मेरा अपना घर है, तुम मेरे हो. यहां तो हमेशा मुझे ऐसा लगता है जैसे हम पिताजी की दया पर पल रहे हैं और तुम भी सोचते होगे कि यदि मैं ने कहीं विद्रोह किया, तो पिताजी रोजी ही न छीन लें.’

‘न जाने तुम क्यों गलत ढंग से सोचने लगी हो? मैं ने तो कभी इस तरह सोचा भी नहीं. मीरा, तुम पहले भी तो इस घर में रहती थीं, तब तुम ऐसा क्यों नहीं सोचती थीं?’

‘तब मैं कुआंरी थी. कुआंरी लड़की हमेशा अपनी नई दुनिया बसाने के सपने देखती है. एक ऐसे पति का सपना, जो उसे घर देगा, उस के सुखदुख का भागीदार होगा, और वह उस के हर सुखदुख की चादर अपने ऊपर ओढ़ लेगी. बताओ, क्या दिया तुम ने मुझे अपनी ओर से? बाकी सब छोड़ भी दें तो प्यार और विश्वास भी तुम नहीं दे सके, जिस समय भी मेरे पास होते हो, तुम्हें यही खयाल रहता है कि पिताजी के कहे काम सब पूरे हो गए कि नहीं, कहीं वे यह न सोचें, शादी होते ही लापरवाह हो गया है.’

इसी तरह तकरार और प्यार में वर्ष छलांगें लगाते निकल रहे थे. मीरा की गोद में सीमा भी आ गई थी. सीमा को पा कर मीरा काफी हद तक सहज हो गई थी. उन्होंने सोचा था, ‘मीरा सीमा को पा कर तनाव से शायद मुक्त हो गई है.’ लेकिन यह उन की भूल थी.

सीमा जैसेजैसे बड़ी होती गई, मीरा की खामोशी बढ़ती गई. वह हमेशा देखती, सीमा की हर जरूरत पिताजी पूरी करते हैं, उस का भविष्य कैसे संवारना है, यह भी पिताजी सोचते हैं. बिलकुल उसी तरह, जिस तरह उन्होंने उस के लिए सोचा था.

शंभुजी ने तो एक दिन भी यह महसूस नहीं किया कि बाप का अपनी संतान के लिए क्या कर्तव्य होता है. मीरा की जरूरत पिताजी आ कर पूछते. शंभुजी को इस से कोई अंतर नहीं पड़ता था. बस, उन्हें यही संतोष था कि पिताजी के होते उन्हें चिंता करने की क्या आवश्यकता है, या पिताजी उन पर कितने प्रसन्न हैं, क्योंकि उन्होंने उन का व्यापार और बढ़ा दिया था. मीरा की हर बात चिकने घड़े पर पड़े पानी की तरह उन के ऊपर से फिसल जाती थी.

एक दिन बेहद गुस्से में मीरा ने कहा था, ‘इन सुखों की खातिर तुम ने अपनेआप को बेच दिया है. अपनी आजादी, अपने आदर्शों तक को दांव पर लगा दिया है.’

‘तुम सुखी रहो, इसी लिए तो यह सब किया है मैं ने, वरना मैं अकेला तो दो रोटी और दो कपड़ों में ही प्रसन्न था. यदि तुम्हारी खुशी के लिए स्वयं मुझे भी बिकना पड़ा तो भी मैं पीछे नहीं हटूंगा, मीरा,’ शंभुजी ने हंस कर बात टालनी चाही थी.

‘मेरा नाम ले कर झूठ मत बोलो. तुम जानते हो इस पैसे की दुनिया से मुझे कभी प्यार नहीं रहा जहां आदमी आजादी से अपनी कोई इच्छा ही पूरी न कर सके, जहां आगेपीछे नौकरों की फौज खड़ी हो. मैं खुली हवा में सांस लेना चाहती हूं. प्लीज, मुझे अलग ले जाओ, ताकि मैं अपना छोटा सा संसार बना सकूं, और सोच सकूं, यह घर मेरा है, जहां सुकून हो, जहां तुम हो, हमारी बच्ची हो, और मैं होऊं,’ और मीरा रो पड़ी थी.

‘ठीक है, मीरा. मैं वचन देता हूं, हम उसी तरह रहेंगे जैसे तुम चाहती हो. मैं पिताजी से जरूर बात करूंगा,’ उन्होंने मीरा को प्यार से थपथपा दिया था.

जब मीरा ने देखा कि यह तकरार भी चिकने घड़े की बूंद बन गई है तो वह हमेशा के लिए चुप हो गई थी. शायद उस ने ‘जो है, सो ठीक है,’ समझ कर ही संतोष कर लिया था.

दूसरे बच्चे के समय मीरा की तबीयत बहुत बिगड़ गई थी. डाक्टरों की भीड़ भी उसे नहीं बचा सकी थी. तब यही शंभुजी सीमा को छाती से लगा कर फूटफूट कर रो पड़े थे. उन्होंने मन ही मन मीरा से कितनी बार माफी मांगी थी और वादा किया था, ‘तुम्हारी सीमा की मैं हर इच्छा पूरी करूंगा. मैं स्वयं उस का खयाल रखूंगा, उसे मां बन कर पालूंगा.’

कितना स्नेह और ममत्व उन्होंने बेटी को दिया था. उस के उठने से ले कर सोने तक, हर बात का ध्यान वे खुद रखते थे. बाहर जाना भी कितना कम कर दिया था. लेकिन कभीकभी जब सीमा उन्हें टकटकी लगाए देखने लगती थी तो न जाने वे क्यों सिहर उठते थे. उन्हें महसूस होता था, ये निगाहें सीमा की नहीं, मीरा की हैं, जो उन से कुछ कहना चाह रही हैं, तो वे घबरा कर यह पूछ बैठते, ‘कुछ कहना है, बेटी?’

‘कुछ नहीं, पापा,’ जब सीमा कहती तो उन की सांस की गति ठीक होती.

समय के साथ सीमा बड़ी हुई. मीरा के मातापिता का साथ छूटा. सारा कारोबार फिर एक बार शंभुजी पर आ पड़ा. यह वही जिम्मेदारी थी जो किसी को दी नहीं जा सकती थी और फिर धीरेधीरे वे पहले की तरह व्यस्तता के बीच खोने लगे थे.

एक दिन जब वे काफी रात गए घर लौटे थे, तो यह देख कर हैरान हो गए थे कि जल्दी सो जाने वाली सीमा, आज बालकनी में खड़ी उन का इंतजार कर रही है. वे हैरानी से बोले थे, ‘सोई क्यों नहीं?’

‘आप जल्दी क्यों नहीं आते? अकेले मेरा मन नहीं लगता,’ सीमा गुस्से में थी.

‘मेरा बहुत काम होता है, इसी लिए देर हो जाती है. आज कोई पहली बार तो मैं देर से नहीं आया?’ उन्होंने प्यार से समझाया था.

‘इतनी रात तक किसी का काम नहीं होता. आप झूठ बोलते हैं. आप पार्टियों में जाते हैं, शराब पीते हैं, इसी लिए आप को देर हो जाती है.’

‘सीमा,’ वे नाराज हो गए थे.

‘डांटिए मत, मैं कालेज से देर से आऊंगी, तब आप को अच्छा लगेगा?’ वह भी सख्ती से बोली थी, ‘मैं कहे देती हूं, अब आप देर से आएंगे तो मैं खाना नहीं खाऊंगी.’ और वह पैर पटकती हुई चली गई थी.

वे हैरान से खड़े देखते रह गए थे. मीरा और सीमा में कितना साम्य है. वह अगर हवा का तेज झोंका थी तो यह सबकुछ हिला देने वाली तेज आंधी.

निक्की यादव की बेरहम हत्या : नई दुल्हन बेड पर, पहली फ्रिज में – भाग 2

क्राइम ब्रांच की इस मीटिंग में तय किया गया कि सब से पहले साहिल की तलाश की जाएगी. यदि साहिल हाथ आ जाता है तो उस से निक्की के विषय में मालूम किया जा सकता है.

साहिल के पिता से और रिश्तेदारों से एकत्र किए गए साहिल के दोस्तों और साहिल के संभावित ठहरने के ठिकानों की छानबीन कर के साहिल को खोजा जा सकता था.

मुखबिर भी लगा दिए गए. साहिल के छिपने के संभावित ठिकानों पर दबिश दी जाने लगी. सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी खंगाली गई. साहिल ने अपना मोबाइल बंद कर लिया था, फिर भी उस के नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया गया था, ताकि मोबाइल औन होने पर उस की लोकेशन का पता लग सके.

पुलिस की इस मुस्तैदी, छापेमारी का परिणाम सुखद रहा. साहिल को दक्षिण- पश्चिम दिल्ली के कैर गांव चौराहे से 12 फरवरी, 2023 को गिरफ्तार कर लिया गया. उसे क्राइम ब्रांच के औफिस में लाया गया. क्राइम ब्रांच के  स्पैशल कमिश्नर रविंद्र यादव और डीसीपी सतीश कुमार ने साहिल से पूछताछ की.

साहिल पक्का घाघ था, वह पहले क्राइम ब्रांच के इन दोनों अधिकारियों के प्रश्नों का गोलमोल जवाब देता रहा, लेकिन जब उस पर सख्ती बरती गई तो वह टूट गया. साहिल ने निक्की के विषय में जो खुलासा किया, उस से क्राइम ब्रांच के अफसरों के जैसे होश उड़ गए.

साहिल ने बताया कि उस ने निक्की यादव को 10 फरवरी की सुबह साढ़े 9 बजे के आसपास मोबाइल के डाटा केबल से गला घोट कर मार दिया था. उस ने निक्की की लाश को कार की अगली सीट पर सीट बेल्ट से बांध कर लगभग 50 किलोमीटर दूर अपने ढाबे तक का सफर तय किया था. वहां ढाबे में रखे फ्रिज में उस ने निक्की की लाश को छिपा दिया.

‘‘निक्की की हत्या तुम ने जिस कार में की थी, वह किस की थी?’’ सीपी रविंद्र यादव ने पूछा.

‘‘वो कार मेरे चाचा की थी.’’

‘‘तुम ने निक्की यादव को कहां पर मारा?’’ डीसीपी सतीश कुमार ने साहिल को घूरते हुए पूछा.

‘‘मैं रात को एक बजे निक्की के फ्लैट पर गया था. वहां से सुबह ही हम कार से निकल आए. फिर उसे कश्मीरी गेट की ओर ले आया, वहां मैं ने रोड किनारे कार खड़ी कर निक्की की हत्या कर दी.’’

‘‘तुम ने निक्की की हत्या क्यों की?’’ सीपी रविंद्र यादव ने पूछा.

‘‘सर, 10 तारीख को मेरी शादी थी, यदि निक्की को मैं जीवित रहने देता तो वह मेरी शादी में हंगामा खड़ा कर सकती थी. वह कार में भी मेरे साथ इसी बात पर झगड़ा कर रही थी कि मैं शादी न कर के उसे अपना लूं. वह अपने साथ शादी करने का मुझ पर दवाब बनाते हुए लड़ने लगी, तब मैं ने क्रोध में आ कर उस की हत्या कर दी.’’

क्राइम ब्रांच के आगे साहिल ने यह खुलासा कर दिया था कि वह निक्की की हत्या कर चुका है, इसलिए सब से पहले निक्की की लाश को कब्जे में लेना जरूरी था.

ढाबे के फ्रिज से बरामद की लाश

साहिल को साथ ले कर क्राइम ब्रांच की टीम नजफगढ़ के मित्राऊं गांव के खेत में बने उस के ढाबे पर पहुंच गई. साहिल के पिता वीरेंद्र सिंह को इस बात की सूचना पुलिस ने मोबाइल पर दे दी कि साहिल अपनी प्रेमिका निक्की की हत्या चुका है और उस ने निक्की की लाश को उन के ढाबे में रखे फ्रिज में छिपा कर रखा है. वह ढाबे पर पहुंच जाएं.

साहिल के पिता इस खबर से सन्नाटे में आ गए. उन के चेहरे से शादी की सारी खुशियां काफूर हो गईं. साहिल के घर वाले भी साहिल के द्वारा हत्या करने की खबर सुन कर सकते में आ गए थे. वीरेंद्र सिंह गहलोत अपने 2-3  रिश्तेदारों के साथ ढाबे की ओर रवाना हो गए.

वह ढाबे पर पहुंचे. तब साहिल को ले कर क्राइम ब्रांच की टीम उन्हीं का इंतजार कर रही थी.

उन के सामने डीसीपी सतीश कुमार ने साहिल द्वारा ढाबे के पिछले हिस्से में रखे नीले रंग के फ्रिज को खुलवाया.

निक्की की लाश फ्रिज में ठूंसी हुई थी. उसे बाहर निकाला गया. फोटोग्राफर और फोरैंसिक टीम को बुलवा लिया गया. निक्की की लाश का निरीक्षण किया गया. उस के गले पर वायर के लाल निशान अभी भी साफ दिखाई दे रहे थे. शरीर पर और किसी प्रकार के चोट के निशान नहीं थे.

तमाम आवश्यक काररवाई पूरी करने के बाद निक्की की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. क्राइम ब्रांच ने हत्या में इस्तेमाल कार व साहिल के मोबाइल का डाटा केबल कब्जे में ले लिया.

निक्की के परिजनों का पता निकाल कर झज्जर में उन्हें निक्की की हत्या हो जाने की सूचना दे दी गई. निक्की के पिता सुनील यादव को बता दिया गया कि निक्की की हत्या उस के साथ लिवइन में रहने वाले पार्टनर साहिल गहलोत ने की है, जो अब पुलिस के कब्जे

में है. निक्की की हत्या की खबर सुनते ही घर में कोहराम मच गया. सुनील यादव अपने कुछ परिचितों के साथ झज्जर से दिल्ली की ओर चल दिए.

उधर दिल्ली पुलिस के अधिकारियों ने साहिल से विस्तार से पूछताछ की तो निक्की यादव की हत्या की जो दिलचस्प कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

हरियाणा के झज्जर के रहने वाले सुनील यादव के परिवार में 2 बेटियों के अलावा एक बेटा था. इन में निक्की सब से बड़ी थी. खेतीकिसानी करने वाले सुनील यादव ने दोनों बेटियों को पढ़ाई के लिए दिल्ली भेज दिया था. वह द्वारका क्षेत्र में किराए पर फ्लैट ले कर रहने लगीं. निक्की उत्तम नगर के एक कोचिंग सेंटर से प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रही थी. वह जिस बस से कोचिंग सेंटर आती थी, उसी में साहिल भी आता था. साहिल नजफगढ़ के पास स्थित मित्राऊं गांव के वीरेंद्र सिंह गहलोत का इकलौता बेटा था.

साहिल आज बहुत बेचैन और उदास था, क्योंकि उस दिन उस ने बस में निक्की को नहीं देखा था, जो रोज बस में उसी के साथ सफर करती थी. वे एक ही मंजिल के राही थे.

साहिल उस कोचिंग सेंटर से एसएससी की तैयारी कर रहा था. एक साथ एक ही बस से आने के बावजूद उन में अभी बातचीत और नहीं हुई थी. साहिल उसे मन ही मन चाहने लगा था और उस से दोस्ती करना चाहता था, लेकिन उसे मौका ही नहीं मिल पा रहा था.

…और उस दिन तो निक्की कोचिंग सेंटर ही नहीं आई थी. साहिल का मन उदास हो गया था, वह बस से उतर कर कोचिंग सेंटर की ओर चला जा रहा था कि उस के पीछे से किसी लड़की की आवाज आई, ‘‘ठहरो!’’

साहिल रुक कर पलटा. उस से कुछ दूरी पर एक युवती को देखा, जो उसी की तरफ चली आ रही थी. युवती ने सिर पर इस प्रकार दुपट्टा बांधा हुआ था कि केवल उस की आंखें ही दिख रही थीं. वह टौप और जींस पहने हुए थी, उस के हाथ में किताबें थीं.

साहिल को समझते देर नहीं लगी कि वह युवती किसी कालेज की छात्रा है. कौन है यह और इस ने उसे रुकने को क्यों कहा है? साहिल सोच ही रहा था कि वह उस के सामने आ गई.

सिंदूर मिटाने का जुनून : अवैद्य संबंधों के चलते पति की हत्या – भाग 2

इस कंपनी की ओर से मजदूरों का ठेका दिनेश खंडेलवाल और उन का मुंशी अमन लेता था. लगभग 5 महीने पहले उस के पति सत्येंद्र का पैसे के लेनदेन को ले कर ठेकेदार दिनेश और मुंशी अमन से झगड़ा हुआ था, जिस में मारपीट भी हुई थी.

इस के बाद से वह काफी परेशान रहते थे. वह शराब भी बहुत ज्यादा पीने लगे थे. कहीं ठेकेदार दिनेश और उस के मुंशी अमन ने ही तो उन की हत्या नहीं कर दी है. पूछताछ के बाद पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए लालालाजपत राय अस्पताल भिजवा दिया.

इस के बाद थाने आ कर थानाप्रभारी आशीष मिश्र ने सत्येंद्र तिवारी की हत्या का मुकदमा दर्ज करा कर ठेकेदार दिनेश और उस के मुंशी अमन को हिरासत में ले लिया गया. थाने में दोनों से सत्येंद्र की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो दोनों ने साफ मना कर दिया.

अमन का कहना था कि पैसों को ले कर उस का सत्येंद्र से झगड़ा जरूर हुआ था, लेकिन वह झगड़ा ऐसा नहीं था कि बात हत्या तक पहुंच जाती. सत्येंद्र की पत्नी उसे गलत फंसा रही है. ऐसा ही दिनेश ने भी कहा था. उन की बातों से पुलिस को लगा कि दोनों निर्दोष हैं तो उन्हें छोड़ दिया गया था.

आशीष मिश्र को इस मामले में कोई सुराग नहीं मिल रहा था. जबकि अधिकारियों का उन पर काफी दबाव था. अंत में उन्होंने मुखबिरों का सहारा लिया. आखिर उन्हें मुखबिरों से मदद मिल गई. किसी मुखबिर से उन्हें पता चला कि सत्येंद्र की हत्या उस के बेटे जय ने ही की है. इस में उस की मां सुलभ और उस के प्रेमी दीपक कठेरिया का भी हाथ हो सकता है.

बात थोड़ा हैरान करने वाली थी, लेकिन अवैध संबंधों में कुछ भी हो सकता है. यह सोच कर आशीष मिश्र ने मसवानपुर स्थित मृतक सत्येंद्र तिवारी के घर छापा मार कर जय और उस की मां सुलभ को गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर सुलभ और जय से सत्येंद्र की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो दोनों कसमें खाने लगे. लेकिन पुलिस के पास जो सबूत थे, उस से पुलिस ने उन की बातों पर विश्वास नहीं किया और उन से सख्ती से पूछताछ की. फिर तो मांबेटे ने सत्येंद्र की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

पता चला कि जय ने पड़ोस में रहने वाले दीपक कठेरिया की मदद से पिता की हत्या की थी. क्योंकि सुलभ के दीपक कठेरिया से अवैध संबंध थे. सत्येंद्र इस बात का विरोध करता था. शराब के नशे में वह अकसर पत्नी और बेटे की पिटाई करता था. उस की इसी हरकत से तंग आ कर बेटे और प्रेमी की मदद से सुलभ ने पति की हत्या करवा दी थी.

सत्येंद्र की हत्या में दीपक का नाम आया तो पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया. थाने में दीपक ने जय और सुलभ को देखा तो उस ने भी सत्येंद्र की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद दीपक और जय ने हत्या में प्रयुक्त लोहे की रौड और खून सने अपने कपड़े बरामद करा दिए थे, जो जय ने अपने घर में छिपा रखे थे. सभी से पूछताछ में सत्येंद्र तिवारी की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

कानपुर शहर से 40 किलोमीटर दूर जीटी रोड पर एक कस्बा बसा है बिल्हौर. इसी कस्बे से कुछ दूरी पर एक गांव है विशधन. ब्राह्मणबाहुल्य इस गांव में रमेशचंद्र दुबे अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटियां शुभि और सुलभ तथा एक बेटा अरुण था. रमेशचंद्र दुबे अध्यापक थे. उन के पास खेती की थोड़ी जमीन थी. इस तरह उन का गुजरबसर आराम से हो रहा था. बड़ी बेटी शुभि की शादी उन्होंने कन्नौज में की थी.

इस के बाद सुलभ शादी लायक हुई तो कानपुर शहर में मसवानपुर बस्ती में रहने वाले नीरज तिवारी के बेटे सत्येंद्र से उस की शादी कर दी. सत्येंद्र प्राइवेट नौकरी करता था. उस का रंग थोड़ा सांवला था और वह सुलभ से उम्र में भी बड़ा था. सुलभ काफी खूबसूरत थी. इस के बावजूद उस ने कभी कोई ऐतराज नहीं किया.

देखतेदेखते 5 साल कब बीत गए, पता ही नहीं चला. इस बीच सुलभ 2 बच्चों जय और पारस की मां बन गई. बच्चों के जन्म के बाद सत्येंद्र की नौकरी आर्डिनैंस फैक्ट्री में संविदा कर्मचारी के रूप में लग गई. लेबर कौंट्रैक्ट कंपनी वृंदावन एसोसिएट्स के तहत उसे काम पर रखा गया. यह कंपनी रक्षा प्रतिष्ठानों में मजदूर सप्लाई करने का ठेका लेती है. सत्येंद्र को वहां से ठीकठाक पैसे मिल रहे थे, इसलिए घर में किसी तरह की कोई परेशानी नहीं थी.

बच्चे बड़े हुए तो घर में रहने की परेशानी होने लगी. सत्येंद्र बच्चों के साथ अलग मकान ले कर रहने लगा. सुलभ यही चाहती भी थी. बच्चे बड़े हुए तो खर्च बढ़ा, जिस से घर में पैसों को ले कर तंगी रहने लगी. उसी बीच सत्येंद्र शराब पीने लगा. उस की कमाई का एक हिस्सा शराब पर खर्च होने लगा तो घर खर्च को ले कर सुलभ परेशान रहने लगी. वह पति को शराब पीने को मना करती तो सत्येंद्र उस से लड़ाईझगड़ा ही नहीं करता, बल्कि मारपीट भी करता. इस का असर बच्चों की पढ़ाई पर भी पड़ने लगा.

एक दिन सत्येंद्र के साथ एक युवक आया, जिस के बारे में उस ने सुलभ को बताया कि यह उस का दोस्त दीपक कठेरिया है. वह भी मसवानपुर में ही रहता था. दोनों साथसाथ खातेपीते थे. दीपक ने खूबसूरत सुलभ को देखा तो पहली ही नजर में उस पर मर मिटा. दीपक शरीर से हृष्टपुष्ट और सुलभ से कमउम्र का था, इसलिए सुलभ भी उस की ओर आकर्षित हो गई. दीपक उस दिन करीब एक घंटे तक घर में रहा. इस बीच दोनों एकदूसरे को ताकते रहे.

एक सप्ताह भी नहीं बीता था कि एक दिन सत्येंद्र फिर दीपक को घर ले आया. उस का आना सुलभ को अच्छा लगा. बातोंबातों में दीपक ने सुलभ का फोन नंबर ले लिया. इस के बाद दीपक ने बहाने से सुलभ को फोन किया तो उस ने बातचीत में दिलचस्पी दिखाई. फिर तो दोनों में बातें होने लगीं.

चाहत का संग्राम : प्रेम के आगे हारा पति – भाग 2

शादी के बाद प्रतीक्षा यशवंत सिंह की दुलहन बन कर ससुराल आ गई. आते ही उस ने घर संभाल लिया. यशवंत सिंह जहां सुंदर पत्नी पा कर खुश था, वहीं उस के मांबाप इस बात से खुश थे कि बेटे का घर बस गया. प्रतीक्षा और यशवंत सिंह का दांपत्य जीवन हंसीखुशी से बीतने लगा. बीतते समय के साथ प्रतीक्षा 2 बेटों अजस और तेजस की मां बन गई.

प्रतीक्षा बचपन से ही चंचल स्वभाव की थी. विवाह के बाद उस के स्वभाव में कामुकता भी शामिल हो गई थी. जब तक यशवंत सिंह में जोश रहा, वह प्रतीक्षा की कामनाओं को दुलारता रहा. लेकिन जब बढ़ती उम्र के साथ जिम्मेदारियां भी बढ़ती गईं तो उस के जोश में भी कमी आ गई. जबकि प्रतीक्षा की कामुकता बेलगाम होने लगी थी.

अब यशवंत सिंह की भोगविलास में कोई खास रुचि नहीं रह गई थी. लिहाजा प्रतीक्षा ने भी हालात से समझौता कर लिया. बच्चों को संभालना, उन की देखभाल करना और घरगृहस्थी के कामों में जुटे रहना उस की दिनचर्या में शामिल हो गए.

पिछले कुछ समय से प्रतीक्षा महसूस कर रही थी कि उसे किसी चीज की कमी नहीं है, उस का जीवन भी ठीक से बीत रहा है. लेकिन अंदर से वह उत्साहहीन हो गई है. मन में न कोई उमंग है न कोई तरंग. मस्ती नाम की चीज तो उस के जीवन में मानो बची ही नहीं थी.

दूसरी ओर प्रतीक्षा जब मायके जाती और अपनी सहेली माया को देखती तो सोचती कि माया भी 2 बच्चों की मां है. घर के सारे काम भी उसे ही करने पड़ते हैं. फिर भी हर वक्त उस के होंठों पर मुसकान सजी रहती है. बढ़ती उम्र के साथ माया की खूबसूरती घटने के बजाए बढ़ती जा रही थी.

प्रतीक्षा ने एकाध बार माया से दिनोंदिन निखरती उस की खूबसूरती, सेहत और जवानी के बारे में पूछा भी, लेकिन वह हंस कर टाल जाती. लेकिन अगली बार जब वह मायके गई और माया से मिली तो उस ने अपनी चुस्तीफुरती का राज बता दिया.

बातचीत के दौरान माया ने बताया कि जिस औरत की जिस्म की भूख शांत नहीं होती, वह कांतिहीन हो जाती है. शायद तुम्हारी भी यही समस्या है. तुम्हारा पति तुम्हारा साथ नहीं देता क्या? मेरा पति भी तुम्हारे जैसा था, पर मैं उस के सहारे नहीं रही. मैं ने खुद ही अपना इंतजाम कर लिया, जिस से आज मैं बेहद खुश हूं.

माया प्रतीक्षा के गाल पर चिकोटी काटते हुए बोली, ‘‘प्रतीक्षा, मेरी सलाह है कि जिंदगी को अगर मस्ती से भरना है तो खुद ही कुछ करना होगा.

तुम्हारी ससुराल में मोहल्ले पड़ोस में कोई न कोई तो ऐसा होगा, जिस की नजर तुम पर, मेरा मतलब तुम्हारी कोमल काया पर हो. उसे देखो, परखो और उसी से दिल के तार जोड़ लो. तुम भी मस्त हो जाओगी.’’

माया की सलाह प्रतीक्षा को मन भाई. मायके से ससुराल लौट कर माया की बातें उस के दिलोदिमाग को मथती रहीं. रात को सोने के लिए प्रतीक्षा बिस्तर पर लेटती उस की आंखों में नींद उतरती थी. वह सोचने लगी, माया ठीक कहती है सेहत, जवानी और खूबसूरती का फार्मूला उसे भी अपने जीवन में अपनाना चाहिए, अन्यथा समय से पहले ही बूढ़ी हो जाएगी.

जीवन में उमंग भरने के लिए प्रतीक्षा का मन पतन की ओर अग्रसर हुआ तो उसे माया की यह बात भी याद आई कि मोहल्ले पड़ोस में कोई तो होगा, जो तुम पर दिल रखता होगा. प्रतीक्षा का मन इसी दिशा में सोचने लगा. इस के बाद उसे पहला व आखिरी नाम याद आया, वह संग्राम सिंह का था.

संग्राम सिंह मूलरूप से फतेहपुर जिले के थाना मलवां में आने वाले गांव नसीरपुर बेलवारा का रहने वाला था. बचपन से ही वह चांदपुर में अपने मामा के घर रहता था. मामा की कोई संतान नहीं थी.

संग्राम सिंह 25-26 साल का गबरू जवान था, उस की शादी नहीं हुई थी. उस का घर प्रतीक्षा के घर से कुछ ही दूरी पर था. संग्राम सिंह किसान तो था ही, ट्यूबवेल का मैकेनिक भी था.

जब कभी यशवंत सिंह का ट्यूबवेल खराब हो जाता था तब ठीक करने के लिए उसे ही बुलाया जाता था. मोहल्ले के नाते संग्राम सिंह यशवंत सिंह को भैया और प्रतीक्षा को भाभी कहता था.

संग्राम सिंह का प्रतीक्षा के घर आनाजाना था. वह आता तो था यशवंत सिंह से मिलने, लेकिन उस की नजरें प्रतीक्षा के इर्दगिर्द ही घूमती रहती थीं. चायपानी देने के दौरान प्रतीक्षा की नजर संग्राम सिंह से टकराती तो वह मुसकरा देता था.

इस के अलावा वह प्रतीक्षा के घर के आसपास चक्कर भी लगाया करता था. प्रतीक्षा से आमनासामना होता तो वह कहता, ‘‘भाभी, कोई काम हो तो मुझे बताना.’’ पुरुष की नीयत को औरत बहुत जल्दी पढ़ लेती है. प्रतीक्षा ने भी संग्राम सिंह की आंखों में अजीब सी प्यास देखी थी. उस ने उस की हरकतों पर गौर किया तो उसे लगा कि संग्राम मन ही मन उसे चाहता है. संग्राम सिंह की अनकही चाहत से प्रतीक्षा को अजीब से सुख की अनुभूति हुई.

उसे लगा कि संग्राम कुंवारा है, मिल जाए तो उस के जीवन में बहार ला सकता है. अपने जीवन में बहार लाने के लिए प्रतीक्षा ने संग्राम को अपने प्रेम जाल में फंसाने का फैसला कर लिया.

संग्राम सिंह अकसर दोपहर के समय प्रतीक्षा के घर वाली गली का चक्कर लगाता था. दूसरे दिन प्रतीक्षा घर का कामकाज निपटा कर दरवाजे पर जा कर खड़ी हो गई. थोड़ी देर में संग्राम आता दिखाई दिया.

प्रतीक्षा को देख कर संग्राम के होंठ हिले तो प्रतीक्षा के दिल की धड़कनें तेज हो गईं. संग्राम पास आया तो उस ने रोज की तरह पूछा, ‘‘भाभी, कोई काम तो नहीं है?’’

‘‘है न,’’ प्रतीक्षा मुसकराई, ‘‘भीतर आओ तो बताऊं.’’

संग्राम प्रतीक्षा के पीछेपीछे भीतर आ कर चारपाई पर बैठ गया. प्रतीक्षा ने उस की आंखों में देखते हुए सवाल किया, ‘‘संग्राम, तुम मुझे देख कर मुसकराते रहते हो, क्यों?’’

संग्राम सिंह सकपका गया, मानो चोरी पकड़ी गई हो. खुद को संभालने की कोशिश करते हुए वह बोला, ‘‘नहीं भाभी, ऐसा तो कुछ नहीं है. आप को भ्रम हुआ होगा.’’

प्रतीक्षा चेहरे पर मुसकान बिखेरते हुए बोली, ‘‘प्यार करते हो और झूठ भी बोलते हो. अगर तुम यों ही झूठ बोलते रहे तो प्यार का सफर कैसे पूरा करोगे?’’

संग्राम की आंखें आश्चर्य से फैल गईं, ‘‘भाभी, क्या तुम भी मुझ से प्यार करती हो?’’

प्रतीक्षा मुसकराई, ‘‘करती तो नहीं थी, पर अचानक ही प्यार हो गया.’’

‘‘ओह भाभी, आप कितनी अच्छी हो.’’ संग्राम ने चारपाई से उठ कर प्रतीक्षा को गले से लगा लिया.

संग्राम सिंह इतनी जल्दी मुट्ठी में आ जाएगा, प्रतीक्षा ने कल्पना तक नहीं की थी. वह जान गई कि संग्राम के मन में नारी तन की चाह है. प्रतीक्षा संग्राम से जिस्म की भूख मिटाना चाहती थी. उस से जिंदगी भर नाता जोड़े रखने का उस का कोई इरादा नहीं था.

मन की मुराद पूरी होते देख प्रतीक्षा मन ही मन खुश हुई. लेकिन उसे अपने से अलग करते हुए बोली, ‘‘संग्राम, यह क्या गजब कर रहे हो, दरवाजा खुला है. कोई आ गया तो मैं बदनाम हो जाऊंगी. छोड़ो मुझे.’’

‘‘छोड़ दूंगा भाभी, लेकिन पहले वादा करो कि मेरी मुराद पूरी करोगी.’’

‘‘रात को आ जाना, खेतों पर सिंचाई का काम चल रहा है. तुम्हारे भैया रात को ट्यूबवेल पर होंगे. अभी छोड़ो.’’

खुले दरवाजे से सचमुच कोई कभी भी आ सकता था. फिर प्रतीक्षा उसे रात को आने का निमंत्रण दे ही रही थी, इसलिए संग्राम ने उसे छोड़ दिया और मुसकराते हुए चला गया.

रात 10 बजे यशवंत सिंह सिंचाई के लिए खेतों पर चला गया. उस के जाने के बाद संग्राम सिंह आ गया. प्रतीक्षा उस का ही इंतजार कर रही थी. यशवंत सिंह था नहीं और बच्चे सो चुके थे. इसलिए प्रतीक्षा निश्चिंत थी. दरवाजे पर दस्तक सुनते ही उस ने दबे पांव उठ कर दरवाजा खोल दिया. संग्राम अंदर आ गया तो वह उसे दूसरे कमरे में ले गई.

देह मिलन के लिए दोनों ही बेताब थे. कमरे में पहुंचते ही दोनों एकदूसरे से लिपट गए. संग्राम सिंह ने प्रतीक्षा के नाजुक अंगों से छेड़छाड़ शुरू की तो प्रतीक्षा की प्यासी देह कामनाओं की आंच से तप कर पिघलने लगी. उस के उत्साहवर्धन ने खेल को और भी रोमांचक बना दिया. बरसों बाद प्रतीक्षा का तनमन जम कर भीगा था. उस ने तय कर लिया कि अब संग्राम का दामन कभी नहीं छोड़ेगी.

उस रात के बाद संग्राम और प्रतीक्षा एकदूसरे के पूरक बन गए. पहले तो प्रतीक्षा संग्राम को रात में ही बुलाती थी, लेकिन फिर वह दिन में भी आने लगा. जिस दिन यशवंत सिंह को बाजार से सामान लेने जाना होता, उस दिन प्रतीक्षा फोन कर संग्राम को घर बुला लेती. मिलन कर संग्राम चला जाता. बाजार से वह प्रतीक्षा का सामान भी ले आता था.

सगे बेटे ने की साजिश – भाग 2

पुलिस जांच के दौरान सर्राफा व्यवसायी के घर वाली गली में लगे सीसीटीवी फुटेज में नीले सलवार सूट में ईयरफोन लगाए घूमती एक महिला और बाइक सवार 2 संदिग्ध युवक नजर आए. पुलिस इसी दिशा में जांच में जुट गई.

घटना की खबर पर आईजी पीयूष मोर्डिया भी घटनास्थल का निरीक्षण करने पहुंचे. उन्होंने अधिकारियों से बातचीत की और परिवार के सदस्यों से भी. उन्होंने पुलिस अधिकारियों को जल्दी खुलासे के आदेश दिए.

हत्या व लूट की घटना का परदाफाश करने के लिए एसएसपी मुनिराज जी. ने एसपी (सिटी) कुलदीप सिंह गुनावत, एसपी (क्राइम) डा. अरविंद के नेतृत्व में 2 टीमों का गठन किया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि कंचन की मृत्यु गला घोटने के कारण हुई थी.

दूसरे दिन शनिवार की सुबह पोस्टमार्टम के बाद कंचन वर्मा का अंतिम संस्कार किया गया. शव को मुखाग्नि इकलौते बेटे राजा ने दी.

सर्राफा व्यवसाई कुलदीप के साथ लूट की यह तीसरी वारदात थी. इस से पहले सन 2017 में बदमाशों ने उन की दुकान को निशाना बनाया था. बदमाशों ने दिनदहाड़े फायरिंग कर गहने लूटे थे. फायरिंग में कुलदीप को गोली भी लगी थी. उस घटना के समय कुलदीप अपने बेटे राजा व नौकर के साथ दुकान पर थे.

हालांकि कुछ दिन बाद घटना का मुख्य आरोपी बुलदंशहर के सिकंदराबाद में एक मुठभेड़ में मारा गया था. उस के कुछ साथी पकड़े गए थे उन्होंने कुलदीप के यहां लूट की बात स्वीकारी थी. खास बात यह है कि तब बुलदंशहर के एसएसपी मुनिराज ही थे. पिछले साल भी कुलदीप की आंखों में मिर्च झोंक कर लूट की घटना को अंजाम दिया गया था. उस घटना के बारे में पुलिस को बताने के बजाए परदा डाल दिया था.

पुलिस ने इस हत्याकांड के खुलासे के लिए सिलसिलेवार जांच शुरू की. पुलिस के सामने 5 मुख्य बिंदु थे, जिन पर वह जांच कर रही थी. मृतका के घर वालों ने पुलिस को बताया कि दिन भर घर में बंद रहने वाली कंचन अपने परिचितों के लिए ही दरवाजा खोलती थीं.

सगेसंबंधियों व नौकरानी से पूछताछ

दोपहर में 12 से एक बजे के बीच कामवाली के आने पर ही कंचन बाथरूम में नहाने जातीं थीं. तिजोरी तोड़ने को घर में रखे औजार किसी अपने ने ही उठाए होंगे. ऐसा भी अनुमान लगाया गया कि मृतका जब बाथरूम में नहाने गई हों, उसी समय घटना को अंजाम दिया गया हो. इस से नौकरानी अंजू पर भी शक की सुई घूम रही थी.

पुलिस ने उस का मोबाइल भी कब्जे में ले लिया था. उस की काल डिटेल्स भी खंगाली गई. पुलिस के रडार पर अंजू  व उस के परिवार का कोई सदस्य था, क्योंकि अंजू का पेशेवर लुटेरा पति इस समय गैंगस्टर केस में जेल में है.

अंजू घटना से 20 दिन पहले ही आई थी. हालांकि 2 साल पहले वह कुलदीप के घर में काम कर चुकी थी, लेकिन एक साल पहले काम छोड़ कर चली गई थी. दुकान का नौकर या उस के परिवार के किसी सदस्य के अलावा कंचन के बेटे राजा के कुछ दोस्तों, जो राजा की गैरमौजूदगी में उस की मां के पास आया करते थे, उन के लिए भी दरवाजा खोल देती थीं.

अब पुलिस यह पता लगाने में जुट गई कि मृतका ने अपने दामाद का फोन काट कर दरवाजा किस के लिए खोला था? दूसरे कंचन के दरवाजे से गली के मुहाने पर वह ईयरफोन वाली महिला चक्कर क्यों लगा रही थी?

उस महिला ने बाइक सवार युवकों को बैग में कुछ सामान भी दिया था.  इस के बाद युवक गली से बाहर चले गए थे. महिला भी पैदल चली गई. पुलिस युवकयुवती व बाइक की शिनाख्त के प्रयास में लग गई.

इस हत्याकांड व लूट की वारदात ने क्वार्सी के पुलिस महकमे को हिला दिया था. घटना के दूसरे दिन भी खुलासा न होने से मृतका के सगेसंबंधी, सर्राफा व्यवसायी आक्रोशित थे. जिस से धरनेप्रदर्शनों का डर था. इलैक्ट्रौनिक और प्रिंट मीडिया में भी घटना सुर्खियों में थी, जिस से पुलिस पर दबाव बढ़ता जा रहा था.

यह केस पुलिस के लिए चुनौती बन गया था, लेकिन पुलिस अपने काम में गोपनीय तरीके से जुटी रही. जांच सही दिशा में आगे बढ़ रही थी. पुलिस के उच्चाधिकारी इस मामले पर नजर रखे थे.

पुलिस अब तक मिले साक्ष्यों पर काम कर ही रही थी. इसी बीच 20 फरवरी, 2021 को शाम 7 बजे पुलिस को राजा के मोबाइल पर एक काल उस की पत्नी की मिली.

उस काल को ट्रैक किया गया तो पूरा भेद खुल गया. उस में राजा अपनी पत्नी को बेबी नाम से संबोधित करते हुए कह रहा था कि सब ठीक चल रहा है. पुलिस दूसरी दिशा में काम कर रही है. तुम अब अपना अच्छे से इलाज कराना.

बेटा राजा ही निकला मां का हत्यारा

इस पर पुलिस का माथा ठनक गया और राजा को हिरासत में ले कर पुलिस थाने लाया गया. पुलिस पूछताछ में राजा ने सिर्फ इतना ही कहा कि मैं अलग रहता हूं. कुछ समझ में नहीं आ रहा है, ये क्या हुआ? जब पुलिस ने उसे सीसीटीवी के वे फुटेज दिखाए, जिस में एक युवक व एक युवती बाइक पर आते व जाते दिखाई दे रहे थे.

फुटेज देखते ही उस के चेहरे की रंगत उड़ गई. घटना के दिन एक बजे तक की गतिविधियों को तो उस ने सही बताया. लेकिन एक बजे के बाद की गतिविधियों पर वह चुप्पी साध गया. जबकि उस के मोबाइल की लोकेशन दोपहर डेढ़ बजे से घटनास्थल पर ही थी.

वहां से निकल कर वह अपने किराए वाले घर तक गया और पिता के काल करने पर वहां से लौट कर आया. फुटेज में दिखे उस के साथियों के मोबाइल पर भी उस की बातचीत होने की पुष्टि हुई. इस के बाद राजा तोते की तरह बोलने लगा. उस ने खुद ही वारदात करने व इस में अपनी पत्नी, दोस्त व उस की प्रेमिका के शामिल होने की बात कबूली.

पुलिस ने रात में ही ताबड़तोड़ दबिशें देनी शुरू कर दीं. पुलिस ने इस वारदात में शामिल चारों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ करने पर आरोपियों ने अवना अपराध कबूल कर लिया. इस प्रकार 30 घंटे में ही पुलिस ने घटना का परदाफाश कर दिया.

21 फरवरी, 2021 रविवार को एसएसपी मुनिराज ने दोपहर को पुलिस लाइन सभागार में प्रैसवार्ता आयोजित कर घटना का खुलासा किया. उन्होंने बताया कि प्रथमदृष्टया मिले संकेतों के आधार पर पुलिस ने अपनी जांच कुलदीप वर्मा के परिचितों के साथ ही काम वाली की ओर मोड़ दी थी.

फरजाना के प्यार का समंदर – भाग 2

अवैध रिश्तों में हुई हत्या का पता चलते ही एसपी कुंवर अनुपम सिंह ने एसएचओ कमल भाटी को आदेश दिया कि वह शव को पोस्टमार्टम हाउस भेजें तथा मृतक के भाई की तहरीर पर रिपोर्ट दर्ज कर हत्यारोपियों को गिरफ्तार करें.

एसपी का आदेश पाते ही कमल भाटी ने रईस के शव को पोस्टमार्टम के लिए कन्नौज जिला अस्पताल भेज दिया. उस के बाद वाहिद की तहरीर पर भादंवि की धारा 302 के तहत अदीबा बानो उर्फ फरजाना और उस के आशिक अमर सिंह कुशवाहा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और उन की गिरफ्तारी के प्रयास में जुट गए.

22 दिसंबर, 2022 की रात 10 बजे पुलिस ने आरोपी अमर सिंह को ठठिया स्थित शराब ठेके से गिरफ्तार कर लिया. उसे थाने लाया गया. उस समय वह शराब के नशे में था.

उस से जब रईस की हत्या के संबंध में पूछा गया तो उस ने सहज ही बता दिया कि उस ने फरजाना के उकसाने पर ही रईस की हत्या की थी. रईस उन दोनों के रिश्तों में बाधक बन रहा था. जुर्म कुबूलने के बाद अमर सिंह ने हत्या में इस्तेमाल की गई कुल्हाड़ी भी बरामद करा दी, जो उस ने गांव के बाहर अपने गेहूं के खेत में छिपा दी थी.

अगले दिन पुलिस ने फरजाना को भी हिरासत में ले लिया.

थाने में बंद अमर सिंह कुशवाहा पर जब उस की नजर पड़ी तो उसे समझते देर नहीं लगी कि शौहर की हत्या का राज खुल गया है. अत: उस ने सहज ही शौहर की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. पुलिस पूछताछ में इस हत्याकांड के पीछे एक दगाबाज दोस्त और एक गुनहगार बीवी का सच सामने आ गया.

गंगा नदी के पावन तट पर बसा उत्तर प्रदेश का कन्नौज शहर इतिहास के कई पन्नों में दर्ज है. यह शहर सुगंध की नगरी के नाम से भी जाना जाता है. यहां का इत्रफुलेल पूरी दुनिया में अपनी खुशबू बिखेरता है. कन्नौज पहले फर्रुखाबाद जिले का एक बड़ा कस्बा था, लेकिन अब कन्नौज को जिले का दरजा हासिल है.

इसी जिले के ठठिया थाना अंतर्गत एक गांव है-भदोसी. यहीं पर पेशकार अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में बीवी फातिमा के अलावा 2 बेटे रईस व वाहिद थे. पेशकार के पास उपजाऊ जमीन नाममात्र की थी, जिस से परिवार का गुजरबसर नहीं हो पाता था. इसलिए वह जूते का कारोबार कर के घर का भरणपोषण करता था. पेशकार ने अपने जीतेजी ही दोनों बेटों के बीच घर व जमीन का बंटवारा कर दिया था. दोनों भाई अपनेअपने परिवार के साथ अलगअलग रहते थे.

रईस का विवाह अदीबा बानो उर्फ फरजाना के साथ हुआ था. वह बेहद खूबसूरत थी. कालांतर में वह 2 बेटों अनस व अंसार की मां बनी.

रईस का मन किसानी में नहीं लगता था, इसलिए वह राजमिस्त्री के साथ मेहनतमजदूरी करने लगा था. चूंकि रईस सीधासादा व मिलनसार इंसान था, इसलिए एक मिस्त्री ने उस पर तरस खा कर उसे राजमिस्त्री का काम सिखा दिया था. शुरू में तो उस का काम धीमा चला, लेकिन बाद में उस का काम चलने लगा और वह एक कुशल राजमिस्त्री बन गया.

रईस पैसे कमाने लगा तो उसे शराब पीने की लत लग गई. अदीबा बानो ने उसे कई बार समझाया भी, लेकिन उस ने पत्नी की बात नहीं मानी. 1-2 बार शराब पीने को ले कर रईस व फरजाना में झगड़ा भी हुआ. तब उस ने बीवी से साफ कह दिया कि वह शराब अपने पैसों से खरीद कर पीता है, उस के बाप के पैसों से नहीं. इस के अलावा वह बीवीबच्चों की जरूरतों को अनदेखा भी करने लगा था.

रईस के घर के बगल में अमर सिंह कुशवाहा का घर था. उस के पिता परशुराम कुशवाहा किसान थे. उन के पास 10 बीघा खेती की जमीन थी. अमर सिंह भी पिता के काम में हाथ बंटाता था. पड़ोसी होने के नाते दोनों में खानेपीने की दोस्ती थी.

हालांकि रईस उम्र में अमर सिंह से काफी बड़ा था. अमर सिंह शराबी तो था ही अय्याश भी था. इसी वजह से उस की पत्नी उसे छोड़ कर मायके चली गई थी. न अमर सिंह उसे लेने गया और न ही वह अपने मन से वापस ससुराल आई.

एक रोज अमर सिंह रईस के घर गया तो उस की बीवी अदीबा बानो को देख कर उस की नीयत बदल गई. चाहत की नजरें फरजाना के जिस्म पर टिक गईं. उसी पल फरजाना भी उस की नजरों को भांप गई थी. वह जान गई थी कि अमर के मन में क्या चल रहा है.

अमर सिंह शरीर से हट्टाकट्टा था. अदीबा बानो पहली ही नजर में उस की आंखों के रास्ते से दिल में उतर गई. रईस से बातचीत करते समय उस की नजरें बारबार फरजाना पर ही टिक जाती थीं. फरजाना को भी अमर सिंह अच्छा लगा. अमर सिंह की भूखी नजरों की चुभन जैसे उस की देह को सुकून पहुंचा रही थी.

अमर सिंह का मन फरजाना में उलझा तो वह उस के घर अकसर जाने लगा. उसे रिझाने की कोशिश भी करता था. एक दिन उस ने कहा, ‘‘भाभी, तुम्हें देख कर कोई कह नहीं सकता कि तुम 2 बच्चों की मां हो. तुम तो अभी भी जवान दिखती हो.’’

अपनी तारीफ सुन कर फरजाना गदगद हो गई थी. इस के बाद एक दिन उस ने कहा, ‘‘भाभी, तुम में गजब का आकर्षण है. कहां तुम और कहां रईस भाईजान, दोनों की कदकाठी, रंगरूप और उम्र में जमीनआसमान का अंतर है. तुम्हारे सामने रईस भाईजान कहीं नहीं ठहरते. तुम हूर की परी हो, जबकि भाईजान कुछ भी नहीं.’’

अपनी तारीफ सुन कर फरजाना जहां एक ओर फूली नहीं समाई, वहीं दिखावे के लिए उस ने मंदमंद मुसकराते हुए अमर सिंह की ओर देखते हुए कहा, ‘‘झूठे कहीं के, तुम जरूरत से ज्यादा तारीफ कर रहे हो. मुझे तुम्हारी इस तारीफ में दाल में कुछ काला नजर आ रहा है. आने दो उन्हें बताती हूं उन से.’’

इतना कह कर फरजाना जोरजोर से हंसने लगी. हकीकत यह थी कि फरजाना अमर सिंह को मन ही मन चाहने लगी थी. उस ने केवल दिखावे के तौर पर यह बात कही थी. अमर सिंह हर हाल में उसे पाना चाहता था. फरजाना के हावभाव से वह समझ चुका था कि फरजाना भी उसे पसंद करती है.

अमर सिंह को पता था कि रईस को शराब पीने की लत है. इसी का फायदा उठाने के लिए उस ने शाम को रईस के साथ ही शराब पीनी शुरू कर दी. फरजाना से नजदीकी बनाने के लिए वह रईस को ज्यादा शराब पिला कर धुत कर देता था.