परदे में खुदकुशी का राज : क्या था एसपी की आत्महत्या का राज

5 सितंबर की बात है. कानपुर के एसपी (पूर्वी) सुरेंद्र कुमार दास अपनी पत्नी डा. रवीना सिंह के साथ सरकारी आवास में थे. पतिपत्नी के बीच काफी दिन से तनाव चल रहा था. एसपी सुरेंद्र दास तनाव में थे. वह अपनी परेशानी किसी से बता भी नहीं पा रहे थे. उन के दिल की बात किसी को पता नहीं थी. डा. रवीना को भी हालत की गंभीरता का अंदाजा नहीं था. सुबह का समय था. सुरेंद्र दास ने पत्नी को आवाज दी.

वह आई तो एसपी सुरेंद्र दास ने बिना हावभाव बदले रवीना के हाथ में एक कागज का टुकड़ा देते हुए बोले, ‘‘मैं ने जहर खा लिया है. मैं ने इस के लिए तुम्हें या किसी को भी जिम्मेदार नहीं ठहराया है.’’पति की बात सुन कर रवीना अवाक रह गई. उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे? वह बोली, ‘‘आप नहीं होंगे तो इस लेटर का हम क्या करेंगे?’’

रवीना ने लेटर को बिना पढ़े, बिना देखे मरोड़ कर कमरे में एक तरफ फेंक दिया. बिना वक्त गंवाए रवीना ने पुलिस आवास पर तैनात पुलिसकर्मियों को एसपी साहब की तबीयत खराब होने की जानकारी दे दी.

पुलिसकर्मियों की मदद से वह पति को प्राइवेट अस्पताल में ले गई. 5 बज कर 20 मिनट पर वहां से उन्हें उर्सला अस्पताल और 6 बज कर 20 मिनट पर रीजेंसी अस्पताल ले जाया गया.
पुलिस अफसर के जहर खाने की बात तेजी से फैलने लगी. कानपुर से ले कर राजधानी लखनऊ के पुलिस मुख्यालय तक अफसरों में हड़कंप मच गया. सुरेंद्र कुमार दास के बेहतर इलाज के लिए हरसंभव प्रयास किए जाने लगे.

कानपुर के रीजेंसी अस्पताल के डाक्टरों ने एम्स दिल्ली और मुंबई के बड़े अस्पतालों के डाक्टरों से संपर्क साधा ताकि एसपी साहब को बेहतर इलाज दिया जा सके. एसपी सुरेंद्र कुमार दास के शरीर के अंदरूनी अंगों पर जहरीले पदार्थ का असर पड़ने लगा था, जिस से शरीर के दूसरे अंगों के फेल होने का खतरा बढ़ता जा रहा था.

स्वास्थ्य में सुधार और बेहतर इलाज के लिए मुंबई से हवाई जहाज से इलाज में सहायक एक्मो नाम का एक उपकरण मंगाया गया. यह उपकरण लखनऊ और कानपुर में उपलब्ध नहीं था. एक्मो के द्वारा शरीर के अंगों को काम करने के लिए मदद दी जाती है.

एसपी सुरेंद्र कुमार दास 2014 बैच के आईपीएस अधिकारी थे. मूलरूप से वह बलिया जिले के रहने वाले थे. उन के पिता लखनऊ के रायबरेली रोड स्थित पीजीआई कालोनी में रहते थे. कानपुर शहर में वह एसपी (पूर्वी) के पद पर तैनात थे. उन की पत्नी रवीना डाक्टर थी. दोनों की शादी 9 अप्रैल, 2017 को हुई थी.

यह शादी अखबार के वैवाहिक विज्ञापन के माध्यम से हुई थी. रवीना के पिता भी सरकारी डाक्टर हैं. शादी के बाद सुरेंद्र दास अंबेडकर नगर में बतौर सीओ तैनात थे. उस समय रवीना भी उन के साथ रहती थी. रवीना वहां अंबेडकर नगर मैडिकल कालेज में बतौर डाक्टर संविदा पर तैनात थी.
रवीना ने जुलाई माह में ही नौकरी जौइन की थी और एक महीने बाद अगस्त में ही नौकरी छोड़ दी. सुरेंद्र दास जब कानपुर में एसपी (पूर्वी) के रूप में तैनात किए गए तो रवीना उन के साथ रहने लगी थी.

एसपी सुरेंद्र कुमार दास के जहर खाने की सूचना उन के कल्ली, लखनऊ स्थित घर पहुंची तो सुरेंद्र की मां इंदु देवी, बड़ा भाई नरेंद्र दास, भाभी सुनीता कानपुर के लिए रवाना हो गए.

मुंबई और रीजेंसी अस्पताल के डाक्टरों की टीम ने सुरेंद्र दास को बचाए रखने का प्रयास जारी रखा, लेकिन 5 दिन के संघर्ष के बाद रविवार 9 सितंबर की दोपहर 12 बज कर 20 मिनट पर सुरेंद्र दास का निधन हो गया. उन के शव को कानपुर से लखनऊ उन के एकता नगर स्थित निवास पर लाया गया. पूरी कालोनी सदमे में थी.

सुरेंद्र दास के पिता रामचंद्र दास सेना से रिटायर हुए थे. उन्होंने करीब डेढ़ दशक पहले एकता नगर में पंचवटी नाम से मकान बनाया था. सुरेंद्र दास 2 भाई थे. उन के बड़े भाई नरेंद्र दास अपने मकान में ही हार्डवेयर की दुकान चलाते थे. सुरेंद्र दास की 5 बहनें पुष्पा, आरती, सुनीता, अनीता और सावित्री थीं. सभी बहनों की शादी हो चुकी थी.

सुरेंद्र दास पढ़ाई में तेज थे. उन के पिता रामचंद्र दास ने सुरेंद्र की पढ़ाई के लिए अलग जमीन पर कमरा बनवा दिया था, जिस से उन की पढ़ाई में व्यवधान न आए. यहीं रह कर सुरेंद्र पढ़ाई करने लगे. दिन भर वह कमरे में रह कर पढ़ाई करते थे. वहां से वह घर केवल खाना खाने आते थे.
जब उन का चयन आईपीएस के लिए हुआ तो पूरी कालोनी में खुशियां मनाई गईं. कालोनी में रहने वाले सभी मातापिता अपने बच्चों को सुरेंद्र दास जैसा बनने का उदाहरण देते थे. कालोनी के कुछ बच्चे सुरेंद्र दास के संपर्क में रहते थे. वे उन बच्चों को कंपटीशन की तैयारी की सलाह देते थे. 10 साल पहले सुरेंद्र दास के पिता नरेंद्र दास की मौत हो गई थी.

सुरेंद्र दास की खुदकुशी पर किसी को यकीन नहीं हो रहा था. इस का कारण यह था कि वह संस्कारी स्वभाव के थे. कालोनी में रहने वाले किसी भी बुजुर्ग से वह ऊंची आवाज में बात नहीं करते थे, हमेशा अंकल कह कर उन्हें इज्जत देते थे. उन की मौत के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पुलिस प्रमुख ओमप्रकाश सिंह सहित सभी अफसरों ने उन के घर जा कर शोक जताया.

सुरेंद्र दास के परिवार ने उन की मौत के लिए पत्नी डा. रवीना सिंह को जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया था. सुरेंद्र दास के भाई नरेंद्र दास ने कहा कि वह रवीना के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने की रिपोर्ट दर्ज कराएंगे.

नरेंद्र दास ने कहा कि सुरेंद्र दास की मौत के लिए रवीना ही हिम्मेदार है. रवीना उन्हें परिवार से अलग रखना चाहती थी, जबकि सुरेंद्र परिवार से दूर नहीं रहना चाहते थे. वह भावुक और संवेदनशील इंसान थे. जबकि रवीना उन पर शक करती थी, जब वह गश्त पर जाते थे तो वह उन के साथ ही जाती थी.

वैसे भी रवीना का अपने मायके की तरफ झुकाव ज्यादा था. पुलिस लाइन में जन्माष्टमी के दिन लड्डू गोपाल के कपड़े खरीदने को ले कर दोनों में विवाद हुआ था. सुरेंद्र उन के साथ जाना चाहते थे, जबकि वह अकेले जाना चाहती थी.

सुरेंद्र दास के भाई नरेंद्र दास का आरोप था कि रवीना ने पति को इतना प्रताडि़त किया कि उन्होंने आत्महत्या कर ली. इस के अलावा उन के पास कोई रास्ता नहीं था.

वह पूरी तरह से टूट गए थे और बिना सोचेसमझे आत्महत्या कर ली. नरेंद्र ने कहा कि सुसाइड नोट में हैंड राइटिंग की जांच कराएंगे. नरेंद्र ने बताया कि रवीना नानवेज खाती थी, जबकि सुरेंद्र पूरी तरह से शाकाहारी थे.

कृष्ण जन्माष्टमी के दिन भी रवीना ने नानवेज खाया था, जिस की वजह से दोनों में तनाव था. नरेंद्र दास का कहना था कि मानसिक तनाव में ही सुरेंद्र दास यह सोच रहे थे कि आत्महत्या कैसे की जाए. कानपुर के एसएसपी ए.के. तिवारी के अनुसार सुरेंद्र दास के सुसाइड नोट में पारिवारिक कलह, पत्नी से छोटीछोटी बातों में तनाव और कई बातें भी लिखी थीं. सुरेंद्र ने सीधे तौर पर अपनी आत्महत्या के लिए किसी को भी जिम्मेदार नहीं ठहराया था.

एसपी सुरेंद्र दास के भाई नरेंद्र दास ने भले ही उन की पत्नी रवीना को आत्महत्या का जिम्मेदार बताया हो, पर खुद सुरेंद्र ने अपने सुसाइड नोट में पत्नी रवीना को जिम्मेदार नहीं माना. सुरेंद्र दास ने अपने 7 लाइन के पत्र में अंगरेजी और हिंदी दोनों में लिखा था.

अंगरेजी में उन्होंने लिखा था कि वह पिछले एक सप्ताह से आत्महत्या करने के तरीके खोज रहे थे. गूगल पर आत्महत्या करने का सब से आसान तरीके को समझने के लिए पढ़ा और वीडियो देखी. इस के बाद 2 तरीकों पर ध्यान दिया. पहला ब्लेड से शरीर की नस काटनी थी. दूसरा जहर खाने का तरीका था.

नस काटने में दर्द होने की संभावना ज्यादा थी. ऐसे में मुझे जहर खाने का तरीका सब से अच्छा लगा. इस के लिए उन्होंने सल्फास लाने के लिए अपने एक कर्मचारी को कहा कि उन्हें चूहे और सांप भगाने हैं. 4 सितंबर को जहर खाने से पहले सुरेंद्र दास ने सल्फास मंगवा कर रख ली थी.
इन तमाम आरोपों पर सुरेंद्र दास की पत्नी डा. रवीना की तरफ से कोई भी बात नहीं कही गई. रवीना ने केवल इतना कहा कि मेरा सब कुछ चला गया है. मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिए. मुझे किसी से कोई बात नहीं करनी है. मैं हाथ जोड़ कर कह रही हूं कि मुझे किसी से कुछ नहीं कहना है.
रवीना के परिजनों ने हर आरोप को गलत बताते हुए कहा कि सच्चाई सुरेंद्र दास के परिवार को पता है. वह अपने परिवार से परेशान थे और 4 महीने से वह अपने परिवार के संपर्क में नहीं थे. सुरेंद्र की मौत की फाइल अभी बंद नहीं हुई है. ऐसे में संभव है कि कुछ दिनों के बाद कोई सुराग मिले तो फिर से नए तथ्य सामने आएं.

एक बात साफ है कि सुरेंद्र अपने जीवन में बेहद तनाव के दौर में गुजर रहे थे. इस बारे में उन्होंने अपने घरपरिवार और पत्नी से भी किसी तरह की कोई चर्चा नहीं की थी. अगर वह अपने करीबी लोगों से अपने तनाव के बारे में चर्चा कर लेते तो शायद वह ऐसा कदम नहीं उठाते.
एसपी सुरेंद्र दास की आत्महत्या को ले कर जब आरोपों का दौर चला तो उन की पत्नी डा. रवीना के मातापिता ने सामने आ कर प्रैस कौन्फ्रैंस की. रवीना के पिता रावेंद्र ने कई कथित सबूतों के साथ आरोप लगाया कि सुरेंद्र का परिवार नहीं चाहता था कि सुरेंद्र रवीना के साथ रहे. उन्होंने यह भी कहा कि सुरेंद्र की शादी की बात पहले तूलिका नाम की लड़की से हुई. बात नहीं बनी तो मोनिका से सगाई हुई, लेकिन वह भी टूट गई.

अगस्त 2016 में सुरेंद्र की पहली मुलाकात रवीना से हुई. बात आगे बढ़ी तो सुरेंद्र का परिवार इस रिश्ते के खिलाफ था. लेकिन सुरेंद्र ने किसी तरह अपनी मां को मना लिया. शादी से पहले सुरेंद्र के बड़े भाई नरेंद्र ने शादी का सामान रवीना के एटीएम कार्ड से खरीदा. अप्रैल, 2017 में रवीना अपनी ससुराल पहुंची तो वहां उस से अभद्रता की गई. भद्दे कमेंट्स किए गए. यहां तक कि उसे खाना भी नहीं दिया गया.

रावेंद्र के अनुसार, सुरेंद्र का बड़ा भाई नरेंद्र एक व्यावसायिक प्लौट खरीदने के लिए सुरेंद्र से पैसे मांग रहा था. एकता नगर का प्लौट बेचने के चक्कर में दोनों भाइयों में झगड़ा होता था.

रावेंद्र के अनुसार, सुरेंद्र की मां इंदु अपने बेटे के पास नहीं जाती थीं. सुरेंद्र दास जब सहारनपुर में तैनात थे तो लखनऊ आते थे लेकिन अपने परिवार को सूचना देने से मना कर देते थे. बाद में अंबेडकर नगर ट्रांसफर के समय सुरेंद्र ने दहेज का सामान लाने के लिए ट्रक भेजा था, लेकिन नरेंद्र ने सामान देने से मना कर दिया.

बहरहाल, दोनों पक्षों की ओर से आरोपप्रत्यारोप चल रहे हैं. कौन सच बोल रहा है, कौन झूठ कहा नहीं जा सकता. हां, यह तय है कि सुरेंद्र दास ने मानसिक द्वंद के चलते ही आत्महत्या की. दुख यह जान कर होता है कि जो व्यक्ति कानून का रखवाला था, आत्महत्या कर के वह खुद ही कानून से खेल कर दुनिया से दूर चला गया. आखिर कोई तो ऐसी बात रही होगी जो उन से बरदाश्त नहीं हुई. इस बात का पता लगाया जाना जरूरी है.

ले डूबी अय्याशी : क्या निकला दीपा की अय्याशी का नतीजा

घटना 18 मई, 2018 की है. माधव नगर थाने के थानाप्रभारी गगन बादल अपने औफिस में बैठे विभागीय कार्य निपटा रहे थे तभी उन्हें सूचना मिली कि थाना क्षेत्र के वल्लभ नगर में मां बादेश्वरी मंदिर के सामने रहने वाली दीपा वर्मा के घर से बड़ी मात्रा में धुआं निकल रहा है. शायद वहां आग लग गई है. यह थाना मध्य प्रदेश के जिला उज्जैन के अंतर्गत आता है.

थानाप्रभारी ने यह जानकारी दमकल विभाग के अलावा एसपी सचिन अतुलकर को भी दे दी. इस के बाद वह खुद सूचना में बताए गए पते की तरफ रवाना हो गए.

जब तक वह मौके पर पहुंचे, तब तक दमकल विभाग की गाड़ी भी वहां पहुंच चुकी थी. पता चला कि दीपा वर्मा के घर में आग लगी थी. इस से पहले कि आग भयावक रूप लेती, दमकलकर्मी वहां पहुंच गए थे. उन्होंने कुछ देर में आग बुझा दी. आग बुझने के बाद दमकल कर्मियों के साथ थानाप्रभारी जब उस मकान के अंदर पहुंचे तो किचिन में लिहाफ गद्दे वगैरह पड़े मिले. वह अधजले थे. उन कपड़ों से धुआं उठ रहा था.
दमकलकर्मियों ने उन अधजले लिहाफगद्दों को हटाया तो वहां का नजारा देख कर पुलिस चौंक गई. क्योंकि उन लिहाफगद्दों के नीचे एक महिला का शव औंधे मुंह पड़ा हुआ था. उस की दोनों कलाइयों की नशें भी कटी हुई थीं. साथ ही उस की गरदन पर धारदार हथियार का घाव था.

मकान मालिक ने मृतका की पहचान 35 वर्षीय दीपा वर्मा के रूप में की. उस ने बताया कि यह 5 महीने से अशोक वर्मा के साथ इस मकान में रह रही थी. अशोक के अलावा इस के पास और भी कई युवक आते थे. कुछ ही देर में एसपी सचिन अतुलकर और एफएसल अधिकारी डा. प्रीति भी टीम के साथ मौके पर पहुंच गईं.

पुलिस ने जब जांच की तो बेडरूम में खून के धब्बों के अलावा सामान भी अस्तव्यस्त मिला. बेडरूम का दरवाजा भी टूटा हुआ था. इस से यह अनुमान लगाया कि घटना से पहले दीपा और हमलावर के बीच संघर्ष हुआ होगा. इस के बाद उस की हत्या कर लाश किचिन में ले जा कर जलाने की कोशिश की.

लाश को जलाने का तरीका भी अनोखा था. हत्यारे ने दीपा वर्मा की हत्या के बाद एलपीजी गैस सिलेंडर की नली चूल्हे से निकालने के बाद उसे दीपा वर्मा की जांघों के बीच डाल कर ऊपर से लिहाफगद्दे डाल दिए. फिर रैग्युलेटर से गैस औन कर के आग लगाई थी.

इस से इस बात की आशंका को बल मिला कि हत्या का मामला अवैध संबंधों से जुड़ा हो सकता है. दीपा वर्मा की हत्या की सूचना पा कर भैरवगढ़ में जेल रोड की ज्ञान टेकरी पर रहने वाला दीपा का भाई भी मौके पर पहुंच गया. उस ने दीपा के साथ लिवइन रिलेशन में रहने वाले अशोक शर्मा पर उस की हत्या का आरोप लगाया.

उस का कहना था कि दीपा पिछले 8 सालों से अशोक के साथ रह रही थी. पुलिस ने दीपा के भाई की तहरीर पर हत्या का मामला दर्ज कर लिया. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के दीपा की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

पुलिस ने दीपा के साथ लिवइन रिलेशन में रहने वाले अशोक के बारे में जानकारी हासिल की. पता चला कि अशोक पहले से शादीशुदा है. उस की ब्याहता गांव में रहती है. वह दीपा के पास 1-2 दिन में चक्कर लगाता था.

उधर 3 डाक्टरों के पैनल ने दीपा का पोस्टमार्टम किया जिस में चौंकाने वाली बात यह सामने आई कि दीपा को जिंदा ही जलाया गया था. मरने से पहले दीपा के साथ बलात्कार किया गया था या नहीं इस की जांच के लिए उस की स्लाइड बना कर सागर जिले की लैबोरेटरी भेज दी. मामला गंभीर था इसलिए एसपी सचिन अतुलकर ने थाना माधव नगर के थानाप्रभारी गगन बादल के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. एसआई बी.एस. मंडलोई, संजय राजपूत आदि के साथ साइबर सेल प्रभारी इंसपेक्टर दीपिका शिंदे और संतोष राव को उन की टीम में शामिल किया गया.

इंसपेक्टर शिंदे ने सब से पहले अशोक को पूछताछ के लिए बुलाया. अशोक ने बताया कि वह पिछले 8 सालों से दीपा के संपर्क में था. इसलिए वह अब उसे क्यों मारेगा. साथ ही उस ने बताया कि मेरी गैरमौजूदगी में दीपा दूसरे कई युवकों को अपने पास बुलाती और उन के साथ मौजमस्ती करती थी. उस ने उसे कई बार समझाया लेकिन दीपा ने अपनी आदत नहीं बदली थी. अशोक ने दीपा के प्रेमियों के नाम भी पुलिस को बता दिए.

उन में 2 को पुलिस ने पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. उन दोनों से पूछताछ में दीपा के एक और प्रेमी धर्मेंद्र गहलोत का नाम सामने आया. धर्मेंद्र देवास रोड पर रहता था. इंसपेक्टर दीपिका शिंदे और थानाप्रभारी गगन बादल दोनों टीम के साथ धर्मेंद्र के घर जा धमके.

संयोग से धर्मेंद्र घर पर ही मौजूद था. उस के दोनों हाथ की अंगुलियों में ताजे घाव थे. इंसपेक्टर शिंदे उस की चोट देखते ही समझ गईं कि दीपा वर्मा का कातिल उन के हाथ लग चुका है. इसलिए उन्होंने उस से सीधे सवाल किया, ‘‘दीपा को तूने क्यों मारा.’’

धर्मेंद्र को ऐसी उम्मीद नहीं थी कि पुलिस इतनी जल्दी उस तक पहुंच जाएगी. इंसपेक्टर शिंदे का सवाल सुन कर वह हतप्रभ सा रह गया. वह इधरउधर की बातें करने लगा.

तभी पुलिस ने उस के घर की तलाशी ली तो घर में छिपा कर रखे खून सने कपड़े और दीपा के दोनों मोबाइल फोन मिल गए. इस के बाद धर्मेंद्र के पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं बचा था. सो उस ने चुपचाप अपना जुर्म कबूल कर लिया.

उस से पूछताछ के बाद दीपा वर्मा की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

दीपा वर्मा का परिवार उज्जैन का रहने वाला था. भैरवगढ़ इलाके में जेल रोड की ज्ञान टेकरी पर दीपा की मां अपने 2 बेटों के साथ रहती थी. दीपा बेहद खूबसूरत और चंचल स्वभाव की थी. उस के इस स्वभाव को निमंत्रण समझ कर मोहल्ले के युवक उस की गली के चक्कर लगाने लगे थे.

बेटी के पैर बहक न जाएं, इसलिए महज 14 साल की उम्र में उस के पिता ने दीपा की शादी देवास के जलाल खेड़ी में रहने वाले राकेश वर्मा के साथ कर दी थी. इस तरह खेलनेकूदने की उम्र में ही दीपा पति के साथ वयस्कों की दुनिया देख चुकी थी.

पति राकेश उस की सुंदरता का कायल था. उम्र बढ़ने के साथ दीपा ने जब जवानी में कदम रखा तो उस की शारीरिक जरूरतें पहले से ज्यादा बढ़ गईं. लेकिन अब तक राकेश वर्मा को घरपरिवार की चिंता सताने लगी थी. इसलिए राकेश रोजीरोटी के चक्कर में यहांवहां भटकने लगा था, इस से परेशान हो कर दीपा ने इधरउधर ताकाझांकी शुरू कर दी.

राकेश को जब पता चला तो वह शराब पी कर उस के साथ मारपीट करने लगा. पति की ज्यादती से दीपा बहुत परेशान हो गई थी. शादी के 10 साल बाद 24 साल की दीपा गुस्से में पति को छोड़ कर मायके में आ कर रहने लगी.

अपना गुजारा करने के लिए उस ने फ्रीगंज इलाके में फाल, पीको की दुकान कर ली. मायके में आ कर कुछ समय तक तो दीपा की जिंदगी आराम से कटी लेकिन फिर उसे अपनी शारीरिक जरूरतें महसूस होने लगीं.

यूं तो दीपा चाहती तो उस के बचपन के दीवाने अब भी मोहल्ले में मौजूद थे, जो उसे अभी भी ललचाई नजरों से घूरते रहते थे. लेकिन दीपा अब बच्ची नहीं थी. उस की आंखों को अब ऐसे मर्द की तलाश थी, जो उस की दैहिक के अलावा दूसरी तमाम जरूरतें भी पूरी कर सके.

एक दिन उस की मुलाकात अशोक से हुई तो दीपा ने अशोक के लिए अपने दिल की लगाम ढीली छोड़ दी. राजनीति में दखल रखने वाला अशोक वर्मा शादीशुदा और एक बच्चे का पिता था. लेकिन उस के पास इतना पैसा था कि वह दीपा की जिंदगी भर तमाम जरूरतें पूरी कर सकता था.

दीपा का रूप उस के दिल को भा चुका था. इसलिए दीपा को राजी देख उस ने उस के सामने साथ रहने का प्रस्ताव रखा, जिसे दीपा ने तुरंत स्वीकार कर लिया.

तब अशोक ने दीपा को किराए का मकान दिला कर घर की तमाम जरूरतें भी पूरी कर दीं. जिस के बाद दीपा अशोक के साथ बिना शादी किए ही पत्नी की तरह रहने लगी. यह करीब 8 साल पहले की बात है.
अशोक राजनीति में भी दखल रखता था. उस के पास पैसा भी खूब था, इसलिए दीपा को काम करने की जरूरत नहीं रह गई थी. फिर भी समय काटने के लिए उस ने फाल लगाने और पीको करने का काम बंद नहीं किया था. लेकिन ऐसे मामले में वही हुआ जो होता है.

दीपा के साथ 4-5 साल गुजारने के बाद अशोक का मन उस से भर गया. हालांकि वह अपने वादे से तो नहीं मुकरा, वह दीपा की हर आर्थिक जरूरत पूरी करता रहा. पर दीपा के पास उस का आनाजाना जरूर कम हो गया. अब वह 1-2 दिन बाद दीपा के पास आता.

लेकिन दीपा जिस मिट्टी से बनी थी उस के चलते उसे रोजाना पुरुष संग की जरूरत थी. इसलिए अशोक की गैरमौजूदगी का फायदा उठा कर उस ने कई दूसरे युवकों से दोस्ती कर ली. वह उन्हें रात के अंधेरे में अपने घर बुलाने लगी. लेकिन ऐसी बातें छिपती कहां हैं.

यानी अशोक को यह बात पता चल गई. अशोक ने उसे बहुत समझाया, पर उस ने अपनी आदत नहीं बदली. अशोक की गैरमौजूदगी में दूसरे युवक दीपा के घर में आ कर रात गुजारने लगे. अशोक तो दीपा का दीवाना था इसलिए उस के बदचलन होने के बावजूद भी उस ने दीपा का साथ नहीं छोड़ा.

जिस मकान में दीपा की हत्या हुई वह मकान इसी साल जनवरी के महीने में अशोक ने ही किराए पर ले कर उसे रहने के लिए दिया था. कोई 3 साल पहले धर्मेंद्र की पत्नी दीपा की दुकान पर अपनी साड़ी पर फाल लगवाने के लिए साड़ी दे कर चली गई थी. बाद में धर्मेंद्र दीपा की दुकान पर वह साड़ी लेने गया था. तभी दीपा से उस की पहली मुलाकात हुई थी.

वैसे दीपा धर्मेंद्र से उम्र में काफी बड़ी थी. लेकिन उस की खूबसूरती देख कर धर्मेंद्र का मन पागल हो गया. इसलिए उस के हाथ से साड़ी लेते समय उस ने जानबूझ कर उस की अंगुलियों को छू दिया.

ऐसा कर के धर्मेंद्र को इस बात का डर था कि कहीं वह बुरा न मान जाए. लेकिन दीपा काफी बोल्ड थी. उस ने सीधे कहा, ‘‘बड़े हिम्मत वाले हो जो पहली ही मुलाकात में अंगुली पकड़ रहे हो. इस बार अंगुली पकड़ी है तो लगता है अगली बार सीधे पहुंचा पकड़ोगे.’’

यह सुन कर धर्मेंद्र झेंप गया तो वह जोर से हंस दी. जिस के बाद दोनों की दोस्ती हो गई और फोन पर बातें होने लगीं. धर्मेंद्र दीपा से मिलना चाहता था. लेकिन उस से कहने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था. 10-15 दिन बाद एक रोज खुद दीपा ने ही कहा कि कब तक फोन पर बातें कर के आग भड़काते रहोगे, मिलोगे नहीं क्या?

‘‘मिलना तो चाहता हूं पर कहां मिलूं. यह बात समझ में नहीं आ रही है. अच्छा तुम एक काम करो, कल महाकाल मंदिर आ जाओ, वहीं मिलते हैं.’’ धर्मेंद्र बोला.

‘‘क्यों, मेरे साथ वहां क्या भजन करना है, जो मंदिर में बुला रहे हो. तुम सीधे मेरे घर आ जाओ, वहीं घंटा बजाएंगे.’’ कहते हुए दीपा ने अपने घर का पता बता दिया.

उसी दिन शाम को धर्मेंद्र दीपा के किराए वाले मकान में पहुंच गया. दोनों ने एकांत का लाभ उठाते हुए अपनी हसरतें पूरी कीं. जल्द ही दीपा ने धर्मेंद्र को अपनी अदाओं से वश में कर लिया.

इस के बाद धर्मेंद्र उस पर काफी पैसे भी लुटाने लगा था. दीपा से मिलनेजुलने में दिक्कत न हो इसलिए धर्मेंद्र ने उस के पति अशोक से भी दोस्ती बना ली थी. जब मन होता दोनों शराब और चिकन की पार्टी भी करते.

लेकिन कुछ समय बाद ही धर्मेंद्र को पता चल गया कि अशोक दीपा का पति नहीं है, बल्कि वह उस के साथ रखैल बन कर रह रही है. इतना ही नहीं दूसरे और युवकों के साथ भी दीपा के संबंध होने की जानकारी धर्मेंद्र को लग गई. यहां तक कि धर्मेंद्र जिन दोस्तों को दीपा के यहां ले गया था, उन के साथ भी दीपा ने अवैध संबंध बना लिए थे.

धर्मेंद्र ने दीपा को समझाया कि वह ऐसा न करे लेकिन उस ने उलटे धर्मेंद्र से ही मिलना बंद कर दिया. धर्मेंद्र उस से मिलने की चाहत व्यक्त करता तो वह किसी न किसी बहाने से उसे टाल देती थी.

धर्मेंद्र की पत्नी को भी यह जानकारी मिल गई कि उस का पति दीपा नाम की किसी महिला के पास जाता है. धर्मेंद्र पत्नी से लगातार झूठ बोलता रहा. जब उस ने दीपा से मिलना नहीं छोड़ा तो वह उस से झगड़ने लगी.

एक दिन धर्मेंद्र दीपा के पास गया तो वहां पर उस के 2 दोस्त कुक्कू और रवि मिले. दीपा ने उस दिन धर्मेंद्र को घर से बाहर निकाल कर दरवाजा बंद कर दिया था.

धर्मेंद्र अपने घर वापस आ गया लेकिन उस की नजरों के सामने दीपा की कुक्कू और रवि के साथ अय्याशी की तसवीरें किसी फिल्म की तरह चलती रहीं. इसलिए सुबह होते ही वह फिर से दीपा के घर पहुंचा. उस समय दीपा अकेली थी.

कुक्कू और रवि के साथ मस्ती करने के फेर में रात भर शायद वह सोई नहीं थी. इसलिए अपनी नींद में खलल पड़ने से वह धर्मेंद्र पर नाराज होते हुए को उलटासीधा बोलने लगी. यह देख कर धर्र्मेंद्र का खून खौल उठा और उस ने दीपा की पिटाई की. गुस्से में उस ने उस की दोनों कलाइयों की नसें भी काट दीं, जिस से कमरे में खून फैल गया और वह बेहोश हो गई. अब वह उसे जीवित नहीं छोड़ना चाहता था.

हाजा वह उसे खींच कर रसोई में ले गया और उस की सलवार निकाल कर उस ने एलपीजी सिलेंडर का पाइप गैस चूल्हे से निकाल कर उस की दोनों जांघों के बीच फंसा कर ऊपर से लिहाफ, दरी, गद््दा डाल कर रैग्युलेटर से गैस चालू कर दी, फिर आग लगा कर वह वहां से चला गया. उस ने सोचा कि सिलेंडर फटने के बाद लोग इसे दुर्घटना समझेंगे और वह बच जाएगा.

लेकिन जब मकान में धुआं निकलना शुरू ही हुआ था, तभी पड़ोसी राकेश वर्मा ने इस की सूचना पुलिस को दे दी. धर्मेंद्र से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. बैडरूम का दरवाजा कैसे टूटा, यह बात पुलिस पता नहीं लगा सकी.

उज्जैन के आईजी राकेश गुप्ता ने केस का खुलासा करने वाली पुलिस टीम के कार्य की सराहना करते हुए पुरस्कृत करने की घोषणा की.

(कथा में कुछ नाम परिवर्तित हैं)

प्यार नहीं वासना के अंधे – भाग 2

सादिक का एक पैर खराब था, जिस की वजह से वह लंगड़ाकर चलता था लिहाजा लोग उसे सादिक लंगड़ा के नाम से पुकारते थे. रुखसार जब उस की शरीक ए हयात बनकर आई तो वह अपनी इस कमजोरी को भूलने लगा.

इतनी खूबसूरत बीवी पा कर किसी का भी इतराना कुदरती बात होती है लेकिन शायद पैर की कमजोरी के चलते रुखसार उसे मन से नहीं अपना पाई. हालांकि सादिक शारीरिक तौर पर किसी सामान्य पुरुष से उन्नीस नहीं था.

रुखसार की जवानी के समंदर में सादिक ऐसा डूबा कि उस ने अपने काम धाम पर ध्यान देना छोड़ दिया और दिन रात बीवी के साथ बिस्तर में पड़ा जवानी और जिंदगी का लुत्फ उठाते भूल गया कि घर चलाने के लिए पैसा भी उतना ही जरूरी है जितना कि सेक्स.

जब जवानी की खुमारी पर भूख और जरूरतें भारी पड़ने लगीं तो सादिक जल्द और ज्यादा पैसे कमाने की गरज से गलत राह पर चल पड़ा. वह नशे का कारोबार करने लगा. जो लोग नशे के आइटम यानि ड्रग्स का धंधा और स्मगलिंग करते हैं आमतौर पर उन्हें भी इस की लत लग जाती है यही सादिक के साथ हुआ. वह ड्रग्स बेचतेबेचते उस का नशा भी करने लगा था.

पति की हरकतों से परेशान रुखसार को भी नशे की लत लग गई. वह खुद तो नशा करने ही लगी शौहर के साथ नशे का कारोबार भी मिल कर करने लगी. उस के दिल में एक कसक हमेशा बनी रही कि उसे वैसा शौहर नहीं मिला, जैसा मिलना चाहिए था.

यह कसक कुंठा में बदलने लगी जिस का अहसास कम पढ़ीलिखी रुखसार को था या नहीं, यह तो वही जाने पर बाहर की हवा लग जाने से उसे महसूस हुआ कि सादिक और घर के अलावा भी एक जिंदगी और है, जिस में कुछ और हो न हो लेकिन पैसा ठीकठाक है.

सादिक को भी इस बात का अहसास था कि वह अपनी बीवी की दिली पसंद और चाहत नहीं बल्कि मजबूरी है इसलिए धीरेधीरे वह आक्रामक होने लगा. इस दौरान दोनों का एक बेटा भी हुआ.

अब पैसा तो ठीकठाक आ रहा था लेकिन रुखसार की सादिक के लंगड़ेपन को ले कर असंतुष्टि सर उठाने लगी थी. वह सीधे तो सादिक से कुछ नहीं कहती थी लेकिन जब भी सादिक नशे में बिस्तर पर आता तो उसे उस की हरकतें नागवार गुजरने लगी. एक पुरानी कहावत है जिस का सार यह है कि औरत पति से 2 चीजें ही चाहती है पहली यह कि वह खाने पीने की कमी न होने दे और दूसरी यह कि सैक्स में संतुष्टि देता रहे.

रुखसार के साथ तीसरी वजह भी जुड़ गई थी जो शादी के वक्त से उस के मन में सादिक की कमजोरी को ले कर थी. लिहाजा उस का मुंह शौहर के सामने खुलने लगा. सादिक ने इस से ज्यादा कुछ नहीं सोचासमझा कि यह सब उस की पैर की कमजोरी के चलते रुखसार जानबूझ कर उसे जलील करने के लिए करती है.

लिहाजा दोनों में रोज रोज कलह होने लगी और एक दिन तो इतनी हुई कि सादिक ने गुस्से में आ कर 3 बार ‘तलाक तलाक तलाक’ कह कर रुखसार की मुराद पूरी कर दी. वह आम औरतों की तरह पति के सामने रोई गिड़गिड़ाई नहीं बल्कि अपना सामान समेट कर उस का घर ही छोड़ दिया.

घर छोड़ने के बाद वह मायके इंदौर नहीं गई बल्कि महू में ही अलग किराए का मकान लेकर रहने लगी. ये कुछ दिन उस ने सुकून से गुजारे जहां सादिक की जोर जबरदस्ती और कलह नहीं थी, थी तो एक आजाद जिंदगी जिसे वह अपनी मरजी से जी रही थी.

रुखसार को तलाक दे कर सादिक को अहसास हुआ कि उस के बिना जिंदगी में काफी कुछ अधूरा है. दोनों अब अलगअलग अपने नशे की दुकान चला रहे थे और खुद भी नशा कर रहे थे.

रुखसार को भी मर्द की तलब लगने लगी थी. इसी दरम्यान उस की जानपहचान हरदीप नाम के नौजवान से हुई जो रंगीनमिजाज और आवारा होने के साथ बेरोजगार भी था. उसे भी नशे की लत थी, जिस के चलते उस की जानपहचान रुखसार से हुई थी और उस के हुस्न में फंसने से खुद को रोक नहीं पाया था.

इस हवसनुमा प्यार का नया अहसास रुखसार को उस जिंदगी में ले गया जिस के सपने वह शादी के पहले देखा करती थी. अब दोनों बिस्तर साझा करने लगे. प्यार की झोंक में ही रुखसार ने अपने दाहिने हाथ पर हरप्रीत के नाम का टैटू गुदवा लिया.

लेकिन हरदीप चालूपुर्जा निकला. कुछ महीनों में ही उस का रुखसार से जी भर गया तो वह उस से कन्नी काटने लगा. रुखसार अब दुनियादारी का ककहरा समझने लगी थी लिहाजा उस ने पैसों के लिए छोटीमोटी लूटपाट का भी धंधा शुरु कर दिया. इसी के चलते एक बार वह गिरफ्तार भी हुई और पीथमपुरा थाने में भी रही जिस का जिक्र पहले किया गया है.

हरदीप भी एक आपराधिक मामले में फंस कर जेल जा चुका था, लेकिन वह लौट कर दोबारा रुखसार के पास नहीं आया. उस के यूं मुंह मोड़ लेने से रुखसार की जिस्मानी जरूरतें सर उठाने लगी थीं लेकिन इन्हें पूरा करना उसे जोखिम भरा काम लग रहा था.

यही हालत सादिक की भी थी, लिहाजा हिम्मत कर एक दिन वह रुखसार के पास जा पहुंचा और उस से सुलह की बात कही लेकिन रुखसार अब मुड़ कर देखना नहीं चाहती थी, इसलिए उस ने उस की दोबारा शादी की पेशकश ठुकरा दी.

इस से सादिक का दिल दोबारा तो टूटा लेकिन एक अच्छी बात यह रही कि रुखसार इस बात पर राजी हो गई कि कभी कभार वह उसे शरीर सुख दे देगी. ऐसा होने भी लगा. जब सादिक को जरूरत पड़ती थी तो वह रुखसार के घर जा कर सैक्स की अपनी भूख प्यास मिटा लेता था और जब यही जरूरत रुखसार को महसूस होती थी तो वह सादिक के घर चली जाती थी.

दोनों अब एक समझौते के तहत जिंदगी जी रहे थे, जिस में किसी की कोई जोरजबरदस्ती नहीं थी. सौदा मरजी का था, जिस से दोनों खुश थे. सादिक का खून हालांकि यह जान कर खौला जरूर था कि तलाक के बाद रुखसार ने हरदीप से संबंध बनाए थे. लेकिन चूंकि अब वह उस की बीवी नहीं रही थी, इसलिए वह कोई ऐतराज नहीं जता पाया. वैसे भी जो सुख उसे रुखसार से चाहिए था वह मिल रहा था इसलिए खामोश रहने में ही उस ने भलाई समझी.

आजकल के डिजिटल युग में महू के पत्तीपुरा में ठेला लगा कर देवी देवताओं और फिल्मी नायिकाओं के पोस्टर बेचने वाले अधेड़ अनूप माहेश्वरी की दोस्ती सादिक से थी. अनूप भी नशेड़ी था और दिल फेक भी, इसी के चलते पत्नी उसे छोड़ कर चली गई थी.

3 साल पहले एक बार वह अपने ही घर में एक कालगर्ल के साथ मौजमस्ती करते गिरफ्तार भी हुआ था, जिस से समाज में उस की खासी बदनामी हुई थी और वह एक तरह से बहिष्कृत जिंदगी जी रहा था.

प्यार की भूल : सब्र की सीमा ने किया परिवार तबाह – भाग 2

योजना के अनुसार शमा निर्धारित समय पर नरेंदर के पास जालंधर पहुंच गई. फिर वहां से बस द्वारा दोनों चंडीगढ़ पहुंच गए. पहले उन्होंने एक मंदिर में शादी की फिर उस शादी को नोटरी पब्लिक के जरिए रजिस्टर भी करवा लिया.

नरेंदर शमा से शादी कर के बहुत खुश था. उस ने अपनी शादी के लिए बहुत बढि़या इंतजाम कर रखा था. हनीमून को वह यादगार बनाना चाहता था इसलिए उस ने चंडीगढ़ में ही एक थ्रीस्टार होटल में सुइट बुक करवा रखा था. वह बेहद उत्सुक था पर उस रात उस की उत्सुकता ठंडी पड़ गई. उस के सारे अरमानों पर पानी फिर गया.

उस के दिल को इतना बड़ा धक्का लगा कि उस ने सोचा भी नहीं होगा. क्योंकि अपनी मनपसंद की जिस शमा को वह जीजान से चाहता था, सब के विरोध के बावजूद जिस से उस ने शादी की, वह लड़की नहीं बल्कि किन्नर निकली. अब पूरा ब्रह्मांड उसे घूमता नजर आ रहा था. वह बुदबुदाने लगा कि मैं समाज को अब क्या मुंह दिखाऊंगा.

इस के बाद वह बैड से उठ कर जोरजोर से रोने लगा था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. गुस्से से तमतमाते हुए उस ने शमा के गाल पर एक जोरदार थप्पड़ रसीद करते हुए कहा, ‘‘बताओ, मैं ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था. अपनी जान से ज्यादा तुम्हें प्यार किया था और तुम ने मेरे साथ इतना बड़ा छल किया. बताओ, क्यों किया ऐसा? सच बताओ नहीं तो मैं तुम्हारी जान ले लूंगा.’’ नरेंदर के सिर पर जैसे खून सवार हो गया था.

‘‘मैं कुछ नहीं जानती नरेंदर, तुम्हारे प्यार की कसम. मैं तो बचपन से ही ऐसी हूं. मां ने कहा था कि शादी के बाद अपने आप ठीक हो जाऊंगी.’’ शमा ने मासूमियत से जवाब दिया था.

नरेंदर समझ गया कि या तो शमा इतनी भोली है कि उसे इस बारे में कुछ पता नहीं या वह बेहद चालाक है. लेकिन बात कुछ भी रही हो, पर अब वह क्या करे. यह प्रश्न बारबार नरेंदर के दिमाग में घूम रहा था. वक्त की बेरहम आंधी ने उस की खुशियों के चमन को एक झटके में उखाड़ कर तहसनहस कर दिया था. शमा के मिन्नतें करने पर नरेंदर उसे अपने घर ले गया.

2 दिन अपने घर पर रखने के बाद उस ने शमा को घर से निकालते हुए कह दिया, ‘‘शमा, तुम ने मेरे साथ धोखा किया है. अब मैं यह बताना चाहता हूं कि तुम इस घटना को एक बुरा सपना समझ कर भूल जाना. मैं भी भूलने की कोशिश करूंगा. हां, एक बात याद रखना कि आज के बाद कभी भूल कर भी मेरे सामने मत आना. जिस दिन तुम मेरे सामने आ गई तो समझ लेना कि वह दिन तुम्हारी जिंदगी का आखिरी दिन होगा.’’

शमा को इतनी जल्दी भुला देना नरेंदर के लिए आसान नहीं था. इसलिए उस ने जालंधर से दूर जाना उचित समझा. वह अपना सब कुछ छोड़छाड़ कर अपनी मां को ले कर दिल्ली आ गया. यहां उस ने औटो चलाना शुरू कर दिया. दूसरी ओर शमा भी अपनी मां के पास चली गई.

वक्त के साथ सब कुछ सामान्य होता चला गया था. दूसरी ओर शमा की बड़ी बहन की शादी राजकुमार नामक युवक के साथ हो गई. शादी के बाद भोली के ऊपर लोगों का कर्ज भी हो गया था.

मां जो मेहनतमजदूरी करती, उस से बड़ी मुश्किल से घर का खर्च चल पाता था. ऐसी हालत में शमा ने मां का हाथ बंटाना जरूरी समझा. उस ने एक आर्केस्ट्रा ग्रुप जौइन कर लिया. इस काम में अच्छीखासी कमाई थी सो घर के हालात धीरेधीरे बदलने लगे.

शमा जालंधर के आर्केस्ट्रा ग्रुप में काम करती थी. गांव से जालंधर आने में शमा को परेशानी होती थी, इसलिए वह अपनी मां और भाईबहन को जालंधर ले आई. वहीं उस ने एक किराए का कमरा ले लिया. शमा और नरेंदर दोनों अपनेअपने काम में लग गए थे, इसलिए उन की प्रेमकहानी का अंत हो चुका था.

वक्त के बेरहम थपेड़ों में दोनों ने एकदूसरे को भुला दिया था. इस तरह वक्त का पहिया अपनी गति से घूमता रहा था. एकएक कर इस बात को पूरे 11 साल गुजर गए थे. न तो नरेंदर को पता था कि शमा अब कहां है और न ही शमा यह जानती थी कि उसे अपने घर से निकालने के बाद नरेंद्र कहां और किस हाल में है.

पहली मई 2017 की बात है. शमा रात 8 बजे अपने घर से अपनी स्कूटी पर किसी काम से बाजार जाने के लिए निकली. चलते समय उस ने अपनी मां से कहा था कि वह किसी जरूरी काम से बाहर जा रही है, थोड़ी देर में लौट आएगी. लेकिन वह उस रात घर नहीं लौटी तो भोली ने शमा को फोन मिलाया. पर उस का फोन बंद था.

रात भर तलाशने पर भी शमा का कहीं कोई पता नहीं चला. अगली सुबह शमा की एक सहेली ने बताया कि रात शमा उस को बस्ती शेख के तेजमोहन नगर की गली नंबर 6 के कोने पर मिली थी, पूछने पर उस ने बताया था किसी रिश्तेदार से मिलने जा रही है.

‘‘लेकिन यहां हमारा कोई रिश्तेदार तो क्या, कोई जानकार भी नहीं रहता.’’ भोली ने बताया.

बहरहाल, भोली अपने बेटे और दामाद को साथ ले कर तेजमोहन नगर की गली नंबर 6 में पहुंची तो मकान नंबर 3572/19 के सामने शमा की स्कूटी खड़ी मिली. आसपास के लोगों से पूछने पर पता चला कि वह मकान पिछले 4 महीनों से किसी नरेंदर चौहान ने किराए पर ले रखा था.

मकान के बाहर छोटा सा ताला था. भोली और उस के बेटे और दामाद ताला खोल कर जब भीतर गए तो वहां का नजारा देख कर उन सब के होश उड़ गए. बैड पर शमा की लाश पड़ी थी. तब भोली ने इस की सूचना थाना डिवीजन-5 पुलिस को दी.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी सुखबीर सिंह अपने सहयोगी इंसपेक्टर नरेश जोशी के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल का मुआयना करने से पता चला कि मृतका के गले में दुपट्टा कसा हुआ था. इस के अलावा उस की गरदन पर गहरा घाव भी था.

पूछताछ करने पर पता चला था कि उस मकान में नरेंदर चौहान किराए पर रहता था. वह मृतका का पति था. पड़ोसियों ने बताया कि शमा रात करीब सवा 8 बजे वहां पहुंची थी. इस के कुछ देर बाद ही उस के कमरे से लड़ाईझगड़े की जोरजोर की आवाजें आने लगी थीं. कुछ देर बाद आवाजें आनी बंद हो गईं. रात करीब साढ़े 10 बजे उन्होंने नरेंदर और उस की मां को घर के बाहर निकल कर कहीं जाते हुए देखा था.

भोली ने भी अपने बयान में यही बताया था कि शमा की हत्या उस के दामाद नरेंदर चौहान और उस की मां सुदेश चौहान ने मिल कर की है.

कन्नौज बहन की साजिश – भाग 2

पुलिस टीम ने पिंकी के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि वह एक नंबर पर सब से ज्यादा बात करती थी. इस नंबर की जानकारी जुटाई गई तो पता चला यह नंबर प्रदीप यादव निवासी आदमपुर थाना सौरिख (कन्नौज) का है. पुलिस को एक और चौंकाने वाली जानकारी मिली कि बलराम की हत्या के एक दिन पहले तथा हत्या वाले दिन भी पिंकी की बात प्रदीप से हुई थी.

रिकौर्ड के अनुसार 14 सितंबर की रात 7 बजे तथा 15 सितंबर की सुबह 4 बजे पिंकी और प्रदीप के बीच बात हुई थी. बलराम की हत्या की जो तसवीर अभी तक धुंधली थी, अब साफ होने लगी थी. पिंकी और प्रदीप अब पूर्णरूप से शक के घेरे में आ गए थे. बस उन का कबूलनामा शेष था.

23 सितंबर, 2019 को सुबह 10 बजे पुलिस टीम इंदरगढ़ थाने के गांव गसीमपुर पहुंची और लायक सिंह की बेटी सावित्री उर्फ पिंकी यादव को हिरासत में ले लिया. पिंकी को पुलिस हिरासत में देख कर गांव में कानाफूसी होने लगी. खासकर महिलाएं चटखारे ले कर तरहतरह की बातें करने लगीं. पुलिस पिंकी को थाने ले आई. थाने में आते ही पिंकी का चेहरा उतर गया.

पुलिस ने पिंकी यादव से बलराम की हत्या के संबंध में पूछताछ शुरू की तो वह भावनात्मक रूप से पुलिस को बरगलाने का प्रयास करने लगी. लेकिन जब पुलिस टीम ने महिला दरोगा अनीता सिंह को सच उगलवाने का आदेश दिया तो पिंकी टूट गई और उस ने भाई की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

पिंकी ने बताया कि भाई बलराम की हत्या का षडयंत्र उस ने अपने प्रेमी प्रदीप यादव और उस के दोस्त रामू के साथ मिल कर रचा था.

दोनों हत्यारों को पकड़ने के लिए पुलिस ने पिंकी की मार्फत जाल बिछाया. पुलिस के पास पिंकी का मोबाइल फोन था. उसी मोबाइल से पुलिस ने पिंकी की बात उस के प्रेमी प्रदीप से कराई और जरूरी बात बताने का बहाना बना कर शाम 5 बजे खैरनगर नहर पुलिया पर मिलने को कहा. प्रदीप आने को तैयार हो गया.

अपनी व्यूह रचना के तहत पुलिस टीम पिंकी को साथ ले कर शाम 4 बजे ही खैरनगर नहर पुल पर पहुंच गई. पुलिस के सदस्य सादा कपड़ों में पुल के आसपास झाडि़यों में छिप गए और वहीं से निगरानी करने लगे.

पुलिस को निगरानी करते अभी आधा घंटा भी नहीं बीता था कि 2 युवक मोटरसाइकिल पर आए और पुल पर बैठी पिंकी को मोटरसाइकिल पर बैठने का संकेत किया.

ठीक उसी समय झाड़ी में छिपे टीम के सदस्यों ने उन दोनों को अपनी गिरफ्त में ले लिया. उन की मोटरसाइकिल भी कस्टडी में ले ली. वे दोनों युवक प्रदीप और उस का दोस्त रामू थे. मोटरसाइकिल सहित दोनों को थाना ठठिया लाया गया.

थाने पर जब उन दोनों से बलराम की हत्या के बारे में पूछा गया तो उन्होंने सहज ही हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. प्रदीप ने बताया कि वह बलराम की बहन पिंकी से प्यार करता था. पिंकी भी उस से प्यार करती थी. दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन बलराम उन दोनों के प्यार में बाधा बन रहा था. इसी बाधा को दूर करने के लिए उस ने पिंकी और दोस्त रामू की मदद से बलराम की हत्या कर दी थी और उस की मोटरसाइकिल तथा शव को निचली गंगनहर में फेंक दिया था.

रामू ने पुलिस को बताया कि प्रदीप उस का दोस्त है. बलराम की हत्या में उस ने दोस्त का साथ दिया था. प्रदीप की निशानदेही पर पुलिस ने नहर पुल के पास झाड़ी से खून सना चाकू बरामद कर लिया. हत्या में प्रयुक्त प्रदीप की मोटरसाइकिल भी जाब्ते में ले ली गई.

पुलिस टीम ने बलराम की हत्या का परदाफाश करने तथा आलाकत्ल सहित कातिलों को पकड़ने की जानकारी एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह को दी. उन्होंने थाने पहुंच कर प्रैसवार्ता की और कातिलों को मीडिया के समक्ष पेश कर घटना का खुलासा कर दिया.

कन्नौज जिले के इंदरगढ़ थानांतर्गत एक गांव है गसीमपुर. यादव बाहुल्य इस गांव में लायक सिंह अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी रामदेवी के अलावा एक बेटा बलराम सिंह तथा बेटी सावित्री उर्फ पिंकी थी. लायक सिंह के पास 5 बीघा उपजाऊ जमीन थी, जिस में अच्छी पैदावार होती थी. कृषि उपज से ही लायक सिंह अपने परिवार का भरणपोषण करता था.

बलराम सिंह लायक सिंह का एकलौता बेटा था. बलराम सिंह ने इंटरमीडिएट की पढ़ाई करने के बाद नौकरी के लिए दौड़धूप शुरू की. नौकरी नहीं मिली, तो वह पिता के साथ कृषिकार्य में उन का हाथ बंटाने लगा. बलराम सिंह को घूमनेफिरने का शौक था, अत: उस ने पिता से कहसुन कर मोटरसाइकिल खरीद ली थी.

बलराम सिंह से 10 साल छोटी सावित्री उर्फ पिंकी थी. भाईबहन के बीच गहरा प्रेम था. पिंकी तन से ही नहीं, मन से भी खूबसूरत थी. इसलिए हर कोई उसे पसंद करता था. 16 वर्ष की कम उम्र में ही वह जवान दिखने लगी थी. पिंकी से नजदीकियां बढ़ाने के लिए गांव के कई युवक उस के आगेपीछे घूमते रहते थे, लेकिन प्रदीप के मन में वह कुछ ज्यादा ही रचबस गई थी.

कसरती देह का हट्टाकट्टा गबरू जवान प्रदीप यादव मूलरूप से कन्नौज जिले के गांव आदमपुर का रहने वाला था. उस के पिता अवसान सिंह यादव किसान थे. 3 भाईबहनों में वह सब से बड़ा था. उस का मन खेती के काम में नहीं लगा तो उस ने ड्राइविंग सीख ली. कुछ समय बाद वह एक सड़क ठेकेदार की जेसीबी का ड्राइवर बन गया.

जनवरी, 2019 में ठेकेदार को गसीमपुर खैरनगर लिंक रोड बनाने का ठेका मिला. तब प्रदीप यादव गसीमपुर आया. सड़क निर्माण के दौरान प्रदीप की मुलाकात बलराम सिंह यादव से हुई. चूंकि दोनों हमउम्र थे और एक ही जातिबिरादरी के थे, सो दोनों के बीच गहरी दोस्ती हो गई. प्रदीप को खानेपीने और रात में सोने की दिक्कत थी. उस ने अपनी समस्या बलराम को बताई तो उस ने प्रदीप के ठहरने और खानेपीने का इंतजाम अपने ही घर में कर दिया.

वित्री उर्फ पिंकी पर पड़ी. पहली ही नजर में पिंकी प्रदीप की आंखों में रचबस गई. वह उसे रिझाने की कोशिश करने लगा. जब भी मौका मिलता, वह उस से प्यार भरी बातें करता और उस के रूपसौंदर्य की तारीफ करता. प्रदीप कभीकभी उस से छेड़छाड़ भी कर लेता था.

प्रदीप की छेड़छाड़ से पिंकी सिहर उठती, इस से उसे सुखद अनुभूति होती. धीरेधीरे कच्ची उम्र की पिंकी प्रदीप की तरफ आकर्षित होने लगी. अब उस के मन में हलचल मचने लगी थी.

इस तरह एकदूसरे के साथ रहते हुए दोनों के दिलों में प्यार का समंदर हिलोरें मारने लगा. दोनों एकदूसरे के लिए छटपटाहट महसूस करने लगे. मौका मिलने पर वह प्रदीप के कमरे में भी पहुंचने लगी थी. दोनों वहां बैठ कर प्यार भरी बातें करते और साथ जीनेमरने की कसमें खाते. दोनों की मोहब्बत परवान जरूर चढ़ रही थी, लेकिन घर वालों को कानोकान खबर नहीं थी.

माशूका की खातिर : अपनी ही गृहस्थी को क्यों उजाड़ा – भाग 2

तीनों लाशों का पोस्टमार्टम कराने के बाद लाशें उन के घर वालों को सौंप दी गईं. अगले दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई थी. रिपोर्ट में बताया कि किसी पतले तार से अनुपमा का गला घोंटा गया था.

जबकि दोनों बच्चों अभय कुमार व आभा कुमारी का गला किसी धारदार हथियार से काटा गया था, जिस से उन की श्वांस नली कट गई थी. आगे की जांच के लिए तीनों का विसरा भी सुरक्षित रख लिया गया था.

राजेंद्र प्रसाद की तहरीर पर थानाप्रभारी मनोज कुमार ने फरार उन्हीं के बेटे भैरवनाथ शर्मा के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के उस की तलाश शुरू कर दी. उसे तलाश करने के लिए पुलिस की 2 टीमें गठित की गईं.

पुलिस ने अनुपमा के परिजनों से पूछताछ की तो उस के पिता राजेंद्र राय ने चौंका देने वाली बात बताई, ‘‘दामाद भैरवनाथ से बेटी के संबंध कुछ अच्छे नहीं थे. बेटी के साथ वह अकसर मारपीट करता था.’’

अफेयर बना कलह की वजह

‘‘मारपीट करता था, क्यों?’’ इंसपेक्टर मनोज कुमार ने चौंकते हुए पूछा, ‘‘मारपीट करने के पीछे कोई खास वजह थी क्या?’’

‘‘जी सर, एक युवती से दामाद का अफेयर थे. अनुपमा पति की करतूत को जान चुकी थी. वह ऐसा करने से मना करती थी. इसी बात से चिढ़ कर वह उसे मारतापीटता था.’’

‘‘वह युवती कौन है? उस का नामपता वगैरह कुछ है?’’ मनोज कुमार ने पूछा.

‘‘हां है, सब कुछ है. युवती का नाम रूपा देवी है और उस का मोबाइल नंबर ये है..’’ कहते हुए राजेंद्र राय ने पौकेट डायरी निकाल कर उस में से रूपा का नंबर उन्हें बता दिया. थानाप्रभारी ने उसी समय अपने फोन से वह नंबर डायल किया तो वह नंबर बंद मिला.

पुलिस टीम ने भैरवनाथ को पकड़ने के लिए उस के खासखास ठिकानों पर दबिश दी. मुखबिरों को भी लगा दिया. पर उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. घटना हुए 9 दिन बीत गए, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. पुलिस मायूस नहीं हुई. वह उस की तलाश में जुटी रही.

10वें दिन यानी 14 अक्तूबर 2017 को मुखबिर ने पुलिस को एक खास सूचना दी.  उस ने पुलिस को बताया कि आरोपी भैरवनाथ ने जहर खा कर आत्महत्या करने की कोशिश की है. वह बोकारो के एक प्राइवेट अस्पताल की आईसीयू में भरती है.

पुलिस टीम बिना समय गंवाए बोकारो रवाना हो गई. सब से पहले बोकारो के उस अस्पताल पहुंची, जहां भैरवनाथ का इलाज चल रहा था. वह वहीं मिल गया. उस की हालत गंभीर बनी हुई थी, इसलिए डाक्टरों की सलाह मानते हुए पुलिस ने उसे उसी अस्पताल में भरती रहने दिया और खुद उस की निगरानी में लगी रही.

3 दिन बाद जब भैरव की हालत सामान्य हुई तो पुलिस उसे गिरफ्तार कर धनबाद ले आई. पूछताछ में उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस ने पुलिस को पत्नी और बच्चों की हत्या की जो कहानी बताई, इस प्रकार निकली –

34 वर्षीय अनुपमा मूलरूप से झारखंड के हजारीबाग के गैडाबरकट्ठा की रहने वाली थी. उस के पिता राजेंद्र राय ने सन 2013 में बड़ी धूमधाम से उस की शादी बोकारो के पुडरू गांव के रहने वाले भैरवनाथ शर्मा से की थी. भैरव के साथ अनुपमा हंसीखुशी से रह रही थी. बाद में वह एक बेटी और एक बेटे की मां भी बनी.

जीविका चलाने के लिए भैरवनाथ पत्नी और बच्चों को ले कर बोकारो से धनबाद आ गया था और वहां न्यू कालोनी में किराए के 2 कमरे ले कर रहने लगा. उस ने एक कारखाने में नौकरी कर ली.

जब दो पैसे की बचत होने लगी तो उस ने मातापिता को अपने पास बुला लिया. मातापिता कुछ दिनों उस के पास और कुछ दिनों गांव में रहने लगे. बड़ी हंसीखुशी के साथ परिवार के दिन कटने लगे. यह बात सन 2015 के करीब की है.

साल भर बाद भैरवनाथ और अनुपमा की जिंदगी में एक ऐसा तूफान आया, जिस ने दोनों की जिंदगी तिनके के समान बिखेर कर रख दी. घर की खुशियों में आग लगाने वाली उस तूफान का नाम था रूपा देवी.

दरअसल रूपा देवी भैरवनाथ की चचेरी भाभी थी. उस का परिवार बोकारो के भाटडीह मुदहा में रहता है. 2 साल पहले उस के पति की लीवर कैंसर से मौत हो गई थी. उस दौरान भैरव ने चचेरे भाई की तीमारदारी में तनमन और धन सब कुछ न्यौछावर कर दिया था. भाई को बचाने के लिए उस ने दिनरात एक कर दिया था.

भाई की मौत के बाद भैरव भाभी रूपा देवी का दुख देख कर टूट गया. उसे उस समय बड़ा दुख होता था, जब वह जवान भाभी के तन पर सफेद साड़ी देखता था. सफेद साड़ी के बीच लिपटी रूपा का मन उसे रंगीन दिखता था. दरअसल, पति की तीमारदारी के दौरान रूपा का झुकाव भैरव की ओर हो गया था. रंगीनमिजाज भैरव ने भाभी के निमंत्रण को कबूल कर लिया था.

एक दिन दोनों ने मौका देख कर एकदूसरे से अपने प्यार का इजहार कर दिया. उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. ड्यूटी से लौट कर आने के बाद भैरव सारा काम छोड़ मोबाइल ले कर घंटों तक रूपा से प्यारभरी बातें करने बैठ जाता था. पत्नी जब पूछती कि किस से बातें कर रहे हो तो वह इधरउधर की बातें कह कर टाल देता था. उस के दबाव बनाने पर वह उस पर चिल्ला पड़ता था.

जब पत्नी के सामने खुली भैरव की पोल

बात 1-2 बार की होती तो समझ में आती, लेकिन मोबाइल पर लंबीलंबी बातें करना तो भैरव की दिनचर्या में ही शामिल हो गई थी. ड्यूटी से घर आने के बाद बच्चों का हालचाल लेना तो दूर की बात, उन की ओर देखता भी नहीं था और घंटों मोबाइल से चिपका रहता था.

पति की इस हरकत ने अनुपमा को उस पर संदेह करने के लिए विवश कर दिया था. लेकिन वह इस बात से पूरी तरह अनभिज्ञ थी कि उस का पति उस के पीठ पीछे क्या गुल खिला रहा है. ये बातें ज्यादा दिनों तक कहां छिपती हैं. जल्द ही भैरव की सच्चाई खुल कर अनुपमा के सामने आ गई.

इस के बाद अनुपमा ने घर में विद्रोह कर दिया. कलई खुलते ही भैरवनाथ के सिर से इश्क का भूत उतर गया. अपनी इज्जत की दुहाई देते हुए पत्नी के सामने हाथ जोड़ गिड़गिड़ाने लगा कि अब ऐसा नहीं करेगा, गलती हो गई. पति के लाख सफाई देने के बावजूद अनुपमा ने पति की बातों पर यकीन नहीं किया. बच्चों को ले कर वह मायके चली गई. उस ने मांबाप से पति की करतूत बता दी.

उस वक्त अनुपमा के पिता राजेंद्र राय ने भैरवनाथ से तो कुछ नहीं कहा, वह बेटी को ही समझाते रहे कि अगर पति को ऐसे ही छोड़ दोगी तो मामला बनने की बजाय और बिगड़ जाएगा. अपना गुस्सा थूक दो और पति के पास लौट जाओ पर अनुपमा ने पति के पास लौटने से साफ इनकार कर दिया.

अगले भाग में पढ़ें- ऐसे दिया वारदात को अंजाम

सहनशीलता से आगे : जब पत्नी ने लिया बदला – भाग 2

वमसी लता अपने कमरे में बैठी रोरो कर अपना गुस्सा निकाल रही थी. उस का रोना वाजिब था क्योंकि यह सच है कि अगर पति पत्नी एकदूसरे को न समझें, समन्वय न रखें तो उन का परिवार तबाह हो जाता है. इस घर के नौनिहाल सीमा और राजेश का भविष्य मातापिता के दोजख बने जीवन में झुलस रहा था.

ऐसा पहली बार नहीं हुआ था. विश्वनाथ जब भी छुट्टी पर आते थे, ऐसा ही होता था. एक बार छुट्टी पर आए विश्वनाथ ने रात में शराब पी कर पत्नी की पिटाई की. साथ ही चीखचीख कर कहा भी, ‘‘तुम मेरा घर छोड़ कर चली जाओ. जब तुम पत्नीधर्म नहीं निभा सकती, तो मेरे घर में क्या कर रही हो?’’

लता ने रोतेरोते जवाब दिया, ‘‘इस के लिए मैं जिम्मेदार नहीं हूं. तुम्हारे कर्म ही ऐसे हैं, मैं ने ही तुम से विवाह कर के अपना जीवन बर्बाद कर लिया है.’’

इस के बाद विश्वनाथ उसे भद्दीभद्दी गालियां देने लगे.

‘‘मुझे अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सोचना है, दूसरों से क्या मतलब. तुम शराब पीना और मारपीट करना बंद नहीं करोगे, मैं अच्छी तरह जानती हूं. तुम कभी नहीं सुधर सकते.’’

यह सुन कर विश्वनाथ शर्मा ने बेल्ट से लता की और पिटाई की. वह चीखनेचिल्लाने लगी. लेकिन विश्वनाथ को उस पर जरा भी दया नहीं आई. उसी दिन वमसी लता के मन में पहली बार यह बात आई थी कि क्यों न वह अपने पति को जहर दे कर मार डाले. जब तक वह जिंदा रहेगा उसे सुखचैन की सांस नहीं लेने देगा.

रक्तरंजित विश्वनाथ

उस के पास पति से मुक्ति का इस के अलावा कोई रास्ता नहीं था. उस के पास पैसों की कमी नहीं थी, अच्छा बैंक बैलेंस, सोनाचांदी व जवाहरात सब कुछ था. साथ ही हर माह मकान का अच्छाखासा किराया भी मिलता था. अगर पति की आकस्मित मृत्यु हो जाती, तो उसे नेवी से अच्छीखासी रकम भी मिलने की उम्मीद थी.

20 जुलाई, 2019 की सुबह सीमा बाथरूम जाने के लिए उठी तो पिता विश्वनाथ शर्मा के कमरे से कराहने की आवाज आई. आवाज में पीड़ा थी, फलस्वरूप सीमा के पांव खुदबखुद पिता के कमरे की ओर बढ़ गए. कमरे के अंदर जा कर उस ने जैसे ही लाइट औन की. उस की आंखें फटी रह गईं. मुंह से जोरों की चीख निकल गई.

विश्वनाथ शर्मा खून से लथपथ कराह रहे थे. उसे कुछ समझ नहीं आया तो वह उल्टे पांव मां के कमरे में पहुंची और चिल्ला कर मां को जगाया.

मां आंखें मलते हुए उठी तो सीमा घबराए स्वर में बोली, ‘‘मां…पापा…’’ सीमा के मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी.

कुसुमलता ने घबराई हुई सीमा को देखा तो पूछा, ‘‘क्या हुआ बेटा?’’

‘‘मां…पापा… खून?’’ सीमा ने हकलाते हुए कहा तो वमसी लता झटके से उठ कर पति के कमरे की तरफ भागी. पीछेपीछे सीमा और राजेश भी थे. वहां का दृश्य देख कर लता दहाड़ मार कर रोने लगी. बच्चे भी रोने लगे. रोने की आवाज सुन कर आसपास के लोग आ गए.

के. विश्वनाथ का चेहरा बुरी तरह कुचला हुआ था. चादर कपड़े सब रक्तरंजित. पड़ोसियों की मदद से विश्वनाथ को अस्पताल पहुंचाया गया. विश्वनाथ शर्मा का चेहरा कुचल दिया गया था. मुंह से सिर्फ कराहने की आवाज आ रही थी. अस्पताल पहुंचने तक वह जीवित थे, वहां जा कर उन की मृत्यु हो गई. अस्पताल प्रबंधन ने वमसी कुसुमलता से के. विश्वनाथ के संदर्भ में आवश्यक जानकारी प्राप्त की. मामला प्रथमदृष्टया संदिग्ध नजर आ रहा था. इसलिए प्रबंधन ने घटना की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दे दी. जब पुलिस अस्पताल पहुंची तो के. विश्वनाथ की पत्नी और बच्चे वहीं थे.

गुढि़यारी थाने के थानाप्रभारी सुशांतो बनर्जी ने अस्पताल पहुंच कर सबसे पहले मृतक के बारे में वमसी लता का बयान लिया. अपने बयान में उस ने बताया कि उस के पति विश्वनाथ मर्चेंट नेवी में इंजीनियर थे और छुट्टी पर घर आए हुए थे.

उस ने सुबहसुबह उन्हें उन के कमरे में खून से लथपथ देखा तो उस के होश उड़ गए, पता नहीं कौन घर में  घुस आया और उन्हें बुरी तरह घायल कर के चला गया. दोनों बच्चों राजेश व सीमा ने भी यही बात बताई.

सुशांतो बनर्जी ने वमसी लता के साथ आए अन्य लोगों का भी बयान लिया. इस के बाद उन्होंने एसएसपी आरिफ शेख, एडिशनल एसपी प्रफुल्ल ठाकुर, एसपी (सिटी) अभिषेक माहेश्वरी को इस वारदात के बारे में बता दिया.

अधिकारियों के आने के बाद जब मुआयना और लिखापढ़ी हो गई तो थाना गुढि़यारी पुलिस ने विश्वनाथ की लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

मामला मर्चेंट नेवी के इंजीनियर की हत्या का था. इसलिए अधिकारियों ने अतिरिक्त सतर्कता बरतते हुए केस की जांच के लिए क्राइम ब्रांच की एक टीम गठित कर के जांच शुरू करा दी. थानाप्रभारी सुशांतो बनर्जी और एडिशनल एसपी प्रफुल्ल ठाकुर ने एक बार फिर घटनास्थल का मुआयना किया.

आसपास के लोगों से बातचीत की गई तो इस घटना की सच्चाई प्याज के छिलके की तरह परतदर परत खुल कर सामने आने लगी. पता चला कि पतिपत्नी के बीच सब कुछ ठीकठाक नहीं था.

दोनों की अनबन पासपड़ोस के लोगों से छिपी नहीं थी. थोड़ी सी पड़ताल में यह जानकारी भी मिली कि वमसी लता ने पति के खिलाफ गुढि़यारी थाने में 4 बार मारपीट की रिपोर्ट लिखाई थी.

वमसी लता को थाने ले जा कर जब एडिशनल एसपी प्रफुल्ल ठाकुर और थानाप्रभारी सुशांत बनर्जी ने उस से सख्ती से पूछताछ की तो वह फूटफूट कर रोने लगी. लेकिन पति के. विश्वनाथ शर्मा की मौत के बारे में कुछ भी जानने से इनकार करती रही. बाद में जब पुलिस ने लता के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो एक चौंकाने वाली बात सामने आई.

घटना की रात 2 बजे उस के मोबाइल पर एक काल आई थी. पुलिस ने पता लगाया तो नंबर के. विश्वनाथ शर्मा और वमसी कुसुमलता के किराएदार लवकुश शुक्ला का निकला. पुलिस लवकुश को पकड़ कर थाने ले आई. थाने पहुंच कर वह सूखे पत्ते की तरह थरथर कांपने लगा. पुलिस की थोड़ी सी सख्ती पर उस ने के. विश्वनाथ शर्मा की हत्या का सारा राज खोल दिया.

लवकुश के बताने पर अविनाश को भी पकड़ लिया गया. वह लवकुश के यहां नौकरी करता था. पूछताछ में उस ने स्वयं ही विश्वनाथ की हत्या करने की बात मान ली. इस के बाद पुलिस के सामने जो कहानी आई, उस का लब्बोलुवाब यह था.

एक रोटी के लिए हत्या – भाग 2

हत्यारे का सुराग लगाने के लिए पुलिस ने घर में लगे सीसीटीवी कैमरों की भी जांच की. लेकिन सीसीटीवी कैमरे बंद मिले. जांच में पता चला कि सीसीटीवी कैमरे पिछले डेढ़ महीने से खराब थे.

इस के बाद पुलिस ने गली में घरों के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरों  की जांच की. लेकिन अधिकतर कैमरे बंद मिले. हत्यारा किसी भी कैमरे में दिखाई नहीं दिया. राजिंदर सिक्का और उन के बेटे दीपांशु ने बताया कि उन्हें किसी प्रौपर्टी के पेपर बनवाने के लिए तहसील जाना था.

आज काम नहीं हुआ, तो आराम करने के लिए दोनों बापबेटे अपने क्रेशर चले गए थे. तभी नौकर राजेश का फोन आया था. बहरहाल जगाधरी सिटी पुलिस ने अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रोजी के ब्लाइंड मर्डर की रिपोर्ट दर्ज कर के जांच शुरू कर दी.

इस केस को पुलिस हर छोटेबडे़ एंगल से देख रही थी. अब तक की तफ्तीश में जो सामने आया था, उस से यह माना जा रहा था कि इस घटना में किसी जानकार का हाथ हो सकता है, जिस ने घर में आसानी से घुस कर इत्मीनान से मर्डर किया और फरार हो गया.

सिक्का परिवार ने अब तक न तो किसी पर संदेह जताया था और न ही किसी के साथ अपनी निजी या कारोबारी दुश्मनी होना बताया था. दीपांशु और रोजी की शादी 28 फरवरी, 2018 को हुई थी. पुलिस इस में भी कोई पुराना ऐंगल ढूंढ रही थी.

एसपी कुलदीप यादव ने मामले की जांच के लिए सीआईए समेत 4 टीमें गठित कर दीं. लेकिन अभी तक कोई नतीजा सामने नहीं आया था. घटनास्थल पर लूट या चोरी के चिह्न भी नहीं मिले थे.

प्रारंभिक जांच में मामला केवल रोजी की हत्या करने का ही सामने आया था. लेकिन जिस बेरहमी से हत्या की गई थी, उस से व्यक्तिगत रंजिश का होना साफ दिखाई दे रहा था. पुलिस टीमों ने क्राइम सीन को एक बार दोबारा बारीकी से चेक किया.

इस बार पुलिस ने सामने वाले उस प्लौट को भी चेक किया जिस में नौकर राजेश रहता था. पुलिस को वहां कुछ ऐसे सबूत मिले जिस की वजह से पुलिस सिक्का परिवार के नौकर राजेश को पूछताछ के लिए थाने ले गई.

दरअसल सीआईए-2 के इंचार्ज इंसपेक्टर श्रीभगवान यादव को पहले से ही नौकर राजेश पर कुछ शक था. यह शक उस के कमरे की तलाशी लेने के बाद और पुख्ता हो गया था.

पहला शक मर्डर के बाद जब उस के मालिक और पुलिस राजिंदर सिक्का की कोठी पर पहुंची तो नौकर राजेश भी दुखी होने का नाटक करते हुए जोरजोर से रोने लगा था. दूसरा शक दीपांशु से फोन पर बात करने के 10 मिनट बाद जब राजिंदर सिक्का ने उसे फोन पर कहा कि वह घर जा कर देखे, बहू फोन क्यों नहीं उठा रही.

इस पर राजेश ने बताया था कि वह जर्दा लेने के लिए आया है. अभी कोठी जा कर देख लेगा, क्या बात है. जबकि 10 मिनट पहले उस ने दीपांशु को बताया था कि वह कपड़े धो रहा है.

तीसरा शक और पुख्ता सबूत यह था कि जिस मकान में नौकर राजेश रहता था, वहां से कुछ ऐसे कपड़े बरामद हुए थे, जिन्हें उसी समय धोया गया था. वे पूरी तरह से गीले थे. शायद उन्हें जल्दी सुखाने के लिए ही राजेश को मशीन की जरूरत थी.

इस के अलावा पानी की टंकी के पास से एक साबुन भी बरामद हुआ था, जिस पर एक जगह हल्का खून लगा हुआ था. संभवत: उस साबुन से ही उस ने हाथ साफ किए थे. इंसपेक्टर भगवान सिंह यादव ने कपड़ों सहित बाकी सभी चीजों को कब्जे में ले कर लैब में भिजवा दिया था.

सीआईए स्टाफ-2 के कार्यालय में पूछताछ के दौरान नौकर राजेश पहले तो कई घंटे तक पुलिस वालों को घुमाता रहा. उस ने अपने एबनार्मल होने का ड्रामा भी किया. लेकिन पुलिस ने जब सख्ती दिखाई तो उस ने अपना गुनाह कबूल लिया.

उस ने रोजी सिक्का की हत्या की जो कहानी सुनाई उस पर विश्वास करना बहुत मुश्किल था. राजेश ने बताया कि उस ने रोजी की हत्या इसलिए की थी क्योंकि वह उसे कम खाना देती थी. यह सुन कर पुलिस अधिकारी चौंके. उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि क्या कोई रोटी के लिए किसी की इस तरह हत्या कर सकता है. बहरहाल राजेश से पूछताछ के बाद हत्या की जो कहानी सामने आई इस प्रकार थी—

राजेश की मां का देहांत हो चुका था. उस के 5 भाईबहन थे. 3 भाई और 2 बहनें. उसे छोड़ कर बाकी सभी शादीशुदा थे. वह भी अपना घर बसाने के लिए पैसा कमाने अपने गांव से सैकड़ों किलोमीटर दूर जगाधरी आया था. वह पहले आर.के. क्रेशर खिदराबाद में नौकरी पर लगा था, इस के बाद वह राजिंदर सिक्का के पास नौकरी करने लगा.

सिक्का के यहां वह खुश था. यहां भरपेट खाने के साथ उसे अच्छा वेतन भी मिलता था. वह भी जीजान से सिक्का परिवार की सेवा करता था. नौकर और मालिकों के बीच सब कुछ ठीकठाक चल रहा था कि अचानक राजेश के जीवन में मुसीबतें किसी पहाड़ की तरह आ खड़ी हुई थीं.

एक दिन राजेश के पास उस के गांव से खबर आई कि उस के पिता का निधन हो गया है. वह अपने पिता से बहुत प्रेम करता था. 30 मार्च, 2019 को वह अपने पिता के निधन पर गांव गया और 19 अप्रैल को वह गांव से वापस अपनी नौकरी पर सिक्का परिवार में आ गया.

राजेश ने बताया कि दीपांशु साहब की शादी 28 फरवरी, 2018 को रोजी से हुई थी और उस की जिंदगी में असली समस्या उस घर में नई बहू के आने से ही शुरू हो गई थी. दीपांशु की शादी के पहले वह खुद कोठी में खाना बनाया करता था. पर शादी के दोढाई महीने बाद नई बहू रोजी ने खाना बनाना शुरू कर दिया था.

उसे रोजी के खाना बनाने से कोई एतराज नहीं था. उसे एतराज इस बात का था कि रोजी उसे कम खाना देती थी. उस ने इस बात की शिकायत राजिंदर और दीपांशु के अलावा रोजी से भी की थी.

लेकिन किसी ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया और न उस की परेशानी को गंभीरता से समझा. अपने पिता की मौत के बाद गांव से वापस आने के बाद तो उस के खाने वाली समस्या ने और भी गंभीर रूप धारण कर लिया था.