क्वीन हरीश का निधन: वह रानी नहीं, राजा था

नृत्य एक ऐसी कला है, जिस पर किसी का एकाधिकार नहीं है. नृत्य करने और सिखाने वालों में स्त्री और पुरुष दोनों होते हैं. किन्नरों में भी अच्छे नर्तकों और नर्तकियों की कमी नहीं है. लेकिन नृत्य सीखना अलग बात है और नृत्य की प्रस्तुति देना अलग बात. नृत्यकला अत्यधिक सुंदरता की मुरीद हो, ऐसा भी नहीं है. कहने का तात्पर्य यह है कि पुरुष भी नृत्य प्रवीण हो सकते हैं और स्त्री भी. यहां हम जिस नृत्य के पुजारी का जिक्र कर रहे हैं, वह पुरुष था नाम था हरीश कुमार सुथार.

हरीश कुमार भले ही पुरुष नर्तक था, लेकिन लोग उसे क्वीन कहते थे. खास बात यह कि हजारों नहीं लाखों दीवाने थे इस क्वीन के नृत्य के. राजस्थान के रेतीले धोरों वाले शहर जैसलमेर की शान माना जाता था क्वीन हरीश को.

जब वह राजस्थानी वेशभूषा में घाघराचोली पहन, पूरा शृंगार कर स्टेज या रेतीले धोरों पर नृत्य करता था तो लोग आंखें झपकाना भूल जाते थे. वह राजस्थान का ऐसा कलाकार था, जिस ने मरुभूति की लोक संस्कृति को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाया.

हरीश का मेकअप किट किसी फिल्मी सितारे से कम नहीं था. उस के मेकअप किट में देसीविदेशी सौंदर्य प्रसाधन का सारा सामान रहता था. मेकअप कर तैयार होने में उसे घंटा भर लग जाता था. वजह यह कि अपना मेकअप वह खुद करता था. नाक में नथुनी, पैरों में पायल और हाथों में चूडि़यां पहन कर खनकाते हुए जब वह चुस्त चोली और गोटापत्ती से सजे घाघरे में नृत्य करता था, जो नौजवानों के दिल पर छुरियां सी चल जाती थीं.

क्वीन हरीश ने हाल ही रिलायंस के चेयरमैन मुकेश अंबानी की बेटी ईशा अंबानी और अजय पीरामल के बेटे आनंद पीरामल की शादी में अपनी परफौरमेंस दे कर सुर्खियां बटोरी थीं. इसी दौरान हरीश ने अभिनेत्री ऐश्वर्या राय बच्चन और उन की बेटी आराध्या को नृत्य के टिप्स दिए थे. यह वीडियो पूरे देश में वायरल हुआ था.

हरीश ने मशहूर फिल्म निर्माता प्रकाश झा की फिल्म ‘जय गंगाजल’ में आइटम सौंग ‘नजर तोरी राजा…’ पर नृत्य किया था. इस फिल्म के कितने ही दर्शकों को आज तक इस बात का अहसास नहीं होगा कि आइटम डांसर कोई लड़की नहीं, बल्कि एक लड़का हरीश सुथार था.

हरीश ने कई बंगाली और मराठी फिल्मों में भी काम किया था. वह 2010 में इंडियन फैशन वीक में रैंप वाक भी कर चुका था. क्वीन हरीश राजस्थानी लोकनृत्य घूमर, कालबेलिया, चंग, भवई, चरी सहित कई लोक कलाओं में पारंगत था.

हरीश ने अपनी कला के बल पर ही दुनिया भर में अपनी पहचान बनाई थी. वह दुनिया के 60 से अधिक देशों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुका था. उस ने इन में सब से ज्यादा शो जापान और कोरिया में किए. अमेरिका, फ्रांस और इंग्लैंड में भी हरीश ने अपनी कला के जलवे दिखाए.

राजस्थानी लोकनृत्य के अलावा हरीश को बैले डांस के लिए भी दुनिया भर में जाना जाता रहा. उस ने कई बैले डांस चैंपियनशिप में हिस्सा लिया. राजस्थानी स्टाइल में बैले डांस परफौर्म करने के कारण उसे डेजर्ट क्वीन भी कहा जाता था. हरीश कलर्स चैनल के इंडियाज गौट टैलेंट का हिस्सा भी बना.

करीब 38 साल की उम्र के हरीश सुथार उर्फ क्वीन हरीश का इसी 2 जून को जोधपुर में कापरड़ा के पास हुए हादसे में निधन हो गया. वह जैसलमेर से एक टवेरा कार में अपने साथी कलाकारों के साथ जयपुर में प्रस्तावित कार्यक्रम में भाग लेने आ रहा था.

सुबह करीब 6 बजे उस की कार सड़क किनारे खड़े एक ट्रक से जा टकराई और चकनाचूर हो गई. इस हादसे में 3 अन्य लोक कलाकारों की भी मौके पर ही मौत हो गई. इन में जैसलमेर के रहने वाले लोक कलाकार लतीफ खां, रवींद्र उर्फ बंटी गोस्वामी और बाड़मेर के भीखे खां शामिल थे.

लोक कलाकार क्वीन हरीश के असामयिक निधन पर पूरे देश के कला जगत में शोक छा गया. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, विधानसभा अध्यक्ष डा. सी.पी. जोशी, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सहित अनेक राजनेताओं और कलाकारों के अलावा उन के प्रशंसकों ने हरीश के निधन को अपूरणीय क्षति बताया.

हरीश के परिवार में पत्नी व 2 बेटों के अलावा एक बहन है. दुनिया भर में नाम कमाने वाले हरीश का जन्म जैसलमेर के एक छोटे से गांव में गरीब परिवार में हुआ था. उन के पिता का भी कम उम्र में ही निधन हो गया था. गरीबी के कारण हरीश ने अपनी स्कूली पढ़ाई भी पूरी नहीं की. बाद में उस ने जीवन यापन के लिए डाकघर में भी काम किया.

हरीश को बचपन से ही डांस का शौक था. जब भी मौका मिलता, वह राजस्थानी लोकगीतों पर डांस करने लगता. उसे लड़की बन कर डांस करना अच्छा लगता था. इस का कारण यह था कि राजस्थानी नृत्य मूलरूप से महिलाएं ही करती हैं. जबकि हरीश कुछ अलग हट कर करना चाहता था.

डाकघर की नौकरी करते हुए भी हरीश ने अपने डांस के शौक को नहीं छोड़ा. वह दिन में काम करता और रात को डांस की प्रैक्टिस. हरीश ने सब से पहले 1995 में जैसलमेर में अपनी नृत्य कला का प्रदर्शन किया.

बाद में वह जैसलमेर आने वाले विदेशी सैलानियों के सामने महिला नर्तकी के रूप में अपनी कला का प्रदर्शन करने लगा. विदेशी मेहमानों के लिए क्वीन हरीश के नृत्य की महफिल जैसलमेर के रेतीले धोरों पर खुले आसमान तले चांद की दूधिया रोशनी में सजती थी.

बाद में हरीश की कला में जैसेजैसे निखार आया, उस के प्रशंसकों की संख्या बढ़ती गई. बाद में वह 1997 से राजस्थान के डांस ग्रुप्स के साथ मिल कर विदेशों में मेहमान कलाकार के रूप में अपनी कला दिखाने जाने लगा. यह सिलसिला उस की मौत से पहले तक चल रहा था.

जैसलमेर में हरीश ने अपनी डांस एकेडमी भी शुरू की. यहां वह विदेशी और भारतीय युवाओं को डांस की बारीकियां सिखाता था. उन के पास कई देशों के लड़केलड़कियां और सांस्कृतिक ग्रुप डांस के गुर सीखने के लिए जैसलमेर आते थे. हजारों विदेशी बालाएं हरीश के नृत्य की फैन थीं.

हर साल सैकड़ों विदेशी सैलानी खासतौर से हरीश से नृत्य का हुनर सीख कर जाते और अपने देश में परफौरमेंस देते. हरीश की पूरी दुनिया में 15 हजार से ज्यादा विदेशी युवतियां शिष्य हैं. उन्हें अपने गुरु की असामयिक मौत का यकीन ही नहीं हो रहा.

हरीश की सफलता का कारवां विदेशी डौक्युमेंटरी फिल्म ‘जिप्सी’ से शुरू हुआ था. यह फिल्म जैसलमेर के लोक संगीत से जुड़े लोगों पर बनी थी. इस के बाद हरीश पर्यटन से जुड़ गए और देश के विभिन्न शहरों और विदेशों में स्टेज शो के दौरान राजस्थान की मरुभूमि की लोक संस्कृति से दर्शकों का मन मोहा. हरीश भारत से ज्यादा विदेशों में विख्यात थे. उन्होंने बौलीवुड और लोक संगीत के फ्यूजन पर शानदार डांस किए.

उन्होंने पेरिस फुटबाल कप, बैली डांस रेग्स फैस्टिवल बेल्जियम, सेंट्रल पार्क समर स्टेज अमेरिका, हौलीवुड बाउल अमेरिका, दिवाली मेला न्यूजीलैंड, इंडिया शो जर्मनी में शानदार प्रस्तुतियां दे कर राजस्थन का नाम ऊंचा किया. वर्ल्ड रिकौर्ड और इंडिया की ओर से सन 2018 में उन्हें डांस जीनियस का अवार्ड दिया गया था.

कहानी सौजन्यसत्यकथा,  जुलाई 2019

पेसमेकर ने खोला राज

घटना मध्य प्रदेश के सागर जिले के थाना बंडा की है. 30 जनवरी, 2019 की बात है. जिला कलेक्टर प्रीति मैथिल नायक पहली बार बंडा आई थीं, जिस की वजह से स्थानीय प्रशासन उन के साथ था. बंडा थाने के टीआई सतीश सिंह भी उन के साथ थे.

दोपहर करीब एक बजे अचानक टीआई के मोबाइल फोन की घंटी बजी. उन्होंने देखा तो वह फोन नंबर गांव के चौकीदार का था. चौकीदार ने टीआई को बताया कि गोराखुर्द गांव की पहाड़ी पर किसी की लाश पड़ी है.

हत्या की खबर सुनते ही सतीश सिंह चौंक गए. मामला हत्या का था इसलिए उन का मौके पर पहुंचना जरूरी था. सूचना से वहां मौजूद एसडीपीओ को अवगत कराने के बाद वह पुलिस टीम के साथ चौकीदार द्वारा बताई गई जगह के लिए रवाना हो गए. टीआई ने इस की सूचना एसपी साहब को भी दे दी थी.

करीब 30 मिनट में टीआई सतीश सिंह घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां एक युवक की लाश औंधे मुंह झाडि़यों में पड़ी थी. देखने में लाश 3-4 दिन पुरानी लग रही थी. उस के शरीर पर पैंटशर्ट के अलावा एक स्वेटर था. पुलिस ने वहां मौजूद लोगों से मृतक की पहचान करानी चाही, लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान पाया, जिस से यह बात साफ हो गई कि मृतक उस क्षेत्र का नहीं है.

मृतक के कपड़ों से भी उस की पहचान की कोई चीज नहीं मिली थी. पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई पूरी करने के बाद शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. हत्या का राजफाश करने से पहले मृतक की पहचान होनी जरूरी थी, इसलिए टीआई ने लाश के फोटो जिले के सभी थानों में भेज दिए, ताकि पता चल सके कि उस की किसी थाने में गुमशुदगी तो दर्ज नहीं है. लेकिन कहीं से भी पुलिस को ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली.

अगले दिन 31 जनवरी को मृतक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई. रिपोर्ट में बताया गया कि शव 3-4 दिन पुराना है और उस की हत्या गला दबा कर की गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह भी पता लगा कि मृतक के सीने में पेसमेकर लगा था, जो हार्ट की गति को सामान्य बनाए रखने का काम करता है.

टीआई ने जब पेसमेकर को देखा तो उस पर एक नंबर और कंपनी का नाम प्रिंट था. उन्होंने जब गूगल पर कंपनी के बारे में सर्च किया तो पता चला कि वह यूएस की कंपनी थी.

उस कंपनी की डिटेल्स जानने के बाद पुलिस ने कंपनी से फोन नंबर और ईमेल द्वारा संपर्क किया. इस से कंपनी के मुंबई औफिस का पता और फोन नंबर मिल गया. पुलिस ने जब उस फोन नंबर पर संपर्क किया तो जांच को एक नई दिशा मिल गई.

टीआई को मुंबई से जानकारी मिली कि उक्त नंबर का पेसमेकर आगरा निवासी सुदामा यादव को लगाया गया था. पुलिस के लिए यह जानकारी काफी थी. पुलिस को सुदामा का पता भी मिल गया था, जिस के बाद एक टीम गठित कर सुदामा यादव के घर आगरा भेजी गई. घर पर सुदामा की पत्नी मुन्नीबाई मिली.

पूछताछ करने पर मुन्नीबाई ने बताया, ‘‘जमीन के एक विवाद को ले कर मैं अपने पति के साथ 25 जनवरी, 2019 को झांसी गई थी. पति वहीं रुक गए थे और मैं आगरा लौट आई थी. उस के बाद पति वापस नहीं आए. चूंकि वह इस से पहले भी कईकई दिनों तक घर नहीं आते थे, इसलिए मैं ने सोचा कि कहीं गए होंगे और कुछ दिनों में आ जाएंगे.’’

पुलिस मुन्नीबाई को ले कर थाने आ गई. सुदामा की लाश अस्पताल की मोर्चरी में रखी थी. पुलिस मुन्नीबाई को अस्पताल ले गई तो उस ने मोर्चरी में रखी लाश की पहचान अपने पति के रूप में कर दी. वह वहीं पर फूटफूट कर रोने लगी. पुलिस ने उसे सांत्वना दी और सुदामा की लाश उसे सौंप दी.

लाश की शिनाख्त होने के बाद पुलिस का अगला काम हत्यारों तक पहुंचना था. लाश का अंतिम संस्कार होने के बाद पुलिस ने उस की पत्नी मुन्नीबाई को पूछताछ के लिए थाने बुलवा लिया. पूछताछ में मुन्नीबाई ने बताया कि उस के पति का चालचलन ठीक नहीं था. उस का बाहरी औरतों के साथ चक्कर था, जिस की वजह से वह कभीकभी तो महीने भर बाद घर लौटता था. वह उसे समझाती तो उस के साथ मारपीट करता था.

मुन्नीबाई ने आशंका जाहिर करते हुए बताया कि झांसी में उस के पति का जमीनी विवाद चल रहा था. उसी को ले कर सुदामा का वहां के प्रधान और एक पुलिस वाले से मनमुटाव था. हो न हो इन्हीं लोगों ने… कहतेकहते उस की आंखों में आंसू छलक आए. प्रधान और उस पुलिस वाले का नामपता लेने के बाद टीआई ने एक पुलिस टीम झांसी भेज दी.

इस के अलावा टीआई ने मुन्नीबाई के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला मुन्नीबाई के नंबर पर 25 जनवरी की रात को एक नए नंबर से काल आई थी. पुलिस को वह नंबर संदिग्ध लगा. जिस फोन नंबर से बात हुई थी, पुलिस ने उस नंबर की जांच की तो वह मोबाइल नंबर गोराखुर्द के रहने वाले प्रभु सौर का निकला.

टीआई ने मुन्नीबाई से प्रभु सौर के बारे में पूछताछ की तो वह बोली कि वह किसी प्रभु सौर को नहीं जानती. टीआई समझ गए कि मुन्नीबाई शातिर किस्म की महिला है. वह आसानी से सच्चाई नहीं बताएगी, इसलिए उन्होंने उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की तो उस ने पति की हत्या करने का अपराध स्वीकार कर लिया.

उस ने बताया कि सुदामा ने घर के हालात ऐसे कर दिए थे जिस की वजह से उसे उस की हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा. मुन्नीबाई ने अपने पति की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

सुदामा यादव मूलरूप से झांसी के पास जेरई गांव का रहने वाला था. उस के परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. उस के परिवार में मातापिता और 2 भाई थे. थोड़ी सी जमीन थी. उसी से जैसेतैसे गुजरबसर हो जाती थी.

सुदामा शुरू से ही आवारा किस्म का था. पिता ने सोचा कि अगर उस की शादी कर दी जाए तो शायद सुधर जाए. इसलिए उन्होंने हमीदपुर के छोटे से गांव राठ में रहने वाली मुन्नीबाई से उस की शादी कर दी. मुन्नीबाई भी गरीब परिवार की थी. शादी हो जाने के बाद सुदामा की दिनचर्या कुछ दिन तो ठीक रही लेकिन वह फिर से आवारागर्दी करने लगा.

इस बीच सुदामा के परिवार की पैतृक संपत्ति का विवाद वहां के ग्रामप्रधान से हो गया. नौबत कोर्ट कचहरी तक पहुंच गई. इसी दौरान सुदामा अपनी पत्नी मुन्नीबाई को ले कर आगरा चला गया. वहां जा कर वह औटो चलाने लगा, जिस से थोड़ीबहुत आमदनी होने लगी.

अपनी आमदनी से कुछ पैसे वह अपने मातापिता को भेज देता था. सुदामा 4 बच्चों का बाप बन चुका था, लेकिन फिर भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा था. उस ने बाहरी औरतों के साथ मौजमस्ती करनी बंद नहीं की थी.

आगरा में उसे रोकने वाला कोई नहीं था, इसलिए वह खुल कर अय्याशी करने लगा. मुन्नीबाई जब मना करती तो वह उस की जम कर पिटाई कर देता. किसी तरह मुन्नीबाई ने अपनी 2 बेटियों और एक बेटे का विवाह करवा दिया था. सब से छोटा बेटा उस के साथ ही रहता था.

सुदामा 55 की उम्र पार कर चुका था. इसलिए उसे कई तरह के रोग भी घेरने लगे थे. उसे हार्ट की बीमारी हो गई. जिस के लिए मुन्नीबाई ने इधरउधर से पैसों की व्यवस्था कर के जयपुर के प्राइवेट अस्पताल में उस का इलाज करवाया, जहां डाक्टरों ने सुदामा के हृदय की धड़कनों को नियंत्रित करने के लिए पेसमेकर लगा दिया.

ठीक होने के बाद सुदामा घर आ गया. लेकिन बीमारी के बाद भी वह अपनी आदतों से बाज नहीं आया. कुछ दिनों बाद वह फिर से बाहरी औरतों के साथ मौजमस्ती करने लगा. मुन्नाबाई ने विरोध किया तो सुदामा ने उस की जम कर पिटाई कर दी. मुन्नीबाई रोजरोज की मारपीट से तंग आ चुकी थी. दुखी हो कर वह आत्महत्या करने की सोचने लगी थी.

इस बीच मुन्नीबाई के भाई रामकुमार यादव का फोन आ गया. मुन्नीबाई ने रोरो कर अपना दुखड़ा भाई को सुना दिया. भला कौन भाई अपनी बहन को रोता देख सकता है. रामकुमार को अपने बहनोई पर गुस्सा आ गया. वह बोला कि क्यों न इस मुसीबत को एक बार में ही निपटा दिया जाए. तुम क्यों मरने की सोच रही हो, हम जीजा को ही निपटा देंगे. मुन्नीबाई भी इस के लिए राजी हो गई.

रामकुमार यह काम खुद नहीं कर सकता था, लिहाजा उस ने 50 हजार का लालच दे कर गोराखुर्द निवासी भूरे गौड़ को अपनी योजना में शामिल कर लिया. योजना के अनुसार 25 जनवरी, 2019 को सुदामा, मुन्नीबाई और उस का भाई रामकुमार जमीनी विवाद की पेशी के लिए झांसी कोर्ट में पहुंचे.

पेशी के बाद मुन्नीबाई आगरा चली गई. सुदामा औरतों का रसिया था, इस बात को रामकुमार अच्छी तरह से जानता था. इसलिए वह एक लड़की से मिलवाने के बहाने सुदामा को बंडा के गोराखुर्द ले गया, जहां रात के करीब 8 बजे प्रभु सौर और हरिसिंह ठाकुर मिल गए.

प्रभु सौर लड़की से मिलाने की बोल कर सुदामा को गोराखुर्द के पहाड़ी क्षेत्र में ले गया. वह सुनसान जगह थी. सुदामा को कुछ गड़बड़ लगी तो उस ने लड़की के बारे में पूछा. तभी रामकुमार ने सुदामा को धक्का दे कर जमीन पर गिरा दिया और फिर तीनों ने मिल कर सुदामा का गला दबा कर उस की हत्या कर दी.

उस समय रामकुमार के फोन की बैटरी डाउन हो गई थी, इसलिए उस ने प्रभु सौर के मोबाइल से मुन्नीबाई को फोन कर के सुदामा का काम तमाम करने की जानकारी दे दी. उस की हत्या कर सभी घर लौट आए.

पुलिस ने मुन्नीबाई को गिरफ्तार करने के बाद उस की निशानदेही पर उस के भाई और अन्य आरोपियों को भी गिरफ्तार कर लिया. सभी आरोपियों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों के आधार पर

कहानी सौजन्य: सत्यकथा, मई 2019

तलाक के बाद : परिवार कैसे हुआ बर्बाद

साधु आश्रम रोड पर पनैठी से करीब एक किलोमीटर की दूरी पर जली हुई एक कार खड़ी है, जिस में एक लाश पड़ी है. सूचना मिलते ही डा. विनोद कुमार उस स्थान पर पहुंच गए, जहां जली हुई कार खड़ी होने की बात बताई गई थी.

जहां वह जली हुई कार खड़ी थी, वह इलाका सुनसान था. दूरदूर तक कोई बस्ती नहीं थी. शाम होते ही उधर आनाजाना बंद हो जाता था. इस से थानाप्रभारी ने अंदाजा लगाया कि इस कार को कहीं बाहर से ला कर यहां जलाया गया है. घटनास्थल के निरीक्षण में उन्हें कार से कुछ दूरी पर शराब और पैट्रोल की बोतलें पड़ी मिलीं. इस से लगा कि वारदात को अंजाम देने में कई लोग शामिल थे.

इस से पुलिस को लगा कि हत्यारे मृतक के दोस्त रहे होंगे. किसी बात पर आपस में झगड़ा हुआ होगा और मारपीट में इस की मौत हो गई होगी. अपराध छिपाने के लिए इसे यहां ला कर कार सहित जला दिया गया होगा. कार की नंबर प्लेट सलामत थी. डा. विनोद कुमार ने घटना की जानकारी एसएसपी राजेश पांडेय को दे दी थी. इस के बाद कार के नंबर के आधार पर मृतक के बारे में पता किया गया.

प्राप्त जानकारी के अनुसार, मृतक का नाम रिजवान था. वह दिल्ली का रहने वाला था, जहां उस का बिल्डिंग बनाने का कारोबार था. शिनाख्त होने के बाद घटना की जानकारी उस के घर वालों को दे दी गई थी. इस के बाद उसी दिन घटना की सूचना देने वाले अर्जुन सिंह की ओर से अपराध संख्या 445/2017 पर धारा 302, 201, 427 के अंतर्गत रिजवान की हत्या का मुकदमा थाना हरदुआगंज में दर्ज हो गया.

सूचना पा कर मृतक रिजवान के घर वाले अलीगढ़ पहुंच गए थे. पुलिस को कार की तलाशी में लाश के साथ एक जला हुआ मोबाइल फोन मिला था. घर वालों के पहुंचने के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर कार में मिला सामान जब्त कर लिया था.

पुलिस ने घर वालों से पूछताछ शुरू की. घर वालों का कहना था कि उन्हें पता नहीं कि रिजवान यहां कैसे पहुंचा. वह तो अलीगढ़ जाने की बात कह कर घर से निकला था. उस ने कहा था कि अलीगढ़ में उसे किसी से डेढ़ लाख रुपए लेने हैं.

पूछताछ में पुलिस को पता चला कि रिजवान ने 2 शादियां की थीं. दोनों पत्नियों से उस का तलाक हो चुका था. दूसरी पत्नी शाजिया परवीन से विवाद के कारण तलाक हो गया था. शाजिया ने रिजवान के खिलाफ थाने में रिपोर्ट भी दर्ज करा रखी थी, जिस से रिजवान को जेल जाना पड़ा था. 16 दिन पहले ही वह जमानत पर जेल से बाहर आया था.

रिजवान की 2-2 तलाकशुदा बीवियों की जानकारी मिलने पर पुलिस की जांच का दायरा बढ़ गया. दोनों ही बीवियां शक के घेरे में थीं. रिजवान की दूसरी बीवी शाजिया परवीन अध्यापिका थी, जिस की पोस्टिंग उत्तर प्रदेश के जिला सीतापुर के एक सरकारी स्कूल में थी.

घर वालों से थानाप्रभारी डा. विनोद कुमार ने विस्तार से पूछताछ की. शाजिया परवीन और उस के घर वालों से भी पूछताछ की गई. पुलिस ने मृतक रिजवान की पहली पत्नी नाजरीन के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया था. क्योंकि उस की हरकतों से पुलिस को उस पर शक हो गया था. पुलिस की समझ में आ गया था कि कातिल इलाके की भौगोलिक स्थिति से परिचित थे, इसीलिए उन्होंने घटना को यहां अंजाम दिया था.

सर्विलांस द्वारा पुलिस को पता चला कि नाजरीन की सोनू से लगातार फोन पर बातें हो रही हैं. सोनू गाजियाबाद का रहने वाला है. पुलिस ने दोनों की बातचीत सुन कर पुलिस को पता चल गया कि सोनू नाजरीन का प्रेमी है. घर वालों ने भी इस की पुष्टि कर दी थी. पुलिस के सामने कुछ नाम और भी आए, जिस में एक शाहरुख था, जो नाजरीन का भाई था. इस के अलावा अफरोज और आशु के नाम भी थे.

थानाप्रभारी ने गाजियाबाद पुलिस से संपर्क किया तो पता चला कि सोनू और अफरोज 25 आर्म्स एक्ट के तहत अपनी गिरफ्तारी दे चुके हैं, जिन में से अफरोज को जेल भेजा जा चुका था. डा. विनोद कुमार ने तुरंत सोनू को जेल भेजने से रुकवाया और गाजियबाद पहुंच कर उसे हिरासत में ले लिया. सोनू को ले कर पुलिस हरदुआगंज आ गई.

सोनू से सख्ती से पूछताछ की गई तो पता चला कि रिजवान की हत्या में उस की प्रेमिका और रिजवान की पूर्वपत्नी नाजरीन भी शािमल थी.

इस के बाद पुलिस ने नाजरीन को भी हिरासत में ले लिया. पूछताछ में पहले तो वह इधरउधर की बातों से पुलिस को गुमराह करने की कोशिश करती रही, लेकिन जब उसे बताया गया कि सोनू गिरफ्तार हो चुका है और उस ने सच्चाई बता दी है. यह पता चलते ही वह डर गई और उस ने हकीकत बता दी. दोनों से की गई पूछताछ के बाद रिजवान की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस प्रकार थी—

मोहम्मद सुलतान मूलरूप से आलमबाग, अलीगढ़ के के रहने वाले थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटे और 5 बेटियां थीं. रोजीरोटी के सिलसिले में करीब 25 साल पहले वह दिल्ली आ गए थे. दिल्ली की एक कंपनी में सुरक्षागार्ड की नौकरी कर के वह अपने परिवार का पालनपोषण करने लगे.

बच्चे जवान हुए और कारोबार से लग गए. बड़ा बेटा रिहान उबेर कैब में टैक्सी चलाने लगा तो रिजवान ने बिल्डिंग बनाने का काम शुरू कर दिया, फरहान किसी कंपनी में नौकरी करने लगा. बेटों के काम पर लगने से सुलतान का परिवार सुखी और संपन्न हो गया. उस ने मुरारी रोड बटला हाउस में अपना मकान बनवा लिया. परिवार में सब कुछ ठीकठाक था, लेकिन समय कब करवट ले ले, इस की खबर किसी को नहीं होती.

बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन के काम से रिजवान की अच्छी कमाई हो रही थी. उस के लिए रिश्ते की तलाश शुरू हुई. किसी के माध्यम से दक्षिणपूर्वी दिल्ली के शाहीनबाग निवासी साबिर अली की बेटी नाजरीन से शादी का प्रस्ताव आया. दोनों तरफ से बातचीत के बाद उन का रिश्ता तय हो गया. फिर जल्दी ही रिजवान और नाजरीन का निकाह हो गया. यह सन 2008 की बात है.

निकाह के कुछ दिनों बाद ही नाजरीन के व्यवहार में बदलाव आ गया, जिस की वजह से घर में कलह रहने लगी. दरअसल, नाजरीन पति के संयुक्त परिवार से अलग रहना चाहती थी. इसी बात को ले कर वह रिजवान से लड़तीझगड़ती रहती थी, जबकि रिजवान घर वालों से अलग नहीं होना चाहता था. पर पत्नी की जिद के आगे उसे झुकना पड़ा. उस की बात मानते हुए उस ने ओखला विहार में किराए का एक फ्लैट ले लिया और उसी में नाजरीन के साथ रहने लगा.

नाजरीन और रिजवान भले ही संयुक्त परिवार से अलग रहने लगे थे, पर उन के रिश्ते मधुर नहीं हो पाए. इस की वजह यह थी कि रिजवान को नाजरीन का किसी से मिलनाजुलना या बातचीत करना पसंद नहीं था. रिजवान नाजरीन पर अंकुश लगाना चाहता था, जबकि नाजरीन को अपनी आजादी में रिजवान का दखल पसंद नहीं था. इसी वजह से उन के दांपत्य में तनाव रहने लगा. उसी बीच नाजरीन एक बेटी की मां बन गई. उस का नाम रखा गया फलक.

रिजवान फलक से बेहद प्यार करता था, पर बेटी के आने के बाद भी मांबाप के रिश्ते नहीं सुधर पाए. धीरेधीरे दोनों के रिश्ते टूटने की कगार पर आ गए.

आखिर नाजरीन ने रिजवान से साफ कह दिया कि वह उस के साथ नहीं रह सकती. रिजवान ने उसे समझाने की कोशिश की और बेटी के भविष्य की दुहाई दी. लेकिन नाजरीन कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी.

आखिर कुछ रिश्तेदार बीच में पड़े और पंचायतें हुईं. फिर भी बात नहीं बनी और दोनों का तलाक हो गया. रिजवान ने अपनी प्रौपर्टी से अपनी बेटी फलक के भरणपोषण के लिए और सुखद भविष्य के लिए अपना दादरी वाला 900 वर्गगज का प्लौट और एक फ्लैट उस के नाम कर दिया. यह सन 2012 की बात है.

फिर शाजिया आई रिजवान की जिंदगी में तलाक के बाद नाजरीन अपने मांबाप के साथ रहने लगी. अब रिजवान तनहा हो गया. वह अपने कारोबार में मन लगाने की कोशिश करने लगा. इस बीच घर के लोग उस के लिए फिर से रिश्ता तलाश करने लगे. 2 साल तक बात नहीं बनी तो रिजवान शादी डौटकौम के जरिए अपने लिए जीवनसाथी खोजने लगा.

मार्च, 2014 में शादी डौटकौम के जरिए रिजवान की मुलाकात शाजिया परवीन से हुई, जो विधवा थी. वह एक बेटी की मां भी थी. लेकिन वह पढ़ीलिखी और काफी खूबसूरत थी. बातचीत में भी काफी सलीके वाली थी. वह सरकारी स्कूल में अध्यापिका भी थी. उस की पोस्टिंग उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में थी.

आपस में बातचीत के बाद दोनों निकाह कर दांपत्य में बंधने को तैयार हो गए. शाजिया परवीन के पहले पति की मृत्यु सन 2010 में हो गई थी. वह अपने मांबाप और बेटी के साथ दिल्ली के वजीराबाद में रहती थी. बाद में उस की उत्तर प्रदेश में अध्यापक के पद पर नौकरी लग गई थी. बेटी को मांबाप के पास छोड़ कर वह सीतापुर में रह कर नौकरी करती थी.

निकाह के बाद शाजिया परवीन रिजवान के साथ ओखला विहार दिल्ली में रहने लगी. लेकिन 15 दिनों बाद ही वह अपनी नौकरी करने सीतापुर चली गई. जब स्कूल की छुट्टियां होतीं, तभी वह दिल्ली में पति के साथ रहती थी. रिजवान से निकाह कर के शाजिया को लगता था कि उसे और उस की बेटी को सहारा मिल गया है. निकाह के बाद कुछ दिनों तक सब ठीकठाक चला, लेकिन उस के बाद शाजिया को लगने लगा कि रिजवान में बदलाव आ रहा है.

रिजवान शाजिया की तनख्वाह अपने पास रखना चाहता था. यह बात शाजिया को बिलकुल पसंद नहीं थी. उस ने रिजवान से निकाह इसलिए किया था कि उस की बेटी को पिता का प्यार मिलेगा. पर जैसा उस ने सोचा था, हालात वैसे नहीं थे. अत: पतिपत्नी के रिश्तों में दरार पैदा होने लगी.

कुछ दिनों बाद शाजिया को पता चला कि रिजवान अपनी तलाकशुदा पत्नी नाजरीन के पास आनेजाने लगा है. यह बात शाजिया को अच्छी नहीं लगी. शाजिया ने रिजवान से पूछा तो उस ने वादा किया कि अब वह नाजरीन के पास नहीं जाएगा.

नाजरीन अपने प्रेमी सोनू से निकाह करना चाहती थी. इस के लिए सोनू भी तैयार था. सोनू को पता था कि नाजरीन की 7 साल की बेटी फलक के नाम रिजवान ने 900 वर्गगज का प्लौट और एक फ्लैट किया हुआ है तो वह कुछ और ही हिसाब लगाने लगा.

नाजरीन भी इस प्रौपर्टी को समय से पहले भुनाना चाहती थी. अत: सोनू के साथ मिल कर वह सोचने लगी कि यह प्रौपर्टी उसे कैसे मिले.

तलाक के बाद नाजरीन को रिजवान से कुछ भी नहीं मिला था, जो भी मिला था, फलक को मिला था. इसलिए नाजरीन सोनू के साथ मिल कर षडयंत्र रचने लगी. इस के बाद षडयंत्र के तहत एक दिन उस ने रिजवान को फोन कर के मिलने को बुलाया. रिजवान नाजरीन से मिलने पहुंचा तो उस ने अपने व्यवहार पर दुख प्रकट करते हुए कहा कि जो कुछ भी हुआ, वह उसे भूल जाए. मैं अब भी तुम से मोहब्बत करती हूं.

इस पर रिजवान को कोई आपत्ति नहीं थी. उस समय उस की दूसरी पत्नी शाजिया से उस के रिश्ते ठीक नहीं थे. नाजरीन के इरादों से बेखबर रिजवान का उस के घर आनाजाना शुरू हो गया. वह शाजिया से किया वादा भी भूल गया. उसे साथ ले कर वह घूमता भी था, जिस का पता शाजिया को चल गया. शाजिया को यह कतई पसंद नहीं था कि उस का पति अपनी तलाकशुदा पत्नी से संबंध बनाए रखे. शाजिया को अब महसूस होने लगा कि रिजवान से निकाह कर के उस ने बहुत बड़ी भूल की है.

रिजवान की एक आदत गलत यह थी कि वह शाजिया की तनख्वाह पर अपना अधिकार समझता था. वह जबतब सीतापुर पहुंच जाता और उस से पैसे मांगता. पैसे न देने पर उस से मारपीट, गालीगलौज करता. कुल मिला कर शाजिया उस से काफी परेशान रहने लगी थी.

आखिर शाजिया ने रिजवान से तलाक लेने का फैसला कर लिया. 13 सितंबर, 2016 को उस ने मुसलिम रीतिरिवाज के अनुसार रिजवान से तलाक ले लिया. रिजवान से तलाक ले कर शाजिया ने राहत की सांस ली. पर यह मुक्ति स्थाई नहीं थी.

शाजिया के न्यूड फोटो बांट दिए रिश्तेदारों में

रिजवान जबतब उसे फोन करता और पैसे की मांग करता. तलाक होने के बाद भी वह शाजिया के पास सीतापुर पहुंच जाता था. वह उसे धमकाता, जिस से शाजिया परेशान रहने लगी थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.

एक दिन रिजवान ने उस से 15 लाख रुपयों की मांग की. शाजिया ने पैसे देने से साफ मना कर दिया. तब रिजवान ने उस पर पिस्टल तान दी. वह उसे जान से मारने की धमकी देने लगा.

किसी तरह नाजरीन को जब इस बात का पता चला तो वह आग में घी डालने का काम करने लगी. वह रिजवान को और भड़काने लगी. शाजिया मानसिक रूप से काफी परेशान थी. अचानक रिजवान ने उस की परेशानी और बढ़ा दी. उस ने शाजिया के न्यूड फोटो उस के कुछ रिश्तेदारों को भेज दिए.

शाजिया को जब यह पता चला तो वह सन्न रह गई. अब पानी सिर से ऊपर गुजरने लगा था. इतना ही नहीं, रिजवान ने शाजिया को फोन कर धमकी दी कि वह उस का वीडियो भी उस के रिश्तेदारों को भेजेगा. इस के बाद तो शाजिया की घबराहट और बढ़ गई.

नाजरीन ने रची खूनी साजिश शाजिया ने अपने रिश्तेदारों से सलाह की तो सब ने पुलिस से शिकायत करने का सुझाव दिया. इस के बाद वह थाना तिमारपुर पहुंची और थानाप्रभारी को सारी बात बताई.

थानाप्रभारी ने इस मामले की जांच एसआई मीनाक्षी को सौंप दी. एसआई मीनाक्षी ने जांच में मामला सही पाया और इस मामले की रिपोर्ट पहली जून, 2017 को थानाप्रभारी को सौंप दी.

इस के बाद पुलिस ने रिजवान के खिलाफ भादंवि की धारा 384, 354, 506 के तहत मामला दर्ज कर रिजवान को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ के बाद उसे अदालत में पेश किया, जहां से जेल भेज दिया था.

नाजरीन को रिजवान से हमदर्दी जताने का यह अच्छा मौका मिल गया था. विश्वास बढ़ाने के लिए वह जेल में रिजवान से मिलने भी जाने लगी. सोनू के साथ वह केस की पैरवी भी कर रही थी. इस से रिजवान को लगा कि नाजरीन उस की अपनी है, जो बुरे वक्त में उस के साथ है. जबकि नाजरीन के मन में तो कुछ और ही था.

नाजरीन सोनू से निकाह कर के अपनी जिंदगी को व्यवस्थित करना चाहती थी. इस के लिए उसे पैसों की भी जरूरत थी. वह यही चाह रही थी कि फलक के नाम लिखी प्रौपर्टी किसी तरह उसे मिल जाए.

रिजवान की जमानत के लिए उस के बहनोई जाकिर हुसैन ने काफी भागदौड़ की. आखिर 26 अक्तूबर, 2017 को यानी हत्या के 16 दिन पहले उसे जमानत मिल गई. रिजवान के जेल से बाहर आने पर घर वालों ने राहत की सांस ली. नाजरीन, सोनू और उस के साथी यह सोच रहे थे कि शाजिया और रिजवान की दुश्मनी को किस तरह भुनाए.

आखिर योजना के अनुसार, 10 नवंबर, 2017 को सोनू ने रिजवान को फोन कर के वैशाली मैट्रो स्टेशन पर मिलने के लिए बुलाया. रिजवान वहां अपनी कार से पहुंचा तो सोनू ने कहा कि वे लोग अलीगढ़ घूमने जा रहे हैं. वह भी उन के साथ चले तो ठीक रहेगा. रिजवान काफी समय तक जेल में रहा था, इसलिए मन बहलाने के लिए वह खुशीखुशी उन के साथ जाने को तैयार हो गया.

रिजवान ने सपने में भी नहीं सोचा था कि वह खुद को खतरे में डाल रहा है. सोनू, शाहरुख, अफरोज और आशू के साथ रिजवान चल पड़ा. रिजवान की कार के अलावा उन लोगों के पास एक कार और थी. बुलंदशहर आने के बाद उन्होंने रास्ता बदल लिया. अनूपशहर होते हुए वे लोग हरदुआगंज पहुंचे.

रास्ते में उन्होंने रिजवान को जम कर शराब पिलाई, जिस से वह एक तरह से बेहोश सा हो गया था. रास्ते में ही उन्होंने प्लास्टिक की बोतलों में एक पैट्रोल पंप से पैट्रोल ले लिया था. नाजरीन और सोनू मोबाइल के जरिए एकदूसरे के संपर्क में बने थे.

रात 12 बजे के करीब सभी अलैहदादपुर पहुंचे. रिजवान अपनी कार में बेसुध सीट पर गरदन टिकाए लेटा था. ऐस में ही सोनू और आशू ने उस का गला घोंट दिया. इस के बाद उन्होंने बोतलों में भरा पैट्रोल रिजवान पर डाल दिया और आग लगा दी. रिजवान के साथसाथ कार भी धूधू कर जलने लगी. सुनसान इलाका होने की वजह से किसी को पता नहीं चला कि वहां क्या हुआ था. चारों ओर सन्नाटा पसरा हुआ था. सभी अपने काम को अंजाम दे कर अपनी कार से चले गए. नाजरीन और उस के साथियों ने सोचा था कि पुलिस उन तक पहुंच नहीं पाएगी, लेकिन यह उन की भूल थी.

रात साढ़े 10 बजे रिजवान का फोन बंद हो गया तो घर वाले परेशान हो उठे. उन्होंने नाजरीन को भी फोन किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. घर वालों ने थाने में गुमशुदगी की तहरीर भी दे दी, लेकिन रिजवान का कुछ पता नहीं चला.

अगले दिन घर वालों को अलीगढ़ पुलिस से रिजवान की जली हुई लाश और कार मिलने की खबर मिली. घर वाले अलीगढ़ पहुंचे. उन के साथ नाजरीन भी थी. घर वालों ने रिजवान की झुलसी हुई लाश की पुष्टि कर दी, इस के बाद भी नाजरीन के चेहरे पर शिकन तक नहीं थी. वह अंदर ही अंदर सुकून महसूस कर रही थी.

डा. विनोद कुमार ने अभियुक्तों से पूछताछ कर के उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. फलक अपने दादादादी के पास है. 7 साल की फलक अनाथ हो चुकी है. पिता की हत्या कर दी गई है और मां जेल में है. कथा लिखने तक नाजरीन अपने साथियों के साथ जेल में थी.  ?

 

टूटा जाल शिकारी का : असफल योजना बनी कारावास की सजा

28अक्तूबर, 2019 को ग्रेटर नोएडा की फास्ट ट्रैक कोर्ट-2 में काफी भीड़ थी. दोनों पक्षों के वकील, पुलिस और तीनों आरोपी चंद्रमोहन शर्मा, प्रीति नागर, विदेश अदालत में मौजूद थे. उस दिन फास्ट ट्रैक कोर्ट के न्यायाधीश निरंजन कुमार एक ऐसे केस में सजा सुनाने वाले थे, जिस में शातिराना ढंग से खुद को मृत साबित करने के लिए चंद्रमोहन शर्मा ने एक पागल व्यक्ति को अपनी कार में बैठा कर जिंदा जला दिया था.

दोनों पक्षों की बहस पूरी हो चुकी थी. पिछली तारीख पर अदालत चंद्रमोहन को भादंवि की धारा 302 के तहत दोषी भी ठहरा चुकी थी. उस दिन सिर्फ फैसला सुनाया जाना था. प्राथमिक काररवाई निपटाने के बाद न्यायाधीश निरंजन कुमार ने फैसला सुनाते हुए चंद्रमोहन को आजीवन कारावास की सजा सुनाई.

दरअसल 28 अक्तूबर, 2019 को ग्रेटर नोएडा की फास्ट ट्रैक कोर्ट-2 के न्यायाधीश निरंजन कुमार ने जो फैसला सुनाया, उस की शुरुआत 7 जून, 2014 की शाम को तब हुई थी, जब शाम करीब 7 बजे अचानक एक लड़की का अपहरण हो गया.

दिल्ली से सटे गौतमबुद्ध नगर जिले के ग्रेटर नोएडा में अल्फा- 2, सेक्टर के मकान नंबर आई-33 में रहने वाले संतराम नागर की बेटी प्रीति नागर (22) अपने घर के बाहर से रहस्यमय ढंग से गायब हो गई.

प्रीति नागर शाम के अंधेरे में घर के बाहर बिछी चारपाई उठाने आई थी और गायब हो गई. चूंकि उस वक्त इलाके में बिजली नहीं थी इसलिए किसी ने भी प्रीति को कहीं आतेजाते नहीं देखा था. प्रीति को इधरउधर तलाश करने के बाद उस के पिता संतराम ने पुलिस कंट्रोल रूम को 100 नंबर पर फोन कर के इत्तिला दे दी.

सूचना मिलने के बाद कासना थाने की पुलिस मौके पर पहुंच गई. संतराम नागर ने पुलिस को वे सारी बातें बता दीं, जो प्रीति के गायब होने से जुड़ी थीं. पुलिस ने संतराम नागर व आसपड़ोस के लोगों के बयान दर्ज किए. फिर अगली सुबह संतराम की शिकायत पर थाना कासना में धारा 364 के तहत प्रीति के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर ली गई.

8 जून को प्रीति के अपहरण की जांच का केस एसआई विनय शर्मा के सुपुर्द कर दिया गया. जांच का काम संभालते ही जांच अधिकारी शर्मा अपनी टीम के साथ संतराम के घर पहुंचे और विवेचना शुरू कर दी.

तमाम बिंदुओं पर पूछताछ और जांच करने के बाद विनय शर्मा किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाए. प्रीति का कहीं भी कोई सुराग नहीं मिला. अचानक 2 महीने बाद 9 अगस्त, 2014 को प्रीति के पिता संतराम के मोबाइल पर एक अनजान नंबर से काल आई. काल करने वाले ने अपना नाम बताए बिना कहा कि वह तिरुपति बालाजी से बोल रहा है और उन की बेटी प्रीति उस के पास है.

फोन करने वाले ने बताया कि प्रीति कुछ गलत लोगों के चंगुल में फंस गई थी, लेकिन किसी तरह वह बच गई और अब उस के पास है. फोनकर्ता ने संतराम से आगे कहा कि वह तिरुपति बालाजी पहुंच जाएं, वह उन से बालाजी में मिलेगा और उन की बेटी उन के सुपुर्द कर देगा. काफी अनुरोध करने पर भी उस ने अपना नामपता नहीं बताया.

संतराम ने कासना थाने जा कर इस फोन के बारे में जांच अधिकारी विनय शर्मा को बताया.

शर्मा ने तुंरत उस फोन के बारे में साइबर सेल से जानकारी हासिल की तो पता चला कि जिस नंबर से संतराम को काल आई थी, उस की लोकेशन बंगलुरु के एक पीसीओ की थी.

विनय शर्मा ने थानाप्रभारी समरपाल सिंह और एसएसपी को इस जानकारी से अवगत कराया तो उन्होंने 13 अगस्त, 2014 को विनय शर्मा को कांस्टेबल धामा के साथ बंगलुरु रवाना कर दिया. उन के साथ संतराम भी अपने साले के साथ बंगलुरु पहुंच गए.

बंगलुरु पहुंच कर विनय शर्मा सब से पहले उस पीसीओ पर पहुंचे, जहां से संतराम के मोबाइल पर फोन किया था. लेकिन उस पीसीओ के संचालक से फोन करने वाले की पहचान के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं मिल सकी. संयोग से उसी दिन संतराम के मोबाइल पर लोकल नंबर से एक और काल आई.

फोन उसी व्यक्ति का था, जिस ने पहले फोन किया था. लेकिन इस बार फोन करने वाला काफी गुस्से में था उस ने पुलिस को साथ ले कर आने के लिए संतराम को खूब खरीखोटी सुनाई. संतराम ने उसे समझाने की कोशिश की कि उस का इरादा गलत नहीं था, लेकिन फोन करने वाला इतने गुस्से में था कि उस ने प्रीति का बुरा अंजाम करने की धमकी दे कर फोन काट दिया.

संतराम ने जब उसी नंबर पर काल बैक की तो फोन स्विच्ड औफ हो चुका था. जांच अधिकारी विनय शर्मा संतराम के साथ ही थे. वे समझ गए कि फोन करने वाला उन पर नजर रख रहा है. जिस नंबर से संतराम को फोन आया था, विनय शर्मा ने वह नंबर नोएडा में बैठी अपनी साइबर टीम को भेज दिया तो पता चला कि वह नंबर बंगलुरु के ही एक पीसीओ का है.

विनय शर्मा ने तत्काल पता नोट किया और बताए गए पते पर पहुंच गए. पीसीओ के मालिक से जब फोन करने वाले की बाबत जानकारी मांगी, तो वह उस के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं दे सका. क्योंकि पीसीओ पर तमाम लोग आते हैं और सब के बारे में जानकारी रखना पीसीओ वाले के लिए संभव नहीं होता.

निराश हो कर 1-2 दिन बाद संतराम बंगलुरु से नोएडा लौट आए. अब जांच के सारे दरवाजे बंद हो चुके थे. लेकिन उच्चाधिकारियों  के आदेश के कारण विनय शर्मा अपने कांस्टेबल धामा के साथ वहीं रुके रहे और अपनी जांचपड़ताल करते रहे.

इस बीच संतराम जब नोएडा पहुंच गए तो 15 अगस्त को उसी अज्ञात फोन करने वाले ने फिर फोन किया. उस ने संतराम से कहा कि उन की लड़की के गिड़गिड़ाने की वजह से वह उसे छोड़ देगा, लेकिन शर्त यह है कि वह इस बार अकेला आए और अगली सुबह तिरुपति बालाजी मंदिर के बाहर उस का इंतजार करे.

संतराम ने तुरंत फ्लाइट पकड़ी और तिरुपति बालाजी मंदिर पहुंच गए. इस दौरान उन्होंने फोन कर के विनय शर्मा को भी ये बात बता दी थी. फलस्वरूप 16 अगस्त की सुबह विनय शर्मा संतराम व उन के साले के साथ फोन करने वाले का इंतजार करने लगे.

लेकिन अज्ञात फोनकर्ता ने इस बार भी धोखा दे दिया . देर शाम तक इंतजार करने के बाद वे फिर निराश हो गए, क्योंकि न तो फोन करने वाला आया और न ही उस की कोई काल आई. हालांकि इस बार जांच अधिकारी ने सावधानी बरतते हुए खुद को संतराम के से दूर रखा था. निराश हो कर संतराम नोएडा लौट आए.

वह यह मान बैठे थे कि उन्हें कोई परेशान करने के लिए ऐसा कर रहा है. लेकिन विनय शर्मा इस बार भी वापस नहीं लौटे. और प्रीति के फोटो के आधार पर थानेथाने जा कर वह उस की तलाश करते रहे.

जिस वक्त पुलिस टीम प्रीति को बंगलुरु में तलाश कर रही थी, 22 अगस्त, 2014 को संतराम ने विनय शर्मा को फोन कर के बताया कि उन के पास फोन करने वाले का एक और धमकी भरा फोन आया है. इस बार उस ने प्रीति को जान से मारने की धमकी दी है.

संतराम ने बताया कि इस बार फोनकर्ता ने एक अन्य नंबर का इस्तेमाल किया था. विनय शर्मा के मांगने पर संतराम ने उन्हें वह नंबर नोट करा दिया.

एसआई विनय शर्मा ने वह नंबर साइबर टीम को भेज कर पता करा लिया कि वह नंबर बंगलुरु में हांसे कोटे इलाके के एक पीसीओ का है.

पता मिलते ही विनय शर्मा पीसीओ मालिक के पास पहुंच गए. यहां भी पीसीओ संचालक से उन्होंने फोनकर्ता की जानकारी जुटाने की कोशिश की, मगर कोई खास सफलता नहीं मिली. फिर भी इस बार उन्हें एक क्लू जरूर मिल गया.

विनय शर्मा की नजर पीसीओ के सामने स्थित एक ज्वैलरी शौप पर पड़ी. ज्वैलरी शौप के बाहर सीसीटीवी कैमरा लगा था. सीसीटीवी कैमरा देखते ही विनय शर्मा का चेहरा खिल उठा. उन्होंने पीसीओ के संचालक के साथ जा कर ज्वैलरी शौप संचालक को अपना परिचय दिया और सीसीटीवी फुटेज दिखाने का अनुरोध किया.

ज्वैलरी शौप के मालिक ने विनय शर्मा को सहयोग करते हुए उक्त समय की वीडियो फुटेज दिखा दी.

संयोग की बात थी कि पीसीओ ज्वैलरी शौप के सीसीटीवी कैमरे की रेंज में था. विनय शर्मा के साथ सीसीटीवी देख रहे पीसीओ संचालक ने सफेद पैंट, काली जैकेट और काले जूते पहने एक गंजे व्यक्ति को देख कर बताया कि उस के पीसीओ पर वही शख्स आया था. काल करने के बाद वह वापस चला गया था. वापस लौटते हुए उस शख्स का चेहरा पूरी तरह कैमरे की जद में आ गया था.

उस आदमी की वेशभूषा देख कर ज्वैलरी शौप के मालिक ने बताया कि यह व्यक्ति जो ड्रेस पहने है, वह कोलार में दुपहिया वाहन बनाने वाली होंडा फैक्ट्री के कर्मचारियों की ड्रेस है. यह सुराग डूबते को तिनके का सहारा मिलने जैसा था.

आगे की छानबीन के लिए विनय शर्मा ने ज्वैलरी शौप के संचालक से उस फुटेज की कौपी ले कर अपनी टीम के साथ कोलार के नस्सापुर स्थित टू व्हीलर बनाने वाली होंडा कंपनी के औफिस में पहुंच गए. जांच अधिकारी ने मैनेजर को पूरा मामला बताया. उस से पूछा गया कि क्या पिछले कुछ महीनों में उन के यहां किसी उत्तर भारतीय कर्मचारी ने नौकरी जौइन की है. इस के जवाब में मैनेजर ने उन्हें पिछले 3 महीनों में नौकरी जौइन करने वाले 3 कर्मचारियों का फोटो समेत बायोडाटा मिल गया.

तीनों बायोडाटा देखने के बाद विनय शर्मा की नजर एक शख्स पर अटक गई, क्योंकि वह उन का जानापहचाना था.

वह शख्स चंद्रमोहन शर्मा था, लेकिन बायोडाटा में उस का नाम नितिन लिखा था, जिस ने 6 मई, 2014 को फिटर कर्मचारी के रूप में उन के यहां नौकरी जौइन की थी. उस ने अपना मूल पता हरियाणा, हिसार लिखवाया था.

चंद्रमोहन को विनय अच्छी तरह जानते थे. क्योंकि वह नोएडा का एक आरटीआई एक्टिविस्ट था और वह उस से कई बार मिले भी थे. लेकिन उन्हें यह समझ नहीं आ रहा था कि चंद्रमोहन यहां क्या कर रहा है और उस ने अपना नाम नितिन क्यों लिखवाया है. साथ ही प्रीति की तलाश करतेकरते उन्हें चंद्रमोहन की बंगलुरु में उपस्थिति समझ नहीं आ रही थी.

विनय शर्मा ने अपने मोबाइल से बायोडाटा में लगी फोटो ले कर अपने एसएचओ समरजीत सिंह को भेजी और उन्हें पूरी बात बताई.

कुछ देर में इंसपेक्टर समरजीत सिंह ने विनय शर्मा को जो कुछ बताया, उस से उन के दिमाग की नसें हिल गईं. समरजीत सिंह ने बताया कि नितिन नाम का शख्स चंद्रमोहन शर्मा ही है और वह उस के मर्डर केस की जांच कर रहे हैं. समरजीत सिंह ने विनय शर्मा को बिना वक्त गंवाए नितिन को पकड़ने की हिदायत दी.

मामले की तसवीर अब काफी हद तक साफ हो चुकी थी. विनय शर्मा के कहने पर नितिन शर्मा उर्फ चंद्रमोहन को एचआर मैनेजर ने फैक्ट्री से बुलवा लिया. पुलिस को सादे लिबास में देख कर कथित नितिन शर्मा घबरा गया. विनय शर्मा को वह पहले से ही जानता था. विनय शर्मा ने उसे यह नहीं बताया कि उन्हें उस की मौत के ड्रामे के बारे में कोई जानकारी है.

उन्होंने उस से सब से पहले प्रीति के बारे पूछताछ शुरू की. चंद्रमोहन को पता नहीं था कि विनय शर्मा को उस के बारे में सब पता चल चुका है. उस ने बताया कि प्रीति से उस ने शादी कर ली है. वह अपनी इच्छा से अपना घर छोड़ कर उस के साथ आई है.

चंद्रमोहन विनय कुमार को काउंटी कट्टा इलाके में अपने किराए के घर पर भी ले गया, जहां वह प्रीति के साथ रहता था. विनय शर्मा ने घर में घुसते ही प्रीति को पहचान लिया, क्योंकि नोएडा से इतनी दूर वह उसी तलाश में आए थे.

विनय शर्मा ने 27 अगस्त, 2014 को स्थानीय पुलिस के सहयोग से प्रीति व चंद्रमोहन को हिरासत में ले लिया. दोनों को स्थानीय अदालत में पेश कर के उन्होंने उन्हें ट्रांजिट रिमांड पर लिया और उन्हें ग्रेटर नोएडा के कासना थाने ले आए.

विनय शर्मा ग्रेटर नोएडा से बंगलुरु जिस प्रीति की तलाश में गए थे, वह मकसद पूरा हो चुका था. लेकिन इसी के साथ खुद को मुर्दा साबित कर के प्रीति के साथ मौज कर रहा वह चंद्रमोहन नाम का कथित मृतक भी उन के हाथ लग गया था.

29 अगस्त को पुलिस ने प्रीति नागर और चंद्रमोहन को अदालत में पेश कर के 3 दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया. रिमांड की अवधि में चंद्रमोहन व प्रीति से अलगअलग पूछताछ की गई, तो उन की प्रेम कहानी तथा चंद्रमोहन द्वारा रची गई गहरी साजिश का भी परदाफाश हो गया.

चंद्रमोहन शर्मा आरटीआई कार्यकर्ता और आम आदमी पार्टी का सक्रिय सदस्य था. वह ग्रेटर नोएडा के अल्फा-2 में आई ब्लौक के मकान नंबर 480 में रहता था. चंद्रमोहन के परिवार में पत्नी सविता तथा 2 बच्चे थे, 12 वर्ष का बेटा तथा 7 वर्ष की बेटी.

हुआ यूं था कि 17 मई, 2014 को चंद्रमोहन की पत्नी सविता ने थाना कासना में आ कर एक लिखित तहरीर दी थी. तहरीर में सविता ने लिखा था कि उस का पति चंद्रमोहन 30 अप्रैल, 2014 से लापता था. 2 मई को उस की जली हुई लाश उसी की कार में मिली थी. तहरीर में सविता ने आरोप लगाया था कि उस के पति की मौत दुर्घटना में नहीं हुई, बल्कि उस की हत्या की गई है.

सविता की तहरीर के मुताबिक कासना क्षेत्र के बृजेश, शानी, राजकुमार उर्फ राजू, बबलू उर्फ आनंद और प्रवीण ने गांव कासना के मंदिर की जमीन पर अवैध कब्जा कर रखा था. उस का पति गांव की तरफ से मंदिर की जमीन के मुकदमे में पैरवी कर रहा था, इसलिए उपरोक्त सभी लोग चंद्रमोहन से दुश्मनी रखते थे.

इन सभी लोगों से चंद्रमोहन ने अपनी जान का खतरा भी बताया था, जिस के संबंध में 30 अप्रैल, 2014 को ही थाना कासना में तत्कालीन थानाप्रभारी वीरपाल सिंह को शिकायत दे कर प्राथमिकी भी दर्ज कराई थी, जिस में चंद्रमोहन ने आरोप लगाया था कि 28 अप्रैल को ड्यूटी पर जाते समय उस से रंजिश मानने वाले बृजेश ने अपने साथियों के साथ परी चौक के पास उसे जान से मारने की धमकी दी थी.

सविता ने अपनी तहरीर में आरोप लगाया था कि उक्त सभी व्यक्तियों ने साजिश कर के उस के पति चंद्रमोहन की हत्या कर लाश को कार समेत जला दिया है, ताकि घटना को दुर्घटना का रूप दिया जा सके.

सविता की तहरीर के आधार पर कासना पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 147, 302 के तहत वाद पंजीकृत कर के नामजद आरोपियों से पूछताछ करने का प्रयास किया तो पता चला कि वे फरार हैं.

चंद्रमोहन शर्मा की मौत का प्रकरण कुछ इस तरह सामने आया था. 1/ 2 मई, 2014 की रात करीब 12 बजे ग्रेटर नोएडा के अंसल प्लाजा के निकट होंडा कंपनी के सामने जेपी ग्रीन के पास एक जली हुई कार मिली थी. कार की ड्राइविंग सीट पर जो शख्स बैठा था, वह भी बुरी तरह जल कर कोयला हो चुका था.

जली कार में लाश की सूचना पा कर कासना थाना पुलिस मौके पर पहुंची. प्रथमदृष्टया पुलिस ने अनुमान लगाया कि यह हादसा रहा होगा. गैस रिसने से कार आग का गोला बन गई होगी. कार ड्राइव करने वाले को इतनी भी मोहलत नहीं मिली कि दरवाजा खोल कर वह बाहर निकल पाता.

वह सीट पर बैठेबैठे ही जल कर मर गया. कार का रजिस्ट्रेशन नंबर और चेसिस नंबर सहीसलामत था. उसी के माध्यम से पुलिस ने अगले दिन आरटीओ से मालूमात की तो पता चला वह कार चंद्रमोहन की थी. पुलिस उस पते पर पहुंची, जिस पते पर कार पंजीकृत थी.

वहां पता चला कि वह घर चंद्रमोहन का है. चंद्रमोहन तो नहीं मिला, लेकिन उस की पत्नी जरूर पुलिस को मिल गई. पुलिस ने चंद्रमोहन की पत्नी सविता को बुला कर कार में लाश की शिनाख्त कराई. सविता ने लाश के साथ कार की भी शिनाख्त कर दी.

चंद्रमोहन के परिजनों ने उस की लाश की शिनाख्त 2 मई को ही कर दी थी. पहली नजर में पुलिस को ये मामला दुर्घटनावश आग लगने से हुई मौत का लग रहा था. लेकिन कुछ रोज बाद सविता ने इस मामले में हत्या की आशंका जताते हुए 5 लोगों को नामजद करा दिया.

जिस के बाद कासना पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 147, 302 के तहत वाद पंजीकृत कर नामजद आरोपियों की गिरफ्तारी की प्रक्रिया शुरू कर दी. लेकिन सभी आरोपी फरार हो गए. इस केस के जांच अधिकारी कासना थाने के एसएचओ समरजीत सिंह थे.

होंडा टू व्हीलर कंपनी में मैकेनिक की हैसियत से काम करने वाला चंद्रमोहन सामाजिक कार्यों तथा राजनीति में गहरी रुचि रखता था. इसी कारण वह आरटीआई कार्यकर्ता होने के साथ अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का सक्रिय सदस्य बन गया था.

चंद्रमोहन का जीवन सुख में बीत रहा था. 15 वर्ष पहले उस ने सविता से प्रेम विवाह किया था. उन के 2 बच्चे भी थे. निजी उपयोग के लिए चंद्रमोहन ने एक शेवरले कार भी खरीद ली थी.

चंद्रमोहन के सुखी जीवन में उथलपुथल तब हुई, जब प्रीति से उस की आंखें लड़ीं. आसपास रहने के कारण प्रीति और सविता की दोस्ती हो गई थी. सविता से मिलने के लिए प्रीति अकसर उस के घर पर आती थी. इसी दौरान चंद्रमोहन पत्नी की सहेली के आकर्षण में बंध गया. चंद्रमोहन उम्र में प्रीति से कई साल बड़ा था, वह विवाहित तथा 2 बच्चों का पिता भी, इस के बावजूद 22 साल की प्रीति उसे अपना बनाने का सपना देखने लगी.

पहले आंखोंआंखों में उन की रसीली बातें हुई, फिर कभी रूबरू तो कभी फोन पर बातें होने लगीं. चंद्रमोहन ने प्रेम निवेदन किया, तो प्रीति ने उसे सशर्त स्वीकार कर लिया. शर्त यह थी कि चंद्रमोहन उसे मौजमजे की चीज नहीं समझेगा. उस से विवाह कर के जीवन भर साथ निभाएगा.

15 साल पहले जब चंद्रमोहन ने सविता से प्रेम विवाह किया था, तब वह बेहद हसीन थी. लेकिन वक्त की धूप ने सविता के रंगरूप को झुलसाया, तो घरपरिवार की जिम्मेदारियां निभातेनिभाते वह निचुड़ सी गई. बनावसिंगार से भी वह दूर रहने लगी थी. इसी वजह से चंद्रमोहन को वह बासी और रूखीफीकी महसूस होने लगी थी.  वह खुद भी सविता से ऊबा हुआ था. यही कारण था कि उस ने प्रीति की विवाह वाली शर्त मंजूर कर ली.

बस इस के बाद दोनों की बेमेल प्रेम कहानी शुरू हो गई. प्रेम की पगडंडियां तय करतेकरते कुछ महीने बीत गए, तो प्रीति ने चंद्रमोहन पर विवाह के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया.

एक बीवी के होते चंद्रमोहन दूसरा विवाह नहीं कर सकता था. उसे मालूम था कि यह कानूनन जुर्म है. सविता को तलाक वह दे नहीं सकता था, क्योंकि करीबी रिश्तेदारों पर सविता की अच्छीखासी पकड़ थी. तलाक देता, तो सभी एकजुट हो कर चंद्रमोहन का गला दबाने आ जाते.

चंद्रमोहन समझ नहीं पा रहा था, किस तरह सविता से पीछा छुड़ाए. एक तो चंद्रमोहन को कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था, दूसरी ओर प्रीति विवाह के लिए दबाव बनाए हुए थी. विवाह में अनावश्यक विलंब होता देख प्रीति उसे जेल भिजवाने और पत्नी से दोनों का रिश्ता बताने की धमकी भी देने लगी.

चंद्रमोहन ऐसा कुछ नहीं चाहता था, जिस से उस का जीना हराम हो जाए. जब उसे कोई राह नहीं सूझी, तब उस ने प्रीति से गुप्तरूप से विवाह करने का निश्चय कर लिया.

28 नवंबर, 2013 को चंद्रमोहन प्रीति को दादरी स्थित आर्यसमाज मंदिर में ले गया और वहां उस से प्रेम विवाह कर लिया.

प्रीति खुश थी. उस ने मान लिया कि आज चंद्रमोहन ने मांग में सिंदूर भरा है, तो कल घर भी ले जाएगा. चंद्रमोहन इसलिए खुश था कि वक्ती तौर पर ही सही, कुछ समय के लिए मुसीबत से निजात तो मिल गई.

चंद्रमोहन व प्रीति अलगअलग रहते रहे. प्रीति ने अपने परिवार में रहते हुए किसी को अपनी शादी की भनक नहीं लगने दी. दूसरी तरफ चंद्रमोहन भी अपने परिवार से प्रीति के साथ की गई दूसरी शादी का राज छिपाता रहा.

जब शादी को कुछ सप्ताह बीत गए और कोई सकारात्मक रास्ता निकलता नहीं दिखा तो प्रीति ने चंद्रमोहन पर फिर दबाव बनाना शुरू कर दिया कि वह जल्द से जल्द अपने घर से सविता की छुट्टी करे और उसे घर ले जाए.

पहले प्रीति से प्रेम और फिर विवाह कर के चंद्रमोहन बुरी तरह फंस गया था. न वह सविता को घर से निकाल सकता था, न ही प्रीति के बगैर रह सकता था. प्रीति भी अब अपने मायके में रहने को राजी नहीं थी. प्रीति ने जब चंद्रमोहन पर लगातार दबाव बनाना शुरू किया तो बहुत सोचनेसमझने के बाद चंद्रमोहन ने एक खौफनाक योजना बना डाली.

चंद्रमोहन ने जो योजना बनाई थी, उसे अकेले अंजाम दे पाना संभव नहीं था. अत: योजना को अमली जामा पहनाने के लिए उस ने अपने साले विदेश शर्मा को नकद रुपए देने का लालच दिया. साथ ही उस ने सविता को उस के बदले होंडा कंपनी में नौकरी मिलने का लालच दे कर साजिश में शामिल कर लिया.

दरअसल, अंसल प्लाजा के आसपास एक विक्षिप्त युवक घूमा करता था. उस की और चंद्रमोहन की कदकाठी में काफी समानता थी. उस विक्षिप्त युवक को देख कर चंद्रमोहन के दिमाग में एक आइडिया आया था कि क्यों न वह उस पागल को मार कर स्वयं को मुर्दा साबित कर दें.

परिजन व पुलिस उसे मुर्दा मान लेंगे, तो कोई उस की तलाश नहीं करेगा. प्रीति को ले कर वह कहीं दूर चला जाएगा और आगे का उस के संग जीवन गुजारेगा.

प्रीति भी चंद्रमोहन की इस योजना से सहमत हो गई. आपसी विचारविमर्श के बाद 30 अप्रैल, 2014 को योजना को अंतिम रूप दे दिया गया और अगले दिन यानी 1 मई की रात को उसे क्रियान्वित करने का निर्णय लिया गया. योजना को अंजाम देने के लिए चंद्रमोहन ने तुगलपुर स्थित पैट्रोल पंप से एक डिब्बे में 3 लीटर पैट्रोल भरवा कर कार में रख लिया.

1 मई की रात को 11 बजे सविता का भाई विदेश अंसल प्लाजा के आसपास घूमने वाले पागल युवक को बहलाफुसला कर मोटरसाइकिल पर बैठा लाया. चंद्रमोहन अपनी कार में बैठा पहले से उस का इंतजार कर रहा था.

चंद्रमोहन ने एक सुनसान जगह पर कार रोकी और विक्षिप्त युवक को पिछली सीट पर बैठा कर अपनी बेल्ट से उस का गला घोंट कर मार डाला.

इस के बाद चंद्रमोहन ने अपने कपडे़ उतार कर विदेश को दिए, जिन्हें विदेश ने पागल के पहने कपड़े उतार कर उसे चंद्रमोहन के कपड़े पहना दिए. अपना फोन व पर्स भी चंद्रमोहन ने उस की जेब में रख दिया.

चंद्रमोहन ने पहले से ही अपने लिए एक जोड़ी कपड़े गाड़ी में रख रखे थे, जो उस ने खुद पहन लिए. इस के बाद चंद्रमोहन और विदेश ने मृत पड़े विक्षिप्त युवक का शरीर उठा कर गाड़ी की पिछली सीट पर रखा और कार को ड्राइव करते हुए अंसल प्लाजा के निकट होंडा कंपनी के सामने वाली जेपी ग्रीन वाली रोड पर ले गए.

पागल युवक के मृत शरीर को उन्होंने पिछली सीट से हटा कर ड्राइविंग सीट पर बैठाया गया और फिर सीट बेल्ट से उसे कस दिया, ताकि वह जीवित भी हो तो कार से उतर कर भाग ना सके. तब तक आधी रात का वक्त हो चला था. चंद्रमोहन और विदेश ने प्लास्टिक की कैन में भरा पैट्रोल कार पर चारों तरफ और भीतर की सीटों के साथ विक्षिप्त युवक पर अच्छी तरह से छिड़का. इस के बाद उन्होंने कार में आग लगा दी.

चंद पलों में ही कार धूधू कर के जलने लगी. कार को धूधू जलता देख दोनों मोटरसाइकिल से फरार हो गए. आधी रात का वक्त था. वहां से गुजरती कुछ गाडि़यों ने जब कार जलती देखी तो रुक गए. लेकिन तब तक कार इतनी बुरी तरह जल चुकी थी कि उसे बुझाने की हिम्मत किसी की नहीं हुई. किसी ने फायर ब्रिगेड को फोन कर दिया.

सूचना मिलने के 15-20 मिनट बाद दमकल की गाड़ी भी मौके पर पहुंच गई. कुछ देर में आग पर काबू तो पा लिया गया. लेकिन तब तक कार जल कर कोयला हो चुकी थी. दमकलकर्मियों ने देखा कि कार की ड्राइविंग सीट पर बैठे एक व्यक्ति की भी जलने से मौत हो गई थी.

मौके से फरार होने के बाद विदेश तो अपने घर चला गया, जबकि चंद्रमोहन ने ट्रेन से बंगलुरु की राह पकड़ ली. बंगलुरु पहुंच कर चंद्रमोहन ने सब से पहले अपने सिर के बाल और मूंछ मुंडवाई. फिर अपने शातिरदिमाग का इस्तेमाल कर जोड़तोड़ से उस ने नितिन शर्मा के नाम की एक आईडी बनवा ली.

नई आईडी बनवाते समय उस ने अपना पता नलवा, हिसार, हरियाणा दर्ज कराया. उस के बाद चंद्रमोहन ने अपनी पहचान से जुड़े दूसरे नकली दस्तावेज भी तैयार करवा लिए. इतना सब होने के बाद चंद्रमोहन ने अगले 4 दिनों में इन तमाम दस्तावेजों के बल पर होंडा टू व्हीलर कंपनी में नौकरी भी पा ली.

बंगलुरु में अज्ञातवास के दौरान चंद्रमोहन सेलफोन के माध्यम से प्रीति के साथ निरंतर संपर्क में रहा. आईडी बन जाने के बाद 7 जून को चंद्रमोहन प्रीति को ले जाने के लिए दिल्ली आया.

फोन के माध्यम से योजना पहले ही बन चुकी थी. योजना के तहत 7 जून की रात 8 बजे प्रीति अपने घर से इस तरह का नाटक कर के लापता हुई ताकि सब को लगे उस का अपहरण हो गया है.

प्रीति अपने लापता होने की घटना को अपहरण का रंग देना चाहती थी, इसलिए घर से बाहर निकलते ही उस ने हलक से हल्की सी चीख भी निकाली. किस्मत ने भी उस वक्त उस का साथ दिया और बिजली गुल हो गई.

घर से कुछ दूर पर ही प्रीति को एक आटोरिक्शा मिल गया, जिसे पकड़ कर वह दिल्ली पहुंच गई, जहां तय स्थान पर वह चंद्रमोहन से मिली. चंद्रमोहन ने पहले ही नई दिल्ली से बंगलुरु जाने वाली कर्नाटक एक्सप्रेस में 2 बर्थ आरक्षित करा रखी थीं.

दोनों सीधे नई दिल्ली स्टेशन जा कर ट्रेन में सवार हो गए और अगले दिन बंगलुरु पहुंच गए. बंगलुरु पहुंचने के बाद चंद्रमोहन ने नकली आईडी से 2 सिम कार्ड खरीदे. वे जिन नंबरों को इस्तेमाल करते थे, वे नंबर दोनों ने किसी को नहीं दिए थे.

रिमांड अवधि में जब पुलिस ने चंद्रमोहन से संतराम को फोन करने का कारण पूछा, तो चंद्रमोहन ने बताया कि वह पुलिस को गुमराह करना चाहता था, इसीलिए उस ने पीसीओ पर जा कर संतराम को फोन कर के कहा था कि उन की बेटी उस के पास है.

लेकिन उस वक्त चंद्रमोहन ने यह कल्पना तक नहीं की थी कि उस की यही गलती उस की गिरफ्तारी का आधार बन जाएगी. क्योंकि इसी एक फोन काल का पीछा करतेकरते पुलिस प्रीति की तलाश में बंगलुरु पहुंच गई बंगलुरु में पुलिस जब प्रीति तक पहुंची तो पुलिस के हाथ चंद्रमोहन की गरदन तक पहुंच गए.

पुलिस रिमांड में हुई पूछताछ के दौरान इस मामले के जांच अधिकारी कासना थानाप्रभारी समरजीत सिंह ने 31 अगस्त, 2014 को चंद्रमोहन की निशानदेही पर जेपी ग्रीन की दीवार से 200 मीटर की दूरी पर फेंकी गई वह प्लास्टिक की कैन भी बरामद कर ली, जिस में पैट्रोल ला कर चंद्रमोहन ने पागल व्यक्ति के ऊपर डाल कर आग लगाई थी.

पुलिस ने अदालत में बतौर गवाह पैट्रोल पंप के उस सेल्समैन को भी पेश किया, जिस से चंद्रमोहन ने कैन में पैट्रोल खरीद कर भरवाया था.

पुलिस ने इस मामले में चंद्रमोहन के साले विदेश को भी हत्या में सहयोग करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. बाद में तीनों आरोपियों को आवश्यक पूछताछ के बाद जेल भेज दिया गया.

जांच अधिकारी समरजीत सिंह ने 23 नवंबर, 2014 को एक विक्षिप्त युवक को कार में जला कर हत्या करने के आरोप में और खुद की पहचान छिपा कर दूसरे राज्य में छिपने के मुकदमे में हत्या की धारा 302 के साथ भादंसं की धारा 201, 202, 120बी, 420, 467, 468 व 471 की धारा भी जोड़ दी और आरोपपत्र अदालत में पेश कर दिया.

आरोपपत्र पर सुनवाई के दौरान ही बचावपक्ष की दलीलों के आधार पर अभियुक्ता प्रीति और विदेश के खिलाफ लगाए गए कुछ आरोपों को अदालत ने खारिज कर दिया था. बाद में मार्च, 2016 में यह वाद सुनवाई के लिए सत्र न्यायालय में भेज दिया गया.

इस मामले की जांच के दौरान पुलिस ने अदालत में चंद्रमोहन द्वारा कालोर की होंडा कंपनी में नौकरी पाने के लिए दी गई नकली आईडी व दूसरे दस्तावेज साक्ष्य के तौर पर पेश किए, जिस से उस के खिलाफ अपनी पहचान छिपाने के लिए जालसाजी करने और नकली दस्तावेज तैयार करने के आरोप सही पाए गए.

सरकारी वकील जिला सहायक शासकीय अधिवक्ता हरीश सिसोदिया ने अभियोजन की तरफ से ठोस सबूत दिए, लेकिन अभियोजन पक्ष इस बात को साबित नहीं कर पाया कि इस मामले में चंद्रमोहन के साले विदेश की कोई भूमिका थी. इसलिए अदालत ने उसे दोषी न पा कर बरी कर दिया.

अभियोजन की तरफ से चंद्रमोहन और प्रीति की दादरी के आर्यसमाज मंदिर में हुई शादी के प्रमाण भी अदालत में पेश किए गए. इतना ही नहीं, अभियोजन पक्ष की तरफ से ऐसे कई ठोस साक्ष्य और गवाह अदालत में पेश गए, जिस से ये साबित हो गया कि चंद्रमोहन ने एक साजिश के तहत अपनी प्रेमिका के साथ रहने के लिए अपनी मृत्यु का झूठा नाटक रचा.

खुद को मरा साबित करने के लिए चंद्रमोहन ने एक विक्षिप्त व्यक्ति की हत्या कर उस के शव को अपनी कार में डाल कर कार समेत जला दिया. चूंकि प्रीति को चंद्रमोहन के अपराध की जानकारी थी और उस ने ये जानकारी छिपाई, इसलिए उसे 6 माह के कारावास की सजा मिली.

प्रीति जेल से जमानत मिलने के पूर्व पहले ही न्यायालय की तरफ से मिली सजा काट चुकी थी, इसलिए उसे जेल नहीं जाना पड़ा. जबकि विदेश को इस मामले में अदालत ने साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया.

—कथा पुलिस की जांच व न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय के तथ्यों पर आधारित है

 

बेसमेंट में छिपा राज

उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के थाना चितबड़ा के अंतर्गत फिरोजपुर गांव के रहने वाले नरेंद्र कुमार सिंह पेशे से डाक्टर हैं.  नरेंद्र सिंह चितबड़ा में ही अपना क्लिनिक चलाते हैं. उन के परिवार में उन की पत्नी आशा सिंह के अलावा 3 बेटे हैं.

सब से बड़े बेटे मनीष कुमार सिंह ने ग्रैजुएशन की और वह दिल्ली आ गया. दिल्ली आ कर मनीष ने ट्रांसपोर्ट का काम शुरू कर दिया. वह टैक्सियां किराए पर चलवाने लगा. मनीष शादीशुदा है. मंझला बेटा पंकज 4 साल पहले गाजियाबाद आया और यहां जीटी रोड पर स्थित इंस्टीट्यूट औफ मैनेजमेंट एजुकेशन में एलएलबी में दाखिला ले लिया.

पंकज का एक छोटा भाई भी है, जो इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद बंगलुरु की एक निजी कंपनी में नौकरी कर रहा है. नरेंद्र सिंह की जिंदगी में सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन इस साल अक्तूबर महीने में अचानक ही उन की जिंदगी में भूचाल आ गया.

10 अक्तूबर, 2019 की सुबह करीब 10 बजे का वक्त था. पंकज का भाई मनीष साहिबाबाद थाने पहुंचा. उस वक्त ड्यूटी औफिसर के रूप में एसआई जितेंद्र कुमार मौजूद थे. मनीष ने उन्हें बताया कि उस का छोटा भाई पंकज गिरधर एनक्लेव स्थित नवीन त्यागी के मकान नंबर 109 में किराए पर रहता है. वह 9 अक्तूबर की सुबह करीब 10 बजे से लापता है.

मनीष ने एसआई जितेंद्र कुमार को बताया कि 8 अक्तूबर की शाम को उस की पंकज से फोन पर बात हुई थी, तब तक वह ठीक था. अगले दिन यानी 9 अक्तूबर को जब उस ने पंकज को दोपहर 12 बजे फोन किया तो उस का मोबाइल स्विच्ड औफ मिला.

मनीष ने बताया कि उस ने सोचा या तो पंकज के फोन की बैटरी खत्म हो गई होगी या वह क्लास में होगा. यही सोच कर उस ने ज्यादा परवाह नहीं की. लेकिन दोपहर बाद जब 3 बजे से रात 8 बजे तक कई बार फोन करने पर भी पंकज का फोन स्विच्ड औफ मिला तो उसे घबराहट होने लगी.

मनीष ने बताया कि पंकज नवीन त्यागी के जिस फ्लैट में रहता था, उस में उस का एक रूम पार्टनर संजय भी था. संजय भी पंकज के साथ इंस्टीट्यूट औफ मैनेजमेंट एजुकेशन से एलएलबी की पढ़ाई कर रहा था. उस ने संजय से अपने भाई पंकज के बारे में पूछा कि वह कहां है और उस का फोन क्यों नहीं लग रहा?

तब संजय ने बताया कि पंकज 9 अक्तूबर की सुबह करीब पौने 10 बजे उस से यह कह कर फ्लैट से निकला था कि वह अपने साइबर कैफे जा रहा है. दोपहर में जब वह कालेज के लिए निकले तो उसे वहीं पर मिले. पंकज ने एक साइबर कैफे भी खोल रखा था. संजय ने बताया कि जब वह साढ़े 12 बजे साइबर कैफे पहुंचा तो वहां ताला लटका हुआ मिला.

संजय को आसपड़ोस के लोगों ने बताया कि आज तो कैफे खुला ही नहीं.

संजय को समझ नहीं आया कि दुकान खोलने के लिए आया पंकज उसे बिना बताए कहां चला गया. यही जानने के लिए उस ने पंकज को फोन किया तो उस का मोबाइल स्विच्ड औफ मिला.

चूंकि संजय को कालेज पहुंचना था इसलिए उस ने उस वक्त यही सोचा कि शायद पंकज को कोई मिल गया होगा और वह उसे बिना बताए कहीं चला गया होगा. यह सोच कर वह कालेज चला गया.

शाम को 5 बजे वह जब कालेज से लौटा तो उस ने पाया कि पंकज का साइबर कैफे तब भी बंद था.

फ्लैट पर पहुंचने के बाद संजय ने खाना बनाया और पंकज का इंतजार करने लगा. इस दौरान उस ने कई बार पंकज के मोबाइल पर फोन किया, लेकिन हर बार मोबाइल स्विच्ड औफ मिला.

अब संजय को भी पंकज की चिंता होने लगी थी. वह सोच ही रहा था कि क्या करे, इसी बीच पंकज के भाई मनीष का फोन आ गया तो उस ने सारी बात मनीष को बता दी. क्योंकि रात हो चुकी थी. इसलिए मनीष को यह नहीं सूझा कि वह क्या करे.

मनीष ने रात में ही पंकज के लापता होने की बात अपने पिता डा. नरेंद्र कुमार सिंह को बताई तो वे भी चिंतित हो उठे. पिता ने अनिष्ट की आशंका जताते हुए मनीष से अगली सुबह थाने जा कर इस संबंध में रिपोर्ट दर्ज कराने को कहा.

इस के बाद अगली सुबह यानी 10 अक्तूबर को मनीष थाना साहिबाबाद पहुंचा और ड्यूटी पर तैनात एसआई जितेंद्र कुमार को अपने भाई पंकज के लापता होने की सारी बात विस्तार से बता दी.

इस के बाद मनीष की तहरीर पर पुलिस ने भादंसं की धारा 365 के अंतर्गत अज्ञात अपराधियों के खिलाफ मुकदमा पंजीकृत कर लिया.

साहिबाबाद थाने के थानाप्रभारी जे.के. सिंह के निर्देश पर एसआई जितेंद्र कुमार ने ही जांच का काम शुरू कर दिया.

अपहरण के ऐसे मामलों में पुलिस अकसर पीडि़त के मोबाइल फोन की काल डिटेल से ही उस तक पहुंचने का प्रयास करती है. एसआई जितेंद्र कुमार ने पंकज के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा ली. उन्होंने कांस्टेबल संजीव, विपिन और प्रवेश को ऐसे लोगों की सूची तैयार करने के काम पर लगा दिया, जिन से पंकज की सब से ज्यादा बातचीत होती थी और अंतिम बार उस ने किन लोगों के साथ बातचीत की.

2 दिन गुजर गए और पुलिस की अब तक की जांच बेनतीजा रही.

इधर मनीष के पिता डा. नरेंद्र सिंह भी बलिया से उस के पास दिल्ली आ गए थे. मनीष के कुछ परिजन और रिश्तेदार भी पंकज के लापता होने की जानकारी मिलने पर गाजियाबाद पहुंच गए. सभी लोग अपनेअपने तरीके से पंकज की तलाश में जुटे थे.

इसी सिलसिले में मनीष 12 अक्तूबर की सुबह एक बार फिर गिरधर एनक्लेव पहुंचा जहां पंकज रहता था. मनीष के दिमाग में न जाने क्यों कल से यह बात आ रही थी कि उसे मुन्ना से पंकज के बारे में जानकारी करने के लिए मिलना चाहिए.

दरअसल, 3 महीने पहले पंकज 15 दिन के लिए गिरधर कालोनी के ही मकान नंबर 51 के मालिक मुन्ना के घर में किराए पर रहा था.

मुन्ना से पंकज के काफी अच्छे संबंध थे. क्योंकि पंकज मुन्ना के 2 बेटों और 2 बेटियों को ट्यूशन पढ़ाता था. इन्हीं संबंधों के नाते मुन्ना ने पंकज को अपना फ्लैट कुछ दिन के लिए रहने को दे दिया था. मुन्ना के मकान में पंकज 15 दिन ही रहा था. उस ने उस का मकान खाली कर दिया और नवीन त्यागी के मकान में जा कर रहने लगा. वहां उस ने साथ में पढ़ने वाले एक दोस्त  पंकज को भी पार्टनर के रूप में साथ रख लिया था.

मनीष को पता था कि मुन्ना और उस के परिवार से पंकज के काफी अच्छे संबंध थे. उस ने सोचा कि क्यों न एक बार मुन्ना और उस के परिवार से मिल कर पता कर ले. हालांकि जिस दिन मनीष ने पंकज के अपहरण का मुकदमा दर्ज कराया था, उस दिन भी वह मुन्ना से मिला था. मुन्ना ने पंकज के इस तरह लापता होने पर काफी आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा था कि वह तो बेहद शरीफ और अच्छा लड़का है.

लेकिन 12 तारीख की सुबह जब मनीष मुन्ना के घर पहुंचा तो वहां ताला लटका मिला. मुन्ना के मकान में जो किराएदार रहते थे, उन के परिवार की महिलाएं तो मिलीं, लेकिन पुरुष सदस्य काम पर जा चुके थे. पूछने पर महिलाओं ने मनीष को बताया कि मकान मालिक मुन्ना तो अपने परिवार के साथ 11 अक्तूबर  की सुबह से ही वहां नहीं है.

मुन्ना के 3 मंजिला मकान में ग्राउंड फ्लोर पर वह खुद रहता था, जबकि पहली और दूसरी मंजिल पर किराएदार रहते थे. चौथी मंजिल पर भी एक कमरा बना था जो खाली था. पंकज उसी कमरे में कुछ दिन रहा था.

जब मनीष ने मुन्ना के फ्लैट पर ताला लटका देखा तो वह असमंजस में पड़ गया कि आखिर पूरा परिवार कहां चला गया.

मनीष समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे, क्या न करे. इसी दौरान उस की नजर ग्राउंड फ्लोर पर उस हिस्से पर पड़ी, जहां से बेसमेंट की तरफ सीढि़यां उतर रही थीं. सीढि़यों से उतरते हुए मनीष बेसमेंट में पहुंच गया. वहां काफी अंधेरा था. अचानक उसे एक अजीब सी गंध का एहसास हुआ.

मनीष ने अपने मोबाइल की टौर्च जला कर देखा तो वहां कई जगह इधरउधर सीमेंट बिखरा था और कबाड़ भी फैला था. ऐसा लग रहा था था कि वहां कुछ रोज पहले ही राजमिस्त्री ने कोई काम किया है.

उसे जो गंध आ रही थी, ऐसी गंध हमेशा किसी जानवर या मरे हुए इंसान से उठती है. लेकिन कमरे में ऐसा कुछ नहीं दिख रहा था. मनीष ने जांच अधिकारी जितेंद्र कुमार को फोन कर के सारी बात बता दी.

एसआई जितेंद्र कुमार, हैडकांस्टेबल कृष्णवीर और रविंद्र को ले कर कुछ ही देर में मुन्ना के मकान पर पहुंच गए.

पुलिस जब बेसमेंट में पहुंची तो बदबू का अहसास उन्हें भी हुआ. मोबाइल टौर्च से पर्याप्त उजाला होने पर एक सिपाही ने कमरे में लगा बिजली का बोर्ड तलाश कर बंद पड़ी लाइटेंजला दीं, जिस से कमरा प्रकाश से भर गया. अब उस हालनुमा कमरे में सब कुछ साफसाफ दिखाई पड़ रहा था. कमरे के बीचोबीच ढेर सारा कबाड़ पड़ा था. कमरे में जहांतहां सीमेंट और बदरपुर फैला हुआ था.

जांच अधिकारी जितेंद्र कुमार ने सब से पहले अपने सहयोगी सिपाहियों की मदद से मकान में रहने वाले किराएदारों की मौजूदगी में बेसमेंट में बने दोनों कमरों के ताले तोड़े. लेकिन दोनों कमरों में ऐसी कोई चीज नहीं मिली, जिस से पता चलता कि बदबू कहां से आ रही है.

पुलिस ने हाल के बीचोबीच पड़ा कबाड़ का सामान हटाया तो देखा उन के नीचे फूस बिछी हुई थी. जब वहां से फूस को हटाया गया तो नीचे टाट की बोरियां बिछी मिलीं.

पुलिस टीम ने टाट की इन बोरियों को भी हटाया, तो उस के नीचे काफी बड़े क्षेत्र में फर्श के ताजा प्लास्टर होने के निशान साफ दिख रहे थे. टाट की बोरियां हटाने के बाद कमरे में आ रही दुर्गंध और भी ज्यादा तेज हो गई थी.

जितेंद्र कुमार को लगने लगा कि हो न हो, इस फर्श के नीचे ऐसा कुछ जरूर दबा है जिस की वजह से वहां बदबू फैली हुई है.

जितेंद्र कुमार ने बेसमेंट से बाहर आ कर थानाप्रभारी जे.के. सिंह को फोन पर मुन्ना के मकान में इस संदिग्ध गतिविधि के बारे में बताया तो थानाप्रभारी भी कुछ अन्य पुलिसकर्मियों के साथ गिरधर एनक्लेव में मुन्ना के मकान पर पहुंच गए. तब तक जितेंद्र कुमार ने अपने एक सिपाही को भेज कर 2-3 मजदूर बुलवा लिए थे.

थानाप्रभारी जे.के. सिंह ने निरीक्षण किया तो संदेह की सब से बड़ी बात यह मिली कि जिस स्थान पर प्लास्टर किया गया था, वहां दबाने पर जमीन दब रही थी. ऐसा लग रहा था कि यह प्लास्टर 2-3 दिन पहले ही किया गया हो और इस का भराव ठीक से नहीं किया गया था.

बहरहाल, थानाप्रभारी जे.के. सिंह को भी मामला संदिग्ध लगा. सीओ डा. राकेश कुमार मिश्रा और एसडीएम को सारी बात बता कर मौके पर आने का अनुरोध किया.

गिरधर एनक्लेव में एक के बाद एक पुलिस की गाडि़यां आने के कारण मुन्ना के मकान के बाहर कालोनी के लोगों की भीड़ जुट गई.

सीओ राकेश मिश्रा और एसडीएम के आने के बाद मोहल्ले के कुछ लोगों को गवाह बना कर उस जगह फर्श की खुदाई कराई गई, जहां ताजा प्लास्टर हुआ था.

करीब 4 फुट की खुदाई होते ही पुलिस की आंखें फटी रह गईं. 6 फुट गहरे और 2 फुट चौडे़ गड्ढे की मिट्टी निकाली तो वहां से एक लाश निकली. मजदूरों की मदद से वह लाश गड्ढे से बाहर निकाली. उस के चेहरेमोहरे से मिट्टी हटा कर देखा तो वह लाश पंकज की ही निकली. लाश देखते ही मनीष ‘मेरा भाई पंकज’ कहते हुए सिर पकड़ कर वहीं जमीन पर बैठ गया. पंकज के गले में रस्सी बंधी थी, जिस से जाहिर था कि उसी रस्सी से उस का गला दबाया गया था.

थोड़ी ही देर में पंकज का रूम पार्टनर संजय भी मौके पर आ गया. लाश के शरीर पर जो कपड़े थे, उन्हें देख कर संजय ने भी बता दिया कि पंकज यही कपड़े पहन कर 9 तारीख की सुबह घर से निकला था.

लाश मुन्ना के घर के बेसमेंट में मिली थी और मुन्ना अपने परिवार के साथ घर से लापता था. लिहाजा पहली नजर में यह शक हो रहा था कि कहीं न कहीं इस हत्या के पीछे मुन्ना और उस के परिवार का ही हाथ है.

सूचना पा कर एसएसपी सुधीर कुमार सिंह और एसपी (सिटी) मनीष कुमार मिश्रा भी घटनास्थल पर पहुंच गए. जरूरी जांच करने के बाद पंकज का शव पोस्टमार्टम के लिए गाजियाबाद की मोर्चरी भिजवा दिया. पंकज का शव मिलने की बात सुन कर उस के पिता और दूसरे रिश्तेदार भी गाजियाबाद आ गए.

इस बीच एसएसपी ने पूरा मामला जानने के बाद पंकज सिंह हत्याकांड की जांच के लिए सीओ डा. राकेश कुमार मिश्रा के निर्देशन में एक विशेष जांच टीम का गठन कर दिया. टीम में इंसपेक्टर जे.के. सिंह के अलावा एसआई जितेंद्र कुमार, राजीव बालियान, हैडकांस्टेबल कृष्णवीर, रविंद्र, कांस्टेबल संजीव सिंह, विपिन, प्रवेश और महिला हैडकांस्टेबल सुमित्रा को शामिल किया गया. टीम का नेतृत्व इंसपेक्टर जे.के. सिंह कर रहे थे.

जांच का काम हाथ में लेते ही इंसपेक्टर जे.के. सिंह ने रिपोर्ट में भादंवि की धारा 302 और जोड़ दी. टीम ने सब से पहले गिरधर एनक्लेव में लगे सीसीटीवी कैमरे की जांच कराई. एक फुटेज में पंकज सुबह करीब सवा 9 बजे लोअर पहने हुए सेब खाता हुआ कालोनी के बाहर से भीतर आता हुआ दिखा था. लेकिन उस के बाद वह कालोनी से बाहर की तरफ निकलते नहीं दिखा. इलाके के कुछ प्रत्यक्षदर्शियों ने भी पंकज को मुन्ना के घर की तरफ जाते देखा था.

जांचपड़ताल की इसी कड़ी में जब पंकज के मोबाइल की काल डिटेल्स की छानबीन की गई तो पता चला कि सुबह सवा 10 बजे पंकज के मोबाइल की लोकेशन झंडापुर टावर की थी. यह टावर गिरधर एनक्लेव के पीछे बने रेलवे ट्रैक के आसपास है. जो मुन्ना के घर के काफी समीप है. इस से यह बात स्पष्ट हो गई कि जिस समय पंकज के साथ कोई हादसा हुआ, उस समय वह या तो मुन्ना के घर के आसपास था या घर के भीतर था.

अब तक आए सभी साक्ष्य इस बात की गवाही दे रहे थे कि पंकज की हत्या मुन्ना और उस के परिवार के किसी सदस्य ने मिल कर की है.

पंकज की काल डिटेल्स में यह बात भी सामने आई कि पंकज के फोन पर अकसर मुन्ना की काल आतीजाती थी. पंकज और मुन्ना के वाट्सऐप पर भी मैसेज का काफी आदानप्रदान होता था, लेकिन वाट्सऐप चैट में क्या था, इसे जानने के लिए दोनों के मोबाइल फोन का होना जरूरी था.

पता चला कि मुन्ना बिहार के नवादा जिले का रहने वाला है. किसी तरह पुलिस ने मुन्ना का पता हासिल कर लिया, जिस के बाद इंसपेक्टर जे.के. सिंह ने एसआई राजीव बालियान और जितेंद्र कुमार की अगुवाई में एक टीम नवादा (बिहार) के लिए रवाना कर दी.

20 अक्तूबर को पुलिस टीम जब नवादा में मुन्ना के घर पहुंची, तो पता चला कि मुन्ना अपने परिवार के साथ अपने गांव में आया जरूर था, लेकिन 2 दिन पहले ही वह घर जाने की बात कह कर वापस चला गया.

काफी कुरेदने के बावजूद भी पुलिस टीम को मुन्ना के रिश्तेदारों से यह बात पता नहीं चल सकी कि मुन्ना इस समय कहां गया है. थकहार कर साहिबाबाद थाने की पुलिस टीम वापस लौट आई.

इसी दौरान साहिबाबाद थाने में एसएसआई प्रमोद कुमार की नियुक्ति हुई तो इंस्पेक्टर जे.के. सिंह से ले कर पंकज हत्याकांड की जांच का काम उन के सुपुर्द कर दिया गया. प्रमोद कुमार ने जांच का काम हाथ में लेते ही अब तक हुई जांच के बारे में पूरा अध्ययन किया.

जांच अधिकारी प्रमोद कुमार ने टीम के साथ उन तमाम संभावित ठिकानों पर दबिशें देनी शुरू कर दीं, जहां मुन्ना या उस के परिवार के मिलने की संभावना थी. लेकिन मुन्ना चालाक था. पुलिस जहां भी पहुंचती, वह उस से पहले ही उस ठिकाने से निकल लेता.

पुलिस को मुन्ना के कुछ ऐसे करीबी लोगों के मोबाइल नंबर मिल गए, जिन से मुन्ना के न सिर्फ कारोबारी संबंध थे, बल्कि वह उन के साथ काफी उठताबैठता भी था.

पुलिस ने उन नंबरों को सर्विलांस पर लगा दिया. आखिर इस से पुलिस को 2 नवंबर, 2019 को जानकारी मिली कि मुन्ना अपने परिवार के साथ साहिबाबाद रेलवे स्टेशन पर मौजूद है और वहां से वह ट्रेन पकड़ कर कोलकाता जाने वाला है.  पुलिस टीम तत्काल साहिबाबाद रेलवे स्टेशन पहुंच गई और उसे दबोच लिया.

दरअसल हुआ यूं था कि मुन्ना ने नोएडा में अपने एक दोस्त, जिस के औफिस में वह प्रौपर्टी डीलिंग का काम देखता था, को फोन कर के अपने मुसीबत में होने की बात बताई. उस ने दोस्त से कुछ पैसे साहिबाबाद रेलवे स्टेशन पर भिजवाने के लिए कहा, जहां वह ट्रेन का इंतजार कर रहा था. पुलिस टीम ने जब मुन्ना के उस दोस्त से पूछताछ की तो उस ने सच उगल दिया और पुलिस मुन्ना तक पहुंच गई.

मुन्ना और उस के परिवार को थाने ला कर जब सीओ राकेश कुमार मिश्रा के समक्ष पूछताछ हुई तो कुछ ही देर में पंकज की हत्या का सच सामने आ गया. मुन्ना ने कबूल कर लिया कि उस ने अपनी पत्नी सुलेखा और छोटी बेटी अंकिता के साथ मिल कर पंकज की हत्या की थी.

मुन्ना, सुलेखा और अंकिता से पूछताछ के बाद पंकज हत्याकांड की जो कहानी सामने आई वह इस प्रकार निकली—

दिल्ली से सटे साहिबाबाद शहर में स्थित गिरधर एनक्लेव में रहने वाला हरिओम उर्फ मुन्ना कुछ साल पहले तक कबाड़ी का काम करता था. कबाड़ के काम से उसे खूब आमदनी हुई. जिस से उस ने गिरधर एनक्लेव में प्लौट खरीद कर उस पर 3 मंजिला मकान बना लिया. मकान के 2 मंजिल उस ने किराए पर दे दिए, जिस से अच्छीखासी आमदनी होने लगी.

3 साल पहले मुन्ना ने कबाड़ का काम बंद कर दिया और कुछ दिन खाली रहा. लेकिन 2 साल पहले उस ने नोएडा में अपने एक दोस्त, जो प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था, के दफ्तर पर जा कर बैठना शुरू कर दिया. जहां वह दोस्त के प्रौपर्टी डीलिंग के काम को संभालता था. प्रौपर्टी की जो डील वह खुद करता था उस में दोस्त को वह हिस्सा देता था.

मुन्ना के परिवार में पत्नी सुलेखा के अलावा 2 बेटे और 2 बेटियां थीं. मुन्ना की सब से बड़ी बेटी अनीशा (21) अंकिता (19) बेटा दीपक (17) और राकेश (15) साल के हैं.

उस की सब से बड़ी बेटी अनीशा शारीरिक रूप से थोड़ी कमजोर थी और अकसर बीमार रहती थी. यही कारण रहा कि 2-3 साल पहले 10वीं पास करने के बाद उस की पढ़ाई छूट गई. उस से छोटी बेटी अंकिता स्वस्थ होने के साथ बेहद खूबसूरत भी थी. लेकिन बड़ी बहन के बीमार होने के कारण मुन्ना ने उस की तीमारदारी के लिए अंकिता की पढ़ाई भी 10वीं के बाद छुड़वा दी.

हालांकि दोनों बेटों की पढ़ाई लगातार जारी रही. बड़ा बेटा दीपक इस बार 12वीं कक्षा में था. पिछले साल जब अनीशा स्वस्थ हो गई तो मुन्ना ने अनीशा और अंकिता का एक साथ 11वीं कक्षा में एडमिशन करा दिया.

क्योंकि मुन्ना के चारों ही बच्चे पढ़नेलिखने में थोड़ा कमजोर थे. संयोग से सत्यम एनक्लेव में अपने साइबर कैफे में ट्यूशन पढ़ाने वाला पंकज सिंह एक दिन मुन्ना के संपर्क में आया. पता चला कि मुन्ना ने पंकज से अपने चारों बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने के बारे में बात की.

करीब 5 महीने पहले मुन्ना के चारों बच्चे ट्यूशन पढ़ने के लिए पंकज के साइबर कैफे पर जाने लगे. पंकज सुबह करीब साढ़े 9 बजे तक साइबर कैफे खोल लेता था. इस के बाद वह साढ़े 12 बजे तक बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता था. इस दौरान अगर कोई टाइपिंग का वर्क ले कर दुकान पर आ जाता, तो वह उस का भी काम कर देता था.

कुल मिला कर पंकज वकालत की पढ़ाई करने के साथसाथ अपना खर्च चलाने के लिए साइबर कैफे और ट्यूशन पढ़ाने का काम करता था, जिस से उस की जिंदगी आराम से गुजर रही थी. जब से मुन्ना के चारों बच्चे पंकज से ट्यूशन पढ़ने लगे थे, तब से उस के कालेज जाने के बाद चारों बच्चों में से ही कोई उस के साइबर कैफे पर बैठ कर उस का संचालन करते थे. शाम को कालेज से आने के बाद पंकज फिर साइबर कैफे संभाल लेता था.

पंकज पढ़ालिखा और आकर्षक व्यक्तित्व का नौजवान था. अंकिता यूं तो पंकज से उम्र में काफी छोटी थी लेकिन डीलडौल और अपने सुडौल बदन की वजह से वह एकदम जवान दिखती थी. न जाने कब और कैसे अंकिता ट्यूशन पढ़तेपढ़ते पंकज के करीब आती चली गई.

यही कारण था कि पंकज से जब भी एकांत में वह मिलती तो गाहेबगाहे पंकज से कुछ ऐसी निजी बातें करने लगती, जिस से धीरेधीरे पंकज भी उस की तरफ आकर्षित हो गया. जल्द ही उन दोनों की नजदीकियों ने प्रेम का रूप धारण कर लिया.

अब कुछ ऐसा होने लगा कि जब भी दोनों को थोड़ा सा एकांत मिलता तो वे एकदूसरे से प्यार भरी बातें करते. कभीकभी झूठ बोल कर अंकिता पंकज के साथ पिक्चर देखने भी चली जाती और पंकज उसे रेस्टोरेंट्स में लंच या डिनर कराने भी ले जाता.

इसी दौरान 3 महीने पहले अचानक पंकज के मकान मालिक ने रिपेयर कराने के लिए जब अपना फ्लैट खाली कराया तो अंकिता के कहने पर मुन्ना के तीसरे फ्लोर पर स्थित कमरे में आ कर रहने लगा. मुन्ना के घर में आ कर पंकज की अंकिता के साथ नजदीकी और ज्यादा बढ़ गई. दोनों के बीच कुछ ऐसे रिश्ते भी बन गए जो शादी से पहले एक लड़की और लड़के के बीच नहीं होने चाहिए.

हालांकि अभी तक मुन्ना या उस के परिवार के किसी सदस्य को दोनों के संबंध की भनक नहीं लगी थी. लेकिन 15 दिन बाद अचानक पंकज ने मुन्ना का मकान छोड़ दिया. वह नवीन त्यागी के मकान में जा कर रहने लगा.

मुन्ना के परिवार में मुन्ना के अलावा किसी के पास भी एंड्रायड मोबाइल फोन नहीं था. मुन्ना की पत्नी सुलेखा के पास मोबाइल फोन जरूर था, लेकिन वह भी साधारण फोन था. अगर परिवार में बच्चों को किसी से बात करनी होती थी तो वह अपने पिता या मां सुलेखा का फोन ही इस्तेमाल करते थे.

अंकिता पंकज से बात करने के लिए वाट्सऐप चैट का इस्तेमाल करती थी. लेकिन मुन्ना उस की चोरी पकड़ न पाया. क्योंकि चैटिंग करने के बाद वह चैट हिस्ट्री को डिलीट कर देती थी. ऐसा लंबे समय से चल रहा था. लेकिन इस घटना से करीब एक महीना पहले अचानक रात को सोते समय मुन्ना की आंखें खुल गईं और वह उठ कर बैठ गया. उस ने देखा बगल में रखा उस का फोन गायब था.

वह अपने कमरे से बाहर निकला तो देखा अंकिता अपने कमरे के बाहर फोन ले कर उस पर चैटिंग कर रही थी.

‘‘इतनी रात को तू किस से बातें कर रही है,’’ अचानक पीछे से अपने पिता मुन्ना की आवाज सुन कर अंकिता हड़बड़ा गई और उस ने झटपट फोन बंद कर दिया.

‘‘कुछ नहीं पापा, अपनी एक फ्रैंड से बात कर रही थी थोड़ा होमवर्क छूट गया था, उसी की फोटो मंगवा रही थी.’’ अंकिता ने अपनी सफाई में जवाब दिया और फोन पिता के हाथ में थमा दिया.

कमरे में जा कर मुन्ना अपने मोबाइल की काल डिटेल्स और वाट्सऐप चेक करने लगा कि आखिर अंकिता किस से बातें कर रही थी.

वाट्सऐप चैक करने के बाद मुन्ना की आंखें फटी रह गईं. क्योंकि वाट्सऐप की उस चैटिंग में अंकिता और पंकज के बीच चैट पर जिस तरह की बातें हो रही थीं, वह इशारा कर रहीं थीं कि दोनों के बीच में न सिर्फ घनिष्ठ रिश्ते हैं, बल्कि उन दोनों के बीच कुछ ऐसा भी हो गया है, जो पिता के लिए नाकाबिलेबरदाश्त था.

मुन्ना ने उसी रात अपनी पत्नी को जगा कर पंकज और अंकिता के बीच हो रही वाट्सऐप चैट के बारे में बताया तो पत्नी सुलेखा भी गंभीर हो गई.

पतिपत्नी की वह रात दोनों की आंखों में ही कट गई. रात भर मुन्ना और उस की पत्नी सुलेखा बात करते रहे कि ऐसी स्थिति में क्या किया जाए.

सुबह होते ही मुन्ना और उस की पत्नी सुलेखा ने अंकिता को अपने कमरे में बुलाया और उसे पंकज के साथ हुई बातचीत की चैट दिखा कर सच बताने को कहा.

मातापिता के सामने आशिकी का सच आया तो एक ही मिनट में अंकिता की रूह कांप उठी. वह अपने मांबाप की नजरों में गिरना नहीं चाहती थी. साथ ही उसे अपनी पिटाई का भी डर हुआ. इसलिए एक ही पल में उस ने बचने का बहाना तलाश कर लिया.

‘‘मैं ने कुछ नहीं किया पापा, पंकज सर मुझ से जबरदस्ती करते हैं. बोलते हैं कि मुझ से दोस्ती करो, नहीं तो तुम्हें फेल करवा दूंगा. पापा, मैंने जब उन की शिकायत आप से करने को कहा तो धमकी देने लगे, मैं तुम्हारे भाईबहनों को ट्यूशन पढ़ाना बंद कर दूंगा और उन्हें भी फेल करा दूंगा.’’

कहते हैं इंसान को अपनी औलाद का झूठ भी सच लगता है, और दूसरे का सच भी झूठ नजर आता है. मुन्ना की पत्नी सुलेखा ने अपनी बेटी अंकिता से प्यार और पुचकार कर यह सच भी उगलवा लिया कि पंकज ने उस के साथ कई बार शारीरिक संबंध भी बनाए हैं.

मुन्ना को जैसे ही इस बात की जानकारी मिली उस के तनबदन में आग लग गई. मुन्ना ने उसी वक्त फैसला कर लिया कि वह अपनी बेटी की अस्मत पर हाथ डालने वाले को जिंदा नहीं छोड़ेगा.

बस उसी दिन से मुन्ना के सिर पर पंकज को खत्म करने का जुनून सवार हो गया. उस के विवेक ने काम करना बंद कर दिया कि यह कदम उठाने के बाद उस का और उस के परिवार का क्या अंजाम होगा.

मुन्ना ने साजिश का तानाबाना बुनना शुरू कर दिया कि किस तरह पंकज की हत्या की जाए. काफी सोचविचार करने के बाद मुन्ना ने फैसला किया कि किसी तरह पंकज को अपने घर बुला लिया जाए और फिर घर में ही उस की हत्या कर दी जाए.

फिर साजिश के तहत उस की पत्नी सुलेखा ने बेटी अंकिता को बहलाफुसला कर पूरी तरह अपने भरोसे में ले लिया. उस ने अंकिता को इस बात के लिए राजी कर लिया कि वह किसी तरह पंकज को घर में बुला लेगी.

8 अक्तूबर, 2019 को दशहरा था.  उस दिन जब अंकिता पंकज से ट्यूशन पढ़ने गई तो उस ने धीरे से पंकज के कान में बोल दिया कि कल सुबह मम्मीपापा कहीं चले जाएंगे, जबकि अनीशा और दोनों भाई स्कूल चले जाएंगे, लिहाजा वह घर पर अकेली होगी. अंकिता ने पंकज से कहा कि वह साइबर कैफे जाने से पहले सुबह 10 बजे के आसपास उस से घर पर मिलने चला आए.

अंकिता के इसी बुलावे पर 9 अक्तूबर की सुबह करीब पौने 10 बजे पंकज घर से निकला. और अंकिता के घर पहुंच गया. ऊपर की मंजिल पर रहने वाले किराएदार अपने काम पर जा चुके थे. पंकज ने जब अंकिता के घर की कालबेल बजाई तो मुन्ना और उस की पत्नी समझ गए कि पंकज आ गया है, लिहाजा वे दोनों बाथरूम में छिप गए.

अंकिता ने दरवाजा खोला और पंकज घर के भीतर दाखिल हो गया तो अंकिता ने दरवाजा भीतर से बंद कर लिया. पंकज को इस बात का जरा भी एहसास नहीं हुआ कि वह आज एक बड़ी साजिश का शिकार होने वाला है. अंकिता के साथ बैठ कर बात करते हुए पंकज को चंद मिनट ही बीते थे कि तब तक बाथरूम का दरवाजा खोल कर मुन्ना और उस की पत्नी सुलेखा बाहर आ गए.

कमरे में आते ही मुन्ना ने अपने हाथ में पकड़ी एक रस्सी पंकज के गले में डाल कर उस का फंदा पंकज के गले में कसना शुरू कर दिया.

सुलेखा और अंकिता ने पंकज के हाथपांव पकड़ लिए, ताकि वह चंगुल से छूटने न पाए. मुश्किल से 5 मिनट लगे और पंकज की दम घुटने से मौत हो गई. पंकज की हत्या करने के तुरंत बाद मुन्ना ने उस का मोबाइल स्विच औफ कर दिया.

पंकज की हत्या करने के बाद मुन्ना उस की पत्नी और अंकिता पंकज का शव उठा कर बेसमेंट में ले आए. मुन्ना ने इस वारदात से 4 दिन पहले ही अपने बेसमेंट के फ्लैट के हाल का फर्श तोड़ कर उस में 6 फुट गहरा , 6 फुट लंबा और करीब 2 फुट चौड़ा एक गड्ढा खोदा.

गड्ढे को भरने के बाद उस पर नया फर्श बनाने के लिए सीमेंट, बालू और डस्ट भी पहले ही ला कर रख दिया गया था.

मुन्ना किसी भी हाल में उसी रात पंकज के शव को ठिकाने लगाना चाहता था. इस दौरान मुन्ना की पत्नी सुलेखा ने किसी भी बच्चे को नीचे बेसमेंट में नहीं आने दिया. रात करीब 10 बजे तक मुन्ना ने बेसमेंट में खोदे गए गड्ढे में पंकज की लाश डाल कर ऊपर से मिट्टी डाल दी. और तोड़े गए बेसमेंट के फर्श को बनाने का काम पूरा कर लिया.

अगले दिन फर्श के उस स्थान पर टाट की बोरी बिछा कर ऊपर से घासफूस रख दी गई और बेसमेंट के एक कमरे में रखा ढेर सारा कबाड़ का फरनीचर व दूसरा सामान ऊपर से रख दिया ताकि किसी को कोई शक न हो.

मुन्ना को पंकज का शव अपने ही घर में दबाने का आईडिया दृश्यम फिल्म को देख कर आया था.

पंकज की हत्या कर शव को अपने मकान के बेसमेंट में दबाने के बाद हरिओम उर्फ मुन्ना को लगा था कि मामला अब खत्म हो गया और किसी को उस पर शक नहीं होगा.

अगले दिन जब पंकज का भाई मनीष उसकी तलाश में साहिबाबाद आया तो वह मुन्ना से भी मिला था, क्योंकि पंकज कुछ दिन न सिर्फ उस के मकान में रहा था बल्कि वह उस के चारों बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाता था. उस वक्त मुन्ना ने मनीष के साथ हमदर्दी जताते हुए पंकज को तलाश करने का नाटक भी किया था.

लेकिन जब मुन्ना को इस बात की जानकारी मिली की पुलिस ने पंकज की हत्या का मुकदमा अपहरण के रूप में दर्ज कर लिया है और उस के मोबाइल की काल डिटेल्स खंगाली जा रही है तथा कालोनी के सीसीटीवी कैमरे देखे जा रहे हैं तो वह अचानक पकड़े जाने के डर से घबरा गया. 10 अक्तूबर की रात को ही उसने फरार होने का फैसला कर लिया.

घर के कुछ जरूरी सामान, सभी बच्चों के पहनने के कपड़े, जरूरी दस्तावेज और घर के सभी गहने नकदी समेट कर 11 अक्तूबर की सुबह ही वह परिवार समेत फरार हो गया. जाने से पहले मुन्ना ने अपने किराएदारों को बता दिया था कि वह बिहार में अपने किसी रिश्तेदार के यहां होने वाले शादी समारोह में शामिल होने के लिए जा रहा है, आने में उसे कुछ वक्त लगेगा.

अपना घर छोड़ कर फरार हुआ मुन्ना पहले करीब एक हफ्ते तक बिहार में अपने गांव नवादा में रहा. इस दौरान मुन्ना ने एक नया मोबाइल और सिम कार्ड ले लिया था. जिसके जरिए वह अपने करीबी लोगों से लगातार संपर्क करके पंकज हत्याकांड में हुई पुलिस की जांच की जानकारी ले रहा था.

जब उसे पता चला कि पुलिस उस के गांव तक पहुंच सकती है. तो पुलिस के वहां पहुंचने से 2 दिन पहले ही मुन्ना परिवार के साथ वापस गाजियाबाद आ गया. खोड़ा कालोनी में उस के कुछ रिश्तेदार रहते थे. कुछ दिनों तक वह अलगअलग रिश्तेदारों के यहां रहा. पूछने पर उस ने रिश्तेदारों को यही बताया कि एक लड़के से उसका झगड़ा हो गया था, जिस में पुलिस उसे फंसाना चाहती है, इसीलिए वह पुलिस से बचने के लिए इधरउधर छिपता फिर रहा है.

इस दौरान मुन्ना ने तय कर लिया था कि वह जब तक पंकज की हत्याकांड का मामला शांत नहीं हो जाता तब तक गिरधर एनक्लेव में अपने फ्लैट पर नहीं जाएगा. इसलिए उस ने अपने कुछ रिश्तेदारों दोस्तों और प्रौपर्टी डीलिंग में साथ काम करने वाले दोस्त से बड़ी रकम एकत्र की और कोलकाता भागने की तैयारी कर रहा था. ताकि वहां रह कर कुछ समय तक वह छोटामोटा धंधा कर के परिवार का पेट पाल सके, लेकिन इसी दौरान उसे पुलिस ने दबोच लिया.

मुन्ना से पूछताछ में पता चला कि पंकज की हत्या को अंजाम देने के लिए उस की पत्नी सुलेखा और बेटी अंकिता ने उस का साथ दिया था.

लिहाजा पुलिस ने इस केस में साजिश रचने की धारा 120 बी और सबूत छिपाने की धारा 201 जोड़ कर अंकिता और उस की मां सुलेखा को भी आरोपी बना दिया. तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर उन से आवश्यक पूछताछ के बाद उन्हें सीजेएम कोर्ट में पेश किया गया जहां से उन्हें डासना जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस की जांच, आरोपियों से पूछताछ व पीडि़त परिवार से मिली जानकारी पर आधारित

डोर से कटी पतंग : ख़ुशी को क्यों करनी पड़ी आत्महत्या

18 अक्तूबर, 2019 को करवाचौथ था. खुशी उर्फ मोहसिना बानो ने भी पहली बार व्रत रखा था. मोहसिना बानो मुसलिम थी. उस ने अपनी मरजी से महेंद्र को पति के रूप में चुना था. चूंकि उस ने महेंद्र से शादी कर ली थी, इसलिए अपना नाम खुशी उर्फ परी रख लिया था. महेंद्र से शादी के बाद वह लखनऊ के थाना सरोजनी नगर क्षेत्र के गांव दादूपुर की नई कालोनी में रहने लगी थी.

पति की दीर्घायु के लिए उस ने पूरे दिन निर्जला व्रत रखा था. पड़ोसी महिलाओं से पूछ कर उस ने दिन में पूजा वगैरह भी की थी.

लाल रंग के जोड़े में सजनेसंवरने के बाद उस ने अपने पैरों में महावर लगाई, मांग में गहरे लाल रंग का सिंदूर भरा. साजशृंगार के बाद वह काफी खूबसूरत लग रही थी.

शाम के 7 बज चुके थे लेकिन महेंद्र घर नहीं लौटा था. भूखे पेट रह कर उस ने महेंद्र का मनपसंद खाना भी बना लिया था. उसे महेंद्र के लौटने का इंतजार था ताकि चंद्रमा निकलने पर वह अर्ध्य दे सके. खुशी मन ही मन काफी उल्लासित थी.

उस ने कई बार महेंद्र को फोन किया, लेकिन बात नहीं हो पाई. शाम को 5 बजे भी उस ने काल रिसीव नहीं की. पति के फोन न उठाने पर खुशी को बहुत गुस्सा आया. काफी देर बाद महेंद्र ने उस की काल रिसीव की तो खुशी ने इतना ही कहा कि तुम घर जल्दी आ जाओ. मैं इंतजार कर रही हूं. इतना कह कर खुशी ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

चंद्रमा निकल आया, लेकिन महेंद्र घर नहीं लौटा. पड़ोस की सभी महिलाएं अपनेअपने पति को देख कर चंद्रमा को अर्घ्य दे रही थीं. लेकिन खुशी पति के न आने से परेशान थी. वह खुशी की काल भी रिसीव नहीं कर रहा था. खुशी सोचसोच कर परेशान थी कि कम से कम आज पूजा के समय तो उन्हें घर पर होना चािहए था.

चंद्रमा निकलने के 2 घंटे बाद भी महेंद्र घर नहीं लौटा तो खुशी ने उसे गुस्से में वाट्सऐप मैसेज भेजे, उन का भी उस ने कोई जवाब नहीं दिया. रात करीब 12 बजे महेंद्र घर लौटा तो वह इस स्थिति में नहीं था कि पत्नी खुशी से कुछ कह सके.

अगले दिन लखनऊ के ही थाना बंथरा के निकटवर्ती जंगल में पुराहीखेड़ा से नरेरा गांव की तरफ जाने वाले रास्ते पर लोगों ने सुबहसुबह एक युवती का शव पड़ा देखा. शव खेत की सिंचाई के लिए बनाई गई नाली में अर्द्ध नग्नावस्था में था. किसी ने इस की सूचना पुलिस को दे दी.

सूचना पा कर थाना बंथरा के थानाप्रभारी रमेश कुमार रावत अपने साथ इंसपेक्टर (क्राइम) प्रहलाद सिंह, एसएसआई शिव प्रताप सिंह, एसआई अरुण प्रताप सरोज, सिपाही जी.एल. सोनकर, हैडकांस्टेबल अरविंद कुमार और अविनाश चौरसिया को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंचे.

पुलिस ने घटना स्थल का निरीक्षण किया तो देखा,युवती के हाथपैरों में महावर और मेहंदी लगी थी. उस का चेहरा थोड़ा सा झुलसा हुआ था. मेहंदी रची हथेली पर ‘एम’ लिखा हुआ था. माथे पर बिंदी और मांग में सिंदूर था. घटनास्थल पर शव के पास नीले रंग की पालीथिन में एसिड की 3 खाली शीशियां मिली थीं, जिन में से एक शीशी में बचा हुआ थोड़ा सा एसिड था.

लाश के पास ही नीले रंग का एक पर्स भी पड़ा मिला. पर्स की तलाशी ली गई तो उस में एक मोबाइल फोन मिला. पुलिस ने मौके पर मिला फोन और शीशियां अपने कब्जे में ले लीं.

निरीक्षण में पुलिस को युवती के गले पर किसी चीज के कसने के गहरे निशान दिखे. नाक से खून रिस कर सूख चुका था. उस के पैरों में न तो पायल थीं न ही बिछिया. नाक में सोने का एक फूल जरूर नजर आ रहा था. पुलिस ने वहां जमा भीड़ से लाश की शिनाख्त करानी चाही, लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका.

पुलिस ने अनुमान लगाया कि युवती शायद कहीं बाहर की रहने वाली रही होगी. उस की हत्या कहीं और कर, शव यहां ला कर फेंक दिया है.

पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद शव पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया. इस के बाद थानाप्रभारी रमेश कुमार रावत ने महिला की बरामद की गई लाश के फोटो जिले के सभी थानों में भेजने के अलावा वाट्सऐप पर डाल दिए ताकि उस की शिनाख्त हो सके. इस के अलावा अज्ञात महिला की लाश बरामद करने की सूचना समाचारपत्रों में भी प्रकाशित करा दी.

22 अक्तूबर, 2019 को 2 व्यक्ति थाना बंथरा पहुंचे. थानाप्रभारी रमेश कुमार रावत ने उन से पूछा तो उन में एक व्यक्ति ने अपना नाम मुश्ताक अहमद बताया. वह गांव हामी का पुरवा जगदीशपुर, जिला अमेठी का रहने वाला था. उस ने अखबार में छपी युवती की तसवीर दिखाते हुए बताया कि ये जो फोटो छपी है, मेरी बेटी मोहसिना बानो (27) की है.

मुश्ताक अहमद ने आगे बताया कि करीब 8 साल पहले उस ने मोहसिना बानो का निकाह अपने गांव के ही मोहम्मद नसीम के साथ किया था. निकाह के बाद वह अपने शौहर के साथ मुंबई में रहने लगी थी. अब से करीब 4 महीने पहले मोहसिना मुंबई से कहीं गायब हो गई थी.

हम सब ने उसे काफी तलाश किया, लेकिन उस का कोई पता नहीं चला. जब उस की कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली तो दामाद मोहम्मद नसीम ने 29 जून, 2019 को पवई (मुंबई) थाने में मोहसिना के गुम होने की सूचना लिखाई थी.

मुश्ताक ने आगे बताया कि साथ आए मेरे भतीजे अरमान ने अखबार में छपी तसवीर पहचानी तो हम लोग यहां आए. मुझे विश्वास है कि मोहसिना मुंबई से जिस व्यक्ति के साथ भागी थी, उसी ने उस की हत्या कर लाश खेतों में डाली होगी.

थानाप्रभारी ने मुश्ताक अहमद को मोर्चरी ले जा कर लाश दिखाई तो उस ने लाश की शिनाख्त अपनी बेटी मोहसिना के रूप में कर दी. लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद थानाप्रभारी ने मुश्ताक की तहरीर पर अज्ञात के खिलाफ हत्या कर लाश छिपाने का मामला दर्ज कर लिया. मुकदमा दर्ज हो गया तो थानाप्रभारी ने खुद ही इस केस की जांच शुरू कर दी.

थानाप्रभारी ने सब से पहले मृतका के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. उस से पता चला कि उस की ज्यादा बातें महेंद्र से होती थीं. महेंद्र भेलपुर कालोनी (जगदीशपुर) का रहने वाला था. पुलिस ने महेंद्र के बारे में पूछताछ की तो पता चला वह मोहसिना का पति था.

उसी के साथ मोहसिना मुंबई से भाग कर आई थी और अपना नाम खुशी रख कर उसी के साथ रह रही थी. महेंद्र भी शादीशुदा था. उस की पहली पत्नी गांव में रहती थी.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने महेंद्र की काल डिटेल्स देखी तो पता चला कि संदीप नाम के युवक से महेंद्र की अकसर बातें होती थीं. जांच करने पर पता चला कि संदीप अमेठी जिले के गांव नियावा का रहने वाला था, जो महेंद्र की बोलेरो चलाता था.

इन दोनों से पूछताछ करने के बाद ही जांच आगे बढ़ सकती थी. लिहाजा पुलिस ने इन दोनों की तलाश शुरू कर दी. दोनों में से कोई भी घर पर नहीं मिला तो उन की खोजखबर के लिए मुखबिर लगा दिए गए. मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने 24 अक्तूबर, 2019 को रात करीब 12 बजे दोनों को दादूपुर गांव के शराब ठेके के पास से हिरासत में ले लिया.

महेंद्र और संदीप से मोहसिना के बारे में पूछताछ की गई तो महेंद्र ने बताया कि उस ने मोहसिना की हत्या नहीं की थी. करवाचौथ वाली रात को जब वह घर पहुंचा तो वह मृत अवस्था में थी. उस ने तो उस की लाश केवल ठिकाने लगाई थी. दोनों से विस्तार से पूछताछ के बाद मोहसिना की मौत की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी.

मोेहसिना बानो जनपद अमेठी के गांव हामी का पुरवा, जगदीशपुरके रहने वाले मुश्ताक अहमद की बेटी थी. मोहसिना अपने परिवार में सब से बड़ी थी.

उस के अलावा उस की 2 बहनें व एक भाई और था. मोहसिना आधुनिक विचारों की महत्त्वाकांक्षी युवती थी. वह बहुत चतुर दिमाग की थी. घर के रोजमर्रा के काम निपटाने के बाद वह वाट्सऐप व फेसबुक पर लगी रहती थी.

फेसबुक पर नएनए लोगों से दोस्ती कर के उन से घंटों बातें करना उस का शगल बन गया था. कभीकभी तो वह किसी से फोन पर घंटों बातें किया करती थी. एक दिन उस की अम्मी नूरजहां ने उस की फोन पर हो रही रोमांस भरी बातें सुन लीं.

तब उन्होंने झल्लाते हुए मोहसिना को आड़े हाथों लेते हुए कहा, ‘‘तुझे दीनमजहब की बातों का बिलकुल डर नहीं है. पता नहीं किसकिस से बतियाती रहती है. तेरी यह बातें ठीक नहीं हैं, इन बातों से बदनामी के सिवा कुछ नहीं मिलता.’’

एक दिन यह बात नूरजहां ने अपने पति मुश्ताक अहमद को बताई और कहा कि मोहसिना के लिए अब कोई लड़का देख लो. कहीं ऐसा न हो कि हम हाथ मलते ही रह जाएं.

पत्नी की बात सुन कर मुश्ताक अहमद की चिंता बढ़ गई. वह मोहसिना के लिए लड़का देखने लगे. इसी दौरान मुश्ताक के भतीजे अरमान ने अपने खानदानी भाई नसीम के बारे में चर्चा की. नसीम मुंबई में रहता था.

इस के बाद मुश्ताक ने नसीम के पिता सुलेमान से बात की. बात परिवार की थी, इसलिए सुलेमान मोहसिना के साथ बेटे का विवाह करने के लिए तैयार हो गए. सामाजिक रीतिरिवाज से सन 2011 में मोहसिना का निकाह नसीम से कर दिया गया.

शादी के कुछ दिनों बाद नसीम मोहसिना को अपने साथ मुंबई ले गया. वह मुंबई के पवई इलाके में रहता था. मोहसिना मुंबई क्या पहुंची, जैसे उसे खुशियों का जहां मिल गया.

उस ने शौहर नसीम के साथ अपनी जिंदगी के 8 साल हंसीखुशी से बिता दिए. इस दौरान वह 3 बेटों की मां बन गई. मुंबई में रह कर वह पूरी तरह आजाद हो गई. नसीम के काम पर चले जाने के बाद वह सैरसपाटा करने निकल जाती और शाम को वापस लौटती.

साल 2018 दिसंबर की बात है. परिवार में किसी की शादी का कार्यक्रम था. मोहसिना अपने शौहर के साथ मुंबई से अपने गांव हामी का पुरवा जगदीशपुर आई हुई थी.

शादी के बाद नसीम उसे एकदो महीने के लिए उस के मायके में छोड़ गया. मोहसिना की ससुराल भी गांव में थी, इसलिए कुछ दिन वह ससुराल में भी रह लेती थी. अब वाट्सऐप पर बातें करना उस की रोजाना की आदतों में शुमार था.

शादी के दौरान ही मोहसिना की मुलाकात महेंद्र नाम के युवक से हुई थी. वह अपनी बोलेरो गाड़ी से वहां कोई सामान ले कर आया था. महेंद्र रसिक स्वभाव का था. पहली ही नजर में

वह मोहसिना की तरफ आकर्षित हो गया था. सामान उतारने के दौरान जब वह घर में बैठ कर चाय पी रहा था तो उस ने मोहसिना से उस के बारे में पूछ लिया. मोहसिना ने बताया कि वह मुंबई में अपने शौहर के साथ रहती है.

बातोंबातों में महेंद्र ने मोहसिना से उस का मोबाइल नंबर और मुंबई का पता भी पूछ लिया था.

मोहसिना के पूछने पर महेंद्र ने बताया कि वह अमेठी जिले के गांव कठौरा कमरोली का रहने वाला है, लेकिन इस समय भेल कालोनी जगदीशपुर, अमेठी में रह रहा है. उस की बोलेरो गाड़ी बुकिंग पर अलगअलग शहरों में जाती रहती है.

मोहसिना ने पूछा क्या आप को मुंबई की बुकिंग भी मिलती है. महेंद्र ने बताया कि महीने में 1-2 बुकिंग उसे मुंबई की मिल जाती हैं. तब वह अपने ड्राइवर संदीप के साथ वहां जाता है. इसी बहाने उस का मुंबई में घूमनाफिरना भी हो जाता है.

मोहसिना ने कहा कि अब की बार जब मुंबई आना हो तो उस के पास पवई जरूर आए. महेंद्र ने उस से इस बात का वादा कर दिया.

उस दिन की मुलाकात के बाद मोहसिना और महेंद्र की मोबाइल और वाट्सऐप पर अकसर बातचीत होने लगी. अपनी बातों के प्रभाव से महेंद्र ने मोहसिना को अपने जाल में फांस लिया. मोहसिना अपने दिल की बात उस से कह लेती थी. दोनों के बीच होने वाली बातों का दायरा बढ़ने लगा. यह दायरा उन्हें प्यार के मुकाम तक ले गया.

इस बीच उन्होंने 2-3 बार चोरीछिपे मुलाकात भी कर ली. फिर एक दिन मोहसिना अपने मायके से पति के साथ मुंबई चली गई. जाने से पहले उस ने महेंद्र से कह दिया कि वह मुंबई का चक्कर जल्द लगा ले ताकि मुंबई में वह साथसाथ घूमफिर सके.

मोहसिना के मुंबई पहुंचने के बाद भी उस की महेंद्र से पहले की तरह वाट्सऐप पर रोजाना बातचीत चलती रही. वह शाम को पति के सामने भी वाट्सऐप और फेसबुक पर व्यस्त रहती थी. नसीम ने उसे काफी समझाया लेकिन वह नहीं मानी.

एक दिन महेंद्र को मुंबई की बुकिंग मिल गई. यह जानकारी उस ने मोहसिना को दी तो वह काफी खुश हुई. उसे लगा जैसे उस की मुंहमांगी मुराद मिल गई हो. बुकिंग ले कर महेंद्र जब मुंबई पहुंचा तो वह मोहसिना से बांद्रा रेलवे स्टेशन के बाहर मिला.

महेंद्र से मिल कर वह बहुत खुश थी. इस के बाद महेंद्र ने उसे अपनी गाड़ी से घुमाया. दोनों ने काफी देर तक जुहू चौपाटी पर मस्ती की. इस के बाद महेंद्र उसे एक होटल में ले गया, जहां दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. इस के बाद महेंद्र ने उसे उस के बच्चों के स्कूल के पास छोड़ दिया. स्कूल से बच्चों को साथ ले कर मोहसिना वापस घर लौट आई.

महेंद्र मुंबई में 2 दिन रुका. दोनों दिन उस ने मोहसिना के साथ खूब मौजमस्ती की. नसीम मोहसिना की इस बात से बिलकुल अंजान था. महेंद्र व मोहसिना की यह मुलाकात ऐसे प्यार में बदली कि दोनों ने जीवनभर साथ रहने का इरादा कर लिया. मुंबई में मोहसिना की महेंद्र से हुई मुलाकात यादगार बन कर रह गई. वह दिनरात सपने बुनने लगी.

वह पंख लगा उड़ कर महेंद्र के पास पहुंच जाना चाहती थी. महेंद्र ने भी मुंबई में मुलाकात के दौरान मोहसिना से वादा किया कि जब वह उस के साथ लखनऊ आ कर रहने लगेगी तो वह दरोगाखेड़ा में एक मकान खरीद कर उस के अलग रहने का बंदोबस्त कर देगा.

बातों के दौरान ही मोहसिना को यह जानकारी मिल ही गई थी कि महेंद्र पहले से ही विवाहित है और उस की पत्नी अपने बच्चों के साथ उस के पुश्तैनी घर कठौरा कमरोली, जनपद अमेठी में रहती है. महेंद्र अब हर महीने मोहसिना से मिलने मुंबई जाने लगा. वहां कुछ समय बिताने के बाद वह जगदीशपुर लौट आता था. एक दिन महेंद्र ने मोहसिना को वाट्सऐप मैसेज भेजा कि वह अपने पति का साथ छोड़ कर रहने के लिए लखनऊ आ जाए.

मोहसिना महेंद्र की इतनी दीवानी हो चुकी थी कि उस की खातिर वह अपने पति और बच्चों को छोड़ कर जून 2019 के महीने में अकेले ही मुंबई से भाग कर लखनऊ आ गई और महेंद्र के पास आ कर रहने लगी. मोहसिना के घर से गायब होने के बाद पति नसीम ने उसे काफी तलाश किया.

वह कई दिनों तक अपनी रिश्तेदारियों में और अन्य जगहों पर उसे तलाश करता रहा. जब उस का कोई पता नहीं चला तो 29 जून, 2019 को उस ने मुंबई के पवई थाने में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

मोहसिना जब महेंद्र के पास पहुंची तो वह कुछ दिनों तक मोहसिना के साथ सरोजनी नगर थाने के दरोगाखेड़ा में किराए के मकान में रहा.

इस के बाद उस ने दादूपुर गांव के पास नई कालोनी में 9 लाख रुपए का मकान खरीद लिया. यह मकान उस ने अपने दोस्त संदीप के नाम से खरीदा था. मोहसिना उसी मकान में रहने लगी. वह जब भी लखनऊ आता तो रात को मोहसिना के पास रहता. दादूपुर के मकान की बागडोर महेंद्र ने मोहसिना को सौंप दी थी.

इस के बाद महेंद्र ने एक मंदिर में उस से शादी भी कर ली. शादी के बाद उस ने अपना नाम खुशी उर्फ परी रख लिया था. वह हिंदू महिला की तरह ही रहती थी.

पड़ोस में रहने वाली महिलाओं को पता नहीं था कि खुशी मुसलिम है और उस ने अपने पति व बच्चों को छोड़ कर महेंद्र के साथ दूसरी शादी की है. चूंकि खुशी उर्फ मोहसिना बातूनी थी इसलिए वह जल्दी ही मोहल्ले के लोगों से घुलमिल गई.

समाज, घरपरिवार, शौहर और अपने 3 बेटों की परवाह न कर के मोहसिना पता नहीं किस नशे में मदमस्त हो कर प्रेमी महेंद्र के साथ लखनऊ में रह कर जिंदगी को ढो रही थी.

धीरेधीरे मोहसिना की परीक्षा की वो घड़ी आ गई, जहां महिलाओं को धर्म और संयम की मर्यादाओं से गुजरना पड़ता है. यानी करवाचौथ का त्यौहार आ गया. खुशी ने भी पड़ोसिनों के साथ करवाचौथ का निर्जला व्रत रखा.

उस दिन महेंद्र घर पर अपनी ब्याहता और बच्चों से मिलने कठौरा कमरोली चला गया. उधर खुशी उस का इंतजार कर रही थी. उस का यह पहला व्रत था इसलिए उस के मन में ज्यादा उत्सुकता थी. लेकिन फोन करने के बावजूद महेंद्र उस के पास नहीं पहुंचा.

रात को जब चंद्रमा दिखाई दिया तो पूजा के समय भी महेंद्र खुशी के पास मौजूद नहीं था. इस से खुशी को गुस्सा आ गया. उस ने वाट्सऐप पर महेंद्र को एक भावुक मैसेज भेजा, जिस में उस ने कहा कि तुम बेवफा निकले. मैं ने तुम्हारे प्यार की खातिर अपने बच्चे, पति और समाज को छोड़ा लेकिन तुम ने मेरी भावनाओं की कद्र नहीं की.

मैं सारे दिन (करवाचौथ वाले दिन) प्रतीक्षा करती रही, न तुम आए और न ही तुम ने फोन पर बताया कि कहां हो, इसे मैं क्या समझूं. जहां तक मैं समझती हूं, शायद तुम्हें मेरे प्यार की जरूरत नहीं रह गई है, तुम्हारी नजर में औरत सिर्फ एक खिलौना है, तुम्हें मेरे प्यार की नहीं जिस्म की ज्यादा जरूरत थी, इस से ज्यादा मैं क्या जानू.

महेंद्र ने पुलिस को बताया कि 18-19 अक्तूबर, 2019 की रात को 12 बजे जब वह दादूपुर दरोगाखेड़ा के मकान पर आया तो उस ने देखा खुशी उर्फ मोहसिना गले में फंदा डाले पंखे से लटकी हुई थी.

उस ने आत्महत्या कर ली थी. पत्नी को इस हालत में देख वह घबरा गया और उस ने नायलोन की डोरी का फंदा काट कर खुशी के शव को नीचे उतारा.

साथ ही उस ने अपने दोस्त संदीप को बोलेरो गाड़ी ले कर आने को कहा. संदीप रात 2 बजे करीब बोलेरो ले कर बंथरा पहुंचा. फिर दोनों ने खुशी उर्फ मोहसिना के शव को ठिकाने लगाने और सबूत नष्ट करने के उद्देश्य से बोलेरो में डाला. फिर उसे 5 किलोमीटर दूर पुराई खेड़ा, थाना बंथरा इलाके के एक खेत में डाल आए.

मोहसिना का शव ले जाते समय महेंद्र टौयलैट क्लीन करने वाला ऐसिड साथ ले गया था. वह एसिड उस ने खुशी उर्फ मोहसिना के चेहरे पर डाल दिया, जिस से चेहरा थोड़ा झुलस गया था. घबराहट की वजह से वे दोनों खुशी उर्फ मोहसिना का पर्स, मोबाइल फोन और एसिड की खाली शीशियां वहीं छोड़ कर भाग निकले.

अगले दिन पुलिस को खुशी उर्फ मोहसिना की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई, जिस में मौत की वजह गले में फंदा डाल कर दम घुटना बताया गया. पुलिस ने हत्या की जगह आत्महत्या के लिए प्रेरित करने का मामला दर्ज कर दिया. आरोपी महेंद्र और संदीप की निशानदेही पर पुलिस ने लाश ठिकाने लगाने में प्रयुक्त हुई महेंद्र की बोलेरो नंबर यूपी 36 टी 2331 भी बरामद कर ली.

पुलिस ने दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

मां की भूमिका में चमेली : क्यों की दामाद की हत्या

छत्तीसगढ़ का शहर बिलासपुर हाईकोर्ट होने की वजह से न्यायधानी के नाम से जाना जाता है. दिनेश अपने परिवार के साथ बिलासपुर के जरहाभाटा के मंझवापारा में रहता था. वह अपने ही मोहल्ले की किशोरी वीना कौशिक को भगा ले गया था. यह भी कह सकते हैं कि वीना दिनेश के साथ जीनेमरने की कसम खा कर अपने घर की देहरी लांघ आई थी और उस के साथ लिवइन रिलेशन में रहने लगी थी.

वीना के पिता जवाहर कौशिक अपनी पत्नी चमेली और बेटी वीना से अलग दूसरे मोहल्ले में रहते थे. सिर्फ मां चमेली ही वीना की एकमात्र गार्जियन थी. वीना अभी 18 वर्ष की हुई थी कि उसे दिनेश से प्रेम हो गया. फिर एक दिन वह घर से बिना बताए गायब हो गई.

दिनेश के पिता रविशंकर श्रीवास की हेयर कटिंग सैलून थी जिस से वे परिवार का भरण पोषण करते थे. दिनेश भी पिता की दुकान पर काम करता था. वह अल्पायु में ही पढ़ाई छोड़ चुका था. फिलहाल वह 21 वर्ष का था. दिनेश और वीना एकदूसरे का हाथ थाम कर घर से निकले तो कुछ दिन रायपुर में बिताने के बाद बिलासपुर आ गए. इस शहर में वह तिफरा में किराए का मकान ले कर रहने लगे.

दिनेश एक सैलून में नौकरी करने लगा, ताकि वीना की और अपनी जिंदगी को हसीन बना सके. लेकिन यह संभव न हो सका. दिनेश के पिता रविशंकर और मां नूतन को यह पता चला कि बेटा वीना के साथ सुखपूर्वक रह रहा है तो वे मौन रह गए. लेकिन वीना की मां चमेली मौन नहीं रह सकी.

एक दिन जब दिनेश काम पर गया हुआ था, तो वीना की मां आ धमकी. वीना ने मां को बैठाया, चायपानी को पूछा. दोनों की बातचीत हुई तो चमेली आंसू बहाते हुए कहने लगी, ‘‘बेटी, तुम ने यह क्या कर दिया, हमारी तो सारी इज्जत ही मिट्टी में मिल गई.’’

वीना मां की बातें सुनती रही. बातोंबातों में चमेली ने पूछा, ‘‘बेटा, तुम ने दिनेश से ब्याह कहां किया? गवाह कौनकौन थे?’’इस पर वीना का सिर झुक गया, वह बोली, ‘‘मां, हम ने अभी तक विवाह नहीं किया है.’’

इस पर चमेली स्तब्ध रह गई. बोली, ‘‘तुम बिना विवाह के दिनेश के साथ कैसे रह सकती हो? यह तो पाप है बेटी.’’

वीना चुपचाप मां की बातें सुनती रही. चमेली ने आगे कहा, ‘‘तुम खुश तो हो न? मैं तुम्हारी शादी दिनेश से ही करा दूंगी. ऊंचनीच तुम क्या जानो, औरत के लिए मंगलसूत्र और सिंदूर का बड़ा महत्त्व होता है. समाज में रह कर उसी के हिसाब से जीना पड़ता है और उस के नियमकायदे मानने होते हैं. तुम अगर मेरी बात नहीं मानोगी तो पछताओगी.’’

वीना कुछ दिन दिनेश के साथ रह कर समझ गई थी कि प्यार के शुरुआती आकर्षण वाले मीठे सपने जब हकीकत के कठोर धरातल पर टकराते हैं, तब टूट कर किरचाकिरचा बिखर जाते हैं. उसे मां का सहारा मिला तो वह फट पड़ी और आंखों में आंसू लिए मां की गोद में सिर रख कर रोने लगी.

मां ने उसे ढांढस बंधाया, फिर बोली, ‘‘बेटा, तुम ने गलती तो बहुत बड़ी की है. लेकिन मैं मां हूं. मैं तुम्हें माफ नहीं करूंगी तो कौन करेगा.’’

वीना मां की ओर आशा भरी निगाहों से देखने लगी. चमेली ने कहा, ‘‘अच्छा, अब तू दिनेश के साथ खुश है या नहीं, साफसाफ बता.’’

वीना ने बहुत सोचा, फिर कहा, ‘‘मां, मुझे लगता है कि मैं ने भूल की है. मुझे दिनेश के लिए घर नहीं छोड़ना चाहिए था. बताओ, अब मैं क्या करूं?’’

चमेली ने कहा, ‘‘अच्छा, अभी तुम मेरे साथ चलो, बाद में देखेंगे कि क्या करना है.’’ वीना तैयार हो गई. घर में ताला लगा कर उस ने चाबी पड़ोस की एक महिला को दे दी. इस के बाद वह मां चमेली के साथ घर मन्नाडोला चली गई.

रात में जब दिनेश काम से घर लौटा तो वहां ताला लगा था. पड़ोस से पता चला कि वीना की मां आई थी, वह उसे अपने साथ ले गई है. उस ने घर का ताला खोला और चुपचाप लेट गया. उस की आंखों के आगे अंधेरा फैला हुआ था, तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. उस ने दरवाजा खोला तो 2 पुलिस वाले खड़े थे. उन्हें देख दिनेश डर गया. पुलिस वाले उसे थाना सिविल लाइंस ले गए.

एक पुलिस वाले ने उसे बताया कि उस पर वीना नाम की लड़की को बहलाफुसला कर भगा ले जाने का आरोप है. केस दर्ज हो चुका है. यह सुन कर दिनेश घबरा गया. उस ने पुलिस को बताया कि वह और वीना अपनी मरजी से घर छोड़ कर नई जिंदगी बसर करने के लिए निकले थे और तिफरा में किराए का मकान ले कर खुशीखुशी रह रहे थे. आज उस की मां चमेली यहां आई और बिना बताए उसे अपने साथ ले गई.

लेकिन पुलिस ने दिनेश की एक नहीं सुनी. उस के खिलाफ थाने में भादंवि की धारा 363 के अंतर्गत वीना को बहलाफुसला कर भगा ले जाने का मुकदमा दर्ज था. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. दिनेश गम का घूंट पी कर रह गया.

वह यह भी साबित नहीं कर सका कि उस ने वीना के साथ विवाह किया था. वैसे भी वीना से अपने पक्ष की कोई उम्मीद रखना बेवकूफी थी, क्योंकि अब वह अपनी मां चमेली के प्रभाव में थी. वह वही कहती जो उस की मां चाहती.

दिनेश के जेल जाने की खबर जब उस के घर वालों को मिली तो उन्होंने एक वकील से इस मामले की पैरवी कराई. फलस्वरूव वह 2 महीने में जेल से बाहर आ गया. जो होना था, वह हो चुका था. दिनेश अब वीना को भुलाने की कोशिश करते हुए अपने परिवार के साथ रहने लगा. इसी बीच एक दिन गोल बाजार में उसे वीना मिल गई.

दिनेश उस से जानना चाहता था कि उस ने उसे किस बात की सजा दिलाई, इसलिए वह उसे एक कौफी हाउस में ले गया. बातचीत हुई तो दोनों के गिलेशिकवे शुरू हो गए. दिनेश ने वीना का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘वीना, जो भी हुआ, मैं उसे भूलने को तैयार हूं.’’

वीना ने आंखें नीची कर के कहा, ‘‘तुम ने मेरे साथ बहुत गलत किया है.’’

दिनेश ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘क्या गलत किया मैं ने?’’

‘‘तुम ने मुझ से शादी नहीं की, मुझे प्यार के बहकावे में रख कर मेरा शोषण करते रहे. क्या यह तुम्हारा फर्ज नहीं था कि मुझ से विवाह कर के अपने घर ले जाते?’’

‘‘देखो वीना, मैं ने जो भी किया, तुम्हारी मरजी से किया. मैं ने कभी जबरदस्ती नहीं की, फिर भी तुम ने मेरे खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा कर मुझे जेल भिजवा दिया, क्या यह सही था?’’

‘‘तुम्हारी नीयत मुझे ठीक नहीं लगी, मां ने मुझे बताया कि शादी के बाद लड़की को सुरक्षा मिलनी चाहिए. तुम तो मुझे मंगलसूत्र और सिंदूर तक नहीं दे सके. अगर तुम मुझे छोड़ कर भाग जाते तो मैं तो बरबाद हो जाती. न इधर की रह जाती, न उधर की. तुम मुझ से प्यार करते थे तो शादी क्यों नहीं की?’’

दिनेश निरुत्तर रह गया. उसे अपनी भूल का अहसास हो रहा था. उसे वीना से ब्याह कर लेना चाहिए था. वह संभल गया, ‘‘अच्छा, मुझ से गलती हो गई. मैं अब तुम से शादी करूंगा, ठीक है.’’

वीना मौन बैठी थी. दिनेश ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा, ‘‘तुम मुझ पर अविश्वास कैसे कर सकती हो. क्या मैं बेवफा हूं? मैं तुम्हारे साथ सारी जिंदगी हंसीखुशी गुजारने को तैयार हूं.’’

इस पर वीना ने धीमे स्वर में कहा, ‘‘मैं सोच कर बताऊंगी. एक बार गलती कर चुकी हूं. इसलिए अब मैं दोबारा कोई गलती करना नहीं चाहती.’’

बहरहाल दिनेश और वीना में सहमति बनी कि दोनों एक बार फिर से एकदूसरे को समझेंगे, जानेंगे, तब कोई कदम उठाएंगे ताकि पहले की तरह कोई भूल न हो. अब जो भी कदम उठाएंगे, सोचसमझ कर उठाएंगे.

दोनों एक बार फिर घरपरिवार के बंधनों को भूल कर मिलने लगे, भविष्य के सपने बुनने लगे. वीना दिनेश के प्रभाव में आ गई थी. वह जब चाहता, उसे एकांत में ले जा कर संबंध बना लेता और फिर उसे उस के घर छोड़ जाता. लेकिन इस बार भी चमेली दिनेश और वीना के बीच आ कर खड़ी हो गई. इस बार कुछ ऐसा भयावह हो गया, जिस की कल्पना किसी ने नहीं की होगी.

19 जून, 2019 की सुबह दिनेश के मोबाइल की घंटी बजी. देखा वीना की काल थी. उस ने काल रिसीव की. उधर से वीना चहकी, ‘‘आज कोर्ट में तुम्हारी पेशी है न? मैं कोर्ट आऊंगी और मजिस्ट्रैट के सामने तुम्हारे ही पक्ष में बयान दे दूंगी.’’

वीना की बात सुन कर दिनेश श्रीवास खुश हो कर बोला, ‘‘मैं तुम से कब से बोल रहा था कि आ कर मजिस्ट्रैट के सामने बयान दे दो, लेकिन तुम टालती जा रही थी.’’

‘‘मैं मां के कितने प्रेशर में हूं, तुम नहीं जानते. मां ने मेरा जीना हराम कर रखा है. एक तरह से मैं घर में कैद सी हो गई हूं. मां मेरी हर गतिविधि पर निगाह रखती हैं. मैं ने बड़ी मुश्किल से काल की है और आऊंगी भी. मां आज बाहर जाने वाली हैं न…’’ वीना ने ऐसे कहा जैसे उत्साह से भरी हो.

‘‘चलो, कम से कम तुम को सद्बुद्धि तो आई.’’ दिनेश ने हंसते हुए कहा.

19 जून, 2019 को पूर्वाह्न लगभग 11 बजे दिनेश श्रीवास न्यायालय परिसर में पहुंच गया. अब उसे अपने वकील और वीना के आने का इंतजार था. लेकिन पता चला कि उस का वकील नहीं आएगा. पेशी की तारीख आगामी किसी दिन की ली जाएगी. इस से उसे बेचैनी होने लगी. थोड़ी देर में उसे वीना आती दिखाई दी, लेकिन वह अकेली नहीं थी. उस के साथ उस की मां चमेली भी थी.

दिनेश श्रीवास ने वीना को अगली पेशी की तारीख बता कर कहा, ‘‘हमारे वकील साहब बीमार हैं, इसलिए नहीं आए. तुम्हें अगली बार आना होगा, तभी बयान हो पाएगा.’’

वीना कुछ कहती, इस से पहले ही चमेली ने बातों का सिरा अपने हाथों में ले लिया. वह बोली, ‘‘दिनेश, बयान तो हो जाएगा. लेकिन तुम्हें क्या लगता है, वीना का जीवन बरबाद कर के तुम खुश रह पाओगे. मैं ने सुना है तुम कहीं और ब्याह करने की सोच रहे हो?’’

‘‘नहींनहीं, मैं नहीं मेरे पिताजी बात चला रहे हैं.’’ दिनेश ने बात घुमानी चाही.

‘‘और तुम..? तुम क्या करोगे?’’ चमेली ने दिनेश से पूछा.

‘‘मैं क्या करूंगा, मुझे भी नहीं मालूम. मैं पिताजी को नाराज नहीं कर पाऊंगा. उन्होंने मुझे जेल से निकलवाया, मुझे माफ किया. मुझे लगता है आप ने ठीक ही किया, जो वीना को उस दिन घर से ले आईं. बिना ब्याह हम लोगों का एक साथ रहना हमारे और हमारे परिवारों के लिए कलंक बन जाता.’’ दिनेश ने नजरें झुका कर कहा.

‘‘मगर बेटा,’’ चमेली ने प्यार से कहा, ‘‘फिर तो वीना का भविष्य बरबाद हो गया मानूं. अब उस के साथ कौन शादी करेगा?’’

यह सुन कर दिनेश कनखियों से वीना की ओर देखने लगा. बोला कुछ नहीं. चमेली बोली, ‘‘मैं और मेरी बेटी दोनों कोर्ट में तुम्हारे हक में बयान दे देंगे, मगर तुम्हें वीना को सम्मान के साथ ब्याह कर उसे स्वीकार करना होगा.’’

दिनेश चमेली की बात सुन अनसुनी कर के दूसरी तरफ देखने लगा. चमेली को उस का यह व्यवहार बुरा लगा. उस ने पुचकारते हुए कहा, ‘‘दिनेश, आज क्यों न हम पिकनिक पर चलें. एकदूसरे से बातें भी हो पाएंगी और समझनेसमझाने का मौका भी मिल जाएगा. नहीं तो हमारे रास्ते अलगअलग तो हैं ही.’’

चमेली की बात सुन दिनेश ने हामी भर दी. कोर्ट परिसर में से एक आटो ले कर तीनों पिकनिक मनाने और एकदूसरे को समझने के लिए चमेली के बताए उसलापुर सकरी की ओर निकल गए.

5 जुलाई, 2019 को बिलासपुर सिटी के थाना सिविल लाइंस के दरजनों बार चक्कर लगाने के बाद दिनेश श्रीवास के पिता रविशंकर व मां नूतन अंतत: आईजी कार्यालय में अपना प्रार्थना पत्र ले कर पहुंचे. प्रार्थना पत्र में उन्होंने लिखा था—

हमारा बेटा दिनेश श्रीवास विगत 19 जून, 2019 से लापता है. हमें शक है कि उस के साथ कुछ अनिष्ट हो गया है. हमें यह भी अंदेशा है कि उसे गायब करने में हमारी पड़ोसी वीना और चमेली का हाथ है. हम दरजनों बार सिविल लाइंस थानाप्रभारी से मिले और गुजारिश की कि हमारे बच्चे को ढूंढें, लेकिन वह हमें टाल कर घर भेज देते हैं.

आईजी प्रदीप गुप्ता अपने औफिस में बैठे थे. अर्दली ने अंदर जा कर रविशंकर और नूतन के नाम का पेपर दे दिया. उन्होंने दोनों को तत्काल बुलाया और सामने बैठा कर पूछा, ‘‘बताइए, क्या बात है?’’

इस पर दिनेश की मां ने लिखा हुआ प्रार्थना पत्र उन्हें दे कर निवेदन करते हुए कहा, ‘‘साहब, हमें न्याय दिलाएं, हमारा बेटा गायब है.’’

नूतन ने आंसू बहाते हुए जब आईजी से थाने आनेजाने की आपबीती बताई तो आईजी साहब नाराज हो गए. उन्होंने तत्काल थानाप्रभारी सिविललाइंस से फोन पर बात की. उन्होंने थानाप्रभारी कलीम खान को डांटते हुए कहा, ‘‘इस संवेदनशील मामले में 24 घंटे के अंदर एफआईआर दर्ज कर रिपोर्ट मेरे सामने पेश करें.’’

आईजी प्रदीप गुप्ता के आदेश पर थाना सिविल लाइंस में हड़कंप मच गया. थानाप्रभारी कलीम खान ने तत्काल 2 सिपाही भेज कर वीना और उस की मां को थाने बुला लिया. दोनों थाने आईं तो पुलिस ने सख्ती से पूछताछ करनी शुरू कर दी, लेकिन वीना ने स्पष्ट इनकार करते हुए कहा कि वह दिनेश श्रीवास से बहुत दिनों से नहीं मिली है.

मोबाइल फोन की काल डिटेल्स खंगालने पर इस बात का खुलासा हो गया कि 19 जून तक दिनेश और वीना के बीच मोबाइल पर बातें हो रही थीं. एक सूत्र ने पुलिस को बताया कि 19 तारीख को तीनों कोर्ट में एक साथ दिखाई दिए थे. इसी सूत्र के आधार पर कलीम खान ने कोर्ट में लगे सीसीटीवी की फुटेज खंगालनी शुरू कर दी. एक फुटेज में तीनों को आटो में बैठ कर जाते देखा गया.

पुलिस को बहुत बड़ा सूत्र मिल गया था. इस पर जांच आगे बढ़ाई गई तो वीना की मां चमेली ने 19 जून, 2019 को तीनों के पिकनिक जाने की बात स्वीकार करते हुए उस की हत्या की बात स्वीकार कर ली.

चमेली ने अपने बयान में बताया कि बेटी की जिंदगी बरबाद होते देख वह परेशान रहने लगी थी. उसलापुर सकरी में पिकनिक के दौरान दिनेश श्रीवास ने जब स्पष्ट रूप से हाथ खड़े कर लिए कि अब वह वीना का साथ नहीं निभा सकेगा, तब उस ने और वीना ने मिल कर उस की हत्या कर दी.

दिनेश जब दोपहर को आंखें बंद कर के लेटा था तो उन दोनों ने उस के सिर पर पत्थर दे मारा, जिस से वह बुरी तरह घायल हो गया. बाद में उन्होंने धारदार हंसिया से दिनेश का गला रेत दिया. साथ ही एक पत्थर मार कर उस का चेहरा विकृत कर दिया और उसे वहीं फेंक कर वापस आ गईं.

दिनेश को कोई पहचान न सके, इसलिए उस का मोबाइल वीना ने अपने पास रख लिया. पुलिस ने चमेली और वीना के बयान के आधार पर दिनेश की खोजबीन की तो उन्हें उसलापुर के कोकने नाला में दिनेश का क्षतविक्षत शव मिल गया.

पुलिस ने वीना और चमेली को गिरफ्तार कर लिया. उन के खिलाफ भादंवि की धाराओं 302, 120बी के तहत केस दर्ज किया गया. पूछताछ के बाद दोनों को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें सेंट्रल जेल बिलासपुर भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. वीना परिवर्तित नाम है.

शिवानी की मर्डर मिस्ट्री : पति ने रची मौत की साजिश

विश्वप्रसिद्ध ताज नगरी आगरा के थाना शाहगंज क्षेत्र के मोहल्ला पथौली निवासी पुष्कर बघेल की शादी अप्रैल, 2016 में आगरा के सिकंदरा की सुंदरवन कालोनी निवासी गंगासिंह की 21 वर्षीय बेटी शिवानी के साथ हुई थी. पुष्कर दिल्ली के एक प्रसिद्ध मंदिर के सामने बैठ कर मेहंदी लगाने का काम कर के परिवार की गुजरबसर करता था. बीचबीच में उस का आगरा स्थित अपने घर भी आनाजाना लगा रहता था. पुष्कर के परिवार में कुल 3 ही सदस्य थे. खुद पुष्कर उस की पत्नी शिवानी और मां गायत्री.

20 नवंबर, 2018 की बात है. सुबह जब पुष्कर और उस की मां सो कर उठे तो शिवानी घर में दिखाई नहीं दी. उन्होंने सोचा पड़ोस में कहीं गई होगी. लेकिन इंतजार करने के बाद भी जब शिवानी वापस नहीं आई तब उस की तलाश शुरू हुई. जब वह कहीं नहीं मिली तो पुष्कर ने अपने ससुर गंगासिंह को फोन कर के शिवानी के बारे में पूछा. यह सुन कर गंगासिंह चौंके. क्योंकि वह मायके नहीं आई थी. उन्होंने पुष्कर से पूछा, ‘‘क्या तुम्हारा उस के साथ कोई झगड़ा हुआ था?’’

इस पर पुष्कर ने कहा, ‘‘शिवानी के साथ कोई झगड़ा नहीं हुआ. सुबह जब हम लोग जागे, शिवानी घर में नहीं थी. इधरउधर तलाश किया, जब वह कहीं नहीं मिली तब फोन कर आप से पूछा.’’

बाद में पुष्कर को पता चला कि शिवानी घर से 25 हजार की नकदी व आभूषण ले कर लापता हुई है. ससुर गंगासिंह ने जब कहा कि शिवानी मायके नहीं आई है तो पुष्कर परेशान हो गया. कुछ ही देर में मोहल्ले भर में शिवानी के गायब होने की खबर फैल गई तो पासपड़ोस के लोग पुष्कर के घर के सामने जमा हो गए.

उस ने पड़ोसियों को शिवानी द्वारा घर से नकदी व आभूषण ले जाने की बात बताई. इस पर सभी ने पुष्कर को थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने की सलाह दी.

जब शिवानी का कहीं कोई सुराग नहीं मिला, तब पुष्कर ने 23 नवंबर को थाना शाहगंज में शिवानी की गुमशुदगी दर्ज कराई. पुष्कर ने पुलिस को बताया कि शिवानी अपने किसी प्रेमी से मोबाइल पर बात करती रहती थी.

दूसरी तरफ शिवानी के पिता गंगासिंह भी थाना पंथौली पहुंचे. उन्होंने थाने में अपनी बेटी शिवानी के साथ ससुराल वालों द्वारा मारपीट व दहेज उत्पीड़न की तहरीर दी. गंगासिंह ने आरोप लगाया कि ससुराल वाले दहेज में 2 लाख रुपए की मांग करते थे.

कई बार शिवानी के साथ मारपीट भी कर चुके थे. उन्होंने ही उन की बेटी शिवानी को गायब किया है. साथ ही तहरीर में शिवानी के साथ किसी अनहोनी की आशंका भी जताई गई.

गंगासिंह ने पुष्कर और उस के घर वालों के खिलाफ थाने में दहेज उत्पीड़न व मारपीट का केस दर्ज करा दिया. जबकि पुष्कर इस बात का शक जता रहा था कि शिवानी जेवर, नकदी ले कर किसी के साथ भाग गई है.

पुलिस ने शिवानी के रहस्यमय तरीके से गायब होने की जांच शुरू कर दी. थाना शाहगंज और महिला थाने की 2 टीमें शिवानी को आगरा के अछनेरा, कागारौल, मथुरा, राजस्थान के भरतपुर, मध्य प्रदेश के मुरैना, ग्वालियर में तलाशने लगीं.

लेकिन शिवानी का कहीं कोई पता नहीं चल सका. काफी मशक्कत के बाद भी शिवानी के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. कई महीनों तक पुलिस शिवानी की तलाश में जुटी रही फिर भी उसे कुछ हासिल नहीं हुआ.

शिवानी का लापता होना पुलिस के लिए सिरदर्द बन गया था. लेकिन पुलिस के अधिकारी इसे एक बड़ा चैलेंज मान रहे थे. पुलिस अधिकारी हर नजरिए से शिवानी की तलाश में जुटे थे, लेकिन शिवानी का कोई पता नहीं चल पा रहा था.

यहां तक कि सर्विलांस की टीम भी पूरी तरह से नाकाम साबित हुई. कई पुलिसकर्मी मान चुके थे कि अब शिवानी का पता नहीं लग पाएगा. सभी का अनुमान था कि शिवानी अपने किसी प्रेमी के साथ भाग गई है और उसी के साथ कहीं रह रही होगी.

उधर गंगासिंह को इंतजार करतेकरते 6 महीने बीत चुके थे, पर अभी तक न तो बेटी लौट कर आई थी और न ही उस का कोई सुराग मिला था. ज्योंज्यों समय बीतता जा रहा रहा था, त्योंत्यों गंगासिंह की चिंता बढ़ रही थी. शिवानी के साथ कोई अप्रिय घटना तो नहीं हो गई, इस तरह के विचार गंगासिंह के मस्तिष्क में घूमने लगे थे.

उन्होंने बेटी की खोज में रातदिन एक कर दिया था. रिश्तेनाते में भी जहां भी संभव हो सकता था, फोन कर के उन सभी से पूछा. उधर पुलिस ने इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया था. लेकिन गंगासिंह ने हिम्मत नहीं हारी.

इस घटना ने गंगासिंह को अंदर तक तोड़ दिया था. वह गहरे मानसिक तनाव से गुजर रहे थे. न्याय न मिलता देख गंगासिंह ने प्रयागराज हाईकोर्ट की शरण ली. जिस के फलस्वरूप जुलाई 2019 में हाईकोर्ट ने इस मामले में संज्ञान लिया. माननीय हाईकोर्ट ने आगरा के एसएसपी को कोर्ट में तलब कर के उन्हें शिवानी का पता लगाने के आदेश दिए. कोर्ट के आदेश के बाद पुलिस हरकत में आई.

एसएसपी बबलू कुमार ने इस मामले को खुद देखने का निर्णय लेते हुए शिवानी के पिता गंगासिंह को अपने औफिस में बुला कर उन से शिवानी के बारे में पूरी जानकारी हासिल की. इस के बाद बबलू कुमार ने एक टीम का गठन किया. इस टीम में सर्विलांस टीम के प्रभारी इंसपेक्टर नरेंद्र कुमार, इंसपेक्टर (सदर) कमलेश कुमार, इंसपेक्टर (ताजगंज) अनुज कुमार के साथ क्राइम ब्रांच को भी शामिल किया गया था.

पुलिस टीम ने अपनी जांच तेज कर दी. लापता शिवानी की तलाश में पुलिस की 2 टीमें उत्तर प्रदेश के अलावा राजस्थान के जिलों में भेजी गईं. पुलिस ने शिवानी के मायके से ले कर ससुराल पक्ष के लोगों से जानकारियां जुटाईं. फिर कई अहम साक्ष्यों की कडि़यों को जोड़ना शुरू किया. शिवानी के पति पुष्कर के मोबाइल फोन की घटना वाले दिन की लोकेशन भी चैक की.

करीब एक साल तक पुलिस शिवानी की तलाश में जुटी रही. जांच टीम ने शिवानी के लापता होने से पहले जिनजिन लोगों से उस की बात हुई थी, उन से गहनता से पूछताछ की. इस से शक की सुई शिवानी के पति पर जा कर रुकने लगी थी.

जांच के दौरान पुष्कर शक के दायरे में आया तो पुलिस ने उसे थाने बुला लिया और उस से हर दृष्टिकोण से पूछताछ की. लेकिन ऐसा कोई क्लू नहीं मिला, जिस से लगे कि शिवानी के गायब होने में उस का कोई हाथ था.

पुष्कर पर शक होने के बाद जब पुलिस ने उस से पूछताछ की तो वह कुछ नहीं बोला. तब पुलिस ने उस का नार्को टेस्ट कराने की तैयारी कर ली थी. नार्को टेस्ट कराने के डर से पुष्कर टूट गया और उस ने 2 नवंबर, 2019 को अपना जुर्म कुबूल कर लिया.

पुष्कर दिल्ली में रहता था, जबकि उस की पत्नी शिवानी आगरा के शाहगंज स्थित अपनी ससुराल में रहती थी. वह कभीकभी अपने गांव जाता रहता था. उस की गृहस्थी ठीक चल रही थी. लेकिन शादी के 2 साल बाद भी शिवानी मां नहीं बनी तो इस दंपति की चिंता बढ़ने लगी.

पुष्कर ने पत्नी का इलाज भी कराया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. इस के बाद बच्चा न होने पर दोनों एकदूसरे को दोषी ठहराने लगे. लिहाजा उन के बीच कलह शुरू हो गई. अब शिवानी अपना अधिकतर समय वाट्सऐप, फेसबुक पर बिताने लगी.

पुष्कर जब दिल्ली से घर आता तब भी वह उस का ध्यान नहीं रखती. वह पत्नी के बदले व्यवहार को वह महसूस कर रहा था. वह शिवानी से मोबाइल पर ज्यादा बात करने को मना करता था. लेकिन वह उस की बात को गंभीरता से नहीं लेती थी. इस बात को ले कर दोनों में अकसर झगड़ा भी होता था.

पुष्कर को शक था कि शिवानी के किसी और से नाजायज संबंध हैं. घर में कलह करने के अलावा शिवानी ने पुष्कर को तवज्जो देनी बंद कर दी तो पुष्कर ने परेशान हो कर शिवानी को ठिकाने लगाने का फैसला ले लिया. इस बारे में उस ने अपनी मां गायत्री और वृंदावन निवासी अपने ममेरे भाई वीरेंद्र के साथ योजना बनाई.

योजनानुसार 20 नवंबर, 2018 को उन दोनों ने योजना को अंजाम दे दिया. उस रात जब शिवानी सो रही थी. तभी पुष्कर शिवानी की छाती पर बैठ गया. मां गायत्री ने शिवानी के हाथ पकड़ लिए और पुष्कर ने वीरेंद्र के साथ मिल कर रस्सी से शिवानी का गला घोंट दिया. कुछ देर छटपटाने के बाद शिवानी की मौत हो गई.

हत्या के बाद पुष्कर की आंखों के सामने फांसी का फंदा झूलता नजर आने लगा. पुष्कर और वीरेंद्र सोचने लगे कि शिवानी की लाश से कैसे छुटकारा पाया जाए. काफी देर सोचने के बाद पुष्कर के दिमाग में एक योजना ने जन्म लिया.

पकड़े जाने से बचने के लिए रात में ही पुष्कर ने शिवानी की लाश एक तिरपाल में लपेटी. फिर लाश को अपनी मोटरसाइकिल पर रख कर घर से 10 किलोमीटर दूर ले गया. वीरेंद्र ने लाश पकड़ रखी थी.

वीरेंद्र और पुष्कर शिवानी की लाश को मलपुरा थाना क्षेत्र की पुलिया के पास लेदर पार्क के जंगल में ले गए, जहां दोनों ने प्लास्टिक के तिरपाल में लिपटी लाश पर मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा दी. प्लास्टिक के तिरपाल के कारण शव काफी जल गया था.

इस घटना के 17 दिन बाद मलपुरा थाना पुलिस को 7 दिसंबर, 2018 को लेदर पार्क में एक महिला का अधजला शव पड़ा होने की सूचना मिली. पुलिस भी वहां पहुंच गई थी.

पुलिस ने लाश बरामद कर उस की शिनाख्त कराने की कोशिश की लेकिन शिनाख्त नहीं हो सकी. शिनाख्त न होने पर पुलिस ने जरूरी काररवाई कर वह पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. साथ ही उस की डीएनए जांच भी कराई.

पुष्कर द्वारा अपराध स्वीकार करने के बाद मलपुरा थाना पुलिस को भी बुलाया गया. पुष्कर पुलिस को उसी जगह ले कर गया, जहां उस ने शिवानी की लाश जलाई थी.

इस से पुलिस को यकीन हो गया कि हत्या उसी ने की है. मलपुरा थाना पुलिस ने 7 दिसंबर, 2018 को यह बात मान ली कि महिला की जो लाश बरामद की गई थी, वह शिवानी की ही थी.

उस की निशानदेही पर पुलिस ने घटनास्थल से हत्या के सुबूत के रूप में पुलिया के नीचे कीचड़ में दबे प्लास्टिक के तिरपाल के अधजले टुकड़े, जूड़े में लगाने वाली पिन, जले और अधजले अवशेष व पुष्कर के घर से वह मोटरसाइकिल बरामद कर ली, जिस पर लाश ले गए थे. डीएनए जांच के लिए पुलिस ने शिवानी के पिता का खून भी अस्पताल में सुरक्षित रखवा लिया.

पुलिस ने पुष्कर से पूछताछ के बाद उस की मां गायत्री को भी गिरफ्तार कर लिया लेकिन वीरेंद्र फरार हो चुका था. दोनों को कोर्ट में पेश किया गया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. जबकि हत्या में शामिल तीसरे आरोपी वीरेंद्र की गिरफ्तारी नहीं हो सकी थी.

पति और पत्नी के रिश्ते की नींव एकदूसरे के विश्वास पर टिकी होती है, कई बार यह नींव शक की वजह से कमजोर पड़ जाती है.

इस के चलते मजबूत से मजबूत रिश्ता भी टूटने की कगार पर पहुंच जाता है या टूट कर बिखर जाता है. शिवानी के मामले में भी यही हुआ. काश! पुष्कर पत्नी पर शक न करता तो शायद उस का परिवार बरबाद न होता.

 

साजिश का शिकार प्रीती : क्या था हत्या का राज

न्यूआजाद नगर स्थित ग्रामसमाज की जमीन पर एक सफेद प्लास्टिक की बोरी पड़ी थी. कुत्तों का झुंड बोरी को नोचने में लगा था. तभी कुछ मजदूरों की नजर कुत्तों के झुंड पर पड़ी. ये मजदूर डूडा कालोनी के पास प्रधानमंत्री आवास योजना निर्माण के काम में लगे थे.

चूंकि हवा के झोंकों के साथ दुर्गंध भी आ रही थी, इसलिए उत्सुकतावश 2-3 मजदूर वहां पहुंचे. उन्होंने कुत्तों को भगा कर बोरी पर नजर डाली तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि बोरी के अंदर लाश है. मजदूरों ने बोरी में लाश होने की जानकारी अपने ठेकेदार को दी. उस ने यह जानकारी तुरंत धाना विधनू को दे दी.

थानाप्रभारी अनुराग सिंह को लाश की सूचना मिली तो वह विचलित हो उठे. उन्होंने यह सूचना अपने अधिकारियों को दी और पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उस समय वहां ज्यादा भीड़ नहीं थी.

अनुराग सिंह ने बोरी से लाश निकलवाई तो तेज झोंका आया. उन्होंने नाक पर रूमाल रख कर शव का निरीक्षण किया. शव किसी युवती का था, जिस के गले में काले रंग के दुपट्टे का फंदा था. संभवत: उस की हत्या गला घोंट कर की गई थी.

मृतका क्रीम कलर की छींटदार कुरती और काली जींस पहने थी. उस के बाएं हाथ की कलाई में कलावा तथा दाएं हाथ पर टैटू बना था. एक हाथ में स्टील का कड़ा और दूसरे हाथ में काले रंग का कंगन था. उस की उम्र 30 साल के आसपास थी, रंग गोरा था.

शव से बदबू आने से ऐसा लग रहा था कि उस की हत्या 2 दिन पहले की गई थी. साथ ही यह भी कि हत्या कहीं और की गई थी और शव को बोरी में बंद कर यहां सुनसान जगह पर फेंका गया था.

अनुराग सिंह अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी (साउथ) रवीना त्यागी तथा सीओ शैलेंद्र सिंह भी आ गए. इन अधिकारियों ने भी घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया.

साथ ही वहां मौजूद लोगों से शव के संबंध में पूछताछ की, लेकिन कोई भी शव की पहचान नहीं कर पाया. पुलिस ने शव के विभिन्न कोणों से फोटो खिंचवा कर उसे पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय भिजवा दिया. यह 2 अगस्त, 2019 की बात है.

दूसरे दिन युवती के हुलिए सहित उस की लाश पाए जाने की खबर स्थानीय समाचार पत्रों में छपी तो श्यामनगर निवासी रिटायर्ड मेजर विद्याशंकर शर्मा का माथा ठनका. उन्होंने पूरी खबर विस्तार से पढ़ी, फिर पत्नी और बेटे मनीष को जानकारी दी.

पुलिस ने दर्ज नहीं की थी रिपोर्ट दरअसल, विद्याशंकर शर्मा की 30 वर्षीय विवाहित बेटी प्रीति शर्मा पिछले 2 दिन से घर वापस नहीं आई थी. उन्होंने श्यामनगर पुलिस चौकी जा कर गुमशुदगी दर्ज कराने का प्रयास किया था, लेकिन पुलिस ने उन्हें टरका दिया था. खबर पढ़ कर शर्माजी घबरा गए.

विद्याशंकर शर्मा ने अपने बेटे मनीष और अन्य घरवालों को साथ लिया और पोस्टमार्टम हाउस पहुंच गए. वहां जा कर उन्होंने विधनू थानाप्रभारी अनुराग सिंह से बातचीत कर के अज्ञात युवती का शव दिखाने का अनुरोध किया.

अनुराग सिंह ने युवती का शव दिखाया तो विद्याशंकर शर्मा फफक पड़े, ‘‘सर, यह लाश मेरी बेटी प्रीति की है. मैं ने इसे हाथ में बंधे कलावा, कड़ा और टैटू से पहचाना है.’’

लाश की पहचान होते ही विद्याशंकर के घर में कोहराम मच गया. मनीष बहन की लाश देख कर रो पड़ा. उस की पत्नी कंचन भी सिसकने लगी. सब से ज्यादा बुरा हाल मनीष की मां मधु शर्मा का था. वह दहाड़ मार कर रो रही थीं. उन की बहू कंचन तथा परिवार की अन्य औरतें उन्हें धैर्य बंधा रही थीं.

लाश की शिनाख्त होने के बाद थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने मृतका प्रीति शर्मा के पिता विद्याशंकर शर्मा से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि 2 दिन पहले प्रीति को उस की सहेली वैदिका तथा उस का पति सत्येंद्र अपने घर ले गए थे. उस के बाद प्रीति वापस नहीं लौटी.

पुलिस ने वैदिका तथा उस के पति सत्येंद्र से पूछा तो दोनों बहाना बनाने लगे. पुलिस को संदेह हुआ कि कहीं प्रीति का सामान लूटने के लिए उस की हत्या वैदिका और उस के पति सत्येंद्र ने मिल कर तो नहीं की है. इस संदेह की वजह यह थी कि प्रीति जब घर से निकली थी, तब वह कई आभूषण पहने थी. पर्स, मोबाइल व एटीएम कार्ड उस के पास थे, जो लाश के पास नहीं मिले. पहने हुए आभूषण भी गायब थे.

थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने मृतका प्रीति शर्मा के भाई मनीष शर्मा से पूछताछ की तो उस ने बताया कि प्रीति की हत्या में उस की सहेली वैदिका और उस का पति सत्येंद्र ही शामिल हैं. इस के अलावा प्रशांत द्विवेदी नाम का युवक भी शामिल है. इन तीनों ने ही हत्या की योजना बनाई और प्रीति को मौत की नींद सुला दिया.

‘‘प्रशांत द्विवेदी कौन हैं?’’ सिंह ने पूछा.  ‘‘सर, प्रशांत द्विवेदी मेरी बहन का प्रेमी है. उस ने प्रीति को अपने प्यार के जाल में फंसा लिया था और शादी का झांसा दे कर उस का शारीरिक शोषण करता था. जब प्रीति ने शादी का दबाव बनाया तो उस ने प्रीति की सहेली वैदिका के साथ मिल कर उसे मार डाला.’’

‘‘तुम्हारी बहन प्रीति तो ब्याहता थी? वह प्रशांत के जाल में कैसे फंस गई?’’ अनुराग सिंह ने सवाल किया.  ‘‘सर, प्रीति का अपने पति से मनमुटाव था. कोर्ट में दोनों के तलाक का मुकदमा चल रहा है. पति से मनमुटाव के बाद वह मायके आ कर रहने लगी थी. पति की उपेक्षा से ऊबी प्रीति को प्रशांत का साथ मिला तो वह उस की ओर आकर्षित हो गई और उस के साथ शादी के सपने संजोने लगी. पर प्रशांत छलिया निकला, वह उस से शादी नहीं करना  चाहता था.’’

‘‘कहीं प्रीति की हत्या मुकदमे से छुटकारा पाने के लिए उस के पति ने ही तो नहीं कर दी?’’ सिंह ने शंका जाहिर की.

‘‘नहीं सर, प्रीति के ससुराल वाले हत्या जैसा जोखिम नहीं उठा सकते. प्रीति का पति पीयूष शर्मा एयरफोर्स में है और अंबाला में तैनात है. ससुर भुजराम शर्मा रोडवेज से रिटायर हैं. उन पर हमें भरोसा है.’’

पूछताछ के बाद अनुराग सिंह को लगा कि प्रीति की हत्या या तो अवैध रिश्तों के चलते हुई या फिर प्रीति की सहेली वैदिका ने उस के साथ विश्वासघात किया है. उन्होंने वैदिका, उस के पति सत्येंद्र तथा प्रीति के प्रेमी प्रशांत द्विवेदी को हिरासत में ले लिया. थाने ला कर तीनों से अलगअलग पूछताछ की गई.

वैदिका ने बताया कि प्रीति उस की घनिष्ठ सहेली थी. स्वर्णजयंत विहार में उस का ब्यूटी पार्लर है, जहां प्रीति मेकअप कराने आती थी. जब पति से उस का मनमुटाव हुआ तो उस ने भी ब्यूटी पार्लर चलाने की इच्छा जाहिर की. तब मैं ने उस की मदद की. प्रीति का मेरे घर आनाजाना था.

वैदिका का संदिग्ध बयान  30 जुलाई को फोन कर उस ने मुझे अपने घर बुलाया था. उसे कुछ सामान खरीदना था सो वह मेरे साथ गई थी. सामान खरीदने के बाद वह वापस घर चली गई थी. उस के बाद क्या हुआ, उस की हत्या किस ने और क्यों की, उसे पता नहीं है.

वैदिका के पति सत्येंद्र ने बताया कि वह प्राइवेट नौकरी करता था. उस की नौकरी छूट गई है और वह बेरोजगार है. प्रीति, उस की पत्नी की सहेली थी. उस का घर में आनाजाना था. सो उस से अच्छा परिचय था. उस की हत्या किस ने और क्यों की, उसे नहीं पता. इसी बीच किसी का फोन आया तो अनुराग फोन पर बतियाने लगे.

थानाप्रभारी का ध्यान फोन पर केंद्रित हुआ तो वैदिका अपने पति से खुसरफुसर करने लगी. उस ने पति को जुबान बंद रखने का भी इशारा किया. अनुराग सिंह समझ गए कि वैदिका कुछ छिपा रही है और पति को भी ऐसा करने को मजबूर कर रही है. फिर भी उन्होंने वैदिका से कुछ नहीं कहा.

पूछताछ के बाद अनुराग सिंह ने दोनों को इस हिदायत के साथ घर जाने दिया कि जब भी उन्हें बुलाया जाए, थाने आ जाएं. शहर छोड़ कर भी कहीं न जाएं.

थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने मृतका प्रीति शर्मा के प्रेमी प्रशांत द्विवेदी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह हैलट अस्पताल का कर्मचारी है. प्रीति से उस की मुलाकात 6 महीने पहले तब हुई थी, जब वह अपने भाई मनीष की 10 वर्षीय बेटी परी का इलाज कराने आई थी.

अस्पताल में दोनों की दोस्ती हुई और फिर दोस्ती प्यार में बदल गई. वे दोनों शादी भी करना चाहते थे, लेकिन प्रीति का तलाक नहीं हुआ था. इसलिए उस ने प्रीति से कहा था कि तलाक होने के बाद शादी कर लेंगे. प्रशांत ने यह भी कहा कि उसे प्रीति का उस की सहेली वैदिका के घर जाना अच्छा नहीं लगता था, क्योंकि वैदिका और उस का पति सत्येंद्र प्रीति से किसी न किसी बहाने पैसे वसूलते रहते थे.

कभी वे तंगहाली का रोना रोते तो कभी मकान का किराया देने का. उसे शक है कि प्रीति की सहेली वैदिका ने ही उस के साथ घात किया है. उस के गहने और नकदी लूट कर उस की हत्या कर दी और शव सुनसान जगह पर फेंक दिया.

प्रशांत द्विवेदी के बयान से थानाप्रभारी अनुराग का शक वैदिका तथा उस के पति सत्येंद्र पर और भी गहरा गया. उन्हें लगा कि प्रीति शर्मा की हत्या का राज उन दोनों के ही पेट में छिपा है. उन्होंने प्रशांत को तो थाने से जाने दिया, लेकिन वैदिका पर नजरें गड़ा दीं. अनुराग सिंह ने प्रीति शर्मा तथा उस की सहेली वैदिका के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई.

पता चला कि प्रीति और वैदिका की लगभग हर रोज बातें होती थीं. प्रीति की एक अन्य नंबर पर भी ज्यादा बातें होती थीं. उस नंबर को ट्रेस किया गया तो पता चला कि वह प्रीति के प्रेमी प्रशांत द्विवेदी का है.

30 जुलाई, 2019 को भी प्रीति शर्मा की फोन पर वैदिका से कई बार बात हुई थी. रात 8 बजे के बाद उस का फोन बंद हो गया था. इस का मतलब यह था कि हत्या के बाद उस के मोबाइल का स्विच औफ कर दिया गया था.

थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने अब तक की जांच से एसपी (साउथ) रवीना त्यागी को अवगत कराया. साथ ही प्रीति की सहेली वैदिका तथा उस के पति सत्येंद्र पर हत्या का शक भी जताया. मामला हत्या का था, इसलिए रवीना त्यागी ने दोनों को गिरफ्तार कर के पूछताछ करने का आदेश दिया.

आदेश मिलते ही अनुराग सिंह ने 5 अगस्त की सुबह स्वर्ण जयंती विहार स्थित वैदिका के किराए वाले मकान पर छापा मार कर वैदिका और उस के पति को गिरफ्तार कर लिया. दोनों को थाना विधनू लाया गया. थाने आते समय दोनों के मुंह लटक गए थे. उन के चेहरों पर घबराहट और डर की परछाई साफ नजर आ रही थी.

अनुराग सिंह ने वैदिका और सत्येंद्र को अपने कक्ष में आमनेसामने बैठाया और कुछ देर उन के चेहरों के हावभाव पढ़ने की कोशिश करते रहे. उस के बाद उन्होंने पूछा, ‘‘सचसच बताओ, तुम दोनों ने प्रीति की हत्या क्यों और कैसे की?’’

‘‘सर, हम ने प्रीति की हत्या नहीं की. हम दोनों को फंसाया जा रहा है.’’

‘‘फिर झूठ, नरम व्यवहार का मतलब यह नहीं है कि तुम झूठ पर झूठ बोलते जाओ. हमें सच उगलवाना भी आता है.’’

कहते हुए उन्होंने महिला सिपाही ऊषा यादव तथा कांस्टेबल बलराम को बुला कर कहा, ‘‘इन दोनों को डार्क रूम में ले चलो. हम भी देखते हैं कि ये कब तक सच नहीं बोलते.’’

खुल गया हत्या का राज थानाप्रभारी अनुराग सिंह के तेवर देख कर वैदिका और सत्येंद्र डर गए. उन्हें लगा कि सच बोलने में ही भलाई है. अत: वे दोनों हाथ जोड़ कर बोले, ‘‘सर, हमें माफ कर दो. हम से गलती हो गई. पैसों की तंगी के कारण प्रीति की हत्या हम दोनों ने ही की थी. हम अपना जुर्म कबूल करते हैं.’’

जुर्म कबूल करने के बाद वैदिका और सत्येंद्र ने प्रीति का मोबाइल, पर्स, ज्वैलरी आदि सामान बरामद करा दिया. पुलिस ने हत्या के बाद लाश फेंकने में इस्तेमाल की गई सत्येंद्र की मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली.

अनुराग सिंह ने प्रीति शर्मा की हत्या का राज खोलने और उस का सामान बरामद करने की जानकारी एसपी (साउथ) रवीना त्यागी तथा सीओ शैलेंद्र सिंह को दे दी. पुलिस अधिकारी थाना विधनू आ गए. उन्होंने वैदिका तथा उस के पति सत्येंद्र से प्रीति की हत्या के संबंध में विस्तृत जानकारी हासिल की. फिर प्रैसवार्ता कर हत्यारोपियों को मीडिया के समक्ष पेश कर घटना का खुलासा कर दिया.

कातिलों ने हत्या का जुर्म कबूल कर के सामान भी बरामद करा दिया था. थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने मृतका के पिता विद्याशंकर शर्मा को वादी बना कर भादंवि की धारा 302, 201 के तहत वैदिका तथा उस के पति सत्येंद्र के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया. पुलिस जांच में सहेली द्वारा सहेली के साथ विश्वासघात करने की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आई.

कानपुर महानगर के थाना चकेरी क्षेत्र में एक मोहल्ला है श्यामनगर. इसी मोहल्ले के ई ब्लौक में विद्याशंकर शर्मा अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी मधु शर्मा के अलावा एक बेटा मनीष तथा बेटी प्रीति थी. विद्याशंकर शर्मा सेना के मेजर पद से रिटायर हुए थे. विद्याशंकर का परिवार संपन्न था और वह इज्जतदार व्यक्ति थे.

विद्याशंकर शर्मा खुद पढ़ेलिखे व्यक्ति थे, इसलिए उन्होंने अपने बेटे मनीष और बेटी प्रीति को भी खूब पढ़ायालिखाया था. मनीष पढ़लिख कर जब काम पर लग गया तो उन्होंने उस का विवाह कंचन नाम की खूबसूरत युवती के साथ कर दिया.

कंचन पढ़ीलिखी तथा मृदुभाषी थी. ससुराल में आते ही उस ने सभी का दिल जीत लिया था. शादी के एक साल बाद कंचन ने बेटी परी को जन्म दिया.

प्रीति मनीष से छोटी थी. वह दिखने में जितनी सुंदर थी, पढ़ाई में भी उतनी ही तेज थी. खालसा गर्ल्स कालेज से उस ने इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद बीए की डिग्री बृहस्पति महाविद्यालय, किदवईनगर से हासिल की थी. यही नहीं, स्वरोजगार के लिए उस ने ब्यूटीशियन का पूरा कोर्स भी कर रखा था. प्रीति को बनसंवर कर रहना तथा स्वच्छंद घूमना पसंद था.

प्रीति जवान हुई तो विद्याशंकर शर्मा को उस के ब्याह की चिंता सताने लगी. वह प्रीति का विवाह धूमधाम से किसी ऐसे युवक से करना चाहते थे, जो पढ़ालिखा हो और सरकारी नौकरी में हो.

हालांकि प्रीति का हाथ मांगने के लिए कई रिश्तेदारों ने कोशिश की, लेकिन विद्याशंकर ने उन्हें मना कर दिया था. कारण यह कि उन के लड़के या तो व्यापारी थे या फिर प्राइवेट कंपनी में काम करते थे. काफी दौड़धूप के बाद विद्याशंकर शर्मा को एक लड़का पसंद आ गया. लड़के का नाम था पीयूष.

पीयूष के पिता भुजराम शर्मा चकेरी थाना क्षेत्र में आने वाले मोहल्ला कोयलानगर में रहते थे. वह रोडवेज से रिटायर हुए थे. कोयलानगर में उन का अपना आलीशान मकान था, जिस में वह परिवार के साथ रहते थे. परिवार में पत्नी सुधा शर्मा के अलावा एक ही बेटा था पीयूष. पीयूष पढ़ालिखा युवक था. उस का चयन वायुसेना में हो गया था. ट्रेनिंग के बाद वह अंबाला में कार्यरत था.

विद्याशंकर शर्मा ने पीयूष को देखा तो वह उन्हें अपनी बेटी प्रीति के योग्य लगा. लेनदेन की बात तय होने के बाद दोनों परिवारों में सहमति बनी कि शादी तब तय मानी जाएगी, जब प्रीति और पीयूष एकदूसरे को पसंद कर शादी को राजी हो जाएंगे. नियत तिथि पर पीयूष और प्रीति ने एकदूसरे को देखा, आपस में बातचीत की. अंतत: दोनों शादी को राजी हो गए. उस के बाद 20 फरवरी, 2015 को प्रीति का विवाह पीयूष शर्मा के साथ धूमधाम से हो गया.

विद्याशंकर शर्मा ने शादी में काफी खर्च किया था. उन्होंने बेटी को आभूषणों के अलावा उस के ससुराल पक्ष को वह हर सामान दिया था, जिस की उन्होंने डिमांड की थी. शर्माजी ने हंसीखुशी से लाल जोड़े में लिपटी अपनी लाडली बेटी को विदा किया.

सास की वजह से मतभेद बढ़े पतिपत्नी में प्रीति शर्मा खूबसूरत थी. ससुराल में उसे जिस ने भी देखा, उसी ने उस के रूपसौंदर्य की तारीफ की. पीयूष भी पढ़ीलिखी और खूबसूरत पत्नी पा कर खुश था. मुंहदिखाई रस्म के दौरान जब परिवार की महिलाएं प्रीति का घूंघट उठा कर देखतीं और उस के रूपसौंदर्य की तारीफ करतीं तो सास सुधा शर्मा का सीना गर्व से तन जाता. प्रीति भी ससुराल वालों के व्यवहार से खुश थी. उसे खुशी इस बात की भी थी कि उस का पति स्मार्ट और सभ्य है.

जब गौने के बाद प्रीति ससुराल आई तो उसे सास का व्यवहार थोड़ा तल्ख लगा. सुधा शर्मा ने घर का सारा काम प्रीति को सौंप दिया. काम करने के बावजूद उसे सास की डांट सहनी पड़ती थी. कभी वह दाल में कम नमक को ले कर डांटती तो कभी साफसफाई को ले कर. कभीकभी दहेज कम देने को ले कर भी ताना मारतीं.

सास के तानों से प्रीति का दिल छलनी होने लगा. वह मानसिक प्रताड़ना से परेशान रहने लगी. पति उस से कोसों दूर था, वह अपनी पीड़ा कहती भी तो किस से. एक रोज उस की मां का फोन आया तो प्रीति के सब्र का बांध टूट गया. उस ने फोन पर ही सारी पीड़ा मां को बताई और फूटफूट कर रोने लगी. मां ने उसे धैर्य बंधाया और उस की सास को समझाने का भरोसा दिया.

मधु शर्मा ने प्रीति की प्रताड़ना को ले कर उस की सास से शिकायत की तो वह गुस्से में बोली, ‘‘तुम्हारी बेटी इतनी नाजुक और कोमल है तो घर के काम के लिए नौकरचाकर लगवा दो या फिर इसे अपने घर बुला लो. मुझे कामचोर बहू की जरूरत नहीं है.’’

शिकायत के बाद सास का जुल्म और बढ़ गया. अब वह प्रीति के खानेपीने, उठनेबैठने और सजनेसंवरने पर भी सवाल खड़े करने लगी.

लगभग 3 महीने बाद पीयूष जब छुट्टी पर घर आया तो मां ने प्रीति के खिलाफ उस के कान भरे. इस पर पीयूष का व्यवहार भी प्रीति के प्रति कठोर हो गया. उस ने प्रीति से साफ कह दिया कि उसे घर का काम करना पड़ेगा. मां जो कहेगी, उसे बरदाश्त करना होगा. साथ ही मर्यादा में रहना पड़ेगा. मां से बगावत वह बरदाश्त नहीं करेगा.

पति की बात सुन कर प्रीति अवाक रह गई. वह जान गई कि पीयूष मातृभक्त है. उसे पत्नी की कोई चिंता नहीं है. घर में तनाव को ले कर पीयूष और प्रीति के बीच दरार पड़ गई. पीयूष को जहां अपनी सरकारी नौकरी का घमंड था, वहीं प्रीति को भी अपनी खूबसूरती का अहंकार था. इस अहंकार और घमंड ने प्रीति और पीयूष के जीवन को गर्त में धकेल दिया.

इधर पीयूष का साथ मिला तो सास सुधा प्रीति पर और जुल्म करने लगी. अब वह सीधे तौर पर दहेज के रूप में रुपयों की मांग करती. प्रीति रुपया लाने को राजी नहीं होती तो वह उसे प्रताडि़त करती.

प्रीति आखिर कब तक जुल्म सहती, एक साल बीततेबीतते वह ससुराल में इतनी ज्यादा परेशान हो गई कि उस ने ससुराल छोड़ दी और मायके में आ कर रहने लगी. कुछ महीने बाद पीयूष उसे लेने आया तो प्रीति ने उस के साथ जाने से साफ मना कर दिया.

मायके में प्रीति कुछ समय तक असामान्य और गुमसुम रही. लेकिन जब मांबाप ने उसे समझाया और दहेज उत्पीड़न जैसी बुराई से लड़ने की हौसलाअफजाई की तो उस ने भी लड़ने की ठान ली. उस ने पिता और भाई के सहयोग से पति पीयूष, ससुर भुजराम शर्मा तथा सास सुधा शर्मा के विरुद्ध थाना चकेरी में दहेज उत्पीड़न की रिपोर्ट दर्ज करा दी. साथ ही तलाक का मुकदमा भी कायम करा दिया.

मुकदमा करने के बाद प्रीति ने थाना चकेरी पुलिस पर दबाव बनाया कि वह आरोपियों को जल्द बंदी बनाए.

उधर पीयूष और उस के मातापिता को प्रीति द्वारा दहेज उत्पीड़न का मुकदमा कायम कराने की जानकारी हुई, तो वे घबरा गए. गिरफ्तारी से बचने के लिए भुजराम शर्मा मकान में ताला लगा कर अंडरग्राउंड हो गए. पीयूष वायुसेना में था, गिरफ्तार होने पर उस की नौकरी खतरे में पड़ सकती थी.

दौड़धूप कर के पीयूष ने गिरफ्तारी के विरुद्ध हाइकोर्ट से स्टे ले लिया. स्टे मिलने के बाद पीयूष ने ससुराल वालों से समझौते की पहल की. प्रीति शर्मा पहले तो तैयार नहीं हुई, लेकिन मांबाप के समझाने पर तैयार हो गई. उस ने समझौते के लिए 10 लाख रुपए की मांग रखी, जो उस के मांबाप ने शादी में खर्च किए थे.

पीयूष दहेज उत्पीड़न का मुकदमा खत्म करने तथा तलाक मिलने पर 10 लाख रुपए देने को राजी हो गया. उस ने 5 लाख रुपए प्रीति को कोर्ट के माध्यम से दे दिए और बाकी रुपए तलाक मिलने के बाद देने का वादा किया.

प्रीति ने खोला ब्यूटी पार्लर प्रीति की एक घनिष्ठ सहेली थी वैदिका. वह अपने पति सत्येंद्र के साथ स्वर्ण जयंती विहार में रहती थी. यह क्षेत्र थाना विधनू के अंतर्गत आता है. वैदिका किराए पर सुलभ पांडेय के मकान में रहती थी. मकान के बाहरी भाग में उस ने ब्यूटी पार्लर खोल रखा था. प्रीति सजनेसंवरने उस के पार्लर में जाती थी.

आतेजाते दोनों में गहरी दोस्ती हो गई थी. वैदिका का पति सत्येंद्र मूलरूप से बिल्हौर थाने के कल्वामऊ गांव का रहने वाला था. बेहतर जिंदगी की उम्मीद से वह कानपुर शहर आया था. सत्येंद्र प्राइवेट नौकरी करता था, जबकि वैदिका ब्यूटी पार्लर चलाने लगी थी.

प्रीति ने भी ब्यूटीशियन का कोर्स कर रखा था, अत: सहेली के घर आतेजाते उस ने वैदिका से ब्यूटी पार्लर खोलने की इच्छा जाहिर की. वैदिका ने भरपूर मदद का आश्वासन दिया तो प्रीति ने श्याम नगर में अपने घर से कुछ दूरी पर एक दुकान किराए पर ले ली. फिर वैदिका की मदद से दुकान को सजा कर ब्यूटी पार्लर चलाने लगी.

चूंकि प्रीति व्यवहारकुशल, हंसमुख और सुंदर थी, इसलिए कुछ ही माह बाद उस का ब्यूटी पार्लर अच्छी तरह चलने लगा. उस के यहां महिलाओं, लड़कियों की भीड़ उमड़ने लगी. उसे अच्छी आमदनी होने लगी थी. प्रीति सहेली वैदिका की भी आर्थिक मदद करने लगी.

प्रीति की अपनी भाभी कंचन से खूब पटती थी. कंचन की बेटी का नाम परी था. परी अपनी बुआ प्रीति से खूब हिलीमिली थी. प्रीति भी परी को खूब प्यार करती थी. जनवरी 2019 में परी एक दिन अकस्मात बीमार पड़ गई. मनीष ने उसे हैलट अस्पताल के न्यूरो साइंस वार्ड में इलाज हेतु भरती कराया. चूंकि परी प्रीति से बहुत प्यार करती थी, इसलिए उस ने परी की देखभाल के लिए हैलट अस्पताल में डेरा जमा लिया.

हैलट अस्पताल में ही प्रीति की मुलाकात प्रशांत द्विवेदी से हुई. प्रशांत द्विवेदी न्यूरो साइंस डिपार्टमेंट का कर्मचारी था. परी की देखभाल के लिए उस का आनाजाना लगा रहता था.

प्रशांत के पिता पुलिस विभाग में हैडकांस्टेबल थे और औरेया जिले के फफूंद थाने में तैनात थे. प्रशांत ने खूबसूरत प्रीति को देखा तो वह उस के दिल में रचबस गई. परी की देखभाल के बहाने प्रशांत प्रीति से नजदीकियां बढ़ाने लगा. वह शरीर से हृष्टपुष्ट व दिखने में स्मार्ट था. प्रीति को भी उस की नजदीकी और लच्छेदार बातें अच्छी लगने लगीं. उस के दिल में प्रशांत के प्रति प्यार उमड़ने लगा.

एक दिन प्रशांत ने मौका देख कर प्रीति का हाथ थाम लिया और बोला, ‘‘प्रीति मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. यदि मुझे तुम्हारा साथ मिल जाए तो मेरा जीवन सुधर जाएगा. तुम्हारे बिना अब मैं खुद को अधूरा समझने लगा हूं. बोलो दोगी मेरा साथ?’’

प्रीति अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली, ‘‘प्रशांत, प्यार तो मैं भी तुम्हें करने लगी हूं. लेकिन तुम्हें पता नहीं है कि मैं शादीशुदा हूं. कोर्ट में पति से मेरा तलाक का मामला चल रहा है.’’

‘‘मुझे तुम्हारे बीते कल से कोई मतलब नहीं. रही बात तलाक की तो आज नहीं तो कल निपट ही जाएगा. मैं बस तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं.’’

‘‘मुझे डर लग रहा है प्रशांत, कहीं तुम ने धोखा दे दिया तो?’’ प्रीति ने आशंका जताई.

‘‘कैसी बातें कर रही हो प्रीति, मैं तुम्हारा साथ जीवन भर निभाऊंगा.’’ प्रशांत ने वादा किया.

इस के बाद प्रीति और प्रशांत का प्यार परवान चढ़ने लगा. दोनों साथ घूमनेफिरने और मौजमस्ती करने लगे. उन के बीच की सारी दूरियां मिट गईं. देह संबंध भी बन गए. प्रीति ने अपने और प्रशांत के बारे में अपनी सहेली को भी बता दिया था. प्रशांत और प्रीति, वैदिका के घर मिलने लगे थे.

जब कभी उन का मिलन नहीं हो पाता था, तब दोनों मोबाइल फोन पर बतिया कर अपने दिल की बात एकदूसरे को बता देते थे. प्रीति के भाई को दोनों के प्रेमिल संबंधों का पता चल गया था, लेकिन वह कभी इस का विरोध नहीं करता था.

एक दिन प्रीति ने प्रशांत के सामने शादी का प्रस्ताव रखा तो उस ने टाल दिया. शादी को ले कर दोनों में विवाद भी हुआ. लेकिन प्रशांत ने यह कह कर प्रीति को शांत कर दिया कि हम तलाक के बाद तुरंत शादी कर लेंगे. क्योंकि तलाक के पहले शादी करने से तुम मुसीबत में फंस सकती हो. प्रीति को यह बात समझ में आ गई और उस ने शादी की रट छोड़ दी.

इधर प्रीति प्रशांत के साथ मौजमस्ती कर रही थी, जबकि उस की सहेली वैदिका की आर्थिक हालत बहुत खराब हो गई थी. दरअसल, वैदिका के पति सत्येंद्र की नौकरी छूट गई थी और उस का पार्लर भी बंद हो गया था.

उस के ऊपर कई महीने का मकान का किराया बकाया था. अन्य लोगों से लिया कर्ज भी बढ़ गया था. ऊपर से प्रीति ने भी मदद देनी बंद कर दी थी. ऐसे में उसे कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि वह कर्ज कैसे चुकाए या फिर मकान का किराया कैसे भरे.

एक दिन प्रीति वैदिका के घर आई तो उस की नजर प्रीति के शरीर के आभूषणों पर पड़ी, जो लगभग 2 लाख के थे. आभूषण देख कर वैदिका ने पति सत्येंद्र के साथ मिल कर सहेली प्रीति से घात करने की योजना बनाई. इस के बाद वह समय का इंतजार करने लगी.

30 जुलाई, 2019 को वैदिका अपने पति सत्येंद्र के साथ प्रीति के घर पहुंची. उस ने बताया कि वह ब्यूटी पार्लर का सामान बेच रही है, चल कर देख लो और जो तुम्हारे मतलब का हो उसे खरीद लो.

प्रीति सहेली की चाल समझ नहीं पाई और उस के साथ उस के घर पर आ गई. घर पर वैदिका ने उस का खूब आदरसत्कार किया. प्रीति जाने लगी तो उस ने यह कह कर रोक लिया कि खाना खा कर जाना. वैदिका ने शाम को खाना बनाया फिर रात 8 बजे तीनों ने बैठ कर खाना खाया.

खाना खाने के बाद प्रीति पलंग पर लेट गई. तभी वैदिका और सत्येंद्र ने प्रीति को दबोच लिया. वह चिल्लाने लगी तो सत्येंद्र ने उस के मुंह में कपड़ा ठूंस दिया और वैदिका ने प्रीति के दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया.

प्रीति की हत्या के बाद वैदिका और सत्येंद्र ने मिल कर प्रीति के गले की सोने की चैन, 2 अंगूठी, सोने का कड़ा, कान की बाली और नाक की लौंग उतार ली. इतना ही नहीं, वैदिका ने प्रीति के पर्स से नकद रुपया, मोबाइल तथा एटीएम कार्ड भी निकाल लिया.

इस के बाद दोनों ने मिल कर प्रीति के शव को प्लास्टिक की बोरी में तोड़मरोड़ कर भरा और मोटरसाइकिल पर रख कर न्यू आजाद नगर की ग्रामसमाज की खाली पड़ी जमीन पर फेंक आए. आभूषणों और नकदी को सुरक्षित कर के उन्होंने मोबाइल व पर्स को घर में छिपा दिया.

इधर जब प्रीति देर रात तक नहीं लौटी तो विद्याशंकर शर्मा को चिंता हुई. उन्होंने वैदिका से पूछा तो उस ने बता दिया कि प्रीति सामान ले कर वापस घर चली गई थी. जब 2 दिन तक प्रीति का कुछ पता नहीं चला तो विद्याशंकर गुमशुदगी दर्ज कराने श्यामनगर चौकी गए पर पुलिस ने उन्हें टरका दिया.

उधर 2 अगस्त, 2019 को कुछ मजदूरों ने एक प्लास्टिक बोरी में लाश देखी, जिसे कुत्ते नोच रहे थे. मजदूरों ने ठेकेदार को बताया. तब ठेकेदार ने लाश की सूचना थाना विधनू की पुलिस को दी. विधनू थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने केस की जांच की तो सारे भेद खुल गए.

6 अगस्त, 2019 को थाना विधनू पुलिस ने अभियुक्त सत्येंद्र तथा वैदिका को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जिला कारागार भेज दिया गया. मामले की विवेचना थानाप्रभारी कर रहे हैं.द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पहलवान का वार : अनजान लड़की बनी मौत का कारण

11अगस्त, 2019 को सुबह करीब साढ़े 5 बजे का वक्त था. मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के बसंतपुर तिगेला

गांव के लोग खेतों की तरफ जा रहे थे, तभी उन्हें गांव के कच्चे रोड पर किसी व्यक्ति की डैडबौडी पड़ी दिखी. किसी ने इस की सूचना फोन द्वारा चंदला थाने को दे दी.

सुबहसुबह लाश मिलने की सूचना मिलते ही टीआई वीरेंद्र बहादुर सिंह घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए. जब वह घटनास्थल पर पहुंचे तो कच्ची सड़क पर एक आदमी का खून से लथपथ शव पड़ा था. इस की सूचना टीआई ने एसपी (छतरपुर) तिलक सिंह को दे दी. टीआई वीरेंद्र बहादुर सिंह ने लाश का मुआयना किया तो उस के शरीर पर गोलियों के घाव दिखे. मृतक की उम्र 40-45 साल के बीच रही होगी.

चूंकि वहां मौजूद लोगों में से कोई भी उसे नहीं पहचान सका, इसलिए लगा कि उसे कहीं दूसरी जगह से ला कर यहां मारा गया था. पहनावे से वह मुसलमान लग रहा था. पुलिस ने इस की पुष्टि के लिए उस के कपड़े हटा कर देखे तो साफ हो गया कि मृतक मुसलिम ही है.

तलाशी लेने पर मृतक की जेब में एक मोबाइल फोन मिला. उस मोबाइल की काल हिस्ट्री देखी गई तो पता चला कि 10 अगस्त को उस ने एक नंबर पर आखिरी बार बात की थी. जिस नंबर पर आखिरी बार बात हुई थी, टीआई वीरेंद्र सिंह ने उस नंबर पर बात की.

वह नंबर उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले के बसेला गांव में रहने वाले ताहिर खान का निकला. ताहिर खान ने टीआई को बताया कि यह नंबर उस के पिता आशिक अली का है, जो इन दिनोें पन्ना जिले के धरमपुर में रहते हैं.

यह जानने के बाद टीआई सिंह ने बरामद शव का फोटो खींच कर ताहिर के वाट्सऐप पर भेजा. फोटो देखते ही ताहिर ने शव की पहचान अपने पिता आशिक अली के रूप में कर दी. टीआई ने ताहिर को चंदला थाने पहुंचने को कहा और जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

अगले दिन ताहिर अपने रिश्तेदारों के साथ मध्य प्रदेश के चंदला थाने पहुंच गया. पुलिस ने मोर्चरी में रखी लाश ताहिर और उस के घर वालों को दिखाई तो वे सभी लाश देखते ही रोने लगे. उन्होंने उस की शिनाख्त आशिक अली के रूप में की.

इस के बाद टीआई ने ताहिर खान से उस के पिता और परिवार के बारे में विस्तार से बात की तो कई चौंकाने वाली जानकारियां मिलीं.

पता चला कि मरने वाला आशिक अली दूध का धुला नहीं था. वह हमीरपुर का तड़ीपार बदमाश था, जो जिलाबदर होने के बाद पन्ना जिले के धरमपुर कस्बे में आ कर रहने लगा था. कहावत है कि चोर चोरी करना भले ही छोड़ दे लेकिन हेराफेरी से बाज नहीं आता.

साफ था कि आशिक अली ने धरमपुर आ कर अपने पुराने कामों से पूरी तरह संन्यास नहीं लिया होगा, धरमपुर में भी उस की कुछ तो आपराधिक गतिविधियां जरूर रही होंगी. इसलिए एसपी छतरपुर को मृतक के संबंध में पूरी जानकारी देने के बाद उन के निर्देश पर टीआई वीरेंद्र सिंह मामले की जांच करने के लिए पुलिस टीम ले कर धरमपुर पहुंच गए.

धरमपुर पन्ना जिले का छोटा सा मुसलिम बाहुल्य कस्बा है. कुछ समय पहले वीरेंद्र सिंह इस जिले में तैनात रह चुके थे, इसलिए उन्हें उस क्षेत्र की अच्छी जानकारी थी. धरमपुर पहुंच कर उन्होंने अपने तरीके से आशिक अली के बारे में जानकारी जुटाई तो जल्दी ही उस की पूरी जन्मकुंडली उन के सामने आ गई.

हमीरपुर से जिलाबदर कर दिए जाने के बाद अपने समाज के लोगों की बहुतायत देख कर आशिक अली धरमपुर आ कर बस गया था, जहां उसी के समाज के कुछ लोगों ने उस की मदद की.

दोनों बदमाशों की मिली कुंडली वहां पैर जमने के बाद आशिक अली ठेके और बंटाई पर जमीन ले कर खेतीकिसानी करने लगा. उस ने कुछ घोड़े भी पाल लिए थे, जिन का उपयोग वह शादीविवाह में करता था. फिर वह घोड़ों की खरीदबिक्री का काम भी करने लगा था. यहां आ कर वह सीधे तौर पर तो किसी अपराध से नहीं जुड़ा था, लेकिन पुराना अपराधी होने की ठसक उस के अंदर से पूरी तरह से गई नहीं थी. जिले के अलावा आसपास के दूसरे कई बदमाशों से उस की दोस्ती हो गई थी.

लोगों ने बताया कि लगभग 3-4 महीने से आशिक अली ने अपने घर पर छतरपुर जिले के लवकुश नगर निवासी बफाती पहलवान को पनाह दी हुई थी. दोनों की कुंडली मिलने का बड़ा कारण यह था कि बफाती भी आशिक अली की तरह छतरपुर का जिलाबदर बदमाश था. इसलिए बफाती के आ जाने के बाद दोनों मिल कर बदमाशी के क्षेत्र में उठापटक करने लगे थे.

बफाती अपने साथ लगभग 14 साल की निहायत ही खूबसूरत लड़की सलमा खातून को ले कर आया था. पहले तो लोगों का अनुमान यही था कि सलमा खातून बफाती की बेटी होगी, लेकिन ऐसा नहीं था. सलमा बफाती की बेटी की उम्र की थी. वह सलमा को भगा कर लाया था. यह बात वहां के लोगों को अच्छी नहीं लगी, पर बफाती का विरोध करने की हिम्मत कोई नहीं कर सका. अलबत्ता कुछ लोगों ने आशिक अली से जरूर इस बारे में समाज की नापसंद जाहिर कर दी.

इतनी जानकारी टीआई वीरेंद्र सिंह को यह समझने के लिए काफी थी कि आशिक की हत्या की कहानी इसी प्रेम कहानी में कहीं छिपी हो सकती है. लेकिन इस के लिए यह जानना जरूरी था कि बफाती के साथ आई किशोर उम्र की सलमा खातून आखिर कौन थी और वह बफाती के हाथ कैसे लगी. इस बारे में जानकारी जुटाने पर पता चला कि आशिक, बफाती और सलमा खातून के गांव से एक साथ गायब होने से कुछ दिन पहले महोबा थाने का एक सिपाही सलमा खातून के बारे में पूछताछ करता हुआ धरमपुर आया था.

इस पर टीआई वीरेंद्र सिंह ने महोबा पुलिस से संपर्क किया, जिस में पता चला कि छतरपुर से जिलाबदर होने के बाद बफाती महोबा की कांशीराम कालोनी में बिच्छू पहाड़ी के पास किराए के मकान में रह रहा था.

सलमा खातून उस के पड़ोसी परिवार की बेटी थी. बफाती ने सलमा खातून को अपने जाल में फांस लिया था, जिस के बाद जून महीने में वह उसे महोबा से ले कर लापता होने के बाद धरमपुर में आशिक अली के साथ रह रहा था.

टीआई सिंह ने सलमा खातून की मां मुबीन और पिता मकबूल हुसैन से भी पूछताछ की, जिस में उन्होंने बताया कि कुछ दिन पहले एक अज्ञात आदमी ने उन्हें फोन कर हमारी बेटी के धरमपुर में होने की खबर दी थी. यह जानकारी हम ने महोबा पुलिस को दे दी थी.

कहीं वह अज्ञात व्यक्ति आशिक अली ही तो नहीं था, जिस ने सलमा के मातापिता को खबर दी थी? क्योंकि बफाती और सलमा को ले कर गांव के लोग आशिक अली से अपना विरोध जता चुके थे.

अब पुलिस को बफाती पर शक होने लगा. गांव के कुछ लोगों ने बताया कि घटना वाले दिन 11 अगस्त को सुबह 4-5 बजे बफाती, आशिक और सलमा एक ही बाइक से कहीं जाते हुए देखे गए थे. इस से बफाती पर शक और गहरा गया. टीआई वीरेंद्र सिंह अपनी टीम के साथ बफाती की तलाश में जुट गए.

इस के लिए उन्होंने बफाती के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई, जिस से पता चला कि आशिक अली की लाश मिलने के बाद बफाती ने अपने नंबर से सलमा खातून की मां और उस के बाप को फोन किया था. इस के बाद उस का मोबाइल बंद हो गया था. टीआई ने इन दोनों से पूछताछ की, जिस में उन्होंने चौंका देने वाली बात बताई.

सलमा खातून की मां मुबीन और बाप मकबूल हुसैन ने बताया कि उन्हें बफाती ने फोन पर बताया था कि आशिक अली ने हमारी मुखबिरी कर के अपनी मौत को बुलावा दिया है. इसलिए मैं ने उस का कत्ल कर दिया है. अब तुम भी अपनी बेटी सलमा को भूल जाओ वरना तुम्हें भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा.

बफाती छंटा हुआ पुराना बदमाश था. पुलिस से बचने के लिए उस ने अपना मोबाइल बंद कर रखा था, इसलिए टीआई उस तक पहुंचने के दूसरे रास्तों की निगरानी करने लगे. जिस के चलते पुलिस को जल्द ही बफाती द्वारा एटीएम से पैसे निकालने की जानकारी मिली. यह छोटा सा सुराग बड़ी सफलता का साधन बन सकता था.

पुलिस को पता कि बफाती ने जिस एटीएम से पैसे निकाले हैं, वह पन्ना जिले में छानी गांव के पास है. टीम छानी पहुंच गई. वहां के लोगों को पुलिस ने बफाती का फोटो दिखा कर पूछताछ की तो वहां के एक दुकानदार ने बताया कि यह आदमी कुछ दिन पहले उस की दुकान पर आया था. लोगों से उस की मोटरसाइकिल का नंबर भी मिल गया. आरटीओ से जानकारी ली गई तो पता चल गया कि मोटरसाइकिल बफाती खान के नाम से रजिस्टर्ड है.

पुलिस को देख कर डरा नहीं बफाती बफाती छानी में था, इसलिए टीआई वीरेंद्र सिंह भी वहां पहुंच गए. जिस के बाद एकएक कदम बढ़ाते हुए वह गांव के बाहर खेत में बने अल्ताफ के टपरे तक जा पहुंचे, जहां एक कोने में बफाती बेसुध सो रहा था. आहट होने पर उस की आंखें खुल गईं.

अपने सामने पुलिस देख वह चौंका तो लेकिन डरा नहीं. उस ने पास में छिपा कर रखा हथियार निकालने की कोशिश की तो टीआई ने उसे कब्जे में ले लिया. सलमा भी यहीं थी. पुलिस ने उसे भी हिरासत में ले लिया. बफाती की तलाशी ली गई तो उस के पास 315 बोर का देशी कट्टा और 6 जिंदा कारतूस बरामद हुए. पुलिस उसे गिरफ्तार कर थाने ले आई.

थाने ला कर टीआई वीरेंद्र सिंह ने बफाती से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने आशिक की हत्या करने की बात कबूल कर ली. बफाती ने यह भी बताया कि आशिक अली ने सलमा के मामले में उस की मुखबिरी सलमा के मातापिता से की थी. इसी वजह से उस ने उस का कत्ल कर दिया. बफाती के एक नामी पहलवान से कातिल बनने की कहानी इस प्रकार सामने आई.

बफाती मूलरूप से छतरपुर जिले के लवकुश नगर कस्बे का रहने वाला था. मजबूत कदकाठी का होने के कारण उसे छोटी सी उम्र में ही पहलवानी का शौक लग गया था. कहते हैं कि 16 साल की उम्र में आतेआते वह पहलवानी में इतना माहिर हो गया कि अपने से डेढ़ गुना बड़ी उम्र के पहलवान को पलक झपकते धूल चटा देता था. इस से जल्द ही पूरे जिले में उस के नाम की तूती बोलने लगी. लंगोट कस कर बफाती अखाड़े में उतरता तो लोग तालियों और शोरशराबे से उस का स्वागत करते थे.

लेकिन वह पहलवानी के दांवपेंच में जितना पक्का था, लंगोट का उतना ही कच्चा. उस के संबंध कई कमसिन उम्र की लड़कियों से थे. गांव में एक तो ऐसे मामले खुल कर सामने नहीं आ पाते, दूसरे किसी को भनक लगती तो वह उस की पहलवानी की ताकत के डर से मुंह नहीं खोलता था. इस से कुछ समय बाद बफाती को अपनी ताकत पर घमंड हो गया.

धीरेधीरे बफाती का डंका पूरे इलाके में बजने लगा तो कुछ राजनीतिक लोग बाहुबल के लिए बफाती का इस्तेमाल करने लगे. जिस का फायदा उठा कर वह गैरकानूनी कामों से पैसा बनाने लगा. फिर जल्द ही वह इलाके में अवैध शराब के कारोबार का सरगना बन गया. ऐसे में दूसरे बदमाशों से उस का टकराव हुआ भी तो बफाती ने अपने बाहुबल पर सब को किनारे लगा दिया.

किसी के साथ भी मारपीट करना उस के लिए आम बात हो गई थी, जिस के चलते धीरेधीरे बफाती के खिलाफ लवकुश नगर थाने में दर्ज मामलों की गिनती बढ़ने लगी. साथ ही उस के अपराध भी गंभीर होते गए.

बफाती के आपराधिक रिकौर्ड के कारण मध्य प्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनावों से पहले उसे छतरपुर से जिलाबदर कर दिया गया. इस के बाद वह पास ही उत्तर प्रदेश के मुसलिम बाहुल्य महोबा शहर में जा कर वहां की कांशीराम कालोनी में किराए पर रहने लगा.

नाबालिग लड़कियों का शौकीन था बफाती महोबा के बफाती के घर के ठीक सामने 14 वर्षीय सलमा खातून अपने मातापिता के साथ रहती थी. बफाती कमसिन उम्र की लड़कियों को अपने जाल में फांसने में एक्सपर्ट था. खूबसूरत सलमा को देख कर वह उस का दीवाना हो गया. सलमा के मातापिता गरीब थे और बफाती के पास अवैध कमाई की दौलत थी. उस ने सलमा के पिता मकबूल हुसैन को दूल्हाभाई कहते हुए सलमा का मामू बन कर उस के घर में पैठ बना ली.

इस दौरान वह सलमा खातून के घर पर काफी पैसा लुटाते हुए उस पर डोरे डालता रहा, जिस से सलमा जल्द ही उस के जाल में फंस गई. इस के बाद वह जबतब उस के घर जाने लगा. मौका मिलने पर वह सलमा को अपने कमरे पर भी बुला लेता. फिर एक दिन वह उसे ले कर महोबा से फरार हो गया.

सलमा के लापता हो जाने से मोहल्ले में हल्ला मच गया. रिपोर्ट हुई तो पुलिस ने मोहल्ले के कई लड़कों को शक के आधार पर कई दिनों तक थाने में बैठाए रखा. सलमा खातून को बफाती ले कर भागा है, यह बात काफी दिनों बाद लोगों की समझ में आई.

इधर सलमा खातून को ले कर बफाती सीधे पन्ना के धरमपुर में रहने वाले आशिक अली के पास पहुंचा. आशिक खुद भी जिलाबदर होने के कारण धरमपुर में रह रहा था. बफाती से उस की पुरानी दोस्ती थी, इसलिए उस ने उसे अपने घर में शरण दे दी.

धरमपुर मुसलिम बाहुल्य कस्बा है, जिस से वहां के लोगों ने जिस तरह कभी आशिक को हाथोंहाथ लिया था, वैसे ही बफाती की भी मदद की. दरअसल वे सलमा खातून को बफाती की बेटी समझे थे. लेकिन जब उन्होंने सलमा के साथ उस की हरकतें देखीं तो उन्हें बफाती संदिग्ध लगा.

गांव में सलमा खातून की उम्र की कई लड़कियां थीं, जिन से उस की दोस्ती भी हो गई थी. गांव वालों को लगा कि अपने बाप की उम्र के मर्द के साथ रखैल के रूप में रहने वाली सलमा की संगत का असर उन के बच्चों पर भी हो सकता है, इसलिए उन्होंने अपनी बेटियों के उस से मिलने पर पाबंदी लगा दी.

चूंकि आशिक ने बफाती को शरण दी थी, इसलिए गांव वाले इस स्थिति के लिए आशिक को दोषी मानने लगे. उन्होंने इस की शिकायत आशिक से की. उन्होंने कहा कि वह अपने इस दोस्त को यहां से रवाना करे.

दोस्त बना दुश्मन आशिक खुद भी बफाती की इस हरकत से परेशान था. क्योंकि वह कभी भी कहीं भी सलमा के साथ अय्याशी करने लगता था. इस के लिए वह किसी की शर्मलिहाज नहीं करता था. हालांकि बफाती के आने से आशिक को कई फायदे हुए थे. उस के मजबूत कसरती बदन के कारण लोग आशिक अली से भी डरने लगे थे.

फिर भी आशिक अली को उस का सलमा के साथ रहना अखरने लगा था. उस ने इस बात का बफाती से सीधे विरोध करने के बजाय दूसरा रास्ता निकाला. सलमा खातून आशिक को मामू कहती थी, इस बात का फायदा उठा कर उस ने धीरेधीरे सलमा से उस के घर का पता पूछ लिया. साथ ही उस ने बफाती के कुछ पुराने कर्मों की जानकारी भी सलमा को दी ताकि वह बफाती से नफरत करने लगे.

यह जानने के बाद आशिक ने अपने महोबा  के एक दोस्त द्वारा सलमा खातून के धरमपुर में होने की जानकारी उस के मातापिता को भिजवा दी. खबर पा कर कुछ रोज पहले महोबा पुलिस का एक सिपाही धरमपुर आ कर सलमा खातून से पूछताछ करने लगा.

इस बात की जानकारी मिलने पर बफाती चौंका. क्योंकि सलमा कहां की रहने वाली है, यह बात उस ने आशिक को भी नहीं बताई थी. इसलिए उस ने खुद सलमा से गुप्त तरीके से जानकारी ली, जिस में उस ने बता दिया कि आशिक मामू ने उस से पूछा था इसलिए उस ने बता दिया कि वह महोबा के कांशीराम कालोनी की रहने वाली है.

यहीं से बफाती को शक हो गया कि आशिक ने ही उस की मुखबिरी की है. संयोग से इसी बीच सलमा ने बफाती से पहले उस की प्रेमिका रही एक दूसरी नाबालिग लड़की के बारे में पूछा तो बफाती को पूरा भरोसा हो गया कि आशिक उसे डबलक्रौस कर रहा है.

बफाती ने दुश्मन को माफ करना सीखा ही नहीं था. इसलिए सलमा को अपनी रखैल बनाए रखने के लिए उस ने धरमपुर छोड़ने के साथसाथ आशिक को भी ठिकाने लगाने की ठान ली.

इस काम को अंजाम देने के लिए बफाती ने आशिक को जरा भी शक नहीं होने दिया कि उस ने उसे सबक सिखाने के लिए क्या योजना बना रखी है. 11 अगस्त, 2019 को उस ने आशिक से कहा कि महोबा पुलिस को मेरी जानकारी लग चुकी है, इसलिए अब इस गांव में रहना ठीक नहीं है. उस ने गांव छोड़ने की बात कहते हुए दोस्ती के नाते आशिक को भी साथ चलने को कहा.

बफाती के गांव से जाने की बात सुन कर आशिक खुश हो गया. लेकिन बफाती अपना इरादा न बदल दे, इसलिए उस के साथ गांव छोड़ने को राजी भी हो गया. उस का विचार था कि बफाती कहीं और जम जाएगा तो वह खुद धरपुर वापस आ जाएगा, लेकिन बफाती ने कुछ और ही सोच रखा था. 11 अगस्त को सुबह लगभग 4-5 बजे बफाती अपनी बाइक पर सलमा और आशिक को ले कर गांव से निकल पड़ा.

लगभग एक घंटे के बाद बसंतपुर तिगेला आ कर बफाती ने गुटखा खाने के बहाने बाइक रोक दी, जिस के बाद बाइक से नीचे उतरते ही कमर में खोंस कर रखे देशी कट्टे से आशिक के ऊपर एक के बाद एक 3 गोलियां दागीं, जिस से उस की मौत हो गई. उस की लाश को वहीं पड़ा छोड़ कर वह सलमा के साथ पन्ना के छानी गांव में रहने वाले अपने दोस्त अल्ताफ के पास चला गया.

पुलिस ने बफाती की मदद करने के आरोप में अल्ताफ के खिलाफ भी भादंवि की धारा 212 एवं 216 के तहत काररवाई की. पुलिस ने बफाती से पूछताछ के बाद उसे व उस के दोस्त अल्ताफ को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. कथा लिखने तक महोबा पुलिस भी बलात्कार, अपहरण एवं पोक्सो एक्ट के तहत बफाती को अदालत से रिमांड पर ले कर महोबा ले जाने की काररवाई कर रही थी.द्य

—कथा में सलमा खातून परिवर्तित नाम है