जुल्मी से प्यार : सनकी प्रेमी से छुटकारा – भाग 3

किसी दिन दीपेंद्र और अंकिता को कहीं एकांत में प्रेमी-प्रेमिका की तरह सट कर बैठे अंकिता के मंगेतर विशाल ने देख लिया. उस समय तो उस ने कुछ नहीं कहा, लेकिन शाम को वह अंकिता के घर पहुंच गया. वहां भी उस ने अंकिता से कुछ कहने के बजाय अपने होने वाले ससुर राजा से कहा. ‘‘बाबूजी, आप ने अंकिता की शादी तय तो मेरे साथ की है, लेकिन यह गुलछर्रे किसी और के साथ उड़ा रही है. आप इसे रोकिए, वरना मैं यह रिश्ता तोड़ दूंगा.’’

‘‘ऐसा मत करना बेटा, मैं अंकिता को समझाऊंगा.’’ राजा ने विशाल को समझाने की कोशिश की.

विशाल के जाने के बाद राजा ने अंकिता से पूछा, ‘‘बेटी, विशाल जो कह रहा था, क्या वह सच था? कहीं वह तुम्हें बदनाम कर के यह रिश्ता तो नहीं तोड़ना चाहता? बेटी मुझे तुम पर पूरा भरोसा है, इस के बावजूद सच्चाई जानना चाहता हूं.’’

‘‘पापा, विशाल जो कह रहा था, वह सच है. उस ने मुझे दीपेंद्र के साथ देख लिया था. दीपेंद्र और मैं एकदूसरे से प्यार करते हैं, इसलिए अकसर मिलते रहते हैं.’’ अंकिता ने सच्चाई बता दी.

अंकिता ने जो बताया, उसे सुन कर राजा के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उन्होंने कहा, ‘‘बेटी, तुम्हारी शादी विशाल से तय हो चुकी है. इसलिए तुम्हारा दीपेंद्र से एकांत में मिलना ठीक नहीं है. ठीक होते ही मैं तुम्हारी शादी उस के साथ कर दूंगा, इसलिए अब तुम दीपेंद्र से मिलनाजुलना बंद कर दो.’’

अंकिता की मां मीना ने भी प्यार से समझाया, ‘‘बेटी, तू दीपेंद्र से मिलनाजुलना बंद कर दे, इसी में हम सब की भलाई है. दीपेंद्र और हमारी जाति अलगअलग है, इसलिए उस के घर वाले कभी तेरी शादी उस के साथ नहीं करेंगे. तेरी सगाई हो चुकी है. 2 नावों पर पैर रखना ठीक नहीं है.’’

मांबाप की नसीहत अंकिता को उचित तो लगी, लेकिन वह उस पर अमल नहीं कर सकी. क्योंकि दीपेंद्र से मिलने से वह खुद को एकदम से रोक नहीं पा रही थी. लेकिन पहले से कुछ कम जरूर कर दिया था.

दीपेंद्र उसे मिलने के लिए पार्क या रेस्टोरेंट में बुलाता तो वह कोई न कोई बहाना बना कर मना कर देती. जबकि दीपेंद्र मानता ही नहीं. वह नाराज हो कर उसे जलील करने लगता. कभीकभी तो वह रास्ते में ही उस का हाथ पकड़ लेता और साथ चलने की जिद करने लगता. यही नहीं, मना करने पर वह गालीगलौज और मारपीट पर उतारू हो जाता.

दीपेंद्र की इन हरकतों से अंकिता परेशान रहने लगी. वह उस से डरने लगी. होली के त्योहार पर दीपेंद्र ने अंकिता का हाथ पकड़ा और जबरदस्ती साथ ले जाने लगा. अंकिता ने मना किया तो उस ने गालीगलौज तो की ही, उस पर हाथ भी उठा दिया. दीपेंद्र की इस हरकत से परेशान हो कर अंकिता ने अपने मंगेतर विशाल से उस की शिकायत कर दी. मामला पुलिस तक पहुंचा. तब पुलिस ने दोनों पक्षों में समझौता करा दिया.

पुलिस ने कोई काररवाई नहीं की तो दीपेंद्र और भी आक्रामक हो गया. वह अंकिता को मोबाइल फोन पर बात करने के लिए दबाव डालता, गंदे और अश्लील मैसेज भेजता. बात न करने या जवाब न देने पर गालीगलौज करता, धमकियां देता. डर के मारे वह कभी उस से प्यार की 2-4 बातें कर लेती तो कभी कोई बहाना बना देती. अब वह उस के साथ कहीं आनेजाने से भी बचने लगी थी. अगर कभी जाती तो मजबूरी में जाती.

इस तरह अंकिता प्रेमत्रिकोण में उलझ कर रह गई थी. दीपेंद्र सामने होता तो उसे उस की बांहों में झूलना पड़ता और जब मंगेतर विशाल सामने होता तो उसे उस की वफादार बनना पड़ता.

दीपेंद्र के घर वालों को भी अंकिता और उस के प्रेमसंबंधों के बारे में पता था. सब जानते थे कि वह अपनी कमाई उसी पर लुटा रहा है. लेकिन उन्होंने साफसाफ कह दिया था कि वह किसी भी हालत में यह शादी नहीं होने देेंगे. दीपेंद्र को समझाया भी गया था, लेकिन वह अंकिता से संबंध तोड़ने को तैयार नहीं था.

17 जुलाई को दीपेंद्र ने अंकिता से साथ चलने को कहा. उस ने मना कर दिया तो दीपेंद्र ने गालीगलौज करते हुए उसे खूब जलील किया. गालीगलौज में उस ने ऐसे ऐसे गंदे शब्दों का उपयोग किया कि अंकिता का कलेजा छलनी हो गया. उस ने उसी समय तय कर लिया कि अब किसी भी सूरत में इस आदमी से छुटकारा पाना है.

उस ने अपने मंगेतर विशाल से दीपेंद्र की शिकायत कर के उस से छुटकारा दिलाने की विनती की. इस के बाद विशाल ने अंकिता की मदद से दीपेंद्र को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली.

दीपेंद्र को ठिकाने लगाना विशाल के अकेले के वश का नहीं था, इसलिए उस ने इस योजना में अपने छोटे भाई विकास से बात की. बात घर की इज्जत की थी, इसलिए वह भाई की मदद के लिए राजी हो गया.

योजना के अनुसार अंकिता ने 20 जुलाई की दोपहर को दीपेंद्र को फोन कर के घंटे वाले मंदिर पर बुलाया. दीपेंद्र तो ऐसा मौका ढूंढता ही रहता था. वह तुरंत घंटे वाले मंदिर पर पहुंच गया. अंकिता वहां उस का इंतजार कर रही थी. दोनों बातें करने लगे. योजना के अनुसार थोड़ी देर बाद विशाल भी आ गया.

उस के आते ही अंकिता चली गई तो विशाल दीपेंद्र को बातचीत करने के बहाने घंटे वाले मंदिर के पीछे नगर निगम वर्कशौप पार्क में ले आया. पार्क में बड़ीबड़ी झाडि़यां थीं. दोपहर होने की वजह से वहां सन्नाटा पसरा था.

अंकिता को ले कर दीपेंद्र और विशाल में बातचीत शुरू हुई. जल्दी ही यह बातचीत गालीगलौज और मारपीट में बदल गई. विकास पहले से ही आ कर वहां छिपा था. दीपेंद्र और भाई के बीच मारपीट होते देख उस ने वहां पड़ी ईंट उठाई और दीपेंद्र के सिर पर दे मारी. दीपेंद्र की आंखों के सामने अंधेरा छा गया और वह लड़खड़ा कर जमीन पर गिर गया.

उस के गिरते ही विकास ने दूसरा वार कर दिया. ईंट की चोटों से दीपेंद्र बिना चीखे ही बेहोश हो गया. उस के बेहोश होते ही विशाल ने चाकू निकाला और बेरहमी से उस की गरदन रेत दी. इतने से भी उस का मन नहीं भरा तो उस ने उस का एक कान काट दिया और एक आंख फोड़ दी.

इस तरह कू्ररता से हत्या करने के बाद दोनों भाइयों ने शव को घसीट कर पार्क में सूखे पड़े कुएं में फेंक दिया. घसीटते समय ही दीपेंद्र का जूता निकल गया था, जिस ने कुएं में लाश पड़ी होने की चुगली कर दी थी.

लाश कुएं में फेंक कर विशाल ने अंकिता को फोन कर के दीपेंद्र की हत्या की सूचना दे दी. इस के बाद दोनों भाई वहां से फरार हो गए.

पुलिस ने उसी दिन घटनास्थल से वह ईंट बरामद कर ली थी, जिस से दीपेंद्र के सिर पर चोट पहुंचाई गई थी. इस के बाद विशाल की निशानदेही पर चाकू और उस के कपड़े बरामद कर लिए गए थे. सारे सुबूत जुटा कर पुलिस ने 24 जुलाई को अंकिता और विशाल को अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक विकास नहीं पकड़ा जा सका था. पुलिस उस की तलाश कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जुल्मी से प्यार : सनकी प्रेमी से छुटकारा – भाग 2

घटनास्थल पर होने वाले बवाल को तो पुलिस अधिकारियों ने समझाबुझा कर टाल दिया था, लेकिन उन के मन में जो आग जल रही थी, उसे शांत करने के लिए वे दीपेंद्र की प्रेमिका अंकिता, जिस पर हत्या का शक था, के घर जा पहुंचे. दीपेंद्र की मां आशा, बहन आरती, ज्योति, बुआ बब्बन और चाची कांति अंकिता को पकड़ कर पिटाई करने लगीं. उन्होंने उस के कपड़े भी फाड़ दिए.

अंकिता के पिता राजा और मां ने उसे छुड़ाना चाहा तो साथ आए लोगों ने उन की भी पिटाई कर दी. कपड़े फट जाने से अंकिता अर्धनग्न हो गई थी. उसी हालत में उसे घर के बाहर खींच लाया गया. लोग उस का तमाशा बना रहे थे. तभी इस बात की सूचना पा कर वहां पुलिस पहुंच गई और काफी मशक्कत कर के भीड़ से निकाल कर उसे थाने ले आई.

दीपेंद्र के घर वालों ने अंकिता और उस के मंगेतर विशाल पर हत्या का आरोप लगाया था. अंकिता गिरफ्त में आ चुकी थी. अब विशाल को गिरफ्तार करना था.

पुलिस ने जब मुखबिरों से विशाल के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि वह बकरमंडी ढाल पर मौजूद है. थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह यादव पुलिसबल के साथ वहां पहुंचे और मुखबिर की निशानदेही पर विशाल को गिरफ्तार कर लिया. उसे थाना कर्नलगंज ले आया गया. इस तरह लाश मिलने वाले दिन ही यानी 23 जुलाई को दोनों अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया गया.

थाने में विशाल से दीपेंद्र की हत्या के बारे में पूछा गया तो बड़ी आसानी से उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने पुलिस को बताया कि मंगेतर अंकिता और भाई विकास की मदद से उस ने दीपेंद्र की हत्या की थी. इस के बाद अंकिता से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि वह दीपेंद्र से प्यार करती थी. लेकिन उस की जिद, गालीगलौज और धमकियों से परेशान हो कर उस ने अपने मंगेतर विशाल से कह कर उस की हत्या करा दी थी.

विशाल और अंकिता ने दीपेंद्र की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. इसलिए थाना कर्नलगंज पुलिस ने मृतक दीपेंद्र की मां आशा देवी की ओर से उस की हत्या का मुकदमा विशाल, विकास और अंकिता के खिलाफ दर्ज कर विस्तार से पूछताछ की. इस पूछताछ में प्रेमत्रिकोण में हुई हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.

उत्तर प्रदेश के महानगर कानपुर के थाना कर्नलगंज का एक मोहल्ला है मकराबर्टगंज. इसी मोहल्ले में राजा अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी मीना के अलावा 2 बेटियां अंकिता उर्फ लाडो और सुनीता थीं. राजा प्राइवेट नौकरी करता था, जिस के वेतन से किसी तरह गुजरबसर हो रहा था.

राजा की आर्थिक स्थिति भले ही बहुत अच्छी नहीं थी, लेकिन संयोग से उस की दोनों ही बेटियां बहुत खूबसूरत थीं. बड़ी बेटी अंकिता थोड़ा आजाद खयाल की थी. उसे सहेलियों के साथ घूमनेफिरने, गप्पे लड़ाने में बड़ा मजा आता था. राजा और मीना को लगा कि अंकिता सयानी हो गई है और उस के कदम बहक सकते हैं तो वे उस की शादी के बारे में सोचने लगे. उन्होंने उस के लिए घरवर की तलाश शुरू कर दी.

उन की कोशिश का सुखद परिणाम निकला. पास के ही मोहल्ले कर्नलगंज में रहने वाला विशाल उन्हें पसंद आ गया. उस के परिवार में मातापिता के अलावा एक भाई विकास था. विशाल शरीर से हृष्टपुष्ट था ही, देखने में भी सुंदर था. लेकिन अभी वह करता धरता कुछ नहीं था. दिनभर इधरउधर घूमता रहता था. इस के बावजूद ज्यादा दानदहेज न दे पाने की वजह से राजा ने बेटी की शादी उस के साथ तय कर दी.

शादी हो पाती, उस के पहले ही राजा की तबीयत खराब हो गई. राजा की बीमारी काफी गंभीर थी. जांच में पता चला था कि उसे कैंसर है. कैंसर का इलाज काफी महंगा था. अंकिता अपनी शादी को भूल कर मां की मदद से पिता का इलाज कराने लगी. इस के लिए मीना को दूसरे के घरों में जा कर काम करना पड़ रहा था, फिर भी उस ने हिम्मत नहीं हारी.

पिता की बीमारी की वजह से अंकिता की शादी टल गई थी. मजबूरी की वजह से विशाल भी चुप था.

मकराबर्टगंज के जिस हाता नंबर 8 में अंकिता रहती थी, उसी में दीपेंद्र सैनी भी रहता था. वह सुरेंद्र मोहन सैनी का बेटा था, लेकिन उन की मौत हो चुकी थी. उस के परिवार में मां आशा देवी के अलावा एक भाई अतुल तथा 2 बहनें, अनीता और ज्योति थीं. अनीता की शादी हो चुकी थी. खातेपीते परिवार का दीपेंद्र शरीर से स्वस्थ और हंसमुख स्वभाव का था. वह मैग्ना फाइनैंस कंपनी में नौकरी करता था. आकर्षण व्यक्तित्व वाला दीपेंद्र रहता भी बनसंवर कर था.

पड़ोस में रहने की वजह से अकसर दीपेंद्र की नजर अंकिता पर पड़ जाती थी. जवानी की दहलीज पर खड़ी अंकिता धीरेधीरे उस के दिल में हलचल पैदा करने लगी. दीपेंद्र का दिल उस पर आया तो वह उस की एक झलक पाने के लिए उस के घर के चक्कर लगाने लगा. तभी उसे पता चला कि अंकिता के पिता को कैंसर हो गया है. हमदर्दी जताने के बहाने वह उस के घर आनेजाने लगा.

अंकिता ने दीपेंद्र की चाहत को भांप लिया था. इसलिए जब दीपेंद्र उस के घर आता, वह उस के आसपास ही बनी रहती और इस बात की कोशिश करती कि दीपेंद्र ज्यादा से ज्यादा देर तक उस के घर रुके. उसे रोकने के लिए ही वह उसे चाय पिए बिना नहीं जाने देती थी.

अंकिता अब दीपेंद्र की नींद हराम करने लगी थी. उसी की यादों में वह पूरी की पूरी रात करवटें बदलता रहता था. दिन में भी उस की वजह से उस का मन काम में नहीं लगता था. लगभग वही हाल अंकिता का भी था. दीपेंद्र की चाहत ने अंकिता को मंगेतर से बेवफाई के लिए मजबूर कर दिया. चाहत की आग दोनों ओर बराबर लगी थी, इसलिए दोनों को अपनेअपने दिलों की बात एकदूसरे से कहने में जरा भी झिझक नहीं हुई.

मीना पति को अस्पताल ले कर चली जाती तो अंकिता घर में अकेली रह जाती थी, क्योंकि उस की बहन भी मां की मदद के लिए उस के साथ चली जाती थी. अंकिता से मिलने का दीपेंद्र के लिए यह उचित समय होता था. जल्दी ही दोनों इस एकांत का गलत फायदा उठाने लगे. धीरेधीरे दोनों की प्रेमकहानी बढ़ती ही गई. अंकिता के शरीर पर जो हक उस के मंगेतर विशाल का होना चाहिए था, अब वह उस के प्रेमी दीपेंद्र का हो गया था.

अंकिता से प्रेमसंबंध बनने के बाद दीपेंद्र का उस के घर आनाजाना कुछ ज्यादा ही हो गया था. अंकिता से वह उस के घर में तो मिलता ही था, उसे होटल रेस्टोरेंट भी ले जाता था. कमाई का एक बड़ा हिस्सा वह अंकिता और उस के घर वालों पर खर्च करने लगा था.

वह अंकिता का पूरा खर्च तो उठाता ही था, उस के बाप के इलाज के साथसाथ घर खर्च के लिए भी पैसे देता था. उस की इस मदद से राजा और मीना भी उस के एहसानों तले दब गए थे. कहा जाता है कि जब राजा का औपरेशन हुआ था तो उस ने 50 हजार रुपए दिए थे.

जुल्मी से प्यार : सनकी प्रेमी से छुटकारा – भाग 1

मोबाइल फोन की घंटी बजते ही दीपेंद्र की नजर स्क्रीन पर चली गई. अंकिता उर्फ लाडो का  नाम देख कर उस के चेहरे पर चमक सी आ गई. झट से फोन रिसीव कर के बोला, ‘‘हैलो अंकिता कैसी हो, सब ठीक तो है?’’

‘‘कुछ भी ठीक नहीं है दीपेंद्र. मैं बहुत परेशान हूं.’’ अंकिता भर्राई आवाज में बोली.

‘‘क्या बात है, साफसाफ बताओ?’’ दीपेंद्र ने परेशान हो कर पूछा.

‘‘विशाल ने मेरा जीना दूभर कर दिया है. अभीअभी धमकी दे कर गया है कि अगर मैं तुम से मिली या बात की तो वह दोनों के हाथपैर तोड़ देगा. मेरा जी बहुत घबरा रहा है. तुम जल्दी से आ जाओ, घंटे वाले मंदिर पर मैं तुम्हारा इंतजार कर रही हूं.’’ अंकिता ने रोआंसी हो कर कहा तो दीपेंद्र ने धमकाने वाले अंदाज में कहा, ‘‘उस हरामजादे की इतनी हिम्मत कि वह तुम्हें धमकी दे. तुम बिलकुल मत घबराना. मैं अभी तुम्हारे पास पहुंच रहा हूं.’’

यह कह कर दीपेंद्र ने फोन काट दिया. इस के बाद वह तैयार होने लगा तो छोटी बहन ज्योति ने पूछा, ‘‘भैया इस समय कहां जा रहे हो?’’

‘‘कहीं नहीं, बस अभी आता हूं.’’ दीपेंद्र ने कहा.

‘‘भैया जल्दी आ जाना. अकेले घर में डर लगता है.’’ ज्योति ने कहा.

‘‘तुम अंदर से दरवाजा बंद रखना. मैं एक दोस्त से मिलने जा रहा हूं. किसी भी सूरत में डेढ़-2 घंटे में आ जाऊंगा.’’ दीपेंद्र ने कहा और घर से निकल गया. यह 20 जुलाई की दोपहर की बात है.

ज्योति घर में अकेली थी, इसलिए वह बेसब्री से भाई के वापस आने का इंतजार कर रही थी. दीपेंद्र ने डेढ़-2 घंटे में आने के लिए कहा था. उतना समय तो उस ने आसानी से बिता दिया. लेकिन जब समय ज्यादा होने लगा तो उस ने दीपेंद्र को फोन किया. पता चला, उस का फोन बंद है. उस की मां आशा छोटे भाई अतुल के साथ बड़ी बहन अनीता की ससुराल गई थीं.

इसलिए दीपेंद्र का फोन बंद होने से उसे घबराहट होने लगी. वह लगातार भाई को फोन लगाने लगी. काफी कोशिश के बाद भी जब दीपेंद्र के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो उस ने बरेली गई मां को सारी बात बता कर तुरंत घर आने को कहा.

ज्योति को लग रहा था कि भाई के साथ कुछ गड़बड़ हो गई है, इसलिए मां को सूचना देने के बाद उस ने मौसा मुकुंद वल्लभ, चचेरे भाई सागर, ज्ञान, चाची कांति और बुआ बब्बन को भी इस बात की सूचना दे दी. दीपेंद्र के घर न लौटने की जानकारी मिलते ही सभी ज्योति के घर आ गए. सलाहमशविरा कर के सभी दीपेंद्र की खोज में जुट गए. काफी कोशिश के बाद भी दीपेंद्र का कुछ पता नहीं चला. मोबाइल बंद होने की वजह से उस से संपर्क भी नहीं हो पा रहा था.

जब दीपेंद्र का कहीं पता नहीं चला तो देर रात उस के चाचा वीरेंद्र मोहन सैनी थाना कर्नलगंज पहुंचे और थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह यादव  को सारी बात बता कर गुमशुदगी दर्ज करानी चाही, लेकिन बिना गुमशुदगी दर्ज किए ही थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह यादव ने उन्हें वापस भेज दिया.

सुबह दीपेंद्र की मां आशा देवी भी बरेली से आ गईं. आते ही वह छोटे बेटे अतुल के साथ सीधे थाने गईं और थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह यादव से बताया कि उन के बेटे दीपेंद्र का अपहरण हुआ है.

थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह यादव ने पूछा, ‘‘तुम्हें कैसे पता चला कि उस का अपहरण हुआ है? किस ने और क्यों किया है उस का अपहरण?’’

‘‘साहब, विशाल और उस की मंगेतर अंकिता उर्फ लाडो ने उस का अपहरण किया है. पहले भी वह उस के साथ मारपीट कर चुका है.’’ आशा देवी ने रोते हुए कहा.

‘‘क्यों किया था मारपीट?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब, मेरा बेटा दीपेंद्र अंकिता से प्रेम करता था. जबकि अंकिता की शादी विशाल से तय थी. इसलिए विशाल को अंकिता और दीपेंद्र का मिलनाजुलना पसंद नहीं था. इसी बात को ले कर अकसर दोनों में तकरार होती रहती थी.’’ आशा देवी ने कहा.

‘‘ठीक है, तुम अभी जाओ. शाम को दीपेंद्र की 2 फोटो ले कर आना. उस के बाद हम तुम्हारी रिपोर्ट दर्ज कर लेंगे.’’ आश्वासन दे कर थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह यादव ने आशा देवी को घर भेज दिया.

दीपेंद्र के फोटो ले कर आशा देवी शाम को थाने पहुंची और थानाप्रभारी से दीपेंद्र के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करने को कहा. लेकिन बुलाने के बावजूद थानाप्रभारी ने रिपोर्ट दर्ज नहीं की. इस तरह 22 जुलाई का भी दिन बीत गया.

23 जुलाई की सुबह वीरेंद्र मोहन सैनी अपनी पालतू कुतिया को टहलाने के लिए थाना कर्नलगंज के ठीक पीछे बने नगर निगम वर्कशौप पार्क में ले गए. पार्क में बने कुएं के पास उन्हें एक जूता दिखाई दिया. जूते पर उन्हें संदेह हुआ तो उन्होंने फोन कर के घर वालों को बुला लिया. जूता देखते ही अतुल ने कहा, ‘‘अरे यह जूता तो दीपेंद्र भइया का है.’’

इस के बाद अतुल, सागर और ज्ञान ने कुएं में झांका तो उन्हें उस में एक लाश दिखाई दी.

जूते से सब को यही लगा कि कुएं में पड़ी लाश दीपेंद्र की हो सकती है. इसलिए तुरंत इस बात की सूचना थाना कर्नलगंज पुलिस को दी गई. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी अनिल कुमार सिंह यादव सिपाहियों के साथ वहां आ पहुंचे.

उन्होंने साथ आए सिपाहियों की मदद से लाश बाहर निकलवाई तो उसे देखते ही आशा देवी रोने लगीं. उन्हीं के साथ घर के अन्य लोग भी रोने लगे. वह लाश 2 दिनों से गायब आशा देवी के 30 वर्षीय बेटे दीपेंद्र की थी.

दीपेंद्र की हत्या और लाश बरामद होने की खबर आसपास के मोहल्लों तक पहुंची तो पार्क में अच्छीखासी भीड़ जमा हो गई. लोगों को लग रहा था कि अगर पुलिस ने समय पर काररवाई की होती तो उस की जान बच सकती थी. इसी बात को ले कर लोगों में गुस्सा था. सूचना पा कर एसपी (क्राइम) एम.पी. वर्मा और क्षेत्राधिकारी पी.के. चावला भी घटनास्थल पर आ गए थे.

भीड़ की नाराजगी को भांप कर उन्हें लगा कि यहां बवाल हो सकता है, इसलिए उन्होंने बजरिया, नवाबगंज, ग्वालटोली, स्वरूपनगर, काकादेव आदि थानों की पुलिस बुला ली. इस के बाद गुस्साई भीड़ को उचित काररवाई का आश्वासन दे कर समझाया और कोई अनहोनी हो, उस के पहले ही घटनास्थल की सारी काररवाई निबटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

नाजायज रिश्ते में पति की बलि

नाजायज रिश्ते में पति की बलि – भाग 3

7 नवंबर को भी प्रियंका ने सुरेंद्र को नींद की गोलियों वाला दूध पीने को दिया. लेकिन उस रात सुरेंद्र कुछ नशे में था, इसलिए उस ने दूध पीने के बजाय चारपाई के नीचे रख दिया. सुरेंद्र खर्राटे भरने लगा तो प्रियंका ने समझा कि नींद की गोलियों का असर है. फलस्वरूप उस ने अपने प्रेमी करन को बुला लिया और उस के साथ दूसरे कमरे में चली गई.

आधी रात में लघुशंका के लिए सुरेंद्र की नींद खुली तो प्रियंका बैड पर नहीं थी. वह कमरे से बाहर आया तो पास वाले कमरे का दरवाजा बंद था और भीतर से चूडिय़ों के खनकने और मस्ती की दबीदबी आवाजें गूंज रही थी. कमरे में हलकी रोशनी वाला बल्ब जल रहा था. दरवाजे में झिर्री थी.

सुरेंद्र ने झिर्री से आंख लगा कर देखा तो प्रियंका और करन एकदूसरे में समाए थे. सुरेंद्र का खून खौल उठा. उस ने दरवाजे को जोर से धकेला तो वह खुल गया. सुरेंद्र को अचानक अंदर आया देख प्रियंका और करन हक्केबक्के रह गए. दोनों कपड़े ठीक कर पाते, उस के पहले ही सुरेंद्र प्रियंका को जानवरों की तरह पीटने लगा.

करन से न रहा गया तो उस ने पिटाई का विरोध किया. इस पर सुरेंद्र और करन में गालीगलौज व मारपीट होने लगी. उसी समय प्रियंका ने प्रेमी करन को उकसाया, “आज इस बाधा को खत्म कर दो. न रहेगा बांस, न बजेबी बांसुरी.”

प्रियंका के उकसाने पर करन ने सुरेंद्र को जमीन पर पटक दिया और दोनों ने मिल कर सुरेंद्र का गला घोंट दिया. इस के बाद उन्होंने लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. सुरेंद्र के दाहिने हाथ में उस का नाम लिखा था. उसे मिटाने के लिए करन ने कुल्हाड़ी से उस का दाहिना हाथ काट डाला. इस के बाद वह हाथ और खून सनी कुल्हाड़ी गांव के किनारे से बहने वाली सेंगुर नदी में फेंक आया. लौट कर उस ने प्रियंका के साथ मिल कर लाश को चादर में लपेटा और कमरे में ही बंद कर दिया.

सुबह प्रियंका ने पड़ोसियों और अपने जेठ रघुराज को बताया कि कल सुरेंद्र मूसानगर कस्बा कुछ सामान लेने गया था, लेकिन वापस नहीं आया. रघुराज ने उस की खोज शुरू की. लेकिन कहीं उस का कुछ पता नहीं चला. उस का मोबाइल भी बंद था.  प्रियंका भी पति के लिए बेचैन थी. वह बारबार घर वालों पर दबाव डाल रही थी कि जैसे भी हो, वे लोग उन की खोज करें. जबकि सुरेंद्र की लाश घर के अंदर ही कमरे में पड़ी थी. प्रियंका और करन को उसे ठिकाने लगाने का मौका नहीं मिला था.

2 दिनों तक सुरेंद्र की लाश घर में पड़ी रही, जिस के कारण दुर्गंध फैलने लगी. यह देख कर दोनों ने गड्ढा खोद कर उसे दफनाने का फैसला किया. 9 नवंबर की रात 11 बजे जब गांव के लोग सो गए तो करन और प्रियंका ने सुरेंद्र की लाश को घर से बाहर निकाला और साइकिल पर रख कर खेतों की ओर चल दिए.

उन के गांव के बाहर पहुंचते ही कुत्ते तेज आवाज में भौंकने लगे. इस से दोनों घबरा गए. लोग जाग जाते तो उन के पकड़े जाने का डर था. इसलिए वे लाश को खेत की मेड़ पर फेंक कर घर लौट आए. 10 नवंबर की सुबह गांव के लोग दिशामैदान गए तो उन्होंने खेत की मेड़ पर हाथ कटी लाश देखी. इस से गांव भर में हडक़ंप मच गया.

रघुराज भी लाश देखने गया. लाश देखते ही वह रो पड़ा, क्योंकि लाश उस के छोटे भाई सुरेंद्र की थी. खबर पा कर प्रियंका भी पहुंची और त्रियाचरित्र दिखाते हुए बिलखबिलख कर रोने लगी.

रघुराज ने थाना मूसानगर पुलिस को सूचना दे दी. खबर मिलते ही थानाप्रभारी जितेंद्र कुमार सिंह और सीओ नरेशचंद्र वर्मा पुलिस बल के साथ आ गए. पुलिस ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तो पाया कि हत्या 2 दिन पूर्व कहीं दूसरी जगह की गई थी और शिनाख्त मिटाने के लिए हाथ काट कर कहीं और फेंका गया था. यह अनुमान इसलिए लगाया गया, क्योंकि रघुराज के अनुसार, सुरेंद्र के हाथ पर नाम लिखा था.

चूंकि लाश की शिनाख्त हो गई थी, इसलिए पुलिस ने सुरेंद्र की लाश को पोस्टमार्टम के लिए माती भेज दिया. सीओ नरेशचंद्र वर्मा ने मृतक के भाई रघुराज और पत्नी प्रियंका से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि मृतक सुरेंद्र सूरत में नौकरी करता था और करवाचौथ पर घर आया था. वह घर का सामान लेने मूसानगर गया था. लेकिन लौट कर नहीं आया. उन्होंने यह भी बताया कि मृतक की गांव में न तो किसी से रंजिश थी और न ही किसी से लेनदेन का झगड़ा. पता नहीं उसे किस ने मार डाला.

नरेशचंद्र वर्मा ने थानाप्रभारी को आदेश दिया कि जल्द से जल्द इस मामले का खुलासा कर के हत्यारों को गिरफ्तार करें. तेजतर्रार इंसपेक्टर जितेंद्र कुमार सिंह ने अपनी जांच की शुरुआत प्रियंका से शुरू की. लेकिन काम की कोई जानकारी नहीं मिली.

उन्होंने कई अपराधियों को भी पकड़ कर पूछताछ की, लेकिन हत्या का खुलासा न हो सका. धीरेधीरे डेढ़ महीने बीत गए, लेकिन हत्यारे के बारे में कुछ भी पता न चल सका. निराश हो कर जितेंद्र कुमार सिंह ने अपने खास मुखबिर लगा दिए.

29 दिसंबर  को एक मुखबिर थाना मूसानगर पहुंचा और उस ने जितेंद्र कुमार सिंह को बताया कि वह यकीन के साथ तो नहीं कह सकता, लेकिन सुरेंद्र की हत्या का राज उस के घर में ही छिपा है. अगर उस की पत्नी प्रियंका और उस के भतीजे करन से पूछताछ की जाए तो हत्या का रहस्य खुल सकता है. क्योंकि करन और प्रियंका के बीच नाजायज रिश्ता है.

मुखबिर की बात पर विश्वास कर के जितेंद्र कुमार सिंह ने प्रियंका और करन को हिरासत में ले लिया. थाना पहुंचते ही प्रियंका का चेहरा पीला पड़ गया. थोड़ी सी सख्ती में प्रियंका टूट गई और पति की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. प्रियंका के टूटते ही करन ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

करन की निशानदेही पर पुलिस ने सेंगुर नदी से हत्या में इस्तेमाल की गई कुल्हाड़ी बरामद कर ली. लेकिन काफी कोशिशों के बाद भी सुरेंद्र का कटा हाथ बरामद नहीं हो सका. प्रियंका ने बताया कि उस के पति सुरेंद्र ने उसे करन के साथ रंगेहाथों पकड़ लिया था, इसलिए दोनों ने मिल कर उसे मौत के घाट उतार दिया था.

चूंकि प्रियंका व करन ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, इसलिए पुलिस ने मृतक के भाई रघुराज को वादी बना कर सुरेंद्र की हत्या का मुकदमा दर्ज कर प्रियंका व करन को विधिवत गिरफ्तार कर लिया.

30 दिसंबर को दोनों को माती की अदालत में रिमांड मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक उन की जमानत नहीं हुई थी. आलोक अपने नाना के घर रह रहा है, जबकि मासूम अंशिका मां के साथ जेल में है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

नाजायज रिश्ते में पति की बलि – भाग 2

प्रियंका उसी का इंतजार कर रही थी. उस ने आज खुद को विशेष रूप से सजायासंवारा था.

करन ने पहुंचते ही उसे बांहों में समेट लिया, “चाची, आज तो तुम हुस्न की परी लग रही हो, नजरें हटाने को जी नहीं चाहता.”

“थोड़ा सब्र से काम लो. इतनी बेसब्री ठीक नहीं होती.” प्रियंका ने मुसकरा कर कहा, “कम से कम दरवाजा तो भीतर से बंद कर लो, किसी की नजर पड़ गई तो हंगामा हो जाएगा.”

करन ने फौरन घर का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. जैसे ही उस ने अपनी बाहें फैलाईं, प्रियंका आ कर उन में समा गई. करन के तपते होंठ प्रियंका के नरम अधरों पर जम गए. इस के बाद वासना का ऐसा सैलाब उमड़ा कि एक शादीशुदा औरत की पवित्रता, पति से वफा का वादा, सात फेरों के वक्त पति को दिए वचन, सब बह गए.

अवैध रिश्तों का यह सिलसिला एक बार शुरू हुआ तो फिर उस ने रुकने का नाम नहीं लिया. जब भी दोनों को मौका मिलता, एक दूसरे की बाहों में सिमट कर हवस की आग बुझा लेते. चूंकि दोनों का रिश्ता चाचीभतीजे का था, इसलिए किसी को शक नहीं होता था. लेकिन ऐसी बातें समाज की नजरों से ज्यादा दिनों तक छिपतीं नहीं. धीरेधीरे पूरे गांव में करन और प्रियंका के नाजायज रिश्ते की चर्चा होने लगी.

कुछ दिनों बाद सुरेंद्र सूरत से गांव आया तो उस के कानों में पत्नी और करन के नाजायज रिश्तों की भनक पड़ी. सुन कर जैसे उस पर पहाड़ टूट पड़ा. प्रियंका को मालूम नहीं था कि उस के पति को उस के और करन के रिश्ते के बारे में पता चल चुका है.

वह खनकती आवाज में बोली, “क्या बात है, आज तुम्हारा मूड क्यों खराब है?”

“सच जानना चाहती हो तो सुनो, तुम जो कर रही हो, उसे जान कर मेरे पैरों तले से जमीन सरक गई है. तुम्हारे और करन के बारे में लोग तरहतरह की बातें कर रहे हैं. अब तुम्हारी भलाई इसी में है कि मुझ से बिना छिपाए सारा सच बता दो.” सुरेंद्र ने मन की बात कह दी.

प्रियंका पति की बातें सुन कर अवाक रह गई. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि सुरेंद्र को सब कुछ पता चल जाएगा. भय के मारे उस का चेहरा पीला पड़ गया. वह घबराए स्वर में बोली, “सब झूठ है, लोग हम से जलते हैं, इसलिए उन्होंने तुम्हारे कान भर दिए हैं.”

प्रियंका ने समझ लिया था कि त्रियाचरित्र दिखाने में ही उस की भलाई है. वह भावुक स्वर में बोली, “मैं कल भी तुम्हारी थी और आज भी तुम्हारी हंू. कोई दूसरा मेरा बदन छूना तो दूर, मेरी ओर देखने की भी हिम्मत नहीं कर सकता. तुम मुझ पर यकीन करो, तुम ने जो कुछ भी सुना है, वह सिर्फ अफवाह है. वैसे भी जिन के पति परदेश में कमाते हैं, उन की औरतों को लोग शक की निगाहों से देखते और बदनाम करते हैं.”

आखिरकार प्रियंका की बातों से सुरेंद्र को लगा कि वह सच कह रही है. उस ने पत्नी पर यकीन कर लिया. कुछ रातें पत्नी के साथ बिता कर सुरेंद्र सूरत चला गया. उस के जाते ही करन और प्रियंका की रातें फिर रंगीन होने लगीं. अब दिन में करन ने प्रियंका के घर आनाजाना बंद कर दिया, ताकि लोगों को उस पर शक न हो.

प्रियंका मोबाइल फोन से पति से मीठीमीठी बातें करती रहती थी. वह उसे भरोसा दिलाती रहती थी कि वह सिर्फ उसी की है. उस ने अपनी चरित्रहीनता छिपाने के लिए अक्टूबर  के दूसरे सप्ताह में पति को फोन पर बताया कि 30 अक्टूबर को करवाचौथ है, इसलिए वह करवाचौथ के पहले ही छुट्टी ले कर आ जाए. उस ने यह भी कहा कि इस बार वह कम से कम एक महीने की छुट्टी ले कर आए, क्योंकि करवाचौथ के बाद दीपावली का त्यौहार है.

सुरेंद्र ने प्रियंका को आश्वासन दिया कि वह करवाचौथ से 2-4 दिन पहले ही आ जाएगा. चाहे छुट्टी मिले या न मिले. इस के बाद सुरेंद्र घर आने की तैयारी करने लगा. उसे जैसे ही फैक्ट्री से पेमेंट मिला, उस ने पत्नी के लिए अच्छी सी साड़ी व अन्य सामान खरीदा, साथ ही बच्चों के लिए कपड़े भी. फिर वह ट्रेन से गांव के लिए चल पड़ा.

सुरेंद्र ने जैसा कहा था, वैसा ही किया. वह 25 अक्तूबर को अपने गांव कृपालपुर पहुंच गया. जबकि करवाचौथ 30 अक्तूबर को था. सुरेंद्र के आ जाने से करन और प्रियंका को मिलने में दिक्कत होने लगी.

इस दिक्कत को दूर करने के लिए करन मैडिकल स्टोर से नींद की गोलियां खरीद लाया. उस ने गोलियां प्रियंका को दे कर कहा कि वह रात में पति को दूध में मिला कर दे दिया करे, ताकि उस के बेसुध हो कर सो जाने के बाद वे दोनों आसानी से मिल सकें. प्रियंका ने नींद की गोलियां तो संभाल कर रख लीं, लेकिन करवाचौथ के पहले वह कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी.

करवाचौथ वाले दिन प्रियंका ने अन्य सुहागिनों की तरह दिन भर व्रत रखा. शाम को खूब शृंगार किया और चांद देख कर व्रत पूरा किया. रात को वह पूरी तरह पति को समर्पित रही. सुरेंद्र को लगा कि उस की पत्नी उसी की है. गांव वाले बेकार में उस पर लांछन लगाते हैं.

अगले दिन करन से प्रियंका का सामना हुआ तो उस ने उलाहना दिया “तुम तो अपने पति के साथ करवाचौथ मनाती रहीं और मैं तुम्हारी याद में सारी रात करवट बदलता रहा. मुझे भी तुम्हारे साथ करवाचौथ मनाना है. मैं भी तो तुम्हारे पति से कम नहीं हूं.”

प्रियंका मुसकरा कर बोली, “तुम्हें मौका जरूर मिलेगा. तुम्हारी मर्दानगी की मैं दीवानी हूं. आज रात को जब मैं मिसकाल करूं तो चुपके से आ जाना. दरवाजा खुला रहेगा.”

सुरेंद्र गांव में घूमफिर कर रात 9 बजे घर लौटा. उस ने खाना खाया और चारपाई पर लेट गया. कुछ देर बाद प्रियंका नींद की गोलियां मिला दूध ले कर आई और सुरेंद्र को थमा दिया. सुरेंद्र ने दूध पी लिया और कुछ ही देर बाद खर्राटे भरने लगा. सुरेंद्र गहरी नींद में सो गया तो प्रियंका ने करन को मिसकाल दी. थोड़ी देर बाद करन आ गया. इस के बाद दोनों एकदूसरे की बाहों में समा गए. सुरेंद्र के आने के बाद जो क्रम टूट गया था, वह फिर शुरू हो गया.

नाजायज रिश्ते में पति की बलि – भाग 1

कानपुर देहात जनपद के थाना मूसानगर का एक गांव है कृपालपुर, जिस में रामसुमेर यादव अपने 2 बेटों रघुराज व सुरेंद्र के साथ रहता था. रामसुमेर की खेतीबाड़ी की कुछ जमीन थी, जिस से परिवार का भरणपोषण होता था. वह भले ही संपन्न किसान नहीं था, लेकिन गांव में उस की अच्छीभली इज्जत थी.

रामसुमेर का बड़ा बेटा रघुराज तो पिता के साथ खेती में हाथ बंटाने लगा था, लेकिन सुरेंद्र का मन खेतीबाड़ी में नहीं लगता था. समय के साथ रामसुमेर ने रघुराज का घर बसा दिया, लेकिन सुरेंद्र के साथ परेशानी यह थी कि उस की संगत ठीक नहीं थी. वह नशा करने का आदी हो गया था. नशे में वह लड़ाईझगड़ा और मारपीट करता तो उस की शिकायत रामसुमेर तक पहुंचती.

ऐसे में लोगों ने सलाह दी कि सुरेंद्र का विवाह कर दिया जाए. इस के पांव में गृहस्थी की बेडिय़ां पड़ेंगी तो यह अपनेआप सुधर जाएगा. लोगों की सलाह मान कर रामसुमेर सुरेंद्र के लिए लडक़ी की तलाश में जुट गया. नतीजा सार्थक रहा. कुछ ही दिनों बाद सुरेंद्र का विवाह घाटमपुर तहसील के सजेती गांव निवासी सूरज सिंह यादव की बेटी प्रियंका से हो गया.

प्रियंका काफी खूबसूरत थी. सुरेंद्र ने सपने में भी नहीं सोचा था कि इतनी खूबसूरत बीवी मिलेगी. उस के रूपसौंदर्य ने उस पर जादू सा कर दिया. प्रथम मिलन की रात प्रियंका जिस तरह उसे समर्पित हुई, उस से सुरेंद्र उस का दीवाना हो गया. सुंदर और समझदार प्रियंका ने सुरेंद्र के आवारा कदमों में ऐसी बेडिय़ां डालीं कि वह घरगृहस्थी के कामों में रम गया.

विवाह के बाद परिवार का खर्च बढ़ा तो खेती की पैदावार से दोनों भाइयों का गुजारा होना मुश्किल हो गया. तंगी की वजह से परिवार में कलह शुरू हो गई. यह देख कर रामसुमेर ने दोनों बेटों का बंटवारा कर दिया. बंटवारे के बाद सुरेंद्र प्रियंका के साथ अलग रहने लगा. उस का मन खेती में कम लगता था, इसलिए वह किसी दूसरे काम की तलाश में जुट गया.

गांव के कुछ लडक़े गुजरात के सूरत शहर की कपड़ा मिलों में काम करते थे. वे काफी खुशहाल थे. सुरेंद्र ने पत्नी से सूरत जाने की बात की तो उस ने इजाजत दे दी. इस के बाद वह अपने एक दोस्त के साथ सूरत चला गया. वहां वह उसी दोस्त के साथ रहा. उसी के सहयोग से उसे एक फैक्ट्री में नौकरी मिल गई, बाद में वह किराए का कमरा ले कर अलग रहने लगा.

सुरेंद्र सूरत में था और प्रियंका गांव में. नईनवेली दुलहन को पति के साथ रहने के बजाय तनहाई में रहना पड़ रहा था. उस की उमंगें दम तोड़ रही थीं. पति से सिर्फ उस की मोबाइल के जरिए बात हो पाती थी. प्रियंका अपने मन की बात पति से कहती तो वह हफ्ते भर की छुट्टी ले कर घर आ जाता.

तब वह उस से कहती, “तुम सूरत में रहते हो और मैं यहां गांव में अकेली पड़ी रहती हूं, क्यों नहीं मुझे भी अपने साथ ले चलते?”

सुरेंद्र हर बार प्रियंका से वादा करता कि अगली बार जब आएगा तो वह उसे साथ ले जाएगा. लेकिन वह दिन कभी नहीं आया. इस तरह 4 साल से अधिक बीत गए. इस दौरान प्रियंका 2 बच्चों आलोक और अंशिका की मां बन गई.

प्रियंका की सभी जरूरतें तो पति के हिस्से की जमीन तथा उस के भेजे पैसे से पूरी हो जाती थीं, लेकिन देह की जरूरतें वह कैसे पूरी करती? तनहा रातों में बिस्तर उसे काटने दौड़ता था. आखिर उस ने एक ऐसे मर्द की तलाश शुरू कर दी, जो उस के तनमन का सच्चा साथी बन सके.

प्रियंका के घर से चंद कदमों के फासले पर करन सिंह रहता था. वह शरीर से हृष्टपुष्ट और भरपूर जवान था. वह नौकरी कर के अच्छा कमाता था. रहता भी खूब ठाटबाट से था. वह सिगरेट और शराब का शौकीन था. सुरेंद्र और करन रिश्ते में चाचाभतीजा थे.

सुरेंद्र परिवार से अलग रहता था. चूंकि वह सूरत में नौकरी करता था और उस की पत्नी बच्चों के साथ गांव में अकेली रहती थी, इसलिए करन ने उस के घर आनाजाना शुरू कर दिया. सुरेंद्र जब छुट्टी पर घर आता, दोनों की सुरेंद्र के घर पर ही महफिल जमती.

करन प्रियंका को चाची कहता था. प्रियंका के मन में पाप समाया तो वह करन से हंसीमजाक करने लगी. कभीकभी मजाक में वह कोई ऐसी बात कह देती कि करन झेंप जाता. करन कोई दूधपीता बच्चा तो था नहीं, इसलिए जल्द ही समझ गया कि चाची उस से क्या चाहती है. परिणामस्वरूप वह भी उस के रूपसौंदर्य की तारीफें करते हुए उस के आगेपीछे मंडराने लगा.

दो बच्चों की मां बनने के बावजूद प्रियंका के रूपलावण्य में कोई कमी नहीं आई थी. उस की चाल में ऐसी मस्ती थी कि देखने वालों के मुंह से आह निकलती थी. गांव के कई युवक उस का दीदार करने को तरसते थे. एक करन ही ऐसा था, जिसे प्रियंका के पास घंटों बैठने और बतियाने का मौका मिलता था. प्रियंका उस से खूब हंसीमजाक करती थी.

चूंकि करन सुरेंद्र का भतीजा था, इसलिए उस ने कभी चाचीभतीजे के रिश्ते से अलग हट कर नहीं देखा. लेकिन सुरेंद्र को क्या मालूम था कि उस का भतीजा ही उस की पीठ में छुरा घोंपेगा. घर आतेजाते करन अक्सर प्रियंका की तारीफें करता तो वह गदगद हो जाती.

एक दिन करन जब उस की खूबसूरती की तारीफ करने लगा तो वह बोली, “ऐसी खूबसूरती किस काम की, जिस की पति ही कद्र न करे. मैं ने कितनी बार कहा कि साथ ले चलो, लेकिन वह हर बार टाल जाते हैं.”

करन को प्रियंका की किसी ऐसी ही कमजोर नस की तलाश थी. जब उस ने अपने पति की बेरुखी बयां की तो करन उस का हाथ थाम कर बोला, “तुम क्यों चिंता करती हो चाची, आज से तुम्हारे सारे दुख मेरे और मेरी सारी खुशियां तुम्हारी.”

“सच करन?” प्रियंका ने मुसकरा कर पूछा.

“हां चाची, सोलह आने सच.”

“तो कल दोपहर में आना. मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.”

करन ने वह रात करवटें बदलते हुए काटी. सारी रात वह प्रियंका के खयालों में डूबा रहा. अगले दिन दोपहर होते ही वह प्रियंका के घर जा पहुंचा.

एक प्रेम कहानी का हुआ दुखद अंत

शिव सिंह उर्फ मक्कू कस्बा अकबरपुर में बन रहे अपने मकान पर पहुंचे तो उन्होंने वहां जो देखा, वह दिल दहला देने वाला था. मकान के अंदर एक लड़के और एक लड़की की लाश पड़ी थी. लाशों को देख कर ही लग रहा था कि वे प्रेमीप्रेमिका थे, क्योंकि मरने के बाद भी दोनों एकदूसरे का हाथ थामे हुए थे. शिव सिंह ने तुरंत इस बात की सूचना थाना अकबरपुर पुलिस को दी. उन्होंने यह बात कुछ लोगों को बताई तो जल्दी ही यह खबर अकबरपुर कस्बे में फैल गई. इस के बाद सैकड़ों लोग उन के मकान पर पहुंच गए. लोग तरहतरह की बातें कर रहे थे. यह 20 अप्रैल, 2017 की बात है.

थाना अकबरपुर के थानाप्रभारी इंसपेक्टर ए.के. सिंह यह जानकारी अधिकारियों को दे कर तुरंत पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन के पहुंचने के थोड़ी देर बाद ही एसपी प्रभाकर चौधरी, एएसपी मनोज सोनकर तथा सीओ आलोक कुमार जायसवाल भी फील्ड यूनिट की टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

अधिकारियों के आते ही घटनास्थल का निरीक्षण शुरू हुआ. लड़की की उम्र 18-19 साल रही होगी तो लड़का 23-24 साल का था. लाशों के पास ही फिनाइल की 2 खाली बोतलें पड़ी थीं. इस से अंदाजा लगाया गया कि फिनाइल पी कर दोनों ने आत्महत्या की है. उन बोतलों को पुलिस ने जब्त कर लिया.

इस के बाद पुलिस ने वहां मौजूद लोगों से लाशों की शिनाख्त कराने की कोशिश की, लेकिन वहां इकट्ठा लोगों में से कोई भी उन की पहचान नहीं कर सका. लाशों की पहचान नहीं हो सकी तो एसपी प्रभाकर चौधरी ने एक सिपाही से लड़के की जेब की तलाशी लेने को कहा. सिपाही ने लड़के की पैंट की जेब में हाथ डाला तो उस में 2 सिम वाला एक मोबाइल फोन, बीकौम का परिचय पत्र, जो कुंदनलाल डिग्री कालेज, रनियां का था, मिला.

लड़की की लाश के पास एक बैग पड़ा था. पुलिस ने उस की तलाशी ली तो उस में से हाईस्कूल, इंटरमीडिएट की मार्कशीट, आधार कार्ड, कालेज का परिचय पत्र, बैंक की पासबुक, मोबाइल फोन, कुछ दवाएं तथा जिला अस्पताल की स्त्रीरोग विशेषज्ञ का ओपीडी का पर्चा मिला.

आधार कार्ड के अनुसार, लड़की का नाम रोहिका था. उस के पिता का नाम अजय कुमार था. वह जिला कानपुर देहात के आधू कमालपुर गांव की रहने वाली थी. लाशों की शिनाख्त के बाद एसपी प्रभाकर चौधरी ने रोहिका के आधार कार्ड में लिखे पते पर 2 सिपाहियों को घटना की सूचना देने के लिए भेज दिया. इस के बाद लड़के की जेब से मिले मोबाइन फोन को उन्होंने जैसे ही औन किया, फोन की घंटी बज उठी. उन्होंने फोन करने वाले से बात की और उसे तुरंत अकबरपुर कस्बा स्थित जिला अस्पताल के पीछे आने को कहा.

अभी आधा घंटा भी नहीं बीता था कि एक आदमी वहां आ पहुंचा. लड़के की लाश देख कर वह सिर पीटपीट कर रोने लगा. पूछने पर उस ने अपना नाम राजेंद्र कुमार बताया. वह जिला कानपुर देहात के आधू कमालपुर गांव का रहने वाला था. वह लाश उस के बेटे अंकित उर्फ रामबाबू की थी.

crime-story

एक दिन पहले यानी 19 अप्रैल, 2017 को सुबह 10 बजे अंकित कालेज जाने  की बात कह कर घर से निकला था. देर शाम तक वह घर नहीं लौटा तो उस की तलाश शुरू हुई. मोबाइल पर फोन किया गया तो वह बंद था. नातेरिश्तेदारों से पता किया गया, लेकिन अंकित का कुछ पता नहीं चला.

सवेरा होते ही उस की खोज फिर शुरू हुई. उसे कई बार फोन भी किया गया. उसी का नतीजा था कि उस का फोन मिल गया. राजेंद्र एसपी प्रभाकर चौधरी को बेटे अंकित के बारे में बता ही रहा था कि उस के साथ मरने वाली लड़की रोहिका के घर वाले भी आ गए. फिर तो वहां कोहराम मच गया.

रोहिका की मां सुनीता और बहन रितिका छाती पीटपीट कर रो रही थीं. रोहिका के पिता का नाम अजय था. उन के भी आंसू नहीं थम रहे थे. रोतेबिलखते घर वालों को सीओ आलोक कुमार जायसवाल ने किसी तरह शांत कराया और उन्हें हटा कर अपनी काररवाई शुरू की.

लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर पुलिस ने पूछताछ शुरू की. लाशों की स्थितियों से साफ था कि अंकित और रोहिका एकदूसरे को प्रेम करते थे. यह भी निश्चित था कि उन्होंने आत्महत्या की थी. उन्होंने आत्महत्या इसलिए की होगी, क्योंकि घर वालों ने उन की शादी नहीं की होगी. इस बारे में घर वालों से विस्तारपूर्वक पूछताछ की गई तो जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

कानपुर देहात के थानाकस्बा अकबरपुर का एक गांव है आधू कमालपुर. यह कस्बे से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर है. इसी गांव में अजय कुमार अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी सुनीता के अलावा 2 बेटियां रितिका और रोहिका थीं. बड़ी बेटी रितिका की शादी हो चुकी थी.

अजय सेना में नौकरी करते थे. इस समय वह असम में तैनात थे. सरकारी नौकरी होने की वजह से उन्हें अच्छा वेतन मिलता था, इसलिए घर में किसी चीज की कमी नहीं थी. उन की छोटी बेटी रोहिका काफी खूबसूरत थी. उस की इस खूबसूरती में चार चांद लगाता था उस का स्वभाव.

रोहिका अत्यंत सौम्य और मृदुभाषी थी. वह तनमन से जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही पढ़ने में भी तेज थी. अकबरपुर इंटरकालेज से इंटरमीडिएट करने के बाद वह वहीं स्थित डिग्री कालेज से बीएससी कर रही थी. पढ़ाईलिखाई और स्वभाव की वजह से वह मांबाप की आंखों का तारा थी.

अंकित भी रोहिका के ही गांव का रहने वाला था. उस के पिता राजेंद्र कुमार के पास खेती की ठीकठाक जमीन थी, इसलिए वह गांव का संपन्न किसान था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे और एक बेटी थी. संतानों में अंकित सब से छोटा था. कस्बे से इंटरमीडिएट कर के वह रानियां के कुंदनलाल डिग्री कालेज से बीकौम कर रहा था.

रोहिका और अंकित एक ही जाति के थे. उन के घर वालों में भी खूब पटती थी, इसलिए अंकित रोहिका के घर बेरोकटोक आताजाता था. इसी आनेजाने में रोहिका अंकित को भा गई. फिर तो वह कालेज आतेजाते समय उस का पीछा करने लगा.

अंकित रोहिका को तब तक चाहतभरी नजरों से ताकता रहता था, जब तक वह उस की आंखों से ओझल नहीं हो जाती थी. लेकिन रोहिका थी कि उसे भाव ही नहीं दे रही थी. धीरेधीरे अंकित के मन की बेचैनी बढ़ने लगी. हर पल उस के दिल में रोहिका ही छाई रहती थी. अब उस का मन पढ़ाई में भी नहीं लगता था.

रोहिका के करीब पहुंचने की तड़प जब अंकित के लिए बरदाश्त से बाहर हो गई तो वह उस के घर कुछ ज्यादा ही आनेजाने लगा. चूंकि घर वालों में अच्छा तालमेल था, इसलिए उस के घर आने और रोहिका से बातें करने पर किसी को ऐतराज नहीं था. उस के घर आने पर अंकित भले ही बातें दूसरों से करता रहता था, लेकिन उस की नजरें रोहिका पर ही टिकी रहती थीं.

अंकित की इस हरकत से जल्दी ही रोहिका ने उस के मन की बात भांप ली. अंकित के मन में अपने लिए चाहत देख कर रोहिका का भी मन विचलित हो उठा. अब वह भी उस के आने का इंतजार करने लगी. जब भी अंकित आता, वह उस के आसपास ही मंडराती रहती. इस तरह दोनों ही एकदूसरे की नजदीकी पाने को बेचैन रहने लगे.

अंकित की चाहतभरी नजरें रोहिका की नजरों से मिलतीं तो वह मुसकराए बिना नहीं रह पाती. इस से अंकित समझ गया कि जो बात उस के मन में है, वही रोहिका के भी मन में है. लेकिन वह दिल की बात रोहिका से कह नहीं पा रहा था.

अंकित ऐसे मौके की तलाश में रहने लगा, जब वह अपने दिल की बात रोहिका से कह सके. चाह को राह मिल ही जाती है. आखिर एक दिन अंकित को मौका मिल ही गया. उस दिन रोहिका को घर में अकेली पा कर अंकित ने कहा, ‘‘रोहिका, मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं. अगर तुम बुरा न मानो तो अपने मन की बात तुम से कह दूं.’’

‘‘बात ही कहनी है तो कह दो. इस में बुरा मानने वाली कौन सी बात है?’’ रोहिका आंखें नचाते हुए बोली. शायद उसे पता था कि वह क्या कहने वाला है.

‘‘रोहिका, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. मुझे तुम्हारे अलावा कुछ अच्छा ही नहीं लगता.’’ नजरें झुका कर अंकित ने कहा, ‘‘हर पल मेरी नजरों के सामने तुम्हारी सूरत नाचती रहती है.’’

अंकित की बातें सुन कर रोहिका की धड़कनें बढ़ गईं. शरमाते हुए उस ने कहा, ‘‘अंकित, जो हाल तुम्हारा है, वही मेरा भी है. तुम भी मुझे बहुत अच्छे लगते हो.’’

‘‘सच…’’ कह कर अंकित ने रोहिका को अपनी बांहों में भर कर कहा, ‘‘यही सुनने का तो मैं कब से इंतजार कर रहा था.’’

उस दिन के बाद दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. रोहिका कालेज या कोचिंग जाने के बहाने घर से निकलती और अंकित से मिलने पहुंच जाती. अंकित उसे मोटरसाइकिल पर बैठा कर कानपुर शहर चला जाता, जहां दोनों फिल्में देखते, चिडि़याघर या मोतीझील घूमते और प्यार भरी बातें करते. कभी दोनों बिठूर पहुंच जाते, जहां गंगा में नौका विहार करते.

ऐसे में ही दोनों साथ जीनेमरने की कसमें खाते हुए भविष्य के सपने देखने लगे थे. मन से मन मिला तो दोनों के तन मिलने में देर नहीं लगी. समय इसी तरह बीतता रहा और इसी के साथ रोहिका और अंकित का प्यार गहराता गया. उन्होंने लाख कोशिश की कि उन के प्यार की जानकारी किसी को न हो, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया.

एक दिन रोहिका के चचेरे भाई रवि ने नहर के किनारे दोनों को इस हालत में देख लिया कि सारा मामला समझ में आ गया. उस ने अपने परिवार की बेइज्जती महसूस की और तुरंत यह बात अपनी चाची सुनीता को बता कर चेतावनी देते हुए कहा, ‘‘रोहिका और अंकित को समझा देना. अगर वे दोनों नहीं माने तो उन्हें मैं अपने ढंग से मनाऊंगा. तब बहुत महंगा पड़ेगा.’’

रोहिका की हरकत पता चलने पर सुनीता सन्न रह गई. वह घर आई तो सुनीता ने बेटी को आड़े हाथों लेते हुए कहा, ‘‘रोहिका, तुम पर तो मैं बहुत भरोसा करती थी. लेकिन तुम ने तो अभी से रंग दिखाना शुरू कर दिया. अंकित के साथ तेरा क्या चक्कर है?’’

‘‘मेरा किसी से कोई चक्कर नहीं है.’’ रोहिका ने दबी आवाज में कहा.

‘‘तू क्या सोचती है कि तेरी बात पर मुझे विश्वास हो जाएगा. जो बात मैं कह रही हूं, उसे कान खोल कर सुन ले. आज के बाद तू अंकित से बिलकुल नहीं मिलेगी और वह इस घर में कदम नहीं रखेगा. आज के बाद तूने कोई हरकत की तो तेरा बाप और चचेरा भाई तुझे जिंदा जमीन में गाड़ देंगे.’’ सुनीता ने चेतावनी देते हुए कहा.

मां ने जो कहा था, वह सच था. इसलिए रोहिका ने कोई जवाब नहीं दिया. मां बड़बड़ाती रही और वह चुपचाप उन की बातें सुनती रही. मां की चेतावनी से वह बुरी तरह डर गई थी. इस से साफ था कि मां उस के संबंधों को जान गई थी.

अजय असम में तैनात थे. कुछ दिनों बाद जब वह छुट्टी पर घर आए तो सुनीता ने उन्हें बेटी की करतूत बता दी. अजय ने उसे जम कर डांटा. चूंकि बात इज्जत की थी, इसलिए अजय ने अंकित को तो डांटा ही, उस के पिता राजेंद्र से भी उस की शिकायत की. रोहिका पर अब कड़ी नजर रखी जाने लगी. उस का घर से निकलना भी लगभग बंद कर दिया गया था. अगर किसी जरूरी काम से कहीं जाना होता तो मां उस के साथ जाती थी. उसे अकेली कहीं नहीं जाने दिया जाता था.

कहते हैं, प्यार पर पहरा लगा दिया जाता है तो वह और बढ़ता है. शायद इसी से रोहिका और अंकित परेशान रहने लगे थे. दोनों एकदूसरे की एक झलक पाने को बेचैन रहते थे. रोहिका के प्यार में आकंठ डूबा अंकित तरहतरह के अपमान भी बरदाश्त कर रहा था.

कुछ समय बाद सुनीता को लगा कि बेटी सुधर गई है और अंकित के प्यार का भूत उस के सिर से उतर गया है तो उन्होंने उसे ढील दे दी. ढील मिलते ही रोहिका और अंकित की प्रेमकहानी एक बार फिर शुरू हो गई. हां, अब मिलने में दोनों काफी सतर्कता बरतते थे.

तमाम सतर्कता के बावजूद एक शाम रवि ने दोनों को एक साथ देख लिया. इस बार रवि आपा खो बैठा और अंकित के साथ मारपीट कर बैठा. घर आ कर उस ने नमकमिर्च लगा कर चाची से रोहिका की शिकायत की. गुस्से में सुनीता ने रोहिका को भलाबुरा तो कहा ही, पिटाई भी कर दी. यही नहीं, उन्होंने फोन कर के सारी बात पति को भी बता दी.

अजय बेटी को ले कर परेशान हो उठा. उसे डर था कि कहीं रोहिका उस की इज्जत पर दाग न लगा दे. इसलिए किसी तरह छुट्टी ले कर वह घर आ गया. उस ने पत्नी सुनीता से इस गंभीर समस्या पर विचार किया. अंत में रोहिका का विवाह जल्द से जल्द करने का निर्णय लिया गया. दौड़धूप कर उन्होंने रोहिका का विवाह औरैया में तय कर दिया और अपनी ड्यूटी पर चले गए.

रोहिका को शादी तय होने की जानकारी मिली तो वह बेचैन हो उठी. किसी तरह इस बात की जानकारी अंकित को भी हो गई. एक दिन मौका मिलने पर वह रोहिका से मिला तो पहला सवाल यही किया, ‘‘रोहिका, मैं ने जो सुना है, क्या वह सच है?’’

‘‘हां अंकित, तुम ने जो सुना है, वह सच है. मेरे घर वालों ने मेरी मरजी के खिलाफ मेरी शादी तय कर दी है. लेकिन मैं बेवफा नहीं हूं. मैं तुम्हें जितना प्यार पहले करती थी, उतना ही आज भी करती हूं. मैं ने तुम्हारे साथ जीनेमरने की कसमें खाई हैं, उसे निभाऊंगी.’’

रोहिका की ये बातें सुन कर अंकित के दिल को थोड़ा सुकून मिला. लेकिन उस की बेचैनी खत्म नहीं हुई. अब तो उस का खानापीना तक छूट गया. उसे न दिन में चैन मिल रहा था न रात में. रोहिका पर हर तरह से पाबंदी थी, इसलिए वह उस से मिल भी नहीं सकता था. फिर भी जब कभी मौका मिलता था, वह फोन कर के बात कर लेता था.

15 मार्च, 2017 से रोहिका की परीक्षा शुरू हुई, इसलिए उस पर लगी पाबंदी हटानी पड़ी. वह परीक्षा देने अकबरपुर डिग्री कालेज जाने लगी. परीक्षा के दौरान उस की अंकित से मुलाकातें होने लगीं. लेकिन मिलते हुए दोनों काफी सतर्क रहते थे.

18 अप्रैल, 2017 को रोहिका का आखिरी पेपर था. उस दिन परीक्षा दे कर वह अंकित से मिली. तब उस ने उसे बताया कि कल उस के पापा असम से आ रहे हैं. उसे लगता है कि आते ही वह उस की शादी की तारीख तय कर देंगे. इस के पहले वह किसी और की हो जाए, वह उसे कहीं और ले चले. अगर उस ने ऐसा नहीं किया तो वह अपनी जान दे देगी. इतना कह कर वह रोने लगी.

रोहिका के गालों पर लुढ़के आंसुओं को पोंछते हुए अंकित ने कहा, ‘‘रोहिका, तुम्हें मुझ से कोई नहीं छीन सकता. हम कल ही सब छोड़ देंगे और तुम्हें ले कर अपनी अलग दुनिया बसाएंगे.’’

इस के बाद दोनों ने घर छोड़ने की योजना बना डाली. उसी योजना के तहत 19 अप्रैल, 2017 की सुबह रोहिका ने अपने बैग में शैक्षणिक प्रमाण पत्र, आधार कार्ड, बैंक की पासबुक तथा कालेज का परिचय पत्र और मोबाइल फोन रखा और मां से कालेज में जरूरी काम होने की बात कह कर घर से निकल पड़ी.

सड़क पर अंकित उस का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. उस के आते ही दोनों टैंपो में बैठ कर अकबरपुर कस्बा आ गए. रोहिका को हलका बुखार था और जी मितला रहा था. अंकित उसे जिला अस्पताल ले गया और ओपीडी में पर्चा बनवा कर महिला डाक्टर को दिखाया. महिला डाक्टर ने कुछ दवाएं रोहिका के पर्चे पर लिख दीं.

दवा लेने के बाद रोहिका कुछ सामान्य हुई तो उस ने कहा, ‘‘अंकित, हम भाग कर कहां जाएंगे? हमारे पास तो पैसे भी नहीं है. कहीं मुसीबत में फंस गए तो बड़ी परेशानी होगी. इसलिए भागना ठीक नहीं है.’’

‘‘भागने के अलावा कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं है हमारे पास.’’ अंकित ने मायूस हो कर कहा.

‘‘एक रास्ता है.’’ रोहिका बोली.

‘‘क्या?’’

‘‘घर वाले हमें साथ रहने नहीं देंगे और हम एकदूसरे के बिना रह नहीं सकते. हम साथ जीवित भले नहीं रह सकते, लेकिन साथ मर तो सकते हैं.’’

‘‘शायद तुम ठीक कह रही हो रोहिका.’’ इस के बाद दोनों ने जीवनलीला समाप्त करने की योजना बना डाली.

योजना के तहत रोहिका और अंकित अकबरपुर बाजार गए और वहां 2 बोतल फिनाइल खरीदी. इस के बाद देर शाम दोनों जिला अस्पताल के पीछे बन रहे शिव सिंह के मकान पर पहुंचे. वहां वे आधी रात तक बातें करते रहे. इस के बाद एकएक बोतल फिनाइल पी कर एकदूसरे का हाथ पकड़ कर लेट गए.

कुछ ही देर में फिनाइल ने अपना असर दिखाना शुरू किया तो दोनों तड़पने लगे. कुछ देर तड़पने के बाद उन की जीवनलीला समाप्त हो गई. दूसरी ओर शाम तक जब रोहिका घर नहीं लौटी तो सुनीता को चिंता हुई. उस ने उस के मोबाइल पर फोन किया, लेकिन फोन बंद मिला. अजय घर आए तो पतिपत्नी मिल कर रात भर बेटी की तलाश करते रहे, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला.

सुबह 10 बजे पुलिस द्वारा बेटी की मौत की सूचना मिली. इसी तरह अंकित के घर वाले भी उस की तलाश करते रहे. सुबह उन्हें भी फोन द्वारा उस के मौत की सूचना मिली. पोस्टमार्टम के बाद रोहिका और अंकित की लाशें उन के घर वालों को सौंप दी गईं. घर वालों ने अलगअलग उन का अंतिम संस्कार कर दिया. इस तरह एक प्रेमकहानी का अंत हो गया.

शर्तों वाला प्यार : प्रेमी ने किया वार

अंधे प्यार के अंधे रास्ते