बुझ गई रोशनी : परिवार ही बना अपराधी

11 नवंबर, 2016 की बात है. रामदुरेश के मंझले बेटे पवन कुमार की 4 दिनों बाद शादी थी. घर में शादी की तैयारियां जोरों पर चल रही थीं. चूंकि वह मूलरूप से बिहार के रहने वाले थे, इसलिए वहां से भी उन के तमाम रिश्तेदार आ चुके थे. पवन का बड़ा भाई रंजन राजेश, जो दुबई में नौकरी करता था, वह भी आ चुका था.

दोपहर के करीब 3 बजे रामदुरेश अपनी दोनों पोतियों, रिधिमा और रौशनी को स्टालर पर बैठा कर सड़क पर घुमा रहे थे. उन्हें आए अभी 10 मिनट हुए होंगे कि मोटरसाइकिल से आए 3 युवकों ने उन्हें रोक लिया. उन्होंने मुंह पर कपड़ा बांध रखा था, इसलिए रामदुरेश उन्हें पहचान नहीं सके.

मोटरसाइकिल से आए युवकों में से 2 नीचे उतरे और रामदुरेश को धक्का मार कर गिरा दिया. उन के गिरते ही वे युवक स्टालर से 2 साल की रौशनी को उठा कर फगवाड़ा की ओर भाग गए. यह सब इतनी जल्दी में हुआ था कि रामदुरेश कुछ सोचसमझ ही नहीं पाए. जब तक वह उठ कर खड़े हुए, मोटरसाइकिल सवार काफी दूर जा चुके थे. वह मोटरसाइकिल का नंबर भी नहीं देख पाए.

रामदुरेश ने शोर मचाया तो तमाम लोग इकट्ठा हो गए. घर वाले भी बाहर आ गए. उन्होंने उन से युवकों का पीछा करने को कहा. कई लोग मोटरसाइकिलों से फगवाड़ा की ओर गए, लेकिन किसी को वे युवक दिखाई नहीं दिए. रामदुरेश काफी घबराए हुए थे. उन्हें पानी पिलाया गया. जब वह कुछ सामान्य हुए तो उन्होंने पूरी घटना कह सुनाई

घटना की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम और थाना बहराम पुलिस को फोन द्वारा दी गई. अपहरण की सूचना मिलते ही थाना बहराम के थानाप्रभारी सुरेश चांद दलबल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. दिनदहाड़े बच्ची के अपहरण की बात सुन कर सभी हैरान थे. कुछ ही देर में डीएसपी बगां हरविंदर सिंह, डीएसपी (आई) राजपाल सिंह, सीआईए प्रभारी सुखजीत सिंह, थाना सदर बगां के थानाप्रभारी रमनदीप सिंह भी घटनास्थल पर आ पहुंचे. आधे घंटे बाद एसएसपी नवीन सिंगला भी आ गए थे.

रामदुरेश ने पुलिस अधिकारियों को अपनी पोती रौशनी के अपरहण की बात बता दी. एसएसपी नवीन सिंगला के निर्देश पर 2 जिलों कपूरथला और नवांशहर की पुलिस अपहृत बच्ची की तलाश में जुट गई. थानाप्रभारी सुरेश चांद ने रामदुरेश के बयान के आधार पर अज्ञात अपहर्त्ताओं के खिलाफ रौशनी के अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया था.

सुरेश चांद ने रामदुरेश और उन के परिवार वालों से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि उन का किसी से कोई लेनादेना या झगड़ा आदि नहीं था. सभी अपने काम से काम रखते थे.

उन्होंने यह भी बताया कि 4 दिनों बाद उन के यहां लड़के की शादी है. उस का पहला रिश्ता 3 महीने पहले फगवाड़ा के एक परिवार में तय हुआ था, जो बाद में किन्हीं कारणों से उन्होंने तोड़ दिया था. रिश्ता टूटने के बाद उन लोगों ने खूब झगड़ा किया था और देख लेने की धमकी दी थी.

रामदुरेश ने जिन लोगों पर शक जाहिर किया था, सुरेश चांद ने उन लोगों को थाने बुला कर पूछताछ की. लेकिन उन्हें वे लोग बेकसूर लगे. उन का इस वारदात से कोई लेनादेना नहीं था.

डीएसपी हरविंदर सिंह के आदेश पर इलाके के सभी सीसीटीवी कैमरों को खंगाला गया. घटनास्थल के निकट एक कैमरा लगा था, जो काफी समय से खराब था. अन्य जगहों पर लगे कैमरों से भी कोई सुराग नहीं मिला. दोनों जिलों की पुलिस टीमें बच्ची की तलाश में जुटी थीं. लेकिन देर रात तक कोई सुराग नहीं मिला.

रामदुरेश के घर में जो खुशी का माहौल था, वह उदासी में बदल चुका था. रौशनी की मां नेहा का रोरो कर बुरा हाल था.

अगले दिन अपहर्त्ता का फोन आया. उस ने कहा कि बच्ची उस के कब्जे में है और अगर बच्ची चाहिए तो 50 लाख रुपए का इंतजाम कर लो. पैसे कब और कहां पहुंचाने हैं, यह बाद में बता दिया जाएगा. रामदुरेश ने यह बात पुलिस को बता दी. अपहर्त्ताओं के फोन नंबर से पुलिस को उन के पास तक पहुंचने की राह मिल गई थी.

पुलिस ने उस नंबर की काल डिटेल्स और लोकेशन पता की तो पता चला कि वह नंबर कस्बे के ही एक दुकानदार का था. उस की मोबाइल फोन की दुकान थी. दुकानदार ने बताया कि लगभग 2 महीने पहले यह सिम उस की दुकान से चोरी हो गया था. पुलिस ने जब उस से पूछा कि उस की दुकान पर किनकिन लोगों का ज्यादा आनाजाना है और किन लोगों से उस का दोस्ताना व्यवहार है तो उस ने 8 लोगों के नाम बताए.

उन लोगों के नामपते ले कर पुलिस ने उन के बारे में पता किया तो उन में से 5 युवक तो मिल गए, 3 फरार मिले. पुलिस का सीधा शक उन 3 फरार युवकों पर गया. अगले दिन पुलिस ने शहर के सभी छोटेबड़े रास्तों की नाकेबंदी कर दी, साथ ही अपहर्त्ताओं के फोन का भी इंतजार था, पर फोन नहीं आया.

थाना सदर बगां प्रभारी रमनदीप सिंह पौइंट फराला के नाके पर मौजूद थे. उन्होंने गांव मुन्ना की ओर से एक मोटरसाइकिल पर 3 युवकों को आते देखा. लेकिन पुलिस को देख कर उन युवकों ने मोटरसाइकिल वापस घुमा दी थी. रमनदीप सिंह ने बोलेरो जीप से उन का पीछा किया. कुछ दूरी पर ही ओवरटेक कर के उन्हें दबोच लिया गया. तीनों का हुलिया रामदुरेश द्वारा बताए गए अपहर्त्ताओं के हुलिए से मिल रहा था, इसलिए पूछताछ के लिए पुलिस तीनों को थाने ले आई.

उन्होंने अपने नाम गोयल कुमार उर्फ गोरी, हरमन कुमार उर्फ हैप्पी तथा रिशी बताए. रिशी कुमार जिला होशियारपुर के गांव टोडरपुर का रहने वाला था, जबकि गोयल और हरमन रामदुरेश के ही गांव खोथड़ा के रहने वाले थे. तीनों से जब रौशनी के अपहरण के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि रौशनी का अपहरण उन्होंने ही किया था, लेकिन अब वह जीवित नहीं है. उन्होंने उस की हत्या कर लाश जला दी थी.

यह खबर जब रामदुरेश के घर वालों तक पहुंची तो उन के यहां कोहराम मच गया. जब यह खबर पूरे शहर में फैली तो अपहर्त्ताओं को देखने के लिए थाने के बाहर भीड़ लग गई. लोग अपहर्त्ताओं को अपने हवाले करने की मांग करने लगे, ताकि वे उन्हें खुद सजा दे सकें.

तीनों अपहर्त्ताओं की उम्र 18 से 20 साल थी. थाने पर जनता का जमावड़ा और आक्रोश देख कर अतिरिक्त पुलिस बल बुलाना पड़ा. एसएसपी नवीन सिंगला ने आ कर लोगों को समझाया कि कानून के अनुसार दोषियों को सजा दी जाएगी, तब कहीं जा कर भीड़ शांत हुई.

पुलिस ने तीनों अभियुक्तों को अदालत में पेश कर 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि के दौरान पुलिस ने अभियुक्तों की निशानदेही पर होशियारपुर के गांव नडालो के पास से गुजरती ड्रेन के नजदीक एक खेत से ड्यूटी मजिस्ट्रैट भूपिंदर सिंह, तहसीलदार गढ़शंकर और एसएसपी नवीन सिंगला की मौजूदगी में रौशनी की अधजली लाश बरामद कर ली.

जरूरी काररवाई निपटाने के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए बगां के सिविल अस्पताल भिजवा दिया गया. चूंकि शव बुरी तरह से जला हुआ था, इसलिए पोस्टमार्टम में तकनीकी दिक्कतें आने के अंदेशों के चलते वहां के डाक्टरों ने अमृतसर के मैडिकल कालेज में पोस्टमार्टम कराने का सुझाव दिया.

इस के बाद डीसी के आदेश पर शव को अमृतसर मैडिकल कालेज भिजवा दिया गया. पुलिस ने भी एफआईआर में भादंवि की धारा 364 को 364ए, 302, 34, 129 जोड़ दिया. आरोपियों से पूछताछ में रौशनी के अपहरण व हत्या की जो कहानी प्रकाश में आई, वह उन की विकृत मानसिकता और शार्टकट से करोड़पति बनने का नतीजा थी.

रिशी, हैप्पी और गौरी बचपन से ही शातिर और महत्त्वाकांक्षी किस्म के युवक थे. पढ़ाई के दौरान ही वे आवारागर्दी करने लगे थे, जिस से ज्यादा पढ़ नहीं सके. उन के गांव के तमाम युवक विदेशों में रह कर अच्छी कमाई कर रहे थे, जिस से वे भी विदेश जाना चाहते थे, पर पैसे न होने के कारण जा नहीं पा रहे थे. मजबूर हो कर वे घर पर रह कर ही आसानी से मोटी कमाई करने का उपाय खोजने लगे.

गौरी और हैप्पी की ननिहाल रिशी के गांव टोडरपुर में थी, जिस से उन का वहां आनाजाना होता रहता था. इसी वजह से उन की रिशी से दोस्ती भी हो गई थी.

खोथड़ा गांव में ही रामदुरेश का परिवार रहता था. वैसे तो रामदुरेश मूलत: छपरा, बिहार के रहने वाले थे, पर लगभग 35 सालों से वह यहीं रह रहे थे. वह फगवाड़ा की जेसीटी कपड़ा मिल में नौकरी करते थे. उन के 3 बेटे थे, रंजन राजेश, पवन कुमार और पमा कुमार.

रामदुरेश जिस इलाके में रहते थे, वहां शायद ही ऐसा कोई घर होगा, जिस घर का कोई आदमी विदेश में न हो. किसी तरह रामदुरेश ने भी अपने बड़े बेटे राजेश को सन 2005 में दुबई भिजवा दिया था. राजेश की दुबई में नौकरी लगने के बाद रामदुरेश की काया पलट हो गई थी. बेटे द्वारा दुबई से भेजे पैसों से उन्होंने खोथड़ा के सैफर्न एनक्लेव में प्लौट खरीद कर शानदार कोठी बनवाई थी. सन 2010 में उन्होंने उस की शादी कर दी थी.

राजेश 2 बेटियों का पिता बना, जिस में बड़ी बेटी रिधिमा 4 साल की और छोटी रौशनी 2 साल की थी. सन 2014 के अंत में रामदुरेश नौकरी से रिटायर हुए तो उन्हें काफी पैसा मिला. इसी बीच उन का मंझला बेटा पवन भी शादी लायक हो गया.

उन्होंने उस का रिश्ता फगवाड़ा की ही एक लड़की से तय कर दिया, पर किसी वजह से वह रिश्ता टूट गया तो बाद में दूसरी जगह उस का रिश्ता तय हो गया. 16 नवंबर, 2016 को शादी का दिन भी तय कर दिया गया था.

हैप्पी, रिशी और गौरी रामदुरेश की हैसियत जानते थे. उन्हें पता था कि उन का बड़ा बेटा दुबई से मोटी रकम भेजता है, साथ ही यह भी उम्मीद थी कि उन्हें रिटायरमेंट पर भी अच्छा पैसा मिला होगा. यही सब सोच कर उन्होंने उन के घर लूट की योजना बना डाली.

चूंकि रामदुरेश के बेटे पवन की शादी के कुछ ही दिन बचे थे. घर पर तमाम मेहमान जुट गए थे. उधर हैप्पी, रिशी और गौरी योजनानुसार लूट की घटना को अंजाम देने के लिए रैकी कर रहे थे.

कोठी पर रिश्तेदारों की भीड़भाड़ देख कर उन्हें लूट करना रिस्की लगा, इसलिए उन्होंने योजना बदल दी. रिशी ने उन के परिवार से किसी बच्चे का अपहरण करने की सलाह दी. उस की सलाह हैप्पी और गौरी को पसंद आ गई. फिरौती की रकम मांगने के लिए उन्होंने सिम का इंतजाम भी कर लिया, जो उन में से किसी के नाम पर नहीं था.

वह सिमकार्ड उन्होंने मेहली के ललित जुनेजा से साढ़े 3 सौ रुपए में खरीदा था. ललित जुनेजा की फोन एसेसरीज की दुकान थी. वह चोरी के फोन खरीदनेबेचने का भी काम करता था. ललित ने किसी से चोरी का एक मोबाइल खरीदा था, उस के अंदर जो सिमकार्ड निकला था, वही उस ने हैप्पी को बेच दिया था.

रामदुरेश के घर की रैकी करते हुए तीनों उन की पोती का अपहरण करने का मौका तलाशते रहे. इसी चक्कर में वे 11 नवंबर, 2016 को दोपहर 3 बजे उन की कोठी की तरफ आए थे. उन्होंने रामदुरेश को अपनी दोनों पोतियों के साथ देखा तो उन्हें धक्का दे कर वे उन की 2 साल की पोती रौशनी का अपहरण कर ले गए.

उस बच्ची को ले कर वे टोडरपुर पहुंचे और वहां एक खेत में छिप कर बैठ गए. बीचबीच में रिशी अपने घर और बाजार जा कर खानेपीने की चीजें लाता रहा. वहीं खेत से ही उन्होंने रामदुरेश को फिरौती के लिए फोन किया.

भूख की वजह से रौशनी जोरजोर रोने लगी. तीनों ने उसे चुप कराने की बहुत कोशिश की, पर वह चुप नहीं हुई. आसपास के खेतों में काम करने वालों ने खेत में बच्ची के रोने की आवाज सुनी तो उन्हें संदेह हुआ. लोग उधर आने लगे तो वे बच्ची को ले कर दूसरे खेत में पहुंचे. वहां भी हालात वही रहे. वह लगातार रोए जा रही थी.

बच्ची की वजह से वे पकड़े जा सकते थे, इसलिए उन्होंने रौशनी का गला दबा दिया. कुछ ही पलों में उस मासूम ने दम तोड़ दिया. इस के बाद उन्होंने उस की लाश पर पराली डाल कर जला दिया.

लाश ठिकाने लगाने के बाद सभी टोडरपुर में बैठ कर सोचने लगे कि अब क्या किया जाए. अंत में वे मोटरसाइकिल से यह देखने अपने गांव की ओर जा रहे थे कि रामदुरेश और पुलिस इस मामले में क्या कर रही है. पर उन्होंने नाके पर पुलिस देखी तो वहीं से मोटरसाइकिल मोड़ कर भागे, तभी पुलिस ने पीछा कर के उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

इन की निशानदेही पर पुलिस ने चोरी का सिम बेचने वाले ललित जुनेजा को भी गिरफ्तार कर लिया था. रिमांड अवधि खत्म होने के बाद 14 नवंबर, 2016 को थानाप्रभारी सुरेश चांद ने इस हत्याकांड से जुड़े तीनों अभियुक्तों, गोयल उर्फ गौरी, हेमंत उर्फ हैप्पी और रिशी को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक तीनों अभियुक्त जेल में थे. केस की जांच थानाप्रभारी सुरेश चांद कर रहे थे.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मामी का उफनता शबाब – भाग 4

मई 2021 में एक दिन सौरभ का मोबाइल घर पर ही रह गया. जिस के तुरंत बाद ही उस की मम्मी बाला देवी ने उस के मोबाइल की काल रिकौर्डिंग निकाल कर सुनी तो दोनों के बीच सबंधों का खुलासा हो गया.

प्रीति कौर और सौरभ के बीच प्रेम प्रसंग का मामला जल्दी ही घर वालों के सामने आ गया. जब यह सच्चाई बृजमोहन के सामने आई तो उस ने सौरभ के साथ शराब पी कर हाथापाई भी की.

इसी बात को ले कर कई बार बृजमोहन ने अपनी बीवी के साथ भी लड़ाई की थी. लेकिन प्रीति उस की मजबूरी का फायदा उठा कर उस के ऊपर ही राशनपानी ले कर चढ़ जाती थी.

बृजमोहन ने सौरभ के साथ लड़ाईझगड़ा कर उस के घर आने पर तो पाबंदी लगा दी थी. लेकिन प्रीति कौर और सौरभ अभी भी मोबाइल के माध्यम से संपर्क बनाए हुए थे. लेकिन दोनों एकदूसरे से न मिलने के कारण परेशान भी थे.

इसी दौरान एक दिन प्रीति ने सौरभ के सामने बोझिल मन से कहा कि इस तरह से कब तक चलेगा. मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रहना चाहती.

बृजमोहन जब भी घर आता है तो उस का मुंह फूला होता है. वह तुम्हारे चक्कर में ठीक से बात भी नहीं करता. जिस के कारण हम दोनों के बीच हमेशा ही टेंशन बनी रहती है. मैं हमेशा ही खुश रहना चाहती हूं. यह खुशी मुझे तुम ही दे सकते हो.

अगर तुम मुझे इतना ही प्यार करते हो तो कुछ ऐसा करो कि जिंदगी की सारी टेंशन हमेशाहमेशा के लिए खत्म हो जाए. बृजमोहन तुम से बुरी तरह से खार खाए बैठा है. वह कभी भी तुम्हारी हत्या कर सकता है. इस से पहले कि वह तुम्हारे साथ कुछ अनहोनी कर पाए, तुम ही उस का इलाज कर डालो.

मामा को मामी के रास्ते से हटाने की हरी झंडी मिलते ही सौरभ का दिल शेर बन बैठा. सौरभ ने सोचा अगर वह किसी तरह से मामा को मौत की नींद सुला दे तो मामी पर उस का ही कब्जा हो जाएगा.

मन में यह विचार आते ही वह अपने मामा को मौत की नींद सुलाने के लिए हर रोज नईनई योजनाएं बनाने लगा. सौरभ ने कई बार बृजमोहन को मौत की नींद सुलाने की योजना बनाई, लेकिन वह किसी भी योजना में सफल नहीं हो पा रहा था.

इस घटना से 10 दिन पहले ही सौरभ और प्रीति ने मिल कर बृजमोहन को रास्ते से हटाने की योजना बनाई. योजना बनते ही एक दिन सौरभ ने अपने मामा को फोन कर अपनी गलती मानते हुए क्षमा

याचना की. जिस के बाद उस ने भविष्य में कभी भी ऐसी गलती न करने की कसम भी खाई.

बृजमोहन बहुत ही सीधा था. वह सौरभ की चाल को समझ नहीं पाया. वह उस की मीठीमीठी बातों में आ गया. फिर उस ने सौरभ को अपने घर आने के लिए भी कह दिया.

इस पर सौरभ ने कहा, ‘‘मामा, मैं ने आप के साथ जो किया है, उस से मुझे खुद से नफरत हो गई है. इसी कारण मैं आप के घर नहीं आऊंगा. अगर आप ने मुझे माफ कर दिया हो तो आज की पार्टी मेरी तरफ से है. आप मुझे गांव के बाहर आ कर मिलो.’’

सौरभ की बात सुनते ही बृजमोहन ने हामी भर ली. उस से गांव के बाहर मिलने के लिए तैयार भी हो गया.

उसी योजना के तहत ही 20 मई, 2022 शुक्रवार की देर शाम सौरभ ने अपने मामा को शराब पीने के लिए बुलाया. बृजमोहन हर शाम गांव में लगे वाटर कूलर से पानी लाता था.

उस ने सोचा उसे आने में देर हो जाएगी. इसी कारण वह पहले पानी ले कर घर रख देगा, उस के बाद सौरभ के साथ चला जाएगा.

यही सोच कर वह घर से खाली बोतलें ले कर पानी लाने गया था. सौरभ को पता था कि उस के मामा इसी वक्त पानी लाने जाते हैं. वह पहले ही रास्ते में खड़ा हो गया था.

बृजमोहन के आते ही सौरभ उसे बुला कर गांव के बाहर चला गया. वाटर कूलर से लगभग 500 मीटर दूसरी दिशा में ले जा कर सौरभ ने अपने मामा को शराब पिलाई.

जब बृजमोहन शराब के नशे में धुत हो गया तो मौका पाते ही पास में पड़े पत्थर से उस के सिर पर जोरदार प्रहार कर डाले. उस के बाद अपना लोअर निकाल कर उस से उस का गला घोट दिया.

गला दबने के कुछ क्षण में ही बृजमोहन की मौत हो गई. बृजमोहन की हत्या करने के बाद घटना में प्रयुक्त कपड़े नहर के किनारे कूड़े में छिपा दिए. उस के बाद वह अपने घर चला गया.

इस केस का खुलासा होते ही पुलिस ने हत्यारोपी की निशानदेही पर घटना में इस्तेमाल आलाकत्ल पत्थर, खून से सने कपड़े व शराब की खाली बोतल के साथ ही डिस्पोजल गिलास भी बरामद कर लिए थे.

बृजमोहन मर्डर केस के खुलते ही पुलिस ने आरोपी उसकी बीवी प्रीति कौर उस के भांजे सौरभ को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया था.

इस मामले का जल्दी खुलासा करने के कारण एसएसपी डा. मंजूनाथ टी.सी. ने केस का खुलासा करने वाली टीम में शामिल काशीपुर कोतवाल मनोज रतूड़ी, एसएसआई प्रदीप मिश्रा, धीरेंद्र परिहार, नवीन बुधानी, रूबी मौर्या, एसओजी प्रभारी रविंद्र सिंह बिष्ट इत्यादि को 5000 रुपए का पुरस्कार दे कर सम्मानित किया.

उन के साथ ही एसएसपी ने मनोहर कहानियां के लिए अच्छी फोटोग्राफी के लिए लेखक के सहयोगी फोटोग्राफर प्रदीप बंटी को भी 1000 रुपए दे कर सम्मानित किया गया. द्य

इंसाफ की ज्योति : बेकसूर को मिली सजा – भाग 4

पीयूष के पिता ओमप्रकाश श्यामदासानी और चाचा मधुसूदन श्यामदासानी भी ज्योति के अपहरण से हतप्रभ थे. दोनों भाई पूरे परिवार के साथ ज्योति की खोज में जुट गए. श्यामदासानी परिवार के पास 12 लग्जरी गाडि़यां थीं, जो सब की सब ज्योति की खोज में कानपुर की सड़कों पर दौड़ने लगीं. इस बीच ओमप्रकाश श्यामदासानी ने ज्योति के मायके वालों को भी इस घटना की खबर दे दी थी.

अपहरण के समय ज्योति के पास मोबाइल फोन था, जो अभी तक औन था. उस के फोन की लोकेशन पता करने के लिए आईजी आशुतोष पांडेय तथा डीआईजी आर.के. चतुर्वेदी ने मैसेज भेजे, फोन की लोकेशन पनकी क्षेत्र में मिली. यह पता लगते ही पांडेय ने पनकी पुलिस को निर्देश दिया कि वह अपना सर्च औपरेशन तेज करे.

रात लगभग 2 बजे थाना पनकी की पुलिस ने आईजी आशुतोष पांडेय को बताया कि वांछित होंडा एकौर्ड पनकी के ई ब्लाक की एक गली में खड़ी है.

सूचना मिलते ही आईजी अपने अधीनस्थ पुलिस अधिकारियों के साथ वहां पहुंच गए. गाड़ी हालांकि लौक्ड थी, लेकिन उस की चाबी पास ही पड़ी मिल गई. पुलिस ने गाड़ी का दरवाजा खोला तो सब सन्न रह गए. कार की पिछली सीट पर ज्योति की खून से लथपथ लाश पड़ी थी.

उस के शरीर को चाकू से बुरी तरह गोदा गया था. गौर से देखने पर यह बात साफ हो गई कि हत्यारों का इरादा सिर्फ ज्योति के साथ लूटपाट करना नहीं था, बल्कि हत्या करना था.

छानबीन में ज्योति के ब्लैकबेरी मोबाइल का कवर गियर बौक्स के पास पड़ा मिला, जबकि उसका मोबाइल डैशबोर्ड पर रखा हुआ था. कार के अंदर एक कंपनी के घरेलू इस्तेमाल के 3 चाकू भी बरामद हुए.

इन चाकुओं की धार बहुत तेज थी और तीनों पर खून के धब्बे थे. लेकिन आश्चर्य की बात यह थी कि हत्या के लिए इन चाकुओं का इस्तेमाल नहीं किया गया था. जिस चाकू या चाकुओं से ज्योति पर वार किए गए थे, बरामद नहीं हो सके. पुलिस ने फोरैंसिक टीम को मौके पर बुला लिया था. इस टीम ने कार और कार के शीशे से फिंगरप्रिंट लिए, साथ ही जांच के लिए खून का नमूना भी ले कर सुरक्षित रख लिया.

ज्योति की हत्या की खबर पा कर ओमप्रकाश श्यामदासानी और उन की पत्नी पूनम घटनास्थल पर आए और बहू की लाश देख कर फफकफफक कर रोने लगे. इस घटना की जानकारी मिलते ही पूरे श्यामदासानी परिवार में कोहराम मच गया. पत्नी की लाश देख कर पीयूष तो बच्चों की तरह रो रहा था.

पुलिस ने बड़ी मुश्किल से उसे लाश से अलग किया. मौके की प्राथमिक काररवाई निपटातेनिपटाते सुबह हो गई थी. अपना काम खत्म कर के पुलिस ने लाश का पंचनामा भरा और उसे पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भिजवा दिया. इस के बाद पुलिस ने अपहरण और हत्या का केस दर्ज कर लिया.

6 डाक्टरों के पैनल ने किया पोस्टमार्टम

उसी दिन 6 डाक्टरों के पैनल ने ज्योति के शव का पोस्टमार्टम किया, इस पैनल में डा. पुनीत महेश, डा. शंकर अवस्थी, डा. राजेश अग्रवाल, डा. अजीत ओझा, डा. दिव्या द्विवेदी तथा डिप्टी सीएमओ डा. आर.पी. तिवारी शामिल थे.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ज्योति के शरीर पर 17 घाव पाए गए, जिस में गरदन पर 10-12 सेंटीमीटर के 11 घाव थे, इस के अलावा 2 घाव पेट पर तथा 2 शरीर के पिछले हिस्से पर थे. जबकि एक घाव सिर के पीछे था और एक अंगुली पर था.

चूंकि हत्या का यह मामला एक ऐसे करोड़पति व्यवसायी की बहू से संबंधित था, जिस की पैठ सत्तापक्ष के राजनीतिक गलियारे तक थी, इसलिए इसे सुलझाने की जिम्मेदारी आईजी आशुतोष पांडेय ने स्वयं संभाली. इस के लिए उन्होंने एक सशक्त टीम बनाई.

इस टीम में एसएसपी के.एस. इमैनुएल, एसपी (क्राइम) एम.पी. वर्मा, सीओ (स्वरूप नगर) राकेश नायक, सीओ (नजीराबाद) अंकिता सिंह, इंसपेक्टर (स्वरूप नगर) शिवकुमार राठौर, एसएचओ (कोहना) पूनम अवस्थी, एसएचओ (काकादेव) शशिभूषण मिश्र, एसआई रीता सिंह, कपिल दुबे और अनिल दुबे को शामिल किया गया.

आईजी आशुतोष पांडेय ने इस टीम के साथ ज्योति मर्डर केस की जांच शुरू की तो ज्योति का पति पीयूष ही शक के दायरे में आया. इस की एक नहीं, कई वजहें थीं. मसलन, अपहरण के समय पीयूष ने ज्योति को बचाने का प्रयास क्यों नहीं किया.

अपहरण के बाद वह 100 नंबर पर काल कर सकता था जो उस ने नहीं की. उस ने रावतपुर चौराहे पर तैनात पुलिसकर्मियों को अपहरण की सूचना क्यों नहीं दी. वारदात के एक घंटे बाद वह खुद न आ कर घर वालों के साथ थाने क्यों पहुंचा?

पीयूष शक के दायरे में आया तो पुलिस टीम ने कार्निवाल होटल जा कर सीसीटीवी फुटेज खंगाली. फुटेज देख कर लगा जैसे पीयूष वहां शारीरिक रूप से तो मौजूद था, लेकिन उस का दिमाग कहीं और था.

वह काफी विचलित नजर आ रहा था. फुटेज में ज्योति तो खाना खाती नजर आ रही थी, लेकिन पीयूष खाना नहीं खा रहा था. इस के बजाय वह हुक्का गुड़गुड़ाने में लगा हुआ था.

पीयूष के खिलाफ  मिलते गए पुख्ता सबूत

इसी दौरान पीयूष के मोबाइल पर एक एसएमएस आया. फिर उस ने अपने मोबाइल से एक नंबर डायल किया और बात करते हुए होटल की तीसरी मंजिल से उतर कर सड़क पर जा पहुंचा. इस के बाद वह बातचीत करते हुए अपनी कार के आगे चला गया. फिर वह 15 मिनट बाद वापस होटल लौटा.

सीसीटीवी फुटेज में दिखी गतिविधियों से पुलिस टीम का शक पीयूष पर और गहरा गया. पुलिस टीम ने पीयूष के दोनों मोबाइल फोन कब्जे में ले कर उन की काल डिटेल्स और एसएमएस डिटेल्स निकलवाई. इस से काफी चौंकाने वाली जानकारी मिली.

डिटेल्स से पता चला कि पीयूष ने घटना के दिन यानी 27 जुलाई की शाम 6 बजे से रात एक बजे तक एक नंबर पर करीब डेढ़ सौ एसएमएस किए थे, साथ ही उसी नंबर पर उस की कई बार बात भी हुई थी.

पुलिस ने उस नंबर को ट्रेस किया तो पता चला कि वह अंजू युवती का नंबर है. पुलिस टीम ने जांच आगे बढ़ाई तो जानकारी मिली कि अंजू से पीयूष के संबंध हैं. वह गुड़गांव की थी और 2 महीने से पीयूष की फैक्ट्री में बतौर कैमिस्ट के पद पर काम कर रही थी. वह बर्रा में रह रही थी. पीयूष ने ही उसे किराए का मकान दिलवाया था.

काल डिटेल्स से ही पुलिस टीम को एक अन्य युवती के बारे में पता चला. उस युवती से भी पीयूष की रोज बात होती थी और पिछले 2 महीने में दोनों ओर से 600 से भी ज्यादा एसएमएस किए गए थे.

पुलिस टीम ने उस युवती के संबंध में छानबीन की तो पता चला कि वह लड़की एक बड़े व्यवसायी हरीश मखीजा की बड़ी बेटी मनीषा मखीजा थी.

अलगअलग युवतियों से पीयूष के नाजायज संबंधों की बात सामने आई तो पुलिस टीम यह सोचने को मजबूर हो गई कि कहीं ज्योति के मर्डर में पीयूष की प्रेमिकाओं का हाथ तो नहीं है.

यह संभव था कि किसी प्रेमिका को अपना हमसफर बनाने के लिए पीयूष ने उसी की मदद से अपनी पत्नी की हत्या न कर दी हो और कानून से बचने के लिए अपहरण की कहानी गढ़ी हो.

चूंकि पीयूष हर तरफ से शक के दायरे में था, इसलिए पुलिस टीम ने उसे गिरफ्तार कर के उस से सख्ती से पूछताछ करने का फैसला कर लिया.

अब तक ज्योति के पिता शंकर लाल अपनी पत्नी कंचन के साथ जबलपुर (मध्य प्रदेश) से कानपुर आ गए थे. वह अपने दामाद पीयूष के घर न ठहर कर अपने एक रिश्तेदार बलराम के घर रुके. पुलिस टीम उन के बयान लेने पहुंची तो कंचन फफक कर रो पड़ी.

पुलिस के सांत्वना देने के बाद उन्होंने बताया कि उन की बेटी और दामाद के रिश्ते अच्छे नहीं थे. पीयूष 2-2 घंटे तक बाथरूम में बंद हो कर किसी से बात करता था. ज्योति ऐतराज करती तो दोनों में झगड़ा हो जाता था. ज्योति ने यह बात कई बार हम से बताई थी. पर हम ने उसे समझा कर धैर्य रखने को कह दिया था.

29 जुलाई को अपराह्न 3 बजे सीओ (स्वरूप नगर) राकेश नायक और एसएचओ शिवकुमार राठौर पुलिस टीम के साथ पीयूष के पांडवनगर स्थित बंगले पर पहुंचे. उस समय वहां तत्कालीन दरजाप्राप्त राज्यमंत्री सुखराम सिंह, सपा विधायक मुनींद्र शुक्ला, विधायक अजय कपूर, उन के भाई कारपोरेट चेयरमैन विजय कपूर तथा अन्य व्यापारी बैठे थे.

सिर कटी लाश का रहस्य – भाग 3

हनीफ ने किया सानिया का सर धड़ से अलग इस के लिए शुरुआत में पति आसिफ ने उस का गला काटना शुरू किया. लेकिन कुछ मिनटों के बाद ही उस के हाथ थम गए, उस ने हार मान ली. तब आसिफ के पिता हनीफ ने आगे का काम किया और सानिया का सिर धड़ से अलग कर दिया.

उस की पहचान छिपाने के लिए कातिल हैवानियत की हदों से आगे निकल गए. उन्होंने उस के सिर के लंबे बालों को काटने के लिए इलैक्ट्रिक ट्रिमर का इस्तेमाल किया और सिर से बालों का पूरी तरह से सफाया कर दिया.

इतना ही नहीं, हत्यारों ने सोचा कि अगर फिर भी सिर पुलिस को मिल गया तो कहीं वे पकड़े न जाएं, इसलिए मृतका के ऊपरी होंठ पर जो तिल था उसे चाकू से हटा दिया. ऐसी गिरी हुई हरकत ससुराल वालों ने सानिया की बच्ची को जबरन गोद लेने के लिए की.

अब हत्यारे पूरी तरह निश्चिंत थे कि यदि सिर पुलिस को मिल भी जाएगा तो वे 7 जन्मों तक इस की पहचान नहीं कर पाएंगे. आसिफ ने सिर को एक पौलीथिन की थैली में पैक कर दिया.

इस के बाद वह सिर को कपड़े में छिपा कर अपने बड़े भाई यासीन के साथ बाइक पर बैठ कर साथ ले गया और सिर को मुंबई अहमदाबाद हाईवे पर खानीवाडे क्रीक में फेंक कर घर लौट आए.

लाश ठिकाने लगा कर मनाई बकरीद

अब उन्हें सानिया के धड़ को निपटाना था. इस के लिए उस के धड़ को चादर में लपेट कर एक बड़े काले रंग के ट्रौली बैग में भर दिया. आसिफ ने मुंब्रा में ही रहने वाले कैब चलाने वाले अपने बहनोई यूसुफ को फोन किया कि वह अपनी गाड़ी ले कर घर आ जाए ताकि शव को आसानी से ठिकाने लगाया जा सके. इस पर यूसुफ कार ले कर कुछ ही देर में घर आ गया.

इस के बाद आसिफ ने कार में ट्रौली बैग रखा और यूसुफ के साथ जा कर उसे मुंबई के वसई के भुईगांव समुद्र तट पर फेंक आए.

आरोपियों ने खून से सने फर्श की सफाई करने के साथ ही अपनेअपने कपड़े बदले. सभी ने शाम को बकरीद का त्यौहार मनाया. क्योंकि विवाद की मुख्य वजह ही अब समाप्त हो गई थी.

यूसुफ भी खुश था कि अब उसे सानिया की बेटी अमायरा मिल जाएगी. इसलिए उस ने लाश को ठिकाने लगाने में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया. सानिया की हत्या करने के 3 महीने बाद आसिफ और उस के परिवार ने वह घर बेच दिया और परिवार मुंब्रा इलाके में रहने लगा.

वसई थाने के सीनियर इंसपेक्टर कल्याणराव ए. कर्पे ने बताया कि यह एक सुनियोजित हत्या थी, क्योंकि जिस दिन सानिया की हत्या की गई, उस दिन ससुराल वालों ने मृतका की बेटी अमायरा को बकरीद का त्यौहार मनाने के बहाने यूसुफ की पत्नी के साथ उस के घर भेज दिया था.

जावेद शेख ने बताया, ‘‘अमायरा के जन्म के बाद सानिया के ससुराल वाले इस बात पर जोर देते थे कि सानिया अपनी ननद को अपनी बेटी अमायरा को गोद दे दे. वे हमेशा उस पर दबाव डालते थे और उस की बच्ची को छीनने की कोशिश करते थे.

‘‘कोविड के दौरान जब आसिफ दुबई में फंसा था तो ससुर हनीफ ने नालासोपारा में इस बात को ले कर सानिया के साथ मारपीट भी की थी. इस पर सानिया ने अचोल थाने में भी शिकायत की थी. लेकिन रिश्तेदारों की दखलअंदाजी के बाद कोई मामला दर्ज नहीं किया गया था.’’

पुलिस को पति आसिफ ने सानिया के घर से जाते समय का जो लैटर दिया वह फरजी निकला. पुलिस ने पति आसिफ, उस के बड़े भाई यासीन, पिता हनीफ, बहनोई यूसुफ  को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

सानिया की हत्या के 6 दिन बाद ही उस की सिर कटी लाश पुलिस को मिल गई थी. लेकिन साल भर का वक्त सिर कटी लाश के रहस्य से परदा उठने में लग गया. पुलिस नहीं जानती थी कि सिर कटी लाश के कातिल घर में ही बैठे हुए हैं.

परदाफाश भी एक शख्स (चाचा) के प्रयासों से संभव हो सका, जो अपनी बेटी को तलाशते हुए एक साल बाद मुंबई पहुंचे थे.

वहीं वसई पुलिस की भी समझदारी भी काम आई, जो उस ने लाश के कपड़ों, बैग आदि के फोटो कराने के साथ ही डीएनए सैंपल सुरक्षित रखा.

इसी डीएनए सैंपल ने अनसुलझे हत्या का राज खोल दिया. सानिया के मायके वालों को 13 महीने के लंबे इंतजार के बाद सानिया के बारे में खबर तो जरूर मिली, लेकिन बेटी की मौत की.

यह बात साफ है कि जुर्म करने वाला अपराधी किसी भी क्राइम को अंजाम देने से पहले खुद के बच निकलने का हर रास्ता अपनी समझ से पूरी तरह तैयार रखता है. होशियारी बरतने के बाद भी जानेअनजाने या हड़बड़ी में ही सही, वह ऐसा कोई न कोई सबूत छोड़ जाता है जिस पर पहुंच कर जांच करने वाली एजेंसी की नजर पड़ ही जाती है.

लिहाजा शातिर से शातिर अपराधी भी अपने द्वारा भूल से भी छोड़े गए अपने मूक गवाह की चाल में फंस कर कानून के शिकंजे में अपनी गरदन खुद ही फंसा बैठता है.

सानिया के जीवन में दुख और गम के सिवाए कुछ नहीं था. बचपन में ही मांबाप के गुजरने के बाद वह अकेली रह गई थी. तब उस के चाचाचाची ने उसे अपनी बेटी की तरह पालपोस कर बड़ा किया और पढ़ाया.

कहते हैं कि जब किसी की किस्मत खराब होती है तो उसे कहीं भी सुकून नहीं मिलता. साल 2017 में जब सानिया 20 साल की थी, चाचा ने उस की शादी आसिफ के साथ कर दी थी.

बेटी पैदा होने के बाद ससुरालीजन उस की जान के प्यासे बन गए. मां की ममता सानिया की जिंदगी पर भारी पड़ गई. चाचा को सपने में भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि बच्ची के लिए ससुरालीजन सानिया की जान ले लेंगे.       द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बाप बेटे की एक बीवी – भाग 3

पिछले कुछ दिनों से पूजा पुरुष सुख से वंचित थी. ऐसे में उस की नजर नारी सुख से वंचित कौर सिंह पर पड़ी तो वह उस की ओर आकर्षित होने लगी. उस ने कौर सिंह की अधेड़ उम्र को भी नहीं देखा. कौर सिंह ने पूजा की नजरों को पहचान लिया और वह भी इशारोंइशारों में उस से मन की बात कहने लगा.

आखिर एक रात जब कालू और संदीप सो रहे थे तो पूजा कौर सिंह की ढाणी में पहुंच गई. उसी दिन से दोनों के बीच संबंध बन गए. एक सप्ताह तक कौर सिंह और पूजा का अनैतिक खेल बेरोकटोक जारी रहा. पर एक रात कालू ने पूजा को कौर सिंह के साथ आपत्तिजनक हालत में रंगेहाथों पकड़ लिया. उस दिन कालू ने गुस्से से पूजा की पिटाई कर डाली. साथ ही कौर सिंह को भलाबुरा भी कहा. कभी संदीप की दीवानी पूजा अब कौर सिंह पर फिदा हो गई थी. पूजा ने संदीप से रिश्ता होने की बात भी कौर सिंह को बता दी थी.

कालू को शक हुआ तो उस ने पूजा की निगरानी शुरू कर दी. अब पूजा कौर सिंह या संदीप से एकांत में नहीं मिल पा रही थी. वह मौका तलाश कर कौर सिंह से मिली और उस के सीने पर सिर रख कर रोने लगी.

‘‘मैं तेरे बिनारह नहीं सकती.’’ कहने के साथ ही पूजा सिसकने लगी.

‘‘पूजा, तू घबरा मत, मैं कल ही इस काम का तोड़ निकाल लूंगा.’’ कौर सिंह ने उसे सांत्वना दी. तब तक उन तीनों को वहां आए केवल 20 दिन ही हुए थे.

अगली रात योजना के अनुरूप पूजा ने कालू के खाने में नींद की गोलियों का पाउडर मिला दिया. रात 11 बजे के करीब कौर सिंह कालू की ढाणी में आया. उस ने गहरी नींद में सोए अपने बेटे संदीप को उठाया. पूजा पहले से जाग रही थी. कौर सिंह ने पूजा व संदीप को बेसुध पड़े कालू के हाथपांव पकड़ने को कहा. दोनों ने वैसा ही किया.

कौर सिंह ने पूजा का दुपट्टा ले कर कालू के गले में डाला और जोर से खींच दिया. नशे में ही कालू ने दम तोड़ दिया. तीनों ने ठाणी के पीछे पहले से बनाए गड्ढे में कालू के शव को डाल कर दफना दिया. उस रात पूजा ने बापबेटे दोनों के साथ बीच सैक्स का आनंद उठाया.

कौर सिंह भी पूजा का दीवाना हो चुका था. 5 रोज बाद उस ने संदीप को भी डराधमका कर भगा दिया. अब पूजा पर उस का एकाधिकार हो गया था. दोनों ने 10 रोज मजे से गुजार दिए.

एक दिन पूजा के पास उस की मां विद्या का फोन आया. उस ने मां को बताया कि वह मजे में है. विद्या ने कालू से बात करवाने को कहा तो पूजा ने कहा कि वह काम पर गए हैं. विद्या ने रात को फिर फोन किया तो पूजा ने कहा कि वह एक जरूरी काम से गांव चले गए हैं. कल बात करवा दूंगी.

लेकिन कई दिन तक विद्या की कालू राम से बात नहीं हो सकी. अनहोनी की आशंका के चलते विद्या ने कालू के छोटे भाई दीपक को बुलाया. दीपक कमरानी आ गया. दीपक को बताया गया कि 4 दिन से पूजा का फोन बंद है और कई दिनों से कालू का भी कोई अतापता नहीं है.

सलाह मशविरा कर के दोनों परिवारों ने 12 फरवरी, 2018 को टिब्बी पुलिस थाने में दीपक की ओर से कालू की गुमशुदगी दर्ज करवा दी. इस मामले की जांच सहायक उप निरीक्षक लेखराम को सौंप दी गई.

शुरुआती जांच पड़ताल में लेखराम को पूजा के अनैतिक संबंधों की जानकारी मिली तो उन्होंने इस मामले को गंभीरता से लिया. तब तक कौर सिंह को पुलिस की भागदौड़े का पताचल चुका था. वह पूजा को ले कर फरार हो गया था.

कई दिनों तक पुलिस और संदिग्धों के बीच लुकाछिपी का खेल चलता रहा. एक दिन विद्यावती के पास पूजा का फोन आया और उस ने अपनी कुशलक्षेम बताते हुए मायके के हालात के बारे में पूछा. फोन आने की सूचना लेखराम तक पहुंचा दी गई. उस अनजान नंबर को ट्रेस किया गया तो वह नंबर पंजाब के गांव वरियामखेड़े के एक किसान का पाया गया.

पुलिस ने दबिश दी तो पूजा और गौर सिंह वहां से भी भाग निकले. अगले दिन कौर सिंह का बेटा संदीप पुलिस के हत्थे चढ़ गया. उस ने प्रारंभिक पूछताछ में यह राज उगल दिया कि तीनों ने मिल कर कालू की हत्या कर के उस की लाश ठाणी के पिछवाड़े दबा दी है.

गुमशुदगी का मामला हत्या में तब्दील हो चुका था. वारदात रावतसर क्षेत्र में हुई थी. एएसआई लेखराम की रिपोर्ट पर 17 फरवरी को रावतसर में तीनों के विरुद्ध भादंवि की धारा 302, 201, 34 के तहत अभियोग दर्ज कर लिया गया.

थानाप्रभारी पुष्पेंद्र सिंह ने शेष हत्यारोपियों की शीघ्र गिरफ्तारी हेतु अमर सिंह प्रहलाद, अविनाश व महिला कांस्टेबल सावित्री की एक टीम गठित की और अपराधियों को ढूंढने लगे. अपराधबोध से ग्रस्त व भागदौड़ से थके कौर सिंह व पूजा लुकछिप कर विद्या के पास पहुंच गए. पुलिस को सूचना मिली तो दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने अगले दिन तीनों को नोहर की अदालत में पेश कर के 3 दिन का पुलिस रिमांड ले लिया. आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस ने कालू का शव, जो हड्डियों में तब्दील हो चुका था, बरामद कर लिया. हत्या में इस्तेमाल किया गया पूजा का दुपट्टा भी जब्तहो गया. व्यापक पूछताछ के बाद पुलिस ने अदालत के आदेश पर पूजा व उस के दोनों आशिक बापबेटे कौर सिंह और संदीप को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

सैक्स की आंच में अंधी हो कर एक वर्षीय अपनी बच्ची के भविष्य को अंधियारे में धकेलने वाली पूजा ने न केवल अपने पति को परलोक पहुंचाया बल्कि स्वयं के साथसाथ बापबेटे को भी काल कोठरी में पहुंचा दिया.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित