जल्लाद डाक्टर ने किए लाश के 500 टुकड़े

साल 1981 में राजतिलक द्वारा निर्देशत एक फिल्म आई थी ‘चेहरे पे चेहरा’. यह एक थ्रिलर और  हौरर फिल्म थी. फिल्म के केंद्रीय पात्र संजीव कुमार थे, जिन्होंने एक वैज्ञानिक और डा. विल्सन का किरदार निभाया था. विल्सन एक ऐसा कैमिकल ईजाद कर लेता है, जो आदमी की बुराइयों को खत्म कर सकता है. इस कैमिकल का प्रयोग वह सब से पहले खुद पर करता है, लेकिन इस का असर उलटा हो जाता है. विल्सन के भीतर की बुराइयों का प्रतिनिधित्व करता एक और किरदार ब्लैक स्टोन उस की अच्छाइयों पर हावी होने लगता है.

सी ग्रेड की यह फिल्म हालांकि दर्शकों ने ज्यादा पसंद नहीं की थी, लेकिन फिल्म यह संदेश देने में सफल रही थी कि आदमी के अंदर अच्छाइयां और बुराइयां दोनों मौजूद रहती हैं. इन में से जिसे अनुकूलताएं मिल जाती हैं, वह बढ़ जाती हैं.

मध्य प्रदेश के होशंगाबाद के एक डाक्टर सुनील मंत्री की कहानी या किरदार काफी हद तक विल्सन के दूसरे चेहरे ब्लैक स्टोन से मिलताजुलता है, जिस के भीतर का हैवान या पिशाच बगैर कोई कैमिकल दिए ही जाग गया था.

होशंगाबाद के आनंदनगर में रहने वाले इस हड्डी रोग विशेषज्ञ की पोस्टिंग नजदीक के कस्बे इटारसी के सरकारी अस्पताल में थी. सुनील मंत्री पोस्टमार्टम भी करता था, लिहाजा लाशों को चीरफाड़ कर मौत की वजह निकालना उस का काम था. अकसर होशंगाबाद-इटारसी अपडाउन करने वाले इस डाक्टर की जिंदगी की कहानी भी हिंदी फिल्मों सरीखी ही है.

अब से कोई सवा साल पहले तक सुनील मंत्री की जिंदगी में कोई कमी नहीं थी. उस के पास वह सब कुछ था, जिस की तमन्ना हर कोई करता है. इज्जतदार पेशा, खुद का मकान व कारें और सुंदर पत्नी सुषमा के अलावा बेटा श्रीकांत और बेटी जो नागपुर के एक नामी कालेज में पढ़ रही है. बेटा श्रीकांत भी मुंबई की एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता है.

वक्त काटने और कुछ और पैसा कमाने की गरज से सुषमा ने साल 2010 में एक बुटीक खोला था. इसी दौरान उन के संपर्क में रानी पचौरी नाम की महिला आई, तो उन्होंने उसे भी अपने बुटीक में काम पर लगा लिया.  रानी मेहनती और ईमानदार थी, इसलिए देखते ही देखते सुषमा की विश्वासपात्र बन गई. सुषमा भी उसे घर के सदस्य की तरह मानने लगी थी.

सुनील मंत्री की दिलचस्पी बुटीक में कोई खास नहीं थी लेकिन जब से उस ने रानी को देखा था, तब से उस के होश उड़ गए थे. रानी का पति वीरेंद्र उर्फ वीरू पचौरी एक तरह से निकम्मा और बेरोजगार था, जो कभीकभार छोटेमोटे काम कर लिया करता था. नहीं तो वह पत्नी की कमाई पर ही आश्रित था. वीरू जैसे पतियों की समाज में कमी नहीं है. ऐसे लोगों के लिए एक कहावत है, ‘काम के न काज के, दुश्मन अनाज के.’

रानी जैसी पत्नियों की भी यह मजबूरी हो जाती है कि वे ऐसे पति को ढोती रहें, जो कहने भर का पति होता है. उस से उन्हें कुछ नहीं मिलता सिवाय एक सामाजिक सुरक्षा के, इसलिए वह वीरू को ढो ही रही थी.

पत्नी की मौत के बाद डाक्टर ने  रानी में ढूंढा मन का सुकून

यह कोई हैरानी या हर्ज की बात नहीं थी, पर ऐसे मामलों में जैसा कि अकसर होता है, इस में भी हुआ यानी कि डा. सुनील मंत्री और रानी के बीच भी सैक्स की खिचड़ी पकने लगी. चूंकि रानी के घर आनेजाने की कोई रोकटोक नहीं थी, इसलिए दोनों को साथ वक्त गुजारने में कोई दिक्कत नहीं आती थी.

उस दौरान डा. सुनील मंत्री का वक्त कैसे गुजरता था, यह तो कोई नहीं जानता लेकिन 7 अप्रैल, 2017 को डाक्टर की पत्नी सुषमा की भोपाल के बंसल हौस्पिटल में मौत हो गई. पत्नी के देहांत के बाद तनहा रह गए डा. सुनील मंत्री का अधिकांश वक्त रानी के साथ ही गुजरने लगा.

सुषमा के बाद दिखावे के लिए बुटीक का काम रानी ने संभाल लिया था, लेकिन यह कोई नहीं जानता था कि रानी ने और कई चीजों की डोर अपने हाथ में ले ली थी. जब तक सुषमा थी तब तक रानी का पति वीरू रानी को उस के यहां आनेजाने पर कोई ऐतराज नहीं जताता था लेकिन बाद में रानी पहले से कहीं ज्यादा वक्त बुटीक में बिताने लगी तो उस का माथा ठनका, जो स्वाभाविक बात थी. क्योंकि सुनील मंत्री अब अकसर अकेला रहता था.

रानी जब अपने घर में होती थी तब भी डा. सुनील मंत्री से फोन पर लंबीलंबी और अंतरंग बातें करती रहती थी. वीरू को शक तो था कि डाक्टर साहब और रानी के बीच प्यार की खिचड़ी पक रही है लेकिन उस का शक तब यकीन में बदल गया जब उस ने खुद अपने कानों से डाक्टर और रानी के बीच हुई अंतरंग बातचीत को सुन लिया.

दरअसल हुआ यह था कि मोबाइल फोन खराब हो जाने के कारण रानी ने अपना सिम कार्ड कुछ दिनों के लिए वीरू के फोन में डाल लिया था. न जाने कैसे बातचीत की रिकौर्डिंग वीरू के फोन में रह गई. वही रिकौर्डिंग वीरू ने सुन ली तो उस का खून खौल उठा.

पहले तो उस के जी में आया कि बेवफा बीवी और उस के आशिक डाक्टर का टेंटुआ दबा दे, पर जब उस ने धैर्य से विचार किया तो बस इतना सोचा कि क्यों न डा. सुनील मंत्री को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बना कर रोज एक अंडा हासिल किया जाए. क्योंकि वह अगर डा. सुनील मंत्री को मारता या हल्ला मचाता तो उस के हाथ कुछ नहीं लगना था, उलटे लोग यही कहते कि गलती डाक्टर के साथसाथ रानी की भी थी.

लिहाजा एक दिन वीरू ने सुनील मंत्री को बता दिया कि वह उस के और अपनी पत्नी रानी के अवैध संबंधों के बारे में जान गया है और इस की वाजिब कीमत चाहता है. इस पेशकश पर शुरू में सुनील मंत्री को कोई नुकसान नजर नहीं आया, उलटे फायदा यह दिखा कि वीरू का डर खत्म हो गया.

यानी वह अपनी मरजी से ब्लैकमेल होने को तैयार हो गया. शुरू में सुनील मंत्री जिसे मुनाफे का सौदा समझ रहा था, वह धीरेधीरे बहुत घाटे का साबित होने लगा. क्योंकि वीरू अब जब चाहे तब उसे ब्लैकमेल करने लगा था. उस का मुंह सुरसा की तरह खुलता और बढ़ता जा रहा था.

डाक्टर की इस दिक्कत या कमजोरी का वीरू पूरा फायदा उठा रहा था. डाक्टर अगर पुलिस में रिपोर्ट भी करता तो बदनामी उसी की ही होती. लिहाजा वह रानी को अपने पहलू में बनाए रखने के लिए अपनी गाढ़ी कमाई वीरू को सौंपने को मजबूर था.

वक्त गुजरता रहा और वीरू डा. सुनील मंत्री को अपने हिसाब से निचोड़ता रहा. इस से डाक्टर को लगने लगा कि ऐसे तो वह एक दिन कंगाल हो जाएगा और रानी भी हाथ से निकल जाएगी.

यह डा. सुनील मंत्री की 56 साला जिंदगी का बेहद बुरा वक्त था. रानी से मिल रहे देह सुख की कीमत जब उस की हैसियत पर भारी पड़ने लगी तो उस ने एक बेहद खतरनाक फैसला ले लिया. चेहरे पे चेहरा फिल्म का हैवान ब्लैक स्टोन उस के भीतर जाग उठा और उस ने वीरू की इतनी नृशंस तरीके से हत्या कर डाली कि देखने सुनने वालों की रूह कांप उठे. हर किसी ने यही कहा कि यह डाक्टर है या जल्लाद.

डाक्टर बना जल्लाद

डा. सुनील मंत्री फंस इसलिए गया था कि उस के और रानी के नाजायज ताल्लुकातों के सबूत वीरू के पास थे, नहीं तो तय था कि वह रानी को छोड़ देता. ये सबूत जो कभी सार्वजनिक या उजागर नहीं हो सकते, अब पुलिस के पास हैं.

वीरू की ब्लैकमेलिंग से आजिज आ गए सुनील मंत्री ने उसे अपने यहां बतौर ड्राइवर की नौकरी पर रख लिया. पगार तय की 16 हजार रुपए महीना.

इस जघन्य हत्याकांड का एक विरोधाभासी पहलू यह भी चर्चा में है कि डाक्टर ने वीरू को समझाया था कि तुम मेरे ड्राइवर बन जाओ तो चौबीसों घंटे मुझे देखते रहोगे. इस से तुम्हारा शक दूर हो जाएगा.

जबकि हकीकत में डा. सुनील मंत्री वीरू की हत्या का खाका काफी पहले से ही दिमाग में बना चुका था. उसे दरकार थी तो बस एक अदद मौके की, जिस से वीरू नाम की बला से हमेशाहमेशा के लिए छुटकारा पाया जा सके. 3 फरवरी, 2019 की सुबह वीरू डा. सुनील को कार से होशंगाबाद से इटारसी ले कर गया था.

दोनों शाम कोई 4 बजे वापस लौट आए. लेकिन वीरू अपने घर नहीं पहुंचा. दूसरे दिन रानी ने फोन पर यह खबर अपने ससुर लक्ष्मीकांत पचौरी को दी.

5 फरवरी की सुबह लक्ष्मीकांत होशंगाबाद आए और बेटे की ढुंढाई शुरू की. रानी ने उन्हें इतना ही बताया था कि वीरू ने 2 दिन पहले ही डा. सुनील मंत्री के यहां ड्राइवर की नौकरी शुरू की है.

यह बात सुन कर वह सीधे डा. सुनील मंत्री की कोठी पर जा पहुंचे और बेटे वीरू की बाबत पूछताछ की तो डाक्टर ने उन्हें गोलमोल जवाब दे कर टरकाने की कोशिश की. इस पर बुजुर्ग और अनुभवी लक्ष्मीकांत का माथा ठनकना स्वाभाविक था. उन्होंने डाक्टर से उस के घर के अंदर जाने की जिद की तो डाक्टर ने अचकचा कर मना कर दिया.

इस पर दोनों में झगड़ा शुरू हो गया. बेटे की चिंता में हलकान हुए जा रहे लक्ष्मीकांत डाक्टर पर वीरू को गायब करने का आरोप लगा रहे थे और डाक्टर उन के इस आरोप को खारिज कर रहा था. झगड़ा होते देख वहां भीड़ जमा हो गई. इन में कुछ डा. सुनील मंत्री के पड़ोसी भी थे, जिन की नजरों में सुनील मंत्री पिछले 2 दिन से संदिग्ध हरकतें कर रहा था.

इत्तफाक से इसी दौरान पुलिस की एक गश्ती गाड़ी वहां से गुजर रही थी, जिस के पहिए यह झगड़ा देख रुक गए.

आखिर माजरा क्या है, यह जानने के लिए पुलिस वाले गाड़ी से नीचे उतरे और बात को समझने की कोशिश करने लगे. लक्ष्मीकांत ने फिर आरोप दोहराते हुए कहा कि डाक्टर ने उन के बेटे को गायब कर दिया है और अब कोठी के अंदर भी नहीं देखने दे रहा.

इस पर पुलिस वालों को हैरानी हुई कि अगर डाक्टर ने कुछ नहीं किया है तो उसे किसी के अंदर जाने पर इतना सख्त ऐतराज या जिद नहीं करनी चाहिए. लिहाजा खुद पुलिस वालों ने अंदर जाने का फैसला ले लिया.

कीमे के रूप में मिली लाश

अंदर जाने के बाद सख्त दिल पुलिस वाले भी दहल उठे, क्योंकि ड्राइंगरूम में जगहजगह खून बिखरा पड़ा था. इतना ही नहीं, मांस के छोटेछोटे टुकड़े भी यहांवहां बिखरे पड़े थे मानो यह आलीशान कोठी कोई गलीकूचे की मटन शौप हो. पुलिस वालों के साथ अंदर गए लक्ष्मीकांत पहले से ही किसी अनहोनी की आशंका से ग्रस्त थे. उन्होंने खोजबीन की तो एक ड्रम में उन्हें एक कटा हुआ सिर दिखा, जिसे देख वे दहाड़ मार कर रोने लगे. वह सिर उन के जवान बेटे वीरू का था.

जब पुलिस वालों ने घर का और मुआयना किया तो उन्हें टौयलेट में 4 आरियां मिलीं. इन में से 2 आरियों के बीच वीरू के एक पैर के दरजन भर टुकड़े फंसे हुए थे. जब ड्रम को गौर से देखा गया तो एसिड में वीरू के कटे सिर के साथसाथ हाथपैर भी पडे़ दिखे. डाक्टरों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले दस्ताने भी खून से सने हुए थे. इस हैवान डाक्टर ने वीरू के शरीर के 4-6 नहीं बल्कि करीब 500 टुकड़े कर डाले थे.

अब बारी सुनील मंत्री की थी, जिस ने शराफत से अपना जुर्म स्वीकारते हुए बताया कि वह वीरू की ब्लैकमेलिंग से आजिज आ गया था, इसलिए उस ने उस की हत्या कर डाली.

दरअसल, 3 फरवरी को वीरू के दांत में दर्द था. यह बात उस ने डा. सुनील मंत्री को बताई तो उस ने इटारसी जाते वक्त एक गोली दी. लेकिन होशंगाबाद वापस आने के बाद वीरू ने फिर दांत दर्द की बात कही तो डा. सुनील के अंदर बैठे ब्लैक स्टोन ने उसे बेहोशी का इंजेक्शन लगा दिया. इसी बेहोशी में उस ने वीरू का गला रेता और फिर उस की लाश के टुकड़े करने शुरू कर दिए.

एक दिन में लाश को काट कर टुकड़ेटुकड़े कर डालना मुश्किल काम था, इसलिए दूसरे दिन भी वह यही करता रहा और इटारसी अस्पताल भी गया था. लेकिन जल्द ही वापस आ गया था. जाते समय उस ने वीरू के खून से सने कपड़े बाबई के पास फेंक दिए थे. दोनों दिन उस ने घर की लाइटें नहीं जलाई थीं ताकि कोई मरीज न आ जाए. दूसरे दिन लाश के टुकड़े वह दूसरी मंजिल पर ले गया था.

सुनील मंत्री अपनी योजना के मुताबिक काफी दिनों से एसिड इकट्ठा कर रहा था. चूंकि वह डाक्टर था, इसलिए दुकानदार उस पर शक नहीं कर रहे थे और वह भी पहले से ही बता देता था कि वह स्वच्छ भारत अभियान के तहत एसिड खरीद रहा है. डाक्टर होने के नाते सुनील बेहतर जानता था कि लाश के टुकड़े गल कर नष्ट हो जाएंगे और किसी को हवा भी नहीं लगेगी.

लेकिन जब हवा होशंगाबाद, इटारसी से भोपाल होते हुए देश भर में फैली तो सुनने वालों का कलेजा मुंह को आ गया कि डाक्टर ऐसा भी होता है. ऐसा हो चुका था और डा. सुनील मंत्री खुद पुलिस वालों को बता भी रहा था कि ऐसा कैसे और क्यों हुआ.

इस खुलासे पर सनसनी मची तो होशंगाबाद के तमाम आला पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों के आते ही डाक्टर की हालत खस्ता हो गई और वह ऊटपटांग हरकतें करने लगा. कभी वह गुमसुम बैठ जाता था तो कभी रोने लगता था. कहीं वह कुछ उलटासीधा न कर बैठे, इस के लिए उस के इर्दगिर्द दरजन भर पुलिसकर्मी तैनात कर दिए गए और उस का पैर जंजीर से बांध दिया गया.

यह बात सच है कि डा. सुनील अपना दिमागी संतुलन अस्थाई रूप से खो बैठा था. उस की शुगर और ब्लडप्रेशर दोनों बढ़ गए थे और वह सोडियम पोटैशियम इम्बैलेंस का भी शिकार हो गया था, जिस में मरीज कुछ भी बकने लगता है और ऊटपटांग हरकतें करनी शुरू कर देता है.

इन बीमारियों पर काबू पाया गया तो एक के बाद एक वीरू की हत्या से ताल्लुकात रखते राज खुलते गए कि इस की आखिर वजह क्या थी.

फंस ही गया डाक्टर चक्रव्यूह में

छानबीन और जांच में पुलिस वालों की जानकारी में जब डाक्टर की पत्नी सुषमा मंत्री की मौत संदिग्ध होनी पाई गई तो एक टीम भोपाल के नामी बंसल हौस्पिटल भी पहुंची. दरअसल, सुषमा की मौत भी सुनील के लगाए गए इंजेक्शन के रिएक्शन से हुई थी. इंजेक्शन लगाने के बाद सुषमा के शरीर में संक्रमण फैलने लगा तो सुनील उसे भोपाल ले कर आया था. इस संदिग्ध मौत के बाद भी सुषमा का पोस्टमार्टम क्यों नहीं किया गया था, इस बात की जांच पुलिस कथा लिखे जाने तक कर रही थी.

रानी के बयान और किरदार दोनों अहम हो चले थे, लेकिन पूछताछ में वह अनभिज्ञता जाहिर करती रही. पुलिस ने जब सुनील मंत्री से उस के संबंधों के बारे में पूछा तो वह खामोश रही. इस से पुलिस को रानी की भूमिका ज्यादा संदिग्ध नजर आई, जिस की जांच पुलिस कथा लिखने तक कर रही थी. सुनील मंत्री से उस की फोन पर हुई बात की रिकौर्डिंग भी पुलिस ने हासिल कर ली.

पुलिस ने मामला दर्ज कर के वीरू की टुकड़ेटुकड़े बनी लाश पोस्टमार्टम के बाद उस के परिजनों को सौंप दी, जिस का दाह संस्कार भी हो गया. कुछ सामान्य होने के बाद सुनील कहने लगा कि हां, उस ने वीरू की हत्या की थी लेकिन अब अदालत में उस का वकील बोलेगा.

रिमांड पर लिए जाने के बाद वह अदालत में असामान्य दिखा, जिस से उस की हिरासत की अवधि लगातार बढ़ाई जा रही है. हालांकि सच यह है कि किसी अंतिम निष्कर्ष पर पुलिस तभी पहुंचेगी, जब रानी मुंह खोलेगी. पुलिस सुषमा की मौत को भी संदिग्ध मान कर काररवाई कर रही है कि कहीं वह भी हत्या तो नहीं थी.

सब कुछ मुमकिन है लेकिन जिस तरह वीरू की हत्या डा. सुनील मंत्री ने की वह जरूर हैरत वाली बात है कि कोई डाक्टर जो जिंदगियां बचाता है, वह इतने वीभत्स, हिंसक और जघन्य तरीके से किसी की जिंदगी भी छीन सकता है.

फारेस्ट औफीसर का कातिल प्रेमी – भाग 3

एटीएम से आरोपी तक पहुंची पुलिस

जबकि राहुल जिंदा है और फोन बंद कर के फरार है. अब तक जो पुलिस को शक था, राहुल के इस तरह फोन बंद कर के लापता होने से विश्वास में बदलने लगा था. इसलिए पुलिस ने अपना पूरा ध्यान उसी पर केंद्रित कर दिया. पर उस का पता कैसे चले, क्योंकि उस ने अपना फोन तो बंद कर रखा था.

इस बीच पुलिस ने पता किया कि राहुल का खर्च कैसे चलता था. घर वाले पैसे देते थे तो कैश देते थे या बैंक के माध्यम से भेजते थे. पूछने पर घर वालों ने बताया था कि वह अपना खर्च चलाने के लिए प्राइवेट नौकरी करता था. उस का बैंक में अकाउंट है, कंपनी का वेतन उसी में आता था.

राहुल

पुलिस का सोचना था कि राहुल अगर जिंदा है तो उसे खर्च के लिए पैसों की जरूरत तो पड़ती ही होगी. खर्च के लिए वह एटीएम से पैसे जरूर निकालता होगा. पुलिस ने जब इस बारे में बैंक से पता किया तो पता चला कि राहुल ने अपने बैंक अकाउंट से एटीएम द्वारा दिल्ली से पैसे निकाले थे.

राहुल को दिल्ली में कैसे पकड़ा जाए, पुणे पुलिस इस बात पर विचार कर ही रही थी कि उस का फोन कुछ देर के लिए चालू हुआ. लेकिन थोड़ी हो देर में फिर स्विच औफ हो गया. पुलिस ने जब उस की लोकेशन पता की तो वह कोलकाता की थी. पता चला कि उस ने अपने एक रिश्तेदार को फोन कर के बात की थी.

उस रिश्तेदार से राहुल ने क्या बात की थी, जब पुलिस ने रिश्तेदार से पूछा तो उस ने बताया कि राहुल कह रहा था कि अब वह पुणे कभी लौट कर नहीं आएगा. क्योंकि उस का उस के एक दोस्त से झगड़ा हो गया है. इसलिए उस ने पुणे हमेशा हमेशा के लिए छोड़ दिया है.

राहुल की लोकेशन कोलकाता की मिली थी. इस से पहले कि पुलिस कोलकाता जाती या वहां की पुलिस से संपर्क करती, राहुल की लोकेशन मुंबई की मिली. फिर तो पुणे पुलिस ने राहुल को फोन की लोकेशन के आधार पर मुंबई के अंधेरी स्टेशन से 27 जून, 2023 की रात को गिरफ्तार कर लिया.

क्या इसी को कहते हैं प्यार

राहुल को पुणे ला कर अदालत में पेश कर के पूछताछ के लिए 3 जुलाई तक के लिए रिमांड पर लिया गया. पूछताछ में राहुल ने दर्शना की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने अपनी बाइक और वह कटर भी बरामद करा दिया था, जिस का उपयोग उस ने दर्शना की हत्या में किया था.

पुलिस कस्टडी में आरोपी राहुल

राहुल ने हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया तो एसपी (ग्रामीण) अमित गोयल की मौजूदगी में राहुल को पत्रकारों के सामने पेश किया गया, जहां उस ने दर्शना की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

साथसाथ पढ़ाई करते और उठतेबैठते राहुल हंडोरे को दर्शना से प्यार हो गया था. पर उस ने कभी अपने प्यार का इजहार दर्शना से किया नहीं था. क्योंकि उसे लगता था कि जब उचित समय आएगा, तब वह दर्शना से दिल की बात कह देगा. उस के लिए उचित समय तब आता, जब उस की कहीं नौकरी लग जाती.

दर्शना उस के मन की बात जानती थी. उसे भी राहुल पसंद था. पर उस के मन में यही था कि जब दोनों की नौकरी लग जाएगी, तब दोनों शादी कर लेंगे. दोस्ती दोनों में थी ही, वे एकदूसरे से हर बात उसी तरह शेयर करते थे, जैसे कोई अपने बौयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड से करता है.

जब दर्शना की नौकरी लग गई और राहुल की नहीं लगी तो दर्शना राहुल से दूर होने लगी. घर वालों ने उस के लिए लड़का भी देखना शुरू कर दिया. जब इस बात की जानकारी राहुल को हुई तो उस ने दर्शना के सामने ही उस के मम्मीपापा से विवाह के लिए बात की.

दर्शना के मम्मीपापा ने उस के साथ दर्शना का विवाह करने से साफ मना कर दिया. इस के बाद उस ने दर्शना की ओर देखा तो दर्शना की नजरों में उसे पैरेंट्स की बात में सहमति नजर आई. इस तरह राहुल ने दर्शना के साथ विवाह का जो सपना सालों से संजोया था, वह टूट गया. इस से राहुल को बेइज्जती सी महसूस हुई.

वह वहां से तो चुपचाप चला आया, पर उस ने मन ही मन दर्शना से बदला लेने की ठान ली. उस ने तय कर लिया कि दर्शना उस की नहीं तो वह उसे किसी और की भी नहीं होने देगा. अब वह मौके की तलाश में था.

11 जून को पुणे में दर्शना को कोचिंग सेंटर वालों ने सम्मानित करने के लिए बुलाया तो राहुल भी वहां उस से मिलने गया. अगले दिन उस ने दर्शना के साथ वेल्हा तहसील स्थित रायगढ़ और सिंहगढ़ किला घूमने का आयोजन किया तो दर्शना उस के साथ जाने के लिए खुशीखुशी तैयार हो गई. क्योंकि अच्छा दोस्त होने की वजह से वह उस पर आंख मूंद कर विश्वास करती थी. यह बात दर्शना ने अपने दोस्तों और घर वालों को बता भी दी थी.

अगले दिन यानी 12 जून को दोनों सुबह राजगढ़ और सिंहगढ़ के किलों की ट्रैकिंग के लिए निकल गए. राजगढ़ के किले के अंदर एकांत पा कर राहुल ने एक बार फिर दर्शना से विवाह की बात छेड़ दी. तब दर्शना ने साफ कह दिया कि वह वहीं विवाह करेगी, जहां उस के घर वाले चाहेंगे.

राहुल तो ठान कर ही आया था कि उसे अपने अपमान का बदला लेना है, इसीलिए तो वह दर्शना की हत्या करने के लिए हथियार के रूप में कटर ले कर आया था. दर्शना के मना करते ही राहुल ने उस पर कटर से हमला बोल दिया और उस की हत्या कर दी.

दर्शना की हत्या करने के बाद राहुल ने उस की लाश उठा कर पहाड़ी के नीचे तलहटी में फेंक दी. उसी के साथ उस के फोन, चश्मा, जूते आदि भी फेंक दिए और फिर वहां से अपने फोन को स्विच्ड औफ कर के अकेला ही लौट आया. कमरे पर बाइक खड़ी कर के वह फरार हो गया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने 3 जुलाई, 2023 को राहुल को फिर अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

फारेस्ट औफीसर का कातिल प्रेमी – भाग 2

11 जून को कोचिंग सेंटर वालों ने दर्शना को सम्मानित किया. सम्मानित करने के बाद कोचिंग के प्रबंधक ने उस से अपने बारे में कुछ कहने के लिए कहा तो दर्शना ने जो बातें कही और जिस तरह कही, वे कोचिंग में पढऩे वाले बच्चों के लिए प्रेरणादायक तो थी ही, उस की इन बातों से वे सभी भी बहुत प्रभावित हुए जो निम्नमध्यम वर्ग के लोगों को कुछ नहीं समझते.

उस की बातों से उन लोगों की समझ में आ गया कि ज्ञान सचमुच बलवान बनाता है. इस से दर्शना को और तमाम लोग भी जान गए. दर्शना द्वारा कही गई बातों का लोगों ने वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर भी वायरल किया, जिस से दर्शना का तो मान बढ़ा ही, उस संस्थान की भी प्रतिष्ठा बढ़ गई, जहां पढ़ कर दर्शना ने यह कामयाबी हासिल की थी. इस के बाद दर्शना पुणे में ही अपनी सहेली के यहां रुक कर दोस्तों से मिलती रही.

12 जून को उस ने अपनी सहेली से कहा कि आज वह अपने दोस्त राहुल हंडोरे के साथ राजगढ़ और सिंहगढ़ का किला देखने जा रही है. उस ने यह बात फोन कर के अपने पैरेंट्स को भी बता दी थी. दर्शना को किला देखने जाने से किसी ने मना नहीं किया, क्योंकि सभी जानते थे कि दर्शना ने खूब मेहनत की है, तभी उसे यह सफलता मिली है. इसलिए थोड़ा घूमेगी फिरेगी तो उस का मन भी बहल जाएगा और पढ़ाई की थकान भी उतर जाएगी.

दर्शना जिस राहुल हंडोरे के साथ जा रही थी, वह वही राहुल है, जिस के साथ वह अहमदनगर में पढ़ी थी और पुणे में सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए आई थी. उस के साथ कहीं जाने में घर वालों को भी कोई ऐतराज नहीं था, क्योंकि दोनों पुराने और घनिष्ठ मित्र थे. फिर अब दर्शना खुद हर तरह सक्षम और समझदार हो गई थी. वह खुद अपना अच्छाबुरा सोच सकती थी.

दर्शना को तो नौकरी मिल गई थी, पर राहुल का अभी कुछ नहीं हुआ था. वह अभी तैयारी ही कर रहा था, साथ ही अपना खर्च चलाने के लिए पुणे में प्राइवेट नौकरी भी कर रहा था.

Rajgarh kila

राजगढ़ का किला

12 जून की सुबह दोनों राजगढ़ का किला देखने के लिए बाइक से निकल गए. दर्शना और राहुल के दोस्तों और घर वालों को पता था कि दोनों किला देखने गए हैं. पर जब शाम को इन के घर वालों ने हालचाल जानने के लिए फोन किया तो दोनों के ही फोन स्विच्ड औफ बता रहे थे.

फिर तो दोनों के ही घर वाले घबरा गए. उन के दोस्तों से पता किया गया तो उन्होंने बताया कि अभी तक दोनों लौट कर ही नहीं आए हैं. इस के बाद तो दोनों के ही घर वाले बेचैन हो उठे. क्योंकि दर्शना की जहां अच्छी बढिय़ा नौकरी लग चुकी थी, वहीं राहुल भी पढऩे में ठीकठाक था और मेहनत से तैयारी कर रहा था. इसलिए उस के घर वालों को भी उम्मीद थी कि आज नहीं तो कल उसे भी कोई न कोई अच्छी नौकरी मिल ही जाएगी.

दर्शना और राहुल के बारे में जब कुछ पता नहीं चला और न उन के फोन चालू हुए तो अगले दिन उन के घर वाले उन्हें खोजने के लिए पुणे आ गए. अपने हिसाब से उन्होंने दोनों को पुणे में खोजा, किले में भी गए, पर उन का कुछ पता नहीं चला. अब दोनों के ही घर वालों की बेचैनी और बढ़ गई थी. क्योंकि उन की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर दोनों कहां चले गए.

जब दोनों ही परिवार उन्हें ढूंढ ढूंढ कर थक गए तो 14 जून, 2023 को दर्शना के घर वालों ने जहां थाना सिंहगढ़ में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी, तो राहुल के घर वालों ने थाना मालवाड़ी में उस की गुमशुदगी दर्ज कराई.

पहाड़ी की तलहटी में मिली दर्शना की लाश

दर्शना अपनी कामयाबी से उस इलाके में चर्चा का विषय बन चुकी थी. उसे लगभग हर कोई जानने लगा था. गांव वाले भले न जानते रहे हों, पर शहर और कस्बे का तो लगभग हर कोई उसे जानता था.

इसलिए जब एक तरह से पूरे इलाके में सेलिब्रिटी हो चुकी दर्शना की गुमशुदगी की दर्ज कराई गई तो पुलिस भी सन्न रह गई. चूंकि मामला गंभीर और रहस्यमयी था, इसलिए थाना पुलिस के साथसाथ क्राइम ब्रांच पुलिस भी इस मामले की जांच में लग गई.

क्राइम ब्रांच ने दर्शना और राहुल की खोज के लिए 5-5 पुलिस वालों की 5 टीमें बनाईं और सभी टीमों को अलगअलग जिम्मेदारियां सौंप दीं.

ग्रामीण पुलिस इस मामले में जीजान से लगी थी. पर उसे कोई कामयाबी नहीं मिल रही थी. 19 जून को किसी अजनबी ने पुलिस को सूचना दी कि किले के पास पहाड़ी के नीचे तलहटी में एक महिला की लाश पड़ी है.

सूचना मिलते ही पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. दर्शना और राहुल की गुमशुदगी दर्ज थी. वे दोनों किले से ही गायब हुए थे. इस से पुलिस को लगा कि कहीं यह लाश दर्शना की तो नहीं है. तुरंत दर्शना के घर वालों को बुलाया गया. लाश देखते ही दर्शना के घर वालों पर तो जैसे दुख का पहाड़ टूट पड़ा. क्योंकि वह लाश दर्शना की ही थी. परिवार की सारी खुशियां पलभर में दुख में बदल गईं. सभी का रोतेरोते बुरा हाल हो गया.

ग्रामीण पुलिस मामले की जांच कर ही रही थी. लाश देख कर पुलिस यह अंदाजा नहीं लगा पा रही थी कि यह मामला हत्या का है या दर्शना के साथ कोई अनहोनी हुई है. क्योंकि लाश की स्थिति बहुत खराब थी. अब तक वह काफी हद तक सडग़ल चुकी थी. पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

सीसीटीवी फुटेज

इसी बीच पुलिस को किले के पास एक होटल पर लगे सीसीटीवी कैमरे से एक फुटेज मिली, जिस में सुबह करीब साढ़े 8 बजे दर्शना राहुल के साथ बाइक से किले की ओर जाती दिखाई दी. पर दिन के करीब 10 बजे राहुल किले की ओर से लौटा तो बाइक पर अकेला ही था यानी लौटते समय दर्शना उस के साथ नहीं थी. इस से साफ हो गया कि दर्शना के साथ जो कुछ भी हुआ, वह किले के अंदर या उस के आसपास ही हुआ था.

फारेस्ट औफीसर का कातिल प्रेमी – भाग 1

लाश पहाड़ी की तलहटी में पड़ी थी, जो काफी हद तक सड़गल गई थी. लाश देख कर ही लग रहा था कि इस की मौत कई दिनों पहले हुई है. पुलिस ने जब बारीकी से लाश का निरीक्षण किया तो उस के शरीर और सिर पर चोट के निशान थे. इस से पुलिस को लगा कि शायद इस की हत्या की गई है. पुलिस को लाश से थोड़ी दूर पर एक मोबाइल फोन, जूता और चश्मा पड़ा मिला. पुलिस ने अंदाजा लगया यह सामान मरने वाली लड़की का ही होगा.

Lash ke paas mila darshna ka samaan

लाश के पास मिला दर्शना का सामान

रेंज फारेस्ट औफीसर (Range Forest Officer) दर्शना पवार (Darshana Pawar) की लाश तो मिल गई थी, पर उस के दोस्त राहुल का अभी भी कुछ पता नहीं था. इसलिए अब पुलिस की जांच 2 दिशाओं में बंट गई. एक ओर पुलिस राहुल को खोज रही थी तो दूसरी ओर पुलिस अब यह पता कर रही थी कि दर्शना की मौत कैसे हुई? अगर यह दुर्घटना है तो दुर्घटना कैसे हुई? अगर हत्या हुई है तो किस ने और क्यों दर्शना की हत्या की? राहुल का फोन भी स्विच्ड औफ था, इसलिए उस के बारे में कुछ पता नहीं चल रहा था.

दर्शना की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने पर साफ हो गया कि उस की मौत दुर्घटना से नहीं हुई, बल्कि उस की हत्या की गई थी. क्योंकि उस के शरीर पर चोट के जो निशान मिले थे, वे दुर्घटना के नहीं थे, बल्कि किसी नुकीली चीज द्वारा चोट पहुंचाए जाने के थे.

पुलिस को तो पहले ही हत्या की आशंका थी, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने से साफ हो गया कि दर्शना की हत्या की गई थी. अगर दुर्घटना हुई होती तो राहुल उस के साथ ही था, चोट उसे भी लगती. वह किसी अस्पताल में होता या फिर दर्शना के घायल होने या पहाड़ी में नीचे गिरने की सूचना देता. पर वह तो गायब था, इसलिए पुलिस को अब उस पर ही शक होने लगा.

महाराष्ट्र (Maharashtra) के जिला अहमदनगर (Ahmednagar) का एक कस्बा है कोपरगांव. दर्शना अपने मम्मीपापा के साथ यहीं रहती थी. उस का एक निम्नमध्यमवर्गीय परिवार था. उस के पापा अहमदनगर की एक शुगर मिल में ड्राइवर थे और मां घर संभालती थीं.

दर्शना पढऩे में ठीकठाक थी. इसलिए मम्मीपापा उस की पढ़ाई पर विशेष ध्यान दे रहे थे. वे सोचते थे कि बिटिया पढ़लिख कर कुछ बन जाएगी तो उस की जिंदगी सुधर जाएगी. उन्होंने जिस तरह अभावों भरा जीवन जिया है, कम से कम वैसा जीवन उसे नहीं जीना पड़ेगा. इसीलिए वे तमाम परेशानियों को झेल कर उसे पढ़ा रहे थे.

अहमदनगर से पढ़ाई पूरी करने के बाद दर्शना सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करना चाहती थी. अहमदनगर से यह संभव नहीं था. इस के लिए उसे पुणे जाना पड़ता. क्योंकि सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कराने वाली अच्छी कोचिंग वहीं थी. मम्मीपापा उसे पुणे भेजने में थोड़ा झिझक रहे थे, क्योंकि एक तो उन की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, दूसरे वह बेटी को अकेली इतने बड़े शहर में भेजने से घबरा रहे थे. तब इस के लिए मदद की दर्शना के एक दोस्त राहुल हंडोरे ने.

वैसे तो राहुल हंडोरे (Rahul Handore)  मूलरूप से नासिक की सिन्नार तहसील के शाह गांव का रहने वाला था, लेकिन उस ने बचपन से ही अहमदनगर में रह कर दर्शना के साथ ही पढ़ाई की थी. बचपन से ही दोनों साथ पढ़े थे, इसलिए दोनों में अच्छी दोस्ती थी.

राहुल दर्शना के घर भी आताजाता था, इसीलिए जब दर्शना के घर वाले उसे पुणे भेजने में हिचके तो राहुल ने कहा, ”चिंता की कोई बात नहीं है. मैं भी सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने के लिए पुणे जा रहा हूं. इसलिए आप लोग दर्शना को निङ्क्षश्चत हो कर भेज दीजिए. मेरे रहते दर्शना को वहां कोई परेशानी नहीं होने पाएगी.’’

राहुल घर के सदस्य जैसा हो गया था, इसलिए दर्शना के मम्मीपापा उसे पुणे भेजने के लिए राजी हो गए. उन्होंने दर्शना से कहा, ”देखो बेटा, जैसे तैसे हम अपना काम चला लेंगे, पर तुम्हारे करिअर में किसी तरह की अड़चन नहीं आने देंगे.’’

इस तरह दर्शना अपने अरमान पूरे करने पुणे आ गई. महाराष्ट्र का पुणे शहर शिक्षा के मामले में बहुत आगे है. जिस तरह दिल्ली में सिविल सेवा परीक्षाओं की तैयारी कराने के लिए तमाम कोचिंग सेंटर खुले हैं, वैसा ही कुछ पुणे में भी है. इसी वजह से लोग इसे स्टूडेंट्स का शहर कहते हैं. क्योंकि तमाम कोचिंग सेंटर होने की वजह से उस इलाके के ज्यादातर लड़के लड़कियां तैयारी के लिए यहां आ कर रहते हैं. दर्शना भी राहुल के साथ पुणे आ कर सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने लगी.

तैयारी में किसी तरह की कमी न रह जाए, इस के लिए दर्शना जीजान से जुट गई. अपने मकसद में सफल होने के लिए उस से जितनी मेहनत हो सकती थी, वह उतनी मेहनत करने लगी. अपना करिअर बनाने के लिए उस ने एक तरह से अपनी पूरी ताकत झोंक दी. आखिर इस का परिणाम भी अच्छा ही आया.

बेटी की कामयाबी पर गदगद हुआ परिवार

दर्शना की लगन और मेहनत का ही नतीजा था कि इस साल के महाराष्ट्र पब्लिक सर्विस कमीशन (एमपीएससी) का रिजल्ट आया तो दर्शना का तीसरा स्थान था. इस तरह उस का चयन रेंज फारेस्ट औफीसर के रूप में हो गया था.

मृतका दर्शना

दर्शना के पापा एक मामूली कर्मचारी थे. उन की बेटी ने इतनी बड़ी कामयाबी हासिल की तो अब लोग बेटी के नाम से उन्हें भी जानने लगे. उन की खुशी की तो कोई सीमा ही नहीं थी. एक तरह से देखा जाए तो उन्होंने जो तपस्या की थी, बेटी की इस कामयाबी से उन्हें उस का फल मिल गया था. लोग बेटी की तारीफ तो कर ही रहे थे, साथ ही यह भी कह रहे थे कि आप भाग्यशाली हैं, जो आप को ऐसी बेटी मिली है.

दर्शना के इस तरह नौकरी पाने से उस के घर सब कुछ बहुत अच्छा हो गया था. चारों ओर उस की इस कामयाबी की चर्चा हो रही थी. इस की वजह यह थी कि वह नीचे स्तर से इस ऊंचाई पर पहुंची थी. यही वजह थी कि उस की इस कामयाबी के लिए उसे जगह जगह सम्मानित किया जा रहा था, जिस से उस के साथसाथ घर वालों का मान भी बढ़ रहा था.

इसी क्रम में दर्शना को सम्मानित करने के लिए सदाशिव पेठ स्थित उस कोचिंग वालों ने भी बुलाया, जिस कोचिंग में पढ़ कर दर्शना को यह कामयाबी मिली थी.

चयनित होने के बाद दर्शना कोपरगांव स्थित अपने घर चली गई थी. कोचिंग द्वारा बुलाए जाने पर दर्शना 9 जून, 2023 को एक बार फिर पुणे आई और इस बार वह अपनी एक सहेली के यहां ठहरी. क्योंकि चयन होने के बाद उस ने अपना कमरा छोड़ दिया था.

लिव इन पार्टनर की हत्या कर सूटकेस में डाली लाश

बड़ी भाभी का दीवाना देवर 

भोपाल से 35 किलोमीटर दूर बैरसिया तहसील हमेशा से अनदेखी का शिकार रही है, जिस का फर्क यहां की जिंदगी पर भी पड़ा है. इस इलाके के पिछड़ेपन के चलते यहां अपराध की दर उम्मीद से ज्यादा है. जंगलों से घिरे बैरसिया के बाहरी इलाकों में आए दिन हत्या की वारदातें होती रहती हैं.

ऐसी ही एक वारदात बीती 26 नवंबर को हुई थी. उन दिनों पूरे मध्यप्रदेश की तरह इस क्षेत्र में भी चुनावी चर्चा और गतिविधियां शवाब पर थीं. चुनाव के वक्त पुलिस वालों को सोने के लिए वक्त नहीं मिलता. उस रात करीब 12 बजे नजीराबाद थाने के इंचार्ज योगेंद्र परमार थाने में बैठे कामकाज निपटा रहे थे कि तभी अधेड़ उम्र के एक शख्स ने थाने में कदम रखा.

इतनी रात गए जो भी थाने आता है वह कोई बुरी खबर ही लाता है, यह बात योगेंद्र परमार जानते थे. वह उस व्यक्ति के चेहरे की बदहवासी देख कर ही समझ गए कि जो भी होगी, अच्छी खबर नहीं होगी. लेकिन उन्हें यह पता नहीं था कि खबर हत्या की होगी.

आगंतुक ने अपना नाम लक्ष्मण सिंह गुर्जर, निवासी चंद्रपुर गांव बताया. लक्ष्मण सिंह ने आते ही परमार को बताया कि उस के भाई सोनाथ सिंह की हत्या हो गई है और उस की लाश गांव में उस के घर पर पड़ी है.

योगेंद्र परमार ने बिना वक्त गंवाए टेबिल पर बिखरे पड़े कागजात समेटे और लक्ष्मण सिंह के साथ चंद्रपुर गांव की रवानगी डाल दी. उन्होंने कुछ सिपाही भी साथ ले लिए थे. जातेजाते उन्होंने थाना क्षेत्र में हुई हत्या की खबर एसडीपीओ संजीव कुमार सिंह को भी दे दी.

घटनास्थल गांव के कोने का एक मकान था, जहां एक कमरे में 40 वर्षीय सोनाथ सिंह की लाश पड़ी थी. लाश के आसपास काफी मात्रा में खून फैला था. पहली नजर में ही समझ आ रहा था कि हत्या पूरी बेरहमी से की गई है, क्योंकि सोनाथ सिंह की गर्दन पर धारदार हथियार के आधा दर्जन से भी ज्यादा जख्म दिख रहे थे. अंदाजा लगाया जा सकता था कि ये निशान कुल्हाड़ी या फरसे के हैं, जिन का गांवों में अकसर इस्तेमाल होता है.

लाश पर भरपूर नजर डाल कर योगेंद्र परमार ने जब लक्ष्मण सिंह से हत्या के बारे में पूछा तो उस ने कुछ बातें चौंका देने वाली बताईं, जिस से योगेंद्र परमार समझ गए कि मामला जर, जोरू और जमीन में से जोरू का है.

बकौल लक्ष्मण सिंह जब वह खेत में पानी दे कर घर लौट रहा था तो उस ने गांव के बाहर अपनी भाभी भूलीबाई को भागते हुए देखा था. इतनी रात गए भाभी, भतीजी को ले कर कहां जा रही है, इस बात से चौंके लक्ष्मण सिंह ने भूलीबाई को रोक कर जब उस से बात करनी चाही तो बजाए रुकने के उस ने अपने कदमों की गति और बढ़ा दी.

लक्ष्मण सिंह ही नहीं, यह बात पूरा गांव जानता था कि भूलीबाई और सोनाथ सिंह में आए दिन लड़ाईझगड़ा होता रहता है. इसलिए उस ने यह अंदाजा लगाया कि दोनों में किसी बात पर चिकचिक हुई होगी. इसलिए भाभी यूं घर छोड़ जा रही है. पास के ही गांव कढ़ैया में उस का मायका था.

आखिर हुआ क्या, यह जानने के लिए लक्ष्मण सिंह सोनाथ सिंह के घर पहुंचा तो वहां उस का सामना भाई की लाश से हुआ. इस के बाद यह खबर देने के लिए वह थाने जा पहुंचा था.

पति की हत्या पर भूलीबाई ने कोई शोरशराबा नहीं मचाया था और न ही किसी से मदद की गुहार लगाई थी. यह बात ही उसे शक के कटघरे में खड़ा करने के लिए काफी थी. लेकिन अंदाजे की बिना पर किसी नतीजे पर पहुंच जाना समझदारी नहीं थी, इसलिए योगेंद्र परमार ने तुरंत पुलिस टीम भेज कर भूलीबाई को थाने बुलवा लिया.

भूलीबाई के थाने आने से पहले की गई पूछताछ में पुलिस वालों को कोई खास जानकारी हाथ नहीं लगी थी, सिवाय इस के कि मांगीलाल ने अपनी जमीन दोनों बेटों में बराबर बांट दी थी. लेकिन जमीन इतनी नहीं थी कि उस से किसी एक परिवार का भी गुजारा हो पाता इसलिए सोनाथ सिंह रोजगार की तलाश में बाहर चला गया था.

लेकिन साल में कुछ दिनों के लिए वह गांव जरूर आता था. उस की गैरमौजूदगी में भूलीबाई खेतीकिसानी संभालती थी. दोनों बच्चों में से बेटे को उस ने अपने मायके में छोड़ रखा था.

इन जानकारियों से एक कहानी तो आकार लेती दिख रही थी, जिस में भूलीबाई का रोल अहम था. लेकिन पुलिस किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पा रही थी. ऐसे में भूलीबाई के बयान ही सोनाथ सिंह की हत्या पर पड़ा परदा उठा सकते थे.

थाने आ कर अच्छेअच्छे मुलजिमों के हौसले पस्त पड़ जाते हैं, फिर भूलीबाई की क्या बिसात थी. लेकिन इस के बाद भी वह अनाडि़यों की तरह ही सही पुलिस को गुमराह करने की कोशिश करती रही.

पहले तो उस ने अपने देवर लक्ष्मण सिंह को ही फंसाने की गरज से यह बयान दे डाला कि जमीन जायदाद के लालच में उस ने सोनाथ की हत्या की है. साथ ही यह भी कि इस में उस के अलावा और लोग भी शामिल हैं. ये और लोग कौन हैं, इस सवाल पर वह चुप रही.

बात यहां तक तो सच लग रही थी कि सोनाथ सिंह की हत्या में एक से ज्यादा लोग शामिल हैं, क्योंकि एक हट्टेकट्टे मर्द को काबू करना आसान बात नहीं थी. दूसरे घटनास्थल पर किसी तरह के संघर्ष के निशान भी नजर नहीं आ रहे थे, इस का सीधा सा मतलब यह निकल रहा था कि पहले सोनाथ को काबू किया गया, फिर उस पर धारदार हथियार से प्रहार किए गए.

जाहिर था, हत्या अगर भूलीबाई ने की थी तो कोई न कोई उस का संगीसाथी रहा होगा. लक्ष्मण सिंह पर शक करने की कोई वजह पुलिस वालों को समझ नहीं आ रही थी, क्योंकि वह कोई कहानी गढ़ता या झूठ बोलता नहीं लग रहा था.

उलट इस के भूलीबाई अपने बयानों में गड़बड़ा रही थी. पुलिस ने जब सख्ती दिखाई तो कुछ ही देर में उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. चूंकि सोनाथ सिंह उस के चालचलन पर शक करता और मारतापीटता था, इसलिए उस ने पति की हत्या कर दी.

लेकिन भूलीबाई ने पूरी बात अभी भी नहीं बताई थी. यह तो कोई बच्चा भी कह सकता था कि एक अकेली औरत धारदार हथियार से लगातार इतने वार, वे भी सोनाथ जैसे तगड़े मर्द पर, नहीं कर सकती थी. अब पुलिस को उस के और टूटने का इंतजार था, जिस से कत्ल की इस वारदात का पूरा सच सामने आ जाए.

सोनाथ सिंह की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई थी. दूसरी कानूनी औपचारिकताएं भी पुलिस वालों ने पूरी कर ली थीं. सुबह होतेहोते सोनाथ की हत्या की खबर पूरे इलाके में फैल चुकी थी. लोग चुनावी चर्चा छोड़ तरहतरह की बातें करने लगे थे.

भरेपूरे बदन की भूलीबाई को देख कोई भी यह नहीं कह सकता था कि वह 2 बच्चों की मां है. 35 की उम्र में खासी जवान दिखने वाली भूलीबाई ने आखिरकार पति की हत्या क्यों की होगी, यह राज भी सुबह का सूरज उगने से पहले उस ने उगल ही दिया. पता चला कि इस वारदात में उस का चचेरा देवर प्रेम सिंह और उस का एक दोस्त पन्नालाल भी शामिल थे.

नाजायज संबंध का जो शक किया जा रहा था, वह सच निकला. हुआ यूं था कि उम्र में आधा रिश्ते का देवर प्रेमसिंह भूलीबाई को दिल दे बैठा था. आजकल हर हाथ में मोबाइल है, जिस का उपयोग प्रेमसिंह जैसे नौजवान पोर्न फिल्में देखने में ज्यादा करते हैं.

दिनरात ऐसी ही अश्लील और सैक्सी वीडियो के समंदर में डूबे प्रेमसिंह को औरत की तलब लगने लगी थी, पर प्यास मिटाने का जरिया उसे नजर नहीं आ रहा था. हालांकि गांव में लड़कियों की कमी नहीं थी, लेकिन पिछड़ेपन के चलते और प्राइवेसी न होने के कारण किसी को पटा पाना आसान काम नहीं था. इन दिनों गांवों में निकम्मे और अय्याश किस्म के नौजवानों की तादाद तेजी से बढ़ रही है. उन में से एक प्रेमसिंह का दोस्त पन्नालाल भी था.

एक दिन प्रेमसिंह ने जब अपनी जरूरत पन्नालाल को खुल कर बताई तो वह हंस कर बोला, ‘‘लो, बगल में छोरा और गांव में ढिंढोरा.’’

इशारे में कही इस बात को प्रेमसिंह समझ नहीं पाया. लेकिन उम्मीद की एक किरण तो उसे बंधी थी कि पन्नालाल खेला खाया आदमी है, जो उस के लिए जरूर किसी औरत का इंतजाम कर देगा.

जल्द ही दारूमुर्गे की एक दावत हुई, जिस में पन्नालाल ने खुल कर उस से कहा कि तू अपनी भाभी भूलीबाई पर लाइन मार, काम बन जाएगा. बात का खुलासा करते हुए पन्नालाल ने उस की मनोवैज्ञानिक और शारीरिक वजहें भी बताईं. मसलन, तेरा चचेरा भाई साल भर बाहर रहता है, ऐसे में भूलीबाई को मर्द की जरूरत तो पड़ती ही होगी. भूलीबाई किसी को घास नहीं डालती, लेकिन तू ट्राई करेगा तो बात बन भी सकती है.

बात प्रेमसिंह की समझ में आ गई और उस रात वह सो नहीं पाया. रातभर ख्वाबों खयालों में वह भूलीबाई को उसी तरह लपेटे सैक्स करता रहा, जैसा कि पोर्न वीडियो में वह देखता था.

इस ख्वाब को हकीकत में बदलने के लिए प्रेमसिंह अकसर भूलीबाई के घर जा कर बैठने लगा. यह बात भी उसे समझ आ गई थी कि जल्दबाजी, बेसब्री और हड़बड़ाहट दिखाने से बात बिगड़ भी सकती है, इसलिए पहले औरत का दिल जीतो, फिर जिस्म तो वह खुद ही सौंप देती है.

इसी आनेजाने में वह रोज भूलीबाई के अंगों और उभारों को देखता था तो पागल सा हो जाता था. लेकिन प्रेमसिंह मौके की तलाश में था और दिल जीतने की राह पर चल रहा था. छोटे मोटे कामों में वह अपनी भाभी की मदद करने लगा था. यहां तक कि वह पैसा खर्च करने में भी नहीं हिचकता था. अच्छी बात यह थी कि उस पर कोई शक नहीं करता था, क्योंकि वह था तो परिवार के सदस्य सरीखा ही.

भूलीबाई को भी अब समझ आने लगा था कि जिस देवर को शादी के बाद उस ने गोद में खिलाया था, वह कौन सा खेल खेलने की जुगत में आता जाता है. जल्द ही उस की झिझक दूर होने लगी और पन्नालाल की यह सलाह साकार होती दिखने लगी कि एक बार भी सैक्स का लुत्फ उठा चुकी औरत सैक्स के बगैर ज्यादा दिन नहीं रह सकती.

अब दिक्कत यह थी कि प्रेमसिंह पहल कैसे करे. भूलीबाई उस की द्विअर्थी बातों पर हंस कर उसे शह देने लगी थी और इशारों में यदाकदा हल्कीफुल्की सैक्स की बातें भी कर लेती थी. लेकिन प्रेमसिंह को डर इस बात का था कि कहीं ऐसा न हो कि वह पहल करे और भाभी झिड़क दे. डर इस बात का भी था कि भूलीबाई ने अगर घर में शिकायत कर दी तो उस की खासी पिटाई होगी.

लेकिन जिस राह पर दोनों चल पडे़ थे, उस में बहाना खुद चाहने वालों को नजदीक लाने का मौका ढूंढ लेता है.

एक दिन यूं ही बातोंबातों में प्रेमसिंह ने डरतेडरते भूलीबाई को एक पोर्न फिल्म दिखा डाली तो भूलीबाई की भी कनपटियां गर्म हो उठीं. इस फिल्म में वह सब बल्कि उस से भी ज्यादा मौजूद था, जो वह सोचती रहती थी. बस फिर क्या था, एक दिन झिझक की दीवार टूटी तो दोनों बेशर्मी के समंदर में गोता लगा बैठे.

अब यह रोजरोज का काम हो चला था. कोई रोकटोक न होने से दोनों सैक्स का यह खेल आए दिन खेलने लगे. प्रेमसिंह ने भूलीबाई पर वे सारे टिप्स और तौरतरीके आजमा डाले जो पोर्न फिल्मों में दिखाए जाते हैं. मुद्दत से संसर्ग के लिए तरस रही भूलीबाई के लिए कुछ अनुभव एकदम नए और रोमांचक थे.

भूलीबाई के पास पुराना तजुर्बा था और प्रेमसिंह के पास नया जोश. सैक्स के दरिया में दोनों ऐसे डूबे कि उन्हें इस बात का भी होश नहीं रहा कि जो वे कर रहे हैं वह गैरकानूनी न सही लेकिन खतरनाक तो है.

हर साल की तरह बीती दीवाली पर भी सोनाथ सिंह गांव आया. लेकिन जब उस ने यह बताया कि इस बार वह 4-6 दिन नहीं बल्कि महीने भर से भी ज्यादा रुकेगा, तो भूलीबाई बजाय खुश होने के इस गम में डूब गई कि जब तक सोनाथ रुकेगा तब तक वह अपने किशोर प्रेमी से सैक्स का लुत्फ नहीं उठा पाएगी.

यही हाल प्रेमसिंह का था, जो अब एक दिन भी भूलीबाई के बगैर नहीं रह पाता था. वह मन ही मन भूलीबाई भाभी से प्यार भी करने लगा था. यह बेमेल प्यार भले ही शरीर की जरूरत भर था, जिसे वह खुद नहीं समझ पा रहा था.

सोनाथ ने ज्यादा दिन रुकने का फैसला बेवजह नहीं लिया था, बल्कि उसे भूलीबाई पर शक हो चला था. इस की पहली वजह तो यह थी कि भूलीबाई अब पहले की तरह सैक्स के लिए उतावली नहीं होती थी और दूसरी वजह वे बातें थीं जो उस ने उड़ते उड़ते सुनी थीं.

सोनाथ के पास अपने शक को ले कर कोई प्रमाण नहीं था, इसलिए वह गुपचुप भूलीबाई की निगरानी करने लगा. फिर एक दिन उस ने भूलीबाई और प्रेमसिंह को नग्नावस्था में रंगरलियां मनाते रंगेहाथों पकड़ लिया. बात आई गई नहीं हुई, बल्कि सोनाथ को अब गांव के लोगों की कही पुरानी कहावत याद आने लगी कि खेती खुद न करो तो जमीन कोई और जोतने लगता है. यही बात औरत पर भी लागू होती है.

पत्नी की इस चरित्रहीनता को न तो वह पेट में पचाए रख सकता था और न ही सार्वजनिक कर सकता था, क्योंकि इस से जगहंसाई उस की ही होनी थी.

ठंडे दिमाग से विचार करने पर उस ने अब गांव में ही रहने का फैसला कर लिया, इस से भूलीबाई और प्रेमसिंह दोनों परेशान हो उठे, जिन्हें एकदूसरे का चस्का लग चुका था. यही लत उन्हें चोरी छिपे मिलने के लिए उकसाने लगी. सोनाथ ने पत्नी से पहले ही कह दिया था कि अब अगर वह प्रेमसिंह से मिली तो खैर नहीं.

पर वह यह भूल रहा था कि खैर तो अब उस की नहीं थी. एक दिन उस ने भूलीबाई को फोन पर बात करते पकड़ लिया, तो उस की खासी धुनाई कर डाली. यह बात जब प्रेमसिंह को पता चली तो उस का खून खौल उठा.

अपने इकलौते इश्किया सलाहकार पन्नालाल को उस ने बताया कि अब उस से भूलीबाई की जुदाई बरदाश्त नहीं हो रही है. दूसरे अगर सोनाथ भूलीबाई की पिटाई करे, यह उस से बरदाश्त नहीं हो रहा है. तैश में आ कर फिल्मी स्टाइल में उस ने सोनाथ के वे हाथ काट डालने की बात भी कह डाली, जो भूलीबाई पर उठे थे.

इस पर पन्नालाल ने बजाए समझाने के आग में घी डालते हुए कहा कि अकेले हाथ काटने से कुछ हासिल नहीं होगा, उलटे सोनाथ पुलिस में सारी बात बता देगा. अगर कांटे को जड़ से खत्म करना है तो सोनाथ की गरदन ही उड़ानी पड़ेगी.

बस फिर क्या था दोनों ने मिल कर सोनाथ के कत्ल की योजना बना डाली. दूसरी ओर वासना की आग में तड़प रही भूलीबाई भी उन का साथ देने तैयार हो गई. पन्नालाल ने प्रेमसिंह को यह भी मशविरा दिया कि सोनाथ के कत्ल के पहले वह जी भर कर भूलीबाई के जिस्म का सुख उठा ले, नहीं तो फिर 13 दिन मौका नहीं मिलेगा, क्योंकि इस दौरान भूलीबाई शोक में होगी और उस के आसपास कोई न कोई बना रहेगा.

ये तमाम बातें इस ढंग से हुईं, इस्तेमाल  मानो इन्हें कत्ल नहीं करना बल्कि बकरी का बच्चा पकड़ना है. हादसे की रात सोनाथ सिंह के गहरी नींद सो जाने के बाद भूलीबाई ने घर का दरवाजा खोला और प्रेमसिंह को अंदर बुला लिया. पहले तो दोनों ने जी भर के जिस्मों की प्यास बुझाई और फिर पन्नालाल को बुला कर हमेशा के लिए सोनाथ की जिंदगी का चिराग बुझा डाला.

सो रहे सोनाथ पर प्रेमसिंह और पन्नालाल ने कुल्हाड़ी से वार किए. इस दौरान भूलीबाई ने पति के पैर पकड़ रखे थे, सोनाथ सिंह नींद में ही नीचे से ऊपर कब पहुंच गया, यह उसे भी पता नहीं चला.

प्लान के मुताबिक भूलीबाई बेटी को गोद में उठा कर भागी, लेकिन इत्तफाकन लक्ष्मण ने उसे देख लिया और तीनों पकड़े गए. जो अब जेल में अपनी करनी की सजा भुगत रहे हैं.

दूसरे धर्म में शादी मौत को बुलावा

पेरुमल ने तिरुपुर पुलिस स्टेशन से घर पहुंचने के तुरंत बाद बेटी ऐश्वर्या को फांसी पर लटका दिया था. पेरुमल ने अपनी पत्नी से रस्सी और कुरसी लाने को कहा था. इस के बाद उस ने बेटी से खुद गले में फंदा डाल कर माफी मांगने के लिए कहा. उस ने उसे भरोसा दिया कि उस के माफी मांगने पर वह उस के फंदे पर झूलने से पहले रस्सी को काट देगा.

ऐश्वर्या ने ऐसा ही किया, किंतु जब पेरुमल ने रस्सी को काटा तो ऐश्वर्या को जिंदा पाया. इस के बाद पेरुमल ने उस का गला घोंट दिया, ताकि वह जीवित न बचे.

दक्षिण भारत बहुत ही खास अंदाज, मिजाज और रुतबे का प्रदेश है तमिलनाडु. यहां के लोग खेती किसानी से ले कर कल कारखाने तक में काम करने वाले पारंपरिक रीतिरिवाजों को भी काफी अहमियत देते हैं. हर परिवार और समाज के संस्कार में आन, बान और शान शीर्ष पर होता है. किंतु दूसरे प्रदेशों की तरह वहां के लोग भी जाति, धर्म, ऊंचनीच और अमीरी गरीबी के जाल में उलझे रहते हैं.

वहीं तंजावुर जिले में पट्टूकोट्टई के नेवविदुथी गांव का रहने वाला कल्लार समुदाय का पेरुमल और उस के परिवार के लोग बीते साल 2023 के आखिरी दिन से ही परेशान थे. इस की वजह यह थी कि उस की बेटी ऐश्वर्या बिना कहे घर से लापता थी. वह मात्र 19 साल की थी.

परिवार के लोग उस की तलाश अपने लोगों के बीच गुपचुप तरीके से कर रहे थे. वे समझ नहीं पा रहे थे कि ऐश्वर्या कहां गई होगी. रिश्तेदारी में पता किया, लेकिन उस के बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं मिल पाई थी.

ऐश्वर्या 10वीं तक पढ़ाई पूरी करने के बाद तिरुपुर में एक पावरलूम में नौकरी पर लग गई थी. जब उस का कोई पता नहीं चला, तब उस के मम्मी पापा ने पल्लदम थाने में पहली जनवरी, 2024 को उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवा दी.

हालांकि ऐश्वर्या के पापा पेरुमल और मम्मी रोजा को उस के सालों से चल रहे प्रेम संबंध के बारे में पता था. उन्हें पक्का विश्वास था कि ऐश्वर्या अपने प्रेमी संग ही होगी. लेकिन कहां मिलेगी, किस हाल में होगी, नहीं मालूम था. इस बारे में उन्होंने एसएचओ को बता दिया.

इसी बीच सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो गया. वह वीडियो ऐश्वर्या की शादी का था. उस के साथ दूल्हा बने नवीन को सभी ने पहचान लिया. इस की गांव के दूसरे लोग कानाफूसी करने लगे थे. कोई सामने खुल कर कुछ नहीं बोल रहा था, लेकिन ऐश्वर्या के मम्मी पापा को दुत्कारने की नजरों से देखने लगे थे. यही बात उन्हें भीतर ही भीतर तकलीफ देने लगी थी.

मन कचोटने लगा था और वे बेटी की अपनी मरजी से की गई शादी से दुखी हो गए थे. वह सामाजिक उपेक्षा महसूस करने लगे थे. उन्हें लगने लगा था कि उस के कल्लार समाज के लोग ऐश्वर्या की हरकत से बेहद नाराज हो चुके हैं.

नए साल के मौके पर ऐश्वर्या की मम्मी रोजा गांव के मंदिर से पूजा कर लौट रही थी. अपने घर से कुछ कदम की दूरी पर ही थी कि पड़ोस की एक औरत तपाक से बोल पड़ी, ”तुम्हारी बेटी ने तो पूरे कल्लार समाज की नाक कटा दी है… उसे अपने समाज में कोई नहीं मिला जो उस दलित के साथ भाग गई!”

ताने से क्यों तिलमिलाया पेरुमल

रोजा यह सुन कर तिलमिला गई. ताने सुनती हुई तेज कदमों से अपने घर चली आई. पति के सामने रोने लगी. पति पेरुमल कल्लार ने पूछा तो उस ने पड़ोसी महिला के ताने की बात बता दी. साथ ही उस ने कहा कि चाहे जैसे भी हो ऐश्वर्या को पहले घर लाएं. पत्नी की बात सुन कर पेरुमल तुरंत थाने गया. उस ने ऐश्वर्या की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाई.

पुलिस को उस ने वायरल हो रहे वीडियो की बात बताई, जो उस के गांव के लोगों के पास पहुंच चुका था. उस ने यह भी कहा कि वीडियो के फैलने से ऐश्वर्या की दलित लड़के के साथ शादी की चारों ओर चर्चा होने लगी है. लोग उसे और उस की पत्नी को नफरत की नजरों से देखने लगे हैं. ताने तक मारने लगे हैं. ऐश्वर्या को जल्द घर वापस लाना जरूरी है. लड़के के खिलाफ काररवाई करने में देरी होने पर सामाजिक तनाव बढ़ जाएगा.

इसी के साथ उस ने पुलिस को यह भी बताया कि इलाके में इस तरह के प्रेम संबंध और शादी को लोग बहुत ही गलत मानते हैं. उस ने कहा कि हम लोग पिछड़े समाज के हैं, जबकि बेटी ऐश्वर्या ने जिस के साथ शादी की है, वह दलित समाज का है.

दलितों और पिछड़े समुदाय के बीच ऐसे प्रेम विवाह पहले भी हुए हैं. उन में अधिकांश कभी गांव नहीं लौटे, लेकिन उन के घर वालों को लोगों ने गांव में जीना दूभर कर दिया था. हमारे गांव के बहुत से लोगों को ऐसी शादियों के बारे में पता तक नहीं है, हमारे मामले में वाट्सऐप वीडियो से यह बात सभी को पता चल गई है.

ऐश्वर्या के पिता ने उस लड़के के बारे में भी बता दिया. उस ने बताया कि ऐश्वर्या से शादी रचाने वाला लड़का नवीन भी 19 साल का है. वह वेल्लालर समुदाय से आता है, जो प्रदेश की एक अनुसूचित जाति है.

पुलिस को यह बात न केवल चौंकाने वाली लगी, बल्कि इसे सामाजिक तनाव बनाने का बड़ा कारण समझते हुए जल्द से जल्द सुलझाना जरूरी समझा. एसएचओ ने इस की जानकारी डीएसपी को देते हुए ऐश्वर्या की तलाशी संबंधी आवश्यक अनुमति भी मांग ली.

इस के बाद पुलिस ने ऐश्वर्या को तलाशना शुरू कर दिया. उन्हें जल्द ही नवीन के ठिकाने के बारे में मालूम हो गया. उस ने 31 दिसंबर को आवरापलयम के विनयागर मंदिर में जयमाला डाल कर अंतरजातीय शादी कर ली थी. शादी करने के बाद पहली जनवरी को जोड़े ने वीरापंडी इलाके में एक घर किराए पर लिया था. वहां से उन्होंने अपने वैवाहिक जीवन की शुरुआत की थी.

इस मामले में पुलिस से कहां हुई चूक

2 जनवरी, 2024 की दोपहर पल्लदम पुलिस उन के घर पहुंच चुकी थी. उन्होंने ऐश्वर्या को पुलिस स्टेशन आने के लिए कहा. उन से पुलिस अधिकारी ने कहा कि दोनों की उम्र के अनुसार उन की शादी अवैध मानी जाएगी. ऐश्वर्या के पापा ने गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराई है, इसलिए भलाई इसी में है कि वे दूसरी कानूनी धाराओं में दोषी बनाए जाएं, इस से बचने के लिए अपने घर वालों से विवाह की सहमति ले लें.

ऐश्वर्या पुलिस के कहे अनुसार तुरंत उन के साथ थाने आ गई. वहां पहले से ही उस के पापा कुछ लोगों के साथ मौजूद थे. पुलिस ने ऐश्वर्या की बरामदगी मात्र घंटे भर में कर ली थी. मामले को सुलझा लिया गया था. ऐश्वर्या को उस के पापा घर ले आए.

हालांकि पीछेपीछे नवीन भी थाने आया. वह थाने के बाहर ही ऐश्वर्या का इंतजार करने लगा, लेकिन दोपहर करीब 2 बजे ऐश्वर्या के पापा पेरुमल और उन के साथ आए लोग उसे थाने से घर ले कर चले गए. उस से उन्होंने कोई बात नहीं की. यहां तक कि उस के सवालों का भी कोई जवाब नहीं दिया. उन के जाने के बाद नवीन ने पुलिस स्टेशन के अंदर जा कर ऐश्वर्या के बारे में पूछा. उसे बताया गया कि ऐश्वर्या को उस के पापा अपने गांव ले गए हैं.

नवीन को यह बात अटपटी लगी, क्योंकि ऐश्वर्या उस की ब्याहता थी. उस की अनुमति और मरजी के बगैर कोई कैसे कहीं ले कर जा सकता है. वह पुलिस पर नाराजगी दिखाने लगा. किंतु उल्टा उसे पुलिस ने ही चेतावनी दी. कहा कि अगर उस ने ऐश्वर्या से दोबारा मिलने की कोशिश की तो उस के घर वाले उसे पीटेंगे. इसलिए उस की भलाई इसी में है कि वह ऐश्वर्या को हमेशा के लिए भूल जाए.

नवीन को पुलिस की चेतावनी धमकी की तरह लगी. उस वक्त तो वह अपने गुस्से को काबू में रखता हुआ घर चला आया. वह पट्टूकोट्टाई के इलाके में पुवलूर गांव का रहने वाला था. ऐश्वर्या को स्कूल के समय से जानता था. दोनों अलगअलग स्कूल में पढ़ते थे, लेकिन स्कूल आतेजाते उन की मुलाकातें हो जाती थीं.

इसी सिलसिले में उन के बीच प्रेम संबंध बन गए. यह जानते हुए कि उन की जातियां अलग हैं और समुदाय में भी अंतर है. दोनों समुदायों के बीच शादीविवाह कभी भी स्वीकार नहीं किया जाएगा. उन के परिवार और समाज उन के रिश्ते को सिरे से खारिज कर देंगे और उन्हें जबरन जुदा कर दिया जाएगा.

नवीन ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया था और तिरुपुर में एक कपड़ा फैक्ट्री में नौकरी कर ली थी. वहां वह कंपनी द्वारा दिए गए आवास में रहता था. ऐश्वर्या भी अपने पैरों पर खड़ी थी. वह तिरुपुर में एक पावरलूम में नौकरी करती थी.

इस की शुरुआत हो चुकी थी. ऐश्वर्या को नवीन के सामने से ही उस के घर वाले ले कर चले गए थे. फिर भी उस ने हिम्मत नहीं हारी, लेकिन वह दुविधा में था.

अगले रोज 3 जनवरी को वह भागा भागा ऐश्वर्या के घर गया. दरअसल, उसे सूचना मिली कि ऐश्वर्या की आकस्मिक मृत्यु हो गई है और उस के शव का तुरंत अंतिम संस्कार भी कर दिया गया है.

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ऐश्वर्या की मौत के बारे में वट्टाथिकोट्टई पुलिस से जानकारी मिली कि वह 3 जनवरी को अपने कमरे में मृत पाई गई थी. इस से आहत नवीन ने 7 जनवरी को ऐश्वर्या के घर वालों के खिलाफ शिकायत दर्ज करवा दी. शिकायत में उस ने आरोप लगाया कि उस की पत्नी ऐश्वर्या की उस के घर वालों ने हत्या कर दी है.

भारतीय दंड संहिता की धारा 302 और 201 के तहत मामला दर्ज किया गया. उल्लेखनीय है कि धारा 201 उस व्यक्ति के लिए सजा निर्धारित करती है, जो जानता है कि कोई अपराध किया गया है, उस अपराध के सबूतों को नष्ट कर देता है या अपराधी को कानूनी सजा से बचाने के लिए गलत जानकारी देता है.

ऐश्वर्या की अचानक मौत हो जाने से लोगों के जेहन में साल 2014 की एक घटना ताजा हो गई, जो उसिलामपट्टी की सी. विमला देवी की मौत थी. वह भी ऐश्वर्या की तरह कल्लार जाति की थी और एक दलित व्यक्ति से शादी की थी. उसे अपनी जान बचाने के लिए केरल के एक पुलिस स्टेशन में शरण लेनी पड़ी थी.

बाद में विमला के पिता द्वारा दी गई शिकायत के आधार पर जांच पूरी करने के लिए जोड़े को तमिलनाडु लाया गया. उस के मातापिता पुलिस को यह आश्वासन दे कर घर ले गए कि मामले को ठीक कर लिया जाएगा. लेकिन अगले ही दिन वह मृत पाई गई थी और पुलिस के मौके पर पहुंचने से पहले ही उस के अवशेष जल कर राख हो गए थे.

नवीन द्वारा दर्ज की गई शिकायत में कहा गया कि उस के और ऐश्वर्या के बीच पिछले 5 साल से प्रेम चल रहा था.अपनी शिकायत में नवीन ने यह भी कहा किया वह 2 जनवरी को 2 बजे ऐश्वर्या के पिता अन्य रिश्तेदारों के साथ पुलिस स्टेशन गया. आधे घंटे बाद ही पल्लदम पुलिस स्टेशन से ऐश्वर्या को उस के पिता और रिश्तेदारों ने अपने साथ ले कर पुलिस स्टेशन के बाहर खड़ी कार में बैठ कर चले गए.

नवीन ने बताया कि उसे सूचना मिली थी कि 3 जनवरी की सुबह ऐश्वर्या की हत्या कर दी गई थी और स्थानीय लोगों से छिपा कर शव को तत्काल श्मशान में जला दिया गया था.

इस संबंध में पुलिस ने अपनी जांच में कहा कि ऐश्वर्या को उस के मम्मी पापा ने नेवाविदुति गांव के इमली के पेड़ से लटका कर मार डाला गया था. हालांकि इस बारे में ऐश्वर्या के गांव वाले कुछ भी खुल कर बात करने को तैयार नहीं थे. फिर भी कुछ लोगों ने दबी जुबान से दिल दहला देने वाली इस घटना के बारे में कई संदिग्ध बातें बताईं. उन्हीं में से एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि उस ने ऐश्वर्या को उस के पापा द्वारा जबरदस्ती ले जाते हुए देखा था.

इसी तरह एक अन्य ग्रामीण ने बताया कि उस के घर के बाहर बहुत शोर हो रहा था, जिसे सुन कर हम बाहर निकले. ऐश्वर्या के घर वाले उसे घसीटते हुए इमली के पेड़ तक ले कर जा रहे थे. इस आधार पर पुलिस का कहना था कि ऐश्वर्या के पापा ने ही इमली के पेड़ के नीचे उस की हत्या कर दी.

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इस जांच की अगुवाई करने वाले एसआई नवीन प्रसाद ने ऐश्वर्या की क्रूर तरीके से हत्या होने की पुष्टि की. इस आधार पर ही औनर किलिंग के आरोपी पेरुमल और उस की पत्नी रोजा को गिरफ्तार कर लिया गया. पूछताछ के दौरान पेरुमल ने बताया कि उस ने इमली के पेड़ के नीचे अपनी बेटी की हत्या की थी.

पुलिस ने पेरुमल और उस की पत्नी रोजा से पूछताछ करने के बाद उन्हें गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया.

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हत्या की बताई चौंकाने वाली वजह

इस शिकायती और संदेह वाली बातों पर पुलिस ने पूछा, ”तुम ने इस बारे में कभी पता लगाने की कोशिश की कि उस के पास पैसे हैं या नहीं? हो सकता है उस के पास उस वक्त पैसे नहीं हों, जब तुम मांगते होगे.’’

”नहीं सर, उस के पास पैसे होते थे, लेकिन नहीं देती थी.’’ मनोज बोला.

”चलो मान लिया, उस के पास पैसे होते थे, लेकिन उसी ने तुम्हें काम पर भी रखवाया था. वहां से पैसे मिले होंगे…उस का तुम ने क्या किया?’’ पुलिस ने पूछा.

”एक माह के ही मिले थे, सारे पैसे मैं ने अपने घर भेज दिए थे.’’ मनोज बोला.

”प्रतिमा को कुछ भी नहीं दिया?’’

”उसे क्यों देता, उसे भी तो पैसे मिले थे?’’ मनोज बोला.

”तुम्हें उस ने साथ रखा था, पति की तरह रहते थे. तुम्हारी भी तो घर चलाने की जिम्मेदारी थी.’’ पुलिस ने समझाया.

”लेकिन सर, वह अपने पैसे दूसरों पर खर्च करती थी, मुझे मालूम था वह कोई रिश्तेदार नहीं था. उस का एक प्रेमी था.’’ मनोज फिर प्रेमिका के चरित्र पर शंका के लहजे में बोला.

”इस का तुम ने कुछ पता किया या फिर यूं ही संदेह करते रहे?’’

”मैं क्या उस के बारे में पूछता. एक बार कुछ बोलने वाला ही था कि वह चीखने लगी… ताने मारने लगी… मुझे ही भलाबुरा कहने लगी थी.’’

”मुझे तो मालूम हुआ है कि प्रतिमा की कुछ माह से नौकरी छूट गई थी.’’

”हां, इस की जिम्मेदार भी वही थी. झगड़ालू स्वाभाव था. अपने मालिक से बातबात पर झगड़ पड़ती थी. उसे नौकरी से निकाल दिया था.’’ मनोज ने बताया.

”हो सकता है, दूसरे काम की तलाश में लोगों से फोन पर बात करती हो और तुम उसी को ले कर शक करने लगे हो.’’

”मैं इतना बुद्धू नहीं हूं सर, जो किसी लड़की के फोन पर हंस हंस कर बात करने का मतलब नहीं समझ पाऊं.’’ मनोज बोला.

”खैर, छोड़ो इन बातों को, सचसच बताओ 18 नवंबर, 2023 को क्या हुआ था?’’ पुलिस अब असली मुद्दे पर आ गई थी.

”असल में 18 तारीख को उस ने मुझ से कमरे का किराया देने के लिए पैसे मांगे. मेरे पास पैसे नहीं थे. इस पर उस ने मुझे दुकान से एडवांस मांगने को कहा, जो मुझ से नहीं हो सकता था. कारण, वहां से पहले ही एडवांस ले चुका था.’’

”फिर तुम ने क्या किया?’’

”मैं क्या करता, पैसे मेरे पास नहीं थे. इस बात को ले कर काफी बहस होने लगी. मैं परेशान हो गया. उस ने मुझे गालियां देनी शुरू कर दीं. दोपहर से हमें झगड़ते हुए शाम घिर आई. मैंं गुस्से से घर से बाहर निकल पड़ा. कुछ समय में ही वापस लौट आया. आते ही वह बरस पड़ी, ”आ गए, आटा लाए?’’

इस पर मैं ने जैसे ही कहा कि मेरे पास पैसे नहीं है तो वह एक बार फिर बरस पड़ी. गालियां देती हुई बोली, ”नहीं है तो भूखे रहो… मरो यहीं, मैं चली.’’

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इत्मीनान से रखी सूटकेस में लाश

मनोज ने आगे बताया, ”तब तक रात के साढ़े 9 बज चुके थे. प्रतिमा ने अपना बैग उठाया और पैर पटकती हुई घर से जाने लगी. मैं ने तुरंत उस का हाथ खींच लिया, जिस से उस का संतुलन बिगड़ गया और गिरने को हो आई. उस के बाद प्रतिमा और भी गुस्से में आ गई. आंखें लाल करती हुई गालियां देने लगी. मेरे खानदान तक को कोसने लगी.’’

मनोज ने आगे बताया, ”असल में उस का हाथ खींचने से चुन्नी उस के गले में फंस गई थी. इस कारण उस ने समझा कि मैं ने उस का गला जानबूझ कर कसने की कोशिश की है. गालियां देती हुई  मुझ पर आरोप लगा दिया कि मैं उसे गला कस कर मारना चाहता हूं.

”यह बात मेरे दिमाग में बैठ गई और उस की हत्या की बात कीड़े की तरह पलक झपकते ही दिमाग में कुलबुलाने लगी. फिर क्या था, ऐसा हुआ कि मानो मैं ने अपना होश खो दिया हो…

”मेरा गुस्सा चरम पर पहुंच चुका था. मैं ने 2-3 जोरदार थप्पड़ जड़ दिया. थप्पड़ खा कर वह जमीन पर गिर गई. तिलमलाती हुई वह उठने लगी, लेकिन जब तक वह उठ पाती, मैं ने दोनों हाथों से उस का गला दबा दिया. अपनी भाषा में गाली दी और हाथों की पकड़ मजबूत कर दी.

”कुछ सेकेंड बाद ही दुबलीपतली प्रतिमा बेजान हो चुकी थी. उस की चीख भी बंद हो चुकी थी. गुस्से में आ कर उस की हत्या तो हो गई, लेकिन उस के बाद मैं घबरा गया.’’

”और इस तरह तुम ने अपनी प्रेमिका की हत्या कर डाली. उस के बाद तूने क्या किया?’’ जांच अधिकारी ने पूछा.

”रात के 10 बजने को हो आए थे. मैं अपने हाथों से प्रतिमा की हत्या से घबरा गया था. थोड़ी देर तक उस के पास बैठा सोचता रहा, उस की मौत का मातम मनाता रहा, लेकिन पकड़े जाने, कड़ी सजा होने…जैसे खयाल मन में आने लगे. इसी बीच मेरी नजर घर में रखे उसी के एक बड़े सूटकेस पर गई. मैं ने झट उसे खाली किया और कपड़ों की तह के बीच जैसेतैसे कर के उस की लाश को ठूंस दिया.

”उस सूटकेस को ले कर कमरे पर से निकल गया. उस वक्त रात के करीब पौने 12 हो चुके थे. सायन से आटोरिक्शा लिया और कुर्ला लोकमान्य तिलक टर्मिनस जा पहुंचा. मैं सूटकेस को रेलवे स्टेशन के किसी इलाके में छोडऩा चाहता था, लेकिन लोगों की भीड़ देख कर ऐसा नहीं कर पाया. वापस लौट आया…’’ मनोज बोलतेबोलते रुक गया.

”आगे बताओ,’’ जांच अधिकारी ने कहा.

”उस के बाद मैं और भी घबरा गया क्योंकि आटोरिक्शा वाला बारबार मुझ से कह रहा था कि साहब जल्दी उतरो स्टेशन आ गया है. मैं पशोपेश में था कि क्या करना है और क्या नहीं! आखिरकार मैं ने आटो वहीं छोड़ दिया.

”वापस कमरे पर जाने के बारे में सोचते हुए दूसरा आटोरिक्शा लिया और सीएसटी पुल के नीचे सार्वजनिक शौचालय के सामने चेंबूर सांताक्रुज चैनल कुर्ला पश्चिम में एक जगह पर आया. वहां मेट्रो का काम चल रहा था. रात का समय था. एकदम सुनसान. वह जगह मुझे उचित लगी.’’

मनोज ने आगे बताया, ”मैं ने आटो वहीं छोड़ दिया. उस के जाने के बाद इधरउधर देखा. कहीं कोई नजर नहीं आ रहा था. वहां मेट्रो का काम चल रहा था. आम लोगों को जाने से रोकने के लिए कई बैरिकेड्स लगे थे. मैं ने तुरंत एक बैरिकेड को थोड़ा खिसका कर सूटकेस को अंदर सरका दिया. कुछ देर वहां रुकने के बाद मैं आगे बढ़ गया और आटो ले कर सायन धारावी लौट आया.’’

आगे की जानकारी देता हुआ मनोज बारला बोला, ”मैं कमरे पर जा कर फिर गहरी नींद में सो गया. अगले रोज 19 नवंबर को देर से नींद खुली. फटाफट तैयार हुआ और सुबह 11 बजे के करीब ओडिशा जाने के लिए रेलवे स्टेशन चला आया, किंतु ट्रेन पकडऩे से पहले ही क्राइम ब्रांच द्वारा पकड़ लिया गया.’’

पुलिस ने मनोज बारला के इस बयान को दर्ज कर लिया गया. आगे की काररवाई के बाद उसे गिरफ्तार कर मजिस्ट्रैट के सामने हाजिर कर दिया गया. वहां से जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

लिव इन पार्टनर की हत्या कर सूटकेस में डाली लाश – भाग 2

सूटकेस खुलते ही क्यों चौंकी पुलिस

बात बीते साल 2023 में नवंबर माह के 19 तारीख की है. मुंबई के कुर्ला इलाके में मेट्रो कंस्ट्रक्शन साइट पर गश्त करती पुलिस को एक लावारिस सूटकेस मिला. संदिग्ध सूटकेस में विस्फोटक होने की आशंका के साथ इस की सूचना निकट के थाने को दे दी गई.

सूचना पाते ही बम स्क्वायड पहुंच गया. सूटकेस के नंबर वाला लौक बड़ी मुश्किल से खुल पाया. उस की चेन भी भीतर पड़े कपड़े और महीन धागे से फंस गई थी. सूटकेस खुला तो उस के अंदर एक युवती की लाश निकली. क्राइम ब्रांच के सामने सब से पहला सवाल था कि लाश किस की है?

इस की तहकीकात के लिए क्राइम ब्रांच के डीसीपी राज तिलक रौशन ने अलगअलग टीमें बनाईं. लावारिस लाश भरा सूटकेस उस वक्त मिला था, जब पूरे देश की निगाहें क्रिकेट वल्र्ड कप के फाइनल मुकाबले पर टिकी थीं.

आरोपी तक कैसे पहुंची पुलिस

पुलिस की एक जांच टीम मौके पर लगे सीसीटीवी कैमरे और इंटेलीजेंस की मदद से तहकीकात में जुट गई, जबकि दूसरी टीम लाश की पहचान के लिए उस की शिनाख्त करने लगी.

मामला कुर्ला पुलिस स्टेशन में दर्ज कर लिया गया था. शव को राजावाड़ी अस्पताल ले जाया गया. वहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. उस के बाद महिला के शव को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दिया गया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में महिला की गला दबा कर हत्या की बात सामने आई. उस आधार पर कुर्ला पुलिस धारा 302, 201 आईपीसी के तहत मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी गई. इस दौरान मृत महिला के गले में क्रास और शरीर पर कपड़ों से पुलिस ने उस के ईसाई समाज के मध्यमवर्गीय परिवार से होने का अंदाजा लगाया.

पुलिस की टीम ने मौके पर लगे हुए सीसीटीवी कैमरों और इंटेलीजेंस की मदद से आरोपी के बारे में पता लगाना शुरू किया. सूचना के आधार पर पुलिस ने आरोपी की तलाश शुरू की.

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अपराध शाखा के संयुक्त आयुक्त लखमी गौतम, अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (अपराध) शशि कुमार मीना के आदेशानुसार एवं पुलिस उपायुक्त राज तिलक रौशन के मार्गदर्शन में गठित कुल 8 टीमें लावारिस लाश की गुत्थी सुलझाने में जुट गई थीं. सभी सीसीटीवी फुटेज की जांच करने लगीं. गुप्त खबरची के माध्यम से मृतका के पहचान की भी कोशिश होने लगी. उस की तसवीरें सोशल मीडिया पर अपलोड कर दी गईं. जल्द ही इस के नतीजे भी सामने आ गए. मृतका की बहन ने लाश की पहचान कर ली. मृतका की पहचान प्रतिमा पवल किस्पट्टा के रूप में हुई. उस की उम्र 25 साल के करीब थी.

उन से मिली जानकारी के अनुसार मृतका धारावी में किराए की एक खोली (कमरा) में रह रही थी. उस के साथ पति भी रहता था. पति मूलत: ओडिशा के एक गांव का रहने वाला था. उस के बारे में आसपास के लोगों से पूछताछ के बाद सिर्फ यही मालूम हो पाया कि वह गांव गया हुआ है. उस ने पड़ोसियों को बताया था कि उस की बहन बीमार है. लोगों ने पति का नाम मनोज बताया.

पड़ोसियों से मालूम हुआ कि पहले प्रतिमा अकेली ही थी, लेकिन वह बीते एक माह से मनोज उस के साथ रह रहा था. उस के बारे में पुलिस को यह भी मालूम हुआ कि वह 18 नवंबर, 2023 के बाद नहीं देखा गया था.

इस तहकीकात के साथसाथ सीसीटीवी खंगालने वाली दूसरी टीम को मनोज के कुछ सुराग हाथ लग गए थे. 18 नवंबर की रात को वह एक आटो धारावी से ले कर आसपास के कुछ इलाके में घूमता नजर आया था. आटो किसी रेलवे स्टेशन के रास्ते पर जाने के बजाए कुर्ला में एक कंस्ट्रक्शन साइट पर रुक गया था. उस के बाद उस का पता नहीं चल पाया था.

जांच की एक अन्य टीम मुंबई के रेलवे स्टेशनों पर भी जा पहुंची थी, उन में मुंबई का लोकमान्य तिलक टर्मिनस खास था. वहां पुलिस टीम को एक घबराया हुआ युवक दिख गया, जिस का हुलिया दूसरी जांच टीम से मिली जानकारी से मेल खाने वाला था. उस के पास पुलिस तुरंत जा पहुंची. पास आई पुलिस को देख कर युवक भागने लगा, जिसे पुलिस ने दौड़ कर पकड़ लिया.

पकड़ा गया युवक मनोज बारला था. उसे ठाणे पुलिस ला कर पूछताछ की गई. जब सूटकेस वाली लावारिस महिला की लाश के बारे में उस से पूछा गया, तब वह खुद को रोक नहीं पाया. रोने लगा. एक पुलिसकर्मी ने उसे पीने के लिए पानी दिया. कुछ सेकेंड बाद पानी पी कर जब वह सामान्य हुआ, तब उस से दोबारा पूछताछ की जाने लगी. फिर उस ने लाश के साथ अपने संबंध के बारे में जो कुछ बताया, वह काफी दिल दहला देने वाला था.

दरअसल, यह अभावग्रस्त जिंदगी से तंग आ चुके प्रेमियों की कहानी थी, जो बीते एक माह से बिना शादी किए रह रहे थे. इसे पुलिस रिकौर्ड में लिवइन रिलेशन दर्ज कर लिया गया. उन का प्रेम खत्म हो चुका था और प्रेमी सलाखों के पीछे जाने के काफी करीब था. उस ने जो आगे की कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली—

मनोज ने पुलिस को बताया कि मुझे दुख है कि मैं ने अपने हाथों से अपनी प्रेमिका प्रतिमा पवल किस्पट्टा का गला घोंट दिया. उसी प्रेमिका को मार डाला, जिस ने मुझ से प्रेम किया और मुझे नौकरी दिलाने के लिए ओडिशा से यहां बुलाया था.

उस ने बताया कि प्रतिमा के कहने पर ही वह मुंबई में आया था. मुंबई में स्थित वड़ापाव की एक मशहूर दुकान पर काम करना शुरू कर दिया था. वह एमजी नगर रोड, धारावी में प्रेमिका प्रतिमा के साथ ही रहने लगा था. उन्होंने शादी नहीं की थी, लेकिन प्रतिमा उसे अपना पति बना चुकी थी. इस तरह से उन के लिवइन रिलेशनशिप की शुरुआत हो गई थी.

उन्होंने साथ रहते हुए भविष्य के सुनहरे सपने देखे थे. किंतु वे आर्थिक तंगी से भी गुजर रहे थे. पैसे की कमी को ले कर उन के बीच कभीकभार बहस भी हो जाती थी.

मनोज शिकायती लहजे में बताने लगा, ”सर, प्रतिमा मेरी प्रेमिका जरूर थी, पैसा भी कमाती थी. मैं जब भी अपने खर्चे के लिए मांगता था, तब किचकिच करने लगती थी. इसी बात पर मेरी उस से लड़ाई हो जाती थी. वह बारबार कहती थी कि अपना खर्च कम करो, अपनी कमाई के पैसे लाओ, फिर मुझ से मांगना.’’

इसी के साथ मनोज ने प्रतिमा के चरित्र पर भी शंका के लहजे में बोला, ”सर, प्रतिमा का कोई यार भी था. उस से बहुत देर तक वह फोन पर बातें करती थी. मैं सब समझता हूं सर! एक समय में कभी वह मुझ से भी फोन पर देरदेर तक बातें करती थी…’’