आनंद का आनंद लोक : किरण बनी शिकार – भाग 2

उस ने बड़े आराम से एक प्रेमपत्र  लिखा. जब वह किरन से मिला तो प्रेमपत्र चुपचाप उस के पर्स में रख दिया.

किरन ने जब घर जा कर पर्स खोला तो उसे पत्र रखा दिखा. उस ने पत्र पढ़ा. जैसेजैसे वह पत्र पढ़ती जा रही थी, वैसेवैसे उस के दिल में भी प्यार का जोश हिलोरे मार रहा था. वह तो इसी इंतजार में थी कि आनंद कब उस से प्यार का इजहार करे. आनंद ने प्रेम का इजहार कर दिया था लेकिन किरन यह सब उस के मुंह से सुनना चाहती थी. इसलिए उस ने पत्र का जबाव नहीं दिया.

जब पत्र का जबाव नहीं मिला तो आनंद बेचैन हो उठा. अगर किरन पत्र पढ़ कर नाराज होती तो उस से संबंध खत्म कर लेती लेकिन उस ने ऐसा भी नहीं किया.

एक दिन आनंद किरन की आंखों में आंखें डाल कर बोला, ‘‘किरन, मेरा दिल तुम्हारे पास है…’’

‘‘क्या…?’’ आश्चर्य में किरन के मुंह से यह शब्द निकला तो आनंद तुरंत बात बदलते हुए बोला,‘‘मेरा मतलब है कि मेरा दिल एक फिल्म देखने का है. फिल्म की मैटिनी शो की 2 टिकटें मेरे पास हैं. आज फिल्म देखने चलते हैं…चलोगी?’’

‘‘क्यों नहीं चलूंगी. वैसे भी पहली बार फिल्म दिखाने के लिए ले जा रहे हो.’’ किरन की बात सुन कर आनंद मुसकराया. फिर दोनों फिल्म देखने सिनेमाघर पहुंच गए. फिल्म शुरू हो गई लेकिन आनंद का दिल फिल्म देखने के बजाय किरन से प्यार करने को मचल रहा था.

कुछ नहीं सूझा तो उस ने अपना हाथ किरन के हाथ पर रख दिया और उस के हाथ को धीरेधीरे सहलाने लगा. किरन ने सोचा कि शायद वह अंधेरे का फायदा उठा कर उस से प्यार का इजहार करना चाहता है, इसीलिए वह फिल्म दिखाने लाया है.

जब काफी देर तक आनंद कुछ नहीं बोला तो किरन झुंझला उठी. इंटरवल होते ही वह आनंद से बोली,‘‘अन्नू, चलो अब मेरा मन फिल्म देखने का नहीं कर रहा है, कहीं और चलते हैं.’’

आनंद को पहली बार किसी ने प्यार का नाम दिया था, अन्नू. उसे किरन पर बहुत प्यार आ रहा था. इस पर आनंद उस के साथ तुरंत बाहर आ गया. थोड़ी देर बाद दोनों एक बाग में बैठे हुए थे. किरन का धैर्य जबाव दे गया था. वह आनंद से बोली,‘‘अन्नू, मुझे न जाने क्यों लगता है कि कई दिनों से तुम मुझ से कुछ कहना चाहते हो, लेकिन संकोचवश कह नहीं पा रहे हो.’’

किरन ने यह बात आनंद की आंखों में आंखें डाल कर कही थी. इस से आनंद का हौसला बढ़ा तो वह बोला,‘‘किरन, मैं ने कई बार तुम तक अपने दिल की बात पहुंचाई लेकिन तुम ने जबाव देना उचित न समझा.’’

‘‘यह भी तो हो सकता है कि मेरा मन उस बात को तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हो.’’ यह सुन कर आनंद चौंका.

उसे उम्मीद की एक किरण दिखी तो उस ने उत्साहित हो कर किरन का हाथ थाम लिया, ‘‘किरन, मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूं. यही बात मैं तुम से कहने की कोशिश कर रहा था लेकिन तुम्हारी तरफ से कोई जबाव न मिलने की वजह से मैं बेचैन था. अब मेरी मोहब्बत का आइना तुम्हारे हाथों में है, चाहो तो उस में अपना अक्स देख कर मेरी जिंदगी संवार दो या उस को चकनाचूर कर के मेरी सांसों की डोर तोड़ दो. फैसला कर लो, तुम्हें क्या करना है.’’

आनंद के प्रेम की गहराई देख कर किरन के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई. वह अपना दूसरा हाथ आनंद के हाथ पर रखती हुई बोली, ‘‘अन्नू, मैं भी तुम्हें बहुत चाहती हूं. मैं यह बात जान चुकी थी कि तुम भी मुझ से प्यार करते हो लेकिन जुबां से प्यार का इजहार करने के बजाय तुम दूसरे तरीके अपना रहे थे. इस से मेरी झुंझलाहट बढ़ती जा रही थी.’’

‘‘यह कोई जरूरी नहीं कि प्यार का इजहार जुबां से किया जाए, वह किसी भी तरीके से किया जा सकता है. यह अलग बात है कि तुम्हारे दिल में जुबां से इजहार सुनने की चाहत छिपी थी. लेकिन तुम्हारे जबाव न देने से मेरी कई रातें जागते हुए बीतीं.’’ आनंद ने एक पल में अपने दिल की तड़प को बयान कर दिया.

‘‘खैर जो हुआ सो हुआ. अब आगे से कोई गलती नहीं होगी, प्लीज मुझे माफ कर दो.’’ किरन ने इतनी मासूमियत से कहा कि आनंद ने मुस्कराते हुए उसे सीने से लगा लिया. सीने से लगते ही किरन ने भी प्यार में डूब कर अपनी आंखों के परदे गिरा दिए. दोनों एक अजीब सा सुकून महसूस कर रहे थे. वहां कुछ देर और रूक कर दोनों वापस लौट आए.

प्यार का जादू

इस के बाद तो दोनों के प्यार को मानो पंख ही लग गए. मिलने के लिए आनंद के पास वैसे ही जगह नहीं थी. जिस नेत्रालय में वह रहता था, उस के अलावा  उस का कोई ठिकाना नहीं था. एक दिन उस ने नेत्रालय के उसी कमरे में, जिस में वह रहता था, उस ने किरन के जिस्म से आनंद लेने का मन बना लिया.

वह दिन भी आ गया, जब आनंद ने प्यार के पलों में किरन को बहका लिया और उस के जिस्म से अपने जिस्म का मेल करा दिया. दोनों के मन के साथसाथ तन भी मिल गए. किरन के तन को पा कर आनंद काफी खुश था. इस के बाद तो यह मिलन बारबार दोहराया जाने लगा.

2016 में आनंद ने खुशी नेत्रालय में किरन की भी नौकरी लगवा दी. अब हर समय किरन और आनंद एकदूसरे के साथ होते. उन की मोहब्बत परवान चढ़ती रही.

एक वर्ष बीततेबीतते दोनों के संबंध की जानकारी किरन की मां सरोज को हो गई. यह पता लगते ही उन्होंने किरन की नौकरी छुड़वा दी. लेकिन किरन फिर भी आनंद से मिलती रही.

किरन तो सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि आनंद उस से प्यार का नाटक कर रहा है. शादी का झांसा दे कर वह उस के जिस्म से खेल रहा है.

इस बीच किरन से विवाह के लिए कई रिश्ते आए. लेकिन उस ने मना कर दिया. उस के चक्कर में उस की छोटी बहन कविता का विवाह भी नहीं हो सकता था. किरन की मां सरोज व भाई सागर को मथुरा का एक अच्छा परिवार मिल गया.

कातिल हसीना : लांघी रिश्तों की सीमा – भाग 2

जानकी से छोटी मुनकी थी. छरहरी काया की मुनकी दिखने में सहज थी. उस का पढ़ाई में मन नहीं लगता था इसलिए उस ने प्राइमरी से आगे नहीं पढ़ी. फिर वह घर के कामों में हाथ बंटाने लगी. भीखू के घर से कुछ दूरी पर मुन्नू सिंह रहते थे. वह खेतीकिसानी करते थे. उन के परिवार में पत्नी कमला देवी के अलावा कंधई सिंह और वकील सिंह नाम के 2 बेटे थे.

भीखू और मुन्नू के परिवारों में काफी प्रेम था. दोनों ही परिवारों के सदस्य एकदूसरे के घर आतेजाते थे. कंधई सिंह जवान हुआ तो मुन्नू सिंह ने उस का विवाह राधा नाम की युवती के साथ कर दिया. राधा ने ससुराल आते ही सभी का मन मोह लिया. वह पति के साथसाथ सासससुर की भी खूब सेवा करती थी.

कंधई सिंह रंगीनमिजाज था. घर में सुंदर पत्नी होने के बावजूद वह पराई औरतों को ललचाई नजरों से देखता था, जिस से उस की शिकायतें घर आती रहती थीं. पत्नी राधा उसे समझाती थी लेकिन वह उस की बात हंस कर टाल देता था.

मौसेरी बहन पर बुरी नजर

कंधई सिंह का भीखू के घर आनाजाना था. मुनकी रिश्ते में उस की मौसेरी बहन थी. दरअसल कंधई और मुनकी की मां एक ही गांव की थीं. इस तरह कंधई सिंह मुनकी की मां को मौसी कहता था और मुनकी देवी कंधई की मां को मौसी कहती थी. दोनों में खूब बातें होती रहती थीं.

एक शाम कंधई सिंह मुनकी के घर पहुंचा तो वह सजधज कर कहीं जा रही थी. उस के इस रूप को देख कर कंधई सिंह ठगा सा रह गया. उस का सुहाना रूप पलक झपकते ही कंधई की आंखों के रास्ते से दिल में उतर गया. वह सोचने लगा कि चिराग तले अंधेरा. मुनकी इतनी लाजवाब यौवन की मल्लिका है, इस ओर तो मैं ने ध्यान नहीं दिया.

रंगीनमिजाज कंधई सिंह के मन में कामना की ऐसी आंधी चली कि उस की धूल ने सारे रिश्तेनातों को ढक लिया. वह भूल गया कि मुनकी उस की मौसेरी बहन है. वह चाहता था कि मुनकी उस के सामने रहे और वह उसे अपलक निहारता रहे.

लेकिन ऐसा संभव नहीं था. उसे मां के साथ किसी कार्यक्रम में जाना था. मुनकी चली गई तो वह भी वापस घर आ गया. लेकिन उस रात नींद उस की आंखों तक नहीं पहुंच पाई. आती भी कैसे उस की आंखों में तो मुनकी का अक्स बसा था और जेहन में उस के ही खयाल धमाचौकड़ी मचा रहे थे.

किया प्यार का इजहार

दूसरे रोज कंधई सिंह मुनकी के घर पहुंचा तो वह घर में अकेली थी. भीखू खेत पर था और मां उसे नाश्तापानी देने खेत पर गई थी. उचित मौका देख कर कंधई ने मुनकी की कलाई थाम ली और बोला, ‘‘मुनकी, तुम बहुत सुंदर हो. तुम्हारा यह रूप मेरी आंखों में रचबस गया है. मैं तुम्हें चाहने लगा हूं.’’

मुनकी अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली, ‘‘भैया, आज आप को क्या हो गया है, जो इस तरह की बेहूदा बातें कर रहे हो. मैं रिश्ते में आप की बहन लगती हूं. भला कोई भाई अपनी बहन की कलाई इस तरह पकड़ता है. चले जाओ घर से, वरना मैं शोर मचा दूंगी.’’

मुनकी के तेवर देख कर कंधई सिंह चला गया तो मुनकी सोचने लगी कि कंधई अब पहले जैसा नहीं रहा. उस की सोच बदल गई है, मन में पाप भी है. इसलिए उस ने निश्चय किया कि अब वह उस से सतर्क रहेगी. रिश्तेदारी में कलह न हो इसलिए मुनकी ने कंधई की इस हरकत को शरारत मानकर यह बात अपने मातापिता को नहीं बताई.

इधर जब 2-3 दिन बीत गए और कोई शोरशराबा नहीं हुआ तो कंधई समझ गया कि मुनकी ने किसी से शिकायत नहीं की है, अत: उस की हिम्मत बढ़ गई. वह मन ही मन सोचने लगा कि मुनकी दिखावे के तौर पर विरोध करती है. वह भी उस से प्यार करती है. इसलिए कंधई अब मुनकी का प्यार पाने को उतावला रहने लगा.

एक रोज मुनकी के मातापिता जब खेतों के लिए निकल गए तभी कंधई सिंह आ धमका. उस ने मुख्य दरवाजा बंद किया और मुनकी को बांहों में भर लिया, फिर गालों को चूमने लगा. मुनकी कसमसाई और खुद को छुड़ाते हुए बोली, ‘‘भैया यह पाप है.’’

‘‘प्यार में पाप और पुण्य नहीं देखा जाता. प्यार की शुरुआत तो करो. मोहब्बत तुम्हें भी मजा देने लगेगी.’’ कंधई ने समझाया.

मुनकी के तेवर तीखे हो गए, ‘‘बहुत हो गया भैया, तुम घर से चले जाओ. वरना बहुत बुरा हो जाएगा.’’ कंधई सिंह का इरादा और आगे बढ़ने का था, लेकिन तभी पड़ोसन ने कुंडी खटखटाई जिस से वह डर गया. फिर मौके की नजाकत भांप कर कंधई वहां से चला गया.

पत्नी ने कंधई को दी चेतावनी

शाम को जब मुनकी के मातापिता खेत से घर लौटे तो मुनकी ने उन से कंधई की शिकायत कर दी. बेटी की बात सुन कर भीखू का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. वह उस के घर पहुंचा और कंधई को खूब खरीखोटी सुनाई. उस ने कंधई की शिकायत उस की मां कमला से भी की. कमला ने कंधई को समझाने का भरोसा दे कर भीखू का गुस्सा शांत किया.

दूसरे रोज जब कंधई अपने खेतों पर गया तो मुनकी मन में क्रोध व नफरत का गुबार ले कर उस के घर पहुंची. उस समय घर में कंधई की पत्नी राधा थी. राधा ने मुनकी का तमतमाया चेहरा देखा तो पूछ बैठी, ‘‘क्या बात है मुनकी, तुम गुस्से में लग रही हो?’’

‘‘भाभी, भैया को समझा देना. वरना ठीक नहीं होगा.’’ मुनकी गुस्से से बोली.’’

‘‘ऐसा क्या किया, तुम्हारे भैया ने?’’ राधा ने पूछा.

‘‘भाभी, भैया रिश्ते की सीमा और मर्यादा भूल गए हैं. पिछले कुछ समय से वह मुझे परेशान कर रहे हैं. एक तरफा प्यार में दीवाने बन गए हैं.’’

पति की करतूत सुन कर राधा सन्न रह गई. फिर किसी तरह स्वयं के मनोभावों पर नियंत्रण कर के बोली, ‘‘मुनकी यह तुम ने अच्छा किया कि मुझे बताने चली आई. तुम यह बात किसी और को मत बताना, मैं सब संभाल लूंगी. अब तुम निश्चिंत हो कर घर जाओ.’’

मुनकी को विश्वास था कि राधा ही उसे इस मुसीबत से मुक्ति दिला सकती है. इसीलिए वह उस के पास शिकायत करने आई थी. राधा को सारी बात बताने के बाद मुनकी का दुख हलका हो गया और वह अपने घर लौट आई.

पत्नी ने कंधई को दी चेतावनी

शाम को कंधई घर लौटा, तो राधा ने उसे आड़े हाथों लिया, ‘‘बहन पर ही नीयत खराब करते हुए तुम्हें शर्म नहीं आई, चुल्लू भर पानी में डूब कर मर क्यों नहीं गए?’’ राधा ने उंगली उठाते हुए पति को चेतावनी दी, ‘‘आइंदा तुम ने मुनकी के साथ ऐसीवैसी हरकत की तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा.’’

कंधई पहले तो चौंका, फिर संभल कर बोला, ‘‘राधा मुझे माफ कर दो. आइंदा ऐसी गलती नहीं होगी.’’ उस समय उस ने चुप रहने में ही भलाई समझी.

इधर भीखू को इस बात का डर था कि कहीं कंधई उस की बेटी के साथ कोई ऐसीवैसी हरकत न कर दे जिस से परिवार की बदनामी हो. इसलिए वह मुनकी की शादी के लिए लड़का ढूंढ़ने लगा. काफी दौड़धूप के बाद उसे पड़ोसी गांव बालकराम पुरवा, मजरा रामपुर का एक लड़का राजेश पसंद आ गया.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में… 

बेवफाई का बदला : क्या था बच्ची का कसूर – भाग 1

दिल्ली के पुल प्रह्लादपुर में रहने वाली विवाहिता गीता के नाजायज संबंध पड़ोसी कालूचरण से हो गए थे, जिस की वजह से उस ने अपने पति घनश्याम से भी दूरी बना ली थी. इसी दौरान ऐसा क्या हुआ कि कालूचरण ने गीता को सबक सिखाने के लिए उस की 6 साल की बेटी गुनीषा की हत्या कर दी…

समय- रात साढ़े 3 बजे

दिन-29 मई, बुधवार

स्थान- राजस्थान का कोटा शहर

कोटा के तुल्लापुर स्थित पुरानी रेलवे कालोनी के सेक्टर-3 के क्वार्टर नंबर 169 से गुनीषा नाम की 6 साल की बच्ची गायब हो गई. यह क्वार्टर श्रीकिशन कोली का था जो रेलवे कर्मचारी था.

6 वर्षीय गुनीषा श्रीकिशन की बेटी गीता की बेटी थी. रात को जब परिवार के सभी सदस्य गहरी नींद में थे, तभी कोई गुनीषा को उठा ले गया था. बच्ची के गायब होने से सभी हैरान थे, क्योंकि गीता अपनी बेटी गुनीषा के साथ दालान में सो रही थी. क्वार्टर का मुख्य दरवाजा बंद था. किसी के भी अंदर आने की संभावना नहीं थी.

श्रीकिशन के क्वार्टर में शोरशराबा हुआ तो अड़ोसपड़ोस के सब लोग एकत्र हो गए. पता चला घर में 9 सदस्य थे, जिन में गुनीषा गायब थी. जिस दालान में ये लोग सो रहे थे, उस के 3 कोनों में कूलर लगे थे. रात में करीब एक बजे गीता की मां पुष्पा पानी पीने उठी तो उस ने गुनीषा को सिकुड़ कर सोते देखा. कूलरों की वजह से उसे ठंड लग रही होगी, यह सोच कर पुष्पा ने उसे चादर ओढ़ा दी और जा कर अपने बिस्तर पर सो गई.

रात को साढ़े 3 बजे गीता जब बाथरूम जाने के लिए उठी तो बगल में लेटी गुनीषा को गायब देख चौंकी. उस ने मम्मीपापा को उठाया. उन का शोर सुन कर बाकी लोग भी उठ गए. गुनीषा को घर के कोनेकोने में ढूंढ लिया गया, लेकिन वह नहीं मिली. उन लोगों के रोनेचीखने की आवाजें सुन कर पासपड़ोस के लोग भी आ गए.

मासूम बच्चियों के साथ हो रही दरिंदगी की सोच कर लोगों ने श्रीकिशन कोली को सलाह दी कि हमें तुरंत पुलिस के पास जाना चाहिए.

पड़ोसियों और घर वालों के साथ श्रीकिशन कोली जब रेलवे कालोनी थाने पहुंचा, तब तक सुबह के 4 बज चुके थे. गुनीषा की गुमशुदगी दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी अनीस अहमद ने इस की सूचना एसपी सुधीर भार्गव को दी और श्रीकिशन के साथ पुलिस की एक टीम घटनास्थल की छानबीन के लिए भेज दी.

अनीस अहमद ने पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना देते हुए अलर्ट भी जारी करवा दिया. मौके पर पहुंची पुलिस टीम ने पूरे मकान को खंगाला. पुलिस टीम को श्रीकिशन की इस बात पर नहीं हुआ कि मकान का मुख्य दरवाजा भीतर से बंद रहते कोई अंदर नहीं आ सकता. लेकिन जब पुलिस की नजर पिछले दरवाजे पर पड़ी तो उन की धारणा बदल गई.

पिछले दरवाजे की कुंडी टूटी हुई थी. दरवाजा तकरीबन आधा खुला हुआ था. 3 कमरों वाले उस क्वार्टर में एक रसोई के अलावा बीच में दालान था. मकान की छत भी करीब 10 फीट से ज्यादा ऊंची नहीं थी. पूरे मकान का मुआयना करते हुए एसआई मुकेश की निगाहें बारबार पिछले दरवाजे पर ही अटक जाती थीं.

इसी बीच एक पुलिसकर्मी रामतीरथ का ध्यान छत की तरफ गया तो उस ने श्रीकिशन से छत पर जाने का रास्ता पूछा. लेकिन उस ने यह कह कर इनकार कर दिया कि ऊपर जाने के लिए सीढि़यां नहीं हैं.

आखिर पुलिसकर्मी कुरसी लगा कर छत पर पहुंचा तो उसे पानी की टंकी नजर आई. उस ने उत्सुकतावश टंकी का ढक्कन उठा कर देखा तो उस के होश उड़ गए. रस्सियों से बंधा बच्ची का शव टंकी के पानी में तैर रहा था.

बच्ची की लाश देख कर पुलिसकर्मी रामतीरथ वहीं से चिल्लाया, ‘‘सर, बच्ची की लाश टंकी में पड़ी है.’’

रामतीरथ की बात सुन कर सन्नाटे में आए एसआई मुकेश तुरंत छत पर पहुंच गए. यह रहस्योद्घाटन पूरे परिवार के लिए बम विस्फोट जैसा था. बालिका की हत्या और शव की बरामदगी की सूचना मिली तो थानाप्रभारी अनीस अहमद भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने देखा कि बच्ची का गला किसी बनियाननुमा कपड़े से बुरी तरह कसा हुआ था. गुनीषा की हत्या ने घर में हाहाकार मचा दिया.

यह खबर कालोनी में आग की तरह फैली. पुलिस टीम ने गुनीषा के शव को कब्जे में कर तत्काल रेलवे हौस्पिटल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. बच्ची की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने के बाद पुलिस ने यह मामला धारा 302 में दर्ज कर लिया.

एडिशनल एसपी राजेश मील और डीएसपी भगवत सिंह हिंगड़ भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. पुलिस ने मौके पर पहुंचे अपराध विशेषज्ञों तथा डौग स्क्वायड टीम की भी सहायता ली. लेकिन ये प्रयास निरर्थक रहे. न तो अपराध विशेषज्ञ घटनास्थल से कोई फिंगरप्रिंट ही उठा सके और न ही खोजी कुत्ते कोई सुराग ढूंढ सके.

लेकिन एडिशनल एसपी राजेश मील को 3 बातें चौंकाने वाली लग रही थीं, पहली यह कि जब घर में पालतू कुत्ता था तो वह भौंका क्यों नहीं. इस का मतलब बच्ची का अपहर्त्ता परिवार के लिए कोई अजनबी नहीं था.

दूसरी बात यह थी कि गीता का अपने पति घनश्याम यानी गुनीषा के पिता से तलाक का केस चल रहा था. कहीं इस वारदात के पीछे घनश्याम ही तो नहीं था. श्रीकिशन कोली ने भी घनश्याम पर ही शक जताया. उस ने मौके से 3 मोबाइल फोन के गायब होने की बात बताई. राजेश मील यह नहीं समझ पा रहे थे कि आखिर उन मोबाइलों में क्या राज छिपा था कि किसी ने उन्हें गायब कर दिया.

गुरुवार 30 मई को पोस्टमार्टम के बाद बच्ची का शव घर वालों को सौंप दिया गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बच्ची का गला घोंटा जाना ही मृत्यु का मुख्य कारण बताया गया.

जिस निर्ममता से बच्चों की हत्या की गई थी, उस का सीधा मतलब था कि किसी पारिवारिक रंजिश के चलते ही उस की हत्या की गई थी. पुलिस अधिकारियों के साथ विचारविमर्श के बाद एसपी सुधीर भार्गव ने एडिशनल एसपी राजेश मील के नेतृत्व में एक टीम गठित की, जिस में डीएसपी भगवत सिंह हिंगड़, रोहिताश्व कुमार और सीआई अनीस अहमद को शामिल किया गया.

पूरे घटनाक्रम का अध्ययन करने के बाद एएसपी राजेश मील ने हर कोण से जांच करने के लिए पहले श्रीकिशन के उन नातेरिश्तेदारों को छांटा, जो परिवार के किसी भलेबुरे को प्रभावित कर सकते थे. साथ ही इलाके के ऐसे बदमाशों की लिस्ट भी तैयार की, जिन की वजह से परिवार के साथ कुछ अच्छाबुरा हो सकता था.

साजन की सहेली : वंदना कैसे बनी शिकार – भाग 1

या‘कांटा बुरा करैत का और भादों की घाम, सौत बुरी हो चून की और साझे का काम’.

कहावत सौ फीसदी सच है लेकिन 36 वर्षीय हनीफा बेगम पर यह कहावत लागू नहीं हुई. उस के पति अंसार शाह ने जब वंदना सोनी के बारे में उसे बताया कि उस से उस के शारीरिक संबंध हैं और वह भी बीवी जैसी ही है तो न जाने क्यों हनीफा उस पर भड़की नहीं थी, न ही उस ने मर्द जात को कोसा था. और न ही उस के सुहाग पर डाका डालने वाली वंदना को भलाबुरा कहा था. भोपाल इंदौर हाइवे के बीचोबीच बसे छोटे से कस्बे आष्टा को देख गंगाजमुनी तहजीब की यादें ताजा हो जाती हैं. इस कस्बे के हिंदू मुसलिम बड़े सद्भाव से रहते हैं और आमतौर पर दंगेफसाद और धार्मिक विवादों से उन का कोई लेनादेना नहीं है.

मारुपुरा आष्टा का पुराना घना मोहल्ला है. अन्नू शाह यहां के पुराने बाशिंदे हैं, जिन्हें इस कस्बे में हर कोई जानता है. उन का बेटा अंसार शाह बस कंडक्टर है. अंसार बहुत ज्यादा खूबसूरत तो नहीं लेकिन आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक है. 3 बच्चों के पिता अंसार की जिंदगी में सब कुछ ठीकठाक चल रहा था, लेकिन करीब 3 साल पहले वंदना उस की जिंदगी में आई तो जिंदगी के साथसाथ दिल में भी तूफान मचा गई.

34 वर्षीय वंदना भरेपूरे बदन की मालकिन होने के साथ सादगी भरे सौंदर्य की भी मिसाल थी. मूलरूप से भोपाल के नजदीक मंडीदीप की रहने वाली वंदना ने इस उम्र में आ कर भी शादी नहीं की थी. वह अभी घरगृहस्थी के झंझट में इसलिए भी नहीं पड़ना चाहती थी ताकि घर वालों की मदद कर सके. उस के परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी. दोनों बड़ी बहनों की शादियों में मांबाप का जमा किया हुआ सारा पैसा लग गया था.

पढ़लिख कर वंदना ने नौकरी के लिए हाथपांव मारे तो उसे स्वास्थ्य विभाग में अपनी मां की तरह एएनएम के पद पर नौकरी मिल गई. एएनएम गैरतकनीकी पद है जिसे आम लोग नर्स ही कहते और समझते हैं. आजकल सरकारी नौकरी चाहे जो भी हो, किसी भी बेरोजगार के लिए किसी वरदान से कम नहीं होती. नौकरी लग गई तो वंदना जिंदगी भर के लिए बेफिक्र हो गई. एएनएम की नौकरी हालांकि बहुत आसान नहीं है, क्योंकि इस में अपने क्षेत्र के गांवगांव जा कर काम करना पड़ता है.

वंदना को इस में कोई खास कठिनाई नहीं हुई क्योंकि उसे इस नौकरी के बारे में बहुत कुछ पहले से ही मालूम था. कठिनाई तब पेश आई जब उस का तबादला आष्टा हो गया. चूंकि मंडीदीप में रह कर कोई 75 किलोमीटर दूर आष्टा में नौकरी करना मुश्किल था, इसलिए वंदना ने आष्टा में ही किराए का मकान ले लिया. कुछ ही दिनों में उसे आष्टा के सरकारी अस्पताल और शहर की आबोहवा समझ आ गई.

सरकारी योजनाओं के प्रचारप्रसार और ग्रामीणों को स्वास्थ्य जागरुकता के लिए प्रेरित करने के लिए उसे आसपास के गांवों में भी जाना पड़ता था. कई गांव ऐसे थे, जहां वह अपनी स्कूटी से नहीं जा सकती थी, इसलिए उस ने बस से आनाजाना शुरू कर दिया.

फील्ड की नौकरी करने वाली अधिकांश लड़कियां बस से ही सफर करती हैं, यही वंदना भी करने लगी. यह भी इत्तफाक की बात थी कि जिन गांवों की जिम्मेदारी उसे मिली थी, वहां वही बस जाती थी, जिस में अंसार कंडक्टर था. बस से अपडाउन करने वाली लड़कियों की एक बड़ी परेशानी सीट और जगह का न मिलना होती है, जिसे उस के लिए अंसार ने आसान कर दिया.

जब भी वंदना बस में चढ़ती थी तो अंसार बड़े सम्मान और नम्रता से उस के लिए सीट मुहैया करा देता था. इतना ही नहीं, बस स्टैंड के अलावा सफर के दौरान भी वह वंदना का पूरा खयाल रखता था कि उसे किसी किस्म की दिक्कत न हो. चायपानी वगैरह का इंतजाम वह दौड़ कर करता था, जिस से वंदना का दिल खुश हो जाता था. जैसा कि आमतौर पर होता है, साथ चलते और वक्त गुजारते दोनों में बातचीत होने लगी.

एक अविवाहित युवती जिस ने पहले कभी प्यार न किया हो, वह पुरुष के जिन गुणों पर रीझ सकती है वे सब अंसार में थे. धीरेधीरे कैसे और कब वह उस की तरफ आकर्षित होने लगी, इस का अहसास भी उसे नहीं हुआ. प्यार शायद इसीलिए अजीब चीज कही जाती है कि इस के होने का अहसास अकसर होने के बाद ही होता है. इधर अंसार भी देख रहा था कि वंदना मैडम का झुकाव उस की तरफ बढ़ रहा है तो पहले वह हिचकिचाया.

कम पढ़ेलिखे अंसार की हिचकिचाहट की वजहें भी वाजिब थीं. पहली वजह तो यह कि वह मुसलमान था, दूसरी यह कि वह शादीशुदा और 3 बच्चों का बाप था और तीसरी यह कि सरकारी नौकरी वाली लड़की का इश्क की हद तक झुकाव ही उस के लिए ख्वाब सरीखा था. शायद उस के बारे में जान कर अपने पांव पीछे खींच ले, इसलिए उस ने वंदना को पहले ही अपने बारे में सब कुछ बता दिया था.

अंसार के प्यार में अंधी हो चली वंदना अपनीजिंदगी के पहले और अनूठे अहसास की हत्या शायद नहीं होने देना चाहती थी, इसलिए उस ने सब कुछ कबूल कर लिया.

आग दोनों तरफ बराबरी से लगी हो तो इश्क की आंधी में अच्छेअच्छे उड़ जाते हैं. यही वंदना और अंसार के साथ हो रहा था. दोनों अब बेतकल्लुफ हो कर एकदूसरे से हर तरह की बातें करने लगे थे. मिलने की तो कोई दिक्कत थी ही नहीं. दोनों बसस्टैंड और बस में साथ रहते थे.

चाहत जब बातचीत, हंसीमजाक और कसमों वादों से आगे बढ़ते हुए शरीर की जरूरत तक आ पहुंची तो दोनों को लगा कि मोहब्बत का अलिफ बे तो बहुत पढ़ लिया, लेकिन अब मोहब्बत को उस के मुकम्मल सफर तक पहुंचा दिया जाए.

लेकिन वहां तक पहुंचने के लिए एकांत का होना जरूरी था, जिस से दोनों पूरी तरह एकदूसरे के हो सकें यानी एकदूसरे में समा सकें. छोटे घने कस्बे में एकांत मिलना आसान काम भी नहीं था, लेकिन छटपटाते इन आशिकों ने उस का भी रास्ता निकाल लिया.

4 साल बाद : क्यों किया प्रेमिका से किनारा – भाग 1

इलाहाबाद (प्रयागराज) के वेणीमाधव मंदिर के आसपास का इलाका धनाढ्य लोगों का है. इसी इलाके की वेणीमाधव मंदिर वाली गली में उमा शुक्ला का परिवार रहता था. उन के 3 बच्चे थे, एक बेटा भोला और 2 बेटियां निशा और रचना. पति की मृत्यु के बाद परिवार को संभालने की जिम्मेदारी उमा ने ही उठाई. जब बेटा भोला बड़ा हो गया तो उमा शुक्ला को थोड़ी राहत मिली.

रचना उमा शुक्ला की छोटी बेटी थी, थोड़े जिद्दी स्वभाव की. उस दिन साल 2016 के अप्रैल की 16 तारीख थी. समय सुबह के 10 बजे. रचना जींस और टौप पहन कर कहीं जाने की तैयारी कर रही थी. मां ने पूछा तो बोली, ‘‘थोड़ी देर के लिए जाना है, जल्दी लौट आऊंगी.’’

उमा शुक्ला कुछ पूछना चाहती थीं, लेकिन रचना बिना मौका दिए अपनी स्कूटी ले कर बाहर निकल गई. बड़ी बेटी निशा पहले ही कालेज जा चुकी थी.

थोड़ी देर में लौटने को कह कर रचना जब 2 घंटे तक नहीं लौटी तो उमा शुक्ला को चिंता हुई. उन्होंने फोन लगाया तो वह स्विच्ड औफ मिला. इस के बाद तो उमा का फोन बारबार रिडायल होने लगा. उन्होंने रचना के कालेज फ्रैंड्स को भी फोन किए, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

शाम होतेहोते जब बेटा भोला शुक्ला और बेटी निशा लौट आए तो उन्होंने सुबह गई रचना के अभी तक नहीं लौटने की बात बताई. निशा और भोला ने भी रचना का फोन ट्राई किया, उस के दोस्तों से भी पता किया लेकिन रचना का पता नहीं चला.

रचना को इस तरह लापता देख भोला ने थाना दारागंज में उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखा दी. मां, बेटा और बहन निशा रात भर इस उम्मीद में जागते रहे कि क्या पता रचना आ जाए.

अगले दिन 17 अप्रैल को अखबारों में एक खबर प्रमुखता से छपी कि प्रतापगढ़-वाराणसी मार्ग पर हथीगहां के पास एक लड़की की अधजली लाश मिली है. लाश का जो हुलिया बताया गया था, वह काफी हद तक रचना से मिलता था.

यह खबर पढ़सुन कर उमा शुक्ला का कलेजा दहल गया. फिर भी मन में कहीं थोड़ी सी उम्मीद  थी कि संभव है, लाश किसी और की हो. कई बार निगाहें धोखा खा जाती हैं.

इसी के मद्देनजर भोला अलगअलग 4-5 अखबार खरीद लाया था ताकि खबरों और फोटो को ठीक से जांचापरखा जा सके. अखबारों में छपी खबर और फोटो में कोई फर्क नहीं था. इस से उमा शुक्ला और भोला इस बात पर विश्वास नहीं कर पा रहे थे कि लाश रचना की है.

इस पर मांबेटे सारे अखबार ले कर थाना दारागंज जा पहुंचे और तत्कालीन थानेदार विक्रम सिंह से मिले. उमा शुक्ला ने जोर दे कर विक्रम सिंह को बताया कि लाश उन की बेटी रचना की है और उस का हत्यारा है सलमान.

उन्होंने यह भी कहा कि अगर सलमान को पकड़ कर ठीक से पूछताछ की जाए तो सच्चाई सामने आ जाएगी. लेकिन विक्रम सिंह हत्या के मामले में पूरी तरह आश्वस्त नहीं थे, वह यह मान कर चल रहे थे कि रचना जिंदा भी तो हो सकती है. उन्होंने उन दोनों को समझा दिया कि हथिगहां में मिली लाश रचना की नहीं है. वह जिंदा होगी और लौट आएगी.

विक्रम सिंह ने उमा शुक्ला से एक लिखित शिकायत ले ली और मांबेटी को समझा कर घर भेज दिया. लेकिन आरोपी का नाम बताने के बावजूद पुलिस ने अगले 2-3 दिन तक रचना के मामले में कोई रुचि नहीं ली. इस पर उमा शुक्ला और भोला एसपी (सिटी) बृजेश श्रीवास्तव से मिले. दोनों ने उन्हें पूरी बात बताई तो बृजेश श्रीवास्तव ने थानाप्रभारी विक्रम सिंह को इस मामले में तुरंत काररवाई करने को कहा.

इस का लाभ यह हुआ कि पुलिस ने गुमशुदगी की रिपोर्ट को अपहरण की धाराओं 363, 366 में तरमीम कर के सलमान व अन्य को आरोपी बना दिया.

पुलिस का ढुलमुल रवैया

मुकदमा तो दर्ज हो गया, लेकिन पुलिस ने किया कुछ नहीं. आरोपी सलमान की गिरफ्तारी तो दूर पुलिस ने उस से पूछताछ तक नहीं की. इस की वजह भी थी. सलमान इलाहाबाद के रईस व्यवसायी साजिद अली उर्फ लल्लन का एकलौता बेटा था.

पुलिस और नेताओं तक पहुंच रखने वाले लल्लन मियां अपने परिवार के साथ थाना दारागंज क्षेत्र के मोहल्ला बक्शी खुर्द में रहते हैं. उन के पास पैसा भी था और ऊपर तक पहुंच भी.

बात 2015 की है. जब भी रचना किसी काम से घर से बाहर निकलती थी, तो इत्तफाकन कहिए या जानबूझ कर सलमान उस के सामने पड़ जाता था. जब भी वह खूबसूरत रचना को देखता तो उस पर फब्तियां कसता, छेड़छाड़ करता. उस समय उस के साथ कई दोस्त होते थे. यह सब देखसुन कर रचना चुपचाप निकल जाती थी.

सलमान के खास दोस्तों में मीरा गली का रहने वाला लकी पांडेय और सलमान का ममेरा भाई अंजफ थे. अंजफ पहले सलमान के पड़ोस में रहता था. बाद में उस का परिवार कर्नलगंज थाना क्षेत्र के बेलीरोड, जगराम चौराहा के पास रहने लगा था. तीनों हमप्याला, हमनिवाला थे. तीनों साथसाथ घूमते थे. लकी पांडेय और अंजफ सलमान के पैसों पर ऐश करते थे.

रचना सलमान की आए दिन छेड़छाड़ से तंग आ गई थी. एक दिन उस ने मां को सलमान द्वारा छेड़ने की बात बता दी. किसी तरह यह बात भोला के कानों तक पहुंच गई. यह सुन कर उस के तनबदन में आग लग गई. उस ने बहन को परेशान करने वाले सलमान को सबक सिखाने की ठान ली.

एक दिन भोला ने सलमान को रास्ते में रोक कर उग्रता से समझाया, ‘‘जिस लड़की को तुम जातेआते छेड़ते हो, वो मेरी छोटी बहन है. अपनी आदत सुधार लो सलमान, तुम्हारी सेहत के लिए अच्छा रहेगा. मैं तुम्हें पहली और आखिरी बार समझा रहा हूं.’’

सलमान को किसी ने पहली बार उसी के इलाके में धमकाया था. वह ऐसी धमकियों की चिंता नहीं करता था. भोला के चेताने पर भी सलमान पर कोई असर नहीं हुआ. अब राह में जातीआती रचना को वह पहले से ज्यादा तंग करने लगा.

जब पानी सिर के ऊपर से गुजरने लगा तो रचना से सहन नहीं हुआ. उस ने सलमान के खिलाफ थाना दारागंज में छेड़खानी की रिपोर्ट दर्ज करा दी. लेकिन सलमान के पिता साजिद अली की पहुंच की वजह से पुलिस उस पर हाथ डालने से कतराती रही. भोला के कहनेसुनने पर पुलिस ने दोनों पक्षों के बीच समझौता करा दिया.

समझौते के बाद भोला और उस की मां उमा शुक्ला ने बेटी की इज्जत की खातिर पिछली बातों को भुला दिया. लेकिन घमंडी सलमान इसे आसानी से भूलने वाला नहीं था. उस के मन में अपमान की चिंगारी सुलग रही थी.

बहरहाल, मार्च 2017 में प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनी तो उमा शुक्ला को उम्मीद की किरण दिखाई दी. उम्मीद की इसी किरण के सहारे उमा शुक्ला ने योगी आदित्यनाथ को एक शिकायती पत्र भेजा. योगीजी ने उस पत्र का संज्ञान लिया और रचना शुक्ला अपहरण कांड की जांच स्पैशल टास्क फोर्स से कराने के आदेश दे दिए. थाना पुलिस ने रचना शुक्ला कांड की फाइल ठंडे बस्ते में डाल दी थी.

एसटीएफ ने रचना शुक्ला अपहरण कांड की जांच शुरू तो की, लेकिन बहुत धीमी गति से. फलस्वरूप नतीजा वही रहा ढाक के तीन पात. एसटीएफ भी यह पता नहीं लगा सकी कि रचना जिंदा है या मर चुकी. अगर जिंदा है तो 3 साल से कहां है या आरोपी ने उसे कहां छिपा रखा है.

एसटीएफ की जांच की गति देख कर उमा शुक्ला का इस जांच से भी भरोसा उठ गया. अब उन के लिए न्यायालय ही एक आखिरी आस बची थी. उमा शुक्ला ने दिसंबर, 2019 के दूसरे सप्ताह में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की. याचिका में उन्होंने लिखा कि उन की बेटी का अपहरण हुए 4 साल होने वाले हैं. पुलिस अब तक बेटी के बारे में पता नहीं लगा सकी. आरोपी समाज में छुट्टे घूम रहे हैं.

बदले पे बदला : प्रेम की आग – भाग 1

नए साल का पहला दिन हर किसी के लिए खास होता है. तरुण के लिए इस साल का पहला दिन कुछ ज्यादा ही खास था, क्योंकि इस दिन उस की प्रेमिका मेघा उसे अपना सब कुछ सौंप देने वाली थी. मेघा के बारे में सोचसोच कर तरुण पर तरुणाई सवार होती जा रही थी. दिसंबर 2018 के आखिरी दिन उस ने गिनगिन कर कैसे काटे थे, यह वही जानता था.

जवानी की दहलीज की सीढि़यां चढ़ रही मेघा बेहद खूबसूरत और छरहरी थी. साथ ही इतनी सैक्सी भी कि उस से अपने यौवन का भार उठाए नहीं उठता था. यही हाल 24 वर्षीय तरुण का भी था, जिस के लबों पर बरबस ही यह गाना रहरह कर आ जाता था, ‘उम्र ही ऐसी है कुछ ये तुम किसी से पूछ लो, एक साथी की जरूरत होती है हर एक को…’

पहली जनवरी को तरुण पर्वतों से टकराने नहीं बल्कि एक ऐसा पर्वत चढ़ने जा रहा था, जिस की ख्वाहिश हरेक युवा को होती है. फिर उसे तो बगैर कोई खास कोशिश किए अपनी प्रेमिका से सब कुछ मिलने जा रहा था. उस के पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे.

सुबह जब दुनिया भर के लोग नए साल के जश्न की तैयारियों में लगे थे, तब तरुण खासतौर से सजसंवर कर घर से निकला. उस दिन मोबाइल पर मेघा से उस की कई बार बात हुई थी.

उस से मिलने को बेचैन तरुण हर बार घुमाफिरा कर यह जरूर कंफर्म कर लेता था कि मेघा का सैक्सी पार्टी देने का मूड कहीं बदल तो नहीं गया. हर बार जवाब उम्मीद के मुताबिक मिलता तो उस का हलक सूखने लगता और सीने में दिल की धड़कन बढ़ जाती.

तरुण खुद भी कम हैंडसम नहीं था. लंबे चेहरे पर हलकी सी दाढ़ी और सिर पर घने घुंघराले बालों वाले तरुण के पास किसी चीज की कमी नहीं थी. अपने मातापिता का एकलौता और लाडला बेटा था वह, जिसे काम भी अच्छा मिल गया था. वह बिलासपुर की ट्रैफिक पुलिस के लिए सीसीटीवी कैमरे ठेके पर चलाता था, जिस से उसे खासी आमदनी हो जाती थी.

सुबह ही सजसंवर कर तैयार हो गए तरुण ने मां राजकुमारी को पहले ही बता दिया था कि साल का पहला दिन होने के चलते काम ज्यादा है, इसलिए वह आज थोड़ी देर से आएगा.

राजकुमारी ने अपने पति शांतनु के साथ दोपहर तक तरुण का इंतजार किया, लेकिन खाने के तयशुदा वक्त पर वह नहीं आया तो उन्होंने उस के मोबाइल पर फोन किया. लेकिन हर बार उन के हाथ निराशा ही लगी. क्योंकि तरुण का फोन बंद था. पतिपत्नी दोनों ने बेटे को हरसंभव जगह पर देखा, लेकिन वह नहीं मिला तो वे चिंतित हो उठे.

बात थी भी कुछ ऐसी कि उन का चिंतित होना स्वाभाविक था, इसलिए सूरज ढलने से पहले तक दोनों ने तरुण को ढूंढा और जब उस की कोई खबर नहीं मिली तो दोनों रात 10 बजे सरकंडा थाने जा पहुंचे और बेटे की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखा दी.

यहां तक बात सामान्य थी, लेकिन जब राजकुमारी ने प्रभात चौक निवासी अपनी ही पड़ोसन बेबी और उस के पति बालाराम मांडले पर तरुण के अपहरण का शक जताया तो पुलिस वालों का माथा ठनका.

पुलिस वालों का माथा ठनकने के पीछे ठोस वजह भी थी, जो शुरुआती जांच और पूछताछ में ही सामने आ गई थी. यह वजह तरुण के अपहरण से ज्यादा महत्त्वपूर्ण और दिलचस्प थी, साथ ही चिंताजनक भी.

हुआ यूं था कि कुछ साल पहले बेबी प्रभात चौक चिंगराजपुरा में रहने आई थी. उस का घर शांतनु रातड़े के घर से लगा हुआ था. 40 साल की बेबी 3 जवान होते बेटों की मां थी. उस के भरेपूरे और गदराए बदन को देख शायद ही कोई मानता कि वह 40 साल की है. लेकिन यह मीठा सच था.

एक प्राइवेट अस्पताल में काम करने वाली बेबी मांडले की खूबसूरती और जिस्मानी कसावट किसी सबूत की मोहताज नहीं थी.

अपनी इस नई पड़ोसन पर शांतनु खुद को मर मिटने से रोक नहीं पाया और जल्द ही दोनों में शारीरिक संबंध बन गए. यह सब अचानक नहीं हुआ, बल्कि दोनों परिवारों में पहले निकटता बढ़ी और फिर सभी सदस्य एकदूसरे के यहां आनेजाने लगे.

शांतनु बेबी के चिकने जिस्म की ढलान पर फिसला तो शुरुआती मौज के बाद जल्दी ही दुश्वारियां भी पेश आने लगीं. शांतनु और बेबी का वक्तबेवक्त मिलना दोनों के घर वालों खासतौर से बेटों को रास नहीं आया तो निकटता की जगह कलह ने ले ली.

अधेड़ उम्र के शांतनु और बेबी के रोमांस के किस्से चिंगराजपुरा में चटखारे ले कर कहे सुने जाने लगे. लेकिन उन दोनों पर जगहंसाई और कलह का कोई खास फर्क नहीं पड़ा. दोनों एकदूसरे में समा जाने का मौका कब कैसे निकाल लेते थे, इस की हवा भी किसी को नहीं लगती थी.

घर वालों का ऐतराज बढ़ने लगा तो इन अधेड़ प्रेमियों ने सब को चौंकाते हुए साथ रहने का फैसला ले लिया. पत्नी बेबी का यह रूप देख उस का पति बालाराम अपने बेटों को ले कर राजकिशोर यानी आर.के. नगर में जा कर रहने लगा. राजकुमारी भी तरुण को ले कर पति से अलग रहने लगी.

उधर शांतनु और बेबी बिना शादी किए पतिपत्नी की तरह साथ रहने लगे, जिन की मौजमस्ती के सारे बैरियर खुद उन के रास्ते से हट गए थे.

हालांकि जब भी राजकुमारी और बेबी मोहल्ले में आमनेसामने पड़ जातीं तो उन में खूब कलह होती थी. दोनों बीवियों की इस लड़ाई से शांतनु कोई वास्ता नहीं रखता था, उस का मकसद तो बेबी का शरीर था, जिस पर अब उस का पूरी तरह मालिकाना हक था.

कातिल हसीना : लांघी रिश्तों की सीमा – भाग 1

उस दिन फरवरी 2020 की 7 तारीख थी. सुबह के 8 बजे थे. घना कोहरा छाया हुआ था, जिस से सूरज अपनी चमक नहीं बिखेर पा रहा था. उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जिले के तेंदुआ बरांव गांव का रहने वाला सुंदर सिंह अपने खेतों की ओर जा रहा था.

जब वह प्राथमिक विद्यालय के पूर्वी छोर पर अपने खेतों के पास पहुंचा तो वहां एक युवक की लाश देख कर वह ठिठक गया. फिर वह उल्टे पैर गांव की ओर दौड़ पड़ा. गांव पहुंच कर उस ने लाश पड़ी होने की जानकारी गांव वालों को दी. उस के बाद तो गांव में कोहराम मच गया. कुछ ही देर में लाश के पास ग्रामीणों की भीड़ जुट गई.

लाश पड़ी होने की खबर जब इसी गांव के रहने वाले वकील सिंह को लगी तो उस का माथा ठनका. क्योंकि उस का भाई कंधई सिंह बीती रात से घर से गायब था. पूरा परिवार रात भर उस की तलाश में जुटा रहा, परंतु उस का कुछ पता नहीं चल पाया था. अत: वह बदहवास हालत में घटना स्थल पर पहुंचा.

शव औंधे मुंह पड़ा था. उस ने जैसे ही शव को पलटा वैसे ही उस की चीख निकल पड़ी. क्योंकि वह शव उस के भाई कंधई सिंह का ही था. किसी ने बड़ी बेहरमी से की थी. इस के बाद बड़ी उस के परिवार में कोहराम मच गया. मृतक की मां कमला देवी और पत्नी राधा भी मौके पर आ गईं और शव से लिपट कर दोनों रोने लगीं.

इसी दौरान किसी ने फोन कर के शव मिलने की सूचना थाना मल्हीपुर में दे दी. हत्या की खबर पाते ही थानाप्रभारी देवेंद्र पांडेय पुलिस टीम के साथ ले तेंदुआ बरांव गांव की तरफ चल दिए. इस बीच उन्होंने यह सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को भी दे दी थी.

जब पुलिस घटनास्थल पर पहुंची तब तक वहां ग्रामीणों की भीड़ जुट गई थी. थानाप्रभारी देवेंद्र पांडेय घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण करने में जुट गए. कंधई सिंह के सिर पर किसी भारी चीज से प्रहार कर के उसे मौत के घाट उतारा था. चेहरे पर भी प्रहार कर उस की पहचान मिलाने की कोशिश की गई थी.

सिर व चेहरे पर गहरी चोट के निशान थे. कपड़े, खून से तरबतर थे. जमीन पर भी खून फैला था, जिसे मिट्टी ने सोख लिया था. हत्यारे ने मृतक के गुप्तांग को भी कुचला था. उसे देख कर ऐसा लग रहा था कि हत्या अवैध रिश्तों के चलते की गई है. मृतक की उम्र यही कोई 30 वर्ष के आसपास थी और वह शरीर से हृष्टपुष्ट था.

थानाप्रभारी देवेंद्र पांडेय अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी अनूप कुमार सिंह, एएसपी वी.सी. दूबे तथा सीओ हौसला प्रसाद घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने जहां घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, वहीं फोरैंसिक टीम ने भी वहां से साक्ष्य जुटाए. घटनास्थल पर एक टूटा हुआ मोबाइल भी पड़ा मिला था जिसे थानाप्रभारी ने जाब्ते की काररवाई में शामिल कर लिया.

पुलिस अधिकारियों ने मृतक की पत्नी राधा को सांत्वना देने के बाद उस से पूछताछ की. राधा ने बताया कि बीती रात 8 बजे उस ने पति के साथ खाना खाया. उस के बाद वह बरतन साफ करने लगी, तभी पति के मोबाइल फोन पर किसी का फोन आया. नंबर देख कर वह घर के बाहर निकले और बात करने के बाद वापस आए. फिर बोले कि जरूरी काम से जा रहे हैं, कुछ देर में आ जाएंगे, पर वह वापस नहीं आए.

खोजने पर नहीं मिला

तब रात 11 बजे राधा ने अपनी सास कमला को जगा कर यह जानकारी दी. कमला ने भी कंधई का फोन मिलाया, लेकिन उस का मोबाइल बंद था. उस के बाद घर वाले उसे रात भर खोजते रहे, पर उस का पता नहीं चला. सुबह मालूम हुआ कि किसी ने उसे मार डाला है.

‘‘तुम्हें किसी पर शक है?’’ एएसपी वी.सी. दूबे ने मृतक की मां कमला देवी से पूछा.

‘‘नहीं, साहब, हमें किसी पर शक नहीं है. हमारा न किसी से लेनदेन का झगड़ा है और न ही जमीन जायदाद का. मैं तो खुद हैरान हूं कि मेरे बेटे को किस ने और क्यों मार डाला?’’ कमला ने बताया.

परिवारजनों से पूछताछ के बाद एसपी अनूप कुमार सिंह ने हत्या का परदाफाश करने तथा कातिलों को पकड़ने के लिए एक पुलिस टीम का गठन किया. इस टीम में मल्हीपुर थानाप्रभारी देवेंद्र पांडेय, सीओ (जमुनिहा) हौसला प्रसाद, सीओ (भिनगा), जंग बहादुर सिंह, एसआई किसलय मिश्र, ए.के. सिंह (क्राइम ब्रांच) आदि को शामिल किया गया. टीम की कमान एएसपी वी.सी. दूबे को सौंपी गई.

पुलिस टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया, फिर तेंदुआ बरांव गांव के विभिन्न वर्गों के लोगों से घटना के संबंध में पूछताछ की. इस पूछताछ से पता चला कि मृतक कंधई सिंह रंगीनमिजाज था. घर में खूबसूरत पत्नी होने के बावजूद वह बाहर ताकझांक करता था. इसी बात को ले कर कई साल पहले उस की कहासुनी गांव के ही भीखू से हुई थी. कंधई सिंह भीखू की बेटी मुनकी से छेड़छाड़ करता था. भीखू ने बेटी की शादी कर दी, इस के बाद भी कंधई सिंह ने उस का पीछा नहीं छोड़ा और उस की ससुराल आनेजाने लगा था.

पुलिस टीम को लाश के पास से जो टूटा हुआ मोबाइल मिला था, उस का सिम सहीसलामत था, पुलिस ने उस फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. उस से पता चला कि वह फोन मृतक का ही था. काल डिटेल्स से जानकारी मिली कि 7 फरवरी की रात 8.58 बजे कंधई सिंह के मोबाइल पर आखिरी काल जिस मोबाइल नंबर से आई थी वह नंबर राजेश पुत्र धनीराम निवासी बालकरामपुरवा, मजरा रामपुर, थाना मल्हीपुर जिला श्रावस्ती का था. राजेश भीखू का दामाद था, उस समय उस की कंधई से एक मिनट बात हुई थी.

अब पुलिस को राजेश से बात करना जरूरी हो गया. लिहाजा पुलिस टीम राजेश के घर पहुंची, लेकिन उस के घर पर ताला लगा था. राजेश और उस के घर वालों के फरार होने से पुलिस का शक और पुख्ता हो गया. इस के बाद पुलिस ने राजेश के ससुर भीखू सिंह के घर पर छापा मारा. भीखू भी परिवार सहित फरार था.

उन दोनों की तलाश में पुलिस टीम ने कई संभावित ठिकानों पर छापे मारे लेकिन उन का पता नहीं चला. आखिर में पुलिस टीम ने राजेश व अन्य की टोह में अपने खास मुखबिर लगा दिए.

तीनों हुए गिरफ्तार

पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर नासिर गंज चौराहे से भीखू, राजेश और उस की पत्नी मुनका देवी को हिरासत में ले लिया. थाने में पुलिस जब राजेश, भीखू तथा मुनकी देवी से कंधई सिंह की हत्या के संबंध में पूछताछ की तो वे तीनों एक सुर हो कर मुकर गए, लेकिन जब उन पर सख्ती बरती गई तो वह तीनों टूट गए और कंधई सिंह की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. पुलिस ने उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त लोहे की रौड भी बरामद कर ली, जो राजेश ने अपने घर में छिपा दी थी.

पुलिस टीम ने कंधई सिंह की हत्या का खुलासा करने तथा कातिलों को पकड़ने की जानकारी एसपी अनूप कुमार सिंह को दी. जानकारी पाते ही वह थाना मल्हीपुर आ गए. उन्होंने अभियुक्तों से विस्तृत पूछताछ की. फिर खुलासा करने वाली पुलिस टीम की पीठ थपथपाई और 15 हजार रुपए ईनाम देने की घोषणा की.

इस के बाद उन्होंने पुलिस सभागार में प्रैस वार्ता की और हत्यारोपियों को मीडिया के समक्ष पेश कर घटना का खुलासा किया.

चूंकि उन तीनों ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था और हत्या में प्रयुक्त आलाकत्ल भी बरामद करा दिया था, इसलिए थानाप्रभारी देवेंद्र पांडेय ने मृतक के भाई वकील सिंह को वादी बना कर भादंवि की धारा 302 के तहत भीखू, राजेश तथा मुनकी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. इस के बाद उन लोगों से विस्तार से पूछताछ की गई तो एक हसीना की कातिल चाल का सनसनीखेज खुलासा हुआ.

उत्तर प्रदेश में श्रावस्ती जिले के मल्हीपुर थाने के अंतर्गत एक गांव है तेंदुआ बरांव. भीखू अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी सोमवती के अलावा 2 बेटियां थीं, जानकी और मुनकी. भीखू मेहनतमजदूरी कर अपने परिवार का पालनपोषण करता था. बड़ी बेटी जानकी जवान हुई तो उस ने उस का विवाह कर दिया. वह अपनी ससुराल में खुशहाल थी.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…