प्यार में जहर का इंजेक्शन – भाग 2

डीसीपी जतिन नरवाल उस समय थाने में ही मौजूद थे. बौबी की गिरफ्तारी के लिए उन्होंने एसीपी आर.पी. गौतम के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई, जिस में थानाप्रभारी रमेश दहिया, अतिरिक्त थानाप्रभारी मनमोहन कुमार, एसआई प्रकाश, आशीष, एएसआई निक्काराम, हैडकांस्टेबल विजय आदि को शामिल किया.

रवि कुमार का साला बौबी द्वारका की पालम कालोनी के राजनगर एक्सटेंशन पार्ट-2 में रहता था. पुलिस टीम उस के घर पहुंची तो वह घर पर ही मिल गया. पुलिस उसे पकड़ कर थाने ले आई. बौबी से पूछताछ की गई तो उस ने कहा, ‘‘सर, मेरी बहन सविता तो अपनी ससुराल में खुश है. उस के पति रवि कुमार बेहद सज्जन व्यक्ति हैं, भला मैं उन के बारे में इस तरह क्यों सोचूंगा? यह जो हमला करने वाला आदमी है, इसे तो मैं जानता तक नहीं.’’

बौबी को जब पता चला कि उस के बहनोई अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं तो वह बेचैन हो उठा. उस ने फोन द्वारा यह जानकारी बहन सविता को दी. बौबी की बातों से पुलिस को लगा कि प्रेम सिंह उसे झूठा फंसाने की कोशिश कर रहा है तो पुलिस ने उसे घर जाने की इजाजत दे दी.

बौबी घर न जा कर सीधे सेंट स्टीफंस अस्पताल पहुंचा. लेकिन उस के अस्पताल पहुंचने से पहले ही रात करीब ढाई बजे उस के बहनोई रवि कुमार की मौत हो गई थी. रवि की मौत की खबर पा कर पुलिस भी अस्पताल पहुंच गई और शव को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

पुलिस ने मामले में हत्या की धारा जोड़ कर अगले दिन यानी 8 जनवरी, 2017 को प्रेम सिंह को तीस हजारी कोर्ट में ड्यूटी एमएम के समक्ष पेश कर सबूत जुटाने के लिए एक दिन के रिमांड पर ले लिया. चूंकि डा. प्रेम सिंह बौबी को इस मामले में झूठा फंसाना चाहता था, इस से पुलिस समझ गई कि यह आदमी बेहद शातिर है.

रिमांड अवधि के दौरान उस से की गई पूछताछ में उस ने जो सच्चाई बताई, उस के अनुसार, उस ने यह काम जिम ट्रेनर अनीश यादव के कहने पर किया था. अनीश ने इस के एवज में उसे डेढ़ लाख रुपए दिए थे.

‘‘यह अनीश यादव कौन है और वह कहां रहता है?’’ मनमोहन कुमार ने पूछा.

‘‘सर, अनीश रवि कुमार की पत्नी सविता का प्रेमी है और वह पालम कालोनी की राजनगर एक्सटेंशन पार्ट-2 में रहता है.’’ प्रेम सिंह ने बताया.

प्रेम सिंह को ले कर पुलिस टीम जिम ट्रेनर अनीश यादव के घर पहुंची तो वह भी घर पर ही मिल गया. उसे थाने ला कर पूछताछ की गई तो रवि कुमार को अनूठे तरीके से मारने की जो कहानी सामने आई, वह प्रेमप्रसंग की चाशनी में सराबोर थी—

सविता दक्षिणीपश्चिमी दिल्ली की पालम कालोनी के राजनगर एक्सटेंशन पार्ट-2 में रहने वाले सुरेशचंद की बेटी थी. सुरेशचंद उत्तर प्रदेश के जिला प्रतापगढ़ के रहने वाले थे. 15-20 साल पहले वह दिल्ली आ गए थे और औटो चलाने लगे थे. बेटी सविता के अलावा उन का एक ही बेटा था, जिस का नाम था बौबी.

छोटा परिवार था. औटो चलाने से जो कमाई होती थी, उस से परिवार का गुजरबसर बड़े आराम से हो जाता था. इसलिए उन्होंने अपने दोनों बच्चों को ठीक से पढ़ायालिखाया. पालम कालोनी में ही नवीन रहता था, जो कालेज में सविता के साथ पढ़ता था. साथ पढ़ने की वजह से दोनों में दोस्ती हो गई थी, जो बाद में प्यार में बदल गई.

राजनगर एक्सटेंशन पार्ट-2 में ही नवीन का दोस्त अनीश रहता था. पढ़ाई के साथसाथ उसे बौडी बनाने का शौक था. इस के लिए वह घंटों जिम में एक्सरसाइज करता था. नवीन ने उसे अपनी प्रेमिका सविता के बारे में सब कुछ बता दिया था. यही नहीं, उस ने सविता से उसे मिलवा भी दिया था. पहली मुलाकात में ही सविता अनीश यादव से प्रभावित हो उठी थी. किसी तरह सविता को अनीश का फोन नंबर मिल गया तो वह उस से फोन पर बातें करने लगी.

अनीश सविता के बात करने का आशय समझ गया. दरअसल सविता का झुकाव नवीन के बजाए अनीश की तरफ हो गया था. दोनों एकदूसरे को प्यार करने लगे थे. नवीन को जब इस बात का पता चला तो उसे दोस्त की बेवफाई का बड़ा दुख हुआ.

अनीश ने एक तरह से नवीन की पीठ में छुरा घोंपा था. इसलिए नवीन ने उस से हमेशा के लिए संबंध खत्म कर लिए. उधर अनीश और सविता एकदूसरे को जीजान से चाहने लगे थे. वे प्यार के उस मुकाम पर पहुंच गए थे, जहां से वापस आना आसान नहीं होता. उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया था. लेकिन वे शादी कोर्ट में करने के बजाए घर वालों की सहमति से सामाजिक रीतिरिवाज से करना चाहते थे.

दोनों ने ही यह बात अपनेअपने घर वालों को कही तो अनीश ने तो किसी तरह अपने घर वालों को राजी कर लिया, पर सविता के घर वाले राजी नहीं हुए. उस की मां तो राजी हो गई थी, पर पिता किसी भी तरह तैयार नहीं हुए. इस की वजह यह थी कि दोनों अलगअलग जाति के थे. सुरेश बेटी सविता की शादी अपनी ही जाति के लड़के से करना चाहते थे.

पिता का यह फरमान सविता को बहुत अखरा. सुरेशचंद्र कैंसर पीडि़त थे. डाक्टरों ने कह दिया था कि वह कुछ ही दिनों के मेहमान हैं. इसलिए सविता जिद कर के पिता के दिल को दुखाना नहीं चाहती थी. यह बात उस ने प्रेमी अनीश को बताई तो अरमानों पर पानी फिरने का उसे भी दुख हुआ. सविता ने घर वालों की मरजी के खिलाफ शादी करने से इनकार कर दिया.

सविता का मानना था कि उस के पिता ज्यादा दिनों के मेहमान तो हैं नहीं, इसलिए उन के गुजर जाने के बाद वह अनीश से शादी कर लेगी. लेकिन अनीश इंतजार करने को तैयार नहीं था. लिहाजा उस ने 29 फरवरी, 2016 को दिल्ली के संगम विहार की एक लड़की से शादी कर ली.

सविता को जब पता चला कि अनीश ने शादी कर ली है तो उसे बड़ा दुख हुआ. उस ने इस बात की शिकायत अनीश से की तो उस ने  कह दिया कि यह शादी घर वालों ने जबरदस्ती की है. इस पर सविता ने मन ही मन ठान लिया कि वह अनीश को किसी और लड़की का नहीं होने देगी.

दूल्हेभाई का रंगीन ख्वाब – भाग 2

आसिफ ने ग्राउंड फ्लोर पर अपनी वर्कशौप और गोदाम बनाया जबकि पहले दूसरे व तीसरे फ्लोर पर वह खुद रहने लगा. परिवार तेजी से बढ़ रहा था. डेढ़ साल पहले समरीन ने एक और बेटे को जन्म दिया. मेहमानों का भी घर में आवागमन रहता था, इसलिए आसिफ ने तीसरे फ्लोर को आनेजाने वालों के ठहरने और बच्चों की पढ़ाईलिखाई के लिए रखा हुआ था.

आसिफ का इकलौता साला जुनैद अपने जीजा के पास रह कर काम सीख रहा था. हालांकि आसिफ की ससुराल उस के घर से 2 किलोमीटर की दूरी पर थी, इसलिए जुनैद कभी अपने घर चला जाता था तो कभी अपनी बहन के घर पर ही रुक जाता था.

आसिफ और उस की ससुराल वाले एकदृसरे के यहां रोज आतेजाते थे और एकदृसरे की कुशलक्षेम लेते रहते थे. लोनी में आने के बाद समरीन को यह फायदा हो गया था कि वह अपने परिवार के आ गई थी. हर दुखसुख में मातापिता और भाईबहन उस के साथ खड़े नजदीक थे.

आसिफ की जिंदगी मजे में गुजर रही थी कि अचानक 11 जनवरी की रात जब बदमाशों ने उस के घर में घुस कर लूटपाट की तो इस हादसे में बीवी समरीन की मौत के बाद उस की दुनिया ही उजड़ गई.

विवेचना अधिकारी राजेंद्र पाल सिंह ने आसिफ से पूछताछ के बाद जब उस के परिवार की पूरी कुंडली खंगाली तो उन्होंने अपना ध्यान घटनाक्रम की कडि़यों को जोड़ने पर केंद्रित कर दिया.

दरअसल राजेंद्र पाल ने कई बार घटनास्थल का निरीक्षण किया तो पाया कि 50 गज के तीनमंजिला मकान में एंट्री का एक ही रास्ता है, जो भूतल पर बने मुख्यद्वार के रूप में है. इसी फ्लोर पर आसिफ की वर्कशाप है. आसिफ का मकान चारों तरफ से ऊपर व नीचे से पूर्णत: बंद था, कहीं से भी घर में प्रवेश करने का कोई और रास्ता नहीं था.

बाहरी व्यक्ति का आने व जाने का अन्य कोई रास्ता नहीं था. मकान में बाहरी बदमाशों के घुसने के लिए कोई दरवाजा खिड़की या लौक टूटा नहीं नहीं मिला. मतलब कि दरवाजे से फ्रैंडली एंट्री हुई थी.

सीसीटीवी की फुटेज से यह बात तो साफ हो गई कि वारदात को अंजाम देने के लिए घर में 3 बदमाश घुसे थे. आसिफ ने भी अपने बयान में यह बात कही थी कि वारदात में शामिल बदमाशों की संख्या 3 से 4 थी, लेकिन उस ने देखा 3 को ही था.

बस इतना समझना बाकी था कि बदमाशों को घर में आने के लिए घर के ही किसी व्यक्ति ने दरवाजा खोला था या परिवार के लोग गलती से दरवाजा बंद करना भूल गए थे. हालांकि आसिफ ने पुलिस को दिए बयान में कहा था कि घर के मुख्यद्वार को अंदर से उसी ने बंद किया था. दूसरी अहम गुत्थी यह थी कि सीसीटीवी कैमरे में आसिफ के घर की तरफ आने वाले लोग 9 बजे के करीब आए थे और रात को पौने 4 बजे वापस जाते दिखे थे.

पीड़ितों के मुताबिक वारदात करने का वक्त 1 से 3 बजे के बीच का था. अब सवाल यह था कि वारदात को अंजाम देने वाले बदमाश करीब 4-5 घंटे तक कहां छिपे रहे. अगर वे घर के बाहर होते तो सीसीटीवी कैमरे में या लोगों की नजर में जरूर आते. अगर वे घर के अंदर आ कर छिप गए थे तो परिवार में किसी को इस की भनक क्यों नहीं लगी.

13 जनवरी को लोनी बौर्डर थाने के प्रभारी निरीक्षक शैलेंद्र प्रताप सिंह छुट्टी से वापस लौट आए. उन्हें थाना क्षेत्र में हुई इस वारदात की सूचना मिली तो उन्होंने जांच अधिकारी एसएसआई राजेंद्र पाल सिंह को बुला कर मामले की विस्तार से जानकारी ली. जब राजेंद्र पाल सिंह ने एसएचओ को अपने शक के बारे में बताया तो उन्होंने आसिफ को हिरासत में ले कर पूछताछ करने के लिए कहा.

आसिफ से की पूछताछ

अपने सीनियर अधिकारी की हरी झंडी मिलते ही राजेंद्र पाल सिंह ने पूछताछ के बहाने आसिफ को थाने बुला लिया. इस दौरान उन्हें मुखबिरों की मदद से एक बात पता चल चुकी थी कि आसिफ रंगीनमिजाज है. अपनी पत्नी से उस का अकसर झगड़ा होता था. दोनों के बीच विवाद का कारण कोई महिला थी.

हालांकि जांच अधिकारी ने समरीन के पिता तनसीन को बुला कर इस जानकारी की पुष्टि करनी चाही, लेकिन वे कोई ठोस जानकारी नहीं दे सके. उन्होंने इतना जरूर बताया था कि आसिफ और समरीन में पिछले कुछ महीनों से अकसर झगड़ा और मारपीट होती थी. लेकिन वे बेटी के घर में ज्यादा दखल देना नहीं चाहते थे, क्योंकि यह तो घरघर में होता है.

उन्होंने कालोनी में 3 मकान छोड़ कर एक घर के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरे की उस रात की फुटेज निकलवा ली थी, जिस से पता चला कि 11 जनवरी की रात 9 बजे 3 लोग आसिफ के मकान तक गए थे. वही लोग 12 जनवरी की सुबह करीब 3.35 बजे मकान से निकल कर गली से बाहर जाते हुए दिखे.

पुलिस ने आसपड़ोस में रहने वाले लोगों से पूछा कि क्या उस रात किसी के घर कोई मेहमान तो नहीं आए थे. पता चला कि आसपड़ोस के किसी भी मकान में उस रात कोई अतिथि नहीं आया था.

चूंकि आसिफ का मकान गली के अंतिम सिरे पर था और गली आगे से बंद भी थी, इसीलिए जांच अधिकारी को शक हुआ कि कहीं ऐसा तो नहीं कि इस परिवार का ही कोई सदस्य बदमाशों से मिला हुआ हो और उस ने ही बदमाशों के लिए दरवाजे खोले हों.

आसपड़ोस के लोगों ने पूछताछ में इस बात की पुष्टि जरूर कर दी थी कि उन्होंने उस रात करीब 9 बजे गली में 3 अनजान लोगों को जाते देखा था. लेकिन वे लोग किस के यहां जा रहे हैं, इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया था.

कुछ लोगों ने साढ़े 8 बजे के करीब आसिफ को अपने घर के मुख्यद्वार के बरामदे में बैठ कर काम करते हुए देखा था. ये सारी बातें इस बात की तरफ इशारा कर रही थीं कि हो न हो घर का कोई सदस्य बदमाशों से मिला हुआ हो. चूंकि आसिफ की पत्नी समरीन की हत्या हो चुकी थी, इसलिए उस पर शक करने का कोई औचित्य नहीं था.

अब 2 ही पुरुष सदस्य थे, जिन पर शक किया जा सकता था. एक था आसिफ का साला जुनैद और दूसरा खुद आसिफ. चूंकि जुनैद अभी 15 साल का किशोर था और दीनदुनिया से वाकिफ नहीं था, इसलिए जांच अधिकारी राजेंद्र पाल सिंह की नजरें आसिफ पर आ कर ठहर गईं. उन्होंने आसिफ को पूछताछ के बहाने थाने बुलवा लिया.

टूट गया आसिफ

आसिफ से गहनता से पूछताछ शुरू हो गई. जांच अधिकारी राजेंद्र पाल सिंह ने पहले तो उस से इधरउधर की पूछताछ शुरू की. लेकिन फिर उन्होंने आसिफ से सीधा सपाट सवाल किया, ‘‘देखो आसिफ, हमें सब पता चल गया है कि तुम ने अपनी बीवी को खुद मरवाया है. अब सीधे तरीके से यह बता दो कि वो लड़की कौन है, जिस के लिए तुम ने अपनी पत्नी की हत्या करवाई? हमें यह भी पता है कि बदमाशों को तुम ने ही बुलाया था.’’

राजेंद्र पाल सिंह ने तीर तो अंधेरे में मारा था, लेकिन लगा एकदम निशाने पर. इस तरह के सवाल की आसिफ को उम्मीद नहीं थी वह घबरा गया. जांच अधिकारी ने उसे और ज्यादा डरा दिया.

‘‘देखो, अगर सच बता दोगे तो हम तुम्हें बचा भी सकते हैं, लेकिन सच नहीं बताया तो…’’

आसिफ की घबराहट चरम पर पहुंच गई. अप्रत्याशित रूप से वह जांच अधिकारी सिंह के पांवों में गिर गया, ‘‘सर, मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. मैं अपनी साली से शादी करना चाहता था, इसलिए पत्नी को मरवा दिया. मुझे माफ कर दीजिए सर, सारी जिंदगी आप की गुलामी करूंगा. किसी तरह बचा लीजिए.’’

एसएचओ शैलेन्द्र प्रताप सिंह को उम्मीद नहीं थी कि पुलिस द्वारा तुक्के में कही गई बात का ऐसा असर होगा कि आसिफ इतनी जल्दी गुनाह कबूल कर लेगा. उस ने एक बार अपना गुनाह कबूला तो फिर पुलिस को पूरे हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी.

थोड़ी सी हिचकिचाहट और टालमटोल के बाद आसिफ ने बताया कि लगभग 3 साल से उस का अपनी साली के साथ अफेयर चल रहा था. एक बार उस की पत्नी बीमार हो गई थी, उसे अस्पताल में भरती करना पड़ा. समरीन की मां शमशीदा अस्पताल में बेटी की तीमारदारी के लिए रुक गई थीं, जबकि छोटी बेटी फातिमा को उन्होंने बच्चों की देखभाल के लिए आसिफ के घर भेज दिया था.

वैसे तो तनसीन की तीनों ही बेटियां सुंदर थीं, लेकिन जवानी की दहलीज पर खड़ी सब से छोटी बेटी फातिमा बला की खूबसूरत थी. उसे देख कर आसिफ सोचता था कि अगर उस की शादी फातिमा से हुई होती तो कितना अच्छा होता. फातिमा को वह प्यार भरी नजरों से देखता था. लेकिन जब अपनी बहन की बीमारी और उस के अस्पनताल में होने के कारण फातिमा को जीजा के घर आ कर रहना पड़ा तो मानो आसिफ की हसरतों को बल मिल गया.

न जाने कैसे एक दिन फातिमा जब वाशरूम में नहा रही थी तो जल्दबाजी में आसिफ बाथरूम में घुस गया. उस दिन पहली बार आसिफ ने अपनी हसीन साली का संगमरमर में तराशा हुआ बदन देखा तो उस पर मदहोशी छा गई. रिश्ते की मर्यादा भूल कर उस ने फातिमा को वहीं पर अपनी बांहों में भर लिया.

फातिमा जीजा की बांहों में कसमसाई, विरोध किया लेकिन आसिफ पर हवस का भूत सवार था. थोड़ा विरोध करने के बाद फातिमा भी जीजा की बांहों में समा गई. फातिमा के शरीर को पहली बार किसी मर्द के स्पर्श का अहसास मिला था.

वह पहली बार हुआ एक हादसा था. लेकिन इस के बाद फातिमा और आसिफ के बीच इस नाजायज रिश्ते की कहानी हर रोज लिखी जाने लगी.

चंद रोज बाद समरीन अस्पताल से ठीक हो कर वापस घर आ गई. कुछ दिन तीमारदारी के बहाने फातिमा बहन के घर पर ही रही. आसिफ को जब भी मौका मिलता, वह उसे अपनी बांहों में ले कर अपनी भूख मिटा लेता. फातिमा को भी अब जीजा आसिफ का इस तरह उस के शरीर को मसलना अच्छा लगने लगा था.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

‘माया’ जाल में फंसा पति – भाग 2

गांव में जहां शिवलोचन का मकान था, फूलचंद की मां उस से कुछ दूर अपने पैतृक मकान में रहती थी. वहीं पर वह अपनी गुजरबसर के लिए चाय का ढाबा चलाती थी. शिवलोचन की पत्नी माया जब 7-8 महीने पहले बच्चों को ले कर मायके गई थी तो जाते वक्त घर का ताला लगा कर चाभी अपनी सास चुनकी देवी को दे गई थी. तभी से शिवलोचन का मकान बंद पड़ा था.

इसी दौरान शिवलोचन के पड़ोसी हुकुम सिंह ने उस से कहा कि 8 महीने पहले शिवलोचन ने उस का सेकेंड हैंड टीवी यह कह कर लिया था कि कुछ दिन में पैसे दे देगा. लेकिन टीवी लेने के कुछ दिन बाद ही शिवलोचन और उस की पत्नी पता नहीं कहां चले गए. उन्होंने न तो पैसे दिए, न टीवी लौटाया.

हुकुम सिंह ने फूलचंद से कहा कि शिवलोचन तो पता नहीं कब आएगा, इसलिए वह उस का टीवी निकाल कर उसे दे दे. फूलचंद ने अपनी मां चुनकी देवी से शिवलोचन के घर की चाभी ले कर ताला खोला तो अंदर के दोनों कमरों से तेज बदबू का झोंका आया. बंद कमरों के खुलने के कुछ देर बाद जब बदबू कम हुई तो फूलचंद ने हुकुम सिंह का टीवी उठा कर उसे दे दिया.

फूलचंद को लगा कि लंबे समय से मकान बंद था, जिस से सीलन और गंदगी की वजह से बदबू आ रही होगी. उस ने सोचा कि क्यों न दोनों कमरों की सफाई कर दी जाए. लेकिन जब वह उस कमरे की सफाई करने लगा, जिस में शिवलोचन और माया रहते थे तो कमरे के फर्श की कच्ची जमीन थोड़ी धंसी हुई दिखाई दी.

यह देख कर फूलचंद का मन शंका से भर उठा. क्योंकि वहां की जमीन को देख कर ऐसा लग रहा था, मानो कच्चे फर्श का वह हिस्सा अलग हो. उस जगह को गौर से देखने पर लगा, जैसे वहां कोई चीज दबाई गई हो.

पांव से दबाने पर वहां की जमीन नीचे की तरफ दब रही थी. गांव के कुछ लोगों को बुला कर फूलचंद के जमीन का वह हिस्सा दिखाया तो सब ने राय दी कि क्यों न जमीन खोद कर देख लिया जाए. लेकिन जमीन में ऐसीवैसी किसी चीज के दबे होने की आशंका से फूलचंद खुदाई करने से हिचक रहा था. लिहाजा उस ने सब से राय ली कि क्यों न पहले पुलिस को खबर कर दी जाए.

‘‘अरे भैया, तुम तो ऐसे डर रहे हो जैसे जमीन में खजाना गड़ा हो. अरे तुम्हारा घर है, तुम्हारी जमीन है. खोद कर देखो, जो कुछ भी होगा सामने आ जाएगा और अगर ऐसावैसा कुछ हुआ भी तो पुलिस को खबर कर देना.’’ कई लोगों ने एक राय हो कर कहा.

बात फूलचंद की समझ में आ गई. लिहाजा उस ने कमरे के उस हिस्से की फावड़े से खुदाई शुरू कर दी. 3 फुट गहरा गड्ढा खुद चुका था मगर कुछ भी नहीं निकला. लेकिन एक बात ऐसी थी, जिस की वजह से केवल फूलचंद ही नहीं, बल्कि गांव वालों का मन भी आशंका से भर उठा.

बात यह थी कि उस जगह की मिट्टी काफी नरम थी. मिट्टी की सतह वैसे नहीं चिपकी थी, जैसे आमतौर पर चिपकी होती है. इतना ही नहीं जैसेजैसे जमीन खोदी जा रही थी, गड्ढे में से बदबू आनी शुरू हो गई थी. छह इंच जमीन और खोदते ही फूलचंद की आशंका सच साबित हुई. जमीन के उस गड्ढे से कुछ हड्डियां मिली. इस के बाद दहशत में आ कर फूलचंद ने खुदाई रोक दी.

गांव वालों से बातचीत के बाद फूलचंद अपनी मां चुनकी देवी, पड़ोसी हुकुम सिंह, गांव के प्रधान, चौकीदार और कुछ अन्य लोगों को साथ ले कर थाना पहाड़ी पहुंचा. यह 7 जुलाई, 2018 की दोपहर की बात है. पहाड़ी थाने के एसएचओ इंसपेक्टर अरुण पाठक थाने में ही मौजूद थे.

एक साथ इतने सारे लोगों को आया देख पाठक ने उन से आने की वजह पूछी तो फूलचंद ने अपने भाई और भाभी के घर से गायब होने के बारे में बता कर घर में हुई खुदाई के दौरान मानव हड्डियों के निकलने की बात उन्हें बता दी.

इंसपेक्टर अरुण पाठक बोले, ‘‘अरे भाई, जब तुम ने इतना गड्ढा खोद ही दिया था तो थोड़ा सा और खोद लेते. कम से कम यह पता तो चल जाता कि वहां किसी जानवर की हड्डियां दबी हैं या इंसान की.’’

‘‘दरअसल, मेरे भाईभाभी का कुछ पता नहीं है, इसलिए हमें बड़ा डर लग रहा है. आप चल कर देख लीजिए.’’ फूलचंद ने इंसपेक्टर पाठक के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा.

इंसपेक्टर अरुण पाठक पुलिस टीम ले कर फूलचंद और उस के साथ आए गांव वालों के साथ लोहदा गांव में शिवलोचन के घर पहुंच गए. घर के बाहर पहले से ही काफी भीड़ जमा थी. इंसपेक्टर अरुण पाठक ने पहले से 2-3 फीट खुदे गड्ढे की थोड़ी और खुदाई कराई.

पहले से करीब साढे़ 3 फीट खुदे गड्ढे की थोड़ी और खुदाई कराई. करीब साढ़े 3 फीट खुदे गड्ढे की एक फीट और खुदाई हुई तो पूरा नरकंकाल निकला. नरकंकाल की गर्दन में रस्सी बंधी हुई थी, जो गली नहीं थी. ऐसा लग रहा था जैसे रस्सी से उस का गला दबाया गया हो.

चूंकि शव पूरी तरह कंकाल में तब्दील हो चुका था, इसलिए लग रहा था कि शव को कई महीने पहले दफनाया गया था. मामले की गंभीरता को समझते हुए इंसपेक्टर अरुण पाठक ने इलाके के क्षेत्राधिकारी शिवबचन सिंह और नायब तहसीलदार को मौके पर बुलवा लिया.

दोनों अधिकारियों ने बात जानने के बाद नरकंकाल को सावधानीपूर्वक गड्ढे से बाहर निकलवा लिया. इस दौरान चित्रकूट जिले के पुलिस अधीक्षक मनोज कुमार झा भी फोरेंसिक टीम को ले कर लोहदा पहुंच गए.

कंकाल किसी आदमी का था, यह ढांचे से साबित हो रहा था. कंकाल की पहचान के लिए गड्ढे से कोई ऐसी चीज नहीं निकली थी, जिसे पहचान कर कोई यह बता पाता कि कंकाल किस का है. अलबत्ता फूलचंद व उस की मां चुनकी देवी ने कंकाल को गौर से देखने के बाद आशंका जताई कि कंकाल शिवलोचन का हो सकता है.

इंसपेक्टर अरुण पाठक ने फूलचंद से पूछा, ‘‘तुम यह बात इतने विश्वास से कह रहे हो कि कंकाल शिवलोचन का ही है?’’

अय्याशी में डूबा रंगीन मिजाज का कारोबारी- भाग 2

अस्पताल में पता चला कि जिन तीनों महिलाओं को गोली मारी गई थी, उन की मौत हो चुकी है. उन की लाशें कब्जे में ले कर पुलिस ने शंटू के बयान दर्ज किए और उन्हीं की ओर से भादंवि की धारा 302, 307, 452, 34 और 25, 27 आर्म्स एक्ट के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर तीनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए राजकीय अस्पताल भेज दिया.

मामला करोड़पति बिजनैसमैन के परिवार में हुई 3 हत्याओं का था, इसलिए खबर मिलते ही पुलिस कमिश्नर (जालंधर) अर्पित शुक्ला सहित पुलिस के तमाम अधिकारी अपनेअपने लावलश्कर के साथ लाजपतनगर की कोठी नंबर-141 पर पहुंच गए. कोठी के ड्राइंगरूम में खून फैला था. क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम और फिंगरप्रिंट विशेषज्ञ मौके से सबूत ढूंढने का प्रयास कर रहे थे.

घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण करने के बाद पुलिस अधिकारियों को लगा कि हत्याएं लूटपाट के इरादे से नहीं की गईं, क्योंकि कोठी का सारा कीमती सामान अपनी जगह पर यथावत था. एक जगह कुरसियां और चाय के बरतन जमीन पर गिरे पडे़ थे, जिस से अनुमान लगाया गया कि वहां संघर्ष हुआ होगा.

हत्यारे जिस तरह कोठी के पीछे का दरवाजा खोल कर निकले थे, उस से यही अनुमान लगाया गया कि वह लूंबा परिवार के परिचित रहे होंगे, जिन का कोठी में आनाजाना रहा होगा. क्योंकि वह दरवाजा अकसर बंद रहता था और उस की चाबी फ्रिज के पीछे टंगी रहती थी. उन का मकसद केवल परमजीत कौर उर्फ पम्मी और उस की सास दलजीत कौर की हत्या करना था.

चश्मदीद गवाह न रहे, इसलिए उन्होंने कोठी में मौजूद खुशवंत कौर को भी मार दिया था. शंटू ने पुलिस को बताया था कि उस के परिवार की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. पुलिस मामले की जांच में जुट गई. पुलिस को पता चला कि उस कोठी में 4 नौकरानियां काम करती थीं.

सुबह 10 बजे से दोपहर 2 बजे तक 3 नौकरानियां बरतन झाड़ूपोंछा, कपड़े धोने आदि का काम कर के अपने घर चली जाती थीं. एक नौकरानी रीतू लगभग 3, साढ़े 3 बजे की चाय बनाने के बाद घर जाती थी. पुलिस ने चारों नौकरानियों और उन के पतियों से गहन पूछताछ करने के साथ उन की पारिवारिक कुंडली को भी खंगाला.

क्योंकि अकसर बड़े घरों में होने वाली ऐसी वारदातों के पीछे किसी न किसी नौकर का हाथ होता है. पर ये सब बेकसूर पाए गए. पुलिस को घटनास्थल से 2 खाली कारतूस मिले थे, जबकि तीनों मृतक महिलाओं पर 7 गोलियां चलाई गई थीं, इस का मतलब यह था कि शेष 5 गोलियां मृतकों के शरीर में रह गई थीं.

अगले दिन डा. चंद्रमोहन, डा. प्रिया और डा. राजकुमार के पैनल ने तीनों लाशों का पोस्टमार्टम किया. एक्सरे और पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के अनुसार, दलजीत कौर को कुल 3 गोलियां मारी गई थीं, जिस में से एक गोली उन के दिल के पास और एक सिर में फंसी थी. परमजीत कौर को भी 3 गोलियां लगी थीं, जिन में एक गोली उस के माथे के ठीक बीचोबीच लगी थी और एक खोपड़ी और एक बाजू में फंसी हुई थी. इस के अलावा उस के शरीर पर चोटों के 6 निशान पाए गए थे.

खुशवंत कौर के सिर में एक गोली उस की कनपटी से हो कर खोपड़ी में फंस गई थी. उस की गरदन में 16 सेंटीमीटर लंबा एक पेचकस भी फंसा हुआ था. पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने तीनों लाशें परिजनों को सौंप दीं. उन के अंतिम संस्कार में शहर के अनेक व्यापारी, गणमान्य व्यक्तियों के अलावा हजारों लोग शामिल हुए थे.

पुलिस को अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू से पूछताछ करनी थी, इसलिए अंतिम संस्कार के बाद पुलिस ने उसे थाने बुला लिया. उस समय वहां वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी मौजूद थे. थानाप्रभारी ने उस का मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले कर चैक किया तो पता चला कि उस की सारी काल डिटेल्स डिलीट की हुई थी. उस का फोन नंबर सर्विलांस पर लगाने के बाद संबंधित फोन कंपनी से उस के नंबर की काल डिटेल्स हासिल की गई.

काल डिटेल्स की जांच में पुलिस को कई फोन नंबर संदिग्ध मिले. उन नंबरों के बारे में शंटू से पूछताछ की गई तो इस तिहरे हत्याकांड का खुलासा हो गया.

मामले का 24 घंटे में खुलासा होने पर पुलिस अधिकारियों ने राहत की सांस ली. हत्याकांड की साजिश में शामिल तेजिंदर कौर उर्फ रूबी नाम की महिला की गिरफ्तारी के लिए एक टीम फगवाड़ा भेज दी.

उस की गिरफ्तारी के बाद पुलिस कमिश्नर अर्पित शुक्ला ने उसी शाम प्रैसवार्ता कर पत्रकारों को बताया कि लाजपतनगर के तिहरे हत्याकांड के साजिशकर्ता और कोई नहीं, बल्कि अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू और उस की प्रेमिका तेजिंदर कौर उर्फ रूबी है. इन दोनों अभियुक्तों ने पत्रकारों के सामने हत्या की कहानी बयान कर दी. इस सनसनीखेज तिहरे हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस प्रकार थी—

जगजीत सिंह लूंबा की सारी कंपनियां दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रही थीं. वह बड़े बिजनैसमैन थे, इसलिए उन का समाज में एक अलग ही रुतबा था. अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू और उस की पत्नी परमजीत कौर में बड़ा गहरा प्यार था. शंटू और जगजीत सिंह सुबह एक साथ घर से निकलते थे. जगजीत सिंह का अधिकांश समय पैट्रोल पंपों पर गुजरता था, जबकि शंटू स्वतंत्र रूप से फैक्ट्री को देखता था. दोनों ने अपनेअपने काम बांट रखे थे, पर सारे कारोबार का लेखाजोखा जगजीत ऐंड कंपनी में होता था.

लूंबा परिवार की बरबादी के दिन की शुरुआत उस समय हो गई थी, जब सन 2013 में उन की कंपनी में तेजिंदर कौर उर्फ रूबी ने बतौर हैड एकाउंटैंट का कार्यभार संभाला. इस के पहले जगजीत ऐंड कंपनी में उस का पति सुखजीत बतौर कैशियर काम करता था. सुखजीत सिंह रूबी का नाम का ही पति था. क्योंकि उस पर सुखजीत सिंह का कोई नियंत्रण नहीं था.

अपना जीवन कैसे जीना है, इस बात के फैसले रूबी खुद लेती थी और उस में वह किसी का भी दखल बरदाश्त नहीं करती थी. कुल मिला कर वह एक आजाद खयाल महिला थी. कालेज के दिनों में ही रूबी ने तय कर लिया था कि वह भारत छोड़ कर विदेश जाएगी, जहां खूब दौलत कमा कर अपनी जिंदगी का लुत्फ उठाएगी.

इस के लिए उस ने कोई भी कीमत चुकाने का फैसला कर लिया था, पर विदेश जाने के लिए उस के पास पर्याप्त धन नहीं था. आखिर उस ने स्कौलरशिप ले कर आस्ट्रेलिया जाने का फैसला लिया. बारहवीं करने के बाद रूबी ने कंप्यूटर एजूकेशन में डिप्लोमा किया. इस के बाद उस ने सन 2009 में आईईएलटीएस की परीक्षा दी.

इस परीक्षा के तहत विदेश में नौकरी करने के लिए इच्छुक लोगों का अंगरेजी भाषा का टेस्ट लिया जाता है. फिर इस में मिले स्कोर बैंड के आधार पर उसे वीजा देने का फैसला लिया जाता है. इस परीक्षा में रूबी का स्कोर बैंड 5.5 आया. यह स्कोर बैंड अंगरेजी भाषा के मामूली उपयोगकर्ता का होता है, इसलिए कम स्कोर बैंड आने पर रूबी को आस्ट्रेलिया का वीजा नहीं मिला.

रूबी ने हिम्मत नहीं हारी. उस ने एक बार फिर आईईएलटीएस की परीक्षा दी. इस बार उसे 6.5 स्कोर बैंड प्राप्त हुए. यह स्कोर बैंड सक्षम उपयोगकर्ता का माना जाता है. पर उसे कम से कम 7 बैंड की जरूरत थी. इस बार भी वीजा न मिलने पर उस की विदेश जाने की इच्छा पूरी नहीं हो सकी. उसी दौरान उस की शादी सुखजीत सिंह से हो गई.

सुखजीत सिंह एक शरीफ युवक था. रूबी उसे ज्यादा महत्त्व नहीं देती थी. बातबात पर वह उस से क्लेश करती थी. क्लेश से बचने के लिए वह शांत रहता था. रूबी पति के साथ जालंधर के सोढल चौक पर किराए के मकान में रहती थी. पर अपनी महत्त्वाकांक्षा के चलते उस ने विदेश जाने का इरादा नहीं छोड़ा था.

वह किसी ऐसे आदमी की तलाश में थी, जो उस पर ढेर सारी दौलत लुटाए और उस के सपने पूरे करे. इस बीच उस की नौकरी अच्छे वेतन और अन्य सुविधाओं के साथ जगजीत ऐंड कंपनी में लग गई थी. इस नौकरी को उस ने अपने सपने पूरे करने का जरिया बना डाला था.

अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू पहली ही मुलाकात में तेजिंदर कौर उर्फ रूबी का दीवाना हो गया था. रूबी भी अपने बौस की नजरों को ताड़ गई थी. यही तो वह चाहती थी. जिस आदमी की उसे तलाश थी, वह तलाश उस की पूरी हो गई थी.

अनूठा बदला : पति से लिया बदला – भाग 2

‘‘मैं उन 36 में से नहीं हूं, मैं ने तुम्हें चाहा है तो अपनी बना कर ही रहूंगा.’’ प्रमोद ने कहा.‘‘अरे जाओ यहां से. फिर कभी इधर दिखाई दिया तो हाथपैर तोड़वा दूंगी.’’ कंचन ने धमकी दी.उस समय कंचन अपने घर पर थी, इसलिए शोर मचा कर बखेड़ा कर सकती थी. प्रमोद उस के घर के सामने कोई बखेड़ा नहीं करना चाहता था, क्योंकि वह वहां पिट सकता था.

इसलिए उस ने वहां से चुपचाप चले जाने में ही अपनी भलाई समझी. लेकिन जातेजाते उस ने इतना जरूर कहा, ‘‘तू कुछ भी कर ले कंचन, तुझे बनना मेरी ही है.’’ कंचन के लिए यह एक चुनौती थी. वह भी जिद्दी किस्म की लड़की थी. उस के घर वाले भी दबंग थे, गांव में किसी से न डरने वाले. लड़ाईझगड़ा और मारपीट से भी नहीं घबराते थे. यही वजह थी कि कंचन किसी से नहीं डरती थी.

उस ने प्रमोद की शिकायत अपने घर वालों से कर दी. इस के बाद तो दोनों परिवारों में जम कर लड़ाईझगड़ा हुआ. प्रमोद के घर वाले भी कम नहीं थे. पर गांवों में लड़की की इज्जत, घरपरिवार की इज्जत से ही नहीं गांव की इज्जत से जोड़ दी जाती है. इसलिए गांव के बाकी लोग सोहरत सिंह की तरफ आ खड़े हुए.

इस से प्रमोद के घर वाले कमजोर पड़ गए, जिस से उस के घर वालों को झुकना पड़ा. इस घटना से प्रमोद की तो बदनामी हुई ही, उस के घर वालों की भी खासी फजीहत हुई. यह सब कंचन की वजह से हुआ था, इसलिए प्रमोद उस से अपनी बेइज्जती का बदला लेना चाहता था. वह मौके की तलाश में लग गया. आखिर उसे एक दिन मौका मिल ही गया.

गर्मियों के दिन थे. फसलों की कटाई चल रही थी. लोग देर रात खेतों पर फसल की कटाई और मड़ाई करते थे. उस समय आज की तरह ट्रैक्टर से मड़ाई और कटाई नहीं होती थी. तब कटाई हाथों से होती थी और मड़ाई थ्रेशर या बैलों से, इसलिए फसल की कटाई और मड़ाई में काफी समय लगता था. गरमी के बाद बरसात आती है, इसलिए लोग जल्दी से जल्दी फसल की कटाई और मड़ाई करते थे. इस के लिए लोग देर रात तक खेतों में काम करते थे.

कंचन के घर वालों की फसल की कटाई और मड़ाई लगभग खत्म हो चुकी थी. जो बची थी, उसे जल्दी से जल्दी निपटाने के चक्कर में देर रात तक खेतों में काम करते थे. वैसे भी जून का अंतिम सप्ताह चल रहा था, बरसात कभी भी हो सकती थी.27 जून, 1997 की रात खेतों पर काम कर के सभी घर आ गए, पर कंचन नहीं आई थी. रात का समय था, इसलिए ज्यादा इंतजार भी नहीं किया जा सकता था. फिर कंचन रात को कहीं रुकने वाली भी नहीं थी. जिस दिन प्रमोद के घर वालों से झगड़ा हुआ था, उसी दिन प्रमोद ने धमकी दी थी कि वह अपनी बेइज्जती का बदला जरूर लेगा.

कंचन के घर न पहुंचने पर उस के घर वालों को प्रमोद की वह धमकी याद आ गई.  कंचन के घर वाले तुरंत प्रमोद के घर पहुंचे तो पता चला कि वह भी घर से गायब है. पूछने पर घर वालों ने साफ कहा कि उन्हें न प्रमोद के बारे में पता है, न कंचन के बारे में.गांव वालों ने भी दबाव डाला, पर न कंचन का कुछ पता चला न प्रमोद का.

घर वाले पूरी रात गांव वालों के साथ मिल कर कंचन को तलाश करते रहे, पर उस का कुछ पता नहीं चला.सोहरत सिंह की गांव में तो बेइज्जती हुई ही थी, धीरेधीरे नातेरिश्तेदारों को भी कंचन के घर से गायब होने का पता चल गया था. अब तक साफ हो गया था कि कंचन को प्रमोद ही अगवा कर के ले गया था.

घर वाले खुद ही कंचन को ढूंढ लेना चाहते थे, लेकिन काफी प्रयास के बाद भी जब वे कंचन और प्रमोद का पता नहीं लगा सके तो करीब 3 महीने बाद 14 सितंबर, 1997 को गोरखपुर के महिला थाने में कंचन के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी गई. पुलिस ने इस मामले को अपराध संख्या 01/1997 पर भादंवि की धारा 363, 366 के तहत दर्ज कर लिया.उस समय कंचन का भाई अंबरीश नाबालिग था.

उस का बड़ा भाई धर्मवीर समझदार था. उसे परिवार की बेइज्जती का बड़ा मलाल था, इसलिए वह खुद बहन की तलाश में लगा था. क्योंकि उसे पता था कि पुलिस इस मामले में कुछ खास नहीं करेगी. उस समय आज की तरह न मोबाइल फोन थे, न सर्विलांस की व्यवस्था थी.

कंचन का भाई धर्मवीर कंचन और उस का अपहरण कर के ले जाने के दिन से प्रमोद की तलाश में दिनरात एक किए हुए था. प्रमोद ने समाज में उस की प्रतिष्ठा को भारी क्षति पहुंचाई थी. धर्मवीर दोनों की तलाश में ट्रेन से कानपुर जा रहा था. लेकिन वह कानपुर नहीं पहुंच सका. उस की लाश ट्रेन की पटरी के पास मिली. पुलिस ने इसे दुर्घटना माना और इस मामले की फाइल बंद कर दी.

पुलिस ने धर्मवीर की मौत को भले ही दुर्घटना माना, लेकिन घर वालों ने धर्मवीर की मौत को हत्या माना. उन्हें लग रहा था कि धर्मवीर की हत्या प्रमोद के घर वालों ने की है. क्योंकि वह प्रमोद के पीछे हाथ धो कर पड़ा था. अपने परिवार की बरबादी का कारण प्रमोद को मान कर अंबरीश, उस के पिता सोहरत सिंह, चाचा जगरनाथ सिंह ने मिल कर प्रमोद के छोटे भाई नीलकमल की हत्या कर दी. यह सन 2001 की बात है.

इस मामले का मुकदमा थाना सहजनवां (वर्तमान में थाना गीडा) गोरखपुर में भादंवि की धारा 302, 506 के तहत दर्ज हुआ. नीलकमल की हत्या के आरोप में सोहरत सिंह और जगरनाथ सिंह को आजीवन कारावास की सजा हो चुकी है. इस समय दोनों हाईकोर्ट से मिली जमानत पर बाहर हैं. घटना के समय अंबरीश नाबालिग था. उस का मुकदमा अभी विचाराधीन है. वह भी जमानत पर है.

नीलकमल की हत्या में अंबरीश की चाची उर्मिला को भी अभियुक्त बनाया गया था, लेकिन वह दोषमुक्त साबित हुई. इस परिवार की बरबादी का कारण प्रमोद था, इसलिए अंबरीश प्रतिशोध की आग में जल रहा था. वह किसी भी तरह प्रमोद को ठिकाने लगाना चाहता था, पर उस का कुछ पता ही नहीं चल रहा था.
दूसरी ओर कंचनलता को अगवा करने के बाद प्रमोद ने उस से जबरदस्ती शादी कर ली और किसी अज्ञात जगह पर छिप कर रहने लगा. कुछ दिनों बाद वह उसे ले कर मीरजापुर आ गया और किराए का मकान ले कर रहने लगा.

गुजरबसर के लिए वह मजदूरी करता रहा. इस बीच दोनों 2 बच्चों, एक बेटी आकृति और एक बेटे स्वयं सिंह के मातापिता बन गए. आकृति इस समय अमेठी से पौलिटेक्निक कर रही है तो स्वयं सिंह प्राइवेट पढ़ाई करते हुए दिल्ली में नौकरी कर रहा है.धीरेधीरे गृहस्थी जम गई. लेकिन कंचन ने न कभी प्रमोद को दिल से पति माना और न ही प्रमोद ने उसे पत्नी. बस दोनों रिश्ता निभाते रहे.

यही वजह थी कि दोनों में कभी पटरी नहीं बैठी. कंचन को प्रमोद पर भरोसा नहीं था, इसलिए वह पढ़लिख कर कुछ करना चाहती थी. इस की एक वजह यह थी कि प्रमोद अकसर उस के साथ मारपीट करता था. शायद इसलिए कि कंचन की वजह से उस का घरपरिवार छूटा था. अगर वह चुनौती न देती तो वह भी इस तरह भटकने के बजाए अपने परिवार के साथ सुख से रह रहा होता.

2 भाइयों की करतूत : परिवार से ही लिया बदला – भाग 3

उस ने नीलम को डांटा और सख्त हिदायत दी कि विजय के साथ घूमनाफिरना बंद कर दे. नीलम ने डर की वजह से मामा से वादा तो कर दिया कि अब वह ऐसा नहीं करेगी. लेकिन वह विजय को दिल दे बैठी थी. फिर उस के बिना कैसे रह सकती थी. सोचविचार कर उस ने तय किया कि अब वह विजय से मिलने में सावधानी बरतेगी.

नीलम ने विजय प्रताप को फोन पर अपने मामा द्वारा दी गई चेतावनी बता दी. लिहाजा विजय भी सतर्क हो गया. मिलना भले ही बंद हो गया लेकिन दोनों ने फोन पर होने वाली बात जारी रखी. जिस दिन नीलम का मामा घर पर नहीं होता, उस दिन वह विजय से मिल भी लेती थी. इस तरह उन का मिलने का क्रम जारी रहा.

नीलम की जातिबिरादरी का एक लड़का था सुबोध. वह नीलम के घर के पास ही रहता था. वह नीलम को मन ही मन प्यार करता था. नीलम भी उस से हंसबोल लेती थी. उस के पास नीलम का मोबाइल नंबर भी था. इसलिए जबतब वह नीलम से फोन पर बतिया लेता था.

सुबोध नीलम से प्यार जरूर करता था, लेकिन प्यार का इजहार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया था. नीलम जब विजय प्रताप से प्यार करने लगी तो सुबोध के मन में प्यार की फांस चुभने लगी. वह दोनों की निगरानी करने लगा.

एक दिन सुबोध ने नीलम को विजय प्रताप के साथ घूमते देखा तो उस ने यह बात नीलम के मामा श्यामबाबू को बता दी. श्यामबाबू ने नीलम की पिटाई की और उस का घर के बाहर जाना बंद करा दिया. नीलम पर प्रतिबंध लगा तो वह घबरा उठी.

उस ने इस बाबत मोबाइल फोन पर विजय से बात की और घर से भाग कर शादी रचाने की इच्छा जाहिर की. विजय प्रताप भी यही चाहता ही था, सो उस ने रजामंदी दे दी. इस के बाद दोनों कानपुर छोड़ने की तैयारी में जुट गए.

विजय प्रताप का एक रिश्तेदार दिल्ली में यमुनापार लक्ष्मीनगर, मदर डेयरी के पास रहता था और रेडीमेड कपड़े की सिलाई का काम करता था. उस रिश्तेदार के माध्यम से विजय प्रताप ने दिल्ली में रहने की व्यवस्था बनाई और नीलम को दिल्ली ले जा कर उस से शादी करने का फैसला कर लिया. उस ने फोन पर अपनी योजना नीलम को भी बता दी.

4 अगस्त, 2019 को जब श्यामबाबू काम पर चला गया तो नीलम अपना सामान बैग में भर कर घर से निकली और कानपुर सेंट्रल स्टेशन जा पहुंची. स्टेशन पर विजय प्रताप उस का पहले से इंतजार कर रहा था. उस समय दिल्ली जाने वाली कालका मेल तैयार खड़ी थी. दोनों उसी ट्रेन पर सवार हो कर दिल्ली रवाना हो गए.

उधर देर रात को श्यामबाबू घर आया तो घर से नीलम गायब थी. उस ने फोन पर नीलम से बात करने का प्रयास किया, लेकिन उस का फोन बंद था. श्यामबाबू को समझते देर नहीं लगी कि नीलम अपने प्रेमी विजय प्रताप के साथ भाग गई है. इस के बाद उस ने न तो थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई और न ही उसे खोजने का प्रयास किया.

उधर दिल्ली पहुंच कर विजय प्रताप अपने रिश्तेदार के माध्यम से लक्ष्मीनगर में एक साधारण सा कमरा किराए पर ले कर रहने लगा. एक हफ्ते बाद उस ने नीलम से प्रेम विवाह कर लिया और दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे. नीलम ने विजय से विवाह रचाने की जानकारी अपने मामा श्यामबाबू को भी दे दी. साथ ही यह भी बता दिया कि वह दिल्ली में रह रही है.

इधर विजय प्रताप के परिवार वालों को जब पता चला कि विजय ने नीलम नाम की एक दलित लड़की से शादी की है तो उन्होंने विजय को जम कर फटकारा और नीलम को बहू के रूप में स्वीकार करने से साफ मना कर दिया.

यही नहीं, परिवार वालों ने उस पर दबाव डालना शुरू कर दिया कि वह नीलम से रिश्ता तोड़ ले. पारिवारिक दबाव से विजय प्रताप परेशान हो उठा. उस का छोटा भाई अजय प्रताप भी रिश्ता खत्म करने का दबाव डाल रहा था.

हो गई कलह शुरू

नीलम अपने पति विजय के साथ 2 महीने तक खूब खुश रही. उसे लगा कि उसे सारा जहां मिल गया है. लेकिन उस के बाद उस की खुशियों में जैसे ग्रहण लग गया. वह तनावग्रस्त रहने लगी. नीलम और विजय के बीच कलह भी शुरू हो गई. कलह का पहला कारण यह था कि नीलम सीलन भरे कमरे में रहते ऊब गई थी.

वह विजय पर दबाव डालने लगी थी कि उसे अपने घर ले चले. वह वहीं रहना चाहती है. लेकिन विजय प्रताप जानता था कि उस के घर वाले नीलम को स्वीकार नहीं करेंगे. इसलिए वह उसे गांव ले जाने को मना कर देता था.

कलह का दूसरा कारण था नीलम का फोन पर किसी से हंसहंस कर बतियाना. जिस से विजय को शक होने लगा कि नीलम का कोई प्रेमी भी है. हालांकि नीलम जिस से बात करती थी, वह उस के मायके के पड़ोस में रहने वाला सुबोध था. उस से वह अपने मामा तथा घर की गतिविधियों की जानकारी लेती रहती थी. कभीकभी वह मामा से भी बात कर लेती थी.

एक तरफ परिवार का दबाव तो दूसरी तरफ शक. इन बातों से विजय प्रताप परेशान हो गया. मन ही मन वह नीलम से नफरत करने लगा. एक दिन देर शाम नीलम सुबोध से हंसहंस कर बातें कर रही थी, तभी विजय प्रताप कमरे में आ गया.

उस ने गुस्से में नीलम का मोबाइल तोड़ दिया और उसे 2 थप्पड़ भी जड़ दिए. इस के बाद दोनों में झगड़ा हुआ. नीलम ने साफ कह दिया कि अब वह दिल्ली में नहीं रहेगी. वह उसे ससुराल ले चले. अगर नहीं ले गया तो वह खुद चली जाएगी.

नीलम की इस धमकी से विजय प्रताप संकट में फंस गया. उस ने फोन पर इस बारे में अपने छोटे भाई अजय से बात की. अंतत: दोनों भाइयों ने इस समस्या से निजात पाने के लिए नीलम की हत्या की योजना बना ली. योजना बनने के बाद विजय प्रताप ने नीलम से कहा कि वह जल्दी ही उसे गांव ले जाएगा. वह अपनी तैयारी कर ले.

11 दिसंबर, 2019 की सुबह विजय प्रताप ने नीलम से कहा कि उसे आज ही गांव चलना है. नीलम चूंकि पहली बार ससुराल जा रही थी, इसलिए उस ने साजशृंगार किया, पैरों में महावर लगाई, फिर पति के साथ ससुराल जाने के लिए निकल गई.

विजय प्रताप नीलम को साथ ले कर बस से दिल्ली से निकला और रात 11 बजे कन्नौज पहुंच गया. विजय की अपने छोटे भाई अजय से बात हो चुकी थी. अजय प्रताप मोटरसाइकिल ले कर कन्नौज बसस्टैंड पर आ गया.

नीलम ने दोनों भाइयों को एकांत में खुसरफुसर करते देखा तो उसे किसी साजिश का शक हुआ. इसी के मद्देनजर उस ने कागज की परची पर पति का मोबाइल नंबर लिखा और सलवार के नाड़े के स्थान पर छिपा लिया.

रात 12 बजे विजय प्रताप, नीलम और अजय प्रताप मोटरसाइकिल से पैथाना गांव की ओर रवाना हुए. जब वे ईशन नदी पुल पर पहुंचे तो अजय प्रताप ने मोटरसाइकिल रोक दी. उसी समय विजय प्रताप ने नीलम के गले में मफलर लपेटा और उस का गला कसने लगा. नीलम छटपटा कर हाथपैर चलाने लगी तो अजय प्रताप ने उसे दबोच लिया और पास पड़ी ईंट से उस का चेहरा कुचल दिया.

हत्या करने के बाद दोनों नीलम के गले में अंगौछा डाल बांध कर शव को घसीट कर पुल के नीचे नदी किनारे ले गए और झाडि़यों में फेंक दिया. पहचान मिटाने के लिए उस का चेहरा तेजाब डाल कर जला दिया. तेजाब की बोतल अजय प्रताप ले कर आया था. शव को ठिकाने लगाने के बाद दोनों भाई मोटरसाइकिल से अपने गांव पैथाना चले गए.

17 दिसंबर, 2019 को थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने अभियुक्त विजय प्रताप तथा अजय प्रताप को कन्नौज कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया गया.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अक्षम्य अपराध : कृष्णा को बनाया शिकार – भाग 1

16 सितंबर, 2019 की बात है. फिरोजाबाद जिले के गांव लालपुर की रहने वाली शशि यादव घर के कामों में व्यस्त थी. शाम 5 बजे जब उसे अपने बच्चों की याद आई तो वह उन्हें खोजने लगी. उस का 4 साल का बड़ा बेटा कान्हा तो घर में ही खेल रहा था, लेकिन 2 साल का छोटा बेटा लौकिक उर्फ कृष्णा कहीं नजर नहीं आ रहा था.

शशि ने पहले घर में ही कृष्णा की खोज की, फिर पासपड़ोस के घरों में जा कर देखा. लेकिन वह वहां भी नहीं था. शशि की जेठानी नीतू पड़ोस में ही दूसरे घर में रहती थी. शशि ने सोचा कि कृष्णा कहीं अपनी ताई के घर खेलने

न चला गया हो. अत: वह जेठानी के घर जा पहुंची. नीतू उसे घर के बाहर ही मिल गई. शशि ने उस से पूछा, ‘‘दीदी, कृष्णा क्या आप के यहां खेल रहा है?’’

‘‘नहीं तो,’’ नीतू हड़बड़ा कर बोली, ‘‘कृष्णा, हमारे घर नहीं आया.’’

‘‘फिर भी दीदी, एक बार देख लो. शायद कहीं छिप कर बैठा हो.’’ शशि ने आग्रह किया.

‘‘तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं तो खुद आ कर देख लो.’’ नीतू तुनक कर बोली.

‘‘दीदी, मेरा तो कलेजा फटा जा रहा है और आप भरोसे की बात कर रही हैं.’’ कहते हुए शशि ने जेठानी के साथ उस के मकान के भूतल का कोनाकोना छान मारा, लेकिन कृष्णा का कुछ भी पता नहीं चला.

कृष्णा को ढूंढतेढूंढते एक घंटे से ज्यादा बीत गया, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चल पाया, जिस से शशि के मन में घबराहट होने लगी. बेटे के लापता होने की खबर उस ने अपने पति सत्येंद्र यादव को दे दी.

सत्येंद्र उस समय अपने भाई महेश के शराब के ठेके पर बैठा था. वहां वह सेल्समैन था. उस का छोटा भाई कुलदीप भी यही काम करता था. सत्येंद्र ने अपने दोनों भाइयों को कृष्णा के लापता होने की सूचना दी तो वे तीनों ठेका बंद कर घर आ गए.

इस के बाद सत्येंद्र अपने भाइयों कुलदीप तथा महेश के साथ कृष्णा को खोजने लगा. तीनों भाइयों ने गांव का एकएक घर छान मारा, लेकिन कृष्णा के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. फिर उन के दिमाग में विचार आया कि कहीं कोई बाबा या तांत्रिक कृष्णा का अपहरण कर के तो नहीं ले गया.

उन्होंने परिवार के कुछ अन्य लोगों को साथ लिया और रेलवे स्टेशन, बसअड्डा तथा टैंपो स्टैंड पर जा कर खोजबीन की. उन्होंने संदिग्ध दिखने वाले बाबाओं को रोक कर भी पूछताछ की तथा उन की झोली की तलाशी ली. तंत्रमंत्र करने वालों के यहां जा कर भी तलाशी ली. लेकिन कृष्णा का कुछ भी पता नहीं चला.

कृष्णा के लापता होने की खबर पूरे गांव में फैल चुकी थी. इसलिए गांव के तमाम पुरुष और महिलाएं सत्येंद्र के घर पर जुटने लगे. सब की जुबान पर एक ही बात थी, आखिर 2 साल का बच्चा कृष्णा कहां चला गया. ऐसे में सत्येंद्र की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपने बच्चे को कहां ढूंढे.

अगले दिन 17 सितंबर की सुबह 10 बजे सत्येंद्र अपने भाइयों के साथ थाना रसूलपुर जा पहुंचा. थाने में उस समय थानाप्रभारी बी.डी. पांडेय मौजूद थे. सत्येंद्र ने थानाप्रभारी को अपना परिचय देते हुए अपने 2 साल के बेटे लौकिक उर्फ कृष्णा के लापता होने की जानकारी दी.

2 साल के बच्चे के गायब होने की बात सुन कर पांडेय भी दंग रह गए, क्योंकि इतना छोटा बच्चा अकेला कहीं दूर नहीं जा सकता था. उन्होंने सत्येंद्र से पूछा, ‘‘तुम्हें किसी पर कोई शक है या किसी से कोई रंजिश वगैरह है तो बताओ.’’

सत्येंद्र कुछ बोलता, उस से पहले ही उस के साथ आए भाई कुलदीप व महेश बोल पड़े, ‘‘नहीं सर, हम लोगों का किसी से कोई झगड़ा नहीं है. जरूर किसी ने बच्चे का अपहरण किया है.’’

थानाप्रभारी ने सत्येंद्र यादव की तरफ से अज्ञात के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज कर लिया तथा सत्येंद्र व उस के भाइयों को आश्वासन दिया कि वह बच्चे की खोज में कोई कसर न छोड़ेंगे. आश्वासन पा कर सत्येंद्र अपने भाइयों के साथ वापस घर चला गया.

उन लोगों के जाने के बाद थानाप्रभारी के मन में एक सवाल बारबार कौंध रहा था कि आखिर 2 साल के बच्चे का अपहरण कोई क्यों करेगा. इस की 2 ही वजह दिखाई दे रही थीं, पहली दुश्मनी और दूसरी फिरौती. इधर बड़ा लालपुर गांव और आसपास के गांवों में तरहतरह की चर्चाएं होने लगी थीं.

कोई बच्चों के गायब करने वाले गिरोह की गांव में सक्रियता बढ़ने का अंदेशा जता रहा था, तो कोई तांत्रिकों आदि पर शक जता रहा था. कुछ लोगों को यह शक हो रहा था कि कहीं कोई ऐसी महिला तो बच्चे का अपहरण कर के नहीं ले गई, जिस की गोद सूनी हो.

बहरहाल, जितने मुंह उतनी बातें होने लगी थीं. थानाप्रभारी ने इस मामले से उच्चाधिकारियों को भी अवगत करा दिया था.

थानाप्रभारी भी बच्चे की खोज में जुटे थे. उन्होंने परिवार के लोगों से हर छोटीबड़ी जानकारी एकत्र की, लेकिन उन्हें ऐसी कोई जानकारी नहीं मिल पाई, जिस के आधार पर कोई क्लू मिल सके.

उन्होंने अपने खास मुखबिरों को भी लगा रखा था. लेकिन उन से भी कोई जानकारी नहीं मिल पाई थी. जैसेजेसे समय बीतता जा रहा था, वैसेवैसे गांव के लोगों का गुस्सा बढ़ता जा रहा था. गांव के लोग एसएसपी औफिस के बाहर धरनाप्रदर्शन की तैयारी में जुट गए थे.

पुलिस को आशंका थी कि हो न हो कृष्णा का किसी ने फिरौती के लिए अपहरण कर लिया हो. लेकिन पुलिस की यह आशंका भी बेकार साबित हुई, क्योंकि 48 घंटे बीतने के बाद भी कृष्णा के घर वालों के पास फिरौती का फोन नहीं आया था. पुलिस ने क्षेत्र के आधा दरजन से अधिक आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को हिरासत में ले कर उन से कड़ाई से पूछताछ तो की, लेकिन पुलिस के हाथ खाली के खाली ही रहे.

19 सितंबर, 2019 की सुबह करीब 5 बजे बड़ा लालपुर गांव का अंशु अपने साथियों के साथ फुटबाल खेलने जा रहा था. दुर्गामाता मंदिर के पास पहुंचने पर उसे बदबू महसूस हुई. वह बदबू आने वाली दिशा की ओर बढ़ा तो कुछ दूरी पर उसे लगा कि मिट्टी में कुछ दबा हुआ है. बनियान मिट्टी से बाहर दिख रही थी. दुर्गंध वहीं से आ रही थी.

अंशु ने शोर मचाया तो भीड़ जुट गई. सत्येंद्र तथा उस की पत्नी शशि यादव भी आ गए. सत्येंद्र के भाई महेश, कुलदीप तथा अन्य परिजन भी वहां आ गए. सभी दबी जुबान से चर्चा करने लगे कि मिट्टी में कहीं कृष्णा तो दफन नहीं है. गांव के कुछ लोगों का मानना था कि पुलिस के आने के बाद ही यहां की मिट्टी हटाई जाए, लेकिन सत्येंद्र और उस के घर वालों को भला तसल्ली कहां थी.

पत्नी की विदाई : पति ही बना कातिल – भाग 1

पिछले 2-3 दिनों से 20 वर्षीय नैंसी मानसिक और शारीरिक रूप से बहुत परेशान थी. इस की वजह यह थी कि उस का 21 वर्षीय पति साहिल चोपड़ा उसे प्रताडि़त कर रहा था. इस दौरान उस ने नैंसी की कई बार पिटाई भी कर दी थी.

नैंसी ने यह बात अपने घर वालों तक को नहीं बताई. इस की वजह यह थी कि उस ने घर वालों के विरोध के बावजूद साहिल से लव मैरिज की थी.

साहिल और उस की शादी को अभी 8 महीने ही हुए थे. पति के प्यार की जगह वह उस के जुल्मोसितम सह रही थी. नैंसी ने भले ही यह बात अपने मातापिता को नहीं बताई थी, लेकिन अपनी सहेली प्रांजलि और सरानिया को 10 नवंबर, 2019 को वाट्सऐप पर मैसेज भेज दी थी. इस मैसेज में उस ने पति द्वारा ज्यादा प्रताडि़त करने की जानकारी दी थी. इतना ही नहीं, उस ने सहेलियों को यह भी कह दिया था कि यदि 2 दिनों तक उस का फोन न मिले तो समझ लेना, साहिल ने उस की हत्या कर दी है.

दिल्ली की ही रहने वाली प्रांजलि और सरानिया नैंसी की पक्की सहेलियां थीं. दोनों समझ नहीं पा रही थीं कि नैंसी को बहुत प्यार करने वाला साहिल नैंसी पर हाथ क्यों उठाने लगा. इस की वजह क्या है, यह तो नैंसी से मुलाकात के बाद ही पता चल सकती थी. बहरहाल, वे रोजाना नैंसी से बातें करने लगीं.

लेकिन 2 दिन बाद ही नैंसी का फोन स्विच्ड औफ हो गया. प्रांजलि और सरानिया परेशान हो गईं कि नैंसी का फोन क्यों बंद है. नैंसी पति साहिल चोपड़ा के साथ पश्चिमी दिल्ली के जनकपुरी स्थित बी-1 ब्लौक में रह रही थी. सरानिया और प्रांजलि ने नैंसी की ससुराल देखी थी, इसलिए 13 नवंबर, 2019 को दोनों नैंसी से मिलने उस की ससुराल पहुंच गईं.

ससुराल में जब नैंसी दिखाई नहीं दी तो उन्होंने उस के बारे में उस की सास रोसी से पूछा. रोसी ने बताया कि नैंसी और साहिल घूमने के लिए हरिद्वार गए हैं. दूसरे कमरे में साहिल के दादा बैठे हुए थे. पूछने पर उन्होंने बताया कि पतिपत्नी फ्रांस घूमने गए हैं.

दादा की बात सुन कर दोनों चौंकीं क्योंकि नैंसी के पास पासपोर्ट नहीं था. फिर वह विदेश कैसे जा सकती है. प्रांजलि और सरानिया जब नैंसी के ससुर अश्विनी चोपड़ा से बात की तो उन्होंने दोनों के जयपुर घूमने जाने की बात बताई.

घर के 3 लोगों द्वारा अलगअलग तरह की बातें दोनों सहेलियों को हजम नहीं हुईं. इस के बाद वे अपने घर चली गईं. उन्होंने इधरउधर फोन कर के नैंसी के बारे में पता लगाने की कोशिश की, पर कोई जानकारी नहीं मिली.

नैंसी की ये दोनों फ्रैंड्स अपनी दुनिया में व्यस्त हो गईं. 28 नवंबर को प्रांजलि व सरानिया ने फिर से नैंसी का नंबर मिलाया तो वह बंद मिला. तब उन्होंने उसी दिन यह जानकारी नैंसी के पिता संजय शर्मा को दे दी.

बेटी के लापता होने की जानकारी पा कर संजय शर्मा के होश उड़ गए. वह पश्चिमी दिल्ली के ही हरिनगर में रहते थे. बेटी नैंसी के बारे में पता करने के लिए वह उसी दिन उस की ससुराल जनकपुरी पहुंच गए. वहां साहिल की मां ने उन्हें बताया कि साहिल और नैंसी घर से 20 लाख से ज्यादा के जेवर ले कर कहीं भाग गए हैं.

संजय शर्मा को उन की बात पर विश्वास नहीं हुआ. काफी पूछताछ करने के बाद भी जब उन्हें कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला तो अगले दिन 23 नवंबर को वह थाना जनकपुरी पहुंचे.

संजय शर्मा ने थानाप्रभारी जयप्रकाश से मुलाकात कर बेटी नैंसी के शादी करने से ले कर उस के गायब होने तक की बात विस्तार से बता दी. साथ ही उन्होंने नैंसी के पति साहिल, ससुर अश्विनी चोपड़ा और साहिल की बुआ के खिलाफ दहेज उत्पीड़न और अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

रिपोर्ट दर्ज करने के कई दिन बाद भी पुलिस ने नैंसी का पता लगाने की कोशिश नहीं की. तब संजय शर्मा ने डीसीपी और एसीपी से संपर्क किया. जब मामला उच्च अधिकारियों के संज्ञान में आया तो थानाप्रभारी को काररवाई करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

थानाप्रभारी जयप्रकाश साहिल के घर पहुंचे तो वह घर पर नहीं मिला. उस के मातापिता यही कहते रहे कि साहिल नैंसी को ले कर कहीं घूमने गया है. लेकिन तब से दोनों के फोन बंद आ रहे हैं. घर वालों को कुछ चेतावनी दे कर थानाप्रभारी लौट आए.

आंखों में खटका बेटी का प्यार – भाग 1

राहुल प्रीति को प्यार करता था, प्रीति भी प्यार के बंधन में बंधी थी. लेकिन प्रीति के घरवाले इस प्रेम के दुश्मन बन गए. उन्होंने प्रीति की हत्या कर उस की लाश न केवल जला दी, बल्कि उस से जुड़े सारे सबूत भी नदी में बहा दिए. राहुल इस से पूरी तरह अनभिज्ञ था. प्रीति की हत्या का राज 7 महीने बाद तब खुला जब…   राहुल सुबह जल्दी उठ कर तैयार हो गया. उसे सुबहसुबह बनसंवर कर जाते देख मां ऊषा देवी ने टोकते हुए कहा,‘‘राहुल, इतना बनसंवर कर कहां चल दिया?’’

‘‘मां, कितनी बार कहा है कि जाते समय पीछे से न टोका करो. मैं एक बहुत जरूरी काम से जा रहा हूं.’’  ‘‘लेकिन बेटा, तू तो आज मेरे साथ बाजार जाने वाला था.’’

‘‘मां, बाजार शाम को चलेंगे. मैं लौट कर नहीं आऊंगा क्या, जाता हूं मुझे देर हो रही है.’’ इतना कह कर राहुल घर से निकल गया.

थोड़ी देर में वह पूर्व निश्चित जगह पर पहुंच गया और इंतजार करने लगा. लगभग 20 मिनट बाद उस की नजर अपनी तरफ आती एक खूबसूरत युवती पर पड़ी तो उस का चेहरा खुशी से खिल उठा. उस के पास आते ही राहुल बोला,‘‘इतनी देर क्यों लगा दी प्रीति, मैं कब से यहां बाजार में खड़ा तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं.’’

‘‘जब प्यार किया है तो इंतजार तो करना ही पड़ेगा. वैसे अब तक तुम्हें इस की आदत पड़ जानी चाहिए थी.’’ प्रीति ने तिरछी नजरों से उसे देखते हुए शरारती लहजे में कहा.

‘‘क्या करूं प्रीति, यह कमबख्त दिल नहीं मानता. जब तक तुम्हारा दीदार नहीं हो जाता, मुझे चैन नहीं आता. मैं अपने दिल के हाथों मजबूर हूं.’’

राहुल का प्यार देख प्रीति भावविभोर हो कर बोली,‘‘मुझे मालूम है राहुल, तुम्हारे दिल में मेरे लिए कितना प्यार है. तुम्हारे इस प्यार के लिए तो मैं किसी से भी लड़ जाऊंगी. मेरी इन आंखों को भी तुम्हारा दीदार करने के बाद ही सुकून मिलता है.’’

‘‘प्रीति, आज कालेज की छुट्टी करो. खूब घूमेंगे, खाएंगे पीएंगे. आज मौसम भी काफी रोमांटिक है, खासतौर पर हम जैसे प्यार करने वालों के लिए.’’

प्रीति तैयार हो गई तो ही राहुल उसे बाजार घुमाने लगा. राहुल ने उस की पसंद की चीजें भी दिलाईं. फिर कुल्फी खरीदी और कुल्फी खातेखाते वह दूर एक सुनसान जगह पर पहुंच गए. वहां दोनों एक एकांत जगह देख बैठ गए. दोनों ही बहुत खुश थे.

जिस दिन एक साथ घूमने का मौका मिल जाता था, दोनों दीनदुनिया से बेखबर हो कर एकदूसरे में डूब जाते थे. उन की शरारतें भी एकाएक बढ़ जाती थीं.

प्रीति को तल्लीनता से कुल्फी खाते देख राहुल को शरारत सूझी. उस ने अचानक प्रीति का हाथ अपनी तरफ खींच कर उस की थोड़ी कुल्फी खा ली और आंख बंद कर के उस के स्वाद का आनंद लेते हुए बोला, ‘‘वाह प्रीति, तुम्हारी कुल्फी का तो जबाब नहीं. तुम्हारी कुल्फी मेरी कुल्फी से ज्यादा मीठी है.’’

‘‘राहुल, हम दोनों की कुल्फी एक जैसी है. फिर केवल मेरी कुल्फी कैसे ज्यादा मीठी हो सकती है.’’ प्रीति ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘कुल्फी तुम्हारे गुलाबी होंठों से लग कर मीठी हुई है.’’ राहुल ने प्रीति के गुलाबी होंठों को अंगुली से छूते हुए कहा.

इस पर प्रीति प्यार से राहुल के गाल पर हल्की सी चपत लगाते हुए बोली, ‘‘बहुत शरारती होते जा रहे हो. एक बार शादी हो जाने दो, फिर तुम्हारी सारी शरारतें छुड़वा दूंगी.’’

‘‘अभी शादी हुई नहीं और ये तेवर. अब तो मैं तुम से शादी ही नहीं करूंगा.’’

‘‘बच्चू, मुझ से पीछा छुड़ाना इतना आसान नहीं है, शादी तो मैं तुम से ही करूंगी.’’ प्रीति ने इस अंदाज में कहा कि राहुल हंस पड़ा. उसे हंसते देख कर प्रीति भी हंस पड़ी.

दोनों में काफी देर तक प्रेमिल नोंकझोंक होती रही. जब काफी समय हो गया तो दोनों एकदूसरे से विदा ले कर अपनेअपने घर चले गए.

प्रीति जनपद प्रतापगढ़ के अंतू थाना क्षेत्र के गांव नंदलाल का पुरवा की रहने वाली थी, उस के दादा रामप्यारे वर्मा थे, जो खेतीकिसानी करते थे. परिवार में पत्नी के अलावा 4 बेटे थे राजू, राजेश, जमुना प्रसाद और ब्रजेश. वे सभी भाई शादीशुदा थे. सभी बेटों के पास अपनेअपने हिस्से की जमीन थी. रामप्यारे के सभी बच्चे अपने परिवारों के साथ सुखी थे.

रामप्यारे का सब से बड़ा बेटा था राजू. वह सूरत में रह कर प्राइवेट नौकरी कर रहा था. उस के परिवार में पत्नी रमा के अलावा 2 बेटियां प्रीति और पूजा थीं. प्रीति निहायत खूबसरत थी. उस पर उस की कातिल मुसकान उस के चेहरे को और भी खूबसूरत बना देती थी. वह बीए तृतीय वर्ष की पढ़ाई कर रही थी.

राहुल प्रतापगढ़ के सांगीपुर थानाक्षेत्र के गांव सिंघनी निवासी नन्हे वर्मा का बेटा था. नन्हे खेतीबाड़ी करते थे. नन्हे और ऊषा के 3 बेटों में राहुल बड़ा था. वह बीए तक पढ़ा था. राहुल काफी स्मार्ट था. राहुल के मामा फूलचंद्र वर्मा नंदलाल का पुरवा गांव के रहने वाले थे. फूलचंद्र राजू वर्मा का पड़ोसी था.

राहुल बाइक से अकसर अपने मामा के यहां जाता रहता था. इस आनेजाने में उस की नजर प्रीति पर पड़ी तो उस के दिल की घंटी बजने लगी. अब जब भी उस का मन होता माया के गांव जा कर प्रीति को देख ले.

जब कभी प्रीति बाजार या सहेलियों के यहां जाती तो राहुल उस के पीछे लग जाता. प्रीति से उस की गतिविधियां छिपी नहीं थीं. उसे भी राहुल अन्य युवकों की अपेछा कुछ अलग सा लगा था.