झोपड़ी में रह कर महलों के ख्वाब – भाग 2

जब मल्लिका की बातों ने उसे प्यार में पागल कर दिया तो कामधाम छोड़ कर प्रवीण 24 परगना जा पहुंचा. मल्लिका को उस ने अपने आने की सूचना दे दी थी, इसलिए घर पहुंचते ही उस ने मल्लिका से मिलने का स्थान और समय तय कर लिया.

मल्लिका ने उसे अगले दिन 24 परगना के बसस्टाप पर दोपहर को बुलाया था. प्रवीण तय जगह पर खड़ा इधरउधर देख रहा था. थोड़ी देर में उसे एक खूबसूरत औरत आती दिखाई दी. वह मन ही मन सोचने लगा कि अगर यही मल्लिका होती तो कितना अच्छा होता.

प्रवीण उस औरत को एकटक ताकते हुए मल्लिका के बारे में सोच रहा था कि तभी वह औरत फोन निकाल कर किसी को फोन करने लगी. प्रवीण के फोन की घंटी बजी तो उस का दिल धड़क उठा. उस ने जल्दी से फोन रिसीव किया तो दूसरी ओर से पूछा गया, ‘‘कहां हो तुम?’’

‘‘तुम्हारे सामने ही तो खड़ा हूं.’’ प्रवीण के मुंह से यह वाक्य अपने आप निकल गया.

कान से फोन लगाए हुए ही उस औरत ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तो तुम हो प्रवीण?’’

‘‘हां, मैं ही प्रवीण हूं, जिसे तुम इतने दिनों से तड़पा रही हो.’’

‘‘अब तड़पने की जरूरत नहीं है. क्योंकि मैं तुम्हारे सामने खड़ी हूं.’’

मल्लिका को देख कर प्रवीण फूला नहीं समाया, क्योंकि उस ने अपने ख्वाबों में मल्लिका की जो तसवीर बनाई थी, वह उस से कहीं ज्यादा खूबसूरत थी. वह लग भी ठीकठाक परिवार की रही थी.

‘‘यहीं खड़े रहोगे या चल कर कहीं एकांत में बैठोगे.’’ मल्लिका ने कहा तो प्रवीण को होश आया.

प्रवीण उसे एक रेस्टोरैंट में ले गया. चायनाश्ते के साथ बातचीत शुरू हुई तो मल्लिका ने गंभीरता से कहा, ‘‘प्रवीण, तुम सचसच बताना, मुझे कितना प्यार करते हो और मेरे लिए क्या कर सकते हो?’’

‘‘अगर प्यार करने की कोई नापतौल होती तो नापतौल कर बता देता. बस इतना समझ लो कि मैं तुम्हें जान से भी ज्यादा प्यार करता हूं. अब इस से ज्यादा क्या कह सकता हूं.’’ प्रवीण ने मल्लिका के हाथ पर अपना हाथ रख कर कहा.

‘‘जब तुम मुझे इतना प्यार करते हो तो मुझे भी अब तुम्हें अपने बारे में सब कुछ बता देना चाहिए, क्योंकि मैं ने अभी तक तुम्हें अपने बारे में कुछ नहीं बताया है. प्रवीण मैं शादीशुदा ही नहीं, मेरा 10 साल का एक बेटा भी है. मेरा पति कुवैत में रहता है, जिस की वजह से हमारी मुलाकातें 2 साल में सिर्फ कुछ दिनों के लिए हो पाती हैं. मैं यहां सासससुर के साथ रहती हूं. पति के उतनी दूर रहने की वजह से प्यार के लिए तड़पती रहती हूं.’’

मल्लिका की सच्चाई जानसुन कर प्रवीण सन्न रह गया. जैसे किसी ने उसे आसमान से जमीन पर पटक दिया हो. जिसे वह जान से ज्यादा प्यार करता था, वह किसी और की अमानत थी, यह जान कर उस के मुंह से शब्द नहीं निकले. उस की हालत देख कर मल्लिका ने कहा, ‘‘तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं प्रवीण. मैं भी तुम्हें उतना ही प्यार करती हूं, जितना तुम. मैं तुम्हारे लिए पति और बेटा तो क्या, यह दुनिया तक छोड़ सकती हूं.’’

प्रवीण ने होश में आ कर कहा, ‘‘सच, तुम मेरे लिए सब को छोड़ सकती हो?’’

‘‘हां, तुम्हारे लिए मैं सब को छोड़ ही नहीं सकती, जान तक दे सकती हूं, लेकिन तुम मुझे मंझधार में मत छोड़ना. तुम डाक्टर हो, इसलिए मेरे दिल का दर्द अच्छी तरह समझ सकते हो. बोलो, धोखा तो नहीं दोगे?’’ मल्लिका गिड़गिड़ाई.

मल्लिका की इस बात से प्रवीण ने थोड़ी राहत महसूस की. इस के बाद कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘अच्छा, यह बताओ. अब तुम सिर्फ मेरी बन कर रहोगी न?’’

‘‘हां, अब मैं सिर्फ तुम्हारी ही हो कर रहना चाहती हूं, सिर्फ तुम्हारी,’’ मल्लिका ने कहा, ‘‘चलो, अब यहां से कहीं और चलते हैं.’’

प्रवीण मल्लिका को पूरी तरह अपनी बनाना चाहता था, इसलिए उस ने एक मध्यमवर्गीय होटल में कमरा बुक कराया और मल्लिका को उसी में ले गया. एकांत में होने वाली बातचीत में प्रवीण जान गया कि मल्लिका के मायके और ससुराल वाले काफी संपन्न लोग हैं. उस का पति कुवैत में नौकरी करता था. उस समय भी वह लगभग 4-5 तोले सोने के गहने पहने थी.

होटल के उस कमरे में एकांत का लाभ उठा कर प्रवीण ने मल्लिका को अपनी बना लिया. उस ने मल्लिका के बारे में तो सब कुछ जान लिया, लेकिन अपने बारे में उस ने सिर्फ इतना ही बताया था कि वह डाक्टर है और अभी उस की शादी नहीं हुई है.

प्रवीण के डाक्टर होने का मतलब मल्लिका ने यह लगाया था कि वह पढ़ालिखा होगा, इसलिए अन्य डाक्टरों की तरह यह भी खूब पैसे कमा रहा होगा. यही सोच कर वह उस के साथ रहने के बारे में सोच रही थी.

जबकि स्थिति इस के विपरीत थी. प्रवीण झोला छाप डाक्टर था. उस ने क्लिनिक जरूर खोल ली थी, लेकिन उस की कमाई से किसी तरह उस का खर्च पूरा होता था. मल्लिका के बारे में जान कर अब वह उस की बदौलत अपना भाग्य बदलने के बारे में सोच रहा था.

मल्लिका की शादी 24 परगना के थाना गोपालपुर के कस्बा चलमंडल के रहने वाले कृष्णा से हुई थी. 24 परगना शहर में उस की विशाल कोठी थी. ससुराल में मल्लिका को किसी चीज की कमी नहीं थी. कमी सिर्फ यही थी कि पति कुवैत में रहता था और वह यहां सासससुर के साथ रहती थी. वह पति के साथ रहना चाहती थी, जबकि कृष्णा उसे कुवैत ले जाने को तैयार नहीं था. उस का कहना था कि अगर दोनों कुवैत चले गए तो मांबाप यहां अकेले पड़ जाएंगे.

मल्लिका बेटे अपूर्ण में मन लगाने की कोशिश करती थी, लेकिन बेटा बड़ा हो गया तो उसे पति की कमी खलने लगी थी. उस की जवान उमंगे तनहाई में दम तोड़ने लगी थीं. उस के जिस्म की भूख उसे बेचैन करने लगी थी. ऐसे में ही उस का फोन गलती से प्रवीण के मोबाइल पर लग गया तो दोनों की दोस्ती ही नहीं हुई, अब मेलमिलाप भी हो गया था. उस के बाद उस की जैसे दुनिया ही बदल गई थी.

मुलाकात के बाद जिस्म की भूख भी बढ़ गई और प्यार भी. कुछ दिन गांव में रह कर प्रवीण वापस आ गया. अब दोनों के बीच लंबीलंबी बातें होने लगीं. मल्लिका उस के सहारे आगे की जिंदगी गुजारने के सपने देखने लगी थी. क्योंकि उसे पता था कि कृष्णा में कोई बदलाव आने वाला नहीं है, इसलिए उस की परवाह किए बगैर एक दिन उस ने प्रवीण से कहा, ‘‘भई, इस तरह कब तक चलेगा. आखिर हमें कोई न कोई फैसला तो लेना ही होगा.’’

‘‘इस विषय पर फोन पर बात नहीं हो सकती. दुर्गा पूजा पर मैं घर आऊंगा तो बैठ कर बातें करेंगे.’’ प्रवीण ने कहा और घर जाने की तैयारी करने लगा.

दुर्गा पूजा के दौरान दोनों की मुलाकात हुई तो तय हुआ कि इस बार प्रवीण आगरा जाएगा तो मल्लिका भी उस के साथ चलेगी. वहां दोनों शादी कर के आराम से रहेंगे. उस समय मल्लिका ने यह भी नहीं सोचा कि कृष्णा घरपरिवार से उतनी दूर उस के और बच्चे के सुख के लिए ही पड़ा है. अपने जिस्म की भूख मिटाने के लिए उस ने अपने 10 साल के बेटे की चिंता भी नहीं की.

झोपड़ी में रह कर महलों के ख्वाब – भाग 1

पश्चिम बंगाल के जिला 24 परगना के थाना गोपालनगर के गांव पावन के रहने वाले प्रभात विश्वास गांव में रह कर खेती करते थे. पत्नी, 2 बेटों  और एक बेटी के उन के परिवार का गुजरबसर इसी खेती की कमाई से होता था. उसी की कमाई से वह बच्चों को पढ़ालिखा भी रहे थे और सयानी होने पर बेटी की शादी भी कर दी थी.

प्रभात ने बेटी प्रीति की शादी अपने ही जिले के गांव चलमंडल के रहने वाले श्रवण विश्वास के साथ की थी. श्रवण विश्वास झोला छाप डाक्टर था, जो चांदसी दवाखाना के नाम से उत्तर प्रदेश के जिला आगरा के थाना वाह के कस्बा जरार में अपनी क्लिनिक चलाता था.

श्रवण की क्लिनिक बढि़या चल रही थी, इसलिए उस से प्रेरणा ले कर प्रभात विश्वास का बड़ा बेटा प्रवीण भी बहनोई की तरह झोला छाप डाक्टर बनने के लिए पढ़ाई के साथसाथ किसी डाक्टर के यहां कंपाउंडरी करने लगा था. ग्रेजुएशन करतेकरते वह डाक्टरी के काफी गुण सीख गया तो बहनोई की तरह अपनी क्लिनिक खोलने के बारे में सोचने लगा.

क्लिनिक खोलने की पूरी तैयारी कर के प्रवीण आगरा के कस्बा जरार में क्लिनिक चला रहे अपने बहनोई श्रवण के पास आ गया. कुछ दिनों तक बहनोई के साथ काम करने के बाद जब उसे लगा कि अब वह खुद क्लिनिक चला सकता है तो वह अपनी क्लिनिक खोलने के लिए स्थान खोजने लगा.

प्रवीण के एक परिचित पी.के. राय आगरा के ही कस्बा रुनकता में क्लिनिक चलाते थे. उन्हीं की मदद से उस ने रुनकता में एक दुकान ले कर बंगाली दवाखाना के नाम से क्लिनिक खोल ली. रहने के लिए हाजी मुस्तकीम के मकान में 8 सौ रुपए महीने किराए पर एक कमरा ले लिया. मुस्तकीम का अपना परिवार सामने वाले मकान में रहता था. उस मकान में केवल किराएदार ही रहते थे. डा. प्रवीण का कमरा अन्य किराएदारों से एकदम अलग था.

प्रवीण विश्वास दिन भर अपनी क्लिनिक पर रहता था और रात को कमरे पर आ जाता. अकेला होने की वजह से उसे अपने सारे काम खुद ही करने पड़ते थे. वह जिस हिसाब से मेहनत कर रहा था, उस हिसाब से उस की कमाई नहीं हो रही थी. इसलिए अपने हालात से वह खुश नहीं था. लेकिन उस का व्यवहार ऐसा था कि उस से हर कोई खुश रहता था.

इस के बावजूद प्रवीण की किसी से दोस्ती नहीं हो पाई थी. इस की वजह शायद यह भी थी कि वह एक ऐसे प्रांत का रहने वाला था, जहां का खानपान, रहनसहन और बात व्यवहार सब कुछ वहां के रहने वालों से अलग था.

इस स्थिति में प्रवीण थोड़ा परेशान सा रहता था. एक दिन वह किसी सोच में डूबा था कि उस के फोन की घंटी बजी. उस का फोन डुअल सिम वाला था. एक सिम उस ने आगरा के नंबर का डाल रखा तो दूसरा सिम 24 परगना के नंबर का था. वैसे यहां 24 परगना वाले नंबर की कोई जरूरत नहीं थी, लेकिन उस ने अपना पुराना नंबर इसलिए बंद नहीं किया था कि घर जाने पर शायद इस की जरूरत पड़े.

घंटी बजी तो प्रवीण की नजर मोबाइल के स्क्रीन पर गई. फोन 24 परगना वाले सिम के नंबर पर आया था. स्क्रीन पर जो नंबर उभरा था, वह भी 24 परगना का ही लग रहा था. प्रवीण ने जल्दी से फोन रिसीव कर लिया, ‘‘हैलो, कौन…?’’

उस के हैलो कहते ही दूसरी ओर से किसी लड़की ने मधुर आवाज में कहा, ‘‘सौरी, गलती से आप का नंबर लग गया.’’

प्रवीण कुछ कहता, उस के पहले ही फोन कट गया. लड़की की आवाज ऐसी थी, जैसे किसी ने कान में शहद घोल दिया है. प्रवीण का मन एक बार फिर उस की आवाज सुनने के लिए होने लगा. आवाज पलट कर फोन कर के ही सुनी जा सकती थी. लेकिन यह ठीक नहीं था. इसलिए वह सोचने लगा कि फोन करने पर लड़की बुरा मान सकती है. लेकिन मन नहीं माना तो डरतेडरते उस ने पलट कर फोन कर ही दिया.

दूसरी ओर से फोन रिसीव कर के लड़की ने कहा, ‘‘अपनी गलती के लिए मैं ने सौरी तो कह दिया. अब कितनी बार माफी मांगूं?’’

‘‘आप गलत सोच रही हैं. मैं ने आप को फोन इसलिए नहीं किया कि आप दोबारा माफी मांगें. आप की आवाज मुझे बहुत प्यारी लगी, उसे सुनने के लिए मैं ने फोन किया है. मैं आप की आवाज सुनना चाहता हूं. इसलिए आप कुछ अपनी कहें और कुछ मेरी सुनें.’’

प्रवीण का इतना कहना था कि उस के कानों में खिलखिला कर हंसने की आवाज पड़ी. प्रवीण खुश हो गया कि लड़की ने उस की इस हरकत का बुरा नहीं माना. हंसी रोक कर उस ने कहा, ‘‘तो यह क्यों नहीं कहते कि आप मुझ से दोस्ती करना चाहते हैं.’’

‘‘यही समझ लीजिए,’’ प्रवीण ने कहा, ‘‘आप को मेरा प्रस्ताव मंजूर है?’’

‘‘क्यों नहीं, बातचीत से तो आप अच्छेखासे पढे़लिखे लगते हैं?’’

‘‘जी, मैं डाक्टर हूं.’’

‘‘कहां नौकरी करते हैं?’’ लड़की ने पूछा.

‘‘नौकरी नहीं करता, मेरी अपनी क्लिनिक है.’’

‘‘तब तो मैं आप को अपना दोस्त बनाने को तैयार हूं.’’

इस तरह दोनों में दोस्ती हो गई तो बातचीत का सिलसिला चल पड़ा. प्रवीण 24 परगना का रहने वाला था तो वह लड़की भी वहीं की रहने वाली थी. लड़की ने अपना नाम मल्लिका बताया था. लेकिन सब उसे मोनिका कह कर बुलाते थे. प्रवीण ने भी उसे अपना नाम बता दिया था.

दोनों की ही भाषा बंगाली थी, इसलिए दोनों अपनी भाषा में बात करते थे. प्रवीण ने मल्लिका को यह भी बता दिया था कि वह रहने वाला तो 24 परगना का है, लेकिन उस की क्लिनिक उत्तर प्रदेश के आगरा के एक कस्बे में है.

धीरेधीरे दोनों में लंबीलंबी बातें होने लगीं. इसी तरह 6 महीने बीत गए. प्रवीण ने मल्लिका को अपने बारे में काफी कुछ बता दिया था, लेकिन मल्लिका ने अपने बारे में कभी कुछ नहीं बताया था. वह प्रवीण के लिए रहस्य बनी रही.

प्रवीण ने जब उस पर दबाव डाला तो एक दिन उस ने कहा, ‘‘यही क्या कम है कि मैं तुम से प्यार करती हूं. बस तुम मुझे अपनी प्रेमिका के रूप में जानो.’’

मल्लिका ने जब कहा कि वह उस से प्यार करती है तो प्रवीण ने कहा, ‘‘मैं तुम से मिलना चाहता हूं.’’

‘‘यह तो बड़ी अच्छी बात है. मैं भी तुम से मिलना चाहती हूं. तुम्हारी जब इच्छा हो, आ जाओ. समझ लो मैं तुम्हारा इंतजार कर रही हूं.’’ मल्लिका ने कहा.

मल्लिका का इस तरह आमंत्रण पा कर प्रवीण फूला नहीं समाया. वह इस बात पर विचार करने लगा कि मल्लिका को अपनी जिंदगी में आने के लिए तैयार कैसे करे. अब वह सपनों में जीने लगा था. इस तरह के सपनों की दुनिया बहुत ही रंगीन और हसीन होती है. उस ने अपने प्यार को कल्पनाओं का रंग दे कर एक खूबसूरत चेहरे का अक्स बना लिया था. हर वक्त वह उसी में खोया रहता था. वह 24 परगना जा कर मल्लिका से मिलना चाहता था, लेकिन मौका नहीं मिल रहा था.

ऐसी भी एक सीता

बेवफा पत्नी और प्रेमी की हत्या

एक अधूरी प्रेम कहानी

जवानी बनी जान की दुश्मन

ऐसी भी एक सीता – भाग 4

पत्नी की बदचलनी की कहानी सुन कर रामानंद का खून खौल उठा था. उस ने वहीं से फोन पर सीतांजलि को सुधर जाने की नसीहत दी और न सुधरने पर इस का बुरा अंजाम भुगतने को भी डराया, लेकिन वह कहां पति से डरने वाली थी. पति जितना उसे गालियां देता था, डराताधमकाता था, वह उतनी ही प्रेमी बृजमोहन के करीब बढ़ती जाती थी.

रामानंद ने फरवरी 2023 में पत्नी को फोन कर के बता दिया था कि 5 अप्रैल, 2023 को दुबई से फ्लाइट से रवाना होगा और 6 अप्रैल को शाम तक घर पहुंच आएगा. उस के बाद जो निर्णय लेना होगा, वहीं औन द स्पौट लेगा.

सीतांजति ने जब से पति के वापसी की बात सुनी थी, उस की आंखों की नींद और दिल का चैन उड़ गया था. इस बारे में उस ने अपने प्रेमी बृजमोहन को बताया, ”अब कोई उपाय करो, वह विदेश से वापस लौट रहा है. तुम से बिछड़ कर मैं जिंदा नहीं रह सकती. मैं तुम्हारे बिना मर जाऊंगी. बड़े मर्द बनते हो न, मुझे यहां से उड़ा ले चलो, नहीं तो हमारे प्यार के रास्ते के कांटे को हमेशा के लिए उखाड़ फेंको.’‘

उस दिन के बाद से दोनों मिल कर रामानंद की हत्या की योजना बनाते रहे. इस योजना में बृजमोहन ने अपने बचपन के दोस्त अभिषेक चौहान को शामिल कर लिया था. वह उसी के गांव का रहने वाला था और मध्य प्रदेश में जौब करता था.

बृजमोहन और अभिषेक के बीच में गहरी दोस्ती थी और दोनों ही हमप्याला हमनिवाला थे. दोनों एक साथ बचपन की गलियों में खेले और बड़े हुए. साथसाथ पढ़े और शरारतें भी साथसाथ कीं.

इसलिए जब बृजमोहन ने अपने प्यार का वास्ता दे कर प्रेमिका के पति को रास्ते से हटाने की बात कही थी तो वह मना नहीं कर सका और उस की खतरनाक योजना में शामिल हो कर सच्ची दोस्ती निभाने का वायदा किया.

6 अप्रैल, 2023 की सुबह रामानंद फ्लाइट से लखनऊ पहुंचा और पत्नी को बता दिया कि वह लखनऊ पहुंच गया है और वहां से प्राइवेट बस से गोरखपुर पहुंच जाएगा. सीतांजलि ने यह बात बृजमोहन को बता दी कि पति फलां नंबर की बस में सवार है और लखनऊ से घर आ रहा है.

बृजमोहन अपने साथी अभिषेक चौहान के साथ लखनऊ में ही रुका था. इस की योजना थी रामानंद को लखनऊ में ही मौत के घाट उतार दे, ताकि किसी को उस पर शक न हो.

पते की बात तो यह थी कुछ दिनों की छुट्टी ले कर बृजमोहन दिल्ली से गोरखपुर घर आया था. घर आना तो सिर्फ एक बहाना था, असल बात प्रेम की राह के कांटा बने रामानंद को हटाना था.

5 अप्रैल, 2023 को घर वालों से बृजमोहन तथा अभिषेक यह कह कर घर से निकले कि वह अपने नौकरी पर वापस लौट रहे हैं, दिल्ली नौकरी पर जाने की बजाय दोनों लखनऊ रुक गए और रामानंद के आने का इंतजार करने लगे थे.

खैर, जिस प्राइवेट बस में रामानंद सवार था, उसी बस में सामने वाली सीट पर बृजमोहन और अभिषेक हुलिया बदल कर बैठ गए थे, ताकि रामानंद उसे पहचान न सके. दोनों ने बस में ही उसे मारने की कई बार कोशिश की, लेकिन वे अपने इरादों में कामयाब नहीं हो पाए और लखनऊ से गोरखपुर पहुंच गए.

इधर सीतांजलि पति की मौत की खबर सुनने के लिए उतावली हुई जा रही थी कि कब उस का प्रेमी फोन कर के उसे ये अच्छी खबर सुनाए.

दोपहर एक बजे के करीब जैसे ही बृजमोहन का फोन आया, सीतांजलि बड़ी उत्सुकता से फोन झपट कर कान से सटा कर बोली, ”क्या हुआ? फोन करने में इतनी देर क्यों लगा दी?’‘

”क्या करूं, बात ही कुछ ऐसी है.’‘ रोआंसी आवाज में बृजमोहन ने कहा.

” मुझे पहेलियां मत बुझाओ. क्या हुआ, साफसाफ बताओ टारगेट पूरा हुआ कि नहीं.’‘

”नहीं, टारगेट पूरा नहीं हुआ. बस में इतनी सवारियां थीं कि कहीं मौका ही नहीं मिला टारगेट पूरा करने के लिए.’‘ बृजमोहन सफाई देते हुए बोला.

”कोई बात नहीं. बाजी अभी भी हमारे हाथ में है, शिकार तो जरूर बनेगा वो हमारा.’‘ कह कर उस ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

सीतांजलि खुद के हाथों खुद का सुहाग मिटाने की जिद पर अड़ी थी. उस ने तय कर लिया था कि पति को मौत देनी है तो देनी है. विधवा बनना है तो बनना है. इस के लिए उस ने पहले कई तैयारियां कर रखी थीं. इधर बृजमोहन और अभिषेक बस से गोरखपुर उतर गए और टैंपो से सहजनवां जा पहुंचे, जो प्रेमिका के घर से 3-4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित था.

इधर रामानंद सहीसलामत घर पहुंच गया था. खाने में सीताजंलि ने रात में मटन पकाया था. उस ने अपने हिस्से का खाना निकाल कर बाकी पूरे खाने में नींद की 6 गोलियां बारीक पाउडर बना कर मिला दीं. और वही खाना पति, सास, ससुर और देवर को खिला दिया. खाना खाने के कुछ ही देर बाद सब के सब नींद की आगोश में समा गए थे. रामानंद भी अपने कमरे में जा कर खर्राटे भरने लगा था.

सीतांजलि ने पति को हिलाडुला कर देखा, वह बेसुध बिस्तर पर पड़ा हुआ था. उसे जब पूरा यकीन हो गया कि वह गहरी नींद में है तो उस ने प्रेमी बृजमोहन को घर आने के लिए फोन किया. प्रेमिका का फोन आते ही बृजमोहन दोस्त को साथ ले कर पैदल ही चल दिया और घर के पीछे से साड़ी के सहारे दोनों छत पर होते हुए दबे पांव कमरे में पहुंचे. उस समय रात के यही कोई 11 बज रहे थे.

फिर क्या था? सीतांजलि ने अपना दुपट्टा प्रेमी बृजमोहन की ओर बढ़ाया. दुपट्टा संभालते हुए बृजमोहन ने नफरत से रामानंद को देखा. उस का नथुना गुस्से से फूलपिचक रहा था. सीतांजलि ने दोनों हाथों से पति के दोनों पैर काबू किए तो अभिषेक ने उस के सीने पर सवार हो कर अपने मजबूत हाथों से उस के दोनों हाथ जकड़ लिए तभी बृजमोहन उस के गले में दुपट्टा डाल कर कस दिया. थोड़ी देर में उस के प्राणपखेरू उड़ नहीं गए.

तीनों मिल कर उसे मौत के घाट उतार चुके थे. अब लाश ठिकाने लगाने की बारी थी. इस बीच पत्नी सीतांजलि ने पति का मोबाइल फोन पटक कर तोड़ दिया था. फिर तीनों मिल कर लाश ऊपर छत पर ले गए और साड़ी के सहारे लाश नीचे उतार कर एकएक कर छत से नीचे उतरे. सीतांजलि घर में ही रह गई.

बृजमोहन और अभिषेक कपड़े में लाश को लपेट कर गांव के बाहर तालाब तक पहुंचे और कपड़े से लाश निकाल कर उसे पानी में फेंक कर बस पकड़ कर लखनऊ निकल गए. फिर जब सुबह हुई और रामानंद घर पर नहीं मिला और उस की खोजबीन शुरू हुई तो उस की लाश गांव के बाहर पानी में मिली.

पुलिस ने तीनों आरोपियों सीतांजलि, बृजमोहन विश्वकर्मा और अभिषेक चौहान के खिलाफ आईपीसी की धारा 302, 201, 120बी और 34 के तहत मुकदमा दर्ज कर के 2 आरोपियों सीताजंलि और बृजमोहन को जेल भेज दिया, जबकि तीसरा आरोपी अभिषेक चौहान कथा लिखने तक फरार था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

ऐसी भी एक सीता – भाग 3

इंसपेक्टर मदन मोहन मिश्र ने केस के खुलने की जानकारी एसएसपी गौरव ग्रोवर और एसपी (नार्थ) मनोज अवस्थी को बताई तो दोनों अधिकारियों ने फरार दोनों आरोपियों को पकड़ने के लिए पुलिस की 2 टीमें गठित कीं. एक टीम को लखनऊ तो दूसरी टीम को मध्य प्रदेश रवाना कर दिया.

लखनऊ के गोमती नगर से पुलिस ने बृजमोहन विश्वकर्मा को गिरफ्तार कर अदालत में पेश कर ट्रांजिट रिमांड पर ले कर 11 अप्रैल को गोरखपुर ले आई. उसी दिन शाम 4 बजे पुलिस लाइन के मनोरंजन कक्ष में एसएसपी गौरव ग्रोवर ने एक पत्रकार वार्ता आयोजित कर पत्रकारों को इस केस के खुलासे की जानकारी दी.

पुलिस पूछताछ में रामानंद विश्वकर्मा की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

30 वर्षीय रामानंद विश्वकर्मा मूलरूप से उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के थाना गीडा के मल्हीपुर गांव का रहने वाला था. पिता रामप्रीत विश्वकर्मा के 3 बच्चों में 2 बेटे और एक बेटी थी. रामानंद दूसरे नंबर का था. बेटी रंजना सब से बड़ी थी और मंझले रामानंद से छोटा एक बेटा और था. यही रामप्रीत का खुशहाल परिवार था.

रामप्रीत किसान थे. खेतीबाड़ी कर के अपने परिवार का भरणपोषण करते थे. खैर, बेटी सयानी हो चुकी थी. उन्होंने बेटी के लिए योग्य वर तलाशना शुरू कर दिया था. उस की शादी खजनी थाना क्षेत्र के गांव रामपुर पांडेय में कर दी थी.

उस के बाद साल 2020 के सितंबर में गोरखपुर के चिलुआताल की रहने वाली सीतांजलि के साथ मंझले बेटे रामानंद की शादी कर एक और बड़ी जिम्मेदारी से मुक्त हो गए. अब बचा था एक छोटा बेटा तो वह अभी पढ़ रहा था, इसलिए उस की तरफ उन का कोई खास ध्यान नहीं था.

सीतांजलि बहुत सुंदर थी, शारीरिक रूप से भी. उसे पत्नी के रूप में पा कर रामानंद बहुत खुश था, क्योंकि उस ने जैसे जीवनसाथी का सपना देखा था, सीतांजलि उस के सपनों पर खरी उतरी थी. ऐसा नहीं था कि सपने सिर्फ रामानंद ने ही देखे, बल्कि सीतांजलि ने अपने मन में जिस राजकुमार की छवि उकेरी थी, वह रामानंद ही था.

यानी पतिपत्नी ने एकदूसरे को ले कर जो सपने देखे थे, उन के वह सपने पूरे हो चुके थे. दोनों एकदूसरे को जीवनसाथी के रूप में पा कर फूले नहीं समाए थे. वह पत्नी को सीता कह कर पुकारता था.

जिन दिनों रामानंद की शादी हुई थी, उन दिनों रामानंद कोई नौकरीचाकरी नहीं करता था. ऐसा नहीं था कि निकम्मा अथवा आलसी था बल्कि उस का सपना विदेश में रह कर नौकरी करना था और परिवार को अपने साथ रखना था. इस के लिए उस ने अपना पासपोर्ट बनवा रखा था और वीजा के लिए कानूनी प्रक्रिया शुरू कर दी थी.

फरवरी 2021 में रामानंद विश्वकर्मा दुबई नौकरी करने चला गया. वह नईनवेली पत्नी को छोड़ कर विदेश चला तो गया, लेकिन उस का मन पत्नी सीताजंलि के पास ही रह गया. उस की याद में वह दिनरात तड़पता था. उधर सीतांजलि जब भी बिस्तर पर लेटती थी, पति का खालीपन उसे काटने को दौड़ता था.

अभी तो उस ने पति को भरपूर निगाहों से देखा भी नहीं था. उस की मेहंदी का रंग हथेली से उतरा भी नहीं था कि पति उसे विरह की अग्नि में जलता हुआ छोड़ चला गया था.

रामानंद की जब शादी हुई थी, तब उस की शादी में उस के बहनोई का छोटा भाई बृजमोहन विश्वकर्मा भी आया था. जयमाल के दौरान सीतांजलि सजसंवर कर दुलहन के रूप में जब स्टेज पर आई थी, उस की मोहिनी सूरत देख कर बृजमोहन मुग्ध हो गया था. बहुत देरतक वह उसे एकटक निहारता ही रहा.

वह जन्नत की किसी हूर से कम नहीं लग रही थी, लेकिन वह तो किसी और की अमानत थी. वह हाथ मलता रह गया था. फिर यह सोच कर निश्ंिचत हो गया था कि वह आएगी तो साले के घर ही न, फिर आगे क्या करना होगा, सोचा जाएगा.

उस दिन से बृजमोहन सलहज सीतांजलि का दीवाना हो गया था. फिलहाल उस ने अपनी चाहत को अपने सीने में दबाए रखा और वक्त का इंतजार करने लगा था.

चूंकि बृजमोहन का भाई के साले रामानंद की पत्नी के साथ मजाक का रिश्ता था ही और इसी के चक्कर में उस का साले के घर आनाजाना कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था. भाई की ससुराल जब भी वह आता था तो सीतांजलि के पास ज्यादा वक्त बिताता था. यह बात रामानंद को अच्छी नहीं लगती थी, लेकिन संकोची स्वभाव का रामानंद मना भी नहीं कर पा रहा था. अलबत्ता पत्नी को ही डांटता था. पति के इस व्यवहार से सीतांजलि दुखी रहती थी. जबकि उस के दिल में न खोट थी और न ही मन में मैल.

बृजमोहन जब भी साले रामानंद के घर आता था, तब पतिपत्नी के बीच तीखी नोंकझोंक हो जाती थी. उसे शक था कि पत्नी के साथ बृजमोहन का टांका भिड़ा हुआ है, जबकि उस की ओर से ऐसी कोई बात थी ही नहीं.

कीचड़ में खिले कमल के समान वह पवित्र थी. उस के मन मंदिर में पति की ही मूरत बसी थी, लेकिन जब पति ने उस पर ज्यादा ही शक करना शुरू किया तो उसे पति से जैसे चिढ़ हो गई. वह उस के मन से उतर गया और उस का आकर्षण बृजमोहन की ओर बढ़ गया था.

किस ने और किस तरह की रामानंद की हत्या

इसी बीच रामानंद दुबई कमाने चला गया था. पति के घर से जाते ही बृजमोहन का रास्ता खुल गया था. कहने को तो वह दिल्ली की एक प्राइवेट कंपनी में इंजीनियर की नौकरी करता था, लेकिन उस का अधिकांश समय सीतांजलि की बांहों में बीतता था.

जैसे इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपता, वैसे ही सीतांजलि और बृजमोहन का रिश्ता भी नहीं छिप सका. भले ही पति बाहर चला गया था तो क्या हुआ? घर पर उस के सासससुर रहते थे. उन की आंखों पर गांधारी वाली पट्टी बंधी थी.

उन्हें सब दिखता था और वे सब समझते थे. उन्होंने बहू को समझाया भी था कि पतन के जिस रास्ते पर वह चल पड़ी है, वहां बदनामी के सिवाय कुछ नहीं मिलता है. घरपरिवार की इज्जत की खातिर घिनौना खेल खेलना बंद कर दे. लेकिन ससुर की बात सुन कर बहू के कान पर जूं तक रेंगी थी.

बृजमोहन और सीतांजलि की मोहब्बत शबाब पर थी. प्यार में दोनों इस कदर अंधे हो चुके थे कि उन्हें सिवाय मोहब्बत के कुछ भी नहीं दिखता था. दोनों ने साथ जीनेमरने की कसमें भी खा ली थीं और यह भी फैसला कर लिया था कि उन की मोहब्बत के बीच में जो भी रोड़ा आएगा, उसे हमेशाहमेशा के लिए रास्ते से हटा दिया जाएगा, चाहे पति ही क्यों न हो.

इधर बहू सीतांजलि की घिनौनी करतूतों की वजह से गांवसमाज में रामप्रीत की थूथू हो रही थी. उन के समझाने का बहू पर कोई असर नहीं हो रहा था. अब पानी सिर के ऊपर बहने लगा था तो पूरी बात उन्होंने बेटे रामानंद को बता दी.

ऐसी भी एक सीता – भाग 2

पलभर में रामानंद की मौत की खबर घर पहुंच गई थी. जैसे ही ये खबर घर पहुंची, वैसे ही घर में रोना शुरू हो गया और मातम छा गया. फौरन घर के और लोग भी भागते हुए मौके पर पहुंचे, जहां जमीन पर रामप्रीत बिलखबिलख कर रो रहे थे. इस बीच भीड़ में से ही किसी ने इस की सूचना गीडा थाने को दे दी थी. घटना की सूचना मिलते ही इंसपेक्टर मदनमोहन मिश्र एसआई शिव प्रकाश सिंह, चौकी इंचार्ज पिपरौली आलोक राय आदि को ले कर मौके पर पहुंचे, जोकि थाने से करीब 5 किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में स्थित था.

पुलिस ने लाश तालाब से बाहर निकलवा कर उस का निरीक्षण किया और जरूरी काररवाई पूरी कर वह पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मैडिकल कालेज भिजवा दी.

पुलिस ने मौके पर मौजूद मृतक रामानंद विश्वकर्मा के घर वालों से उस की मौत के बारे में पूछा तो घर वाले कोई उत्तर नहीं दे सके कि उस की मौत कैसे हुई. बस इतना ही बता सके थे कि 6 अप्रैल को बेटा विदेश से घर लौटा था और रात में खाना खा कर सोया, उस के बाद उस की लाश तालाब में तैरती मिली.

घर वालों का जवाब सुन कर इंसपेक्टर मदन मोहन मिश्र के पैरों तले जमीन खिसक गई थी. वह सोचने लगे कि ऐसा कैसे हो सकता है कि घर में सोए व्यक्ति की करीब एक किलोमीटर दूर लाश मिले. उन्हें मामला गंभीर दिखा और उस में हत्या की बू आने लगी है. जबकि मौके पर मौजूद गांव वाले उस की मौत पानी में डूबने से हुई बता रहे थे.

रामानंद की मौत पूरी तरह रहस्य की काली चादर में लिपटी हुई थी. हत्या के शक के आधार पर इंसपेक्टर मदन मोहन ने मौके की जांचपड़ताल की, लेकिन वहां ऐसा कोई संघर्ष का निशान नहीं मिला, जिस से यह साबित हो सके कि मृतक ने हत्यारों का कोई विरोध किया हो. खैर, लाश देख कर पुलिस किसी भी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकी थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही मौत के सही कारण के बारे में पता लग सकता था.

कागजी काररवाई करतेकरते दोपहर के 12 बज गए थे. कागजी काररवाई पूरी करने के बाद इंसपेक्टर मदन मोहन पुलिस टीम के साथ थाने वापस लौट गए थे. मृतक रामानंद के पिता रामप्रीत विश्वकर्मा को भी थाने बुला लिया था. वहां उन्होंने उस से लिखित तहरीर ले ली थी, ताकि जांच की काररवाई आगे बढ़ाई जा सके.

पुलिस को क्यों हुआ मृतक की पत्नी पर शक

अगले दिन यानी 8 अप्रैल, 2023 को रामानंद विश्वकर्मा की पोस्टमार्टम की रिपोर्ट थाने पहुंच गई. इंसपेक्टर मदन मोहन के टेबल पर पड़ी थी. रिपोर्ट पढ़ कर इंसपेक्टर मिश्र चौंके बिना नहीं रह सके थे, क्योंकि रिपोर्ट में मृतक की मौत गला दबाने से हुई बताई गई. मतलब बात शीशे की तरह साफ हो चुकी थी कि पानी में डूबने से रामानंद की मौत नहीं हुई थी, बल्कि रिपोर्ट में उस की गला दबा कर हत्या की गई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ जाने के बाद इंसपेक्टर मदन मोहन मिश्र पूरी तरह एक्टिव हो गए और उसी दिन दोपहर में अपनी टीम को ले कर वह उसी जगह पहुंच गए, जहां लाश पाई गई थी. वहां भी जांच में मौके से संघर्ष के कोई निशान नहीं मिले.

मतलब आईने की तरह साफ था कि हत्या कहीं और कर के लाश को तालाब में फेंक दिया गया था. पुलिस मौके की जांच कर के मृतक रामानंद के घर पहुंची और उस कमरे की तलाशी में जुट गई थी, जहां घटना वाली रात वह सोया था.

पुलिस ने कमरे की गहनतापूर्वक जांच की. जांच के दौरान बेड के नीचे से टूटी हुई प्रेग्नेंसी किट, एक डायरी, एक फोटो और एक टूटा हुआ मोबाइल फोन बरामद हुआ. पुलिस ने इन सामानों को बतौर साक्ष्य अपने कब्जे में ले लिया था, पता चला कि वह मोबाइल मृतक का था.

घर वालों से पूछताछ करने पर पता चला कि टूटा हुआ मोबाइल मृतक रामानंद का है. इस से एक बात तो स्पष्ट हो गई थी कि जो कुछ भी हुआ था, इसी कमरे में घटा था.

पुलिस के शक के घेरे में मृतक की पत्नी सीतांजलि आ गई थी, क्योंकि उस का बयान बारबार बदलता जा रहा था, लेकिन पुलिस ने फिलहाल जानबूझ कर उस की ओर से अपना ध्यान हटा लिया था, ताकि वह कोई ऐसी वैसी हरकत करे और पुलिस की शिकंजे में फंस जाए.

कमरे की तलाशी लेने के बाद पुलिस रामप्रीत से उन की बहू सीतांजलि और खुद रामप्रीत का सेलफोन नंबर ले कर वापस थाने लौट गई. फिर सीतांजलि के मोबाइल फोन नंबर की एक महीने की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स देख कर इंसपेक्टर मदन मोहन उछल पड़े.

मृतक रामानंद की पत्नी सीतांजलि के फोन पर अकसर एक ही नंबर से काल आता था और उसी नंबर पर इस की ओर से भी काल की जाती थी. दोनों के बीच में घंटोंघंटों तक बातें होती थीं. यही नहीं, जिस रोज रामानंद घर में सोया था और रहस्यमय तरीके से उस की लाश तालाब के किनारे मिली थी, उस रात भी उसी नंबर पर सीतांजलि ने करीब 8 बार बात की थी. इस बात ने पुलिस के शक को और पुख्ता कर दिया था कि पति की मौत में पत्नी का हाथ अवश्य है.

यही नहीं, जिस नंबर से अकसर सीतांजलि के फोन पर काल आती थी और काल जाती थी, पुलिस ने उस नंबर को भी खंगाल डाला. वह नंबर किसी बृजमोहन विश्वकर्मा के नाम पर आवंटित था, जो गोरखपुर जिले के ही खजनी थाना क्षेत्र के रामपुर पांडेय का रहने वाला था.

गुप्तरूप से पुलिस ने उस के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला वह शख्स मृतक के सगे बहनोई का छोटा भाई निकला. वह मुंबई में रह कर कमाता था. रिश्ते में सीतांजलि, बृजमोहन की सलहज लगती थी.

पुलिस छानबीन के दौरान मृतक के कमरे से डायरी और फोटोग्राफ बरामद हुआ था. उस डायरी में लिखी मजमून और फोटो ने रामानंद की हत्या होना और हत्या में पत्नी का शामिल होना दोनों साबित कर दिया था.

पुलिस के पास सीतांजलि और बृजमोहन विश्वकर्मा को गिरफ्तार करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य इकट्ठा हो गए थे. फिर देर किस बात की थी.

9 अप्रैल, 2023 को पुलिस ने सीतांजलि को हिरासत में ले उस से कड़ाई से पूछताछ की तो उस ने पलभर में ही अपना जुर्म कुबूल कर लिया. उस ने बताया कि पति की हत्या उस ने अपने प्रेमी बृजमोहन विश्वकर्मा और उस के दोस्त अभिषेक चौहान के साथ मिल कर की है. हत्या करने के बाद बृजमोहन लखनऊ तो अभिषेक मध्य प्रदेश फरार हो गया.

फरेबी के प्यार में फंसी बदनसीब कांता