बेवफाई रास न आई : परिवार बना प्रेमी का हत्यारा – भाग 1

उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के अहिरौली थानाक्षेत्र का एक गांव है शंभूपुर दमदियावन. इसी गांव में हरिदास यादव अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के 2 बेटे थे संतोष यादव और विनोद यादव. संतोष बड़ा था. अपनी मेहनत और लगन की बदौलत वह सन 2015 में उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही के पद पर भरती हो गया था. उस की पहली पोस्टिंग चंदौली जिले के चकिया थाने में हुई थी. नौकरी लग जाने पर घर वाले भी बहुत खुश थे. जब लड़का कमाने लगा तो घर वालों ने उस का रिश्ता भी तय कर दिया.

30 दिसंबर, 2017 को उस का बरच्छा था, इसलिए वह एक सप्ताह की छुट्टी ले कर अपने गांव आया था. बरच्छा का कार्यक्रम सकुशल संपन्न हो गया था. अगली सुबह 8 बजे के करीब संतोष अपने 2 दोस्तों राहुल यादव और सुरेंद्र के साथ टहलते हुए गांव से बाहर की ओर निकला. शादी को ले कर राहुल और सुरेंद्र दोनों ही संतोष से हंसीमजाक कर रहे थे, तभी संतोष के मोबाइल पर किसी का फोन आ गया.

संतोष ने अपने मोबाइल स्क्रीन पर नजर डाली तो वह नंबर उस के किसी परिचित का निकला. काल रिसीव कर के उस ने उस से बात करनी शुरू की. अपने दोनों दोस्तों से वहीं रुकने और थोड़ी देर में लौट कर आने की बात कह कर वह वहां से चला गया. संतोष के इंतजार में राहुल और सुरेंद्र वहां काफी देर तक खड़े रहे. जब 2 घंटे बाद भी वह नहीं लौटा तो दोनों दोस्त यह सोच कर घर लौट गए कि हो सकता है संतोष अपने घर चला गया हो.

संतोष के यहां मांगलिक कार्यक्रम था. घर में मेहमान आए हुए थे. दोस्तों ने सोचा कि हो सकता है वह उन के सेवासत्कार में लग गया हो और उसे लौटने का समय न मिला हो. संतोष को घर से निकले 3 घंटे बीत चुके थे. घर वाले उसे ले कर काफी परेशान थे कि सुबह का निकला संतोष आखिर कहां घूम रहा है. सब से ज्यादा परेशान उस के पिता हरिदास थे.

उन्होंने छोटे बेटे विनोद को संतोष का पता लगाने के लिए भेज दिया. विनोद को पता चला कि 3 घंटे पहले संतोष को राहुल और सुरेंद्र के साथ गांव से बाहर जाते देखा गया था. यह जानकारी मिलते ही विनोद राहुल और सुरेंद्र के घर पहुंच गया. दोनों ही अपनेअपने घरों पर मिल गए. विनोद ने उन से संतोष के बारे में पूछा तो वह यह सुन कर चौंक गए कि संतोष अब तक घर पहुंचा ही नहीं था. आखिर वह कहां चला गया.

राहुल ने विनोद को बताया कि वे तीनों साथ में गांव से बाहर निकले थे तभी संतोष के मोबाइल पर किसी का फोन आया था. वह कुछ देर में वापस आने की बात कह कर चला गया था. जब 2 घंटे बीत जाने के बाद भी वह नहीं लौटा तो वे दोनों यह सोच कर लौट आए कि शायद वह घर चला गया होगा.

संतोष को ले कर जितना ताज्जुब दोस्तों को हो रहा था, विनोद भी उतनी ही हैरत में डूबा हुआ था कि बिना किसी को कुछ बताए भाई आखिर गया कहां. इस से भी बड़ी बात यह थी कि उस का मोबाइल फोन भी स्विच्ड औफ था. संतोष का नंबर मिलातेमिलाते विनोद भी परेशान हो चुका था.

संतोष का जब कहीं पता नहीं चला तो विनोद घर लौट आया और पिता हरिदास को सब कुछ बता दिया. अचानक संतोष के लापता हो जाने की बात सुन कर हरिदास ही नहीं, बल्कि पूरा परिवार स्तब्ध रह गया.

संतोष की गांव भर में तलाश की गई, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. संतोष को तलाशते हुए पूरा घर और नातेरिश्तेदार परेशान हो गए. विनोद भी मोटरसाइकिल ले कर संतोष को खोजने गांव के बाहर निकल गया था. लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला.

दोपहर 2 बजे के करीब गांव के कुछ चरवाहे बच्चे गांव से करीब आधा किलोमीटर दूर अरहर के खेत के पास अपने पशु चरा रहे थे. भैंसें चरती हुई अरहर के खेत में घुस गईं तो चरवाहे खेत में गए. चरवाहे जैसे ही बीच खेत पहुंचे तो वहां दिल दहला देने वाला दृश्य देख कर उन के हाथपांव फूल गए.

अरहर के खेत के बीचोबीच संतोष यादव की खून से सनी लाश पड़ी थी. लाश देखते ही चरवाहे जानवरों को खेतों में छोड़ कर चीखते हुए उल्टे पांव गांव की ओर भागे. वे दौड़ते हुए सीधे हरिदास यादव के घर जा कर रुके और एक ही सांस में पूरी बात कह डाली.

बेटे की हत्या की बात पर एक बार तो हरिदास को भी विश्वास नहीं हुआ. उन्होंने उन बच्चों से कहा, ‘‘बेटा, किसी और की लाश होगी. तुम ने ठीक से पहचाना नहीं होगा.’’

बच्चे पासपड़ोस के थे, इसलिए वे संतोष को अच्छी तरह जानतेपहचानते थे. बच्चों ने जब उन्हें फिर से बताया कि लाश किसी और की नहीं बल्कि संतोष चाचा की ही है तो हरिदास के घर में रोनापीटना शुरू हो गया.

हरिदास छोटे बेटे विनोद को ले कर अरहर के खेत में उस जगह पहुंच गए, जहां संतोष की लाश पड़ी होने की सूचना मिली थी. बेटे की रक्तरंजित लाश देख कर हरिदास गश खा कर वहीं गिर पड़े. कुछ ही देर में यह बात पूरे गांव में फैल गई तो वहां पूरा गांव उमड़ आया.

यह सूचना थाना अहरौला के थानाप्रभारी चंद्रभान यादव को दे दी गई थी. चूंकि हत्या एक पुलिसकर्मी की हुई थी, इसलिए आननफानन में थानाप्रभारी एसआई रमाशंकर यादव, कांस्टेबल महेंद्र कुमार, अखिलेश कुमार पांडेय, ओमप्रकाश यादव और महिला कांस्टेबल अनीता मिश्रा के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने इस की सूचना एसपी अजय कुमार साहनी और एसएसपी नरेंद्र प्रताप सिंह को भी दे दी.

सूचना मिलने के कुछ ही देर बाद दोनों पुलिस अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए. पुलिस ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. जिस जगह लाश पड़ी थी, वहां आसपास अरहर की फसल टूटी हुई थी. इस से लग रहा था कि मृतक ने हत्यारों से संघर्ष किया होगा.

संतोष की हत्या कुल्हाड़ी जैसे तेज धारदार हथियार से की गई थी. हथियार के वार से उस का जबड़ा भी कट कर अलग हो गया था. गले पर कई वार किए गए थे. इस के अलावा उसे 2 गोली भी मारी गई थीं. इस से साफ पता चलता था कि हत्यारे नहीं चाहते थे कि संतोष जिंदा बचे. इसलिए मरते दम तक उस पर वार पर वार किए गए थे.

जिम ट्रेनर की आखिरी ट्रेनिंग : सृष्टि ने कैसे जितेंद्र को निपटाया – भाग 2

मामले की तह तक पहुंचने के लिए एसआई हरिराज सीधे होराइजन सोसाइटी पहुंचे. सृष्टि गुप्ता जिस फ्लैट में रहती थी, वह बंद मिला. इस पर एसआई ने सोसाइटी के सुरक्षाकर्मियों को सृष्टि का फोटो दिखाया. सुरक्षाकर्मियों ने फोटो पहचानते हुए कहा कि यह लड़की यहीं रहती है. उन्होंने  बताया कि सृष्टि स्टूडेंट है और फ्लैट में अकेली ही रहती है. उस के यहां एक मेड काम करने आती है.

पर कुछ दिनों से सृष्टि फ्लैट में नहीं है, इसलिए मेड भी काम पर नहीं आती. एसआई हरिराज ने उन सुरक्षाकर्मियों को अपना फोन नंबर देते हुए कहा कि जब भी सृष्टि सोसाइटी में आए तो वह उन्हें फोन कर दें.

एक दिन एसआई हरिराज को होराइजन सोसाइटी के एक सुरक्षागार्ड ने फोन कर के सूचना दी कि सृष्टि अपने फ्लैट में मौजूद है. सूचना मिलते ही एसआई हरिराज महिला कांस्टेबल मोनिका व ऋचा को ले कर सृष्टि के फ्लैट पर पहुंच गए. वह पूछताछ के लिए सृष्टि को सूरजपुर थाने ले आए.

संदेह के दायरे में आई सृष्टि

थानाप्रभारी अखिलेश प्रधान ने सृष्टि से जितेंद्र मान के बारे में पूछताछ की तो उस ने यह बात कबूल कर ली कि वह जितेंद्र मान को जानती है. क्योंकि वह पहले जितेंद्र के जिम में जाती थी.

‘‘आप कब से कब तक जिम जाती रहीं?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘मार्च से सितंबर 2017 तक.’’ सृष्टि बोली.

‘‘जिम छोड़ने के बाद आप की जितेंद्र से कभी बात हुई?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘नहीं, मेरी उस से कोई बात नहीं हुई.’’ सृष्टि ने बताया.

तभी थानाप्रभारी ने उस के फोन नंबर की काल डिटेल्स उस के सामने रखते हुए कहा, ‘‘आप झूठ क्यों बोल रही हैं? उस से आप की रोजाना बात होती थी.’’

थानाप्रभारी की बात का सृष्टि ने कोई जवाब नहीं दिया. उस ने अपनी नजरें भी झुका लीं. वह आगे बोले, ‘‘अच्छा, यह बताओ कि 10 जनवरी को दोपहर 12 बजे से शाम 5 बजे तक आप कहां थीं?’’

कुछ देर के बाद वह बोली, ‘‘उस दोपहर को मैं अपना कैमरा रिपेयर कराने के लिए दुर्गापुरी चौक गई थी.’’

‘‘उस के बाद..?’’

‘‘उस के बाद रोजमर्रा का सामान लेने जीआईपी मौल गई थी. वहां से लौटतेलौटते शाम हो गई थी. आप चाहें तो इस बारे में दुकानदार और मौल से मेरी बात की सच्चाई जान सकते हैं.’’

थानाप्रभारी ने सृष्टि के घरपरिवार की भी जानकारी हासिल कर ली थी. उस ने बताया कि वह उत्तर प्रदेश के जिला बुलंदशहर के खुर्जा की रहने वाली है. उस के पिता की खुर्जा में मोबाइल एक्सेसरीज की दुकान है.

सृष्टि से पूछताछ के बाद थानाप्रभारी ने उसे हिदायत दे कर थाने से भेज दिया. साथ ही उन्होंने कांस्टेबल राजेश को सृष्टि की निगरानी के लिए लगा दिया.

आगे की जांच के लिए एक पुलिस टीम खुर्जा में सृष्टि के पिता सुधीर गुप्ता के पास भेजी गई. सुधीर गुप्ता ने बताया कि करीब 2 साल से उन के सृष्टि से कोई संबंध नहीं हैं. इस की वजह बताते हुए वह नरवस भी हो गए. उन्होंने कहा कि 2 साल पहले सृष्टि मेरठ यूनिवर्सिटी में बीबीए की पढ़ाई के दौरान किसी मुसलमान लड़के के चक्कर में पड़ गई थी. वह उसी के साथ रह रही थी. यह बात मुझे पता लगी तो मैं ने बेटी को समझाया, जब वह नहीं मानी तो हम ने उस से नाता ही तोड़ लिया.

आखिर फंस ही गई जितेंद्र मान की कातिल

17 जनवरी की शाम को कांस्टेबल राजेश ने थानाप्रभारी को सूचना दी कि एक इनोवा कार में सृष्टि अपना सामान रख रही है. उस का इरादा शायद फ्लैट खाली करने का है.

खबर मिलते ही थानाप्रभारी अखिलेश प्रधान पुलिस टीम के साथ होराइजन सोसाइटी पहुंच गए. पुलिस सृष्टि को फिर से थाने ले आई. इस बार उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने अपना जुर्म स्वीकार करते हुए कहा कि उस ने ही जितेंद्र मान की हत्या की थी. हत्या के पीछे उस ने जो कहानी बताई, वह प्रेम संबंधों पर आधारित निकली—

24 वर्षीय सृष्टि गुप्ता जब मेरठ यूनिवर्सिटी में बीबीए की पढ़ाई कर रही थी, तभी उस ने अपना खर्च चलाने के लिए नोएडा स्थित इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी के सेल्स डिपार्टमेंट में नौकरी जौइन कर ली थी.

वह फ्लैट बेचने के लिए टेलीकालिंग करती थी. इस काम के लिए उसे हर महीने 25 हजार रुपए वेतन मिलता था. एक दिन वह रुटीन में इमरान कुरैशी नाम के व्यक्ति से फ्लैट बेचने के लिए काल कर रही थी, तभी इमरान बातों बातों में उस की पर्सनल लाइफ से जुड़े सवाल पूछने लगा. जब सृष्टि ने बताया कि वह खुर्जा की रहने वाली है तो इमरान बोला, ‘‘मैं भी खुर्जा का रहने वाला हूं. मोहल्ला तारीनान में जो किला मसजिद है, उसी गली नंबर-7 में रहता हूं.’’

सृष्टि को जब यह पता चला कि इमरान भी खुर्जा का है तो उसे बड़ी खुशी हुई. उस दिन दोनों के बीच काफी देर तक बातचीत होती रही. उस दिन के बाद दोनों की अकसर फोन पर बातें होने लगीं, जो बाद में प्यार में बदल गईं. वे दोनों रेस्टोरेंट वगैरह में मिलने भी लगे.

इमरान न तो हैंडसम था और न ही ज्यादा पढ़ालिखा, मगर वह गले में सोने की मोटी चेन, अंगुलियों में हीरे की अंगूठियां पहनता था और स्कोडा कार से चलता था. इस सब से उस की संपन्नता साफ झलकती थी.

इमरान शादीशुदा था. इतना ही नहीं, उस के 4 बच्चे भी थे. उस के 6 भाई थे जो सभी बीफ एक्सपोर्ट करते थे. गोश्त के इस धंधे में उन्हें अच्छीखासी आमदनी होती थी.

इमरान की पैसों की चमकदमक देख कर सृष्टि उस पर मर मिटी. उसी ने होराइजन सोसाइटी में उसे फ्लैट ले कर दे दिया था. सृष्टि किराए के मकान से फ्लैट में आ गई. इतना ही नहीं, इमरान उसे हर माह 50 हजार रुपए खर्च के लिए भी देता था. जब इमरान उस का हर तरह से खयाल रखने लगा तो सृष्टि ने इमरान को अपना पति मान लिया और नौकरी छोड़ दी.

मातापिता से नहीं था कोई संबंध

ये सारी बातें सृष्टि के पिता को पता चलीं तो उन्होंने अपनी बेटी से संबंध खत्म कर लिए, पर सृष्टि ने इस सब की परवाह नहीं की.

इसी दौरान सृष्टि की बीबीए की पढ़ाई पूरी हो गई. वह पत्रकार बनना चाहती थी, इसलिए उस ने ग्रेटर नोएडा के एक संस्थान में मास कम्युनिकेशन का कोर्स करने के लिए दाखिला ले लिया. इस का खर्च भी इमरान उठा रहा था.

इमरान सृष्टि पर दोनों हाथों से पैसा लुटा रहा था. सृष्टि ने शरीर की फिटनेस बनाए रखने के लिए एक जिम भी जौइन कर लिया. वह जिम प्रीतम का था, जिस में जितेंद्र मान ट्रेनर था.

जितेंद्र मान बाहरी दिल्ली के अलीपुर गांव के रहने वाले सत्यप्रकाश मान का बेटा था. सत्यप्रकाश के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटे व एक बेटी थी. जितेंद्र भाइयों में छोटा था. जितेंद्र जब 2 साल का था, तभी उस की मां की मृत्यु हो गई थी. जब वह 10 साल का हुआ तो उस के पिता का भी स्वर्गवास हो गया.

जितेंद्र मान की एक बुआ मुंडका में रहती थी. भाई की मौत के बाद वह जितेंद्र को अपने साथ ले गई थी. उन्होंने ही जितेंद्र की परवरिश की. मान की बुआ का बेटा प्रीतम टोकस जितेंद्र से 3 साल बड़ा था. जितेंद्र ने आगे की पढ़ाई अपने फुफेरे भाई प्रीतम के साथ ही की. दोनों ने दयाल सिंह कालेज ने ग्रैजुएशन किया.

प्रीतम और जितेंद्र को कुश्ती व बौक्सिंग का शौक था. किशोरावस्था में पहुंचते ही दोनों का रुझान मुक्केबाजी की ओर हो गया. दोनों ने नैशनल लेवल के कोच राजेश टोकस से कोचिंग ली और दिल्ली की ओर से मुक्केबाजी प्रतियोगिता में भाग लेने लगे. बाद में जितेंद्र मान और प्रीतम ने हरियाणा स्टेट बौक्सिंग में भी अपना पंजीकरण करा लिया.

2 करोड़ की प्रेमिका : प्रेमी ही बना कातिल – भाग 1

उस दिन नए साल का पहला दिन था यानी 1 जनवरी, 2018. लोग नए साल का स्वागत कर रहे थे. सूरत के कामरेज थानाक्षेत्र के टिंबा गांव का करोड़पति प्रीतेश पटेल भी अपने दोस्तों के साथ नए साल के आगमन की खुशियां मना रहा था. उस के खास दोस्तों में सब से महत्त्वपूर्ण थी मुंबई की मौडल और बार डांसर ज्योति सुरजीत सिंह उर्फ निशा ज्योति. कभी मौडल रह चुकी ज्योति मुंबई की मशहूर बार डांसर बन गई थी. प्रीतेश और ज्योति दोनों एकदूसरे को प्यार करते थे.

प्रीतेश पटेल के निमंत्रण पर ज्योति, उस का ड्राइवर संदीप सिंह और संदीप की पत्नी निकिता सिंह मुंबई से टिंबा घूमने आए थे. उन के आगमन से प्रीतेश बेहद खुश था, क्योंकि उस की प्रेयसी ज्योति पहली बार उस के घर आई थी.

स्वागत और खातिदारी के बाद प्रीतेश पटेल ने उन लोगों को अपनी केले की खेती दिखाने को कहा तो वे खुशीखुशी तैयार हो गए. उस समय दिन के 11 बजे थे. प्रीतेश की केले की फसल कई एकड़ में थी. केले के व्यवसाय से ही वह करोड़पति बना था.

दोस्तों के तैयार होने के बाद प्रीतेश ने घूमने जाने के लिए अपनी सफेद रंग की कार निकाली. उस ने ड्राइविंग सीट संभाली तो ज्योति उस के साथ आगे की सीट पर बैठ गई, जबकि संदीप और उस की पत्नी निकिता पीछे की सीट पर बैठे. कच्ची सड़क से होते हुए वे कुछ ही देर में खेतों पर पहुंच गए.

खेतों पर पहुंच कर प्रीतेश ने संदीप और निकिता को वहीं उतार दिया. ज्योति को उस ने यह कह कर कार से नीचे नहीं उतरने दिया कि थोड़ा आगे जा कर मोड़ से कार टर्न कर के लाएगा.

कार जैसे ही मोेड़ से टर्न हुई, ज्योति के मुंह से एक दर्दनाक चीख निकली. उस की चीख सुन कर संदीप और निकिता हैरान रह गए. दोनों उस दिशा की ओर लपके, जिधर से चीखें आई थीं. मोड़ के पास पहुंच कर अचानक दोनों के पांव जड़ हो गए.

वहां का हृदयविदारक दृश्य देख कर दोनों के मुंह से चीख निकल गई. कार एक ओर खड़ी थी, जबकि केले के खेत में बैठे प्रीतेश के हाथों में केला काटने वाला हंसिया था, जो खून में डूबा था. उस के कपड़े भी खून से तर थे. ज्योति का सिर धड़ से अलग पड़ा था. मतलब प्रीतेश ने धारदार हंसिया से ज्योति की हत्या कर दी थी. दोनों की चीख सुन कर प्रीतेश उन की ओर लपका तो डर के मारे संदीप और निकिता की घिग्घी बंध गई और वे वहां से उल्टे पांव भाग खड़े हुए. दोनों सीधे कामरेज थाना जा कर रुके.

थाने के पीआई किरण सिंह चुड़ासमा दफ्तर में  मौजूद थे. हांफते हुए संदीप और निकिता ने उन के कक्ष मे प्रवेश किया तो उन्होंने सामने पड़ी कुर्सियों की ओर इशारा कर के बैठने को कहा. थानेदार चुड़ासमा समझ गए थे कि दोनों जरूर किसी बड़ी मुसीबत में हैं और दौड़ कर वहां पहुंचे हैं. थानेदार किरण सिंह ने संदीप की ओर मुखातिब होते हुए कहा, ‘‘हां, बताइए क्या बात है और इस तरह हांफ क्यों रहे हैं?’’

‘सर, मैं संदीप सिंह हूं और यह मेरी पत्नी निकिता. हम पंजाब के भटिंडा के रहने वाले हैं और अपनी मालकिन ज्योति के साथ मुंबई घूमने आए थे.’’ संदीप ने अपना परिचय दिया.

‘‘आगे बताइए?’’

‘‘27 दिसंबर, 2017 को ज्योति मैडम के बौयफ्रैंड प्रीतेश का जन्मदिन था. मुंबई घूमने के बाद 31 दिसंबर की रात प्रीतेश साहब हमें अपने गांव टिंबा घुमाने लाए. आज सुबह वह हमें अपनी कार में बिठा कर अपने केले के खेत दिखाने ले गए. खेत में पहुंचने के बाद उन्होंने मुझे और निकिता को कार से नीचे उतार दिया.’’ इस के बाद संदीप ने किरण सिंह चुड़ासमा को ज्योति के हत्या की बात बता दी.

हकीकत जान कर थानाप्रभारी चुड़ासमा भी हैरत में रह गए

ज्योति की हत्या की बात सुन कर थानेदार चुड़ासमा कुर्सी छोड़ कर खड़े हो गए और पुलिस टीम के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. घटनास्थल थाने से करीब 7-8 किलोमीटर दूर था. अचानक गांव में पुलिस को आया देख कर गांव वाले हैरान रह गए. वे समझ नहीं पाए कि अचानक ऐसा क्या हो गया, जो पुलिस आई है.

पुलिस की जीप गांव के बाहर रुक गई. जीप से उतर कर पुलिस सीधे केले के खेतों की ओर बढ़ी, जहां ज्योति की सिर कटी लाश पड़ी थी. पुलिस के पीछेपीछे गांव वाले भी आ गए थे. केले के खेत में पड़ी सिरकटी लाश देख कर गांव वाले हैरान रह गए. घटनास्थल से थोड़ी दूरी पर आड़ीतिरछी स्विफ्ट कार खड़ी थी.

मृतक लड़की गांव या आसपास के इलाके की नहीं थी. चेहरेमोहरे और पहनावे से वह किसी बडे़ घर की लग रही थी. लाश देख कर पुलिस भी हैरत में रह गई. इसी बीच पुलिस को सूचना मिली कि एक युवक जिस के कपड़े खून से सने हैं, वह गांव की ओर भागा जा रहा है. इस सूचना पर विश्वास कर के थानेदार किरण सिंह चुड़ासमा जीप ले कर गांव की ओर रवाना हुए. सफेद रंग की टीशर्ट और काली पैंट पहने एक युवक गांव से शहर की ओर भाग रहा था.

पुलिस की जीप देख कर उस की चाल तेज हो गई. युवक को भागते देख पुलिस ने उसे दौड़ा कर धर दबोचा. उस की सफेद टीशर्ट सामने से खून से सनी थी. पुलिस उस युवक को पकड़ कर थाने ले आई. लाश का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया गया था. पुलिस ने मौके से मिली खून सनी हंसिया और खून सनी मिट्टी को बतौर साक्ष्य कब्जे में ले लिया था.

कड़ाई से पूछताछ करने पर युवक ने अपना नाम प्रीतेश पटेल बताया. उस ने बताया कि उसी ने धारदार हंसिया से अपनी पे्रमिका ज्योति सुरजीत सिंह उर्फ निशा ज्योति का कत्ल किया है. उस ने कत्ल की वजह उस के द्वारा की गई बेवफाई को बताया. बाद में उस ने पूरी घटना तफ्सील से बयान की.

22 वर्षीया ज्योति सुरजीत सिंह उर्फ निशा ज्योति मूलरूप से पंजाब के बठिंडा की रहने वाली थी. खूबसूरत ज्योति मौडल बनना चाहती थी. मांबाप भी बेटी का सपना पूरा करने के लिए तैयार थे. इंटरमीडिएट तक पढ़ाई कर के ज्योति ने पढ़ाई छोड़ दी और मौडल बनने के लिए मायानगरी मुंबई चली गई.

ज्योति ने मुंबई में अपने एक परिचित के घर रह कर मौडलिंग की दुनिया में पांव जमाने की कोशिश की, लेकिन उसे मनचाही सफलता नहीं मिली. फिर भी ज्योति ने हिम्मत नहीं हारी.

बेवफाई का बदनाम वीडियो : प्रेमी को सिखाया सबक – भाग 1

बात 24 मई, 2021 की है. दोपहर करीब सवा बजे जबलपुर जिले के थाना खितौली की टीआई जगोतिन मसराम के मोबाइल पर किसी ने काल की.

काल करने वाले ने बताया, ‘‘मैडम, मेरा नाम नारायण पटेल है. सिहोरा थाने के गुरजी गांव का रहने वाला हूं. मेरे पिता प्रेमनारायण पटेल के मोबाइल पर किसी ने सूचना दी थी कि पान उमरिया रोड किनारे उस की मोटरसाइकिल पड़ी है. उस के थोड़ी दूरी पर ही एक लाश से दुर्गंध आ रही है. मुझे डर लग रहा है मैडम, क्योंकि मेरा छोटा भाई सोनू 16 मई से ही लापता है.’’

‘‘तुम डरो मत, तुम हरगढ़ जंगल पहुंचो, मैं भी एक घंटे में पहुंच रही हूं.’’ टीआई ने कहा.

टीआई अपनी जांच टीम के साथ साढ़े 3 बजे हरगढ़ जंगल में पहुंच गईं. वास्तव में वहां एक लाश सड़ीगली हालत में मिली. थोड़ी दूर एक बाइक भी गिरी हालत में मिली.

पुलिस टीम के सभी सदस्य कोरोना किट में थे. वहां तेज दुर्गंध भी फैल रही थी. लाश के पास से जूट की करीब एकएक मीटर की 2 रस्सियां, नीले रंग का लोअर, टीशर्ट, बनियान, चमड़े के चप्पल और 2 मास्क बरामद किए.

जांचपड़ताल चल ही रही थी कि तभी नारायण भी भागता हुआ आया, उस ने अपनी मोटरसाइकिल भी पहचान ली. लाश बुरी तरह से सड़गल चुकी थी. चेहरा तो बिलकुल ही पहचान में नहीं आ रहा था.

मांस से बाहर निकली कुछ हड्डियां दिख रही थीं. खून तो सूख कर काला पड़ चुका था. आंखों का पता नहीं चल रहा था. लगता था वे बुरी तरह से कुचल दी गई हों. पास में ही करीब 10-15 किलोग्राम का एक पत्थर दिखा.

उस पर चिपकी मिट्टी का नमूना ले लिया गया. उस पर भी कीड़े चल रहे थे और पास में मक्खियां भिनभिना रही थीं. जांचकर्मियों ने अनुमान लगाया  कि इसी पत्थर से चेहरे को कुचला  गया होगा.

नारायण ने बरामद सामानों में कपड़े और चप्पल के आधार पर चेहरा कुचले जाने के बावजूद लाश की पहचान कर दी, जो उस के छोटे भाई सोनू की ही थी.

सारे कपड़े वही थे, जो उसे शादी में मिले थे. यहां तक कि उन पर लगे हल्दी के दाग भी वैसे के वैसे थे, जिसे नारायण ने ही उन पर मात्र एक सप्ताह पहले लगाए थे दागधब्बे काले जरूर हो गए थे, लेकिन स्वास्तिक का निशान देख कर नारायण ने कपड़े सोनू के होने की पुष्टि कर दी.

थोड़ी देर में ही जबलपुर के एडिशनल एसपी शिवेश सिंह बघेल, एसडीपीओ (सिहोरा) श्रुत कीर्ति सोमवंशी और फोरैंसिक जांच टीम घटनास्थल पर पहुंच गई.

वहां से बरामद सारी सामग्री को जब्त कर मैडिको लीगल इंस्टीट्यूट, भोपाल भेजने के निर्देश दे दिए गए. लाश बड़ी मुश्किल से सील पैक कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई.

टीआई मसराम अपने साथ नारायण को ले कर थाने पहुंचीं. उन्होंने घर वालों को भी थाने बुलवा लिया. शाम 7 बजे के करीब घरवालों में उस के पिता और पत्नी गायत्री से मसराम ने पूछताछ की.

शुरुआती जांच की पूरी रिपोर्ट तैयार कर आगे की जांच और काररवाई के लिए फाइल तैयार कर दी गई. उस में सोनू की गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कर ली गई, जिस की तहकीकत जबलपुर जिले के एसपी सिद्धार्थ बहुगुणा के दिशानिर्देश पर की जा जारी थी.

सोनू की गुमशुदगी की शिकायत 17 मई, 2021 को सिहोरा थाने में तुलसीराम के बड़े बेटे नारायण पटेल ने लिखवाई थी.

उस शिकायत के अनुसार सोनू 16 मई, 2021 की सुबह 10 बजे घर से अपनी नवविवाहिता पत्नी का मोबाइल ठीक कराने को कह कर सिहोरा गया था. उस के देर रात तक वापस नहीं लौटने पर रिश्तेदारों और दोस्तों के यहां फोन कर के पूछताछ की गई, लेकिन जब उस का कोई पता नहीं चला, तब थाने में उस की गुमशुदगी दर्ज की गई.

सोनू की 4 दिन पहले ही 12 मई, 2021 को कटनी जिले में बहोरीबंद थानांतर्गत बासन गांव की गायत्री के साथ शादी हुई थी.

इस बारे में पुलिस ने गायत्री से पूछताछ की तो गायत्री ने पुलिस को बताया कि पति के शाम तक वापस नहीं आने पर उस ने पति के मोबाइल पर काल की थी, लेकिन फोन आउट औफ कवरेज बताया गया था.

उसे लगा कि वह रात तक वापस आ जाएंगे, लेकिन नहीं आए. उन के न आने पर मन कई तरह की आशंकाओं से घिर गया और फिर उस ने ही अगले दिन सुबह नारायण को गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाने के लिए कहा.

जांच और दूसरे किस्म की तहकीकात से यह साफ हो गया था कि बरामद लाश सोनू की ही थी, लेकिन अहम सवाल उस की मौत को ले कर बना हुआ था. पहला और ठोस कारण हत्या का ही सामने आ रहा था.

यानी हत्या हुई थी तो क्यों और कैसे के सवालों के जवाब तलाशने बाकी थे. साथ ही जल्द से जल्द हत्यारे तक पहुंचने और उसे सजा दिलवानी भी जरूरी थी. 10 दिन बाद ही मैडिको लीगल इंस्टीट्यूट, भोपाल की रिपोर्ट भी आ गई थी. उस रिपोर्ट ने पुलिस को हैरत में डाल दिया.

रिपोर्ट के अनुसार मृतक के गले में जूट की एक पतली रस्सी भी लिपटी थी, जो भीतर की ओर धंस गई थी. इस आधार पर ही उस की मौत को पहले आत्महत्या कहा गया था.

हालांकि उस के दोनों हाथों की कलाइयां और पैरों को घुटने के ठीक ऊपर रस्सियों से बांधने के निशान पाए गए थे. ये सबूत सोनू की हत्या की ओर इशारा कर रहे थे, जिस में एक से अधिक व्यक्ति के शामिल होने की भी बात कही गई थी.

अब पुलिस के सामने सवाल था कि कोई एक व्यक्ति कैसे एक हष्टपुष्ठ नौजवान की रस्सियों से गला घोंट कर हत्या कर सकता है? किस तरह से उसने उस के हाथ और पैर बांधे होंगे?

इस मामले को खितौला पुलिस थाने में 10 जून को दर्ज किया गया. सिहोरा तहसील के एसडीपीओ की कमान संभाले 2018 बैच के आईपीएस श्रुत कीर्ति सोमवंशी ने इसे गंभीरता से लिया.

उन्होंने सोनू के मोबाइल काल की पूरी डिटेल्स निकलवाई. उस में पता चला कि सोनू के मोबाइल नंबर से 16 मई को किसी मधु पटेल नाम की लड़की से 4-5 बार बात हुई थी.

ख्वाहिश का अंत : क्या हुआ था वी.जे. चित्रा के साथ

अगर कोई नामचीन एक्टर अपनी अदाकारी छोड़ दे तो उस का महत्त्व खुदबखुद खत्म हो जाएगा. उस की एक्टिंग ही तो उसे सितारा बनाती है. एक्टिंग छोड़ कर उस की महत्त्वाकांक्षाओं का क्या होगा, वह तो जिंदा रह कर भी मर जाएगा. उस के जीने का मकसद ही खत्म हो जाएगा.

शायद ऐसा ही कुछ दक्षिण भारत की सुप्रसिद्ध टीवी स्टार और एंकर वी.जे. चित्रा के साथ भी था, जो उस ने ग्लैमर की दुनिया को अलविदा कह दिया. होटल के कमरे में उन का शव पंखे से लटकता हुआ पाया गया.

9 दिसंबर, 2020 की सुबह के करीब 4 बजे थे. चेन्नै के नाजरथपेठ स्थित एक अस्पताल में कुछ लोग एक महिला को ले कर गए. डाक्टरों ने उस महिला का परीक्षण किया तो वह मृत पाई गई. जो लोग उस महिला को अस्पताल लाए थे, उन्होंने डाक्टरों को बताया कि वह टीवी स्टार वी.जे. चित्रा है. इस ने होटल के कमरे में फांसी लगा ली थी. चूंकि यह पुलिस केस था, इसलिए अस्पताल की तरफ से इस की खबर थाने में दे दी गई.

अस्पताल नाजरथपेठ थाने से ज्यादा दूर नहीं था, इसलिए सूचना के 10 मिनट बाद ही पुलिस टीम अस्पताल पहुंच गई.

मृतका एक हाईप्रोफाइल टीवी स्टार और एंकर थी. पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया तो उस के गले पर हलके काले रंग का निशान मिला. डाक्टरों ने पुलिस को बताया कि इन की मौत शायद फंदे से लटक कर दम घुटने की वजह से हुई है.

शव का निरीक्षण करने के बाद पुलिस ने अस्पताल में ही मौजूद मृतका के मंगेतर हेमंत रवि से पूछताछ की.

हेमंत रवि ने बताया  कि कल रात करीब ढाई बजे चित्रा चेन्नै के ईवीपी फिल्म सिटी से शूटिंग खत्म कर उस के साथ लौटी थी. होटल के कमरे में आने के बाद चित्रा कुछ मिनटों बाद नहाने के लिए बाथरूम चली गई थी.

उस के बाथरूम जाने के बाद वह भी अपना समय व्यतीत करने के लिए होटल के कमरे से बाहर निकल गया था. लगभग आधा घंटे बाद जब वह होटल के कमरे में आया तो कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था. कई बार कमरे का दरवाजा खटखटाने और कालबैल बजाने के बाद जब दरवाजा नहीं खुला और अंदर कोई आहट भी नहीं हुई तो वह घबरा गया.

किसी अनहोनी की आशंका से वह भाग कर होटल की लौबी में गया और होटल मैनेजर को सारी बात बताई. होटल मैनेजर भी उस की बातें सुन कर परेशान हो गया. वह कुछ कर्मचारियों के साथ तुरंत होटल के कमरे पर पहुंचा. जब मैनेजर ने डुप्लीकेट चाबी से कमरे का दरवाजा खोला तो कमरे के अंदर का दृश्य देख कर उस के होश उड़ गए. चित्रा पंखे से लटकी हुई थी.

किसी करिश्मे की उम्मीद से उस ने होटल कर्मचारियों के सहयोग से पंखे से लटकी चित्रा को नीचे उतारा और स्थानीय अस्पताल ले गया. लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी.

हेमंत रवि से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने शव का पुन: निरीक्षण किया और साथ आए पति का सरसरी तौर पर बयान ले कर शव को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल को सौंप दिया और सीधे घटनास्थल पर आ गई.

घटनास्थल चेन्नै नाजरथपेठ इलाके का एक जानामाना फाइवस्टार होटल था. उस होटल में इस प्रकार की यह पहली घटना थी, जिसे ले कर होटल का मैनेजमेंट काफी परेशान था.

इस होटल में अपने कारोबार के सिलसिले में शहर के संपन्न लोग ही आ कर ठहरते थे. टीवी स्टार और एंकर वी.जे. चित्रा भी एक टीवी सीरियल की शूटिंग के बाद अपने मंगेतर हेमंत रवि के साथ आ कर वहां ठहरी थी.

पुलिस ने होटल के कमरे का बारीकी से निरीक्षण कर होटल के स्टाफ से पूछताछ की और मामले की सारी औपचारिकताएं पूरी कीं.

मशहूर अभिनेत्री और एंकर चित्रा ने कदमकदम पर कामयाबी की सीढि़यां चढ़ कर बहुत कम समय में लाखों लोगों के दिलों में अपनी एक खास जगह बना ली थी. पता नहीं क्यों वह दुनिया को छोड़ कर अलविदा कह गई थी.

सुबह जैसे ही टीवी और अखबारों में अभिनेत्री वी.जे. चित्रा की मौत की खबर सामने आई, चेन्नै के साथ पूरे दक्षिण भारत में आग की तरह फैल गई. वी.जे. चित्रा के अनगिनत चाहने वालों को गहरा सदमा लगा. लोग समझ नहीं पा रहे थे कि चित्रा ने खुदकुशी की थी या फिर उस की हत्या की गई थी.

यही सवाल पुलिस के लिए भी पहेली बना हुआ था. पुलिस भी मृतका के मंगेतर हेमंत रवि और होटल वालों के बयानों से सहमत नहीं थी. वी.जे. चित्रा की मौत की सुई सिर्फ उस के मंगेतर हेमंत रवि की तरफ घूम रही थी. वजह यह थी कि उस रात चित्रा के साथ मंगेतर हेमंत रवि के अलावा होटल के कमरे में और कोई नहीं था.

सवाल यह भी उठ रहा था कि चित्रा को अकेला छोड़ कर होटल के बाहर क्यों गया था. हेमंत रवि के होटल के बाहर जाने के बाद ही चित्रा रहस्यमयी हालत में होटल के कमरे के पंखे से लटकी मिली थी. जरूर कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ थी.

पुलिस जांच टीम ने अपनी जांच की शुरुआत वी.जे. चित्रा के मंगेतर हेमंत रवि से पूछताछ के साथ ही की. उधर वी.जे. चित्रा के पिता जो रिटायर्ड पुलिस इंसपेक्टर थे और परिवार यह मानने के लिए तैयार नहीं था कि उन की बेटी ने बिना किसी वजह खुदकुशी की होगी.

उन का तो यहां तक कहना था कि उन की बेटी की हत्या कर उसे खुदकुशी का रूप देने की कोशिश की है.

लेकिन सवाल यह था कि आखिर वी.जे. चित्रा की मौत के पीछे कौन था. कुल मिला कर पुलिस टीम किसी भी नतीजे पर पहुंचने के पहले सारे पहलुओं को पूरी तरह से खंगाल लेना चाहती थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि चित्रा की मौत स्वाभाविक तौर पर पंखे के फंदे से लटकने की वजह से दम घुट कर हुई थी. उस के गले और गालों पर आए नाखूनों के जख्म उस के खुद के हाथों के ही पाए गए.

कुल मिला कर पोस्टमार्टम रिपोर्ट वी.जे. चित्रा को ही अपनी मौत का जिम्मेदार बता रही थी, जबकि बाकी परिस्थितिजन्य साक्ष्य कुछ अलग ही कहानी कह रहे थे कि खुदकुशी के पीछे कहीं न कहीं उस के मंगेतर हेमंत रवि का रोल जरूर रहा होगा.

इन सब के आधार पर पुलिस टीम ने लगभग 6 दिनों तक लगातार हेमंत रवि से पूछताछ करने के बाद सच्चाई का पता लगा लिया. पता चला कि हेमंत रवि ने ही चित्रा को मानसिक रूप से इतना प्रताडि़त किया था कि उसे आत्महत्या करने के लिए विवश होना पड़ा. इस के बाद पुलिस ने हेमंत रवि को आईपीसी की धारा 306 के तहत चित्रा को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. उस से पूछताछ के बाद जो कहानी उभर कर सामने आई थी, वह चौंका देने वाली थी.

तमिल सीरियल और रियल्टी शोज की जान वी.जे. चित्रा की खुदकुशी सुशांत सिंह राजपूत की मर्डर मिस्ट्री की याद दिला रही थी. उस के चाहने वालों को भी यह यकीन नहीं हो रहा था कि चित्रा खुदकुशी कर सकती है. सवाल यह भी उठ रहा था कि आखिर उस की मौत की वजह क्या थी?

जिस के आने से रुपहले परदे पर नूर आ जाए, जिस के नशीले नैन चाहने वालों को मदहोश कर दें, ़जिस की दिलकश मुसकान दिल थामने के लिए विवश कर दे, ऐसी अभिनेत्री आखिर दुनिया को छोड़ कर क्यों चली गई.

तमिल इंडस्ट्री की जान वी.जे. चित्रा अपने आप में अदाकारी का एक कंप्लीट पैकेज थी. जब वह नाचती थी तो डांसर बन जाती थी. जब किसी किरदार में आती थी तो अदाकारा बना जाती थी और जब वह निजी जिंदगी में किसी से मिलती थी तो उसे अपना बना लेती थी.

28 वर्षीय वी.जे. चित्रा का जन्म 2 मई, 1992 को तमिलनाडु के चेन्नै में हुआ था. उन के पिता चेन्नै शहर के एक सशक्त छवि वाले पुलिस इंसपेक्टर थे. जबकि मां कुशल गृहिणी थीं. वी.जे. चित्रा उन की एकलौती और लाडली बेटी थी. परिवार साधारण व सुखीसंपन्न था.

वी.जे. चित्रा बचपन से ही होनहार थी. उस के दिल में फिल्म और टीवी कलाकार बनने की चाह थी. वह अकसर टीवी के सामने बैठ कर उस पर आने वाले सभी शोज को बड़े ध्यान से देखती थी. उस की नकल करती थी.

चहेती बेटी होने के कारण उस के मांबाप उस पर ध्यान नहीं देते थे, क्योंकि उन के सपने बेटी के सपनों से अलग थे. वे चाहते थे कि उन की बेटी उच्चशिक्षा पा कर किसी उच्चपद पर काम करे.

लेकिन बेटी की पसंद के कारण उन्हें उस के सामने झुकना पड़ा था. चित्रा ने चेन्नै कालेज से बीएससी करने के बाद चेन्नै माइकल टीवी से अदाकारी और एंकरिंग का डिप्लोमा ले कर उसी चैनल से अपना कैरियर शुरू कर दिया था.

टीवी की एंकर और शोज को होस्ट करतेकरते जब चित्रा ने टीवी सीरियल की तरफ कदम बढ़ाया तो उसे हर कदम पर कामयाबी मिली. देखते ही देखते उस की झोली में कई तमिल सीरियल आ गए थे.

चिन्ना पापा पेरिया पापा, वेलुनाची और पंडियन स्टोर में मुल्लई की भूमिका में आई वी.जे. चित्रा ने पूरे तमिलभाषियों के दिलों में अपनी एक जगह बना ली और रातोंरात वह सुपर तमिल स्टारों की श्रेणी में आ खड़ी हुई थी. उसे अदाकारी में इज्जत और मानसम्मान सब मिलने लगा.

बेटी सुपरस्टार बन गई थी. इस बात की खुशी सब से अधिक उस के मांबाप और नातेरिश्तेदारों को हुई थी. थोड़े ही दिनों में चित्रा बुलंदियों के उस मुकाम पर पहुंच गई थी, जहां पर लोगों को पहुंचने के लिए लंबा वक्त लगता है.

जैसेजैसे चित्रा के स्टारडम का दायरा बढ़ता गया, वैसेवैसे तमिल टीवी स्टार और रियल्टी शोज की होस्ट के कदम भी बढ़ते गए. टीवी रियल्टी शोज की पार्टियों में चित्रा का आनाजाना भी बढ़ गया था. इसी तरह लौकडाउन के पहले की एक पार्टी में उस की मुलाकात उस के होने वाले हमसफर हेमंत रवि से हो गई.

32 वर्षीय हेमंत रवि वैसे तो एक साधारण परिवार से संबंध रखता था, लेकिन अपनी कड़ी मेहनत के दम पर उस ने शहर में एक कारोबारी के रूप में अपनी पहचान बना ली थी. दोनों की पहले नजरें मिलीं और धीरेधीरे दिल भी मिल गए.

हेमंत रवि के व्यवहार को देख कर चित्रा भी अपने आप को रोक नहीं पाई और उस से आकर्षित हो कर उस की तरफ खिंची चली गई. यही हाल हेमंत रवि का भी था. चित्रा के बिना उसे एकएक पल भारी लगता था. उसे जब भी मौका मिलता था, वह चित्रा से मिलने के लिए उस के शूटिंग सेट पर पहुंच जाता और उस की शूटिंग खत्म होने तक इंतजार करता रहता.

शूटिंग खत्म होने के बाद दोनों मन बहलाने के लिए लंबी ड्राइव पर चले जाते, घूमतेफिरते खातेपीते थे. यह सिलसिला कुछ दिनों तक चलने के बाद जब हेमंत रवि को लगने लगा कि अब बिना चित्रा के नहीं रह सकता तो मौका देख कर उस ने शादी का प्रपोजल रख दिया. चित्रा को भी हेमंत रवि की आंखों में अपने लिए मोहब्बत दिखाई दी तो उस ने भी हां कर दी.

एक उभरती हुई अदाकारा और टीवी रियल्टी शोज की होस्ट चित्रा ने अगस्त 2020 में जब अपने होने वाले हमसफर हेमंत रवि का हाथ दुनिया के सामने थामा तो उस के लाखों चाहने वालों ने अपना दिल थाम लिया था. दोनों ने इस रिश्ते को एक नाम देने का फैसला किया और उन्होंने सगाई कर ली. दोनों परिवार इस रिश्ते से बेहद खुश थे, इसलिए उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई.

वी.जे. चित्रा और हेमंत रवि की जिंदगी में वैसे तो कोई ट्विस्ट नहीं था, जैसा कि आमतौर पर लवस्टोरीज में हुआ करता है. और तो और दोनों ने यह भी तय कर लिया था कि लौकडाउन की पाबंदियों से आजाद होने के बाद जनवरी 2021 में शादी कर के एक शानदार रिसैप्शन पार्टी आयोजित करेंगे, लेकिन उन का यह सपना पूरा नहीं हुआ.

कारण यह था कि सगाई हो जाने के 2-3 महीने बाद ही हेमंत रवि का व्यवहार चित्रा के प्रति बदलने लगा था. इस की वजह यह थी कि उसे चित्रा द्वारा सीरियलों में दिए इंटीमेट सीनों से चिढ़ थी.

सीरियल और रियल्टी शोज में इंटीमेट रोमांटिक सीनों को ले कर हेमंत ने कई बार टोका और मना भी किया था. वह चाहता था कि वह इंटीमेट सीन दुनिया के सामने न आए, पर यह बात चित्रा को पसंद नहीं थी. वह हेमंत के मना करने के बावजूद ऐसे एसाइनमेंट करती रही.

इसी बात को ले कर दोनों के बीच कहासुनी हो जाती जो झगड़े तक पहुंच जाती थी. हेमंत की इस तरह की टीकाटिप्पणी से चित्रा मानसिक रूप से परेशान रहने लगी.

घटना वाली रात भी शूटिंग से लौटने के बाद होटल के कमरे में दोनों में इंटीमेट सीनों को ले कर कहासुनी हुई थी. जिस से नाराज हो कर चित्रा ने हेमंत से पीछा छुड़ाने के लिए नहाने की इच्छा जाहिर की और बाथरूम में चली गई.

यह देख कर हेमंत होटल के कमरे से बाहर चला गया. इतनी कहासुनी के बाद  चित्रा अपने आप को नौर्मल नहीं रखपाई और होटल के कमरे के पंखे से लटक कर सदासदा के लिए ग्लैमर की दुनिया को अलविदा कह दिया.

हेमंत रवि से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.

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छीन ली सांसों की डोर-भाग 1: एकतरफा प्यार की सजा

खुशमिजाज रागिनी दुबे सुबह तैयार हो कर अपनी छोटी बहन सिया के साथ घर से पैदल ही स्कूल के लिए निकली थी. वह बलिया जिले के बांसडीह की रहने वाली थी. दोनों बहनें सलेमपुर के भारतीय संस्कार स्कूल में अलगअलग कक्षा में पढ़ती थीं. रागिनी 12वीं कक्षा में थी तो सिया 11वीं में.

उस दिन रागिनी महीनों बाद स्कूल जा रही थी. स्कूल जा कर उसे अपने बोर्ड परीक्षा फार्म के बारे में पता करना था कि परीक्षा फार्म कब भरा जाएगा. वह कुछ दिनों से स्कूल नहीं जा पाई थी, इसलिए परीक्षा फार्म के बारे में उसे सही जानकारी नहीं थी.

दोनों बहनें पड़ोस के गांव बजहां के काली मंदिर के रास्ते हो कर स्कूल जाती थीं. उस दिन भी वे बातें करते हुए जा रही थीं, जब दोनों काली मंदिर के पास पहुंची तभी अचानक उन के सामने 2 बाइकें आ कर रुक गईं. दोनों बाइकों पर 4 लड़के सवार थे. अचानक सामने बाइक देख रागिनी और सिया सकपका गईं, वे बाइक से टकरातेटकराते बचीं.

‘‘ये क्या बदतमीजी है, तुम ने हमारा रास्ता क्यों रोका?’’ रागिनी लड़कों पर गुर्राई.

‘‘एक बार नहीं, हजार बार रोकूंगा.’’ उन चारों में से एक लड़का बाइक से नीचे उतरते हुए बोला. उस का नाम प्रिंस उर्फ आदित्य तिवारी था. प्रिंस आगे बोला, ‘‘जाओ, तुम्हें जो करना हो कर लेना. तुम्हारी गीदड़भभकी से मैं डरने वाला नहीं, समझी.’’

‘‘देखो, मैं शराफत से कह रही हूं, हमारा रास्ता छोड़ो और स्कूल जाने दो.’’ रागिनी बोली.

‘‘अगर रास्ता नहीं छोड़ा तो तुम क्या करोगी?’’ प्रिंस ने अकड़ते हुए कहा.

‘‘दीदी, छोड़ो इन लड़कों को. मां ने क्या कहा था कि इन के मुंह मत लगना. इन के मुंह लगोगी तो कीचड़ के छींटे हम पर ही पड़ेंगे. चलो हम ही अपना रास्ता बदल देते हैं.’’ सिया ने रागिनी को समझाया.

‘‘नहीं सिया नहीं, हम बहुत सह चुके इन के जुल्म. अब और बरदाश्त नहीं करेंगे. इन दुष्टों ने हमारा जीना हराम कर रखा है. इन से जितना डरोगी, उतना ही ये हमारे सिर पर चढ़ कर तांडव करेंगे. इन्हें इन की औकात दिखानी ही पड़ेगी.’’

‘‘ओ झांसी की रानी,’’ प्रिंस गुर्राया,  ‘‘किसे औकात दिखाएगी तू, मुझे. तुझे पता भी है कि तू किस से पंगा ले रही है. प्रधान कृपाशंकर तिवारी का बेटा हूं, मिनट में छठी का दूध याद दिला दूंगा. तेरी औकात ही क्या है. मैं ने तुझे स्कूल जाने से मना किया था ना, पर तू नहीं मानी.’’

‘‘हां, तो.’’ रागिनी डरने के बजाए प्रिंस के सामने तन कर खड़ी हो गई. ‘‘तुम मुझे स्कूल जाने से रोकोगे, ऐसा करने वाले तुम होते कौन हो?’’

‘‘दीदी, क्यों बेकार की बहस किए जा रही हो,’’ सिया बोली, ‘‘चलो यहां से.’’

‘‘नहीं सिया, तुम चुप रहो.’’ रागिनी सिया पर चिल्लाई, ‘‘कहीं नहीं जाऊंगी यहां से. रोजरोज मर के जीने से तो अच्छा होगा कि एक ही दिन मर जाएं. कम से कम जिल्लत की जिंदगी तो नहीं जिएंगे. इन दुष्टों को इन के किए की सजा मिलनी ही चाहिए.’’ रागिनी सिया पर चिल्लाई.

‘‘तूने किसे दुष्ट कहा?’’ प्रिंस गुस्से से बोला.

‘‘तुझे और किसे…’’ रागिनी भी आंखें दिखाते हुए बोली.

आतंक पहुंचा हत्या तक

इस तरह दोनों के बीच विवाद बढ़ता गया. विवाद बढ़ता देख कर प्रिंस के सभी दोस्त अपनी बाइक से नीचे उतर कर उस के पास जा खड़े हुए. सिया रागिनी को समझाने लगी कि लड़कों से पंगा मत लो, यहां से चलो. लेकिन उस ने बहन की एक नहीं सुनी. गुस्से से लाल हुए प्रिंस ने आव देखा न ताव उस ने रागिनी को जोरदार धक्का मारा.

रागिनी लड़खड़ाती हुई जमीन पर जा गिरी. अभी वह संभलने की कोशिश कर ही रही थी कि वह उस पर टूट पड़ा. पहले से कमर में खोंस कर रखे चाकू से उस ने रागिनी के गले पर ताबड़तोड़ वार करने शुरू कर दिए. कुछ देर तड़पने के बाद रागिनी की मौत हो गई. उस की हत्या कर वे चारों वहां से फरार हो गए.

घटना इतने अप्रत्याशित तरीके से घटी थी कि न तो रागिनी ही कुछ समझ पाई थी और न ही सिया. आंखों के सामने बहन की हत्या होते देख सिया के मुंह से दर्दनाक चीख निकल पड़ी. उस की चीख इतनी तेज थी कि गांव वाले अपनेअपने घरों से बाहर निकल आए और जहां से चीखने की आवाज आ रही थी, वहां पहुंच गए. उन्होंने मौके पर पहुंच कर देखा तो रागिनी खून से सनी जमीन पर पड़ी थी. वहीं उस की बहन उस के पास बैठी दहाड़ें मार कर रो रही थी.

दिनदहाड़े हुई दिन दहला देने वाली इस घटना से सभी सन्न रह गए. लोग आपस में चर्चा कर रहे थे कि समाज में कानून नाम की कोई चीज नहीं रह गई है. बदमाशों के हौसले इतने बुलंद हो गए हैं कि राह चलती बहूबेटियों का जीना तक मुश्किल हो गया है. इस बीच किसी ने फोन द्वारा घटना की सूचना बांसडीह रोड थानाप्रभारी बृजेश शुक्ल को दे दी थी.

गांव वाले रागिनी को पहचानते थे. वह पास के गांव बांसडीह के रहने वाले जितेंद्र दुबे की बेटी थी, इसलिए उन्होंने जितेंद्र दुबे को भी सूचना दे दी. बेटी की हत्या की सूचना मिलते ही घर में कोहराम मच गया, रोनापीटना शुरू हो गया. उन्हें जिस अनहोनी की चिंता सता रही थी आखिरकार वो हो गई.

जितेंद्र दुबे जिस हालत में थे, उसी हालत में घटनास्थल की तरफ दौडे़. वह बजहां गांव के काली मंदिर के पास पहुंचे तो वहां उन की बेटी की लाश पड़ी थी.

लाश के पास ही छोटी बेटी सिया दहाड़े मार कर रो रही थी. बेटी की रक्तरंजित लाश देख कर जितेंद्र भी फफकफफक कर रोने लगे. उन्हें 2-3 दिन पहले ही कुछ शरारती तत्व घर पर धमकी दे कर गए थे कि रागिनी स्कूल गई तो वह दिन उस की जिंदगी का आखिरी दिन होगा. आखिरकार वे अपने मंसूबों में कामयाब हो गए.

सूचना पा कर एसआई बृजेश शुक्ल फोर्स के साथ मौके पे पहुंच चुके थे. उन्होंने शव का मुआयना किया. मृतका के गले पर अनेक घाव थे. चूंकि पूरी वारदात मृतका की छोटी बहन सिया के सामने घटित हुई थी, इसलिए उस ने एसआई बृजेश शुक्ल को सारी बातें बता दीं. उस ने बताया कि बजहां गांव के रहने वाले ग्राम प्रधान कृपाशंकर तिवारी का बेटा प्रिंस उर्फ आदित्य तिवारी, प्रधान का ही भतीजा सोनू तिवारी, नीरज तिवारी और दीपू यादव ने दीदी की हत्या की है.

मौके की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. पुलिस ने जितेंद्र दुबे की तहरीर पर ग्रामप्रधान कृपाशंकर तिवारी, उस के बेटे आदित्य उर्फ प्रिंस, सोनू तिवारी, नीरज तिवारी और दीपू यादव के खिलाफ हत्या और छेड़छाड़ की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया.

प्यार के लिए कुर्बानी : महबूब को क्यों चुकानी पड़ी कीमत

18 सितंबर, 2020 को देर रात थाना कांठ के थानाप्रभारी अजय कुमार गौतम के मोबाइल पर किसी अंजान व्यक्ति का फोन आया. फोन करने वाले ने बताया, ‘‘सर, मैं ऊमरी कलां के पास पाठंगी गांव के प्रधान शहजाद का छोटा भाई नौशाद बोल रहा हूं. सर, हमारे घर में एक युवक की मौत हो गई है. आप जल्द आ जाइए.’’

‘‘मौत कैसे हो गई, क्या हुआ था उसे?’’ अजय कुमार गौतम ने उस युवक से पूछा.

‘‘सर, संदूक में दम घुटने से…’’ युवक ने जबाव दिया.

यह जानकारी देने के बाद नौशाद ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

नौशाद की बात सुनते ही थानाप्रभारी को समझते देर नहीं लगी कि मामला कुछ गड़बड़ है. लिहाजा कुछ पुलिसकर्मियों को साथ ले कर वह पाठंगी गांव जा पहुंचे.

जिस वक्त गांव में पुलिस पहुंची, अधिकांश लोग सो चुके थे. फिर भी गांव में देर रात पुलिस की गाड़ी देख कर कुछ लोग एकत्र हो गए. पुलिस की जिप्सी रुकते ही सब से पहले नौशाद पुलिस के सामने हाजिर हुआ. वह बोला, ‘‘सर, मेरा नाम ही नौशाद अली है. मैं ने ही आप को फोन किया था. आइए सर, मैं आप को युवक की लाश दिखाता हूं.’’ कह कर नौशाद अली पुलिसकर्मियों को अपने घर के अंदर ले गया.

घर के अंदर जाते ही नौशाद ने अपने घर में रखा संदूक खोला. संदूक खुलते ही बदबू का गुबार निकला. जिस की वजह से पुलिस का वहां रुकना मुश्किल हो गया. बदबू कम हुई तो पुलिस ने मृतक की लाश देखी. फिर लोगों की मदद से लाश को संदूक से बाहर निकलवाया.

मृतक हृष्टपुष्ट युवक था. जांचपड़ताल के दौरान पता चला कि उस के शरीर पर तमाम चोटों के निशान थे. उस के सिर से काफी खून भी निकल कर जम गया था. संभवत: ज्यादा खून बहने से ही उस की मौत हुई थी.

थानाप्रभारी गौतम ने इस मामले की जानकारी सीओ बलराम सिंह को भी दे दी थी. सूचना मिलते ही सीओ साहब भी पाठंगी गांव पहुंच गए और वहां मौजूद लोगों से पूछताछ की.

फोरैंसिक टीम ने भी घटनास्थल पर पहुंच कर साक्ष्य एकत्र किए.

नौशाद के घर से ही पुलिस को मृतक का एक बैग भी मिला, जिस में से पुलिस को शराब की एक बोतल के साथसाथ 2 बीयर की बोतलें, मृतक का आधार कार्ड व अन्य दस्तावेज भी मिले. आधार कार्ड पर नाम महबूब आलम पुत्र शमशाद, निवासी मोड़ा पट्टी, कांठ लिखा था.

पुलिस ने नौशाद से मृतक युवक के बारे में पूछा तो उस ने बताया, ‘‘सर, मैं पानीपत में काम करता हूं. घर पर मेरे बीवीबच्चे रहते हैं. इसलिए मैं इस के बारे में नहीं जानता. लेकिन पत्नी नरगिस ने बताया कि यह उस का दूर का रिश्तेदार है. मैं पानीपत में था तो आज सुबह मेरी बीवी नरगिस का फोन आया. उस ने फोन पर बताया कि घर पर कुछ अनहोनी हो गई है. इसलिए जितनी जल्दी हो सके, फौरन घर पहुंचो.’’

नौशाद ने बताया कि बीवी की बात सुनते ही वह अपना कामधंधा छोड़ कर तुरंत घर चला आया था. घर आने पर पत्नी ने बताया कि महबूब उस का दूर का रिश्तेदार था. 17 सितंबर, 2020 की देर रात वह हमारे घर पहुंचा. उस वक्त तीनों बच्चे सो चुके थे. लेकिन बड़ा बेटा अचानक जाग गया. बेटे के डर की वजह से महबूब घर में रखे संदूक में छिप कर बैठ गया. बेटा 2 घंटे बाद सोया तो मैं ने संदूक खोल कर देखा. तब तक दम घुटने से वह मर चुका था.

नौशाद ने पुलिस को बताया कि घर में किसी व्यक्ति की मौत हो जाने की बात सुनते ही उस के हाथपांव फूल गए. संदूक में पड़ी लाश के बारे में सोचसोच कर उस का सिर फटा जा रहा था.

उसे अपनी बीवी पर भी कुछ शक हुआ. वह समझ नहीं पा रहा था कि अगर लड़का सोते से उठ गया तो उसे संदूक में छिपने की क्या जरूरत थी. इस घटना से उसे बीवी पर बहुत गुस्सा आया. लेकिन घर में जो बला पड़ी थी, पहले उस से कैसे निपटा जाए, वह उसे ले कर परेशान था.

दोपहर से शाम तक उस ने कई बार उस की लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई, लेकिन वह किसी भी योजना में सफल नहीं हो पा रहा था. घर की बदनामी को देखते हुए वह न तो इस बात का जिक्र अपने घर वालों से कर सकता था और न ही खुद कोई निर्णय ले पा रहा था.

जब इस मामले में उस के दिमाग ने बिलकुल काम करना बंद कर दिया तो उस ने पुलिस को सूचना देने का फैसला लिया. उस के बाद ही उस ने पुलिस को फोन कर घटना की जानकारी दी.

जब पुलिस इस मामले की जांचपड़ताल में लगी थी, नरगिस घर के आंगन में ही डरीसहमी सी बैठी थी. नौशाद की बताई कहानी से पुलिस को मामला समझने में देर नहीं लगी. लेकिन हैरत की बात यह थी कि 2 घंटे संदूक में बंद रहने से उस की मौत कैसे हो गई. क्योंकि बक्सा काफी बड़ा भी था और खाली भी था. सवाल यह था कि मृतक के शरीर पर चोटों के निशान कहां से आए.

पुलिस को मृतक की जेब से एक मोबाइल मिला, जो उस वक्त बंद था. पुलिस ने उसे औन कर के उस की जांच की तो पता चला कि उस के फोन पर नरगिस ने ही आखिरी काल की थी.

इस मामले को ले कर पुलिस ने नरगिस से भी पूछताछ की. पुलिस पूछताछ के दौरान नरगिस ने अपने पति की बताई रटीरटाई बात दोहरा दीं. उस वक्त तक रात के 12 बज चुके थे. पुलिस युवक की मौत की जांच में लगी थी. उसी दौरान मृतक के मोबाइल पर शमशाद नामक व्यक्ति का फोन आया.

फोन थानाप्रभारी गौतम ने रिसीव किया. जैसे ही उन्होंने हैलो कहा तभी दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘अरे बेटा, मैं तुम्हारा अब्बू बोल रहा हूं. तुम कहां हो? कल से तुम्हारा फोन बंद आ रहा है.’’

‘‘शमशाद जी, आप कहां से बोल रहे हैं और आप का बेटा कहां गया हुआ है?’’ अजय कुमार गौतम ने शमशाद से प्रश्न किया.

आवाज उन के बेटे की नहीं थी. मोबाइल किसी और के रिसीव करने से शमशाद हुसैन चिंतित हो उठे. वह तुरंत बोले, ‘‘आप कौन बोल रहे हैं? यह नंबर तो मेरे बेटे महबूब आलम का है. आप के पास कहां से आया?’’

‘‘मैं कांठ थाने का थानेदार अजय कुमार गौतम बोल रहा हूं.’’

पुलिस का नाम सुनते ही शमशाद अहमद घबरा गए. उन के दिमाग में तरहतरह शंकाएं घूमने लगीं.

जब उन्हें यह जानकारी मिली कि बेटे का मोबाइल पुलिस के पास है तो वे किसी अनहोनी की आशंका से परेशान हो गए. तभी अजय कुमार गौतम ने शमशाद हुसैन को बताया कि उन के बेटे के साथ एक अनहोनी हो गई है. वह तुरंत पाठंगी गांव आ जाएं.

पुलिस द्वारा जानकारी मिलने पर शमशाद हुसैन अपने घर वालों के साथ पाठंगी गांव जा पहुंचे. वहां पहुंचने पर उन्हें जानकारी मिली कि उन का बेटा महबूब अब इस दुनिया में नहीं रहा. उस की संदूक में बंद होने के कारण दम घुटने से मौत हो गई है.

यह जानकारी मिलते ही शमशाद हुसैन के परिवार में मातम छा गया. घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतक की गला घोंट कर हत्या करने की बात सामने आई. मृतक के शरीर पर भी चोटों के काफी निशान पाए गए थे, जिन से साफ जाहिर था कि मृत्यु से पहले उस के साथ मारपीट की गई थी और मृतक ने हमलावरों से काफी संघर्ष किया था.

इस केस में मृतक के पिता शमशाद हुसैन की तहरीर पर पुलिस ने नरगिस, उस के पति नौशाद, ग्रामप्रधान शहजाद और दिलशाद के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

पुलिस ने आरोपी नरगिस को उस के घर से ही गिरफ्तार कर लिया. नरगिस को थाने लाते ही पुलिस ने उस से कड़ी पूछताछ की तो उस ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. नरगिस और महबूब के घर वालों से पूछताछ के बाद इस केस की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

जिला मुरादाबाद में कांठ मिश्रीपुर रोड पर स्थित है गांव मोड़ा पट्टी. शमशाद हुसैन इसी गांव में अपने परिवार के साथ रहता था. शमशाद हुसैन पेशे से कारपेंटर था. उस की आर्थिक स्थिति शुरू से ही मजबूत थी. उस के 6 बच्चों में महबूब आलम तीसरे नंबर का था. इस समय उस के पांचों बेटे कामधंधा कर कमाने लगे थे.

महबूब ने कांठ में ही स्टील वेल्ंिडग का काम सीख लिया था. काम सीखने के बाद उस ने ठेके पर काम करना शुरू किया. धीरेधीरे शहर के आसपास उस की अच्छी जानपहचान हो गई थी.

लगभग 3 साल पहले की बात है. नरगिस अपने पति नौशाद को फोन मिला रही थी. लेकिन गलती से फोन किसी और के नंबर से कनेक्ट हो गया. बातों में पता चला कि वह नंबर गांव मोड़ा पट्टी निवासी महबूब का है. महबूब से बात करना उसे अच्छा लगा.

महबूब को भी उस की बातें अच्छी लगीं. बात खत्म हो जाने के बाद महबूब ने उसी वक्त नरगिस के नंबर को अपने मोबाइल में सेव कर लिया था.

उस के कई दिन बाद महबूब ने फिर से वही नंबर ट्राई किया तो फोन नरगिस ने ही उठाया. उस के बाद महबूब ने नरगिस को विश्वास में लेते हुए उस के घर की पूरी हकीकत जान ली.

एक बार दोनों के बीच मोबाइल पर बात करने का सिलसिला चालू हुआ तो दोस्ती पर ही जा कर रुका. दोनों के बीच प्रेम कहानी शुरू हुई तो महबूब नरगिस के घर तक पहुंच गया.

महबूब पहली बार नरगिस के घर जा कर उस से मिला तो उस ने उस का परिचय अपने बच्चों व ससुराल वालों से अपने दूर के खालू के लड़के के रूप में कराया. उस के बाद महबूब का नौशाद की गैरमौजूदगी में आनाजाना बढ़ गया. उसी आनेजाने के दौरान महबूब और नरगिस के बीच अवैध संबंध भी बन गए.

नौशाद अकसर काम के सिलसिले में घर से बाहर ही रहता था. उस के तीनों बच्चे स्कूल जाने लगे थे. वैसे भी महबूब का घर नरगिस के गांव से करीब 7 किलोमीटर दूर था. जब कभी नरगिस घर पर अकेली होती तो वह महबूब को फोन कर के बुला लेती. फिर दोनों मौके का लाभ उठाते हुए अपनी हसरतें पूरी करते. दोनों के बीच यह सिलसिला काफी समय तक चलता रहा.

इसी दौरान महबूब कांठ छोड़ कर काम करने गोवा चला गया. महबूब के गोवा जाते ही नरगिस खोईखोई सी रहने लगी. इस के बाद भी दोनों के बीच मोबाइल पर प्रेम कहानी चलती रही. गोवा में स्टील वेल्डिंग का काम कर के महबूब ने काफी पैसे कमाए. उस कमाई का अधिकांश हिस्सा वह नरगिस पर खर्च करता.

महबूब जब कभी गोवा से अपने घर कांठ आता तो वह नरगिस के साथसाथ उस के बच्चों के लिए भी काफी गिफ्ट ले कर आता था. वह सारी रात उसी के पास सोता और फिर दिन निकलते ही अपने गांव मोड़ा पट्टी चला जाता था.

महबूब का नरगिस के साथ करीब 3 साल से प्रेम प्रसंग चल रहा था, लेकिन उस ने इस बात की भनक अपने परिवार वालों को नहीं लगने दी थी. लेकिन नरगिस के ससुराल वाले जरूर महबूब और नरगिस के रिश्ते को ले कर शक करने लगे थे.

नौशाद का भाई शमशाद ग्रामप्रधान था. नरगिस के क्रियाकलापों की वजह से गांव में उस की बहुत बदनामी हो रही थी. उस के सभी भाई परेशान थे.

नौशाद का परिवार अलग घर में रहता था. उस के भाई अपनेअपने घरों में रहते थे. जिस के कारण वह महबूब और नरगिस को रंगेहाथों पकड़ने में असफल हो रहे थे.

महबूब अगस्त के महीने में घर आया और फिर गोवा वापस चला गया था. गोवा जाते ही घर पर उस की शादी की बात चली. बात तय हो जाने के बाद 18 सितंबर को रिश्ता होने की बात पक्की हो गई. जिस के लिए मजबूरी में उसे फिर से गोवा से गांव आना पड़ा.

15 सितंबर, 2020 को महबूब ने अपने भाई शकील के मोबाइल पर बात कर कहा था कि 18 सितंबर की सुबह वह घर पहुंच जाएगा. 16 सितंबर को वह गोवा से चल कर देर रात दिल्ली पहुंचा. दिल्ली के कीर्ति नगर में उस के जीजा गुड्डू रहते थे. वह सीधे अपने जीजा के पास चला गया.

16 सितंबर की रात को उस ने नरगिस से फोन पर बात की तो उसे पता चला कि उस का पति पानीपत, हरियाणा काम करने गया हुआ है. यह जानकारी मिलने पर उस ने सीधे नरगिस के घर जाने की योजना बना ली. उसी योजना के मुताबिक महबूब 17 सितंबर की देर रात दिल्ली से नरगिस के गांव पाठंगी पहुंचा. उस वक्त तक उस के बच्चे सो चुके थे. लेकिन नौशाद के बड़े भाई ग्राम प्रधान शहजाद को इस बात का पता चल गया था.

भले ही नरगिस ने महबूब को अपना रिश्तेदार बता रखा था. लेकिन उस का वक्तबेवक्त आनाजाना ससुराल वालों को खलने लगा था.

गांव में हो रही बदनामी से बचने के लिए ग्राम प्रधान शहजाद और उस का छोटा भाई दिलशाद महबूब को सबक सिखाने का मौका तलाश रहे थे.

17 सितंबर की रात नरगिस के ससुराल वालों को महबूब के आने का पता चल गया था. वे देर रात तक नरगिस के बच्चों के सोने का इंतजार करते रहे. जैसे ही उन्हें आभास हुआ कि बच्चे सो चुके हैं, दोनों भाई मौका पाते ही नौशाद के घर में घुस कर छिप गए. रात में उन्होंने नरगिस और महबूब को आपतिजनक स्थिति में देख लिया.

दोनों को उस स्थिति में देखते ही शहजाद और दिलशाद का खून खौल उठा. नरगिस को उन्होंने बुरी तरह से मारापीटा. उस के बाद दोनों ने महबूब को डंडों से मारमार कर अधमरा कर दिया. कुछ ही देर में महबूब की मौत हो गई. इस के बाद उन्होंने उस की लाश छिपाने के उद्देश्य से घर में रखे संदूक में डाल दी. फिर वे उस की लाश ठिकाने लगाने की जुगत मे लग गए.

लेकिन उन्हें लाश ठिकाने लगाने का मौका नहीं मिला तो नरगिस को वही पाठ पढ़ा कर घर से गायब हो गए, जो उस ने अपने पति और पुलिस वालों को बताया था.

उधर 17 सितंबर, 2020 को महबूब ने अपने घर फोन कर जानकारी दी थी कि वह गोवा से दिल्ली गुड्डू जीजा के घर आ गया है और कल सुबह गांव पहुंच जाएगा. उस के बाद उस का मोबाइल फोन बंद हो गया था.

घर वालों ने सोचा कि शायद उस के मोबाइल की बैटरी डिस्चार्ज हो गई होगी. फिर भी उन्हें तसल्ली इस बात की थी कि वह गोवा से ठीकठाक दिल्ली पहुंच गया था. उस के बाद भी उस के परिवार वाले बीचबीच में उस का नंबर मिलाते रहे. लेकिन उस से बात नहीं हो पा रही थी.

जब काफी समय बाद भी महबूब से बात नहीं हो सकी. तो शमशाद हुसैन ने अपने दामाद गुड्डू को फोन किया. गुड्डू ने बताया कि महबूब उन के घर 16 सितंबर की रात पहुंचा था और 17 सितंबर की दोपहर में ही वह घर जाने की बात कह कर चला गया था. यह सुन कर घर वाले परेशान थे. पुलिस द्वारा फोन करने पर ही उन्हें हत्या की जानकारी हुई.

इस केस के खुलते ही पुलिस ने शमशाद की तहरीर पर मृतक महबूब की प्रेमिका नरगिस, उस के पति नौशाद, जेठ शहजाद तथा दिलशाद के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज किया.

हालांकि नरगिस और उस के पति नौशाद ने स्वयं स्वीकार किया था कि हत्या से उन का कोई लेनादेना नहीं है. नौशाद ने बताया कि हत्या वाली रात वह पानीपत में था. जांच में बेकुसूर पाए जाने पर पुलिस ने नौशाद को छोड़ दिया.

18 सितंबर को पुलिस ने नरगिस को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया था. अन्य अभियुक्तों की तलाश जारी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पारुल और विकास की आड़ी-तिरछी प्रेम कहानी

पारुल और विकास के बीच नईनई जानपहचान हुई थी. दोनों ही ठाकुरगंज के होम्योपैथी अस्पताल में साफसफाई का काम करते थे. वैसे तो दोनों की मुलाकात कम ही होती थी, क्योंकि दोनों के काम करने का समय अलगअलग था. जब से दोनों के बीच एकदूसरे के प्रति लगाव बढ़ा था, समय निकाल कर दोनों मिलने और बातचीत करने की कोशिश करते थे. पारुल ने विकास को अपने बारे में सच बता दिया था. विकास के साथ उस का ऐसा लगाव था कि वह उस से कोई बात छिपाना नहीं चाहती थी.

एक दिन पारुल अपने बारे में बता रही थी और विकास उस की बातें सुन रहा था. पारुल बोली, ‘‘मेरी शादी को 14 साल हो गए. कम उम्र में शादी हो गई थी. मेरे 3 बच्चे भी हैं. मैं सोचती हूं कि जब हम दोस्ती कर रहे हैं तो एकदूसरे की हर बात को समझ लें.

‘‘मेरे पति तो जेल में हैं. ससुराल वालों से मेरा कोई संपर्क नहीं रह गया है. मैं अपने 3 बच्चों का पालनपोषण अपनी मां के पास रह कर करती हूं.’’

शाम का समय था. विकास और पारुल ठाकुरगंज से कुछ दूर गुलालाघाट के पास गोमती के किनारे बैठे थे. दोनों ही एकदूसरे से बहुत सारी बातें करने के मूड में थे. दोनों को कई दिनों बाद आपस में बात करने का मौका मिला था.

‘‘तुम्हारी शादी हो चुकी है तो मैं भी कुंवारा नहीं हूं. मैं बरेली से यहां नौकरी करने आया था. मेरी शादी 8-9 महीने पहले हुई है. शादी के कुछ महीने बाद से ही पत्नी के साथ मेरे संबंध ठीक नहीं रहे. मैं 5 महीने से अलग रह रहा हूं.

‘‘मेरी पत्नी की भी मेरे साथ रहने की कोई इच्छा नहीं है. ऐसे में मैं उस के साथ रहूं या नहीं, कोई फर्क नहीं पड़ता.’’ पारुल की बातें सुन कर विकास ने कहा.

‘‘आप की शादी तो पिछले साल ही हुई है, फिर भी आप पत्नी को छोड़ मुझे पसंद करते हैं. ऐसा क्यों?’’ पारुल ने विकास से पूछा.

‘‘शादी के बाद से ही पत्नी से मेरे आत्मिक संबंध नहीं रह सके. पतिपत्नी होते हुए भी ऐसा लगता था जैसे हम एकदूसरे से अनजान हैं. जब से आप मिलीं, आप से अपनापन लगने लगा. मैं अपनी पत्नी के साथ खुश नहीं हूं. हम दोनों ही अलग हो जाना चाहते हैं.’’ विकास ने पारुल की बात का जबाव दिया.

विकास बरेली जिले के प्रेम नगर का रहने वाला था. वह नौकरी करने लखनऊ आया था. रश्मि के साथ उस की शादी 2018 के जून में हुई थी. 4-5 महीने दोनों साथ रहे, पर इस के बाद वह पत्नी से अलग रहने लगा.

पारुल और विकास की मुलाकात साल 2019 के जून में हुई थी. शुरुआती कई महीनों तक दोनों में बातचीत नहीं होती थी. दोनों बस एकदूसरे को देखते रहते थे.

जब बातचीत होने लगी और एकदूसरे की पंसद नापसंद पर बात हुई तो पहले पारुल ने खुद को शादीशुदा बताया. तब विकास ने हंसते हुए कहा, ‘‘शादीशुदा तो मैं भी हूं. लेकिन बच्चे नहीं हैं. हमारी शादी पिछले साल हुई थी.’’

जब पता चला कि दोनों ही शादीशुदा हैं तो वे निकट आने लगे. दोनों ही अपनेअपने जीवनसाथी के साथ खुश नहीं थे.

पारुल का पति रिंकू आटोरिक्शा चलाता था. शादी के 7 साल बाद परिवार में हुई हत्या में रिंकू को जेल हो गई. उस समय तक पारुल के 3 बच्चे मुसकान, पवन और गगन हो चुके थे. पति के जेल जाने के बाद उस की सुसराल वालों ने उस से संबंध नहीं रखे.

पारुल अपने बच्चों को ले कर अपनी मां सुषमा के साथ रहने लगी. वहीं पर पारुल ने अपने बच्चों का स्कूल में एडमिशन करा दिया. अब पारुल पर मां का दबाव रहता था. वह उस की एकएक गतिविधि पर पूरी नजर रखती थी.

इधर धीरेधीरे पारुल और विकास के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं. सही मायनों में दोनों ही एकदूसरे की जरूरतों को पूरा करने लगे थे. एकदूसरे के साथ दोनों का पूरी तरह से तालमेल बैठ गया था. कभी साथ घूमने जाते तो कभी एक साथ फिल्म देखते.

जब पारुल की मां को जानकारी मिली तो उस ने पारुल को समझाया और ऐसे संबंधों से दूर रहने को कहा. पर पारुल मानने को तैयार नहीं थी.

कुछ दिन बाद दोनों फिर मिलने लगे. पारुल की मां सुषमा को लग रहा था कि विकास उन की बेटी को बहका कर अपने साथ रखता है. पारुल और विकास के संबंधों को ले कर मोहल्ले के लोगों और नातेरिश्तेदारों में भी चर्चा होने लगी थी.

दूसरी ओर पारुल को विकास के साथ संबंधों की लत लग चुकी थी. वह किसी भी स्थिति में विकास से दूर नहीं रहना चाहती थी. विकास भी पूरी तरह पारुल का दीवाना हो चुका था.

जब पारुल की मां और करीबी रिश्तेदारों का दबाव पड़ने लगा तो दोनों ने लखनऊ छोड़ने का फैसला कर लिया.

पारुल के सामने सब से बड़ी परेशानी उस के बच्चे थे. प्यार के लिए पारुल ने उन का मोह भी छोड़ दिया. उस ने विकास से कहा, ‘‘अब हम साथ रहेंगे. हमारे बच्चे भी हमारे बीच में नहीं आएंगे. हम लोग यहां से कहीं दूर चलेंगे. बच्चे यहीं रहेंगे. जब समय ठीक होगा, तब हम वापस आ कर बच्चों को अपने साथ रख लेंगे.’’

विकास ने फैसला किया कि वह पारुल को ले कर अपने घर बरेली चला जाएगा. दिसंबर, 2019 की बात है. पारुल और विकास लखनऊ छोड़ कर बरेली चले आए. यहां दोनों साथ रहने लगे. पारुल के लखनऊ छोड़ने का सारा ठीकरा उस की मां सुषमा ने विकास के ऊपर फोड़ दिया.

सुषमा ने लखनऊ की कृष्णानगर कोतवाली में जा कर एक प्रार्थनापत्र दिया और विकास पर अपनी बेटी पारुल को बहलाफुसला कर भगा ले जाने का आरोप लगाया. पुलिस ने प्रार्थनापत्र रख लिया.

पुलिस ने रिपोर्ट लिखने की जगह एनसीआर दर्ज की. पुलिस का मानना था कि पारुल बालिग है, 3 बच्चों की मां है और अपना भलाबुरा समझती है. वह जहां भी गई होगी, अपनी मरजी से गई होगी.

कई माह बीत जाने के बाद भी जब पुलिस ने कोई काररवाई नहीं की तो पारुल की मां सुषमा ने कोर्ट की शरण ली. 14 अगस्त, 2020 को कोर्ट ने पुलिस को धारा 498 और 506 के तहत मुकदमा कायम करने का आदेश दिया.

पुलिस ऐसे मामलों की विवेचना 155 (2) के तहत करती है. इस में किसी तरह का कोई वारंट जारी नहीं होता. पुलिस दोनों को कोर्ट के सामने पेश करती है, जहां दोनों कोर्ट के सामने बयान देते हैं. कोर्ट अपने विवेक से फैसला देती है.

20 सितंबर, 2020 की रात लखनऊ के थाना कृष्णानगर के दरोगा भरत पाठक एक सिपाही और विकास व पारुल के 2 रिश्तेदारों को साथ ले कर बरेली गए. पुलिस रात में ही पारुल और विकास को कार से ले कर लखनऊ वापस लौटने लगी.

पुलिस द्वारा लखनऊ लाए जाने की बात पारुल और विकास को पता चल चुकी थी. उन के मन में भय था कि लखनऊ ले जा कर पुलिस दोनों को अलग कर देगी, जेल भी भेज सकती है.

पारुल ने अपने पति को देखा था. हत्या के आरोप में 8 साल बाद भी वह जेल से बाहर नहीं आ सका था. विकास सीधासादा था, उसे भी पुलिस, जेल और कचहरी के चक्कर से डर लग रहा था. ऐसे में दोनों ने फैसला किया कि वे साथ रह नहीं सकते तो साथ मर तो सकते हैं.

रात के समय जब पुलिस ने लखनऊ चलने के लिए कहा तो दोनों ने तैयार होने का समय मांगा. पारुल ने अपने पास कीटनाशक दवा की 4 गोली वाला पैकेट रख रखा था. दोनों कपड़े पहन कर वापस आए तो पुलिस ने पारुल की तलाशी नहीं ली.

पुलिस की दिक्कत यह थी कि वह अपने साथ कोई महिला सिपाही ले कर नहीं आई थी, जिस से उस की तलाशी नहीं ली जा सकी.

पुलिस ने पारुल विकास को अर्टिगा गाड़ी में बैठाया और बरेली से लखनऊ के लिए निकल गई. आगे की सीट पर दारोगा भरत पाठक और एक सिपाही बैठा था. पीछे वाली सीट पर विकास और पारुल को बैठाया गया था, जबकि बीच की सीट पर दोनों के रिश्तेदार बैठे थे.

गाड़ी बरेली से चली तो रात का समय था. ड्राइवर को छोड़ कर सभी लोग सो गए. अपनी योजना के मुताबिक पारुल और विकास ने कीटनाशक की 2-2 गोलियां खा लीं.

कुछ ही देर में दोनों को उल्टी होने लगी. पुलिस वालों को लगा कि गाड़ी में बैठ कर अकसर कई लोगों को उल्टी होेने लगती है, शायद वैसा ही कुछ होगा.

जब गाड़ी सीतापुर पहुंची तो सो रहे लोगों की नींद खुली. पीछे की सीट से उल्टी की बदबू आ रही थी. आगे की सीट पर बैठे लोगों ने पारुल और विकास को आवाज दी, पर दोनों में से कोई नहीं बोला. पास से देखने पर पता चला दोनों बेसुध हैं. दोनों की तलाशी ली गई. उन के पास कीटनाशक दवा का एक पैकेट मिला, जिस में 2 गोलियां शेष बची थीं.

इस से पता चल गया कि दोनों ने वही दवा खाई है. लखनऊ पहुंच कर पुलिस दोनों को ले कर लखनऊ मैडिकल कालेज के ट्रामा सेंटर पहुंची, जहां डाक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया.

दो प्रेमियों के आत्महत्या करने का मसला पूरे लखनऊ में चर्चा का विषय बन गया. शुरुआत में विकास और पारुल के घर वालों ने पुलिस पर लापरवाही का आरोप लगाया. बाद में उन्हें भी लगा कि पुलिस, कचहरी और कानून के डर से पारुल और विकास ने आत्महत्या की है.

विकास और पारुल दोनों ही बालिग थे. अपना भलाबुरा समझते थे. परिवार वालों ने अगर आपसी सहमति से समझाबुझा कर फैसला लिया होता तो दोनों को यह कदम नहीं उठाना पड़ता.

इस तरह की घटनाएं नई नहीं हैं. ऐसे मामलों में पुलिस की प्रताड़ना प्रेमीजनों के मन में भय पैदा कर देती है. पुलिस, समाज और कचहरी के भय से प्रेमी युगल ऐसे कदम उठा लेते हैं. ऐसे में समाज और कानून दोनों को संवेदनशीलता से काम लेना चाहिए.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दरवाजे के पार-भाग 2 : क्यों किया अपनों ने वार

आज सोना 12 बजे आई थी. बंद कमरे में दोनों का झगड़ा हो रहा था. तेज आवाजें आ रही थीं. लेकिन हम लोगों ने ध्यान नहीं दिया. घटना की जानकारी तब हुई, जब मकान मालकिन चीखी.

किराएदारों से पूछताछ में एक किराएदार कमल ने बताया कि आशीष ने एक बार बताया था कि वह कानपुर के गजनेर का रहने वाला है.

सीओ मनोज कुमार गुप्ता अभी किराएदारों से पूछताछ कर ही रहे थे कि मृतका सोना की मां गीता, बहन बरखा, निशू, भाभी ज्योति तथा भाई विक्की, सूरज, सनी और पीयूष आ गए. सोना का शव देख सभी दहाड़ मार कर रोने लगे. किसी तरह पुलिस अधिकारियों ने उन्हें शव से अलग किया और फिर पूछताछ की.

एसपी अपर्णा गुप्ता को मृतका की मां गीता ने बताया कि 3 साल पहले उन की बेटी सोना की आशीष से दोस्ती हो गई थी. दोनों एक ही फैक्ट्री में काम करते थे. जब उसे दोनों की दोस्ती की बात पता चली तो उस ने सोना का विवाह कर दिया. लेकिन सोना की अपने पति व ससुरालियों से नहीं पटी, वह मायके आ कर रहने लगी. अपने खर्चे के लिए उस ने गोविंद नगर स्थित एक स्कूल में नौकरी कर ली.

इस बीच आशीष ने सोना को फिर अपने प्रेम जाल में फंसा लिया और वह उसे अपने कमरे पर बुलाने लगा. कभीकभी वह घर भी आ जाता था. हम सब उसे अच्छी तरह जानते थे. पिछले कुछ दिनों से वह सोना पर शादी करने का दबाव डाल रहा था, लेकिन सोना शादी को राजी नहीं थी. आज भी आशीष ने सोना को अपने रूम में बुलाया और शादी का दबाव डाला. उस के न मानने पर आशीष ने जोरजबरदस्ती की और बेटी को मार डाला.

सोना को मौत की नींद सुलाने के बाद आशीष ने मेरी बहू ज्योति के मोबाइल पर हत्या की सूचना दी कि आ कर लाश ले जाओ. तब उस के सभी बेटे काम पर गए थे. वह बहू ज्योति को साथ ले कर दबौली आई और मकान मालकिन पुष्पा से मिली. लेकिन पुष्पा ने यह कह कर लौटा दिया कि आशीष अभी घर पर नहीं है. पुष्पा अगर हमें आशीष के कमरे तक जाने देती तो शायद उस की बेटी की जान बच जाती.

पूछताछ के बाद एसपी अपर्णा गुप्ता ने थानाप्रभारी अनुराग सिंह को आदेश दिया कि वह मृतका के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजे और रिपोर्ट दर्ज कर के कातिल आशीष को गिरफ्तार करें. उस की गिरफ्तारी के लिए उन्होंने सीओ मनोज कुमार गुप्ता के निर्देशन में एक पुलिस टीम भी गठित कर दी.

पुलिस अधिकारियों के आदेश पर थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने घटनास्थल से बरामद खून सनी कैंची, सोना का मोबाइल फोन और पर्स आदि चीजें जाब्ते की काररवाई में शामिल कर लीं. इस के बाद मृतका के शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय अस्पताल भेज दिया गया. थाने लौट कर अनुराग सिंह ने मृतका के भाई सूरज की तहरीर पर धारा 302 आईपीसी के तहत आशीष के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया.

मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस टीम आशीष की गिरफ्तारी के प्रयास में जुट गई. पुलिस टीम ने मृतका सोना का मोबाइल फोन खंगाला तो आशीष का नंबर मिल गया, जिसे सर्विलांस पर लगा दिया गया.

सर्विलांस से उस की लोकेशन गीतानगर मिली. पुलिस टीम रात 2 बजे गीतानगर पहुंची, लेकिन वहां पहुंचने से पहले ही आशीष का फोन स्विच्ड औफ हो गया, जिस से उस की लोकेशन मिलनी बंद हो गई. निराश हो कर पुलिस टीम वापस लौट आई.

निरीक्षण के दौरान एक किराएदार ने सीओ मनोज कुमार गुप्ता को बताया था कि आशीष कानपुर देहात के गजनेर कस्बे का रहने वाला है. इस पर उन्होंने एक पुलिस टीम को गजनेर भेज दिया, जहां आशीष की तलाश की गई. सादे कपड़ों में गई पुलिस टीम ने दुकानदारों व अन्य लोगों को आशीष की फोटो दिखा कर पूछताछ की.

लेकिन फोटो में आशीष चश्मा लगाए हुए था, जिस की वजह से लोग उसे पहचान नहीं पा रहे थे. पुलिस टीम पूछताछ करते हुए जब मुख्य रोड पर आई तो एक पान विक्रेता ने फोटो पहचान ली. उस ने बताया कि वह अजय ठाकुर है जो कस्बे के लाल सिंह का छोटा बेटा है.

आशीष के पहचाने जाने से पुलिस को अपनी मेहनत रंग लाती दिखी. पुलिस टीम लाल सिंह के घर पहुंची. पुलिस ने लाल सिंह को फोटो दिखाई तो वह बोला, ‘‘यह फोटो मेरे बेटे आशीष सिंह की है. घर के लोग उसे अजय ठाकुर के नाम से बुलाते हैं. आशीष कानपुर में नौकरी करता है. मेरा बड़ा बेटा मनीष सिंह भी गीतानगर, कानपुर में रहता है. पर आप लोग हैं कौन और आशीष की फोटो क्यों दिखा रहे हैं. उस ने कोई ऐसावैसा काम तो नहीं कर दिया?’’

पुलिस टीम ने अपना परिचय दे कर बता दिया कि उन का बेटा सोना नाम की एक युवती की हत्या कर के फरार हो गया है. पुलिस उसी की तलाश में आई है. अगर वह घर में छिपा हो तो उसे पुलिस के हवाले कर दो, वरना खुद भी मुसीबत में फंस जाओगे.

पुलिस की बात सुन कर लाल सिंह घबरा कर बोला, ‘‘हुजूर, आशीष घर पर नहीं आया है. न ही उस ने मुझे कोई जानकारी दी है.’’

यह सुन कर पुलिस ने लाल सिंह को हिरासत में ले लिया. चूंकि लाल सिंह का बड़ा बेटा गीतानगर में रहता था और आशीष के मोबाइल फोन की लोकेशन भी गीता नगर की ही मिली थी. पुलिस को शक हुआ कि अजय ठाकुर उर्फ आशीष सिंह अपने बड़े भाई के घर में छिपा हो सकता है.

पुलिस टीम लाल सिंह को साथ ले कर वापस कानपुर आ गई और उस के बताने पर गीता नगर स्थित बड़े बेटे मनीष के घर छापा मारा. छापा पड़ने पर घर में हड़कंप मच गया. पिता के साथ पुलिस देख कर आशीष ने भागने का प्रयास किया, लेकिन पुलिस टीम ने उसे दबोच लिया और थाना गोविंद नगर ले आई.

थाना गोविंद नगर में जब आशीष सिंह से सोना की हत्या के संबंध में पूछा गया तो उस ने सहज ही हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. आशीष ने बताया कि शादी के पहले से दोनों के बीच प्रेम संबंध थे. सोना के घर वालों को पता चला तो उन्होंने उस की शादी कर दी, लेकिन सोना की पति से पटरी नहीं बैठी.

दरवाजे के पार-भाग 1 : क्यों किया अपनों ने वार

उस दिन मार्च, 2020 की 17 तारीख थी. शाम के 4 बजे थे. मकान मालकिन पुष्पा किचन में चाय बनाने जा रही थी. तभी किसी ने डोरबैल बजाई. पुष्पा ने दरवाजा खोला तो दरवाजे पर 2 महिलाएं खड़ी थीं. उन में एक जवान थी, जबकि दूसरी अधेड़ उम्र की थी. पुष्पा ने अजनबी महिलाओं को देख कर परिचय पूछा तो उन्होंने कोई जवाब न दे कर पर्स से एक फोटो निकाली और पुष्पा को दिखाते हुए पूछा, ‘‘क्या यह आप के मकान में रहता है?’’

पुष्पा ने फोटो गौर से देखी फिर बोली, ‘‘हां, यह तो आशीष है. अपनी पत्नी सोना के साथ पिछले 6 महीने से हमारे मकान में रह रहा है. उस की पत्नी सोना कहीं बाहर काम करती है. इसलिए सप्ताह में 2-3 दिन ही आ पाती है. आज वह 12 बजे घर आई थी. आशीष भी घर पर था, लेकिन आधा घंटा पहले कहीं चला गया है.’’

मकान मालकिन पुष्पा से पूछताछ करने के बाद दोनों महिलाएं वापस चली गईं. दरअसल, ये महिलाएं गीता और उन की बहू ज्योति थीं, जो सरायमीता पनकी, कानपुर की रहने वाली थीं. सोना गीता की बेटी थी और आशीष सोना का प्रेमी था.

आशीष ने कुछ देर पहले ज्योति के मोबाइल पर काल कर के जानकारी दी थी कि उस ने उस की ननद सोना को मार डाला है और उस की लाश दबौली निवासी पुष्पा के मकान में किराए वाले कमरे में पड़ी है, आ कर लाश ले जाओ. ज्योति ने यह बात अपनी सास गीता को बताई. फिर सासबहू जानकारी लेने के लिए पुष्पा के मकान पर पहुंची, लेकिन वहां हत्या जैसी कोई हलचल न होने से दोनों वापस लौट आई थीं.

चाय पीतेपीते पुष्पा के मन में आशीष को ले कर कुछ शंका हुई तो वह पहली मंजिल स्थित उस के कमरे पर पहुंची. कमरे के दरवाजे की कुंडी बाहर से बंद थी और अंदर से खून बह कर बाहर की ओर आ रहा था.

खून देख कर पुष्पा चीख पड़ी. मालकिन की चीख सुन कर अन्य किराएदार कमल, सुनील, टिंकू तथा शिवानंद आ गए. इस के बाद पुष्पा ने कमरे का दरवाजा खोल कर अंदर झांका तो उन की आंखें फटी रह गईं.

कमरे में फर्श पर खून से लथपथ सोना की लाश पड़ी थी. लाश से खून रिस कर कमरे के बाहर तक आ गया था. सोना की लाश देख कर किराएदार भी भयभीत हो उठे. इस के बाद तो हत्या की खबर थोड़ी देर में पूरे दबौली (उत्तर) में फैल गई. लोग पुष्पा के मकान के बाहर जुटने लगे.

शाम लगभग 5 बजे पुष्पा ने थाना गोविंद नगर फोन कर के किराएदार आशीष की पत्नी सोना की हत्या की जानकारी दे दी. हत्या की सूचना मिलते ही थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने इस घटना से अधिकारियों को अवगत कराया और पुलिस टीम के साथ दबौली (उत्तर) स्थित पुष्पा के मकान पर जा पहुंचे.

मकान के बाहर भीड़ जुटी थी. लोग तरहतरह की बातें कर रहे थे. भीड़ को पीछे हटा कर थानाप्रभारी अनुराग सिंह पुलिस टीम के साथ मकान की पहली मंजिल स्थित उस कमरे में पहुंचे जहां लाश पड़ी थी.

सोना की हत्या बड़ी निर्दयता से की गई थी. लाश के पास ही खून से सनी कैंची तथा मोबाइल पड़ा था. देखने से लग रहा था कि हत्या के पहले मृतका से जोरजबरदस्ती की गई थी. विरोध करने पर उस के पति आशीष ने कैंची से वार कर उस की हत्या कर दी थी. न केवल सोना के पेट में कैंची घोंपी गई थी, बल्कि उस के गले को भी कैंची से छेदा गया था.

थानाप्रभारी अनुराग सिंह अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि एसएसपी अनंत देव, एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता और सीओ (गोविंद नगर) मनोज कुमार गुप्ता भी वहां आ गए. अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया था.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया और इंसपेक्टर अनुराग सिंह से घटना के संबंध में जानकारी हासिल की. फोरैंसिक टीम ने निरीक्षण कर घटनास्थल से साक्ष्य जुटाए. कैंची, दरवाजा और मेज पर रखे गिलास से फिंगरप्रिंट उठाए. जमीन पर फैले खून का नमूना भी जांच हेतु लिया गया.

निरीक्षण के दौरान सीओ मनोज कुमार गुप्ता की नजर मेज पर रखे लेडीज पर्स पर पड़ी. उन्होंने पर्स की तलाशी ली तो उस में साजशृंगार का सामान, कुछ रुपए तथा एक आधार कार्ड मिला. आधार कार्ड में युवती का नाम सोना सोनकर, पिता का नाम मुन्ना लाल सोनकर, निवासी सराय मीता, पनकी कानपुर दर्ज था. गुप्ताजी ने 2 सिपाहियों को आधार कार्ड में दर्ज पते पर सूचना देने के लिए भेज दिया.

एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता ने मकान मालकिन पुष्पा देवी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस के पति देवकीनंदन की मृत्यु हो चुकी है. 2 बेटे हैं, अजय व राकेश, जो बाहर नौकरी करते हैं. मकान के भूतल पर वह स्वयं रहती है, जबकि पहली मंजिल पर बने कमरों को किराए पर उठा रखा है.

मकान में 4 किराएदार शिवानंद, कमल, सुनील व टिंकू पहले से रह रहे थे. 6 महीना पहले आशीष नाम का युवक एक युवती के साथ किराए पर कमरा लेने आया था.

उस ने उस युवती को अपनी पत्नी बताया, साथ ही यह भी बताया कि उस की पत्नी सोना दूरदराज नौकरी करती है. वह सप्ताह में 2 या 3 दिन ही आया करेगी. मैं ने उसे रूम का किराया 1600 रुपए बताया तो वह राजी हो गया और किराएदार के रूप में रहने लगा. उस की पत्नी सोना सप्ताह में 2 या 3 दिन आती थी.

पुष्पा ने बताया कि आज 12 बजे सोना आशीष से मिलने आई थी. उस के बाद कमरे में क्या हुआ, उसे मालूम नहीं. आशीष 3 बजे चला गया था. उस के जाने के बाद 2 महिलाएं उस के बारे में पूछताछ करने आईं. लेकिन आशीष रूम में नहीं था, यह जान कर वे दोनों चली गईं. महिलाओं की बातों से मुझे कुछ शक हुआ, तो मैं आशीष के रूम पर गई. वहां कमरे के बाहर खून देख कर मैं चीखी तो बाकी किराएदार आ गए. उस के बाद मैं ने यह सूचना पुलिस को दे दी.

घटनास्थल पर अन्य किराएदार कमल, सुनील, टिंकू व शिवानंद भी मौजूद थे. सीओ मनोज कुमार गुप्ता ने उन से पूछताछ की तो उन सब ने बताया कि आशीष ने उन से सोना को अपनी पत्नी बताया था. वह हफ्ते में 2-3 बार आती थी. कमरा बंद कर दोनों खूब हंसतेबतियाते थे, कभीकभी उन दोनों में तूतूमैंमैं भी हो जाती थी.

आगे पढ़िए क्या थी सोना और आशीष की कहानी…