मुख्तार अंसारी की कहानी : मौत के साथ खत्म हुआ माफिया युग

Uttar Pradesh News : मुख्तार अंसारी का जन्म एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था, लेकिन छात्र जीवन में बृजेश सिंह से हुई दुश्मनी की वजह से वह अपराध के गर्त में उतरता चला गया. परिवार का राजनीतिक संरक्षण मिलने पर वह एक ऐसा माफिया डौन बना कि…

गाजीपुर जिले के कोतवाली थानाक्षेत्र स्थित मोहल्ला मुहम्मदपट्टी (महुआबाग) का नाम सामने आते ही लोगों में डर की लहर उठने लगती थी. जब वाहनों का काफिला सड़कों पर निकलता था, तो कुछ देर के लिए ट्रैफिक भी बंद हो जाता था. जिस का यह डर था, उस आतंक के पर्याय का नाम है बाहुबली मुख्तार अंसारी. 57 वर्षीय बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी ने जिस तरह आतंक के बल पर कई सौ करोड़ की चलअचल संपत्ति अर्जित की थी, उस के पाईपाई का लेखाजोखा शासन के पिटारे में सालों से कैद था. 10 अक्तूबर, 2020 की सुबह 7 बजे जब पिटारे का ढक्कन खुला तो गाजीपुर ही नहीं समूचे प्रदेश में भूचाल सा आ गया.

25 जून, 2020 को एसडीएम सदर प्रभास कुमार ने होटल गजल के जमीन की पैमाइश कराई थी. यह होटल मुहम्मदपट्टी इलाके में है. नजूल की इस भूमि को ले कर न्यायालय में सरकार की ओर से वाद संख्या 123/2020 दायर किया गया था. होटल की मालकिन बाहुबली की पत्नी अफशां अंसारी और उन के दोनों बेटे अब्बास अंसारी और उमर अंसारी थे. होटल के एक भाग में एचडीएफसी बैंक, एटीएम और रेस्टोरेंट किराए पर चल रहा था. यह भवन अवैध कब्जे वाली जमीन पर बनाया गया था. इस संबंध में होटल मालिकों को कई बार नोटिस दिए गए थे. अंतिम नोटिस 16 सितंबर, 2020 को सुनवाई के लिए प्राधिकारी/उप जिलाधिकारी (सदर) प्रभास कुमार ने दिया था, जिस में चेतावनी दी गई थी कि अवैध निर्माण भवन स्वत: गिरा दें अन्यथा शासन द्वारा गिरा दिया जाएगा.

लेकिन धनबल के नशे में चूर मुख्तार अंसारी ने प्रशासन के आदेश की अनसुनी कर दी. इस पर मालिकों के नकारात्मक रवैए से नाखुश प्रशासन 10 अक्तूबर, 2020 को फोर्स के साथ सुबह 7 बजे होटल गिराने मुहम्मदपट्टी पहुंच गया. फोर्स में एसडीएम राजेश सिंह, एसडीएम सुशील कुमार श्रीवास्तव, एसडीएम सदर प्रभास कुमार, एसडीएम रमेश मौर्या, एसपी (सिटी) गोपीनाथ सोनी, सीओ (सिटी) ओजस्वी चावला, शहर कोतवाल विमल मिश्रा, क्राइम ब्रांच प्रभारी सरस सलिल, नंदगंज थाना प्रभारी राकेश सिंह और तहसीलदार मुकेश सिंह मौजूद थे. मौके पर भारी पुलिस टीम देख कर सैकड़ों तमाशबीन जुट गए.

तमाशबीन यह देखकर हैरान थे कि पहली बार प्रशासन ने बाहुबली से टकराने की जुर्रत की है, जिन में आज तक ऐसी कूवत नहीं थी. फिर क्या था, देखते ही देखते प्रशासन के बुलडोजर ने होटल गजल को घंटे भर में मलबे में तब्दील कर दिया. जिस होटल को मलबे में तब्दील किया गया था, उस की कीमत 22 करोड़ 23 लाख रुपए आंकी गई थी. सचमुच किसी मजबूत सरकार के कार्यकाल में पहली बार ऐसा कठोर फैसला लिया गया था, जिस से होटल के साथसाथ मुख्तार अंसारी का घमंड भी मलबे में मिल गया था. आइए, जानते हैं मुख्तार अंसारी की माफिया डौन से राजनीतिक सफर की कहानी—

57 वर्षीय मुख्तार अंसारी पूर्वी उत्तर प्रदेश के माफिया सरगनाओं में एक है. प्रदेश में सक्रिय सरगनाओं में उस की गिनती नंबर एक पर होती है. मुख्तार अंसारी का जन्म गाजीपुर जिले के थाना मोहम्मदाबाद के गांव यूसुफपुर के सम्मानित परिवार में हुआ था. उस के पिता काजी सुभानउल्ला अंसारी किसान थे. गांव में उन की इज्जत थी. गांव वालों के सुखदुख में खड़ा होना उन का शौक था. उन की समस्याएं सुनना और निदान करना अच्छा लगता था. सुभानउल्ला अंसारी के 2 बेटे थे अफजल अंसारी और मुख्तार अंसारी. बड़े बेटे अफजल अंसारी ने ग्रैजुएशन के बाद सन 1985 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा. 1985 से लगातार इसी पार्टी से वह 4 बार मोहम्मदाबाद से विधायक चुने गए.

उन के नाना डा. अंसारी 1927 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष थे. आजादी के बाद पाकिस्तान द्वारा कश्मीर पर आक्रमण करने के समय भारतीय सेना की कमान संभालने वाले परमवीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर उस्मान अली भी मुख्तार अंसारी के परिवार से ताल्लुक रखते थे. खैर, भाई का राजनीतिक कद देख मुख्तार अंसारी के भीतर भी राजनीति में जाने की चाहत घर कर गई. 1985 में भाई को विधानसभा पहुंचाने में मुख्तार अंसारी ने काफी मेहनत की थी. अफजल विधानसभा का चुनाव जीत कर माननीय का दर्जा प्राप्त कर चुके थे. मुख्तार अंसारी के भाग्य की लकीरें कालेज के समय में उस समय बदलीं, जब कालेज में छात्रसंघ के चुनाव को ले कर उन की बृजेश सिंह से ठन गई थी.

मुख्तार अंसारी की कालेज में तेजतर्रार छात्र के रूप में पहचान थी. उस के साथ दोस्तों की खासी टोली थी. इतने खास दोस्त कि जरा सी बात पर लड़नेमरने के लिए तैयार हो जाते थे. मुख्तार अंसारी को क्रिकेट खेलने, शिकार करने और तरहतरह के हथियार रखने का शौक था. बृजेश सिंह भी उसी कालेज में पढ़ता था. कसरती बदन और तेजतर्रार दिमाग वाले बृजेश की शैतानी टोली थी. उस में बातबात पर लड़ने और दुश्मनों को धूल चटाने की कूवत थी. छात्र संघ चुनाव को ले कर दोनों के बीच उपजी प्रतिस्पर्धा दुश्मनी में बदल गई थी. कुछ समय बाद बृजेश सिंह का त्रिभुवन सिंह से संपर्क हो गया. त्रिभुवन सिंह मुडि़या, सैदपुर, गाजीपुर का रहने वाला था.

बनारस के धौरहरा गांव का रहने वाला बृजेश सिंह उन दिनों खासी चर्चा में था. उस की गांव के चिनमुन यादव से गहरी अदावत चल रही थी. बृजेश 4 भाइयों में तीसरे नंबर का था. एक दिन मौका मिलने पर चिनमुन यादव ने बृजेश सिंह के पिता रवींद्र सिंह की हत्या कर दी. इस के बाद हत्याओं का जो दौर चला, गाजीपुर की धरती खून से लाल हो गई. बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी आए आमनेसामने बृजेश सिंह के दुश्मन मुख्तार अंसारी की छत्रछाया में चले गए थे. अब बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी आमनेसामने आ गए थे. यहीं से मुख्तार अंसारी की माफिया छवि का उदय हुआ, जो आज तक बरकरार है. इन के साथियों में साधू सिंह, लुल्लर और पांचू नामचीन थे और पुलिस रिकौर्ड में कुख्यात अपराधी भी. किसी की हत्या करना उन के लिए गाजर मूली काटने के समान था.

साधू सिंह की वजह से मुख्तार अंसारी अंडरवर्ल्ड में गहराई से पांव जमा रहा था. अपराध की काली फसल तेजी से फैलती जा रही थी. मुख्तार के ताकतवर होने से बृजेश और उस के दोस्त त्रिभुवन सिंह के पसीने छूट रहे थे. मुख्तार अंसारी को कमजोर करने के लिए बृजेश सिंह और त्रिभुवन सिंह ने मिल कर ऐसी पुख्ता योजना बनाई कि इन के कहर से घबरा कर खुद मुख्तार अंसारी ने दोनों को खत्म करने का बीड़ा उठा लिया. मुख्तार अंसारी बृजेश सिंह और त्रिभुवन सिंह की परछाई तो छू नहीं पाया अलबत्ता उस ने त्रिभुवन सिंह के भाई सच्चिदानंद सिंह की हत्या की योजना बना ली और उसके पीछे हाथ धो कर पड़ गया. कई दिनों की मशक्कत के बाद भी मुख्तार अंसारी उस का बाल बांका नहीं कर सका और हाथ मलता रह गया.

महीनों बाद मुख्तार अंसारी की मेहनत रंग लाई. 28 फरवरी, 1985 की शाम के समय मुख्तार अंसारी और अताउर्रहमान ने मोहम्मदाबाद कस्बे में तिवारीपुर मोड़ पर सच्चिदानंद की गोली मार कर हत्या कर दी. पुलिस के अनुसार, जिस रिवौल्वर से मुख्तार अंसारी ने सच्चिदानंद की हत्या की थी, उसे गोरखपुर के माफिया कांग्रेसी नेता को बेच दिया था. सच्चिदानंद की हत्या से बृजेश सिंह और त्रिभुवन गिरोह बौखला सा गया था लेकिन गिरोह अंदर ही अंदर टूट भी गया था. मुख्तार अंसारी यही चाहता भी था कि बृजेश पूर्वांचल में अपने पांव न जमा सके. इस के बाद बृजेश सिंह गिरोह को एक और झटका करीब एक साल बाद 2 जनवरी, 1986 को लगा. मुख्तार अंसारी गिरोह ने त्रिभुवन सिंह के सगे भाई रामविलास बेड़ा की गोली मार कर हत्या कर दी.

इस खूनी वार में मुख्तार अंसारी का साथ उस के पुराने साथी साधू सिंह, कमलेश सिंह, भीम सिंह और हरिहर सिंह ने दिया था. इस के बाद तो मुख्तार अंसारी गिरोह का पूर्वांचल में खासा आतंक फैल गया था. पुलिस कुख्यात हो चुके मुख्तार अंसारी ऐंड सिंडीकेट को गिरफ्तार करने की फिराक में थी. गिरफ्तार तो दूर की बात पुलिस गिरोह के सदस्यों की परछाई तक नहीं छू पाई और हाथ मलती रह गई. हर बार वह अपने भाई अफजल अंसारी की राजनीतिक पहुंच के कारण बच जाता था. राजनैतिक दबाव के चलते पुलिस मुख्तार अंसारी पर हाथ डालने में हिचकने लगी थी. यहां तक कि कोई भी एसपी मुख्तार अंसारी पर हाथ डालने की कोशिश करता, तो उस का गाजीपुर से कुछ ही दिनों में स्थानांतरण हो जाता था.

मुख्तार अंसारी बड़े भाई के राजनैतिक रसूख का भरपूर लाभ उठाता रहा. जैसेजैसे राजनीतिक संरक्षण मिलता गया, वैसेवैसे उस का आपराधिक ग्राफ बढ़ता गया. यह हाल हो गया था कि अब पुलिस वाले भी मुख्तार अंसारी की गोली का शिकार बनने लगे थे. बृजेश और मुख्तार में छिड़ी खूनी जंग इस का उदाहरण सन 1987 में वाराणसी पुलिस लाइन में देखने को मिला. मुख्तार अंसारी ऐंड सिंडीकेट ने जिस दुस्साहस का परिचय दिया था, उस से प्रदेश पुलिस हिल गई थी. मामला जुड़ा हुआ था बृजेश ऐंड त्रिभुवन सिंह गैंग से. दरअसल, त्रिभुवन सिंह का भाई राजेंद्र सिंह हेडकांसटेबल था. वह वाराणसी में पुलिस लाइन में तैनात था.

मुख्तार अंसारी ने अपने साथियों साधू सिंह, कमलेश सिंह, हरिहर सिंह और भीम सिंह के साथ मिल कर वाराणसी पुलिस लाइन में दिनदहाड़े ताबड़तोड़ गोलियां बरसा कर राजेंद्र सिंह को मौत के घाट उतार दिया था. पुलिस ने मुख्तार अंसारी को गिरफ्तार करने के लिए एड़ीचोटी एक कर दी, लेकिन विधायक भाई अफजल अंसारी के हस्तक्षेप से पुलिस उस का बाल बांका नहीं कर पाई. इस के बाद बृजेश गैंग भी चुप नहीं बैठा. बृजेश और त्रिभुवन गैंग ने मिल कर मुख्तार अंसारी का दाहिना हाथ माने जाने वाले साधू सिंह को मौत के घाट उतार कर अंसारी को तोड़ने की कोशिश की. साधू सिंह की हत्या से मुख्तार अंसारी को बड़ा झटका लगा.

इस के बाद तो बृजेश गैंग ने एकएक कर के मुख्तार असांरी के कई नामचीन साथियों को मौत के घाट उतार दिया. धीरेधीरे बृजेश सिंह गिरोह की पूर्वांचल में तूती बोलने लगी. नब्बे के दशक में 2 आपराधिक गिरोहों की समानांतर सरकार चल रही थी. कभी बृजेश सिंह गैंग मुख्तार अंसारी पर भारी पड़ता तो कभी मुख्तार अंसारी गिरोह बृजेश पर भारी पड़ता. बृजेश सिंह के आपराधिक कद को बढ़ते देख मुख्तार अंसारी सहम सा गया था. बृजेश से टक्कर लेने के लिए उस ने अपने ट्रैक में बदलाव किया. भाई अफजल अंसारी की बदौलत मुख्तार अंसारी की पहुंच सत्ता के गलियारों में गहरी हो चुकी थी. अफजल विधायक थे ही. मुलायम सिंह यादव सरकार में उन की पैठ कुछ ज्यादा ही हो गई थी. सपा सरकार के पहले शासन काल में ही मुख्तार अंसारी की उन से नजदीकियां बन गई थीं.

इसी राजनीतिक पहुंच के कारण मुख्तार अंसारी के घर वालोंं के नाम हथियारों के लाइसेंस स्वीकृत कर दिए गए थे. इन में डीबीबीएल गन, मैग्नम रिवौल्वर, टेलिस्कोपिक राइफल इत्यादि खतरनाक हथियार शामिल थे. इस के बाद मुख्तार अंसारी खुलेआम गाजीपुर में रहने लगा. अब तक जिले की जो पुलिस मुख्तार अंसारी की गिरफ्तारी के लिए बेताब रहती थी, वही पुलिस उस के आगेपीछे घूमती थी. सत्ता के सनकी घोड़े की सवारी करते हुए मुख्तार अंसारी बृजेश गिरोह के बचे हुए गुरगों का एकएक कर सफाया करने लगा. दिसंबर, 1991 में मुख्तार अंसारी की पुलिस से मुठभेड़ हो गई. मुठभेड़ वाराणसी के मुगलसराय थाना क्षेत्र के पास हुई थी.

मुगलसराय एसओ ने रात 8 बजे के गश्त के दौरान एक मारुति जिप्सी में मुख्तार और उस के साथियों भीम सिंह, अरमान व रामजी को जाते हुए देखा तो इशारा कर के उन सब को रुकने को कहा. जिप्सी रोकते ही मुख्तार और उस के साथियों ने पुलिस पर फायरिंग करनी शुरू कर दी. जबावी काररवाई में पुलिस ने भी उन पर फायरिंग की और मुख्तार सहित सभी साथियों को गिरफ्तार कर लिया. कस्टडी में पुलिस अधिकारी का किया कत्ल तलाशी लेने पर जिप्सी में से 2 आटोमैटिक राइफल, 2 बंदूक और एक रिवौल्वर बरामद हुई. मुख्तार अंसारी को कैद में रखना आसान नहीं था. गिरफ्तार करने वाले पुलिस वालों में से एक को मुख्तार अंसारी ने पहचान लिया, जो बृजेश गुट के एक कारकुन का भाई था और पुलिस में था.

मुख्तार अंसारी ने अपनी विदेशी रिवौल्वर से उस की हत्या कर दी और पुलिस कस्टडी से फरार हो गया. पुलिस हाथ मलती रह गई. इस घटना ने खासा तूल पकड़ा. उस वक्त प्रदेश में भाजपा की सरकार थी. सरकार की सख्ती से मुख्तार अंसारी के घर की कुर्की तक हो गई थी. विधायक अफजल अंसारी के घर पर पुलिस ने छापा मारा. मामले ने काफी तूल पकड़ा और सरकार पर आरोप लगा कि अन्य पार्टी का होने के नाते भाजपा सरकार विधायक का उत्पीड़न कर रही है. मामला विधानसभा तक पहुंच गया और वहां इसे ले कर खूब हंगामा हुआ. बाद में काफी हंगामे के बाद विधानसभा अध्यक्ष केसरीनाथ त्रिपाठी ने घटना की जांच का आदेश विधानसभा के पूर्व अघ्यक्ष भलचंद्र शुक्ल को सौंपा.

पुलिस रिकौर्ड के अनुसार, इस घटना के बाद मुख्तार अंसारी ने चंडीगढ़ और पंजाब के शहरों में छिप कर फरारी काटी. इसी दौरान उस की पंजाब के आतंकवादियों से साथ मुलाकात हुई. दुश्मनों का सफाया करने के लिए उस ने इन्हीं आतंकवादियों के जरिए एके-47 हासिल की. यह बात सन 1991-92 के करीब की है. प्रदेश में भाजपा की सरकार रहते मुख्तार अंसारी ने उत्तर प्रदेश की ओर मुड़ कर नहीं देखा. भाजपा का शासन खत्म होते ही मुख्तार अंसारी एक बार फिर सक्रिय हो गया. वह 1993 का दौर था, जब मुख्तार अंसारी ने दिल्ली के व्यवसाई वेदप्रकाश गोयल का अपहरण कर के देश के पुलिसिया तंत्र को हिला दिया था. व्यवसाई गोयल को मुक्त करने के एवज में मुख्तार अंसारी ने उन के घर वालों से 50 लाख रुपयों की मांग की.

मुख्तार अंसारी ने गोयल को चंडीगढ़ के एक मकान में कैद कर के रखा था. अंतत: दिल्ली पुलिस एड़ीचोटी का जोर लगा कर वेदप्रकाश गोयल को माफिया डौन मुख्तार अंसारी के चंगुल से आजाद कराने में कामयाब हो गई थी. पुलिस ने चंडीगढ़ के मकान से कई जहरीले इंजेक्शनन तथा तमाम आपत्तिजनक वस्तुएं बरामद कीं. इस के बाद पुलिस ने मुख्तार और उस के साथियों पर ‘टाडा’ लगा कर उन्हें तिहाड़ जेल भेज दिया. उस के बाद प्रदेश में मुलायम सिंह की सरकार बनी तो मुख्तार की किस्मत का ताला फिर खुल गया. उसे टाडा कानून से राहत दे कर गाजीपुर जेल स्थानांतरित करा दिया गया.

मुलायम के आशीर्वाद से फैले पैर गाजीपुर में किसी जेल अधिकारी की मुख्तार की हरकतों को रोकने की हिम्मत नहीं थी. उस के गुर्गों की ओर से उन्हें धमकी मिलती थी ‘यदि जिंदा रहना है तो अपनी आंखें और जुबान दोनों बंद रखो, वरना कत्ल कर दिए जाओगे.’ मुख्तार की धमकियों के आगे जेल पुलिस नतमस्तक रहने को मजबूर हो गई. मुलायम सिंह यादव की अंसारी परिवार पर खास नजर रहती थी. इस से पूर्व बसपा मुखिया मायावती की नजर मुख्तार अंसारी पर थी. एक ऐसा भी दौर था जब मायावती और मुलायम सिंह के बीच मुख्तार को अपनीअपनी पार्टी में लेने के लिए होड़ मची. तब वह मायावती के पाले में चला गया.

विधायक अफजल अंसारी मुलायम सिंह के हुए तो मुख्तार अंसारी ने भी मायावती को छोड़ कर सपा का दामन थाम लिया. बाद के दिनों में बड़े आपराधिक कारनामों को अंजाम दे कर मुख्तार अंसारी ने सब को सकते में डाल दिया. ठेकेदारी, खनन, स्क्रैप, शराब, रेलवे ठेकेदारी में अंसारी का कब्जा बरकरार था, जिस के दम पर उस ने अपनी सल्तनत खड़ी की. मऊ की जनता का कहना है मुख्तार अंसारी गरीबों के मसीहा हैं. अमीरों से लूटते हैं तो गरीबों में बांटते हैं. मुख्तार अंसारी पुलों, अस्पतालों और स्कूल कालेजों पर अपनी विधायक निधि से 20 गुना ज्यादा पैसे खर्च करते थे. यही वो वक्त था, जब मुख्तार की रौबिनहुड इमेज पर बसपा ने बहुत जोर दिया. 2009 के लोकसभा चुनाव में मुख्तार अंसारी बनारस से खड़ा हुआ और बीजेपी के मुरली मनोहर जोशी से हार गया.

खास बात यह थी कि मुख्तार ने यह पूरा चुनाव जेल के अंदर से ही संभाला. मुख्तार जब गाजीपुर की जेल में था तभी पुलिस रेड में पता चला कि उस की जिंदगी जेल में बाहर से भी ज्यादा आलीशान और आरामदायक है. अंदर फ्रिज, टीवी से ले कर खाना बनाने के बरतन तक मौजूद थे. तब उसे मथुरा जेल में भेज दिया गया. साल 2010 में बसपा ने मुख्तार के आपराधिक मामलों को स्वीकारते हुए उसे पार्टी से निकाल दिया. अब मुख्तार ने अपने भाइयों के साथ नई पार्टी बनाई, जिस का नाम था- कौमी एकता दल. जिस से वह 2012 में मऊ से विधानसभा का चुनाव जीत गया. 2014 में मुख्तार ने ऐलान किया कि वह बनारस से नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ेगा, लेकिन बाद में उस ने यह कह कर आवेदन वापस ले लिया कि इस से वोट सांप्रदायिकता के आधार पर बंट जाएंगे.

2016 में जब मुख्तार अंसारी को सपा में शामिल करने की बात आई, तो उस वक्त मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने मंत्री बलराम यादव को मंत्रिमंडल से ही बाहर का रास्ता दिखा दिया. बलराम यादव ने ही मुख्तार अंसारी को सपा में लाने की बात कही थी. किसी तरह मुलायम सिंह से कहसुन कर बलराम यादव तो पार्टी में वापस आ गए, लेकिन मुख्तार अंसारी को पार्टी में शामिल न करने की बात पर अखिलेश यादव अड़े रहे. इस के बाद विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मुख्तार अंसारी के बड़े भाई अफजल अंसारी ने अपनी पार्टी कौमी एकता दल का मायावती की पार्टी बीएसपी में विलय कर दिया.

बहरहाल, विधायक मुख्तार अंसारी तमाम गुनाहों की सजा काटने के लिए 2006 से विभिन्न जेलों में बंद था. फिर उसे बांदा जेल में लाया गया था. बिल्डर से मांगी 10 करोड़ की रंगदारी 23 जनवरी, 2019 को बसपा विधायक मुख्तार अंसारी को बांदा जेल से पंजाब के मोहाली जेल ले जाया गया. अंसारी को मोहाली के बिल्डर से 10 करोड़ की रंगदारी मांगे जाने के मामले में गिरफ्तार किया गया था. इस मामले में उसे 24 जनवरी को मोहाली कोर्ट में पेश किया गया, जहां अदालत ने उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में मोहाली की रोपड़ जेल भेज दिया. तब से वह मोहाली जेल में बंद है.

बाहुबली मुख्तार अंसारी के गुनाहों का शिकंजा उस के घर वालों पर कसता जा रहा है. गाजीपुर जिले के विशेष न्यायाधीश (गैंगस्टर कोर्ट) गौरव कुमार की अदालत ने 19 सितंबर, 2020 को मुख्तार अंसारी की पत्नी आफशां अंसारी और 2 सालों के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी किया गया है. कोतवाली पुलिस द्वारा दर्ज गैंगस्टर एक्ट के मामले में तीनों फरार चल रहे थे. एसपी डा. ओ.पी. सिंह ने बताया कि शासन के निर्देशानुसार प्रदेश भर में माफियाओं और अपराधियों के खिलाफ अभियान चल रहा है. नगर कोतवाली में दर्ज गैंगस्टर एक्ट के वांछित आईएस-191 गैंग के लीडर मुख्तार अंसारी की पत्नी आफशां अंसारी और उस के सालों शरजील रजा व अनवर शहजाद के खिलाफ गैंगस्टर कोर्ट द्वारा गैरजमानती वारंट जारी किया गया था.

अब बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी, उस के घर वालों, रिश्तेदारों और करीबियों की सूची तैयार कर प्रदेश भर में काररवाई की जा रही है. पुलिसिया जांचपड़ताल में मुख्तार अंसारी की पत्नी आफशां अंसारी व उस के साले शरजील रजा और अनवर शहजाद द्वारा संगठित आपराधिक गिरोह के रूप में अपराध के मामले सामने आए थे. साथ ही छावनी लाइन स्थित भूमि गाटा संख्या-162 और बवेरी में भूमि आराजी नंबर-598 कुर्क शुदा जमीन पर अवैध कब्जा का मामला प्रकाश में आया था. इस के अलावा आरोपी शरजील रजा और अनवर शहजाद द्वारा सरकारी ठेका हासिल करने के लिए फरजी दस्तावेज तैयार कर प्रस्तुत करने की बात भी सामने आई थी.

इस संबंध में भी थाना कोतवाली में मुकदमा दर्ज करने के बाद विवेचना और आरोप पत्र अदालत में भेजा गया है, जबकि आरोपी आफशां अंसारी द्वारा सरकारी धन के गबन व अमानत में खयानत के आपराधिक कृत्य के संबंध में भी सैदपुर में मुकदमा पंजीकृत है. इन आपराधिक मामलों पर प्रभावी काररवाई करते हुए पुलिस ने साले शरजील रजा, अनवर शहजाद और पत्नी आफशां अंसारी के खिलाफ बीते 12 सितंबर, 2020 को गैंगस्टर एक्ट का मुकदमा दर्ज किया था. मुकदमा दर्ज होते ही तीनों फरार हो गए. तीनों के खिलाफ 19 सितंबर, 2020 को गैरजमानती वारंट जारी किए जा चुके हैं.

बहरहाल, बाहुबली मुख्तार अंसारी के जुर्म की दास्तानों पर कई सनसनीखेज किताबें लिखी जा सकती हैं. फिर भी उस के जुर्म की दास्तान थमेगी नहीं. शासन मुख्तार अंसारी द्वारा जुर्म कर के बटोरी संपत्ति का लेखाजोखा जुटा रहा था.

—कथा पुलिस सूत्रों आधारित

 

Hindi Story : तवायफ की आजादी

Hindi Story : शब्बो अपनी मरजी से तवायफ नहीं बनी थी. उसे इस की ट्रेनिंग उस के अपने घर वालों ने ही दी थी. 16 साल की उम्र में उस के मामूजान ने उसे एक मर्द के साथ कमरे में धकेला था. इस के बाद तो उस के पास मुल्लामौलवी, साधुपुजारी, नेता, माफिया, अधिकारी आदि आते रहे. इस के बाद उसे समाज से ही नफरत सी हो गई. फिर एक दिन एक प्रोफेसर साहब ने उस की ऐसी जिंदगी बदली कि…

मैं एक तवायफ हूं. तवायफ होना बुरी बात है या अच्छी बात, यह तो मैं नहीं जानती. मैं तो बस इतना जानती हूं कि मैं अपनी मरजी से तवायफ नहीं बनी थी, बल्कि मेरी खाला ने मुझे मेरी अम्मी की ढलती उम्र, बीमारी और घर की माली हालत को ध्यान में रखते हुए मुझे तवायफ बना कर बाजार में खड़ा कर दिया था बिकने के लिए. मगर मैं कभी बिकी नहीं, केवल यह लोचदार गोरी देह बिकती रही, जो घुंघरुओं के साथ जब सज कर खड़ी होती थी तो मेरी दादी के जेवर उस पर खूब फबते थे.

मीना बाजार की तीसरी गली के आखिरी छोर के कोने वाला मकान दुमंजिला तो था ही, उस के दाएं हाथ मंदिर और बाएं हाथ मसजिद थी. जैसे वह 2 संस्कृतियों के संगम पर स्थित पावन धाम हो, जहां गरीबअमीर, पढ़ेलिखे, अनपढ़ और ग्रामीणशहरी सभी स्नेहिल स्नान कर स्वयं को कृतार्थ करते थे.

सीढिय़ां चढऩेउतरने वालों में विवाहितों की संख्या ज्यादा और कुंवारों की कम होती थी. वह जैसा भी था, अच्छा था. इस लिहाज से कि यह मकान दादी के जमाने से किराएदारी में था. इस के नीचे की मंजिल की फर्श लोना लगने और सीलन की वजह से टूटने लगी थी, मगर ऊपर के फर्श में अम्मीजान के जमाने में पत्थर लगाया गया था और इस इमारत की दूसरी मंजिल सजधज कर पूरे साजशृंगार के साथ सुगंधपूरित किसी दुलहन से कम न थी. दरवाजों और खिड़कियों के परदे नए थे, मगर रसोई से बेहतर उस के बाथरूम थे.

आज ईद का दिन था. दिन में किसी से मिलनाजुलना सख्त मना था, मगर शाम बड़े ओहदेदार लोगों की होनी थी. कुछ अफसर, कुछ राजघराने और कुछ माफियाओं से भरी पूरी महफिल हो, इस के लिए दलालों को विशेष लालच दिया गया था. नृत्यशाला का मुख्यद्वार खुला था, जिस की सीढिय़ों के दोनों ओर महाबली चाचा लोग बैठाए गए थे.

भीतर की ओर परदे के बगल में खूब लालीसुरमा लगा कर पान खा कर बैठी थीं खाला और दूसरी ओर पीछे के दरवाजे पर सज कर बैठी थीं अम्मीजान, जहां से एक रास्ता आंगन को जाता था और दूसरा 2 कमरों की ओर. जहां पलंग पर सजावट के साथ गुलाब की पंखुडिय़ां बिछाई गई थीं. पलंग के दोनों ओर सुंदर सिरहानों की तरफ 2 मालाएं टंगी थीं और पास की मेज पर इत्रदान, ब्रांडी, 2 गिलास और पान के बीड़े रखे गए थे.

कमरों से लगे बाथरूम थे, जहां साबुन और तौलिए हर समय टंगे रहते थे. बाथरूम के बाहर की ओर एक बड़ा शृंगारदान था, जिस में लंबा शीशा और बेहतरीन शृंगार सामान उपलब्ध था. यह मेरी बाजारू जिंदगी की पहली रात जो सुहागरात थी, जहां किसी मर्द से एक औरत को प्यार करने पर बख्शीश मिलनी थी. मैं सुबह से ही घबराई सी इधरउधर दुबक जाती थी, मगर मेरी खाला मुझे बारबार थपकियां देते हुए अपनी पहली रात की आपबीती सुनाती थीं और कभी अम्मीजान. मुझे यह लगता था कि जैसे मैं किसी कसाई के खूंटे में बंधी एक गाय थी, जिसे पूज कर, फूलपत्र भेंट कर और खिलापिला कर बलि के लिए तैयार किया जा रहा था.

कोई कहे कि मेरी आंखें खंजर की तरह कंटीली हैं तो कोई कहे मेरे होंठ बिंबाफल और मेरे दांत अनार के दाने जैसे लगते हैं. मेरे कपोल सेब की तरह गोल सुर्ख थे, जिस के बीच में काला तिल बड़ेबड़े झुमके से छू जाता था. मेरे केश थे कि देखने वालों की आंखें बांध कर महफिल को जिंदादिली देते थे. माथे की बिंदी और हाथों के कंगन जैसे किसी जवानी का स्पर्श पाने के लिए बेताब रहा करते थे. चांदी का कामदार घाघरा अंगुलियों से फिसलफिसल जाता था.

फिर मेरी उम्र ही क्या थी, मात्र 16 के पायदान पर खड़ी थी. मगर अम्मीजान के साथ नाचतेगाते मेरी शौक के पंख उग आए थे. मैं लोगों को आतेजाते, अम्मीजान से हंसतेबोलते देखती थी और कमरे में बंद चुपचाप उन हिलती परछाइयों की ताकाझांकी कर चुकी थी. तब मेरा मन मेरे तन से पहले जवान हो उठा था. यूं तो आंखमिचौनी खेलने की आदत तो मुझे 14 की उम्र से ही बन चुकी थी. कभीकभी ख्वाबों में कोई मनचाही सूरत मुझे उठा लेती थी. कभी जब सपनों में जाती तो कोई मेरी जवान देह को मरोड़ कर इस तरह कस लेता था कि मैं बेदम हो कर सुबह बिस्तर से उठती थी. तब मैं बिलकुल नासमझ थी और मुझे कोई अनुभव न था.

हालांकि एक दिन मेरे मामू मुझे किसी मर्द के साथ अंधेरे बंद कमरे में मिलने की ट्रेनिंग दे चुके थे. वह बेशर्म रात मेरे माथे पर पसीना छोड़ चुकी थी. वस्त्र पहनने और वस्त्रहीन होने के लिए मेरी अम्मीजान ने मुझे सब हुनर सिखा दिए थे. फिर भला मामू के सामने किस की बोलने की हिम्मत थी. उसी दिन मैं ने जान लिया था कि किसी तवायफ से जिंदगी में कहनेसुनने के रिश्ते होते हैं, मगर दैहिक रूप उस के किसी से भी मर्द और औरत के ही रिश्ते दिए थे.

बाजार के पहले दिन की शाम गहरा गई थी. मेरी यह कोमल गोरी देह बिक चुकी थी. मंदिर के पुजारी को मेरे गुलाब की 2 पंखुड़ी से खिले होंठ और कजराई आंखें भा गई थीं. नाचतेनाचते आज मैं बहुत थक गई थी. चारों ओर से महफिल में मुझ पर रुपए लुटाए जा चुके थे. ढेर सारे रुपयों से मामू की थैलियां भर गई थीं और उधर मेरी खाला ने मंदिर के पुजारी को इशारा कर दिया था.

आज की रात मुझे पुजारी के साथ बितानी थी. आईने के सामने मेकअप पूरा हो चुका था. केश में फूलों के गुच्छे मोतियों की लडिय़ों के साथ गूंथे गए थे. होंठों पर लालिमा थी. कानों में कर्णफूल झूल रहे थे. माथे पर तिलक खिल रहा था. गेंद जैसे कपोलों पर सुर्खी छाई हुई थी. आंखों से चांदनी फूट रही थी. स्वर्णमालाएं थीं, जो वक्ष पर झूल रही थीं, सफेद झीने गाउन पर लाल चूनर और हाथों के कंगन मिल जा रहे थे. यूं समझो कि अम्मीजान ने उस रात मुझे इंद्र की अप्सरा बना कर कक्ष में धीरेधीरे प्रवेश करने की इजाजत देते हुए बाहर से दरवाजे बंद कर लिए थे.

कमरे में पूरा उजाला था. मैं धीरेधीरे शृंगारदान के सामने आ कर चुपचाप खड़ी हो गई थी, क्योंकि मेरी नाक की नथ मेरे चेहरे पर पड़ी चूनर से अटक गई थी. अकस्मात मुझे ऐसा लगा कि मैं डरी बकरी सी भेडि़ए की मांद में खड़ी हूं. पुजारी पलंग पर गिर्दे के सहारे बैठा मुझे घूरता रहा और मैं शराब की बोतल खोल कर उड़ेल चुकी थी. गिलास दोनों भरे थे. मैं ने जिस हाथ से गिलास बढ़ाया था, वही पकड़ा गया था. हम दोनों ने एकदूसरे को बारबार शराब पिलाई. नशा इतना चढ़ चुका था कि हम दोनों होश में न थे.

जब बाहर से दरवाजा खुला और मैं होश में आई तो सुबह के सूरज की किरणें रोशनदान से भीतर झांकने लगी थीं और मैं अर्धनग्न बिस्तर पर उल्टी पड़ी थी. मेरे हाथ खून से सने थे और एक खून से सना चाकू पलंग के नीचे पड़ा था. यह देख कर मैं चौंक पड़ी और घबरा गई. मैं ने अपने बगल पड़े पुजारी को देखा तो उस के पेट के घावों से खून बह कर बिस्तर पर फैल गया था. फिर तो मैं थरथरा गई थी और जोरों से चिल्ला उठी.

मेरे मामू भागते हुए मेरे कमरे में आए और मेरा मुंह अपने हाथों से दबा कर मुझे दूसरे कमरे में ले गए, जहां मेरी खाला अम्मीजान के साथ मशविरा कर रही थीं. जैसे इन लोगों को इस घटना की जानकारी मुझ से पहले थी. मुझे पहले डांटा गया, फिर पुलिस के सामने चुपचाप उन के बताए अनुसार बयान देने की तमीज सिखाई गई.

औरत अपनी जिंदगी में क्या कुछ नहीं देखती, मगर मैं ने इतनी छोटी उम्र में जो कुछ देखा था, वह किसीकिसी को ही देखने को मिलता होगा. उस दिन मुझे लगा था कि जिंदगी तमाम घटनाओं का योग है जो आम आदमी की जिंदगी में नदी की धार की तरह हिलकोरें मारती और कगारों को तोड़ती हुई पत्थर को भी रेत बना देती है. जहां आदमी के आदमी होने का मकसद अधूरा रहा जाता है, जहां हाशिए का आदमी उछाल मार कर मुखपृष्ठ पर आ जाता है और फिर मुखपृष्ठ अपनी जगह से गायब हो जाता है.

कई बरस बीत गए. घटना की पुलिसिया जांचपड़ताल होती रही. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में नशे की हालत में आत्महत्या कर लेने की बात जगजाहिर हो चुकी थी और रोजरोज अखबार के पन्नों पर अक्षरों की स्याही चढ़ती रही. मगर कुछ नहीं हुआ. पुलिस के कुत्ते मेरे जिस्म से खिलवाड़ करते रहे, पूरीपूरी रात अंधेरे कमरों में ले जा कर मुझे भोगते रहे और मेरे मामू मोहल्ले के माफियाओं तथा नेताओं की शागिर्दी करते रहे.

बाद में एक रात मसजिद के मौलवी मामू से मिलने आए थे. रुपयों की गड्डियां पकड़ाते हुए बोले, ”रहमान भाई, मुकदमे की परवाह न करना. खुदा चाहेगा तो सब ठीक हो जाएगा मगर हम मसजिद के बगल के मंदिर में कोई पुजारी नहीं देखना चाहते.’’

मामू बोले, ”खुदा की कसम, सच कहता हूं मौलवी साहब, अगर आप का हाथ मेरे सिर पर है तो कोई पुजारी मेरी खूबसूरत शब्बो को छू भी नहीं सकता.’’

मौलवी ने कहा, ”ये साला पुजारी, जब नमाज पढऩे का वक्त होता, तभी अपने घंटेघडिय़ाल, शंख बजाने लगता था और यह सुन कर मेरी आंखों में खून उतर जाता था.’’

मामू हंस कर बोले, ”चलो, अब तो चेहरे पर मुसकान लाओ, मैं ने तो अब आप के पांव का कांटा निकाल कर फेंक दिया.’’

मौलवी उठ कर चलने को हुए ही थे कि अम्मीजान ने उन के गले में अपनी बाहें डालते हुए अंगड़ाई ले कर कहा, ”तो मेरी ओर न देखो, मगर शब्बो को तो चूमते जाओ.’’

यह सुन कर मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे. मैं सोचने लगी, ‘ये मसजिद के नमाजी लोग भी इन कोठों पर कैसे सीढिय़ां चढ़ कर अपनी हवस मिटाने आते हैं? इन्हें खुदा से भी डर नहीं लगता.’

मैं बड़बड़ा ही रही थी, तभी पीछे से किन्हीं 2 हाथों ने मेरी दोनों आंखें बंद कर मुझे घसीट लिया था और मैं बिस्तर पर पांव मलतेमलते शिथिल हो गई थी. पूरी रात वो मुझे भोगता रहा. उस दिन से मुझे नेता, माफिया और अधिकारियों की तरह मुल्लाओं, मौलवियों, साधुओंपुजारियों से नफरत हो गई थी. नफरत क्यों न हो जाती? इन्हीं लोगों ने तो हम लोगों को तवायफ होने के लिए मजबूर किया था. एक औरत को बाजार में बिकने की इजाजत दी थी. फिर तवायफ न होती तो क्या होती?

पेट की भूख मिटाने के लिए हम ने इंसानी भेडिय़ों को अपना मांस नोचने का आमंत्रण दे डाला था. इसीलिए मुझे किसी एक व्यक्ति से शिकायत नहीं, बल्कि उस व्यवस्था से थी, जो तरहतरह के मुखौटे लगा कर मेरे तलवे चाटने आती थी. कहीं ऊंट की चोरी निहुरेनिहुरे करने वाले सच्चाई से मुकाबला करने का साहस जुटा सके हैं?

सच कहती हूं मैं. मेरा जिस्म भले ही मैला हो गया था या बेजान हो कर पाप में पथरा गया था, मगर मेरे भीतर की चेतना सच का सामना करने से कभी कतराई नहीं थी. वह तो आईने की तरह पाकसाफ थी, क्योंकि मैं ने कभी किसी को छला नहीं था, किसी से कुछ मांगा नहीं था और किसी की परछाई से अपना रिश्ता जोड़ा नहीं था. इसलिए कि मेरे लिए प्रेम का कोई नया अर्थ होता था, जहां देह से देह का मिलन होता है, आत्मा से आत्मा का नहीं. जहां नदी की गहराई और सागर की संवेदना से कभी दूरदूर का ताल्लुक नहीं होता बल्कि तट की सीढिय़ों को कुचल कर आगे बढऩे वाले हमें घूम कर भी नहीं देखते.

शायद उन के लिए औरत एक वस्तु होती है, जो जरूरत पूरी होने पर फेंक दी जाती है. जिसे इस दुनिया के लोग मौका पा कर अपनाते तो हैं, चोरी से ही सही, मगर वे ही समाज के धरातल पर उस के घृणा और छुआछूत का ढोंग रचाते हैं और वह है कि सब कुछ जान कर अपनी आंखों पर चश्मा चढ़ाए हुए कुछकुछ अनदेखा कर जाती है. उन मर्यादा पुरुषोत्तम की आंखों से अपनी आंखें मिलाती भी नहीं. वह दिन मेरी जिंदगी में एक भूकंप ले कर आया था, जिस दिन प्रो. लक्ष्मण मेरे कोठे पर नशे की हालत में चढ़ आए थे. उन का शहर में बड़ा नाम था. उन्होंने कई उपन्यास और नाटक लिखे थे और शहर में जब कोई उत्सव होता था तो वे उस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि हुआ करते थे.

उन का न तो कभी किसी तवायफ से ताल्लुक था और न इन संकरी गलियों से, लेकिन न जाने कैसे उन के डगमगाते पांव कोठे की सीढिय़ां चढ़ कर मुजरा सुनने आ गए थे. उन्होंने आते ही खाला और अम्मीजान से मुजरा सुनाने की अपनी इच्छा जाहिर की. अधेड़ उम्र, सांवला चेहरा, सुंदर बनावट, घुंघराले बाल. सब कुछ कुरतापैजामे में एक शरीफ आदमी के भटक कर किसी तवायफ के जाल में फंस जाने की पहचान दे रहे थे. कभी वह हम सब को देख कर हंसते तो कभी अपनी शायरी सुनाते हुए पैनी आंखों से घूरघूर कर संदेह की नजर से देखते थे.

उस दिन मैं ने अपना मनचाहा ग्राहक समझ कर उन्हें कई गजलें सुनाई थीं. मैं उन के पास ही बैठी थी और वह मुझे बख्शीश देते जा रहे थे. हर गजल उन के लिए लाखों की लग रही थी. पहली बार मैं ने किसी गजल के उस्ताद को देखा था, जो हर गजल को सुन कर अपनी राय देता था और उस के बदले में बख्शीश भी.

कुछ देर बाद वह बोले, ”आप का नाम क्या है?’’

मैं ने धीरे से उत्तर दिया, ”शब्बो!’’

उन्होंने मुझे पास बुला कर मेरी पीठ थपथपाई और कहा, ”क्या किसी मंच पर पहुंच कर गजलें पेश कर सकती हो?’’

न जाने क्यों यह सुनते ही मैं रोमांचित हो उठी थी और उस समय वह मुझे एक पैगंबर लगे थे. मेरी आंखों के आंसू उन के रुमाल पर गिर गए थे और मैं खालाजान के डर के मारे वहां से उठ कर भीतर भाग गई थी. इस रहस्य को उन्होंने नजदीक से समझ लिया था. इसीलिए उन्होंने मेरी अम्मीजान से रात कोठे पर ही बिताने की इच्छा जाहिर की थी. जब मैं सजधज कर उन के कमरे में गई तो वे नशे में चूर थे. शीशे के सामने पहुंचते ही मुझे पुजारी की याद आई. मेरी आंखों के आगे प्रो. लक्ष्मण की जगह पर उस की लाश पड़ी दिखाई देने लगी थी क्योंकि वह नशे में धुत पड़े थे. मैं दोबारा वह घटना घटित होने नहीं देना चाहती थी. इसलिए मैं ने भीतर से भी दरवाजा बंद कर लिया था.

हालांकि इस बात के लिए मैं कई बार डांट खा चुकी थी. खाला ने मुझे डांट कर कहा था, ”तू दरवाजा भीतर से मत बंद किया कर, कभी तवायफ का कसाइयों से पाला पड़ जाता है, तब तुझे कौन बचाएगा?’’

यह सुन कर मैं सहम जाती थी. मैं ने कई बार लक्ष्मणजी को जगाने और उठाने की कोशिश की, मगर वे आंखें नहीं खोल सके. मैं ने उन की दशा देख कर यह समझ लिया था कि न तो वे कभी शराब पिए थे और न ही किसी तवायफ के कोठे पर चढ़े थे. बालकों की तरह निश्ंिचत हो कर वह चुपचाप पड़े रहे और मैं बिस्तर पर बैठी उन के हाथपैर सीधे करती रही. उन की जेब के ढेर सारे रुपए बिखर कर बिस्तर पर पंखुडिय़ों के साथ मिल गए थे. मैं उन के घुंघराले बालों से खेलती हुई कब सो गई, मुझे भी पता नहीं था.

रात गहरी थी और मैं एक बार जाग कर फिर लेट गई थी. कुछ देर में उन्हें उठता देख कर मैं ने अपनी आंखें मूंद लीं. उन्होंने मुझे अपनी गोद में ले लिया और धीरेधीरे मेरे चेहरे पर बिखरे हुए बाल संवारने लगे थे. मुझे उन की यह आत्मीयता और किसी से नहीं मिल पाई थी. मुझे लगा कि मैं किसी शरीफ की गोद में लावारिस सी विश्राम कर रही हूं. मुझे जिस के सहारे की जरूरत थी, वह मिल गया था. उन्होंने मुझे जगाते हुए कहा, ”शब्बो! हमारे देश में औरत एक ढोल की तरह है. आदमी उसे जिस तरह चाहता है, उस तरह बजाता है. औरत को आदमी की इच्छानुसार बजना भी पड़ता है, मगर ढोल भीतर से खाली होती है तभी बजता है.’’

मैंने कहा, ”जी, हुजूर! औरत तो ‘यूज ऐंड थ्रो’ के लिए होती है आजकल. फिर तवायफ को इस समाज की वह वस्तु समझ लीजिए जो अंधेरे में चूमी जाती है और उजाला होते ही फेंक दी जाती है.’’

वह बोले, ” शब्बो, इस का मुझे अफसोस है. मैं तो अपने घर की दीवार लांघ कर कहीं नहीं गया मगर आज..!’’

मैं ने तुरंत पूछा, ”मगर आज क्या?’’

वह गंभीर हो कर बोले, ”आज तुम मेरी बाहों में हो. मैं स्वयं यहां अपने को पा कर आश्चर्य में हूं. शराब के नशे में मेरे पांव इधर आ गए… और यह शराब जो तुम्हारी तरह पहली बार मेरे सिर पर सवार हो गई है.’’

मैं तुरंत उन की ओर देख कर उठ बैठी और बोली, ”नहीं, हुजूर! मैं तो आप के पैरों की जूती हूं, मैं आप के सिर चढऩे का हक कहां रखती हूं.’’

यह सुनते ही उन्होंने मुझे कई बार अपने हृदय से लगाया और कई बार चूमा. थोड़ी देर खामोश रह कर फिर बोले, ”शब्बो, क्या तुम इस नर्क से बाहर निकलना पसंद करोगी?’’

यह सुन कर मैं चौंक पड़ी, जैसे कोई मेरे मुंह की बात छीन ले गया हो. मैं ने उन के होंठ पर अंगुली रखते हुए कहा, ”हुजूर, आप मेरा इम्तिहान न लें, बल्कि यह वादा करें कि आप इस कोठे पर मेरे लिए आते रहेंगे.’’

प्रो. लक्ष्मण ने कहा, ”यह मेरे प्रश्न का उत्तर तो नहीं है. हो सके तो तुम्हें पिंजरे से बाहर अपने मन को खोल कर खुले आकाश में खुली सांस लेनी चाहिए.’’

”कौन पिंजरे का पक्षी है, जो उस आकाश को छूना नहीं चाहता. मगर उस के पर खुलें तब न..!’’

”बस, बहुत हो गया शब्बो! अब तुम बाहर चलने के लिए तैयार हो जाओ.’’ वे बोले.

मैं ने कहा, ”क्या बात करते हैं आप. अब अंधेरा और गहराने लगा है.’’

मैं मन ही मन सोचने लगी कि अभी तक हमारे पीछे दुनिया थी तो मैं भाग रही थी और जब दुनिया के पीछे मैं हो गई हूं तो वह भाग रही है. यह समाज की कैसी विडंबना है. प्रो. लक्ष्मण किसी तरह भी कोठे पर बारबार आने के लिए राजी न थे और न ही मुझे इस पेशे में बंधे रहना ही देख सकते थे.

उन्होंने नारी निकेतन में पहुंच कर मुझे सुरक्षित रहने के लिए प्रेरित किया था. वह चाहते थे कि मैं इस माहौल से बाहर निकल कर नारी के वजूद के लिए संघर्ष करने की हिम्मत जुटाऊं. प्रोफेसर सारी रात नारी विमर्श करते रहे और यह भूल गए कि वह इस कोठे पर क्यों चढ़े थे? उन की अंदरूनी सच्चाई उन की आंखों से झांकने लगी थी और वे मुझे इस जमाने के बहादुर योद्धा की तरह दिखाई देने लगे थे. कुछ शरीफ लोग मुझे झूठे आश्वासन दे कर मेरे भोलेपन का फायदा उठा रहे थे. मगर प्रोफेसर मुझे भोले लग रहे थे और मैं उन के भोलेपन का फायदा उठाने की कोशिश करने लगी थी.

आज मैं कोठे से उतर चुकी थी और पुलिस की मदद से नारी निकेतन के उस सहायता केंद्र में पहुंच चुकी थी, जहां प्रो. लक्ष्मण मेरा इंतजार कर रहे थे. मेरे पहुंचने से पहले मेरे मामू अम्मीजान के साथ वहां मौजूद थे. यह देख कर मैं संकुचित हो गई थी, एक भय जो मामू की पिछली मार का मेरे मन में भरा था, उभर आया था, लेकिन प्रोफेसर को देखते ही मैं फिर से सचेत हो गई थी. उन्होंने मुझे अपने पास बुला कर बैठा लिया था. मेरे भीतर की पीड़ा अब आग बन कर धधक उठी थी.

अब मैं कोठे के पिंजरे से बाहर निकल कर हकीकत की जमीन पा चुकी थी. एक नई जिंदगी का एहसास मेरे दिलोदिमाग की खिड़की खोल चुका था. भले ही मेरे हाथों में मेहंदी और मांग में सिंदूर न लगा हो, मगर औरत को दुनिया में औरत होने की समझ मुझ में विकसित होने लगी थी. हां, एक बात और भी थी, जिंदगी कई कोणों पर चमकने लगी थी. प्रो. लक्ष्मण ने मुझे नारी निकेतन के पुस्तकालय का इंचार्ज बनवा दिया था. अब मैं पुस्तकों के बीच अपने युग के पन्नेपन्ने से परिचित होने लगी थी.

उन्होंने मुझे कूप मंडूक होने से बचा लिया था. जब भी समय मिलता तो लक्ष्मण मुझ से मिलने के लिए आ जाते थे और जब मुझे मौका लगता तो मैं उन से मिलने की इच्छा रखते हुए भी नारी निकेतन की सीमा से बाहर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाती थी. एक तो मेरे मामू का भय जो मुझे था. दूसरे प्रो. लक्ष्मण जैसे महान लोगों की मर्यादा और प्रतिष्ठा को मेरी वजह से कोई चोट पहुंचे, यह मैं सहन भी नहीं कर सकती थी, क्योंकि वे ही मेरे संरक्षक और आराध्य थे.

मैं हिंदी उर्दू दोनों भाषाओं की अच्छी जानकारी रखती थी, जिस के कारण पुस्तकों का रखरखाव और पठनपाठन भली प्रकार कर लेती थी. इधर मैं नारी निकेतन की नारियों को पढ़ाने भी लगी थी और छोटी बच्चियों को नृत्य भी सिखाने लगी थी. पूरा निकेतन मेरा कार्यस्थल था और मैं हर दरवाजे पर दस्तक दे कर सभी की खोजखबर लेती थी. इन दिनों मेरे परिचय का दायरा भी बढऩे लगा था. कई स्कूलों में मुझे नारी विमर्श के लिए आमंत्रित भी किया जा चुका था. धीरेधीरे सभाओं और समारोहों में जाने का सिलसिला शुरू हो गया था. एक दिन मैं प्रो. लक्ष्मण के निवास पर पहुंच गई.

जाने क्यों मेरा मन अशांत था. मैं उन के निकट पहुंचना चाहती थी. प्रोफेसर बिस्तर पर जाने ही वाले थे कि मैं ने दरवाजे पर दस्तक दी. उन्होंने उस रात इस अचानक मेरे आने का कारण पूछा, ”शब्बो तुम, इतनी रात बीते यहां, कहो सब कुशल तो है?’’

मैं ने उत्तर दिया, ”जी, सब कुशल है. बस, यूं ही कमरे में जी नहीं लग रहा था तो आप की तरफ चली आई.’’

”यह तो मेरे प्रश्न का सही उत्तर नहीं.’’ उन्होंने कहा.

मैं चुपचाप खड़ी रही.

वह बोले, ”बैठ जाओ, तुम्हारे आने से मुझे कोई परेशानी नहीं, मगर यह मिलने का समय नहीं है.’’

मैं हंस कर बोली, ”तो क्या जब आप कोठे पर गए थे, तब मुजरा सुनने का वक्त था.’’

वह थोड़ी देर मौन रहे फिर बोले, ”हूं, तो तुम कहना क्या चाहती हो?’’

मैं उन से धड़ल्ले से बोली, ”मैं आप के साथ आई थी और अब आप बिना एक पल नहीं रह सकती.’’

”क्या तुम्हें नारी निकेतन में कोई परेशानी है.’’ उन्होंने मुझ से पूछा.

”नहीं, मगर नारी केवल रोटियों पर जिंदा नहीं रह सकती.’’ मैं ने अपनी बात उन के आगे रख दी.

वह बोले, ”इसीलिए मैं ने तुम्हें भारतीय समाजवादी पार्टी का बैनर दिया है. जाओ, इलेक्शन की तैयारी करो और नारी के अधिकारों के लिए लड़ो. इस देश में नारी का कभी शोषण न होने पाए.’’

”मगर मुझे आप का प्यार चाहिए, संरक्षण चाहिए.’’ मैं बोल उठी.

”हांहां, ये दोनों मिलेंगे तुम्हें. पहले तुम्हें एक संपूर्ण नारी हो कर जीना सीखना होगा.’’

”क्या मैं कहीं से कमतर हूं? आप को नारी नहीं लगती?’’ मैं पुन: बोल पड़ी.

वह बोले, ”अभी तुम्हारे भीतर कहीं तवायफ जिंदा है, तुम्हें उसे भी मारना होगा.’’

मैं उन के करीब जा कर बोली, ”जरा आप मेरी आंखों में झांक कर देखिए, क्या मैं अब भी आप को तवायफ दिखाई देती हूं. क्या मेरी देह से आप को किसी तवायफ की बू आ रही है.’’

”नहीं, शब्बो नहीं, तुम एक सहज नारी हो, मगर भारतीयता का आदर्श ओढ़ कर मेरे पास आ गई हो. तुम भीतर से तवायफ और बाहर से नारी क्रांति की अपराजिता लगती हो.’’ यह कहते हुए वह मुझे अपने हाथों से थपथपाने लगे थे.

मैं सुबह होतेहोते प्रोफेसर के मकान से बाहर निकल चुकी थी. मेरा माथा घूम रहा था. मेरी देह थरथरा रही थी. मेरे होंठों से किसी के निश्छल प्यार की गंध उठ रही थी. मेरी आंखों में नींद की जगह उन के चुंबन का स्पर्श कड़ुवाने लगा था. सुबह जब मैं कमरे में बैठ कर चाय पी रही थी, तभी किसी के दस्तक की आवाज सुनाई पड़ी. मैं ने अपने को ठीक से संभाला. आज मैं बहुत खुश थी, मेरे पांव उडऩे लगे थे. मुझे लगा कि प्रोफेसर मेरे घर आ पहुंचे हैं, किंतु जब दरवाजा खोला तो अपर्णा को सामने देखा. मुझे लगा कि दुनिया के झोंके मुझे धकिया रहे हैं.

आज का दिन मेरी जिंदगी की खुशहाली का दिन था, जिस का अहसास कोई औरत अपने प्यार को प्रियतम के हाथों पा कर ही कर सकती थी. प्रोफेसर मेरी जिंदगी में बहार बन कर आए थे. मेरे घर कहीं दीवाली थी तो कहीं होली थी. मैं ने न जाने कितने रूपों, रंगों में आज अपने खिले हुए गुलाबी मन को गुब्बारे की तरह उड़ाया था. आज प्रोफेसर के आने की प्रतीक्षा हो रही थी. मैं ने गेट से ले कर पूरे नारी निकेतन के भीतरी कक्ष को फूलों से सजाया था. मुख्यद्वार से अपने कक्ष तक पंखुडिय़ों के पांवड़े बिछवाए थे. गजरों से मंच को सजाया गया था. न जाने क्यों, मेरा मन उड़उड़ जाता था.

मगर प्रतीक्षा की घड़ी धीरेधीरे समाप्त हो रही थी. एक औरत को अपनेपन का आभास तब तक होता है, जब तक उस का प्रिय उस के द्वार पर दस्तक देने आता है. मन शून्य में बिचर रहा था और आशंका भरी मेरी देह मुझे ही काटने लगी थी. आज उन का अभिनंदन समारोह मनाया जाना था. सभाकक्ष के लोग एकएक कर जाने लगे थे. मगर उन के पांव नारी निकेतन के द्वार तक न आ सके. फोन की घंटी कई बार बज चुकी थी. मैं ने बेमन उसे उठा ही लिया था. कोई कह रहा था, ”प्रो. लक्ष्मण अब इस संसार में नहीं रहे. जब वह समारोह की ओर आ रहे थे, तभी असमय उन्हें दिल का दौरा पड़ गया था.’’

इतना सुन कर मैं ने फोन जमीन पर फेंक दिया था. वह जमीन मेरे पांव के नीचे से खिसक गई थी.

 

 

विकास दुबे : 8 पुलिसवालों का कातिल, गैंगस्टर और अपराध का बादशाह

Gangster Story : 8 पुलिस वालों की हत्या और पुलिस टीम का खून बहाने वाले गैंगस्टर विकास की उलटी गिनती 3 जुलाई की रात से ही शुरू हो गई थी. फिर भी उस ने एनकाउंटर से बचने के लिए बहुत कोशिश की. महाकाल की शरण तक में गया. लेकिन उसे कांटों की वही फसल तो काटनी ही थी, जो उस ने खुद बोई थी. आखिर…

पुरानी कहावत है कि पुलिस वालों से न दोस्ती अच्छी न दुश्मनी, लेकिन विकास दुबे ने दोनों ही कर ली थीं. कई थानों के पुलिस वाले उस के दरबार में जीहुजूरी करते थे, तो कुछ ऐसे भी थे जिन की वरदी उस की दबंगई पर भारी पड़ती थी. ऐसे ही थे बिल्हौर के सीओ देवेंद्र मिश्रा. विकास ने अपने ही गांव के राहुल तिवारी की जमीन कब्जा ली थी. इतना ही नहीं, उस पर जानलेवा हमला भी किया था. राहुल अपनी शिकायत ले कर थाना चौबेपुर गया, लेकिन चौबेपुर थाने के इंचार्ज विनय तिवारी विकास के खास लोगों में से थे. उन्होंने राहुल की शिकायत सुनने के बजाय उसे भगा दिया.

इस पर राहुल बिल्हौर के सीओ देवेंद्र मिश्रा से मिला. उन्होंने विनय तिवारी को फोन कर के रिपोर्ट दर्ज करने का आदेश दिया तो उस की रिपोर्ट दर्ज हो गई. लेकिन इस पर कोई एक्शन नहीं लिया गया. बाद में राहुल तिवारी ने सीओ देवेंद्र मिश्रा को खबर दी कि विकास दुबे गांव में ही है. देवेंद्र मिश्रा ने यह सूचना एसएसपी दिनेश कुमार पी. को दी. विकास दुबे कोई छोटामोटा अपराधी नहीं था. अलगअलग थानों में उस के खिलाफ हत्या सहित 60 आपराधिक मुकदमे दर्ज थे. ऊपर से उसे राजनीतिक संरक्षण भी मिला हुआ था. एसएसपी दिनेश कुमार पी. ने देवेंद्र मिश्रा को निर्देश दिया कि आसपास के थानों से फोर्स मंगवा लें और छापा मार कर विकास दुबे को गिरफ्तार करें. इस पर देवेंद्र मिश्रा ने बिठूर, शिवली और चौबेपुर थानों से पुलिस फोर्स मंगा ली.

गलती यह हुई कि उन्होंने चौबेपुर थाने को दबिश की जानकारी भी दी और वहां से फोर्स भी मंगा ली. विकास दुबे को रात में दबिश की सूचना थाना चौबेपुर से ही दी गई, जिस की वजह से उस ने भागने के बजाय पुलिस को ही ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया. इस के लिए उस ने फोन कर के अपने गिरोह के लोगों को अपने गांव बिकरू बुला लिया. सब से पहले उस ने जेसीबी मशीन खड़ी करवा कर उस रास्ते को बंद किया जो उस के किलेनुमा घर की ओर आता था. फिर अंधेरा घिरते ही अपने लोगों को मय हथियारों के छतों पर तैनात कर दिया. विकास खुद भी उन के साथ था.

योजनानुसार आधी रात के बाद सरकारी गाडि़यों में भर कर पुलिस टीम के 2 दरजन से अधिक जवान तथा अधिकारी बिकरू गांव में प्रविष्ट हुए. लेकिन जैसे ही पुलिस की गाडि़यां विकास के किले जैसे मकान के पास पहुंचीं तो घर की तरफ जाने वाले रास्ते में जेसीबी मशीन खड़ी मिली, जिस से पुलिस की गाडि़यां आगे नहीं जा सकती थीं. निस्संदेह मशीन को रास्ता रोकने के लिए खड़ा किया गया था. सीओ देवेंद्र मिश्रा, दोनों थानाप्रभारियों कौशलेंद्र प्रताप सिंह व महेश यादव और कुछ स्टाफ को ले कर विकास दुबे के घर की तरफ चल दिए. बाकी स्टाफ से कहा गया कि जेसीबी मशीन को हटा कर गाडि़यां आगे ले आएं.

सीओ साहब जिस स्टाफ को ले कर आगे बढ़े थे, उस के चंद कदम आगे बढ़ाते ही अचानक पुलिस पर तीन तरफ से फायरिंग होने लगी. गोलियां विकास के मकान की छत से बरसाई जा रही थीं. अचानक हुई इस फायरिंग से बचने के लिए पुलिस टीम के लोग इधरउधर छिपने की जगह ढूंढने लगे. पूरा गांव काफी देर तक गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंजता रहा. काफी देर बाद जब गोलियों की तड़तड़ाहट बंद हुई तो पूरे गांव में सन्नाटा छा गया. सीओ देवेंद्र मिश्रा सहित 8 पुलिस वाले शहीद दबिश देने पहुंची पुलिस टीम पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई गई थीं,

उस में से बिल्हौर के सीओ देवेंद्र कुमार मिश्रा, एसओ (शिवराजपुर) महेश यादव, चौकी इंचार्ज (मंधना) अनूप कुमार, सबइंस्पेक्टर (शिवराजपुर) नेबूलाल, थाना चौबेपुर का कांस्टेबल सुलतान सिंह, बिठूर थाने के कांस्टेबल राहुल, जितेंद्र और बबलू की गोली लगने से मौत हो गई थी. अचानक हुई ताबड़तोड़ गोलीबारी में बिठूर थाने के एसओ कौशलेंद्र प्रताप सिंह को जांघ और हाथ में 3 गोली लगी थीं. दरोगा सुधाकर पांडेय, सिपाही अजय सेंगर, अजय कश्यप, चौबेपुर थाने का सिपाही शिवमूरत और होमगार्ड जयराम पटेल भी गोली लगने से घायल हुए थे. खास बात यह कि चौबेपुर थाने के इंचार्ज विनय तिवारी और उन की टीम में एक सिपाही शिवमूरत के अलावा कोई घायल नहीं हुआ था. शिवमूरत को भी उस की गलती से गोली लगी. दरअसल, पहले से जानकारी होने की वजह से चौबेपुर की टीम जेसीबी से आगे नहीं बढ़ी थी.

बदमाशों की इस दुस्साहसिक वारदात की जानकारी रात में ही एसएसपी दिनेश कुमार को दी गई. वे एसपी (पश्चिम) डा. अनिल कुमार समेत 3 एसपी और कई सीओ की फोर्स के साथ बिकरू पहुंच गए.  एसओ (बिठूर) समेत गंभीर रूप से घायल 6 पुलिसकर्मियों को रात में ही रीजेंसी अस्पताल में भरती कराने के लिए कानपुर भेज दिया गया. इस वारदात की सूचना मिलते ही आईजी जोन मोहित अग्रवाल और एडीजी जय नारायण सिंह तत्काल लखनऊ से कानपुर के लिए रवाना हो गए. गांव में सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए 4 कंपनी पीएसी भी बुलवा ली गई थी.

दूसरी तरफ घटना के बाद कानपुर, कानपुर देहात, कन्नौज, फर्रुखाबाद, इटावा, औरैया की सभी सीमाएं सील कर के पुलिस ने कौंबिंग औपरेशन शुरू कर दिया. कौंबिंग के दौरान बिठूर के एक खेत में छिपे 2 बदमाश पुलिस को दिखाई दे गए. दोनों तरफ से गोलियां चलने लगीं. एनकाउंटर में दोनों बदमाश ढेर हो गए. इन में एक हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे का मामा प्रेम प्रकाश पांडेय था और दूसरा उस का चचेरा भाई अतुल दुबे. सीओ देवेंद्र मिश्रा का क्षतविक्षत शव प्रेम प्रकाश के घर में ही मिला था. लूटी गई 9 एमएम की पिस्टल भी प्रेम प्रकाश की लाश के पास मिली. प्रदेश ही नहीं, पूरा देश हिल गया था  सुबह का उजाला बढ़ते ही प्रदेश के एडीजी (कानून व्यवस्था) प्रशांत कुमार तथा स्पैशल टास्क फोर्स के आईजी अमिताभ यश भी अपनी सब से बेहतरीन टीमों को ले कर बिकरू गांव पहुंच गए.

विकास दुबे के बारे में मिली सभी जानकारी ले कर एसटीएफ की कई टीमें उसी वक्त कानपुर, लखनऊ तथा अन्य शहरों के लिए रवाना कर दी गईं. प्रदेश के डीजीपी एच.सी. अवस्थी के लिए यह घटना बड़ी चुनौती थी. उन्होंने विकास दुबे को जिंदा या मुर्दा लाने वाले को 50 हजार रुपए का इनाम देने की घोषणा की. फिर वह लखनऊ से सीधे कानपुर के लिए रवाना हो गए. प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पुलिस अधिकारियों को सख्त आदेश दिए कि किसी भी हालत में इस घटना के लिए जिम्मेदार अपराधियों को उन के अंजाम तक पहुंचाया जाए. मुख्यमंत्री ने सभी शहीद 8 पुलिस वालों के परिवारों को एकएक करोड़ रुपए की आर्थिक मदद देने की भी घोषणा की.

दूसरी तरफ इस घटना के बाद गुस्से में भरी पुलिस की टीमों ने विकास दुबे की तलाश में ताबड़तोड़ काररवाई शुरू कर दी थी. पुलिस की एक टीम ने सुबह 7 बजे विकास के लखनऊ के कृष्णानगर स्थित घर पर दबिश दी. आसपास के लोगों से पता चला कि विकास यहां अपनी पत्नी रिचा दुबे, जो जिला पंचायत सदस्य थी, 2 बेटों आकाश और शांतनु के साथ रहता था. पुलिस को 24 घंटे की पड़ताल के बाद बहुत सारी ऐसी जानकारियां हाथ लगीं, जिस से एक बात साफ हो गई कि विकास दुबे ने उस रात बिकरू गांव में उसे गिरफ्तार करने पहुंची पुलिस पार्टी पर हमला अचानक ही नहीं किया था, बल्कि चौबेपुर थाने के अफसरों की शह पर उस ने पुलिस टीम को मार डालने की पूरी तैयारी की थी.

घायल पुलिसकर्मियों ने जो बताया, उस से एक यह बात भी पता चली कि अचानक हुई ताबड़तोड़ फायरिंग से बचने के लिए पुलिसकर्मियों ने जहां भी छिप कर जान बचाने की कोशिश की उन्हें ढूंढढूंढ कर मारा गया. इसलिए पुलिस को बिकरू के हर घर की तलाशी लेनी पड़ी. पुलिस पार्टी पर हमला करने वाले बदमाशों ने हमले के बाद वारदात में मारे गए पुलिसकर्मियों की एके-47 राइफल, इंसास राइफल, दो 9 एमएम की पिस्टल तथा एक ग्लोक पिस्टल लूट ली थीं. छानबीन में यह बात सामने आ रही थी कि चौबेपुर के थानाप्रभारी विनय कुमार तिवारी ने विकास दुबे को दबिश की सूचना दी थी.

तह तक जाने के लिए अधिकारियों ने चौबेपुर एसओ विनय तिवारी की कुंडली खंगालनी शुरू कर दी. पता चला विनय तिवारी के विकास दुबे से बेहद आत्मीय रिश्ते थे. 2 दिन पहले भी वे विकास दुबे से मिलने उस के गांव आए थे. वरिष्ठ अधिकारियों की एक टीम ने भी विनय तिवारी से विकास दुबे के रिश्तों को ले कर पूछताछ की. इसी थाने के एक अन्य एसआई के.के. शर्मा समेत थाने के सभी कर्मचारियों की विकास दुबे से सांठगांठ का पता चला तो पुलिस ने विकास दुबे के मोबाइल की सीडीआर निकलवा कर उस की जांचपड़ताल शुरू की.

पता चला घटना वाली रात चौबेपुर एसओ विनय तिवारी की विकास दुबे से कई बार बात हुई थी. लिहाजा उच्चाधिकारियों के आदेश पर विनय तिवारी को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया गया, जबकि एसएसपी ने इस थाने के सभी 200 पुलिस वालों को लाइन हाजिर कर दूसरा स्टाफ नियुक्त कर दिया. विकास दुबे हालांकि इतना बड़ा डौन नहीं था कि पूरे प्रदेश या देश में लोग उस के नाम को जानते हों. लेकिन उस की राजनीतिक पैठ और दुस्साहस ने उसे आसपास के इलाके में इतना दबंग बना दिया था, जिस से उसे पुलिस को घेर कर उन पर हमला करने का हौसला मिला.

किशोरावस्था में ही बन गया था गुंडा विकास ने गुंडागर्दी तभी शुरू कर दी थी जब वह रसूलाबाद में चाचा प्रेम किशोर के यहां रह कर पढ़ता था. जब उस की शिकायत घर तक पहुंची तो प्रेम किशोर ने उसे वापस बिकरू जाने को कह दिया. उसे चाचा ने घर से निकाला तो वह मामा के यहां जा कर रहने लगा. यहीं रहते उस ने ननिहाल के गांव गंगवापुर में पहली हत्या की. तब वह मात्र 18 साल का था. लेकिन इस हत्याकांड में वह सजा से बच गया. यहीं से विकास के आपराधिक जीवन की शुरुआत हुई और वह दिनबदिन बेकाबू होता गया. 1990 में गांव नवादा के चौधरियों ने विकास के पिता की बेइज्जती कर दी थी. उसे पता चला तो उस ने उन्हें उन के घर से निकालनिकाल कर पीटा. ऐसा कर के उस ने चौबेपुर क्षेत्र में अपनी दबंगई का झंडा बुलंद कर दिया.

करीब 20 साल पहले विकास ने मध्य प्रदेश के शहडोल जिले के बुढ़ार कस्बे की रिचा निगम उर्फ सोनू से कानपुर में लव मैरिज की थी. रिचा के पिता और घर वाले इस शादी के खिलाफ थे. उन के विरोध करने पर विकास ने गन पौइंट पर शादी की. फिलहाल उस की पत्नी रिचा जिला पंचायत सदस्य थी. बुलंद हौसलों के बीच 1991 में उस ने अपने ही गांव के झुन्ना बाबा की हत्या कर दी. इस हत्या का मकसद था बाबा की जमीन पर कब्जा करना. इस के बाद विकास ने कौन्ट्रैक्ट किलिंग वगैरह शुरू की. उस ने 1993 में रामबाबू हत्याकांड को अंजाम दिया.

झगड़ा, मारपीट, लोगों से रंगदारी वसूलना और कमजोर लोगों की जमीनों पर कब्जे करना उस का धंधा बन चुका था. उस के रास्ते में जो भी आता, वह उसे इतना डरा देता कि वह उस के रास्ते से हट जाता. अगर कहीं कुछ परेशानी होती तो हरिकृष्ण श्रीवास्तव का एक फोन उस का कवच बन जाता. नेताओं की छत्रछाया में पला गैंगस्टर विकास 1996 के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले हरिकृष्ण श्रीवास्तव ने बीजेपी छोड़ कर बीएसपी का दामन थाम लिया और उन्हें पार्टी ने चौबेपुर विधानसभा सीट से टिकट दे दिया. जबकि भाजपा ने संतोष शुक्ला को टिकट दिया. हरिकृष्ण श्रीवास्तव और भाजपा के संतोष शुक्ला के बीच तगड़ा मुकाबला हुआ.

इस चुनाव में विकास दुबे ने इलाके के एकएक प्रधान, ग्राम पंचायत और ब्लौक के सदस्यों को डराधमका कर अपने गौडफादर हरिकृष्ण श्रीवास्तव के पक्ष में मतदान करने को मजबूर कर दिया. इसी चुनाव के दौरान संतोष शुक्ला और विकास दुबे के बीच कहासुनी भी हो गई थी, कड़े मुकाबले के बावजूद हरिकृष्ण श्रीवास्तव इलेक्शन जीत गए. विकास और उस के गुर्गे जीत का जश्न मना रहे थे, तभी संतोष शुक्ला वहां से गुजरे. विकास ने उन की कार रोक कर गालीगलौज शुरू कर दी. दोनों तरफ से जम कर हाथापाई हुई. इस के बाद विकास ने संतोष शुक्ला को खत्म करने की ठान ली.

5 साल तक संतोष शुक्ला और विकास के बीच जंग जारी रही. इस दौरान दोनों तरफ के कई लोगों की जान गई. 1997 में कुछ समय के लिए बीजेपी के सर्मथन से बसपा की सरकार बनी और मायावती मुख्यमंत्री बन गईं. हरिकृष्ण श्रीवास्तव को स्पीकर बनाया गया. बस फिर क्या था विकास दुबे की ख्वाहिशों को पंख लग गए. उस ने हरिकृष्ण श्रीवास्तव को राजनीतिक सीढ़ी बना कर बसपा और भाजपा के कई कद्दावर नेताओं से इतनी नजदीकियां बना लीं कि उस के एक फोन पर ये कद्दावर नेता उस की ढाल बन कर सामने खड़े हो जाते थे, क्योंकि उन सब ने देख लिया था कि विकास राजनीति करने वाले लोगों के लिए वोट दिलाने वाली मशीन है.

विकास ने साल 2000 में ताराचंद इंटर कालेज पर कब्जा करने के लिए शिवली थाना क्षेत्र में कालेज के सहायक प्रबंधक सिद्धेश्वर पांडेय की गोली मार कर हत्या कर दी थी. इस मामले में गिरफ्तार हो कर जब वह कुछ दिन के लिए जेल गया तो उस ने जेल में बैठेबैठे कानपुर के शिवली थानाक्षेत्र में रामबाबू यादव की हत्या करा दी. लेकिन जेल में बंद होने के कारण पुलिस इस मामले में उसे दोषी साबित नहीं कर सकी. सिद्धेश्वर केस में विकास को उम्रकैद की सजा हुई लेकिन उस ने हाईकोर्ट से जमानत हासिल कर ली, जिस के बाद उस की अपील अभी तक अदालत में विचाराधीन है. दुश्मनी ठानने के बाद विकास गोली से बात करता था

शिवली विकास के गांव बिकरू से 3 किलोमीटर दूर है. यहां के लल्लन वाजपेई 1995 से 2017 तक पंचायत अध्यक्ष रहे. जब उन का कार्यकाल समाप्त हुआ तो उन्होंने अगला चुनाव लड़ने का फैसला किया. विकास इस चुनाव में अपने किसी आदमी को अध्यक्ष पद का चुनाव लड़वाना चाहता था. उस ने लल्लन के लोगों को डरानाधमकाना शुरू किया. लल्लन ने उसे रोका तो वह विकास की आंखों में चढ़ गए और उस ने उन्हें सबक सिखाने की ठान ली. ब्राह्मण बहुल इस क्षेत्र में पिछड़ों की हनक को कम करने के लिए विकास कई नेताओं की नजर में आ गया था और वे उसे संरक्षण देने लगे थे. इसी क्षेत्र में कांग्रेस के पूर्व विधायक थे नेकचंद पांडेय. विकास की दबंगई देख कर उन्होंने उसे राजनीतिक संरक्षण देना शुरू कर दिया.

तब वह खुल कर अपनी ताकत दिखाने लगा. उस की दबंगई का कायल हो कर भाजपा के चौबेपुर से विधायक हरिकृष्ण श्रीवास्तव ने भी उस के सिर पर हाथ रख दिया. हरिकृष्ण श्रीवास्तव उसी इलाके में जनता दल, जनता पार्टी से भी विधायक रह चुके थे. इलाके में उन का दबदबा था. उन्होंने चौबेपुर में अपनी राजनीतिक धमक मजबूत करने के लिए विकास दुबे को अपनी शरण में ले लिया. हरिकृष्ण श्रीवास्तव के खिलाफ चुनाव लड़ने के दौरान बीजेपी के नेता संतोष शुक्ला विकास के दुश्मन बन गए. लल्लन और संतोष शुक्ला के करीबी संबंध थे. उन्हीं दिनों भाजपा और बसपा की मिलीजुली सरकार बनी तो मुख्यमंत्री बने कल्याण सिंह. कल्याण सिंह ने संतोष शुक्ला को श्रम संविदा बोर्ड का चेयरमैन बना कर राज्यमंत्री का दर्जा दे दिया था, जिस से संतोष शुक्ला और लल्लन वाजपेई दोनों की ही इलाके में हनक बढ़ गई थी.

हालांकि लखनऊ के कुछ प्रभावशाली भाजपा नेताओं ने संतोष शुक्ला और विकास के बीच सुलह कराने की कोशिश की, लेकिन वे कामयाब नहीं हुए. दरअसल, संतोष शुक्ला ने सत्ता की हनक के बल पर विकास का एनकाउंटर कराने की योजना बना ली थी. एक तो लल्लन वाजपेई की मदद करने के कारण दूसरे अपने एनकाउंटर की साजिश रचने की भनक पा कर विकास को खुन्नस आ गई. उस ने संतोष शुक्ला को खत्म करने का फैसला कर लिया. नवंबर 2001 में जब संतोष शुक्ला शिवली में एक सभा को संबोधित कर रहे थे, तभी विकास अपने गुर्गों के साथ वहां आ धमका और संतोष शुक्ला पर फायरिंग शुरू कर दी. जान बचाने के लिए वह शिवली थाने पहुंचे, लेकिन विकास वहां भी आ धमका और इंसपेक्टर के रूम में छिपे बैठे संतोष को बाहर ला कर मौत के घाट उतार दिया.

जिस तरह पुलिस की मौजूदगी में संतोष शुक्ला की हत्या की गई थी, उस ने पूरे प्रदेश में सनसनी फैला दी थी, इस के बाद पूरे इलाके में विकास की दहशत फैल गई. संतोष शुक्ला के मर्डर के बाद पुलिस विकास दुबे के पीछे पड़ गई. कई माह तक वह फरार रहा. सरकार ने उस के सिर पर 50 हजार का इनाम घोषित कर दिया था. पुलिस एनकाउंटर में मारे जाने के डर से उस ने एक बार फिर अपने राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल किया. वह अपने खास भाजपा नेताओं की शरण में चला गया. उन्होंने उसे अपनी कार में बैठा कर लखनऊ कोर्ट में सरेंडर करवा दिया. कुछ माह जेल में रहने के बाद विकास की जमानत हो गई. बाहर आते ही उस ने फिर अपना आतंक फैलाना शुरू कर दिया.

विकास के गैंग के लोगों तथा राजनीतिक संरक्षण देने वालों ने संतोष शुक्ला हत्याकांड में चश्मदीद गवाह बने सभी पुलिसकर्मियों को इतना आतंकित कर दिया कि सभी हलफनामा दे कर गवाही से मुकर गए. अगला निशाना लल्लन वाजपेई पर फलस्वरूप विकास दुबे संतोष शुक्ला हत्याकांड से साफ बरी हो गया. लेकिन इस के बावजूद विकास दुबे के मन में लल्लन वाजपेई को सबक ना सिखा पाने की कसक रह गई थी. क्योंकि उस के साथ शुरू हुई राजनीतिक रंजिश में ही उस ने संतोष शुक्ला की हत्या की थी, इसीलिए वह मौके का इंतजार करने लगा.

जल्द ही उसे यह मौका भी मिल गया. 2002 में पंचायत चुनाव से पहले एक दिन लल्लन के घर पर चौपाल लगी थी. 5 लोग बैठे थे. शाम 7 बजे का समय था. अचानक घर के बगल वाले रास्ते से और सामने से कुछ लोग मोटरसाइकिल से आए और बम फेंकना शुरू कर दिया. साथ ही फायरिंग भी की. दरवाजे की चौखट पर बैठे लल्लन जान बचाने के लिए अंदर भागे. उन की जान तो बच गई लेकिन इस हमले में 3 लोगों की मौत हो गई. गोली लगने से लल्लन का एक पैर खराब हो गया था. इस हमले में कृष्णबिहारी मिश्र, कौशल किशोर और गुलाटी नाम के 3 लोग मारे गए. पुलिस में हत्या का मामला दर्ज हुआ, जिस में विकास दुबे का भी नाम था. लेकिन आरोप पत्र दाखिल करते समय पुलिस ने उस का नाम हटा दिया था.

विकास दुबे ने इस हत्याकांड को जिस दुस्साहस से अंजाम दिया था, सब जानते थे. फिर भी वह अपने रसूख से साफ बच गया था. जबकि अन्य लोगों को सजा हुई. इस के बाद तो उस के कहर और डर के सामने सब ने हथियार डाल दिए. बिकरू और शिवली के आसपास के क्षेत्रों में विकास की दहशत इस कदर बढ़ गई थी कि उस के एक इशारे पर चुनाव में वोट डलने शुरू हो जाते थे. सरकार बसपा, भाजपा या समाजवादी पार्टी चाहे किसी की भी रही  विकास को राजनीतिक संरक्षण देने वाले नेता खुद उस के पास पहुंच जाते थे. 2002 में जब प्रदेश में बसपा की सरकार थी, तो उस का सिक्का बिल्हौर, शिवराजपुर, रिनयां, चौबेपुर के साथसाथ कानपुर नगर में भी चलने लगा था.

विकास ने राजनेताओं के संरक्षण से राजनीति में एंट्री की और जेल में रहने के दौरान शिवराजपुर से नगर पंचायत का चुनाव जीत लिया. इस से उस के हौसले और ज्यादा बुलंद हो गए. राजनीतिक संरक्षण और दबंगई के बल पर आसपास के 3 गांवों में उस के परिवार की ही प्रधानी कायम रही. विकास ने राजनीतिक जड़ें मजबूत करने के लिए लखनऊ में भी घर बना लिया, जहां उस की पत्नी रिचा दुबे के अलावा छोटा बेटा रहता था, जो लखनऊ के एक इंटर कालेज में पढ़ रहा था जबकि उस का बड़ा बेटा ब्रिटेन से एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहा है.

यूपी के कई जिलों में विकास दुबे के खिलाफ 60 मामले चल रहे थे. पुलिस ने उस की गिरफ्तारी पर 25 हजार का इनाम रखा हुआ था. लेकिन सामने होने पर भी उसे कोई नहीं पकड़ता था. कानपुर नगर से ले कर देहात तक में विकास दुबे की सल्तनत कायम हो चुकी थी. पंचायत, निकाय, विधानसभा से ले कर लोकसभा चुनाव के वक्त नेताओं को बुलेट के दम पर बैलेट दिलवाना उस का पेशा बन गया था. विकास दुबे के पास जमीनों पर कब्जे, रंगदारी, ठेकेदारी और दूसरे कामधंधों से इतना पैसा एकत्र हो गया था कि उस ने एक ला कालेज के साथ कई शिक्षण संस्थाएं खोल ली थीं.

बिकरू, शिवली, चौबेपुर, शिवराजपुर और बिल्हौर ब्राह्मण बहुल क्षेत्र हैं. यहां के युवा ब्राह्मण लड़के विकास दुबे को अपना आदर्श मानते थे. गर्म दिमाग के कुछ लड़के अवैध हथियार ले कर उस की सेना बन कर साथ रहने लगे थे. आपराधिक गतिविधियों से ले कर लोगों को डरानेधमकाने में विकास इसी सेना का इस्तेमाल करता था. अपने गांव में विकास दुबे ने एनकाउंटर के डर से पुलिस पर हमला कर के 8 जवानों को शहीद तो कर दिया लेकिन वह ये भूल गया कि पुलिस की वर्दी और खादी की छत्रछाया ने भले ही उसे संरक्षण दिया था, लेकिन जब कोई अपराधी खुद को सिस्टम से बड़ा मानने की भूल करता है तो उस का अंजाम मौत ही होती है.

बिकरू गांव में पुलिस पर हमले के बाद थाना चौबेपुर में 3 जुलाई को ही धारा 147/148/149/302/307/394/120बी भादंवि व 7 सीएलए एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया था. साथ ही विकास दुबे के साथ उस के गैंग का खात्मा करने के लिए लंबीचौड़ी टीम बनाई गई थी. इस टीम को जल्द से जल्द औपरेशन विकास दुबे को अंजाम तक पहुंचाने के आदेश दिए गए. पुलिस की कई टीमों ने इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस के सहारे काम शुरू कर दिया. दूसरी तरफ पुलिस ने अगले 2 दिनों के भीतर विकास दुबे की गिरफ्तारी पर 50 हजार रुपए का इनाम घोषित करने के बाद 3 दिन के भीतर उसे बढ़ा कर 5 लाख का इनामी बना दिया.

विकास दुबे के गांव बिकरू में बने किलेनुमा घर को बुलडोजर चला कर तहसनहस कर दिया गया था. गांव में विकास गैंग के दूसरे सदस्यों के घरों पर भी बुलडोजर चले. साथ ही विकास के गांव तथा लखनऊ स्थित घर में खड़ी कारों को बुलडोजर से कुचल दिया गया. पुलिस की छापेमारी में सब से पहले विकास के साथियों की गिरफ्तारियां और मुठभेड़ में मारे जाने का सिलसिला शुरू हुआ. विकास के मामा प्रेम प्रकाश और भतीजे अतुल दुबे को उसी दिन मार गिराने के बाद एसटीएफ ने सब से पहले कानपुर से विकास के एक खास गुर्गे दयाशंकर अग्निहोत्री को गिरफ्तार किया.

पुलिस अभियान उसी से मिली सूचना के बाद एसटीएफ ने 5 जुलाई को कल्लू को गिरफ्तार किया, जिस ने एक तहखाने और सुरंग में छिपा कर रखे हथियार बरामद करवाए. 6 जुलाई को पुलिस ने नौकर कल्लू की पत्नी रेखा तथा पुलिस पर हुए हमले में मददगार विकास के साढू समेत 3 लोगों को गिरफ्तार किया. 7 जुलाई को पुलिस ने विकास के गैंग में शामिल उस के 15 करीबी साथियों के पोस्टर जारी किए. इसी दौरान पुलिस को विकास की लोकेशन हरियाणा के फरीदाबाद में मिली. लेकिन एसटीएफ के वहां पहुंचने से पहले ही विकास गायब हो गया. लेकिन उस के 3 करीबी प्रभात मिश्रा, शराब की दुकान पर काम करने वाला श्रवण व उस का बेटा अंकुर पुलिस की गिरफ्त में आ गए.

8 जुलाई को एसटीएफ ने हमीरपुर में विकास के बौडीगार्ड व साए की तरह साथ रहने वाले उस के साथी अमर दुबे को मुठभेड़ में मार गिराया. उस पर 25 हजार का इनाम था. अमर दुबे की शादी 10 दिन पहले ही हुई थी. उस की पत्नी को भी पुलिस ने साजिश में शामिल होने के शक में गिरफ्तार कर लिया. पुलिस को सूचना मिली थी कि उस रात पुलिस पर हुए हमले में अमर भी शामिल था. उसी दिन चौबेपुर पुलिस ने विकास के एक साथी श्याम वाजपेई को मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार किया. 9 जुलाई को एसटीएफ जब फरीदाबाद में गिरफ्तार अंकुर, श्रवण तथा कार्तिकेय उर्फ प्रभात मिश्रा को ट्रांजिट रिमांड पर कानपुर ला रही थी, तो रास्ते में पुलिस की गाड़ी पंक्चर हो गई.

मौका देख कर प्रभात मिश्रा ने एक पुलिसकर्मी की पिस्टल छीन कर भागने की कोशिश की. प्रभात को पकड़ने के प्रयास में मुठभेड़ के दौरान एनकाउंटर में उस की मौत हो गई. उसी दिन इटावा पुलिस ने बिकरू गांव शूटआउट में शामिल विकास के एक और साथी 50 हजार के इनामी प्रवीण उर्फ बउआ दुबे को भी एनकाउंटर में मार गिराया. विकास के साथियों की ताबड़तोड़ गिरफ्तारियां व एनकाउंटर हो रहे थे, लेकिन एसटीएफ को जिस विकास दुबे की तलाश थी, वह अभी तक पकड़ से बाहर था. फरीदाबाद के एक होटल से फरार होने के बाद पुलिस सीसीटीवी फुटेज के आधार पर उसे पूरे एनसीआर में तलाश रही थी, जबकि विकास दुबे पुलिस को चकमा दे कर मध्य प्रदेश के उज्जैन पहुंच गया था.

वहां 9 जुलाई की सुबह उस ने नाटकीय तरीके से महाकाल मंदिर में अपनी पहचान उजागर कर दी और खुद को पुलिस के हाथों गिरफ्तार करवा दिया. इस नाटकीय गिरफ्तारी की सूचना चंद मिनटों में मीडिया के जरिए न्यूज चैनलों के माध्यम से देश भर में फैल गई. उत्तर प्रदेश एसटीएफ की टीम उसी रात उज्जैन पहुंच गई. उज्जैन पुलिस ने बिना कानूनी औपचारिकता पूरी किए विकास दुबे को यूपी पुलिस की एसटीएफ के सुपुर्द कर दिया. विकास का अंतिम अध्याय  मगर इस बीच एमपी और यूपी पुलिस ने विकास दुबे से जो औपचारिक पूछताछ की थी, उस में उस ने खुलासा किया कि उसे डर था कि गांव बिकरू आई पुलिस टीम उस का एनकाउंटर कर देगी.

चौबेपुर थाने के उस के शुभचिंतक पुलिस वालों ने उसे यह इत्तिला पहले ही दे दी थी. तब उस ने अपने साथियों को बुला कर पुलिस को सबक सिखाने का फैसला किया. विकास दुबे ने यह भी बताया कि वह चाहता था कि मारे गए सभी पुलिस वालों के शव कुएं में डाल कर जला दिए जाएं, ताकि सबूत ही खत्म हो जाएं. इसीलिए उस ने पहले ही कई कैन पैट्रोल भरवा कर रख लिया था. विकास दुबे के साथियों ने शूटआउट में मारे गए 5 पुलिस वालों के शव कुएं के पास एकत्र भी करवा दिए थे, लेकिन जब तक वह उन्हें जला पाते तब तक कानपुर मुख्यालय से अतिरिक्त पुलिस बल आ गया और उन्हें भागना पड़ा.

यह बात सच थी, क्योंकि पुलिस को 5 पुलिस वालों के शव विकास के घर के बाहर कुएं के पास से मिले थे. विकास ने पूछताछ में बताया कि वह सीओ देवेंद्र मिश्रा को पसंद नहीं करता था. चौबेपुर समेत आसपास के सभी थानों के पुलिस वाले उस के साथ मिले हुए थे. लेकिन न जाने क्यों देवेंद्र मिश्रा हमेशा उस का विरोध करते थे. ताकत और घमंड के नशे में चूर कुछ लोग यह भूल जाते हैं कि कुदरत हर किसी को उस के गुनाहों की सजा इसी संसार में देती है. यूपी एसटीएफ की टीम विकास दुबे को ले कर 4 अलगअलग वाहनों से सड़क के रास्ते उज्जैन से कानपुर के लिए रवाना हुई. मीडिया चैनलों की गाडि़यां लगातार एसटीएफ की गाडि़यों का पीछा करती रहीं. हांलाकि एसटीएफ ने लोकल पुलिस की मदद से कई जगह इन गाडि़यों को चकमा देने का प्रयास किया.

10 जुलाई की सुबह 6 बजे के आसपास कानपुर देहात के बारा टोल प्लाजा पर एसटीएफ का काफिला आगे निकल गया, काफिले के पीछे चल रहे मीडियाकर्मियों की गाडि़यों को सचेंडी थाने की पुलिस ने बैरीकेड लगा कर रोक दिया. मीडियाकर्मियों ने पुलिस से बहस की तो कहा गया कि रास्ता अभी के लिए बंद कर दिया गया है. इस के साथ ही हाइवे पर बाकी वाहन भी रोक दिए गए थे. इस काफिले को रोके जाने के 15 मिनट बाद सूचना आई कि विकास दुबे को ले जा रही एसटीएफ की गाड़ी बारिश व कुछ जानवरों के सामने आने से कानुपर से 15 किलोमीटर पहले भौती में पलट गई. पता चला कि गाड़ी पलटने के बाद विकास दुबे ने एक पुलिसकर्मी की पिस्टल छीन कर भागने का प्रयास किया था. तब तक पीछे से दूसरी गाडियां भी पहुंच गईं और विकास दुबे का पीछा कर आत्मसर्मपण के लिए कहा गया, लेकिन वह नहीं रुका और पुलिस पर फायरिंग कर दी.

लिहाजा पुलिस की जवाबी काररवाई में वह घायल हो गया, उसे हैलट अस्पताल भेजा गया. लेकिन वहां पहुंचते ही डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. विकास दुबे आदतन खतरनाक अपराधी था, जिस के सिर पर कई लोगों की हत्या का आरोप था, ऐसे अपराधी की मौत से किसी को भी हमदर्दी नहीं हो सकती. लेकिन अहम सवाल यह है कि खाकी और खादी के संरक्षण में गैंगस्टर बने विकास दुबे का अंत होने के बाद क्या उन लोगों के खिलाफ कोई काररवाई होगी, जिन्होंने उस के हौसलों को खूनी हवा दी थी?

—कथा पुलिस के अभिलेखों में दर्ज मामलों और पीडि़तों व जनश्रुति के आधार पर एकत्र जानकारी पर आधारित

 

सांसद के बेटे ने फाइवस्टार होटल में लड़की पर तानी बंदूक

नेता अगर लोगों के सामने कोई अच्छी मिसाल पेश करें तभी उन्हें जन प्रतिनिधि माना जाना चाहिए. लेकिन इस के इतर आजकल ज्यादातर नेता दबंगई के लिए जाने जाते हैं. उन की औलादें भी कम नहीं होतीं. आशीष पांडे ने हयात रीजेंसी में जो किया, वह कोई बड़ी घटना भी…

दिल्ली देश की राजधानी है. यहां देश भर के नेताओं के परिवार रहते हैं. इस के चलते दिल्ली में कभीकभार इनके हंगामे चर्चा में आते रहते हैं. बसपा के पूर्व सांसद के बेटे आशीष पांडे ने जिस तरह फाइवस्टार (five star hotel) होटल  हयात रीजेंसी में रिवौल्वर लहराते हुए धमकी दी, उस से जेसिका लाल और नीतीश कटारा हत्याकांड की खौफनाक पुनरावृत्ति की स्थिति बनते दिखी. होटल की ओर से घटना को दबाने की कोशिश की गई. अगर इस घटना से जुड़ा वीडियो वायरल नहीं हुआ होता तो शायद किसी को इस का पता भी नहीं चलता.

‘जानता नहीं मुझे अभी तक तू. मैं लखनऊ का हूं. बात नहीं करता, सीधा ठोंक देता हूं.’ आशीष पांडे ने जब गौरव के सामने पिस्तौल लहराते हुए कहा तो उस की महिला मित्र बीच में आ गई. उस ने साहस दिखाया और आशीष को रोक लिया. आशीष की बातों और गुस्से से होटल का सिक्योरिटी स्टाफ भी सहम गया था. दिल्ली के फाइवस्टार होटलों में देर रात तक चलने वाली पार्टियों में रईसजादों की कहानियां अमूमन ढकीछिपी ही रह जाती हैं. कोई बड़ी घटना होने पर ही वस्तुस्थिति सब के सामने आ पाती है. दिल्ली के पांचसितारा होटल हयात रीजेंसी में रविवार 14 अक्तूबर की सुबह करीब 3 से 4 बजे के बीच जो कुछ हुआ, वह खौफनाक घटना में भी तब्दील हो सकता था.

असल में शनिवार की रात हुई इस पार्टी का आयोजन साहिल गिरधर नाम के एक इवेंट आर्गनाइजर ने किया था. इस पार्टी में तमाम लोगों के साथ 2 रईसजादे भी हिस्सा लेने गए थे. इन में से एक दिल्ली के पूर्व कांग्रेसी विधायक कुंवर करन सिंह का बेटा गौरव था और दूसरा उत्तर प्रदेश के पूर्व सांसद राकेश पांडे का बेटा आशीष पांडे. करीब आधी रात से शुरू हुई यह पार्टी देर रात तक चलती रही. इसी दौरान पार्टी में शामिल गौरव की महिला मित्र की तबीयत खराब हो गई. उसे उल्टियां आ रही थीं, जिस की वजह से वह वाशरूम गई थी. उस के पीछेपीछे गौरव भी था.

वाशरूम लेडीज था, इसलिए गौरव बाहर ही खड़ा हो गया. जब अंदर से उस की महिला मित्र की उलटी करने की तेज आवाजें बाहर आने लगीं तो गौरव उस  की मदद के लिए लेडीज वाशरूम के अंदर चला गया. इसी दौरान आशीष पांडे की 3 महिला मित्र उसी लेडीज वाशरूम में आईं. उन्होंने लेडीज वाशरूम में गौरव को देखा तो हक्कीबक्की रह गईं. इस बात को ले कर उन तीनों महिलाओं और गौरव के बीच कहासुनी शुरू होने लगी, जिस की तेज आवाज वाशरूम के बाहर तक आ रही थी. आशीष पांडे भी लेडी वाशरूम के बाहर खड़ा था. उस ने अपनी विदेशी महिला मित्रों के साथ बदतमीजी होने की आवाज सुनी तो वह भी लेडीज वाशरूम के अंदर चला गया.

आशीष के अंदर जाने पर वहां होने वाली बहस तीखी हो गई. बहरहाल, किसी तरह से मामला शांत हुआ तो आशीष अपनी तीनों विदेशी महिला मित्रों के साथ होटल के बाहर पोर्च में आ गया. आशीष ने होटल की पार्किंग में खड़ी अपनी बीएमडब्ल्यू कार मंगाई. कार के अंदर उस की पिस्टल रखी थी. इसी दौरान गौरव भी अपनी महिला दोस्त के साथ होटल (five star hotel) के बाहर पोर्च में आ गया था. उन दोनों को देखते ही आशीष भड़क उठा और उस ने अपनी कार के अंदर रखी पिस्टल निकाल ली. इस के बाद वह एक हाथ में पिस्टल ले कर गाड़ी से उतरा और गौरव को धमकाने जा पहुंचा. गौरव के साथ उस की महिला मित्र भी थी, उस ने आशीष को गौरव के साथ बदतमीजी करने से रोका और उसे धक्का दे कर सीढि़यों से नीचे उतरने पर मजबूर कर दिया.

इसी दौरान पार्टी का आयोजक साहिल गिरधर भी आ गया. उस ने बात खत्म करने के लिए आशीष को समझाया और उसे वहां से चले जाने की रिक्वेस्ट की. जब आशीष चला गया, तब गौरव फिर से अपनी महिला मित्र को ले कर होटल के अंदर गया. डिनर करने के बाद सब अपनेअपने घर चले गए. इस घटना पर किसी भी पक्ष ने किसी तरह की शिकायत नहीं की. सब से आश्चर्यजनक पहलू यह रहा कि होटल हयात रीजेंसी ने इस घटना को ले कर पुलिस में कोई शिकायत नहीं की. मामला रसूखदार परिवारों से जुड़ा था, इसलिए होटल ने भी कोई कदम नहीं उठाया.

होटल मैनेजमेंट को शायद यह चिंता रही होगी कि ऐसे मामले में उस का अपना नाम भी खराब होगा. लेकिन अगले दिन यानी सोमवार को इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. राजधानी दिल्ली की यह घटना राजनीति की गलियों में चर्चा का सबब बन गई. घटना में 2 राजनीतिक परिवारों से जुड़े होने से चर्चा और तेजी से बढ़ी. इस घटना के बाद आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में कानूनव्यवस्था की स्थिति को ले कर केंद्र सरकार पर निशाना साधा, साथ ही जवाब भी मांगा. कांग्रेस की सर्वेसर्वा सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा ने भी कानूनव्यवस्था की स्थिति पर चिंता जताई. गृह राज्यमंत्री किरण रिजीजू ने भी ट्वीट कर के कहा कि इस घटना की जांच दिल्ली पुलिस कर रही है. जल्दी ही सख्त और उचित काररवाई की जाएगी.

इस कवायद से पुलिस के काम में तेजी आई. मामले को तूल पकड़ता देख पुलिस ने केस दर्ज कर के आशीष की गिरफ्तारी के लिए लखनऊ समेत कई जगह छापे मारे. उसे विदेश भागने से रोकने के लिए इंटरनैशनल एयरपोर्ट पर लुकआउट सर्कुलर भी जारी कर दिया गया. बाहुबली परिवार दबंगई के आरोपी आशीष पांडे के पिता राकेश पांडे बीएसपी से सांसद रह चुके हैं. उन के भाई रितेश पांडे उत्तर प्रदेश से अब भी विधायक हैं. आशीष पूर्व बाहुबली विधायक पवन पांडे का भतीजा है. उस के दूसरे चाचा कृष्णकुमार पांडे सुलतानपुर के इसौली से बीएसपी से चुनाव लड़ चुके हैं.

पांडे बंधुओं का यूपी के कई जिलों में रियल एस्टेट, शराब और खनन का कारोबार है. आशीष को लग्जरी गाडि़यों और हथियारों का शौक रहा है. वह रियल एस्टेट का काम करता है. उस के दोनों चाचाओं का अंबेडकर नगर जिले में लंबा आपराधिक इतिहास है. हालांकि आशीष के परिवार पर कोई आपराधिक केस नहीं है. आशीष के पास पिस्टल के अलावा राइफल और बंदूक के लाइसेंस भी हैं. आशीष की पत्नी कामना स्वयंसेवी संस्था चलाती है, जिस के तहत वह कुत्तों के संरक्षण के लिए काम करती है. आशीष को तेजरफ्तार में गाडि़यां दौड़ाने का शौक है. कुछ दिनों पहले लखनऊ में देर रात पार्टी से लौट रहे आशीष ने हाईस्पीड गाड़ी दौड़ाई, लेकिन वह संभाल नहीं सका और डिवाइडर से टकरा कर गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया. हालांकि उसे मामूली चोटें आईं.

देहरादून से शुरुआती पढ़ाई के बाद आशीष विदेश पढ़ने चला गया था. पढ़ाई खत्म करने के बाद पिता राकेश पांडे ने जब बेटे का झुकाव बिजनैस की तरफ देखा तो शहर के फैजाबाद रोड पर फैक्ट्री लगवा दी. लेकिन फैक्ट्री नहीं चली. इस के बाद आशीष ने ठेकेदारी शुरू कर दी और लखनऊ शिफ्ट हो गया. यहां उस ने रियल एस्टेट और शराब के साथ खनन का काम भी शुरू कर दिया. फलस्वरूप उस ने दोनों हाथों से दौलत बटोरी. आशीष पांडे का परिवार राजनीतिक रसूखों वाला है. उस के पिता राकेश पांडे जलालपुर से पहली बार सपा के विधायक चुने गए. लेकिन बाद में उन्होंने बीएसपी का दामन थाम लिया और बीएसपी से अकबरपुर लोकसभा से एमपी बने. राजनीतिक रसूख हासिल करने के बाद राकेश पांडे ने बड़े बेटे रितेश पांडे को राजनीति में उतारा और 2017 के विधानसभा चुनाव में जलालपुर सीट से बीएसपी से विधायक बनवा दिया.

धमकी देने वाला वीडियो अगर वायरल न हुआ होता तो शायद इस मामले को दबा दिया जाता, क्योंकि एफआईआर में दर्ज होटल के असिस्टेंट सिक्योरिटी मैनेजर ने जो बयान दिया है, उस में उस ने साफ लिखा है कि हमें इस घटना के बारे में पूरी जानकारी थी, लेकिन हम ने इस के बारे में पुलिस या अन्य किसी को नहीं बताया. जब इस का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ तो आर.के. पुरम थाना पुलिस ने होटल जा कर पूछताछ की. पूछताछ के बाद होटल के असिस्टेंट सिक्योरिटी मैनेजर की ओर से शिकायत दर्ज कराई गई.

सच्चाई यह है कि फाइवस्टार होटल वाले इस तरह की छोटीमोटी घटनाओं की कभी शिकायत नहीं करते, क्योंकि उन्हें अपने कस्टमर्स की प्राइवेसी और होटल की इमेज भी देखनी होती है. वरना ऐसे होटल में कोई नहीं जाना चाहेगा. सिक्योरिटी गार्ड देखते रहे तमाशा दूसरी ओर, होटल की ओर से स्पष्टीकरण दे कर कहा गया है कि वह देश और दुनिया में अपने होटलों के कस्टमर्स की सुरक्षा को ले कर बहुत गंभीर रहता है. इस मामले में भी वे पुलिस को पूरा सहयोग करेंगे. लेकिन वायरल वीडियो में यह साफ दिखाई दे रहा है कि किस तरह से एक शख्स हाथ में पिस्टल ले कर एक महिलापुरुष को धमका रहा है और होटल का सिक्योरिटी स्टाफ कुछ नहीं कर रहा है.

वीडियो में पहले एक महिला सिक्योरिटी गार्ड समेत 4 सुरक्षाकर्मी नजर आते हैं. फिर इन की संख्या बढ़ कर 5 हो जाती है. लेकिन इन में से कोई भी सुरक्षाकर्मी हाथ में पिस्टल लिए आशीष पांडे को समझाने या रोकने की कोशिश करता नजर नहीं आता. यहां तक कि एक सिक्योरिटी गार्ड तो मौके से ही साइड होता नजर आता है.ऐसे में आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि यहां कस्टमर्स की सुरक्षा किस स्तर की है. होटल के अंदर जा रही गाडि़यों की जांच भी केवल लीपापोती ही होती है. होटल के अंदर जाने वाली गाडि़यों की डिक्की को खुलवा कर जरूर देखा जाता है. लेकिन गाडि़यों के अंदर क्या रखा है, इस की कोई जांच नहीं की जाती.

जांच करने वाले कार के नीचे, कुछ संदिग्ध चीज न लगी हो, की जांच छड़ी लगे शीशे से करते हैं. लेकिन यह भी बस दिखावा मात्र ही होता है. अगर सही से जांच होती तो आशीष पांडे की पिस्टल होटल तक पहुंच ही नहीं पाती. होटल के सिक्योरिटी मैनेजर की शिकायत पर पुलिस ने आशीष पांडे के खिलाफ आईपीसी की धारा 323, 341, 354, 506, 509 के तहत थाना आर.के. पुरम में केस दर्ज किया है. आशीष पांडे की तलाश में पुलिस ने लखनऊ और अंबेडकरनगर स्थित उस के घरों पर छापे मारे. लखनऊ के गौतमपल्ली स्थित सृष्टि अपार्टमेंट में पुलिस ने मंगलवार शाम को 4 बजे छापा मारा. आशीष के गोमतीनगर स्थित औफिस में भी छानबीन की गई. इस मामले में लखनऊ पुलिस ने दिल्ली पुलिस को पूरा सहयोग दिया.

आशीष के राजनीतिक परिवार से जुड़े होने के कारण घटना पर राजनीति शुरू हो गई. चाचा पवन पांडे ने घटना को राजनीतिक साजिश करार दिया. सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल होने के बाद आशीष ने अपने परिचितों और मित्रों को 17 अक्तूबर को एक मैसेज भेजा, जिस में उस ने कहा, ‘मेरी गलती है, मैं ने गलती की है. मैं गलती मानता हूं. मुझे आप के सहयोग की जरूरत है. इस वीडियो को वायरल होने से रोकें.’

उस दिन पुलिस उत्तर प्रदेश में जहांतहां उसे ढूंढ रही थी. उसी दिन दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट उस के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी कर दिया था. साथ ही हथियारों के उस के 3 लाइसेंस भी निरस्त कर दिए गए. 18 अक्तूबर गुरुवार को आशीष पांडे ने दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट में सरेंडर कर दिया. पुलिस की मांग पर उस का एक दिन का रिमांड भी दिया गया. पूछताछ के बाद उसे फिर से अदालत पर पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

UP Crime : मांबेटी को जलाया जिंदा

UP Crime : उत्तर प्रदेश के कानपुर (देहात) जनपद के रूरा थाने से 5 किलोमीटर दूर मैथा ब्लौक के अंतर्गत एक बड़ी आबादी वाला गांव है मड़ौली. अकबरपुर और रूरा 2 बड़े कस्बों के बीच लिंक रोड से जुड़े ब्राह्मण बाहुल्य इसी गांव में कृष्ण गोपाल दीक्षित सपरिवार रहते थे. उन के परिवार में पत्नी प्रमिला के अलावा 2 बेटे शिवम, अंश तथा एक बेटी नेहा थी. कृष्ण गोपाल दीक्षित के पास मात्र 2 बीघा जमीन थी. इसी जमीन पर खेती कर और बकरी पालन से वह अपना परिवार चलाते थे. बेटे जवान हुए तो वह भी पिता के काम में सहयोग करने लगे.

कृष्ण गोपाल के घर के ठीक सामने अशोक दीक्षित का मकान था. अशोक दीक्षित के परिवार में पत्नी सुधा के अलावा 3 बेटे गौरव, अखिल व अभिषेक थे. अशोक दीक्षित दबंग व संपन्न व्यक्ति थे. उन के पास खेती की अच्छीखासी जमीन थी. इस के अलावा उन के 2 बेटे गौरव व अभिषेक फौज में थे. संपन्नता के कारण ही गांव में उन की तूती बोलती थी. उन के बड़े बेटे गौरव का विवाह रुचि दीक्षित के साथ हो चुका था. रुचि खूबसूरत थी. वह अपनी सास सुधा के सहयोग से घर संभालती थी.

घर आमनेसामने होने के कारण अशोक व कृष्ण गोपाल के बीच बहुत नजदीकी थी. दोनों परिवारों का एकदूसरे के घर आनाजाना था. अशोक की पत्नी सुधा व कृष्ण गोपाल की पत्नी प्रमिला की खूब पटती थी, लेकिन दोनों के बीच अमीरीगरीबी का बढ़ा फर्क था. कृष्ण गोपाल व उस के परिवार के मन में सदैव गरीबी की टीस सताती रहती थी.

मड़ौली गांव से लगभग एक किलोमीटर दूर सडक़ किनारे ग्राम समाज की भूमि पर कृष्ण गोपाल दीक्षित का पुश्तैनी कब्जा था. सालों पहले इस वीरान पड़ी भूमि पर कृष्ण गोपाल के पिता चंद्रिका प्रसाद दीक्षित व बाबा ने पेड़ लगा कर कब्जा किया था. बाद में पेड़ों ने बगीचे का रूप ले लिया. इसी बगीचे में कृष्ण गोपाल ने एक कमरा बना लिया था और सामने झोपड़ी डाल ली थी. इसी में वह रहते थे और पशुपालन करते थे.

भू अभिलेखों में ग्राम समाज की यह जमीन गाटा संख्या 1642 में 3 बीघा दर्ज है, जिस में से एक बीघा भूमि पर कृष्ण गोपाल का कब्जा था. लेकिन जो 2 बीघा जमीन थी, उस पर कृष्ण गोपाल किसी को भी कब्जा नहीं करने देता था. उस पर भी वह अपना अधिकार जमाता था. कृष्ण गोपाल ही नहीं, गांव के दरजनों लोग ग्राम समाज की जमीन पर काबिज हैं. किसी ने खूंटा गाड़ कर कब्जा किया तो किसी ने कूड़ाकरकट डाल कर. किसी ने कच्चापक्का निर्माण करा कर कब्जा किया तो किसी ने सडक़ किनारे दुकान बना ली. इस काबिज ग्राम समाज की भूमि पर किसी ने अंगुली नहीं उठाई और आज भी काबिज हैं.

सिपाही लाल ने शुरू किया विवाद…

लेकिन कृष्ण गोपाल की काबिज भूमि पर आंच तब आई, जब गांव के ही सिपाही लाल दीक्षित ने गाटा संख्या 1642 की 2 बीघा में से एक बीघा जमीन अपनी बेटी रानी के नाम तत्कालीन ग्रामप्रधान के साथ मिलीभगत कर पट्टा करा दी. रानी का विवाह रावतपुर (कानपुर) (UP Crime) निवासी रामनरेश के साथ हुआ था. लेकिन उस की अपने पति से नहीं पटी तो वह मायके आ कर रहने लगी थी. उस का पति से तलाक हुआ या नहीं, यह तो पता नहीं चला, पर उस का पति से लगाव खत्म हो गया था.

यह बात सन 2005 की है. सिपाही लाल ने बेटी के नाम पट्ïटा तो करा दिया, लेकिन वह कृष्ण गोपाल के विरोध के कारण उस पर कब्जा नहीं कर पाया. बस यही बात कृष्ण गोपाल के पड़ोसी अशोक दीक्षित को चुभने लगी. दरअसल, रानी रिश्ते में अशोक की बहन थी. वह चाहते थे कि रानी पट्टे वाली जमीन पर काबिज हो. इस मामले को ले कर अशोक दीक्षित ने परिवार के अनिल दीक्षित, निर्मल दीक्षित, गेंदनलाल व बढ़े बउआ को भी अपने पक्ष में कर लिया. अब ये लोग कृष्ण गोपाल के विपक्षी बन गए और मन ही मन रंजिश मानने लगे.

अशोक दीक्षित का बेटा गौरव दीक्षित फौज में था. उसे भी इस बात का मलाल था कि उस के पिता रानी बुआ को पट्टे वाली जमीन पर काबिज नहीं करा पाए. वह जब भी छुट्टी पर गांव आता, वह कृष्ण गोपाल के परिवार को नीचा दिखाने की कोशिश करता. एक बार उस ने शिवम की बहन नेहा के फैशन को ले कर भद्दी टिप्पणी कर दी. इस पर नेहा और उस की मां प्रमिला ने उसे तीखा जवाब दिया, जिस से वह तिलमिला उठा.

कृष्ण गोपाल दीक्षित के दोनों बेटे शिवम व अंशु भी दबंगई में कम न थे. दोनों विश्व हिंदू परिषद के सक्रिय सदस्य थे. विहिप के धरनाप्रदर्शन में दोनों भाग लेते रहते थे. दोनों भाई आर्थिक रूप से भले ही कमजोर थे, लेकिन खतरों के खिलाड़ी थे. अब तक शिवम की शादी शालिनी के साथ हो गई थी. वह पुश्तैनी मकान में रहता था. दिसंबर, 2022 में गौरव छुट्टी पर आया तो एक रोज सडक़ किनारे एक दुकान पर किसी बात को ले कर उस की अंशु से तकरार होने लगी. तकरार बढ़ती गई और दोनों एकदूसरे को देख लेने की धमकी देने लगे.

इस घटना के बाद गौरव ने फैसला कर लिया कि वह कृष्ण गोपाल व उस के बेटों को सबक जरूर सिखाएगा और उन की अवैध कब्जे वाली ग्राम समाज की भूमि को मुक्त करा कर ही दम लेगा. इस के बाद गौरव ने अपने पिता अशोक दीक्षित व परिवार के अन्य लोगों के साथ कान से कान जोड़ कर सलाह की और पूरी योजना बनाई. योजना के तहत गौरव ने लेखपाल अशोक सिंह चौहान से मुलाकात की. पहली ही मुलाकात में दोनों एकदूसरे से प्रभावित हुए. कारण, अशोक सिंह चौहान भी पहले फौज में था. रिटायर होने के बाद उसे लेखपाल की नौकरी मिल गई थी.

चूंकि दोनों फौजी थे, अत: जल्द ही उन की दोस्ती हो गई. इस के बाद गौरव ने लेखपाल को पैसों का लालच दे कर उसे अपनी मुट्ठी में कर लिया. योजना के तहत ही गौरव ने अपने पिता अशोक दीक्षित के मार्फत परिवार के एक व्यक्ति गेंदनलाल दीक्षित को उकसाया और उसे शिकायत करने को राजी कर लिया. गेंदन लाल ने तब दिसंबर के अंतिम सप्ताह में एक प्रार्थनापत्र कानपुर (देहात) की डीएम नेहा जैन को दिया. इस प्रार्थना पत्र में उस ने लिखा कि मड़ौली गांव के निवासी कृष्ण गोपाल दीक्षित व उस के बेटों ने ग्राम समाज की भूमि पर अवैध कब्जा कर कमरा बना लिया है व झोपड़ी भी डाल ली है. इस जमीन को खाली कराया जाए.

गेंदन लाल को बनाया मोहरा…

गेंदन लाल के इस शिकायती पत्र पर डीएम नेहा जैन ने काररवाई करने का आदेश एसडीएम (मैथा) ज्ञानेश्वर प्रसाद को दिया. ज्ञानेश्वर प्रसाद ने इस संबंध में जानकारी लेखपाल अशोक सिंह चौहान से जुटाई तो पता चला कि कृष्ण गोपाल जिस जमीन पर काबिज है, वह जमीन ग्राम समाज की है.

लेखपाल अशोक सिंह चौहान घूसखोर था. वह कोई भी काम बिना घूस के नहीं करता था. उस की निगाह अवैध कब्जेदारों पर ही रहती थी. जो उसे पैसा देता, उस का कब्जा बरकरार रहता, जो नहीं देता उन को धमकाता. मड़ौली के ग्राम प्रधान मानसिंह की भी उस से कहासुनी हो चुकी थी. उन्होंने उस की शिकायत भी डीएम साहिबा से की थी. लेकिन उस का बाल बांका नहीं हुआ. उस ने अधिकारियों को गुमराह कर अपना उल्लू सीधा कर लिया था. मैथा ब्लाक में एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद भी उस के जायजनाजायज काम में लिप्त रहते थे.

13 जनवरी, 2023 को बिना किसी नोटिस के एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद की अगुवाई में राजस्व विभाग की एक टीम कृष्ण गोपाल के यहां पहुंची और ग्राम समाज की भूमि पर बना उस का कमरा ढहा दिया. कमरा ढहाए जाने के पहले कृष्ण गोपाल ने एसडीएम (मैथा) के पैरों पर गिर कर ध्वस्तीकरण रोकने की गुहार लगाई, लेकिन वह नहीं पसीजे. लेखपाल अशोक सिंह चौहान तो उन्हें बेइज्जत ही करता रहा. एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद ने कृष्ण गोपाल से कहा कि 5 दिन के अंदर वह अपनी झोपड़ी भी हटा ले, वरना इसे भी ढहा दिया जाएगा. काररवाई के दौरान एक मैमो भी बनाया गया, जिस में गवाह के तौर पर 15 ग्रामीणों के हस्ताक्षर कराए गए.

14 जनवरी, 2023 को पीडि़त कृष्ण गोपाल दीक्षित व उन के घर के अन्य लोग लोडर से बकरियां ले कर माती मुख्यालय धरना देने पहुंच गए. समर्थन में विहिप नेता आदित्य शुक्ला व गौरव शुक्ला भी पहुंच गए. पीडि़त परिजनों ने आवास की मांग की तो अफसरों ने उन्हें माफिया बताया. माफिया बताने पर विहिप नेताओं का पारा चढ़ गया. उन्होंने सर्दी में गरीब का घर ढहाने व प्रशासन की संवेदनहीनता पर नाराजगी जताई. उन की एडीएम (प्रशासन) केशव गुप्ता से झड़प भी हुई.

दूसरे दिन पीडि़तों की आवाज दबाने के लिए तहसीलदार रणविजय सिंह ने अकबरपुर कोतवाली में शांति भंग की धारा में कृष्ण गोपाल दीक्षित, उन की पत्नी प्रमिला, बेटों शिवम व अंशु, बेटी नेहा व बहू शालिनी तथा सहयोग करने वाले विहिप नेता आदित्य व गौरव शुक्ला के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया.

14 जनवरी, 2023 को ही लेखपाल अशोक सिंह चौहान ने थाना रूरा में कृष्ण गोपाल व उन के दोनों बेटों के खिलाफ एक मुकदमा दर्ज कराया, जिस में उस ने लिखा, ‘13 जनवरी को प्रशासन अवैध कब्जा हटाने गया था. उस वक्त कृष्ण गोपाल व उन के बेटे शिवम व अंशु प्रशासन से गालीगलौज करते हुए मारपीट पर उतारू हो गए थे. जोरजोर से झगड़ा करने लगे थे. गांव के लोगों को सरकारी कर्मचारियों पर हमला करने के लिए उकसाने लगे थे. वह कहने लगे कि यहां से भाग जाओ वरना बिकरू वाला कांड अपनाएंगे.’

लेखपाल की तहरीर के आधार पर रूरा पुलिस ने रिपोर्ट तो दर्ज कर ली थी, लेकिन किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया. दूसरी तरफ इस मामले के खिलाफ पीडि़त कृष्ण गोपाल ने तहसील अकबरपुर में वाद दायर किया, जिस की सुनवाई की तारीख 20 फरवरी निर्धारित की गई.

बदले की भावना से चलाया बुलडोजर…

मड़ौली गांव में दरजनों लोग ग्रामसमाज की भूमि पर काबिज थे, उन की भूमि पर प्रशासन का बुलडोजर नहीं चला, लेकिन बदले की भावना से तथा मुट्ïठी गर्म होने पर कृष्ण गोपाल को निशाना बनाया गया. पर कृष्ण गोपाल भी जिद्ïदी था. उस ने कमरा ढहाए जाने के बाद उसी जगह पर ईंटों का पिलर खड़ा कर उस पर घासफूस की झोपड़ी बना ली थी. यही नहीं, उस ने हैंडपंप को ठीक करा लिया था और शिव चबूतरे को भी नया लुक दे दिया था.

कृष्ण गोपाल दीक्षित को 5 दिन में जगह को कब्जामुक्त करने का अल्टीमेटम प्रशासनिक अधिकारियों ने दिया था, लेकिन 2 सप्ताह बीत जाने के बावजूद भी उस ने जगह खाली नहीं की थी. दरअसल, कृष्ण गोपाल ने तहसील में वाद दाखिल किया था और सुनवाई 20 फरवरी को होनी थी. इसलिए वह निश्चिंत था और जगह खाली नहीं की थी. लेखपाल अशोक सिंह चौहान व अन्य प्रशासनिक अधिकारी जमीन कब्जा मुक्त न होने से खफा थे. लेखपाल उन के कान भी भर रहा था और उन्हें गुमराह भी कर रहा था. अत: प्रशासनिक अधिकारियों ने कृष्ण गोपाल की झोपड़ी भी ढहाने का मन बना लिया.

13 फरवरी, 2023 की शाम 3 बजे एसडीएम (मैथा) ज्ञानेश्वर प्रसाद, कानूनगो नंदकिशोर, लेखपाल अशोक सिंह चौहान और एसएचओ दिनेश कुमार गौतम बुलडोजर ले कर मड़ौली गांव पहुंचे. साथ में 15 महिला, पुरुष पुलिसकर्मी भी थे. लोडर चालक दीपक चौहान था. अचानक इतने अधिकारियों और पुलिस को देख कर झोपड़ी में आराम कर रहे कृष्ण गोपाल और उन की पत्नी प्रमिला बाहर निकले. प्रशासनिक अधिकारियों ने जमीन पर अवैध कब्जा बताते हुए उन से तुरंत जगह खाली करने को कहा.

इस पर प्रमिला, उन के बेटे शिवम व बेटी नेहा ने कहा कि कोर्ट में उन का वाद दाखिल है और सुनवाई 20 फरवरी को है. लेकिन पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी नहीं माने. उन्होंने जगह को तुरंत खाली करने की चेतवनी दी. इस के बाद शिवम अपने पिता के साथ झोपड़ी का सामान निकाल कर बाहर रखने लगा. इसी समय एसडीएम (मैथा) ज्ञानेश्वर प्रसाद ने बुलडोजर चालक दीपक चौहान को संकेत दिया कि वह काररवाई शुरू करे. बुलडोजर शिव चबूतरा ढहाने आगे बढ़ा तो एसएचओ (रूरा) दिनेश गौतम ने उसे रोक दिया. वह चबूतरे पर चढ़े. उन्होंने शिवलिंग व नंदी को प्रणाम कर माफी मांगी फिर चबूतरे से उतर आए. उन के उतरते ही बुलडोजर ने चबूतरा ढहा दिया और मार्का हैंडपंप को उखाड़ फेंका.

जीवित भस्म हो गईं मांबेटी…

अब तक प्रमिला के सब्र का बांध टूट चुका था. उन्हें लगा कि अधिकारी उन की झोपड़ी नेस्तनाबूद कर देंगे. वह पुलिस व लेखपाल से भिड़ गईं. उस ने लेखपाल अशोक सिंह चौहान के माथे पर हंसिया से प्रहार कर दिया. फिर वह बेटी नेहा के साथ चीखती हुई बोली, ‘‘मर जाऊंगी, लेकिन कब्जा नहीं हटने दूंगी.’’

इस के बाद वह नेहा के साथ झोपड़ी के अंदर चली गई और दरवाजा बंद कर लिया. महिला पुलिसकर्मियों ने दरवाजा खुलवाने का प्रयास किया, लेकिन दरवाजा नहीं खुला. इधर प्रशासनिक अधिकारियों को लगा कि मांबेटी ध्वस्तीकरण रोकने के लिए नाटक कर रही हैं. उन्होंने झोपड़ी गिराने का आदेश दे दिया. बुलडोजर ने छप्पर ढहाया तो झोपड़ी में आग लग गई. हवा तेज थी. देखते ही देखते आग ने विकराल रूप धारण कर लिया.

आग की लपटों के बीच मांबेटी धूधू कर जलने लगी. कृष्ण गोपाल चिल्लाता रहा कि पत्नी और बेटी झोपड़ी के अंदर है. परंतु अफसरों ने नहीं सुनी और जलता छप्पर जेसीबी से और दबवा दिया. इस से उन का निकल पाना तो दूर, दोनों को हिलने तक का मौका नहीं मिला और दोनों जल कर भस्म हो गईं.

कृष्ण गोपाल व उन का बेटा शिवम मां व बहन को बचाने किसी तरह झोपड़ी में घुस तो गए. लेकिन वे उन दोनों तक नहीं पहुंच पाए. आग की लपटों ने उन दोनों को भी झुलसा दिया था. शिवम बाहर खड़ा चीखता रहा, ‘‘हाय दइया, कोउ हमरी मम्मी बहना को बचा लेऊ.’’ पर उस की चीख अफसरों ने नहीं सुनी. वे आंखें मूंदे खतरनाक मंजर देखते रहे.

इधर मड़ौली गांव के लोगों ने कृष्ण गोपाल के बगीचे में आग की लपटें देखीं तो वे उस ओर दौड़ पड़े. वहां का भयावह दृश्य देख कर ग्रामीणों का गुस्सा फूट पड़ा और वे पुलिस तथा प्रशासनिक अधिकारियों पर पथराव करने लगे. ग्रामीणों का गुस्सा देख कर पुलिस व अफसर किसी तरह जान बचा कर वहां से भागे. ग्रामीणों का सब से ज्यादा गुस्सा लेखपाल पर था. उन्होंने उस की कार पलट दी और तोड़ डाली. वे कार को फूंकने जा रहे थे, लेकिन कुछ समझदार ग्रामीणों ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया.

सूर्यास्त होने से पहले ही मांबेटी के जिंदा जलने की खबर जंगल की आग की तरह मड़ौली व आसपास के गांवों में फैल गई. कुछ ही देर बाद सैकड़ों की संख्या में लोग घटनास्थल पर आ पहुंचे. लोगों में भारी गुस्सा था और वह शासनप्रशासन मुर्दाबाद के नारे लगाने लगे थे. शिव चबूतरा तोड़े जाने से लोगों में कुछ ज्यादा ही रोष था. इस बर्बर घटना की जानकारी पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों को हुई तो चंद घंटों बाद ही एसपी (देहात) बी.बी.जी.टी.एस. मूर्ति, एएसपी घनश्याम चौरसिया, एडीजी आलोक सिंह, आईजी प्रशांत कुमार, कमिश्नर डा. राजशेखर तथा डीएम (कानपुर देहात) नेहा जैन आ गईं और उन्होंने घटनास्थल पर डेरा जमा लिया.

कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए पुलिस अधिकारियों ने भारी संख्या में पुलिस व पीएसी बल बुलवा लिया. कमिश्नर डा. राजशेखर, एडीजी आलोक सिंह तथा आईजी प्रशांत कुमार ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तथा कृष्ण गोपाल व उन के बेटों को धैर्य बंधाया. निरीक्षण के बाद अधिकारियों ने मृतक मांबेटी के घर वालों से पूछताछ की. मृतका प्रमिला के पति कृष्ण गोपाल ने अफसरों को बताया कि एसडीएम (मैथा), कानूनगो व लेखपाल बुलडोजर ले कर आए थे. उन के साथ गांव के अशोक दीक्षित, अनिल, निर्मल व बड़े बउआ और गांव के कई अन्य लोग भी थे. ये लोग अधिकारियों से बोले कि आग लगा दो तो अफसरों ने आग लगा दी. हम और हमारा बेटा उन दोनों को बचाने में झुलस गए. लेकिन उन्हें बचा नहीं पाए और वे आग में जल कर खाक हो गईं. कृष्ण गोपाल के बेटे शिवम दीक्षित ने भी इसी तरह का बयान दिया.

दोषियों को बचाने में जुटा प्रशासन…

अधिकारियों ने कुछ ग्रामीणों से भी पूछताछ की. राजीव द्विवेदी नाम के व्यक्ति ने बताया कि अशोक दीक्षित का बेटा गौरव दीक्षित फौज में है. वह दबंग है. उसी ने पूरी साजिश रची. उस के साथ गांव के कुछ लोग हैं. इस में एसडीएम, एसएचओ और लेखपाल भी मिले हैं. डीएम साहिबा अपने कर्मचारियों को बचा रही हैं. ग्रामीणों ने बताया कि इस पूरे मामले में प्रशासन दोषी है. अफसरों ने पैसा लिया है. वह जबरदस्ती कब्जा हटाने पर अड़े हुए थे. उन्होंने कहा मृतका प्रमिला की बेटी नेहा की शादी तय हो गई थी. उस की अब डोली की जगह अर्थी उठेगी. प्रमिला भी समझदार महिला थी. उस ने कभी किसी का अहित नहीं सोचा.

ग्रामीण व मृतका के परिजन जहां अफसरों को दोषी ठहरा रहे थे, वहीं प्रशासनिक अफसर उन का बचाव कर रहे थे. जिलाधिकारी नेहा जैन ने इस मामले पर सफाई देते हुए कहा कि अतिक्रमण हटाने के लिए राजस्व टीम पुलिस के साथ मौके पर पहुंची थी. महिलाएं आईं और रोकने का प्रयास किया. लेखपाल पर हंसिया से अटैक भी किया. इस के बाद मांबेटी ने झोपड़ी के अंदर जा कर आग लगा ली.

कानपुर (देहात) के एसपी बी.बी.जी.टी.एस. मूर्ति ने कहा, ‘‘एसडीएम व अन्य कर्मचारी अवैध कब्जा हटाने गए थे. इस दौरान कुछ लोग विरोध कर रहे थे. महिला व उन की बेटी भी विरोध में शामिल थी. विरोध करतेकरते उन दोनों ने खुद को झोपड़ी के अंदर बंद कर लिया. थोड़ी देर बाद झोपड़ी के अंदर आग लग गई. इस में महिला व उन की बेटी की मौत हो गई. आग लगी या लगाई गई, इस की जांच होगी.’’

पूछताछ के बाद रूरा पुलिस थाने में मृतका प्रमिला के बेटे शिवम दीक्षित की तहरीर के आधार पर मुअसं 38/2023 पर भादंवि की धारा 302/307/429/436/323 व 34 के तहत 11 नामजद, 15 पुलिसकर्मियों व 13 अन्य के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की गई. नामजद आरोपियों में एसडीएम (मैथा) ज्ञानेश्वर प्रसाद, लेखपाल अशोक कुमार सिंह चौहान, रूरा प्रभारी निरीक्षक दिनेश गौतम, कानूनगो नंद किशोर, जेसीबी चालक दीपक चौहान, मड़ौली गांव के अशोक दीक्षित, अनिल दीक्षित, निर्मल दीक्षित, गेंदन लाल, गौरव दीक्षित व बढ़े बउआ के नाम थे. मामले की जांच थाना अकबरपुर के इंसपेक्टर प्रमोद कुमार शुक्ला को सौंपी गई.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद शासन ने एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद को सस्पेंड कर दिया तथा 2 आरोपियों जेसीबी चालक दीपक चौहान व लेखपाल अशोक सिंह चौहान को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. सस्पेंड एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद व थाना रूरा के एसएचओ दिनेश गौतम भूमिगत हो गए. अन्य आरोपियों की धरपकड़ के लिए 5 पुलिस टीमें लगा दी गईं.  इधर जल कर खाक हुई मांबेटी का मामला प्रदेश की राजधानी लखनऊ तक पहुंचा तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भावुक हो उठे. उन्होंने पीडि़त परिवार को हरसंभव मदद का आश्वासन दिया तथा अपनी टीम को लगा दिया. यही नहीं, उन्होंने पूरे घटनाक्रम की जानकारी अफसरों से ली और सख्त काररवाई का आदेश दिया.

इसी कड़ी में भाजपा की क्षेत्रीय विधायक व राज्यमंत्री प्रतिभा शुक्ला देर रात घटनास्थल मड़ौली गांव पहुंचीं. उन्होंने पीडि़त परिवार को धैर्य बंधाया फिर कहा, ‘‘मैं इस क्षेत्र की विधायक हूं और यहां ऐसी बर्बर घटना घट गई. महिलाओं के साथ अत्याचार हुआ. ऐसे में मेरा कल्याण विभाग में होना बेकार है. जब हम अपनी बेटी और मां को नहीं बचा पा रहे. पहले घर के बाहर निकालते फिर गिराते. जमीन तो यूं ही पड़ी है. आगे भी पड़ी रहेगी. कोई कहीं नहीं ले जा रहा है.’’

गांव वालों का फूटा आक्रोश…

पुलिस अधिकारी मांबेटी के शवों को रात में ही पोस्टमार्टम हाउस भेजने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन पीडि़त घर वालों व गांव वालों ने शव नहीं उठाने दिए. उन्होंने एक मांग पत्र कमिश्नर डा. राजशेखर को सौंपा और कहा कि जब तक उन की मांगें पूरी नहीं होती वह शव नहीं उठने देंगे. उन्होंने मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री को भी घटनास्थल पर आने की शर्त रखी. पीडि़त परिजनों ने जो मांग पत्र कमिश्नर को सौंपा था, उन में 5 मांगें थी.

1- मृतक परिवार को 5 करोड़ रुपए का मुआवजा,

2-मृतका के दोनों बेटों को सरकारी नौकरी,

3-मृतका के दोनों बेटों को आवास,

4- परिवार को आजीवन पेंशन तथा

5- दोषियों को कठोर सजा.

चूंकि पीडि़त परिवार की मांगें तत्काल मान लेना संभव न था, अत: अधिकारियों ने पीडि़त परिवार को समझाया और उनकी मांगों को शासन तक पहुंचाने की बात कही, लेकिन परिजन अपनी बात पर अड़े रहे. उन्होंने राज्यमंत्री प्रतिभा शुक्ला की भी बात नहीं मानी. लाचार अधिकारी मौके पर ही डटे रहे और मानमनौवल करते रहे.

14 फरवरी, 2023 की सुबह कानपुर नगर/देहात से प्रकाशित समाचार पत्रों में जब मांबेटी की जल कर मौत होने की खबर सुर्खियों में छपी तो पूरे प्रदेश में राजनीतिक भूचाल आ गया. कांग्रेस पार्टी प्रमुख राहुल गांधी, सपा प्रमुख अखिलेश यादव तथा बसपा प्रमुख मायावती ने जहां ट्वीट कर योगी सरकार की कानूनव्यवस्था पर तंज कसा तो दूसरी ओर इन पार्टियों के नेता घटनास्थल पर पहुंचने को आमादा हो गए. लेकिन सतर्क पुलिस प्रशासन ने इन नेेताओं को घटनास्थल तक पहुंचने नहीं दिया. किसी विधायक को उन के घर में नजरबंद कर दिया गया तो किसी को रास्ते में रोक लिया गया.

एसआईटी के हाथ में पहुंची जांच…

इधर 24 घंटे बीत जाने के बाद भी जब घर वालों तथा गांववालों ने मांबेटी के शवों को नहीं उठने दिया तो कमिश्नर डा. राजशेखर ने प्रदेश के उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक से वीडियो काल कर पीडि़तों की बात कराई. उपमुख्यमंत्री ने मृतका के बेटे शिवम दीक्षित से कहा कि आप हमारे परिवार के सदस्य हो. पूरी सरकार आप के साथ खड़ी है. दोषियों के खिलाफ केस दर्ज हो गया है और कड़ी से कड़ी काररवाई होगी. उन्हें ऐसी सख्त सजा दिलाएंगे कि पुश्तें याद रखेंगी.

डिप्टी सीएम बात करतेकरते भावुक हो गए. उन्होंने शिवम से कहा कि आप कतई अकेला महसूस न करें, जिन्होंने तुम्हारी मांबहन को तुम से छीना है, उन्हें इस का खामियाजा भुगतना पड़ेगा. इस घटना से हम सभी द्रवित है. इस के बाद उन्होंने शिवम की पत्नी शालिनी तथा भाई अंशु से भी बात की और उन्हें धैर्य बंधाया. डिप्टी सीएम से बात करने के बाद पीडि़त परिवार शव उठाने को राजी हो गया. इस के बाद पुलिस अधिकारियों ने मांबेटी के शवों के पोस्टमार्टम हेतु माती भेज दिया. शाम साढ़े 6 से साढ़े 7 बजे के बीच 3 डाक्टरों (डा. गजाला अंजुम, डा. शिवम तिवारी तथा डा. मुनीश कुमार) के पैनल ने वीडियोग्राफी के बीच पोस्टमार्टम किया.

मांबेटी के अंतिम संस्कार के बाद पुलिस ने आरोपी अशोक दीक्षित के घर रात 2 बजे छापा मारा, लेकिन घर पर महिलाओं के अलावा कोई नहीं मिला. पुलिस टीम ने महिलाओं से पूछताछ की तो गौरव की पत्नी रुचि दीक्षित ने बताया कि उन के परिवार का इस केस से कोई लेनादेना नहीं है. उन के पति गौरव दीक्षित फौज में है. वह श्रीनगर में तैनात है. उन का देवर अभिषेक दीक्षित राजस्थान में फौज में है. छोटा देवर अखिल 29 जुलाई से घर से लापता है. उन के ससुर अशोक दीक्षित खेती करते हैं. रुचि ने पुलिस टीम की अपने पति गौरव से फोन पर बात भी कराई.

आरोपी अशोक दीक्षित की पत्नी सुधा दीक्षित ने पुलिस को बताया कि उन के पति व बेटों को इस मामले में साजिशन फंसाया जा रहा है. इधर शासन ने भी मांबेटी की मौत को गंभीरता से लिया और जांच के लिए अलगअलग 2 विशेष जांच टीमों (एसआईटी) का गठन किया. पहली टीम का गठन डीजीपी हाउस लखनऊ द्वारा किया गया.5 सदस्यीय इस टीम में हरदोई के एसपी राजेश द्विवेदी को अध्यक्ष, हरदोई सीओ (सिटी) विकास जायसवाल को विवेचक बनाया गया. जबकि हरदोई के कोतवाल संजय पांडेय, हरदोई महिला थाने की एसएचओ राम सुखारी तथा क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर रमेश चंद्र पांडेय को शामिल किया गया.

दूसरी विशेष जांच टीम (एसआईटी) का प्रमुख कमिश्नर डा. राजशेखर व एडीजी आलोक सिंह को बनाया गया और विवेचक कन्नौज के एडीएम (वित्त एवं राजस्व) राजेंद्र कुमार को बनाया गया. इस टीम को भी तत्काल प्रभाव से जांच के आदेश दिए. एसआईटी की दोनों टीमें मड़ौली गांव पहुंची और जांच शुरू की. एसपी राजेश द्विवेदी की टीम ने घटनास्थल का निरीक्षण किया फिर पीडि़त परिवार के लोगों से पूछताछ कर बयान दर्ज किए. टीम ने गांव के प्रधान व कुछ अन्य लोगों से भी जानकारी जुटाई. टीम ने थाना अकबरपुर व रूरा में पीडि़तों के खिलाफ दर्ज रिपोर्ट का भी अध्ययन किया. टीम ने उन 15 लोगों को भी नोटिस जारी किया जो गवाह के रूप में दर्ज थे.

दूसरी विशेष जांच टीम ने भी जांच शुरू की. डा. राजशेखर की टीम ने लगभग 60 लोगों की लिस्ट तैयार की और उन्हें जिला मुख्यालय पर शिविर कार्यालय निरीक्षण भवन में बयान दर्ज कराने को बुलाया. टीम ने कुछ मोबाइल फोन नंबर भी जारी किए, जिस पर कोई भी व्यक्ति घटना से संबंधित बयान दर्ज करा सके.

बहरहाल, कथा लिखने तक एसआईटी की जांच जारी थी. रूरा पुलिस ने गिरफ्तार आरोपी लेखपाल अशोक सिंह चौहान व चालक दीपक चौहान को माती कोर्ट में पेश किया, जहां से उन दोनों को जिला जेल भेज दिया गया. आरोपी एसएचओ दिनेश गौतम व एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद भूमिगत हो चुके थे. अन्य आरोपियों को पकडऩे के लिए पुलिस प्रयासरत थी. मृतका प्रमिला के दोनों बेटों शिवम व अंशु को 5-5 लाख रुपए की सहायता राशि शासन द्वारा प्रदान कर दी गई थी तथा उन्हें सुरक्षा भी मुहैया करा दी गई थी.

-कथा पुलिस सूत्रों तथा पीडि़त परिवार से की गई बातचीत पर आधारित

काली दुनिया का कुख्यात Gangster

Gangster story : बदन सिंह बद्दो मूलरूप से पंजाब का रहने वाला है. उस के पिता चरण सिंह पंजाब के जालंधर से 1970 में मेरठ आए और यहां के एक मोहल्ला पंजाबीपुरा में बस गए. चरण सिंह एक ट्रक ड्राइवर थे. ट्रक चला कर उस आमदनी से किसी तरह अपने 7 बेटेबेटियों के बड़े परिवार को पाल रहे थे. बदन सिंह बद्दो सभी भाईबहनों में सब से छोटा था. 8वीं के बाद उस ने स्कूल जाना बंद कर दिया. कुछ बड़ा हुआ तो बाप के साथ ट्रक चलाने लगा. एक शहर से दूसरे शहर माल ढुलाई के दौरान उस का वास्ता पहले कुछ छोटेमोटे अपराधियों से और फिर शराब माफियाओं से पड़ा. उस ने कई बार पैसे ले कर शराब की खेप एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाई.

धीरेधीरे पश्चिमी यूपी के बौर्डर के इलाकों में उस ने बड़े पैमाने पर शराब की तस्करी शुरू कर दी. फिर स्मगलिंग के बड़े धंधेबाजों से उस की दोस्ती हो गई. वह स्मगलिंग का सामान बौर्डर के आरपार करने लगा. हरियाणा और दिल्ली बौर्डर पर तस्करी से उस ने खूब पैसा कमाया. इस के बाद तो वह पूरी तरह अपराध के कारोबार में उतर गया और उस की दिन की कमाई लाखों में होने लगी. दिखने के लिए बद्दो खुद को ट्रांसपोर्ट के बिजनैस से जुड़ा दिखाता रहा, मगर उस का धंधा काला था.

अपराध की राह पर बड़ी तेजी से आगे बढ़ते बद्दो की मुलाकात जब पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 2 बड़े बदमाश सुशील मूंछ और भूपेंद्र बाफर से हुई तो इन दोनों के साथ उस का मन लग गया. इन के साथ ने बद्दो को निडर बनाया. बद्दो ने कई गुर्गे पाल लिए जो उस के इशारे पर सुपारी ले कर हत्या और अपहरण का धंधा चलाने लगे. सुशील मूंछ और बद्दो के गठजोड़ ने जमीनों पर अवैध कब्जे का धंधा भी शुरू कर दिया. सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे कर वहां दुकानें बना कर करोड़ों में खरीदनेबेचने के इस धंधे में सरकारी सिस्टम में बैठी काली भेड़ें भी शामिल थीं, जो अपना हिस्सा ले कर किसी भी फाइल को आगे बढ़ा देती थीं.

बदन सिंह बद्दो और सुशील मूंछ की दोस्ती जब बहुत गहरी हुई तो भूपेंद्र बाफर और सुशील मूंछ में दूरियां बढ़ गईं और एक समय वह आया जब बाफर सुशील मूंछ का दुश्मन हो गया. तब मूंछ और बद्दो एकदूसरे का सहारा बन गए. सुशील मूंछ का बड़ा गैंग था. विदेश तक उस के कारनामों की गूंज थी. जरायम की दुनिया के इन 2 बड़े कुख्यातों का याराना पुलिस फाइल और अपराध की काली दुनिया में बड़ी चर्चा में रहता था. दोस्ती भी अजीबोगरीब थी. हैरतअंगेज था कि जब एक किसी अपराध में गिरफ्तार हो कर जेल जाता तो दूसरा बाहर रहता था और धंधा संभालता था. 3 दशकों तक ये दोनों पुलिस से आंखमिचौली खेलते रहे. मूंछ जब 3 साल जेल में बंद रहा तो उस दौरान बद्दो जेल से बाहर था. मूंछ का सारा काम बद्दो संभालता था.

वहीं 2017 में जब बद्दो को उम्रकैद की सजा हुई तो मूंछ बाहर था और बद्दो की पूरी मदद कर रहा था. 2019 में जब बद्दो पुलिस को चकमा दे कर कस्टडी से फरार हुआ तो दूसरे ही दिन सुशील मूंछ ने सरेंडर कर दिया और जेल चला गया. पुलिस कभी भी इन दोनों की साजिश को समझ नहीं पाई. कहते हैं कि बद्दो को कस्टडी से फरार करवाने की सारी प्लानिंग सुशील मूंछ ने की. इस के लिए पुलिस और कुछ सफेदपोशों को बड़ा पैसा खिलाया गया. लेकिन बद्दो कहां है यह राज आज तक पुलिस सुशील मूंछ से नहीं उगलवा पाई. कहा जाता है कि वह दुनिया के किसी कोने में बैठ कर हथियारों का धंधा करता है.

पर्सनैलिटी में झलकता रईसी अंदाज

बदन सिंह बद्दो सिर्फ 8वीं पास था, लेकिन उस में बात करने की सलाहियत ऐसी थी कि लगता वह दर्शन शास्त्र का कोई बड़ा गहन जानकार हो. बातबात में वह शायरी और महापुरुषों के वक्तव्यों को कोट करता था. एक पार्टी के दौरान जब एक रिपोर्टर ने उस से पूछ लिया कि जरायम की दुनिया से कैसे जुड़ गए तो विलियम शेक्सपियर को कोट करते हुए बद्दो ने कहा, ‘ये दुनिया एक रंगमंच है और हम सब इस मंच के कलाकार.’ पश्चिमी उत्तर प्रदेश का कुख्यात गैंगस्टर बदन सिंह बद्दो अब खुल कर लग्जरी लाइफ जीने लगा था. बद्दो का रहनसहन देख कर कोई भी उस के रईसी शौक का अंदाजा आसानी से लगा सकता है. लूई वीटान जैसे महंगे ब्रांड के जूते और कपड़े पहनना बदन सिंह बद्दो को अन्य अपराधियों से अलग बनाता है. वह आंखों पर लाखों रुपए मूल्य के विदेशी चश्मे लगाता है. हाथों में राडो और रोलैक्स की घडि़यां पहनता है.

बदन सिंह बद्दो महंगे विदेशी हथियार रखने का भी शौकीन है. उस के पास विदेशी नस्ल की बिल्लियां और कुत्ते थे, जिन के साथ वह अपनी फोटो फेसबुक पर भी शेयर करता था. इन तसवीरों को देख कर कोई कह नहीं सकता कि मासूम जानवरों को गोद में खिलाने वाले इस हंसमुख चेहरे के पीछे एक खूंखार गैंगस्टर छिपा हुआ है. बुलेटप्रूफ कारों का लंबा जत्था उस के साथ चलता था. उस के महलनुमा कोठी में सीसीटीवी कैमरे समेत आधुनिक सुरक्षा तंत्र का जाल बिछा है. ब्रांडेड कपड़े और जूते पहन कर जब वह किसी फिल्मी हस्ती की तरह विदेशी हथियारों से लैस बौडीगार्ड्स और बाउंसर्स की फौज के साथ घर से निकलता तो आसपास देखने वालों की भीड़ लग जाती थी. वह हमेशा बुलेटप्रूफ बीएमडब्ल्यू या मर्सिडीज कार से ही चलता था. उस की शानोशौकत भरी जिंदगी देख कर कोई यकीन नहीं करता था कि वह एक हार्डकोर क्रिमिनल है.

पहली हत्या और फिर हत्याओं का सिलसिला

बदन सिंह बद्दो की हिस्ट्रीशीट के मुताबिक, उस पर पहला आपराधिक मामला साल 1988 में दर्ज हुआ था, जब उस ने एक जमीन विवाद में मेरठ के गुदरी बाजार कोतवाली इलाके में राजकुमार नाम के व्यक्ति की दिनदहाड़े हत्या कर दी थी. इस हत्या के बाद उस का नाम मेरठ से निकल कर हापुड़, गाजियाबाद और बागपत तक पहुंच गया. बदमाशों के बीच चर्चा शुरू हो गई कि बदन Gangster story  सिंह नाम का नया गैंगस्टर आ गया है, जिसे ‘न’ सुनना पसंद नहीं है. बद्दो को इस अपराध में पुलिस ने एक राइफल और 15 जिंदा कारतूस के साथ गिरफ्तार किया था. वह कुछ समय तक जेल में रहा, फिर जमानत पर बाहर आ गया. इस के बाद तो उस की हिम्मत और बढ़ गई.

1994 में बदन सिंह बद्दो ने प्रकाश नाम के एक युवक की गोली मार कर हत्या कर दी. साल 1996 में बदन सिंह ने वकील राजेंद्र पाल की हत्या की. इस के बाद तो जैसे हत्याओं का सिलसिला ही शुरू हो गया. वह सुपारी ले कर हत्याएं करवाने का धंधा भी करने लगा. बद्दो के बारे में कहा जाता है कि उस का गुस्सा तभी शांत होता था, जब वह अपने दुश्मन से बदला ले लेता था. कहते हैं कि उसे टोकाटाकी कतई बरदाश्त नहीं है. वकील राजेंद्र पाल की हत्या ने बद्दो को खूब मशहूर किया.

दरअसल, वकील राजेंद्र पाल भी कुछ कम दबंग नहीं था. एक पार्टी में बदन सिंह बद्दो ने किसी बात से चिढ़ कर वकील राजेंद्र पाल के पारिवारिक मित्र की पत्नी के बारे में अनुचित टिप्पणी कर दी थी, जिस से नाराज राजेंद्र पाल ने उसे सरेआम थप्पड़ जड़ दिया. बस फिर क्या था, राजेंद्र को मौत के घाट उतार कर बद्दो ने बदला पूरा किया और फरार हो गया. पुलिस ने केस दर्ज किया और जांच शुरू की. यह केस कई साल चलता रहा. इस बीच बद्दो ने जमानत करवा ली और अपने आपराधिक कारनामे बदस्तूर चलाता रहा.

उस के क्राइम का ग्राफ दिनबदिन बढ़ता ही चला गया.

2011 में जहां उस ने मेरठ के हस्तिनापुर क्षेत्र के जिला पंचायत सदस्य संजय गुर्जर की गोली मार कर हत्या की, वहीं साल 2012 में उस ने केबल नेटवर्क के एक संचालक पवित्र मैत्रेय की हत्या कर दी. इन हत्याओं के अलावा बदन सिंह के खिलाफ दिल्ली और पंजाब में किडनैपिंग, जमीन कब्जाने के कई केस दर्ज हुए. मेरठ जिले के प्रतिष्ठित व्यवसायी राजेश दीवान से 2 करोड़ रुपए की रंगदारी मांगने और धमकी देने के मामले में भी बद्दो के खिलाफ परतापुर और लालकुर्ती थाने में मुकदमे दर्ज हुए. इस मामले में चार्जशीट भी दाखिल हो चुकी है.

सफेदपोश नेताओं और अधिकारियों का खास उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में उस पर हत्या, वसूली, लूट, डकैती के 40 से ज्यादा मामले दर्ज हैं. सुपारी किंग के नाम से मशहूर हो चुके बदन सिंह बद्दो ने सुपारी ले कर कई हत्याएं करवाईं. उस से यह सेवा लेने वाले कई सफेदपोश नेता भी हैं, जिन्होंने बद्दो के जरिए अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों का सफाया करवाया. बदले में बद्दो को मोटी रकम मिली. राजेंद्र पाल हत्या के मामले में 21 साल बाद वर्ष 2017 में बद्दो को उम्रकैद की सजा सुनाई गई और उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. बदन सिंह बद्दो की दोस्ती के ख्वाहिशमंद सिर्फ अपराध की दुनिया के लोग ही नहीं थे, बल्कि बड़ेबड़े कारोबारी, सफेदपोश नेता और पुलिस अधिकारी भी उस से अच्छे रिश्ते बना कर रखते थे. बद्दो भी इन तमाम लोगों का खास खयाल रखता था. खासतौर से पुलिस के साथ तो उस का दोस्ताना साफ दिखाई देता था. इस की एक बानगी देखिए.

2012 में बद्दो को पुलिस ने धमकी देने के एक मामले में गिरफ्तार किया. उसे लालकुर्ती थाने ले जाया गया. बद्दो जैसे ही थाने पहुंचा, थानेदार उछल कर अपनी कुरसी से खड़ा हो गया. थानेदार के मुंह से एकाएक निकला, ‘अरे बद्दो तुम यहां कैसे?’ बद्दो ने उसे देखा और मुसकरा कर सामने पड़ी कुरसी पर फैल कर बैठ गया. उस को थाने ले कर आने वाले एसआई और सिपाही इस बदली सिचुएशन से सकपका गए. बद्दो अभी थाने में बैठा ही था कि एसएसपी समेत कई बड़े कारोबारी थाने पहुंच गए. अब एफआईआर हुई थी तो पुलिस को काररवाई तो दिखानी थी.

अगले दिन जब बद्दो को कचहरी ले जाया गया तो शहर के सारे बड़े कारोबारी उस के पीछे चल रहे थे. साल 2000 के बाद से बदन सिंह बद्दो नेताओं को मोटी फंडिंग करने वाला बन गया था. यही कारण था कि उस के धंधों पर हाथ डालने से पुलिस अधिकारी पीछे हटने लगे.

वकील हत्याकांड में हुई उम्रकैद की सजा

21 साल बाद 31 अक्तूबर, 2017 को वकील राजेंद्र पाल हत्याकांड में गौतमबुद्धनगर के जिला न्यायालय ने 9 गवाहों की गवाही के बाद बदन सिंह बद्दो को उम्रकैद की सजा सुनाई. उस दिन बद्दो कोर्ट में मौजूद था. सजा का ऐलान होते ही वह रो पड़ा. इस से पहले 13 अक्तूबर को बदन सिंह बद्दो ने फेसबुक पर एक पोस्ट डाली थी. उस में लिखा था, ‘जब गिलाशिकवा अपनों से हो तो खामोशी ही भली, अब हर बात पर जंग हो यह जरूरी तो नहीं.’ उस को जानने वाले कहते हैं कि इस मामले में उसे सजा का एहसास हो गया था. कोर्टरूम में सजा सुनाए जाने के तुरंत बाद बद्दो को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

बदन सिंह बद्दो 2 साल जेल में रहा. जेल के अंदर से भी उस के काले कारनामे बदस्तूर चलते रहे, जिन्हें बाहर उस का खास दोस्त सुशील मूंछ संभालता रहा. 28 मार्च, 2019 का दिन था जब बद्दो को फतेहगढ़ जेल से एक पुराने मामले में पेशी के लिए गाजियाबाद कोर्ट ले जाना था. पुलिस का दस्ता बख्तरबंद गाड़ी में बद्दो को ले कर गाजियाबाद पहुंचा और कोर्ट में उस की पेशी हुई. वापसी में बद्दो ने पुलिसकर्मियों को कुछ देर के लिए मेरठ चलने के लिए राजी कर लिया. एवज में बड़ी रकम का लालच दिया गया.

5-5 सौ रुपए के लिए कानून को धता बताने वाले पुलिसकर्मी इतने बड़े औफर को भला कैसे ठुकरा देते. बद्दो के लिए पुलिस की गाड़ी मेरठ की ओर मुड़ गई. वहां एक शानदार थ्री स्टार मुकुट महल होटल में बद्दो ने सभी पुलिसकर्मियों को छक कर उन का मनपसंद खाना खिलवाया और जम कर शराब पिलवाई. इतनी शराब कि सारे होश खो बैठे. उन्हें होटल में बेसुध छोड़ कर बदन सिंह बद्दो ऐसा फरार हुआ कि फिर आज तक किसी को नजर नहीं आया. कहते हैं बद्दो को फरार करवाने की पूरी प्लानिंग उस के दोस्त सुशील मूंछ ने की और जेल से ले कर होटल तक सब को मैनेज किया. पूरा प्लान जेल के अंदर बद्दो तक पहुंचाया गया. इस प्लानिंग में होटल का मालिक और स्टाफ भी शामिल था.

होटल के बाहर पार्किंग में पहले से ही एक लग्जरी गाड़ी मय ड्राइवर खड़ी थी. पुलिसकर्मियों को दारू के नशे में धुत कर के बद्दो कब उस गाड़ी में बैठ कर मेरठ की सीमा लांघता हुआ विदेश पहुंच गया, कोई नहीं जानता. मजे की बात तो यह है कि जिस दिन यह घटना घटी उस दिन मेरठ में हाई अलर्ट था, क्योंकि 28 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी घटनास्थल से लगभग 18 किलोमीटर दूर टोल प्लाजा के पास एक चुनावी रैली को संबोधित कर रहे थे. पुलिस डिपार्टमेंट और इंटेलिजेंस के लिए इस से शर्मनाक और क्या होगा.

देश भर की पुलिस इस खूंखार अपराधी को पकड़ने के लिए बीते 3 सालों से हाथपैर मार रही है, मगर उस की छाया तक कहीं नहीं मिल रही है. उस को पकड़ने के लिए इंटरपोल तक से मदद मांगी गई है. उस के सिर पर जिंदा या मुर्दा मिलने पर ढाई लाख रुपए का ईनाम घोषित है. मगर बद्दो किस बिल में जा छिपा है, कोई नहीं जानता. पुलिस व एजेंसियां मानती हैं कि वह अपने बेटे के साथ विदेश में है, लेकिन अभी  तक कोई भी सुराग पुलिस के हाथ नहीं लग पाया है. बदन सिंह बद्दो के पुलिस कस्टडी से फरार होने के बाद मेरठ पुलिस ने उस के बेटे सिकंदर पर 25 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर दिया और कुछ दिनों बाद उसे अरेस्ट कर लिया.

लेकिन बदन सिंह की तलाकशुदा पत्नी ने जब आस्ट्रेलिया से मेरठ के एसएसपी को फोन कर के कहा कि उस का बेटा बेकुसूर है और बदन सिंह बद्दो के गलत कामों की सजा उसे न दी जाए तो उस के कुछ ही दिन बाद सिकंदर को छोड़ दिया गया. इस के बाद तो सिकंदर भी ऐसा गायब हुआ जैसे गधे के सिर से सींग. अब बापबेटे दोनों की तलाश में पुलिस लकीर पीट रही है. बद्दो की फरारी मामले में 2 दरोगा, 3 सिपाही और 2 ड्राइवरों को तुरंत निलंबित कर दिया गया था. फर्रुखाबाद जिले के 6 पुलिसकर्मियों सहित कुल 21 व्यक्तियों को आरोपी बनाया गया.

इन में मेरठ के कई नामचीन व्यापारियों सहित होटल मुकुट महल के मालिक मुकेश गुप्ता और करण पब्लिक स्कूल के संचालक भानु प्रताप भी जेल भेज दिए गए. बद्दो और उस के बेटे के खिलाफ रेड कौर्नर नोटिस जारी हो चुका है. इंटरपोल से भी मदद मांगी गई, मगर कोई फायदा नहीं हुआ. इंटरपोल ने यह कहते हुए इंकार कर दिया कि बद्दो के पासपोर्ट पर कोई एंट्री ही नहीं है. कहते हैं कि बद्दो की 2 प्रेमिकाएं थीं. एक मेरठ के साकेत में ब्यूटीपार्लर चलाती थी और दूसरी गुरुग्राम में रहने वाली एक महिला थी. पुलिस कहती है कि बद्दो जब होटल से भागा तो सीधे मेरठ वाली प्रेमिका के घर पहुंचा.

आज तक ढूंढ नहीं सकी पुलिस

बद्दो को शहर की सीमा से निकलने में परेशानी न हो, इस के लिए उस ने बद्दो का लुक बदल दिया, जबकि गुरुग्राम वाली प्रेमिका ने देश छोड़ कर भागने में बद्दो की मदद की. मेरठ से अपनी वेशभूषा बदल कर निकले बद्दो को उस की गुड़गांव वाली प्रेमिका दिल्ली मेट्रो स्टेशन पर मिली और उस के बाद बद्दो उसी के साथ उस की कार में गया. बद्दो की यह प्रेमिका अपने फ्लैट पर ताला लगा कर बीते 2 साल से गायब है. कहते हैं गुड़गांव वाली प्रेमिका बद्दो से नाराज भी थी, क्योंकि बद्दो के बेटे को इसी प्रेमिका ने अपने बेटे की तरह पाला था और बद्दो ने उस से वादा किया था कि वह उसे अपने साथ विदेश ले जाएगा. मगर फरार होने के बाद बद्दो ने पलट कर अपनी प्रेमिकाओं की ओर कभी नहीं देखा.

माना जाता है कि बदन सिंह बद्दो नीदरलैंड और मलेशिया में अपना ठिकाना बना चुका है और वहीं से वह अवैध हथियारों का धंधा करता है. उस के धंधे में उस का बेटा Gangster story  सिकंदर अब उस का पार्टनर बन चुका है. जब उत्तर प्रदेश एसटीएफ, क्राइम ब्रांच और दूसरे राज्यों की स्पैशल पुलिस भी बदन सिंह बद्दो का कुछ पता नहीं लगा पाई तो खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे की तर्ज पर बीते साल योगी सरकार ने इस गैंगस्टर की संपत्तियों को खंगालना और उन्हें जब्त करने की काररवाई शुरू करवाई. 20 जनवरी, 2021 को मेरठ नगर निगम के अधिकारी मनोज सिंह 2 बुलडोजर और 20 मजदूर ले कर पंजाबीपुरा पहुंचे और बद्दो की आलीशान कोठी को जमींदोज कर दिया गया. गैंगस्टर बदन सिंह बद्दो के गुर्गे अजय सहगल की संपत्ति पर भी बाबा का बुलडोजर चला.

अजय सहगल को गैंगस्टर बदन सिंह बद्दो का राइट हैंड माना जाता है. उस की 7 अवैध दुकानों को तोड़ दिया गया. ये दुकानें 1500 वर्गमीटर के सरकारी जमीन पर बने पार्क पर अवैध रूप से कब्जा कर के बनाई गई थीं और इन का बैनामा भी करा लिया गया था.

इस से पहले नवंबर, 2020 में बद्दो की कुछ अन्य संपत्तियां कुर्क की गई थीं. मेरठ प्रशासन को बद्दो के पास दरजनों लग्जरी गाडि़यां होने का पता था, मगर उन में से वह एक भी जब्त नहीं कर पाई, क्योंकि बद्दो ने तमाम गाडि़यां दूसरों के नाम से खरीदी थीं.

 

Bihar का एक खतरनाक गैंग वार

संतोष को लगा कि जिन के पास पैसा अधिक है, उन से आसानी से पैसा लिया जा सकता है. उस ने परशु सेना के नाम से अपनी गैंग बनाई, जिस में ब्राह्मण लड़कों को शामिल किया. मुकेश पाठक शुरू से उस के साथ जुड़ गया था. बिहार में संतोष झा का अपहरण और वसूली का बहुत बड़ा कारोबार था, पर नैशनल लेवल पर उसे कोई नहीं जानता था. 27 दिसंबर, 2015 को जब संतोष ने दरभंगा हत्याकांड किया. तब उसे सब जानने लगे.

स्टेट हाईवे नंबर 88 का काम चल रहा था, तभी हाईवे बनाने वाली कंस्ट्रक्शन कंपनी से संतोष झा ने हफ्ता मांगा. उस समय यानी 2015 में संतोष ने उस कंपनी से 75 करोड़ रुपए का गुंडा टैक्स मांगा था. मालिकों ने उस से रकम कम करने की विनती की तो भरी दोपहर को संतोष झा और मुकेश पाठक एके 47 ले कर साइट पर पहुंच गए और कंपनी के 2 मुख्य इंजीनियरों मुकेश कुमार और बृजेश कुमार को मार दिया. इस मामले में इन्हें जेल भी जाना पड़ा.

अपराध की दुनिया में आने के बाद मुकेश के दिल में मर चुकी पत्नी सलोनी की यादें कुछ धुंधली होने लगी थीं. यहां जेल में आने के बाद एक बार फिर उस के दिल में प्यार का अंकुर फूटा. जेल में उस की मुलाकात पूजा नाम की एक सुंदर युवती से हुई. वह किडनैपिंग क्वीन के नाम से जानी जाती थी. जेल की ऊंचीऊंची दीवारों के बीच मुकेश और पूजा की मुलाकातों का सिलसिला बढ़ा और दोनों में प्यार हो गया. बिहार के इस जेल में ढोल और शहनाई बजी. 14 अक्तूबर, 2013 को दोनों का विवाह हो गया. सभी कैदियों और पुलिस के आशीर्वाद के बीच जिले के एसपी ने पूजा का कन्यादान किया.

जेल में मुकेश और संतोष साथ ही थे, एक थाली में एक साथ खाने का संबंध था, फिर इन दोनों के बीच खटास कैसे पैदा हुई? दोनों के बीच दुश्मनी कैसे हुई, इस की सही वजह आज तक सामने नहीं आई. नेपाल के बौर्डर से जुड़े बिहार के चंपारण जिला को बहुत बड़ा होने की वजह से इसे 2 हिस्सों में बांट दिया गया है. पश्चिम चंपारण और पूर्वी चंपारण. जिले का मुख्यालय मोतिहारी है. 6 मई, 2023 शनिवार की सुबह पूर्वी चंपारण ऐसी ही एक घटना से हिल उठा था. क्योंकि शिवनगर के पास लक्ष्मीनिया गांव के रहने वाला ओमप्रकाश सिंह उर्फ बाबूसाहब की बड़ी ही क्रूरता से हत्या कर दी गई थी.

ओमप्रकाश की मां को घुटने में तकलीफ थी, इसलिए मुजफ्फरपुर में उन के घुटने का औपरेशन कराया गया था. उस दिन ओमप्रकाश सिंह अपनी मां का हालचाल लेने के लिए बोलेरो जीप से मुजफ्फरपुर जा रहा था. उस के साथ उस के 2 रिश्तेदार भी थे और उस का वर्षों पुराना भरोसेमंद ड्राइवर मुकेश जीप चला रहा था. ओमप्रकाश सिंह जीप की आगे वाली सीट पर ड्राइवर के बगल में बैठा था. फेनहारा थाने के अंतर्गत आने वाले गांव इजोबारा को पार कर के जीप जैसे ही आगे बढ़ी, एक टाटा सूमो इतनी तेजी से आ कर सामने खड़ी हुई कि मुकेश को अपनी बोलेरो रोकनी पड़ी. जरा भी समय गंवाए बगैर टाटा सूमो से 3 लोग फुरती से नीचे उतरे और आटोमैटिक रायफलों से धड़ाधड़ फायरिंग शुरू कर दी. गिनती के 3 मिनट में अपना खेल खत्म कर के तीनों सूमो में सवार हो कर भाग निकले.

इस अंधाधुंध फायरिंग में ड्राइवर मुकेश और पीछे बैठे दोनों रिश्तेदारों को खरोंच तक नहीं आई, इस चालाकी से शिकारियों ने अपने शिकार ओमप्रकाश सिंह की देह को छलनी कर दिया था. जीप पर 28 गोलियों के निशान थे. गोलियों की आवाज सुन कर गांव वाले भाग कर आ गए थे. मुकेश ने फोन कर के कांपती आवाज में यह जानकारी ओमप्रकाश सिंह के परिवार को दी. सूचना पा कर घर वाले दौड़े आए और लाश कब्जे में ले ली. किसी की सूचना पर पुलिस भी आ गई थी. पुलिस अपनी जांच में आगे बढ़ती, उस के पहले ही हत्यारों ने खुद ही ओमप्रकाश सिंह की हत्या का अपराध स्वीकार कर के अपना नाम जाहिर करते हुए बिहार के लगभग सभी मीडिया संस्थानों को पत्र भेजा.

हत्यारों ने जो पत्र मीडिया को भेजा था, वह कुछ इस प्रकार था, ‘मैं राज झा, संतोष झा गैंग का मुख्य प्रवक्ता. तमाम मीडिया को बताना चाहता हूं कि 6 मई, 2023 की सुबह बाबूसाहब उर्फ ओमप्रकाश सिंह की हत्या करने की जिम्मेदारी मेरी है. मैं ने ही उसे खत्म किया है. ओमप्रकाश सिंह ठेकेदार नहीं, एक नामचीन गुंडा था. गुंडागिरी और दादागिरी से सरकारी ठेके लेता था. बिहार के कुख्यात गुंडा मुकेश पाठक का वह दाहिना हाथ था. मुकेश पाठक के हर अपराध में वह सहभागी था.

’28 अगस्त, 2018 को जब सीतामढ़ी कोर्ट में संतोष झा की हत्या हुई थी तो वह उस में शामिल था. संतोष झा को मारने वाले सभी शूटर ओमप्रकाश सिंह के घर पर ही रुके थे और उन्हें हथियार भी ओमप्रकाश सिंह ने ही मुहैया कराए थे. उसे खत्म कर के हम ने संतोष झा की हत्या का बदला लिया है. मुकेश पाठक तो अभी जेल में है, पर हम उस की भी यही हालत करने वाले हैं.

-राज झा.’

इस पत्र के बाद जेल में बंद मुकेश पाठक की सुरक्षा बढ़ा दी गई थी. अब अगर मुकेश पाठक की बात करते हैं तो पहले संतोष झा के बारे में बताना जरूरी है.

सामान्य परिवार का युवक था संतोष झा

गुंडागिरी के इतिहास में बिहार के सब से बड़े गैंगस्टर के रूप में संतोष झा का नाम लिया जा सकता है. उत्तर बिहार में इस का बेरोकटोक शासन चलता था. प्राइवेट कंपनियों की तरह हिसाबकिताब रखने वाले संतोष झा के पास 40 से भी अधिक वेतनभोगी गुंडों की फौज थी. हर किसी को हर महीने वेतन के अलावा अन्य सुविधाएं वह देता था. बिहार का जिला चंपारण और नेपाल के बौर्डर से लगा जिला शिवहर है. इसी जिले के दोस्तियां गांव के एक सामान्य परिवार में संतोष का जन्म हुआ था. संतोष के पिता गांव के ही संपन्न किसान नवलकिशोर राय के यहां ड्राइवर की नौकरी करते थे.

संतोष को पढ़ाई में बिलकुल रुचि नहीं थी. परिवार की आर्थिक स्थिति उसे पता ही थी, इसलिए 15 साल की उम्र में ही वह कामधंधे की तलाश में हरियाणा चला गया. वह वहां गया कि 8 महीने बाद गांव में एक ऐसी घटना घटी जिस से उस का जीवन ही बदल गया. नवलकिशोर राय से संतोष के पिता की कुछ बकझक हो गई तो पैसे के घमंड में उन्होंने संतोष के पिता को गालियां देते हुए धमकाने के साथसाथ एक थप्पड़ भी जड़ दिया. इसी के साथ नौकरी से भी निकाल दिया. यह समाचार मिलने के बाद संतोष गांव लौट आया. साल 2001 में 16 साल की उम्र में वह क्या कर सकता था? धनी लोगों के प्रति मन में नफरत तो थी ही. उस समय उस इलाके में नक्सली कमांडर गौरीशंकर झा का रुतबा था. संतोष उस के पास पहुंच गया और उस की टीम में शामिल हो गया.

संतोष ने परशु सेना के नाम से अपनी गैंग बनाई, जिस में ब्राह्मण लड़कों को शामिल किया. मुकेश पाठक शुरू से उस के साथ जुड़ गया था. उस की गैंग ने धूमधड़ाके के साथ रंगदारी वसूली का कारोबार शुरू कर दिया. इस से आने वाली आमदनी को देख कर संतोष ने अपने गैंग को बढ़ाया और अपनी धाक जमा ली. उस के इस कारनामे को देख कर नक्सली कमांडर गौरीशंकर काफी नाराज हुआ. अब तक संतोष के पास एक बड़े गैंग की ताकत थी और अपहरण और वसूली से मोटी कमाई हो रही थी. इसलिए उस ने गुरु की सलाह नहीं मानी और दलील की, जिस से दोनों में झगड़ा बढ़ गया. आवाज सुन कर गौरीशंकर की पत्नी भी बाहर आ गई. उस ने भी संतोष को ताना मारा.

चिढ़ कर संतोष ने जेब से रिवौल्वर निकाला और गोली चला दी. गौरीशंकर और उस की पत्नी की हत्या कर संतोष चुपचाप उन के घर से चला गया. पुलिस को भले ही इस दोहरे हत्याकांड में कोई गवाह या साक्ष्य नहीं मिला, पर लोगों को तो पता चल ही गया था कि ये हत्याएं किस ने की हैं. इस से इलाके में संतोष की धाक के साथ दबदबा भी बढ़ गया. पिता को थप्पड़ मारने वाले नवलकिशोर राय के प्रति उस के दिल में नफरत अभी भी भरी थी. 15 जनवरी, 2010 को उस ने पिता के अपमान का बदला ले लिया. नवलकिशोर राय की खोपड़ी के परखच्चे उड़ाने के साथ उस के हवेली जैसे मकान को डायनामाइट से उड़ा दिया. उसे पकडऩे के लिए बिहार पुलिस की टास्क फोर्स रातदिन लगी थी, पर पकड़ नहीं पा रही थी.

आखिर साल 2014 में स्पैशल टास्क फोर्स ने कोलकाता से संतोष झा को गिरफ्तार कर लिया. वह जेल चला गया, पर वसूली का उस का कारोबार जेल से ही चलता रहा.

मई, 2015 में वह जेल से बाहर आ गया. उस की गैरहाजिरी में मुकेश पाठक जेल में रह कर मुखिया की तरह गैंग संभालता रहा.

गुंडा टैक्स में मांगे थे 75 करोड़ रुपए

स्टेट हाईवे नंबर 88 का काम चल रहा था, तभी कंस्ट्रक्शन कंपनी से संतोष झा ने हफ्ता मांगा. उस समय यानी 2015 में संतोष ने कंपनी से 75 करोड़ रुपए गुंडा टैक्स मांगा था. पैसे न देने पर उस ने कंपनी के 2 मुख्य इंजीनियरों मुकेश कुमार और बृजेश कुमार को मार दिया. दिनदहाड़े इस घटना को अंजाम दिया गया था, इसलिए चश्मदीद भी थे और कंपनी पर सरकार का हाथ भी था. इसलिए इस घटना की चार्जशीट तैयार करने में पुलिस ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. 75 करोड़ की रंगदारी मांगने वाले संतोष झा का नाम पूरे भारत में चमक उठा. संतोष झा और मुकेश पाठक पकड़े गए. मुकदमा चला और गुरुचेला और इन के अन्य 7 साथियों को आजीवन कारावास की सजा हुई. सभी को जेल में डाल दिया गया.

मुकेश पाठक इस गैंग में कैसे शामिल हुआ, आइए अब यह जानते हैं. मुकेश अपनी पत्नी सलोनी से बहुत प्यार करता था. 3 साल की बेटी श्वेता और पतिपत्नी तीनों शांति से रह रहे थे. पारिवारिक जमीन का विवाद चल रहा था. जब यह विवाद बढ़ा तो उस के चाचा के बेटे प्रेमनाथ पाठक और बुआ के बेटे सुशील तिवारी ने मिल कर मुकेश नाम के इस कांटे को निकाल फेंकने की योजना बनाई. एक दिन दोनों रात को उस के घर आए और गोलियां चलाने लगे. इस में मुकेश तो बच गया, पर गर्भवती सलोनी की गोली लगने से मौत हो गई. प्रेमनाथ और सुशील ने पुलिस और मायके वालों के साथ मिल कर ऐसी साजिश रची कि दहेज उत्पीडऩ में पत्नी की हत्या के आरोप में मुकेश को ही फंसा दिया.

मुकदमा चला तो 3 साल की बेटी श्वेता ने प्रेमनाथ और सुशील की ओर इशारा करते हुए कोर्ट में बयान दिया कि उस की मम्मी को पापा ने नहीं, इन दोनों अंकल ने मारा है. बेटी के बयान के बाद मुकेश निर्दोष छूट गया. श्वेता के बयान पर प्रेमनाथ और सुशील फंस गए. कुछ दिनों बाद प्रेमनाथ जमानत पर बाहर आया तो बदले की आग में जल रहे मुकेश ने 8 मई, 2003 को प्रेमनाथ की हत्या कर के जुर्म की दुनिया में कदम रख दिया. 2004 में पुलिस ने उसे पकड़ा. जमानत पर बाहर आने के बाद वह संतोष झा से जा मिला. अपने गैंग को मजबूत करने के लिए संतोष को ऐसे ही साथियों की जरूरत थी. उस ने संतोष की गैंग में दूसरे नंबर की जगह पा ली.

पुलिस को उस की दरजनों मामलों में तलाश थी. 17 जनवरी, 2012 को स्पैशल टास्क फोर्स ने उसे रांची से पकड़ कर मोतिहारी जेल भेज दिया. इस के बाद उसे शिवहर की जेल भेज दिया गया. इस से वह काफी नाराज था. पर तब उसे शायद यह पता नहीं था कि वहां उसे एक सुखद सरप्राइज मिलने वाला है.

अपराध की दुनिया में आने के बाद मुकेश के दिल में दिवंगत पत्नी सलोनी की यादें कुछ धुंधली होने लगी थीं. यहां जेल में आने के बाद एक बार फिर उस के दिल में प्यार का अंकुर फूटा.

पूजा और मुकेश की जेल में हुई थी शादी

बिहार में किडनैपिंग के कारोबार में केवल पुरुष ही नहीं जुड़े थे, यह साबित करने के लिए पूजा नाम की एक सुंदर युवती भी अपनी हिम्मत से इस धंधे में आ कर बहुत कम समय में किडनैपिंग क्वीन के रूप में नाम कमा चुकी थी. पौलिटेक्निक की पढ़ाई के साथ उस ने अपना यह कारोबार शुरू किया था. पर 4 सफल औपरेशन के बाद वह पुलिस के हत्थे चढ़ गई थी. वह भी इसी जेल में थी. जेल की ऊंचीऊंची दीवारों के बीच मुकेश और पूजा की मुलाकातों का सिलसिला बढ़ा और दोनों में प्यार हो गया. बिहार की इस जेल में ढोल और शहनाई बजी. 14 अक्तूबर, 2013 को दोनों का विवाह हो गया. सभी कैदियों और पुलिस के आशीर्वाद के बीच जिले के एसपी ने पूजा का कन्यादान किया.

20 जुलाई, 2015 को तबीयत खराब होने का बहाना बना कर मुकेश अस्पताल में भरती हुआ. वहां पुलिस को प्रसाद के रूप में नशे वाली मिठाई खिला कर सुला दिया और खुद अस्पताल से फरार हो गया. उस ने पुलिस को सांसत में डाल दिया. एक तो खुद फरार हो गया, दूसरी ओर पता चला कि पूजा गर्भवती है. जेल में कोई प्रेगनेंट महिला कैदी कैसे रह सकती है? जेल में मुकेश और पूजा की प्रेमलीला के चक्कर में 4 पुलिस अधिकारी भी सस्पेंड हुए. संतोष झा के गैंग में मुकेश का दूसरे नंबर पर स्थान था. रंगदारी की जो मोटी रकम आ रही थी, उस से बिहार और नेपाल में रिश्तेदारों के नाम जमीनें और मकान खरीदे जा रहे थे. उस समय मुकेश के मन में एक बात खटकती थी कि उस की चालाकी और मेहनत का जो लाभ उसे मिलना चाहिए, वह उसे नहीं मिल रहा है.

दोनों के बीच दुश्मनी कैसे हुई, इस की सही वजह आज तक सामने नहीं आई. पर एक पत्रकार द्वारा जो एक कारण सामने आया, संतोष के स्वभाव के बारे में जानने वाले उसे सच मानते हैं. संतोष की गैंग की एक शरणस्थली नेपाल में भी थी. नेपाल का कारोबार राजा उर्फ सौरभ कुमार संभालता था.

जेल में आने के बाद मुकेश पाठक को पता चला कि गैंग के किसी भी सदस्य को बताए बगैर संतोष ने कंस्ट्रक्शन कंपनी से 35 करोड़ रुपए ले लिए थे. दगाबाजी के इस मुद्दे पर मुकेश का अपने गुरु संतोष से झगड़ा हुआ और उसी समय मुकेश ने तय कर लिया कि अब ऐसे गुरु को रास्ते से हटाना ही पड़ेगा.

जेल से चल रहा था रंगदारी का धंधा

रंगदारी वसूलने का काम तो सालों से जेल में बैठेबैठे चल रहा था. गैंग के 40 से अधिक खूंखार वेतनभोगी साथी बाहर ही थे. इसलिए गैंग का रुतबा अभी भी वैसा ही था. संतोष झा की हत्या के बारे में विचार करने के बाद मुकेश सोचने लगा कि यह काम किसे सौंपा जाए? तभी उसे ओमप्रकाश सिंह उर्फ बाबूसाहब की याद आई. जेल में ओमप्रकाश सिंह की मुकेश पाठक और संतोष झा से दोस्ती हो गई. इस में मुकेश पाठक से उस की कुछ ज्यादा ही करीबी हो गई थी. उस समय वह बाहर था, इसलिए मुकेश ने अपनी तरह से योजना बनाई और वह पूरा करने की जिम्मेदारी डेविड उर्फ आशीष रंजन और ओमप्रकाश सिंह को सौंपी.

संतोष का एक भरोसेमंद साथी अभिषेक झा भी जेल में था. 16 जुलाई को उस की कोर्ट में पेशी थी. तभी मोतिहारी-ढाका कोर्ट कंपाउंड में मुकेश ने उस की हत्या करा दी. इस सफलता के बाद मुकेश ने संतोष के लिए उसी तरह की योजना बनाई. 28 अगस्त, 2018 को सीतामढ़ी की अदालत में मुकेश पाठक और संतोष झा को हाजिर करना था. इस के 15 दिन पहले से सीतामढ़ी के एक मकान में तैयारी चल रही थी. मुकेश को पता था कि संतोष और विकास को जब अदालत में ले जाया जाएगा तो उन के चारों ओर सशस्त्र पुलिस की सुरक्षा रहेगी. इसलिए उस की हत्या के लिए सियार और नेवले जैसी फुरती रखने वाले शूटर चाहिए.

इस तरह का एक हीरो मुकेश की नजर में था. नौवीं कक्षा में पढऩे वाला विकास महतो मात्र 15 साल का था, फिर भी उस में हिम्मत और जुनून था. फेसबुक पर एके 47 के साथ फोटो डालने वाला यमराज सिंह शूटर- मोतिहारी का यमराज इस तरह की पहचान बताने वाला विकास झा उर्फ कालिया संतोष का वफादार था.

विकास और शकील को दी संतोष की हत्या की सुपारी

विकास महतो बाल सुधार गृह से कुछ दिनों पहले ही बाहर आया था. उसी ने एक और नाम बताया. वह था शकील अख्तर. साल 2015 में थाना चकिया के एसएचओ ने उसे रिवौल्वर के साथ पकड़ा था. उसे बच्चा समझ कर पुलिस ने उस के प्रति लापरवाही बरती और वह थाने से भाग गया था. 20 अगस्त, 2018 में पुलिस ने उसे खोज निकाला और जुवेनाइल कोर्ट ने उसे बाल सुधार गृह रिमांड होम में भेज दिया. मुकेश के खास साथी डेविल उर्फ सौरभ कुमार ने यह मोर्चा संभाल रखा था. उस की देखभाल में 5 दिनों तक रिमांड होम में रहने के बाद 26 अगस्त, 2018 को शकील अख्तर ने प्रार्थना पत्र दिया कि पटना के अस्पताल में उस का भाई सीरियस है, इसलिए उसे छुट्टी दी जाए. बाल सुधार गृह के अधिकारियों ने उसे 27 से 30 अगस्त यानी 4 दिन की छुट्टी दी. इस के बाद वह सीधे सीतामढ़ी आ गया.

विकास महतो और शकील अख्तर को अगले दिन काम समझा कर कहा गया कि संतोष झा जीवित नहीं बचना चाहिए. इस के लिए वह जितनी रकम मांगेंगे, उस से 10 हजार रुपए उन्हें अधिक मिलेंगे. मानव चौबे और संजीत इस पूरी टीम को संभाल रहे थे. इस औपरेशन की सफलता के लिए आसपास के 5 जिलों के तमाम सरकारी ठेकेदारों को मुकेश ने व्यक्तिगत रूप से खबर भिजवा दी थी कि उन्हें लूटने वाले संतोष का सफाया करवाना है. जेल अधिकारियों को पता था कि एक समय जिगरी दोस्त रहे दोनों अब एकदूसरे के खून के प्यासे हैं. इसलिए दोनों को एक वैन में ले जाने का उन्होंने खतरा नहीं उठाया. पहली वैन में मुकेश को सीतामढ़ी लाया गया तो उस के बाद 11 पुलिस वालों के काफिले के साथ संतोष झा को लाया गया.

संतोष झा की हत्या के लिए पूरी व्यवस्था हो चुकी थी. विकास महतो और शकील अख्तर को हथियारों के साथ बाइक पर पीछे बैठना था. कुछ उल्टासीधा हो जाए तो उस परिस्थिति को संभालने के लिए राजा उर्फ सौरभ कुमार कार्बाइन ले कर कोर्ट परिसर में कोने में जम गया. लेकिन विकास और शकील ने कोई गलती नहीं की. 11 पुलिस वालों के साथ जैसे ही संतोष कोर्ट से बाहर आया, चीते की गति से दौड़ कर उन्होंने संतोष के सिर और छाती को गोलियों से छलनी कर दिया. पुलिस वाले कुछ समझ पाते, उस के पहले ही संतोष गिर पड़ा.

हत्यारे अपना काम कर के भागे. उन में बाइक पर चढ़ते समय विकास लडख़ड़ाया और हथियार सहित पुलिस की पकड़ में आ गया. जबकि शकील भाग निकला. संतोष की घटनास्थल पर ही मौत हो गई. इस घटना के लिए लापरवाही के आरोप में 25 पुलिस वालों को सस्पेंड कर दिया गया.

संतोष की हत्या के बाद मुकेश ने संभाली गैंग

मुकेश का नाम हत्या के इस मामले में सामने न आए, इस के लिए 15 साल के विकास महतो ने पूछताछ में पुलिस को बताया कि संतोष झा ने उस के पिता की हत्या की थी, उसी का बदला लेने के लिए उस ने उस की हत्या की है. बाद में पुलिस जांच में उस का यह झूठ पकड़ा गया था. अपने गुरु गौरीशंकर झा की हत्या संतोष ने की थी, उसी तरह संतोष के चेले मुकेश ने उसे खत्म कर दिया था. साल 2020 में पुलिस ने शकील अख्तर को भी पकड़ लिया था. विकास महतो भी जेल में है.

संतोष की हत्या के बाद कुछ दिनों के लिए उस की गैंग बिखर गई थी, लेकिन फिर से मैदान में आ कर विकास झा उर्फ कालिया ने गैंग को फिर से संभाल लिया और रंगदारी वसूलने का कारोबार शुरू कर दिया. अपने गुरु संतोष झा की बेटी के साथ उस ने विवाह कर लिया. वह गजब का हिम्मती था. उसी के इशारे पर मुकेश के साथी राजा उर्फ सौरभ कुमार की हत्या नेपाल में कर दी गई. इस के बाद 6 मई, 2023 को ओमप्रकाश सिंह उर्फ बाबूसाहब को 19 गोलियों से छलनी कर के खुलेआम धमकी दे दी गई कि मुकेश पाठक का भी ऐसा ही हाल किया जाएगा.

मुकेश पाठक इस समय कड़ी सुरक्षा के बीच भागलपुर की जेल में सजा काट रहा है. सूत्रों से पता चला है कि मुकेश ने अवैध कमाई से करीब 7 सौ करोड़ की संपत्ति बनाई है. गैंगवार की इस परंपरा को देखते हुए सवाल यह है कि जेल से आने के बाद इस 7 सौ करोड़ की संपत्ति का सुख कितने दिन भोग सकेगा.

 

वेब सीरीज रिव्यू : रंगबाज सीजन 1

वेब सीरीज रिव्यू : इंस्पेक्टर अविनाश

वेब सीरीज रिव्यू : रंगबाज सीजन 1 – भाग 3

शिव प्रकाश से क्यों चिढ़ गए थे मंत्रीजी

रंगबाज के छठे एपिसोड में गालियों की भरमार है और साथ ही बौलीवुड का भद्दा चेहरा इस वेब सीरीज से भी अछूता नहीं रहा है. इस सीरीज के सातवें एपिसोड का नाम ‘अपहरण’ रखा गया है. एपिसोड की शुरुआत में पटना की जेल को दिखाया गया है, जहां पर मंत्रीजी रमाशंकर तिवारी का खास आदमी वहां पर बंद चंद्रभान सिंह से मिलने जाता है.

तिवारीजी का आदमी कहता है कि शिव प्रकाश के ऊपर आप का हाथ है इसलिए तिवारीजी कुछ नहीं कर रहे हैं. चंद्रभान सिंह उस से कहता है कि तुम लोग अपना विवाद आपस में ही निपटा लो. इस के बाद सीरियल की कास्टिंग शुरू हो जाती है.

अगले सीन में रमाशंकर तिवारी (मंत्रीजी) पुलिस अधिकारी से शिव प्रकाश के ऊपर लगे केसों की प्रगति के बारे में पूछते हैं. अधिकारी कहता कि काम शुरू हो गया है.

शिव प्रकाश की प्रेमिका बबीता शर्मा उस से फोन पर बात करती है और कहती है कि तुम्हारे कहने पर हम ने लखनऊ छोड़ दिया और यहां पर आ गए. यहां भी तुम से नहीं मिल पा रहे हैं. तब शिव प्रकाश उसे समझाता है कि तुम चिंता मत करो, हम जल्द ही मिलेंगे. फिर शिवप्रकाश कहता है कि क्या तुम चलोगी हमारे साथ नेपाल या बैंकाक हमेशा के लिए?

सर्विलांस टीम उन दोनों की बातचीत सुन लेती है. अगले सीन में रमाशंकर के खास आदमी रंजन और शिवप्रकाश शुक्ला की मुलाकात दिखाई गई है. रंजन कहता है, बहुत बड़ा फौज बना लिए हो तुम?

शिव प्रकाश कहता है, ताज्जुब कर रहे हो तुम. फिर दोनों में बहस होने लगती है, रमाशंकर का आदमी कहता है मुझे पता है किस के बलबूते पर बोल रहे हो तुम. हमें पता है.

शिव प्रकाश कहता है, रंजन भैया यह तो वक्तवक्त की बात है. रंजन कहता है कि कुबेर को छोड़ दो और गोरखपुर से दूर रहो. शिव प्रकाश उस से दोटूक कहता है एक करोड़ दे दो, छोड़ देंगे. दोनों में फिर बहस होने लगती है.

शिव प्रकाश कहता है कि रंजन भैया अपने बाप तिवारी से कह दो कि कुबेर की जिम्मेदारी उन की है. और एक बात और सुनो, गोरखपुर तुम्हारे बाप का नहीं है, जब जी होगा, हम आएंगे. यह कह कर दोनों पार्टियां चली जाती हैं.

इस पार्ट में रंजन के आदमी शिव प्रकाश शुक्ला के आदमियों पर कुबेर चंद्र के छोडऩे के बाद फायरिंग शुरू कर देते हैं और फिर शिव प्रकाश के आदमी रंजन के सभी आदमियों को ढेर कर रंजन को पकड़ लेते हैं. रंजन उन से कहता है कि उस की आखिरी ख्वाहिश यह है कि वह एक ब्राह्मण है और ब्राह्मण के हाथ से ही मरना चाहता है. उस के बाद शिव प्रकाश के आदमी रंजन को मार देते हैं.

तभी अगला दृश्य शिव प्रकाश शुक्ला की बहन के मंगनी का दिखाया जाता है, जहां पर एकाएक पुलिस आ धमकती है, पुलिस अधिकारी प्रमोद शुक्ला से कहता है, 5 केस दर्ज हैं आप के बेटे के ऊपर, पहले हत्या अब फिरौती. पुलिस अधिकारी घर में पुलिस वालों को चारों ओर तलाशी लेने का हुक्म देता है और प्रमोद शुक्ला को गाली देते हुए कहता है कि तुम ने ऐसी… औलाद पैदा की है तो दंड भी भुगतोगे ही.

प्रमोद शुक्ला गिड़गिड़ाते दिखते हैं और बहन चिंतित हो जाती है. उस के बाद वहां सन्नाटा छा जाता है. तभी शिव प्रकाश शुक्ला अपनी बहन श्वेता को फोन कर के उस की परेशानी पूछता है.

बहन ने रोते हुए बता दिया कि उस की मंगनी रुकवा दी, पुलिस वाले घर आए थे, वे आप को खोज रहे थे. उन्होंने पापा को भी गालियां दीं. यह सुन कर शिव प्रकाश शुक्ला उस आदमी को गोली मार देता है, जिस से वह अभी तक बातें कर रहा था और अपने गैंग में शामिल होने का औफर दे रहा था.

छठे एपिसोड में भी जगहजगह गालियों के डायलौग भरपूर दिखाए गए हैं. ठाकुरब्राह्मण की आपस में लड़ाई और ब्राह्मणब्राहमण के बीच में प्रतिद्वंदिता और लड़ाई को इस में अधिक से अधिक प्रदर्शित किया गया है. हकीकत में श्रीप्रकाश शुक्ला की असली कहानी इस से एकदम भिन्न है जो लेखक, निर्देशक ने दिखाने के बजाय घृणा की भावना को अधिक से अधिक प्रदर्शित करने का प्रयास किया है, जो वास्तव में एकदम निंदनीय है.

वेब सीरीज के आठवें एपिसोड का नाम ‘राष्ट्रीय स्तर का आतंकवादी’ रखा गया है, जिस की शुरुआत एक टीवी शो इंडियाज मोस्ट वांटेड से शुरू होती है.

एसटीएफ की कैसे हुई प्लानिंग

एपिसोड के अगले सीन में एसटीएफ के कार्यालय में पुलिस अधिकारी सिद्धार्थ पांडे बबीता शर्मा के बारे में कुछ सूचना देता है. सिद्धार्थ पांडे पुलिस कमिश्नर से शिव प्रकाश शुक्ला की स्टोरी इंडियाज मोस्ट वांटेड के कार्यक्रम में प्रसारित होने की बात करता है कि आज रात को चैनल में उस की कहानी प्रदर्शित की जा रही है.

अगले दृश्य में पुलिस कमिश्नर और एसटीएफ अधिकारी सिद्धार्थ पांडे शिव प्रकाश शुक्ला के बारे में बातचीत कर रहे हैं. मुख्यमंत्री वहां पर आते हैं और पुलिस कमिश्नर का परिचय कराते हैं.

रमाशंकर तिवारी और मुख्यमंत्री वहां एक नया एसटीएफ बनाने की घोषणा करते हैं, जिसे डीजीपी शर्मा के निर्देशन पर सिद्धार्थ पांडे लीड करेंगे और शिव प्रकाश शुक्ला के गैंग का सफाया करेंगे. सिद्धार्थ पांडे स्वचालित हथियार और अच्छी सर्विलांस सुविधा की मांग करते हैं, पुलिस अधिकारियों को निर्देशित किया जाता है कि शिव प्रकाश किसी भी हालत में बचना नहीं चाहिए.

उस के अगले दृश्य में शिव प्रकाश अपने साथी से कहता है कि अभी यहां से निकलना होगा, पहले नेपाल फिर गोरखपुर, मेरी बहन श्वेता की शादी है. उस का साथी कहता है कि यूपी सरकार ने एक स्पैशल टास्क फोर्स आप को पकडऩे के लिए बनाई है.

शिव प्रकाश शुक्ला कहता है कि वह किसी से नहीं डरता. साथी समझाता है कि एसटीएफ सीधे गोली मारती है, इसलिए कानपुर के बजाय पटना चलते हैं वहां मेरी चंद्रभान सिंह से बात हो गई है. कानपुर गए तो आप के साथसाथ आप के परिवार वाले भी मुसीबत में पड़ जाएंगे. साथी कहता है कि रोड से जाने में चैकिंग का खतरा है, इसलिए ट्रेन से चलेंगे.

दूसरे सीन में पुलिस अधिकारी सिद्धार्थ पांडे रोड पर सघन चैकिंग का हुक्म अपनी टीम को देते हैं. पुलिस चैकिंग के अभियान में जी तोड़ से दिनरात जुटी हुई है. अगले सीन में शिव प्रकाश शुक्ला अपने साथियों के साथ ट्रेन में बैठा दिखाई दे रहा है.

सभी साथी कह रहे हैं कि शिव प्रकाश शुक्ला को अब मंत्री तिवारी के विरुद्ध विधायक का चुनाव लडऩा चाहिए. तभी टीटी आ कर उन से टिकट मांगता है तो शिव प्रकाश शुक्ला सीधे टीटी पर रिवौल्वर तान देता है. उस के साथी टीटी की बुरी तरह से पिटाई कर देते हैं.

तभी शिव प्रकाश शुक्ला को चंद्रभान फोन पर कहता है, पटना मत आओ, यहां पर गड़बड़ हो सकता है, तुम ऐसा करो मोकामा निकल जाओ. वह अपना क्षेत्र है, चिंता की कोई बात नहीं है. हमारा लड़का लोग वहां पर खड़ा तुम्हारा इंतजार कर रहा है.

अगले सीन में शिव प्रकाश शुक्ला एक शांत सी जगह से अपनी प्रेमिका बबीता से बात करता हुआ दिखाई देता है. शुक्ला पूछता है नया घर कैसा लगा? बबीता कहती है, घर अच्छा है बस सामान आना है और तुम्हारा इंतजार है. तुम आओ जल्दी, शिव प्रकाश कहता है, भैया कहते हैं रुको अभी. कुछ और इंतजार करना पड़ेगा.

तभी एक बच्चा मिलता है. शिव प्रकाश उस से बातें करने लगता है उस के बाद शिव प्रकाश को अपना बचपन याद आ जाता है. उस के पिता, उस की बहन उसे सारा बचपन दिखाई देने लगता है. आगे शिव प्रकाश अपने साथियों के साथ बिहार के एक सुनसान क्षेत्र में शराब पीते हुए बातचीत कर रहा है.

इस बीच पुलिस की एसटीएफ टीम को बबीता का सही लोकेशन पता चल जाती है. टीम का सदस्य कंप्यूटर में लोकेशन को ट्रैक करने वाले साथी से टीम के साथ चलने के लिए कहता है तो वह कोई बहाना बना कर टीम के साथ चलने से मना कर देता है. वह कंप्यूटर एक्सपर्ट अब टीवी में शिव प्रकाश शुक्ला की कहानी देखने लगता है और फिर वह बबीता के घर पर जा कर पूछताछ करता दिखाई देता है. उधर टीवी में ऐंकर शिव प्रकाश शुक्ला की हत्याओं की एकएक कर के वारदातें दिखाता रहता है.

तभी वह बबीता शर्मा से टकरा जाता है यानी कि वह बबीता शर्मा को पहचान जाता है और उस का घर भी देख लेता है और इसी के साथ आठवें एपिसोड का समापन भी हो जाता है.

आठवें एपिसोड में भी कलाकारों का अभिनय औसत दरजे का रहा है. एपिसोड में एक टीवी होस्ट एक स्पैशल टास्क से अधिकारी से इस तरह व्यवहार कर रहा है जैसे पुलिस अधिकारी एक फालतू चीज हो. ऐसा भला वास्तविक जीवन में कैसे संभव हो सकता है, जिस से साफसाफ दिखता है कि इस सीन की कल्पना लेखक की शायद अपनी खोपड़ी की उपज है.

एक इतना बड़ा गैंगस्टर ट्रेन में बिना टिकट, बिना रिजर्वेशन अपने साथियों के साथ यात्रा करता हुआ दिखाया गया है. उस के बाद उस के साथी टीटी के साथ बुरी तरह से मारपीट करते हैं, कोई यात्री प्रतिरोध करता हुआ या उस सीन को देखता हुआ नहीं दिखाई दे रहा है. न ही टीटी द्वारा किसी को कंप्लेंट कराते दिखाया गया है, जबकि ट्रेन में हमेशा सुरक्षा गार्ड रहते हैं. कहानी को जगहजगह काल्पनिक बना दिया गया है, हकीकत से एकदम परे.

शिव प्रकाश को किस ने दी थी मुख्यमंत्री की सुपारी

एपिसोड के अंतिम भाग का नाम क्लाइमेक्स अर्थात ‘चरमोत्कर्ष’ के नाम पर रखा गया है, एपिसोड की शुरुआत में प्रमोद शुक्ला अपने बेटे शिव प्रकाश को आवाज देते दिखाई दे रहे हैं. बचपन में वह शिव प्रकाश को स्कूल जाने के बहाने सिनेमा जाने से पीटते हुए दिखाई दे रहे हैं.

फिर अगले सीन में प्रमोद शुक्ला अखबार पढ़ते हुए दिख रहे हैं कि शिव प्रकाश ने ली मुख्यमंत्री की सुपारी 8 करोड़ रुपए. यह देख कर वह चिंतित हो जाते हैं. मंत्री रमाशंकर तिवारी भी समाचार पत्र देख रहे हैं. इस के बाद एपिसोड की कास्टिंग शुरू हो जाती है.

अगले सीन में दिल्ली में शिव प्रकाश का साथी लैंडलाइन फोन से अपने घर पर बात करता दिखाई दे रहा है. फोन करने के बाद वह वापस लौट कर इधरउधर देखते हुए उस कमरे में आ जाता है, जहां पर गैंगस्टर शिव प्रकाश छिपा हुआ है.

उधर दूसरे सीन में टीवी शो का एंकर अपना मोस्टवांटेड एपिसोड समाप्त करता है. तभी दूसरे दिन शिव प्रकाश शुक्ला टीवी शो के एंकर को गाली देते हुए कहता है यदि तुम ने दोबारा मेरा शो दिखाया तो अच्छा नहीं होगा. एंकर गिड़गिड़ाते हुए कहता है, ”सर, सर वो लोग हमें जो लिख कर देते हैं, हम वही करते हैं. हम तो एक एक्टर भर हैं.’’

शिव प्रकाश शुक्ला अपनी प्रेमिका बबीता से बात करता है. सर्विलांस टीम एकदम अलर्ट हो कर उन की बातों को गौर से सुनने लगती है. बबीता कहती है कि अखबार में कुछ आ रहा है, टीवी में कुछ आ रहा है. हम तुम्हारे लिए परेशान हो गए.

शिव प्रकाश कहता है कि तुम घबराओ मत.

उन दोनों की बातचीत को सुन कर एसटीएफ अधिकारी सिद्धार्थ पांडे और उन की टीम अलगअलग तरीके से प्लान बनाने लग जाती है.

दूसरे दृश्य में शिव प्रकाश शुक्ला अपनी टीम के सहयोगी तनुज को कहीं चलने के लिए कहता है. फिर अगले दृश्य में शिव प्रकाश की बहन तैयार होती दिखती है, तभी उस का मोबाइल बजने लगता है. शिव प्रकाश शुक्ला बारबार बहन को फोन कर रहा है, मगर कोई फोन नहीं उठाता है.

फिर शिव प्रकाश साथियों के साथ गाड़ी में जाता दिखाई दे रहा है. उस के साथी पूछते हैं कि अब कहां चलें गोरखपुर या गाजियाबाद?

उधर एसटीएफ ने योजना के अनुसार सारी दुकानें बंद करा दीं.

अगले सीन में शिव प्रकाश की बहन की शादी की तैयारियां हो रही हैं, लड्डू बनाए जा रहे हैं, नाचगाना हो रहा है. तभी गाजियाबाद में 2 लोग बाइक पर दिखाई देते हैं. एसटीएफ टीम का सदस्य महादेव पिस्टल निकाल लेता है, तभी वहां पर एक बड़ी गाड़ी आती दिखाई ती है, जिस में शिव प्रकाश शुक्ला अपनी पिस्टल ले कर उतरता है और साथियों से कहता है, ”आते हैं अभी थोड़ी देर में, फिर गोरखपुर निकलेंगे. ‘

महादेव एसटीएफ अधिकारी सिद्धार्थ पांडे को वायरलेस पर सिगनल कर देता है, तभी गाड़ी में बैठे शिव प्रकाश के साथियों को कुछ शक सा होता है. अगले सीन में शिव प्रकाश अपने घर पर फोन करता है.

अगले दृश्य में शिव प्रकाश का एक साथी अपने साथियों से कहता है कि मुझे आज सुबह से ही कुछ ऐसा लग रहा है, जैसे कोई हमें देख रहा है. साथी कहते हैं, वहम है तुम्हारा.

पुलिस को किस ने दी थी शिव प्रकाश की सूचना

अगले दृश्य में शिव प्रकाश का एक साथी गाड़ी से बाहर आता है उसे शक हो जाता है तो वह ‘गाड़ी निकाल’ कह कर चिल्लाता है, तभी एसटीएफ का सदस्य महादेव उसे गोली मार कर ढेर कर देता है. गोली की आवाज बबीता को भी सुनाई देती है, तभी वहां पर पुलिस की टीम शिव प्रकाश के सभी साथियों को ढेर कर देती है.

शिव प्रकाश के ऊपर भी फायरिंग शुरू हो जाती है. शिव प्रकाश शुक्ला अपनी पोजीशन बारबार बदलता है. तभी बबीता ‘शिव.. शिव’ चिल्लाते हुए अपने फ्लैट से बाहर निकल आती है. सिद्धार्थ पांडे और शिव प्रकाश शुक्ला एकदूसरे पर गोलियां बरसाना शुरू कर देते हैं. पुलिस की टीम शिव प्रकाश को चारों ओर से घेर लेती है.

तभी शिव प्रकाश अपनी पिस्तौल में गोली भर कर सीना तान कर कर पूरी पुलिस टीम का मुकाबला करने सामने बेझिझक, बिना डरे निकल कर आ जाता है और गोलियां बरसानी शुरू कर देता है. वह कुछ पुलिसकर्मियों को मार भी डालता है, तभी शिव प्रकाश के पेट में गोली लगती है और वह जमीन पर गिर जाता है.

उस का मोबाइल छिटक कर कुछ दूरी पर गिर जाता है. तभी बबीता शिव प्रकाश को फोन करती है. शिव प्रकाश अपना पेट पकड़े अपनी सारी मैगजीन खाली कर देता है. उसी समय उस की नजर अपने मोबाइल पर पड़ती है, जो बज रहा था. बबीता दिखाई पड़ती है जो फोन करते दिखाई दे रही है. तभी सिद्धार्थ पांडे कहते हैं, शिव प्रकाश शुक्ला. वह उस की ओर पिस्टल तान देते हैं. वहां पर अब बबीता, कंप्यूटर औपरेटर, शिव प्रकाश शुक्ला और सिद्धार्थ पांडे सभी एकदूसरे को देखते हुए दिखाई देते हैं.

फ्लैट से तभी बबीता जोर से चिल्लाती है, ‘शिव…शिव…शिव…’ और फिर एसटीएफ अधिकारी सिद्धार्थ पांडे शिव प्रकाश शुक्ला को गोलियों से छलनी कर देता है. बबीता शर्मा यह दृश्य देख कर जोरजोर से रोने लगती है. उस का प्रेमी जमीन पर पड़ा अपनी आखिरी सांसें ले रहा होता है तो दूसरी तरफ वह जोरजोर से रो रही है.

उधर अगले सीन में शिव प्रकाश शुक्ला की बहन की शादी में उस के मातापिता नाच रहे हैं, बहन श्वेता हंस रही है. उस की बहन श्वेता, मां और पिता प्रमोद शुक्ला को शिव प्रकाश अपने साथ नाचता हुआ दिखाई दे रहा है. रमाशंकर तिवारी खुश हो कर पार्टी करता दिखाई दे रहा है और चंद्रभान सिंह उदास चेहरा लिए खड़ा दिखाई दे रहा है.

शिव प्रकाश शुक्ला की खून भरी गोलियों से छलनी लाश जमीन पर पड़ी है और इस तरह यह नवां एपिसोड भी समाप्त हो जाता है.

इस में जबरदस्ती कंप्यूटर औपरेटर पात्र को ठूंस दिया गया लगता है. वह न तो पुलिस वाला है, न उस ने प्राइवेट जासूसी की कहां पर ट्रेनिंग ली है, न उस की कदकाठी ही ऐसी है कि वह निजी तौर पर इतना बड़ा जोखिम ले कर इतने बड़े गैंगस्टर शिव प्रकाश की प्रेमिका की जासूसी केवल अपने स्तर पर वह भी बिना आदेश लिए कर सके.

वह कलाकार नौसिखिया सा दिखाई दे रहा है. लगता है जासूसी उपन्यास पढ़पढ़ कर उस ने इतना बड़ा जोखिम ले कर यह कारनामा कर दिखाया है. इस नवें एपिसोड की यह सब से बड़ी कमजोरी साफसाफ नजर भी आ रही है.

यदि पूरे वेब सीरीज रंगबाज सीजन 1 का आकलन करें तो इस में गिनती के 2-4 सीन हैं, जिन में एक्शन और खूनखराबा देखने को मिलता है, वरना इस पूरी वेब सीरीज में शिव प्रकाश शुक्ला जो भागतेबचते दिखाई पड़ता है या फिर अपनी गर्लफ्रेंड से बातें करते हुए दिखाई देता है.

वेब सीरीज 9 एपिसोड की है और हर एपिसोड 30 से 35 मिनट का है. लेकिन फिर भी यह वेब सीरीज हमें बोर करती है.