मिसकाल का प्यार – भाग 3

21 फरवरी की सुबह अपना कालेज बैग ले कर रूबी कालेज जाने के लिए घर से निकली और इलकल से बस पकड़ कर वह रात साढ़े 9 बजे बंगलुरु एयरपोर्ट पर पहुंच गई. वहां सुजाय उस का पहले से इंतजार कर रहा था.

रूबी और सुजाय ने जब पहली बार एकदूसरे को हकीकत में देखा तो रूबी उस के सीने से लिपट गई. दोनों के दिल करीब आए तो धड़कनें स्वाभाविक ही बढ़ गईं. चूंकि वह सार्वजनिक जगह थी, इसलिए उन्होंने न चाहते हुए भी खुद को कंट्रोल किया. सुजाय ने बंगलुरु से दिल्ली तक की जेट एयरवेज की 2 टिकटें पहले से बुक कर रखी थीं. वहां से दोनों फ्लाइट से रात करीब डेढ़ बजे दिल्ली आ गए.

चूंकि दोनों पहली बार मिले थे, इसलिए सुजाय उस से जी भर कर बातें करना चाहता था. इसलिए रूबी को ले कर दिल्ली एयरपोर्ट के नजदीक महिपालपुर इलाके में गया और वहां स्थित एक गेस्टहाउस में एक कमरा बुक करा लिया. रूबी ने अपना फोन स्विच्ड औफ कर दिया था, ताकि घर वाले उसे ढूंढ़ न सकें.

कोई भी जवान लड़कालड़की, जो आपस में सगेसंबंधी न हों, अगर उन्हें लंबे समय तक एकांत में रहना पड़ जाए तो उन के बहकने की आशंकाएं अधिक होती हैं. रूबी और सुजाय तो प्रेमीप्रेमिका थे, इसलिए गेस्टहाउस के कमरे में वे इतने नजदीक आ गए कि उन के बीच की सारी दूरियां मिट गईं.

उधर रूबी शाम तक घर नहीं लौटी तो घर वालों को उस की चिंता हुई. उन्होंने उस का फोन मिलाया, वह स्विच्ड औफ मिला. इस के बाद उन का परेशान होना लाजिमी था. वैसे भी कोई जवान बेटी घर वालों से बिना कुछ बताए गायब हो जाए तो मांबाप की क्या स्थिति होगी, इस बात को रूबी की अम्मी और अब्बू ही महसूस कर रहे थे.

उन्होंने रूबी के बारे में संभावित जगहों पर फोन कर के पता किया, लेकिन जब उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो वह थाना इलकल पहुंच गए और 22 वर्षीया रूबी की गुमशुदगी दर्ज करा दी. रूबी के पिता ने बेटी के गायब होने की सूचना दर्ज करा जरूर दी थी, लेकिन उन्हें इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था कि पुलिस बेटी के बारे में कुछ पता लगा पाएगी. बेटी की चिंता में उन्हें नींद नहीं आई.

अगले दिन 22 फरवरी को भी वह अपने तरीके से बेटी को खोजने लगे. तभी सुबह 10 बजे उन के मोबाइल की घंटी बजी. उन्होंने धड़कते दिल से काल रिसीव कर के जैसे ही हैलो कहा, दूसरी ओर से रौबदार आवाज में कोई आदमी बोला, ‘‘तुम रूबी के लिए परेशान हो रहे हो न..?’’

उस की बात पूरी होने से पहले ही रूबी के पिता बोले, ‘‘हां…हां, कहां है मेरी बेटी?’’

‘‘वह जिस के पास है, हमें पता है. वे लोग इतने खतरनाक हैं कि अगर उन की मांग नहीं मानी गई तो वे लड़की को खत्म कर देंगे या फिर उसे किसी कोठे पर बेच देंगे.’’ फोन करने वाले ने कहा.

‘‘मेरी बेटी को कुछ नहीं होना चाहिए. मैं उन की सारी मांगें मानूंगा. मगर यह तो बता दो कि जिन के पास मेरी बेटी है, वे लोग मुझ से चाहते क्या हैं?’’

‘‘10 पेटी. यानी 10 लाख रुपए दे दो और बेटी को ले जाओ. एक बात का ध्यान रखना, यह बात पुलिस को पता नहीं लगनी चाहिए, वरना बेटी को कफन ओढ़ाने की नौबत आ जाएगी. पैसे ले कर कब और कहां आना है, बाद में बता दिया जाएगा. और पैसे ले कर अकेले ही आना.’’ कहने के बाद फोन काट दिया गया.

फोन पर बात करने के बाद रूबी के पिता को यह तो पता चल गया कि बेटी का किसी ने अपहरण कर लिया है. लेकिन उन के दिमाग में एक दुविधा यह भी थी कि वह इस मामले की खबर पुलिस को दें या नहीं? क्योंकि पुलिस में सूचना देने पर अपहर्त्ता ने उन्हें अंजाम भुगतने की चेतावनी दी थी. उन की पत्नी ने पुलिस को खबर न करने को कहा, जबकि सगेसंबंधियों और दोस्तों ने पुलिस के पास जाने की सलाह दी.

फिर वह काफी सोचनेसमझने के बाद पुलिस के पास पहुंच गए. उन्होंने इलकल के थानाप्रभारी को वह मोबाइल नंबर भी दे दिया, जिस से उन के मोबाइल पर फिरौती का फोन आया था.

थानाप्रभारी ने उन की तहरीर पर एफआईआर नंबर 33/2014 भादंवि की धारा 364ए के तहत मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी. जिस नंबर से फिरौती की काल आई थी, थानाप्रभारी ने उस नंबर को इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस पर लगाया तो उस की लोकेशन दिल्ली की मिली. थानाप्रभारी ने यह बात अपने उच्चाधिकारियों को बताई.

बगालकोट जिले में एक आईपीएस अधिकारी हैं मिस्टर मार्टिन. मार्टिन दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के डीसीपी कुमार ज्ञानेश से अच्छी तरह परिचित थे. उन्होंने आईपीएस अधिकारी कुमार ज्ञानेश से फोन पर बात कर के रूबी को सकुशल बरामद कराने में सहयोग मांगा.

चूंकि मामला अंतरराज्यीय था, इसलिए कुमार ज्ञानेश ने क्राइम ब्रांच के अतिरिक्त आयुक्त रविंद्र यादव की जानकारी में यह बात लाई. दिल्ली पुलिस इस से पहले भी दूसरे प्रदेशों में बड़े अपराध कर के भागे अनेक अभियुक्तों को गिरफ्तार कर के संबंधित राज्यों की पुलिस के हवाले कर चुकी थी.

इसलिए अतिरिक्त आयुक्त रविंद्र यादव ने कर्नाटक पुलिस का सहयोग करने के लिए क्राइम ब्रांच की एंटी स्नैचिंग सेल के इंसपेक्टर सुशील कुमार की अध्यक्षता में एक पुलिस टीम बनाई, जिस में एसआई सुरेंद्र दलाल, एएसआई मुकेश त्यागी, हेडकांस्टेबल राजबीर सिंह, ऋषि कुमार आदि को शामिल किया. टीम का निर्देशन डीसीपी कुमार ज्ञानेश को सौंपा गया.

उधर कर्नाटक पुलिस के इंसपेक्टर रविंद्र शिरूर, एसआई प्रदीप तलकेरी, बस्वराज लमानी की टीम 23 फरवरी, 2014 को दिल्ली पुलिस के क्राइम ब्रांच औफिस पहुंच गई. टीम के साथ रूबी का बहनोई भी था. जिस मोबाइल नंबर से अपहर्त्ता ने रूबी के पिता को फिरौती की काल की थी, उस नंबर को दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने भी इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस पर लगा दिया था. उस की लोकेशन लगातार महिपालपुर इलाके की आ रही थी.

महिपालपुर के जिस इलाके की फोन की लोकेशन आ रही थी, उस इलाके में अनेक गेस्टहाउस और होटल थे. पुलिस ने अनुमान लगाया कि शायद अपहर्त्ताओं ने लड़की को किसी गेस्टहाउस या होटल में बंद कर रखा है, इसलिए कर्नाटक पुलिस के साथ दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच की टीम ने उस इलाके के एकएक होटल और गेस्टहाउस की तलाशी लेनी शुरू कर दी.

होली पर मंगेतर को मौत का अबीर – भाग 1

17 मार्च को जिस समय देश भर में लोग होली के हुड़दंग में मस्त थे उस समय हरिसिंह के घर में  मायूसी छाई हुई थी. इस की वजह यह थी कि हरिसिंह की छोटी बेटी प्रियंका जो दिल्ली टै्रफिक पुलिस में कांस्टेबल थी, बीते दिन यानी 16 मार्च की शाम से गायब थी. वह शाम को करीब 7 बजे यह कह कर घर से निकली थी कि किसी से मिलने जा रही है और थोड़ी देर में घर लौट आएगी.

प्रियंका कोई दूध पीती बच्ची तो थी नहीं जो घर वालों को उस की तरफ से कोई चिंता होती. वह 22 साल की थी, ऊपर से दिल्ली पुलिस में नौकरी कर रही थी इसलिए उन्हें उस की समझदारी पर कोई शक नहीं था. घर वाले निश्चिंत थे कि वह कहीं किसी काम से गई है तो देरसवेर घर आ जाएगी.

प्रियंका को घर से गए हुए कई घंटे बीत गए. वह घर नहीं लौटी तो उस की बड़ी बहन सुमन ने उसे यह जानने के लिए फोन किया कि वह कहां है और कितनी देर में घर आ रही है. लेकिन प्रियंका का फोन कंप्यूटर द्वारा स्विच्ड औफ या पहुंच से दूर बताया जा रहा था. सुमन ने उस का फोन कई बार मिलाया, हर बाद उन्हें कंप्यूटर का वही जवाब सुनने को मिला.

प्रियंका कभी भी अपना फोन स्विच औफ कर के नहीं रखती थी. और जब कभी उसे घर लौटने में देरी हो जाती तो वह घर पर फोन जरूर कर दिया करती थी. लेकिन आज उस ने कोई फोन नहीं किया था.

सुमन की एक बहन शिक्षा दिल्ली पुलिस में सब इंसपेक्टर है. वह भी उस समय घर पर ही थी. उस ने भी प्रियंका का फोन नंबर मिलाया, जो उस समय भी स्विच्ड औफ था. घर के लोग परेशान थे कि न जाने वह कहां चली गई जो फोन भी बंद कर रखा है.

प्रियंका का एकलौता भाई प्रवीण भी दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल है. उसे भी प्रियंका के घर न लौटने की बात बताई गई तो वह भी घर आ गया. परिवार के सभी लोग इधरउधर फोन कर के प्रियंका का पता लगाने में जुट गए.

उन्होंने प्रियंका की जानपहचान वालों को भी फोन किए लेकिन उस का कहीं पता न लगा. घर के सभी लोग परेशान थे. वे रात भर जागते रहे. उस के लौटने के इंतजार में पूरी रात उन की निगाहें दरवाजे की तरफ ही लगी रहीं.

सुबह होने पर उस की फिर तलाश शुरू कर दी गई. लेकिन उस के बारे में कोई खबर नहीं मिल रही थी. तब उन के दिमाग में प्रियंका को ले कर गलत खयाल आने लगे. अंतत: सुमन ने 10 बजे के करीब बहन के रहस्यमय तरीके से गायब होने की खबर 100 नंबर पर फोन कर के पुलिस नियंत्रण कक्ष को दे दी.

एक महिला कांस्टेबल के गायब होने की सूचना पाते ही पुलिस कंट्रोल रूम (पीसीआर) की वैन प्रियंका के घर पहुंच गई. चूंकि मामला सागरपुर थाना क्षेत्र का था इसलिए पीसीआर द्वारा थाना सागरपुर में वायरलेस द्वारा सूचना दे दी गई. तब थानाप्रभारी रिछपाल सिंह एसआई मदन के साथ वेस्ट सागरपुर के आई ब्लाक में स्थित कुसुम के घर पहुंच गए. सुमन और शिक्षा ने थानाप्रभारी को प्रियंका के गुम होने की पूरी बात बता दी.

पुलिस दोनों बहनों को थाने ले आई और शिक्षा की तरफ से प्रियंका की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर ली. थानाप्रभारी ने प्रियंका के हुलिए के साथ उस के गायब होने की सूचना दिल्ली के समस्त थानों में प्रसारित करा दी. साथ ही उन्होंने जब शिक्षा से पूछा कि उन्हें किसी पर कोई शक वगैरह तो नहीं है तो शिक्षा ने बताया कि हमें प्रियंका के मंगेतर मोहित पर शक है.

‘‘मोहित कहां रहता है?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘वह हरियाणा के भिवानी जिले के गांव छापर का रहने वाला है और नेवी में नौकरी करता है. अभी 3 महीने पहले ही प्रियंका का रिश्ता उस से तय हुआ था.’’ शिक्षा ने बताया.

थानाप्रभारी शिक्षा से बात कर ही रहे थे कि उसी दौरान उन्हें थाना क्षेत्र के ही मोहन नगर स्थित नीलगगन गेस्ट हाउस में एक महिला की लाश मिलने की सूचना मिली. थानाप्रभारी रिछपाल सिंह एसआई मदन, हेडकांस्टेबल सुरेश, कांस्टेबल लाला राम, नवीन आदि के साथ नीलगगन गेस्ट हाउस की तरफ चल दिए. चूंकि प्रियंका भी गायब थी इसलिए उन्होंने सुमन और शिक्षा को भी साथ ले लिया.

थानाप्रभारी जब नील गगन गेस्ट हाउस पहुंचे तो गेस्ट हाउस के मैनेजर सुनील कुमार ने बताया कि रूम नंबर 105 में एक युवती बेड पर पड़ी हुई है ऐसा लगता है शायद वह मर चुकी है. पुलिस तुरंत रूम नंबर 105 की तरफ गई, वो ग्राउंड फ्लोर पर दाहिनी साइड में था. उस कमरे में बाहर से ताला लगा था. मैनेजर ने पुलिस को बताया कि उस ने कमरे के अंदर का नजारा रोशनदान से झांक कर देखा था.

थानाप्रभारी ने भी उस कमरे के रोशनदान से कमरे में देखा तो एक युवती बेड पर लेटी हुई दिखाई दी. उस के मुंह में सफेद रंग का तौलिया ठूंसा हुआ था और बेडशीट पर खून के धब्बे भी दिख रहे थे. उस युवती के सीने तक का शरीर ब्राउन कलर के कंबल से ढका हुआ था.

उस युवती की हालत और बेडशीट पर खून के धब्बे देख कर थानाप्रभारी को भी लगा कि शायद उस की हत्या हो चुकी है. उन्होंने शिक्षा से भी कमरे के अंदर पड़ी युवती को देखने को कहा. शिक्षा ने जब रोशनदान से कमरे में झांका तो उस की आंखों में आंसू भर आए. बेड पर लेटी वह युवती उसे प्रियंका जैसी ही लग रही थी.

शिक्षा का उतरा चेहरा और आंखों में छलकते आंसू देख कर थानाप्रभारी रिछपाल सिंह ने पूछा, ‘‘क्या हुआ शिक्षा? क्या तुम उस युवती को पहचानती हो?’’

‘‘सर, वो मुझे प्रिया लग रही है.’’ प्रियंका को घर पर सब प्रिया कहते थे. वह थोड़ा गंभीर हो कर बोली, ‘‘मगर वो यहां क्यों आएगी?’’

शिक्षा की बात सुन कर सुमन भी घबरा गई उस ने भी रोशनदान से झांक कर देखा तो वह भी रुआंसी हो गई. उस ने रोशनदान से ही प्रियाप्रिया कह कर जोर से कई बार पुकारा लेकिन बेड पर लेटी युवती में कोई हरकत नहीं हुई. तब पुलिस ने क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को भी गेस्ट हाउस में बुला लिया.

क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम के सामने पुलिस ने धक्के मार कर उस कमरे के दरवाजे को तोड़ दिया. तभी शिक्षा और सुमन ने बेड पर लेटी युवती को देखा तो वे जोरजोर से रोने लगीं क्योंकि वह लाश उन की बहन प्रिया की ही निकली.

प्यार ने बना दिया नागिन – भाग 2

जब रचना को पता चला कि घर वालों ने उस की शादी तय कर दी है तो उस ने तुरंत रामेश्वर को फोन किया. प्रेमिका की शादी तय हो जाने की बात सुन कर वह बेचैन हो उठा. वह रचना से शादी तो करना चाहता था, लेकिन उस की मजबूरी यह थी कि अभी वह बेरोजगार था. उस के पास इतना पैसा भी नहीं था कि वह रचना को भगा ले जाता.

इसलिए उस ने मजबूरी जाहिर करते हुए पूछा, ‘‘रचना, तुम्हारी शादी कहां तय हुई है?’’

‘‘जब तुम कुछ कर नहीं सकते तो यह जान कर क्या करोगे?’’ रचना तुनक कर बोली.

‘‘भले ही अभी कुछ नहीं कर पा रहा हूं, लेकिन हमारे हालात हमेशा ऐसे ही थोड़े रहेंगे. जब सब ठीकठाक हो जाएगा, तब तो कुछ कर सकेंगे. इसीलिए पूछ रहा था.’’ रामेश्वर ने रचना को सांत्वना देते हुए कहा.

‘‘राम सिंह चाचा की कोई रिश्तेदारी मडौरा में है, वहीं किसी के यहां तय कराई है.’’ रचना ने जवाब दिया.

‘‘मडौरा में किस के यहां हो रही है? वहां तो मेरा ननिहाल है. कहीं तुम्हारी शादी बिहारी से तो नहीं हो रही है?’’ रामेश्वर ने चहक कर कहा, ‘‘मुझे पता चला है कि बिहारी मामा की शादी तय हो गई है. लेकिन मुझे यह नहीं मालूम कि उन की शादी कहां तय हुई है.’’

‘‘शायद उन्हीं के साथ हो रही है. वह तुम्हारे सगे मामा हैं?’’ रचना ने हैरानी से पूछा.

‘‘हां, बिहारी मेरे सगे मामा हैं. अगर उन के साथ तुम्हारा विवाह हो रहा है तो हम पहले की ही तरह मिलते रहेंगे. उस के बाद जब हमारे हालात सुधर जाएंगे तो हम भाग कर शादी कर लेंगे.’’ रामेश्वर ने कहा.

‘‘शादी के बाद क्या होगा, यह बाद की बात है, दूसरे के घर जा कर स्थिति कैसी बनेगी, यह तो वहां जाने पर ही पता चलेगा न? मैं तुम पर कैसे भरोसा कर सकती हूं? जब तुम अभी कुछ नहीं कर सकते तो दूसरी की हो जाने के बाद तुम मेरे लिए क्या कर पाओगे? अब मुझे तुम पर विश्वास नहीं रहा.’’ कह कर रचना ने फोन काट दिया.

अपने इस कायर प्रेमी पर रचना को बहुत गुस्सा आया था. वह समझ गई कि यह सिर्फ बड़ी बड़ी बातें कर के केवल सपने दिखा सकता है, कर कुछ नहीं सकता. एक से एक प्रेमी हैं, जो प्रेमिका के लिए जान देने को तैयार रहते हैं. एक यह है, जो बहाने बना कर पीछा छुड़ा कर भाग रहा है. यही सब सोच कर उस ने तय कर लिया कि अब वह उस से बात नहीं करेगी. अगर ससुराल में मिलेगा तो दुत्कार कर भगा देगी.

रचना का विवाह बिहारी से हो गया. वह विदा हो कर ससुराल आ गई. इस तरह वह अपने प्रेमी रामेश्वर की मामी बन गई. शादी में रामेश्वर मामा की बारात में तो गया ही था, बारात लौटी तो रचना से मिलने के चक्कर में रुक भी गया. उसे उम्मीद थी कि मौका मिलेगा तो रचना उस से बात करेगी. लेकिन रचना ने उस की ओर देखा तक नहीं. अगर कभी सामने पड़ा भी तो उस ने मुंह फेर लिया.

रामेश्वर की समझ में नहीं आ रहा था कि वह रचना को कैसे समझाए कि वह उसे बहुत प्यार करता है. लेकिन उसे भगा कर अपनी अलग दुनिया बसाने का उस के पास कोई साधन नहीं था, इसलिए वह पीछे हट गया था. रचना के लिए उस के मन में जो चाहत है, वह आज भी कम नहीं हुई है. रामेश्वर काफी परेशान था, क्योंकि वह प्रेमिका को दिखाए सपनों को पूरा नहीं कर सका था.

रामेश्वर जब भी मामा के यहां आता, रचना से बात करने की कोशिश करता. लेकिन रचना उसे मौका ही नहीं देती थी. संयोग से एक दिन वह ऐसे मौके पर मामा के घर पहुंचा, जब रचना घर में अकेली थी. उसे देख कर रचना को गुस्सा आ गया. उस ने उस से तुरंत वापस जाने को कहा.

रचना के गुस्से की परवाह किए बगैर रामेश्वर ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘रचना, मैं आज भी तुम से उतना ही प्यार करता हूं, जितना पहले करता था. यही नहीं, मैं तुम्हें इतना ही प्यार पूरी जिंदगी करता रहूंगा और किसी दूसरी लड़की से शादी भी नहीं करूंगा. मैं मजबूर था, भावनाओं में बह कर मैं तुम्हें भगा तो ले जाता, लेकिन बाद में जो परेशानी होती, उस का दोष तुम मुझे ही देती.’’

रचना ने जब रामेश्वर की बात पर गंभीरता से विचार किया तो उस की बात उसे सच लगी. लेकिन उस के सपनों की दुनिया तो उजड़ चुकी थी. रामेश्वर उसे बारबार विश्वास दिला रहा था कि वह आज भी उसे उतना ही प्यार करता है. इसलिए रचना ने कहा, ‘‘केवल प्यार करने से थोड़े ही कुछ होगा, कुछ करोगे भी या इसी तरह सिर्फ प्यार ही करते रहोगे? तुम्हें पता होना चाहिए कि तुम्हारे मामा बिहारी को आज भी मैं मन से स्वीकार नहीं कर पाई हूं.’’

‘‘अब तुम मेरी मामी बन चुकी हो, ऐसे में मैं क्या कर सकता हूं?’’ रामेश्वर ने कहा.

‘‘अगर तुम कुछ नहीं कर सकते तो मेरी नजरों के सामने आते ही क्यों हो?’’ रचना ने उसे झिड़का.

‘‘ऐसा मत कहो रचना. मैं तुम्हें देखे बगैर नहीं रह सकता. अगर तुम भी मुझे पहले की ही तरह प्यार करती हो तो मैं वादा करता हूं कि तुम जैसा कहोगी, मैं वैसा ही करूंगा.’’

‘‘तो फिर जैसे भी हो सके, तुम मुझे यहां से निकालो.’’ रचना ने कहा.

इस के बाद रामेश्वर और रचना के प्यार का सिलसिला एक बार फिर पहले ही तरह चल पड़ा. वे नए सिरे से अपनी अलग दुनिया बसाने की योजना बनाने लगे. काफी सोचविचार कर रचना और रामेश्वर ने जो योजना बनाई, उसी के अनुसार रचना काम करने लगी. एक दिन उस ने अपनी सास से कहा, ‘‘अम्माजी, आजकल मेरे सपनों में नाग बहुत आते हैं. वे कहते हैं कि मैं पूर्वजन्म में नागिन थी, इसलिए मुझे वे अपने साथ ले जाएंगे.’’

सास ने समझाया, सपना तो सपना होता है, वह सिर्फ दिखाई देता है, कभी सच नहीं होता. वह उस के बारे में सोचे ही न. लेकिन रचना लगातार सास से सपने का जिक्र करती रही. वह लगभग रोज बताती कि सपने में उसे नाग दिखाई देते हैं और कहते हैं कि वे उसे छोड़ेंगे नहीं.

रचना की बातों से ससुराल वाले परेशान रहने लगे थे. धीरेधीरे उस की शिकायतें कुछ ज्यादा ही बढ़ती गईं तो ससुराल वालों ने उसे कुछ दिनों के लिए मायके भेज दिया. सपने वाली बात जान कर हाकिम सिंह और रामवती को भी चिंता हुई. उन्हें असलियत का पता तो था नहीं, इसलिए उन्होंने झाड़फूंक भी कराई. उन्हें लगता था कि रचना अपने प्रेमी को भूल चुकी होगी. इसलिए वे निश्चिंत थे.

मिसकाल का प्यार – भाग 2

जब किसी लड़की या लड़के को प्यार होता है तो उसे अपने साथी के अलावा सब कुछ बेकार लगता है. हर समय वह उसी के बारे में सोचता रहता है. रूबी और सुजाय का भी यही हाल था. वे जब तक एकदूसरे से बात नहीं कर लेते, उन्हें चैन नहीं पड़ता था.

वह नेट पर चैटिंग भी करने लगे थे. फेसबुक पर उन्होंने अपने फोटो अपलोड कर दिए थे. रूबी का फोटो देख कर सुजाय फूला नहीं समा रहा था. उस ने बातचीत के बाद उस की जैसी तसवीर अपने दिल में बसा ली थी, वास्तव में वह उस से भी ज्यादा सुंदर निकली.

सुजाय भी हैंडसम था. रूबी को उस की छवि भी अपने सपनों के राजकुमार की तरह ही लगी. यानी दोनों अपनी पसंद पर इतरा रहे थे. सुजाय और रूबी बालिग थे. भले ही वे एकदूसरे से सैकड़ों मील दूर रह रहे थे, लेकिन फोन की बातचीत और चैटिंग के जरिए वे एकदूसरे के दिल में थे.

मोहब्बत ने उन की सैकड़ों किलोमीटर दूरी को समेट कर रख दिया था. उन्होंने एकदूसरे को जता दिया था कि भले ही उन के बीच में जातिधर्म की या अन्य कोई दीवार आए, वह उस दीवार को चकनाचूर कर के शादी करेंगे. दुनिया की कोई भी ताकत उन्हें जुदा नहीं कर सकेगी. फोन और सोशल मीडिया के जरिए उन का प्यार और मजबूत होता गया.

रूबी 22 साल की हो चुकी थी. बीए सेकेंड ईयर की पढ़ाई के साथ वह टेलरिंग का काम भी सीख रही थी. उस के घर वालों को इस बात की भनक तक नहीं लग पाई थी कि उस का पश्चिम बंगाल के रहने वाले किसी अन्य मजहब के लड़के साथ चक्कर चल रहा है.

हर मांबाप की यही ख्वाहिश होती है कि इज्जत के साथ वह बेटी को विदा करे. इसलिए रूबी के पिता भी उस के लिए लड़का देखने लगे. उन की मंशा थी कि जब तक कोई लड़का मिलेगा, तब तक वह बीए की पढ़ाई पूरी कर लेगी. उन्होंने अपने नातेरिश्तेदारों से भी रूबी के लिए सही लड़का तलाशने को कह दिया था.

इधरउधर भागदौड़ करने के बाद जनवरी, 2014 में रूबी का रिश्ता एक लड़के से तय हो गया और इसी साल अप्रैल महीने में निकाह की तारीख रखी गई. रूबी को जब अपने रिश्ते के बारे में जानकारी मिली तो उसे बहुत दुख हुआ. उस ने सैकड़ों किलोमीटर दूर रहने वाले प्रेमी सुजाय से जीवन भर साथ रहने का वादा किया था. इसलिए रिश्ते की बात पता लगते ही उस ने सुजाय से फोन पर बात की.

प्रेमिका की बातें सुन कर सुजाय भी हैरत में पड़ गया कि अचानक यह कैसे हो गया. रूबी ने कहा कि वह उस के अलावा किसी और से शादी के बारे में सोच भी नहीं सकती. कुछ भी हो जाए वह घर वालों द्वारा तय की गई शादी का विरोध करेगी. इस के लिए यदि उसे अपना घर भी छोड़ना पड़ जाए तो वह उसे भी छोड़ देगी.

‘‘नहीं रूबी, तुम जल्दबाजी में अभी ऐसा कदम मत उठाना. तुम्हारे घर वालों ने अप्रैल में शादी की तारीख रखी है. तुम चिंता मत करो, मैं जल्द ही कोई ऐसा उपाय निकालता हूं कि हमें कोई जुदा न कर पाए.’’ सुजाय ने उसे भरोसा दिलाया.

‘‘सुजाय, जो भी करना है जल्दी करो. कहीं ऐसा न हो कि हम लोग सोचते ही रह जाएं और…’’

‘‘नहीं रूबी, ऐसा हरगिज नहीं होगा. मैं तुम्हें दिलोजान से चाहता हूं और वादा करता हूं कि मैं तुम्हीं से शादी करूंगा.’’

‘‘ठीक है सुजाय, तुम जैसा कहोगे मैं करने को तैयार हूं. तुम बस मुझे एक दिन पहले फोन कर देना. तुम जहां कहोगे, मैं आ जाऊंगी.’’ रूबी खुश होते हुए बोली.

उधर शादी तय करने के बाद रूबी के घर वाले शादी का सामान जुटाने लगे. लेकिन उन्हें बेटी के मन की बात पता नहीं थी. उन्हें पता नहीं था कि जिस की शादी की तैयारी करने में वे फूले नहीं समा रहे हैं, वही बेटी परिवार की इज्जत उछालने के तानेबाने बुनने में लगी है.

इसी बीच 11 फरवरी, 2014 को सुजाय ने रूबी को फोन किया और बताया कि उस के घर वालों ने भी उस की शादी कहीं और तय कर दी है… सुजाय की बात पूरी होने के पहले ही रूबी गुस्से में बोली, ‘‘यह तुम क्या कह रहे हो?’’

‘‘रूबी, तुम ने मेरी पूरी बात तो सुनी नहीं.’’

‘‘बताओ.’’

‘‘देखो रूबी, घर वालों ने मेरी शादी तय जरूर कर दी है, लेकिन मैं उस लड़की से नहीं, बल्कि तुम से शादी करूंगा. मैं जब प्यार तुम से करता हूं तो भला शादी किसी और से कैसे करूंगा?’’

प्रेमी की बात सुन कर रूबी की जान में जान आई. इस के बाद दोनों काफी देर तक सामान्य रूप से बातें करते रहे. उन्होंने तय कर लिया था कि अब जल्द ही कोई ठोस कदम उठाएंगे.

इस के बाद एक दिन सुजाय ने रूबी को फोन किया, ‘‘रूबी, मैं ने पूरा प्लान तैयार कर लिया है कि हमें क्या करना है. ऐसा करना, तुम 21 फरवरी को अपने घर से बंगलुरु एयरपोर्ट पहुंच जाना. इधर से मैं भी वहां पहुंच जाऊंगा. तुम्हारी और अपनी एयर टिकट मैं पहले ही खरीद लूंगा. बंगलुरु से हम लोग दिल्ली आ जाएंगे. यहां शादी करने के बाद मैं तुम्हें अपने घर ले चलूंगा.’’

‘‘घर जाने के बाद अगर तुम्हारे घर वालों ने मुझे नहीं स्वीकारा तो..?’’

‘‘तो क्या हुआ? वे हमारे रिश्ते को स्वीकारें या न स्वीकारें, मुझे चिंता नहीं है. मैं घर छोड़ दूंगा और कहीं दूसरी जगह जा कर रह लेंगे. रूबी, मुझे केवल तुम्हारा साथ चाहिए, जमाना चाहे कुछ भी कहे, मुझे फिक्र नहीं है.’’

‘‘सुजाय, मैं तो मन से तुम्हारी कब की हो चुकी हूं और शादी के बाद हमारी बेताबी भी दूर हो जाएगी. मैं तुम्हारा साथ कभी नहीं छोड़ सकती.’’

‘‘बस, मुझे तुम्हारी इसी हिम्मत की जरूरत है. अच्छा, तुम एक काम करना, घर से निकलते समय ज्वैलरी और कुछ पैसे लेती आना, जो हम लोगों की जरूरत पर काम आ सकेंगे.’’

‘‘तुम फिक्र न करो. अगर तुम न भी कहते तो मैं ये सब साथ लाती. बस तुम मुझे बंगलुरु हवाईअड्डे पर मिलना.’’

‘‘हां, मैं तुम्हें वहीं मिलूंगा. गांव से बंगलुरु आते समय तुम अपना ध्यान रखना.’’

‘‘ओके, तुम भी अपना खयाल रखना.’’ कहने के बाद उन्होंने अपनी बात खत्म कर दी.

रूबी एक ठोस निर्णय ले चुकी थी. वह घर से फरार होने की तैयार करने लगी. 20 फरवरी की शाम तक उस ने घर में रखी 10 तोला सोने की ज्वैलरी और साढ़े 3 लाख रुपए अपने कालेज ले जाने वाले बैग में रख लिए. अगले दिन उसे बंगलुरु एयरपोर्ट पहुंचना था, इसलिए रात भर वह सो नहीं पाई.

अपहरण का कारण बना लिव इन रिलेशन – भाग 3

एक दिन बबीता की मुलाकात रविंद्र से हुई तो रविंद्र ने उसे अपने दिल में बसा लिया. इस के बाद वह उस दुकान के आसपास मंडराने लगा, जहां बबीता काम करती थी. धीरेधीरे बबीता का झुकाव भी रविंद्र की ओर हो गया. दोनों ने एकदूसरे को अपने फोन नंबर भी दे दिए. जल्दी ही दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ गए. यहां तक कि उन के बीच जिस्मानी संबंध भी कायम हो गए. उन के दिलों में पनपी मोहब्बत पूरे शबाब पर थी.

रविंद्र ने अपने दोस्त अनिल की मदद से अंजलि और बबीता को बदरपुर में ही दूसरी जगह किराए पर मकान दिलवा दिया और वह खुद भी उन दोनों के साथ लिव इन रिलेशन में रहने लगा.

चंद्रा दिल्ली के सराय कालेखां इलाके में रहने वाले रामपथ चौधरी की बेटी थी. रामपथ चौधरी की चंद्रा के अलावा एक बेटा नरेंद्र चौधरी और 2 बेटियां थीं. वह सभी बच्चों की शादी कर चुके थे. नरेंद्र चौधरी का दूध बेचने का धंधा था. करीब 15 साल पहले उन्होंने चंद्रा का ब्याह नोएडा सेक्टर-5 स्थित हरौला गांव में रहने वाले महावीर अवाना के साथ किया था. महावीर अवाना प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था.

शादी के कुछ सालों तक महावीर और चंद्रा के बीच सब कुछ ठीक रहा, लेकिन बाद में उन के बीच मनमुटाव रहने लगा. इस की वजह यह थी कि वह शराब पीने का आदी था. चंद्रा शराब पीने को मना करती तो वह उस के साथ गालीगलौज करता और उस की पिटाई कर देता था. रोजरोज पति की पिटाई से परेशान हो कर चंद्रा अपनी मां के पास आ जाती थी.

इस दरम्यान वह 2 बच्चों की मां बन चुकी थी. उस की बेटी सोनिया 11 साल की और बेटा प्रिंस 7 साल का था. सोनिया 5वीं में पढ़ रही थी और प्रिंस यूकेजी में. कुछ दिन मां के यहां रहने के बाद चंद्रा ससुराल लौट जाती थी.

20 नवंबर, 2013 को भी चंद्रा बच्चों के साथ मायके आई थी. नानी के यहां आ कर बच्चे बहुत खुश थे, क्योंकि यहां वे एमसीडी के पार्क में मोहल्ले के अन्य बच्चों के साथ जी भर कर खेलते थे. दूसरी ओर नरेंद्र के रिश्ते का भाई रविंद्र कोई कामधंधा नहीं करता था. उस का खर्चा बबीता ही उठाती थी.

एक दिन अंजलि ने रविंद्र से कहा, ‘‘तुम बबीता के साथ बिना शादी किए पतिपत्नी की तरह रह रहे हो. वह कमाती है और तुम खाली रहते हो. आखिर ऐसा कब तक चलेगा. तुम कोई काम क्यों नहीं करते?’’

रविंद्र भी कोई काम करना चाहता था, लेकिन काम शुरू करने के लिए उस के पास पैसे नहीं थे. वह सोचता था कि कहीं से मोटी रकम हाथ लग जाए तो वह कोई कामधंधा शुरू करे. यह बात उस ने अंजलि और बबीता को बताई. काम शुरू करने के लिए रविंद्र 1-2 लाख रुपए की बात कर रहा था. इतने पैसे दोनों बहनों के पास नहीं थे. रविंद्र की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर वह ऐसा क्या करे, जिस से उस के हाथ मोटी रकम लग जाए. काफी सोचने के बाद उस के दिमाग में एक योजना आई तो वह उछल पड़ा.

उस ने उन दोनों से कहा, ‘‘मैं ने एक योजना सोची है, अगर तुम मेरा साथ दो तो वह पूरी हो सकती है.’’

‘‘क्या योजना है?’’ अंजलि ने पूछा.

‘‘हम किसी बच्चे का अपहरण कर लेंगे. फिरौती में जो रकम मिलेगी, उस से हम कोई अच्छा काम शुरू कर सकते हैं. काम जोखिम भरा है, लेकिन अगर सावधानी से किया जाएगा तो जरूर सफल होगा. काम हो जाने पर हम दिल्ली से कहीं दूर जा कर अपनी दुनिया बसा लेंगे.’’

‘‘अगर कहीं पुलिस के हत्थे चढ़ गए तो सारी उम्र जेल में चक्की पीसनी पड़ेगी.’’ अंजलि और बबीता ने कहा.

‘‘पुलिस को पता तो तब चलेगा, जब हम उस बच्चे को जिंदा छोड़ेंगे. मैं ने पूरी योजना तैयार कर ली है.’’ रविंद्र ने अपने मन की बात बता दी.

‘‘मगर अपहरण करोगे किस का?’’

‘‘सराय कालेखां में नरेंद्र की बहन चंद्रा अपने बच्चों के साथ आई हुई है. मैं चाहता हूं कि नरेंद्र के भांजे प्रिंस को किसी तरह उठा लें. उस से हमें मोटी रकम मिल सकती है.’’

बबीता और अंजलि भी उस की बात से सहमत हो गईं. रविंद्र प्रिंस की लाश को ठिकाने लगाने के लिए बड़ा सा एक ट्रैवलिंग बैग भी ले आया.

इस के बाद रविंद्र ने अपने दोस्तों अनिल और संदीप को भी पैसों का लालच दे कर अपहरण की योजना में शामिल कर लिया. संदीप के पास पल्सर मोटरसाइकिल थी, उसी से तीनों ने अपहरण की वारदात को अंजाम देने का फैसला किया. इन लोगों ने तय किया कि फिरौती मिलने के बाद वे बच्चे को मौत के घाट उतार देंगे और उस की लाश के टुकड़ेटुकड़े कर के बैग में भर कर बदरपुर के पास वाले बूचड़खाने में डाल देंगे.

पूरी योजना बन जाने के बाद तीनों प्रिंस को अगवा करने का मौका देखने लगे. 24 नवंबर, 2013 को कुछ बच्चे इलाके में बने एमसीडी पार्क में खेल रहे थे. उस वक्त प्रिंस बच्चों से अलग पार्क के किनारे चुपचाप बैठा था. रविंद्र अनिल के साथ आहिस्ता से वहां गया और उस ने प्रिंस को गोद में उठा लिया. इस से पहले कि प्रिंस शोर मचाता, उस ने उस का मुंह दबा कर उसे शौल से ढक लिया. फिर तीनों मोटरसाइकिल से फरार हो गए. उन्होंने अपने चेहरे रूमाल से ढक रखे थे.

सोनिया ने यह सब देख लिया था, वह भागती हुई घर गई और अपनी मां से सारी बात बता दी.

सभी आरोपियों ने पुलिस के सामने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पुलिस ने अनिल के पास से 6 फोन भी बरामद किए, जिन से उस ने फिरौती की काल्स की थीं. पता चला कि वे फोन भी चोरी के थे. पुलिस ने पल्सर मोटरसाइकिल के अलावा वह बैग भी बरामद कर लिया, जिस में ये लोग प्रिंस को मारने के बाद लाश के टुकड़े भर कर फेंकते.

पूछताछ में आरोपियों ने बताया कि फिरौती की रकम मिलती या न मिलती, वे लोग प्रिंस को मौत के घाट उतारने वाले थे, क्योंकि प्रिंस ने रविंद्र उर्फ रवि गुर्जर को पहचान लिया था. क्राइम ब्रांच ने सभी आरोपियों को 29 नवंबर, 2013 को साकेत कोर्ट में पेश कर के थाना सनलाइट कालोनी पुलिस के हवाले कर दिया.

बाद में सनलाइट कालोनी थाना पुलिस ने रविंद्र उर्फ रवि, अनिल, संदीप, अंजलि और बबीता को अदालत में पेश कर के न्यायिक हिरासत में भेज दिया. कथा लिखे जाने तक सभी आरोपी जेल में बंद थे.

—कथा पुलिस सूत्रों तथा चंद्रा और नरेंद्र चौधरी के बयानों पर आधारित है.

प्यार ने बना दिया नागिन – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला मथुरा के थाना छाता के गांव मांगरौली के रहने वाले हाकिम सिंह की 3 बेटियों में रचना दूसरे नंबर की थी. वह थोड़ा चंचल  स्वभाव की थी, इसलिए हर समय घर की रौनक बनी रहती थी. लेकिन अब उस की यही चंचलता मांबाप को परेशान करने लगी थी, क्योंकि वह जवान हो चुकी थी.

बड़ी बेटी की शादी करने के बाद हाकिम सिंह रचना की शादी के बारे में सोचने लगे थे. लेकिन रचना ने यह कह कर शादी से मना कर दिया कि वह पढ़ना चाहती है. चूंकि वह पढ़ने में ठीकठाक थी, इसलिए हाकिम सिंह ने सोचा कि अगर बेटी पढ़ना चाहती है तो इस में बुराई क्या है.

रचना गांव की लड़कियों में सब से ज्यादा खूबसूरत थी. वह बनसंवर कर तो रहती ही थी, उसे अपनी खूबसूरती पर गुरुर भी था, इसलिए वह सपने भी अपने ही जैसे खूबसूरत साथी के देखती थी.

हाकिम सिंह के पड़ोस में ही राम सिंह का घर था. राम सिंह उसी की जाति बिरादरी का था, इसलिए दोनों परिवारों में खूब पटती थी. इसी वजह से एकदूसरे के यहां आनाजाना भी खूब था. राम सिंह की ससुराल मथुरा के ही थाना शेरगढ़ के गांव राम्हेरा में थी. उन के साले का बेटा रामेश्वर उन के यहां खूब आताजाता था. वह जब भी आता, बूआ के यहां कईकई दिनों तक रुकता.

रामेश्वर शक्लसूरत से तो ठीकठाक था ही, कदकाठी से भी मजबूत था. बातें भी वह बड़ी मजेदार करता था. बूआ के यहां आनेजाने और कईकई दिनों तक रहने की वजह से रचना से भी उस की अच्छीखासी जानपहचान हो गई थी. दोनों में बातें भी खूब होने लगी थी. अपनी लच्छेदार बातों से रामेश्वर रचना को धीरेधीरे अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश करने लगा था.

कुछ ही दिनों में रचना को लगने लगा कि वह जैसा साथी चाहती है, रामेश्वर बिलकुल वैसा ही है. दिल में यह खयाल आते ही उस के मन में रामेश्वर से मिलने की बेचैनी होने लगी. इस का नतीजा यह हुआ कि रामेश्वर जब भी आता, रचना ज्यादा से ज्यादा समय राम सिंह के घर ही बिताती.

रामेश्वर बेवकूफ नहीं था कि वह रचना के दिल की बात न भांप पाता. रचना के मन में उस के लिए क्या है, इस बात का अहसास होते ही रामेश्वर फूला नहीं समाया. बात ही ऐसी थी. रचना जैसी खूबसूरत लड़की के मन में उस के प्रति चाहत जागना सामान्य बात नहीं थी. उस की जगह कोई भी होता, उस का भी यही हाल होता.

रचना के मन में उस के लिए क्या है, इस बात का अहसास होने के बाद भला रामेश्वर ही क्यों पीछे रहता. वह भी अपनी चाहत व्यक्त करने की कोशिश करने लगा यह बात चूंकि किसी के सामने कही नहीं जा सकती थी. इसलिए वह मौके की तलाश में रहने लगा. रामेश्वर की यह तलाश जल्दी ही पूरी हो गई. एक दिन वह बूआ के घर जा रहा था, तभी रास्ते में रचना मिल गई. उस समय वह स्कूल से आ रही थी.

रामेश्वर को तो जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गई. क्योंकि उस के मिलते ही रचना ने सहेलियों का साथ छोड़ दिया था. वह रामेश्वर से बातें करने में इस तरह तल्लीन हो गई कि उस की सारी सहेलियां उस से काफी आगे निकल गईं. रामेश्वर को ऐसे ही मौके की तलाश थी. उस ने मौका देख कर दिल की बात कह दी. रचना ने पहले से ही इरादा बना रखा था, इसलिए उसे हामी भरते देर नहीं लगी.

इस तरह उन दोनों की मोहब्बत की बुनियाद रखी गई तो धीरेधीरे उस पर प्यार की दीवारें भी खड़ी होने लगीं. लेकिन उन के प्यार की इमारत तैयार होती, उस के पहले ही लोगों को उन पर शक होने लगा. इस की वजह यह थी कि रचना को लगता था कि वह जो कर रही है, किसी को पता नहीं है. वह बेखौफ होती गई. उस का बेखौफ होना ही उस के प्यार की चुगली कर गया. रामेश्वर से मिलनाजुलना, हंसना खिलखिलाना तमाम लोगों की नजरों में आया तो उस की इन्हीं हरकतों से उस की मां को भी संदेह हो गया.

संदेह हुआ तो रामवती रचना पर नजर रखने लगी. जल्दी ही उसे पता चल गया कि रचना का पड़ोसी राम सिंह के रिश्तेदार रामेश्वर से कुछ ज्यादा ही मिलनाजुलना होता है. रामवती के लिए यह चिंता की बात थी. उस से भी ज्यादा चिंता की बात यह थी कि बिटिया पढ़ीलिखी होने के साथसाथ बालिग भी हो चुकी थी. अगर वह कोई उलटासीधा कदम उठा लेती तो उन के पास तमाशा देखने के अलावा दूसरा कोई उपाय नहीं था. इसलिए उस ने हाकिम सिंह से पूरी बात बता कर जल्दी से जल्दी रचना के लिए घरवर ढूंढने को कहा.

बेटी की इस हरकत के बारे में जान कर हाकिम सिंह हैरान रह गया. जिस बेटी को उस ने हमेशा पलकों पर बैठाए रखा, वही उस की इज्जत का जनाजा निकालने पर तुली थी. हाकिम सिंह ने पत्नी की बातें सुन तो ली थीं, लेकिन उसे विश्वास नहीं हुआ था कि रचना ऐसा कर सकती है. सच्चाई जानने के लिए उन्होंने रचना से पूछा तो वह साफ मुकर गई. उस ने कहा कि उस का रामेश्वर से कोई लेनादेना नहीं है.

रचना ने भले ही झूठ बोल कर बाप को संतुष्ट कर दिया था, लेकिन हाकिम सिंह को अब रामेश्वर खटकने लगा था. उस ने राम सिंह से बात की. रामेश्वर भले ही रिश्तेदार था, लेकिन हाकिम सिंह पड़ोसी ही नहीं था, बल्कि जातिबिरादरी का भी था. बात गांव और परिवार की इज्जत की थी, इसलिए उस ने रामेश्वर को काफी डांटाफटकारा. उस ने उस से यहां तक कह दिया कि वह उस के घर तभी आए, जब कोई बहुत जरूरी काम हो.

रचना पर भी सख्ती की जाने लगी, जिस से रामेश्वर से उस का मिलनाजुलना नामुमकिन सा हो गया. बंदिशों से प्यार कम होने के बजाय बढ़ता ही है. रचना और रामेश्वर का प्यार बढ़ा जरूर, लेकिन वे कुछ कर पाते, उस के पहले ही राम सिंह की मदद से हाकिम सिंह ने रचना की शादी मथुरा के ही थाना गोवर्धन के गांव मडौरा के रहने वाले पतिराम के बेटे बिहारी से तय कर दी.

दरअसल, पतिराम की बेटी राम सिंह की सलहज थी. इसी रिश्ते की वजह से राम सिंह ने यह शादी तय करा दी थी. पतिराम का खाता पीता परिवार था. उस के 3 बेटे थे, मोहर सिंह, बिहारी सिंह और रोहतान सिंह. पतिराम के पास खेती की जो जमीन थी, उस पर पतिराम और उस के बेटे मेहनत से खेती करते थे, इसलिए घरपरिवार में खुशी और समृद्धि थी.

अपहरण का कारण बना लिव इन रिलेशन – भाग 2

28 नवंबर को दोपहर 12 बजे के करीब अपहर्त्ताओं का फोन फिर आया. उन्होंने कहा, ‘‘पैसे ले कर हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पहुंचो. वहां से 5 बजे बल्लभगढ़ जाने वाली ट्रेन पकड़ो. 5 बजे के बाद हम फिर फोन करेंगे.’’

नरेंद्र ने यह जानकारी पुलिस को दी तो सादा कपड़ों में पुलिस भी उस के साथ हो गई. पुलिस ने एक बैग में नोटों के बराबर कागज की गड्डियां रख कर नरेंद्र को दे दीं. बैग ले कर वे लोग हजरत निजामुद्दीन स्टेशन से बल्लभगढ़ जाने वाली ट्रेन में बैठ गए. जिस मोबाइल पर अपहर्त्ताओं का फोन आया था, वह फोन नरेंद्र ने अपने पास रख लिया था. ट्रेन ओखला स्टेशन से निकली ही थी कि अपहर्त्ताओं का फिर फोन आ गया. अपहर्त्ताओं द्वारा उन्हें फरीदाबाद रेलवे स्टेशन पर उतरने के लिए कहा गया.

फरीदाबाद स्टेशन पर उतरने के 10 मिनट बाद उन्होंने फोन कर के नरेंद्र को बताया कि वह दोबारा ट्रेन पकड़ कर हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पहुंच जाएं. नरेंद्र ने ऐसा ही किया. हजरत निजामुद्दीन पहुंचने के बाद फिर अपहर्त्ताओं का फोन आया कि वह ट्रेन पकड़ कर वापस फरीदाबाद आ जाएं. नरेंद्र और पुलिस टीम के जवान फिर से फरीदाबाद के लिए ट्रेन में बैठ गए. वे लोग इधर से उधर भागभाग कर परेशान हो गए थे. लेकिन बच्चे की खातिर वे अपहर्त्ताओं के इशारों पर नाचने को मजबूर थे. ट्रेन में बैठने के 5 मिनट बाद ही नरेंद्र के पास फिर से फोन आया.

इस बार अपहर्त्ताओं ने कहा, ‘‘तुगलकाबाद में पैसों का बैग चलती ट्रेन से नीचे फेंक देना.’’

‘‘आप लोग कोई एक जगह बताओ, हम आप को वहीं पैसे दे देंगे. इस तरह से परेशान मत करो. हम वैसे भी बहुत परेशान हैं.’’ नरेंद्र ने गुजारिश की.

‘‘अगर बच्चा जिंदा चाहिए तो जैसा हम कहते हैं करते रहो, वरना बच्चे से हाथ धो बैठोगे.’’

‘‘नहीं, आप बच्चे को कुछ मत करना. और हां, आप लोग हमें बच्चे की आवाज सुना दो, जिस से हमें विश्वास हो जाए कि बच्चा तुम्हारे पास ही है.’’

‘‘आवाज क्या सुनाएं, पैसे मिलने पर हम बच्चा ही वापस कर देंगे. लेकिन फिलहाल वही करो, जो हम कह रहे हैं.’’

अपहर्त्ताओं के कहने पर नरेंद्र चौधरी और पुलिस वाले फिर फरीदाबाद रेलवे स्टेशन पर उतर गए. उस समय रात के 10 बज चुके थे. नरेंद्र ने स्टेशन पर इधरउधर देखा. लेकिन उन्हें कोई नजर नहीं आया. जिन नंबरों से अपहर्त्ताओं के फोन आ रहे थे, नरेंद्र ने उन्हें मिलाए. लेकिन सभी स्विच औफ मिले. इस का मतलब फोन पर बात करते ही वे उस का स्विच औफ कर देते थे.

काफी देर इंतजार करने के बाद अपहर्त्ता का फोन आया. उस ने कहा कि अब वापस हजरत निजामुद्दीन चले जाओ और तुगलकाबाद के आगे रास्ते में रुपयों का बैग फेंक देना. तुगलकाबाद से आगे किस खास जगह बैग फेंकना था, यह बात उन्होंने फोन पर नहीं बताई थी, इसलिए नरेंद्र चौधरी ने रास्ते में बैग नहीं फेंका. वह वापस हजरत निजामुद्दीन पहुंच गए.

उधर क्राइम ब्रांच की एक टीम इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस के जरिए अपहर्त्ताओं द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे फोन नंबरों की जांच में लगी थी. उन की लोकेशन तुगलकाबाद इलाके की ही आ रही थी.

हजरत निजामुद्दीन लौटने के बाद नरेंद्र चौधरी क्राइम ब्रांच औफिस पहुंचे तो इंसपेक्टर सुनील कुमार ने बताया, ‘‘हमें अपहर्त्ताओं का सुराग मिल चुका है. लेकिन अभी भी हालात गंभीर हैं, क्योंकि बच्चा उन की कैद में है. हमें उम्मीद है कि कल सुबह तक आप का भांजा आप के पास होगा.’’

इस दौरान पुलिस ने जांच में यह पाया कि अपहर्त्ता अलगअलग नंबरों से नरेंद्र चौधरी को फोन करने के बाद एक दूसरे मोबाइल नंबर पर तुरंत काल करते थे. जिस नंबर पर वे काल करते थे, उस नंबर को पुलिस ने सर्विलांस पर लगा कर ट्रेस करना शुरू कर दिया था.

उस नंबर की लोकेशन बदरपुर बार्डर स्थित बाबा मोहननगर की आ रही थी और वह नंबर सराय कालेखां निवासी रविंद्र के नाम पर लिया गया था. एक पुलिस टीम उस पते पर पहुंची तो वहां रविंद्र नहीं मिला.

पुलिस ने अपने कुछ खास मुखबिरों को भी बाबा मोहननगर इलाके में लगा दिया. इसी दौरान एक मुखबिर ने पुलिस को सूचना दी कि बाबा मोहननगर की गली नंबर 6 स्थित मकान नंबर 21 की पहली मंजिल पर कुछ लोग ठहरे हुए हैं. उन के साथ 2 औरतें और एक बच्चा भी है.

मुखबिर द्वारा दी गई जानकारी पुलिस के लिए बहुत खास थी, इसलिए इंसपेक्टर सुनील कुमार ने तुरंत एसआई रविंद्र तेवतिया, रविंद्र वर्मा, एन.एस. राणा, कांस्टेबल मोहित और मनोज को बदरपुर के बाबा मोहननगर इलाके में भेज दिया. उस समय रात के 12 बजने वाले थे. पुलिस टीम मुखबिर द्वारा बताए पते पर पहुंच गई.

पुलिस को वहां पर बबीता और अंजलि नाम की 2 युवतियां मिलीं. वहीं पर एक कोने में डरासहमा एक बच्चा भी बैठा था. पुलिस ने तुरंत उस बच्चे को अपनी सुरक्षा में ले कर उस का नाम पूछा तो उस ने अपना नाम प्रिंस बताया. प्रिंस को सहीसलामत बरामद कर के पुलिस बहुत खुश हुई.

पुलिस ने दोनों युवतियों से उन के साथियों के बारे में पूछा तो उन्होंने पुलिस को सब कुछ बता दिया. उन की निशानदेही पर पुलिस ने पहले तो बाबा मोहननगर की ही एक जगह से रविंद्र को गिरफ्तार किया. फिर उस के साथी संदीप और अनिल को सिब्बल सिनेमा के पास से धर दबोचा.

पांचों आरोपियों को पुलिस टीम क्राइम ब्रांच ले आई. इंसपेक्टर सुनील कुमार ने नरेंद्र चौधरी को फोन कर के बुला लिया. नरेंद्र और चंद्रा रात के 1 बजे ही क्राइम ब्रांच पहुंच गए. वहां प्रिंस को देख कर दोनों बहुत खुश हुए. चंद्रा उसे अपने सीने से लगा कर रोने लगी.

पुलिस ने दोनों को जब अपहर्त्ताओं से मिलाया तो नरेंद्र चौधरी देखते ही बोला, ‘‘रविंदर, तू..? तूने प्रिंस को अगवा किया था? भाई, तू इतना गिर गया कि…’’

‘‘आप इसे जानते हैं?’’ एसआई एन.एस. राणा ने बात काट कर बीच में ही पूछा.

‘‘जानता हूं सर, यह रिश्ते में मेरा भाई लगता है. इस से सारा परिवार परेशान है.’’

रविंद्र सिर झुकाए चुपचाप खड़ा सब कुछ सुनता रहा. पुलिस ने पांचों आरोपियों से पूछताछ की तो पता चला कि सारी घटना का मास्टरमाइंड खुद प्रिंस का मामा रविंद्र ही था.

रविंद्र उर्फ रवि गुर्जर सराय कालेखां में रहने वाले महिपाल का बेटा है. मातापिता के अलावा परिवार में रविंद्र के 3 भाई और भी हैं. वह सब से छोटा है. बेरोजगार रविंद्र आवारागर्दी और अपने साथियों के साथ छोटीमोटी चोरी जैसी घटनाओं को अंजाम दिया करता था. उस की इन्हीं हरकतों से परिवार के दूसरे लोग परेशान रहते थे. वह कोई अपराध कर के फरार हो जाता तो पुलिस उस के घर वालों को तंग करती थी. इसी वजह से उस के घर वालों ने उस से संबंध खत्म कर लिए थे. अनिल और संदीप उस के गहरे दोस्त थे.

22 वर्षीय अनिल दिल्ली के गौतमपुरी इलाके में रहता था. 12वीं पास करने के बाद वह रविंद्र की संगत में पड़ गया था. जबकि रविंद्र का तीसरा दोस्त संदीप दिल्ली के ही कोटला मुबारकपुर इलाके में रहता था. तीनों ही अविवाहित और आवारा थे.

रविंद्र और संदीप अकसर गौतमपुरी में अनिल के पास आते रहते थे. इसी दौरान रविंद्र की मुलाकात बबीता से हुई. बबीता अपनी बड़ी बहन अंजलि के साथ बाबा मोहननगर, बदरपुर, दिल्ली में किराए पर रहती थी. दोनों सगी बहनें मूलरूप से उत्तराखंड के कस्बा धारचुला की रहने वाली थीं.

बबीता अविवाहित थी और अंजलि शादीशुदा. किसी वजह से बबीता का अपने पति प्रमोद से संबंध टूट गया था तो वह मायके चली आई थी. करीब 8 महीने पहले अंजलि और बबीता काम की तलाश में दिल्ली आई थीं और बदरपुर क्षेत्र में दोनों एक दरजी के यहां कपड़ों की सिलाई करने लगी थीं. वहां से होने वाली आमदनी से उन का खर्च चल रहा था.

मिसकाल का प्यार – भाग 1

शाम का खाना खाने के बाद रूबी सोने के लिए अपने कमरे में जा रही थी कि उस के मोबाइल की घंटी  बज उठी. मोबाइल उस की जींस की जेब में रखा था. फोन रिसीव करने के लिए उस ने जैसे ही जेब से मोबाइल निकाला, तब तक घंटी बजनी बंद हो गई. उस ने फोन में देखा कि यह मिस काल किस की है.

जिस फोन नंबर से मिस काल आई थी, वह नंबर उस के फोन में सेव नहीं था यानी उस के लिए वह नंबर अनजाना था. वह यह सोचने लगी कि पता नहीं यह नंबर किस का है और उस ने मिस काल क्यों की है?

कभीकभी ऐसा भी होता है कि किसी को किसी से जरूरी बात करनी होती है, लेकिन इत्तफाक से उस के फोन मेें बैलेंस नहीं होता है तो मजबूरी में उसे मिस काल करनी पड़ जाती है. रूबी के दिमाग में भी यही आया कि कहीं यह मिस काल ऐसे ही व्यक्ति की तो नहीं है. उस ने तुरंत कालबैक की. कुछ सेकेंड बाद किसी आदमी ने काल रिसीव करते हुए जैसे ही ‘हैलो’ कहा, रूबी बोली, ‘‘हैलो, कौन बोल रहे हैं?’’

‘‘जी, मैं सुजाय डे बोल रहा हूं. क्या मैं जान सकता हूं कि जिन से मैं बात कर रहा हूं वह कौन हैं?’’ दूसरी तरफ से आवाज आई.

‘‘मैं रूबी बोल रही हूं. अभी मेरे फोन पर आप की मिस काल आई थी.’’

‘‘रूबीजी, सौरी. गलती से आप का नंबर लग गया होगा. मेरी वजह से आप को जो तकलीफ हुई, मुझे अफसोस है. मुझे लगता है कि आप आराम कर रही होंगी, मैं ने आप को डिस्टर्ब कर दिया.’’ सुजाय डे अपनी गलती का आभास कराते हुए बोला.

‘‘नहीं सुजायजी, ऐसी कोई बात नहीं है. कभीकभी गलती से किसी और का नंबर लग जाता है.’’

‘‘रूबीजी, आप से बात कर के लग रहा है कि आप बहुत नेकदिल हैं. आप की जगह कोई और लड़की होती तो शायद इतनी सी बात पर मुझे तमाम बातें सुना देती.’’

‘‘देखो, मेरा मानना है कि गलती हर इंसान से होती है. आप ने ऐसा जानबूझ कर थोड़े ही किया है. मुझे आप की बातों से लग रहा है कि आप भी कोई सड़कछाप नहीं, बल्कि एक समझदार इंसान हैं.’’ अब तक रूबी अपने कमरे में पहुंच चुकी थी. उसे भी उस से बात करने में इंटरेस्ट आ रहा था.

‘‘रूबीजी, जब आप इतना कह रही हैं तो मैं बताना चाहता हूं कि मैं एक बिजनैसमैन हूं. मेरे पिता की हौजरी गारमेंट्स की फैक्ट्री है. मैं उन के साथ उन के इस बिजनैस को संभाल रहा हूं. अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं ने बिजनैस संभाल लिया था. वैसे अगर आप को बुरा न लगे तो क्या मैं जान सकता हूं कि आप क्या कर रही हैं? मेरा मतलब पढ़ाई या कोई जौब?’’

‘‘अभी तो मैं बीए सेकेंड ईयर में पढ़ रही हूं. इस के अलावा टेलरिंग का काम भी सीख रही हूं.’’ इस से आगे रूबी और कुछ कहती कि उस ने अपने कमरे की तरफ मम्मी को आते देखा तो उस ने कहा, ‘‘सुजायजी, अभी कमरे में मम्मी आ रही हैं, मैं बाद में बात करूंगी.’’

‘‘ठीक है रूबीजी, ओके बाय.’’ सुजाय ने इतना ही कहा था कि दूसरी ओर से फोन कट गया.

रूबी से इतनी देर तक बात करना सुजाय को अच्छा लगा. इस बातचीत में 27 साल का सुजाय भले ही उस से उस की उम्र नहीं पूछ सका था, लेकिन उस ने अनुमान जरूर लगा लिया था कि जब वह बीए सेकेंड ईयर में पढ़ रही है तो उस की उम्र 20-22 साल तो होगी ही. और तो और वह यह तक नहीं पूछ सका था कि वह कहां की रहने वाली है और न ही वह भी उसे अपने शहर के बारे में बता पाया.

‘मम्मी आ रही हैं, अब बाद में बात करेंगे’. इन शब्दों ने फिर से बातचीत करने का रास्ता खुला छोड़ दिया था. सुजाय को भी लगा कि रूबी को उस से बात करने में कोई ऐतराज नहीं है. वरना वह काल डिसकनेक्ट करते समय इस तरह की बात क्यों कहती.

रूबी से की गई बातें रात भर सुजाय के दिमाग में घूमती रहीं. की गई बातचीत और आवाज के आधार पर उस ने रूबी की सूरत भी अपने मन में बसा ली थी.

जैसेतैसे रात कट गई. अगले दिन उस का मन बारबार कर रहा था कि वह रूबी से बात करे, लेकिन उस ने यह जान कर फोन नहीं किया कि इस समय वह शायद कालेज जाने की तैयारी कर रही होगी. इसलिए उस ने कालेज टाइम के बाद अपराह्न 3 बजे के करीब रूबी को फोन किया.

चूंकि रूबी ने रात को ही अपने मोबाइल में उस के नंबर को नाम के साथ सेव कर लिया था. फोन की घंटी बजने पर जब उस ने इनकमिंग काल के साथ अपने मोबाइल की स्क्रीन पर सुजाय का नाम आया देखा तो स्वाभाविक तौर पर उस के चेहरे पर मुसकान आ गई. वह बोली, ‘‘हाय, सुजाय कैसे हो?’’

‘‘आई एम फाइन. आप कैसी हैं? रूबीजी, कहीं इस समय आप क्लास में तो नहीं हैं? अगर बिजी होंगी तो मैं बाद में बात कर लूंगा.’’ सुजाय ने कहा.

‘‘नहीं, अब मैं कालेज से घर जा रही हूं. सौरी सुजाय, कल रात कमरे में मम्मी आ गई थीं, इसलिए बात बीच में ही छोड़नी पड़ी थी.’’ चूंकि अब रूबी के परिवार का कोई भी सदस्य उस के आसपास नहीं था, इसलिए उस ने बिना किसी झिझक के सुजाय डे से काफी देर तक बात की.

इस बातचीत में उन्होंने अपने और अपने परिवार के बारे में भी जाना. सुजाय को पता चल गया था कि मुसलिम धर्म की रूबी अविवाहिता है और कर्नाटक के जिला बगालकोट स्थित इलकल कस्बे में अपने मांबाप और भाईबहनों के साथ रहती है. उस के पिता सब्जियों के एक बड़े आढ़ती हैं.

वहीं रूबी को जानकारी हो गई कि सुजाय डे भी अविवाहित है और वह पश्चिम बंगाल के जिला 24 परगना स्थित गोबरडंग गांव का रहने वाला है. इस तरह कई महीने तक उन के बीच फोन पर बातें होती रहीं.

करीब 6-7 साल पहले केवल एक मिस काल से शुरू हुआ बातों का सिलसिला ऐसा चला कि इस का दायरा बढ़ता गया. इस के बाद तो उन के बीच अकसर बात होती रहती थी, इस की एक वजह यह भी थी कि सुजाय को पता लग चुका था कि रूबी भले ही मुसलिम परिवार की है, मगर वह एक बड़े बिजनैसमैन की बेटी है.

दूसरी ओर रूबी भी बातचीत से सुजाय की उम्र, पेशा, परिवार आदि के बारे में जान चुकी थी. फोन पर हुई बातचीत से उसे सुजाय एक अच्छा लड़का लगा था. इस के अलावा उसे यह भी जानकारी मिल चुकी थी कि वह बिजनैसमैन है.

फोन के जरिए वे एकदूसरे से अपने मन की बातें भी कहने लगे थे. बातों ही बातों में उन के बीच प्यार हो गया था.

अपहरण का कारण बना लिव इन रिलेशन – भाग 1

चंद्रा का मायके जाने का प्रोग्राम था, इसलिए उस ने घर का अगले दिन का काफी काम शाम को  ही निपटा दिया था. बचाखुचा काम अगले दिन पूरा कर के वह दोनों बच्चों सोनिया और प्रिंस को ले कर 20 नवंबर, 2013 को नोएडा से बस पकड़ कर दिल्ली आ गई. दिल्ली के सराय कालेखां में उस का मायका था. नानी के घर आ कर दोनों बच्चे बहुत खुश थे.

चंद्रा के मायके के सामने ही दिल्ली नगर निगम का पार्क था. मोहल्ले के अन्य बच्चों के साथ सोनिया और प्रिंस भी सुबह ही पार्क में खेलने के लिए निकल जाते थे. दोनों बच्चों के साथ खेलने में इतने मस्त हो जाते थे कि उन्हें खाना खाने के लिए चंद्रा को बुलाने जाना पड़ता था. चंद्रा सोचती थी कि 2-4 दिनों में वह फिर ससुराल लौट जाएगी और वहां जा कर बच्चे स्कूल के काम में लग जाएंगे, इसलिए वह बच्चों के साथ ज्यादा टोकाटाकी नहीं करती थी.

24 नवंबर की सुबह भी प्रिंस रोजाना की तरह अपनी बहन सोनिया के साथ पार्क में खेलने गया. जब वह खेलतेखेलते थक गया तो पार्क के किनारे बैठ गया और अन्य बच्चों का खेल देखने लगा. उसे वहां बैठे अभी थोड़ी देर ही हुई थी कि 2 आदमी उस के पास आ कर खड़े हो गए. उन का चेहरा रूमाल से ढका हुआ था.

उन में से एक ने प्रिंस को गोद में उठा कर उस का मुंह दबा कर उसे शौल से ढक लिया और पास खड़ी मोटरसाइकिल के पास पहुंच गए. मोटरसाइकिल को पहले से ही एक आदमी स्टार्ट किए उस पर बैठा था. वे दोनों भी मोटरसाइकिल पर उस के पीछे बैठ कर फरार हो गए.

सोनिया ने यह सब खुद अपनी आंखों से देखा, लेकिन डर की वजह से वह कुछ नहीं बोल सकी. वह भागती हुई घर पहुंची और अपनी मां चंद्रा को बताया कि कुछ लोग मोटरसाइकिल पर आए थे और भैया को पकड़ कर ले गए. उन का मुंह ढका हुआ था.

सोनिया की बात सुन कर चंद्रा जल्दी से अपने भाई नरेंद्र के पास पहुंचीं, जो अपने परिवार के साथ ऊपर वाले फ्लोर पर रहते थे. चंद्रा रोते हुए सोनिया द्वारा बताई गई बात अपने भाई नरेंद्र चौधरी को बता दी.

हकीकत जान कर नरेंद्र के भी होश उड़ गए. वह फटाफट घर से बाहर निकला और प्रिंस को सभी संभावित जगहों पर ढूंढ़ने की कोशिश की. मोहल्ले के जिन लोगों को पता चला, वे भी उसे इधरउधर खोजने निकल गए. जब काफी देर की खोजबीन के बाद भी प्रिंस का कहीं पता नहीं चला तो चंद्रा नरेंद्र के साथ सनलाइट कालोनी थाने पहुंची.

थाने में नरेंद्र चौधरी ने पुलिस को सारी बातें बता कर 7 वर्षीय प्रिंस का हुलिया बता दिया. पुलिस ने अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ भादंवि की धारा 363 के तहत अपहरण का मुकदमा दर्ज कर के प्रिंस की तलाश शुरू कर दी.

काफी कोशिशों के बावजूद पुलिस को प्रिंस का कहीं पता नहीं चल पा रहा था. चूंकि चंद्रा के पास प्रिंस की कोई तसवीर नहीं थी, इसलिए तलाश करने में और भी ज्यादा असुविधा हो रही थी. प्रिंस को गायब हुए 24 घंटे से भी ज्यादा गुजर चुके थे. बेटे का कोई सुराग न मिलने पर चंद्रा की रोरो कर आंखें सूज गई थीं.

26 नवंबर की रात करीब पौने 8 बजे पड़ोस में रहने वाले एक आदमी ने आ कर नरेंद्र चौधरी को बताया, ‘‘अभीअभी किसी ने मेरे मोबाइल पर फोन कर के पूछा है कि आप के पड़ोस में कोई बच्चा गायब हुआ है क्या?’’

नरेंद्र ने सोचा कि हो सकता है जिस आदमी ने फोन किया हो उसे प्रिंस मिल गया हो, इसलिए जिस नंबर से फोन आया था, उन्होंने वह नंबर मिलाया. लेकिन उस नंबर का मोबाइल स्विच्ड औफ था. थोड़ी देर बाद उसी पड़ोसी के नंबर पर फिर काल आई. इस बार नरेंद्र ने फोन रिसीव किया.

‘‘क्या तुम्हारा कोई बच्चा अगवा हो गया है?’’ दूसरी तरफ से फोन करने वाले ने पूछा.

‘‘हां जी, मेरा भांजा अगवा हुआ है. आप जानते हैं उस के बारे में?’’ नरेंद्र ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘अगर तुम्हें बच्चा सहीसलामत और जिंदा चाहिए तो जैसा हम कहते हैं, वैसा करो.’’ दूसरी तरफ से फोन करने वाले ने कड़कती आवाज में कहा.

‘‘हां जी, बताइए आप क्या चाहते हैं?’’ नरेंद्र ने पूछा.

‘‘फौरन 14 लाख रुपए का इंतजाम करो और बच्चा ले जाओ. और हां, एक बात ध्यान से सुनो. तुम ने ज्यादा होशियारी की या पुलिस को कुछ भी बताया तो समझो बच्चा हाथ से गया.’’

‘‘जी, मैं समझ गया. मैं पुलिस के पास नहीं जाऊंगा. आप लोग बच्चे को कुछ मत करना, मैं पैसों का बंदोबस्त कर दूंगा. लेकिन 14 लाख रुपए बहुत ज्यादा हैं. आप कुछ कम नहीं कर सकते?’’ नरेंद्र ने गुजारिश करते हुए कहा.

‘‘ठीक है, हम सोच कर बताते हैं.’’ कह कर दूसरी ओर से फोन काट दिया गया.

पैसे लेने के बाद भी अपहर्त्ता बच्चे को सहीसलामत दे देंगे, इस बात पर नरेंद्र को विश्वास नहीं था. इसलिए उस ने चुपके से फोन वाली बात पुलिस को बता दी. बच्चे के अपहरण की इस वारदात को पुलिस ने गंभीरता से ले कर क्राइम ब्रांच को सौंप दिया.

एडिशनल डीसीपी भीष्म सिंह ने इस मामले को सुलझाने के लिए एसीपी राजाराम के निर्देशन में एक पुलिस टीम बनाई, जिस में एसआई रविंदर तेवतिया, रविंद्र वर्मा, एन.एस. राना, एएसआई धर्मेंद्र, हेडकांस्टेबल विक्रम दत्त, अजय शर्मा, दिनेश, कांस्टेबल मोहित, मनोज, प्रेमपाल, सुरेंदर, राकेश, देवेंद्र, कुसुमपाल, उदयराम और सुरेंद्र आदि को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने सब से पहले उस मोबाइल फोन की जांच की, जिस से अपहर्त्ताओं ने फोन किए थे. इस से पता चला कि उस की लोकेशन सराय कालेखां की आ रही थी. बच्चा सराय कालेखां से ही उठाया गया था और उसी इलाके में अपहर्त्ताओं के फोन की लोकेशन आ रही थी. पुलिस को लगा कि बच्चे को शायद वहीं कहीं छिपा कर रखा गया है. इसलिए पुलिस ने वहां के हर घर की तलाशी लेनी शुरू कर दी. लेकिन वहां बच्चा नहीं मिला.

पुलिस के पूछने पर प्रिंस के घर वालों ने अपने एक परिचित पर शक जताया, जिस के बाद पुलिस ने उस परिचित को हिरासत में ले कर पूछताछ की. लेकिन उस से कोई सुराग हाथ नहीं लग पाया तो पुलिस ने उसे छोड़ दिया.

अगले दिन यानी 27 नवंबर को दोपहर करीब 12 बजे अपहर्त्ता ने फिर से उसी पड़ोसी के मोबाइल पर फोन किया, लेकिन इस बार उन्होंने किसी दूसरे नंबर का इस्तेमाल किया था. काल नरेंद्र चौधरी ने रिसीव की. फोन करने वाले ने नरेंद्र चौधरी से सीधे पूछा, ‘‘पैसों का इंतजाम हो गया या नहीं?’’

‘‘जी, हम ने पैसों का इंतजाम कर लिया है. आप यह बताइए कि पैसे ले कर हम कहां आएं?’’

बिना कुछ कहे ही दूसरी तरफ से फोन कट गया. बाद में नरेंद्र ने वह नंबर कई बार मिलाया, लेकिन हर बार स्विच्ड औफ मिला. अब उन लोगों के अगले फोन का इंतजार करने के अलावा नरेंद्र के पास कोई दूसरा उपाय नहीं था.

उसी दिन शाम को करीब 4 बजे फिर काल आई. इस बार भी अपहर्त्ता ने पैसों के इंतजाम के बारे में पूछा. नरेंद्र ने पैसे तैयार होने की बात कर पूछा कि पैसे कहां पहुंचाने हैं? अपहर्त्ता ने सिर्फ इतना ही कहा कि जगह बाद में बताएंगे. इस बार भी नए नंबर से काल आई थी.

नरेंद्र ने यह बात भी जांच टीम को बता दी. चूंकि अपहर्त्ताओं की तरफ से जो भी फोन आए, वह पड़ोसी के ही मोबाइल पर आए थे, इसलिए पुलिस को शक हो रहा था कि बच्चे को अगवा करने में किसी जानपहचान वाले का हाथ हो सकता है.

Best Love Affairs Crime Story In Hindi : बेस्ट लव अफेयर्स क्राइम स्टोरी हिंदी में

Best Love Affairs Crime Story In Hindi : आज कल के युवाओं के लिए प्यार मोहब्बत एक खेल बनता जा रहा है जिसमें वो अपने ही प्यार का खून बहाने से भी नहीं हिचकते. मनोहर कहानियां आपके लिए लेकर आया है ऐसी ही कुछ  Hindi Love Affairs Crime Stories जिन्हें पढ़ कर आप जान सकते है कि प्यार के नाम पर लोग कैसे कैसे धोखे देते हैं.

पढ़िए बेस्ट हिंदी लव अफेयर्स क्राइम स्टोरी.

1. कोबरा से डसवाने वाली प्रेमिका

पोस्टमार्टम के दौरान डाक्टरों को मृतक के शरीर पर किसी भी तरह के निशान नहीं मिले. लेकिन उस के दोनों ही पैरों पर एक जैसे सर्पदंश जैसे निशान जरूर नजर आए थे. जिस से कयास लगाया जा रहा था कि अंकित वहां पर पेशाब करने गाड़ी से उतरा होगा और उसी दौरान उस के पैरों में सांप ने काट लिया हो. लेकिन इस बात के भी 2 पहलू थे. अगर सांप काटता तो एक ही पैर में काटता. लेकिन उस के दोनों ही पैरों में एक जैसे ही निशान मिले थे. जिस से अंकित की मौत का मामला उलझता ही जा रहा था.

सोमवार को पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली. जिस में साफ लिखा गया था कि अंकित की मौत सांप के काटने से ही हुई थी. लेकिन इस बात को उस के घर वाले बिलकुल भी मानने को तैयार नहीं थे. कारण वही था कि अगर उस के पैर में सांप ने ही काटा था तो एक ही सांप ने उस के दूसरे पैर में ठीक उसी जगह पर कैसे काटा? उस के बाद उस की मौत का दूसरा पहलू यह भी था कि वह पिछली सीट पर क्यों बैठा पाया गया?

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2. कैसे हुईं 9 दिन में 3 बहनें गायब

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9 जनवरी, 2023 को कुर्रा के एसएचओ जयश्याम शुक्ला से शमशाद मिला. जिस लडक़े पर बेटियों के अपहरण का शक था, उस के पिता को फोन मिलाया. लडक़े के पिता ने फोन उठाया तो पीछे से छोटी बेटी मनतारा की आवाज आई. इस पर बेटी से बात कराने को कहा. बेटी ने डरी आवाज में कहा, “पापा, अब मैं वापस नहीं आ पाऊंगी.”

इस के बाद फोन कट गया. शमशाद ने बताया कि बेटी को ज्यादा बात करने से रोक दिया. बेटी को धमकाने की आवाज फोन में आ रही थी.

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3. न्यूज एंकर सलमा सुलताना मर्डर मिस्ट्री

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थोड़ी देर में जब वह केबिन में पहुंचा तो एक तीखे नाकनक्श की आकर्षक युवती को अपने चैंबर में देखा तो देखता ही रह गया. उस के मुंह से शब्द ही नहीं फूट रहे थे. मधुर उस की सुंदरता पर उसी समय मर मिटा था. मधुर को सामने खड़ा देख सलमा सुलताना ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा और प्रोफेशनल तरीके से मुसकराते हुए कहा, “मैं सिटी न्यूज चैनल से आई हूं. आप से मिलने…”

यह सुनते ही मधुर ने मुसकराते हुए कहा, “आप का बहुत बहुत स्वागत है, बताइए आप की क्या सेवा कर सकता हूं.”

सलमा जैसी बला की खूबसूरत कमसिन लडक़ी उस ने आज तक नहीं देखी थी. उसे ऐसा लगा कि ऊपर वाले ने मानो सलमा को सिर्फ उसी के लिए ही बनाया और आज खुद उस के पास इंटरव्यू के लिए भेज दिया है.

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4. प्यार की वो आखिरी रात

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चूंकि दीपक कृष्णकांत का दोस्त था, इसलिए घर के कामों के लिए वह ज्यादातर उसे ही भेजता था. घर के कामों के साथसाथ दीपक बरखा के छोटेमोटे निजी काम भी कर दिया करता था. दीपक बरखा की हमउम्र था. इसी आनेजाने में ही दीपक की नजरें बरखा के गदराए यौवन पर जम गईं.

फिर तो जब भी उसे मौका मिलता, वह बरखा से ऐसा मजाक करता कि वह शर्म से लाल हो उठती. औरतों को मर्दों की नजरें पहचानने में देर नहीं लगती. बरखा ने भी दीपक की नजरों से उस का इरादा भांप लिया था. बरखा प्यासी औरत थी. इसलिए उस ने दीपक की मजाक का कोई विरोध नहीं किया.

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5. आफरीन के प्यार में मनोहर के 8 टुकड़े

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6 जून, 2023 को मनोहर लाल अपने घर वालों से झूठ बोल कर अपने साथ दोनों खच्चरों को ले कर घर से निकला था. मनोहर लाल ने आफरीन के घर जाने से पहले ही अपने दोनों खच्चरों को सलूनी नाले के पास छोड़ दिया. फिर वह आफरीन के घर चला गया. उस के बाद उन्होंने उसे फिर से समझाने की कोशिश की. लेकिन वह उन की एक भी बात मानने को तैयार न था.

उसी से तंग आ कर उन्होंने उसे घर में ही डंडों से बुरी तरह से मारापीटा. जब मनोहर लाल बेहोश हो गया तो उन्होंने उस की हत्या कर दी. उस के बाद उस की लाश को ठिकाने लगाने के लिए लकड़ी काटने वाली आरी से उसे 8 टुकड़ों में काट डाला. फिर उस के सभी टुकड़ों को 3 बोरियों में भर कर नाले में पानी के नीचे पत्थरों से दबा दिया.

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6. प्रेमिका के 100 टुकड़े कर कुकर में उबाला

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पुलिस ने पाया कि मनोज एक साइको किलर की तरह पेश आया था. उस ने हैवानियत की सारी सीमाओं को तोड़ दिया था. मनोज साने ने अपनी लिवइन पार्टनर की न सिर्फ बेरहमी से हत्या की थी, बल्कि उस के शरीर के कई टुकड़े भी कर दिए थे. बाद में उस ने इन टुकड़ों को धीरेधीरे ठिकाने लगाना शुरू किया था.

यह भी पता चला कि शरीर के टुकड़ों को ठिकाने लगाने के लिए वह उन्हें पहले कुकर में उबालता था और उस के बाद उन्हें ठिकाने लगाता था. कुछ स्थानीय लोगों ने यह भी बताया कि उबालने के बाद वह टुकड़ों को पीस कर टायलेट में फ्लश कर देता था, ताकि इस हत्या के बारे में किसी को पता न चले. वहीं कुछ लोगों का यह भी कहना है कि वह कुत्तों को यह टुकड़े खिलाता था.

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7. प्रेमिका को गोली मार की खुदकुशी

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जैसे ही उस ने चाय का पानी और दूध गैस पर चढ़ाया, तभी उसे गोली चलने की एक तेज आवाज सुनाई दी. गोली की आवाज उसी केबिन से आई थी जहां पर युवक और और युवती बैठ कर आपस में बातचीत कर रहे थे. मनीष और रेस्टोरेंट में मौजूद कर्मचारी जब वहां पर पहुंचे युवक और युवती के बीच तेज लड़ाई की आवाजें और छीनाझपटी, आपस में गुत्थमगुत्था हो रही थी. जबकि युवती के सिर से काफी खून भी बह रहा था.

युवक ने जब होटल के कर्मचारियों को अपनी ओर आते देखा तो वह दौड़ कर केबिन के शौचालय के अंदर घुस गया और उस ने बाथरूम में घुसते ही शौचालय का दरवाजा भीतर से बंद कर लिया, तभी एक फायर की आवाज बाथरूम के अंदर से आई.

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8. सूटकेस में मिली लाश का रहस्य

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भीकू तुरंत नहर में उतर गया. उस ने सूटकेस को पास आने दिया. जैसे ही सूटकेस पास आया, उस ने सूटकेस को पकड़ लिया और उसे खींच कर किनारे पर ले आया. उस ने ऊपर आ कर सूटकेस बाहर खींचा तो वह नहीं खींच पाया. जयपाल ने सूटकेस बाहर निकालने में उस की मदद की.

“बहुत भारी है यार, लगता है नोटों से भरा हुआ है.” भीकू सांसें दुरुस्त करता हुआ बोला.

“खोल कर देख.”

भीकू ने सूटकेस के लौक देखे. दोनों लौक खुले हुए थे. उस ने लौक सरका कर जैसे ही ढक्कन उठाया, उस के मुंह से चीख निकल गई. जयपाल भी उछल कर खड़ा हो गया. सूटकेस में एक जवान युवती की लाश थी.

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9. सिरफिरे का प्यार : बना गले की फांस

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सड़क पर पड़ी वह खूबसूरत महिला दर्द से बुरी तरह छटपटाते हुए बिलखबिलख कर चीख रही थी. उस के शरीर से गंधनुमा धुआं सा निकल रहा था. तड़पते हुए वह खुद को अस्पताल ले जाने की गुहार लगा रही थी. उस की सफेद रंग की स्कूटी वहीं बराबर में खड़ी थी. उस के चेहरे पर असीम दर्द था. मौके पर लोगों की भीड़ तो एकत्र थी लेकिन बदले जमाने की फितरत के हिसाब से कोई भी उस की मदद के लिए आगे नहीं आ रहा था.

लोग तमाशबीन बने खड़े थे. तभी एक महिला भीड़ को चीरते हुए आगे आई और लोगों को देख कर बोली, ‘‘अरे, एसिड अटैक हुआ है इस बेचारी पर. शर्म आनी चाहिए तुम सब को, एक औरत तड़प रही है और तुम सब तमाशा देख रहे हो. तुम्हारी बहनबेटी होती तब भी ऐसे ही तमाशा देखते क्या?’’

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10. दिल्ली का साहिल साक्षी केस : प्यार पर नफरत के वार

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दूसरी तरफ साहिल हारे हुए शिकारी की तरह तिलमिलाने लगा था, चीखा, “हरामजादी, रंडी कहीं की, इश्क करेगी? अभी बताता हूं, तूने अभी तक मेरा गुस्सा नहीं देखा है. कल तक प्यार से समझा रहा था, फिर भी तू नहीं मानी, अब देख मैं क्या करता हूं…”

साहिल ने फुरती से अपनी जींस पैंट में से बड़ा चाकू निकाल लिया. बाएं हाथ से बाल समेत उस की गरदन दबोच ली, दाएं हाथ में चाकू से दनादन उस पर वार करने लगा. साक्षी चीखने लगी. उस की चीख सुन कर पास से गुजर रहे कुछ लोग ठिठक गए.

उन्होंने स्ट्रीट लाइट की रोशनी में जो कुछ देखा, वह बेहद दर्दनाक था. लेकिन सभी बुत बने रहे, किसी ने उसे रोकने के लिए मुंह से आवाज तक नहीं निकाली. एकदम फिल्मी दृश्य की तरह साहिल चाकू से साक्षी को गोदता रहा. साक्षी का शरीर बेजान हो गया फिर भी चाकुओं का वार थमा नहीं. तीन…चार… पांच और चाकुओं के वार की ये गिनती आखिरी में 40 तक जा पहुंची. साक्षी के शरीर से खून निकल कर जमीन पर फैलने लगा.

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11. दगा दे गई सोशल मीडिया की गर्लफ्रैंड

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16 मई, 2023 की शाम करीब 4 बजे इसी सड़क पर एक घबराई हुई खूबसूरत युवती तेजी से स्कूटी दौड़ाती हुई चली जा रही थी. उस युवती का एक परिचित युवक पीछा कर रहा था. इसलिए वह बारबार पीछा कर रहे उस युवक को साइड मिरर में देख रही थी.

उस की घबराहट और बढ़ती जा रही थी, क्योंकि पीछा कर रहे युवक के इरादे उसे ठीक नहीं लग रहे थे. इसी दौरान उस ने साइड मिरर में एक कार देखी. कार उस ने पहचान ली, क्योंकि वह उस के एक परिचित की थी. कार को देख कर उस की घबराहट खत्म हो गई और वह मुस्कराने लगी.

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