प्यार की वो आखिरी रात – भाग 3

दीपक और बरखा हद से ज्यादा डूब चुके थे प्यार में

धीरेधीरे समय बीतता रहा. दीपक के दिल में प्रेमिका बनी बरखा के प्रति चाहत और बढ़ गई. यह चाहत उस रोज और बढ़ गई, जब बरखा ने एक रोज अंतरंग क्षणों में दीपक से कहा कि उस के पति और मोहल्ले वालों को उन के प्यार की भनक लग गई है. इस से पहले कि उन के प्यार पर पहरे लगा दिए जाएं, उन दोनों को भाग कर अपनी नई दुनिया बसा लेनी चाहिए.

“पर भाभी यह कैसे हो सकता है?” दीपक सोच में पड़ गया.

“क्या तुम मुझ से प्यार नहीं करते?” बरखा दीपक से लिपट कर उस का मुंह चूमने लगी.

“प्यार तो अपनी जान से ज्यादा करता हूं तुम्हें भाभी.”

“तो अब यह तुम जानो कि मुझे पाने के लिए तुम्हें क्या करना चाहिए. बस इतना जान लो कि मैं तुम्हारे बगैर नहीं रह सकती. अगर तुम मुझे न मिले तो जमाने के तानों से तंग आ कर मैं अपनी जान भी दे दूंगी. फिर मेरे मुर्दा शरीर से प्यार करते रहना.”

“ऐसा मत बोलो भाभी. तुम चली गईं तो मैं ही जी कर क्या करूंगा,” दीपक ने जवाब दिया.

कृष्णकांत को दीपक और बरखा के रिश्तों के बारे में आए दिन कुछ न कुछ सुनने को मिल रहा था, अत: वह भी उस पर शक करने लगा था. उस का शक तब और बढ़ गया, जब उस के साथी कर्मचारी ने शराब पीने के दौरान सारी सच्चाई बयां कर दी.

उस ने कहा, “कृष्णकांत, तुम्हारी बीवी बदचलन है. वह तुम्हारे दोस्त दीपक के साथ रंगरेलियां मनाती है. उस पर लगाम कसो वरना वह तुम्हें छोड़ कर उस के साथ भाग जाएगी.”

कृष्णकांत को सहकर्मी की बात कड़वी तो लगी, लेकिन नकार न सका. शक होने पर वह बरखा पर नजर रखने लगा. उन्हीं दिनों एक रोज कृष्णकांत ने भी बरखा को अपने ही घर में दीपक के साथ रंगरेलियां मनाते पकड़ लिया. दीपक तो भाग गया, पर बरखा कहां जाती. कृष्णकांत ने उसे खूब जलील किया.

पत्नी की इस बेवफाई से आहत कृष्णकांत ने बरखा को ऊंचनीच समझाने का प्रयास किया. वह नहीं समझी तो कृष्णकांत ने लातों से उस की खबर लेना शुरू कर दी. कृष्णकांत ने सोचा था कि शायद मार खा कर बरखा रास्ते पर आ जाए. लेकिन उस पर इस का असर उलटा ही हुआ. वह कृष्णकांत से और अधिक नफरत करने लगी.

पतिपत्नी के संबंध कसैले हुए तो घर में क्लेश का वातावरण बन गया. राजकुमार ने बेटे से हाल समाचार पूछा तो उस ने पिता को बता दिया कि उन की बहू कभी भी उन की इज्जत को धूल में मिला सकती है. बहू का सच जान कर राजकुमार को भी गहरा दुख हुआ.

प्रेमी के संग हो गई फरार

कृष्णकांत को जिस बात की आशंका थी, वही हुआ. एक रोज बरखा सचमुच उस की इज्जत को पैरों तले रौंदते हुए अपने आशिक दीपक के साथ भाग गई. 10 वर्षीय बेटे को भी वह अपने साथ नहीं ले गई. बेटे का मोह भी उसे बांध न सका. उस रोज कृष्णकांत घर आया तो उस का बेटा मयंक घर में गुमसुम बैठा था. पूछने पर उस ने बताया कि मम्मी दीपक अंकल के साथ बाजार गई हैं. अटैची में सामान भी ले गई हैं. कृष्णकांत तब सब कुछ समझ गया.

कृष्णकांत ने बरखा के भाग जाने की खबर अपने मातापिता तथा बरखा के घर वालों को दी. खबर पाते ही बरखा के पिता ओमप्रकाश सैनी तथा कृष्णकांत के पिता राजकुमार और मां सुनीता आ गई. राजकुमार ने 4 घर दूर रहने वाले विमल गुप्ता से मुलाकात की और उन के बेटे दीपक के बारे में पूछा. विमल गुप्ता ने पहले तो कुछ भी बताने से मना कर दिया, लेकिन जब उन्होंने रिपोर्ट दर्ज कराने की धमकी दी तो विमल गुप्ता ने बेटे का ठिकाना बता दिया.

लगभग एक सप्ताह बाद किसी तरह ओमप्रकाश सैनी व राजकुमार बरखा को शिवराजपुर कस्बे से समझाबुझा कर घर ले आए. दीपक भी साथ था. घर में सैनी समाज के खास लोगों को बुलाया गया. उस के बाद पंचायत हुई. पंचायत में तय हुआ कि दीपक बरखा से मिलने घर नहीं आएगा. बरखा इज्जत से घर में रहेगी. कृष्णकांत बरखा का पूरा खयाल रखेगा. उस के साथ किसी तरह की मारपीट व बदसलूकी नहीं करेगा.

बरखा और कृष्णकांत ने पंचायत के लोगों की बात मान ली. उस के बाद कृष्णकांत बरखा के साथ रहने लगा. बरखा के सासससुर भी साथ रहने लगे. बरखा सासससुर की निगरानी में रहने लगी तो उस का अपने प्रेमी दीपक से मिलनाजुलना बंद हो गया. अब वह जब भी घर से बाहर निकलती तो सास उस के साथ रहती.

दूसरे बेटे के जन्म के बाद नहीं छोड़ा प्रेमी को

समय बीतता रहा. अगस्त 2022 में बरखा ने दूसरे बेटे को जन्म दिया. दूसरे बेटे के जन्म से एक बार फिर से घर में खुशियां लौट आईं. खुशी इस बात की भी थी कि 10 वर्ष बाद बरखा ने फिर से बेटे को जन्म दिया था. इस खुशी में राजकुमार ने समाज के लोगों को दावत दी.

दूसरे बेटे के जन्म के बाद कृष्णकांत को लगा कि बरखा अपने आशिक दीपक को भूल गई है, लेकिन यह उस की भूल थी. बरखा के दिल में अब भी दीपक बसा हुआ था. वह उस के लिए तड़पती भी थी. अपनी तड़प वह फोन के माध्यम से मिटाती थी. बरखा को जब भी मौका मिलता, वह दीपक से बतिया लेती थी और अपनी लगी बुझा लेती थी. दीपक भी बरखा के लिए बेचैन था, लेकिन उस का मिलन नहीं हो पाता था.

27 मई, 2023 को बरखा के अशोक नगर निवासी मामा संजय की तेरहवीं थी. इस कार्यक्रम में शामिल होने बरखा अपने पति कृष्णकांत के साथ अशोक नगर पहुंच गई. यहां उस की मां सरला तथा पिता ओमप्रकाश सैनी भी आए हुए थे. दिन भर मामा के घर जमावड़ा बना रहा.

शाम को कृष्णकांत ने बरखा से घर चलने को कहा तो उस ने कहा कि वह मातापिता के साथ नवाबगंज जा रही है. कल वह घर आ जाएगी. इस के बाद वह अपने दोनों बच्चों के साथ नवाबगंज चली गई और कृष्णकांत अपने घर चला गया.

इधर दीपक को पता चला कि बरखा मामा के यहां गई है तो उस ने फोन पर बरखा से बात की और जीटी रोड स्थित हनुमान मंदिर पर मिलने को कहा. लेकिन बरखा ने उस की बात यह कह कर नहीं मानी कि वह पति और मातापिता की निगरानी में है. इस के बाद कई बार दीपक ने फोन किया और बरखा के संपर्क में बना रहा.

शाम 5 बजे दीपक ने बरखा को फोन किया तो उस ने बताया कि वह मायके नवाबगंज जा रही है. इस पर दीपक ने कहा, “बरखा, आज अगर हमारा मिलन तुम से न हुआ तो मैं अपनी जान दे दूंगा. मैं बहुत दिनों से तुम्हारे लिए तड़प रहा हूं. अब मुझ से रहा नहीं जाता.”

जवाब में बरखा ने कहा, “तुम जान देने की बात मत करो. तुम जागेश्वर मंदिर परिसर आ जाओ. फोन पर संपर्क बनाए रखना. मैं तुम्हारी इच्छा पूरी करने की पूरी कोशिश करूंगी. मेरी काल का इंतजार करना. कोई जल्दबाजी न करना.”

शादी के नाम पर ऐसे होती है ठगी – भाग 4

अजय परेशान था कि ऐसा क्या काम करे कि उसे मोटी कमाई हो. तभी उस के दिमाग में उच्च परिवार की तलाकशुदा ऐसी महिलाओं को ठगने का आइडिया आया जो फिर से शादी करना चाहती हों. इस के लिए उस ने जीवनसाथी डौटकौम वेबसाइट पर रजिस्ट्रेशन करा कर अपनी आकर्षक प्रोफाइल बनाई.

प्रोफाइल में उस ने अपना नाम बदल कर राजीव यादव लिखा और अपनी जगह किसी दूसरे का फोटो लगा दिया. नोएडा के छलेरा गांव के रहने वाले युवक अमित चौहान को उस ने मोटी तनख्वाह पर नौकरी पर रख लिया था.

प्रभाव जमाने के लिए अजय ने खुद को आईपीएस अफसर और मिजोरम में डीआईजी के पद पर तैनात बताया. इस आकर्षक प्रोफाइल को देख कर ही अनुष्का उस के जाल में फंसी थी. जिस से उस ने साढ़े 24 लाख रुपए ठग लिए थे

पुलिस ने जालसाज अजय यादव उर्फ राजीव यादव और अमित चौहान को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश कर जेल तो भेज दिया. लेकिन इस के बाद भी अनुष्का की मुश्किलें कम नहीं हुई हैं. अब अदालत की काररवाई में उसे कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं.

अनुष्का की ही तरह शालिनी भी शादी के विज्ञापन की वेबसाइट के जरिए एक ऐसे व्यक्ति के चंगुल में फंसी कि उस युवक ने उस के 6 लाख रुपए बड़ी आसानी से ठग लिए.

दिल्ली के कृष्णानगर इलाके के रहने वाला वरुण बीए सेकेंड ईयर किए हुए है. उस ने दरजनों संस्थानों में जौब की, लेकिन कहीं भी टिक नहीं पाया. इसी दौरान उस ने टीवी पर एक क्राइम शो देखा. शो में दिखाया गया था कि एक शख्स मैट्रीमोनियल साइट्स पर एकाउंट बना कर किस तरह महिलाओं को ठगता था. उसी टीवी शो से प्रेरित हो कर वरुण पाल ने भी मैट्रीमोनियल साइट्स के जरिए ठगी करने की योजना बनाई.

योजना के तहत उस ने मैट्रीमोनियल की 3 बड़ी वेबसाइट्स पर अपने कई एकाउंट बनाए और फेसबुक में हैंडसम दिखने वाले लड़कों की तसवीरें लगा दीं. अपनी प्रोफाइल में उस ने खुद को माइक्रोसाफ्ट कंपनी का आईटी मैनेजर बताया. अपना प्रभाव जमाने के लिए वरुण ने अपनी फेसबुक में कुछ अच्छे बंगलों की तसवीरें भी अपलोड कर दीं. उन बंगलों को वह अपने बताता था. खुद को रसूख वाला प्रोजैक्ट करने के बाद कई महिलाएं उस के जाल में फंसीं.

महिलाओं को अपने जाल में फांसने के बाद वह उन से मुलाकात करता और किसी तरह उन के न्यूड फोटोग्राफ हासिल कर लेता था. इस के बाद वरुण का ठगी का खेल शुरू हो जाता था. वह बिजनैस में मोटा घाटा होने की बात कह कर उन से मोटी रकम ऐंठता. जब कोई महिला पैसे देने में आनाकानी करती तो वह न्यूड तसवीरों के जरिए उसे ब्लैकमेल करता.

शालिनी भी मैट्रीमोनियल साइट के जरिए वरुण पाल के जाल में फंस गई. वरुण ने शालिनी को शादी के जाल में फांस कर 6 लाख रुपए ठग लिए थे. शालिनी से जब वरुण ने और पैसों की डिमांड की तो शालिनी को अहसास हो गया कि उसे ठगा जा रहा है. उस ने और पैसे देने से मना कर दिया तो वरुण ने उसे धमकी दी कि यदि पैसे नहीं दिए तो वह उस के न्यूड फोटो इंटरनेट पर डाल देगा.

शालिनी अब समझ चुकी थी कि जिसे वह अपना जीवनसाथी चुनने जा रही थी, वह बहुत शातिर ठग है. उस ने उसे सबक सिखाने के लिए दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच में लिखित शिकायत कर दी.

आर्थिक अपराध शाखा के डीसीपी एस.डी. मिश्रा ने इस मामले में त्वरित काररवाई करते हुए एक पुलिस टीम बनाई. पुलिस टीम ने 8 अगस्त, 2014 को आरोपी वरुण पाल को गिरफ्तार कर लिया.

मैट्रीमोनियल साइटों पर आज भी तमाम फरजी एकाउंट एक्टिव हैं. जिन लोगों ने ऐसे एकाउंट बना रखे हैं, उन का मकसद भोलीभाली लड़कियों, महिलाओं को अपने जाल में फंसा कर उन का आर्थिक और शारीरिक शोषण करना होता है.

ऐसे विज्ञापनों के जरिए शादी के बंधन में बंधने वालों को पहले अच्छी तरह से छानबीन कर लेनी चाहिए कि उस ने अपने प्रोफाइल में जो कुछ दे रखा है, वह सही है या नहीं. यदि बिना जांच किए शादी का प्रपोजल स्वीकार कर लिया तो अनुष्का और शालिनी की तरह पछताना पड़ सकता है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. अनुष्का और शालिनी नाम परिवर्तित हैं.

दो बहनों का एक प्रेमी – भाग 2

11 दिसंबर, 2013 को अब्दुल रशीद और अतीक सुबह को अपने काम पर चले गए. शमीम और आफरीन घर में अकेली रह गईं. उस दिन शमीम के बड़े भाई की पत्नी जरीना ने खीर बनाई थी. शाम को 6 बजे वह एक कटोरे में खीर ले कर शमीम को देने आई. दरवाजा शमीम की जगह आफरीन ने खोला. वह जरीना को देखते ही घबराई सी बोली, ‘‘भाभी, अंदर आओ. देखो, अप्पी को पता नहीं क्या हो गया है. किसी ने उन का गला काट दिया है, लगता है मर गई हैं.’’

जरीना उस वक्त मुख्य दरवाजे की दहलीज पर खड़ी थी. आफरीन की बात सुन कर वह 2 कदम पीछे हट गई. उस ने सहमते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारे घर में दाखिल नहीं होऊंगी. मोहल्ले के लोगों को बुला लो.’’

आफरीन ने यह बात सामने पान की गुमटी पर बैठने वाले व्यक्ति को बताई. लेकिन उस ने भी अंदर जा कर देखने की हिम्मत नहीं की. अलबत्ता उस ने यह बात आसपास के लोगों को जरूर बता दी. इस का नतीजा यह हुआ कि कुछ ही देर में यह खबर पूरे इलाके में फैल गई. अब्दुल रशीद के घर के सामने तमाम लोग जमा हो गए. लेकिन डर की वजह से कोई भी अंदर नहीं गया.

इसी बीच किसी ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर दिया. शमीम और आफरीन की बड़ी बहन तहसीन और दूसरे भाई की पत्नी भी उसी मोहल्ले में रहती थीं. खबर मिलते ही वे दोनों भी आ गईं. हिम्मत कर के बड़ी बहन और भाभी अंदर गईं. अंदर शमीम की लाश खून से लथपथ पड़ी थी. वे उसे देखते ही रोने लगीं. जरा सी देर में कोहराम मच गया.

पुलिस कंट्रोल रूम से सूचना मिलते ही यशोदानगर पुलिस चौकी के इंचार्ज जय वीर सिंह अपने सहयोगियों कांस्टेबल राम नारायण, आजाद, शिव प्रताप यादव, रामलखन और राजेश सिंह के साथ घटनास्थल पर आ गए. घटनास्थल की स्थिति देखने के बाद जयवीर सिंह ने इस मामले की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी.

राजीवनगर के एफ ब्लौक में एक युवती का कत्ल हो गया है, यह पता चलते ही थाना नौबस्ता के प्रभारी आलोक कुमार यादव कांस्टेबल सुमित नारायण यादव, नीरज कुमार यादव, रणजीत सिंह यादव, देवेश कुमार आदि के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे. पुलिस ने अंदर जा कर देखा तो शमीम तख्त के ऊपर बिस्तर पर औंधे मुंह पड़ी थी. उस के गले से काफी मात्रा में खून रिसा था, जिस से बिस्तर गीला हो गया था.

बिस्तर पर बिछी चादर के एक कोने पर संभवत: हत्यारे ने अपने खून सने हाथ पोंछे थे. वहां भी काफी खून लगा हुआ था. अभी थानाप्रभारी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सीओ रोहित मिश्र फौरेंसिक टीम के साथ आ पहुंचे.

पुलिस ने नंबर पूछ कर शमीम के पिता को इस घटना की खबर देनी चाहिए तो उन का फोन स्विच्ड औफ मिला. आफरीन कुछ नहीं बता पा रही थी, इसलिए पुलिस घर के मुखिया अब्दुल रशीद के आने का इंतजार करने लगी.

अब्दुल रशीद रात 9 बजे अपने बेटे अतीक के साथ घर लौटे तो दरवाजे पर पुलिस की जीप और पुलिस वालों को खड़ा देख परेशान हो गए. उन की समझ में नहीं आया कि उन के घर के बाहर इतनी भीड़ क्यों है. उन्होंने घर के अंदर जा कर देखा तो वह गश खा कर गिरतेगिरते बचे. 3-4 लोगों ने मिल कर उन्हें जैसेतैसे संभाला.

अब्दुल रशीद से भी कोई महत्त्वपूर्ण बात पता नहीं चली तो थानाप्रभारी आलोक कुमार यादव ने प्राथमिक काररवाई पूरी कर के मृतका शमीम की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. इस के साथ ही अब्दुल रशीद की तहरीर पर भादंवि की धारा 302/201 के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया गया.

अब्दुल रशीद ने पुलिस को बताया कि दिल्ली में रहने वाले सिराज के साथ शमीम के प्रेमसंबंध थे. जबकि वह उस की शादी अपनी पसंद के लड़के से करना चाहते थे. उन्होंने उस की शादी भी तय कर दी थी. इस पर सिराज ने धमकी दी थी कि अगर शमीम की शादी कहीं और की तो उसे जान से मार देगा. अब्दुल रशीद ने यह भी बताया कि सिराज से शमीम की जानपहचान रूबीना ने ही कराई थी.

आफरीन ने अपने बयान में पुलिस को बताया कि दोपहर 2 बजे शमीम के मोबाइल पर किसी का फोन आया था. फोन पर बात करने के बाद शमीम ने उस से कहा था कि कोई उस से मिलने आ रहा है, इसलिए वह कुछ समय के लिए घर से बाहर चली जाए और उस के सामने न पड़े, क्योंकि उस की नजर अगर उस पर पड़ गई तो वह उसे पसंद कर लेगा.

आफरीन ने आगे बताया कि पहले तो वह घर से बाहर नहीं जाना चाहती थी, लेकिन जब शमीम ने आने वाले की एक फोटो दिखाई तो वह मान गई और घर से निकल कर अंबेडकर पार्क की तरफ चली गई. उस वक्त शमीम भी उस के साथ थी, क्योंकि आने वाले ने उस से अंबेडकर मूर्ति के पास मिलने को कहा था. यह साढ़े 3 बजे की बात है.

आफरीन के अनुसार वह अंबेडकर पार्क के पास से होते हुए घर के पीछे वाली गली में चली गई थी और वहीं बैठ कर बहन के फोन का इंतजार करने लगी थी. अगले 3 घंटे उस ने वहीं बिताए और जब 6 बजने को आए और अंधेरा छाने लगा तो वह वहां से उठ कर घर लौट आई. उस समय घर का दरवाजा उढ़का हुआ था. वह अंदर पहुंची तो उस ने शमीम को खून से लथपथ मरा हुआ पाया.

यह सब बताने के बाद आफरीन कमरे में गई और एक तसवीर थानाप्रभारी को देते हुए कहा कि शमीम से यही लड़का मिलने आने वाला था. उस ने यही फोटो उसे दिखाई थी.

थानाप्रभारी ने फोटो को गौर से देखा, वह किसी 16-17 साल के लड़के की फोटो थी. उस फोटो को देख कर ऐसा नहीं लगता था कि वह हत्यारा हो सकता है. दूसरी बात यह भी थी कि उस लड़के का नामपता किसी को मालूम नहीं था. ऐसे में उसे तलाश करना आसान नहीं था.

प्यार की वो आखिरी रात – भाग 2

एक रोज दोपहर को दीपक ईरिक्शा ले कर बाजार जा रहा था कि उसे बरखा दिखाई दी. उस ने ईरिक्शा रोक दी. बरखा नजदीक आई तो दीपक ने उसे छेड़ा, “भाभी, क्या भैया को छोड़ कर जा रही हो? बहुत जल्दी में दिख रही हो.”

“तुम्हारे भैया को छोड़ कर भागूंगी तो तुम्हारे साथ न.” बरखा ने बिना संकोच के कहा और उस की ईरिक्शा पर बैठ गई, “चलो, भगा ले चलो मुझे.”

“कहां?” दीपक अब सकपका गया.

“बस निकल गई हवा. बड़े आए भाभी का खयाल रखने वाले. चलो, मुझे बाजार तक छोड़ दो.” बरखा ने उसे टहोका मारा. उस रोज बाजार में बरखा ने शौपिंग की तो दीपक ने उसे इंप्रेस करने के लिए अपनी तरफ से उसे एक अच्छी सी साड़ी खरीदवा दी. फिर एक रेस्तरां में उसे बढिय़ा सा नाश्ता भी कराया.

वापसी में भी दीपक उसे साथ ले कर आया, इस दौरान दोनों काफी खुल चुके थे. दीपक ने दबे स्वर में बरखा को यह जता दिया था कि वह उसे बेइंतहा चाहता है. बरखा अपनी कटीली अदाओं से उसे घायल करती हुई मुसकराती रही.

मोहल्ले से कुछ दूर बरखा को उतारते हुए दीपक बोला, “भाभी, आज मैं ने तुम्हारी इतनी सेवा की, उस की मेवा भी मिलेगी क्या?”

“एक घंटे बाद घर आ जाना, चाय पिला दूंगी.”

“सिर्फ चाय?”

“तो दूध पी लेना,” बरखा ने कामुक आंखों से दीपक की आंखों में झांका और गहरी सांस लेते हुए अपने वक्षों को तान दिया, मानो वह कह रही हो कि इन्हें पी लेना.

दीपक घर पहुंचा. उस ने कपड़े बदले फिर मां से बहाना कर के घर से निकल गया. वह जानता था कि बरखा इस वक्त घर पर अकेली होगी. कृष्णकांत रात 9 बजे के पहले घर नहीं आता था. दीपक उसी रोज बरखा को पा लेना चाहता था, अत: वह बरखा के घर की ओर चल पड़ा.

बरखा ने दीपक को पलंग पर बिठाया. फिर मुसकराते हुए पूछा, “क्या पिओगे देवरजी, चाय या दूध..?”

“यह दूध,” दीपक ने उस की कलाई थामते हुए उस के स्तनों की तरफ इशारा किया.

“हाय दैय्या, कितने बेशरम हो तुम.” बरखा ने लाज का नाटक किया, लेकिन दीपक ने उसे खींच कर गोद में गिरा लिया और उस के वक्ष सहलाने लगा.

“देवरजी, तुम मुझे अच्छे लगते हो,” बरखा ने उस के हाथों के ऊपर हाथ रखते हुए कहा, “पर मैं तुम्हें यह दूध तभी पिलाऊंगी, जब तुम हमेशा इन के वफादार रहने की कसम खाओगे.”

“तुम्हारी कसम बरखा भाभी, तुम्हें कभी दगा नहीं दूंगा,” दीपक ने अपने सिर पर हाथ रख कर कसम खाई.

दीपक गुप्ता से हो गए अवैध संबंध

बरखा प्यासी औरत थी. उस की नजर दीपक की जवानी पर थी. दीपक ही उस की प्यास बुझा सकता था. उस का पति कृष्णकांत उस की पेट की भूख तो मिटा सकता था, पर तन की भूख नहीं. अत: उस ने एक कामुक सीत्कार भरी और बोली, “मैं पहले दरवाजा बंद कर लूं.”

दीपक ने उसे छोड़ा तो वह दरवाजा बंद कर आई. वह जैसे ही पलंग के पास आई, दीपक ने उसे बांहों में भर लिया और पलंग पर लुढक़ गया. उस के बाद तो कमरे में सीत्कार की आवाजें आने लगीं. कुछ देर बाद दोनों अलग हुए तो उन के चेहरे पर पूर्ण संतुष्टि के भाव थे.

उस रोज बरखा जहां शादी के समय दिए गए सभी वचन भूल गई और पति के साथ विश्वासघात कर बैठी, वहीं दीपक ने दोस्ती को दरकिनार कर दोस्त की पीठ में इज्जत का छुरा घोंप दिया. वह भूल गया कि बरखा उस के दोस्त की पत्नी है.

अवैध संबंधों का सिलसिला एक बार शुरू हुआ तो वक्त के साथ बढ़ता ही गया. दोनों को जब भी मौका मिलता, वे एकदूसरे में समा जाते. बरखा अब दीपक के साथ सैरसपाटा करने भी जाने लगी. दीपक बरखा को ईरिक्शा पर बैठा कर रमणीक स्थल मोतीझील ले जाता. वहां की मखमली घास पर बैठ कर दोनों घंटों तक प्यार भरी बातें करते. फिर झील में नाव पर बैठ कर खूब मस्ती करते. पति के वापस आने के पहले वह घर लौट आती थी.

दीपक का कृष्णकांत के घर आनाजाना बढ़ा तो अड़ोसपड़ोस के लोगों के कान खड़े हो गए. कई लोगों ने बरखा को दीपक के साथ बाजार में भी साथ देखा था, सो वे भी कानाफूसी करने लगे थे. कृष्णकांत को बात पता चली तो उस का माथा ठनका. उस ने बरखा से कहा तो कुछ नहीं, लेकिन उस पर शक करने लगा.

बरखा पति के सामने बनी सतीसावित्री

एक रोज कृष्णकांत सुबह काम पर गया, लेकिन दोपहर को ही वापस लौट आया. उस समय बरखा घर पर ही थी. कृष्णकांत यह सोच कर घर वापस आया था कि बरखा के साथ प्यार भरे कुछ लम्हे बिताएगा, लेकिन ज्यों ही वह अपने कमरे में दाखिल होने को हुआ, बरखा की आवाज उस के कानों से टकराई, “उस के साथ मेरा विवाह हो गया तो क्या हुआ? मेरा जिस्म और मेरी आत्मा तुम्हारे ही रहेंगे. हमें कोई रोक नहीं सकता.”

कृष्णकांत के कानों में मानो किसी ने पिघला हुआ शीशा डाल दिया हो. उस का चेहरा गुस्से से लाल हो गया. मारे गुस्से और नफरत के उस के जबड़े भिंच गए. दरवाजे को धकेलते हुए वह कमरे में दाखिल हुआ तो उसे अचानक सामने पति को देख कर बरखा के चेहरे का रंग उड़ गया.

कृष्णकांत उसे घूरते हुए दहाड़ा, “बताओ कौन है वह, जिस से तू फोन पर बातें कर रही थी. जरूर वह तेरा आशिक ही होगा.”

बरखा चुपचाप कृष्णकांत की बात सुनती रही. उस के चेहरे पर ग्लानि या क्षोभ के कोई भाव नहीं थे. बजाय झुकने के बरखा सख्त लहजे में बोली, “तुम्हें यह जानना है न कि मैं किस से बातें कर रही थी तो जान लो, मैं अपनी सहेली से बात कर रही थी. अगर यकीन न हो, तो ये लो फोन और नंबर मिला कर कर लो उस से बात.” कह कर उस ने फोन पति को पकड़ा दिया.

बरखा ने जिस आत्मबिश्वास के साथ यह सब कहा था, उस से कृष्णकांत को लगा कि वह सच बोल रही है. उसे लगा कि पूरी बात जाने बिना उस ने बेकार में पत्नी पर शक किया. यही नहीं, उस ने बरखा से माफी मांगी और उसे मनाने लगा.

बरखा के जब से दीपक के साथ जिस्मानी संबंध बने थे, तब से उस ने पति को भुला ही दिया था, लेकिन उस दोपहर जब माफी मांगने के बाद कृष्णकांत ने बरखा से प्यार भरी बातें की और उसे अपनी बांहों में भरा तो वह पति को समर्पित हो गई. कृष्णकांत खुश था कि आज उस ने बीवी को पा लिया है, पर वह यह नहीं जानता था कि बीवी ने उस के शक को दूर करने के लिए उस के समक्ष जिस्म की गिरह खोली थी.

शादी के नाम पर ऐसे होती है ठगी – भाग 3

अनुष्का का शक गहरा गया. वह दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त रविंद्र यादव से मिली और उन्हें अपने साथ घटी पूरी कहानी बता दी. रविंद्र यादव को यह मामला काफी गंभीर लगा. उन्होंने अनुष्का को क्राइम ब्रांच के पुलिस उपायुक्त भीष्म सिंह के पास भेज दिया साथ ही डीसीपी को निर्देश दिए कि वह जल्द से जल्द जरूरी काररवाई करें.

डीसीपी ने अनुष्का की शिकायत पर थाना क्राइम ब्रांच में 7 मार्च, 2014 को राजीव यादव, अजय यादव, अमित चौहान आदि के खिलाफ धोखाधड़ी करने की रिपोर्ट दर्ज करा दी. साथ ही उन्होंने एसीपी होशियार सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई जिस में तेजतर्रार सबइंसपेक्टर विनय त्यागी, अतुल त्यागी, हेडकांस्टेबल संजीव कुमार, जुगनू त्यागी, नरेश पाल, राजकुमार, उपेंद्र, कांस्टेबल राजीव सहरावत, विपिन, संदीप आदि को शामिल किया गया.

जिस फोन नंबर से राजीव अनुष्का से बात करता था, वह उस ने बंद कर रखा था. पुलिस टीम ने उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई और उस काल डिटेल्स का अध्ययन कर के यह जानने में जुट गई कि राजीव यादव की ज्यादातर किन फोन नंबरों पर बातें होती थीं. इस के अलावा जिन बैंक खातों में अनुष्का ने साढ़े 24 लाख रुपए जमा कराए थे, उन की भी जांचपड़ताल शुरू कर दी.

इस जांच से पुलिस को यह जानकारी मिल गई कि राजीव यादव का असली नाम अजय यादव है और जिस अमित चौहान को उस ने अपना बौडीगार्ड बताया था, वह उस का ड्राइवर है. खुफिया तरीके से जांच करने पर पता चला कि अमित चौहान नोएडा के छलेरा गांव का रहने वाला है और अजय यादव दिल्ली के ग्रेटर कैलाश पार्ट-2 का. ये दोनों ही अपने घरों से फरार थे. उन की तलाश के लिए मुखबिर भी लगा दिए.

इसी बीच 21 मार्च, 2014 को पुलिस टीम को सूचना मिली कि अजय यादव आज अपनी होंडा सिटी कार डीएल4सीएएच 9066 से गुड़गांव-आयानगर जाएगा. यह खबर मिलते ही पुलिस टीम बौर्डर पर पहुंच गई और उधर से गुजरने वाली कारों पर नजर रखने लगी. उसी दौरान पुलिस को उक्त नंबर की होंडा सिटी कार आती दिखी तो उस ने उसे रोक लिया. उस समय कार में ड्राइवर के अलावा अधेड़ उम्र का एक आदमी बैठा हुआ था.

कार रुकते ही ड्राइवर बोला, ‘‘आप को पता नहीं गाड़ी किस की है?’’

‘‘नहीं, बताओ तभी तो पता चलेगा.’’ एक पुलिसकर्मी बोला.

‘‘ये गाड़ी डीआईजी साहब की है जो गाड़ी में ही बैठे हुए हैं.’’ ड्राइवर ने बताया.

इस से पहले कि पुलिस कुछ कहती, कार में बैठे शख्स ने ड्राइवर से बात कर रहे पुलिसकर्मी को इशारे से अपने पास बुलाया. पास में खड़े एसआई विनय त्यागी कार में बैठे उस शख्स के पास पहुंचे तो उस शख्स ने खुद को डीआईजी इंटेलीजेंस ब्यूरो बताया.

एसआई विनय त्यागी को यह जानकारी मिल ही चुकी थी कि अजय यादव बहुत ही शातिर किस्म का है. इसलिए उन्होंने उस से आइडेंटिटी कार्ड मांगा तो वह आईडी कार्ड तो क्या ऐसी कोई चीज नहीं दिखा सका जिस से साबित हो सके कि वह पुलिस में है. लिहाजा वह उन दोनों को क्राइम ब्रांच औफिस ले आए.

औफिस में जब उन दोनों से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपने नाम अजय यादव उर्फ राजीव यादव व अमित चौहान बताए. इन के खिलाफ ही अनुष्का ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

पूछताछ में पता चला कि अजय यादव बहुत अच्छे परिवार से है. उस के पिता आईएएस औफीसर थे. प्रतिष्ठित परिवार का अजय यादव एक ठग कैसे बना, इस बारे में जब उस से पूछताछ की गई तो उस के शातिर ठग बनने की एक दिलचस्प कहानी सामने आई.

अजय सिंह यादव के पिता जय नारायण सिंह आईएएस अधिकारी थे. वह सन 1979 में दिल्ली में एमसीडी के कमिश्नर रह चुके थे. अजय सिंह ने दिल्ली के किरोड़ीमल कालेज से 1976 में ग्रैजुएशन पूरा किया. पिता चाहते थे कि वह भी भारतीय प्रशासनिक सेवा की तैयारी करे. इस के लिए दिनरात एक करना होता है. यह सब करने के लिए अजय तैयार नहीं था. तब जयनारायण सिंह ने अपने प्रभाव से अजय की नौकरी फल एवं सब्जीमंडी आजादपुर में प्रवर्तन अधिकारी के पद पर लगवा दी.

चूंकि अजय की शुरू से ही खुले हाथों से पैसे खर्च करने की आदत थी. इसलिए नौकरी से उसे जो पैसे मिलते थे, वह उस की आंख तले नहीं आते थे. इस के अलावा उस की नौकरी बड़ी आसानी से लगी थी इसलिए उस नौकरी पर उस का मन नहीं लगा. 5-6 साल बाद ही उस ने वह नौकरी छोड़ दी.

उस का मानना था बिजनैस में मोटी कमाई होती है इसलिए अब वह किसी बिजनैस में हाथ आजमाना चाहता था. उसे चूंकि बिजनैस का कोई अनुभव नहीं था इसलिए पिता ने उसे बिजनैस करने को मना किया, लेकिन वह नहीं माना. उस ने एक नामी ब्रांड के रिफाइंड तेल की डिस्ट्रीब्यूशनशिप ले ली. राजस्थान में उस ने अपना कारोबार शुरू कर दिया. लेकिन घाटा होने की वजह से उस ने इस कारोबार को बंद कर दिया.

अजय यादव तेजतर्रार और पढ़ालिखा युवक था. पिता के प्रभाव की वजह से उस के कुछ राजनीतिज्ञों से भी अच्छे संबंध हो गए थे. रिफाइंड तेल का बिजनैस बंद करने के बाद वह केंद्र सरकार के तत्कालीन कृषि मंत्री का पीए बन गया. वहां उस की मुलाकात तमाम अधिकारियों से होती रहती थी. वहां रह कर वह पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की बात और काम करने की शैली सीख गया था.

अजय यादव अविवाहित था. प्रशासनिक अधिकारी का बेटा होने की वजह से उस के लिए अच्छे परिवारों से रिश्ते आने लगे. सन 1981 में राजस्थान सरकार के तत्कालीन गृहमंत्री की बेटी से उस की शादी हो गई.

कालेज के दिनों से ही वह खर्चीली लाइफस्टाइल जीने का शौकीन था. यही आदत उस की अब भी बनी हुई थी. मंत्री का पीए बनने के बाद वह जो कमा रहा था, उस कमाई से भी वह संतुष्ट नहीं था. लिहाजा उस ने मंत्री के पीए की नौकरी भी छोड़ दी.

उसी दौरान उस ने दिल्ली में कुछ ब्लूलाइन बसें चलवाईं. बसों से उसे जो आमदनी होती थी, उस से ज्यादा उस के खर्चे थे. ऊपर से बसों की मेंटीनेंस में उस के मोटे पैसे खर्च हो जाते थे लिहाजा उस ने वे भी बेच दीं. सन 1990 में अजय ने देहरादून स्थित अपने बंगले में होटल खोला, लेकिन उस से भी उसे अपेक्षा के मुताबिक इनकम नहीं मिली.

अजय के खर्चे बढ़ते जा रहे थे, लेकिन आमदनी का कोई स्थाई स्रोत नहीं था. लिहाजा वह परेशान रहने लगा. तब उस ने दिल्ली और हरियाणा की रीयल एस्टेट कंपनियों में नौकरियां कीं. नौकरी में उस की भागदौड़ ज्यादा हो गई थी जिस की वजह से उसे शुगर, उच्च रक्तचाप और अन्य कई बीमारियों ने घेर लिया. 2008-09 में वह पूरी तरह बेरोजगार हो गया तो उसे पैसों की तंगी होने लगी.

शादी के नाम पर ऐसे होती है ठगी – भाग 2

11 दिसंबर, 2013 को राजीव ने अनुष्का को फोन कर के कहा, ‘‘अनुष्का, मेरे साथ एक वाकया हो गया है. कल रात बदमाशों से हुई मुठभेड़ के दौरान मेरे पैर में गोली लग गई है. इस के अलावा मेरे कूल्हे की हड्डी में भी फ्रैक्चर हो गया है. इस समय मैं मिजोरम के एक प्राइवेट अस्पताल में हूं.’’

यह खबर सुनते ही अनुष्का घबरा गई. वह फोन पर ही इस घटना पर दुख जताने लगी. तभी राजीव बोला, ‘‘अनुष्का, तुम मेरी चिंता मत करो. जल्दी ही ठीक हो जाऊंगा. लेकिन तुम्हें तो मालूम ही है कि कल मेरा एटीएम कार्ड कहीं गिर गया था. यहां अस्पताल में कुछ पैसों की जरूरत है.

यदि संभव हो सके तो कुछ पैसे औनलाइन ट्रांसफर कर दो. ठीक होने के बाद मुझे विभाग से सारा पैसा मिल जाएगा, तब मैं तुम्हारे पैसे लौटा दूंगा. मैं अपने बौडीगार्ड का एकाउंट नंबर मैसेज कर रहा हूं. उसी में डाल देना. बौडीगार्ड बैंक से पैसे ला कर अस्पताल में जमा करा देगा.’’

कुछ ही देर बाद अनुष्का के फोन पर राजीव द्वारा भेजा गया मैसेज मिला. उस ने मैसेज में बैंक का खाता नंबर भेजा था. अनुष्का ने 12 दिसंबर 2013 को राजीव के भेजे गए कार्पोरेशन बैंक के खाता नंबर 124800101003359 में 75 हजार रुपए औनलाइन ट्रांसफर कर दिए.

अनुष्का कामना करने लगी कि राजीव जल्द ठीक हो जाए. चूंकि राजीव उस का होने वाला पति था इसलिए उस का ध्यान उस की तरफ ही लगा हुआ था. वह दिन में कईकई बार फोन कर के उस का हालचाल मालूम करती रहती थी.

19 दिसंबर, 2013 को राजीव ने अनुष्का को फोन कर के कहा कि उस की हालत ठीक न होने की वजह से उसे चेन्नई के अपोलो अस्पताल ले जाया जा रहा है. वहां उस के औपरेशन वगैरह पर मोटा पैसा खर्च होने की उम्मीद है. उस ने उस से और पैसे भेजने को कहा.

अनुष्का नहीं चाहती थी कि राजीव को कुछ हो जाए, इसलिए उस ने उसी दिन उस के द्वारा भेजे गए खाता नंबर में सवा 4 लाख रुपए जमा करा दिए. 13 दिसंबर जो शादी की तारीख मुकर्रर की गई थी, वह अचानक आई विपदा की वजह से निकल गई. धीरेधीरे 2013 बीत कर नया साल 2014 भी आ गया. अनुष्का का मन कर रहा था कि अस्पताल जा कर वह राजीव को देख आए लेकिन बिजनैस और अन्य वजहों से वह चेन्नई नहीं जा सकी. वह फोन पर जरूर उस के संपर्क में रही.

अनुष्का ने राजीव से कह दिया था कि वह इलाज की चिंता न करे. जितना भी संभव हो सकेगा वह उस की मदद करेगी. एक दिन राजीव ने उस से कहा, ‘‘डाक्टरों ने बताया है कि इलाज लंबा चलेगा, जिस में पैसों की भी जरूरत पड़ेगी. मेरे ठीक होने तक तुम जरूरत के मुताबिक पैसे देती रहना. ठीक होने पर मैं तुम्हारे सारे पैसे वापस कर दूंगा.’’

‘‘आप पैसों की चिंता न करें, बस अपना खयाल रखें.’’ अनुष्का बोली.

‘‘अनुष्का मेरे एक दोस्त हैं अजय सिंह यादव जो यहीं पर डीआईजी हैं. मैं उन का आईसीआईसीआई बैंक का खाता नंबर एसएमएस कर रहा हूं. तुम उस में भी पैसे भेज सकती हो. पैसे भेजने के बाद तुम मुझे फोन जरूर कर देना.’’ राजीव ने बताया.

इस तरह 12 दिसंबर, 2013 से 7 फरवरी, 2014 तक अनुष्का अलगअलग बैंक खातों में राजीव यादव के साढ़े 24 लाख रुपए भेज चुकी थी. इसी बीच राजीव ने उसे बताया कि उस का ब्लड प्रेशर लगातार बढ़ रहा है और कूल्हे का औपरेशन करने के लिए उसे चेन्नई से हैदराबाद के अपोलो अस्पताल भेजा जा रहा है.

राजीव की हालत दिनप्रतिदिन बिगड़ने की बात सुन कर अनुष्का को और ज्यादा चिंता होने लगी. उस ने राजीव को अस्पताल जा कर देखने का प्रोग्राम बना लिया. 21 फरवरी, 2014 को वह हैदराबाद के अपोलो अस्पताल पहुंच गई. अस्पताल पहुंचने पर उसे जो सूचना मिली, उसे सुन कर उस के होश ही उड़ गए.

अस्पताल से उसे जानकारी मिली कि राजीव यादव नाम का कोई पुलिस अधिकारी अस्पताल में भरती ही नहीं है. जबकि राजीव ने उसे उसी अस्पताल में भरती होने की बात कही थी.

जब वह इस अस्पताल में नहीं है तो कहां गया? कहीं ऐसा तो नहीं कि उसे किसी और अस्पताल भेज दिया हो? यह सोच कर उस ने उसी समय राजीव को फोन मिलाया. उस का फोन स्विच्ड औफ आ रहा था. कई बार फोन मिलाने के बाद भी फोन स्विच्ड औफ मिलता रहा तो निराश हो कर वह कानपुर लौट आई.

घर लौटने के बाद उस ने राजीव को फिर से फोन मिलाया. इस बार फोन मिलने पर बात हुई तो राजीव ने अपनी सफाई में कहा कि सुरक्षा कारणों से वह अस्पताल में दूसरे नाम पर भरती हुआ है.

राजीव ने उस से पैसों की और डिमांड की तो अनुष्का ने उसे अब पैसे न होने का बहाना बना दिया. अनुष्का ने जब उस से पूछा कि वह अस्पताल में किस नाम से भरती है तो उस ने वह नाम नहीं बताया बल्कि उस ने फोन फिर से स्विच्ड औफ कर लिया.

इस से अनुष्का को राजीव की बातों पर शक होने लगा था. उस ने राजीव को आईसीआईसीआई, ओरियंटल बैंक औफ कौमर्स और कार्पोरेशन बैंक के जिन खातों में पैसे भेजे थे. वह अपने स्तर से यह पता लगाने में जुट गई कि यह खाते किन नामों पर हैं.

उसे पता चला कि आईसीआईसीआई बैंक और ओरियंटल बैंक औफ कौमर्स के खाते अजय सिंह यादव के थे, जो ग्रेटर कैलाश पार्ट-2, नई दिल्ली का रहने वाला था जबकि कार्पोरेशन बैंक का खाता अमित चौहान का निकला जो नोएडा के छलेरा गांव का रहने वाला था. जिस वोडाफोन मोबाइल नंबर से राजीव यादव बात करता था वह भी अमित चौहान के नाम पर लिया गया था.

इसी बीच 26 फरवरी, 2014 को अनुष्का को राजीव यादव ने फोन कर के बताया कि वह अस्पताल से डिस्चार्ज हो रहा है. डिस्चार्ज होने के कुछ दिनों बाद उसे आईएएस एकेडमी मसूरी भेजा जाएगा. वह वहां कुछ दिनों इंस्ट्रक्टर के रूप में काम करेगा.

राजीव ने अस्पताल का बिल चुकाने के लिए अनुष्का से कुछ पैसे और भेजने को कहा. चूंकि अनुष्का को राजीव पर शक हो गया था इसलिए उस ने उस की बात को फोन में रिकौर्ड करना शुरू कर दिया था. अपनी मजबूरी बताते हुए उस ने उसे और पैसे देने में असमर्थता जता दी.

और पैसे न मिलने की बात सुन कर राजीव यादव ने फोन फिर से स्विच्ड औफ कर लिया. इस के बाद वह फोन औन नहीं हुआ. शादी के जाल में फंस कर अनुष्का राजीव को साढ़े 24 लाख रुपए दे चुकी थी. और पैसे न मिलने की बात पर जिस तरह राजीव यादव ने अपना फोन स्विच्ड औफ कर लिया था, उस से अनुष्का को लगा कि उस के साथ कोई बड़ा फ्रौड हुआ है.

अपने स्तर से जानकारी पाने के लिए वह दिल्ली के ग्रेटर कैलाश पार्ट-2 में उस पते पर गई जहां वह रहता था, जिस के खातों में उस ने मोटी रकम ट्रांसफर की थी. राजीव ने अजय यादव को मिजोरम का डीआईजी बताया. लेकिन पड़ोसियों से बात करने पर पता चला कि वहां कोई पुलिस अधिकारी नहीं रहता.

प्यार की वो आखिरी रात – भाग 1

कानपुर शहर का नवाबगंज मोहल्ला कई मायनों में अपनी पहचान बनाए हुए है. एक तो यह पुराना कानपुर के नाम से जाना जाता है. दूसरे गंगा नदी पर बना गंगा बैराज अपनी अद्भुत छटा बिखेरता है. अटल घाट पर बैठ कर लोग कलकल बहती गंगा की लहरों का लुत्फ उठाते हैं. नौका विहार का आनंद भी लेते हैं.

सैकड़ों की संख्या में यहां लोग रोजाना आते हैं. नवाबगंज का जागेश्वर मंदिर भी बहुत प्रसिद्ध है. यहां हर साल सावन के अंितम सोमवार को दंगल का आयोजन किया जाता है, जिस में पुरुष और महिला पहलवान भाग लेते हैं. दंगल को देखने भारी भीड़ उमड़ती है.

इसी जागेश्वर मंदिर के ठीक सामने ओम प्रकाश सैनी अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी सरला के अलावा 3 बेटियां थीं. ओमप्रकाश सैनी फूलों का व्यवसाय करते थे. उन की पत्नी सरला जागेश्वर मंदिर परिसर में फूल बेचने का काम करती थी. पतिपत्नी मिल कर इतना कमा लेते थे, जिस से परिवार का खर्च मजे से चलता था. बड़ी बेटी कुसुम जवान हुई तो उन्होंने उस का विवाह संतोष के साथ कर चुके थे.

मंझली बेटी बरखा थी. वह अपनी अन्य बहनों से ज्यादा खूबसूरत थी. जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही उस की खूबसूरती में और निखार आ गया था. हाईस्कूल की परीक्षा पास करने के बाद वह आगे भी पढऩा चाहती थी, लेकिन सरला ने उस की पढ़ाई बंद करा दी और घरेलू काम में लगा दिया. बरखा बनसंवर कर मंदिर परिसर स्थित फूलों की दुकान पर अपनी मां के साथ बैठती तो अनेक युवकों की निगाहें उसे घूरतीं. चंचलचपल बरखा किसी को अपने पास नहीं फटकने देती थी.

बरखा के जवान होने पर वह उस के लिए उचित लडक़े की तलाश में जुट गए. उन्होंने परिचय के साथ बरखा का नाम सैनी समाज के सामूहिक विवाह रजिस्टर में भी दर्ज करा दिया. लंबी भागदौड़ के बाद उन की तलाश कृष्णकांत पर जा कर खत्म हुई.

बरखा ने सुहागरात को ही फेल कर दिया था पति

कृष्णकांत के पिता रामकुमार सैनी कानपुर शहर के यशोदा नगर मोहल्ले में रहते थे. सैनिक चौराहे पर उन का निजी मकान था. वैसे वह मूल निवासी सकरापुर (बिधनू) के थे. वहां उन का पुश्तैनी मकान और कुछ खेती की जमीन है. रामकुमार के परिवार में पत्नी सुनीता के अलावा एक बेटी शिखा तथा बेटा कृष्णकांत था. शिखा की वह शादी कर चुके थे, जबकि कृष्णकांत अभी कुंवारा था. कृष्णकांत इलैक्ट्रिशियन था. वह क्षेत्र की एक दुकान पर काम करता था.

ओमप्रकाश सैनी ने जब कृष्णकांत को देखा तो वह उस के आचारविचार से प्रभावित हुए. अच्छा घरवर देख कर ओमप्रकाश ने अपनी बेटी बरखा का रिश्ता उस के साथ तय कर दिया. फिर 22 दिसंबर, 2009 को बरखा का विवाह कृष्णकांत सैनी के साथ धूमधाम से कर दिया.

शादी के बाद बरखा कृष्णकांत की दुलहन बन कर ससुराल आई तो उस ने अपने बात व्यवहार से पति और सासससुर का दिल जीत लिया. सुंदर व सुशील बहू पा कर जहां सासससुर खुश थे. सब खुश थे, लेकिन बरखा खुश नहीं थी. उस ने जिस सजीले पति को सपने में संजोया था, कृष्णकांत वैसा नहीं था. वह साधारण रंगरूप वाला, दुबलापतला तथा कम बोलने वाला इंसान था. बरखा ने सुहागरात में ही जान लिया था कि उस का पति पौरुषहीन है. उसे सदैव शारीरिक सुख के लिए तड़पना पड़ेगा.

दिन बीतते रहे. लगभग डेढ़ साल बाद बरखा ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस के जन्म से घर की खुशियां और बढ़ गईं. मयंक के जन्म से रामकुमार व उन की पत्नी भी गदगद थी. उन्होंने इस खुशी को साझा करने के लिए सैनी समाज के लोगों को भोज कराया.

बरखा को घर में वैसे तो सब सुख था, लेकिन पति सुख से वंचित रहती थी. कृष्णकांत सुबह 9 बजे घर से निकलता, फिर रात 9 बजे ही घर आता. वह कभी शराब के नशे में धुत हो कर घर लौटता तो कभी बेहद थकाहारा. कभी खाना खाता तो कभी बिना खाए ही चारपाई पर पसर जाता. बरखा रात भर करवटें बदलती रहती और गीली लकड़ी की तरह सुलगती रहती. वह हर रात अरमानों को खाक करती और भाग्य को कोसती. इसी तरह समय बीतता रहा.

पति के दोस्त पर जम गई निगाह

कृष्णकांत का एक दोस्त था दीपक गुप्ता. उस के घर से 4 घर छोड़ कर वह रहता था. दीपक के पिता विमल गुप्ता की घर के बाहर पान की दुकान थी. कृष्णकांत भी उस की दुकान पर पान मसाला खाने जाता था. दुकान पर ही कृष्णकांत की उस की दोस्ती दीपक गुप्ता से हुई थी. समय के साथ उन की दोस्ती गहरी हुई तो दीपक का उस के घर आनाजाना शुरू हो गया. दीपक गुप्ता ई रिक्शा चलाता था. उस की कमाई अच्छी थी. वह बनसंवर कर रहता था.

चूंकि दीपक कृष्णकांत का दोस्त था, इसलिए घर के कामों के लिए वह ज्यादातर उसे ही भेजता था. घर के कामों के साथसाथ दीपक बरखा के छोटेमोटे निजी काम भी कर दिया करता था. दीपक बरखा की हमउम्र था. इसी आनेजाने में ही दीपक की नजरें बरखा के गदराए यौवन पर जम गईं.

फिर तो जब भी उसे मौका मिलता, वह बरखा से ऐसा मजाक करता कि वह शर्म से लाल हो उठती. औरतों को मर्दों की नजरें पहचानने में देर नहीं लगती. बरखा ने भी दीपक की नजरों से उस का इरादा भांप लिया था. बरखा प्यासी औरत थी. इसलिए उस ने दीपक की मजाक का कोई विरोध नहीं किया.

बरखा हसीन तितली थी. होंठों पर हमेशा लुभावनी मुसकान सजाए रखना उस का शगल था. उस का मस्त यौवन और उस की कटीली अदाएं दीपक के दिल पर छुरियां चलाती थीं. चूंकि दोस्ती व मोहल्ले के नाते बरखा दीपक की भाभी थी, अत: उन के बीच कुछ ज्यादा ही हंसीमजाक हो जाता था.

बरखा ने जब से घर की जिम्मेदारी संभाली थी, तब से राजकुमार व उन की पत्नी बहू से बेफिक्र हो गए थे. वह घर का भार बहू को सौंप कर अपने पैतृक गांव सकरापुर रहने लगे. वे कभीकभार ही बेटेबहू के पास आते थे, और कुछ दिन रुक कर फिर वापस चले जाते थे. सासससुर के न रहने से बरखा एकदम आजाद हो गई थी. उसे रोकनेटोकने वाला कोई नहीं था.

शादी के नाम पर ऐसे होती है ठगी – भाग 1

मैट्रीमोनियल वेबसाइटों पर दिए  फरजी विज्ञापनों के जाल में फंस कर कई लोग ठगी का शिकार भी हो जाते हैं. जब तक उन्हें हकीकत पता चलती है तब तक उन का बहुत कुछ लुट चुका होता है. जल्दबाजी में उठाए गए ऐसे कदमों की वजह से उन्हें जिंदगी भर पछताना भी पड़ जाता है.

उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के गीतानगर की रहने वाली अनुष्का एक उच्चशिक्षित परिवार से ताल्लुक रखती थी. उस के यहां किसी चीज की कोई कमी नहीं थी, इसलिए उस का पालनपोषण बड़े ही नाजों में हुआ था. उस की पढ़ाईलिखाई भी अच्छे स्कूल, कालेज में हुई थी. उच्च शिक्षा पूरी करतेकरते अनुष्का जवान हो चुकी थी. तब पिता ने उस की शादी अपनी ही हैसियत वाले परिवार में कर दी. शादी के बाद अनुष्का पति के घर चली गई.

कहते हैं कि शादी के बाद लड़की के नए जीवन की शुरुआत अपने पति के संग होती है. वहां उसे ससुराल के मुताबिक ही खुद को ढालना होता है. अनुष्का ने भी ऐसा ही किया. अपने गृहस्थ जीवन से वह खुश थी. इसी बीच वह एक बेटी की मां बनी. बेटी के जन्म के बाद उस की खुशी और बढ़ गई. लेकिन उस की यह खुशी ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकी.

पति से उस के मतभेद हो गए. हालत यह हो गए कि उस का ससुराल में रहना दूभर हो गया तो वह मायके आ गई. हर मांबाप चाहते हैं कि उन की बेटी ससुराल में हंसीखुशी के साथ रहे. अनुष्का गुस्से में जब मायके आई तो मांबाप ने उसे व दामाद को समझाया. समझाबुझा कर उन्होंने बेटी को ससुराल भेज दिया.

उन्होंने अनुष्का को ससुराल भेजा तो इसलिए था कि गिलेशिकवे दूर होने के बाद उस की गृहस्थी की गाड़ी सही ढंग से चलेगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं. कुछ दिनों बाद ही पति के साथ उस का तलाक हो गया. यह करीब 20 साल पहले की बात है.

पति से तलाक होने के बाद अनुष्का बेटी के साथ मायके में ही रहने लगी. अनुष्का पढ़ीलिखी थी इसलिए अब अपने पैरों पर खड़े होने की ठान ली. उस ने तय कर लिया कि वह आत्मनिर्भर बन कर बेटी को ऊंची तालीम दिलाएगी. इधरउधर से पैसों की व्यवस्था कर के उस ने रेडीमेड गारमेंट का बिजनैस शुरू कर दिया. कुछ सालों की मेहनत के बाद उस का बिजनैस जम गया और उसे अच्छी कमाई होने लगी.

अनुष्का अपनी बेटी की पढ़ाई की तरफ पूरा ध्यान दे रही थी. वह चाहती थी कि बेटी को पढ़ालिखा कर इस लायक बनाए कि उस का भविष्य उज्ज्वल बन सके. उस की बेटी इस समय मुंबई के एक नामी इंस्टीट्यूट से एमबीए कर रही है. अनुष्का भी अब 47 साल की हो चुकी थी. अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीने के लिए उसे कभीकभी जीवनसाथी की जरूरत महसूस होने लगी थी. इस के लिए उस ने वैवाहिक विज्ञापनों की वेबसाइट जीवनसाथी डौटकौम पर नवंबर, 2013 में अपना रजिस्ट्रेशन भी करा दिया था.

वैवाहिक विज्ञापनों की इसी साइट पर राजीव यादव नाम के एक आदमी ने भी रजिस्ट्रेशन करा रखा था. 58 वर्षीय राजीव यादव ने अपनी पर्सनल डिटेल में खुद को आईपीएस बताया था. वह भी अपने लिए जीवनसंगिनी तलाश कर रहा था. राजीव रोजाना जीवनसाथी डौटकौम साइट पर अपनी पसंद की महिला की तलाश करने लगा. साइट सर्च के दौरान उस की नजर अनुष्का की प्रोफाइल पर ठहर गई.

उस ने जल्दी ही अनुष्का को ईमेल भेज कर बात करने की इच्छा जाहिर की. अनुष्का ने उसे अपना मोबाइल नंबर दे दिया. तब राजीव यादव ने उस से खुद को आईपीएस अफसर बताते हुए कहा कि उस की पोस्टिंग भारत के नार्थईस्ट इलाके मिजोरम में डीआईजी के पद पर है और वह वहां अकेला रहता है.

राजीव ने जब अपने बारे में बताया तो अनुष्का को लगा कि उस की बाकी जिंदगी राजीव के साथ ठीक से कट जाएगी. कुल मिला कर राजीव उसे अच्छा लगा. सोचविचार कर अनुष्का ने भी राजीव को अपना परिचय दे दिया और कहा कि पहले पति से उस की एक बेटी है, जो मुंबई में एमबीए की पढ़ाई कर रही है. राजीव ने उस की बेटी को भी अपनाने की हामी भर ली.

इस के बाद दोनों के बीच फोन पर बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. इसी दौरान राजीव ने बताया कि जब वह छोटा था कि उस के मांबाप की मौत हो गई थी. एक छोटा भाई था जो भारतीय सेना में ब्रिगेडियर था. उस की पोस्टिंग जम्मूकश्मीर में थी. लेकिन वहां हुए एक बम विस्फोट में उस की मौत हो चुकी है.

कुछ दिनों की बातचीत के बाद राजीव और अनुष्का ने शादी की बात फाइनल कर ली. उन्होंने तय कर लिया कि वे 13 दिसंबर, 2013 को शादी कर लेंगे. राजीव यादव ने कहा कि वह मिजोरम से 13 दिसंबर को कानपुर पहुंच जाएगा और परिवार के नजदीकी लोगों के बीच एक सादे समारोह में उसी दिन शादी कर के वापस लौट आएगा.

अनुष्का की यह दूसरी शादी थी इसलिए वह भी शादी के समय कोई बड़ा दिखावा और तामझाम नहीं चाहती थी. इसलिए उसे राजीव का प्रस्ताव पसंद आ गया. शादी करने से 3 दिन पहले 10 दिसंबर को राजीव ने अनुष्का से फोन पर बात की. बातचीत के दौरान उस ने बताया कि उस का पर्स कहीं गिर गया है. उस में एटीएम कार्ड व अन्य कार्ड थे.

अनुष्का ने राजीव की इस बात को सीरियसली नहीं लिया क्योंकि आए दिन तमाम लोगों के एटीएम कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस आदि महत्त्वूपर्ण सामान चोरी होते रहते हैं या कहीं खो जाते हैं. इसलिए उस ने राजीव से यह कहा कि जो एटीएम कार्ड पर्स में थे, उन्हें लौक जरूर करा दें ताकि कोई उन का दुरुपयोग न कर सके. अनुष्का ने अपने होने वाले पति को यह सुझाव दे तो दिया लेकिन उसे यह पता नहीं था कि राजीव यह छोटी सी सूचना दे कर उसे ऐसे जाल में फांसने जा रहा है, जहां से निकलना उस के लिए आसान नहीं होगा.

दोनों की फोन पर रोजाना ही बातचीत होती थी. अनुष्का उस की बातों से इतनी प्रभावित हो गई थी कि उस पर आंखें मूंद कर विश्वास करने लगी थी. 13 दिसंबर की दोनों की शादी होने वाली थी इसलिए अब केवल 2 दिन ही बचे थे. 2 दिनों बाद वे एकदूसरे से पहली बार मिलने जा रहे थे. अनुष्का की खुशी बढ़ती जा रही थी. ये 2 दिन उसे 2 साल से भी ज्यादा लंबे लग रहे थे. एकएक पल का वह बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रही थी.

इस से पहले कि अनुष्का राजीव यादव के साथ शादी के बंधन में बंध पाती, उसे ऐसी खबर मिली कि उस के पैरों तले जैसे जमीन ही खिसक गई.

दो बहनों का एक प्रेमी – भाग 1

इफ्तखाराबाद के अब्दुल रशीद को कानपुर की एक टेनरी में नौकरी मिल गई थी. कुछ सालों बाद उन्होंने कानपुर के मुसलिम बाहुल्य इलाके राजीवनगर में जमीन खरीदकर अपना छोटा सा  मकान बना लिया और परिवार के साथ उसी में रहने लगे. कालांतर में उन के 7 बच्चे हुए, जिन में 3 बेटे थे और 4 बेटियां. वक्त के साथ उन के सभी बच्चे बड़े हो गए तो उन्होंने 2 बड़ी बेटियों की शादी कर दी.

कई साल पहले अब्दुल रशीद की शरीक ए हयात का इंतकाल हो गया तो वह टेनरी की नौकरी छोड़ कर छोटे बेटे अतीक अहमद के साथ बेल्ट बनाने का काम करने लगे. उन के दोनों बड़े बेटों, रईस अहमद और अनीस अहमद ने अपनी मरजी से शादियां कर ली थीं और अलग मकान ले कर रहने लगे थे. अब अब्दुल रशीद के घर में 4 ही लोग बचे थे, वह, उन की 2 बेटियां शमीम बानो और आफरीन और छोटा बेटा अतीक अहमद.

शमीम और आफरीन दोनों ही जवान थीं, लेकिन आर्थिक परेशानियों के चलते उन की शादियां नहीं हो पा रही थीं. अब्दुल रशीद और अतीक सुबह को काम पर निकल जाते थे तो फिर दिन छिपने के बाद ही घर लौट कर आते थे. शमीम और आफरीन दिन भर घर में अकेली रहती थीं. उन पर किसी तरह की कोई पाबंदी नहीं थी.

खाली रहने की वजह से शमीम की दोस्ती रूबीना नाम की एक युवती से हो गई. रूबीना ने 5 साल पहले अपनी पसंद के एक युवक से शादी की थी. इस में उस के घर वालों की सहमति भी शामिल थी. लेकिन शादी के बाद रूबीना एक बार ससुराल जाने के बाद दोबारा नहीं गई. नतीजतन उस का तलाक हो गया. इस के कुछ दिनों बाद रूबीना ने एक ऐसे आदमी से शादी कर ली, जिस की पहले से ही 2 बीवियां थीं.

इस बात को ले कर खूब हंगामा हुआ. उस आदमी की दोनों बीवियों ने भी रूबीना को जम कर लताड़ा और गालीगलौज की. उन्होंने अपने पति को भी चेतावनी दी. फलस्वरूप रूबीना को उस आदमी का भी साथ छोड़ना पड़ा. इस तरह रूबीना एक बार फिर अकेली रह गई. अब तक उस के मातापिता की मृत्यु हो चुकी थी और वह अपने भाई शाहिद और भाभी जरीना के साथ राजीवनगर में ही रह रही थी. भैयाभाभी का उस पर कोई कंट्रोल नहीं था, वह पूरी तरह आजाद थी.

रूबीना जैसा ही हाल शमीम बानो का भी था. उस के 2 भाई अपनी पत्नियों के साथ अलग रहते थे. पिता और छोटा भाई सुबह काम पर चले जाते थे तो फिर रात में ही लौटते थे. उन के जाने के बाद शमीम पूरी तरह आजाद हो जाती थी यानी अपनी मरजी की मालिक. एक ही मोहल्ले में रहने और एक जैसी आदतों की वजह से दोनों में दोस्ती हो गई. दोनों साथसाथ घूमने लगीं.

शमीम खूबसूरत थी. उस पर मोहल्ले के कई लड़कों की निगाहें जमी थीं, जिन में एक उस के चाचा वहीद का बेटा सिद्दीक भी था. करीबी रिश्तेदार होने की वजह शमीम और सिद्दीक के बीच नजदीकी संबंध बन गए. फिर जल्दी ही ऐसा समय भी आया, जब दोनों एकदूसरे को तनमन से समर्पित हो गए.

इधर बड़ी बहन शमीम चाचा के लड़के सिद्दीक से इश्क लड़ा रही थी तो उधर छोटी आफरीन भी 22 की हो चुकी थी. आफरीन शमीम से ज्यादा खूबसूरत भी थी और स्मार्ट भी. सिद्दीक यूं तो आफरीन को बचपन से देखता आया था, लेकिन शमीम से शारीरिक संबंध बनने के बाद उस का आफरीन को देखने का भी नजरिया बदल गया था. वह शमीम से ज्यादा आफरीन में दिलचस्पी लेने लगा. शमीम को हालांकि यह अच्छा नहीं लगा, लेकिन वह कर भी क्या सकती थी.

सिद्दीक से मोहभंग हुआ तो शमीम अपनी दोस्त रूबीना के और भी ज्यादा करीब आ गई. इस के बाद दोनों कानपुर के ही नहीं बल्कि दिल्ली तक के चक्कर लगाने लगीं. शमीम के पैर चूंकि पहले ही घर से बाहर निकल चुके थे, इसलिए अब्दुल रशीद चाह कर भी उस पर पाबंदी नहीं लगा सके. जब उस का मन होता रूबीना के साथ चली जाती और जब मन होता घर लौट आती. पिछले साल शमीम जब ईद के दिन दिल्ली चली गई तो अब्दुल रशीद को बहुत बुरा लगा. वह वापस लौटी तो उन्होंने उसे डांटाफटकारा भी, पर उस पर कोई असर नहीं हुआ.

शमीम के बाहर चली जाने के बाद आफरीन घर में अकेली रह जाती थी. इस का फायदा उठाया सिद्दीक ने. वह अपना ज्यादा से ज्यादा समय आफरीन के साथ गुजारने लगा. इस का नतीजा यह हुआ कि प्यार के नाम पर दोनों एकदूसरे के बेहद करीब आ गए. यहां तक कि दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया.

इसी बीच शमीम एक बार रूबीना के साथ दिल्ली गई तो उस ने लौट कर बताया कि रूबीना दिल्ली के एक युवक से उस की शादी की बात चला रही है. उस युवक का वह फोटो भी साथ लाई थी. घर में किसी की इतनी हिम्मत नहीं थी कि उस का विरोध करता. वैसे भी सभी चाहते थे कि किसी तरह उस की शादी हो जाए तो अच्छा है. दिल्ली से लौटने के बाद शमीम का अधिकतर समय फोन पर बतियाने में बीतने लगा. वह आफरीन से बताती थी कि वह उसी युवक से बातें करती है, जिस से शादी करेगी.

जब से शमीम का दिल्ली वाले लड़के से चक्कर चला था, वह ज्यादातर घर में ही रहने लगी थी. इस से आफरीन को परेशानी होती थी, क्योंकि वह सिद्दीक से नहीं मिल पाती थी. यह देख कर उस ने अपने इस प्रेमी से घर के बाहर मिलना शुरू कर दिया. जब यह बात शमीम को पता चली कि उस का पूर्व प्रेमी उस की छोटी बहन के साथ इश्क लड़ा रहा है तो उसे बहुत बुरा लगा. उस ने आफरीन को समझाने की कोशिश की कि वह सिद्दीक के चक्कर में न पड़े, क्योंकि वह अच्छा लड़का नहीं है.

शमीम आफरीन से कई साल बड़ी थी, तजुर्बेकार भी थी. वह जानती थी कि सिद्दीक आफरीन का फायदा उठा कर उसे किनारे लगा देगा. इसलिए वह कोशिश करने लगी कि वे दोनों न मिल पाएं. लेकिन यह बात आफरीन को बुरी लगती थी और सिद्दीक को भी. इस की एक वजह यह थी कि शमीम अपने मामले में हमेशा से आजाद रही थी, जबकि वह उन दोनों पर पाबंदी लगाना चाहती थी.

जुल्मी से प्यार : सनकी प्रेमी से छुटकारा