मोहब्बत रास न आई – भाग 3

धीरेधीरे वक्त गुजरता गया. जगदीश चंद्र ने सोचा कि टाइम बीतने पर उस की ससुराल वाले गीता को भूल जाएंगे. यही सोच कर पहली सितंबर 2022 को निश्चिंत हो कर सुबह ही किसी काम से भिकियासैंण चला गया. उस दिन अधिवक्ता नारायण राम भी किसी काम से घर से बाहर गए हुए थे.

यही मौका पाते ही उसी दिन दोपहर करीब 2 बजे एक महिला और 2 पुरुष नारायण राम के घर में घुस गए. उन लोगों ने अधिवक्ता की पत्नी को धमकाते हुए गीता को उन के हवाले करने की बात कही. साथ ही उन्होंने कहा कि जगदीश तो उन के कब्जे में आ चुका है, हम किसी भी कीमत पर गीता को भी नहीं छोड़ने वाले.

नारायण राम की पत्नी ने यह बात पति नारायण राम को बताई. इस बात की जानकारी मिलते ही अधिवक्ता नारायण राम ने पुलिस को खबर की. लेकिन पुलिस के पहुंचने से पहले ही तीनों आरोपी घर से फरार हो गए.

उसी शाम को अधिवक्ता नारायण राम ने जोगा सिंह, उस के बेटे गोविंद व भावना देवी के खिलाफ उन के घर में घुस कर उन की पत्नी को जान से मारने की धमकी देने का आरोप लगा कर उन के खिलाफ अल्मोड़ा कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज करा दी. इस रिपोर्ट के दर्ज होने के बाद पुलिस ने कोई काररवाई नहीं की.

जोगा सिंह ने पहले ही पलपल की खबर पाने के लिए अपने आदमी लगा रखे थे. उसी समय जोगा सिंह को पता चला कि आज जगदीश चंद्र किसी काम से भिकियासैंण गया हुआ है.

यह जानकारी मिलते ही जोगा सिंह, बेटा गोविंद सिंह और पत्नी भावना देवी को ले कर भिकियासैंण के सेलापानी पुल के पास मारुति वैन से पहुंच कर जगदीश के आने का इंतजार करने लगा.

जैसे ही जगदीश चंद्र वहां पर आया, उन लोगों ने उसे उठा लिया. उस के बाद उसे कार में डालते ही उसे बुरी तरह से मारनापीटना शुरू कर दिया था. अत्यधिक मारपीट से जगदीश चंद्र की मौत हो गई थी. उस की हत्या करने के बाद तीनों आरोपी उस की लाश को ठिकाने लगाने जा रहे थे. उसी वक्त पुलिस की पकड़ में आ गए.

इस घटना के खुलते ही पुलिस ने जगदीश की हत्या के आरोप में जोगा सिंह, उस के बेटे गोविंद सिंह और पत्नी भावना को जेल भेज दिया था.

इस केस के तीनों आरोपियों को जेल भेजने के बाद पुलिस ने सोचा कि यह मामला यहीं खत्म हो जाएगा. लेकिन इस केस के खुलने से असंतुष्ट उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष पी.सी. तिवारी इस मामले को ले कर धरनाप्रदर्शन करने लगे. उन का कहना था कि इस अपहरण और मर्डर केस में इन 3 आरोपियों के अलावा भी अन्य लोग रहे होंगे.

घटना के विरोध में शुरू हुआ आंदोलन

उस के बाद उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के अध्यक्ष पी.सी. तिवारी ने अपने अन्य साथियों व अंबेडकर जन जागृति समिति के साथ जगदीश की पत्नी गीता को न्याय दिलाने के लिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को एक ज्ञापन भेजा.

ज्ञापन में जगदीश के हत्यारों को फांसी की सजा, मृतक की मां को 10 लाख रुपए मुआवजा व इस केस में पुलिस और प्रशासन की लापरवाही की जांच के साथ मृतक की पत्नी गीता को सुरक्षा की मांग की गई थी.

उसी दौरान उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी व उत्तराखंड महिला मंच के प्रतिनिधि मंडल के सदस्य इस मामले को ले कर देहरादून में डीजीपी अशोक कुमार से मिले.

हालांकि इस मामले को ले कर एसओजी और सर्विलांस टीम भी कड़ी से कड़ी जोड़ते हुए जांच करने में लगी थी. फिर भी सीओ टी.आर. वर्मा ने कोर्ट से आदेश लेने के बाद जेल पहुंच कर तीनों हत्यारोपियों से इस मामले में पूछताछ की.

उसी पूछताछ के दौरान ही आरोपियों ने स्वीकार किया कि इस हत्याकांड में उन के अलावा अन्य 2 लोग नौगांव पोस्ट कनोली, तहसील रानीखेत निवासी नंदन सिंह व नरेंद्र सिंह भी शामिल थे. जिस में नंदन सिंह की अगले ही दिन रहस्यमय रूप से मौत हो गई थी.

इस जानकारी के मिलते ही एसओजी टीम नरेंद्र सिंह की तलाश में जुट गई थी. उसी दिन पुलिस ने नरेंद्र सिंह को गिरफ्तार भी कर लिया था. नरेंद्र ने बताया कि पुलिस के डर से नंदन ने पहले ही जहर खा कर आत्महत्या कर ली.

इस हत्याकांड के चौथे आरोपी नरेंद्र सिंह ने पुलिस पूछताछ में जो जानकारी दी, वह इस प्रकार थी. नरेंद्र सिंह ने बताया कि नंदन उस का दोस्त था. नंदन उसी के साथ नदी से रेत निकाल कर घोड़े से ढोने का काम करते थे. जोगा सिंह से भी उस की अच्छी जानपहचान थी. एक दिन जोगा सिंह से उस की मुलाकात हुई. उस दिन उस के साथ नंदन भी था.

जोगा सिंह ने अपनी परेशानी उस के सामने रखते हुए कहा कि कोई ऐसा रास्ता बताओ, जिस से जगदीश चंद्र से उस की बेटी गीता का पीछा छूट जाए. उस दिन तीनों ने एक साथ बैठ कर शराब पी. फिर तीनों ने ही जगदीश चंद्र को मौत की नींद सुलाने का प्लान भी बना लिया था.

उस योजना के बनते ही नंदन और नरेंद्र सिंह दोनों ही जगदीश चंद्र की रैकी करने लगे थे. पहली सितंबर, 2022 को नरेंद्र सिंह को पता लग गया था कि जगदीश चंद्र किसी काम से भिकियासैंण के लिए निकलने वाला है.

पीटपीट कर की थी जगदीश चंद्र की हत्या

यह सूचना मिलते ही पांचों लोग गांव बेल्टी से एक बोलेरो द्वारा घटनास्थल सेलापानी गए. वहां पर पहुंचते ही इन लोगों ने बोलेरो को यह कह कर वापस भेज दिया कि वे एक बकरा खरीदने जा रहे हैं. अगर उन्हें बकरा मिल गया तो उसे फिर से घर ले जाने के लिए फोन कर लेंगे. उस के बाद इन सब को बोलेरो का ड्राइवर छोड़ कर वापस चला गया था.

उसी वक्त जगदीश चंद्र आया तो पांचों ने उस का अपहरण कर लिया. उस के बाद सभी आरोपी उसे नदी किनारे एक कमरे में ले गए. जहां पर जा कर सभी ने बेरहमी से उसे पीटना शुरू किया. इन लोगों ने उसे बुरी तरह से पीटते हुए उस से गीता के बारे में पूछा.

तब जगदीश ने बुरी हालत में ही बताया कि गीता वकील नारायण राम के घर पर है. यह जानकारी मिलते ही जोगा सिंह, गोविंद और भावना तीनों ही अधिवक्ता के घर पर पहुंचे थे, लेकिन वहां पर उन्हें गीता नहीं मिली तो वापिस आ गए. उस दौरान नरेंद्र सिंह और नंदन जगदीश चंद्र की देखरेख कर रहे थे.

वहां पर गीता नहीं मिली तो इन लोगों ने आते ही फिर से जगदीश को बुरी तरह से मारना शुरू किया. जिस के बाद शाम को लगभग 5 बजे के आसपास जगदीश ने दम तोड़ दिया. उस के खत्म होते ही नरेंद्र सिंह और नंदन अपने घर चले गए थे. जबकि जोगा सिंह उस का बेटा गोविंद सिंह व भावना देवी जगदीश चंद्र की लाश को ठिकाने लगाने जा रहे थे. उसी वक्त पुलिस ने तीनों को धर दबोचा था. इस हत्याकांड में आरोपी नरेंद्र सिंह को भी पुलिस ने जेल भेज दिया था.

जाति की छुआछूत को कलंकित करती कहानी ने इंसानियत को भी शर्मसार कर दिया था. गीता ने अपनी सगी मां भावना पर पूरा विश्वास किया था. भावना ने ही अपनी बेटी को प्रेम की राह दिखाई. फिर वही मां इस प्रेम कहानी में खलनायिका बन कर सामने आ खड़ी हुई थी. जिस के साथ ही एक प्रेम कहानी का दुखद अंत हो गया. लेकिन गीता की जिंदगी में फिर से एक अंधेरा आ खड़ा हो गया है. द्य

शक की पराकाष्ठा : परिवार में कैसे आया भूचाल – भाग 3

विगत होली पर जब रोहताश के रिश्तेदार उस से मिलने आए तो उन्होंने कलावती से शिकायत की कि वह उन से फोन पर भी बात नहीं करती. तब कलावती को पता चला कि रिश्तेदारों ने उस से बात कराने के लिए रोहताश को कई बार फोन किया था, पर उस ने जानबूझ कर उस की बात नहीं कराई. इस पर कलावती बौखला उठी. उस ने पति को उलटीसीधी सुनाते हुए अपना एक अलग मोबाइल दिलाने की बात कही.

इस बात को भी रोहताश ने अपने साढ़ू से जोड़ते हुए सोचा कि वह जरूर अपने जीजा से बात करने के लिए ही अलग मोबाइल मांग रही है. यानी उस के दिमाग में शक का कीड़ा और भी बलवती हो उठा. मोबाइल दिलाने की बात को ले कर दोनों के बीच फिर से नोकझोंक हुई.

बात इतनी बिगड़ी कि गुस्से में आ कर रोहताश ने अपना भी मोबाइल तोड़ डाला. उस के बाद उस ने पत्नी को हिदायत दी कि वह भविष्य में अपने जीजा से बात न करे अन्यथा अंजाम बहुत बुरा होगा. रोहताश की यह धमकी सुन कर कलावती ने इस की शिकायत अपने भाई लक्खू से कर दी. लक्खू ने फिर से अपने जीजा रोहताश को समझाने की कोशिश की, लेकिन रोहताश पर उस की बातों का कोई असर नहीं हुआ.

साले के घर से जाते ही रोहताश ने बीवी को अपशब्द कहे, साथ ही उस ने उस से घर छोड़ कर चले जाने को भी कह दिया. इस पर दोनों में तकरार बढ़ गई. इसी तूतूमैंमैं के बीच कलावती ने पति से कहा कि यह घर छोड़ कर तो तुम्हें चले जाना चाहिए.

यह घर मेरा, बच्चे मेरे. यहां पर तुम्हारा क्या है? रोहताश छोटी सोच का इंसान था. उस ने कलावती की बात को दूसरे नजरिए से देखते हुए अर्थ लगाया कि बच्चे भी उस के नहीं तो जरूर उस के साढ़ू के ही हैं. कलावती की बात सुनते ही वह अपना आपा खो बैठा. उस के मन में एक बात की गलतफहमी बैठी तो वह शैतान बन बैठा. वह उस दिन के बाद से बीवी और बच्चों का दुश्मन बन बैठा.

रोहताश अपने चारों बच्चों को उचित शिक्षा दिला रहा था ताकि उन की कहीं सरकारी नौकरी लग सके. उन की पढ़ाई के लिए ही उस ने दिनरात एक कर के काफी पैसा कमाया था. अपने सपने को साकार करने के लिए जितनी मेहनत उस ने की थी, उस से कहीं ज्यादा उस के बच्चे कर रहे थे. उस की सब से बड़ी बेटी सलोनी इस वक्त बीए फर्स्ट ईयर में और मंझली शिवानी कक्षा 12 में पढ़ रही थी. उस का बेटा रवि गांव गोपीवाला के जनता इंटर कालेज में 9वीं कक्षा में तथा सब से छोटा आकाश यहीं पर कक्षा-7 में पढ़ रहा था.

बीवी और बच्चों के प्रति उस के दिल में नफरत पैदा होते ही उस के दिल में शैतान पैदा हो गया. उस ने प्रण किया कि अगर ये चारों बच्चे उस के साढ़ू के हैं तो वह सभी को खत्म कर डालेगा. इस के बाद वह हर रोज ही अपनी बीवी और बच्चों को मौत की नींद सुलाने के लिए नएनए प्लान बनाने लगा.

लेकिन वह अपनी साजिश में कामयाब नहीं हो पा रहा था. इस दर्दनाक हादसे को अंजाम देने से 2 दिन पहले रोहताश उस रोज दुकान पर जाने के लिए घर से निकलता, लेकिन इसी उधेड़बुन में लगा रहा कि बीवी और बच्चों को किस तरह से मौत की नींद सुलाया जाए. वह दुकान जाने के बजाए दारू पीने के लिए इधरउधर ही भटकता रहा.

16 जून, 2019 को शाम को वह जिस वक्त अपने घर पहुंचा तो उस ने कुछ ज्यादा ही शराब पी रखी थी. इस के बावजूद भी उस की बीवी ने उसे खाना खिलाया. वह खाना खा कर छत पर जा कर सो गया. इस के बाद कलावती ने अपने बच्चों को खाना खिलाया और घर का कामधंधा निपटा कर वह भी छत पर सोने के लिए चली गई थी.

उस के 3 बच्चे छत पर सोए थे जबकि बड़ी बेटी शिवानी उस रात नीचे घर में ही सो गई थी. रात के 10 बजतेबजते सभी सो चुके थे. लेकिन उस रात रोहताश की आंखों में खून बरस रहा था. वह काफी समय से सभी के सोने का इंतजार कर रहा था. उस रात उस ने घर आते ही सब से पहले अपनी बड़ी कैंची का नटबोल्ट खोल कर 2 भागों में कर ली. उस का एक हिस्सा चाकू की तरह हो गया था. कैंची के एक हिस्से को उस ने रात के सोते समय अपने सिरहाने रख ली.

जब उस की बगल में लेटी बीवी नींद में खर्राटे भरने लगी तो उस के अंदर बैठा शैतान जाग उठा. वह अपने बिस्तर से उठा और सीधा दूसरी छत पर सोए तीनों बच्चों के पास पहुंच गया. उस ने आव देखा न ताव, शैतान बन कर कैंची के एक भाग से बच्चों पर ताबड़तोड़ वार करने लगा. देखते ही देखते बच्चे चीखपुकार मचाने लगे.

बहनभाइयों की चीख सुन कर जैसे ही शिवानी जीने पर आई तो रोहताश ने उस पर भी जानलेवा हमला कर दिया. उस के बाद जैसे ही कलावती उसे बचाने के लिए पहुंची तो उस ने उसे भी मारने की कोशिश की, लेकिन उस वक्त तक उस का भतीजा सुनील शोरशराबा सुन कर वहां आ गया था. जिस की वजह से कलावती मौत के मुंह में जाने से बच गई. रोहताश का पूरे परिवार को खत्म करने का इरादा था.

पुलिस ने कैंची का वह भाग भी बरामद कर लिया, जिस से उस ने बच्चों पर हमला किया था. रोहताश से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे मुरादाबाद की कोर्ट में पेश कर उसे जेल भेज दिया. रोहताश की पत्नी कलावती ने अपने ऊपर लगाए गए आरोपों को झूठा और पूरी तरह से निराधार बताया.

उस ने पुलिस को बताया कि उस के चारों बच्चे रोहताश के ही हैं. कलावती ने पुलिस को बताया कि अगर उसे मेरे चरित्र पर शक था तो मुझे ही मारना चाहिए था. मैं तो उस के पास ही सो रही थी. गांव में इस मामले को ले कर चर्चा थी कि रोहताश ने गड़ा खजाना पाने के लिए ही किसी तांत्रिक के कहने पर यह कांड किया.

शराबी की विनाश लीला – भाग 4

पति की नशेबाजी से घर की आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो गई थी. जब बेटियों के भूखे मरने की नौबत आ गई, तब श्यामा नौकरी की तलाश में जुटी. 8वीं पास श्यामा को अच्छी नौकरी कहां मिलती. उस ने मोहल्ले में ही स्थित निरंकारी बालिका इंटर कालेज की प्रधानाचार्या से संपर्क किया और अपनी व्यथा बता कर जीवनयावन के लिए काम मांगा. प्रधानाचार्या ने श्यामा पर तरस खा कर उसे रसोइया की नौकरी दे दी. इस तरह श्यामा को 2 हजार रुपए माह वेतन पर मिड डे मील बनाने का काम मिल गया.

नौकरी मिलने के बाद श्यामा किसी तरह अपनी बेटियों का पालनपोषण करने लगी. उस की बड़ी बेटी पिंकी अब तक निरंकारी बालिका इंटर कालेज से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर महात्मा गांधी महाविद्यालय में बीए (फर्स्ट ईयर) में पढ़ने लगी थी.

उस की 3 बेटियां प्रियंका, वर्षा और रूबी निरंकारी बालिका विद्यालय में ही पढ़ रही थीं. श्यामा उन्हें सुबह अपने साथ ले जाती और फिर छुट्टी होने के बाद साथ ही ले आती थी. मिड डे मील का बचा खाना भी वह अपने साथ ले आती जो शाम को मांबेटियों के खाने के काम आता था.

नशेड़ी पति की दहशत से श्यामा व उस की बेटियां डरीसहमी रहती थीं. जब वह ज्यादा नशे में होता तो श्यामा दरवाजा नहीं खोलती थी. इस पर वह दरवाजा तोड़ने का प्रयास करता और खूब गालियां बकता. श्यामा के कमरे के सामने खाली जगह पड़ी थी. उस ने खाली जगह पर घासफूस का एक छप्पर रखवा कर एक चारपाई डलवा दी थी ताकि नशेड़ी पति कमरे के बजाए उसी छप्पर के नीचे सो जाए.

श्यामा की बड़ी बेटी पिंकी 19 साल की हो चुकी थी. वह मोहल्ले के कुछ बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर अपना व अपनी पढ़ाई का खर्च निकाल लेती थी. पिंकी की एक सहेली पूजा थी, जो उस के साथ ही पढ़ती थी. वह उस से कहती थी कि मां के हौसले से ही वह जिंदा है.

पहले वह छोटी बहनों को पढ़ा कर पैरों पर खड़ा करेगी. उस के बाद अपनी शादी की सोचेगी. वह मां का हौसला कभी नहीं टूटने देगी. उस की 14 वर्षीय छोटी बहन प्रियंका कक्षा 9 में और 13 साल की वर्षा 7वीं कक्षा में थीं, जबकि 10 वर्षीय रूबी अभी कक्षा 5 में थी.

रामभरोसे पक्का शराबी था. जिस दिन उस के पास शराब पीने को पैसे नहीं होते, उस दिन वह श्यामा से मांगता. इनकार करने पर वह उसे मारतापीटता और बक्से में रखे पैसे निकाल लेता. पैसा न मिलने पर वह घर का सामान बर्तन, अनाज व कपड़े उठा कर ले जाता और बेच कर शराब पी जाता. वह ऐसा कमीना बाप था, जो बेटियों के गुल्लक तक तोड़ कर पैसे निकाल लेता था.

नशेड़ी पति की हरकतों से परेशान श्यामा की हसरतें अधूरी रह गई थीं. उस के हौसले टूटने लगे थे, वह मानसिक तनाव में रहने लगी थी. कभीकभी वह अपना दर्द अपनी सहयोगी तारावती से बयां करती थी. वह उस से कहती थी कि बड़ी बेटी पिंकी के ब्याह की चिंता सता रही है. घर की माली हालत खराब है, ऐसे में उस की शादी कैसे होगी. पिंकी के अलावा 3 अन्य बेटियां भी हैं, जो साल दर साल बड़ी हो रही हैं.

30 जनवरी की शाम 4 बजे रामभरोसे घर आया. उस समय श्यामा के अलावा उस की चारों बेटियां घर पर ही थीं. रामभरोसे ने आते ही श्यामा से शराब पीने के पैसे मांगे. उस ने पैसा देने से मना किया तो रामभरोसे ने पास में रखा डंडा उठाया और श्यामा को पीटने लगा.

प्रियंका और रूबी शोर मचाने लगीं तो रामभरोसे ने उन्हें भी पीटना शुरू कर दिया. मांबेटी अपनी जान बचा कर भागीं तो उस ने उन का पीछा किया. उन्होंने किसी तरह रामशरण के घर में घुस कर जान बचाई. गुस्से से लाल रामभरोसे घर आया. उस ने घर का सामान तहसनहस कर दिया, घर के बाहर पड़ा छप्पर उलट दिया. फिर वह  शराब पीने ठेके पहुंच गया.

इधर श्यामा पति की हैवानियत से इतनी ऊब गई थी कि उस ने आत्महत्या करने का निश्चय कर लिया था. वह बाजार से फसलों के बीज बेचने वाली दुकान से क्विक फास के 7 पाउच खरीद लाई. यह दवा गेहूं को घुन से बचाने के लिए गेहूं भंडारण में रखी जाती है.

दवा लाने के बाद श्यामा ने चारों बेटियों को अपने सामने बिठाया और बोली, ‘‘तुम्हारे नशेड़ी बाप की हैवानियत से मैं टूट चुकी हूं. उस के जुल्म अब और नहीं सह पाऊंगी. इसलिए मैं ने आत्महत्या करने का फैसला कर लिया है.’’

यह सुन कर पिंकी बोली, ‘‘मां, आप तो मेरी संबल हो. आप के हौसले से ही हम जिंदा हैं. जब आप ही नहीं रहोगी तो हम जी कर क्या करेंगे. हम सब एक साथ ही मरेंगे.’’

‘‘शायद तुम ठीक कहती हो. क्योंकि मेरे न रहने पर वह नशेड़ी अपने नशे के लिए या तो तुम सब को बेच देगा या फिर घर को देह व्यापार का अड्डा बना देगा. इसलिए उस के जुल्मों से बचने के लिए आत्महत्या करना ही बेहतर है.’’

जब श्यामा की चारों बेटियां एक राय हो कर मां के साथ आत्महत्या करने को राजी हो गईं, तब श्यामा ने कमरे की अंदर से कुंडी बंद कर दी.

इस से बुरा क्या हो सकता है कि श्यामा के पास इतने भी पैसे नहीं थे कि जहर मिलाने के लिए कोल्डडिंक या कोई पेय ले आती.

वह चूंकि फैसला कर चुकी थी, इसलिए उस ने भगौने में आटे का घोल बनाया और जहर की 7 में से 4 पुडि़या घोल में मिला दीं.

इस के बाद दिल को कड़ा कर के बारीबारी से चारों बेटियों को घोल पिला दिया और खुद भी पी लिया. जहरीले घोल ने कुछ देर बाद ही अपना असर दिखाना शुरू कर दिया. सभी मूर्छित हो कर आड़ेतिरछे एकदूसरे पर गिर गईं. उन के प्राणपखेरू कब उड़े, किसी को पता नहीं चला.

लगभग 33 घंटे बाद इस घटना की जानकारी तब हुई, जब निरंकारी बालिका विद्यालय की छात्रा प्रीति श्यामा के घर आई. उस ने दरवाजा न खोलने की जानकारी श्यामा के ससुर रामसागर को दी. रामसागर ने पुलिस को सूचना दी. पुलिस ने दरवाजा तोड़ा तो मां व उस की 4 बेटियों द्वारा आत्महत्या किए जाने की जानकारी हुई. पुलिस ने शवों को कब्जे में ले कर जांच शुरू की तो नशेड़ी पति की हैवानियत से ऊब कर आत्महत्या करने की यह घटना प्रकाश में आई.

5 फरवरी, 2020 को थाना सदर कोतवाली पुलिस ने रामभरोसे को फतेहपुर की जिला अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया.

77 पेज के सुसाइट नोट की दिल दहलाने वाली कहानी – भाग 3

मां की हत्या करने के बाद क्षितिज खुद को मारने के रास्ते ढूंढने लगा. वह मां के शव को कमरे में बंद कर के बाजार गया और एक इलैक्ट्रिक कटर खरीद कर लाया. कई दुकानें तलाशने के बाद आखिरकार एक दुकान पर उसे कटर और ब्लेड मिल गया.

घर आ कर उस ने सब से पहले अपनी मृत मां के गले पर कटर चलाया. ऐसा शायद उस ने ट्रायल के तौर पर किया था. ताकि जब खुद की गरदन उड़ानी हो तो कटर ठीक से चला सके शायद इसलिए.

उस ने लिखा, ‘पहले मैं ने पिस्टल खरीदने की कोशिश की. नहीं मिली. फिर इलैक्ट्रिक कटर का विचार आया है. इलैक्ट्रिक कटर ले कर रात को घर लौटा था. मां के शव के पास खूब रोया हूं.’

उस ने रजिस्टर में आगे लिखा, ‘मां की मौत को आज 71 घंटे हो चुके हैं. बदबू आने लगी है. मां की गरदन कटर से काट दी है. शरीर से अलग नहीं की है.

‘शुक्रवार शाम से शव में बदबू आने लगी थी. मां के शव को बाथरूम में घसीट कर ले गया. दरवाजा बंद कर दिया है ताकि बदबू न आए. मैं बस सुसाइड नोट पूरा करना चाहता हूं. बदबू घर में भर चुकी है. अब बारी है मेरे सुसाइड करने की.’

मरने से पहले क्षितिज अपने जीवन के एकएक पल को जैसे उस रजिस्टर में कैद कर देना चाहता था. कभी मुंह पर कपड़ा रख कर तो कभी अगरबत्ती सुलगा कर वह किसी तरह बदबू से बचता हुआ लगातार लिखे ही जा रहा था.

‘आज शनिवार है. 3 दिन से खाली पेट हूं. कुछ खाया ही नहीं. मुझे याद आया रसोई में मैं ने गर्म पानी पीने को रखा है. कमरे में बदबू नहीं रुक रही. इस से मेरी भी तबीयत बिगड़ने लगी है. मैं ने पेंसिल के बुरादे को जलाया है. धूपबत्ती जलाई है. घर में एक जायफल रखा था, उसे भी जलाया है. सारा डियो भी छिड़क दिया. फिर भी बदबू नहीं रुक रही है. लेकिन मैं मास्क लगा कर सुसाइड नोट पूरा करूंगा.’

इस बीच क्षितिज के घर पर कई लोग आए. उन्होंने दरवाजे की घंटी बजाई, लेकिन जब दरवाजा नहीं खुला तो वापस चले गए.

क्षितिज की मां मिथिलेश हर इतवार पड़ोस में रहने वाली एक सहेली के साथ सत्संग जाती थी. मगर उस दिन जब वह नहीं आई तो उन की सहेली ने कई फोन मिथिलेश के फोन पर किए. फोन नहीं उठा तो उन्होंने क्षितिज का फोन मिलाया. 2-3 घंटियां बजने के बाद आखिरकार क्षितिज ने फोन उठा लिया.

उधर से आवाज आई, ‘आज मिथिलेश सत्संग में नहीं आई. फोन भी नहीं उठा रही है. मेरी जरा उस से बात करा दो.’

क्षितिज पहले तो घबरा गया, लेकिन फिर कड़ाई से बोला, ‘मां मर चुकी हैं. 4 दिन पहले मैं ने उन्हें मार दिया. अब मैं भी मरने की तैयारी कर रहा हूं.’

मिथिलेश की सहेली ने तुरंत फोन काट दिया. शायद वह क्षितिज की बात सुन कर डर गई. उस ने यह बात किसी को नहीं बताई. अगर वह उसी वक्त शोर मचा कर पड़ोसियों को इकट्ठा कर लेती और अपनी सहेली का घर खुलवा लेती या पुलिस को फोन कर देती तो शायद क्षितिज पुलिस को जीवित मिल जाता. लेकिन दूसरे के पचड़े में कौन पड़े, यह सोच उस महिला पर हावी हो गई और वह चुप मार गई.

फिर उस ने आगे लिखा, ‘आज रविवार है. इस समय दोपहर के 2 बज रहे हैं. 3 दिन से प्रौपर्टी डीलर फ्लोर किराए पर दिखाने के लिए 3 बार किराएदारों के साथ आ चुका है. मैं ने दरवाजा नहीं खोला. आज हर हालत में नोट पूरा कर लूंगा. यह सब देखना बहुत डरावना लगता है.

‘पापा के जाने के बाद मां के जीजा ने हमारी पिता की तरह देखभाल की. इसलिए मैं घोषणा करता हूं कि मेरे मरने के बाद मेरी बाइक उन के नाम होगी. मेरी इच्छा है कि मां का अंतिम संस्कार मेरी मौसी करें.’

सुसाइड नोट पूरा करने के बाद क्षितिज ने बाथरूम में जा कर मां के शव पर नजर डाली. बदबू के मारे वह उस के पास नहीं बैठा. अब वह जल्द से जल्द खुद को खत्म कर लेना चाहता था. उस ने बाथरूम में रखी दोनों बाल्टियों में पानी भरा और उन्हें अपने बैडरूम में ले आया.

उस ने इलैक्ट्रिक कटर को स्विच बोर्ड में लगाया. चला कर देखा और पलंग पर रख दिया. इस के बाद उस ने पानी भरी बाल्टियों से अपने दोनों पैरों के अंगूठे बांध लिए ताकि जब वह इलैक्ट्रिक कटर अपने गले पर चलाए और दर्द से छटपटाए तो बैड से नीचे न गिरे.

शायद उसे इस बात का अंदेशा था कि कहीं ऐसा न हो कि छटपटाहट के कारण गला पूरा न कट पाए या कटर उस के हाथों से छूट जाए. ऐसे में जो पीड़ा होगी, वह असहनीय होगी. इसलिए वह पूरी तैयारी कर के बिस्तर पर लेटा.

इस केस के जांच अधिकारी इंसपेक्टर राम प्रताप सिंह भी कहते हैं कि पैरों को बाल्टी से बांधने के पीछे क्षितिज का मकसद रहा होगा कि मौत के समय छटपटाहट हो तो पैर बंधे रहें.

खुद को मारने के लिए इतनी हिम्मत जुटाना यह साबित करता है कि अब क्षितिज किसी भी कीमत पर इस दुनिया में नहीं रहना चाहता था. वह अपनी मां से बहुत प्रेम करता था और उन के बगैर अपने जीवन की कल्पना वह नहीं कर सका था.

बुद्ध विहार थाने में इस घटना की एफआईआर हत्या की धाराओं में दर्ज हुई है. हालांकि मरने वाला और मारने वाला दोनों ही नहीं हैं, मगर पुलिस को तो अपनी जांच करनी ही है. दोनों के शवों को पोस्टमार्टम के बाद मिथिलेश की बहन और जीजा के सुपुर्द कर दिया गया, जिन्होंने उन का अंतिम संस्कार किया. मिथिलेश के घर को पुलिस ने फिलहाल सील कर दिया है.

डिप्रेशन एक खतरनाक बीमारी है. इस का शिकार व्यक्ति आम व्यक्ति की तरह ही नजर आता है. इस से ग्रसित व्यक्ति को कई बार स्वयं को भी इस का पता नहीं चल पाता. बाहर के लोग तो समझ ही नहीं पाते कि उस की मानसिक हालत कैसी है और वह कब क्या कदम उठा ले, लेकिन साथ रहने वाले उस के बदलते व्यवहार को पकड़ सकते हैं और बातचीत के जरिए उस की मानसिक स्थिति का पता लगा सकते हैं.

यदि समय रहते इस का इलाज हो जाए तो इस के दुष्परिणामों को कम किया जा सकता है तथा संपूर्ण मुक्ति भी पाई जा सकती है. इस के 2 मुख्य परिणाम भयावह हैं— एक तो आत्महत्या जो हम आए दिन अखबारों और मीडिया के माध्यम से देखसुन रहे हैं, दूसरा है मानसिक संतुलन खो देना यानी पागलपन.

जब दिमाग दबाव को झेल नहीं पाता तो यही स्थिति आती है. अन्य शारीरिक जटिलताएं और बीमारियां भी शरीर में इस अवस्था के कारण पैदा हो सकती हैं जो अनगिनत हैं. आज के समय में इस के मुख्य कारणों में से एक है करीबी लोगों से निकटता का अभाव.

लोग एक घर में रहते हुए भी एकदूसरे से कोसों दूर हो गए हैं. जरूरत से ज्यादा मोबाइल या आभासी दुनिया में डूबे रहना भी इस का कारण और लक्षण दोनों हो सकते हैं. आज के समय में भागमभाग ज्यादा है, भावनात्मक जुड़ाव मंद पड़ गए हैं, वे चाहे मातापिता के बच्चों से हों या बच्चों के उन से या अन्य परिवारजनों, रिश्तेदारों के परस्पर हों. मित्रता भी स्वार्थपरायण हो रही है. आसपड़ोस से बातचीत निजता में खलल की परिभाषा में हो गया है.

पुस्तकें पढ़ने और सृजनात्मक कार्यों में आम लोगों की रुचि कम हुई है. कला और संस्कृति से बहुत कम लोग जुड़े हैं. सेवा, देखभाल, आत्मीयता सब घरपरिवारों से गायब सा दिख रहा है. ईर्ष्या और द्वेष संतोष और प्रसन्नता पर भारी पड़ रहे हैं. अकेलापन बढ़ रहा है. काफी लोग परिवार की खिचखिच की वजह से अलग व अकेले भी रहने लगे हैं.

व्यावसायिक कारणों से भी बहुत लोग अकेले रहते हैं तथा व्यावसायिक जीवन के दबाव से भी परेशान रहते हैं. विद्यार्थी और युवा वर्ग अनिश्चितताओं के चलते घर या सामाजिक दबाव के कारण भी अवसादग्रस्त हो रहे हैं.

विचलित करने वाली खबरें, महामारी में डर का माहौल आदि आग में घी का काम करता है. दिखावे का जीवन और अनावश्यक स्पर्धा का माहौल तन और मन दोनों को भटकाए रखता है.

यह सच है कि ऊपर से सामान्य सी लगने वाली अवसाद की इस समस्या ने बहुत नुकसान किया है, परंतु इस का मतलब यह भी नहीं कि यह लाइलाज है. इस में घर से ले कर समाज के लिए यह एक जिम्मेदारी का काम हो जाए तो क्षितिज और मिथिलेश जैसे अनेक जीवन बचाए जा सकते हैं.      द्य

औनर किलिंग के जरिए प्यार की बलि – भाग 3

विवेचना हाथ में आते ही एसएसआई शर्मा तुरंत सक्रिय हो गए और तहकीकात शुरू कर दी. सब से पहले उन्होंने वादी तथा रीना के प्रेमी मोनू चौहान के बयान दर्ज किए. बाद में काररवाई को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने अपने सीओ हेमेंद्र सिंह नेगी से दिशानिर्देश लिए. सीओ के निर्देश पर अंकुर शर्मा ने रीना की जानकारी देने के लिए कई मुखबिरों को तैनात कर उन की मौनीटरिंग करने लगे.

विवेचनाधिकारी शर्मा को इतना तो पता चल ही गया था कि रीना पिछले कई दिनों से घर पर नहीं है. उसे आसपास के लोगों ने भी कहीं आतेजाते नहीं देखा. संदेह के आधार पर गांव रामपुर रायघटी के निकट गंगा नदी के किनारे की तलाश शुरू करवा दी ताकि नदी के आसपास रीना का कोई सुराग मिल जाए.

गंगा नदी के किनारे के रास्ते पर तलाशी के दरम्यान 12 अगस्त, 2022 की दोपहर को पुलिस को बालावाली रेलवे पुल के नीचे तैरता हुआ एक प्लास्टिक का बोरा दिखाई दिया. उसे नदी से बाहर निकाल कर खोला गया. उस में एक लड़की का शव था.

शव की शिनाख्त के लिए तुरंत मोनू को बुलवाया गया. मोनू मौके पर आ कर शव के हाथ पर बने 3 स्टार ओम के निशान को देख कर उस ने उस की शिनाख्त अपनी प्रेमिका रीना पुत्री मदन के रूप में कर दी.

महिला थानेदार मनीषा ने रीना के शव का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए राजकीय अस्पताल रुड़की भेज दिया. इस मामले में आईपीसी की धाराएं 302 व 201 भी जोड़ दी गईं.

मोनू के बयान और आरोपों पर भरोसा करते हुए पुलिस ने जांच की प्रक्रिया आगे बढ़ाई. जल्द ही 16 अगस्त, 2022 को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर रीना के भाई रवि को भोगपुर शाहपुर रोड से गिरफ्तार कर लिया.

लक्सर कोतवाली ला कर पुलिस उस से पूछताछ करने लगी. सख्ती से पेश आने पर रवि ने पुलिस के सामने रीना की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. उस के बाद उस ने पुलिस को जो कहानी बताई, वह इस प्रकार है—

काफी समय से नाबालिग रीना व मोनू के बीच प्रेम संबंध चल रहे थे. 3 महीने पहले रीना और मोनू घर से भाग कर देहरादून चले गए और उन्होंने कोर्ट में मैरिज करने का प्रयास किया, मगर रीना के नाबालिग होने के कारण यह शादी नहीं हो सकी थी.

उस के बाद दोनों अगले दिन ही घर लौट आए. परिवार की बदनामी के डर से रीना के घर वालों ने मोनू के खिलाफ कोई कानूनी काररवाई नहीं की थी.

रवि के परिवार में मांबाप के अलावा एक भाई और 2 बहनें थीं. बड़ी बहन रीता की शादी 4 साल पहले बंटी से हुई थी.

घर वालों ने रीना को मोनू से दूर रहने और संबंध खत्म करने की हिदायत दी थी. चेतावनी के साथ यह भी कह दिया था कि भविष्य में अगर उस ने फिर कोई ऐसा कदम उठाया तो इस का अंजाम बुरा हो सकता है. उसे जान से भी हाथ धोना पड़ सकता है. इस के बाद में घर वालों ने रीना की शादी के लिए नगीना (बिजनौर) में अपनी बिरादरी का एक लड़का भी देख लिया था.

रीना अपनी जिद पर अड़ी हुई थी. वह घर वालों की पसंद के लड़के से शादी करने के लिए तैयार नहीं थी, जिस से घर के सभी लोग अपमानित महसूस कर रहे थे. रीना द्वारा घर वालों की पसंद के लड़के से शादी की मनाही करने पर बिरादरी में थूथू होने लगी थी. इस कारण परिवार में काफी तनाव का माहौल बन गया था.

बात 6 अगस्त, 2022 के आधी रात की है. रात के 2 बजे खटपट की आवाज से रीना के भाई रवि की नींद टूट गई. जब वह चारपाई से उठा, तब देखा कि रीना घर से भागने की तैयारी कर रही थी. उस समय पिता घर पर नहीं थे. वे नदी से रेत लाने गए हुए थे. रवि ने रीना को पकड़ लिया और उसे नहीं भागने के लिए समझाया, मगर रीना नहीं मानी. बहुत समझाने पर भी जब वह अपनी जिद पर अड़ी रही तब रवि को गुस्सा आ गया.

गुस्से में उस ने दोनों हाथों से उस का गला पकड़ लिया और जोर से दबाने लगा. कमजोर रीना भाई के हाथों की पकड़ को नहीं छुड़ा पाई. कुछ मिनट में ही वह बेजान हो गई. गला घुटने से उस की मौत हो चुकी थी. जैसे ही रवि ने उस का गला छोड़ा, वह वहीं धड़ाम से गिर गई.

रीना की मौत हो गई थी. इस के बाद रवि ने रीना की मौत की खबर अपने बहनोई बंटी को फोन कर के दी. वह पास के ही गांव ओसपुर में रहता है. आधे घंटे बाद बंटी ससुराल आ गया. बंटी को रवि ने रीना की हत्या के बारे में बता दिया.

दोनों के सामने रीना की लाश पड़ी थी. यह देख कर दोनों डर गए. पुलिस से बचने के लिए उसे ठिकाने लगाने की योजना बनाई. उस के अनुसार, पहले दोनों ने रीना की लाश को एक प्लास्टिक के बोरे में डाल कर बोरे का मुंह रस्सी से बांध दिया. उस बोरे को ले कर बंटी रवि की प्लेटिना मोटरसाइकिल पर बैठ गया.

थोड़ी देर बाद वे दोनों गंगा नदी के किनारे चलते हुए बालावाली रेलवे पुल के पास जा पहुंचे. वहां उन्होंने उस बोरे को पुल के नीचे फेंक दिया और घर लौट आए.

पुलिस ने रवि के इस बयान को दर्ज करने के बाद उसी दिन ही शाम को उस के जीजा बंटी को भी उस के घर से गिरफ्तार कर लिया.

बंटी ने भी पुलिस के सामने रवि के बयानों की पुष्टि करते हुए रीना की लाश को ठिकाने लगाने में मदद करने की बात स्वीकार ली. इसी के साथ पुलिस ने रीना के शव को ले जाने वाली रवि की काले रंग की बजाज प्लेटिना बाइक नंबर यूके 08एपी 5865 उस के घर से बरामद कर ली.

अगले दिन पुलिस ने रवि व बंटी को कोर्ट में पेश कर दिया. वहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

रीना हत्याकांड का परदाफाश करने वाली पुलिस टीम में कोतवाल यशपाल सिंह विष्ट, एसएसआई अंकुर शर्मा, एसआई मनोज ममगई, विनय मोहन द्विवेदी, कांस्टेबल अनिल व मोहन शामिल रहे. रीना की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृत्यु का कारण दम घुटना बताया गया.

कथा लिखे जाने तक रवि व बंटी जेल में ही थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में रीना परिवर्तित नाम है

मर्यादा की हद से आगे – भाग 3

भाभी की बात सुन कर कल्लू को भी गुस्सा आ गया. वह घर में तोड़फोड़ करने लगा. दयाशंकर ने कल्लू को समझाने का प्रयास किया तो वह उस से भी भिड़ गया. इस पर दयाशंकर को गुस्सा आ गया. उस ने कल्लू को मारपीट कर घर से बाहर कर दिया.

भाई की पिटाई से कल्लू का नशा हिरन हो गया था. रात भर वह घर के बाहर पड़ा रहा. उस ने मन ही मन निश्चय कर लिया कि अब वह भैयाभाभी का रोटी का एक टुकड़ा भी मुंह में नहीं डालेगा. कमा कर ही खाएगा.

वंदना की तीखी जुबान लक्ष्मी के सीने को छलनी कर देती थी. कल्लू के प्रति उस का दुर्व्यवहार भी दिल में दर्द पैदा करता था, लेकिन वह लाचार थी. अत: उस ने कल्लू को समझाया, ‘‘बेटा, तू जवान है. हट्टाकट्टा है. कहीं भी चला जा और अपमान की रोटी खाने के बजाए इज्जत की रोटी कमा कर खा.’’

मां की बात कल्लू के दिल में उतर गई. उस के बाद उस ने फैजाबाद छोड़ दिया और नौकरी की तलाश में कानपुर आ गया. कुछ दिनों के प्रयास के बाद रमाशंकर उर्फ कल्लू को पनकी गल्ला मंडी में पल्लेदारी का काम मिल गया. शुरू में तो कल्लू को पीठ पर बोझ लादने में परेशानी हुई, लेकिन बाद में अभ्यस्त हो गया.

गल्ला मंडी में गेहूं चावल के 3 बड़े गोदाम हैं. इन्हीं गोदामों में गेहूं चावल का भंडारण होता है. ट्रक आते ही पल्लेदार बोरा उतरवाई की मजदूरी तय कर के माल गोदाम में उतार देते हैं. रमाशंकर उर्फ कल्लू भी ट्रक से माल लोड अनलोड का काम करने लगा.

कुछ महीने बाद कल्लू की मेहनत रंग लाने लगी. अब वह मांबहन को भी पैसा भेजने लगा और खुद भी ठीक से रहने लगा. यही नहीं, जब वह घर जाता तो मांबहन के साथसाथ भैयाभाभी के लिए भी कपड़े वगैरह ले जाता.

कल्लू के काम पर लग जाने से जहां मांबहन खुश थीं, वहीं वंदना और दयाशंकर ने भी राहत की सांस ली थी. वंदना अब मन ही मन सोचने लगी थी कि जिसे वह खोटा सिक्का समझ बैठी थी, वह सोने का सिक्का निकला.

कल्लू पनकी नहर किनारे बसी कच्ची बस्ती में किराए पर रहता था. कुछ दिनों बाद मकान मालिक ने अपना कमरा 5 हजार रुपए में बेचने की पेशकश की तो जोड़जुगाड़कर के कल्लू ने कमरा खरीद लिया. इस कमरे के आगे कुछ जमीन खाली पड़ी थी.

कल्लू ने वह भी अपने कब्जे में ले ली. बाद में कल्लू ने इस खाली पड़ी जमीन पर मिट्टी का एक कमरा और बना लिया, उस कमरे की छत उस ने खपरैल की बना ली. मतलब अब उस का अपना स्थाई निवास बन गया था.

रमाशंकर उर्फ कल्लू पनकी गल्लामंडी स्थित जिस गोदाम में पल्लेदारी करता था, उसी गोदाम में पवन पाल भी पल्लेदारी करता था. पवन मूलरूप से कानपुर देहात के थाना नर्वल के अंतर्गत आने वाले गांव दौलतपुर का रहने वाला था.

पवन पाल के पिता देवी चरनपाल तहसील कर्मचारी थे, जबकि बड़ा भाई दयाशंकर खेती करता था. पवन पाल शहरी चकाचौंध से प्रभावित था. वह पल्लेदारी का काम करते हुए पनकी गंगागंज में किराए के कमरे में रहता था.

पवन व कल्लू दोनों हमउम्र थे. पल्लेदारी का काम भी साथसाथ करते थे. दोनों में जल्दी ही गहरी दोस्ती हो गई. कल्लू भी खानेपीने का शौकीन था और पवन पाल भी. शाम को दिहाड़ी मिलने के बाद दोनों शराब के ठेके पर पहुंचे जाते.

खानेपीने का खर्चा 2 बराबर हिस्सों में बंटता था. रविवार को गोदाम बंद रहता था. उस दिन पवन पाल अपने गांव चला जाता था. कभीकभी वह कल्लू को भी अपने साथ गांव ले जाता था. वहां भी दोनों की पार्टी होती थी.

एक रोज कल्लू के बड़े भाई दयाशंकर ने फोन पर उसे बताया कि मां की तबीयत खराब है. एक महीने से उस का बुखार नहीं उतर रहा है. मां की बीमारी की जानकारी मिलने पर कल्लू चिंतित हो उठा. उस ने अपने दोस्त पवन से विचारविमर्श किया और फिर मां का इलाज कानपुर के हैलट अस्पताल में कराने का निश्चय किया.

इस के बाद वह फैजाबाद गया और मां को कानपुर ले आया. मां की देखभाल के लिए वह बहन मानसी को भी साथ ले आया था. कल्लू ने मां को हैलट अस्पताल में दिखाया. डाक्टर ने लक्ष्मी को देख कर अस्पताल में भरती तो नहीं किया, लेकिन कुछ जांच और दवाइयां लिख दीं. इस तरह घर रह कर ही लक्ष्मी का इलाज शुरू हो गया.

कल्लू के पल्लेदार दोस्त पवन को जब पता चला कि कल्लू अपनी मां को इलाज के लिए कानपुर ले आया है तो वह उस की बीमार मां से मिलने उस के घर पहुंचा. कल्लू ने अपनी मां और बहन मानसी से उस का परिचय कराया. पवन ने खूबसूरत मानसी को देखा तो पहली ही नजर में वह उस के दिल की धड़कन बन गई. पवन ने सपने में भी नहीं सोचा था कि काले कलूटे भाई की बहन इतनी खूबसूरत होगी.

पवन पाल अब कल्लू की बीमार मां को देखने के बहाने उस के घर आने लगा. जब भी वह आता, फल वगैरह ले कर आता. इस दरम्यान उस की नजरें मानसी पर ही टिकी रहतीं. जब कभी दोनों की नजरें आपस में टकरातीं तो मानसी की पलकें शरम से झुक जातीं.

पवन जब मानसी की मां लक्ष्मी से बतियाता तो वह मानसी के रूपसौंदर्य की खूब तारीफ करता. मानसी अपनी तारीफ सुन कर मन ही मन खुश होती. इस तरह आतेजाते पवन मानसी पर डोरे डालने लगा.

पवन पाल शरीर से हृष्टपुष्ट व सजीला युवक था. कमाता भी अच्छा था. रहता भी खूब ठाटबाट से था. मानसी को भी पवन का घर आना अच्छा लगने लगा था. वह भी उसे मन ही मन चाहने लगी थी. कभीकभी पवन बहाने से उस के अंगों को भी छूने की कोशिश करने लगा था. इस छुअन से मानसी सिहर उठती थी.

आखिर पवन और मानसी का प्यार परवान चढ़ने लगा. कभी कभी पवन पाल उस से शारीरिक छेड़छाड़ के साथ हंसीमजाक भी करने लगा था. मानसी दिखावे के लिए छेड़छाड़ का विरोध करती थी, लेकिन अंदर ही अंदर उसे सुख की अनुभूति होती थी. प्यार की बयार दोनों तरफ से बह रही थी, लेकिन प्यार का इजहार करने की हिम्मत दोनों में से एक की भी नहीं थी.

आखिर जब पवन से नहीं रहा गया तो उस ने एक रोज एकांत पा कर मानसी का हाथ थाम कर कहा, ‘‘मंजू, मैं तुम से बेइंतहा प्यार करता हूं. तुम्हारे बिना मुझे सब कुछ सूनासूना लगता है. तुम्हारी चाहत ने मेरा दिन का चैन और रातों की नींद छीन ली है.’’

मानसी अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली, ‘‘पवन, पहली ही मुलाकात में तुम मेरी पसंद बन गए थे. लेकिन मैं अपने प्यार का इजहार नहीं कर सकी. अब जब तुम ने प्यार का इजहार कर ही दिया तो मैं मन ही मन खुशी से झूम उठी. मुझे भी तुम्हारा प्यार स्वीकार है. मैं तुम्हारा साथ दूंगी.’’

मानसी की बात सुन कर पवन खुशी से झूम उठा. वह उसे बांहों में भर कर बोला, ‘‘मुझे तुम से यही उम्मीद थी.’’

बहन की सौतन बनने की जिद – भाग 3

27 वर्षीय नेहा सिंह मूलरूप से बिहार के बेगूसराय जिले के थाना लोहिया नगर स्थित कस्बा आनंदपुर की रहने वाली थी. उमाशंकर प्रसाद सिंह की 6 संतानों में नेहा सब से बड़ी थी. 5 बेटियों के बाद एक बेटा था. उन की सारी बेटियां एक से बढ़ कर एक थीं.

उमाशंकर ने बेटियों को पढ़ा कर इस काबिल बना दिया कि कभी मुश्किल की घड़ी आए तो डट कर उस का मुकाबला कर सकें.

नेहा बड़ी हुई तो उन्होंने योग्य वर देख कर उस के हाथ पीले कर दिए क्योंकि अभी उन की 4 बेटियां और थीं ब्याहने के लिए.

बड़े अरमानों के साथ उमाशंकर ने बड़ी बेटी नेहा का विवाह लखीसराय के मिंकू सिंह के साथ किया था. उन्होंने शादी में दिल खोल कर खर्च किया था.

शादी के बाद एक साल तक नेहा और उस के पति के बीच संबंध बहुत मधुर रहे. इस दौरान नेहा एक बेटे की मां भी बनी.

इसे समय का तकाजा कहें या नेहा की किस्मत, 2 साल बाद नेहा और उस के पति के बीच छोटीछोटी बातों को ले कर किचकिच होने लगी. यह विवाद आगे चल कर बढ़ता गया. स्थिति ऐसी बन गई कि एक छत के नीचे दोनों अजनबियों की तरह जिंदगी जी रहे थे. पतिपत्नी के विवाद के बीच में मासूम बेटा पिस रहा था.

इस बीच ससुराल छोड़ कर नेहा अपने मायके आनंदपुर बेटे को ले कर चली आई और मांबाप के साथ रहने लगी. मगर दोनों के बीच तलाक नहीं हुआ था फिर भी दोनों एक नहीं हुए थे. शायद नियति को तो कुछ और ही मंजूर था. उमाशंकर प्रसाद सिंह ने अपनी दूसरी बेटी निशा की भी शादी अपने ही जिले के महमदपुर गौतम में श्याम के साथ कर दी थी. उस के बाद बड़ी बेटी नेहा मायके आई थी.

एक बाप के लिए तब जीना कितना मुश्किल होता है जब उन की आंखों के सामने ब्याहता बेटी या बेटे की गृहस्थी उजड़ती है. नेहा के पिता के साथ भी यही हुआ. बेटी का घर टूटते ही उमाशंकर से देखा नहीं गया और वह सदमे के चलते दुनिया से ही चले गए.

पिता की मौत के लिए खुद को जिम्मेदार ठहराने वाली नेहा ने उसी दिन कसम खाई कि अपने जीते जी भाईबहनों को कभी पिता की कमी महसूस नहीं होने देगी. वह इतना कमाएगी कि उन की हर जरूरतों को पूरा कर सके. सचमुच नेहा अपनी कसम पर खरी उतरी और शहर के तनिष्क ज्वैलर्स शोरूम में बतौर सेल्सगर्ल की नौकरी कर ली.

मझली बहन के पति को दे बैठी दिल

जिम्मेदारियों की चक्की में पिसती नेहा जब कभी एकांत में बैठती थी तो अतीत की यादों की बरसात से उस का दामन भीग जाता था. आखिर वह भी हाड़मांस की थी. उस के भी सीने में दिल था, जो कभी किसी के लिए धड़कता था. अब किसी और के लिए धड़कने को बेताब हो रहा था.

निशा के पति श्याम को नेहा ने जब से देखा था, उस के दिल में उन के लिए एक खास जगह बन गई थी. आंखों की भाषा पढ़ने वाले श्याम को यह समझते देर नहीं लगी कि नेहा अपने दिल पर राज करने के लिए उसे आमंत्रित कर रही है. बहनोई जानता था कि उस का पति के साथ करीबकरीब संबंध विच्छेद हो चुका है.

धीरेधीरे श्याम नेहा के करीब और करीब आता गया तो नेहा ने उसे अपने दिल का राजकुमार बना लिया. रिश्तों को ताख पर रख कर दोनों एकदूसरे की बाहों में झूलते प्यार की पींगें भरने लगे. अपने स्वार्थ में नेहा यह भूल चुकी थी कि वह अपनी सगी बहन के प्यार पर डाका डाल रही है. उस ने यह भी नहीं सोचा कि बहन को जब यह सच्चाई पता चलेगी तो उसे कितना दुख पहुंचेगा.

आखिरकार वही हुआ. निशा को बड़ी बहन और पति के बीच पनपे अनैतिक रिश्तों की जानकारी हो गई थी. उसे ऐसा लगा जैसे उस के शरीर से किसी ने आत्मा ही निकाल ली हो और पैरों तले से जमीन खिसक गई हो.

निशा ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उस की अपनी सगी बड़ी बहन ही उस का घर उजाड़ देगी. उस के पति पर डोरे डालेगी. वह यह हरगिज बरदाश्त नहीं कर सकती थी कि बड़ी बहन के चलते उस की बसीबसाई गृहस्थी उजड़ जाए. वह अपने जीते जी उसे अपनी सौतन नहीं बनने देगी.

श्याम ने पत्नी के सामने उस की बड़ी बहन से शादी करने का प्रस्ताव भी रख दिया था. इस बात को ले कर निशा और उस के पति श्याम के बीच खूब घमासान हुआ था. अपनी गृहस्थी बचाने के लिए वह पति से लड़ पड़ी थी और उसे सौतन बनाने के लिए हरगिज तैयार नहीं हुई, जबकि नेहा सौतन बनने की जिद पर अड़ी थी.

उस दिन के बाद निशा नेहा का नाम सुनते ही जलभुन जाती थी. उसे पति के आसपास देखती या पति को फोन पर बातें करती सुनती तो उस के बदन में आग सी लग जाती थी. वह समझ नहीं पा रही थी कि ऐसा क्या करे, जिस से नेहा नाम की बला से उसे हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाए.

छोटी बहन अर्पिता का भी प्रेम प्रसंग आया सामने

बात इसी साल के शुरुआत की है. नेहा के फोन का बैलेंस खत्म हो गया था और उसे किसी को अर्जेंट काल करनी थी. अर्पिता के अलावा घर पर कोई था नहीं तो उस ने उस का फोन मंगवाया और उस से कहा कि काल करने के बाद फोन उसे लौटा देगी.

नेहा को पता नहीं क्या सूझा कि फोन कर के जब वह फारिग हुई तो उस की फोटो गैलरी खोल कर देखने लगी. उस में अर्पिता की विविध मुद्राओं में खींची गई अनेक तसवीरें कैद थीं.

उन्हीं तसवीरों में कुछ ऐसी भी तसवीरें सामने आईं जिसे देख कर वह चौंक गई. जब उस ने उस फोन के वीडियो देखे तो उस के पैरों तले से जमीन ही खिसक गई. वीडियो में अर्पिता निशा के देवर कुंदन के साथ प्यार करती हुई दिख रही थी. फोटो में भी दोनों लिपटे हुए थे.

यह सब देख नेहा आगबबूला हो गई. उस ने अर्पिता को अपने पास बुला कर उस से सारी बातें पूछीं तो अर्पिता ने सारी सच्चाई बड़ी बहन के सामने बता दी. वह बहन के देवर कुंदन से प्यार करती थी और कुंदन भी उस से प्यार करता था. दोनों के बीच यह प्रेम का खेल महीनों से चल रहा था.

दोनों के बीच में प्यार का खेल तब श्ुरू हुआ था, जब अर्पिता निशा की ससुराल उस से मिलने जाया करती थी. चूंकि अर्पिता और कुंदन के बीच जीजा और साली का रिश्ता था, ऊपर से वह बला की खूबसूरत थी, सो कुंदन अर्पिता को दिल दे बैठा था.

अर्पिता और कुंदन के फोटो ऐसी पोजीशन में खींचे गए थे कि कोई बाहर वाला देख ले तो उस से कभी शादी न करे. नेहा ने अर्पिता से कहा कि अब तुम्हारी शादी कुंदन से ही होगी. यह बात नेहा ने अपने तक सीमित रखी और अर्पिता को भी समझाया कि किसी से मत बताना.

कुंदन मुकर गया शादी से

नेहा ने कुंदन को फोन कर के पहले दोनों के बीच के रिश्ते के बारे में पूछा. फिर उसे बहन से शादी करने के लिए कहा तो कुंदन एकदम पलट गया. उस ने साफ कह दिया कि जो करते बन पड़े कर लेना, मुझे अर्पिता से शादी नहीं करनी.

कुंदन के ये तेवर देख कर नेहा की आंखों में खून उतर आया. उस ने भी दोटूक जवाब दिया, ‘‘बहन की जिंदगी बरबाद कर के तुझे गुलछर्रे नहीं उड़ाने दूंगी कुंदन. फोटो और वीडियो वायरल कर के तेरी जिंदगी बरबाद कर दूंगी. तू अभी मुझे जानता नहीं है. तुझे तो अर्पिता से शादी करनी ही पड़ेगी.’’

उस दिन के बाद नेहा कुंदन को बहन से शादी करने के लिए डरानेधमकाने लगी और बात न मानने पर वीडियो वायरल करने की धमकी देने लगी.

बात यहीं खत्म नहीं हुई. उसे सबक सिखाने के लिए अपने कुछ परिचितों को भेज कर एक दिन बाजार में उसे बुरी तरह पिटवा दिया. रोजरोज की धमकी और सरेबाजार की गई बेइज्जती से कुंदन बुरी तरह परेशान हो गया था. उस से बदला लेने के लिए वह फड़फड़ा रहा था.

नेहा से बदला लेने के लिए कुंदन ने रास्ता निकाल लिया और भाभी निशा को भी अपनी योजना में शामिल कर लिया. वह जानता था कि निशा भाभी नेहा से बदला लेने के लिए कैसे बेताब है और अपनी गृहस्थी बचाने के लिए भी.

कुंदन ने नेहा को रास्ते से हटाने के लिए भाभी का साथ मांगा तो वह तैयार हो गई. फिर कुंदन ने गांव के अपने दोस्त मुकेश सिंह को पैसे दे कर नेहा की हत्या की सुपारी दे दी.

योजना के मुताबिक, 11 जून, 2022 की रात करीब साढ़े 9 बजे निशा ने नेहा को फोन कर जानकारी ली कि वह कहां है. शोरूम से घर के लिए कब तक निकलेगी. उस ने बता दिया कि बस 2-4 मिनट का काम और बचा है. उस के बाद निकल जाएगी.

निशा ने कुंदन को फोन कर के यह बात बता दी कि तुम तैयार हो जाना नेहा निकलने ही वाली है. निशा की ओर से नेहा की लोकेशन मिलते ही कुंदन शूटर मुकेश को ले कर पन्हास और आनंदपुर चौक के बीच से हो कर आनंदपुर जाने वाली सड़क किनारे छिप कर खड़ा हो गया.

कुंदन अपनी बाइक से था. बाइक वही चला रहा था जबकि मुकेश पीछे बैठा था. नेहा जैसे ही घर जाने वाली सड़क के लिए मुड़ी कि घात लगाए कुंदन बाइक ले कर उस का रास्ता रोक कर खड़ा हो गया. फिर क्या हुआ, कहानी में ऊपर बताया जा चुका है.

कथा लिखे जाने तक दोनों आरोपी निशा सिंह और उस का देवर कुंदन जेल की सलाखों के पीछे थे. शूटर मुकेश अभी भी फरार था, जिसे पकड़ने के लिए पुलिस ने उस के कई ठिकानों पर दबिश भी दी लेकिन फिर भी उस का पता नहीं चल सका था.   द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में अर्पिता परिवर्तित नाम है

उधार की बीवी बनी चेयरमैन : रहमत ने नसीम को ठगा – भाग 3

दादू की हालत देख कर नसीम भी समझ गया था कि उस के पैसे किसी भी कीमत पर नहीं मिलने वाले. वह बीच मंझधार में खड़ा था. एक तरफ उस का पैसा था, जो दादू के बेटे की बीमारी पर खर्च हो चुका था. जबकि दूसरी ओर उस की मोहब्बत रहमत जहां थी, जिसे वह दिलोजान से चाहने लगा था. रहमत जहां भी नसीम को दिल से चाहती थी. उसे नसीम के साथ कभी भी कहीं भी जाने से ऐतराज नहीं था.

उस वक्त दादू आर्थिक तंगी से गुजर रहा था. उस के पास नवीन अनाज मंडी के सामने हाईवे के किनारे जुतासे की कुछ जमीन थी, जो आर्थिक तंगी के चलते उस ने पहले ही बेच दी. अब उस के पास केवल जुआ खेलने और शराब पीने के अलावा कोई काम नहीं था. ऐसी स्थिति में नसीम ने दादू से अपने पैसों के बदले उस की बेटी का हाथ मांगा तो वह राजी हो गया.

रहमत जहां हो गई नसीम की

दादू जानता था कि नसीम और उस की बेटी एकदूसरे को चाहते हैं. अगर उस ने बेटी की शादी उस की रजामंदी के खिलाफ की तो उस का अंजाम ठीक नहीं होगा. यही सोचते हुए उस ने नसीम से अपनी बेटी रहमत जहां का निकाह कर दिया.

रहमत जहां से निकाह के बाद नसीम उसे अपनी दूसरी बीवी बना कर अपने घर ले आया. इस में रहमत जहां ने ऐतराज नहीं किया. वह उस के घर में दूसरी बीवी की तरह रहने लगी. नसीम अहमद भी काफी दिनों से शराब का आदी था.

शराब और शबाब के चक्कर में उस ने अपनी जुतासे की सारी जमीन दांव पर लगा दी थी. रहमत जहां के प्यार में पड़ कर उस ने उस से निकाह तो कर लिया था, लेकिन जब 2 बीवियां होने से खर्च बढ़ा तो उस का दिमाग घूमने लगा. वह बहुत परेशान रहने लगा.

शफी उर्फ बाबू का पहले से ही बाबरखेड़ा आनाजाना था. वजह यह कि शफी अहमद की एक बुआ का निकाह बाबरखेड़ा में हुआ था. वह अपनी बुआ के घर आताजाता था. शफी अहमद की बुआ का एक लड़का था याकूब, जो नसीम का अच्छा दोस्त था. याकूब के घर पर ही शफी अहमद की जानपहचान नसीम से हुई.

नसीम शफी अहमद के बारे में सब कुछ जान चुका था. जब उसे यह पता चला कि शफी भोजपुर कस्बे का नगर पंचायत चेयरमैन है तो वह खुश हुआ. वैसे भी शफी उस के दोस्त याकूब का ममेरा भाई था. गांव में अपना रुतबा बढ़ाने के लिए नसीम कई बार उसे अपने घर भी ले गया था. घर आनेजाने के चक्कर में शफी की नजर नसीम की बीवी रहमत जहां पर पड़ी तो वह उस की खूबसूरती पर फिदा हो बैठा.

हालांकि उस वक्त चेयरमैन शफी के घर में पहले से ही एक से बढ़ कर एक 2 खूबसूरत बीवियां थीं. लेकिन रहमत जहां पर उन की नजर पड़ी तो वह अपने पर काबू नहीं रख सके. इसी चक्कर में उन का नसीम के घर आनाजाना और भी बढ़ गया.

कुछ ही दिनों में शफी अहमद के स्वार्थ की नींव पर नसीम से पक्की दोस्ती हो गई. जब कभी शफी अहमद अपने यहां पर कोई प्रोग्राम कराते तो नसीम और उस की बीवी को बुलाना नहीं भूलते थे. इसी आनेजाने के दौरान शफी अहमद और रहमत जहां के बीच प्यार का रिश्ता बन गया.

मोबाइल ने जल्दी ही शफी अहमद और रहमत जहां के बीच की दूरी खत्म कर दी. रहमत जहां शफी अहमद के बारे में सब कुछ जान चुकी थी. चेयरमैन के घर में पहले से ही 2 बीवियां मौजूद हैं, यह बात रहमत जहां जानती थी, लेकिन शफी अहमद की ओर से इशारा मिलने पर उस का दिल भी मजबूर हो गया.

शफी अहमद के पास धनदौलत, ऐशोआराम, इज्जत सभी कुछ था. रहमत जहां ने कई बार शफी अहमद से निकाह करने को कहा. लेकिन समाज में अपनी साख खत्म होने की बात कह कर शफी ने मना कर दिया था. इस के बावजूद रहमत जहां अपने दिल को समझा नहीं पा रही थी. नसीम के 2 बच्चों की मां बनने के बावजूद रहमत जहां शफी के प्यार में पड़ गई थी.

रहमत को शफी अहमद में दिखा भविष्य

इत्तफाक से उसी समय भोजपुर नगर पंचायत का चुनाव आ गया. अब तक नगर पंचायत अध्यक्ष की सीट शफी अहमद के पास थी, लेकिन चुनाव करीब आने पर पता चला कि इस बार सीट ओबीसी के लिए आरक्षित है. शफी अहमद चूंकि सामान्य जाति में आते थे, इसलिए चेयरमैन की सीट उन के हाथ से निकलने का डर था.

शफी अहमद जानते थे कि नसीम की जाति ओबीसी के तहत आती है. बीवी होने के नाते रहमत जहां भी उसी जाति में आती थी. यह बात मन में आते ही शफी अहमद ने तिकड़मबाजी लगानी शुरू की. उन्हें पता था कि अगर नसीम से इस बारे में बात की जाए तो वह उन की बात नहीं टालेगा.

हालांकि बात बहुत असंभव सी थी, फिर भी शफी अहमद ने बाबरखेड़ा जा कर नसीम और उस की बीवी रहमत जहां के सामने अपनी परेशानी रखते हुए इस बारे में बात की. पर नसीम ने इस मामले में उन का साथ देने से साफ इनकार कर दिया. नसीम अंसारी जानता था कि रहमत जहां को चुनाव लड़ने के लिए शफी की बीवी बन कर भोजपुर में रहना होगा.

भला वह अपनी बीवी को शफी के पास कैसे छोड़ सकता था. नसीम के दो टूक फैसले के बाद शफी अहमद के सपनों पर पानी फिर गया. फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. उन की रहमत जहां से मोबाइल पर बात होती रहती थी.

शफी ने इस मामले में सीधे रहमत जहां से बात की तो उस के मन में लड्डू फूटने लगे. वह पहले से ही शफी के प्यार में पागल थी. यह बात सुन कर तो उस के दिल में खुशियों के फूल महकने लगे. वह जानती थी कि अगर वह भोजपुर की चेयरमैन बन गई तो उस की किस्मत सुधर जाएगी.

शफी अहमद के दिल की बात जान कर उस ने नसीम को प्यार से समझाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं चाहता था कि उस की बीवी किसी और की बन कर रहे. नसीम को यह भी मालूम था कि ऐसे काम इतनी आसानी से नहीं होते. इस के लिए कानूनी काररवाई पूरी करना जरूरी है. फिर भी उस ने अपनी आर्थिक तंगी के चलते शफी अहमद से समझौता कर के अपनी बीवी चुनाव लड़ने के लिए उन्हें दे दी.

नसीम अंसारी के अनुसार आपसी समझौते के तहत शफी अहमद ने कहा था कि चुनाव जीतने के बाद वह उस की बीवी उसे वापस कर देगा. उस के बाद जो भी हुआ करेगा, रहमत जहां भोजपुर जा कर काम निपटा लिया करेगी. यह बात नसीम को भी अच्छी लगी.

समझौते के बाद नसीम ने अपनी बीवी रहमत जहां को चुनाव लड़ने की अनुमति दे दी. शफी अहमद ने रहमत जहां को अपनी बीवी दर्शाने के लिए उस के साथ कोर्टमैरिज कर ली. कोर्टमैरिज के बाद रहमत जहां कानूनन शफी अहमद की बीवी बन गई.

रहमत जहां को बीवी का दरजा मिलते ही शफी अहमद ने चुनाव की तैयारियां शुरू कर दीं. सन 2017 में जब नामांकन किया जा रहा था, शफी अहमद अपनी नई पत्नी रहमत जहां को पिछड़ी जाति की महिला के रूप में सामने ले आए. यह देख विरोधी उम्मीदवार हैरान रह गए. लेकिन लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था कि वह उन की बीवी है.

रहमत जहां बन गई चेयरमैन

शफी अहमद रहमत जहां को अपनी बीवी बता कर नामांकन कराने कलेक्टरेट पहुंचे तो विपक्षियों में खलबली मच गई. लेकिन शफी ने रहमत जहां के पिछड़ी जाति के प्रमाणपत्र प्रस्तुत कर के विपक्षियों की नींद उड़ा दी. निकाह के बावजूद लोगों को भरोसा नहीं था कि पिछड़ी की रहमत जहां जीत पाएगी. फिर भी शफी अहमद ने हार नहीं मानी. किसी पार्टी से टिकट नहीं मिला तो उन्होंने रहमत जहां को निर्दलीय चुनाव लड़ाने का फैसला किया. इस सीट पर वह पिछले 5 सालों से काबिज थे. उन्हें पूरा यकीन था किजनता उन का साथ देगी.

शफी अहमद ने फिर से चेयरमैन की कुरसी पर कब्जा जमाने के लिए दिनरात मेहनत की. फलस्वरूप वह रहमत जहां के नाम पर चुनाव जीत गए. सन 2017 के लिए नगर पंचायत भोजपुर की चेयरमैन का सेहरा रहमत जहां के सिर पर बंध गया.

अभी इस चुनाव को जीते हुए 8 महीने भी नहीं हो पाए थे कि नसीम अहमद ने अपनी बीवी रहमत जहां को पाने के लिए कोर्ट में दावेदारी ठोक दी. इस से पहले नसीम अंसारीने अपनी बीवी वापस करने के लिए शफी अहमद से दोस्ती के नाते प्यार से बात की थी, लेकिन जब मामला ज्यादा उलझ गया तो उसे अदालत की शरण लेनी पड़ी.

नसीम के प्रार्थनापत्र पर जसपुर के न्यायिक मजिस्ट्रैट प्रकाश चंद ने थाना कुंडा पुलिस को भोजपुर के पूर्व चेयरमैन शफी अहमद, उन के बहनोई नईम चौधरी, भाई जिले हसन और साथी मतलूब के खिलाफ रहमत जहां और उस के 2 बच्चों का अपहरण करने और बंधक बना कर जबरन निकाह करने के आरोप में केस दर्ज कर के जांच करने के आदेश दे दिए.

कुंडा पुलिस दर्ज केस के आधार पर जांच में जुट गई. इस मामले में नसीम अंसारी का कहना था कि शफी अहमद ने उस की आर्थिक तंगी का लाभ उठा कर उस से उस के बीवीबच्चों को छीन लिया. वह अपने बीवीबच्चों को हासिल करने के लिए अंतिम सांस तक लड़ेगा.

कई पेंच हैं मामले में

वहीं दूसरी ओर नसीम अहमद की बीवी रहमत जहां का कहना था कि उस के निकाह के कुछ समय बाद ही नसीम को शराब पीने की लत पड़ गई थी. जिस के चलते उस ने अपनी जुतासे की पुश्तैनी जमीन भी बेच दी थी. उस के बाद उसे अपने 2 बच्चे पालने के लिए भी भुखमरी के दिन देखने पड़े.

रहमत जहां के अनुसार उस ने नसीम को कई बार समझाने की कोशिश की लेकिन उस ने उस की एक नहीं सुनी. उस ने नसीम के शराब पीने का विरोध किया तो उस ने सन 2010 में उसे तलाक दे दिया था. नसीम के तलाक देने के बाद उस ने अपने दोनों बच्चों को साथ ले कर अपने पिता दादू के गांव सरबरखेड़ा में जा कर दिन गुजारे.

रहमत जहां का कहना था कि नसीम के तलाक देने के बाद उस ने 2011 में भोजपुर निवासी शफी अहमद से निकाह कर लिया. उस के बाद भी वह काफी दिनों तक अपने मायके में ही रही. बाद में वह चुनाव लड़ कर चेयरमैन बन गई तो नसीम के मन में लालच आ गया.

नसीम अंसारी ने शफी अहमद से अपने खर्च के लिए कुछ रुपयों की मांग की, जिस के न मिलने पर उस ने यह विवाद खड़ा कर दिया. रहमत जहां का कहना था कि उस ने शफी अहमद के साथ निकाह किया है. नसीम उसे पहले ही तलाक दे चुका था. जिस के बाद उस का नसीम के साथ कोई भी संबंध नहीं रह गया था. फिलहाल कुंडा पुलिस मामले की जांच कर रही है. रहमत किस की होगी, यह अभी भविष्य के गर्त में है.

प्रेम कहानी का दर्दनाक अंत

29 जुलाई, 2017 की रात साहिल उर्फ शुभम वोल्वो बस पकड़ कर लखनऊ से जौनपुर जा रहा था. उस के साथ उस का भाई सनी भी था. रात गहराते ही बस की लगभग सभी सवारियां सो गई थीं. रात 2 बजे फोन की घंटी बजी तो साहिल की आंखें खुल गईं. उस ने मोबाइल स्क्रीन देखी, नंबर उस की भाभी शिवानी का था. उस ने जैसे ही फोन रिसीव कर के कान से लगाया, दूसरी ओर से शिवानी ने रोते हुए कहा, ‘‘साहिल, राहुल अब नहीं रहा. मैं भी उस के बिना नहीं रह सकती.’’

‘‘कैसे, क्या हुआ, कहां है राहुल?’’ साहिल ने परेशान हो कर पूछा.

‘‘राहुल ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली है. वह परदे की रस्सी बना कर उसी से लटक गया है.’’ शिवानी ने रोतेरोते कहा.

उस समय साहिल लखनऊ से काफी दूर बस में था. वह खुद कुछ कर नहीं सकता था, इसलिए वह सोचने लगा कि शिवानी की मदद कैसे की जाए. एकाएक उस की समझ में कुछ नहीं आया तो उस ने कहा, ‘‘भाभी, आप जल्दी से राहुल भैया को उतारिए.’’

‘‘साहिल, मैं हर तरह से कोशिश कर चुकी हूं, पर उतार नहीं पाई. मैं ने घर से बाहर जा कर कालोनी वालों को आवाज भी लगाई, पर कोई भी मेरी मदद के लिए नहीं आया. अब तुम्हीं बताओ मैं क्या करूं. मैं राहुल के बिना कैसे रहूंगी?’’ शिवानी ने रोते हुए साहिल से मदद मांगी.

‘‘भाभी, मैं तो लखनऊ से बहुत दूर हूं. आप एक काम करें, वहीं मेज पर लाइटर रखा होगा, आप उस से परदे की गांठ में आग लगा दीजिए, परदा जल कर टूट जाएगा. आप इतना कीजिए, तब तक मैं मदद के लिए किसी से बात करता हूं.’’

कह कर साहिल ने फोन काट दिया. इस के बाद उस ने अपने कुछ दोस्तों को फोन किए, पर किसी से बात नहीं हो सकी. इस के बाद उस ने लखनऊ पुलिस को फोन किया. उस वक्त रात के करीब ढाई बजे थे. लखनऊ पुलिस को फोन कर के साहिल ने बताया कि उस का भाई राहुल और भाभी शिवानी विनयखंड, गोमतीनगर के मकान नंबर 3/137 में रहते हैं, जो होटल आर्यन के पास है. उस के भाई को कुछ हो गया है. वह जौनपुर से विधायक और एक बार सांसद रह चुके कमला प्रसाद सिंह का पोता है.

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कमला प्रसाद सिंह की जौनपुर में अच्छी साख थी. वह 2 बार जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुके थे. जमुई में उन का इंटर कालेज भी है. उन के 2 बेटे विनय और अनिल हैं. राहुल अनिल का बड़ा बेटा था. पुलिस को जैसे ही पता चला कि विधायक और सांसद रहे कमला प्रसाद सिंह के घर का मामला है तो पुलिस तुरंत हरकत में आ गई.

पुलिस की पीआरवी टीम के कमांडर रामनरेश गौतम सबइंसपेक्टर सुशील कुमार और ड्राइवर निहालुद्दीन के साथ विनयखंड पहुंच कर आर्यन होटल के पास मकान नंबर 3/137 खोजने लगे. रात का समय था, कालोनी में सन्नाटा पसरा था, इसलिए मकान मिल नहीं रहा था.  पुलिस को फोन करने के बाद साहिल ने शिवानी को फोन किया. लेकिन उस का फोन बंद हो चुका था. साहिल ने इस बात की जानकारी घर वालों को भी दे दी थी. जैसे ही घर वालों को इस घटना का पता चला, उन्होंने शिवानी को फोन करने शुरू कर दिए. लेकिन तब तक शिवानी का फोन बंद हो चुका था. इस से सब परेशान हो गए.

साहिल ने एक बार फिर पुलिस को फोन किया. पुलिस ने बताया कि वे मकान तलाश रहे हैं, लेकिन मकान मिल नहीं रहा है. इस पर साहिल ने कहा, ‘‘मेरे मकान का दरवाजा खुला होगा, क्योंकि भाभी ने बताया था कि वह दरवाजा खोल कर बाहर आई थीं.’’

जैसे फिल्मों और क्राइम सीरियलों में पुलिस समय पर नहीं पहुंचती, उसी तरह यहां भी हुआ. उधर साहिल से बात करने के बाद शिवानी ने अपना मोबाइल फोन बंद कर लिया था. वह लाइटर से परदे को जला रही थी, तभी राहुल की गरदन में फंसा फंदा खुल गया और वह नीचे गिर गया. उस के शरीर में कोई हरकत होती न देख शिवानी परेशान हो गई. उसे समझते देर नहीं लगी कि राहुल मर गया है.

पति को मरा देख कर वह वहां रखी प्लास्टिक की कुरसी पर चढ़ गई और परदे के दूसरे छोर में फंदा बना कर गले में डाला और पैर से कुरसी गिरा दी. इस के बाद वह भी लटक गई. थोड़ी देर पहले जो हाल राहुल का हुआ था, वही हाल शिवानी का भी हुआ. इस तरह पुलिस के पहुंचने से पहले ही उस ने भी मौत को गले से लगा लिया.

आखिरकार पुलिस तलाश करती हुई उस घर तक पहुंच गई, जिस का मेनगेट और दरवाजा खुला था. पुलिस ने खिड़की से झांक कर देखा तो पता चला कि एक औरत रस्सी से लटक रही थी और एक पुरुष की लाश फर्श पर पड़ी थी. पुलिस ने कमरे के दरवाजे को धक्का दिया तो वह खुल गया.

मामला एक सांसद के परिवार का था. इसलिए मौके पर पहुंची पुलिस टीम ने तत्काल एएसपी (उत्तरी) अनुराग वत्स, सीओ (गोमतीनगर) दीपक कुमार सिंह, थाना गोमतीनगर के थानाप्रभारी विश्वजीत सिंह को भी इस घटना की सूचना दे दी. उस समय सभी अधिकारी गश्त पर थे, इसलिए सूचना मिलते ही घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस ने जल्दी से लाश उतार कर फर्श पर लेटा दी. पुलिस की गाड़ी देख कर कालोनी वाले भी इकट्ठा होने लगे थे. पुलिस को उन से पूछताछ में पता चला कि ज्यादातर यह मकान खाली ही रहता था. कभीकभी ही कोई उस में रहने आता था. इसलिए आसपास रहने वालों से उन लोगों का कोई खास संबंध नहीं था. आमनेसामने पड़ जाने पर दुआसलाम जरूर हो जाती थी.

सांसद के पौत्र और पौत्रवधू की मौत की खबर पा कर पूरी कालोनी में हड़कंप मच गया था. पुलिस ने घर वालों से बातचीत कर के सच्चाई का पता लगाने की कोशिश की. लेकिन कोई ऐसी बात सामने नहीं आई, जिस से आत्महत्या पर शक किया जा सकता. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भी स्पष्ट हो गया था कि मामला आत्महत्या का ही है. पोस्टमार्टम के बाद शिवानी और राहुल की लाशें जौनपुर के लाइनबाजार स्थित कमला प्रसाद सिंह के घर पहुंचीं तो वहां हड़कंप मच गया. घर के सभी लोगों का रोरो कर बुरा हाल था. जौनपुर में ही दोनों का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

मामले की जांच के लिए पुलिस ने शिवानी और साहिल के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस से भी पहले से दिए गए बयान और हालात मिलते नजर आए. शिवानी और राहुल के बीच दोस्ती कालेज में पढ़ाई के दौरान हुई थी. जल्दी ही यह दोस्ती प्यार में बदल गई थी. उस के बाद दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया.

शिवानी के पिता सेना से रिटायर हो चुके थे. वह लखनऊ के कैंट एरिया में रहते थे. सन 2015 में घर वालों की मरजी से शिवानी और राहुल की शादी हुई थी. राहुल जौनपुर के केराकत इंटर कालेज में क्लर्क था. शादी के बाद राहुल परिवार के साथ जौनपुर में रहता था. वहीं से वह केराकत जा कर अपनी नौकरी करता था.

कभीकभी राहुल लखनऊ भी आता रहता था. लखनऊ में वह जमीन का कारोबार करने लगा था, जिस से उसे अलग से आमदनी होने लगी थी. लखनऊ के विनयखंड स्थित मकान का उपयोग किसी के आनेजाने पर ही होता था. प्राप्त जानकारी के अनुसार, 2 दिन पहले ही राहुल लखनऊ आया था. जबकि शिवानी पहले से अपने मायके में रह रही थी. क्योंकि कुछ महीनों से राहुल और शिवानी के बीच संबंध ठीक नहीं थे.

पढ़ाई के दौरान एकदूसरे पर जान छिड़कने वाले राहुल और शिवानी के बीच कुछ समय से तनाव रहने लगा था. दोनों को एकदूसरे से दूर रहना गंवारा नहीं था, इसलिए पढ़ाई के बाद कैरियर बनाने के बजाय दोनों ने शादी कर ली थी. शादी के बाद राहुल ने जौनपुर के केराकत स्थित एक इंटर कालेज में नौकरी कर ली थी, जिस की वजह से उसे जौनपुर में रहना पड़ रहा था, जबकि शिवानी को वहां रहना पसंद नहीं था. इस बात को ले कर अकसर दोनों में कहासुनी होती रहती थी.

प्यार के बाद दोनों को ही शादी की हकीकत उतनी प्यारी नहीं लग रही थी, जितनी लगनी चाहिए थी. जौनपुर में मन न लगने से शिवानी लखनऊ में अपने मातापिता के यहां रह रही थी. राहुल जब भी लखनऊ आता, विनयखंड के मकान में ही रुकता था. उस के आने पर शिवानी भी आ जाती थी.

राहुल गुस्सैल स्वभाव का था, इसलिए जराजरा सी बात में दोनों के बीच लड़ाई हो जाती थी. शिवानी राहुल को बहुत प्यार करती थी, जिस की वजह से वह उस के गुस्से के बाद भी उस से अलग नहीं रहना चाहती थी. जबकि शिवानी कभी खुद के बारे में सोचती थी तो उसे लगता था कि अपने कैरियर को ले कर उस ने जो सपने देखे थे, वे सब बिखर गए. इसे ले कर वह भी तनाव में रहती थी.

शिवानी अपनी खुद की पहचान बनाना चाहती थी, पर शादी के बाद इस बात का कोई मतलब नहीं रह गया था. उस का यह द्वंद्व उस के संबंधों पर भारी पड़ रहा था. शिवानी राहुल से कभी कुछ कहती तो आपस में बहस के बाद दोनों में लड़ाई हो जाती थी. ऐसे में तनाव कम होने के बजाय और बढ़ जाता था.

29 जुलाई, 2017 की शाम को साहिल उर्फ शुभम अपने चचेरे भाई सनी के साथ राहुल से मिलने विनयखंड स्थित घर पर आया. भाइयों के आने की खुशी में पार्टी हुई, जिस में शराब भी चली. पुलिस को वहां मेज पर सिगरेट का एक खाली पैकेट, एक भरा पैकेट, शराब और बीयर की खाली बोतलें मिली थीं. बैड का बिस्तर भी बेतरतीब था. साहिल और सनी के जौनपुर चले जाने के बाद भी राहुल संभवत: शराब पीता रहा था.

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यह बात शिवानी को अच्छी नहीं लगी होगी. उस ने रोका होगा तो दोनों में बहस होने लगी होगी. नशे में होने की वजह से राहुल को गुस्सा आ गया होगा. इस के बाद शिवानी अपने कमरे में जा कर सो गई होगी. रात में 2 बजे के करीब जब उस की नींद खुली होगी तो उस ने देखा होगा कि राहुल परदे की रस्सी का फंदा बना कर उस में लटका है. पति को उस हालत में देख कर शिवानी की कुछ समझ में नहीं आया होगा. नशे में गुस्से की वजह से राहुल ने यह कदम उठा लेगा, यह शिवानी ने कभी नहीं सोचा था. वह परेशान हो गई होगी.

बहुत सारी शिकायतों के बाद भी शिवानी राहुल के बिना जिंदगी नहीं गुजार सकती थी. शायद यही वजह थी कि उस ने भी उस के साथ मरने का फैसला कर लिया. परदे से बनी जिस रस्सी के फंदे पर लटक कर राहुल ने अपनी जान दी थी, उसी के दूसरे सिरे पर फंदा बना कर शिवानी ने भी लटक कर जान दे दी. साथ जीनेमरने की कसम खाने वाली शिवानी ने अपना वचन निभा दिया.

राहुल और शिवानी की मौत अपने पीछे तमाम सवाल छोड़ गई है. प्यार करना, उस के बाद शादी करना कोई गुनाह नहीं है. प्यार के बाद शादी के बंधन को निभाने के लिए पतिपत्नी के बीच जिस भरोसे, प्यार और संघर्ष की जरूरत होती है, वह राहुल और शिवानी के बीच नहीं बन पाया. लड़ाईझगड़े में जान देने जैसे फैसले मानसिक उलझन की वजह से होते हैं. अगर राहुल ने नशे में यह फैसला नहीं लिया होता तो वह भी आज जिंदा होता और शिवानी भी.

राहुल की मौत के बाद शिवानी ने भी खुद को खत्म कर लिया. उन दोनों के इस फैसले से उन के परिवार वालों पर क्या गुजरेगी, उन दोनों ने नहीं सोचा. इस तरह की मौत का दर्द परिवार वालों को पूरे जीवन दुख देता रहता है. ऐसे में अगर पतिपत्नी के बीच कोई अनबन होती है तो जल्दबाजी में कोई फैसला लेना ठीक नहीं होता.