जब प्यार में आया ट्विस्ट – भाग 1

जैसेजैसे दिन ढलता जा रहा था, वैसेवैसे नीतू की चिंता भी बढ़ती जा रही थी. वह बारबार पति अरुण के मोबाइल फोन पर उस से संपर्क करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन फोन बंद होने की वजह से संपर्क नहीं हो पा रहा था. दरअसल, अरुण घर से यह कह कर निकला था कि वह जरूरी काम से किसान नगर तक जा रहा है, घंटे-2 घंटे बाद वापस आ जाएगा.

लेकिन उसे गए 5 घंटे बीत गए थे और वह वापस नहीं आया था. उस का फोन भी बंद था, जिस से नीतू की धड़कनें बढ़ गई थीं. यह 16 जुलाई, 2022 की बात है.

अरुण जब रात 10 बजे तक घर वापस नहीं आया तो नीतू ने जेठ कुलदीप को फोन कर घर बुला लिया. नीतू ने पति के घर वापस न आने की बात कुलदीप को बताई तो उस के माथे पर भी बल पड़ गए. कुलदीप ने अरुण के कुछ खास दोस्तों से फोन पर संपर्क किया, लेकिन अरुण के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. कुलदीप और नीतू रात भर जागते रहे और दरवाजे की तरफ टकटकी लगाए रहे.

सुबह हुई तो नीतू के अड़ोसपड़ोस वालों को भी जानकारी हुई कि अरुण बीती रात घर नहीं आया. पड़ोसियों ने नीतू को धैर्य बंधाया कि चिंता मत करो, अरुण जल्द ही घर वापस आ जाएगा, लेकिन नीतू को चैन कहां था. उस ने जेठ कुलदीप को साथ लिया और सुबह करीब 9 बजे थाना पनकी पहुंच गई.

थाने में उस समय एसएचओ अंजन कुमार सिंह मौजूद थे. नीतू ने उन्हें बताया कि वह पनकी कलां में अपने पति अरुण कुमार के साथ किराए के मकान में रहती है. उस के पति राजमिस्त्री हैं. कल दोपहर बाद किसी का फोन आने पर वह घर से चले गए थे. उस के बाद वापस घर नहीं आए. उसे किसी अनहोनी की आशंका है.

एसएचओ अंजन कुमार सिंह ने नीतू की बात गौर से सुनी. फिर शक के आधार पर अरुण की गुमशुदगी दर्ज कर ली तथा अरुण के बारे में कुछ खास जानकारी उस के भाई कुलदीप तथा नीतू से हासिल की. उन्होंने अरुण का मोबाइल फोन नंबर भी ले लिया. उस के बाद भरोसा दे कर नीतू को वापस घर भेज दिया.

अंजन कुमार सिंह ने अरुण की गुमशुदगी तो दर्ज कर ली, लेकिन उस का पता लगाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. इस की वजह यह थी कि अरुण कोई मासूम बच्चा तो था नहीं, जो उस के अपहरण की आशंका होती.

दूसरे वह राजमिस्त्री था. सोचा कि वह किसी अन्य राजमिस्त्री के घर जश्न में डूबा होगा. अकसर ऐसी दावतें होती रहती हैं. अरुण भी जश्न मना कर 1-2 दिन में अपने आप आ ही जाएगा.

लेकिन जब 2 दिन बीत जाने पर भी अरुण वापस घर नहीं आया तो पुलिस एक्टिव हुई. अंजन कुमार सिंह ने अरुण के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो एक ऐसा नंबर सामने आया, जिस पर अरुण अकसर बात करता था.

इस मोबाइल नंबर के बारे में जानकारी जुटाई गई तो पता चला कि यह नंबर कानपुर देहात जिले के थाना गजनेर के सपई गांव की युवती सीमा का है.

एसएचओ अंजन कुमार सिंह तब पुलिस टीम के साथ सपई गांव पहुंचे और सीमा से पूछताछ की. सीमा ने बताया कि वह राजमिस्त्री अरुण कुमार को जानती है. अरुण की उस के गांव में रिश्तेदारी है. रिश्तेदार के घर आतेजाते उस की मुलाकात अरुण से हुई थी. मुलाकातें दोस्ती में बदलीं, फिर दोस्ती प्यार में बदल गई.

प्यार परवान चढ़ा तो उन के बीच की दूरियां भी खत्म हो गईं और उन का शारीरिक रिश्ता बन गया. लेकिन उन के प्यार में दरार तब पड़ी, जब अरुण ने उसे धोखा दे कर किसी और लड़की से शादी रचा ली. शादी के बाद उस ने अरुण से दूरियां बना ली थीं.

‘‘लेकिन तुम्हारी फोन पर तो उस से बात होती रहती थी,’’ एसएचओ ने सीमा से पूछा.

‘‘हां सर, फोन पर बात होती रहती थी,’’ सीमा ने जवाब दिया.

‘‘16 जुलाई, 2022 की दोपहर बाद क्या तुम ने अरुण से बात की थी?’’ अंजन कुमार सिंह ने पूछा.

सीमा कुछ क्षण सोचती रही फिर बोली, ‘‘सर, उस रोज मैं ने तो अरुण से बात नहीं की थी, लेकिन संदीप कश्यप ने मेरे फोन से अरुण से बात की थी. वह उसे मकान का ठेका और एडवांस पैसे दिलाने की बात कर रहा था.’’

‘‘यह संदीप कौन है? उस ने तुम्हारे फोन से अरुण को फोन क्यों किया?’’

‘‘सर, संदीप इसी गांव का रहने वाला है. हमारी उस से दोस्ती है. कभीकभी वह उस से मिलने घर आ जाता है. उस दिन वह उस से मिलने घर आया था. तभी उस ने उस के फोन से अरुण से बात की थी. अरुण की दोस्ती संदीप से है. उस का संदीप के घर आनाजाना बना रहता है. लेकिन सर, अरुण के विषय में आप मुझ से क्यों पूछ रहे हैं?’’ सीमा बोली.

‘‘इसलिए कि अरुण को किसी ने फोन कर बुलाया. उस के बाद अरुण घर नहीं पहुंचा. उसी का पता हम लगा रहे हैं.’’ अंजन कुमार सिंह ने सीमा को बताया.

यह सुनते ही सीमा ने सिर पकड़ लिया. उस के मन में तरहतरह की आशंकाएं उमड़ने लगीं.

सीमा ने जो जानकारी दी थी, उस से एक बात साफ थी कि मामला अवैध रिश्तों का है. और अवैध रिश्तों में कुछ भी संभव है. अत: संदीप कश्यप पुलिस की निगाह में चढ़ा तो एसएचओ अंजन कुमार सिंह उस के घर जा पहुंचे.

वह पुलिस जीप से जैसे ही उतरे, वैसे ही चबूतरे पर बैठा एक युवक तेजी से भागा. पुलिस ने पीछा कर कुछ दूरी पर उसे दबोच लिया.

उस युवक ने अपना नाम अमित कुमार कश्यप उर्फ गुड्डू निवासी गांव सपई जनपद कानपुर देहात बताया. दबिश में संदीप कश्यप तो नहीं मिला, लेकिन शक होने पर पुलिस अमित उर्फ गुड्डू को पूछताछ के लिए थाना पनकी ले आई.

अफसाना एक दीपा का – भाग 1

34 वर्षीय दीपा वर्मा का भरापूरा गदराया बदन किसी भी मर्द की नीयत बिगाड़ने के लिए काफी था. वजह यह कि दीपा की आंखों में पुरुषों के लिए एक आमंत्रण सा होता था. जो पुरुष इस आमंत्रण को समझ स्वीकार कर लेता था, वह फिर उस के हुस्न और अदाओं से खुद को आजाद नहीं कर पाता था.

ऐसा ही कुछ उस से उम्र में 8-10 साल छोटे धर्मेंद्र गहलोत के साथ हुआ था. धर्मेंद्र प्रसिद्ध धर्मनगरी उज्जैन के देवास रोड पर अपनी पत्नी के साथ रहता था. पेशे से मांस व्यापारी इस युवक की जिंदगी सुकून से गुजर रही थी. अब से कोई 3 साल पहले वह दीपा से मिला था तो पहली नजर में ही उस पर फिदा हो गया था.

दीपा को देख कर धर्मेंद्र को यह तो समझ आ गया था कि वह शादीशुदा है. उसके गले में लटका मंगलसूत्र और मांग का सिंदूर उस के शादीशुदा होने की गवाही दे रहे थे.

उज्जैन का फ्रीगंज इलाका रिहायशी भी है और व्यावसायिक भी, इसलिए जो भी पहली दफा उज्जैन जाता है वह महाकाल और दूसरे मंदिरों के नामों के साथसाथ फ्रीगंज नाम के मोहल्ले से भी वाकिफ हो जाता है. शहर के लगभग बीचोंबीच बसे इस इलाके की रौनक देखते ही बनती है.

इसी इलाके में दीपा की साडि़यों पर फाल लगाने और पीको करने की छोटी सी दुकान थी, जिस से उसे ठीकठाक आमदनी हो जाती थी. करीब 3 साल पहले एक दिन धर्मेंद्र की पत्नी दीपा को अपनी साड़ी में फाल लगाने और पीको करने के लिए दे आई थी. उसे वहां से साड़ी लाने का टाइम नहीं मिल पा रहा था, इसलिए उस ने साड़ी लाने के लिए अपने पति धर्मेंद्र को भेज दिया. जब धर्मेंद्र दीपा की दुकान पर पहुंचा तो बेइंतहा खूबसूरत दीपा को देखता ही रह गया.

दीपा में कुछ बात तो थी, जो उसे देख धर्मेंद्र का दिल जोर से धड़कने लगा था. सामान्यत: बातचीत के बाद साड़ी ले कर जब उस ने दीपा को पैसे दिए तो उस की हथेली एक खास अंदाज में दबाने से वह खुद को रोक नहीं पाया.

धर्मेंद्र ने उस की हथेली दबा तो दी थी, लेकिन उसे इस बात का डर भी था कि कहीं दीपा इस बात का बुरा मान कर उसे झिड़क न दे.

दीपा ने इस हरकत पर कोई ऐतराज तो नहीं जताया बल्कि हंसते हुए यह जरूर कह दिया, ‘‘बड़े हिम्मत वाले हो जो पहली ही मुलाकात में हाथ दबा दिया.’’

इस जवाब से धर्मेंद्र का डर तो दूर हो गया पर दीपा के इस अप्रत्याशित जवाब से वह झेंप सा गया था. उसे यह समझ आ गया था कि अगर थोड़ी सी कोशिश की जाए तो यह खूबसूरत महिला जल्द ही उस के पहलू में आ जाएगी. कहने भर की बात है कि औरतें पहली नजर में मर्द की नीयत ताड़ जाती हैं पर यहां उलटा हुआ था. पहली ही नजर में धर्मेंद्र दीपा की नीयत ताड़ गया था.

धर्मेंद्र आया दीपा की जिंदगी में

दुकान से जातेजाते उस ने दीपा का मोबाइल नंबर ले लिया और उसे भी अपना नंबर दे दिया था. दीपा के हुस्न में खोए धर्मेंद्र को इस वक्त यह समझाने वाला कोई नहीं था कि वह कितनी बड़ी आफत को न्यौता दे रहा है. यही बात दीपा पर भी लागू हो रही थी, जो धर्मेंद्र के आकर्षक चेहरे और गठीले कसरती बदन पर मर मिटी थी.

जल्द ही दोनों के बीच मोबाइल पर लंबीलंबी बातें होने लगीं. ये बातें निहायत ही रोमांटिक होती थीं. जिस में यह तय कर पाना मुश्किल हो जाता है कि कौन किस को बहका और उकसा रहा है. दोनों शादीशुदा और खेलेखाए थे, इसलिए जल्द ही एकदूसरे से इतने खुल गए कि मिलने के लिए बेचैन रहने लगे.

सैक्सी बातें करतेकरते दोनों का सब्र जवाब देने लगा था. लेकिन पहल कौन करे, इस पर दोनों ही संकोच कर रहे थे. धर्मेंद्र ने पहल नहीं की तो एक दिन दीपा ने ही उसे फोन पर आमंत्रण भरा ताना मारा, ‘‘फोन पर ही सब कुछ करते रहोगे या फिर कभी मिलोगे भी.’’

बात अंधा क्या चाहे दो आंखें वाली थी. सो धर्मेंद्र ने मौका न गंवाते हुए कहा, ‘‘आ जाओ, आज ही मिलते हैं महाकाल मंदिर के पास.’’

इस मासूमियत पर दीपा जोर से हंस कर बोली, ‘‘मंदिर में क्या मुझ से भजन करवाना है. एक काम करो, तुम मेरे घर आ जाओ.’’ दीपा ने सिर्फ कहा ही नहीं बल्कि उसे अपने घर का पता भी दे दिया.

अब कहनेसुनने और सोचने को कुछ नहीं बचा था. धर्मेंद्र के तो मानो पर उग आए थे. वह बिना वक्त गंवाए दीपा के घर पहुंच गया, जहां वह सजसंवर कर उस का इंतजार कर रही थी. दरवाजा खुलते ही उस ने दीपा को देखा तो अपने होश खो बैठा. एक निहायत खूबसूरत महिला उस पर अपना सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार थी. वह भी बगैर किसी मांग या खुदगर्जी के. यह खयाल ही धर्मेंद्र को और मर्द बनाए दे रहा था.

दरवाजा बंद होते ही दोनों एकदूसरे से कुछ इस तरह लिपटे कि लंबे वक्त तक अलग नहीं हुए और जब अलग हुए तो एक अलग दुनिया में थे, जहां भलाबुरा, नैतिकअनैतिक, जायजनाजायज कुछ नहीं होता. होती है तो बस एक जरूरत जो रहरह कर सिर उठाती है.

चोरीछिपे बनाए गए नाजायज संबंधों का लुत्फ ही कुछ अलग होता है, यह बात दीपा और धर्मेंद्र की हालत देख कर समझी जा सकती थी. जब भी दीपा का मन होता, वह धर्मेंद्र को फोन कर के बुला लेती थी.

कुछ महीनों बाद धर्मेंद्र ने दीपा की निजी जिंदगी में भी दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी. उसे हैरानी इस बात की थी कि कोई शादीशुदा औरत कैसे अपने पति के होते हुए उस की आंखों में धूल झोंक कर संबंध बना लेती है. इस दौरान धर्मेंद्र ने दीपा पर काफी पैसा लुटाया था.

दीपा का झूठ आया सामने

अपनी निजी जिंदगी से ताल्लुक रखते सवालों पर दीपा ज्यादा दिन खामोश नहीं रह पाई और उस ने आधी सच्ची और आधी झूठी कहानी धर्मेंद्र को यह बताई कि उस के पति का नाम दिलीप शर्मा है, जो नजदीक के गांव में खेती करते हैं और कांग्रेस पार्टी से जुड़े हुए हैं. जाने क्यों धर्मेंद्र को दीपा झूठ बोलती लगी. अब उस के सामने दिक्कत यह थी कि वह अपनी मरजी या जरूरत के मुताबिक दीपा के पास नहीं जा सकता था क्योंकि उस का पति दिलीप कभी भी आ सकता था.

दीपा का बोला हुआ जो झूठ धर्मेंद्र के दिलोदिमाग में खटक रहा था, वह जल्द ही सामने आ गया. पता चला कि दिलीप शर्मा उस का असली पति नहीं है, बल्कि वह दिलीप की रखैल है, जिसे आजकल की भाषा में लिवइन कहा जाता है. यह खुलासा धर्मेंद्र के लिए एक तरह का झटका ही था, लेकिन जल्द ही इस का भी तोड़ निकल आया.

इस दिलचस्प तोड़ या समाधान को समझने के पहले दीपा की गुजरी जिंदगी जानना जरूरी है, जिसे देख कर कहा जा सकता है कि वह एक बदकिस्मत औरत थी. हालांकि इस बदकिस्मती की एक हद तक जिम्मेदार भी वही खुद थी.

उज्जैन के मशहूर काल भैरव मंदिर से हर कोई वाकिफ है क्योंकि वहां शराब का प्रसाद चढ़ता है. काल भैरव जाने वाला एक रास्ता जेल रोड कहलाता है, जहां जेल बनी हुई है. जेल अफसर भी यहां बनी कालोनी में रहते हैं. दीपा इसी जेल रोड की ज्ञान टेकरी के एक मामूली से परिवार में पैदा हुई थी.

कुदरत ने दीपा पर मेहरबान होते हुए उसे गजब की खूबसूरती बख्शी थी. उसे एक ऐसा रंगरूप मिला था, जिसे पाने के लिए तमाम महिलाएं तरसती हैं.

प्रेमिका का छलिया प्रेमी से इंतकाम – भाग 1

उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले का एक बड़ी आबादी वाला कस्बा है भोगांव. इसी भोगांव कस्बे के भीमनगर मोहल्ले में मोहरपाल सिंह सपरिवार रहते थे. उन के परिवार में पत्नी विमला के अलावा 2 बेटे नीरज, सूरज तथा एक बेटी दिव्या उर्फ अंजलि थी. मोहरपाल सिंह गल्ले का व्यापार करते थे. उसी व्यापार से वह परिवार का भरणपोषण करते थे. वह एक इज्जतदार व्यक्ति थे. उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी.

मोहरपाल सिंह तीनों बच्चों में दिव्या उर्फ अंजलि सब से छोटी थी. दिव्या गोरी, तीखे नाकनक्श और बड़ीबड़ी आंखों वाली खूबसूरत लड़की थी. जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही उस की शोखियां एवं चंचलता और बढ़ गई थी. उस ने नैशनल पोस्ट ग्रैजुएट कालेज से बीए की डिग्री हासिल कर ली थी. वह सरकारी नौकरी पाना चाहती थी. इस के लिए उस ने तैयारी भी शुरू कर दी थी.

लेकिन एक ग्रामीण कहावत है कि जब बेटी हुई सयानी, फिर पेटे नहीं समानी. मोहरपाल सिंह और उन की पत्नी विमला को भी जवान बेटी दिव्या उर्फ अंजलि की शादी की चिंता सताने लगी थी. वह उस के लिए घरवर ढूंढने लगे थे. कुछ समय बाद एक खास रिश्तेदार के माध्यम से उन्हें एक लड़का देशदीपक पसंद आ गया.

देशदीपक के पिता प्रमोद कुमार, फिरोजाबाद जिले के गांव दयापुर में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी शिवाला देवी के अलावा 2 बेटे देशराज व देशदीपक थे. वह बड़े काश्तकार थे.

बड़े बेटे देशराज की मौत हो चुकी थी. छोटा बेटा देशदीपक अभी कुंवारा था. वह बड़ा ही होनहार था. वर्ष 2018 में वह उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही पद पर भरती हुआ था. हाथरस में प्रशिक्षण पाने के बाद 28 जनवरी, 2019 को उस की पहली तैनाती कानपुर के बिल्हौर थाने में हुई थी.

चूंकि प्रमोद कुमार की आर्थिक स्थिति मजबूत थी और उन का बेटा सरकारी मुलाजिम भी था. इसलिए मोहरपाल सिंह ने देशदीपक को अपनी बेटी दिव्या के लिए पसंद कर लिया. दिव्या और देशदीपक ने भी एकदूसरे को देख कर अपनी सहमति जता दी. उस के बाद 22 अप्रैल, 2022 को दिव्या उर्फ अंजलि का विवाह देशदीपक के साथ धूमधाम से हो गया.

नईनवेली दुलहन बन कर अंजलि ससुराल पहुंची तो खुशियां पैर में घुंघरू बांध कर छमछम कर नाचने लगीं. अंजलि हृष्टपुष्ट स्मार्ट पति पा कर जहां खुश थी, वहीं देशदीपक भी खूबसूरत बीवी पा कर अपने भाग्य पर इतरा उठा था. शिवाला देवी व प्रमोद कुमार भी सभ्य, सुशील व पढ़ीलिखी बहू पा कर खुश थे.

ग्रामीण परिवेश में नईनवेली दुलहन को मर्यादाओं में रहना पड़ता है. जैसे बड़ों के सामने घूंघट डाल कर जाना. नजरें झुका कर धीमी आवाज में बातें करना. झुक कर पैर छूना तथा पति से सब के सामने न बतियाना आदि. अंजलि भी इन मर्यादाओं का पालन करती थी. रात में तो वह अपने कमरे में पति से खुल कर बतियाती थी, लेकिन दिन में उसे सावधानी बरतनी पड़ती थी.

लगभग एक महीने तक अंजलि अपने पति देशदीपक के साथ खूब मौजमस्ती से रही, लेकिन उस के बाद पति की छुट्टियां खत्म हुईं तो वह वापस चला गया. तब अंजलि का दिन तो कामकाज में कट जाता था, लेकिन रात काटे नहीं कटती थी. हालांकि वह दिनरात में कई बार मोबाइल फोन पर पति से बात करती थी और पूछती थी, ‘तुम कहां हो? खाना खाया कि नहीं? अपने कमरे पर हो या ड्यूटी पर?’ पति रूम पर होता तो वह वीडियो कालिंग कर उस से घंटों बतियाती और रस भरी बातें करती.

देशदीपक बिल्हौर थाने से 500 मीटर की दूरी पर ब्रह्मनगर मोहल्ले में रेस्टोरेंट संचालक रमेशचंद्र प्रजापति के मकान में किराए पर रहता था. वह अपनी नईनवेली पत्नी से बहुत प्यार करता था. वह जब रूम पर होता तो वीडियो कालिंग कर उस से खूब बतियाता था.

बातचीत के दौरान अंजलि भावुक होती तो वह कहता, ‘‘अरे पगली, तू रोती क्यों है. जैसे ही छुट्टी मिलेगी, मैं तेरे पास आ जाऊंगा. तू परेशान मत हो.’’

हर रोज की तरह पहली जून, 2022 को भी अंजलि ने दोपहर साढ़े 12 बजे पति से फोन पर बात की और पूछा कि खाना अभी खाया या नहीं. इस पर उस ने जवाब दिया कि वह खाना खाने होटल पर जा रहा है. पति से बातचीत करने के बाद अंजलि घरेलू काम में व्यस्त हो गई.

शाम 3 बजे जब अंजलि आराम करने कमरे में पहुंची तो उस ने फिर से पति को काल लगाई लेकिन इस बार देशदीपक ने काल रिसीव नहीं की. कुछ देर बाद अंजलि ने फिर काल की तो फोन बंद होने का संदेश मिला. अंजलि ने सोचा कि शायद वह खाना खा कर सो गए होंगे और फोन स्विच औफ कर लिया होगा.

पलंग पर लेटी अंजलि कुछ देर करवटें बदलती रही. लेकिन जब उसे सुकून नहीं मिला तो उस ने फिर से मोबाइल फोन पर पति से संपर्क करने का प्रयास किया. पर वह असफल रही. पति का मोबाइल फोन इस बार भी बंद मिला.

अंजलि समझदार भी थी और धैर्यवान भी. लेकिन जब उस का धैर्य जवाब दे गया तो वह अपनी सास के कमरे में जा पहुंची और बोली, ‘‘मम्मी, मैं उन को कई बार काल कर चुकी हूं, लेकिन उन का फोन बंद है. मेरा तो जी घबरा रहा है.’’

सास शिवाला देवी बहू के सिर पर हाथ रख कर बोलीं, ‘‘धैर्य रखो बहू. पुलिस की नौकरी है. कहीं व्यस्त होगा. फोन बंद कर लिया होगा. तुम अच्छा सोचो. बुरे खयाल मन में मत लाओ.’’

शिवाला देवी ने बहू को धैर्य तो बंधा दिया था, लेकिन वह स्वयं भी घबरा गई थीं. शाम 5 बजे जब पति प्रमोद कुमार घर आए तो उन्होंने सारी बात उन्हें बताई. इस पर प्रमोद कुमार ने तुरंत बेटे को काल लगाई. लेकिन उस का फोन बंद था. अंजलि भी काल पर काल कर रही थी. पर सफलता नहीं मिल रही थी.

अब तो ज्योंज्यों समय बीतता जा रहा था, त्योंत्यों घर के लोगों की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं. रात 12 बजे तक प्रमोद कुमार 25-30 बार काल कर चुके थे. लेकिन हर बार एक ही संदेश मिल रहा था कि आप जिस नंबर से संपर्क करना चाहते हैं, वह स्विच्ड औफ या बंद है या फिर नेटवर्क एरिया से बाहर है.

प्रमोद कुमार के एक रिश्तेदार नीरज बाबू थे. वह बिल्हौर थाने में एसआई पद पर तैनात थे. सुबह 4 बजे उन्होंने नीरज बाबू के मोबाइल नंबर पर काल की. प्रमोद कुमार ने भर्राई आवाज में कहा, ‘‘नीरज बाबू, कल दोपहर बाद से देशदीपक से उस के मोबाइल फोन पर बात नहीं हो पा रही है. उस का फोन बंद है. आप पता करो कि वह कमरे पर है या नहीं. हम सब को घबराहट हो रही है.’’

‘‘आप चिंता न करें. हम अभी कमरे पर जा कर उस का पता लगाते हैं,’’ नीरज बाबू ने कहा.

2 जून, 2022 की सुबह 5 बजे एसआई नीरज बाबू एक सिपाही के साथ ब्रह्मनगर स्थित देशदीपक के रूम पर पहुंचे तो उस के कमरे के बाहर ताला लटक रहा था और अंदर कमरे में पंखा चलने की आवाज सुनाई दे रही थी. सिपाही रामवीर ने खिड़की से झांक कर देखा तो उस के मुंह से चीख निकल गई.

चारपाई पर सिपाही देशदीपक का खून से तरबतर शव पड़ा था. नीरज बाबू ने तत्काल सिपाही देशदीपक की हत्या की खबर उस के पिता प्रमोद कुमार तथा पुलिस महकमे को दी.

सिपाही देशदीपक की हत्या की खबर से पुलिस महकमे में सनसनी फैल गई. सूचना पाते ही बिल्हौर के थानाप्रभारी अरविंद कुमार सिंह तथा एसएसआई आलोक तिवारी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पहुंच गए. उन के पहुंचने के कुछ देर बाद ही एसपी (आउटर) तेजस्वरूप सिंह, डीएसपी राजेश कुमार तथा एडीजी (कानपुर जोन) भानु भास्कर भी आ गए.

डर के शिकंजे में : विनीता को क्यों देनी पड़ी जान – भाग 1

4जून, 2019 की बात है. उस समय सुबह के यही कोई 10 बजे थे. नवी मुंबई के उपनगर पनवेल के इलाके में सुकापुर-मेथर्न रोड पर स्थित वीरपार्क होटल के मैनेजर गणेशबाबू अपने केबिन में बैठे थे. तभी होटल के एक वेटर ने आ कर उन से जो कहा, उसे सुन कर वह चौंक उठे.

वेटर ने उन्हें बताया कि कमरा नंबर 104 के कस्टमर ने दरवाजा अंदर से बंद कर रखा है. वह दरवाजा नहीं खोल रहा, जबकि उस ने कई बार दरवाजा भी खटखटाया और आवाजें भी दीं.

कमरे के अंदर कस्टमर था और वह दरवाजा नहीं खोल रहा था, यह बात चौंकाने वाली थी. तभी मैनेजर को याद आया कि कमरा नंबर-104 के कस्टमर को तो अब तक चैकआउट कर देना चाहिए था. क्योंकि उस ने कमरा सिर्फ 12 घंटे के लिए बुक किया था. फिर ऐसा क्या हुआ कि उस ने न तो कमरा खाली किया और न ही कोई सूचना दी.

मैनेजर ने कमरे के इंटरकौम पर उस कस्टमर से संपर्क करने की कोशिश की. लेकिन कई बार कोशिश करने के बाद भी जब कस्टमर ने कमरे में रखा इंटरकौम नहीं उठाया तो वह परेशान हो गए और स्वयं उस वेटर को ले कर कमरा नंबर 104 के सामने जा पहुंचे. उन्होंने कई बार कमरे की घंटी बजाई. साथ ही आवाज दे कर भी कमरे के अंदर ठहरे कस्टमर की प्रतिक्रिया जानने की कोशिश की, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

आखिरकार उन्होंने कमरे की मास्टर चाबी मंगा कर कमरे का दरवाजा खोला. लेकिन कमरे के अंदर का दृश्य देख कर उन के होश उड़ गए. कमरे में 2 लाशें थीं, उन में एक शव महिला का था जो बिस्तर पर था और दूसरा पुरुष का, जो पंखे से झूल रहा था.

मामला संगीन था, अत: उन्होंने बिना देर किए इस की जानकारी खांडेश्वर पुलिस थाने के प्रभारी नागेश मोरे को दे दी. मामला 2 लोगों की मौत का था, इसलिए थानाप्रभारी ने मामले की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम को भी दे दी और इंसपेक्टर संदीप माने, वैभव लोटे और सहायक महिला पुलिस इंसपेक्टर सुप्रिया फड़तरे को साथ ले कर घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

जब तक पुलिस होटल वीरपार्क पहुंची तब तक होटल के कर्मचारी और वहां ठहरे कस्टमर कमरे के बाहर जमा हो चुके थे. होटल के मैनेजर गणेशबाबू ने थानाप्रभारी को बताया कि यह जोड़ा शाम के करीब 8 बजे आया था और सुबह 8 बजे तक उन्हें कमरा खाली कर देना था, मगर ऐसा नहीं हुआ. 2 घंटे और निकल जाने के बाद जब होटल के वेटर ने दरवाजा खटखटाया तो कोई जवाब नहीं मिला. मास्टर चाबी से दरवाजा खोला तो दोनों इसी अवस्था में मिले.

इस के बाद पुलिस कमरे के अंदर गई. पूरे कमरे का सरसरी तौर पर निरीक्षण किया. पुलिस ने मृत व्यक्ति के शव को पंखे से नीचे उतारा. पहले तो उन्हें लगा कि दोनों ने ही आत्महत्या की होगी, लेकिन जब दोनों शवों की बारीकी से जांच की तो मामले की हकीकत कुछ और ही निकली.

दोनों लाशें हत्या और आत्महत्या की तरफ इशारा कर रही थीं. महिला की उम्र यही कोई 30-32 साल के आसपास थी, जबकि पुरुष की उम्र 45-50 के करीब थी. महिला का चेहरा झुलसा हुआ था और गले पर निशान था.

होटल का रजिस्टर चैक करने पर पता चला कि महिला का नाम वनिता चव्हाण और पुरुष का नाम रावसाहेब दुसिंग था. आमतौर पर ऐसे लोग अपना नामपता सही नहीं लिखवाते, लेकिन होटल के मैनेजर ने बताया कि उन की आईडी में भी यही नाम है.

इस के बाद पुलिस ने आईडी ले कर उन के परिवार वालों को मामले की जानकारी दे दी.

उसी दौरान नवी मुंबई के डीसीपी अशोक दुधे और एसीपी रवि गिड्डे भी घटनास्थल पर पहुंच गए. उन के साथ क्राइम ब्रांच और फोरैंसिक टीम भी थी. फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल पर सबूत जुटाने शुरू कर दिए. टीम का काम खत्म होने के बाद पुलिस ने घटनास्थल की बारीकी से जांच की.

कमरे में नायलौन की रस्सी के अलावा 2 बोतल पैट्रोल और एक लीटर किसी कैमिकल का खाली डब्बा मिला.

रावसाहेब ने नायलौन की रस्सी में पंखे से लटक कर आत्महत्या की थी. जबकि कैमिकल का उपयोग वनिता का चेहरा झुलसाने में किया गया था. लेकिन ये लोग पैट्रोल क्यों ले कर आए थे, यह पता नहीं चला. पुलिस यही मान रही थी कि रावसाहेब शायद अपनी साथी महिला की हत्या कर सबूत नष्ट करना चाहता होगा, लेकिन उसे इस का मौका नहीं मिला था.

पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई पूरी करने के बाद दोनों शव पोस्टमार्टम के लिए पनवेल के रूरल अस्पताल भेज दिए. अब तक इस मामले की खबर मृतकों के परिवार वालों को मिल चुकी थी. वे रोतेबिखलते खांडेश्वर थाने पहुंच गए.

थानाप्रभारी ने अस्पताल ले जा कर दोनों शव दिखाए तो उन्होंने उन की शिनाख्त कर ली. बाद में पोस्टमार्टम होने पर शव घर वालों को सौंप दिए गए.

दोनों मृतकों के परिजनों से की गई पूछताछ और जांच के बाद मामले की जो कहानी सामने आई, उस का सार कुछ इस प्रकार था—

वनिता चव्हाण सुंदर व महत्त्वाकांक्षी महिला थी. उस का पुश्तैनी घर महाराष्ट्र के जनपद बीड़ के एक छोटे से गांव में था. मगर उस का परिवार रोजीरोटी की तलाश में मुंबई के उपनगर चैंबूर वाशी में आ कर बस गया था.

वनिता का बचपन मुंबई के खुशनुमा माहौल में बीता था. उस की शिक्षादीक्षा सब मुंबई में ही हुई थी. उस के पिता की मृत्यु हो गई थी. घर में बड़ा भाई और मां थी. घर की पूरी जिम्मेदारी उस के बड़े भाई के कंधों पर थी. इसीलिए भाई ने सोचा कि वह पहले बहन वनिता की शादी करेगा. उस के बाद अपने विषय में सोचेगा.

चाहत का वो अंधेरा मोड़ – भाग 1

राजस्थान के जिला हनुमानगढ़ के गांव बड़ोपल का रहने वाला युवा राजेंद्र बावरी बीते 3-4 साल से फोटोग्राफर का काम कर रहा था. हालांकि उस के नैननक्श साधारण थे, पर उस की व्यावहारिकता, बौडी लैंग्वेज व खिलखिला कर हंसने की आदत उसे निखरानिखरा रूप देती थी.

राजेंद्र ने माणकथेड़ी गांव में फोटोग्राफी की दुकान खोल रखी थी, पर वह मोबाइल फोटोग्राफी को ज्यादा पसंद करता था. रंगीन तबीयत का धनी राजेंद्र विपरीत लिंगी को पहली मुलाकात में ही दोस्त बना लेता था. शादियों में उस के पास एडवांस बुकिंग रहती थी.

अक्तूबर 2021 में राजेंद्र बावरी नजदीक के एक गांव में विवाह समारोह की फोटो कवरेज के लिए आया हुआ था. वधू वक्ष से जानपहचान व सजातीय होने के कारण राजेंद्र बेहिचक कैमरा उठाए अंदरबाहर आजा रहा था. बारात दरवाजे पर पहुंच चुकी थी.

रिबन कटाई की रस्म होने को थी. गले में कैमरा लटकाए राजेंद्र ने एक स्टूल पर खड़े हो कर अपनी पोजीशन ले ली थी. घोड़ी से उतर कर दूल्हा मुख्य दरवाजे पर पहुंच चुका था. अंदर से वधू के परिजन महिलाओं व सहेलियों का समूह भी दरवाजे पर आ जुटा था.

प्लेट में कैंची ले कर आई युवती के चेहरे पर टपक रहे नूर व लावण्य को देखते ही राजेंद्र सुधबुध खो बैठा. क्रीम कलर के प्लाजो सूट (गरारा शरारा) में सजधज के वहां पहुंची युवती का गेहुंआ रंग भी दमक रहा था.

राजेंद्र ने महसूस किया कि युवती पर पड़ने वाली फ्लैश लाइट दोगुनी रिफ्लेक्ट हो रही थी. युवती की मांग भरी हुई थी. कैमरे के क्लिक स्विच पर गई राजेंद्र की अंगुली एकबारगी रुक सी गई थी. महिलाओं का झुंड लंबाचौड़ा था. पर राजेंद्र के कैमरे के फोकस में वही युवती बारबार आ रही थी.

युवती ने फ्लैश की बौछारों को महसूस कर लिया था. रिबन कटाई रस्म संपन्न होते ही युवतियां आंगन में लौट गईं.

स्टूल से उतर कर राजेंद्र भी कैमरा उठाए आंगन की तरफ बढ़ा चला था. बाहर डीजे पर ‘जादूगर सैयां, छोड़ मेरी बहियां…’ गाना वातावरण में मादकता बढ़ा रहा था. सामने आ रही युवती को देखते ही राजेंद्र का चेहरा दमक उठा था और अंगुली क्लिक कर चुकी थी. फ्लैश के प्रकाश में नहाई युवती मुड़ी और उस के सामने आ कर प्रश्न दाग दिया, ‘‘आप ने मेरी फोटो क्यों खींची?’’

‘‘मैडम, दिल के हाथों मजबूर हो गया था,’’ राजेंद्र ने कहा.

‘‘अपने दिल व दिमाग को काबू रखो. आप का दिल तो मेरा मोबाइल नंबर भी मांग सकता है. अगर ऐसा किया तो सीखचों के पीछे भिजवा दूंगी, समझे?’’ बनावटी गुस्सा जाहिर करते हुए युवती ने कहा.

राजेंद्र भी कहां चूकने वाला था. जेब से कलम निकाल कर अपनी हथेली आगे करते हुए कहा, ‘‘बंदे को राजेंद्र कहते हैं. प्यार से लोग मुझे राजू कहते हैं. मैं माणकथेड़ी में दुकान करता हूं. प्लीज, नंबर लिख दो. दिल नंबर के लिए बेकाबू हो रहा है.’’

माणकथेड़ी का नाम सुनते ही चेहरे पर चौंकने वाले भावों के साथ खुशी दमक उठी थी. युवती ने फुरती से कलम पकड़ कर अपना नंबर राजेंद्र की हथेली पर लिख दिया.

‘‘यह नंबर हथेली पर नहीं, अब दिल में छप गया है.’’ राजेंद्र मुसकराते हुए बोला.

‘‘सिर्फ नंबर या मैं भी… मैं माणकथेड़ी की बहू हूं.’’ कह कर युवती आंगन में लौट गई.

एकांत में हुए इस वार्तालाप व संक्षिप्त मुलाकात ने दोनों के दिलोदिमाग में खुशी की हिलोरें भर दी थीं.

शादी संपन्न होते ही राजेंद्र माणकथेड़ी लौट आया था. उसी शाम राजेंद्र ने युवती को वीडियो काल लगा दी. अंजान नंबर को देखते ही युवती ने काल रिसीव कर ली. वह बोली, ‘‘राजेंद्र बाबू, अभी बिजी हूं. रात के 10 बजे मैं आप को काल करूंगी.’’

कहने के साथ ही युवती ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

राजेंद्र व युवती ने एकदूसरे के नंबर दिल में उतारने के साथ ही दोस्त व सहेली के फरजी नाम से सेव कर लिए थे. राजेंद्र अपने फन में माहिर था. वहीं युवती भी इस फन में इक्कीस थी.

2 अंजान युवकयुवती एक संक्षिप्त मुलाकात के बाद घनिष्ठता के बंधन में बंध चुके थे. 2 दिन बाद युवती भी माणकथेड़ी लौट आई थी.

युवती का नाम गोपी (काल्पनिक) था. वह रावतसर तहसील के गांव 12 डीडब्ल्यूडी निवासी सोहनलाल की बेटी थी और इसी साल उस की माणकथेड़ी के धोलूराम बावरी से शादी हुई थी. मैट्रिक पास गोपी के ख्वाब ऊंचे थे.

अपने किए वादे के अनुसार, रात के 10 बजे गोपी ने राजेंद्र को फोन किया. दोनों मोबाइल पर लंबे समय तक बतियाते रहे, ‘‘गोपी, तुम्हें विधाता ने मेरे लिए बनाया था पर उस से कहीं चूक रह गई होगी, जिस से तुम धोलू के पल्ले बंध गई.’’

राजेंद्र ने कहा तो गोपी के तनमन के तार झनझना उठे थे. उस की चुप्पी को पढ़ते हुए राजेंद्र ने कहा, ‘‘देखो गोपी, मैं तुम्हारा कान्हा तो नहीं पर कान्हा से कम भी नहीं रहूंगा.’’

‘‘देखो राजू, शादीब्याह तो किस्मत के तय किए होते हैं. प्रेम प्रणय को बुलंदियां देना तो प्रेमियों के ही हाथों में होता है.’’ गोपी ने राजेंद्र के सामने जैसे दिल खोल कर रख दिया था. आखिरी कथन ने दोनों प्रेमियों के भविष्य की मंजिल तय कर दी थी. गोपी ने यह भी बता दिया था कि वह रात के 10 बजे के बाद ही फोन कर पाएगी.

राजेंद्र की दुकान पनघट के रास्ते में थी. पानी लाने या अन्य किसी बहाने गोपी राजेंद्र के दीदार कर लेती थी. घूंघट प्रथा सख्त होने के बावजूद गोपी चोरीछिपे अपना चेहरा राजेंद्र को दिखा देती थी.

प्यार में धोखा न सह सकी पूजा – भाग 1

2अगस्त, 2022 को हर रोज की तरह सुहेल सिद्दीकी ने रात के 9 बजे अपनी दुकान बढ़ाई और घर के लिए निकल पड़ा. वह रोज दुकान से मात्र 20 मिनट में घर पहुंच जाता था, लेकिन उस दिन उसे घर पहुंचने में काफी देर हो गई तो उस के घर वालों ने उस के फोन पर काल की. लेकिन उस का मोबाइल बंद आ रहा था.

मोबाइल फोन बंद आने से उस के घर वाले परेशान हो उठे. उन की परेशानी का कारण था कि सुहेल ने दुकान बंद करते समयघर फोन कर बता दिया था कि वह घर के लिए निकल रहा है.

जब काफी देर इंतजार करने के बाद भी सुहेल घर नहीं पहुंचा तो उस के 2 छोटे भाई बाइक से उस की तलाश में निकल पड़े. लेकिन घर से दुकान तक वह उन्हें कहीं भी नहीं दिखा.

रात काफी हो चुकी थी. उस का मोबाइल भी बंद आ रहा था. मन में तरहतरह के सवाल उठे तो दोनों भाई सीधे रामनगर कोतवाली जा पहुंचे. कोतवाली पहुंच कर उन्होंने कोतवाल अरुण सैनी को भाई के गायब होने की सूचना दी.

सुहेल के गायब होने की सूचना पाते ही पुलिस सक्रिय हो उठी. कोतवाल अरुण सैनी ने तुरंत ही रामनगर की सभी पुलिस चौकियों के प्रभारियोें को इस मामले से अवगत कराते हुए सुहेल को तलाश करने के आदेश दे दिए.

उसी दौरान देर रात किसी ने जानकारी दी कि रात 9 बजे के आसपास सड़क पर किसी बाइक वाले की एक कार के साथ भिड़ंत हो गई थी, जिस से बाइक सवार घायल हो गया था. उस के बाद घायल बाइक सवार को कार वाला ही अपनी कार में डाल कर ले गया था.

यह जानकारी मिलते ही पुलिस ने उस क्षेत्र में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली तो सब कुछ सामने आ गया. सुहेल की दुकान से कुछ ही दूरी पर कार सवारों ने उस की बाइक पर टक्कर मार कर उसे गिरा दिया था. उस के बाद उस के साथ मारपीट करते हुए उन्होंने उसे कार में डाल लिया था. कार सवार उस की बाइक को भी साथ ले जाते नजर आए थे.

लेकिन रात का वक्त होने के कारण उन कार सवारों की पहचान नहीं हो पा रही थी. इस घटना के सामने आने के बाद पुलिस ने काफी कोशिश की, लेकिन किसी खास नतीजे पर नहीं पहुंची.

अगले दिन 3 अगस्त, 2022 को सुहेल के भाई जुनैद सिद्दीकी ने अपने भाई का अपहरण करने का आरोप लगाते हुए अज्ञात लोेगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी थी. जुनैद ने पुलिस पूछताछ के दौरान बताया कि उन की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. लेकिन काफी समय पहले ही चोरपानी के भरत आर्या का उन के भाई के साथ मनमुटाव जरूर हुआ था.

सुहेल के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज होते ही पुलिस ने रामनगर के कई क्षेत्रों के रास्तों पर लगे सीसीटीवी की फुटेज निकाली. लेकिन कहीं से भी सुहेल या कार सवारों का कोई सुराग नहीं लगा.

सुहेल का पता लगाने के लिए पुलिस पर हर तरफ से दबाव बढ़ता जा रहा था. इस मामले को गंभीरता से लेते हुए कोतवाल अरुण सैनी ने कई पुलिस टीमें अलगअलग क्षेत्रों में लगा दी थीं. पुलिस ने हाथीडगर नहर, नरसिंहपुर, मालधन के जंगलों और आसपास की नहरों की खाक छानी, लेकिन कहीं भी सुहेल का पता नहीं चल सका.

इस मामले को गंभीरता से लेते हुए पुलिस ने पूछताछ के लिए कई लोगों को हिरासत में लिया. जिन से कड़ी पूछताछ की जा रही थी. उसी दौरान 4 अगस्त, 2022 को पुलिस को सूचना मिली कि मालधन क्षेत्र में एक शव मिला है.

इस सूचना पर तुरंत ही पुलिस मालधन पहुंची. तुमडि़या डैम में शव की तलाश में गोताखोरों को उतारा गया. लेकिन कई घंटों की तलाशी के बाद भी कुछ नहीं मिला. जब इस मामले को हुए पूरे 48 घंटे गुजर गए तो लोग सुहेल की तलाश करने के लिए धरनाप्रदर्शन पर उतर आए.

पुलिस पर बढ़ते दबाव के कारण एसपी (सिटी) हरबंश सिंह ने 4 पुलिस टीमों को सुहेल की तलाश में लगा दिया. उस के साथ ही पुलिस ने शक के आधार पर 15 लोगों को उठाया लेकिन उन से भी कोई जानकारी नहीं मिल सकी.

इस सब के बाद पुलिस के पास एक ही रास्ता था भरत आर्या से कड़ी पूछताछ करना. सुहेल के घर वाले भी सब से ज्यादा उसी पर शक कर रहे थे. लेकिन सुहेल के साथ भरत आर्या का मनमुटाव हुए काफी लंबा अरसा बीत चुका था. वैसे भी भरत आर्या सेना में था और इस वक्त पठानकोट में तैनात था.

पुलिस चोरगलियां स्थित भरत आर्या के घर पर पहुंची तो वह घर पर ही मिल गया. वह छुट्टी पर आया हुआ था. पुलिस ने भरत आर्या से पूछताछ करने के लिए उसे अपने साथ लिया और कोतवाली आ गई.

पूछताछ में भरत आर्या ने बताया कि वह 14 जुलाई को कुछ दिन की छुट्टी पर आया था. सुहेल से उस का कोई लेनादेना नहीं. न ही उस से उस की कोई बोलचाल थी.

सुहेल की तलाश में पुलिस सभी जगह हाथपांव मार चुकी थी. पुलिस यह भी जानती थी कि कोई भी आरोपी इतनी जल्दी से अपना जुर्म कुबूल नहीं करता. यही सोच कर पुलिस ने भरत आर्या के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो 2 अगस्त, 2022 की रात 9 बजे के आसपास उस के उस नंबर की लोकेशन घटनास्थल के आसपास ही मिली.

फौजी भरत ने स्वीकारा जुर्म

इस जानकारी के मिलते ही पुलिस समझ गई कि भरत आर्या जो भी पुलिस को बता रहा था, वह सब झूठ था. पुलिस ने फिर से सुहेल के घर वालों से विस्तार से जानकारी ली तो उन्होंने बताया कि सन 2017 में भरत आर्या की बहन सुहेल के संपर्क में आई थी, जिस के कुछ ही समय बाद उस ने खुदकुशी कर ली थी. उस वक्त भरत आर्या के घर वालों ने उस की मौत का जिम्मेदार सुहेल को ही ठहराया था.

जिस के बाद सुहेल और भरत आर्या के बीच मनमुटाव चला आ रहा था. हो सकता है कि उस ने ही अपनी बहन की मौत का बदला लेने के लिए सुहेल का अपहरण कर उस की हत्या कर दी हो.

यह जानकारी मिलते ही पुलिस ने भरत आर्या से कड़ी पूछताछ की. पूछताछ के दौरान भरत आर्या ने अपना जुर्म कुबूलते हुए बताया कि इस हत्या में उस का दोस्त नारायणपुर मूल्या निवासी दिनेश टम्टा भी शामिल था.

पुलिस ने भरत आर्या से उस की लाश के बारे में पूछा तो उस ने पहले तो बताया कि उस की लाश तुमडि़या डैम में डाल दी थी. लेकिन पुलिस तुमडि़या डैम की पहले ही छानवीन करवा चुकी थी. वहां पर कोई लाश नहीं मिली थी.

उस के बाद पुलिस ने देर रात फिर से उस से कड़ी पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस का शव मुरादाबाद के थाना क्षेत्र छजलैट में फेंक दिया था. लेकिन सुहेल की लाश को रात के अंधेरे में फेंका गया था. रात होने के कारण भरत आर्या उस जगह को ही भूल गया था.

उस के समाधान के लिए रामनगर पुलिस ने थाना छजलैट से संपर्क किया तो वहां से जानकारी मिली कि पुलिस के हाथ एक लावारिस प्लेटिना बाइक हाथ लगी है. यह जानकारी मिलते ही पुलिस ने बाइक वाली जगह पर जा कर छानबीन की तो उस के पास ही गन्ने के खेत में एक लाश बरामद हुई. लेकिन उस लाश का चेहरा पूरी तरह से विकृत था. उस की पहचान भी नहीं हो पा रही थी. फिर उस की बाइक और उस के कपड़ों के आधार पर घर वालों ने उस की शिनाख्त सुहेल के रूप में की.

मोहब्बत पर भारी पड़ी सियासत – भाग 1

पटना में हिंदुस्तान अखबार के दफ्तर से लौटते वक्त शाम को विशाल कुमार सिन्हा कुछ ज्यादा ही थकामांदा महसूस कर रहा था. उस का दिमाग एक रिपोर्टिंग के सिलसिले में बुरी तरह से

भन्ना गया था. राजनीति और सत्ता की आड़ में अवैध काम की एक खबर से वह पिछले 4-5 दिनों से तिलमिलाया हुआ था. उस से भी अधिक बेचैनी उस खबर को रोकने के लिए पड़ने वाले दबाव को ले कर थी, जो एक खास करीबी के खिलाफ थी.

इस कारण मानसिक तौर पर बेहद थक चुका था. दिमाग में अस्थिरता थी. अलगअलग बातें एकदूसरे पर हावी होने को बेचैन थीं. वैसे वह जब भी इस हालत में होता था, तब अकसर पुराने फिल्मी गाने सुन लिया करता था.

विशाल की यह स्थिति बात जुलाई की है. उस रोज भी उस ने अपनी दिमागी थकान को दूर करने के लिए कान में लीड लगा ली थी. मोबाइल के म्यूजिक स्टोर से वह अपने मनपसंद गाने सर्च करने लगा था. पसंद का वही गाना मिल गया था, जिसे कई बार सुन चुका था, ‘न सिर झुका के जिओ, न मुंह छुपा के जिओ!’

महेंद्र कपूर के इस गाने से उस का मूड थोड़ा बदल चुका था. उस गाने के खत्म होते ही मोहम्मद रफी का गाना बज उठा, ‘मतलब निकल गया है तो पहचानते नहीं…यूं जा रहे हैं ऐसे कि जानते नहीं…’

इस गाने ने उस के दिमाग में एक बार फिर से हलचल पैदा कर दी थी. उस के दिमाग में अचानक अपनी मकान मालकिन वंदना सिंह की तसवीर उभर गई. वह चौंक गया. उस से जुड़ी हालफिलहाल की कुछ बातें और पुरानी यादें एकदूसरे से टकराने लगीं. वह गानों को भूल कर उस के बारे में सोचने लगा.

वह कह रही थी, ‘दम है तो कर के दिखाओ… यह लो मेरा रिवौल्वर. अगर तुम ने वह कर दिखाया, तब समझूंगी कि तुम कितने दमखम वाले हो. अपने वादे पर चलने वाले हो.’

इन बातों के दिमाग में घूमते ही विशाल के चेहरे का रंग बदलने लगा. दिमाग में गाने के बोल ‘मतलब निकल गया है तो…’ भी वंदना के चेहरे, बंदूक और उस की मोहक अदाओं के साथ घूमने लगे थे.

खैर, घर देर शाम विशाल खगौल स्थित किराए के मकान में पहुंचा. सीधा अपने कमरे में चला गया.

घर पर रक्षाबंधन त्यौहार को ले कर इकलौती बहन वैशाली भी ससुराल से आई हुई थी. विशाल के कमरे में पानी का गिलास ले कर गई. भाई का उतरा हुआ चेहरा देख पूछ बैठी, ‘‘क्या हुआ भैया? कुछ परेशान दिख रहे हो?’’

‘‘नहींनहीं, कुछ नहीं. रास्ते में बहुत जाम था न,’’ विशाल कतराता हुआ बोला.

‘‘नहीं भैया, तुम्हारी सूरत तो कुछ और बता रही है. उस चुड़ैल के साथ कुछ बात हुई क्या?’’ वैशाली ने उस के मन को कुरेदने की कोशिश की.

‘‘नहीं तो. कई दिनों से उस से कोई बात नहीं हुई,’’ विशाल बोला.

‘‘थोड़ी देर पहले ही उस की बहन का बेटा आया था. कुछ सामान दे गया है. पैक्ड है. सिर्फ तुम्हें ही देने को बोला है.’’ वैशाली बोली.

‘‘पैक्ड है…’’ विशाल चौंकता हुआ बोला. फिर मन में सोचने लगा, ‘‘क्या हो सकता है उस में…’’

‘‘हां, वहां रखा है तुम्हारे कंप्यूटर टेबल पर, प्रिंटर के बगल में…’’ यह कहती हुई वैशाली पानी का गिलास रख कर चली गई.

उस के जाने के बाद विशाल पानी पीने लगा. गिलास उसी टेबल पर रखने गया, जहां पैकेट काली पौलीथिन में रखा था. उसे बाहर निकाल कर पैकेट को टटोलने लगा, ‘क्या हो सकता है?’

उसे ले कर मन में कई विचार आ रहे थे. फिर न जाने क्या हुआ जो उस ने पैकेट खोले बगैर पौलीथिन में ही रख दिया. कुछ समय में ही वैशाली ने आवाज लगाई, ‘‘भैया, खाना खाने आ जाओ.’’

‘‘अभी आया,’’ कहता हुआ वह कमरे से निकल कर रसोई से सटे डायनिंग टेबल लगे कमरे में चला गया. वहां परिवार के दूसरे लोग पहले से बैठे थे.

वह जदयू नेता थी. इलाके के लोगों से ले कर सत्ता के गलियारे तक में वह अच्छी पकड़ बनाए हुए थी. विधवा थी. उस के किशोर उम्र के बच्चे भी थे.

बनठन कर रहती थी. रौब से दंबगई अंदाज में घूमतीफिरती थी. बौडीगार्ड के रूप में उस के परिवार का कोई न कोई सदस्य हमेशा उस के साथ रहता था. कभी भाई, तो कभी कोई और…

बिहार के प्रतिष्ठित अखबार के पत्रकार होने के नाते वह विशाल और उस के परिवार की करीबी बनी रहती थी, किंतु पिछले कई हफ्ते से उन के बीच किसी बात को ले कर मतभेद हो गया था. जिस कारण विशाल मानसिक तनाव में चल रहा था.

दरअसल, एक रोज वंदना सिंह अपने भाई मिथलेश सिंह, अभिषेक सिंह, अपनी मां और बेटे के साथ घर पर आई थी. सभी ने विशाल को रास्ते से हटाने की बात कहते हुए धमकी दी थी. उन लोगों की धमकी के बाद से परिवार के दूसरे लोग तनाव में आ गए थे. वे परेशान रहने लगे थे. अनहोनी की आशंका उन के मन को खाए जा रही थी.

उस रोज खाने के टेबल पर घर के सभी सदस्यों ने चुपचाप खाना खाया और अपनेअपने कमरे में चले गए. विशाल उन की चुप्पी का मतलब अच्छी तरह से समझ रहा था. उसे वंदना का रिश्तेदार एक पैकेट दे गया था, इस कारण परिवार में सभी को लग रहा था कि विशाल ने उन के सलाह की उपेक्षा कर दी है. वंदना गिफ्ट दे कर अपने झांसे में लेना चाहती है.

कहीं पे निगाहें, कही पे निशाना – भाग 1

पहली अगस्त, 2022 को शाम के करीब 6 बजे का समय था. रामपुर जिले के गांव जालिफ नगला की रहने वाली आसिफा और उन की बेटी फायजा ही उस समय घर पर थी. उस दिन फायजा का दोस्त हसन भी उस से मिलने आया हुआ था. इसलिए वह उसी के साथ बैठी थी. थोड़ी देर पहले ही उस ने हसन को चायनाश्ता कराया था. हसन अकसर फायजा से मिलने आता रहता था. उसी समय आसिफा को कोई काम याद आया तो वह दूसरी मंजिल पर चली गई.

वहां जाते ही आसिफा अपने काम में लग गई. आसिफा को काम में लगे कोई आधा घंटा हुआ था, तभी नीचे से फायजा के चीखने की आवाज आई. बेटी के चीखने की आवाज सुनते ही आसिफा पागलों की तरह नीचे की ओर दौड़ी. नीचे आने के बाद उस ने जो मंजर देखा, उसे देखते ही उस की भी चीख निकल गई.

हसन के हाथ में चाकू था. वह उसी चाकू से फायजा पर बेरहमी से वार कर रहा था. चाकू के अनगिनत वार से फायजा के सारे कपड़े खून से तरबतर हो गए थे. बेटी की हालत देख आसिफा ने हसन के हाथ से चाकू छीनने की कोशिश की. लेकिन हसन उन्हें धक्का दे कर भाग गया. उस ने कभी सोचा भी नहीं था कि जो हसन उस की बेटी को जी जान से चाहता है, आज वही उस की जान का दुश्मन बन जाएगा.

हसन के घर से भागते ही आसिफा ने फायजा को संभालने की कोशिश की. लेकिन अधिक खून निकल जाने के कारण वह बेहोश हो गई थी. जब आसिफा को लगा कि फायजा की जान खतरे में है तो उस ने घर के बाहर आ कर सहायता के लिए जोरजोर से चिल्लाना शुरू किया.

अचानक आसिफा के रोनेचिल्लाने की आवाज सुन कर पड़ोसी उस के घर पर जमा हो गए थे. आसिफा ने तभी इस की सूचना अपने पति नन्हे को दी. घर पहुंच कर नन्हे ने गांव वालों की सहायता से बेटी को किसी तरह से अस्पताल पहुंचाया.

लेकिन अस्पताल में डाक्टरों ने उसे देखते ही मृत घोषित कर दिया था. उस के बाद उस के घर वाले शव ले कर घर चले आए थे. फायजा के शव को घर लाते ही गांव वालों ने इस की सूचना थाना मिलक पुलिस को दे दी.

कुछ ही देर में एसएचओ सत्येंद्र कुमार सिंह नन्हे के घर पहुंच गए. पुलिस ने घर वालों से घटना के बारे में पूछताछ की. मृतका फायजा की अब्बू और अम्मी ने पुलिस को बताया कि उत्तराखंड के सितारगंज निवासी हसन के साथ फायजा की गहरी दोस्ती थी. उसी दोस्ती के कारण हसन अकसर उन के घर फायजा से मिलने आताजाता रहता था.

आज भी वह उस से मिलने आया हुआ था. उसी दौरान उस ने उस की हत्या कर दी. हसन ने फायजा की हत्या क्यों की, यह उन की समझ में भी नहीं आ रहा.

इस से यह तो साफ हो ही गया था कि हत्यारा हसन ही होगा, क्योंकि उस के बाद वह वहां से फरार भी हो गया था. इस के बावजूद भी पुलिस इस हत्याकांड को ले कर जल्दबाजी में कोई ठोस निर्णय नहीं लेना चाहती थी.

क्योंकि ऐसे मामलों में कई बार प्रेम संबंधों के कारण औनर किलिंग का मामला भी निकल आता है. यही सोच कर पुलिस ने फायजा के घर की बारीकी से जांचपड़ताल की. फायजा के शरीर पर चाकुओं के गहरे घाव थे. पुलिस ने नन्हे के घर की हर जगह जांचपड़ताल की. जिस से साफ जानकारी मिली कि हसन

द्वारा हमला करने के दौरान फायजा

अपने बचाव के कारण इधरउधर भागी थी, जिस के कारण पूरे घर में खून पड़ा हुआ था.

फायजा के घर वालों के अनुसार, उन दोनों के बीच काफी समय से प्रेम संबंध चला आ रहा था. दोनों अलगअलग क्षेत्रों में रहते थे. इसी कारण उन के बीच मोबाइल पर भी बात होती होगी. यही सोच कर पुलिस ने फायजा का मोबाइल मांगा तो उस के घर वालों ने बताया कि हत्या के बाद से ही उस का मोबाइल नहीं मिल रहा. इन दोनों के बीच की सच्चाई जानने के लिए मोबाइल का मिलना जरूरी था.

फायजा के घर वालों के साथ पुलिस ने भी उस के मोबाइल को इधरउधर तलाशने की कोशिश की, लेकिन वह कहीं भी न मिल सका.

इस घटना की सूचना पाते ही एडिशनल एसपी डा. संसार सिंह और सीओ धर्म सिंह मार्छाल भी मौके पर पहुंच गए थे. दोनों ने नन्हे के घर पहुंचते ही उन से घटना की सारी जानकारी जुटाई. मृतका के मोबाइल से पुलिस को केस से संबंधित जानकारी मिल सकती थी, इसलिए पुलिस को जब उस का मोबाइल फोन नहीं मिला तो उस नंबर पर काल लगाने की कोशिश की तो वह बंद आ रहा था.

एकबारगी तो पुलिस को शक हुआ कि शायद हसन ही उस का मोबाइल अपने साथ ले गया होगा. लेकिन फिर भी पुलिस ने मोबाइल का पता लगाने के लिए डौग स्क्वायड टीम को मौके पर बुला लिया.

मृतका के शव को सुंघा कर उसे छोड़ा गया तो उस की सहायता से मोबाइल उसी कमरे के एक कोने में पड़े कपड़ों के नीचे मिल गया. फायजा का मोबाइल मिलते ही पुलिस ने उस की काल डिटेल्स निकाली तो उस के मोबाइल पर ऐसे 2 नंबर मिले, जिन पर वह रातदिन कईकई बार  बात करती थी. इन में एक नंबर हसन का था और दूसरा लखनऊ निवासी किसी अन्य युवक का.