चाहत दूसरी शादी की : पति बना रिश्तों में बोझ

21अप्रैल, 2021 को सुबह के यही कोई 6 बजे थे. तभी गांव सबरामपुरा के रहने वाले राकेश ओझा के घर से रोने की आवाज आने लगी. घर में एक महिला जोरजोर से रोते हुए कह रही थी, ‘‘अरे मेरे भाग फूट गए रे..मेरे पति ने फांसी लगा ली रे..कोई आओ रे. बचाओ रे..’’

रुदन सुन कर आसपड़ोस के लोग दौड़ कर राकेश ओझा के घर पहुंचे. तब तक मृतक की पत्नी मंजू ओझा ने कमरे में पंखे के हुक से साड़ी का फंदा बना कर झूलते मृत पति को फंदे से नीचे उतार लिया था.

राकेश ओझा की लाश के पास उस की पत्नी मंजू सुबकसुबक कर रो रही थी. मृतक का बड़ा भाई राजकुमार ओझा भी खबर सुन कर वहां पहुंच गया था. वह भी भाई की मौत पर आश्चर्यचकित रह गया.

राजकुमार ओझा ने यह सूचना थाना कालवाड़ में दे दी. सूचना पा कर थानाप्रभारी गुरुदत्त सैनी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे.

घटनास्थल की जांच कर वीडियोग्राफी व फोटोग्राफी कराई गई. मृतक की पत्नी मंजू ओझा से भी पूछताछ की गई. मंजू ने बताया कि रात में राकेश ने किसी समय साड़ी का फंदा गले में डाल कर फांसी लगा ली. आज सुबह जब मैं उठ कर कमरे में आई तो इन्हें फांसी पर लटका देख कर नीचे उतारा कि शायद जिंदा हों. मगर यह तो चल बसे थे. इतना कह कर वह फिर रोने लगी.

पुलिस ने वहां मौजूद मृतक के भाइयों और अन्य परिजनों से भी पूछताछ की. पूछताछ के बाद पुलिस को मामला संदिग्ध लग रहा था. आसपास के लोगों ने थानाप्रभारी को बताया कि राकेश आत्महत्या नहीं कर सकता. उसी समय मंजू रोने का नाटक करते हुए पुलिस की बातों को गौर से सुन रही थी. पुलिस वाले जब चुप होते तो वह रोने लग जाती. पुलिस वाले आपस में बोलते तो मृतक की पत्नी चुप हो कर सुनने लगती.

थानाप्रभारी गुरुदत्त सैनी ने संदिग्ध घटना की खबर उच्चाधिकारियों को दे कर दिशानिर्देश मांगे. जयपुर (पश्चिम) डीसीपी प्रदीप मोहन शर्मा के निर्देश पर एडिशनल डीसीपी राम सिंह शेखावत, एसीपी (झोटवाड़ा) हरिशंकर शर्मा ने कालवाड़ थानाप्रभारी से राकेश ओझा की संदिग्ध मौत मामले की पूरी जानकारी ले कर उन्हें कुछ दिशानिर्देश दिए.

थानाप्रभारी गुरुदत्त सैनी ने घटनास्थल की काररवाई पूरी करने के बाद शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पोस्टमार्टम के बाद शव परिजनों को सौंप दिया गया. मृतक राकेश का शव ले कर उस की पत्नी मंजू ओझा अपने देवर, जेठ वगैरह एवं तीनों बच्चों के साथ अपने पति के पुश्तैनी गांव रुआरिया, मुरैना लौट गई.

गांव रुआरिया में राकेश का अंतिम संस्कार कर दिया गया. राकेश ओझा बेहद जिंदादिल इंसान था. ऐसे में उस के इस तरह आत्महत्या करने की बात किसी के भी गले नहीं उतर रही थी. राकेश ओझा की मौत पुलिस को संदिग्ध लगी थी. पुलिस को जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली तो शक पुख्ता हो गया.

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पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार मृतक राकेश को गला घोंट कर मारा गया था. तब डीसीपी प्रदीप मोहन शर्मा ने एक टीम गठित कर निर्देश दिए कि जल्द से जल्द राकेश ओझा हत्याकांड का परदाफाश कर हत्यारोपियों को गिरफ्तार किया जाए. टीम में एसीपी हरिशंकर शर्मा, थानाप्रभारी गुरुदत्त सैनी आदि को शामिल किया गया. टीम का निर्देशन एडिशनल डीसीपी रामसिंह शेखावत के हाथों सौंपा गया.

पुलिस टीम ने साइबर सेल की मदद लेने के साथ मृतक के पड़ोस के लोगों से भी जानकारी ली. पुलिस टीम को जानकारी मिली कि मृतक की बीवी मंजू के पड़ोस में रहने वाले बीरेश उर्फ सोनी ओझा से अवैध संबंध थे. राकेश और बीरेश ओझा दोस्त थे और दोनों पीओपी का काम करते थे.

बीरेश अकसर राकेश की गैरमौजूदगी में उस के घर आयाजाया करता था. लोगों ने यहां तक कहा कि बीरेश जैसे ही राकेश की गैरमौजूदगी में उस के घर जाता, मंजू और बीरेश कमरे में बंद हो जाते थे.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने मंजू और बीरेश उर्फ सोनी ओझा के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स से पता चला कि जिस रात को राकेश की हत्या हुई थी, उस रात 10 बजे मंजू और बीरेश के बीच बात हुई थी. उस के बाद भी हर रोज दिन में कईकई बार बात होती रही. राकेश की हत्या से पहले भी मंजू और बीरेश के बीच दिन में कई बार बात होने का पता चला.

पुलिस को पुख्ता प्रमाण मिल गए थे कि राकेश की हत्या कर के उसे आत्महत्या दिखाने की साजिश रची गई थी. इस के बाद पुलिस ने बीरेश ओझा की गिरफ्तारी के प्रयास शुरू किए. मगर वह कहीं चला गया था. कुछ दिन बाद वह जैसे ही अपने घर आया, कांस्टेबल सुनील कुमार को इस की खबर मिल गई. तब पुलिस ने 27 अप्रैल, 2021 को उसे हिरासत में ले लिया.

बीरेश को थाना कालवाड़ ला कर पूछताछ की गई. पूछताछ में वह ज्यादा देर तक पुलिस के सवालों के आगे टिक नहीं पाया और अपनी प्रेमिका मंजू ओझा के कहने पर राकेश ओझा की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. इस के बाद पुलिस ने मृतक की पत्नी मंजू को भी गिरफ्तार कर लिया.

मंजू ओझा और बीरेश ओझा उर्फ सोनी से पूछताछ के बाद जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार से है—

राकेश ओझा मूलरूप से मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के गांव रुआरिया का रहने वाला था. वह काफी पहले गांव से जयपुर आ कर पीओपी का कामधंधा करने लगा था. राकेश की शादी मंजू से हुई थी. मंजू गोरे रंग की अच्छे नैननक्श की खूबसूरत युवती थी. शादी के कुछ महीने बाद राकेश पत्नी मंजू को भी अपने साथ जयपुर ले आया था.

राकेश तीजानगर इलाके के सबरामपुरा में किराए का घर ले कर बीवी के साथ रहता था. वक्त के साथ मंजू 3 बच्चों की मां बन गई. इन में एक बेटी और 2 बेटे हैं, जिन की उम्र 7 साल, 4 साल और 2 साल है.

राकेश पीओपी का अच्छा कारीगर था. इस कारण उस की मजदूरी भी अच्छी थी. वह महीने में 20-25 हजार रुपए आसानी से कमा लेता था. इस कारण उस के परिवार कागुजरबसर अच्छे से हो जाती थी. राकेश का छोटा भाई घनश्याम और बड़ा भाई राजकुमार भी जयपुर में काम करते थे. ये भी अपने परिवारों के साथ अलगअलग किराए पर रहते थे.

राकेश के पड़ोस में बीरेश उर्फ सोनी ओझा भी रहता था. बीरेश भी पीओपी का काम करता था. इसलिए दोनों दोस्त बन गए. बीरेश कुंवारा था और देखने में हैंडसम था. दोस्ती के नाते वह राकेश के घर आनेजाने लगा.

बीरेश की नजर राकेश की बीवी मंजू पर पड़ी तो वह उस के रूपयौवन पर मर मिटा. मंजू की उम्र उस समय 33 साल थी और वह उस समय 2 बच्चों की मां थी. इस के बावजूद उस की उम्र 20-22 से ज्यादा नहीं लगती थी.

मंजू का गोरा रंग व मादक बदन बीरेश की निगाहों में चढ़ा तो वह मंजू के इर्दगिर्द मंडराने लगा. बीरेश अकसर मौका पा कर राकेश की गैरमौजूदगी में उस के घर आता और मंजू की खूबसूरती की तारीफें करता. मंजू समझ गई कि आखिर बीरेश उस से क्या चाहता है.

राकेश ज्यादातर समय अपने काम पर बिताता और रात को घर लौटता तो खाना खा कर सो जाता. पत्नी की इच्छा पर वह ध्यान नहीं देता था. ऐसे में मंजू ने अपने से उम्र में 6 साल छोटे बीरेश से पहले नजदीकियां बढ़ाईं और फिर अपनी हसरतें पूरी कीं. इस के बाद यह सिलसिला चलता रहा.

बीरेश नई उम्र का जवान लड़का था. ऊपर से वह कुंवारा भी था. ऐसे में मंजू उसे पति से ज्यादा चाहने लगी.

काफी समय तक दोनों लुपछिप कर गुलछर्रे उड़ाते रहे. किसी को कानोंकान खबर नहीं हुई. मगर जब अकसर राकेश की गैरमौजूदगी में बीरेश उस के घर आ कर दरवाजा बंद करने लगा तो आसपास के लोगों में कानाफूसी होने लगी. इसी दौरान मंजू तीसरे बच्चे की मां बन गई.

मंजू और बीरेश की बातें और आपस में व्यवहार देख कर राकेश को उन के संबंधों पर शक होने लगा था. ऐसे में राकेश को एक पड़ोसी ने इशारों में कह दिया कि बीरेश से दोस्ती खत्म करो. उस का घर आना बंद कराओ. यही तुम्हारे लिए ठीक रहेगा.

इस के बाद राकेश ने मंजू से सख्ती करनी शुरू कर दी तो मंजू बौखला गई. उस की आंखों में पति खटकने लगा.

मौका मिलने पर मंजू अपने प्रेमी बीरेश से मिली. दोनों काफी दिनों बाद मिले थे. मंजू ने बीरेश से कहा, ‘‘राकेश को हमारे संबंधों पर शक हो गया है. वह तुम से बात करने की मनाही करता है. लेकिन मैं तुम्हारे बगैर जी नहीं पाऊंगी. राकेश हम दोनों को जीने नहीं देगा. ऐसा कुछ करो कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.’’

‘‘मंजू, मैं भी तुम्हारे बिना जी नहीं सकता. राकेश को रास्ते से हटा कर हम दोनों शादी कर लेंगे. इस के बाद हम अपने हिसाब से मौजमजे से जिंदगी जिएंगे.’’ बीरेश बोला.

‘‘मैं भी तुम से शादी करना चाहती हूं, मगर यह राकेश की मौत के बाद ही संभव है. हमें ऐसी योजना बनानी है कि राकेश की हत्या को आत्महत्या साबित करें. बाद में जब मामला ठंडा पड़ जाएगा तब हम शादी कर लेंगे.’’ मंजू ने कहा.

इस के बाद दोनों ने योजना बना ली. 20 अप्रैल, 2021 की रात मंजू ने तीनों बच्चों को खाना खिला कर कमरे में सुला दिया और उन के कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया.

मंजू ने राकेश को खाने में नींद की गोलियां दे दी थीं, जिस से वह कुछ ही देर में गहरी नींद में चला गया. फिर रात 10 बजे मंजू ने बीरेश को फोन कर घर बुला लिया.

बीरेश और मंजू राकेश के कमरे में पहुंचे. बीरेश ने राकेश के गले में कपड़ा लपेट कर कस दिया. थोड़ा छटपटाने के बाद वह मौत की आगोश में चला गया.

राकेश मर गया. तब बीरेश और मंजू ने साड़ी राकेश के गले में लपेट कर उस के शव को पंखे के हुक से लटका दिया ताकि लोगों को लगे कि राकेश ने आत्महत्या की है.

इस के बाद बीरेश अपने घर चला गया और मंजू सो गई. अगली सुबह 6 बजे उठ कर मंजू ने योजनानुसार राकेश के कमरे में जा कर रोनाचिल्लाना शुरू कर दिया.

तब रोने की आवाज सुन कर आसपड़ोस के लोग और मृतक के भाई वगैरह घटनास्थल पर आए. तब तक मंजू ने राकेश का शव फंदे से उतार कर फर्श पर रख लिटा दिया था. इस के बाद पुलिस को सूचना दी गई और पुलिस ने काररवाई कर राकेश ओझा हत्याकांड का परदाफाश किया.

पुलिस ने राजकुमार ओझा की तरफ से मंजू ओझा और उस के प्रेमी बीरेश ओझा उर्फ सोनी के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 120बी के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

आरोपियों से मोबाइल और गला घोंटने का कपड़ा व साड़ी जिस का फंदा बनाया गया था, पुलिस ने बरामद कर ली. पूछताछ के बाद मंजू और बीरेश को 28 अप्रैल, 2021 को कोर्ट में  पेश कर न्यायिक हिराससत में भेज दिया गया.

पति और कातिल, दोनों में से कौन बड़ा हैवान – भाग 3

मौसी ने पूछा तो उस ने शराब के नशे में बताया कि उस से एक बड़ा गुनाह हो गया है. उस ने किसी औरत को मार दिया है. मौसी ने पुलिस को बताया कि यह सुन कर वह बहुत डर गई थी, इसलिए उस ने रामवीर से कह दिया कि वह तुरंत यहां से चला जाए. क्योंकि वह किसी पचड़े में नहीं पड़ना चाहती.

रामवीर तक पहुंचने के लिए उस की मौसी अंतिम सिरा थी, जहां से उस के मिलने की उम्मीद थी, लेकिन इस के बाद पुलिस को उस की कोई खबर नहीं मिली.

रामवीर तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं बचा था, लिहाजा एसीपी अंकिता शर्मा ने क्राइम ब्रांच की साइबर टीम को जांच के काम में साथ जोड़ कर रामवीर के मोबाइल को ट्रैक करने के काम पर लगा दिया.

रामवीर के मोबाइल की ट्रैकिंग के दौरान पुलिस को पता चला कि रामवीर लगातार सोनी के पति संदीप के साथ बातचीत कर उस के साथ संपर्क में बना हुआ था. पुलिस ने जब संदीप से पूछा कि क्या रामवीर साहू ने उस के साथ संपर्क किया है तो वह साफ मुकर गया कि रामवीर ने उस के साथ कोई संपर्क किया है.

पुलिस टीम समझ गई कि दाल में कुछ काला है जिस कारण संदीप सफेद झूठ बोल रहा है. पुलिस ने संदीप को बिना कुछ बताए उस के और रामवीर के मोबाइल की मौनिटरिंग और उस पर नजर रखनी शुरू कर दी.

7 फरवरी, 2022 को दोपहर में मोबाइल ट्रैकिंग से पता चला कि वे दोनों महामाया फ्लाईओवर के नीचे आपस में मिलने वाले हैं. इस सूचना के बाद थानाप्रभारी बी.एस. राठी ने अपनी टीम के साथ सादा कपड़ों में आसपास छिप कर निगरानी शुरू कर दी.

दोपहर करीब 3 बजे रामवीर साहू पहचान छिपाने के लिए सिर पर कपड़े का साफा बांध कर संदीप से मिलने पहुंचा तो पुलिस ने उन दोनों को हिरासत में ले लिया.

पुलिस की टीम दोनों को ले कर थाने पहुंची और उन से पूछताछ हुई तो मामूली पूछताछ के बाद ही सोनी यादव की हत्या का खुलासा हो गया.

दरअसल, संदीप ने बताया कि उसी ने अपनी पत्नी सोनी की हत्या रामवीर साहू के द्वारा पैसा दे कर करवाई थी.

संदीप की जब सोनी से शादी हुई तब दोनों की जिंदगी बेहद खुशहाल थी और संदीप सोनी को प्यार भी बहुत करता था. लेकिन एक दिन सोनी जब बाथरूम में नहा रही थी तो संदीप ने वैसे ही उस का मोबाइल चैक कर लिया.

उस दिन संदीप यह देख कर हैरान रह गया कि उस की बीवी सोनी उसे धोखा दे रही थी. शादी से पहले से ही उस के अपने गांव के अजय से संबंध थे. संदीप ने सोनी की सच्चाई उस पर उजागर नहीं होने दी, लेकिन इस दिन के बाद से वह सोनी से छुटकारा पाने की तरकीब सोचने लगा.

सोनी से छुटकारा पाने की सोच के पीछे एक दूसरी वजह यह भी थी कि अपनी ससुराल कासगंज में आतेजाते संदीप अपनी सब से छोटी साली रानी, जो सभी बहनों में सब से ज्यादा सुंदर थी, को पसंद करने लगा था.

सोनी से छुटकारा पाने की एक वजह यह भी थी कि डेढ़ साल होने को आया लेकिन अभी तक सोनी के मां बनने की कोई गुंजाइश नहीं बनी तो संदीप ने डाक्टरों को दिखाया तो उन्होंने बताया कि सोनी के मां बनने की संभावना बहुत कम है.

संदीप के पास सोनी से छुटकारा पाने की 3 वजह हो गई थीं. अब वह किसी भी हालत में सोनी से छुटकारा पा कर अपनी साली से शादी करने का फैसला कर चुका था.

संदीप ने फैसला किया कि अगर सही योजना बना कर सोनी की हत्या करवा दी जाए तो रानी से शादी का रास्ता साफ हो सकता है.

इस काम को कैसे अंजाम दिया जाए, यह बात सोच ही रहा था कि 19 जनवरी को अचानक उस की कालोनी में रहने वाला रामवीर जो उस का दोस्त भी बन चुका था, शाम को हमेशा की तरह दारू पीने के बाद उस के पास कचौरी खाने आया.

काम खत्म करने की तैयारी कर रहे संदीप से अचानक रामवीर ने अपनी आर्थिक तंगी का रोना रोते हुए कह दिया कि जिंदगी में पैसा बहुत बड़ी चीज है. इस को हासिल करने के लिए किसी का खून भी करना पड़े तो कर देना चाहिए.

रामवीर के मुंह से यह बात सुनते ही संदीप के दिमाग की बत्ती जलने लगी, उसे लगा कि अगर बात बढ़ाई जाए तो रामवीर उस का काम कर सकता है.

‘‘तो भाई कर दे तू भी खून. कमा ले पैसा.’’ संदीप ने अपनी तरफ से रामवीर को परखने के लिए पत्ता फेंका.

‘‘अरे भाई ऐसे ही किसी का खून कैसे कर दूं. कोई काम बताए, माल दे तभी तो करूं ये काम भी.’’

‘‘अगर मैं कोई काम बताऊं तो करेगा?’’ संदीप ने लोहा गरम होते देख तुरंत पूछ लिया.

‘‘तुझे किस का काम कराना है और तू पैसा कहां से देगा,’’ रामवीर की पुतलियां भी सोच में सिकुड़ गईं.

‘‘वो छोड़, तुझे तेरे काम का पैसा मिलेगा. पहले ये बता काम करेगा,’’ संदीप ने पूछा.

‘‘हां भाई, माल देगा तो काम क्यों नहीं करूंगा.’’ रामवीर ने उत्साहित होते हुए कहा.

‘‘तो ठीक है, मेरी बीवी को मार दे, पूरे 70 हजार रुपए दूंगा.’’

‘‘अबे पागल हो गया है क्या तू, जो अपनी बीवी को मरवाना चाहता है?’’ रामवीर ने फटी आंखों से पूछा.

‘‘वजह एक नहीं कई हैं भाई. एक तो कमीनी का शादी के पहले से ही गांव में किसी यार से चक्कर चल रहा है. दूसरा वह मां नहीं बन सकती और तीसरा मुझे उस की छोटी बहन बहुत पसंद है. इस का काम तमाम हो जाए तो मैं उस से शादी कर लूंगा.’’ संदीप ने इस दिन अपने मन की बात रामवीर को बताई तो उस ने कहा कि अभी शराब बहुत पी ली है. वह काम करेगा या नहीं, इस बारे में सोच कर कल बताएगा.

मामला बनता देख संदीप ने चलते समय रामवीर को 3 हजार रुपए दे दिए. रामवीर फिर से शराब के ठेके पर गया और फिर शराब पी और रात को घर चला गया. रामवीर ने सुबह शराब का नशा उतर जाने पर संदीप की कही बातों पर विचार किया तो काफी सोचविचार कर दोपहर एक बजे फिर से महामाया फ्लाईओवर के नीचे संदीप के ठिकाने पर पहुंच गया.

संदीप ने उस से पूछा, ‘‘क्या इरादा किया भाई?’’

‘‘इरादा तो ठीक है भाई, लेकिन तूने अपनी बीवी के मौत की कीमत बहुत कम लगाई है.’’

‘‘क्यों, तुझे कितना चाहिए?’’ संदीप ने पूछा.

‘‘देख, तू अपना दोस्त है तेरी परेशानी भी जायज है. लेकिन भी अगर कम से कम डेढ़ लाख खर्च करे तो काम किया जा सकता है.’’

थोड़ी देर तक संदीप और रामवीर के बीच कत्ल करने के लिए दी जाने वाली रकम को ले कर सौदेबाजी होती रही.

जब संदीप ने देखा कि रामवीर इस से कम पैसा लेने के लिए टस से मस नहीं हो रहा तो उस ने कहा, ‘‘ठीक है भाई, तुझे इतने ही पैसे मिलेंगे लेकिन काम बड़ी सफाई से होना चाहिए. काम होते ही सुबह पैसे दे दूंगा.’’ कहते हुए संदीप ने जेब से 2 हजार रुपए और निकाले और रामवीर की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘हो सके तो आज ही काम कर दे. शाम तक कालोनी में वैसे भी सन्नाटा रहेगा, मैं यहां हूं और सोनी घर में अकेली है. बस, जा कर ठिकाने लगा दे.’’

सारी बात तय हो गई तो डेढ़ लाख में सोनी को मारने की बात कह कर रामवीर वहां से निकल गया. उस ने उसी समय अपना मोबाइल भी बंद कर दिया. क्योंकि उस ने टीवी सीरियलों में देखा था कि मोबाइल की लोकेशन से पुलिस कातिल को खोज लेती है.

सब से पहले वह निकट के शराब ठेके पर पहुंचा. जम कर शराब पी. उस के बाद करीब 4 बजे संदीप के घर पहुंच कर दरवाजा खटखटाया.

उस वक्त पूरी कालोनी में सन्नाटा पसरा हुआ था. सोनी ने अंदर से ही पूछा, ‘‘कौन है?’’ तो उस ने बता दिया, ‘‘भाभीजी, मैं हूं साहू. संदीप ने आप को देने के लिए पैसे भेजे हैं.’’ रामवीर ने बात ही ऐसी की थी कि सोनी ने दरवाजा खोल दिया. वैसे भी वह साहू को जानती थी.

लेकिन जैसे ही सोनी ने दरवाजा खोला रामवीर ने उस के चेहरे पर एक जोरदार घूंसा मारा. सोनी की नाक पर घूंसा लगते ही उस की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. वह चीखते हुए कमरे के बीचोंबीच फर्श पर गिर पड़ी.

इतना मौका काफी था रामवीर के लिए. वह झट से कमरे में घुसा और दरवाजा भीतर से बंद कर जमीन पर पड़ी सोनी की तरफ पलटा. लेकिन कुछ पलों के लिए अचेत हुई सोनी पर निगाह पड़ते ही शराब के नशे में धुत रामवीर की आंखों में वासना के डोरे तैरने लगे.

दरअसल, चेहरे पर वार होने से संतुलन खो कर गिरने वाली सोनी के कपड़े इस कदर अस्तव्यस्त हो गए कि जांघों तक दिख रही सोनी की नग्न गोरी देह को देख कर रामवीर के शरीर के रोंगटे खड़े हो गए.

उस ने सोचा कि सोनी को मारना तो है ही, क्यों न उस से पहले वह अपनी वासना की आग बुझा ले. यही सोच कर उस ने उस के साथ जमीन पर ही शारीरिक संबंध बनाने शुरू कर दिए.

लेकिन अपनी उत्तेजना के अतिरेक में वह कुछ करता, उस से पहले ही सोनी की चेतना लौट आई और वह शोर मचाने को कोशिश करते हुए विरोध करने लगी.

एक तो शराब का नशा, ऊपर से वासना का जुनून, सोनी रामवीर के लंबेचौड़े शरीर के नीचे दबी पड़ी थी. उस को शांत करने के लिए रामवीर ने सोनी के सिर को दोनों कनपटी से पकड़ कर 3-4 बार फर्श पर पटक दिया. सोनी कुछ पल छटपटाई, फिर उस का शरीर शांत हो गया.

लेकिन सोनी के शांत होते ही रामवीर के भीतर वासना का उफान आ गया. इस बात से अनजान कि सोनी की मौत हो चुकी है, रामवीर उस के जिस्म से खेलते हुए अपनी कामवासना शांत करता रहा.

जब वासना का भूत उतरा तो देखा कि अचेत पड़ी सोनी के सिर से काफी खून बह चुका था और वह मर चुकी थी. उस ने सोनी की साड़ी को घुटनों से नीचे कर दिया. कई बार उस के शव को हिला कर देखा कि उस में जान तो नहीं बाकी है.

करीब 5 बजे रामवीर ने घर का दरवाजा खोल कर देखा कि बाहर कोई है तो नहीं और उस के बाद रास्ता साफ देख कर वह कमरे का दरवाजा बंद कर के वहां से फरार हो गया. वारदात को अंजाम देने के बाद वह इतना सहम गया कि संदीप से भी संपर्क नहीं किया.

रामवीर ने 2 दिन तक अपना मोबाइल फोन भी औन नहीं किया. जब संदीप को बाद में पुलिस ने यह बात बताई कि उस के कातिल ने मौत के बाद इस के साथ संबंध बनाए थे तो उस को रामवीर पर बहुत गुस्सा आया.

कुछ दिन बाद गिरफ्तारी के डर से इधरउधर भागते फिर रहे रामवीर ने जब पैसे मांगने के लिए संदीप से फोन पर बात करते हुए संपर्क करना शुरू किया, तभी पुलिस को मोबाइल सर्विलांस के जरिए संदीप पर भी शक होना शुरू हो गया.

इस मामले में न तो मोबाइल फोन की काल डिटेल्स से कोई मदद मिली. क्योंकि कातिल और साजिश रचने वाले के बीच कोई फोन संपर्क रिकौर्ड ही नहीं था. न ही रामवीर अपने फोन को औन कर के घटनास्थल पर गया था. न ही घटना का कोई चश्मदीद था, न ही रामवीर को घटनास्थल पर जाते किसी सीसीटीवी ने कैद किया था. इसलिए पुलिस अंधेरे में हाथपांव मार रही थी.

लेकिन अपने डर के कारण अगर रामवीर अपना घर छोड़ कर गायब नहीं होता और बाद में वह फोन पर संदीप से संपर्क नहीं करता तो शायद पुलिस कभी सोनी के हत्यारों तक पहुंच ही नहीं पाती.

अपनी साली को पाने की चाहत में संदीप ने अपनी बेवफा बीवी को मरवाने की साजिश रच कर जो घिनौना अपराध किया वो तो गलत था ही, लेकिन रामवीर ने सोनी की हत्या कर उस के मृत शरीर से वासना की जो भूख शांत की, वह हैवानियत की सभी सीमाओं से परे थी.

संदीप और रामवीर से पूछताछ के बाद पुलिस ने हत्या के इस मामले में साजिश की धारा 120बी जोड़ कर दोनों आरोपियों को अदालत में पेश कर दिया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

—कथा पुलिस की जांच व आरोपियों से पूछताछ पर आधारित

प्रेमी के सिंदूर की चाहत : पति बना पत्नी का शिकार

17 मई की शाम करीब साढ़े 5 बजे थे जब दिल्ली में द्वारका सेक्टर 29 से सटे छावला के थाने के टेलीफोन की घंटी बजी. ड्यूटी औफिसर ने तुरंत फाइल समेटते हुए अपना हाथ टेलीफोन का रिसीवर उठाने के लिए आगे बढ़ाया. जैसे ही ड्यूटी औफिसर ने फोन उठाया तो दूसरी तरफ से किसी ने घबराते हुए बोला, ‘‘छावला पुलिस स्टेशन?’’

ड्यूटी औफिसर, ‘‘मैं छावला थाने से बोल रहा हूं. बताइए आप क्या कहना चाहते हैं?’’ ड्यूटी औफिसर ने कहा.

‘‘साहब, निर्मलधाम के पास सड़क किनारे एक आदमी की लाश पड़ी है. मैं यहां से गुजर रहा था तो मैं ने देखा. आप यहां आ कर देख लीजिए.’’

ड्यूटी औफिसर ने फोन के रिसीवर को अपने दांए कंधे और कान के सहारे दबाया, अपने दोनों हाथों को आजाद किया और टेबल पर कहीं पड़े नोट्स वाली डायरी ढूंढने लगे. वह लगातार फोन पर उस राहगीर से वारदात की घटना के बारे में पूछ रहे थे और डायरी ढूंढ रहे थे. टेबल पर बिखरे सारे सामान को उलटने पुलटने के बाद जब डायरी नहीं मिली तो एक फाइल के पीछे ही उन्होंने वारदात की जगह समेत बाकी जरूरी जानकारियां लिख डालीं. ड्यूटी औफिसर ने उस राहगीर को वारदात की जगह से कहीं भी हिलने से मना कर दिया और फोन काट दिया.

ये सारी जानकारी ड्यूटी औफिसर ने उस समय थाने में मौजूद थानाप्रभारी राजवीर राणा को दी. राजवीर राणा बिना किसी देरी के थाने में मौजूद स्टाफ को ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए.

वहां पहुंचते ही पुलिस की टीम ने उस सुनसान सी सड़क के एक किनारे पर एक बाइक खड़ी देखी. बाइक के बिलकुल बगल में खून से लथपथ एक व्यक्ति की लाश पड़ी थी. लाश को देखते ही वहां मौजूद पुलिस टीम चौकन्नी हो गई और सबूत जमा करने के मकसद से घटनास्थल के इर्दगिर्द फैल गई.

थानाप्रभारी राजवीर राणा जब लाश का मुआयना करने के लिए बौडी के पास पहुंचे तो उन्होंने देखा कि उस के बदन पर किसी धारदार हथियार से कई वार किए गए थे. जो साफ दिखाई दे रहे थे. उन्होंने लाश के अगलबगल नजर घुमाई तो एक मोबाइल फोन वहीं पास में पड़ा था, जो कि संभवत: मरने वाले शख्स का रहा होगा.

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रात होने को थी. मौके पर पहुंची पुलिस टीम ने बिना किसी देरी के बाइक और मोबाइल जब्त कर लिया और लाश की काररवाई आगे बढ़ाने के लिए क्राइम इनवैस्टीगैशन टीम के आने का इंतजार करने लगे.

उस सड़क से पैदल आने जाने वाले लोगों ने पुलिस और वहां मौजूद लाश को देख कर घटनास्थल पर जमावड़ा लगा दिया. सब टकटकी लगाए पुलिस को अपना काम करते देख आपस में फुसफुसाहट करने लगे.

जब वहां मौजूद पुलिस ने आसपास के मूकदर्शक बने लोगों से लाश की पहचान करने के लिए पूछताछ की तो कुछ लोगों ने लाश की शिनाख्त करते हुए कहा कि इस का नाम अशोक कुमार है और यह पेशे से टैक्सी ड्राईवर है.

तब तक मौके पर क्राइम इनवैस्टीगैशन टीम भी आ पहुंची. टीम ने अपना काम शुरू किया. उन्होंने सब से पहले लाश की फोटोग्राफी की. उन्होंने सबूत के तौर पर घटनास्थल से खून लगी मिट्टी के नमूने इकट्ठा कर लिए. यह सब काम कर लेने के बाद थानाप्रभारी राजवीर राणा ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए मौर्चरी भेज दिया.

सारे काम निपटा लेने के बाद पुलिस की टीम थाने लौट आई तथा इस केस के संबंध में काम आगे बढ़ाने लगी. पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया और जांच की जिम्मेदारी थानाप्रभारी राजवीर राणा ने स्वयं संभाली.

केस की तफ्तीश को आगे बढ़ाने के लिए थानाप्रभारी राणा ने सब से पहले घटनास्थल से बरामद किए गए मोबाइल फोन को निकलवाया. यह फोन टूटा नहीं था. सिर्फ बैटरी चार्जिंग खत्म होने की वजह से बंद हो गया था.

उस की काल डिटेल्स निकलवाई और देखा कि आखिरी बार एक नंबर से अशोक कुमार को कई बार काल की गई थी. इस के कुछ देर बाद ही अशोक कुमार की हत्या हो गई थी.

शक की सूई अब इसी आखिरी नंबर पर आ कर रुक गई थी. राजवीर राणा ने अपने फोन से इस नंबर को डायल किया तो दूसरी तरफ से किसी महिला की आवाज आई. थानाप्रभारी ने पहले अपना परिचय दिया और उस के बाद उस महिला से अशोक कुमार के रिश्ते के बारे में पूछा.

महिला ने अपना नाम शीतल और खुद को अशोक कुमार की बेटी बताया. राजवीर ने फोन पर बड़े दु:ख के साथ शीतल को बताया कि उस के पिता सड़क दुर्घटना में बुरी तरह से घायल हो चुके हैं, यह जानने के बाद शीतल उसी समय ही बिलखने लगी. उन्होंने उस से उस की मां के बारे में पूछा तो शीतल ने अपनी मां राजबाला से उन की बात करा दी.

थानाप्रभारी ने राजबाला को अशोक की मौत की खबर देते हुए उन से शीघ्र ही थाने पहुंचने को कहा 2-3 घंटे बाद जब राजबाला थाने पहुंची तो वह राजवीर राणा को देखते ही फफकफफक कर रोने लगी.

अपने पति की हत्या की खबर सुन कर वह आहत थी. राजवीर राणा ने राजबाला को हौसला रखने को कहा और उस से उस के पति से किसी से साथ दुश्मनी होने के बारे में पूछा. राजबाला ने रोते हुए कहा कि अशोक की किसी के साथ भी कोई दुश्मनी नहीं थी.

राजबाला से बात करते समय थानाप्रभारी राजवीर राणा को उस की बातों से ऐसा नहीं लग रहा था कि उसे पति की मौत का दुख है. बेशक राजबाला राजवीर राणा के सामने रो रही थी और दुखी दिखाई दे रही थी. लेकिन राजवीर को राजबाला पर शक हो चुका था.

राजबाला के आंसू घडि़याली लग रहे थे. दाल में कहीं तो कुछ काला जरुर था, जिस का पता लगाना जल्द से जल्द जरुरी था. आखिर एक व्यक्ति का कत्ल जो हुआ था.

राजबाला से पूछताछ खत्म होने पर वह अपने घर के लिए रवाना हो गई और पीछे कई तरह के शक और सवाल छोड़ गई.

इन सभी शकों को दूर करने के लिए और इस मामले से जुडे़ सभी सवालों के जवाब ढूंढने के लिए थानाप्रभारी ने शीतल और राजबाला की काल डिटेल्स मंगवाई. उन्होंने दोनों की काल डिटेल्स को बेहद बारीकी से परखी और उस की जांच की तो वह बेहद हैरान रह गए.

काल डिटेल्स से उन्हें यह पता लगा कि शीतल जिस समय अशोक को लगातार काल कर रही थी उस के ठीक बाद उस ने एक अन्य नंबर पर काफी देर तक बातचीत की थी. यह सब देख कर पुलिस ने यह अनुमान लगाया कि यदि इस मामले में शीतल को थोडा ढंग से कुरेदा जाए तो शायद इस केस में एक और लीड मिल सकती है. राजवीर ने बिना देरी किए फिर से एक बार राजबाला और शीतल को थाने बुला लिया.

उन्होंने इस बार दोनों से अलगअलग पूछताछ की. उन्होंने पहले शीतल से इस घटना के बारे में विस्तार से पूछा. शीतल का बयान लेने के बाद उन्होंने राजबाला से इस मामले में फिर से पूछताछ की. क्रास पूछताछ में दोनों की चोरी पकड़ी गई.

दोनों के बयान एक दूसरे से अलग थे. जब राजवीर राणा ने दोनों को कानून का थोड़ा डर दिखा कर उन पर दबाव बनाया तो शीतल ज्यादा देर टिक नहीं सकी. शीतल ने रोतेबिलखते, अपने हाथ से अपना सिर पीटते हुए अपनी मां राजबाला और उस के प्रेमी वीरेंद्र उर्फ ढिल्लू के साथ साजिश रच कर अपने पिता की हत्या कराने की बात कबूल कर ली.

यह सब सुनते ही बेटी के सामने राजबाला का चेहरा पीला पड़ गया. उसे जैसे न तो कुछ सुनाई दे रहा था और न ही कुछ दिखाई दे रहा था. थाने में शीतल के सामने राजबाला अपनी बेटी को घूरे जा रही थी. वह उसे ऐसे घूर रही थी जैसे मानो अगर उसे मौका मिलता तो वह वहीं पर शीतल का भी कत्ल कर बैठती.

शीतल द्वारा जुर्म कबूल करते ही पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया. फिर राजबाला की निशानदेही पर उस के प्रेमी वीरेंद्र को भी उस के घर से गिरफ्तार कर लिया.

वीरेंद्र से पूछताछ की गई तो उस ने अशोक की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया. वीरेंद्र के बताए हुए पते पर जा कर पुलिस टीम ने अशोक कुमार की हत्या में इस्तेमाल किए जाने वाले चाकू और उस की कार बरामद कर ली. तीनों की गिरफ्तारी के बाद पूछताछ में अशोक कुमार की हत्या के पीछे अवैध संबंधों की जो सनसनीखेज दास्तान सामने आई, कुछ इस तरह थी—

अशोक कुमार दिल्ली के नजफगढ़ के नजदीक भरथल गांव में अपने परिवार के साथ रहता था. उस का 3 सदस्यों का छोटा परिवार था जिस में अशोक, उस की पत्नी राजबाला और बेटी शीतल ही थी. अशोक की कमाई का जरिया उस की टैक्सी थी. वह बेटी शीतल की शादी जाफरपुर कला के पास इशापुर गांव के रहने वाले हिमांशु से कर चुका था. शीतल अपने पति के साथ बेहद खुश थी. बेटी की शादी के बाद अशोक के सिर पर अब कोई और जिम्मेदारी नहीं थी.

लेकिन पिछले साल कोरोना महामारी की वजह से पूरे देश में लौकडाउन लगा तो ज्यादातर लोगों की तरह अशोक भी अपने घर में कैद हो कर रह गया. उस का काम न के बराबर रह गया. घर पर रहने पर अशोक बहुत ज्यादा परेशान नहीं था.

अशोक को महसूस हुआ कि वैसे भी अपने काम के दौरान वह अकसर अपने घर से बाहर ही रहता है, ऐसे में न जाने कितने अरसे बाद उसे इतने लंबे समय के लिए घर में रहना नसीब हुआ है. अपने काम से हमेशा बाहर रहने वाले व्यक्ति को जब घर में कैद होना पड़ जाए तो जाहिर सी बात है कि वह घर की हर एक चीज को बारीकी से परखता है, गौर करता है.

ऐसे ही लौकडाउन के एक दिन अशोक घर का सामान लेने के लिए गांव में निकला तो दुकानदार से बातचीत के दौरान उस ने जो सुना उस से उस के होश ही उड़ गए.

दुकानदार ने कहा, ‘‘क्या भई अशोक. मजा आ रहा है घर में कैद हो कर?’’

‘‘कैद होना किस को अच्छा लगता है भला. अब समस्या सिर पर बैठी है तो हम बस उसे झेलने को मजबूर हैं. घर में रहने के अलावा और कुछ कर भी तो नहीं सकते.’’ अशोक बोला.

‘‘अब तो तुम्हारी महरिया भी तुम्हारे साथ कैद हो गई होगी. अब तो लोग आ जा भी नहीं सकते तुम्हारे घर. दुकानदार ने जोर देते हुए कहा.’’

‘‘वो घर में कैद हो गई…? क्या मतलब. और घर में लोगों के आने की क्या बात कह रहे हो.’’ अशोक भौंहें चढ़ाते हुए बोला.

दुकानदार ने धीमी, दबी आवाज में कहा, ‘‘अरे वो तो लौकडाउन लग गया तब जा कर तुम्हारी महरिया घर पर रुकने को मजबूर है. नहीं तो तुम्हारे घर से निकलते ही तुम्हारी महरिया आशिकी करने निकल जाती थी.’’

‘‘यह तुम कैसी बातें कर रहे हो. कौन है उस का आशिक?’’ अशोक ने गुस्से से पूछा.

दुकानदार दबी आवाज में बोला, ‘‘अरे ढिल्लू का नाम सुना है न तुम ने? वीरेंद्र का? वही तो है जो शीतल की मां के साथ आशिकी करता फिरता है. यह बात तो पूरे गांव वालों को पता है. चाहे तो पूछ लो.’’

ये सब सुनते ही अशोक के दाएं हाथ में थामी पौलिथिन थैली छूट गई. थैली फटने से चीनी, आटा, दाल और घर का कुछ और सामान नीचे पथरीली सड़क पर गिर कर फैल गया. अशोक को इस बात पर जितना सदमा लगा था उस से कहीं ज्यादा उसे इस बात को सुन कर गुस्सा आ रहा था. लोग उस की पत्नी राजबाला और गांव के बदमाश वीरेंद्र के बारे में उलटी सीधी बातें कर रहे थे.

दुकानदार से यह सब सुन कर उस ने 2-4 और लोगों से इस बारे में पूछताछ की. हर किसी ने दबी आवाज में अशोक को वही बताया जो कि उस दुकानदार ने बताया था.

दरअसल 43 वर्षीय वीरेंद्र उर्फ ढिल्लू भरथल का ही निवासी था. वीरेंद्र उस इलाके का नामचीन बदमाश था. दिल्ली के कई थानों में उस के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज थे. एक तरह से जेल उस का दूसरा घर था.

लोगों के अनुसार जब अशोक घर पर नहीं रहता था तब उस के पीठ पीछे वीरेंद्र राजबाला के साथ गुलछर्रे उड़ाता था. अशोक ने बिना किसी हिचकिचाहट के राजबाला से इस बारे में पूछा.

लेकिन राजबाला ने पति की बात से कन्नी काट ली. उस ने उस की बात से साफ इनकार कर दिया. लेकिन उस दिन के बाद राजबाला अशोक की नजरों का ज्यादा देर तक सामना नहीं कर पाई.

राजबाला के मोबाइल पर जब कभी भी वीरेंद्र का फोन आता तो वह पति से दूर जा कर बात करती, जब अशोक उस से पूछता कि किस का फोन आया था तो वह रिश्तेदार होने का बहाना बनाने लगती. यह सब कुछ देख कर अशोक को यह यकीन जरूर हो गया कि दाल में जरूर कुछ काला है.

अकसर पति के घर पर रहने से पत्नी को खुशी होती है लेकिन अशोक के घर पर होने से राजबाला की खुशियों पर मानो बादल छा गए थे.

राजबाला वीरेंद्र से मिलने के लिए तड़पने लगी. उसे अपने पति से ज्यादा वीरेंद्र पसंद था. वीरेंद्र के साथ मां की आशिकी के किस्से बेटी शीतल से भी नहीं छिपे थे. वह भी उन के रिश्ते के बारे में बखूबी जानती थी और वह भी तो वीरेंद्र से पिता का महत्त्व देती थी.

शीतल वीरेंद्र को पिता अशोक से ज्यादा पसंद करती थी. क्योंकि अशोक जब घर पर नहीं रहता था, उस समय वीरेंद्र राजबाला से मिलने आता तो शीतल के लिए महंगे तोहफे साथ लाता था. दरअसल लौकडाउन की वजह से अशोक अपनी पत्नी राजबाला, बेटी शीतल और वीरेंद्र के लिए गले की हड्डी बन गया था.

लौकडाउन के चलते जेल में बंद वीरेंद्र को भी पैरोल पर छोड़ दिया गया था. एक दिन अशोक की नजरों से बचते बचाते वीरेंद्र राजबाला से मिला. उस दिन राजबाला ने वीरेंद्र पर इस कदर प्यार लुटाया जैसे वीरेंद्र के पर लग गए हों.

शारीरिक सुख भोग लेने के बाद जब राजबाला और वीरेंद्र एकदूसरे से अलग हुए तो उस ने वीरेंद्र्र से कहा कि अगर उस ने उस के पति अशोक को जल्द ठिकाने नहीं लगाया तो वह आत्महत्या कर लेगी. तब वीरेंद्र ने प्रेमिका से कहा, ‘‘तुम्हें आत्महत्या करने की जरूरत नहीं है. मैं उसे ही निपटा दूंगा.’’

इस के बाद राजबाला और वीरेंद्र ने योजना बनाई. इस योजना में उन्होंने शीतल को शामिल कर लिया. शीतल इस काम के लिए खुशी से तैयार हो गई.

17 मई, 2021 को शीतल ने अपने पिता अशोक को मिलने के लिए निर्मलधाम बुलाया. अशोक अपनी बाइक से निर्मलधाम के रास्ते में ही था. शीतल पलपल पिता को काल कर उस से खबर लेती रही. जब अशोक निर्मलधाम के नजदीक पहुंचा तो शीतल ने वीरेंद्र को काल कर यह बात बता दी.

वीरेंद्र अपनी हुंडई कार से वहां पहुंच गया और अशोक को सड़क किनारे रोक कर चाकू से गोद दिया. अशोक की लाश को वहीं छोड़ कर वीरेंद्र्र वहां से फरार हो गया. काम हो जाने पर वीरेंद्र्र ने राजबाला और शीतल को इस बात की जानकारी फोन कर के दी.

राजबाला, शीतल और वीरेंद्र्र तीनों अपनी कामयाबी का जश्न मना रहे थे लेकिन पुलिस ने अपनी सूझबूझ के साथ 12 घंटे के अंदर ही अशोक कुमार हत्याकांड का परदाफाश कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया. तीनों आरोपियों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. मामले की तफ्तीश थानाप्रभारी राजवीर राणा कर रहे थे.

कलयुगी बेटा : अधेड़ उम्र का इश्क

रवि को मदन सेन के साथ अपनी मां जसवंती के अवैध संबंधों की पूरी जानकारी थी. वह यह भी जानता था मदन अब उस की मां से तंग आ चुका था. इसलिए रवि ने अपनी मां को मौत के घाट उतारने के लिए मदन से संपर्क किया तो वह भी जसवंती की हत्या में शामिल हो गया.

15 मार्च, 2021 की सुबह 10 बजे का वक्त था. जब बैतूल जिले की मुलताई थाने की सीमा में बसे छोटे से गांव काथम की रहने वाली जसवंती और उस की 11 वर्षीया नातिन लविशा की हत्या की खबर गांव में आग की तरह फैली थी, जिस से घटना की जानकारी लगने पर टीआई मुलताई सुरेश सोलंकी भी कुछ देर में टीम ले कर मौके पर पहुंच गए.

कमरे के अंदर बिछे पलंग पर जसवंती और उस की नातिन के शव खून से लथपथ पडे़ थे. दोनों के सिर पर घातक चोटें थीं.

टीआई सोलंकी ने घटना की जानकारी बैतूल एसपी सिमला प्रसाद के अलावा एएसपी श्रद्धा जोशी और एसडीपीओ नम्रता सोधिया को भी दे दी. जिस से कुछ ही देर में उक्त अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए.

शुरुआती पूछताछ में पता चला कि पति की मौत के बाद जसवंती अपने बेटे रवि और बहू के साथ रहती थी. वह स्थानीय कलारी की रसोई में खाना बनाने का काम करती थी. कुछ दिनों में उस की नातिन लविशा भी आ कर उस के साथ रहने लगी.

जबकि घटना से 4 दिन पहले ही जसवंती ने लड़झगड़ कर बेटेबहू को उन के ढाई महीने के बच्चे के साथ घर से निकाल दिया था. जिस से रवि अपनी पत्नी को ले कर पास के गांव परसोडी में रहने वाले अपने मामा ससुर के घर जा कर रहने लगा था.

जसवंती का हालिया विवाद बेटे से हुआ था. इस के अलावा गांव में उस की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. लेकिन छोटी बात पर बेटा मां की हत्या करेगा, इस बात पर आसानी  से भरोसा नहीं किया जा सकता था.

इसलिए पुलिस ने इस दोहरे हत्याकांड में दूसरे एंगल से जांच करनी शुरू कर दी, जिस में पता चला कि जसवंती 45 की जरूर थी, लेकिन शारीरिक बनावट और खूबसूरती के चलते वह 35 से अधिक नहीं दिखती थी.

उस के पति की मौत कई साल पहले हो चुकी थी. इसलिए पुलिस जसंवती के अवैध संबंधों की जानकारी जुटाने में लग गई. जांच में पता चला कि जसवंती का प्रेम प्रसंग कई सालों से कलौरी में काम करने वाले मदन सेन के साथ चल रहा था.

मदन सेन मूलरूप से सागर जिले के बंडा का रहने वाला था. लेकिन कलारी में नौकरी के चलते यहां जसवंती के घर के पास ही किराए पर रहने लगा था. पूरे गांव को मदन और जसवंती के इश्क की जानकारी थी.

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लेकिन उन के बीच विवाद का कोई वाकया सामने नहीं आया था. पुलिस ने मदन से पूछताछ की, जिस में उस ने कबूल कर लिया कि उस के जसंवती से संबंध थे, किंतु उस की हत्या में उस ने अपना हाथ होने से मना कर दिया.

इसलिए एसपी सिमला प्रसाद ने इस दोहरे हत्याकांड को सुलझाने के लिए एएसपी श्रद्धा जोशी के निर्देशन में और एसडीपीओ सोधिया के नेतृत्व में थानाप्रभारी मुलताई सुरेश सोलंकी की एक टीम गठित कर दी.

टीम ने जांच शुरू करते हुए चौतरफा प्रयास शुरू कर दिए, लेकिन जब इस में सफलता मिलती नहीं दिखाई दी तो एसपी सिमला प्रसाद ने साइबर सेल के एसआई राजेंद्र राजवंशी को मदन सेन के अलावा मृतक के बेटे रवि के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकालने के निर्देश दिए.

काल डिटेल्स में चौंका देने वाली जानकारी निकल कर सामने आई कि घटना के 2 दिन पहले से ही अचानक जसवंती के प्रेमी मदन की उस के बेटे से फोन पर कई बार बात हुई थी.

इतना ही नहीं, घटना की रात को रवि और उस के मामा ससुर दिलीप के मोबाइल की लोकेशन गांव में मदन सेन के मोबाइल के पास मिल रही थी. उस रात भी मदन और रवि के बीच कई बार बात हुई थी. जबकि 15 मार्च के बाद से मदन और रवि के बीच इक्कादुक्का बार बात हुई थी, वह भी बहुत कम समय के लिए.

साइबर सेल को रवि के मोबाइल की लोकेशन 15 मार्च को कामथ में मिली थी. इस का सीधा मतलब था कि वह घटना वाली रात को कामथ आया था. इसलिए रवि पर अपना शक पुख्ता करने के लिए टीआई सोलंकी ने रवि को थाने बुला कर बातोंबातों मे उस से पूछा, ‘‘जिस रात तुम्हारी मां का कत्ल हुआ, उस रात तुम कहां थे?’’

‘‘कहां होता साहब, मां ने घर से धक्का मार कर निकाल दिया था. इसलिए मैं अपने मामा ससुर के यहां जा कर रहने लगा. उस रात भी वहीं था.’’ रवि ने बताया.

‘‘ठीक है. इस मदन सेन के बारे में तुम्हारा क्या खयाल है? लोग बताते हैं कि मदन की तुम्हारी मां के साथ अच्छी दोस्ती थी.’’ टीआई ने कहा.

‘‘आप ने सही सुना है, साहब. मुझे तो अपनी मां कहने में भी शर्म आने लगी थी. मदन हमारे घर के पास ही रहता है. कई बार वही आधी रात में भी मेरी मां से मिलने आया करता था. यह सब मेरी पत्नी ने अपनी आंखों से देखा था. इसलिए वह इस बात को ले कर

मुझे ताने दिया करती थी.’’ रवि बोला.

‘‘तुम ने मदन को रोका नहीं?’’ टीआई ने पूछा.

‘‘रोका था साहब. हमारे बीच काफी झगड़ा भी हो चुका है. लेकिन खुद मेरी मां ही उसे घर बुलाती थी.’’ वह बोला.

‘‘मदन से तुम्हारी बात होती थी कभी?’’

‘‘पहले होती थी, लेकिन जब पता चला कि उस के मेरी मां से अवैध संबंध हैं, तब हमारे बीच झगड़ा हुआ था. फिर उस से बातचीत बंद हो गई थी.’’

‘‘फोन पर तो होती होगी बात तुम्हारी मदन से.’’

‘‘नहीं, कभी नहीं.’’

जैसे ही रवि ने मदन से फोन पर बात होने से इनकार किया. तभी पुलिस ने उस के साथ थोड़ी सख्ती दिखाई तो वह टूट गया. फिर उस ने इस दोहरे हत्याकांड का राज उगल दिया.

उस ने बताया कि इस हत्याकांड में मामा ससुर दिलीप के अलावा मां का प्रेमी मदन भी शामिल था. रवि की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त मूसल एवं हथौड़ी भी बरामद कर ली. पुलिस ने रवि के मामा ससुर दिलीप व मां के प्रेमी मदन सेन को भी गिरफ्तार कर लिया.

हत्या करने के बाद वह जसवंती का मंगलसूत्र और लविशा की पायल ले गए थे, इसलिए पुलिस ने आरोपियों से ये दोनों जेवर भी बरामद कर लिए. उन से पूछताछ के बाद इस दोहरे हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

पति की मृत्यु के बाद जसवंती ने न केवल परिवार संभाला, बल्कि बेटे की शादी भी धूमधाम से की. रवि मां का हाथ बंटाने के लिए छोटामोटा काम किया करता था, लेकिन लौकडाउन में काम छूट जाने से वह घर में कुछ महीनों से बैठा था.

जसवंती पिछले 5 सालों से कलारी के औफिस में खाना बनाने का काम करती थी. जसवंती सुंदर तो थी ही, साथ ही आकर्षक भी थी.

कलारी में सागर जिले का मदन सेन मैनेजर की हैसियत से पूरा हिसाबकिताब देखता था. मदन यहां अकेला रहता था, इसलिए उसे एक औरत की और जवानी में पति की मौत हो जाने से जसवंती को एक मर्द की आवश्यकता यदाकदा महसूस होती रहती थी.

ऐसे में मदन की नजर जसवंती पर थी. वह जानता था कि जसंवती का पति नहीं है, इसलिए उस तक पहुंचना उस के लिए ज्यादा मुश्किल नहीं था. उस ने काफी सोचसमझ कर ही जसवंती के पड़ोस में किराए का मकान ले कर उस में रहना शुरू किया.

कुछ समय बाद मदन ने धीरेधीरे जसवंती की तरफ बढ़ना शुरू किया तो अपनी खुद की जरूरतों से परेशान जसवंती ने भी अपने मन की लगाम ढीली छोड़ दी और मदन को अपनी मौन स्वीकृति दे दी, जिस से एक रोज आधी रात में मदन शराब पी कर जसवंती के घर पहुंचा तो जसवंती ने भी पहली मुलाकात में उस के सामने समर्पण कर दिया.

कहना नहीं होगा कि दोनों को एकदूसरे की जरूरत थी, इसलिए मदन और जसवंती दोनों ही कुछ दिनों बाद खुल कर अपनी प्रेम लीला करने लगे.

जसवंती की बेटी की शादी पहले ही हो चुकी थी. सो वह अपनी ससुराल में थी. बेटा रवि अपनी मां के साथ रहता था, उसे काबू में रखने के लिए मदन ने रवि को शराब पीने की आदत डाल दी और रोज ही उसे कलारी में शराब पीने के लिए पैसे देने लगा.

मदन के साथ मां के संबंध की बात पता होने के बाद भी शराब के लालच में रवि ने उस का कोई विरोध नहीं किया. यहां तक कि 2 साल पहले रवि की शादी हो जाने के बाद बहू के आ जाने पर भी मदन और जसवंती के संबंधों पर कोई फर्क नहीं पड़ा.

लेकिन कहते हैं कि अवैध संबंधों की एक उम्र होती है. क्योंकि वक्त के साथ जहां औरत अपने प्रेमी पर ज्यादा अधिकार जताने लगती है, वहीं पे्रमी का मन उस से ऊबने लगता है. यही इस मामले में होने लगा था.

जसवंती मदन पर पूरा हक जमाने लगी थी. यहां तक कि वह उस पर दबाव बनाने लगी थी कि वह गांव में रहने वाली अपनी पत्नी को छोड़ कर उस के साथ उस के घर में पति की तरह रहे. लेकिन मदन इस के लिए राजी नहीं था. इस से मदन और जसंवती के बीच विवाद होने लगा.

लौकडाउन में काम बंद हो जाने से रवि पूरी तरह मां पर निर्भर हो गया. इसलिए वह जब भी मां से खर्च के पैसे मांगता तो मां उसे खरीखोटी सुना देती थी. ढाई महीने पहले ही रवि की पत्नी ने एक बच्चे को जन्म दिया था, जिस से जसवंती रवि पर रोज कोई न कोई काम करने के लिए उस पर दबाव बनाने लगी थी. लेकिन रवि को कोई काम नहीं मिल पा रहा था.

इस दौरान जसवंती की बेटी की बेटी लवीशा भी उस के साथ आ कर रहने लगी, जिस से जसंवती रवि को खर्च के पैसे देने में और आनाकानी करने लगी. इस से रवि अपनी भांजी से भी नफरत करने लगा.

घटना के 4 दिन पहले रवि ने अपनी मां से खर्च के लिए पैसे मांगे तो जसवंती ने उसे बुरी तरह झिड़का ही नहीं, बल्कि पत्नी और बच्चे के साथ घर से निकलने का फरमान भी सुना दिया. जिस से गुस्से में आ कर रवि अपनी पत्नी और बच्चे को ले कर अपने मामा ससुर दिलीप के वहां चला गया.

रवि को इस बात का डर था कि कहीं मां पूरी जायदाद भांजी लवीशा के नाम न लिख दे, जो उस के साथ आ कर रहने लगी थी. इसलिए उस ने मामा ससुर के साथ मिल कर मां की हत्या की योजना बना कर मदन को फोन किया.

वास्तव में रवि को पता था कि मां का प्रेमी मदन सेन भी अब उस से तंग आ चुका है. इसलिए रवि ने मदन को अपनी योजना बताई तो मदन इस में साथ देने को राजी हो गया. जिस के बाद घटना वाले दिन मामा ससुर दिलीप और रवि गांव पहुंचे तो वहां से मदन भी उन के साथ हो गया.

आधी रात के बाद तीनों ने चुपचाप घर में घुस कर सो रही जसवंती और उस की नातिन के सिर पर मूसल और हथौड़ी से वार कर उन की हत्या कर दी. पुलिस इस घटना को लूट की वारदात समझे, इसलिए रवि हत्या के बाद जसवंती का मंगलसूत्र और लविशा की पायल उतार कर साथ ले गया.

तीनों को भरोसा था कि पुलिस उन पर कभी शक नहीं करेगी. लेकिन पुलिस ने 7 दिनों में ही मामले का खुलासा कर दिया.

ललिता की खतरनाक लीला : पति बना दुश्मन

32 वर्षीया ललिता झारखंड के कोडरमा जिले के गांव दौंलिया की रहने वाली थी. उस की मां का नाम राजवती और पिता का नाम दुल्ली था. वह 4 भाइयों की इकलौती बहन थी. इसलिए घर में सभी की लाडली थी.

16 साल की होते ही उस पर यौवन की बहारें मेहरबान हो गई थीं. बाद में समय ऐसा भी आया कि वह किसी प्रेमी की मजबूत बांहों का सहारा लेने की कल्पना करने लगी. गांव के कई नवयुवक ललिता पर फिदा थे.

ललिता भी अपनी पसंद के लड़के से नैन लड़ाने लगी. इस के बाद तो दिन प्रतिदिन उस की आकांक्षाएं बढ़ने लगीं तो अनेक लड़कों के साथ उस के नजदीकी संबंध हो गए.

दुल्ली के कुछ शुभचिंतक उसे आईना दिखाने लगे, ‘‘तुम्हारी बेटी ने तो यारबाजी की हद कर दी. वह खुद तो खराब है, गांव के लड़कों को भी खराब कर रही है. लड़की जब दरदर भटकने की शौकीन हो जाए तो उसे किसी मजबूत खूंटे से बांध देना चाहिए. जितनी जल्दी हो सके, ललिता का विवाह कर दो, वरना तुम बहुत पछताओगे.’’

अपमान का घूंट पीने के बाद दुल्ली ने एक दिन ललिता को समझाया. उसी दौरान मां राजवती ने ललिता की पिटाई करते हुए चेतावनी दी, ‘‘आज के बाद तेरी कोई ऐसीवैसी बात सुनने को मिली तो मैं तुझे जिंदा जमीन में दफना दूंगी.’’

उस समय ललिता ने कसम खा कर किसी तरह अपनी मां को यकीन दिला दिया कि वह किसी लड़के से बात नहीं करेगी.

ललिता बात की पक्की नहीं, बल्कि ख्वाहिशों की गुलाम थी. कुछ समय तक ललिता ने अपनी जवानी के अरमानों को कैद रखा, लेकिन अरमान बेलगाम हो कर उस के जिस्म को बेचैन करते तो वह अंकुश खो बैठी और फिर से लड़कों के साथ मटरगश्ती करने लगी.

लेकिन यह मटरगश्ती अधिक दिनोें तक नहीं चल सकी. इस की वजह थी कि उस के पिता दुल्ली ने उस का रिश्ता तय कर दिया था.

ललिता का विवाह कोडरमा जनपद के ही गांव करौंजिया निवासी काली रविदास के बेटे सिकंदर रविदास से तय हुआ था.

सिकंदर किसान था और एकदम सीधासादा इंसान था. लेकिन एक पैर से दिव्यांग था. उस का एक छोटा भाई जितेंद्र रविदास था. सिकंदर की उम्र विवाह योग्य हो चुकी थी, इसलिए ललिता का रिश्ता सिकंदर के लिए आया तो काली रविदास मना नहीं कर सके.

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12 साल पहले दोनों का विवाह बड़ी धूमधाम से हो गया. कालांतर में ललिता 3 बेटों की मां बन गई.

विवाह के बाद से ही सिकंदर ललिता के साथ अलग मकान में रहने लगा था. सिकंदर का छोटा भाई जितेंद्र अपने मातापिता के साथ रहता था.

सिकंदर दिव्यांग होने पर भी खेतों में दिनरात मेहनत करता रहता था. इसलिए जब वह घर पर आता तो थकान से चूर हो कर सो जाता था, जिस से ललिता की ख्वाहिशें अधूरी रह जाती थीं.

पति के विमुख होने से ललिता बेचैन रहने लगी. इस स्थिति में कुछ औरतों के कदम गलत रास्ते पर चल पड़ते हैं, ऐसा ही ललिता के साथ भी हुआ. अब उसे ऐसे शख्स की तलाश थी, जो उसे भरपूर प्यार दे और उस की भावनाओं की इज्जत करे.

उस शख्स की तलाश में उस की नजरों को अधिक भटकना नहीं पड़ा. घर में ही वह शख्स उसे मिल गया, वह था जितेंद्र. सिकंदर जहां अपने भविष्य के प्रति गंभीर तथा अपनी जिम्मेदारियों को समझने वाला था, वहीं जितेंद्र गैरजिम्मेदार था. जितेंद्र का किसी काम में मन नहीं लगता था.

जितेंद्र की निगाहें ललिता पर शुरू से थीं. वह देवरभाभी के रिश्ते का फायदा उठा कर ललिता से हंसीमजाक भी करता रहता था.  जितेंद्र की नजरें अपनी ललिता भाभी का पीछा करती रहती थीं. दरअसल जितेंद्र ने ललिता को विवाह मंडप में जब पहली बार देखा था, तब से ही वह उस के हवास पर छाई हुई थी.

अपने बड़े भाई सिकंदर के भाग्य से उसे ईर्ष्या होने लगी थी. वह सोचता था कि ललिता जैसी सुंदरी के साथ उस का विवाह होना चाहिए था. काश! ललिता उसे पहले मिली होती तो वह उसे अपनी जीवनसंगिनी बनाता और उस की जिंदगी इस तरह वीरान न होती, उस की जिंदगी में भी खुशियां होतीं.

ललिता के रूप की आंच से आंखें सेंकने के लिए ही वह ललिता के घर के चक्कर लगाता. चूंकि वह घर का ही सदस्य था, इसलिए उस के आनेजाने और वहां हर समय बने रहने पर कोई शक नहीं करता था. जितेंद्र की नीयत साफ नहीं थी, इसलिए वह ललिता से आंखें लड़ा कर और हंसमुसकरा कर उस पर डोरे डाला करता था.

सिकंदर सुबह खेत पर जाता तो दीया बाती के समय ही लौट कर आता. जितेंद्र के दिमाग में अब तक ललिता के रूप का नशा पूरी तरह हावी हो गया था. इसलिए ललिता को पाने की चाह में उस के सिकंदर के घर के फेरे जरूरत से ज्यादा लगने लगे.

ललिता घर पर अकेली होती थी, इसलिए जितेंद्र के पास मौके ही मौके थे. एक दिन जितेंद्र दोपहर के समय आया तो ललिता दोपहर के खाने में तहरी बनाने की तैयारी कर रही थी, जिस के लिए आलू व टमाटर काट रही थी. जितेंद्र ने खुशी जाहिर करते हुए कहा, ‘‘लगता है, आज अपने हाथों से स्वादिष्ट तहरी बनाने जा रही हो.’’

‘‘हां, खाने का इरादा है क्या?’’

‘‘मेरा ऐसा नसीब कहां, जो तुम्हारे हाथों का बना स्वादिष्ट खाना खा सकूं. नसीब तो सिकंदर भैया का है, जो आप जैसी रूपसी उन को पत्नी के रूप में मिलीं.’’

यह सुन कर ललिता मुसकान बिखेरती हुई बोली, ‘‘ठीक है, मुझ से विवाह कर के तुम्हारे भैया ने अपनी किस्मत चमका ली तो तुम भी किसी लड़की की मांग में सिंदूर भर कर अपनी किस्मत चमका लो.’’

‘‘मुझे कोई दूसरी नहीं, तुम पसंद हो. भाभी, अगर तुम तैयार हो तो मैं तुम्हारे साथ अपना घर बसाने को तैयार हूं.’’

ललिता जितेंद्र के रोज हावभाव पढ़ती रहती थी. इसलिए जान गई थी कि जितेंद्र के दिल में उस के लिए नाजुक एहसास है. लेकिन वह इस तरह चाहत जाहिर कर के उस से प्यार की सौगात मांगेगा, ललिता ने सोचा तक न था.

अचानक सामने आई ऐसी असहज स्थिति से निपटने के लिए वह उस से आंखें चुराने लगी और कटी हुई सब्जी उठा कर रसोई की तरफ चल दी. तभी उस के बच्चे भी घर आ गए. प्यार में विघ्न पड़ता देख कर जितेंद्र भी वहां से उठ गया.

उस दिन के बाद जब भी मौका मिलता, वह ललिता के पास पहुंच जाता और अपने प्यार का विश्वास दिलाता. धीरेधीरे ललिता को उस के प्यार पर यकीन होने लगा. उसे भी अपने प्रति जितेंद्र की दीवानगी लुभाने लगी थी. उस की दीवानगी को देख कर ललिता के दिल में उस के लिए प्यार उमड़ पड़ा. कल तक जो ललिता जितेंद्र के हवास पर छाई थी, अब जितेंद्र ललिता के हवास पर छा गया.

एक दिन जितेंद्र ने फिर से ललिता के सामने अपने प्यार का तराना सुनाया तो वह बोली, ‘‘जितेंद्र, मेरे प्यार की चाहत में पागल होने से तुम्हें क्या मिलेगा. मैं विवाहित होने के साथसाथ 3 बच्चों की मां भी हूं. इसलिए मुझे पाने की चाहत अपने दिल से निकाल दो.’’

‘‘यही तो मैं नहीं कर पा रहा, क्योंकि यह दिल पूरी तरह से तुम्हारे प्यार में गिरफ्तार है.’’

ललिता कुछ नहीं बोल सकी. जैसे उस के जेहन से शब्द ही मिट गए थे. जितेंद्र ने अपने हाथ उस के कंधे पर रख दिए, ‘‘भाभी, कब तक तुम अपने और मेरे दिल को जलाओगी. कुबूल कर लो, तुम्हें भी मुझ से प्यार है.’’

ललिता ने सिर झुका कर जितेंद्र की आंखों में देखा और फिर नजरें नीची कर लीं. प्रेम प्रदर्शन के लिए शब्द ही काफी नहीं होते, शारीरिक भाषा भी मायने रखती है. जितेंद्र समझ गया कि मुद्दत बाद सही, ललिता ने उस का प्यार कुबूल कर लिया है. उस ने ललिता के चेहरे पर चुंबनों की झड़ी लगा दी. ललिता भी सुधबुध खो कर जितेंद्र से लिपट गई.

उस समय मन के मिलन के साथ तन की तासीर ऐसी थी कि ललिता का जिस्म पिघलने लगा.  इस के बाद दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कर लीं. यह बात करीब 6 साल पहले की है. बाद में यह मौका मिलने पर चलता रहा.

13 मई, 2021 को दोपहर करीब 12 बजे सिकंदर दास लोचनपुर गांव के निजी कार चालक विजय दास के साथ चरवाडीह के संजय दास के यहां शादी समारोह में गया. सिकंदर और विजय दोनों कार से गए थे. कार विजय की थी. साढ़े 3 बजे शादी से दोनों निकल आए. लेकिन सिकंदर दास घर नहीं लौटा.

उस के नंबर पर सिकंदर के चाचा ने फोन किया गया तो विजय ने उठाया. उस से पूछा गया कि सिकंदर कहां है तो विजय द्वारा अलगअलग ठिकाने का पता बताते हुए फोन काट दिया. इस के बाद सिकंदर की काफी तलाश की गई, वह नहीं मिला.

16 मई को ललिता ने कोडरमा के थानाप्रभारी और एसपी को एक पत्र दिया, जिस में उस ने अपने पति सिकंदर दास के लापता होने की बात लिखी. सिकंदर के गायब होने का आरोप उस ने कार चालक विजय दास पर लगाया था.

चूंकि मामला चांदवारा थाना क्षेत्र के करौंजिया गांव का था. इसलिए एसपी पुलिस ने मामला चांदवारा थाने में ट्रांसफर कर दिया. चांदवारा थाने के थानाप्रभारी सोनी प्रताप सिंह ने पूरा मामला जान कर थाने में सिकंदर की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

थानाप्रभारी सोनी प्रताप ने 20 मई को जामू खाड़ी से विजय दास को गिरफ्तार कर लिया. सख्ती से पुलिस ने पूछताछ की तो विजय ने सिकंदर की हत्या करने की बात स्वीकारी. उस ने इस हत्या में सिकंदर की पत्नी ललिता और भाई जितेंद्र का भी हाथ होने की बात बताई.

20 मई को विजय के बाद ललिता और जितेंद्र को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. उन की निशानदेही पर रात में कोटवारडीह के बंद पड़े मकान से सिकंदर की लाश बरामद कर ली. वह अर्द्धनिर्मित मकान सिकंदर का था. लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के बाद चांदवारा थाने के थानाप्रभारी सोनी प्रताप सिंह अभियुक्तों को ले कर थाने आ गए. थाने में सख्ती से की गई पूछताछ में उन्होंने हत्या के पीछे की पूरी कहानी बयां कर दी.

एक दोपहर को जितेंद्र और ललिता घर में बेधड़क रंगरलियां मना रहे थे कि अचानक किसी काम से सिकंदर खेतों से घर लौटा तो उस ने उन दोनों को रंगरलियां मनाते रंगेहाथों पकड़ लिया.

यह देख कर उसे एक बार तो अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ कि उस की पत्नी ऐसा भी कर सकती है. वह ललिता पर खुद से भी ज्यादा विश्वास करता था. लेकिन हकीकत तो सामने उस की दगाबाजी की तरफ इशारा कर रही थी. दूसरी ओर सगा छोटा भाई जितेंद्र था, जिसे वह बहुत प्यार करता था, उस का खूब खयाल रखता था. वही उस की गृहस्थी में आग लगा रहा था.

अपनों की इस दगाबाजी से सिकंदर इतना आहत हुआ कि उस ने पूरे घर को सिर पर उठा लिया. ललिता और जितेंद्र ने भी उस से अपनी गलती की माफी मांग ली और भविष्य में ऐसा कुछ न करने का वादा किया तो सिकंदर शांत हुआ.

जितेंद्र और ललिता ने उस समय तो अपनी जान छुड़ाने के लिए वादा कर दिया था, लेकिन वे इस पर अमल करने को कतई तैयार नहीं थे. लेकिन उन का भेद खुल चुका था, इसलिए मिलन में उन को बहुत ऐहतियात बरतनी पड़ती थी. वे चोरीछिपे फिर से मिल लेते थे.

सिकंदर ने देखा तो उस ने विरोध किया. मामला घर की चारदीवारी से निकल कर गांव के लोगों तक पहुंच गया. पंचायत तक बैठ गई. भरी पंचायत में ललिता ने जितेंद्र के साथ रहने की बात कही. लेकिन फैसला न हो सका.

इस के बाद सिकंदर उन दोनों के बीच की एक बड़ी दीवार था, जिसे गिराए बिना वे हमेशा के लिए एक नहीं हो सकते थे. इसलिए ललिता और जितेंद्र ने सिकंदर की हत्या करने की ठान ली.

सिकंदर दास ने विजय दास से लोन दिलाने के नाम पर डेढ़ लाख रुपए लिए थे. सिकंदर ने जब लोन नहीं दिलाया तो विजय उस से अपने दिए रुपए वापस मांगने लगा. सिकंदर रुपए देने में टालमटोल कर रहा था. ऐसे में ललिता ने जितेंद्र से बात कर के विजय को अपने प्लान में शामिल करने की बात कही. उस ने यह भी कहा कि सिकंदर का काम तमाम होने के बाद वह अकेले विजय को उस की हत्या में फंसवा देगी, जिस से वे दोनों बच जाएंगे.

जितेंद्र को उस की बात सही लगी. दोनों ने विजय से बात की तो वह सिकंदर की हत्या में उन दोनों का साथ देने को तैयार हो गया.

13 मई, 2021 को एक शादी समारोह से लौटने के बाद विजय सिकंदर को ले कर कोटवारडीह में उस के अर्धनिर्मित मकान पर ले गया. वहां ललिता और जितेंद्र पहले से मौजूद थे. तीनों ने मिल कर सिकंदर की गला दबा कर हत्या कर दी और लाश एक कमरे में डाल कर कमरा बंद कर दिया.

लेकिन सिकंदर की हत्या में विजय को फंसाने की योजना ही ललिता और जितेंद्र को भारी पड़ गई. ललिता ने उस पर शक जताया तो पुलिस विजय को पकड़ कर उन तक पहुंच गई. तीनों अभियुक्तों के खिलाफ हत्या व साक्ष्य छिपाने का मुकदमा दर्ज कर के चांदवारा पुलिस ने तीनों को कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

लव ट्रायंगल की लाइफ : पति का किया किनारा – भाग 3

एक दिन उस ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवाने की सोची. फिर बीवी और अपनी बदनामी के डर से चुप रहा. उसे विश्वास था कि सुधा को उस का प्रेम एक न एक दिन खींच लाएगा.

इसी उधेड़बुन में चौथे दिन उसे सागर के भोपाल में ही नए ठिकाने का पता चल गया. वह तुरंत उस के किराए के मकान में गया. सागर मिल गया. सुधा और बच्चे को देखने की इच्छा जताई. उस वक्त सुधा और बच्चे घर में नहीं थे. शायद उन्हें सागर ने कहीं और छिपा रखा था.

सागर ने उस से मिलवाने से साफसाफ इनकार कर दिया. उस ने सख्ती से कहा, अब सुधा उस की बीवी बनने वाली है. शादी से पहले उस का परिचय और मुलाकात किसी से नहीं करवाएगा.

सागर की इस सख्ती वाले तेवर से अक्षय सहम गया. वह नरमी के साथ सागर से विनती करने लगा. उस के सामने गिड़गिड़ाया. हाथ जोड़े. यहां तक कि उस के पैर तक छू कर सुधा और बच्चे को मिलवाने के लिए कहा. फिर भी उसे उस की स्थिति पर तरस नहीं आया.

अक्षय निराशहताश अपने टीटी नगर स्थित कमरे पर लौट आया. करीब 2 हफ्ते बीतने को आए. सागर ड्यूटी पर नहीं आता था. उस ने समझ लिया कि सागर जरूर सुधा के साथ शादी करने के लिए गांव चला गया होगा.

इस बीच सागर के नए ठिकाने पर भी गया. वहां ताला लगा था. अक्षय अब बेहद टूट चुका था. शरीर से भी काफी कमजोर हो गया था.

उस दिन गुरुवार का दिन था. तारीख 21 अक्तूबर 2021 थी. अक्षय का सुबह से ही किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था. उस के मन में बहुत कुछ उलटपलट हो रहा था. विचारों का ऐसा घालमेल हो गया था कि जबरदस्त भूख होने के बावजूद कुछ भी खाने की इच्छा नहीं हो रही थी.

सुधा की बेवफाई और उस के द्वारा शादी के समय लिए साथसाथ जीने के कसमेवादे को ध्यान कर वह बेहद तिलमिला गया था. उस रोज वह ड्यूटी पर भी नहीं गया था. सुधा और बच्चे के बारे में सोचतेसोचते उस की कब आंखें लग गईं, पता ही नहीं चला.

शाम को करीब 8 बजे जब उस की नींद खुली, तब उस ने खुद को बेहद कमजोर महसूस किया. किसी तरह से फिर अपने लिए सुबह की पकाई खिचड़ी खा ली, जो कुकर में सुबह से ही बंद थी. सुबह उस ने खिचड़ी पकाई जरूर थी, लेकिन वह ज्यों की त्यों पड़ी थी.

सुबह टीटी नगर की पुलिस को अक्षय के फांसी पर झूलने की सूचना मिली, जो उस के पड़ोसी ने दी थी. पड़ोस के ही एक बच्चे ने खिड़की से अक्षय को फांसी पर झूलते तब देखा था, जब वह बाजार जा रहा था.

दरअसल, अक्षय ने उसे कह रखा था कि वह जब भी सुबह में दूध लाने बाजार जाए, तब उस के लिए भी दूध लाने के लिए मिल ले. इस कारण वह लड़का सुबह अक्षय के घर आया था. कुछ समय तक पीटने पर भी दरवाजा नहीं खुला, तब उस ने खिड़की के पास जा कर आवाज लगाई.

उस का भी कोई जवाब नहीं मिलने पर उस ने भिड़े हुए खिड़की के दरवाजे को धकेल दिया था. तभी उस की नजर फांसी पर लटके अक्षय पर गई थी और भाग कर इस की जानकारी उस ने अपने पिता को दी. उस के पिता ने तुरंत पुलिस को इस की सूचना दे दी.

पुलिस टीम घटनास्थल पर आ गई. उस ने देखा कि अक्षय ने साड़ी का फंदा बना कर फांसी लगा ली थी. तुरंत उस के घर वालों को भी इस की जानकारी दी गई. उस की मां कुसुम बाई और उस के भाई निलेश पड़ोसियों की मदद से उसे जेपी अस्पताल ले कर गए. लेकिन डाक्टर ने अक्षय को मृत घोषित कर दिया.

अक्षय की मौत की खबर तेजी से फैल गई. लोकल चैनल पर उस की मौत की खबर प्रसारित होने लगी. उस के जरिए सुधा और सागर को भी अक्षय के आत्महत्या की जानकारी मिल गई. सुधा भाग कर अक्षय के घर जा पहुंची. घर पर कोई नहीं था. आसपास सन्नाटा पसरा था. सभी अक्षय की लाश को ले कर अस्पताल जा चुके थे.

सुधा विचलित हो गई थी. उस ने फटाफट पास खड़ी मोटरसाइकिल से पैट्रोल निकाला और कमरे में जा कर खुद पर उड़ेल लिया. तुरंत उस ने खुद को आग लगा दी. इसी बीच बच्चा ‘मम्मीमम्मी’ पुकारता कमरे में आया और उसे पकड़ना चाहा, लेकिन बच्चा डर कर भाग गया.

आग के तेजी से फैले धुएं को देख कर पासपड़ोस के लोग आए. उन्होंने किसी तरह से आग बुझाई, लेकिन तब तक वह काफी जल चुकी थी. उसे भी जिला अस्पताल ले जाया गया, जहां इलाज के दौरान उस की मौत हो गई.

अक्षय की मौत को ले कर उस के भाई निलेश ने पुलिस से सागर पर मुकदमा चलाने के लिए कहा. उस का कहना था कि सागर ने अक्षय को धोखा दिया था.

उस ने उस की पत्नी सुधा को प्रेम जाल में फंसाया. और फिर सुधा अक्षय को छोड़ कर उसी दोस्त के साथ उस के घर पर रहने लगी. साथ में बेटे को भी ले गई. इस बात से अक्षय बहुत दुखी था.

पुलिस को अक्षय के पास से सुसाइड नोट बरामद हुआ है. इस सुसाइड नोट में उस ने लिखा है कि पत्नीबच्चे से मिलाने के लिए सागर के पैर तक छुए, लेकिन उस ने पत्नीबेटे से मिलने नहीं दिया. सागर ने मेरा जीवन तबाह कर दिया. मैं पत्नी और सागर की वजह से जान दे रहा हूं.

पुलिस ने सागर को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया. सुधा के बहके कदमों ने उसी के हंसतेखेलते परिवार को उजाड़ दिया.

पराई मोहब्बत में दी जान : धोकेबाज प्रेमी – भाग 3

‘‘क्या तुम प्यार की जगह अपने तन का सौदा करना चाहती हो?’’ दलबीर ने पूछा.

‘‘जब प्यार की जगह स्वार्थ पनप गया हो तो समझ लो कि मैं भी तन का सौदा करना चाहती हूं. अब तुम मेरे शरीर से तभी खेल पाओगे, जब एक लाख रुपया मेरे हाथ में थमाओगे.’’

‘‘यदि रुपयों का इंतजाम न हो पाया तो..?’’ दलबीर ने पूछा.

‘‘…तो मुझे भूल जाना.’’

दलबीर को सपने में भी उम्मीद न थी कि सरिता तन के सौदे की बात करेगी. उसे उम्मीद थी कि वह उस से माफी मांग कर तथा कुछ आर्थिक मदद कर उसे मना लेगा. पर ऐसा नहीं हुआ बल्कि सरिता ने उस से बड़ी रकम की मांग कर दी.

इस के बाद सरिता और दलबीर में दूरियां और बढ़ गईं. जब कभी दोनों का आमनासामना होता और दलबीर सरिता को मनाने की कोशिश करता तो वह एक ही जवाब देती, ‘‘मुझे तन के बदले धन चाहिए.’’

13 जनवरी, 2021 की सुबह 5 बजे दलबीर सिंह ने सरिता को फोन कर के अपने प्लौट में बनी झोपड़ी में बुलाया. सरिता को लगा कि शायद दलबीर ने रुपयों का इंतजाम कर लिया है. सो वह वहां जा पहुंच गई.

सरिता के वहां पहुंचते ही दलबीर उस के शरीर से छेड़छाड़ तथा प्रणय निवेदन करने लगा. सरिता ने छेड़छाड़ का विरोध किया और कहा कि वह तभी राजी होगी, जब उस के हाथ पर एक लाख रुपया होगा.

सरिता के इनकार पर दलबीर सिंह जबरदस्ती करने लगा. सरिता ने तब गुस्से में उस की नाक पर घूंसा जड़ दिया. नाक पर घूंसा पड़ते ही दलबीर तिलमिला उठा. उस ने पास पड़ी ईंट उठाई और सरिता के सिर पर दे मारी.

सरिता का सिर फट गया और खून की धार बह निकली. इस के बाद उस ने उस के सिर पर ईंट से कई प्रहार किए. कुछ देर छटपटाने के बाद सरिता ने दम तोड़ दिया. सरिता की हत्या के बाद दलबीर सिंह फरार हो गया.

इधर कुछ देर बाद सरिता की देवरानी आरती किसी काम से प्लौट पर गई तो वहां उस ने झोपड़ी में सरिता की खून से सनी लाश देखी. वह वहां से चीखती हुई घर आई और जानकारी अपने पति मुकुंद तथा जेठ अरविंद को दी.

दोनों भाई प्लौट पर पहुंचे और सरिता का शव देख कर अवाक रह गए. इस के बाद तो पूरे गांव में सनसनी फैल गई और मौके पर भीड़ जुटने लगी.

इसी बीच परिवार के किसी सदस्य ने थाना फफूंद पुलिस को सरिता की हत्या की सूचना दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी राजेश कुमार सिंह पुलिस फोर्स के साथ लालपुर गांव की ओर रवाना हो लिए. रवाना होने से पहले उन्होंने पुलिस अधिकारियों को भी सूचित कर दिया था. कुछ देर बाद ही एसपी अपर्णा गौतम, एएसपी कमलेश कुमार दीक्षित तथा सीओ (अजीतमल) कमलेश नारायण पांडेय भी लालपुर गांव पहुंच गए.

पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तथा मृतका सरिता के पति अरविंद दोहरे तथा अन्य लोगों से पूछताछ की. फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए तथा फिंगरप्रिंट लिए.

एसपी अपर्णा गौतम ने जब मृतका के पति अरविंद दोहरे से हत्या के संबंध में पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस की पत्नी सरिता के दलबीर सिंह से नाजायज संबंध थे, जिस का वह विरोध करता था. इसी नाजायज रिश्तों की वजह से सरिता की हत्या उस के प्रेमी दलबीर सिंह ने की है. दलबीर और सरिता के बीच किसी बात को ले कर मनमुटाव चल रहा था.

अवैध रिश्तों में हुई हत्या का पता चलते ही एसपी अपर्णा गौतम ने थानाप्रभारी राजेश कुमार सिंह को आदेश दिया कि वह आरोपी के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर उसे गिरफ्तार करें.

आदेश पाते ही राजेश कुमार सिंह ने मृतका के पति अरविंद दोहरे की तहरीर पर भादंवि की धारा 302 तथा (3) (2) अ, एससी/एसटी ऐक्ट के तहत दलबीर सिंह के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया तथा उस की तलाश में जुट गए.  15 जनवरी, 2021 की शाम चैकिंग के दौरान थानाप्रभारी राजेश कुमार सिंह को मुखबिर से सूचना मिली कि हत्यारोपी दलबीर सिंह आरटीओ औफिस की नई बिल्डिंग के अंदर मौजूद है.

मुखबिर की सूचना पर थानाप्रभारी ने आरटीओ औफिस की नई बिल्डिंग से दलबीर सिंह को गिरफ्तार कर लिया. उस की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त खून सनी ईंट तथा खून सने कपड़े बरामद कर लिए.

दलबीर सिंह ने बताया कि सरिता से उस का नाजायज रिश्ता था. सरिता उस से एक लाख रुपए मांग रही थी. इसी विवाद में उस ने सरिता की हत्या कर दी.

राजेश कुमार सिंह ने सरिता की हत्या का खुलासा करने तथा आरोपी दलबीर सिंह को गिरफ्तार करने की जानकारी एसपी अपर्णा गौतम को दी, तो उन्होंने पुलिस लाइन सभागार में प्रैसवार्ता की और आरोपी दलबीर सिंह को मीडिया के समक्ष पेश कर हत्या का खुलासा किया.

16 जनवरी, 2021 को पुलिस ने अभियुक्त दलबीर सिंह को औरैया कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मृतक पहुंचा सलाखों के पीछे – भाग 3

यह आइडिया आते ही सुदेश ने दिमाग लगाना शुरू कर दिया कि वह खुद को इसी तरह जेल जाने से बचा सकता है. सुदेश ने जब अपनी पत्नी को दिल की बात बताई तो थोड़ी नानुकुर के बाद अनुपमा को भी यह बात पसंद आ गई. वैसे भी कौन पत्नी नहीं चाहेगी कि उस का पति जेल जाने से बच जाए.

काफी विचारविमर्श के बाद सुदेश व अनुपमा ने इस काम के लिए एक मजदूर का इंतजाम करने के लिए अपनी छत को ठीक कराने का बहाना बनाया. इस के लिए सुदेश 18 नवंबर, 2021 को लेबर चौक गया और अपनी कदकाठी के एक मजदूर, जिस का नाम दोमन रविदास था और वह बिहार के गया जिले के अतरी का रहने वाला था, को ले आया.

18 नवंबर को सुदेश ने पहले दिन अपनी छत की स्लैब डलवाई. मजदूर रविदास के कपडे़ काफी पुराने व फटी हालत में थे लिहाजा सुदेश ने उसे अपना ट्रैकसूट पहनने के लिए दे दिया जिस की जर्सी कौफी कलर की थी और लोअर नीले रंग का था.

अगले दिन भी काम होना था, इसलिए सुदेश ने रविदास को अगले दिन फिर आने के लिए कहा.

19 नवंबर को दोमन रविदास उसी के कपड़े पहन कर फिर काम पर आया. शाम होतेहोते जब काम खत्म हो गया तो शाम को दारू पार्टी के बहाने रोक लिया. दोनों ने शराब पीनी शुरू कर दी. इस दौरान सुदेश खुद कम शराब पीता रहा जबकि उस ने रविदास को बड़ेबड़े पैग पिलाने शुरू कर दिए.

रात करीब 9 बजे रविदास को खूब नशा हो गया. इस दौरान सुदेश और उस अनुपमा ने पहले ही तय कर लिया था कि उन्हें क्या करना है. इस दौरान उन्होंने चारपाई के पाये से रविदास के सिर पर ताबड़तोड़ वार कर हत्या कर दी.

यह बात बेटे सुनील को पता नहीं चले इसलिए उस ने सुनील को अपनी परचून की दुकान पर बैठने के लिए भेज दिया था.

सुदेश ने पहले ही तय कर लिया था कि वे रविदास की हत्या कर उसे सुदेश के रूप में अपनी पहचान देगा. इसीलिए एक दिन पहले उस ने अपना ट्रैकसूट रविदास को पहनने के लिए दिया था. खुद को वह दुनिया की निगाहों में मुर्दा करार दे सके, इस के लिए भी उस ने पूरी प्लानिंग कर ली थी.

सुदेश व अनुपमा को जब इत्मीनान हो गया कि रविदास की मौत हो चुकी है तो कमरे को पानी से साफ कर उस के शव को पहले एक पन्नी में लपेटा. उस के बाद उसे बोरी में भर दिया.

रात को करीब 11 बजे जब इलाके में सन्नाटा पसर गया और उस का बेटा भी सो गया तो सुदेश बोरे में भरे रविदास के शव को साइकिल पर रख कर लोनी बौर्डर थाना क्षेत्र की इंद्रापुरी कालोनी में खाली प्लौट में ले गया.

वहां शव को बोरी से निकाल कर उस के चेहरे और शरीर के ऊपरी हिस्से पर अखबार के कागज व टाट की बोरी रख कर जला दिया ताकि शव की पहचान न हो सके.

शव की पहचान सुदेश के रूप में कराने के लिए उस ने अपना आधार कार्ड रविदास की जेब में रख दिया था. पहले से तय योजना के मुताबिक सुदेश अपने घर गया और पत्नी को आ कर बताया कि जब पुलिस उस से रविदास के शव की शिनाख्त कराए तो वह उस की पहचान कर ले.

सुदेश की पूरी प्लानिंग थी कि वह रविदास को सुदेश साबित कर दे, इसलिए पत्नी के साथ बनी योजना के तहत वह इस के बाद चोरीछिपे देर रात में ही घर आता और इस के अलावा इधरउधर छिप कर अपना वक्त बिताता था.

10 दिसंबर को सुदेश ने अपनी पत्नी को फोन कर के कहा कि वह रात को घर आएगा घर की लाइट जला कर रखना. यदि सब कुछ ठीक हो तो गेट पर सफेद कपड़ा डाल देना. यह बात पुलिस ने सर्विलांस के दौरान सुन ली और पुलिस पहले से आरोपी की तलाश में उस के घर पहुंच गई और लाइट जला कर गेट पर सफेद कपड़ा डाल दिया.

सुदेश के पहुंचते ही पुलिस ने आरोपी व उस की पत्नी को दबोच लिया.

पूछताछ में सुदेश ने बताया कि जेल और सजा से बचने के लिए उस ने खौफनाक घटना को अंजाम दिया था. जेल जाने से बचने के लिए उस ने अपनी पत्नी के साथ मिल कर यह साजिश रची थी. लेकिन उस ने पहली भूल यह कर दी कि काफी प्रयास के बाद भी अपने ही कदकाठी के मजदूर को नहीं तलाश सका था.

सुदेश और अनुपमा की साजिश यह थी कि इस साजिश के पूरा होने पर वे दिल्ली छोड़ कर चले जाएंगे, लेकिन आखिरकार उस के बिना जले आधार कार्ड, सीसीटीवी कैमरे की तसवीरों और दूसरे सबूतों ने उस की खौफनाक साजिश का खुलासा कर दिया.

इस दौरान पुलिस ने करावल नगर थाने और मंडोली जेल से रिकौर्ड निकलवा कर पता कर लिया था कि सुदेश की हाइट 5 फुट 6 इंच है जबकि इंद्रापुरी इलाके में जो शव मिला था, उस की हाइट 5 फुट 3 इंच थी यानी 3 इंच कम.

इसी के बाद पुलिस ने सुदेश के घर की निगरानी शुरू की. उस की पत्नी के फोन को सर्विलांस पर लगाया और वह पुलिस की गिरफ्त में आ गया.

पुलिस ने सुदेश के साथ उस की पत्नी को भी डोमन रविदास की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर हत्या में प्रयुक्त चारपाई का पाया व शव को ठिकाने लगाने वाली साइकिल बरामद कर ली.

सुदेश व अनुपमा की गिरफ्तारी के बाद मुकदमे में भादंवि की धारा 201, 419, 420 व 120बी जोड़ कर उन्हें अदालत में पेश कर दिया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

दूसरी तरफ लोनी बौर्डर पुलिस ने मृतक मजूदर डोमन रविदास की करावल नगर थाने में दर्ज गुमशुदगी को अपने यहां ट्रांसफर करवा ली. रविदास के साथियों के साथ जा कर रविदास के बेटे ने थाना करावल नगर दिल्ली में जा कर घटना के 3 दिन बाद गुमशुदगी दर्ज कराई थी.

—कथा पुलिस की जांच और आरोपियों तथा पीडि़त परिवार से बातचीत पर आधारित

धोखे की नाव पर सवार : अपनों ने ही ली जान

—श्वेता पांडेय

गंगाराम अपनी मां दुलारीबाई से किसी भटियारिन की तरह हाथ नचाता हुआ गुस्से से बोला, ‘‘मैं ने तुम्हें कितनी बार बोला है कि मुझे निकासी के लिए रास्ता दो. मुझे लंबा चक्कर काट कर घर तक पहुंचना पड़ता है. उस समय तो और परेशानी बढ़ जाती है जब खेतों से फसल बैलगाड़ी में लाद कर लाते हैं.

‘‘आखिर मेरी बात तुम कब समझोगी. हर साल इसी बात का रोना होता है. सवा महीने बाकी हैं, फसल तैयार हो चुकी है. मुझे निकासी के लिए रास्ता चाहिए. और उस 2 एकड़ खेत में से हिस्सा भी चाहिए. मैं भी परिवार वाला हूं.’’

‘‘अच्छा. अभी तो मांबाप को पूछता नहीं है और जिस दिन जमीन से हिस्सा मिल गया, मांबाप मानने से भी इनकार कर देगा. गंगाराम, मैं ने दुनिया देखी है. बंटवारा हुआ नहीं कि मांबाप के हाथ में कटोरा थमा दोगे. बुढ़ौती में भीख मांगनी पड़ जाएगी.

दोनों मांबेटे में इसी तरह काफी देर तक झगड़ा चलता रहा. उसी समय गंगाराम के पिता बालाराम खेत से घर लौटे. दुलारी ने बेटे की शिकायत अपने पति से की, ‘‘लो, संभालो अपने बेटे को, जो जी में आता है बोलता ही चला जाता है.’’

गंगाराम अपने पिता से बोला, ‘‘बाबूजी, मां को समझाओ और संभालो नहीं तो किसी दिन मेरा मूड खराब हो गया तो इसे गंडासे से काट कर नदी में.’’

बालाराम ने बीच में हस्तक्षेप किया, ‘‘बहुत बोल चुका,’’ उन्होंने अपनी पत्नी दुलारी का पक्ष लिया, ‘‘अब अगर तू अपनी मां को एक भी शब्द बोला तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा.’’

इस झगड़े के बीच गंगाराम की पत्नी निर्मला पति का हाथ पकड़ कर बाहर लाने लगी. गंगाराम ने निर्मला का हाथ झटक दिया, ‘‘आज मैं बुड्ढे बुढि़या को छोड़ूंगा नहीं.’’

कहता हुआ गंगाराम अपने पिता बालाराम से जा भिड़ा. बापबेटे को एकदूसरे से हाथपाई करते देख गांव के लोग जमा हो गए.

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गांव वालों ने बापबेटे को बड़ी मुश्किल से एकदूसरे से अलग किया. गंगाराम लोगों की बांहों में जकड़ा हुआ कसमसा रहा था. साथ ही गुस्से से चीखता रहा.

दोनों एकदूसरे के कट्टर विरोधी हो गए. कोढ़ में खाज यह हुआ कि इसी बीच निर्मला बीमार रहने लगी. इस के लिए निर्मला अपनी सास दुलारीबाई को जिम्मेदार ठहराने लगी. वह सास पर यह आरोप लगाती कि उस ने उस के ऊपर कोई टोनाटोटका करा दिया है.

गंगाराम ने कई ओझागुनिया को पत्नी को दिखाया. मर्ज यह था कि निर्मला के सिर में दर्द बना रहता था और शाम को बुखार चढ़ने लगता था.

झाड़फूंक से कोई सुधार न हुआ तो वह डाक्टर के पास गया. टेस्ट करवाने पर पता चला कि निर्मला को टायफायड है. एलोपैथी दवा भी चली और झाड़फूंक भी. पता नहीं किस ने असर दिखाया, निर्मला धीरेधीरे ठीक होने लगी.

गंगाराम और उस की पत्नी निर्मला के दिमाग में यह बात घर कर गई थी कि उस की सास दुलारीबाई किसी तांत्रिक ओझा से मिल कर उन्हें बरबाद करने पर तुली है.

इस बात पर गंगाराम की सोच भी निर्मला की सोच से अलग नहीं थी. निर्मला जब पूरी तरह से ठीक हो गई और उस के शरीर में जान आ गई तब वह अपनी सास पर इलजाम लगाने लगी.

एक बार फिर दोनों पक्षों में तकरार और झिकझिक होने लगी. वह एकदूसरे के लिए गलत भावनाएं रखने लगे. फिर वही समय आया, नवंबर दिसंबर का. फसल तैयार हो कर खेत से कोठरी में जाने को तैयार थी.

मुद्दा फिर वही उठा कि बैलगाड़ी में रखे अनाज को दूसरे रास्ते से लाना होगा. बालाराम और दुलारी किसी भी तरह से इस बात के लिए तैयार नहीं थे कि निकासी के लिए बाड़ी से जगह दी जाए. हर साल फसल तैयार होने के बाद यही सवाल खड़ा हो जाया करता था.

कई सालों से यह निकासी का मसला न तो सुलझ रहा था और न ही दूरदूर तक कोई समाधान ही दिखाई दे रहा था.

आज भी इसी विवाद को ले कर गंगाराम और निर्मला दोनों का मन खिन्न था. खाना खाने के बाद दोनों पतिपत्नी टीवी देखने लगे.

टीवी पर वह क्राइम स्टोरी पर आधारित सीरियल देख रहे थे. उस सीरियल की कहानी उन की जिंदगी से जुड़ी जैसी थी. दोनों ने बड़े ध्यान से खामोशी के साथ वह सीरियल देखा. सीरियल खत्म होने के बाद दोनों ने उस पर चर्चा की.

गंगाराम और उस की पत्नी को इस बात की चिंता हो रही थी कि कहीं ऐसा न हो कि मांबाप पूरी जमीन छोटे भाई रोहित के नाम कर जाएं. वैसे भी छोटा होने के नाते वह मांबाप का चहेता था.

इस सोच ने निर्मला और गंगाराम को परेशान कर डाला. जब इंसान को कोई चीज मिलने की संभावना दिखाई न देती है, तब वह उसे किसी दूसरे ही तरीके से हासिल करने की कोशिश में लग जाता है. इन दोनों ने भी एक योजना बना ली.

गंगाराम और निर्मला ने एक योजना के तहत अपने व्यवहार में थोड़ाबहुत बदलाव किया. अपने पिता बालाराम और मां दुलारीबाई से सहजता से पेश आने लगे. बालाराम और दुलारी को आश्चर्य हुआ कि हमेशा कड़वे बोल बोलने वालों की जुबान में शहद कैसे घुल गया.

इस के बाद उन दोनों ने विचारविमर्श किया कि अपनी योजना में किसे शामिल किया जाए, जिस से उन की योजना सफल हो जाए. नजर और दिमाग के घोड़े दौड़ाने के बाद गंगाराम ने धुधवा गांव के ही नरेश सोनकर, योगेश सोनकर और कोपेडीह निवासी रोहित सोनकर से जिक्र किया.

पैसों के लालच में तीनों ही उन की योजना में शामिल हो गए. तीनों ने योजना बना कर वारदात को अंजाम देने के लिए 21 दिसंबर, 2020 का दिन तय किया.

योजना के अनुसार, चारों लोग खेत पर पहुंच गए. वहां बालाराम और उस का छोटा बेटा रोहित तड़के में खेतों पर पानी लगा रहे थे. उन्होंने उन दोनों को दबोच लिया और सीमेंट की बनी पानी की हौदी में डुबो कर दोनों को मार दिया.

अगला निशाना अब दुलारीबाई और उस की बहू कीर्तिनबाई रही. चारों दबेपांव वहां पहुंचे, जहां वे सब्जियों का गट्ठर तैयार करने में व्यस्त थीं. शिकारी की तरह दबेपांव वे उन के करीब पहुंचे और कुल्हाड़ी से ताबड़तोड़ वार कर उन दोनों की जिंदगी भी खत्म कर दी.

इतना सब कुछ करने के बाद उन लोगों ने चैन की सांस ली. यहां यह बताते चलें कि निर्मला उन चारों को ऐसा करते हुए दरवाजे की ओट से देख रही थी. काम को अंजाम देने के बाद गंगाराम ने तीनों साथियों को वहां से रवाना कर दिया.

निर्मला और गंगाराम दोनों ने मिल कर कुल्हाड़ी को बाड़ी में ही दबा दिया. सुबह के 5 बजतेबजते पूरे खुरमुड़ा गांव में इस दहला देने वाली हत्या की चर्चा होने लगी.

अम्लेश्वर थाने में संजू सोनकर निवासी खुरमुड़ा की रिपोर्ट पर अमलेश्वर थानाप्रभारी वीरेंद्र श्रीवास्तव ने इस नृशंस हत्याकांड की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दी.

जांचपड़ताल के लिए फोरैंसिक टीम घटनास्थल पर पहुंच गई. आईजी विवेकानंद सिन्हा के सुपरविजन में जांच होती रही. पुलिस को किसी तरह का कोई सूत्र नहीं मिल रहा था जिस से जांच आगे बढ़ती.

डौग स्क्वायड टीम घटनास्थल पर पहुंच चुकी थी. मृतकों के शव के समीप ले जा कर कुत्ते को छोड़ दिया गया. खोजी कुत्ता गोलगोल चक्कर लगाता हुआ मृतकों को सूंघ कर खेत की ओर कुछ दूर तक गया.

मौके की जांच से इतना तो स्पष्ट था कि हत्यारे 2-3 से कम नहीं थे. खेत में रासायनिक छिड़काव कर दिया गया था, जिस के कारण खोजी कुत्ते को सही दिशा नहीं मिल पा रही थी.

बहरहाल, पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. जब पुलिस को किसी तरह का सूत्र नहीं मिला तो पुलिस ने गंगाराम के साढ़ू नरेश सोनकर को विश्वास में ले कर मुखबिरी का जिम्मा सौंपा.

नरेश मंझा हुआ खिलाड़ी था. उस ने पुलिस को मुखबिरी करने के बहाने उलझाए रखा. जांच के लिए आईजी विवेकानंद सिन्हा ने कुछ बिंदु तय किए.

उन बिंदुओं को आधार बना कर पुलिस जांच में जुटी रही. इस सामूहिक हत्याकांड को हुए 3 महीने बीत चुके थे. लेकिन अपराधियों का कोई अतापता नहीं था.

थानाप्रभारी वीरेंद्र श्रीवास्तव ने अपने एक मुखबिर को नरेश के पीछे लगा दिया. नरेश की एक्टिविटी पुलिस को शुरू से ही संदेहास्पद लगी थी.

फोरैंसिक विशेषज्ञों की टीम के सहयोग से भौतिक साक्ष्य जुटाया गया. टीम ने वैज्ञानिक एवं तकनीकी साक्ष्य को आधार बना कर बारीकी से पूछताछ कर जानकारी इकट्ठी की.

पुलिस ने संदेहियों को हिरासत में ले कर सघन पूछताछ की. इस घटना का मास्टरमाइंड बालाराम का अपना सगा बड़ा बेटा गंगाराम निकला.

गंगाराम की स्वीकारोक्ति के बाद योगेश सोनकर, नरेश सोनकर, रोहित सोनकर उर्फ रोहित मौसा को गिरफ्तार कर लिया गया. सभी को घटनास्थल पर ले जा सीन रीक्रिएशन कराया गया.

आरोपियों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त कुल्हाड़ी पुलिस ने बालाराम की बाड़ी से बरामद कर ली.

घटना के वक्त पहने गए कपड़ों को इन चारों ने ठिकाने लगा दिया था. 18 मार्च, 2021 को आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया, जिस में निर्मला भी शामिल थी. इन चारों आरोपियों का नारको टेस्ट भी कराया गया.

आईजी विवेकानंद सिन्हा ने अमलेश्वर थाना स्टाफ की पीठ थपथपाई. पुलिस ने सभी आरोपियों गंगाराम, उस की पत्नी निर्मला, योगेश सोनकर, नरेश सोनकर और रोहित सोनकर को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.