प्यार में धोखा न सह सकी पूजा – भाग 1

2अगस्त, 2022 को हर रोज की तरह सुहेल सिद्दीकी ने रात के 9 बजे अपनी दुकान बढ़ाई और घर के लिए निकल पड़ा. वह रोज दुकान से मात्र 20 मिनट में घर पहुंच जाता था, लेकिन उस दिन उसे घर पहुंचने में काफी देर हो गई तो उस के घर वालों ने उस के फोन पर काल की. लेकिन उस का मोबाइल बंद आ रहा था.

मोबाइल फोन बंद आने से उस के घर वाले परेशान हो उठे. उन की परेशानी का कारण था कि सुहेल ने दुकान बंद करते समयघर फोन कर बता दिया था कि वह घर के लिए निकल रहा है.

जब काफी देर इंतजार करने के बाद भी सुहेल घर नहीं पहुंचा तो उस के 2 छोटे भाई बाइक से उस की तलाश में निकल पड़े. लेकिन घर से दुकान तक वह उन्हें कहीं भी नहीं दिखा.

रात काफी हो चुकी थी. उस का मोबाइल भी बंद आ रहा था. मन में तरहतरह के सवाल उठे तो दोनों भाई सीधे रामनगर कोतवाली जा पहुंचे. कोतवाली पहुंच कर उन्होंने कोतवाल अरुण सैनी को भाई के गायब होने की सूचना दी.

सुहेल के गायब होने की सूचना पाते ही पुलिस सक्रिय हो उठी. कोतवाल अरुण सैनी ने तुरंत ही रामनगर की सभी पुलिस चौकियों के प्रभारियोें को इस मामले से अवगत कराते हुए सुहेल को तलाश करने के आदेश दे दिए.

उसी दौरान देर रात किसी ने जानकारी दी कि रात 9 बजे के आसपास सड़क पर किसी बाइक वाले की एक कार के साथ भिड़ंत हो गई थी, जिस से बाइक सवार घायल हो गया था. उस के बाद घायल बाइक सवार को कार वाला ही अपनी कार में डाल कर ले गया था.

यह जानकारी मिलते ही पुलिस ने उस क्षेत्र में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली तो सब कुछ सामने आ गया. सुहेल की दुकान से कुछ ही दूरी पर कार सवारों ने उस की बाइक पर टक्कर मार कर उसे गिरा दिया था. उस के बाद उस के साथ मारपीट करते हुए उन्होंने उसे कार में डाल लिया था. कार सवार उस की बाइक को भी साथ ले जाते नजर आए थे.

लेकिन रात का वक्त होने के कारण उन कार सवारों की पहचान नहीं हो पा रही थी. इस घटना के सामने आने के बाद पुलिस ने काफी कोशिश की, लेकिन किसी खास नतीजे पर नहीं पहुंची.

अगले दिन 3 अगस्त, 2022 को सुहेल के भाई जुनैद सिद्दीकी ने अपने भाई का अपहरण करने का आरोप लगाते हुए अज्ञात लोेगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी थी. जुनैद ने पुलिस पूछताछ के दौरान बताया कि उन की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. लेकिन काफी समय पहले ही चोरपानी के भरत आर्या का उन के भाई के साथ मनमुटाव जरूर हुआ था.

सुहेल के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज होते ही पुलिस ने रामनगर के कई क्षेत्रों के रास्तों पर लगे सीसीटीवी की फुटेज निकाली. लेकिन कहीं से भी सुहेल या कार सवारों का कोई सुराग नहीं लगा.

सुहेल का पता लगाने के लिए पुलिस पर हर तरफ से दबाव बढ़ता जा रहा था. इस मामले को गंभीरता से लेते हुए कोतवाल अरुण सैनी ने कई पुलिस टीमें अलगअलग क्षेत्रों में लगा दी थीं. पुलिस ने हाथीडगर नहर, नरसिंहपुर, मालधन के जंगलों और आसपास की नहरों की खाक छानी, लेकिन कहीं भी सुहेल का पता नहीं चल सका.

इस मामले को गंभीरता से लेते हुए पुलिस ने पूछताछ के लिए कई लोगों को हिरासत में लिया. जिन से कड़ी पूछताछ की जा रही थी. उसी दौरान 4 अगस्त, 2022 को पुलिस को सूचना मिली कि मालधन क्षेत्र में एक शव मिला है.

इस सूचना पर तुरंत ही पुलिस मालधन पहुंची. तुमडि़या डैम में शव की तलाश में गोताखोरों को उतारा गया. लेकिन कई घंटों की तलाशी के बाद भी कुछ नहीं मिला. जब इस मामले को हुए पूरे 48 घंटे गुजर गए तो लोग सुहेल की तलाश करने के लिए धरनाप्रदर्शन पर उतर आए.

पुलिस पर बढ़ते दबाव के कारण एसपी (सिटी) हरबंश सिंह ने 4 पुलिस टीमों को सुहेल की तलाश में लगा दिया. उस के साथ ही पुलिस ने शक के आधार पर 15 लोगों को उठाया लेकिन उन से भी कोई जानकारी नहीं मिल सकी.

इस सब के बाद पुलिस के पास एक ही रास्ता था भरत आर्या से कड़ी पूछताछ करना. सुहेल के घर वाले भी सब से ज्यादा उसी पर शक कर रहे थे. लेकिन सुहेल के साथ भरत आर्या का मनमुटाव हुए काफी लंबा अरसा बीत चुका था. वैसे भी भरत आर्या सेना में था और इस वक्त पठानकोट में तैनात था.

पुलिस चोरगलियां स्थित भरत आर्या के घर पर पहुंची तो वह घर पर ही मिल गया. वह छुट्टी पर आया हुआ था. पुलिस ने भरत आर्या से पूछताछ करने के लिए उसे अपने साथ लिया और कोतवाली आ गई.

पूछताछ में भरत आर्या ने बताया कि वह 14 जुलाई को कुछ दिन की छुट्टी पर आया था. सुहेल से उस का कोई लेनादेना नहीं. न ही उस से उस की कोई बोलचाल थी.

सुहेल की तलाश में पुलिस सभी जगह हाथपांव मार चुकी थी. पुलिस यह भी जानती थी कि कोई भी आरोपी इतनी जल्दी से अपना जुर्म कुबूल नहीं करता. यही सोच कर पुलिस ने भरत आर्या के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो 2 अगस्त, 2022 की रात 9 बजे के आसपास उस के उस नंबर की लोकेशन घटनास्थल के आसपास ही मिली.

फौजी भरत ने स्वीकारा जुर्म

इस जानकारी के मिलते ही पुलिस समझ गई कि भरत आर्या जो भी पुलिस को बता रहा था, वह सब झूठ था. पुलिस ने फिर से सुहेल के घर वालों से विस्तार से जानकारी ली तो उन्होंने बताया कि सन 2017 में भरत आर्या की बहन सुहेल के संपर्क में आई थी, जिस के कुछ ही समय बाद उस ने खुदकुशी कर ली थी. उस वक्त भरत आर्या के घर वालों ने उस की मौत का जिम्मेदार सुहेल को ही ठहराया था.

जिस के बाद सुहेल और भरत आर्या के बीच मनमुटाव चला आ रहा था. हो सकता है कि उस ने ही अपनी बहन की मौत का बदला लेने के लिए सुहेल का अपहरण कर उस की हत्या कर दी हो.

यह जानकारी मिलते ही पुलिस ने भरत आर्या से कड़ी पूछताछ की. पूछताछ के दौरान भरत आर्या ने अपना जुर्म कुबूलते हुए बताया कि इस हत्या में उस का दोस्त नारायणपुर मूल्या निवासी दिनेश टम्टा भी शामिल था.

पुलिस ने भरत आर्या से उस की लाश के बारे में पूछा तो उस ने पहले तो बताया कि उस की लाश तुमडि़या डैम में डाल दी थी. लेकिन पुलिस तुमडि़या डैम की पहले ही छानवीन करवा चुकी थी. वहां पर कोई लाश नहीं मिली थी.

उस के बाद पुलिस ने देर रात फिर से उस से कड़ी पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस का शव मुरादाबाद के थाना क्षेत्र छजलैट में फेंक दिया था. लेकिन सुहेल की लाश को रात के अंधेरे में फेंका गया था. रात होने के कारण भरत आर्या उस जगह को ही भूल गया था.

उस के समाधान के लिए रामनगर पुलिस ने थाना छजलैट से संपर्क किया तो वहां से जानकारी मिली कि पुलिस के हाथ एक लावारिस प्लेटिना बाइक हाथ लगी है. यह जानकारी मिलते ही पुलिस ने बाइक वाली जगह पर जा कर छानबीन की तो उस के पास ही गन्ने के खेत में एक लाश बरामद हुई. लेकिन उस लाश का चेहरा पूरी तरह से विकृत था. उस की पहचान भी नहीं हो पा रही थी. फिर उस की बाइक और उस के कपड़ों के आधार पर घर वालों ने उस की शिनाख्त सुहेल के रूप में की.

मोहब्बत पर भारी पड़ी सियासत – भाग 1

पटना में हिंदुस्तान अखबार के दफ्तर से लौटते वक्त शाम को विशाल कुमार सिन्हा कुछ ज्यादा ही थकामांदा महसूस कर रहा था. उस का दिमाग एक रिपोर्टिंग के सिलसिले में बुरी तरह से

भन्ना गया था. राजनीति और सत्ता की आड़ में अवैध काम की एक खबर से वह पिछले 4-5 दिनों से तिलमिलाया हुआ था. उस से भी अधिक बेचैनी उस खबर को रोकने के लिए पड़ने वाले दबाव को ले कर थी, जो एक खास करीबी के खिलाफ थी.

इस कारण मानसिक तौर पर बेहद थक चुका था. दिमाग में अस्थिरता थी. अलगअलग बातें एकदूसरे पर हावी होने को बेचैन थीं. वैसे वह जब भी इस हालत में होता था, तब अकसर पुराने फिल्मी गाने सुन लिया करता था.

विशाल की यह स्थिति बात जुलाई की है. उस रोज भी उस ने अपनी दिमागी थकान को दूर करने के लिए कान में लीड लगा ली थी. मोबाइल के म्यूजिक स्टोर से वह अपने मनपसंद गाने सर्च करने लगा था. पसंद का वही गाना मिल गया था, जिसे कई बार सुन चुका था, ‘न सिर झुका के जिओ, न मुंह छुपा के जिओ!’

महेंद्र कपूर के इस गाने से उस का मूड थोड़ा बदल चुका था. उस गाने के खत्म होते ही मोहम्मद रफी का गाना बज उठा, ‘मतलब निकल गया है तो पहचानते नहीं…यूं जा रहे हैं ऐसे कि जानते नहीं…’

इस गाने ने उस के दिमाग में एक बार फिर से हलचल पैदा कर दी थी. उस के दिमाग में अचानक अपनी मकान मालकिन वंदना सिंह की तसवीर उभर गई. वह चौंक गया. उस से जुड़ी हालफिलहाल की कुछ बातें और पुरानी यादें एकदूसरे से टकराने लगीं. वह गानों को भूल कर उस के बारे में सोचने लगा.

वह कह रही थी, ‘दम है तो कर के दिखाओ… यह लो मेरा रिवौल्वर. अगर तुम ने वह कर दिखाया, तब समझूंगी कि तुम कितने दमखम वाले हो. अपने वादे पर चलने वाले हो.’

इन बातों के दिमाग में घूमते ही विशाल के चेहरे का रंग बदलने लगा. दिमाग में गाने के बोल ‘मतलब निकल गया है तो…’ भी वंदना के चेहरे, बंदूक और उस की मोहक अदाओं के साथ घूमने लगे थे.

खैर, घर देर शाम विशाल खगौल स्थित किराए के मकान में पहुंचा. सीधा अपने कमरे में चला गया.

घर पर रक्षाबंधन त्यौहार को ले कर इकलौती बहन वैशाली भी ससुराल से आई हुई थी. विशाल के कमरे में पानी का गिलास ले कर गई. भाई का उतरा हुआ चेहरा देख पूछ बैठी, ‘‘क्या हुआ भैया? कुछ परेशान दिख रहे हो?’’

‘‘नहींनहीं, कुछ नहीं. रास्ते में बहुत जाम था न,’’ विशाल कतराता हुआ बोला.

‘‘नहीं भैया, तुम्हारी सूरत तो कुछ और बता रही है. उस चुड़ैल के साथ कुछ बात हुई क्या?’’ वैशाली ने उस के मन को कुरेदने की कोशिश की.

‘‘नहीं तो. कई दिनों से उस से कोई बात नहीं हुई,’’ विशाल बोला.

‘‘थोड़ी देर पहले ही उस की बहन का बेटा आया था. कुछ सामान दे गया है. पैक्ड है. सिर्फ तुम्हें ही देने को बोला है.’’ वैशाली बोली.

‘‘पैक्ड है…’’ विशाल चौंकता हुआ बोला. फिर मन में सोचने लगा, ‘‘क्या हो सकता है उस में…’’

‘‘हां, वहां रखा है तुम्हारे कंप्यूटर टेबल पर, प्रिंटर के बगल में…’’ यह कहती हुई वैशाली पानी का गिलास रख कर चली गई.

उस के जाने के बाद विशाल पानी पीने लगा. गिलास उसी टेबल पर रखने गया, जहां पैकेट काली पौलीथिन में रखा था. उसे बाहर निकाल कर पैकेट को टटोलने लगा, ‘क्या हो सकता है?’

उसे ले कर मन में कई विचार आ रहे थे. फिर न जाने क्या हुआ जो उस ने पैकेट खोले बगैर पौलीथिन में ही रख दिया. कुछ समय में ही वैशाली ने आवाज लगाई, ‘‘भैया, खाना खाने आ जाओ.’’

‘‘अभी आया,’’ कहता हुआ वह कमरे से निकल कर रसोई से सटे डायनिंग टेबल लगे कमरे में चला गया. वहां परिवार के दूसरे लोग पहले से बैठे थे.

वह जदयू नेता थी. इलाके के लोगों से ले कर सत्ता के गलियारे तक में वह अच्छी पकड़ बनाए हुए थी. विधवा थी. उस के किशोर उम्र के बच्चे भी थे.

बनठन कर रहती थी. रौब से दंबगई अंदाज में घूमतीफिरती थी. बौडीगार्ड के रूप में उस के परिवार का कोई न कोई सदस्य हमेशा उस के साथ रहता था. कभी भाई, तो कभी कोई और…

बिहार के प्रतिष्ठित अखबार के पत्रकार होने के नाते वह विशाल और उस के परिवार की करीबी बनी रहती थी, किंतु पिछले कई हफ्ते से उन के बीच किसी बात को ले कर मतभेद हो गया था. जिस कारण विशाल मानसिक तनाव में चल रहा था.

दरअसल, एक रोज वंदना सिंह अपने भाई मिथलेश सिंह, अभिषेक सिंह, अपनी मां और बेटे के साथ घर पर आई थी. सभी ने विशाल को रास्ते से हटाने की बात कहते हुए धमकी दी थी. उन लोगों की धमकी के बाद से परिवार के दूसरे लोग तनाव में आ गए थे. वे परेशान रहने लगे थे. अनहोनी की आशंका उन के मन को खाए जा रही थी.

उस रोज खाने के टेबल पर घर के सभी सदस्यों ने चुपचाप खाना खाया और अपनेअपने कमरे में चले गए. विशाल उन की चुप्पी का मतलब अच्छी तरह से समझ रहा था. उसे वंदना का रिश्तेदार एक पैकेट दे गया था, इस कारण परिवार में सभी को लग रहा था कि विशाल ने उन के सलाह की उपेक्षा कर दी है. वंदना गिफ्ट दे कर अपने झांसे में लेना चाहती है.

कहीं पे निगाहें, कही पे निशाना – भाग 1

पहली अगस्त, 2022 को शाम के करीब 6 बजे का समय था. रामपुर जिले के गांव जालिफ नगला की रहने वाली आसिफा और उन की बेटी फायजा ही उस समय घर पर थी. उस दिन फायजा का दोस्त हसन भी उस से मिलने आया हुआ था. इसलिए वह उसी के साथ बैठी थी. थोड़ी देर पहले ही उस ने हसन को चायनाश्ता कराया था. हसन अकसर फायजा से मिलने आता रहता था. उसी समय आसिफा को कोई काम याद आया तो वह दूसरी मंजिल पर चली गई.

वहां जाते ही आसिफा अपने काम में लग गई. आसिफा को काम में लगे कोई आधा घंटा हुआ था, तभी नीचे से फायजा के चीखने की आवाज आई. बेटी के चीखने की आवाज सुनते ही आसिफा पागलों की तरह नीचे की ओर दौड़ी. नीचे आने के बाद उस ने जो मंजर देखा, उसे देखते ही उस की भी चीख निकल गई.

हसन के हाथ में चाकू था. वह उसी चाकू से फायजा पर बेरहमी से वार कर रहा था. चाकू के अनगिनत वार से फायजा के सारे कपड़े खून से तरबतर हो गए थे. बेटी की हालत देख आसिफा ने हसन के हाथ से चाकू छीनने की कोशिश की. लेकिन हसन उन्हें धक्का दे कर भाग गया. उस ने कभी सोचा भी नहीं था कि जो हसन उस की बेटी को जी जान से चाहता है, आज वही उस की जान का दुश्मन बन जाएगा.

हसन के घर से भागते ही आसिफा ने फायजा को संभालने की कोशिश की. लेकिन अधिक खून निकल जाने के कारण वह बेहोश हो गई थी. जब आसिफा को लगा कि फायजा की जान खतरे में है तो उस ने घर के बाहर आ कर सहायता के लिए जोरजोर से चिल्लाना शुरू किया.

अचानक आसिफा के रोनेचिल्लाने की आवाज सुन कर पड़ोसी उस के घर पर जमा हो गए थे. आसिफा ने तभी इस की सूचना अपने पति नन्हे को दी. घर पहुंच कर नन्हे ने गांव वालों की सहायता से बेटी को किसी तरह से अस्पताल पहुंचाया.

लेकिन अस्पताल में डाक्टरों ने उसे देखते ही मृत घोषित कर दिया था. उस के बाद उस के घर वाले शव ले कर घर चले आए थे. फायजा के शव को घर लाते ही गांव वालों ने इस की सूचना थाना मिलक पुलिस को दे दी.

कुछ ही देर में एसएचओ सत्येंद्र कुमार सिंह नन्हे के घर पहुंच गए. पुलिस ने घर वालों से घटना के बारे में पूछताछ की. मृतका फायजा की अब्बू और अम्मी ने पुलिस को बताया कि उत्तराखंड के सितारगंज निवासी हसन के साथ फायजा की गहरी दोस्ती थी. उसी दोस्ती के कारण हसन अकसर उन के घर फायजा से मिलने आताजाता रहता था.

आज भी वह उस से मिलने आया हुआ था. उसी दौरान उस ने उस की हत्या कर दी. हसन ने फायजा की हत्या क्यों की, यह उन की समझ में भी नहीं आ रहा.

इस से यह तो साफ हो ही गया था कि हत्यारा हसन ही होगा, क्योंकि उस के बाद वह वहां से फरार भी हो गया था. इस के बावजूद भी पुलिस इस हत्याकांड को ले कर जल्दबाजी में कोई ठोस निर्णय नहीं लेना चाहती थी.

क्योंकि ऐसे मामलों में कई बार प्रेम संबंधों के कारण औनर किलिंग का मामला भी निकल आता है. यही सोच कर पुलिस ने फायजा के घर की बारीकी से जांचपड़ताल की. फायजा के शरीर पर चाकुओं के गहरे घाव थे. पुलिस ने नन्हे के घर की हर जगह जांचपड़ताल की. जिस से साफ जानकारी मिली कि हसन

द्वारा हमला करने के दौरान फायजा

अपने बचाव के कारण इधरउधर भागी थी, जिस के कारण पूरे घर में खून पड़ा हुआ था.

फायजा के घर वालों के अनुसार, उन दोनों के बीच काफी समय से प्रेम संबंध चला आ रहा था. दोनों अलगअलग क्षेत्रों में रहते थे. इसी कारण उन के बीच मोबाइल पर भी बात होती होगी. यही सोच कर पुलिस ने फायजा का मोबाइल मांगा तो उस के घर वालों ने बताया कि हत्या के बाद से ही उस का मोबाइल नहीं मिल रहा. इन दोनों के बीच की सच्चाई जानने के लिए मोबाइल का मिलना जरूरी था.

फायजा के घर वालों के साथ पुलिस ने भी उस के मोबाइल को इधरउधर तलाशने की कोशिश की, लेकिन वह कहीं भी न मिल सका.

इस घटना की सूचना पाते ही एडिशनल एसपी डा. संसार सिंह और सीओ धर्म सिंह मार्छाल भी मौके पर पहुंच गए थे. दोनों ने नन्हे के घर पहुंचते ही उन से घटना की सारी जानकारी जुटाई. मृतका के मोबाइल से पुलिस को केस से संबंधित जानकारी मिल सकती थी, इसलिए पुलिस को जब उस का मोबाइल फोन नहीं मिला तो उस नंबर पर काल लगाने की कोशिश की तो वह बंद आ रहा था.

एकबारगी तो पुलिस को शक हुआ कि शायद हसन ही उस का मोबाइल अपने साथ ले गया होगा. लेकिन फिर भी पुलिस ने मोबाइल का पता लगाने के लिए डौग स्क्वायड टीम को मौके पर बुला लिया.

मृतका के शव को सुंघा कर उसे छोड़ा गया तो उस की सहायता से मोबाइल उसी कमरे के एक कोने में पड़े कपड़ों के नीचे मिल गया. फायजा का मोबाइल मिलते ही पुलिस ने उस की काल डिटेल्स निकाली तो उस के मोबाइल पर ऐसे 2 नंबर मिले, जिन पर वह रातदिन कईकई बार  बात करती थी. इन में एक नंबर हसन का था और दूसरा लखनऊ निवासी किसी अन्य युवक का.

तनु की त्रासदी : जिस्म की चाहत ने पहुंचा दिया मौत के पास – भाग 1

24 साल की तनु का रंग हालांकि बहुत साफ नहीं था, लेकिन कुदरत ने उसे कुछ इस तरह गढ़ा था कि जो भी उसे देखता, एक ठंडी आह भरने से खुद को रोक नहीं पाता था. सांवले सौंदर्य की मालकिन तनु के जिस्म की कसावट और फिगर देख मनचले गहरी सांसें लेते हुए फिकरे कसते थे तो खुद को शरीफजादा कहलाने और दिखलाने वाले भी उस की खिलती जवानी का नेत्रपान चोरीछिपी ही सही, करते जरूर थे.

किसी भी लड़की की छवि ऐसी जैसी कि ऊपर बताई गई है, यूं ही नहीं मन जाती, बल्कि इस में खुद उस के स्वभाव का भी बड़ा हाथ होता है. तनु खुले स्वभाव की लगभग उच्छृंखल युवती थी, जो किसी बंधन में नहीं बंधतीं. लेकिन एक ऐसे मजबूत सहारे की जरूरत उसे हमेशा महसूस होती रहती थी, जो उसे दुनियाजहान की दुश्वारियों से महफूज रखे.

आमतौर पर तनु जैसी महत्त्वाकांक्षी युवतियां जो सपने देखती हैं, उन्हें किसी भी शर्त पर या कोई भी जोखिम उठा कर पूरे करना भी जानती हैं. पर इस के लिए जो कीमत उन्हें चुकानी पड़ती है, वह कभीकभी इतनी भारी पड़ जाती है कि सौदा अंतत: उनके लिए घाटे का साबित होता है. तब उन के पास हाथ मलने और अपनी नादानियों पर पछताने के सिवाय कुछ भी नहीं रह जाता. जिंदगी को कुछ इसी तरह हलके में लेने की कीमत तनु ने कैसे चुकाई, यह जानने से पहले तनु के बारे में जान लेना जरूरी है.

इंदौर के गोयलनगर स्थित अड़ोसपड़ोस अपार्टमेंट में रहने वाली तनु राजौरिया की उम्र तब महज 11 साल थी, जब उस की मां का निधन हो गया था. इस उम्र में लड़कियां शारीरिक और मानसिक बदलावों के दौर से गुजरते हुए तनाव में रहती हैं. ऐसे में मां की कमी उन्हें और असुरक्षित बना देती है. यही तनु के साथ भी हुआ.

तनु के पिता श्याम सिंह राठौर ने दूसरी शादी नहीं की. लेकिन इस बात का अंदाजा उन्हें था कि इस उम्र की बेटी की परवरिश कर पाना उन के लिए आसान नहीं है. लिहाजा उन्होंने उसे अपनी साली यानी तनु की मौसी अनीता के पास भेज दिया. अनीता श्याम सिंह की इस उम्मीद पर खरी उतरीं कि सौतेली मां से बेहतर सगी मौसी होती है.

तनु को पालनेपोसने में अनीता ने न कोई कसर रखी, न भेदभाव किया. लेकिन तनु जैसेजैसे बड़ी होती गई, वैसेवैसे अपनी मरजी की मालकिन होती गई. अनीता ने तो अपनी तरफ से पूरी कोशिश की थी कि अपनी दिवंगत बहन की बेटी को बेहतर संस्कार दें, पर जवान होती तनु के सपने आम लड़कियों से कुछ हट कर थे. मौसी के घर कौशल्यापुरी में तनु ने जवानी में कदम रखा तो उस के इर्दगिर्द लड़कों की भीड़ जमा होने लगी.

तनु हर किसी को भले घास नहीं डालती थी, लेकिन उस की खूबसूरती के चर्चे हर कहीं होने लगे थे. वजह थी एक छरहरी युवती का भरे मांसल बदन का होना, उस की लंबी नाक और बड़ीबड़ी आंखें और पतले होंठों पर पसरी एक शोख मुसकराहट किसी का भी दिल धड़का देने के लिए काफी थी.

हालत यह थी कि मोहल्ले का हर लड़का तनु की नजदीकियां पाने को बेताब रहने लगा. लेकिन कोई भी तनु के तयशुदा पैमानों पर खरा नहीं उतर रहा था. उसे जो बातें अपने सपने के हीरो में चाहिए थीं, वे आखिरकार उसे दिखीं चंदन राजौरिया में.

चंदन कांग्रेस का छोटामोटा नेता और पेशे से प्रौपर्टी ब्रोकर था. वह दबंग भी था, जिस से दूसरे लड़के उस से खौफ खाते थे. 2-4 मुलाकातों में ही तनु ने उसे और उस ने तनु को दिल दे दिया. आजकल की लड़कियों को जैसे लड़के भाते हैं, चंदन ठीक वैसा ही था. माशूका का खयाल रखने वाला, उस पर पैसे लुटाने वाला और सजसंवर कर रहने वाला. लच्छेदार बातों और वादों में भी वह माहिर था.

तनु अब हवा में उड़ने लगी थी, पर उस की शुरू होती प्रेमकथा के किस्से शायद उड़तेउड़ते पिता श्याम सिंह के कानों तक पहुंच गए थे, इसलिए उन्होंने बेटी की शादी अहमदाबाद के एक तेल, गुड़ व्यापारी से न केवल तय कर दी, बल्कि कर भी दी. तनु और चंदन प्यार के रास्ते पर अभी इतने दूर नहीं पहुंचे थे कि वापस न लौट पाएं. तनु शादी कर के अहमदाबाद चली गई तो चंदन अपनी नेतागिरी और प्रौपर्टी डीलिंग के छोटेमोटे कामों में लग गया. पर दोनों ही एकदूसरे को भूल नहीं पाए.

ससुराल में तनु का मन नहीं लगा. वजह जैसी जिंदगी और पति उसे चाहिए था, वह उसे नहीं मिला. दुकानदार पति सुबह दुकान पर चला जाता तो देर रात को लौटता था. अकेली वह खीझ उठती. तनु के लिए शादीशुदा जिंदगी के मायने होटलिंग, शौपिंग और मौजमस्ती भर थे, जो पूरे नहीं हुए तो वह पति से बातबात पर कलह करने लगी. इस से जल्दी ही दांपत्य टूटने की कगार पर आ पहुंचा. यही वह चाहती भी थी, लेकिन इस की वजह कुछ और थी.

वजह था उस का पूर्व प्रेमी चंदन राजौरिया. शादी के बाद पहली बार विदा हो कर तनु मायके इंदौर आई तो चंदन से सामना होने पर दबा प्यार जाग उठा. कहां वह बोर दुकानदार पति और कहां यह बिंदास चंदन.

चालाक चंदन ने जल्दी ही तनु की इस कशमकश भांप ली और उस की गदराई जवानी हासिल करने का उसे यह सुनहरा मौका लगा. लिहाजा पहले तो उस ने तनु की ख्वाहिशों को हवा दी और फिर उन्हें पूरा करने के लिए शादी की पेशकश कर डाली.

तनु के लिए तो यह अंधा क्या चाहे, दो आंखें जैसी बात थी. पर चंदन से शादी करने के लिए जरूरी था पति से तलाक हो, जो आजकल खासतौर से नई पत्नियों के लिए मुश्किल काम नहीं है. तनु दोबारा अहमदाबाद गई तो चंदन के प्यार में महक रही थी. उस ने पति से की जाने वाली कलह की तादाद बढ़ा दी. फलस्वरूप तलाक मांगा तो पति को भी मानो मुंहमांगी मुराद मिल गई. क्योंकि वह तनु की बेहूदा हरकतों और रोजरोज की कलह से आजिज आ चुका था.

तलाक के बाबत तनु ने पति से 5 लाख रुपए मांगे तो उस ने खुशीखुशी दे कर पत्नी से छुटकारा पा लिया. तनु इंदौर वापस आई तो चंदन और उस की मां शादी के लिए तैयार बैठे थे. पति से लिए 5 लाख रुपए उस ने चंदन को दे दिए. कुछ दिनों बाद चंदन ने वादा निभाते हुए उस से शादी कर ली. चंदन की मां राजकुमारी से उस की अच्छी पटरी बैठती थी.

ब्लैकमेलिंग का साइड इफेक्ट

‘‘रजनी, क्या बात है आजकल तुम कुछ बदलीबदली सी लग रही हो. पहले की तरह बात भी नहीं करती.

मिलने की बात करो तो बहाने बनाती हो. फोन करो तो ठीक से बात भी नहीं करतीं. कहीं हमारे बीच कोई और तो नहीं आ गया.’’ कमल ने अपनी प्रेमिका रजनी से शिकायती लहजे में कहा तो रजनी ने जवाब दिया, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है, मेरे जीवन में तुम्हारे अलावा कोई और आ भी नहीं सकता.’’

रजनी और कमल लखनऊ जिले के थाना निगोहां क्षेत्र के गांव अहिनवार के रहने वाले थे. दोनों का काफी दिनों से प्रेम संबंध चल रहा था.

‘‘रजनी, फिर भी मुझे लग रहा है कि तुम मुझ से कुछ छिपा रही हो. देखो, तुम्हें किसी से भी डरने की जरूरत नहीं है. कोई बात हो तो मुझे बताओ. हो सकता है, मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकूं.’’ कमल ने रजनी को भरोसा देते हुए कहा.

‘‘कमल, मैं ने तुम्हें बताया नहीं, पर एक दिन हम दोनों को हमारे फूफा गंगासागर ने देख लिया था.’’ रजनी ने बताया.

‘‘अच्छा, उन्होंने घर वालों को तो नहीं बताया?’’ कमल ने चिंतित होते हुए कहा.

‘‘अभी तो उन्होंने नहीं बताया, पर बात छिपाने की कीमत मांग रहे हैं.’’ रजनी बोली.

‘‘कितने पैसे चाहिए उन्हें?’’ कमल ने पूछा.

‘‘नहीं, पैसे नहीं बल्कि एक बार मेरे साथ सोना चाहते हैं. वह धमकी दे रहे हैं कि अगर उन की बात नहीं मानी तो वह मेरे घर में पूरी बात बता कर मुझे घर से निकलवा देंगे.’’ रजनी के चेहरे पर चिंता के बादल छाए हुए थे.

‘‘तुम चिंता मत करो, बस एक बार तुम मुझ से मिलवा दो. हम उस की ऐसी हालत कर देंगे कि वह बताने लायक ही नहीं रहेगा. वह तुम्हारा सगा रिश्तेदार है तो यह बात कहते उसे शरम नहीं आई?’’ रजनी को चिंता में देख कमल गुस्से से भर गया.

‘‘अरे नहीं, मारना नहीं है. ऐसा करने पर तो हम ही फंस जाएंगे. जो बात हम छिपाना चाह रहे हैं, वही फैल जाएगी.’’ रजनी ने कमल को समझाते हुए कहा.

‘‘पर जो बात मैं तुम से नहीं कह पाया, वह उस ने तुम से कैसे कह दी. उसे कुछ तो शरम आनी चाहिए थी. आखिर वह तुम्हारे सगे फूफा हैं.’’ कमल ने कहा.

‘‘तुम्हारी बात सही है. मैं उन की बेटी की तरह हूं. वह शादीशुदा और बालबच्चेदार हैं. फिर भी वह मेरी मजबूरी का फायदा उठाना चाहते हैं.’’ रजनी बोली.

‘‘तुम चिंता मत करो, अगर वह फिर कोई बात करे तो बताना. हम उसे ठिकाने लगा देंगे.’’ कमल गुस्से में बोला.  इस के बाद रजनी अपने घर आ गई पर रजनी को इस बात की चिंता होने लगी थी.

ब्लैकमेलिंग में अवांछित मांग

38 साल के गंगासागर यादव का अपना भरापूरा परिवार था. वह लखनऊ जिले के ही सरोजनीनगर थाने के गांव रहीमाबाद में रहता था. वह ठेकेदारी करता था. रजनी उस की पत्नी रेखा के भाई की बेटी थी.

उस से उम्र में 15 साल छोटी रजनी को एक दिन गंगासागर ने कमल के साथ घूमते देख लिया था. कमल के साथ ही वह मोटरसाइकिल से अपने घर आई थी. यह देख कर गंगासागर को लगा कि अगर रजनी को ब्लैकमेल किया जाए तो वह चुपचाप उस की बात मान लेगी. चूंकि वह खुद ही ऐसी है, इसलिए यह बात किसी से बताएगी भी नहीं. गंगासागर ने जब यह बात रजनी से कही तो वह सन्न रह गई. वह कुछ नहीं बोली.

गंगासागर ने रजनी से एक दिन फिर कहा, ‘‘रजनी, तुम्हें मैं सोचने का मौका दे रहा हूं. अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो घर में तुम्हारा भंडाफोड़ कर दूंगा. तुम तो जानती ही हो कि तुम्हारे मांबाप कितने गुस्से वाले हैं. मैं उन से यह बात कहूंगा तो मेरी बात पर उन्हें पक्का यकीन हो जाएगा और बिना कुछ सोचेसमझे ही वे तुम्हें घर से निकाल देंगे.’’

रजनी को धमकी दे कर गंगासागर चला गया. समस्या गंभीर होती जा रही थी. रजनी सोच रही थी कि हो सकता है उस के फूफा के मन से यह भूत उतर गया हो और दोबारा वह उस से यह बात न कहें.

यह सोच कर वह चुप थी, पर गंगासागर यह बात भूला नहीं था. एक दिन रजनी के घर पहुंच गया. अकेला पा कर उस ने रजनी से पूछा, ‘‘रजनी, तुम ने मेरे प्रस्ताव पर क्या विचार किया?’’

‘‘अभी तो कुछ समझ नहीं आ रहा कि क्या करूं. देखिए फूफाजी, आप मुझ से बहुत बड़े हैं. मैं आप के बच्चे की तरह हूं. मुझ पर दया कीजिए.’’ रजनी ने गंगासागर को समझाने की कोशिश की.

‘‘इस में बड़ेछोटे जैसी कोई बात नहीं है. मैं अपनी बात पर अडिग हूं. इतना समझ लो कि मेरी बात नहीं मानी तो भंडाफोड़ दूंगा. इसे कोरी धमकी मत समझना. आखिरी बार समझा रहा हूं.’’ गंगासागर की बात सुन कर रजनी कुछ नहीं बोली. उसे यकीन हो गया था कि वह मानने वाला नहीं है.

रजनी ने यह बात कमल को बताई. कमल ने कहा, ‘‘ठीक है, किसी दिन उसे बुला लो.’’

इस के बाद रजनी और कमल ने एक योजना बना ली कि अगर वह अब भी नहीं माना तो उसे सबक सिखा देंगे. दूसरी ओर गंगासागर पर तो किशोर रजनी से संबंध बनाने का भूत सवार था.

सुबह होते ही उस का फोन आ गया. फूफा का फोन देखते ही रजनी समझ गई कि अब वह मानेगा नहीं. कमल की योजना पर काम करने की सोच कर उस ने फोन रिसीव करते हुए कहा, ‘‘फूफाजी, आप कल रात आइए. आप जैसा कहेंगे, मैं करने को तैयार हूं.’’

रजनी इतनी जल्दी मान जाएगी, गंगासागर को यह उम्मीद नहीं थी. अगले दिन शाम को उस ने रजनी को फोन कर पूछा कि वह कहां मिलेगी. रजनी ने उसे मिलने की जगह बता दी.

अपने आप बुलाई मौत

18 जुलाई, 2018 को रात गंगासागर ने 8 बजे अपनी पत्नी को बताया कि पिपरसंड गांव में दोस्त के घर बर्थडे पार्टी है. अपने साथी ठेकेदार विपिन के साथ वह वहीं जा रहा है.

गंगासागर रात 11 बजे तक भी घर नहीं लौटा तो पत्नी रेखा ने उसे फोन किया. लेकिन उस का फोन बंद था. रेखा ने सोचा कि हो सकता है ज्यादा रात होने की वजह से वह वहीं रुक गए होंगे, सुबह आ जाएंगे.

अगली सुबह किसी ने फोन कर के रेखा को बताया कि गंगासागर का शव हरिहरपुर पटसा गांव के पास फार्महाउस के नजदीक पड़ा है. यह खबर मिलते ही वह मोहल्ले के लोगों के साथ वहां पहुंची तो वहां उस के पति की चाकू से गुदी लाश पड़ी थी. सूचना मिलने पर पुलिस भी वहां पहुंच गई. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और गंगासागर के पिता श्रीकृष्ण यादव की तहरीर पर अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया.

कुछ देर बाद पुलिस को सूचना मिली कि गंगासागर की लाल रंग की बाइक घटनास्थल से 22 किलोमीटर दूर असोहा थाना क्षेत्र के भावलिया गांव के पास सड़क किनारे एक गड्ढे में पड़ी है. पुलिस ने वह बरामद कर ली.

जिस क्रूरता से गंगासागर की हत्या की गई थी, उसे देखते हुए सीओ (मोहनलाल गंज) बीना सिंह को लगा कि हत्यारे की मृतक से कोई गहरी खुंदक थी, इसीलिए उस ने चाकू से उस का शरीर गोद डाला था ताकि वह जीवित न बच सके.

पुलिस ने मृतक के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवा कर उस का अध्ययन किया. इस के अलावा पुलिस ने उस की सालियों, साले, पत्नी सहित कुछ साथी ठेकेदारों से भी बात की. एसएसआई रामफल मिश्रा ने काल डिटेल्स खंगालनी शुरू की तो उस में कुछ नंबर संदिग्ध लगे.

लखनऊ के एसएसपी कलानिधि नैथानी ने घटना के खुलासे के लिए एसपी (क्राइम) दिनेश कुमार सिंह के निर्देशन में एक टीम का गठन किया, जिस में थानाप्रभारी अजय कुमार राय के साथ अपराध शाखा के ओमवीर सिंह, सर्विलांस सेल के सुधीर कुमार त्यागी, एसएसआई रामफल मिश्रा, एसआई प्रमोद कुमार, सिपाही सरताज अहमद, वीर सिंह, अभिजीत कुमार, अनिल कुमार, राजीव कुमार, चंद्रपाल सिंह राठौर, विशाल सिंह, सूरज सिंह, राजेश पांडेय, जगसेन सोनकर और महिला सिपाही सुनीता को शामिल किया गया.

काल डिटेल्स से पता चला कि घटना की रात गंगासागर की रजनी, कमल और कमल के दोस्त बबलू से बातचीत हुई थी. पुलिस ने रजनी से पूछताछ शुरू की और उसे बताया, ‘‘हमें सब पता है कि गंगासागर की हत्या किस ने की थी. तुम हमें सिर्फ यह बता दो कि आखिर उस की हत्या करने की वजह क्या थी?’’

रजनी सीधीसादी थी. वह पुलिस की घुड़की में आ गई और उस ने स्वीकार कर लिया कि उस की हत्या उस ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर की थी.

उस ने बताया कि उस के फूफा गंगासागर ने उस का जीना दूभर कर दिया था, जिस की वजह से उसे यह कदम उठाना पड़ा. रजनी ने पुलिस को हत्या की पूरी कहानी बता दी.

गंगासागर की ब्लैकमेलिंग से परेशान रजनी ने उसे फार्महाउस के पास मिलने को बुलाया था. वहां कमल और उस का साथी बबलू पहले से मौजूद थे. गंगासागर को लगा कि रजनी उस की बात मान कर समर्पण के लिए तैयार है और वह रात साढ़े 8 बजे फार्महाउस के पीछे पहुंच गया.

रजनी उस के साथ ही थी. गंगासागर के मन में लड्डू फूट रहे थे. जैसे ही उस ने रजनी से प्यारमोहब्बत भरी बात करनी शुरू की, वहां पहले से मौजूद कमल ने अंधेरे का लाभ उठा कर उस पर लोहे की रौड से हमला बोल दिया. गंगासागर वहीं गिर गया तो चाकू से उस की गरदन पर कई वार किए. जब वह मर गया तो कमल और बबलू ने खून से सने अपने कपड़े, चाकू और रौड वहां से कुछ दूरी पर झाड़ के किनारे जमीन में दबा दिया.

दोनों अपने कपड़े साथ ले कर आए थे. उन्हें पहन कर कमल गंगासागर की बाइक ले कर उन्नाव की ओर भाग गया. बबलू रजनी को अपनी बाइक पर बैठा कर गांव ले आया और उसे उस के घर छोड़ दिया. कमल ने गंगासागर की बाइक भावलिया गांव के पास सड़क किनारे गड्ढे में डाल दी, जिस से लोग गुमराह हो जाएं. पुलिस ने बड़ी तत्परता से केस की छानबीन की और हत्या का 4 दिन में ही खुलासा कर दिया. एसएसपी कलानिधि नैथानी और एसपी (क्राइम) दिनेश कुमार सिंह ने केस का खुलासा करने वाली पुलिस टीम की तारीफ की.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में रजनी परिवर्तित नाम है.

बिखर गई खुशी : जब प्रेमी आया करियर के बीच

15 जुलाई, 2019 की सुबह के यही कोई साढ़े 9 बज रहे थे. महाराष्ट्र की शीतकालीन राजधानी नागपुर के ग्रामीण इलाके के सावली गांव की पुलिस पाटिल (चौकीदार) ज्योति कोसरकर अपने घर पर बैठी थी, तभी उस के पास गांव का एक आदमी आया और उस ने घबराई आवाज में उसे जो कुछ बताया, उसे सुन कर वह चौंक उठी.

वह बिना देर किए उस आदमी को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंची तो वहां का दृश्य देख कर स्तब्ध रह गई. पाटुर्णा-नागपुर एक्सप्रैस हाइवे से करीब 25 फीट की दूरी पर गड्ढे में एक युवती का शव पड़ा हुआ था, जिस की उम्र करीब 19-20 साल के आसपास थी. युवती के ब्रांडेड कपड़ों से लग रहा था कि वह किसी अच्छे घर की रही होगी.

उस की हत्या बड़ी ही बेरहमी से की गई थी. उस का चेहरा एसिड से जला कर विकृत कर दिया गया था. उस का एक हाथ गायब था, जिसे देख कर लग रहा था कि संभवत: उस का हाथ रात में किसी जंगली जानवर ने खा लिया होगा. घटनास्थल को देख कर यह बात साफ हो गई थी कि उस युवती की हत्या कहीं और की गई थी.

पुलिस पाटिल ज्योति कोसरकर लाश को देख ही रही थी कि वहां आसपास के गांवों के काफी लोग एकत्र हो गए.

ज्योति कोसरकर ने वहां मौजूद लोगों से उस युवती के बारे में पूछा तो कोई भी लाश को नहीं पहचान सका. आखिर ज्योति कोसरकर ने लाश मिलने की खबर स्थानीय ग्रामीण पुलिस थाने को दे दी.

सूचना मिलने पर ग्रामीण पुलिस थाने के इंसपेक्टर सुरेश मद्दामी, एएसआई अनिल दरेकर, कांस्टेबल राजू खेतकर, रवींद्र चपट आदि को साथ ले कर तत्काल घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां पहुंच कर उन्होंने पुलिस पाटिल ज्योति कोसरकर से लाश की जानकारी ली और शव के निरीक्षण में जुट गए. उन्होंने यह सूचना अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी.

वह युवती कौन और कहां की रहने वाली थी, यह बात वहां मौजूद लोगों से पता नहीं लग सकी. टीआई सुरेश मद्दामी मौकामुआयना कर ही रहे थे कि एसपी (देहात) राकेश ओला, डीसीपी मोनिका राऊत, एसीपी संजय जोगंदड़ भी मौकाएवारदात पर आ गए.

फोरैंसिक टीम भी आ गई थी. कुछ देर बाद क्राइम ब्रांच की टीम भी वहां पहुंच गई. जांच टीमों ने मौके से सबूत जुटाए. वरिष्ठ अधिकारियों के जाने के बाद टीआई सुरेश मद्दामी और क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर अनिल जिट्टावार इस नतीजे पर पहुंचे कि हत्यारे ने अपनी और उस युवती की शिनाख्त छिपाने की पूरीपूरी कोशिश की है.

जिस तरह उस युवती की हत्या हुई थी, उस में प्यार का ऐंगल नजर आ रहा था. हत्यारा युवती से काफी नाराज था. शव देख कर यह बात साफ हो गई थी कि युवती शहर की रहने वाली थी.

मौके की जरूरी काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने युवती की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दी. इस के साथ ही थाना पुलिस और क्राइम ब्रांच इस केस की जांच में जुट गईं.

पुलिस के सामने सब से बड़ी समस्या यह थी कि वह अपनी जांच कहां से शुरू करे. क्योंकि जांच के नाम पर उस के पास कुछ नहीं था. केवल युवती के बाएं हाथ पर लव बर्ड (प्यार के पंछी) और सीने पर क्वीन (दिल की रानी) के टैटू के अलावा कोई पहचान नहीं थी. फिर भी पुलिस ने हार नहीं मानी.

पुलिस ने मृतक युवती की शिनाख्त के लिए जब सोशल मीडिया का सहारा लिया तो बहुत जल्द सफलता मिल गई. इस से न सिर्फ मृतका की शिनाख्त हुई बल्कि 10 घंटों के अंदर ही क्राइम ब्रांच ने अपने अथक प्रयासों के बाद मामले को सुलझा भी लिया.

पुलिस ने जब मृतका की फोटो सोशल मीडिया पर डाली तो जल्द ही वायरल हो गई. एक से 2, 2 से 3 ग्रुपों से होते हुए मृत युवती का फोटो जब फुटला तालाब परिसर में स्थित एक पान की दुकान पर पहुंचा तो दुकानदार ने फोटो पहचान लिया.

फोटो उभरती हुई मौडल खुशी का था. पान वाले ने खुशी को कई बार एक स्मार्ट युवक के साथ घूमते और धरेरा होटल में आतेजाते देखा था.

यह जानकारी जब क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर अनिल जिट्टावार को मिली तो वह और ज्यादा सक्रिय हो गए. उन्होंने उस युवती की सारी जानकारी कुछ ही समय में इकट्ठा कर ली. उन्होंने खुशी के इंस्टाग्राम को खंगाला तो ठीक वैसा ही टैटू खुशी के हाथ और सीने पर मिल गया, जैसा कि मृत युवती के शरीर पर था. इस से यह साबित हो गया कि वह शव खुशी का ही था.

क्राइम ब्रांच के अधिकारियों को खुशी के इंस्टाग्राम प्रोफाइल में उस का पूरा नाम और उस के बारे में जानकारी मिल गई. उस का पूरा नाम खुशी परिहार था. वह अपनी मौसी के साथ रहती थी और राय इंगलिश स्कूल और जूनियर कालेज में बी.कौम. अंतिम वर्ष की छात्रा थी. वह पार्टटाइम मुंबई और नागपुर में मौडलिंग करती थी.

खुशी की शिनाख्त से पुलिस और क्राइम ब्रांच का सिरदर्द तो खत्म हो गया था. अब जांच अधिकारियों के आगे खुशी परिहार के हत्यारों तक पहुंचना था. पुलिस ने जब खुशी की मौसी से संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि खुशी कई महीनों से उन के साथ नहीं है. वह अपने दोस्त अशरफ शेख के साथ लिवइन रिलेशन में वेलकम हाउसिंग सोसायटी, हजारीबाग पहाड़गंज गिट्टी खदान के पास रही थी.

पुलिस ने जब मौसी को खुशी की हत्या की खबर दी तो वह दहाड़ें मार कर रोने लगीं और उन्होंने अपना संदेह अशरफ शेख पर जाहिर किया. उन का कहना था कि घटना की रात अशरफ शेख ने उन्हें फोन कर बताया था कि खुशी और उस के बीच किसी बात को ले कर झगड़ा हो गया था. वह उस से नाराज हो कर अपने गांव चली गई है.

क्राइम ब्रांच टीम को खुशी की मौसी की बातों से यह पता चल गया कि मामले में किसी न किसी रूप में अशरफ शेख की भूमिका जरूर है. अत: क्राइम ब्रांच ने अशरफ शेख का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा दिया.

इस के अलावा शहर के सभी पुलिस थानों को अशरफ शेख के बारे में जानकारी दे दी गई. इस का नतीजा यह हुआ कि अशरफ शेख को गिट्टी खदान पुलिस की सहायता से कुछ घंटों में दबोच लिया गया.

अशरफ शेख को जब क्राइम ब्रांच औफिस में ला कर उस से पूछताछ की गई तो वह जांच अधिकारियों को भी गुमराह करने की कोशिश करने लगा. लेकिन क्राइम ब्रांच ने जब सख्ती की तो वह फूटफूट कर रोने लगा और अपना गुनाह स्वीकार कर के मौडल खुशी परिहार की हत्या करने की बात मान ली. उस ने मर्डर मिस्ट्री की जो कहानी बताई, उस की पृष्ठभूमि कुछ इस प्रकार से थी.

21 वर्षीय अशरफ शेख नागपुर के आईबीएम रोड गिट्टी खदान इलाके का रहने वाला था. उस का पिता अफसर शेख ड्रग तस्कर था. अभी हाल ही में उसे नागपुर पुलिस ने करीब 400 किलोग्राम गांजे के साथ गिरफ्तार किया था. अशरफ शेख उस का सब से छोटा बेटा था.

बेटा नशे के धंधे में न पड़े, इसलिए अफसर ने उसे गिट्टी खदान में एक बड़ा सा हेयर कटिंग सैलून खुलवा दिया था. लेकिन उस हेयर कटिंग सैलून में अशरफ शेख का मन नहीं लगता था. वह शानोशौकत के साथ आवारागर्दी करता था. खूबसूरत लड़कियां उस की कमजोरी थीं.

अपने सभी भाइयों में सुंदर अशरफ रंगीनमिजाज युवक था. यही कारण था कि अपने दोस्तों की मार्फत वह शहर की महंगी पार्टियों और फैशन शो वगैरह में जाने लगा था.

इसी के चलते उस की कई मौडल लड़कियों से दोस्ती हो गई थी. एक फैशन शो में उस ने जब खुशी को देखा तो वह उस का दीवाना हो गया. खुशी से और ज्यादा नजदीकियां बनाने के लिए वह उस की हर पार्टी और फैशन शो में जाने लगा था.

19 वर्षीय खुशी परिहार मध्य प्रदेश के जिला सतना के एक गांव की रहने वाली थी. उस के पिता जगदीश परिहार सर्विस करते थे. वह खुशी को एक अच्छी शिक्षिका बनाना चाहते थे लेकिन खुशी तो कुछ और ही बनना चाहती थी.

खुशी जितनी खूबसूरत और चंचल थी, उतनी ही महत्त्वाकांक्षी भी थी. वह बचपन से ही टीवी सीरियल्स, फिल्म और मौडलिंग की दीवानी थी. वह जब भी किसी मैगजीन और टीवी पर किसी मौडल, अभिनेत्री को देखती तो उस की आंखों में भी वैसे ही सतरंगी सपने नाचने लगते थे.

पढ़ाई लिखाई में तेज होने के कारण परिवार खुशी को प्यार तो करता था, लेकिन उस के अरमानों को देखसुन कर घर वाले डर जाते थे. क्योंकि उन में बेटी को वहां तक पहुंचाने की ताकत नहीं थी.

यह बड़े शहर में रह कर ही संभव हो सकता था. गांव के स्कूल से खुशी ने कई बार ब्यूटी क्वीन का अवार्ड अपने नाम किए थे लेकिन उस की चमक गांव तक ही सीमित थी.

खुशी बचपन से ही अपनी मौसी के काफी करीब थी. उस की मौसी नागपुर में रहती थीं. वह भी खुशी के शौक से अनजान नहीं थीं. उन्होंने खुशी को आगे बढ़ने की प्रेरणा दी और 10वीं पास करने के बाद उसे अपने पास नागपुर बुला लिया.

नागपुर आ कर जब उस ने अपना पोर्टफोलियो विज्ञापन एजेंसियों को भेजा तो उसे इवन फैशन शो कंपनी में जौब मिल गई. जौब मिलने के बाद खुशी ने अपनी आगे की पढ़ाई भी शुरू कर दी. उस ने नागपुर के जानेमाने स्कूल में एडमिशन ले लिया. अब खुशी अपनी पढ़ाई के साथसाथ पार्टटाइम विज्ञापन कंपनियों और फैशन शो के लिए काम करने लगी.

धीरेधीरे खुशी की पहचान बननी शुरू हुई तो उस के परिचय का दायरा भी बढ़ने लगा. फैशन और मौडलिंग जगत में उस के चर्चे होने लगे. धीरेधीरे सोशल मीडिया पर उस के हजारों फैंस बन गए थे. खुशी भी उन का दिल रखने के लिए उन का मैसेज पढ़ती थी और अपने हिसाब से जवाब भी देती थी. वह अपने नएनए पोजों के फोटो सोशल मीडिया पर शेयर करती रहती थी.

इस तरह नागपुर आए उसे 3 साल गुजर गए. अब उस का बी.कौम. का अंतिम वर्ष था. अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वह पूरी तरह मौडलिंग और टीवी की दुनिया में उतरती, इस के पहले ही उस की जिंदगी में मनचले अशरफ शेख की एंट्री हो गई.

अपने प्रति अशरफ शेख की दीवानगी देख कर खुशी भी धीरेधीरे उस के करीब आ गई. कुछ ही दिनों में दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. अशरफ शेख दिल खोल कर खुशी पर पैसा बहा रहा था. वह उस की हर जरूरत पूरी करता था.

अशरफ शेख और खुशी की दोस्ती की खबर जब खुशी के परिवार वालों और मौसी तक पहुंची तो उन्होंने उसे आड़े हाथों लिया. उन्होंने उसे समझाया भी. चूंकि अशरफ दूसरे धर्म का था, इसलिए उसे समाज और रिश्तों के विषय में भी बताया. लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी. खुशी अशरफ शेख के प्यार में गले तक डूब चुकी थी.

मौसी और परिवार वालों की बातों पर ध्यान न दे कर वह अशरफ शेख के लिए मौसी का घर छोड़ कर उस के साथ गिट्टी खदान में किराए का मकान ले कर लिवइन रिलेशन में रहने लगी.

अब खुशी पूरी तरह से आजाद थी. कोई उसे रोकनेटोकने वाला नहीं था. अशरफ शेख उस का बराबर ध्यान रखता था. उसे उस के कालेज और फैशन शो में ले कर जाता था.

बाद में खुशी ने तो अपना नाम भी बदल कर जास शेख रख लिया था. प्यार का एहसास दिलाने के लिए उस ने हाथ और दिल पर टैटू भी बनवा लिए थे.

खुशी अशरफ शेख के साथ खुश थी. वह मौडलिंग के क्षेत्र में अपना दायरा बढ़ाने में लगी  थी. उस का सपना था कि वह सुपरमौडल बने, जिस से देश भर में उस का नाम हो. लेकिन अशरफ शेख ने जब से खुशी के साथ निकाह करने का फैसला किया था, दोनों के बीच तकरार बढ़ गई थी.

इस की वजह यह थी कि अशरफ नहीं चाहता था कि खुशी बाहरी लोगों से मिले और देर रात तक घर से बाहर रहे. वह अब खुशी के हर फैसले में अपनी टांग अड़ाने लगा था. वह चाहता था कि खुशी अब मौडलिंग वगैरह का चक्कर छोड़े और सारा दिन उस के साथ रहे और मौजमस्ती करे.

लेकिन खुशी को यह सब मंजूर नहीं था. उस का कहना था कि उस ने जो सपना बचपन से देखा है, उसे हर हाल में पूरा करना है. मौडलिंग की दुनिया में वह अपने आप को आकाश में देखना चाहती थी, जो अशरफ को गवारा नहीं था. इसी सब को ले कर अब खुशी और अशरफ के बीच दूरियां बढ़ने लगी थीं. दोनों में अकसर तकरार और छोटेमोटे झगड़े भी होने लगे थे.

अशरफ को यकीन हो गया था कि खुशी अपने इरादों से पीछे हटने वाली नहीं है. अब तक वह खुशी पर बहुत रुपए खर्च कर चुका था और खुशी उस का अहसान मानने को तैयार नहीं थी. खुशी का मानना था कि प्यार में पैसों का कोई मूल्य नहीं होता.

यह बात अशरफ को चुभ गई थी. उस ने अपने 5 महीनों के प्यार और दोस्ती को ताख पर रख दिया और घटना के 2 दिन पहले 12 जुलाई, 2019 को अपनी कार नंबर एमएच03ए एम4769 से खुशी को ले कर एक लंबी ड्राइव पर निकल गया.

दोनों नागपुर शहर से काफी दूर ग्रामीण इलाके में आ गए थे. कुछ समय वह पाटुर्णानागपुर रोड पर यूं ही कार को दौड़ाता रहा फिर दोनों ने सावली गांव के करीब स्थित कलमेश्वर इलाके के शर्मा ढाबे पर  खाना खाया और जम कर शराब पी.

तब तक रात के 10 बज चुके थे. इलाका सुनसान हो गया था. कार में बैठने के बाद अशरफ शेख ने अपना वही पुराना राग छेड़ दिया, जिस से खुशी नाराज हो गई. खुशी पर भी नशा चढ़ गया था. उस का कहना था कि वह आजाद थी और आजाद रहेगी. वह जिस पेशे में है, उस में उसे हजारों लोगों से मिलनाजुलना पड़ता है. उन का कहना मानना पड़ता है. अगर तुम्हें मुझ से कोई तकलीफ है तो तुम मुझ से बे्रकअप कर सकते हो.

‘‘मुझे लगता है कि अब तुम्हारा मन मुझ से भर गया है और तुम किसी और की तलाश में हो.’’ अशरफ बोला.

‘‘यह तुम्हारा सिरदर्द है मेरा नहीं. मैं जैसी पहले थी अब भी वैसी ही रहूंगी.’’ खुशी ने कहा तो दोनों की कहासुनी मारपीट तक पहुंच गई. उसी समय अशरफ अपना आपा खो बैठा और कार के अंदर ही खुशी के सिर पर मार कर उसे बेहोश कर दिया.

खुशी के बेहोश होने के बाद अशरफ इतना डर गया कि वह अपनी कार सावली गांव के इलाके में एक सुनसान जगह पर ले गया और उस ने खुशी को हाइवे किनारे जला दिया.

इस के बाद अपनी और खुशी की पहचान छिपाने के लिए उस ने कार के अंदर से टायर बदलने का जैक निकाल कर उस का चेहरा विकृत किया और उस के ऊपर बैटरी का एसिड डाल दिया.

खुशी का शव ठिकाने लगाने के बाद उस ने खुशी का मोबाइल अपने पास रख लिया, जिसे क्राइम टीम ने बरामद कर लिया था. इस के बाद वह आराम से अपने घर चला गया और खुशी की मौसी को फोन पर बताया कि उस का और खुशी का झगड़ा हो गया है. वह अपने गांव चली गई है.

उस का मानना था कि 2-4 दिनों में खुशी के शव को जानवर खा जाएंगे और मामला रफादफा हो जाएगा. लेकिन यह उस की भूल थी. वह क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर अनिल जिट्टावार के हत्थे चढ़ गया.

क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने अशरफ से विस्तृत पूछताछ के बाद उसे केलवद ग्रामीण पुलिस थाने के इंसपेक्टर सुरेश मट्टामी को सौंप दिया. आगे की जांच टीआई सुरेश मट्टामी कर रहे थे. 

प्रेमिका से छुटकारा पाने की शातिर चाल – भाग 3

हेमंत दिमाग से माधुरी के साथ खेल रहा था, जबकि वह दिल की खुशी के चक्कर में अच्छाबुरा सोचे बिना डगमगा गई. वह उसे अपने इशारों पर नचा रहा था. माधुरी उस की हर बात मानती थी और हद दरजे का विश्वास करती थी. हेमंत के कहे अनुसार, माधुरी राहुल के साथ भागी भी और शादी भी कर ली. दोनों पकड़े भी गए. उन्हें पकड़वाने में हेमंत ने ही अहम भूमिका निभाई थी.

उस ने माधुरी से पीछा छुड़ाने की योजना मन ही मन पहले ही तैयार कर ली थी. इतना सब तमाशा होने के बाद वह घर आई तो उस ने हेमंत को शादी की बात याद दिलाई. बदनामी, परिवार की डांटफटकार माधुरी ने सिर्फ हेमंत से शादी करने के लिए सही थी. हेमंत उसे प्यार से समझाबुझा कर पीछा छुड़ाने के बजाए उस के सपनों को और भी ऊंचाई दे कर बरगलाने का काम करता रहा. उस के कहने पर माधुरी राहुल से पिता के मोबाइल से बातें करती रही.

22 दिसंबर को हेमंत ने माधुरी से कहा था कि अगले दिन वह घर से निकल कर गांव के बाहर तय जगह पर पहुंच जाए. उसे लगता था कि माधुरी ऐसा नहीं करेगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. माधुरी उस के झूठे प्यार में अंधी हो चुकी थी. वह उस खेत पर पहुंच गई, जहां उस ने पहुंचने को कहा था. माधुरी ने यह बात हेमंत को फोन कर के बता भी दी. वह खेत गांव के किसान डंकारी सिंह का था. हेमंत ने पहले ही तय कर लिया था कि उसे क्या करना है. माधुरी उस के गले की फांस बन चुकी थी. शाम करीब 4 बजे वह खेत पर पहुंचा और माधुरी को कंबल तथा बाजार से ला कर खाना दे आया.

हेमंत ने उसे समझाने के बजाए बरगलाते हुए कहा, ‘‘माधुरी, मैं माहौल देख लूं. पहले तो राहुल को जेल भिजवाना जरूरी है. उस के बाद हम निकल चलेंगे. लेकिन तब तक तुम्हें यहीं रहना होगा.’’

माधुरी ने इस कड़ाके की ठंड में वह रात अकेली खेतों में बिताई. हेमंत उस के लिए खाना पहुंचाता रहा. किसी को उस पर शक न हो, इस के लिए वह माधुरी के घर वालों के साथ खड़ा रहा और उन्हें राहुल के खिलाफ भड़काता रहा. 2 दिन बीत गए. अब माधुरी को खेत में रहना मुश्किल लगने लगा. आखिर उस के सब्र का बांध टूट गया.

तीसरे दिन यानी 26 दिसंबर की शाम माधुरी हेमंत से चलने की जिद करने लगी तो प्यार जताने के बहाने उस ने दुपट्टे से उस का गला कस दिया. हेमंत का यह रूप देख कर माधुरी के होश उड़ गए. बचाव के लिए विरोध करते हुए उस ने हाथपैर भी चलाए, लेकिन हेमंत ने गले में लिपटा दुपट्टा पूरी ताकत से कस दिया था, जिस से छटपटा कर उस ने दम तोड़ दिया. हत्या कर के हेमंत ने अपने और माधुरी के मोबाइल का सिमकार्ड तोड़ दिया और घर आ गया. रात को वह बहाने से निकला और गड्ढा खोद कर लाश को दफना दिया. इस के बाद वह सामान्य जिंदगी जीने लगा.

लोगों के शक से बचने के लिए वह अपने काम पर भी जाता और माधुरी के पिता के साथ बैठ कर माधुरी को ले कर फिक्र भी जताता. हेमंत को पूरा विश्वास था कि वह कभी पकड़ा नहीं जाएगा. उसे लगता था कि दबाव में आ कर पुलिस राहुल और उस के दोस्तों को जेल भेज देगी. उस के बाद माधुरी की खोजबीन ठंडे बस्ते में चली जाएगी. इसीलिए उस ने माधुरी के घर वालों को पुलिस अधिकारियों के यहां प्रदर्शन करने के लिए उकसाया था.

यह अलग बात थी कि एसपी सुजाता सिंह की समझ से पुलिस ने किसी दबाव में काम नहीं किया और वह पकड़ में आ गया. यह भी सच है कि अगर पुलिस बारीकी से जांच न करती तो हेमंत कभी पकड़ा न जाता. उस की फरेबी फितरत और हैवानियत ने पूरे गांव को हैरान कर दिया. पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था. कथा लिखे जाने तक उस की जमानत नहीं हो सकी थी. माधुरी हेमंत जैसे शातिर के झांसे में न आई होती और बिना डगमगाए अपने भविष्य को संवारने में लगी होती तो यह नौबत कभी न आती.

हेमंत जैसे लोग अपनी घिनौनी सोच को पूरी करने के लिए भोलीभाली लड़कियों को फंसाने का काम करते हैं. जरूरत है, लड़कियों को ऐसे लोगों से सावधान रहने की.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अल्हड़पन के दीवानों का हश्र

20 साल की रूबी लखनऊ के आशियाना इलाके में नौकरी करती थी. देखने में वह बहुत सुंदर भले ही नहीं थी, पर उस में चुलबुलापन जरूर था. यानी सांवले रंग में भी तीखापन, जो सहज ही किसी को भी अपनी ओर खींच लेता था. दिल खोल कर बात करने की उस की अदा से सब को लगता था कि रूबी उसे ही दिल दे बैठी है.रूबी अपने गांव से शहर आई थी. उसे अपने हुनर से ही गुजरबसर करने लायक जमीन तैयार करनी थी. वह बहुत सारे लोगों से मिलतीजुलती थी, जिन में से एक आनंद भी था. उम्र में वह रूबी से करीब 10 साल बड़ा था. इस के बाद भी रूबी और आनंद की आपस में गहरी दोस्ती हो गई.

रूबी काम पर जाती तो उसे लाने ले जाने का काम आनंद ही करता था. रूबी को भी इस से सहूलियत होती थी. उसे वक्तबेवक्त आनेजाने में कोई डर नहीं रहता था. एक तरह से रूबी को ड्राइवर और गार्ड दोनों मिल गए थे.

दोस्ती से शुरू हुई यह मुलाकात धीरेधीरे रंग लाने लगी. वक्त के साथ दोनों के संबंध गहराने लगे. आनंद चाहता था कि रूबी केवल उस के साथ ही रहे पर रूबी हर किसी से बातें करती थी. उस के खुलेपन से बातें करने से हर किसी को लगता था कि रूबी उस की खास हो गई है.

आनंद और रूबी का चक्कर चल ही रहा था कि वह इंद्रपाल के संपर्क में आ गई. इंद्रपाल उस के साथ काम करता था. अब रूबी कभीकभी आनंद के बजाय इंद्रपाल के साथ आनेजाने लगी. आनंद और इंद्रपाल में अंतर यह था कि इंद्रपाल रूबी की उम्र का ही था.

सीतापुर जिले का रहने वाला इंद्रपाल नौकरी करने के लिए लखनऊ आया था. आनंद को रूबी और इंद्रपाल का आपस में घुलनामिलना पसंद नहीं आ रहा था. वह सोच रहा था कि किसी दिन रूबी को समझाएगा.

एक दिन रूबी और इंद्रपाल शाम को आशियाना के किला चौराहे पर चाट के ठेले पर खड़े पानीपूरी खा रहे थे. रूबी को पानीपूरी बहुत पसंद थी. इत्तफाक से आनंद ने दोनों को देख लिया तो उसे गुस्सा आ गया.

जब रूबी आनंद से मिली तो उस ने कहा, ‘‘तुम आजकल अपने नए दोस्त से कुछ ज्यादा ही घुलमिल रही हो. यह मुझे पसंद नहीं है. अगर मुझ में कोई कमी हो तो बताओ, लेकिन तुम्हारा इस तरह से किसी और के साथ समय गुजारना मुझे अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘तुम भी क्याक्या सोचते रहते हो, हम दोनों केवल साथी हैं. कभीकभी उस के साथ घूमने चली जाती हूं, इस से तुम्हारेमेरे संबंधों में कोई फर्क नहीं पड़ेगा. तुम परेशान मत हो.’’

‘‘देखो, तुम्हें फर्क भले न पड़ता हो पर मुझे पड़ता है. मैं इसे सहन नहीं कर सकता. मेरे जानने वाले कहते हैं कि देखो तुम्हारे साथ रहने वाली रूबी अब किसी और के साथ घूम रही है.’’

‘‘लोगों का क्या है, वे तो केवल बातें बनाना जानते हैं. तुम उन की बातों पर ध्यान ही मत दो. तुम मुझ पर यकीन नहीं कर रहे, इसलिए लोगों की बातें सुन रहे हो.’’

‘‘रूबी, मैं ये सब नहीं जानता. बस मुझे तुम्हारा उस लड़के के साथ रहना पसंद नहीं है. जिस तरह से तुम उस के साथ घूमने जाती हो, उस से साफ लगता है कि तुम मुझ से कुछ छिपा रही हो.’’

रूबी ने आनंद से बहस करना उचित नहीं समझा. वह चुपचाप वहां से चली गई. उसे आनंद का इस तरह से बात करना पसंद नहीं आया. वह मन ही मन सोचने लगी कि आनंद से कैसे पीछा छुड़ाया जाए.

यही बात आनंद भी सोच रहा था. आनंद रूबी के चाचा से मिला और उसे रूबी और इंद्रपाल के बारे में बताया. यह बात उस ने कुछ इस तरह से बताई कि रूबी के चाचा उस पर बहुत नाराज हुए.

जब रूबी ने उन की एक नहीं सुनी तो वह बोले, ‘‘रूबी, अगर तुम्हें मेरी बात नहीं माननी तो नौकरी छोड़ कर घर बैठ जाओ. इस तरह से बदनामी कराने से कोई फायदा नहीं है.’’

रूबी समझ गई थी कि उस के चाचा भी आनंद की बातों में आ गए हैं. कुछ कहनेसुनने से भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा, इसलिए वह चुप रही. अगले दिन रूबी ने यह बात इंद्रपाल को बताई. इंद्रपाल ने कहा कि रूबी हम यह दोस्ती नहीं तोड़ सकते. मुझे कोई डर नहीं है, जब तक तुम नहीं चाहोगी, हमें कोई अलग नहीं कर सकता.

रूबी को पता था कि आनंद अपनी बात का पक्का है. वह अपनी जिद को पूरा करने के लिए कोई भी काम कर सकता है. उसे चिंता इस बात की थी कि इंद्रपाल और आनंद के बीच कोई झगड़ा न हो जाए. वह दोनों के बीच कोई गलतफहमी पैदा नहीं करना चाहती थी.

रूबी ने इंद्रपाल से दूरी बनानी शुरू कर दी. यह बात इंद्रपाल को हजम नहीं हो रही थी. एक दिन उस ने रूबी से न मिलने का सबब पूछा तो रूबी ने ठीक से कोई जवाब नहीं दिया.

इस के बाद इंद्रपाल अकसर रूबी से बात करने की कोशिश में जुटा रहा. कई बार उस ने बात करने के लिए जोरजबरदस्ती भी करनी चाही. इस पर रूबी ने कहा, ‘‘मैं यह नहीं चाहती कि मेरी वजह से तुम्हें कोई परेशानी हो. बेहतर है, तुम मुझ से दूर ही रहो.’’

रूबी पर निगाह रख रहे आनंद को लगा कि इंद्रपाल उस की राह का कांटा बन गया है. यह बात उस ने रूबी को भी नहीं बताई. आखिर आनंद के मन में इंद्रपाल को रास्ते से हटाने की एक खतरनाक योजना बन गई.

इस योजना के लिए उसे रूबी की मदद की जरूरत थी ताकि वह इंद्रपाल को एकांत में बुला सके. लेकिन रूबी इस के लिए तैयार नहीं थी. इस पर आनंद ने उसे समझाया कि इंद्रपाल को केवल समझाना चाहता है. इस पर रूबी इंद्रपाल को बुलाने के लिए तैयार हो गई.

15 जून, 2018 की बात है. रूबी ने फोन कर के इंद्रपाल को किला चौराहे पर मिलने के लिए बुलाया. इंद्रपाल के लिए रूबी का बुलाना बहुत बड़ी खुशी की बात थी. वह बिना कुछ सोचेसमझे किला चौराहे पर पहुंच गया. इस के बाद रूबी बातचीत करने के बहाने उसे बिजली पासी किला के जंगल ले गई, वहां पहले से ही आनंद, आलोक, अविनाश, गौरव, विकास और सुधीर घात लगाए बैठे थे.

इंद्रपाल को अकेला देख कर सब के सब उस पर टूट पड़े. जब मारपीट में इंद्रपाल बेसुध हो गया तो उसे गला दबा कर मार डाला. बाद में शव की पहचान छिपाने के लिए पैट्रोल डाल कर उसे जला भी दिया गया.

अगले दिन उस की लाश थाना आशियाना पुलिस को मिली. पुलिस ने आईपीसी की धारा 302 के तहत अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के मामले की छानबीन शुरू की. लाश की शिनाख्त होने के बाद इंद्रपाल के घर सीतापुर जानकारी दी गई.

उस के पिता राजाराम यादव लखनऊ आए और अपने बेटे का दाहसंस्कार करने के बाद वह पुलिस के साथ अपराधियों की खोज में लग गए. थानाप्रभारी आशियाना जितेंद्र प्रताप सिंह ने मामले की छानबीन शुरू की. सीओ (कैंट) तनु उपाध्याय और एसपी (नौर्थ लखनऊ) अनुराग वत्स इस मामले की छानबीन में मदद कर रहे थे.

पुलिस ने इंद्रपाल के मोबाइल फोन की छानबीन की तो फोन में रूबी का नंबर मिला. नंबर की डिटेल्स से पता चला कि दोनों के बीच बहुत ज्यादा बातचीत होती थी. घटना के दिन भी रूबी के फोन से इंद्रपाल के फोन पर बात की गई थी. इस से पुलिस को मामले का सुराग मिलता दिखा.

पुलिस को अपनी छानबीन में यह भी पता चला कि रूबी के चाचा ने उसे इंद्रपाल से मिलने के लिए मना किया था और नौकरी छुड़वा दी थी. एसपी नौर्थ अनुराग वत्स ने बताया कि इंद्रपाल को धोखे से बुलाया गया था. पहचान छिपाने के लिए उस के चेहरे को जलाने की कोशिश की गई थी.

सीओ (कैंट) तनु उपाध्याय ने बताया कि जब पुलिस ने पूरी छानबीन कर ली तो रूबी से घटना के बारे में पूछा गया. रूबी ने शुरुआत में तो बहानेबाजी की पर पुलिस ने जब उसे सबूत दिखाए तो उस ने अपना अपराध कबूल कर लिया.

24 जून, 2018 को कथा लिखे जाने तक आनंद पकड़ से बाहर था. बाकी सभी आरोपी जेल भेजे जा चुके थे. रूबी का अल्हड़पन दोनों पर भारी पड़ा. एक की जान गई और दूसरा फरार है. थानाप्रभारी आशियाना जितेंद्र प्रताप सिंह का कहना है कि उसे जल्द ही पकड़ लिया जाएगा.

लखनऊ के एसएसपी दीपक कुमार ने इस ब्लाइंड मर्डर स्टोरी का परदाफाश करने के लिए सभी पुलिस कर्मचारियों को बधाई दी. पुलिस ने रूबी के साथ आनंद के साथियों आलोक, अविनाश, गौरव, विकास और सुधीर को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित