सुलझ न सकी परिवार की मर्डर मिस्ट्री – भाग 1

डा. प्रकाश सिंह वैज्ञानिक थे. उन का हंसताखेलता परिवार था, घर में किसी भी चीज की कमी नहीं थी. फिर आखिर ऐसा क्या हुआ कि एक दिन उन के फ्लैट में परिवार के सभी सदस्यों की लाशें मिलीं?

एक जुलाई की बात है. सुबह के करीब 7 बजे का समय था. रोजाना की तरह घरेलू नौकरानी जूली डा. प्रकाश सिंह के घर पहुंची. उस ने मकान की डोरबैल  बजाई. बैल बजती रही, लेकिन न तो किसी ने गेट खोला और न ही अंदर से कोई आवाज आई.

ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था. डा. प्रकाश सिंह का परिवार सुबह जल्दी उठ जाता था. रोजाना आमतौर पर डा. सिंह की पत्नी सोनू सिंह उर्फ कोमल या बेटी अदिति डोरबैल बजने पर गेट खोल देती थीं. उस दिन बारबार घंटी बजाने पर भी गेट नहीं खुला तो जूली परेशान हो गई. वह सोचने लगी कि आज ऐसी क्या बात है, जो साहब की पूरी फैमिली अभी तक नहीं जागी है.

बारबार घंटी बजने पर घर के अंदर से पालतू कुत्तों के भौंकने की आवाजें आ रही थीं. कुत्तों की आवाज पर भी गेट नहीं खुलने पर जूली को चिंता हुई. उस ने पड़ोसियों को बताया. पड़ोसियों ने भी डोरबैल बजाई. दरवाजा खटखटाया और आवाजें दीं लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. थकहार कर पड़ोसियों ने पुलिस को सूचना दे दी.

यह बात हरियाणा के जिला गुरुग्राम के सेक्टर-49 स्थित पौश सोसायटी ‘उप्पल साउथ एंड’ की है. डा. प्रकाश इसी सोसायटी के एफ ब्लौक में 3 मंजिला बिल्डिंग के भूतल पर स्थित आलीशान फ्लैट में रहते थे.

वह वैज्ञानिक थे और नामी दवा कंपनी सन फार्मा में निदेशक रह चुके थे. करीब एक महीने पहले ही डा. सिंह ने इस सन फार्मा कंपनी की नौकरी छोड़ी थी. कुछ दिनों बाद उन्हें हैदराबाद की एक बहुराष्ट्रीय फार्मा कंपनी में नई नौकरी जौइन करनी थी.

55 वर्षीय डा. सिंह के परिवार में उन की पत्नी डा. सोनू सिंह, 20 साल की बेटी अदिति और 14 साल का बेटा आदित्य था. चारों इसी फ्लैट में रहते थे. डा. प्रकाश सिंह दवा कंपनी में वैज्ञानिक की नौकरी के साथसाथ पत्नी के साथ स्कूल भी चलाते थे. गुरुग्राम और पलवल में उन के 4 स्कूल थे. बेटी अदिति भी बी.फार्मा की पढ़ाई कर रही थी जबकि बेटा नवीं कक्षा में पढ़ता था.

सोसायटी के लोगों की सूचना पर कुछ ही देर में पुलिस मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने भी पहले तो डा. सिंह के मकान की डोरबैल बजाई और कुंडी खटखटाई, लेकिन जब गेट नहीं खुला तो खिड़की तोड़ने का फैसला किया गया. खिड़की तोड़ कर पुलिस मकान के अंदर पहुंची तो वहां का भयावह नजारा देख कर हैरान रह गई.

बैडरूम में 3 लाशें पड़ी थीं. खून फैला हुआ था. घर की लौबी में लगे पंखे में बंधी नायलौन की रस्सी से एक अधेड़ आदमी लटका हुआ था. रूम में बैड पर एक लड़की का और बैड से नीचे एक किशोर के शव पड़े थे. इन से करीब 6 फुट दूर जमीन पर अधेड़ महिला की लाश पड़ी थी. तीनों पर हथौड़े जैसी भारी चीज से वार करने के बाद गला काटने के निशान थे.

पुलिस ने बैड और जमीन पर पड़े तीनों लोगों की नब्ज टटोल कर देखी, लेकिन उन की सांसें थम चुकी थीं. उन के शरीर में जीवन के कोई लक्षण नहीं थे. पंखे से लटके अधेड़ की जान भी जा चुकी थी.

पड़ोसियों से पुलिस ने उन लाशों की शिनाख्त करवाई तो पता चला कि पंखे से लटका शव डा. प्रकाश सिंह का था और बैड पर उन की बेटी अदिति व बेटे आदित्य की लाशें पड़ी थीं. जमीन पर पड़ा शव डा. सिंह की पत्नी डा. सोनू सिंह का था.

पुलिस ने खोजबीन की तो डा. प्रकाश सिंह के पायजामे की जेब से 4 लाइनों का अंगरेजी में लिखा सुसाइड नोट मिला. सुसाइड नोट में उन्होंने परिवार संभालने में असमर्थता जताते हुए घटना के लिए खुद को जिम्मेदार बताया था. सुसाइड नोट पर एक जुलाई की तारीख लिखी थी.

डा. प्रकाश सिंह के घर में पुलिस को 4 पालतू कुत्ते भी मिले. जमीन पर खून फैला होने के कारण कुत्ते भी खून से लथपथ थे. इन में 2 कुत्ते जरमन शेफर्ड और 2 कुत्ते पग प्रजाति के थे. परिवार के चारों सदस्यों ने ये अलगअलग कुत्ते पाल रखे थे.

जरमन शेफर्ड कुत्ते डा. प्रकाश और उन के बेटे आदित्य को तथा पग प्रजाति के कुत्ते डा. सोनू व उन की बेटी अदिति को प्रिय थे. ये चारों कुत्ते कमरे में शवों के पास बैठे थे. पुलिस के घर आने पर ये कुत्ते भौंकने लगे थे. नौकरानी जूली ने उन्हें पुचकार कर शांत किया.

प्रारंभिक तौर पर यही नजर आ रहा था कि डा. प्रकाश ने पत्नी, बेटी और बेटे की हत्या करने के बाद फांसी लगा कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली. डा. प्रकाश के पूरे परिवार की मौत की जानकारी मिलने पर पूरी सोसायटी में सनसनी फैल गई.

लोगों से पूछताछ में ऐसी कोई बात पुलिस के सामने नहीं आई, जिस से यह पता चलता कि डा. प्रकाश ने पत्नी, बेटी और बेटे की हत्या के बाद खुद फांसी क्यों लगा ली. पड़ोसियों ने बताया कि डा. प्रकाश और उन का परिवार खुशमिजाज था. उन्हें पैसों की भी कोई परेशानी नहीं थी.

पड़ोसियों से पूछताछ कर पुलिस ने डा. प्रकाश के परिजनों और रिश्तेदारों का पता लगाया. फिर उन्हें सूचना दी गई. सूचना मिलने पर सब से पहले डा. सोनू सिंह की बहन सीमा अरोड़ा वहां पहुंचीं.

दिल्ली में रहने वाली सीमा अरोड़ा हाईकोर्ट में वकील हैं. उन्होंने पुलिस को बताया कि पिछली रात 11 बजे तक डा. प्रकाश के घर में सब कुछ ठीकठाक था. वह खुद रात 11 बजे तक अदिति से वाट्सऐप पर चैटिंग कर रही थीं.

सीमा अरोड़ा की बातों से यह तय हो गया कि यह घटना रात 11 बजे के बाद हुई. दूसरा यह भी था कि सुसाइड नोट पर एक जुलाई की तारीख लिखी थी. एक जुलाई रात 12 बजे शुरू हुई थी. सीमा अरोड़ा से बातचीत में पुलिस को ऐसा कोई कारण पता नहीं चला, जिस से इस बात का खुलासा होता कि डा. प्रकाश ने ऐसा कदम क्यों उठाया.

वैज्ञानिक के परिवार के 4 सदस्यों की मौत की जानकारी मिलने पर गुरुगाम पुलिस के तमाम आला अफसर मौके पर पहुंच गए. एफएसएल टीम भी बुला ली गई. फोरैंसिक वैज्ञानिकों ने घर में विभिन्न स्थानों से घटना के संबंध में साक्ष्य एकत्र किए. पुलिस ने डा. प्रकाश का शव फंदे से उतारा. दोपहर में चारों शवों को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दिया गया.

इस दौरान पुलिस ने घर के बाथरूम से 3 मोबाइल फोन बरामद किए. ये फोन पानी से भरी बाल्टी में पड़े थे. तीनों मोबाइलों के अंदर पानी चले जाने से ये चालू नहीं हो रहे थे. इसलिए तीनों मोबाइल फोरैंसिक लैब भेज दिए गए. पुलिस ने इस के अलावा मौके से रक्तरंजित एक तेज धारदार चाकू अैर एक हथौड़ा बरामद किया. माना गया कि इसी चाकू व हथौड़े से पत्नी, बेटी व बेटे की हत्या की गई.

पुलिस ने इसी दिन सीमा अरोड़ा के बयानों के आधार पर सेक्टर-50 थाने में मामला दर्ज कर लिया. डा. सिंह के परिवार के चारों कुत्ते देखभाल के लिए फिलहाल पड़ोसियों को सौंप दिए गए.

अस्पताल में चारों शवों के मैडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम कराने की काररवाई में रात हो गई. अगले दिन 2 जुलाई को डा. प्रकाश और डा. सोनू सिंह के परिवारों के लोग सुबह ही गुरुग्राम पहुंच गए. पुलिस ने दोनों पक्षों के बयान लिए और जरूरी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद सुबह करीब पौने 12 बजे चारों शव परिजनों को सौंप दिए.

सहनशीलता से आगे : जब पत्नी ने लिया बदला – भाग 1

के. विश्वनाथ शर्मा बतौर इंजीनियर मर्चेंट नेवी में तैनात थे. नौकरी की वजह से उन्हें मुंबई में रहना पड़ता था. जबकि उन की पत्नी वमसी लता और 2 बच्चे राजेश और सीमा छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के बमलेश्वरी नगर में रह रहे थे. उन का बेटा राजेश 11वीं में पढ़ रहा था और बेटी 9वीं में.

मर्चेंट नेवी में रहते हुए विश्वनाथ को शिप पर मुंबई से दुबई जाना होता था. इसी वजह से वह महीनोंमहीनों तक घर नहीं जा पाते थे. के. विश्वनाथ और वमसी लता की शादी को 18 साल बीत चुके थे. 2 किशोर बच्चों के मातापिता होने के बावजूद पतिपत्नी के संबंध सामान्य नहीं थे.

इस की वजह थी विश्वनाथ की शराबखोरी. शराब पी कर वह बिलकुल हैवान बन जाते थे. कई बार तो बच्चों के सामने ही पत्नी की पिटाई कर देते थे. उन की करतूत के लिए पिटाई शब्द हलका है, इसे तुड़ाई कहें तो बेहतर होगा. इसी सब के चलते विश्वनाथ और वमसी लता के संबंध कभी ठीक नहीं रह सके.

12 जुलाई, 2019 को के. विश्वनाथ लंबी छुट्टी ले कर सुबहसुबह रायपुर स्थित अपने घर पहुंचे. वह पत्नी और बच्चों के साथ कुछ दिन चैन से गुजारना चाहते थे. विश्वनाथ को उम्मीद थी कि उन्हें आया देख कर पत्नी और बच्चे खुश हो जाएंगे.

लेकिन जब वह बमलेश्वरी स्थित अपने आवास पर पहुंचे तो ऐसा कुछ नहीं हुआ. उन्हें देख कर पत्नी वमसी लता का चेहरा उतर गया. दोनों बच्चे राजेश और सीमा उस समय सोए हुए थे. जब वमसी लता ने उन का हालचाल नहीं पूछा तो वह समझ गए कि घर का माहौल पहले जैसा ही है, कुछ नहीं बदला.

एक बार तो विश्वनाथ ने सोचा कि उन्हें आना ही नहीं चाहिए था. लेकिन वह जानते थे कि शराब की लत के चलते इस माहौल को बनाया भी उन्होंने ही था. लेकिन यह भी सच था कि घर और बच्चों की फीस वगैरह के लिए वह वेतन का बड़ा हिस्सा घर भेजते थे. पत्नी के तेवर देख विश्वनाथ को गुस्सा आया, लेकिन उन्होंने खुद पर कंट्रोल कर लिया.

वमसी लता पति की परवाह न कर के अपने कमरे में सोने चली गई. विश्वनाथ को यह बात अच्छी नहीं लगी. वैसे भी उन्हें अपने कुछ मित्रों से मिलने जाना था. उन्होंने पत्नी को आवाज दी, ‘‘लता उठो, मुझे चाय पीनी है. चायनाश्ता बना दो. मुझे बाहर जाना है.’’

जब लता की ओर से कोई उत्तर नहीं मिला तो उन्होंने दोबारा आवाज दी. इस बार वमसी लता मन मसोस कर किचन में गई और चाय बनाने लगी.

लता चाय बना कर लाई और स्वभाव के अनुसार उन्हें घूर कर देखते हुए चाय रख कर चली गई.

विश्वनाथ ने लता को जाते देख गंभीर स्वर में कहा, ‘‘लता बैठो, मैं तुम से और बच्चों से मिलने आया हूं. कुछ दिन तुम लोगों के साथ गुजारूंगा.’’

लता जाते हुए बोली, ‘‘मैं, मेरे बच्चे तुम से कोई मतलब नहीं रखना चाहते. तुम खुद को बदल नहीं सकते तो इन बातों का क्या मतलब?’’

‘‘लता, तुम तो मेरा स्वभाव जानती हो. मुझे गुस्सा जल्दी आ जाता है, पर मैं खुद को बदल लूंगा.’’

‘‘मैं विश्वास कर सकती हूं क्योंकि मैं पत्नी हूं. लेकिन तुम क्या वाकई अपने आप को बदल सकते हो? मैं ऐसा वादा तुम्हारे मुंह से हजारों बार सुन चुकी हूं. रात में शराब पी कर फिर शैतान बन जाते हो.’’

के. विश्वनाथ शर्मा ने आवाज में दृढ़ता लाने का प्रयास करते हुए कहा, ‘‘मैं वाकई बदलना चाहता हूं. मेरा यकीन करो.’’

‘‘अच्छा, बातें बाद में होंगी, पहले चाय पी लो.’’ कह कर वमसी लता अपने कमरे में चली गई.

विश्वनाथ चाय की चुस्कियां लेते हुए मन ही मन सोच रहे थे कि वह कहां गलत हैं. शराब पीना, पत्नी पर हाथ उठाना. मगर यह भी तो नहीं सुधरी, इस का भी तो फर्ज है पति की भावनाओं का सम्मान करे.

चाय पी कर विश्वनाथ ने लता के कमरे की ओर देखा. वह कमरे का दरवाजा बंद कर के सो गई थी.

यह देख कर उन्हें बहुत कोफ्त हुई. सोचा क्या यही पत्नी धर्म है? मैं 6 महीने बाद आया हूं और यह महारानी मुझ से बातें किए बिना जा कर सो गई. सोच कर उन्हें गुस्सा आने लगा. उन्होंने धीरे से दरवाजा खटखटाया लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई.

उन्होंने दरवाजा जोर से खटखटाया तो खुल गया. सामने आंखों में गुस्से की आग समेटे वमसी लता खड़ी थी. उस ने पति को ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा, ‘‘क्या बात है, क्या चाहते हो तुम?’’

‘‘तुम ने दरवाजा क्यों बंद कर लिया था, मैं क्या कुत्ता हूं जिसे बाहर से भगा दोगी. पति बाहर से आया है, और तुम त्रियाचरित्र दिखा रही हो.’’ के. विश्वनाथ का क्रोध जाग उठा.

‘‘साफसाफ सुनना चाहते हो सुनो, मैं तुम से कोई संबंध नहीं रखना चाहती.’’

‘‘तुम ऐसा क्यों कह रही हो. मैं कहां गलत हूं.’’

‘‘मैं 20 वर्षों से तुम्हारी नसनस से वाकिफ हूं. तुम इंसान नहीं हो, मैं औरत हूं, 2 बच्चों की मां. चाहती हूं कि मेरा घर संसारसुखी हो. लेकिन ऐसा नहीं हो सकता. तुम होने ही नहीं दोगे.’’

‘‘देखो, मैं अपनी जिम्मेदारी निभा रहा हूं मेरा सब कुछ तुम्हारा और बच्चों का है. मैं ने तुम्हें सारी सुखसुविधाएं दी हैं. फिर मेरे साथ ऐसा कठोर बर्ताव क्यों? लगता है, तुम ऐसे नहीं मानोगी.’’ कहते हुए विश्वनाथ ने वमसी लता की पिटाई शुरू कर दी.

होहल्ला सुन कर सीमा और राजेश आ गए. दोनों छिप कर मातापिता को लड़ते देख रहे थे. जब विश्वनाथ लता को पीटतेपीटते थक गए तो गालियां देते हुए अपने कमरे में जा कर बैठ गए और चिल्लाचिल्ला कर कहने लगे, ‘‘ऐसा है, तो मेरी नजरों से दूर चली जाओ. छोड़ दो मेरा घर. जहां तुम्हें सुखचैन मिले, वहीं चली जाओ अपने बच्चों को ले कर.’’

प्यार की भूल : सब्र की सीमा ने किया परिवार तबाह – भाग 1

गली में जैसे ही बाइक के हौर्न की आवाज सुनाई दी, शमा के साथसाथ उस की सहेलियां भी चौंक उठीं. क्योंकि वह बाइक शमा के प्रेमी नरेंदर की थी. नरेंदर अपनी बाइक से कपड़ों की फेरी लगाता था. शमा के घर के नजदीक पहुंचते ही वह बारबार हौर्न बजाता. तभी तो बाइक के हौर्न की आवाज सुनते ही एक सहेली ने शमा को छेड़ते हुए कहा, ‘‘लो जानेमन, आ गई तुम्हारे यार की कपड़ों की चलतीफिरती दुकान.’’

‘‘हट बदमाश, तू तो ऐसे कह रही है जैसे वह केवल मेरे लिए ही यहां आता है. क्या मोहल्ले का और कोई उस से कपडे़ नहीं खरीदता है?’’

‘‘और नहीं तो क्या, वह तेरे लिए ही तो इस गांव में आता है.’’ सहेलियों ने शमा को छेड़ते हुए कहा, ‘‘वह बेचारा तो सारे गांव छोड़ कर पता नहीं कहां से धक्के खाता हुआ तेरे दीदार के लिए इस गांव में आता है.’’

सहेलियों की चुहलबाजी से शमा शरमा गई और उन के बीच से उठ कर अपने कमरे में चली गई.

जब वह कमरे से बाहर निकली तो गुलाबी रंग का फूलों के प्रिंट वाला सुंदर सूट पहन कर आई थी. यह सूट पिछले सप्ताह नरेंद्र ने उसे यह कहते हुए दिया था कि इसे सिलवा कर तुम ही पहनना, किसी और को मत देना. इसे मैं अमृतसर से सिर्फ तुम्हारे लिए ही लाया हूं. यूं समझो शमा, यह सूट मेरे प्यार की निशानी है.

नरेंदर के दिए उसी सूट को पहन कर शमा घर से निकली. नरेंदर उस के सामने खड़ा था. जैसे ही वह घर से बाहर आई, उसे देख कर वह खुश हो गया. वह मंत्रमुग्ध सा हो कर उसे ऊपर से नीचे तक देखता रह गया था. उस सूट ने उस की खूबसूरती में चारचांद लगा दिए थे. वह किसी अप्सरा से कम सुंदर नहीं लग रही थी.

घर की ओट में खड़ी शमा की सहेलियां जब जोरजोर से हंसी तो शमा और नरेंदर की तंद्रा भंग हुई. घबराहट और शरम से भरी शमा ने जल्दीजल्दी नरेंद्र से कहा, ‘‘अच्छा, मैं चलती हूं.’’

नरेंदर ने आगे बढ़ कर उस का हाथ पकड़ लिया, ‘‘नहीं शमा, आज नहीं. आज मुझे तुम से बहुत जरूरी बात करनी है.’’

शमा के कदम वहीं रुक गए.

जालंधर शहर की बस्ती शेख निवासी नरेश चौहान के 2 बेटे थे सुरेंदर चौहान और नरेंदर चौहान. कई साल पहले किसी वजह से नरेश की मृत्यु हो गई, जिस की वजह से परिवार का भार उन की पत्नी सुदेश कुमारी के ऊपर आ गया. जो सगेसंबंधी थे, उन्होंने भी मदद करने के बजाय सुदेश का साथ छोड़ दिया था. मेहनतमजदूरी कर के उन्होंने जैसेतैसे दोनों बच्चों का पालनपोषण किया. जहां तक हो सका, उन्हें पढ़ाया भी.

बड़ा बेटा सुरेंदर जब जवान हो कर किसी फैक्ट्री में काम करने लगा तो घर के हालात कुछ सामान्य हुए. कुछ समय बाद उस ने कुछ रुपए इकट्ठे कर के और कुछ इधरउधर से कर्ज ले कर छोटे भाई नरेंदर को कपड़े का काम करवा दिया. उसे एक मोटरसाइकिल भी खरीदवा दी. नरेंदर सुबह कपड़े का गट्ठर बांध कर अपनी बाइक पर रखता और जालंधर से बाहर दूरदूर गांवों में जा कर कपड़ा बेचता.

मोटरसाइकिल से गांवगांव घूम कर कपड़ों की फेरी लगाने पर उस का काम चल निकला. अब दोनों भाई कमाने लगे तो वे पैसे मां को दे देते. मां ने पैसे जोड़जाड़ कर बड़े बेटे सुरेंदर की शादी कर दी.

पर शादी के कुछ दिनों बाद वह अपनी पत्नी को ले कर अलग रहने लगा था. जबकि नरेंदर मां के साथ रहता था. नरेंदर खूब मेहनत कर रहा था. उस का व्यवहार भी अच्छा था जिस की वजह से उसे ठीकठाक आमदनी हो जाती थी.

एक बार वह कपड़े बेचने के लिए नंगल लाहौरा गांव गया. वहां की रहने वाली भोलीनामक महिला उसे अपने घर बुला कर ले गई.

उस दिन भोली व उस की बेटी शमा ने उस से 5 हजार रुपए के कपड़े खरीदे. उसी समय उस की मुलाकात शमा से हुई थी. शमा बहुत खूबसूरत थी. उसी दिन उस की शमा से आंखें लड़ गईं.

इस के बाद वह नंगल लाहौरा गांव का रोजाना ही चक्कर लगाता और शमा के घर के नजदीक बाइक पहुंचते ही बारबार हौर्न बजाता.

हौर्न की आवाज सुनते ही शमा घर से बाहर निकल आती थी. दोनों एकदूसरे को देख कर मुसकराने लगते थे. कभीकभी अच्छे कपड़े दिखाने की बात कह कर वह भोली के घर में भी चला जाता था.

जब नरेंदर उस के यहां ज्यादा ही आनेजाने लगा तो शमा के घर वालों ने उस से बेरुखी से बात करनी शुरू कर दी. इस बारे में नरेंदर ने शमा से फोन पर पूछा तो शमा ने घर वालों की नाराजगी के बारे में बता दिया. घर वालों से चोरीछिपे शमा नरेंदर से मिलती रही. उन की फोन पर भी बात होती रहती. इस तरह उन का प्यार परवान चढ़ता रहा. यह सन 2004 की बात है.

नरेंदर शमा की पूरी पारिवारिक स्थिति जान गया था. शमा की 5 बहनें और एक भाई था. पिता की पहले ही मौत हो चुकी थी. घर की पूरी जिम्मेदारी शमा की मां भोली के कंधों पर ही थी. शमा की बड़ी बहन शादी लायक थी, उस के लिए भोली कोई अच्छा लड़का तलाश रही थी.

नरेंदर जितना शमा को चाहता था, उस से कई गुना अधिक शमा भी उस से प्यार करती थी. नरेंदर हृष्टपुष्ट और भला लड़का था. वह कमा भी अच्छा रहा था, इसलिए उसे उम्मीद थी कि शमा की शादी उस से कर देने पर भोली को कोई ऐतराज नहीं होगा.

पर पता नहीं क्यों नरेंदर ने किसी के माध्यम से शमा से शादी करने का प्रस्ताव भोली के पास भेजा तो भोली ने उस के साथ बेटी का रिश्ता करने से साफ इनकार कर दिया. इस से दोनों प्रेमियों के इरादों पर पानी फिर गया.

ऐसे प्रेमियों के पास घर से भाग कर शादी करने के अलावा कोई और दूसरा रास्ता नहीं बचता, सो शमा और नरेंदर ने भी घर से भाग कर शादी करने की योजना बनाई.

नरेंदर ने मंदिर के पंडित से ले कर वकील तक का इंतजाम कर के शमा से कहा, ‘‘शमा, अब मेरी बात गौर से सुनो. मैं ने शादी की सारी तैयारियां पूरी कर ली हैं. कल सुबह तुम्हें किसी बहाने से अपने गांव से निकल कर बसअड्डे पहुंचना है. फिर वहां से कोई बस पकड़ कर तुम जालंधर आ जाना. मैं तुम्हें वहीं मिलूंगा. वहां से हम साथसाथ चंडीगढ़ चलेंगे और वहीं शादी कर लेंगे. तुम चिंता मत करो, मैं ने सारा इंतजाम कर लिया है.’’

‘‘मैं घर से कपड़े भी लेती आऊं?’’ शमा ने पूछा.

‘‘नहीं, तुम्हें कुछ भी साथ लाने की जरूरत नहीं है. तुम बस इतना करना कि टाइम से पहुंच जाना.’’ नरेंदर ने शमा को अच्छी तरह समझा दिया था. इतना ही नहीं उस ने किराएभाड़े के लिए कुछ पैसे भी उसे दे दिए थे.

एक रोटी के लिए हत्या – भाग 1

सन 1974 में राजेश खन्ना मुमताज अभिनीत मनमोहन देसाई के निर्देशन में एक फिल्म आई थी ‘रोटी’. इस सुपरहिट फिल्म में राजेश खन्ना द्वारा निभाया गया पात्र मात्र एक रोटी की खातिर अपराधी बन गया था. इस रोटी फिल्म की तरह इस कहानी में भी एक नौकर रोटी के लिए रोजी नाम की अपनी मालकिन का कत्ल कर बैठा. इत्तफाक यह भी है कि रोटी फिल्म के नायक राजेश खन्ना की तरह इस नौकर का नाम भी राजेश ही है. प्रस्तुत कहानी पढ़ने के बाद पाठक यह तय करें कि फिल्म ‘रोटी’ या रोजी हत्याकांड में क्या ऐसा करना जरूरी था. क्या इस समस्या का कोई दूसरा समाधान या विकल्प नहीं हो सकता था?

राजेश उर्फ विलट पासवान गांव बथनी राम पट्टी, जिला मधुबनी, बिहार का रहने वाला था और पिछले लगभग डेढ़ साल से हरियाणा के जिला यमुनानगर के जगाधरी की न्यू जैन नगर कालोनी में रहने वाले राजिंदर सिक्का की कोठी पर काम कर रहा था.

राजिंदर सिक्का शहर के सब से बड़े उद्यमी और बालाजी स्टोन क्रेशर के मालिक थे. राजेश उस से पहले खिदराबाद स्थित आर.के. स्टोन क्रेशर में काम करता था.

वहां उसे कम तनख्वाह मिलती थी. इसलिए खिदराबाद से काम छोड़ कर वह राजिंदर सिक्का के यहां चला आया था. यहां उसे खानेपीने और रहने के अलावा 8 हजार रुपए मासिक वेतन मिलता था. राजिंदर सिक्का ने उसे अपनी कोठी के सामने वाले प्लौट में रहने  के लिए कमरा दे रखा था.

15 मई, 2019 की रात को राजेश को जल्दी सोना था. इस की वजह यह थी कि अगली सुबह यानी 16 तारीख को उसे जल्दी उठना था. क्योंकि 16 तारीख को राजिंदर सिक्का को पहले कचहरी और उस के बाद अपने क्रेशर पर जाना था. पिछले 20 दिनों से वह घर पर ही थे. वजह यह थी कि उन का औपरेशन हुआ था.

दरअसल राजिंदर सिक्का का वजन जरूरत से ज्यादा बढ़ रहा था, इसलिए डाक्टरों की सलाह पर उन्होंने अपना वजन कम करने के लिए औपरेशन करवाया था. बहरहाल 16 मई को राजेश 7 बजे उठ गया था.

सब से पहले उस ने कोठी में खड़ी कार धोई. उस के बाद राजेश ने राजिंदर सिक्का की ड्रेसिंग के बाद सब के लिए नाश्ता बनाया और परोसा. करीब पौने 11 बजे राजिंदर सिक्का अपने बेटे दीपांशु उर्फ मोंटी के साथ घर से निकल गए. घर पर राजेश के अलावा दीपांशु की पत्नी रोजी और उस का 7 महीने का बच्चा रह गए थे.

राजिंदर और दीपांशु के चले जाने के बाद राजेश ने पूरी कोठी की सफाई की, फिर वह छत के पंखों की सफाई करने लगा. यह सारा काम निपटाने के बाद वह सामने वाले प्लौट में कपड़े धोने चला गया. कपडे़ धो कर उन्हें मशीन में ड्राई कर सुखाना था. मशीन कोठी में रखी थी.

वह जब कपड़े ले कर कोठी पर पहुंचा, कोठी का दरवाजा अंदर से बंद था. दरवाजा खुलवाने के लिए उस ने रोजी को कई आवाजें दीं पर अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. वह काफी देर तक दरवाजा पीटता रहा. अंत में हार कर उस ने दीपांशु को फोन कर बताया कि मशीन में कपड़े सुखाने हैं पर भाभीजी दरवाजा नहीं खोल रही हैं.

दीपांशु ने उसे कहा कि वह रोजी को फोन करता है तब तक वह कपड़े कोठी के लौन में फैला दे. यह दोपहर डेढ़ बजे की बात है. इस के लगभग 10 मिनट बाद हिमांशु का फोन राजेश के फोन पर आया. दीपांशु ने कहा कि वह भी काफी देर से रोजी का फोन ट्राई कर रहा है पर वह फोन नहीं उठा रही. तुम कोठी में जा कर देखो, क्या बात है.

‘‘लेकिन मैं अंदर जाऊंगा कैसे,’’ राजेश ने कहा, ‘‘कोठी का गेट अंदर से बंद है. मैं ने इतना दरवाजा पीटा पर भीतर से कोई आवाज ही नहीं आई.’’

‘‘ठीक है, तुम किसी तरह दीवार फांद कर भीतर जाओ और जो बात हो मुझे तुरंत बताओ.’’ दीपांशु बोला.

दीपांशु के कहने पर राजेश कोठी की दीवार फांद कर भीतर गया. लेकिन भीतर का नजारा देख उस ने दीपांशु को फोन करने के साथसाथ शोर मचाना भी शुरू कर दिया. उस की चीखें सुन कर पड़ोसी दौड़े चले आए. पड़ोसियों ने जब भीतर झांक कर देखा तो उन के भी होश उड़ गए. उन्होंने पुलिस कंट्रोल रूम नंबर को 100 व एंबुलेंस कंट्रोल नंबर 102 पर 20 से ज्यादा बार फोन किया, लेकिन किसी ने भी फोन रिसीव नहीं किया.

तब तक राजिंदर सिक्का और दीपांशु भी वहां पहुंच गए थे. कंट्रोल रूम में जब किसी ने फोन नहीं उठाया तो वे लोग अर्जुन नगर पुलिस चौकी पहुंचे और मामले की जानकारी पुलिस को दे दी. मामला हाईप्रोफाइल फैमिली से जुड़ा होने के चलते एसपी कुलदीप यादव खुद मौके पर पहुंचे.

उन से पहले डीएसपी (हेडक्वार्टर) सुभाष, डीएसपी (जगाधरी) सुधीर व डीएसपी प्रदीप, जगाधरी सिटी एसएचओ राकेश, सीआईए-2 इंचार्ज श्रीभगवान यादव समेत अन्य पुलिस अधिकारियों के अलावा क्राइम टीम भी मौके पर पहुंच गई. यह घटना 16 मई, 2019 की है.

जगाधरी की न्यू जैन नगर कालोनी में रहने वाले स्टोन क्रेशर उद्यमी राजिंदर सिक्का के घर का दृश्य दिल दहला देने वाला था. किसी ने दीपांशु की पत्नी रोजी सिक्का की गला काट कर हत्या कर दी थी. फर्श पर चारों ओर खून ही खून फैला हुआ था. सोफे पर भी खून, यहां तक मृतका का गला काटते समय खून की धार दीवार से भी टकराई थी. जिस के ताजा छींटे इस बात की गवाही दे रहे कि हत्या हुए ज्यादा समय नहीं हुआ है.

7 महीने का मासूम बच्चा अपनी मां की लाश के पास बैठ कर उस की छाती से लिपट कर रो रहा था. बाद में नौकर राजेश जब कमरे में आया तो उस ने बच्चे को संभाला.

घर के बाहर गली में भी खून बिखरा हुआ था. आशंका जताई जा रही थी कि हत्यारा वारदात को अंजाम देने के बाद दीवार फांद कर इसी रास्ते से बाहर भागा होगा, जिस से गली में खून के निशान बन गए थे. क्राइम टीम ने खून के छींटों की जांच की और जगहजगह से फिंगरप्रिंट उठाए.

मामा का खूनी सिंदूर : परिवार ही बना निशाना – भाग 1

उस दिन जनवरी, 2020 की 2 तारीख थी. सुबह के 10 बज रहे थे. एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह अपने कक्ष में मौजूद थे. तभी उन के कक्ष में सर्विलांस टीम प्रभारी शैलेंद्र सिंह ने प्रवेश किया. शैलेंद्र सिंह के अचानक आने पर वह समझ गए कि जरूर कोई खास बात है. उन्होंने पूछा, ‘‘शैलेंद्र सिंह, कोई विशेष बात?’’
‘‘हां सर, खास बात पता चली है, सूचना देने आप के पास आया हूं.’’ शैलेंद्र सिंह ने कहा.
‘‘बताओ, क्या बात है?’’ एसपी ने पूछा.

‘‘सर, 3 महीने पहले थाना गुरसहायगंज के गौरैयापुर गांव में जो डबल मर्डर हुआ था, उस के आरोपियों की लोकेशन पश्चिम बंगाल के हुगली शहर में मिल रही है. अगर पुलिस टीम वहां भेजी जाए तो उन की गिरफ्तारी संभव है.’’ शैलेंद्र सिंह ने बताया.  शैलेंद्र सिंह की बात सुन कर एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह चौंक गए. इस की वजह यह थी कि इस दोहरे हत्याकांड ने उन की नींद उड़ा रखी थी. लोग पुलिस की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े कर रहे थे. कानूनव्यवस्था को ले कर राजनीतिक रोटियां भी सेंकी जा रही थीं.

दरअसल, गौरैयापुर गांव में रमेशचंद्र दोहरे और उन की पत्नी ऊषा की हत्या कर दी गई थी. उन की युवा बेटी संगीता घर से लापता थी. घर में लूटपाट होने के भी सबूत मिले थे. इसलिए यही आशंका जताई गई थी कि बदमाशों ने लूटपाट के दौरान दंपति की हत्या कर दी और उस की बेटी संगीता का अपहरण कर लिया.लेकिन बाद में जांच से पता चला कि संगीता के अपने ममेरे भाई प्रवींद्र से नाजायज संबंध थे. इस से यह आशंका हुई कि कहीं इन दोनों ने ही तो इस हत्याकांड को अंजाम नहीं दिया. पुलिस उन की तलाश में जुटी थी और पुलिस ने उन दोनों की सही जानकारी देने वाले को 25-25 हजार रुपए का ईनाम भी घोषित कर दिया था. उन के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगे थे, जिन की लोकेशन पश्चिम बंगाल के हुगली शहर की मिल रही थी.

सर्विलांस टीम प्रभारी शैलेंद्र सिंह से यह सूचना मिलने के बाद एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह ने तत्काल एएसपी के.सी. गोस्वामी को कार्यालय बुलवा लिया. उन्होंने उन्हें दोहरे हत्याकांड के आरोपियों के बारे में जानकारी दी. फिर उन के निर्देशन में एसपी ने एक पुलिस टीम गठित कर दी.टीम में गुरसहायगंज के थानाप्रभारी नागेंद्र पाठक, इंसपेक्टर विजय बहादुर वर्मा, टी.पी. वर्मा, दरोगा मुकेश राणा, सिपाही रामबालक तथा महिला सिपाही कविता को सम्मिलित किया गया.

यह टीम संगीता और प्रवींद्र की तलाश में पश्चिम बंगाल के हुगली शहर के लिए रवाना हो गई.4 जनवरी को पुलिस टीम पश्चिम बंगाल के हुगली शहर पहुंच गई और स्थानीय थाना भद्रेश्वर पुलिस से संपर्क कर अपने आने का मकसद बताया. दरअसल, प्रवींद्र के मोबाइल फोन की लोकेशन उस समय भद्रेश्वर थाने के आरबीएस रोड की मिल रही थी, जो झोपड़पट्टी वाला क्षेत्र था.

झोपड़पट्टी में ज्यादातर मजदूर लोग रह रहे थे. पुलिस टीम ने थाना भद्रेश्वर पुलिस की मदद से छापा मारा और एक झोपड़ी से संगीता और प्रवींद्र को हिरासत में ले लिया. जिस झोपड़ी से उन दोनों को हिरासत में लिया था, वह झोपड़ी नगमा नाम की महिला की थी.

पकड़ में आए प्रवींद्र और संगीता

नगमा ने पुलिस को बताया कि करीब ढाई महीने पहले प्रवींद्र और संगीता ने झोपड़ी किराए पर ली थी. प्रवींद्र ने संगीता को अपनी पत्नी बताया था. दोनों मजदूरी कर अपना भरणपोषण करते थे. नगमा को जब पता चला कि दोनों हत्यारोपी हैं तो वह अवाक रह गई.पुलिस टीम ने संगीता और प्रवींद्र को हुगली की जिला अदालत में पेश किया. अदालत से ट्रांजिट रिमांड पर ले कर पुलिस दोनों को कन्नौज ले आई. एएसपी गोस्वामी तथा एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह ने संगीता और प्रवींद्र से एक घंटे तक पूछताछ की.

पूछताछ में दोनों ने सहज ही हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. हत्या का जुर्म कबूल करने के बाद एसपी अमरेंद्र प्रसाद ने प्रैसवार्ता कर दोहरे हत्याकांड का खुलासा किया.प्रवींद्र और संगीता से की गई पूछताछ में मामाभांजी के कलंकित रिश्ते की सनसनीखेज कहानी प्रकाश में आई.

उत्तर प्रदेश के कन्नौज का बड़ी आबादी वाला एक व्यापारिक कस्बा गुरसहायगंज है. यहां बड़े पैमाने पर आलू तथा तंबाकू का व्यवसाय होता है. बीड़ी के कारखानों में सैकड़ों मजदूर काम करते हैं. गुरसहायगंज कस्बा पहले फर्रुखाबाद जिले के अंतर्गत आता था लेकिन जब कन्नौज नया जिला बना तो यह कस्बा कन्नौज जिले का हिस्सा बन गया.

इसी गुरसहायगंज कस्बे से करीब 5 किलोमीटर दूर सौरिख रोड पर बसा है एक गांव गौरैयापुर. कोतवाली गुरसहायगंज के अंतर्गत आने वाले इसी गांव में रमेशचंद्र दोहरे का परिवार रहता था. उस के परिवार में पत्नी ऊषा देवी के अलावा एक बेटी संगीता थी. रमेशचंद्र के पास 3 बीघा खेती की जमीन थी. उसी की उपज से वह परिवार का भरणपोषण करता था.

संगीता सुंदर थी. जब उस ने 17वां बसंत पार किया तो उस की सुंदरता में गजब का निखार आ गया, बातें भी बड़ी मनभावन करती थी. लेकिन पढ़ाईलिखाई में उस का मन नहीं लगता था. जिस के चलते वह 8वीं कक्षा से आगे नहीं पढ़ सकी. इस के बाद वह घर के रोजमर्रा के काम में मां का हाथ बंटाने लगी. संगीता जिद्दी स्वभाव की थी. वह जिस चीज की जिद करती, उसे हासिल कर के ही दम लेती थी.संगीता के घर प्रवींद्र का आनाजाना लगा रहता था. वह संगीता की मां ऊषा देवी का सगा छोटा भाई था यानी संगीता का सगा मामा. वह हरदोई जिले के कतन्नापुर गांव का रहने वाला था और अकसर अपनी बहन ऊषा के ही घर पड़ा रहता था. जब भी आता हफ्तेदस दिन रुकता था. ऊषा का पति रमेशचंद्र इसलिए कुछ नहीं बोलता था क्योंकि वह उस का साला था.

संगीता और प्रवींद्र हमउम्र थे. प्रवींद्र उस से 2 साल बड़ा था. हमउम्र होने के कारण दोनों में खूब पटती थी. प्रवींद्र बातूनी था, इसलिए संगीता उस की बातों में रुचि लेती थी. ऊषा समझती थी कि प्रवींद्र को उस से लगाव है, इसलिए वह उस के घर आता है. लेकिन सच यह था कि प्रवींद्र की लालची नजर अपनी भांजी संगीता पर थी. वह उसे अपने प्रेम जाल में फंसाने के लिए आता था.

प्रवींद्र ने अपने व्यवहार से बहन और बहनोई के दिल में ऐसी जगह बना ली थी कि वे उसे अपना हमदर्द समझने लगे थे. वे लोग उस से सुखदुख की बातें भी साझा करते थे. दरअसल, रमेशचंद्र उसे इसलिए वफादार समझने लगे थे क्योंकि प्रवींद्र उन के खेती के कामों में भी हाथ बंटाने लगा था. खाद बीज लाने की जिम्मेदारी भी वही उठाता था. इन्हीं सब कारणों से प्रवींद्र रमेश की आंखों का तारा बन गया था.

हमारे समाज में युवा हो रही लड़कियों के लिए तमाम बंदिशें होती हैं. वह किसी बाहरी लड़के से हंसबोल लें तो उन्हें डांट पड़ती है. यह उम्र जिज्ञासाओं की होती है. मन हवा में उड़ान भरने को मचलता है.

माशूका की खातिर : अपनी ही गृहस्थी को क्यों उजाड़ा – भाग 1

3 अक्तूबर, 2017 को भैरवनाथ के छोटे बेटे अभय का जन्मदिन था. उस ने इस अवसर पर घर पर एक पार्टी का आयोजन किया था. उस पार्टी में भैरवनाथ ने बोकारो से अपने पिता राजेंद्र प्रसाद और मां गायत्री देवी को भी धनबाद में अपने कमरे पर बुला लिया था. पार्टी में भैरवनाथ ने कालोनी में रहने वाले अपने कुछ जानने वालों को भी बुलाया था. देर रात तक चली पार्टी में भैरवनाथ के बच्चों ने भी खूब मजे किए. बच्चों के साथ बड़ों ने भी इस मौके पर खूब डांस किया था.

कुल मिला कर पार्टी सब के लिए यादगार रही. पार्टी एंजौय से घर के सभी लोग थक गए थे. उन की टांगों ने जवाब देना शुरू कर दिया था, इसलिए वे अपनेअपने कमरों में सोने के लिए चले गए. थकान की वजह से उन्हें जल्द ही नींद भी आ गई.

अगली सुबह रोजमर्रा की तरह घर में सब से पहले राजेंद्र प्रसाद उठे. देखा घर में सन्नाटा पसरा था. उन्होंने सोचा कि रात काफी देर तक बच्चों ने पार्टी का आनंद लिया था, उस की थकान की वजह से देर तक सो रहे हैं.

यही सोचते हुए वह घर से वह बाहर टहलने के लिए निकल गए. थोड़ी देर बाद जब वह वापस घर लौटे तो घर में वैसा ही सन्नाटा था, जैसा जाने से पहले था. यह देख कर उन का माथा ठनका. ऐसा पहली बार हुआ था कि जब बहू अनुपमा और बच्चे इतनी देर तक सो रहे हैं. वह बच्चों को उठाना चाहते थे.

राजेंद्र प्रसाद पहले बेटे भैरवनाथ के कमरे तक गए तो उस के कमरे पर बाहर से सिटकनी बंद मिली. यह देख कर वे चौंक गए कि सुबहसुबह बेटा और बहू बच्चों को ले कर कहां चले गए, जबकि बाहर जाते हुए वह उन्हें दिखाई भी नहीं दिए थे. सिटकनी खोल कर जैसे ही उन्होंने दरवाजे से भीतर झांका तो बुरी तरह चौंके. बैड पर बहू अनुपमा और दोनों बच्चों की रक्तरंजित लाशें पड़ी थीं. वे चीखते हुए उल्टे पांव वहां से भाग खड़े हुए.

चीखने की आवाज सुन कर उन की पत्नी गायत्री देवी की नींद टूट गई. वह तेजी से उस ओर लपकीं, जिस तरफ से आवाज आई थी. उन्होंने देखा कि आंगन के पास उन के पति खड़े थरथर कांप रहे थे. अभी भी गायत्री ये नहीं समझ पा रही थीं कि उन्होंने ऐसा क्या देख लिया जो कांप रहे हैं. उन्होंने पति को झकझोरते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘अरे भैरव की मां, गजब हो गया. किसी ने बहू और दोनों बच्चों का कत्ल कर दिया है. बिस्तर पर तीनों की लाशें पड़ी हैं.’’ कह कर राजेंद्र प्रसाद जोरजोर से रोने लगे.

इतना सुनना था कि गायत्री भी रोनेबिलखने लगीं. वह रोती हुई बोलीं, ‘‘अरे भैरव को बुलाओ, देखो कहां है?’’

‘‘घर में वह कहीं दिखाई नहीं दे रहा. पता नहीं सुबहसुबह कहां चला गया.’’ राजेंद्र प्रसाद ने कहा.

भैरवनाथ के घर में सुबहसुबह रोने की आवाज पड़ोसियों ने सुनी तो वे भी परेशान हो गए. इंसानियत के नाते कुछ लोग भैरवनाथ के घर जा पहुंचे. कमरे में 3-3 लाशें देख कर उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. इस के बाद तो देखतेदेखते वहां मोहल्ले के काफी लोग जमा हो गए.

दिल दहला देने वाली घटना को देख कर लोगों का कलेजा कांप उठा. उसी दौरान किसी ने 100 नंबर पर फोन कर के सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. धनबाद की न्यू कालोनी जहां यह घटना घटी थी, वह क्षेत्र बरवा अड्डा के अंतर्गत आता है, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम से सूचना थाना बरवा अड्डा को प्रसारित कर दी गई.

तिहरे हत्याकांड की सूचना मिलते ही बरवा अड्डा के थानाप्रभारी मनोज कुमार एसआई दिनेश कुमार और अन्य पुलिस वालों के साथ न्यू कालोनी पहुंच गए. यह जानकारी उन्होंने एसपी पीयूष कुमार पांडेय और डीएसपी मुकेश कुमार महतो को भी दे दी. सूचना दे कर उन्होंने डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीम को भी मौके पर बुला लिया.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल की जांच शुरू कर दी थी. छानबीन के दौरान सब से पहले थानाप्रभारी मनोज कुमार ने राजेंद्र प्रसाद और उन की पत्नी गायत्री देवी से पूछताछ की. उन से पता चला कि भैरवनाथ सुबह से ही गायब है. वह कहीं दिखाई नहीं दिया. यह सुन कर थानाप्रभारी का माथा ठनका.

लाश के पास धमकी भरा पत्र भी मिला

छानबीन के दौरान घटनास्थल से आधार कार्ड की फोटोकौपी पर लाल स्याही से लिखा धमकी भरा 3 पन्नों का खत मिला. खत सिरहाने दूध की बोतल के नीचे दबा कर रखा गया था. लिखने वाले ने अपना नाम नहीं लिखा था. इस में अज्ञात ने राजेंद्र प्रसाद को धमकी दी थी, ‘‘गवाही देने के चलते तुम्हारे बेटे भैरवनाथ का अपहरण कर के ले जा रहे हैं. उस की भी लाश मिल जाएगी. तुम्हारे बेटे ने एक लाख दिया है. 2 लाख रुपए दे कर इसे ले जाना. पुलिस को इस की सूचना नहीं देना वरना अंजाम और भयानक हो सकता है.’’

पत्र पढ़ कर पुलिस को किसी साजिश की आशंका होने लगी.

पुलिस को शक था कि भैरवनाथ ने ही हत्या की वारदात को अंजाम देने के बाद जांच को गुमराह करने के लिए यह पत्र लिखा है. पुलिस कई बिंदुओं पर छानबीन करने लगी.

राजेंद्र प्रसाद से पुलिस ने भैरवनाथ का मोबाइल नंबर लिया. पुलिस ने जब उस नंबर पर काल की तो उस का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ आ रहा था. पुलिस ने मौके से बरामद पत्र को अपने कब्जे में ले लिया ताकि उसे जांच के लिए भेजा जा सके.

लाशों का मुआयना करने पर पता चला कि तीनों की हत्याएं अलगअलग तरीके से की गई थीं. अनुपमा का किसी चीज से गला घोंटा गया था, जबकि दोनों बच्चों की हत्या गला रेत कर की गई थी. दूसरे कमरे में अनुपमा के कपड़े फर्श पर बिखरे पड़े मिले थे. अलमारी भी खुली हुई थी. लग रहा था जैसे उस में कुछ ढूंढा गया हो.

सीआईएसएफ की डौग स्क्वायड टीम ने घटनास्थल की जांच की. खोजी कुत्ता शव को सूंघने के बाद घर की सीढ़ी से छत के ऊपर गया और फिर नीचे उतर कर घर से करीब ढाई सौ मीटर दूर एक जुए के अड्डे तक पहुंचा. वहां शराब की बोतल और ग्लास मिले. टीम को शक हुआ कि हत्या के बाद हत्यारों ने यहां आ कर शराब पी होगी.

सूचना पा कर अनुपमा के पिता राजेंद्र राय परिवार के अन्य लोगों के साथ हजारीबाग के गैडाबरकट्ठा से मौके पर पहुंच गए. उन्होंने आरोप लगाया कि बेटी और उस के बच्चों को भैरवनाथ, उस के पिता राजेंद्र प्रसाद और मां गायत्री ने मिल कर मारा है.

उन से बातचीत करने के बाद पुलिस ने जरूरी काररवाई पूरी कर के जब लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भेजने की तैयारी की, तभी अनुपमा के घर वालों ने पुलिस का विरोध करते हुए मांग की कि पहले आरोपियों को गिरफ्तार किया जाए. घटना की सूचना पर विधायक फूलचंद मंडल, जिला पंचायत सदस्य दुर्योधन प्रसाद चौधरी, कांग्रेस नेता उमाचरण महतो आदि ने मौके पर पहुंच कर पीडि़त परिवार के लोगों को ढांढस बंधाया और एसपी पीयूष कुमार पांडेय से हत्या में शामिल लोगों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने की मांग की.

एसपी ने आश्वासन दिया कि जल्द ही केस का खुलासा कर हत्यारों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा. उन के आश्वासन के बाद ही घर वालों ने शव उठाने दिए.

अगले भाग में पढ़ें- अफेयर बना कलह की वजह

दीवानगी की हद से आगे मौत

बीते 10 अक्तूबर की रात की बात है, रतलाम के औद्योगिक क्षेत्र के थाने की थानाप्रभारी डीएसपी (ट्रेनिंग) मणिक मणि कुमावत थाने में बैठी थीं. तभी रतलाम के इंद्रानगर क्षेत्र में रहने वाला बाबूलाल चौधरी थाने पहुंचा. वह काफी घबराया हुआ था. बाबूलाल ने थानाप्रभारी को बताया कि वह इप्का फैक्ट्री में ठेकेदारी का काम करता है. उस के परिवार में उस के अलावा उस की पत्नी, एक बेटा नीलेश और बेटी रेणुका है.

बाबूलाल ने बताया कि उस का बेटा नीलेश बीती रात से घर नहीं लौटा है. बाबूलाल ने अपने साले ईश्वर जाट के 21 वर्षीय बेटे बादल पर शक जताते हुए कहा कि बादल ही नीलेश को साथ ले गया है. थानाप्रभारी मणि कुमावत के पूछने पर बाबूलाल ने दिनभर का घटनाक्रम बता दिया. बाबूलाल के अनुसार उस का बेटा नीलेश रतलाम के आईटीआई से डिप्लोमा कर रहा था. वह सुबह 7 बजे घर से निकलता था और 3 बजे घर लौट आता था. जब वह 4 बजे तक नहीं लौटा तो उस की मां और बहन ने मोबाइल पर उस से संपर्क किया.

लेकिन नीलेश का फोन स्विच्ड औफ था. बादल का फोन भी स्विच्ड औफ था. जब बारबार मिलाने पर फोन बंद मिलता रहा तो मांबेटी को चिंता हुई. वे दोनों नीलेश का पता लगाने के लिए आईटीआई पहुंची. उन्होंने नीलेश के दोस्तों और साथ पढ़ने वालों से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि सुबह नीलेश का मौसेरा भाई बादल जाट आया था, वही नीलेश को साथ ले गया.

बाबूलाल ने बताया कि उस के दूसरे साले रमेश जाट का बेटा जितेंद्र रतलाम में रह कर कोचिंग क्लासेज चलाता था. संभावना थी कि नीलेश और बादल जितेंद्र के पास चले गए हों. संगीता और रेणुका ने जितेंद्र से बात की.

उस ने बताया कि बादल सुबह उस के कोचिंग सेंटर आया था और उस के कमरे की चाबी मांग कर ले गया था. उस का कहना था कि वह गांव से अपनी पत्नी को ले कर आया है और कुछ देर उस के साथ गुजारना चाहता है. जितेंद्र ने उसे चाबी दे दी थी.

सवाल यह था कि बादल अगर अपनी पत्नी को ले कर आया था तो नीलेश को बुला कर ले जाने का कोई तुक नहीं था. एक सवाल यह भी था कि जब उस की पत्नी कविता नामली गांव में उस के साथ रहती थी तो बादल को उसे रतलाम ला कर उस के साथ कुछ समय गुजारने की क्या जरूरत थी.

यह जानकारी मिलने के बाद संगीता और रेणुका जितेंद्र के अलकापुरी स्थित घर पहुंचीं. वहां कमरे का दरवाजा खुला मिला, अंदर कोई नहीं था. मांबेटी ने अंदर जा कर देखा तो पता चला कमरे का फर्श पानी से धोया गया था. दीवारों पर खून के छींटे भी नजर आए.

बकौल बाबूलाल शाम को जब वह फैक्ट्री से लौट कर आया तो मांबेटी ने उसे पूरी बात बताई. उस के बाद ही वह रिपोर्ट दर्ज करवाने आया था. थानाप्रभारी कमावत को मामला गंभीर लगा. उन्होंने इस मामले की सूचना रतलाम के एसपी गौरव तिवारी को दी.

उन के निर्देश पर एडिशनल एसपी प्रदीप शर्मा के साथ सीएसपी विवेक सिंह चौहान, एसआई विजय सागरिया, एसआई और अमित शर्मा की टीम जितेंद्र के घर की जांच करने गई. वहां दीवारों पर खून के ताजे निशान पाए गए. पूछताछ के दौरान जितेंद्र ने बताया कि सुबह बादल उस की कोचिंग क्लास में गया था और घर की चाबी मांग कर ले गया था.

लेकिन जब वह शाम को घर आया तो वहां कोई नहीं था. दरवाजे भी खुले हुए थे. सीएसपी चौहान को मामला संदिग्ध लग रहा था.

कमरे की दीवारों पर लगे खून के निशान बता रहे थे कि कमरे में कुछ ऐसा हुआ है जो नहीं होना चाहिए था. पूछताछ में पुलिस इस बात का पता लगा चुकी थी कि उस रोज बादल के साथ उस के ताऊ का बेटा संदीप भी रतलाम आया था.

पुलिस अधीक्षक गौरव तिवारी के निर्देश पर थानाप्रभारी मणिक मणि कुमावत, एसआई विजय सागरिया, प्रमोद राठौर, एसआई अमित शर्मा, भूपेंद्र सिंह सोलंकी आदि की टीम बनाई गई. इस टीम ने बादल व उस के चचेरे भाई संदीप, पिता भूरूलाल जाट की खोजबीन शुरू की.

पुलिस की मेहनत बेकार नहीं गई. रात गहराते ही इस टीम ने बादल और संदीप को छत्री गांव से हिरासत में ले लिया. दोनों के चेहरों का रंग उड़ा देख टीआई कुमावत समझ गए कि नीलेश के साथ कुछ बुरा हो चुका है, इसलिए उन्होंने पूछताछ में सख्ती बरतनी शुरू कर दी.

नतीजा यह निकला कि सख्ती के चलते कुछ ही देर में बादल और संदीप ने नीलेश की हत्या की बात स्वीकार कर ली. उन्होंने बताया कि नीलेश की लाश रतलाम से 140 किलोमीटर दूर मांडू के पास घाटी में फेंकी थी. रात में 2 बजे पुलिस टीम लाश बरामद करने के लिए मांडू रवाना हो गई.

दिन निकलते ही पुलिस ने दोनों आरोपियों की निशानदेही पर मांडू से थेड़ा पहले आलमगीर गेट के पास 40 फुट गहरी खाई में पड़ा लोहे का बक्सा खोज निकाला.

इस बक्से को निकालने में पुलिस को काफी मेहनत करनी पड़ी. बक्से को खोला गया तो उस के अंदर दरी में लिपटी नीलेश की लाश मिल गई. लाश के हाथपैर बंधे हुए थे और उस के गले पर चाकू का गहरा घाव था.

जहां बक्से में लाश मिली थी, उस से थोड़ा पहले एक गहरी घटी में बेसबाल का बल्ला, चाकू और आरोपियों के कपड़े भी मिल गए. आरोपियों ने बताया कि मृतक का मोबाइल उन्होंने रतलाम से मांडू जाते समय कहीं रास्ते में फेंक दिया था.

मोबाइल खोजने के लिए पुलिस की एक टीम लगा दी गई. प्राथमिक काररवाई कर के पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए लाश धार के अस्पताल भेज दी.

पूछताछ के लिए दोनों आरोपियों को एक दिन के रिमांड पर लिया गया. पूछताछ में बादल जाट ने नीलेश की हत्या का जो कारण बताया, उस से कहानी कुछ इस तरह सामने आई.

नीलेश के पिता बाबूलाल मूलरूप से पचोड गांव के रहने वाले थे. पिछले कई दशकों से वह इप्का कंपनी में ठेका लिया करते थे, इंद्रलोक नगर में उन्होंने अपना घर बना लिया था और परिवार के साथ रहते थे.ठेकेदारी के चलते कंपनी के अधिकारियों से उन की अच्छी जानपहचान थी.

इसलिए बारहवीं के बाद उन्होंने बेटे नीलेश को आईटीआई से टर्नर ग्रेड का कोर्स करने की सलाह दी, ताकि पढ़ाई के बाद अपने संबंधों का लाभ उठा कर उसे आसानी से नौकरी दिला सकें.

नीलेश की एक मौसी बिलपांक थाना क्षेत्र के छत्री गांव में रहती थी. उस का बेटा बादल नीलेश का हमउम्र होने के साथसाथ उस का अच्छा दोस्त भी था. बादल 12वीं करने के बाद बीए कर रहा था. चूंकि उस के पिता की गांव में अच्छीखासीखेतीकिसानी थी, सो उसे नौकरी की चिंता नहीं थी.

बीते साल अप्रैल महीने में घर वालों ने उस की शादी मांडू इलाके के एक गांव में रहने वाली 18 वर्षीय कविता से कर दी थी. कविता केवल नाम की ही कविता नहीं थी, बल्कि उस के स्वभाव में भी कविता सी रचीबसी थी. खूबसूरत तो वह थी ही.

हाल ही में 18 साल पूरे करने वाली कविता का अल्हड़पन अभी गया नहीं था. शादी के समय जिस ने भी कविता को दुलहन के रूप में देखा, तो देखता ही रह गया. बारात में शामिल बड़ेबुजुर्ग जहां दुलहन में लक्ष्मी का रूप देख रहे थे, वहीं युवक रति का. नीलेश तो कविता को देख कर पगला सा गया था.

बहरहाल, बादल की शादी के कुछ दिन बाद नीलेश उसे भूल कर अपनी पढ़ाई में जुट गया. इसी दौरान एक रोज बादल कविता को ले कर रतलाम आया और दिन में आराम करने के लिए जितेंद्र से चाबी ले कर उस के कमरे पर पहुंच गया. उस ने भाभी को साथ ले कर आने की बात नीलेश को बताई.

साथ ही मिलने के लिए उसे जितेंद्र के कमरे पर बुला लिया. नीलेश जितेंद्र के घर पहुंचा तो बंद दरवाजे के पीछे से आ रही चूडि़यां खनकने की आवाज सुन कर चौंका. वह दरवाजे की झिर्री से अंदर झांकने लगा. उस ने कमरे के अंदर का नजारा देखा तो उस का खून गरम होने लगा.

छोटे से गांव से आई कविता देह के खेल में न केवल बादल का साथ दे रही थी, बल्कि उस माहौल में भी पूरी तरह डूबी हुई थी. कविता का यह रूप देख कर नीलेश का दिल और दिमाग दोनों घूम गए. उसे लगने लगा कि कविता अगर उसे मिल जाए तो उस की दुनिया भी रंगबिरंगी हो जाएगी. कुछ देर बाद जब कविता और बादल अलग हुए तो नीलेश ने दरवाजे पर दस्तक दी.

बादल ने दरवाजा खोल कर उसे अंदर बुला लिया. नीलेश जब तक वहां रहा, तब तक चोर निगाहों से कविता को ही निहारता रहा. बातबात में उस ने कविता से उस का वाट्सऐप नंबर ले लिया. इस के बाद उस ने कविता से वादा किया कि वह उसे रोज मैसेज भेजा करेगा.

इस के बाद नीलेश कविता को दिन में कईकई बार मैसेज भेजने लगा. कभीकभी वह फोन भी कर लेता था. कविता स्वभाव से चंचल तो थी ही, कभीकभी वह देवर से हंसीमजाक कर लेती थी. नीलेश तो जैसे भाभी से हंसीमजाक को अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानता था. धीरेधीरे वह नीलेश के मजाक का जवाब भी मजाक में देने लगी.

इस से नीलेश को लगा कि कविता उस की ओर आकर्षित है. इसी बात को ध्यान में रख कर कुछ दिन बाद वह उसे वाट्सऐप पर अश्लील चुटकुले और फोटो भी भेजने लगा. पहले तो कविता ने इस का कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन कुछ समय बाद वह भी ऐसे चुटकलों पर प्रतिक्रिया देने लगी. इसे लाइन क्लीयर मान कर नीलेश ने उसे अश्लील वीडियो भेजने शुरू कर दिए. साथ ही वह फोन पर मिलने की बात भी करने लगा.

बताते हैं कि कविता का गांव ज्यादा दूर नहीं था. 1-2 बार वह कविता से मिलने छत्री गांव भी पहुंच गया. लेकिन इस से पहले कि नीलेश की बात बन पाती, इस बात की बादल को खबर लग गई.

उस ने नीलेश से इस तरह की हरकतें बंद करने का कहा, लेकिन नीलेश कविता में ऐसा खो चुका था कि उसे कविता के सिवा कुछ और दिखता ही नहीं था. उस ने बादल की बात पर ध्यान नहीं दिया. वह पहले की तरह ही कविता को वाट्सऐप पर हर तरह के मैसेज, फोटो और वीडियो भेजता रहा.

इस बात को ले कर कई बार बादल और उस के बीच झगड़ा भी हुआ. इस के बावजूद नीलेश के सिर से कविता भाभी की चाहत का भूत नहीं उतरा तो बादल ने उस की हत्या करने की ठान ली.

इस के लिए योजना बना कर वह 10 अक्तूबर को अपने चचेरे भाई संदीप को ले कर रतलाम आया. रतलाम आ कर उस ने मौसेरे भाई जितेंद्र से झूठ बोल कर उस के कमरे की चाबी ले ली. फिर वह आईटीआई पहुंचा, जहां उस ने नीलेश से कविता के रतलाम आने की बात कही और उस से मिलने के लिए जितेंद्र के कमरे पर चलने को कहा.

कविता रतलाम आई है, बादल खुद उसे कविता से मिलवाने के लिए बुलाने आया है. यह सोच कर नीलेश के मन में लड्डू फूटने लगे. वह बिना सोचेसमझे क्लास छोड़ कर बादल के साथ अलकापुरी स्थित जितेंद्र के कमरे पर पहुंच गया.

वहां बादल कविता को मैसेज भेजने की बात को ले कर उस से विवाद करने लगा. नीलेश को भी तैश आ गया. उसे यह पता नहीं था कि बादल योजना बना कर आया है.

कुछ देर बाद बादल और संदीप ने उस के ऊपर बेसबाल के बल्ले से वार कर दिया. नीलश ने विरोध किया तो दोनों ने उस के हाथपैर बांध दिए. फिर दोनों ने उसे जी भर कर मारापीटा. बाद में बादल ने चाकू से उस का गला रेत दिया.

कुछ देर तड़पने के बाद नीलेश मर गया तो दोनों बाजार से बड़ा संदूक खरीद कर लाए और नीलेश की लाश बोरे में भरने के बाद दरी में लपेट कर संदूक में बंद कर दी.

इस के बाद वे फर्श पर गिरा खून साफ करने लगे. इसी दौरान जितेंद्र कोचिंग सेंटर से घर लौटने लगा तो उस ने बादल को फोन किया. इस से दोनों घबरा गए और दीवारों का खून साफ किए बिना मोटरसाइकिल पर नीलेश की लाश ले कर मांडू के लिए रवाना हो गए.

बादल की ससुराल मांडू के पास थी, वहां आतेजाते उस ने गहरी घाटियों को पहले से देख रखा था. रतलाम से 40 किलोमीटर दूर जा कर दोनों ने संदूक में बंद नीलेश की लाश आलमगीर दरवाजे के पास घाटी में फेंक दी.

इस के बाद दोनों अपने घर छत्री पहुंच गए, लेकिन तब तक पुलिस उन्हें पकड़ने के लिए घेरा डाल चुकी थी.

रतलाम के एसपी गौरव तिवारी और एएसपी प्रदीप शर्मा के निर्देशन और सीएसपी विवेक चौहान के नेतृत्व में थानाप्रभारी डीएसपी (प्रशिक्षु) मणिक मणि कुमावत की टीम में शामिल एसआई विजय सागरिया, प्रमोद राठौर अमित शर्मा आदि ने कुछ ही घंटों में दोनों आरोपियों को दबोच कर उन्हें सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

प्यार नहीं वासना के अंधे – भाग 1

औरत का दिल अगर किसी ऐरे गैरे नत्थू खैरे मर्द पर भी आ जाए तो वह अपना सब कुछ यहां तक कि शरीर भी उसे सौंप देने में लिहाज नहीं करती. लेकिन उलट इस के यह बात भी सौ फीसदी सच है कि अगर वह जिद पर उतारू हो आए तो कोई मर्द लाख मिन्नतों और जबरदस्ती के बाद भी उस का जिस्म हासिल नहीं कर सकता, भले ही उसे अपनी जान क्यों न देनी पड़ जाए.

यही रुखसार के साथ हुआ था लेकिन उसे नशे की झोंक में आखिरी सांस तक इस बात पर हैरत कम अफसोस ज्यादा रहा होगा कि कभी उस के शौहर रहे सादिक ने ही अपने पेशे कसाईगिरी के मुताबिक उस के उस जिस्म जिस के लिए तलाक के बाद भी वह उस के इर्द गिर्द मंडराता रहा था की बेरहमी से बोटी बोटी कर डाली.

हादसा मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर के नजदीक महू नाम के कस्बे का है जो सैन्य छावनी और संविधान निर्माता व देश के पहले कानून मंत्री डा. भीमराव अंबेडकर की जन्मस्थली होने के चलते देश भर में मशहूर है.

बीती 2 अक्तूबर को पूरे देश की तरह महू में भी समारोह कर के जगहजगह गांधी जयंती मनाई गई थी. उस दिन छुट्टी के चलते इस कस्बे के बच्चे खेलकूद में व्यस्त थे. महू का एक मोहल्ला है पत्तीपुरा जहां खेल रहे कुछ बच्चों की नजर नजदीक की गली के पास से बहते सुरखी नाले पर पड़ी तो वे हैरान हो उठे.

नाले में किसी मानव के बहते कटे पैर पड़े थे. उन्होंने यह बात दौड़ कर बड़ों को बताई तो थोड़ी देर में नाले के पास खासी भीड़ जमा हो गई. जल्द ही पूरे महू में यह बात जंगल की आग की तरह फैली और मौजूद भीड़ में से किसी ने पुलिस को भी इस की खबर कर दी.

खबर पाते ही टीआई योगेश तोमर टीम सहित मौके पर पहुंचे तो उन्होंने नाले से एक जोड़ी कटे पैर बरामद किए जो घुटनों के नीचे का हिस्सा था. पैर बरामद करने के बाद पुलिस ने इस उम्मीद के साथ आसपास के इलाके में खोजबीन की कि शायद दूसरे अंग भी मिल जाएं, जिस से पता चले कि माजरा क्या है, हालांकि यह पहली ही नजर में सभी को समझ आ गया था कि किसी की हत्या कर लाश के टुकड़े कर उसे बहाया गया है, लेकिन केस के लिए जरूरी था कि शरीर के बाकी हिस्से भी मिले.

देर रात तक पुलिस आसपास खाक छानती रही. जब कोई और अंग बरामद नहीं हुआ तो मामला उलझता हुआ नजर आया. कस्बे में फैली सनसनी, आशंकाओं और अफवाहों, चर्चाओं के दौरान इंचार्ज एसपी कृष्णा वेणी देसावत और एएसपी धर्मराज मीणा भी घटना स्थल पर पहुंच गए चूंकि कटे पैरों के नाखून पर नेल पालिश लगा था इसलिए स्वभाविक अंदाजा यह लगाया गया कि पैर किसी महिला के होने चाहिए.

उस दिन तो पुलिस के हाथ कोई सुराग नहीं लगा लेकिन दूसरे दिन की खोजबीन रंग लाई और शरीर के कुछ और हिस्से बरामद हुए. महू की मीटर गेज लाइन कस्बे का बाहरी इलाका है जहां की खान कालोनी में लाश का सिर और एक कटा हाथ मिला. थोड़ी और मशक्कत के बाद दूसरा कीचड़ से सना हाथ भी बरामद हो गया.

इस नृशंस हत्याकांड की चर्चा अब तक प्रदेश भर में होने लगी थी, लिहाजा पुलिस के लिए यह जरूरी हो चला था कि वह जल्द से जल्द इस हत्याकांड से परदा उठाए. इस बाबत एसएसपी रुचिवर्धन मिश्रा खुद इंदौर से महू आईं. उन्होंने मामले की जांच के लिए 5 पुलिस टीमें बनाईं.

3 जगहों से बरामद अंगों के मिलने के बाद भी पुलिस के लिए लाश की पहचान करना कोई आसान काम नहीं था लेकिन लाश के दाएं हाथ पर एक टैटू बना मिला, जिस में अंग्रेजी के कैपिटल अक्षरों से हरदीप लिखा हुआ था. इस से अंदाजा लगाया गया कि मृतका सिख समुदाय की हो सकती है क्योंकि हरदीप नाम आमतौर पर सिखों में ही होता है.

इस बाबत पुलिस ने सिख समाज के लोगों से पूछताछ की, लेकिन ऐसी कोई जानकारी पुलिस के हाथ नहीं लगी जो टुकड़ेटुकड़े लाश की शिनाख्त में कोई मदद कर पाती. अब तक यह जरूर पूरी तरह स्पष्ट हो गया था कि लाश महिला की ही है और उसे बेहद नृशंस तरीके से मारा गया है.

इस दौरान पुलिस ने कई संदिग्धों को उठा कर पूछताछ भी की लेकिन काम की कोई जानकारी नहीं मिली. इस से एक ही बात उसे समझ आई कि वारदात में किसी आदतन या पेशेवर अपराधी का हाथ नहीं है, फिर भी टुकड़ेटुकड़े मिली यह लाश पहेली बन कर के सामने आई थी.

जल्द ही मुखबिरों के जरिए पुलिस को पता चला कि कोई 2 साल पहले पीथमपुरा थाने में एक मामला दर्ज हुआ था जिस में एक महिला पकड़ी गई थी, जिस के हाथ पर अंग्रेजी में हरदीप गुदा हुआ था. तुरंत ही पुलिस की एक टीम पीथमपुरा थाने रवाना हो गई. पुरानी फाइलें खंगालने पर 2017 के एक मामले से पता चला कि पकड़ी गई महिला का असली नाम रुखसार था.

पुलिस के लिए इतना काफी था. जांच आगे बढ़ी तो पता चला कि 29 वर्षीय रुखसार के और भी कई नाम हैं मसलन जेबा, पूजा और सोनू, इतनी कामयाबी मिलते ही पुलिस ने इंदौर से रुखसार की बहनों और मां को बुला भेजा, जिन्होंने लाश देखते ही उस की शिनाख्त रुखसार के रूप में कर दी.

इसी पूछताछ में पता चला कि मूलत: इंदौर के चंदू वाला रोड के चंदन नगर इलाके में रहने वाली रुखसार की शादी कोई 8 साल पहले महू के सादिक से हुई थी. उस के पिता का नाम मोहम्मद आमीन है.

भरेपूरे बदन की रुखसार बेइंतहा खूबसूरत थी, उस के तीखे नैननक्श और मासूमियत की चर्चा उस के जवान होते ही शुरु हो गई थी. खूबसूरत बेटी किसी गरीब के घर पैदा हो तो किसी मुसीबत से कम नहीं होती. यही मोहम्मद आमीन के साथ हो रहा था जिन की आमदनी से खींचतान कर घरबार चल पाता था.

पिता को उम्मीद थी कि खूबसूरत रुखसार को किसी खाते पीते घरपरिवार का लडक़ा ब्याह ले जाएगा. लेकिन रुखसार जितनी खूबसूरत थी उस की तकदीर उतनी ही बदसूरत निकली. जब किसी मनपसंद और अच्छी जगह उस का रिश्ता तय नहीं हो पाया तो अब्बा ने बेटी का हाथ सादिक के हाथों में सौंप दिया जो पेशे से कसाई था.

कन्नौज बहन की साजिश – भाग 1

भाईबहन के रिश्ते को सब से पवित्र माना जाता है, लेकिन समाज में ऐसी बहनों की भी कमी नहीं है, जो अपने तथाकथित प्यार के लिए भाई को भी कुरबान करने को तैयार हो जाती हैं. पिंकी ऐसी ही बहन थी, जिस ने…

कन्नौज जिले के सरसौनपुरवा गांव के कुछ लोग जब अपने खेतों की तरफ जा रहे थे तो उन्होंने खैरनगर पुल के पास निचली गंगनहर के पानी में एक मोटरसाइकिल पड़ी देखी. वहीं पास ही पटरी किनारे खून भी फैला था. किसी अनहोनी की आशंका से उन लोगों ने 100 नंबर पर पुलिस को फोन कर के यह जानकारी दे दी.

सूचना पा कर डायल 100 पुलिस वहां आ गई. चूंकि घटनास्थल थाना ठठिया के अंतर्गत था, इसलिए पुलिसकर्मियों ने ठठिया पुलिस को सूचना दी. कुछ देर बाद थानाप्रभारी विजय बहादुर वर्मा पुलिस टीम के साथ वहां आ गए. यह 15 सितंबर, 2019 की बात है.

थानाप्रभारी विजय बहादुर वर्मा ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. वहां पड़ा खून ताजा था. इस से उन्हें लगा कि वारदात को अंजाम दिए ज्यादा समय नहीं बीता है. परेशानी की बात यह थी कि घटनास्थल पर लाश नहीं थी. ऐसे में यह कह पाना मुश्किल था कि हत्या किसी पुरुष की हुई है या किसी औरत की.

बहरहाल, वर्मा ने हत्या की आशंका जताते हुए यह खबर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दे दी. फिर उन्होंने टीम के पुलिसकर्मियों की मदद से मोटरसाइकिल नहर के पानी से बाहर निकलवाई. वह काले रंग की थी, जो कीचड़ से सनी थी.

वर्मा को आशंका थी कि हत्या कर लाश नहर में फेंकी गई होगी. शव की बरामदगी के लिए उन्होंने पुलिस के जवानों तथा गांव के 2-3 युवकों को पानी में उतारा. लेकिन काफी प्रयास के बाद भी शव नहीं मिल सका. इस के अलावा उन्होंने नहर की पटरी किनारे की झाडि़यों में भी तलाश कराई, लेकिन शव नहीं मिला.

थानाप्रभारी विजय बहादुर वर्मा अभी शव बरामद करने का प्रयास कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह, एएसपी विनोद कुमार तथा सीओ (तिर्वा) सुबोध कुमार जायसवाल वहां आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया, साथ ही थानाप्रभारी विजय बहादुर वर्मा से घटना के संबंध में जानकारी भी ली.

पुलिस अधिकारियों का अनुमान था कि जब मोटरसाइकिल नहर से बरामद हुई है तो शव भी नहर के गहरे पानी में ही होगा. इसलिए शव की बरामदगी के लिए एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह ने एसडीआरएफ की टीम को मौके पर बुलवा लिया. यह टीम निचली गंगनहर में उतरी और 2 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद शव को बाहर निकाल लिया.

यह शव किसी युवक का था, जिस की उम्र 28 वर्ष के आसपास थी. शरीर से वह हृष्टपुष्ट था. वह काले रंग की पैंट तथा सफेद नीलीधारी वाली शर्ट पहने था.

पुलिस अधिकारियों ने शव का निरीक्षण किया तो पता चला कि उस की हत्या बड़ी बेरहमी से की गई थी. उस के शरीर को किसी नुकीली चीज से गोदा गया था. चेहरे से ले कर जांघ तक गोदने के एक दरजन से अधिक निशान थे.

जामातलाशी में युवक की पैंट की जेब से एक पर्स तथा ड्राइविंग लाइसेंस बरामद हुआ. लाइसेंस हालांकि पानी में गीला हो गया था लेकिन प्लास्टिक कवर चढ़ा होने की वजह से अक्षर पढ़ने में स्पष्ट नजर आ रहे थे. लाइसेंस में युवक का नाम बलराम यादव, पिता का नाम लायक सिंह यादव निवासी गांव गसीमपुर, थाना इंदरगढ़, जिला कन्नौज दर्ज था. पानी में भीग जाने के कारण फोटो ठीक से नहीं दिख रही थी.

पुलिस अधिकारियों ने गसीमपुर निवासी लायक सिंह व उस के परिजनों को घटनास्थल पर बुला लिया. लायक सिंह ने जब शव को देखा तो वह फूटफूट कर रो पड़ा. उस ने बताया, ‘‘साहब, यह लाश मेरे एकलौते बेटे बलराम की है, मोटरसाइकिल भी उसी की है. मैं ने किसी का क्या बिगाड़ा था, जो उन्होंने मेरे बुढ़ापे का सहारा छीन लिया.’’

मां रामदेवी तो शव देख कर मूर्छित हो गई. आननफानन में उसे उमर्दा के सरकारी अस्पताल भेजा गया. सीओ सुबोध कुमार जायसवाल ने मृतक के पिता लायक सिंह से पूछताछ की तो उस ने बताया कि बलराम सुबह 5 बजे अपनी बहन पिंकी को दवा दिलाने के लिए घर से निकला था.