जीजासाली का खूनी इश्क : प्रेम ने तोड़ी सीमा – भाग 1

9 साल पहले जब अजय साहू उर्फ मोहित ने सरिता से विवाह किया था, तब सरिता से छोटी साली कविता 15 साल की थी. इस के 3 साल बाद 18 साल की उम्र में वह भरीपूरी युवती लगने लगी थी.

ससुराल में अजय के सासससुर के अलावा उस की 2 सालियां कविता और सविता थीं, कोई साला नहीं था. सविता काफी छोटी थी, इसलिए अजय को खिलानेपिलाने व उस की सुखसुविधा का खयाल रखने की जिम्मेदारी बड़ी साली कविता की थी. कविता भी अपने जीजा का हुक्म मानने के लिए एक पैर पर खड़ी रहती थी.

जीजा की जरूरतों का खयाल रखना साली का कर्त्तव्य होता है, इस में कोई नई बात नहीं है. अजय भी इन बातों को सामान्य रूप से लेता था. लेकिन एक दिन अचानक ही वह कविता के अद्भुत सौंदर्य की तेज रोशनी में चौंधिया गया.

एक दिन जब अजय ससुराल पहुंचा तो कविता किसी परिचित के यहां मांगलिक समारोह में जाने के लिए तैयार हो रही थी. कविता ने सुर्ख लाल जोड़ा पहन रखा था और अपने बाल खुले छोड़ रखे थे. कलाई में चूडि़यां और चेहरे पर सादगी भरा शृंगार. आंखों में काजल की रेखा और होंठों पर हलकी सी लिपस्टिक. उसे देख कर अजय की नजरें ऐसी चिपकीं कि हटने को ही तैयार नहीं हुईं.

कविता ने अजय को मीठा और पानी ला कर दिया, फिर चाय बना कर पिलाई. कुछ देर उस के पास बैठ कर अपनी बहन की खैरियत पूछी. फिर उस के पास से उठते हुए बोली, ‘‘जीजाजी, आप आराम करो, मैं जल्दी ही लौट आऊंगी.’’

कविता चली गई और वह देखता रह गया. अजय बैड पर लेट गया और कविता के बारे में सोचने लगा कि इतनी सुंदर तो सरिता तब भी नहीं लगी थी, जब दुलहन बन कर उस के घर आई थी.

अजय ने अपने मन से कविता का खयाल निकालने की बहुत कोशिश की, पर कामयाब नहीं हो सका. कविता के सौंदर्य की तेज रोशनी से उस ने जितना दूर जाना चाहा, उतना ही मस्तिष्क से अंधा होता गया.

अजय सोचने लगा कि मेरी शादी भले ही सरिता से हो गई पर कविता भी तो उस की साली ही है. साली यानी आधी घरवाली.

अजय के मन में पाप समाया तो वह कविता को पाने की जुगत में लग गया.

उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले के गांव पूरब थोक में राजेश चंद्र अपने परिवार के साथ रहते थे. वह खेतीबाड़ी का काम करते थे. परिवार में पत्नी उषा और 3 बेटियां सरिता, कविता और सविता थीं. बेटा न होने का राजेश को कतई गम नहीं था. उन्होंने तीनों बेटियों की बेटों से बढ़ कर परवरिश की थी. सरिता ने इंटर की पढ़ाई पूरी कर ली थी.

कौशांबी के ही कुम्हियवा गांव में रामहित साहू रहते थे. वह भी खेतीकिसानी करते थे. उन के 3 बेटे थे, जिस में अजय उर्फ मोहित सब से बड़ा था. अजय ने इंटरमीडिएट तक पढ़ाई करने के बाद अपना खुद का काम करने का निर्णय लिया.

काफी सोचविचार के बाद उस ने डीजे संचालन का काम शुरू किया. उस का यह काम अच्छा चल गया. अपने इसी काम के दौरान एक वैवाहिक समारोह में उस की मुलाकात सरिता से हुई. सरिता उस समारोह में काफी सजधज कर आई थी. इस वजह से वह काफी खूबसूरत दिख रही थी.

डीजे पर डांस करने के दौरान सरिता ने ‘डीजे वाले बाबू मेरा गाना बजा दो’ गाना चलाने की मांग की. अजय औपरेटर के पास ही खड़ा था. उस की पीठ सरिता की तरफ थी. मधुर आवाज सुनते ही अजय पलटा तो पलटते ही सरिता को देखा तो देखता ही रह गया.

अजय काफी स्मार्ट था. उसे अपनी तरफ देखते पा कर सरिता भी लजा गई और बोली, ‘‘सौरी, मैं आप को डीजे वाला समझ बैठी. इसलिए अपनी पसंद का गाना चलाने के लिए कह दिया.’’

अजय उस के भोलेपन पर मुसकराते हुए बोला, ‘‘आप से कोई गलती नहीं हुई, मैं डीजे वाला बाबू ही हूं यानी इस डीजे का मालिक.’’

‘‘ओह…तो यह बात है, तो मेरा पसंदीदा गाना लगवा दें, जिस से मैं डांस कर सकूं.’’ सरिता ने तिरछी नजरों से अजय को निहारते हुए कहा.

अजय ने औपरेटर को बोल कर ‘डीजे वाले बाबू…’ गाना लगवा दिया. गाना भारीभरकम स्पीकरों पर गूंजने लगा तो सरिता अपनी सहेलियों के साथ डांस करने लगी. वह डांस कर जरूर रही थी, लेकिन उस का सारा ध्यान अजय पर ही था. अजय भी उसे देखते हुए मुसकरा रहा था.

वह इशारे से बारबार सरिता की तारीफ भी कर रहा था. उस की तारीफ पा कर सरिता लजा कर दूसरी ओर देखने लगती थी.

डांस खत्म होने के बाद भी दोनों वहां से हटने को तैयार नहीं थे. उन की निगाहें मिलने के बाद अब उन के दिल मिलने को तड़प रहे थे. वह तड़प उन की निगाहों में बखूबी नजर आ रही थी.

आखिर अजय ने उसे इशारे से अपने पीछेपीछे आने को कहा तो सरिता उस का इशारा समझ कर दिल के हाथों मजबूर हो कर उस के पीछेपीछे चली गई.

अजय एकांत में सुनसान जगह पर खड़ा हुआ तो शरमातेसकुचाते सरिता भी वहां पहुंच गई और पूछने लगी, ‘‘आप ने मुझे इशारे से अपने पीछे आने को क्यों कहा?’’

‘‘क्यों…क्या तुम्हें वास्तव में नहीं पता?’’ अजय उस की आंखों में देखते हुए बोला, ‘‘जरा अपने दिल पर हाथ रख कर अपनी धड़कनों को सुनो, जवाब मिल जाएगा.’’

‘‘सब दिल का ही तो मामला है, ये ऐसा मजबूर कर देता है कि इंसान अपनी सुधबुध खो बैठता है. और इंसान वही करने लगता है जो यह चाहता है. मैं भी दिल के हाथों मजबूर हो कर यहां आ गई हूं.’’ सरिता अपने दिल की व्यथा उजागर करती हुई बोली.

‘‘ये दिल ही तो है जब इस के अपने मन का मीत मिल जाता है तो प्यार की घंटी बजा कर आगाह कर देता है. देखो न, जब तुम्हारे दिल को मेरे दिल ने पुकारा तो तुम्हारा दिल मेरे पीछेपीछे खिंचा चला आया. कहने को हम अजनबी हैं, लेकिन हमारे दिलों ने हमारे बीच प्यार के रिश्ते की नींव रख दी है, जिस पर हमें मिल कर प्यार की इमारत खड़ी करनी है. अगर मेरा प्यार मेरा साथ मंजूर हो तो मेरे पास आ कर गले लग जाओ.’’ कहते हुए अजय ने बड़ी चाहत भरी नजरों से देखा तो सरिता उस की ओर खिंची चली गई और उस के गले लग गई.

यह ऐसा प्यार था, जिस ने बिना एकदूसरे के बारे में जाने उन के दिलों को मिला दिया था. उस के बाद उन दोनों ने एकदूसरे के बारे में जाना, खूब ढेर सारी बातें कीं. मोबाइल नंबर एकदूसरे को दिए. फिर मिलने का वादा कर के जुदा हो गए.

उस दिन के बाद उन में बराबर बातें और मुलाकातें होने लगीं. करीब 9 साल पहले दोनों ने प्रेम विवाह कर लिया. सरिता के घर वालों को कोई ऐतराज नहीं था लेकिन अजय के घर वाले इस प्रेम विवाह के खिलाफ थे. अजय विवाह करने के बाद कौशांबी के सिराथू कस्बे में सैनी रोड पर किराए का कमरा ले कर सरिता के साथ रहने लगा. अजय अपनी जिंदगी से काफी खुश था.

सरिता की छोटी बहन कविता की खूबसूरती अजय का मन लुभाती तो थी, पर उस की नजरें बेईमान नहीं थीं. लेकिन उस दिन कविता को सुर्ख लाल जोड़े में सजासंवरा देखा तो वह उसे दुलहन सी हसीन लगी. बस, जीजा के मन में साली के लिए फितूर समा गया.

कविता के बारे में सोचते हुए अजय सो गया और सपने में भी कविता उस का चैन हरती रही. सुखद सपनों में खोया अजय न जाने कब तक सोया रहता कि उस की सास उषा ने आ कर जगा दिया, ‘‘अजय बेटा उठो, शाम हो गई है.’’

अजय हड़बड़ा कर उठ बैठा, ‘‘मैं दोपहर को सोया था और अब शाम ढल रही है. मम्मी, आप ने मुझे जगाया क्यों नहीं.’’

‘‘तुम्हारे आराम में विघ्न न पड़े, इसलिए मैं ने नहीं जगाया.’’ उषा बोली, ‘‘तुम उठ कर हाथमुंह धो लो, तब तक कविता चाय बना कर ले आएगी.’’

मामा का खूनी सिंदूर : परिवार ही बना निशाना – भाग 2

पारिवारिक और सामाजिक वर्जनाओं की वजह से आमतौर पर देखा गया है कि लड़कियां अपने रिश्ते के करीबी युवक से ज्यादा घुल जाती हैं. वह उन का मामा, जीजा, चचेरा या मौसेरा या ममेरा भाई कोई भी हो सकता है. वे उसे ही अपना दोस्त बना लेती हैं. संगीता के सब से नजदीक मामा प्रवींद्र ही था, अत: उन दोनों में भी ऐसा ही रिश्ता था.

प्रवींद्र की नजर थी खूबसूरत भांजी पर

शुरुआती दिनों में जब प्रवींद्र ने बहन ऊषा के घर आना शुरू किया था, तब उस के मन में संगीता के लिए कोई गलत भावना नहीं थी. रिश्ते में वह उस की भांजी थी. किंतु भावनाओं में तूफान आते और रिश्ता बदलते कितनी देर लगती है. संगीता से मेलमिलाप की वजह से प्रवींद्र की भावनाओं में भी तूफान आ गया और मामाभांजी के पवित्र रिश्ते पर कालिख लगनी शुरू हो गई. हुआ यह कि एक दिन प्रवींद्र ऊषा के घर पहुंचा तो वह परिवार सहित गांव में एक परिचित के घर समारोह में जाने को तैयार थी. संगीता भी खूब बनीसंवरी थी. उस ने गुलाबी सलवारसूट पहना था और खुले बाल कमर तक लहरा रहे थे. उस समय संगीता बेहद खूबसूरत दिख रही थी.

संगीता का वह रूप प्रवींद्र की आंखों के रास्ते से दिल में उतर गया. प्रवींद्र के मन में कामना की ऐसी आंधी चली कि उस की धूल ने सारे रिश्तेनाते को ढक लिया. वह भूल गया कि संगीता उस की भांजी है.प्रवींद्र का मन चाह रहा था कि संगीता उस के सामने रहे और वह उसे अपलक देखता रहे, लेकिन ऐसा कहां संभव था. वे लोग तो समारोह में जाने को तैयार थे.

प्रवींद्र को घर की तालाकुंजी दे कर वे सब चले गए. प्रवींद्र की नजरें तब तक संगीता का पीछा करती रहीं जब तक वह आंखों से ओझल नहीं हो गई.उन के जाने के बाद प्रवींद्र खाना खा कर बिस्तर पर लेट गया. लेकिन नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. उस की आंखों में संगीता का अक्स बसा था और जेहन में उसी के खयाल उथलपुथल मचा रहे थे. कई बार प्रवींद्र की अंतरात्मा ने उसे झिंझोड़ा, ‘संगीता तुम्हारी भांजी है, उस के बारे में गंदे विचार तक मन में लाना पाप है. संगीता के बारे में गलत सोचना बंद कर दो.’

प्रवींद्र ने हर बार यह सोच कर अंतरात्मा की आवाज को दबा दिया कि हर लड़की किसी न किसी की भांजी होती है. अगर लोग मामाभांजी का ही रिश्ता निभाते रहे तो चल गई दुनिया. कहते हैं कि बुरे विचार अच्छे विचारों को जल्दी ही दबा देते हैं. प्रवींद्र की अच्छाई पर बुराई हावी हो गई.इधर ऊषा और रमेश रात को काफी देर से लौटे. सुबह वे जल्दी उठ कर अपनेअपने काम से लग गए. रमेशचंद्र और ऊषा खेत पर चले गए थे, जबकि संगीता घरेलू कामों में व्यस्त थी.

प्रवींद्र की आंखें खुलीं तो उस की नजर आंगन में काम कर रही संगीता पर पड़ी. वह मुंह से तो कुछ नहीं बोला लेकिन टकटकी लगाए संगीता को देखने लगा.
प्रवींद्र को इस तरह अपनी ओर ताकते देख संगीता ने टोका, ‘‘क्या बात है मामा, तुम कुछ बोल क्यों नहीं रहे. बस टकटकी लगा कर मुझे ही देखे जा रहे हो.’’

‘‘इसलिए देख रहा हूं कि तुम बहुत खूबसूरत हो. जी चाहता है कि तुम सामने खड़ी रहो और मैं तुम्हें देखता रहूं. यह कमबख्त नजरें तुम्हारे चेहरे से हटने का नाम ही नहीं ले रही हैं.’’ वह बोला.

संगीता मामा के मन का मैल न समझ कर उन्मुक्त हंसी हंसने लगी. हंसी पर विराम लगा तो बोली, ‘‘यह कौन सी नई बात है. गांव में भी सब कहते हैं कि संगीता तुम खूबसूरत हो.’’फिर वह शरारत से उस की आंखों में देखने लगी, ‘‘कैसे मामा हो जिसे आज पता चला कि मैं खूबसूरत हूं.’’‘‘आज नहीं, मैं ने कल जाना कि तुम खूबसूरत हो.’’ प्रवींद्र के मन की बात उस की जुबान पर आ गई, ‘‘गुलाबी रंग का सलवारसूट तुम्हारे गोरे बदन पर बेहद फब रहा था.

ऊपर से तुम्हारा मेकअप तो मेरे दिल पर बिजली गिरा गया. किसी दुलहन से कम नहीं लग रही थी तुम…’’संगीता अपने सौंदर्य की तारीफ सुन कर गदगद हो गई, उस ने शरम से नजरें झुका लीं. साथ ही उस के मन में कांटा सा चुभा. वह सोचने लगी कि क्या मामा के दिल में खोट आ गया है, जो ऐसी बातें उस से कर रहे हैं. वह अभी ऐसा सोच ही रही थी कि तभी प्रवींद्र 2 कदम आगे बढ़ कर संगीता की कलाई पकड़ कर बोला, ‘‘संगीता, तुम वाकई बहुत खूबसूरत हो. मैं तुम से प्यार करता हूं.’’

संगीता काफी दिनों से महसूस कर रही थी कि उस के मामा प्रवींद्र के मन में उस के लिए बेपनाह प्यार है. सच तो यह था कि संगीता भी मन ही मन मामा प्रवींद्र को चाहती थी. यही कारण था कि जब प्रवींद्र ने अपनी मोहब्बत का इजहार किया तो संगीता ने फौरन इकरार करते हुए कह दिया, ‘‘हां, मैं भी तुम्हें दिल की गहराइयों से चाहती हूं.’’

मोहब्बत को मिली जुबान

खामोश मोहब्बत को जुबान मिली तो संगीता और प्रवींद्र की आशिकी के रंग निखरने लगे. प्रवींद्र का पहले से ही घर में आनाजाना था. रमेशचंद्र दोहरे भी उसे बेटे की तरह मानते थे, इसलिए संगीता से उस के मिलनेजुलने या एकांत में बातचीत करने में किसी प्रकार की बाधा नहीं थी. प्रवींद्र जब अपने गांव कतरतन्ना में होता तब वे दोनों मोबाइल फोन पर देर तक बातें करते थे.

संगीता उसे अपना हालेदिल सुनाया करती.बहन के घर जाने में भाई को बहाने की जरूरत नहीं होती. संगीता के बुलाने पर वह उस के यहां आ जाता. सब उसे देख कर खुश होते कि देखो भाईबहन में कितना प्यार है.लेकिन यह तो केवल संगीता जानती थी कि प्रवींद्र किसलिए आता है. ज्योंज्यों दिन गुजरते गए, संगीता और प्रवींद्र की मोहब्बत के तकाजे भी बढ़ते गए. उन की चाहत तनहाई और खुफिया मुलाकात की मांग करने लगी. यह तकाजा पूरा करने के लिए उन दोनों ने किसी तरह की कोताही नहीं की.

रात को जब सब लोग सो जाते, तब संगीता और प्रवींद्र चुपके से उठ कर छत पर चले जाते और वहां एकदूजे की बांहों में खो जाते. तनहाई और रात के सन्नाटे में 2 जिस्म मिले तो जज्बात भड़कते ही हैं. संगीता और प्रवींद्र भी अपनी भावनाओं पर काबू नहीं पा सके. पे्रमोन्माद में वे एकदूसरे को समर्पित हो गए.समय बीतता रहा. किसी को अब तक नहीं खबर नहीं थी कि संगीता और प्रवींद्र एकदूसरे से प्यार करते हैं. मन से ही नहीं, दोनों तन से भी एक हो चुके हैं. प्रवींद्र और संगीता के इश्क का खेल 2 सालों तक निर्बाध रूप से चलता रहा. लेकिन एक रोज उन का भांडा फूट ही गया.

उस दिन शाम को प्रवींद्र आया तो पता चला रमेश जीजा रिश्तेदारी में उन्नाव गए हैं. वह 3 दिन बाद घर लौटेंगे. ऊषा आंगन में अकेली बैठी थी और संगीता रसोई में खाना बना रही थी. ज्यों ही प्रवींद्र ऊषा के पास आ कर बैठा, उस ने वहीं से रसोई की ओर मुंह कर आवाज दी, ‘‘बेटी संगीता, मामा आए हैं, इन के लिए भी खाना बना लेना.प्रवींद्र चारपाई पर पसर गया और हंस कर बोला, ‘‘हां दीदी, मैं खाना भी खाऊंगा और रुकूंगा भी. जीजा बाहर गए हैं न इसलिए घर और तुम दोनों की देखभाल करना मेरा फर्ज है. वैसे भी दीदी तुम मुझे फोन पर बता देती तो मैं दौड़ा चला आता.’’

‘‘यह भी कोई कहने की बात है,’’ ऊषा भी हंसने लगी, ‘‘मैं खुद तुझ से यहीं रुकने को कहने वाली थी. लेकिन तूने मेरे मुंह की बात छीन ली.’’ संगीता को पता चला कि मामा आए हैं तो उस का शरीर रोमांच से भर गया. वह जान गई कि आज की रात रंगीन होने वाली है. उस ने खाना बना कर तैयार किया फिर मां और मामा को खिलाया. उस के बाद खुद खाना खा कर घर की साफसफाई की.प्रवींद्र छत पर सोने चला गया और संगीता मां के साथ नीचे कमरे में पड़ी चारपाई पर लेट गई. कुछ देर बाद ऊषा तो सो गई लेकिन संगीता की आंखों में नींद नहीं थी. ऊषा जब गहरी नींद सो गई तो संगीता दबेपांव उठी और प्रवींद्र के पास छत पर जा पहुंची. प्रवींद्र भी उस के आने का ही इंतजार कर रहा था. संगीता के पहुंचते ही उस ने उसे बांहों में भर लिया.

इधर आधी रात को ऊषा की आंखें खुलीं तो उस ने संगीता को चारपाई से नदारद पाया. वह उसे खोजते हुए आंगन में आई तो उसे छत पर खुसरफुसर की आवाज सुनाई दी. वह जीने की ओर बढ़ी, तभी संगीता जीने से नीचे उतरी. शायद उसे मां के जागने का आभास हो गया था. कमरे में पहुंचते ही ऊषा ने पूछा, ‘‘संगीता, तू आधी रात को छत पर क्यों गई थी?’’‘‘मामा उल्टियां कर रहे थे. उन्हें पानी देने गई थी.’’ संगीता ने बहाना बना दिया.ऊषा ने संगीता की बात पर विश्वास तो कर लिया किंतु उस के मन में शक का बीज अंकुरित होने लगा. अब वह दोनों पर कड़ी नजर रखने लगीं. संगीता और प्रवींद्र कड़ी निगरानी के कारण सतर्कता बरतने लगे थे, लेकिन सतर्कता के बावजूद एक रात ऊषा ने संगीता और प्रवींद्र को रंगेहाथ पकड़ लिया. उस रात ऊषा ने संगीता की जम कर फटकार लगाई और उस की पिटाई भी कर दी. उस ने छोटे भाई प्रवींद्र को भी भलाबुरा कहा और रिश्ते को कलंकित करने का दोषी ठहराया.

प्यार का दर्दनाक अंत : बेवफा पत्नी

5 फरवरी, 2019 मंगलवार की शाम लगभग 4 बजे का समय था. उसी समय आगरा जिले के थाना मनसुखपुरा में खून से सने हाथ और कपड़ों में एक युवक पहुंचा. पहरे की ड्यूटी पर तैनात सिपाही के पास जा कर वह बोला, ‘‘स…स…साहब, बड़े साहब कहां हैं, मुझे उन से कुछ बात कहनी है.’’

थानाप्रभारी ओमप्रकाश सिंह उस समय थाना प्रांगण में धूप में बैठे कामकाज निपटा रहे थे. उन्होंने उस युवक की बात सुन ली थी, नजरें उठा कर उन्होंने उस की ओर देखा और सिपाही से अपने पास लाने को कहा. सिपाही उस शख्स को थानाप्रभारी के पास ले गया. थानाप्रभारी ओमप्रकाश सिंह उस से कुछ पूछते, इस से पहले ही वह शख्स बोला, ‘‘साहब, मेरा नाम ऋषि तोमर है. मैं गांव बड़ापुरा में रहता हूं. मैं अपनी पत्नी और उस के प्रेमी की हत्या कर के आया हूं. दोनों की लाशें मेरे घर में पड़ी हुई हैं.’’

ऋषि तोमर के मुंह से 2 हत्याओं की बात सुन कर ओमप्रकाश सिंह दंग रह गए. युवक की बात सुन कर थानाप्रभारी के पैरों के नीचे से जैसे जमीन ही खिसक गई. वहां मौजूद सभी पुलिसकर्मी ऋषि को हैरानी से देखने लगे.

थानाप्रभारी के इशारे पर एक सिपाही ने उसे हिरासत में ले लिया. ओमप्रकाश सिंह ने टेबल पर रखे कागजों व डायरी को समेटा और ऋषि को अपनी जीप में बैठा कर मौकाएवारदात पर निकल गए.

हत्यारोपी ऋषि तोमर के साथ पुलिस जब मौके पर पहुंची तो वहां का मंजर देख होश उड़ गए. कमरे में घुसते ही फर्श पर एक युवती व एक युवक के रक्तरंजित शव पड़े दिखाई दिए. कमरे के अंदर ही चारपाई के पास फावड़ा पड़ा था.

दोनों मृतकों के सिर व गले पर कई घाव थे. लग रहा था कि उन के ऊपर उसी फावडे़ से प्रहार कर उन की हत्या की गई थी. कमरे का फर्श खून से लाल था. थानाप्रभारी ने अपने उच्चाधिकारियों को घटना से अवगत कराया.

डबल मर्डर की जानकारी मिलते ही मौके पर एसपी (पश्चिमी) अखिलेश नारायण सिंह, सीओ (पिनाहट) सत्यम कुमार पहुंच गए. उन्होंने थानाप्रभारी ओमप्रकाश सिंह से घटना की जानकारी ली. वहीं पुलिस द्वारा मृतक युवक दीपक के घर वालों को भी सूचना दी गई.

कुछ ही देर में दीपक के घर वाले रोतेबिलखते घटनास्थल पर आ गए थे. इस बीच मौके पर भीड़ एकत्र हो गई. ग्रामीणों को पुलिस के आने के बाद ही पता चला था कि घर में 2 मर्डर हो गए हैं. इस से गांव में सनसनी फैल गई. जिस ने भी घटना के बारे में सुना, दंग रह गया.

दोहरे हत्याकांड ने लोगों का दिल दहला दिया. पुलिस ने आला कत्ल फावड़ा और दोनों लाशों को कब्जे में लेने के बाद लाशें पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दीं. इस के बाद थानाप्रभारी ने हत्यारोपी ऋषि तोमर से पूछताछ की तो इस दोहरे हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के जिला आगरा के थाना मनसुखपुरा के गांव बड़ापुरा के रहने वाले ऋषि तोमर की शादी लक्ष्मी से हुई थी. लक्ष्मी से शादी कर के ऋषि तो खुश था, लेकिन लक्ष्मी उस से खुश नहीं थी. क्योंकि ऋषि उस की चाहत के अनुरूप नहीं था.

ऋषि मेहनती तो था, लेकिन उस में कमी यह थी कि वह सीधासादा युवक था. वह ज्यादा पढ़ालिखा भी नहीं था. बड़ापुरा में कोई अच्छा काम न मिलने पर वह दिल्ली जा कर नौकरी करने लगा.

करीब 2 साल पहले की बात है. ससुराल में ही लक्ष्मी की मुलाकात यहीं के रहने वाले दीपक से हो गई. दोनों की नजरें मिलीं तो उन्होंने एकदूसरे के दिलों में जगह बना ली.

पहली ही नजर में खूबसूरत लक्ष्मी पर दीपक मर मिटा था तो गबरू जवान दीपक को देख कर लक्ष्मी भी बेचैन हो उठी थी. एकदूसरे को पाने की चाहत में उन के मन में हिलोरें उठने लगीं. पर भीड़ के चलते वे आपस में कोई बात नहीं कर सके थे, लेकिन आंखों में झांक कर वे एकदूसरे के दिल की बातें जरूर जान गए थे.

बाजार में मुलाकातों का सिलसिला चलने लगा. मौका मिलने पर वे बात भी करने लगे. दीपक लक्ष्मी के पति ऋषि से स्मार्ट भी था और तेजतर्रार भी. बलिष्ठ शरीर का दीपक बातें भी मजेदार करता था. भले ही लक्ष्मी के 3 बच्चे हो गए थे, लेकिन शुरू से ही उस के मन में पति के प्रति कोई भावनात्मक लगाव पैदा नहीं हुआ था.

लक्ष्मी दीपक को चाहने लगी थी. दीपक हर हाल में उसे पाना चाहता था. लक्ष्मी ने दीपक को बता दिया था कि उस का पति दिल्ली में नौकरी करता है और वह बड़ापुरा में अपनी बेटी के साथ अकेली रहती है, जबकि उस के 2 बच्चे अपने दादादादी के पास रहते थे.

मौका मिलने पर लक्ष्मी ने एक दिन दीपक को फोन कर अपने गांव बुला लिया. वहां पहुंच कर इधरउधर की बातों और हंसीमजाक के बीच दीपक ने लक्ष्मी का हाथ अपने हाथ में ले लिया. लक्ष्मी ने इस का विरोध नहीं किया.

दीपक के हाथों का स्पर्श कुछ अलग था. लक्ष्मी का हाथ अपने हाथ में ले कर दीपक सुधबुध खो कर एकटक उस के चेहरे पर निगाहें टिकाए रहा. फिर लक्ष्मी भी सीमाएं लांघने लगी. इस के बाद दोनों ने मर्यादा की दीवार तोड़ डाली.

एक बार हसरतें पूरी होने के बाद उन की हिम्मत बढ़ गई. अब दीपक को जब भी मौका मिलता, उस के घर पहुंच जाता था. ऋषि के दिल्ली जाते ही लक्ष्मी उसे बुला लेती फिर दोनों ऐश करते. अवैध संबंधों का यह सिलसिला करीब 2 सालों तक ऐसे ही चलता रहा.

लेकिन उन का यह खेल ज्यादा दिनों तक लोगों की नजरों से छिप नहीं सका. किसी तरह पड़ोसियों को लक्ष्मी और दीपक के अवैध संबंधों की भनक लग गई. ऋषि के परिचितों ने कई बार उसे उस की पत्नी और दीपक के संबंधों की बात बताई.

लेकिन वह इतना सीधासादा था कि उस ने परिचितों की बातों पर ध्यान नहीं दिया. क्योंकि उसे अपनी पत्नी पर पूरा विश्वास था, जबकि सच्चाई यह थी कि लक्ष्मी पति की आंखों में धूल झोंक कर हसरतें पूरी कर रही थी.

4 फरवरी, 2019 को ऋषि जब दिल्ली से अपने गांव आया तो उस ने अपनी पत्नी और दीपक को ले कर लोगों से तरहतरह की बातें सुनीं. अब ऋषि का धैर्य जवाब देने लगा. अब उस से पत्नी की बेवफाई और बेहयाई बिलकुल बरदाश्त नहीं हो रही थी. उस ने तय कर लिया कि वह पत्नी की सच्चाई का पता लगा कर रहेगा.

ऋषि के दिल्ली जाने के बाद उस की बड़ी बेटी अपनी मां लक्ष्मी के साथ रहती थी और एक बेटा और एक बेटी दादादादी के पास गांव राजाखेड़ा, जिला धौलपुर, राजस्थान में रहते थे.

ऋषि के दिमाग में पत्नी के चरित्र को ले कर शक पूरी तरह बैठ गया था. वह इस बारे में लक्ष्मी से पूछता तो घर में क्लेश हो जाता था. पत्नी हर बार उस की कसम खा कर यह भरोसा दिला देती थी कि वह गलत नहीं है बल्कि लोग उसे बेवजह बदनाम कर रहे हैं.

घटना से एक दिन पूर्व 4 फरवरी, 2019 को ऋषि दिल्ली से गांव आया था. दूसरे दिन उस ने जरूरी काम से रिश्तेदारी में जाने तथा वहां 2 दिन रुक कर घर लौटने की बात लक्ष्मी से कही थी. बेटी स्कूल गई थी. इत्तफाक से ऋषि अपना मोबाइल घर भूल गया था, लेकिन लक्ष्मी को यह पता नहीं था. करीब 2 घंटे बाद मोबाइल लेने जब घर आया तो घर का दरवाजा अंदर से बंद था.

उस ने दरवाजा थपथपाया. पत्नी न तो दरवाजा खोलने के लिए आई और न ही उस ने अंदर से कोई जवाब दिया. तो ऋषि को गुस्सा आ गया और उस ने जोर से धक्का दिया तो कुंडी खुल गई.

जब वह कमरे के अंदर पहुंचा तो पत्नी और उस का प्रेमी दीपक आपत्तिजनक स्थिति में थे. यह देख कर उस का खून खौल उठा. पत्नी की बेवफाई पर ऋषि तड़प कर रह गया. वह अपना आपा खो बैठा. अचानक दरवाजा खुलने से प्रेमी दीपक सकपका गया था.

ऋषि ने सोच लिया कि वह आज दोनों को सबक सिखा कर ही रहेगा. गुस्से में आगबबूला हुए ऋषि कमरे से बाहर आया.

वहां रखा फावड़ा उठा कर उस ने दीपक पर ताबड़तोड़ प्रहार किए. पत्नी लक्ष्मी उसे बचाने के लिए आई तो फावड़े से प्रहार कर उस की भी हत्या कर दी. इस के बाद दोनों की लाशें कमरे में बंद कर वह थाने पहुंच गया.

ऋषि ने पुलिस को बताया कि उसे दोनों की हत्या पर कोई पछतावा नहीं है. यह कदम उसे बहुत पहले ही उठा लेना चाहिए था. पत्नी ने उस का भरोसा तोड़ा था. उस ने तो पत्नी पर कई साल भरोसा किया.

उधर दीपक के परिजन इस घटना को साजिश बता रहे थे. उन का आरोप था कि दीपक को फोन कर के ऋषि ने अपने यहां बहाने से बुलाया था. घर में बंधक बना कर उस की हत्या कर दी गई. उन्होंने शक जताया कि इस हत्याकांड में अकेला ऋषि शामिल नहीं है, उस के साथ अन्य लोग भी जरूर शामिल रहे होंगे.

मृतक दीपक के चाचा राजेंद्र ने ऋषि तोमर एवं अज्ञात के खिलाफ तहरीर दे कर हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई.

पुलिस ने हत्यारोपी ऋषि से विस्तार से पूछताछ करने के बाद उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया.

उधर पोस्टमार्टम के बाद लक्ष्मी के शव को लेने उस के परिवार के लोग नहीं पहुंचे, जबकि दीपक के शव को उस के घर वाले ले गए.

हालांकि मृतका लक्ष्मी के परिजनों से पुलिस ने संपर्क भी किया, लेकिन उन्होंने अनसुनी कर दी. इस के बाद पुलिस ने लक्ष्मी के शव का अंतिम संस्कार कर दिया. थानाप्रभारी ओमप्रकाश सिंह मामले की तफ्तीश कर रहे थे.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सुलझ न सकी परिवार की मर्डर मिस्ट्री – भाग 1

डा. प्रकाश सिंह वैज्ञानिक थे. उन का हंसताखेलता परिवार था, घर में किसी भी चीज की कमी नहीं थी. फिर आखिर ऐसा क्या हुआ कि एक दिन उन के फ्लैट में परिवार के सभी सदस्यों की लाशें मिलीं?

एक जुलाई की बात है. सुबह के करीब 7 बजे का समय था. रोजाना की तरह घरेलू नौकरानी जूली डा. प्रकाश सिंह के घर पहुंची. उस ने मकान की डोरबैल  बजाई. बैल बजती रही, लेकिन न तो किसी ने गेट खोला और न ही अंदर से कोई आवाज आई.

ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था. डा. प्रकाश सिंह का परिवार सुबह जल्दी उठ जाता था. रोजाना आमतौर पर डा. सिंह की पत्नी सोनू सिंह उर्फ कोमल या बेटी अदिति डोरबैल बजने पर गेट खोल देती थीं. उस दिन बारबार घंटी बजाने पर भी गेट नहीं खुला तो जूली परेशान हो गई. वह सोचने लगी कि आज ऐसी क्या बात है, जो साहब की पूरी फैमिली अभी तक नहीं जागी है.

बारबार घंटी बजने पर घर के अंदर से पालतू कुत्तों के भौंकने की आवाजें आ रही थीं. कुत्तों की आवाज पर भी गेट नहीं खुलने पर जूली को चिंता हुई. उस ने पड़ोसियों को बताया. पड़ोसियों ने भी डोरबैल बजाई. दरवाजा खटखटाया और आवाजें दीं लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. थकहार कर पड़ोसियों ने पुलिस को सूचना दे दी.

यह बात हरियाणा के जिला गुरुग्राम के सेक्टर-49 स्थित पौश सोसायटी ‘उप्पल साउथ एंड’ की है. डा. प्रकाश इसी सोसायटी के एफ ब्लौक में 3 मंजिला बिल्डिंग के भूतल पर स्थित आलीशान फ्लैट में रहते थे.

वह वैज्ञानिक थे और नामी दवा कंपनी सन फार्मा में निदेशक रह चुके थे. करीब एक महीने पहले ही डा. सिंह ने इस सन फार्मा कंपनी की नौकरी छोड़ी थी. कुछ दिनों बाद उन्हें हैदराबाद की एक बहुराष्ट्रीय फार्मा कंपनी में नई नौकरी जौइन करनी थी.

55 वर्षीय डा. सिंह के परिवार में उन की पत्नी डा. सोनू सिंह, 20 साल की बेटी अदिति और 14 साल का बेटा आदित्य था. चारों इसी फ्लैट में रहते थे. डा. प्रकाश सिंह दवा कंपनी में वैज्ञानिक की नौकरी के साथसाथ पत्नी के साथ स्कूल भी चलाते थे. गुरुग्राम और पलवल में उन के 4 स्कूल थे. बेटी अदिति भी बी.फार्मा की पढ़ाई कर रही थी जबकि बेटा नवीं कक्षा में पढ़ता था.

सोसायटी के लोगों की सूचना पर कुछ ही देर में पुलिस मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने भी पहले तो डा. सिंह के मकान की डोरबैल बजाई और कुंडी खटखटाई, लेकिन जब गेट नहीं खुला तो खिड़की तोड़ने का फैसला किया गया. खिड़की तोड़ कर पुलिस मकान के अंदर पहुंची तो वहां का भयावह नजारा देख कर हैरान रह गई.

बैडरूम में 3 लाशें पड़ी थीं. खून फैला हुआ था. घर की लौबी में लगे पंखे में बंधी नायलौन की रस्सी से एक अधेड़ आदमी लटका हुआ था. रूम में बैड पर एक लड़की का और बैड से नीचे एक किशोर के शव पड़े थे. इन से करीब 6 फुट दूर जमीन पर अधेड़ महिला की लाश पड़ी थी. तीनों पर हथौड़े जैसी भारी चीज से वार करने के बाद गला काटने के निशान थे.

पुलिस ने बैड और जमीन पर पड़े तीनों लोगों की नब्ज टटोल कर देखी, लेकिन उन की सांसें थम चुकी थीं. उन के शरीर में जीवन के कोई लक्षण नहीं थे. पंखे से लटके अधेड़ की जान भी जा चुकी थी.

पड़ोसियों से पुलिस ने उन लाशों की शिनाख्त करवाई तो पता चला कि पंखे से लटका शव डा. प्रकाश सिंह का था और बैड पर उन की बेटी अदिति व बेटे आदित्य की लाशें पड़ी थीं. जमीन पर पड़ा शव डा. सिंह की पत्नी डा. सोनू सिंह का था.

पुलिस ने खोजबीन की तो डा. प्रकाश सिंह के पायजामे की जेब से 4 लाइनों का अंगरेजी में लिखा सुसाइड नोट मिला. सुसाइड नोट में उन्होंने परिवार संभालने में असमर्थता जताते हुए घटना के लिए खुद को जिम्मेदार बताया था. सुसाइड नोट पर एक जुलाई की तारीख लिखी थी.

डा. प्रकाश सिंह के घर में पुलिस को 4 पालतू कुत्ते भी मिले. जमीन पर खून फैला होने के कारण कुत्ते भी खून से लथपथ थे. इन में 2 कुत्ते जरमन शेफर्ड और 2 कुत्ते पग प्रजाति के थे. परिवार के चारों सदस्यों ने ये अलगअलग कुत्ते पाल रखे थे.

जरमन शेफर्ड कुत्ते डा. प्रकाश और उन के बेटे आदित्य को तथा पग प्रजाति के कुत्ते डा. सोनू व उन की बेटी अदिति को प्रिय थे. ये चारों कुत्ते कमरे में शवों के पास बैठे थे. पुलिस के घर आने पर ये कुत्ते भौंकने लगे थे. नौकरानी जूली ने उन्हें पुचकार कर शांत किया.

प्रारंभिक तौर पर यही नजर आ रहा था कि डा. प्रकाश ने पत्नी, बेटी और बेटे की हत्या करने के बाद फांसी लगा कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली. डा. प्रकाश के पूरे परिवार की मौत की जानकारी मिलने पर पूरी सोसायटी में सनसनी फैल गई.

लोगों से पूछताछ में ऐसी कोई बात पुलिस के सामने नहीं आई, जिस से यह पता चलता कि डा. प्रकाश ने पत्नी, बेटी और बेटे की हत्या के बाद खुद फांसी क्यों लगा ली. पड़ोसियों ने बताया कि डा. प्रकाश और उन का परिवार खुशमिजाज था. उन्हें पैसों की भी कोई परेशानी नहीं थी.

पड़ोसियों से पूछताछ कर पुलिस ने डा. प्रकाश के परिजनों और रिश्तेदारों का पता लगाया. फिर उन्हें सूचना दी गई. सूचना मिलने पर सब से पहले डा. सोनू सिंह की बहन सीमा अरोड़ा वहां पहुंचीं.

दिल्ली में रहने वाली सीमा अरोड़ा हाईकोर्ट में वकील हैं. उन्होंने पुलिस को बताया कि पिछली रात 11 बजे तक डा. प्रकाश के घर में सब कुछ ठीकठाक था. वह खुद रात 11 बजे तक अदिति से वाट्सऐप पर चैटिंग कर रही थीं.

सीमा अरोड़ा की बातों से यह तय हो गया कि यह घटना रात 11 बजे के बाद हुई. दूसरा यह भी था कि सुसाइड नोट पर एक जुलाई की तारीख लिखी थी. एक जुलाई रात 12 बजे शुरू हुई थी. सीमा अरोड़ा से बातचीत में पुलिस को ऐसा कोई कारण पता नहीं चला, जिस से इस बात का खुलासा होता कि डा. प्रकाश ने ऐसा कदम क्यों उठाया.

वैज्ञानिक के परिवार के 4 सदस्यों की मौत की जानकारी मिलने पर गुरुगाम पुलिस के तमाम आला अफसर मौके पर पहुंच गए. एफएसएल टीम भी बुला ली गई. फोरैंसिक वैज्ञानिकों ने घर में विभिन्न स्थानों से घटना के संबंध में साक्ष्य एकत्र किए. पुलिस ने डा. प्रकाश का शव फंदे से उतारा. दोपहर में चारों शवों को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दिया गया.

इस दौरान पुलिस ने घर के बाथरूम से 3 मोबाइल फोन बरामद किए. ये फोन पानी से भरी बाल्टी में पड़े थे. तीनों मोबाइलों के अंदर पानी चले जाने से ये चालू नहीं हो रहे थे. इसलिए तीनों मोबाइल फोरैंसिक लैब भेज दिए गए. पुलिस ने इस के अलावा मौके से रक्तरंजित एक तेज धारदार चाकू अैर एक हथौड़ा बरामद किया. माना गया कि इसी चाकू व हथौड़े से पत्नी, बेटी व बेटे की हत्या की गई.

पुलिस ने इसी दिन सीमा अरोड़ा के बयानों के आधार पर सेक्टर-50 थाने में मामला दर्ज कर लिया. डा. सिंह के परिवार के चारों कुत्ते देखभाल के लिए फिलहाल पड़ोसियों को सौंप दिए गए.

अस्पताल में चारों शवों के मैडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम कराने की काररवाई में रात हो गई. अगले दिन 2 जुलाई को डा. प्रकाश और डा. सोनू सिंह के परिवारों के लोग सुबह ही गुरुग्राम पहुंच गए. पुलिस ने दोनों पक्षों के बयान लिए और जरूरी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद सुबह करीब पौने 12 बजे चारों शव परिजनों को सौंप दिए.

सहनशीलता से आगे : जब पत्नी ने लिया बदला – भाग 1

के. विश्वनाथ शर्मा बतौर इंजीनियर मर्चेंट नेवी में तैनात थे. नौकरी की वजह से उन्हें मुंबई में रहना पड़ता था. जबकि उन की पत्नी वमसी लता और 2 बच्चे राजेश और सीमा छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के बमलेश्वरी नगर में रह रहे थे. उन का बेटा राजेश 11वीं में पढ़ रहा था और बेटी 9वीं में.

मर्चेंट नेवी में रहते हुए विश्वनाथ को शिप पर मुंबई से दुबई जाना होता था. इसी वजह से वह महीनोंमहीनों तक घर नहीं जा पाते थे. के. विश्वनाथ और वमसी लता की शादी को 18 साल बीत चुके थे. 2 किशोर बच्चों के मातापिता होने के बावजूद पतिपत्नी के संबंध सामान्य नहीं थे.

इस की वजह थी विश्वनाथ की शराबखोरी. शराब पी कर वह बिलकुल हैवान बन जाते थे. कई बार तो बच्चों के सामने ही पत्नी की पिटाई कर देते थे. उन की करतूत के लिए पिटाई शब्द हलका है, इसे तुड़ाई कहें तो बेहतर होगा. इसी सब के चलते विश्वनाथ और वमसी लता के संबंध कभी ठीक नहीं रह सके.

12 जुलाई, 2019 को के. विश्वनाथ लंबी छुट्टी ले कर सुबहसुबह रायपुर स्थित अपने घर पहुंचे. वह पत्नी और बच्चों के साथ कुछ दिन चैन से गुजारना चाहते थे. विश्वनाथ को उम्मीद थी कि उन्हें आया देख कर पत्नी और बच्चे खुश हो जाएंगे.

लेकिन जब वह बमलेश्वरी स्थित अपने आवास पर पहुंचे तो ऐसा कुछ नहीं हुआ. उन्हें देख कर पत्नी वमसी लता का चेहरा उतर गया. दोनों बच्चे राजेश और सीमा उस समय सोए हुए थे. जब वमसी लता ने उन का हालचाल नहीं पूछा तो वह समझ गए कि घर का माहौल पहले जैसा ही है, कुछ नहीं बदला.

एक बार तो विश्वनाथ ने सोचा कि उन्हें आना ही नहीं चाहिए था. लेकिन वह जानते थे कि शराब की लत के चलते इस माहौल को बनाया भी उन्होंने ही था. लेकिन यह भी सच था कि घर और बच्चों की फीस वगैरह के लिए वह वेतन का बड़ा हिस्सा घर भेजते थे. पत्नी के तेवर देख विश्वनाथ को गुस्सा आया, लेकिन उन्होंने खुद पर कंट्रोल कर लिया.

वमसी लता पति की परवाह न कर के अपने कमरे में सोने चली गई. विश्वनाथ को यह बात अच्छी नहीं लगी. वैसे भी उन्हें अपने कुछ मित्रों से मिलने जाना था. उन्होंने पत्नी को आवाज दी, ‘‘लता उठो, मुझे चाय पीनी है. चायनाश्ता बना दो. मुझे बाहर जाना है.’’

जब लता की ओर से कोई उत्तर नहीं मिला तो उन्होंने दोबारा आवाज दी. इस बार वमसी लता मन मसोस कर किचन में गई और चाय बनाने लगी.

लता चाय बना कर लाई और स्वभाव के अनुसार उन्हें घूर कर देखते हुए चाय रख कर चली गई.

विश्वनाथ ने लता को जाते देख गंभीर स्वर में कहा, ‘‘लता बैठो, मैं तुम से और बच्चों से मिलने आया हूं. कुछ दिन तुम लोगों के साथ गुजारूंगा.’’

लता जाते हुए बोली, ‘‘मैं, मेरे बच्चे तुम से कोई मतलब नहीं रखना चाहते. तुम खुद को बदल नहीं सकते तो इन बातों का क्या मतलब?’’

‘‘लता, तुम तो मेरा स्वभाव जानती हो. मुझे गुस्सा जल्दी आ जाता है, पर मैं खुद को बदल लूंगा.’’

‘‘मैं विश्वास कर सकती हूं क्योंकि मैं पत्नी हूं. लेकिन तुम क्या वाकई अपने आप को बदल सकते हो? मैं ऐसा वादा तुम्हारे मुंह से हजारों बार सुन चुकी हूं. रात में शराब पी कर फिर शैतान बन जाते हो.’’

के. विश्वनाथ शर्मा ने आवाज में दृढ़ता लाने का प्रयास करते हुए कहा, ‘‘मैं वाकई बदलना चाहता हूं. मेरा यकीन करो.’’

‘‘अच्छा, बातें बाद में होंगी, पहले चाय पी लो.’’ कह कर वमसी लता अपने कमरे में चली गई.

विश्वनाथ चाय की चुस्कियां लेते हुए मन ही मन सोच रहे थे कि वह कहां गलत हैं. शराब पीना, पत्नी पर हाथ उठाना. मगर यह भी तो नहीं सुधरी, इस का भी तो फर्ज है पति की भावनाओं का सम्मान करे.

चाय पी कर विश्वनाथ ने लता के कमरे की ओर देखा. वह कमरे का दरवाजा बंद कर के सो गई थी.

यह देख कर उन्हें बहुत कोफ्त हुई. सोचा क्या यही पत्नी धर्म है? मैं 6 महीने बाद आया हूं और यह महारानी मुझ से बातें किए बिना जा कर सो गई. सोच कर उन्हें गुस्सा आने लगा. उन्होंने धीरे से दरवाजा खटखटाया लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई.

उन्होंने दरवाजा जोर से खटखटाया तो खुल गया. सामने आंखों में गुस्से की आग समेटे वमसी लता खड़ी थी. उस ने पति को ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा, ‘‘क्या बात है, क्या चाहते हो तुम?’’

‘‘तुम ने दरवाजा क्यों बंद कर लिया था, मैं क्या कुत्ता हूं जिसे बाहर से भगा दोगी. पति बाहर से आया है, और तुम त्रियाचरित्र दिखा रही हो.’’ के. विश्वनाथ का क्रोध जाग उठा.

‘‘साफसाफ सुनना चाहते हो सुनो, मैं तुम से कोई संबंध नहीं रखना चाहती.’’

‘‘तुम ऐसा क्यों कह रही हो. मैं कहां गलत हूं.’’

‘‘मैं 20 वर्षों से तुम्हारी नसनस से वाकिफ हूं. तुम इंसान नहीं हो, मैं औरत हूं, 2 बच्चों की मां. चाहती हूं कि मेरा घर संसारसुखी हो. लेकिन ऐसा नहीं हो सकता. तुम होने ही नहीं दोगे.’’

‘‘देखो, मैं अपनी जिम्मेदारी निभा रहा हूं मेरा सब कुछ तुम्हारा और बच्चों का है. मैं ने तुम्हें सारी सुखसुविधाएं दी हैं. फिर मेरे साथ ऐसा कठोर बर्ताव क्यों? लगता है, तुम ऐसे नहीं मानोगी.’’ कहते हुए विश्वनाथ ने वमसी लता की पिटाई शुरू कर दी.

होहल्ला सुन कर सीमा और राजेश आ गए. दोनों छिप कर मातापिता को लड़ते देख रहे थे. जब विश्वनाथ लता को पीटतेपीटते थक गए तो गालियां देते हुए अपने कमरे में जा कर बैठ गए और चिल्लाचिल्ला कर कहने लगे, ‘‘ऐसा है, तो मेरी नजरों से दूर चली जाओ. छोड़ दो मेरा घर. जहां तुम्हें सुखचैन मिले, वहीं चली जाओ अपने बच्चों को ले कर.’’

प्यार की भूल : सब्र की सीमा ने किया परिवार तबाह – भाग 1

गली में जैसे ही बाइक के हौर्न की आवाज सुनाई दी, शमा के साथसाथ उस की सहेलियां भी चौंक उठीं. क्योंकि वह बाइक शमा के प्रेमी नरेंदर की थी. नरेंदर अपनी बाइक से कपड़ों की फेरी लगाता था. शमा के घर के नजदीक पहुंचते ही वह बारबार हौर्न बजाता. तभी तो बाइक के हौर्न की आवाज सुनते ही एक सहेली ने शमा को छेड़ते हुए कहा, ‘‘लो जानेमन, आ गई तुम्हारे यार की कपड़ों की चलतीफिरती दुकान.’’

‘‘हट बदमाश, तू तो ऐसे कह रही है जैसे वह केवल मेरे लिए ही यहां आता है. क्या मोहल्ले का और कोई उस से कपडे़ नहीं खरीदता है?’’

‘‘और नहीं तो क्या, वह तेरे लिए ही तो इस गांव में आता है.’’ सहेलियों ने शमा को छेड़ते हुए कहा, ‘‘वह बेचारा तो सारे गांव छोड़ कर पता नहीं कहां से धक्के खाता हुआ तेरे दीदार के लिए इस गांव में आता है.’’

सहेलियों की चुहलबाजी से शमा शरमा गई और उन के बीच से उठ कर अपने कमरे में चली गई.

जब वह कमरे से बाहर निकली तो गुलाबी रंग का फूलों के प्रिंट वाला सुंदर सूट पहन कर आई थी. यह सूट पिछले सप्ताह नरेंद्र ने उसे यह कहते हुए दिया था कि इसे सिलवा कर तुम ही पहनना, किसी और को मत देना. इसे मैं अमृतसर से सिर्फ तुम्हारे लिए ही लाया हूं. यूं समझो शमा, यह सूट मेरे प्यार की निशानी है.

नरेंदर के दिए उसी सूट को पहन कर शमा घर से निकली. नरेंदर उस के सामने खड़ा था. जैसे ही वह घर से बाहर आई, उसे देख कर वह खुश हो गया. वह मंत्रमुग्ध सा हो कर उसे ऊपर से नीचे तक देखता रह गया था. उस सूट ने उस की खूबसूरती में चारचांद लगा दिए थे. वह किसी अप्सरा से कम सुंदर नहीं लग रही थी.

घर की ओट में खड़ी शमा की सहेलियां जब जोरजोर से हंसी तो शमा और नरेंदर की तंद्रा भंग हुई. घबराहट और शरम से भरी शमा ने जल्दीजल्दी नरेंद्र से कहा, ‘‘अच्छा, मैं चलती हूं.’’

नरेंदर ने आगे बढ़ कर उस का हाथ पकड़ लिया, ‘‘नहीं शमा, आज नहीं. आज मुझे तुम से बहुत जरूरी बात करनी है.’’

शमा के कदम वहीं रुक गए.

जालंधर शहर की बस्ती शेख निवासी नरेश चौहान के 2 बेटे थे सुरेंदर चौहान और नरेंदर चौहान. कई साल पहले किसी वजह से नरेश की मृत्यु हो गई, जिस की वजह से परिवार का भार उन की पत्नी सुदेश कुमारी के ऊपर आ गया. जो सगेसंबंधी थे, उन्होंने भी मदद करने के बजाय सुदेश का साथ छोड़ दिया था. मेहनतमजदूरी कर के उन्होंने जैसेतैसे दोनों बच्चों का पालनपोषण किया. जहां तक हो सका, उन्हें पढ़ाया भी.

बड़ा बेटा सुरेंदर जब जवान हो कर किसी फैक्ट्री में काम करने लगा तो घर के हालात कुछ सामान्य हुए. कुछ समय बाद उस ने कुछ रुपए इकट्ठे कर के और कुछ इधरउधर से कर्ज ले कर छोटे भाई नरेंदर को कपड़े का काम करवा दिया. उसे एक मोटरसाइकिल भी खरीदवा दी. नरेंदर सुबह कपड़े का गट्ठर बांध कर अपनी बाइक पर रखता और जालंधर से बाहर दूरदूर गांवों में जा कर कपड़ा बेचता.

मोटरसाइकिल से गांवगांव घूम कर कपड़ों की फेरी लगाने पर उस का काम चल निकला. अब दोनों भाई कमाने लगे तो वे पैसे मां को दे देते. मां ने पैसे जोड़जाड़ कर बड़े बेटे सुरेंदर की शादी कर दी.

पर शादी के कुछ दिनों बाद वह अपनी पत्नी को ले कर अलग रहने लगा था. जबकि नरेंदर मां के साथ रहता था. नरेंदर खूब मेहनत कर रहा था. उस का व्यवहार भी अच्छा था जिस की वजह से उसे ठीकठाक आमदनी हो जाती थी.

एक बार वह कपड़े बेचने के लिए नंगल लाहौरा गांव गया. वहां की रहने वाली भोलीनामक महिला उसे अपने घर बुला कर ले गई.

उस दिन भोली व उस की बेटी शमा ने उस से 5 हजार रुपए के कपड़े खरीदे. उसी समय उस की मुलाकात शमा से हुई थी. शमा बहुत खूबसूरत थी. उसी दिन उस की शमा से आंखें लड़ गईं.

इस के बाद वह नंगल लाहौरा गांव का रोजाना ही चक्कर लगाता और शमा के घर के नजदीक बाइक पहुंचते ही बारबार हौर्न बजाता.

हौर्न की आवाज सुनते ही शमा घर से बाहर निकल आती थी. दोनों एकदूसरे को देख कर मुसकराने लगते थे. कभीकभी अच्छे कपड़े दिखाने की बात कह कर वह भोली के घर में भी चला जाता था.

जब नरेंदर उस के यहां ज्यादा ही आनेजाने लगा तो शमा के घर वालों ने उस से बेरुखी से बात करनी शुरू कर दी. इस बारे में नरेंदर ने शमा से फोन पर पूछा तो शमा ने घर वालों की नाराजगी के बारे में बता दिया. घर वालों से चोरीछिपे शमा नरेंदर से मिलती रही. उन की फोन पर भी बात होती रहती. इस तरह उन का प्यार परवान चढ़ता रहा. यह सन 2004 की बात है.

नरेंदर शमा की पूरी पारिवारिक स्थिति जान गया था. शमा की 5 बहनें और एक भाई था. पिता की पहले ही मौत हो चुकी थी. घर की पूरी जिम्मेदारी शमा की मां भोली के कंधों पर ही थी. शमा की बड़ी बहन शादी लायक थी, उस के लिए भोली कोई अच्छा लड़का तलाश रही थी.

नरेंदर जितना शमा को चाहता था, उस से कई गुना अधिक शमा भी उस से प्यार करती थी. नरेंदर हृष्टपुष्ट और भला लड़का था. वह कमा भी अच्छा रहा था, इसलिए उसे उम्मीद थी कि शमा की शादी उस से कर देने पर भोली को कोई ऐतराज नहीं होगा.

पर पता नहीं क्यों नरेंदर ने किसी के माध्यम से शमा से शादी करने का प्रस्ताव भोली के पास भेजा तो भोली ने उस के साथ बेटी का रिश्ता करने से साफ इनकार कर दिया. इस से दोनों प्रेमियों के इरादों पर पानी फिर गया.

ऐसे प्रेमियों के पास घर से भाग कर शादी करने के अलावा कोई और दूसरा रास्ता नहीं बचता, सो शमा और नरेंदर ने भी घर से भाग कर शादी करने की योजना बनाई.

नरेंदर ने मंदिर के पंडित से ले कर वकील तक का इंतजाम कर के शमा से कहा, ‘‘शमा, अब मेरी बात गौर से सुनो. मैं ने शादी की सारी तैयारियां पूरी कर ली हैं. कल सुबह तुम्हें किसी बहाने से अपने गांव से निकल कर बसअड्डे पहुंचना है. फिर वहां से कोई बस पकड़ कर तुम जालंधर आ जाना. मैं तुम्हें वहीं मिलूंगा. वहां से हम साथसाथ चंडीगढ़ चलेंगे और वहीं शादी कर लेंगे. तुम चिंता मत करो, मैं ने सारा इंतजाम कर लिया है.’’

‘‘मैं घर से कपड़े भी लेती आऊं?’’ शमा ने पूछा.

‘‘नहीं, तुम्हें कुछ भी साथ लाने की जरूरत नहीं है. तुम बस इतना करना कि टाइम से पहुंच जाना.’’ नरेंदर ने शमा को अच्छी तरह समझा दिया था. इतना ही नहीं उस ने किराएभाड़े के लिए कुछ पैसे भी उसे दे दिए थे.

एक रोटी के लिए हत्या – भाग 1

सन 1974 में राजेश खन्ना मुमताज अभिनीत मनमोहन देसाई के निर्देशन में एक फिल्म आई थी ‘रोटी’. इस सुपरहिट फिल्म में राजेश खन्ना द्वारा निभाया गया पात्र मात्र एक रोटी की खातिर अपराधी बन गया था. इस रोटी फिल्म की तरह इस कहानी में भी एक नौकर रोटी के लिए रोजी नाम की अपनी मालकिन का कत्ल कर बैठा. इत्तफाक यह भी है कि रोटी फिल्म के नायक राजेश खन्ना की तरह इस नौकर का नाम भी राजेश ही है. प्रस्तुत कहानी पढ़ने के बाद पाठक यह तय करें कि फिल्म ‘रोटी’ या रोजी हत्याकांड में क्या ऐसा करना जरूरी था. क्या इस समस्या का कोई दूसरा समाधान या विकल्प नहीं हो सकता था?

राजेश उर्फ विलट पासवान गांव बथनी राम पट्टी, जिला मधुबनी, बिहार का रहने वाला था और पिछले लगभग डेढ़ साल से हरियाणा के जिला यमुनानगर के जगाधरी की न्यू जैन नगर कालोनी में रहने वाले राजिंदर सिक्का की कोठी पर काम कर रहा था.

राजिंदर सिक्का शहर के सब से बड़े उद्यमी और बालाजी स्टोन क्रेशर के मालिक थे. राजेश उस से पहले खिदराबाद स्थित आर.के. स्टोन क्रेशर में काम करता था.

वहां उसे कम तनख्वाह मिलती थी. इसलिए खिदराबाद से काम छोड़ कर वह राजिंदर सिक्का के यहां चला आया था. यहां उसे खानेपीने और रहने के अलावा 8 हजार रुपए मासिक वेतन मिलता था. राजिंदर सिक्का ने उसे अपनी कोठी के सामने वाले प्लौट में रहने  के लिए कमरा दे रखा था.

15 मई, 2019 की रात को राजेश को जल्दी सोना था. इस की वजह यह थी कि अगली सुबह यानी 16 तारीख को उसे जल्दी उठना था. क्योंकि 16 तारीख को राजिंदर सिक्का को पहले कचहरी और उस के बाद अपने क्रेशर पर जाना था. पिछले 20 दिनों से वह घर पर ही थे. वजह यह थी कि उन का औपरेशन हुआ था.

दरअसल राजिंदर सिक्का का वजन जरूरत से ज्यादा बढ़ रहा था, इसलिए डाक्टरों की सलाह पर उन्होंने अपना वजन कम करने के लिए औपरेशन करवाया था. बहरहाल 16 मई को राजेश 7 बजे उठ गया था.

सब से पहले उस ने कोठी में खड़ी कार धोई. उस के बाद राजेश ने राजिंदर सिक्का की ड्रेसिंग के बाद सब के लिए नाश्ता बनाया और परोसा. करीब पौने 11 बजे राजिंदर सिक्का अपने बेटे दीपांशु उर्फ मोंटी के साथ घर से निकल गए. घर पर राजेश के अलावा दीपांशु की पत्नी रोजी और उस का 7 महीने का बच्चा रह गए थे.

राजिंदर और दीपांशु के चले जाने के बाद राजेश ने पूरी कोठी की सफाई की, फिर वह छत के पंखों की सफाई करने लगा. यह सारा काम निपटाने के बाद वह सामने वाले प्लौट में कपड़े धोने चला गया. कपडे़ धो कर उन्हें मशीन में ड्राई कर सुखाना था. मशीन कोठी में रखी थी.

वह जब कपड़े ले कर कोठी पर पहुंचा, कोठी का दरवाजा अंदर से बंद था. दरवाजा खुलवाने के लिए उस ने रोजी को कई आवाजें दीं पर अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. वह काफी देर तक दरवाजा पीटता रहा. अंत में हार कर उस ने दीपांशु को फोन कर बताया कि मशीन में कपड़े सुखाने हैं पर भाभीजी दरवाजा नहीं खोल रही हैं.

दीपांशु ने उसे कहा कि वह रोजी को फोन करता है तब तक वह कपड़े कोठी के लौन में फैला दे. यह दोपहर डेढ़ बजे की बात है. इस के लगभग 10 मिनट बाद हिमांशु का फोन राजेश के फोन पर आया. दीपांशु ने कहा कि वह भी काफी देर से रोजी का फोन ट्राई कर रहा है पर वह फोन नहीं उठा रही. तुम कोठी में जा कर देखो, क्या बात है.

‘‘लेकिन मैं अंदर जाऊंगा कैसे,’’ राजेश ने कहा, ‘‘कोठी का गेट अंदर से बंद है. मैं ने इतना दरवाजा पीटा पर भीतर से कोई आवाज ही नहीं आई.’’

‘‘ठीक है, तुम किसी तरह दीवार फांद कर भीतर जाओ और जो बात हो मुझे तुरंत बताओ.’’ दीपांशु बोला.

दीपांशु के कहने पर राजेश कोठी की दीवार फांद कर भीतर गया. लेकिन भीतर का नजारा देख उस ने दीपांशु को फोन करने के साथसाथ शोर मचाना भी शुरू कर दिया. उस की चीखें सुन कर पड़ोसी दौड़े चले आए. पड़ोसियों ने जब भीतर झांक कर देखा तो उन के भी होश उड़ गए. उन्होंने पुलिस कंट्रोल रूम नंबर को 100 व एंबुलेंस कंट्रोल नंबर 102 पर 20 से ज्यादा बार फोन किया, लेकिन किसी ने भी फोन रिसीव नहीं किया.

तब तक राजिंदर सिक्का और दीपांशु भी वहां पहुंच गए थे. कंट्रोल रूम में जब किसी ने फोन नहीं उठाया तो वे लोग अर्जुन नगर पुलिस चौकी पहुंचे और मामले की जानकारी पुलिस को दे दी. मामला हाईप्रोफाइल फैमिली से जुड़ा होने के चलते एसपी कुलदीप यादव खुद मौके पर पहुंचे.

उन से पहले डीएसपी (हेडक्वार्टर) सुभाष, डीएसपी (जगाधरी) सुधीर व डीएसपी प्रदीप, जगाधरी सिटी एसएचओ राकेश, सीआईए-2 इंचार्ज श्रीभगवान यादव समेत अन्य पुलिस अधिकारियों के अलावा क्राइम टीम भी मौके पर पहुंच गई. यह घटना 16 मई, 2019 की है.

जगाधरी की न्यू जैन नगर कालोनी में रहने वाले स्टोन क्रेशर उद्यमी राजिंदर सिक्का के घर का दृश्य दिल दहला देने वाला था. किसी ने दीपांशु की पत्नी रोजी सिक्का की गला काट कर हत्या कर दी थी. फर्श पर चारों ओर खून ही खून फैला हुआ था. सोफे पर भी खून, यहां तक मृतका का गला काटते समय खून की धार दीवार से भी टकराई थी. जिस के ताजा छींटे इस बात की गवाही दे रहे कि हत्या हुए ज्यादा समय नहीं हुआ है.

7 महीने का मासूम बच्चा अपनी मां की लाश के पास बैठ कर उस की छाती से लिपट कर रो रहा था. बाद में नौकर राजेश जब कमरे में आया तो उस ने बच्चे को संभाला.

घर के बाहर गली में भी खून बिखरा हुआ था. आशंका जताई जा रही थी कि हत्यारा वारदात को अंजाम देने के बाद दीवार फांद कर इसी रास्ते से बाहर भागा होगा, जिस से गली में खून के निशान बन गए थे. क्राइम टीम ने खून के छींटों की जांच की और जगहजगह से फिंगरप्रिंट उठाए.