प्यार में लगी सेंध : शिवम बना हत्यारा – भाग 2

पुलिस टीम अब तक 3 आरोपियों को गिरफ्तार कर चुकी थी, लेकिन शिवम के बयानों के आधार पर 3 आरोपी अभिषेक, रिशु व सीमा फरार थी. इन को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस टीम ने जाल बिछाया और खास खबरियों को भी लगा दिया.

इस का परिणाम जल्द ही सामने आया. एक खास खबरी ने पुलिस को जानकारी दी कि रिशु, अभिषेक व सीमा इस समय टुनटुनिया पार्क के पास मौजूद हैं. खबरी की बात पर विश्वास कर पुलिस टीम टुनटुनिया पार्क पहुंची और उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया.

उन तीनों का सामना थाने में शिवम, सनी व अमित से हुआ तो वह समझ गए कि अब बचने का कोई रास्ता नहीं है. अत: उन्होंने बिना हीलाहवाली के जुर्म कुबूल कर लिया.

चूंकि शालू के हत्यारों ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया था. अत: थानाप्रभारी जितेंद्र सिंह ने मृतक शालू के भाई शेरू को वादी बना कर आईपीसी की धारा 364/302/201 के तहत शिवम मिश्रा उर्फ बांगरू, अमित पासवान, सनी गुप्ता, रिशु गुप्ता, अभिषेक व सीमा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और सभी को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

सभी आरोपियों से की गई पूछताछ में त्रिकोण प्रेम की सनसनीखेज कहानी उभर कर सामने आई.

उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर के जूही थाना क्षेत्र में एक मोहल्ला है- परमपुरवा. मुसलिम बाहुल्य इसी मोहल्ले की कच्ची बस्ती में अकमल मियां रहते थे. उन की 9 औलादों में 7 बेटे तथा 2 बेटियां थी. सब से बड़ा बेटा शेरू था, जबकि सब से छोटा शालू था. बड़ी बेटी का नाम नसीमा था. भारीभरकम परिवार के गुजरबसर के लिए अकमल मियां ढाबा चलाते थे. ढाबे का संचालन उन का बड़ा बेटा शेरू करता था. अन्य बेटे भी सहयोग करते थे.

शालू का मन न पढ़ाई में लगता था और न ही ढाबे के काम में. अधिक लाड़प्यार की वजह से वह बिगड़ गया था. अकमल घर से सुबह जल्दी ढाबे पर चले जाते थे और देर रात लौटते थे. इसलिए वह शालू पर ध्यान नहीं दे पाते थे.

शालू कम उम्र में ही शराब के साथसाथ शबाब का भी शौकीन हो गया. बाप की इतनी कमाई नहीं थी कि वह उस के जायजनाजायज खर्च पूरे करते, इसलिए अपने नाजायज खर्च पूरे करने के लिए वह अपराध करने लगा.

उस के खिलाफ जूही थाने में एक के बाद एक कई मुकदमे बलवा, लूटपाट व रंगदारी के दर्ज हो गए. थाना जूही पुलिस ने उस की हिस्ट्रीशीट खोल दी.

एक साल पहले एक कुत्ता व्यापारी से रंगदारी वसूलने के जुर्म में पुलिस ने शालू को जेल भेजा था. शालू कानपुर जेल की जिस बैरक में बंद था, उसी बैरक में दर्शनपुरवा निवासी बेटू शुक्ला भी बंद था. चूंकि दोनों अपराधी प्रवृत्ति के थे, अत: उन में गहरी दोस्ती हो गई.

जेल में मिलाई करने बेटू शुक्ला का बहनोई शिवम मिश्रा उर्फ बांगरू आता था. शिवम भी अपराधी था. वह फजलगंज थाने का हिस्ट्रीशीटर था. बेटू शुक्ला ने शालू का परिचय शिवम मिश्रा से कराया. उस के बाद शालू की दोस्ती शिवम से भी हो गई. शिवम अब शालू को भी जरूरत का सारा सामान जेल में मुहैया कराने लगा.

जमानत पर जेल से छूटने के बाद शालू, शिवम से मिलने उस के घर दर्शनपुरवा आने लगा. शिवम मिश्रा ने अपने अन्य अपराधी साथी अमित, सनी, रिशु व अभिषेक से भी शालू का परिचय करा दिया. इन सभी की सप्ताह में एक या 2 बार जश्न पार्टी होती.

शिवम मिश्रा के घर आतेजाते एक रोज शालू की मुलाकात सीमा से हुई. सीमा शिवम की प्रेमिका थी. वह अकसर उस से मिलने उस के घर आती रहती थी. सीमा दर्शनपुरवा में ही शनि मंदिर के पास अपनी बीमार मां के साथ रहती थी.

घर खर्च चलाने के लिए वह प्राइवेट नौकरी करती थी. सीमा चंचल व मनचली युवती थी. शिवम से उस की पुरानी दोस्ती थी. दोनों के बीच मधुर संबंध थे. शिवम उस की आर्थिक मदद भी करता था.

सीमा सुंदर तो थी ही, दिलफेंक भी थी. अत: सीमा शालू के दिल में उतर गई. वह उसे अपने प्रेम जाल में फंसाने के लिए तानेबाने बुनने लगा.

शालू ने शिवम के दोस्त रिशु गुप्ता से किसी तरह सीमा का मोबाइल फोन नंबर हासिल किया, फिर वह सीमा से मोबाइल फोन पर बातचीत करने लगा. चूंकि सीमा दिलफेंक युवती थी, सो वह शालू की बातों में रस लेने लगी. यही नहीं, वह अपनी लच्छेदार बातों से शालू को आकर्षित भी करने लगी.

शालू को जब लगा कि सीमा उसे भाव दे रही है तो उस ने एक रोज सीमा से फोन पर बात की और उसे मोतीझील के रमणीक उद्यान में मिलने का अनुरोध किया. सीमा ने उस के अनुरोध को स्वीकार करते हुए मिलने की हामी भर दी. शालू तब खुशी से झूम उठा. वह सजसंवर कर शाम 4 बजे मोतीझील पहुंच गया.

कुछ देर बाद सीमा भी वहां आ गई. दोनों मोतीझील की मखमली घास पर बैठ कर रस भरी बातें करने लगे. बातें करतेकरते अचानक शालू ने सीमा का हाथ अपने हाथ में लिया और बोला, ‘‘सीमा, मैं तुम से बेहद मोहब्बत करता हूं. तुम्हारे बिना अब मुझे सब कुछ सूनासूना सा लगता है. मेरी मोहब्बत को कुबूल कर लो.’’ कहते हुए शालू, सीमा की आंखों में झांकने लगा.

सीमा कुछ पल मौन रही फिर बोली, ‘‘शालू, आई लव यू टू. मैं ने तो तुम्हें उसी दिन अपने दिल में बसा लिया था, जिस दिन हमारीतुम्हारी पहली मुलाकात हुई थी.’’

‘‘सच सीमा?’’ कहते हुए शालू ने सीमा को गले लगा लिया.

इस के बाद सीमा और शालू का प्यार परवान चढ़ने लगा. दोनों साथसाथ घूमने लगे और मौजमस्ती करने लगे. उन के बीच की दूरियां भी मिट गईं. शालू अब सीमा के घर भी जाने लगा. कभीकभी वह रात में उस के घर भी रुक जाता.

चूंकि शालू सीमा की आर्थिक मदद करता था और उस की बीमार मां का इलाज भी करवाने लगा था. अत: सीमा की मां भी उस के घर आने पर ऐतराज नहीं जताती थी.

4 साल बाद मिले कंकाल ने बयां की इश्क की कहानी – भाग 2

अरुण से नहीं मिलाना चाहती थी नजरें

सविता यह सोच कर सारा दिन पशोपेश में रही कि अरुण से वह नजरें कैसे मिलाएगी. कम से कम दोचार दिन वह अरुण के सामने नहीं जाएगी, सविता ने सोच कर दिल को समझा लिया था, लेकिन चंद्रवीर ने अरुण को शराब की दावत दे कर चिकन लाने बाजार भेज रखा था.

अब अरुण घर जरूर आएगा, उस से उस का सामना भी होगा. उफ! सविता का वह दिल फिर तेजी से धड़कने लगा था, जिसे दोपहर में उस ने बड़ी कोशिश कर के काबू में किया था.

रसोई में आ कर वह काम तो कर रही थी, लेकिन सामान्य नहीं थी.

‘‘सविता…’’ उस के कानों में पति की आवाज पड़ी. चंद्रवीर उसे पुकार रहा था, इस का मतलब था अरुण चिकन ले आया था. सविता अरुण के सामने नहीं आना चाहती थी. सविता ने किचन से आवाज लगाई, ‘‘क्या है, क्यों आवाज लगा रहे हो?’’

‘‘अरुण चिकन ले आया है, ले जाओ.’’ चंद्रवीर ने बताया.

‘‘आप ही यहां ला दो, मैं ने मसाला तवे पर डाला है, जल जाएगा.’’

चंद्रवीर थैला ले कर आ गया. थैला रख कर उस ने 2 कांच के गिलास, पानी का लोटा व प्लेट उठाई और चला गया.

सविता ने जैसेतैसे खाना तैयार किया और चंद्रवीर को आवाज लगाई, ‘‘खाना बन गया है, मैं थाली लगा रही हूं. आ कर ले जाओ.’’

‘‘तुम ही ले आओ.’’ चंद्रवीर ने कहा तो सविता को थाली में भोजन रख कर खुद ही बैठक में लाना पड़ा. उस ने उस वक्त चुन्नी को अपने सिर पर इतना खींच लिया था कि अरुण की नजरें उस की नजरों से न मिल सकें.

थालियां पति और अरुण के सामने रखते हुए उस के हाथ कांप रहे थे, उस का दिल बुरी तरह धड़क रहा था और सांसें धौंकनी सी चल रही थीं. उस ने चोर नजरों से देखा. अरुण उसे देख कर बेशर्मी से मुसकरा रहा था.

खाना परोस कर वह तेजी से बैठक से बाहर आ गई. जैसेतैसे चंद्रवीर और अरुण की वह दावत रात के 10 बजे तक खत्म हुई. अरुण चला गया तो सविता की जान में जान आई.

दूसरे दिन चंद्रवीर किसी काम से चला गया तो सविता ने कुछ सोच कर अरुण के घर की तरफ कदम बढ़ा दिए. वह रात को ही इस बात का फैसला कर चुकी थी कि अरुण से कल की बेशर्मी भरी हरकत पर सख्ती से बात करेगी. अगर वह चुप रहेगी तो अरुण फिर से वैसी हरकत कर सकता है.

अरुण का दरवाजा ढुलका हुआ था. सविता ने दरवाजा धकेला तो वह अंदर की तरफ खुल गया. सविता सीधा अरुण के कमरे में आ गई. अरुण उस वक्त बिस्तर में लेटा टीवी देख रहा था. आहट पा कर उस ने नजरें घुमाईं तो सविता को देख कर हड़बड़ा कर चारपाई पर उठ बैठा, ‘‘भाभी आप?’’ उस ने हैरानी से कहा.

‘‘हां, मैं.’’ सविता रूखे स्वर में बोली.

‘‘बैठो.’’ अरुण जल्दी से चारपाई से उतर गया.

‘‘मैं बैठने नहीं आई हूं. तुम से कुछ पूछने आई हूं.’’ सविता तीखे स्वर में बोली, ‘‘मुझे यह बताओ, तुम ने वह बेहूदा हरकत क्यों की थी?’’

‘‘कैसी बेहूदा हरकत भाभी?’’ अरुण ने खुद को संभाल कर संयत स्वर में पूछा.

‘‘कल मैं जब नहा रही थी तो तुम अंदर घुस आए और मुझे आंखें फाड़ कर देखते रहे… क्यों?’’

‘‘भाभी,’’ अरुण बेशरमी से मुसकराया, ‘‘आप हो ही इतनी हसीन कि मैं चाह कर भी अपनी नजरें नहीं हटा सका.’’

सविता उस की बात पर अचकचा गई. उसे कुछ नहीं सूझा कि वह क्या कहे.

अरुण अपनी ही धुन में बोलता चला गया, ‘‘भाभी, आप का गदराया यौवन है ही इतना हसीन कि उस पर से कोई मूर्ख ही अपनी नजरें हटाएगा. मैं बेवकूफ और मूर्ख नहीं हूं, कसम ले लो भाभी मैं ने आप की पीठ के तिल भी गिने हैं…’’

सविता शरम से जमीन में जैसे गड़ गई. उस के मुंह से धीरे से निकला, ‘‘चुप हो जाओ अरुण. प्लीज, अब आगे कुछ मत कहना.’’

अरुण ने गहरी सांस ली, ‘‘हकीकत बयां कर रहा हूं भाभी. भले ही आप की शादी हुए 14 साल हो गए, लेकिन आप की सुंदरता एक बेटी की मां बनने के बाद भी कम नहीं हुई है. आप रूप की देवी हो. चंद्रवीर भैया आप की पूजा नहीं करते होंगे. कसम ले लो यदि आप मेरी किस्मत में लिखी होती तो मैं आप को सिंहासन पर बिठा कर पूजता.’’

सविता अपनी तारीफ सुन कर मंत्रमुग्ध हो गई थी. अरुण की एकएक बात उस के रोमरोम को पुलकित कर रही थी. उस के मन में अजीब सी हलचल मच गई थी. उसे अरुण की अंतिम बात ने रोमांच से भर दिया. उसे लगा अरुण उसे शिद्दत से प्यार करता है. उस के यौवन का वह प्यासा भंवरा है, तभी तो उस की चाहत शब्दों के रूप में उस के होंठों पर आ गई है.

शिकायत करतेकरते हो गई शिकार

वह अरुण को डांटने आई थी. अब उस की बातों ने उसे मोह में बांध लिया. सविता से कुछ कहते नहीं बना तो अरुण ने उस की कलाई पकड़ ली और हथेली अपने सीने पर रख कर दीवानों की तरह आह भरते हुए बोला, ‘‘इस सीने में जो दिल है भाभी, वह सिर्फ तुम्हें चाहता है. आज से नहीं बरसों से मैं तुम्हें मन ही मन प्यार करता आ रहा हूं.’’

‘‘तो कहा क्यों नहीं…’’ सविता आंखें बंद कर के धीरे से फुसफुसाई.

‘‘डरता था भाभी, कहीं तुम बुरा न मान जाओ. तुम चंद्रवीर भैया की अमानत हो. मैं अमानत में खयानत करना नहीं चाहता था.’’

‘‘अब क्या कर रहे हो?’’ सविता मदहोशी के आलम में बोली, ‘‘तुम मेरी हथेली सहला रहे हो, यह भी तो गुनाह है न.’’

‘‘आज हिम्मत बटोर ली है भाभी. देखता रहूंगा तो जी जलता रहेगा. आज तुम्हें संपूर्ण पा लेने की इच्छा है, तभी मन में ठंडक पड़ेगी.’’

सविता 35 वर्षीय अरुण की बातों और उस के प्यार भरे स्पर्श से अपना होश गंवा चुकी थी. उस ने आंखें बंद कर के फुसफुसा कर कहा, ‘‘लो कर लो अपने दिल की, तुम्हारे दिल में जो आग भड़क रही है, उसे शांत कर लो.’’

सविता की इजाजत मिली तो अरुण ने उसे बांहों में समेट लिया. देवरभाभी के पवित्र रिश्ते की दीवार को ढहने में फिर वक्त नहीं लगा.

सविता जब अरुण के कमरे से निकली तो उस का गुस्सा कपूर की गंध की तरह उड़ चुका था. जिस अरुण ने उसे नहाते हुए नग्न हालत में देखा था, वही अरुण अब उस के तनमन पर छा गया था. सविता बहुत खुश थी. उस ने अपने पति चंद्रवीर के साथ देवर अरुण को भी दिल में जगह दे दी थी. यह बात सन 2017 की है.

बिछड़ा राही प्यार का : समीर के प्यार को क्यों ठुकरा दिया – भाग 2

‘‘सर, मैं मोहल्ला इसलामपुर से दाऊद पुत्र आफताब अली बोल रहा हूं. मेरी चचेरी बहन गुलफ्शा यहां चारपाई पर मृत अवस्था में पड़ी मिली है. आप को सूचना देना जरूरी लगा तो फोन किया है.’’

‘‘ओह!’’ दूसरी ओर से खारी का स्वर गंभीर हो गया, ‘‘आप हमें अपना पूरा एड्रैस बताइए.’’

मोहम्मद दाऊद ने उन्हें अपने चाचा के घर का पूरा पता बता दिया और फोन काट कर जेब में डालते हुए बोला, ‘‘गुलफ्शा की लाश को कोई हाथ न लगाए. पुलिस थोड़ी देर में यहां पहुंच जाएगी.’’

सभी चारपाई से पीछे हट गए. जो महिलाएं रुदन कर रही थीं, उन का रुदन भी थम गया. हां, गुलफ्शा की अम्मी शमशीदा अभी भी घुटनों में मुंह रख कर धीरेधीरे सिसक रही थी.

थोड़ी देर में ही कोतवाली थाने के एसएचओ अमित कुमार खारी अपनी टीम के साथ वहां आ गए. उन की टीम में इंसपेक्टर सुरेंद्र पाल सिंह, अरविंद कुमार शर्मा, एसआई विनेश कुमार, राजीव कुमार, महिला कांस्टेबल दीपिका व अनुज कुमार, सहायक चौकी इंचार्ज कैला भट्ठा अनंगपाल राठी थे.

कांस्टेबल दीपिका ने लाश का निरीक्षण कर एसएचओ खारी को बताया, ‘‘सर, गुलफ्शा की गरदन पर खरोंच के निशान हैं और सूजन भी है. लगता है इसे गला घोंट कर मारा गया है. इस की कलाई पर भी खरोंच के निशान दिखाई दे रहे हैं.’’

इस के बाद एसएचओ पूछताछ के लिए अपने साथ नन्हे, उस के बेटों, बहू और नन्हे की बीवी शमशीदा को ले कर घर की बैठक में आ गए.

उन्होंने नन्हे के चेहरे पर गहरी नजरें जमा कर सख्त लहजे में पूछा, ‘‘तुम ने गुलफ्शा को क्यों मारा?’’

‘‘क्या कह रहे हैं साहब,’’ नन्हे घबरा कर बोला, ‘‘गुलफ्शा मेरी लाडली बेटी थी. मैं उसे हर तरह से खुश रखने की कोशिश करता था. मैं ने उसे कभी चांटा तक नहीं मारा साहब.’’

‘‘लेकिन गुलफ्शा का गला घोटा गया है. यह काम घर के लोगों का ही हो सकता है. कोई बाहर से तो उस का गला घोटने नहीं आ सकता. अब तुम सब सचसच बताओ, क्यों और किस कारण से गुलफ्शा का गला घोटा गया है?’’ खारी के स्वर में अभी भी सख्ती थी.

‘‘यह काम हम क्यों करेंगे साहब?’’ इस बार शमशीदा सामने आ कर रुआंसे स्वर में बोली, ‘‘हम अपनी ही बेटी को क्यों मारेंगे भला?’’

‘‘यह मालूम हो जाएगा तो बता दूंगा.’’ खारी ने कंधे झटके, ‘‘नन्हे, मुझे बताओ, गुलफ्शा की लाश तुम लोगों ने कब देखी?’’

‘‘साहब, सब से पहले गुलफ्शा की मृत लाश को मेरी बीवी ने देखा. वह गुसलखाने में जाने के लिए उठी तो इसे बेटी बाहर चारपाई पर मृत अवस्था में दिखाई दी. इस ने घर के बाकी लोगों को यह जानकारी दी तो रोनापीटना शुरू हो गया.’’

‘‘गुलफ्शा क्या बाहर ही सोई थी?’’ एसएचओ ने अलग प्रश्न किया.

‘‘नहीं साहब, वह मेरे साथ मेरे कमरे में सोती है. रात भी मेरे पास ही चारपाई पर सो रही थी.’’

‘‘फिर वह बाहर कैसे पहुंच गई?’’

‘‘यह हमारी भी समझ में नहीं आ रहा है साहब.’’ इस बार तौहीद आगे बढ़ आया’

‘‘क्या आप लोग मेनगेट खुला रख कर सोते हैं?’’

‘‘जी नहीं,’’ नन्हे तुरंत बोला, ‘‘रात को मैं ने खुद उसे बंद किया था साहब.’’

‘‘तब तो अंदर के किसी व्यक्ति ने यह दरवाजा खोल कर हत्यारे को अंदर बुलाया है और गुलफ्शा का कत्ल करवाया है.’’ एसएचओ ने अपना अनुमान व्यक्त किया.

श्री खारी ने अपना अंतिम और महत्त्वपूर्ण प्रश्न कर दिया, ‘‘नन्हे, अब एक बात बहुत ईमानदारी से बताना. क्या तुम्हारी बेटी का किसी के साथ कोई चक्कर चल रहा था?’’

‘‘छि:’’ नन्हे ने मुंह बिगाड़ा, ‘‘गुलफ्शा पाक खयालात की लड़की थी साहब.’’

गुलफ्शा की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने के बाद पुलिस टीम थाने की ओर लौट रही थी तो रास्ते से ही एसएचओ ने अपने उच्चाधिकारियों को इस हत्याकांड की सूचना दे दी.

ट्रॉली बेग में सिमटा आयुषि का प्यार – भाग 2

मुख्यमंत्री व डीजीपी कार्यालय से ली गई जानकारी

जैसे ही यह खबर चर्चा में आई, वैसे ही मुख्यमंत्री और डीजीपी कार्यालय से लगातार इस की जानकारी की जाने लगी थी. ऐसे में पुलिस भी युवती की हत्या का परदाफाश करने को ले कर तनाव में थी.

दिल्ली-एनसीआर में मृतका के पोस्टर भी लगवाए. इस के अलावा पुलिस की टीमें युवती की पहचान के लिए गुरुग्राम, अलीगढ़, हाथरस, नोएडा, आगरा और दिल्ली तक पहुंचीं.

इस के बाद कानपुर देहात जिले से एक परिवार जानकारी होने पर 19 नवंबर, 2022 की सुबह थाना राया पहुंचा.  उन की बेटी 11 नवंबर से गायब थी. पुलिस ने जब मृतका के फोटो उस परिवार को दिखाए तो वह लाश उन की बेटी की नहीं निकली. अलीगढ़ से भी एक परिवार पहुंचा था. और भी कई जिलों से पुलिस के पास फोन आए, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

आखिर में पुलिस की मेहनत रंग लाई. 48 घंटे बाद किसी अंजान व्यक्ति का राया पुलिस के पास फोन आया. फोन करने वाले ने बताया कि उस ने एक वाट्सऐप ग्रुप में जो अज्ञात युवती की लाश देखी है, वह उसे पहचानता है. उस युवती का नाम आयुषि यादव है, जो मकान नंबर 2461, गली नंबर 65, ब्लौक ई-2 मोलड़बंद एक्सटेंशन, थाना बदरपुर, नई दिल्ली की रहने वाली है.

यह जानकारी मिलने के बाद कार्यवाहक एसएसपी मार्तंड प्रकाश सिंह ने 2 टीमों को 20 नवंबर को दिल्ली रवाना कर दिया. पुलिस की टीमें फोन पर बताए गए दिल्ली के पते पर पहुंच गईं. फोटो का मिलान करते हुए पुलिस टीम ने घर वालों से पूछताछ की.

पुलिस ने मृतका का फोटो जब उन्हें दिखाया तो उन्होंने वह पहले फोटो पहचानने से इंकार कर दिया, लेकिन पुलिस के पास पुख्ता जानकारी थी कि ये फोटो आयुषि के ही हैं. इसलिए बारबार पुलिस ने पूछा तो आयुषि के छोटे भाई आयुष ने बताया कि ये फोटो उस की बड़ी बहन आयुषि की है.

48 घंटे तक हवा में तीर चला रही पुलिस को यहीं से उम्मीद की किरण दिखी. पूछताछ में परिजनों ने बताया कि आयुषि 17 नवंबर, 2022 की सुबह घर से कहीं गई थी.

‘‘जब गायब थी तो आप ने इस की सूचना स्थानीय पुलिस को क्यों नहीं दी?’’ पुलिस ने पूछा.

पुलिस के इस सवाल पर परिजनों ने कहा कि वह अपने स्तर से उसे तलाश रहे थे.

आयुषि 17 नवंबर की सुबह घर से गई थी. उस का शव पुलिस को 18 नवंबर को मिला था. शव की हालत देख कर 12 से 16 घंटे पहले हत्या होने का अनुमान लगाया जा रहा था. इस का मतलब यह हुआ कि घर से निकलने के बाद जहां भी आयुषि गई, वहां रात में उस की हत्या के बाद सुबह के समय शव को मथुरा ला कर डाला गया था.

उस समय घर पर आयुषि का पिता नितेश यादव मौजूद नहीं था. पुलिस ने नितेश यादव के बारे में जानकारी की तो पता चला कि वह इलैक्ट्रीशियन है और काम करने गया है. पुलिस उस के भाई को साथ ले कर नितेश को तलाशने लगी.

कई घंटों की तलाश के बाद 44 वर्षीय पिता नितेश एक राजनीतिक पार्टी के कार्यालय में मिल गया. पिता नितेश, मां ब्रजबाला व भाई आयुष को ले कर पुलिस मथुरा के लिए रवाना हुई ताकि वह लाश की शिनाख्त कर सकें.

नितेश ने पुलिस से मांगी बीयर

20 नवंबर, 2022 रविवार की देर शाम पोस्टमार्टम गृह पर शव को देखते ही उन सभी ने लाश की पहचान आयुषि के रूप में कर ली. मां फूटफूट कर रोने लगी.

हालांकि पुलिस को शुरुआत में घर वालों से बात करने के दौरान ही शक हो गया था कि आयुषि की हत्या औनर किलिंग में की गई है. इसी के चलते पुलिस नितेश यादव को पोस्टमार्टम गृह तक नहीं लाई.

प्राइवेट कार से एसएचओ ओमहरि बाजपेयी, एसआई विनय कुमार और एक सिपाही के साथ केवल मां ब्रजबाला और भाई आयुष को ही लाया गया था. नितेश का परिवार मूलरूप से गांव सुनारी, देवरिया (उत्तर प्रदेश) का रहने वाला है.

दिल्ली में एक राजनीतिक दल के चुनाव कार्यालय से पुलिस ने नितेश यादव को उठाया था. हत्यारोपी नितेश पूरी शिद्दत से एमसीडी चुनाव में जुटा हुआ था. वह उस समय नशे में धुत था. नशे में होने के कारण पुलिस ने उसे अलग गाड़ी में बैठाया.

शव की पहचान के लिए स्वाट टीम नितेश को ले कर मथुरा चली तो रास्ते में पुलिस ने उससे पूछताछ शुरू कर दी. पूछताछ के दौरान ही उसने बीयर पीने की मांग की. पुलिस ने युवती की हत्या की सच्चाई जानने के लिए उस की इच्छा पूरी की. इस के बावजूद वह पुलिस को गुमराह करता रहा.

आखिर 20 नवंबर, 2022 की देर रात लगभग साढ़े 11 बजे पुलिस ने जब सख्ती की तो नितेश टूट गया. उस ने अपनी 22 वर्षीय बेटी आयुषि यादव की गोली मार कर हत्या करने का जुर्म कुबूल कर लिया.

कार्यवाहक एसएसपी मार्तंड प्रकाश सिंह ने प्रैस कौन्फ्रैंस में जानकारी देते हुए बताया कि आयुषि की हत्या पिता नितेश और मां ब्रजबाला ने मिल कर की थी. हत्या के बाद सबूत छिपाने में दोनों शामिल थे. आरोपियों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त कार, लाइसेंसी रिवौल्वर, 2 खोखों को अब तक बरामद कर लिया गया था.

आयुषि ने चोरीछिपे की थी लव मैरिज

आयुषि दिल्ली ग्लोबल इंस्टीट्यूट औफ टेक्नोलौजी में बीसीए की अंतिम वर्ष की होनहार छात्रा थी. राजस्थान के भरतपुर का रहने वाला छत्रपाल गुर्जर का एक रिश्तेदार आयुषि का सहपाठी था.

सहपाठी ने आयुषि से छत्रपाल का परिचय कराया. छत्रपाल भी दिल्ली में बैंक प्रतियोगिता की तैयारी कर रहा था. इसी दौरान दोनों की दोस्ती हो गई और दोनों ने अपने फोन नंबर एकदूसरे को दे दिए.

यहीं से दोनों के अफेयर की शुरुआत हुई. दोनों ने एक दिन हाथ पकड़ कर जीवन भर साथ देने का वादा किया. जब इस की जानकारी आयुषि के घर वालों को हुई तो उन्होंने विरोध किया.

विरोध के बावजूद आयुषि ने छत्रपाल से चोरीछिपे 13 नवंबर, 2021 को दिल्ली के आर्यसमाज मंदिर में शादी कर ली थी. जबकि उस ने इसी वर्ष 14 अक्तूबर को शाहदरा के जिला मजिस्ट्रैट के कार्यालय में अपने विवाह का पंजीकरण करा लिया था.

मोहब्बत का खूनी अंजाम – भाग 1

जब जब इश्क की कलम से दिल के कागज पर मोहब्बत की इबादत लिखी गई है, तबतब मोहब्बत करने वाले फना हुए हैं. इस तरह की कहानी में तब और दिलचस्प मोड़ आया है, जब वह त्रिकोण प्रेम पर आधारित हुई है और प्रेम त्रिकोण की कहानी में अकसर खूनी खेल सामने आता है. कुछ ऐसा ही इस त्रिकोण प्रेम में भी हुआ.

8 दिसंबर, 2017 की अलसाई सुबह चटख धूप के साथ खिली. लोग अपने घरों से निकल कर अपनी दिनचर्या में रम रहे थे.

उत्तर प्रदेश के जिला आजमगढ़ के बिलरियागंज थाने के भदाव गांव के कुछ लोग अपने खेतों की तरफ जा रहे थे. तभी गांव से बाहर कच्ची सड़क से दाईं ओर करीब 500 मीटर की दूरी पर कुदारन तिवारी के खेत में सफेद रंग की स्विफ्ट डिजायर कार लावारिस हालत में खड़ी दिखी. उत्सुकतावश लोग उस कार की ओर चले गए कि सुबहसुबह खेत में किस की कार खड़ी है.

लोगों ने जब कार के भीतर झांक कर देखा तो भीतर कोई नहीं था. कार का नंबर था यूपी53सी 3262. कार से कुछ दूरी पर एक युवक की लाश पड़ी थी. उस के सिर के घाव से लग रहा था कि किसी ने सिर में गोली मार कर उस की हत्या की है. उस का चेहरा खून से सना था.

मृतक काले रंग की पैंट और नीलेपीले रंग की धारीदार डिजाइन वाली जैकेट पहने था. उसके पैरों में कोई चप्पल या जूते नहीं थे. चेहरे पर दाढ़ी थी. वह शक्लसूरत और पहनावे से किसी अच्छे परिवार का लग रहा था.

लाश पड़ी होने की जानकारी मिलते ही आसपास के गांव के और लोग भी वहां जुटने लगे. उसी भीड़ में से किसी ने 100 नंबर पर फोन कर के इस की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. चूंकि मामला बिलरियागंज थाने का था, इसलिए पुलिस कंट्रोलरूम ने बिलरियागंज थाने को घटना की इत्तला दे दी. लाश मिलने की खबर पा कर बिलरियागंज के थानाप्रभारी विजय प्रताप यादव पुलिस टीम के साथ घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

घटनास्थल पहुंचने के बाद थानाप्रभारी ने अपने आला अधिकारियों को भी मामले की सूचना दे दी. इस के अलावा उन्होंने फोरैंसिक टीम और डौग स्क्वायड को भी सूचना दे कर मौके पर बुला लिया.

खबर पा कर एसपी अजय कुमार साहनी, एसपी (देहात) एन.पी. सिंह, सीओ (सगड़ी) सुधाकर सिंह भी घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस ने कार के नंबर की जांच की तो वह नंबर गोरखपुर आरटीओ का था.

जांचपड़ताल से पता चला कि वह कार गोरखपुर के दीपक सिंह के नाम से रजिस्टर्ड थी. इस से यही अंदाजा लगाया गया कि मृतक गोरखपुर का रहने वाला होगा. फिर पुलिस ने मृतक के कपड़ों की तलाशी ली तो उस की जेब से सगड़ी के बाबू शिवपत्तर राय स्मारक कालेज का एक परिचयपत्र मिला. उस परिचयपत्र से उस की शिनाख्त एमए के छात्र विभांशु प्रताप पांडेय के रूप में हुई, जिस में उस का पता गांव भौवापार थाना बेलीपार लिखा था.

कार की तलाशी लेने पर डिक्की में उल्टी और खून के धब्बे मिले. कार में एक जोड़ी लेडीज चप्पल पड़ी मिली. ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा था कि बदमाश हत्या कहीं और कर लाश को ठिकाने लगाने ले जा रहे थे, लेकिन कार खेत में फंस जाने की वजह से दूर नहीं भाग सके और उस की लाश फेंक कर फरार हो गए. इस का मतलब साफ था कि कार में कोई महिला भी सवार थी. वह कौन थी? यह मामला और भी पेचीदा हो गया.

पुलिस इस मामले को प्रेम संबंधों से जोड़ कर देखने लगी थी. कार में लेडीज चप्पल और उल्टी ने गुत्थी बुरी तरह उलझा कर रख दी थी. विभांशु के मुंह से झाग निकले थे. वह झाग किसी जहरीले पदार्थ के सेवन से थे या किसी और के, यह बात जांच के बाद ही पता चलना था.

मौके की जरूरी काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दी. कागजी काररवाई पूरी करने के पहले पुलिस ने घटना की सूचना मृतक के परिजनों को दे दी थी. सूचना मिलने के बाद वह भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

मृतक के बड़े भाई जोकि पेशे से एक वकील थे, उन की तहरीर पर पुलिस ने रुचि राय पुत्री अरविंद राय, ग्रामप्रधान श्यामनारायण राय और उस के भाई सत्यम राय सहित 8 अज्ञात लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

सभी आरोपी कोतवाली जीयनपुर के बांसगांव के निवासी थे. घनश्याम पांडेय का आरोप था कि भाई को उस की प्रेमिका रुचि राय ने फोन कर के बुलाया था और उस की हत्या करवा दी. रिपोर्ट नामजद लिखाई गई थी, इसलिए पुलिस ने नामजद आरोपियों की तलाश शुरू कर दी.

चूंकि वादी घनश्याम पांडेय एक वकील के साथसाथ रसूखदार और ऊंची पहुंच वाला था, पुलिस की थोड़ी सी भी चूक कानूनव्यवस्था बिगाड़ सकती थी, इसलिए एसपी अजय कुमार साहनी ने सीओ सुधाकर सिंह के नेतृत्व में गठित पुलिस टीम को निर्देश दे दिए थे कि नामजद आरोपियों को जल्द गिरफ्तार किया जाए.

पुलिस टीम ने आरोपियों के घर दबिश डाली तो वह अपने ठिकानों पर नहीं मिले. उन के न मिलने पर पुलिस की समस्या और बढ़ गई. उन की तलाश के लिए पुलिस ने अपने सभी मुखबिरों को भी अलर्ट कर दिया.

9 दिसंबर, 2017 की सुबह थानाप्रभारी विजय प्रताप यादव को एक मुखबिर ने आरोपी ग्रामप्रधान श्यामनारायण राय के बारे में एक महत्त्वपूर्ण जानकारी दी. उस से मिली जानकारी के बाद थानाप्रभारी अपनी टीम के साथ सगड़ी-खालिसपुर मार्ग पर पहुंच गए. श्यामनारायण वहीं खड़ंजे के पास खड़ा मिल गया. पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. वह वहां से कहीं भागने की फिराक में था.

तलाशी लेने पर उस के पास से एक पिस्टल .32 बोर व 2 जिंदा कारतूस के अलावा एक कारतूस का खोखा भी मिला. थाने ला कर जब उस से पूछताछ की गई, उस ने विभांशु की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया.

पुलिस ने उस के पास से जो पिस्टल बरामद किया था, उसी से उस ने विभांशु की हत्या की थी. उस ने उस की हत्या की जो कहानी बताई, वह प्रेम त्रिकोण वाली निकली—

प्यार बना कंकाल : क्या हुआ खुशबू के साथ – भाग 1

चूडि़यों की खनक के लिए प्रसिद्ध फिरोजाबाद जिले के थाना सिरसागंज का एक गांव है कीठौत. इसी गांव के रहने वाले हैं भीकम सिंह और चंद्रभान सिंह. दोनों के घरों के बीच मात्र 4 घरों का फासला है. एक ही जाति के होने के कारण दोनों के परिवार का एकदूसरे के यहां आनाजाना था.

चंद्रभान सिंह के 3 बेटे अक्षय, गौरव व सौरभ थे. इन में दूसरे नंबर का 24 वर्षीय गौरव कुमार रेलवे में बिजली के तार खींचने का प्राइवेट काम करता था. जबकि भीकम सिंह के 2 बेटे रवि व अंकुश के अलावा 2 बेटियां आरती व खुशबू थीं.

आरती की शादी काफी पहले हो चुकी थी. भीकम सिंह व उन के बेटे गुजरबसर के लिए सिरसागंज में मट्ठा (छाछ) बेचने का काम करते थे.

जब गौरव छुट्टी पर गांव कीठौत आता तो अपनी बाइक से गांव में घूमता था. एक दिन खुशबू ने अपनी मां आशा देवी से कहा, ‘‘मां, मैं भी बाइक चलाना सीखना चाहती हूं.’’

इस पर आशा देवी ने गौरव से कहा, ‘‘बेटा खुशबू बाइक चलाना सीखना चाहती है. तुम उसे चलाना सिखा दो.’’

इस पर गौरव को कोई ऐतराज नहीं था. लिहाजा वह उसे बाइक सिखाने को तैयार हो गया. इस के बाद गौरव खुशबू को बाइक सिखाने लगा. दोनों ही हमउम्र थे. उन्हें एकांत मिला तो इस बीच दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ती चली गईं.

बाइक सिखाने के दौरान मौका मिलते ही दोनों बाइक से गांव के बाहर निकल जाते. बाइक पर पीछे बैठने के दौरान वह गौरव को कस कर भींच लेती थी. खुशबू की इस छुअन से गौरव के शरीर में सनसनी सी दौड़ जाती. ऐसा करना खुशबू को भी अच्छा लगता था. क्योंकि वह उसे प्यार जो करने लगी थी.

अब दोनों का यह हाल हो गया था कि जब तक वे एकदूसरे को देख नहीं लेते थे, उन्हें चैन नहीं आता था.

जब गौरव अपनी नौकरी पर चला जाता तो खुशबू उस का बेसब्री से इंतजार करती. उस के गांव आने पर वह उस से मिलने उस के घर पहुंच जाती. दोनों एकदूसरे से प्यार करने लगे थे.

गौरव ने खुशबू को उस के साथ घर बसाने के सपने दिखाए. एक ही जाति के होने से खुशबू को पूरा विश्वास था कि घर वाले उन की शादी में रोड़ा नहीं अटकाएंगे. इस दौरान उन के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए थे.

शादी का पुख्ता भरोसा मिलने के बाद खुशबू के जैसे पंख ही लग गए थे. दोनों का प्रेम प्रसंग पिछले 2 साल से चल रहा था. गौरव के गांव आने और कुछ दिन रहने के बाद नौकरी पर चले जाने से खुशबू के घर वालों को दोनों के प्रेम प्रसंग की खबर नहीं थी. जबकि गौरव के घर वाले सब कुछ जानते थे.

21 वर्षीय खुशबू, जो सातवीं कक्षा तक पढ़ी थी, की शादी सन 2018 में हाथरस में निजामतपुर में हो गई थी. जिस लड़के के साथ शादी हुई थी, उस का किसी लड़की से पहले से ही प्रेम प्रसंग चल रहा था. इस के चलते वह खुशबू के साथ दुर्व्यवहार करने के साथ ही मारपीट करता था.

8-9 महीने बाद ही खुशबू ससुराल से वापस मायके आ गई थी और पति से संबंध खत्म हो गए थे. जवान बेटी की जिंदगी आसानी से कट जाए, इसलिए घर वाले उस के लिए लड़के की तलाश कर रहे थे.

21 नवंबर, 2020 को खुशबू अंडे लेने के बहाने घर से निकली थी. लेकिन जब काफी देर तक वापस नहीं आई, तब घर वालों ने उस की तलाश की. गौरव के घर भी पूछने आए. लेकिन गौरव के घर वालों ने खुशबू के अपने घर आने की बात से इंकार कर दिया.

खुशबू मीट नहीं खाती थी. जब भी घर में मीट बनता खुशबू नाराज हो जाती थी. 21 नवंबर, 2020 को भी घर में मीट बन रहा था, इसलिए वह अपने लिए अंडे लेने गई थी.

घर वालों ने उस के लापता होने पर सोचा कि वह घर में मीट बनने की बात से नाराज हो कर पड़ोस में कहीं चली गई होगी. गुस्सा शांत हो जाने पर आ जाएगी. लेकिन वह नहीं लौटी.

रात भर घर के लोग गांव वालों के साथ उसे तलाशते रहे. दूसरे दिन भी आसपास के गांवों के साथ ही रिश्तेदारियों में उस की तलाश की.

उधर घटना वाली रात को अचानक गौरव, उस के दोनों भाई व मां गांव छोड़ कर फरार हो गए. घर में केवल गौरव का पिता चंद्रभान रह गया था. चंद्रभान दूसरे दिन खुशबू के घर वालों के साथ उस की तलाश के बीच अपनी दोनों भैंसों को बेच घर में ताला लगा कर वह भी फरार हो गया.

खुशबू के घर वालों को अब तक खुशबू और गौरव के प्रेम प्रसंग की जानकारी हो गई थी. इसलिए खुशबू के गायब होने में वे लोग गौरव का हाथ मान रहे थे.

गौरव के घर वालों के घर में ताला लगा कर फरार हो जाने पर खुशबू के घर वालों को गौरव और उस के घर वालों पर ही खुशबू को गायब करने का हो रहा शक अब पूरी तरह यकीन में बदल चुका था.

आखिर 2 दिन बाद 23 नवंबर को थाना सिरसागंज में खुशबू की मां आशा देवी ने गौरव के अलावा गांव के ही दीपू, सुमित व रजनीकांत के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी.

धोखे में लिपटी मोहब्बत – भाग 1

9 जनवरी, 2017 को पश्चिम बंगाल के उत्तरी 24 परगना के रहने वाले 65 वर्षीय रामजी सिंह पटना के सचिवालय थाने पहुंचे तो उस समय इंसपेक्टर प्रकाश सिंह अपने कक्ष में बैठे कुछ जरूरी फाइलें निबटा रहे थे. रामजी सिंह उन के सामने खाली पड़ी कुरसी पर बैठ गए.

इंसपेक्टर ने फाइलों को एक तरफ किया और रामजी सिंह से मुखातिब हुए. रामजी सिंह ने उन्हें बताया कि उन का बेटा विनोद कुमार सिंह पटना के सचिवालय में लघु सिंचाई विभाग में नौकरी करता है. वह अंतरराष्ट्रीय तैराक भी रह चुका है. जन्म से उस के दोनों हाथ नहीं हैं. पिछले 2 दिनों से उस का कहीं पता नहीं चल रहा है और उस का मोबाइल भी बंद है.

रामजी सिंह की बात सुन कर इंसपेक्टर प्रकाश सिंह चौंके. हाई प्रोफाइल मामला था और सचिवालय से जुड़ा हुआ भी. उन्होंने सारा काम छोड़ कर रामजी की पूरी बात सुनी. रामजी ने उन्हें आगे बताया कि 2 दिन पहले 7 जनवरी, 2017 को दोपहर को बेटे से उन की बात हुई थी. उस ने कहा था कि वह कुछ जरूरी काम से भागलपुर जा रहा है. काम निपटा कर वह वापस पटना लौट जाएगा.

उस के बाद से उस का फोन बंद बता रहा है. वह 2 दिनों से लगातार उस के मोबाइल पर फोन कर रहे थे, लेकिन उस से न तो बात हो सकी और न ही उस का कुछ पता चल रहा है.

मामला गंभीर था, इसलिए बिना देर किए प्रकाश सिंह ने इस मामले की जानकारी एसएसपी मनु महाराज और आईजी नैयर हसनैन खान को दे दी. मामला सचिवालय से जुड़ा होने की वजह से अधिकारियों के भी हाथपांव फूल गए. वे किसी तरह का जोखिम नहीं उठाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने प्रकाश सिंह को उचित काररवाई करने के आदेश दिए.

त्वरित काररवाई करते हुए प्रकाश सिंह रामजी सिंह के साथ विनोद के कमरे पर पहुंचे. विनोद शास्त्रीनगर के राजवंशीनगर, रोड संख्या 6 के मकान नंबर 396/400 में अपने भांजे अंकित कुमार सिंह के साथ रहता था. प्रकाश सिंह ने सब से पहले अंकित से विनोद के बारे में पूछताछ की. लेकिन वह विनोद के बारे में कुछ खास नहीं बता सका तो उन्होंने कमरे में रखे विनोद के सामान की जांच की. तो उस में उन्हें विनोद की एक पुरानी डायरी मिली.

उस डायरी में भागलपुर के रहने वाले एक तैराक संजय कुमार का मोबाइल नंबर लिखा था. इस के अलावा वहां से ऐसी कोई चीज नहीं मिली, जिस से विनोद के बारे में कुछ पता चलता. प्रकाश सिंह ने यह बात एसएसपी मनु महाराज को बता दी. मनु महाराज ने उन्हें आदेश दिया कि एक पुलिस अफसर को भागलपुर भेज कर वहां से पता लगाने की कोशिश करें. इस पर उन्होंने रामजी सिंह के साथ एसआई अरविंद कुमार को भागलपुर भेज दिया.

10 जनवरी, 2017 को रामजी सिंह और एसआई अरविंद कुमार भागलपुर पहुंचे. संजय कुमार के मोबाइल पर संपर्क करके वे उसके घर पहुंच गए. वह तिलकामांझी मोहल्ले में अपने निजी मकान में रहता था. उससे अरविंद कुमार ने विनोद के बारे में पूछताछ की तो उस ने जो जानकारी दी, उसे सुन कर दोनों हैरान रह गए.

संजय ने बताया कि 1 जनवरी, 2017 को विनोद रंजना नाम की एक लड़की से मिलने भागलपुर आया था. रंजना को ले कर उस की रंजना के बहनोई शंभू मंडल और उस के मौसेरे भाई बिट्टू से कहासुनी हुई थी. कहासुनी के बीच शंभू मंडल ने विनोद के गाल पर कई थप्पड़ मारे थे, साथ ही उस पर अपनी साली का मोबाइल चुराने का आरोप भी लगाया था. इस के बाद दोनों उसे ले कर तिलकामांझी थाने गए थे.

तिलकामांझी थाने के थानाप्रभारी विनोद को देख कर दंग रह गए थे, क्योंकि विनोद के दोनों हाथ नहीं थे. ऐसे में वह चोरी कैसे कर सकता था. थानाप्रभारी को शंभू और बिट्टू पर शक हुआ तो उन्होंने उन से पूछताछ की. उन्होंने कहा कि जिस के दोनों हाथ ही नहीं हैं, वह भला चोरी कैसे कर सकता है. यह कुछ और ही मामला लगता है.

उन्होंने शंभू से रंजना के बारे में पूछा तो उस ने कहा कि वह यहां नहीं है. हां, उस से बात करा सकता है. इस के बाद उस ने रंजना की थानाप्रभारी से बात कराई. रंजना ने उन्हें बताया कि विनोद ने उस का मोबाइल चुराया नहीं, बल्कि जबरन अपने पास रख लिया है, जिसे वह उसे लौटा नहीं रहा है.

थानाप्रभारी तिलकामांझी ने रंजना के मोबाइल के बारे में विनोद से पूछा तो उस ने कहा कि उस का मोबाइल उस के पास है. थानाप्रभारी ने विनोद से उस का मोबाइल लौटाने को कहा तो उस ने मोबाइल शंभू मंडल को लौटा दिया. शंभू मंडल और बिट्टू मोबाइल ले कर चले गए. थानाप्रभारी ने विनोद को समझाया कि वह अपने घर लौट जाए. ये अच्छे लोग नहीं हैं. उन दोनों के चले जाने के बाद थानाप्रभारी ने थाने के 2 सिपाहियों के साथ विनोद को स्टेशन पहुंचवा दिया. इस के आगे संजय कुछ नहीं बता सका.

संजय ने जो भी बताया था, उस की तसदीक करने के लिए एसआई अरविंद कुमार और रामजी सिंह तिलकामांझी थाने पहुंचे. वहां से पता चला कि संजय द्वारा दी गई जानकारी सही थी. सच्चाई जानने के बाद एसआई अरविंद कुमार ने रामजी सिंह से रंजना के बारे में पूछा.  वह केवल इतना ही बता सका कि रंजना राज्य स्तर की वौलीबाल खिलाड़ी थी. दोनों का एकदूसरे से परिचय खेल के माध्यम से ही हुआ था. 6 महीने पहले दोनों को पटना सचिवालय में एक साथ देखा गया था.

रामजी सिंह ने इस बारे में बेटे विनोद से पूछा था तो उस ने बताया था कि भागलपुर की रहने वाली वौलीबाल खिलाड़ी रंजना उस की दोस्त है. रामजी सिंह को इस से ज्यादा कुछ पता नहीं था. जो भी जानकारी मिली, उसी के आधार पर एसआई अरविंद कुमार को यह प्रेमप्रसंग का मामला लगा.

विनोद कुमार का मामला रहस्यमय ढंग से उलझ गया था. जब कोई सुराग हाथ नहीं लगा तो दोनों पटना लौट आए. 2 दिनों तक रामजी सिंह पटना में रह कर अपने स्तर से बेटे की तलाश करते रहे. उन्होंने दोस्तों, रिश्तेदारों और परिचितों के यहां पता लगाया, लेकिन विनोद का कहीं पता नहीं चला. जब कहीं से भी कोई जानकारी नहीं मिली तो उन्होंने 13 जनवरी को बेटे की गुमशुदगी थाना सचिवालय में दर्ज करा दी.

गुमशुदगी दर्ज होने के बाद पुलिस की काररवाई में तेजी आई. कई दिनों तक पुलिस विनोद की खोज करती रही. मुखबिर भी लगाए गए, फिर भी विनोद के बारे में कुछ पता नहीं चला. 21 जनवरी, 2017 को पुलिस ने अंतरराष्ट्रीय तैराक विनोद कुमार सिंह के अपहरण का मुकदमा अज्ञात के खिलाफ भादंसं की धारा 363, 365 और 34 के तहत दर्ज कर लिया.

मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस ने विनोद की सुरागरसी में जमीनआसमान एक कर दिया. पूछताछ के लिए उस के कुछ दोस्तों को भी हिरासत में लिया गया, लेकिन इस से भी पुलिस के हाथ कुछ नहीं लगा. स्थानीय अखबारों ने दिव्यांग तैराक विनोद के अपहरण की खबरों को खूब सुर्खियों में उछाला, जिस से पुलिस की खूब छीछालेदर हो रही थी.

शादी का झांसा देने वाला फरजी सीबीआई अधिकारी – भाग 1

12 दिसंबर, 2017 को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के थाना अशोका गार्डन में काफी भीड़भाड़ थी. धीरेधीरे यह भीड़ बढ़ती जा रही थी. लोग यह जानने के लिए उस भीड़ का हिस्सा बनते जा रहे थे कि आखिर यहां हो क्या रहा है? लोग उत्सुकता से एकदूसरे का मुंह भी ताक रहे थे कि यहां हो क्या रहा है? उधर से गुजरने वाला हर आदमी बिना ठिठके आगे नहीं बढ़ रहा था.

इस की वजह यह थी कि शायद माजरा उस की समझ में आ जाए. जब उन्हें सच्चाई का पता चला तो सभी के सभी हक्केबक्के रह गए. एक लड़की, जिस की उम्र 23-24 साल रही होगी, वह एक लड़के का गिरेबान पकड़ कर कह रही थी, ‘‘सर, इस ने मेरी जिंदगी बरबाद कर दी. इस ने मेरे साथ बहुत बड़ा धोखा किया है.’’

इस के बाद उस लड़की ने थाना पुलिस को जो बताया, उस के अनुसार उस लड़के ने फरजी आईपीएस अधिकारी बन कर उसे शादी का झांसा दिया था. काफी समय तक वह उस की इज्जत को तारतार करते हुए उस के भरोसे से खेलता रहा. यही नहीं, शादी करने के नाम पर उस ने उस से लाखों रुपए भी लिए थे.

लड़की को जब लड़के की सच्चाई का पता चला तो उस ने फरार होने की कोशिश की, लेकिन लड़की ने घर वालों की मदद से उसे पकड़ लिया और थाने ले आई. हर मांबाप की यही ख्वाहिश होती है कि वह अपनी औलाद को पढ़ालिखा कर इस काबिल बना दे कि वह खूब तरक्की करे.

ऐसी ही ख्वाहिश याकूब मंसूरी की भी थी. वह अपनी बेटी जेबा को गेट की तैयारी करवा रहे थे. जबकि मुसलमानों में आमतौर पर यही माना जाता है कि लड़कियों को ज्यादा पढ़ालिखा कर उन से नौकरी थोड़ी ही करानी है. लेकिन याकूब मंसूरी की सोच इस के विपरीत थी. वह जेबा को पढ़ालिखा कर कुछ करने के लिए प्रेरित करने के साथसाथ हर तरह से उस की मदद भी कर रहे थे.

जेबा मंसूरी भी अपने वालिद के सपनों को साकार करने में पूरी ईमानदारी से जुटी थी. वह परीक्षा की तैयारी मेहनत से कर रही थी. वह पढ़ने में भी काफी होशियार थी. उसे पूरी उम्मीद थी कि इस साल वह गेट की परीक्षा पास कर लेगी. इस के लिए वह रातदिन मेहनत कर रही थी. लेकिन जो सपने उस ने बुने थे, उस पर समीर खान की नजर लग गई.

मैट्रीमोनियल साइट से हुई दोस्ती

जवान होती लड़की के लिए हर मांबाप की यही ख्वाहिश होती है कि उन की बेटी के लिए किसी भी तरह एक अच्छा सा लड़का मिल जाए. इस के लिए मांबाप लड़के वालों की तमाम तरह की मांगों को पूरी करने की कोशिश भी करते हैं. अच्छे रिश्ते के लिए ही याकूब मंसूरी ने शादी डाटकौम पर बेटी जेबा की प्रोफाइल बनाई थी.

उन्होंने ऐसा बेटी के सुखद भविष्य के लिए किया था. लेकिन हो गया उल्टा. शायद इसीलिए जहां शादी की शहनाई बजनी थी, वहां अब मातम पसरा था. समाज में आज इतना बदलाव आ गया है कि लड़केलड़कियां अपनी पसंद से शादी करने लगे हैं. इस में कोई बुराई भी नहीं है. क्योंकि जब लड़के और लड़की को जीवन भर साथ रहना है तो पसंद भी उन्हीं की होनी चाहिए.

society

इसीलिए अब परिचय सम्मेलन आयोजित किए जाने लगे हैं. इस से सब से बड़ा फायदा यह हुआ है कि लड़के के साथ लड़की को भी अपनी पसंद का जीवनसाथी मिल जाता है. चूंकि जमाना हाइटेक हो चुका है, इसलिए अब विवाह के लिए जीवनसाथी तलाशने का काम औनलाइन भी होने लगा है. कई प्लेटफार्म लोगों की शादी के लिए अच्छा जरिया बन गए हैं.

जेबा मंसूरी ने थाना अशोका गार्डन पुलिस को जो तहरीर दी थी, उस के अनुसार शादी के नाम पर उस के साथ धोखा हुआ था. जेबा ने नए साल में अपने लिए तरहतरह के जो अरमान पाले थे, नए साल के कुछ दिनों पहले ही उस के साथ जो हुआ, उस से उस के सारे अरमान एक ही झटके में चकनाचूर हो गए.

उस ने क्या सोचा था और उस के साथ क्या हो गया. शादी के नाम पर उस लड़के ने उस के साथ बहुत भयानक खेल खेला था, जिसे वह चाह कर भी इस जनम में नहीं भुला पाएगी. जेबा ने जो शिकायत दर्ज कराई है, उस के अनुसार उस के शादी के नाम पर धोखा खाने की कहानी कुछ इस प्रकार है—

जेबा प्रतियोगी परीक्षा गेट की तैयारी कर रही थी. जवान होती बेटी की शादी के लिए पिता याकूब मंसूरी ने शादी डाटकौम पर प्रोफाइल बना दी थी. शादी डाटकौम के जरिए शादी के लिए उस की प्रोफाइल पर एक रिक्वेस्ट आई. रिक्वेस्ट में दिए मोबाइल नंबर पर याकूब मंसूरी ने बात की.

इस बातचीत में उस ने अपना नाम समीर खान बताया था. उस ने बताया कि वह चेन्नई में सीबीआई में बतौर अंडरकवर डीएसपी नौकरी करता है. याकूब ने उस के घर वालों से बात करने की इच्छा जाहिर की तो उस ने अपने पिता अनवर खान का नंबर दे दिया. अनवर खान से समीर खान के बारे में जानकारी ली गई तो पता चला कि उन का बेटा समीर सीबीआई में अंडरकवर डीएसपी है. फिलहाल उस की पोस्टिंग चेन्नई में है.

बातचीत के लिए जेबा को ले गया होटल में

इस के बाद समीर ने याकूब मंसूरी से जेबा का मोबाइल नंबर यह कह कर मांग लिया कि वह उस से बात करेगा. अगर वह उसे पसंद आ गई तो वह इस जानपहचान को जल्दी ही शादी जैसे खूबसूरत रिश्ते में बदल देगा. याकूब मंसूरी ने समीर की बातों पर विश्वास कर के उसे जेबा का नंबर दे दिया.

अक्तूबर महीने में एक दिन जेबा के मोबाइल पर समीर ने फोन किया. दोनों में काफी देर तक बातें हुईं. दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने घर परिवार और विचारों के बारे में बताया. समीर ने ऐसी लच्छेदार बातें कीं कि जेबा उस के दिखाए सब्जबाग में फंस गई. इस के बाद अकसर उन की बातें होने लगीं. वाट्सऐप पर भी संदेशों का आदानप्रदान होने लगा.

ऐसे में ही एक दिन समीर ने भोपाल आ कर जेबा से मिलने की ख्वाहिश जाहिर की, जिसे वह मना नहीं कर सकी. समीर के भोपाल आने की बात पर एक ओर जहां जेबा खुश हो रही थी, वहीं दूसरी ओर अंजाना सा डर भी सता रहा था. क्योंकि किसी से फोन पर बात करना अलग बात होती है और आमनेसामने मिलना अलग.

लेकिन शादी का मामला था, इसलिए जेबा ने मिलना मुनासिब समझा. आखिर वह समीर को लेने भोपाल रेलवे स्टेशन पर पहुंच गई.  यह 22 नवंबर, 2017 की बात है. दोनों ने एकदूसरे को देखा तो पहली नजर में ही पसंद कर लिया.

बिछड़ा राही प्यार का : समीर के प्यार को क्यों ठुकरा दिया – भाग 1

अभी रात का अंधेरा पूरी तरह छंटा भी नहीं था कि गाजियाबाद शहर की कोतवाली के इसलामपुर  मोहल्ले में स्थित एक मकान से औरतों के जोरजोर से रोने की आवाजों ने आसपड़ोस के लोगों की नींद में खलल पैदा कर दी. जो लोग जल्दी उठ जाते थे, वह और जो अभी रजाइयों में दुबके नींद की आगोश में समाए हुए थे, हड़बड़ा कर अपनेअपने घरों से बाहर निकल आए.

यह रोने की आवाजें नन्हे ठेकेदार के घर से आ रही थीं. नन्हे ठेकेदार के घर में जरूर कोई अनहोनी हुई है, यह सोच कर लोग उस के दरवाजे पर जमा होने लगे. कुछ बुजुर्ग आगे बढ़े और उन्होंने नन्हे ठेकेदार के घर का दरवाजा थपथपा कर जोर से पूछा, ‘‘नन्हे, क्या हो गया है?’’

नन्हे ठेकेदार कुछ ही देर में दरवाजा खोल कर बाहर आया. उस के चेहरे पर आंसुओं की मोटीमोटी लकीरें थीं, जो रेंगती हुई उस के कुरते का अगला भाग भिगो रही थीं.

‘‘क्या हुआ नन्हे?’’ एक बुजुर्ग ने घबराए स्वर में पूछा, ‘‘तुम रो रहे हो…अंदर औरतें भी रोनापीटना कर रही हैं. हुआ क्या है भाई?’’

‘‘मेरी बेटी गुलफ्शा…’’ नन्हे इतना ही कह पाया तो उस की रुलाई फूट पड़ी. वह फफकफफक कर रोने लगा

अड़ोसपड़ोस के लोग अधूरे वाक्य का अर्थ निकालने का प्रयास करते हुए दरवाजे से अंदर घुस गए.

अंदर बरामदे में चारपाई पर 20 वर्षीया गुलफ्शा पीठ के बल पड़ी थी. उस का शरीर बेजान, बेहरकत था. देखने से ही समझ में आ रहा था कि उस की मौत हो चुकी है. चारपाई के पास घर की औरतें बैठीं छाती पीटपीट कर रो रही थीं. सिरहाने की तरफ नन्हे के दोनों बेटे तौहीद और मोहिद गमजदा खड़े थे.

नन्हे ठेकेदार भी अंदर आ गया. वह अभी भी रो रहा था.

‘‘यह सब कैसे और कब हुआ नन्हे?’’ एक व्यक्ति ने जो उम्र में नन्हे से बड़ा था, पूछा. उस के स्वर में हैरानी थी.

‘‘पता नहीं इब्राहिम, हम सब सोए हुए थे. गुलफ्शा भी अपनी अम्मी के कमरे में सो रही थी. वह बाहर बरामदे में कब और कैसे आ गई, उस के साथ क्या घटा, कुछ नहीं मालूम. सुबह मेरी बीवी शमशीदा गुसलखाने में जाने के लिए उठी तो उसे बरामदे की चारपाई पर गुलफ्शा मृत नजर आई. उस ने चीखते हुए मुझे उठाया फिर मेरे बेटों और बहू को. हम ने बाहर गुलफ्शा को चारपाई पर इस हालत में देखा तो सभी रोने लगे.’’ नन्हे ने भर्राई आवाज में बताया.

‘‘क्या गुलफ्शा की तबीयत खराब थी?’’ एक बुजुर्ग ने प्रश्न किया तो तुरंत एक महिला बोल पड़ी, ‘‘कल शाम को तो मैं ने गुलफ्शा को भलीचंगी हालत में देखा था.’’

‘‘हां, शाम को तो यह ठीक थी और खुश भी थी. हम ने इस के लिए एक लड़का देखा है, यह बात इस की अम्मी ने इसे बता दी थी. इसी से बहुत खुश लग रही थी यह. शाम को अपनी सहेली से मिलने चली गई थी.’’ नन्हे ने बताया.

‘‘पुलिस को इत्तिला दी क्या?’’ किसी ने टोका.

‘‘पुलिस का केस थोड़ी है,’’ पास खड़ा तौहीद जल्दी से बोला, ‘‘यह अटैक से मर गई लगता है.’’

‘‘मामला संदिग्ध है तौहीद. पुलिस को तो इत्तिला देनी ही होगी. वही जांचपड़ताल करवाएगी कि भलीचंगी लड़की अचानक क्यों मर गई.’’ इब्राहिम ने गंभीर स्वर में कहा.

‘‘हांहां, इब्राहिम ठीक कह रहे हैं.’’ 2-3 लोगों के स्वर उभरे तो नन्हे ने सिर हिला कर कह दिया, ‘‘जैसा आप लोगों को ठीक लगे.’’

तब तक नन्हे के भाई का लड़का मोहम्मद दाऊद वहां आ गया था. उस ने गुलफ्शा की लाश को देखा. लोगों की बातें सुनीं तो अपना मोबाइल निकाल कर कोतवाली का नंबर मिला दिया.

कुछ देर घंटी बजती रही फिर दूसरी ओर से किसी पुलिस वाले की रौबदार आवाज उस के कानों से टकराई, ‘‘थाना कोतवाली से मैं एसएचओ अमित कुमार खारी बोल रहा हूं. बताइए, कैसे फोन किया आप ने?’’