रूपा के रूप का जादू – भाग 2

बोरी में मिली रूपा की लाश

दरअसल, 16 सितंबर, 2022 को अचानक लखनऊ में कृष्णा नगर थाने के एसएचओ आलोक कुमार राय को विजय नगर पुलिस चौकी के इंचार्ज एसआई महेश कुमार ने एक सूचना दी. उन्होंने बताया कि रामदास खेड़ा के बाग में ट्यूबवैल के गहरे गड्ढे में संदिग्ध बोरे को तैरते हुए देखा है. उस से तेज बदबू आ रही है. उस में कोई लाश होने की आशंका है.

सूचना पाते ही एसएचओ आलोक कुमार राय अपने सहयोगी एसआई सुधा सिंह, अभय कुमार वाजपेई, सिपाही योगेंद्र सिंह यादव और प्रदीप कुमार को साथ ले कर घटनास्थल पर जा पहुंचे. उन्होंने विजय नगर पुलिस चौकी के इंचार्ज महेश कुमार को भी बुलवा लिया.

महेश कुमार ने आलोक कुमार राय को बताया कि इस की सूचना उन्हें विजय नगर निवासी विजय शंकर यादव ने दी थी. उन्होंने ही बताया था कि उन के बाग के ट्यूबवैल के गड्ढे के पानी में कुछ किसानों ने एक बोरे को तैरते हुए देखा था. उस में से तेज दुर्गंध आ रही थी.

घटनास्थल पर पहुंची पुलिस ने राहगीरों की मदद से उस बोरे को बाहर निकलवाया. बोरा खोला तो उस में एक युवती की लाश निकली, जो सड़ चुकी थी. स्थानीय लोगों और कुछ राहगीरों ने ही बताया कि वह गंगाखेड़ा के रामसिंह के गर्ल्स हौस्टल में रहती थी और पास के ही कालोनी से आतीजाती थी.

जांच के दौरान पुलिस ने पाया कि युवती का शव काफी फूल चुका था. शव देखने से ही लग रहा था कि 2-3 दिनों का पुराना है.

पुलिस ने गर्ल्स हौस्टल का पता लगा लिया, जहां वह पढ़ाई के सिलसिले में रहती थी. वहीं मालूम हुआ कि वह पढ़ाई के साथसाथ नौकरी भी करती थी.

स्कूल प्रबंधन ने युवती के शव की शिनाख्त रूपा गुप्ता के रूप में की. स्कूल के हौस्टल में लिखे पते के अनुसार रूपा प्रयागराज की रहने वाली थी और वह लखनऊ के एक गर्ल्स हौस्टल में रह कर पढ़ाई कर रही थी.

करीब 9 महीने पहले उस ने पंडितखेड़ा के निकट प्रेमचंद शुक्ला के मकान में किराए पर रहना शुरू किया था. हौस्टल के रिकौर्ड से उस के प्रयागराज स्थित घर की पूरी जानकारी मिल गई.

16 सितंबर, 2022 को ही अपराध शाखा के इंसपेक्टर राजदेव प्रजापति के साथ डीसीपी अपर्णा रजत कौशिक, एसीपी अरविंद कुमार वर्मा और एडिशनल सीपी राजेश कुमार श्रीवास्तव ने भी घटनास्थल का मुआयना किया. उस के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

इस वारदात की सूचना कृष्णानगर पुलिस ने प्रयागराज के थाने मेजा को भी दे दी. वहां की पुलिस ने तुरंत गांव विसर्जन में रूपा के घर वालों से संपर्क किया. रूपा की मौत की खबर उस के भाई, पिता राजेंद्र प्रसाद गुप्ता और मां नंदिनी देवी को दे दी.

यह खबर सुनते ही सभी के होश उड़ गए. तब राजेंद्र प्रसाद गुप्ता ने कृष्णानगर पुलिस से संपर्क किया. उस थाने की पुलिस ने उन्हें लखनऊ आ कर शव की पहचान करने के लिए कहा.

नंदिनी देवी ने 17 सितंबर को मोर्चरी जा कर शव की पहचान रूपा के रूप में कर ली. फिर पोस्टमार्टम के बाद शव उन्हें सौंप दिया गया. नंदिनी देवी और उन के बेटे ने रूपा की हत्या की रिपोर्ट थाने में दर्ज करवा दी, जिस में हर्षित और उस के मातापिता को आरोपी बनाया गया.

पुलिस के सामने आया सच

इसी रिपोर्ट के बाद कृष्णानगर पुलिस ने 18 सितंबर को हर्षित के पिता प्रेमचंद्र शुक्ला, पत्नी माधुरी शुक्ला और उन के बेटे हर्षित शुक्ला के साथ कृष्णानगर थाने गए.

एसएचओ ने तीनों आरोपियों को हिरासत में ले लिया. उन से रूपा हत्याकांड के सिलसिले में अलगअलग पूछताछ की गई. तब उन्होंने अपना जुर्म कुबूल कर लिया.

इसी दौरान रूपा गुप्ता की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई. रिपोर्ट के अनुसार रूपा की गला दबा कर हत्या एवं जबरन शारीरिक संबंध बनाए जाने की पुष्टि हुई. डाक्टरी रिपोर्ट और आरोपियों के बयानों के आधार पर एसएचओ आलोक कुमार राय ने भादंवि की धारा 302/ 201 के तहत आरोपियों को उसी रोज गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

आरोपियों से पूछताछ के बाद रूपा हत्याकांड के संबंध में जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

उत्तर प्रदेश के जिला प्रयागराज की मूल निवासी रूपा पढ़ाई में अव्वल और परिवार की लाडली थी. सो उसे पिता ने स्कूली शिक्षा के बाद आगे की पढ़ाई के लिए एक साल पहले लखनऊ भेज दिया था.

लखनऊ आ कर वह पढ़ाई के साथसाथ अपने खर्च के लिए छोटीमोटी नौकरी की तलाश में भी लग गई थी. संयोग से उसे लखनऊ के गंगानगर स्थित रामसिंह के गर्ल्स हौस्टल में नौकरी मिल गई थी.

गर्ल्स हौस्टल में ही उस के रहने की भी व्यवस्था थी, लेकिन उस ने पडिंतखेड़ा स्थित विजय नगर कालोनी में प्रेमचंद्र शुक्ला के मकान में एक कमरा किराए पर ले लिया था. वहां रहते हुए प्रेमचंद्र के बेटे हर्षित शुक्ला के संपर्क में आई. उन की लगातार मुलाकातें होने के चलते वे एकदूसरे से प्रेम करने लगे.

दोनों हाथों से लुटाने लगा पैसा

हर्षित रूपा के रूप पर मोहित हो गया था तो रूपा की नजर सुखीसंपन्न हर्षित पर थी. रूपा जो कुछ फरमाइश करती थी, उसे हर्षित तुरंत पूरी करता था. यह कहें कि हर्षित अपने मांबाप का पैसा दोनों हाथों से उस पर लुटाने लगा था.

हर्षित एक मनचला और रसिकमिजाज अविवाहित युवक था. उस की रूपा में बड़ी दिलचस्पी को देखते हुए प्रेमचंद्र शुक्ला ने ऐतराज जताया था और रूपा से कमरा भी खाली करने को कह दिया था. किंतु हर्षित ने अपने मांबाप को समझाबुझा कर उसे किराए पर रखने को राजी कर लिया था.

रूपा काफी सुंदर थी. बनसंवर कर रहती थी. आधुनिक रहनसहन उसे पसंद था. किसी के साथ भी छूटते ही हंसीमजाक करने लगती थी. उस की मनचली आदतों को देख कर कोई भी उस का दीवाना बन जाता था. हर्षित और रूपा एकदूसरे के प्रति काफी करीब आ गए.

हर्षित की नजर भले ही रूपा की देह और सौंदर्य पर थी, जबकि रूपा की नजर उस के मातापिता की धनदौलत पर थी. दोनों एकदूसरे की ललक और लालच से अनजान थे, लेकिन प्रेमातुर थे. एक दिन मौका पा कर दोनों ने अपने मन की बात एकदूसरे से कह दी. उन्होंने तय किया, उन्हें शादी करनी चाहिए. लेकिन समस्या थी कि दोनों अलगअलग जाति के थे.

इंसाफ की ज्योति : बेकसूर को मिली सजा – भाग 2

किस्मत के धनी ओमप्रकाश को फ्लोर मिल से भी जम कर मुनाफा हुआ. पैसा आया तो उन्हें पौलिटिक्स और पावर का भी चस्का लग गया. बिजनैसमैन तो संपर्क में थे ही, कुछ ही समय में उन्होंने नेताओं से ले कर पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के साथ भी उठनाबैठना शुरू कर दिया.

ऊंचे रसूखदार लोगों के संपर्क का भी उन्होंने खूब फायदा उठाया. देखते ही देखते श्यामदासानी परिवार की गिनती कानपुर शहर के अरबपति लोगों में होने लगी.

इसी अरबपति व्यवसाई ओमप्रकाश श्यामदासानी का बेटा था पीयूष श्यामदासानी. पीयूष बचपन से ही हठी था. वह जिस चीज की जिद करता, उसे हासिल कर के रहता था. पीयूष कानपुर के मशहूर ‘सर पदमपति सिंहानिया’ स्कूल में पढ़ा था.

पढ़ाई में वह भले ही कमजोर था, लेकिन उस के बचपन से शौक मंहगे थे. उसे लड़कियों से दोस्ती करना, उन्हें महंगे गिफ्ट देना तथा उन के साथ घूमनाफिरना अच्छा लगता था. बड़ी मुश्किल से पीयूष इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर पाया.

उस के बाद प्रोफैशनल डिप्लोमा कर के वह अपने परिवार के बिजनैस में हाथ बंटाने लगा. इसी दरम्यान उस ने बीयर, शराब पीना और हुक्का बारों में जाना शुरू कर दिया.

पीयूष के बंगले के पास ही एक जर्दा व्यापारी हरीश मखीजा का बंगला है. मनीषा मखीजा उन्हीं की बेटी है. यौवन की दहलीज पर कदम रखते ही मनीषा की खूबसूरती में और ज्यादा निखार आ गया था. वह बहुत खूबसूरत थी. उस ने अंगरेजी माध्यम से शिक्षा ग्रहण की थी, इसलिए फर्राटेदार अंगरेजी बोलती थी.

बड़ी बेटी होने के नाते मातापिता उसे बहुत चाहते थे और उस की हर जिद, हर शौक पूरा करते थे. मांबाप के इसी लाड़प्यार ने उसे बिगाड़ दिया था. वह होटलों और क्लबों में जाने लगी थी. वह लेट नाइट पार्टियों से लौटती तो शैंपेन के नशे में होती थी.

एक रोज पीयूष और मनीषा की मुलाकात कानपुर क्लब में हुई. पहली ही नजर में दोनों एकदूसरे के दिल में उतर गए. उस रोज दोनों एक ही पार्टी में आए थे. देर रात तक दोनों पार्टी में एंजौय करते हुए हंसतेबतियाते रहे. जाते समय पीयूष बोला, ‘‘मनीषा, आई लव यू.’’

जवाब में मनीषा खिलखिला कर हंसी और उस ने भी कह दिया, ‘‘आई लव यू टू.’’

इस के बाद मनीषा और पीयूष का प्यार परवान चढ़ने लगा. दोनों कभी रेस्टोरेंट में तो कभी क्लब में मिलने लगे. मनीषा पीयूष से मिलने अपनी कार से जाती थी. उस का ड्राइवर अवधेश उन दोनों के प्यार से वाकिफ था. इसलिए दोनों उसे टिप दे कर खुश रखते थे.

अवधेश कभीकभी कार से दोनों को हाईवे पर ले जाता था, जहां वह कार से निकल कर बाहर चला जाता था और मनीषा और पीयूष कार में ही रोमांस करते थे. कुछ ही समय में दोनों के बीच की सारी दूरियां मिट गईं. उन के बीच दिल और देह दोनों का नाता बन गया.

आंतरिक संबंध बने तो पीयूष चोरीछिपे मनीषा के बंगले पर भी जाने लगा. जरूरत पड़ने पर कभीकभी ड्राइवर अवधेश भी बंगले में घुसने के लिए पीयूष की मदद करता था. मनीषा तो पीयूष की दीवानी थी ही, उस के पहुंचते ही वह उस के गले का हार बन जाती थी.

कुंडली भले ही न मिली लेकिन जिस्म मिलते रहे

मनीषा और पीयूष के घर वालों को जब उन के प्यार की भनक लगी तो उन्होंने दोनों से बात की. इस पर दोनों ने घर वालों से कह दिया कि वे एकदूसरे से प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं. घर वालों ने उन की बात मान ली और वो उन की शादी करने को राजी हो गए.

लेकिन जब दोनों की कुंडली मिलवाई गई तो गुण आपस में नहीं मिले. फलस्वरूप पीयूष के घर वालों ने इस शादी से इंकार कर दिया. शादी की बात न बनने के बाद भी पीयूष और मनीषा का प्यार कम नहीं हुआ. उन के बीच संबंध पहले जैसे ही बने रहे.

नवंबर 2012 के दूसरे हफ्ते में मध्य प्रदेश के जबलपुर निवासी प्लास्टिक व्यापारी शंकर लाल अपनी बेटी ज्योति का रिश्ता ले कर ओमप्रकाश श्यामदासानी के पास आए. उन्होंने पीयूष और ज्योति की शादी की बात की तो ओमप्रकाश रिश्ता करने को राजी हो गए. लेकिन उन्होंने शर्त रखी कि शादी कानपुर में ही होगी.

बेटी के लिए धनाढ्य और रसूखदार परिवार मिल रहा था, इसलिए शंकर लाल राजी हो गए. श्यामदासानी परिवार ज्योति को पसंद करने जबलपुर गया. खूबसूरत ज्योति को देख कर श्यामदासानी परिवार ने उसे बहू के रूप में पसंद कर लिया. इस के बाद जोरशोर से शादी की तैयारियां शुरू हो गईं.

शंकर लाल अपनी पत्नी कंचन के साथ शादी के एक सप्ताह पहले ही कानपुर आ गए. उन्हें पूरे परिवार सहित होटल रायल क्लिफ में ठहराया गया. उन्हें किसी चीज की कमी न हो, इस का खास खयाल रखा गया. अंतत: 28 नवंबर, 2012 को धूमधाम से स्टेटस क्लब में ज्योति और पीयूष का विवाह संपन्न हो गया.

इस विवाह समारोह में पौलिटिशियंस और ब्यूरोक्रेट्स से ले कर शहर के रसूखदार लोग शामिल हुए. शादी का समारोह इतना भव्य था कि जिस ने भी इस में शिरकत की, वह दंग रह गया. समारोह में जितने भी मेहमानों की फोटोग्राफ्स खींची गई थीं, समारोह के बाद उन्हें वह फोटोग्राफ्स बतौर उपहार दी गई थीं, जिन के पीछे पीयूष और ज्योति का नाम और विवाह समारोह की तारीख लिखी थी.

ज्योति दुलहन बन कर ससुराल आई तो सभी ने उस के रूपसौंदर्य की तारीफ की. चांद जैसी बहू पा कर पूनम तो अपने भाग्य को सराह रही थी. ज्योति भी अच्छा घर व पति पा कर खुश थी. लेकिन पीयूष इस शादी से खुश नहीं था. उस के मन में उथलपुथल मची हुई थी. शादी के बाद पीयूष और ज्योति हनीमून के लिए स्विटजरलैंड गए, जहां वे 12 दिन रहे.

कुछ महीने तक पीयूष नईनवेली दुलहन ज्योति के रूपजाल में उलझा रहा. फिर धीरेधीरे वह उस से कटने लगा. दरअसल, वह शादी के बाद भी अपने पहले प्यार को नहीं भुला पाया था और उस ने फिर से मनीषा से संबंध बना लिए थे. मनीषा बेलगाम थी, उसे घूमने और पार्टियों में जाने का शौक था.

मामी का उफनता शबाब – भाग 2

बृजमोहन कुंवारा था. वह अभी भी मातापिता के साथ ही रहता था. बृजमोहन एक फैक्ट्री में काम करता था. उसी दौरान उस की मुलाकात प्रीति से हो गई.

प्रीति कौर मुरादनगर, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश की रहने वाली थी. गऊशाला स्थित छावनी के पास ही उस के नाना सुरजीत सिंह रहते थे. प्रीति कौर समयसमय पर गऊशाला अपने नाना के घर आती रहती थी. उसी आनेजाने के दौरान वह बृजमोहन के संपर्क में आई.

प्रीति कौर बहुत ही खूबसूरत थी. एक अनौपचारिक मुलाकात के दौरान ही वह बृजमोहन के दिल में उतर गई. बृजमोहन देखने भालने में सीधासादा था.

फिर भी प्रीति की खूबसूरती पर इतना फिदा हो गया. दोनों के बीच लुकाछिपी का खेल शुरू हुआ फिर प्रेम डगर पर निकल गए.

हालांकि दोनों ही अलगअलग धर्म से ताल्लुक रखते थे, फिर भी दोनों के बीच प्रेम संबंध स्थापित होते ही दोनों ने एक साथ जीनेमरने की कसम भी खा ली थी. प्रीति कौर अपने नानानानी के पास ही रहने लगी.

उस के नाना सारा दिन खेतीबाड़ी में लगे रहते थे. उस की नानी ही घर पर रहती थीं. बृजमोहन के साथ आंखें लड़ाते ही वह किसी न किसी बहाने से उस से मिलने लगी थी. उसी दौरान दोनों के बीच शारीरिक सबंध स्थापित हो गए. अवैध संबंध स्थापित होते ही वह बृजमोहन के साथ मौजमस्ती करने लगी थी.

कुछ समय तक तो दोनों के बीच प्रेम प्रसंग चोरीछिपे से चलते रहे. लेकिन जल्दी ही एक दिन ऐसा भी आया कि दोनों का प्यार जग जाहिर हो गया. जब प्रीति कौर की हरकतों की जानकारी उस के नाना सुरजीत सिंह को हुई तो उन्होंने उसे उस के मम्मीपापा के पास भेज दिया.

मांबाप के घर जाने के बाद प्रीति कौर बृजमोहन के प्यार में तड़पने लगी. उस के पिता दिलप्रीत सिंह काम से बाहर निकल जाते थे. घर पर उस की मां बग्गा कौर ही रहती थीं. पापा के घर से निकलते ही उस की मां उस की पूरी निगरानी करती थीं.

प्रीति कौर बृजमोहन के प्यार में इस कदर पागल हो चुकी थी कि वह दिनरात उसी की यादों में खोई रहती थी. जब प्रीति कौर से बृजमोहन की जुदाई बरदाश्त नहीं हुई तो उस ने एक दिन अपनी मम्मी को दिन में ही लस्सी में नींद की गोली डाल कर दे दी. जिस के बाद उस की मम्मी को जल्दी ही नींद आ गई.

मम्मी को गहरी नींद में सोते देख वह घर से काशीपुर के लिए निकल पड़ी. काशीपुर आते ही वह सीधे बृजमोहन के पास आ गई. प्रीति कौर के घर छोड़ने वाली बात सुनते ही बृजमोहन के घर वालों ने उसे काफी समझाया कि वह घर चली जाए, लेकिन उस ने अपने घर वापस जाने से साफ मना कर दिया था.

अब से लगभग 8 साल पहले दोनों ने पे्रम विवाह कर लिया. प्रेम विवाह करने के बाद वह बृजमोहन के साथ ही रहने लगी. प्रीति कौर के द्वारा दी गई नशे की दवा के कारण उस की मम्मी को पता नहीं क्या रिएक्शन हुआ कि वह बीमार रहने लगी थीं. जिस के कुछ दिनों के बाद उन की मौत हो गई. अपनी मम्मी की मौत हो जाने के बाद भी प्रीति अपने घर वापस नहीं गई.

प्रीति अपने पति बृजमोहन के साथ काफी खुश थी. प्रीति कौर शुरू से ही हंसमुख थी. उसकी चंचलता उस के चेहरे से ही झलकती थी. बृजमोहन भी पढ़ीलिखी प्रीति कौर को पा कर बेहद ही खुश था.

शादी के 4 साल बाद प्रीति कौर एक बच्ची की मां बनी. घर के आगंन में बच्ची की चीखपुकार के साथ हंसीठिठोली ने बृजमोहन और प्रीति कौर की जिंदगी में नया ही उत्साह भर दिया था.

घर में बच्ची के जन्म से बृजमोहन की जिम्मेदारी और भी बढ़ गई थी. जिस के लिए उस ने पहले से ज्यादा कमाने पर ध्यान देना शुरू कर दिया. अब से लगभग डेढ़ साल पहले प्रीति कौर दूसरे बच्चे बेटे की मां बनी. घर में बेटे के जन्म से उस के परिवार में खुशियां ही खुशियां हो गई थीं.

घर में बेटे के जन्म के बाद से ही बृजमोहन बीमार रहने लगा था. उस के पैरों की अचानक ही कोई नस दब गई, जिस के कारण उसे चलनेफिरने में भी दिक्कत होने लगी थी. पैरों की दिक्कत के कारण वह काम पर भी नहीं जा पाता था. जिस के कारण उस का परिवार आर्थिक तंगी से गुजरने लगा था.

2 बच्चों के जन्म के बाद प्रीति कौर का शरीर पहले से भी ज्यादा खिल उठा था. लेकिन घर में आर्थिक तंगी के कारण वह परेशान रहने लगी थी. बृजमोहन बीमारी के चलते हर रोज काम पर नहीं जा पाता था. कभीकभार वह कोई काम करता तो वह थकहार कर रात को जल्दी ही सो जाता था. जिस के कारण प्रीति का उस के प्रति लगाव कम हो गया था.

बृजमोहन का भांजा था सौरभ, जो वहां से डेढ़ किलोमीटर दूर गऊशाला, छावनी में रहता था. वह पहले से ही अपने मामामामी के पास आताजाता रहता था. उसी आनेजाने के दौरान सौरभ को एक दिन अहसास हुआ कि उस की मामी मामा को पहला जैसा प्यार नहीं देती. बातबात पर उसे झिड़क देती थी.

एक दिन मौका पाते ही सौरभ ने अपनी मामी से सवाल किया, ‘‘मामी, आजकल तुम मामा से बहुत खफा चल रही हो. मामा के साथ तुम्हारा झगड़ा हो गया क्या?’’

‘‘जब भरी जवानी में आदमी घर में बूढ़ा बन कर बैठ जाए और शाम होते ही दारू के नशे में डूब जाए तो बीवी उसे क्या प्यार करेगी. सारा दिन घर में ही पड़ेपड़े मुफ्त की रोटी खाते हैं. न तो कमानेधमाने की चिंता है और न ही बीवी की.’’ प्रीति कौर ने जबाव दिया.

‘‘नहीं मामी, ऐसी बात तो नहीं. मामा तो तुम्हें बहुत ही प्यार करते हैं. रही बात कामधंधा करने की तो जैसे ही उन की परेशानी दूर हो जाएगी वह फिर से काम करने लगेंगे.’’ सौरभ ने कहा.

‘‘औरत को रोटी के अलावा कुछ और भी तो चाहिए. रात में पैर दर्द का बहाना कर के हर रोज जल्दी सो जाते हैं. फिर मैं बच्चों को ले कर रात में तारे गिनती रहती हूं.’’ प्रीति ने बड़े ही दुखी मन से कहा.

मामी की बात सुनते ही सौरभ के मन में खुशी के लड्डू फूटने लगे थे. सौरभ जवानी के दौर से गुजर रहा था. उसे अपनी मामी की बात समझते देर नहीं लगी.

‘‘अरे मामी, तुम इतनी हसीन हो, यह मायूसी तुम्हारे चेहरे पर अच्छी नहीं लगती. खुश रहा करो, सब कुछ ठीक हो जाएगा.’’ सौरभ ने खुशमिजाज लहजे में मामी के दुखते जख्म पर मरहम लगाने का काम किया.

उस वक्त प्रीति कौर घर के आंगन में नल पर कपड़े धो रही थी. प्रीति कौर का गदराया बदन था. तन से वह हर तरह से मालामाल थी.

पहली बीवी का खेल – भाग 2

उत्तर प्रदेश के शहर लखनऊ और हरदोई मार्ग पर अवध हौस्पिटल बहुत चर्चित है. इसी अवध अस्पताल से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा कांशीराम कालोनी बनाई गई है.

पुरानी कांशीराम कालोनी में लगभग 5 हजार आबादी रहती है. प्राधिकरण द्वारा बनाई गई इस कालोनी में यासीन खान किराए के फ्लैट नंबर 2/6 में सोफिया व शहर बानो के साथ रहता था. उस के पिता का नाम ताहिर खान है और वह नेपाल के जिला बांके के कस्बा उधड़ापुर का मूल निवासी है.

उस की पहली शादी सन 2016 में उत्तर प्रदेश के जिला बहराइच के मोहल्ला घसियारिन टोला निवासी मुल्ला खान की बेटी शहर बानो से हुई थी.

वह लखनऊ में 2 साल पहले शहर बानो के साथ रोजीरोटी की तलाश में आ कर बस गया था. इन दिनों वह आयुर्वेदिक दवाओं का सप्लायर था.

यासीन खान की दूसरी पत्नी शिवा विश्वकर्मा उर्फ सोफिया शरद विश्वकर्मा की बहन थी. वह हिंदू थी. उस के पिता का नाम बंसबहादुर विश्वकर्मा था. वह नेपाल के कस्बा घोराई उपमहानगर पालिका वार्ड-14, जिला-दाड़ के मूल निवासी थे.

शरद विश्वकर्मा से यासीन खान के व्यवसाय के सिलसिले में आनेजाने के कारण नेपाल में ही दोस्ती हो गई थी. शरद ने यासीन को साथ मिल कर नेपाल में ही प्रौपर्टी डीलिंग का काम करने की सलाह दी. यासीन खान शरद के कहने पर नेपाल के कस्बा घोराई में प्रौपर्टी डीलिंग का धंधा करने लगा था.

शरद के कहने पर उस ने उस की बहन शिवा विश्वकर्मा को अपने औफिस में रिसैप्शनिस्ट की नौकरी पर रख लिया था.

शरद और यासीन खान ने घोराई में रह कर लगभग एक साल तक धंधा किया. लेकिन इन का वहां कोई खास फायदा नहीं हुआ और अधिक पूंजी न होने के कारण प्रौपर्टी डीलिंग के धंधे में कोई खास सफलता नहीं मिल सकी.

तब यासीन के कहने पर शरद नेपाल छोड़ कर लखनऊ आ कर रहने लगा. यहां भी इस धंधे में सफलता न मिलने पर शरद विश्वकर्मा का मन इस काम से उचट गया और वह शिवा को साथ ले कर नेपाल वापस लौट गया.

यहां उल्लेख कर दें कि नेपाल में ही प्रौपर्टी के धंधे के दौरान शिवा विश्वकर्मा यासीन खान के संपर्क में आई थी और उस के प्यार में रचबस गई थी. दोनों ने प्रेम विवाह करने की कसमें खाई थीं. उस ने यासीन खान से धर्म बदल कर जीवन भर साथ निभाने का भरोसा दिला कर 3 साल पहले प्रेम विवाह कर लिया था. यासीन से शादी के बाद शिवा विश्वकर्मा ने अपना नाम बदल कर सोफिया खान रख लिया था.

नेपाल में धंधा बंद होने पर यासीन के साथ वह लखनऊ आ कर शेष जीवन गुजारना चाहती थी. लेकिन शिवा मुसलिम रीतिरिवाजों के कारण यासीन के साथ खुल कर जीने का रास्ता नहीं खोज पा रही थी.

तब शिवा ने नेपाल में ही अपने पिता के यहां जा कर बसने का तानाबाना बुन कर यासीन के समक्ष प्रस्ताव रखा. लेकिन यासीन उस के साथ नेपाल में रहने के लिए हरगिज तैयार नहीं हुआ. तब यासीन ने शिवा उर्फ सोफिया खान उर्फ जारा को लखनऊ में अपने साथ रहने के लिए राजी कर लिया था.

वर्ष 2018 से यासीन खान शिवा उर्फ सोफिया को साथ ले कर लखनऊ रहने लगा था. शिवा उसे दिलोजान से प्यार करती थी. लेकिन यासीन खान की पहली बीवी शहर बानो को शिवा उर्फ सोफिया पसंद नहीं थी. वह नहीं चाहती थी कि उस का पति उस के अलावा किसी और को प्यार करे.

लखनऊ में ही रहने के दौरान शिवा ने एक बेटी को जन्म दिया और उस का नाम सारा रखा था. उस की बेटी सारा इस समय लगभग 3 साल को होने जा रही है. लखनऊ के कांशीराम कालोनी के मकान नंबर 2/6 में यासीन खान सोफिया के साथ रहने लगा था.

यहां उस ने कुछ समय तक इलैक्ट्रीशियन का धंधा किया लेकिन बाद में वह आयुर्वेदिक दवाओं की सप्लाई की कंपनी में नौकरी करने लगा.

लखनऊ में सोफिया उर्फ जारा के रहने के कारण पहली बीवी शहर बानो घसियारी टोला, नानपारा बहराइच में अपने पिता के घर पर रहा करती थी और यासीन साल छ: महीने में शहर बानो से मिलने बहराइच आताजाता था.

बहराइच पहुंचने पर शहर बानो यासीन खान को काफी भलाबुरा कहा करती थी और दोनों में सोफिया को ले कर कहासुनी होती थी. शहर बानो यासीन से सीधे मुंह बात तक नहीं करती थी और यह कह कर उलाहने दिया करती थी कि अब यहां क्या लेने आते हो. उस कलमुंही के साथ ही गुरछर्रे उड़ाओ.

यासीन 1-2 दिन ससुराल में रुकने के बाद शहर बानो को तसल्ली दे कर लखनऊ वापस लौट आता था. शहर बानो के साथ किए गए वादों को अमली जामा पहनाने के लिए वह दिनरात बेचैन रहने लगा था.

पहली पत्नी शहर बानो के बाद सोफिया यासीन की जिंदगी में जब से आई थी, उस के अमनचैन की जिंदगी में जहर घुल गया था.

एक बार की बात है. उस समय सोफिया और यासीन का निकाह नहीं हुआ था. मनमुटाव के कारण शहर बानो जब अपने मायके आई थी, तब यासीन शहर बानो की रुखसती कराने अपनी ससुराल आया हुआ था.

लखनऊ से यासीन के साथ शिवा विश्वकर्मा भी आई थी तो शहर बानो को ससुराल में न पा कर यासीन को काफी अचरज हुआ.

शहर बानो की बहन रेशमा ने पूछने पर यासीन को बताया कि आपा तो खालाजान के यहां गई हुई हैं. उन के यहां कुरान खुवानी की दावत है. आज ही वापस आने के लिए कह गई थीं.

यासीन को जान कर काफी तसल्ली हुई कि अब शहर बानो नाम का कांटा उस की आंखों से दिन भर के लिए दूर है. दोपहर के समय यासीन खान जब शिवा के साथ कमरे में सो रहा था तो शिवा के साथ अठखेलियां खेलने में मस्त हो गया. शिवा यासीन के साथ बातें करने मे मशगूल थी.

कुछ ही देर पहले शिवा और यासीन हमबिस्तर हो कर अलग हुए थे. तब शिवा ने उस के साथ निकाह नहीं किया था. शिवा यासीन को प्यार का वास्ता दे कर शीघ्र ही निकाह करने के लिए कुछ कहने ही जा रही थी कि अचानक घर में शहर बानो के आने की आहट सुनाई दी.

दरवाजे पर उस की ब्याहता बेगम शहर बानो खड़ी थी. शहर बानो उस के लिए कमरे में चाय ले कर आई थी कि यासीन शहर बानो को अच्छे कपड़ों में देख कर चहक उठा और बोला आज तुम काफी खूबसूरत लग रही हो.

शहर बानो ने उस दिन काफी सुंदर लिबास पहन रखा था, पति की बातें सुन कर वह मुसकरा उठी.

शहर बानो के पूछने पर उस ने शिवा विश्वकर्मा का परिचय कराया तो वह जलभुन कर राख हो गई. शहर बानो खिसियानी बिल्ली की तरह नफरत भरी नजरों से शिवा विश्वकर्मा को घूर कर रह गई. शहर बानो काफी देर तक उसे जलीकटी सुनाती रही.

यासीन खान के संपर्क में आने के बाद शहर बानो को शिवा की गतिविधियों पर शक होने लगा था. उसे यह आभास नहीं था कि उस का पति शिवा के चक्कर में फंस गया है और उस के सामने सौत के गुन गाया करता है.

यासीन के साथ वह कांशीराम कालोनी में आई हुई थी तो शिवा को पति के साथ एक बार आपत्तिजनक अवस्था में उसे देख लिया था तो उसे पूर्ण विश्वास हो गया था कि शिवा विश्वकर्मा उर्फ सोफिया उस के शौहर पर डोरे डाल चुकी है और यासीन भी उस के रंग में रचबस चुका है.

यहीं से शहर बानो के मन में कांटा पनप चुका था और खुशहाल जिंदगी में घर के अंदर कलह शुरू हो गई थी.

फलस्वरूप शहर बानो आए दिन अपनी ससुराल में रहा करती थी और यासीन खान ने पूर्णरूप से स्वतंत्र हो कर शिवा विश्वकर्मा के साथ निकाह कर लिया था. घर में शहर बानो पहले से जलीभुनी बैठी थी और उस ने घर में शिवा उर्फ सोफिया को देख कर कोहराम मचा दिया था.

बाप बेटे की एक बीवी – भाग 2

अगली सुबह संदीप अपने गांव हनुमानगढ़ लौट गया. संदीप के दिलोदिमाग में पूजा बस चुकी थी. हफ्ते 10 दिन बाद कमरानी आने वाला संदीप इस बार तीसरे दिन ही बहन के घर आ गया. वह सीधा पूजा के घर में चला गया. घर पर पूजा की मां व कालूराम मौजूद थे. पूजा ने दोनों को संदीप का परिचय दिया.

कालूराम के कहने पर पूजा ने संदीप के लिए चाय नाश्ते का इंतजाम किया. कालू व पूजा ने संदीप से खाना खा कर जाने को कहा. इस पर वह बोला, ‘‘दोपहर का खाना दीदी के यहां है और रात का आप के यहां.’’ कहते हुए संदीप ने कालू के साथ दोस्ती बढ़ाने का रास्ता बनाना शुरू कर दिया.

सांझ ढलते ही संदीप शराब की बोतल ले कर पूजा के घर आ गया. पूजा भी अपने आशिक की आवभगत में जुट गई. आंगन में कालू व संदीप की महफिल सजी. पूजा ने सलाद बना कर दी. कालू को जैसे लंबे अंतराल के बाद शराब मयस्सर हुई थी. वह पैग पर पैग गटकने लगा. संदीप की भी यही चाहत थी कि कालू नशे में टल्ली हो जाए.

कालू आधी से ज्यादा बोतल पी कर मदहोशी की हालत में पहुंच गया. पूजा ने दोनों के लिए चारपाई पर खाना लगा दिया. पूजा की मां विद्या सो चुकी थी. संदीप की चाहत पर पूजा भी अपने लिए खाने की थाली ले आई. कालू बिना भोजन किए ही चारपाई पर लुढ़क गया. पूजा और संदीप के लिए मनचाहा माहौल बन चुका था.

दोनों आंगन में बने दूसरे कमरे में चले गए. एकांत में दोनों ने जीभर के मौजमस्ती की. अगले दिन भी यही क्रम दोहराया गया. अगली सुबह पूजा काका सिंह के घर गई. एकांत पा कर पूजा ने संदीप से कहा, ‘‘तुम्हारा सरेआम मेरे घर आना मां को अखर रहा है, कुछ पड़ोसी भी अंगुली उठाने लगे हैं.’’

‘‘ऐसीतैसी लोगों की, मैं किसी से भी नहीं डरता. अब मैं तेरे बिना जिंदा नहीं रह सकता. तू चाहे तो मुझ से ब्याह रचा कर मुझे अपना बना ले.’’ संदीप बोला.

‘‘संदीप, ब्याह कर नहीं तू मुझे भगा ले जा और अपनी बना ले. फिर हम दोनों अपनी मर्जी से जिंदगी जी सकेंगे. सच्चाई यह है कि मैं भी तेरे बिना नहीं जी सकती.’’ पूजा ने उदासी भरे लहजे में कहा. उसी वक्त दोनों ने रात को भूसे वाले कोठे में मिलने की योजना भी बना ली.

नियत समय पर दोनों कोठे में पहुंच गए. मिलन के बाद संदीप ने पूजा के बालों में अंगुलियां फिराते हुए कहा, ‘‘देखो पूजा, भागनेभगाने के चक्कर में मुकदमेबाजी या छिपनेछिपाने का भय बना रहेगा. मैं ने एक ऐसी योजना बनाई है, जिस में सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी. बस योजना में तेरा साथ चाहिए.’’ संदीप ने कहा.

पूजा के पूछने पर संदीप ने पूरी योजना उसे समझा दी. योजना सुन कर पूजा खुशी से उछल पड़ी.

अगले दिन से पूजा ने योजना पर अमल करना शुरू कर दिया. शाम के समय कालू मजदूरी से लौट आया. मां रोटियां सेंक रही थीं. कालू आंगन में खाना खाने बैठ गया. उसी वक्त पूजा ने मां से कहा, ‘‘मां, तू इन्हें समझा कि यह काम छोड़ कर किसी जमींदार से 2-4 बीघा जमीन बंटाई पर ले लें. मिलजुल कर खेती कर लेंगे. कम से कम मेहनतमजदूरी तो नहीं करनी पड़ेगी.’’

‘‘यह सब इतना आसान है क्या?’’ कालू ने कहा तो पूजा बोली, ‘‘संदीप की कई बडे़ जमींदारों से जानपहचान है. वह हमें बंटाई पर जमीन दिला देगा. इस बार संदीप आए तो बात कर लेना.’’

पूजा का यह सुझाव कालू और मां को पसंद आ गया. 2 दिन बाद ही संदीप कमरानी आ गया. पूजा उसे अपने घर ले आई. संयोग से उस वक्त कालू व विद्या घर पर ही थे.

‘‘संदीप भाई, सुना है तुम्हारी कई जमींदारों से जानपहचान है. हमें भी थोड़ी सी जमीन बंटाई पर दिलवा दो. संभव है, हमारे भी दिन फिर जाएं.’’ कालू राम ने कहा.

‘‘भैया मेरे पिताजी रावतसर क्षेत्र के चक 2 के एम के बड़े दयालु स्वभाव के किसान सुखदेव सिंह कांबोज के यहां कई वर्षों से बंटाई पर खेती कर रहे हैं. मैं आज ही उन के पास जा रहा हूं. मुझे पूरी उम्मीद है कि वहां आप का काम बन जाएगा.’’ संदीप ने जवाब दिया.

मजहबी सिख कौर सिंह हनुमानगढ़ टाउन में रहता था. उस के 2 ही बच्चे थे, संदीप और एक बेटी जिस ने कमरानी निवासी काका सिंह के साथ प्रेम विवाह कर लिया था. करीब 5 वर्ष पूर्व कौर सिंह की पत्नी की संदिग्ध हालत में मौत हो गई थी. उस के मायके वालों ने कौर सिंह के खिलाफ दहेज हत्या का केस दर्ज करवा दिया था.

पुलिस ने इस केस में कौर सिंह को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया था. कालांतर में दोनों पक्षों में राजीनामा हो गया. फलस्वरूप कौर सिंह 12 महीनों बाद जेल से बाहर आ गया. हनुमानगढ़ में अपनी जायदाद बेच कर कौर सिंह रावतसर क्षेत्र में चक 2 केएम के किसान सुखदेव सिंह के यहां ढाणी में रह कर बंटाई पर खेती करने लग गया. जबकि संदीप आवारागर्दी करने के अलावा कोई काम नहीं करता था.

2 दिन बाद संदीप फिर कमरानी लौटा. उस ने पूजा व कालूराम को खुशखबरी दी कि पिताजी के यहां उन दोनों को काम मिल जाएगा. सितंबर 2017 में संदीप, कालूराम व पूजा को ले कर चक 2 केएम कौर सिंह के पास पहुंच गया. इस दौरान संदीप भी नशेड़ीबन गया था.

‘‘पापा ये लोग दीदी के पड़ोसी हैं. कालूराम खेतीबाड़ी के सारे काम जानता है. इन्हें बंटाई पर जमीन दिलवा दो ताकि इन की गुजरबसर हो सके.’’ संदीप ने कहा.

‘‘हां हां क्यों नहीं, वह साइड वाली ढाणी खाली पड़ी है. दोनों उस में डेरा जमा लें. अभी तो सारी जोत बंटाई पर उठा दी गई है. फिर भी मैं कोई न कोई रास्ता निकाल दूंगा. यहां काम की कोई कमी नहीं है. दोनों मियांबीवी 7 सौ रुपए रोजाना आराम से कमा लेंगे.’’ कौर सिंह ने कहा.

अगले दिन से कालू व पूजा ने दिहाड़ी मजदूरी का काम शुरू कर दिया. दोनों ने खाली पड़ी ढाणी में अपना बोरियाबिस्तर जमा लिया था. संदीप पूजा का सान्निध्य पाने की गरज से उन के साथ दिहाड़ी पर काम करने लगा. हाड़तोड़ मेहनत करने से संदीप भी कालू की तरह रोजाना नशे की खुराक लेने लग गया था. खाना खाते ही कालू व संदीप नींद के आगोश में चले जाते थे.

देवर-भाभी का खूनी प्यार

पहली अप्रैल, 2021 को सुबह के करीब पौने 8 बज रहे थे. राजस्थान के अलवर जिले के बहरोड़ थाने  के थानाप्रभारी विनोद सांखला को फोन पर सूचना मिली कि जखराना बसस्टैंड के पास एक बाइक और स्कौर्पियो गाड़ी की भिड़ंत हो गई है.

सूचना मिलते ही विनोद सांखला पुलिस टीम ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल पर काफी भीड़ जमा थी. पुलिस को देखते ही भीड़ थोड़ा हट गई. पुलिस ने देखा कि वहां एक व्यक्ति की दबीकुचली लाश सड़क पर पड़ी थी. थोड़ी दूरी पर मृतक की मोटरसाइकिल गिरी पड़ी थी.

घटनास्थल पर प्रत्यक्षदर्शियों ने पुलिस को बताया कि नीमराना की तरफ से स्कौर्पियो गाड़ी आई थी. स्कौर्पियो में सवार लोगों ने जानबूझ कर मोटरसाइकिल को टक्कर मारी थी. बाइक सवार स्कौर्पियो की टक्कर से उछल कर दूर जा गिरा. तब स्कौर्पियो यूटर्न ले कर आई और बाइक से गिरे युवक को कुचल कर चली गई.

गाड़ी के टायर युवक के सिर से गुजरे तो सिर का कचूमर निकल गया. जब स्कौर्पियो सवार निश्चिंत हो गए कि बाइक सवार की मौत हो गई है, तब वे वापस उसी रोड से भाग गए.वहां मौजूद लोगों ने थानाप्रभारी विनोद सांखला को बताया कि यह दुर्घटना नहीं बल्कि हत्या है. स्कौर्पियो में सवार अज्ञात लोगों ने बाइक सवार को जानबूझ कर टक्कर मार कर हत्या की है.

थानाप्रभारी ने घटना की खबर उच्च अधिकारियों को दे दी. खबर पा कर बहरोड़ के सीओ और एसडीएम घटनास्थल पर आ गए. बाइक सवार युवक की पहचान कृष्णकुमार यादव निवासी भुंगारका, महेंद्रगढ़, हरियाणा के रूप में हुई.

कृष्णकुमार यादव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय जखराना में अपर डिविजन क्लर्क के पद पर कार्यरत था. कृष्णकुमार के एक्सीडेंट होने की खबर पा कर विद्यालय के प्रधानाचार्य ने बताया कि कृष्णकुमार यादव अपने पिताजी की औन ड्यूटी मृत्यु होने पर उन की जगह मृतक आश्रित कोटे से नौकरी पर लगा था.

कृष्णकुमार अपने मांबाप का इकलौता बेटा था. वह अपने गांव भुंगारका से रोजाना बाइक द्वारा ड्यूटी आताजाता था. सीओ देशराज गुर्जर ने भी घटनास्थल का मुआयना किया और उपस्थित लोगों से जानकारी ली. जानकारी में यही सामने आया कि कृष्णकुमार की हत्या की गई है.

पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज निकाले. फुटेज से पता चला कि प्रत्यक्षदर्शियों ने जो बातें बताई थीं, वह सच थीं. हत्यारे कृष्णकुमार की हत्या को दुर्घटना दिखाना चाह रहे थे. मगर लोगों ने यह सब अपनी आंखों से देखा था.

मृतक के परिजनों को भी हत्या की खबर दे दी गई. खबर मिलते ही मृतक के घर वाले एवं रिश्तेदार घटनास्थल पर आ गए. उन से भी पुलिस ने पूछताछ की और शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पुलिस ने शव का पोस्टमार्टम कराने के बाद वह परिजनों को सौंप दिया. मृतक के परिजनों की तरफ से कृष्णकुमार की हत्या का मामला बहरोड़ थाने में दर्ज करा दिया गया.

थानाप्रभारी विनोद सांखला, एसआई सुरेंद्र सिंह और अन्य पुलिसकर्मियों की टीम ने सीसीटीवी फुटेज और स्कौर्पियो गाड़ी के नंबरों के आधार पर जांच शुरू की. पुलिस ने स्कौर्पियो गाड़ी का नंबर दे कर सभी थानों से इस नंबर की गाड़ी की जानकारी देने को कहा.

तभी जयपुर पुलिस ने सूचना दी कि इस नंबर की स्कौर्पियो गाड़ी पावटा जयपुर में खड़ी है. पुलिस टीम ने पावटा पहुंच कर वहां से स्कौर्पियो गाड़ी सहित 2 युवकों अशोक और पवन मेघवाल को भी हिरासत में ले लिया. गाड़ी के मालिक अजीत निवासी भुंगारका सहित कुछ और संदिग्ध युवकों को भी पुलिस ने पूछताछ के लिए उठा लिया.

थाने में इन सभी से पूछताछ की. अशोक व पवन मेघवाल एक ही रट लगाए थे कि उन की कृष्णकुमार से कोई दुश्मनी नहीं थी. अचानक वह गाड़ी से टकरा गया था. बाइक के एक्सीडेंट के बाद हड़बड़ाहट में गाड़ी घुमाई तो कृष्णकुमार पर गाड़ी चढ़ गई.

उन्होंने बताया कि उन्हें इस बात का डर लग रहा था कि लोग उन्हें पकड़ कर मार न डालें, इस डर के कारण वे गाड़ी भगा ले गए. मगर आरोपियों की यह बात पुलिस के गले नहीं उतर रही थी. भुंगारका निवासी अजीत ने पुलिस को बताया कि उस ने अपनी स्कौर्पियो गाड़ी एक लाख 80 हजार रुपए में सन्नी यादव को बेच दी. सन्नी ने अशोक के नाम पर यह गाड़ी खरीदी थी.

अजीत ने पुलिस को सन्नी का नाम बताया. तब तक पुलिस को लग रहा था कि अजीत का इस मामले से कोई संबंध नहीं है. अशोक और पवन मेघवाल 4 दिन तक पुलिस को एक ही कहानी बताते रहे कि अचानक बाइक से गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया था. पुलिस को भी लगने लगा था कि मामला कहीं दुर्घटना का ही तो नहीं है. मगर सीसीटीवी फुटेज में जो एक्सीडेंट का दृश्य था, वह बता रहा था कि कृष्णकुमार की साजिश के तहत हत्या की गई थी. हत्या को उन्होंने साजिश के तहत दुर्घटना का रूप देने की कोशिश की थी.

तब पुलिस अधिकारियों ने अपना पुलिसिया रूप दिखाया. बस फिर क्या था. पुलिस का असली रूप देख कर वे टूट गए और स्वीकार कर लिया कि उन्होंने जानबूझ कर कृष्णकुमार यादव की हत्या की थी, फिर उन्होंने हत्या की कहानी बता दी.

हरियाणा के नांगल चौधरी इलाके के भुंगारका गांव में कृष्णकुमार यादव अपनी पत्नी कुसुमलता (35 वर्ष) के साथ रहता था. कृष्णकुमार की 4 बहनें हैं, जिन की शादी हो चुकी थी. वे सब अपनी ससुराल में हैं. पिता की औनड्यूटी मृत्यु होने के बाद आश्रित कोटे के तहत कृष्णकुमार की क्लर्क पद पर सरकारी स्कूल में नौकरी लग गई थी. वह अपने मातापिता का इकलौता बेटा था.

कृष्णकुमार के पड़ोस में उस के चाचा मुकेश यादव रहते थे. उन का बड़ा बेटा सन्नी 10वीं कक्षा में फेल हो गया तो उस ने स्कूल छोड़ दिया. वह कोई कामधंधा नहीं करता था. कृष्णकुमार के परिवार के ठाठबाट देखता तो उसे जलन होती थी. क्योंकि कृष्णकुमार के पास करोड़ों रुपए की संपत्ति थी.

कृष्णकुमार के नाम करीब 50 बीघा जमीन थी. जोधपुर, राजस्थान के फलोदी में 17 बीघा जमीन, बहरोड़ में 2 कामर्शियल प्लौट, भुंगारका गांव में 32 बीघा जमीन व आलीशान मकान था. यह सब कृष्णकुमार के नाम था. सन्नी ने योजना बनाई कि अगर कुसुमलता को वह प्यार के जाल में फंसा क र कृष्णकुमार को रास्ते से हटा दे तो वह कुसुमलता से विवाह कर के उस की करोड़ों की प्रौपर्टी का मालिक बन सकता है.

आज से करीब 3 साल पहले सन्नी ने कुसुमलता पर डोरे डालने शुरू किए. कुसुमलता रिश्ते में उस की भाभी लगती थी. सन्नी से कुसुमलता उम्र में 10 साल बड़ी थी. मगर वह जायदाद हड़प कर करोड़पति बनने के चक्कर में अपने से 10 साल बड़ी भाभी के आसपास दुम हिलाने लगा. कृष्णकुमार ड्यूटी पर चला जाता तो कुसुमलता घर में अकेली रह जाती थी. कृष्णकुमार की गैरमौजूदगी में सन्नी उस की बीवी के पास चला आता था. सन्नी कुसुमलता के चाचा ससुर का बेटा था.

वह भाभी से हंसीमजाक करतेकरते उसे बांहों में भर कर बिस्तर तक ले आया. कुसुमलता भी जवान देवर की बांहों में खेलने लगी. वह सन्नी की दीवानी हो गई. सन्नी की मजबूत बांहों में कुसुमलता को जो शारीरिक सुख का चस्का लगा, वह दोनों को पतन के रास्ते पर ले जा रहा था.

सन्नी ने कुसुमलता को अपने रंग में ऐसा रंगा कि वह उस के लिए पति के प्राण तक लेने पर आमादा हो गई. आज से करीब डेढ़ साल पहले सन्नी ने कुसुमलता से कहा, ‘‘कुसुम, तुम रात में कृष्णकुमार को बिजली के करंट का झटका दे कर मार डालो. इस के बाद हम दोनों के बीच कोई तीसरा नहीं होगा. पति की जगह तुम्हारी नौकरी भी लग जाएगी. फिर मैं तुम से विवाह कर लूंगा और फिर हम मौज की जिंदगी जिएंगे.’’

‘‘ठीक है सन्नी, मैं पति को रास्ते से हटाने का इंतजाम करती हूं.’’ कुसुमलता ने हंसते हुए कहा. वह देवर के प्यार में पति की हत्या करने करने का मौका तलाशने लगी. एक दिन कृष्णकुमार रात में गहरी नींद में था. तब कुसुमलता ने उसे बिजली का करंट दिया. करंट का कृष्णकुमार को झटका लगा तो वह जाग गया. तब बीवी ने कूलर में करंट आने का बहाना बना दिया. कृष्णकुमार को करंट का झटका लगा जरूर था, मगर वह मरा नहीं.

यह सुन कर सन्नी बोला, ‘‘कुसुम, जल्द से जल्द कृष्ण का खात्मा करना होगा.’’  ‘‘तुम ही यह काम किसी से करा दो. मैं तुम्हारे साथ हूं मेरी जान.’’ कुसुमलता बोली.कुसुमलता और सन्नी जल्द से जल्द कृष्णकुमार को रास्ते से हटाना चाहते थे. कृष्ण के ड्यूटी जाने के बाद वाट्सऐप कालिंग पर दोनों बातचीत करते थे. सन्नी ने अपने छोटे भाई की शादी कर दी थी. खुद शादी नहीं की थी. उस का मकसद तो करोड़ों की मालकिन कुसुमलता से शादी करना था. सन्नी भाभी से शादी कर के वह जल्द से जल्द करोड़पति बनना चाहता था.

एक दिन सन्नी और कुसुमलता के संबंधों की जानकारी किसी ने कृष्णकुमार को दे दी. बीवी और चचेरे भाई के संबंधों की बात सुन कर कृष्णकुमार को बहुत गुस्सा आया. उस ने अपनी बीवी से इस बारे में बात की तो वह त्रियाचरित्र दिखाने लगी. आंसू बहाने लगी. मगर कृष्णकुमार के मन में संदेह पैदा हुआ तो वह उन दोनों पर निगाह रखने लगा.

इस के बाद कुसुमलता ने सन्नी को सचेत कर दिया. दोनों छिप कर मिलने लगे. मगर उन्हें हर समय इसी बात का डर लगा रहता कि कृष्णकुमार को कोई बता न दे. कृष्णकुमार ने सन्नी से भी कह दिया था कि वह उस के घर न आए. यह बात कृष्ण, कुसुम और सन्नी के अलावा कोई नहीं जानता था. किसी को पता नहीं था कि कृष्ण अपनी बीवी और सन्नी पर शक करता है.

ऐसे में कुसुमलता और सन्नी ने उसे एक्सीडेंट में मारने की योजना बनाई ताकि उन पर कोई शक भी न करे और राह का कांटा भी निकल जाए. सन्नी ने इस काम में कुछ खर्चा होने की बात कही तो कुसुमलता ने खुद के नाम की 4 लाख रुपए की एफडी मार्च 2021 के दूसरे हफ्ते में तुड़वा दी. 4 लाख रुपए कुसुम ने सन्नी को दे दिए.

सन्नी ने योजनानुसार 18 मार्च, 2021 को भुंगारका के अजीत से एक लाख 80 हजार रुपए में एक स्कौर्पियो गाड़ी एग्रीमेंट के तहत अशोक कुमार के नाम से खरीदी. अशोक को उस ने 2 छोटे मोबाइल व सिम दिए. इन्हीं सिम व मोबाइल के जरिए अशोक की बात सन्नी से होती थी. कृष्णकुमार को मारने के लिए सन्नी ने अशोक को डेढ़ लाख रुपए भी दे दिए.

उसी स्कौर्पियो गाड़ी से अशोक ने सन्नी के कहने पर कृष्णकुमार का एक्सीडेंट करने की कई बार कोशिश की मगर वह सफल नहीं हुआ. तब 26 मार्च, 2021 को राहुल अपने दोस्त पवन मेघवाल को भुंगारका के हरीश होटल पर ले आया. यहां अशोक से पवन की जानपहचान कराई.

रात में तीनों शराब पी कर खाना खा कर होटल पर रुके और सुबह चले गए. 30 मार्च, 2021 को अशोक ने पवन से कहा कि मुझे स्कौर्पियो से एक आदमी का एक्सीडेंट करना है. तुम मेर साथ गाड़ी में रहोगे तो मैं तुम्हें 40 हजार रुपए दूंगा.

पवन की अशोक से नई दोस्ती हुई थी और वैसे भी पवन को सिर्फ गाड़ी में बैठे रहने के 40 हजार रुपए मिल रहे थे, इसलिए 40 हजार रुपए के लालच में पवन ने हां कर दी. 31 मार्च, 2021 को अशोक और पवन मेघवाल स्कौर्पियो गाड़ी ले कर जखराना आए लेकिन उस दिन कृष्णकुमार ड्यूटी पर नहीं गया.अशोक रोजाना की बात सन्नी को बता देता था. सन्नी अपनी प्रेमिका भाभी कुसुमलता को सारी बात बता देता था. पहली अप्रैल 2021 को सुबह साढ़े 7 बजे कृष्णकुमार अपने गांव भुंगारका से ड्यूटी पर जखराना निकला. यह जानकारी कुसुमलता ने अपने देवर प्रेमी सन्नी को दी. सन्नी ने अशोक को यह सूचना दे दी. अशोक कुमार गाड़ी में पवन को ले कर जखराना बसस्टैंड पहुंच गया. जैसे ही कृष्णकुमार मोटरसाइकिल से जखराना बसस्टैंड से स्कूल की ओर जाने लगा, तभी अशोक ने स्कौर्पियो से कृष्णकुमार को सीधी टक्कर मार दी. टक्कर लगते ही कृष्णकुमार उछल कर दूर जा गिरा.

इस के बाद अशोक ने गाड़ी को यूटर्न लिया और कृष्णकुमार के ऊपर एक बार चढ़ा दी, जिस के बाद उस की मौके पर ही मौत हो गई. इस के बाद सूचना पा कर बहरोड़ पुलिस आई. प्रत्यक्षदर्शियों ने इसे हत्या बताया. तब पुलिस ने जांच कर हत्या के इस राज से परदा हटाया.

अशोक कुमार और पवन मेघवाल से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने इस हत्याकांड में शामिल रहे सन्नी और उस की प्रेमिका कुसुमलता को भी गिरफ्तार कर लिया. इन दोनों ने भी कृष्णकुमार की हत्या में शामिल होने का अपराध स्वीकार कर लिया.

पूछताछ के बाद कुसुमलता, सन्नी यादव, अशोक यादव और पवन मेघवाल को बहरोड़ कोर्ट में पेश किया, जहां से सभी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

रूपा के रूप का जादू – भाग 1

शाम का धुंधलका छाने लगा था. हर्षित शुक्ला की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. वह बरामदे में बैठा  कभी सामने मेन गेट को तो कभी स्कूटी की दूर से थोड़ी सी भी आवाज आने पर रास्ते की तरफ देखने लगता था.

उसे रूपा गुप्ता का बेसब्री से इंतजार था. बेचैन और चिंतित होने के साथसाथ वह गुस्से में भी था. सोच रहा था कि उस ने आने में इतनी देर क्यों कर दी. उस के बेचैन होने की वजह भी थी. दरअसल, उस की मां ने दिन में उसे ले कर खूब खरीखोटी सुनाई थी. पिता ने भी जबरदस्त डांट लगाई थी.

इस से पहले मांबाप ने उसे इस कदर कभी नहीं डांटा था. डांट खा कर वह एकदम से गुमसुम सा हो गया था. मन ही मन इस का सारा दोष वह रूपा पर ही मढ़े जा रहा था, जबकि वह उस से बेइंतहा मोहब्बत करता था. लेकिन उसी ने मोहब्बत की आड़ में जो पीड़ा पहुंचाई थी. उसे जितना भूलने की कोशिश करता, उतना ही उस के प्रति नाराजगी बढ़ती जा रही थी.

उस ने अपने मांबाप से बड़ी बात छिपा ली थी, उस बारे में कम से कम अपनी मां को तो बता दिया होता. खैर! वह यह भी जानता था कि अब उस में कुछ बदला नहीं जा सकता था, सिवाय रूपा के प्रति नाराजगी दिखाने और उसे कोसने के. उस के सीने पर सांप लोट रहा था. उस वक्त हर्षित के दिमाग में जो बातें उमड़घुमड़ रही थीं, वही उस की बेचैनी का मुख्य कारण थीं.

वह समझ नहीं पा रहा था कि उस की आंखें धोखा कैसे खा गईं? खुद को कोसे भी जा रहा था कि रूपा के काफी करीब रह कर भी उस के मन को कैसे नहीं समझ पाया? उस की गतिविधियों का जरा भी अंदाजा क्यों नहीं लगा पाया?

उस के दिमाग में बहुत कुछ चल रहा था. कुछ अच्छा था तो कुछ बुरा और खतरनाक भी था. उन में फर्क नहीं कर पा रहा था. दुविधाओं से वह घिर चुका था. उलझनों से भर चुका था. इसी उधेड़बुन में उसे बरामदे में तेज कदमों की आहट सुनाई दी. आवाज की तरफ नजर उठा कर देखा तो रूपा तेजी से अपने कमरे में जाने के लिए सीढि़यों की ओर बढ़ी जा रही थी.

चोरीछिपे कर ली थी शादी

करीब 25 साल की रूपा गुप्ता हर्षित की प्रेमिका से पत्नी बनी थी, जिस से उस ने मंदिर में परिवार समाज से छिप कर शादी रचा ली थी. वह पिछले कुछ महीनों से हर्षित के घर में ही एक कमरा किराए पर ले कर रह रही थी. उस का कमरा ऊपरी मंजिल पर था.

हालांकि रूपा उस के अलावा गंगाखेड़ा स्थित रामसिंह गर्ल्स हौस्टल में भी रहती थी. जरूरत के मुताबिक वह वहां अकसर हौस्टल में ठहर जाती थी.

रूपा मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला प्रयागराज के कस्बा विसर्जन खुर्द की रहने वाली थी. उस के पिता का नाम राजेंद्र गुप्ता था और वह अपने परिवार में 3 भाईबहनों के बीच सब से छोटी थी. उस के पिता एक किसान थे.

बात 12 सितंबर, 2022 की है. उस रोज रूपा हर्षित की तरफ देखे बगैर तेजी से अपने कमरे में जा रही थी. जबकि उस ने हर्षित को देख लिया था. उसे देख कर रूपा ने मुसकराने की भी जरूरत नहीं समझी, जबकि पहले अकेले में होती थी, तब आतेजाते हर्षित से गले लग कर मिलती थी.

हर्षित ने पाया कि रूपा कुछ बुदबुदाती हुई सीढि़यां चढ़ रही थी. उस ने सिर्फ इतना ही सुना, ‘लगता है दाल में कुछ काला है. रोजाना जानेमन मुसकरा कर हैलो हाय करते थे. उसे देख कर मैं ही हायहैलो करूं. न जाने क्यों मुझे उस की घूरती नजरें खूंखार लग रही थीं.’

रूपा कुछ समय में ही अपने कमरे में पहुंच गई थी. कमरे की लाइट औन करने के बाद बैड पर एक तरफ अपना पर्स फेंका और कमरे में ही बनी छोटी सी रसोई की तरफ बढ़ गई.

तभी कमरे में थोड़ी हलचल सुनाई दी. अभी वह दरवाजे की तरफ पीछे मुड़ने ही वाली थी कि हर्षित ने दोनों हाथों से उस की कमर पकड़ ली. पकड़ मजबूत थी. रूपा उस का हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी. इस के बाद जो हुआ, उस की सिर्फ कल्पना ही की जा सकती थी.

रूपा को ले कर पासपड़ोस के लोग भी चर्चा करते रहते थे. यहां तक कि उस पर गहरी नजर रखते थे. वह कब आई गई? कब घर से निकली? हर्षित के साथ कहां देखी गई? आदि आदि. रूपा की छोटीछोटी गतिविधियों पर हर्षित के मातापिता के अलावा कई लोगों की नजर बनी रहती थी.

बीते 2 दिनों से रूपा पड़ोसियों को नजर नहीं आई थी. एक पड़ोसन से रहा नहीं गया और वह 14 सितंबर की सुबहसुबह को हर्षित की मां माधुरी शुक्ला से पूछ बैठी, ‘‘दीदी, रूपा 2 दिनों से दिखाई नहीं दे रही है? प्रयागराज गई हुई है क्या?’’

‘‘हांहां…’’ जरा भी देर किए बगैर माधुरी बोली, ‘‘उस के घर से फोन आया था. पिताजी की तबियत अचानक बिगड़ गई थी.’’ं इतना कह कर माधुरी शुक्ला ने अपने घर का मेन गेट बंद किया और तेज कदमों से अपने कमरे में चली गई.

माधुरी शुक्ला का इस तरह से घर के अंदर जाना उस पड़ोसन को कुछ अटपटा लगा, लेकिन इस ओर उस ने ध्यान नहीं दिया.

पड़ोसियों को आश्चर्य तब हुआ, जब 17 सितंबर, 2022 को पुलिस टीम हर्षित और उस के पिता प्रेमचंद शुक्ला को ढूंढती हुई मोहल्ले में आई. मोहल्ले के लोगों ने उन के घर जा कर देखा तो पाया कि वहां ताला लगा था.

मोहल्ले वालों को पता चला कि रूपा की हत्या हो चुकी है. पुलिस उस की हत्या की तहकीकात के सिलसिले में आई है. पुलिस को पता चला था कि रूपा इस घर में किराए पर रहती थी. उस की लाश पुलिस ने इसी इलाके के एक पानी भरे गड्ढे से बरामद की गई थी.

एसआई महेश कुमार और अभय कुमार वाजपेई ने मोहल्ले वालों से प्रेमचंद शुक्ला, उन की पत्नी माधुरी शुक्ला और उन के बेटे हर्षित के बारे में जानकारी ली और उन के घर आते ही थाने आने को कहा.

रूपा की अचानक मौत और प्रेमचंद शुक्ला के परिवार के अचानक लापता होने से मोहल्ले के लोग हैरान हो गए. वे समझ नहीं पा रहे थे कि अचानक क्या हो गया जो रूपा की मौत हो गई और पूरा परिवार घर से लापता हो गया. दाल में जरूर काला है या फिर पूरी दाल ही काली है. मोहल्ले वाले उन सभी के बारे में तरहतरह की अटकलें लगाने लगे थे.

सिर कटी लाश का रहस्य – भाग 1

मुंबई के पास वसई थाना क्षेत्र के भुईगांव समुद्र तट पर झाडि़यों के बीच एक लावारिस काले रंग का बड़ा सा ट्रौली बैग देख लोगों ने पुलिस को सूचना दी. सूचना मिलते ही वसई पुलिस मौकाएवारदात पर पहुंच गई. पुलिस को पहली ही नजर में मामला संदिग्ध नजर आया. क्योंकि एक सुनसान समुद्र किनारे पर किसी सूटकेस के पड़े होने का और कोई मतलब समझ में नहीं आ रहा है.

फिलहाल पुलिस ने उस ट्रौली बैग को अपने कब्जे में ले लिया और उसे खोला. जैसी आशंका थी, वही हुआ. सूटकेस खोलते ही पुलिस की आंखें फटी रह गईं. बैग से एक सिर कटी लाश बरामद हुई थी. कदकाठी आदि देख कर लग रहा था कि उस युवती की उम्र 26-27 की होगी. लग रहा था कि हत्यारे ने शातिर तरीके से लाश ठिकाने लगाने की कोशिश की थी.

सिर कटी लाश मिलने से वहां सनसनी फैल गई. पुलिस ने मौके की काररवाई निपटा कर सिर कटी लाश यानी धड़ को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया. पुलिस ने उस के कटे सिर को ढूंढना शुरू कर दिया, लेकिन काफी कोशिश करने के बाद भी कटा सिर बरामद नहीं हो सका. यह बात 26 जुलाई, 2021 की थी.

चूंकि पहली ही नजर में यह बात साफ हो गई थी कि हत्यारा बेहद चालाक और शातिर है. वसई पुलिस ने बिना देर किए आईपीसी की धारा 302, 201 के तहत हत्या का मामला अज्ञात के खिलाफ दर्ज कर लिया.

मृतका की शिनाख्त के लिए पुलिस ने उस के कपड़ों, सूटकेस के विभिन्न एंगिल से फोटो खिंचवा कर उस के 200 बड़े बैनर और पोस्टर बनवा लिए. फिर वह पूरे महाराष्ट्र के साथ ही आसपास के राज्यों में लगवा दिए ताकि कहीं से भी अगर कोई इन तसवीरों को देख कर पुलिस से संपर्क करे तो आगे जांच की जा सके. जिस के बाद हत्यारों को पकड़ा जा सके.

इतना ही नहीं पुलिस ने पड़ोसी राज्य के बौर्डर के थानों में संपर्क किया, आसपास के थानों में फोन घुमाए. इस के अलावा क्राइम ऐंड क्रिमिनल ट्रैकिंग ऐंड मिसप्स पर भारत भर में हजारों गुमशुदा शिकायतों की जांच की गई, लेकिन वहां भी कोई सुराग नहीं मिला.

एक साल बाद भी नहीं मिला सुराग

पुलिस ने पोस्टमार्टम कराने के साथ ही लाश का डीएनए सैंपल सुरक्षित रखवा दिया. इस के बाद पुलिस मामले में कोई सुराग मिलने का इंतजार करने लगी.

पुलिस ने इसे चुनौती के रूप में स्वीकार करते हुए लाश की शिनाख्त के लिए पूरी ताकत लगा दी.  जोनल डीसीपी संजय कुमार पाटिल ने 6 टीमों का गठन किया, जिस में इंसपेक्टर ऋषिकेश पावल, इंसपेक्टर (क्राइम) अब्दुल हक, एपीआई राम सुरवासे, सुनील पवार, सागर चव्हाण, एसआई विष्णु वघानी, कांस्टेबल सुनील मालवकर, विनोद पाटिल, मिलिंद घरत, शरद पाटिल, विनायक कचरे शामिल थे.

इस के साथ ही सीसीटीवी कैमरों की जांच भी की गई. लेकिन इतने प्रयास के बाद भी पुलिस को कोई क्लू नहीं मिला. दिन गया रात आई, रात गई दिन आया और धीरेधीरे दिन, महीने इस तरह पूरा एक साल गुजर गया. लेकिन इस बीच पुलिस को इस सिर कटी युवती की लाश के सिलसिले में कहीं से कोई सूचना नहीं मिली.

कर्नाटक के बेलगाम में रहने वाले जावेद शेख पिछले एक साल से अपनी 25 वर्षीय बेटी सान्या उर्फ सानिया शेख से बात करने के लिए परेशान थे. जब भी वह फोन मिलाते, बेटी का मोबाइल स्विच्ड औफ मिलता था. जबकि उस के पति के नंबर पर फोन मिलाने पर रौंग नंबर कह कर फोन काट दिया जाता था. अपनी बेटी से बात करने के लिए पूरा परिवार तरस गया था. उस की कोई खोजखबर भी नहीं मिल रही थी.

जावेद इस बात से बहुत परेशान थे. अपनी बेटी से उन की आखिरी बार बात 8 जुलाई, 2021 को हुई थी. बेटी की ससुराल मुंबई के नालासोपारा में थी. उन दिनों कोविड के चलते यात्रा करना व कहीं आनाजाना मुश्किल हो रहा था.

बेटी की तलाश में पहुंचे मुंबई

आखिर काफी सोचविचार के बाद जावेद और उन के घर वालों ने मुंबई जा कर सानिया शेख के बारे में पता करने का निर्णय लिया. जावेद शेख अपने बेटों व कुछ परिचितों के साथ 27 अगस्त, 2022 को मुंबई के लिए रवाना हुए.

मुंबई पहुंच कर जावेद नालासोपारा स्थित सानिया की ससुराल पहुंचे. वहां पहुंच कर उन्हें जो जानकारी मिली, उस से उन के पैरों तले की जमीन जैसे खिसक गई.

यह जान कर वह हैरान रह गए कि जिस फ्लैट में सानिया के ससुराल वाले रहते थे, एक साल पहले बेच कर वे लोग यहां से चले गए थे. ससुराल वाले कहां चले गए, इस की वहां किसी को जानकारी नहीं थी.

अब सानिया के घर वालों को दाल में कुछ काला नहीं, बल्कि पूरी दाल ही काली नजर आने लगी थी. क्योंकि ससुराल वालों के फ्लैट बेचने की जानकारी उन्हें मुंबई आने के बाद ही हुई थी. इस संबंध में उन्हें किसी ने कोई बात नहीं बताई थी. इधर सानिया से पिछले एक साल से बात नहीं हो पाना, फ्लैट को बेच देना, ये बातें किसी साजिश की ओर इशारा कर रही थीं.

तब जावेद शेख 29 अगस्त, 2022 को बिना देर किए नालासोपारा के अचोले थाने पहुंच गए. उन्होंने पुलिस को बताया कि सानिया के मातापिता की मौत उस के बचपन में ही हो गई थी. भतीजी सानिया को उन्होंने अपनी बेटी मान कर पालापोसा था.

5 साल पहले 2017 में उस की शादी मुंबई के ठाणे जिले के नालासोपारा इलाके के रश्मि रीजेंसी अपार्टमेंट निवासी आसिफ शेख के साथ कर दी.