नैतिकता से परे : प्यार में लिया बदला – भाग 2

लाश की शिनाख्त के लिए पुलिस रूबी और उस के पति को मोर्चरी ले गई. थानाप्रभारी सियाराम वर्मा ने जब बरामद लाश रूबी को दिखाई तो वह चीख कर रोने लगी. उस ने लाश की शिनाख्त अपने भाई आलोक कुमार गुप्ता के रूप में कर दी.

इस के थोड़ी देर बाद रूबी के परिवारजनों के अलावा अन्य परिचित भी मोर्चरी के बाहर पहुंच गए. लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद पुलिस ने राहत की सांस ली.

चूंकि इस मामले की जांच पहले से ही पारा थाने में चल रही थी, इसलिए एसएसपी ने थाना पारा के प्रभारी त्रिलोकी सिंह को ही आलोक कुमार की हत्या की जांच करने का आदेश दिया. थानाप्रभारी ने मोनू कनौजिया, बबलू, अरुण यादव, रानू उर्फ छोटे मियां, संतोष और सिपाहीराम के खिलाफ अपहरण कर हत्या करने की रिपोर्ट दर्ज कर ली.

एसएसपी ने अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए एक पुलिस टीम बनाई, इस में थानाप्रभारी त्रिलोकी सिंह, एसएसआई संतोष कुमार शुक्ल, एसआई देवेंद्र सिंह सेंगर, अशोक कुमार सिंह, हैडकांस्टेबल कृष्णमोहन, ब्रह्मकांत, सिपाही मनोज सिंह यादव, राजेश कुमार आदि को शामिल किया गया. टीम का निर्देशन सीओ लालप्रताप सिंह कर रहे थे.

सिपाहीराम  से ही थाना पारा पुलिस की गिरफ्त में था. थानाप्रभारी त्रिलोकी सिंह ने एएसपी सुरेशचंद्र रावत और सीओ लालप्रताप सिंह की मौजूदगी में सिपाहीराम से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने स्वीकार कर लिया कि आलोक की हत्या उस ने अन्य लोगों से कराई थी. इस की वजह थी आशनाई.

सिपाहीराम से की गई पूछताछ के बाद पुलिस टीम ने अन्य आरोपियों की तलाश शुरू कर दी. आखिरकार 14 अक्तूबर, 2019 को पुलिस टीम ने मुखबिर की सूचना पर कनक सिटी (पारा) निवासी मोनू कनौजिया, बबलू, सलेमपुर पतौरा निवासी हिमांशु गुप्ता उर्फ कल्लू को देर रात गिरफ्तार कर लिया. इन सभी से आलोक कुमार गुप्ता की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो उन्होंने उस की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

आलोक कुमार गुप्ता मूलरूप से हरदोई जनपद की तहसील संडीला के निकटवर्ती गांव फरेंदा निवासी शिवप्रसाद गुप्ता का बेटा था. आलोक के अलावा शिवप्रसाद के 2 बेटियां और 2 बेटे और थे. आलोक गुप्ता रोजगार की तलाश में लखनऊ आताजाता रहता था. जब उसे कोई काम नहीं मिला तो उस ने अपने एक परिचित के माध्यम से प्लंबर का काम सीख लिया था.

काम सीखने के दौरान वह अपनी बहन रूबी के यहां मोहल्ला कनक विहार में आ कर ठहर जाता था. रोजाना दिन निकलते ही वह प्लंबिंग का काम करने निकल जाता था और दिन ढले बहन के घर लौटता था. धीरेधीरे उस का कामधंधा चल निकला. आलोक की बहन का विवाह अनिल गुप्ता के साथ हुआ था.

धीरेधीरे आलोक गुप्ता ने लखनऊ शहर में अपना कामधंधा जमा लिया तो उस ने बहन के घर से अलग दूसरी जगह रहने का मन बना लिया. फिर उस ने कनक विहार सिटी में भोलाराम के यहां किराए पर रहना शुरू कर दिया. कुछ दिनों वहां रहने के बाद वह भोलाराम का कमरा खाली कर सलेमपुर पतौरा गांव के निकट दुल्लूखेड़ा में सिपाहीराम के यहां किराए पर रहने लगा.

सिपाहीराम का काफी बड़ा मकान था. सिपाहीराम भी आलोक की तरह हंसमुख था, इसलिए कुछ ही दिनों में वह उस से घुलमिल गया. शाम को आलोक जब काम से वापस लौटता था तो खाना खा कर चहलकदमी को निकल जाता था. यह उस की रोजमर्रा की दिनचर्या थी. वह सिपाहीराम की परचून की दुकान पर बैठ कर पान मसाला खाता और घूमने के बाद अपने कमरे में जा कर सो जाता था.

आलोक लगभग 25 साल का नौजवान था. वह खर्चीला और दिलफेंक आदमी था. 18 अगस्त, 2019 की बात है. आलोक बुद्धेश्वर चौराहे पर खड़ा सब्जी ले रहा था. उस समय रात के 8 बजे थे. सब्जी ले कर वह ज्यों ही मुड़ा, उस का सामना दयावती से हो गया.

दयावती आलोक से भलीभांति परिचित थी. आलोक जब कनक विहार सिटी में भोलाराम के मकान में किराए पर रह रहा था, तब दयावती भी उसी मकान में रह रही थी. उसी दौरान दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए थे. दयावती शादीशुदा थी और उस का पति नौकरी करता था.

एक बार आलोक अपने गांव फरेंदा आया हुआ था. गांव में कई दिन रुकने के बाद वह अपने कमरे पर पहुंचा तो पता चला भोलाराम द्वारा मकान का किराया बढ़ाने पर कई किराएदार कमरा खाली कर के चले गए. दयावती भी उन में से एक थी.

दयावती के जाने का अशोक को अफसोस हुआ. आलोक को यह पता नहीं चल सका कि दयावती ने किराए पर दूसरा कमरा कहां लिया है. इस के बाद आलोक ने भी भोलाराम का कमरा खाली कर के सिपाहीराम के यहां किराए पर रहना शुरू कर दिया था.

कई महीने बाद उस दिन आलोक और दयावती की अचानक मुलाकात हुई थी. दयावती ने उस से पूछा कि अब तुम कहां रह रहे हो तो उस ने बताया कि वह दुल्लूखेड़ा में सिपाहीराम के मकान में रह रहा है. वहां अभी भी कई कमरे खाली पड़े हैं.

दयावती उस दिन काफी देर तक आलोक से बातें करती रही. दयावती ने आलोक कुमार से सिपाहीराम के मकान का पता पूछ लिया और यह कह कर चली गई कि वह अपने पति रामकिशन पर सिपाहीराम के मकान में किराए पर रहने के लिए दबाव डालेगी.

पति की प्रेमिका का खूनी प्यार – भाग 2

धरे गए हत्यारे

यह खबर उन के लिए काफी महत्त्वपूर्ण थी. यह खबर अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे कर वह हत्या के आरोपियों की गिरफ्तारी की योजना तैयार करने में जुट गए. गाड़ी छूटने के पहले उन्हें अपना मोर्चा मजबूत करना था, इसलिए उन्होंने इस मामले की खबर चंदन नगर पुलिस के साथसाथ वड़गांव पुलिस और पुणे स्टेशन की जीआरपी को भी दे दी.

इंसपेक्टर गजानंद पवार अपनी टीम और क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर रघुनाथ जाधव की टीम ने पुणे रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर-3 पर खड़ी झेलम एक्सप्रेस पर शिकंजा कस दिया. स्थानीय पुलिस टीम भी रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर-3 पर नजर रखे हुए थी, जबकि इंसपेक्टर गजानंद पवार कांस्टेबल मोइद्दीन शेख के साथ स्टेशन के सीसीटीवी के कैमरों के कंट्रोल रूम में बैठ कर आनेजाने वाले मुसाफिरों को बड़े ध्यान से देख रहे थे.

जैसेजैसे गाड़ी के छूटने का समय नजदीक आ रहा था, वैसेवैसे उन की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. एक बार तो उन्हें लगा कि शायद अभियुक्तों ने अपना इरादा बदल दिया होगा. लेकिन दूसरे ही क्षण उन की निगाहें चमक उठीं. गाड़ी छूटने में सिर्फ 10 मिनट बचे थे, तभी उन्होंने बदहवासी की हालत में 2 संदिग्ध लोगों को तेजी से बोगी नंबर-9 की तरफ बढ़ते हुए देखा.

यह समय पुलिस के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण था. इंसपेक्टर गजानंद पवार ने पुलिस टीमों को सावधान कर दिया. वह खुद कोच नंबर 9 के पास पहुंच गए. उन्होंने आगे बढ़ कर उन दोनों को डिब्बे में चढ़ने से रोक लिया और उन से अपनी आईडी दिखाने को कहा. उन में से एक ने अपनी आईडी दिखाने के बहाने अपनी जेब से रिवौल्वर निकाला और इंसपेक्टर गजानंद पवार को अपना निशाना बना कर 3 गोलियां चला दीं.

अचानक चली गोली से इंसपेक्टर पवार ने खुद को बचाने की कोशिश की लेकिन एक गोली उन के जबड़े में लग गई. दूसरी गोली उन के कंधे को टच करती हुई निकली जो एक आदमी को जा कर लगी.

प्लेटफार्म पर चली गोलियों की आवाज से स्टेशन पर मौजूद मुसाफिरों में भगदड़ मच गई. इसी भगदड़ का लाभ उठा कर बदमाश अपनी रिवौल्वर लहराते हुए भागने लगे. लेकिन इस में सफल नहीं हो सके. कुछ दूरी पर मुस्तैद इंसपेक्टर रघुनाथ जाधव ने दौड़ कर इंसपेक्टर गजानंद पवार को संभाला.

अन्य पुलिस वाले हमलावरों के पीछे भागे. स्टेशन से निकल कर दोनों हमलावर सड़क पर भागने लगे. पुलिस भी उन के पीछे थी. सड़क पर चल रही भीड़ की वजह से पुलिस उन पर गोली भी नहीं चला सकती थी. तभी मालधक्का रेडलाइट पर तैनात बड़ गार्डन ट्रैफिक पुलिस के कांस्टेबल राजेंद्र शेलके ने एक हमलावर को दबोच लिया. दूसरे को जीआरपी ने पकड़ कर क्राइम ब्रांच के हवाले कर दिया.

हमलावरों की गोली से घायल इंसपेक्टर गजानंद पवार और घायल आदमी को पास के ही रूबी अस्पताल में भरती करवा दिया गया था, जहां घायल आदमी की मृत्यु हो गई थी, जबकि इंसपेक्टर गजानंद पवार की हालत नाजुक बनी हुई थी.

सुपारी ले कर बापबेटे ने की हत्या

पकड़े गए हमलावरों से पूछताछ की गई तो उन में से एक ने अपना नाम शिवलाल उर्फ शिवा बाबूलाल राव बताया जबकि दूसरा उस का 19 वर्षीय बेटा मुकेश उर्फ मोंटी शिवलाल राव था. दोनों ही मूलरूप से राजस्थान के पाली जिले के रहने वाले थे, पर फिलहाल दिल्ली के उत्तम नगर में रहते थे. उन्होंने एकता भाटी की हत्या करने का अपराध स्वीकार किया.

क्राइम ब्रांच को दोनों हमलावरों से गहन पूछताछ करनी थी, इसलिए दूसरे दिन उन्हें पुणे के प्रथम मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रैट गजानंद नंदनवार के सामने पेश कर उन्हें 7 दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया.

रिमांड अवधि में उन से पूछताछ की गई तो पता चला कि मृतका एकता के पति बृजेश भाटी का दिल्ली की किसी महिला के साथ प्रेम प्रसंग चल रहा था. यानी एकता पति की प्रेमकहानी की भेंट चढ़ी थी. इस हत्याकांड के पीछे की जो कहानी निकल कर आई, वह बेहद दिलचस्प थी.

बात सन 2014 की थी. उस समय भाटी परिवार दिल्ली में रहता था. उन का अपना छोटा सा कारोबार था, जिस की देखरेख एकता भाटी और पति बृजेश भाटी करते थे. आमदनी कुछ खास नहीं थी, बस किसी तरह परिवार की गाड़ी चल रही थी. लेकिन ऐसा कितने दिनों तक चल सकता था. इसे ले कर दोनों पतिपत्नी अकसर परेशान रहते थे.

वे अच्छी आमदनी के लिए गूगल पर सर्च करते रहते थे. इसी खोज में बृजेश भाटी की संध्या पुरी से फेसबुक पर दोस्ती हो गई. दोनों की यह दोस्ती बहुत जल्द प्यार में बदल गई. संध्या पुरी खूबसूरत युवती थी. बृजेश भाटी ने अपने फेसबुक प्रोफाइल में खुद को अनमैरिड लिखा था, जबकि वह शादीशुदा और 2 बच्चों का बाप था.

पति का इश्क बना एकता की मौत का कारण

बृजेश भाटी को अनमैरिड जान कर ही संध्या पुरी ने उस की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया था. संध्या पुरी बृजेश भाटी को ले कर खुशहाल जीवन के सुनहरे सपने देखने लगी थी. संध्या पुरी के इस अंधे प्यार का चतुरचालाक बृजेश भाटी ने भरपूर फायदा उठाया. उस ने संध्या पुरी से शादी का वादा कर उस से काफी पैसा ऐंठा. साथ ही उस ने संध्या की कार भी हथिया ली थी.

इस तरह बृजेश भाटी संध्या पुरी के पैसों पर मौज कर रहा था. जब संध्या पुरी ने बृजेश पर शादी का दबाव डालना शुरू किया तो वह योजनानुसार संध्या पुरी की कार बेच कर परिवार सहित पुणे चला गया.

प्यार का आधा-अधूरा सफर – भाग 2

शिवांगी के पिता कन्हैयालाल गौतम बूढ़ादाना गांव में आशा देवी के घर के पास ही रहते थे. उन की पत्नी सविता का निधन हो चुका था. परिवार में बेटी शिवांगी तथा बेटा विकास था. कन्हैयालाल हलवाई का काम करते थे. विवाह समारोह में वह खाना बनाते. सहालग के दिनों में उन्हें रातदिन काम करना पड़ता था.

जब शिवांगी की मां का निधन हुआ था, तब वह केवल 3 महीने की थी. पत्नी की मौत के बाद कन्हैयालाल ने ही बच्चों का पालनपोषण किया था.

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शिवांगी खूबसूरत थी. जब उस ने 16वां बसंत पार किया तो उस के सौंदर्य और भी निखार आ गया. उसे जो भी देखता, उस की खूबसूरती की तारीफ करता. शिवांगी पढ़नेलिखने में भी तेज थी. उस ने हाईस्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की थी. वह आगे भी अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती थी, लेकिन उस के पिता ने उस की आगे की पढ़ाई बंद कर दी थी.

शिवांगी की सहेली आरती उस से 3 साल बड़ी थी, जो उस के पड़ोस में ही रहती थी. दोनों पक्की सहेलियां थीं. जब आरती का विवाह हुआ तो शादी के समारोह में शिवांगी की उपस्थिति जरूरी थी.

शादी समारोह के बाद नागेंद्र को अपने घर लौट आना चाहिए था, लेकिन शिवांगी के प्यार ने उस के पैरों में जैसे जंजीर डाल दी थी. वह बुआ के घर ही रुका रहा. नागेंद्र को जब शिवांगी के करीब जाने की तड़प सताने लगी तो वह उस के घर के चक्कर लगाने लगा. शिवांगी दिख जाती तो वह उस से हंसनेबतियाने की कोशिश करता.

नागेंद्र की आंखों में अपने प्रति चाहत देख कर शिवांगी का भी मन विचलित हो उठा. अब वह भी नागेंद्र से मिलने को आतुर रहने लगी. चाहत दोनों तरफ थी, लेकिन प्यार का इजहार करने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पा रहा था.

नागेंद्र ऐसे मौके की तलाश में रहने लगा, जब वह अपने दिल की बात शिवांगी से कह सके. चाह को राह मिल ही जाती है. एक दिन नागेंद्र को मौका मिल ही गया. शिवांगी को घर में अकेली देख नागेंद्र ने कहा, ‘‘शिवांगी, अगर तुम बुरा न मानो तो मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं.’’

‘‘बात ही तो कहनी है तो कह दो, इस में बुरा मानने वाली कौन सी बात है.’’ शिवांगी ने झिझकते हुए कहा. शायद उसे पता था कि नागेंद्र क्या कहने वाला है.

‘‘शिवांगी, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. मुझे तुम से प्यार हो गया है. जब तक मैं तुम्हारा चेहरा न देख लूं, मुझे चैन नहीं पड़ता.’’ नागेंद्र ने मन की बात कह दी.

नागेंद्र की बात सुन कर शिवांगी के दिल में गुदगुदी होने लगी. वह शरमाते हुए वह बोली, ‘‘नागेंद्र, मेरा भी यही हाल है.’’

‘‘सचऽऽ’’ कहते हुए नागेंद्र ने शिवांगी को अपनी बांहों में भर कर कहा, ‘‘मैं यही बात सुनने को कब से इंतजार कर रहा हूं.’’

उस दिन के बाद दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. मिलनामिलाना भी होने लगा. दोनों का प्यार इतना गहरा हो गया कि वे जीनेमरने की कसमें खाने लगे. नागेंद्र लगभग 10 दिनों तक बूढ़ादाना में रहा और शिवांगी से प्यार की पींगें बढ़ाता रहा.

इस के बाद वह कानपुर लौट आया. हालांकि बुआ के घर अधिक दिनों तक रुकने को ले कर पिता ने उसे डांटाफटकारा, लेकिन नागेंद्र ने बहाना बना कर पिता का गुस्सा शांत कर दिया था.

नागेंद्र चला गया तो शिवांगी को एक अजीब सी बेचैनी ने घेर लिया. उस के जेहन में नागेंद्र का हंसतामुसकराता चेहरा घूमता रहता था. वह हर समय नागेंद्र के खयालों में डूबी रहती.

एक दिन शिवांगी नागेंद्र के खयालों में डूबी हुई थी कि मोबाइल की घंटी बजी. उस ने स्क्रीन पर नजर डाली तो उस का दिल तेजी से धड़क उठा. क्योंकि वह काल उस के प्रेमी नागेंद्र की थी. काल रिसीव करते ही नागेंद्र बोला, ‘‘तुम्हारे गांव से लौटने के बाद यहां मेरा मन नहीं लग रहा.’’

‘‘मेरा भी यही हाल है नागेंद्र.’’ दोनों के बीच अभी बातों की शुरुआत हुई ही थी कि शिवांगी का भाई आ गया तो शिवांगी ने यह कहते हुए मोबाइल बंद कर दिया कि बाद में काल करती हूं.

भाई के चले जाने के बाद शिवांगी ने नागेंद्र को फोन मिलाया और काफी देर तक बातें कीं. इस के बाद दोनों की मोबाइल पर अकसर रोजाना बातें होने लगीं. बिना बात किए न नागेंद्र को चैन मिलता था, न ही शिवांगी के दिल को तसल्ली होती थी. इस तरह हंसतेबतियाते 3 माह का समय बीत गया.

शिवांगी ने लाख कोशिश की कि उस के प्रेम संबंधों की जानकारी किसी को न होने पाए, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. एक दिन देर शाम शिवांगी मोबाइल पर नागेंद्र से बतिया रही थी, तभी उस की बातें उस के भाई विकास ने सुन लीं. उस ने यह बात अपने पिता को बता दी.

शिवांगी की हरकत का पता चलने पर कन्हैयालाल गौतम सन्न रह गए. उन्होंने उसे कमरे में ले जा कर समझाया, ‘‘शिवांगी, तुझ पर तो मैं बहुत भरोसा करता था. लेकिन तू मेरे भरोसे को तोड़ रही है. आशा के भतीजे नागेंद्र से तेरा क्या चक्कर है?’’

‘‘पापा, मेरा किसी से कोई चक्कर नहीं है.’’ शिवांगी ने दबी आवाज में कहा.

‘‘तू क्या सोचती है कि तेरी बातों पर मुझे विश्वास हो जाएगा. जो बात मैं कह रहा हूं उसे कान खोल कर सुन ले. आज के बाद तू नागेंद्र से मोबाइल पर बात नहीं करेगी. मना करने के बावजूद अगर तूने हरकत की तो मैं तुझे जिंदा जमीन में गाड़ दूंगा. भले ही मुझे फांसी की सजा क्यों न हो जाए.’’ कन्हैयालाल ने धमकी दी.

पिता ने जो कहा था वह सच था, इसलिए शिवांगी ने कोई जवाब नहीं दिया. वह पिता की चेतावनी से डर गई थी. डर की वजह से शिवांगी ने कुछ दिन नागेंद्र से बात नहीं की, जिस से नागेंद्र परेशान हो उठा. वह जान गया कि कोई बात जरूर है, जिस से शिवांगी उस से बात नहीं कर रही है और उस का फोन भी रिसीव नहीं कर रही है.

लेकिन प्रेम दीवानी शिवांगी को पिता की नसीहत रास नहीं आई. वह तो नागेंद्र के प्यार में इस कदर डूब गई थी जहां से निकलना मुमकिन नहीं था. जब शिवांगी को लगा कि घर वालों का विरोध बढ़ रहा है तो उस ने मोबाइल पर अपने प्रेमी नागेंद्र से बात की, ‘‘नागेंद्र, मैं बहुत परेशान हूं. घर वालों को हमारे प्यार की जानकारी हो गई है. पापा तुम से दूर रहने की धमकी दे चुके हैं. लेकिन मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती. कोई उपाय ढूंढो.’’

‘‘शिवांगी, मैं तुम्हारी परेशानी समझता हूं. तुम्हारे पापा पुराने खयालों के हैं. वह हम दोनों को कभी एक नहीं होने देंगे. अब तुम उपाय खोजने की बात कर रही हो तो फिर एक ही उपाय है कि हम दोनों घर छोड़ दें और कहीं और जा कर दुनिया बसा लें.’’ नागेंद्र बोला.

‘‘शायद तुम ठीक कह रहे हो. मैं तुम्हारे साथ घर छोड़ने को राजी हूं.’’ शिवांगी ने सहमति जताई.

‘‘तो ठीक है, तुम 30 अगस्त 2019 की दोपहर मुझे दिबियापुर (फफूंद) रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर एक पर मिलो. वहीं से हम दोनों आगे का सफर तय करेंगे.’’ नागेंद्र ने कहा.

नागेंद्र से बात करने के बाद शिवांगी घर छोड़ने की तैयारी में जुट गई. उस ने कुछ आवश्यक सामान व कपड़े एक बैग में रख लिए. 30 अगस्त की सुबह कन्हैयालाल काम पर चला गया और विकास अपने स्कूल चला गया.

उस के बाद शिवांगी मुख्य दरवाजे पर बाहर से कुंडी लगा कर बैग ले कर घर से निकली और दिबियापुर रेलवे स्टेशन जा पहुंची. वहां एक नंबर प्लेटफार्म पर नागेंद्र पहले से ही मौजूद था. कुछ देर बाद दोनों ट्रेन पर सवार हो कर वहां से रवाना हो गए.

शाम को विकास तथा उस का पिता कन्हैयालाल वापस घर आए तो मुख्य दरवाजे पर कुंडी लगी थी और शिवांगी का कुछ पता नहीं था. पितापुत्र ने पहले पासपड़ोस, फिर गांव में शिवांगी की खोज की. लेकिन शिवांगी का कुछ पता नहीं चला.

कन्हैयालाल गौतम समझ गए कि शिवांगी पीठ में इज्जत का छुरा घोंप कर नागेंद्र के साथ भाग गई है. उन्होंने इस बाबत अपनी पड़ोसन नागेंद्र की बुआ आशा देवी को जानकारी दी तो वह अवाक रह गई. हालांकि उस ने सच्चाई को नकार दिया.

घातक प्रेमी : क्या हुआ छत्रपाल का अंजाम – भाग 2

इसी व्यापार से होने वाली कमाई से वह अपने परिवार का भरणपोषण करता था. चंद्रभान की बड़ी बेटी बड़की जवान हुई तो उस ने उस का विवाह खागा कस्बा निवासी हरदीप के साथ कर दिया. बड़की से 4 साल छोटी ननकी थी. बाद में जब वह भी सयानी हुई तो वह उस के लिए भी सही घरबार ढूंढने लगा. आखिर उन की तलाश अंबिका प्रसाद पर जा कर खत्म हो गई.

अंबिका प्रसाद के पिता जगतराम फतेहपुर जनपद के गांव शाहपुर के रहने वाले थे. उन के 2 बेटे शिव प्रसाद व अंबिका प्रसाद थे. शिव प्रसाद की शादी हो चुकी थी. वह इलाहाबाद में नौकरी करता था और परिवार के साथ वहीं रहता था.

उन का छोटा बेटा अंबिका प्रसाद उन के साथ खेतों पर काम करता था. चंद्रभान ने अंबिका को देखा तो उस ने उसे अपनी बेटी ननकी के लिए पसंद कर लिया. बात तय हो जाने के बाद 10 जनवरी, 2004 को ननकी का विवाह अंबिका प्रसाद के साथ हो गया.

अंबिका प्रसाद तो सुंदर बीवी पा कर खुश था, लेकिन ननकी के सपने ढह गए थे. क्योंकि पहली रात को ही वह पत्नी को खुश नहीं कर सका. वह समझ गई कि उस के पति में इतनी शक्ति नहीं है कि वह उसे शारीरिक सुख प्रदान कर सके.

समय बीतता गया और ननकी पूजा और राजू नाम के 2 बच्चों की मां बन गई. बच्चों के जन्म के बाद परिवार का खर्च बढ़ गया. पिता जगतराम की भी सारी जिम्मेदारी अंबिका प्रसाद के कंधों पर थी, अत: वह अधिक से अधिक कमाने की कोशिश में जुट गया. अंबिका ने आय तो बढ़ा ली, लेकिन जब वह घर आता, तो थकान से चूर होता.

ननकी पति का प्यार चाहती थी. लेकिन अंबिका पत्नी की भावनाओं को नहीं समझता. कुछ साल इसी अशांति एवं अतृप्ति में बीत गए. इस के बाद ननकी अकसर पति को ताने देने लगी कि जब तुम अपनी बीवी को एक भी सुख नहीं दे सकते तो ब्याह ही क्यों किया.

बीवी के ताने सुन कर अंबिका कभी हंस कर टाल देता तो कभी बीवी पर बरस भी पड़ता. इन सब बातों से त्रस्त हो कर ननकी ने आखिर देहरी लांघ दी. उस की नजरें छत्रपाल से लड़ गईं.

छत्रपाल ननकी के घर से 4 घर दूर रहता था. उस के मातापिता का निधन हो चुका था. वह अपने बड़े भाई के साथ रहता था और मेहनतमजदूरी कर अपना पेट पालता था. ननकी के पति अंबिका प्रसाद के साथ वह मजदूरी करता था, इसलिए दोनों में दोस्ती थी.

दोस्ती के कारण छत्रपाल का अंबिका के घर आनाजाना था. वह ननकी को भाभी कहता था. हंसमुख व चंचल स्वभाव की ननकी छत्रपाल से काफी हिलमिल गई थी. देवरभाभी होने से उस का मजाक का रिश्ता था.

ननकी का खुला मजाक और उस की आंखों में झलकता वासना का आमंत्रण छत्रपाल के दिल में उथलपुथल मचाने लगा. वह यह तो समझ चुका था कि भाभी उस से कुछ चाहती है, लेकिन अपनी तरफ से पहल करने की उस की हिम्मत नहीं हो रही थी. दोनों खुल कर एकदूसरे से छेड़छाड़ व हंसीमजाक करने लगे. इसी छेड़छाड़ में एक दोपहर दोनों अपने आप पर काबू न रख सके और मर्यादा की सीमाएं लांघ गए.

उस रोज छत्रपाल पहली बार नशीला सुख पा कर फूला नहीं समा रहा था. ननकी भी कम उम्र का अविवाहित साथी पा कर खुश थी. बस उस रोज से दोनों के बीच यह खेल अकसर खेला जाने लगा. कुछ समय बाद छत्रपाल रात को भी चुपके से ननकी के पास आने लगा. ननकी के लिए अब पति का कोई महत्त्व नहीं रह गया था. उस की रातों का राजकुमार छत्रपाल बन गया था. छत्रपाल जो कमाता था, वह सब ननकी पर खर्च करने लगा था.

साल सवासाल तक ननकी व छत्रपाल के अवैध संबंध बेरोकटोक चलते रहे और किसी को भनक तक नहीं लगी. अपनी मौज में वह भूल गए कि इस तरह के खेल ज्यादा दिनों तक छिपे नहीं रहते. इन के मामले में भी यही हुआ. हुआ यह कि एक रात पड़ोसन रामकली ने चांदनी रात में आंगन में रंगरलियां मना रहे छत्रपाल और ननकी को देख लिया. फिर तो उन दोनों की चर्चा पूरे गांव में होने लगी.

अंबिका प्रसाद पत्नी पर अटूट विश्वास करता था. जब उसे ननकी और छत्रपाल के नाजायज रिश्तों की जानकारी हुई तो वह सन्न रह गया. इस बाबत उस ने ननकी से जवाब तलब किया. ननकी भी जान चुकी थी कि बात फैल गई है, इसलिए झूठ बोलना या कुछ भी छिपाना फिजूल है. लिहाजा उस ने सच बोल दिया. ‘‘जो तुम बाहर से सुन कर आए हो, वह सब सच है. मैं बेवफा नहीं हुई बस छत्रपाल पर मन मचल गया.’’

‘‘ननकी, शायद तुम्हें अंदाजा नहीं कि मैं तुम्हें कितना चाहता हूं.’’ अंबिका प्रसाद बोला,  ‘‘मैं तुम्हारी गली माफ कर दूंगा बस, तुम छत्रपाल से रिश्ता तोड़ लो.’’

‘‘बदनाम न हुई होती तो जरूर रिश्ता तोड़ लेती. अब मैं गुनहगार बन चुकी हूं, इसलिए अब उसे नहीं छोड़ सकती.’’

दुलहन पर लगा दांव : क्या माया और रवि की साजिश पूरी हो पाई – भाग 2

एसओ कमलेश शर्मा ने रवि को अस्पताल बुलाने के लिए एक सिपाही उस के घर भेजा. सिपाही रवि के घर पहुंचा तो वह वहां भी नहीं था.

पूछने पर घर वालों ने बताया कि वह रात से अस्पताल से घर नहीं लौटा है. सिपाही ने लौट कर यह बात एसओ को बता दी. कमलेश शर्मा सोच में पड़ गए कि जब रवि न अस्पताल में है और न ही घर पर, तो वह कहां गया?

इस का मतलब वह फरार हो चुका था. निस्संदेह पत्नी की हत्या के प्रयास के पीछे उस का भी हाथ था. उस के फरार होने से यह बात साफ हो गई कि माया ने जो बयान दिया था, वह सच था. अब इस गुत्थी को सुलझाने के लिए रवि की गिरफ्तारी जरूरी थी. हकीकत जानने के लिए पुलिस ने रवि के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई.

काल डिटेल्स से पता चला कि रवि और माया के बीच बातें होती रहती थीं. घटना वाले दिन भी रवि और माया के बीच काफी देर तक बात हुई थी. इस डिटेल्स से पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि रवि ने अपनी प्रेमिका माया के साथ मिल कर पत्नी की हत्या का षडयंत्र रचा था. लेकिन वह अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाया था.

बहरहाल, सुलेखा ठीक हो कर अस्पताल से घर आ गई, लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी रवि पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ा. इस बीच पुलिस ने माया को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया था. आखिरकार घटना के एक महीने बाद रवि उस वक्त पुलिस के हत्थे चढ़ गया, जब वह गया रेलवे स्टेशन से कहीं भागने के लिए ट्रेन के इंतजार में वेटिंग रूम में बैठा था.

पुलिस रवि को गिरफ्तार कर के थाने ले आई और सुलेखा की हत्या की योजना जानने के लिए उस से पूछताछ की. चाह कर भी रवि हकीकत को छिपा नहीं सका. उस ने पुलिस के सामने सच उगल दिया. पूछताछ में रवि ने अपनी और माया की प्रेम कहानी सिलसिलेवार बतानी शुरू की.

माया मुफस्सिल थाना क्षेत्र के सूढ़ीटोला की रहने वाली थी. वह शादीशुदा और 3 बच्चों की मां थी. उस का पति मनोहर बाहर रह कर नौकरी करता था. वह 6 महीने या साल भर में एकाध बार ही घर आ कर कुछ दिन बिता पाता था.

माया भले ही 3 बच्चों की मां थी, लेकिन उस का शारीरिक आकर्षण खत्म नहीं हुआ था. उस का कसा हुआ शरीर और गोरा रंग पुरुषों को आकर्षित करने के लिए काफी था. सजसंवर कर माया जब घर से बाहर निकलती थी तो अनचाहे में लोगों की नजरें उस की ओर उठ ही जाती थीं.

कभीकभी रवि माया के घर के सामने से हो कर घाटबाजार स्थित अपनी दुकान पर जाया करता था. एकदो बार का आमनासामना हुआ तो दोनों की नजरें टकरा गईं. धीरेधीरे दोनों एकदूसरे की ओर आकर्षित होने लगे. जल्दी ही वह समय भी आ गया, जब दोनों ने आकर्षण को प्यार का नाम दे दिया. इस प्यार को शारीरिक संबंधों में बदलते देर नहीं लगी. इस की एक वजह यह भी थी कि माया का पति परदेस में था और वह शारीरिक रूप से प्यार की प्यासी थी.

धीरेधीरे रवि और माया के प्यार के चर्चे पूरे सूढ़ीटोला में होने लगे. रवि घर से दुकान पर जाने की कह कर निकलता और पहुंच जाता माया के पास. जब तक वह दुकान पर पहुंचता, तब तक उस के दोनों भाई विक्की और शुक्कर दुकान पर पहुंच कर पिता के साथ काम में लग जाते.

रवि देर से पहुंचता तो पिता श्यामसुंदर राउत उस से देर से आने की वजह पूछते, लेकिन वह चुप्पी साध लेता था. इस से श्यामसुंदर और भी परेशान हो जाते थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि रवि को आखिर हो क्या गया. उन्होंने उस के देर से आने का रहस्य पता लगाने का फैसला किया.

आखिरकार श्यामसुंदर ने जल्द ही सच का पता लगा लिया. पता चला उन का बड़ा बेटा रवि एक शादीशुदा और 3 बच्चों की मां माया के प्रेमजाल में फंसा है. बेटे की सच्चाई जान कर वह परेशान हो गए.

उन्होंने रवि को माया से दूर रखने के बारे में सोचना शुरू किया. सोचविचार कर वह इस नतीजे पर पहुंचे कि रवि की शादी कर दी जाए तो वह माया को भूल जाएगा. उन्होंने रवि की शादी की बात चलाई तो बात बन गई. फलस्वरूप सुलेखा से रवि का रिश्ता तय हो गया.

रिश्ता तय हो जाने के बाद रवि जब कभी माया के घर के सामने से गुजरता तो उस से नजरें मिलाने के बजाय चुपचाप निकल जाता. रवि में अचानक आए बदलाव से माया परेशान हो गई. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक रवि को क्या हो गया, जो उस ने मुंह फेर लिया.

माया से रवि की जुदाई बरदाश्त नहीं हो पा रही थी. एक दिन वह रवि का रास्ता रोक कर उसे अपने घर ले आई. फिर उस ने रवि से पूछा, ‘‘तुम्हें अचानक ऐसा क्या हो गया जो मुझ से मुंह फेर लिया.’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है माया.’’ रवि ने सहज भाव से कहा.

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है तो अचानक मुझ से मुंह क्यों मोड़ लिया?’’

‘‘माया, अब हमारा मिलना संभव नहीं है.’’ रवि ने नजरें झुका कर कहा.

‘‘क्यों, संभव नहीं है हमारा मिलना? मैं तुम से कितना प्यार करती हूं, जानते तो हो. फिर हमारा मिलना क्यों नहीं संभव है?’’

“‘क्योंकि मेरे घर वालों ने मेरी शादी करने का फैसला कर लिया है.’’

रवि का जवाब सुन कर माया के होश उड़ गए. माथे पर हाथ रख कर वह बिस्तर पर जा बैठी. कुछ देर दोनों के बीच खामोशी छाई रही.

उस खामोशी को माया ने ही तोड़ा, ‘‘आखिर क्या समझ रखा है तुम ने मुझे? मैं कोई खिलौना नहीं हूं कि जब चाहा, खेला और जब चाहा छोड़ दिया. मेरी जिंदगी बरबाद कर के तुम किसी और के साथ शादी रचाओगे? तुम ने यह कैसे सोच लिया कि मैं ऐसा होने दूंगी? मेरे जीते जी ऐसा हरगिज नहीं हो सकता.’’

प्यार का आधा-अधूरा सफर – भाग 1

12 सितंबर, 2019 को कानपुर नगर के मोहल्ला रामादेवी के रहने वाले कुछ लोगों ने कानपुर-फतेहपुर रेलवे लाइन के किनारे 2 लाशें पड़ी देखीं तो उन्होंने यह खबर मोहल्ले के लोगों को दे दी. चूंकि रामादेवी मोहल्ला लाइनों के नजदीक था, इसलिए कुछ ही देर में दरजनों लोग मौके पर पहुंच गए.

रेलवे लाइनों से किनारे रेल से कटे हुए 2 शव पड़े थे. उन में एक शव युवती का था और दूसरा युवक का. युवती की उम्र करीब 17-18 साल थी, जबकि युवक 21-22 साल का रहा होगा. लाशों को देखने से लग रहा था कि वे प्रेमीप्रेमिका रहे होंगे.

इस घटना की जानकारी स्थानीय सभासद के.के. पांडेय को हुई तो वह भी घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने लाइन किनारे 2 शव पड़े होने की सूचना थाना चकेरी पुलिस को दे दी.

थाना चकेरी के थानाप्रभारी रणजीत राय ने पहले यह जानकारी अपने अफसरों को दी फिर श्यामनगर चौकी इंचार्ज राघवेंद्र आदि के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे. उन के वहां पहुंचने के कुछ देर बाद एसएसपी अनंत देव तिवारी तथा एसपी (साउथ) रवीना त्यागी भी घटनास्थल पर आ गई थीं. आला अधिकारियों ने आते ही घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण शुरू कर दिया.

पुलिस ने वहां मौजूद लोगों से शवों की शिनाख्त कराने का प्रयास किया, लेकिन एकत्र लोगों में से कोई भी उन की शिनाख्त नहीं कर पाया. तब एसपी (साउथ) रवीना त्यागी ने एक सिपाही को मृतक के बैग की तलाशी लेने को कहा.

सिपाही ने बैग की तलाशी ली तो उस में से मृतक का ड्राइविंग लाइसेंस, मोबाइल फोन, युवती के साथ खिंचाई गई फोटो तथा आई लव यू लिखा तकिया मिला. फोटो से लग रहा था कि प्रेमी युगल वैष्णो देवी गए थे.

युवती की लाश के पास एक लेडीज बैग पड़ा था. पुलिस ने उस की तलाशी ली तो उस के अंदर एक लेडीज पर्स मिला, जिस के ऊपर दिबियापुर (औरैया) ज्वैलर्स लिखा था. पर्स के अंदर मोबाइल फोन, चूडि़यां, बिंदी तथा शृंगार का सामान था.

बैग से कुछ कपड़े तथा हाईस्कूल की मार्कशीट मिली. मार्कशीट में उस का नाम शिवांगी तथा पिता का नाम कन्हैयालाल गौतम लिखा था. इस से अनुमान लगाया कि युवती शायद दिबियापुर की रहने वाली रही होगी.

मृत युवक के बैग से जो ड्राइविंग लाइसेंस बरामद हुआ, उस में उस का नाम नागेंद्र सिंह यादव, पिता का नाम जितेंद्र सिंह यादव, निवासी बाला का पुरवा (खागा) जिला फतेहपुर लिखा था.

निरीक्षण के बाद एसपी (साउथ) रवीना त्यागी ने थाना चकेरी थानाप्रभारी रणजीत राय को आदेश दिया कि वह दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाएं और उन के परिजनों को सूचना दे दें.

थानाप्रभारी रणजीत राय ने दोनों शवों को पोस्टमार्टम हेतु कानपुर के लाला लाजपतराय अस्पताल भिजवा दिया. साथ ही मृतकों के घर वालों को भी सूचना भेज दी.

दूसरे रोज मृतक के घर वाले लाला लाजपत राय अस्पताल के पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे. एसआई राघवेंद्र कुमार वहां मौजूद थे. राघवेंद्र ने परिजनों को मृतक युवक की लाश दिखाई तो वे फफक पड़े और बोले, ‘‘यह लाश नागेंद्र सिंह की है.’’

लाश की शिनाख्त नागेंद्र के पिता जितेंद्र सिंह यादव, चाचा राजेंद्र तथा बुआ आशा देवी ने की थी.

मृतक युवक के परिजन अभी मोर्चरी में ही थे कि युवती के घर वाले भी वहां आ गए. एसआई राघवेंद्र ने उन्हें युवती का शव दिखाया तो पिता कन्हैयालाल गौतम फफक कर रो पड़े और बोले, ‘‘साहब, यह शव मेरी बेटी शिवांगी उर्फ बिट्टो का है. वह पिछले 2 सप्ताह से घर से गायब थी.’’

शव की शिनाख्त शिवांगी के पिता कन्हैयालाल गौतम, दादा शिवराम तथा फूफा सुंदर ने की थी. शिनाख्त के बाद दोनों शवों का पोस्टमार्टम कराया गया. इस के बाद शव उन के परिजनों को सौंप दिए गए. दोनों के घर वालों ने आपसी सहमति से भैरवघाट पर एक ही चिता पर दोनों का दाहसंस्कार कर दिया.

नागेंद्र और शिवांगी कौन थे, वे प्यार के बंधन में कैसे बंधे, फिर ऐसी क्या परिस्थिति बनी, जिस से उन्हें आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ा, यह सब जानने के लिए हमें उन के अतीत की ओर लौटना पड़ेगा.

उत्तर प्रदेश के जिला फतेहपुर की खागा तहसील के अंतर्गत एक गांव बाला का पुरवा है. इसी गांव में जितेंद्र सिंह यादव अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी माया देवी के अलावा 3 बेटे नागेंद्र सिंह, शेर सिंह, वीर सिंह तथा 3 बेटियां थीं. जितेंद्र कानपुर के फजलगंज स्थित एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में ट्रक ड्राइवर की नौकरी करता था.

जितेंद्र सिंह यादव का बड़ा बेटा नागेंद्र सिंह शारीरिक रूप से हृष्टपुष्ट और स्मार्ट था. उस का मन न तो पढ़ाई में लगता था और न ही खेतीकिसानी के काम में. जितेंद्र चाहता था कि नागेंद्र पढ़लिख कर कोई सरकारी नौकरी करे पर नागेंद्र ने हाईस्कूल पास करने के बाद पढ़ाई बंद कर दी थी.

बेटा कहीं आवारा लड़कों की संगत में न पड़ जाए, इसलिए जितेंद्र ने उसे भी ट्रक चलाना सिखा दिया. वह उसे अपने साथ ले जाने लगा.

नागेंद्र जब ट्रक चलाने में एक्सपर्ट हो गया तो उस ने उस का हैवी ड्राइविंग लाइसेंस बनवा दिया. जितेंद्र ने अपने बेटे नागेंद्र को भी अपनी कंपनी में काम पर लगा दिया. पितापुत्र जब दोनों ट्रक चलाने लगे तो उन्होंने गडरियनपुरवा में एक कमरा किराए पर ले लिया. नागेंद्र जब ट्रक ले कर धनबाद या कोलकाता जाता, तब जितेंद्र कमरे में आराम करता और जब जितेंद्र बाहर जाता तो नागेंद्र आराम करता था.

जितेंद्र की बहन आशा देवी की ससुराल औरैया जिले के गांव बूढ़ादाना में थी. आशा देवी अपनी बेटी आरती की शादी कर रही थीं. शादी की तारीख 8 मार्च, 2019 तय हुई थी. रीतिरिवाज के अनुसार शादी का पहला निमंत्रण मामा को भेजा जाता है. इसलिए आशा देवी भी निमंत्रण कार्ड ले कर अपने भाई जितेंद्र के घर बाला का पुरवा पहुंची.

चूंकि शादी वाली तारीख पर जितेंद्र को ट्रक ले कर बिहार जाना था, इसलिए उस ने नागेंद्र को उस की बुआ के घर शादी समारोह में शामिल होने के लिए बूढ़ादाना भेज दिया. नागेंद्र ने अपनी फुफेरी बहन आरती की शादी में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया और खूब काम किया.

इसी शादी समारोह में नागेंद्र की नजर शिवांगी पर पड़ी. शिवांगी आरती की नजदीकी सहेली थी, जो उस के पड़ोस में ही रहती थी. वह सहेली की शादी में खूब सजधज कर आई थी. अपनी सहेलियों में वह कुछ ज्यादा ही खूबसूरत दिख रही थी. जैसे ही नागेंद्र की नजरें शिवांगी से मिलीं तो वह मुसकरा पड़ी. इस से नागेंद्र के दिल में हलचल मच गई. शिवांगी का गुलाब सा चेहरा नागेंद्र के दिल में बस गया.

नैतिकता से परे : प्यार में लिया बदला – भाग 1

12 अक्तूबर, 2019 की बात है. शाम के करीब 10 बजे थे. लखनऊ के कनक विहार में रहने वाली रूबी गुप्ता अपने रोजमर्रा के कामों में व्यस्त थी, तभी उस के पास उस के भाई श्याम कुमार का फोन आया. उस ने उसे बताया कि कुछ लोग आलोक कुमार का अपहरण कर ले गए हैं. यह जानकारी उसे अशोक के मकान मालिक सिपाहीराम  ने दी है. आलोक कुमार रूबी और श्याम कुमार का छोटा भाई था जो लखनऊ के ही दुल्लूखेड़ा में रहने वाले सिपाहीराम के यहां किराए पर रह रहा था.

भाई आलोक के अपहरण की बात सुन कर रूबी परेशान हो गई. उस ने सिपाहीराम का घर देखा था, इसलिए वह अपने पति अनिल गुप्ता के साथ सिपाहीराम के पास पहुंच गई. सिपाहीराम की परचून की दुकान थी. उस समय वह अपनी दुकान पर ही बैठा मिला.

रूबी ने जब उस से अपने भाई आलोक कुमार के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि वह मोनू कनौजिया, बबलू, अरुण यादव, रानू उर्फ छोटे मियां और संतोष के साथ बैठ कर शराब पी रहा था. उसी दौरान उन के बीच किसी बात को ले कर झगड़ा हो गया. फिर सब ने मिल कर आलोक की खूब पिटाई की और उसे उठा कर ले गए. सिपाहीराम ने रूबी को आलोक की चप्पलें दिखाईं जो वहीं छूट गई थीं. रूबी ने भाई की चप्पलें पहचान लीं.

रूबी गुप्ता उसी रात नजदीकी थाना पारा पहुंची. थानाप्रभारी त्रिलोकी सिंह को रूबी ने भाई आलोक कुमार के अपहरण की सूचना दे दी. थानाप्रभारी ने रूबी से आलोक का फोटो ले कर आश्वासन दिया कि इस संबंध में पुलिस तुरंत जरूरी काररवाई करेगी.

उस समय रात अधिक हो चुकी थी, इसलिए अगले दिन सुबह होते ही पुलिस ने इस मामले में तेज गति से काररवाई करनी शुरू कर दी. थानाप्रभारी अगले दिन दुल्लूखेड़ा में सिपाहीराम के घर पहुंच गए. उन्होंने उस से आलोक कुमार गुप्ता के अपहरण की बाबत पूछताछ की तो उस ने थानाप्रभारी को भी वही बात बता दी, जो रूबी को बताई थी.

थानाप्रभारी ने उस से पूछा कि वे सभी लोग तुम्हारी दुकान में बैठ कर शराब पीने के दौरान जब आलोक की पिटाई कर रहे थे तो तुम ने उसे बचाने की कोशिश क्यों नहीं की? इस के अलावा जब वे लोग आलोक को अपने साथ ले जा रहे थे तो तुम्हें शोर मचाना चाहिए था, पुलिस को सूचना देनी चाहिए थी, लेकिन तुम ने ऐसा नहीं किया. क्यों?

सिपाहीराम इस का कोई जवाब नहीं दे सका. इस से थानाप्रभारी त्रिलोकी सिंह को उस पर ही शक हुआ कि जरूर वह कोई बात छिपा रहा है. लिहाजा पुलिस उसे पूछताछ के लिए थाने ले गई.

13 अक्तूबर को ही लखनऊ के मलीहाबाद थाने के थानाप्रभारी सियाराम वर्मा को किसी ने सूचना दी कि भोलाखेड़ा और तिलसुआ गांव के बीच नाले के किनारे एक युवक की लाश पड़ी है. मृतक केवल अंडरवियर और बनियान पहने हुए है. लाश की सूचना मिलते ही थानाप्रभारी सियाराम वर्मा पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए.

उन्होंने लाश और घटनास्थल का निरीक्षण किया तो मृतक की उम्र यही कोई 24-25 साल थी. उस के शरीर पर लगी चोटों के निशान बता रहे थे कि उस के साथ मारपीट की गई है. घटनास्थल पर संघर्ष का कोई निशान नहीं था. इस से अनुमान लगाया कि उस की हत्या कहीं और कर के लाश यहां डाली गई है.

लाश को देखने के लिए आसपास के गांवों के काफी लोग वहां इकट्ठे हो गए थे. थानाप्रभारी ने उन से लाश की शिनाख्त करानी चाही, लेकिन कोई भी उसे पहचान नहीं सका. तब पुलिस ने लाश के फोटो खींच कर उस की शिनाख्त के लिए वाट्सऐप पर वायरल कर दिए और घटनास्थल की काररवाई पूरी कर के शव 72 घंटों के लिए मोर्चरी में रखवा दिया.

हत्यारों तक पहुंचने से पहले मृतक की शिनाख्त होनी जरूरी थी, लिहाजा थानाप्रभारी सियाराम वर्मा ने लखनऊ शहर के सभी थानों को उस अज्ञात युवक की लाश के फोटो भेज दिए ताकि पता चल सके कि किसी थाने में उस की गुमशुदगी तो दर्ज नहीं है.

जब यह फोटो लखनऊ के थाना पारा के थानाप्रभारी त्रिलोकी सिंह ने देखा तो उन्हें ध्यान आया कि उस के अपरहण की सूचना देने के लिए कल उस की बहन थाने आई थी. उन्होंने वाट्सऐप पर आई लाश की फोटो हेड मोहर्रिर अभय प्रसाद को दिखाई तो उस ने कहा कि यह फोटो आलोक कुमार की ही है, जिस के अपहरण की तहरीर उस की बहन रूबी ने दी थी. तब थानाप्रभारी ने रूबी को फोन कर के थाने बुला लिया.

रूबी और उस के पति अनिल गुप्ता के थाने आने के बाद थानाप्रभारी त्रिलोकी सिंह उन्हें ले कर थाना मलीहाबाद पहुंचे. उन्होंने वहां के थानाप्रभारी सियाराम वर्मा को बताया, ‘‘कल हमारे थाना क्षेत्र से आलोक कुमार का कुछ लोगों ने अपहरण कर लिया था. आप ने जो लाश बरामद की है, वह आलोक कुमार की ही है.’’

पति की प्रेमिका का खूनी प्यार – भाग 1

महानगर मुंबई से करीब 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पुणे शहर में 21 नवंबर, 2018 को 2-2 जगहों पर हुई गोलीबारी ने शहर के लोगों के दिलों में डर पैदा कर दिया था. इस गोलीबारी में एक महिला की मौत हो गई थी और क्राइम ब्रांच का एक अधिकारी घायल हो गया था. उस अधिकारी की हालत गंभीर बनी हुई थी.

घटना चंदन नगर थाने के आनंद पार्क इंद्रायणी परिसर की सोसायटी स्थित धनदीप इमारत के अंदर घटी. सुबह के समय 3 गोलियां चलने की आवाज से वहां रहने वाले लोग चौंके. गोलियों की आवाज इमारत की पहली मंजिल और दूसरी मंजिल के बीच बनी सीढि़यों से आई थी.

आवाज सुनते ही पहली और दूसरी मंजिल पर रहने वाले लोग अपने फ्लैटों से बाहर निकल आए. वहां का दृश्य देख कर उन का कलेजा मुंह को आ गया. सीढि़यों पर एकता बृजेश भाटी नाम की युवती खून से लथपथ पड़ी थी. वह पहली और दूसरी मंजिल के 3 फ्लैटों में अपने परिवार के साथ किराए पर रहती थी. शोरशराबा सुन कर इमारत में रहने वाले अन्य लोग भी वहां आ गए.

लोग घायल महिला को अस्पताल ले गए, लेकिन डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. अस्पताल द्वारा थाना चंदन नगर पुलिस को सूचना दे दी गई.

सुबहसुबह इलाके में घटी इस सनसनीखेज घटना की खबर पा कर थाना चंदन नगर के थानाप्रभारी राजेंद्र मुलिक अपनी टीम के साथ अस्पताल की तरफ रवाना हो गए. अस्पताल में राजेंद्र मुलिक को पता चला कि एकता भाटी को उस के फ्लैट पर ही गोलियां मारी गई थीं. डाक्टरों ने बताया कि एकता को 2 गोलियां लगी थीं. एक गोली उस के पेट में लगी थी और दूसरी सिर को भेदते हुए आरपार निकल गई थी. थानाप्रभारी अस्पताल में 2 कांस्टेबलों को छोड़ कर घटनास्थल पर पहुंच गए.

वहां जाने पर यह जानकारी मिली कि मृतका एकता भाटी सुबह अपने परिवार वालों के साथ चायनाश्ता के लिए अपनी पहली मंजिल वाले फ्लैट में दूसरी मंजिल से आ रही थी. उस का पति बृजेश भाटी 5 मिनट पहले ही नीचे आ चुका था. वह अपने पिता और बच्चों के साथ बैठा पत्नी के आने का इंतजार कर रहा था. उसी समय यह घटना घटी.

थानाप्रभारी ने मुआयना किया तो एक गोली का निशान सीढि़यों के पास दीवार पर मिला. इस का मतलब हमलावर की एक गोली दीवार पर लगी थी. बृजेश भाटी ने पुलिस को बताया कि उन्होंने 3 गोलियां चलने की आवाज सुनी थी.

मामला काफी संगीन था, अत: थानाप्रभारी राजेंद्र मुलिक ने मामले की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों के साथ पुलिस कंट्रोल रूम और फोरैंसिक टीम को भी दे दी. सूचना पाते ही शहर के डीसीपी घटनास्थल पर पहुंच गए. फोरैंसिक टीम ने मौके से सबूत जुटाए. पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया.

पुलिस समझ नहीं पाई हत्या का कारण

मौके की काररवाई निपटाने के बाद थानाप्रभारी फिर से अस्पताल पहुंचे और एकता भाटी के शव को पोस्टमार्टम के लिए पुणे के ससून डाक अस्पताल भेज दिया.

मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस के उच्च अधिकारियों ने आपातकालीन बैठक बुलाई, जिस में शहर के कई थानों के वरिष्ठ अधिकारियों के साथसाथ क्राइम ब्रांच के डीसीपी शिरीष सरदेशपांडे भी शामिल हुए. मामले पर विचारविमर्श करने के बाद पुलिस ने अपनी जांच शुरू कर दी.

महानगर मुंबई हो या फिर पुणे, इन शहरों में छोटीबड़ी कोई भी घटना घटती है तो स्थानीय पुलिस के साथ क्राइम ब्रांच अपनी समानांतर जांच शुरू कर देती है. डीसीपी शिरीष सरदेशपांडे ने भी एकता भाटी की हत्या की गुत्थी सुलझाने के लिए 2 टीमें गठित कीं, जिस की कमान उन्होंने इंसपेक्टर रघुनाथ जाधव और क्राइम ब्रांच यूनिट-2 के इंसपेक्टर गजानंद पवार को सौंपी.

सीनियर अफसरों के निर्देशन में स्थानीय पुलिस और क्राइम ब्रांच ने तेजी से जांच शुरू कर दी. उन्होंने सब से पहले पूरे शहर की नाकेबंदी करवा कर अपने मुखबिरों को सजग कर दिया.

मृतक एकता भाटी का परिवार दिल्ली का रहने वाला था, इसलिए मामले के तार दिल्ली से भी जुड़े होने का संदेह था. इस के साथसाथ उन्होंने घटना की तह तक पहुंचने के लिए आसपास लगे सारे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज को खंगालना शुरू कर दिया.

पुलिस को इस से पता चला कि हत्यारे मोटरसाइकिल पर आए थे. वह मोटरसाइकिल पुणे वड़गांव शेरी के शिवाजी पार्क के सामने लावारिस हालत में खड़ी मिली. यह भी जानकारी मिली कि मोटरसाइकिल पुणे की मार्केट से चोरी की गई थी. मोटरसाइकिल वहां छोड़ कर वह सारस बाग की तरफ निकल गए थे. लिहाजा क्राइम ब्रांच की टीम हत्यारों की तलाश में जुट गई.

उसी दिन शाम करीब 4 बजे इंसपेक्टर गजानंद पवार की टीम को एक मुखबिर द्वारा खबर मिली कि चंदन नगर गोलीबारी के दोनों अभियुक्त पुणे रेलवे स्टेशन पर आने वाले हैं. वे प्लेटफार्म नंबर-3 से साढ़े 5 बजे छूटने वाली झेलम एक्सप्रैस से दिल्ली भागने वाले हैं.

प्रेमिका से छुटकारा पाने की शातिर चाल – भाग 1

माधुरी जिस उम्र में थी, वह नएनए सपनों, उमंगों, उम्मीदों और उत्साह से लबरेज होती है. उस ने भी भविष्य के लिए ढेरों ख्वाब बुन रखे थे. बीकौम की छात्रा माधुरी सुंदर और हंसमुख स्वभाव की थी. पढ़लिख कर वह एक मुकाम हासिल करना चाहती थी. लेकिन यह ऐसी उम्र है, जब कोई करिश्माई व्यक्ति आकर्षित कर जाता है. फिर तो उसी के लिए दिल धड़कने लगता है. माधुरी के साथ भी ऐसा हुआ था. वह आदमी कौन था, यह सिर्फ माधुरी ही जानती थी, जिसे वह जाहिर भी नहीं होने देना चाहती थी. वह परिवार में सभी की प्रिय थी. मातापिता को अपने बच्चों से ढेरों उम्मीदें होती हैं. माधुरी को भी मांबाप की ओर से पढ़नेलिखने और घूमनेफिरने की इसीलिए आजादी मिली थी कि वह अपना भविष्य संवार सके.

माधुरी दिल्ली से लगे गौतमबुद्ध नगर जिले के रबूपुरा थाना के गांव मोहम्मदपुर जादौन के रहने वाले मुनेश राजपूत की बेटी थी. वह एक समृद्ध किसान थे. वैसे तो यह परिवार हर तरह से खुश था, लेकिन नवंबर, 2016 में एक दिन माधुरी अचानक लापता हो गई तो पूरा परिवार परेशान हो उठा. वह घर नहीं पहुंची तो उसे ढूंढा जाने लगा. काफी प्रयास के बाद भी जब माधुरी का कुछ पता नहीं चल सका तो परिवार के सभी लोग परेशान हो उठे. चूंकि मामला जवान बेटी का था, इसलिए मुनेश ने थाने जा कर बेटी की गुमशुदगी दर्ज करा दी. पुलिस जांच में पता चला कि माधुरी अपने पिता के मोबाइल से किसी को फोन किया करती थी. पुलिस और घर वालों ने उस नंबर के बारे में पता किया तो वह नंबर नजदीक के ही गांव के रहने वाले राहुल जाट का निकला. 27 नवंबर, 2016 को राहुल को खोज निकाला गया.

राहुल के साथ माधुरी भी थी. दोनों ने जो कुछ बताया, उसे सुन कर घर वाले दंग रह गए. दोनों एकदूसरे से प्रेम करते थे. यही नहीं, उन्होंने आर्यसमाज मंदिर में विवाह भी कर लिया था. राहुल ने अपने 3 दोस्तों की मदद से माधुरी को भगाया था. मामला 2 अलगअलग जातियों का था. माधुरी के घर वाले इस रिश्ते के सख्त खिलाफ थे. वे बेटी द्वारा उठाए गए इस कदम से काफी आहत थे. बात मानमर्यादा और इज्जत की थी, इसलिए दोनों पक्षों के बीच आस्तीनें चढ़ गईं. इस मुद्दे पर पंचायत बैठी, जिस ने फैसला लिया कि दोनों ही अब एकदूसरे से कोई वास्ता नहीं रखेंगे. घर वालों ने माधुरी को डांटाफटकारा और जमाने की ऊंचनीच समझा कर इज्जत का वास्ता दिया. इस पर उस ने वादा किया कि अब वह कोई ऐसा कदम नहीं नहीं उठाएगी, जिस से उन की इज्जत पर आंच आए.

किस के दिमाग में कब क्या चल रहा है, यह कोई दूसरा नहीं जान सकता. माधुरी बिलकुल सामान्य जिंदगी जी रही थी. इस घटना को घटे अभी एक महीना भी नहीं बीता था कि 23 दिसंबर, 2016 की दोपहर माधुरी अचानक फिर लापता हो गई. उस के इस तरह अचानक घर से लापता होने से घर वाले परेशान हो उठे. उन्होंने अपने स्तर से उस की खोजबीन की. लेकिन जब वह शाम तक नहीं मिली तो उन का सीधा शक उस के प्रेमी राहुल पर गया.

माधुरी के घर वालों ने थाने जा कर राहुल और उस के दोस्तों के खिलाफ नामजद तहरीर दे दी. राहुल का चूंकि माधुरी से प्रेमप्रसंग चल रहा था और एक बार वह उसे ले कर भाग चुका था, इसलिए कोई भी होता, उसी पर शक करता. गुस्सा इस बात का था कि समझाने के बावजूद उस ने वादाखिलाफी की थी. इस बात से माधुरी के घर वाले ही नहीं, गांव वाले भी नाराज थे. शायद इसीलिए सभी माधुरी को जल्द से जल्द ढूंढ कर लाने को पुलिस से कहने लगे थे. पुलिस ने माधुरी के घर वालों से नंबर ले कर उस की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि अभी भी माधुरी की राहुल से बातचीत होती रहती थी. गायब होने वाले दिन भी उस की राहुल से बात हुई थी.

पुलिस ने राहुल और उस के दोस्तों को थाने ला कर पूछताछ की. लेकिन इन लोगों ने माधुरी के गायब होने में अपना हाथ होने से साफ मना कर दिया. इस पूछताछ में पुलिस को भी लगा कि इन लोगों का माधुरी के गायब होने में हाथ नहीं है तो उस ने उन्हें छोड़ दिया. कई दिन बीत गए, माधुरी का कुछ पता नहीं चला. घर वाले राहुल और उस के साथियों के छोड़े जाने से खिन्न थे. मुनेश के पड़ोस में ही रहता था हेमंत कौशिक उर्फ टिंकू, जो शादीशुदा ही नहीं, 2 बच्चों का बाप था. वह कंप्यूटर और मोबाइल रिपेयरिंग का काम करता था. पड़ोसी होने के नाते वह माधुरी के घर वालों की हर तरह से मदद कर रहा था.

हेमंत ने मुनेश को सलाह दी कि इस मामले में थाना पुलिस राहुल के खिलाफ काररवाई नहीं कर रही है तो चल कर पुलिस के बड़े अधिकारियों से मिला जाए. उस की बात घर वालों को ठीक लगी तो गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर मुनेश एसएसपी औफिस जा पहुंचे. अपनी बात मनवाने के लिए इन लोगों ने धरनाप्रदर्शन भी किया. इस का नतीजा यह निकला कि एसएसपी धर्मेंद्र सिंह ने इस मामले में एसपी (देहात) सुजाता सिंह को काररवाई करने के निर्देश दिए. मामला तूल पकड़ता जा रहा था, इसलिए सुजाता सिंह ने थानाप्रभारी शाबेज खान को माधुरी की गुमशुदगी वाले मामले की गुत्थी सुलझाने को तो कहा ही, खुद भी इस मामले पर नजर रख रही थीं.

पुलिस एक बार फिर राहुल को पकड़ कर थाने ले आई. एसपी सुजाता सिंह ने खुद उस से पूछताछ की. राहुल का कहना था कि पंचायत के बाद वह माधुरी से कभी नहीं मिला तो पुलिस ने उस के ही नहीं, उस के दोस्तों के भी मोबाइल फोनों की लोकेशन निकलवाई. इस से पता चला कि राहुल ही नहीं, उस के दोस्त भी माधुरी के लापता होने वाले दिन घर पर ही थे. कई लोग इस बात की तसदीक भी कर रहे थे. जांच में यह बात सच पाई गई, इसलिए पुलिस उलझ कर रह गई. जबकि माधुरी के घर वाले यह बात मानने को तैयार नहीं थे. लेकिन अब तक राहुल के पक्ष में भी कुछ लोग उतर आए थे, इसलिए पुलिस को विरोध और आरोपों का सामना करना पड़ रहा था. कभीकभी परेशान हो कर पुलिस फरजी खुलासा करते हुए निर्दोषों को जेल भेज देती है. लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ. एसपी सुजाता सिंह ने तय कर रखा था कि वह जो भी काररवाई करेंगी, सबूतों के आधार पर ही करेंगी. माधुरी के घर वाले चाहते थे कि राहुल और उस के साथियों को जेल भेजा जाए, लेकिन पुलिस के पास उन के खिलाफ एक भी सबूत नहीं था.