45 लाख का खेल : बेटा बना दोषी – भाग 1

राजामहाराजाओं का बसाया हुआ जयपुर शहर सैकड़ों साल पुराना है. कभी इस शहर के चारों ओर परकोटा हुआ करता था. अब ये परकोटे टूट चुके हैं. फिर भी पुराने शहर को परकोटा ही कहते हैं. इसी परकोटे में किशनपोल बाजार है. इस बाजार में एक खूंटेटों का रास्ता है.

खूंटेटों का रास्ता की एक संकरी गली में भूतल पर केडीएम एंटरप्राइजेज कंपनी का औफिस है. इसे कंपनी का औफिस भले ही कह लें, लेकिन यह पुराने शहर के एक मकान का कमरा है. कमरे में 2-4 कुर्सियां और एक काउंटर आदि रखे हैं. दरअसल, यह एक

हवाला कंपनी का औफिस है. आजकल हवाला कंपनी को मनी ट्रांसफर कंपनी भी कहते हैं.

इस औफिस में न तो बिक्री लायक कोई सामान है और न ही यहां ग्राहक आते हैं. दिनभर में यहां 10-20 लोग आते हैं. वे कोई पर्ची या मोबाइल में सबूत दिखाते हैं और औफिस में काम करने वाले कर्मचारी उस की पहचान कर पर्ची या मोबाइल में मौजूद सबूत के आधार पर रकम गिन कर दे देते हैं.

हवाला का कामकाज ऐसे ही चलता है. हवाला का काम सभी बड़े शहरों में होता है. यह काम बैंकों जैसा ही है. फर्क बस इतना है कि बैंकों में लिखापढ़ी और नियमकानून हैं. जबकि हवाला में कोई नियमकानून नहीं है. हवाला को आप घरेलू बैंक भी कह सकते हैं. इस के जरिए मामूली कमीशन पर एक से दूसरी जगह पैसे भेजे जाते हैं.

एक पर्ची पर रकम लिख कर दे दी जाती है. यह पर्ची दिखाने पर जहां रकम भेजी जाती है, वहां से ली जा सकती है. हवाला के जरिए कितनी भी रकम भेजी जा सकती है. 10-20 हजार से लेकर 10-20 लाख और 10-20 करोड़ रुपए तक. कानून की नजर में यह काम अवैध है, फिर भी यह धंधा बहुत सालों से चल रहा है. केवल भारत में ही नहीं, विदेशों में भी.

बात इसी 10 मार्च की है. केडीएम एंटरप्राइजेज कंपनी के 2 कर्मचारी प्रियांशु उर्फ बंटी और पार्थ औफिस में बैठे थे. दोनों के पास कोई खास काम तो था नहीं, इसलिए मोबाइल पर वाट्सऐप चैटिंग कर रहे थे. दोपहर के तकरीबन साढ़े 12 बज चुके थे. उन्हें भूख लगने लगी थी.

कंपनी के इस औफिस में कोई लंच ब्रेक नहीं होता. इसलिए भूख लगने पर वे एक ही मेज पर टिफिन खोल कर घर से लाया भोजन कर लेते थे. कभी कुछ खाने या किसी दूसरी चीज की जरूरत होती, तो उन में से एक कर्मचारी बाजार जा कर जरूरत की चीज ले आता था.

प्रियांशु और पार्थ लंच बौक्स लाए थे. वे लंच करने के लिए आपस में बात कर रहे थे, तभी एक युवक सीढि़यां चढ़ कर औफिस में आया. उस ने सिर पर हेलमेट लगा रखा था. सफेद रंग की शर्ट और जींस के अलावा उस के पैरों में स्पोर्ट्स शूज थे. सिर पर हेलमेट लगा होने के कारण उस का चेहरा पहचान में नहीं आ रहा था. युवक के कंधे पर एक बैग लटक रहा था.

पार्थ और प्रियांशु ने युवक को आया देख सोचा कि वह रकम लेने आया होगा. वे दोनों उस से कुछ कहते या पूछते, इस से पहले ही उस ने फुरती से अपने बैग से एक पिस्तौल निकाली और दोनों को धमकाते हुए कहा, ‘‘चिल्लाना मत, वरना ठोक दूंगा.’’

पिस्तौल देख और युवक की धमकी सुन कर दोनों कर्मचारी सहम गए. दोनों को धमकाते हुए युवक ने उन के मुंह पर सेलो टेप चिपका दी ताकि वे शोर ना मचा सकें. सेलो टेप वह अपनी जेब में डाल कर लाया था.

उसी सेलो टेप से उस ने दोनों कर्मचारियों के हाथ भी बांध दिए. हाथ बांधने के बाद युवक ने उन से पूछा कि रकम कहां रखी है? पार्थ और प्रियांशु के मुंह पर टेप चिपकी थी, वे कैसे बोलते? दोनों चुप रहे, तो युवक ने खुद ही काउंटर की दराजें खोल कर देखी.

एक दराज में रुपयों से भरा बैग था. उस बैग में 45 लाख रुपए थे. वह बैग युवक ने अपने बैग में डाला और दोनों कर्मचारियों को धमकाते हुए चला गया.

3 मिनट में 45 लाख रुपए लूट की वारदात कर वह युवक वापस चला गया. उस गली और औफिस में इक्कादुक्का लोगों की आवाजाही रहती है. इसलिए न तो किसी ने उसे आते देखा और न ही जाते हुए.

लुटेरे के जाने के काफी देर बाद तक पार्थ और प्रियांशु डर के मारे चुपचाप बैठे रहे. बाद में उन्होंने अपने हाथों और मुंह पर बंधी चिपकी टेप हटाई. फिर मकान मालिक राधावल्लभ शर्मा को वारदात के बारे में बताया, शोर मचाया. आसपास के लोगों ने इधरउधर देखा भी, लेकिन लुटेरे का कुछ पता नहीं चला.

बाद में कर्मचारियों ने कंपनी के मैनेजर रोहित कुमार शर्मा को वारदात के बारे में बताया. रोहित ने औफिस पहुंच कर दोनों से लूट के बारे में पूछा.

वारदात के करीब ढाई घंटे बाद दोपहर करीब 3 बजे पुलिस को सूचना दी गई. जयपुर के प्रमुख बाजार से दिनदहाड़े हवाला कंपनी के औफिस से 45 लाख रुपए लूटे जाने की वारदात की बात सुन कर पुलिस अफसर भी हैरान रह गए.

hindi-manohar-family-crime-story

सूचना मिलने पर पुलिस कमिश्नरेट और नौर्थ पुलिस जिले के अधिकारी मौके पर पहुंचे. पुलिस ने हवाला कंपनी के दोनों कर्मचारियों पार्थ और प्रियांशु से पूछताछ की. डीसीपी (क्राइम) दिगंत आनंद ने भी मौके पर पहुंच कर उन दोनों से पूछताछ की.

पुलिस अधिकारियों ने आसपास के सीसीटीवी फुटेज दिखवाए. इन में हेलमेट लगाए हुए एक युवक पैदल आ कर हवाला औफिस में जाता हुआ दिखा. युवक ने हेलमेट के नीचे मुंह पर मास्क भी लगाया हुआ था. हाथों में दस्ताने पहन रखे थे. वारदात के बाद लुटेरा किशनपोल बाजार तक पैदल जाता दिखा.

फिसलन भरे रास्तों की नायिका – भाग 2

वह रोते हुए आगे बोली, ‘‘साहब, मेरे दोनों बच्चे छोटे हैं, मेरे बिना अनाथ हो जाएंगे. मुझ पर रहम करो. पति को मैं ने नहीं मारा.’’

शशि से पूछताछ करने से यह तो साफ हो गया कि पप्पू की हत्या शशि और भूपेंद्र के अवैध संबंधों की वजह से हुई थी और हत्यारा था भूपेंद्र.

यह जानकारी मिलते ही पुलिस भूपेंद्र को गिरफ्तार करने के लिए उस के घर पहुंच गई. लेकिन वह घर से फरार था. इस के बाद भी पुलिस उस के पीछे पड़ी रही. बाद में भूपेंद्र को देर रात सोते हुए उस के घर से ही गिरफ्तार कर लिया गया.

भूपेंद्र से पुलिस ने कड़ी पूछताछ की तो उस ने अपना जुर्म कबूलते हुए बताया कि उस ने शशि के कहने पर ही पप्पू की हत्या की थी. शशि ने उस से कहा था कि पप्पू के खत्म होते ही रास्ते का कांटा हट जाएगा. फिर दोनों मियांबीवी की तरह रहेंगे.

शशि और भूपेंद्र दोनों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया था. उन से की गई पूछताछ के बाद पप्पू की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह काफी दिलचस्प निकली—

उत्तराखंड के जिला काशीपुर के जसपुर थाना कोतवाली क्षेत्र के गांव भरतपुर में तोताराम का परिवार रहता था. तोताराम की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी. गांव में न तो उन के पास जुतासे की जमीन थी और न ही अच्छी आमदनी का कोई जरिया. भरतपुर गांव के अधिकांश लोग जंगलों से लकड़ी ला कर बेचते थे. उसी से उन का गुजारा होता था. तोताराम का भी यही काम था.

वह जंगलों से लकड़ी बीन कर लाता और उन्हें बेच कर अपने परिवार की गुजरबसर करता था. तोताराम के 3 बेटे थे, जो काफी छोटे थे. किसी बीमारी के चलते तोताराम की मौत हो गई. सिर से बाप का साया हटते ही बच्चे अनाथ हो गए. पति की मौत के बाद बच्चों को पालनेपोसने की जिम्मेदारी उस की पत्नी सुनीता पर आ गई थी. सुनीता ने जैसेतैसे बच्चों को इस लायक कर दिया कि अपने पैरों पर खड़े हो सकें.
बच्चे जवान हुए तो कामधंधे में लग गए और फिर करनपुर गांव में अपना मकान बना कर रहने लगे. करनपुर जंगल से सटा हुआ इलाका है. कुछ लोग जंगल का फायदा उठा कर कच्ची शराब बनाने का धंधा करते हैं. कच्ची शराब की भरमार होने की वजह से यहां के अधिकांश लोग शराबी बन चुके हैं.

तोताराम के तीनों लड़के भी यहां आ कर शराब पीने के आदी हो गए. करनपुर आने के कुछ दिनों बाद तोताराम के बड़े बेटों राजपाल और जगदीश की शादी हो गई थी. घर में केवल पप्पू ही शादी के लिए बचा था. बाद में उस की शादी उत्तर प्रदेश के शहर रामपुर के रहने वाले मुरलीलाल की बेटी शशि से हो गई. यह करीब 18 साल पहले की बात है.

शशि बन गई पप्पू की चहेती

शशि अपने पति से काफी खुश थी. शशि हंसमुख थी. उस की चंचलता चेहरे से ही झलकती थी. कुछ ही समय में उस ने अपनी ससुराल वालों के साथसाथ पड़ोसियों का भी दिल जीत लिया था. शादी से पहले शशि के कदम बहक गए थे. मोहल्ले के कई लड़कों के साथ उस के अवैध संबंध थे. लेकिन शादी होने के बाद उस की इस तरह की कहानियां दफन हो गई थीं.

शादी के करीब साल भर बाद वह एक बच्चे की मां बनी. उस ने बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम राज रखा गया. बच्चे के जन्म के बाद पप्पू की जिम्मेदारी और भी बढ़ गई थी. खर्च पूरे करने के लिए वह दिनरात मेहनत करने लगा. उस ने गांव के नजदीक ही एक सरदार के फार्म में काम करना शुरू कर दिया.
पप्पू का ज्यादातर समय वहीं गुजरता था. वह रहता भी वहीं पर था. वहां रहने से उसे यह फायदा हो गया कि हर रोज काम तलाशने के बजाए उसे हर महीने बंधीबंधाई तनख्वाह मिलने लगी. फार्म पर रहते हुए ही वह ट्रैक्टर चलाना सीख गया था.

पप्पू को अच्छी आमदनी होने लगी तो शशि के रहनसहन में भी काफी बदलाव आ गया. वह अब बनठन कर रहने लगी थी. पप्पू सीधासादा युवक था. वह महीने में जो भी कमाता, अपनी बीवी के हाथ पर ला कर रख देता था. घर का सारा खर्च शशि ही अपने हिसाब से करती थी. इस बीच वह दूसरे बच्चे की मां भी बन गई थी. लड़की हुई थी राजो उर्फ रज्जी.

2 बच्चों के बाद शशि का शरीर पहले से कहीं ज्यादा खिल उठा था. पप्पू को तो केवल कमाई की धुन थी. वह सारे दिन काम में लगा रहता और शाम को खापी कर जल्दी सो जाता. वह पत्नी की तरफ ध्यान नहीं दे पा रहा था, जिस से उस के दिल में पप्पू के प्रति लगाव कम होने लगा.

शादी के 6 साल बीत जाने के बाद पप्पू उस के शरीर को पढ़ने में कमजोर पड़ने लगा तो शशि ने पिंजरे में बंद रहने के बजाए उड़ने की ठान ली. वह खूबसूरत तो थी ही, उस ने मोहल्ले के युवकों पर जाल फेंका तो कई युवक उस की गलियों के चक्कर लगाने लगे.

जब शशि के पैर बहके

उस ने मोहल्ले के एक युवक के साथ गहरी दोस्त कर ली और उस के साथ मौजमस्ती का खेल खेलने लगी. बुरा काम चाहे कोई भी हो, कितना भी छिपा कर क्यों न किया जाए, भेद खुल ही जाता है. शशि के प्रेमी के बारबार शशि के पास आने पर मोहल्ले वालों को शक हो गया. इस के बाद मोहल्ले के कई युवकों का शशि के यहां आनाजाना हो गया.

वे उस के साथ मौजमस्ती करने के साथ ही उस के खर्चे भी उठाने लगे.
शशि जंगल से लकड़ी लाने के बहाने घर से निकलती और जंगल में वह प्रेमियों से मिलती. लेकिन एक दिन एक अनजान युवक ने उस के साथ छेड़छाड़ कर दी. यह हरकत शशि के पड़ोसी ने देख ली. शशि जानती थी कि उसे दुनिया की नजरों में पाकसाफ बन कर रहना है तो उसे जरूर कुछ करना होगा.

यही सोच कर उस ने गांव में आते ही उस युवक द्वारा की गई हरकत को ले कर शोर मचा दिया. इतना ही नहीं वह उस युवक को सबक सिखाने के लिए कुंडा स्थित पुलिस चौकी में शिकायत करने जा पहुंची.
चौकी में उस की मुलाकात एक कांस्टेबल से हुई जो उसी के हलके का था. कांस्टेबल पहली ही नजर में उस के हुस्न पर मर मिटा. उस ने शशि के साथ हमदर्दी दिखाते हुए उस का मोबाइल नंबर ले लिया और अपना मोबाइल नंबर उसे देते हुए कहा कि तुम चिंता मत करो, कल आ कर मैं उस हरामखोर को देखता हूं.

अगले दिन वह पुलिस वाला गश्त पर निकला तो घूमतेघामते शशि के घर जा पहुंचा. शशि के घर पुलिस वाले को आया देख मोहल्ले के लोग इधरउधर हो गए. इस के बाद सिपाही शशि को छेड़ने वाले युवक का पता लगाते हुए उस के घर गया.

घातक निकली बीवी नंबर 2 – भाग 2

दरोगा पच्चालाल की हत्या की खबर कानपुर से लखनऊ तक फैल गई थी. यह बात एडीजे अविनाश चंद्र के संज्ञान में भी थी. इसी के मद्देनजर एसएसपी अखिलेश कुमार ने दरोगा हत्याकांड को बेहद गंभीरता से लिया और इस के खुलासे के लिए एक विशेष पुलिस टीम गठित की.

जांच के लिए बनी स्पैशल टीम

इस टीम में उन्होंने क्राइम ब्रांच और सर्विलांस सेल तथा एसएसपी की स्वान टीम के तेजतर्रार व भरोसेमंद पुलिसकर्मियों को शामिल किया. क्राइम ब्रांच से सुनील लांबा तथा एसओजी से राजेश कुमार रावत, सर्विलांस सेल से शिवराम सिंह, राहुल पांडे, सिपाही बृजेश कुमार, मोहम्मद आरिफ, हरिशंकर और सीमा देवी तथा एसएसपी स्वान टीम से संदीप कुमार, राजेश रावत तथा प्रदीप कुमार को शामिल किया गया.

इस के अलावा वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के बेहतरीन जासूस कहे जाने वाले 3 इंसपेक्टरों देवेंद्र कुमार दुबे, दिलीप बिंद, मनोज रघुवंशी तथा सीओ (घाटमपुर) आर.के. चतुर्वेदी को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने सब से पहले घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. साथ ही पोस्टमार्टम रिपोर्ट का भी अध्ययन किया. रिपोर्ट में पच्चालाल के शरीर पर 19 गहरे जख्म बताए गए थे जो सिर, गरदन, छाती, पेट व हाथों पर थे. इस टीम ने उन मामलों को भी खंगाला, जिन की जांच पच्चालाल ने की थी. लेकिन ऐसा कोई मामला नहीं मिला, जिस से इस हत्या को जोड़ा जा सकता. इस से साफ हो गया कि क्षेत्र के किसी अपराधी ने उन की हत्या नहीं की थी.

पुलिस टीम ने थाना सजेती में लगे सीसीटीवी फुटेज भी देखे, मगर उस में दरोगा के आवास में कोई भी आतेजाते नहीं दिखा. इस का मतलब हत्यारे पिछले दरवाजे से ही आए थे और हत्या को अंजाम दे कर उसी दरवाजे से चले गए.

टीम ने कुछ दुकानदारों से पूछताछ की तो शराब के ठेके के पास नमकीन बेचने वाले दुकानदार अवधेश ने बताया कि 2 जुलाई को देर शाम उस ने दरोगा पच्चालाल के साथ सांवले रंग के एक युवक को देखा था. उस युवक के साथ दरोगाजी ने ठेके से अंगरेजी शराब की बोतल खरीदी थी. साथ ही उस की दुकान से नमकीन का पैकेट भी लिया था.

दुकानदार अवधेश ने जो बताया, उस से साफ हो गया कि दरोगा पच्चालाल के साथ जो युवक था, वह उन का काफी करीबी था. इस जानकारी के बाद टीम ने दरोगा के खास करीबियों पर ध्यान केंद्रित किया. इस में उस की पत्नी किरन, दरोगा के 4 बेटे और कुछ अन्य लोग शामिल थे. पच्चालाल के बेटों से पूछताछ करने पुलिस टीम रामकुंड, सीतापुर पहुंची.

पूछताछ में सत्येंद्र, महेंद्र, जितेंद्र व कमल ने बताया कि उन के पिता का न तो किसी से विवाद था और न ही जमीनजायदाद का कोई झगड़ा था. सौतेली मां किरन से भी जमीन या मकान के बंटवारे पर कोई विवाद नहीं था. सौतेली मां किरन अपने बच्चों के साथ कानपुर में रहती थी.

पच्चालाल दोनों परिवारों का अच्छी तरह पालनपोषण कर रहे थे. चारों बेटों को उन्होंने कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी थी. सत्येंद्र ने यह भी बताया कि 6 महीने पहले पिता ने उस की शादी धूमधाम से की थी.

शादी में सौतेली मां किरन भी खुशीखुशी शामिल हुई थीं. शादीबारात की सारी जिम्मेदारी उन्होंने ही उठाई थी. शादी में बहू के जेवर, कपड़ा व अन्य सामान पिता के सहयोग से उन्होंने ही खरीदा था. किरन से उन लोगों का कोई विवाद नहीं था.

जितेंद्र और किरन आए संदेह के घेरे में

मृतक दरोगा पच्चालाल के बेटों से पूछताछ कर पुलिस टीम कानपुर लौट आई. इस के बाद यह टीम थाना नवाबगंज के सूर्यविहार पहुंची, जहां दरोगा की दूसरी पत्नी किरन किराए के मकान में रहती थी. पुलिस को देख कर किरन रोनेपीटने लगी. पुलिस ने उसे सांत्वना दी. बाद में उस ने बताया कि दरोगा पच्चालाल ने उस से तब प्रेम विवाह किया था, जब वह बेनीगंज थाने में तैनात थे. दरोगा से किरन को 3 संतानें हुई थीं, एक बेटा व 2 बेटियां.

किरन रो जरूर रही थी, लेकिन उस की आंखों से एक भी आंसू नहीं टपक रहा था. उस के रंग, ढंग और पहनावे से ऐसा नहीं लगता था कि उस के पति की हत्या हो गई है. घर में किसी खास के आनेजाने के संबंध में पूछने पर वह साफ मुकर गई. लेकिन पुलिस टीम ने जब किरन के बच्चों से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि जितेंद्र अंकल घर आतेजाते हैं, जो पापा के दोस्त हैं.

पुलिस टीम ने जब किरन से जितेंद्र उर्फ महेंद्र यादव के बारे में पूछताछ की तो उस का चेहरा मुरझा गया. उस ने घबराते हुए बताया कि जितेंद्र उस के दरोगा पति का दोस्त था. वह रोडवेज बस चालक है और रोडवेज कालोनी में रहता है. पूछताछ के दौरान पुलिस टीम ने बहाने से किरन का मोबाइल ले लिया.

पुलिस टीम में शामिल सर्विलांस सेल के प्रभारी शिवराम सिंह ने किरन के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि दरोगा की हत्या के पहले व बाद में किरन की एक नंबर पर बात हुई थी.

उस मोबाइल नंबर की जानकारी जुटाई गई तो पता चला वह नंबर जितेंद्र उर्फ महेंद्र का था. पच्चालाल के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स में भी जितेंद्र का नंबर था.

दूसरी पत्नी बनी हत्या की वजह

जितेंद्र शक के घेरे में आया तो पुलिस टीम ने देर रात उसे रोडवेज कालोनी स्थित उस के घर से हिरासत में ले लिया और थाना सजेती ले आई. उस से दरोगा पच्चालाल की हत्या के संबंध में पूछताछ की गई तो उस ने हत्या से संबंधित कोई जानकारी होने से इनकार कर दिया.

हां, उस ने दोस्ती और दरोगा के घर आनेजाने की बात जरूर स्वीकार की. जब पुलिस ने अपने अंदाज में पूछताछ की तो जितेंद्र ज्यादा देर तक टिक नहीं पाया और उस ने दरोगा पच्चालाल की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

जितेंद्र उर्फ महेंद्र यादव ने बताया कि किरन से उस के नाजायज संबंध बन गए थे. दरोगा पच्चालाल को जानकारी हुई तो वह किरन को प्रताडि़त करने लगा. पच्चालाल प्यार में बाधक बना तो उस ने और किरन ने मिल कर उस की हत्या की योजना बनाई.

योजना बनाने के बाद उन्होंने एक लाख रुपए में दरोगा की हत्या की सुपारी निजाम अली को दे दी, जो विधूना का रहने वाला है. निजाम अली ने उसे पसहा, विधूना निवासी राघवेंद्र उर्फ मुन्ना से मिलवाया. इस के बाद तीनों ने मिल कर 2 जुलाई की रात दरोगा की हत्या कर दी और फरार हो गए.

बेवफा बीवी : पति ने किया पत्नी पर वार

30 वर्षीय राहुल गोकुल प्रतापे मूलरूप से महाराष्ट्र में उस्मानाबाद जनपद के घारगांव तालुका पंडारा का रहने वाला था. वह पुणे की एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में सिक्योरिटी गार्ड था. वह पुणे की ही मालवाड़ी चाली में अपने परिवार के साथ किराए पर रहता था.

उस के परिवार में मांबाप, भाईभाभी के अलावा एक बहन थी. परिवार खुश था. घर में अगर किसी बात की चिंता थी तो बस राहुल की शादी की. उस की बढ़ती उम्र को देखते हुए उस के मातापिता ने उस के योग्य लड़की की तलाश शुरू कर दी थी.

उन्होंने अपने नातेरिश्तेदारों में जब राहुल की शादी की बात चलाई तो एक रिश्तेदार ने उन्हें सोलापुर जिले के बारशी लहू चौक सुभाष नगर निवासी संतोष काकंडे की बेटी गौरी का नाम सुझाया था.

परिवार वालों को गौरी पसंद आ गई थी. गौरी के मांबाप का देहांत हो चुका था. वह अपने दादादादी शिवगंगा और अपनी सौतेली मां मनीषा व सौतेले भाई के साथ रहती थी. बिना मांबाप की लड़की की देख दिखाई की सारी रस्में उस के परिवार और नातेरिश्तेदारों ने मिल कर की थीं.

लड़कालड़की के पसंद और मुंहदिखाई की रस्म पूरी होने के बाद 28 अप्रैल, 2017 को रिश्तेदारों और परिवार वालों के साथ मिल कर बालाजी मंदिर में साधारण तरीके से उन दोनों का विवाह हो गया था.

गौरी जैसी सुंदर पत्नी पा कर जहां राहुल खुश था, वहीं परिवार वालों ने भी गौरी को आदरसत्कार और प्यार, मानसम्मान दिया था.

समय अपनी गति से चल रहा था. परिवार में किसी तरह का तनाव नहीं था, सब अपनाअपना काम मिलजुल कर किया करते थे. जिस किराए के मकान में वे रहते थे, वहां के लोगों की भी कुछ समय तक उन से पूरीपूरी सहानुभूति थी.

पूरा परिवार मिलजुल कर रहता था. मकान के किराए से ले कर पूरे परिवार की देखरेख की जिम्मेदारी गौरी और राहुल के कंधों पर थी. कभी भी किसी प्रकार का कोई विवाद नहीं था. शादी के 4 साल कब और कैसे बीत गए, इस का उन्हें एहसास नहीं हुआ.

मगर 2021 का साल उन के लिए सुखद नहीं रहा. उन के सुखी जीवन में एक आंधी आई, जिस ने उन का पूरा दांपत्य जीवन तहसनहस कर दिया था.

5 मई, 2021 को गौरी 15 दिनों के लिए अपनी मौसेरी बहन के यहां घूमने गई. वहां से वापस आने के बाद उस का व्यवहार पूरी तरह बदल गया था. अब वह सीधीसादी गौरी नहीं बल्कि स्मार्ट और तेजतर्रार बन गई थी.

वह जब से अपनी मौसेरी बहन के घर से लौट कर आई थी, तब से उस का एक नया शौक सामने आया था. वह अपना सारा समय मोबाइल पर बिताती थी. घर के किसी भी काम में उस का मन नहीं लगता था. उसे अपने मोबाइल के आगे खानेपीने का भी ध्यान नहीं रहता था.

धीरेधीरे घर का माहौल बिगड़ने लगा था. राहुल अपनी ड्यूटी पर अगर शाम को जाता तो दूसरे दिन सुबह लौटता और जब सुबह जाता था तो शाम को रात 8 बजे घर लौटता था. इस बीच गौरी अपना सारा समय मोबाइल फोन से चिपक कर बिताती थी.

पहले तो परिवार वालों को लगा कि गौरी शायद अपने पति राहुल के साथ टाइम पास करती है. लेकिन जब शक गहराया तो राहुल की बहन ने उस से पूछ लिया, ‘‘भाई, तुम और भाभी सारीसारी रात क्या बातें करते हो?’’

पहले तो राहुल ने इसे मजाक समझा और कहा, ‘‘कैसी बातें करती है पगली, मैं जब ड्यूटी पर रहता हूं, तो फिर मुझे किसी से बात करने का मौका कहां मिलता है.’’

‘‘क्यों झूठ बोलते हो भाई,’’ बहन ने कहा, ‘‘भाभी तो अकसर रात भर मोबाइल फोन से चिपकी रहती हैं. पता नहीं क्याक्या बातें करती हैं. अगर वह तुम से बात नहीं करती हैं तो फिर किस से करती हैं?’’ उस ने पूछा.

इधर कई दिनों से गौरी के बदले व्यवहार और बहन की बातों से राहुल ने ध्यान दिया तो उस का भी माथा ठनका.

7 जून, 2021 के दिन राहुल जब अपनी नाइट ड्यूटी पर गया, तो इस बात की सच्चाई जानने के लिए उस रात एक बजे से ले कर 4 बजे के बीच उस ने कई बार गौरी को फोन लगाया. लेकिन हर बार उस का फोन व्यस्त बता रहा था. इस का कारण यह था कि गौरी ने राहुल के फोन को ब्लैक लिस्ट कर दिया था. उस समय राहुल को गुस्सा तो बहुत आया था, लेकिन उस ने किसी तरह अपने गुस्से को काबू किया.

8 जून, 2021 को राहुल अपनी ड्यूटी से घर जल्दी आया तो गौरी को बैड पर चादर ताने लेटा पाया. उस ने जब गौरी के ऊपर से झटके में चादर खींची तो यह देख कर दंग रह गया कि गौरी का फोन उस के कान के नीचे था. राहुल ने फोन उठा कर जब कान से लगाया तो उस तरफ से किसी पुरुष की आवाज आ रही थी.

राहुल ने जब पूछा कि आप कौन बोल रहे हो, तो फोन कट गया था. राहुल ने जब वापस फोन लगाया तो उस का फोन स्विच्ड औफ बताने लगा था. इस से नाराज राहुल ने गौरी को आड़ेहाथों लिया.

‘‘वह आदमी कौन था जिस से तुम बातें कर रही थी?’’ कई बार पूछने पर जब गौरी ने अपना मुंह नहीं खोला तो राहुल का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया.

वह अपने आप को संभाल नहीं सका और गौरी को कई थप्पड़ जड़ दिए. बात आगे न बढ़े इसलिए घर वालों ने उस समय राहुल को समझाबुझा कर मामला शांत करवा दिया था.

उस दिन तो राहुल शांत हो गया था. लेकिन अब इस मामले को ले कर उस का मन अशांत रहने लगा था. उस ने गौरी के मायके वालों को फोन कर उन्हें सारी बातें बताईं और कहा कि उस का किसी के साथ चक्कर चल रहा है. इस विषय में वह उसे कुछ बता नहीं रही है अच्छा होगा कि आप लोग ही उस से बात करें.

दूसरे दिन राहुल गौरी को बस से ले कर उस के मायके के लिए रवाना हो गया था. इस बीच राहुल ने जब गौरी का फोन ले कर उस के वाट्सऐप मैसेज देखे तो उस में कई चौंका देने वाले मैसेज मिले.

उस मेंअंजान नंबर से कई लव मैसेज आए हुए थे. राहुल ने जब उस नंबर को ट्रूकालर पर जा कर चैक किया तो उस के होश उड़ गए थे. वे सभी लव मैसेज किसी गणेश नाम के व्यक्ति ने किए थे.

उस में कुछ मैसेज तो ऐसे थे, जो काफी अश्लील थे. अब उसे यकीन हो गया कि गौरी भरोसे लायक नहीं है. यानी उस का गणेश से गहरा संबंध है.

उस समय तो वह पत्नी की बेवफाई से खून का घूंट पी कर रह गया था. लेकिन ससुराल पहुंचने के बाद उस का गुस्सा गौरी पर फूट पड़ा था. उस ने गणेश और गौरी के सारे मैसेज उस के मायके वालों के सामने रख दिए और उस पर गणेश को ले कर दबाव डाला. लेकिन गौरी गणेश को ले कर टस से मस नहीं हुई.

इस के बाद मायके वालों ने जब गौरी को समझाबुझा कर वापस पुणे जाने के लिए कहा तो वह इस के लिए तैयार नहीं हुई. उस ने साफ शब्दों में कह दिया कि अब वह राहुल के साथ नहीं रहेगी और न वापस पुणे जाएगी. अब वह अकेली रहेगी.

उस की बात सुन कर मायके वाले सन्न रह गए थे. परिवार और नातेरिश्तेदारों ने गौरी को काफी समझायाबुझाया, लेकिन वह अपनी बात पर अड़ी रही. गौरी के इस व्यवहार से नाराज राहुल ने उसे उस के मायके वालों के हवाले किया और वापस पुणे चला आया.

गौरी मायके में रह कर वही हरकतें किया करती थी, जो अपनी ससुराल में रह कर करती थी. घर का सारा कामकाज छोड़ कर के सारी रात, सारा दिन मोबाइल से चिपकी रहती थी. कुछ दिन निकल जाने के बाद अचानक ही बिना किसी को कुछ बताए बताए घर से गायब हो गई. तब घर वाले घबरा गए थे.

अपने नातेरिश्तेदारों और जानपहचान वालों के यहां उस की तलाश करने के बाद घर वालों ने वारसी पुलिस स्टेशन में जा कर उस की गुमशुदगी की शिकायत दर्ज करवा दी. शिकायत दर्ज कराने के 15 दिनों बाद वह खुद ही वापस अपने घर आ गई. और घर वालों को यह विश्वास दिलाया कि वह अपनी एक सहेली के घर पर थी.

21 जुलाई, 2021 को गौरी के घर वालों के बुलाने पर राहुल गौरी के मायके गया और उस के घर वालों के समझानेबुझाने पर गौरी को वापस पुणे अपने घर ले जाने के लिए तैयार हुआ. उसे यह बताया गया था कि अब गौरी के रहनसहन में बदलाव आ गया है.

मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ था. गौरी के स्वभाव में कोई फर्क नहीं आया था. पुणे आते ही अगले दिन उस ने सारा घर अपने सिर पर उठा लिया.

गौरी को अपने और उस के परिवार वालों के दबाव में आ कर राहुल साथ रखने के लिए तैयार तो हो गया था, लेकिन अपनी मन:स्थिति से समझौता नहीं कर पाया था. वह न तो ठीक से अपने काम पर जा रहा था, और न ही ठीक से खानापीना कर रहा था.

मगर गौरी पर इस से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था. वह मौका पाते ही राहुल से उलझ पड़ती थी और बारबार उस पर अपने मायके छोड़ आने का दबाव डालती थी, लेकिन राहुल इस के लिए तैयार नहीं था.

वह दोनों परिवारों को बदनामी से बचाने के लिए गौरी को समझाने की पूरी कोशिश करता था, पर गौरी समझने के लिए तैयार नहीं थी. उस का कहना था कि अगर 15 अगस्त, 2021 के पहले उसे उस के मायके नहीं छोड़ा तो नतीजा ठीक नहीं होगा.

रोजरोज के गौरी के झगड़े से राहुल और उस का परिवार तंग आ चुका था. क्या करें क्या न करें, यह उन की समझ में नहीं आ रहा था.

17 अगस्त, 2021 को हद तो तब हो गई, जब गौरी ने सारी मर्यादा को ताख पर रख दी. उस दिन गौरी ने घर में महाभारत शुरू की तो पूरे दिन चलती रही. राहुल और उस के घर वालों ने गौरी को समझाने की काफी कोशिश की, लेकिन उस का ड्रामा बंद नहीं हुआ.

उस का कहना था कि अगर उस ने उसे मायके नहीं भेजा तो वह लड़कों को बुला कर के राहुल की हत्या करवा देगी.

इस तरह की धमकी से राहुल का मूड इतना खराब हुआ कि उस ने उसी समय गौरी की बुरी तरह पिटाई कर दी. लेकिन गौरी पर इस का कोई फर्क  नहीं पड़ा.

गौरी ने इस पर कुछ इस तरह हंगामा खड़ा किया कि आसपड़ोस वालों के होश उड़ गए. उन्होंने गौरी के घर आ कर उसे समझाने की काफी कोशिश की, लेकिन गौरी ने उन की एक भी नहीं सुनी. उलटा वह उन लोगों से भी उलझ पड़ी थी, ‘‘यह हमारे घर का मामला है, आप लोगों से कोई मतलब नहीं है.’’

‘‘आप लोगों के घर का मामला है तो इसे शांति से सुलझाइए. शोर मचा कर हम लोगों का चैन क्यों हराम कर रखा है?’’ पड़ोसियों ने कहा.

‘‘हम ऐसे ही रहेंगे, तुम लोगों को जो करना है वह कर लो.’’ गौरी ने उन्हें जवाब दिया.

गौरी की यह बात पड़ोसियों को इतनी खराब लगी कि उन्होंने मकान मालिक नवनाथ रामदास बोरगे से शिकायत कर उस परिवार से मकान खाली करवाने का दबाव बनाया.

पड़ोसियों की शिकायत पर मकान मालिक बोरगे अपना महीने का किराया लेने राहुल के घर आया तो यह कहते हुए राहुल और उस के परिवार वालों को मकान खाली करने के लिए कहा कि उन के रोजरोज के झगड़ों से और किराएदारों को काफी तकलीफ हो रही है. इसलिए वह मकान खाली कर दें.

मकान मालिक बोरगे की इस बात पर राहुल ने उन से कहा कि वह थोड़े दिन का उसे समय दें. वह कोई दूसरा मकान मिलते ही उन का मकान खाली कर देगा.

मकान मालिक महीने भर का समय दे कर चला गया. अभी तक गौरी ही उस के लिए समस्या बनी हुई थी, अब मकान ने उसे और टेंशन दे दी.

मगर गौरी को इस बात से क्या लेनादेना था वह तो सिर्फ एक ही रट लगाए बैठी थी कि उसे मायके जाना है तो जाना है.

शाम को इसी बात को ले कर गौरी ने फिर से हंगामा शुरू कर दिया था. इस बार राहुल गौरी का हंगामा सुनने को तैयार नहीं था. उस ने गौरी के प्रति एक खतरनाक फैसला ले लिया था.

‘‘मैं आज तुझे तेरे मायके भेज ही दूंगा.’’ कहते हुए उस ने गौरी का हाथ पकड़ा और उसे खींचते हुए घर से बाहर ले जा कर छोड़ दिया और कहा कि अब वह अपने मायके चली जाए.

लेकिन ऐसा नहीं हुआ. घर वाले समझाबुझा कर गौरी को वापस घर में ले आए थे. पर राहुल इस बार गौरी को बख्शने के मूड में नहीं था. उस ने सोच लिया कि न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी.

उस समय रात के यही कोई 8 बजे का समय था. गौरी और राहुल का झगड़ा चालू था. राहुल घर के एक कमरे में गया और वहां रखे हुए कोयते को ले कर बाहर आया.

उस के हाथ में कोयते को देख कर जब तक उस के घर वाले राहुल के इरादे को समझने की कोशिश करते, तब तक राहुल गौरी पर कई वार कर चुका था, जिस से गौरी की एक दर्दनाक चीख निकल कर वातावरण में खो गई थी और वह तड़पकर जमीन पर गिर गई. थोड़ी देर तक तड़पने के बाद वह शांत हो गई थी.

गौरी की हत्या करने के बाद राहुल बड़े शांत मन से हिजवाडी पुलिस थाने पहुंचा. थानाप्रभारी बालकृष्ण सावंत और उन के सहायक थाने आए राहुल का हुलिया देख कर स्तब्ध रह गए. उस के कपड़ों व शरीर पर पड़े खून के छींटे किसी बड़ी घटना की तरफ इशारा कर रहे थे.

थानाप्रभारी बालकृष्ण सावंत उस से कुछ पूछते, इस के पहले ही राहुल ने उन्हें जो कुछ बताया उसे सुन कर उन के पैरों तले की जमीन जैसे खिसक गई.

मामला काफी गंभीर और चौंका देने वाला था. थानाप्रभारी बालकृष्ण सावंत और उन के सहायकों ने उसे तुरंत अपनी हिरासत में ले लिया था. साथ ही उन्होंने इस मामले की जानकारी पुलिस कंट्रोल रूम और अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी.

इस के बाद थानाप्रभारी अपने साथ पीआई अजय जोगदंड, एसआई समाधान कदम, एपीआई सागर काटे, हैडकांस्टेबल किरण पवार आदि को ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए.

इस के पहले कि थानाप्रभारी बालकृष्ण सावंत अपने सहायकों के साथ घटनास्थल का निरीक्षण करते, मामले की जानकारी पा कर के पुणे शहर आयुक्त कृष्ण प्रकाश, डीसीपी आनंद भोइट, एसीपी श्रीकांत डिसले के साथ फोरैंसिक टीम के अधिकारी भी घटनास्थल पर आ गए.

फोरैंसिक टीम का काम खत्म होने के बाद सीनियर अधिकारियों ने घटनास्थल और शव का सरसरी तौर पर निरीक्षण कर थानाप्रभारी बालकृष्ण सावंत को कुछ आवश्यक निर्देश दिए और अपने औफिस लौट गए.

वरिष्ठ अधिकारियों के जाने के बाद थानाप्रभारी बालकृष्ण सावंत ने अपने सहायकों के साथ घटनास्थल और मृतक गौरी के शव का बारीकी से निरीक्षण किया तो पाया कि बड़ी बेरहमी से गौरी की हत्या की गई थी. चेहरे पर 7 गहरे घाव थे. घावों से इस बात का पता चल रहा था कि उस समय हत्यारे की मन:स्थिति कैसी थी.

बहरहाल, अपने सीनियर अधिकारियों के जाने के बाद थानाप्रभारी बालकृष्ण सावंत ने अपने सहयोगियों के साथ घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण कर मृतक गौरी के शव के पास पड़े कोयते को अपने कब्जे में ले कर उसे सील कर लिया .

इस के बाद उन्होंने उस के घर वालों और पड़ोसियों के बयान लिए. शव को पोस्टमार्टम के लिए वाईसीएम अस्पताल भेजने के बाद थाने लौट आए. साथ ही साथ उस के मकान मालिक नवनाथ रामदास बोरगे को भी अपने साथ ले आए.

उस के बयान के आधार पर उन्होंने राहुल गोकुल प्रतापे के खिलाफ भादंवि की धारा 302/4 (25) मुंबई पुलिस अधिनियम 37(1), 135 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया था.

विस्तार से पूछताछ करने के बाद जांच अधिकारी बालकृष्ण सावंत ने मेट्रोपौलिटन मजिस्ट्रैट के सामने पेश कर पुणे की यरवदा जेल भेज दिया.

कथा लिखे जाने तक राहुल गोकुल प्रतापे जेल की सलाखों के पीछे था.

बंद बोरे का खुला राज : आशिकी में की पति की हत्या

8 जून, 2021 की बात है. आगरा के थाना सदर के सेवला में रात के 11 बजे एक आदमी कंधे पर बोरा ले कर जा रहा था. अचानक बोरे के वजन के कारण उस का पैर फिसला और वह बोरे सहित  गिर पड़ा. इस पर वहां से निकल रहे लोगों की नजरें उस आदमी की तरफ गईं.

वह किसी तरह उठा और बोरे को उठाने का प्रयास करने लगा. उसी समय बोरा खुल गया और उस में से एक हाथ बाहर निकल आया. यह देखते ही लोग उस की ओर दौड़े और उसे पकड़ लिया. बोरे को खुलवा कर देखा तो उस में एक युवक का शव था जिसे देख कर सभी के होश उड़ गए.

बोरे में युवक की लाश मिलने से वहां सनसनी फैल गई. इस घटना की सूचना तुरंत पुलिस को दे दी गई.

सूचना मिलते ही थाना सदर के थानाप्रभारी अजय कौशल अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां लोग एक व्यक्ति को पकड़े हुए थे. यह माजरा देखते ही उन्होंने वहां मौजूद लोगों से जानकारी ली. लोगों ने बताया कि यही व्यक्ति कंधे पर बोरे में किसी की लाश ले कर जा रहा था. वजन के कारण वह बोरा सहित गिर गया. बोरा खुलने से लाश के बारे में पता चला.

पुलिस ने देखा तो बोरे में एक युवक की लाश थी. उस लाश की पहचान 40 वर्षीय जूता कारीगर संजय के रूप में हुई. पुलिस ने शव की पहचान होने के बाद उस के घरवालों को सूचना दी. जानकारी होते ही परिवार में कोहराम मच गया.

इस बीच घटना की जानकारी थानाप्रभारी द्वारा अपने उच्च अधिकारियों को दी गई. सूचना मिलते ही एसपी (सिटी) रोहन प्रमोद बोत्रे वहां पहुंच गए. उन्होंने लाश का निरीक्षण किया. युवक के गले  पर चोट के निशान दिखाई दे रहे थे. मौके की जरूरी काररवाई निपटा कर पुलिस ने शव को मोर्चरी भिजवा दिया.

पुलिस पकड़े गए युवक मान सिंह को हिरासत में ले कर थाने लौट आई. थाने पर उस से पूछताछ की गई. जानकारी देने पर पुलिस ने रात में ही मृतक संजय के घर पहुंच कर उस की 35 वर्षीय पत्नी सुनीता उर्फ सुषमा से पूछताछ की.

सुनीता ने बताया कि वह दवा लेने गई हुई थी. जब लौट कर आई तो पति संजय घर पर नहीं मिले. उस ने सोचा कि कहीं गए होंगे. जब देर हो गई तो उस ने पति की तलाश शुरू की. बाद में पता चला कि उस के जाने के बाद पति की किसी ने हत्या कर दी थी.

उधर हिरासत में लिए गए युवक ने बिना कुछ छिपाए पुलिस को सच्चाई बता दी. उस ने हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. उस ने बताया कि मृतक संजय की पत्नी से उस के प्रेम संबंध हैं. पति संजय इस का विरोध करता था. हम दोनों के प्यार के बीच संजय रोड़ा बना हुआ था. वह अपनी पत्नी के साथ मारपीट करता था. मुझे भी घर आने से मना करता था. इसलिए हम दोनों ने मिल कर उस की हत्या कर दी.

वह शव को बोरे में बंद कर ठिकाने लगाने ले जा रहा था. लेकिन बोरे के गिर जाने से भेद खुल गया.

पुलिस समझ गई कि मृतक की पत्नी सुनीता इस हत्याकांड में शामिल होने के बावजूद अपने को निर्दोष बता रही है. जबकि उस के प्रेमी मान सिंह ने पुलिस को सारी हकीकत बता दी थी. पुलिस ने सुनीता को भी गिरफ्तार कर लिया और फोरैंसिक टीम को बुला लिया. टीम ने मृतक के घर से कई साक्ष्य जुटाए.

9 जून, 2021 को प्रैस कौन्फ्रैंस में एसएसपी मुनिराज जी. ने इस हत्याकांड का खुलासा करते हुए हत्या में शामिल मृतक की पत्नी सुनीता उर्फ सुषमा व उस के 38 वर्षीय प्रेमी मान सिंह की गिरफ्तारी की जानकारी दी.

संजय की हत्या के पीछे जो कहानी निकल कर आई वह 2 प्रेमियों के प्यार के बीच कांटा बनने की इस प्रकार निकली—

मृतक संजय आगरा की एक जूता फैक्ट्री में कारीगर था. वह मूलरूप से निबोहरा के मूसे का पुरा का रहने वाला है. देवरी रोड पर मकान ले कर वह परिवार सहित रहता था.

उस के परिवार में पत्नी सुनीता सुषमा के अलावा 3 बच्चे भी हैं. कुछ समय पहले संजय ने अपना मकान बेच दिया. मकान बेचने के बाद वह सेवला में किराए का मकान ले कर रहने लगा.

संजय शराब पीने का शौकीन था. वह शराब पी कर अकसर सुनीता से झगड़ा करता और उस के साथ मारपीट करता था. सुनीता की दोस्ती थाना सदर के ही टुंडपुरा के रहने वाले मान सिंह से थी. दोनों की मुलाकात कुछ महीने पहले हुई थी. दोस्ती गहरी हो गई. एकदूसरे को पसंद करने लगे.

धीरेधीरे दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. सुनीता मान सिंह के साथ कई बार पति की गैरमौजूदगी में घूमने जा चुकी थी. संजय को यह जानकारी हो गई. वह पत्नी को भलाबुरा कहता था. उस के पास कोई सबूत नहीं था. इसलिए वह मौके की तलाश में रहता था.

जब संजय पत्नी के साथ मारपीट करता तो मानसिंह बीच में पड़ कर मामला शांत करा देता. कई बार उस ने सुनीता को बचाया भी था. संजय शराब पी कर सुनीता से अभद्रता करता था. मान सिंह ने इसी बात का फायदा उठाया. सुनीता के प्रति सहानुभूति दिखाते हुए उसे अपनी बातों के जाल में फंसा लिया.

पति संजय को पत्नी की मान सिंह से दोस्ती पसंद नहीं थी. वह इस का विरोध करता था. जबकि मान सिंह व सुनीता के बीच प्रेम संबंध दिनप्रतिदिन पुख्ता होते जा रहे थे. दोनों एकदूसरे के बिना रह नहीं पाते थे. पति की आदतों से अब सुनीता को वह अपना दुश्मन दिखाई देता था.

सुनीता और मान सिंह को जब भी मौका मिलता दोनों तनमन की प्यास बुझा लेते थे.

संजय को दोनों पर शक हो गया. एक दिन संजय ने दोनों को घर में आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. इस से मान सिंह तिलमिला कर रह गया.

लेकिन वक्त की नजाकत को देखते हुए मान सिंह बिना कुछ बोले उस दिन वहां से चला गया. मान सिंह के जाने के बाद संजय ने सुनीता की पिटाई कर दी. वह दोनों के संबंधों का विरोध करने लगा. सुनीता खून का घूंट पी कर रह गई थी. रंगेहाथों पकड़े जाने से वह विरोध की स्थिति में भी नहीं थी.

संजय ने सुनीता को चेतावनी दी कि यदि मान सिंह से उस ने बात करते भी देख लिया तो दोनों को जान से मार देगा. सुनीता ने दूसरे दिन प्रेमी मान सिंह से पति द्वारा की गई पिटाई और धमकी के बारे में मोबाइल पर बताया. यह सुन कर मान सिंह का खून खौलने लगा.

तब एक दिन सुनीता और मान सिंह ने अपने प्यार की राह के रोड़े को हटाने की योजना बनाई. सुनीता ने प्रेमी का प्यार पाने के लिए पति की हत्या की साजिश रची.

घटना वाले दिन सोमवार की शाम प्रेमी मान सिंह सुनीता से मिलने उस के घर गया. उस समय संजय भी घर पर मौजूद था. मान सिंह को देखते ही उस ने कहा, ‘‘जब मना कर दिया था फिर भी तू आ गया?’’

इस पर मानसिंह ने हंसते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारे लिए तुम्हारी पसंद की चीज लाया हूं.’’ यह कहते हुए उस ने साथ लाई शराब की बोतल उसे दिखाई. मान सिंह जानता था कि संजय की कमजोरी शराब है. इसलिए वह बेधड़क घर आ गया था.

मान सिंह और सुनीता ने  संजय को जम कर शराब पिलाई. जब वह नशे में बेसुध हो गया तब दोनों ने उस के गले में दुपट्टा डाल कर कस दिया. दोनों ने गला घोट कर उस की हत्या कर दी. इस से पहले सुनीता ने बच्चों को खाना खिलाया और उन्हें कमरे में टीवी चला कर बैठा दिया. कमरे की बाहर से कुंडी लगा दी थी.

हत्या के बाद दोनों ने शव को बोरे में बंद कर दिया. सुनीता ने प्रेमी मान सिंह से पति की लाश इलाके से दूर ले जा कर किसी तालाब में फेंकने को कहा. ताकि लोगों को लगे कि पानी में डूबने से उस की मौत हुई है.

तब मान सिंह शव को बोरे में भर कर कंधे पर रख उसे फेंकने के लिए रात में ही चल पड़ा. जब वह शव को ठिकाने लगाने जा रहा था तभी रास्ते में पैर फिसलने से बोरा गिर गया और हत्या का भेद खुल गया.

प्रेमी मान सिंह द्वारा लाश फेंकने से पहले ही लोगों ने उसे रंगेहाथों दबोच लिया. आशिकी में पत्नी ने पति की हत्या करा दी थी. सुनीता को अपने पति की हत्या का कोई अफसोस नहीं था.

अपने प्यार की खातिर प्रेमी के साथ मिल कर पति की हत्या करने वाली सुनीता के चेहरे पर गिरफ्तारी के बाद भी पछतावे के भाव नहीं दिखाई दिए.

इतना ही नहीं, पति की हत्या के मामले में पकड़े जाने पर बच्चों का क्या होगा? उस ने इस बारे में भी नहीं सोचा. मगर जब उसे पता चला कि अब उस की और प्रेमी दोनों की बाकी जिंदगी जेल में कटेगी तो वह रोने लगी.

सुनीता की शादी को 10 साल से अधिक हो गए थे. 3 बच्चों में सब से बड़ा बेटा 9 साल का है. लोगों की सतर्कता के चलते पुलिस ने एक हत्या का परदाफाश घटना के कुछ घंटे बाद ही कर दिया था.

पुलिस ने आरोपियों के कब्जे से फंदा लगाने वाला दुपट्टा, मृतक का मोबाइल फोन और आधार कार्ड बरामद कर दोनों को न्यायालय में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

खतरनाक औरत : गांव की गलियों से निकली माया के सपने – भाग 1

27 जून, 2018 की सुबह काशीपुर स्टेशन के अधीक्षक ने थाना आईटीआई को फोन कर के बताया कि बाजपुर ट्रैक पर किसी की लाश पड़ी है. यह सूचना मिलते ही आईटीआई थानाप्रभारी कुलदीप सिंह अधिकारी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. जब पुलिस वहां पहुंची, तब वहां कोई भी मौजूद नहीं था. वजह यह थी कि न तो वहां कोई आम रास्ता था और न ही कोई वहां से गुजरा था.

घटनास्थल पर पहुंच कर पुलिस ने लाश और घटनास्थल का मुआयना किया. साथ ही जरूरी काररवाई भी की. मृतक के गले और छाती पर चोट के निशान थे. उस की एक पैर की एड़ी भी कटी हुई थी, जो शायद ट्रेन की चपेट में आने से कट गई थी.

लेकिन लाश देख कर ही पता चल रहा था कि उस की मौत ट्रेन से कट कर नहीं हुई थी. इस का मतलब यह था कि उस की हत्या कर के डैडबौडी वहां फेंकी गई थी, जिस से यह मामला दुर्घटना का लगे. रेलवे ट्रैक पर लाश मिलने की सूचना मिलते ही आसपास के गांवों के लोग एकत्र होने लगे. घटनास्थल पर काफी लोग जुट गए थे, उन में राजपुरम निवासी छत्तर ने मृतक की पहचान करते हुए पुलिस की बड़ी सिरदर्दी खत्म कर दी.

छत्तर ने मृतक की पहचान अपने जीजा राकेश उर्फ हरकेश के रूप में की. राकेश की हत्या की बात सुन कर उस के घर वाले तुरंत घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां पहुंचे उस के घर वालों से पुलिस ने राकेश के बारे में पूछताछ की और लाश पोस्टमार्टम के लिए राजकीय चिकित्सालय भिजवा दी.

राकेश की लाश के पोस्टमार्टम के समय एक बात चौंकाने वाली पता चली. मृतक के पैरों पर जला हुआ इंजन औयल लगा मिला था. वैसा ही तेल वहां मौजूद मृतक राकेश के मौसेरे भाई इंद्रपाल के कपड़ों पर भी लगा हुआ था. यह पता चलते ही राकेश के घर वालों ने इंद्रपाल को अपने कब्जे में ले कर उसे मारनापीटना शुरू कर दिया.

वैसे भी राकेश के घर वालों को शक था कि उस की हत्या इंद्रपाल ने ही की है. पोस्टमार्टम के दौरान यह बात सामने आते ही उन्हें पूरा विश्वास हो गया कि राकेश का हत्यारा वही है.

राकेश के घर वालों ने इंद्रपाल को ठोकपीट कर पुलिस के हवाले कर दिया. इंद्रपाल को हिरासत में लेने के बाद पुलिस ने उस से कड़ी पूछताछ की तो पहले तो उस ने साफ इनकार कर दिया कि राकेश की हत्या से उस का कोई लेनादेना नहीं है. लेकिन जब पुलिस ने उस के कपड़ों पर लगे काले औयल का राज पूछा तो वह पुलिस को कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाया.

आखिरकार उस ने सब कुछ साफसाफ बता दिया. पूछताछ में इंद्रपाल ने बताया कि राकेश की हत्या उस की बीवी माया ने कराई है. यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस इंद्रपाल को थाना ले आई. थाने में उस से कड़ी पूछताछ की गई.

पुलिस पूछताछ के दौरान पता चला कि राकेश की हत्या में मृतक की बीवी माया, इंद्रपाल निवासी मोहनतखतपुर, थाना कुंदरकी जिला मुरादाबाद, गुड्डू निवासी नगला थाना भगतपुर, जिला मुरादाबाद, रेखा निवासी खड़कपुर काशीपुर, जमुना निवासी खड़कपुर शामिल थे.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने आरोपियों की धरपकड़ शुरू की तो सभी आरोपी पकड़ में आ गए. गिरफ्तारी के बाद उन से पूछताछ की गई तो राकेश की हत्या की पूरी सच्चाई सामने आ गई.

मेहनतकश राकेश पहुंच गया शहर की ड्योढ़ी पर

बाजपुर, उत्तराखंड के गांव कनौरा निवासी हरकेश उर्फ राकेश की शादी करीब 17 साल पहले गांव परमानंदपुर (गौशाला) निवासी खानचंद्र की बेटी माया से हुई थी. माया देखने में खूबसूरत ही नहीं, तेजतर्रार भी थी.

राकेश के पास जुतासे की थोड़ी सी जमीन थी, जिस में इतनी पैदावार नहीं होती थी कि परिवार की गुजरबसर हो सके. राकेश फैक्ट्रियों में काम कर के परिवार का भरणपोषण करता था. बाद में एक फैक्ट्री में उसे लेबर का ठेका मिल गया तो उस की मेहनत कम हो गई और आमदनी ज्यादा.

शादी के कुछ समय बाद तक राकेश की घरगृहस्थी ठीक से चलती रही. इस बीच पतिपत्नी का तालमेल भी ठीक बैठ गया था. राकेश शुरू से ही अपनी बीवी माया को बहुत प्यार करता था. वह सुबह काम पर चला जाता और देर शाम घर लौटता था. घर आने के बाद वह दिन भर की थकान की वजह से खाना खापी कर जल्दी सो जाता था. उस की बीवी माया को यह पसंद नहीं था. वह चाहती थी कि जब तक वह जागे, पति उस का साथ दे. लेकिन राकेश की अपनी मजबूरी थी, जो माया के अरमानों पर भारी पड़ती थी.

माया ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं थी. लेकिन उस की हसरतों की उड़ान ऊंची थी. वह शुरू से ही शरारती थी, बनठन कर रहने वाली. राकेश के साथ शादी के बंधन में बंध कर वह ससुराल तो आ गई थी, लेकिन वह अपनी शादी से खुश नहीं थी.

शादी के बाद अनचाहे ही सही, राकेश के साथ रहना उस की मजबूरी थी. जबकि राकेश उसे पा कर खुश था. शादी के बाद वह उसे जी जान से चाहने भी लगा था.

गुजरते समय के साथ माया 3 बच्चों की मां बन गई. उस की बड़ी बेटी का नाम मधु था, उस से छोटा बेटा था आकाश और सब से छोटी थी बेटी प्रीति. राकेश काम के लिए गांव से शहर आता था. जब बच्चे थोड़े बड़े हो गए तो माया का मन शहर में रहने का होने लगा. यह बात मन में आते ही उस ने राकेश से कहा, ‘‘जब तुम्हें शहर में ही काम करना है तो क्यों न हम शहर में थोड़ी सी जमीन खरीद कर छोटा सा मकान बना लें.’’

राकेश अपने घर की स्थिति अच्छी तरह जानता था. उस के सामने पैसे की मजबूरी थी. उस ने इनकार कर दिया तो माया को मन मार कर गांव में ही रहने को मजबूर होना पड़ा.

शादी के कुछ सालों के बाद तक तो माया पत्नी का धर्म निभाती रही, लेकिन जब उस के दिमाग से राकेश की छवि धूमिल होने लगी तो उस का मन और निगाहें इधरउधर भटकने लगीं. जल्द ही उस ने अपने रंगढंग दिखाने शुरू कर दिए. उस ने चोरीछिपे ससुराल में कई लोगों से अवैध संबंध बना लिए. राकेश को इस बात की जानकारी कानोंकान नहीं हुई. हालांकि माया 3 बच्चों की मां बन चुकी थी, फिर भी उस के शरीर की कशिश बरकरार थी.

नफरत का खौफनाक अंजाम : परिवार आया निशाने पर

1 अक्तूबर, 2021 की रात के करीब साढ़े 11 बजे फरीदाबाद के गोठड़ा मोहब्ताबाद का रहने वाला गगन (26 वर्ष) अपने परिवार के साथ खाटू श्याम के दर्शन कर के घर लौटा था. गगन हर साल इसी समय के आसपास अपने पूरे परिवार के साथ खाटू श्याम मंदिर में दर्शन के लिए जाया करता था. उस मंदिर के प्रति उस की आस्था बहुत थी.

वह इस साल अपनी माता सुमन (50 वर्ष), बहन आयशा (30 वर्ष), छोटे भांजे सक्षम (12 वर्ष) और दोस्त राजन शर्मा के साथ मंदिर में दर्शन कर के लौटा था.

गगन राजन के साथ ही फरीदाबाद सेक्टर 55-56 में प्रौपर्टी डीलिंग और पुरानी गाडि़यों की खरीदफरोख्त का काम करता था. इस से पहले गगन अपने परिवार के साथ फरीदाबाद सेक्टर 55 में किराए पर ही रहता था. लेकिन इसी साल सितंबर में उस ने गोठड़ा मोहब्ताबाद में किराए के एक मकान में, जो कि एक पूर्व सरपंच का मकान है, वहां रहने लगा था. उस के पुराने घर से इस नए मकान के बीच करीब 30 मिनट पैदल की दूरी थी.

21 अक्तूबर को मंदिर से दर्शन कर देर रात घर लौटने की वजह से गगन ने राजन को अपने घर पर ही रुकने का आग्रह किया था, क्योंकि रात बहुत हो चुकी थी और वह अपने इलाके में देर रात होने वाली घटनाओं और वारदातों के बारे में अच्छे से जानता था.

राजन ने भी गगन की बात मान ली और वह रात में उसी के घर रुक गया. देर रात को लंबा सफर कर के लौटे सभी लोग पहले फ्रैश हुए और हलकाफुलका खाना खा कर वे सब सोने के लिए अपनेअपने कमरे में चले गए.

आयशा व उस की मां सुमन मकान में नीचे के कमरे में सोने चली गईं और गगन, राजन व सक्षम पहली मंजिल पर सोने चले गए. सब थकेहारे थे तो हर किसी को जल्दी नींद भी आ गई थी और सभी गहरी नींद में सो भी गए थे. बस सक्षम ही रात को जागा हुआ था.

नींद तो सक्षम को भी तेज आ रही थी, लेकिन वह किसी का बहुत बेसब्री से इंतजार कर रहा था. वह रात को जगे हुए अपने मम्मी के फोन में गेम खेल रहा था. रात के करीब ढाई बजे के आसपास उस का फोन बजा. इस से पहले कि फोन की घंटी हर किसी को नींद से जगा देती कि उस से पहले ही सक्षम ने तुरंत फोन उठा लिया.

यह उस के पिता नीरज चावला (35 वर्ष) का फोन था. सक्षम ने फोन उठा कर फुसफुसाते हुए कहा, ‘‘हैलो पापा.’’

नीरज अपने बेटे को पुचकारते हुए बोला, ‘‘अरे मेरा बेटा कैसा है? खाटू श्याम घूम कर आ गए सब? कैसा लगा वहां घूम कर? मजा आया?’’

सक्षम ने फिर से फुसफुसाते हुए अपने पिता के सवालों का जवाब दिया, ‘‘जी पापा. वहां तो खूब मजा आया पापा. काश! आप भी साथ होते और मजा आता. हमें तो काफी रात हो गई थी वहां से वापस आते हुए.’’

ये सुन कर नीरज ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं बेटे. सुनो, जो हमारी बीच बात हुई थी तुम्हें याद है न?’’

सक्षम ने उत्सुकता के साथ कहा, ‘‘जी पापा, मुझे याद है. आप क्या लाए हो मेरे लिए?’’

नीरज ने जवाब दिया, ‘‘वो तो सरप्राइज है मेरे बच्चे. मैं अभी तुम्हारे घर के बाहर ही तो खड़ा हूं. नीचे आ कर दरवाजा खोलो और अपना गिफ्ट ले जाओ. और हां, किसी को इस बारे में बताने की जरूरत नहीं है. ये गिफ्ट स्पैशल तुम्हारे लिए मंगवाया है बाहर से. अब जल्दी से नीचे आ कर अपना गिफ्ट ले लो. इसी बहाने मैं अपने बेटे से भी मिलूंगा.’’

अपने पिता के द्वारा लाए हुए गिफ्ट की बात सुन कर सक्षम के मन में खुशी का कोई ठिकाना नहीं था. वह तुरंत अपने बिस्तर से इस तरह से उठा कि किसी और को उस के उठने की भनक तक नहीं लगी और वह जल्द ही नीचे दरवाजे की ओर भागा.

आहिस्ता से सक्षम ने अंदर से लगी दरवाजे की कुंडी खोली और धीरे से दरवाजा खोला. उस ने देखा उस के पिता दरवाजे के ठीक सामने अपने हाथों में एक थैली लिए खड़े थे.

सक्षम के दरवाजा खोलने पर नीरज ने झुक कर उसे पहले अपने गले लगा लिया और फुसफुसाते हुए उस से पूछा, ‘‘कोई जागा तो नहीं बेटा?’’

सक्षम ने भी उसी तरह से नीरज को जवाब दिया, ‘‘नहीं पापा, कोई नहीं जागा.’’

यह सुन कर नीरज ने सक्षम के कंधे पर हाथ रखा और घर के अंदर आ गया. सक्षम को यह देख कर थोड़ा अजीब लगा. उस ने अपने पिता को रोकना चाहा, लेकिन वह कहां रुकने वाला था. उन दोनों के अंदर घुसते ही बाहर से एक और आदमी मकान में आ घुसा.

यह शख्स नीरज का दोस्त लेखराज था. लेखराज के अंदर आते ही उस ने भीतर से मुख्य दरवाजे की कुंडी बंद कर दी और भाग कर पहली मंजिल पर जा पहुंचा.

लेखराज को देखते ही इस से पहले कि सक्षम कुछ कहता, नीरज ने उस के मुंह पर हाथ रख दिया और उसे अपनी गोद में उठा कर उस कमरे की ओर चल पड़ा, जहां पर उस की पत्नी आयशा और उस की सास सुमन सोए हुए थी.

एक तरफ नीचे ग्राउंड फ्लोर पर नीरज अपने बेटे के साथ था तो दूसरी ओर लेखराज पहली मंजिल पर गगन और राजन के कमरे में था. लेखराज ने अपनी कमर से एक देसी तमंचा निकाल कर सोते हुए राजन पर गोली चला दी.

गोली चलने की आवाज सुन कर गगन नींद से जाग गया और उस की नजर लेखराज और उस के हाथ में तमंचे पर पड़ी. गगन के अवचेतन दिमाग ने खुद को बचाने के लिए बिस्तर किनारे रखे फोन को लेखराज की ओर जोर से फेंका. वह फोन लेखराज के चेहरे पर जा कर लगा और कुछ पलों के लिए उस का ध्यान गगन से हट गया.

इतने में गगन भाग कर दरवाजे की ओर से निकलने ही वाला था कि लेखराज ने गगन पर पीछे से गोली चला दी, जोकि उस की कमर पर लगी. गोली लगते ही वह गिर पड़ा.

गगन के शरीर से निकला खून पूरे फर्श पर फैल चुका था, जिसे देख लेखराज को लगा कि वह मर गया है, क्योंकि गगन के शरीर से किसी तरह की कोई हरकत नहीं हो रही थी.

पहली मंजिल पर गोली चलने की आवाज सुन कर 12 साल का छोटा बच्चा इस से पहले कि कुछ समझ पाता, नीरज ने उसे नीचे उतार दिया. फिर उस ने अपने थैले में से तमंचा बाहर निकाल कर अपनी सास सुमन पर निशाना साधते हुए 2 गोलियां चला दीं.

नीरज की पत्नी आयशा जो गहरी नींद में सो रही थी, बाहर होने वाले शोर से वह भी जाग गई. इस से पहले कि वह कुछ समझ पाती, नीरज ने मौका देख कर एक गोली अपनी पत्नी की छाती पर दाग दी. गोली मारने के बाद नीरज ने इधरउधर देखा तो सक्षम वहां मौजूद नहीं था.

नीरज ने जब उसे अपनी गोद से उसे नीचे उतारा था, तब वह भाग कर बाथरूम में चला गया था. उस ने खुद को बाथरूम में बंद कर लिया. सक्षम इतनी दहशत में था कि उस ने बाथरूम में किसी तरह की कोई हरकत करने की हिम्मत नहीं दिखाई.

इतने में लेखराज अपना काम पूरा कर के नीचे आया और उस ने नीरज से पूछा, ‘‘काम हो गया, अब आगे क्या करना है?’’

नीरज ने अपने थैले में से 2 धारदार चाकू निकाले और एक उस के हाथ में थमाते हुए बोला, ‘‘ये दोनों किसी भी कीमत पर जिंदा नहीं रहने चाहिए. इन्होंने मेरा जीना हराम कर दिया है, इसलिए इन्हें पूरी तरह से खत्म कर दो.’’

कहते हुए लेखराज और नीरज दोनों सुमन और आयशा की लाश की ओर बढ़े और दोनों उन के शरीर पर चढ़ कर उन के शरीर पर लगातार चाकू से वार करने लगे. उन्होंने उन का शरीर गोदने के बाद महसूस किया कि मकान में उन का नौकर भी रहता है, उस नौकर को भी उन्होंने ठिकाने लगाना जरूरी समझा. उसी समय उन्होंने महसूस किया कि कोई मकान का मेन दरवाजा खोल रहा है.

वह उस मकान में काम करने वाला नौकर शिवा ही था. उसे देख कर नीरज उस की ओर अपना तमंचा ले कर दौड़ा. शिवा अपनी जान बचाने के लिए तेजी से भागा और दीवार फांदते हुए वह मकान के इर्दगिर्द खाली पड़े प्लौट को पार करते हुए भाग निकला.

इस बीच नीरज ने उस की ओर निशाना साध कर गोली भी चलाई थी, लेकिन गोली के तमंचे में फंस जाने की वजह से शिवा अपनी जान बचाने में कामयाब रहा. नीरज और लेखराज सक्षम को छोड़ घर में सभी को गोली मारने के बाद तुरंत वहां से नौ दो ग्यारह हो गए.

नीरज और लेखराज ने सभी को गोली तो मार दी थी, लेकिन उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि गगन को गोली लगने के बाद भी वह बच जाएगा. गगन को उस की कमर पर गोली लगी थी, उस का खून भी काफी बह चुका था लेकिन वह जिंदगी और मौत के बीच लटक गया था.

नीरज और लेखराज के वहां से निकल जाने के बाद सक्षम रोताबिलखता एकएक कर अपने परिवार के पास जा कर उन्हें देख रहा था, तभी उस ने देखा कि उस के मामा के शरीर में हरकत हो रही थी. यह देख कर फोन ले कर वह भागते हुए अपने मामा गगन के पास पहुंचा.

गगन ने 100 नंबर डायल कर पुलिस को फोन लगाया और पुलिस को कराहती आवाज में जल्द ही अपने घर पर आने के लिए कहा.

सुबह के करीब साढ़े 3 बज रहे थे, जब इस घटना की सूचना फरीदाबाद में धौज थाना क्षेत्र को मिली. धौज थाना गगन के नए घर से मात्र 5 मिनट की दूरी पर ही था.

मामले की सूचना मिलते ही धौज थानाप्रभारी दयानंद अपनी टीम के साथ कुछ ही देर में गगन के घर जा पहुंचे और उन्होंने सब से पहले मकान में गगन को ढूंढ निकाला और उसे पास के अस्पताल ले गए. उसी दौरान उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों को इस मामले की सूचना दी.

सूचना मिलने पर थोड़ी देर में जिले के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी और फोरैंसिक टीम भी वहां पहुंच गई. फोरैंसिक टीम द्वारा अपना काम निपटाने के बाद पुलिस ने दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए भेज दीं.

इस के बाद उच्चाधिकारियों के निर्देश पर थानाप्रभारी ने जांच शुरू कर दी. पुलिस ने सक्षम से उस के पिता का मोबाइल नंबर ले कर टैक्निकल टीम को दे दिया. टीम ने ट्रेसिंग कर के नीरज की लोकेशन का पता लगा लिया.

घटना के 9 घंटे बाद डीएलएफ और धौज की क्राइम ब्रांच की टीमों ने 22 अक्तूबर को एनआईटी फरीदाबाद से दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया.

इस हत्या के दोनों आरोपियों को गिरफ्तार करने के बाद उन से पूछताछ के दौरान इस पूरे हत्याकांड की वजह सामने आई. दरअसल, नीरज और उस की पत्नी आयशा के जीवन में सब कुछ सही चल रहा था, लेकिन नीरज के मन में आयशा को ले कर उसे शक होता था.

आयशा अकसर अपने बचपन के दोस्तों के साथ फोन पर बातचीत किया करती थी. कई बार वह बातों में इतनी मशगूल हो जाती थी कि आयशा का ध्यान नीरज पर होता ही नहीं था.

इस के अलावा आयशा खुले दिमाग वाली युवती थी. दोस्तों के संग बातचीत, हंसीमजाक करना उसे बेहद पसंद था. लेकिन कहीं न कहीं आयशा का इस तरह का बर्ताव करना नीरज को पसंद नहीं आता था. इसी को ले कर अकसर नीरज और आयशा के बीच झगड़े होते रहते थे.

दोनों के बीच झगड़े इतने बढ़ जाते थे कि उन के बीच सुलह के लिए आयशा के मायके वालों को आना पड़ता था.

इसी बीच पिछले साल, नीरज ने आयशा के भाई यानी अपने साले गगन से 10 लाख रुपए उधार भी मांगे थे. एनआईटी फरीदाबाद का रहने वाला नीरज अपने इलाके में एक टेलर मैटेरियल की दुकान खोलना चाहता था, जिस के लिए उसे पैसों की जरूरत थी.

उस ने गगन से पैसे ले कर साल भर में वापस करने की बात भी कही थी. लेकिन जब एक साल से ज्यादा का समय हो गया तो गगन नीरज को पैसे लौटाने के लिए कहने लगा.

कोरोना की वजह से धंधा नहीं चलने के कारण नीरज के पास गगन को लौटाने के लिए पैसा इकट्ठे नहीं हो सके. वह गगन को आज कल कह कर हर दिन पैसे लौटाने की बात किया करता, लेकिन वह पैसों का जुगाड़ नहीं कर पा रहा था. ये बात कहीं न कहीं गगन को भी समझ आ गई थी कि उस के जीजा के पास पैसे नहीं है.

जब यह बात उस ने अपने घर वालों को बताई तो आएशा की मां सुमन ने नीरज को ताना मारना शुरू कर दिया. सुमन और गगन के साथसाथ आएशा को जब कभी मौका मिलता, वे सब उसे पैसे लौटाने के लिए कहते, नहीं तो उसे किसी न किसी बहाने ताने मारते थे.

यही नहीं, पिछले एक साल से आयशा अपने बेटे सक्षम के साथ अपने मायके में ही थी. दोनों के बीच झगड़े के बाद आयशा अपने बेटे को ले कर अपने मायके रहने के लिए आ गई थी. और यह बात नीरज को काफी खटकने लगी थी.

ये सब देखते हुए और इन सभी चीजों से परेशान हो कर उस ने इस हत्याकांड की प्लानिंग अपने दिमाग में ही रच ली थी.

पूरी प्लानिंग के चलते नीरज ने बीते कुछ दिनों से ससुराल के लोगों को राजीनामे के बहाने अपनी बातों में फंसाना शुरू कर दिया, ताकि उस पर कोई शक न कर सके.

इसी के चलते 15-16 दिन पहले नीरज ससुराल के लोगों से राजीनामा करने के बहाने मोहब्ताबाद गया और पूरी कोठी को अपनी नजरों में उतार लिया था.

उस ने इस हत्याकांड को अंजाम देने के लिए पैसों का लालच दे कर अपने करीबी दोस्त लेखराज को भी इस में शामिल कर लिया था.

इस हत्याकांड को अंजाम देने के लिए नीरज ने एक महीने पहले हापुड़ से 35 हजार रुपए में 2 देसी तमंचे, 2 चाकू और कुछ कारतूस खरीद लिए थे.

नीरज ने कभी न तो हथियार रखे और न ही चलाए थे, लेकिन पत्नी के चरित्र और पैसे के लेनदेन के चलते तीनों की हत्या करने के लिए उस ने तमंचा चलाना भी सीख लिया था. फिर उस ने 21 अक्तूबर, 2021 की रात को घटना को अंजाम दे दिया.

कोई भी जीवित न बचे, इसलिए नीरज और लेखराज ने गोली चलाने के साथसाथ चाकुओं से भी वार किए.

सास सुमन को एक गोली लगी और चाकू के कई वार किए गए. आयशा को 2 गोली लगी थीं. राजन शर्मा को एक गोली सीने में लगी, जबकि गगन के कमर में गोली लगी थी.

नीरज को अनुमान था कि इस गोली से गगन की मौत हो जाएगी. लेकिन वह जीवित बच गया. दोनों आरोपियों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

बेटी बनी पिता का काल : पैसो के लिए रिश्तों का खून

सुबह 6 बजे का समय था और तारीख थी 20 जुलाई, 2021. उत्तर प्रदश के जिला संभल के मुटेना गांव के पास दक्षिण की ओर खेत के बीचोबीच पेड़ से लाश लटकी हुई थी. उस के नीचे एक औरत और 2 लड़कियां विलाप कर रही थीं. उन के अलावा गांव के कुछ लोग भी मौजूद थे.

उसी गांव के ही एक व्यक्ति ने पुलिस को इस की सूचना दी थी. वहां मौजूद सभी को पुलिस के आने का इंतजार था, लेकिन वे आपस में कानाफूसी करते हुए अचरज भी जता रहे थे कि 60 साल से अधिक उम्र के इस सीधेसादे बुजुर्ग ने आखिर फांसी क्यों लगाई होगी? कैसे फंदा बनाया होगा? कैसे फांसी लगाई होगी?

कुछ देर में ही चौकी इंचार्ज 2 कांस्टेबलों के साथ वहां पहुंच गए थे. उन्होंने पहले आसपास के लोगों को वहां से हटाया. फिर पेड़ से लटकी लाश का गहराई से मुआयना किया. प्राथमिक छानबीन की और इस की सूचना रजपुरा के थानाप्रभारी को भी दे दी.

सूचना पाते ही थानाप्रभारी विद्युत गोयल उच्च अधिकारियों को सूचना भेज कर घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने लाश नीचे उतरवाई और पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए संभल जिला मुख्यालय भेज दी. मृतक की पहचान मुटेना के हरपाल यादव के रूप में हुई.

पुलिस की निगाह में मामला आत्महत्या का लग रहा था. इसलिए पुलिस ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. हालांकि वहां मौजूद कुछ लोगों ने हत्या किए जाने की आशंका जरूर जताई, लेकिन मृतक के घर वालों में से किसी ने भी किसी पर कोई आरोप नहीं लगाया.

हरपाल यादव के पास 30 बीघा खेती की जमीन थी. वह खेती कर अपने परिवार का गुजरबसर करते आ रहे थे. उन की 3 बेटियां नीतू, प्रीति व कविता थीं, जिन की परवरिश में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी थी.

हालांकि उन को बेटे की कमी भी खलती रहती थी. बेटा नहीं होने की टीस के चलते उन की एक आदत शराब पीने की भी लग गई थी. जबकि पत्नी लाजवंती उन से शराब छोड़ने को कहती रहती थी.

उन्होंने बड़ी बेटी नीतू की शादी कई साल पहले कर दी थी. कुछ समय से दूसरी बेटी प्रीति की शादी की चिंता सताने लगी थी. लाजवंती प्रीति के विवाह को ले कर कुछ ज्यादा चिंतित रहती थी, इस की वजह यह थी कि वह बाकी 2 बेटियों से अलग जिद्दी स्वभाव की थी. अपनी बात चाहे जैसे हो, मनवा कर ही दम लेती थी.

शादी की चिंता में घुले जा रहे मातापिता की समस्या का समाधान प्रीति ने खुद ही निकाल दिया था. उस ने अपनी मां को बताया कि वह अपनी ही जाति के बदायूं के रहने वाले धर्मेंद्र यादव नाम के लड़के को जानती है. उस ने उसे एक शादी में देखा था. उसे वह पसंद करती है.

प्रीति को उस के बारे जो जानकारी थी, मां को बता दी. मां लाजवंती ने यह जानकारी अपने पति को दे कर बताया कि धर्मेंद्र बदायूं जिले की इसलामनगर तहसील के पतीसा गांव का रहने वाला है. उस के 4 भाई और एक बहन है.

जल्द ही प्रीति के मातापिता ने धर्मेंद्र के परिवार वालों से मिल कर कोरोना काल में ही शादी तय कर दी, किंतु शादी की तारीख कोरोना की वजह से तय नहीं हो पाई थी.

प्रीति और धर्मेंद्र की शादी तय हो जाने के बाद वे मिलने को बेचैन हो गए थे, किंतु सामाजिक और पारिवारिक मानमर्यादा के चलते मिल नहीं पा रहे थे. दूसरा कोरोना काल की वजह से कहीं आनाजाना भी मुश्किल था.

दोनों की फोन पर बातें होने लगी थीं. उस के बाद उन की मिलने की इच्छा और प्रबल हो गई. एक दिन धर्मेंद्र ने प्रीति से मुलाकात करने का आग्रह किया. प्रीति भी इसी का इंतजार कर रही थी. धर्मेंद्र ने मिलने की जगह और समय बताया.

धर्मेंद्र से मिलने के बाद प्रीति उस पर फिदा हो गई. उसे अपने सपनों का शहजादा मिल गया था. इकहरे बदन के मजबूत कदकाठी वाले धर्मेंद्र के चेहरे पर गजब का आकर्षण धा. उस से बातें कर प्रीति बहुत प्रभावित हो गई. धर्मेंद्र भी प्रीति को देख कर लट्टू हो गया. जवानी से मदमस्त प्रीति को देखा तो एकटक से देखता ही रह गया.

उस की सुंदर काया, झलकती जवानी, इतरानेइठलाने की अदाएं धर्मेंद्र को बहुत पसंद आईं. उस रोज उन की छोटी से मुलाकात हुई, लेकिन बाद में दोनों ने मिलनेजुलने का सिलसिला बना लिया.

धीरेधीरे धर्मेंद्र का प्रीति के घर भी आनाजाना हो गया. प्रीति भी अपने होने वाले ससुराल घूम आई. धर्मेंद्र ने प्रीति से कहा कि वह काफी धूमधाम से पूरे जश्न के साथ शादी करना चाहता है.

जबकि कोरोना काल में शादी में लगी बंदिशों के चलते शादी की तारीखें टलती जा रही थीं. इस बीच उन के बीच वह सब भी हो गया, जो विवाह बाद होना चाहिए था.

उन की शादी अब महज विशेष औपचारिकता भर रह गई थी. दोनों  एकदूसरे के दीवाने हो गए थे. उन्होंने साथ जीनेमरने की कसमें भी खाई थीं.

शादी के इंतजार में 2 महीने और निकल गए. जून का महीना भी जाने वाला था. उन दिनों धर्मेंद्र प्रीति के पास आया हुआ था. प्रीति के घरवालों को उन के मिलनेजुलने से कोई आपत्ति नहीं थी. वह अकसर शाम तक ठहरता और फिर अपने घर चला जाता था.

उस दिन धर्मेंद्र ने प्रीति से अचानक कहा कि उसे कुछ खास बात करनी है. उस के साथ ही वह पूछ बैठा, ‘‘अच्छा प्रीति, एक बात बताओ…’’

‘‘क्या?’’ प्रीति उत्सुकता से बोली.

‘‘तुम्हारे पिताजी हमारी शादी में कितना रुपया खर्च करेंगे?’’

प्रीति याद करती हुई बोली, ‘‘नीतू दीदी की शादी में 3 लाख रुपया खर्च हुआ था. मेरी शादी में भी लगभग इतना तो खर्च करेंगे ही.’’

‘‘इतना पैसा जमा कर लिया होगा पिताजी ने?’’ धर्मेंद्र चिंता जताते हुए बोला.

‘‘इतनी रकम की व्यवस्था नहीं है,  फिर भी कुछ रिश्तेदारों से और कुछ खेती की जमीन पर बैंक से लोन लेने की तैयारी कर रहे हैं.’’ प्रीति बोली.

तभी धर्मेंद्र बोला, ‘‘3 लाख रुपए में क्या होगा. देखो मुझे अपना कोई कारोबार करने के लिए कम से कम 5 लाख रुपए चाहिए. बारात की अच्छी खातिरदारी होनी चाहिए. दहेज के जरूरी सामान के लिए भी 3 लाख रुपए कम पड़ जाएंगे. शादी के बाद कोई किसी का साथ नहीं देता. हम दोनों जो खुशहाल जिंदगी का तानाबाना बुन रहे हैं, सुनहरे सपने देख रहे हैं, वे सब पूरे नहीं हो सकेंगे.’’

‘‘इतना पैसा कहां से आएगा?’’ प्रीति चिंतित हो गई.

‘‘चिंता करने की जरूरत नहीं है. मेरे पास उस का समाधान है.’’ धर्मेंद्र बोला.

‘‘वह क्या?’’ प्रीति ने पूछा.

‘‘देखो पिताजी के पास 30 बीघा जमीन है. 3 बेटियां हैं. बेटा कोई है नहीं. हमारे हिस्से में भी 10 बीघा जमीन आएगी. उन्हें सिर्फ इतना करना है कि हमारे हिस्से की जमीन बेच कर रकम हमें दे दें.’’

धर्मेंद्र की बात प्रीति की समझ में तो आ गई पर दुविधा के साथ बोली, ‘‘लेकिन यह बात उन को कौन समझाएगा?’’

‘‘तुम, और कौन?’’

‘‘नहीं माने तो?’’

‘‘नहीं कैसे मानेंगे, तुम कोई गलत थोड़े कहोगी. ऐसा करने से उन के सिर पर कर्ज का कोई बोझ भी नहीं पड़ेगा. और वह अपनी तीसरी बेटी की भी शादी अच्छी तरह से कर लेंगे.’’

कुछ सोचती हुई प्रीति बोली, ‘‘अच्छा चलो, मैं आज ही उन से बात करूंगी.’’

थोड़ी देर रुक कर धर्मेंद्र चला गया. रात में पिता को खाना खिलाने के बाद प्रीति ने धर्मेंद्र ने जैसे कहा था, पिता को वैसे ही कह दिया.

संयोग से मां भी वहां मौजूद थी. हरपाल प्रीति की बात सुन कर अवाक रह गए.

उन्होंने तुरंत कहा, ‘‘देखो प्रीति, मैं तुम्हारी हर बात मान लेता हूं, लेकिन यह बात मुझे जरा भी पसंद नहीं है.’’

प्रीति ने पिता को समझाने की कोशिश की, ‘‘धर्मेंद्र कह रहे हैं कि 10 बीघा जमीन बेच ली जाए तो शादी ठीकठाक हो जाएगी. धर्मेंद्र को भी कोई कामधंधा करने के लिए रकम मिल जाएगी. वैसे भी तीनों बहनों के नाम 10 -10 बीघा जमीन तो आनी ही है.’’

दोबारा जमीन की बात सुन कर हरपाल आगबबूला हो गए. गुस्से में बोले, ‘‘जमीन मेरी मां है, तुम लोगों के कहने पर मैं अपनी मां को बेच दूं. ऐसा आज तक खानदान में न हुआ है और न आगे होगा.’’

इतना कह कर वह वहां से उठ कर चले गए. जातेजाते कह गए, ‘‘आइंदा अब इधर मत आना, मुझ से बात मत करना. तुम्हारी शादी तो मैं किसी तरह करवा ही दूंगा. उस के बाद समझो हमारा रिश्ता खत्म हो जाएगा.’’

प्रीति पिता की इस नाराजगी से काफी दुखी हो गई. उस ने पूरी बात अगले रोज धर्मेंद्र को फोन पर बताई. वह समझ नहीं पा रही थी क्या करे कि उस के पिता जमीन बेचने को तैयार हो जाएं.

एक हफ्ते तक बापबेटी के बीच कोई बातचीत नहीं हुई. धर्मेंद्र ने भी प्रीति की इस बीच कोई खोजखबर नहीं ली. आखिरकार प्रीति ने ही फोन कर धर्मेंद्र से हालचाल पूछा. फोन पर धर्मेंद्र काफी उखड़ाउखड़ा सा लगा. वह लापरवाही से बातें करता रहा.

प्रीति ने महसूस किया कि जैसे उस के मंगेतर धर्मेंद्र को उस से कोई लगाव नहीं रहा. किसी तरह से प्रीति अपने प्रेम और अंतरंग संबंधों का हवाला देते हुए धर्मेंद्र को मनाने में कामयाब रही.

वह धर्मेंद्र के प्रेम जाल में बुरी तरह फंस चुकी थी. धर्मेंद्र को अपना सब कुछ सुपुर्द कर चुकी थी. उस ने धर्मेंद्र को आश्वासन दिया कि वह कोई न कोई रास्ता निकाल लेगी, जिस से पिता उस के हिस्से की जमीन देने के लिए राजी हो जाएंगे.

इसी के साथ उस ने धर्मेंद्र को किसी जगह बैठ कर समस्या का समाधान निकालने का सुझाव दिया.

धर्मेंद्र प्रीति की बात मानते हुए उस से मिला. मिलते ही प्रीति उस के गले लग कर बोली, ‘‘गुस्सा थूक दो, आओ कोई तरीका निकालते हैं.’’

‘‘बुड्ढे ने तो सारा खेल बिगाड़ दिया. और ऐसा ही हाल रहा तो हम दोनों को वह जीते जी सुखी जीवन शुरू करने नहीं देगा.’’ धर्मेंद्र गुस्से में बोला.

‘‘तो फिर उन्हें रास्ते से ही हटा देते हैं.’’ प्रीति तुरंत बोली.

धर्मेंद्र अवाक रह गया, ‘‘यह तुम क्या कह रही हो? वो तुम्हारे पिता हैं.’’

‘‘पिता हैं तो क्या हुआ, तुम सही कह रहे हो, उन के जीते जी हमें सुखी जीवन नहीं नसीब होगा.’’

‘‘एक बार फिर समझाते हैं, मैं भी तुम्हारे साथ रहूंगा.’’ धर्मेंद्र बोला.

‘‘तुम इस में साथ मत दो, मैं ने जो योजना बनाई है उस में मेरी मदद करो.’’

उस के बाद प्रीति ने धर्मेंद्र को अपनी योजना बताई और दोनों ही उसे अंजाम देने की तैयारी में जुट गए.

योजना के मुताबिक दोनों ने मिल कर हरपाल को ठिकाने लगाने की पूरी तैयारी कर ली थी. उस के बाद जो घटित हुआ, उस का खुलासा पोस्टमार्टम रिपोर्ट और पुलिस की गहन तफ्तीश से सामने आ गया. वह इस प्रकार है—

19 अगस्त, 2021 को हरपाल खेतों पर काम करने के बाद घर आ रहे थे. रास्ते में  गांव का ही एक दोस्त मिल गया. वह शराब पीनेपिलाने वाला दोस्त था. दोनों ने एकांत में बैठ कर शराब पी. फिर हरपाल घर आ गए. तभी प्रीति ने बताया कि अभी उन से कोई मिलना चाहता है.

प्रीति अपने पिता को घर से दूर खड़े धर्मेंद्र के पास ले गई. वह बाइक ले कर खड़ा था. प्रीति अपने पिताजी को धर्मेंद्र के हवाले कर घर आ गई.

धर्मेंद्र हरपाल को उन के खेतों की तरफ ले गया, जहां उस का साथी गौरव मौजूद था. वहां बैठ कर हरपाल को और दारू पिलाई गई. जब वह नशे में काफी धुत हो गए, तब उन के सिर पर रौड मार कर हत्या कर दी.

हरपाल की मौत के बाद धर्मेंद्र ने पूरी बात फोन से प्रीति को बता दी. उन के द्वारा ही गले में फंदा डाले हरपाल के पेड़ पर लटके होने की खबर घर पहुंचा दी गई. प्रीति इस से पहले ही घटनास्थल पर पहुंच चुकी थी. फिर उन्होंने लाश पेड़ से इस तरह लटका दी जिस से मामला आत्महत्या का लगे.

हरपाल की लाश को पेड़ से लटकाने में काफी समय लग गया, लेकिन सुबह होने से पहले ही प्रीति ने सभी परिचितों को इस घटना की सूचना दे दी और वे आननफानन में घटनास्थल पर जा पहुंचे.

हत्या के इस मामले को आत्महत्या बनाने की कोशिश तो की गई थी, लेकिन धर्मेंद्र और उस के दोस्त इस में सफल नहीं हो पाए. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से ही इस का खुलासा हो गया. फिर पुलिस ने शक के आधार पर परिजनों से पूछताछ की, जिस में प्रीति का व्यवहार ही संदिग्ध दिखा.

उस के बयान के आधार पर पुलिस ने धर्मेंद्र को गिरफ्तार कर लिया. हरपाल के मर्डर केस का परदाफाश एसपी (संभल) चक्रेश मिश्रा द्वारा पत्रकार वार्ता में किया गया. पूरे हत्याकांड में प्रीति की साजिश होने के कारण 120बी आईपीसी के तहत प्रीति को भी नामजद किया गया है.

तीनों आरोपियों से पूछताछ के बाद उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

शरीरों के खेल में मासूम कार्तिक बना निशाना – भाग 1

परसराम महावर का परिवार हर तरह से खुशहाल था, जो भोपाल की सिंधी बाहुल्य बैरागढ़ स्थित राजेंद्र नगर के एक छोटे से मकान में रहता था. परसराम कपड़े की दुकान में काम करता था. बैरागढ़ का कपड़ा बाजार देश भर में मशहूर है, यहां देश के व्यापारी थोक और फुटकर खरीदारी करने आते हैं. परसराम सुबह 8-9 बजे दुकान पर चला जाता था और देर रात लौटना उस की दिनचर्या थी. घर में उस की 30 वर्षीय पत्नी कविता (बदला नाम) और 2 बच्चे 10 साल की कनक और 8 साल का बेटा कार्तिक था, जिसे भरत भी कहते थे.

सुबह के वक्त दोनों बच्चों को स्कूल भेज कर कविता घर के कामकाज में जुट जाती थी और दोपहर 12 बजे तक फारिग हो कर या तो पड़ोस में चली जाती थी या फिर अपने मोबाइल फोन पर गेम खेल कर वक्त गुजार लेती थी. दोपहर ढाई बजे बच्चे स्कूल से वापस आ जाते थे तो वह फिर उन के कामों में व्यस्त हो जाती थी. इस के बाद बच्चों के खेलने और ट्यूशन पढ़ने का वक्त हो जाता था.

एक लिहाज से परसराम और कविता का घर और जिंदगी दोनों खुशहाल थे, उस की पगार से घर ठीकठाक चल जाता था. शादी के 12 साल हो जाने के बाद पतिपत्नी का मकसद बच्चों को पढ़ालिखा कर कुछ बनाने भर का रह गया था. इन लोगों ने अपने बच्चों को नजदीकी क्राइस्ट स्कूल में दाखिल करा दिया था. हर मांबाप की तरह इन की इच्छा भी बच्चों को अंगरेजी स्कूल में पढ़ाने की थी, जिस वे फर्राटे से अंगरेजी बोलने लगें. कनक और कार्तिक जब स्कूल की यूनिफार्म के साथ टाई बेल्ट और जूते पहन कर जाते थे, तो परसराम के काम करने का उत्साह और बढ़ जाता था.

कपड़े की दुकान का काम कितना कठिन होता है, यह परसराम जैसे लोग ही बेहतर जानते हैं जो दिन भर ग्राहकों के सामने कपड़ों के थान और पीस खोल कर रखते हैं, फिर वापस तह बना कर उन्हें उन की जगह पर जमाते हैं. सीजन के दिनों में तो कर्मचारी कमर सीधी करने और बाथरूम जाने तक को तरस जाते हैं. सालों से कपड़े की दुकान में काम कर रहे परसराम को अपनी नौकरी से कोई शिकायत नहीं थी. रात को घर लौट कर उस की थकान बच्चों की बातों और खूबसूरत पत्नी के होंठों की मुसकराहट देख कर गायब हो जाती थी.

अच्छीभली गृहस्थी थी कविता और परसराम की

कविता कुशल गृहिणी थी, जो किफायत से खर्च कर के घर चला लेती थी. वह दूसरी औरतों की तरह फिजूलखर्ची नहीं करती थी. 12 साल के वैवाहिक जीवन में उस ने पति को किसी भी शिकायत का मौका नहीं दिया था. इस बात पर परसराम को गर्व भी होता था और पत्नी पर प्यार भी उमड़ आता था.

कुल जमा परसराम अपनी जिंदगी से खुश था, लेकिन बीती 8 जनवरी को उस की इन खुशियों को ऐसा ग्रहण लगा, जिस से शायद ही वह जिंदगी में कभी उबर पाए. उस दिन दोपहर करीब 3 बजे उस के पास कविता का फोन आया कि कनक तो आ गई है, लेकिन कार्तिक स्कूल से वापस नहीं लौटा है. फोन सुनते ही वह घबरा कर घर की तरफ भागा.

hindi-manohar-family-crime-story

कनक और कार्तिक दोनों एक ही औटो से स्कूल आतेजाते थे. दोनों के आनेजाने का वक्त तय था, सुबह 8 बजे जाना और दोपहर ढाई बजे लौट आना. लेकिन उस दिन कविता जब रोजाना की तरह घर के दरवाजे पर आई तो कविता ने कनक के साथ कार्तिक को नहीं देखा.

‘‘भाई कहां है?’’ पूछने पर कनक ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया कि वह तो नहीं आया. क्यों नहीं आया, इस सवाल का कनक कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाई तो कविता घबरा उठी.

इस पर उस ने औटो वाले से पूछा तो उस ने भी हैरानी से बताया कि आज तो कार्तिक स्कूल में दिखा ही नहीं और जल्दबाजी में उस ने भी ध्यान नहीं दिया.

इन जवाबों पर कविता को गुस्सा तो बहुत आया कि कार्तिक को छोड़ने की लापरवाही क्यों की, पर इस गुस्से को रोक कर उस ने पहले पति को फोन किया, फिर यह सोच कर बेचैन निगाहों से सड़क को निहारने लगी कि शायद कार्तिक आता दिख जाए.

हो न हो, वह बच्चों के साथ खेलने के कारण औटो में बैठना भूल गया हो या फिर स्कूल में ही किसी काम से रुक गया हो. कई तरह की शंकाओं, आशंकाओं से घिरी कविता परसराम के आने तक बेटे की सलामती की दुआ मांगती रही.

कोई खास वजह थी, जिस से परसराम और कविता दोनों जरूरत से ज्यादा आशंकित हो उठे थे. परसराम ने घर आतेआते फोन पर अपने भाई दिलीप को यह बात बताई तो वह भी चंद मिनटों में राजेंद्रनगर आ पहुंचा.

दोनों भाई भागेभागे क्राइस्ट मेमोरियल स्कूल पहुंचे और कार्तिक के बारे में पूछताछ की. वहां मौजूद सिक्योरिटी गार्ड और स्कूल स्टाफ ने बताया कि कार्तिक तो वक्त रहते चला गया था. इस जवाब पर परसराम का झल्लाना स्वाभाविक था, लेकिन स्कूल वालों से बहस करने के बजाय उस ने कार्तिक को ढूंढना ज्यादा बेहतर समझा और दोनों भाई उसे इधरउधर ढूंढने लगे. उन्होंने स्कूल से घर तक का रास्ता भी छाना. कई लोगों से कार्तिक के बारे में पूछताछ भी की लेकिन उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

एक घंटे की खोजबीन के बाद परसराम ने बैरागढ़ थाने जा कर बेटे की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवा दी, जो एक जरूरी औपचारिकता वाली बात थी. कार्तिक को जान से भी ज्यादा चाहने वाले परसराम को चैन नहीं मिल रहा था, इसलिए रिपोर्ट दर्ज करने के बाद वह फिर बेटे को तलाशने में लग गया. उस ने बैरागढ़ की कोई गली नहीं छोड़ी.

कटवा दी जिंदगी की डोर : पत्नी और उस के प्रेमी ने ली जान – भाग 1

भारतीय खुफिया एजेंसी इंटेलीजेंस ब्यूरो यानी आईबी के सहायक तकनीकी सूचना अधिकारी चेतन प्रकाश गलाना बीती 14 फरवरी को 2 दिन की छुट्टी पर दिल्ली से अपने घर कोटा जिले की रामगंज मंडी आए थे. दिल्ली में वह अकेले रहते थे. उन के मातापिता रामगंज मंडी में और पत्नी अनीता 2 छोटे बेटों के साथ झालावाड़ में रहती थी.

चेतन आमतौर पर महीने में 1-2 बार छुट्टी पर घर आ जाते थे. जब भी वह घर आते तो रामगंज मंडी में रहने वाले मातापिता से मिलने जरूर जाते थे. उस दिन भी वह रामगंज मंडी में अपने घर वालों से मिल कर शाम 6 बजे की ट्रेन से झालावाड़ के लिए रवाना हुए थे. उन्हें करीब एक घंटे में झालावाड़ पहुंच जाना चाहिए था. जब रात 8 बजे तक चेतन घर नहीं पहुंचे तो उन की पत्नी अनीता ने अपने रिश्तेदारों को फोन कर के चेतन के बारे में बताया.

अनीता के कहने पर झालावाड़ की गायत्री कालोनी में रहने वाले रिश्तेदार मनमोहन मीणा ने चेतन की तलाश शुरू की. इसी खोजबीन में रात करीब साढ़े 8 बजे चेतन झालरापाटन-भवानी मंडी मार्ग पर रेलवे की रलायता पुलिया के पास बेहोश पड़े मिले. मनमोहन मीणा ने अनीता को चेतन के अचेत पड़े होने की सूचना दी. इस के बाद रिश्तेदार बेहोश चेतन को एआरजी अस्पताल ले गए. जांच के बाद डाक्टरों ने चेतन को मृत घोषित कर दिया.

संदिग्ध मौत का मामला होने की वजह से अस्पताल से पुलिस को सूचना दी गई. पुलिस ने अस्पताल पहुंच कर शव का निरीक्षण किया, लेकिन शरीर पर चोट का कोई निशान नहीं मिला.

पुलिस ने रलायता पुलिया के पास उस जगह का भी मौका मुआयना किया, जहां चेतन अचेत पड़े मिले थे. लेकिन ऐसा कोई सबूत नहीं मिला, जिस से पता चलता कि चेतन की मौत कैसे हुई. रिश्तेदारों की सूचना पर रामगंज मंडी से चेतन के मातापिता और अन्य घर वाले भी झालावाड़ आ गए.

पिता को था बेटे की हत्या का संदेह

चेतन के पिता महादेव मीणा ने झालावाड़ के थाना सदर में बेटे की संदिग्ध मौत का मामला दर्ज करा दिया. पुलिस ने सीआरपीसी की धारा 174 में मामला दर्ज कर जांच शुरू की. पुलिस ने 15 फरवरी को चेतन के शव का मैडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम कराया. पोस्टमार्टम के बाद चेतन का विसरा जांच के लिए विधि विज्ञान प्रयोगशाला भेज दिया.

खुफिया अधिकारी की मौत का मामला होने के कारण पुलिस हर एंगल से जांच कर रही थी. इन में 3 मुख्य बिंदु थे, पहला हार्ट अटैक, दूसरा आत्महत्या और तीसरा हत्या. चेतन के शरीर पर चोट या हाथापाई के कोई निशान नहीं मिले थे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी ऐसा कुछ नहीं बताया गया, जिस से मौत का रहस्य खुलता.

अब पुलिस के सामने सवाल यह था कि चेतन जब ट्रेन से झालावाड़ आ रहे थे तो वह रलायता पुलिया कैसे पहुंचे और उन की मौत कैसे हुई? पुलिस कई दिनों तक इन सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करती रही, लेकिन कोई ऐसी महत्त्वपूर्ण जानकारी नहीं मिली, जिस से चेतन की मौत के कारणों का पता चल पाता.

इस बीच, चेतन के पिता महादेव मीणा ने अदालत में इस्तगासा दायर कर दिया. इस्तगासे में कहा गया कि चेतन की सुनियोजित तरीके से हत्या की गई है. इस पर अदालत ने पुलिस को चेतन की हत्या का मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए. तब तक चेतन की हत्या को 3 महीने हो चुके थे.

अप्रैल के दूसरे सप्ताह में झालावाड़ के सदर थाने में अज्ञात लोगों के खिलाफ आईबी औफिसर चेतन प्रकाश गलाना की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. एसपी आनंद शर्मा ने चेतन की हत्या के मामले का खुलासा करने के लिए एडीशनल एसपी छगन सिंह राठौड़ के नेतृत्व में सदर थानाप्रभारी संजय मीणा, एएसआई अजीत मोगा, हैडकांस्टेबल मदन गुर्जर, कुंदर राठौड़, महेंद्र सिंह, हेमंत शर्मा और कुछ कांस्टेबलों की टीम गठित की.

पत्नी को किया गिरफ्तार

पुलिस की इस टीम ने चेतन प्रकाश की दिनचर्या के बारे में पता लगाया. इस के बाद उन के दोस्तों, परिचितों और दुश्मनी रखने वालों को चिह्नित कर के उन से पूछताछ की. इंटेलीजेंस ब्यूरो के दिल्ली कार्यालय में चेतन प्रकाश के साथी कर्मचारियों से भी पूछताछ की गई.

पुलिस टीम ने रामगंज मंडी, झालावाड़ रेलवे स्टेशन और रलायता पुलिया के आसपास घटनास्थल का कई बार दौरा कर के तथ्यों का पता लगाने का प्रयास किया. साइबर टीम ने कई जगह के मोबाइल टावरों का रिकौर्ड निकलवाया. साथ ही चेतन के घरपरिवार की पूरी जानकारी प्राप्त कर के घर वालों से भी पूछताछ की गई.

जांचपड़ताल में यह बात सामने आई कि चेतन के अपनी पत्नी अनीता के साथ संबंध अच्छे नहीं थे. इस के बाद पुलिस ने तकनीकी जांच और मुखबिरों की मदद से चेतन की मौत की कडि़यां जोड़नी शुरू कीं. लंबी चली जांचपड़ताल के बाद 25 जून को पुलिस ने आईबी औफिसर चेतन प्रकाश की हत्या के मामले में उन की पत्नी अनीता को गिरफ्तार कर लिया. अनीता से की गई पूछताछ में चेतन की हत्या की पूरी तसवीर सामने आ गई.

जांच में पता चला कि चेतन की हत्या पुलिस कांस्टेबल प्रवीण राठौड़ ने अपने साथियों के साथ मिल कर सुनियोजित तरीके से की थी. चेतन की पत्नी अनीता भी पति की हत्या में शामिल थी. कांस्टेबल प्रवीण के चेतन की पत्नी अनीता से अवैध संबंध थे. इन संबंधों को ले कर चेतन का अपनी पत्नी अनीता से कई बार विवाद भी हुआ था.

चेतन को शक था कि छोटा बेटा उस का नहीं, बल्कि प्रवीण का है. चेतन ने छोटे बेटे का डीएनए टेस्ट कराने की बात कही थी. इस से अनीता और प्रवीण को अपने अवैध संबंधों का राज खुलने का डर था. इसी वजह से उन्होंने चेतन को रास्ते से हटाने का फैसला किया.

कांस्टेबल प्रवीण राठौड़ ने अपने साथियों के सहयोग से चेतन को मौत के घाट उतारने के लिए 5 प्रयास किए थे. 3 बार की असफलता के बाद चौथी बार चेतन को दिल्ली में उन के घर पर मारने की योजना बनाई गई, लेकिन उस में भी कामयाबी नहीं मिली. अंतत: 5वीं बार वे चेतन को मौत की नींद सुलाने में कामयाब हो गए.

कांस्टेबल प्रवीण राठौड़ पहले झालावाड़ पुलिस की स्पैशल टीम में तैनात था. बाद में वह प्रतिनियुक्ति पर भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो यानी एसीबी में चला गया. एसीबी में भी वह झालावाड़ में ही तैनात रहा. पुलिस कांस्टेबल होने के कारण प्रवीण को आपराधिक पैंतरों की अच्छी जानकारी थी कि हत्या के मामले को साधारण मौत में कैसे दर्शाया जाए, वह अच्छी तरह जानता था. इस के लिए उस ने चेतन का अपहरण किया और उसे कैटामाइन इंजेक्शन की हैवी डोज दे कर मौत की नींद सुला दिया.

कैटामाइन इंजेक्शन प्रतिबंधित नशीली दवा है. यह बाजार में खुले तौर पर नहीं मिलती. कैटामाइन इंजेक्शन अस्पतालों और चिकित्सा संस्थानों में ही काम आता है. खास बात यह कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी इस इंजेक्शन के बारे में पता नहीं चल पाता.

पुलिस ने व्यापक जांचपड़ताल के बाद चेतन की हत्या के मामले में उस की पत्नी अनीता के साथसाथ अन्य आरोपियों को भी गिरफ्तार कर लिया. इन आरोपियों से की गई पूछताछ और पुलिस की जांच में चेतन की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस तरह है. झालावाड़ में मंगलपुरा रोड पर रहने वाले रमेशचंद का बेटा प्रवीण राठौड़ जब पढ़ता था, तभी से अनीता उसे जानती थी.

बचपन के प्यार ने हिलोरें मारे तो बन गई हत्या की योजना

अनीता भी झालावाड़ में रहती थी. पढ़नेलिखने की उम्र में दोनों एकदूसरे को चाहने लगे थे. सन 2008 में अनीता का चयन अध्यापिका के पद पर हो गया. उसी साल प्रवीण राठौड़ की नौकरी भी राजस्थान पुलिस में लग गई.