प्यार बना कंकाल : क्या हुआ खुशबू के साथ – भाग 3

गिरफ्तार आरोपी गौरव को ले कर पुलिस गांव पहुंची. गौरव की निशानदेही पर पिछले 2 साल से बंद पड़े उस के मकान को खोला गया. उस ने बताया कि खुशबू की हत्या कर उस की लाश को गड्ढा खोद कर मकान के एक कमरे में ही दबा दिया था.

गौरव के बताने पर उस कमरे के कोने में खुदाई शुरू की गई. लगभग 3 फीट खुदाई के बाद गड्ढे से लापता हुई खुशबू के कपड़े व कंकाल मिल गए. पुलिस ने मृतका के कंकाल के अवशेषों को एक पौलीथिन में एकत्र कर सील कर दिया.

कंकाल मिलते ही गांव में सनसनी फैल गई. कंकाल को देखते ही खुशबू के परिवार में कोहराम मच गया. वृद्ध मातापिता पछाड़ खा कर गिर गए. गांव वालों ने किसी तरह उन्हें तसल्ली दी.

खुशबू के दोनों भाइयों अंकुश व रवि का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था. 2 साल से अपनी बहन को तलाशते वे पूरी तरह से टूट चुके थे. उन का रक्षाबंधन भी बहन के इंतजार में सूना गया था.

एसपी (ग्रामीण) कुमार रणविजय सिंह ने प्रैस कौन्फ्रैंस में घटना का परदाफाश करते हुए जानकारी दी कि खुशबू का प्रेमी गौरव व उस के पिता चंद्रभान को गिरफ्तार कर उन की निशानदेही पर मृतका का कंकाल आरोपियों के घर से बरामद हो गया है.

उन्होंने बताया कि केस खुलने में बिलंब हुआ है. पूर्व में थाने में तैनात इंसपेक्टर और विवेचकों द्वारा इस केस के संबंध में किए गए प्रयास की समीक्षा की जाएगी. यदि लापरवाही पाई गई तो वैधानिक काररवाई भी होगी.

गौरव ने बताया कि आज से करीब 4 साल पहले पड़ोस में रहने वाली खुशबू ने उस से कहा था कि उसे भी बाइक चलाना सिखा दो. उस की मां ने भी सहमति दे दी थी. गौरव ने खुशबू को बाइक चलानी सिखाई थी.

इसी दौरान उस से शारीरिक संबंध हो गए थे. खुशबू गौरव से प्यार करने लगी थी. जबकि गौरव खुशबू से प्यार नहीं करता था. केवल प्यार का नाटक कर उस की अस्मत से खेल रहा था.

गौरव के घर वालों को भी बाइक सिखाने वाली बात पसंद नहीं थी. वे लोग खुशबू को भी  पसंद नहीं करते थे. उन्हें मालूम था कि खुशबू अपने पति को छोड़ चुकी है. वह गौरव से शादी करने के लिए दबाव बनाने लगी थी, जबकि गौरव उस से शादी नहीं करना चाहता था. उस के घर वाले भी शादी के लिए तैयार नहीं थे.

21 नवंबर, 2020 की शाम खुशबू उस के घर आई थी. उसे पता था कि गौरव अगले दिन अपनी नौकरी पर जा रहा है. वह गौरव से जिद करने लगी कि वह उसे भी अपने साथ ले जाए और उस से शादी कर ले. गौरव और उस के घर वालों ने पहले ही खुशबू से छुटकारा पाने की योजना बना ली थी.

घर वालों ने खुशबू को समझाया कि यदि गौरव उसे अपने साथ इस तरह भगा कर ले जाएगा तो गांव में बहुत बदनामी होगी. गौरव व उस के घर वालों ने हर तरह से खुशबू को ऊंचनीच समझाई, लेकिन वह जिद पर अड़ी रही.

इस पर गौरव खुशबू को बात करने के बहाने से घर के अंदर वाले कमरे में ले गया. वहां उस ने अपने भाइयों के सहयोग से खुशबू की गला दबा कर हत्या कर दी. कमरे के ही एक कोने में 3 फीट गहरा गड्ढा खोद कर लाश को उस में दफना दिया.

इतना ही नहीं उस जगह पर भूसा डाल कर कूलर रख दिया. रात के समय खुशबू की मां आशा देवी बेटी को तलाशती हुई गौरव के घर आईं और खुशबू के बारे में पूछने लगीं. इस पर गौरव के घर वालों ने झूठ बोल दिया कि खुशबू उन के यहां नहीं आई. इस पर आशा देवी बिना शक किए वापस चली गई.

हत्या के डेढ़ घंटे बाद गौरव अपने घर से चला गया. इस के बाद उस के दोनों भाई व मां पड़ोसियों को यह बताते हुए अपने घर से चले गए कि गौरव की मौसी के लड़के का एक्सीडेंट हो गया है, वहां जा रहे हैं. जिस से गांव वालों को किसी प्रकार का उन पर शक न हो.

घर पर केवल गौरव का पिता चंद्रभान रह गया था. उस की मजबूरी यह थी घर पर 2 भैंसें थीं. चंद्रभान भी भीकम सिंह के परिवार के साथ खुशबू को तलाशने का नाटक करता  रहा.

इस बीच वह दोनों भैंसों को बेच कर मकान में ताला लगा कर फरार हो गया.

उस दिन से गौरव व उस के घर का कोई भी सदस्य गांव नहीं आया था. इस के साथ ही वे लोग एकदूसरे से मोबाइल पर पुराने नंबरों पर बात नहीं करते थे. बल्कि उन लोगों ने दूसरे सिमकार्ड खरीद लिए थे.

कुछ समय बाद गौरव छिपछिप कर अपने गांव व आसपास की जानकारी दोस्तों से ले लिया करता था कि गांव में खुशबू के बारे में कोई चर्चा तो नहीं होती है.

गौरव व उस के घर वालों के फरार होने पर आशा देवी व अन्य परिजनों को शक हुआ कि जरूर खुशबू को भगा कर ले जाने में गौरव का हाथ है. तभी पुलिस के डर से ही वे लोग फरार हो गए हैं. तब तीसरे दिन खुशबू की मां आशादेवी ने थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

पुलिस ने कंकाल बरामद करने के लिए नियमानुसार खुदाई की अनुमति ले कर सीओ अनिवेश कुमार सिंह, कार्यपालक मजिस्ट्रैट/तहसीलदार लालता प्रसाद व तहसील स्टाफ के साथ ही खुशबू के घर वालों के साथ वीडियोग्राफी कराते हुए खुदाई कराई.

इस के बाद कंकाल व कपड़े बरामद होने के बाद कंकाल को पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय भेजा.

पुलिस ने गौरव के घर से 2 फावड़े भी बरामद कर लिए, जिन से खुशबू की लाश दबाने के लिए गड्ढा खोदा गया था. पुलिस ने घर से कंकाल बरामद होने के बाद घर को सील कर दिया.

पुलिस का कहना है कि हत्या के मामले में गौरव और उस का परिवार शामिल था. गौरव अपने पिता चंद्रभान के साथ सिरसागंज आया था. वे लोग कीठौत के मकान को चोरीछिपे बेचने की फिराक में थे, तभी पुलिस की गिरफ्त में आ गए.

पुलिस गौरव और उस के पिता चंद्रभान की गिरफ्तारी के बाद शेष आरोपियों भाई अक्षय, सौरभ व मां ज्ञानदेवी की सरगर्मी से तलाश कर रही थी. पुलिस ने गौरव व चंद्रभान सिंह को न्यायालय में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

बेटी के गम में पूरी तरह टूट चुकी मां आशा देवी ने भरी आंखों से कहा, ‘‘हम अपनी बेटी को तो खो चुके हैं, लेकिन जब तक हमारी बिटिया को इंसाफ नहीं मिल जाता, तब तक हम केस लड़ते रहेंगे.     द्य

बिछड़ा राही प्यार का : समीर के प्यार को क्यों ठुकरा दिया – भाग 3

गुलफ्शा की लाश का पोस्टमार्टम 3 नवंबर, 2022 को नहीं हो सका था. उस की हत्या का मामला एसआई अनंगपाल द्वारा वादी के तौर पर 4 नवंबर को थाने में धारा 302, 34 आईपीसी के तहत दर्ज करवाया. हत्या करने वाला अज्ञात था.

इस मामले को खोलने के लिए एसएसपी ने एसएचओ अमित कुमार खारी, इंसपेक्टर सुरेंद्रपाल सिंह, एसआई विनेश कुमार, संजीव सिंह चौहान, अनंगपाल राठी, कांस्टेबल नरेंद्र कुमार और कांस्टेबल इमरान सलमानी की टीम गठित की गई, जिसे अमित खारी के निर्देशन में काम करना था.

एसएचओ का अनुमान था कि गुलफ्शा का कोई चाहने वाला रहा है, जो उस से मिलने रात को चुपके से दरवाजे पर आया, जिसे स्वयं गुलफ्शा ने दरवाजा खोल कर अंदर प्रवेश करवाया.

उन के अनुमान से गुलफ्शा का जिस से टांका भिड़ा था, उसे उस ने ही बुलवाया. उस रात या पहले भी वह इसी प्रकार चोरीछिपे उसे घर में बुलाती रही होगी. वह कल रात भी गुलफ्शा के बुलाने पर आया. किसी बात पर उस का गुलफ्शा से झगड़ा हआ और उस ने गला घोट कर मार डाला.

विचारविमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया कि टीम के लोग प्रेमी वाले एंगल को ध्यान में रख कर अपनी जांच आगे बढ़ाएंगे.

इस के लिए पड़ोसियों से पूछताछ, गुलफ्शा की सहेलियां और उस का मोबाइल, इन 3 पौइंट्स पर काम करने के लिए टीम थाने से निकल गई. सभी को अलगअलग दिशानिर्देश दिए गए थे.

एसआई सुरेंद्र और विनेश ने नन्हे के पड़ोसियों से गुपचुप तरीके से गुलफ्शा के चरित्र के बारे में पूछताछ शुरू की तो एसआई अनंगपाल मृतका के मोबाइल फोन को हासिल करने के लिए सीधे नन्हे के घर पहुंच गए. फोन से स्थिति काफी साफ हो सकती थी. एसआई संजीव सिंह चौहान और कांस्टेबल नरेंद्र कुमार उन के साथ थे.

नन्हे के घर में अभी भी मातम का माहौल था. अनंगपाल ने नन्हे को एक तरफ बुला कर पूछा, ‘‘नन्हे, मुझे गुलफ्शा का मोबाइल फोन चाहिए.’’

‘‘सर, देखता हूं.’’ नन्हे ने कहा और कमरे में चला गया.

थोड़ी देर में ही वह वापस आ गया. उस के हाथ में मोबाइल था. उस ने मोबाइल अनंगपाल को देते हुए पूछा, ‘‘साहब, क्या गुलफ्शा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई है?’’

‘‘अभी नहीं, शाम तक आने की उम्मीद है. उस रिपोर्ट का हमें भी बेचैनी से इंतजार है.’’

अनंगपाल मोबाइल ले कर अपने साथियों के साथ कोतवाली लौट आए.

मोबाइल की जांच शुरू हुई तो उस में जिन नंबरों पर ज्यादा बातें हुई थीं, उन्हें टे्रस करने के लिए नंबर मिला कर एक कागज पर दूसरी ओर से बात करने वाले का नामपता पूछ कर दर्ज किया गया.

इन में 4 नंबर गुलफ्शा की सहेलियों के थे लेकिन एक नंबर पर बात करने से मालूम हुआ कि वह डासना गेट में रहने वाले किसी समीर सलमानी का था. गुलफ्शा इस नंबर पर ज्यादा बातें किया करती थी.

एसआई अनंगपाल को शक हुआ कि यह समीर नाम का शख्स ही गुलफ्शा का प्रेमी हो सकता है. अनंगपाल अपने साथियों के साथ इस शख्स से मिलने डासना गेट के लिए निकल पड़े.

डासना गेट के मसजिद कंपाउंड में समीर सलमानी का घर था. वह घर पर ही मिल गया. उसे साथ ले कर अनंगपाल कोतवाली लौट आए. रास्ते में समीर से कोई सवाल नहीं किया गया. उसे एसएचओ खारी के सामने बिठाया तो वह हैरानपरेशान था.

उस ने डरतेडरते पूछा, ‘‘सर, मैं ने क्या गुनाह किया है, जो मुझे यहां लाया गया है?’’

‘‘तुम्हारा नाम समीर ही है न?’’ एसएचओ ने प्रश्न किया.

‘‘जी सर, मैं ने घर पर और फोन पर भी अपना नामपता बता दिया था. मेरा नाम समीर सलमानी है. मेरे अब्बू का नाम शौकत सलमानी है.’’

‘‘तुम गुलफ्शा को जानते हो समीर? तुम्हारा नंबर हमें उस के मोबाइल फोन से मिला. हमें यह बताओ तुम्हारा उस से क्या संबंध है?’’

‘‘सर, वह मेरी प्रेमिका है. 2 साल से हमारा प्रेम प्रसंग चल रहा है.’’

‘‘ओह!’’ एसएचओ ने होंठों को सिकोड़ा, ‘‘हमारा अनुमान सही निकला, गुलफ्शा का कोई प्रेमी रहा है, वह तुम निकले. अब सीधी तरह यह बता दो, तुम ने गुलफ्शा को क्यों मारा?’’

‘‘क…क्या? गुलफ्शा को किसी ने मार डाला?’’ समीर ने घबरा कर पूछा.

‘‘किसी ने नहीं बेटा, तुम ने उस का गला दबाया है. बताओ, तुम ने ऐसा क्यों किया?’’ इस बार अनंगपाल ने सख्त स्वर में पूछा.

‘‘मैं ने गुलफ्शा को नहीं मारा साहब,’’ समीर कहते हुए फफक कर रोने लगा. रोते हुए ही बोला, ‘‘मैं गुलफ्शा को अपनी जान से ज्यादा प्यार करता था. गुलफ्शा भी मुझे सच्चे दिल से चाहती थी, वह मुझ से निकाह करना चाहती थी लेकिन उस के घर वाले इस के लिए तैयार नहीं थे.’’

‘‘क्यों? तुम दोनों तो एक ही मजहब से हो, जवान और देखने में हैंडसम भी हो. फिर गुलफ्शा के घर वालों को तुम से उस का निकाह करने में क्या दिक्कत थी?’’

‘‘गुलफ्शा का भाई तौहीद और उस की अम्मी का कहना था कि मैं छोटी जाति से हूं इसलिए यह निकाह संभव नहीं है.’’

‘‘छोटी जाति?’’ राठी ने उस के चेहरे पर गहरी नजरें जमा कर पूछा, ‘‘किस जाति के हो तुम?’’

4 साल बाद मिले कंकाल ने बयां की इश्क की कहानी – भाग 3

42 वर्षीय चंद्रवीर को पैतृक संपत्ति का काफी बड़ा हिस्सा बंटवारे में मिला था. वह उसी संपत्ति का थोड़ाथोड़ा हिस्सा बेच कर अपने परिवार का गुजरबसर कर रहा था. परिवार में 3 ही प्राणी थे— वह, उस की पत्नी सविता और बेटी दीपा (काल्पनिक नाम). चंद्रवीर घर में  किसी चीज की कमी नहीं होने देता था. उस की गृहस्थी की गाड़ी बड़े आराम से चल रही थी.

28 सितंबर, 2018 को चंद्रवीर लापता हो गया. सविता के बताने के अनुसार चंद्रवीर अपने खेत का एक बड़ा हिस्सा बेचने के इरादे से घर से निकला था. शाम ढल गई और अंधेरा जमीन पर उतर आया तो सविता के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं. उस ने अपनी बेटी दीपा को साथ लिया और पति चंद्रवीर को उन जगहों पर तलाश करने निकल गई, जहांजहां वह उठताबैठता था.

सविता और दीपा ने हर संभावित जगहों पर पति की तलाश की, उस के विषय में पूछताछ की लेकिन हर जगह से उन्हें निराशा मिली. चंद्रवीर आज उन जगहों पर नहीं आया था. दोनों घर आ गईं. जैसेतैसे रात गुजर गई.

सुबह सविता ने अरुण को बुला कर बताया कि चंद्रवीर कल सुबह से घर से निकला है, अभी तक वापस नहीं लौटा है. उसे रिश्तेदारी में तलाश करो.

अचानक लापता हो गया चंद्रवीर

अरुण अपने साथ 2-3 लोगों को ले कर उन रिश्तेदारियों में गया, जहांजहां चंद्रवीर आनाजाना करता था. उस ने कितनी ही रिश्तेदारियों में मालूम किया, लेकिन चंद्रवीर कई दिनों से उन लोगों से मिलने नहीं आया था. 2 दिन की तलाश करने के बाद अरुण वापस आ गया.

उसे मालूम हुआ कि 3 दिन बीत जाने पर भी चंद्रवीर घर नहीं लौटा है. उस ने सविता को बताया कि चंद्रवीर किसी रिश्तेदारी में भी नहीं पहुंचा है. सुन कर सविता दहाड़े मार कर रोने लगी.

अब तक पूरे गांव में यह बात फैल चुकी थी कि चंद्रवीर 3 दिनों से लापता है. गांव वाले चंद्रवीर की तलाश में सविता की मदद के लिए इकट्ठे हो गए. पूरे गांव में चंद्रवीर को ढूंढा जाने लगा. नदी तालाब, खेत खलिहान हर जगह चंद्रवीर को खोजा गया, लेकिन वह नहीं मिला.

इन लोगों में चंद्रवीर का भाई भूरे भी था. भूरे से चंद्रवीर की बनती नहीं थी, वह चंद्रवीर के घर आताजाता नहीं था लेकिन चंद्रवीर था तो सगा भाई, इसलिए उस की तलाश में वह भी जान लड़ा रहा था.

चंद्रवीर जब 5 दिन की खोजखबर के बाद भी नहीं मिला तो 5 अक्तूबर, 2018 को भूरे ने गाजियाबाद के नंदग्राम थाने में चंद्रवीर के लापता होने की सूचना दर्ज करवा दी.

नंदग्राम थाने के तत्कालीन एसएचओ पुलिस टीम के साथ सिकरोड गांव में स्थित सविता के घर पहुंच गए. सविता 5 दिनों से आंसू बहा रही थी. दीपा भी पिता की याद में सिसक रही थी. वह एकदम बेसुध और बेहाल सी नजर आ रही थी.

एसएचओ ने सविता के सामने पहुंच कर उसे ढांढस बंधाते हुए कहा, ‘‘देखो रोओ मत, चंद्रवीर की तलाश करने में हम लोग पूरी जान लड़ा देंगे. तुम हमें यह बताओ कि चंद्रवीर के घर से जाने से पहले तुम्हारा क्या चंद्रवीर से झगड़ा हुआ था?’’

‘‘नहीं, मैं उन से आज तक नहीं लड़ी, वह भी मुझ से नहीं लड़ते थे. वह दिल के बहुत अच्छे और नेक इंसान थे. मुझे और अपनी बेटी को बहुत प्यार करते थे.’’ सविता ने आंसू पोंछते हुए कहा.

‘‘चंद्रवीर ने जाने से पहले तुम्हें बताया था कि वह कहां और क्यों जा रहा है?’’ एसएचओ ने दूसरा प्रश्न किया.

‘‘कहां जा रहे हैं, यह भी नहीं बताया था. मेरे सामने वह घर से नहीं निकले थे साहब, वह अंधेरे में ही निकल कर चले गए थे. हम मांबेटी तब सोई हुई थीं.’’

‘‘तुम्हें किसी पर संदेह है?’’

‘‘मेरे पति का अपने भाई भूरे से संपत्ति विवाद रहता था. मुझे लगता है कि वो अंधेरे में घर से नहीं गए, बल्कि उन्हें अंधेरे में गायब कर दिया गया है. यह काम भूरे ने किया है साहब. उस ने शायद मेरे पति की हत्या कर दी है.’’

‘‘यह पक्का हो, ऐसा तो नहीं कह सकते. जांच के बाद ही पता चलेगा कि क्या भूरे ने संपत्ति विवाद के कारण चंद्रवीर को लापता करने की हिमाकत की है.’’ एसएचओ ने कहा और उठ कर उन्होंने एसआई को भूरे को पकड़ कर थाने लाने का आदेश दे दिया.

चंद्रवीर के भाई से की पूछताछ

आवश्यक जानकारी जुटा लेने के बाद एसएचओ अकेले ही थाने लौट आए. एसआई अपने साथ 2 कांस्टेबल ले कर भूरे को हिरासत में लेने के लिए निकल गए थे.

थोड़ी देर में ही भूरे को ले कर एसआई और कांस्टेबल थाने आ गए. भूरे ने कभी थाना कचहरी नहीं देखा था. वह काफी डरा हुआ था. आते ही उस ने एसएचओ के पांव पकड़ लिए, ‘‘साहब, मुझे क्यों पकड़ा है आप ने? मैं ने ऐसा क्या अपराध किया है?’’

‘‘तुम ने अपने भाई चंद्रवीर को कहां लापता किया है भूरे?’’ एसएचओ ने उसे खुद से परे कर सख्त स्वर में पूछा.

‘‘मैं चंद्रवीर को कहां लापता करूंगा साहब, वह मेरा भाई है.’’

‘‘तुम्हारा अपने भाई से संपत्ति का विवाद था?’’

‘‘नहीं साहब,’’ भूरे तुरंत बोला, ‘‘हमारा आपस में संपत्ति का बंटवारा बहुत प्रेम से हुआ था. कौन कहता है कि हमारा संपत्ति का विवाद था?’’

‘‘सविता कह रही है,’’ एसएचओ ने भूरे को घूरते हुए कहा, ‘‘सविता का कहना है कि संपत्ति विवाद में तुम ने उस के पति को लापता किया है और उस की हत्या कर दी है.’’

यह सुनते ही भूरे ने सिर थाम लिया. कुछ देर तक वह स्तब्ध सा बैठा रहा फिर तैश में आ कर बोला, ‘‘सविता मुझ से जलती है साहब, वह मुझ पर झूठा आरोप लगा रही है. आप ही बताइए, मैं ने यह काम किया होता तो थाने में आ कर खुद उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट क्यों लिखवाता?’’

‘‘रिपोर्ट लिखवाने से तुम निर्दोष थोड़ी हो गए. हम तुम्हारे घर की तलाशी लेंगे.’’

‘‘बेशक तलाशी लीजिए साहब, मैं अपने मांबाप की कसम खा कर कहता हूं कि मैं निर्दोष हूं. चंद्रवीर कहां गया, मैं नहीं जानता.’’

एसएचओ को लगा भूरे सच कह रहा है लेकिन वह पूरी तसल्ली कर लेना चाहते थे. उन्होंने भूरे को साथ लिया और उस के घर की तलाशी ली. उन्हें उस के घर में ऐसा कुछ भी नहीं मिला, जिस से यह साबित होता कि भूरे ने चंद्रवीर की हत्या की है या उसे लापता किया है. उन्होंने भूरे को छोड़ दिया.

ट्रॉली बेग में सिमटा आयुषि का प्यार – भाग 3

मातापिता इस शादी के खिलाफ थे. उस समय उन्होंने इस का विरोध किया था. लेकिन आयुषि ने उन की एक न सुनी. आयुषि ने कहा, ‘‘पापा, मैं अब बड़ी हो गई हूं, अपने फैसले ले सकती हूं. अपना अच्छाबुरा सोच सकती हूं.’’

उस समय तक मातापिता को पता नहीं था कि आयुषि प्रेम विवाह कर चुकी है.

बाद में जब उन्हें पता चला तो पिता ने उसे समझाया, ‘‘बेटा, दूसरी जाति में शादी करने से हमारी समाज में बहुत बदनामी होगी. अगर तुम्हें शादी ही करनी है तो अपनी जाति में करो.’’

तब आयुषि ने कहा, ‘‘पापा, मैं छत्रपाल को बहुत प्यार करती हूं. वह भी मुझे बहुत चाहता है.’’

मां ब्रजबाला ने भी आयुषि के दूसरी जाति के लड़के से शादी करने का विरोध किया था और उसे काफी समझाया.

छत्रपाल से शादी करने के बाद आयुषि अपनी मरजी से जब चाहे, तब पति के पास चली जाती थी. कहने को आयुषि अब तक एक बार भी अपनी ससुराल भरतपुर नहीं गई थी. बेटी के इस तरह दूसरी जाति में शादी कर लेने और विद्रोही तेवर अपनाने से उस के मातापिता को अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा खोने की चिंता सताती थी. दिल्ली में नितेश यादव का मोलड़बंद एक्सटेंशन में दोमंजिला मकान है.

पिता ही निकला असली कातिल

17 नवंबर को दोपहर के 2 बजे का समय था. हत्या वाले दिन आयुषि अपने पति से मिलने गई थी और देर से लौटी थी. इसी बात को ले कर उस का मां से झगड़ा हुआ था. मां ने उस की शिकायत फोन पर नितेश से करने के साथ उसे घर बुला लिया.

आयुषि की इस स्वच्छंदता से पिता तैश में आ गया और अपना आपा खो बैठा. उस ने गुस्से में अपनी लाइसैंसी रिवौल्वर से 2 गोलियां आयुषि को मार दीं. एक गोली सिर में व दूसरी सीने में मारी.

होनहार बेटी को गोली मारते समय पिता का कलेजा और हाथ भी नहीं कांपे. मां ने भी अपने पति का पूरा साथ दिया.

उस समय आयुषि का भाई आयुष स्कूल गया हुआ था. वह 11वीं क्लास में पढ़ता है. उस के आने से पहले ही दोनों ने खून साफ किया और बाजार से पौलीथिन खरीद कर लाया. दोनों ने शव को पौलीथिन में पैक करने के बाद ट्रौली बैग में बंद कर दिया. इस ट्रौली बैग को मकान की पहली मंजिल के कमरे में रख दिया.

इस की पड़ोसियों, यहां तक कि बेटे को भी भनक तक नहीं लगी. बेटा लौट कर आया तो उस ने दीदी के बारे में पूछा. मां ने बताया कि वह कहीं चली गई है.

11 घंटे बाद फेंका आयुषि का शव

बेटे आयुष के स्कूल से आने के बाद उन्होंने सब कुछ ऐसा दिखाया गया कि कुछ हुआ ही न हो. उन्होंने देर रात तक बेटे के सोने का इंतजार किया. नितेश का घर कार्नर का है.

उस के घर में एक तरफ सीसीटीवी कैमरे लगे हैं. इसलिए उस ने बेटे के सो जाने के बाद देर रात 3 बजे पीछे वाले दरवाजे से बेटी के शव का ट्रौली बैग निकाला. घर से कुछ मीटर की दूरी पर खड़ी कार तक वह खींच कर ट्रौली बैग ले गया.

बेटी के शव को दंपति ने 11 घंटे तक घर में ही रखा. नितेश और पत्नी ब्रजबाला ने कार में ट्रौली बैग को रखा और घर से 150 किलोमीटर दूर मथुरा जिले के राया इलाके में फेंक दिया. यह सब घर के पास और टोलनाका के सीसीटीवी कैमरों में कैद हो गया था.

3 बजे दंपति कार में हाईवे हो कर निकले. कार को नितेश चला रहा था, जबकि कार की पीछे की सीट पर पत्नी ब्रजबाला ट्रौली बैग के साथ बैठी थी. इस बीच पिता नितेश इसी उधेड़बुन में लगा रहा कि लाश को कहां ठिकाने लगाए.

फिर कातिल नितेश को यमुना एक्सप्रैसवे का किनारा सूझा. उस के बाद माइलस्टोन 108 पर स्थित कृषि अनुसंधान केंद्र राया में सुबह करीब 7 बजे ट्रौली बैग को सर्विस रोड पर झाडि़यों में फेंक कर दंपति वापस दिल्ली लौट गए.

पुलिस ने नितेश यादव व उस की पत्नी ब्रजबाला के खिलाफ बेटी की हत्या व साक्ष्य छिपाने के अपराध आईपीसी की धारा 302/201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

सिर में फंसी रह गई गोली

पिता नितेश ने आयुषि के सिर और छाती में गोलियां मारी थीं. सिर में गोली फंसी रह गई थी. जबकि छाती में लगी गोली फेफड़ों को चीरते हुए पार हो गई थी. इस बात का खुलासा पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हुआ. आयुषि का पोस्टमार्टम 3 डाक्टरों के पैनल ने वीडियोग्राफी के बीच किया था. सिर से बरामद गोली को सील कर दिया गया.

आयुषि पढ़ाई में काफी तेज थी. वह नीट की प्रवेश परीक्षा पास कर चुकी थी, लेकिन साक्षात्कार के लिए नहीं गई थी. आयुषि की यह बात भी मातापिता को खराब लगी थी. क्योंकि परिजन उसे डाक्टर बनते देखना चाहते थे.

पोस्टमार्टम के बाद नितेश ने बेटी का अंतिम संस्कार यहीं करने की इच्छा व्यक्त की. तब पुलिस अभिरक्षा में लक्ष्मीनगर क्षेत्र में यमुना के दूसरे किनारे पर धु्रव घाट पर उस का अंतिम संस्कार किया गया.

आपा खो कर जिन हाथों से बेटी के हाथ पीले करने का संकल्प लिया था, उन्हीं हाथों से बेटी की जान लेने के बाद नितेश ने बेटी को मुखाग्नि दी. उस समय मां कुछ दूरी पर खड़ी रोती रही. जबकि आयुषि का छोटा भाई आयुष वहां मौजूद नहीं था.

आयुषि यादव और छत्रपाल गुर्जर की शादी की बात जहां आयुषि के घर वालों को पता थी, वहीं छत्रपाल गुर्जर के घर वाले शादी से बेखबर थे. उस ने अपनी शादी की बात मातापिता को नहीं बताई थी.

2 दिन पहले घर वालों को आयुषि की हत्या के बाद इस बात का पता चला था. वहीं आयुषि की मां ने घटना से 10 दिन पहले फोन पर छत्रपाल को धमकाया था कि मेरी बेटी से बात मत करना, वह तुम्हारी वजह से परेशान रहती है.

किरण की आंखों का काजल

राजस्थान के जिला दौसा के गांव बीनावाला की रहने वाली किरण बैरवा गोरे रंग की खूबसूरत युवती थी. जब वह टाइट जींस टीशर्ट पहन कर निकलती थी तो देखने वाले ताकते रह जाते थे. किरण को अपने रूपसौंदर्य पर बहुत नाज था. वह जानती थी कि उस से कोई भी व्यक्ति दोस्ती करने को तैयार हो जाएगा, क्योंकि वह बला की खूबसूरत है.

किरन को पाने के लिए पुरुषरूपी भंवरेउस के आसपास मंडराते रहते थे, मगर उस ने किसी को लिफ्ट नहीं दी. किरण के ख्वाब ऊंचे थे. खूबसूरत होने के साथ वह शातिरदिमाग भी थी. शादी योग्य होने पर घर वालों ने उस की शादी कर दी थी.

किरण को जैसा जीवनसाथी चाहिए था, उस का पति वैसा नहीं था. किरण ने उस के साथ सात फेरे जरूर लिए थे, मगर पति को मन से कभी नहीं स्वीकारा. ऐसे में मतभेद स्वभाविक बात थी. शादी के कुछ समय बाद ही किरण का पति से तलाक हो गया. तलाक के बाद वह मायके में आ कर रहने लगी.

किरण ने अपने मांबाप को कह दिया कि वह पढ़ीलिखी है और कहीं नौकरी या कामधंधा कर के अपना गुजरबसर कर लेगी.

मायके आने के बाद किरण नौकरी की तलाश के लिए गांव से दौसा आनेजाने लगी. शहर में उसे नौकरी तो नहीं मिली, मगर जैसा जीवनसाथी उसे चाहिए था, वैसा दोस्त जरूर मिल गया. उस का नाम अक्षय उर्फ आशू था. अक्षण मीणा के पिता दौसा के पूर्व पार्षद हैं. पिता के पैसों पर ऐश करने वाला अक्षय मीणा भी शातिरदिमाग और तेजतर्रार युवक था.

उस की किरण से मुलाकात हुई तो पहली मुलाकात में ही दोनों एकदूसरे पर मर मिटे. दोनों ने एकदूसरे को मोबाइल नंबर दे दिए. इस के बाद उन की फोन पर बातें होने लगीं. किरण का जब मन करता, तब अक्षय मीणा से मिलने गांव से दौसा शहर आ जाती.

दो जवां दिल अगर एक दूसरे के लिए धड़कने लगें तो मिलन होने में देर नहीं लगती. ऐसा ही किरण और अक्षय के मामले में भी हुआ. 4-6 मुलाकातों के बाद दोनों एकदूसरे के बारे में बहुत कुछ जान गए. अक्षय को जब पता चला कि किरण तलाकशुदा है तो वह बोला, ‘‘किरण, तुम मेरी हो. इसी कारण तुम्हारा अपने पति से तलाक हुआ है. हम दोनों एकदूसरे के लिए ही बने हैं.’’

अक्षय के मुंह से यह सुन कर किरण को उस पर विश्वास हो गया कि वह उस का बहुत खयाल रखेगा. फिर तो उस ने अक्षय को अपना तनमन सब कुछ न्यौछावर कर दिया. एक बार शारीरिक संबंध बने तो सारी लाजशरम जाती रही. जब मन चाहता, दोनों अपनी हसरतें पूरी कर लेते.

अक्षय ने किरण से वादा किया था कि वह उस से शादी करेगा और जीवन भर साथ निभाएगा. किरण तो अक्षय की दीवानी थी ही. मगर बगैर कामधाम किए मौजमस्ती से तो जिंदगी नहीं चलती.

किरण और अक्षय दोनों ही शातिरदिमाग थे, एक रोज उन्होंने बातोंबातों में पैसा कमाने का उपाय ढूंढना शुरू कर दिया. अंत में दोनों ने पैसा कमाने की अलग राह चुन ली. वह राह थी तन सौंप कर ब्लैकमेल करने यानी हनीट्रैप की.

अक्षय और किरण ने टीवी और अखबारों में हनीट्रैप के तमाम केस देखे और सुने थे. ऐसी घटनाओं से प्रेरित हो कर उन्होंने भी ऐसा ही कुछ कर के पैसा कमाने की योजना बना ली. तय हुआ कि मोटा पैसा कमाने के बाद शादी कर लेंगे.

योजना तैयार होने के बाद दोनों शिकार की तलाश में लग गए. उन की यह तलाश पूरी हुई दौसा शहर की रामनगर कालोनी निवासी विश्राम बैरवा पर. विश्राम बैरवा युवा प्रौपर्टी डीलर और ठेकेदार था. किरण ने कहीं से विश्राम बैरवा का मोबाइल नंबर हासिल कर लिया. यह सन 2016 की बात है.

फोन नंबर से उस ने विश्राम के बारे में काफी जानकारी हासिल कर ली. फिर एक दिन उस ने बैरवा को फोन किया. विश्राम ने काल रिसीव की तो किरण बोली, ‘‘मैं किरण बैरवा बोल रही हूं, आप विश्रामजी बोल रहे हैं न?’’

‘‘हां जी, मैं विश्राम बैरवा बोल रहा हूं. कहिए, कैसे फोन किया. मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूं?’’ विश्राम ने कहा.

‘‘विश्रामजी, आप अच्छे आदमी हैं इसलिए फोन किया था. मैं तलाकशुदा हूं और यहीं दौसा में अपने चाचा आशू के साथ रहती हूं. लोगों से आप की बहुत तारीफ सुनी थी, इसलिए आप से बात करने की इच्छा हो रही थी तो फोन कर लिया. ’’

‘‘कोई बात नहीं, वैसे कोई काम हो तो बोलिए.’’

‘‘नहीं सर, कोई काम नहीं था, ऐसे ही फोन कर लिया, अगर आप को बुरा न लगा हो तो आगे भी फोन कर के आप का समय खराब करती रहूं.’’

किरण ने कहा तो विश्राम बोला, ‘‘आप से बात कर के खुशी होगी. जरूर फोन कीजिएगा.’’

इस के बाद किरण अकसर फोन कर के विश्राम बैरवा से इधरउधर की गप्पें मारने लगी. विश्राम भी उस से खुल कर बतियाने लगा था. इस तरह एक साल गुजर गया. अपनी बातों से किरण ने विश्राम पर ऐसा जादू कर दिया था कि वह उस से मिलने को आतुर रहने लगा. अब तक किरण और विश्राम की मोबाइल पर ही बातें हुई थीं, दोनों मिले नहीं थे.

एक बरस बाद जब एक रोज किरण ने विश्राम को फोन किया तो रुआंसे स्वर में बोली, ‘‘नमस्ते सर, किरण बोल रही हूं.’’

‘‘हां किरणजी, बोलिए. आज आवाज में वह चहक नहीं है, जो हमेशा होती है. तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘मैं तो ठीक हूं, मगर मुझे कुछ रुपए चाहिए थे. पिताजी की तबीयत ठीक नहीं है, इलाज कराना है. मुझे नौकरी के लिए भी भागदौड़ करनी पड़ रही है. पैसों की तंगी है. अगर आप हेल्प कर देंगे तो मैं आप का एकएक रुपया चुका दूंगी.’’

‘‘किरण, पैसों की चिंता मत करो. मैं हूं न, सब संभाल लूंगा. मैं तुम से मिलता हूं. हम शाम को बैठ कर इस बारे में बात करेंगे.’’

शाम को किरण और विश्राम मिले. विश्राम ने किरण को 2 लाख रुपए नकद दे दिए. किरण रुपए ले कर धन्यवाद देते हुए बोली, ‘‘सर, मैं आप का एकएक रुपया चुकाऊंगी. नौकरी लगने दीजिए.’’

किरण की सहायता कर के विश्राम को यह सोच कर आत्मिक खुशी हुई कि उस ने एक जरूरतमंद महिला की मदद की है.

कुछ दिनों बाद किरण फिर मां की बीमारी के बहाने विश्राम से 2 लाख रुपए ले आई.

कमरे पर पहुंचने के बाद उस ने अक्षय से कहा, ‘‘आशू, आज 2 लाख रुपए तो मां की बीमारी के बहाने से ले आई, मगर अब आगे बहाना नहीं चलने वाला. अब हमें विश्राम को फांसना पड़ेगा.’’

‘‘किरण, तुम सही कह रही हो. तुम्हें अब उसे अपने तन की चकाचौंध दिखानी पड़ेगी, तभी इस मुर्गे को हलाल किया जा सकेगा.’’

‘‘ठीक है, मैं कल उसे कमरे पर बुला कर अपने जिस्म की गरमी देती हूं. फिर तुम देखना कि मैं उसे कैसे इशारों से नचाती हूं.’’ किरण हंस कर बोली.

अगले दिन किरण ने विश्राम बैरवा को किसी बहाने से सिंगवाड़ा रोड, दौसा स्थित अपने कमरे पर बुलाया. विश्राम जब कमरे पर पहुंचा तो किरण ने उस का स्वागत हंस कर किया. चायपानी के बाद दोनों पासपास बैठ कर बातें करने लगे.

बातचीत के दौरान किरण उस के शरीर से अपना जिस्म इस तरह टकरा देती थी, जैसे लापरवाही में ऐसा हो गया हो. इस से विश्राम के बदन में झुरझुरी दौड़ जाती थी. किरण यह सब इसलिए कर रही थी ताकि विश्राम उस के शरीर को भोगने के लिए मजबूर हो जाए. हुआ भी यही.

किरण ने उसे इस तरह उकसाया कि विश्राम खुद  पर नियंत्रण खो बैठा. विश्राम ने किरण से पूछा, ‘‘तुम्हारे आशू चाचा कहां हैं?’’

‘‘आशू चाचा कल तक आएंगे. आज बाहर गए हैं. यहां पर आज हम दोनों का राज है. हम जो चाहे, करेंगे.’’ किरण ने खुल कर कहा.

यह सुन कर विश्राम खुश हो गया. उस ने किरण को बांहों में भर कर किस करना शुरू कर दिया. किरण भी अपने हाथों का कमाल दिखाने लगी. कुछ ही देर में दोनों बेलिबास हो गए और एकदूसरे के तन से खेलने लगे. हसरतें पूरी करने के बाद विश्राम ने किरण को चूम कर विदा ली.

विश्राम के चले जाने के बाद किरण ने आशू को फोन कर कहा, ‘‘आ जाओ, मुर्गा फंस गया है.’’

आशू कमरे पर आ गया. किरण ने उसे सब कुछ विस्तार से बता दिया. इस के बाद वह बोली, ‘‘आशू, अब देखो मेरा खेल. कैसे विश्राम को नचाती हूं.’’

दोनों ने विश्राम को दुष्कर्म के मामले में फंसाने की धमकी दे कर रुपए ऐंठने की योजना बनाई. योजनानुसार अगले रोज किरण ने विश्राम को फोन कर 20 लाख रुपए मांगे. विश्राम ने कहा कि इतने रुपयों का क्या करोगी तो किरण बोली, ‘‘कुछ भी करूं, अगर पैसे नहीं दिए तो आप को बलात्कार के आरोप में अंदर करा दूंगी. इस के लिए मैं आप को शाम तक का समय देती हूं.’’

विश्राम कुछ कहता, उस से पहले ही किरण ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया.

विश्राम बैरवा इज्जतदार आदमी था. दौसा में उस का नाम था. अगर किरण उस के खिलाफ बलात्कार का मुकदमा दर्ज करा देती तो उस की इज्जत मिट्टी में मिल जाती.

विश्राम समझ गया कि वह किरण को जैसा समझता था, वह वैसी नहीं है. मगर जो नहीं होना था, वह हो चुका था. अब पछताने से क्या होने वाला था. विश्राम बैरवा ने अपना मानसम्मान इज्जत बचाने के लिए किरण की 20 लाख रुपए की डिमांड पूरी कर दी.

किरण पैसे ले कर विश्राम से बोली, ‘‘मेरे दिल के दरवाजे हमेशा खुले हैं. कभी भी आ कर मेरे तन से रुपए की वसूली कर सकते हो.’’

विश्राम बैरवा क्या बोलता. वह 20 लाख दे कर समझ रहा था कि बला टली. मगर किरण उसे कहां छोड़ने वाली थी. वह अक्षय मीणा उर्फ आशू के साथ विश्राम के दिए रुपयों से ऐश की जिंदगी जीने लगी.

दोनों दिल्ली, अहमदाबाद, नागपुर, मुंबई, गोवा आदि शहरों में घूमने गए और खूब अय्याशी की. किरण ने विश्राम बैरवा को अपने हुस्न के प्रेमजाल में ऐसा फांसा कि वह चाह कर भी किरण से दूर नहीं रह सका. किरण ने बातोंबातों में विश्राम से पहले ही पता कर लिया था कि वह करोड़पति है और उस का प्रौपर्टी का व्यवसाय अच्छा चल रहा है.

एक बार शारीरिक संबंध बना कर विश्राम किरण के प्रेमजाल में ऐसा फंसा कि वह उस के हाथों की कठपुतली बन कर नाचने लगा. किरण उसे बलात्कार के केस में फंसाने की धमकी दे कर कभी कैश तो कभी मांबाप और खुद के खाते में रुपए डलवा लेती थी. कभी बीमारी का बहाना कर के तो कभी होटल खोलने के नाम पर किरण विश्राम से पैसे ऐंठऐंठ कर उसे करोड़पति से रोड पर ले आई.

विश्राम ने अपना घर, जमीन, गहने, फ्लैट सब कुछ बेच कर किरण की मांग पूरी की ताकि उस की इज्जत बची रहे. जबकि किरण ने रुपए ऐंठ कर आशू के साथ नागपुर और दिल्ली में होटल भी खोले, मगर होटल व्यवसाय का ज्ञान न होने के कारण उन का बिजनैस नहीं चल सका.

दोनों होटल बंद कर के दौसा चले आए. होटल व्यवसाय में किरण व आशू की दोस्ती दिल्ली के कई लोगों से हो गई थी. लोग किरण और आशू को अच्छा बिजनैसमैन समझते थे. उन्हें इन की करतूत का पता नहीं थी.

विश्राम बैरवा सन 2016 से जनवरी 2020 तक किरण को करीब डेढ़ करोड़ रुपए दे चुका था. विश्राम की सारी जमीनजायदाद बिक गई थी. वह रोटीरोटी को मोहताज हो गया था. यह सब उस की एक गलती से हुआ था. विश्राम को बरबाद करने के बाद भी किरण उसे धमकी दे कर रुपए मांगती थी. वह कहती कि पैसे नहीं दिए तो बलात्कार के आरोप में जेल में सड़ा दूंगी.

विश्राम ने किरण से कहा कि अब उस के पास फूटी कौड़ी तक नहीं है तो उसे रकम कहां से दे. मगर किरण अपना ही राग अलापती रहती कि कुछ भी करो, उसे पैसे चाहिए. अगर पैसे नहीं दिए तो…

विश्राम बैरवा के पास अब कुछ नहीं बचा था. किरण भी उसे हड़का रही थी. ऐसे में विश्राम ने निर्णय कर लिया कि अब इज्जत जाए तो जाए, उसे पुलिस की मदद लेनी ही पड़ेगी. अगर इस से पहले किरण ने उस के खिलाफ बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज करा दी तो वह अपनी सफाई भी नहीं दे सकेगा और उसे जेल की हवा भी खानी पड़ेगी.

इसलिए वह एसपी प्रह्लाद कृष्णैया से मिला और उन्हें सारी बात विस्तार से बताई. एसपी साहब ने विश्राम की शिकायत को गंभीरता से लिया और कोतवाली दौसा के इंसपेक्टर श्रीराम मीणा को फोन पर निर्देश दिए कि विश्राम की रिपोर्ट दर्ज कर आरोपियों के खिलाफ सख्त काररवाई करें.

कप्तान साहब के आदेश पर इंसपेक्टर श्रीराम मीणा ने 28 जनवरी, 2020 को विश्राम बैरवा की तरफ से रिपोर्ट दर्ज कर ली.

इस के बाद एसपी प्रह्लाद कृष्णैया ने एएसपी अनिल सिंह चौहान के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में डीएसपी नरेंद्र कुमार, शहर कोतवाल श्रीराम मीणा, एसआई राजेश कुमार, कांस्टेबल बसंताराम, नवीन कुमार, गोपीराम, महिला कांस्टेबल रेखा, मंजू देवी आदि को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने किरण बैरवा के मोबाइल की लोकेशन खंगाली तो उस की लोकेशन पुष्कर, जिला अजमेर, राजस्थान की मिली. पुलिस टीम दौसा से पुष्कर आई और किरण बैरवा व उस के प्रेमी अक्षय मीणा उर्फ आशू, निवासी सैंथल मोड़, दौसा को धर दबोचा.

पुष्कर के होटल में किरण व आशू शादी रचाना चाहते थे. दोनों के दोस्त शादी में शरीक होने दिल्ली से पुष्कर आए हुए थे.

यहां यह भी बता दें कि शादी के खर्च के लिए भी किरण बैरवा ने विश्राम बैरवा को फोन कर पैसे मांगे, लेकिन किरण ने यह नहीं बताया कि वह शादी कर रही है. किरण ने विश्राम से पहले तो डेढ़ लाख रुपए मांगे, फिर वह 55 हजार रुपए तक आ गई.

साइबर सैल की मदद से दौसा कोतवाली थाना पुलिस ने इस अनोखे जोड़े को 2 फरवरी, 2020 को पुष्कर के एक होटल से दबोच लिया. दिल्ली से जो बाराती आए थे, उन को भी प्रेमी जोड़े की असलियत पता नहीं थी. दिल्ली से आए इन के मित्रों को होटल का 67 हजार रुपए का बिल भी भरना पड़ा. क्योंकि उन्हें शादी में बुलाने वालों को तो पुलिस शादी से पहले ही पकड़ कर दौसा ले गई थी.

पुलिस पूछताछ में किरण और आशू मीणा ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. अगले दिन 3 फरवरी को दोनों को पुलिस ने कोर्ट में पेश कर रिमांड पर लिया और विस्तृत पूछताछ की.

पूछताछ में ब्लैकमेलर प्रेमी जोड़े ने सारी कहानी बयान कर दी. किरण और आशू ने स्वीकार किया कि उन्होंने विश्राम बैरवा को हनीट्रैप में फांस कर उस से लाखों रुपए ऐंठे थे.

पुलिस ने इस मामले की कड़ी से कड़ी जोड़ते हुए पीडि़त व आरोपियों की मोबाइल काल डिटेल्स तथा बैंक खातों की जानकारी जुटाई. बैंक खातों में विश्राम बैरवा के बैंक खाते से रुपए लेनदेन की बात सामने आई. पुलिस ने रिमांड अवधि पूरी होने पर किरण बैरवा और उस के प्रेमी अक्षय मीणा उर्फ आशू को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

विश्राम बैरवा सब कुछ गंवा कर पुलिस के पास गया. अगर वह तभी पुलिस के पास चला जाता जब किरण ने ब्लैकमेलिंग की पहली किस्त

20 लाख मांगी थी तो आज सड़क पर नहीं आता.

मोहब्बत का खूनी अंजाम – भाग 2

22 वर्षीय विभांशु प्रताप पांडेय उर्फ विभू मूलरूप से गोरखपुर के बेलीपार थाना क्षेत्र के ऊंचगांव (भौवापार) के रहने वाले रमाशंकर पांडेय का बेटा था. रमाशंकर पांडेय के 7 बेटों में विभांशु सब से छोटा और सब का दुलारा था. रमाशंकर पांडेय के सभी बेटे अपने पैरों पर खड़े थे. सब से बड़ा बेटा घनश्याम पांडेय अधिवक्ता था. अन्य बेटे भी अच्छे पदों पर कार्यरत थे.

विभांशु ही घर पर रह कर खेती के काम में पिता का हाथ बंटाता था. इस के साथ वह आजमगढ़ के बाबू शिवपत्तर राय स्मारक कालेज से एमए की पढ़ाई भी कर रहा था. वह काफी मेहनती युवक था. उस की एक खास बात थी कि वह जिस भी काम को करने की ठान लेता, उसे हर हाल में पूरा करने की कोशिश करता.

खैर, गोरखपुर से आजमगढ़ की कुल दूरी 85 किलोमीटर थी. विभांशु कालेज अपनी बाइक से आताजाता था. वैसे आजमगढ़ के रामगढ़ व जमसर गांव में उस की रिश्तेदारियां थीं. जिस दिन उस का मन कालेज से घर लौटने का नहीं होता तो वह इन में से अपनी किसी रिश्तेदारी में रुक जाता था. अपने रुकने की खबर वह फोन कर के घर वालों को दे देता था.

सन 2015 की बात है. रिश्तेदारी में आतेजाते एक दिन विभांशु की नजर एक खूबसूरत युवती पर पड़ी तो वह उसे अपलक निहारता रह गया. पहली ही नजर में वह उस के कजरारे नैनों के तीर से घायल हो गया था. उस ने अपने स्रोतों से पता किया तो जानकारी मिली कि उस का नाम रुचि राय है और वह पड़ोस के कल्याणपुर बांसगांव में रहती है.

रुचि के दिल में प्यार का रंग भरने के लिए विभांशु रिश्तेदारों के यहां ज्यादा समय बिताने लगा. वहीं रह कर पढ़ने लगा. घर वाले इस बात से बेखबर थे कि विभांशु पर प्रेम रोग का रंग चढ़ने लगा है. एक दिन की बात है. विभांशु कालेज से घर आ रहा था तभी सड़क पर उसे रुचि जाती हुई दिखाई दी. रुचि को देख कर उस का दिल जोरजोर से धड़कने लगा.

विभांशु ने तय किया कि आज वह उस से बात कर के ही रहेगा. थोड़ी दूर बढ़ने के बाद विभांशु ने अपनी बाइक उस के नजदीक ले जा कर रोक दी. अचानक पास बाइक रुकी देख रुचि सहम गई. इस से पहले कि वह कुछ कहती, विभांशु बोला, ‘‘मैं आप से कुछ बात करना चाहता हूं.’’

इतना सुनते ही रुचि चौंकते हुए बोली, ‘‘आप को मैं पहचानती नहीं. और मैं अजनबियों से बात नहीं करती.’’

‘‘लेकिन मैं आप को अच्छी तरह जानतापहचानता हूं. रुचि राय नाम है आप का और कल्याणपुर बांसगांव में रहती हैं.’’ उस ने कहा.

अपना नाम सुन कर रुचि हैरान रह गई कि अजनबी युवक को मेरा नाम और पता कैसे पता चला. बिना कोई उत्तर दिए वह आगे बढ़ गई पर विभांशु भी उस के पीछेपीछे बाइक से आ रहा था. रास्ता सुनसान था. पीछे बाइक सवार युवक को अपनी ओर आते देखा तो रुचि सहम गई.

वह तेजतेज कदमों से आगे बढ़ने लगी. विभांशु ने आगे बढ़ कर उस का रास्ता फिर रोक लिया और बोला, ‘‘मुझे गलत मत समझो, मैं कोई लुच्चालफंगा नहीं हूं.’’

‘‘रास्ता रोकने की हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी? हट जाओ मेरे रास्ते से वरना अभी शोर मचा दूंगी.’’ हिम्मत बटोर कर वह बोली, ‘‘मुझे ऐसीवैसी लड़की मत समझना, वरना अभी दिन में ही तारे दिखा दूंगी.’’

‘‘नाराज क्यों हो रही हैं. नहीं रोकूंगा, जाइए. वैसे मैं अपने बारे में तो बताना भूल गया. मेरा नाम विभांशु प्रताप पांडेय है और पड़ोस के गांव रामगढ़ में रहता हूं. अभी तुम जाओ, मैं फिर मिलूंगा.’’

कह कर विभांशु बाइक तेज गति से चला कर वहां से निकल गया. उस के जाने के बाद रुचि की जान में जान आई. रास्ते भर वह यही सोचती रही कि इस युवक को मेरा नाम और पता कैसे मालूम हुआ. सोचतेसोचते घर कब पहुंची उसे पता नहीं चला.

बात आईगई, खत्म हो गई और वह अपने कामों में लग गई. अब जब भी वह मिलती विभांशु हायहैलो कर के निकल जाता था. पर यह इत्तफाक था या कुछ और कि उस दिन के बाद रुचि से रास्ते में उस की मुलाकात अकसर हो जाया करती थी. विभांशु की आशिकी की निगाहें देख कर रुचि के दिल में भी उस के लिए चाहत के बीज अंकुरित होने लगे.

इस के बाद विभांशु जब भी उस से हायहैलो कहता, वह भी मुसकरा पड़ती थी. अपनी ओर उसे आकर्षित हुआ देख कर विभांशु की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा. फिर उन के बीच बातचीत भी होने लगी.

मौका देख कर उन्होंने एकदूसरे से अपनी मोहब्बत का इजहार भी कर दिया. रुचि और विभांशु की मोहब्बत की गाड़ी पटरी पर दौड़ी तो वो भविष्य के सपने बुनने लगे और शादी तक के सपने देखने लगे. यह पंछी प्यार की उड़ान भरने लगे. दोनों बाइक पर इधरउधर खूब घूमने लगे. इस बात पर भी उन्होंने ध्यान नहीं दिया कि जानने वालों ने उन्हें देखा भी है या नहीं. लिहाजा उन के प्यार की चर्चा गलीमोहल्लों में होने लगी थी.

रुचि और विभांशु की मोहब्बत की खुशबू कल्याणपुर बांसगांव के ग्रामप्रधान श्यामनारायण राय तक पहुंची. श्यामनारायण राय रुचि का हमउम्र और अविवाहित था. लिहाजा उस का मन मचल गया और वह रुचि की ओर आकर्षित हो गया. रुचि को पाने की हसरतें उमंगें भरने लगीं. किसी के माध्यम से उस ने अपनी मोहब्बत का पैगाम रुचि तक भिजवाया पर रुचि ने उस का पैगाम ठुकरा दिया.

श्यामनारायण काफी दबंग और पहुंच रखने वाला था. उस की मोहब्बत एकतरफा थी, जबकि रुचि विभांशु से प्यार करती थी. रुचि द्वारा ग्रामप्रधान को लिफ्ट न देने पर वह बौखला गया. इसलिए उस ने तय कर लिया कि वह रुचि और विभांशु की मोहब्बत में बाधा को सफल नहीं होने देगा.

विभांशु भी कमजोर नहीं था. ग्रामप्रधान श्यामनारायण राय से मुकाबला करने के लिए उस के सामने आ खड़ा हुआ. यह बात श्यामनारायण को काफी नागवार लगी कि एक बाहरी युवक उसी के घर में घुस कर उसे ही चुनौती देने पर आमादा है. यह बात उस के बरदाश्त के बाहर थी.

रुचि को चाहने वाले 2 लोग थे लेकिन रुचि तो उन में से केवल एक को ही चाहती थी. लिहाजा रुचि को ले कर उन दोनों के बीच विवाद खड़ा हो गया जो थमने के बजाय बढ़ता ही गया.

शादी का झांसा देने वाला फरजी सीबीआई अधिकारी – भाग 2

समीर ने जेबा के घर जाने के बजाय उस के साथ स्टेशन से सीधे नूरउससबा पैलेस होटल पहुंचा. जबकि जेबा उसे घर ले जाना चाहती थी. लेकिन समीर की मरजी के आगे उस की एक न चली.

होटल में उस ने डबलबैड कमरा लिया था, जिस में दोनों 2 दिनों तक रुके. इस बीच समीर ने अपने परिवार के बारे में जेबा को खूब बढ़ाचढ़ा कर बताया. उस के बताए अनुसार, उस के परिवार के ज्यादातर लोग सरकारी नौकरियों में हैं. कोई जज है तो कोई इसी तरह की अन्य सरकारी नौकरी में. अपने पिता के बारे में उस ने बताया कि उन का मुंबई में कपड़ों का बहुत बड़ा बिजनैस है, इसलिए वह वहीं रहते हैं. वह बनारस का रहने वाला है, जहां उस की काफी जमीनजायदाद है.

समीर ने पसंद किया जेबा को

अपने घरपरिवार के बारे में बता कर समीर ने जेबा से कहा कि वह उसे पसंद है और उस से शादी के लिए तैयार है. समीर अच्छे घर का लड़का था और सीबीआई में अफसर था, इसलिए जेबा ने भी हामी भर दी. जेबा के हां करते ही समीर उस से छेड़छाड़ करने लगा. इस के बाद सारी मर्यादाएं लांघते हुए उस ने उस के साथ शारीरिक संबंध बना लिए.

जेबा भी उस के बहकावे में आ कर गुनाहों के ऐसे दलदल में जा फंसी, जहां से निकलना किसी भी लड़की के लिए बहुत मुश्किल होता है. भोपाल में 2 दिन रुकने के बाद समीर ने कहा कि औफिशियल काम से उसे दिल्ली जाना है. इस से जेबा को लगा कि वाकई उसे वहां जरूरी काम होगा.

लेकिन बाद में पता चला कि वह सब झूठ था. यह सब जेबा काफी बाद में जान पाई. दिल्ली जाने के बाद समीर ने उसे फोन किया. डरते हुए उस ने बताया कि उन के होटल में रुकने का पता उस के घर वालों को चल गया है, जिस से वे काफी नाराज हैं. उस की बातें सुन कर जेबा शौक्ड रह गई. वह यह क्या कह रहा है, अब क्या होगा, उस की कितनी बदनामी होगी?

समीर ने जेबा को समझाते हुए कहा कि वह बिलकुल परेशान न हो. यह बात भोपाल में किसी को पता नहीं है, सिर्फ उस के घर वालों को ही पता है. इस बात से वे काफी नाराज हैं. लेकिन घबराने की कोई बात नहीं है. कुछ दिनों में वह सब संभाल लेगा. वह बिलकुल परेशान न हो. वह उन्हें मना लेगा. वह फिर भोपाल आ रहा है. 2 दिन बाद समीर फिर भोपाल आया और नूरउससबा होटल के उसी कमरे में ही रुका. लेकिन इस बार जेबा होटल में उस के साथ नहीं रुकी, लेकिन उस से मिलने रोज आती रही.

अंत में जब समीर ने दबाव डाला तो वह 8 नवंबर से 23 नवंबर तक होटल में रुकी. समीर से उस के शारीरिक संबंध बन ही चुके थे, इसलिए इस बार भी वह उस से शारीरिक संबंध बनाता रहा.

जेबा ने ऐतराज जताया तो उस ने होटल में ही काजी को बुला लिया और उन के सामने कहा कि वह उस से निकाह कर के उसे अपनी बीवी मान रहा है. इस तरह से जेबा का निकाह समीर से हो गया. वह समीर की बीवी बन कर रहने लगी, जबकि उन के इस निकाह का कोई लिखित सबूत नहीं था.

इतने दिनों तक होटल में साथ रुकने के बाद जेबा समीर को अपने मम्मीपापा से मिलवाने के लिए सागर ले गई, जहां मकरोनिया सागर में उस का पुश्तैनी मकान था. वहां भी वह अपनी लच्छेदार बातों के जाल में फंसा कर जेबा के घर वालों के सामने एक अच्छा लड़का बना रहा. याकूब मंसूरी और उन की पत्नी को भी समीर पसंद आ गया था. अब इस रिश्ते में कोई अड़चन नहीं थी. कुछ समय तक सागर में रुक कर दोनों भोपाल लौट आए. समीर भोपाल स्थित जेबा के घर पर भी कई दिनों तक रुका. वहां भी दोनों ने जिस्मानी रिश्ते बनाए.

ट्रेनिंग के लिए जाने की बात कह कर ठगे लाखों रुपए

समीर ने जेबा के साथसाथ उस के घर वालों को भी इस बात का पक्का यकीन दिला दिया था कि वह सीबीआई में अंडरकवर डीएसपी है और उस का सिलेक्शन आईपीएस के रूप में हो गया है, जिस की ट्रेनिंग हैदराबाद में होनी है. आईपीएस की ट्रेनिंग पर वह इसलिए नहीं जा पा रहा था, क्योंकि किसी वजह से स्टे लगा था. लेकिन अब स्टे हट गया है, इसलिए उसे ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद जाना है.

ऐसे में ही जेबा ने उस से पूछ लिया कि वह वरदी क्यों नहीं पहनता तो उस ने कहा कि वह सीबीआई अफसर है, इसलिए उसे पहचान छिपा कर रखनी पड़ती है. जब कभी औफिस जाना होता है तो वह वरदी पहनता है.

जेबा के कहने पर एक दिन समीर ने उसे आईपीएस की वरदी पहन कर दिखाते हुए कहा कि जब कभी औफिशियल मीटिंग होती है, तब वह यह वरदी पहन कर जाता है. जेबा को उस वरदी पर संदेह हुआ, क्योंकि उस पर सीनियर अफसरों के बैज लगे थे. इस के बाद समीर ने उसे सील लगे हुए कई दस्तावेज दिखाए.

एक दिन समीर परेशान सा सोफे पर चुपचाप बैठा था. जेबा ने परेशानी की वजह पूछी तो उस ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘क्या बताऊं, मुझे ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद जाना है, जिस के लिए काफी पैसों की जरूरत है. होटल में मिलने को ले कर पापा अभी तक नाराज हैं, इसलिए उन से किसी तरह की मदद की उम्मीद नहीं है. अब परेशानी यह है कि ट्रेनिंग का खर्च कहां से आएगा.’’

समीर की बातों में आ कर जेबा ने कहा, ‘‘आप परेशान मत होइए, मैं आप के लिए पैसों का इंतजाम कर दूंगी.’’

समीर मना करता रहा, इस के बावजूद कई बार में जेबा ने तकरीबन 2 लाख रुपए उसे दे दिए. क्योंकि उसे कभी उस पर संदेह नहीं हुआ था.

society

परिवार से मिलवाने की बात को टाल जाता था

जब भी जेबा समीर से घर वालों के बारे में पूछती या मिलवाने की बात कहती, वह कोई न कोई बहाना बना कर टाल जाता. जेबा को उस से मिले करीब 2 महीने हो गए थे, लेकिन उस ने अपने मम्मीपापा से मिलवाने की कौन कहे, फोन पर बात तक नहीं करवाई थी.

इन्हीं बातों से जेबा को उस पर शक होने लगा. संदेह गहराया तो उस ने अपने पापा से समीर के बारे में पता करने को कहा. उस ने और उस के मम्मीपापा ने समीर से उस की नौकरी और पढ़ाई के कागजात मांगे तो वह टालमटोल करने लगा. याकूब मंसूरी ने अपने कई परिचितों को समीर के बारे में पता करने के लिए लगा दिया. नतीजा यह निकला कि उस की असलियत का पता चल गया.

 

धोखे में लिपटी मोहब्बत – भाग 2

23 जनवरी, 2017 को भागलपुर के लोदीपुर थाने के थानाप्रभारी भारतभूषण ने सचिवालय थाने के थानाप्रभारी प्रकाश सिंह को फोन कर के बताया कि उन के थानाक्षेत्र में आने वाली कलवलिया नदी के किनारे झाड़ी में एक सड़ीगली लाश मिली है, जिस का हुलिया लापता विनोद कुमार सिंह से मिलता है.

सूचना मिलते ही रामजी सिंह, छोटे बेटे मनोज कुमार सिंह और एसआई अरविंद कुमार को साथ ले कर भागलपुर के थाना लोदीपुर पहुंचे. उन्होंने लाश देखी तो हतप्रभ रह गए. उस लाश का चेहरा बुरी तरह जला हुआ था. इस के बावजूद लाश देख कर रामजी सिंह ने उस की शिनाख्त अपने बेटे विनोद के रूप में कर दी.

विनोद की हत्या की सूचना मिलते ही उस के घर में कोहराम मच गया. उस की पत्नी वीणा और उस के दोनों बच्चों प्रियांशु और सोनाली का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था. 17 दिनों से रहस्य बनी अंतरराष्ट्रीय तैराक विनोद कुमार सिंह की गुमशुदगी की कहानी हत्या के रूप में सामने आई.

मृतक विनोद के पिता रामजी सिंह ने बेटे की हत्या का आरोप राज्यस्तर की महिला वौलीबाल खिलाड़ी रंजना कुमारी, उस की मां सबरी देवी, पिता राधाकृष्ण मंडल उर्फ वकील मंडल, रंजना के मौसेरे भाई बिट्टू और बहनोई शंभू मंडल पर लगाया.

उन के आरोपों के आधार पर पटना पुलिस ने थाना लोदीपुर के थानाप्रभारी भारतभूषण की मदद से उसी दिन कोहड़ा गांव से रंजना कुमारी, सबरी देवी, राधा मंडल उर्फ वकील और शंभू मंडल को गिरफ्तरार कर लिया. पांचवां आरोपी बिट्टू घर से फरार था.

गिरफ्तार चारों आरोपियों को पटना पुलिस सचिवालय थाने ले आई. थाने में सचिवालय रेंज के एएसपी अशोक कुमार चौधरी ने उन से अलगअलग पूछताछ की. चारों आरोपियों ने अंतरराष्ट्रीय तैराक विनोद कुमार सिंह की हत्या की बात स्वीकार कर ली.

पुलिस ने अगले दिन चारों आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. विनोद कुमार सिंह की हत्या के पीछे प्यार, धोखा और ब्लैकमेलिंग की कहानी कुछ ऐसे सामने आई—

36 वर्षीय विनोद कुमार सिंह मूलरूप से बिहार के सीवान जिले के बड़ा सिकवा गांव का रहने वाला था. उस के पिता रामजी सिंह पश्चिम बंगाल के उत्तरी 24 परगना जिले में रहते थे. विनोद के बाबा ने यहीं रह कर नौकरी की थी. तभी उन्होंने वहां मकान बनवा लिया था. तब से उन का परिवार यहीं रह रहा था. विनोद के पिता रामजी सिंह ने यहीं रह कर शिक्षा विभाग में नौकरी की थी और यहीं से सेवानिवृत्त हुए थे.

रामजी सिंह के 4 बच्चों में 2 बेटियां और 2 बेटे थे. बेटियों से छोटे विनोद कुमार सिंह और मनोज कुमार थे. विनोद पैदाइशी दिव्यांग था. कंधे से नीचे उस के दोनों बाजू नहीं थे. धीरेधीरे विनोद बड़ा हुआ. दोनों बाजू न होने की वजह से विनोद कभी मायूस या दुखी नहीं हुआ, बल्कि उस ने अपनी इसी कमजोरी को ताकत बनाया.

पैरों को उस ने हाथ बनाया. उन्हीं पैरों के सहारे वह अपने सारे दैनिक कार्य करता था. वह पैर के सहारे अपनी कमीज के बटन बंद करने से ले कर पढ़नेलिखने, यहां तक कि चकले पर बेलन के सहारे गोल रोटियां बेलने, चावल पकाने, पैरों से चम्मच के सहारे खाना खाने और कंप्यूटर चलाने जैसे सारे काम कर लेता था. उसे सिर्फ पैंट के बटन बंद करने में दूसरे की मदद लेनी पड़ती थी.

विनोद ने उत्तरी 24 परगना जिले के नइहट्टी कालेज से इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की और मगध विश्वविद्यालय गया से स्नातक. वह अपनी जिंदगी में कुछ बड़ा करना चाहता था. उस की मंजिल उसे तब मिली, जब उस ने कुछ लड़कों को पानी में तैराकी सीखते देखा.

इसी जिले के श्यामनगर में स्विमिंग क्लब था. यहां बच्चे तैराकी सीखने आते थे. विनोद भी अपने दोस्तों के साथ वहां आताजाता था. बच्चों को तैरता देख कर विनोद के मन में आया कि वह भी तैरना सीखेगा. वहां के कोच अशोक पाल थे. कोच से उस ने तैराकी सीखने की इच्छा जाहिर की. लेकिन उस के दोनों हाथ न देख कर कोच ने उसे तैराकी सिखाने से मना कर दिया.

कोच अशोक पाल की बातों का विनोद ने कतई बुरा नहीं माना, बल्कि उन की नकारात्मकता से उसे ऊर्जा मिली. विनोद ने उन से फिर आग्रह किया. कई दिनों की मिन्नतों के बाद कोच अशोक पाल उसे तैराकी सिखाने को तैयार हो गए. उन्होंने 4-5 लड़कों के साथ उसे पानी में उतार दिया. उन्होंने दूसरे लड़कों को हिदायत दी कि कोई भी उसे पकड़े न, देखें यह कैसे क्या करता है, बस इतना ध्यान रखना कि यह डूबने न पाए.

लड़कों ने वैसा ही किया. पहली बार पानी में उतरे विनोद ने दोनों पैरों के सहारे पानी में अद्भुत करतब दिखाए. विनोद के अदम्य साहस को देख कर सभी दंग रह गए. तैरने के लिए पहली बार पानी में उतरे विनोद ने कोच अशोक पाल का दिल जीत लिया. वह उसे तैराकी सिखाने को राजी हो गए. उन्होंने विनोद को तैराकी के गुर सिखाए.

धीरेधीरे वह इस कला में पारंगत हो गया. पहले जिला, फिर राज्य, फिर देश और विदेशों में जा कर उस ने अपने नाम का झंडा फहराया. उस ने 6 बार अंतरराष्ट्रीय तैराकी में मैडल और कई बार नेशनल तैराकी में मैडल जीते. बिहार सरकार ने सन 2012 में खेल कोटे से विनोद को पटना सचिवालय में लघु सिंचाई विभाग में नौकरी दे दी.

जिन दिनों तैराकी में विनोद कुमार के नाम का देशविदेश में डंका बज रहा था, उन्हीं दिनों उस की जिंदगी में वीणा कुमारी सिंह ने जीवनसंगिनी के रूप में कदम रखा. शादी के बाद विनोद 2 बच्चों बेटे प्रियांशु और बेटी सोनाली उर्फ गुनगुन का पिता बना. विनोद की जिंदगी खुशियों से भर गई. अब उसे किसी चीज की कमी नहीं थी.

बात सन 2013-14 की है. सामान्य कदकाठी और तीखे नैननक्श वाली गोरीचिट्टी, छरहरे बदन की रंजना पटना सचिवालय किसी काम से आतीजाती रहती थी. वह भी बिहार की राज्य स्तर की वौलीबाल खिलाड़ी थी. वह भी जीत के कई मैडल अपने नाम कर चुकी थी.

खेल के आधार पर उसे भी नौकरी मिलने वाली थी. उसी की औपचारिकता पूरी करने के लिए वह सचिवालय आयाजाया करती थी. सचिवालय में उन दिनों विनोद की नईनई नौकरी लगी थी. वहीं दोनों की पहली मुलाकात हुई. रंजना सुंदर भी थी और वाकपटु भी. विनोद पहली ही नजर में उसे दिल दे बैठा.

रंजना भागलपुर से एकदो दिनों के लिए पटना आती थी और अपना काम निपटा कर भागलपुर लौट जाती थी. रंजना जब भी सचिवालय आती, विनोद उस का खास खयाल रखता. वह सब से पहले उस का काम करा देता था. इसी बात से रंजना उस की मुरीद हो गई थी.

विनोद की आंखों में उस ने अपने लिए चाहत देख ली. उसे विनोद से मिलनाजुलना अच्छा लगने लगा. धीरेधीरे वह उस की ओर खिंची चली गई. विनोद भी रंजना के दिल में उतर गया था. दोनों के दिलों में मोहब्बत के शोले भड़कने लगे. जल्दी ही दोनों ने अपनी मोहब्बत का इजहार कर दिया.

शादीशुदा और 2 बच्चों का पिता होने की बात विनोद ने रंजना से छिपा ली थी. उस ने रंजना से खुद को कुंवारा बताया था. प्यार के सामने रंजना को विनोद की दिव्यांगता नजर नहीं आई. रंजना भागलपुर के लोदीपुर कोहड़ा गांव की रहने वाली थी. उस के पिता का नाम राधाकृष्ण मंडल उर्फ वकील था. वह स्वास्थ्य विभाग से सेवानिवृत्त हुए थे. रंजना उन की दूसरे नंबर की बेटी थी.

वह बड़ी हो कर कुछ ऐसा करना चाहती थी, जिस से नाम और शोहरत दोनों मिले. बचपन से ही उस का मन पढ़ाई के बजाए खेलकूद में लगता था. स्कूली पढ़ाई के दौरान वह स्कूल के किसी भी खेल में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी. इंटरमीडिएट के बाद उस ने वौलीबाल की ट्रेनिंग ली. उस के बाद उस ने खेल के मैदान में अपनी प्रतिभा का जादू दिखाया.

जिला स्तर से खेलती हुई रंजना ने राज्य में अपने नाम का परचम फहराया. उसे कई मैडल मिले. उस की खेल प्रतिभा की गूंज बिहार सरकार तक पहुंची तो सरकार ने उसे नौकरी देने का फैसला कर लिया. इसी सिलसिले में रंजना की सचिवालय में विनोद से मुलाकात हुई थी.

विनोद ने रंजना के सामने शादी का प्रस्ताव रखा तो वह इनकार नहीं कर सकी. दोनों ने चुपके से मंदिर में जा कर शादी कर ली. सात फेरों की उन की तसवीरें रंजना के मोबाइल में कैद थीं, लेकिन विनोद ने बड़ी चालाकी से उस का मोबाइल अपने कब्जे में ले लिया था, ताकि आगे चल कर वह इन तसवीरों को हथियार बना कर उसे अपनी बात मनवाने के लिए मजबूर न कर सके.

विनोद कुमार की देखरेख के लिए उस के साथ उस का भांजा अंकित कुमार सिंह रहता था. उसे भी इस शादी के बारे में पता नहीं चला था. विनोद ने यह बात अंकित से भी छिपा ली थी. इस की भनक उस ने न तो पत्नी वीणा को लगने दी थी और न ही पिता रामजी सिंह को. वीणा कभीकभार पटना आती थी और कुछ दिनों उस के साथ रह कर बंगाल लौट जाती थी.

शादी के बाद रंजना की नियुक्ति सीतामढ़ी के डीएवी इंटर कालेज में पीटी शिक्षक के रूप में हो गई थी. रंजना ने नौकरी जौइन की और सीतामढ़ी के डुमरा इलाके में किराए का एक कमरा ले कर अकेली रहने लगी. विनोद उस से मिलने सीतामढ़ी आताजाता रहता था. मजे की बात यह थी कि रंजना भी शादीशुदा थी, लेकिन उस ने भी अपनी शादीशुदा जिंदगी की बात सभी से छिपाए रखी थी. उस ने कभी अपनी मांग में सिंदूर नहीं भरा था. इसलिए लोग उसे कुंवारी ही समझते थे.

प्यार बना कंकाल : क्या हुआ खुशबू के साथ – भाग 2

रिपोर्ट में आरोप लगाया था कि 21 नवंबर, 2022 की शाम 4 बजे वह खाना बना रही थी. खाना बनाने के बाद वह खुशबू के कमरे में गई तो वह अपने कमरे में नहीं मिली.

काफी देर तक उसे इधरउधर तलाश किया, लेकिन उस का कोई सुराग नहीं मिला. बाद में पता चला कि गांव का गौरव उन की बेटी खुशबू को कहीं बहलाफुसला कर ले गया है.

गौरव और उस के दोनों भाइयों का भी कुछ पता नहीं चल रहा. तीनों के मोबाइल भी बंद हैं. गौरव उन की बेटी को भगा कर ले गया है और इस में गांव के दीपू, उस के भाई सुमित तथा रजनीकांत का सहयोग रहा है.

पुलिस ने चारों के खिलाफ भादंवि की धारा 363 व 366 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. गौरव की तलाश के लिए पुलिस ने उस की रिश्तेदारियों के अलावा गाजियाबाद में जहां वह काम करता था, पर दबिशें दीं लेकिन उस का कोई सुराग नहीं मिला.

पुलिस ने दीपू, सुमित व रजनीकांत से भी पूछताछ की. वे गांव में ही थे. तीनों ने पुलिस को बताया कि गौरव से उन की गांव का होने के कारण जानपहचान है. उन्हें गौरव व खुशबू के बारे में कोई जानकारी नहीं है. पुलिस को भी लगा कि खुशबू और गौरव के बारे में वे निर्दोष हैं.

पुलिस ने खुशबू के घर वालों के बताए स्थानों के अलावा अपने स्तर से भी कई ठिकों पर खशबू और गौरव को तलाशने के लिए दबिश दी. लेकिन हर बार पुलिस को असफलता ही मिली.

धीरेधीरे एक साल, डेढ़ साल और फिर लगभग 2 साल का समय बीत गया. थाना सिरसागंज के 5 एसएचओ और 4 विवेचक बदल गए थे. अपनी जवान बेटी के लापता हो जाने के बाद भी बेटी व उस के प्रेमी गौरव व अन्य परिजनों के बारे में जानकारी न मिलने पर भी खुशबू की मां आशा देवी ने हार नहीं मानी.

कहने को खुशबू के घर वाले यह बात मानने लगे थे कि खुशबू के साथ गौरव ने शादी कर ली है. एक ही जाति का होने के कारण उन्हें इस शादी पर कोई आपत्ति भी नहीं थी. लेकिन एक बार अपनी बेटी से मिलने के लिए वह बेचैन थे.

मां का दिल ही था, जो बेटी के लिए तड़प रहा था. खुशबू के लापता होने के बाद भी वह अपने स्तर से अपनी बेटी को तलाश करती रहीं. एक दिन वह अपने छोटे बेटे अंकुश के साथ गौरव की ननिहाल, जो मैनपुरी जिले के गांव खिरिदिया में थी, जा पहुंचीं.

वहां उन्हें वहां की एक महिला ने बताया कि गौरव की ननिहाल में एक दिन बातचीत चल रही थी कि खुशबू की हत्या कर दी गई है. इतना सुनते ही मां और भाई उल्टे पांव अपने घर लौट आए.

दूसरे दिन ही घर वालों ने मुख्यमंत्री के पोर्टल पर शिकायत दर्ज की. शिकायत किए जाने के कुछ दिन बाद जांच के लिए कुछ लोग गांव पहुंचे. इस बीच गौरव पक्ष के लोगों ने जांच टीम को बताया कि खुशबू अपनी राजी से गौरव के साथ गई थी. उस की मां अपनी बेटी के लिए पागल हो गई है. इस पर जांच टीम वापस चली गई.

मां आशा देवी ने फिर भी हार नहीं मानी. उन्होंने न्यायालय की शरण ली और बेटी को बरामद करने की मांग की. इस पर थाना सिरसागंज पुलिस पुन: सक्रिय हुई और गौरव की तलाश में दबिशों का दौर शुरू हो गया.

आखिर पुलिस की मेहनत रंग लाई और गौरव व उस के पिता चंद्रभान को 8 अक्तूबर, 2022 को मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने सिरसागंज में करहरा जाने वाली सड़क के मोड़ पर स्थित ब्राइट स्कोर्लर स्कूल के पास से गिरफ्तार कर लिया.

दोनों आरोपियों को गिरफ्तार करने वाली पुलिस टीम में एसएचओ उदयवीर सिंह मलिक, इंसपेक्टर (क्राइम) दयाशंकर सिंह, एसएसआई मोहम्मद खालिद, एसआई वीरेंद्र सिंह धामा, कांस्टेबल घनेंद्र सिंह, अनिल कुमार, राजीव कुमार व महिला कांस्टेबल पारुल शामिल थी.

गिरफ्तार दोनों आरोपियों को थाने लाया गया. पुलिस ने उन से पूछताछ की तो आरोपियों ने खुशबू के बारे में जानकारी होने से इंकार कर दिया. लेकिन जब पुलिस ने सख्ती की तो आरोपी गौरव टूट गया. उस ने जब बताया कि खुशबू तो अब इस दुनिया में ही नहीं है, यह सुन कर पुलिस के होश उड़ गए.

रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद लापता हुई जवान बेटी को तलाशने के लिए मजबूर मातापिता थाने के चक्कर काटते रहे. मां थाने में जा कर बेटी के लिए कई बार बिलखती रही, लेकिन जिम्मेदार लोग अपनी जिम्मेदारी न निभाते हुए घर वालों पर तरहतरह के तंज कसते रहे.

बेटी के लिए पिता ने उस की फोटो वाले पोस्टर भी छपवाए और 20 हजार रुपए का ईनाम भी घोषित कर दिया. 2 साल तक घर वाले बेटी की तलाश में खाक छानते रहे. 5 इंसपेक्टर और 4 विवेचक बदल गए. लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात ही रहा था.

8 अक्तूबर, 2022 शनिवार का दिन खुशबू के घर वालों के लिए काला दिन साबित हुआ. बेटी के परिजन जिस बेटी को 2 साल से सभी जगहों पर तलाश रहे थे. उसी बेटी की लाश उन के घर के पास रहने वाले बेटी के प्रेमी गौरव के घर में होने की जानकारी मिली. उस दिन बड़ी संख्या में पुलिस फोर्स के साथ अधिकारी गांव में पहुंच चुके थे.